Bihar Board 12th Chemistry Objective Important Questions Part 2

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Bihar Board 12th Chemistry Objective Important Questions Part 2

प्रश्न 1.
[Cu(NH3)4] में Hybridisation होती है-
(a) SP3
(b) Sp3d2
(c) dSP2
(d) dSP3
उत्तर:
(c) dSP2

प्रश्न 2.
फेन उत्प्लावन विधि का उपयोग किया जाता है।
(a) अयस्कों के निस्तापन के लिए
(b) अयस्कों के जारण के लिए
(c) अयस्कों के प्रक्षावण के लिए
(d) अयस्कों के सान्द्रण के लिए
उत्तर:
(d) अयस्कों के सान्द्रण के लिए

प्रश्न 3.
सल्फाइड अयस्कों का सान्द्रण किया जाता है :
(a) गुरुत्व विधि के द्वारा
(b) विद्युत चुम्बकीय विधि के द्वारा
(c) फेन उत्प्लावन विधि के द्वारा
(d) इनमें से किसी के द्वारा नहीं
उत्तर:
(c) फेन उत्प्लावन विधि के द्वारा

प्रश्न 4.
फेन उत्प्लावन विधि आधारित है :
(a) अयस्क के विशिष्ट गुरुत्व पर
(b) सल्फाइड अयस्क का तेल एवं जल के वरणात्मक गीलापन पर
(c) अयस्क के चुम्बकीय गुण पर
(d) अयस्क के विद्युतीय गुण पर
उत्तर:
(b) सल्फाइड अयस्क का तेल एवं जल के वरणात्मक गीलापन पर

प्रश्न 5.
निम्न में से किस अयस्क का सान्द्र फेन उत्प्लावन विधि के द्वारा किया जाता है :
(a) कैसिटेराइट
(b) गैलेना
(c) सिडेराइट
(d) बॉक्साइट
उत्तर:
(b) गैलेना

प्रश्न 6.
निम्न में कौन ग्लेशियल एसिटिक अम्ल की उपस्थिति में क्रोमिक एनहाइड्राइड के द्वारा ऑक्सीकृत करने पर एल्डिहाइड देता है।
(a) CH3COOH
(b) CH3CH2OH
(c) CH3CH(OH)CH3
(d) कोई नहीं
उत्तर:
(b) CH3CH2OH

प्रश्न 7.
निम्न में कौन ऑक्सीकृत होकर कीटोन देता है ?
(a) CH3CH2OH
(b) CH3CH(OH)
(c) CH3OH
(d) कोई नहीं
उत्तर:
(b) CH3CH(OH)

प्रश्न 8.
निम्न में केटलिंग घोल को अवकृत करता है ?
(a) CH3COOH
(b) CH3COCH3
(c) HCHO
(d) CH3OH
उत्तर:
(c) HCHO

प्रश्न 9.
निम्न में कौन कैनिजारो प्रतिक्रिया प्रदर्शित करता है ?
(a) HCHO
(b) CH3CHO
(c) CH3COCH3
(d) CH3 CH(CHO).CH3
उत्तर:
(a) HCHO

प्रश्न 10.
निम्न में कौन नीला लिटमस को लाल करता है ?
(a) CHOOH
(b) CH3CHO
(c) CH3COCH3
(d) कोई नहीं
उत्तर:
(a) CHOOH

प्रश्न 11.
कैल्सियम एसीटेट का शुष्क स्त्रवण करने पर बनता है ?
(a) CH3COOH
(b) CH3COCH3
(c) CH3CHO
(d) CH3 CH3
उत्तर:
(b) CH3COCH3

प्रश्न 12.
कैल्सियम एसीटेट और कैल्सियम फॉमेंट को गर्म करने पर निम्न में कान बनता है?
(a) एसीटोन
(b) फॉर्मिक अम्ल
(c) एसीटिक अम्ल
(d) एसीटल्डिहाइड
उत्तर:
(d) एसीटल्डिहाइड

प्रश्न 13.
कार्बोक्सिलिक अम्ल निम्न में किसका विशिष्ट गुण प्रदर्शित नहीं करता है?
(a) > C = 0 समूह
(b) -COOH समूह
(c) एल्काइल समूह
(d) किसी का नहीं
उत्तर:
(a) > C = 0 समूह

प्रश्न 14.
निम्न में कौन फेनॉल है ?
(a) C6H5CH2OH
(b) C6H5OH
(c) C6H5CHO
(d) कोई नहीं
उत्तर:
(b) C6H5OH

प्रश्न 15.
सबसे प्रबल अम्ल है ?
(a) p-फेनॉल
(b) o-फेनॉल
(c) फेनॉल
(d) m-फेनॉल
उत्तर:
(a) p-फेनॉल

प्रश्न 16.
निम्न में से नीला लिटमस को लाल करता है ?
(a) CH3CH2OH
(b) C6H5CHO
(c) C6H5OH
(d) कोई नहीं
उत्तर:
(c) C6H5OH

प्रश्न 17.
फेनॉल प्रतिक्रिया नहीं करता है?
(a) NaOH
(b) KOH
(c) NaHCO3
(d) किसी के साथ नहीं
उत्तर:
(c) NaHCO3

प्रश्न 18.
सबसे क्रियाशील एल्काइल हैलाइड कौन है ?
(a) C2H5Br
(b) C2H5l
(c) C2H5Cl
(d) सभी समान क्रियाशील हैं
उत्तर:
(b) C2H5l

प्रश्न 19.
निम्न में कौन सबसे क्रियाशील है ?
(a) CH3CH2l
(b) (CH3)3CHl
(c) (CH3)Cl
(d) सभी समान क्रियाशील हैं
उत्तर:
(c) (CH3)Cl

प्रश्न 20.
इथाइल आयोडाइड को आर्द्र सिल्वर ऑक्साइड के साथ गर्म करने पर बनता है ?
(a) एसीटिक अम्ल
(b) इथाइल एल्कोहॉल
(c) एसीटल्डिहाइड
(d) सभी
उत्तर:
(b) इथाइल एल्कोहॉल

प्रश्न 21.
निम्न में सबसे अधिक क्षारीय कौन है ?
(a) NH3
(b) AsH3
(c) SbH3
(d) PH3
उत्तर:
(a) NH3

प्रश्न 22.
निम्न में सबसे अधिक स्थायी कौन है ?
(a) PH3
(b) NH3
(c) AsH3
(d) SbH3
उत्तर:
(b) NH3

प्रश्न 23.
इनमें सबसे प्रबल अवकारक कौन है ?
(a) PH3
(b) NH3
(c) SbH3
(d) AsH3
उत्तर:
(c) SbH3

प्रश्न 24.
निम्न में से कौन सबसे कम अम्लीय होता है?
(a) H2O
(b) H2Se
(c) H2S
(d) H2Te
उत्तर:
(a) H2O

प्रश्न 25.
निम्न में कौन सबसे स्थायी होता है ?
(a) H2S
(b) H2O
(c) H2Te
(d) H2He
उत्तर:
(b) H2O

प्रश्न 26.
निम्न में कौन सबसे प्रबल अवकारक है ?
(a) H2O
(b) H2Se
(c) H2Te
(d) H2S
उत्तर:
(c) H2Te

प्रश्न 27.
H2SO4 है-
(a) अम्ल
(b) भस्म
(c) क्षारीय
(d) लवण
उत्तर:
(a) अम्ल

प्रश्न 28.
निम्न में किसका हिमांक में अवनमन अधिकृत होगा-
(a) K2SO4
(b) NaCl
(c) Urea
(d) Glucose
उत्तर:
(a) K2SO4

प्रश्न 29.
प्रथम कोटि अभिक्रिया के गति स्थिरांक की इकाई होती है-
(a) समय -1
(b) मोल लीटर -1 सेकेण्ड -1
(c) लीटर मोल -1 सेकेण्ड -1
(d) लीटर मोल -1 सेकेण्ड
उत्तर:
(a) समय -1

प्रश्न 30.
CH4 के कार्बन का संकरण है-
(a) sp3
(b) sp2
(c) sp
(d) sp3d2
उत्तर:
(a) sp3

प्रश्न 31.
Ethane (C2H6) में कार्बन का संकरण है-
(a) sp2
(b) sp3
(c) sp
(d) dsp2
उत्तर:
(b) sp3

प्रश्न 32.
ALKANE का सामान्य सूत्र है-
(a) CnH2n
(b) CnH2n+1
(c) CnH2n+2
(d) CnH2n-2
उत्तर:
(c) CnH2n+2

प्रश्न 33.
Acetylene में किसने σ तथा π बंधन है-
(a) 2σ तथा 3π
(b) 3σ तथा 1π
(c) 2σ तथा 2π
(d) 3σ तथा 2π
उत्तर:
(d) 3σ तथा 2π

प्रश्न 34.
ALKYNE का सामान्य सूत्र है-
(a) CnH2n
(b) CnH2n+1
(c) CnH2n-2
(d) CnH2n+2
उत्तर:
(c) CnH2n-2

प्रश्न 35.
K4[Fe(CN)6] है-
(a) डबल साल्ट
(b) जटिल लवण
(c) अम्ल
(d) भस्म
उत्तर:
(b) जटिल लवण

प्रश्न 36.
XeF4 का आकार होता है-
(a) चतुष्फलकीय
(b) स्कवायर प्लेनर
(c) पिरामिडल
(d) एकरैखिक
उत्तर:
(b) स्कवायर प्लेनर

प्रश्न 37.
किसी अभिक्रिया का वेग निम्नांकित प्रकार से व्यक्त होता है। वेग = K[A]2[B], तो अभिक्रिया की कोटि क्या है ?
(a) 2
(b) 3
(c) 1
(d) 0
उत्तर:
(b) 3

प्रश्न 38.
25°C ताप शुद्धजल का मोलरता होता है-
(a) 5.55 M
(b) 50.5 M
(c) 55. 5 M
(d) 5.05 M
उत्तर:
(c) 55. 5 M

प्रश्न 39.
यदि 200ml NaOH घोल में 2 ग्राम NaOH हो तो घोल का मोलरता-
(a) 0.25
(b) 0.5
(c) 5
(d) 10
उत्तर:
(a) 0.25

प्रश्न 40.
निम्न किसमें H-Bond नहीं है-
(a) NH3
(b) H2O
(c) HCl
(d) HF
उत्तर:
(c) HCl

प्रश्न 41.
यदि CuSO4 घोल में 96500 कूलम्ब विद्युत धारा प्रवाहित होती है तो मुक्त Cu का द्रव्यमान होगा-
(a) 63.5 gram Cu
(b) 31.75 gram Cu
(c) 96500 gram Cu
(d) 100 gram Cu
उत्तर:
(b) 31.75 gram Cu

प्रश्न 42.
निम्नलिखित में कौन-सा धातु साधारण तापक्रम पर द्रव होता है-
(a) जस्ता
(b) पारा
(c) ब्रोमिन
(d) जल
उत्तर:
(b) पारा

प्रश्न 43.
Caprolactum Monomer है-
(a) Nylon-6
(b) Nylon-6, 6
(c) Nylon-2-Nylon-6
(d) Terylene
उत्तर:
(a) Nylon-6

प्रश्न 44.
Alkylhalide को Alcohol में परिवर्तित करने की प्रतिक्रिया है-
(a) योगशील प्रतिक्रिया
(b) प्रतिस्थापन प्रतिक्रिया
(c) विलोपन प्रतिक्रिया
(d) जल अपघटन प्रतिक्रिया
उत्तर:
(b) प्रतिस्थापन प्रतिक्रिया

प्रश्न 45.
Glucose (C6H12O6) में chiral carbon की संख्या है-
(a) 4
(b) 5
(c) 3
(d) 1
उत्तर:
(b) 5

प्रश्न 46.
Glycerol है
(a) Primary Alcohol
(b) Secondary Alcohol
(c) Tertiary Alcohol
(d) Trihydric alcohol
उत्तर:
(d) Trihydric alcohol

Bihar Board 12th Physics Important Questions Short Answer Type Part 3

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Bihar Board 12th Physics Important Questions Short Answer Type Part 3

प्रश्न 1.
किसी उत्तल लेंस को पानी में पूर्णतः डुबाने पर उसकी फोकस दूरी बढ़ जाती है, क्यों?
उत्तर:
किसी लेंस की फोकस दूरी निम्न सूत्र द्वारा दी जाती है-
\(\frac{1}{F}\) = \(\left(\frac{\mu}{\mu_{1}}-1\right)\left(\frac{1}{r_{1}}-\frac{1}{r_{2}}\right)\)
जहाँ लेंस पदार्थ का अपवर्तनांक है तथा. माध्यम का अपवर्तनांक तथा r1, एवं r2, लेंस की सतहों की वक्रता त्रिज्याएं हैं।
अतः दिये गए लेंस के लिए-
F ∝ \(\frac{\mu_{1}}{\mu-\mu_{1}}\)
हवा के लिए μ1 = 1
∴ Fa ∝ \(\frac{1}{\mu-1}\)
तथा पानी के लिए μ1 = \(\frac{4}{3}\)
∴ fw ∝ \(\frac{4}{3 \mu-4}\)
∴ \(\frac{F W}{F a}\) = \(\frac{4}{3 \mu-4}\) × \(\frac{\mu-1}{1}\) = \(\frac{4 \mu-4}{3 \mu-4}\) >1
∴ fw > fa अतः पानी में लेंस की फोकस दूरी हवा की अपेक्षा अधिक होगी।

प्रश्न 2.
सूर्योदय तथा सूर्यास्त के समय क्षितिज लाल प्रतीत क्यों होता है?
उत्तर:
लॉर्ड रैले (Lord Rayliegh) के अनुसार प्रकीर्णन तीव्रता (I) तरंग लंबाई (λ) के Fourth Power के व्युत्क्रमानुपाती होती है।
अर्थात् I ∝ \(\frac{I}{\lambda^{4}}\)
सूर्योदय तथा सूर्यास्त के समय सूर्य की किरणें तिरछी दिशा में वायुमंडल में अधिक दूरी तय करके हमारी आँखों पर पहुंचती हैं। प्रकाश के लाल रंग का तरंग लम्बाई अधिक तथा नीला या बैंगनी का कम होता है।

इस कारण से प्रकाश के लाल रंग का प्रकीर्णन कम तथा नीला या बैंगनी का प्रकीर्णन सबसे अधिक होता है। इससे नीला या बैंगनी वायुमण्डल में विलीन हो जाती है। लाल किरणों का प्रकीर्णन कम होने से वह बचा रह जाता है। इस कारण से ही सूर्योदय और सूर्यास्त के समय क्षितिज लाल प्रतीत होता है।

प्रश्न 3.
Why sky appears blue? (आकाश नीला क्यों दिखाई पड़ता है?)
उत्तर:
वायुमण्डल में जल कण, धूल-कण, धातुएँ के कण तथा गैस के अणु उपस्थित रहते हैं। सूर्य का श्वेत प्रकाश इन कणों पर आपतित होती है। कण इन प्रकाशों का प्रकीर्णन (Scattering) करता है। इसमें लाल रंग के प्रकाश की तरंग लम्बाई सबसे अधिक होती है।

अत: इसका प्रकीर्णन कम होता है परन्तु नीला रंग का तरंग लम्बाई सबसे कम होता है। इसमें प्रकाश प्रकीर्णन सबसे अधिक होता है। इस कारण से आकाश में नीले रंग के प्रकाश सबसे अधिक . पाये जाते हैं, जिससे आकाश नीला या आसमानी दिखलाई पड़ता है।

प्रश्न 4.
What is Light year?’ (प्रकाश वर्ष क्या है ?)
उत्तर:
निर्वात (vacuum) में प्रकाश 1 वर्ष में जितनी दूरी तय करती है उसे ‘प्रकाश-वर्ष’ कहते हैं।
प्रकाश वर्ष का विमा = दूरी का विमा = [L]
अब निर्वात में प्रकाश द्वारा 1 sec. में तय की गई दूरी
= 3 × 108 मी०
∴ 1 प्रकाश वर्ष = 365 × 24 × 60 × 60 × 3 × 108 मी०
= 9.461 × 1015 मीटर
= 9.461 × 1012 कि० मीटर
सूर्य से पृथ्वी तक प्रकाश को आने में लगभग 8 मिनट लगता है। अतः सूर्य से पृथ्वी की दूरी 8 प्रकाश मिनट होती है। पृथ्वी से निकटतम तारा की दूरी 22 प्रकाश वर्ष है।

प्रश्न 5.
What do you understand by dispersion of light? ( प्रकाश के वर्ण विक्षेपण से आप क्या समझते हैं?)
उत्तर:
जब एक श्वेत प्रकाश (White light) की किरण प्रिज्म से गुजरती है तब यह सात . रंगों में विभक्त हो जाता है। इस घटना को “प्रकाश का वर्ण- विक्षेपण” कहते हैं।
इन सातों रंगों को “बैनीआहपीनाला” से जाना जाता है। इसमें बैगनी रंग का प्रिज्म से विचलन सबसे अधिक तथा लाल रंग का सबसे कम होता है। इस कारण से बैगनी सबसे नीचे तथा लाल सबसे ऊपर हो जाता बीच में बाकी पाँच रंगों की किरणें रहती है।
मान लिया कि लाल तथा बैगनी रंग की किरणों का विचलन क्रमशः δR तथा δν है। इसके अपवर्तनांक क्रमशः μR तथा μν है।
∴ δR = (μR- 1)A, जहाँ A प्रिज्म का वर्तक कोण है।
तथा δv = (μν – 1)A
∴ वर्ण विक्षेपण कोण = δν – dR
= (μν – 1)A – (μR – 1) A
= (μν – μR)A

प्रश्न 6.
Why red lamp is used in signal of danger ? (खतरे की सूचना लाल बत्ती से ही क्यों दी जाती है?)
उत्तर:
लॉर्ड रैले (Lord Rayleigh) के अनुसार प्रकीर्णन तीव्रता (I) तरंग लम्बाई (λ) के forth power के व्युत्क्रमानुपाती होता है।
अर्थात् I ∝ \(\frac{1}{\lambda^{4}}\)
लाल रंग के प्रकाश की तरंग लम्बाई सबसे अधिक होती है।
अतः इसका प्रकीर्णन कम होता है। इस कारण से लाल वस्तु दूर तक चला जाता है। इससे हमें लाल बहुत दूर से ही दिखलाई पड़ने लगता है। अतः रेलवे में खतरे की सूचना लाल बत्ती से दी जाती है।

प्रश्न 7.
Compare the difference between diffraction and Interference. (प्रकाश के विवर्तन तथा व्यतिकरण की तुलना करें।)
उत्तर:

  • व्यतिकरण दो फलाबद्ध स्रोतों (coherent source) से निकलने वाली तरंगों के आपसी अध्यारोपण (Super position) के फलस्वरूप उत्पन्न होता है। परन्तु विवर्तन एक ही तरंगाग्र (wave front) के विभिन्न बिन्दुओं से चलने वाले Secondary wave lets के अध्यारोपण से उत्पन्न होता है।
  • व्यतिकरण में सभी चमकीली धारियाँ एक ही तीव्रता की होती हैं। परन्तु विवर्तन में सभी विभिन्न तीव्रताओं के रहते हैं।
  • व्यतिकरण में धारियों की चौथाई समान होती है परन्तु विवर्तन में समान नहीं रहती है।
  • व्यतिकरण धारियों में न्यूनतम प्रदीपन (minimum illumination) की स्थिति पूर्ण रूप से काली होती है। परन्तु विवर्तन में पूर्ण काली नहीं होती है।

प्रश्न 8.
What is meant by resolving power of an instrument? (यंत्र की विर्भेदन क्षमता का क्या अर्थ है?)
उत्तर:
किसी यंत्र की विभेदन क्षमता वह क्षमता है जो बहुत ही निकट के तरंग लम्बाई का प्रतिबिम्ब अलग-अलग बना लें। Na में 5890 Å तथा 5896Å तरंग लम्बाई के दो तरंगों बहुत निकट में रहते हैं। इसे अलग करने को विभेदन क्षमता कहते हैं।
इसकी माप इन दोनों द्वारा objective पर बनाये गये कोण से की जाती है। कोण के छोटा रहने पर विभेदन क्षमता अधिक होती है।

प्रश्न 9.
Explain the cause of presence of dark lines in solar spectra.
(सौर वर्णपट में काली रेखाओं की उपस्थिति का कारण बतलावें।)
उत्तर:
Bihar Board 12th Physics Important Questions Short Answer Type Part 3 1
सूर्य के प्रकाश से लगातार वर्णपट प्राप्त होता है। इसमें सात रंग दिखलाई पड़ते हैं। फ्रॉन हाफर (Fraunhofer) नाम के एक वैज्ञानिक ने एक अच्छे यंत्र से देखकर यह पता लगाया कि वर्णपट में सात रंग के अलावा बहुत सी काली-काली रेखाएं हैं।
इन रेखाओं की उपस्थिति का कारण किरचॉफ (Kirchoff) ने बतलाया। इसके लिए उसने एक नियम दिया-“कम ताप पर स्थिर तत्त्व उसी तत्त्व से अधिक ताप स्रोतों से निकले प्रकाश को शोषित कर देता है।”

सूर्य के भीतरी भाग को “प्रकाश मंडल (Photo sphere) कहते हैं।” इसका ताप कई लाख डिग्री या सेन्टीग्रेड रहता है। इसके चारों ओर कम ताप वाला घेरा रहता है। इसे “काल मण्डल (Chromo sphere)” कहते हैं। प्रकाश मण्डल से जब प्रकाश चलता है तब इनमें से कुछ रंगों की रेखा को काल मण्डल शोषित कर लेता है। इसके फलस्वरूप सौर वर्णपट में बहुत.सी काली रेखाएँ दिखलाई पड़ती हैं।

प्रश्न 10.
What is photo cell?(प्रकाश का फोटो सेल क्या है?)
उत्तर:
फोटो सेल एक ऐसी व्यवस्था है जिसमें प्रकाश ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में बदला जा सकता है। यह प्रकाश विद्युत प्रभाव के सिद्धान्त पर बनी रहती है। यह मुख्यतः दो प्रकार का होता है-

  1. प्रकाश उत्सर्जक सेल (Photo emissive cell)
  2. प्रकाश वोल्टीय सेल (Photo voltaic cell)

उपयोग –

  1. सिनेमाओं में ध्वनि के पुनः उत्पादन (reproduction) में।
  2. टेलीविजन तथा फोटोग्राफी में।
  3. अन्तरिक्ष में Solar battery द्वारा विद्युत उत्पन्न में।
  4. सड़कों पर बत्तियों के अपने-आप जलने या बुझने में तथा crossing पर signal देने के काम में.
  5. दरवाजों को अपने-आप खोलने तथा बन्द करने में।
  6. बैंक, खजानों इत्यादि में चोरों की सूचना देने के काम में।
  7. मौसम विज्ञान विभाग में दिन के प्रकाश की तीव्रता मापने के काम में।
  8. तारों के ताप मापने के काम में।

प्रश्न 11.
समान फोकस दूरी के एक अवतल एवं एक उत्तल लेंस समाक्षीय रूप में एक दूसरे से सटाकर रखे गये हैं। इस संयोग की क्षमता एवं फोकस दूरी ज्ञात करें।
उत्तर:
मान लिया उत्तल एवं अवतल लेसों की क्षमता क्रमशः P, एक P, है तो इस संयोग की क्षमता होगी-
P = P1 + P2
लेकिन यह P2 = -P1 है क्यों कि दोनों की क्षमता समान लेकिन प्रकृति विपरित है।
अतः P = P1 + (-P1) = 0 (शून्य)
अर्थात् इस संयोग की क्षमता शून्य होगी।
लेकिन P = \(\frac{1}{f}\)
⇒ f = \(\frac{1}{p}\) = \(\frac{1}{0}\) = ∞
अर्थात् फॉकस दूरी अनन्त होगी।
अतः यह संयोग एक सामान्य कांच की प्लेट जैसा कार्य करेगा।

प्रश्न 12.
पूर्ण आंतरिक परावर्तन क्या है? इसके लिए दो आवश्यक शर्तों को लिखें।
उत्तर:
Bihar Board 12th Physics Important Questions Short Answer Type Part 3 2
पूर्ण आन्तरिक परावर्तन : जब प्रकाश किरण सघन माध्यम से विरल माध्यम में प्रवेश करता है तो अपवर्त्तन के कारण यह अविलम्ब से दूर हट जाता है। अर्थात् r > i होता है। i का मान बढ़ाने के साथ r का मान भी बढ़ता जाता है और i के एक विशेष मान ic पर r = 90° हो जाता है। अब अगर i का मान और बढ़ाया जाय तो किरण दूसरे माध्यम से प्रवेश नहीं कर पाता है बल्कि उसी माध्यम में लौट आता है अर्थात् इसका पूर्ण आन्तरिक परावर्तन हो जाता है। 90° के अपवर्त्तन कोण के संगत आपतन कोण ic को क्रांतिक कोण कहा जाता है जिसका मान दोनों माध्यमों की प्रकृति
पर निर्भर करता है तथा sinic = \(\frac{\mu_{1}}{\mu_{2}}\)

पूर्णतः आन्तरिक परावर्तन के लिए शर्त-

  1. प्रकाश सघन से विरल की ओर चलना चाहिए
  2. i > ic होना चाहिए।

प्रश्न 13.
ऑप्टिकल फाइवर क्या है?
उत्तर:
ऑप्टिकल फाइवर: यह एक प्रकाशिक युक्ति जिसकी सहायता से बिना तीव्रता क्षय के प्रकाश को एक स्थान से दूसरे स्थान पर प्रेषित किया जाता है। यह पूर्ण आन्तरिक परावर्तन के सिद्धान्त पर कार्य करता है। इसके केन्द्रीय भाग में उच्च कोटि के काँच या क्वार्टज होता है जिसे क्रोड कहा जाता है। यह कम अपवर्तन में आवरण से घिरा रहता है जिसे cladin कहा जाता. है। क्लैडिंग भी एक कवर से ढंका रहता है जिसे Jacket कहा जाता है। एक से लेकर कई सौ फाइवर मिलकर केवल (cable) बनाते हैं।

आज कल इसका उपयोग अनेक रूपों में किया जा रहा है। जैसे-

  1. चिकित्सीय जाँच में लाइट पाइप के रूप में
  2. प्रकाशीय संकेतों के सम्प्रेषण में
  3. इसका उपयोग विद्युत संकतों को भी सूदूर स्थानों पर भेजने में भी किया जाता है।

प्रश्न 14.
व्योम तरंग (Sky Wave) एवं अतरिक्ष तरंग (Space Wave) की व्याख्या करें।
उत्तर:
व्योम तरंगः वे तरंग जो ट्रांसमीटर के ऐंटेना से निकलकर पृथ्वी के वायुमण्डल के उपरी परत (आयन मंडल) से टकराकर कर लौटती है और रिसीवर ऐंटेना तक पहुंचती है, व्योम तरंग या आकाश तरंग या आयनोस्फेरिक तरंग कहलाती है। यह 2MHg से 30 MHg आवृत्ति परास की होती है। आयन मंडल से परावर्तित होने वाले तरंग की यह क्रम आवृत्ति-
Vc = 9 (Nmax)1/2 होता है जिसे क्रांतिक आवृत्ति कहा जाता है।
जहाँ  Nmax = आयन मंडल में इलेक्ट्रॉन घनत्व है।

आतंरिक तरंग : वे तरंगें जो ट्रांसमीटर ऐंटीना से रिसीवर ऐंटिना तक या तो सीधे या पृथ्वी के ट्रॉपोस्फेयर क्षेत्र से परावर्तित होकर पहुँचती है, अंतरिक्ष तरंग या ट्रॉपोस्फेरिक तरंग कहलाता है। ये अति ऊच्च आवृत्ति (30 MHg से 300 MHg) या (ज्यादा) की रेडियो तरंग होती है। टेलीविजन सिगनल का प्रसारण अंतरिक्ष तरंग के रूप में होता है।

प्रश्न 15.
What are Fraunhofer lines?
(फ्रॉनहाफॅर रेखाएँ क्या हैं?)
उत्तर:
सूर्य के प्रकाश से लगातार वर्णपट प्राप्त होता है। इसमें सात रंग दिखलाई पड़ते हैं। “फ्रॉनहाफॅर (Fraunhofer)” नाम के एक वैज्ञानिक ने एक अच्छे यंत्र से देखकर यह पता लगाया कि इस वर्णपट में सात रंग के अलावे बहुत सी काली-काली रेखाएँ हैं। इसकी संख्या लगभग 700 है। इसमें से कुछ काली रेखाएँ स्पष्ट तथा कुछ अस्पष्ट होते हैं। Fraunhofer ने स्पष्ट रेखाओं का नाम A, B,C, D, E, F,G, H तथा K रखा। इसे “Fraunhofer lines” कहते हैं।

मध्य A रेखा लाल रंग के आखिरी छोर में, B तथा C रेखा लाल रंग के मध्य में, D रेखा पीला तथा नारंगी के मध्य में, E हरा रंग के नजदीक, F आसमानी के नजदीक, G नीला भाग में तथा H और K रेखा बैंगनी रंग के किनारों पर रहता है।
इन रेखाओं की उपस्थिति का कारण किरचाफॅ (Kirchoff) ने बतलाया।

प्रश्न 16.
Do x-rays and y-rays have same nature of origin? (क्या x-किरण एवं y-किरण की उत्पत्ति एक ही तरह से नहीं होती है?)
उत्तर:
x-किरण एवं y-किरण की उत्पत्ति एक ही तरह से नहीं होती है-

  1. सतत् x-किरण (Continuous x-rays)
  2. अभिलाक्षणिक-किरण (Characteristic-x-rays)

(1) सतत् किरण की उत्पत्ति की व्याख्या इस प्रकार दी जाती है – जब कभी आविष्ट कण त्वरित होता है तो विद्युत चुम्बकीय तरंग (Electro magnetic wave) उत्पन्न करती है। इलेक्ट्रॉन भी एक आविष्ट कण है। जब वह लक्ष्य (target) से टकराता है तो उसका अवमंदन होता है और वह x-ray उत्पन्न करता है।

(2) अभिलाक्षणिक x-ray की उत्पत्ति की व्याख्या इस प्रकार दी जाती है – जब कैथोड किरण लक्ष्य पर आपतित होती है और लक्ष्य के परमाणु के काफी अन्दर जाती है तो k अथवा m कक्षा के रिक्त स्थान को भरने के लिए ऊर्जा स्तर वाले कक्षा में इलेक्ट्रॉन कूद कर आता है। दोनों कक्षाओं के इलेक्ट्रॉन की ऊर्जा में जो अन्तर है वह अभिलाक्षणिक x-ray के रूप में प्रकट होता है।

y-किरण की उत्पत्ति – स्थायी न्यूक्लियस को न्यूनतम ऊर्जा होती है और वह भू-दशा (ground state) में होता है। इसे अधिक ऊर्जा वाले कण का फोटॉन द्वारा बमबारित कर उत्तेजित किया जा सकता है। जब कोई उत्तेजित न्यूक्लियस भू-दशा में आता है तो y-किरण की उत्पत्ति होती है।

प्रश्न 17.
What do you understand by photo electric effect. (प्रकाश विद्युत प्रभाव से आप क्या समझते हैं?)
उत्तर:
प्रकाश के प्रभाव से कुछ धातुओं से electron उत्सर्जित होता है। इससे विद्युत की उत्पत्ति होती है। इस घटना को प्रकाश विद्युत प्रभाव (Photo electric effect) कहते हैं।
Bihar Board 12th Physics Important Questions Short Answer Type Part 3 3
इसका आविष्कार सबसे पहले एक टेलीग्राफ ऑपरेटर W. Smith ने 1873 ई० में किया। फिर कुछ वर्षों बाद 1887 में हर्ट्स (Hertz) ने भी इसकी पुष्टि की। उसने कहा कि कैथोड पर पराबैंगनी प्रकाश (ultraviolet light) डालने से इस नलिका से विद्युत विसर्जन सुगमता से हो जाता है। फिर एक वर्ष बाद हालवेश (Hallwachs) ने हर्ट्स के प्रयोग को और आगे बढ़ाया।

हालवेश ने इसके लिए एक बल्ब लिया। इसके अन्दर की हवा को उसने निकाल दिया। बल्ब के अन्दर जस्ते का दो प्लेट A और C रखा। इसमें एक प्लेट (+ve) तथा दूसरे प्लेट (-ve) से जुड़ा रहता है। इन्हें एक galv. के द्वारा विद्युत बैट्री से जोड़ा जाता है।

(-ve) प्लेट पर पराबैंगनी प्रकाश डालने से galv. में विक्षेप होता है। पराबैंगनी प्रकाश डालना बन्द कर देने पर विक्षेप शून्य हो जाता है। इसका अर्थ यह है कि केवल (-ve) प्लेट पर ही पराबैंगनी प्रकाश डालने से धारा प्रवाहित होता है। हालवेश इस घटना का कोई कारण बतला नहीं सके।

फिर 1900 में J. J. Thomson तथा P. Leonard ने अपने प्रयोगों में दिखलाया कि धातुओं पर प्रकाश डालने से उससे Negative charged कण निकलते हैं। यह कण Electron के समान है। अतः इसे “Photo electron” ( प्रकाश इलेक्ट्रॉन) कहते हैं। यह धन प्लेट की ओर आकर्षित होते हैं। इसके चलने से परिपथ में धारा बहने लगती है। इस धारा को “प्रकाश विद्युत प्रभाव” (Photo electric effect) कहते हैं। A पर प्रकाश के आपतित होने पर यह बात नहीं होती है।

प्रश्न 18.
What are n-type and p-type of semi conductor ?  (n-प्रकार और P-प्रकार के अर्द्ध-चालक क्या हैं ?)
उत्तर:
अर्द्धचालक पदार्थ चालक एवं विद्युतरोधी पदार्थ के बीच में होते हैं। जरमेनियम तथा सिलिकन अर्द्धचालक पदार्थ हैं। शुद्ध अर्द्ध-चालकों की चालकता कमरे की ताप पर बहुत कम होती है। कुछ अपद्रव्य (impurity) मिलाकर उसकी चालकता बढ़ायी जा सकती है। अपद्रव्य मिलाने पर परिणामी क्रिस्टल को चालकता मिलाये गये अपद्रव्य के द्रव्यमान एवं प्रकार पर निर्भर करती है। मिलाया गया अपद्रव्य दाता (donar) अथवा ग्राही (acceptor) किसी भी प्रकार का हो सकता है। यदि शुद्ध जरमेनियम में (एक अर्द्धचालक) जो चतुसंयोगी तत्त्व है, परिमाण में पंचसंयोगी तत्त्व जैसे आर्सेनिक मिलाया जाता है, तो इससे जो पदार्थ बनता है उसमें इलेक्ट्रॉनों का आधिक्य रहता है। इस प्रकार बने क्रिस्टल को n-प्रकार का अर्द्धचालक अथवा दाता प्रकार का अर्द्धचालक कहा जाता है।

जरमेनियम में ही कम परिमाण में विसंयोगी तत्त्व जैसे मिला देने पर जो पदार्थ बनता है उसमें छिद्रों (holes) का आधिक्य रहता है। अपद्रव्यों के परमाणुओं को जो छिद्र करने में मदद करते हैं। ग्राही कहा जाता है। क्योंकि ये जरमेनियम परमाणु से इलेक्ट्रॉन ग्रहण करते हैं। इस प्रकार के अर्द्धचालक को P-प्रकार का अर्द्धचालक कहा जाता है।

प्रश्न 19.
What is Isotopes?
(आइसोटोप क्या है ?)
उत्तर:
एक ही तत्त्व के ऐसे परमाणु जिसके Atomic number समान परन्तु Atomic weight असमान हो तो उसे उस तत्त्व का Isotopes कहते हैं। अतः इसे किसी भी रासायनिक क्रिया द्वारा अलग करना संभव नहीं है। इन्हें विसरण द्वारा अलग किया जा सकता है।

हाइड्रोजन के तीन Isotopes हैं। परमाणु भार 1-2 तथा 3 हैं। इनमें से एक परमाणु-भार वाले को हाइड्रोजन, 2 परमाणु.भार वाले को deuterium या भारी हाइड्रोजन (Heavy hydrogen) D तथा 3 परमाणु भार वाले को ट्रिटियम (Tritium)T कहते हैं। इन्हें क्रमशः H1, H2,H3 से दिखलाते हैं। ऑक्सीजन के तीन Isotopes हैं जिनके परमाणु भार क्रमशः 16,17 तथा 18 हैं। क्लोरीन के दो Isotopes हैं जिनके परमाणु भार 35 और 37 है।

प्रश्न 20.
What do you understand by Nuclear fission and Nuclear fusion? (नाभिकीय विखंडन तथा नाभिकीय संलग्न से क्या समझते हैं?)
उत्तर:
नाभिकीय विखंडन – 1939 ई० में दो जर्मन वैज्ञानिक ओटोहान (Ottohaun) और स्ट्रासमैन (Starssman) ने एक नवीन खोज की। उन्होंने देखा कि जब यूरेनियम पर तीव्रगामी न्यूट्रॉन की बमबारी की जाती है तब यह दो खण्डों में टूट जाते हैं। ये खण्ड क्रमशः बेरियम (Br) तथा क्रिप्टन (Kr) है। इसके अलावा इसमें अन्य न्यूट्रॉन तथा बहुत अधिक ऊर्जा भी उत्पन्न होती है। इस घटना को “नाभिकीय विखण्डन” कहते हैं। इस घटना से उत्पन्न ऊर्जा को “नाभिकीय ऊर्जा” कहते हैं।
इसे निम्न समीकरण से दिखलाया जाता है।
Bihar Board 12th Physics Important Questions Short Answer Type Part 3 4
इस क्रिया में 3 न्यूट्रॉन प्राप्त होते हैं। ये तीनों फिर तीन यूरेनियम को विखंडित करते हैं जिसमें 9 न्यूट्रॉन, यूरेनियम के 9 परमाणु को विखंडित करते हैं। इस प्रकार एक Chain reaction प्राप्त होता है।

नाभिकीय संलग्न (Nuclear fusion)-जब हल्के तत्त्वों के दो नाभिक बहुत तेजी से एक-दूसरे से मिलते हैं तो इससे भारी नाभिक का निर्माण होता है। इसकी मात्र, हल्के तत्त्वों के नाभिकों से कुछ कम होता है। यह मात्र ऊर्जा के रूप में परिणत हो जाता है। यह Eeinstein के समीकरण E = mc2के अनुसार होता है। इस क्रिया को “नाभिकीय संलग्न” या ऊष्मा “नाभिकीय प्रतिक्रिया” कहते हैं।

बेथे (Bethe) के अनुसार यह क्रिया सूर्य पर बराबर दो तरह से होते रहते हैं।

  1. प्रोटॉन-2 चक्र द्वारा
  2. कार्बन-नाइट्रोजन चक्र द्वारा इस प्रकार Semi conductor, rectifier की तरह काम करता है।

प्रश्न 21.
What is Boolean Algebra?
(बूलियन बीजगणित क्या है ?)
उत्तर:
अंग्रेज गणितज्ञ “जार्ज बूलि” (Jarge Booli) ने सबसे पहले इस बीजगणित का व्यवहार किया। यह गणित की एक पद्धति है जो मौलिक नियमों (Fundamental laws) पर आधारित हैं। इससे अनेकों तरह के व्यंजक प्राप्त किये जा सकते हैं। इस बीजगणित के सिद्धान्त पर Computer के electronic circuit पर आधारित है। इसमें बूलियन ने सामान्य कहा तथा Logical statement में सभी प्रश्नों के उत्तर “हाँ” या “ना” अर्थात् “सत्य (Truth)” या गलत (False) में होते हैं। ऐसे उत्तर को “1” या “0” से निरूपित करते हैं।

बूलियन बीजगणित के तीन आधार हैं, जिसे “बूलियन ऑपरेटर (Boolean Operator)” कहते हैं।

  1. OR
  2. AND
  3. NOT

प्रश्न 22.
What is transistor? (ट्रांजिस्टर क्या है?)
उत्तर:
Transistor एक प्रकार का अर्द्धचालक साधन (Semi conductor device) है। इसका उपयोग एक amplifier तथा oscillator की तरह किया जा सकता है। यह आकार में छोटा, सस्ता तथा अधिक आयु (life) वाला होता है। यह Triode valve के स्थान पर प्रयोग किया जाता है।

प्रारम्भ में इसका आविष्कार John Bardeen और Walter ने किया था। फिर इसमें William Bradford ने सुधार किया। इसे Radio तथा टेलीविजन के receivers के रूप में प्रयोग किया जाता है।

प्रश्न 23.
Describe the properties of electro magnetic waves. (विद्युत चुम्बकीय तरंगों के गुण का वर्णन करें!)
उत्तर:
(i) विद्युत चुम्बकीय तरंगें त्वरित आवेश से उत्पन्न होता है।

(ii) इसका संचारण विद्युत तथा चुम्बकीय क्षेत्रों के परिवर्तित रूप में होता है। इसका क्षेत्र एक-दूसरे के लम्बवत् तथा तरंगों की दिशा में भी होता है। इस कारण से यह अनुप्रस्थ तरंग के रूप में चलता है।

(iii) विद्युत चुम्बकीय तरंगों को आगे पढ़ने के लिए किसी माध्यम की जरूरत नहीं पड़ती है।

(iv) विद्युत चुम्बकीय तरंगों तथा प्रकाश का वेग free space में समान होता है।

(v) Free space में विद्युत चुम्बकीय तरंगों का चाल होता है।
C = \(\frac{1}{\sqrt{\mu_{0} \epsilon_{0}}}\)
जहाँ μ0 तथा ∈0 निर्वात (vacum) की चुम्बकनशीलता तथा विद्युतशीलता है।
परन्तु किसी माध्यम से,
चाल C = \(\frac{1}{\sqrt{\mu \in}}\)
जहाँ μ तथा μ माध्यम की चुम्बकनशीलता तथा विद्युतशीलता है।

(vi) तरंगों के अध्यारोपण (Super position of waves) के सिद्धान्त पर विद्युत चुम्बकीय तरंग काम करता है।

प्रश्न 24.
Why sky waves are not used in the transmission of TV signal? (TV signal के संचारण में क्यों sky wave का उपयोग नहीं किया जाता है ?)
उत्तर:
40. Hz आवृत्ति के ऊपर के signal को ionosphere पृथ्वी पर परावर्तित करने में असमर्थ होता है। TV signal की आवृत्ति 100 से 200 MHz होती है। अत: Sky wave से इस आवृत्ति के signal का संचारण संभव नहीं हो पाता है।

प्रश्न 25.
Discuss the spectrum of electromagnetic radiation. (विद्युत चुम्बकीय विकिरण के वर्णपट का वर्णन करें।)
उत्तर:
तरंग लम्बाई या आवृत्ति के आधार पर विद्युत चुम्बकीय विकिरण के वितरण को “विद्युत चुम्बकीय वर्णपट” कहते हैं।

इसे निम्न श्रेणियों में बाँटा जाता है-
(i) Radio waves – इन तरंगों की तरंग लम्बाई कुछ किलोमीटर में 3.3 m तक होता है। इसकी आवृत्ति कुछ Hz से 109 Hz के बीच होता है। इन तरंगों का TV तथा रेडियो के प्रसारण में किया जाता है।

(ii) Micro waves – इन तरंगों की तरंग लम्बाई 0.3m से 10-3 m तक होता है। इसकी आवृत्ति 109 Hz से 3 × 1011 Hz के बीच होता है। इसका उपयोग Radar तथा Communication प्रणाली में किया जाता है।

(iii) Infrared spectrum – इसकी तरंग लम्बाई 10-3 m आवृत्ति 3 × 1011 Hz से 4 × 104 Hz के बीच होता है। इसका उपयोग उद्योग, दवा इत्यादि में किया जाता है।

(iv) Optical spectrum – इसकी तरंग लम्बाई 7.8 × 10-7 m से 3.8 × 10-7m तक होता है। इसकी आवृत्ति 4 × 104 Hz से 8 × 1014 Hz के बीच होता है। प्रकाश में इसका बहुत उपयोग किया जाता है।

(v) Ultra violet rays – इसकी तरंग लम्बाई 3.8 × 10-7 m से 6 × 10-10 m के बीच होती है। इसकी आवृत्ति 8 × 1014 Hz से 5 × 1019 Hz के बीच होता है। इसका उपयोग दवा तथा Sterilisation processes में किया जाता है।

(vi) x-rays – इसकी तरंग लम्बाई 10-9m से 6 × 1012 m के बीच होती है। इसकी आवृत्ति 3 × 1017Hz से 5 × 1019 Hz के बीच होता है। इसका उपयोग शरीर के अन्दर टूटी हड्डी, कोई रोग का पता लगाने में किया जाता है। Cancer में दवा के रूप तथा tissue को नष्ट करने के काम में आता है।

(vii) Gamma rays – इसकी तरंग लम्बाई 10-10 m से 1014 m तक होता है। इसकी आवृत्ति 3 × 1018 Hz से 3 × 1022 Hz के बीच होता है।

प्रश्न 26.
दशमलव (Decimal) संख्या को द्विआधारी (Binary) संख्या में बदलें।
(a) (25)10 को बदलना- 25 = 12 × 2 + 1
12 = 6 × 2 +0
6 = 3 × 2 +0
3 = 1 × 2 + 1
1= 0 × 2 + 1
∴ (25)10 = (11001)2

(b) भिन्न (fraction) अर्थात् (0.8125)10 को बदलना-
0.8125 × 2 = 1.6250.
0.6250 × 2 = 1.2500
0.2500 × 2 = 0.5000
0.5000 × 2 = 1.0000 ∴ (0.8125)10 = (0.1101)2
(a) तथा (b) को एक साथ मिलाने पर,
(25.8125)10 = (11001.1101)2

Bihar Board 12th Chemistry Objective Important Questions Part 1

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Bihar Board 12th Chemistry Objective Important Questions Part 1

प्रश्न 1.
C2 अणु में σ तथा π बंधन की संख्या है-
(a) 1σ तथा 1π
(b) 1σ तथा 2π
(c) 2π
(d) 1σ तथा 3π
उत्तर:
(c) 2π

प्रश्न 2.
LiCl, NaCl तथा KCl के विलयन का अनन्त तनुता पर समतुल्यांक चालकता का सही क्रम है-
(a) LiCl > NaCl > KCl
(b) KCl > NaCl > LiCl
(c) NaCl > KCl > LiCl
(d) LiCl > KCl > NaCl
उत्तर:
(b) KCl > NaCl > LiCl

प्रश्न 3.
किस अणु का द्विध्रुव आघूर्ण शून्य है?
(a) NF3
(b) BF3
(c) CrO3
(d) CH2Cl2
उत्तर:
(b) BF3

प्रश्न 4.
NaF के जलीय घोल का विद्युत विच्छेदन कराने पर धनोद एवं कैथोड प्राप्त प्रतिफल है-
(a) F2, Na
(b) F2, H2
(c) O2, Na
(d) O2, H2
उत्तर:
(d) O2, H2

प्रश्न 5.
R – OH + CH2N2 → इस प्रतिक्रिया में निकलने वाला समूह है-
(a) CH3
(b) R
(c) N2
(d) CH2
उत्तर:
(c) N2

प्रश्न 6.
सिलिका और हाइड्रोजन फ्लोराइड़ के प्रतिक्रिया से प्राप्त प्रतिफल है-
(a) SiF4
(b) H2SiF6
(c) H2SiF4
(d) H2SiF3
उत्तर:
(a) SiF4

प्रश्न 7.
0.1 M Ba(NO3)2 घोल का वॉन्ट हॉफ गुणक 2.74 है। तो विघटन स्तर है-
(a) 91.3%
(b) 87%
(c) 100%
(d) 74%
उत्तर:
(b) 87%

प्रश्न 8.
किसका +2 ऑक्सीकरण अवस्था सबसे स्थिर है-
(a) Sn
(b) Ag
(c) Fe
(d) Pb
उत्तर:
(d) Pb

प्रश्न 9.
कैनिजारो प्रतिक्रिया नहीं प्रदर्शित करता है-
(a) फॉरमलडिहाइड
(b) एसिटलडिहाइड
(c) बेंजलडिहाड
(d) फरफ्यूरल
उत्तर:
(b) एसिटलडिहाइड

प्रश्न 10.
किस गैस का अवशोषण चारकोल के द्वारा सबसे अधिक होता है-
(a) CO
(b) NH3
(c) NCl3
(d) H2
उत्तर:
(b) NH3

प्रश्न 11.
एक कार्बनिक यौगिक आयडोफार्म जाँच दिखलाता है और टॉलनस अभिकारक के साथ भी धनात्मक जाँच देता है। वो यौगिक है।
(a) CH3CHO
Bihar Board 12th Chemistry Objective Important Questions Part 1, 1
(c) CH3CH2OH
(d) (CH3)2 CHOH
उत्तर:
(a) CH3CHO

प्रश्न 12.
कौन Alkyl halide सिर्फ SN2 reaction द्वारा होता है।
(a) CH3CH2X
(b) (CH3)2 CHX
(c) (CH3)3 C – X
(d) C6H5CH2X
उत्तर:
(a) CH3CH2X

प्रश्न 13.
विस्मथ का कौन-सा ऑक्सीकरण अवस्था ज्यादा स्थायी होता है?
(a) +3
(b) +5
(c) +3 तथा +5 दोनों
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(a) +3

प्रश्न 14.
निम्नलिखित में कौन से जोड़े में क्रमश: Tetrahedral तथा Octahedral void होता है-
(a) b.c.c. और f.c.c.
(b) hcp तथा Simplecubic
(c) hcp तथा ccp
(d) b.c.c. और hcp
उत्तर:
(c) hcp तथा ccp

प्रश्न 15.
निम्नलिखित में कौन अक्रिस्टलीय ठोस पदार्थ है ?
(a) हीरा
(b) ग्रेफाइट
(c) काँच
(d) साधारण नमक
उत्तर:
(c) काँच

प्रश्न 16.
निम्नलिखित में किसका हिमांक अवनमन अधिकतम होगा?
(a) K2SO4
(b) NaCl
(c) यूरिया
(d) ग्लूकोज
उत्तर:
(a) K2SO4

प्रश्न 17.
किसी विलयन के 200 ml में 2 ग्राम NaOH घुले हैं। विलयन की मोलरता है
(a) 0.25
(b) 0.5
(c) 5
(d) 10
उत्तर:
(a) 0.25

प्रश्न 18.
द्रवित सोडियम क्लोराइड के वैद्युत अपघटन से कैथोड पर मुक्त होता है
(a) क्लोरीन
(b) सोडियम
(c) सोडियम अमलगम
(d) हाइड्रोजन
उत्तर:
(d) हाइड्रोजन

प्रश्न 19.
96500 कूलॉम विद्युत CuSO4 के विलयन से मुक्त करता है।
(a) 63.5 ग्राम ताँबा
(b) 31.76 ग्राम तांबा
(c) 96500 ग्राम तांबा
(d) 100 ग्राम ताँबा।
उत्तर:
(b) 31.76 ग्राम तांबा

प्रश्न 20.
किसी अभिक्रिया का वेग निम्नांकित प्रकार से व्यक्त होता है :
वेग = K[A]2[B] तो इस अभिक्रिया की कोटि होगी
(a) 2
(b) 3
(c) 1
(d) 0
उत्तर:
(b) 3

प्रश्न 21.
निम्नलिखित में कौन-सी धातु प्रकृति में मुक्त अवस्था में पाई जाती है ?
(a) सोडियम
(b) लोहा
(c) जिंक
(d) सोना
उत्तर:
(b) लोहा

प्रश्न 22.
निम्नलिखित में कौन हाइड्रोजन बंधन नहीं बनाता है ?
(a) NH3
(b) H2O
(c) HCl
(d) HF
उत्तर:
(c) HCl

प्रश्न 23.
हीलियम का मुख्य स्रोत है-
(a) हवा
(b) रेडियम
(c) मोनाजाइट
(d) जल
उत्तर:
(a) हवा

प्रश्न 24.
निम्नलिखित आयनों में कौन प्रतिचुम्बकीय है ?
(a) Co2+
(b) Ni2+
(c) Cu2+
(d) Zn2+
उत्तर:
(d) Zn2+

प्रश्न 25.
Milk is an example of :
(a) emulsion
(b) suspension
(c) boam
(d) Solution
उत्तर:
(a) emulsion

प्रश्न 26.
Which of the following solution (in water) has the highest boiling point?
(a) 1M Nacl
(b) 1M MgCl2
(c) 1M urea
(d) 1M glucose
उत्तर:
(b) 1M MgCl2

प्रश्न 27.
Which of the following is a natural fibre?
(a) Starch
(b) Cellulose
(c) Rubber
(d) Nylon-6
उत्तर:
(b) Cellulose

प्रश्न 28.
Antiterromagnetic oxide है-
(a) MnO2
(b) TiO2
(c) VO2
(d) CrO2
उत्तर:
(d) CrO2

प्रश्न 29.
B.C.C. unit cell में atoms की संख्या होती है-
(a) 1
(b) 2
(c) 3
(d) -4
उत्तर:
(b) 2

प्रश्न 30.
Simple cubic unit cell में atoms की संख्या होती है-
(a) 1
(b) 2
(c) 3
(d) 4
उत्तर:
(a) 1

प्रश्न 31.
f.c.c. unit cell में atoms की संख्या होती है-
(a) 1
(b) 2
(c) 3
(d) 4
उत्तर:
(d) 4

प्रश्न 32.
समान परमाणुओंयुक्त f.c.c. संरचना में प्रति unit cell में Tetrahederal voids की संख्या होती है-
(a) 4
(b) 6
(c) 8
(d) 12
उत्तर:
(c) 8

प्रश्न 33.
5 ग्राम Glucose को 20 ग्राम जल में घोला गया है। घोल का भार प्रतिशत है-
(a) 25%
(b) 20%
(c) 5%
(d) 4%
उत्तर:
(b) 20%

प्रश्न 34.
निम्न में से विलयन का जो गुण ताप पर निर्भर नहीं करता है, वह है-
(a) मोलरता
(b) मोललता
(c) सामान्यता
(d) घनत्व
उत्तर:
(b) मोललता

प्रश्न 35.
25°C ताप पर जल का मोलरता होती है-
(a) 18 मोल लीटर -1
(b) 10-7 मोल लीटर -1
(c) 55.5 मोल लीटर -1
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(c) 55.5 मोल लीटर -1

प्रश्न 36.
निम्न में से किस धातु को उसके लवण के जलीय घोल का विद्युत-अपघटन करके प्राप्त किया जा सकता है-
(a) Al
(b) Ca
(c) Na
(d) Ag
उत्तर:
(d) Ag

प्रश्न 37.
Platinum Electrode पर H+ आयन पहले अपचयित होता है-
(a) Zn++ से
(b) Cu++ से
(c) Ag+ से
(d) I2 से
उत्तर:
(a) Zn++ से

प्रश्न 38.
द्रवित NaCl के विद्युत अपघटन से कैथोड पर मुक्त होता है-
(a) क्लोरीन
(b) सोडियम
(c) सोडियम अमलगम
(d) हाइड्रोजन
उत्तर:
(b) सोडियम

प्रश्न 39.
Cu, Ag, Zn तथा Fe के अवकरण विभवों का क्रम है-
(a) Cu, Ag, Fe, Zn
(b) Ag, Cu, Fe, Zn
(c) Fe, Ag, Cu. Zn
(d) Zn, Cu, Ag, Fe
उत्तर:
(b) Ag, Cu, Fe, Zn

प्रश्न 40.
प्रथम कोटि की अभिक्रिया के लिए वेग स्थिरांक का मात्रक है-
(a) Mol L-1
(b) Mol L-1S-1
(c) Second-1
(d) L Mol-1S-1
उत्तर:
(c) Second-1

प्रश्न 41.
वह अभिक्रिया कोटि है, जिसका गति स्थिरांक का मात्रक-
(a) शून्य
(b) प्रथम
(c) द्वितीय
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(a) शून्य

प्रश्न 42.
आरहेनियस समीकरण है-
(a) K = Ae-E/RT
(b) K = Ae-ΔH/RT
(c) k= -Ae-E/RT
(d) K = AeR/T
उत्तर:
(a) K = Ae-E/RT

प्रश्न 43.
अभिक्रिया 2A + 3B → C + 2D के लिए अणुकता होगी-
(a) 2
(b) 5
(c) 6
(d) -3
उत्तर:
(b) 5

प्रश्न 44.
वनस्पति तेल से वनस्पति घी के निर्माण में प्रयुक्त उत्प्रेरक है-
(a) Fe
(b) Mo
(c) Ne
(d) V2O5
उत्तर:
(c) Ne

प्रश्न 45.
Collor’s Particles का size होती है।
(a) 5Å से 200 Å
(b) 5 nm से 200 nm
(c) 5 × 10-8 cm से 2 × 10-6 cm
(d) 50 mu से 2000 mu
उत्तर:
(b) 5 nm से 200 nm

प्रश्न 46.
बादल, कुहरा, कुहासा, द्रव-गैस Colloids aersol हो धुम (smoke) किस प्रकार colloids है-
(a) ठोस-गैस
(b) गैस-द्रव
(c) द्रव-गैस
(d) गैस-ठोस
उत्तर:
(a) ठोस-गैस

Bihar Board 12th Physics Important Questions Short Answer Type Part 2

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Bihar Board 12th Physics Important Questions Short Answer Type Part 2

प्रश्न 1.
समरूप विद्युत क्षेत्र में विद्युत द्विधुव पर बल आघूर्ण (Torque) के लिए व्यंजक प्राप्त करें।
उत्तर:
Bihar Board 12th Physics Important Questions Short Answer Type Part 2 1
AB एक विद्युत द्विध्रुव (electric dipole) है। इसके A पर आवेश +Q तथा B पर आवेश -Q है। इसके बीच की दूरी 2l है। E एक समान विद्युत क्षेत्र है। E के साथ विद्युत द्विध्रुव को कोण α है।
E विद्युत क्षेत्र के कारण A औरB पर बल (F) = QEA पर यह बल, E की दिशा में तथा B पर E के विपरीत दिशा में काम करता है। ये दोनों बल मिलकर एक बलयुग्म (couple) बनाते हैं जो द्विध्रुव AB को क्षेत्र E की दिशा में लाना चाहता है।
इस बलयुग्म का आघूर्ण (T)
= बल × लम्बवत दूरी
= QE · AC =QE. 2lsinθ
[∵ ΔABC से sinθ \(=\frac{A C}{B C}=\frac{A C}{2 l}\)
= ME sinθ
[∵ 2la = M (द्विध्रुव आघूर्ण)]
यदि AB द्विध्रुव को विद्युत क्षेत्र के लम्बवत रखा जाय तो a= 90°
∴ बलयुग्म का आघूर्ण (T) = ME sin 90°
= ME [∵ sin 90° = 1 ]
यह आघूर्ण अधिकतम होता है।
(T max) = ME

प्रश्न 2.
Is coulomb’s law is universal law?
(क्या कूलम्ब का नियम एक सार्वत्रिक नियम है?)
उत्तर:
कूलम्ब का नियम सार्वजनिक नियम नहीं है क्योंकि यह आवेशों के बीच के माध्यम पर निर्भर करता है। यह नियम rest में बिन्दु आवेश के लिए लागू होता है।

प्रश्न 3.
What is conservation of charge?
(आवेशों का संरक्षण क्या है?)
उत्तर:
एक isolated (विगलित) system का विद्युत आवेश संरक्षित रहता है। इसमें न उत्पन्न किया जा सकता है और न नष्ट ही । इसे दिखलाने के लिए एक ग्लास छड़ तथा सिल्क कपड़ा लेते हैं। दोनों को आपस में रगड़ा जाता है। इसके.ग्लास छड़ (+ve) आवेश तथा सिल्क पर (-ve) आवेश उत्पन्न होता है। दोनों पर आवेश का मान समान रहता है। अतः system का कुल आवेश शून्य रहता है। यही शून्य आवेश, रगड़ने के पहले भी रहता था। यह आवेश के सरंक्षण को दिखलाता है।

प्रश्न 4.
What is electric field? Obtain an expression for the electric field at any point.
(विद्युत क्षेत्र क्या है? किसी बिन्दु पर विद्युत क्षेत्र के लिए व्यंजक प्राप्त करें।)
उत्तर:
विद्युत क्षेत्र -क्षेत्र में स्थिति किसी बिन्दु पर के इकाई धन आवेश पर क्षेत्र के कारण जितना काम लगता है उसे उस बिन्दु पर “विद्युत क्षेत्र” कहते हैं।
व्यंजक (Expression)-
मान लिया कि A एक चालक है। इस पर आवेश +Q है। इसमें r दूरी पर P एक बिन्दु है। P पर इकाई धन आवेश की कल्पना करते हैं।
A के कारण P पर बल = \(\frac{1}{4 \pi \epsilon_{0}} \frac{Q \cdot 1}{r^{2}}\)
Bihar Board 12th Physics Important Questions Short Answer Type Part 2 2
∴ P पर विद्युत क्षेत्र = \(\frac{1}{4 \pi \epsilon_{0}} \frac{Q}{r^{2}}\)
यदि A और P के बीच हवा न रहकर कोई दूसरा माध्यम हो तो
P पर विद्युत क्षेत्र = \(\frac{1}{4 \pi \epsilon_{0} \in_{r}} \frac{Q}{r^{2}}\)
इसका मात्रक बोल्यमीटर (Vm-1) या न्यूटन/कूलम्ब (NC-1) है।

प्रश्न 5.
What is electric dipole ? (विद्युत द्विध्रुव क्या है?)
उत्तर:
“समान परिमाण के (+ ve) तथा (-ve) आवेश एक-दूसरे से बहुत कम दूरी पर हो तो उसे “विद्युत द्विध्रुव. (Electric dipole) कहते हैं।”

यदि आवेश का परिमाण +Q तथा –Q हो तथा इनके बीच की दूरी 21 हो तो विद्युत द्विध्रुव आघूर्ण (electric dipole moment)-
= आवेश x दूरी = 2lQ
इसे साधारणत: M से सूचित करते हैं। .
∴ M = 2lQ

प्रश्न 6.
Differentiate the difference between the electrical potential and electrical intensity at a point in an electric field.
(किसी वैद्युत क्षेत्र के किसी बिन्दु पर विभव एवं तीव्रता में अन्तर स्पष्ट करें।)
उत्तर:
किसी विद्युत क्षेत्र के किसी बिन्दु पर विभव एवं तीव्रता में निम्नलिखित अंतर है-

वैद्युत तीव्रता बैद्युत विभव
(i) किसी विद्युत क्षेत्र में किसी बिन्दु पुर तीव्रता उस बिन्दु पर रखे इकाई धन आवेश पर लगने वाला बल है। (i) वैद्युत क्षेत्र के किसी बिन्दु पर इकाई धन आवेश को अनन्त से उस बिन्दु तक लाने में संपादित कार्य होता है।
(ii) यह एक सदिश राशि। (ii) यह एक अदिश राशि है।
(iii) किसी वैद्युत क्षेत्र के किसी बिन्दु पर वैद्युत तीव्रता उस बिन्दु पर ऋणात्मक विभाव प्रवणता (negative potential gradient) के बराबर होता है यानी
E = \(\frac{-d v}{d x}\)
(iii) किसी बिन्दु पर वैद्युत तीव्रता का रेखा समाकलन (line integral) उस बिन्दु पर विभव के बराबर होता है।
यानी V = \(\int E d x\)
(iv) इसका S.I. मात्रक न्यूटन कुलम्ब (NC-1) होता है। (iv) इसका S.I. मात्रक वोल्ट (Volt) होता है।

प्रश्न 7.
Deduce an expression for the intensity of the electric field near charged plane conductor or prove coulomb’s theorem in Electrostatics.
(किसी आवेशित समतल चालक के समीप विद्युत क्षेत्र की तीव्रता के लिए एक व्यंजक निकालें। अथवा, स्थिर विद्युत में कूलम्ब प्रमेय को सिद्ध करें।)
उत्तर:
मान लिया कि एक समतल चालक है, तल AB पर आवेश का सतही घनत्व (surface density) 0 है। इस तल के बहुत ही निकट कोई बिन्दु p है जहाँ पर इस आवेशित चालक के कारण विद्युत-क्षेत्र की तीव्रता निकालनी है। मान लिया कि विद्युत क्षेत्र की तीव्रता E है। अब हम एक ऐसे बेलनाकार तल pqrs की कल्पना करते हैं जिसके समतल सिरे pr व qs तल AB के समान्तर है तथा वक्रतल चालक के तल AB के लम्बवत् है। बिन्दु P समतल सिरे qs पर स्थित है और बेलन का समतल सिरा qr चालक S के भीतर है। मान लिया कि तल pr व qs के क्षेत्रफल ds है। अब चूँकि विद्युत क्षेत्र की तीव्रता की दिशा चालक के तल AB के
Bihar Board 12th Physics Important Questions Short Answer Type Part 2 3
लम्बवत् है, अत: बेलनाकार तल के वक्र सतह से गुजरने वाला विद्युत “फ्लक्स” शून्य होगा। फिर, इस बेलनाकार तल का सिरा qr चालक के भीतर है। अतः इस सतह से गुजरने वाला विद्युत “फ्लक्स” भी शून्य होगा क्योंकि आवेशित चालक के अन्दर तीव्रता शून्य होती है। इसलिए सिरे qs से.गुजरने वाला विद्युत “फ्लक्स = E × ds”, और वही बेलनाकार तल से गुजरने वाला कुल विद्युत फ्लक्स है।

चूँकि बेलनाकार तल के भीतर चालक का क्षेत्रफल ds स्थित है, इसलिए इस पर आवेश का कुल परिणाम ods होगा। अतः गॉस के प्रमेय से बेलनाकार तल का कुल विद्युत “फ्लक्स
\(\frac{\Sigma q}{\epsilon_{0}}=\frac{\sigma d s}{\epsilon_{0}}\)
∴ E × dx = \(\frac{\sigma d s}{\epsilon_{0}}\)
या, E = \(\frac{\sigma}{\epsilon_{0}}\)
यही कूलम्ब का प्रमेय है।

प्रश्न 8.
A good potentiometer consists of 10 wires each of 1m in length connected in series, why?
(एक अच्छे विभक्यापी में श्रेणीक्रम में 10 तार की प्रत्येक लम्बाई Imजुड़े होते हैं, क्यों?)
उत्तर:
अगर विभवमापी के तार के प्रति इकाई लम्बाई का प्रतिरोध p हो और इसमें 1 ऐम्पियर की धारा प्रवाहित हो तो प्रति इकाई लम्बाई तार पर विभव पतन PI होगा।
यदि किसी सेल का वि० वा० बल E हो और तार की लम्बाई पर संतुलन प्राप्त हो, तो
E = pIl
dE = P I dl
या, \(\frac{d l}{d \epsilon}=\frac{1}{P I}\)
\(\frac{d l}{d E}\)विभवमापी की सुग्राहिता बतलाता है। अतः यदि 1 का मान बढ़ाया जाय तो I का मान घटेगा और विभवमापी की सुग्राहिता बढ़ेगी। अतः अच्छे विभवमापी में एक तार की अपेक्षा एक-एक मीटर के दस तार श्रेणीक्रम में लगाये जाते हैं।

प्रश्न 9.
What is electric current ? (विद्युत धारा क्या है ?)
उत्तर:
किसी चालक में आवेश प्रवाह के दर को “विद्युतधारा” कहते हैं। मान लिया कि t sec. में चालक के किसी भाग से Q आवेश प्रवाहित होता है।
∴ विद्युत धारा (i) = Bihar Board 12th Physics Important Questions Short Answer Type Part 2 4 = \(\frac{Q}{t}\)
विद्युत धारा एक अदिश राशि (Scalar quantity) है। इसका S.I. Unit “ऐम्पियर (Ampere)” है।
अतः 1 Amp. = Bihar Board 12th Physics Important Questions Short Answer Type Part 2 5

प्रश्न 10.
What is electrical conductivity and specific conductivity? (विद्युत चालकता तथा विशिष्ट चालकता क्या है?)
उत्तर:
विद्यत चालकता-किसी पदार्थ से विद्युत का प्रवाह कितनी आसानी से हो सकता है इसकी माप चालकता से होती है। यह चालकता, प्रतिरोध पर निर्भर करता है।
अतः विद्युत चालकता पदार्थ का वह गुण है जो यह बतलाता है कि उससे होकर कितनी आसानी से विद्युत प्रवाहित हो सकती है। इसे G से सूचित करते हैं।
इसकी माप प्रतिरोध के व्युत्क्रमानुपाती (Inversely proportional) द्वारा की जाती है।

अर्थात् चालकता = Bihar Board 12th Physics Important Questions Short Answer Type Part 2 6 या, G = \(\frac{1}{R}\)
इसका मात्रक “ओम-1 ( Ω-1) या मो (mho)” है।

विशिष्ट चालकता (Specific conductivity)-किसी पदार्थ के विशिष्ट प्रतिरोध के व्युत्क्रम को “विशिष्ट चालकता” कहते हैं। इसे प्रायः σ (सिग्मा) से दिखलाते हैं।
अर्थात् σ = Bihar Board 12th Physics Important Questions Short Answer Type Part 2 7
= \(\frac{1}{\rho}\)
इसका मात्रक ओम-1 मीटर या-1 (मो-मीटर-1) होता है।

प्रश्न 11.
What is Eddy current ? (भंवर धारा क्या है ?)
उत्तर:
भंवर धारा (Eddy.current)-यदि किसी धातु के टुकड़ों को किसी परिवर्तनशील चुम्बकीय क्षेत्र में रखा जाय या उन टुकड़ों को किसी स्थानीय चुम्बकीय क्षेत्र में घूर्णित किया जाय तो उसमें प्रेरित धारा उत्पन्न होती है। प्रेरित धारा चक्करदार होती है। अतः वह “भंवर धारा” कही जाती है। इसे फूको धारा भी कहा जाता है क्योंकि इसका पता फूको ने लगाया था।
‘इस धारा का उपयोग चलकुण्डल गैल्वेनोमीटर में कुण्डली की गति को अवदित करने में किया जाता है।

प्रश्न 12.
अधिकतम शक्ति प्रमेय (Maximum Power Theorem) क्या है ? इसे प्रमाणित करें?
उत्तर:
Bihar Board 12th Physics Important Questions Short Answer Type Part 2 8
Maximum Power Theorem :
यह प्रमेय यह बतलाता है कि, “किसी बाह्य परिपथ को दी गयी शक्ति का मान महत्तम तब होता है जब स्रोत की आन्तरिक प्रतिरोध का मान बाह्य परिपथ के प्रतिरोध के बराबर होता है।”
प्रमाण : मान लिया E वि० वा० बल एवं आन्तरिक प्रतिरोध का एक विद्युत स्रोत को बाह्य प्रतिरोध R से जोड़ा गया है।
धारा भेजता है तो लोड द्वारा उपमुक्त (Consumed) शक्ति
p = i2R \(=\left(\frac{E}{R+r}\right)^{2}\) .R
स्पष्टः शक्ति का मान लोड के प्रतिरोध पर निर्भर करता है। अतः शक्ति को अधिकतम होने के लिए \(\frac{d P}{d R}\) = 0 होना चाहिए,
Bihar Board 12th Physics Important Questions Short Answer Type Part 2 9
(R+r)2 = 2R (R+r)
R=r यही महत्तम शक्ति ह्रास का शर्त है।

प्रश्न 13.
Ampere के परिपथीय नियम को लिखें एवं समझायें।
उत्तर:
एम्पीयर के परिपथीय नियम-
यह नियम यह बतलाता है कि, “निर्वात में किसी बंद पथ के लिए चुम्बकीय क्षेत्र के प्रेरण \(\vec{B}\)का रेखा समाकलन का मान उस बंद पथ के क्षेत्र से गुजरते कुल धारा I का μ0गुणा होता है।”
Bihar Board 12th Physics Important Questions Short Answer Type Part 2 10
एक खुले सतह पर विचार करते हैं जिसके सतह से धारा i गुजरती है। इसका परिधि एक बंद वक्र C है। अगर बंद वक्र के किसी बिन्दु पर चुम्बकीय क्षेत्र \(\vec{B}\) है तो इसका स्पर्शरेखीय घटक Bt और अल्पाक्षीय लम्बाई dl का गुणनफल = Bt dl = B cosθ dl = \(\vec{B} \cdot \overrightarrow{d l}\)

इस प्रकार Product का सम्पूर्ण बंद वक्र C के लिए समाकलन \(\oint \vec{B} \cdot \overrightarrow{d l}\)को बंद वक्र के लिए रेखा चुम्बकीय क्षेत्र का रेखा समाकलन (line integral of magnetic field) कहा जाता है।
अतः एम्पीयर के परिपथीय नियम के अनुसार
\(\oint \vec{B} \cdot \overrightarrow{d l}=\mu_{0} I\)
इस नियम से एक चिन्ह परीपाटी जुड़ा है। जो दाहिने हाथ के अंगुठे के नियम से ज्ञात होता है।
Bihar Board 12th Physics Important Questions Short Answer Type Part 2 11

प्रश्न 14.
A potentiometer can measure potential difference as well as current. Explain how?
(एक विभवमापी द्वारा विभवांतर एवं धारा दोनों को मापा जा सकता है। समझाएँ कैसे?
उत्तर:
विभवमापी एक आदर्श वोल्टमीटर (अनन्त प्रतिरोध वाले वोल्टमीटर) जैसा व्यवहार करता है। वह विभवांतर का सटिक मान मापता है। विभवमापी में काफी लम्बा तार लकड़ी के तख्ते पर फैला रहता है जिसके दोनों सिरों के बीच ज्ञात विभवांतर स्थापित किया जाता है। जिस विभवान्तर को मापना होता है उसे तार की कुल लम्बाई के बीच विपरीत दिशा में आरोपित किया जाता है। तार की लंबाई इस तरह से समजित की जाती है कि जिससे दूसरे विद्युत परिपथ में शून्य धारा प्रवाहित हो। विभवमापी से अज्ञात धारा का मान जानने के लिए एक प्रामाणिक प्रतिरोध का व्यवहार किया जाता है।

इस प्रामाणिक प्रतिरोध का मान ज्ञात रहता है। अज्ञात धारा को इस प्रतिरोध से प्रवाहित करने पर जो विभवांतर उत्पन्न होता है उसे ज्ञात कर लिया जाता है। इस विभवान्तर को प्रामाणिक प्रतिरोध से भाग देने पर प्राप्त फल अज्ञात धारा का मान देता है। इस प्रकार स्पष्ट हो जाता है कि विभवमापी द्वारा विभवांतर एवं धारा दोनों ही मापे जा सकते हैं।

प्रश्न 15.
What do you always connect a ammeter in series and a voltmeter in parellel ? (आमीटर को हमेशा श्रेणीक्रम में तथा वोल्टमीटर को समान्तर क्रम में जोड़ जाता है, क्यों ?)
उत्तर:
आमीटर किसी विद्युत परिपथ में प्रवाहित होने वाली धारा का मान देता है। किसी परिपथ में यह श्रेणीक्रम (Series) में जोड़ा जाता है, ताकि मापी जाने वाली कुल धारा इससे होकर गुजरे और उसके संगत विक्षेप उत्पन्न करे। आमीटर का प्रतिरोध आवश्यक रूप से बहुत ही कम होता है जिससे कि मापी जाने वाली धारा में इसके संयोजन के कारण नगण्य कमी हो।

इसके विपरीत वोल्टमीटर किसी विद्युत परिपथ के किसी भाग पर उत्पन्न विभवान्तर की माप प्रदान करता है। परिपथ के जिस भाग पर उत्पन्न विभवान्तर की माप ज्ञात करनी रहती है, वोल्टमीटर. को उस भाग को समान्तर क्रम में जोड़ा जाता है।

अतः वोल्टमीटर के उस तार (विशेष प्रतिरोध) के समान्तर क्रम में जोड़ना पड़ता है, जिसके बीच का विभवांतर मापना है। वोल्टमीटर का प्रतिरोध आवश्यक रूप से बहुत अधिक रहता है, जिससे कि इस यंत्र से होकर नगण्य धारा प्रवाहित हो।

प्रश्न 16.
Compare between A.C. & D.C. (A.C. तथा D.C. में तुलना करें।)
उत्तर:
A.C. के लाभ-

  • A.C. के वि० वा० बल तथा धारा की दिशा बदलती रहती है परन्तु D.C. में दिशा एक ही रहती है।
  • A.C. के विद्युत वाहक बल को ट्रान्सफॉर्मर के द्वारा विद्युत ऊर्जा को नष्ट किये बिना घटाया-बढ़ाया जा सकता है। परन्तु सीधी धारा (D.C.) में प्रतिरोध लगाकर यह काम लिया जा सकता है जिसमें कि विद्युत ऊर्जा की बहुत हानि होती है।
  • A.C. के वि० वा० बल को काफी अधिक बढ़ाकर हर स्थानों में भेजा जाता है। . फिर वहाँ ट्रान्सफॉर्मर की मदद से वि० वा० बलं को कम कर दैनिक कार्य किया जा सकता है, परन्तु D.C. में इस तरह की बात नहीं है।

A.C. के हानि-

  • A.C. से विद्युत विच्छेदन (Electrolysis) की क्रिया नहीं हो पाती है। अतः इसके द्वारा कलई नहीं की जा सकती है। D.C. से यह कार्य किया जा सकता है।
  • A.C. को संचायक (Accumulators) में जमा नहीं किया जा सकता है। परन्तु D.C. को सेल में जमा किया जा सकता है।
  • A.C. किसी चीज को आकर्षित करता है। इस कारण से यह खतरनाक है। परन्तु D.C. किसी चीज को विकर्षित अर्थात् धक्का देता है। :

प्रश्न 17.
How does a hot wire ammeter measure alternating current ? (तप्त तार आमीटर से प्रत्यावर्ती धारा को किस प्रकार मापा जाता है ?).
उत्तर:
जब किसी तार से धारा प्रवाहित की जाती है तब वह तार गर्म हो जाता है। धारा के ऊष्मीय प्रभाव का उपयोग तप्त तार आमीटर बनाये जाते हैं। धारा के प्रवाह के कारण उत्पन्न ऊष्मा धारा के वर्ग के अर्थात् I2 के समानुपाती होती है। जब अज्ञात धारा तप्त तार आमीटर में लगे तार से प्रवाहित की जाती है, तब तार गर्म होकर कुछ ढीला पड़ जाता है। इससे जुड़ा स्प्रिंग इसे खींचता है और तार में लगा एक संकेतक एक पैमाने पर विक्षेपित होता है। तार की लंबाई में वृद्धि तार व कारण उत्पन्न ऊष्मा के समानुपाती होती, परन्तु संकेतक का विक्षेप धारा के वर्ग (I2) के मानुपाती होता है।

चूंकि, विक्षेप धारा के वर्ग के समानुपाती होता है। इसलिए विक्षेप धारा दिशा पर निर्भर नहीं ता है। प्रत्यावर्ती धारा की दिशा समयों के आधार पर बदलती रहती है, परन्तु आमीटर के तार उत्पन्न ऊष्मा धारा के मान पर न कि उसकी दिशा पर निर्भर करती है।

प्रश्न 18.
What do you understand by electrical work, energy and power?
(विद्युतीय कार्य, ऊर्जा और शक्ति से आप क्या समझते हैं ?)
or,
Show that want × Volt Ampere
अथवा, (दिखलायें = वोल्ट × आम्पीयर)
उत्तर:
विद्यु तिया कार्य, ऊर्जा और सक्ति (Electrical work, energy and power).. मान लिया AB चालक के सिरों के बीच विभवान्तर ν है-
Bihar Board 12th Physics Important Questions Short Answer Type Part 2 12
∴ इकाई धन आवेश को B से A तक लाने में किया गया कार्य =V
∴ Q इकाई धन आवेश को B से A तक लाने में किया गया कार्य = QV
या, कार्य = QV
या, कार्य = vct [ ∵ धारा = Bihar Board 12th Physics Important Questions Short Answer Type Part 2 13 c= \(\frac{Q}{t}\) ]
कार्य करने की क्षमता को “ऊर्जा (Energy)” कहते हैं।
अर्थात ऊर्जा = νct
कार्य करने की दर को विद्युत शक्ति कहते हैं।
अर्थात् विद्युत शक्ति = Bihar Board 12th Physics Important Questions Short Answer Type Part 2 14 = \(\frac{v c t}{t}\)
= νc जूल/से० … (i)
परन्तु 1 जूल/से० = 1 वाट
समी० (i) में सबों का मात्रक देने पर,
वाट = वोल्ट × आम्पीयर

प्रश्न 19.
What do you mean by mutual induction and coefficient of mutual induction.
(अन्योन्य प्रेरण तथा अन्योन्य प्रेरण गुणांक से आप क्या समझते हैं?)
उत्तर:
मान लिया कि A और B दो कुण्डली है। A कुण्डली को सेल तथा कुंजी से श्रेणीक्रम में जोड़ देते हैं। परन्तु B कुण्डली से एक galν. जुड़ा रहता है।

अब A कुण्डली में धारा प्रवाहित करते हैं तथा बन्द करते हैं। साथ ही साथ धारा के मान में परिवर्तन करते हैं। इन स्थितियों में B कुण्डली में एक प्रेरित वि० वा० बल उत्पन्न होता है। इस घटना को “अन्योन्य प्रेरण (Mutual induction)” कहते हैं।
Bihar Board 12th Physics Important Questions Short Answer Type Part 2 15
Aकुण्डली को प्राथमिक कुण्डली (Primary coil) तथा B कुण्डली को द्वितीयक कुण्डली (Secondary coil) कहते हैं।
अतः “किसी एक कुण्डली में धारा के मान में परिवर्तन करने से उसके पास रखी दूसरी कुण्डली में विद्युत चुम्बकीय प्रेरण की घटना को अन्योन्य प्रेरण (Mutual induction) कहते हैं।”

मान लिया कि प्राथमिक कुण्डली में ip धारा प्रवाहित करने से द्वितीयक कुण्डली में होकर गुजरने वाली बल रेखाओं की संख्या Ns है।
∴ Ns ∝ ip
= M . ip
जहाँ M एक स्थिर राशि है। इसे कुण्डली का “अन्योन्य प्रेरण गुणांक (Coeff. of mutual induction)” या “अन्योन्य प्रेरकत्व (Mutual inductance)” कहते हैं।
यदि ip = 1 हो तो Ns = M

अतः “प्राथमिक कुण्डली में इकाई धारा प्रवाहित करने के कारण दूसरी कुण्डली होकर जितनी चुम्बकीय बल रेखाएँ जाती हैं, उसे “अन्योन्य प्रेरण गुणांक कहते हैं।” इसकी इकाई “हेनरी (Henry)” है।

प्रश्न 20.
Obtain an expression for forces between two parallel curuarrying conductors.
(चालकों के दो समानान्तर धाराओं के बीच बल के लिए व्यंजक प्राप्त करें।)
उत्तर:
मान लिया कि MN तथा PQ दो समानान्तर चालक है। इसके बीच की दूरी r है। इसमें क्रमशः I1तथा I2 धारा बहती है।
MN के धारा के कारण PQ पर चुम्बकीय क्षेत्र (B)
Bihar Board 12th Physics Important Questions Short Answer Type Part 2 16
\(=\frac{\mu_{0} I_{1}}{2 \pi r}\) …(1)
इसकी दिशा I1 तथा r पर लम्बवत् होगा। साथ ही साथ I2 के भी लम्बवत् होगा
अब PQ तार के एक छोटे भाग dl की कल्पना करते हैं। इस dl पर B के कारण
= B I2dl sin90°
= \(\frac{\mu I_{1}}{2 \pi r}\). I2dl [(i) से B का मान]
यदि तार की कुल लम्बाई l हो तो
कुल बल = \(\frac{\mu_{1} I_{2} l}{2 \pi r}\) ….(2)

इसकी दिशा PQ तार पर बायीं ओर यानी MN की ओर होगी। इसी प्रकार I2 धारा द्वारा MN पर बल दायीं ओर लगेगा। अतः तार में एक दिशा में धारा बहने पर उनके बीच आकर्षण का बल काम करने लगता है। ठीक इसके विपरीत जब धारा विपरीत दिशा में रहती हो तो उनके बीच विकर्षण का बल लगता है।

प्रश्न 21.
Describe definition of ampere. (आम्पीयर की परिभाषा का वर्णन करें।)
उत्तर:
Bihar Board 12th Physics Important Questions Short Answer Type Part 2 17
धारा के मात्रक “आम्पीयर” है।
दो तार एक-दूसरे को समानान्तर हैं। इसमें प्रवाहित धारा I1 तथा I2 हैं। इसकी लम्बाई l है। इसके बीच की दूरी d है।
धारा के कारण दोनों के बीच लगनेवाला बल
F = \(\frac{\mu_{0} I_{1} I_{2} l}{2 \pi d}\)
यदि I1 = I2 = 1 आम्पीयर,l = 1 मीटर,
d = 1 मीटर हो तो
F = \(\frac{\mu_{0}}{2 \pi}\) = \(\frac{4 \pi \times 10^{-7}}{2 \pi}\)
= 2 × 10-7 न्यूटन
अतः “1 आम्पीयर धारा वह धारा है जो इकाई लम्बाई तथा इकाई दूरी पर स्थित चाल के बीच प्रवाहित होकर 2 × 10-7
न्यूटन का आकर्षण या विकर्षण का बल लगाता है।”

प्रश्न 22.
What are the difference between e.m.f.and potential difference? (वि० वा० बल तथा विभवान्तर के बीच क्या अन्तर है ?)
उत्तर:

वि० वा० बल विभवान्तर
(i) यह सेल का परिपथ खुला रहने पर विभव के अन्तर को बतलाता है। (i) यह सेल का परिपथ बन्द रहने पर विभव के अन्तर को बतलाता है।
(ii) यह प्रतिरोध पर निर्भर नहीं करता है। (ii) यह प्रतिरोध के समानुपाती होता है।
(iii) यह परिपथ के बन्द नहीं रहने पर exist करता है। (iii) यह परिपथ के बन्द रखने पर exist करता है।
(iv) यह विभवान्तर से बड़ा होता है। (iv) यह वि० वा० बल से छोटा होता है।
(v) इसे वोल्ट में मापा जाता है। (v) इसे भी वोल्ट (Volt) में मापा जाता है।

प्रश्न 23.
How can convert galvenometer into ammeter?
(गैल्वेनोमीटर की आमीटर में कैसे बदला जा सकता है?)
उत्तर:
गैल्वेनोमीटर के समानान्तर क्रम में कम मान के प्रतिरोध को लगाकर आमीटर में बदला जा सकता है। स्केल को ‘आम्पीयर’ में अंकित कर देते हैं।
Bihar Board 12th Physics Important Questions Short Answer Type Part 2 18
मान लिया कि galν. का प्रतिरोध = g
कम मान का प्रातराव = S
galν. से धारा = Ig
तथा शंट से धारा = Is
A और B के बीच विभवान्तर
= Ig . g
= Is . S
∴ Ig . g = Is . S
= (I- Ig) • S .
[∵ I = Ig + Is या, Is + I – Ig]
या, S = \(\frac{I g \cdot g}{I-I g}\)
अतः gav. के समानान्तर क्रम में S = \(\frac{I_{g} g}{I-I g}\)मान का प्रतिरोध लगाकर galv. को आमीटर में बदला जा सकता है।

प्रश्न 24.
How can convert galvenometer into voltmeter ? (गैल्वेनोमीटर को वोल्टमीटर में कैसे बदला जा सकता है.?)
उत्तर:
गैल्वेनोमीटर (Galvenometer) के श्रेणीक्रम में उच्च प्रतिरोध जोड़ देने से गैल्वेनोमीटर वोल्टमीटर में बदल जाता है।
Bihar Board 12th Physics Important Questions Short Answer Type Part 2 19
मान लिया कि गैलवेनोमीटर का प्रतिरोध = G
उच्च प्रतिरोध = R
प्रवाहित धारा = I
A और B के बीच विभवान्तर = धारा × प्रतिरोध
V=I (G+R)
जहाँ v → A और B के बीच विभवान्तर
या, G + R = \(\frac{V}{I}\)
या, R= \(\frac{V}{I}\) – G
अतः गैल्वेनोमीटर के श्रेणीक्रम में उच्च प्रतिरोध अर्थात् = \(\frac{V}{I}\) – G लगा देने से गैल्वेनोमीटर वोल्टमीटर के जैसा काम करता है।

प्रश्न 25.
What is Watless current. (वाटहीन धारा क्या है ?)
उत्तर:
L या C एक A.C circuit की कल्पना करते हैं। इसका ohmic प्रतिरोध शून्य है धारा तथा वोल्टेज के बीच Phase diff. 90° है। इस समय औसत शक्ति की हानि
= VrmsIrms . cos 90° जहाँ Vrms तथा Irms RMS वोल्टेज तथा धारा है।
=Vrms Irms 0 = 0
ऊपर से यह स्पष्ट होता है कि circuit से धारा का प्रवाह हो रहा है परन्तु उसकी औसत शक्ति शून्य है, इस धारा को “वाटहीन धारा (Wattless current)” कहते हैं।

प्रश्न 26.
How can it be tested experimentally wheather a given liquid is paramagnetic or diamagnetic?
(प्रयोग से किस प्रकार जाँच की जा सकती है कि दिया गया द्रव अनुचुम्बकीय प्रति चुम्बकीय है?)
उत्तर:
अनुचुम्बकीय पदार्थ को चुम्बकन क्षेत्र में रखने पर यह बल रेखाओं के समानान्तर तथा शक्तिशाली क्षेत्र की ओर भागता है, जबकि प्रति चुम्बकीय पदार्थ, बल रेखाओं के लम्बवत् तथा कमजोर क्षेत्र में. भागता है।
एक watch glass में इस द्रव को लेकर एक चुम्बकन क्षेत्र के बीच रखते हैं। यदि द्रव glass के बीच में ऊपर उठ जाता है तथा किनारे में धंस जाता है तथा द्रव अनुचुम्बकीय होता है। इसके विपरीत यदि द्रव बीच में धंस जाता है तथा किनारे में ऊपर उठ जाता है तब पदार्थ, प्रति चुम्बकीय होता है।

प्रश्न 27.
What is power of lens? (लेन्स की क्षमता क्या है ?)
उत्तर:
प्रकाश की किरणें लेन्स पर आपतित होती है। अपवर्तन के बाद अपने मार्ग से मुड़ जाती है। उत्तल लेन्स (convex lens) में लेन्स की ओर तथा अवतल लेन्स (concave lens) में लेन्स से दूर मुड़ती है। प्रकाश को अधिक मोड़ने वाले लेन्स की क्षमता अधिक होती है।
अतः “पतले लेन्स की क्षमता इसकी फोकस दूरी के व्युत्क्रम (reciprocal) होती है।” यदि फोकस दूरी मीटर में हो तो
क्षमता (P) = \(\frac{1}{f}\)
इसका unit डायोप्टर (Diopter) होती है।

प्रश्न 28.
What do you mean by magnifying power ? (आवर्द्धन क्षमता से आप क्या समझते हैं ?)
उत्तर:
किसी यंत्र की आवर्द्धन क्षमता उसके द्वारा वस्तु का बनाया गया magnified प्रतिबिम्ब होता है।
किसी यंत्र की आवर्द्धन क्षमता (magnifying power) उसके द्वारा बनाये गये अन्तिम प्रतिबिम्ब द्वारा नेत्र पर बनाये गये दर्शन कोण तथा उसी स्थान पर रखी वस्तु द्वारा नेत्र पर बनाये गये दर्शन कोण का अनुपात होता है। इसे “कोणीय आवर्द्धन” (Angular magnification) भी कहते हैं।

Bihar Board 12th Home Science Important Questions Long Answer Type Part 5

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Bihar Board 12th Home Science Important Questions Long Answer Type Part 5

प्रश्न 1.
कपड़ों के संग्रह से पूर्व कुछ नियम क्या है जिनका पालन करना चाहिए ?
अथवा, कपड़ों के संग्रहन से पूर्व पालन करने वाले नियमों का उल्लेख करें।
उत्तर:
कपड़ों के संग्रहण से पूर्व कुछ नियमों का पालन करना होता है। वे नियम निम्नलिखित हैं-

  1. एक बार पहन चुके वस्त्र को आलमारी में न टाँगें, क्योंकि उससे पसीने की महक आती है। पहनने के बाद वस्त्र को अच्छी प्रकार से हवा लगायें जिससे पसीने की महक दूर हो जाए।
  2. छिद्र, हुक, बटन का निरंतर निरीक्षण करें। वस्त्रों को रखने से पूर्व उधड़े भागों को सिल लें।
  3. वस्त्रों को संग्रह करने के लिए समाचार-पत्र का कागज उत्तम होता है, क्योंकि काली स्याही से वस्त्रों पर कीड़े नहीं लगते हैं।
  4. चमड़े के कोट तथा जैकेट को साफ कर पोंछ कर और सूखने से बचाने के लिए हल्का तेल लगाकर रखना चाहिए।
  5. वस्त्रों को कीड़ों से बचाने के लिए कपड़ों पर कीड़े मारने की दवा छिड़कनी चाहिए।
  6. बरसात के मौसम में कपड़ों को फंगस से बचाने के लिए चमड़े के कपड़ों को हवा लगा देनी चाहिए।
  7. गीले कपड़ों को कभी भी अलमारी में न रखें क्योंकि उनमें फफूंदी लग सकती है।
  8. प्रयोग के बाद कपड़ों से पिन निकाल देनी चाहिए अन्यथा कपड़े पर जंग के निशान पड़ सकते हैं।

प्रश्न 2.
अपने परिवार के लिए वस्त्र खरीदते समय आप किन-किन बातों को ध्यान में रखेंगी?
उत्तर:
अपने परिवार के लिए वस्त्र खरीदते समय निम्नलिखित बातों पर ध्यान देना चाहिए-
1. उद्देश्य- सर्वप्रथम इस बात को ध्यान में रखना चाहिए कि वस्त्र किस उद्देश्य से खरीदा जा रहा है। सदैव प्रयोजन के अनुरूप ही कपड़ा खरीदना चाहिए। क्योंकि विभिन्न कार्यों के लिए एक समान कपड़ा नहीं खरीदा जा सकता। जैसे-विवाह, जन्म दिन, त्योहार आदि पर कलात्मक कपड़े खरीदे जाते हैं।

2. गुणवत्ता- विभिन्न किस्म के वस्त्रों की भरमार बाजार में होती है। हमें अपनी आवश्यकता के अनुसार उत्तम गुण वाले कपड़े का चयन करना चाहिए। उत्तम किस्म के कपड़ों का चयन करते समय निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए। जैसे-टिकाऊपन, धोने में सुविधाजनक, पसीना सोखने की क्षमता, रंग का पक्कापन, बुनाई, विभिन्न प्रकार की परिसज्जा आदि।

3. मूल्य- वस्त्रों को खरीदते समय उसके मूल्य पर भी ध्यान देना चाहिए। सदैव अपने बजट के अनुसार ही कपड़ा खरीदनी चाहिए।

4. ऋतु- सदैव मौसम के अनुसार वस्त्र खरीदनी चाहिए। गर्मी में सूती तथा लिनन के वस्त्र खरीदनी चाहिए, क्योंकि इसमें कोमलता, नमी सोखने की क्षमता तथा धोने में सरलता होती है। सर्दियों में ऊनी तथा रेशम के बने वस्त्रों का प्रयोग करना चाहिए।

5. विश्वसनीय दुकान- सदैव विश्वसनीय दुकान से वस्त्र खरीदना चाहिए, क्योंकि इसमें धोखा की संभावना कम होती है।

प्रश्न 3.
डिजाइन के सिद्धान्तों का वर्णन करें।
उत्तर:
डिजाइन के निम्नलिखित सिद्धान्त हैं-
1. संतुलन- संतुलन का अर्थ समता, स्थिरता तथा विशिष्टता से है। किसी भी परिधान का निर्माण करते समय संतुलन का ध्यान रखना आवश्यक है। संतुलन द्वारा ही स्थिरता प्रदान की जाती है। संतुलन दो प्रकार का होता है-पहला स्थायी संतुलन तथा दूसरा अस्थायी संतुलन।

2. लयबद्धता- लय का अर्थ है-गति। अर्थात् एक छोर से दूसरे छोर तक बिना बाधा के घूम सके। परिधान में किनारे, कंधों, कॉलर, गला सबसे अधिक आकर्षित करते हैं। यदि ये रेखाएँ अव्यवस्थित हों तो पहनने वाले का व्यक्तित्व भी नहीं उभरता।

3. बल या दबाव- किसी भी परिधान के जिस विचार को प्रमुखता दी जाती है उसे दबाव कहते हैं। केन्द्रीय भाव या भांव की एकता दबाव होती है तथा बाकी नमूनों के गौण भाग होते हैं। कोई भी डिजाइन बल के अभाव में आकर्षक नहीं लगती है।

4. अनुपात- डिजाइन में समानुपात का सिद्धान्त शेष सभी सिद्धान्तों से महत्त्वपूर्ण है। समानुपात के सिद्धान्त के अनुसार किसी भी पोशाक के विभिन्न भागों के बीच अनुपात हो जिससे पोशाक सुन्दर और आकर्षक लगे। वस्त्रों में ठीक माप और अनुपात द्वारा ही उन्हें आकर्षक बनाकर व्यक्तित्व को आकर्षक बनाया जा सकता है।

5. एकता तथा अनुरूपता- डिजाइन के सभी मूल तत्त्वों यानि रेखाएँ, आकृतियाँ, रंग, रचना आदि पहनने वाले व्यक्ति तथा जिस अवसर पर उसे पहनना हो, एक साथ चले तथा व्यक्तित्व, गुण तथा अवसर के अनुरूप हो तो ऐसे डिजाइन को सुगठित डिजाइन कहते हैं। अतः किसी भी नमूने में एकता होना आवश्यक है।

प्रश्न 4.
घर पर की जाने वाली कपड़ों की धुलाई की प्रक्रिया के चरण लिखिए।
उत्तर:
वस्त्रों की धुलाई के सामान्य चरण (General steps of washing Clothes)-

  • मैला होने पर वस्त्रों को शीघ्र धोना चाहिए विशेषकर त्वचा के सम्पर्क में आने वाले वस्त्रों को हर बार पहनने के पश्चात् धोना चाहिए विशेषकर त्वचा के सम्पर्क में आने वाले वस्त्रों को हर बार पहनने के पश्चात् धोना चाहिए। मैले वस्त्रों को दोबारा पहनने से उनमें उपस्थित मैल कपड़े पर जम जाती है और फिर उसे साफ करना मुश्किल हो जाता है। इसके अतिरिक्त कपड़े द्वारा सोखा पसीना भी उसके रेशों को क्षति पहुँचाता है।
  • मैले वस्त्रों को उतार कर किसी एक जगह पर टोकरी अथवा थैले में डालकर रखना चाहिए। मैले वस्त्रों को इधर-उधर फेंकना नहीं चाहिए अन्यथा धोते समय इकट्ठी करने में परेशानी होती है और समय भी लगता है।
  • धोने से पूर्व कपड़ों की उनकी प्रकृति के अनुसार अलग-अलग कर लेना चाहिए जैसे सूती, रेशमी व ऊनी कपड़ों को अलग-अलग विधि द्वारा धोया जाता है। इसी प्रकार सफेद व रंगीन कपड़ों को भी अलग-अलग करना आवश्यक है क्योंकि यदि थोड़ा बहुत रंग भी निकलता हो तो सफेद कपड़े खराब हो सकते हैं।
  • धोने से पूर्व फटे कपड़ों की मरम्मत कर लेनी चाहिए तथा उन पर लगे धब्बों को दूर कर लेना चाहिए।
  • धोने के लिए वस्त्र के कपड़े की प्रकृति के अनुरूप साबुन अथवा डिटरजैन्ट का चयन करना चाहिए।
  • वस्त्र को अधिक आकर्षक बनाने के लिए प्रयोग में आने वाली अन्य सामग्री का चयन भी कर लेना चाहिए जैसे रेशमी वस्त्रों के लिए सिरका, गोंद आदि।
  • वस्त्रों को धोने से पूर्व धोने के लिए प्रयोग में आने वाले सभी सामान को एकत्रित कर
    लेना चाहिए।
  • वस्त्रों की प्रकृति के अनुरूप धोने की सही विधि का प्रयोग करना चाहिए। उदाहरण के लिए कुछ कपड़ों जैसे रेशम अधिक रगड़ सहन नहीं कर पाते हैं, अतः इन्हें हाथों के कोमल दवाब से ही धोना चाहिए।
  • वस्त्रों को साफ पानी में भली प्रकार धोकर उनमें से साबुन अथवा डिटरजैन्ट अच्छी तरह निकाल देना चाहिए अन्यथा वे वस्त्रों के तन्तुओं को कमजोर कर देते हैं।
  • वस्त्रों से भली प्रकार साबुन निकाल लेने के पश्चात् उनमें उपस्थित अतिरिक्त पानी निकाल. देना चाहिए।
  • सुखाने के लिए सफेद वस्त्रों को उल्टा धूप में सुखाना चाहिए तथा रंगीन वस्त्रों को छाया में सुखाना चाहिए अन्यथा उनके रंग खराब होने की सम्भावना रहती है। सफेद वस्त्रों को अधिक समय तक धूप में पड़े रहने से उन पर पीलापन आ जाता है।
  • वस्त्रों के आकार को बनाए रखने के लिए उन्हें हैंगर पर अथवा इस प्रकार लटकाना चाहिए कि उन पर किसी भी प्रकार का अनावश्यक खिंचाव न पड़े।
  • सूखने के पश्चात् उन्हें इस्तरी करके रखना चाहिए।

प्रश्न 5.
धुलाई की विभिन्न विधियों के बारे में लिखें।
उत्तर:
धुलाई क्रिया एक वैज्ञानिक कला है और अन्य कलाओं के समान ही इसके भी कुछ सिद्धान्त हैं। सिद्धान्तों का अनुसरण नियमपूर्वक करना तथा आवश्यकतानुसार इनमें कुछ-कुछ परिवर्तन करना, धोने की क्रिया धोने वाले की विवेक-बुद्धि पर निर्भर करती है। वैसे इस प्रक्रिया में धैर्य अभ्यास दोनों का ही अत्यधिक महत्त्व है। अभ्यास के सभी सिद्धान्तों के अंतर्निहिक गुण-दोष स्वतः सामने आ जाते हैं और धुलाई करने वाला स्वत: ही समझ जाता है कि कौन सिद्धान्त किस प्रकार और कब पालन योग्य है और उसके दोषों को किस प्रकार दूर करना संभव है।

घरेलू प्रयोग में तथा सभी पारिवारिक सदस्यों के परिधानों में तरह-तरह के वस्त्र प्रयोग भी आते हैं। सूती, ऊनी, रेशमी, लिनन, रेयन और रासायनिक वस्त्र तथा मिश्रण से बने वस्त्र भी रहते हैं। वस्त्रों के चयन सम्बन्धी किस्में भी एक-दूसरे से अलग रहती है। अतः धुलाई सिद्धान्तों का अवलोकन अनिवार्य है। उनका अनुसरण आवश्यकतानुसार ही करना चाहिए। अनुचित विधि के प्रयोग से वस्त्र के कोमल रेशों की घोर क्षति पहुँचाती है। उचित विधि के प्रयोग से वस्त्रों का प्रयोग सौन्दर्य स्थायी और अक्षुण्ता रहता है और वह टिकाऊ होता है, साथ ही कार्यक्षमता बढ़ती है।

धुलाई क्रिया दो प्रक्रियाओं के निम्नलिखित सम्मिलित रूप का ही नाम है-
(i) वस्त्रों को धूल-कणों और चिकनाई पूर्ण गंदगी से मुक्त करना तथा (ii) धुले वस्त्रों पर ऐसा परिष्करण देना जिससे उनका नवीन वस्त्र के समान सुघड़ और सुन्दर स्वरूप आ सके। गन्दगी को दूर करने का तरीका तथा वस्त्रों को स्वच्छ करने की विधि मुख्यतः वस्त्र के स्वभाव तथा धूल और गन्दगी की किस्म पर निर्भर करती है।

गन्दगी जो वस्त्रों में होती है वह दो प्रकार की होती है- (a) रेशों पर ठहरे हुए अलग धूल-कण तथा (b) चिकनाई के साथ लगे धूल-कण।

कपड़े धोने की विधियाँ
कपड़े धोने की विधियाँ निम्नलिखित हैं-
(i) रगड़कर- रगड़कर प्रयोग करके केवल उन्हीं वस्त्रों को स्वच्छ किया जा सकता है जो मजबूत और मोटे होते हैं। रगड़ क्रिया को विधिपूर्वक करने के कई तरीके हैं। वस्त्र के अनुरूप तरीके का प्रयोग करना चाहिए।

(a) रगड़ने का क्रिया हाथों से घिसकर- रगड़ने का काम हाथों से भी किया जा सकता है। हाथों से उन्हीं कपड़ों को रगड़ा जा सकता है जो हाथों में आ सके अर्थात् छोटे कपड़े।

(b) रगड़ने का क्रिया मार्जक ब्रश द्वारा- कुछ बड़े वस्त्रों को, जो कुछ मोटे और मजबूत भी होते हैं, ब्रश से मार्जन के द्वारा गंदगी से मुक्त किया जाता है।

(c) रगड़ने का क्रिया घिसने और सार्जन द्वारा- मजबूत रचना के कपड़ों पर ही इस विधि का प्रयोग किया जा सकता है।
(ii) हल्का दबाव डालकर- हल्का दबाव डालकर धोने की क्रिया उन वस्त्रों के लिए अच्छी रहती है। जिनके घिसाई और रगड़ाई से क्षतिग्रस्त हो जाने की शंका रहती है। हल्के, कोमल तथा सूक्ष्म रचना के वस्त्रों को इस विध से धोया जाता है।

(ii) सक्शन विधि का प्रयोग- सक्शन (चूषण) विधि का प्रयोग भारी कपड़ों को धोने के लिए किया जाता है। बड़े कपड़ों को हाथों से गूंथकर (फींचकर) तथा निपीडन करके धोना कठिन होता है। जो वस्त्र रगड़कर धोने से खराब हो सकते हैं, जिन्हें गूंथने में हाथ थक जा सकते हैं और वस्त्र भी साफ नहीं होता है, उन्हें सक्शन विधि की सहायता से स्वच्छ किया जाता है।

(iv) मशीन से धुलाई करना- वस्त्रों को मशीन से धोया जाता है। धुलाई मशीन कई प्रकार की मिलती है। कार्य-प्रणाली के आधार पर ये तीन टाइप की होती है-सिलेंडर टाइप, वेक्यूम कप टाइप और टेजीटेटर टाइप मशीन की धुलाई तभी सार्थक होती है जब अधिक वस्त्रों को धोना पड़ता है और समय कम रहता है।

प्रश्न 6.
धब्बे छुड़ाने की प्रमुख विधियाँ क्या है ?
उत्तर:
दाग-धब्बे मिटाने की प्रमुख विधियाँ (Main Methods of Stain Removal)- दाग हटाने के लिए निम्नलिखित विधियों का प्रयोग करते हैं-

  • डुबोकर- इस विधि से दाग छुड़ाने के लिए दाग वाले वस्त्र को अभिकर्मक में डुबोया जाता है। इसे रगड़कर हटाया जाता है और फिर धो दिया जाता है।
  • स्पंज- इस विधि में कपड़े के जिस स्थान से दाग हटाना हो उसे ब्लॉटिंग पेपर रखें तत्पश्चात् स्पंज के साथ अभिकर्मक लगाएँ तथा उसे रगड़कर स्वच्छ कर लें।
  • डॉप विधि- इस विधि का प्रयोग करते समय कपड़े को खींचकर एक बर्तन में रखकर इसे उस पर ड्रापर से अभिकर्मक टपकाया जाता है।
  • भाप विधि- इस विधि का प्रयोग करते समय उबलते हुए पानी से निकलती हुई भाप से दाग हटाया जाता है।

प्रश्न 7.
रेडिमेड कपड़े क्यों लोकप्रिय होते जा रहे हैं ?
अथवा, रेडिमेड कपड़े की लोकप्रियता के क्या कारण हैं ?
उत्तर:
रेडिमेड कपड़े की लोकप्रियता के निम्नलिखित कारण हैं-

  • ये कपड़े खरीदकर पहन लिये जाते हैं।
  • ये कपड़े सुन्दर तथा फैशनेबल डिजाइन में मिल जाते हैं।
  • ये कपड़े सस्ते होते हैं।
  • सिलवाने के झंझट से बचने के लिए लोग रेडिमेड कपड़े खरीदते हैं।
  • उपभोक्ता अधोवस्त्र रेडिमेड ही लेना चाहते हैं, क्योंकि ये पहनने, धोने और संभालने में आसान है।
  • निर्माता उपभोक्ता की जरूरत के अनुसार कपड़ा तैयार करवाता है।

प्रश्न 8.
गर्भावस्था में आप किस प्रकार के वस्त्रों का चुनाव करेंगी ?
उत्तर:
गर्भावस्था में स्त्रियों की शारीरिक संरचना में परिवर्तन आ जाता है। उनका पेट तथा वक्ष-स्थल उभर आता है तथा उन्हें पसीना भी बहुत आने लगता है। इसलिए उनके शरीर के लिए वस्त्रों का चुनाव अच्छी तरह करना चाहिए।

  • पेन्टीज अधिक कसी नहीं होनी चाहिए
  • शरीर पर कसे हुए वस्त्र नहीं होने चाहिए।
  • अच्छे रंगों और अच्छे कपड़े का वस्त्र बना होना चाहिए जो शरीर पर अच्छा लगे।
  • गर्भावस्था में अधिक महंगे कपड़े नहीं खरीदें एवं
  • वस्त्र पहनने और खोलने में सुविधाजनक हो।

प्रश्न 9.
किस वस्त्र की गुणवता की जाँच करने के लिए छ: बातों का ध्यान रखेगी ?
उत्तर:
वस्त्रों की गुणवत्ता के कुछ चिन्ह हैं, जिन्हें आपको खरीदने के पहले उसके गुणवत्ता को जांचना चाहिए-

  • कपड़ा- कपड़े में सिलवटें, फिकापन नहीं होना चाहिए तथा टिकाऊपन होना चाहिए। सिलवटें जाँचने के लिए निचोड़ कर परीक्षण करें। अपनी स्थिति के अनुरूप देख-रेख कर जाँच करके लें।
  • सिलाई- सिलाई मजबूत टिकाऊ हो।
  • अस्तर- इनसे वस्त्रों को उचित आकार तथा किनारों के साथ ही सम्पूर्णता दिखे। इस काम के लिए जो भी कपड़ा लिया जाय वह साथ वाले कपड़े के अनुरूप ही होना चाहिए।
  • बंधक- बंधक के अनुसार उचित आकार के होने चाहिए। वे कपड़े से बिल्कुल मिलने चाहिए।
  • ट्रिम- ट्रिम अच्छी तरह जुड़ी हुई एवं समन्वित होनी चाहिए। पोशाक के प्रदर्शन से अनाकर्षित नहीं होनी चाहिए।
  • ब्राण्ड के नाम- परिचित अच्छी तथा स्थापित कम्पनी का लेबल विशुद्ध गुणवत्ता निर्देशित न कर सकें। जो कि इस बात से परिचित न हों

प्रश्न 10.
गुणवत्ता की दृष्टि से एक सिली-सिलाई सलवार कमीज/फ्रॉक खरीदने से पहले आप कौन-सी छः बातों का निरीक्षण करेंगी ?
उत्तर:

  1. अच्छी टैक्सटाइल मिल द्वारा निर्मित कपड़ा खरीदना। उत्तम स्तर के कपड़े के लिए हमेशा अच्छी टैक्सटाइल मिल द्वारा निर्मित तैयार कपड़े खरीदने चाहिए।
  2. आजकल तैयार वस्त्रों का चलन बहुत हो गया है और नई कम्पनियाँ वस्त्र तैयार करने लगी हैं।
  3. कपड़े की किस्म और सिलाई देख लेनी चाहिए।
  4. इन्हें बनाने के लिए बहुत अच्छी किस्म के कपड़े तथा सिलाई के लिए अच्छे धागों का प्रयोग होना चाहिए।
  5. कई बार धोने पर इनका रंग निकल जाता है या सिलाई उधड़ जाती है या फिर फिटिंग ठीक न होने के कारण ये शीघ्र ही फट जाते हैं। अत: केवल अच्छी कम्पनियों द्वारा निर्मित तैयार कपड़े ही खरीदने चाहिए।
  6. सेल आदि से कपड़े की किस्म की पूर्ण जानकारी करने के पश्चात् विश्वसनीय फुटकर (Retail) दुकान से कपड़ा खरीदना।।

प्रश्न 11.
साबुन और डिटर्जेन्ट में अंतर स्पष्ट करें।
उत्तर:
साबुन और डिटर्जेन्ट में निम्नलिखित अंतर हैं-
साबुन:

  1. साबुन वसीय अम्ल के लवण होते हैं। उनका निर्माण वसा तथा क्षार के मिश्रण से होता है।
  2. साबुन घरेलू स्तर पर भी आसानी से बनाये जा सकते हैं।
  3. साबुन अपेक्षाकृत महँगे पड़ते हैं।
  4. कठोर जल निष्क्रिय होते हैं इसलिए इनकी बहुत अधिक मात्रा की आवश्यकता होती है।

डिटर्जेन्ट:

  1. डिटर्जेन्ट कार्बनिक यौगिक होते हैं जो संतृप्त तथा असंतृप्त दोनों ही प्रकार के हाइड्रोकार्बन से बनाये जाते हैं।
  2. ये रसायनों के द्वारा बनाये जाते हैं तथा फैक्टरियों में ही निर्मित होते हैं।
  3. ये साबुन से सस्ते होते हैं।
  4. ये कठोर जल में उतने ही सक्रिय होते हैं जितने मृदु जल में इनकी अतिरिक्त मात्रा नहीं मिलानी पड़ती है।

प्रश्न 12.
धब्बों के विभिन्न प्रकार क्या हैं ?
अथवा, दाग-धब्बों को कितने श्रेणी में बाँटा गया है ?
उत्तर:
दाग-धब्बों को पाँच श्रेणी में बतलाया गया है-

  • प्राणिज्य धब्बे- प्राणिज्य पदार्थों के द्वारा लगने वाले धब्बे को प्राणिज्य धब्बे कहते हैं। जैसे-अण्डा, दूध, मांस और मछली आदि।
  • वानस्पतिक धब्बे- पेड़-पौधों से प्राप्त पदार्थों द्वारा लगे धब्बे को वानस्पतिक धब्बे कहते हैं। जैसे-चाय, कॉफी, सब्जी और फल-फूल आदि।
  • खनिज धब्बे- खनिज पदार्थों के द्वारा लगे धब्बों को खनिज धब्बे कहते हैं। जैसे-जंग व स्याही आदि। इन धब्बों को दूर करने के लिए हल्के अम्ल का प्रयोग करते हैं तथा हल्का क्षार लगाकर वस्त्र पर लगे अम्ल के प्रभाव को दूर कर दिया जाता है।
  • चिकनाई वाले धब्बे- घी, तेल, मक्खन व क्रीम आदि पदार्थों से लगने वाले धब्बे चिकनाई वाले धब्बे होते हैं।
  • अन्य धब्बे- पसीना, धुआँ तथा रंग के धब्बे ऐसे होते हैं जिन्हें उपरोक्त किसी भी श्रेणी में नहीं रखा जा सकता है।

प्रश्न 13.
भारत में जल प्रदूषण के स्रोत क्या हैं ? अथवा, जल प्रदूषण के कारणों का उल्लेख करें।
उत्तर:
जल प्रदूषण के निम्नलिखित कारण है-

  • घरेलू अपशिष्ट- स्नान करने, कपड़े धोने, पशुओं को नहलाने, बर्तन साफ करने आदि बजहों से जल के स्रोत प्रदूषित हो जाते हैं।
  • मल- खुले क्षेत्रों में मानव और पशुओं द्वारा मल त्याग करने से मल वर्षाजल के साथ मिलकर जल स्रोतों में मिल जाता है और जल प्रदूषित हो जाता है।
  • औद्योगिक अपशिष्ट- उद्योगों से निकल रहा अपशिष्ट पदार्थ जिसमें कार्बनिक पदार्थ मौजूद होते हैं, सीधे जल स्रोतों में प्रवाहित किए जाते हैं। इससे जल प्रदूषित हो जाता है।
  • कृषि अपशिष्ट- हरित क्रांति की वजह से कृषि में नई तकनीकों के साथ ही रासायनिक उर्वरकों, कीटनाशक आदि का प्रयोग तेजी से बढ़ा है। विभिन्न कृषि पद्धतियों के कारण मिट्टी के कटाव में भी वृद्धि हुई जिससे नदियों के प्रवाह में बाधा उत्पन्न हुई और इनके किनारे कटाव का सामना कर रहे हैं। झीलें तथा तालाब सपाट होते जा रहे हैं। इनका जल मिट्टी एवं कीचड़ के जमाव की वजह से दूषित हो रहा है।
  • उष्मीय प्रदूषण- परमाणु ऊर्जा आधारित विद्युत संयंत्रों में अतिरिक्त भाप के माध्यम से विद्युत उत्पादन की प्रक्रिया द्वारा उष्मीय प्रदूषण फैल रहा है।
  • तैलीय प्रदूषण- औद्योगिक संयंत्रों द्वारा तेल एवं तेलीय पदार्थों के नदियों एवं अन्य जल स्रोतों में किए जा रहे प्रवाह के कारण जल प्रदूषित हो रहा है।
  • धार्मिक अपशिष्ट- धार्मिक पूजा-पाठ, मूर्तियाँ एवं पूजा सामग्रियों, फूल-माला आदि का. विसर्जन नदियों में किया जाता है। इस कारण नदियों का प्रदूषण कई गुणा बढ़ जाता है।।

प्रश्न 14.
गृह प्रसव एवं अस्पताल प्रसव का तुलनात्मक विवरण दें।
अथवा, गृह प्रसव एवं अस्पताल प्रसव में अन्तर स्पष्ट करें।
उत्तर:
गृह प्रसव एवं अस्पताल प्रसव में निम्नलिखित अन्तर हैं-

  • गृह प्रसव असुरक्षित और जोखिम भरा होता है जबकि अस्पताल में प्रसव कराना सुरक्षित और कम जोखिम वाला होता है।
  • घर में प्रसव के लिए अनुकूल वातावरण नहीं होता है, जबकि अस्पताल में रहता है।
  • घर में प्रसव होने पर जचा-बच्चा दोनों को खतरा है, जबकि अस्पताल में दोनों सुरक्षित रहते हैं।
  • घर में साफ-सफाई की समुचित व्यवस्था नहीं रहने के कारण बीमारी की संभावना रहती है, जबकि अस्पताल में साफ-सफाई की व्यवस्था रहती है। अतः बीमारी का खतरा कम जाता है।
  • घर में प्रशिक्षित नर्स उपलब्ध नहीं होती है, जबकि अस्पताल में प्रशिक्षित नर्स और डॉक्टर दोनों उपलब्ध होते हैं।
  • प्रसव में व्यवधान उत्पन्न होने पर तुरन्त उचित समाधान नहीं हो पाता है, परन्तु अस्पताल में प्रसव के समय व्यवधान होने पर शीघ्र उपचार की व्यवस्था हो जाती है, क्योंकि अस्पताल में चिकित्सक उपलब्ध रहते हैं।

प्रश्न 15.
प्रसवोपरान्त देखभाल के पहलू क्या है ?
उत्तर:
प्रसव के उपरान्त प्रसूता की उचित देखभाल आवश्यक है। इसके लिए मुख्य रूप से निम्न बातों पर ध्यान देना चाहिए-
1. विश्राम- प्रसव पीड़ा से प्रसूता बहुत थक जाती है और कमजोरी महसूस करती है। इसलिए उसे आराम करना चाहिए। करीब 15 दिनों तक उसे विस्तर पर ही आराम करना चाहिए। इसके बाद नवजात शिशु के छोटे-मोटे काम करना चाहिए। भारी काम नहीं करना चाहिए।

2. आहार- प्रसव में काफी रक्तस्राव होता है। प्रसव के बाद भी एक माह तक रक्त स्राव होते रहता है। इससे वह कमजोर हो जाती है तथा शरीर में खून की कमी हो जाती है। साथ ही उसे शिशु को स्तनपान करना होता है। इसलिए उसके आहार पर विशेष ध्यान देना चाहिए। उसका आहार संतुलित एवं उत्तम होना चाहिए। उसके आहार में दूध, बादाम, अण्डा, दलिया, छिलके वाली दाले तथा माँस का समावेश होना चाहिए। फलों तथा हरी सब्जियों का सेवन करना चाहिए। अधिक मिर्च-मसाले तथा तले-भूने गरिष्ठ आहार से परहेज करना चाहिए।

3. सफाई का ध्यान- प्रसव के बाद स्त्री के प्रजनन अंगों की सफाई होनी चाहिए। बाद में भी नियमित रूप से इसकी सफाई होनी चाहिए। मूत्राशय एवं आँतों की सफाई का भी ध्यान रखना चाहिए। सफाई नहीं होने पर संक्रामक रोग होने की संभावना रहती है। प्रसूता के वस्त्र साफ तथा धुला होना चाहिए।

4. नियमित व्यायाम- प्रसव के साथ शरीर के कुछ भागों में विशेष परिवर्तन आ जाता है। यदि उचित व्यायाम न किया जाए तो शरीर बेडॉल हो जाता है। प्रसव के उपरान्त व्यायाम करने से शरीर स्वाभाविक रूप में आ जाता है तथा स्वस्थ रहता है।

प्रश्न 16.
एक किशोरी के लिए परिधानों के चुनाव में किन बातों का ध्यान रखना चाहिए ?
उत्तर:
किशोरियों के लिए परिधान या वस्त्र का चयन सबसे कठिन होता है, क्योंकि वे परम्परागत कपड़ों के बजाय कुछ नया, अलग तथा अनोखा वस्त्र पहनना चाहते हैं। उनकी इच्छा होती है कि वे सबसे अलग दिखें और उनकी एक अलग पहचान हो। वे वर्तमान प्रचलित फैशन के अनुरूप ही वस्त्र पहनना चाहती है और अपनी सहेलियों से वस्त्रों द्वारा ही प्रशंसा एवं स्वीकृति प्राप्त करना चाहती है। इसलिए उनके वस्त्र ऐसे हो जो-

  1. उनपर खिले, सुन्दर लगे और उनके आत्म सम्मान को बढ़ाए।
  2. वस्त्र अश्लील न हो।
  3. वस्त्र कोमल, लचीले तथा विभिन्न अलंकरणों द्वारा सजाए हुए हो।
  4. वस्त्र शरीर की बनावट, त्वचा, आँखों तथा बालों के रंग के अनुरूप होने चाहिए।

Bihar Board 12th Home Science Important Questions Long Answer Type Part 4

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Bihar Board 12th Home Science Important Questions Long Answer Type Part 4

प्रश्न 1.
विनियोग के लाभ लिखें।
उत्तर:
विनियोग के लाभ(Advantages of Investment)- यदि अनुभवी विनियोगकर्ता द्वारा परामर्श लेकर सही योजना में धन का विनियोग किया जाए तो वह बहुत ही लाभकारी होता है। सही योजना में धन का विनियोग करने से व्यक्ति भविष्य के लिए आर्थिक रूप से सुरक्षित हो जाता है। उसे भविष्य के आर्थिक मामलों के लिए चिन्तित नहीं होना पड़ता इसलिए वह वर्तमान में सुख-शांति से रहता है।

धन का विनियोजन निरन्तर करते रहने से व्यक्ति को निरन्तर ही कुछ ब्याज तथा मूल राशि इकट्ठी मिलती रहती है जिससे वह अपने जीवन का स्तर समय-समय पर ऊँचा कर सकता है।

किसी भी आकस्मिक घटना पर यदि धन की आवश्यकता हो तो वह जमा राशि में से व्यय करके विनियोग किए गए धन का लाभ उठा सकता है।

कर की बचत (Tax-Saving)- धन के विनियोग की अधिकतर योजनाओं द्वारा जमा की गई धन राशि पर कर नहीं लगता। यह राशि आयकर से पूर्ण रूप से मुक्त होती है। उदाहरण के लिए बैंक (Bank), डाकघर के बचत बैंक (Saving Banks of Post Office), कैश सर्टिफिकेट्स (Cash Certificates), जीवन बीमा (Life Insurance), यूनिट्स (Units), भविष्य निधि योजना (Provident Fund), जन-साधारण भविष्य निधि योजना (Public Provident Fund), नेशनल सेविंग्स सर्टिफिकेट (National Savings Certificate) इत्यादि।

विनियोग द्वारा प्राप्त की गई राशि आयकर से मुक्त होने के कारण नौकरी वालों के लिए, व्यापारी वर्ग के लिए तथा जन-साधारण के लिए, सभी के लिए उपयुक्त है।

प्रश्न 2.
जीवन बीमा और यूनिट्स में धन का विनियोग करने के लाभ व हानियों की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
जीवन बीमा में विनियोग के लाभ-

  • बीमेदार की मृत्यु के बाद उसके परिवार को आर्थिक सुरक्षा प्रदान करता है।
  • बीमेदार ने यदि किसी से ऋण लिया हुआ हो तब भी उसके निधन के बाद बीमे की राशि उत्तराधिकारी को दी जाती है जो लेनदारों से पूर्ण रूप से सुरक्षित है।
  • बीमेदार के व्यवस्था करने पर उसके निधन के बाद बीमे की धनराशि उत्तराधिकारी को किश्तों में दी जाती है जिससे पूर्ण राशि का एक-साथ अपव्यय न हो।
  • बीमेदार को यह सुविधा है कि यदि वह अपनी आय का एक विशेष भाग जीवन बीमा के प्रीमियम के रूप में देता है तो उसपर उसे आयकर नहीं देना पड़ेगा।

इस योजना में कोई हानि नहीं है।

यूनिट्स में विनियोग के लाभ- यूनिट्स, यूनिट ट्रस्ट ऑफ इण्डिया द्वारा चालू किए जाते हैं। कोई भी व्यक्ति 10 रुपये के मूल्य के कम से कम 100 व अधिक से अधिक अपनी इच्छानुसार खरीद सकता है। वार्षिक लाभ का 90% विनियोगकर्ताओं में विभाजित कर दिया जाता है। इस यूनिट पर मंगाई गई धनराशि व उसके लाभांश पर आयकर की छूट है।

यूनिट ट्रस्ट की खराब वित्तीय स्थिति में नियोजक को लाभांश न दिये जाने से हानि हो सकती है। परिपक्वता की अवधि पूरी होने पर भी पैसा मिलने में देरी हो सकती है। यूनिट ट्रस्ट द्वारा पुनः खरीद मूल्य कम करने से भी निवेशक को आर्थिक नुकसान हो सकता है।

प्रश्न 3.
जीवन बीमा और डाकघर में निवेश करने के लाभ व हानियों का ब्यौरा दें।
उत्तर:
जीवन बीमा (Life Insurance)- जीवन बीमा अनिवार्य बचत करने का एक उत्तम साधन है। इसके अन्तर्गत बीमादार अपनी आय में से कुछ बचत करके अनिवार्य रूप से एक निश्चित अवधि तक धन विनियोजित करता है। अवधि पूरी होने पर बीमादार को जमा धन और उसपर अर्जित’ बोनस प्राप्त होता है। इस योजना की प्रमुख विशेषता यह है कि यदि बीमादार की आकस्मिक मृत्यु हो जाए तो बीमादार द्वारा नामांकित व्यक्ति को बीमे की पूरी राशि बोनस सहित मिल जाती है। इसलिए यह योजना जोखिम (Risk) उठाती है, अनिश्चितता को निश्चितता में बदल देती है।

जीवन बीमा के लाभ- बीमादार जीवन बीमा को निम्न लाभों के कारण अपनाता है-

  1. परिवार संरक्षण (Family Protection)- जीवन बीमा का मुख्य उद्देश्य बीमादार के परिवार को आर्थिक सुरक्षा प्रदान करना है। विशेष तौर पर जब बीमादार की आकस्मिक मृत्यु हो जाए।
  2. वृद्धवस्था में आर्थिक सहायता हेतु (Economic Help in Old Age)- अवकाश प्राप्ति या वृद्धावस्था में इस योजना से प्राप्त धन का विनियोजन कर ब्याज इत्यादि से बीमादार आर्थिक दृष्टि से सक्षम हो जाता है।
  3. बच्चों की शिक्षा या विवाह हेतु (For child education or Marriage)- इस योजना में लगाया गया धन बच्चों के बड़ा होने पर उनकी शिक्षा एवं विवाह हेतु आर्थिक सहायता के रूप में प्राप्त होता है।
  4. सम्पत्ति कर की व्यवस्था (For Property Tax)- बीमादार की मृत्यु के बाद सम्पत्ति कर देने के लिए बीमा योजना द्वारा मिला धन राहत देता है।
  5. आयकर में छूट (Relief in Income Tax)- बीमादार अपनी आय का जो अंश बीमा योजना पॉलिसी की किस्त चुकाने के लिए देता है उस पर उसे आयकर में छूट मिलती है।

डाकघर बचत बैंक (Post Office Saving)- बैंक की सुविधा देश के प्रत्येक गाँव तक नहीं पहुँची है परन्तु डाकघर की सुविधा देश के प्रत्येक राज्य के गाँव-गाँव में होने के कारण डाकघर बचत खाता चालू किया गया। भारत सरकार ने इसके द्वारा बचत की आदत को प्रोत्साहन दिया है। दो व्यक्ति परन्तु उनमें से एक बालिग अवश्य संयुक्त रूप से अपना खाता खुलवा सकते हैं। डाकघर बचत खाते का स्थानान्तरण भी करवाया जा सकता है। इस खाते के ब्याज पर आयकर नहीं देना पड़ता है। डाकघर के नियम सम्पूर्ण भारत में एक समान हैं। खाते की न्यूनतम रकम 5 रुपया है। यह कम राशि से खोला जा सकता है।

1. डाकघर में छपे फार्म को भरकर कोई भी व्यक्ति या अधिक व्यक्ति संयुक्त खाता पाँच रुपये जमा कर खोल सकता है।

2. 18 वर्ष से कम उम्र वालों के लिए अभिभावक यह खाता खोल सकते है।

3. डाकघर खाते में भी चेक की सुविधा दी जा सकती है। चेक बुक लेते समय जमाकर्ता के खाते में कम-से-कम 100 रुपए होने चाहिए तथा कभी भी खाते में 50 रुपये से कम नहीं

4. खाता खोलने पर एक पास बुक (Pass Book) दी जाती है जिसमें जमा की गई तथा निकाली गई राशि का पूरा लेखा होता है। यदि वह पासबुक खो जाती है तो 5 रुपये देकर पूरी पास बुक ली जा सकती है।

5. डाकघर में पैसा चेक, मनीऑर्डर, ड्रॉफ्ट तथा नकद के रूप में जमा करवाया जा सकता है। इस खाते की एक विशेषता यह है कि मुख्य डाकघर के अधीन जिस डाकघर में खाता खोला गया हों उसके अधीन किसी भी डाकघर में पैसा जमा करवाया जा सकता है। यदि किसी उप-डाकघर में खाता खोला गया हो तो मुख्य डाकघर में भी पैसा जमा करवाया जा सकता है, परन्तु पैसा केवल उसी डाकघर/उप-डाकघर से निकलवाया जा सकता है जहाँ पर खाता खोला गया है।

6. डाकघर खाते में वर्तमान ब्याज की दर 5.5% है।

7. धन निकलवाते समय निश्चित फार्म भरकर पासबुक के साथ डाकघर में दिया जाता है। लिपिक फार्म पर किए गए हस्ताक्षर नमूने के हस्ताक्षर से मिलान करने पर राशि का भुगतान करता है। यदि हस्ताक्षर नमूने के हस्ताक्षर से भिन्न हो तो राशि का भुगतान नहीं किया जाता जब तक कि कोई व्यक्ति जो डाकघर में जमाकर्ता को पहचानता हो, गवाही न दे।

8. खाता खोलने के तीन मास बाद यह किसी भी डाकघर में स्थानान्तरिक किया जा सकता है।

प्रश्न 4.
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 के अनुसार उपभोक्ता के अधिकार क्या हैं ? लिखिए।
उत्तर:
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अनुसार उपभोक्ता के अधिकार-

  • मल आवश्यकताएँ- इसके अन्तर्गत न केवल जीने के लिए बल्कि सभ्य जीवन के लिए सभी आवश्यकताओं की पूर्ति आती है। ये आवश्यकताएँ हैं भोजन, मकान, कपड़ा, बिजली, पानी, शिक्षा और चिकित्सा आदि।
  • जागरूकता- इस अधिकार के अन्तर्गत चयन के लिए आपको विक्रेताओं द्वारा सही जानकारी देना।
  • चयन- उपभोक्ताओं को सही चयन करने के लिए उचित गुणवत्ता और अधिक कीमत वाली कई वस्तुओं को दिखाना ताकि वे उनमें से उपयुक्त वस्तु खरीद सकें।
  • सनवाई- इसके अन्तर्गत उपभोक्ता को अपने विचार निर्माताओं के समक्ष रखने का अधिकार है। उपभोक्ता की समस्याओं से निर्माताओं को वस्तु-निर्माण में उसकी गुणवत्ता बढ़ाने में सहायता मिलती है।
  • स्वस्थ वातावरण- इससे जीवन और प्रकृति में सामंजस्य स्थापित करके जीवन स्तर ऊँचा किया जा सकता।
  • उपभोक्ता शिक्षण- सही चयन के लिए वस्तु/सामग्री और सेवाओं को उचित जानकारी व ज्ञान का अधिकार उपभोक्ता को मिलना चाहिए।
  • क्षतिपूर्ति (Redressal)- इसका अर्थ है कि यदि उचित सामान प्राप्त न हुआ हो तो. उसका उचित परिशोधन या मुआवजा मिलने का अधिकार। जिस भी उपभोक्ता के साथ अन्याय हुआ हो वह अधिकारी के पास जाकर उचित क्षतिपूर्ति ले सकता है।

प्रश्न 5.
उपभोक्ताओं की समस्याओं का उल्लेख कीजिए। इस संदर्भ में उपभोक्ताओं के क्या दायित्व हैं ?
उत्तर:
उपभोक्ताओं की समस्याएँ (Problems Faced by Consumers)- उपभोक्ताओं को विभिन्न समस्याओं का सामना करना पड़ता है, जैसे अस्थिर कीमतें और दुकानदारों के कुचक्र । अतः यह उपभोक्ताओं के हक में है कि वे इन सभी समस्याओं को जानें और ठगे जाने से बचने के लिए इनके निदान भी जानें। उपभोक्ताओं की कुछ समस्याएँ निम्नलिखित हैं

1. कीमतों में अस्थिरता (Variation in Price)- आपने देखा होगा कि कई दुकानों पर सामान की कीमतें बहुत अधिक होती हैं। ऐसा क्यों है ? ऐसा निम्नलिखित कारणों से हो सकता है-

  • दुकानदार अधिक लाभ कमाता है।
  • यदि वह प्रतिष्ठित दुकानदार है तो दुकान की देख-रेख, सामान के विज्ञापन और खरीद की कीमत को पूरा करता है।
  • दुकान में कम्प्यूटर, एयरकण्डीशन लगे होने के कारण दुकान की लागत अधिक होती है अतः उपभोक्ता से इन सुविधाओं की कीमत वसूल की जाती है।

कई दुकानें विज्ञापन पर बहुत पैसा खर्च करती हैं। घर पर निःशुल्क सामान पहुँचाने की सेवा भी उपभोक्ता से अधिक कीमत लेकर उपलब्ध कराई जाती है।

समृद्ध रियायशी क्षेत्रों में बने नये आकार-प्रकारों के बाजारों में भी सामान की कीमत अधिक होती है।

2. मिलावट (Adulteration)- उपभोक्ताओं के सामने मिलावट की समस्या बहुत गंभीर है। इसका अर्थ है मूल वस्तु की गुणवत्ता, आकार और रचना में से कोई तत्त्व निकाल कर या डालकर परिवर्तन लाना। मिलावट वांछित और प्रासंगिक हो सकती है। क्या आपको स्मरण है इन दोनों में क्या अन्तर है ?

प्रासंगिक मिलावट तब होती है जब दुर्घटनावश दो अलग-अलग वस्तुएँ जिनकी गुणवत्ता अलग-अलग है, मिल जायें और वांछित मिलावट वह होती है जब जान-बूझ कर उपभोक्ता को ठगने और अधिक लाभ कमाने के लिए की जाये।

3. अपूर्ण/धोखा देने वाले लेबल (Inadequate/Misleading Labelling)- प्रतिष्ठित ब्राण्ड की कमियाँ इतनी चतुराई से ढंक दी जाती हैं कि उपभोक्ता असली और नकली लेबल की पहचान नहीं कर पाता। निर्माता निम्न गुणवत्ता वाले सामान को प्रतिष्ठित सामान के आकार और रंग के लेबल लगाकर उपभोक्ताओं को गुमराह कर देते हैं। उनमें अन्तर इतना कम होता है कि एक बहुत सजग उपभोक्ता ही उसे पहचान सकता है।

एक लेबल में क्या-क्या जानकारी होनी चाहिए यह आप पहले पढ़ चुके हैं। क्या आपको स्मरण है ? पूर्ण जानकारी और सजगता के लिए उसे फिर से पढ़िये। एक अच्छे लेबल से आपको उस वस्तु की रचना, संरक्षण और प्रयोग की पूर्ण जानकारी मिलनी चाहिए। डिब्बा-बन्द वस्तुओं के खराब होने की तिथि से आप उसको सुरक्षा से उपभोग कर सकते हैं। निर्माता वस्तुओं पर उचित प्रयोग के संकेत न देकर उपभोक्ता को ठग लेते हैं।

4. दुकानदारों द्वारा उपभोक्ता को प्रेरित करना (Customer Persuation by Shopkeepers)- दुकानदार उपभोक्ता को एक खास वस्तु/ब्रांड खरीदने के लिए प्रेरित करते हैं, क्योंकि उस ब्राण्ड पर उन्हें अधिक कमीशन मिलता है। आजकल बाजार में बहुत किस्मों की ब्रेड मिलती है। आपने देखा होगा कि आपके पास का दुकानदार एक खास ब्राण्ड की डबलरोटी ही रखता है। आप जानते हैं क्यों ? एक जागरूक और समझदार उपभोक्ता को चाहिए कि वह उस दुकानदार को अन्य किस्मों की ब्रेड रखने के लिए प्रेरित करे ताकि आप उसमें से अपनी पसंद की ब्रेड चुन सकें। यदि यह’ संभव न हो तो आपको किसी अन्य दुकानं या दुकानदार के पास जाना चाहिए।

5. भ्रामक विज्ञापन (False Advertisement)- उपभोक्ता को आकर्षित करने के लिए विज्ञापन की सहायता ली जाती है। उपभोक्ता को प्रेरित करने के लिए विज्ञापन एक बहुत ही सबल माध्यम है। वस्तु का विज्ञापन इतनी चतुराई से किया जाता है कि उपभोक्ता उसे खरीदने के लिए तत्पर हो जाता है। चॉकलेट, चिप्स, ठंडे पेय, जूस, जीन्स, टूथपेस्ट तथा अन्य साज-सज्जा के सामान और स्कूटर, गाड़ियाँ इत्यादि से संबंधित विज्ञापन से अधिकतर किशोर उपभोक्ता आकर्षित हो जाते हैं। जब कोई वस्तु विज्ञापित से खरी नहीं उतरती तो उपभोक्ता निराश हो जाते हैं।

6. विलम्बित/अपूर्ण उपभोक्ता सेवाएँ (Delayed and Inadequate Consumer Services)- उपभोक्ता सेवाएँ जैसे स्वास्थ्य, पानी, बिजली, डाक व तार की सुविधा बहुत से घरों में दी जाती है। इन सेवाओं की दोषपूर्ण देख-रेख के कारण ये सेवायें उपभोक्ताओं को असुविधा देती है। उदाहरण-इन सेवाओं से जुड़े कार्यकर्ता जब ठीक से ये सुविधायें उपलब्ध न करा सकें तो उपभोक्ता झुंझला जाते हैं।

उपभोक्ता के दायित्व (Responsibilities of the Consumer)- उपभोक्ता के लिए अपने अधिकारों और दायित्वों के प्रति जागरूक होना अत्यन्त आवश्यक है। उपभोक्ता के निम्नलिखित दायित्व हैं-

  • कुछ भी खरीदने या उपयोग करने से पहले उपभोक्ता का दायित्व है कि वह सही जानकारी प्राप्त करे।
  • उपभोक्ता को सही चयन करना चाहिए। सही चयन का दायित्व उपभोक्ता पर ही होता है।
  • केवल वही वस्तु खरीदें जिसकी गुणवत्ता पर विश्वास हो।
  • यदि असन्तुष्ट हों तो उपभोक्त अदालत में जाएँ और क्षतिपूर्ति प्राप्त करें।

प्रश्न 6.
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 की मुख्य विशेषताएँ समझाइए।
उत्तर:
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की मुख्य विशेषताएँ (The Salient Features of Consumer Protection Act)-
(a) कानून का उपयोजन (Application of the Law)- यह अधिनियम वस्तु और सेवाओं दोनों पर लागू होता है। वस्तु वह होती है जिसका निर्माण होता है, उत्पादन होता है और जो उपभोक्ताओं को विक्रेताओं द्वारा बेची जाती है। सेवाओं के अन्तर्गत-यातायात, टेलीफोन, बिजली, सड़कें और सीवर आदि आती हैं। ये अधिकार सार्वजनिक क्षेत्र के व्यवसायियों द्वारा उपलब्ध कराये जाते हैं।

(b) क्षतिपूर्ति तंत्र तथा उपभोक्ता मंच (Redressal Machinary and Consumer Forum)- वस्तुओं और सेवाओं के विरुद्ध परिवेदना निवारण के लिए उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अन्तर्गत न्यायिक कल्प की स्थापना की गई है। इस तंत्र के अन्तर्गत विभिन्न स्तरों पर उपभोक्ता मंच बनाये गए हैं। ये मंच उपभोक्ताओं के हित की रक्षा तथा उनके संरक्षण का कार्य करते हैं।

अनुदान की राशि को ध्यान में रखते हुए विभिन्न स्तरों के न्यायिक कल्प तंत्र के समीप जाया जा सकता है। अधिष्ठाता सेवानिवृत या कार्यरत अफसर हो सकता है। जिला तथा राज्य स्तर के मंच पर अधिष्ठाता सेनानिवृत या कार्यरत अफसर हो सकता है। जिला तथा राज्य स्तर के मंच पर अधिष्ठाता के अतिरिक्त केवल एक समाज सेविका तथा एक शिक्षा/व्यापार आदि के क्षेत्र में प्रतिष्ठित . व्यक्ति ही होता है।

राष्ट्रीय स्तर पर केन्द्रीय सरकार एक महिला समाज सेविका, एक अधिष्ठाता सहित चार सदस्यों को नियुक्त करती है।

(c) शीघ्र निवारण (Expeditious Disposal)- उपभोक्ताओं को न्याय के लिये अधिक इंतजार न करना पड़े इसके लिये इस अधिनियम के अन्दर सभी मामले का नब्बे दिन के अन्दर निवारण करने की व्यवस्था की गई है। इससे उपभोक्ताओं को संतोषजनक न्याय के लिए अनावश्यक प्रतीक्षा नहीं करनी पड़ती है।

(d) सलाहकार समितियाँ (Advisory Bodies)- परिवेदना-निवारण सलाकार निगम जैसे उपभोक्ता संरक्षण परिषद् तथा केन्द्रीय उपभोक्ता संरक्षण परिषद् की राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर स्थापना की गई है। ये परिषदें उपभोक्ताओं को अपने अधिकारों का प्रयोग करने के लिए प्रेरित करती हैं। उपभोक्ता प्रशिक्षण तथा अनुसंधान केन्द्र (CERC) उपभोक्ताओं को विज्ञापन से प्रेरित करता है।

प्रश्न 7.
उपभोक्ता शिक्षा के क्या लाभ हैं ? संक्षेप में वर्णन करें।
उत्तर:
उपभोक्ता के हितों की रक्षा के लिए यह अत्यधिक महत्त्वपूर्ण है कि उपभोक्ता स्वयं अपने अधिकार से परिचित हो ताकि वह अपने द्वारा व्यय किये जाने वाले धन का सदुपयोग कर सके। उसके लिए यह आवश्यक है कि वस्तु खरीदने से पहले ही उसे वस्तु की जानकारी हो जिससे विक्रेता या उत्पादक उसे धोखा न दे सके। यह जानकारी वह निम्नलिखित माध्यमों द्वारा प्राप्त कर सकता है-

1. लेबल- इसके द्वारा उपभोक्ता को यह पता चलता है कि बन्द पात्र के अंदर कौन-सी वस्तु है और वह कितनी उपयोगी है।  भारतीय मानक ब्यूरो ने अच्छे लेबल के निम्नलिखित गुण निर्धारित किये हैं- (i) पदार्थ का नाम (ii) ब्रॉण्ड का नाम (iii) पदार्थ का भार (iv) पदार्थ का मूल्य (v) पदार्थ को बनाने में प्रयोग किये गये खाद्य पदार्थों की सूची (vi) बैच या कोड नं. (vii) निर्माता का नाम और पता (viii) स्तर नियंत्रक संस्थान का नाम आदि।

2. प्रमाणन स्तर- प्रमाणन चिह्न हमें किसी वस्तु के स्तर की जानकारी देती है। जब, उपभोक्ता किसी वस्तु को खरीदता है तो उसका स्तर वैसा ही मिलता है। उसकी कहीं भी जाँच की जा सकती है। मानकीकरण का कार्य वस्तुओं की संरचना, उसके संपूर्ण विश्लेषण तथा सर्वेक्षण के आधार पर किया जाता है।

3. विज्ञापन- इसके द्वारा उपभोक्ता अनेक पदार्थों एवं सेवाओं के बारे में ज्ञान प्राप्त करता है। टेलीविजन, रेडियो, पत्रिकाओं, समाचार-पत्रों आदि में विज्ञापन देखकर वस्तु के बारे में उपभोक्ता ज्ञान प्राप्त करता है। विज्ञापन द्वारा वह अनेक सेवाओं के विषय में जानकारी रखता है।

इस प्रकार यह स्पष्ट है कि उपभोक्ता शिक्षा के अनेक लाभ हैं जिसका वह समय पर उपयोग कर सकता है। उपभोक्ता शिक्षा के कारण आज जागरुकता बढ़ी है। लोग अपने हितों को लेकर सचेत हैं।

प्रश्न 8.
उपभोक्ता के क्या अधिकार है ? खरीदारी करते समय उपभोक्ता को किन-किन समस्याओं का सामना करना पड़ता है ?
उत्तर:
“किसी भी उत्पादित वस्तु को खरीदनेवाला उपभोक्ता कहलाता है।” उपभोक्ता द्वारा खरीदी जानेवाली वस्तु उसके लिए किसी प्रकार से हानिकारक नहीं होनी चाहिए तथा उसे खरीद दारी करते समय किसी प्रकार का धोखाधड़ी का सामना न करना पड़े, इसके लिए उपभोक्ताओं के कुछ अधिकार दिये गये हैं, उपभोक्ता शिक्षा उन्हें इस बारे में सजग कराती है। वे निम्नलिखित हैं-

  • सुरक्षा का अधिकार- उपभोक्ता स्वास्थ्य के लिए हानिकारक खाद्य पदार्थों, नकली दवाईयाँ आदि के बिक्री पर रोक की माँग कर सकते हैं।
  • जानकारी का अधिकार- उपभोक्ता किसी भी वस्तु की गुणवत्ता, शुद्धता, कीमत, तौल, आदि की जानकारी की माँग कर सकते हैं।
  • चयन का अधिकार- उपभोक्ता को अधिकार है कि विक्रेता उसे सभी निर्माताओं की बनी हुई वस्तु दिखायें ताकि वह उनका तुलनात्मक अध्ययन करके उचित कीमत पर गुणवत्ता वाली वस्तु खरीद सके।
  • सुनवाई का अधिकार- खरीदी गई वस्तु में कोई कमी होने पर उपभोक्ता को यह अधिकार है कि ये वस्तु निर्माता विक्रेता तथा संबंधित अधिकारी से शिकायत कर सकते हैं।
  • क्षतिपूर्ति का अधिकार- वस्तुओं तथा सेवाओं से होनेवाले नुकसान की क्षतिपूर्ति की मांग कर सकते हैं।
  • उपभोक्ता शिक्षा का अधिकार- उपभोक्ता सही जानकारी वह सही चुनाव करने के ज्ञान की मांग कर सके।
  • स्वस्थ वातावरण अधिकार- उपभोक्ता को अधिकार है कि वह ऐसे वातावरण में रहे तथा कार्य करे जो स्वास्थ्यपूर्ण है।

उपभोक्ता शिक्षा के अभाव में आज के सभी उपभोक्ताओं को उक्त सभी अधिकारों की जानकारी नहीं रहती है। जिसके कारण बाजार में खरीदारी करते समय उपभोक्ता को विभिन्न समस्याओं का सामना करना पड़ता है, कुछ मुख्य समस्याएँ निम्नलिखित हैं-

  • वस्तुओं में मिलावट- प्रतिदिन की खरीदारी में उपभोक्ता को वस्तुओं में मिलावट का सामना करना पड़ता है। मिलावट का कारण मुनाफाखोरी वस्तुओं की कम उपलब्धता, बढ़ती महंगाई आदि है।
  • दोषपूर्ण माप- तौल के साधन-बाजार में प्राय: मानक माप-तौल के साधनों का प्रयोग नहीं किया जाता है। बल्कि नकली कम वजन के बाँट की जगह ईंट-पत्थर का प्रयोग होता है।
  • वस्तुओं पर अपूर्ण लेबल- प्रायः उत्पादक वस्तुओं पर अपूर्ण लेबल लगाकर उपभोक्ताओं को धोखा देने का प्रयास करते हैं, जिससे उपभोक्ता भ्रम में गलत वस्तु खरीद लेता है।
  • बाजार में घटिया किस्म की वस्तुओं की उपलब्धि- आजकल उपभोक्ताओं को घटिया किस्म की वस्तुएँ खरीदना पड़ रहा है जिसके लिए अधिक कीमत भी देनी पड़ती है। जैसे-घटिया लकड़ी से बने फर्नीचर रंग करके बेचना, घटिया लोहे के चादरों की आलमारी आदि।
  • नकली वस्तुओं की बिक्री- आज बाजार में नकली वस्तुओं की भरमार है। असली पैकिंग में नकली समान, दवाई, सौंदर्य प्रसाधन, तेल, घी आदि भरकर बेचा जाता है।
  • भ्रामक और असत्य विज्ञापन- प्रत्येक उत्पादन कर्ता अपने उत्पादन की बिक्री बढ़ाने के लिए भ्रामक और असत्य विज्ञापनों का सहारा लेते हैं। वस्तु की गुणवत्ता को बढ़ा-चढ़ाकर बताते हैं।
  • निर्माता या विक्रेता द्वारा गलत हथकंडे अपनाना- मुफ्त उपहार, दामों में भारी छूट जैसी भ्रामक घोषणाएँ द्वारा उपभोक्ता धोखा खा जाते हैं और अच्छे ब्राण्ड के धोखे में गलत वस्तु खरीद लेते हैं।
  • मानकीकृत उत्पादनों की कमी- मानकीकरण चिह्न वाली वस्तु अधिक कीमत कम लोकप्रिय जबकि अन्य वस्तुएँ अधिक लोकप्रिय पर कम कीमत की होती है।
  • बाजार की कीमतों में विविधता- उपभोक्ता को एक ही वस्तु की अलग-अलग दूकानों पर अलग-अलग कीमत चुकानी पड़ती है। जैसे स्थानीय कर लगाकर कीमत बढ़ाना, लिखी कीमत पर पर्ची चिपकाकर कीमत बढ़ाना।।
  • वस्तुओं का बाजार में उपलब्ध न होना- कई परिस्थितियों, जैसे-सूखा पड़ना, बाढ़ आना आदि के कारण वस्तु की कीमत बढ़ती है तो दूकानदार वस्तुओं को जमा कर लेते हैं, अधिक कीमत देने पर बेचते हैं अथवा वह सामान बाजार से गायब हो जाती है।

प्रश्न 9.
हमारे जीवन में वस्त्र के महत्त्व को समझाइए।
उत्तर:
मानव जीवन में भोजन के बाद यदि किसी वस्तु का महत्त्व है तो वह है-वस्त्र। वस्त्र जहाँ हमारे शरीर को धूप और शीत से रक्षा करता है, वहीं मानव सभ्यता की दृष्टि से भी आवश्यक है। वस्त्रविहीन या नंगे रहना मानव में असभ्यता एवं पागलपन माना जाता है। वस्त्रों में मानव शरीर के सौन्दर्य में वृद्धि होती है।

अतः वस्त्रों के महत्त्व को निम्नांकित बिन्दुओं से स्पष्ट किया जा सकता है-

  • शरीर को आवरण प्रदान करने हेतु-मनुष्य को अपने नग्न शरीर को ढंकने के लिए वस्त्र की आवश्यकता है।
  • शरीर को गर्म रखने हेतु-विशेषकर ठंढ की ऋतु में ठंढे प्रदेशों में रहनेवाले व्यक्तियों. को गर्म वस्त्रों की आवश्यकता होती है।
  • निजी श्रृंगार के लिए-चस्त्र न केवल आवरण प्रदान करते हैं बल्कि सौन्दर्य-वृद्धि में भी सहायक होते हैं। अत: निजी शृंगार के लिए भी वस्त्र धारण किये जाते हैं।
  • सामाजिक प्रतिष्ठा हेतु-वस्त्रों द्वारा अपनी सम्पन्नता का प्रदर्शन किया जा सकता है। व्यक्ति अपनी आर्थिक स्थिति या समाज में अपने स्थान का प्रदर्शन वस्त्रों के माध्यम से कर सकता है।
  • कार्यक्षमता में वृद्धि हेतु-अपनी कार्यक्षमता बनाये रखने के लिए यथा-पानी, गर्मी, ठंडक आदि का बचाव वस्त्रों द्वारा करके अपनी कार्यक्षमता बढ़ा सकता है।
  • विभिन्न प्रयोजनों हेतु-मनुष्य को शरीर के अतिरिक्त भी वस्त्र की आवश्यता है। जैसे-घर सजाने के लिए।
  • अवगुणों को छिपाने हेतु-मानव शरीर की असामान्यता या इनमें कुछ दोष को छिपाने के लिए भी वस्त्र सहायक होता है। शरीर का स्वाभाविक तापमान कायम रखने के लिए भी वस्त्र बहुत आवश्यक है। इससे शरीर स्वस्थ रहता है।
  • किसी भी आघात या बाहरी जीवों के आक्रमण सुरक्षा हेतु-आघात या बाहरी जीवों के आक्रमण के सुरक्षा हेतु भी वस्त्रों की आवश्यकता होती है।
  • विभागीय पहचान में वस्त्र-मनुष्य अपने कार्यक्षेत्र की पहचान के लिए वस्त्र का उपयोग करता है। पुलिस, पोस्ट मैन, पादरी, चपरासी, नर्स आदि की पहचान उसके द्वारा पहने गये वस्त्र से की जा सकती है।

अतः जैसे-जैसे सभ्यता का विकास हो रहा है, वैसे-वैसे वस्त्रों का महत्त्व बढ़ता जा रहा है। आज वस्त्रों का महत्त्व इतना अधिक बढ़ गया है कि कहा जा सकता है-वस्त्रों से व्यक्ति बनता है।

प्रश्न 10.
सिले सिलाये तैयार वस्त्र खरीदते समय किन बातों पर ध्यान रखना चाहिए ?
अथवा, रेडिमेड वस्त्रों का चयन करते समय किन-किन बातों पर ध्यान देना चाहिए?
उत्तर:
रेडिमेड कपड़ों का चयन करते समय या खरीदते समय निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए-

  1. रेडिमेड वस्त्र के कपड़ों की किस्म को देखना चाहिए। कपड़ा किन रेशों का बना है, उसकी संरचना कैसी है, बुनाई कैसी है आदि।
  2. वस्त्र के रंग पक्के होना चाहिए तथा उनमें उपयोग किये गये अलंकरणों के रंग भी पक्के होना चाहिए।
  3. वस्त्र तैयार करने की कौशलता कैसी है इस पर भी ध्यान देना चाहिए। इसके अंतर्गत कटाई, सिलाई, नमूने, बंद करने के साधन और बाह्य सज्जा एवं अलंकरण का ध्यान किया जाता है।
  4. वस्त्र आरामदायक होना चाहिए।
  5. वस्त्र जिस व्यक्ति के लिए खरीदा जाता है उसके नाम के अनुसार होना चाहिए।
  6. वस्त्र व्यक्ति के व्यक्तित्व के अनुरूप होना चाहिए।
  7. वस्त्र मूल्य खरीदने वाले की क्षमता के अनुसार होना चाहिए।

प्रश्न 11.
वस्त्रों के चयन को प्रभावित करने वाले कारकों की सूची बनाएँ। उनका संक्षिप्त विवरण दें।
उत्तर:
वस्त्रों के चयन को प्रभावित करने वाले कारक निम्नलिखित हैं-
(i) व्यक्तित्व- कपड़ों का चुनाव करते समय व्यक्तित्व को ध्यान में रखना आवश्यक है। अधिकारी, क्लर्क, होटल कर्मचारी के लिए अपने व्यवसाय को ध्यान में रखना आवश्यक है। वहीं लम्बा, पतला, मोटा, संजीदा व्यक्ति आदि को ध्यान में रखकर ही खरीददारी करना चाहिए।

(ii) जलवायु- बाजार में कपड़े का चयन करते समय जलवायु का ध्यान रखना भी अत्यन्त आवश्यक हैं। गर्मियों के लिए आसानी से पसीना सूखने वाले कपड़े जैसे सूती, मतलम, रूबिया आदि उपयुक्त रहते हैं तो सर्दियों में गर्मी को बनाये रखने के लिए रेशमी व ऊनी वस्त्र उपयुक्त रहते हैं।

(iii) शारीरिक आकृति- वस्त्रों को शारीरिक रचना के अनुसार भी चुनाव करना चाहिए। मोटे व्यक्ति को मोटाई कम दिखाने वाले वस्त्रों का चयन करना चाहिए। इन्हें चौड़ी आड़ी वाली वस्त्रों को नहीं पहनने चाहिए क्योंकि इनमें मोटाई अधिक दिखाई देती है लम्बे तथा दुबले व्यक्तियों के लिए आड़ी रेखाओं वाले वस्त्रों का चयन किया जाना चाहिए।

(iv) अवसर- अलग-अलग अवसर पर अलग-अलग पोशाक अच्छे लगते हैं। खुशी के मौके पर सुन्दर, भड़कीले, चमकीले तथा कीमती परिधान होनी चाहिए। सार्वजनिक समारोह में परिधान शालीनना, सौम्यता तथा मर्यादा प्रदर्शित करने वाले हों। वस्त्र, मौसम, समय और शरीर के अनुरूप होनी चाहिए। शोक के अवसर पर सफेद रंग वस्त्र होने चाहिए यात्रा, खेल, अवकाश के लिए आरामदायक वस्त्र होनी चाहिए।

(v) व्यवसाय- व्यक्ति को अपने व्यवसाय के अनुसार वस्त्र का चुनाव करना चाहिए। डाक्टर एवं नर्स, शालीन, सौम्य सफेद वस्त्रों का चुनाव करना चाहिए। स्कूल के बच्चे, ऑफिस, शिक्षक आदि के वस्त्र एक समान होने चाहिए। अश्लील या असभ्य वस्त्रों का चयन नहीं करना चाहिए।

(vi) फैशन- वस्त्रों का चुनाव प्रचलित फैशन के अनुसार की करना चाहिए। समय के साथ-साथ फैशन परिवर्तित होता रहता है। फैशन बदलने से परिधान संबंधी अवस्थाई तथा रूचियाँ बदल जाती है।

(vii) आयु- वस्त्र पहनने वाले की आयु भी वस्त्रों के चुनाव को प्रभावित करती है भिन्न-भिन्न आयु वाले व्यक्तियों के लिए भिन्न-भिन्न वस्त्र उपयोगी होते हैं।

प्रश्न 12.
कपड़ों का चयन करते समय कौन-से तत्त्व प्रभावित करते हैं ?
उत्तर:
कपड़ों का चयन करते समय निम्नलिखित तत्त्व प्रभावित करते हैं-
(i) बाह्य रूप- कपड़ा सुंदर, चिकना एवं चमकदार होना चाहिए। उसमें रंगों का उचित अनुपात में मिश्रण होना चाहिए। सबसे बढ़कर उसे चित्ताकर्षक होना चाहिए।

(ii) रंग- वस्त्रों के रंगों का तापमान एवं मनोभावों पर भिन्न-भिन्न प्रभाव पड़ता है। लाल, पीला, नारंगी रंग गरम होते हैं। अतः इन रंगों की विशेषता लिये हुए वस्त्रों को गर्मी के मौसम में नहीं खरीदना चाहिए। अत: उपभोक्ता को गर्मी में आंखों तथा शरीर की शीतलता प्रदान करनेवाला रंग जैसे नीला, हरा, बैंगनी रंग वाले वस्त्रों को खरीदना चाहिए। इससे मानसिक संतोष, शांति प्राप्त होता है। सफेद रंग से, पवित्रता एवं ज्ञान का बोध होता है। चककीले, चटकदार रंगवाले वस्त्र बच्चों के लिए अधिक उपयुक्त होते हैं, तथा प्रौढ़ व्यक्तियों के लिए हल्के रंग उचित हैं।

(iii) अभिरूचि- वस्त्र के चुनाव में मनुष्य की शिक्षा, अभिरूचि, प्रशिक्षण, संवेग आदि की महत्वपूर्ण भूमिका है। चयन के समय उसकी कई ज्ञानेन्द्रिय क्रियाशील रहती है। वह वस्त्र को ध्यान से देखता है, छूता है ताकि उसके रूप रंग को महसूस कर सके।

(iv) कपड़े-विशेष का मूल्य- आजकल कपड़े का मूल्य बढ़ गया है। अतः कपड़े खरीदते समय प्रत्येक गृहिणी को अपनी मासिक आय को ध्यान में रखना चाहिए।

(v) कपड़ों का पक्का रंग- आजकल विभिन्न प्रकार के रेशों से बनी सुदर-सुंदर रंग के कपड़े उपलब्ध हैं। प्रायः एक प्रकार के रेशों से बने वस्त्रों के विशेष रंग पक्के निकलते हैं तो वही रंग दूसरे प्रकार के रेशों में कच्चे निकल जाते हैं। अतः रंगीन कपड़े खरीदते समय इसकी जांच कर लेनी चाहिए।

(vi) मौसम और जलवायु- कपड़े खरीदते समय मौसम का ध्यान रखना चाहिए। ठंढ के मौसम में ऊनी वस्त्र और गर्मी के मौसम में सूती, सिफॉन जार्जेट ही अच्छे लगते हैं।

(vii) टिकाऊपन- कोई वस्त्र टिकाऊ है या नहीं, यह कपड़े के रेशे के गुण और बनावट पर निर्भर करता हो। ठोस बुने कपड़े अधिक मजबूत और टिकाऊ होते हैं। इसके विपरीत हल्के बुने हुए कपड़े अपेक्षाकृत कमजोर और कम टिकाऊ होते हैं। कुशल गृहिणी कपड़ों को देखकर उसकी मजबूती, टिकाऊपन आदि का सहज ही पता लगा लेती हैं।

(viii) कपड़ों में कलफ- साधारणतः कपड़ों को भली-भांति देखने तथा इसके एक भाग को मसलने से कलफ का भी पता चल जाता है।

(ix) सिकुड़ना- कुछ कपड़े धुलने पर सिकुड़ जाते हैं। ऐसे कपड़ों से मिले वस्त्र उटंग हो जाते हैं। अतः जहाँ तक संभव हो कम-से-कम या नहीं सिकुड़ने वाले वस्त्र ही खरीदना चाहिए।

(x) वर्तमान कीमत- किसी विश्वासी या परिचित दूकान से ही कपड़े खरीदने चाहिए।

प्रश्न 13.
विभिन्न प्रकार की शारीरिक रचना वाली पहिलाओं के लिए पोशाक का चुनाव कैसे करेंगी ?
उत्तर:
विभिन्न प्रकार की शारीरिक रचना वाली महिलाओं के लिए पोशाक (Clothes According to Built and Appearance)-
(i) लम्बी और मोटी महिला- इस प्रकार की महिलाओं के लिए वस्त्रों का चुनाव करना बहुत कठिन काम है। इसीलिए ऐसी महिलाओं के लिए वस्त्रों का चयन करते समय अत्यन्त सावधानी बरतनी चाहिए। इसका कारण यह है कि इन महिलाओं को जहाँ एक ओर ऐसे वस्त्रों की आवश्यकता होती है जो मोटाई काम होने का अहसास कराएँ वहीं दूसरी ओर ऐसे वस्त्रों की जिससे लम्बाई बढ़ती हुई दिखाई न दे। ऐसी वस्त्र-योजना के लिए तिरछी रेखाओं वाले वस्त्र उचित रहते हैं क्योंकि ये ऊपरी भाग की चौड़ाई को कुछ करने का भ्रम पैदा करते हैं। इस वर्ग की महिलाओं के लिए वस्त्रों की सिलाई करते या कराते समय कालर, कफ, योक आदि सीधी रेखाओं में ही रखने चाहिए। इन्हें बहुत चुस्त तथा बहुत ढीले वस्त्र भी नहीं पहनने चाहिए।

(ii) मोटी तथा नाटी महिला- मोटी तथा नाटी महिला को भी अपने अनुकूल वस्त्रों के डिजाइन, कटाई आदि का ध्यानपूर्वक चयन करना चाहिए। इन्हें आड़ी रेखा वाले वस्त्रों का प्रयोग नहीं करना चाहिए क्योंकि इनसे न केवल मोटाई ही अधिक दिखाई देती है अपितु कद भी कम प्रतीत होता है। बड़े-बड़े चौड़े कोट, दोहरी छाती वाले कोट, ऊँचे कोट आदि का प्रयोग इन महिलाओं को कदापि नहीं करना चाहिए। बड़े फूल तथा चौड़े बार्डर वाले वस्त्र भी उनके लिए त्याज्य हैं। इन्हें तो केवल . लम्बी रेखाओं वाले वस्त्रों का प्रयोग करना चाहिए। इन्हें वस्त्रों की फिटिंग पर भी समुचित ध्यान देना चाहिए। वस्त्र न तो बहुत चुस्त होने चाहिए और न बहुत ही ढीले। वस्त्रों के चुस्त होने पर शारीरिक दोष उभर आते हैं और ढीले वस्त्र चौड़ाई फैलाने वाले होते हैं। ऐसी महिलाओं को एक ही रंग के छोटे नमूने वाले, बिना बैल्ट के छोटे कालर वाले वस्त्र प्रयोग में लाने चाहिए।

(iii) पतली महिला- पतले शरीर वाली महिलाओं के शरीर पर वे सभी वस्त्र फबते हैं जो मोटी महिलाओं के लिए त्याज्य हैं। इन महिलाओं को ऐसे वस्त्रों का चयन करना चाहिए जो पतलेपन को छिपाने वाले हों। तीखे तथा चटक रंग, चुन्नट, झालर, चौड़ी बैल्ट, बड़ी जेबें, फूली हुई बाँहें आदि डिजाइन वाले वस्त्र इन महिलाओं के व्यक्तित्व को अत्यन्त आकर्षक रूप प्रदान करते हैं। कपड़े तथा सिलाई के डिजाइनों का चुनाव करते समय इस बात का ध्यान रखा जाना चाहिए कि वे लम्बी रेखाओं के स्थान पर आड़ी अथवा भग्न एवं वक्र रेखा वाले हों।

(iv) लम्बी तथा दुबली महिला- इस वर्ग की महिलाओं के लिए जिन वस्त्रों का चयन किया जाए, वे आड़ी रेखाओं से बने डिजाइन के होने चाहिए। ऐसे शरीर पर चेक वाले डिजाइन भी बहुत अच्छे लगते हैं। कोट आदि वस्त्रों की लम्बाई कम रखनी चाहिए जिसका लाभ यह होता है कि लम्बाई कम होने का आभास मिलता है। फिटिंग ढीली रखनी चाहिए क्योंकि इससे भी लम्बाई अखरती नहीं है। कैम्ब्रिक, वायल, सूती साड़ी आदि का प्रयोग इस वर्ग की महिलाओं के व्यक्तित्व को आकर्षक बना देता है।

(v) छोटी तथा दुबली महिला/पुरुष- इन महिलाओं के लिए वस्त्रों को चुनाव करते समय दो बातों का ध्यान रखना पड़ता है-एक तो यह कि उनका शरीर भरा हुआ दिखाई दे, और दूसरा यह कि वे लम्बी प्रतीत हों। लम्बवत् रेखाएँ जहाँ बढ़ी हुई लम्बाई का आभास देती हैं वहीं आड़ी रेखाएँ बढ़ी हुई चौड़ाई का। अतएव इन महिला/पुरुष को ऐसे डिजाइनों के वस्त्र चुनने चाहिए जो लम्बाई और चौड़ाई दोनों ही बढ़ाते हुए प्रतीत हों। ऐसी स्थिति में आड़ी-खड़ी रेखाओं के योग से बने डिजाइन सर्वाधिक उपयुक्त रहते हैं। चुस्त पोशाक शारीरिक दुर्बलता को व्यक्त करती है। अतएव इन महिलाओं को शरीर को भरा-पूरा दिखाने वाले ढीली फिटिंग के वस्त्र ही पहनने चाहिए।

(vi) भारी नितम्ब वाली महिलाएँ- इस वर्ग की महिलाओं को ऐसे डिजाइनों के वस्त्र चुनने चाहिए जो नितम्बों की चौड़ाई कम करके दिखाएँ। तिरछे, वृत्ताकार तथा वक्र रेखाओं से बने डिजाइन इस उद्देश्य की पूर्ति में बाधक होते हैं। नितम्ब के पास वस्त्रों की फिटिंग चुस्त नहीं होनी चाहिए। इन्हें मोटी झालर तथा बड़ी-बड़ी जेबों वाले वस्त्र भी नहीं पहनने चाहिए।

(vii) भारी वक्ष वाली महिलाएँ- इस वर्ग की महिलाओं को वस्त्रों का चयन करते समय सदैव लम्बवत् रेखाओं वाले डिजाइनों का प्रयोग करना चाहिए। तिरछी तथा वक्र रेखाओं वाले डिजाइनों के वस्त्र ऐसे शरीर पर बहुत अच्छे लगते हैं। वस्त्रों की सिलाई के समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि गला V आकार का हो और छाती की फिटिंग चुस्त न हो। यदि कमर के पास चुन्नट अथवा छोटी डार्ट दे दी जाए तो छाती के भारी होने का अहसास नहीं होता।

(viii) मोटी बाँहों वाली महिलाएँ- इस वर्ग की महिलाओं को बिना आस्तीन वाले वस्त्र नहीं पहनने चाहिए। इसका कारण यह है कि बिना आस्तीन के वस्त्र उन्हीं महिलाओं पर फबते हैं जिनकी बाहें न तो बहुत मोटी होती हैं और न ही पतली। मोटी बाहों वाली स्त्रियों के लिए तो ढीली फिटिंग के बाहों वाले वस्त्र ही शोभा देते हैं।

(ix) निकला हुआ पेट- इस वर्ग की महिलाओं को ऐसे डिजाइन के वस्त्र चुनने चाहिए जिससे पेट थोड़ा दबा हुआ लगे। इस दृष्टि से बहुत तीखे रंगों के ब्लाउज तथा विषम रंगों की साड़ियाँ नहीं चुननी चाहिए। खड़ी रेखाओं वाले वस्त्र इस वर्ग की महिलाओं के लिए अच्छे रहते हैं। फिटिंग कुछ ढीली होनी चाहिए और गले के आस-पास ऐसी सजावट होनी चाहिए जिससे देखने वाले की दृष्टि उसी ओर जाए।

प्रश्न 14.
शिशुओं के वस्त्रों का चुनाव आप किस प्रकार करेंगी ?
उत्तर:
शिशुओं के वस्त्रों का चुनाव (Selection of Clothes for Infants)-
(i) शिशुओं के लिए सूती कपड़ा सर्वोत्तम वस्त्र होता है। सूती वस्त्र में भी कोमल तथा हल्का वस्त्र शिशु की कोमल त्वचा को क्षति नहीं पहुँचाता। सूती वस्त्र में संरध्रता (Porous) होने के कारण शिशु की त्वचा का पसीना सोख लेता है, उसे चिपचिपा नहीं होने देता। शिशुओं के लिए रेशमी या नायलान वस्त्र कष्टदायक होता है।

(ii) शिशु के वस्त्रों को बार-बार गंदे होने के कारण कई बार धोना पड़ता है। इसलिए शिशुओं के वस्त्र ऐसी होने चाहिए जिन्हें बार-बार धोया तथा सुखाया जा सके। वस्त्र ऐसा नहीं होना चाहिए जिसे घर में न धोया जा सके या जिसे सूखने में बहुत अधिक समय लगता हो।

(iii) शिशुओं के वस्त्र हमेशा साफ तथा कीटाणुरहित होने चाहिए। वस्त्रों को कीटाणुरहित करने के लिए उन्हें गर्म पानी में धोना चाहिए तथा डेटॉल के पानी में भिंगोना चाहिए। इसलिए वस्त्र ऐसा होना चाहिए जो गर्म पानी तथा डेटॉल या कीटाणुनाशक पदार्थ को सहन कर सके।

(iv) उसके गर्म कपड़े भी ऐसे होने चाहिए, जो गर्म पानी में सिकुड़े नहीं।

(v) शिशुओं के कपड़ों की संख्या अधिक होनी चाहिए क्योंकि उसके कपड़े गंदे हो जाने पर दिन में कई बार बदलने पड़ते हैं।

(vi) शिशुओं के कपड़े मांडरहित होने चाहिए तथा कसे इलास्टिक वाले नहीं होने चाहिए।

(vii) शिशुओं के कपड़े सामने, पीछे या ऊपर की ओर खुलने चाहिए, जिससे शिशु को सिर से कपड़ा न डालना पड़े।

(viii) शिशुओं के वस्त्रों में पीछे की ओर बटनों (Buttons) के स्थान पर कपड़े से बाँधने वाली पेटियाँ (ties) या बंधक (faster) होने चाहिए क्योंकि बटन पीछे होने से शिशु के लेटने पर उसे चुभ सकते हैं।

(ix) शिशुओं के कपड़ों के रंग व डिजाइन अपनी रुचि के अनुसार होने चाहिए, परन्तु रंग ऐसे होने चाहिए जो धोने पर निकले नहीं क्योंकि शिशुओं के वस्त्रों को बहुत अधिक धोना पड़ता है।

(x) शिशुओं के वस्त्रों में मजबूती का इतना महत्त्व नहीं होता है क्योंकि शिशुओं की वृद्धि बहुत तीव्र गति से होती है। जब तक शिशु के कपड़ों के फटने की स्थिति आती है, वे छोटे हो चुके होते हैं।

प्रश्न 15.
पूर्व स्कूलगामी स्कूल जाने वाले बच्चों के वस्त्र, किशोर तथा युवाओं के वस्त्र तथा महिलाओं के लिए वस्त्र किस प्रकार के होने चाहिए?
उत्तर:
I. पूर्व स्कूलगामी बच्चों के वस्त्र (Selection of Clothes for Pre-school Children)-

  • पूर्व स्कूलगामी बच्चों के वस्त्र कोमल, हल्के तथा सूती होने चाहिए। (3 वर्षीय बच्चे)
  • वस्त्र बहुत ढीले तथा बहुत लम्बे नहीं होने चाहिए क्योंकि इस आयु में बच्चों का ध्यान खेलने में होता है। ढीले तथा लम्बे कपड़े कहीं भी अटक कर फट सकते हैं तथा बच्चे को छति पहुँचा सकते हैं।
  • बच्चों के कपड़े ऐसे रंगों के होने चाहिए जो देखने में आकर्षक एवं उन्हें सुन्दर लगते हों।
  • कपड़ों की सिलाई पक्की होनी चाहिए तथा ऐसी होनी चाहिए जो बच्चों की उछल-कूद से दबाव पड़ने पर फटे नहीं।
  • बच्चों की वृद्धि बहुत जल्दी होती है, इसलिए वस्त्र ऐसी होनी चाहिए, जिनको आवश्यकता पड़ने पर खोल कर बड़ा किया जा सकता हो।
  • बच्चों के वस्त्र ऐसे होने चाहिए जिनको घर में आसानी से धोया जा सकता हो तथा धोने पर जिनका रंग न निकलता हो।
  • बच्चों के वस्त्र ऐसे होने चाहिए जिनको बच्चा स्वयं पहन सकता हो तथा उतार सकता हो।
  • बच्चों के वस्त्रों का इलास्टिक (Elastic) बहुत अधिक कसा नहीं होना चाहिए।

II. स्कूल जाने वाले बच्चों के वस्त्र (Selection of Clothes for School Going Children)-

  • बच्चों के कपड़े खेल-कूद के कारण गंदे हो जाते हैं। इसलिए ऐसे होने चाहिए जो घर में धोए जा सकते हों।
  • बच्चों के कपड़े मजबूत होने चाहिए जो खेलने और उछलकूद को सहन कर सकें और रोज-रोज फटे नहीं।
  • बच्चों के कपड़े नाम में थोड़े बड़े हो सकते हैं तथा इनको बच्चों की वृद्धि के अनुसार बड़ा करने की गुंजाइश होनी चाहिए।
  • बच्चों के वस्त्र कसे हुए तथा तने हुए नहीं होने चाहिए क्योंकि ये बच्चों की सामान्य वृद्धि में बाधक होते हैं। कसे हुए वस्त्र पहनने से वे खेल नहीं सकते, इसलिए कुंठित होते हैं जिससे उनके मानसिक विकास पर भी प्रभाव पड़ता है।
  • बच्चों के वस्त्र देखने में सुन्दर एवं बच्चों की पसन्द के अनुरूप होने चाहिए। वस्त्र ऐसे होने चाहिए जिनसे बच्चा स्मार्ट (Smart) लगे। यदि बच्चों के वस्त्र बेढब, भद्दे तथा अपने साथियों की पसन्द के अनुरूप नहीं होते तो वे हीन भावना से ग्रस्त हो जाते हैं और साथियों से मिलने तथा उनके साथ खेलने में संकोच करते हैं।
  • स्कूल की यूनिफार्म में अधिकतर सफेद रंग ही होता है, इसलिए घर में पहनने वाले वस्त्र रंगीन होने चाहिए।

III. किशोर तथा युवाओं के वस्त्रों का चयन (Selection of Clothes for Adolesents & Youth)- इस आयु-वर्ग के लिए वस्त्रों का चयन सबसे कठिन होता है क्योंकि इस आयु के व्यक्ति परंपरागत कपड़ों के बजाय, कुछ नया, अलग तथा अनोखा वस्त्र पहनना चाहते हैं। ये चाहते हैं कि वे सबसे अलग दिखें और उनकी एक अलग ही पहचान हो। वे वर्तमान प्रचलित फैशन के अनुरूप ही वस्त्र धारण करना चाहते हैं तथा वस्त्रों द्वारा ही अपने साथियों से प्रशंसा एवं स्वीकृति भी प्राप्त करना चाहते हैं। इसलिए उनके वस्त्र ऐसे हों जो-

  • उन पर खिलें, सुन्दर लगें और उनके आत्म-सम्मान को बढ़ाएँ।
  • वस्त्र अश्लील न हों।
  • वस्त्र कोमल, लचीले तथा विभिन्न अलंकरणों द्वारा सजाए हुए हों।
  • वस्त्र शरीर की बनावट, त्वचा, आँखों तथा बालों रंग के अनुरूप होने चाहिए।

IV. महिलाओं के लिए वस्त्र (Selection of Clothes for Ladies)-

  • बढ़ती आयु के साथ-साथ शरीर में परिवर्तन आ जाते हैं। उन परिवर्तनों के कारण युवावस्था में जो वस्त्र उन्हें सुन्दर लगा करते थे वे इस आयु में उनके शरीर पर नहीं फबते।
  • उनके कपड़ों के रंग, डिजाइन इत्यादि उनकी शरीर की बनावट के अनुरूप होने चाहिए।
  • इस आयु में वस्त्रों का चुनाव करते समय प्रचलित फैशन की अपेक्षा, व्यवसाय के अनुकूल (Need of Occupation), अवसर (Occasion), ऋतु (Season) तथा कीमत (Money) की ओर अधिक ध्यान दिया जाता है।
  • महिलाओं को रोजमर्रा के लिए ऐसे वस्त्रों की आवश्यकता होती है, जो सादे, सौम्य, सुन्दर, टिकाऊ तथा आरामदायक हों।

प्रश्न 16.
वस्त्रों का संरक्षण विस्तारपूर्वक लिखें।।
उत्तर:
वस्त्रों का संरक्षण- जितना आवश्यक वस्त्रों को धोना, सुखाना, इस्तरी करना है उतना ही आवश्यक वस्त्रों को संभालना भी है। रखे हुए वस्त्र आवश्यकता पड़ने पर तैयार मिलते हैं। अत: सभी वस्त्रों को सहेज कर रखना चाहिए।

वस्त्रों को रखने के लिए बाक्स या आलमारी का प्रायः प्रयोग किया जाता है। आलमारी (Wardrobe) में वस्त्रों को रखना अधिक उपयुक्त रहता है क्योंकि उसमें अलग-अलग नाप (Size) के रैक (Rack) बने हुए होते हैं, उनमें वस्त्र रखने से वस्त्रों की इस्तरी खराब नहीं होती और रैक्स (Racks) में अलग-अलग पड़े होने के कारण उनको ढूँढने में कठिनाई नहीं पड़ती। आलमारी (Wardrobe) में वस्त्रों को टांगने की भी सुविधा होती है। हैंगर (Hangers) में वस्त्रों को टाँगने से उनकी तह नहीं बिगड़ती। आलमारी (Wardrobe) में परिधान सम्बन्धी अलंकरण (Dressaccessories) की रखने की व्यवस्था भी होती है जिससे उपयुक्त अलंकरण भी वस्त्रों के साथ पहनने के लिए उपयुक्त समय पर मिल सकें। आलमारी में सबसे नीचे का शेल्फ (Shelf) जूते (Shoes) रखने के लिए प्रयोग किया जा सकता है।

महँगे तथा दैनिक प्रयोग में न आने वाले वस्त्रों को डस्ट-प्रूफ-बैग (Dust-proof-bag) में बन्द करके रखना चाहिए जिससे-

  1. उनको प्रयोग करते समय झाड़ना न पड़े
  2. श्रम तथा समय की बचत हो
  3. वस्त्रों की शोभा बनी रहे
  4. वस्त्रों का जीवन-काल बढे।

वस्त्रों को बन्द करके रखने से पहले उनकी बैल्ट, बो, ब्रोच इत्यादि उतार लेना चाहिए। जेबों को खाली कर देना चाहिए, उनकी जिप और बटन बन्द करके रखना चाहिए, उनको धूप लगवा लेनी चाहिए।

गर्म कपड़ों को अलमारी (Wardrobe) में रखने से पहले अखबार या कागज में लपेट देना चाहिए। इससे उनमें कीड़ा नहीं लगता।अलमारी में रखे वस्त्रों को कीड़ा न लगे। इसके लिए अलमारी में-

  1. कीड़े मारने वाली दवाई डालनी चाहिए।
  2. पालीथिन बैग में मॉथ-प्रूफ पाउडर (Mouth Proof Powder) या नैपथिलीन की गोलियाँ (Napthlene Balls) डालकर रखनी चाहिए।
  3. डी० डी० टी० का स्प्रे अथवा नीम की सूखी पत्तियाँ रखनी चाहिए।
  4. पेराडाइक्लोरो बैंजीन (Para-dy-chloro Benzene) का प्रयोग भी वस्त्रों की कीड़ों से सुरक्षा करता है।
  5. अलमारी की पूर्ण सफाई होनी चाहिए तथा टूटे-फूटे भागों की मरम्मत होती रहनी चाहिए ।

आलमारी में जूते, सैंडिल्स इत्यादि को पॉलिश करके ही रखना चाहिए जिससे आवश्यकता के समय वे तैयार मिलें। संरक्षितं वस्त्रों की समय-समय पर जाँच करते रहनी चाहिए तथा वस्त्रों को रैक्स में रखने का एक निश्चित स्थान बनाए रखना चाहिए।

Bihar Board 12th Home Science Important Questions Long Answer Type Part 3

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Bihar Board 12th Home Science Important Questions Long Answer Type Part 3

प्रश्न 1.
मिलावट करने से स्वास्थ्य पर क्या कुप्रभाव पड़ता है ?
उत्तर:
मिलावट करने से स्वास्थ्य पर निम्नलिखित कुप्रभाव पड़ता है-
Bihar Board 12th Home Science Important Questions Long Answer Type Part 3, 1
Bihar Board 12th Home Science Important Questions Long Answer Type Part 3, 2

प्रश्न 2.
पारिवारिक आय के अतिरिक्त साधन से आप क्या समझते हैं ?
अथवा, पारिवारिक आय के अनुपूरक साधनों का उल्लेख करें।
उत्तर:
परिवार के सदस्यों की सम्मिलित आय को पारिवारिक आय कहा जाता है। जब व्यक्ति की आवश्यक आवश्यकताओं की पूर्ति इससे नहीं हो पाती है तो अनुपूरक साधनों द्वारा आय बढ़ाने का प्रयास करता है। आय बढ़ाने के इन्हीं साधनों को पारिवारिक आय के अतिरिक्त साधन कहा जाता है। ये साधन निम्नलिखित हैं-

  • अंशकालिक नौकरियाँ- स्त्रियाँ अंशकालिक नौकरी करके परिवार की आय को बढ़ा सकती है।
  • पारिवारिक बजट बनाकर- पारिवारिक आय तथा व्यय का विवरण बनाकर अनावश्यक खर्च को कम करके भी आय में वृद्धि की जा सकती है।
  • पारिवारिक आय में से कुछ धन बचाकर- बचत किये हुए धन को बैंक में सावधि जमा योजना के अन्तर्गत जमा कराकर उस पर अतिरिक्त ब्याज की प्राप्ति करके भी आय में वृद्धि की जा सकती है।
  • मानवीय साधनों में विकास करके- ज्ञान, कार्य कौशल, शक्ति आदि का विकास करके भी आय में वृद्धि की जा सकती है।

प्रश्न 3.
पारिवारिक आय बढ़ाने के विभिन्न साधन क्या हैं ?
अथवा, एक परिवार को अपनी वास्तविक आय बढ़ाने के चार सुझाव दीजिए।
उत्तर:
पारिवारिक आय में वृद्धि करना-पारिवारिक स्थिति को देखते हुए आय में वृद्धि कई प्रकार से की जा सकती है-
(i) अंशकालिक नौकरी द्वारा (Part-time Job)- अधिकतर भारतीय गृहणियाँ अपना समय गृह-संचालन में ही व्यय कर देती है तथा उचित समय व्यवस्था की आवश्यकता से अनभिज्ञ होती हैं। इसका एक मुख्य कारण यह है कि उन्हें अतिरिक्त समय की आवश्यकता कम ही पड़ती है और वह अवकाश का समय व्यर्थ बैठकर गंवा देती हैं। यदि गृहिणी समय की उचित व्यवस्था करके कोई अंशकालिक नौकरी कर ले तो वह परिवार की आर्थिक स्थिति को सुधार सकती है।

(ii) गृह उद्योगों द्वारा- यदि गृहिणी घर से बाहर जाकर नौकरी करने में असमर्थ हो तो वह घर में ही सरल उद्योगों द्वारा धन अर्जित कर सकती है। घर में कई प्रकार के कार्य किए जा सकते हैं जैसे कपड़े सीना, मौसम में फल तथा सब्जियों का संरक्षण करके बाजार में बेचना, पापड़-बड़ियाँ आदि बनाकर बेचना। गृहिणी अपनी कार्य-निपुणता, सुविधा एवं रुचि के अनुकूल कार्य चुनकर अपने अतिरिक्त समय के सदुपयोग के साथ-साथ परिवार की आर्थिक स्थिति में सुधार ला सकती है।

(i) लघु उद्योगों द्वारा- आज के वैज्ञानिक युग में जब घर के कई कार्य ऐसे उपकरणों द्वारा किए जाते हैं। जिनमें समय तथा शक्ति दोनों की बचत होती है तब गृहिणी तथा परिवार के अन्य सदस्यों के पास काफी समय बच जाता है। इस समय में कोई भी लघु उद्योग प्रारम्भ करके पारिवारिक आय को बढ़ाया जा सकता है। ये लघु उद्योग हैं हथकरघे द्वारा कपड़ा बुनना, मोमबत्ती बनाना, साबुन या डिटरजेंट बनाना आदि।

(iv) बचत किए गए धन का उचित विनियोग- सभी परिवार अपने मासिक व्यय में सेकुछ न कुछ बचत करके अवश्य रखते हैं। यदि इस बचत किए हुए धन को घर में रखने की अपेक्षा इसका उचित विनियोग कर दिया जाए तो ब्याज अथवा लाभ के रूप में अतिरिक्त धन की प्राप्ति हो सकती है।

प्रश्न 4.
बचत के महत्वों की विस्तार से चर्चा करें।
उत्तर:
बचत के महत्व को इस प्रकार समझा जा सकता है-

  • बचत परिवार को आर्थिक रूप से अधिक आत्मविश्वास बनाती है तथा उसे वीरता से भविष्य का सामना करने योग्य बनाती है।
  • बचत आय और व्यय के मध्य एक संतुलन लाने में सहायता करती है।
  • बचत पारिवारिक जीवन चक्र के विभिन्न स्तरों पर धन की असमानताओं सहायता करती है।
  • यह धन खर्च के लिए हमें रीतिबद्ध पद्धति विकसित करने में सहायता करती है।
  • धन बचाना अधिक धन प्राप्त करने में सहायक होता है।
  • यह अनदेखी आवश्यकताओं को पूरा करने में सहायक होती है।
  • यह घर तथा वाहन अथवा परिवार के लिए अन्य सम्पत्ति खरीदकर जीवन स्तर में सुधार लाने में सहायक होती है। .
  • यह समाज में परिवार को मान-मूल्य प्रदान करती है।
  • यह व्यवसाय चक्र द्वारा आयी असमानताओं का सामना करने में सहायता करती है।

प्रश्न 5.
बैंक में बचत की क्या भूमिका होती है ?
उत्तर:
बैंक वह संस्था है जहाँ रुपयों का लेन-देन होता है। कोई भी व्यक्ति अपने रूपयों की बैंकों में जमा करता है और आवश्यकता होने पर निकाल भी सकता है। बैंक इस धन पर कुछ राशि ब्याज के रूप में देता है। पिछले कुछ वर्षों से बैंक योजना भारत में तेजी से विकसित हुई। है। मूल राशि में वृद्धि के अलावा बैंक जमाकर्ता को और भी कई सुविधाएँ देते हैं। ये सुविधाएँ-ऋण देना, विनिमय तथा मुद्रा सम्प्रेषण, बैंक ग्राहकों के खाते की विभिन्न रूपों में व्यवस्थित रखता है। ये हैं-बचत खाता, आवर्ती खाता, निश्चित अवधि जमा खाता, चालू खाता, रोकड़ प्रमाण-पत्र, बैंकर्स चेक सुरक्षित जमा खता, लॉकर आदि।

बैंक ATM की सुविधा प्रदान करते हैं तथा क्रेडिट और डेबिट कार्ड जारी करते हैं, जिनसे आप कभी भी अपना पैसा निकाल सकते हैं। बैंक निम्नलिखित कार्य करता है-

  • खाता खोलना
  • जमा राशि की मांग होने पर चेक, ड्राफ्ट आदि के माध्यम से पैसा वापस करना।
  • जनता का धन विभिन्न योजनाओं के माध्यम से जमा करना।
  • विभिन्न प्रकार के ऋण उपलब्ध कराना, जैसे-मकान, शिक्षा, व्यक्तिगत आदि।
  • बिना जोखिम के धन एक स्थान से दूसरे स्थान पर स्थानांतरित करना।

भारत सरकार ने 14 प्रमुख निजी बैंकों को राष्ट्रीयकृत किया। भारतीय स्टेट बैंक तथा इसकी सात सहायक बैंकों के अब 22 जनक्षेत्र हैं। भारतीय बैंक चार श्रेणियों में विभाजित हैं-

  • राष्ट्रीयकृत बैंक,
  • विदेशी बैंक,
  • अंतर्राष्ट्रीय बैंक एवं
  • अन्य।

प्रश्न 6.
बचत की आवश्यकता के कारण बतायें।
उत्तर:
बचत की आवश्यकता के निम्नलिखित कारण हैं-

  1. अनिश्चित आय तथा आपातकाल की आशंका के कारण।
  2. जब आय समाप्ति के बाद धन की आवश्यकता होती है।
  3. बच्चों तथा परिवार की बढ़ती आवश्यकताओं के कारण।
  4. अन्य महत्त्वपूर्ण उद्देश्यों की पूर्ति के कारण।

प्रश्न 7.
परिवार में की गई बचत को प्रभावित करने वाले चार कारकों की सूची बनाइए।
उत्तर:

  1. परिवार का आकार- यदि परिवार में अधिक सदस्य हैं तो बचत कम होगी।
  2. संयुक्त परिवार- यदि परिवार की संरचना संयुक्त परिवार में है तो किराए की बचत, नौकरों की बचत व बच्चों की देखभाल पर खर्चा नहीं होगा व बचत ज्यादा होगी।
  3. खर्च करने की आदत- साधारण आदतें हों तो बचत अधिक होती है।
  4. यदि नौकरी करने वाले सदस्यों की संख्या ज्यादा हो तो बचत भी ज्यादा होती है।

प्रश्न 8.
बचत करने के चार कारण दीजिए। अथवा, बचत के चार लाभ लिखें।
उत्तर:
बचत के चार लाभ निम्नलिखित हैं-

  1. परिवार की आवश्यकताओं को पूरा करने में जैसे-स्कूल शिक्षा, उच्च शिक्षा, बच्चों की शादी इत्यादि।
  2. आपातकालीन स्थितियों के लिए जो असामाजिक व आकस्मिक होती हैं धन की या बचत की आवश्यकता।
  3. सुरक्षित भविष्य के लिए विशेषकर नौकरी से निवृत्ति तथा वृद्धावस्था में सुखद जीवनयापन के लिए अधिकतर लोग बचत करते हैं।
  4. जीवन का स्तर ऊँचा रखने के लिए जैसे कार, कम्प्यूटर, एअर कण्डीशनर आदि लगातार बचत करके ये वस्तुएँ खरीदी जा सकती हैं।

प्रश्न 9.
पारिवारिक आय कितने प्रकार की होती है ? उदाहरण सहित समझाइए।
उत्तर:
पारिवारिक आय तीन प्रकार की होती है-

  • मौद्रिक आय- मुद्रा के रूप में प्राप्त होने वाली आय मौद्रिक आय कहलाती है। वेतन, पेंशन, मजदूरी आदि मौद्रिक आय के उदाहरण है।
  • वास्तविक आय- किसी विशेष अवधि में प्राप्त होने वाली वस्तुएँ या सेवा को वास्तविक आय कहते हैं। ऐसी वस्तुओं या सेवाओं के लिए परिवार को मुद्रा व्यय नहीं करनी पड़ती है। परंतु जिनके प्राप्त न होने पर अपनी मौद्रिक आय से व्यय करना पड़ता है।
  • आत्मिक आय- मौद्रिक आय और वास्तविक आय के व्यय से जो संतुष्टि प्राप्त होती है उसे आत्मिक आय कहते हैं। प्रत्येक व्यक्ति और परिवार की आत्मिक आय भिन्न-भिन्न हो सकती है।

प्रश्न 10.
पारिवारिक आय को बढ़ाने के चार उपाय लिखें।
उत्तर:
प्रत्येक परिवार की आय निश्चित होती है। एक निश्चित आय में ही उनसे विभिन्न प्रकार के व्यय करने होते हैं। परिवार के जीवन स्तर को बढ़ाने के लिये उस परिवार के सदस्यों को अपने आय को बढ़ाने की कोशिश करनी चाहिये। किसी भी परिवार को अपनी आय बढ़ाने के लिये चार उपाय निम्नलिखित हैं-

  1. गृह व लघु उद्योग (Cottage and Small Scale Industries),
  2. अंशकालीन नौकरी (Part Time Job),
  3. ओवरटाईम (Over Time),
  4. मौसम के अनुसार खाद्य सामग्री का संरक्षण एवं संग्रहीकरण (Preservation of Food and Storage)।

प्रश्न 11.
आय क्या है ? पारिवारिक आय के तीन घटकों के नाम बताइए।
उत्तर:
सदस्यों की सम्मिलित आय को पारिवारिक आय कहते हैं। प्रत्येक परिवार की आर्थिक व्यवस्था के दो केन्द्र होते हैं। आय तथा व्यय धन की व्यवस्थापना करते समय परिवार की आय-व्यय में संतुलन का प्रयास किया जाता है ताकि परिवार को अधिकतम सुख और समृद्धि प्राप्त हो।

ग्रॉस एवं क्रैण्डल के अनुसार पारिवारिक आय मुद्रा वस्तुओं, सेवाओं और संतोष का वह प्रवाह है जिसे परिवार के अधिकार से उनकी आवश्यकताओं एवं इच्छाओं को पूरा करने एवं दायित्वों के निर्वाह के लिए प्रयोग किया जाता है। पारिवारिक आय में वेतन, मजदूरी, ग्रेच्यूटी, पेंशन, ब्याज व लाभांश किराया, भविष्य निधि आदि सभी को सम्मिलित किया जाता है।

पारिवारिक आय के तीन घटना निम्नलिखित हैं-

  • वेतन- नौकरी करने के बाद जो मुद्रा प्रति मास प्राप्त होती है उसे वेतन कहते हैं।
  • मजदूरी-मजदूरों को कार्य करने के बाद जो पारिश्रमिक दैनिक, साप्ताहिक अथवा मासिक प्राप्त होता है उसे मजदूरी कहते हैं।
  • ब्याज व लाभांश- पूँजी के विनियोग से प्राप्त होने वाला ब्याज तथा व्यावसायिक संस्था के शेयर अथवा डिवेन्चयर से प्राप्त होने वाला लाभांश भी मौद्रिक आय है।

प्रश्न 12.
घरेलू लेखा-जोखा कितने प्रकार का होता है ?
उत्तर:
घरेलू लेखा-जोखा तीन प्रकार से किया जाता है-

  1. दैनिक हिसाब लिखना- इसमें विभिन्न मद में किये गये खर्च का लेखा-जोखा रहता है।
  2. साप्ताहिक एवं मासिक हिसाब- इसमें सप्ताह में या माह में किये गये व्यय का लेखा-जोखा रहता है।
  3. वार्षिक आय-व्यय और बचत का रिकार्ड- इसमें सभी स्रोतों से प्राप्त आय का हिसाब एक तरफ रहता है और दूसरी तरफ व्यय का हिसाब रहता है जिसमें आकस्मिक खर्च, टैक्स, बचत आदि सभी का ब्यौरा रहता है।

प्रश्न 13.
घर के हिसाब-किताब का ब्योरा रखने के छः लाभ बताइए।
उत्तर:
घर का रिकार्ड रखने के लाभ (Advantage of Maintaining Household Record)- घर खर्च का रिकार्ड रखने के अनेक लाभ हैं। इससे पारिवारिक आय का अच्छी तरह प्रयोग किया जा सकता है। ऐसे रिकार्ड रखने से निम्नलिखित लाभ हो सकते हैं-

  • इससे अधिक व्यय पर अंकुश लगाया जा सकता है। अपव्यय को कम किया जा सकता है।
  • लाभ का रिकार्ड रखने से परिवार की कुल आय व व्यय को जाना जा सकता है।
  • विभिन्न वस्तुओं पर कितना व्यय होना चाहिए इसका अनुमान लगाया जा सकता है।
  • उधार लेने की आदत को रोका जा सकता है। कई बार ऐसा देखा गया है कि उधार लेने के बाद उसकी किश्त चुकाने में कठिनाई आती है।
  • आय व व्यय में संतुलन बनाये रखना सरल हो जाता है। भविष्य के लिए बचत भी इसका अभिन्न अंग है।
  • गृह खर्च के ब्यौरे से परिवार के लक्ष्यों की पूर्ति सरल हो जाती है।

प्रश्न 14.
घरेलू बजट का क्या महत्व है ? परिवार के लिए बजट बनाते समय किन-किन बातों को ध्यान में रखना चाहिए ?
उत्तर:
प्रत्येक परिवार अपनी आय का व्यय बहुत सोच समझकर कर सकता है क्योंकि धन एक सीमित साधन है तथा यह प्रयास करता है कि अपनी सीमित आय द्वारा अपने परिवार की समस्त आवश्यकताओं को पूर्ण करके भविष्य हेतु कुछ न कुछ बचत कर सकें। यही कारण है कि गृह स्वामी तथा गृहस्वामिनी मिलकर सोच समझकर अपने परिवार की आय का उचित व्यय करने हेतु लिखित एवं मौखिक योजना बनाते हैं और उस योजना को क्रियान्वित करने के लिए उन्हें अपने व्यय का पूरा हिसाब किताब रखना पड़ता है, कोई भी परिवार घरेलू बचत बनाकर ही व्यय को नियंत्रित कर सकता है।

घरेलू बचत बनाने के निम्नलिखित लाभ हैं :

  • घरेलू हिसाब-किताब प्रतिदिन लिखने से हमें यह ज्ञात रहता है कि हमारे पास कितना पैसा शेष बचा है जो परिवार की आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु अत्यन्त आवश्यक है जिससे पारिवारिक लक्ष्य की प्राप्ति हो सके।
  • घरेलू हिसाब किताब रखने से अधिक व्यय पर अंकुश रहता है।
  • विभिन्न आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु एक सामान्य दिशा निर्देश का आभास होता है।
  • असीमित आवश्यकताओं और सीमित आय के बीच संतुलन बनाने में मदद मिलती है।
  • सही ढंग से व्यय करने के फलस्वरूप बचत व निवेश प्रोत्साहन मिलती है।
  • इससे परिवार का भविष्य सुरक्षित रहता है।

परिवार के लिए बजट बनाते समय निम्नलिखित बातों पर ध्यान रखना चाहिए :

  • आय और व्यय के बीच ज्यादा फासला न हो अर्थात् आय की तुलना में व्यय बहुत अधिक नहीं हो।
  • बजट से जीवन लक्ष्यों की पूर्ति हो यानी परिवार को उच्च जीवन स्तर की ओर प्रेरित कर सकें।
  • बजट बनाते समय अनिवार्य आवश्यकताओं को ध्यान में रखना चाहिए।
  • सुरक्षित भविष्य को ध्यान में रखकर बजट बनानी चाहिए ताकि आकस्मिक खर्चों यथा बीमारी, दुर्घटना तथा विवाह आदि के लिए धन की आवश्यकता की पूर्ति समय पर हो सके।
  • व्यय को आय के साथ समायोजित होना चाहिए ताकि ऋण का सहारा न लेना पड़े।
  • बजट बनाते समय महंगाई को भी ध्यान में रखना चाहिए।

प्रश्न 15.
निवेश योजना के चयन के लिए उपायों की क्या राय देंगी?
उत्तर:
विनियोग के विभिन्न क्षेत्रों में से अपने धन की सरक्षा व उचित आवति के लिए इन योजनाओं के सभी पहलुओं को भली प्रकार जाँच लेनी चाहिए। निवेश सुरक्षित होने के साथ-साथ कर बचाने वाला होना चाहिए।

धन के निवेश का लक्ष्य है अपने धन को शीघ्र व सुरक्षित रूप से बढ़ाना। कितना धन जमा करना है यह उसके सामर्थ्य पर निर्भर करता है। धन का विनियोग सोने आदि में खतरनाक हो सकता है यदि उन्हें सुरक्षित न रखा जाए। बाजार में कीमतों के उतार-चढ़ाव के कारण शेयर में भी धन लगाना काफी जोखिमपूर्ण हो सकता है।

विभिन्न वित्तीय संस्थान भिन्न-भिन्न ब्याज देते हैं। अतः इन सभी ब्याज दरों को अच्छी तरह अध्ययन करके ही उच्च ब्याज दर प्राप्त करें। अपनी बचत को इस प्रकार निवेश करना चाहिए जिससे आपातकाल में बिना ब्याज खोये धन राशि प्राप्त हो सके।

विनियोग कीमतों से क्रयक्षमता भी सुरक्षित होनी चाहिए। निवेश किए हुए धन का मूल्य बढ़ती कीमतों से कम न हो। बचत खातों में लाभांश की दर कम होती है जबकि शेयर, जमीन, यूनिटस आदि का लाभांश बढ़ती हुई महँगाई को देखते हुए अधिक होता है।

उपरोक्त विषयों को अच्छी तरह विचार कर ही धन का निवेश करना चाहिए। यदि कोई एक संस्था आपको ये सभी सुविधाएँ उपलब्ध नहीं कराती है तो अपने धन को अलग-अलग योजनाओं में अलग-अलग संस्थाओं में निवेश करें।

प्रश्न 16.
चेक कितने प्रकार के होते हैं ? चेक द्वारा भुगतान करने के लाभों का उल्लेख करें।
उत्तर:
उपर्युक्त प्रकार के चैकों के अतिरिक्त चेक अन्य कई प्रकार के होते हैं। यथा-
1. कोरा चेक (Blank Cheque)- जिस चेक पर न तो कोई राशि लिखी हो और न राशि की कोई सीमा ही लिखी हो, ऐसे चैक को कोरा चेक कहते हैं। प्राप्तकर्ता नियत सीमा तक जितनी राशि चाहे निकलवा सकते हैं। (यह आवश्यक है कि जितनी राशि वह निकलवाना चाहता है, उतनी राशि प्राप्तकर्ता के हिसाब में हो)।

2. सीमित राशि चेक (Limited Cheque)- यदि चेक में कोई राशि न लिखी हो, किन्तु सबसे ऊपर राशि की एक सीमा लिखी हुई हो तो ऐसे चेक को सीमित राशि चैक कहते हैं। प्राप्तकर्ता नियत सीमा तक जितनी राशि चाहे निकलवा सकता है (यह आवश्यक है कि जितनी राशि वह निकलवाना चाहता है, उतनी राशि प्राप्तकर्ता के हिसाब में हो)।

3. पूर्वतिथीय चेक (Antedated Cheque)- यदि किसी चेक पर जारी करने के दिन से पहले की कोई तिथि लिखी हुई हो तो उसे पूर्वतिथीय चेक कहते हैं। बैंक से केवल उन्हीं चैकों का रुपया मिल सकता है जिन पर लिखी गई तिथि को छ: मास न बीते हों।

4. निःसार चेक (Stale Cheque)- यदि किसी चेक का रुपया उस पर लिखी हुई तिथि से 6 मास के भीतर न प्राप्त किया जाए तो वह चेक निःसार अर्थात् बेकार हो जाता है। ऐसे चेक का रुपया नहीं निकलवाया जा सकता है।

5. तिथीय चेक (Postdated Cheque)- यदि किसी पर भविष्य में आने वाली तिथि लिखी हो तो उसे उत्तरतिथीय चेक कहते हैं। चेक पर जो तिथि लिखी हो, उससे पूर्व उसका रुपया नहीं निकलवाया जा सकता।

6. विकृत चेक (Mutilated Cheques)- कटे-फटे चेक को विकृत चेक कहते हैं। बैंक ऐसे चेक का रुपया नहीं देता।

7. अप्रतिष्ठित चेक (Dishonoured Cheque)- जब बैंक किसी चेक का रुपया भुगतान करने से इन्कार करता है तो ऐसे चेक को अप्रतिष्ठित चेक कहते हैं। निम्नलिखित दशाओं में चेक अप्रतिष्ठित हो जाता है-

  • यदि चेक जारी करने वाले के हस्ताक्षर बैंक में दिए गए नमूने के हस्ताक्षरों से न मिलते हों।
  • यदि चेक जारी करने वाले के खाते में उतना धन न हो जितना कि चेक पर लिखा गया हो।
  • यदि अंकों और शब्दों में लिखी गई राशियों में अन्तर हो।
  • यदि चेक निःसार हो गया हो।
  • यदि चेक उत्तरतिथीय हो।
  • यदि चेक कटा-फटा हो।
  • यदि चेक पर बेचान ठीक ढंग से न किया गया हो या बेचान के नीचे हस्ताक्षर उस प्रकार से न किए गए हों जिस प्रकार से चैक पर प्राप्तकर्ता का नाम लिखा हो।
  • यदि चेक जारी करने वाला स्वयं बैंक को रुपया देने से रोक दे।
  • यदि चेक में किसी शब्द को काटा या बदला गया हो और उस पर चेक जारी करने वाले के पूरे हस्ताक्षर न हों।

यदि बैंक किसी चेक को अप्रतिष्ठित करता है तो वह चेक के साथ एक पर्ची (जिस पर चेक के अप्रतिष्ठित होने के कारण लिखा होता है) लगाकर चेक जमा करने वाले व्यक्ति को लौटा देता है।

चेक द्वारा भुगतान करने के लाभ-चेक द्वारा भुगतान करने से निम्नलिखित लाभ होते हैं-

  • चेक द्वारा भुगतान करने से न तो धन की सुरक्षा का भार पड़ता है और न गिनने का कष्ट ही करना पड़ता है। एक चेक पर हस्ताक्षर करके बड़ी-से-बड़ी राशि का भुगतान किया जा सकता है।
  • समय की बचत होती है। धन गिनने और परखने में समय भी नष्ट नहीं करना पड़ता।
  • मितव्ययिता की आदत पड़ जाती है। नकद रुपया रखने से कई बार अनावश्यक वस्तुओं पर व्यय हो जाता है।
  • यदि भुगतान आदेशक चेक या रेखण चेक द्वारा किया गया हो तो अलग रसीद प्राप्त करने की आवश्यकता नहीं होती। बैंक भुगतान का साक्षी होता है। अतः जहाँ तक सम्भव हो, भुगतान आदेशक या रेखण चेक द्वारा ही करना चाहिए।
  • दूर-दूर के स्थानों पर भी बहुत ही कम व्यय से चेक द्वारा भुगतान किया जा सकता है।
  • चेक द्वारा भुगतान करना बहुत सुरक्षित है। इससे धन के खोने या चुराए जाने का भय नहीं रहता है।
  • चेक द्वारा भुगतान करने से खोटे रुपयों या जाली नोटों के बनाने वालों को ऐसी मुद्रा चलाने का अवसर नहीं मिलता।

चेक भरते समय ध्यान रखने योग्य बातें- चेक भरते समय निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए। चेक सदा स्याही से लिखना चाहिए। पैंसिल से भरे हुए चेक को बैंक स्वीकार नहीं करता है लेकिन बाल पाइंट (Ball Point) से लिखे चेक स्वीकार किए जाते हैं।

Bihar Board 12th Physics Important Questions Short Answer Type Part 1

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Bihar Board 12th Physics Important Questions Short Answer Type Part 1

प्रश्न 1.
चित्र में किसी विद्युत क्षेत्र में समविभवी तल दिखलाया गया है V1 > V2 है। विद्युत क्षेत्र में विद्युत बल रेखाओं के वितरण को दिखलायें तथा इनकी दिशा को दर्शायें। विद्युत क्षेत्र की तीव्रता किस क्षेत्र में अधिक है निर्धारित करें।
Bihar Board 12th Physics Important Questions Short Answer Type Part 1 1
उत्तर:
हम जानते हैं कि विद्युत बल रेखायें समविभवी तल के लम्बवत् होते हैं। चित्र में इन बल रेखाओं के बिन्दीदार रेखाओं से दिखलाया गया है। इन की दिशा ऊँच-विभव से निम्न विभव की ओर होती है।
विद्युत क्षेत्र की तीव्रता बायीं ओर यानि जिधर समविभवी तल अधिक संघनित है, अधिक होगी।

प्रश्न 2.
विभवमापी की सुग्राहिता से आप क्या समझते हैं ? तथा इसकी सुग्राहिता आप कैसे बढ़ा सकते हैं ?
उत्तर:
विभवमापी की सुग्राहिता का अर्थ है कि इस उपकरण से कम-से-कम कितना विभवान्तर की माप की जा सकती है। विभवमापी की सुग्राहिता विभव प्रवणता (potential gradient) का मान घटाकर बढ़ायी जा सकती है। इसे प्राप्त करने के लिए-

  • विभवमापी तार की लम्बाई बढ़ाई जा सकती है।
  • नियत लम्बाई वाले विभवमापी में धारा का मान बढ़ाकर (रिहॉस्टेंट की सहायता से) भी इसकी सुग्राहिता बढ़ायी जा सकती है।

प्रश्न 3.
धातु के एक गोले A (त्रिज्या a) को V विभव तक आवेशित किया जाता है। अगर इस गोले A को एक गोलीय खोल B भीतर रखकर एक तार द्वारा जोड़ दिया . जाय तो गोला B का विभव क्या होगा?
उत्तर:
अगर गोला A को ‘q’ आवेश दिया जाय तो इसका विभव
V = \(\frac{q}{4 \pi \epsilon_{0} a}\)
∴ q= (4π∈0a)V
जब गोला A को गोले B के भीतर रखा जाता है और इन्हें तार से जोड़ दिया जाता है तो कुल आवेश गोला B के बाह्य पृष्ठ पर चला जाता है अत: B का विभव
Bihar Board 12th Physics Important Questions Short Answer Type Part 1 2
VB = \(\frac{q}{4 \pi \in_{0} b}\) = \(\frac{\left(4 \pi \in_{0} a\right) V}{4 \pi \in_{0} b}\) = \(\frac{a}{b}\) V
चूँकि गोला A, गोलीय खोल B के भीतर है अतः गोला A का विभव
= VA = VB= \(\frac{a}{b}\) V
∴ a < b है
अतः VA < V
यदि गोला A का विभव पहले के विभव V से कम हो जायेगा।

प्रश्न 4.
कुलाम्ब के नियमों की सीमा बतायें।
उत्तर:
विद्युत स्थैतिक में कुलाम्ब के नियमों की सीमायें-

  1. यह नियम बिन्दु आवेशों के लिए ही लागु होता है।
  2. यह नियम सिर्फ स्थिर आवेशों के लिए लागु होता है।
  3. यह नियम नाभकीय कणों (Protons in nucleus) के नाभीक में स्थाइत्व (Stability) की व्याख्या नहीं कर पाता है।
  4. कुलाम्ब नियम 10-14m से कम तथा कुछ किलोमीटर से अधिक दूरियों के लिए मान्य नहीं होता है।

प्रश्न 5.
किसी माध्यम के परावैद्युतता से आप क्या समझते हैं? इसके मात्रक एवं विमा को लिखें।
उत्तर:
माध्यम की परावैद्युतता- यह किसी अचालक माध्यम की विद्युतीय अभिलक्षण होता है कि वह किस हदतक विद्युत गुण को संचरित कर सकता है। इसे प्रायःसे सूचित किया जाता है इसका S.I. मात्रक C2/Nm2 तथा विमा M-1L-3T4A2 होता है।

प्रश्न 6.
समान परिमाण के दो बिन्दु आवेश जब नजदिक रखे जाते हैं तो उनके लिए विद्युत बल रेखाओं को खींच कर दिखायें।
उत्तर:
Bihar Board 12th Physics Important Questions Short Answer Type Part 1 3

प्रश्न 7.
एक समान विद्युत क्षेत्र में रखे विद्युत द्विध्रुव की स्थितिज ऊर्जा के लिए व्यंजक प्राप्त करें।
उत्तर:
विद्युत द्विध्रुव की स्थिति ऊर्जा-
विद्युत क्षेत्र में द्विध्रुव को घुमाने में विद्युत क्षेत्र के विरुद्ध कुछ कार्य करना पड़ता है जो उसमें स्थिति ऊर्जा के रूप में संचित हो जाता है।
W = ΔU = Uf – Ui … (1)
जहाँ Ui तथा Uf क्रमशः प्रारंभिक (θ = θ1) तथा अन्तिम अवस्था (θ = θ2) में ऊर्जा है।
Bihar Board 12th Physics Important Questions Short Answer Type Part 1 4
अतः विद्युत द्विध्रुव ऊर्जा के लिए हम लिख सकते हैं
U = – pEcosθ = –\(\vec{p} \cdot \vec{E}\)

प्रश्न 8.
डाइइलेक्ट्रिक भंजन तथा डाइइलेक्ट्रिक साम्थर्य से आप समझते हैं?
उत्तर:
डाइइलेक्ट्रिक भंजन (Dielectric break down)-जब डाइइलेक्ट्रिक पदार्थ को विद्युत क्षेत्र में रखा जाता है तो यह ध्रुवित होने लगता है तथा ध्रुवण का आरोपित विद्युत क्षेत्र की तीव्रता पर निर्भर करता है। अगर विद्युत क्षेत्र का मान एक सीमा से अधिक हो जाता है तो इलेक्ट्रॉन अणु परमाणु से अलग होने लगते हैं और यह मुक्त इलेक्ट्रॉन दूसरे अणु परमाणु से टकराकर और इलेक्ट्रॉन को मुक्त कर देते हैं परिणामतः अधिक और अधिक इलेक्ट्रॉन चालन के लिए उपलब्ध हो जाते हैं और यह चालक के जैसा व्यवहार करने लगता है। इस स्थिति को डाइइलेक्ट्रिक भंजन कहा जाता है।

डाइइलेक्ट्रिक सार्थय (Dilelectric strighth)-डाइइलेक्ट्रिक पर आरोपित विद्युत क्षेत्र का वह अधिकतम मान जिस पर वह बिना जले यानि भंजन अवस्था में बिना पहुंचे रह सकता है, डाइइलेक्ट्रिक साम्थर्य कहलाता है। इसके बाद विद्युत विर्सजन (Spark) होने लगता है। शुष्क हवा के लिए सामान्य दाब पर डाइइलेक्ट्रिक सार्थय लगभग 3 × 106 Vm-1 होता है।

प्रश्न 9.
परावैद्युत सामर्थ्य एवं आपेक्षिक परावैधुतांक को परिभाषित करें।
उत्तर:
परावैद्युत सामर्थ्य : किसी परावैद्युत पदार्थ का परावैद्युत सामर्थ्य (या शक्ति) विद्युत क्षेत्र की तीव्रता का वह अधिकतम मान होता है जिसे वह पदार्थ बिना मंजन हुये सहन कर सकता है। सामान्य दाव पर शुष्क हवा के लिए परावैद्युत सामर्थ्य लगभग 3 × 106Vm-1 होता है।

आपेक्षिक परावैद्युतांक : किसी परावैद्युत माध्यम का आपेक्षिक परावैद्युतांक निवात के सापेक्ष उस माध्यम का परावैद्युतता होता ∈r है। इसे, या k से सूचित किया जाता है।
अतः किसी परावैद्युत या माध्यम का आपेक्षिक परावैद्युतांक
Bihar Board 12th Physics Important Questions Short Answer Type Part 1 5
यानि ∈r = \(\frac{\epsilon}{\epsilon_{0}}\) : इसका कोई मात्रक या विमा नहीं होता है। हवा या निर्वात के लिए ∈r =1 लिया जाता है।

प्रश्न 10.
चोक कुण्डली क्या है?
उत्तर:
Bihar Board 12th Physics Important Questions Short Answer Type Part 1 6
चोक कुण्डली : यह एक उच्च प्रेरकत्व की एक कुण्डली होती है जो नर्म लोहे के क्रोड के उपर विद्युत रोधी रूप में लिपटी रहती है। यह प्रत्यावर्ती परिपथ में विना विद्युत ऊर्जा क्षय के विभावान्तर का मान बढ़ा होता है। अतः इसका उपयोग विभावान्तर बढ़ाने लिए ए-सी प्रतिरोध की अपेक्षा अधिक कारगर होता है। इस कुण्डली की
प्रतिबाधा
z = \(\sqrt{R^{2}+\omega^{2} L^{2}}\)होती है। उच्च आवृत्ति के स्रोत रहने पर L का मान कम रहने पर भी wL का मान अधिक होता है अतः इस स्थिति में लौह क्रोड के स्थान पर वायु क्रोड का ही उपयोग किया जाता है।

प्रश्न 11.
ट्रांसफॉर्मर के क्रोड़ परतदार क्यों बनाये जाते हैं?
उत्तर:
ट्रांसफॉर्मर के कुण्डली से जब प्रत्यवर्ती धारा प्रवाहित होता है तो फ्लक्स में परिवर्तन के कारण लौह क्रोड में भंवर धारा उत्पन्न होती है और विद्युत ऊर्जा का ह्रास लौह क्रोड को गर्म करने में हो जाती है जिसे लौह क्षय भी कहा जाता है। इस हानी को रोकने के लिए लौह क्रोड को विद्युत रोधी परतदार पट्टियों के रूप में बना देने पर भंवर धारा नहीं बन पाती है और विद्युत ऊर्जा का ह्रास कम हो जाता है।

प्रश्न 12.
लेंज के नियम क्या है?
उत्तर:
लेंज का नियम : विद्युत चुम्बकीय प्रेरण में प्रेरित वि०वा० बल या धारा की दिशा लेंज-नियम से प्राप्त होती है। इस नियम के अनुसार-“विद्युत चुम्बकीय प्रेरण के कारण सभी स्थितियों में परिपथ में प्रेरित धारा या वि०वा०बल की दिशा इस प्रकार की होती है कि वह अपने उत्पन्न कर्ता का विरोध करता है जिसके कारण वह उत्पन्न होता है।
Bihar Board 12th Physics Important Questions Short Answer Type Part 1 7
उदाहरण के लिए जब किसी कुण्डली के नजदिक बाध्य चुम्बक का N-ध्रुव लाया जाता है तो । कुण्डली में प्रेरित धारा की दिशा इस प्रकार की होती है कि समुख सतह पर N-ध्रुव की उत्पत्ति हो तो आते हुये चुम्बक का N-ध्रुव का विरोध हो। अर्थात् कुण्डली से सम्बन्ध फ्लक्स में वृद्धि होने पर प्रेरित धारा की दिशा ऐसी होती है कि इसके कारण : फ्लक्स में कमी हो।
लेंज का नियम ऊर्जा संरक्षण नियम के अनुरूप होता है तथा इससे प्रेरण में विद्युत स्रोत की जानकारी भी मिलती है।

प्रश्न 13.
आवेश का रैखिक घनत्व से क्या समझते हैं। इसका मात्रक लिखें।
उत्तर:
किसी चालक के प्रति एकांक लम्बाई के आवेश के परिमाप को आवेश का रैखिक द्वारा व्यक्त किया जाता है।
Bihar Board 12th Physics Important Questions Short Answer Type Part 1 8
∴ λ = \(\frac{q}{l}\)
इसका मात्रक C-m-1 होता है।

प्रश्न 14.
आवेश का पृष्ठ (तलीय) घनत्व से क्या समझते हैं।
उत्तर:
किसी चालक के प्रतिएकांक क्षेत्रफल के आवेश के परिमाप को आवेश का तलीय घनत्व कहा जाता है। इसे σ द्वारा व्यक्त किया जाता है।
पष्ठ घनत्व
Bihar Board 12th Physics Important Questions Short Answer Type Part 1 9
∴ σ = \(\frac{q}{A}\)
इसका मात्रक C-m-2होता है।

प्रश्न 15.
विद्युत फ्लस्क क्या है?
उत्तर:
किसी क्षेत्र के क्षेत्रफल सदिश एवं तीव्रता के अदिश गुणनफल को विद्युत फ्लक्स कहा जाता है। इसे Φ द्वारा सूचित किया जाता है।
∴ Φ= Eds cosθ
जहाँ E= तीव्रता
ds = क्षेत्रफल इसका मात्रक
V – m होता है।

प्रश्न 16.
गतिशीलता से क्या समझते हैं?
उत्तर:
एकांक परिमाण के विद्युत क्षेत्र से उत्पन्न संवहन (अनुगमन) वेग को गतिशीलता कहा जाता है। इसे प्रायःμ द्वारा व्यक्त किया जाता है।
Bihar Board 12th Physics Important Questions Short Answer Type Part 1 10
∴ μ = \(\frac{V_{d}}{E}\)

प्रश्न 17.
कार्बन प्रतिरोध के कलर कोड का क्या तात्पर्य है।
उत्तर:
इलेक्ट्रॉनिक के छोटे-छोटे उपकरणों का प्रतिरोध व्यक्त करने के लिए रंगीन संकतों या कलर कोड का उपयोग किया जाता है। प्रतिरोध व्यक्त करने की इसी विधि को कार्बन प्रतिरोध का कलर कोड कहा जाता है। इसमें कुछ दस रंगों का प्रयोग होता है जिसका क्रमांक 0, 1, 2, ……9 तक होता है। इस विधि में पहली एवं दूसरी रंगीन पट्टिका सार्थक अंक को, तीसरी पट्टिका दाशमिक गुणक को तथा चौथी पट्टिका सहन शक्ति को व्यक्त करता है। इस विधि में प्रयुक्त रंगों का क्रमानुसार नाम निम्न है। काला, ‘भूरा, लाल, नारंगी, पीला, हरा, नीला, बैंगनी, धूसर एवं सफेद।

प्रश्न 18.
ऐम्पियर को परिभाषित करें।
उत्तर:
दो समांतर धारावाही तारों के बीच क्रियाशील बल
F= \(\frac{\mu_{0}}{2 \pi} \frac{I_{1} I_{2} l}{r}\)
यदि I1 = I2, = 1A
r= 1m
l=1m
∴ F = \(\frac{\mu_{0}}{2 \pi}=\frac{4 \pi \times 10^{-7}}{2 \pi}\) = 2 ×10-7 N

प्रश्न 19.
अपवाह वेग या अनुगमन वेग से क्या समझते हैं?
उत्तर:
वैद्युत क्षेत्र के प्रभाव से उत्पन्न दिष्ट प्रवाह की दिशा में आवेश का औसत वेग ही उसका अपवाह वेग या अनुगमन वेग कहलाता है।
माना कि किसी चालक की लम्बाई । एवं अनुप्रस्थ काट का क्षेत्रफल A है।
चालक का आयतन = Al
यदि चालक के एकांक आयतन में स्वतंत्र इलेक्ट्रॉनों की संख्या n हो तो पूरे चालक में स्वतंत्र इलेक्ट्रॉनों की संख्या = nAL
अतः चालक का आवेश q= nAle
∵ I = \(\frac{q}{t}\)
= \(\frac{\text { nAle }}{t}\)
or,
I = nAV de
∴ Vd = \(\frac{I}{\text { Ane }}\)

प्रश्न 20.
प्रतिघात एवं प्रतिबाधा से क्या समझते हैं?
उत्तर:
किसी कुंडली के स्वप्रेरकत्व एवं संघारित के धारिता द्वारा आरोपित परिपथ में धारा के प्रवाह में आरोपित प्रभावी अवरोध को प्रतिघात कहा जाता है। प्रेरण कुण्डली में प्रतिघात Lw
‘एवं संधारिता में \(\frac{1}{c w}\) होता है।
LCR परिपथ द्वारा प्रत्यावर्ती धारा के प्रवाह में लगाया गया कुछ प्रभावी अवरोध को प्रतिबाधा कहा जाता है। इसे z द्वारा सूचित किया जाता है।
Bihar Board 12th Physics Important Questions Short Answer Type Part 1 11
अतः एक ऐम्पियर प्रबलता की विद्युत धारा वह स्थाई धारा है जो हवा या निर्वात में एक दूसरे से एक मीटर की दूरी पर स्थित दो लंबे, सीधे एवं समांतर चालकों से प्रवाहित होने पर उनके बीच 2 × 10-7N-m-1 का बल उत्पन्न कर देती है।

प्रश्न 21.
स्वप्रेरण एवं स्वप्रेरकत्व क्या है? समझावें।
उत्तर:
किसी कुंडली से प्रवाहित धारा को परिवर्तित करने पर स्वयं उसी कुण्डली में प्रेरित विद्युत वाहब बल एवं प्रेरित विद्युत धारा उत्पन्न होने की घटना को स्वप्रेरण कहा जाता है। किसी कुंडली का स्वप्रेरकत्व प्रेरित विद्युत वाहक बल के संख्यात्मक मान के बराबर होता द्वारा सूचित किया जाता है। इसका मात्रक henry (H) होता है।

प्रश्न 22.
धारा घनत्व को परिभाषित करें।
उत्तर:
धारा घनत्व के एकांक अनुप्रस्थ काट के क्षेत्रफल से प्रवाहित धारा के परिमाण को धारा घनत्व कहा जाता है। इसे प्रायः J द्वारा सूचित किया जाता है।
Bihar Board 12th Physics Important Questions Short Answer Type Part 1 12
J = \(\frac{I}{A}\)
इसका मात्रक A/m2 होता है।

प्रश्न 23.
प्रतिचुम्बकीय पदार्थ से क्या प्रते हैं?
उत्तर:
वैसे पदार्थ जिनका कुल चुम्बकीय आघूर्ण शून्य होता हो प्रतिचुम्बकीय पदार्थ कहलाते हैं। ये पदार्थ शक्तिशाली चुम्बकीय क्षेत्र से कम शक्तिशाली चुम्बकीय क्षेत्र की ओर गतिशील होते हैं। इनकी चुम्बकीय प्रवृति एकांक से कम एवं ऋणात्मक होती है।
Ex. विस्मथ, चाँदी, तांबा, जस्ता, सीसा, सोना इत्यादि।

प्रश्न 24.
अनुचुम्बकीय पदार्थ से क्या समझते हैं?
उत्तर:
वैसे पदार्थ जिनका कुल चुम्बकीय आघूर्ण शून्य नहीं होता है अनुचुम्बकीय पदार्थ कहलाते हैं। ये पदार्थ निम्न चुम्बकीय क्षेत्र से उच्च चुम्बकीय क्षेत्र की ओर, गमन करते हैं। इनकी चुम्बकीय प्रवृत्ति एकांक से कम एवं धनात्मक होता है
Ex. प्लैटिनम, मैंगनीज, ऑक्सीजन, ऑसनियम इत्यादि।

प्रश्न 25.
स्थायी चुम्बक किस चीज का बना होता है। इसके गुणों का उल्लेख करें।
उत्तर:
स्थायी चुम्बक प्रायः इस्पात का बना होता है। स्थायी चुम्बक के निम्न गुण है।

  1. उच्च चुम्बक धाराणशीलता
  2. यांत्रिक परिवर्तन सहन करने की क्षमता
  3. उच्च निग्राहिता
  4. अल्प शैथिल्य हानि।

प्रश्न 26.
लॉरेंज बल क्या है।
उत्तर:
माना कि l लम्बाई के चालक से q आवेश V वेग से प्रवाहित होता है। यदि चालक चुम्बकीय क्षेत्र B में स्थित हो तो लॉरेन्ज के अनुसार क्रियाशील बल F= q\((\vec{V} \times \vec{B})\)
or, F=qνB sinθ ∴ θ = 90°
∴ F=qνB ∵ q= It
F = ItνB
∴ F= IlB [∵ ν = \(\frac{l}{t}\)]

प्रश्न 27.
पोलैरॉइड क्या हैं? इसका उपयोग लिखें।
उत्तर:
ऐसी व्यवस्था जिसमें चयनात्मक शोषण द्वारा समतल-ध्रुवित प्रकाश देता है। पोलेरॉइड कहा जाता है।
इसका उपयोग निम्न है-

  1. रेलगाड़ियों तथा हवाई जहाज के खिड़कियों पर तीव्र प्रकाश को नियंत्रित करने में
  2. चश्में की शीशे में
  3. मोटरकार के अग्रदीपों पर तथा वायु पट पर।

प्रश्न 28.
पारित्र (Capacitance) की धारिता से क्या समझते हैं?
उत्तर:
मान लिया कि संधारित्र के संग्राहक प्लेट पर Q आवेश देने से उसके प्लेटों के बीच विभवान्तर ν हो जाता है।
∴ Q ∝ ν =c ν
जहाँ c एक स्थिर राशि है। इसे संधारित्र की धारिता (capacity of capacitance) कहते हैं। यदि V= 1 हो तो Q = c
अतः संधारित्र के प्लेटों के बीच इकाई विभवान्तर उत्पन्न करने के लिए दिये गये आवेश को “संधारित्र की धारिता” कहते हैं।

यह धारिता निम्न बातों पर निर्भर करती है-

  1. प्लेटों के सतहों के समानुपाती
  2. प्लेटों के बीच के माध्यम की विद्युतशीलता के समानुपाती
  3. प्लेटों के बीच की दूरी के व्युत्क्रमानुपाती (invessely prop) होता है।

Bihar Board 12th Home Science Important Questions Long Answer Type Part 2

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Bihar Board 12th Home Science Important Questions Long Answer Type Part 2

प्रश्न 1.
गर्भावस्था में आहार के महत्व की विवेचना करें।
उत्तर:
प्राचीनकाल से ही गर्भावस्था के दौरान स्त्रियों को दिए जानेवाले भोजन के विषय में खास ध्यान दिया जाता रहा है। उस समय यह मान्यता थी कि गर्भवती में स्त्री जो कुछ भी खाती पीती है उसका सीधा प्रभाव गर्भस्थित शिशु पर पड़ता है। फलतः विभिन्न समाजों में इस तरह के दृढ़ नियम बन गए कि गर्भवती स्त्री को क्या खाना चाहिए।

गर्भावस्था में स्त्री का वजन 7 से 10 किलोग्राम तक बढ़ जाता है। जन्म के समय बच्चे में काफी मात्रा में लोहा, प्रोटीन, विटामिन सी तथा दूसरे विटामिन होते हैं। यह सभी उसे माँ के शरीर से या अंगों से मिलते हैं। इसलिए गर्भावस्था में कमजोर खुराक मिलना एक ऐसा खतरा है जिससे कई बार जन्म देते वक्त माँ की मृत्यु हो जाती है अथवा जन्म से पहले साल में ही बच्चे की मौत हो जाती है। एक सर्वेक्षण से पता चला कि यदि गर्भवती स्त्री को पौष्टिक भोजन दिया जाए तो उसे प्रसव के समय अधिक कष्ट नहीं होता तथा उसका बच्चा सदैव स्वस्थ एवं हष्ट-पुष्ट रहता है।

पौष्टिक आवश्यकताएँ (Nutritional Requirement) :
(i) ऊर्जा (Energy)- गर्भकाल के प्रथम तीन मास में अधिक कैलोरीज की आवश्यकता नहीं है किन्तु द्वितीय और तृतीय अवस्था में लगभग 300 कैलोरीज सामान्य आवश्यकता के अलावा लेना जरूरी है। परंतु एक मोटी स्त्री का यदि गर्भावस्था में वजन बढ़ता है तो उसे कम कैलोरीज लेना ही उचित है।

(ii) प्रोटीन (Protein)- प्रोटीन से शरीर की सूक्ष्मतम इकाई-कोशिका की रचना होती है और कोशिकाओं से शिशु का शरीर बनता है और बढ़ता है। चतुर्थ मास के बाद प्रोटीन अत्यन्त आवश्यक हैं साधारण स्त्री के भोजन से गर्भवती के भोजन में 1 ग्राम उत्तम श्रेणी का प्रोटीन अधिक होना चाहिए। अन्तिम छ: महीने में लगभग 850 ग्रा० प्रोटीन का भण्डारण होता है। इसमें से आधा बच्चे के शरीर की वृद्धि और शेष माता के बढ़ते हुए तन्तुओं के लिए आवश्यक है।

अतः प्रोटीनयुक्त पदार्थ जैसे दूध, पनीर, अण्डा, मांस, मछली, दालें, सोयाबीन, मेवे आदि की मात्रा बढ़ानी चाहिए।

(iii) खनिज लवण (Mineral Salts)- लवण शरीर की मांसपेशियों के उचित संगठन और शरीर की क्रियाओं को नियमित रखने के लिए आवश्यक हैं। गर्भावस्था में कैल्शियम, लोहा आदि की आवश्यकता अधिक होने के कारण ही उनके पोषण में जरूरत बढ़ जाती है।

(iv) कैल्शियम (Calcium)- कैल्शियम का भोजन में पाया जाना जरूरी हैं हड्डियों के निर्माण एवं वृद्धि के लिए कैल्शियम और फॉस्फोरस की अत्यन्त आवश्यकता है। जन्म के समय बच्चे के शरीर में लगभग 22 ग्रा. कैल्शियम होता है जिसका अधिकांश भाग उसे आखिरी के एक महीने में मिलता है। यदि स्त्री के आहार में अपनी और भ्रूण की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए पूर्ण कैल्शियम न हो तो माता के अपने शरीर के कैल्शियम का अपहरण होता है। यदि गर्भावस्था से पूर्व ही स्त्री अपोषण (Under Nutrition) से पीड़ित हो तो गर्भावस्था में उसके भोजन में प्रोटीन और कैल्शियम आदि सामान्य मात्रा से अधिक होना चाहिए। गर्भवती को 1.3 से 1.5 ग्राम प्रतिदिन कैल्शियम की जरूरत होती है।

(v) फॉस्फोरस (Phosphorous)- फास्फोरस का उपभोग कैल्शियम के साथ किया जाता है। यह गर्भावस्था में भ्रूण के शरीर की वृद्धि के लिए अति आवश्यक है। इसकी सहायता से अंस्थियों का निर्माण होता है। फॉस्फोरस की आवश्यकता आहार में पर्याप्त कैल्शियम होने पर स्वतः पूर्ण हो जाती है क्योंकि यह बहुधा उन्हीं खाद्य पदार्थों में पाया जाता है जिनमें कैल्शियम एएए अारा है। इसके अतिरिक्त कैल्पिएएए और फॉस्फोरस के सुपिक-ऐ-शुटिक सुत्रपऐपए के लिए आहार में विटामिन डी का आवश्यक मात्रा में होना आवश्यक है।

(vi) लोहा (Iron)- गर्भकाल में स्त्री को लोहे की आवश्यकता होती है। इसकी कमी से रक्त में हीमोग्लोबिन की कमी हो जाती है। सम्पूर्ण गर्भावस्था में गर्भवती महिला को 700-1000 मि. ग्रा. लोहे को शोषित करना जरूरी है। गर्भावस्था में माता के रक्त में वृद्धि होती है तथा शिशु का रक्त बनता है जिसके लिए गर्भवती को प्रतिदिन अधिक लोहे की आवश्यकता है।

(vii) आयोडीन (Iodine)-गर्भावस्था में आयोडीन की आवश्यकता भी साधारण अवस्था से बढ़ जाती है। भोजन में आयोडीन की कमी होने से माँ और शिशु दोनों को गलगण्ड, घेघा, (Goiter) रोग होने की संभावना रहती है। गर्भकालीन स्थिति में अबट ग्रंथि (Thyroid Gland) अत्यधिक क्रियाशील होती है। आयोडीन की कमी होने पर ग्रंथि थाइराक्सिन नामक अन्त:स्राव (Hormone) निर्मित करने का कार्य भी सम्पन्न करने लगती है जिसके फलस्वरूप इसकी वृद्धि हो जाती है। आयोडीन शरीर में ग्रंथियों (Glands) के द्वारा हारमोन्स उत्पन्न करने में सहायता करता है। अत: हरी पत्तेदार सब्जियाँ, अनाज तथा सामूहिक वनस्पति ऐसे ही खाद्य-पदार्थ हैं जिन्हें अपने आहार में सम्मिलित करने से आयोडीन की मात्रा सरलता से प्राप्त हो सकती है।

प्रश्न 2.
आहार आयोजन के सिद्धान्त उदाहरण सहित समझाइये। एक किशोरी के लिए एक दिन की भोजन तालिका बनाइए।
उत्तर:
आहार आयोजन के सिद्धान्त :
(i) परिवार की आर्थिक स्थिति को ध्यान में रखना (Economic Status of the Family)- उचित आहार आयोजन के द्वारा पारिवारि आर्थिक स्थिति के अनुसार श्रेष्ठ आहार उपलब्ध कराया जाना सम्भव है। अतः अहार आयोजन करने से पूर्व परिवार की आर्थिक स्थिति को भी ध्यान में रखा जाता है क्योंकि कम खर्च में भी वे सभी पौष्टिक तत्व प्राप्त किए जा सकते हैं जो कि महँगे खाद्य पदार्थों से प्राप्त होते हैं, जैसे अंडे से प्रोटीन प्राप्त होता है। इसकी तुलना में सोयाबीन से भी उत्तम श्रेणी का प्रोटीन प्राप्त होता है। इसी प्रकार से महंगे मछली के तेल की तुलना में मौसमी फल (जैसे-पपीता, आम) या सब्जी (जैसे-गाजर) विटामिन A के अच्छे और सस्ते स्रोत हैं।

(ii) समय तथा श्रम की मितव्ययिता का ध्यान रखना (Saving Time and Labour)- आहार आयोजन करते समय इस बात का भी ध्यान रखा जाता है कि समय और श्रम दोनों ही व्यर्थ न जाए और सही समय पर पौष्टिक भोजन भी तैयार मिले, जैसे सुबह का नाश्ता-एक परिवार जिसमें पति-पत्नी को ऑफिस जाना हो तथा बच्चों को स्कूल जाना हो तो ऐसे में जल्दी-जल्दी नाश्ता भी बनेगा और दोपहर का लंच भी पैक होगा। ऐसी अवस्था में इस बात का ध्यान रखना चाहिये कि जो भी आहार आयोजित किया जाए वह जल्दी बने तथा उसे ऑफिस एवं स्कूल ले जाने में कठिनाई न हो। समय तथा श्रम की बचत करने के लिए अनेक उपकरणों जैसे प्रेशर कूकर, मिक्सर, ग्राइंडर, फ्रिज इत्यादि का भी इस्तेमाल किया जा सकता है। .

(iii) उत्सवों का ध्यान रखना (Celebration)- आहार आयोजन करते समय विभिन्न उत्सवों का भी ध्यान रखना चाहिए। इसके अतिरिक्त यदि कोई जन्मदिन पार्टी हो या कोई पर्व व त्यौहार हो तो उसके अनुसार ही आहार का आयोजन करना चाहिए।

(iv) सामाजिक तथा धार्मिक मान्यताओं का ध्यान रखना (Social & Religious Sanction)- किसी विशेष अवसर पर आहार आयोजित करते समय इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि जिस व्यक्ति के लिए आहार-नियोजन किया जा सका है उसकी सामाजिक तथा धार्मिक मान्यताएँ क्या है, जैसे कुछ व्यक्ति प्याज नहीं खाते, कुछ लहसुन नहीं खाते, कुछ अंडा मांस, मछली इत्यादि नहीं खाते।

(v) आहार पकाते समय पौष्टिक तत्वों को नष्ट न होने देना (Protecting the Nutrients While Cooking)- आहार आयोजन करते समय आहार बनाने की विधि की ओर भी विशेष ध्यान रखना चाहिए। आयोजन आहार ऐसी विधि से बनाया जाना चाहिए जिससे आहार के पौष्टिक तत्व कम-से-कम नष्ट हो और वह पाचनशील हो।

(vi) आहार द्वारा क्षुधा संतुष्टि हो (Providing Satisfy)- आहार आयोजन करते समय : इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि जो भी कुछ खाएँ उससे पेट भरने की संतुष्टि हो। उदाहरण के लिए यदि शरीर को कार्बोज की आवश्यकता हो तो टॉफी खाई जा सकती है पर टॉफी खाने से पेट भरने की संतुष्टि नहीं होती। इसकी तुलना में यदि आलू (उबालकर, भूनकर अथवा चाट बनाकर) खाया जाए तो कार्बोज की आवश्यकता भी पूरी होती है और पेट भी भरता है।

एक किशोरी के लिए दिन की भोजन तालिका
1. दूध – 1 कप
2. भरा हुआ पराठा – 2
3. टमाटर चटनी – 2 चम्मच
4. टिफिन सेब अथवा संतरा
5. दोहपर का सांभर – 1 कटोरी
6. भोजन उबले चावल – 1 प्लेट
7. मेथी आलू – 1/4 कटोरी
Bihar Board 12th Home Science Important Questions Long Answer Type Part 2, 1

प्रश्न 3.
किशोरावस्था में आहार आयोजन करते समय किन-किन बातों का ध्यान रखना आवश्यक है ?
उत्तर:
किशोरावस्था तीव्र गति से वृद्धि तथा विकास की अवस्था है। 13 से 18 वर्ष के बालक को किशोर कहा जाता है। इस आयु में शारीरिक, मानसिक तथा भावानात्मक परिवर्तन होते हैं। कंकाल तंत्र तथा पेशीय तंत्र की वृद्धि तथा विकास होता है, यौन अंग परिपक्व होते हैं। शारीरिक संरचना में तीव्र परिवर्तन के कारण यह अवस्था शारीरिक एवं संवेगात्मक दबाव की अवधि होती है। वृद्धि को प्रोत्साहित तथा बढ़ाने में आहार एक जटिल भूमिका निभाता है।

किशोरी के लिए आहार आयोजन करते समय विशेष ध्यान रखने योग्य बातें निम्नलिखित हैं-

  • आयु वर्ग (13 से 15 या 16-18 वर्ष)
  • लिंग (लडका/लडकी)
  • आय वर्ग (निम्न वर्ग, मध्यम वर्ग तथा उच्च वर्ग
  • दिनचर्या-क्रियाकलाप
  • पौष्टिक तत्वों की पर्याप्त-संतुलित आहार
  • स्वीकृति-भोजन संबंधी आदतें
  • खाद्य पदार्थों की स्थानीय उपलब्धता
  • वृद्धि दर की गति (तीव्र या मंद)

आहार आयोजन में खाद्य पदार्थों का चयन करते समय निम्नलिखित बातों का भी ध्यान जरूरी है-

  • प्रत्येक आहार में प्रत्येक खाद्य वर्ग के पदार्थ अवश्य सम्मिलित करें।
  • प्रोटीन तथा कैल्शियम के लिए दूध, मांस, मछली, अंडा को सम्मिलित करें।
  • प्रोटीन की किस्म को बढ़ाने के लिए अनाज व दालों को मिलाकर प्रयोग करें।
  • भोजन में पर्याप्त मात्रा में तरल पदर्थों का समावेश भी आवश्यक है-सूप, जूस, आदि दें ताकि पर्याप्त खनिज लवण व विटामिन तत्व मिल सके।
  • आहार में तले हुए, मिर्च मसाले वाले गरिष्ठ भोजन नहीं सम्मिलित करना चाहिए ताकि इस अवस्था में मुहांसे और पेट की गड़बड़ियाँ होने का डर रहता है।
  • इस आयु में कब्ज होने की शिकायत रहती है इसलिए रेशेदार पदार्थ, जैसे-कच्ची सब्जियाँ, फल, सलाद इत्यादि आहार में होना जरूरी है।
  • आहार में किशोरों के रूचि के अनुसार भी खाद्य पदार्थों को सम्मिलित करना चाहिए।
  • आहार में खाद्य पदार्थों के रंग, सुगंध व बनावट पर भी ध्यान देना चाहिए, इससे भोजन को आकर्षण व भूख बढ़ती है।
  • किशोरों के भोजन करने के समय को निश्चित रखना चाहिए।
  • इस आयु में समय-समय पर शरीर का भार ज्ञात करवाते रहना चाहिए। शरीर भार यदि सामान्य भार से कम या अधिक हो तो भोजन में कैलोरीज की मात्रा बढ़ा या कम कर देनी चाहिए। गलत आदतें (भोजन संबंधी) किशोरों के सामान्य वृद्धि में बाधक हो सकती है या दिल की बीमारी, मोटापा और कुपोषण का कारण बन सकती हैं। इसलिए किशोरों के लिए आहार आयोजन में इसकी महत्वपूर्ण बातों का ध्यान जरूर रखना चाहिए।

प्रश्न 4.
आहार आयोजन से आप क्या समझती हैं ? इनके सिद्धांतों की संक्षेप में व्याख्या करें।
उत्तर:
आहार आयोजन का अर्थ है आहार की ऐसी योजना बनाना जिससे सभी पोषक तत्त्व उचित तथा सन्तुलित मात्रा में उपयुक्त व्यक्ति को मिल सके। आहार आयोजन बनाने में इस बात का भी ध्यान रखा जाता है कि वह उस व्यक्ति के लिये पौष्टिक सुरक्षित सन्तुलित साथ में रूचिकर भी हो।

सिद्धांत-
आहार आयोजन के सिद्धान्त निम्नलिखित हैं-
(i) परिवार की पोषण आवश्यकताओं को दृष्टिगत रखते हुए सन्तुलित आहार की व्यवस्था करना-प्रत्येक व्यक्ति की पोषण आवश्यकताएँ उसकी आयु, लिंग कार्य प्रणाली से प्रभावित होती हैं अतः इन सभी बातों को ध्यान में रखते हुए आहार में आवश्यक पौष्टिक तत्त्व सम्मिलित करना ही आहार आयोजन का पहला सिद्धान्त है।

(ii) भोज्य पदार्थों का चयन करना- मीनू बनाते समय सभी भोज्य वर्गों से खाद्य पदार्थों : का चुनाव करना तथा एक आहार में एक ही प्रकार के पोषण तत्वों का कम या अधिक न होना।

(iii) परिवार की आर्थिक स्थिति को ध्यान में रखना- आहार आयोजन करते समय परिवार की आर्थिक स्थिति को ध्यान में रखकर उसके आधार पर परिवार को श्रेष्ठ तथा पौष्टिक आहार उपलब्ध कराना चाहिये।

(iv) परिवार के सदस्यों की रुचियों तथा अरुचियों का ध्यान रखना- आहार आयोजन करते समय इस बात का भी ध्यान रखना आवश्यक है कि परिवार के सारे सदस्यों की रूचि की अनदेखी न हो।

(v) समय तथा श्रम की मितव्ययता को दृष्टिगत रखना- आहार-नियोजन करते समय इस बात का भी ध्यान रखना चाहिये कि समय तथा श्रम दोनों बेकार न हो जायें।

(vi) आहार ऐसा हो जो भूख को संतुष्ट कर सके- इस बात का भी ध्यान रखना चाहिये कि जो भी हम खाएँ वे पौष्टिक हों तो साथ ही उससे पेट भरने की सन्तुष्टि प्राप्त हो।

(vii) आहार पकाते समय पौष्टिक तत्त्व नष्ट होने देना- आहार आयोजन करते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिये कि आहार इस विधि से पकाया जाय जिससे पौष्टिक तत्त्व नष्ट न. होने पायें।

(viii) उत्सवों का ध्यान रखना- होली दीपावली दशहरा जन्मदिन पर कोई विशेष पर्व होने पर उसके अनुसार आहार रखना चाहिये।

(ix) सामाजिक तथा धार्मिक मान्यताओं को ध्यान में रखना- आयोजन करते समय इस बात का विशेष ध्यान में रखना चाहिए कि जिस व्यक्ति के लिए हम आहार आयोजन कर रहे हैं, उसकी सामाजिक धार्मिक मान्यताएँ क्या हैं ? इस प्रकार सभी बातों को ध्यान में रखते हुए जो आयोजन की जाती है वे सफल होती है। अथवा, बचत वर्तमान उपभोग से भविष्य के उपयोग के लिये अलग रखा हुआ भाग होता है। यह चालू आय से भविष्य की आवश्यकताओं तथा जरूरतों को देख भाल करने के उद्देश्य से कुछ राशि रखने की प्रक्रिया होती है।

प्रश्न 5.
क्रोनिक दस्त से ग्रस्त एक दो वर्षीय बालक की एक दिन की आहार तालिका बनाइए।
उत्तर:
क्रोनिक दस्त से ग्रस्त एक दो वर्षीय बालक की एक दिन की आहार तालिका :
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प्रश्न 6.
मर्भावस्था मुख्यता कौन-कौन से पौष्टिक तत्त्वों की आवश्यकता होती है, वर्णन करें।
उत्तर:
गर्भावस्था के समय स्त्रियों को दिये जानेवाले भोजन पर विशेष ध्यान दिया जाता है, क्योंकि किसी भी शिशु का विकास उसके गर्भकाल में ही प्रारंभ हो जाता है। इस दौरान पौष्टिक आहार में कमी, जच्चा और बच्चा दोनों के लिए खतरा पैदा करता है। गर्भावस्था के समय निम्नलिखित पौष्टिक तत्वों की आवश्यकताओं पर ध्यान देना जरूरी है-

(i) ऊर्जा- गर्भ काल के प्रथम तीन माह में अधिक कैलोरीज की आवश्यकता नहीं है किन्तु द्वितीय एवं तृतीय अवस्था में लगभग 300 कैलोरीज सामान्य आवश्यकता के अलावा लेना जरूरी है। किन्तु यह आयु, कद, वजन, क्रियाशीलता व गर्भ की स्थिति के अनुसार बदल सकती है।

(ii) प्रोटीन- प्रोटीन से शरीर की सूक्ष्मतम इकाई कोशिका की रचना होती है। कोशिकाओं से शिशु का शरीर बनता है और बढ़ता है। इस समय गर्भवती महिला को 15 ग्राम अतिरिक्त प्रोटीन की आवश्यकता होती है। अतः प्रोटीन युक्त पदार्थ, जैसे-दूध, अंडा, मांस मछली, दाल, सोयाबीन, मेवा आदि की मात्रा बढ़ा देनी चाहिए।

(iii) खनिज लवण- लवण शरीर की मांसपेशियों के उचित संगठन और शरीर की क्रियाओं को नियमित रखने के लिए आवश्यक है। गर्भावस्था में कैल्शियम लोहा आदि की आवश्यकता अधिक हो जाती है। हरी पत्तेदार सब्जियाँ, मांस आदि खाने से गर्भवती महिला के शरीर में लौह तत्व के फोलिक अम्ल की कमी पूरी हो जाती है।

(iv) कैल्शियम- हड्डियों के निर्माण एवं वृद्धि के लिए कैल्शियम और फॉस्फोरस की अत्यंत आवश्यकता है। एक गर्भवती महिला को 1.3 से 1.5 ग्राम प्रतिदिन कैल्शियम की आवश्यकता होती है। दूध, पनीर, शलजम, अंडा, मछली, मांस, रसदार फल, सोयाबीन आदि खाने से कैल्शियम की मात्रा पूरी की जा सकती है।

(v) आयोडीन- गर्भावस्था में आयोडीन की आवश्यकता साधारण अवस्था से अधिक होती है। भोजन में आयोडीन की कमी से माँ और शिशु दोनों को गलगंड, घंघा रोग होने की संभावना रहती है। अतः हरी पत्तेदार सब्जियाँ, अनाज तथा सामूहिक वनस्पति खाने से आयोडीन की कमी पूरा किया जा सकता है।

(vi) जल तथा रेशे- जल एवं रेशे शरीर की व्यवस्थित रखने में सहायता करते हैं। छिलका युक्त अनाज, दाल हरी पत्तेदार सब्जियों से शरीर को रेशे की मात्रा काफी मिलती है। इससे गर्भवती महिलाओं में कब्ज की शिकायत नहीं होती है।

प्रश्न 7.
वृद्धावस्था के पोषक तत्वों का महत्त्व क्या है ?
उत्तर:
60 वर्ष तथा 60 वर्ष से अधिक की अवस्था को वृद्धावस्था कहा जाता है। इस अवस्था में चिन्ताएँ, संघर्ष तथा तनाव पहले की अपेक्षा कम होता है। जीवन का अधिक अनुभव होने के कारण अपने काम में अधिक श्रम नहीं करना पड़ता है। अतः इस अवस्था में कैलोरी वाले आहार की कम मात्रा में आवश्यकता होती है। बढ़ती आयु तथा दाँतों की क्षति के कारण स्वाद में परिवर्तन होने से वृद्ध उचित आहार निश्चित करने में समस्या का सामना करते हैं।

शारीरिक क्रियाओं में कमी के साथ ऊर्जा संग्रहण में कमी न होने के कारण मोटापा आ जाता है। इस अवस्था में इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि शरीर को विटामिन, प्रोटीन, खनिज लवण पूरी मात्रा में मिले और आहार संतुलित हो। जो वृद्ध संतुलित आहार लेते हैं वे अधिक स्वस्थ और लम्बे समय तक फुर्तीले रहते हैं। वृद्धों की ऊर्जा आवश्यकता वयस्कों से कम होती है। परंतु प्रोटीन तथा सूक्ष्म पोषक तत्वों की आवश्यकता उसी मात्रा में रखते हैं।

प्रश्न 8.
पेय जल को शुद्ध करने के लिए घरेलू उपाय विस्तारपूर्वक लिखें।
उत्तर:
पेय जल हम चाहे किसी भी स्रोत द्वारा प्राप्त करें, उनमें कुछ न कुछ अशुद्धियाँ अवश्य पायी जाती हैं। अतः जल को पीने से पहले कुछ आसान घरेलू विधियों द्वारा शुद्ध एवं सुरक्षित किया जा सकता है। ये विधियाँ निम्नलिखित हैं-
(i) उबालना, (ii) छानना, (iii) फिटकरी का प्रयोग, (iv) क्लोरीन या विसंक्रमण करना, (v) घड़ों द्वारा छानना, (vi) फिल्टर द्वारा छानना, (vii) नल में लगनेवाले छोटे फिल्टर द्वारा छानना।

(i) उबालना- जल को दस मिनट 100°C या 212° पर उबालकर साफ किया जाता है। उबालने से पानी में उपस्थित सभी जीवाणु मर जाते हैं। जा तक हो सके उबले पानी को उसी बर्तन में रहने देना चाहिए, जिससे दुबारा गंदा न हो।

(ii) छानना- आमतौर से जल को मलमल के कपड़े से छानना पड़ता है, किन्तु मलमल के कपड़े से छानने में जल के सारे जीवाणु, महीन कीचड़ व दुर्गंध युक्त गैसें नहीं छनतीं। इसके लिए चार कलशों के द्वारा छानना उचित होता है।

(iii) फिटकरी का प्रयोग-जल का विसंक्रमण करने के लिए प्रायः क्लोरीन का प्रयोग किया जाता है। साफ करने के लिए आमतौर पर फिटकरी का प्रयोग किया जाता है। फिटकरी अथवा ऐलम जलीय पोटेशियम व एल्युमिनियम सल्फेट का द्विलवण होता है। इस विधि को पोटाश एलम भी कहते हैं। फिटकरी को जब जल में डाला जाता है, जिन्हें फ्लॉक्स कहते हैं तो जीवाणु इस फ्लॉक्स में चिपक जाते हैं और पानी के निचली सतह पर जम जाते हैं।

(iv) क्लोरीन या विसंक्रमण करना- जल का विसंक्रमण करने के लिए प्रायः क्लोरीन का उपयोग किया जाता है। वाटर वर्क में जल को शुद्ध करने के लिए विरंजक, ब्लीचिंग पाउडर पानी में घुलने के बाद नेसेंट क्लोरीन देता है, जिससे पानी शुद्ध हो जाता है।
घडों दारा छानना-प्रथम तीन घड़ों के तल में छेद होता है। इसमें गंदा पानी क्रमश: कोयले का चूर्ण, रेत, कंकड़ की तह से गुजारा जाता है। चौथे घड़े में स्वच्छ जल जाता है।

(vi) फिल्टर द्वारा छानना- पानी को फिल्टर करनेवाले कई उपकरण आजकल बाजार में उपलब्ध हैं। बिजली से चलनेवाले यंत्र में पोर्सलीन कन्डेल लगा रहता है जो जल में आलम्बित अपद्रव्यों को दूर करता है। इसके बाद पानी को सक्रिय कार्बन में से गुजारा जाता है। जो रासायनिक उपद्रव्यों को दूर करता है। अतः पानी को अल्ट्रावायलेट किरणों से गुजारा जाता है। जो जल के जीवाणुओं को नष्ट कर देते हैं।

(vii) नल में लगने वाला छोटे फिल्टर द्वारा छानना- आजकल तकनीकी विकास के साथ बाजार में छोटे फिल्टर आ गये हैं जो सीधा नल में लगा दिए जाते हैं और नल खोलने पर इसमें से छन कर पानी शुद्ध होकर निकलता है।

प्रश्न 9.
जल की भूमिका एवं महत्ता की चर्चा करें।
अथवा, जल के कार्यों की विवेचना करें।
उत्तर:
जल के अनेक कार्य हैं, जो निम्नवत् हैं-

  • यह शरीर के निर्माण में सहायक होता है। यह रक्त, कोशिकाओं, अस्थियों आदि में पाया जाता है।
  • यह शरीर के ताप का नियमन करता है।
  • यह शरीर की आंतरिक सफाई करता है। मल-मूत्र, पसीना और विषैले पदार्थ को शरीर से बाहर निकालता है।
  • यह भोजन के पाचन में सहायक पाचक रसों से बनाने में सहायक होता है।
  • शरीर के अंगों की चोट, झटकों और रगड़ से रक्षा करता है।
  • व्यक्तिगत स्वच्छता, जैसे स्नान आदि के काम में इसका प्रयोग करता है।
  • खाना पकाने, बर्तन साफ करने, पीने, वस्त्र धोने तथा घर की सफाई में काम आता है।
  • घरेलू जानवरों और बागवानी के काम में आता है।
  • सड़कों, नालियों की धुलाई आदि के लिए प्रयोग किया जाता है।
  • सार्वजनिक शौचालयों की सफाई में उपयोग होता है।
  • पार्कों, उद्यानों तथा फब्बारों के लिए भी इसकी आवश्यकता होती है।
  • यह आग बुझाने के काम में आता है।
  • बिजली उत्पादन, खेतों की सिंचाई तथा कारखानों में भी जल काम में लाया जाता है।

प्रश्न 10.
जल को शुद्ध करने की दो विधियाँ लिखें तथा बताएँ कि दोनों में कौन-सी विधि दूसरी से अच्छी है तथा क्यों ?
उत्तर:
जल को उबालना तथा क्लोरीन या ब्लीचिंग पाउडर के साथ शुद्ध व कीटाणुरहित करने की दो विधियाँ हैं। इसमें से उबालना एक बेहतर विधि है क्योंकि जल में डाले रसायन स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकते हैं। इसके अतिरिक्त उबालने से जल के सभी सूक्ष्म जीवाणु नष्ट हो जाते हैं। जहाँ तक हो सके उबले पानी को उसी बर्तन में रहने देना चाहिए जिससे वह दोबारा गंदा न हो जाए। उबालना जल को स्वच्छ बनाने का सस्ता तथा सरल उपाय है।

ORS बनाने की घरेलू विधि (Household Method of O.R.S)- एक लीटर (4-5 गिलास) स्वच्छ पेय जल उबालकर छान लें तथा ठंडा होने दें। इसमें एक छोटा चम्मच नमक (लगभग 5 ग्राम) तथा 4-5 छोटे चम्मच चीनी (20-25 ग्राम) डालकर घोलें । पूर्णत: ढक्कनदार जग में भरकर प्रयोग के लिए रखें।

नोट-

  1. इसका प्रयोग तथा सावधानियाँ पहले बताए गए पाउडर के समान ही हैं।
  2. इसमें कुछ बूंदें नींबू के रस की भी डाली जा सकती हैं।
  3. नमक की पर्याप्त मात्रा में उपस्थिति की जाँच की जा सकती है। यह आँसुओं से अधिक या कम नमकीन नहीं होना चाहिए।

शुद्ध एवं अशुद्ध जल में अन्तर
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पानी के प्राकृतिक स्रोत (Natural Sources of Water)- हमें जल हमेशा प्राकृतिक स्रोतों से ही प्राप्त होता है। ये स्रोत इस प्रकार हैं-

  1. वर्षा का जल (Rain Water)
  2. पृथ्वी के ऊँचे तलों का जल (Upland Surface Water)
  3. नदी का जल (River Water)
  4. चश्मे का जल (Spring Water)
  5. गहरे कुएँ (Deep Well)
  6. उथले कुएँ (Surface Well)
  7. समुद्र का जल (Sea Water)
  8. तालाब (Ponds)
  9. पानी का पम्प अथवा नलकूप (Water Pump or Tubewell)।

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जल के अभाव लक्षण (Deficiency Symptoms)- यदि शारीरिक जल की मात्रा में 10% की कमी हो जाए तो निर्जलीकरण (Dehydration) की स्थिति बन जाती है। निर्जलीकरण लगातार उल्टी (Vomiting) और दस्त होने से व्यक्ति में होता है।

  • आँखें निस्तेज व धंसी हुई।
  • मुँह सूखा हुआ।
  • चमड़ी झुरियाँ पड़ी हुई।
  • हाथ-पाँव में ऐंठन।
  • मूत्र में अत्यधिक कमी।
  • रक्तचाप गिरा हुआ।
  • जल की कमी से शरीर से व्यर्थ पदार्थ निष्कासित होने में कठिनाई होती है। व्यक्ति कब्ज का शिकार हो जाता है तथा कई बार गुर्दो में भी विकार उत्पन्न हो जाता है।
  • शारीरिक वजन कम हो जाता है।

विशेषकर बच्चों में यदि 20% पानी की कमी हो जाए तो मृत्यु हो जाती है।

प्रश्न 11.
मानव शरीर में जल के क्या कार्य हैं ?
अथवा, शरीर में जल के कार्य विस्तारपूर्वक लिखें।
उत्तर:
कार्य (Functions)- जल के शरीर में अनेक कार्य हैं क्योंकि कोशिकाओं में होने वाले समस्त रासायनिक परिवर्तन जल पर ही आधारित हैं-
1. शरीर का निर्माण कार्य (Body Building)- शरीर के पूरे वजन का 55-70% भाग पानी का होता है। जैसे-जैसे व्यक्ति बूढा होता है, पानी की मात्रा कम होती है। शरीर के विभिन्न अंगों में जल की मात्रा निम्न है-

  • गुर्दे 83%,
  • रक्त 80-90%,
  • मस्तिष्क 79%,
  • मांसपेशियाँ 72%,
  • जिगर 70%
  • अस्थियाँ 30%

रक्त में 90% मात्रा जल की होती है। जल शरीर के विभिन्न अंगों तथा द्रवों की रचना एवं कोषों के निर्माण में सहायक होता है। रक्त में स्थिर जल का मुख्य कार्य भोज्य पदार्थों द्वारा लिए गए पानी में घुलित पोषक तत्वों का शोषण करके रक्त में पहुँचाना है और यह रक्त शरीर के निर्माण करने वाले विभिन्न अंगों के कोषों तक पोषक तत्त्वों से प्राप्त शक्ति को पहुंचाते हैं। कार्बन-डाई-ऑक्साइड को फेफड़ों तक पहुँचाना एवं वहीं से बेकार पदार्थों तथा विभिन्न लवणों को गुर्दे तक पहुँचाने का कार्य भी रक्त ही करता है। यदि रक्त में जल की मात्रा कम हो जाए तो रक्त गाढ़ा हो जाता है और अपने शारीरिक कार्य जो रक्त के माध्यम द्वारा करता है, सुचारू रूप में नहीं कर पाता। परिणामस्वरूप मनुष्य बीमार हो जाता है।

2. ताप नियन्त्रक के रूप में (Act as a Temperature Controller)- जल से शरीर के तापमान को भी स्थिर रखने में सहायता मिलती है। ग्रीष्म ऋतु में पसीने के सूखने पर शरीर में ठण्डक पहुँचती है। बरसात के दिनों में वर्षा के उपरान्त वायु में नमी होती है। पसीना शीघ्र सूख नहीं पाता तो बहुत बेचैनी होती है।

जब कभी शरीर का तापक्रम बढ़ जाता है, त्वचा और श्वासोच्छवाद संस्थान से जल वाष्य अथवा पसीने के रूप में उत्सर्जित होने लगता है।

3. घोलक के रूप में कार्य (Act as a Solven)- जल ही वह माध्यम है जिसके द्वारा पोषक तत्वों को कोषों तक ले जाया जाता है तथा चपाचय के निरर्थक पदार्थों को निष्कासित किया जाता है। भोजन को कोषों तक ले जाने से पूर्व पाचन की क्रिया सम्पन्न हो जानी चाहिए। पाचन प्रक्रिया में जल का प्रयोग किया जाता है, मूत्र में 96% जल पाया जाता है। मल-विसर्जन के लिए जल की अत्यन्त आवश्यकता है। भोजन में जल की मात्रा कम रहने से मल अवरोध (Constipation) होने का भय रहता है।

4. स्नेहक का कार्य (Act as Lubricant)- यह शरीर में पाए जाने वाले समस्त हड्डियों : के जोड़ों में रगड़ होने से बचाता है। जोड़ों या सन्धियों (Joints) के चारों ओर थैली के समान (Sac-like) जो ऊतक होते हैं, उनमें जल उपस्थित रहता है। यदि आघात के कारण यह नष्ट हो जाय या रोग के कारण परिवर्तित हो जाए तो सन्धियाँ जकड़ जाती हैं।

5. शरीर के निरुपयोगी पदार्थों को बाहर निकलना (To Excrete Out the Waste Products)- जल शरीर में बने विषैले पदार्थों को मूत्र तथा पसीने द्वारा बाहर निकालता है। इससे गुर्दो की सफाई होती रहती है। मल विसर्जन के लिए पानी की अत्यन्त आवश्यकता होती है, जल शरीर में उत्पन्न निरुपयोगी पदार्थों को अधिकतर मात्रा में घोल लेता है एवं उन्हें उत्सर्जक अंगों यकृत, त्वचा आदि द्वारा शरीर के बाहर निकाल देता है।

6. पोषक तत्त्वों का हस्तान्तरण (Transportation of Nutrients)- पोषक तत्त्वों को एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुँचाने का कार्य भी जल का ही है।

7. शरीर में नाजुक अंगों की सुरक्षा (Protection of Delicate Organs)- शरीर के कोमल अंग एक जल से भरी पतली झिल्ली की थैली से घिरे रहते हैं जो अंगों की बाहरी आघातों से रक्षा करती है।

प्रश्न 12.
रसोई घर की स्वच्छता के लिए क्या नियम अपनायेंगे ?
अथवा, रसोई घर की स्वच्छता के लिए क्या उपाय अपनाये जा सकते हैं ?
उत्तर:
रसोईघर की स्वच्छता के लिए निम्नलिखित उपाय अपनाये जा सकते हैं-

  • रसोईघर सदा प्रकाशमय और हवादार होना चाहिए।
  • रसोईघर के दरवाजे तथा खिड़कियों में जाली लगी होनी चाहिए ताकि मक्खियाँ अन्दर न आ सके।
  • कूड़ेदान के अंदर प्लास्टिक लगा देना चाहिए तथा उसे रोज खाली करना चाहिए।
  • रसोईघर के स्लैव और जमीन सरलता से साफ होने वाला होना चाहिए।
  • भोजन पकाने और बरतन साफ करने के लिए पर्याप्त ठंडा और गरम पानी उपलब्ध होना चाहिए।
  • रसोईघर के झाड़न और डस्टर साफ रखना चाहिए। उसे किसी अच्छे डिटरजेंट से साफ करना चाहिए।

प्रश्न 13.
खाद्य स्वच्छता को प्रभावित करने वाले कारक कौन हैं ?
अथवा, घर में खाद्य सुरक्षा को प्रभावित करने वाले कौन-कौन से कारक होते हैं ?
उत्तर:
घर में खाद्य सुरक्षा को प्रभावित करने वाले निम्नलिखित कारक होते हैं-
(i) रसोईघर की स्वच्छता (Kitchen hygiene)- यदि रसोई साफ-सुथरी न हो तो भोजन सुरक्षित नहीं रह पाता अतः रसोईघर की दीवारों, फर्श के साथ-साथ आलमारी, बर्तन, स्लैब व झाड़न एवं डस्टर का स्वच्छ रहना आवश्यक होता है।

(ii) घर पर खाद्य पदार्थ के संग्रह करते समय स्वच्छता- खाद्य पदार्थों को सुरक्षित रखने के लिये उचित संग्रह करना चाहिये। ढक्कनदान टकियों या डिब्बों में खाद्य पदार्थ रखना चाहिये। समय-समय पर धूप लगाते रहने में खाद्य पदार्थ सुरक्षित रहते हैं।

(iii) भोजन पकाने वाले तथा परोसने वाले बर्तनों की स्वच्छता- भोजन पकाने तथा परोसने वाले बर्तनों की सफाई पर विशेष ध्यान रखना चाहिये। कभी-कभी प्रयोग आने वाले बर्तन जैसे : कदुकस, छलनी, आदि का प्रयोग करके तुरन्त साफ करके रख देना चाहिये। परोसने वाले बर्तन को कभी भी गंदे हाथों से नहीं पकड़ना चाहिये अन्यथा भोजन संदूषित हो जाता है।

(iv) घरेलू स्तर पर खाद्य पदार्थों में होने वाली रासायनिक विषाक्तता से बचाव सम्बन्धी सावधानियाँ- कुछ रासायनिक पदार्थ जैसे-सीसा, टीन, ताँबा, निकिल, एल्युमीनियम और कैडमीयम प्रायः उस भोज्य पदार्थ में पाये जाते हैं जो इन धातुओं में पकाये जाते हैं।

(v) भोजन पकाते, परोसते व खाते समय की स्वच्छता- भोजन पकाने के समय, परोसने के समय एवं खाने के समय स्थान की सफाई एवं हाथों की सफाई अत्यन्त आवश्यक होती है। वरन् खाद्य पदार्थ सुरक्षित नहीं रहता।
अतः हमें घर में भोज्य पदार्थ की सुरक्षा के लिये कुछ सावधानियाँ करनी पड़ती हैं जिससे खाद्य पदार्थ सुरक्षित रहें।

प्रश्न 14.
भोजन पकाने, परासने और खाने में किन-किन नियमों का पालन करना चाहिए?
उत्तर:
भोजन पकाते समय निम्नलिखित नियमों का पालन करना चाहिए-

  • भोजन पकाने से पहले हाथों को स्वच्छ पानी और साबुन से धोना चाहिए।
  • दाल, चावल, सब्जियों तथा फल आदि को स्वच्छ पानी से धोना चाहिए।
  • मिर्च मसाले का अधिक प्रयोग नहीं करना चाहिए।
  • साफ तथा प्रदूषण रहित बर्तन का प्रयोग करना चाहिए।
  • खाद्य पदार्थों को अधिक नहीं तलना चाहिए।

भोजन परोसते समय निम्नलिखित नियमों का पालन करना चाहिए-

  • भोजन परोसते समय हाथ को स्वच्छ पानी और साबुन से धोना चाहिए।
  • स्वच्छ बर्तन तथा स्थान का प्रयोग करना चाहिए।
  • भोजन को ढककर रखना चाहिए।
  • परोसने वाले का नाखून बढ़े न हो तथा साफ हों।
  • खाने का समान उतना ही परोसना चाहिए जितना खाने वाला चाहता है।
  • भोज्य सामग्री तथा पेय जल में हाथ नहीं डालना चाहिए।

भोजन करते समय निम्नलिखित नियमों का पालन करना चाहिए-

  • भोजन करने से पहले हाथ को साबुन से धोकर साफ करना चाहिए।
  • ताजा एवं गरम भोजन करना चाहिए।
  • खाना पूरी तरह चबाकर धीरे-धीरे खाना चाहिए।
  • संतुलित मात्रा में भोजन करना चाहिए।
  • खाते समय कम मात्रा में पानी पीना चाहिए। खाने के कुछ देर बाद पानी पीना ज्यादा लाभदायक है।
  • खाने के बाद हाथ को अच्छी तरह धोना चाहिए। इन्हीं नियमों का पालन खाना पकाने, परोसने तथा खाते समय करना चाहिए।

प्रश्न 15.
भोजन का हमारे जीवन में क्या महत्त्व है ?
अथवा, भोजन के कार्यों की व्याख्या करें।
उत्तर:
भोजन का प्रमुख कार्य है क्षुधा-तृप्ति एवं शरीर को स्वस्थ ढंग से कार्य करने के लिए पर्याप्त कैलोरी एवं पोषण प्रदान करना।

शरीर में उपचयापचयन होता रहता है, जिसके दो हिस्से हैं-उपचय एवं अपचय। कोषों में होनेवाली टूट-फूट अपचय है और तंतुओं के मरम्मत या बनने की प्रक्रिया उपचय कहलाती है। अर्थात् शरीर में कोष बनते-बिगड़ते रहते हैं जो एक रासायनिक क्रिया है। इस प्रक्रिया में आहार की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। आधारीय उपचयापचयन (Basal Metabolism) से उच्छ्वास क्रिया, रक्त परिभ्रमण क्रिया, शारीरिक तापमान में संतुलन बनाने की क्रिया, मांसपेशियों में संकुचन-विमोचन की क्रियाएँ नियंत्रित होती हैं।

मानव आहार में विद्यमान शक्ति उसे कई प्रकार के शारीरिक कार्य के निष्पादन से लगतीहै, जैसे-यकृत, फेफड़ा, हृदय, ज्ञानेन्द्रिय आदि अंगों की यांत्रिक क्रियाओं में। शारीरिक तापमान को समान रखने में भी इस शक्ति की आवश्यकता पड़ती है। यह शक्ति ताप के रूप में (कैलोरी) प्रकट होती है। कैलोरी वह क्षमता है जो शरीर को कार्यरत् रखती है। यह एक प्रकार की रासायनिक ऊर्जा है जो कार्बोज, वसा व प्रोटीन से प्राप्त होती है।

मानव शरीर की तुलना एक मशीन से की जाती है जिसके भीतर मस्तिष्क जैसा महाकम्प्यूटर लगा हुआ है। अतएव इस मशीन और कम्प्यूटर के संचालन के लिए ऊर्जा की आवश्यकता पड़ती है, वह भोजन से प्राप्त होती है। इस प्रकार भोजन से प्राप्त रासायनिक ऊर्जा यांत्रिक ऊर्जा में परिवर्तित हो जाती है।

प्रश्न 16.
मिलावट रोकने के उपायों की चर्चा करें।
उत्तर:
मिलावट रोकने के निम्नलिखित उपाय हैं-

  • सामान विश्वसनीय दुकान से खरीदें।
  • विश्वसनीय तथा उच्च स्तर की सामग्री खरीदें क्योंकि उनकी गुणवता अधिक होती है। एगमार्क, E.P.O. तथा I.S.I. चिह्नित वस्तुएँ खरीदें।
  • खुले पदार्थ न खरीदें, सील बंद पैकेट तथा डिब्बे ही लें।
  • खरीदने से पहले लेबल व प्रमाण चिह्न अवश्य पढ़ लें।
  • गुणवत्ता के लिये सचेत रहें और ध्यान रखें कि आप मिलावट के कारण ठगे न जा सके।
  • स्वास्थ्य चिकित्सा प्रयोगशाला से मिलावटी पदार्थ का निरीक्षण और परीक्षण करायें।

Bihar Board 12th Physics Objective Important Questions Part 4

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Bihar Board 12th Physics Objective Important Questions Part 4

प्रश्न 1.
प्रकाश का वेग अधिकतम होता है :
(a) हवा में
(b) काँच में
(c) पानी में
(d) निर्वात में
उत्तर:
(d) निर्वात में

प्रश्न 2.
किसी माध्यम से प्रकाश का वेग निर्भर करता है :
(a) प्रकाश स्रोत की तीव्रता पर
(b) प्रकाश स्रोत की आवृत्ति पर
(c) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(b) प्रकाश स्रोत की आवृत्ति पर

प्रश्न 3.
प्रकाश की तरंगें अनुप्रस्थ (Transverse) है यह साबित होता है :
(a) व्यतिकरण से
(b) विवर्तन से
(c) ध्रुवण से
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(c) ध्रुवण से

प्रश्न 4.
ब्रूस्टर का नियम (Brewster’s law) है :
(a) μ = sinip
(b) μ = cosip
(c) μ = tanip
(d) μ = tan2ip
उत्तर:
(c) μ = tanip

प्रश्न 5.
Laser beam है :
(a) उच्च एक वर्ण प्रकाश
(b) एक वर्ण प्रकाश
(c) स्वभाव में hetrogenous
(d) एक वर्ण प्रकाश या ऊर्जा पर नहीं निर्भर करता है
उत्तर:
(a) उच्च एक वर्ण प्रकाश

प्रश्न 6.
Leaser एक स्रोत (Source) है :
(a) विद्युत धारा का
(b) ध्वनि का
(c) अकलाबद्ध प्रकाश (Incoherent light)
(d) कलाबद्ध प्रकाश (choherent light)
उत्तर:
(d) कलाबद्ध प्रकाश (choherent light)

प्रश्न 7.
चित्र में दो समाक्षीय उत्तल लेंस L1 तथा L2 कुछ दूरी से विलंगति है जिनके फोकस लौटा क्रमशः F1 तथा F2है। L1 तथा L2 के बीच की दूरी है-
Bihar Board 12th Physics Objective Important Questions Part 4 1
(a) F1
(b) F2
(c) F1 + F2
(d) F1 – F2
उत्तर:
(c) F1 + F2

प्रश्न 8.
f फोकस लम्बाई वाले दो पतले लेन्स को जोड़ने पर समतुल्य (Equivalent) फोकस लम्बाई होगा।
(a) 2f
(b) 4f
(c) \(\frac{f}{2}\)
(d) 3f
उत्तर:
(c) \(\frac{f}{2}\)

प्रश्न 9.
fo, तथा fE, फोकस लम्बाई के अभिदृश्यक (objective) तथा नेत्रिका के संयुक्त
सूक्ष्मदर्शी में होता है
(a) fo > fE
(b) fo < fE
(c) fo = fE
(d) fo = 2fE
उत्तर:
(b) fo < fE

प्रश्न 10.
संयुक्त सूक्ष्मदर्शी के अभिदृश्यक (objective) तथा नेत्रिका का आवर्द्धन क्षमता (Magnifying power) क्रमश m1 तथा m2 हो तो सूक्ष्मदर्शी का आवर्द्धन क्षमता होगा :
(a) m1 + m2
(b) m1 – m2
(c) m1 m2
(d) m1/m2
उत्तर:
(c) m1 m2

प्रश्न 11.
बहुमूल्य रत्नों की पहचान के लिए प्रयुक्त होता है-
(a) परा बैगनी किरणों
(b) अवरक्त किरणें
(c) x-किरण
(d) कोई नहीं
उत्तर:
(a) परा बैगनी किरणों

प्रश्न 12.
विनाशी व्यतिकरण (Destructive interference) में path diff. होता है :
(a) n λ
(b) (n+ 1) λ
(c) (2n+1) λ
(d) (2n+1)\(\frac{\lambda}{2}\).
उत्तर:
(d) (2n+1)\(\frac{\lambda}{2}\).

प्रश्न 13.
संपोषी ब्यतिकरण (constructive interference) में path diff. होता है :
(a) n λ
(b) (n+ 1) λ
(c) (2n+1)\(\frac{\lambda}{2}\)
(d) (2n + 1) λ
उत्तर:
(a) n λ

प्रश्न 14.
विद्युत चुम्बकीय तरंगें होती हैं :
(a) अनुदैर्घ्य
(b) अनुप्रस्थ
(c) कभी अनुदैर्घ्य तथा कभी अनुप्रस्थ
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(b) अनुप्रस्थ

प्रश्न 15.
एक परमाणु के नाभिक (nucleus) में रहता है :
(a) प्रोटॉन
(b) प्रोटॉन तथा इलेक्ट्रॉन
(c) प्रोटॉन तथा न्यूट्रॉन
(d) 4-कण
उत्तर:
(c) प्रोटॉन तथा न्यूट्रॉन

प्रश्न 16.
निम्नलिखित में से कौन मूल कण (Fundamental paricle) नहीं है ?
(a) न्यूट्रॉन
(b) प्रोटॉन
(c) α-कण
(d) इलेक्ट्रॉन
उत्तर:
(c) α-कण

प्रश्न 17.
फ्रेजनेल दूरी Zf का मान होता है-
(a) \(\frac{a}{\lambda}\)
(b) \(\frac{a^{2}}{\lambda}\)
(c) \(\frac{\lambda}{a}\)
(d) \(\frac{\lambda}{a^{2}}\)
उत्तर:
(b) \(\frac{a^{2}}{\lambda}\)

प्रश्न 18.
नाभिक (Nucleus) का आकार होता है :
(a) 10-13 cm
(b) 10-23 cm
(c) 10-8 cm
(d) 10-10 cm
उत्तर:
(a) 10-13 cm

प्रश्न 19.
द्रव्यमान तथा ऊर्जा के बीच सम्बन्ध है :
(a) E = mc2
(b) E = mc
(c) E = mc3
(d) E = m2c
उत्तर:

प्रश्न 20.
λ = 1Å के x-किरणों की आवृत्ति होते हैं-
(a) 3 × 108Hz
(b) 3 × 1018Hz
(c) 3 × 1010Hz
(d) 3 × 1015Hz
उत्तर:
(b) 3 × 1018Hz

प्रश्न 21.
चैडविक (Chadwick) खोज किये थे :
(a) Radioactivity
(b) Electron
(c) प्रोटॉन
(d) न्यूट्रॉन
उत्तर:
(d) न्यूट्रॉन

प्रश्न 22.
एक परमाणु में परमाणु संख्या तथा द्रव्यमान संख्या है। इसके प्रोटॉन की संख्या होगी :
(a) Z
(b) A
(c) A – Z
(d) A + Z
उत्तर:
(a) Z

प्रश्न 23.
Electron पर आवेश होता है. :
(a) 1.6 × 10-1C
(b) 1.6 × 10-9C
(c) 1.6C
(d) 1.6 × 10-10C
उत्तर:
(d) 1.6 × 10-10C

प्रश्न 24.
γ- किरणें समान होता है :
(a) α किरणों से
(b) कैथोड किरणों से
(c) x किरणों से
(d) β – किरणों से।
उत्तर:
(c) x किरणों से

प्रश्न 25.
Radioactivity संबंधित है :
(a) नाभिकीय संलग्न से
(b) नाभिकीय decay से
(c) x-rays के उत्पादन से
(d) तापयनिक उत्सर्जन (Thermionic emission) से
उत्तर:
(b) नाभिकीय decay से

प्रश्न 26.
λ तरंग लम्बाई के Photon की ऊर्जा होती है :
(a) \(\frac{h}{\lambda}\)
(b) \(\frac{h c}{\lambda}\)
(c) \(\frac{h}{c}\)
(d) \(\frac{h \lambda}{c}\)
उत्तर:
(b) \(\frac{h c}{\lambda}\)

प्रश्न 27.
P- n Jn का उपयोग किया जाता है :
(a) ताप मापने में।
(b) A.C. को D.C. में बदलने में।
(c) निम्न वोल्टेज को उच्च बोल्टेज में बदलने में।
(d) उच्च वोल्टेज को निम्न वोल्टेज में बदलने में।
उत्तर:
(b) A.C. को D.C. में बदलने में।

प्रश्न 28.
J.C. Bose के अनुसार e.m. wave में तरंग लम्बाई का range होता है :
(a) 1 mm – 10 mm
(b) 25 mm – 50 mm
(c) 200 mm – 500 mm
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(b) 25 mm – 50 mm

प्रश्न 29.
m द्रव्यमान एवं e आवेश वाले electron r त्रिग्यावाला वृत्तीय पथ पर घुम रहा रहा है जिसका कोणीय संवेग L है। इसका चुम्बकीय आघूर्ण होगा-
(a) eLm
(b) \(\frac{e L}{m}\)
(c) \(\frac{e L}{2 m}\)
(d) \(\frac{2 e L}{2 m}\)
उत्तर:
(c) \(\frac{e L}{2 m}\)

प्रश्न 30.
मैक्सवेल की परिकल्पना के अनुसार परिवर्ती विद्युत क्षेत्र स्रोत है
(a) एक emf का
(b) विद्युत धारा का
(c) दाब प्रवणता का
(d) चुम्बकीय क्षेत्र का
उत्तर:
(d) चुम्बकीय क्षेत्र का

प्रश्न 31.
E.m. wave में विद्युत तथा चुम्बकीय क्षेत्र के बीच Phase diff. होता है :
(a) Zero
(b) 90°
(c) 120°
(d) 180°
उत्तर:
(a) Zero

प्रश्न 32.
पृथ्वी के सतह से Ozone परत रहता है :
(a) 40 km – 50 km
(b) 100 km – 400 km
(c) 500 km – 1000 km
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(a) 40 km – 50 km

प्रश्न 33.
पृथ्वी के सतह से Ionosphere रहता है :
(a) 50 km – 100 km
(b) 200 km – 400 km
(c) 500 km – 1000 km
(d) 1000 km – 1500 km
उत्तर:
(b) 200 km – 400 km

प्रश्न 34.
E.m. spectrum (वि० चु० वर्णपट ) में उच्च आवृत्ति होती है :
(a) α – किरणों का
(b) β – किरणों का
(c) γ – किरणों का
(d) कैथोड किरणों का
उत्तर:
(c) γ – किरणों का

प्रश्न 35.
NOR-गेट के लिए बुलियन-व्यंजक होता है
(a) \(\overline{A \cdot B}\) =y
(b) \(\overline{A+B}\) = y
(c) A . B =y
(d)A + B =y
उत्तर:
(b) \(\overline{A+B}\) = y

प्रश्न 36.
लॉजिक-संकेत IM होता है
(a) OR-गेट का
(b) AND-गेट का
(c) NOR-गेट का
(d) NAND-गेट का
उत्तर:
(c) NOR-गेट का

प्रश्न 37.
सामान्य आँख के लिए, स्पष्ट दृष्टि की न्यूनतम दूरी होता है।
(a) 100 cm
(b) 50 cm
(c) 250 cm
(d) 25 cm
उत्तर:
(d) 25 cm

प्रश्न 38.
निम्नलिखित में से कौन विद्युत क्षेत्र द्वारा विच्छेदित होता है-
(a) γ – किरण
(b) x-किरण
(c) UV विकिरण
(d) कैथोड किरण
उत्तर:
(d) कैथोड किरण

प्रश्न 39.
TV संप्रेषण टॉवर की ऊँचाई 245 m पृथ्वी पर के किसी स्थान पर है। इस टॉपर से कितनी दूरी तक संप्रेषण भेजा जा सकता है।
(a) 245m
(b) 245 km
(c) 56 km
(d) 112 km
उत्तर:
(c) 56 km

प्रश्न 40.
6.62J के विकिरण के उत्सर्जन में 1014Hz आवृत्ति के फॉटोन की संख्या होगी-
(a) 1010
(b) 1015
(c) 1020
(d) 1025
उत्तर:
(c) 1020

प्रश्न 41.
TV प्रसारण के लिए audio signal के लिए किस प्रकार का modulan किया ‘ जाता है?
(a) आयाम मॉडुलन
(b) स्पंद (pulse) मोडुलन
(c) आवृत्ति मोडुलन
(d) कोई नहीं
उत्तर:
(c) आवृत्ति मोडुलन

Bihar Board 12th Physics Objective Important Questions Part 3

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Bihar Board 12th Physics Objective Important Questions Part 3

प्रश्न 1.
एक चक्र में प्रत्यावतां धारा का माध्य मान होता है-
(a) शून्य
(b) 2I
(c) \(\frac{I}{2}\)
(d) I
उत्तर:
(a) शून्य

प्रश्न 2.
प्रत्यावर्ती धारा का शिखर मान I0 हो तो वर्ग माध्य मूल का माना होगा-
(a) \(\frac{I_{0}}{2} \)
(b) I0
(c) \(\frac{I_{0}}{\sqrt{2}}\)
(d) \(\sqrt{2} I_{0}\)
उत्तर:
(c) \(\frac{I_{0}}{\sqrt{2}}\)

प्रश्न 3.
प्रतिघात का मात्रक है-
(a) ओम
(b) म्हो
(c) फैराड
(d) ऐम्पियर
उत्तर:
(a) ओम

प्रश्न 4.
यदि विद्युत आपूर्ति की आवृत्ति 50 Hz हो तो धारा का मान शून्य होने की आवृत्ति होगी-
(a) 25 Hz
(b) 50 Hz
(c) 100 Hz
(d) 200 Hz
उत्तर:
(c) 100 Hz

प्रश्न 5.
L-C-R परिपथ में विद्युत अनुनाद होने के लिए आवश्यक है-
(a) WL = \(\frac{1}{W C}\)
(b) WL = WC
(c) W=WC
(d) None.
उत्तर:
(a) WL = \(\frac{1}{W C}\)

प्रश्न 6.
चुम्बकीय फ्लक्स का मात्रक है-
(a) ओम
(b) वेबर
(c) टेसला
(d) ऐम्पियर
उत्तर:
(c) टेसला

प्रश्न 7.
तारे के टिमटिमाने का कारण होता है-
(a) परावर्तन
(b) विवर्तना
(c) आवर्तन
(d) ऊर्जा का उत्सर्जन
उत्तर:
(c) आवर्तन

प्रश्न 8.
चित्र में धारा प्रवाहित होता हुआ एक लुप x – y तल में रखा गया है। z-अक्ष के दिशा में चुम्बकीय क्षेत्र जब आरोपित किया जाता है तो लुप-
Bihar Board 12th Physics Objective Important Questions Part 3 1
(a) +x अक्ष की दिशा चलता।
(b) x-अक्ष की दिशा चलता
(c) लुप संकुचित होता है
(d) लुप फैल जाता है
उत्तर:
(d) लुप फैल जाता है

प्रश्न 9.
एक उत्तल लेन्स को पानी में डुबाया जाता है। इसकी क्षमता-
(a) बढ़ेगी
(b) घटेगी
(c) अपरिवर्तित होगी
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(b) विवर्तन

प्रश्न 10.
एक वर्ण प्रकाश की किरण जब एक माध्यम से दूसरे माध्यम में जाती है तब निम्नलिखित में से कौन नहीं बदलता है?
(a) तरंगदैर्घ्य
(b) आवृत्ति
(c) वेग
(d) आयाम
उत्तर:
(b) आवृत्ति

प्रश्न 11.
एक माध्यम से दूसरे माध्यम में जाने से प्रकाश की किरण मुड़ जाती है। इस घटना को कहते हैं :
(a) विवर्तन
(b) वर्ण-विक्षेपण
(c) आवर्तक
(d) परावर्तन
उत्तर:
(c) आवर्तक

प्रश्न 12.
अवरोधक (obstacle) के किनारे से प्रकाश-तरंगों के मुड़ने की घटना को कहते हैं :
(a) विवर्तन
(b) वर्ण विक्षेपण
(c) आवर्तन
(d) परावर्तन
उत्तर:
(a) विवर्तन

प्रश्न 13.
किस कारण से हवा का एक बुलबुला पानी के अन्दर चमकता नजर आता है?
(a) अपवर्तन से
(b) परावर्तन से
(c) विवर्तन से
(d) पूर्ण आन्तरिक परावर्तन से
उत्तर:
(d) पूर्ण आन्तरिक परावर्तन से

प्रश्न 14.
पानी में डुबाने पर एक लेन्स का फोकस लम्बाई (F) हो जायेगा :
(a) F
(b) 2F
(c) \(\frac{1}{F^{2}}\)
(d) 4F
उत्तर:
(d) 4F

प्रश्न 15.
एम्पीयर का परिपथीय नियम किसके अनुरूप हैं-
(a) गैस प्रमेय के
(b) विद्युत स्थैतिकी के कुलम्ब नियम के
(c) गुरुत्वाकर्षण नियम के
(d) कोई नहीं
उत्तर:
(a) गैस प्रमेय के

प्रश्न 16.
चम्बकीय ध्रुव पर एक लेन्स का फोकस लम्बाई (F) हो जायेगा
(a) F
(b) N/Am
(c) Am
(d) T
उत्तर:
(c) Am

प्रश्न 17.
एक लेन्स का फोकस लम्बाई f मीटर है। इसकी क्षमता होगी :
(a) fडायोप्टर
(b) \(\frac{1}{f}\) डायोप्टर
(c) f2 डायोप्टर
(d) \(\frac{1}{f^{2}}\) डायोप्टर
उत्तर:
(b) \(\frac{1}{f}\) डायोप्टर

प्रश्न 18.
20 cm तथा -40 cm फोकस लम्बाई के दो लेन्स सम्पर्क में हैं। इसके संयोजन की क्षमता होगी:
(a) 5D
(b) 25 D
(c) -25D
(d) -5D
उत्तर:
(b) 25 D

प्रश्न 19.
वस्तु से बड़ा आभासी प्रतिबिम्ब बनता है :
(a) उत्तल दर्पण से.
(b) अवतल दर्पण से
(c) समतल दर्पण से
(d) अवतल लेन्स से
उत्तर:
(b) अवतल दर्पण से

प्रश्न 20.
एक सरल सूक्ष्मदर्शी से बना हुआ प्रतिबिम्ब होता है :
(a) काल्पनिक और सीधा
(b) काल्पनिक और उल्टा
(c) वास्तविक और सीधा
(d) वास्तविक और उल्टा
उत्तर:
(a) काल्पनिक और सीधा

प्रश्न 21.
ग्लास (μg = 1.5) में प्रकाश की चाल 2 × 108 m/s है। किसी द्रव में प्रकाश की चाल 2.6 × 108 m/s पाया जाता है तो इस द्रव का अपवर्तनांक (μ1) होगा?
(a) 1.5
(b) 1.2
(c) 1
(d) 2.1
उत्तर:
(b) 1.2

प्रश्न 22.
एक सूक्ष्मदर्शी की नली की लम्बाई बढ़ायी जाती है। इससे इसकी आवर्द्धन क्षमता:
(a) बढ़ती है
(b) घटती है
(c) शून्य रहती है
(d) अपरिवर्तित रहती है
उत्तर:
(a) बढ़ती है

प्रश्न 23.
खगोलीय दूरबीन (Astronomical telescope) के वस्तु लेन्स के लिए होना आवश्यक है:
(a) उच्च शक्ति
(b) बड़ी फोकस लम्बाई
(c) उच्च अपवर्तनांक
(d) कम अपवर्तनांक
उत्तर:
(b) बड़ी फोकस लम्बाई

प्रश्न 24.
खगोलीय दूरबीन (Astronomical telescope) में अन्तिम प्रतिबिम्ब होता है :
(a) वास्तविक और सीधा
(b) वास्तविक और उल्टा
(c) काल्पनिक और उल्टा
(d) काल्पनिक और सीधा
उत्तर:
(c) काल्पनिक और उल्टा

प्रश्न 25.
निकट दृष्टि के दोष रहने पर आँख से देखा जा सकता है :
(a) अनन्त पर की वस्तु
(b) दूर की वस्तु
(c) निकट की वस्तु
(d) सभी दूर पर की वस्तु
उत्तर:
(c) निकट की वस्तु

प्रश्न 26.
दीर्घ दृष्टि वाले दोष को दूर करने के लिए आदमी को उपयोग करना पड़ता है :
(a) एक अवतल लेन्स
(b) बेलनाकार लेन्स
(c) एक समतल अवतल लेन्स
(d) उत्तल लेंस
उत्तर:
(d) उत्तल लेंस

प्रश्न 27.
जरा दृष्टि दोष (Old sight defect) को दूर करने के लिए चाहिए :
(a) उत्तल लेन्स
(b) अवतल लेन्स
(c) बेलनाकार लेन्स
(d) Bifocal लेन्स
उत्तर:
(d) Bifocal लेन्स

प्रश्न 28.
यौगिक सुक्ष्मदर्शी के वास्तविक द्वारा बनाया गया प्रति होता है-
(a) आभासी और छोटा
(b) वास्तविक और छोटा
(c) वास्तविक और बड़ा
(d) आभासी और बड़ा
उत्तर:
(c) वास्तविक और बड़ा

प्रश्न 29.
अविन्दुकता (Astigametism) को दूर करने के लिए चाहिए :
(a) उत्तल लेन्स
(b) अवतल लेन्स
(c) बेलनाकार लेन्स
(d) Bifocal लेन्स
उत्तर:
(c) बेलनाकार लेन्स

प्रश्न 30.
Cornea के सतहों की वक्रता त्रिज्या असमान रहने पर उत्पन्न दोष को कहते हैं:
(a) निकट दृष्टि
(b) दूर दृष्टि
(c) जरा दृष्टि
(d) अबिन्दुकता
उत्तर:
(d) अबिन्दुकता

प्रश्न 31.
आँख के रेटिना पर वस्तु का बना हुआ प्रतिविम्ब होता है :
(a) काल्पनिक और सीधा
(b) काल्पनिक और उल्टा
(c) वास्तविक और उल्टा
(d) वास्तविक तथा सीधा
उत्तर:
(c) वास्तविक और उल्टा

प्रश्न 32.
जब एक श्वेत प्रकाश की किरण प्रिज्म से गुजरता है तब प्रकाश का न्यूनतम विचलन होता है :
(a) लाल में
(b) बैंगनी में
(c) पीला में
(d) हरा में
उत्तर:
(a) लाल में

प्रश्न 33.
किस रंग का तरंगदैर्ध्य सबसे अधिक होता है?
(a) लाल
(b) पीला
(c) बैंगनी
(d) हरा
उत्तर:
(a) लाल

प्रश्न 34.
तारे का वर्णपट होता है :
(a) लगातार
(b) रेखा
(c) काली रेखा वर्णपट
(d) पट्टीदार वर्णपट
उत्तर:
(c) काली रेखा वर्णपट

प्रश्न 35.
आकाश का रंग नीला (Blue) जिस घटना के कारण है वह है-
(a) परावर्तन
(b) अपवर्तन
(c) प्रकिरण
(d) विवर्तन
उत्तर:
(c) प्रकिरण

प्रश्न 36.
रेखा वर्णपट प्राप्त होता है.
(a) Atomic अवस्था में
(b) molecular अवस्था में
(c) गैसीय अवस्था में
(d) तरल अवस्था में
उत्तर:
(a) Atomic अवस्था में

प्रश्न 37.
पतले प्रिज्म द्वारा न्यूनतम विचलन होता है :
(a) (μ – 1)A2
(b) (μ – 1)A
(c) (μ + 1)A
(d) (1 – μ)A
उत्तर:
(b) (μ – 1)A

प्रश्न 38.
सूर्योदय तथा सूर्यास्त के समय क्षितिज लाल होने का कारण है :
(a) प्रकाश का ध्रुवण
(b) सूर्य का रंग
(c) प्रकाश का प्रकीर्णक
(d) आकाश का रंग
उत्तर:
(c) प्रकाश का प्रकीर्णक

प्रश्न 39.
प्राथमिक इन्द्रधनुष उत्पन्न होता है :
(a) एक परावर्तन से
(b) एक पूर्ण आन्तरिक परावर्तन से
(c) एक वर्ण विक्षेपण से
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(b) एक पूर्ण आन्तरिक परावर्तन से

प्रश्न 40.
प्रकाश के तरंग दैर्ध्य में वृद्धि के साथ, प्रकाशित माध्यम का अपवर्तनांक
(a) बढ़ता है
(b) घटता है
(c) अपरिवर्तित रहता है
(d) कोई नहीं
उत्तर:
(b) घटता है

प्रश्न 41.
निर्वात में वि०चु० तरंग की चाल होता है-
(a) μ00
(b) \(\sqrt{\mu_{0} \in_{0}}\)
(c) \(\frac{1}{\sqrt{\epsilon_{0} \mu_{0}}}\)
(d) \(\frac{1}{\sqrt{\mu_{0} \epsilon_{0}}}\)
उत्तर:
(d) \(\frac{1}{\sqrt{\mu_{0} \epsilon_{0}}}\)