Bihar Board 12th Business Studies Objective Important Questions Part 2 in Hindi

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Bihar Board 12th Business Studies Objective Important Questions Part 2 in Hindi

प्रश्न 1.
व्यापारिक बिल लिखा जाता है
(a) क्रेता द्वारा
(b) विक्रेता द्वारा
(c) बैंक द्वारा
(d) सरकार द्वारा
उत्तर:
(c) बैंक द्वारा

प्रश्न 2.
समन्वय है
(a) ऐच्छिक
(b) आवश्यक
(c) अनावश्यक
(d) समय की बर्बादी
उत्तर:
(b) आवश्यक

प्रश्न 3.
वैज्ञानिक प्रबंध के जन्मदाता थे
(a) एच० एस० पर्सन
(b) डाइमर
(c) एफ० डब्ल्यू० टेलर
(d) चार्ल्स बैवेज
उत्तर:
(c) एफ० डब्ल्यू० टेलर

प्रश्न 4.
मानसिक कार्य है
(a) उत्पादन
(b) प्रबंध
(c) विपणन
(d) कोई नहीं
उत्तर:
(b) प्रबंध

प्रश्न 5.
जॉर्ज आर० टैरी के अनुसार प्रबंध के कार्य हैं
(a) 2
(b) 4
(c) 6
(d) 7
उत्तर:
(b) 4

प्रश्न 6.
प्रबंध की सफलता का प्राथमिक तत्व है।
(a) संतुष्ट कर्मचारी
(b) अत्यधिक पूँजी
(c) बड़ा बाजार
(d) अधिकतम उत्पादन
उत्तर:
(a) संतुष्ट कर्मचारी

प्रश्न 7.
प्रबंध है
(a) कला
(b) विज्ञान
(c) दोनों
(d) पेशा
उत्तर:
(c) दोनों

प्रश्न 8.
उद्यमिता की विशेषता नहीं है
(a) जोखिम लेना
(b) नवाचार
(c) सृजनात्मक क्रिया
(d) प्रबंधकीय प्रशिक्षण
उत्तर:
(d) प्रबंधकीय प्रशिक्षण

प्रश्न 9.
अच्छे ब्राण्ड के लिए आवश्यक है
(a) छोटा नाम
(b) स्मरणीय
(c) आकर्षण आकृति
(d) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(d) उपर्युक्त सभी

प्रश्न 10.
प्रभावी नियंत्रण है
(a) स्थिर
(b) निर्धारित
(c) गत्यात्मक
(d) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(d) उपर्युक्त सभी

प्रश्न 11.
प्रभावी संदेशवाहन में भाषा का उपयोग नहीं होना चाहिए
(a) स्पष्ट
(b) प्रभावी
(c) अस्पष्ट
(d) शालीन
उत्तर:
(d) शालीन

प्रश्न 12.
नियंत्रण प्रबंध का पहलू है
(a) सैद्धांतिक
(b) व्यावहारिक
(c) मानसिक
(d) भौतिक
उत्तर:
(b) व्यावहारिक

प्रश्न 13.
नियंत्रण प्रबंध का कार्य है
(a) प्रथम
(b) अंतिम
(c) तृतीय
(d) द्वितीय
उत्तर:
(b) अंतिम

प्रश्न 14.
नियंत्रण संबंधित है
(a) परिणाम
(b) कार्य
(c) प्रयास
(d) किसी से नहीं
उत्तर:
(b) कार्य

प्रश्न 15.
कर्मचारियों के विकास में सम्मिलित है
(a) निरंतर
(b) पदोन्नति
(c) प्रशिक्षण
(d) सभी
उत्तर:
(d) सभी

प्रश्न 16.
प्रबंध का स्वतः विस्तार होता है
(a) भारार्पण द्वारा
(b) केंद्रीकरण द्वारा
(c) विकेंद्रीकरण द्वारा
(d) सभी के द्वारा
उत्तर:
(a) भारार्पण द्वारा

प्रश्न 17.
उत्तरदायित्व होता है
(a) अधीनस्थ का
(b) अधिकारी का
(c) दोनों का
(d) कोई नहीं
उत्तर:
(b) अधिकारी का

प्रश्न 18.
प्रशिक्षण का विधियाँ हैं
(a) सम्मेलन
(b) व्याख्यान
(c) प्रशिक्षणार्थी प्रशिक्षण
(d) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(d) उपर्युक्त सभी

प्रश्न 19.
प्रभावी भारार्पण के लिए आवश्यक है
(a) संपर्क की सुविधा
(b) सहयोग तथा समंवय का वातावरण
(c) अधिकारों का स्पष्ट स्पष्टीकरण
(d) ये सभी
उत्तर:
(d) ये सभी

प्रश्न 20.
हेनरी फेयोल के प्रबंध के सिद्धांत हैं
(a) 5
(b) 11
(c) 14
(d) 16
उत्तर:
(c) 14

प्रश्न 21.
प्रबंध के सिद्धांत है
(a) सार्वभौमिक
(b) लोचशील
(c) गतिशील
(d) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(d) उपर्युक्त सभी

प्रश्न 22.
मानसिक क्रांति मूलाधार है
(a) वैज्ञानिक प्रबंध का
(b) संयोजन का
(c) विवेकीकरण का
(d) पेशा का
उत्तर:
(a) वैज्ञानिक प्रबंध का

प्रश्न 23.
प्रबंध के कितने स्तर है ?
(a) 3
(b) 4
(c) 5
(d) 6
उत्तर:
(a) 3

प्रश्न 24.
‘प्रबंध एक पेशा है।’ यह कथन है
(a) जॉर्ज आर० टेरी का
(b) अमेरिकन प्रबंध एसोसिएशन का
(c) हेनरी फेयोल का
(d) टेलर का
उत्तर:
(b) अमेरिकन प्रबंध एसोसिएशन का

प्रश्न 25.
लेबलिंग है
(a) आवश्यक
(b) अनिवार्य
(c) ऐच्छिक
(d) धन की बर्बादी
उत्तर:
(a) आवश्यक

प्रश्न 26.
विश्व में सबसे पहले स्कंध विपणि की स्थापना हुई थी।
(a) लंदन
(b) जापान
(c) इंगलैंड
(d) फ्रांस
उत्तर:
(a) लंदन

प्रश्न 27.
विपणन प्रबंध अवधारणा का जन्म स्थान है
(a) अमेरिका
(b) जापान
(c) इंगलैंड
(d) फ्रांस
उत्तर:
(a) अमेरिका

प्रश्न 28.
नियंत्रण का मुख्य उद्देश्य है
(a) भिन्नता
(b) विचलन
(c) सुधार
(d) हानि
उत्तर:
(c) सुधार

प्रश्न 29.
किस बाजार में नये अंश का निर्गमन होता है ?
(a) प्राथमिक
(b) द्वितीयक
(c) संगठित
(d) असंगठित
उत्तर:
(a) प्राथमिक

प्रश्न 30.
उपभोक्ता विवाद निवारण एजेन्सीज है
(a) जिला संघ
(b) राज्य आयोग
(c) राष्ट्रीय आयोग
(d) इनमें से सभी
उत्तर:
(d) इनमें से सभी

प्रश्न 31.
विपणन मिश्रण में सम्मिलित नहीं होता है
(a) मूल्य
(b) उत्पाद
(c) प्रोन्नति
(d) उपभोक्ता संरक्षण
उत्तर:
(d) उपभोक्ता संरक्षण

प्रश्न 32.
एक अच्छे नेता के निम्नलिखित में से कौन-से गुण होने चाहिए ?
(a) प्रयास
(b) संवाद क्षमता
(c) स्वाभिमान
(d) इनमें से सभी
उत्तर:
(d) इनमें से सभी

प्रश्न 33.
केन्द्रीकरण का अर्थ है
(a) अधिकार का धारण
(b) अधिकार का वितरण
(c) लाभकेन्द्र का निर्माण
(d) नया केन्द्र खोलना
उत्तर:
(a) अधिकार का धारण

प्रश्न 34.
प्रबंध की एक अच्छी पद्धति समायोजित नहीं करती है
(a) संगठनात्मक उद्देश्य
(b) सामाजिक उद्देश्य
(c) वैयक्तिक उद्देश्य
(d) राजनैतिक उद्देश्य
उत्तर:
(d) राजनैतिक उद्देश्य

प्रश्न 35.
ग्रेपवाइन है
(a) औपचारिक संचार
(b) संचार में बाधा
(c) समस्तर संचार
(d) अनौपचारिक संचार
उत्तर:
(d) अनौपचारिक संचार

प्रश्न 36.
व्यवसाय में संचार की प्रभावपूर्ण पद्धति का होना क्यों आवश्यक है ?
(a) मार्गदर्शन के लिए
(b) सूचना के लिए
(c) निर्देशन के लिए
(d) इनमें से सभी
उत्तर:
(d) इनमें से सभी

प्रश्न 37.
कर्मचारियों का प्रशिक्षण है।
(a) आवश्यक
(b) अनावश्यक
(c) अनिवार्य
(d) धन की बर्बादी
उत्तर:
(a) आवश्यक

प्रश्न 38.
व्यवसाय के लिए विपणन है
(a) अनिवार्य
(b) आवश्यक
(c) अनावश्यक
(d) विलासिता
उत्तर:
(a) अनिवार्य

प्रश्न 39.
संगठन प्रक्रिया में निहित है
(a) कार्य का विभाजन
(b) कार्य का समूहीकरण
(c) कार्य सौंपना
(d) इनमें से सभी
उत्तर:
(d) इनमें से सभी

Bihar Board 12th Business Studies Important Questions Long Answer Type Part 3 in Hindi

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Bihar Board 12th Business Studies Important Questions Long Answer Type Part 3 in Hindi

प्रश्न 1.
विपणन का क्या महत्त्व है ? विपणन एवं विक्रय में क्या अन्तर है ?
उत्तर:
विपणन का महत्व – आधुनिक व्यावसायिक जगत में विपणन का विशिष्ट महत्व है। वास्तव में सम्पूर्ण उत्पादन का अंतिम ध्येय विक्रय होता है। विक्रय ऐसी प्रक्रिया है जिसके माध्यम से विभिन्न आवश्यक एवं महत्वपूर्ण वस्तुएँ उपभोक्ताओं तक पहुँचायी जाती है और दूसरी ओर व्यावसायिक संस्था अपनी वस्तुएँ उपभोक्ता में वितरण करने का कार्य सम्पन्न करती है आज किसी भी व्यापार की अंतिम सफलता उनकी विक्रय योग्यता पर निर्भर करती है। वर्तमान तीव्र प्रतिस्पर्धा के युग में विक्रय प्रबंध उच्च कोटि का होना अत्यन्त आवश्यक है।

पीटर एफ ड्रकर के अनुसार, “एक व्यावसायिक उपक्रम के दो आधारभूत कार्य हैं-प्रथम विपणन एवं द्वितीय नवाचार। इन दोनों कार्यों के मिश्रण से ही व्यावसायिक उपक्रम किसी भी बदलती हुई परिस्थिति का सामना कर सकता है।

आधुनिक गला-काट प्रतिस्पर्धा के दौर में ग्राहकों को आकर्षित करना, ग्राहकों की रूचि व पसंद पर पैनी नजर रखना एक कठिन कार्य है-इस समस्या को सुलझाने की दृष्टि से विक्रय कला एवं विक्रय प्रवर्तन का सहारा लिया जाता है। नये ग्राहक खोजने की समस्या, वर्तमान ग्राहक को अपने ही पास रखने की समस्या संस्था के उत्पादों के प्रति ग्राहकों में रूचि उत्पन्न करने की समस्या, विक्रय लागत पर नियंत्रण रखने की समस्या आदि अनेक ऐसी समस्याएँ हैं। जो विक्रय प्रबंधक को हल करनी पड़ती है।

विपणन और विक्रय में अंतर – विपणन और विक्रय में निम्नलिखित अंतर है-
Bihar Board 12th Business Studies Important Questions Long Answer Type Part 3, 1

प्रश्न 2.
“स्कन्ध विपणि किसी भी देश की समृद्धि का मापक तत्त्व हैं।” समझायें।
उत्तर:
आधुनिक युग में स्कंध विपणि किसी भी देश के पूँजी बाजार की एक महत्वपूर्ण अंग मानी जाती है। यह देश के पूँजी प्रवाह के लिए महत्त्वपूर्ण कार्य करती है। इसके संचालन पर ही छोटी-छोटी बचतों का विनियोजन में प्रवाह संभव हो पाता है। यही कारण है कि स्कन्ध विपणियों को किसी देश की औद्योगिक प्रगति का दर्पण तथा आर्थिक विकास का मापक यंत्र माना जाता है। ये विपणियाँ अपने-अपने कार्य कलापों द्वारा किसी देश की राजनीतिक, सामाजिक तथा सांस्कृतिक दशाओं को भी प्रतिबिंबित करता है।

स्कन्ध विपणि का उद्गम संयुक्त पूँजी कंपनियों की स्थापना के बाद हुआ है। विश्व की सर्वप्रथम स्कन्ध विपणि की स्थापना 1775 में लंदन में हुई। भारत में प्रथम स्कन्ध विपणि की स्थापना 1887 में बम्बई में हुई।

स्कन्ध विपणि से आशय ऐसे संगठित बाजार से है जहाँ अंशों, ऋण पत्रों सरकारी एवं अर्द्ध सरकारी प्रतिभूतियों का क्रय-विक्रय होता है।

स्कन्ध विपणि के महत्त्वपूर्ण कार्य निम्नलिखित हैं-

  • प्रतिभूतियों हेतु संगठित तैयार एवं निरंतर विपणन सुविधाएँ प्रदान करना।
  • पूँजी को तरलता और गतिशीलता प्रदान करना।
  • प्रतिभूतियों का उचित मूल्यांकन करना।
  • पूँजी निर्माण में सहायक।
  • बचत को गतिशीलता प्रदान करना।

स्कन्ध विपणियाँ केवल व्यापारिक व्यवहारों की प्रमुख प्रदर्शनकर्ता ही नहीं अपितु वे मापदण्ड हैं जो व्यापारिक वातावरण की सामान्य दशा को दर्शाती है यही कारण है कि उनको पूँजी का गढ़ व मूल्यों का मंदिर कहा जाता है। पूँजीवादी देशों में उसकी महत्तता और अधिक बढ़ जाती है। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि स्कन्ध विपणि किसी भी देश की समृद्धि का मापक तत्व है।

प्रश्न 3.
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अन्तर्गत उपभोक्ता के शिकायत को कम करने के यंत्र उपलब्ध हैं, वर्णन करें।
उत्तर:
उपभोक्ता के शिकायत को कम करने के लिये उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम त्रि-स्तरीय यंत्र प्रदान करता है-
1. जिला संघ- यह एक संस्था है जिसमें राज्य सरकार द्वारा नियुक्ति किये गये दो सदस्य एवं एक अध्यक्ष होते हैं। वस्तु एवं सेवा के मूल्य से संबंधित वैसी शिकायत जिसका मूल्य 20 लाख रुपये से अधिक न हो जिला संघ में जमा किये जाते हैं। जिला संघ शिकायत दर्ज किये गये व्यक्ति को सूचना भेजता है, उसकी दलील को सुनता है और फिर आदेश पारित करता है।

2. राज्य कमीशन- वस्तु एवं सेवा जिसका मूल्य 2 लाख से अधिक एवं एक करोड़ से कम हो, की शिकायत राज्य कमीशन में किया जाता है राज्य कमीशन जिनके विरुद्ध शिकायत दर्ज की गई, उन्हें नोटिस भेजता है, उनकी दलील सुनता है एवं पुनः आदेश पारित करता है, यदि जरूरत पड़ी तो वह लेबोरेटरी जाँच के लिये भी वस्तु या सैम्पल को भेजता है।

3. नेशनल कमीशन- भारत सरकार द्वारा सदस्यों की नियुक्ति की जाती है। वस्तु एवं सेवा का मूख्य क्षतिपूर्ति एवं ब्याज सहित यदि एक करोड़ से अधिक होता है तो उसकी शिकायत राष्ट्रीय कमीशन में की जाती है। शिकायत संबंधित व्यक्ति को भेज दी जाती हैं। उनकी दलील सुनी जाती है और फिर आदेश पारित किया जाता है। जरूरत पड़ने पर वस्तु एवं सैम्पल को लेबोरेटरी जाँच के लिये भेजा जा सकता है।

उपभोक्ता को संरक्षण प्रदान करने के लिये विभिन्न प्रकार के यंत्र उपलब्ध हैं। इसमें जिला संघ, राज्य कमीशन एवं नेशनल कमीशन प्रमुख हैं।

प्रश्न 4.
प्रबंध के मुख्य कार्य क्या हैं ?
उत्तर:
प्रबंध एक संगठित क्रियाकलाप है। इसमें अनेक निर्णय सम्मिलित हैं। यह संगठन के उद्देश्य को प्राप्त करने की एक प्रक्रिया है।
प्रबंध के विभिन्न कार्यों को पाँच भागों में बाँटा गया है-
1.नियोजन – पूर्व में ही निर्धारित. करना कि क्या करना है, कितना करना है, कैसे करना है, कब करना है और क्यों करना है। यह उद्देश्य को निर्धारित करने की एक प्रक्रिया है। यह भविष्य की अनिश्चितता को अधिक योग्य तरीके से सामना करने की तत्परता है।

2. संगठन – प्रत्येक कार्य निष्पादन की आवश्यकता है-

  • कार्य का वितरण।
  • कर्तव्य का विभाजन।
  • संसाधनों का वितरण।
  • अधिकारों का विभाजन।

यह प्रयास संगठन के उद्देश्य को प्राप्त करने में मदद करता है। नियोजन के क्रियान्वयन के लिये यह आवश्यक संबंधों की संरचना है।

3. स्टाफिंग – प्रबंध का अन्य महत्वपूर्ण कार्य, सही व्यक्ति को सही काम पर लगाना है। यह मानवीय संसाधनों से संबंधित है और इसके अन्तर्गत चुनाव, नियुक्ति, स्थानान्तरण, पोस्टींग एवं प्रशिक्षण सम्मिलित है।

4. निर्देशन – यह नतृत्व की प्रक्रिया है। यह कर्मचारियों को प्रेरित एवं प्रभावित करने का तरीका है ताकि वे अधिक प्रभावी तरीके से अपने कर्तव्य का निर्वहन कर सके। यह कर्मचारियों से सर्वोत्तम क्षमता प्राप्त करने का एक प्रयास है।

5. नियंत्रण-इसके अन्तर्गत सम्मिलित हैं-

  • निष्पादन के प्रभाव का निर्धारण।
  • वास्तविक निष्पादन की जाँच।
  • वास्तविक प्रतिफल की तुलना पूर्व निर्धारित प्रतिफल/प्रभाव से करना।
  • विचलन को कम करने के लिये सुधारात्मक प्रयास करना।

नियंत्रण का मुख्य उद्देश्य किसी भी प्रकार के संसाधन के दुरुपयोग को रोकना है, संगठन के उद्देश्य को प्राप्त करने के लिये उसके उत्पादकता को बढ़ाना है।

प्रबंध के उपर्युक्त सभी कार्य एक-दूसरे से संबंधित हैं एवं एक-दूसरे पर आश्रित है क्योंकि … प्रबंध एक एकीकृत क्रियाविधि है।

प्रश्न 5.
निम्नलिखित का वैज्ञानिक प्रबंध में क्या संबंध है ?
(a) पद्धति अध्ययन (Method Study) (b) गति अध्ययन (Motion Study) (c) समय अध्ययन (Time Study) (d) थकान अध्ययन (Fatigue Study)।
उत्तर:
बेकर के द्वारा विकसित किये गये ये चार अध्ययन वैज्ञानिक प्रबंध के महत्वपूर्ण तकनीक है-
(a) पद्धति अध्ययन-पद्धति अध्ययन कार्य करने के उपयुक्त तरीके को ढूँढने का प्रयास – है। यह प्रक्रिया कच्चे सामग्री को प्राप्त करने से प्रारम्भ होकर तैयार माल को उपभोक्ता के हाथों पहुचाने तक चलता है। यह उत्पादन के लागत को कम करता है और संतुष्टि के स्तर को बढ़ाता है।

(b) गति अध्ययन-गति अध्ययन एक कार्य को करने में लगने वाले अनावश्यक समय को कम करता है ताकि समय और शक्ति को बचाया जा सके।

(c) समय अध्ययन-समय अध्ययन एक कार्य को करने में लगने वाले प्रमाप समय का निर्धारण करता है। कार्य को पूरा करने के लिये यह प्रमाप कार्य और संभावित समय के बीच संतुलन स्थापित करता है।

(d) थकान अध्ययन-यह कर्मचारियों के शारीरिक एवं मानसिक थकान को कम करता है। आराम का उचित समय प्रदान कर यह लोगों के कार्य करने के क्षमता का संरक्षण करता है।

जैसा कि विज्ञान अध्ययन की प्रक्रिया है, उसी प्रकार वैज्ञानिक प्रबंध के सिद्धान्त भी विभिन्न प्रकार के अध्ययन का प्रयोग है ताकि संगठन में उत्पादन के स्तर को बढ़ाया जा सके।

प्रश्न 6.
व्यवसाय के दृष्टिकोण से उपभोक्ता संरक्षण के महत्व का वर्णन करें।
उत्तर:
किसी भी आर्थिक स्वरूप में उपभोक्ता संरक्षण आवश्यक है, अन्यथा उत्पादन का सम्पूर्ण उद्देश्य ही असफल हो जायगा इसका अर्थ-

  • उपभोक्ता को अपने अधिकार और कर्त्तव्य के प्रति सचेत करना।
  • सही तरीके से उसके शिकायत को कम करना।
  • संयुक्त और एकीकृत कार्य के लिये उपभोक्ता संघ बनाना।

यह मुख्यतः उपभोक्ता शोषण के विरुद्ध लड़ाई है। व्यवसाय और उपभोक्ता दोनों के दृष्टिकोण से उपभोक्ता संरक्षण महत्वपूर्ण है।

व्यवसाय के दृष्टिकोण से उपभोक्ता संरक्षण के निम्नलिखित लाभ हैं-

  • व्यवसाय का मुख्य उद्देश्य उपभोक्ता को अधिकतम संतुष्टि प्रदान करना है जो ख्याति, लाभ, बाजार में हिस्सेदारी, जीवन और वृद्धि का आधार है। जबतक व्यवसायी उपभोक्ता के इच्छा और आवश्यकता को संतुष्ट करने में सफल नहीं होता तब तक उनका सहयोग प्राप्त नहीं कर सकता है।
  • दीर्घकालिन अधिकतम लाभ की प्राप्ति उपभोक्ता संतुष्टि के द्वारा ही प्राप्त किया जा सकता है, क्योंकि इससे विक्रय की पुनरावृत्ति होती है और ग्राहक का आधार बढ़ता है।
  • व्यवसाय समाज के द्वारा पूर्ति किये गये साधनों का प्रयोग करता है। अब इसका दायित्व है कि वे वस्तु और सेवा के द्वारा लोगों के विश्वास को प्राप्त करें और उसके शिकायत को कम करें।
  • उपभोक्ता समाज का एक महत्वपूर्ण अंश है। और व्यवसाय का यह दायित्व है कि वह इस वर्ग को प्रभावी सेवा प्रदान करें। केवल इसी माध्यम से विक्रय में विस्तार और लाभ में वृद्धि हो सकती है जिसके लिये उपभोक्ता के हितों का पर्याप्त संरक्षण आवश्यक है।
  • व्यवसाय का यह नैतिक दायित्व भी है कि वह साफ-सुथरा व्यवसाय का संचालन करें। उपभोक्ता के हितों का शोषण, मिथ्या विज्ञापन, गलत उत्पादन, अधिक मूल्य, जमाखोरी, एवं मिलावट का परित्याग करें।
  • व्यवसाय में सरकारी हस्तक्षेप को समाप्त करने के लिये, व्यावसायिक संगठन को स्वयं ही उपभोक्ता के हितों की रक्षा करनी चाहिए। तभी जाकर स्वयं व्यावसायिक इकाई के ख्याति की रक्षा हो सकती है।

उपभोक्ता संरक्षण, इसलिये समान रूप से व्यवसाय और उपभोक्ता दोनों के लिये महत्वपूर्ण है।

प्रश्न 7.
पूँजी बाजार और मुद्रा बाजार में अन्तर बतावें।
उत्तर:
पूँजी बाजार और मुद्रा बाजार में अन्तर निम्नलिखित चार्ट के द्वारा दर्शाया जा सकता है-
Bihar Board 12th Business Studies Important Questions Long Answer Type Part 3, 2

प्रश्न 8.
प्रबंध के आधारभूत विशेषताओं का वर्णन करें।
उत्तर:
प्रबंध के आधारभूत विशेषतायें निम्नलिखित हैं-
1. उद्देश्य-उन्मुखी प्रक्रिया – यह संगठन के निर्धारित उद्देश्य की प्राप्ति के लिए प्रत्येक व्यक्ति के प्रयास को समूह में बाँधता है।
2. विस्तृत क्रियाकलाप – प्रत्येक जगह प्रत्येक प्रकार के संगठन के लिय यह समान रूप से महत्वपूर्ण हैं।
3. विभिन्न-परिमाण से संबंधित क्रियाकलाप-

  • नियोजन, निर्णय, बजट, दायित्व और अधिकार द्वारा निष्पादन प्रबंध का कार्य।
  • समूह के सदस्य की हैसियत से लोगों के आवश्यकता और आचरण के कारण निर्धारित उद्देश्य की पूर्ति के लिय मानवीय संसाधनों का अभिप्रेरणा।
  • उपभोग के लिए वस्तु और सेवा का नियोजित उत्पादन का संचालनीय परिवर्तन।

4. कार्यों का समेकित नियोजन, संगठन, निर्देशन, स्टाफिंग एवं नियंत्रण की एक क्रमबद्ध प्रक्रिया।
5. व्यक्तियों का सामूहिक प्रयास जो उनके इच्छा और आवश्यकता के अनुकूल है, लेकिन एक निर्देश में कार्य करने को बाध्य होता है।
6. आशा और आवश्यकताओं के अनुकूल बदलते परिवेश में समायोजित करते हुए एक गतिशील कार्य है।
7. अभौतिक शक्तियों जो पृथक रूप से भौतिक स्वरूप में दिखाई नहीं देते हैं लेकिन संगठन की शांति, श्रम-संतुष्टि एवं नियोजित उद्देश्य की प्राप्ति के लिए कार्य करता है।

यह मुख्यतः उपर्युक्त आधारभूत विशेषताओं के कारण जीवंतता एवं वृद्धि की आवश्यक प्रक्रिया समझी जाती है।

प्रश्न 9.
प्रबंध में समन्वय के महत्व एवं प्रकृति क्या है ?
उत्तर:
समन्वय सामान्य उद्देश्य की प्राप्ति के लिए विभिन्न कार्यों को एक साथ जोड़ने की एक प्रक्रिया है। यह संतुलित प्रयास हैं-

  • समूह के सदस्यों को कार्यों के सही वितरण का निर्धारण।
  • यह देखना की कार्य स्वस्थ वातावरण में सम्पादित किये गये हैं।

सामान्य उद्देश्य के लिए समन्वय क्रिया की एकता है समन्वय की प्रकृति में सम्मिलित हैं-

  • समूह प्रयास का एकीकरण।
  • संगठन के उद्देश्य की प्राप्ति।
  • नियोजन और कार्यान्वयन की निरंतरता।
  • विभिन्न विभाग, कार्यदल और क्रिया के मध्य मधुर संबंध।
  • संगठन के प्रत्येक स्तर पर दायित्व।
  • कर्मचारियों की संतुष्टि के लिए सहयोगी क्रिया का संचालन।

समन्वय का महत्व इसके विभिन्न विभागों एवं व्यक्तियों के प्रयासों को जोड़ने के दृष्टिकोण पर निर्भर करता है जो एक-दूसरे पर पूर्णतः आश्रित हैं। यह समामेलन का एक आवश्यक दृष्टिकोण है, प्रबंध की सफलता में समन्वय का योगदान मुख्यतः तीन क्षेत्रों में है-

  • व्यक्तिगत एवं संगठन के उद्देश्य के लिए उच्चतम कार्य क्षमता का समायोजन।
  • संचालन, उद्देश्य एवं नीति से संबंधित विभागीय, क्षेत्रीय (Divisional) विवाद को कम करना।
  • स्वतंत्र व्यक्ति के द्वारा विशेषज्ञों के विचार, हित या दृष्टिकोण में मतभेद का समामेलन।

मधुर संबंध को स्थापित करने, समूह प्रयास को प्रेरित करने, संगठन के उद्देश्य की रक्षा करने, संचालनीय कार्य क्षमता प्राप्त करने, विवाद को कम करने, विभिन्न दृष्टिकोणों को समामेलित करने के कारण ही समन्वय, प्रबंध का मूल तत्व समझा जाता है।

प्रश्न 10.
संवर्धन मिश्रण के तत्व के रूप में विक्रय संवर्धन की भूमिका का वर्णन करें।
उत्तर:
उच्च प्रतिस्पर्धी बाजार में विक्रय संवर्धन एक महत्वपूर्ण क्रियाकलाप हैं। विक्रय संवर्धन ग्राहकों के क्रय निर्णय का प्रोत्साहन या प्रलोभन है, यह ग्राहकों से तुरन्त वस्तु एवं सेवा को क्रय करवाने का एक प्रयास है और इस तरह अपना विक्रयं बढ़ाना है। विक्रय संवर्धन के लिये नगद कटौती, विक्रय प्रतियोगिता, मुफ्त पारितोषिक, मुफ्त सैम्पल आदि पद्धति प्रयोग की जाती है, यह पद्धति अल्पकालीन विक्रय वृद्धि के लिये प्रयोग की जाती है, विक्रय संवर्धन तीन मुख्य योगदान के कारण विपणन में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती है।

  • मूल्य आकर्षण – प्रलोभन के प्रयोग के द्वारा विक्रय संवर्धन लोगों को वस्तु एवं सेवा के प्रति ध्यान आकर्षित करता है।
  • मूल्य उपयोगिता – जब नये उत्पाद बाजार में आते हैं तो विक्रय संवंर्धन ग्राहकों को पुराने उत्पाद के बदले नये उत्पाद खरीदने को बाध्य करते हैं ताकि उनके इच्छा और आवश्यकता को संतुष्ट किया जा सके।
  • मिश्रण-मूल्य – विक्रय संवर्धन, व्यक्तिगत विक्रय एवं विज्ञापन की सहायता से सम्पूर्ण विक्रय पद्धति को प्रभावित करता है। विक्रय संवर्द्धन, इसलिए, एक संगठन में संवर्द्धन मिश्रण के तत्व के रूप में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है।

प्रश्न 11.
वित्तीय प्रबंध को परिभाषित करें एवं इसके उद्देश्यों का वर्णन करें।
उत्तर:
वित्तीय प्रबंध का संबंध व्यवसाय की वित्त व्यवस्थाओं से है जो उसके कुशल संचालक एवं उद्देश्यों को सफलतापूर्वक प्राप्त करने के लिए की जाती है। वित्तीय प्रबंध निम्न दो शब्दों का समूह है-‘वित्तीय’ और ‘प्रबंध’। वित्तीय का आशय वित्त संबंधी है और प्रबंध का आशय किसी कार्य की कुशल व्यवस्था करने से है। यह कहा जा सकता है कि वित्त व्यवसाय का जीवन रक्त है। किसी व्यवसाय की स्थापना उसके लिए आवश्यक संसाधनों की व्यवस्था करने जैसे- भूमि, भवन, कच्चा-माल, प्लाण्ट, मशीनरी, फर्नीचर आदि सामान्य व्ययों का भुगतान करने तथा उसके संवर्धन के लिए पर्याप्त वित्त की आवश्यकता होती है। यह कार्य वित्तीय प्रबंध द्वारा संपन्न होता है।

वित्तीय प्रबंध के उद्देश्य (Objectives of Financial Management) – वित्तीय प्रबंध का मूल उद्देश्य व्यवसाय के स्वामियों का अधिकतम हित करना है। इसके उद्देश्यों को हम निम्न शीर्षक से स्पष्ट कर सकते हैं।
1. लाभों को अधिकतम करना- इस उद्देश्य के अनुसार लाभ अर्जित करना प्रत्येक व्यवसाय का प्राथमिक उद्देश्य है। क्योंकि अधिकतम लाभ करके ही व्यवसाय के स्वामियों का अधिकतम हित किया जा सकता है।

2. संपदा को अधिकतम करना- वित्तीय प्रबंध का मुख्य उद्देश्य व्यवसाय के अंशधारियों अथवा स्वामियों की संपदा को अधिकतम करना है। इसके लिए आवश्यक है कि अंश बाजार में उनके अंशों के मूल्य में वृद्धि हो। उनके अंशों के मूल्य में जितनी अधिक वृद्धि होगी अंशधारियों की संपदा में उतनी ही अधिक वृद्धि होगी।

3. अन्य उद्देश्य- उपर्युक्त दोनों उद्देश्यों के अलावे वित्तीय प्रबंध के निम्न उद्देश्य भी होते हैं-

  • न्यूनतम लागत पर पर्याप्त कोषों को प्राप्त करना एवं उनकी नियमित पूर्ति बनाये रखना है।
  • कोषों की सुरक्षा सुनिश्चित करना।
  • कोषों का अनुकूलतम उपयोग।
  • वित्तीय नियंत्रण।
  • पर्याप्त प्रत्याय सुनिश्चित करना।

प्रश्न 12.
विपणन मिश्रण से आप क्या समझते हैं। इसके तत्वों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
विपणन मिश्रण का अभिप्राय विभिनन विपणन क्रियाओं को सफलतापूर्वक पूरा करने के लिए बनाई गई नीतियों के योग से है। जैसे-उत्पाद की किस्म के संबंध में कंपनी की नीति हो सकती है कि तीन किस्म का माल तैयार किया जाएगा। उत्तम किस्म, मध्यम किस्म एवं निम्न किस्म इस नीति का उद्देश्य सभी प्रकार के ग्राहकों को अपनी ओर आकर्षित करना हो सकता है।

विपणन मिश्रण के तत्व निम्नलिखित है-
(i) उत्पादन मिश्रण – उत्पादन मिश्रण का अभिप्राय उत्पाद के संबंध में लिए जाने वाले निर्णयों के योग से है। ये निर्णय मुख्यतः नामकरण, पैकेजिंग, लेवलिंग, रंग, डिजाइन, प्रकार, आकार, विक्रय के बाद सेवा, वस्तु के भार आदि के संबंध में होते हैं, ये निर्णय ग्राहकों को अपनी ओर आकर्षित करने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं।

(ii) मल्य मिश्रण – मूल्य मिश्रण का अर्थ उन सभी निर्णयों से है जो किसी वस्तु अथवा सेवा के मूल्य निर्धारण से संबंधित होते हैं। मूल्य मिश्रण के अंतर्गत वस्तु अथवा सेवा का मूल्य निर्धारण के अतिरिक्त उधार विक्रय, छूट आदि से संबंधित निर्णय भी सम्मिलित होते हैं।

(iii) संवर्द्धन मिश्रण – संवर्द्धन मिश्रण का अभिप्राय व्यवसाय द्वारा उपभोक्ताओं को उत्पाद के बारे में सूचित करने एवं प्रेरित करने के लिए अपनाई जानेवाली विधियों के योग से है। यह कार्य कंपनी विज्ञापन व्यक्तिगत विक्रय, विक्रय-संवर्द्धन एवं प्रचार विधियों के माध्यम से करती है।

(iv) स्थान मिश्रण – स्थान मिश्रण का अभिप्राय उन सभी निर्णयों के योग से है जो उत्पाद को उपभोक्ताओं के लिए उपलब्ध करवाने हेतु लिए जाते हैं। यदि उत्पाद ठीक समय पर, ठीक मात्रा में व ठीक स्थान पर उपलब्ध न हो तो उपभोक्ता उसे क्रय नहीं कर पाएँगे। अतः विपणन क्रियाओं को सार्थक बनाने के लिए स्थान मिश्रण अति आवश्यक है।

प्रश्न 13.
“विज्ञापन पर किया गया व्यय बर्बादी है।” क्या आप इस बात से सहमत हैं ? अपने उत्तर के समर्थन में कारण दीजिए।
उत्तर:
विज्ञापन पर किया गया व्यय बर्बादी है। हम इस कथन से बिल्कुल भी सहमत नहीं हैं।

विज्ञापन पर किया गया व्यय बर्बादी नहीं, बल्कि विनियोग है। यह निम्नलिखित विचार-बिन्दुओं के आधार पर स्पष्ट हो जाता है-

गलाकाट प्रतियोगिता के युग में आज विज्ञान का महत्त्वपूर्ण स्थान है। विज्ञापन उपभोक्ताओं को प्रभावित करके उत्पाद (Product) या सेवा का विक्रय बढ़ाने में महत्वपूर्ण योगदान होता है। इससे बड़े पैमाने के उत्पादन की मितव्ययताएँ प्राप्त होती हैं। उपभोक्ताओं को सस्ती एवं प्रमाणित वस्तु प्राप्त होती है। इस प्रकार विज्ञापन वस्तु की माँग उत्पन्न करता है। इसी कारण यह कथन सत्य है कि, “विज्ञापन पर किया गया व्यय विनियोग होता है, व्यय नहीं।” कुछ विद्वानों ने कहा कि विज्ञापन से केवल उत्पादन लाभान्वित होते हैं। उनका यह विचार सत्य नहीं है क्योंकि विज्ञापन से थोक व्यापारी, फुटकर व्यापारी, उपभोक्ता तथा समाज सभी लोग को लाभ होता है, विज्ञापन इनके लिए उतना ही महत्वपूर्ण है जितना कि उत्पादक के लिए विज्ञापन से इन सभी को होने वाले लाभों का वर्णन निम्नलिखित है-

I. उत्पादकों को लाभ (Advantages of Producers)-

  • नवनिर्मित वस्तुओं की मांग में वृद्धि करना – निर्माता अपनी नई वस्तुओं का विज्ञापन करके अपनी वस्तु की माँग उत्पन्न कर सकते हैं।
  • वस्तुओं की बिक्री में वृद्धि – विज्ञापन का प्रमुख उद्देश्य वस्तु की माँग में वृद्धि करना है। विज्ञापन के द्वारा वस्तु के नए ग्राहक बनते हैं। परिणामस्वरूप बिक्री बढ़ती है।
  • माँग में स्थायित्व (Stability in Demand) – विज्ञापन वस्तुओं की मौसमी माँग के परिवर्तन को न्यूनतम करके पूरे वर्ष माँग को बनाए रखता है जैसे-बिजली के पंखे गर्मियों में तो बिकते ही हैं, लेकिन सर्दियों में भी पंखों की मांग भारी छूट के विज्ञापन के कारण बनी रहती है।
  • शीघ्र बिक्री तथा कम स्टॉक – विज्ञापन से बाजार में वस्तु की माँग होती है और वस्तु की बिक्री में वृद्धि होती है। परिणामस्वरूप वस्तु का स्टॉक अधिक समय के लिए नहीं रखना पड़ता।
  • प्रतिस्पर्धा का अंत – विज्ञापन के माध्यम से वस्तु की माँग बाजार में स्थायी बनायी जा सकती है। यदि कोई हमारी वस्तु का प्रतिस्पर्धा है भी तो उसकी दाल नहीं गलेगी क्योंकि हम अपनी वस्तु की उपयोगिता को विज्ञापन के द्वारा ग्राहकों को समझा सकते हैं।
  • कम लागत – बड़े पैमाने पर उत्पादन करके उत्पादन लागत और वितरण लागत दोनों में कमी की जा सकती है, क्योंकि विज्ञापन से माँग में वृद्धि होती है और बढ़ी हुई माँग की पूर्ति बड़े पैमाने के उत्पादन से ही संभव है।
  • संस्था की ख्याति में वृद्धि – विज्ञापन से संस्था तथा उसके द्वारा उत्पादित वस्तु लोकप्रिय हो जाती है। यही नहीं, ऐसी संस्था अपने सहायक उत्पादन को बेचने में भी सफल हो जाती है।
  • कर्मचारियों को प्रेरणा – विज्ञापन से जब वस्तु की माँग में वृद्धि होती है तो संस्था में काम करने वाले कर्मचारियों में भी गर्व की भावना आती है।
  • उपभोक्ताओं के समय से बचत – विज्ञापन की सहायता से कम समय में उचित मूल्य पर सही वस्तु उपभोक्ता को मिल जाती है।

II. मध्यस्थों को लाभ (Advantages of Middlemen)-

  • समाचार-पत्रों की आर्थिक सहायता-समाचार-पत्र एवं पत्रिकाओं को भारी विज्ञापन कराने से बहुत अधिक आय होती होती है, परिणामस्वरूप कम लागत पर पत्र-पत्रिकाएँ जनता को मिल जाती हैं। समाचार-पत्रों की कुल आय के भाग में से 75% आय का भाग विज्ञापनों से मिलता है।
  • विक्रेताओं की सहायता करता है-विज्ञापन वस्तु की माँग का सृजन (Create) करता है यानी विक्रेताओं द्वारा प्रस्तुत की गई अधिक बिक्री के लिए बिक्री की पृष्ठभूमि बनाता है।
  • अच्छे मध्यस्थों की प्राप्ति-विज्ञापन के द्वारा अच्छे मध्यस्थों और कर्मचारियों को प्राप्त किया जा सकता है।
  • उत्पादकों से सम्पर्क-विज्ञापन के द्वारा मध्यस्थ और उत्पादकों के बीच सम्पर्क होता है। इस प्रकार विज्ञापन एक कड़ी का काम उत्पादक और मध्यस्थ के बीच करता है।

III. उपभोक्ताओं का लाभ (Advantages of Consumers)-

  • नव-निर्मित वस्तुओं की जानकारी-विज्ञापन के माध्यम से उपभोक्ताओं को नई-नई वस्तुओं के बारे में जानकारी मिलती है। जैसे- Vespa XE – 170, कोन्टेसा कार आदि।
  • क्रय में सुगमता- विज्ञापन के द्वारा वस्तु के संबंध में उपभोक्ता को पहले से ही सम्पूर्ण ज्ञान होता है। इससे उसको वस्तु खरीदने में सुगमता हो जाती है।
  • अच्छी किस्म की वस्तुओं की प्राप्ति- विज्ञापन से वस्तुओं के प्रति जनता का विश्वास जम जाता. है। इसलिए उत्पादक जनता के उस विश्वास को समाप्त नहीं करना चाहता है और अच्छी किस्म की वस्तओं ही बाजार में देता है।
  • ज्ञान में वृद्धि- विज्ञापन ग्राहकों को नित नई वस्तुओं के उपयोग के विषय में जानकारी देता है जिससे उपभोक्ताओं के ज्ञान में वृद्धि होती है।

IV. समाज को लाभ (Advantages to Society)-

  • आजीविका का साधन- विज्ञापन के धन्धे में असंख्य व्यक्ति लगे हुए हैं जोकि इस धन्धे से रोजी पाते हैं।
  • आशावादी समाज का निर्माण- विज्ञापन समाज के प्रगतिशील व्यक्तियों को काम में । लगाए रहने की प्रेरणा देता रहता है क्योंकि विज्ञापित वस्तु को खरीदने के लिए अधिक धन की आवश्यकता होती है।

प्रश्न 14.
प्रबन्ध के सिद्धान्तों की आवश्यकता तथा महत्त्व का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
प्रबन्ध के समस्त सिद्धान्त लोचपूर्ण हैं न कि अकाट्य एवं स्थिर। इन सिद्धान्तों का प्रयोग करते समय प्रबन्धकों को बदलती हुई परिस्थितियों एवं दशाओं पर समुचित ध्यान देना चाहिए और उसे वर्तमान परिप्रेक्ष्य में ही प्रयोग करना चाहिए। जिस प्रकार प्रबन्धकीय सिद्धान्तों की उपेक्षा कर्त्तव्य के समुचित सम्पादन में बाधक बनती है उसी प्रकार इनका अविवेकपूर्ण प्रयोग हानिप्रद सिद्ध होता है। प्रबन्ध के सिद्धान्तों के लोचपूर्ण होने का आशय यह भी है कि सिद्धान्तों की कोई अन्तिम सूची नहीं है। प्रबन्धशास्त्र का विज्ञान के रूप में विकास अल्पकालीन है यथा इसके सिद्धान्त अभी परिवर्तन की स्थिति में हैं न कि परिपक्वता की स्थिति में। यह विकास दिन पर दिन अधिक व्यापक होता जा रहा है। पुराने सिद्धान्त अनुभव की कसौटी पर कसे जा रहे हैं और नये-नये सिद्धान्तों का विकास हो रहा है। ये सिद्धान्त अत्यन्त महत्वपूर्ण हैं और प्रबन्धकों के लिए अत्यन्त उपयोगी सिद्ध होंगे जैसा कि निम्न तथ्यों से स्पष्ट है-

जार्ज टैरी के शब्दों में, “एक प्रबन्धक के लिए प्रबन्ध के सिद्धान्तों का उतना ही महत्व है जितना कि सिविल इन्जीनियर के लिए स्ट्रेन्थ सारणी का।”

1. प्रबन्धकों को उपयोगी ज्ञान उपलब्ध कराना (Provides Useful Insights to Managers)- प्रबन्धकीय सिद्धान्त प्रबन्धकों के लिए दिशा निर्देश के रूप में कार्य करते हैं। ये सिद्धान्त विभिन्न प्रबन्धकीय स्थितियों के अन्तर्गत प्रबन्धकों के ज्ञान, योग्यता.एवं समझ को बढ़ाते हैं। इन सिद्धान्तों के परिणाम प्रबन्धकों को उनकी गलतियों से सीखने में सहायता करते हैं तथा प्रबन्धकों को सही समय पर सही निर्णय लेने में अपना मार्ग दर्शन देते हैं।

2. संसाधनों का अनुकूलतम उपयोग तथा प्रभावी प्रशासन (Optimum Utilisation of Resources and Effective Administration)- प्रत्येक संगठन में भौतिक व मानवीय संसाधनों का प्रयोग होता है। प्रबन्ध का काम कुछ और नहीं वरन् संसाधनों के अपव्यय को रोकना एवं इनका अनुकूलतम उपयोग (Optimum Use) करना है। ऐसा तभी सम्भव है जब एक प्रबन्धक प्रबन्ध के सिद्धान्तों को व्यवहार में लाये। उदाहरण के लिए आदेश की एकता (Unity of Command), श्रम का विभाजन (Division of Labour), अधिकार एवं उत्तरदायित्व (Authority and Responsibility), सोपान श्रृंखला (Scalar Chain) इत्यादि सिद्धान्तों का यदि पालन किया जायेगा तो कम-से-कम लागत पर अधिकतम लाभ प्राप्त हो सकेगा। सिद्धान्तों की सहायता से प्रबन्धक अपने निर्णयों एवं कार्यों में कारण एवं परिणाम के सम्बन्ध का पूर्वानुमान लगा सकते हैं। प्रभावी प्रशासन के लिये प्रबधकीय व्यवहार आवश्यक है ताकि प्रबन्धकीय अधिकारों का सुविधानुसार उपयोग किया जा सके।

3. वैज्ञानिक निर्णय (Scientific Decisions)-निर्णय, निर्धारित उद्देश्यों के रूप में विचारणीय एवं न्यायोचित तथ्यों पर आधारित होने चाहिए। वे समयानुकूल (Timely), वास्तविक एवं मापन तथा मूल्यांकन (Measurement and Evaluation) के योग्य होने चाहिए। प्रबन्ध के सिद्धान्त विचारपूर्ण निर्णय लेने में सहायक होने चाहिए। वे आँख मूंद कर विश्वास करने पर नहीं वरन् तर्क . (Logic) पर आधारित होने चाहिए। प्रबन्ध के जिन निर्णयों को सिद्धान्तों के आधार पर लिया जाता है, वह व्यक्तिगत द्वेष भावना एवं पक्षपात से मुक्त होने चाहिए। वे परिस्थिति के तर्कसंगत मूल्यांकन पर आधारित होने चाहिए।

4. बदलती पर्यावरण की आवश्यकताओं को पूरा करना (Meeting Changing Environmental Requirement)- सिद्धान्त यद्यपि सामान्य दिशा निर्देश प्रकृति के होते हैं, तथापि इनमें परिवर्तन होता रहता है, जिससे यह प्रबन्धकों की पर्यावरण पर बदलती आवश्यकताओं को पूरा करने में सहायक होते हैं। प्रबन्ध के सिद्धान्त लोचपूर्ण होते हैं, जो गतिशील व्यावसायिक पर्यावरण के अनुरूप ढाले जा सकते हैं। उदाहरण के लिये प्रबन्ध के सिद्धान्त श्रम-विभाजन एवं विशिष्टीकरण को बढ़ावा देते हैं। आधुनिक समय में यह सिद्धान्त सभी प्रकार के व्यवसायों पर लागू होते हैं।

5. सामाजिक उत्तरदायित्व को पूरा करना (Fulfilling Social Responsibility)- प्रबन्ध के सिद्धान्त, प्रबन्धों की कार्य-कुशलता में वृद्धि करके उनके सामाजिक उत्तरदायित्व को पूरा करने में सहायता प्रदान करते हैं। अधिक कुशल प्रबन्धक अच्छी किस्म की वस्तुयें, उचित मूल्य पर हर समय उपलब्ध करा सकते हैं। उदाहरण के लिए, उचित पारिश्रमिक का सिद्धान्त (Principle of Fair Remuneration), कर्मचारियों को उचित पारिश्रमिक देने की वकालत करके प्रबन्ध के कर्मचारियों के प्रति उत्तरदायित्व को पूरा करने में सहायता करता है।

6. प्रबन्ध प्रशिक्षण, शिक्षण एवं शोध (Management Training Education and Research)- प्रबन्ध के सिद्धान्त प्रबन्धकों के सैद्धान्तिक एवं व्यावहारिक ज्ञान में वृद्धि करके उन्हें शिक्षण एवं प्रशिक्षण उपलब्ध करा रहे हैं। प्रबन्ध के सिद्धान्त वैज्ञानिक निर्णय और तर्क सम्बन्धी सोच पर जोर देते हैं। परिणामस्वरूप ये सिद्धान्त प्रबन्धकीय अध्ययन में अनुसन्धान और विकास करने के लिए आधार के रूप में कार्य करते हैं। ये सिद्धान्त अनुसन्धान कार्य करने के लिए व्यवस्थित ज्ञान-निकाय एवं अधिक-से-अधिक ज्ञान का सजन करने के लिए नये विचार. कल्पना और अनुसन्धान एवं विकास के लिये आधार प्रदान करते हैं। प्रबन्ध के सिद्धान्तों के फलस्वरूप प्रबन्धकों के दृष्टिकोण में आए परिवर्तन का लाभ उठाने के लिए अनेक बड़ी-बड़ी कम्पनियों ने शोध एवं विकास (Research and Development) विभाग स्थापित किये हैं।

प्रश्न 15.
फेयोल द्वारा प्रतिपादित सामान्य प्रबन्ध के सिद्धान्त का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
फ्रांस के प्रसिद्ध उद्योगपति श्री हेनरी फेयोल (Henry Fayol) प्रबन्ध के क्षेत्र में क्रियात्मक दृष्टिकोण के प्रतिपादक थे। उनकी मान्यता थी कि औद्योगिक संस्थाओं के प्रबन्धों को प्रबन्ध के कुछ आधारभूत सिद्धान्तों का ज्ञान होना आवश्यक है। उन्होंने अनुभव किया कि बिना सिद्धान्तों के प्रबन्ध का अध्ययन सम्भव नहीं। फेयोल ने अपनी पुस्तक ‘सामान्य एवं औद्योगिक प्रबन्ध’ में प्रबन्ध के 14 सिद्धान्तों का प्रतिपादन किया था जो निम्न हैं-

1. कार्य विभाजन (Division of Work)- यह विशिष्टीकरण का सिद्धान्त है। फेयोल कार्य-कुशलता के लिए विशिष्टीकरण को आवश्यक मानते हैं। इसके अनुसार कार्य विभाजन का नियम केवल कार्यशाला स्तर (Workshop Level) पर ही लागू करना पर्याप्त नहीं अपितु इसे सभी कार्यों चाहे वे प्रबन्ध सम्बन्धी हों अथवा तकनीकी पर समान रूप से लागू किया जाना चाहिए।

2. अधिकार और उत्तरदायित्व (Authority and Responsibility)- अधिकार और कर्तव्य साथ-साथ चलते हैं। मैनेजर का अधिकार व्यक्तिगत रूप से और अधिकारी के रूप में और हो सकता है। बिना अधिकार के उत्तरदायित्व व्यक्ति को प्रभावहीन बना देते हैं, ठीक इसी प्रकार बिना उत्तरदायित्व के अधिकार उचित नहीं है। फेयोल के शब्दों में, “अधिकारों का परिणाम ही उत्तरदायित्व है। यह अधिकार का स्वाभाविक परिणाम और आवश्यक रूप से अधिकार का ही दूसरा पहलू है तथा जब भी अधिकारों का प्रयोग किया जाता है, उत्तरदायित्व का जन्म स्वतः ही हो जाता है।”

3. अनशासन (Discipline)- प्रबन्ध की सफलता के लिए संगठन में अनुशासन बनाये रखना नितान्त जरूरी होता है। अनुशासन से जहाँ हमारा अभिप्राय नियमों के प्रति आस्था व उनके पालन से है। किसी भी संस्था या संगठन में अनुशासन बनाये रखने के लिए यह आवश्यक है कि वहाँ उच्चकोटि के निरीक्षक नियुक्त किये जाएँ। आदेशों या नियमों का उल्लंघन करने वालों को उचित दण्ड की व्यवस्था हो।

4. आदेश की एकात्मकता (Unity of Command)- कर्मचारी को एक ही अधिकारी से आदेश मिलने चाहिए यदि एक से अधिक अधिकारियों से आदेश मिलेंगे तो उनका ठीक से पालन नहीं हो सकेगा। फेयोल के अनुसार, “किसी संगठन में कर्मचारियों के कुशलतापूर्वक कार्यों के लिये आदेश की एकता का होना जरूरी है।” अन्य शब्दों में, प्रत्येक कर्मचारी का केवल एक ही अधिकारी होना चाहिए, अन्यथा अधिकार तथा आदेशों में घपला तथा मतभेद (Conflict and Confusion) उत्पन्न हो जाएगा।

5. निर्देश की एकात्मकता (Unity of Direction)- किसी एक उद्देश्य की पूर्ति के लिये की जाने वाली सभी क्रियाओं का संचालन एवं निर्देशन एक ही व्यक्ति के द्वारा किया जाना चाहिए तथा उन सबके लिए एक ही योजना बनायी जानी चाहिए। एक समूह के लिए एक ही अधिकारी होना चाहिए। फेयोल के अनुसार, “निर्देश की एकात्मकता से अभिप्राय व्यक्तियों के समूह को, जिसका उद्देश्य एक समान हो, एक ही मस्तिष्क से एक ही योजना का निर्माण करना है।”

6.सामूहिक हितों के लिए व्यक्तिगत हितों का समर्पण (Sub-ordination of Individual Interest to General Interest)- संस्था के हितों के लिये व्यक्तिगत हितों का समर्पण संस्था के हित में होता है। प्रबन्धक को यथासम्भव सामान्य हित एवं व्यक्तिगत हित में समन्वय (Coordination) स्थापित करने का प्रयास करना चाहिए। यदि किसी समय दोनों हितों में संघर्ष उत्पन्न हो जाये तो सामान्य हित के लिए व्यक्तिगत हित की बलि चढ़ा देनी चाहिए।

7.कर्मचारियों का पारिश्रमिक (Remuneration of Personnel)- प्रबन्धक का यह एक महत्त्वपूर्ण सिद्धान्त है कि कर्मचारियों को उनके द्वारा किये गये कार्य के लिए उचित पारिश्रमिक मिलना चाहिए। यदि कर्मचारियों को वेतन के सम्बन्ध में सन्तोष होगा तो उत्पादकता बढ़ेगी। लाभ में हिस्सा (Share in Profit), श्रम-कल्याण योजनायें (Labour Welfare Schemes) तथा अन्य प्रेरणादायक योजनाओं (Incentives) को लागू करना चाहिए।

8. केन्द्रीयकरण व विकेन्द्रीयकरण (Centralisation and Decentralisation)- यद्यपि फेयोल (Fayol) ने अधिकारों के केन्द्रीयकरण शब्द का प्रयोग कहीं नहीं किया, तथापि केन्द्रीयकरण का सिद्धान्त किसी संस्था में अधिकारों के केन्द्रीयकरण अथवा विकेन्द्रीयकरण की मात्रा की ओर इंगित करता है। उद्देश्य सही हो तो साधनों का उचित व सही प्रयोग हो सकता है। संस्था के प्रबन्ध में किस सीमा तक अधिकारों का केन्द्रीयकरण (Centralisation) अथवा विकेन्द्रीयकरण (Decentralisation) होना चाहिए, यह संस्था की निजी परिस्थितियों, कार्य की प्रकृति आदि पर निर्भर होता है। पूर्ण केन्द्रीयकरण अथवा पूर्ण विकेन्द्रीकरण कभी भी सम्भव नहीं होता।

9. सोपान शृंखला (Scalar Chain)- उच्चाधिकारियों से अधिकार नीचे की तरफ जाना चाहिए। प्रत्येक सम्वाद को एक निश्चित रास्ते से गुजरना चाहिए। अधीनस्थों को भी अपने विवेक से कार्य करने के लिए प्रेरित करना चाहिए। इस सिद्धान्त के अनुसार, अधिकारों एवं सन्देशवाहन की एक सोपानिक श्रृंखला होती है जो उच्चतम अधिकारी से निम्न स्तर के अधीनस्थ तक सीधी रेखा में चलती है। इस शृंखला अथवा अधिकारों की रेखा (Line of Authority) के अन्तर्गत प्रत्येक सन्देशवाहन ऊपर से नीचे वे नीचे से ऊपर एक निर्धारित व्यवस्था के अनुसार चलता है। उदाहरणार्थ, यदि एक अधिकार रेखा में A, B, C, D, E, पाँच व्यक्ति हैं और सन्देश A से E को पहुँचाना है तो यह सन्देश पहले A से B को, B से C को, C से D को तथा अन्त में D से E को पहुँचाया जाएगा। ध्यान रहे किसी भी पद या सीढ़ी के बीच में अनदेखा नहीं किया जाएगा। फेयोल ने सोपान शृंखला के सिद्धान्त को निम्न दोहरी सीढ़ी द्वारा स्पष्ट किया है-
Bihar Board 12th Business Studies Important Questions Long Answer Type Part 3, 3
10. व्यवस्था का सिद्धान्त (Principle of Order)- हर चीज के लिए उपयुक्त स्थान का चुनाव होना चाहिए। जगह साफ-सुथरी होनी चाहिए जो जितना जिम्मेदार अधिकारी होगा जगह उतनी ही साफ-सुथरी होगी। हर कर्मचारी के लिए एक निश्चित स्थान हो। सही आदमी सही जगह पर हो। उचित व्यक्ति का चुनाव किया जाना चाहिए, जितनी आवश्यकता हो उतने ही कर्मचारियों का चुनाव किया जाना चाहिए। फेयोल के शब्दों में, प्रत्येक उपक्रम में दो अलग-अलग व्यवस्थाएँ होनी चाहिए। जैसे-भौतिक साधनों के लिए भौतिक व्यवस्था तथा मानवीय साधनों के लिए सामाजिक व्यवस्था। भौतिक साधनों की व्यवस्थित करने का अर्थ है कि हर वस्तु के लिए एक उचित स्थान होना चाहिए एवं हर वस्तु अपने उचित स्थान पर ही होनी चाहिए।

इसी प्रकार मानवीय साधनों को व्यवस्थित करने का अर्थ है कि हर व्यक्ति के लिए एक स्थान होना चाहिए एवं हर व्यक्ति अपने निश्चित स्थान पर ही होना चाहिए। फेयोल के शब्दों में, प्रत्येक उपक्रम में दो अलग-अलग व्यवस्थायें होनी चाहिए। जैसे-भौतिक साधनों के लिए भौतिक व्यवस्था तथा मानवीय साधनों के लिए सामाजिक व्यवस्था। भौतिक साधनों को व्यवस्थित करने का अर्थ है कि हर वस्तु के लिए एक उचित स्थान होना चाहिए एवं हर वस्तु अपने उचित स्थान पर ही होनी चाहिए। इसी प्रकार मानवीय साधनों को व्यवस्थित करने का अर्थ है कि हर व्यक्ति के लिए एक स्थान होना चाहिए एवं हर व्यक्ति अपने निश्चित स्थान पर होना चाहिए।

11.समता का सिद्धान्त (Principle of Equity)- कर्मचारियों के साथ न्यायपूर्ण व्यवहार करना चाहिए। कर्मचारियों की निष्ठा एवं स्वाभाविकता खरीदी नहीं जा सकती यह तो उनके साथ समान एवं न्यायोचित व्यवहार के द्वारा सम्भव है। उसे समस्त कर्मचारियों के साथ समानता का व्यवहार करना चाहिए। व्यवसाय के लिए पक्षपात अत्यधिक हानिकारक होता है। अधिकारियों को व्यवहार में आवश्यकता से अधिक कठोर नहीं होना चाहिए। कूण्टज एवं ओ’ डौनेल के अनुसार, “प्रबन्धक न्याय एवं दया द्वारा कर्मचारियों के साथ व्यवहार करके उनकी वफ. पी और स्नेह प्राप्त कर सकता है।”

12. कर्मचारियों के कार्यकाल में स्थायित्व (Stability of Tenure of Personel)- कर्मचारियों को कार्य समझने के लिए समय दिया जाना चाहिए। उनके कार्यकाल में स्थायित्व होना अपेक्षित होता है। कर्मचारियों को बार-बार बदलना ठीक नहीं। एक साधारण कर्मचारी बार-बार आने-जाने वाले कुशल कर्मचारी से अच्छा है। फेयोल ने इस बात पर अधिक बल दिया कि जहाँ तक सम्भव हो सके कर्मचारियों के कार्यकाल में स्थायित्व होना चाहिए जिससे वे निश्चित होकर तत्परतापूर्वक कार्य कर सकें।

13. पहल करने की क्षमता (Principle of Initiative)- फेयोल ने इस सिद्धान्त के प्रतिपादन द्वारा प्रबन्धकों से अनुरोध किया है कि वे अपने झूठे आत्म-सम्मान की भावना को त्याग दें तथा अपने अधीनस्थ कर्मचारियों को काम करने की पहल करने दें। इससे व्यापार की शक्ति बढ़ती है। प्रबन्धकों को चाहिए कि वे कर्मचारियों को अधिक से अधिक सुविधाएं उपलब्ध कराएँ जिससे कर्मचारियों का हौसला बढ़ सके और प्रबन्धकों का काम भी आसान हो सके।

14. सहयोग की भावना (Esprit Decorps)- काम में जुट जाने की भावना का होना आवश्यक है। अपने व्यवसाय की इज्जत के लिए कार्य करना चाहिए। फेयोल ने मिलकर कार्य करने पर बहुत जोर दिया है। अतएव जब तक कर्मचारी मिलकर एक टोली के रूप में कार्य नहीं करेंगे तब तक सफलता संदिग्ध बनी रहेगी। फेयोल ने सहयोग की भावना के दो शत्रुओं के विरुद्ध सावधान रहने के लिए कहा है (i) फूट डालो और राज्य करो (Divide and Rule) और (ii) लिखित सम्प्रेषण का दुरुपयोग (Misuse of Written Communication)। फर्म के लिए अपने कर्मचारियों में फूट डालना खतरनाक होता है। बल्कि उन्हें एक सम्बद्ध और अत्यन्त अंतः क्रियाशील कार्य-समूह के रूप में जोड़ देना चाहिए। लिखित सम्प्रेषण पर अधिक भरोसा करने से भी दलगत भावना विछिन्न हो जाती है। लिखित सम्प्रेषण जहाँ जरूरी है, के साथ-साथ मौखिक सम्प्रेषण भी सदैव होना चाहिए, आमने-सामने के सम्बन्ध से उन्नति, स्पष्टता और समरसता में वृद्धि होती है।

प्रश्न 16.
वैज्ञानिक प्रबन्ध की परिभाषाएँ दीजिए एवं इसकी विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
एफ० डब्ल्यू० टेलर (F. W. Taylor), जो वैज्ञानिक प्रबन्ध के जन्मदाता माने जाते हैं .और कुछ विद्वान वैज्ञानिक प्रबन्ध को टेलरवाद (Taylorism) की संज्ञा देते हैं, अर्थात् वैज्ञानिक प्रबन्ध ही टेलरवाद है, ने अपने परीक्षणों (Tests) एवं प्रयोगों द्वारा यह सिद्ध कर दिया है कि यदि श्रमिकों से पूर्व योजना के अनुसार काम लिया जाए, उन्हें उचित प्रशिक्षण दिया जाए, काम करने की विधि में सुधार किया जाए, उन्हें हल्के और आधुनिक उपकरण (Tools) दिए जाए तो उनकी कार्यक्षमता पहले से काफी बढ़ जाएगी। इस प्रकार टेलर के अनुसार, “वैज्ञानिक प्रबन्ध यह जानने की कला है कि आप श्रमिकों से क्या काम करवाना चाहते हैं और फिर यह देखना कि वे उसको सर्वोत्तम तरीके से व मितव्ययिता के साथ पूरा करें।”

वैज्ञानिक प्रबन्ध के अर्थ को और अधिक स्पष्ट करते हुए टेलर किसी दूसरे स्थान पर लिखते हैं: “वैज्ञानिक प्रबन्ध, अपने मूल रूप में, एक ऐसा दर्शन है जो प्रबन्ध के चार निहित सिद्धांतों के संयोग का परिणाम है: प्रथम, एक यथार्थ विज्ञान का विकास; द्वितीय, श्रमिक का वैज्ञानिक रीति से चुनाव; तृतीय, उसका वैज्ञानिक प्रशिक्षण तथा विकास; चतुर्थ, प्रबन्ध और कर्मचारियों के बीच निकटतम मैत्रीपूर्ण सहयोग।” सरल शब्दों में वैज्ञानिक प्रबन्ध का अर्थ प्रबन्ध कार्य में रूढ़िवादी पद्धति (Rule of Thumb Method) भूल सुधार प्रणाली (Irial and Error Method) के स्थान पर तर्क संगत व्यवहार करना।

अन्य परिभाषाएँ (Other Definitions)-
1. पीटर एफ० डुकर के शब्दों में, “वैज्ञानिक प्रबन्ध कार्य का संगठित अध्ययन कार्य का अनेक तत्त्वों में विश्लेषण तथा श्रमिक द्वारा किए गए प्रत्येक तत्व (कार्य) में क्रमबद्ध सुधार करना है।”

2. डाइमर के शब्दों में, “वैज्ञानिक प्रबन्ध से आशय प्रबन्ध के क्षेत्र में दशाओं, पद्धतियों, विधियों, सम्बन्धों एवं परिणामों से सम्बन्धित ज्ञान को प्राप्त कर एवं व्यवस्थित कर उपयोग के लिए उनको एक संगठित सिद्धान्त के रूप से विकसित करना है।”

3. एच० एफ० परसन के शब्दों में वैज्ञानिक प्रबन्ध संगठन और पद्धति के उद्देश्यपूर्ण सामूहिक प्रयासों तथा मूल की प्रक्रिया से निश्चित की गई परम्परागत नीतियों की अपेक्षा अन्वेषण तथा विश्लेषण की वैज्ञानिक प्रक्रिया द्वारा निश्चित किए गए सिद्धांतों और नियमों पर आश्रित रहता है।”

4. लारेन्स ए० एप्पल के अनुसार, “वैज्ञानिक प्रबन्ध दिन प्रतिदिन के अंगूठे के नियम या तीर नहीं तो तुक्का ही सही की धारणा की अपेक्षा प्रबन्ध के उत्तरदायित्वों के निष्पादन की एक चेतनापूर्ण व व्यवस्थित मानवीय धारणा है।”

वैज्ञानिक प्रबन्ध के मुख्य लक्षण अथवा विशेषताएँ- उपरोक्त परिभाषाओं का अध्ययन करने के पश्चात् हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि वैज्ञानिक प्रबन्ध के निम्न मुख्य लक्षण (Features) हैं-

  • एक निश्चित योजना (A Definite Plan)- निश्चित लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए वैज्ञानिक प्रबन्ध के अन्तर्गत प्रबन्धकों को एक निश्चित योजना बनानी पड़ती है तथा उसी के अनुसार कार्य करना होता है।
  • एक निश्चित लक्ष्य (A Definite Objective)- प्रत्येक प्रबन्धक के सामने किसी कार्य को करने से पूर्व कोई न कोई निश्चित लक्ष्य अवश्य होना चाहिए जिसे सामने रखकर वह कार्य का संचालन कर सके।
  • नियमों का समूह (A Set of Rules)- योजना को सफल बनाने के लिए कुछ नियमों का समूह अर्थात् नियमावली का निर्माण किया जाता है।
  • मितव्ययिता (Economy)- वैज्ञानिक प्रबन्ध का मूल आधार मितव्ययिता है। अतः मितव्ययिता प्राप्त करने के लिए उत्पादन के सभी अनावश्यक तत्त्वों को समाप्त किया जाता है तथा न्यूनतम व्यय पर अधिकतम उत्पादन किया जाता है।
  • वैज्ञानिक विश्लेषण एवं प्रयोग (Scientific Analysis and Experiment)- प्रबन्धक अपनी सम्पूर्ण योजना के प्रत्येक अंग का वैज्ञानिक विश्लेषण करता है। फिर उससे सम्बन्धित आवश्यक प्रयोग भी करता है। ऐसा करने से प्रबन्धक को यह ज्ञात हो जाता है कि उसकी योजना कहाँ तक उपयोगी सिद्ध होगी।
  • कार्यक्षमता में वृद्धि (Increase in Efficiency)- वैज्ञानिक प्रबन्ध क्रिया एवं प्रक्रिया में प्रत्येक कर्मचारी व श्रमिक की कार्य-क्षमता में वृद्धि करने का प्रयास किया जाता है।
  • नियमों के पालन में दृढ़ता (Strict Observance of Rules)- वैज्ञानिक प्रबन्ध में जो भी नियम बनाए जाते हैं उनका दृढ़ता से पालन करना होता है। नियमों में अनावश्यक परिवर्तन कदापि नहीं किए जाते।
  • उत्तरदायित्व की सीमा (Extent of Responsibility)- प्रत्येक कर्मचारी के उत्तरदायित्व निश्चित व सीमित होते हैं। इसलिए उत्पादन क्रियाओं और प्रक्रियाओं के आधार पर किया जाता है।
  • सामयिक प्रयोग (Timely Study)- उद्योगों में समय परिवर्तन के साथ-साथ अनेक समस्याएँ आती हैं जिनका हल प्रयोगों द्वारा निकाला जाता है। इस प्रकार वैज्ञानिक प्रबन्ध में सामयिक प्रयोग का विशेष महत्त्व है।
  • सहयोग (Co-operation)- कुशल प्रबन्धक के लिए यह आवश्यक है कि कर्मचारियों में मेल-मिलाप हो, प्रबन्धकों तथा कर्मचारियों में सहयोग हो। वैज्ञानिक प्रबन्ध में सहयोग की भावना का मिलना आवश्यक है।

Bihar Board 12th Business Studies Objective Important Questions Part 1 in Hindi

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Bihar Board 12th Business Studies Objective Important Questions Part 1 in Hindi

प्रश्न 1.
नियोजन सभी प्रबन्धकीय क्रियाओं का है
(a) प्रारम्भ
(b) अन्त
(c) प्रारम्भ तथा अन्त दोनों
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(a) प्रारम्भ

प्रश्न 2.
हेनरी फेयोल कौन थे?
(a) वैज्ञानिक
(b) खनन अभियन्ता
(c) लेखापाल
(d) उत्पादन अभियन्ता
उत्तर:
(b) खनन अभियन्ता

प्रश्न 3.
नियुक्तिकरण है
(a) संगठन का भाग
(b) प्रबन्ध का कार्य
(c) कर्मचारी (कर्मिक) प्रबन्ध का भाग
(d) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(b) प्रबन्ध का कार्य

प्रश्न 4.
प्रबन्ध के सिद्धान्तों की रचना किस प्रकार से की जाती है ?
(a) प्रयोगशाला में
(b) प्रबन्धकों के अनुभव द्वारा
(c) ग्राहकों के अनुभव द्वारा
(d) सामजिक वैज्ञानिकों के प्रसारण द्वारा
उत्तर:
(b) प्रबन्धकों के अनुभव द्वारा

प्रश्न 5.
निम्न में प्रबन्ध का उद्देश्य नहीं है
(a) लाभ अर्जन
(b) संगठन का विकास
(c) रोजगार प्रदान करना
(d) नीति निर्धारण
उत्तर:
(c) रोजगार प्रदान करना

प्रश्न 6.
नियंत्रण प्रबन्ध का पहलू है
(a) सैद्धान्तिक
(b) व्यावहारिक
(c) मानसिक
(d) भौतिक
उत्तर:
(c) मानसिक

प्रश्न 7.
वाणिज्यिक विपत्र लिखा जाता है
(a) क्रेता द्वारा
(b) विक्रेता द्वारा
(c) बैंक द्वारा
(d) सरकार द्वारा
उत्तर:
(b) विक्रेता द्वारा

प्रश्न 8.
विपणन अवधारणा है
(a) उत्पादोन्मुखी
(b) विक्रयोन्मुखी
(c) ग्राहकोन्मुखी
(d) ये तीनों
उत्तर:
(d) ये तीनों

प्रश्न 9.
निम्न में से कौन-सा कथन ‘कार्य के विभाजन’ सिद्धांत का सबसे अच्छे तरह से बयान करता है ?
(a) कार्य को छोटे नियत काम में बाँटना चाहिए
(b) श्रम का विभाजन करना चाहिए
(c) संसाधनों को फुटकर काम में बाँटना चाहिए
(d) यह विशिष्टीकरण का मार्ग दिखाता है
उत्तर:
(d) यह विशिष्टीकरण का मार्ग दिखाता है

प्रश्न 10.
प्रबंध का सार है।
(a) नियोजन
(b) समन्वय
(c) संगठन
(d) स्टाफिंग
उत्तर:
(b) समन्वय

प्रश्न 11.
वैज्ञानिक प्रबंध में उत्पादन होता है
(a) अधिकतम
(b) न्यूनतम
(c) सामान्य
(d) कोई प्रभाव नहीं
उत्तर:
(a) अधिकतम

प्रश्न 12.
उद्यमिता ………. उत्पन्न करने का एक प्रयास है।
(a) जोखिम
(b) लाभ
(c) नौकरी
(d) व्यवसाय
उत्तर:
(d) व्यवसाय

प्रश्न 13.
भारत में उद्यमिता का भविष्य है
(a) अंधकार में
(b) उज्जवल में
(c) कठिनाई में
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(b) उज्जवल में

प्रश्न 14.
पर्यवेक्षण है
(a) आवश्यक
(b) अनावश्यक
(c) समय की बर्बादी
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(a) आवश्यक

प्रश्न 15.
नयी आर्थिक नीति के प्रमुख अंग हैं।
(a) उदारीकरण
(b) वैश्वीकरण
(c) निजीकरण
(d) सभी
उत्तर:
(d) सभी

प्रश्न 16.
प्रशासनिक प्रबंध के प्रस्तुतकर्ता थे
(a) फेयोल
(b) टेलर
(c) हैरी
(d) कोई नहीं
उत्तर:
(a) फेयोल

प्रश्न 17.
स्कंध विपणियों के सेबी की सेवाएँ हैं
(a) ऐच्छिक
(b) आवश्यक
(c) अनावश्यक
(d) अनिवार्य
उत्तर:
(d) अनिवार्य

प्रश्न 18.
उद्यमिता विकास कार्यक्रम प्रदान करता है
(a) बेरोजगारी
(b) रोजगार
(c) बेईमानी
(d) भ्रष्टाचार
उत्तर:
(b) रोजगार

प्रश्न 19.
अफवाह फैलाने वाले संगठन होते हैं
(a) औपचारिक
(b) अनौपचारिक
(c) केन्द्रीकृत
(d) विक्रेन्द्रित
उत्तर:
(b) अनौपचारिक

प्रश्न 20.
“प्रबंध एक पेशा है।” यह कथन है
(a) जार्ज आर० हैडी का
(b) अमरीकी प्रबंध संस्थान का
(c) हेनरी फेयोल का
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(b) अमरीकी प्रबंध संस्थान का

प्रश्न 21.
अधिकार का हस्तांतरण नहीं किया जा सकता है।
(a) दैनिक कार्य का
(b) गोपनीय कार्य का
(c) साधारण कार्य का
(d) सरल कार्य का
उत्तर:
(b) गोपनीय कार्य का

प्रश्न 22.
निर्देशन के प्रमुख तत्त्व हैं
(a) 2
(b) 3
(c) 4
(d) 6
उत्तर:
(c) 4

प्रश्न 23.
नई आर्थिक नीति की घोषणा हुई थी
(a) 1990
(b) 1991
(c) 1992
(d) 1993
उत्तर:
(b) 1991

प्रश्न 24.
एक अच्छे नियोजन की विशेषता है
(a) खर्चीली
(b) समय अधिक लगना
(c) लचीली
(d) अपरिवर्तनीय
उत्तर:
(c) लचीली

प्रश्न 25.
भारार्पण किया जाता है
(a) उत्तरदायित्व का
(b) जबावदेही का
(c) अधिकार का
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(c) अधिकार का

प्रश्न 26.
संगठन के जीवन में भर्ती होती है।
(a) एक बार
(b) निरंतर
(c) दो बार
(d) कभी-कभी
उत्तर:
(b) निरंतर

प्रश्न 27.
बड़े आकार के उपक्रम में भारार्पण होता है
(a) अनिवार्य
(b) ऐच्छिक
(c) आवश्यक
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(a) अनिवार्य

प्रश्न 28.
निर्देशन के तत्व है
(a) पर्यवेक्षण
(b) अभिप्रेरण
(c) नेतृत्व
(d) ये सभी
उत्तर:
(d) ये सभी

प्रश्न 29.
संदेशवाहन में न्यूनतम पक्षकार होते हैं
(a) 16
(b) 4
(c) 2
(d) 8
उत्तर:
(c) 2

प्रश्न 30.
उद्यमिता विकास कार्यक्रम प्रदान करता है
(a) स्वरोजगार
(b) उद्यमी कौशल में वृद्धि
(c) शिक्षण एवं प्रशिक्षण
(d) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(d) उपर्युक्त सभी

प्रश्न 31.
विक्रय संवर्द्धन के उद्देश्य हैं
(a) नई वस्तु से अवगत कराना मात्र
(b) नए ग्राहक आकर्षित करने हेतु मात्र
(c) प्रतिस्पर्धी का सामना करने हेतु मात्र
(d) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(d) उपर्युक्त सभी

प्रश्न 32.
राष्ट्रीय आयोग के सदस्य की अधिकतम आयु हो सकती है
(a) 60 वर्ष
(b) 65 वर्ष
(c) 70 वर्ष
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(b) 65 वर्ष

प्रश्न 33.
विज्ञापन का सबसे महँगा साधन है
(a) विज्ञापन
(b) व्यक्तिगत विक्रय
(c) विक्रय संवर्द्धन
(d) जन संपर्क
उत्तर:
(b) व्यक्तिगत विक्रय

प्रश्न 34.
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत उपभोक्ता न्यायालय से आशय है
(a) जिला फोरम
(b) राज्य आयोग
(c) राष्ट्रीय आयोग
(d) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(d) उपर्युक्त सभी

प्रश्न 35.
उद्यमी
(a) जन्म लेता है
(b) बनाया जाता है
(c) जन्म लेता है और बनाया जाता है
(d) ये सभी
उत्तर:
(c) जन्म लेता है और बनाया जाता है

प्रश्न 36.
उद्यमिता नेतृत्व प्रदान नहीं करती है
(a) साझेदारी फर्म
(b) नए निगम विभाजन
(c) नवीन अनुदान उद्यम
(d) कोई नहीं
उत्तर:
(a) साझेदारी फर्म

प्रश्न 37.
विज्ञापन के माध्यम हैं
(a) नमूने
(b) प्रीमियम
(c) कलेण्डर
(d) प्रदर्शन
उत्तर:
(c) कलेण्डर

प्रश्न 38.
एक उद्यमी कहा जाता है
(a) आर्थिक विकास का प्रवर्तक
(b) आर्थिक विकास का प्रेरक
(c) उपर्युक्त दोनों
(d) कोई नहीं
उत्तर:
(c) उपर्युक्त दोनों

प्रश्न 39.
भारत में प्रबंध
(a) आवश्यक है
(b) अनावश्यक है
(c) विलासिता है
(d) कोई नहीं
उत्तर:
(a) आवश्यक है

Bihar Board 12th Business Studies Important Questions Short Answer Type Part 2 in Hindi

BSEB Bihar Board 12th Business Studies Important Questions Short Answer Type Part 2 are the best resource for students which helps in revision.

Bihar Board 12th Business Studies Important Questions Short Answer Type Part 2 in Hindi

प्रश्न 1.
उद्यमिता के कार्यों की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
उद्यमिता के निम्नलिखित कार्य हैं-

  • निवेश तथा उत्पादन अवसरों को खोजना।
  • एक नये उत्पादन प्रक्रिया को स्वीकार कर एक नये उद्यम का गठन करना।
  • पूँजी जुटाना।
  • श्रम उपलब्ध करना।
  • कच्चे माल की आपूर्ति की व्यवस्था करना।
  • स्थान का चयन करना।
  • नयी तकनीकों, सामग्री के स्रोतों की जानकारी प्राप्त करना।
  • उद्यम के दैनिक कार्य हेतु उच्च प्रबंधकों की नियुक्ति करना।
  • नवसृजन का कार्य करना।
  • जोखिम उठाना।

प्रश्न 2.
उपभोक्ता संरक्षण का महत्त्व क्या है ?
उत्तर:
उपभोक्ता संरक्षण के महत्त्व की चर्चा निम्नवत् की जा सकती है-

  • अज्ञानी उपभोक्ताओं के हितों की सुरक्षा करना।
  • सामाजिक उत्तरदायित्व के प्रति चेतना जगाना।
  • व्यावसायियों के शोषण से उपभोक्ताओं की रक्षा करना।
  • उपभोक्ताओं को अपने अधिकारों के प्रति जागरुक करना।
  • आवश्यक सूचनाएँ उपलब्ध कराना।
  • परिवेदनाओं तथा शिकायतों का शीघ्र निपटारा करना।
  • उपभोक्ता की प्रभुसत्ता तथा व्यवसाय की जवाबदेही स्थापित करना।
  • प्रदूषण से सुरक्षा प्रदान करना।
  • मानव का कल्याण करना।

प्रश्न 3.
कार्यशील पूँजी की प्रकृति की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
कार्यशील पूँजी उस पूँजी को कहा जाता है जिसकी आवश्यकता प्रतिदिन की व्यावसायिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए होती है भुविन ने कार्यशील पूँजी की परिभाषा इन शब्दों में दी है, “कार्यशील पूँजी वह राशि है जो उपक्रम को संचालित करने के लिए आवश्यक है।” इस प्रकार चालू दायित्वों के ऊपर चालू सम्पत्तियों के आधिक्य को कार्यशील पूँजी कहा जाता है। इसकी आवश्यकता कच्चे माल को क्रय करने, वेतन तथा मजदूरी, किराया, विज्ञापन आदि खर्चों के लिए होती है। यह व्यवसाय के सफल संचालन के लिए आवश्यक है। अपर्याप्त कार्यशील पूँजी होने पर संस्था के संचालन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।

प्रश्न 4.
नियंत्रण की प्रक्रिया की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
नियंत्रण की प्रक्रिया में निम्नलिखित कदम शामिल हैं-

  1. प्रमाप विचलन को निर्धारित करना ताकि वास्तविक निष्पादन की जाँच की जा सके।
  2. वास्तविक निष्पादन की माप विश्वसनीय तरीके से करना।
  3. वास्तविक निष्पादन की तुलना प्रमाप निष्पादन से करना ताकि विचलन का पता लगाया जा सके।
  4. विचलन का विश्लेषण करना और यह निर्धारित करना कि क्या यह स्वीकार्य है।
  5. अस्वीकार्य निष्पादन को तुरंत सही करने का निर्णय लेना।

प्रश्न 5.
विज्ञापन सामाजिक बर्बादी है। कैसे ?
उत्तर:
जहाँ एक ओर विज्ञापन को आधुनिक व्यवसाय की जान माना जाता है। वहीं कुछ विद्वानों का मत है कि विज्ञापन पर किया गया व्यय अपव्यय होता है। (Money spent on Advertisement is a waste) जो विद्वान इस मत के समर्थक हैं। वास्तव में वे विज्ञापन के आलोचक हैं और वे इसके दोषों की ओर इशारा करते हैं। विज्ञापन के आलोचकों के अनुसार मुख्य दोष निम्नलिखित हैं-

(i) लागतों में वृद्धि (Add to Cost) – विज्ञापन करने के संस्था को बहुत अधिक धन खर्च करना पड़ता है। इससे उत्पादन लागत में वृद्धि होता है। इस खर्च को पूरा करने के लिए वस्तु की कीमत में वृद्धि करनी पड़ती है। कोई भी उत्पादक विज्ञापन लागत अपनी जेब से नहीं भरेगा। इस प्रकार विज्ञापन में वस्तुओं की कीमतों में अनावश्यक वृद्धि होती है। इसलिए कहा जाता है कि विज्ञापन लागतें ऊँची कीमतों के रूप में उपभोक्ताओं को हस्तांतरित होता है।

(ii) सामाजिक मूल्यों की अवहेलना (Undermines Social Value) – विज्ञापन लोगों को दिन में स्वपन दिखाने का काम करता है। आज यह लोगों को बनावटीपन की ओर ले जा रहा है। इसके माध्यम से लोगों के नित्य नये नये उत्पादों की जानकारी दी जाती है। इसमें नाम मात्र के उत्पादक उनके काम के होते हैं। नये-नये उत्पादकों की चकाचौंध उन्हें परेशान करने लगते हैं। इसे सामाजिक बुराई मानते हुए कहा जा सकता है कि विज्ञापन से सामाजिक मूल्यों की अवहेलना होती है।

(iii) क्रेताओं को भ्रमित करना (Confuse of Buyers) – कई बार विज्ञापन में वास्तविक को तोड़ मरोड़ कर दिखाया जाता है। उपभोक्ता विज्ञापन पर विश्वास करके वस्तु को खरीद लेते हैं। लेकिन प्रयोग करने पर उपभोक्ता ठगा-सा रह जाता है। बाद में उन्हें पता चलता है कि विज्ञापन में जानकारी कुछ और दी गई थी जबकि माल कुछ और निकला। इस तरह के प्रस्तुतीकरण से लोगों को विज्ञापन से विश्वास समाप्त हो जाता है। विज्ञापन भ्रान्ति उत्पन्न करता है न कि सहायता।

प्रश्न 6.
पैकेजिंग के क्या कार्य हैं ?
उत्तर:
पैकेजिंग के निम्नलिखित कार्य हैं-
(i) सुरक्षा (Protection) – पैकेजिंक का मुख्य कार्य उत्पाद को धूल, कीड़ों, मकोड़ों नमी, टूट फूट से सुरक्षा प्रदान करना है। उदाहरण, बिस्कुट, जैम, चिप्स, आदि को वातावरणीय स्पर्श से बचा कर रखने की आवश्यकता है।

(ii) पहचान (Identification) – पैकेजिंग उत्पाद पहचान का काम करती है। उत्पाद को विशेष साइज रंग, आकार, के पैकिटों में इस ढंग से पैक किया जाता है कि वे प्रतियोगियों के उत्पाद से बिल्कुल अलग दिखे। जैसे Kodak Roll का पीले रंग व काले रंग के पैक स्वयं बताता है कि वह किसी कम्पनी का उत्पाद है।

(iii) सविधा(Convenience) – पैकजिंग उत्पाद को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाने, स्टॉक करने व उपभोग करने में सुविधा प्रदान करने का काम करता है। जैसे कोका कोला नई PCT बोतले परिवहन स्टॉक सुविधाजनक बताती है।

(iv) संवर्द्धन (Promotion) – पैकेजिंग के विक्रय संवर्द्धन का काम सरल हो जाता है। जब तक उपभोक्ता के घर में पैकिंग का समान पड़ा रहता है। वह उत्पाद की याद दिलाता रहता है। इस प्रकार पैकेजिंग का एक मूक विक्रयलता की भूमिका अदा करता है। परिणामतः विक्रय वृद्धि होती है।

प्रश्न 7.
SEBI के तीन कार्यों को लिखें।
उत्तर:
SEBI के कार्य को तीन भागों में बाँटते हैं-
I. संरचनात्मक कार्य (Protective function) – सेबी के सुरक्षात्मक कार्य निम्न प्रकार हैं-

  • प्रतिभूति बाजार से संबंधित आचार संहिता लागू करना।
  • निवेशकों के प्रतिभूतियों में व्यवहार संबंधी शिक्षा प्रदान करना।
  • प्रतिभूतियों में अतिरिक्त ट्रेडिंग की रोकना।

II. संचालन कार्य (Regulatory Function)-

  • शेयर बाजारों का अंकेक्षण का काम करना।
  • वेंचर कैपिटल फण्ड का रजिस्ट्रेशन एवं संचालन करना।
  • क्रेडिट रेटिंग एजेंसी का रजिस्ट्रेशन एवं संचालन करना।

III. विकास संबंधी कार्य (Developmental function)-

  • शोध करना।
  • स्वतः संचालित संगठनों को प्रोत्साहित करना।

प्रश्न 8.
औपचारिक एवं अनौपचारिक सम्प्रेषण में अंतर कीजिए।
उत्तर:
औपचारिक एवं अनौपचारिक सम्प्रेषण में निम्नलिखित अंतर है-
Bihar Board 12th Business Studies Important Questions Short Answer Type Part 2, 1

प्रश्न 9.
समता का सिद्धान्त का अर्थ बताइए।
उत्तर:
हेनरी फेयोल द्वारा विकसित समता का सिद्धान्त प्रबंधकों को अपने अधीनस्थों के साथ व्यवहार करते समय न्याय एवं उदारता का ज्ञान प्रदान करता है जिससे कि उनमें सद्भावना तथा सहयोग की भावना का विकास होता है।

प्रश्न 10.
अभिप्रेरण के तीन उद्देश्य लिखिए।
उत्तर:
अभिप्रेरण के उद्देश्य निम्नलिखित हैं-

  • लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु
  • मानवीय साधनों का अधिकतम उपयोग हेतु
  • कुशलता में वृद्धि हेतु।

प्रश्न 11.
उपभोक्ताओं के कोई तीन उत्तरदायित्व बताइए।
उत्तर:
उपभोक्ता के निम्नलिखित उत्तरदायित्व हैं-

  • रसीद व गारंटी/वारंटी कोई लेना न भूले।
  • झूठे एवं भ्रामक विज्ञापन से बचे।
  • अधिकारों के प्रति सजगता।

प्रश्न 12.
संगठन क्या है ?
उत्तर:
संगठन से तात्पर्य योजना द्वारा निर्धारित लक्ष्यों की पूर्ति करने वाले तंत्र से है। संगठन विभिन्न व्यक्तियों, समूहों तथा विभागों में प्रभावपूर्ण समाकूलन तथा समन्वय स्थापित करने की कला है।

जी० ई० मिलवर्ड के अनुसार कार्य और कर्मचारी समुदाय का मधुर समन्वय संगठन कहलाता है।

हैने के अनुसार, “किसी सामान्य उद्देश्य अथवा उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए विशिष्ट अंगों का मैत्रीपूर्ण संयोजन ही संगठन कहलाता है।”

प्रश्न 13.
विपणन एतं विक्रय में क्या अंतर है ?
उत्तर:
विपणन और विक्रय में निम्नलिखित अंतर है-
Bihar Board 12th Business Studies Important Questions Short Answer Type Part 2, 2

प्रश्न 14.
उपभोक्ता के रूप में आपका क्या दायित्व हैं ?
उत्तर:
उपभोक्ता के रूप में निम्नलिखित दायित्व हैं-

  • क्रय में जल्दबाजी न करें – किसी भी उत्पाद को खरीदने से पूर्व उसका प्रतियोगी मूल्य, गुणवत्ता, मात्रा, उपलब्धता आदि के बारे में पूरी जानकारी कर लेनी चाहिए।
  • रसीद व गारंटी कार्ड लेना न भूलें – उपभोक्ता को उत्पादन खरीद करते समय भुगतान की रसीद लेना नहीं भूलना चाहिए।
  • गणवत्ता से समझौता न करें – उपभोक्ता को उत्पाद खरीदते समय उसकी गुणवत्ता से कभी भी समझौता नहीं करना चाहिए।
  • झूठे एवं भ्रामक विज्ञापन से बचें।
  • परिवेदना – शिकायत होने पर संबंधित अधिकारी से तुरन्त सम्पर्क करें।
  • अधिकारों के प्रति सजगता।

प्रश्न 15.
वित्तीय बाजार के कार्य क्या हैं ?
उत्तर:
वित्तीय बाजार बचतकर्ता एवं विनियोग कर्ता के मध्य महत्वपूर्ण माध्यम का कार्य करता है। यह मुख्य रूप से अपनी सेवा प्रदान करता है
(a) प्राथमिक क्षेत्र से निधि का प्रयोग।
(b) व्यापार या विनियोग क्षेत्र में संसाधनों का वितरण। यह विनियोग कर्ता को लाभदायक माध्यम में अपने फण्ड का प्रयोग करने का अवसर प्रदान करता है ताकि अपने विनियोग पर अधिकतम आय प्राप्त हो सके।

वित्तीय बाजार द्वारा सीमित साधनों के वितरण की प्रक्रिया के मुख्य चार कार्य हैं-

  • उत्पादनीय कार्य के लिए बचत का प्रयोग एवं वितरण तथा निधि का बचतकर्ता से विनियोग कर्ता को हस्तांतरण।
  • व्यावसायिक इकाई के द्वारा निधि के माँग एवं पूर्ति के क्रियाशक्ति द्वारा वित्तीय सम्पत्ति का मूल्य निधारण।
  • निधि की तरलता।
  • क्रेता एवं विक्रेता को अपनी आवश्यकता की संतुष्टि के लिए सामान्य जगत उपलब्ध कराना। यह स्टॉक के आपूर्तिकर्ता एवं प्रयोगकर्ता को सूचनाएँ प्रदान कर लेन देन के लागत को कम करता है।

इस तरह वित्तीय बाजार, संसाधनों का सही प्रयोग, स्टॉक का मूल्य निर्धारण विनियोग की तरलता एवं क्रेता एवं विक्रेता के निधि का प्रयोग कर अर्थव्यवस्था को बहुमूल्य सेवा प्रदान करना है।

प्रश्न 16.
विकेन्द्रीकरण का अर्थ बताइए। अथवा, विकेन्द्रीकरण से क्या समझते हैं ?
उत्तर:
विकेन्द्रीकरण भारार्पण का ही एक विकसित रूप है जब किसी उच्च अधिकारी द्वारा अधीनस्थ कर्मचारी की अपेक्षाकृत अधिक मात्रा में अधिकारों का भारार्पण किया जाता है वह विकेन्द्रीकरण कहलाता है।

इस प्रकार विकेन्द्रीकरण एक प्रकार से प्रेरणा से प्रेरण तथा उत्तरदायित्वों का विवरण है जिसके अंतर्गत निम्नतर स्तरों को लगभग समस्त अधिकार व्यवस्थित रूप से सौंप दिये जाते हैं।

प्रश्न 17.
उद्यमी से आपका क्या अभिप्राय है ?
उत्तर:
आर्थिक क्षेत्र में परम्परागत रूप में उद्यमिता का अर्थ व्यवसाय एवं उद्योग में निहित विभिन्न अनिश्चितताओं एवं जोखिम उठाने की योग्यता एवं प्रवृत्ति से होता है। जो व्यक्ति जोखिम सहन करते हैं। उनको साहसी अथवा उद्यमी कहा जाता है।
पीटर किलबर्ड के अनुसार, “उद्यमी व्यापक क्रियाओं का सम्मिश्रण है उसमें विभिन्न क्रियाओं के साथ-साथ बाजार अवसरों का ज्ञान प्राप्त करना, उत्पादन के साधनों का संयोजन एवं प्रबंध करना तथा उत्पादन तकनीक एवं वस्तुओं को अपनाना सम्मिलित है।”

प्रश्न 18.
नेशनल स्टॉक एक्सचेंज के उद्देश्यों का वर्णन करें।
उत्तर:
नेशनल स्टॉक एक्सचेंज के मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित हैं-

  • सभी प्रकार के स्कंध के लिए राष्ट्रीय स्तर पर बाजार की सुविधा प्रदान करना।
  • उचित संवाद के द्वारा सम्पूर्ण भारत में विनियोक्ता को विनियोग की सुविधा प्रदान करना।
  • इलेक्ट्रॉनिक व्यापारिक पद्धति द्वारा स्कंध के विपणन में पारदर्शिता की सुविधा प्रदान करना।
  • अल्पकालीन निविदा की सुविधा प्रदान करना।
  • अन्तर्राष्ट्रीय प्रभाव को पूरा करना।

नेशनल स्टॉक विपणन राष्ट्रीय स्तर पर स्क्रीन आधारित स्वचालित व्यापारिक पद्धति प्रदान करती है। और भारतीय पूँजी बाजार को नया जीवन प्रदान किया।

प्रश्न 19.
प्रशिक्षण तथा विकास में कोई तीन अंतर बताइए।
उत्तर:
प्रशिक्षण तथा विकास में मुख्य अंतर निम्नलिखित हैं-
प्रशिक्षण:

  1. प्रशिक्षण का आशय ऐसी प्रक्रियाएँ हैं जिसके द्वारा किसी कार्य विशेष को करने के लिए कर्मचारियों के ज्ञान, योग्यता, चातुर्य एवं कुशलता में वृद्धि की जाती है।
  2. प्रशिक्षण का उद्देश्य कर्मचारियों को विशिष्ट कार्य करने के लिए योग्य बनाना है।
  3. प्रशिक्षण का संबंध मुख्यतः वर्तमान से होता है।

विकास:

  1. विकास एक नियोजित एवं संगठित प्रक्रिया है जिसके द्वारा कर्मचारियों को प्रबंध के विभिन्न स्तर पर कार्य करने के लिए विकसित किया जाता है।
  2. विकास का उद्देश्य कर्मचारियों की क्षमता का पूर्ण उपयोग करना है।
  3. विकास का संबंध वर्तमान एवं भविष्य दोनों से होता है।

प्रश्न 20.
विज्ञापन के मुख्य उद्देश्यों का वर्णन करें।
उत्तर:
सामान्य व्यक्ति की दृष्टि से विज्ञापन का मूलभूत उद्देश्य विक्रय वृद्धि करना है किंतु व्यावसायिक दृष्टिकोण से विज्ञापन का उद्देश्य यहीं तक सीमित नहीं है।

एस० आर० कावर के अनुसार, “विज्ञापन का उद्देश्य उत्पादक को लाभ पहुँचना, उपभोक्ता को शिक्षित करना, विक्रेता की सहायता करना, प्रतिस्पर्धा को समाप्त कर व्यापारियों को अपनी ओर आकर्षित करना और सबसे अधिक तो उत्पादक और उपभोक्ता के बीच संबंध स्थापित करना है।

विज्ञापन के प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित हैं-

  • नव निर्मित वस्तुओं अथवा सेवाओं की जानकारी देना
  • विक्रय वृद्धि करना
  • नये-नये बाजार का सृजन एवं विकास करना
  • उत्पाद माँग का पोषण करना
  • उपभोक्ता को शिक्षित करना
  • विक्रेता को विक्रय में सहायता करना
  • विज्ञापन की ख्याति में वृद्धि करना
  • संशय एवं भ्रामक विचारों को दूर करना
  • सावधान करना।

प्रश्न 21.
प्रबंध की हमें आवश्यकता क्यों है ?
उत्तर:
प्रबंध की आवश्यकता लगभग सभी संगठन में है। इस आवश्यकता के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं-

  1. संगठन के उद्देश्य को प्राप्त करने के लिये
  2. विभिन्न क्रियाकलापों और कार्यों का समन्वय करने के लिये
  3. दिये गये कार्य के निष्पादन के लिये निर्धारित प्रक्रिया का प्रयोग करने के लिये।
  4. समूह क्रियाकलाप में व्यक्ति के सर्वोत्तम सहयोग प्राप्त करने के लिये।
  5. लगभग सभी प्रकार के व्यवसाय-छोटा-बड़ा, लाभ-अलाभ, सेवा या उत्पादक इकाई के संचालन में सहयोग के लिये।
  6. संगठन के प्रत्येक अन्तर-संबंधी या अन्तर-आश्रित क्रियाकलाप को निर्देश देने के लिये। प्रबंध इसलिए लाभदायकता के लिये एक आवश्यक प्रक्रिया है।

प्रश्न 22.
प्रबंध एक सामाजिक क्रिया है। कैसे ?
उत्तर:
प्रबंध का मुख्य रूप से संबंध व्यवसाय के मानवीय पक्ष से होता है। संस्था के कर्मचारी समाज के ही अंग होते हैं। अत: उनका नेतृत्व व निर्देशन सामाजिक क्रिया का ही एक अंग है। वर्तमान में व्यवसाय ने भी अपने सामाजिक उत्तरदायित्व को स्वीकार किया है। वास् में प्रबंध एक सामाजिक क्रिया है क्योंकि मुख्य रूप से उसका संबंध व्यवसाय के मानवीय तर से है।

प्रश्न 23.
विपणन के महत्वपूर्ण लक्षण क्या हैं ?
उत्तर:
विपणन व्यवसाय के कार्य निष्पादन की एक ऐसी क्रिया है जिसमें वस्तु एवं सेवा का उत्पादक से उपभोक्ता के मध्य प्रत्यक्ष प्रवाह होता है। विपणन के महत्वपूर्ण लक्षण हैं-

  1. व्यक्ति और संस्था के आवश्यकता की संतुष्टि-विपणन में भावी उपभोक्ता के आवश्यकता की पहचान की जाती है और उनके अनुसार वस्तु एवं सेवा का उत्पादन किया जाता है ताकि उनके आवश्यकता को पूरा किया जा सके।
  2. भावी क्रेता के फैशन, आवश्यकता एवं मनोदशा को विश्लेषण के बाद बाजार के माँग के अनुरूप वस्तु एवं सेवा का निर्माण करना।।
  3. प्रतिस्पर्धी बाजार में विक्रेता से क्रेता के हाथों वस्तु एवं सेवा का आदान-प्रदान करना।
  4. एकताबद्ध वितरक/मध्यस्थ के माध्यम से उत्पाद का पैसे या बहुमूल्य तत्वों के बदले हस्तांतरण करना।

इस तरह विपणन वस्तु एवं सेवा को उपभोक्ता को उपलब्ध कराने की एक प्रक्रिया है जो उपभोक्ता की इच्छा और आवश्यकता को संतुष्ट करने में सफल होता है।

प्रश्न 24.
वित्तीय प्रबंध क्या है ?
उत्तर:
वित्तीय प्रबंध का संबंध व्यवसाय की वित्त व्यवस्थाओं से है जो उसके कुशल संचालन एवं उद्देश्यों को सफलतापूर्वक प्राप्त करने के लिये की जाती है। वित्तीय प्रबंध का आशय किसी व्यावसायिक उपक्रम की वित्त संबंधी कुशल व्यापार से है। वित्तीय प्रबंध के द्वारा व्यवसाय के आवश्यक संसाधनों की व्यवस्था करना और सामान्य व्ययों को किया जाता है।

वित्तीय प्रबंध के अर्थ को स्पष्ट करते हुए विभिन्न विद्वानों ने अपनी-अपनी परिभाषाएँ इस प्रकार दी हैं-
बियरमैन एवं स्मिथ के अनुसार, “वित्तीय प्रबंध पूँजी के स्रोतों का निर्धारण करने तथा उसके अनुकूलतम उपयोग का मार्ग ढूँढने वाली प्रविधि है।”

जे० एस० मैसी के अनुसार, “वित्तीय प्रबंध एक व्यवसाय की वह संरचनात्मक क्रिया है जो कुशल संचालन के लिए आवश्यक वित्त को प्राप्त करने तथा उसका प्रभावशाली प्रयोग करने के लिए उत्तरदायी होता है।”

हावर्ड एवं उपटन के अनुसार, “वित्तीय प्रबंध से आशय नियोजन एवं नियंत्रण कार्यों को वित्त कार्य पर लागू करना है।”

प्रश्न 25.
वित्तीय नियोजन के दो मुख्य उद्देश्य क्या हैं ?
उत्तर:
वित्तीय नियोजन के दो मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित हैं-
1. यह निश्चित करना कि सही समय पर पर्याप्त धन उपलब्ध है-इसका उद्देश्य यह है कि संस्था के सफल संचालन के लिये पर्याप्त फण्ड किस प्रकार उपलब्ध किया जा सके। इसके अन्तर्गत (a) वित्तीय आवश्यकताओं का अनुमान (b) संभावित वित्तीय स्रोतों का अनुमान, (c) फण्ड की उपलब्धता का समय निर्धारित करना।

2. इस बात से सचेत रहना कि जो भी संसाधन प्राप्त किये गये हैं वे आवश्यकताओं के अनुकूल हैं। इससे अत्यधिक धन या अल्प धन के कारण इसकी लागत या खतरे को कम करता है।

इसलिये, वित्तीय नियोजन व्यवसाय में पर्याप्त फण्ड की उपलब्धता के द्वारा सफल संचालन का एक प्रयास है।

प्रश्न 26.
उद्यमिता को सृजनशील क्रियाकलाप क्यों समझा जाता है?
उत्तर:
उद्यमिता को एक सृजनशील क्रियाकलाप कहा जाता है। क्योंकि उद्यमिता अतिरिक्त धन सृजित करने की गतिशील प्रक्रिया है। यह धन व्यक्तियों द्वारा सृजित किया जाता है। जो पूँजी समय तथा वृत्ति की वचनबद्धता द्वारा किसी उत्पादन अथवा सेवा में मूल्य प्रदान करते हैं। उद्यमिता विशेष रूप से एक व्यापार का एक नया विचार वाला कार्य है। इस क्रिया में निम्न गतिविधियाँ आती हैं-

  • किसी नए उत्पादन को शुरू करना।
  • किसी उत्पादन की नई विधि का उपयोग करना।
  • किसी नए बाजार क्षेत्र में प्रविष्ट होना।
  • सामग्री को किसी नए स्रोत से प्राप्त करना।
  • एक नए ढंग का संगठन बनाना। अत: कहा जा सकता है कि उद्यमिता एक सृजनशील क्रियाकलाप है।

प्रश्न 27.
प्रबंध के सिद्धान्त के आवश्यक तत्व क्या हैं ?
उत्तर:
प्रबंध के सिद्धान्त के आवश्यक तत्व निम्नलिखित हैं-

  1. आचरण एवं निर्णय लेने के लिये निर्देशन
  2. परिस्थिति के माँग के अनुकूल लचीलापन
  3. बदलते मानवीय दृष्टिकोण एवं तकनीक का प्रतिफल।
  4. भू-मण्डलीय स्तर पर समस्या का समाधान।
  5. सम्पूर्ण संसार में फैले हुए कर्मचारियों एवं ग्राहकों से वार्तालाप।
  6. सही तकनीक के प्रयोग से नियोजन का क्रियान्वयन।
  7. व्यवहार में आधारभूत सत्य का प्रयोग।
  8. प्रबंध का सिद्धान्त, इसलिये संचालन की दक्षता की प्रक्रिया में मदद करता है।

प्रश्न 28.
वस्तु के विपणन में पैकिंग के क्या महत्व हैं ?
उत्तर:
पैकिंग वस्तु को आकर्षण, सुरक्षा, सुविधा और उपयोगिता प्रदान करता है। वर्तमान व्यावसायिक परिवेश में पैकिंग का महत्व निम्नलिखित लाभ के कारण अधिक हैं-

  1. जीवन स्तर में सुधार के कारण माँग की वस्तु को इस तरह से पैकिंग की जाय ताकि वस्तु पर ग्राहकों का विश्वास जमा रहे।
  2. स्वयं सेवा की खुदरा दुकान की बढ़ती लोकप्रियता ग्राहकों को निर्धारित मात्रा में अपनी इच्छानुसार वस्तु के चुनाव स्वयं खरीदने की सुविधा प्रदान करता है।
  3. विकास का नया अवसर पैकिंग को महत्वपूर्ण बना दिया है। पैकिंग के विशेष तकनीक के कारण वस्तु अधिक दिनों तक टिकाऊ रहती है। जैसे-दूध, सॉफ्ट ड्रिंक, दवाई इत्यादि।
  4. मूल्य के आधार पर पैकिंग वस्तु के लिये आवश्यक तत्व है। आधुनिक समय में सही पैकिंग के बिना किसी भी वस्तु को क्रय-विक्रय करने में काफी दिक्कत होगी।

प्रश्न 29.
पूँजी बाजार की परिभाषा दें।
उत्तर:
अर्थ एवं परिभाषा (Meaning and Definition) – पूँजी बाजार दीर्घकालीन वित्तीय ऋण प्रदान करता है। पूँजी बाजार के अन्तर्गत हम उन सभी सुविधाओं एवं संस्थाओं को सम्मिलित करते हैं जो दीर्घकालीन समय के लिए धन उधार लेने और देने का कार्य करती है अर्थात् पूँजी बाजार में दीर्घकालीन ऋणों के लेन-देनों का बोध होता है।

एल० एन० सिन्हा के अनुसार, “पूँजी बाजार के अन्तर्गत उन सभी सुविधाओं एवं संस्थागत प्रबन्धों को सम्मिलित किया जाता है जो दीर्घकालीन ऋणों से सम्बन्धित हैं।”

बैजर एवं ग्रथमैन के अनुसार, “पूँजी बाजार उन मागों की श्रृंखला की ओर संकेत करता है। जिनके द्वारा समाज की बचतें व्यापारिक संस्थाओं एवं जनता को उपलब्ध कराई जाती हैं। यह अपने अन्तर्गत केवल उस व्यवस्था को ही सम्मिलित नहीं करता जिसके द्वारा जनता प्रत्यक्ष या मध्यस्थों के द्वारा प्रतिभूतियों के ग्रहण करती है परन्तु संस्थाओं के विस्तृत जाल को भी सम्मिलित करता है जो कि अल्पकालीन एवं मध्यकालीन ऋण प्रदान करने का उत्तरदायित्व अपने ऊपर लेते हैं।”

प्रश्न 30.
जटिल या संकट बिंदु नियंत्रण क्या है ?
उत्तर:
नियंत्रण के अनेक सिद्धांत हैं जिनमें जटिल या संकट बिन्दु नियंत्रण भी एक है। नियंत्रण के इस सिद्धांत में नियंत्रण का ध्यान महत्वपूर्ण स्थानों की ओर आकर्षित करना है। यह सिद्धांत नियंत्रण का बहुत ही महत्वपूर्ण सिद्धांत है। इस सिद्धांत से नियंत्रण के कार्य को सफल बनाया जाता है। साथ ही साथ इस सिद्धांत से नियंत्रण का कार्य आसान बनाया जा सकता है।

प्रश्न 31.
विपणन से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
विपणन का अर्थ (Meaning of Marketing) – सामान्यतः व्यावसायिक प्रबन्ध का वह भाग जो ‘विक्रय’ से सम्बन्धित हो ‘विपणन’ के अन्तर्गत आता है। इस प्रकार ‘विपणन’ एवं विक्रय-प्रबन्ध (Sales Management) एक-दूसरे के पर्यायवाची कहे जा सकते हैं। ‘विपणन’ शब्द का प्रयोग दो अर्थों में किया जाता है। संकुचित दृष्टि से विपणन के अन्तर्गत उन समस्त क्रियाओं का समावेश किया जाता है जो वस्तुओं के उत्पादन केन्द्रों से उठाकर उन्हें उपभोक्ताओं तक पहुँचाने के लिए की जाती है। इस दृष्टि से विपणन के क्षेत्र में केवल क्रय, विज्ञापन, संग्रह परिवहन, श्रेणियन आदि क्रियाएँ ही आती हैं।

किन्तु व्यापक दृष्टि से विपणन की विषय सामग्री के अन्तर्गत विक्रय नीतियाँ, विक्रय प्रबन्ध व संगठन, मूल्य-निर्धारण, वस्तु का विकास व्यावसायिक जोखिमों को कम करने के साधन तथा विपणन अनुसन्धान आदि सभी क्रियाओं का समावेश किया जाता है। आधुनिक समय में विपणन का यह व्यापक अर्थ ही अधिक प्रचलित है। इस अर्थ में विपणन कार्य वस्तुओं का उत्पादन आरम्भ करने से पहले ही प्रारम्भ हो जाती है तथा विक्रय होने के बाद भी निरन्तर चलता है।

प्रश्न 32.
पैकेजिंग एवं पैकिंग में अन्तर बतायें।
उत्तर:
कुछ विद्वान पैकेजिंग व पैकिंग में कोई अन्तर नहीं मानते हैं और उनकी दृष्टि में दोनों शब्द पर्यायवाची हैं। लेकिन कुछ विद्वान पैकेजिंग को पैकिंग का ही एक भाग मानते हैं। और उनका कहना है कि जब उत्पादों को छोटे-छोटे पैकेटों, डिब्बों या बोतलों में पैक किया जाता है तो यह पैकेजिंग के अन्तर्गत आता है। लेकिन जब बहुत-से छोटे-छोटे पैकेट, डिब्बे या बोतल एकत्रित कर भेजे जाते हैं तो उनको पैकिंग के अन्तर्गत रखा जाता है। इस प्रकार पैकेजिंग पैकिंग का एक अंग है।

Bihar Board 12th Geography Important Questions Short Answer Type Part 5

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Bihar Board 12th Geography Important Questions Short Answer Type Part 5

प्रश्न 1.
जनसंख्या की प्रमुख जनांकिकीय विशेषतायें कौन-सी हैं ?
उत्तर:
जनसंख्या की प्रमुख जनांकिकीय विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

  • स्त्री-पुरुष अनुपात (Sex Ratio) – भारत में पुरुषों की संख्या महिलाओं की तुलना में अधिक है।
  • नगरीय व ग्रामीण आवास (Urban and rural residence) – निवास के आधार पर ही जनसंख्या को नगरीय तथा ग्रामीण जनसंख्या कहते हैं। भारत की लगभग तीन-चौथाई (72.2%) जनसंख्या ग्रामीण है।
  • आयु संरचना (Age Composition) – आयु संघटन से तात्पर्य है- आयु के आधार पर जनसंख्या का वर्गीकरण। भारत में किशोर जनसंख्या का प्रतिशत अधिक है।
  • कार्यरत तथा आश्रित जनसंख्या (Working and ependent population) – कार्यरत जनसंख्या से तात्पर्य है कि देश में कितने प्रतिशत लोग लाभकारी कार्य करते हैं तथा कितने प्रतिशत लोग कार्यरत जनसंख्या पर निर्भर करते हैं।

प्रश्न 2.
देश के किस भाग में ग्रामीण जनसंख्या का अनुपात राष्ट्रीय औसत से अधिक है ?
उत्तर:
देश में ग्रामीण जनसंख्या का राष्ट्रीय अनुपात 72.8% है। इससे अधिक ग्रामीण अनुपात अरुणाचल प्रदेश में है जो 94.5% है।

प्रश्न 3.
आश्रित अनुपात किसे कहते हैं तथा इसकी गणना कैसे की जाती है ? इसकी विशेषतायें बताइए।
उत्तर:
भारत में आश्रित अनुपात 60.8% है। यह अनुपात कुल जनसंख्या में 15 वर्ष की आयु से कम तथा 60 वर्ष और उससे अधिक अयु की जनसंख्या को मिलाकर निकाला जाता है।

विशेषताएँ-

  • आश्रित जनसंख्या वस्त्र, भोजन तथा शिक्षा आदि की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए अर्जक जनसंख्या पर निर्भर करती है।
  • आर्थिक दृष्टि से यह वर्ग अनुत्पादक है।
  • किशोर तथा वृद्ध जनसंख्या के अतिरिक्त घरेलू महिलाओं का एक बड़ा भाग भी आश्रित जनसंख्या का भाग है।
  • ग्रामीण क्षेत्रों में आश्रित अनुपात अधिक है।

प्रश्न 4.
किशोर, प्रौढ़ और वृद्ध वर्गों की आयु सीमायें बताइए।
उत्तर:
आयु के आधार पर भारत में जनसंख्या को तीन समूहों में विभाजित किया जा सकता है

  • 15 वर्ष से कम आयु की जनसंख्या को किशोर वर्ग में रखा गया है।
  • 15 से 59 वर्ष की आयु के लोगों को प्रौढ़ वर्ग में रखा गया है।
  • 60 वर्ष और इससे अधिक आयु के लोगों को वृद्ध वर्ग में रखा गया है।

प्रश्न 5.
भारत का कृषि क्षेत्र में भू-मण्डलीय स्पर्धा में टिके रहने के लिए क्या उपाय करने चाहिएं ?
उत्तर:

  • भारत को अपनी कृषि की विशाल सम्भावनाओं का व्यवस्थित और नियमित ढंग से उपयोग करना चाहिए।
  • विकसित उद्योगों की भाँति तकनीक को विकसित करना चाहिए।
  • जैव प्रौद्योगिकी के उपयोग के अलवा देश में कृषि उत्पादों के लिए एक बंधनमुक्त एकीकृत राष्ट्रीय बाजार बनाने का कार्य करना चाहिए।
  • भारतीय किसानों को नये औजार तथा उपकरणों से सुसज्जित करना चाहिए।
  • लोगों की कार्यक्षमता को बढ़ाने के लिए हरसंभव प्रयास करके उत्पादन लगात को कुछ कम करना चाहिए।
  • भारतीय कृषि को अधिक उन्नत बनाने के लिए एकीकृत राष्ट्रीय बाजार बनाने के लिए एक सुगठित अवसरंचना को खड़ा करने की आवश्यकता है जिसमें सड़कें, बिजली, सिंचाई तथा ऋण जैसी सुविधाओं को बढ़ाना होगा ताकि किसान और व्यापारी दोनों को ही लाभ मिल सके।

प्रश्न 6.
ऋतु प्रवास का क्या अर्थ है ? चलवासी पशु चारण की चार विशेषतायें बताइए।
उत्तर:
लोगों का अपने पशुओं के साथ ऋतु परिवर्तन के अनुसार एक स्थान से दूसरे स्थान की ओर प्रवास करना ऋतु प्रवास कहलाता है।

चलवासी पशुचारण की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

  1. चलवासी पशुचारक विभिन्न समुदायों में विभाजित होते हैं। प्रत्येक समुदाय एक सुस्पष्ट सीमा में विचरण करता है।
  2. इन्हें अपने क्षेत्र में मौसम के अनुसार चारे तथा जल आपूर्ति की पूर्ण जानकारी होती है।
  3. इस प्रक्रिया में पशु पूर्णतः प्राकृतिक वनस्पति पर ही निर्भर करते हैं।
  4. चलवासी पशुचारक अलग-अलग जलवायु वाले क्षेत्रों में गाय, बैल, भेड़, बकरी, याक आदि पालते हैं।
  5. ये लोग पूर्णतः पशु तथा पशु उत्पाद पर निर्भर करते हैं।

प्रश्न 7.
भारत को कृषि प्रधान देश क्यों कहा जाता है ? किन्हीं तीन कारणों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
भारत को कृषि प्रधान देश कहा जाता है। इसके निम्न कारण हैं-

  1. प्राचीन काल से ही कृषि भारत की अधिकतर जनसंख्या की मुख्य आर्थिक क्रिया रही है। आज भी यह भारतीय अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार है।
  2. श्रम शक्ति का लगभग 64% भाग कृषि कार्यों में लगा हुआ है। शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद में कृषि का 26% योगदान है।
  3. देश के निर्यात में कृषि उत्पादों का महत्वपूर्ण योगदान (18%) है। कृषि उद्योगों के लिए कच्चे माल की आपूर्ति करती है।
  4. कृषि में खाद्य अनाज के साथ तिलहन तथा दालों का भी उत्पादन होता है।
  5. भारत में 19.08 करोड़ हेक्टेयर भूमि पर कृषि की जाती है।

प्रश्न 8.
लौह खनिज तथा अलौह खनिज में क्या अंतर है ?
उत्तर:
लौह खनिज तथा अलौह खनिज में निम्नलिखित अन्तर है-
लौह खनिज (Ferrous Minerals):

  1. वे खनिज जिनमें लोहे का अंश नहीं होता। अलौह खनिज कहलाते हैं।
  2. इन खनिजों में इस्पात तैयार किया जाता है।
  3. लौह अयस्क, मैंगनीज तथा बॉक्साइट लौह खनिज के उदाहरण हैं।

अलौह खनिज (Non ferrous minerals):

  1. वे खनिज जिनमें लोहे का अंश होता है इस वर्ग में आते हैं।
  2. यह दिन-प्रतिदिन के जीवन में बहुत उपयोगी होते हैं।
  3. सोना, चाँदी, ताँबा, कोयला, तेल, नमक, अलौह खनिज के उदाहरण हैं।

प्रश्न 9.
प्रदूषण और प्रदूषकों में क्या भेद है ?
उत्तर:
प्रदूषण (Pollutions)-

  1. मानवीय क्रियाकलाप से उत्पन्न अपशिष्ट उत्पादों से कुछ पदार्थ और ऊर्जा मुक्त होती है जिससे प्राकृतिक पर्यावरण में परिवर्तन होते हैं। ये हानिकारक होते हैं जिन्हें प्रदूषण कहते हैं।
  2. प्रदूषण की स्थिति में वायु, भूमि तथा जल के भौतिक, रासायनिक एवं जैविक लक्षणों में अनचाहे परिवर्तन होते हैं जो हानिकारक हैं।

प्रदूषकों (Pollutants)-

  1. पारितंत्र के विद्यमान प्राकृतिक सन्तुलन में ह्रास और प्रदूषण उत्पन्न करने वाले ऊर्जा या पदार्थ के किसी भी रूप को प्रदूषक कहा जाता है। ये गैस, तरल तथा ठोस रूप में हो सकते हैं।
  2. प्रदूषक विविध माध्यमों के द्वारा विकीर्ण तथा परिवाहित होते हैं।

प्रश्न 10.
वायु प्रदूषण के प्रमुख स्त्रोतों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
वायु प्रदूषण के प्रमुख स्रोत निम्नलिखित हैं

  1. उद्योग (Industries) – उद्योगों से निकलने वाला धुआँ वायु प्रदूषण का प्रमुख कारण है। जहरीला गैस, राख आदि वायुमंडल में मिल जाती है।
  2. मोटर वाहन (Automobile) – बड़े नगरों में वायु प्रदूषण का 50 से 60% सड़क पर चलने वाले वाहनों से होता है।
  3. ताप बिजली घर (Thermal Power Stations) – इनसे बहुत धुआँ और राख निकलती है। उदाहरण के लिए 500 मेगावाट के ताप बिजली घर से प्रतिदिन धुएँ के साथ-साथ 2000 टन राख निकलती है।
  4. शहरी कचरा (Urban Waste) – नगरों और महानगरों से प्रतिदिन लाखों टन कचरा निकलता है। इस कचरे का निपटान खर्चीला और असाध्य है। परिणामस्वरूप प्रदूषण फैलता है।
  5. खदानों से निकली धूल (Mine Dust) – पत्थर की खानों अथवा अन्य खानों से भारी मात्रा में धूल निकलकर वायुमण्डल में फैलकर वायु को प्रदूषित करती है।

प्रश्न 11.
भारत में नगरीय अपशिष्ट निपटान से जुड़ी प्रमुख समस्याओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
नगर की पर्यावरणीय समस्याओं में जल, वायु और शोर प्रदूषण तथा विषैले और खतरनाक अपशिष्टों का निपटान शामिल है। इसके कारण निम्नलिखित हैं-

  1. मानव मल के सुरक्षित निपटान के लिए सीवर अथवा अन्य माध्यमों की कमी है।
  2. कूड़ा-कचरा संग्रहण की सेवाओं की अपर्याप्त व्यवस्था। कूड़ा-कचरा नदियों के जल को प्रदूषित करता है।
  3. औद्योगिक अपशिष्टों को नदियों में बहाया जाना जल प्रदूषण का मुख्य कारण है।
  4. नगर आधारित उद्योगों के अपशिष्ट जल और अनुपचारित मल जल से उत्पन्न प्रदूषण जल नगरों में स्वास्थ्य की गंभीर समस्याएँ पैदा करता है।
  5. नगरों में ठोस अपशिष्ट के संग्रहण में असमर्थता एक गम्भीर समस्या है।

प्रश्न 12.
उन चार नदी घाटियों के नाम बतायें जिनमें कोयला पाया जाता है।
उत्तर:

  1. दामोदर घाटी कोयला क्षेत्र – यह झारखण्ड और पश्चिम बंगाल में है।
  2. सोन नदी घाटी कोयला क्षेत्र – यह मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और उत्तर प्रदेश में है।
  3. महानदी कोयला क्षेत्र – यह क्षेत्र छत्तीसगढ़ और उड़ीसा राज्य में है।
  4. वर्धा-गोदावरी नदी घाटी क्षेत्र – यह क्षेत्र मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और आन्ध्र प्रदेश में है।

प्रश्न 13.
भारत के पेट्रोलियम उत्पादन प्रदेशों के नाम बतायें।
उत्तर:
पेट्रोलियम उत्पादक देश निम्नलिखित हैं-

  1. उत्तर-पूर्वी प्रदेश – इसका विस्तार अरुणाचल प्रदेश और नागालैण्ड तक है।
  2. गुजरात प्रदेश – इसका विस्तार खम्बात बेसिन और मैदानों तक है।
  3. मुम्बई हाई अपतट – मुम्बई से 75 किमी. दूर अरब सागर में स्थित है।
  4. पूर्वी तटीय प्रदेश – यह काबेरी, गोदावरी और कृष्णा नदी द्रोणियों में स्थित है।

प्रश्न 14.
भारत में प्रमुख कोयला उत्पादक राज्यों के नाम बताएँ।
उत्तर:
झारखण्ड, उड़ीसा, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, पश्चिम बंगाल, आन्ध्र प्रदेश और महाराष्ट्र।

प्रश्न 15.
संसाधन किसे कहते हैं ?
उत्तर:
मानव अपने वातावरण की उपज है। प्राकृतिक तथा सांस्कृतिक वातावरण मानव की अनेक प्रकार की आवश्यकताओं की पूर्ति करते हैं। वातावरण के उपयोगी तत्व जो मानव की आवश्यकताओं की पूर्ति करते हैं, संसाधन कहलाते हैं।

प्रश्न 16.
भारत में अभ्रक के वितरण का विवरण दें।
उत्तर:
अभ्रक सबसे अधिक बिहार, आन्ध्र प्रदेश, राजस्थान में पाया जाता है। इसके अतिरिक्त तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल और मध्य प्रदेश में पाया जाता है।

झारखंड और बिहार- झारखंड में उच्चकोटि का अभ्रक पाया जाता है। यहाँ अभ्रक की पेटी 150 किमी. लम्बी तथा 32 किमी. चौड़ी है। देश के कुल उत्पादन का 50% अभ्रक इस क्षेत्र में पाया जाता है। प्रमुख निम्न हजारीबाग पठार है।

आन्ध्र प्रदेश – नैलोर जिले में उच्च कोटि का अभ्रक का उत्पादन होता है। यहाँ देश का 30% अभ्रक पाया जाता है।
राजस्थान – राजस्थान में अभ्रक का उत्पादन अजमेर, वियावर, भीलवाड़ा और डूगरपुर जिलों में होता है।
कर्नाटक – कर्नाटक में मैसूर तथा हासन जिलों में पाया जाता है। इसके अतिरिक्त तमिलनाडु में कोयम्बटूर, त्रिचनापल्ली, मदुरई और कन्याकुमारी आदि भी है। केरल और. महाराष्ट्र में भी अभ्रक पाया जाता है।

प्रश्न 17.
नाभिकीय ऊर्जा क्या है ? भारत में प्रमुख नाभिकीय ऊर्जा केन्द्रों के नाम लिखें।
उत्तर:
नाभिकीय ऊर्जा परमाणु के विखंडन द्वारा प्राप्त ऊर्जा जो परमाणु के नाभिक में परिवर्तन लाकर प्राप्त की जाती है। इसे नाभिकीय ऊर्जा कहते हैं।

नाभिकीय ऊर्जा केन्द्रों के नाम-

  1. तारापुर (महाराष्ट्र)
  2. रावतभाटा परमाणु ऊर्जा केन्द्र (राजस्थान)
  3. कल्पक्म परमाणु ऊर्जा केन्द्र (तमिलनाडु)
  4. नरौरा परमाणु ऊर्जा केन्द्र (उत्तर प्रदेश)
  5. कैगा परमाणु ऊर्जा केन्द्र (कर्नाटक)
  6. ककरपारा परमाणु ऊर्जा केन्द्र (गुजरात)

प्रश्न 18.
अलौह धातुओं के नाम बताएँ। इनके स्थानिक वितरण की विवेचना करें।
उत्तर:
भारत अलौह धातुओं में निर्धन है। इनमें बाक्साइट, ताँबा, सोना, चाँदी आदि प्रमुख हैं।
बाक्साइट – बाक्साइट का उपयोग ऐलूमिनियम बनाने में किया जाता है। बाक्साइट निम्न राज्यों में पाया जाता है।
उड़ीसा – उड़ीसा बाक्साइट का प्रमुख उत्पादक है। काला हाडी और संभलपुर, अग्रणी क्षेत्र है। अन्य उत्पादन क्षेत्र हैं वोलानगिर और कोरापुर।
झारखंड – यहाँ लोहरदग्गा प्रमुख है। पालामु में बाक्साइट का खनन होता है।
महाराष्ट्र – महाराष्ट्र में कोल्हापुर, रत्नगिरी, कोलावा आदि क्षेत्र हैं।
गुजरात – गुजरात में भावनगर जामनगर में प्रमुख भंडार है।
इनके अतिरिक्त मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ तमिलनाडु और कर्नाटक में भी बाक्साइट का उत्पादन होता है।

ताँबा (Copper) – ताँबे का उपयोग विद्युत कार्यों में किया जाता है। तांबे के भंडार प्रमुख रूप से झारखंड में सिंह भूमि, मध्य प्रदेश का बाला घाट जिला तथा राजस्थान के झुनझुन और अलवर जिले में पाया जाता है। छोटे उत्पादकों में आन्ध्र प्रदेश का गुन्टूर और अग्निगुंडा जिला, कर्नाटक में हासन एवं तमिलनाडु का दक्षिणी आरकाट जिला है।

प्रश्न 19.
औद्योगिक संकुल की पहचान किस प्रकार की जाती है ? अपने घर के समीप किसी औद्योगिकी प्रदेश की सहायता से वर्णन करें।
उत्तर:
औद्योगिक समूहन की पहचान के कई संकेत हैं इनमें से महत्त्वपूर्ण हैं-

  1. औद्योगिक इकाइयों की संख्या
  2. औद्योगिक श्रमिकों की संख्या
  3. उद्योगों के लिये प्रयुक्त शक्ति साधन
  4. कुल औद्योगिक उत्पादन की मात्रा
  5. विनियोग आदि द्वारा मूल्यांकन

हमारे समीप दिल्ली, गुड़गाँव, मेरठ औद्योगिक स्कूल है। इस क्षेत्र में स्थापित उद्योग बड़ी शीघ्रता से विकास कर रहे हैं। इसमें पाये जाने वाले उद्योग हल्के तथा बाजार आधारित उद्योग हैं। इनमें विद्युत इलेक्ट्रॉनिक इंजीनियरिंग आदि उद्योग हैं। इसके अतिरिक्त सूती वस्त्र, कृत्रिम रेशा, ऊनी वस्त्र, चीनी, सीमेन्ट साइकिल ट्रैक्टर आदि के उद्योग हैं। अभी हाल में सोफ्टवेयर उद्योग भी विकसित होने लगा है। आगरा मथुरा में ग्लास उद्योग, तेल शोधक उद्योग स्थापित हैं। प्रमुख केन्द्र हैं गुड़गाँव, दिल्ली, फरीदाबाद, मोदी नगर, गाजियाबाद, अम्बाला, ‘मथुरा, आगरा आदि।

प्रश्न 20.
मुम्बई-पुणे औद्योगिक प्रदेश की प्रमुख विशेषतायें लिखें।
उत्तर:
मुम्बई-पुणे औद्योगिक प्रदेश में सूती वस्त्र के अतिरिक्त ऊनी-रेशमी वस्त्र भी विकसित है। इंजीनियरी का सामान पैट्रो रसायन, चमड़ा, कृत्रिम तथा प्लास्टिक की वस्तुएँ, रसायन उपकरण और खाद्य प्रसंस्करण उद्योग है। इस क्षेत्र की प्रमुख विशेषताएँ हैं-

  1. सूती वस्त्र उद्योग के लिए कच्चा माल समीप के क्षेत्रों से ही मिल जाता है।
  2. यह क्षेत्र रेल, सड़क, समुद्री मार्ग तथा वायु मार्ग से देश-विदेश के विभिन्न भागों से जुड़ा है।
  3. शक्ति के साधन के रूप में बिजली पश्चिमी घाट की पहाड़ियों से मिल जाती है।
  4. मुम्बई आधुनिक नगर होने के कारण यहाँ देशी तथा विदेशी कम्पनियों के बैंक स्थापित हैं। यहाँ बड़े पूँजीपति भी रहते हैं।
  5. मुम्बई एक प्रमुख बन्दरगाह है जिसमें आयात-निर्यात की सुविधा रहती है।
  6. स्वेज नहर के बन जाने से इस प्रदेश का बहुत विकास हुआ है। इसके कारण मुम्बई का सीधा संबंध अफ्रीका तथा यूरोप देशों से जुड़ गया है।

प्रश्न 21.
भारत में औद्योगिक विकास पर उदारीकरण के प्रभाव का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
उदारीकरण से भारत के औद्योगिक विकास पर निम्नलिखित प्रभाव पड़ा है-

  1. कुछ उद्योग जो सुरक्षा और पर्यावरण की दृष्टि से संवेदनशील हैं को छोड़कर लाइसेंस प्रणाली समाप्त कर दी गई है।
  2. सार्वजनिक क्षेत्र के लिए सुनिश्चित उद्योगों की संख्या 17 से घटाकर तीन कर दी गई है।
  3. सरकार ने सरकारी क्षेत्र के उपक्रमों के सरकारी शेयरों का कुछ भाग वित्तीय संस्थानों व सामान्य जनता और कामगारों को देने का फैसला किया है।
  4. अब लाइसेंस मुक्त किसी भी उद्योग में निवेश के लिये सरकार से पूर्व अनुमति नहीं लेनी पड़ती।
  5. विदेशों से कच्चे माल के आयात और उत्पादों के निर्यात बन्धन ढीले कर दिये हैं। निर्यात करने वाली कम्पनियों को विशेष छूट या प्रावधान उपलब्ध है।
  6. नई औद्योगिक नीति के अनुसार स्वदेशी तकनीक की अनिवार्यता समाप्त कर दी है।

प्रश्न 22.
भारत में लोहे और इस्पात के कारखाने प्रायद्वीपीय पठारों पर ही क्यों व्यवस्थित हैं ?
उत्तर:
प्रायद्वीपीय पठार पर अनेक प्रकार के खनिज उपलब्ध हैं। इनमें लौह अयस्क, मैंगनीज, कोयला, चूना पत्थर आदि हैं। लौह-इस्पात उद्योग के लिये भी समस्त कच्चा माल इस क्षेत्र में समीप ही मिल जाता है। इसके अतिरिक्त निम्न कारण भी हैं-

  1. इस प्रदेश में अच्छे किस्म के कोयला निक्षेप झरिया, बोकारो, गिरिडीह आदि क्षेत्रों में मिलते हैं तथा लौह अयस्क भी प्रायद्वीपीय भारत में मिलता है।
  2. लौह-इस्पात उद्योग एक भारी उद्योग है जिसके कच्चे माल के रूप में लौह अयस्क पठार पर ही उपलब्ध है।
  3. अन्य पदार्थ जैसे मैंगनीज, चूना पत्थर की आसानी से आपूर्ति हो जाती है।
  4. दामोदर घाटी परियोजना से जल तथा जलविद्युत की आपूर्ति होती है।
  5. बिहार, उड़ीसा तथा पश्चिम बंगाल से सस्ता श्रम इस उद्योग के लिए प्राप्त होता है।
  6. इस क्षेत्र से महत्वपूर्ण रेल मार्ग तथा सड़क मार्ग गुजरते हैं। प्रत्येक इस्पात कारखाना रेल मार्ग या सड़क मार्ग से जुड़ा है जिससे माल को लाने व ले जाने में कठिनाई नहीं होती है।
  7. कोलकाता बन्दरगाह समीप है।

प्रश्न 23.
कस्बा किसे कहते हैं ?
उत्तर:
एक लाख से कम जनसंख्या वाले केन्द्र को कस्बा कहते हैं।

प्रश्न 24.
जनगणना नगर क्या है ?
उत्तर:
वे सभी स्थान जिनकी जनसंख्या कम से कम 5000 है तथा 75% कार्यशील पुरुष जनसंख्या है तथा जनसंख्या का घनत्व कम से कम 400 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी. है।

प्रश्न 25.
दो प्राचीन नगरों के नाम बताओ।
उत्तर:
अयोध्या, प्रयाग।

प्रश्न 26.
दो मध्यकालीन नगरों के नाम बताओ।
उत्तर:
आगरा, नागपुर।

प्रश्न 27.
नगर किसे कहते हैं ?
उत्तर:
वे सभी स्थान जो या तो प्रशासनिक हैं अथवा जहाँ जनसंख्या कम से कम 5000 है और जनघनत्व कम से कम 400 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी है, नगर कहलाते हैं। नगर अत्यधिक नियोजित और बड़े आकार वाले होते हैं। यहाँ न्यायालय, शिक्षा संस्थाएँ तथा प्रशासनिक कार्यालय होते हैं।

प्रश्न 28.
किस वर्ग के नगरों में भारत की जनसंख्या का सबसे अधिक प्रतिशत निवास करता है ?
उत्तर:
प्रथम वर्ग अर्थात् एक लाख से अधिक जनसंख्या वाले नगरों में।

प्रश्न 29.
भारत में कितने महानगर हैं ?
उत्तर:
35 महानगर।

प्रश्न 30.
वैधानिक नगर किसे कहते हैं ?
उत्तर:
वे सभी स्थान जहाँ नगरपालिका, नगर निगम या कैन्टोनमेन्ट बोर्ड या नोटीफाइड एरिया, कमेटी हैं, वैधानिक नगर कहलाते हैं।

प्रश्न 31.
गैरीसन नगर क्या होते हैं ? उनका क्या प्रकार्य होता है ?
उत्तर:
इन नगरों का उदय गैरीसन नगरों के रूप में हुआ है। जैसे-अम्बाला, जालंधर, महू ववीना, उद्यमपुर इत्यादि। इनका कार्य सैनिक छावनी में शस्त्रों के भंडार होते हैं।

प्रश्न 32.
किसी नगरीय संकुल की पहचान किस प्रकार की जा सकती है ?
उत्तर:
मरुस्थली प्रदेशों में जल के अभाव से उपलब्ध जल संसाधनों के अधिकतम उपयोग के कारण संहत बस्तियों का निर्माण होता है। इसके अतिरिक्त अथ गुच्छित बस्तियाँ बन जाती हैं।

प्रश्न 33.
मरुस्थली प्रदेशों में गाँवों के अवस्थिति के कौन-से मुख्य कारक होते हैं ?
उत्तर:
मरुस्थली प्रदेशों में जल के अभाव के उपलब्ध जल संसाधनों के अधिकतम उपयोग के कारण संहत बस्तियों का निर्माण होता है। इसके अतिरिक्त अथ गुच्छित बस्तियाँ बन जाती हैं।

प्रश्न 34.
महानगर क्या होते हैं ? ये नगरीय संकुलों से किस प्रकार भिन्न होते हैं ?
उत्तर:
10 से 50 लाख जनसंख्या वाले नगरों को महानगर कहते हैं। वे नगरीय संकुलों से भिन्न होते हैं। नगरीय संकुल में बहुसंख्यक महानगर और मेगा सम्मिलित होते हैं।

प्रश्न 35.
पुरवा तथा परिक्षिप्त बस्तियों में अंतर बताओ।
उत्तर:
पुरवा बस्तियाँ (Hamlet settlements)-

  1. भौतिक रूप से एक-दूसरे से अलग इकाइयों के रूप में होती हैं।
  2. ये एक-दूसरे से सुस्पष्ट दूरी पर होती हैं।
  3. ऐसी बस्तियों को पल्ली, नंगला, ढाणी जैसे नामों से जाना जाता है।
  4. सामाजिक और नृजातीय कारणों से बड़ा गाँव कई छोटी बस्तियों में बँट जाता है।
  5. गंगा के मध्यवर्ती और निचले मैदान, छत्तीसगढ़ और हिमालय की निचली घाटियों में प्रायः ऐसे ही गाँव या पुरवे पाए जाते हैं।

विस्थापित बस्तियों (Dispersed Settlements)-

  1. ये बस्तियाँ सुदूर वनों में एकाकी झोंपड़ी के समूह के रूप में पाई जाती हैं।
  2. ऐसी बस्तियाँ छोटी पहाड़ियों पर भी होती हैं जिसके आसपास ढालों पर खेत या चरागाह भी होते हैं।

प्रश्न 36.
विश्व व्यापार संगठन के आधारभूत कार्य कौन-से हैं ?
उत्तर:

  1. विभिन्न देशों के बीच व्यापारिक झगड़ों का निपटारा करना।
  2. यह सेवाओं के व्यापार को नियंत्रित करता है।
  3. इसके अधिकार क्षेत्र में निर्यात निरीक्षण की आवश्यकता स्वास्थ्य तथा सुरक्षा के स्तरों की जाँच करना आदि सम्मिलित है।

प्रश्न 37.
ऋणात्मक भुगतान संतुलन का होना किसी देश के लिए क्यों हानिकारक होता है ?
उत्तर:
व्यापार संतुलन तथा अदायगी संतुलन के गंभीर परिणाम होते हैं। एक नकारात्मक संतुलन का अर्थ है कि देश को वस्तु खरीदने के लिए अधिक खर्च करना होगा। इससे उसके वित्तीय भंडार समाप्त होने लगेंगे।

प्रश्न 38.
व्यापारिक समूहों के निर्माण द्वारा राष्ट्रों को क्या लाभ प्राप्त होते हैं ?
उत्तर:
व्यापारिक संघ ऐसे देशों का समूह होता है जिनके भीतर व्यापारिक अनुबंधों की सामान्यीकृत प्रणाली कार्य करती है।
व्यापारिक संघ बनाने से किसी देश को यह लाभ पहुँचता है कि वह देश प्रादेशिक देशों के साथ बिना व्यापारिक प्रतिबन्ध के व्यापार कर सकता है।

प्रश्न 39.
अंतर्राष्ट्रीय व्यापार क्या है ? अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के दो प्रकार कौन-से हैं ? प्रत्येक की एक विशेषता बताइए।
उत्तर:
जब वस्तुओं का आदान-प्रदान दो देशों के बीच में होता है तो इसे अंतर्राष्ट्रीय व्यापार कहते हैं। अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के दो प्रकार होते हैं-

  1. द्विपक्षीय तथा
  2. बहुपक्षीय व्यापार।

द्विपक्षीय व्यापार –

  1. इस प्रकार के व्यापार में वस्तुओं का विनिमय दो देशों के बीच होता है।
  2. द्विपक्षीय व्यापार के लिए यह आवश्यक है कि दोनों देशों की अर्थव्यवस्थायें एक-दूसरे की पूरक हों।
  3. उदाहरण के लिए एक देश औद्योगिक उत्पादों का निर्यात करता है तो दूसरा इसके बदले ऊर्जा तथा कच्चा माल भेजता है।

बहुपक्षीय व्यापार –

  1. इस प्रकार के व्यापार में वस्तुओं या सेवाओं का कई देशों के बीच आदान-प्रदान होता है।
  2. एक देश अनेक देशों के साथ व्यापार करने के लिए स्वतंत्र होता है। वह बाजार मूल्य के आधार या वस्तुओं और सेवाओं को खरीदने और बेचने का निर्णय लेता है।
  3. इस स्थिति में एक देश से माल खरीदकर उसे दूसरे को निर्यात करने की स्वतंत्रता होती है।

प्रश्न 40.
व्यापार संतुलन से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर:
किसी समयावधि के अंतर्गत किसी देश के निर्यात और आयात के अन्तर को व्यापार का संतुलन कहते हैं। यदि कोई देश वस्तुओं और सेवाओं का निर्यात आयात की अपेक्षा अधिक करता है तो व्यापार संतुलन को अनुकूल या धनात्मक कहते हैं। यदि आयात निर्यात से अधिक होता है तो व्यापार संतुलन को प्रतिकूल अथवा ऋणात्मक कहते हैं।

प्रश्न 41.
ओपेक देशों के नाम बताएँ।
उत्तर:
निम्नलिखित 13 देश ओपेक (पेट्रोल निर्यातक देशों का संगठन) के सदस्य हैंअल्जीरिया, इक्वेडोर, गैबन, इन्डोनेशिया, ईरान, ईराक, कुवैत, लीबिया, नाइजीरिया, कतर, सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात और वेनेजुएला। यह संगठन 1960 ई० में बनाया गया था।

प्रश्न 42.
संसार के पाँच बड़े व्यापारिक देशों के नाम बताएँ।)
उत्तर:
संयुक्त राज्य अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम, फ्रांस, जर्मनी तथा जापान।

प्रश्न 43.
व्यापार संघ क्या हैं ?
उत्तर:
व्यापार संघ ऐसे देशों का समूह होता है जिनके भीतर व्यापारिक अनुबंध की एक सामान्यीकृत प्रणाली कार्य करती है।

संसार का अधिकांश व्यापार इन्हीं संघों के बीच होता है। संघों की संरचना का उद्देश्य व्यापार में आई बाधाओं को दूर करके अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में तीव्रता लाना है।

इन संघों की सदस्यता आपसी दूरी, औपनिवेशिक संबंधों की परंपरा तथा भू-राजनीतिक सहयोग पर निर्भर करता है। उदाहरण के लिए यूरोपीय संघ में अधिकांश सदस्य पश्चिमी यूरोप के देश हैं जो आपसी दूरी और भू-राजनैतिक सहयोग के आधार पर एक-दूसरे से मिले हैं।

Bihar Board 12th Geography Important Questions Long Answer Type Part 5

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Bihar Board 12th Geography Important Questions Long Answer Type Part 5

प्रश्न 1.
राष्ट्रीय महामार्ग और राज्य महामार्ग में अंतर स्पष्ट करें।
उत्तर:
राष्ट्रीय महामार्ग और राज्य महामार्ग में निम्नलिखित अंतर है-
Bihar Board 12th Geography Important Questions Long Answer Type Part 5, 1

प्रश्न 2.
भारत में सड़कों के असमान वितरण के लिए उत्तरदायी किन्हीं तीन कारणों को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भारत में सड़कों के असमान वितरण के तीन कारण निम्नलिखित हैं-

  1. भौतिक बनावट (Physiography) – सड़क घनत्व भौतिक बनावट से प्रभावित होता है। पर्वतीय क्षेत्रों में सड़कों का घनत्व कम है, जबकि मैदानी भागों में घनत्व अधिक है।
  2. जलवायु (Climate) – जलवायु के प्रभाव से भी सड़क वितरण प्रभावित होता है। उत्तरी पूर्वी राज्यों में घनत्व इसलिये कम है कि यहाँ अधिक वर्षा होती है।
  3. आर्थिक विकास (Economic Development) – आर्थिक रूप से विकसित प्रदेशों में सड़कों का घनत्व अधिक है जबकि निम्न आर्थिक विकास स्तर के प्रदेशों में सड़कों का घनत्व कम है। केरल में सबसे अधिक सड़क घनत्व 37.5 किमी. है जबकि अरुणाचल में यह सबसे कम केवल 10 किमी. है।

प्रश्न 3.
परिवहन तथा संचार में अंतर स्पष्ट करें।
उत्तर:
परिवहन तथा संचार में निम्नलिखित अंतर हैं-
Bihar Board 12th Geography Important Questions Long Answer Type Part 5, 2

प्रश्न 4.
व्यक्तिगत संचार तथा जन संचार में अंतर स्पष्ट करें।
उत्तर:
व्यक्तिगत संचार तथा जन संचार में निम्नलिखित अंतर हैं-
Bihar Board 12th Geography Important Questions Long Answer Type Part 5, 3

प्रश्न 5.
भारत में सूचना प्रौद्योगिकी उद्योग की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
भारत में सूचना प्रौद्योगिकी के अंतर्गत दूरभाष, तार, फैक्स, इंटरनेट, रेडियो, टेलीविजन उपग्रह को सम्मिलित करते हैं। विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में सूचना प्रौद्योगिकी उद्योग विकास में क्रांति लाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। इसने संचार को बहुत त्वरित एवं आसान बना दिया है। संचार के विभिन्न साधनों में रेडियो, टेलीविजन, उपग्रह संचार प्रमुख हैं।

रेडियो : यह संचार का सबसे सस्ता एवं लोकप्रिय साधन है। भारत में रेडियो का प्रसारण सन् 1923 ई० में रेडियो क्लब ऑफ बाम्बे द्वारा प्रारंभ किया गया था। सरकार ने 1930 ई० में इंडियन ब्रॉडकास्टिंग सिस्टम के अंतर्गत इस लोकप्रिय संचार माध्यम को अपने नियंत्रण में ले लिया। 1936 ई० में इसे ऑल इंडिया रेडियो और 1957 ई० में आकाशवाणी में बदल दिया गया। यह सूचना, शिक्षा, मनोरंजन से जुड़े विभिन्न कार्यक्रमों को प्रस्तुत करता है।

टेलीविजन : इसकी महत्वपूर्ण विशेषता है कि इसके जरिये हम किसी भी घटना को सुनने के साथ-साथ देख भी सकते हैं। टेलीविजन एक अत्यधिक प्रभावी दृश्य-श्रव्य माध्यम है। इसे शुरू में 1959 ई० में सिर्फ महानगरों में प्रारंभ किया गया। 1976 ई० में टी. वी. को ऑल इंडिया रेडियो से विलगित कर दिया गया और दूरदर्शन (डी. डी.) के रूप में एक अलग पहचान दी गइ

उपग्रह संचार : उपग्रह संचार की स्वयं में एक विधा है और ये संचार के अन्य साधनों का भी नियमन करते हैं। उपग्रह से प्राप्त चित्रों का मौसम के पूर्वानुमान, प्राकृतिक आपदाओं की निगरानी, सीमा क्षेत्रों की चौकसी आदि के लिए उपयोग किया जा सकता है।

भारत की उपग्रह प्रणाली को समाकृति तथा उद्देश्यों के आधार पर दो भागों में वर्गीकृत किया जा सकता है-

  1. इंडियन नेशनल सेटेलाइट सिस्टम (INSAT)
  2. इंडियन रिमोट सेंसिंग सेटेलाइट सिस्टम (IRS)

इनसैट की स्थापना 1983 ई० में हुई थी। यह एक बहुद्देशीय उपग्रह प्रणाली है जो दूर संचार, मौसम विज्ञान संबंधी अवलोकनों तथा विभिन्न अन्य आंकड़ों एवं कार्यक्रमों के लिए उपयोगी है।

इंडियन रिमोट सेंसिंग सेटेलाइट उपग्रह प्रणाली मार्च 1988 ई० में रूस के वैकानूर से IRS-IA के प्रक्षेपण के साथ प्रारंभ हुई। प्राकृतिक संसाधनों के प्रबंधन के लिए यह बहुत उपयोगी है। हैदराबाद स्थित नेशनल रिमोट सेंसिंग एजेंसी आंकड़ों का अधिग्रहण एवं प्रक्रमण की सुविधा उपलब्ध कराती है।

प्रश्न 6.
देश के आर्थिक विकास में रेलों का योगदान लिखिए। कोई चार बिन्दु दीजिए।
उत्तर:
भारतीय रेल मार्ग एशिया में प्रथम स्थान रखता है। इसका देश के आर्थिक विकास में बड़ा योगदान है। रेलवे ने कृषि और उद्योगों के विकास की गति को तेज करने में योगदान दिया है। रेल यात्रियों की भारी संख्या को दूरदराज के स्थानों तक ले जाती है तथा रेलें भारी मात्रा में माल की ढुलाई करती हैं। औद्योगिक और कृषि क्षेत्रों के विकास में रेल परिवहन की मांग में अधिक वृद्धि हुई है।

यह निम्नलिखित उदाहरणों से स्पष्ट है-

  1. कोयला रेलों द्वारा सबसे अधिक ढोया जाता है। 2001-02 में रेल द्वारा 230 करोड़ टन कोयला ढोया गया।
  2. लौह अयस्क, मैगनीज, चूना पत्थर आदि की ढुलाई औद्योगिक इकाइयों के लिए की गई है।
  3. रेलें, उर्वरक, मशीन आदि को कृषि कार्य के लिए पहुँचाती रहती हैं।
  4. रेलें तैयार माल को बाजारों तक पहुँचाती हैं।
  5. विदेशों से आयात किये गये माल को देश के आन्तरिक भागों तक पहुँचाती हैं।
  6. रेलों द्वारा श्रमिक एक स्थान से दूसरे स्थान को रोजगार के लिये जाते हैं।

निम्न सारणी रेलों द्वारा ढोये गये माल की प्रकृति दर्शाती है-
Bihar Board 12th Geography Important Questions Long Answer Type Part 5, 4

प्रश्न 7.
भारत के विदेशी व्यापार की प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
भारत के विदेशी व्यापार की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
1. अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में भारत की भागीदारी (Share of India in International Trade) – भारत की अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में केवल 0.5% की भागीदारी है। यूरोप के छोटे से देश स्विट्जरलैंड की भागीदारी 1.8% से भी कम है।

2. समुद्री मार्गों की प्रमुखता (Priority of Sea Routes) – भारत का विदेशी व्यापार मुख्य रूप से समुद्री मार्गों से होता है।

3. प्रति व्यक्ति व्यापार कम (Per Capita Trade is Less) – विशाल जनसंख्या और कम व्यापार की मात्रा का परिणाम है कि प्रति व्यक्ति विदेशी व्यापार विकसित और अनेक विकासशील देशों की तुलना में काफी कम है।

4. निर्यात और आयात में भारी वृद्धि (High Increase in Import and Export) – देश का आयात 2000-01 में बढ़कर 227512 करोड़ रुपये मूल्य का था जबकि यह 1950-51 में केवल 608 करोड़ रुपये का था इसी प्रकार निर्यात भी 606 करोड़ रुपये से बढ़कर 201674 करोड़ रुपये का हो गया।

5. विपरीत व्यापार संतुलन (Unfavourable Balance of Trade) – आयात में निरन्तर वृद्धि से व्यापार संतुलन हमारे पक्ष में नहीं रहा। 2000-01 में यह घाटा 25898 करोड़ रुपये का था।

6. व्यापार की दिशा में विविधता (Variation in Trade Items)-स्वतंत्रता से पहले भारत का व्यापार गिने-चुने देशों के साथ था लेकिन अब भारत 200 देशों को निर्यात तथा 180 देशों से आयात करता है।

7. व्यापार की वस्तुओं में विविधता (Variation in Trade Items)-आज भारत 9300 प्रकार की वस्तुओं का निर्यात करता है। 8250 प्रकार की वस्तुओं का आयात करता है।

8. इलेक्ट्रॉनिक्स, कम्प्यूटर हार्डवेयर तथा सॉफ्टवेयर का निर्यात (Export of Electronics, Computer Hardware and Software) – भारत ने हाल ही में इन वस्तुओं के निर्यात में उल्लेखनीय वृद्धि की है। दूसरी सबसे बड़ी विशेषता विकसित देशों को इसका निर्यात करना है।

प्रश्न 8.
भारत के अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार की बदलती प्रकृति पर एक टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
भारतीय विदेशी व्यापार में पिछले वर्षों में परिवर्तन आया है। यह निम्न तालिका में । स्पष्ट हो जायेगा।
Bihar Board 12th Geography Important Questions Long Answer Type Part 5, 5

1950-51 में भारत का विदेशी व्यापार 12140 मिलियन रु० था जो बढ़कर 2004-05 में 8371330 मिलियन रुपये का हो गया। यह वृद्धि आयात-निर्यात में हुई। आयात का मूल्य निर्यात के मूल्य से अधिक होता गया। पिछले कुछ वर्षों में व्यापार घाटे में भी वृद्धि हुआ। यह घाटा तेल के मूल्यों में वृद्धि होने के कारण हुआ। निर्यात संघटन की वस्तुओं में परिवर्तन होता जा रहा है। कृषि उत्पाद के भाग में गिरावट आयी है। तेल उत्पाद के आयात में वृद्धि हुई है। परम्परागत वस्तुओं के व्यापार में अन्तर्राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा के कारण गिरावट आयी है। कृषि उत्पाद जैसे कहवा के निर्यात में कमी आयी है।

विनिर्मित वस्तुओं के निर्यात में 2003-04 में 75.96% व्यापार इंजीनियरिंग वस्तुओं के निर्यात में सुधार हुआ है।

प्रश्न 9.
भारत में गंदी बस्तियों की समस्याओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भारत में मलिन बस्तियों की समस्यायें कई प्रकार की होती हैं। मलिन बस्तियों की स्थापना ग्रामीण क्षेत्रों से लोग जो रोजगार की तलाश में नगरों में जाते हैं, वे नगर के बाहरी क्षेत्र में पटरियों के साथ रहने लगते हैं। इन लोगों को मजबूर होकर यहाँ बसना होता है। ये लोग पर्यावरणात्मक अधूरी एवं स्तरहीन क्षेत्रों में कब्जा कर लेते हैं। यहाँ जीर्ण शीर्ण मकान, खराब स्वास्थ्य, स्वच्छता परिस्थितियाँ होती हैं। खराब हवा का आवागमन तथा पेय जल, प्रकाश तथा शौच सुविधाओं जैसी आधारभूत आवश्यक चीजों से अभावपूर्ण होते हैं। यहाँ आने-जाने की सुविधा नहीं होती। गलियाँ संकरी और मलिन होती हैं। खराब परिस्थितियों के कारण लोग बीमारियों से ग्रस्त रहते हैं। सुलभ शिक्षा का प्रबन्ध नहीं होता। ये लोग नशीली दवाओं के आदि शराबी, अपराध, गुंडागिरी आदि कुरीतियों के शिकार हो जाते हैं।

प्रश्न 10.
जल प्रदूषण के प्रभावों का वर्णन करें।
उत्तर:
जल प्रदूषण के अनेक प्रभाव हैं-

  1. रागा का प्रसार (Spreading of Diseases) – प्रदूषित जल के सेवन से मनुष्य को अनेक रोग लग जाते हैं। जैसे-हैजा, चेचक, पीलिया, टाइफाइड, पेचिश आदि।
  2. जलीय पौधों और जीव-जन्तुओं की मौत (Death of Animals and Water Plants) – विषैले जल से जलीय पौधे और जीव-जन्तु मर जाते हैं।
  3. फसला का नाश (Destruction of Crops) – प्रदूषित जल की सिंचाई से फसलें नष्ट हो जाती हैं या उनमें रासायनिक विष घुल जाते हैं।
  4. मिट्टी की उर्वरता का नाश (Destruction of Fertility of Soil) – प्रदूषित जल मिट्टी को प्रदूषित करके उसकी उर्वरता को नष्ट कर देता है। मृदा के जीवाणु और अन्य सूक्ष्म जीव मर जाते हैं।
  5. सुपोषण (Eutrophication) – जलाशयों में जैविक अजैविक पोषक तत्त्वों की भरमार होती है। इससे अवांछित पौधों और जीव-जन्तुओं की संख्या में भारी वृद्धि हो जाती है।
  6. सागरीय जल का प्रदूषण (Pollution of Sea Water) – समुद्र के जल में पेट्रोलियम पदार्थों के मिल जाने से समुद्र में पाये जानेवाले जीव-जन्तु मरने लगते हैं।

प्रश्न 11.
देश में भूमि प्रदूषण को कम करने के दो उपाय बताइए।
अथवा, (भू-निम्नीकरण को कम करने के उपाय सुझाइए।
उत्तर:

  1. किसानों को रासायनिक पदार्थों का उचित प्रयोग करने के लिये प्रशिक्षण देना चाहिए। डी. डी. टी. आदि के प्रयोग पर पूर्ण प्रतिबन्ध लगा देना चाहिए।
  2. नगरीय तथा औद्योगिक गन्दे पानी को साफ करके सिंचाई के लिये प्रयोग किया जा सकता है।
  3. सड़ी-गली सब्जियों और फलों तथा पशुओं के मल-मूत्र को उचित प्रौद्योगिकी द्वारा बहुमूल्य खाद में परिवर्तित किया जा सकता है।
  4. मलिन बस्तियों के लोगों को सुलभ शौचालय की सुविधा देकर भूमि प्रदूषण को काफी हद तक कम किया जा सकता है।
  5. प्लास्टिक के बने पदार्थों को जल के प्रवाह में न जाने दिया जाए। इससे जल प्रदूषित होता है जो भूमि को भी प्रदूषित करता है।

इन उपर्युक्त उपायों से भूमि प्रदूषण को कम किया जा सकता है।

प्रश्न 12.
अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में पनामा नहर की महत्ता का वर्णन करें।
उत्तर:
पनामा नहर का निर्माण अटलांटिक एवं प्रशान्त महासागर के तटीय देशों को जोड़ने के उद्देश्य से 1913 ई० में किया गया था। 70 किलोमीटर लम्बा यह नहर पनामा नहर और कोलोन के बीच फैला है। इस नगर मार्ग के मध्य 6 दरवाजे या जलबन्ध बनाये गये हैं जो यहाँ से समुद्र जहाजों को पार करने में मदद करती हैं। दोनों महासागरों के जलस्तर में 26 मीटर का अंतर होने के कारण इस नहर को पार करने पर जहाजों को 26 मीटर ऊपर-नीचे होकर जाना पड़ता है।

इस नहर के बन जाने के बाद सबसे अधिक लाभ संयुक्त अमेरिका को हुआ है। इसके पूर्वी और पश्चिमी तट के बीच यात्रा की दूरी और समय दोनों में उल्लेखनीय कमी आयी है। न्यूयार्क तथा सेन फ्रांसिस्को के बीच लगभग 1300 किलोमीटर की कमी आयी। इसी तरह अमेरिका के पश्चिमी तथा दक्षिण अमेरिका के पूर्वी तटों एवं यूरोप तथा एशिया के बीच की यात्रा और समय कम हो गया है। इसी तरह उत्तरी अमेरिका के पूर्वी तट और दक्षिणी अमेरिका के पश्चिमी तटीय देशों के बीच समय और दूरी कम हो गयी है। समय और दूरी कम लगने से वस्तुओं के परिवहन पर लगने वाले व्यय या लागत में भी कमी आयी है। पनामा नहर को प्रशान्त महासागर का सिंहद्वार भी कहा जाता है।

इस नगर मार्ग के बन जाने से न्यूयार्क एवं याकोहामा के बीच 5440 किलोमीटर, सेन फ्रांसिस्को से लिवरपुल के मध्य 8000 किलोमीटर तथा न्यूयार्क एंव आर्कलैण्ड के मध्य 4000 किलोमीटर की दूरी घट गयी है।

प्रश्न 13.
दिये गये मानचित्र का अध्ययन कीजिए और निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
(i) उत्तरी भाग के जल-अभावग्रस्त शुष्क प्रदेश का नाम बताइए। यह प्रदेश किस वर्ग (उष्ण या शीत) में रखा गया है ?
(ii) उत्तरी-पश्चिमी भाग के जल-अभावग्रस्त शुष्क प्रदेश के नाम बताइए। यह प्रदेश किस वर्ग (उष्ण या शीत) में रखा गया है ?
Bihar Board 12th Geography Important Questions Long Answer Type Part 5, 6
उत्तर:
(i) जम्मू-कश्मीर का उत्तरी भाग। यह शीत वर्ग में आता है।
(ii) हरियाणा का पश्चिमी भाग, पश्चिमी राजस्थान तथा गुजरात का पश्चिमी भाग। यह उष्ण वर्ग में आता है।

प्रश्न 14.
संसार के रेखा मानचित्र पर निम्नलिखित को दर्शाइए-
(i) उत्तरी अमेरिका, यूरोप तथा एशिया, प्रत्येक से एक-एक वैश्विक नगर
(ii) हाँगकाँग, शेनझेग, गुआंगझाऊ-झुई-मुकाऊ के विकसित गेगालोपोलिस।
उत्तर:
Bihar Board 12th Geography Important Questions Long Answer Type Part 5, 7

प्रश्न 15.
भारत का मानचित्र बनाकर निम्नलिखित को इंगित करें :
(क) पटना (ख) दिल्ली (ग) कोंकण तट (घ) अंडमान निकोबार द्वीप (ङ) बंगाल की खाड़ी (च) मुंबई हाई।
Bihar Board 12th Geography Important Questions Long Answer Type Part 5, 8

प्रश्न 16.
ऊर्जा के अपारम्परिक स्रोत कौन-से हैं ? भारत में इसकी संभावनाओं की चर्चा करें।
उत्तर:
ऊर्जा के अपारंपरिक स्रोत के अंतर्गत सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा, ज्वारीय तथा तरंग ऊर्जा, भूतापीय ऊर्जा एवं जैव ऊर्जा को सम्मिलित करते हैं। भारत के संदर्भ में इसका विवरण निम्न है-

(i) सौर ऊर्जा – ऊर्जा का वैसा रूप जिसे सौर प्लेटों के सहारे सूर्य की किरणों से प्राप्त किया जाता है, सौर ऊर्जा कहलाता है, इस प्रकार की ऊर्जा कोयला एवं तेल आधारित संयंत्रों की अपेक्षा 7 प्रतिशत अधिक तथा नाभिकीय ऊर्जा से 10 प्रतिशत अधिक प्रभावी है। भारत के पश्चिमी भागों गुजरात व राजस्थान में सौर विकास की संभावनाएँ अधिक हैं।

(ii) पवन ऊर्जा – प्रवाहित पवन के द्वारा प्राप्त ऊर्जा को पवन ऊर्जा कहते हैं। यह प्रदूषण मुक्त ऊर्जा होती है। पवन ऊर्जा का हमारे देश में संभावित क्षमता 50,000 मेगावाट की है। एशिया महादेश का सबसे बड़ा पवन ऊर्जा संयंत्र गुजरात के कच्छ में लाम्बा पवन ऊर्जा संयंत्र है। पवन ऊर्जा के लिए राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र तथा कर्नाटक में अनुकूल परिस्थितियाँ विद्यमान है।

(iii) ज्वारीय तथा तरंग ऊर्जा – समुद्री जल के ज्वारीय तरंगों से प्राप्त ऊर्जा को ज्वारीय ऊर्जा कहते हैं। महासागरीय धाराएँ ऊर्जा का अपरिमित भंडार गृह हैं। भारत के पश्चिमी तट पर वृहत् ज्वारीय तरंग उत्पन्न होती है। भारत में इस प्रकार की ऊर्जा का विकास अभी शैशवावस्था में है।

(iv) भूतापीय ऊर्जा – पृथ्वी के गर्भ से तप्त मैग्मा जो अधिक मात्रा में ऊष्मा निर्मुक्त करती है, इससे प्राप्त ऊर्जा को भूतापीय ऊर्जा कहते हैं। भारत में, भूतापीय ऊर्जा संयंत्र हिमाचल प्रदेश के मानीकरण में अधिकृत किया जा चुका है। बिहार राज्य के राजगीर, गया एवं मुंगेर से निकलने वाली सल्फर युक्त गर्म जल से भी ऊर्जा की प्राप्ति हो सकती है।

(v) जैव ऊर्जा – जैविक उत्पादों से प्राप्त ऊर्जा को जैव ऊर्जा कहते हैं। जैविक उत्पादों के अंतर्गत गोबर, मल-मूत्र, अपशिष्ट को सम्मिलित करते हैं। भारत के दिल्ली केन्द्रशासित प्रदेश में नगरपालिका कचरे से ऊर्जा की प्राप्ति होती है।

प्रश्न 17.
निरुद्योगीकरण एवं पुनरुद्योगीकरण में अंतर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
निरुद्योगीकरण (Deindustrialisation) – विनिर्माण उद्योगों के ह्रास को निरुद्योगीकरण कहा जाता है। निरुद्योगीकरण की प्रक्रिया विकसित देशों में अनेक कारकों का परिणाम है।

  1. विनिर्माण उद्योगों में मनुष्य के स्थान पर मशीनों का प्रयोग बढ़ना।
  2. विदेशों में अत्यंत सस्ती दरों पर उत्पन्न औद्योगिक उत्पादों की प्रतिस्पर्धा।
  3. नई मशीनों के निवेश में कमी के कारण इन उत्पादों का मूल्य अधिक होना।
  4. उच्च योग्यता प्राप्त लोगों द्वारा तृतीयक तथा चतुर्थक क्षेत्र के कार्यों को वरीयता देना।
  5. उच्च ब्याज दर तथा विदेशों से खरीदी जाने वाली वस्तुओं का और अत्यधिक महँगा होना।

पुनरुद्योगीकरण (Reindustrialisation) – इससे तात्पर्य नए उद्योगों के कुछ खंडों का विकास करना है। विशेषकर उन क्षेत्रों में जहाँ उद्योगों का ह्रास हुआ है। अत्यधिक विकसित देशों में पुनरुद्योगीकरण की निम्न विशेषताएँ हैं-

  1. उच्च प्रौद्योगिक फर्मों जैसे इलैक्ट्रोनिक्स के सामान का उत्पादन करने वाली फर्मों की वृद्धि।
  2. ऐसी नई फर्म जो बहुधा उच्च कुशलता वाले कम श्रम के आधार पर विनिर्माण की स्थापना करती है।
  3. नई फर्म जो अपेक्षाकृत अल्प औद्योगिक क्षेत्रों में अथवा महानगरों के सीमांतों पर आधारित हैं।

प्रश्न 18.
स्वर्णिम चतुर्भुज परम-राजमार्ग पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
स्वर्णिम चतुर्भुज परम राजमार्ग (Golden Quadrilateral Super Highways) – भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण ने देश में चार महानगरों-दिल्ली, कोलकाता, मुम्बई एवं चेन्नई को 4 लेन वाले द्रूतगामी सड़क मार्ग से जोड़ने के लिए स्वर्णिम चतुर्भुज परियोजना का शुभारम्भ 2 जनवरी, 1999 को किया। इस योजना में स्वर्णिम चतुर्भुज जो दिल्ली, मुम्बई, चेन्नई और कोलकाता चार महानगरों को जोड़ने वाले 5,846 किलोमीटर और उत्तर-दक्षिण तथा पूरब-पश्चिम गलियारों (7,300 किलोमीटर) जो क्रमशः श्रीनगर से कन्याकुमारी तथा सिल्वर से पोरबन्दर से जोड़ते हैं, 4/6 लेन वाले शामिल हैं। 5,846 किलोमीटर लम्बे इस कुल मार्ग में 5,319 किलोमीटर को 4 लेन वाला किया जा चुका था। 7,300 किलोमीटर में से 822 किलोमीटर लम्बे मार्ग को चार लेन में बदलने का कार्य पूरा हो चुका है और 4,892 किलोमीटर की लम्बाई के मार्ग पर कार्य चल रहा है।

प्रश्न 19.
संसार के रेखा मानचित्र पर निम्नलिखित को उचित चिह्नों द्वारा दर्शाइए तथा उनके नाम लिखिए-
(i) संसार के पाँच सबसे बड़े व्यापारिक देश।
(ii) यूरोपीय मुक्त व्यापार संगठन (इफ्टा) देशों के नाम।
(iii) ओपेक के सदस्य देश।
(iv) आसियान के सदस्य देश।
उत्तर:
(i)
Bihar Board 12th Geography Important Questions Long Answer Type Part 5, 9
चित्र : संसार के पाँच व्यापारिक देश

(ii)
Bihar Board 12th Geography Important Questions Long Answer Type Part 5, 10

(iii)
Bihar Board 12th Geography Important Questions Long Answer Type Part 5, 11

(iv)
Bihar Board 12th Geography Important Questions Long Answer Type Part 5, 12

प्रश्न 20.
भारत का मानचित्र बनाकर निम्नलिखित को प्रदर्शित करें :
(a) तालचिर (b) कांडला पत्तन (c) राँची (d) शिमला (e) अजमेर (f) पटना।
उत्तर:
Bihar Board 12th Geography Important Questions Long Answer Type Part 5, 13

प्रश्न 21.
भारत के रेखा मानचित्र पर सूती वस्त्र उद्योग के प्रमुख केन्द्रों का वितरण दिखाइए।
उत्तर:
Bihar Board 12th Geography Important Questions Long Answer Type Part 5, 14

प्रश्न 22.
भारत का मानचित्र बनाकर निम्नलिखित को प्रदर्शित करें :
(क) जमशेदपुर
(ख) आगरा
(ग) दिल्ली
(घ) हैदराबाद
(ङ) पुणे
(च) शिलांग।
उत्तर:
Bihar Board 12th Geography Important Questions Long Answer Type Part 5, 15

Bihar Board 12th Business Studies Important Questions Short Answer Type Part 1 in Hindi

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Bihar Board 12th Business Studies Important Questions Short Answer Type Part 1 in Hindi

प्रश्न 1.
क्या केवल नियोजन सफलता सुनिश्चित करता है ?
उत्तर:
नियोजन सफलता सुनिश्चित करता है। नियोजन प्रबंधन का प्राथमिक कार्य है। निर्धारित लक्ष्यों एवं उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए भविष्य में क्या करना है, क्यों करना है, किसे करना है, कब करना है, कैसे करना है और किन-किन साधनों के उपयोग से करना है इत्यादि बातों का पहले से ही निर्धारण करना नियोजन कहलाता है। वास्तव में व्यापार की सफलता बहुत हद तक नियोजन पर निर्भर करता है।

प्रश्न 2.
अस्थायी अलगाव से क्या समझते हैं ?
उत्तर:
अस्थायी तौर पर जब नियोक्ता किसी कर्मचारी को उसके काम से निलंबन करता है या उसे. हटा देता है तो इसे अस्थायी अलगाव कहा जाता है। इसमें नियोक्ता अपने कर्मचारी को उसके बकाये वेतन और अन्य सुविधाओं को देता है। बाद में चलकर नियोक्ता पुनः उस कर्मचारी की नियुक्ति कर देता है। जब कर्मचारी की पुनः नियुक्ति होती है तब उसी समय से कर्मचारी की वेतन तय होता है।

प्रश्न 3.
विनियोग निर्णय से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर:
विनियोग का अर्थ होता है पैसे का किसी भी क्षेत्र में निवेश करना। विशेष रूप से अंश और ऋण में पैसे का विनियोग करना लाभदायक होता है। विनियोग करने के संबंध में उचित निर्णय लेना ही विनियोग निर्णय कहलाता है। सोच-समझकर विनियोग का निर्णय करने से निवेशकों को लाभ के रूप में आय की प्राप्ति हो सकती है।

प्रश्न 4.
NESI को मॉडल एक्सचेंज क्यों कहा जाता है ?
उत्तर:
NESI को विभिन्न कारणों से मॉडल एक्सचेंज कहा जाता है। ये कारण निम्न हैं-

  • राष्ट्रव्यापी बाजार उपलब्ध कराना,
  • व्यापार में कुशलता निष्पक्षता एवं पारदर्शिता लाना
  • समान रूप से उच्च किस्म की सेवाएं प्रदान करना
  • राष्ट्रीय स्कन्ध विपणि को सभी निवेशकों की पहुँच में लाना
  • ऋण बाजार का विकास करना
  • लागतों में कमी लाना
  • अखिल भारतीय स्तर पर सेवायें प्रदान करना।

प्रश्न 5.
संदेशवाहन शब्द को लैटिन शब्द भाषा के “Communis” शब्द से लिया गया है। इसका क्या अर्थ हैं ?
उत्तर:
संदेशवाहन (Communication) शब्द लैटिन भाषा के Comminis शब्द से लिया गया है जिसका अर्थ है-Common। किसी विचार या तथ्य को कुछ व्यक्तियों में सामान्य से दूसरे व्यक्ति तक इस तरह पहुँचाना है कि वह उन्हें जान सके तथा समझ सके।

प्रश्न 6.
“प्रबन्ध एक सरल विज्ञान है।” कैसे ?
उत्तर:
किसी विषय का व्यवस्थित ज्ञान ही विज्ञान है, प्रबन्ध भी व्यवस्थित ज्ञान है। विज्ञान की विशेषतायें इसमें पाई जाती हैं। प्रबंध के अनेक सार्वभौमिक सिद्धान्त हैं जो सभी जगह लागू होते हैं। विज्ञान की भाँति प्रबन्ध भी कारण और परिणाम में सम्बन्ध स्थापित करता है।

प्रश्न 7.
अधिकार का अर्थ क्या है ?
उत्तर:
किसी भी व्यापारिक संस्था, फर्म या कम्पनी के प्रबंधक अपने अधीनस्थों को प्रबंध सम्बन्धी कार्य करने की जिम्मेदारी देता है। तो इसे अधिकार कहा जाता है। अधिकार मिलने से ही अधीनस्थ कर्मचारी अपने कर्तव्यों का पालन अच्छी तरह से कर सकते हैं। वास्तव में औद्योगिक युग में कोई भी व्यक्ति न तो सभी कार्य स्वयं कर सकता है और न ही सभी निर्णय स्वयं ले सकता है। अतः वह कुछ कार्य दूसरों को सौंप देता है। इस प्रकार अपने कार्यभार का कुछ भाग दूसरे व्यक्तियों को सौपना ही भारार्पण या अधिकार कहलाता है।

दूसरे शब्दों में यह कहा जा सकता है कि प्रबंध संबंधी शक्ति प्राप्त करना ही अधिकार कहलाता है।

प्रश्न 8.
ऐसा क्यों कहा जाता है कि नियंत्रण नियोजन के अभाव में अंधा है ?
उत्तर:
ऐसा कहा जाता है कि नियंत्रण नियोजन के अभाव में अन्धा है। क्योंकि जब नियोजन की प्रक्रिया अच्छी तरह से नहीं होती है तो व्यवसायिक संस्था को नियंत्रण भी अच्छी तरह से नहीं किया जा सकता है। नियोजन और नियंत्रण दोनों एक दूसरे के लिए आवश्यक कार्य है। दोनों ही एक-दूसरे पर निर्भर हैं। नियोजन के बिना नियंत्रण अर्थहीन है तथा नियंत्रण नियोजन के बिना अंधा है। वास्तव में नियंत्रण नियोजन को उदेश्यपूर्ण बनाता है एवं नियोजन नियंत्रण को निर्देशन प्रदान करता है।

प्रश्न 9.
वितरण माध्यम से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर:
वितरण माध्यम वस्तुओं को उत्पादक (निर्माता) से उपभोक्ताओं तक पहुँचाने का वह मार्ग है जिसमें वे सभी व्यक्ति एवं संस्थाओं सम्मिलित की जाती है जो बिना किसी परिवर्तन के इनको पहुँचाने का कार्य करती है। निर्माताओं अथवा उत्पादकों को अपनी वस्तुओं को अन्तिम उपभोक्ताओं तक पहुँचाने के लिए वितरण के किसी उपयुक्त माध्यम का चुनाव करना पड़ता है। उपयुक्त माध्यम वह है जो मितव्ययी हो तथा अधिकतम लाभप्रद हो।

प्रश्न 10.
ऐसा क्यों कहा जाता है कि प्रबन्ध के सिद्धान्त सार्वभौमिक हैं ?
उत्तर:
प्रबंध के सिद्धान्त सार्वभौमिक है क्योंकि प्रबंध के सभी सिद्धान्त सार्वभौमिक योग्यता और उपयोगिता पर आधारित है। यह मानव के प्रत्येक क्षेत्र आर्थिक, समाजिक, राजनैतिक एवं धार्मिक में लागू होता है। प्रत्येक क्षेत्र में नियोजन, निर्देशन, समन्वय तथा नियंत्रण की आवश्यकता पड़ती है। अतः प्रबंध की उपयोगिता सार्वभौमिक है।

प्रश्न 11.
नियंत्रण के उद्देश्य बताइए।
उत्तर:
नियंत्रण के उद्देश्य निम्नलिखित हैं-

  • उद्देश्य की जानकारी करना (Determining objectives) – इस बात का पता लगाना कि क्या किया जाना है और किस समय किया जाना है।
  • साधनों की जानकारी करना (Determining of Resources) – किसी कार्य को करने के लिए कितनी पूँजी और मानवीय शक्ति की आवश्यकता है।
  • विचलन का पता लगाना (Determining of deviation) – प्रतिमानों एवं निष्पादन में विचलन का पता लगाना और संशोधन करना।

प्रश्न 12.
पूँजी संरचना से क्या आप समझते हैं ?
उत्तर:
पूँजी संरचना से आशय पूँजी के दीर्घकालीन साधनों के पारस्परिक अनुपात से है। इसमें समस्त दीर्घकालीन कोष सम्मिलित होते हैं, जैसे – अंश पूँजी, ऋणपत्र, दीर्घकालीन ऋण तथा संचितियाँ।

प्रश्न 13.
उच्च स्तरीय प्रबंध के किन्ही तीन कार्यों को बताएं।
उत्तर:
उच्च स्तरीय प्रबंध के दो कार्य निम्नलिखित हैं-

  • उच्च स्तरीय प्रबंधक संस्था के उद्देश्यों का निर्धारण करते हैं।
  • निर्धारित उद्देश्यों के प्राप्त करने के लिए उच्च स्तरीय प्रबंधक द्वारा नीतियों का निर्धारण किया जाता है।
  • निर्धारित उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए उच्च स्तरीय प्रबंध द्वारा विभिन्न साधनों की व्यवस्था की जाती है।

प्रश्न 14.
नियंत्रण आगे देखना है। समझाइए।
उत्तर:
नियंत्रण का उद्देश्य व्यवसाय के भावी लक्ष्यों की प्राप्ति है। यही कारण है कि सुधारक कार्यवाहियाँ इस प्रकार की जाती हैं कि भविष्य में उन कमियों और गलतियों को न दोहराया जाए जो कि वर्तमान में की गयी है। इस प्रकार नियंत्रण प्रक्रिया कार्य की वास्तविक प्रगति की समीक्षा ही नहीं वरन् भविष्य के उद्देश्यों और लक्ष्यों की प्राप्ति भी है।

प्रश्न 15.
प्रबंध के नियंत्रण कार्य में प्रयोग होने वाले ‘विचलन’ शब्द का अर्थ बताएँ।
उत्तर:
नियंत्रण प्रक्रिया का अगला तीसरा स्तर प्रमाप (विचलन) और वास्तविक हुए कार्यों के बीच आने वाले अंतर के कारणों को मालूम करना है। इससे यह तथ्य मालूम करने का प्रयत्न किया जाता है कि जो अंतर आया है वह गलत योजना बनने के कारण आया है या योजना ठीक तरह से लागू करने के कारण आया है।

प्रश्न 16.
मुद्रा बाजार क्या है ?
उत्तर:
मुद्रा बाजार (Money market) वह केन्द्र या बाजार है जिसमें मुद्रा एवं अल्पावधि वित्तीय आस्तियाँ जो मुद्रा के निकट के प्रतिरूप हैं, ली और दी जाती हैं। मुद्रा बाजार में मुद्रा विनिमय-पत्रों, प्रतिज्ञा-पत्रों व अल्पकालीन बिलों को मुद्रावत (near money) कहा जाता है।

प्रश्न 17.
विपणन के दो तत्वों को बताइए।
उत्तर:
विपणन के दो तत्व निम्नलिखित हैं-

  • बाजार तथा
  • ग्राहक

प्रश्न 18.
उत्पाद के मूल्य संबंधी निर्णय से आपका क्या तात्पर्य है ?
उत्तर:
मूल्य निर्धारण विपणन-मिश्रण का दूसरा तत्व है। मूल्यों का निर्धारण इस प्रकार किया जाना चाहिए कि मूल्य उपभोक्ता को अधिक प्रतीत न हो, संस्था प्रतियोगिता में टिककर उचित लाभ प्राप्त कर सके तथा सरकारी नियंत्रणों से भी अपने आपको बचा सके।

प्रश्न 19.
विज्ञापन क्रेता को भ्रमित करता है। कैसे ?
उत्तर:
विज्ञापन क्रेता को भ्रमित करता है, क्योंकि विज्ञापन खराब-से-खराब वस्तुओं और सेवाओं को अच्छा-से-अच्छा बना देता है। विज्ञापन में जो दिखाया जाता है, वह वास्तव में होता नहीं है। विज्ञापन द्वारा वस्तुओं और सेवाओं की गुणवत्ता को बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया जाता है जिससे क्रेता आसानी से भ्रमित हो जाते हैं।

प्रश्न 20.
उद्यमिता क्या है?
उत्तर:
उद्यमितया या साहसिक कार्यों का अर्थ है-कार्यों को देखना, विनियोग करना, उत्पादन के अवसरों को देखना, उपक्रम को संगठित करना और नई विधि से उत्पादन करना, पूँजी प्राप्त करना, श्रम और सामग्री को एकत्रित करना, उच्च पद के अधिकारी, प्रबंधकों का चयन जो संगठन के दिन-प्रतिदिन के कार्यों को करेंगे।

प्रश्न 21.
प्रबंध में हेनरी फेयोल के योगदान का वर्णन करें।
उत्तर:
प्रबंध में हेनरी फेयोल का महत्वपूर्ण योगदान है। फेयोल ने प्रबंध के लिए 14 सिद्धांत दिए हैं-

  • कार्य विभाजन
  • अधिकार एवं उत्तरदायित्व
  • अनुशासन
  • आदेश की एकता
  • निर्देश की एकता
  • केन्द्रीयकरण या विकेन्द्रीकरण
  • व्यक्तिगत हित सामान्य हित के अधीन
  • कर्मचारियों
  • सोपान श्रृंखला
  • व्यवस्था अथवा क्रमबद्धता
  • समता
  • कर्मचारियों में स्थायित्व
  • पहल क्षमता
  • सहयोग की भावना

प्रश्न 22.
नियोजन की सीमाएँ लिखें।
उत्तर:
नियोजन की सीमाएँ इस प्रकार हैं-

  • नियोजन पर किए गए व्यय से लागत व्ययों में वृद्धि होती है।
  • नियोजन में यदि परिवर्तन किया जाए तो बाधाएँ आती हैं।
  • नियोजन में पक्षपातपूर्ण निर्णय किए जाते हैं।
  • संकट काल में नियोजन करना संभव नहीं है।
  • नियोजन बहुत अधिक खर्चीली प्रक्रिया है। इसको तैयार करने में बहुत अधिक समय, श्रम तथा धन का अपव्यय होता है।

प्रश्न 23.
क्या जवाबदेही को सौंपा जा सकता है ?
उत्तर:
जवाबदेही के संबंध में उल्लेखनीय बात है कि प्रबंधक अपने जवाबदेही का सौंपना या प्रतिनिधान (delegation) नहीं कर सकता। हाँ, अन्य व्यक्तियों से सहायता ली जा सकती है किन्तु जवाबदेही मूल व्यक्ति का ही रहता है। उदाहरण के लिए, एक कंपनी की दशा में प्रबंध संचालक अपने कर्तव्यों के लिए संचालक मण्डल के प्रति उत्तरदायी होगा।

वह अपने कार्य-भार को हल्का करने के उद्देश्य से अन्य लोगों की सहायता लेता है तथा उन्हें आवश्यक अधिकार भी प्रदान करता है परंतु यदि अधीनस्थ व्यक्ति के आचरण से कंपनी को कोई हानि होती है तो संचालक मण्डल के सम्मुख प्रबंध संचालक ही जवाबदेह होगा। संक्षेपण में हम यह कह सकते. हैं कि केवल अधिकारों को ही सौंपी जा सकता है जवाबदेही को नहीं।

प्रश्न 24.
वित्तीय नियोजन के महत्व समझाइए।
उत्तर:
पूँजी आधुनिक उद्योगों की जीवन-संजीवनी है। कोई भी उद्योग, चाहे वह छोटा हो या बड़ा, उस समय तक सफल नहीं हो सकता जब तक कि उसके पास पर्याप्त मात्रा में पूँजी का प्रबंध न हो। कोई भी व्यवसाय शुरू करने का विचार मन में आने की स्थिति से लेकर उसके प्रवर्तन, संचालन, विस्तार और उसके समापन तक सभी परिस्थितियों में पूँजी की आवश्यकता होती है।

आवश्यकतानुकूल एवं समय पर वित्त का प्रबंध न होने पर बड़ी से बड़ी और अच्छी-सेअच्छी योजनाएँ भी असफल हो जाती हैं। अतः प्रबंधकों को चाहिए कि वे वित्तीय आयोजन भली-भाँति करें। कम्पनी की भावी सफलता वित्तीय आयोजन की सुदृढ़ता पर ही निर्भर करती है।

यदि इसके निर्माण में पर्याप्त ज्ञान, तकनीकी अनुभव और दूरदर्शिता का प्रयोग किया जाता है तो भविष्य के लिए वरदान सिद्ध होगी। इसके विपरीत अदूरदर्शिता, अपरिपक्व ज्ञान एवं अनुभवहीनता के आधार पर जल्दबाजी में बनाई गई वित्तीय योजना कम्पनी के भविष्य और अंशधारियों के हितों के लिए स्थायी खतरा बन जाती है। उपक्रम के अल्पकालीन एवं दीर्घकालीन दोनों ही प्रकार के लक्ष्यों की पूर्ति के लिए अत्यन्त आवश्यक है कि भली प्रकार से वित्तीय नियोजन (Financial Planning) किया जाए।

प्रश्न 25.
स्थायी पूँजी की कोई तीन विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
स्थायी पूँजी की तीन विशेषताएँ इस प्रकार हैं-

  • इसका उपयोग स्थायी संपत्तियों का क्रय करने में किया जाता है।
  • यह व्यवसाय में दीर्घकाल तक रहती है।
  • इसकी मात्रा व्यवसाय की प्रकृति पर निर्भर करती है।

प्रश्न 26.
शेयर बाजार को परिभाषित करें।
उत्तर:
शेयर बाजार एक ऐसा संगठित बाजार है जहाँ पर विभिन्न प्रकार की प्रतिभूतियों का क्रय-विक्रय किया जाता है। ये प्रतिभूतियाँ वे हैं जो शेयर बाजार की सूची में सम्मिलित हों और जो पहले ही किसी संस्था द्वारा जारी की गई हों। जैसे-सार्वजनिक कंपनियों द्वारा निर्गमित कंपनियों द्वारा निर्गमित अंश एवं ऋणपत्र, सरकार तथा नगरपालिका द्वारा जारी किये गये ब्रांड आदि तथा विभिन्न प्रयासों द्वारा निर्गमित प्रतिभूतियाँ। शेयर बाजार में प्रतिभूतियों का लेन-देन विनियोग या सट्टे के लिए कुछ निश्चित नियमों के अनुसार किया जाता है।

प्रतिभूति अनुबंध (नियमन) अधिनियम, 1956 के अनुसार, ‘स्टॉक एक्सचेंज का आशय व्यक्तियों के एक ऐसे संगठन या संस्था से है, चाहे वह समामेलित हो या न हो, जिसकी स्थापना प्रतिभूतियों के क्रय-विक्रय और लेन-देन में सहायता नियमन तथा नियंत्रण करने के उद्देश्य से की गई हो।’

प्रश्न 27.
विपणन मिश्रण की क्या विचारधारा है ?
उत्तर:
विपणन मिश्रण का अर्थ (Meaning of marketing mix) – विक्रय में सफलता प्राप्त करने के उद्देश्य से विक्रेता विभिन्न नीतियों का मिश्रण (mix) करता है। यही विपणन मिश्रण कहलाता है।

परिभाषा – विपणन मिश्रण की प्रमुख परिभाषाएँ निम्नलिखित हैं-

  1. डॉ० आर० एस० डावर के अनुसार, ‘निर्माताओं के द्वारा बाजार में सफलता प्राप्त करने के लिए प्रयोग की जाने वाली नीतियाँ विपणन-मिश्रण (Marketing mix) का निर्माण करती हैं।’
  2. कीली एवं लेजर के अनुसार, ‘विपणन मिश्रण उस बड़ी बैटरी की युक्तियों से बना है जिसको क्रेताओं का किसी विशेष वस्तु की खरीद करने के लिए प्रेरित करने के उद्देश्य से काम में लाया जा सकता है।
  3. फिलिप कोटलर के अनुसार, ‘एक फर्म का उद्देश्य अपने विपणन घरों के लिए सर्वोत्तम विन्यास (Setting) को खोजना है। यह विन्यास विपणन-मिश्रण कहलाता है।’

विक्रय में सफलता प्राप्त करने के उद्देश्य से विक्रेता/उत्पादक विभिन्न नीतियों का मिश्रण (mix) करता है। यही विपणन मिश्रण (Marketing mix) कहलाता है। प्रत्येक विक्रेता अनेक घटकों (वस्तु का ब्राण्ड, मूल्य, पैकिंग, विज्ञापन, वितरण, अनुसंधान आदि) का मिश्रण (mix) इस प्रकार करता है कि एक निश्चित समय पर सर्वाधिक लाभ प्राप्त किया जा सके।

विपणन रीति-नीति (Marketing Strategy) का एक भाग/हिस्सा विपणन-मिश्रण (Marketing mix) है। विपणन रीति-नीति के अंतर्गत दो बातों का अध्ययन होता है-

  • बाजार लक्ष्यों की परिभाषा देना (Definition of Market Targets)
  • विपणन-मिश्रण का संयोजन (Composition of marketing mix) जबकि विपणन-मिश्रण उपकरणों का संयोग (Combination) है जिसके माध्यम से विपणन उद्देश्यों को प्राप्त किया जाता है।

प्रश्न 28.
लेबल के विभिन्न प्रकार क्या है ?
उत्तर:
लेबल मुख्यतः तीन प्रकार के होते हैं जो इस प्रकार हैं
(i) ब्रांड लेबल – ऐसा लेबल जिस पर केवल वस्तु के ब्रांड का नाम लिखा हो, ब्रांड लेबल कहलाता है। इस लेबल पर वस्तु के ब्रांड के नाम के अतिरिक्त अन्य कोई जानकारी नहीं दी जाती है।

(ii) श्रेणी लेबल – यह एक ऐसा लेबल होता है जिस पर लिखे शब्द या अंक उस वस्तु की क्वालिटी या श्रेणी को प्रदर्शित करते हैं। जैसे-जब इंजीनियरिंग वर्क्स लिमिटेड, कोलकाता उषा ब्रांड के नाम से पंखे बनाती है जो कि क्वालिटी के आधार पर अनेक प्रकार के हैं। इसी आधार पर उन पर Delux, Prima व Continentel के लेबल लगे होते हैं। इस प्रकार के लेबल श्रेणी लेबल कहलाते हैं।

(iii) विवरणात्मक लेबल – इन लेबलों पर उत्पादन का पूर्ण विवरण लिखा होता है। जैसे-

  • वस्तु किन-किन चीज को मिलाकर तैयार की जाती है
  • वस्तु का प्रयोग किस प्रकार किया जाए
  • वस्तु के विभिन्न प्रयोग
  • प्रयोग करते समय ध्यान रखने वाली बातें
  • उत्पादक का नाम
  • उत्पादक की तिथि
  • बैच नम्बर आदि। इस तरह के लेबलों का प्रयोग प्रायः दवाई निर्माता करते हैं।

प्रश्न 29.
साझेदारी की विशेषताएं क्या हैं ?
उत्तर:
साझेदारी की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं-

  1. साझेदारी की स्थापना के लिए कम-से-कम दो व्यक्तियों का होना अनिवार्य है।
  2. साझेदारों के बीच समझौता होना चाहिए जो लिखित या मौखिक हो सकता है।
  3. किसी वैद्य व्यापार को चलाने के लिए साझेदारी की स्थापना होती है।
  4. समझौते का उद्देश्य व्यवसाय के लाभ-हानि का बँटवारा करना होता है।
  5. साझेदारी फर्म के सभी साझेदारों को व्यवसाय के संचालन में भाग लेने का अधिकार होता है।

इस प्रकार प्रत्येक साझेदार फर्म का एजेन्ट भी होता है और स्वामी भी।

प्रश्न 30.
प्रबन्ध के चार कार्यों की विवेचना कीजिए। अथवा, प्रबन्ध के कार्यों का उल्लेख करें।
उत्तर:
प्रबन्ध के चार कार्य निम्नलिखित हैं-

  1. नियोजन- यह प्रबन्ध का एक महत्त्वपूर्ण कार्य है। व्यावसायिक संस्था के लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए पहले से ही कार्य नीति निर्धारण करना कि क्या करना है, कब, किसे और कैसे करना है नियोजन कहलाता है।
  2. नियुक्तिकरण- इसके अंतर्गत व्यक्तियों से पदों को भरा जाता है ताकि कार्यों का निष्पादन किया जा सके।
  3. संगठन-नियोजन तो किसी विचार को लिख देना मात्र ही है, लेकिन इस विचार को वास्तविकता में बदलने के लिए मानव समूह की आवश्यकता होती है। मानव समूह को व्यवस्था में बाँधने के लिए संगठन की आवश्यकता होती है। इसके अंतर्गत सम्पूर्ण कार्य को विभिन्न छोटे-छोटे कार्यों में बाँटा जाता है।
  4. नियंत्रण- यह प्रबंध का अंतिम तथा महत्त्वपूर्ण कार्य है। इसके अंतर्गत प्रबंधक यह देखता है कि कार्य निश्चित योजना के अंतर्गत हो रहा है या नहीं।

प्रश्न 31.
वित्तीय प्रबंध के कार्यों का संक्षिप्त विवेचना कीजिए।
उत्तर:
वित्तीय प्रबंध के कार्यों को दो भागों में बाँटा जाता है-
1. प्रशासनिक कार्य- इसके अंतर्गत निम्न कार्य आते हैं-

  • वित्तीय पूर्वानुमान
  • वित्तीय नियोजन
  • कोषों की प्राप्ति
  • वित्तीय निर्णय
  • विनियोग निर्णय
  • आय का प्रबंध
  • वित्तीय निष्पादन का मूल्यांकन
  • वित्त नियंत्रण

2. नैत्यिक या दैनिक कार्य- इसके अंतर्गत निम्न कार्य आते हैं-

  • वित्तीय अभिलेख रखना
  • वित्तीय विवरणों को तैयार करना
  • रोकड़ शेष बनाए रखना
  • महत्त्वपूर्ण वित्तीय प्रलेखों को सुरक्षित रखना

प्रश्न 32.
नियुक्तिकरण से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
नियुक्तिकरण से आशय प्रशासन द्वारा निर्धारित नीतियों को लागू करने के लिए योग्य पदाधिकारियों की नियुक्ति, चुनाव, प्रशिक्षण, पदोन्नति, पदावनति, स्थानांतरण, सेवा समाप्ति आदि से संबंधित नियम सिद्धांत तथा समस्याओं से है।

पीटर ड्रकर के अनुसार, “प्रबंध के प्रमुख रूप से तीन उत्तरदायित्व हैं – (i) प्रबंध कार्य, (ii) श्रमिकों का प्रबंध, (iii) मैनेजर्स का प्रबंध।

Bihar Board 12th Business Studies Important Questions Long Answer Type Part 2 in Hindi

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Bihar Board 12th Business Studies Important Questions Long Answer Type Part 2 in Hindi

प्रश्न 1.
प्रबन्ध के सामाजिक उत्तरदायित्व की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
सामाजिक उत्तरदायित्व का अर्थ उन क्रियाओं से है जिसे व्यवसाय ने स्वयं के लिए कर्मचारियों के लिए, विनियोग्यताओं के लिए, अन्य व्यवसायों के लिए तथा देश के लिए करना है। व्यवसाय के सामाजिक उत्तरदायित्व को विभिन्न विद्वानों ने परिभाषित किया है-

ब्रोवन के अनुसार, “व्यवसाय के सामाजिक उत्तरदायित्व का आशय उन नीतियों का अनुकरण करना, उन निर्णयों को लेना या उन कार्यों को करना है, जो समाज के लक्ष्यों और मूल्यों की दृष्टि से वांछनीय है।”

स्टोनियर के अनुसार, “वास्तविक अर्थों में सामाजिक दायित्वों के अंगीकरणं का तात्पर्य समाज की आकांक्षाओं को समझना एवं मान्यता देना और इसकी सफलता के लिए योगदान देने का निश्चय करना है।”

नई दिल्ली में हुई अंतर्राष्ट्रीय सेमीनार, 1965 के घोषणा-पत्र के अनुसार, “व्यवसाय के सामाजिक दायित्व का अर्थ ग्राहकों, कर्मचारियों, अंशधारियों एवं समाज के प्रति दायित्व से है।”

इस प्रकार यह स्पष्ट है कि व्यापार द्वारा समाज के विभिन्न वर्गों के प्रति उत्तरदायित्व निभाने को ही व्यवसाय का सामाजिक उत्तरदायित्व कहते हैं।

आज व्यापार कुशल व्यक्ति इस बात को मानने लगे हैं कि व्यवसाय द्वारा समाज के विभिन्न वर्गों की सेवा की जाए। परन्तु कुछ ऐसे भी व्यापारी हैं जो केवल लाभ के लिए ही कार्य करते हैं। इन व्यापारियों को अपना अस्तित्व बनाये रखना कठिन हो जाता है।

प्रश्न 2.
प्रशिक्षण के महत्त्व एवं विधियों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
प्रशिक्षण किसी भी कार्य प्रणाली का रीढ़ माना जाता है। व्यक्ति की किसी खास कार्य के लिए प्रशिक्षण की आवश्यकता होती है। कर्मचारियों को कई प्रकार से प्रशिक्षण दिया जाता है। यह प्रशिक्षण कर्मचारी विभाग की सहायता से आयोजित करना ज्यादा लाभदायक होता है। दूसरी ओर विशेषज्ञों द्वारा विशेष पाठ्यक्रम एवं योजना के अधीन प्रशिक्षण दिया जाता है।

इन प्रणालियों को दो भागों में बाँटा गया है-
1. काम पर प्रशिक्षण प्रणाली-इसके अंतर्गत कर्मचारियों को काम पर लगाकर प्रशिक्षण दिया जाता है। इससे कर्मचारी काम भी सीखता है और उत्पादन भी करता है। वह यहाँ पर अपनी भूल को तुरंत सुधारने की चेष्टा भी करता है। इसकी लागत भी कम आती है। इस प्रकार के प्रशिक्षण निम्न प्रकार से दिये जाते हैं-

(i) निर्देशन एवं परामर्श-निर्देशन एवं परामर्श भी इस प्रणाली में दिये जाते हैं। कई वरिष्ठ अनुभवी कर्मचारी उन्हें काम का प्रशिक्षण देता है और स्वयं करके दिखाने से जल्दी समझ में आता है। वह कठिनाइयों को तुरंत दूर करता है।

(ii) प्रशिक्षार्थी प्रशिक्षण प्रणाली इस प्रणाली में युवा प्रशिक्षार्थी को किसी अनुभवी, प्रशिक्षित तथा निपुण कारीगर के साथ दिया जाता है। वह कारीगर ही उसे काम सिखाता है। काम की बारीकियों को समझाता है। जैसे-चार्टर्ड एकाउन्टेंट।

(iii) सहायक अधिकारी प्रणाली इस प्रणाली में किसी उच्च अधिकारी का सहायक बना दिया जाता है। वह समय-समय पर उनकी अनुपस्थिति में उसकी जिम्मेदारियों का निर्वाह करता है। उच्च अधिकारी समय-समय पर उसे निर्णय भी देते रहता है। इससे वह निपुण हो जाता है।

(iv) कार्य बदली प्रणाली-इस प्रणाली में एक प्रशिक्षण संचालक के निर्देशन में विभिन्न सम्बन्ध विभागों में काम पर घुमाया जाता है और सभी सीटों पर काम करने की प्रणाली से परिचित कराया जाता है। फलस्वरूप वह संस्था की तंत्र व्यवस्था को भली-भाँति समझ लेता है और अपने अधीन काम करने वालों की प्रणाली को समझ लेता है।

2. कार्य से पृथक प्रशिक्षण-इसके अंतर्गत एक पूर्व नियोजित कार्य के अनुसार व्यापक प्रशिक्षण दिया जाता है। इसकी मुख्य विधियाँ निम्न हैं-
(i) विशेष पाठ्यक्रम-संस्था के अनुभवी प्रबंधकों एवं शिक्षाविदों की सहायता से एक विशिष्ट पाठ्यक्रम बनाया जाता है और उसी के अनुसार कक्षाएँ आयोजित की जाती है। इन कक्षाओं में सैद्धान्तिक और व्यावहारिक ज्ञान प्रशिक्षार्थी को दिया जाता है।

(ii) भूमिका निर्वाह-इस प्रणाली में एक कृत्रिम संघर्ष का निर्माण किया जाता है, जिसमें किसी प्रशिक्षार्थी को किसी पात्र की भूमिका निभानी होती है। अपनी भूमिका अदा करके परीक्षार्थी दूसरे के समक्ष व्यवहार करना सीखता है। वह अपने व्यवहार तथा दूसरों पर इसके प्रभाव का अवलोकन करके मानव सम्बन्धों और नेतृत्व सम्बन्धी प्रशिक्षण प्राप्त करता है।

(iii) व्यावसायिक क्रिया व्यावसायिक क्रिया एक ऐसी प्रतियोगिता है जिससे वास्तविक जीवन की परिस्थितियों का प्रतिनिधित्व होता है। परीक्षार्थी को व्यवसाय के विभिन्न क्षेत्र, जैसेउत्पादन, वितरण, वित्त आदि में निर्णय लेने को कहा जाता है। जिसका निर्णय सर्वोत्तम समझा जाता है उसे प्रतियोगिता में सर्वप्रथम स्थान दिया जाता है।

(iv) बहुपद प्रबन्ध-इस पद्धति में दो प्रबन्ध मण्डलों का गठन किया जाता है। कनिष्ठ प्रबन्ध मण्डल, जिसमें मध्य तथा निम्न स्तर के अधिकारी सम्मिलित होते हैं। समस्याओं का अध्ययन कर वरिष्ठ प्रबन्ध मण्डल को अपने सुझाव देते हैं। वरिष्ठ प्रबन्ध मण्डल में उच्च प्रबन्धक होते हैं और अन्तिम निर्णय लेते हैं। कनिष्ठ मण्डल में बारी-बारी से विभिन्न अधिकारियों की नियुक्ति की जाती है।

(v) संवेदनशील प्रशिक्षण-यह एक ऐसी विधि है जिसमें प्रबंधकों में जागरुकता, सहनशीलता, दूसरों को समझने की योग्यता आदि गुणों का विकास किया जाता है। प्रशिक्षार्थियों को छोटे-छोटे समूह में विभाजित करके नियंत्रित परिस्थितियों में उनके पारस्परिक व्यवहार की समीक्षा की जाती है।

(vi) अन्य विधियाँ-इन विधियों के अलावे प्रशिक्षण की कुछ और विधियाँ है। जैसे-गोष्ठी, सम्मेलन, चुने हुए या स्वयं पठन, परिचर्चा, सभा, कार्यशाला, कार्य अनुसंधान, कारखाना दौरे आदि।

प्रश्न 3.
व्यवसाय में दीर्घकालीन वित्तीय स्रोतों की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
जिस प्रकार मनुष्य के जीवन के लिए रक्त की आवश्यकता होती है, उसी प्रकार व्यवसाय के लिए वित्त की आवश्यकता होती है। बिना रक्त के शरीर काम नहीं कर सकता उसी तरह बिना वित्त के व्यावसायिक क्रियाओं का चलना कठिन है। अतः व्यवसाय के कार्यों को निरंतर गति से चलाने के लिए वित्त या पूँजी की आवश्यकता पड़ती है।

व्यवसाय के दीर्घकालीन वित्तीय स्रोत इस प्रकार हैं-

  1. स्वामी की पूँजी।
  2. सावधिक ऋण वित्तीय संस्थाओं से।
  3. जमा ऋण जो स्वामी ने दिये हों।
  4. उधार क्रय तथा लीज सुविधा।
  5. मशीन का क्रय भारतीय औद्योगिक विकास बैंक बिलों की पुनः कटौती योजना।
  6. शीर्ष पूँजी, सीमांत राशि, सहायता, उधार, ऋण सरकार से तथा अन्य विशिष्ट संस्थाओं से लेना।

प्रश्न 4.
पार्षद सीमा नियम एवं पार्षद अंतर नियम में अंतर बताइए।
उत्तर:
पार्षद सीमा नियम एवं पार्षद अंतर्नियम में निम्नलिखित आधार पर अंतर स्पष्ट किया जा सकता है
(i) विषय-वस्तु के आधार पर अंतर – पार्षद सीमा नियम कम्पनी का अधिकार पत्र तथा संविधान होता है जिसमें कम्पनी के उद्देश्यों का वर्णन रहता है। परन्तु अन्तर्नियम में आंतरिक प्रबंध तथा कार्य प्रणाली संबंधी नियम होता है।

(ii) उद्देश्य के आधार पर अंतर – पार्षद सीमा नियम बनाने का उद्देश्य कम्पनी के उच्च पदाधिकारियों को कम्पनी के कार्य के नियमों तथा उपनियमों की जानकारी देना होता है।

(iii) परिवर्तन के आधार पर अंतर – पार्षद नियम में परिवर्तन लाना कठिन होता है। वैधानिक कार्यवाही करने के बाद न्यायालय द्वारा आज्ञा प्राप्त कर इसमें परिवर्तन लाया जा सकता है। परन्तु अन्तर्नियम में परिवर्तन लाना आसान होता है। केवल सदस्यों के विशेष प्रस्ताव द्वारा इसमें विषय परिवर्तन लाया जा सकता है।

(iv) अनिवार्यता के आधार पर अंतर – पार्षद सीमा नियम में बिना कम्पनी का रजिस्ट्रेशन अथवा सम्मेलन नहीं हो सकता है। परन्तु अन्तर्नियम प्रत्येक कम्पनी के लिये आवश्यक नहीं होता है। इसके न रहने पर Table A का नियम लागू होता है।

(v) वैधानिक प्रभाव के आधार पर अंतर – पार्षद सीमा भंग होने पर अन्य व्यक्तियों के बीच की प्रसविदा को लागू नहीं कराया जा सकता है। परन्तु अन्तर्नियम के भंग होने पर प्रसविदा पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।

(vi) शक्तियों से बाहर का सिद्धान्त के आधार पर अंतर – पार्षद सीमा नियम में वर्णित कार्य-क्षेत्र के बाहर कम्पनी द्वारा किया गया सभी कार्य विवर्जित होते हैं। ऐसे कार्यों को सभी सदस्यों द्वारा भी सम्पुष्ट नहीं किया जा सकता। परन्तु अन्तर्नियम के अधिकार क्षेत्र से बाहर किए गए कार्य को सदस्यों द्वारा सम्पुष्ट किया जा सकता है।

(vii) महत्त्व के आधार पर अंतर – पार्षद सीमा नियम कम्पनी का एक महत्त्वपूर्ण प्रलेख होता है जिसकी तुलना देश के संविधान से की जा सकती है। परन्तु अन्तर्नियम पार्षद सीमा नियम का सहायक होता है जिसकी तुलना देश के संविधान के अंतर्गत बनाए गये वैधानिक अधिनियमों से की जा सकती है।

प्रश्न 5.
व्यवसाय के सामाजिक दायित्वों का वर्णन करें।
उत्तर:
हालांकि व्यवसाय करने का प्रमुख उद्देश्य लाभ कमाना है, लेकिन व्यवसाय में समाज के प्रति कुछ उत्तरदायित्व भी हैं। व्यवसाय-कार्य करने के सिलसिले में यह बात ध्यान रखना चाहिए कि व्यवसाय ऐसे करना चाहिए जिससे कि समाज के लोगों का शोषण नहीं हो और समाज में शांति का वातावरण बना रहे। कानूनी दृष्टिकोण से वैध व्यापार करना चाहिए। अवैध व्यापार नहीं करना चाहिए। तभी समाज का वातावरण अच्छा बना रहता है।

वास्तव में, व्यवसाय के सामाजिक उत्तरदायित्वों को निम्नलिखित विचार-बिंदुओं द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है-

  • समाज को रोजगार के उचित अवसर प्रदान करना।
  • समाज में नागरिकों के जीवन-स्तर को ऊँचा उठाने में सहायता करना।
  • व्यवसाय में स्वास्थ्यप्रद वातावरण बनाये रखना।
  • समाज के विभिन्न कल्याणकारी कार्यों में सहयोग देना।
  • समाज में शिक्षा, चिकित्सा इत्यादि की सुविधाएँ उपलब्ध कराना, जैसे-बड़ी-बड़ी औद्योगिक संस्थाएँ अपने स्कूल चलाती हैं।
  • असहाय व अपाहिजों को रोजगार के अवसर देकर उनकी सहायता करना।
  • प्राकृतिक विपदाओं के समय समाज की उन्नति में सहयोग देना। बाढ़ व सूखा क्षेत्रों में आर्थिक सहायता प्रदान करना।

प्रश्न 6.
अधिकार अंतरण प्रक्रिया का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
उत्तर:
अधिकार अंतरण से अभिप्राय दूसरे लोगों को कार्य सौंपना तथा उसे करने के लिए अधिकार प्रदान करना है। इसके निम्नलिखित कदम हैं-
1. उत्तरदायित्व सौंपना – अधिकार अंतरण प्रक्रिया का पहला कदम उत्तरदायित्व सौंपा जाना है। प्रायः कोई भी अधिकारी इतना सक्षम नहीं होता कि वह अपना सारा काम स्वयं ही कर ले। अपने कार्य को सफलतापूर्वक निष्पादन के लिए अधिकारी अपने सम्पूर्ण कार्य का विभाजन कर देता है। इस प्रकार वह महत्त्वपूर्ण कार्यों को पास रखकर शेष सभी कार्यों को अधीनस्थों को सौंप देता है। अधीनस्थों को कार्य सौंपते समय उसकी योग्यता एवं कुशलता का ध्यान रखा जाता है। उदाहरण के लिए एक वित्त प्रबंधक वित्त व्यवस्था के काम को अपने पास रखकर लेखांकन आँकड़े एकत्रित करने, आदि कार्यों को अधीनस्थों को सौंप सकता है।

2. अधिकार प्रदान करना – अधिकार अंतरण प्रक्रिया का दूसरा कम कार्यों का सफलतापूर्वक निष्पादन के लिए अधिकार सौंपना है। जब तक अधीनस्थों को अधिकार प्रदान न कर दिए जाए तब तक कार्यभार सौंपना अर्थहीन होता है। उदाहरण के लिए, जब एक मुख्य प्रबंधक क्रय प्रबंधक को क्रय विभाग का काम सौंपता है तो माल क्रय करने, माल का स्टॉक रखने, अपने कार्य को अधीनस्थों में बाँटने आदि के अधिकार भी प्रदान करता है।

3. उत्तरदेयता निश्चित करना – यह अधिकार अंतरण प्रक्रिया का अंतिम कदम है। प्रत्येक अधीनस्थ केवल उस अधिकारी के समक्ष ही जवाबदेह होता है जिससे कार्य करने के लिए अधिकार प्राप्त होते हैं। जवाबदेही का अभिप्राय कार्य निष्पादन के लिए अधिकारी द्वारा माँगे गए स्पष्टीकरण का उत्तर देने से है।

प्रश्न 7.
उदारीकरण एवं वैश्वीकरण के भारत में व्यवसाय तथा उद्योग पर प्रतिकूल प्रभावों में से पाँच प्रभावों का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
उत्तर:
उदारीकरण एवं वैश्वीकरण के भारत में व्यवसाय तथा उद्योग पर काफी प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है उनसे कुछ निम्न है-

  • आयात में वृद्धि – उदारीकरण एवं वैश्वीकरण से हमारे देश में आयात की वृद्धि हुई है।
  • निर्यात में वृद्धि – उदारीकरण एवं वैश्वीकरण से हमारे देश के निर्यात में काफी वृद्धि हुई है।
  • विदेशी मुद्रा की बढ़ोत्तरी – उदारीकरण एवं वैश्वीकरण से हमारे देश में विदेशी मद्रा भंडार में काफी बढ़ोत्तरी हुआ है।
  • नये उत्पाद की जानकारी – उदारीकरण एवं वैश्वीकरण से नये-नये उत्पाद की जानकारी आसानी से प्राप्त हो जाता है।
  • रोजगार में वद्धि – उदारीकरण तथा वैश्विकरण का ही देन है कि आज हमारे देश में बेरोजगार को प्रतिष्ठित एवं उच्च वेतन पर काम मिल जाता है।

प्रश्न 8.
अनुशासन एवं सहयोगी भावना सिद्धान्तों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
अनुशासन – किसी भी कार्य का सफलतापूर्वक निष्पादन करने के लिए अनुशासन का होना आवश्यक है। फेयोल के अनुसार अनुशासन से अभिप्राय आज्ञाकारिता, अधिकारों के प्रति श्रद्धा तथा. निर्धारित नियमों का पालन करने से है। सभी स्तरों पर, अच्छी पर्यवेक्षण व्यवस्था प्रदान करके नियमों की स्पष्ट व्याख्या करके एवं परस्कार तथा दण्ड पद्धति को लाग करके अनशासन कायम किया जा सकता है। प्रबंधक स्वयं को अनुशासित करके अधीनस्थों के लिए एक अच्छा उदाहरण प्रस्तुत कर सकते हैं। उदाहरण के लिए यदि कर्मचारी अपनी पूरी क्षमता से काम करने के वायदे को तोड़ते हैं तो यह आज्ञाकारिता का उल्लंघन होगा। इसी प्रकार एक बिक्री प्रबंधक को अधिकार प्राप्त है कि वह उधार बिक्री कर सकता है। लेकिन वह यह सुविधा आम ग्राहकों को न देकर अपने रिश्तेदारों तथा मित्रों को ही देता है तो यह अधिकारों के प्रति श्रद्धा को अनदेखा करना है।

सहयोग की भावना – इस सिद्धांत के अनुसार प्रबंधक को लगातार कर्मचारियों में टीम भावना के विकास का प्रयास करते रहना चाहिए। ऐसा करने के लिए प्रबंधक को अधीनस्थों से वार्तालाप के दौरान मैं के स्थान पर हम शब्द का प्रयोग करना चाहिए। उदाहरण के लिए, प्रबंधक को अधीनस्थों से हमेशा यह कहना चाहिए कि हम यह काम करेंगे न कि मैं यह काम करूँगा। प्रबंधक के इस व्यवहार से अधीनस्थों में टीम भावना का संचार होगा।

प्रश्न 9.
उद्यमिता को परिभाषित करें तथा उद्यमिता विकास में सरकार की भूमिका की चर्चा कीजिए।
उत्तर:
उद्यमिता जोखिम एवं साहस का कार्य है जिसे प्रत्येक व्यक्ति नहीं कर सकता है। उद्यमी अपने सृजनात्मक व्यवहार तथा कल्पनाशीलता से अपने विचारों को मूर्त रूप प्रदान करता है तथा नये-नये साहसिक कार्य करता है। इस हेतु वह व्यवसायिक अवसरों की पहचान करता है। वातावरणीय विश्लेषण करता है, नयी इकाई की स्थापना हेतु वैधानिक आवश्यकताओं की पूर्ति करता है, वित्त के स्रोत ज्ञात करता है तथा उद्यमी पूँजी स्रोत को ज्ञात करते हुए नये साहसिक एवं जोखिमपूर्ण कार्य को मूर्त रूप प्रदान करता है तथा व्यवसायिक इकाई की स्थापना करता है।

सरकार की नीति उद्यमिता को बढ़ाने में काफी सराहनीय है। सरकार छोटे-छोटे उद्यमिता के लिए कम ब्याज पर ऋण सुविधा प्रदान किया जाता है। छोटे-छोटे उद्यमिता को लाइसेन्स से मुवी प्रदान किया गया है। टैक्स प्रणाली को अत्यन्त लचीला बना दिया गया है। समय-समय सरकार द्वारा उचित सुझाव व मार्गदर्शन भी प्रदान किया जाता है।

प्रश्न 10.
प्रबंध की परिभाषा दीजिए तथा इसकी प्रमुख विशेषताएं समझाइए।
उत्तर:
प्रबंध यह जानने की कला है कि आप में व्यक्तियों से क्या करवाना चाहते हैं और इसके बाद यह देखना कि कार्य सर्वोत्तम एवं मितव्ययितापूर्ण विधि से कैसे किया जा सकता है।

प्रबंध की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

  1. प्रबंध एक सामूहिक क्रिया है।
  2. प्रबंध एक सतत् क्रिया है।
  3. प्रबंध कला एवं विज्ञान दोनों है।
  4. प्रबंध एक पेशा है।
  5. प्रबंध उद्देश्य प्रधान प्रक्रिया है।
  6. प्रबंध सर्वव्यापक है।

प्रश्न 11.
स्टॉक एक्सचेंज को परिभाषित कीजिए। स्टॉक एक्सचेंज की किन्हीं तीन विशेषताओं को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
सरल शब्दों में स्टॉक एक्सचेंज से आशय ऐसे संगठित बाजार से है जहाँ पर अंशों, ऋणपत्रों, सरकारी एवं अर्द्धसरकारी प्रतिभूतियों का क्रय-विक्रय होता है।

हार्टले विदर्स के अनुसार, “स्कन्ध विनियम एक बड़े गोदाम की तरह है जहाँ पर विभिन्न प्रतिभूतियों का क्रय-विक्रय किया जाता है।” पाटले के अनुसार, “स्कन्ध विपणि वह स्थान है जहाँ सूचीबद्ध प्रतिभूतियों का विनियोजन या सट्टे के उद्देश्य से क्रय-विक्रय किया जाता है।”

स्टॉक एक्सचेंज की विशेषताएँ-स्टॉक एक्सचेंज की तीन विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

  • यह एक सुसंगठित पूँजी बाजार है।
  • इसमें संयुक्त पूँजीवाली कंपनियों, सरकारी, अर्द्धसरकारी एवं लोकोपयोगी संस्थाओं के अंशों तथा ऋणपत्रों आदि का क्रय विक्रय होता है।
  • स्कन्ध विपणि समामेलित अथवा असमामेलित दोनों प्रकार की हो सकती है।

प्रश्न 12.
प्रबंध के दृष्टिकोण से विपणन के चार कार्यों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
विपणन का कार्य उन समस्त क्रियाओं का निर्देशन करना है जिनके माध्यम से विपणन लक्ष्यों एवं उद्देश्यों को प्राप्त किया जा सकता है। विपणन कार्य ग्राहक से प्रारंभ होते हैं और ग्राहक तक उत्पाद अथवा वस्तुएँ पहुँच जाने एवं उसे संतुष्टि प्रदान करने पर समाप्त हो पाते हैं।

विपणन के चार कार्य निम्नलिखित हैं-
(i) क्रय करना-क्रय करना विपणन क्रिया का सबसे प्रथम चरण है। निर्माण इकाई की दशा में कच्चा माल तथा व्यापारिक इकाई की दशा में तैयार माल क्रय किया जाता है। स्थिति चाहे जो भी हो विपणन विभाग महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। विपणन विभाग यह सुनिश्चित करता है कि उचित किस्म का माल, उचित मूल्य पर, उचित मात्रा में, उचित समय पर एवं उचित पूर्तिकर्ता से खरीदा जाये।

(ii) उत्पादन नियोजन- यह विपणन प्रबंध का महत्वपूर्ण कार्य है। सामान्य अर्थ में उत्पाद नियोजन से आशय उत्पादित की जाने वाली वस्तु का उत्पाद के बारे में व्यापक योजना बनाने से है।

(iii) मूल्य निर्धारण-विपणन प्रबंध का तीसरा महत्वपूर्ण कार्य विपणन योग्य उत्पाद का मूल्य निर्धारण है। एक उत्पादक निर्माता उत्पाद का मूल्य निर्धारण काफी सोच विचार कर करने के पश्चात करता है। सच पूछा जाय तो विपणन प्रबंध की सफलता अथवा असफलता बहुत हद तक मूल्य निर्णयन पर निर्भर करती है।

(iv) एकत्रीकरण अथवा संकलन- एकत्रीकरण से आशय विभिन्न स्रोतों से माल का क्रय करके उसे एक निश्चित स्थान पर एकत्रित होने पर सरलता से ग्राहकों को उपलब्ध कराया जा सके।

प्रश्न 13.
स्कन्ध विपणि की परिभाषा दें। इसके कार्य एवं महत्व का वर्णन करें।
उत्तर:
आधुनिक युग में स्कंध विपणि किसी भी देश के पूँजी बाजार की एक महत्वपूर्ण अंग मानी जाती है। स्कंध विपणि से आशय ऐसे संगठित बाजार से है जहाँ पर अंश ऋण पत्रों, सरकारी एवं अर्ध सरकारी प्रतिभूतियों का क्रय-विक्रय किया जाता है। अर्थात स्कंध विपणि एक सुसंगठित बाजार है जहाँ केवल सदस्य अपने लिए या दूसरों की ओर से विभिन्न प्रकार की सूचीबद्ध औद्योगिक अथवा आर्थिक प्रतिभूतियों जैसे संयुक्त पूँजी वाली कंपनी के अंशों, स्कन्धों तथा ऋण पत्रों, राजकीय पत्रों एवं अन्य संस्थाओं के ऋणपत्रों और बॉण्डों इत्यादि का क्रय-विक्रय निर्धारित नियमों एवं उप नियमों के अधीन करते हैं।

स्कंध विपणि के कार्य एवं महत्त्वं स्कंध विपणि के मुख्य कार्य निम्नलिखित हैं-

  • विद्यमान स्कंध को तरलता एवं विपणीयता प्रदान करना।
  • माँग एवं पूर्ति की शक्तियों द्वारा स्कंध के मूल्य निर्धारण का एक स्थिर यंत्र प्रदान करना।
  • निर्धारित कानूनी प्रक्रिया के अन्तर्गत स्वच्छ एवं सुरक्षित लेनदेन को निश्चित करना।
  • पूँजी निर्माण और आर्थिक वृद्धि की प्रक्रिया में विनियोग एवं पुनर्वियोग के द्वारा बचत को उत्पादनीय कार्य में लगाना।
  • नये अंशों के निर्गमन एवं व्यापारिक लेन-देन के द्वारा अंश-पूँजी की लागत निर्धारित करना।
  • मूल्य निरंतरता एवं व्यापारिक लेनदेन में तरलता का अवसर प्रदान करना।

उपरोक्त महत्त्वपूर्ण कार्यों के कारण स्कंध विपणि किसी भी देश के सुदृढ़ औद्योगिकीकरण एवं आर्थिक विकास का स्तंभ माना जाता है। प्रो० मार्शल के शब्दों में, “स्कंध विपणियाँ केवल व्यापारिक व्यवहारों की प्रमुख प्रदर्शनकर्ता ही नहीं अपितु वे मापदण्ड है जो व्यापारिक वातावरण की सामान्य दशा को दर्शाते हैं।” यही कारण है कि उनको पूँजी का गढ़ व मूल्यों का मंदिर कहा जाता है। स्कंध विपणि विनियोजकों को मनचाही प्रतिभूतियों में धन विनियोजित करने की सुविधाएँ । प्रदान करना है। इसके अभाव में राष्ट्र में औद्योगिक विकास मंद होगा।

प्रश्न 14.
वैज्ञानिक प्रबंध पर टिप्पणी लिखें।
उत्तर:
वैज्ञानिक प्रबंध के जन्मदाता फ्रेडरिक टेलर ने स्पष्ट किया है कि “वैज्ञानिक प्रबंध यथार्थ में यह जानने की कला है कि क्या किया जाना है और उसको करने की सर्वोत्तम विधि क्या है।” इस प्रकार संक्षेप में कहा जा सकता है कि वैज्ञानिक प्रबंध एक दर्शन है अथवा धारणा है जो कार्य और कार्मिकों के प्रबंध की तीर एवं तुक्के एवं अंगूठे के नियम पर आधारित परम्परागत विधियों के स्थान पर अनुसंधान एवं प्रयोगों द्वारा प्रतिपादित सिद्धांतों के आधार पर अपनायी गई विधियों के प्रयोग पर बल देते हैं।

अतः हम कह सकते हैं कि वैज्ञानिक प्रबंध सामूहिक प्रयासों की पद्धति एवं संगठित प्रणाली है जो वैज्ञानिक अन्वेषण, विश्लेषण एवं प्रयोगों पर आधारित है जिससे सभी पत्रकारों को लाभ होता है।

वैज्ञानिक प्रबंध के प्रमुख तत्त्व हैं-

  • वैज्ञानिक पद्धति के अध्ययन और विश्लेषण के द्वारा कार्यक्षमता को बढ़ाना और तब सम्पूर्ण संगठन के लिए एक प्रभाव बिन्दु का विकास करना अर्थात पुराने नियम का परित्याग करना।
  • मालिक और कर्मचारियों के बीच अच्छे संबंध स्थापित करना विवाद को दूर करना, दृष्टिकोण में परिवर्तन करना, मानसिक शांति का विकास करना, कर्मचारियों और प्रबंध के हितों का समन्वय करना और संगठन के समृद्धि को प्राप्त करना है।
  • सद्भावना, सहयोग, पहचान, रचनात्मक सलाह, पारितोषिक के द्वारा प्रतिस्पर्धा को समाप्त करना। सूचना के सभी माध्यमों को खुला रखना और एक दूसरे की सहायता करना है।
  • अतिरिक्त प्रशिक्षण और कार्यानुभव के द्वारा व्यक्तिगत कार्य क्षमता और समृद्धि के विकास के लिए सभी संभावित अवसर प्रदान करना ताकि व्यवसाय और कर्मचारी दोनों के संवृद्धि में योगदान दे सकें।

वैज्ञानिक प्रबंध, संगठन के सभी पदों के सक्रिय, क्रमबद्ध, सहयोग की आशा करता है ताकि संगठन के सभी पदों की क्षमता और समृद्धि को प्राप्त किया जा सके।

प्रश्न 15.
संगठन की परिभाषा दें तथा इसके आवश्यक तत्वों की व्याख्या करें।
उत्तर:
संगठन से हमारा अभिप्राय सामूहिक उद्देश्य की पूर्ति हेतु विभिन्न अंगों में मैत्रीपूर्ण समायोजन करने से होता है।

मूने एवं रेले के अनुसार “संगठन सामान्य हितों की पूर्ति के लिए बनाया गया मनुष्यों का एक समुदाय है।”

उर्विक के अनुसार “किसी कार्य को सम्पादित करने के लिए किन-किन क्रियाओं को किया जाये, इसका निर्धारण करना एवं व्यक्तियों के बीच उन क्रियाओं के वितरण की व्यवस्था करना ही संगठन है।”

संगठन प्रबंध का एक कार्य है, यह एक प्रक्रिया है-

  • निष्पादित करने वाले कार्यों का समूहीकरण एवं पहचान करना
  • अधिकार एवं उत्तरदायित्व का हस्तांतरण एवं परिभाषित करना
  • उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए कार्यों को एक साथ सम्पादित करने के लिए लोगों में संबंध को स्थापित करना।

उद्देश्य की प्राप्ति एवं नियोजन के क्रियान्वयन के लिए संसाधनों का संगठन आवश्यक है, सभी प्रयास, उद्देश्यों को प्राप्त करने एवं संसाधनों का सफल प्रयोग करने के लिए। संगठन का अर्थ सम्पूर्ण कार्य को छोटे टुकड़ों, कार्यों के समूह में बाँटना है। इसमें संचालन पर नियंत्रण, संबंधों में समन्वय, वार्तालाप उद्देश्य की निश्चितता एवं संभावित योगदान प्राप्त करना सम्मिलित है।

संगठन एक प्रक्रिया है जो-

  • मानवीय प्रयासों का समन्वय,
  • संसाधनों को इकट्ठा करना,
  • निर्धारित लक्ष्य की प्राप्ति के लिए उसका प्रयोग करना

संगठन, इसलिए उद्देश्य की प्राप्ति संसाधनों का प्रयोग, कार्य संबद्ध कार्य वितरण के द्वारा नियोजन को कार्यान्वित करने में मदद करता है।

संगठन के तत्त्व – संगठन के विभिन्न तत्व इस प्रकार से है-

  • कार्य विभाजन – मानवीय प्रयासों में विशेषज्ञता प्राप्त करने के लिए उचित कार्य विभाजन आवश्यक है।
  • अधिकार और उत्तरदायित्व के बीच संतुलन – अधिकार किसी कार्य को करने के लिए आदेश देने का अधिकार एवं दायित्व इस अधिकार का उचित प्रयोग है।
  • अनुशासन – अनुशासन की स्थापना हो ताकि प्रबंध और कर्मचारी दोनों ही अपने कार्यों एवं उद्देश्यों के प्रति समर्पित हो।
  • आदेश की एकात्मकता – आदेश की एकात्मकता अर्थात कर्मचारी को एक ही अधिकारी से आदेश मिलना चाहिए एवं वे एक ही अधिकारी के प्रति जवाबदेह हों।
  • निर्देश की एकात्मकता अर्थात संगठन के सामान्य उद्देश्य की पूर्ति के लिए समन्वय एवं कार्यों में एकता।
  • व्यक्तिगत हितों की तुलना में संगठन के हितों की अधिक प्राथमिकता।
  • कर्मचारियों को उचित मजदूरी ताकि सहयोगी भावना का विकास हो सके।
  • निर्णय लेने के अधिकारों में केन्द्रीकरण एवं विकेन्द्रीकरण के बीच संतुलन।
  • उच्च अधिकारियों से निम्न अधिकारियों के बीच अधिकारों का संवहन।
  • उत्पादकता एवं कार्यक्षमता प्राप्त करने के लिए प्रत्येक व्यक्ति सही समय एवं स्थान पर अवस्थित हो।
  • प्रबंध का कर्मचारियों के प्रति न्यायोचित व्यवहार ताकि संगठन के प्रति कर्मचारियों का विश्वास प्राप्त किया जा सके।
  • संचालन की निरन्तरता को प्राप्त करने के उद्देश्य से कर्मचारी की संतुष्टि, स्थिरता, दक्षता एवं प्रशिक्षण की कम लागत।
  • उत्पादक विनियोग, विकास, प्रेरणा एवं पहल के लिए सलाह।
  • पारस्परिक सहयोग एवं समूह जोश की भावना के साथ कार्य करना।

फियोल द्वारा प्रतिपादित प्रबंध का सिद्धांत एवं लाभ को बढ़ाने में काफी उपयोगी है क्योंकि यह सिद्धांत मालिक एवं कर्मचारी दोनों के हितों का ख्याल रखता है।

प्रश्न 16.
स्थायी पूँजी तथा कार्यशील पूँजी में कोई छ: अंतर बतायें।
उत्तर:
स्थायी पूँजी से आशय पूँजी के उस भाग से है जिसका निवेश स्थायी सम्पत्तियों जैसे भूमिक, भवन, मशीनरी, फर्नीचर, उपकरण आदि की खरीद के लिए किया जाता है उन सम्पत्तियों का क्रय करने का उद्देश्य दीर्घकाल तक इनसे आय अर्जित करना होता है।

कार्यशील पूँजी से तात्पर्य चालू सम्पत्तियों के चालू दायित्वों पर आधिक्य है। दूसरे शब्दों में यदि चालू सम्पत्तियों के योग में से चालू दायित्वों के योग को घटा दिया जाय तो जो शेष बचेगा वह कार्यशील पूँजी कहलायेगी।

स्थायी पूँजी और कार्यशील पूंजी में अंतर- स्थायी पूँजी और कार्यशील पूँजी में निम्नलिखित अंतर है-

स्थायी पूँजी:

  1. स्थायी पूँजी से आशय उस पूँजी की मात्रा से है जिसका निवेश चालू सम्पत्तियों (जैसे- भूमि, भवन, मशीन, फर्नीचर आदि) में किया जाता है।
  2. स्थायी पूँजी दीर्घकाल के लिए होती है।
  3. स्थायी पूँजी स्थिर प्रकृति की होती है।
  4. स्थायी पूँजी स्थायी रूप से अवरुद्ध हो जाती है तथा दैनिक व्यावसायिक क्रियाओं के लिए उपलब्ध नहीं होती है।
  5. स्थायी पूँजी अंशों तथा ऋण पत्रों के निर्गमन तथा दीर्घकालीन वित्तीय ऋणों के माध्यम से प्राप्त होती है।
  6. स्थायी पूँजी की आवश्यकता स्थायी सम्पत्ति (जैसे भूमि, भवन, मशीनरी, फर्नीचर आदि) के क्रय करने के लिए होती है।

कार्यशील पूँजी:

  1. कार्यशील पूँजी से आशय उस पूंजी की मात्रा से है जिसका निवेश स्थायी सम्पत्तियों जैसे प्राप्ति विपत्र, विविध देनदार, कच्चा माल, अर्द्ध निर्मित माल तथा निर्मित माल में किया जाता है।
  2. कार्यशील पूँजी अल्पकाल के लिए होती है।
  3. कार्यशील पूँजी अस्थिर प्रकृति की होती है।
  4. कार्यशील पूँजी कार्यशील एवं घूमती रहती है तथा इसका उपयोग दैनिक व्यावसायिक क्रियाओं के लिए किया जाता है।
  5. कार्यशील पूँजी अल्पावधि वित्त प्रदान करने वाले स्रोतों से प्राप्त होती है जैसे वाणिज्यिक बैंक, व्यापारिक उत्पाद, ग्राहकों से अग्रिम आदि।
  6. कार्यशील पूँजी की आवश्यकता चालू सम्पत्तियों (जैसे देनदार, स्टॉक, प्राप्य विपत्र, रोकड़ी शेष) के रखने तथा दैनिक व्ययों का भुगतान करने के लिए होता है।

Bihar Board 12th Geography Important Questions Long Answer Type Part 4

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Bihar Board 12th Geography Important Questions Long Answer Type Part 4

प्रश्न 1.
भारत के संभावित जल संसाधनों की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
भारत उन गिने-चुने देशों में से एक है जहाँ भूमि और जल संसाधन प्रचुर मात्रा में हैं। भारत में जल के तीन स्रोत हैं वर्षा, पृष्ठीय जल तथा भूमिगत जल।

वर्षा (Rainfall) – वर्षा जल का मूल स्रोत है। भारत में औसतन 118 सेमी. वर्षा होती है। वर्षा का कुछ जल तो धरातल पर बहता हुआ नदियों का रूप ले लेता है तथा कुछ भूमि सोख लेती है जो भूमिगत जल कहलाता है।

पृष्ठीय जल (Surface Water) – जल का यह महत्त्वपूर्ण स्रोत बहने वाली नदियों, झीलों, तालाबों और दूसरे जलाशयों के रूप में मिलता है। भारत में नदियों का औसत वार्षिक प्रवाह 1869 अरब घन मीटर है। कुल पृष्ठीय जल का लगभग 60% भाग सिंधु गंगा और ब्रह्मपुत्र नदियों से होकर बहता है। भारत की सभी नदियों में बहने वाली जल की मात्रा संसार की सभी नदियों में बहने वाली जल की मात्रा का 6% है।

भूमिगत जल (Ground Water) – एक अनुमान के अनुसार भारत में कुल भौम जल क्षमता 433.9 अरब घन मीटर है। भारत के उत्तरी मैदान में भौम जल के विकास की संभावनायें अधिक उपलब्ध हैं। अकेले उत्तर प्रदेश में ही भौमगत जल की क्षमता 19% है। प्रायद्वीपीय भारत में कम है। जम्मू-कश्मीर में 1.07% तथा पंजाब में 98.34% है। भारत में जिन राज्यों में घट-बढ़ अधिक होती है तथा पृष्ठीय जल की कमी है उन क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर भौम जल विकास किया गया है। पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, गुजरात इसके उदाहरण हैं।

प्रश्न 2.
भारत में सिंचाई की आवश्यकता है। क्यों ?
उत्तर:
जल का प्रमुख उपयोग सिंचाई के लिए होता है। भारत एक उष्ण कटिबन्धीय प्रदेश है इसलिए यहाँ सिंचाई की अधिक माँग है। सिंचाई की बढ़ती माँग के कारण निम्नलिखित हैं-
(i) वर्षा का असमान वितरण (Uneven Distribution of Rainfall) – देश में संपूर्ण वर्ष वर्षा का अभाव बना रहता है। अधिकांश वर्षा, वर्षा ऋतु में होती है। इसलिए शुष्क अवधि में सुनिश्चित सिंचाई सुविधा के बिना कृषि कार्य संभव नहीं है।

(ii) मानसून जलवायु (Monsoon Climate) – भारत की जलवायु मानसूनी है। यहाँ वर्षा केवल तीन से चार महीने तक होती है, शेष समय शुष्क रहता है। इसलिए सिंचाई की आवश्यकता होती है।

(iii) वर्षा बहुत परिवर्तनशील है (Variable Rainfall) – वर्षा ऋतु में पर्याप्त वर्षा वाले क्षेत्रों में भी सिंचाई की आवश्यकता होती है क्योंकि वर्षा की मात्रा प्रति वर्ष निश्चित नहीं है। कम वर्षा वाले क्षेत्रों में वर्षा की भिन्नता बहुत अधिक है। इसलिए वर्षा के दिनों में कभी कहीं सूखा होता है तो कभी कहीं। सिंचाई के बिना भारतीय कृषि मानसून का जुआ बनकर रह जाता है।

(iv) वर्षा की अनिश्चितता (Uncertainty of rainfall) – कंवल वर्षा का आगमन और पश्चगमन ही अनिश्चित नहीं है अपितु इसकी निरन्तरता और गहनता भी अनिश्चित है। इस उतार-चढ़ाव में कृषि को केवल सिंचाई से ही सुरक्षा मिलती है।

(v) कुछ फसलों के लिए जल की अधिक आवश्यकता (Water is More Needed for Few Crops) – चावल, गन्ना, जुट आदि फसलों को अपेक्षाकृत अधिक पानी की आवश्यकता होती है जो सिंचाई द्वारा ही पूरी की जाती है।

(vi) अधिक उपज देने वाले फसलें (Crops Giving More Yield) – ऐसी फसलें जो अधिक उपज देती हैं उनसे उच्च उत्पादकता प्राप्त करने के लिए निरन्तर पानी की आवश्यकता होती है। इसलिए विकसित सिंचाई वाले क्षेत्र में हरित क्रान्ति का सबसे अधिक प्रभाव रहा।

(vii) लम्बा वर्धनकाल (Long Growing Season) – भारत में वर्धन काल पूरे वर्ष रहता है। अतः सिंचाई की सुविधा मिलने पर बहुफसली खेती संभव है।

(viii) खाद्यान्न तथा कृषि कच्चे माल की बढ़ती माँग (Increasing Demand of Food Grains and Raw Material) – सिंचित क्षेत्र में असिंचित क्षेत्र की तुलना में उत्पादन तथा उत्पादकता अधिक होती है। देश में बढ़ती जनसंख्या के लिए खाद्यान्नों का उत्पादन बढ़ाया जा सकता है तथा उद्योगों के लिए कच्चे माल की आपूर्ति बढ़ाई जा सकती है।

प्रश्न 3.
जल-संभर प्रबन्धन क्या है ? क्या आप सोचते हैं कि यह सतत पोषणीय विकास में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकता है ?
उत्तर:
जल विभाजक प्रबन्धन से तात्पर्य मुख्य रूप से सतह और भूमिगत जल संसाधनों की सफल व्यवस्था से है। इसके अंतर्गत बहते जल को रोकना और विभिन्न विधियों जैसे पुनर्भरण कुओं आदि के द्वारा भूमिगत जल का संचयन और पुनर्भरण शामिल है। जल विभाजक व्यवस्था का उद्देश्य प्राकृतिक संसाधनों और समाज के बीच सन्तुलन लाना है। जल विभाजक व्यवस्था की सफलता मुख्य रूप से सम्प्रदाय के सहयोग पर निर्भर करती है।

यह व्यवस्था सतत पोषणीय विकास में सहयोग कर सकता है। जल प्रबन्धन के कार्यक्रम कई राज्यों में चल रहे हैं। जैसे-नीरू नीरू-कार्यक्रम आंध्र प्रदेश में तथा राजस्थान में अलवर में लोगों के सहयोग से यह व्यवस्था चल रही है। तमिलनाडु में घरों में जल संग्रहण संरचना को बनाना आवश्यक है।

प्रश्न 4.
अन्तर स्पष्ट करें – (i) पृष्ठीय जल तथा भौम जल (ii) हिमालय की नदियाँ तथा प्रायद्वीपीय नदियाँ (iii) निर्मित सिंचाई क्षमता तथा उपयोग में लाई गई क्षमता (iv) प्रमुख तथा लघु सिंचाई परियोजना।
उत्तर:
(i) पृष्ठीय जल (Surface Water)-

  • यह जल ताल-तलैया, नदियों-सरिताओं और जलाशयों में पाया जाता है।
  • नदियाँ पृष्ठीय जल का प्रमुख स्रोत हैं।
  • नदियों में प्रवाहित औसत वार्षिक प्रवाह 1869 अरब घन मीटर है।
  • कुल पृष्ठीय जल का 60% भाग सिंधु-गंगा, ब्रह्मपुत्र नदियों में से होकर बहता है।
  • भारत में हिमालयी और प्रायद्वीपीय नदी तंत्रों में भरपूर पृष्ठीय जल संसाधन उपलब्ध है।

भौम जल (Ground Water)-

  • वर्षा के जल का कुछ भाग भूमि द्वारा सोख लिया जाता है जिसे भौम जल कहते हैं। भारत में भौम जल क्षमता लगभग़ 433.9 अरब घन मीटर है।
  • भारत के उत्तरी विशाल मैदान में भौम जल के विकास की संभावनाएँ अधिक हैं।
  • प्रायद्वीपीय भारत में भौम जल की संभावनाएँ कम हैं।
  • देश में भौम जल का वितरण असमान है।
  • भारत के उत्तरी मैदान में पंजाब से लेकर ब्रह्मपुत्र घाटी तक भौम जल के विशाल भंडार हैं।

(ii) हिमालय की नदियाँ (Himalayan Rivers)-

  • हिमालय की नदियों का बेसिन तथा जल ग्रहण क्षेत्र बहुत बड़ा है।
  • हिमालय की नदियाँ विशाल गार्ज से होकर बहती हैं।
  • हिमालय की नदियों के दो जल स्रोत हैं-वर्षा तथा हिम।
  • इन नदियों के मार्ग में कम बाधायें आती हैं।
  • इन नदियों में बाढ़ अधिक आती है।

प्रायद्वीपीय नदियाँ (Peninsular Rivers)-

  • प्रायद्वीपीय नदियों का बेसिन तथा जल ग्रहण क्षेत्र काफी छोटा है।
  • प्रायद्वीपीय नदियाँ उथली घाटियों से होकर बहती हैं।
  • इन नदियों का जल स्रोत केवल वर्षा है। इसलिए शुष्क ऋतुओं में प्रायः ये सूख जाती हैं।
  • प्रायद्वीपीय नदियों के मार्ग में बाधायें अधिक हैं। ये पथरीली चट्टानों से होकर बहती हैं।
  • इन नदियों में बाढ़ की संभावनाएँ कम होती हैं।

(iii) निर्मित सिंचाई क्षमता (Irrigation Potential Created) – स्वतंत्रता के पश्चात् सिंचाई की क्षमता में काफी वृद्धि हुई है। 1999-2000 में कुल सिंचित क्षेत्र 8.47 करोड़ हेक्टेयर था।

उपयोग में लाई गई क्षमता (Irrigation Potential Utilised) – देश में सिंचाई की कुल उपयोग में लाई गई क्षमता 2.26 करोड़ हेक्टेयर थी।

(iv) प्रमुख सिंचाई परियोजनाएँ (Major Irrigation Projects) – उत्तरी विशाल मैदानों में प्रमुख सिंचाई परियोजनाएँ हैं, ऊपरी वारी दोआब नहर, दोआब सरहिन्द, इन्दिरा गाँधी तथा पश्चिमी यमुना नहर।

उत्तर प्रदेश में गंगा की ऊपरी, मध्य तथा निचली नहरें। दक्षिणी भारत की नागार्जुन सागर, तुंगभद्रा परियोजना तथा कृष्णा-गोदावरी डेल्टा प्रदेश की नहरें।

लघु सिंचाई परियोजनाएँ(Minor Irrigation Projects) – उत्तर भारत की लघु परियोजनाओं में पूर्वी यमुना नहर, शारदा नहर, राम गंगा नहर, मयूराक्षी आदि दक्षिण भारत में मैटूर बाँध, पालार, वोगाई आदि परियोजनाएँ हैं।

प्रश्न 5.
भारत में जल विद्युत पर एक निबन्ध लिखें।
उत्तर:
विद्युत मानव सभ्यता के इतिहास में सबसे महत्वपूर्ण और अनूठे आविष्कार का नाम है। विद्युत कोयला और बहते जल से बनाई जाती हैं जल विद्युत ही सबसे सस्ती है। इसके निर्माण के लिये प्राकृतिक जल प्रपात सुविधाजनक ही है। जल प्रपात के लिये निरन्तर जल प्रवाह आवश्यक है।

जल विद्युत निगम की स्थापना जल विद्युत उत्पादन के लिये की गई। इसके द्वारा अब तक आठ परियोजना पूर्ण कर ली हैं। ये परियोजनायें हैं-चमेरा और वैरा सिडल (हिमाचल प्रदेश), लोकतक (मणीपुर), उडी आर सलाल (जम्मू कश्मीर), टनकपुर (उत्तरांचल) आदि। दसवीं पंचवर्षीय योजनाओं में निगम का लक्ष्य 4357 मैगावाट विद्युत उत्पादन का है। भारत में जल विद्युत का उत्पादन दक्षिणी पठार पर अधिक है।

प्रमुख केन्द्र हैं-

  • कर्नाटक – शिव समुद्रम, महात्मा गाँधी जल विद्युत केन्द्र। यहाँ 72000 किलोवाट क्षमता वाला बिजली घर स्थित है। शरावती जल विद्युत केन्द्र और शिमशा परियोजना है।
  • तमिलनाडु – मैटूर योजना, पापकारा, पापानासम तथा कुन्डा परियोजना है। महाराष्ट्र-राटा जल विद्युत केन्द्र, कोयना योजना, कवर दरा।
  • उत्तर प्रदेश – गंगा नहर पर 12 स्थानों पर जल विद्युत केन्द्र बनाये गये हैं- इनमें 23800 कि.वा. विद्युत तैयार की जाती है।
  • पंजाब – भाखड़ा नांगल परियोजना में 1050 मैगावाट जल विद्युत तैयार की जाती है। व्यास परियोजना में विद्युत तैयार की जाती है।

इसके अतिरिक्त हिमाचल प्रदेश आदि राज्यों में विद्युत उत्पन्न की जाती है।

प्रश्न 6.
भारत के लौह एवं इस्पात उद्योग के विकास एवं वितरण का वर्णन करें।
उत्तर:
भारत में लौह अयस्क के प्रचुर संसाधन है, यहां एशिया के विशालतम लौह अयस्क आरक्षित है। हमारे देश में लौह अयस्क के दो प्रमुख प्रकार हेमेटाइट एवं मैग्नेटाइट पाये जाते हैं।

भारत में लोहा पिघलाने और ढालने तथा इस्पात तैयार करने का कार्य अत्यंत प्राचीन काल से किया जा रहा है। बिहार एवं मध्य प्रदेश में अगरिया एवं गाडी लोहारिया जाति यह कार्य करती थी किन्तु पश्चिमी देशों में आधुनिक ढंग के कारखाने स्थापित हो जाने के कारण भारतीय कुटीर उद्योग को बड़ा धक्का पहुँचा और भारत निर्यातक से आयातक देश बन गया। सर्वप्रथम भारत में लौह-इस्पात की स्थापना सन् 1874 में पश्चिम बंगाल के कुल्टी में बाराकर लौह कम्पनी की हुई थी। इसके बाद कालांतर में 1907 में झारखण्ड में सांकची नामक स्थान पर भारत के प्रसिद्ध व्यवसायी श्री जमशेदजी टाटा द्वारा टाटा लौह-इस्पात कंपनी की स्थापना की गयी।

हमारे देश में 2004 – 05 में लौह अयस्क के आरक्षित भंडार लगभग 200 करोड़ टन थे, जिसका 95 प्रतिशत भाग उड़ीसा, झारखण्ड, छत्तीसगढ़, कर्नाटक, गोवा तथा तमिलनाडु राज्यों में स्थित है। उड़ीसा में लौह अयस्क सुन्दरगढ़, मयूरगंज की पहाड़ियों में पाया जाता है। झारखण्ड के सिंहभूम जिला तथा छत्तीसगढ़ के दुर्ग, दान्तेवाड़ा एवं वैलाडिला लौह अयस्क का मुख्य क्षेत्र है। कर्नाटक के बेलारी जिले में महाराष्ट्र के चन्द्रपुर एवं तमिलनाडु के सलेम क्षेत्रों में लौह अयस्क की प्राप्ति होती है।

भारत के विभिन्न राज्यों में लौह-अयस्क का उत्पादन निम्न है-
Bihar Board 12th Geography Important Questions Long Answer Type Part 4, 1

प्रश्न 7.
भारत में मैंगनीज, अयस्क और बॉक्साइट के उपयोग और वितरण का वर्णन कीजिये।
उत्तर:
बॉक्साइट (Bauxite) उपयोग (Uses) – बॉक्साइट का ऐलुमिनियम धातु बनाने के लिए कच्चे माल के रूप में उपयोग किया जाता है। वायुयान निर्माण, बिजली के उपकरण तथा तार एवं भवन निर्माण में भी उपयोग में आता है।

वितरण (Distribution) – उड़ीसा के कालाहांडी, संबलपुर, रायगढ़ और कोरापुट में बॉकसाइट के भंडार पाये जाते हैं।

आन्ध्र प्रदेश में – विशाखापटनम, विजयनगर तथा श्रीकाकुलम जिले में बॉक्साइट के निक्षेप हैं। इसके अतिरिक्त छत्तीसगढ़ का बस्तर और बिलासपुर जिला, मध्य प्रदेश में मैकाल पहाड़ियाँ।

गुजरात – जामनगर, साबरकांठा, खेड़ा, कच्छ और सूरत तथा महाराष्ट्र में थाणे, कोलाबा, कोल्हापुर आदि जिले।

मैगनीज (Manganese)-उपयोग (Uses) – मैंगनीज का सबसे अधिक उपयोग इस्पात की चादर बनाने के लिये किया जाता है जो युद्ध के टैंक निर्माण में प्रयोग की जाती है। इसके अतिरिक्त चीनी मिट्टी के बर्तन, बिजली का सामान, कांच ब्लीचिंग पाउडर, दवायें, शुष्क बैटरी, सोने के आभूषणों पर मीना करने के लिये, वार्निश तथा रसायन उद्योगों में मैंगनीज का उपयोग होता है। इसे बहुउपयोगी खनिज भी कहते हैं।

वितरण (Distribution) – मैंगनीज सबसे अधिक उड़ीसा में मिलता है। इसके बाद कर्नाटक, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र और गोआ का स्थान है। इसके अतिरिक्त आन्ध्र प्रदेश, बिहार, गुजरात, राजस्थान और पश्चिम बंगाल में भी मैंगनीज पाया जाता है।
Bihar Board 12th Geography Important Questions Long Answer Type Part 4, 2

प्रश्न 8.
भारत में पेट्रोलियम के उत्पादन एवं वितरण का वर्णन करें।
उत्तर:
पेट्रोलियम एक ऐसा अकार्बनिक तरल पदार्थ है, जो अवसादी चट्टानों की विशेष संरचनाओं में पाया जाता है। विशेषज्ञों के अनुसार भारत के लगभग 14 लाख वर्ग मीटर क्षेत्र में तेल भंडार हैं, जिसमें सबसे विशाल असम तेल क्षेत्र है। भारत के इयोसीन एवं मायोसीन काल की अवसादी चट्टानों में पेट्रोलियम के भंडार है। सर्वप्रथम असम के डिगबोई में इसका पता चला था। उसके बाद द्वितीय और तृतीय पंचवर्षीय योजनाकालों में भारत के विभिन्न भागों में तेल की खोज तेल एवं प्राकृतिक गैस आयोजन द्वारा की गयी। रूस विशेषज्ञों के अनुसार भारत में लगभग 6 अरब टन के बड़े-बड़े तेल भंडार हैं। अनुमान है कि महाद्वीपीय मग्नतट के लगभग 3 लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में परतदार चट्टानें पेट्रोलियम से भरी हैं।

1951 ई में देश में पेट्रोलियम का कुल उत्पादन 205 लाख टन था जो 2001 ई० में बढ़कर 320 लाख टन हो गया।

स्वतंत्रता-प्राप्ति के बाद पेट्रोलियम के उत्पादन में 50 गुणा से भी अधिक वृद्धि हुई है।
भारत में पेट्रोलियम के तीन मुख्य उत्पादन क्षेत्र हैं –

  • असम तेल क्षेत्र।
  • गुजरात तेल क्षेत्र।
  • मुम्बई हाई तेल क्षेत्र।

इसके अलावा गोदावरी और काबेरी नदी के बेसिनों में तथा बंगाल की खाड़ी के मग्नतट पर भी तेल मिले हैं। बिहार के उत्तरी मैदान भाग में भी तेल की खोज का कार्य जारी है। इन क्षेत्रों से प्राप्त कच्चे तेल का परिष्करण तटीय भागों, बाजार क्षेत्र तथा उत्पादन केन्द्रों के निकट स्थापित कुल 14 तेल शोधनशालाओं में किया जाता है।

प्रश्न 9.
भारत में चीनी मिलों के गन्ना उत्पादक क्षेत्रों के निकट स्थापित किये जाने के लिए उत्तरदायी तीन कारकों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
चीनी मिलों के गन्ना उत्पादक क्षेत्रों में स्थापित होने के लिये अग्रलिखित तीन कारक उत्तरदायी हैं-
1. कच्चा माल (Raw Material) – गन्ना उत्पादक क्षेत्रों में मिलों के स्थापित होने का प्रमुख कारण गन्ने की निरन्तर आपूर्ति है। आपूर्ति टूट जाने से मिल को पुनः आरम्भ करने में बहुत व्यय तथा समय लगता है। इसलिये निरन्तर आपूर्ति आवश्यक है।

2. यातायात के साधन (Means of Transport) – गन्ना मैदानी क्षेत्रों में उत्पन्न किया जाता है। मैदानी क्षेत्रों में परिवहन के साधन रेल मार्ग तथा सड़क मार्ग उपलब्ध हैं। लेकिन अधिकतर गन्ने की दुलाई बैलगाड़ी अथवा ट्रैक्टर द्वारा की जाती है और ये साधन अधिक से अधिक 10 या 15 किलोमीटर तक ही सीमित होते हैं। इसलिये चीनी मिलों का गन्ना क्षेत्रों में स्थापित होना आवश्यक है।

3. बाजार की समीपता (Nearness of Market) – चीनी की खपत के लिए बाजार की समीपता आवश्यक है जो इन क्षेत्रों में जनसंख्या से अधिक होने से मिल जाती है। इसके अतिरिक्त चीनी को रेल मार्ग अथवा सड़क मार्ग द्वारा समीप वाले बाजारों को भेज दिया जाता है।

प्रश्न 10.
आप उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण से क्या समझते हैं ? उन्होंने भारत के औद्योगिक विकास में किस प्रकार से सहायता की है ?
उत्तर:
उदारीकरण (Liberalisation) – उदारीकरण आर्थिक विकास की एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा सार्वजनिक क्षेत्र के स्थान पर निजी क्षेत्र में उद्योगों को चलाने पर बल दिया जाता है तथा उन सब नियमों और प्रतिबन्धों से छूट दी जाती है जिससे पहले निजी क्षेत्र के विकास में रुकावट आती है।

निजीकरण (Privatisation) – निजीकरण से अभिप्राय है कि सरकार द्वारा लगाये गये उद्योगों को निजी क्षेत्र में स्थापित किया जाये। इससे सार्वजनिक क्षेत्र का महत्त्व कम होगा।

वैश्वीकरण (Globalisation) – वैश्वीकरण से अभिप्राय है कि देश की अर्थव्यवस्था को संसार की अर्थव्यवस्था के साथ एकीकृत करने की प्रक्रिया से है। इसके अधीन आयात पर प्रतिबन्ध तथा आयात शुल्क में कमी की गई। इस प्रक्रिया में एक देश के पूँजी संसाधनों के साथ-साथ वस्तुएँ और सेवायें, श्रमिक तथा अन्य संसाधन दूसरे में स्वतंत्रतापूर्वक आ जा सकते हैं।

इन प्रक्रियाओं ने देश के औद्योगिक विकास में बड़ी सहायता की है-

  • विदेशी पूँजी का सीधा निवेश किया जा सकता है।
  • व्यापारिक प्रतिबन्ध समाप्त हो जाते हैं जिससे देश में बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के आने में सुविधा होती है।
  • भारतीय कम्पनियों को विदेशी कम्पनी के साथ प्रवेश करने का अवसर मिलता है।
  • उदारीकरण कार्य से आयात किया जा सकता है आदि।

प्रश्न 11.
उदारीकरण, निजीकरण एवं वैश्वीकरण से आप क्या समझते हैं ? भारतीय अर्थव्यवस्था पर वैश्वीकरण के प्रभावों की चर्चा करें।
उत्तर:
उदारीकरण का अभिप्राय अर्थव्यवस्था के नियंत्रणवाले प्रावधानों को शिथिल करना है। इसे अनियंत्रण की नीति भी कहा जाता है। उदारीकरण के अंतर्गत सरकारी नियंत्रण को कम करना, लाइसेंस की समाप्ति, उद्योगपत्तियों को अधिक स्वतंत्रता देना, बाजार की शक्तियों के स्वतंत्र क्रियाकलाप को प्रश्रय देना शामिल है।

जबकि निजीकरण का अर्थ बाजार की शक्तियों को मजबूत करते हुए निजी क्षेत्र को अधिक महत्त्व प्रदान करना है तथा वैश्वीकरण का तात्पर्य देश की अर्थव्यवस्था को अंतर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था के साथ एकीकृत करना है।

वैश्वीकरण के कारण भारतीय अर्थव्यवस्था में विदेशी पूँजी का प्रवाह बढ़ा है। साथ ही तकनीकी प्रवाह के कारण उत्पादन बढ़ने से प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि आयी है, जिसका सीधा असर लोगों के रहन-सहन पर पड़ा है। मक्त आकाश नीति की घोषणा से भारतीय निर्यातकों को प्रतियोगितापूर्ण बनाया गया है।

वैश्वीकरण के प्रभाव से उपभोक्ताओं को अंतर्राष्ट्रीय स्तर की वस्तुएँ उपलब्ध हैं किन्तु भारत के छोटे एवं कुटीर उद्योग प्रतिस्पर्धा में पीछे रहने के कारण दिनोंदिन खत्म होते जा रहे हैं। औसत रूप में वैश्वीकरण के कारण भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास की गति तीव्र हुई है।

प्रश्न 12.
सूखा संभावी क्षेत्र कार्यक्रम और कृषि-जलवायु नियोजन पर संक्षिप्त टिप्पणियाँ लिखें। ये कार्यक्रम देश में शुष्क भूमि कृषि विकास में कैसे सहायता करते हैं ?
उत्तर:
प्रादेशिक विषमताओं को घटाने के लिये तैयार कार्यक्रमों में सुखाप्रवण क्षेत्रों के लिये भी ऐसे कार्यक्रम तैयार किये जिनके द्वारा उन क्षेत्रों में रहने वाले लोगों की आय में वृद्धि हो और रोजगार के अवसर प्राप्त हों। यह कार्यक्रम शुष्क भूमि कृषि में निम्न प्रकार से सहायक हो सकता है।

  • जिन सूखाप्रवण क्षेत्रों में प्राकृतिक संसाधन अपर्याप्त है वहाँ गरीबी को कम करने में रोजगार देकर ये सहायक हो सकते हैं।
  • अभावग्रस्त लोगों के लिये काम के अवसर निकाले जा सकते हैं।

कृषि जलवायुविक नियोजन(Agro-climate Planning) – भारत के योजना आयोग में कृषि सम्बन्धित विकास के लिये कृषि क्षेत्र के कार्यक्रम बनाये गये। सातवीं योजना के मध्यवर्ती मूल्यांकन ने कृषि प्रबन्धन और जल नियोजन की सक्षमता पर बल दिया तथा बीज की नई नीति पर बल दिया। इसने सुझाव दिया कि किसी प्रदेश की कृषि सम्भाव्यता उसके प्रादेशिक कृषि जलवायुविक दशाओं के अनुसार हो सकता है। इस सम्बन्ध में 1988 में विशेष खाद्यान्न उत्पादन कार्यक्रम आरम्भ किया गया। यह देश के 169 जिलों में लागू किया गया। इसके पश्चात् कृषि के विकास के लिए अन्य कार्यक्रम प्रारम्भ किये गये इन्हें कृषि जलवायुविक कार्यक्रम कहते हैं।

इस कार्यक्रम से भी शुष्क भूमि कृषि में सहायता मिली। विभिन्न प्रदेशों में फसल और गैर फसल आधारित विकास हुआ। टिकाऊ कृषि विकास के लिये जल उपयोग और भूमि विकास तैयार किये गये।

प्रश्न 13.
भारत में पंचवर्षीय योजनाओं के क्या उद्देश्य थे ?
उत्तर:
भारत में पंचवर्षीय योजनाओं के निम्नलिखित उद्देश्य थे
1. राष्ट्रीय आय में वृद्धि तथा आर्थिक विकास (Increase in national income and economic development) – भारत की प्रत्येक योजना का उद्देश्य राष्ट्रीय आय में वृद्धि और आर्थिक विकास में वृद्धि करना है। ये वृद्धि देश के आर्थिक विकास में सहायक होती है।

2. जीवन स्तर में वृद्धि(Increase in standard of living) – पंचवर्षीय योजनाओं का दूसरा उद्देश्य लोगों की आर्थिक संपन्नता में वृद्धि करके जीवन स्तर को ऊँचा उठाना है। जीवन स्तर में वृद्धि अनेक बातों पर निर्भर करती है। जैसे प्रति व्यक्ति राष्ट्रीय आय, कीमत स्थिरता, आय का समान वितरण आदि।

3. आर्थिक असमानताओं को घटाना (To reduce economic inequalities) – प्रत्येक पंचवर्षीय योजना का मुख्य उद्देश्य विभिन्न प्रदेशों और समाज के विभिन्न वर्गों में असमानताओं को कम करना है। आर्थिक असमानताएँ देश में अन्याय व शोषण को बढ़ाती हैं जिससे धनी अधिक धनी व निर्धन अधिक निर्धन होता जाता है। इस असमानता को समाप्त करने के लिए पंचवर्षीय योजनाओं में बहुत से कार्य किए गए हैं।

4. सर्वांगीण विकास (Comprehensive development) – पंचवर्षीय योजनाओं का उद्देश्य देश का सर्वांगीण विकास करना है परन्तु प्रत्येक योजना में इन क्षेत्रों के विकास को एक समान महत्त्व नहीं दिया है। पहली योजना में कृषि को, दूसरी में उद्योग को तथा पाँचवीं में दोनों को महत्त्व दिया गया है। छठी, सातवीं, आठवीं योजना में बिजली व ऊर्जा के विकास को अधिक महत्व दिया गया।

5. क्षेत्रीय विकास (Regional development) – भारत के विभिन्न भाग आर्थिक दृष्टि से समान रूप से विकसित नहीं हैं। पंजाब, गोआ, हरियाणा आदि कुछ राज्य अपेक्षाकृत विकसित हैं लेकिन बिहार, उड़ीसा, मेघालय जैसे राज्य अविकसित रह गए हैं।

6. आर्थिक स्थिरता (Economic stability) – आर्थिक विकास की गति को बनाए रखने के लिए आर्थिक स्थिरता का उद्देश्य प्राप्त करना आवश्यक होता है। भारत की प्रत्येक पंचवर्षीय योजना का उद्देश्य देश में आर्थिक स्थिरता को कायम रखना रहा है।

7. आत्मनिर्भरता तथा स्वपोषित सतत् विकास (Self sufficiency and self sustained growth) – पंचवर्षीय योजनाओं का उद्देश्य देश के कृषि, उद्योग आदि क्षेत्रों को उत्पादन के सम्बन्ध में उपलब्ध साधनों के अनुसार आत्मनिर्भर बनाना है। योजनाओं का उद्देश्य बचत व निवेश की दर को बढ़ाकर स्वयं स्फूर्ति की अवस्था प्राप्त करना है।

8. सार्वजनिक न्याय (Social justice) – भारत की प्रत्येक योजना का उद्देश्य सामाजिक न्याय को बढ़ावा देना है। आठवीं योजना का मुख्य उद्देश्य ‘गरीबी हटाओ’ था। इसके लिए न्यूनतम आवश्यकता कार्यक्रम को अपनाया गया था। देश में 26% जनसंख्या निर्धनता रेखा से नीचे है।

9. रोजगार में वृद्धि (Increase in Employment) – योजनाओं का मुख्य उद्देश्य मानव शक्ति का उचित उपयोग तथा रोजगार में वृद्धि करना है। नौवीं-दसवीं, योजनाओं में रोजगार के अवसर जुटाने पर बल दिया गया है।

10. निवेश व बचत में वृद्धि (Increasing saving and investment) – योजनाओं का उद्देश्य राष्ट्रीय आय में बचत व निवेश के अनुपात को बढ़ावा देना है। इसके फलस्वरूप देश की उत्पादन क्षमता में वृद्धि होती है।

प्रश्न 14.
भारत में परिवहन के प्रमुख साधन कौन-कौन से हैं ? इनके विकास को प्रभावित करनेवाले कारकों की विवेचना करें।
उत्तर:
भारत में परिवहन के प्रमुख साधन रेलमार्ग सड़क मार्ग, जलमार्ग और वायुमार्ग हैं। इनमें रेलमार्ग तथा सड़क मार्ग प्रमुख साधन हैं। इनके विकास को निम्नलिखित कारक प्रभावित करते हैं-
1. आर्थिक कारक (Economic Factors) – परिवहन साधनों के विकास में आर्थिक स्थिति को देखा जाता है। उन्हीं क्षेत्रों में इनका विकास किया जाता है जहाँ आर्थिक क्रियाएँ विकसित रही हैं और वह क्षेत्र समृद्ध है।

2. भौगोलिक कारक (Geographical Factors) – भारत के उत्तरी मैदानों में रेल तथा सड़क मार्गों का जाल बिछा हुआ है। इस प्रदेश में समतल भूमि, सघन जनसंख्या, समृद्ध कृषि और विकसित उद्योग तथा बड़े-बड़े नगर हैं।

3. राजनैतिक कारक (Political Factors) – अंग्रेजी शासन में रेलों को प्रमुख नगरों से ही जोड़ा गया था लेकिन स्वतंत्रता के पश्चात् देश में रेलों और सड़कों का विकास हुआ।

प्रश्न 15.
भारत में रेलमार्ग के विकास का विस्तृत वर्णन करें तथा उनका महत्त्व बताएँ।
उत्तर:
भारतीय रेल 1853 में आरम्भ की गई जो मुम्बई से थाणे तक चली। यह भारत सरकार का सबसे बड़ा प्रक्रम है। भारतीय रेल जाल की कुल लम्बाई 63221 किलोमीटर है। भारतीय रेलवे प्रबन्धन 16 क्षेत्रों में विभाजित है। भारतीय रेल द्वारा ढोई जानेवाली मुख्य वस्तुयें हैं जो निम्न तालिका से प्रदर्शित की गई है-

वस्तुयें 1970 – 71 2004 – 05
कोयला 47.9 251-75
इस्पात का कच्चा माल 16.1 43.65
लौह अयस्क 9.8 26.6
सीमेन्ट 11 49.3
खाद्यान्न 15.1 44.3
रासायनिक खाद 4.7 23.7
पेट्रोल 8.9 32
अन्य 48.2 71.4

रेल मार्गों में 16272 किलोमीटर का विद्युतीकरण कर दिया गया है। भारतीय रेलमार्ग पर प्रतिदिन 12670 रेलगाड़ियाँ दौड़ती हैं।

भाप के इंजनों के स्थान पर विद्युत इंजन दौड़ने लगे हैं जिससे प्रदूषण नहीं होता। पर्यावरण स्वच्छ रहता है।

मैट्रो रेल का प्रारम्भ हो गया है जो कोलकाता दिल्ली में चलाई जा रही है। मैट्रो के द्वारा सी.एन.जी. बसें चलाई जा रही हैं जो पर्यावरण हितैषी परिवहन है।

प्रश्न 16.
भारत के आर्थिक विकास में सड़कों की भूमिका का वर्णन करें।
उत्तर:
भारत के आर्थिक विकास में सड़कों, का बड़ा योगदान है। लगभग 85% यात्री तथा 70% माल सड़कों द्वारा ही एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुँचाया जाता है।

सड़क परिवहन का ग्रामीण क्षेत्र में छोटे स्थानों को जोड़ने में बहुत महत्त्व है। इससे ग्रामीण अर्थव्यवस्था में सुधार आ गया है। गाँव बड़े नगरों से जुड़ गये हैं। सड़कों के प्रबन्धन के अनुसार उनको राष्ट्रीय महामार्ग तथा राज्य महामार्ग में प्रमुख रूप से विभाजित किया है।

कुल परिवहन के क्षेत्र में सड़क मार्गों की भागीदारी में निरन्तर प्रगति हो रही है। इसका मुख्य चरण सड़क परिवहन का लचीला होना तथा दुर्गम क्षेत्रों में भी निर्माण संभव होता है। सड़कों की भागीदारी 1993-94 तक 1500 अरब यात्री किलोमीटर थी जो रेलों के अनुपात में चार गुणा अधिक था। अब यात्रियों की संख्या तथा माल ढुलाई भी कई गुना बढ़ गई है।

प्रश्न 17.
भारत में सड़कों का घनत्व में प्रादेशिक भिन्नता का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
प्रति 100 वर्ग किमी. क्षेत्र के अनुपात में सड़क मार्ग की लम्बाई को सड़क मार्ग का घनत्व कहते हैं। सड़कों के प्रादेशिक घनत्व में बहुत अन्तर है। सड़कों का सबसे अधिक घनत्व केरल, गोआ, तमिलनाडु, त्रिपुरा, उड़ीसा और पंजाब में पाया जाता है। 60 से 100 किमी. सड़क मार्ग के औसत घनत्व वाले राज्य असम, नागालैण्ड, कर्नाटक, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, उत्तरांचल, पश्चिम बंगाल, आन्ध्र प्रदेश और हरियाणा हैं। गुजरात, हिमाचल प्रदेश, बिहार, झारखण्ड, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और मणिपुर में सड़कों का घनत्व 40 से 60 किमी. प्रति 100 वर्ग किमी. है। राजस्थान, मेघालय, मिजोरम और सिक्किम में सड़कों का घनत्व 20 से 40 किमी. तक है। सबसे कम घनत्व वाले राज्य अरुणाचल प्रदेश तथा जम्मू-कश्मीर हैं।

प्रश्न 18.
जनसंचार में रेडियो और टेलीविजन के महत्त्व की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
जनसंचार के साधनों में रेडियो और टेलीविजन का महत्त्व अधिक है। ये जनसंचार के प्रमुख साधन हैं-
रेडियो (Radio) – भारत में आकाशवाणी से प्रसारण 1927 में मुम्बई और कोलकाता से शुरू हुआ। रेडियो का मुख्य उपयोग जनता का मनोरंजन, शिक्षा और उन तक महत्त्वपूर्ण जानकारी पहुँचाना है। मनोरंजन के अतिरिक्त खेती-बाड़ी, स्वास्थ्य तथा परिवार कल्याण सम्बन्धी कार्यक्रमों का भी प्रसारण किया जाता है। आकाशवाणी का विदेश सेवा विभाग अपने विविध प्रकार के कार्यक्रमों के द्वारा राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय महत्त्व के मुद्दों पर भारतीय दृष्टिकोण को विशेष महत्त्व देकर प्रसारित करता है।

टेलीविजन (Television) – दूरदर्शन भारत का राष्ट्रीय टेलीविजन है। दूरदर्शन का पहला कार्यक्रम 15 सितम्बर, 1959 को प्रसारित किया गया था। दूरदर्शन तीन स्तरों वाली राष्ट्रीय, प्रादेशिक, स्थानीय-बुनियादी कार्यक्रम प्रसारण सेवा है। दूरदर्शन अपने दर्शकों को राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय महत्त्व के अनेक कार्यक्रम सीधे प्रसारण द्वारा दिखाता है।

प्रश्न 19.
आधुनिक जीवन में उपग्रह और कम्प्यूटर के उपयोग का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
उपग्रह (Satellites) – कृत्रिम उपग्रहों के विकास और उपयोग के द्वारा संसार और भारत के संचार तंत्र में एक क्रांति आ गई है। आकृति और उद्देश्यों के आधार पर भारत की उपग्रह प्रणाली को दो वर्गों में रखा गया है-

  1. भारतीय राष्ट्रीय उपग्रह प्रणाली,
  2. भारतीय सुदूर संवेदन उपग्रह प्रणाली।

इन्सेट दूरसंचार, मौसम विज्ञान संबंधी प्रेक्षण और उसके विविध आँकड़ों के एकत्रीकरण तथा कार्यान्वयन के लिए एक बहुउद्देशीय प्रणाली है। ये उपग्रह अनेक आँकड़े एकत्र करते हैं तथा विभिन्न उपयोगों के स्थलीय स्टेशनों को उनका प्रसारण करते हैं।

कम्प्यूटर (Computer) – कम्प्यूटर का अनेक प्रकार से उपयोग किया जाता है। यह चार प्रकार के कार्य करता है-

  1. निवेश के रूप में आँकड़ों को स्वीकार करता है।
  2. यह आँकड़ों का भंडारण करता है। स्मृति में संरक्षित रखता है।
  3. यह अभीष्ट सूचना के लिए निर्देशानुसार आँकड़ों का प्रसंस्करण करता है।
  4. यह सूचना को निर्गम के रूप में संचालित करता है। अपनी विभिन्न क्षमताओं के कारण कम्प्यूटर का विभिन्न क्षेत्रों में व्यापक उपयोग किया जाता है। शिक्षा के ज्ञान के प्रसार में कम्प्यूटर की महत्वपूर्ण भूमिका होती है।

प्रश्न 20.
भारत में रेलों के वितरण प्रतिरूप का विवरण दीजिए।
उत्तर:
भारतीय रेलों के वितरण प्रतिरूप में भिन्नताएँ पाई जाती हैं। किन्हीं प्रदेशों में रेल जाल अधिक घना है तो कहीं कम। पर्वतीय, पठारी, मैदानी भागों में भिन्न-भिन्न है।

  1. मैदानी भाग (Plains) – समतल भूमि होने के कारण मैदानों में रेल पटरियाँ बिछाना सरल है तथा कृषि और औद्योगिक विकास के कारण रेल जाल सघन है।
  2. उत्तरी-पूर्वी भाग (Northern-Eastern Region) – भारत के इस भाग में रेल जाल विरल है। इस क्षेत्र में अधिक वर्षा के कारण घने वन हैं। इसके अतिरिक्त यह भाग पहाड़ी है इसलिए रेल पटरियाँ बिछाना कठिन है।
  3. पूर्वी तटीय मैदान तथा पश्चिमी तटीय मैदान (East CoastalPlain and West Coastal Plain) – इन भागों में भी रेलजाल अधिक सघन नहीं है क्योंकि समतल भूमि और कृषि तथा उद्योगों के लिए अनुकूल आर्थिक परिस्थितियाँ नहीं हैं।
  4. राजस्थान के मरुस्थलीय क्षेत्र (Desert Regions of Rajasthan) – यहाँ रेल जाल अत्यधिक विरल है। पश्चिमी राजस्थान की मरुभूमि रेल जाल बिछाने के लिए अनुकूल नहीं है।
  5. हिमालय के पर्वतीय क्षेत्रों में भी रेल जाल विरल है। यह पहाड़ी उच्चावच तथा ऊबड़खाबड़ भूमि रेल पटरियाँ बिछाने के अनुकूल नहीं है। इन क्षेत्रों में आर्थिक विकास भी भिन्न स्तर का है।

Bihar Board 12th Business Studies Objective Important Questions Part 7 in Hindi

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Bihar Board 12th Business Studies Objective Important Questions Part 7 in Hindi

प्रश्न 1.
एक अच्छे कर्मचारी को संगठन में अच्छे ……………. मिलना चाहिए।
(a) ईलाज/चिकित्सा सुविधा
(b) भुगतान
(c) स्थान/प्रतिष्ठा
(d) व्यवहार
उत्तर:
(d) व्यवहार

प्रश्न 2.
एक उत्पाद बाजार में मुख्यतः ……………. की सहायता पर निर्भर रह सकता है।
(a) उत्पादक
(b) ग्राहक
(c) आपूर्तिकर्ता
(d) वित प्रदानकर्ता
उत्तर:
(b) ग्राहक

प्रश्न 3.
उद्यमिता इच्छा और …………… के विकल्प का समायोजन है।
(a) लाभदायकता
(b) लचीलापन
(c) भावुकता
(d) समाजिकता
उत्तर:
(b) लचीलापन

प्रश्न 4.
उत्पादक के लिये, ग्राहक सुरक्षा एक ……………. औचित्य है।
(a) नैतिक
(b) आर्थिक
(c) सांस्कृतिक
(d) राजनीतिक
उत्तर:
(a) नैतिक

प्रश्न 5.
सामाजिक विपणन की विचारधारा में ………….. सम्मिलित है।
(a) वातावरण
(b) जनसंख्या
(c) मुद्रास्फीति
(d) लाभदायकता
उत्तर:
(d) लाभदायकता

प्रश्न 6.
प्रबंध का प्रमुख उत्तरदायित्व है।
(a) अपने उत्पाद का विक्रय संवर्धन
(b) योग्य व्यक्ति को नियुक्ति प्रदान करना
(c) पूँजी के लिये पर्याप्त निधि की व्यवस्था करना
(d) संगठन के संसाधनों का दोहन करना
उत्तर:
(d) संगठन के संसाधनों का दोहन करना

प्रश्न 7.
विपणन मिश्रण में सम्मिलित नहीं होता है
(a) मूल्य
(b) उत्पाद
(c) प्रोन्नती
(d) उपभोक्ता संरक्षण
उत्तर:
(c) प्रोन्नती

प्रश्न 8.
प्रबंध की एक अच्छी पद्धति समायोजित नहीं करती है
(a) संगठनात्मक उद्देश्य
(b) सामाजिक उद्देश्य
(c) वैयक्तिक उद्देश्य
(d) राजनैतिक उद्देश्य
उत्तर:
(d) राजनैतिक उद्देश्य

प्रश्न 9.
प्रबंध के सफलता का सबसे महत्वपूर्ण गुण है
(a) ग्रुप प्रभाव
(b) उद्यमिता जोश
(c) खतरे को अवसर में परिवर्तन
(d) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(d) उपर्युक्त सभी

प्रश्न 10.
नियंत्रण का मुख्य उद्देश्य है
(a) भिन्नता
(b) विचलन
(c) सुधार
(d) हानि
उत्तर:
(c) सुधार

प्रश्न 11.
व्यवसाय में संचार के प्रभावपूर्ण पद्धति का होना क्यों आवश्यक है ?
(a) सहायता के लिये
(b) सूचना के लिये
(c) निर्देशन के लिये
(d) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(d) उपर्युक्त सभी

प्रश्न 12.
अन्तरण की प्रक्रिया में उत्तरदेयता को
(a) बाँटा नहीं जा सकता
(b) अन्तरण नहीं किया जा सकता
(c) न (a) और न (b)
(d) (a) और (b) दोनों
उत्तर:
(d) (a) और (b) दोनों

प्रश्न 13.
नियन्त्रण प्रबन्ध का …………. कार्य है।
(a) प्रथम
(b) अन्तिम
(c) तृतीय
(d) द्वितीय
उत्तर:
(b) अन्तिम

प्रश्न 14.
नेता अधीनस्थों से काम लेता है
(a) चातुर्य से
(b) डण्डे से
(c) धमका कर
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(a) चातुर्य से

प्रश्न 15.
किसी भी देश के विकास में सबसे अधिक आवश्यकता है
(a) भौतिक संसाधनों की
(b) आर्थिक संसाधनों की
(c) मानवीय संसाधनों की
(d) कुशल प्रबन्धन की
उत्तर:
(c) मानवीय संसाधनों की

प्रश्न 16.
एक अच्छी योजना होती है
(a) दृढ़
(b) खर्चीली
(c) लोचपूर्ण
(d) समय लेने वाली
उत्तर:
(c) लोचपूर्ण

प्रश्न 17.
निम्न में से कौन-सा नियुक्तिकरण का कार्य नहीं है ?
(a) नियोजन
(b) भर्ती
(c) चयन
(d) प्रशिक्षण
उत्तर:
(a) नियोजन

प्रश्न 18.
प्रभावी नियन्त्रण है
(a) स्थिर
(b) निर्धारित
(c) गतिशील
(d) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(c) गतिशील

प्रश्न 19.
तरलता का निर्माण करता है
(a) संगठित बाजार
(b) असंगठित बाजार
(c) प्राथमिक बाजार
(d) गौण बाजार
उत्तर:
(c) प्राथमिक बाजार

प्रश्न 20.
निम्न में से कौन विक्रय संवर्द्धन का यंत्र नहीं है ?
(a) नमूने
(b) पैकेट में इनाम
(c) कूपन
(d) प्रचार
उत्तर:
(d) प्रचार

प्रश्न 21.
वित्तीय प्रबन्ध की आधुनिक विचारधारा है
(a) कोषों को प्राप्त करना
(b) कोषों का उपयोग करना
(c) (a) तथा (b) दोनों
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(c) (a) तथा (b) दोनों

प्रश्न 22.
उद्यमी के कार्य हैं
(a) व्यावसायिक विचार की कल्पना
(b) परियोजना सम्भाव्यता अध्ययन
(c) उपक्रम की स्थापना करना
(d) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(d) उपर्युक्त सभी

प्रश्न 23.
निम्न में से कौन पैकेजिंग का कार्य है ?
(a) सुरक्षा
(b) सुविधा
(c) परिचय
(d) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(d) उपरोक्त सभी

प्रश्न 24.
निम्नलिखित में से कौन-सा उपभोक्ता संगठन के कार्य नहीं है ?
(a) उपभोक्ता के व्यक्तिगत और पारिवारिक समस्याओं को दूर करना
(b) उपभोक्ता में जागरूकता का विकास करना
(c) विभिन्न उत्पाद का सूचना एकत्र करना
(d) उपभोक्ता को कानूनी सहायता प्रदान करना
उत्तर:
(a) उपभोक्ता के व्यक्तिगत और पारिवारिक समस्याओं को दूर करना

प्रश्न 25.
जो कम्पनी उच्च वृद्धि दर की क्षमता रखते हैं वे
(a) लाभांश नहीं देते हैं
(b) लाभांश कम देते हैं
(c) लाभांश अधिक देते हैं
(d) सम्पूर्ण लाभ का पूँजीकरण करते हैं
उत्तर:
(b) लाभांश कम देते हैं

प्रश्न 26.
नियंत्रण में सम्मिलित है
(a) प्रभाव कार्यनिस्पादन की तुलना वास्तविक कार्यनिस्पादन से स्थापित करना
(b) प्रभाव और वास्तविक कार्य निस्पादन की तुलना कर विचलन ज्ञात करना
(c) कार्य निस्पादन के वृद्धि के सही-सही निर्णय लेना
(d) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(d) उपर्युक्त सभी

प्रश्न 27.
निम्नलिखित में से कौन-सा नियोजन की सीमा नहीं है ?
(a) कठोरता
(b) समय की बर्बादी
(c) नियंत्रण का आधार
(d) अत्यधिक लागत
उत्तर:
(c) नियंत्रण का आधार

प्रश्न 28.
निम्नलिखित में से कौन-सा नौकरी में प्रशिक्षण नहीं आते हैं ?
(a) प्रशिक्षु कार्यक्रम
(b) निहित प्रशिक्षण
(c) आन्तरिक प्रशिक्षण
(d) कार्य चक्रानुसार प्रशिक्षण
उत्तर:
(b) निहित प्रशिक्षण

प्रश्न 29.
प्रबंध हमेशा किसके प्रति सचेत रहता है ?
(a) लागत
(b) लाभ
(c) मूल्य
(d) संतुष्टि
उत्तर:
(d) संतुष्टि

प्रश्न 30.
प्रति अंश उच्च लाभांश संबंधित होता है
(a) उच्च उपार्जन, नगद प्रवाह, स्थिर उपार्जन और अल्प वृद्धि अवसर
(b) उच्च उपार्जन, उच्च नगद प्रवाह, स्थिर उपार्जन, वृद्धि अवसर
(c) उच्च उपार्जन, उच्च नगद प्रवाह अस्थिर उपार्जन और उच्च वृद्धि अवसर
(d) उच्च उपार्जन, अल्प नगद प्रवाह, स्थिर उपार्जन अल्प वृद्धि अवसर
उत्तर:
(a) उच्च उपार्जन, नगद प्रवाह, स्थिर उपार्जन और अल्प वृद्धि अवसर

प्रश्न 31.
सामाजिक संबंध का जाल जो स्वेच्छा से कार्य करने के कारण जागृत है, कहा जाता है
(a) औपचारिक संगठन
(b) अनौपचारिक संगठन
(c) विकेन्द्रीकरण
(d) अधिकार का हस्तांतरण
उत्तर:
(b) अनौपचारिक संगठन

प्रश्न 32.
पूँजी बाजार में व्यापार होता है
(a) अल्पावधि कोष
(b) मध्यावधि कोष
(c) दीर्घ अवधि कोष
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(c) दीर्घ अवधि कोष

प्रश्न 33.
अभिप्रेरक साधनों के निर्धारण का आधार होना चाहिए
(a) सामूहिक
(b) व्यक्तिगत
(c) कृत्य
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(d) इनमें से कोई नहीं

प्रश्न 34.
विपणन विचारधारा है
(a) उत्पाद उन्मुखी
(b) विक्रय उन्मुखी
(c) उपभोक्ता उन्मुखी
(d) इनमें से सभी
उत्तर:
(d) इनमें से सभी

प्रश्न 35.
निम्न में से कौन उद्यमिता की विशेषता नहीं है ?
(a) जोखिम लेना
(b) नवाचार
(c) प्रबंधकीय प्रशिक्षण
(d) सृजनात्मक क्रिया
उत्तर:
(c) प्रबंधकीय प्रशिक्षण

प्रश्न 36.
वाणिज्यिक प्रपत्र की अधिकतम अवधि होती है
(a) 3 महीना
(b) 6 महीना
(c) 12 महीना
(d) 24 महीना
उत्तर:
(c) 12 महीना

प्रश्न 37.
भारत में स्कंध विपणियों का भविष्य हैं
(a) उज्जवल
(b) अंधेरे में
(c) सामान्य
(d) कोई भविष्य नहीं
उत्तर:
(a) उज्जवल

प्रश्न 38.
नियोजन व्यापार के सभी बुराइयों का उपाय नहीं है क्योंकि
(a) नियोजन सामान्यतः पक्षपातपूर्ण और समय खपत करने वाला होता है
(b) नियोजन लक्ष्य अभिमुखी होता है
(c) नियोजन भविष्य की अनिश्चितताओं का सामना करने के योग्य बनाता है
(d) नियोजन प्रतिस्पर्धात्मक शक्ति को बढ़ाता है
उत्तर:
(c) नियोजन भविष्य की अनिश्चितताओं का सामना करने के योग्य बनाता है

प्रश्न 39.
निम्न में से कौन-सा पूँजी संरचना को निर्धारित करने वाला तत्व है ?
(a) रोकड़ प्रवाह विवरण
(b) ब्याज आवरण अनुपात
(c) ऋण भुगतान आवरण अनुपात
(d) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(d) उपरोक्त सभी

प्रश्न 40.
निम्न में से कौन उद्यमिता की विशेषता नहीं है ?
(a) जोखिम लेना
(b) नवाचार
(c) सृजनात्मक क्रिया
(d) प्रबन्धकीय प्रशिक्षण
उत्तर:
(d) प्रबन्धकीय प्रशिक्षण

Bihar Board 12th History Important Questions Long Answer Type Part 5

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Bihar Board 12th History Important Questions Long Answer Type Part 5

प्रश्न 1.
अकबर की मनसबदारी व्यवस्था की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
1573 ई० में भारत में मुगल सम्राट अकबर ने मंगोलों से प्रेरणा लेकर दशमलव पद्धति के आधार पर मनसबदारी प्रथा को चलाया।

प्रत्येक मनसबदारी को दो पद ‘जात’ और ‘सवार’ दिये जाते थे। एक मनसबदार के पास जितने सैनिक रखने होते थे, वह ‘जात’ का सूचक था। ‘सवार’ से तात्पर्य मनसबदारों को रखने वाले घुड़सवारों की संख्या से था। जहाँगीर ने खुर्रम (शाहजहाँ) को 1000 और 5000 का मनसब दिया। अर्थात् शाहजहाँ के पास 10000 सैनिक और पाँच हजार घुड़सवार थे। सबसे छोटा मनसब 10 का और बड़ा 60000 तक का था। बड़े मनसब राजकुमारों तथा राज परिवार के सदस्यों को ही दिये जाते थे। जहाँगीर के काल में मनसबदारी व्यवस्था में दु-अश्वा (सवार पद के दुगने घोड़े) सि-अश्वा (सवार पद के तिगुने घोड़े) प्रणाली लागू हुई। हिन्दु, मुस्लिम दोनों मनसबदार हो सकते थे और इनकी नियुक्ति, पदोन्नति, पदच्युति सम्राट द्वारा की जाती थी।

प्रश्न 2.
बर्नियर भारतीय नगरों को किस रूप में देखता है ?
उत्तर:
बर्नियर के अनुसार मुगल काल में अनेक बड़े और समृद्ध नगर थे। आबादी का 15 प्रतिशत भाग नगरों में रहता था। यूरोपीय शहरों की तुलना में मुगलकालीन नगरों की आबादी अधिक घनी थी। दिल्ली और आगरा नगर राजधानी नगर के रूप में विख्यात थे। नगरों में भव्य रिहायसी इमारतें, अमीरों के मकान और बड़े बाजार थे। नगर दस्तकारी उत्पादों के केन्द्र थे। नगर में राजकीय कारखाना थे, जहाँ विभिन्न प्रकार के सामान बनाए जाते थे। नगर में कलाकार, चिकित्सक, अध्यापक, वकील, वास्तुकार, संगीतकार, सुलेखक रहते थे। जिन्हें राजकीय और अमीरों का संरक्षण प्राप्त था। नगरों का एक प्रभावशाली वर्ग व्यापारी वर्ग था। पश्चिमी भारत में बड़े व्यापारी महाजन कहलाते थे। इनका प्रधान सेठ कहलाता था। वर्नियर नगरों की उत्पादन एवं व्यापार में भूमिका को स्वीकार करते हुए भी इनके वास्तविक स्वरूप को स्वीकार नहीं करता है। वह मुगलकालीन नगरों को ‘शिविन नगर’ कहता है जो सत्य से परे है।

प्रश्न 3.
शाहजहाँ के काल को स्वर्णयुग कहा जाता है। वर्णन करें।
उत्तर:
मध्यकालीन भारतीय इतिहास में शाहजहाँ के काल को (1627-1658) ‘स्वर्णयुग’ कहा जाता है। जैसाकि शाहजहाँ के समकालीन लेखक राय भारमल तथा खफी खाँ ने भी उसके शासनकाल को स्वर्णयुग कहा है क्योंकि वह व्यक्ति और शासक के रूप में महान था। उसका शासन अत्यंत सफल था। उस समय पूरे राज्य में शांति और व्यवस्था कायम थी, निष्पक्ष न्याय की व्यवस्था थी। उसके समय में कला, शिक्षा एवं साहित्य का भी काफी उत्थान हुआ। आर्थिक क्षेत्र में भी काफी तरक्की हुई। इन्हीं आधारों पर हम कहते हैं कि शाहजहाँ का काल स्वर्णयुग था। इसका विस्तृत वर्णन हम निम्नलिखित रूप में कर सकते हैं-

(i) उत्तम शासक-शाहजहाँ एक उदार एवं प्रगतिशील व्यक्ति था। वह सुशील, दयालु तथा सज्जन प्रकृति का था। वह विद्वान तथा सुरुचि सम्पन्न सम्राट था। उनका स्वभाव मृदुल एवं नम्र था। साहित्य तथा ललित कलाओं में वह विशेषरूप से रुचि लेता था। यद्यपि डा. स्मिथ ने उसे अच्छा व्यक्ति नहीं माना है क्योंकि उसने अपने पिता जहाँगीर के विरुद्ध विद्रोह किया था लेकिन मुगल शाहजादों के लिए यह कोई नई बात नहीं थी। जहाँगीर ने भी अकबर के विरुद्ध विद्रोह किया था। इसके अलावे शाहजहाँ ने जो भी काम किया वह नूरजहाँ के विरोधी कार्यों के चलते ही किया। डॉ० स्मिथ उसे आदर्श पति भी नहीं मानते हैं क्योंकि मुमताज महल की मृत्यु के बाद भी उसका सम्बन्ध अन्य पत्नियों से रहा। लेकिन यहाँ यह नहीं भूलना चाहिए कि मुगल सम्राट बहुपत्नीवादी होते थे। साथ ही शाहजहाँ ने तो कई वर्षों तक मुमताज के प्रति प्रेम को पवित्रतापूर्वक निभाने की हर संभव कोशिश की थी। इस प्रकार एक व्यक्ति के रूप में वह अच्छा था।

(ii) उत्तम सैनिक-व्यवस्था – शाहजहाँ एक कुशल सेना एवं सेनानायक था। वह वृद्धावस्था में भी स्वयं युद्ध की योजनाएँ बनाता था तथा युद्ध का संचालन करता था। उसने मुगल सेना को पुनर्संगठित कर उसे सशक्त एवं क्रियाशील बनाया। कुशल सेनानायक होने के कारण ही उसने अपने प्रारंभिक वर्षों में हुए विद्रोहों को सफलतापूर्वक दबा सका। उसने पुर्तगालियों को बढ़ती हुई शक्ति को नष्ट किया तथा दक्षिण में अहमदनगर, बीजापुर, गोलकुंडा आदि राज्यों पर मुगल सत्ता को सुदृढ़ किया।

(iii) उत्तम शांति-व्यवस्था – शाहजहाँ एक कुशल शासक, कुशल प्रबन्धक तथा उच्च कोटि का राजनीतिज्ञ था। उसके शासनकाल में राज्य में पूरी शांति व्यवस्था बनी रही। उसके विशाल साम्राज्य को देखते हुए, जो पश्चिम में सिंध से लेकर पूरब में आसाम तक तथा उत्तर में काश्मीर से लेकर सुदूर दक्षिण तक फैला हुआ था, इस तरह की शासन-व्यवस्था कोई मामूली बात न थी। इतने बड़े साम्राज्य को सुसंगठित और सुव्यवस्थित रखना ही उसके कुशल शासक होने का द्योतक है। यद्यपि मध्ययुग में अशांति रहती थी तथा चोरी, डकैती, हत्या आदि होते रहते थे लेकिन शाहजहाँ ने सामान्य जीवन को सुरक्षित बनाने के उद्देश्य से उचित कदम उठाये। फलस्वरूप इस तरह की बारदातों में काफी कमी आई।

(iv) आर्थिक सम्पन्नता – उसके समय में राज्य की आर्थिक स्थिति भी काफी अच्छी थी। साम्राज्य का राजस्व मंत्री मुर्शीद कुली खाँ बड़ा ही योग्य व्यक्ति था और उसने विभिन्न प्रयत्नों से राज्य की आमदनी को काफी बढ़ाया। उसके पहले राज्य कर के रूप में उपज का 2/3 भाग भूमिकर के रूप में लगता था लेकिन उसने अब उसे बढ़ाकर 9/2 भाग कर दिया जिससे राज्य की आमदनी में काफी वृद्धि हुई और राज्य सम्पन्न हो गया। इसके अलावे उसके समय में शांति-व्यवस्था कायम थी इसलिए देश अधिक समृद्ध एवं सम्पन्न बन गया। प्रजा भी काफी खुशहाल थी।

(v) उत्तम न्याय-व्यवस्था – शाहजहाँ के काल में न्याय की भी उत्तम व्यवस्था थी। वह एक न्यायप्रिय शासक था तथा निष्पक्ष न्याय के लिए प्रसिद्ध था। वह सर्वोच्च न्यायाधीश के रूप में रहता था तथा अपराधियों को कठोर दंड दिया करता था। वह प्रत्येक बुधवार को महल के न्यायालय में बैठकर सभी की शिकायतों को सुनता था तथा अपराधियों को कड़ा दंड देता था। फलस्वरूप अपराध कम होते थे और लोग शांतिमय जीवन बसर करते थे।

(vi) लोकहितकारी कार्य – शाहजहाँ निरंकुश शासक होते हुए भी बहुत ही लोकप्रिय था। वह बहत ही परिश्रमी, कर्तव्यनिष्ठ तथा सहनशील था और प्रत्येक काम जनता की भलाई को देखकर करता था। उसने जनता की भलाई के लिए कई काम किए, जैसे-कई स्कूल, मस्जिदें, सराय, बगीचे आदि का निर्माण किया तथा सिंचाई के उद्देश्य से यमुना नहर का निर्माण करवाई। 1650 ई०में जब दक्षिण में अकाल पडा तो वहाँ लगान माफ कर तथा अन्य उपायों द्वारा अकाल पीड़ितों की सहायता की थी। 1696 ई० में जब पंजाब में भी अकाल पड़ा तो उस समय भी इसी तरह की व्यवस्था कर लोगों के प्राणों की रक्षा की।

(vii) शिक्षा एवं साहित्य का उत्थान – शाहजहाँ के काल में शिक्षा एवं साहित्य का उत्थान हुआ। खासकर संस्कृत, हिन्दी तथा फारसी साहित्य की काफी उन्नति हुई। उसके दरबार में विभिन्न भाषाओं के कई विद्वान रहा करते थे। ‘गंगाधर’ तथा गंगालहरी के प्रसिद्ध लेखक जगन्नाथ पंडित के अलावे हिन्दी और संस्कृत के कई विद्वान (कवीन्द्र आचार्य सरस्वती) उसके दरबार में रहा करते थे। वह इन लोगों को संरक्षण प्रदान करता था। हिन्दी के प्रसिद्ध कवि सुन्दर दास और चिंतामणि भी इसी के दरबार में रहते थे। फारसी साहित्य की भी काफी उन्नति हुई। अब्दुल हमीद लाहौरी ने कई ग्रंथों की रचना की।

साहित्य के अलावे ज्योतिष विज्ञान की भी काफी उन्नति हुई। शाहजहाँ ज्योतिष में विश्वास करता था अतः उसने जन्मकुण्डलीयाँ बनाने, विवाह हेतु शुभ लग्न निकालने, तथा सैनिक अभियानों के लिए शुभ मुहुर्त बतलाने हेतु कई ज्योतिषियों को भी दरबार में रखता था। इसके अलावे ज्ञान-विज्ञान के दूसरे क्षेत्रों में भी काफी उन्नति हुई।

(viii) कलाओं का विकास – शाहजहाँ के शासन काल में ललित कला, संगीत, चित्रकला, स्थापत्य कला आदि का काफी विकास हुआ। खासकर स्थापत्य कला के क्षेत्र में तो यह मुगल काल में सर्वश्रेष्ठ थी। उसके द्वारा निर्मित भव्य एवं सुरम्य महल तथा अन्य इमारतें, दिल्ली का लाल किला, जामा मस्जिद, आगरा का ताजमहल आदि मुगल वास्तुकला की पराकाष्ठा प्रदर्शित करती हैं। ताजमहल तो विश्व के आश्चर्यजनक चीजों में गिना जाता है। उसने मयूर सिंहासन का भी निर्माण करवाया था। उसके समय में संगीत कला का भी काफी विकास हआ।

(ix) उद्योग-धंधों तथा व्यापार में प्रगति – शाहजहाँ के शासन-काल में उद्योग-धंधों तथा व्यापार में काफी प्रगति हुई क्योंकि उस समय देश में शांति एवं व्यवस्था कायम थी। भारत से सिल्क तथा सती कपडे नमक, लोहा, मोम, अफीम, मसाले, विभिन्न औषधियाँ भंगार प्रसाधन आदि पश्चिमी एशिया भेजे जाते थे। इन उद्योगों तथा विदेशी व्यापार से राज्य को काफी आमदनी होती थी।

इस प्रकार शाहजहाँ के शासनकाल में देश की राजनीतिक, आर्थिक, सांस्कृतिक, कला खासकर स्थापत्य कला आदि की प्रगति को देखकर हम कह सकते हैं कि उसका शासन काल मध्यकालीन भारत का स्वर्णयुग था।

प्रश्न 4.
मुगल काल में जमींदारों की स्थिति का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
मुगल काल में जमींदारों की स्थिति निम्नलिखित प्रकार से थी-
(i) कृषि उत्पादन में सीधे हिस्सेदारी नहीं करते थे। ये जमींदार थे जो अपनी जमीन के मालिक होते थे और जिन्हें ग्रामीण समाज में ऊँची हैसियत की वजह से कुछ खास सामाजिक और आर्थिक सुविधाएँ मिली हुई थीं। जमींदारों की बढ़ी हुई हैसियत के पीछे एक कारण जाति था; दूसरा कारण यह था कि वे लोग राज्य को कुछ खास किस्म की सेवाएँ (नजराना) देते थे।

(ii) जमींदारों की समृद्धि की वजह थी उनकी विस्तृत व्यक्तिगत जमीन। इन्हें मिल्कियत कहते थे, यानि संपत्ति मिल्कियत जमीन पर जमींदार के निजी इस्तेमाल के लिए खेती होती थी। अक्सर इन जमीनों पर दिहाड़ी के मजदूर या पराधीन मजदूर काम करते थे। जमींदार अपनी मर्जी के मुताबिक इन जमीनों को बेच सकते थे, किसी और के नाम कर सकते थे या उन्हें गिरवी रख सकते थे।

(iii) जमींदारों की ताकत इस बात में थी कि वे अक्सर राज्य की ओर से कर वसूल कर सकते थे। इसके बदले उन्हें वित्तीय मुआवजा मिलता था। सैनिक संसाधन उनकी ताकत का एक 139 और जरिया था। ज्यादातर जमींदारों के पास अपने किले भी थे और अपनी सैनिक टुकड़ियाँ भी जिनमें घुड़सवारों, तोपखाने और पैदल सिपाहियों के जत्थे होते थे।

(iv) इस तरह, अगर हम मुगलकालीन गाँवों में सामाजिक संबंधों की कल्पना एक पिरामिड के रूप में करें, तो जमींदार इसके संकरे शीर्ष का हिस्सा थे।

(v) समसामयिक दस्तावेजों से पता लगता है कि जंग में जीत जमींदार की उत्पत्ति का संभावित स्रोत रहा होगा। अक्सर, जमींदारी फैलाने का एक तरीका था ताकतवर सैनिक सरदारों द्वारा कमजोर लोगों को बेदखल करना। मगर इसकी संभावना कम ही है कि किसी जमींदार को इतने आक्रामक रुख की इजाजत राज्य देता हो जब तक कि एक राज्यादेश (सनद) के जरिये इसकी पुष्टि नहीं कर दी गई हो।

(vi) इससे भी महत्त्वपूर्ण थी जमींदारी को पुख्ता करने की धीमी प्रक्रिया। स्रोतों में दस्तावे वेज भी शामिल हैं। यह कई तरीकों से किया जा सकता था: नयी जमीनों को बसाकर (जंगल-बारी), अधिकारों के हस्तांतरण के जरिये, राज्य के आदेश से, या फिर खरीद कर।

(vii) यही वे प्रक्रियाएँ थीं जिनके जरिये अपेक्षाकृत “निचली” जातियों के लोग भी जमींदारों के दर्जे में दाखिल हो सकते थे। क्योंकि इस काल में जमींदारी धडल्ले से खरीदी और बेची जाती थी।

(viii) जमींदारों ने खेती लायक जमीनों को बसाने में अगआई की और खेतिहरों को खेती के साजो-समान व उधार देकर उन्हें वहाँ बसने में भी मदद की। जमींदारी की खरीद-फरोख्त से गाँवों के मौद्रीकरण की प्रक्रिया में तेजी आई। इसके अलावा, जमींदार अपनी मिल्कियत की जमीनों की फसल भी बेचते थे। ऐसे सबूत हैं जो दिखाते हैं कि जमींदार अक्सर बाजार (हाट) स्थापित करते थे जहाँ किसान भी अपनी फसलें बेचने आते थे।

(ix) यद्यपि इसमें कोई शक नहीं कि जमींदार शोषण करने वाला तबका था, लेकिन किसानों से उनके रिश्तों में पारस्परिकता, पैतृकवाद और संरक्षण का पुट था। जो पहलू इस बात की पुष्टि करते हैं। एक तो यह कि भक्त संतों ने जहाँ बड़ी बेबाकी से जातिगत और दूसरी किस्मों के अत्याचारों की निंदा की। वहीं उन्होंने जमींदारों को (या फिर, दिलचस्प बात है, साहूकारों को) किसानों के शोषक या उन पर अत्याचार करने वाले के रूप में नहीं दिखाया। आमतौर पर राज्य का राजस्व अधिकारी ही उनके गुस्से का निशाना बना। दूसरे, सत्रहवीं सदी में भारी संख्या में कृषि विद्रोह हुए और उनमें राज्य के खिलाफ जमींदारों को अक्सर किसानों का समर्थन मिला।

प्रश्न 5.
अठारहवीं सदी में शहरी केंद्रों का रूपांतरण किस तरह हुआ ?
उत्तर:
अठारहवीं सदी में शहरी केंद्रों का रूपांतरण बड़ी तेजी के साथ हुआ। यूरोपीय मूलतः अपने-अपने देशों के शहरों से आए थे। उन्होंने औपनिवेशिक सरकार के काल में शहरों का विकास किया। पुर्तगालियों ने 1510 में पणजी, डचों ने 1605 में मछलीपटनम, अंग्रेजों ने 1639 में मद्रास (चेन्नई), 1661 में मुम्बई और 1690 में कलकत्ता (कोलकाता) बसाए तो फ्रांसीसियों ने 1673 में पांडिचेरी नामक शहर बसाए। इनमें से अनेक शहर समुद्र के किनारे थे। व्यापारिक गतिविधियों के केंद्र होने के साथ-साथ प्रशासनिक कार्यकलापों के भी केंद्र थे। अनेक व्यापारिक गतिविधियों के साथ इन शहरों का विस्तार हुआ। आसपास के गाँवों में अनेक सस्ते मजदूर, कारीगर, छोटे-बड़े व्यापारी, सौदागर, नौकरी-पेशा, बुनकर, रंगरेज, धातु कर्म करने वाले लोग रहने लगे। इन शहरों में ईसाई मिशनरियों ने सक्रिय रूप से भाग लिया। अनेक स्थानों पर पश्चिमी-शैली की इमारतें, चर्च और सार्वजनिक महत्त्व की इमारतें बनाई गईं। स्थापत्य में पत्थरों के साथ ईंट, लकड़ी, प्लास्टर आदि का प्रयोग किया गया। छोटे गाँव कस्बे और कस्बे छोटे-बड़े शहर बन गए।

आस-पास के किसान तीर्थ करने के लिए कई शहरों में आते थे। अकाल के दिनों में प्रभावित लोग कस्बों और शहरों में इकट्ठे हो जाते थे। लेकिन जब कस्बों पर हमले होते थे तो कस्बों के लोग ग्रामीण क्षेत्रों में शरण लेने के लिए चले जाते थे। व्यापारी और फेरी वाले लोग कस्बों से गाँव में जाकर कृषि उत्पाद और कुछ कुटीर व छोटे पैमाने के उद्योग-धंधों में तैयार माल बिक्री के लिए शहरों और कस्बों में आते थे। इससे बाजार का विस्तार हुआ। भोजन और पहनावे की नई शैलियाँ विकसित हुई। अनेक शहरों की चारदीवारियों को 1857 के विद्रोह के बाद तोड़ दिया गया जैसे दिल्ली का शाहजहाँनाबाद। दक्षिण भारत में मदुरई, कांचीपुरम मुख्य धार्मिक केन्द्र भी बन गए। 18वीं शताब्दी में शहरी जीवन में अनेक बदलाव आए।

राजनीतिक तथा व्यापारिक पुनर्गठन के साथ पुराने नगर जैसे आगरा, लाहौर, दिल्ली पतनोन्मुख हुए तो नए शहर मद्रास (चेन्नई), मुम्बई, कलकत्ता (कोलकाता) शिक्षा, व्यापार, प्रशासन, वाणिज्य आदि के महत्त्वपूर्ण केंद्र बन गए। विभिन्न समुदायों, जातियों, वर्गों, व्यवसायों के लोग यहाँ रहने लगे।

नई क्षेत्रीय ताकतों के विकास से क्षेत्रीय राजधानी जैसे अवध की राजधानी लखनऊ, दक्षिण के अनेक राज्यों की राजधानियाँ जैसे तंजौर, पूना, श्रीरंगपट्टनम, नागपुर, बड़ौदा के बढ़ते महत्त्व दिखाई दिए।

व्यापारी, प्रशासक, शिल्पकार तथा अन्य लोग पुराने मुगल केंद्रों से नई राजधानियों की ओर काम तथा रोजगार की तलाश में आने लगे।

नए राज्यों और उदित होने वाली नई राजनीतिक शक्तियों में प्रायः निरंतर लड़ाइयाँ होती रहती थीं। इसका परिणाम यह हुआ कि भाड़े के सिपाहियों को भी तैयार रोजगार मिल जाता था।

कुछ स्थानीय विशिष्ट लोगों तथा उत्तर भारत में मुगल साम्राज्य से संबंधित अधिकारियों ने भी इस मौके का उपयोग करके पुरम और गंज जैसी शहरी बस्तियों में अपना विस्तार किया।

लेकिन राजनैतिक विकेन्द्रीकरण का प्रभाव सर्वत्र एक जैसे नहीं थे। कई स्थानों पर नए सिरे से आर्थिक गतिविधियाँ बढ़ीं, कुछ अन्य स्थानों पर लूटपाट तथा राजनीतिक अनिश्चितता, आर्थिक पतन में बदल गई। जो शहर व्यापार तंत्रों से जुड़े हुए थे। उनमें परिवर्तन दिखाई देने लगे। यूरोपीय कम्पनियों ने अनेक स्थानों पर अपने आर्थिक आधार या फैक्ट्रियाँ स्थापित कर ली। 18वीं शताब्दी के अंत तक एकल आधारित साम्राज्य का स्थान, शक्तिशाली यूरोपीय साम्राज्यों ने लिया। अंतर्राष्ट्रीय व्यापार, वाणिज्यवाद और पूँजीवाद की शक्तियाँ अब समाज के स्वरूप को परिभाषित करने लगी थीं।

मध्य अठारहवीं शताब्दी से परिवर्तन का नया चरण शुरू हुआ। अब व्यापारिक गतिविधियाँ अन्य स्थानों पर केंद्रित होने लगी। मुगल काल में जो तीन शहर बहुत प्रगति पर थे-सूरत, मछलीपटनम और ढाका उनका निरंतर पतन होता चला गया।

1757 में प्लासी, 1767 में बक्सर और 1765 में इलाहाबाद की संधि के बाद अंग्रेजों ने बंगाल में अपनी सत्ता स्थापित कर ली। ईस्ट इंडिया कम्पनी ने अपना व्यापार फैलाया। मद्रास (चेन्नई), मुम्बई और कलकत्ता (कोलकाता) तीनों औपनिवेशिक शहर न केवल बंदरगाह शहर बने बल्कि नई आर्थिक राजधानियों के रूप में भी उभरे। ये तीनों औपनिवेशिक शहर औपनिवेशिक सत्ता और प्रशासन के मुख्य केंद्र बन गए।

नए शहरों में नए भवन, संस्थाएँ विकसित हुईं और शहरी स्थानों को नए ढंग से व्यवस्थित किया गया। अनेक जगहों पर (पश्चिमी शिक्षा केंद्र, अस्पताल. रेलवे दफ्तर. व्यापारिक गोदाम. सरकारी कार्यालय आदि) नए-नए रोजगार विकसित हुए। दूर-दूर के प्रदेशों और गाँवों से पुरुष, महिलाएँ औपनिवेशिक शहरों की ओर उमड़ने लगे। देखते-ही-देखते 1800 तक जनसंख्या की दृष्टि से औपनिवेशिक शहर देश के सबसे बड़े शहर बन गए।

प्रश्न 6.
प्लासी युद्ध के कारणों एवं परिणामों का वर्णन करें।
उत्तर:
प्लासी युद्ध का भारतीय इतिहास में विशेषतः राजनैतिक महत्व है। इस युद्ध ने देश की राजनीति में महान परिवर्तन ला दिया। इस युद्ध के प्रमुख कारण निम्नलिखित थे-

(i) भारत में अंग्रेजों का राज्य स्थापित करने का विचार-अंग्रेज यद्यपि भारत में व्यापार करने के लिए आये थे, परंतु यहाँ की राजनीतिक स्थिति को देखकर उनके विचारों में परिवर्तन हो गया। उन्होंने यहाँ अपने साम्राज्य की स्थापना का विचार कर लिया। फ्रांसीसियों को पराजित करने के पश्चात् उन्होंने भारतीय शासकों को पराजित करने का कार्यक्रम बनाया और बंगाल से ही अपने कार्यक्रम को लागू करना आरंभ किया।

(ii) सिराजुद्दौला से अंग्रेज आतंकित-प्लासी के युद्ध के समय बंगाल का शासक सिराजुद्दौला था। वह देश के लिए अंग्रेजों को खतरनाक समझता था। अंग्रेज भी उससे घबराये हुए थे। मरने से पूर्व उसके नाना अलीवर्दी खाँ ने कहा था-“मुल्क के अंदर यूरोपियन कौमों की ताकत पर नजर रखना। यदि खुदा मेरी उम्र बढ़ा देता तो मैं तुम्हें इस डर से भी आजाद कर देता-अब मेरे बेटे यह काम तुम्हें करना होगा …..।”

अलीवर्दी खाँ ने भी एक बार अंग्रेजों से कहा था-“तुम लोग सौदागर हो, तुम्हें किलों की क्या जरूरत ? तब तुम मेरी हिफाजत में हो तो तुम्हें किसी दुश्मन का डर नहीं हो सकता।”

परंतु अब अंग्रेज न तो केवल सौदागर ही रहना चाहते थे और न दूसरे के शासन में रहना चाहते थे, वे भारत में अपना राज्य स्थापित करना चाहते थे, इसीलिए उन्होंने प्लासी का युद्ध लड़ा।

(iii) बंगाल को प्राप्त करना – अंग्रेज हर परिस्थिति में राजनैतिक और आर्थिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण स्थान बंगाल को प्राप्त कर लेना चाहते थे। अतः उन्हें इस प्रदेश को प्राप्त करने हेतु किसी न किसी बहाने की आवश्यकता थी जो उन्हें प्लासी का युद्ध करने के लिए शीघ्र मिल गया।

(iv) किलेबंदी – सिराजुद्दौला के नाना अलीवर्दी खाँ ने अंग्रेज और फ्रांसीसियों को किलेबंदी न करने की स्पष्ट चेतावनी दी थी परंतु उसके मरते ही फिर किलेबंदी होनी प्रारंभ हो गई। सिराजुद्दौला ने भी किलेबंदी करनी की मनाही की इससे फ्रेंच कंपनी ने किलेबंदी समाप्त कर दी, . परंतु अंग्रेजों ने इस पर ध्यान नहीं दिया। इस कारण सिराजुद्दौला और अंग्रेजों के संबंध कटु हो गये। और उनमें युद्ध होना आवश्यक हो गया। .

(v) अंग्रेजों द्वारा विरोधियों को सहायता देना – अंग्रेज व्यापारी सिराजुद्दौला के विरोधियों की सहायता कर रहे थे। असंतुष्ट दरबारियों तथा अन्य शत्रुओं को अंग्रेज शरण दिया करते थे, इससे सिराजुद्दौला अंग्रेजों से चिढ़ गया था। अंग्रेजों ने नवाब की इच्छा के विरुद्ध ढाका के दीवान राजबल व कृष्ण बल्लभ को भी अपने यहाँ शरण दी जिससे उसके क्रोध का ठिकाना न रहा। ऐसी स्थिति में युद्ध को टाला नहीं जा सकता था।

(vi) सुविधाओं का अनुचित उपयोग – मुगल शासकों द्वारा जो सुविधायें अंग्रेजों को दी गई थीं, उसका वे दुरूपयोग कर रहे थे। अपने माल के साथ भारतीय व्यापारियों के माल को भी वह अपना माल बताकर चुंगी को बचा लेते थे और उनसे स्वयं चुंगी लेते थे। इससे आपसी संबंध कटु होते गये और युद्ध की स्थिति स्पष्ट नजर आने लगी।

(vii) उत्तराधिकार के मामलों में हस्तक्षेप – अंग्रेज़ सिराजुद्दौला के विरोधी उत्तराधिकारियों के पक्ष में झुक रहे थे। ढाका के शासक की विधवा बेगम तथा उसकी मौसी के पुत्र शौकत जंग का अंग्रेज समर्थन किया करते थे। ऐसी परिस्थिति में सिराजुद्दौला उनसे रुष्ट हो गया और उनसे युद्ध करने की ठान ली।

सिराजुद्दौला ने रुष्ट होकर अंग्रेजों को बंगाल से निष्कासित करने का दृढ़ निश्चय कर लिया। उसने जनवरी 1756 में कासिम बाजार में स्थित अंग्रेजी कारखाने पर अधिकार कर लिया। तत्पश्चात् वह कलकत्ता की ओर चला। 18 जून, 1756 को नवाब ने कलकत्ते पर आक्रमण किया तथा उस पर सिराजुद्दौला का अधिकार हो गया। इसी समय काल कोठरी की घटना घटी। जैसे कि इतिहासकारों ने बताया है कि 146 अंग्रेजों को एक कोठरी में बंद करके मार डाला गया। यह घटना ‘ब्लैक हॉल’ के नाम से प्रसिद्ध है। 2 जनवरी, 1757 को कलकत्ता पर मानिक चन्द के विश्वासघात करने के कारण अंग्रेजों का फिर से अधिकार हो गया। अब अंग्रेजों ने सेनापति मीरजाफर तथा सेठ अमीचन्द को अपनी ओर मिलाकर सिराजुद्दौला को परास्त करने की योजना बनाई।

इस बीच क्लाइव ने सिराजुद्दौला पर अलीनगर की संधि भंग करने का आरोप लगाया और 22 जून, 1757 को 3200 सैनिकों को लेकर राजधानी के समीप प्लासी स्थान पर पहुँच गया। सिराजुद्दौला अपनी 50 हजार सेना को लेकर मैदान में आया। 23 जून, 1757 को युद्ध प्रारंभ हुआ। मीरजाफर और राय दुर्लभ अपनी सेनाओं के साथ चुपचाप खड़े रहे। केवल मोहनलाल और मीरमदान ने पूर्ण साहस से शत्रुओं का सामना किया, परंतु अपने प्रमुख सहयोगियों द्वारा विश्वासघात करने पर सिराजुद्दौला का दिल टूट गया। प्लासी के मैदान में उसकी पराजय हुई। 24 जून, 1757 को वह अपनी पत्नी के साथ महल की एक खिड़की से कूदकर भाग गया परंतु वह पकड़ा गया और मीरजाफर के पुत्र मीर द्वारा उसकी हत्या कर दी गई।

प्लासी के युद्ध के परिणाम-

  • बंगाल की नवाबी मीरजाफर को मिली।
  • 24 परगनों की जमींदारी कंपनी को प्राप्त हुई।
  • अमीचन्द को इस युद्ध में निराश रहना पड़ा।
  • बंगाल में अंग्रेजों का प्रभुत्व स्थापित हो गया।
  • अंग्रेज अब केवल व्यापारी न होकर शासक हो गया।
  • कंपनी का व्यापार पूरे बंगाल में फैल गया।
  • अलीवर्दी खाँ के वंश का अंत हो गया।

प्रश्न 7.
1857 के विद्रोह के कारणों को लिखें।
उत्तर:
1857 के सिपाही विद्रोह के महत्त्वपूर्ण प्रमुख कारण निम्नांकित थे-
(i) सामाजिक कारण (Social causes) – अंग्रेजों ने अनेक भारतीय सामाजिक कुरीतियों कोने के लिए कानन बनाया। उन्होंने सती प्रथा को काननी अपराध घोषित कर दिया। उन्होंने विधावा पुनर्विवाह करने की कानूनी अनुमति दे दी। स्त्रियों को शिक्षित किया जाने लगा। रेलवे तथा यातायात के अन्य साधनों को बढ़ावा दिया गया। रूढ़िवादी लोग इन सब कामों को संदेह से देखते थे। उन्हें भय हुआ कि अंग्रेज हमारे समाज को तोड़-मरोड़ कर हमारी सारी सामाजिक मान्यताओं को समाप्त कर देना चाहते हैं। संयुक्त परिवार, जाति, व्यवस्था तथा सामाजिक रीति-रिवाज को वे नष्ट करके अपनी संस्कृति हम पर थोपना चाहते हैं। अतः उनके मन में विद्रोह की चिंगारी सुलग रही थी। अंग्रेज भारतीयों को उच्च पद देने के लिए तैयार न थे। अपने जातीय अहंकार के कारण वे लोग समझते थे कि उनके क्लबों में काले लोग नहीं जा सकते। एक साथ वे एक ही रेल के डिब्बे में यात्रा नहीं कर सकते हैं। वे भारतीयों को निम्न कोटि का समझते थे।

(ii) धार्मिक कारण (Religious causes) – ईसाई धर्म प्रचारक धर्म परिवर्तन करा देते थे। जेलों में ईसाई धर्म की शिक्षा का प्रबन्ध था। 1850 ई० में एक कानून बनाकर ईसाई बनने वाले व्यक्ति को अपनी पैतृक सम्पत्ति में बराबर का हिस्सा मिलना निश्चित किया गया। अंग्रेजों ने मंदिरों और मस्जिदों की भूमि पर कर लगा दिया। अतः पंडितों और मौलवियों ने रुष्ट होकर जनता में अंग्रेजों के विरुद्ध जागृति फैला दी।

(iii) सैनिक कारण (Military causes) – भारतीय एवं यूरोपियन सैनिकों में पद, वेतन पदोन्नति आदि को लेकर भेदभाव किया जाता था। भारतीय सैनिकों के साथ बुरा व्यवहार किया जाता था और उन्हें कम महत्त्व दिया जाता था। उन पर कई प्रकार के प्रतिबंध थे, जैसे वे तिलक, चोटी, पगड़ी या दाढ़ी आदि नहीं रख सकते थे। सामूहिक रसोई होने के कारण भी उच्च वर्ग के (ब्राह्मण और ठाकुर) लोग निम्न वर्ग के लोगों के साथ खाने से प्रसन्न न थे।

(iv) तात्कालिक कारण (Immediate causes) – तात्कालिक कारण कारतूसों में लगी सूअर और गाय की चर्बी थी। नयी स्वफील्ड बंदूकों में गोली भरने से पूर्व कारतूस को दाँत से छीलना पड़ता था। हिन्दू और मुसलमान दोनों ही गाय और सूअर की चर्बी को अपने-अपने धर्म के विरुद्ध समझते थे। अतः उनका भड़कना स्वाभाविक था।

26 फरवरी, 1857 ई. को बहरामपुर में 19वीं नेटिव एनफैण्ट्री ने नये कारतूस प्रयोग करने से मना कर दिया। 19 मार्च, 1857 ई० को चौंतीसवीं नेटिव एनफैण्ट्री के सिपाही मंगल पाण्डेय ने दो अंग्रेज अधिकारियों को मार डाला। बाद में उसे पकड़कर फाँसी दे दी गई। सिपाहियों का निर्णायक विद्रोह 10 मई, 1857 को मेरठ में शुरू हुआ।

प्रश्न 8.
1857 के विद्रोह की प्रमुख उपलब्धियों का वर्णन कोजिए।
उत्तर:
विद्रोह की उपलब्धियाँ (Achievements of the Revolt) – 1857 का प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम चाहे असफल रहा, परन्तु इसकी अनेक उपलब्धियाँ एवं परिणाम बहुत ही महत्त्वपूर्ण थे। यह विद्रोह व्यर्थ नहीं गया। यह अपनी उपलब्धियों के कारण ही हमारे इतिहास की महत्वपूर्ण घटनाओं की श्रेणियों में आ सका। इसकी उपलब्धियाँ निम्न थीं-

1. हिन्दू-मुस्लिम एकता (Hindu-Muslim Unity) – इस आन्दोलन एवं संघर्ष के दौरान हिन्दू एवं मुस्लिम न केवल साम्प्रदायिकता की संकीर्ण भावनाओं से ऊपर उठकर अपने देश में एक सामान्य मंच पर आए, बल्कि देश के लिए लड़े और एक साथ ही यातनायें भी सहीं। अंग्रेजों को यह एकता तनिक भी नहीं भायी। इसलिए उन्होंने शीघ्र ही अपनी ‘फूट डालो एवं शासन करो’ की नीति को और तेज कर दिया।

2. राष्ट्रीय आंदोलन की पृष्ठभूमि (The Background of National Movement) – राष्ट्रीय आन्दोलन एवं स्वराज्य की प्राप्ति के लिए संघर्ष की पृष्ठभूमि इस विद्रोह ने तैयार की। इस संग्राम ने देश की पूर्ण स्वतंत्रता के जो बीज बोए उसी का फल 15 अगस्त, 1947 को प्राप्त हुआ।

3. देशभक्ति की भावना का प्रसार (Spread ofPatriotic Feelings) – इस संग्राम ने भारतीय जनता के मस्तिष्क पर वीरता, त्याग एवं देशभक्तिपूर्ण संघर्ष की एक ऐसी छाप छोड़ी कि वे अब प्रान्तीय एवं क्षेत्रीयता की संकर्ण भावनाओं से ऊपर उठकर धीरे-धीरे राष्ट्र के बारे में एक सच्चे नागरिक की तरह सोचने लगे। विद्रोह के नायक सारे देश के लिए प्रेरणा के स्रोत एवं घर-घर में चर्चित होने वाले नायक बन गए। यह इस आन्दोलन की एक महान उपलब्धि थी।

4. देषी राज्यों को मारत (Relifeofthe Princelv States) – देशी राजाओं को अंग्रेजी सरकार ने यह आश्वासन दिया कि भविष्य में उनके राज्यों को ब्रिटिश साम्राज्य का अंग नहीं बनाया जाएगा। उनका अस्तित्व स्वतन्त्र रूप से बना रहेगा। इसलिए अधिकांश देशी राजाओं ने ब्रिटिश शासन का समर्थन करना शुरू कर दिया। भारतीय शासकों को दत्तक पुत्र लेने का अधिकार दे दिया गया। इससे अनेक शासकों ने राहत की साँस ली।

5. भारतीयों को सरकारी नौकरियों की घोषणा (Govt. Service to the Indians) – सैद्धान्तिक रूप में भारतीय सर्वोच्च पदों पर धीरे-धीरे प्रगति करके जा सकते थे। सरकारी घोषणा की गई थी कि भारतीयों के साथ जाति एवं रंग के आधार पर कोई भेदभाव नहीं किया जाएगा; लेकिन अंग्रेजों ने अपना वायदा पूरा नहीं किया, जिससे राष्ट्रीय आन्दोलन बराबर बढ़ता गया।

6. धार्मिक हस्तक्षेप समाप्त कर दिया गया (The Religious Interference Ended) – सैद्धान्तिक रूप से भारतीय प्रजा को पूर्ण धार्मिक स्वतन्त्रता का विश्वास दिलाया गया, लेकिन व्यावहारिक रूप में हिन्दू और मुसलमानों में धार्मिक घृणा एवं साम्प्रदायिकता को बढ़ावा दिया गया।

प्रश्न 9.
“ईस्ट इंडिया कम्पनी काल में जोतदारों का उदय” विषय पर एक लेख लिखिए।
उत्तर:
जोतदारों का उदय (The rise of the Jotedars)-
(i) वे धनी किसान थे जिन्होंने अठारहवीं शताब्दी में कुछ गाँवों, समूहों, में अपनी स्थिति मजबूत कर ली थी।

(ii) 19वीं शताब्दी के आरंभिक वर्षों तक आते-आते जोतदारों के जमीन के बड़े-बड़े रकबे (भूखंड), जो कभी-कभी कई हजार एकड़ में फैले थे, प्राप्त कर लिए थे।

(ii) जोतदारों का स्थानीय ग्रामीण व्यापार और साहूकारों के कारोबार पर नियंत्रण था। वे अपने क्षेत्र के गरीब काश्तकारों पर व्यापक शक्ति का प्रयोग करते थे।

(iv) जोतदारों की जमीन का बड़ा भाग बटाईदारों के माध्यम से जोता जाता था जो खुद अपना हल लाते थे, जोतदारों के खेतों में काम करते थे और फसल की उपज का 50 प्रतिशत जोतदारों को दे देते थे।

(v) गाँव में जोतदारों की शक्ति, जमींदारों की शक्ति से ज्यादा प्रभावशाली थी। जमींदार तो शहरों में रहते थे जबकि जोतदार गाँव में ही रहा करते थे। गाँव में रहने वाले गरीब लोगों के काफी बड़े तबके पर उनका सीधा नियंत्रण होता था।

(vi) जोतदारों का जमींदारों से टकराव होता था इसके कई कारण थे। प्रथम, जब जमींदार गाँव की जमा (लगान) बढ़ाने की कोशिश करते थे तो जोतदार उसका विरोध करते थे। दूसरे जमींदारों की अधिकारियों को अपने कर्तव्य का पालन करने से रोकते थे। तीसरा, जो रैयत उन पर निर्भर रहते थे उन्हें वे अपने पक्ष में एकजुट रखते थे और जमींदारों से खुन्दक निकालने के लिए वे रैयतों को राजस्व के भुगतान में जानबूझकर देरी करने के लिए उकसाते रहते थे। चौथा, जब जमींदारी की भू-सम्पदाएँ नीलाम होती थीं तो जोतदार उनकी जमीनों को खरीदकर कटे पर नमक छिड़कने का काम करते थे।

(vii) संक्षेप में कहा जा सकता है उत्तरी बंगाल में जोतदार सर्वशक्तिशाली थे। उनके उदय होने से जमींदारों के अधिकारों का कमजोर पड़ना स्वाभाविक था। कई स्थानों पर जोतदारों को हवलदार या मंडल या गाँटीदार भी कहते थे। प्रायः जमींदार जोतदारों को पसंद नहीं करते थे क्योंकि जोतदार बड़ी-बड़ी जमीनें जोतने और अपनी उभरी हुई स्थिति के कारण कठोर और जिद्दी भी थे।

प्रश्न 10.
ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा की गई भू-राजस्व व्यवस्थाओं और सर्वेक्षण पर लेख लिखिए।
उत्तर:
भू-राजस्व व्यवस्था तथा सर्वेक्षण (Land Revenue Systems and Surveys)
(a) स्थायी बंदोबस्त (Permanent Settlement)-

  • बंगाल में स्थायी बंदोबस्त 1793 में लागू किया गया था। इस व्यवस्था में भूमि जमींदारों को स्थायी रूप से दी दी जाती थी और उन्हें एक निश्चित धनराशि सरकारी कोष में जमा करनी पड़ती थी।
  • इससे जमींदारों को कानूनी तौर पर मालिकाना अधिकार मिल गये। अब वे किसानों से मनमाना लगान लेते थे।
  • इस व्यवस्था से सरकार को लगान के रूप में बँधी-बँधाई धनराशि मिल जाती थी।
  • इस व्यवस्था से नये जमींदारों का जन्म हुआ, जो शहरों में बड़े-बड़े बंगलों में और तरह-तरह की सुख-सुविधाओं के साथ रहते थे। गाँव में उनके कारिन्दे किसानों पर तरह-तरह के अत्याचार करके भूमि कर ले जाते थे। जमींदार को किसानों को दुःख-सुख से कोई लगाव न था।
  • किसानों को बदले में सिंचाई या ऋण सुविधा नाममात्र को भी नहीं मिलती थी।

(b) रैयतवाड़ी व्यवस्था (Raiyatwari System) – दक्षिण और दक्षिण-पश्चिम भारत में रैयतवाड़ी बंदोबस्त लागू किया गया जिसके अंतर्गत किसान भूमि का मालिक था यदि वह भू-राजस्व का भुगतान करता रहा। इस व्यवस्था के समर्थकों का कहना है कि यह वही व्यवस्था है, जो भारत में पहले से थी। बाद में यह व्यवस्था मद्रास और बंबई प्रेसिडेंसियों में भी लागू कर दी गई। इस व्यवस्था में 20-30 वर्ष बाद संशोधन कर दिया जाता था तथा राजस्व की राशि बढ़ा दी जाती थी। रैयतवाड़ी व्यवस्था में निम्नलिखित त्रुटियाँ थीं-

  1. भू-राजस्व 45 से 55 प्रतिशत था, जो बहुत अधिक था।
  2. भू-राजस्व बढ़ाने का अधिकार सरकार ने अपने पास रखा था।
  3. सूखे अथवा बाढ़ की स्थिति में भी पूरा राजस्व देना पड़ता था। इससे भूमि पर किसान का प्रभुत्व कमजोर पड़ गया।

प्रभाव –

  1. इससे समाज में असंतोष और आर्थिक विषमता का वातावरण छा गया।
  2. सरकारी कर्मचारी किसानों पर अत्याचार करते रहे तथा किसानों का शोषण पहले जैसा .. ही होता रहा।

(c) महालवाडी प्रथा (Mahalwari Systemi) –

  1. इस व्यवस्था के अंतर्गत मालगजारी का बंदोबस्त अलग-अलग गाँवों या जागीरों (महलों) के आधार पर उन जमींदारों या उन परिवारों के मुखिया के साथ किया गया जो भूमि कर के स्वामी होने का दावा करते थे।
  2. अब अपनी भूमि बेचकर भी किसान भू-राजस्व दे सकता था। अगर वह भू-राजस्व समय पर नहीं देता था तो सरकार उनकी भूमि नीलाम करवा सकती थी।

प्रश्न 11.
स्थायी बंदोबस्त से आप क्या समझते हैं ? इसके लाभ एवं हानियों का वर्णन करें।
उत्तर:
बंगाल का स्थायी बन्दोबस्त (Permanent Settlement of Bengal) – बंगाल की राजस्व व्यवस्था में सुधार करके लॉर्ड कॉर्नवालिस ने अत्यन्त महत्त्वपूर्ण कार्य किया। उसके द्वारा प्रतिपादित व्यवस्था ही बाद में “स्थायी बन्दोबस्त” के नाम से प्रसिद्ध हुई।

स्थायी बन्दोबस्त के लिये उत्तरदायी परिस्थितियाँ : वारेन हेस्टिंग्स ने कम्पनी की आय में वृद्धि करने के विचार से भूमि को पाँच वर्ष के लिये और बाद में केवल एक वर्ष के लिये ठेके पर देना आरम्भ किया था। ठेके पर भूमि देने की यह प्रणाली अत्यन्त असन्तोषजनक और दोषपूर्ण सिद्ध हुई। उसमें अनेक दोष थे-

  1. उत्साह तथा जिद्द में आकर जमींदार अधिक से अधिक बोली लगाते थे, परन्तु वे भूमि की आय से इतनी राशि नहीं प्राप्त कर पाते थे, इस कारण सरकार का बहुत-सा धन बिना वसूल किये ही रह जाता था।
  2. जमींदारों को यह भी विश्वास नहीं होता था कि अगले वर्ष भूमि उनको मिलेगी अथवा नहीं, इस कारण वह भूमि की दशा को सुधारने का कोई प्रयास नहीं करते थे, परिणामस्वरूप भूमि ऊसर होने लगी।
  3. एक वर्ष के ठेके में अपनी धनराशि को पूरा करने के लिये जमींदार कृषकों पर बहुत अत्याचार करते थे।

बंगाल का स्थायी भूमि प्रबन्ध : इंगलैंड की सरकार को लॉर्ड कॉर्नवालिस के भारत आने के पूर्व ही भूमि ठेके पर देने के दोषों का पता चल चुका था। इसी कारण सन् 1784 के पिट्स इण्डिया ऐक्ट (Pit’s India Act) में कम्पनी के संचालकों को स्पष्ट आदेश दिया गया था कि वे भारत में वहाँ की न्याय व्यवस्था तथा संविधान के अनुसार उचित भूमि व्यवस्था लागू करें। अप्रैल 1784 ई० में जब कॉर्नवालिस भारत आ रहा था तो कम्पनी के संचालकों ने उसे स्पष्ट निर्देश दिए थे कि वह पिट्स इण्डिया ऐक्ट की धाराओं के अनुसार भारत में भूमि कर निश्चित कर दें।

लॉर्ड कॉर्नवालिस शीघ्रता से कोई कार्य नहीं करना चाहता था। उसने भूमि कर की जाँच-पड़ताल का कार्य बंगाल प्रशासन के एक अनुभवी सदस्य सर जान शोर को दिया। उसने सम्पूर्ण लगान व्यवस्था का लगभग तीन वर्ष तक अध्ययन किया। उसकी रिपोर्ट के आधार पर कॉर्नवालिस ने दस वर्ष के लिए भूमि जमींदारों को सौंप दी। जब यह परीक्षण सफल रहा तो कॉर्नवालिस ने उसे एक स्थायी रूप दे दिया और भूमि सदा के लिए जमींदारों को सौंप दी गई। इस व्यवस्था की प्रमुख विशेषतायें इस प्रकार थीं-

(i) अभी तक जमींदारों की कानूनी स्थिति यह थी कि वे भूमिकर एकत्रित करने के अधिकारी तो थे, परन्तु भूमि के स्वामी नहीं थे, परन्तु अब उनको भूमि का स्थायी रूप से स्वामी मान लिया गया।

(ii) अब उन्हें नित्यप्रति दिये जाने वाले उत्तराधिकार के शुल्क से भी मुक्ति मिल गई।

(iii) इसके अतिरिक्त जमींदारों से लिया जाने वाला कर भी निश्चित कर दिया गया, परन्तु उसकी रकम में वृद्धि की जा सकती थी। यह निश्चित किया गया कि सन् 1793 ई० में किसी जमींदार को लगान से जो कुछ भी प्राप्त होता था, सरकार भविष्य में उसका 10/11 भाग लिया करेगी, शेष धन का अधिकारी जमींदार रहेगा।

स्थायी बन्दोबस्त से लाभ : मार्शमैन तथा आर० सी० दत्त जैसे विद्वानों ने स्थायी बन्दोबस्त की अत्यन्त प्रशंसा की है। मार्शमैन ने इसे एक अत्यन्त बुद्धिमत्तापूर्ण कार्य बताया है। इसी प्रकार इतिहासकार आर० सी० दत्त का कथन है, लॉर्ड कार्नवालिस द्वारा प्रतिपादित स्थायी भूमि व्यवस्था, अंग्रेजों द्वारा किए गए कार्यों से सर्वाधिक बुद्धिमत्तापूर्ण तथा सफल कार्य था।”

स्थायी भूमि व्यवस्था के अनेक लाभ इस प्रकार हैं-
(i) जमींदारों के लिए लाभदायक- भूमि के इस स्थायी बन्दोवस्त का लाभ जमींदार वर्ग को ही रहा। उन्हें भूमि का स्वामित्व प्राप्त हो गया। समय के साथ-साथ भूमि से अधिक उत्पादन होने लगा जिससे जमींदार समृद्धशाली हो गये।

(ii) बार-बार भूमि कर निश्चित करने के झंझट से मुक्ति- इस व्यवस्था से सरकार और जमींदार दोनों को ही प्रतिवर्ष भूमि कर निश्चत करने वाली कठिनाइयों से मुक्ति मिल गई।

(iii) सरकार की आय का निश्चित होना-स्थायी प्रबन्ध से भूमि-कर की रकम निश्चित कर दी गई, परिणामस्वरूप सरकार की आय भी निश्चित हो गई तथा अब सरकार सरलता से बजट बना सकती थी।

(iv) प्रशासन की कार्यकुशलता में वृद्धि-स्थायी को अपना अधिकांश समय भूराजस्व एकत्रित करने तथा उससे संबंधित समस्याओं की ओर लगाना पड़ता था। परन्तु स्थायी व्यवस्था के परिणामस्वरूप सरकार को राजस्व संबंधी समस्याओं से मुक्ति मिल गई। अब सरकार अन्य प्रशासनिक कार्यों की ओर ध्यान दे सकती थी।

(v) उत्पादन तथा समृद्धि में वृद्धि-स्थायी व्यवस्था के फलस्वरूप भूमि की दशा में सुधार होने लगा और अधिक से अधिक अन्न का उत्पादन होने लगा।

(vi) ब्रिटिश सरकार को स्थिरता प्राप्त होना- स्थायी बन्दोवस्त के कारण बंगाल में अंग्रेजी सरकार का आधार सुदृढ़ हो गया। अंग्रेजों ने जमींदारों को भूमि का स्वामी बना दिया था। इसी कारण वे सरकार के प्रबल समर्थक बन गये और सन् 1857 की क्रांति के समय अंग्रेजों के भक्त बने रहे। डॉ. ईश्वरी प्रसाद के अनुसार “राजनैतिक दृष्टि से भी यह कार्य अत्यन्त महत्त्वपूर्ण था। जमींदार ब्रिटिश साम्राज्य की सुरक्षा तथा उसके बने रहने में रूचि लेने लगे। विद्रोह के समय भी उनकी वफादारी दृढ़ रही। इस दृष्टिकोण से यह व्यवस्था अत्यन्त सफल रही।”

स्थायी बन्दोबस्त से हानि : मिल, थार्नटन और होम्ज आदि कुछ इतिहासकारों ने स्थायी व्यवस्था की कड़ी आलोचना की है। उनके अनुसार इस व्यवस्था में अनेक दोष थे-
(i) आरम्भ में जमींदारों पर उल्टा प्रभाव-प्रारम्भ में अनेक जमींदार परिवार नष्ट हो गये, क्योंकि उन्होंने अपना समस्त धन भूमि को सुधारने पर व्यय कर दिया, परन्तु उत्पादन में उस अनुपात में वृद्धि नहीं हुई, इस कारण वह अपनी रकम को जो उस समय के अनुसार बहुत अधिक थी समय पर जमा न कर सके, फलतः बिक्री के नियम जो कि विनाशकारी नियम के नाम से भी प्रसिद्ध था, के अनुसार उनकी बिक्री कर दी गई।

(ii) कृषकों के हितों की उपेक्षा-स्थायी बन्दोबस्त में कृषकों के अधिकारों तथा हितों का तनिक भी ध्यान नहीं रखा गया तथा उन्हें पूर्ण रूप से जमींदारों की दया पर ही छोड़ दिया गया। जमींदार उन पर अनेक प्रकार के अमानवीय अत्याचार करते थे। उन्होंने किसानों से अधिकाधिक धनं बटोरना प्रारम्भ कर दिया।

(iii) राज्य के भावी हितों की अवहेलना-स्थायी व्यवस्था के द्वारा राज्य के भावी हितों की भी उपेक्षा की गई। समय के साथ-साथ भूमि से प्राप्त होने वाली आय में वृद्धि होने लगी, परन्तु राजकीय भाग निश्चित था, इस कारण बढ़ी हुई आय से सरकार को एक पैसा भी नहीं सका।

(iv) खेती करने वालों पर करों का भारी बोझ-समय के साथ-साथ सरकार के व्यय में वृद्धि हो रही थी, परन्तु वह जमींदारों से एक पाई भी अधिक लेने में असमर्थ थी। इस कारण जमींदारी से होने वाले घाटे को सरकार अन्य व्यक्तियों पर भारी कर लगाकर पूरा करती थी। इस प्रकार जमींदारों के लाभ के लिए अन्य लोग करों के भार से दब गए जो पूर्णतया अन्याय था।

(v) अन्य प्रान्तों पर भार- समय व्यतीत होने पर सरकार के लिए बंगाल एक घाटे का प्रान्त बन गया। बंगाल के अकृषक वर्ग पर भी कर लगाने से जब यह घाटा पूरा न हुआ तब सरकार ने बाध्य होकर अन्य प्रान्तों पर भारी कर लगाये।