Bihar Board Class 10 Hindi Solutions गद्य Chapter 8 जित-जित मैं निरखत हूँ

Bihar Board Class 10 Hindi Book Solutions Godhuli Bhag 2 गद्य खण्ड Chapter 8 जित-जित मैं निरखत हूँ Text Book Questions and Answers, Summary, Notes.

BSEB Bihar Board Class 10 Hindi Solutions गद्य Chapter 8 जित-जित मैं निरखत हूँ

Bihar Board Class 10 Hindi जित-जित मैं निरखत हूँ Text Book Questions and Answers

वोध और अभ्यास

पाठ के साथ

Jit Jit Main Nirkhat Hun Bihar Board प्रश्न 1.
लखनऊ और रामपुर से बिरजू महाराज का क्या संबंध है ?
उत्तर-
लखनऊ में बिरजू महाराज का जन्म हुआ था। और बहनों का जन्म रामपुर में। रामपुर में बिरजू महाराज काफी दिन रहे।

Bihar Board Class 10 Hindi Book Solution प्रश्न 2.
रामपुर के नवाब की नौकरी छुटने पर हनुमान जी को प्रसाद क्यों चढ़ाया ?
उत्तर-
रामपुर के नवाब की नौकरी छूटने पर हनुमान जी को प्रसाद चढ़ाया क्योंकि महाराज जी छह साल की उम्र में नवाब साहब के यहाँ नाचते थे। अम्मा परेशान थी। बाबूजी नौकरी छूटने । के लिए हनुमान जी का प्रसाद माँगते थे। नौकरी से जान छूटी इसलिए हनुमान जी को प्रसाद चढ़ाया गया।

Bihar Board Hindi Book Class 10 Pdf Download प्रश्न 3.
नृत्य की शिक्षा के लिए पहले-पहल बिरजू महाराज किस संस्था से जुड़े और वहाँ किनके सम्पर्क में आए ?
उत्तर-
पहले-पहल उन्होंने निर्मला जी के स्कूल दिल्ली में हिन्दुस्तानी डान्स म्यूजिक से जुड़े। वहाँ वे कपिला जी, लीला कृपलानी आदि के संपर्क में आये।

Bihar Board Solution Class 10 Hindi प्रश्न 4.
किनके साथ नाचते हुए बिरजू महाराज को पहली बार प्रथम पुरस्कार मिला?
उत्तर-
कलकत्ता में बिरजू महाराज को पहली बार प्रथम पुरस्कार मिला। इसमें शम्भू महाराज चाचा जी और बाबू जी दोनों नाचे।

Bihar Board 10th Hindi Book प्रश्न 5.
बिरजू महाराज के गुरु कौन थे ? उनका संक्षिप्त परिचय दें।
उत्तर-
बिरजू महाराज के गुरु उनके बाबूजी थे। वे अच्छे स्वभाव के थे। वे अपने दुःख को व्यक्त नहीं करते थे। उन्हें कला से बेहद प्रेम था। जब बिरजू महाराज साढ़े नौ साल के थे, उसी समय बाबूजी की मृत्यु हो गई। महाराज को तालीम बाबूजी ने ही दिया।

Class 10th Hindi Bihar Board प्रश्न 6.
बिरजू महाराज ने नृत्य की शिक्षा किसे और कब देने शुरू की?
उत्तर-
बिरजू महाराज ने नृत्य की शिक्षा रश्मि जी को करीब 56 के आसपास जब उन्हें सीखने वाले की खोज थी, देनी शुरू की। उस समय महाराज को सही पात्र की खोज थी।

Bihar Board Class 10 Hindi Book Solution In Hindi Pdf Download प्रश्न 7.
बिरजू महाराज के जीवन में सबसे दुःखद, समय कब आया ? उससे संबंधित प्रसंग का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
जब महाराज जी के बाबूजी की मृत्यु हुई तब उनके लिए बहुत दुखदायी समय व्यतीत हुआ। घर में इतना भी पैसा नहीं था कि दसवाँ किया जा सके। इन्होंने दस दिन के अन्दर दो प्रोग्राम किए। उन दो प्रोग्रामों से 500 रु० इकट्ठे हुए तब दसवाँ और तेरह की गई। ऐसी हालत में नाचना एवं पैसा इकट्ठा करना महाराजजी के जीवन में दु:खद समय आया।

Class 10th Hindi Godhuli Question Answer प्रश्न 8.
शंभू महाराज के साथ बिरजू महाराज के संबंध में प्रकाश डालिए।
उत्तर-
शंभू महाराज के साथ बिरजू महाराज बचपन में नाचा करते थे। आगे भारतीय कला केन्द्र में उनका सान्निध्य मिला। शम्भ महाराज के साथ सहायक रहकर कला के क्षेत्र में विकास किया। शम्भू महाराज उनके चाचा थे। बचपन से महाराज को उनका मार्गदर्शन मिला।

Hindi Bihar Board Class 10 Bihar Board प्रश्न 9.
कलकत्ते के दर्शकों की प्रशंसा का बिरजू महाराज के नर्तक जीवन पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर-
कलकत्ते के एक कांफ्रेंस में महाराजजी नाचे। उस नाच की कलकत्ते के श्रोताओं दर्शकों ने प्रशंसा की। तमाम अखबारों में छा गये। वहाँ से इनके जीवन में एक मोड़ आया। उस समय से निरंतर आगे बढ़ते गये।

प्रश्न 10.
संगीत भारती में बिरजू महाराज की दिनचर्या क्या थी?
उत्तर-
संगीत भारती में प्रारंभ में 250 रु० मिलते थे। उस समय दरियागंज में रहते थे। वहाँ से प्रत्येक दिन पाँच या नौ नंबर का बस पकड़कर संगीत भारतीय पहुँचते थे। संगीत भारती में इन्हें प्रदर्शन का अवसर कम मिलता था। अंततः दुःखी होकर नौकरी छोड़ दी।

प्रश्न 11.
बिरजू महाराज कौन-कौन से वाद्य बजाते थे।
उत्तर-
सितार, गिटार, हारमोनियम, बाँसुरी, तबला और सरोद।

प्रश्न 12.
अपने विवाह के बारे में बिरजू महाराज क्या बताते हैं ?
उत्तर-
बिरजू महाराज की शादी 18 साल की उम्र में हुई थी। उस समय विवाह करना महाराज अपनी गलती मानते हैं। लेकिन बाबूजी की मृत्यु के बाद माँ ने घबराकर जल्दी में शादी कर दी। शादी को नुकसानदेह मानते हैं। विवाह की वजह से नौकरी करते रहे।

प्रश्न 13.
बिरजू महाराज की अपने शागिर्दो के बारे में क्या राय है?
उत्तर-
बिरजू महाराज अपने शिष्या रश्मि वाजपेयी को भी अपना शार्गिद बताते हैं। वे उन्हें शाश्वती कहते हैं। इसके साथ ही वैरोनिक, फिलिप, मेक्लीन, टॉक, तीरथ प्रताप प्रदीप, दुर्गा इत्यादि को प्रमुख शार्गिद बताये हैं। वे लोग तरक्की कर रहे हैं, प्रगतिशील बने हुए हैं, इसकी भी चर्चा किये हैं।

प्रश्न 14.
व्याख्या करें
(क) पांच सौ रुपए देकर मैंने गण्डा बंधवाया।
व्याख्या-
प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक के ‘जित-जित मैं निरखत हूँ’ पाठ से ली गयी हैं। इन पंक्तियों का संबंध बिरजू महाराज से है।
बिरजू महाराज को शिक्षा उनके पिताजी से ही मिली थी। वे ही उनके आरंभिक गुरु थे। गुरु-दक्षिणा में पिताजी ने अम्मा से कहा कि जबतक तुम्हारा लड़का नजराना यानी गुरु दक्षिणा नहीं देगा तबतक मैं उसे गण्डा नहीं बांधूंगा। बिरजूजी को 500/- पाँच सौ रुपये के दो प्रोग्राम मिले थे। जब बिरजूजी ने 500 रुपये पिताजी को दिया, तभी पिताजी ने गंडा बाँधा। उन्होंने कहा कि यह दक्षिणा मेरी है अतः, इसमें से एक भी पैसा नहीं दूंगा। मैं इसका गुरु हूँ और इसने नजराना मुझे दिया है तब 500 रुपये देकर बिरजूजी ने अपने पिता से गंडा बंधवाया।

इन पंक्तियों से आशय यह झलकता है कि गुरु-शिष्य की परंपरा बड़ी पवित्र परंपरा है। इसकी मर्यादा रखनी चाहिए। तभी तो पिता-पुत्र का संबंध रहते हुए बिरजू महाराज के पिताजी ने गुरु-शिष्य का संबंध रखा, पिता-पुत्र का नहीं। गुरु-दक्षिणा में 500/- रुपये लेकर ही गंडा बाँधा। इस प्रकार गुरु की महिमा बड़ी है। मर्यादायुक्त है, उसकी रक्षा होनी चाहिए।

(ख) मैं कोई चीज चुराता नहीं हूँ कि अपने बेटे के लिए ये रखना है, उसको सिखाना है।
व्याख्या-
प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक से ‘जित जित मैं निरखत हूँ’ पाठ से ली गयी हैं। इन पंक्तियों का संबंध बिरजू महाराज के गुरु-शिष्य संबंध से है। जब बिरजूजी किसी को नृत्य सिखाते थे तो कोई भी कला चुराते नहीं थे। यानी लड़का-लड़की का भेदभाव नहीं रखते थे। समान व्यवहार और समान शिक्षा देते थे। यह नहीं कि किसी को किसी भाववश कुछ सिखाया और कुछ चुरा लिया। अपने बेटे और अन्य शिष्यों में भी कोई भेदभाव नहीं रखते थे।

उनकी शिष्यों के प्रति उदार भावना थी और भीतर मन में किसी भी प्रकार की कलुषित भावना नहीं थी।
उनमें यह भेद नहीं था कि बेटे के लिए अच्छी चीजों को चुराकर रखना है, दूसरों को आधी-अधूरी शिक्षा देनी है।
इन पंक्तियों में बिरजूजी के मनोभावों का पता चलता है। उनमें पुत्र-शिष्य का लड़का-लड़की का भेदभाव नहीं था। विचार में पवित्रता और गुरु की सदाशयता थी।

(ग) मैं तो बेचारा उसका असिस्टेंट हूँ। उस नाचने वाले कार
व्याख्या-
प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक के ‘जित-जित मैं निरखत’ हूँ। पाठ से ली गयी हैं। इन पंक्तियों का संबंध लेखक के नृत्य और उनके व्यक्तिगत जीवन से है। बिरजूजी का कहना है कि मेरे नाच पर बहुत लोग खुश हो जाते हैं, देखने आते हैं, ये मेरे चाहनेवाले हैं, मरे आशिक हैं। लेकिन फिर बिरजू महाराज स्वयं को प्रस्तुत करते हुए कहते हैं कि मेरा क्या? लोग तो मेरे
नृत्य की वजह से मेरी तारीफ करते हैं, मुझे चाहते हैं। मेरे और लोगों के बीच जो प्रेम-संबंध है वह तो नाच के कारण है। उसमें मैं कहाँ। वहाँ तो कला है, नाच है। मैं तो उस नाच का ‘ असिस्टेंट हूँ। सहायक हूँ।

इन पंक्तियों में बिरजूजी अपने को और नाच के बीच लोगों के प्यार, स्नेह, सम्मान की चर्चा करते हुए कहते हैं कि सम्मान मेरा नहीं मेरे नाच का है। मैं तो उसका सहायक हूँ। इस प्रकार कला या गुण सर्वोपरि है। आदमी कुछ नहीं है। उसकी गुणवत्ता की पूजा होती है, सम्मान मिलता है।

प्रश्न 15.
विग्ज महाराज अपना सबसे बड़ा जज किसको मानते थे?
उत्तर-
बिरजू महाराज अपना सबसे बड़ा जज अपनी अम्मा को मानते थे। जब वे नाचते थे और अम्मा देखती थी तब वे अम्मा से अपनी कमी या अच्छाई के बारे में पूछा करते थे। उसने बाबूजी से तुलना करके इनमें निखार लाने का काम किया।

प्रश्न 16.
पुराने और आज के नर्तकों के बीच बिरजू महाराज क्या फर्क पाते हैं ?
उत्तर-
पुराने नर्तक कला प्रदर्शन करते थे। कला प्रदर्शन शौक था। साधन के अभाव में भी उत्साह होता था। कम जगह में गलीचे पर गड्ढा, खाँचा इत्यादि होने के बावजूद बेपरवाह होकर कला प्रदर्शन करते थे। लेकिन आज के कलाकार मंच की छोटी-छोटी गलतियों को ढूंढते हैं। चर्चा का विषय बनाते हैं। उस समय न एयर कंडीशन होता, न ही बहुत अधिक अन्य सुविधाएँ। उसके बावजूद उत्साह था, लेकिन आज सुविधा की पूर्णता होते हुए भी मीन-मेख निकालने की परिपाटी विकसित हुई है।

प्रश्न 17.
पांच सौ रुपए देकर गण्डा बंधवाने का क्या अर्थ है?
उत्तर-
बिरजू महाराज के पिता ही उनके गुरु थे। उनके पिता में गुरुत्व की भावना थी। बिरजू महाराज अपने गुरु के प्रति असीम आस्था और विश्वास व्यक्त करते हुए अपने ही शब्दों में कहते हैं कि यह तालीम मुझे बाबूजी से मिली है। गुरु दीक्षा भी उन्होंने ही मुझे दी है। गण्डा भी उन्होंने ही मुझे बांधा। गण्डा का अभिप्राय यहाँ शिष्य स्वीकार करने की एक लौकिक परंपरा का स्वरूप है। जब बिरजू महाराज के पिता उन्हें शिष्य स्वीकार कर लिये तो बिरजू महाराज ने गुरु दक्षिणा के रूप में अपनी कमाई का 500 रुपये उन्हें दिये।

भाषा की बात

प्रश्न 1.
काल रचना स्पष्ट करें
(क) ये शायद 43 की बात रही होगी।
उत्तर-
1943 ई की।

(ख) यह हाल अभी भी है।
उत्तर-
1943 ई की।

(ग) उस उम्र में न जाने क्या नाचा रहा होऊँगा।
उत्तर-
5 वर्ष की उम्र में (43 ई. में)

(घ) अब पचास रुपये में रिक्शे पर खर्च करता तो क्या बचता, और ट्यूशन में नागा हो तो पैसा अलग काट लेते थे।
उत्तर-
1948 ई. में।

(ङ) पचास रुपए में काम करके किसी तरह पढ़ता रहा मैं।
उत्तर-
1948 ई।

प्रश्न 2.
चौदह साल की उम्र में, जब मैं वापस लखनऊ आया फेल होकर, तब कपिला जी अचानक लखनऊ पहुंची मालूम करने कि लड़का जो है वह कुछ करता भी है या आवारा या गिटकट हो गया, वह है कहाँ।
उत्तर-
चौदह साल की उम्र में फेल होकर लखनऊ आया कपिला जी अचानकं लखनऊ आकर पता किया कि लड़का क्या कर रहा है।

(ख) वह तीन साल मैं खूब रियाज किया, मतलब यही सोचकर कि यही टाइम है अमर कुछ बढ़ना है तो अंधेरा करा किया करके करता था जब बाद में थक जाऊँ मैं तो जो भी साज हाथ आए कभी सितार, कभी गिटार, कभी हारमोनियम लेकर बजाऊं मतलब रिलैक्स होने के लिए।
उत्तर-
अंधेरा कमरा करके तीन साल मैं खूब रियाज किया और थक जाने पर सितार, गिटार, हारमोनियम रिलेक्स के लिए बजाता।

प्रश्न 3.
पाठ से ऐसे दस वाक्यों का चयन कीजिए जिससे यह साबित होता हो कि ये वाक्य आमने-सामने बैठे व्यक्तियों के बीच की बातचीत के हैं, लिखित भाषा के नहीं।
उत्तर-
(क) जन्म मेरा लखनऊ के जफरीन अस्पताल में 1938, 4 फरवरी, शुक्रवार, सुबह 8 बजे।
(ख) आपको मंच का कुछ अनुभव या संस्मरण बचपन के हैं।
(ग) आपको आगे बढ़ाने में अम्मा जी का बहुत बड़ा हाथ है।
(घ) अपने शार्गिों के बारे में बताएँ।
(ङ) अब तुम हो इतने अर्से से।
(च) शाश्वती लगी हुई है।
(छ) लड़कों में कृष्णमोहन, राममोहन को उतना ध्यान नहीं है।
(ज) आपको संगीत नाटक अकादेमी अवार्ड कब मिला। (अ) केशवभाई और मैं साथ ही रहते थे।
(अ) शागिर्द मैं बाबूजी का हूँ।

प्रश्न 4.
निम्नलिखित वाक्यों से अव्यय का चुनाव करें।
(क) जब अंडा कहकर पूछे तो नहीं खाता था, पर जब मूंग की दाल कहें तो बड़े मजे से खा लेता था।
उत्तर-
जब, तो, पर, तो आदि।

(ख) एक सीताराम बागला करके लड़का था अमीर घर का।
उत्तर
एक करके।

(ग) बिलकुल पैसा नहीं था घर में कि उनका दसवाँ किया जा सके।
उत्तर-
बिलकुल, जा आदि।

(घ) फिर जब एक साल हो गया तो कहने लगे कि अब तुम परमानेंट हो गए।
उत्तर-
फिर, जब, एक, तो, अब आदि।

गद्यांशों पर आधारित अर्थग्रहण-संबंधी प्रश्नोत्तर

1.बिरजू महाराज : जन्म मेरा लखनऊ के जफरीन अस्पताल में 1938, 4 फरवरी, शुक्रवार, सुबह 8 बजे; वसंत पंचमी के एक दिन पहले हुआ। घर में आखिरी सन्तान। तीन बहनों के बाद। सबसे छोटी बहन मुझसे आठ नौ साल बड़ी। अम्मा तब 28 के लगभग रही होंगी। बहनों का जन्म रामपुर में क्योंकि बाबूजी यहाँ 22 साल रहे। बड़ी बहन लगभग 15 साल बड़ी। उस समय बाबूजी रायगढ़ आदि राजांओं के यहाँ भी गए। मैं डेढ़ दो साल का था। उस समय विभिन्न राजा कुछ समय के लिए कलाकारों को माँग लिया करते थे। पटियाला भी गए थे पहले। रायगढ़ दो ढाई साल रहे होंगे। रामपुर लौटकर आए। रामपुर काफी अरसे रहे। जब पाँच छह साल के थे तो अकसर नवाब याद कर लिया करते थे। हलकारे आ गए तो जाना ही पड़ता था। चाहे जो भी वक्त हो।

प्रश्न
(क) पाठ तथा लेखक का नाम लिखिए।
(ख) बिरजू महाराज का जन्म कब और कहाँ हुआ था?
(ग) महाराज अपने माता-पिता की कौन-सी संतान थे ?
(घ) महाराज की बहनों का जन्म कहाँ हुआ था?
(ङ) बडी बहन महाराज से कितने बडी थी?
(च) बाबूजी रामपुर में कितने दिन रहे थे?
उत्तर-
(क) पाठ का नाम-जित-जित मैं निरखत हैं।
लेखक का नाम- पं बिरजू महाराज।
(ख) बिरजू महाराज का जन्म 4 फरवरी, 1938 में जफरीन अस्पताल, लखनऊ में हुआ था।
(ग) महाराज अपने माता-पिता की आखिरी संतान थे।
(घ) महाराज की बहनों का जन्म रामपुर में हुआ था।
(ङ)बड़ी बहन महाराज से लगभग 15 साल बड़ी थी।
(च) बाबूजी रामपुर में 22 साल रहे थे।

2. छह साल की उम्र में मैं नवाब साहब को बहुत पसंद आ मया। मैं नाचता था जाकर। पीछे पैर मोड़कर बैठना पड़ता था। चूड़ीदार पैजामा साफा, अचकन पहन कर। अम्मा जी बेचारी बहुत परेशान। उन्होंने हमारे तनख्वाह भी बाँध दी थी। बाबूजी रोज हनुमानजी का प्रसाद माँगे कि 22 साल गुजर गए, अब नौकरी छूट जाए। नवाब साहब बहुत नाराज कि तुम्हारा लड़का नहीं होगा तो तुम भी नहीं रह सकते। खैर बाबू जी बहुत खुश हुए और उन्होंने मिठाई बांटी। हनुमान जी को प्रसाद चढ़ाया कि जान छूटी।

प्रश्न
(क) पाठ तथा लेखक का नाम लिखिए।
(ख) कितने साल की उम्र में महाराज नवाब को पसंद आ गये थे।
(ग) बचपन में नवाब के समक्ष क्या पहनकर महाराज नाचते थे।
(घ) बाबूजी हनुमान जी का प्रसाद क्यों मांगते थे?
(ङ) बाबूजी हनुमान जी को प्रसाद क्यों चड़ाये ?
उत्तर-
(क)पाठ का नाम–जित-जित मैं निरखत हूँ। लेखक का नाम-बिरजू महाराज।
(ख) छह साल की उम्र में बिरजू नवाब को पसंद आ गये थे।
(ग) बचपन में महाराज चूड़ीदार पैजामा, साफा, अचकन पहनकर नवाब के समक्ष नाचते थे।
(घ) बाबूजीं चाहते थे कि नौकरी छूट जाए, इसलिए हनुमान जी का प्रसाद माँगते थे।
(ङ) नौकरी से जान छूटने की खुशी में हनुमान जी को प्रसाद चढ़ाया।

3. मेरी एक बड़ी खास आदत रही है, जैसे कि मेरे बाबूजी की भी थी कि जब शार्गिद को सिखा रहे हैं तो पूर्ण रूप से मेहनत कर सिखाना और अच्छा बना देना है। ऐसा बना देना कि मैं खुद हूँ। यह कोशिश है। पर अब भगवान की कृपा भी होनी चाहिए तब। मतलब कोशिश यही रहती है कि मैं कोई चीज चुराता नहीं हूं कि अपने बेटे के लिए ये रखना है उसको सिखाना है।

प्रश्न
(क) पाठ और वक्ता का नामोल्लेख करें।
(ख) बिरजू महाराज का यह कथन किस संदर्भ में है ?
(ग) बिरजू महाराज अपनी किस आदत के बारे में क्या बताते हैं?
उत्तर-
(क) पाठ-जित-जित मैं निरखत हूँ। वक्ता–बिरजू महाराज।
(ख) बिरजू महाराज का यह कथन शिष्यों की शिक्षा के संदर्भ में है।
(ग) बिरजू महाराज अपने शिष्यों को शिक्षा देने के संदर्भ में अपनी आदत का उल्लेख करते – हुए कहते हैं कि अपने पिता की तरह उनकी खास आदत रही है शिष्यों को मेहनत करके सिखाना और उन्हें अच्छा अपने जैसा बनाने की चेष्टा करना है। वे कहते हैं कि वे बेटों और शिष्यों में ‘ भेद नहीं करते। वे जो अपने बेटों-बेटियों को सिखाते हैं, वह सब कुछ अपने शिष्यों को भी सिखाते हैं।

4. बि.म:-अम्माजी का बहुत बड़ा हाथ है। अम्माजी ने तो शुरू से उन बुजुर्गों की तारीफ कर करके मेरे सामने हरदम कि, बेटा वो ऐसे थे, उनको कम-से-कम इतना नाम तो याद था उन बुजुर्गों का। अभी आप दूसरे किसी से पूछे घर में तो उन्हें नाम भी नहीं मालूम था कि कौन थे। चाची (शंभू महाराज की पत्नी) से आप पूछे महाराज बिन्दादीन के बाद पहले और कौन थे तो उनको नहीं मालूम। तुमरियाँ भी मैंने उनसे सीखीं। मेरी वाकई में गुरुवाइन थी; वो माँ तो थीं ही। गुरुवाइन भी। और जब भी मैं नाचता था तो सबसे बड़ा एक्जामिनर या जज अम्मा को समझता था। जब भी वो नाच देखती थीं तो मैं कहता था उनसे कि मैं कहीं गलत तो नहीं कर रहा हूँ। मतलब बाबूजी वाला ढंग है ना कहीं गड़बड़ी तो नहीं हो रही। तो कही नहीं बेटा नहीं। उन्हीं की तस्वीर हो। पर बैले वैले यह तो मेरा भैया क्रियेशन है। वो हरदम ऐसे ही कहती रहीं और लखनऊ के जो बुजुर्ग थे उनसे भी, गवाही ली मैंने। चेंज तो नहीं लग रहा है। “नहीं बेटा वही ढंग है। और तुम्हारा शरीर वगैरह टोटल ढंग वैसा ही है। बैठने का, उठने का, बात करने का। मतलब जैसा था उनका।

प्रश्न
(क) बिरजू को आगे बढ़ाने में किनका हाथ है?
(ख) बिरजू ने अपनी माँ को गुरुवाइन क्यों कहा है ?
(ग) नृत्य करते समय बिरजू अपना जज किसे मानते थे? और क्यों ?
(घ) बिरजू को गवाही लेने के लिए क्या करना पड़ता था ?
उत्तर-
(क) बिरजू को आगे बढ़ाने में उनकी मां का हाथ है।
(ख) बिरजू की माँ अक्सर पूर्वजों का गुणगान कर उनमें हौसला भरा करती थीं। किसी का नाम पूछने पर झट से बता देती थीं। नृत्य में, गलत होने पर समझा देती थीं। अपनी माँ को गुरुवाइन कहा है।
(ग) जज का काम न्याय करना होता है। न्याय के मंच पर बैठा हुआ व्यक्ति अपना-पराया नहीं देखता है। बिरजूजी की मां नृत्य करते समय अच्छे-बुरे की ताकीद किया करती थीं। अच्छा होने पर ही वह अच्छा कहती थीं।
(घ.) नृत्य अच्छा हुआ या नहीं इसके लिए बिरजू महाराज अपनी माँ को नियुक्त करते थे। गायन और नृत्य में कहीं अन्तर तो नहीं हुआ इसके लिए माँ से पूर्वजों का उदाहरण लिया करते थे। इतना ही नहीं लखनऊवासियों से भी हामी भरवाते थे।

5. रामपुर नवाब के महल में भी नाचा हूँ नेपाल महाराज के यहाँ भी नाचा हूँ और जमींदारों के यहाँ भी नाचा हूँ जहाँ का मैं अक्सर तमाशा सुनाता रहता हूँ कि जहाँ महफिल भी लगी है कि लड़का नाचेगा जरा चारों तरफ थोड़ा खिसककर जगह बनाओ तो सब खिसक जायें तो नीचे गलीचा गलीचे पर चांदनी और चाँदनी गलीचे के नीचे जमीन पर कहीं पर गड्ढे हैं कहीं पर खाँचा है मतलब यह सब नहीं कौन परवाह करे। आजकल हमारे नये डांसर हैं कि स्टेज बड़ा खराब है बड़ा टेढ़ा है बड़ा गड्ढा है। हम लोगों को यह सब सोचने का कहाँ मौका मिलता था। अब गर्मी के दिनों में जरा सोचो न एयरकंडीशन; न कुछ वो बड़े-बड़े पंखे लेकर जो नौकर-चाकर थे, वो हाँकते रहते थे। उनसे भी हाथ बचाना पड़ता था। नाचने में उससे न लड़ जायें कहीं। दूसरे कि गैस लाइट जल रही है उसकी भी गर्मी।

प्रश्न
(क) बिरजूजी का नृत्य कहाँ-कहाँ हुआ है ?
(ख) उस समय स्टेज की व्यवस्था कैसे होती थी?
(ग) पहले और आज के नर्तकों में क्या अन्तर है ?
(घ) सफल नर्तक की क्या पहचान है?
उत्तर-
(क) बिरजूजी का नृत्य रामपुर नवाब के महल में, नेपाल महाराज के भवन में, अनेक जमींदारों आदि के यहाँ हुआ है।
(ख) उस समय स्टेज की व्यवस्था अजीबोगरीब होती थी। न समुचित रोशनी की व्यवस्था होती और न ही समतल फर्श आदि की होती थी। नृत्य हो इसके लिए साधारण रूप से व्यवस्था कर दी जाती थी।
(ग) पहले के नर्तक अपनी कला को प्रदर्शन करना जानते थे। उन्हें वाद्य-संयंत्रों, बिजली आदि की व्यवस्था से उतना संबंध नहीं रहता था। जो था उसी पर वे अपनी कला प्रदर्शित कर देते थे। आज के नर्तक कला, प्रदर्शन नहीं बाह्य आडंबर प्रदर्शित करते हैं। आज के लिए उन्हें चकाचौंध स्टेज, परिपूर्ण वाद्य-यंत्र चाहिए।
(घ) सफल नर्तक रंगमंच से प्रभावित नहीं होता है। बल्कि अपनी कला का आत्मसात करना * चाहता है। कला प्रदर्शन की क्षमता ही सफल नर्तक की पहचान है।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

I. सही विकल्प चुनें

प्रश्न 1.
बिरजू महाराज की ख्याति किस रूप में है ?
(क) शहनाईवादक
(ख) नर्तक
(ग) तबलावादक
(घ) संगीतकार
उत्तर-
(ख) नर्तक

प्रश्न 2.
बिरजू महाराज किस शैली के नर्तक हैं?
(क) कथक
(ख) मणिपुरी
(ग) कुचिपुडी
(घ) कारबा
उत्तर-
(क) कथक

प्रश्न 3.
बिरजू महाराज का संबंध किस घराने से है ?
(क) लखनऊ
(ख) डुमराँव
(ग) बनारस
(घ) किसी भी नहीं।
उत्तर-
(क) लखनऊ

प्रश्न 4.
“जित-जित मैं निरखत हूँ’-पाठ का संबंध किससे है ?
(क) शंभु महाराज
(ख) लच्छू महाराज
(ग) बिरजू महाराज
(घ) किशन महाराज
उत्तर-
(ग) बिरजू महाराज

प्रश्न 5.
बिरजू महाराज को संगीत नाटक अकादमी अवार्ड किस उम्र में मिला?
(क) 37 वर्ष
(ख) 27 वर्ष
(ग) 47 वर्ष
(घ) 57 वर्ष
उत्तर-
(ख) 27 वर्ष

प्रश्न 6.
‘जित-जित मैं निरखत हूँ’ पाठ साहित्य की कौन-सी विधा है ?
(क) ललित निबंध
(ख) कहानी
(ग) कविता
(घ) साक्षात्कार
उत्तर-
(घ) साक्षात्कार

II. रिक्त स्थानों की पर्ति

प्रश्न 1.
बिरजू महाराज कथन के लालित्य के …… हैं।
उत्तर-
कवि

प्रश्न 2.
रश्मि वाजपेयी ……… पत्रिका की संपादिका है।
उत्तर-
‘नटरंग’

प्रश्न 3.
बिरजू महाराज का जन्म ……….. 1938 ई. को हुआ।
उत्तर-
4 फरवरी

प्रश्न 4.
शागिर्द मैं …………. का हूँ।
उत्तर-
बाबूजी

प्रश्न 5.
…………. भी मैंने उनसे सीखी।
उत्तर-
ठुमरियाँ

प्रश्न 6.
वैसे-वैसे मेरा …………… है।
उत्तर-
क्रियेशन

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
लच्छु महाराज कैसे आदमी थे ?
उत्तर-
लच्छु महाराज शौकीन आदमी थे और अप-टू-डेट रहते थे।

प्रश्न 2.
बिरजू महाराज के पिता की मृत्यु कब और कैसे हुई?
उत्तर-
बिरजू महाराज के पिता की मृत्यु 54 वर्ष की उम्र में लू लगने से हुई।

प्रश्न 3.
बिरजू महाराज कौन-कौन से वाद्य बजाते थे?
उत्तर-
बिरजू महाराज सितार, गिटार, बाँसुरी, हारमोनियम के अलावा तबला शौक के तौर पर बजाते थे।

प्रश्न 4.
बिरजू महाराज का जन्म कहाँ और कब हआ था?
उत्तर-
बिरजू महाराज का जन्म 4 फरवरी 1938 ई में लखनऊ के जफरीन अस्पताल में हुआ था।

प्रश्न 5.
बिरजू महाराज किस घराने के कलाकार थे?
उत्तर-
बिरजू महाराज लखनऊ घराने के वंशज और उसकी सातवीं पीढ़ी के कलाकार थे।

प्रश्न 6.
बिरजू महाराज नृत्य की किस शैली के महान नर्तक थे ?
उत्तर-
बिरजू महाराज “कत्थक” नृत्य में पारंगत एक महान नर्तक थे।

प्रश्न 7.
बिरजू महाराज को नृत्य का प्रशिक्षण सर्वप्रथम किससे प्राप्त हुआ?
उत्तर-
बिरजू महाराज के प्रारम्भिक गुरु उनके पिताजी थे और उन्हें सर्वप्रथम प्रशिक्षण उनसे ही प्राप्त हुआ।

प्रश्न 8.
बिरजू महाराज ने सर्वप्रथम नृत्य का प्रदर्शन कब प्रारम्भ किया ?
उत्तर-
मात्र छः साल की उम्र में रामपुर के नवाब साहब की हवेली में उन्होंने नृत्य करना प्रारम्भ किया।

प्रश्न 9.
निर्मला जी कौन थीं तथा बिरजू महाराज का उनसे किस प्रकार का संबंध था अथवा किस प्रकार जुड़े ?
उत्तर-
निर्मला (जोशी) दिल्ली में हिन्दुस्तानी डान्स म्यूजिक नामक संस्था चलाती थीं, जहाँ बिरजू महाराज ने लगभग तीन वर्षों तक कार्य किया।

प्रश्न 10.
लखनऊ और रामपुर से बिरजू महाराज का क्या संबंध है ?
उत्तर-
बिरजू महाराज का जन्म लखनऊ में हुआ था। रामपुर में महाराज जी का अत्यधिक समय व्यतीत हुआ था एवं वहाँ विकास का सुअवसर मिला था।

प्रश्न 11.
नृत्य की शिक्षा के लिए पहले-पहल बिरजू महाराज किस संस्था से जुड़े और वहाँ किनके संपर्क में आए?
उत्तर-
नृत्य की शिक्षा के लिए पहले-पहल बिरजू महाराज जी दिल्ली में हिन्दुस्तानी डान्स म्यूजिक से जुड़े और वहां निर्मला जी जोशी के संपर्क में आए।

प्रश्न 12.
किनके साथ नाचते हुए बिरजू महाराज को पहली बार प्रथम पुरस्कार मिला?
उत्तर-
शम्भू महाराज चाचाजी एवं बाबूजी के साथ नाचते हुए बिरजू महाराज को पहली बार प्रथम पुरस्कार मिला।

जित-जित मैं निरखत हूँ Summary in Hindi

पाठ का सारांश

जन्म मेरो लखनऊ के जफरीन अस्पताल में 1938, 4 फरवरी, शुक्रवार, सुबह 8 बजे : घर में आखिरी सन्तान। तीन बहनों के बाद। छह साल थी उम्र में मैं नवाब साहब को बहुत पसंद आ गया। मैं नवाब साहब के पास जाकर नाचता था।

वहाँ से फिर निर्मला जी के स्कूल में यहाँ दिल्ली में हिन्दुस्तानी डान्स म्यूजिक में चले गए। यहाँ दो तीन साल काम करते रहे। ये शायद 43 की बात रही होगी।

जहाँ वे खुद नाचते तो पहले मुझे नचवाते थे और खूब जोरों से जमकर नाचता था। प्रायवेट प्रोग्राम जिनमें बाबू जी जाते थे जौनपुर, मैनपुरी, कानपुर, देहरादून, कलकत्ता, बंबई आदि, इनमें मुझे जरूर रखते थे। पहले इसीलिए कलकत्ते में बहुत मजा आया। उसमें फर्स्ट प्राइज मिलने वाला था। उसमें शम्भू महाराज चाचाजी और बाबू जी दोनों नाचे। पर उसमें फर्स्ट प्राइज मुझे मिला।

हाँ साढ़े नौ साल की उम्र में बाबू जी मृत्यु हो गई। मुझे तालीम बाबूजी से ही मिला। 500 रुपए देकर मैंने गण्डा बंधवाया। तो शागिर्द मैं बाबू जी का हूँ। उनके मरते ही हम लोगों के बहुत खराब दिन शुरू हो गए। कानपुर में दो ढाई साल रहा। आर्यानगर में 25-25 रुपए की दो ट्यूशन पढ़ाना शुरू किया। 50 रुपए में काम कर किसी तरह पढ़ता रहा मैं। पिताजी की मृत्यु के समय उनके श्राद्ध कर्म करने के लिए पैसे नहीं। दस दिन के अंदर मैंने दो प्रोग्राम किए। 500 रु. इकट्ठे हुए तो दसवाँ और तेरहवीं की गई।

चौदह साल का था तो संगीत भारती आया। मैंने यहाँ साढ़े चार साल काम किया। संगीत भारती की कमाई से मैंने एक साइकिल खरीदी थी जो मेरे पास आज भी है। और उस साइकिल को मैं नहीं बेचता।

खैर उसमें से रश्मि जी एक लड़की मिली थी। उन्हें पूरे मन से सिखाया। वो तालीम देखकर जो महाराज के यहाँ की लड़कियाँ अट्रेक्ट हुई। क्योंकि तालीम जरा अच्छी थी मेरी। संगीत भारती के जमाने में कलकत्ते में एक कांफ्रेंस में नाचा हूँ। कलकत्ते की ऑडियन्स ने मेरी बड़ी प्रशंसा की। इतनी की कि तमाम अखबारों में मैं छप गया एकदम। उसके बाद हरिदास स्वामी कांफ्रेंस बंबई ब्रजनारायण ने बुलाया। मेरा प्रोग्राम बहुत अच्छा हुआ। उसके बाद से बम्बई, कलकत्ते, मद्रास आदि जगहों पर मेरा प्रोग्राम होने लगा। विदेश दूर में सबसे पहले रूस गये। उसके बाद जर्मनी, जापान, हांगकांग, लाओस, बर्मा आदि।

अम्मा को मैं सबसे बड़ा जज मानता हूँ। जब वो नाच देखती तो मैं पूछता था कि मैं कहीं गलत तो नहीं कर रहा हूँ। मतलब बाबूजी वाला ढंग है ना कहीं गड़बड़ी तो नहीं हो रही। तो कहती नहीं बेटा नहीं। उन्हीं की तस्वीर हो।

शब्दार्थ

क्रोड़स्थ : गोद या अंक में स्थित
हलकार : संदेशवाहक, कारिंदा
साफा : साफ लंबा वस्त्र जिसे नर्तक कंधे से लेकर कमर तक लपेट लेता है
अचकन : पोशाक विशेष
मेजरमेंट : नाप, माप नाप, माप
मस्का : मक्खन (मस्का लगाना या मक्खन लगाना मुहावरा भी है)
परन : तबले के वे बोल जिन पर नर्तक नाचता और ताल देता है ‘
बंदिश : ठुमरी या अन्य प्रकार के गायन के बोल, स्थायी
दाल का चिल्ला : उबले हुए दाल को मसलकर बनाया गया व्यंजन
गण्डा बांधना : दीक्षित करना, शिष्य स्वीकार करना
नजराना : भेंट, उपहार, गुरुदक्षिणा
नागा : अनुपस्थित, हाजिर नहीं होना, गायब रहना
गिरहकट : पैंतरेबाज, गाँठ काट लेनेवाला, पाकेटमार विशेष
परमानेंट : स्थायी
चरण : छंद की एक इकाई
टुकड़े : किसी पद की पंक्ति
तिहाइयाँ : तीसरे हिस्से
बैले : यूरोपीय नृत्य विशेष जिसमें कथानक, भावाभिनय और नृत्य तीनों शामिल
होते हैं
अरसा : समय, अवधि
गलीचा : फर्श या बिस्तर जो नरम हो
मिजराब : सितार बजाने का एक तरह का छल्ला
लहरा : छंदमय आरोही गति जो भावप्रसंग के साथ हो ।
शागिर्द : शिष्य
लाजवाब : जिसका जवाब न हो, अद्वितीय, अनुपम

Bihar Board Class 10 English Book Solutions Chapter 4 What is Wrong with Indian Film

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A. Work in small groups and discuss the following

1. Have you seen any films recently?
2. Tell the name of any film which you like most. Point out its salient features.
Answer:
Yes, I have seen a cinema. In our house, we are still children. Our parents do not allow any of us to go see a cinema in the city cinema hall. But on Sunday last I went to see an old picture with my material uncle. The film was ’DusriShadi’. The story was interesting and instructive. It taught the lesson of fidelity to women. It warned men against the evil results of bigamy (TI TTeff and faithlessness. The picture had touching scenes that moved us in tears. The songs were sweet but pathetic. The acting was superb.

B. 1.1. Write ‘T’ for true and ‘F’ for false statement

1. The Cinema commands the respect accorded to any other form of creative expression.
2. The cinema doesn’t combine the cold logic of science.
3. Film production in India is quantitatively second only to Hollywood.
4. India has achieved what other countries have achieved.
5. Indian music is largely improvisational.
Answer:
1. T
2. F
3. T
4. F
5. T

B. 1.2. Study the lesson carefully and complete the following sentences on the basis of your reading

1. By the twenties, it had reached of big business.
2. Why our film was not shown
3. The technicians will the tools.
4. The first feature was shot in
5. The music failed in our case.
Answers:
1. the status
2. abroad
3. blame
4. 1913
5. analogy.

B. 1.3. Answer the following questions very briefly

1. Who has written this essay?
Answer:
Satyajit Ray has written this essay.
2. Which is the most potent and versatile art form?
Answer:
The cinema is the most potent and versatile art form
3. Were Indian Aims shown abroad a few decades ago?
Answer:
No. Indian films were not shown abroad a few decades ago
4. When was the first short produced?
Answer:
The first short was produced in 1907.

B.2.1 Complete the following sentences on the basis of the unit you have studied

1. Stories have been written on Hollywood Success.
2. It should be realised that the average American film is bad
3. After all, we do these primary tools of film making.
4. The of our films are replete. Visual dissonances.
5. But the truly Indian film should clear of such inconsistencies.
6. There are glimpses of an enlightened approach in a handful of recent films.
Answers:
1. based
2. model
3. posses
4. majority
5. steer
6. have been.

B. 2.2. Answer the following questions briefly

1. Have average American films been a bad model? Give one reason.
Answer:
It depicts a way of life so utterly it variance with our ‘own’.
2. Mention one thing/feature which Indian film needs?
Answer:
Indian cinema needs more imagination, more integrity and a more intelligent appreciation of the limitations of the medium.
3. Do Indian Him makers possess the primary tools of film making?
Answer:
Yes, Indian filmmakers possess the primary tools of film making.

C. 1. Long Answer Questions

1. “What our cinema needs above everything else is a style, an idiom, a sort of iconography of cinema, which would be uniquely and recognizably Indian.-” How far this applies to Indian cinema today? Discuss.
Answer:
According to the author Satyajit Ray, most of the Indian films are replete with such visual dissonances. They look for only material gain. The cinema has become a phenomenon and a potent force in making the seers way-ward and westernized. It has a tendency to uproot our age-old cultural and social ties. Stories Rave been based on Hollywood. Thus Indian cinema ? does not-apply this reality. Our culture is invaded by Hollywood pattern a kind of culture which is alien to our life-style. This should be avoided. Rather Indian film needs to produce the basic aspect of Indian life.

2. Should the cinema be looked upon as a form of creative expression? Give reasons.
Answer:
The Cinema should not be only looked upon as a form of creative expression. But it should be with the combination, of various measures—the functions of song, music, painting, dramatic action, architecture and a host of other major or minor arts. It should also combine the cold logic of science.

3. Do you think Indian films have certain basic weaknesses? Illustrate your answer, citing examples from the films you have seen.
Answer:
According to S. Ray. Indian films have certain weaknesses. I find such weaknesses in Indian films today. Indian films lack the truth.
The producers have totally attempted and that too not always with honesty. Recently I have seen the film Three Idiots’ full of. It is humor. But it lacks superb acting, sweet music, drama, and architecture. It also lacks intelligence wit. It is due to the overexposure to violence and sex to impressionable minds.

4. What is the most dominant influence on Indian films?
Answer:
The most dominant influence on Indian film is that of the American cinema. Stories have also been written based on the Hollywood pattern.
Even where the story has been genuinely Indian. The background music has revealed an irrepressible ornament that hang down for Negros. These are the bad qualities of Indian films.

5. What aspects of American films do our films imitate? Is it justified in our context?
Answer:
Yes, our films imitate some of the American aspects. Such as story. Stories have been written based on American films. It also tries to depict a way of life like Americans. Indian films also adopt high technical polish and high tone music. It is not justified, Indian films should adopt the aspect of Indian life. Where habit and speech dress and manners, background and foreground blend into a harmonious whole.

C. 2. Group Discussion

Discuss the following topics in groups or pair
1. “Television programs do a lot of harm to students, Give your views either for or against the statement.”
Answer:
Children spend in watching 17 hours of T.V. every week. In a study conducted by bjamita unnikrishan and Shailaja Bajpai, it was found that children spend almost one year out of ten in watching T.V. than on hobbies and other activities. The research was made in Delhi (Source: The Impact of Advertising on children by Namita unnikrishan and Shailaja Bajpai)*

Children are sitting in front of T.V. for the whole day is merely a passive activity which tends to make kids couch potatoes. In a house where children watch T.V. most of the time, the changes are that they would become T.V. or movie addicts. The interaction between them gets reduced to the selection of channels only. The increasing violence, sex and independent attitude being show on T. V. create a distorted image of children. It has increased crime as youth are aping films. Thus the only disturbing aspect Of T.V. is the gradual degeneration of mental values in society. (films) Today.

2. Films are the mirrors of society.
Answer:
As literature is the mirror of life so here is the same thing “Films are the mirror of the society”. Literature is an account of this that le;.med men ‘ are referred to as men of letters. It is like a mirror. If gives valuable insights to various facts of life through reading. In films, we see events by watching. It has a great impact on our lives. It is a true mirror- About fifty years ago films were made on Indian Society. Such as McAfier India’ ‘Do Bigha lamin’, ‘Godan’ etc. They were in real sense presented real life.

They were our true mirrors of our society. But cinema plays another role these days. The villain is shown all glorified, rolling in wealth and enjoying girls. He gets wine and women easily. Violence pays, it is shown. Rifles and guns prove them to be brave and full of guts. Whatever our young men see in cinema they try to imbibe (‘91715 far)and copy. Violence gives the kick. These have been an aspect of society. One can see in the mirror, (films) Today.

C.3. Composition

1. Write a letter to the Director of Doordarshan requesting him to give you an opportunity to participate in the weekly T.V. Programme which interests you very much. Mention why you find yourself suitable for such a program.

Kankarbagh
Patna (Bihar)
20th May, 2010.

The Director Doordarshan,
ETV Bihar & Jharkhand Patna.

Being given to understand that you need a boy actor to participate in your new serial. These days many interesting channels are telecast. Out of these, I like serial for children the most. It is a humourous serial which comes from Monday to Friday. It is my earnest desire to take part in this program. I would request you to kindly consider my application for the same. Besides being a senior student my responsibilities include the school magazine, extracurricular activities, like debate drama and quiz. I am confident of coming up to your expectations and am enclosing my curriculum vita for your kind perusal. Given an opportunity, it will be my sincere endeavor to prove my worth, by putting my heart and soul to professional am deeply committed to. Awaiting a favorable reply.

Thanking you.
Yours truly Raman

2. Write your impression of the Hindi film which you have seen recently.
Answer:
I am not a cinema for but seldonmissa good cinema. On Saturday Last got an opportunity to see a picture. It was an old picture, Rajkapoor’s Teesari Kasam’ The story was written by a famous Hindi story writer. Phanishwar Nath Renu. The story was interesting which dealt with true Indian village life, a Simple village-life of North Bihar. It warned men against the evil practice of prostitution and.fidellty to women, The songs were sweet but melodious. In nutshell the story on the screen was very impressive

D.1. Word Study

D.1. Dictionary Use
Ex. 1
Correct the spelling of the following words: varsetile, inavetabt potencial, repelite, phinonomtna.
Answers:
versatile, inevitable potential, replete, phenomena.

Ex.2. Frame your own sentences using the following words:
creation, potential, solely, queers, gloss, adequate, incredible.
Answers:
Creation: The girls are wearing the new creations of the style dresses.
Potential: He has not realized his full potential yet.
Solely: We have the sole right of selling the article.
Queer: She has a qeeer way of talking.
Gloss: The material is with good gloss.
Adequate: lam not getting adequate money.
Incredible: The story was incredible.

D. 2.
Ex. 1. Match the words or phrases in Column A with the meanings given in Column B.

A

B

Conferred art of painting
architecture given-(Degree etc)
indispensable process of developing
evolution essential
gloss art and science of building
iconography Smooth bright surface.

Answers:
Conferred — given (degree)
Architecture — art and science of building.
Evolution — the process of developing
Gloss — smooth bright surface
Iconography — the art of painting.

D3.
Ex.1. Read the lesson carefully and find out five sentences in which phrases have been used. Now use those phrases in sentences of your own.
Answer:
1. one of the most — Mohan is one of the most intelligent boys in his class.
2. Took up — He took up the photograph of our family.
3. A host of — Mr “X” is a host of mine.
4. After all — After all, he is a man of words.
5. A sort of — He should take a sort of responsibility for the work.

E. Grammar (Adverb Clause of Condition)

Ex. 1. Look at the following sentences
If you get late, you will miss the train.
You will not succeed unless you work hard.
Examples are given above “If you get late” and “unless you work hard” are co-aditions. So this clause is called Adverb Clause’ Or Condition.
Now study the examples given below:-Undef lines are clauses of Condition.
(i) If you make a promise, you must keep it.
(ii) In case it rains, I shall not go out. Adverb clause of Condition starts with if, unless, in case, so long as, provided, provided that, etc.

Ex. 1.1 Make five sentences using unless, provided, in .case, so long as.
Answer:
unless – I can not open the box unless you give me the key.
Provided – He provided for the entertainment of his visitors.
Incase – Take an umbrella in case it rains.

So long as — As, long as the rain continues, we must stay indoors. Ex.1.2. Fill in the blanks with “should” or “Ought to”
1. We…….help our neighbors.
2. He…..speak the truth.
3. Everybody Board his friends.
4. She read this novel.
5. You….work for the welfare of the country.
Answers:
1. Should
2. Ought to
3. Should
4. Should
5. Ought to.

Ex. 1.3. Read the following sentences carefully
1. You ought to go immediately.
2. She ought to apologize for her behavior.
3. Do you think I should go?
4. You should write a letter and find out when he is coming.
‘Should’ and ‘ought’ to have some moral connotations, ‘ought’ is stronger and indicates moral obligation whereas ‘should’ indicates a recommendation. It is used in giving or asking for advice.

Now make five sentences each with ‘ought’ and ‘should’.

Ex. 1.4. Read the following sentences carefully
Read the lines of the text from 6 to 15 and frame as many questions as you can, using ‘wh’ words or auxiliaries, one example is done for you. Which was the first short or film produced?
Answer:
Go your self.

G. Translation

Translate the following sentences into Hindi/your mother tongue.
1. India took up film production surprisingly early.
2. Why were our films not shown abroad?
3. Let us face the truth.
4. The technician will blame the tools.
5. It should be realized that the average American film is a bad model.
6. What does our cinema need?
7. Let him do so.
8. He has only to keep his eyes open.

Answers:
1. आश्चर्य जनक ढंग से भारत ने बहुत पहले फिल्म का उत्पादन आश्चर्यजनक ढंग से शुरू किया।
2. हमारी फिल्में विदेश में क्यों नहीं दिखायी जाती।
3. हमलोग सत्य का सामना करें।
4. तकनीशियन अपने उपकरणों को दोष देंगे।
5. यह महसूस करना चाहिए कि औसतन अमेरिकन फिल्म बुरा नमूना (उदाहण) है।
6. हमारा चलचित्र जगत क्या चाहता है?
7. उसे ऐसा करने दो।
8. उसे केवल अपनी आँखे खुली रखनी है।

Comprehension Based Questions With Answers

Read the following extracts carefully and answer the questions that follow each

1. One of the most significant phenomena of our time has been the development of the cinema from a turn of the century mechanical toy into the century’s most potent and versatile art form. Today, the cinema commands the respect accorded to any other form of creative expression. It combines in various measures the functions of poetry, music, painting, drama, architecture and a host of other arts, major and minor. It also combines the cold logic of science.

India took up film production surprisingly early. The first short was produced in 1907 and the first feature in 1913. By the twenties, it had reached the status of big business. It is easy to tell the world that film production in India is quantitatively second only to Hollywood; for that is a statistical fact. But can the same be said of its quality? Why are our films not shown abroad? Is it solely because India offers a potential market for her own products? Or are we just plain ashamed of our film?

Questions:
(i) Name the author of this extract.
(ii) Which is the most potent and versatile art form?
(iii) Does the cinema command respect today?
(Iv) What does cinema combine?
(v) Which word in the passage means ‘happenings’?
Answers:
(i) Satyajit Ray is the author of this extract.
(ii) The cinema is the most potent and versatile art form.
(iii) Yes, the cinema commands* the respect accorded to any other form of creative expression today.
(iv) The cinema combines the functions of poetry, music, painting, drama, architecture and other arts.
(v) The word‘phenomena’ means‘happenings’.

2. To anyone familiar with the relative standards of the best foreign and Indian films, the answers must come easily. Let qs face the truth. There has yet been no Indian film, which could be acclaimed on all counts. Where other countries have achieved, we have only attempted and that loo not always with honesty.

No doubt this lack of maturity can be attributed to several factors. The producers will tell you about that mysterious entity ‘the mass’, which goes in for this. sort of ‘thing’, the technicians will blame the tools and the director will have much to say about the wonderful things he had in mind but could not achieve because of ‘the conditions’.

Questions:
(i) Name the piece from which this extract has been taken.
(ii) What, according to the author, is the truth about the quality of Indian films?
(iii) What do the producers blame for the lack of maturity of Indian films?
(iv) What do the technicians blame for the weaknesses of Indian films?
(v) What does the word ‘mysterious ’ mean?
Answers:
(i) This extract has been taken from the piece ‘What is Wrong with Indian Films’.
(ii) According to the author, the truth about the quality of Indian films is that no Indian film has been acclaimed on all counts.
(iii) The producers blame ‘the mass’ for the lack of maturity of Indian films.
(iv) The technicians blame the tools for the weaknesses of Indian films.
(v) The word‘mysterious’ means‘impossible to understand’.

3. Almost every passing phase of the American cinema has had its repercussion oh the Indian film. Stories have been written based on Holly-wood successes and the cliches preserved with care. Even where the story has been a genuinely Indian one, the background music has revealed an irrepressible penchant for the jazzidiom.

It should be realised that the average American films is a bad model, if only because it depicts a way of life so utterly at variance with our own. , Moreover, the high technical polish, which is the hallmark of the standard Hollywood product, would be impossible to achieve tinder existing Indian Conditions, What the Indian cinema needs today is not more gloss, but more imagination, more integrity, and a more intelligent appreciation of the limitations of the medium

Questions:
(i) What is the influence of American films on Indian Cinema?
(ii) What is the idea of the writer about American film?
(iii) What is the symbol of the standard of Hollywood’s films?
(iv) What does the Indian camera need today?
Answers:
(i) The American cinema has had its repercussions on Indian films such as stories, they are based on Hollywood Successes.
(ii) The writer thinks that the American Cinema is a bad model.
(iii) The high technical polish is the hallmark df the standard of Hollywood product.
(iv) The Indian camera needs today is not more gross, but more imagination, more integrity, and a more intelligent appreciation of
the limitations of the medium.

4. After all, we do posses the primary tools of filmmaking. The com¬- plaint of the technicians notwithstanding, mechanical devices such as the v crane shot and the process shot are useful, but by no means indispensable. In fact, what tools we have been used on occasion with real intelligence. What our.cinema needs above everything else is a style, an idiom, a sort of iconography of cinema, which would be uniquely and recognisably Indian. The majority of our films are replete with such ‘visual dissonances’.

But the truly Indian film should steer clear of such inconsistencies and look for its material in the more basic aspects of Indian life, where habit and speech, dress and manners, background and foreground, blend into a harmonious whole. It is only in a drastic simplification of style and content that hope for the Indian cinema resides. At present, it would appear that nearly all the prevailing practices go against such as simplification.

Questions:
(i) What does Indian cinema need?
(ii) What types of films?
(iii) What types of material does Indian cinema need?
(iv) What do you mean by ‘Simplification?’
Answers:
(i) Indian cinema needs a style, an idiom a sort of iconography of cinema which would be uniquely and recognizably Indian.
(ii) The majority of our films are depleted with such ‘visual dissonances’.
(iii) In Indian enema, there should be material in the more basic aspect of Indian life. Where habit and speech, dress and manners background and foreground bland into a harmonious way.
(iv) It means not much decorated or ornamented. Here concerning cinema, it should simply be produced.

5. Starting a production without adequate planning, sometimes even without a shooting script, a penchant for convolutions of plot and counterplot rather than the strong, simple unidirectional narrative: the practice of sandwiching musical numbers in the most unlyrical situations, the habit of shooting indoors in a country which is all landscape, and at a time when all other countries are turning to the documentary for inspiration all these stands in the way of the evolution of a distinctive style.

There have been rare glimpses of an enlightened approach in a handful of recent films. IPTA’s Dharti-Ke-Lal is an instance of a strong simple theme put over with style, honesty, and technical competence. Shankar’s Kalpana, an inimitable and highly individual experiment, shows a grasp of filmic movement, and a respect for tradition.
The raw material of the cinema is life itself, it is incredible that country which has inspired so much painting and music and poetry shout(j fail to move the filmmaker. He has only to keep his eyes open, and his ears7..i him do so.

Questions:
(i) How should a film production be made?
(ii) Which films are mentioned here?
(iii) What is the raw material of a cinema?
(iv) find the word from the passage, which means ‘inland scenery’.
Answers:
(i) Film production is made with adequate planning.
(ii) The film is ‘Dharti-ke-Lal’.
(iii) The raw material of the cinema is life itself.
(iv) The word is, landscopee.

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कविता के साथ

एक वृक्ष की हत्या Bihar Board Class 10 Hindi प्रश्न 1.
कवि को वृक्ष बूढ़ा चौकीदार क्यों लगता था?
उत्तर-
कवि एक वृक्ष के बहाने प्राचीन सभ्यता, संस्कृति एवं पर्यावरण की रक्षा की चर्चा की है। वृक्ष मनुष्यता, पर्यावरण एवं सभ्यता की प्रहरी है। यह प्राचीन काल से मानव के लिए वरदान स्वरूप है, इसका पोषक है, रक्षक है। इन्हीं बातों का चिंतन करते हुए कवि को वृक्ष बूढा चौकीदार लगता था

Ek Vriksh Ki Hatya Bihar Board Class 10 Hindi प्रश्न 2.
वृक्ष और कवि में क्या संवाद होता था?
उत्तर-
कवि जब अपने घर कहीं बाहर से लौटता था तो सबसे पहले उसकी नजर घर के आगे स्थिर खड़ा एक पुराना वृक्ष पर पड़ती। उसे लगता मानो घर के आगे सुरक्षा प्रहरी खड़ा है। उसके निकट आने पर कवि को आभास होता मानो वृक्ष उससे पूछ रहा है कि तुम कौन हो?

कवि इसका उत्तर देता-मैं तुम्हारा दोस्त हूँ। इसी संवाद के साथ वह उसके निकट बैठकर भविष्य में आने वाले पर्यावरण संबंधी खतरों की अंदेशा करता है।

Ek Vriksh Ki Hatya Poem Bihar Board Class 10 Hindi प्रश्न 3.
कविता का समापन करते हुए कवि अपने किन अंदेशों का जिक्र करता है और क्यों?
उत्तर-
कविता का समापन करते हुए कवि पर्यावरण एवं सभ्यता के प्रति संवेदनशील होकर चिंतन करता है। चिंतन करने में उसे मानवता, पर्यावरण एवं सभ्यता, राष्ट्रीयता के दुश्मन की झलक मिलती है। इसी का जिक्र करते हुए कवि कहते हैं कि हमें घर को विनाश करने वालों से सावधान रहना होगा, शहर में विनाश होते हुए सभ्यता की रक्षा के लिए आगे आना होगा। अर्थात् कवि को अंदेशा है कि आज पर्यावरण, हमारी प्राचीन सभ्यता, मानवता तट के जानी दुश्मन समाज में तैयार हैं। अंदेशा इसलिए करता है क्योंकि आज लोगों की प्रवृत्ति वृक्षों को काटने की हो गई। सभ्यता के विपरीत कार्य करने की प्रवृत्ति बढ़ रही है, मानवता का ह्रास हो रहा है। ऐसी स्थिति में वृक्षों के प्रति मानवता के प्रति संवेदनशील हो कम दिखाई पड़ रहे हैं। यह चिंता का विषय है। यही कवि की आशंका का विषय है।

Aamne Saamne Kunwar Narayan Bihar Board Class 10 Hindi प्रश्न 4.
घर शहर और देश के बाद कवि किन चीजों को बचाने की बात करता है और क्यों?
उत्तर-
घर, शहर और देश के बाद कवि नदियों, हवा, भोजन, जंगल एवं मनुष्य को बचाने की बात करता है क्योंकि नदियाँ, हवा, अन्न, फल, फूल जीवनदायक हैं। इनकी रक्षा नहीं होगी तो मनुष्य के स्वास्थ्य की रक्षा नहीं हो सकती है। जंगल पर्यावरण का सुरक्षा कवच है। जंगल की रक्षा नहीं होने से प्राकृतिक असंतुलन की स्थिति उत्पन्न होगी। इन सबसे बढ़कर मनुष्य की रक्षा करनी होगी। मनुष्य में मनुष्यता कायम रहे, मानवता का गुण निहित हो, इसकी सभ्यता बनी रहे। इसे असभ्य होने से बचाने की महती आवश्यकता है। साथ ही जंगल की तरह मानवीयता का कत्ल नहीं हो इसके लिए रक्षार्थ आगे आने की महती आवश्यकता है।

Ek Vriksh Ki Hatya Notes Bihar Board Class 10 Hindi प्रश्न 5.
कविता की प्रासंगिकता पर विचार करते हुए एक टिप्पणी लिखें।
उत्तर-
प्रस्तुत कविता में कवि बदलते हुए परिवेश में दैनिक आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु जिस तरह प्रकृति का दोहन हो रहा है उससे लगता है कि सारी दुनिया प्रकृति का स्वतः शिकार हो जायेगा। वृक्षों की अंधाधुंध कटाई, बढ़ती हुई जनसंख्या, समुद्र का जलस्तर ऊपर उठना ये सब इसके सूचक हैं। वृक्ष हमारे मित्र हैं फिर भी इसको निष्ठुरता से काटते जा रहे हैं। अतिवृष्टि अनावृष्टि, मौसम का बदलता चक्र पर्यावरण संकट का संकेत कर रहे हैं। आज मानव आँख होते हुए भी अंधा हो गया है। कवि इस समस्या से बहुत चिन्तित है। उसे लगता है कि दुनिया जल्द ही समाप्त हो जायेगी। वृक्ष को काटना अपने आप को मृत्यु के गोद में झोंकना है। ठंडी छाव देने वाले वृक्ष मनुष्य की निष्ठुरता के कारण काटे जा रहे हैं। अंत में कवि कहना चाहता है कि यदि समय रहते इस समस्या से निजात पाने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया तो जीव जगत समाप्त हो जायेंगे। मुडो प्रकृति की ओर का नारा मानव को समझना चाहिए।

Aamne Samne Book Kunwar Narayan Bihar Board Class 10 Hindi प्रश्न 6.
व्याख्या करें :
(क) दूर से ही ललकारता, कौन ? / मैं जवाब देता, ‘दोस्त’।
(ख) बचाना है-जंगल को मरूस्थल हो जाने से / बचाना है-मनुष्य को जंगल हो जाने से।
उत्तर-
(क) प्रस्तुत पंक्ति हिन्दी पाठ्य-पुस्तक के कुँवर नारायण रचित ‘एक वृक्ष की हत्या, पाठ से उद्धृत है। इसमें कवि ने एक वृक्ष को कटने से आहत होता है और इस पर चिंतन करते हुए पूरी पर्यावरण एवं मानवता पर खतरा की आशंका से आशंकित हो जाता है। इसमें अपनी संवेदना को कवि ने अभिव्यक्त किया है। प्रस्तुत व्याख्येय में कवि कहता है कि जब मैं अपने घर लौटा तो पाया कि मेरे घर के आगे प्रहरी के खड़ा वृक्ष को काट दिया गया है। उसकी याद करते हुए कवि कहते हैं कि वह घर के सामने अहर्निश खड़ा रहता था मानो वह गृहरक्षक हो। जब मैं बाहर से लौटता था उसे दूर से देखता था और मुझे प्रतीत होता था कि वृक्ष मुझसे पूछ रहा हैं कि तुम कौन हो? तब मैं बोल पड़ता था कि मैं तुम्हारा मित्र हूँ। इसमें वृक्ष और कवि के संवाद की प्रस्तुति है।

(ख) प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक के ‘एक वृक्ष की हत्या’ पाठ से उद्धृत है। इसमें कवि भविष्य में आने वाले प्राकृतिक संकट, मानवीयता पर खतरा एवं ह्रास होते सभ्यता की ओर ध्यानाकर्षण कराते हुए भावी आशंका को व्यक्त किये हैं। साथ ही इन सबकी रक्षा संरक्षण एवं विकास हेतु चिंतनशील होने पर बल दिया है।

प्रस्तुत व्याख्येय में कवि ने कहा है कि अगर हम इस अंधाधुंध विकास क्रम में विवेक से काम नहीं लेंगे तो वृक्ष कटते रहेंगे और भविष्य में जंगल मरुस्थल का रूप ले लेगा। साथ ही मानवता की सभ्यता की रक्षा के प्रति सचेत नहीं होंगे तो मानव भी जंगल का रूप ले सकता है।

मानवीयता पशुता में परिवर्तित हो सकता है। मानव दानवी प्रवृत्ति अपनाता दिख रहा है और इस बढ़ते प्रवृत्ति को रोकना आवश्यक होगा। कवि मानवीयता स्थापित करने हेतु चिंतनशील है, सभ्यता की सुरक्षा हेतु प्रयत्नशील होने की प्रेरणा दे रहे हैं। साथ ही पर्यावरण संरक्षण हेतु सजग करने की शिक्षा दे रहे हैं।

एक वृक्ष की दो डाली थी Bihar Board Class 10 Hindi प्रश्न 7.
कविता के शीर्षक की सार्थकता स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
वस्तुतः किसी भी कहानी, कविता आदि का शीर्षक वह धुरी होता है जिसके इर्दगिर्द कथावस्तु घूमती रहती है। प्रस्तुत कविता का शीर्षक एक वृक्ष की हत्या के माध्यम से मानवीय संवेदनाओं को सीख देने के लिए रखा गया है। वृक्ष पुराना होने पर भी पर्यावरण को प्रदूषित होने से बचाता है। उसके फल, छाया अपने लिए नहीं औरों के लिए होता है। अपना दोस्त समझने वाला वृक्ष दूसरों के लिए सर्वस्व सुख समर्पण कर देता है। घर, शहर, राष्ट्र और दुनिया को बचाने से पहले वृक्ष को बचायें। बदलता हुआ मौसम चक्र विनाश का सूचक है। हमारा जीवन मरण, युवा-जरा आदि सभी प्रकृति के गोद में ही बीतता है फिर भी हम प्रकृति का दोहन करते जा रहे हैं। अतः उपयुक्त दृष्टान्तों से स्पष्ट होता है कि प्रस्तुत कहानी का शीर्षक सार्थक और समीचीन है।

कविता के बहाने प्रश्न उत्तर Bihar Board Class 10 Hindi प्रश्न 8.
इस कविता में एक रूपक की रचना हुई है। रूपक क्या है ? और ‘यहाँ उसका क्या स्वरूप है ? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
जहाँ रूप और गुण की अत्यधिक समानता के कारण उपमेय में उपमान का आरोप कर अभेद स्थापित किया जाता है वहाँ रूपक होता है। इसमें साधारण धर्म और वाचक शब्द नहीं होते हैं। इस कविता में वही बूढ़ा चौकीदार वृक्ष रूपक है। यहाँ चौकीदार वृक्ष है। उपमान का आरोप कर अभेद स्थापित किया गया है।

प्रश्न 9.
‘एक वक्ष की हत्या कविता का सारांश अपने शब्दों में लिखें।
उत्तर-
इस कविता में कवि कुँवर नारायण ने एक वृक्ष के काटे जाने से उत्पन्न परिस्थिति, पर्यावरण संरक्षण और मानव सभ्यता के विनाश की आशंका से उत्पन्न व्यथा का उल्लेख किया कवि वृक्ष की कथा से शुरू होकर, घर, शहर, देश और अंततः मानव के समक्ष उत्पन्न संकट तक आता है। चूंकि मनुष्य और वृक्ष का संबंध आदि काल से है, इसलिए वह वृक्ष से ही शुरू करता हुआ कहता है कि इस बार जो वह घर लौटा तो दरवाजे पर हमेशा चौकीदार की तरह तैनात रहनेवाला वृक्ष नहीं था। ठीक-जैसे चौकीदार सख्त शरीर, झुर्रादार चेहरा, एक लम्बी-सी राइफल लिए, फूल-पत्तीदार पगड़ी बाँधे, पाँव में फटा-पुराना चरमराता जूता पहने, मजबूत, धूप-वर्षा में, खाकी वर्दी पहने और हर आनेवाले को ललकारता और फिर ‘दोस्त’ सुनकर आने देता है, वैसे ही वह वृक्ष था-बहुत पुराना, मजबूत तने वाला, फटी छालें थी उसकी। जूते की तरह जड़ें फैली थीं, मटमैला रंग था और उसकी डालें राइफल की तरह लम्बी थीं। तने के ऊपर पत्तियाँ, पगड़ी जैसी फैली थीं। जाड़ा, गर्मी और बरसात में सीधा रहता था और रह-रह कर उसकी शाखाएँ, हवा बहने पर हरहराती थीं मानो आनेवाले से, पूछता हो कौन और फिर शान्त हो जाता था। शान्ति से बैठते थे हम सब। अच्छा लगता था।

लेकिन एक डर था। हुआ भी वही। गफलत हुई या नादानी कहें पेड़ कट गया। किन्तु यह सिलसिला रहा तो और भी बहुत कुछ होगा। अब सचेत रहना है। घर को बचाना होगा लूटेरों से, शहर को बचाना होगा हत्यारों से, देश को बनाना होगा देश के दुश्मनों से। इतना ही नहीं खतरे और भी हैं। नदियों को नाला बनाने से बचाना होगा, उसमें डाले जानेवाले कचरों और रसायनों को रोकना होगा। वृक्षों को काटने से जो हवा में धुआँ बढ़ता जा रहा है, उसे रोकना होगा और जमीन में रासायनिक उर्वरकों को डालने से रोकना ताकि अनाज जहर न बनें। दरअसल, जंगल को रेगिस्तान नहीं बनने देना होगा। जंगल रेगिस्तान बने कि आफत आई। किन्तु सोचना होगा कि क्यों कर रहा है मनुष्य यह सब? मनुष्य की सोच में जो खोट पैदा हो गयी है, जिससे ये समस्याएँ पैदा हुई हैं उस खोट को निकालना होगा। मनुष्य को जंगली बनने से रोकना होगा, उसे सही अर्थों में मनुष्य बनाना होगा, तभी मानवता बचेगी।

भाषा की बात

प्रश्न 1.
निम्नलिखित अव्ययों का वाक्यों में प्रयोग करें
अबकी, हमेशा, लेकिन, दूर, दरअसल, कहीं
उत्तर-
अबकी – अबकी समस्या गंभीर है।
हमेशा – हमेशा सत्य बोलना चाहिए।
लेकिन – वह आनेवाला था लेकिन नहीं आया।
दूरं – यहाँ से दूर नदी बहती है।
दरअसल – दरअसल ये बाते झूठी हैं।
कहीं – वह कहीं नहीं जायेगा।

प्रश्न 2.
कविता से विशेषणों का चुनाव करते हुए उनके लिए स्वतंत्र विशेष्य पद दें।
उत्तर-
बूढा – चौकीदार
पुराने – चमड़े
खुरदरा – तना
सखी – डाल
फूल पत्तीदार – पगड़ी
फटा पुराना – जूता
ठंढी – छाँव

प्रश्न 3.
निम्नांकित संज्ञा पदों का प्रकार बताते हुए वाक्य-प्रयोग करें: घर, चौकीदार, दरवाजा, डाल, चमड़ा, पगड़ी, बल-बूता, बारिश, वर्दी, दोस्त, पल, छाँव, अन्देशा, नादिरो, जहर, मरूस्थल, जंगल।
उत्तर-
घर – जातिवाचक – घर बड़ा है।
चौकीदार – जातिवाचक – चौकीदार ईमानदार है।
दरवाजा – जातिवाचक – दरवाजा खोल दो।
डाल – जातिवाचक – वृक्ष के डाल टूट गये।
चमड़ा – जातिवाचक – चमड़ा सड़ गया।
पगड़ी – जातिवाचक – पगड़ी नई है।
बल-बूता – भाववाचक – अपने बल-बूते पर कार्य करो।
बारिश – जातिवाचक – बारिश हो रही है।
वर्दी – जातिवाचक – वर्दी नयी है।
दोस्त – जातिवाचक – दोस्त पुराना है।
पल – भाववाचक – एक-एक पल का सदुपयोग करो।
छाँव – भाववाचक – छाँव ठंढी है।
अन्देशा – भाववाचक – अन्देशा समाप्त हो गया।
नादिरों – जातिवाचक – नादिरों से बचना है।
जहर – जातिवाचक – उसने जहर पी लिया।
मरूस्थल – जातिवाचक मरूस्थल फैल रहा है।
जंगल – जातिवाचक – जंगल घना है।

प्रश्न 4.
कविता में प्रयुक्त निम्नांकित पदों के कारक स्पष्ट करें चमड़ा, पाँव, धूप, सर्दी, वर्दी, अन्देशा, शहर, नदी, खाना, मनुष्य।
उत्तर-
चमड़ा – सबंध कारक
पाँव – अधिकरण कारक
धूप – अधिकारण कारक
सर्दी – अधिकरण कारक
वर्दी – अधिकरण कारक
अन्देशा – अधिकरण कारक
शहर – कर्म कारक
नदी – कर्म कारक
खाना – कर्म कारक
मनुष्य – कर्म कारक

काव्यांशों पर आधारित अर्थ-ग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

1. अबकी घर लौटा तो देखा वह नहीं था
वही बूढ़ा चौकीदार वृक्ष
जो हमेशा मिलता था घर के दरवाजे पर तैनात।
पुराने चमड़े का बना उसका शरीर
वही सख्त जान
झुर्रियोंदार खुरदुरा तना मैलाकुचैला,
राइफिल-सी एक सूखी डाल,
एक पगड़ी फूलपत्तीदार,
पाँवों में फटा पुराना जूता,
चरमराता लेकिन अक्खड़ बल-बूता
धूप में बारिश में
गर्मी में सर्दी में
हमेशा चौकन्ना
अपनी खाकी वर्दी में
दूर से ही ललकारता, “कौन ?”
मैं जवाब देता, “दोस्त !”
और पल भर को बैठ जाता
उसकी ठंढी छांव में

प्रश्न
(क) कवि तथा कविता का नाम लिखिए।
(ख) पद्यांश का प्रसंग लिखें।
(ग) पद्यांश का सरलार्थ लिखें।
(घ) भाव-सौंदर्य स्पष्ट करें।
(ङ) काव्य-सौंदर्य स्पष्ट करें।
उत्तर-
(क) कविता-एक वृक्ष की हत्या।
कवि-कुँवर नारायण।

(ख) प्रसग-हिन्दी काव्य धारा के सुप्रसिद्ध कवि कुँवर नारायण ने प्रस्तुत कविता ‘एक वृक्ष की हत्या’ के इस अंश में पर्यावरण की व्यवस्था पर उठते अनेक सवालों की ओर प्रबुद्ध वर्गों को आकर्षित किया है। यहाँ कवि कहना चाहते हैं कि आज प्रबुद्ध वर्ग ही क्षणभंगुर, स्वार्थपरता की लोलुपता में वृक्षों को काटकर शाश्वतता के साथ खिलवाड़ कर रहा है।

(ग) सरलार्थ-कवि पूर्ण रूप से संवेदनशील हैं अत: ‘एक वृक्ष की हत्या’ के बहाने मनुष्य और सभ्यता के विनाश की ओर ध्यानाकर्षित करते हुए कहते हैं कि.मेरे घर के बाहर ठीक दरवाजे के सामने एक विशाल छायादार वृक्ष था। कुछ दिनों के बाद जब मैं अबकी बार घर लौटा तो देखा कि उस.वृक्ष को काट दिया गया है। वह बूढा वृक्ष चौकीदार के समान घर के दरवाजे पर तैयार रहता था। वह वृक्ष इतना बूढ़ा और पुराना हो गया था कि उसके तने के बाहरी भाग बिल्कुल काले पड़ गये थे, जैसे लगता था कि वह चौकीदार सख्त और पुराने चमड़े धारण करके खड़ा रहता है। जहाँ-तहाँ वृक्ष के तने में ऊबड़-खाबड़, ऊँच-नीच की स्थितियाँ उत्पन्न हो गयी थीं। कई डालियाँ सूख गयी थीं तो लगता था कि वह बूढ़े वृक्ष के शरीर से झुर्रियाँ लटक रही हैं और कंधे पर राइफल लेकर रखवाली कर रहा है। उसकी ऊँची टहनी पर सुन्दर-सुन्दर फूल के गुच्छे और हरे-हरे पत्ते उसकी पगड़ी के रूप में सुशोभित होते थे। उसके पुराने जड़ फटे-पुराने जूते के समान लगते थे। जैसे लगता था उसके जड़ चरमरा रहे हैं, फिर भी विपरीत परिस्थितियों में शक्ति सामर्थ्य के साथ डटा रहने वाला था। प्रचण्ड गर्मी, मूसलाधार बारिश, कड़ाके की ठंड में हमेशा चौकन्ना रहकर पुराने छाल रूपी खाकी वरदी पहनकर डटा रहता था।

(घ) भाव-सौंदर्य प्रस्तुत पद्यांश का भाव यह है कि एक तुरन्त काटे गये वृक्ष के बहाने पर्यावरण, मनुष्य और सभ्यता के विनाश की अंत:व्यथा को अभिव्यक्त करता है। मानव जो अपने आपको प्रबुद्ध वर्ग कहता है वही क्षणभंगुर स्वार्थ की लिप्सा में पड़कर शाश्वतता के साथ कैसा खतरनाक खिलवाड़ करता है। मानवीय संवेदनाओं और चिंताओं की अभिव्यक्ति अप्रत्यक्ष रूप में दिखाई पड़ती है।

(ङ) काव्य सौंदर्य-
(i) प्रस्तुत कविता खड़ी बोली में लिखी गई है। भाषा प्रतीकात्मक शैली में है जहाँ रूपक का वातावरण अति प्रशंसनीय है।
(ii) तद्भव, तत्सम, देशज और विदेशज शब्दों का सम्मिलित रूप कविता का सौंदर्य बोध स्पष्ट दिखाई पड़ता है।
(iii) बूढा, चौकीदार, खुरदरा, झुर्रियाँदार ये सभी बिम्बात्मक शब्द रूपक के रूप में कविता को सारगर्भित बना रहे हैं। मुक्तक छंद की कविता होते हुए भी कविता में संगीतमयता आ गई है।
(iv) भाषा परिष्कृत और साफ-सुथरी है। यहाँ यथार्थ का खुरदरापन मिलता है और उसका सहज सौंदर्य भी।

2. दरअसल शुरू से ही था हमारे अन्देशों में
कहीं एक जानी दुश्मन ।
कि घर को बचाना है लुटेरों से
शहर को बचाना है नादिरों से
देश को बचाना है देश के दुश्मनों से
बचाना है-
नदियों को नाला हो जाने से
हवा को धुआँ हो जाने से ।
खाने को जहर हो जाने से:
बचाना है – जंगल को मरुस्थल हो जाने से,
बचाना है – मनुष्य को जंगल हो जाने से।

प्रश्न
(क) कवि तथा कविता का नाम लिखें।
(ख) पद्याश का प्रसंग लिखें।
काव्यांश का सरलार्थ लिखें।
(घ) भाव-सौंदर्य स्पष्ट करें।
(ङ) भाव-सौंदर्य स्पष्ट कर की हत्या।
उत्तर-
(क) कविता– एक वृक्ष की हत्या।
कवि- कुँवर नारायण।

(ख) प्रसंग- प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने कहा है कि पर्यावरण, सभ्यता, संस्कृति, राष्ट्र एवं मानवता के दुश्मन की आशंका हमेशा है। इनके दुश्मन हमारे बीच विद्यमान हैं और हमें उन्हें बचाने का हर संभव प्रयास करना चाहिए। इनकी रक्षा हेतु हमें आगे आना होगा। पर्यावरण की रक्षा करके या वृक्षों की रक्षा करके ही हम मनुष्य का बचा सकते हैं। इनके रक्षार्थ हमें इनके प्रति संवेदनशील होना होगा।

(ग) सरलार्थ- प्रस्तुत पद्यांश में कवि कुँवर नारायण जी आने वाले पर्यावरण संकट की और ध्यानाकर्षण कराते हैं। घर को लुटेरों का खतरा होता है। शहर को नादिरों से खतरा है। इन्हें बचाने की आवश्यकता है। देश को देश के दुश्मनों से रक्षा करने की आवश्यकता है। अर्थात् मनुष्यता और सभ्यता की रक्षा अनिवार्य रूप से होनी चाहिए और इसके लिए हमें सचेत होना होगा। कवि आगे कहते हैं कि आने वाले दिनों में पर्यावरण प्रदूषण की खतरा मँडरा रहा है। हम वृक्ष का महत्व नहीं देते हैं और उसे बिना सोचे-समझे काट रहे हैं। वृक्ष, पौधे, वनस्पतियों के बचाव से मनुष्य के स्वास्थ्य की रक्षा हो सकती है। हमें नदियों को नाला होने से, हवा को धुआँ होने से, खाने को जहर होने से, जंगल को मरुस्थल होने से एवं मनुष्य को जंगल होने से बचाना होगा। इस बचाव कार्य के सदुपायों पर चिंतन करते हुए पर्यावरण, सभ्यता एवं मनुष्यता की हर हाल में रक्षा करनी होगी। इसके लिए वृक्ष की महत्ता को समझना होगा। उसकी हत्या नहीं करनी होगी।

(घ) भाव-सौंदर्य प्रस्तुत पद्यांश में कवि समस्त प्रबुद्ध वर्गों के लिए गंभीर चिंता का सवाल खड़ा कर दिया है। यह पद्यांश आज के समय की अपरिहार्य चिंताओं और संवेदनाओं का रचनात्मक बोध कराता है। सहजता और स्वाभाविकता की अंत:कलह कासे पर्यावरण की सुरक्षा की ओर अग्रसर करता है। केवल कोरे कागज पर या खोखले नारेबाजी से पर्यावरण की सुरक्षा का चिंतन करने के बजाय प्रयोगवादी धरातल पर अंजाम देने की आवश्यकता पर कवि जोर दिया है। यदि प्रबुद्ध वर्ग ऐसा नहीं करता है तो शाश्वता के कोपभाजन का शिकार उसे निश्चित रूप से होना पड़ेगा।

(ङ) काव्य-सौंदर्य-
(i) प्रस्तुत कविता खड़ी बोली में लिखी गई है।
(i) भाषा सरल और सुबोध है। यहाँ अलंकार की योजना से रूपक, उपमा और अनुप्रास की छटा प्रशंसनीय है।
(iii) कविता में मानवीकरण की प्राथमिकता है।
(iv) शैली की दृष्टि से चित्रमयी शैली अति स्वाभाविक रूप में उपस्थित है।
(v) भाव के अनुसार भाषा का प्रयोग कविता में पूर्ण व्यंजकता उपस्थित करती है।
(vi) भाषा और विषय की विविधता कविता के विशेष गुण हैं।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

I. सही विकल्प चुनें

प्रश्न 1.
कंवर नारायण कैसे कवि हैं ?
(क) रहस्यवादी
(ख) छायावादी
(ग) हालावादी
(घ) संवेदनशील

प्रश्न 2.
“एक वृक्ष की हत्या’ के कवि कौन हैं ?
(क) अज्ञेय
(ख) पंत
(ग) कुँवर नारायण
(घ) जीवनानंद दास
उत्तर-
(ग) कुँवर नारायण

प्रश्न 3.
“एक वृक्ष की हत्या’ किस काव्य-संग्रह से संकलित है ?
(क) इन्हीं दिनों
(ख) हम-तुम
(ग) आमने-सामने
(घ) चक्रव्यूह
उत्तर-
(क) इन्हीं दिनों

प्रश्न 4.
कुँवर नारायण आधुनिक युग की किस काव्य-धारा के कवि हैं?
(क) प्रगतिवादी
(ख) प्रयोगवादी
(ग) यथार्थवादी
(घ) नयी कविता
उत्तर-
(घ) नयी कविता

प्रश्न 5.
‘एक वृक्ष की हत्या’ में वृक्ष को किस रूप में कवि ने प्रस्तुत किया है ?
(क) वृक्ष के रूप में
(ख) घर के रूप में
(ग) मानव के रूप में
(घ) पशु-के रूप में
उत्तर-
(ग) मानव के रूप में

प्रश्न 6.
कुँवर नारायण ने पेड़ की डाल की तुलना किससे की है ? ।
(क) लाठी से
(ख) राइफल से
(ग) भाला से
(घ) तोप से
उत्तर-
(ख) राइफल से

II. रिक्त स्थानों की पूर्ति करें

प्रश्न 1.
कुंवर नारायण का जन्म ………….. में हुआ।
उत्तर-
लखनऊ

प्रश्न 2.
कुंवर नारायण के काव्य की विशेषताएं हैं नये विषय और ……. की विविधता है।
उत्तर-
भाषा

प्रश्न 3.
घर को बचाना हो ……..से।
उत्तर-
लुटेरों

प्रश्न 4.
वृक्ष के काटे जाने के माध्यम से कवि ने …. प्रदूषण पर टिप्पणी की है।
उत्तर-
पर्यावरण

प्रश्न 5.
‘एक वृक्ष की हत्या’ …………… कविता है।
उत्तर-
समसामयिक

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
कुँवर नारायण कैसे कवि हैं ?
उत्तर-
कुंवर नारायण मनुष्यता और सजीवता के पक्ष में संभावनाओं के द्वार खोलने वाले कवि हैं।

प्रश्न 2.
कुंवर नारायण ने काव्य के अतिरिक्त किन विधाओं को समृद्ध किया है ?
उत्तर-
कुंवर नारायण ने काव्य के अतिरिक्त कहानी, निबंध और समीक्षा के क्षेत्र को समृद्ध किया है।

प्रश्न 3.
कुंवर नारायण को कौन-कौन पुरस्कार और सम्मान प्राप्त हुए हैं ?
उत्तर-
कुँवर नारायण को साहित्य अकादमी पुरस्कार, कुमार, आशान पुरस्कार, प्रेमचन्द पुरस्कार के अलावा व्यास-सम्मान, कबीर सम्मान और लोहिया सम्मान प्राप्त हुए हैं।

प्रश्न 4.
कवि घर लौटा तो कौन नहीं था?
उत्तर-
कवि अबकी बार घर लौटा तो चौकीदार की तरह घर के दरवाजे पर तैनात रहने वाला बूढ़ा वृक्ष नहीं था।

प्रश्न 5.
“एक वृक्ष की हत्या’ कविता का वर्ण्य-विषय क्या है?
उत्तर-
एक वृक्ष की हत्या’ का वर्ण्य-विषय है नाना प्रकार के प्रदूषण और छीजते मानव-मूल्या ।

व्याख्या खण्ड

प्रश्न 1.
अबकी घर लौटा तो देखा वह नहीं था
वही बूढ़ा चौकीदार वृक्ष
जो हमेशा मिलता था घर के दरवाजे पर तैनात।

व्याख्या-
प्रस्तुत काव्य पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक के “एक वृक्ष की हत्या” नामक काव्य-पाठ से ली गयी हैं।
इन पंक्तियों का प्रसंग गाँव के एक बूढ़े वृक्ष की हत्या से जुड़ा हुआ है।

बहुत दिनों के बाद जब कवि घर यानी अपने गाँव लौटा तो उसे बड़ा अचरज हुआ। कवि के घर के दरवाजे पर चौकीदार के रूप में तैनात जो बूढ़ा वृक्ष था, वह नहीं था। वृक्ष की हत्या हो चुकी थी।

इन पंक्तियों के माध्यम से कवि वृक्ष के प्रति गहरी संवेदना प्रकट करता है। उसकी उस वृक्ष के साथ आत्मीयता बढ़ गयी थी। वृक्ष घर का चौकीदार था। वह बूढ़ा हो चुका था। आज उसका नहीं होना कवि के लिए पीडादायक था।

एक बूढ़े वृक्ष की हत्या के माध्यम से कवि ने मानवीय जीवन की विसंगतियों पर भी सम्यक् प्रकाश डाला है। आज मनुष्य कितना क्रूर और निष्ठुर बन गया है। अपनी ही जड़ें काटने लगता है। इस कविता में बूढ़े वृक्ष की हत्या यानी संस्कृति की हत्या, बुजुर्गों के प्रति अनादर और अनास्था का भाव परिलक्षित होता है। हम चौकीदार सदृश बूढ़े वृक्ष या घर के बूढ़े किसी का भी सम्मान और सद्व्यवहार नहीं कर रहे हैं। ऐसा क्या हो गया है। वृक्ष हमारी संस्कृति, सभ्यता, अभिभावक, चौकीदार आदि के प्रतीक के रूप में आया है। इन पंक्तियों में कवि ने एक वृक्ष को प्रतीक मानकर जो संवेदनात्मक भाव प्रकट किया है, वह वंदनीय है, प्रशंसनीय है।

प्रश्न 2.
“पुराने चमड़े का बना उसका शरीर
वही सख्त जान
झुर्रियोंदार खुरदुरा तना मैला-कुचैला
राइफिल-सी एक सूखी डाल,
एक पगड़ी फूल-पत्तीदार,
पाँवों में फटा पुराना जूता,
चरमराता लेकिन अक्खड़ बल-बूता।”
व्याख्या-
प्रस्तुत काव्य पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक के एक वृक्ष की आत्महत्या’ काव्य-पाठ से ली गयी हैं। इन पंक्तियों का प्रसंग बूढ़े वृक्ष की शारीरिक संरचना से जुड़ा हुआ है।

कवि ने बूढ़े वृक्ष का मानवीकरण कर उसमें जीवंतता का दर्शन कराया है। जिस प्रकार बूढ़ा आदमी उम्र की ढलान पर अपने सौंदर्य को खो देता है, ठीक उसी प्रकार बूढ़े वृक्ष की भी स्थिति है। बूढ़े वृक्ष का शरीर सख्त हड्डियों का ढाँचा है। उसके छिलके पुराने चमड़े की तरह दिखते हैं। पूरे तन में पपड़ियाँ पड़ गयी हैं। चेहरे और सारे शरीर में झुर्रियाँ दिखायी पड़ती हैं। शरीर में खुरदुरापन आ गया है। पुराना हो जाने के कारण शरीर मैला-कुचैला-सा दिखता है। सौंदर्य खत्म हो चुका है। उसकी सूखी डाल राइफिल की तरह दिखती है। फूल और पत्तियों से युक्त पगड़ी पहने हुए वृक्ष का रंग-रूप लगता है मानो कोई चौकीदार सदेह खड़ा है। उसकी जड़ें फटी हुई हैं, दरकी हुई हैं-लगता है कि बूढ़े वृक्ष ने अपने पाँवों में फटा-पुराना जूता पहन रखा हो। वह जूता चरमर-चरमर करता है। वृक्ष ऐसे खड़ा है लगता है कि वह अक्खड़ता के साथ अपने . बल-बूते खड़ा है।

उक्त काव्य पक्तियों में कवि ने बूढ़े वृक्ष का चित्रण एक बूढ़े झुरींदार खुरदरे चेहरेवाले, मैले-कुचैले कपड़े पहने मनुष्य से किया है। उसने वृक्ष को मानव के रूप में चित्रित कर उसकी उपयोगिता और महत्ता को सिद्ध किया है। बूढ़ा वृक्ष हमारे लिए घर का बूढ़ा अभिभावक है। उसकी उपयोगिता और जीवंतता हमारे लिए अत्यंत आवश्यक है। वह हमारी संस्कृति का, सभ्यता का, कर्तव्यनिष्ठता का, अभिभावक का, लोकहित का संरक्षण करता है, पोषण करता है, रक्षा करता है। अतः, वह बूढ़ा वृक्ष मात्र वृक्ष ही नहीं है वह पहरूआ है अभिभावक हैं, घर का चौकस समझदार और भरोसेमंद संरक्षक है।

प्रश्न 3.
धूप में बारिश में
गर्मी में सर्दी में,
हमेशा चौकन्ना
अपनी खाकी वर्दी में
व्याख्या-
प्रस्तुत काव्य पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक के ‘एक वृक्ष की हत्या’ काव्य-पाठ से ली गयी हैं। इन पंक्तियों का प्रसंग एक बूढ़े वृक्ष को चौकीदार के रूप में चित्रित किए जाने से जुड़ा हुआ है।

कवि कहता है कि कोई भी मौसम हो, धूप अथवा बारिश हो, चाहे गर्मी या सर्दी का माह हो, बूढ़े वृक्ष को देखकर लगता है कि वह हमेशा सतर्कता के साथ, निडरता और तत्परता के साथ, खाकी-रूपी वर्दी में सबकी रखवाली में खड़ा है। कवि की ऐसी कल्पना से लगता है कि बूढा वृक्ष एक मामूली वृक्ष नहीं है। बल्कि वह युगों-युगों से हमारी सुरक्षा का प्रहरी है। हमारी संस्कृति का पोषक है। हर मौसम में एक विश्वसनीय, ईमानदार पहरेदार के रूप में हमारी रक्षा कर रहा है।

प्रश्न 4.
दूर से ही ललकारता, “कौन?”
मैं जवाब देता, “दोस्त !”
और पल भर को बैठ जाता
उसकी ठंढी छाँव में।
व्याख्या-
प्रस्तुत काव्य पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक के ‘एक वृक्ष की हत्या’ काव्य-पाठ से ली गयी हैं। इन पंक्तियों का प्रसंग एक बूढ़े वृक्ष और कवि के बीच के संबंध से संबंधित है।

जब कभी कवि अपने घर लौटता था तो बूढ़ा वृक्ष दूर से ही ललकारते हुए पूछता था— ठहरो, बोलो तुम कौन हो? कवि जवाब देता था मैं तुम्हारा दोस्त ! तब कवि घर की ओर पग बढ़ाता था। यहाँ मानवीय संबंधों, पहरेदार के रूप में अपनी कर्त्तव्यनिष्ठता के प्रति दृढ रहने कवि और बूढ़े वृक्ष के बीच के आत्मीय संबंधों आदि का पता चलता है। कवि की कल्पना ने बूढ़े वृक्ष को अभिभावक, चौकीदार पहरूओ के रूप में चित्रित कर मानवीयता प्रदान किया है। यहाँ बूढ़ा वृक्ष निर्जीव नहीं सजीव है। उसमें चेतना है, कर्तव्यनिष्ठता है, आत्मीयता है।

प्रश्न 5.
“दरअसल शुरू से ही था हमारे अन्देशों में
कहीं एक जानी दुश्मन
कि घर को बचाना है लुटेरों से
शहर को बचाना है नादिरों से
देश को बचाना है देश के दुश्मनों से।”
व्याख्या-
प्रस्तुत काव्य पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक के ‘एक वृक्ष की हत्या’ नामक काव्य-पाठ से ली गयी हैं। इन पंक्तियों का प्रसंग कवि और एक बूढ़े वृक्ष की हत्या से संबंधि त है। कवि मन ही मन कल्पना करता है कि यह बूढा वृक्ष हमारा पहरूआ है। वह उसे सजीव मानव के रूप में देखता है, चित्रित करता है। कवि के मन में पूर्व से ही संशय बैठा हुआ है कि हमारे चारों ओर शत्रुओं की तादाद अच्छी है, उनसे अपनी सुरक्षा के साथ घर, शहर और देश को भी बचाना है क्योंकि बाह्य शत्रुओं से तो देश की रक्षा जरूरी ही है। देश के भीतर जो शत्रु हैं उनसे भी लड़ते हुए अस्तित्व की रक्षा करनी है।

कवि यहाँ आंतरिक शत्रुओं की ओर इंगित करते हुए उनसे सावधान रहने की सलाह देता है। कवि का मन पारखी है, वह अपनी पैनी नजर से घर में, शहर में, देश में, रह रहे शत्रुओं को पहचानने की क्षमता रखता है, उनसे दूर रहकर, सचेत रहकर सावधानीपूर्वक अस्तिव और अस्मिता की रक्षा की जा सकती है। भीतरी शत्रुओं से बचाव सर्वाधिक जरूरी है। वे अपने स्वार्थ और संकीर्णताओं के चलते हमारी संस्कृति, प्रगति और आपसी शांति को भंग कर देंगे। कवि की पीड़ा, सोच अत्यंत ही प्रासंगिक है। देश तभी सबल, सुरक्षित रहेमा, शहर सुरक्षित तभी रहेगा जब घर शांतिमय, सुविकसित रूप में रहेगा। यहाँ कवि ने सूक्ष्म रूप से हमारी राष्ट्रीय समस्याओं पर ध्यान केन्द्रित करते हुए भीतरी शत्रुओं से सावधान रहने को कहा है।

प्रश्न 6.
“बचाना है
नदियों को नाला हो जाने से
हवा को धुआँ हो जाने से।
खाने को जहर हो जाने से।”
व्याख्या-
प्रस्तुत काव्य पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक के ‘एक वृक्ष की हत्या काव्य-पाठ से ली गयी हैं। इन पंक्तियों का प्रसंग कवि के द्वारा सुझाए गए उपायों से है। हम कैसे अपने अस्तित्व, इतिहास और अस्मिता की रक्षा कर सकते हैं ?

उक्त काव्य पक्तियों के माध्यम से कवि ने कहा है कि ऐ राष्ट्रवीरों ! सचेत हो जाओ। बाहरी शत्रुओं से ज्यादा भीतरी शत्रुओं से सांस्कृतिक संकट छहराने का खतरा ज्यादा है। अगर समय रहते हम नहीं चेते, नहीं संभले तो नदियाँ नाला के रूप में परिवर्तित हो जाएंगी, हवा शुद्ध न रहकरधुआँ के रूप में वायुमंडल में पसर जाएगी। आज हमारे जो भोज्य पदार्थ हैं वे जहरीले हो जाएंगे। बदलते जीवन-मूल्यों, पर्यावरण के दूषित स्वरूप एवं आंतरिक अव्यवस्थाओं के कारण सबका अस्तित्व संकट में पड़ गया है। कहीं इस जहरीले वातावरण में हम भी जहरीला न बन जायें। अतः, समय रहते सचेत और जागरूक होना आवश्यक है ताकि गहराते संकट से हम बच सकें।

प्रश्न 7.
बचाना है-जंगल को मरुस्थल
हो जाने से,
बचाना है-मनुष्य को जंगली
हो जाने से।
व्याख्या-
प्रस्तुत काव्य पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक के ‘एक वृक्ष की हत्या’ से ली गयी हैं। इन काव्य पंक्तियों का प्रसंग हमारी प्रकृति, राष्ट्र और मानव से जुड़ा हुआ है। कवि ने कविताओं के माध्यम से सभी को सतर्क और जागरूक होने का संदेश दिया है।

कवि कहता है कि जंगल की रक्षा अत्यावश्यक है। जंगल नहीं रहेगा तो हमारी संस्कृति – सुरक्षित नहीं रहेगी न इतिहास ही सुरक्षित रहेगा। सृष्टि का भी विनाश हो जाएगा। मनुष्य भी जंगली रूप को पुनः अख्तियार कर लेगा। मानव और जंगल एक-दूसरे के पूरक हैं। दोनों का रहना संस्कृति और सभ्यता के विकास के लिए बहुत जरूरी है। जंगल में ही मनुष्य वास करता था।
धीरे-धीरे जंगली स्वरूप को बदला और आज विकास के पथ पर दिनोंदिन अग्रसर होता जा रहा है।

अतः, कवि अंत में जोरदार शब्दों में कहता है कि जंगल को रेगिस्तान बनाने से, हे मानवों ! बचाओ। अगर जंगल का अस्तित्व मिटा तो तुम्हारा भी अस्तित्व समाप्त हो जाए। अतः, कवि की दृष्टि में जंगल और जीवन दोनों का स्वस्थ, सुरक्षित और हरा-भरा रहना आवश्यक है। जंगल और मानव का अटूट संबंध युगों-युगों से रहा है, आगे भी रहेगा।

एक वृक्ष की हत्या कवि परिचय

कुँवर नारायण का जन्म 19 सितंबर 1927 ई० में लखनऊ, उत्तर प्रदेश में हुआ था । कुँवर ।’ नारायण ने कविता लिखने की शुरुआत सन् 1950 के आस-पास की । उन्होंने कविता के अलावा चिंतनपरक लेख, कहानियाँ और सिनेमा तथा अन्य कलाओं पर समीक्षाएँ भी लिखीं हैं, किंतु कविता उनके सृजन-कर्म में हमेशा मुख्य रही । उनको प्रमुख रचनाएँ हैं – ‘चक्रव्यूह’, ‘परिवेश : हम तुम’, ‘अपने सामने’, ‘कोई दूसरा नहीं’, ‘इन दिनों’ (काव्य संग्रह); ‘आत्मजयी’ (प्रबंधकाव्य): ‘आकारों के आस-पास’ (कहानी संग्रह); ‘आज और आज से पहले’ (समीक्षा) : ‘मेर साक्षात्कार’ (साक्षात्कार) आदि । कुँवर नारायण जी को अनके पुरस्कार एवं सम्मान प्राप्त हो चुके हैं जो इस प्रकार हैं – ‘साहित्य अकादमी पुरस्कार’, ‘कुमारन आशान पुरस्कार’, ‘व्यास सम्मान’, ‘प्रेमचंद पुरस्कार’, ‘लोहिया सम्मान’, ‘कबीर सम्मान’ आदि ।

कुँवर नारायण पूरी तरह नगर संवेदना के कवि हैं । विवरण उनके यहाँ नहीं के बराबर है, पर वैयक्तिक और सामाजिक ऊहापोह का तनाव पूरी व्यंजकता के साथ प्रकट होता है । आज का समय और उसकी यांत्रिकता जिस तरह हर सजीव के अस्तित्व को मिटाकर उसे अपने लपेटे में ले लेना चाहती है, कुँवर नारायण की कविता वहीं से आकार ग्रहण करती है और मनुष्यंता और सजीवता के पक्ष में संभावनाओं के द्वार खोलती है। नयी कविता के दौर में, जब प्रबंधकाव्य का स्थान लंबी कविताएँ लेने लगी, तब कुँवर नारायण ने ‘आत्मजयी’ जैसा प्रबंधकाव्य रचकर भरपूर प्रतिष्ठा प्राप्त की । उनकी कविताओं में व्यर्थ का उलझाव, अखबारी सतहीपन और वैचारिक धुंध के बजाय संयम, परिष्कार और साफ-सुथरापन है । भाषा और विषय की विविधता उनकी कविताओं के विशेष गुण माने जाते हैं। उनमें यथार्थ का खुरदुरापन भी मिलता है और उसक सहज सौंदर्य भी।

तुरंत काटे गए एक वृक्ष के बहाने पर्यावरण, मनुष्य और सभ्यता के विनाश की अंतर्व्यथा को अभिव्यक्त करती यह कविता आज के समय की अपरिहार्य चिंताओं और संवेदनाओं का रचनात्मक अभिलेख है । यह कविता कुँवर नारायण के कविता संग्रह ‘इन दिनों से संकलित है।

एक वृक्ष की हत्या Summary in Hindi

पाठ का अर्थ

नई कविता काल के प्रखर कवि कुंवर नारायण नगर संवेदना के कवि हैं। उनकी रचनाओं में वैयक्तिक और सामाजिक उहापोह का तनाव पूरी व्यंजकता के साथ प्रकट होती है। आज का समय और उसकी यांत्रिकता जिस तरह हर सजीव के अस्तित्व को मिटाकर उसने अपने लपेटे में ले लेना चाहती है, कुँवर नारायण की कविता वहीं से आकार ग्रहण करती है और मनुष्यता और सजीवता के पक्ष में संभावनाओं के द्वार खोलती हैं। भाषा और विषय की विविधता उनकी कविताओं के विशेष गुण माने जाते हैं।।

प्रस्तुत कविता में कवि तुरंत काटे गये वृक्ष के बहाने पर्यावरण, मनुष्य और सभ्यता के विनाश की अंतर्व्यथा को अभिव्यक्त किया है। कवि के घर के सामने ही वर्षों पुराना एक बड़ा पेड़ था जो काट लिया गया है। कभी यह पेड़ दूसरों को छाया देकर उसकी थकान दूर करता था। उसके घर की रखवाली करता था किन्तु आज वह निर्जीव बन पड़ा है। पुराना होने के कारण उसके छाल धूमिल हो गये थे। उसकी डालियाँ राइफल की तरह तनी हुई रहती थी अक्खड़पन उसके नस-नस में था, धूप, वर्षा, सर्दी, गर्मी में वह सदा चौकन्ना रहता था किन्तु आज वह बेजान हो गया है। दूर से परिचय पूछकर दोस्तों को एक नई ताजगी देकर मन की व्यथा को हरण करने वाला वृक्ष दुश्मनों के द्वारा काट लिया गया। वस्तुतः यहाँ कवि बताना चाहता है कि गाँव, शहर वातावरण को बचाना है तो पहले पेड़ को बचाना चाहिए। वृक्ष हमारे मित्र हैं। मित्र को दुश्मन समझ कर उसका विनाश करना मानव जाति को विनाश करना है।

शब्दार्थ

अक्खड़ : विपरीत परिस्थितियों में डटा रहने वाला
बल-बूता : शक्ति-सामर्थ्य
अन्देशा : आशंका
नादिरों : नादिरशाह नामक ऐतिहासिक लुटेरे और आक्रमणकारी की तरह के क्रूर व्यक्ति

Bihar Board Class 10 English Book Solutions Chapter 8 Little Girl Wiser Than Men

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Bihar Board Class 10th English Book Solutions Prose Chapter 8 Little Girl Wiser Than Men Text Book Exercises Questions and Answers.

A. Work in a small groups and pairs and discuss the following

Little Girl Wiser Than Man Question Answer Bihar Board Class 10 Question 1.
Do you celebrate festivals?
Answer:
Yes, I celebrate festivals.

Little Girl Wiser Than Old Man Question Answer Bihar Board Class 10 Question 2.
Which festival you enjoy most?
Answer:
I enjoy the Deepawali festival most.

Little Girl Wiser Than Old Man Question Answer Pdf Bihar Board Class 10 Question 3.
How do you celebrate?
Answer:
Yes, I celebrate the festival with my family and friends’

Little Girl Wiser Than Man In Hindi Bihar Board Class 10 Question. 4.
In which season is it celebrated?
Answer:
It is celebrated in autumn in the last week of October or the first weak of November, Kartik (Hindi months) every year.

The Little Girl Question Answer Bihar Board Class 10 Question 5.
What do you do when enjoying with your friends?
Answer:
I enjoy the festival with my friends by decorating, exploding crackers and lighting my house. We eat together a variety of sweets and other delicious items with our friend, relation and family members

B. 1. Answer the following questions briefly

Bihar Board Class 10 English Book Solution Question 1.
Which festival was referred by the writer?
Answer:
The writer had referred “Easter” festival to be celebrated on the anniversary of the “Ressurection of Jesus Christ”.

Question 2.
Why sledging was over?
Answer:
Sledging was over, because the snow had stopped to fall and began to melt.

Question 3.
Why there was water running in streams down the village street?
Answer:
Water was running in streams down the village street because of the snow started melting.

Question 4.
Where do two little girls meet?
Answer:
Two little girls meet in a lane between two homesteads.

Question 5.
Are they of same age?
Answer:
No, they are not of the same age.

Question 6.
Why did Akoulaya try to check Malasha?
Answer:
Akoulya checked Malasha, because her mother will scold to see her with wet shoes and stockings.

Question. 7.
What advice did Akoulaya offer?
Answer:
Akoulaya advised her to take off her shoes and stockings otherwise it will be spoiled in the water of the pool. .

B.2. Say True (T) or False (F) to the following statements

1. Akoulaya and Malasha take off their shoes and stockings.
2. They do not walk towards each other in the puddle.
3. Malasha assures Akoulya that water is deep.
4. Malasha splashes water.
5. Akoulaya ran to strike Malasha.
6. Malasha purposely splashes water.
Answers:
1. – T
2. – F
3. – T
4. – T
5. – T
6. – T

B.3. Fill up the blanks

They all went………………quarelling, till one gave another………., and the affair had very………………come to blows, when Akoulya’s old grandmother, stepping…………………. among them, tried to them. What are you thinking of friends? Is it right to……………………so? On a day…………………..this, too! It is a time rejoicing and not for such folly ……………this.
Answer:
They all went on quarellig, till one gave another a push, and the affair had very nearly come to blows, when Akulya’s old grandmother, stepping in among them, tried to calm them. “What are you thinking of, friends? Is it right to behave so? On a day like this, too! It is a time for rejoicing and not for such folly as this.”

B.3.2. Answer the following questions briefly

Question 1.
Why Akoulaya started shouting at Malasha?
Answer:
Akoulya started shouting at malasha, because she held her responsible for causing stain of mud over, her (Akoulya) ffock, eyes and nose.

Question.2.
Why Akoulya’s mother seized Malasha?
Answer:
Akoulya’s mother seized Malasha to beat her, on the complaint lodged by her daughter against Malasha.

Question 3.
What happens when malasha’s mother came out after hearing herhowl?
Answer:
When Malasha’s mother came out she saw her daughter beaten by Akoulya’s mother, she started rebuking her neighbour.

Question 4.
Why no one listening?
Answer:
As everyone was shouting and quarrelling, so no one was listening to anybody.

Question 5.
Did the old woman succeed in her efforts?
Answer:
No, the old woman did not succeed in her efforts.

Question. 6.
What did Akoulaya do while other women were abusing?
Answer:
Akoulya cleaned the mud over her ffock and went back to the small pool of water, at the time when other women were abusing each other. She began to scraping away the land in front of the puddle to make a channel through which the water could spread over the street where men were fighting.

Question 7.
What the two girls do when men started fighting?
Answer:
When men began to fight both of the two girls started scraping away .the land in front of the small pool of water to make a channel through which the water could run out in the street.

Question 8.
Were they too fighting?
Answer:
They (the two girls) were not fighting at that time.

C.A. Long Type Questions with Answers

Question 1.
Describe why the two girls were dressed in new cloths and showing their finery to each other?
Answer:
The two girls were dressed in new cloths and showing their impressive garments and jewellery to each other. It was Easter festival. The reason behind the demonstration of their dress and costumes was to show that they had just come from chruch. Another reason might be to show that they were wearing magnificent cloths and jewellery.

Question 2.
Why did they step into the puddle and what makes them fight?
Answer:
The two girls were playing. Mean while the idea, of playing in the water of a small pool and to spread water in fun, came in their mind. So they stepped into the pool. The reason behind the fight between those two girls’ was also funny. Malasha suddenly plumped down her foot in the water of the pool. It was so sudden and heavy that the water spread and splashed right on Akoulya’s frock, eyes and nose. It made her frock dirty and coated with mud. Akoula thought that Malasha had done it intentionally, in order to make her dress dirty. So, she became angry and ran after Malasha to hit her forcefully. Thus, they fought for their own reasons, forming a prejuidiced opinion about one another.

Question 3.
What did the old woman mean by “Is it right to behave so? on a day like this too!”
Answer:
The old woman saw a crowd collected in the street and all went on quarelling. Everyone was shouting and no one was listening to others. She thought that the situation might take an ugly and disasterous turn. So she tried to make it peaceful. Moreover it was the day of “Easter festival”. As such coming to them she expressed her surprise over their behaviour. She advised them not to create such nuisance and to be peaceful. Thus her statement in this connection, “Is it right to behave so? on a day like this too !” throws light on her painful sentiments over such behaviour, because (i) Such inhuman and undesirable act was wrong and (ii) it was the auspicious day to celebrate “Easter” festival.

Question 4.
Why writer calls two little girls “Dear little souls’
Answer:
The two little girls Akoulya and Malasha indulge in quarell while playing in a puddle Akoulya wants to beat malasha for her wrong act. Malasha being frightened thinks to run to her house. Just then Akoulya’s mother happens to come. Seeing Akoulya’s frock dirty by sprinkles of mud and knowing the fact she beats Malasha. People gather from both the sides, start shouting without listning to other. Akoulya’s old grandmother accidentally comes to that place and tries to pacify them but does not succeed.

All of a sudden the situation takes a happy turn. Akoulya removes the dirty mud on her frock herself and goes back to the puddle. She begins to scrap away the earth in front of the puddle to make a channel, so that water may run into the street where the old woman is trying to pacify the crowd. Malasha also joins her (Akoulya) forgetting all her dispute. Seeing this the old lady becomes pleased and calls them, “Dear little Souls”. Therefore writer also calls them, “Dear little souls” to see their innocence. He is highly influenced to see their spirit of “Forget and forgive”.

Question 5.
Explain, “Except Ye turn, and become as little children Ye shall in no wise enter into the kingdom of heaven.”
Answer:
The lesson teaches us that we should not indulge in unnecessary dispute and lead a peaceful life. At the same time we should be reasonable in our actions as happened in the affairs of Akoulya and Malasha. These two little girls have developed some mis-understanding for one another. It takes an ugly turn. There held hot discussion. People from both sides collected in the street. Ever, one is shouting without listening to others. They are almost beginning right. But soon after, those two girls patch up their misunderstanding and become friends again. They begin to play again as nothing has happened. So they are wiser than those persons who have gathered there.

It shows how innocent and good at heart they are. They have cited the example of “forget and forgive”. It is a message to the older people. They too should learn lesson from them. Therefore the writer explain it in this way that one who would act accordingly would be a wise man. He can only enter in the kingdom of heaven. It means that we should not preserve malice in our hearts. Those two little l girls have proved, that he who believes in co-existence and forgive others for their fault is wise in real sense and may be able to enter into the kingom of

Question 6.
Why in the crowd everyone is shouting and no one is listening?
Answer:
When two persons or groups indulge in some dispute or some controversial issues, they do not admit their own fault and accuse others. They try to pacify others with their own arguments without listenning to them. It is but human nature. As such, the same thing happens in the matter as referred. When Akoulya and Malasha engage in quarrelsome affairs, people assembled from both the sides in the street start shouting. No one listen to others. They do not accept their.fault and accuse their opponants. That is why everyone is shouting and no one is listening.

D. Group Discussion

1. Is it proper to fight on trivial issues like sitting in first row? Discuss with your friend.
Answer:
No, it is not proper to fight on trivial issue like sitting in first ‘ row. If anyone is sitting in the first row on watching some programme. Suddenly he begins to fight with someone who is sitting beside him. The fighting will disturb the andience what a nasty scene they will present! They should be ashamed of themselves. Fighting for fuss is useless. It creates a surcharged atmosphere. They would have caused immene damage to themselves and to the public by their wrangle, which could have but been easily resolved by a mere ’sorry’, or perhaps some punishment by the people. This could have been a more civilised . and decent way to behave.

2. Discipline and love for mankind make one’s character strong.
Answer:
Love for mankind and discipline, these are virtues of human’s character. It is this character which gives him a ‘reputation’ by which he is known and recognised. Love for man and be kind and disciplined are essential prerequisite for good character. This could be only possible if had, noble or evil. Education should be such that one imbibes good virtues like honesty, love for humanity and trains to live a disciplined life. These are attributes that are important for our character. A man without these qualities of head and heart is but a savage. Moral instructions starts very early in life before the child starts going to school. The parents are best equipped to impart him his moral education rather than to quarrel.

D. Word study

E. 1. Phrasal verves: phrasal verb consist of two words (verb+adverb particle), which carries a single meaning and this meaning is not the sum total of the two words.
Ex. Give up, put out, break down are phrasal verbs.
Pick out phrasal verbs used in the lesson and use them in sentence of your own.
Answer:
Give up — Please give up your bad habits.
Put out — Put out the light, please.
Break down — His health broke down last summer.
Take off — Take off your clothes.
Comes up — The water came up to my knee.
Come out — The truth has come out.
Look at — She is looking at a picture.

E. Grammar Activities

F. 1. One may report the words of a speaker in two different ways:
1. May quote the actual words of speaker (direct speech).
2. Or report what a speaker said without quoting his exact words is (indirect speech).

Look at the following sentences in your lesson
‘Don’t go in so, Malasha said she.
She said, ‘Your mother will scold you.
These are written within inverted coma to mark the exact words of the speaker.

Now look at following sentences
She advised Malasha not to go in that way.
She warned her that her mother would scold her.
In reporting statements, commands and requests of direct speech in indirect speech, few changes are required
Now pick out sentences from the lesson written in Direct speech and change them into indirect speech.

Answer:
Direct speech
(i) “Don’t go inso, Malasha”, said she,” your mother will scold you. I will take oft my shoes and stockings, and you take off yours”
(ii) “It is deep, Akoulya, I’am afraid!”
(iii) “come on’ .replied the other. Don’t be frightened, it won’t get any deeper.
(iv) “Mind, Malasha, don’t splash, walk carefully!”
(v) “You naughty dirty girl, what have you been doing?”
Indirect speech of the sentence written above
(i) She forbade Malasha to go in. So her mother would scold her. She would take off her shoes and stockings and she (Malasha) must take off hers.
(ii) Malasha said that it was deep so she was afraid.
(iii) The other replied and called her then she forbade her not to be frightened it would not get any deeper.
(iv) Akoulya reminded Malasha not to splash and further she advised to walk carefully. ‘
(v) She rebuked Malasha as naughty and dirty girl and further asked what she had been doing.

Note: Some examples have been left. Do them yourself.

Ex.2. Write extended form of the<following: one is done for you:
I’m   lam,
Won’t   Don’t   didn’t
hand’t  hasn’t   haven’t
Shouldn’t  shan’t   aren’t
wouldn’t   weren’t  isn’t
Answer:
won’t — will not
Don’t — donot
Didn’t — did not
Hadn’t — had not
Hasn’t — has not
Haven’t— have not
shouldn’t— shduld not
Shan’t — shall not
Aren’t — are not
wouldn’t— would not
weren’t— were not
Isn’t — isnot

F. Activities

1. Recall any past event related to your friend similar to this story? Write in 200 words.
2. Report the story to your friend in indirect speech.
Answer:
It was the month of April last year. The sun was going down. Somehow the weather was cool; There was flow of vehicles on the road. 1 had to wait for quite some time at the traffic. In the meantime 1 saw a friend of mine, heo saw too. He cames towards me. We mest happily. He asked me my mobile, and rang another friend By chance a man came in hurry and snatched mobile from his hands. He rushed towards him and caught him and recovered my mobile. I told him to hand over the man to the police. But he did not give attention to my words. The talk took a turn for the worse. People gathered and forbade us to quarrel. la the midst of crowd two men began to quarrel. They were quarelling over our talk. Soon we realized and began to talk happily forgetting all what happened before.

2. Report
See Summary of the lesson.

Translation

Translate the passage into Hindi:
They would not listen to the old lady, and nearly knocked her off her feet. And she would not have been able quite crowd, if it had not been for Akoulya and Malasha themselves. While the women were abusing each other, Akoulya had wiped the mud off her frock, and gone back to the puddle. She took a stone and began scraping away the earth in front of the puddle make a channel through which the water could run out into the street.
Answer:
उनलोगों ने उस बूढी महिला की बातों को नहीं सुना (बातों पर गौर नहीं किया), और उसे आघात पहुँचाकर लगभग उसको अपने पैरों पर गिरा दिया तथा वह भीड़ को शान्त नहीं करा सकी; यदि यह ऑकोल्या और मलाशा, उन दोनों के लिए नहीं होता। जब वे औरतें – एक दूसरे के प्रति अपशब्द (बुरे भले शब्द) का व्यवहार कर रही थीं, ऑकोल्या ने अपनी फ्रॉक में लगी हुई कीचड़ को पोंछ दिया तथा तालाब (छिछली पोखरी) में पुनः वापस चली गयी। उसने एक पत्थर उठा लिया और तालाब के सामने की जमीन को कुरेदना (काटना) प्रारम्भ किया। एक जलमार्ग (नाली) बनाने के लिए जिससे होकर पानी गली में बह सके ।

Comprehension Based Questions With Answers

Read the following extracts carefully and answer the questions that follow each

1. Two little girls from different houses happened to meet in a lane between two homesteads, where the dirty water after running through the farm-yards had formed a large p.uddle. One girl was very small, the other a little bigger. Their mothers had dressed them both in new frocks. The little one wore a blue frock the other a yellow print, and both had red kerchiefs on their heads.

They had just come from church when they met,and first they showed each other their finery, and then they began to play. Soon the fancy took them to splash about in the water, and the smaller one was going to step into the puddle, shoes and all, when the elder checked her ’Don’t go in so, Malasha, ’said she, ’your mother will scold you. I will take off my shoes and stockings, and you take off yours.
Questions:
(i) When was the time?
(ii) From where were the two girls returning?
(iii) What type of clothes were they wearing?
(iv) Who was Malasha?
Answers:
(i) It was an early easter. Slediging was only just over.
(ii) The two girls were returning from Church.
(iii) They wore new frocks.
(iv) Malasha was the little girl.

2. She had hardly said this when Malasha plumped down her foot so that the water splashed right on to Akoulya’s frock. The frock was splashed, and so were Akoulya’s eyes and nose. When she saw the stains on her frock, she was angry and ran after malasha to strike her. Malasha was frightened, and seeing that she had got herself into trouble, she scrambled out of the puddle, and prepared to run home.

Just, then Akoulya’s mother happened to be passing, and seeing that her daughter’s skirt was splashed, and her sleeves – dirty, she said “You naughty, dirty girl, what have you been doing? ’Malasha did it on purpose,’ replied the girl. At this Akoulya’s mother seized malasha, and struck her on the back of her neck. Malasha began to howl so that she could be heard all down the street. Her mother came out.
Questions:
(i) Who is the author of this extract?
(ii) Who splashed water on Akoulya’s frock?
(iii) Why did Akoulya run after Malasha to strike her?
(iv) Why was Akoulya’s mother angry?
(v) Make adjectives from the following names
(i) trouble and (ii) home
Answers:
(i) Leo Tolstoy is the author of this extract.
(ii) Malasha splashed water on Akoulya’s frock.
(iii) Akoulya ran after Malasha to strike her because the latter had splashed her frock.
(iv) Akoulya’s mother was angry because her daughter’s frock was dirty and stained.
(i) troublesome and (ii) homely

3. ‘What are you beating my girl for?’ said she; and began scolding her neighbour. One word led to another and they had an angry quarrel. The men came out and a crowd collected in the street everyone shouting arid no one listening. They all went on quarrelling, till, one gave another a push, and the affair had very nearly come to blows, when Akoulya’s old grandmother, step¬ping in among them, tried to calm them. ‘What are you thinking of,friends? Is it right to behave so? on a day like this, too! It is a time for rejoicing, and not for such folly as this.”
Questions:
(i) Name the piece from which this extract has been taken.
(ii) Who is referred to as ‘she’ in this passage?
(iii) Why was no one listening?
(iv) What did Akoulya’s grandmother do?
(v) Make nouns from the following verbs
(i) collect and (ii) behave
Answers:
(i) This extract has been taken from the piece ‘Little Girls Wiser than Man’.
(ii) Malasha’s mother is referred to as ‘she’ in this passage.
(iii) No one was listening because the men and women were quarrelling and shouting.
(iv) Akoulya’s grandmother stepped in among them and tried to calm them. She told them that it was not proper to quarrel.
(v) (i) collection and (ii) behaviour.

4. They would not listen to the old woman and nearly knocked her off her feet. And she would not have been able to quiet the crowd, if it had not been for Akoulya and riialasha themselves. While the women were abusing each other, Akoulya had wiped the mud off her frock, and gone back to the puddle. She took a stone and began scraping away the earth in front of the puddle to make a channel through which the water could run out into the street.

Presently Malasha joined her, and with a chip of wood helped her dig the channel. Just as the men were beginning to fight, the water from the little girls’ channel ran streaming into the street towards the very place where the old woman was trying to pacify the men. The girls followed it; one turning each side of the little stream.
Questions:
(i) How were they fighting?
(ii) While the women were quarrelling; what did the two girls do?
(iii) How did Malasha help Akoulya?
(iv) find out the word from the passage which means: ‘moving mass of liquid’
Answers:
(i) They were knocked by each other.
(ii) While the women were abusing each other, Akoulya had wiped the mud off her frock and gone back to the puddle to make a channel. Malasha joined her.
(iii) Malasha joined her and with a chip of wood helped her dig the channel.
(iv) Streaming.

5. Highly delighted, and watching the chip float along on their stream, the little girls ran straight into the group of men; and the old woman, seeing them, said to the men: Are you not ashamed of yourselves? To go fighting on account of these lassies, when they themselves have forgotten all about it, and are playing happily together. Dear little souls! They are wiser than you!’ The men looked at the little girls, and were ashamed, and, laughing at themselves, went back each to his own home. ‘Except ye turn, and become as little children, ye shall in no wise enter into the kingdom of heaven.’
Questions:
(i) How happy were the girls?
(ii) Who said it,” Are you not ashamed of yourselves?
(iii) Who were wiser than man?
(iv) Who abide in the kingdom of heaven?
Answers:
(i) Highly delighted and watching the chip float on their stream the little girl ran straight into the group of men.
(ii) Akoulya’s grandmother said it.
(iii) Little girls were wiser than man.
(iv) Little girls abide in the kingdom of heaven.

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Bihar Board Class 10 English Book Solutions Poem 1 God Made The Country

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A. Answer the following questions briefly :

God Made The Country Questions And Answers Bihar Board Question 1.
Do you belong to a village? Which natural scenes and objects there attract you most?
Answer:
I belong to a village. There are open air and sunlight in my village. There are so many greenfield and groves with shady trees. The birds in the trees produce sweet notes which are more harmonious than the songs played on gramophone. Fresh fruits and vegetables are available there in plenty.

God Made The Country Question And Answer Bihar Board Question 2.
Do you belong to a town? What things cause annoyance to you there?
Answer:
I belong to a town. Things that cause annoyance to me are the traffic jams on the roads and the heaps of rubbish and garbage that lie in all the lanes and streets which cause health problems.

B. Answer the following questions briefly :

God Made The Country Bihar Board Question 1.
Where do you find health and virtue?
Answer:
Health and virtue are found in the villages.

God Made The Country Summary In Hindi Bihar Board Question 2.
Where do you find fields and groves?
Answer:
Fields and groves are found in the villages.

God Made The Country Questions And Answers Class 12 Bihar Board Question 3.
What is the source of light in villages in the evening?
Answer:
The source of light in the villages in the evening is the moon.

God Made The Country Poem Bihar Board Question 4.
Why is the nightingale mute in a town?
Answer:
Listening to the gramophone songs the nightingale becomes mute in a town.

C. 1. Long Answer Questions :

God Made The Country In Hindi Bihar Board Question 1.
Why does the poet beiieve that God made the country ?
Answer:
The country came into existence in a natural, way. No one came to give a shape to the country side. It went on taking shape as the nature planned it to take its shape. So the poet is left with no option but to believe that the countiy is the creation of God.

God Made The Country And Man Made The Town Bihar Board Question 2.
Why does the poet believe that man made the town ?
Answer:
Man has built high buildings, roads and streets in the town. He built shops, hotels, markets, cinema halls, gramophone, vehicles and carriages etc. So the poet believes that the town has been the creation of man.

God Made The Country And Man Made The Town Meaning Bihar Board Question 3.
Why is life bitter ?
Answer:
I ife is bitter because man does not lead a simple, laborious and natural life. He does not eat simu’e and home-made food. He does not do physical labour. He believes in a luxurious and comfortable life. In this way he lo’vs his health and fails a prey to different kinds of diseases. As such he fails to enjoy the happiness of life. Ultimately his lift becomes bitter.

God Made The Country Line By Line Explanation Bihar Board Question 4.
What can make ou r life sweet ?
Answer:
Leading a natural life can only make our life sweet. We must do . physical labour. We must avoid all kinds of luxury and comfort. We should also avoid all kinds of carriages and vehicles. We should form a walking habit. We should not go to hotels and bars. We must eat home-made food.

Bihar Board Class 10 English Book Solution Question 5.
What function do groves perform in a village ?
Answer:
In the village the farmers and labourers labour hard in the fields in the scorching rays of the sun till noon. So the groves give them shelter, rest and peace under the shades of their trees.

Bihar Board English Book Class 10 Pdf Download Question 6.
The birds are scared of songs. Why ?
Answer:
The birds are scared of listening to the songs played on gramophone because they confound the more harmonious notes of the birds. The birds gef disturbed hearing the unknown notes of the gramophone songs which are totally unfamiliar to them and so they irritate and scare the birds. .

C. 2. Group Discussion

Question 1.
The villages are no longer beautiful and peaceful. Discuss.
Answer:
It is said that life in a village is simple, pure and natural. There is nothing mechanical or artificial there. There are large tracts of land open countryside, green fields on all sides, wealth of trees and open air and bright in the sunshine. There is no din and noise. Life is quiet. There is peace.

But villages are no longer beautiful and peaceful. Quarrels and blood-sheds are a common feature of village life. Drinking, smoking, and gambling also go on in one form or the other. Disruptive forces are at large and they end their anger in the villages. The monster of ‘ugra bad’ or extremism has spread its horrible claws in each and every comer of the villages. It simply displays the ugly fact that villagers are living in barbaric age. Extremists hate
negotiations. They cannot sit and talk peacefully. The way to force government to concede their demands. Thus extremists strike at the very roots of democracy. They are anti-people and anti-progress. They attack villagers, they kill people mercilessly.

Thus it is clear that villagers are no longer beautiful and peaceful.

Question 2.
Write a paragraph on the trees that are found in your village.
Answer:
The Trees
My village has six or seven mango orchards but they had been planted long ago. Bur of all the unplanted trees, the banyan is unique. There are eight banyan trees in my village. They arc unique, not only for the manner of their growth but for the area of shade they provide from the burning sun. Their close relationship with man has evolved over the years to make the banyan a popular meeting place, a focal point of worship and a source of practical materials for commerce.

As the banyan grows, it sends aerial roots down the trunk of the supporting tree. The Indian banyan is one of the world’s largest tropical trees Banyan trees of my village are homes of various birds.

C. 3. Composition

Question 1.
You spent your summer vacation at a village. Write about the things you enjoyed there to a friend.
Answer:
The school closed for eight weeks’ summer vacation from 23rd of May. I heaved a sigh of relief. I went to my friend’s village and spent two weeks there. I had enjoyed my stay there. I was feeling quite at home.

There was no din and noise. Life is ever quiet and peaceful there. I got fresh air, all the twenty-four hours. Life is simple and free from all restraint of society. I got a lot of pure, unadulterated milk and butter. Vegetables and fruits were also available there. The village is surrounded on all sides by green fields stretching over miles. The scenery on all sides is resplendent and park like. I found the village beaux and belles radiant with health. There were novices and no fashions of the modem civilization. The villagers live nearer to Nature and God.

I liked to roam about the fields and enjoy Nature’s fresh air. There was no smoke and no foul smell. I felt stronger and healthier. I liked the place very much.

Question 2.
Towns are important for the progress of civilization. Discuss.
Answer:
Before discussing that towns are important for the progress of civilization, we should first know what civilization is.

Civilization is the sum total of the higher activities performed by mankind up to our own age. Safety and order are two necessary facto > for the progress of any civilization.

In town, people are using different machines for their comfort. Here are people who are engaged in inventing machines. Scientists are busy in finding more and more things. They are making machines which are our extra limbs. Here men are restless and energetic to find out something. Now-a-days machines have become tools of civilization. Modem men have better medical facilities, They lead healthier and longer lives than in the past. In town by making more, beautiful things, finding out more and more about the mysterious universe; removing the causes of conflicts and quarrels between nations, discovering new methods of preventing poverty, human beings can make their civilization great and most lasting. These are the ways for the progress of civilization.

D. Word Study

Question 1.
Correct the spelling of the following words:
abound Kontrie sedan pensive idealness    eklips
Answer:

abound Country Sedan
pensive idleness eclipse

Question 2.
Complete the following sentences with the words given below:

idleness test wanderer threatened
pensive offended confounded chariots

1. He ………….. to beat me.
2. ………….. will not let you rise in life.
3. Did you ………….. the sweet dishes?
4. Like a ………….. I just moved here and there.
5. Having failed in the examination he was in a ………….. mood.
6. His words ………….. me and I could not give a correct reply.
7 ………….. were the vehicles of gods and kings.
8. The teacher was ………….. when Raju went on arguing with him.
Answer:
1. threatened
2. idleness
3. taste
4. wanderer
5. pensive
6. confounded
7. chariots
8. offended.

D. 2. Word formation:

Question 1.
A number of verbs are made by simply adding-en to them in the end-Ex. threat (n) threaten (v)

haste (n) hasten (v)
light (adj) lighten (v)
mad(n) madden (v)
strength (n) strengthen (v)

Use these verbs in sentences of your own.
Answer:
Hasten— Artificial heating hastens the growth of plants.
Lighten— His heart lightened when he heard the news of his good result.
Madden— His bad behavior maddened his father.
Strengthen— Morning walking has strengthened the old man.

Question 2.
By using-er, in the end of an adjective, we give it a comparative form Ex.

soft softer
kind kinder
sharp sharper
thin thinner
dark darker
thick thicker

Now make comparative adjectives by adding to the following:

big sweet tasty old out
white black green small late

Answer:

Comparative Comparative
big — bigger sweet — sweeter
tasty — tastier old — older
out — oute white — whiter
black — blacker green — greener
small — smaller late — latter

D. 3. Word Meaning

Match the following words in column ‘A’ with their meanings given in column ‘B’-

A B
threaten exhaustion
fatigue natural quality
element give threat to destroy
spare frightened
splendour brilliance
scared to abstain from using

Answer:

A B
threaten give threat to destroy
fatigue exhaustion
element natural quality
spare to abstain from using
splendour brilliance
scared brightened

E. Grammar

On many occasions, we simply connect two sentences by the use of and-
Ex:
God made the country, and man-made the town.
We went to the market, and we also went to the cinema.

Now join the following sentences with and-
1. Raju wrote letters. He posted them.
2. Mother cooked dinner. She served it.
3. The teacher taught the lesson. He asked us to do exercises.
4. Rajan saw a puppy in the street. He brought it home.
5. The boys were playing. They were making a noise.
6. The king gave him land. The queen gave him jewels.
7. He went to circus. His friends went to the cinema.
8. We will go to Delhi. They will go to Jaipur.
9. My father is in the drawing-room. I am in the study.
Answer:
1. Raju wrote letters and posted them.
2. Mother cooked dinner and served it.
3. The teacher taught the lesson and asked us to do exercises.
4. Rajan saw a puppy in the street and brought it home.
5. The boys were playing and were making a noise.
6. The king gave him land and the queen gave him jewels.
7. He went to circus and his friends went to the cinema.
8. We will go to Delhi and they will go to Jaipur.
9. My father is in the drawing-room and I am in the study.

(Note : ‘and’ से जुड़ने वाले दो sentences से एक compound sentence बनता है। अगर दोनो sentences में एक ही कर्ता (doer) हो तो and के बाद Subject नहीं देना चाहिए, लेकिन दोनों sentences में भिन्न-भिन्न कर्ता (doers) हों तो and के बाद subject अवश्य दिया FIAT for 1 #5# and at Subject 7 TI N 6 9 and a Subject 37972 )

F. Activities

1, Make a list of poems in Hindi that deal with village life.
2. Write a short profile of a village you have visited/the village you belong to.
Answer:
1. Do your self/Not useful from the point of examination.
2.                                                  A village you have visited
During last summer vacation, 1 got a chance to visit a village. I went with my friend, Ajay Singh to his native village. It is Babura in Bhojpur district. I found life in village, simple, pure and natural. There are large tracts at field open countryside, green fields on all sides, wealth of trees and open air and bright sunshine. There is no din and bustle there.

The village pond is a busy place. The village urchins (small boys) swim and bathe in it. The buffaloes wallow (roll about) in it. Asses are let loose to kick, bray and roil in the dust. The village shopkeeper sells somethings there.

I found life in a village is simple but hard. The village farmer does hard labour in his field. The village women are busy from morning till evening. They grind com, milk the cattle, chum (*H cook food, wash clothes. Their lot is most servicable indeed.

G. Translation

Translate the following into English:
1. इस फल को मत खाओ ।
2. धूप में मत खोलो |
3. बाजार शाम में जाओ |
4. प्रतिदिन व्ययाम करो |
5. नियमित रूप से अध्ययन करो।
6. धार्मिक पुस्तकों का अध्ययन करो।
7. कुछ समय छोटे भाई-बहनों के साथ बिताओ।
8. रोज अखबार पढ़ो।
9. रोज कुछ नए अंग्रेजी शब्द सीखो |
10. कमरे की खडकियाँ खोल दो ।
Answer:
1. Do not eat this fruit.
2. Don’t play in the sun.
3. Go to market in evening.
4. Do exercise daily.
5. Study regularly.
6. Recite religious books.
7. Spend soinetime with youngsters.
8. Read a newspaper daily.
9. Leam some new English words daily.
10. Open the windows of the room.

Comprehensive Based Questions with Answers

Read the following extracts and answer the questions that follow each.
1. God made the country, and man-made the town.
What wonder then that health and virtue, gifts
That can alone make sweet the bitter draught
That life holds out to all, should most abound
And least be threatened in the fields and groves?
Possess ye, therefore, ye, who borne about
In chariots and sedans, know no fatigue
But that of idleness, and taste no scenes.
Questions :
(i) Who wrote the above lines?
(ii) What does the poet think about country?
(iii) What is ‘ye’ in the sixth line here?
(iv) What is the essential idea given here?
Answers :
(i) The poet William Cowper wrote the above lines.
(ii) The poet thinks that God has made country.
(iii) ‘Ye’ here means ‘you’, who bear about.
(iv) God has made village so it is great. Here God is everywhere manifest in the harmony of nature and he felt deeply the kinship between nature and the soul of humankind.

2. But such as art contrives, possess ye still
Your element; there only can ye shine;
There only minds like yours can do no harm.
Our groves were planted to console at noon
The pensive wanderer in their shades. At eve
The moonbeam, sliding softly in between
The sleeping leaves, is all the light they wish,
Birds warbling all the music. We can spare
The splendour of your lamps; they but eclipse
Our softer satellite. Your songs confound
Our more harmonious notes: the thrush departs
Scar’d, and the’ offended nightingale is mute.
Questions :
(i) What do groves do?
(ii) How do birds sing?
(iii) What is about town’s songs?
(iv) What kind of a town it is?
Answer :
(i) Groves consoled the tired man at noon.
(ii) Birds sing all the music.
(iii) Town’s songs are confused.
(iv) It is a town of materialism.

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Bihar Board Class 10 Political Science Solutions Chapter 2 सत्ता में साझेदारी की कार्यप्रणाली

Bihar Board Class 10 Social Science Solutions Political Science राजनीति विज्ञान : लोकतांत्रिक राजनीति भाग 2 Chapter 2 सत्ता में साझेदारी की कार्यप्रणाली Text Book Questions and Answers, Additional Important Questions, Notes.

BSEB Bihar Board Class 10 Social Science Political Science Solutions Chapter 2 सत्ता में साझेदारी की कार्यप्रणाली

Bihar Board Class 10 Political Science सत्ता में साझेदारी की कार्यप्रणाली Text Book Questions and Answers

वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर

I. सही विकल्प चुनें:

सत्ता में साझेदारी की कार्यप्रणाली Bihar Board Class 10 प्रश्न 1.
संघ राज्य की विशेषता नहीं है
(क) लिखित संविधान
(ख) शक्तियों का विभाजन
(ग) इकहरी शासन-व्यवस्था
(घ) सर्वोच्च न्यायपालिका
उत्तर-
(ग) इकहरी शासन-व्यवस्था

सत्ता की साझेदारी प्रश्न उत्तर Bihar Board Class 10  प्रश्न 2.
संघ सरकार का उदाहरण है
(क) अमेरिका
(ख) चीन
(ग) ब्रिटेन
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर-
(क) अमेरिका

सत्ता की साझेदारी प्रश्न उत्तर Bihar Board Class 10 प्रश्न 3.
भारत में संघ एवं राज्यों के बीच अधिकारों का विभाजन कितनी सूचियों में हुआ है।
(क) संघीय सूची, राज्य सूची
(ख) संघीय सूची, राज्य सूची, समवर्ती सूची
उत्तर-
(ख) संघीय सूची, राज्य सूची, समवर्ती सूची

II. निम्नलिखित में से कौन-सा कथन सही है?

सत्ता का क्षैतिज वितरण क्या है Class 10 Bihar Board प्रश्न 1.
सत्ता में साझेदारी सही है क्योंकि
(क) यह विविधता को अपने में समेट लेती है
(ख) देश की एकता को कमजोर करती है
(ग) फैसले की एकता को कमजोर करती है।
(घ) फैसले लेने में देरी कराती है।
उत्तर-
(क) यह विविधता को अपने में समेट लेती है

सत्ता की साझेदारी के प्रश्न उत्तर Bihar Board Class 10 प्रश्न 2.
संघवाद लोकतंत्र के अनुकूल है।
(क) संघीय व्यवस्था केन्द्र सरकार की शक्ति को सीमित करती है।
(ख) संघवाद इस बात की व्यवस्था करता है कि उस शासन-व्यवस्था के अन्तर्गत रहनेवाले लोगों में आपसी सौहार्द्र एवं विश्वास रहेगा। उन्हें इस बात का भय नहीं रहेगा कि एक की भाषा, संस्कृति और धर्म दूसरे पर लाद दी जायेगी।
उत्तर
(ख) संघवाद इस बात की व्यवस्था करता है कि उस शासन-व्यवस्था के अन्तर्गत रहनेवाले लोगों में आपसी सौहार्द्र एवं विश्वास रहेगा। उन्हें इस बात का भय नहीं रहेगा कि एक की भाषा, संस्कृति और धर्म दूसरे पर लाद दी जायेगी।

III. नीचे स्थानीय स्वशासन से पक्ष में कुछ तर्क दये गये हैं, इन्हें आप वरीयता के क्रम से सजाएँ।

1.सरकार स्थानीय लोगों को शामिल कर अपनी योजनाएँ कम खर्च में पूरी कर सकती है?
2. स्थानीय लोग अपने इलाके की जरूरत, समस्याओं और प्राथमिकताओं को जानते हैं।
3. आम जनता के लिए अपने प्रदेश के अथवा राष्ट्रीय विधायिका के जनप्रतिनिधियों से सम्पर्क कर पाना मुश्किल होता है।
4. स्थानीय जनता द्वारा बनायी योजना सरकारी अधिकारियों द्वारा बतायी योजना में ज्यादा स्वीकृत होती है।
उत्तर-
चरीय क्रम के अनुसार
(i) स्थानीय लोग अपने इलाके की जरूरत, समस्याओं और प्राथमिकताओं को जानते हैं।
(ii) स्थानीय शासन द्वारा बनायी योजना सरकारी अधिकारियों द्वारा बतायी योजना में ज्यादा स्वीकृत होती है।
(ii) सरकार स्थानीय लोगों को शामिल कर अपनी योजनाएँ कम खर्च में पूरी कर सकती है।
(iv) आम जनता के लिए अपने प्रदेश के अथवा राष्ट्रीय विधायिका के जनप्रतिनिधियों से सम्पर्क कर पाना मुश्किल होता है।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

सत्ता में साझेदारी सही है क्योंकि Bihar Board Class 10 प्रश्न 1.
संघ राज्य का अर्थ बताये।
उत्तर-
संघ राज्य में सर्वोच्च सत्ता केन्द्र सरकार और उसकी विभिन्न आनुसंगिक इकाइयों के बीच बँट जाती है। इसमें दोहरी सरकार होती है। एक केन्द्रीय स्तर की तथा दूसरी प्रांतीय या क्षेत्रीय स्तर की। केन्द्रीय स्तर की सरकार के अधिकार क्षेत्र में राष्ट्रीय महत्व के विषय होते हैं तथा प्रांतीय क्षेत्रीय सरकार के अधिकार क्षेत्र में स्थानीय महत्व के विषय होते हैं।

सत्ता की साझेदारी Pdf Bihar Board Class 10 प्रश्न 2.
संघीय शासन की दो विशेषताएँ बताएँ।
उत्तर-
संघीय शासन की, दो विशेषतायें इस प्रकार हैं

  1. संघीय शासन-व्यवस्था में सर्वोच्च सत्ता केन्द्र सरकार और उसकी विभिन्न आनुसंगिक इकाइयों के बीच बँट जाती है।
  2. संघीय व्यवस्था में दोहरी सरकार होती है। एक केन्द्रीय स्तर की सरकार जिसके अधिकार क्षेत्र में राष्ट्रीय महत्व के विषय होते हैं। दूसरे स्तर पर प्रांतीय या क्षेत्रीय सरकारें होती हैं जिनके अधिकार क्षेत्र में स्थानीय महत्व के विषय होते हैं।

लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
सत्ता की साझेदारी से आप क्या समझते हैं
उत्तर-
सत्ता की साझेदारी का तात्पर्य ऐसी साझेदारी से है जिसके अनतर्गत सत्ता का बँटवारा केन्द्रीय तथा प्रांतीय स्तर पर होता है। आम तौर पर सत्ता के बँटवारे को संघवाद कहा जाता है जिसमें दोहरी शासन व्यवस्था पायी जाती है। राष्ट्रीय स्तर पर केन्द्रीय सरकार तथा प्रांतीय स्तर पर राज्य सरकार जो अपने कार्य और शक्ति का बंटवारा करती हैं। नीचे स्तर की सरकारों के बीच भी सत्ता का बँटवारा होता है जिसे हम स्थानीय स्वशासन के नाम से जानते हैं।

प्रश्न 2.
सत्ता की साझेदारी लोकतंत्र में क्या महत्व रखती है ?
उत्तर-
लोकतंत्र एक ऐसी शासन-व्यवस्था है जो लोगों का, लोगों के लिए तथा लोगों द्वारा संचालित होती है। इसमें सत्ता का विकेन्द्रीरण होता है। लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था ही एकमात्र ऐसी शासन व्यवस्था है जिसमें ताकत सभी के हाथों में होती है। सभी को राजनीतिक शक्तियों में हिस्सेदारी या साझेदारी करने की व्यवस्था की जाती है। ये अपने अन्दर के विभिन्न समूहों के बीच प्रतिद्वन्द्विताओं एवं सामाजिक विभाजनों को संभालने की प्रक्रिया विकसित कर लेती है जिससे – इन टकरावों के विस्फोटक रूप लेने की आशंका कम हो जाती है।

कोई भी समाज अपने में व्याप्त विविधताओं और विभिन्नताओं को स्थायी तौर पर खत्म नहीं कर सकता है, पर इन अन्तरों, विभेदों और विविधताओं का आदर करने के लिए उन्हें सत्ता में साझेदार बनाकर समाज में सहयोग, सामंजस्य एवं स्थायित्व का सृजन किया जा सकता है। इस कार्य के लिए लोकतांत्रिक व्यवस्थाएं सबसे अच्छी होती हैं, क्योंकि आधुनिक लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं में सत्ता की साझेदारी के बहुत सारे प्रावधान किये जाते हैं।

प्रश्न 3.
सत्ता की साझेदारी के अलग-अलग तरीके क्या हैं ?
उत्तर-
सत्ता की साझेदारी- लोकतंत्र में सरकार की सारी शक्ति किसी एक अंग में सीमित नहीं रहती है, बल्कि सरकार के विभिन्न अंगों के बीच सत्ता का बँटवारा होता है। यह बँटवारा सरकार के एक ही स्तर पर होता है। उदाहरण के लिए सरकार के तीनों अंगों विधायिका, कार्यपालिका एवं न्यायपालिका के बीच सत्ता का बंटवारा होता है और ये सभी अंग एक ही स्तर पर अपनी-अपनी शक्तियों का प्रयोग करके सत्ता में साझेदार बनते हैं। सत्ता के ऐसे बँटवारे से किसी एक अंग के पास सत्ता का जमाव एवं उसके दुरुपयोग की संभावना खत्म हो जाती है। साथ ही हरेक अंग एक-दूसरे पर नियंत्रण रखता है। इसे नियंत्रण और संतुलन की व्यवस्था भी कहते हैं। विश्व के बहुत सारे लोकतांत्रिक देशों जैसे–अमेरिका, भारत आदि में यह व्यवस्था अपनायी गयी है।

सरकार के एक स्तर पर सत्ता के ऐसे बँटवारे को हम सत्ता का क्षैतिज वितरण करते हैं। सत्ता में साझेदारी की दूसरी कार्य प्रणाली में सरकार के विभिन्न स्तरों पर सत्ता की बँटवारा होता है। सत्ता के ऐसे बँटवारे को हम सत्ता का ऊर्ध्वाधर वितरण कहते हैं। इस तरह की व्यवस्था में पूरे देश के लिए एक सामान्य सरकार होती है। प्रांतीय और क्षेत्रीय स्तर पर अलग सरकारें होती हैं। दोनों के बीच सत्ता के स्पष्ट बंटवारे की व्यवस्था संविधान या लिखित दस्तावेज के द्वारा की जाती है। केन्द्रीय राज्य या क्षेत्रीय स्तर की सरकारों से नीचे की स्तर की सरकारों के बीच भी सत्ता का बँटवारा होता है। इसे हम स्थानीय स्वशासन के नाम से जानते हैं।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न 

प्रश्न 1.
राजनैतिक दल किस तरह से सत्ता में साझेदारी करते हैं?
उत्तर-
राजनीतिक दल सत्ता में साझेदारी का सबसे जीवंत स्वरूप है। राजनीतिक दल सत्ता के बँटवारे के वाहक से मोल-तोल करने वाले सशक्त माध्यम होते हैं। राजनीतिक दल लोगों का ऐसा संगठित समूह है जो चुनाव लड़ने और राजनैतिक सत्ता हासिल करने के उद्देश्य से काम करता है। अतः, विभिन्न राजनीकतक दल सत्ता प्राप्त करने के लिए प्रतिस्पर्धा के रूप में काम करते हैं। उनकी आपसी प्रतिद्वंद्विता यह निश्चित करती है कि-सत्ता हमेशा किसी एक व्यक्ति या संगठित व्यक्ति समूह के हाथ में न रहे। राजनैतिक दलों के इतिहास पर गौर से अध्ययन करने पर पता चलता है कि सत्ता बारी-बारी से अलग-अलग विचारधाराओं और समूहों वाले राजनीतिक दलों के हाथ में आती-जाती रहती है।

प्रश्न 2.
गठबन्धन की सरकारों में सत्ता में साझेदार कौन-कौन होते हैं ?
उत्तर-
सत्ता की साझेदारी का प्रत्यख रूप तब भी दिखता है जब दो या दो से अधिक पार्टियाँ मिलकर चुनाव लड़ती हैं या सरकार का गठन करती हैं। इसतरह सत्ता की साझेदारी का सबसे अद्यतन रूप गठबन्धन की राजनीति या गठबन्धन की सरकारों में दिखता है, जबं विभिन्न विचारधाराओं, विभिन्न सामाजिक समूहों और विभिन्न क्षेत्रीय और स्थानीय हितों वाले राजनीतिक दल एक साथ एक समय में सरकार के एक स्तर पर सत्ता में साझेदारी करते हैं।

प्रश्न 3.
दबाव समूह किस तरह से सरकार को प्रभावित कर सत्ता में साझेदार बनते हैं?
उत्तर-
राजनीतिक दल के अलावा विभिन्न दबाव समूह सरकार की नीतियों और निर्णयों को बहुत हद तक प्रभावित करते हैं। दबाव समूह के संघर्ष एवं आन्दोलन में कई तरह के हित समूह शामिल होते हैं या यह भी हो सकता है कि वे कुछ हितों के बजाय सर्वमान्य हितों के लिए प्रयास करते हैं। ये समूह अप्रत्यक्ष रूप से सरकार की नीतियों को अपने पक्ष में करने के लिए कुछेक , हथकण्डे अपनाते हैं जिनमें धरना, प्रदर्शन, आन्दोलन इत्यादि शामिल हैं। कभी-कभी यह भी देखने में आया है कि ये समूह संबंधित मंत्रीगण से सौदेबाजी करते हैं। ताकि सरकार की नीति और कार्यक्रम उन समूहों के अनुकूल हों। वास्तव में दबाव समूह सरकार को प्रभावित कर सत्ता मेंसाझेदार बनते हैं।

निम्नलिखित में से एक कथन का समर्थन करते हुए 50 शब्दों में उत्तर दें।

  • हर समाज में सत्ता की साझेदारी की जरूरत होती है भले ही वह छोटा हो या उसमें । सामाजिक विभाजन नहीं हो।
  • सत्ता की साझेदारी की जरूरत क्षेत्रीय विभाजन वाले बड़े देशों में होती है।
  • सत्ता की साझेदारी की जरूरत क्षेत्रीय, भाषायी, जातीय आधार पर विभाजन वाले समाज में ही होती है।

उत्तर-
मैं उपर्युक्त प्रथम कथन से सहमत हूँ कि प्रत्येक समाज में किसी-न-किसी तरह से सत्ता की साझेदारी आवश्यक होती है चाहे वह छोटा हो या फिर उनमें किसी तरह का सामाजिक विभाजन न हो। ऐसा इसलिए कि यह लोकतंत्र का मौलिक सिद्धांत है कि लोग स्वशासन की संस्था द्वारा स्वयं के ऊपर शासन करते हैं चाहे समाज छोटा भी है या फिर इनके कोई विभाजन नहीं है। फिर भी इसकी अपनी एक इच्छा होती है। किसी भी संघर्ष अथवा राजनीतिक अस्थिरता को रोकने के लिए इस इच्छा को पर्याप्त प्रतिनिधित्व देने की आवश्यकता होती है।

Bihar Board Class 10 History सत्ता में साझेदारी की कार्यप्रणाली Additional Important Questions and Answers

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
सत्ता में भागीदारी की सर्वोत्तम प्रणाली कहाँ विकसित की गई है ?
(क) श्रीलंका में
(ख) भारत में
(ग) बेल्जियम में
(घ) पाकिस्तान में
उत्तर-
(ग) बेल्जियम में

प्रश्न 2.
सत्ता में भागीदारी की आवश्यकता कहाँ पड़ती है ?
(क) क्षेत्र भाषा और जाति के आधार पर बँटे समाज में
(ख) क्षेत्रीय विभाजन वाले बड़े राज्य में ।
(ग) प्रत्येक लोकतांत्रिक राज्य में
(घ) उपर्युक्त तीनों में
उत्तर-
(घ) उपर्युक्त तीनों में

प्रश्न 3.
बेल्जियम के किस शहर के स्कूलों में फ्रेंच बोलने पर रोक लगा दी गई है?
(क) ब्रसेल्स
(ख) मर्चटेम
(ग) मेन्स
(घ) नाम
उत्तर-
(ख) मर्चटेम

प्रश्न 4.
सत्ता में भागीदारी का सही लाभ क्या है ?
(क) निर्णय लेने की प्रक्रिया में देरी
(ख) अस्थिरता और आपसी फूट में वृद्धि
(ग) विविधताओं में वृद्धि
(घ) विभिन्न समुदायों के बीच टकराव में कमी
उत्तर-
(घ) विभिन्न समुदायों के बीच टकराव में कमी

प्रश्न 5.
बेल्जियम में सत्ता में भागीदारी के संदर्भ में सही बयान क्या है ?
(क) बहुसंख्यकों का प्रभुत्व बनाए रखने का प्रयास
(ख) फ्रेंच-भाषी अल्पसंख्यकों के हितों की उपेक्षा
(ग) संघीय शासन-व्यवस्था अपनाकर देश को भाषा के आधार पर टूटने से बचाना
(घ) क्षेत्रीय हितों को नजरअंदाज करना
उत्तर-
(ग) संघीय शासन-व्यवस्था अपनाकर देश को भाषा के आधार पर टूटने से बचाना

अतिलघु उत्तरीय पश्व

प्रश्न 1.
सत्ता में भागीदारी की एक अच्छी परिभाषा दें।
उत्तर-
राज्य के नागरिकों द्वारा सरकारी स्तर पर निर्णय लेने या निर्णय-निर्माण की प्रक्रिया को प्रभावित करना सत्ता में भागीदारी है।

प्रश्न 2.
सत्ता में भागीदारी की आवश्यकता क्या है ?
उत्तर-
सत्ता में भागीदारी की आवश्यकता लोकतंत्र के सफल संचालन में सहायक होती है। सत्ता में भागीदारी राजनीतिक व्यवस्था को दृढ़ता प्रदान करती है। विभिन्न सामाजिक समूहों के बीच सत्ता का विभाजन करके आपसी टकराव को कम किया जाता है।

प्रश्न 3.
बेल्जियम की राजधानी कहाँ है? राजधानी में किन भाषाओं के बोलनेवाले लोग निवास करते हैं ?
उत्तर-
बेल्जियम की राजधानी ब्रसेल्स है। राजधानी में लगभग 80 प्रतिशत फ्रेंच-भाषी निवास करते हैं और 20 प्रतिशत ही डचभाषी रहते हैं।

प्रश्न 4.
श्रीलंका की राष्ट्रीय एकता खतरे में क्यों है ?
उत्तर-
श्रीलंका में बहुसंख्यक सिंहली भाषियों को सत्ता में भागीदारी अधिकं है जबकि अल्पसंख्यक तमिल भाषियों के हितों को नजरअंदाज किया गया है। यही कारण है कि दोनों समुदायों के बीच निरंतर संघर्ष के कारण देश की एकता खतरे में पड़े गयी है।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
बेल्जियम में सत्ता में भागीदारी के लिए अपनाए गए तरीके का उदाहरण के साथ वर्णन करें।
उत्तर-
बेल्जियम में डच फ्रेंच तथा जर्मन भाषायी लोग निवास करते हैं। बहुसंख्यक आबादी डच भाषी है उसके बाद फ्रेंच तथा जर्मन भाषा बोलनेवालों की संख्या एक प्रतिशत है। सत्ता में : भागीदारी के प्रश्न पर बेल्जियम की सरकार ने संविधान में संशोधन करके यह व्यवस्था की-

  • केंद्रीय सरकार में डच और फ्रेंच भाषी मंत्रियों की संख्या समान रहेगी।
  • कुछ विशेष कानून तभी बन सकते हैं जब दोनों भाषायी समूह के सांसदों का बहुमत उसके पक्ष में हो।
  • संघीय व्यवस्था के गले लगाते हुए राज्य सरकारों को केंद्र की अपेक्षा सत्ता में अधिक भागीदारी दी गई है।
  • बेल्जियम की राजधानी ब्रसेल्स में एक अलग सरकार गठित की गई है और इस सरकार में भी सत्ता में भागीदारी में केन्द्र सरकार की तरह समानता के सिद्धांत को स्वीकार किया गया है जबकि राजधानी में लगभग 80 प्रतिशत फ्रेंच भाषी निवास करते हैं और 20 प्रतिशत ही डच-भाषी रहते हैं।

प्रश्न 2.
भारत में सत्ता में भागीदारी के लिए कौन-कौन से तरीके अपनाए गए हैं ?
उत्तर-
भारत में सत्ता में भागीदारी के प्रश्न पर भाषा, धर्म, और समुदायों के बीच किसी तरह का भेदभाव नहीं है। भारत में सत्ता में भागीदारी के प्रश्न को अवसर की समानता के सिद्धांत को अपनाकर सुलझा लिया गया है। भारत में राष्ट्रीय एकता अक्षुण्ण रखने का कारण सत्ता में भागीदारी के क्षेत्र में अक्सर की समानता का सिद्धांत को अपनाया है।

प्रश्न 3.
क्या श्रीलंका में सत्ता की भागीदारी के लिए अपनाए गए तरीके सही है ? अपने उत्तर के पक्ष में तर्क दें।
उत्तर-
श्रीलंका 1948 ई. में एक स्वतंत्र देश बना। यहाँ सिंहली (बहुसंख्यक) तथा तमिल (अल्पसंख्यक) भाषायी लोग हैं। यहाँ की सरकार ने सत्ता में भागीदारी के लिए जो तरीके अपनाए हैं वे गलत हैं। इसके पक्ष में हम यह तर्क दे सकते हैं कि सिंहली (बहुसंख्यक) लोगों को सत्ता में भागीदारी अधिक है जबकि तमिल जो अल्पसंख्यक है उनके हितों की अनदेखी की गई है। सभी क्षेत्रों में सिंहली भाषियों को अधिक भागीदारी प्राप्त है जिसके कारण दोनों समुदायों के बीच निरंतर संघर्ष की स्थिति बनी रहती है। सत्ता में भागीदारी के प्रश्न पर श्रीलंका में गृहयुद्ध की स्थिति काफी दिनों से बनी हुई थी। तमिलों की समस्या को लेकर ही वहां लिट्टे का गठन हुआ था। सिंहलियों और तमिलों के बीच भेदभाव के कारण ही श्रीलंका की राष्ट्रीय एकता खतरे में है।

प्रश्न 4.
संघीय व्यवस्था की महत्वपूर्ण विशेषताओं को बतायें?
उत्तर-
संघीय व्यवस्था की महत्वपूर्ण विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

  • यहाँ सरकार दो या दो से अधिक स्तरों वाली होती है।
  • अलग-अलग स्तर की सरकारें एक ही नागरिक समूह पर शासन करती हैं पर कानून बनाने कर वसूलने और प्रशासन का उनका अपना-अपना अधिकार क्षेत्र होता है।
  • विभिन्न स्तरों की सरकारों के अधिकार-क्षेत्र संविधान में स्पष्ट रूप से वर्णित होते हैं।
  • संविधान के मौलिक प्रावधानों को किसी एक स्तर की सरकार अकेले नहीं बदल सकती।
  • ऐसे बदलाव दोनों स्तर की सरकारों को सहमति से ही हो सकते हैं।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
आप कैसे कह सकते हैं कि भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है ?
उत्तर-
भारत प्रारंभ से ही धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत को अपनाया है। स्वतंत्रता आंदोलन के – विभिन्न चरणों में भी देश के भीतर धार्मिक भेदभाव की जगह आपसी भाईचारा देखने को मिला। भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है यह निम्नलिखित तथ्यों से स्पष्ट होता है-

भारत का अपना कोई राजधर्म नहीं है। यह प्रत्येक धर्म को समान रूप से बढ़ने का अवसर देता है। इसके लिए भारतीय संविधान ने अपने नागरिकों को धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार भी प्रदान किया है। भारतीय संविधान की प्रस्तावना में भी इसका उल्लेख मिलता है। .

भारतीय नागरिक चाहे हिन्दू हों या मुसलमान, सिक्ख हों या इसाई सभी के अंदर राष्ट्रीयता की भावना देखी जाती है। देश के अंदर धर्म के आधार पर किसी भी प्रकार का भेदभाव करना निषिद्ध है। धर्म निरपेक्षता के कारण ही हमारी राष्ट्रीय एकता कायम है। इस प्रकार उपरोक्त तथ्यों के आधार पर हम कह सकते हैं कि भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है।

प्रश्न 2.
सत्ता में भागीदारी को सशक्त रूप देने के उद्देश्य से बेल्जियम के संविधान में किए गए संशोधनों का वर्णन करो
उत्तर-
बेल्जियम यूरोप का एक छोटा-सा लोकतांत्रिक देश है। बेल्जियम में डच, फ्रेंच तथा जर्मन तीन तरह की भाषा बोलनेवाले लोग हैं। सत्ता में भागीदारी को लेकर तीनों भाषा बोलनेवालों के बीच संघर्ष को स्थिति बनी हुई थी। बेल्जियम के शासकों ने इस समस्या को गंभीरता से लिया – और सत्ता में भागीदारी के प्रश्न को सहज ढंग से सुलझा लिया। इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए 1970 और 1993 के बीच उन्होंने अपने संविधान में चार संशोधन कर इस बात की व्यवस्था की है –

  • केन्द्र सरकार में डच और फ्रेंच भाषी मंत्रियों की संख्या बराबर रहेगी।
  • देश की व्यवस्थापिका कोई विशेष कानून तभी बना सकती है जब दोनों भाषायी समूहों के सदस्य सदन में कानून के पक्ष में मतदान करेंगे।
  • संघीय व्यवस्था को गले लगाते हुए राज्य सरकारों को केन्द्र की अपेक्षा सत्ता में अधिक भागीदारी दी गई है।
  • बेल्जियम की राजधानी ब्रूसेल्स में एक अलग सरकार गठित की गई है और इस । सरकार में भी सत्ता में भागीदारी में केंद्र सरकार की तरह समानता के सिद्धांत को स्वीकार किया गया है।
  • सत्ता में भागीदारी को अधिक सुव्यवस्थित बनाने के उद्देश्य से केन्द्र सरकार, राज्य सरकार के अतिरिक्त एक अन्य सरकार सामुदायिक सरकार का गठन किया गया है। अलग-अलग भाषा बोलनेवाले लोगों को अपनी सामुदायिक सरकार गठन करने का . अधिकार दे दिया गया है।

Bihar Board Class 10 History सत्ता में साझेदारी की कार्यप्रणाली Notes

  • लोकतंत्रजनता का शासन है।
  • लोकतंत्र में जनता शासन में स्वयं भाग लेती है या अपने प्रतिनिधियों के माध्यम से शासन में भागीदारी करती है इसे हीसत्ता में भागीदारी कहा जाता है।
  • सत्ता में भागीदारी के सही निर्वाह से ही समाज के विभिन्न समुदायों के बीच टकराव की स्थिति में कमी आती है।
  • सरकार के तीन अंग हैं कार्यपालिका, व्यवस्थापिका एवं न्यायपालिका।
  • लोकतंत्र में सत्ता की भागीदारी का महत्व इस कारण भी है कि जनता ही सरकार को अपनी सहमति देती या वापस लेती है।
  • सत्ता का विकेन्द्रीकरण तभी संभव है जब सत्ता में अधिक से अधिक लोगों की भागीदारी सुनिश्चित हो।
  • विभिन्न सामाजिक समूहों के बीच यदि सत्ता का समुचित विभाजन कर दिया जाता है तब आपसी टकराव की संभावनाक्षीण हो जाती है।
  • बेल्जियम की राजधानी ब्रूसेल्स है।
  • श्रीलंका के मूल निवासीसंहली भाषा बोलनेवाले बहुसंख्यक हैं और तमिल भाषा बोलनेवाले अल्पसंख्यका
  • भारत में सत्ता में भागीदारी के प्रश्न पर भाषाधर्म और समुदायों के बीच किसी तरह का भेदभाव नहीं है।
  • भारत में सत्ता में भागीदारी के प्रश्न को अवसर की समानता के सिद्धांत को गले लगाकर सुलझा लिया गया है।
  • सत्ता में भागीदारी के क्षेत्र अल्पसंख्यक औषहसंख्यक का भेदभाव बरतना आपसी तनाव को निमंत्रण देना है।
  • यूरोपीय संघ का मुख्यालयबेल्जियम की राजधानीब्रसेल्स है।
  • सत्ता में भागीदारी की मात्रा जितनी अधिक होगीराजसत्ता को उतना ही अधिक स्थायित्व प्राप्त होगा।
  • सरकार के तीनों अंगों के बीच जब सत्ता का विभाजन कर दिया जाता है तब उसे शक्तियों कथक्करण कहते हैं।
  • जब सरकार के तीनों अंग अपनी-अपनी सत्ता का प्रयोग करते हैं तो इसे सत्ता कसतिज विभाजन कहा जाता है।
  • जब सरकार के तीनों अंग एक-दूसरे की सत्ता पर अंकुश रखते हैं तो इसे नियंत्रण एवं संतुलन की व्यवस्था कहते हैं।
  • न्यायपालिका कार्यपालिका औविधायिका दोनों पर अंकुश रखने का अधिकार है।
  • भारत में दो स्तर पर सरकार के गठन की व्यवस्था की गई है-केंद्र सरकार तथा राज्य सरकारें।
  • ग्राम पंचायत, पंचायत समिति, जिला परिषद, नगर निगम, नगर परिषस्थानीय सरकार की संख्याएँ हैं।
  • किसी भी देश में राजनीतिक दल हित समूह, संघ तथा संगठन भी अपने प्रभाव से सत्ता में भागीदारी सुनिश्चितकर लेते हैं।
  • किसी एक दल का बहुमत नहीं आने पर कई दलों को मिलाकर गठबंधनकी सरकार का गठन किया जाता है।
  • विभिन्न पेशाओं और व्यापार से जुड़े लोग अपने-अपने हित समूहों का गठन करते हैं।
  • हित-समूह अमने-अपने हितों की पूर्ति के लिए संघर्षरत रहते हैं और अपने हित में निर्णय लेने के लिए सरकार पर दबाव बनाए रखते हैं।

Bihar Board Class 10 Hindi Solutions गद्य Chapter 5 नागरी लिपि

Bihar Board Class 10 Hindi Book Solutions Godhuli Bhag 2 गद्य खण्ड Chapter 5 नागरी लिपि Text Book Questions and Answers, Summary, Notes.

BSEB Bihar Board Class 10 Hindi Solutions गद्य Chapter 5 नागरी लिपि

Bihar Board Class 10 Hindi नागरी लिपि Text Book Questions and Answers

बोध और अभ्यास

पाठ के साथ

नागरी लिपि प्रश्न उत्तर Bihar Board Class 10 Hindi प्रश्न 1.
देवनागरी लिपि के अक्षरों में स्थिरता कैसे आयी है ?
उत्तर-
करीब दो सदी पहले पहली बार इस लिपि के टाइप बने और इसमें पुस्तकें छपने लगीं, इसलिए इसके अक्षरों में स्थिरता आ गई है।

Nagari Lipi Ka Question Answer Bihar Board Class 10 Hindi प्रश्न 2.
देवनागरी लिपि में कौन-कौन सी भाषाएँ लिखी जाती हैं ?
उत्तर-
देवनागरी लिपि में नेपाल की नेपाली (खसकुरा) व नेवारी भाषाएँ मराठी भाषा की लिपि तथा संस्कृत एवं हिन्दी की लिपि देवनागरी है।

Bihar Board Class 10 Hindi Book Solution प्रश्न 3.
लेखक ने किन भारतीय लिपियों से देवनागरी का संबंध बताया है।
उत्तर-
लेखक ने गुजराती और बंगला लिपि से देवनागरी का संबंध बताया है।

Class 10th Hindi Bihar Board प्रश्न 4.
नंदी नागरी किसे कहते हैं ? किस प्रसंग में लेखक ने उसका उल्लेख किया है ?
उत्तर-
विद्वानों का यह भी मत है कि वाकाटकों और राष्ट्रकूटों के समय के महाराष्ट्र के प्रसिद्ध नंदिनगर (आधुनिक नांदेड़) की लिपि होने के कारण इसका नाम नदिनागरी पड़ा।

दक्षिण भारत में पोथियाँ लिखने के लिए नागरी लिपि का व्यवहार होता था। दरअसल, दक्षिणभारत की यह नागरी लिपि नंदिनागरी कहलाती थी। कोंकण के शिलाहार, मान्यखेट के राष्ट्रकूट, देवगिरि के यादव तथा विजयनगर के शासकों के लेख नंदिनागरी लिपि में हैं। पहले-पहल । विजयनगर के राजाओं के लेखों की लिपि को ही नंदिनागरी नाम दिया गया था।

ब्राह्मी लिपि की वर्णमाला Pdf Download Bihar Board प्रश्न 5.
नागरी लिपि में आरंभिक लेख कहाँ प्राप्त हुए हैं ? उनके विवरण दें।
उत्तर-
नागरी लिपि के आरंभिक लेख हमें दक्षिण भारत से ही मिले हैं। राजराजा व राजेन्द्र जैसे प्रतापी चोल राजाओं के सिक्कों पर नागरी अक्षर देखने को मिलते हैं। दक्षिण भारत में नागरी लिपि के लेख आठवीं सदी से मिलने लग जाते हैं और उत्तर भारत में नौवीं सदी से।

Class 10th Hindi Godhuli Question Answer प्रश्न 6.
ब्राह्मी और सिद्धम लिपि की तुलना में नागरी लिपि की मुख्य पहचान क्या है ?
उत्तर-
मुप्त काल की ब्राह्मी लिपी तथा बाद की सिद्धम लिपि के अक्षरों के सिरों पर छोटी आड़ी लकीरें या छोटे ठोस तिकोन हैं। लेकिन नागरी लिपि की मुख्य पहचान यह है कि इसके अक्षरों के सिरों पर पूरी लकीरें बन जाती हैं और ये शिरोरेखाएँ उतनी ही लंबी रहती हैं जितनी कि अक्षरों की चौड़ाई होती है।

Bihar Board Hindi Book Class 10 Pdf Download प्रश्न 7.
उत्तर भारत के किन शासकों के प्राचीन नागरी लेख प्राप्त होते हैं?
उत्तर-
उत्तर भारत के इस्लामी शासन की नींव डालनेवाली महमूद गजनवी के लाहौर के टकसाल में ढाले गए चाँदी के सिक्कों पर भी हम नागरी लिपि के शब्द देखते हैं। मुहम्मद गोरी, अलाउद्दीन खिलजी, शेरशाह, अकबर आदि शासकों ने भी अपने सिक्कों पर नागरी शब्द खुदवाए थे।

Bihar Board Solution Class 10 Hindi प्रश्न 8.
नागरी को देवनागरी क्यों कहते हैं ? लेखक इस संबंध में क्या बताता है ?
उत्तर-
पादताडितकम्’ नामक एक नाटक से जानकारी मिलती है कि पाटलिपुत्र (पटना) को नगर कहते थे। हम यह भी जानते हैं कि स्थापत्य की उत्तर भारत की एक विशेष शैली को ‘नागर शैली’ कहते हैं। अतः ‘नागर’ या नागरी शब्द उत्तर भारत के किसी बड़े नगर से संबंध रखता है। असंभव नहीं कि यह बड़ा नगर प्राचीन पटना ही हो। चंद्रगुप्त (द्वितीय) “विक्रमादित्य’ का व्यक्तिगत नाम ‘देव’ था, इसलिए इसलिए गुप्तों की राजधानी पटना को ‘देवनगर’ भी कहा जाता होगा। देवनगर की लिपि होने से उत्तर भारत की प्रमुख लिपि को बाद में देवनागरी नाम दिया गया होगा।

Bihar Board 10th Class Hindi Book Pdf प्रश्न 9.
नागरी की उत्पत्ति के संबंध में लेखक का क्या कहना है ? पटना से नागरी का क्या संबंध लेखक ने बताया है ?
उत्तर-
इतना ध्रुवसत्य है कि यह नागरी शब्द किसी नगर अर्थात् किसी बड़े शहर से संबंधित है। ‘पादतादितकम्’ नामक एक नाटक से जानकारी मिलती है कि पाटलिपुत्र अर्थात् पटना को नगर नाम से पुकारते थे। अतः हम यह भी जानते हैं कि स्थापत्य की उत्तर भारत की एक विशेष शैली को नागर शैली कहते हैं। अतः नागर या नागरी शब्द उत्तर भारत के किसी बड़े नगर से संबंध रखता है। विद्वानों के अनुसार उत्तर भारत का यह बड़ा नगर निश्चित रूप से पटना ही होगा। चन्द्रगुप्त द्वितीय विक्रमादित्य का व्यक्तिगत नाम देव था। इसलिए गुप्तों की राजधानी पटना को देवनगर भी कहा जाता था देवनगर की लिपि होने से उत्तर भारत की प्रमुख लिपि को बाद में देवनागरी नाम दिया गया था।

Bihar Board Class 10 Hindi Solutions प्रश्न 10.
नागरी लिपि कब तक सार्वदेशिक लिपि थी?
उत्तर-
ईसा की 8वीं-11वीं सदियों में हम नागरी लिपि को पूरे देश में व्याप्त देखते हैं। उस समय यह एक सार्वदेशिक लिपि थी।

गोधूलि भाग 2 Class 10 Pdf Bihar Board प्रश्न 11.
नागरी लिपि के साथ-साथ किसका जन्म होता है ? इस संबंध में लेखक क्या जानकारी देता है ?
उत्तर-
नागरी लिपि के साथ-साथ अनेक प्रादेशिक भाषाएँ भी जन्म लेती हैं। आठवीं-नौवीं सदी से आरंभिक हिंदी साहित्य मिलने लग जाता है। इसी काल में भारतीय आर्यभाषा परिवार की आधुनिक भाषाएँ, मराठी, बंगला आदि जन्म ले रही थीं।

Bihar Board 10th Hindi प्रश्न 12.
गुर्जर प्रतीहार कौन थे?
उत्तर-
अनेक विद्वानों का मत है कि ये गुर्जर-प्रतीहार बाहर से भारत आए थे। ईसा की आठवीं सदी की पूर्वार्द्ध में अवंती प्रदेश में इन्होंने अपना शासन खड़ा किया और बाद में कन्नौज पर भी अधिकार कर लिया था। मिहिर भोज, महेन्द्रपाल आदि प्रख्यात प्रतीहार शासक हुए। मिहिर भोज (1840-81) ई. की ग्वालियर प्रशस्ति नागरी लिपि (संस्कृत भाषा) में है।

Bihar Board Class 10th Hindi प्रश्न 13.
निबंध के आधार पर काल-क्रम से नागरी लेखों से संबंधित प्रमाण प्रस्तुत करें।
उत्तर-
निबंध के आधार पर कालक्रम से नागरी लेखों से संबंधित प्रमाण इस प्रकार मिलते हैं – ग्यारहवीं सदी में राजेन्द्र जैसे प्रतापी चेर राजाओं के सिक्कों पर नागर अक्षर देखने को मिलते हैं। बारहवीं सदी के केरल के शासकों के सिक्कों पर ‘वीर केरलस्य’ जैसे शब्द नागरी लिपि में अकित हैं। दक्षिण से प्राप्त वरगुण का पलयम ताम्रपत्र भी नागरी लिपि में नौवीं सदी की है। एक हजार ई. के आसपास मालवा नगर में नागर लिपि का इस्तेमाल होता था।

विक्रमादित्य के समय पटना में देवनागरी का प्रयोग मिलता है। ईसा की आठवीं से ग्यारहवीं सदियों में नागरी लिपि पूरे भारत में व्याप्त थी। आठवीं सदी में दोहाकोश की तिब्बत से जो हस्तलिपि मिली है, वह नागरी लिपि में है। पाँच सौ चौअन ई० में राष्ट्रकूट राजा दंतिदुर्ग का दानपत्र नागरी लिपि में प्राप्त हुआ है। 850 ई. में जैन गणितज्ञ महावीराचार्य के गणित सार संग्रह की रचना मिलती है जो नागरी लिपि में है।

भाषा की बात

प्रश्न 1.
निम्नलिखित शब्दों से संज्ञा बनाएँ
उत्तर-
स्थिर = स्थिति
अतिरिक्त = अतिरिक्तता
स्मरणीय = स्मरण
दक्षिणी = दक्षिण
आसान = आसानी
पराक्रमी = पराक्रम
युगीन = युग

प्रश्न 2.
निम्नलिखित पदों के समास विग्रह करें
उत्तर-
तमिल-मलयालम = तमिल और मलयालम द्वन्द्व
रामसीय = राम और सीता द्वन्द्व
विद्यानुराग = विद्या को अनुराग (तत्पुरूष)
शिरोरेखा = शिर पर रेखा (तत्पुरूष)
हस्तलिपि = हस्त की लिपि (तत्पुरूष)
दोहाकोश = दोहा का कोश (तत्पुरूष)
पहले-पहल = पहला पहला (अव्ययीभाव)

प्रश्न 3.
निम्नलिखित शब्दों के पर्यायवाची लिखें –
उत्तर-
मंत = कथन, वचन।
सार्वदेशिक = पूरे देश की, संपूर्ण राष्ट्र।
अनुकरण = अनुगमन, नकल।
व्यवहार = आचार, संबंध।
शासक = राजा, बादशाह।

प्रश्न 4.
निम्नलिखित भिन्नार्थक शब्दों के अर्थ स्पष्ट करें।
उत्तर-
(क) प्रत्न – पुराना
प्रयत्न प्रयास
(ख) लिपि – लिखावट
लिप्ति – ढका हुआ
(ग) नागरी – एक लिपि
नागरिक – जनता
(घ) पट – वस्त्र
पट्ट – तख्ती (पट्टिका)

गद्यांशों पर आधारित अर्थग्रहण-संबंधी प्रश्नोत्तर

1. हिंदी तथा इसकी विविध बोलियाँ देवनागरी लिपि में लिखी जाती हैं हमारे पड़ोसी देश नेपाल की नेपाली (खसकुरा) व नेवारी भाषाएँ भी इसी लिपि में लिखी जाती हैं। मराठी भाषा की लिपि देवनागरी है। मराठी में सिर्फ एक अतिरिक्त अक्षर है। हमने देखा है कि प्राचीन काल में संस्कृत व प्राकृत भाषाओं में यह ध्वनि थी और इसके लिए अनेक अभिलेखों में अक्षर मिलता है।
प्रश्न
(क) पाठ तथा लेखक का नाम लिखिए।
(ख) हिंदी किस लिपि में लिखी जाती है ?
(ग) नेपाल में कौन-सी भाषाएँ देवनागरी में लिखी जाती हैं?
(घ) मराठी भाषा की लिपि क्या है ?
(ङ) प्राचीन काल में किन भाषाओं में देवनागरी की ध्वनि थी?
उत्तर-
(क)पाठ का नाम-नागरा लिापा
लेखक का नाम गुणाकर मुले।
(ख) हिंदी देवनागरी लिपि में लिखी जाती है।
(ग) नेपाल में नेपाली (खुसकुरा) एवं नेपाली भाषाएँ देवनागरी लिपि में लिखी जाती हैं।
(घ) मराठी भाषा की लिपि देवनागरी है।
(ङ) प्राचीन काल में संस्कृत एवं प्राकृत भाषाओं में देवनागरी की ध्वनि थी।

2. ईसा की चौदहवीं-पंद्रहवीं सदी के विजयनगर के शासकों ने अपने लेखों की लिपि को नंदिनागरी कहा है। विजयनगर के राजाओं के लेख कन्नड़-तेलगु और नागरी लिपि में मिलते हैं। जानकारी मिलती है कि विजयनगर के राजाओं के शासनकाल में ही पहले-पहल वेदों को लिपिबद्ध किया गया था। यह वैदिक साहित्य निश्चय ही नागरी लिपि में लिखा गया होगा। विद्वानों का यह भी मत है कि वाकाटकों और राष्ट्रकूटों के समय के महाराष्ट्र के प्रसिद्ध नंदिनगर (आधुनिक नांदेड़) की लिपि होने के कारण इसका नाम नदिनागरी पड़ा।

प्रश्न
(क) पाठ तथा लेखक का नाम लिखिए।
(ख) विजयनगर के शासकों ने अपने लेखों की लिपि को क्या कहा है?
(ग) विजयनगर के लेख किस लिपि में मिलते हैं ?
(घ) किसके शासन काल में पहले-पहल वेदों को लिपिबद्ध किया गया?
(ङ) नागरी लिपि का नंदिनागरी नामू क्यों पड़ा?
उत्तर-
(क) पाठ का नाम नागरी लिपि
लेखक का नाम गुणाकर मुले।
(ख)विजय नगर के शासकों ने अपने लेखों की लिपि को नदिनागरी कहा है।
(ग) विजय नगर के लेख नागरी लिपि में मिलते हैं।
(घ) विजय नगर के राजाओं के शासनकाल में पहले-पहल वेदों को लिपिबद्ध किया गया था।
(ङ) विद्वानों का मत है कि वाकाटकों और राष्ट्रकूटों के समय के महाराष्ट्र के प्रसिद्ध नंदिनगरे (आधुनिक नांदेड) की लिपि होने के कारण इसका नाम नंदिनागरी पड़ा।

3. अनेक विद्वानों का मत है कि दक्षिण भात में नागरी लिपि का प्राचीनतम लेख राष्ट्रकूट राजा तिदुर्ग का सामागंड दानपत्र (754 ई०) है। दंतिदुर्ग ने ही राष्ट्रकूट शासन की नींव डाली थी। ये राष्ट्रकूट शासक मूलतः कर्णाटक के रहनेवाले थे और इनकी मातृभाषा कन्नड़ थी; परंतु ये खानदेश-विदर्भ में बस गए थे। दंतिदुर्ग के बाद उसका चाचा कृष्ण (प्रथम) राष्ट्रकूटों की गद्दी पर बैठा। इसी कृष्ण के शासनकाल में एलोरा (प्राचीन एलापुर, वेरूल) में अनुपम कैलाश मंदिर पहाड़ को काटकर बनाया गया था।

कृष्ण के कुछ लेख भी मिले हैं। नौवीं सदी में अमोघवर्ष एक प्रख्यात राष्ट्रकूट राजा हुआ। इसी अमोघवर्ष ने राष्ट्रकूट की नई राजधानी मान्यखेट (मालखेड) की नींव डाली। अमोघवर्ष के शासनकाल में ही जैन गणितज्ञ महावीराचार्य (850 ई.) ने ‘गणितसार-संग्रह’ की रचना की थी।

प्रश्न
(क) पाठ तथा लेखक का नाम लिखिए।
(ख) अनेक विद्वान नागरी लिपि का प्राचीनतम लेख किसे मानते हैं और वह किस काल का है ?
(ग) राष्ट्रकूट शासन की नींव किसने डाली थी?
(घ) राष्ट्रकूट शासक मूलत: कहाँ के रहनेवाले थे ?
(ङ) राष्ट्रकूट शासकों की मातृभाषा क्या थी ?
(च) दंतिदुर्ग के बाद राष्ट्रकूटों की गद्दी पर कौन बैठा?
(छ) किसके शासनकाल में एलोरा में कैलाश मन्दिर बनाया गया ?
(ज) जैन गणितज्ञ महावीराचार्य ने किसके शासन काल में और कौन-से ग्रंथ की रचना की?
उत्तर-
(क) पाठ का नाम नागरी लिपि
लेखक का नाम गुणाकर मुले।
(ख) अनेक विद्वान का मत है कि दक्षिण भारत में नागरी लिपि का प्राचीनतम लेख राष्ट्रकूट राजा दंतिदुर्ग का सामागंड दानपत्र 745 ई. है।
(ग) राष्ट्रकूट शासन की नींव दंतिदुर्ग ने डाली थी।
(घ) राष्ट्रकूट शासक मूलतः कर्णाटक के रहनेवाले थे।
(ङ) राष्ट्रकूट शासकों की मातृभाषा कन्नड़ थी।
(च) दंतिदुर्ग के बाद राष्ट्रकूटों की-गद्दी पर उसका चाचा कृष्ण (प्रथम) बैठा।
(छ) कृष्ण (प्रथम) के शासनकाल में एलोरा में अनुपम कैलाश मंदिर पहाड़ को काटकर बनाया गया था।
(ज) जैन गणितज्ञ महावीराचार्य ने अमोघवर्ष के शासन काल में ‘गणितसार-संग्रह’ नामक ग्रंथ की रचना की?

4. महमूद गजनवी के बाद के मुहम्मद गोरी, अलाउद्दीन खिलजी, शेरशाह आदि शासकों ने भी अपने सिक्कों पर नागरी शब्द खुदवाए हैं। बादशाह अकबर ने ऐसा सिक्का चलाया था जिस पर राम-सीता की आकृति है और नागरी लिपि में ‘रामसीय’ शब्द अंकित है।

उत्तर भारत में मेवाड़ के गुहिल, सांभर-अजमेर के चौहान, कन्नौज के गाहड़वाल, काठियाबाड़-गुजरात के सोलंकी, आबू के परमार, जेजाकभुक्ति (बुंदेलखण्ड) के चंदेल तथा त्रिपुरा के कलचुरि शासकों के लेख नागरी लिपि में ही हैं। उत्तर भारत की इस नागरी लिपि को हम देवनागरी के नाम से जानते हैं।

प्रश्न
(क) महमूद गजनवी के बाद किन-किन शासकों ने अपने सिक्कों पर नागरी शब्द खुदवाएं थे ?
(ख) सम्राट अकबर ने अपने सिक्के पर कौन-सी आकृति अंकित की थी और उस पर नागरी लिपि में कौन-सा शब्द अंकित है
(ग) उत्तर भारत में किन-किन शासकों के लेख नागरी लिपि में हैं ?
(घ) उत्तर भारत की नागरी लिपि को हम किस लिपि के नाम से जानते हैं?
उत्तर-
(क) महमूद गजनवी के बाद मुहम्मद गोरी, अलाउद्दीन खिलजी, शेरशाह आदि शासकों ने अपने सिक्कों पर नागरी शब्द अंकित करवाये थे।
(ख) सम्राट अकबर ने अपने सिक्कों पर राम-सीता की आकृति अंकित की थी और उस पर नागरी लिपि में ‘रामसीय’ शब्द अंकित है।
(ग) उत्तर भारत में मेवाड़ के गुहिल, सांभर-अजमेर के चौहान कन्नौज के गाहड़वाल, काठियावाड़-गुजरात के सोलंकी, आबू के परमार, बुंदेलखंड के चंदेल तथा त्रिपुरा के कलचुरि शासकों के लेख नागरी लिपि में है।
(घ) उत्तर भारत की नागरी लिपि को हम देवनागरी लिपि के नाम से जानते हैं।

5. गुप्तकाल की ब्राह्मी लिपि तथा बाद की सिद्धम लिपि के अक्षरों के सिरों पर छोटी आड़ी लकीरें या ठोस तिकोन हैं। लेकिन नागरी लिपि की मुख्य पहचान यह है कि इसके अक्षरों के शिरों पर पूरी लकीरें बन जाती हैं और ये शिरोरेखाएं उतनी ही लम्बी रहती हैं जितनी कि अक्षरों की – चौड़ाई होती हैं। हाँ, कुछ लेखों के अक्षरों के शिरों पर अब भी कहीं-कहीं तिकोन दिखाई देते हैं। दूसरी स्पष्ट विशेषता यह है कि प्राचीन नागरी के अक्षर आधुनिक नागरी से मिलते-जुलते हैं और इन्हें आसानी से थोड़े-से अभ्यास से पढ़ा जा सकता है।

प्रश्न
(क) पाठ और लेखक के नाम लिखें।
(ख) ब्राह्मी लिपि और सिद्धम लिपि की शिरसंस्थाएँ कै
(ग) नागरी लिपि की मुख्य पहचान क्या है ?
(घ) प्राचीन नागरी लिपि और आधुनिक नागरी लिपि में क्या साम्य है?
उत्तर-
(क) पाठ- नागरी लिपिालेखक- गुणाकर मुले।
(ख) गुप्तकाल की ब्राह्मी लिपि तथा बाद की सिद्धम लिपि के अक्षरों के सिरों पर छोटी, आडी लकीरें या ठोस तिकोन हैं। : (ग) नागरी लिपि की मुख्य पहचान यह है कि इसके अक्षरों के सिरों पर पूरी लकीरें होती हैं और ये उतनी ही रहती हैं जितनी कि अक्षरों की चौड़ाई।
(घ) प्राचीन नागरी लिपि और आधुनिक नागरी लिपि के अक्षर बहुत-कुछ मिलते हैं जिन्हें थोड़े-से अभ्यास से पढ़ा जा सकता है।

6. इतना निश्चित है कि यह नागरी शब्द किसी नगर अर्थात् बड़े शहर से संबंधित है। ‘पादताडितकम्’ नामक नाटक से जानकारी मिलती है कि पाटलिपुत्र (पटना) को नगर कहते थे। हम यह भी जानते हैं कि स्थापत्य की उत्तर भारत की एक विशेष शैली को ‘नागर शैली’ कहते हैं। अतः ‘नागर’ या ‘नागरी’ शब्द उत्तर भारत के किसी बड़े नगर से संबंध रखता है।

असंभव नहीं कि यह बड़ा नगर प्राचीन पटना ही हो। चन्द्रगुप्त (द्वितीय) “विक्रमादित्य’, का व्यक्तिगत नाम ‘देव’ था, इसलिए गुप्तों की राजधानी पटना को ‘देवनगर’ भी कह जाता होगा। देवनागरी’ की लिपि होने से उत्तर भारत की प्रमुख लिपि को बाद में देवनागरी नाम दिया गया होगा। लेकिन यह सिर्फ एक मत हुआ। हम सप्रमाण नहीं बता सकते कि यह देवनागरी नाम कैसे अस्तित्व में आया।

प्रश्न
(क) पाठ और लेख का नामोल्लेख करें।
(ख) नागरी शब्द किससे संबंधित है ?
(ग) ‘देवनागरी’ नाम के संबंध में लेखक का क्या अनुमान है ?
उत्तर-
(क) पाठ- नागरी लिपिालेखक- गुणाकर मुले।
(ख) नागरी शब्द किसी नगर से संबंधित है।
(ग) लेखक का अनुमान है कि यह ‘नगर’ पटना ही होगा। उसके अनुमान का आधार यह है कि चन्द्रगुप्त (द्वितीय) “विक्रमादित्य’ का व्यक्तिगत नाम ‘देव’ था। इसलिए गुप्तों की राजधानी को ‘देवनगर’ कहा जाता होगा। ‘देवनगर’ की लिपि होने के कारण इसका नाम ‘देवनागरी’ पड़ा। किन्तु लेखक का यह सुनिश्चित मत नहीं है।

7. नागरी लिपि के साथ-साथ अनेक प्रादेशिक भाषाएँ भी जन्म लेती हैं। आठवीं-नौवीं सदी से आरंभिक हिन्दी का साहित्य मिलने लग जाता है। हिन्दी के आदिकवि सरहपाद (आठवीं) के ‘दोहाकोश’ की तिब्बत से जो हस्तलिपि मिली है वह दसवीं-ग्यारहवीं सदी की लिपि में लिखी गई है। नेपाल से और भारत के जैन-भंडारों से भी इस काल की बहुत सारी हस्तलिपियाँ मिली हैं। इसी काल में भारतीय आर्यभाषा परिवार की आधुनिक भाषाएँ-मराठी, बंगला आदि जन्म ले रही थीं। इस समय से इन भाषाओं के लेख मिलने लगते हैं।

प्रश्न
(क) पाठ और लेखक के नाम लिखें।
(ख) हिन्दी का आरम्भिक साहित्य कब से मिलता है?
(ग) हिन्दी के आदिकवि कौन थे और उनकी कौन-सी पुस्तक किस लिपि में उपलब्ध है?
(घ) आधुनिक भारतीय भाषाओं में किनका जन्म इस काल में हुआ?
उत्तर-
(क) पाठ-नागरी लिपिा लेखक-गुणाकर मुले।
(ख) हिन्दी का आरम्भिक साहित्य आठवीं-नौवीं सदी से मिलता है।
(ग) हिन्दी के आदिकवि आठवीं सदी के सरहपाद थे। उनकी पुस्तक ‘दोहाकोश’ है जो दसवीं-ग्यारहवीं सदी की लिपि में लिखी गई है।
(घ) आधुनिक भारतीय भाषाओं में मराठी, बंगला आदि का जन्म भी आठवीं-नौवीं सदी में होने लगा था।

8. ग्यारहवीं सदी से नागरी लिपि में प्राचीन मराठी भाषा के लेख मिलने लग जाते हैं। अक्ष (कुलाबां जिला) से शिलाहार शासक केशिदेव (प्रथम) का एक शिलालेख (1012 ई०) मिला है, जो संस्कृत, मराठी भाषाओं में है और इसकी लिपि नागरी है। परन्तु दिवे आगर (रत्नागिरि जिला) ताम्रपट पूर्णतः मराठी में है। इसे मराठी का आद्यलेख माना जाता है। नागरी लिपि में लिखा गया यह ताम्रपट 1060 ई. का है।

प्रश्न
(क) पाठ और लेखक के नाम लिखें।
(ख) नागरी लिपि के लेख कबसे मिलने लगते हैं?
(ग) गद्यांश का सारांश प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर-
(क) पाठ-नागरी लिपि। लेखक-गुणाकर मुले।
(ख) नागरी लिपि के लेख ग्यारहवीं सदी से मिलने लगते हैं।
(ग) ग्यारहवीं सदी से नागरी लिपि में मराठी भाषा के लेख मिलने लगते हैं। शिलाहार शासक केशिदेव (प्रथम) का एक शिलालेख 1012 ई का मिला है जो है तो संस्कृत मराठी में लेकिन इसकी लिपि नागरी है। दिवे-आगर में प्राप्त ताम्रपट पूर्णतः मराठी में है। इसे मराठा का आधलेख माना जाता है। यह ताम्रपट 1060 ई. का है।

9. उत्तर भारत में पहले-पहल गुर्जर-प्रतीहार राजाओं के लेखों में नागरी लिपि देखने को मिलती है। अनेक विद्वानों का मत है कि ये गुर्जर-प्रतीहार बाहर से भारत आए थे। ईसा की आठवीं सदी के पूर्वार्द्ध में अवंती प्रदेश में इन्होंने अपना शासन खड़ा किया और बाद में कन्नौज पर भी अधिकार कर लिया था। मिहिर भोज, महेन्द्रपाल आदि प्रख्यात प्रतीहार हुए। मिहिर भोज (840-81 ई.) की ग्वालियर प्रशस्ति नागरी लिपि (संस्कृत भाषा) में है।

प्रश्न-
(क) पाठ और लेखक के नाम लिखें।
(ख) उत्तर भारत में सर्वप्रथम नागरी के लेख किनके शासन-काल में मिलते हैं ?
(ग) किस गुर्जर-प्रतीहार की प्रशस्ति नागरी लिपि में है ?
उत्तर-
(क) पाठ-नागरी लिपि। लेखक-गुणाकर मुले।
(ख) उत्तर भारत में पहले-पहले गुर्जर-प्रतीहार राजाओं के लेखों में नागरी लिपि देखने को मिलती है। ईसा की आठवीं सदी के पूर्वार्द्ध में अवंती में और तत्पश्चात् कन्नौज पर भी अधिकार कर लिया था।
(ग) गुर्जर-प्रतीहार राजा मिहिर भोज (840-81 ई०) ग्वालियर प्रशस्ति नागरी लिपि में है।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

I. सही विकल्प चुनें –

प्रश्न 1.
गुणाकर मूले किस निबंध के रचयिता हैं ?
(क) नाखून क्यों बढ़ते हैं
(ख) नागरी लिपि
(ग) परंपरा का मूल्यांकन
(घ). आविन्यों
उत्तर-
(ख) नागरी लिपि

प्रश्न 2.
देवनागरी लिपि में मुद्रण के टाइप कब बने ?
(क) दो सदी पहले
(ख) दो दशक पहले
(ग) बीसवीं सदी में
(घ) 11वीं सदी में
उत्तर-
(क) दो सदी पहले

प्रश्न 3.
नागरी लिपि कब एक सार्वदेशिक लिपि थी?
(क) पन्द्रहवीं सदी में
(ख) ईसा पूर्व काल में
(ग) 8वीं-11वीं सदी में
(घ) कभी नहीं
उत्तर-
(ग) 8वीं-11वीं सदी में

प्रश्न 4.
पहले दक्षिण भारत की नागरी लिपि क्या कहलाती थी?
(क) नंदिनागरी
(ख) कोंकणी
(ग) ब्राह्मी
(घ) सिद्धम
उत्तर-
(घ) सिद्धम

प्रश्न 5.
हिन्दी के आदिकवि का नाम क्या था?
(क) विद्यापति
(ख) सरहपाद
(ग) कबीर
(घ) दैतिदुर्ग
उत्तर-
(ख) सरहपाद

रिक्त स्थानों की पूर्ति

प्रश्न 1.
हिन्दी तथा इसकी विविध बोलियाँ………..लिपि में लिखी जाती हैं।
उत्तर-
देवनागरी

प्रश्न 2.
अकबर के एक सिक्के में देवनागरी में……..अंकित है।
उत्तर-
रामसीय

प्रश्न 3.
चन्द्रगुप्त द्वितीय ‘विक्रमादित्य’ का व्यक्तिगत नाम…………..था।
उत्तर-
देव

प्रश्न 4.
विजयनगर के शासकों ने अपने लेखों की लिपि को…………….कहा है।
उत्तर-नंदिनागरी

प्रश्न 5.
नागरी के आरंभिक लेख विंध्य पर्वत के…………………से ही मिलते हैं।
उत्तर-
दक्कन प्रदेश

प्रश्न 6.
बेलग्रोल में………….का भव्य पुतला खड़ा है।
उत्तर-
गोमटेश्वर

प्रश्न 7.
परमार शासक भोज अपने…………………..के लिए प्रसिद्ध हैं।
उत्तर-
विद्यानुसग

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
भारत में पोधियाँ कुछ समय पहले तक किस लिपि में लिखी जाती थीं?
उत्तर-
दक्षिण भारत में कुछ समय पहले तक पोथियाँ नागरी लिपि में लिखी जाती थीं।

प्रश्न 2.
पुरन काल की लिपि क्या थी?
उत्तर-
गुप्त काल की लिपि ब्राह्मी लिपि थी।

प्रश्न 3.
बादशाह अकबर के सिक्कों पर कौन सी आकृति तथा कौन सा शब्द अंकित था ?
उत्तर-
बादशाह अकबर के सिक्कों पर “राम-सीता” की आकृति और नागरी लिपि में रामसीय शब्द अंकित था।

प्रश्न 4.
राष्ट्रकूट शासक मूलतः कहाँ के रहने वाले थे तथा इनकी मातृभाषा क्या थी?
उत्तर-
राष्ट्रकूट शासक मूलतः कर्नाटक के रहनेवाले थे तथा इनकी मातृभाषा कन्नड़ थी।

प्रश्न 5.
नागरी लिपि की सबसे बड़ी विशेषता क्या है ?
उत्तर-
नागरी लिपि की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि जिस रूप में लिखी जाती है उसी रूप में बोली भी जाती है।

प्रश्न 6.
किन-किन शासकों के लेख नंदिनागरी लिपि में हैं?
उत्तर-
कोंकण के शिलाहार, मान्यखेट के राष्ट्रकूट, देवगिरि के यादव तथा विजयनगर के शासकों के लेख देवनागरी लिपि में हैं।

प्रश्न 7.
उत्तर भारत की नागरी लिपि को हम किस लिपि के नाम से जानते हैं?
उत्तर-
उत्तर भारत की नागरी लिपि को हम देवनागरी लिपि के नाम से जानते हैं।

प्रश्न 8.
महावीराचार्य कौन थे?
उत्तर-
महावीराचार्य अन्निछवर्ष के जमाने के गणितज्ञ थे जिन्होंने ‘गणितसार-संग्रह’ की रचना की।

प्रश्न 9.
देवनागरी लिपि के अक्षरों में स्थिरता कैसे आयी है ?
उत्तर-
करीब दो सदी पहली बार देवनागरी लिपि के टाइप बने और इसमें पुस्तकें छपने लगीं। इस प्रकार ही देवनागरी लिपि के अक्षरों में स्थिरता आयी है।

प्रश्न 10.
देवनागरी लिपि में कौन-कौन-सी भाषाएं लिखी जाती हैं ?
उत्तर-
देवनागरी लिपि में मुख्यतः नेपाली, मराठी, संस्कृत, प्राकृत, हिंदी भाषाएं लिखी जाती हैं।

प्रश्न 11.
लेखक ने किन भारतीय लिपियों से देवनागरी का संबंध बताया है?
उत्तर-
लेखक ने गुजराती, बंगला और ब्राह्मी लिपियों से देवनागरी का संबंध बताया है।

प्रश्न 12.
नागरी लिपि के आरंभिक लेख कहाँ प्राप्त हुए हैं ? उनके विवरण दें।
उत्तर-
विद्वानों के अनुसार नागरी लिपि के आरंभिक लेख विंध्य पर्वत के नीचे के दक्कन प्रदेश से प्राप्त हुए हैं।

प्रश्न 13.
उत्तर भारत में किन शासकों के प्राचीन नागरी लेख प्राप्त होते हैं ?
उत्तर-
विद्वानों का विचार है कि उत्तर भारत में मिहिर भोज, महेन्द्रपाल आदि गुर्जर प्रतिहार राजाओं के अभिलेख में पहले-पहल नागरी लिपि के मेख प्राप्त होते हैं।

प्रश्न 14.
नागरी लिपि कब एक सार्वदेशिक लिपि थी?
उत्तर-
ईसा की आठवीं-ग्यारहवीं सदियों में नागरी लिपि पूरे देश में व्याप्त थी। अतः उस समय यह एक सार्वदेशिक, लिपि थी।

नागरी लिपि लेखक परिचय

गुणाकर मुलेका जन्म 1935 ई० में महाराष्ट्र के अमरावती जिले के एक गाँव में हुआ। उनकी प्रारंभिक शिक्षा-दीक्षा ग्रामीण परिवेश में हुई । शिक्षा की भाषा मराठी थी। उन्होंने मिडिल स्तर तक मराठी पढ़ाई भी । फिर वे वर्धा चले गये और वहाँ उन्होंने दो वर्षों तक नौकरी की, साथ ही अंग्रेजी व हिंदी का अध्ययन किया । फिर इलाहाबाद आकर उन्होंने गणित विषय में मैट्रिक से लेकर एम० ए० तक की पढ़ाई की । सन् 2009 में मुले जी का निधन हो गया ।

गुणाकर मुले के अध्ययन एवं कार्य का क्षेत्र बड़ा ही व्यापक है । उन्होंने गणित, खगोल विज्ञान, अंतरिक्ष विज्ञान, विज्ञान का इतिहास, पुरालिपिशास्त्र और प्राचीन भारत का इतिहास व संस्कृति जैसे विषयों पर खूब लिखा है। पिछले पच्चीस वर्षों में मुख्यतः इन्हीं विषयों से संबंधि तं उनके 2500 से अधिक लेखों तथा तीस पुस्तकों का प्रकाशन हो चुका है। उनकी प्रमुख कृतियों के नाम हैं – ‘अक्षरों की कहानी’, ‘भारत : इतिहास और संस्कृति’, ‘प्राचीन भारत के महान वैज्ञानिक’, ‘आधुनिक भारत के महान वैज्ञानिक’, ‘मैंडलीफ’, ‘महान वैज्ञानिक’, ‘सौर मंडल’, ‘सूर्य’; ‘नक्षत्र-लोक’, ‘भारतीय लिपियों की कहानी’, ‘अंतरिक्ष-यात्रा’, ‘ब्रह्मांड परिचय’, ‘भारतीय विज्ञान की कहानी आदि । गुणाकर मुले की एक पुस्तक है ‘अक्षर कथा’ । इस पुस्तक में उन्होंने संसार की प्रायः सभी प्रमुख पुरालिपियों की विस्तृत जानकारी दी है।

प्रस्तुत निबंध गुणाकर मुले की पुस्तक भारतीय लिपियों की कहानी’ से लिया गया है । इसमें हिंदी की अपनी लिपि नागरी या देवनामरी के ऐतिहासिक विकास की रूपरेखा स्पष्ट की गयी है। यहाँ हमारी लिपि की प्राचीनता, व्यापकता और शाखा विस्तार का प्रवाहपूर्ण शैली में प्रामाणिक आख्यान प्रस्तुत किया गया है। तकनीकी बारीकियों और विवरणों से बचते हुए लेखक ने निबंध को बोझिल नहीं होने दिया है तथा सादगी और सहजता के साथ जरूरी ऐतिहासिक जानकारियाँ देते हुए लिपि के बारे में हमारे भीतर आगे की जिज्ञासाएँ जगाने की कोशिश की है।

नागरी लिपि Summary in Hindi

पाठ का सारांश

जिस लिपि में यह लेख छपा है, उसे नागरी या देवनागरी लिपि कहते हैं। करीब दो सदी पहले पहली बार इस लिपि के टाइप बने और इसमें पुस्तकें छपने लगीं इसलिए इसके अक्षरों में स्थिरता आ गई है।

हिन्दी तथा इसकी विविध बोलियाँ देवनागरी लिपि में लिखी जाती हैं। हमारे, पड़ोसी देश नेपाल की नेपाली व नेवारी भाषाएँ भी इसी लिपि में लिखी जाती हैं। मराठी भाषा की लिपि देवनागरी है। देवनागरी लिपि के बारे में एक और महत्त्वपूर्ण तथ्य यह है कि संसार में जहाँ भी संस्कृत-प्राकृत की पुस्तकें प्रकाशित होती हैं, वे प्रायः देवनागरी लिपि में ही छपती हैं।

गुजराती लिपि देवनागरी से अधिक भिन्न नहीं है। बंगला लिपि प्राचीन नागरी लिपि की पुत्री नहीं, तो बहन अवश्य है। हाँ, दक्षिण भारत की लिपियाँ वर्तमान नागरी से काफी भिन्न दिखाई देती हैं। लेकिन यह तथ्य हमें सदैव स्मरण रखना चाहिए कि आज कुछ भिन्न-सी दिखाई देनेवाली – दक्षिण भारत की ये लिपियाँ (तमिल-मलयालम और तेलुगु-कन्नड़) भी नागरी की तरह प्राचीन ब्राह्मी से ही विकसित हुई हैं।

दक्षिण भारत में पोथियाँ लिखने के लिए नागरी लिपि का व्यवहार होता था। दक्षिण भारत की यह नागरी लिपि नंदिनागरी कहलाती थी। कोंकण के शिलाहार, मान्यखेट के राष्ट्रकूट, देवगिरि : के यादव तथा विजयनगर के शासकों के लेख नदिनागरी लिपि में हैं।

बारहवीं सदी में केरल के शासकों ने सिक्कों पर ‘वीरकेरलस्य जैसे शब्द नागरी लिपि में अंकित हैं। श्रीलंका के पराक्रमबाहु, विजयबाहु (बारहवीं सदी) आदि शासकों के सिक्कों पर भी नागरी अक्षर देखने को मिलते हैं।

उत्तर भारत के महमूद गजनवी, मुहम्मद गोरी, अलाउद्दीन खिलजी, शेरशाह, अकबर आदि शासकों ने सिक्कों पर नागरी शब्द खुदवाए थे। उत्तर भारत में मेवाड़ के गुहिल, सांभर-अजमेर के चौहान, कन्नौज के गाहड़वाल, काठियावाड़-गुजरात के सोलंकी, आबू के परमार, जेजाकभुक्ति (बुंदेलखण्ड) के चंदेल तथा त्रिपुरा के कलचूरि शासकों के लेख नागरी लिपि में ही हैं। उत्तर भारत की इस नागरी लिपि को हम देवनागरी के नाम से जानते हैं।

नागरी नाम की उत्पत्ति तथा इसके अर्थ के बारे में विद्वानों में बड़ा मतभेद है। एक मत के अनुसार गुजरात के नागर ब्राह्मणों ने पहले-पहल इस लिपि का इस्तेमाल किया, इसलिए इसका नाम नागरी पड़ा।

‘पादताडितंकम्’ नामक एक नाटक से जानकारी मिलती है कि पाटलिपुत्र (पटना) को नगर कहते थे। हम यह भी जानते हैं कि स्थापत्य की उत्तर भारत की एक विशेष शैली को ‘नागर शैली’ कहते हैं। अतः ‘नागर या नागरी’ शब्द उत्तर भारत के किसी बड़े नगर से संबंध रखता है। असंभव नहीं कि यह बड़ा नगर प्राचीन पटना हो। चंद्रगुप्त (द्वितीय) “विक्रमादित्य’ का व्यक्तिगत नाम ‘देव’ था। इसलिए गुप्तों की राजधानी पटना को ‘देवनगर’ भी कहा जाता होगा। देवनगर की लिपि होने से उत्तर भारत की प्रमुख लिपि को बाद में देवनागरी नाम दिया गया होगा। लेकिन यह सिर्फ एक मत हुआ।

कर्णाटक प्रदेश का श्रवणबेलगोल स्थान जैनों का एक प्रसिद्ध तीर्थस्थल है। इस स्थान से विविध भाषाओं और लिपियों के अनेक लेख मिले हैं। एक अन्य नागरी लेख में लिखा है चावुण्डराजे करविय ले। ये लेख दक्षिणी शैली की नागरी लिपि में हैं।

देवगिरि के यादव राजाओं के नागरी लिपि में बहुत सारे लेख मिलते हैं। कल्याण के पश्चिमी चालुक्य नरेशों के लेख भी नागरी लिपि में हैं। उड़ीसा (कलिंग प्रदेश) में ब्राह्मी को एक विशेष शैली, कलिंग लिपि का आस्तित्व था, परंतु गंगवंश के कुछ शासकों के लेख नागरी लिपि में भी मिलते हैं।

उत्तर भारत में पहले-पहल गुर्जर-प्रतीहार राजाओं के लेखों में नागरी लिपि देखने को मिलती है। मिहिर भोज, महेन्द्रपाल आदि प्रख्यात प्रतीहार शासक हुए। मिहिर भोज 1840-81 ई की ग्वालियर प्रशस्ति नागरी लिपि (संस्कृत भाषा) में है।

शब्दार्थ

लिपि : ध्वनियों के लिखित चिह्न
नागरी : नगर की, शहर की
अनुकरण : नकल
ब्राह्मी : एक प्राचीन भारतीय लिपि जिससे नागरी आदि लिपियों का विकास हुआ
पाथियाँ : पुस्तकें, ग्रंथ
टकसाल : जहाँ सिक्के ढलते हैं
रामसीय : राम-सीता
अस्तित्व : पहचान, सत्ता
हस्तलिपि : हाथ की लिखावट
आद्यलेख : अत्यंत प्राचीन प्रारंभिक लेख
विद्यानुराग : विद्या से प्रेम

Bihar Board Class 10 Hindi Solutions पद्य Chapter 3 अति सूधो सनेह को मारग है

Bihar Board Class 10 Hindi Book Solutions Godhuli Bhag 2 पद्य खण्ड Chapter 3 अति सूधो सनेह को मारग है Text Book Questions and Answers, Summary, Notes.

BSEB Bihar Board Class 10 Hindi Solutions पद्य Chapter 3 अति सूधो सनेह को मारग है

Bihar Board Class 10 Hindi अति सूधो सनेह को मारग है Text Book Questions and Answers

कविता के साथ

अति सूधो सनेह को मारग है व्याख्या Bihar Board प्रश्न 1.
कवि प्रेममार्ग को अति सूधों क्यों कहता है ? इस मार्ग की विशेषता क्या है ?
उत्तर-
क्रवि प्रेम की भावना को अमृत के समान पवित्र एवं मधुर बताए हैं। ये कहते हैं कि प्रेम मार्ग पर चलना सरल है। इस पर चलने के लिए बहुत अधिक छल-कपट की आवश्यकता नहीं है। प्रेम पथ पर अग्रसर होने के लिए अत्यधिक सोच-विचार नहीं करना पड़ता और न ही किसी बुद्धि बल की आवश्यकता होती है। इसमें भक्त की भावना प्रधान होती है। प्रेम की भावना से आसानी से ईश्वर को प्राप्त किया जा सकता है। प्रेम में सर्वस्व देने की बात होती है लेने की अपेक्षा लेश मात्र भी नहीं होता। यह मार्ग टेढ़ापन से मुक्त है। प्रेम में प्रेमी बेझिझक निःसंकोच भाव से सरलता से; सहजता से प्रेम करने वाले से एकाकार कर लेता है। इसमें दो मिलकर एक हो जाते हैं। दो भिन्न अस्तित्व नहीं बल्कि एक पहचान स्थापित हो जाती है।

अति सूधो सनेह को मारग Bihar Board प्रश्न 2.
‘मन लेह पै देह छटाँक नहीं’ से कवि का क्या अभिप्राय है?
उत्तर-
मन’ माप-तौल की दृष्टि से अधिक वजन का सूचक जबकि ‘छटाँक’ बहुत ही अल्पता का सूचक है। कवि कहते हैं कि प्रेमी में देने की भावना होती है लेने की नहीं। प्रेम में प्रेमी अपने इष्ट को सर्वस्व न्योछावर करके अपने को धन्य मानते हैं। इसमें संपूर्ण समर्पण की भावना उजागर किया गया है। प्रेम में बदले में लेने की आशा बिल्कुल नहीं होती।

मीर मुंशी ने किस कवि का वध किया था Bihar Board प्रश्न 3.
द्वितीय छंद किसे संबोधित हैं और क्यों?
उत्तर-
द्वितीय छंद बादल को संबोधित है। इसमें मेघ की अन्योक्ति के माध्यम से विरह-वेदना की अभिव्यक्ति है। मेघं का वर्णन इसलिए किया गया है कि मेघ विरह-वेदना में अश्रुधारा प्रवाहित करने का जीवंत उदाहरण है। प्रेमी अपनी प्रेमाश्रुओं की अविरल धारा के माध्यम से प्रेम प्रकट करता है। इसमें निश्छलता एवं स्वार्थहीनता होता है। बादल भी उदारतावश दूसरे के परोपकार के लिए अमृत रूपी जल वर्षा करता है। प्रेमी के हृदय रूपी सागर में प्रेम रूपी अथाह जल होता है जिसे इष्ट के निकट पहुँचाने की आवश्यकता है। बादल को कहा जा रहा है कि तुम परोपकारी हो। जिस प्रकार सागर के जल को अपने माध्यम से जीवनदायनी जल के रूप में वर्षा करते हो उसी प्रकार मेरे प्रेमाश्रुओं को भी मेरी इष्ट के लिए, उसके जीवन के लिए प्रेम सुधा रस के रूप में बरसाओ। विरह-वेदना से भरे अपने हृदय की पीड़ा को मेघ के माध्यम से अत्यंत कलात्मक । रूप में अभिव्यक्त किया गया है।

अति सुधु स्नेह को मारग Bihar Board प्रश्न 4.
परहित के लिए ही देह कौन धारण करता है ? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
परहित के लिए ही देह, बादल धारण करता है। बादल जल की वर्षा करके सभी प्राणियों को जीवन देता है। प्राणियों में सुख-चैन स्थापित करता है। उसकी वर्षा उसके विरह के आँसू के प्रतीक स्वरूप हैं। उसके विरह के आँसू, अमृत की वर्षा कर जीवनदाता हो जाता है। बादल शरीर धारण करके सागर के जल को अमृत बनाकर दूसरे के लिए एक-एक बूंद समर्पित कर देता है। अपने लिए कुछ भी नहीं रखता। वह सर्वस्व न्योछावर कर देता है। बदले में कुछ । भी नहीं लेता है। निःस्वार्थ भाव से वर्षा करता है। उसका देह केवल परोपकार के लिए निर्मित हुआ है।

अति सूधो सनेह को मारग है का अर्थ Bihar Board प्रश्न 5.
कवि कहाँ अपने आसुओं को पहुंचाना चाहता है और क्यों ?
उत्तर-
कवि अपने प्रेयसी सुजान के लिए विरह-वेदना को प्रकट करते हुए बादल से अपने प्रेमाश्रुओं को पहुंचाने के लिए कहता है। वह अपने आँसुओं को सुजान के आँगन में पहुंचाना चाहता  है। क्योंकि वह उसकी याद में व्यथित है और अपनी व्यथा की आँसुओं से प्रेयसी को भिगो देना चाहता है। वह उसके निकट आँसुओं को पहुंचाकर अपने प्रेम की आस्था को शाश्वत रखना चाहता है।

अति सूधो सनेह को मारग है की व्याख्या Bihar Board प्रश्न 6.
व्याख्या करें:
(क) यहाँ एक ते दूसरौ ऑक नहीं
(ख) कछु मेरियो पीर हिएं परसौ
उत्तर-
(क) प्रस्तुत पंक्ति हिन्दी साहित्य की पाठ्य पुस्तक के कवि घनानंद द्वारा रचित ‘अति सधो सनेह को मारग है” पाठ से उद्धृत है। इसके माध्यम से कवि प्रेमी और प्रेयसी का एकाकार करते हुए कहते हैं कि प्रेम में दो की पहचान अलग-अलग नहीं रहती, बल्कि दोनों मिलकर एक रूप में स्थित हो जाते हैं। प्रेमी निश्चल भाव से सर्वस्व समर्पण की भावना रखता है और तुलनात्मक अपेक्षा नहीं करता है। मात्र देता है, बदले में कुछ लेने की आशा नहीं करता है।
प्रस्तुत पंक्ति में कवि घनानंद अपनी प्रेमिका सुजान को संबोधित करते हैं कि हे सुजान सुनो! – यहाँ अर्थात् मेरे प्रेम में तुम्हारे सिवा कोई दूसरा चिह्न नहीं है। मेरे हृदय में मात्र तुम्हारा ही चित्र अंकित है।

(ख) प्रस्तुत पंक्ति हिन्दी साहित्य के पाठ्य-पुस्तक से कवि घनानंद-रचित “मो अॅसवानिहिं लै बरसौ” पाठ से उद्धृत है। प्रस्तुत पंक्ति के माध्यम से कवि परोपकारी बादल से निवेदन किये हैं कि मेरे हृदय की पीड़ा को भी कभी स्पर्श किया जाय और मेरे हार्दिक विरह-वेदना को प्रकट करने वाली आंसुओं को अपने माध्यम से मेरे प्रेयसी सुजान के आँगन तक वर्षा के रूप में पहुंचाया जाय।

प्रस्तुत व्याख्येय पंक्ति में कहते हैं कि हे घन ! तुम जीवनदायक हो, परोपकारी हो, दूसरे के हित के लिए देह धारण करने वाले हो। सागर के जल को अमृत में परिवर्तित करके वर्षा के रूप , में कल्याण करते हो। कभी मेरे लिए भी कुछ करो। मेरे लिए इतना जरूर करो कि मेरे हृदय को स्पर्श करो। मेरे दुःख दर्द को समझो, जानो और मेरे ऊपर दया की दृष्टि रखते हुए अपने परोपकारी स्वभाववश मेरे हृदय की व्यथा को अपने माध्यम से सुजान तक पहुँचा दो। मेरे प्रेमाश्रुओं को लेकर । सुजान की आँगन में प्रेम की वर्षा कर दो।

Bihar Board Class 10 Hindi Book Solution प्रश्न 7.
कविता का सारांश अपने शब्दों में लिखें।
उत्तर-
अति सूधो सनेह को मारग है’ सवैया में कवि घनानंद स्नेह के मार्ग की प्रस्तावना करते हुए कहते हैं कि प्रेम का रास्ता अत्यंत सरल और सीधा है वह रास्ता कहीं भी टेढ़ा-मेढ़ा नहीं है और न उसपर चलने में चतुराई की जरूरत है। इस रास्ते पर वही चलते हैं जिन्हें न अभिमान होता है न किसी प्रकार की झिझक ऐसे ही लोग निस्संकोच प्रेम-पथ पर चलते हैं।

घनानंद कहते हैं कि प्यारे, यहाँ एक ही की जगह है दूसरे की नहीं। पता नहीं, प्रेम करनेवाले कैसा पाठ पढ़ते हैं कि ‘मन’ लेते हैं लेकिन छटाँक नहीं देते। ‘मन’ में श्लेष अलंकार है जिससे भाव की महनता और भाषा का सौंदर्य दुगुना हो गया है।

‘मो अँसुवानिहिं लै बरसौ’ सवैया में कवि घनानंद मेघ के माध्यम से अपने अंतर की वेदना को व्यक्त करते हुए कहते हैं-बादलों ने परहित के लिए ही शरीर धारण किया है। वे अपने आँसुओं की वर्षा एक समान सभी पर करते हैं। पुनः घनानंद बादलों से कहते हैं-तुम तो जीवनदायक हो, कुछ मेरे हृदय की भी सुध ली, कभी मुझ पर भी विश्वास कर मेरे आँगन में अपने रस की वर्षा करो।

भाषा की बात

प्रश्न 1.
निम्नांकित शब्द कविता में संज्ञा अथवा विशेषण के रूप में प्रयुक्त है। इनके प्रकार बताएँ-
सूधो, मारग, नेकु, बॉक, कपटी, निसांक, पाटी, जथरथ, जीवनदायक, पीर, हियें, बिसासी
उत्तर-
सूधो – गुणवाचक विशेषण
मारग – जातिवाचक संज्ञा
नेक – गुणवाचक विशेषण
बॉक – भाववाचक संज्ञा
कपटी – गुणवाचक विशेषण
निसॉक – गुणवाचक विशेषण
पाटी – भाववाचक संज्ञा जथारथ
जथरथ – भाववाचक संज्ञा
जीवनदायक – गुणवाचक विशेषण
पीर – भाववाचक संज्ञा
हियें – जातिवाचक संज्ञा
बिसासी – गुणवाचक विशेषण

प्रश्न 2.
कविता में प्रयुक्त अव्यय पदों का चयन करें और उनका अर्थ भी बताएं।
उत्तर-
अति – बहुत
जहाँ – स्थान विशेष
नहीं – न
तति – छोड़कर
यहाँ – स्थानविशेष
नेक – तनिक भी

प्रश्न 3.
निम्नलिखित के कारक स्पष्ट करें-
सनेह को पारग प्यारे सुजान, मेरियो पीर, हिये, आँसुवानिहि
उत्तर-
सनेह को मार्ग – संबंध कारक
प्यारे सुजान – संबंध कारक
मारया पीर – अधिकारण कारक
हियें – अधिकरण कारक
आँसुवानिहि – करण कारक
मों – कर्म कारक

काव्यांशों पर आधारित अर्थ-ग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

1. अति सूधो सनेह को मारग है जहाँ नेकु सयानप बाँक नहीं।
तहाँ साँचे चलें तजि आपनपौ झझक कपटी जे निसाँक नहीं।
‘घनआनंद’ प्यारे सुजान सुनौ यहाँ एक ते दूसरौ आँक नहीं।
तुम कौन धौं याटी पढ़े हौ कहौ मन लेह पै देह छटाँक नहीं।

प्रश्न
(क) कवि तथा कविता का नाम लिखिए।
(ख) पद का प्रसंग लिखें।
(ग) पद का सरलार्थ लिखें।
(घ) भाव सौंदर्य स्पष्ट करें।
(ङ) काव्य सौंदर्य स्पष्ट करें।
उत्तर-
(क) कविता- अति सूधो सनेह को मारग है।
कवि- घनानंद।।

(ख) रीति काल के महान प्रेमी कवि घनानंद यहाँ प्रथम छंद में प्रेम के सीधे, सरल और निश्छल मार्ग की प्रस्तावना करता है। प्रेम की विशेषताओं को तथा प्रेममार्ग की प्रवीणता को लाक्षणिक एवं मूर्तिमत्ता के स्वरूप का वर्णन किया है।

(ग) सरलार्थ- प्रस्तुत सवैया में रीतिकालीन काव्य धारा के प्रमुख कवि घनानंद प्रेम की पीड़ा एवं प्रेम की भावना को सरल और स्वाभाविक मार्ग का विवेचन करते हैं। कवि कहते हैं कि प्रेम मार्ग अमृत के समान अति पवित्र है। इस प्रेम, रूपी मार्ग में चतुराई और टेढ़ापन अर्थात् कपटशीलता का कोई स्थान नहीं है। इस प्रेमरूपी मार्ग में जो प्रेमी होते हैं वह अनायास ही सत्य के रास्ते पर चलते हैं तथा उनके अंदर के अहंकार समाप्त हो जाते हैं। यह प्रेम रूपी मार्ग इतना पवित्र है कि इस पर चलने वाले प्रेमी के हृदय में लेशमात्र भी झिझक, कपट और शंका नहीं रहती है। घनानंद अपनी प्रेमिका सुजान को संबोधित करते हुए कहते हैं कि हे सुजान, सुनो ! यहाँ अर्थात् मेरे प्रेम में तुम्हारे सिवा कोई दूसरा चिह्न नहीं है। तुम क्या कोई प्रेम रूपी पुस्तक पढ़े हो? तो कहो, क्योंकि प्रेम रूपी पुस्तक पढ़ने से यही सीख मिलती है कि प्रेम दिया जाता है और उसे देने के बदले एक छटाँक भी कुछ नहीं लिया जाता है।

(घ) भाव-सौंदर्य प्रस्तुत छंद में रीति मुक्त धारा के प्रसिद्ध कवि घनानंद प्रेम के मार्ग को अमृत के समान पवित्र बतलाया है। इसमें निष्कपट, निश्छल और अहंकार रहित प्रेम का स्वाभाविक वर्णन किया है। एक प्रेमी ही प्रेम की पवित्रता को समझ सकता है।

(ङ) काव्य सौंदर्य-
(i) यह कविता सवैया छंद में रचित है।
(ii) श्रृंगार इसकी परिपक्वता के कारण माधुर्य गुण की झलक प्रशंसनीय है।
(iii) यहाँ स्वाभाविक प्रेम के वर्णन के कारण मनोवैज्ञानिकता का अच्छा दर्शन होता है।
(iv) प्रेम का वर्णन में जो भाव और भाषा होना चाहिए उसका कलात्मक रूप व्यक्त हुआ है।
(v) सवैया छन्द के कारण कविता सम्पूर्ण संगीतमयता का रूप धारण कर ली है।
(vi) अलंकार योजना की दृष्टि से रूपक और अलंकार की छटा प्रशंसनीय है।

2. परकाजहि देह को धारि फिरौ परजन्य जथारथ द्वै दरसौ।
निधि-नरी सुधा की समान करौ सबही बिधि सज्जनता सरसौ।।
‘घनआनंद’ जीवनदायक हासै कळू पेरियौ पीर हिएँ परसौ।
कबहूँ वा बिसासी सुजान के आँगन मौ अँसुवानिहिं लै बरसौ॥

प्रश्न-
(क) कवि तथा कविता का नाम लिखिए।
(ख) पद का प्रसंग लिखिए।
(ग) पद का सरलार्थ लिखिए।
(घ) भाव सौंदर्य स्पष्ट करें।
(ङ) काव्य सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
(क)कविता- मो अँसुवानिहिं लै बरसौ।
कवि-घनानंद।

(ख) प्रसंग- प्रस्तुत सवैये छंद में रीति कालीन काव्य धारा के प्रख्यात कवि घनानंद मेघ की अन्योक्ति के माध्यम से विरह वेदना से भरे अपने हृदय की पीड़ा को अत्यन्त कलात्मक रूप में अभिव्यक्त करते हैं। बादल की उदारता को अपने प्रेम की पीड़ा में सहयोग देने के लिए संबोधनात्मक शैली में वर्णन करते हैं।

(ग) सरलार्थ- प्रस्तुत छंद में कवि बादल को संबोधित करते हुए कहता है कि हे बादल! मेरे आँसूरूपी प्रेम के जल को बरसाओ। हे बादल तुम इतने उदारवादी हो कि तुम्हारा जीवन हमेशा दूसरों के हित के लिए समर्पित रहता है। दूसरों के लिए ही जल बरसाते हो। अपने जीवन के भंडार को अमृत के समान पवित्र करो ओर सभी प्रकार से सज्जनता के गुणों को प्रकट करो। तुम्हारी दृष्टि के जल में मेरे विरह वेदना के आँसू दिखाई पड़े। घनानंद कवि कहते हैं कि हे जीवनदायक तुम प्रेम रूपी बादल बनकर आँसू रूपी वियोग रस को बरसो जिससे मेरी प्रेम वेदना समाप्त होगी। पुनः अपनी प्रेयषी सुजान की ओर संकेत करते हुए अपने विरह वेदना को कलात्मक रूप में व्यक्त करते हुए कहते हैं कि हे बादल तुम मेरे बहुत विश्वासी हो इसलिए मेरे सुजान के आँगन में जाकर मेरे आँसू रूपी जल को निश्चित रूप से बरसाओ।

(घ) भाव सौंदर्य- इस अंश में कवि घनानंद प्रेम के पीर मालूम पड़ते हैं। इसी कारण के लिए बादल को सम्बोधित करते हैं और बादल को उदार कहते हैं।
(ङ) काव्य सौंदर्य-
(i) इसमें सवैया, छंद पूर्ण लाक्षणिकता के साथ व्यक्त हुआ है।
(ii) वियोग का सच्चा वर्णन ब्रजभाषा की कोमलता और सरलतापूर्ण सार्थक है।
(iii) यहाँ कहीं-कहीं तत्सम और तद्भव शब्दों के प्रयोग से कविता का भाव सटीक हो गया है।
(iv) सम्पूर्ण कविता संबोधनात्मक शैली में है।
(v) वियोग का सार्थक वर्णन के कारण प्रसाद गुण इस पद में विद्यमान है।
(vi) अलंकार योजना की दृष्टि से रूपक और अनुप्रास भाव को सार्थक करने में सहायक है।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

I. सही विकल्प चुनें

प्रश्न 1.
‘अति सूधो सनेह को मारग’ शीर्षक सबैया किसकी रचना है ?
(क) रसखान
(ख) घनानंद
(ग) गुरु नानक
(घ) मतिराम
उत्तर-
(ख) घनानंद

प्रश्न 2.
घनानंद किस सबैया के रचयिता हैं?
(क) मो अँसुवनिहिं लै बरसौ
(ख) मानुष हों तो
(ग) करील के कुंजन ऊपर वारौं
(घ) भूषण
उत्तर-
(क) मो अँसुवनिहिं लै बरसौ

प्रश्न 3.
घनानंद किस काल के कवि थे?
(क) भक्ति काल
(ख) आदि काल
(ग) रीति काल
(घ) आधुनिक काल
उत्तर-
(ग) रीति काल

प्रश्न 4.
घनानंद किस भाषा के कवि थे ?
(क) अवधी
(ख) खड़ी बोली
(ग) ब्रज भाषा
(घ) मैथिली
उत्तर-
(ग) ब्रज भाषा

प्रश्न 5.
‘सुजान सागर किसकी कृति है?
(क) रसखान
(ख) प्रेमधन
(ग) सुमित्रानंदन पंत
(घ) घनानंद
उत्तर-
(घ) घनानंद

प्रश्न 6.
‘घनानंद’ किस बादशाह के ‘मीर मंशी’ थे?
(क) जहाँगीर
(ख) शाहजहाँ
(ग) मुहम्मदशाह रंगीले
(घ) औरंगजेब
उत्तर-
(ग) मुहम्मदशाह रंगीले

II. रिक्त स्थानों की पूर्ति करें

प्रश्न 1.
घनानंद के सवैये और ……. बहुत प्रसिद्ध हैं।
उत्तर-
धनाक्षरी

प्रश्न 2.
घनानंद रीतिकाल के …………. कवि थे।
उत्तर-
उन्मुक्त प्रेम के स्वच्छन्द

प्रश्न 3.
प्रेम का मार्ग अत्यन्त ……….. है।
उत्तर-
सरल

प्रश्न 4.
‘नरकाजहि देह को धारि’ का अर्थ दूसरों के लिए ……..धारण करता है।
उत्तर-
शरीर

प्रश्न 5. घनानंद प्रेम की ……….. के गायक थे।
उत्तर-
पीर

प्रश्न 6.
घनानंद का जन्म सन् ……. के आस-पास हुआ था।
उत्तर-
1689

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न 

प्रश्न 1.
किस कवि को साक्षात् रसमूर्ति कहा जाता है ?
उत्तर-
घनानंद को साक्षात् रसमर्ति कहा जाता है।

प्रश्न 2.
घनानंद काव्य-रचना के अतिरिक्त किस कला में प्रवीण थे?
उत्तर-
घनानंद काव्य-रचना के अतिरिक्त गायन-कला में प्रवीण थे।

प्रश्न 3.
घनानंद किस मुगल बादशाह के मीर मुंशी थे?
उत्तर-
घनानंद मुगल बादशाह मुहम्मदशाह रंगीले के मीर मुंशी थे।

प्रश्न 4.
घनानंद की मृत्यु कैसे हुई ?
उत्तर-
धनानंद को नादिरशाह के सैनिकों ने मार डाला।

प्रश्न 5.
घनानंद की सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण कृति कौन-सी है?
उत्तर-
घनानंद की सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण कृति है-‘सुजान सागर’

प्रश्न 6.
घनानंद की भाँति रीति मुक्तधारा के और कौन-कौन कवि हैं ?
उत्तर-
घनानंद की तरह रीति मुक्तधारा के अन्य कवि हैं-रसखान एवं भूषण आदि।

प्रश्न 7.
कवि सुजान कहकर किसे सम्बोधित करता है ?
उत्तर-
कहते हैं कवि घनानंद का ‘सुजान’ नामक नर्तकी से स्नेह था। अत: यह सम्बोधन उसे ही प्रतीत होता है।

व्याख्या खण्ड

प्रश्न 1.
अति सुधौ सनेह को मारग है, जहाँ नेक सयानप बॉक नहीं।
तहाँ साँचे चलें तजि आपनपौ झझुकै कपटी जे निसॉक नहीं।
व्याख्या-
प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक “अति सुधो सनेह को मारग है” काव्य-पाठ से ली गयी हैं। इन पंक्तियों का प्रसंग सुजान और धनानंद के बीज के प्रेम प्रसंग से जुड़ा हुआ हैं। कवि करता है कि अति सरलता स्नेह का मार्ग है। पंथ है। यहां जरा-सी भी ठगई या चतुराई नहीं है, टेढ़ापन नहीं है। ओछी होशियारी नहीं है। यहाँ सत्य मार्ग पर चलना पड़ता है। यहाँ अपनों का भी त्याग करना पड़ता है। बिना शंका के यहाँ चलना पड़ता है। कहने का मूल भाव यह है कि प्रेम का, स्नेह का मार्ग छल छद्म मुक्त होता है। यहाँ बनावटीपन, सयानापन, टेढ़ापन, अहंकार या चतुराई नहीं रहती। यहाँ तो प्यार, प्रेम, अंतरंगता दिखायी पड़ती है, इस प्रकार स्नेह का मार्ग सदा से ही सरलता कर रहा है। निष्कपटता और सहजता का रहा है।

प्रश्न 2.
धन आनंद प्यारे सुजान सुनौ यहाँ एक तें दूसरी आँक नहीं।
तुम कौन धौं पाटी पढ़े हो कहौ मनलेह पैदेह छटाँक नहीं।
व्याख्या-
प्रस्तुत काव्य पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक के “अति सुधो सनेह को मारग है” नामक काव्य पाठ से ली गयी हैं।
इन पंक्तियों का प्रसंग सुजान घनानंद के बीच के प्रेम प्रसंग है। कवि कहता है कि ऐ सुजान ! सुनो हमारे दिल में तो सिवा किसी दूसरे का स्थान ही नहीं है। केवल तुम ही तन-मन में बसी हुयी हो। लेकिन मैं तो तुम्हारी चतुरायी पर आश्चर्यचकित हूँ। तुमने कैसा पाठ पढ़ा है कि लेने को तो मन भर लेती हो और देने के वक्त छटांक का भी त्याग नहीं करती हो। इन पंक्तियों में , द्विअर्थ छिपा हुआ है। मन का ऐंद्रिय मन से भी संबंध है और मन से वजन वाले मन से भी है। इन पंक्तियों में सुजान की चतुराई और घनानंद की सरलता, सहजता का वर्णन मिलता है। सुजान के रूप-लावण्य पर कवि रीझ कर अपना सर्वस्व लुटा देता है, किन्तु सुजान की थाह नहीं मिलती अर्थात् उसके मन की गहरायी नहीं ज्ञात हो जाती है। यहाँ लौकिक प्रेम के साथ अलौकिक प्रेम का भी वर्णन किया गया है।

प्रश्न 3.
परकाजहि देह को धरि फिरौ पराजन्य जयारथ है दरसौ।
निधि-नीर सुधा की समान करौ सबही विधि सजनता सरसौ॥
व्याख्या-
प्रस्तुत काव्य पक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक के “मौ असुवानिहिं लै बरसौ” काव्य पाठ से ली गाया से ली गयी हैं।
इन पंक्तियों का प्रसंग सुजान और घनानंद के बीच के प्रेम-प्रसंग से है।
कवि कहता है कि बादल परहित के लिए ही जल से वाष्प-वाष्प से बादल का रूप धरकर इधर-उधर फिरता है। इसमें उसकी यथार्थता झलकती है। जैसे सागर या नदियाँ अपने सुधारूपी जल से लोक, कल्याण के लिए बहती रहती है। इसमें सब तरह से सज्जनता ही दिखायी पड़ती है। सज्जनों का भी काम परहित करना ही है। इन पंक्तियों में घनानंदजी ने अपने जीवन के प्रेम-प्रसंग को प्रकृति के लोककल्याण रूपों से तुलना करते हुए उसके उपकार का वर्णन किया है। प्रकृति का रूप ही लोकहितकारी है ठीक उसी प्रकार सज्जन का भी जीवन होता है।

प्रश्न 4.
‘घनआनंद’ जीवनदायक हो कछु मेरियो पीर हिएँ परसौ।
कबहुँ वा बिसासी सजान के आँगन मो अॅसुवानिहि लै वरसौ॥
व्याख्या-
प्रस्तुत काव्य पक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक के मौ अँसुवानिहिं ले बरसौ’ नामक काव्य पाठ से ली गयी हैं।
इन पंक्तियों के प्रसंग सुजान और घनानंद के प्रेम-प्रसंग में दिए गए उदाहरणों से है। कवि कहता है कि हे सुजान! तुम जीवनदायिनी शक्ति हो, कुछ मेरे हृदय की पीड़ा का भी स्पर्श करो। मेरी भी संवेदना को जानो, समझो। मेरे अन्तर्मन में तुम्हारे लिए जो प्रेम है, चाह है, भूख है, उसे भी तुम यथार्थ रूप में जानो। इन पंक्तियों में सुजान के प्रति अनन्य प्रेम-भावना प्रकट की गयी है। घनावेद जो सुजान के लिए अपनी सुध-बुध खो चुके हैं और सुजान को विश्वास ही नहीं होता।
कवि कहता है कि कभी भी उस विश्वासी सुजान के आँगन में मेरे आँसू बरसने लगेंगे और अपने अन्तर्मन की व्यथा को प्रकट करने लगेंगे।

अति सूधो सनेह को मारग है कवि परिचय

रीतियुगीन काव्य में घनानंद रीतिमुक्त काव्यधारा के सिरमौर कवि हैं । इनका जन्म 1689 ई० के आस-पास हुआ और 1739 ई० में वे नादिरशाह के सैनिकों द्वारा मारे गये । ये तत्कालीन मुगल बादशाह मोहम्मद शाह रंगीले के यहां मीरमुंशी का काम करते थे। ये अच्छे गायक और श्रेष्ठ कवि थे । किवदंती है कि सुजान नामक नर्तकी को वे प्यार करते थे । विराग होने पर ये वृंदावन चले गये और वैष्णव होकर काव्य रचना करने लगे । सन् 1939 में जब नादिरशाह ने दिल्ली पर आक्रमण किया तब उसके सिपाहियों ने मथुरा और वृंदावन पर भी धावा बोला । बादशाह का मीरमुंशी जानकर घनानंद को भी उन्होंने पकड़ा और इनसे जर, जर, जर (तीन बार सोना, सोना, सोना) माँगा । घनानंद ने तीन मुट्ठी धूल उन्हें यह कहते हुए दी, ‘रज, रज, रज’ (धूल, धूल, धूल) । इस पर क्रुद्ध होकर सिपाहियों ने इनका वध कर दिया।

घनानंद ‘प्रेम की पीर’ के कवि हैं। उनकी कविताओं में प्रेम की पीड़ा, मस्ती और वियोग सबकुछ है । आचार्य शुक्ल के अनुसार, “प्रेम मार्ग का ऐसा प्रवीण और धीर पथिक तथा जबाँदानी का ऐसा दावा रखने वाला ब्रजभाषा का दूसरा कवि नहीं हुआ है।” वियोग में सच्चा प्रेमी जो वेदना सहता है, उसके चित्त में जो विभिन्न तरंगे उठती हैं, उनका चित्रण घनानंद ने किया है। घनानंद वियोग दशा का चित्रण करते समय अलंकारों, रूढ़ियों का सहारा लेने नहीं दौड़ते, वे बाह्य चेष्टाओं पर भी कम ध्यान देते हैं । वे वेदना के ताप से मनोविकारों या वस्तुओं का नया आयाम, अर्थात् पहले न देखा गया उनका कोई नया रूप-पक्ष देख लेते हैं। इसे ही ध्यान में रखकर शुक्ल जी ने इन्हें ‘लाक्षणिक मूर्तिमत्ता और प्रयोग वैचित्र्य’ का ऐसा कवि कहा जैसे कवि उनके पौने दो सौ वर्ष बाद छायावाद काल में प्रकट हुए।

घनानंद की भाषा परिष्कृत और शुद्ध ब्रजभाषा है । इनके सवैया और घनाक्षरी अत्यंत प्रसिद्ध हैं । घनानंद के प्रमुख ग्रंथ हैं – ‘सुजानसागर’, ‘विरहलीला’, ‘रसकेलि बल्ली’ आदि।

रीतिकाल के शास्त्रीय युग में उन्मुक्त प्रेम के स्वच्छंद पथ पर चलने वाले महान प्रेमी कवि घनानंद के दो सवैये यहाँ प्रस्तुत हैं । ये छंद उनकी रचनावली ‘घनआनंद’ से लिए गए हैं। प्रथम छंद में कवि जहाँ प्रेम के सीधे, सरल और निश्छल मार्ग की प्रस्तावना करता है, वहीं द्वितीय छंद में मेघ की अन्योक्ति के माध्यम से विरह-वेदना से भरे अपने हृदय की पीड़ा को अत्यंत कलात्मक रूप में अभिव्यक्ति देता है । घनानंद के इन छंदों से भाषा और अभिव्यक्ति कौशल पर उनके असाधारण अधिकार को भी अभिव्यक्ति होती है ।

अति सूधो सनेह को मारग है Summary in Hindi

पाठ का अर्थ

रीतियुगीन काव्य में धनानंद रीतिमुक्त काव्यधारा के सिरमौर कवि हैं। इनकी कविताओं में प्रेम की पीड़ा, मस्ती और वियोग सबकुछ है। वियोग में सच्चा प्रेमी जो वेदन सहता है, उसके चित्त में जो विभिन्न तरंगे उठती हैं, उनका चित्रण धनानंद ने किया है। धनानंद ने वियोग दशा का चित्रण करते समय ‘अलंकारों रूढ़ियों का सहारा न लेकर मनोविकारों या वस्तुओं का नया आयाम दिया है। वस्तुतः धनानंद ‘प्रेम की पीर’ के कवि हैं।

रीतिकाल के शास्त्रीय युग में उन्मुक्त प्रेम के स्वच्छंद पथ पर चलने वाले महान प्रेमी कवि धनानंद के दो सवैये पस्तुत पद में है। प्रथम छंद में कवि जहाँ प्रेम के सीधे सरल और निश्चय मार्ग की प्रस्तावना करता है। प्रेम एक ऐसा अमृतमय मार्ग है जहाँ चातुर्य की टेढ़ी-मेढ़ी रूपरेखा नहीं है। इसमें छल उपर श्लेष-मात्र भी नहीं है। मन के मनभावों को अनायास प्रदर्शित करने में सहजभाव उत्पन्न हो जाता है।

दूसरे पद में मेघ की अन्योक्ति के माध्यम से विरह-वेदना से भरे अपने हृदय की पीड़ा को अत्यन्त कलात्मक रूप में अभिव्यक्ति देता है। बादल अपने लिए नहीं दूसरों के लिए शरीर धारण करता है। कवि का विरह-चित्त मिलन के उत्कौठत है। जल से परिपूर्ण बादल अपनी वेदन के साथ एक नया भाव जोड़ देता है। जीवन की अनुभूति प्रेम की सहभागिता में है। गगन की सार्थकता में घाटधन्न से है।

शब्दार्थ

नेकु : तनिक भी
सयानप : चतुराई
बाँक : टेढ़ापन
आपन पौ : अहंकार, अभिमान
झझक : झिझकते हैं ।
निसांक : शंकामुक्त
आक : अंक, चिह्न
परजन्य : बादल
सुधा : अमृत
सरसी : रस बरसाओ
परसौ : स्पर्श करो
बिमासी : विश्वासी
मन : माप-तौल का एक पैमाना
छटाँक : माप-तौल का एक छोटा पैमाना

Bihar Board Class 10 Hindi Solutions पद्य Chapter 4 स्वदेशी

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BSEB Bihar Board Class 10 Hindi Solutions पद्य Chapter 4 स्वदेशी

Bihar Board Class 10 Hindi स्वदेशी Text Book Questions and Answers

कविता के साथ

स्वदेशी कविता का अर्थ Bihar Board Class 10 Hindi प्रश्न 1.
कविता के शीर्षक की सार्थकता स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
वस्तुत: किसी भी गद्य या पद्य का शीर्षक वह धुरी होता है जिसके चारों तरफ कहानी या भाव घूमते रहता है। रचनाकार शीर्षक देते समय उसके कथानक, कथावस्तु, कथ्य को ध्यान में रखकर ही देता है। प्रस्तुत कविता का शीर्षक ‘स्वदेशी’ अपने आप में उपयुक्त है। पराधीन भारत की दुर्दशा और लोगों की सोच को ध्यान में रखकर इस शीर्षक को रखा गया है। अंग्रेजी वस्तुओं को फैशन मानकर नये समाज की परिकल्पना करते हैं।

रहन-सहन खान-पान आदि सभी पाश्चात्य देशों का ही अनुकरण कर रहे हैं। स्वदेशी वस्तुओं को तुच्छ मानते हैं। हिन्दु, मुस्लमान, ईसाई आदि सभी विदेशी वस्तुओं पर ही भरोसा रखते हैं। उन्हें अपनी संस्कृति विरोधाभास लाती है। बाजार में विदेशी वस्तुएँ ही नजर आती है। भारतीय कहने-कहलाने पर अपने आप को हेय की दृष्टि से देखते हैं। सर्वत्र पाश्चात्य चीजों का ही बोल-बाला है। अतः इन दृष्टान्तों से स्पष्ट होता है। प्रस्तुत कविता का शीर्षक सार्थक और समीचीन है।

स्वदेशी कविता Bihar Board Class 10 Hindi प्रश्न 2.
कवि को भारत में भारतीयता क्यों नहीं दिखाई पड़ती?
उत्तर-
किसी देश के प्रति वहाँ के जनता की कितनी निष्ठा है, देशवासी को अपने देश की संस्कृति में कितनी आस्था है यह उसके रहन-सहन, बोल-चाल, खान-पान से पता चलता है। कवि को भारत में स्पष्ट दिखाई पड़ता है कि यहाँ के लोग विदेशी रंग में रंगे हैं। खान-पान, बोल-चाल, हाट-बाजार अर्थात् सम्पूर्ण मानवीय क्रिया-कलाप में अंग्रेजीयत ही अंग्रेजीयत है। पाश्चात्य सभ्यता का बोल-बाला है। भारत का पहनावा, रहन-सहन, खान-पान कहीं दिखाई नहीं देता है। हिन्दू हों या मुसलमान, ग्रामीण हो या शहरी, व्यापार हो या राजनीति चतुर्दिक अंग्रेजीयत की जय-जयकार है। भारतीय भाषा, संस्कृति, सभ्यता धूमिल हो गई है। अतः कवि कहते हैं कि भारत में भारतीयता दिखाई नहीं पड़ती है।

Bihar Board Class 10 Hindi Book Solution प्रश्न 3.
कवि समाज के किए वर्ग की आलोचना करता है और क्यों?
उत्तर-
उत्तर भारत में एक ऐसा समाज स्थापित हो गया है जो अंग्रेजी बोलने में शान की बात समझता है। अंग्रेजी रहन-सहन, विदेशी ठाट-बाट, विदेशी बोलचाल को अपनाना विकास मानते हैं। हिन्दुस्तान की नाम लेने में संकोच करते हैं। हिन्दुस्तानी कहलाना हीनता की बात समझते ।। हैं। झूठी प्रशंसा करते हुए फूले नहीं समाते। अपनी मूल संस्कृति को भूलकर पाश्चात्य संस्कृति को अपनाकर गौरवान्वित होना अपने देश में प्रचलित हो गया है। ऐसी प्रचलन को बढ़ावा देने वाले वर्ग की कवि आलोचना करते हैं क्योंकि यह देशहित की बात नहीं है। ऐसा वर्ग देश को पुनः अपरोक्ष रूप से विदेशी-दासता के बंधन में बाँधने को तत्पर हो रहा है।

Bihar Board Solution Class 10 Hindi प्रश्न 4.
कवि नगर, बाजार ओर अर्थव्यवस्था पर क्या टिप्पणी करता है?
उत्तर-
कवि के अनुसार आज नगर में स्वदेशी की झलक बिल्कुल नहीं दिखती। नगरीय व्यवस्था, नगर का रहन-सहन सब पाश्चात्य सभ्यता का अनुगामी हो गया है। बाजार में वस्तुएँ विदेशी दिखती हैं। विदेशी वस्तुओं को लोग चाहकर खरीदते हैं। इससे विदेशी कंपनियाँ लाभान्वित हो रही हैं। स्वदेशी वस्तुओं का बाजार-मूल्य कम हो गया है। ऐसी प्रथा से देश की आर्थिक स्थिति पर कुप्रभाव पड़ रहा है। चतुर्दिक विदेशीपन का होना हमारी कमजोरी उजागर कर रही है।

Class 10 Hindi Chapter 1 Bihar Board प्रश्न 5.
नेताओं के बारे में कवि की क्या राय है ?
उत्तर-
आज देश के नेता, देश के मार्गदर्शक भी स्वदेशी वेश-भूषा, बोल-चाल से परहेज करने लगे हैं। अपने देश की सभ्यता संस्कृति को बढ़ावा देने के बजाय पाश्चात्य सभ्यता से स्वयं प्रभावित दिखते हैं। कवि कहते हैं कि जिनसे धोती नहीं सँभलती अर्थात् अपने देश के वेश-भूषा को धारण करने में संकोच करते हों वे देश की व्यवस्था देखने में कितना सक्षम होंगे यह संदेह का विषय हो जाता है। जिस नेता में स्वदेशी भावना रची-बसी नहीं है, अपने देश की मिट्टी से दूर होते जा रहे हैं, उनसे देश सेवा की अपेक्षा कैसे की जा सकती है। ऐसे नेताओं से देशहित की अपेक्षा करना ख्याली-पुलाव है।

Bihar Board 10th Hindi Book प्रश्न 6.
कवि ने डेफाली किसे कहा है और क्यों?
उत्तर-
जिन लोगों में दास-वृत्ति बढ़ रही है, जो लोग पाश्चात्य सभ्यता संस्कृति की दासता के बंधन में बंधकर विदेशी रीति-रिवाज का बने हुए हैं उनको कवि डफाली की संज्ञा देते हैं क्योंकि व विदेश की पाश्चात्य संस्कृति की, विदेशी वस्तुओं की, अंग्रेजी की झूठी प्रशंसा में लगे हुए हैं। डफाली की तरह राग-अलाप रहे हैं, पाश्चात्य की, विदेशी एवं अंग्रेजी की गाथा गा रहे हैं।

स्वदेशी का अर्थ Bihar Board Class 10 Hindi प्रश्न 7.
व्याख्या करें
(क) मनुज भारती देखि कोउ, सकत नहीं पहिचान।
(ख) अंग्रेजी रूचि, गृह, सकल वस्तु देस विपरीत।
उत्तर-
(क) प्रस्तुत पंक्ति हिन्दी साहित्य की पाठ्य-पुस्तक के ‘स्वदेशी’ शीर्षक पद से उद्धत है। इसकी रचना देशभक्त कति बदरीनारायण चौधरी ‘प्रेमघन’ द्वारा की गई है। इसमें कवि ने देश-प्रेम की भाव को जगाने का प्रयास किया है। कवि ने स्वदेशी भावना को जगाने की आवश्यकता पर बल दिया है। पाश्चात्य रंग में रंग जाना कवि के विचार से दासता की निशानी है।

प्रस्तुत व्याख्येय में कवि ने कहा है कि आज भारतीय लोग अर्थात् भारत में निवास करने वाले मनुष्य इस तरह से अंग्रेजीयत को अपना लिये हैं कि वे पहचान में ही नहीं आते कि भारतीय हैं। आज भारतीय वेश-भूषा, भाषा-शैली, खान-पान सब त्याग दिया गया है और विदेशी संस्कृति को सहजता से अपना लिया गया है। मुसलमान, हिन्दु सभी अपना भारतीय पहचान छोड़कर अंग्रेजी की अहमियत देने लगे हैं। पाश्चात्य का अनुकरण करने में लोग गौरवान्वित हो रहे हैं।

(ख) प्रस्तुत पंक्ति हिन्दी साहित्य की पाठ्य पुस्तक के कवि ‘प्रेमघन’ जी द्वारा रचित ‘स्वदेशी’ पाठ से उद्धत है। इसमें कवि ने कहा है कि भारत के लोगों से स्वदेशी भावना लुप्त हो गई है। विदेशी भाषा, रीति-रिवाज से इतना स्नेह हो गया है कि भारतीय लोगों का रुझान स्वदेशी के प्रति बिल्कुल नहीं है। सभी ओर मात्र अंग्रेजी का बोलबाला है।

Bihar Board Hindi Book Class 10 Pdf Download प्रश्न 8.
आपके मत से स्वदेशी की भावना किस दोहे में सबसे अधिक प्रभावशाली है ? स्पष्ट करें।
उत्तर-
मेरे विचार से दोहे संख्या 9 (नौ) में स्वदेशी की भावना सबसे अधिक प्रभावशाली है। स्पष्ट है कि भारतीय संस्कृति सभ्यता में जितनी अधिक सरलता, स्वाभाविकता एवं पवित्रता है उतनी विदेशी संस्कृति सभ्यता में नहीं है। आज ऐसा समय आ गया है कि यहाँ के लोगों से जब पवित्र भारतीय संस्कृति का प्रबंधन कार्य ही नहीं संभल रहा है तो जटिलता से भरी हुई विदेशी संस्कृति का निर्वाह कहाँ तक कर सकेंगे। अतः हर स्थिति में पूर्ण बौधिकता का परिचय देते हुए भारतीय संस्कृति, मूल वंश-भूषा का निर्वहन किया जाना चाहिए।

Bihar Board 10th Class Hindi Book Pdf प्रश्न 9.
स्वदेशी कविता का सारांश अपने शब्दों में लिखें।
उत्तर-
प्रेमधन सर्वस्व’ से संकलित प्रस्तुत दोहा में प्रेमघन ने देश-दशा का उल्लेख करते हुए नव जागरण का शंख फूंका है। वे कहते हैं-
देश के सभी लोगों में विदेशी रीति, स्वभाव और लगाव दिखाई पड़ रहा है। भारतीयता तो अब भारत में दिखाई ही नहीं पड़ती। आज भारत के लोगों को देखकर पहचान करना कठिन है कि कौन हिन्दू है, कौन मुसलमान और कौन ईसाई।

विदेशी भाषा पढ़कर लोगों की बुद्धि विदेशी हो गई है। अब इन लोगों को विदेशी चाल-चलन भाने लगी है। लोग विदेशी ठाट-बाट से रहने लगे हैं अपना देश विदेश बन गया है। कहीं भी नाममात्र को भारतीयता दृष्टिगोचर नहीं होती।

अब तो हिन्दू लोग हिन्दी नहीं बोलते। वे अंग्रेजी का ही प्रयोग करते हैं, अंग्रेजी में ही भाषण देते हैं। वे अंग्रेजी भाषा का इस्तेमाल करतं, अंग्रेजी कपड़े पहनते हैं। उनकी रीति और नीति भी अंग्रेजी जैसी है। घर और सारी चीजें देशी नहीं हैं। ये देश के विपरीत हैं।

सम्प्रति, हिन्दुस्तानी नाम से भी ये शर्मिंदा होते और सकुचाने लगते हैं। इन्हें हर भारतीय वस्तु से घृणा है। इनके उदाहरण हैं देश के नगर। सर्वत्र अंग्रेजी चाल-चलन है। बाजारों में देखिए अंग्रेजी माल भरा है।

देखिए, जो लोग अपनी ढीली-ढाली धोती नहीं सँभाल सकते, वे लोग देश को क्या सँभालेंगे? यह सोचना ही कल्पनालोक में विचरण करना है। चारों ओर चाकरी की प्रवृत्ति बढ़ रही है। ये लोग झूठी प्रशंसा, खुशामद कर डफली अर्थात् ढिंढोर भी बन गए हैं।

प्रश्न 10.
‘स्वदेशी’ के दोहे राष्ट्रीय भावना से ओत-प्रोत हैं। कैसे ? स्पष्ट कीजिये।
उत्तर-
बदरी नारायण चौधरी ‘प्रेमघन’ कृत ‘स्वदेशी’ के दोहे राष्ट्र की सभ्यता, संस्कृति और राष्ट्रीयता के शनैः-शनैः होते विलोपन से व्याकुल मन के चीत्कार हैं। पराधीन काल में जब लोगों की वेश-भूषा, चाल-ढाल, को अंग्रेजीयत के रंग में रंगता दिखलाई पड़ता है तो उसे पीड़ा होती है। अब तो भारतीयों की पहचान मुश्किल हो रही है-‘मनुज भारतीय कोऊ सकत नहीं पहिचान, मुसलमान, हिन्दू किंधौं, के ये हैं ये क्रिस्ताना’
कवि यह देख भी दुखी होता है कि विदेशी विद्या ने देश के लोगों की सोच ही बदल दी है-

पढ़ि विद्या परदेश की बुद्धि विदेशी पाया
चाल चलन परदेस की, गई इन्हें अति भाय।।

लोगों में तो लगता है कि भारतीयता लेशमात्र को नहीं बची। लोग अंग्रेजी बोल रहे हैं, अंग्रेजी ढंग से रह रहे हैं। हिन्दुस्तानी नाम से ही लज्जा महसूस करते हैं और भारतीय वस्तुओं से घृणा करते हैं –

हिन्दुस्तानी नाम सुनि, अब ये सकुचित लजात।
भारतीय सब वस्तु ही, सों ये हाथ घिनात।

कवि की राष्ट्रीय भावना पर कहर चोट तब पड़ती है जब सभी वर्ग के लेकर आत्म-सम्मान छोड़कर चाकरी के लिए ललायित हो रहे हैं, अंग्रेज हाकिमों की इन प्रशंसा कर रहे हैं। सबसे बड़ी हताशा उसे अपने नेताओं की हालत पर हो रही है वे देश के नहीं, अपने कल्याण में लगे
हैं। स्वार्थपरता ने उन्हें इतना घेर लिया कि उनकी संतानों ही हाथ से निकल रही है। जब ये अपना घर ही नहीं सँभाल सकते तो देश क्या सँभालेंगे-

जिनसों सम्हल सकत नहिं तनकी धोती ढीली ढाली।
देस प्रबंध करिहिंगे यह, कैसी खाम ख्याली।

इस प्रकार हम देखते हैं कि ‘स्वदेशी’ के दोहों में देश की दशा के वक्त के माध्यम से कवि ने लोगों में राष्ट्रीय भावना भरने की चेष्टा की है। अतएव, दोहे निश्चित तौर पर राष्ट्रीय भावना से ओत-प्रोत हैं। इनसे राष्ट्रभक्ति को प्रेरक मिलती है।

भाषा की बात

प्रश्न 1.
निम्नांकित शब्दों से विशेषण बनाएँ-
रूचि, देस, नगर, प्रबंध, ख्याल, दासता, झूठ, प्रशंसा।
उत्तर-
रूचि – रूच
देरू – देसी
नगर – नागरिक
प्रबंध – प्रबंधित
ख्याल – ख्याली
दारूता – दारू
झूठ – झठा

प्रश्न 2.
निम्नांकित शब्दों का लिंग-निर्णय करते हुए वाक्य बनाएँ
चाल-चलना; खामख्याली, खुशामद, माल, वस्तु, वाहन, रीत, हाट, दारूवृति, बानका
उत्तर-
चाल-चलन – उसकी चाल-चलन ठीक नहीं है।
खामख्याली – खामख्याली, झूठी होती है।
खुशामद – खुशामद अच्छी चीज नहीं है।
माल – माल छूट गया।
वस्तु – वस्तु अच्छी है। वाहन
वाहन – वाहन नया है।
रीत – रीत उसकी रीत नई है।
हाट – शाम का हाट लग गया।
दारूवृति – उसकी दासवृत्ति अच्छी है।
बानक – उका बानक अच्छा है।

प्रश्न 3.
कविता से संज्ञा पदों का चुनाव करें और उनके प्रकार भी बताएं।
उत्तर-
वस्तु – जातिवाचक
नर – जातिवाचक
भारतीयता – भाववाचक
भारत – व्यक्तिवाचक संज्ञा
मनुज – जातिवाचक संज्ञा
भारती – व्यक्तिवाचक
चाल-चलन – भाववाचक
देश – जातिवाचक
विदेश – जातिवाचक
बरून – जातिवाचक
गृह – जातिवाचक
हिन्दुस्तानी – जातिवाचक
नगर – जातिवाचक
हाटन – जातिवाचक
धोनी – जातिवाचक
खुशामद – भाववाचक

काव्यांशों पर आधारित अर्थ-ग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

सवै बिदेसी वस्तु नर, गति रति रीत लखात।
भारतीयता कछु न अब, भारत म दरसात।।
मनुज भारती देखि कोउ, सकत नहीं पहिचान।
मुसलमान, हिंदू किधौं, के हैं ये क्रिस्तान।
पढ़ि विद्या परदेस की, बुद्धि विदेसी पाय।
चाल-चलन परदेस की, गई इन्हें अति भाय।।

प्रश्न
(क) कवि एवं कविता का नाम लिखिए।
(ख) पद का प्रसंग लिखें।
(ग) पद का सरलार्थ लिखें।
(घ) भाव-सौंदर्य स्पष्ट करें।
(ङ) काव्य-सौंदर्य स्पष्ट करें।
उत्तर-
(क) कवि-बदरीनारायण चौधरी ‘प्रेमघन कविता- स्वदेशी।

(ख)प्रस्तुत दोहे में कवि भारत से भारतीयता का लोप होने की बात कहता है। वे आज के यथार्थ को उजागर करने का पूर्ण प्रयास किये हैं। वर्तमान समय में विदेशी विधा, रहन-सहन, चाल-चलन सब भारतीय लोगों पर हावी है। लोग विदेशी रंग में रंगकर अपनी असलियत भूल गये हैं। इन्हीं तथ्यों को इन दोहों के माध्यम से कवि उजागर करने का प्रयास करते हैं।

(ग) सरलाई कवि भारतीय सभ्यता और संस्कृति की धूमिलता पर आक्षेपित स्वर में कहते हैं कि सभी जगह से भारतीयता समाप्त हो गई है। यहाँ के लोग विदेशी वस्तुओं पर रीझे हुए हैं। यहाँ तक कि विदेशी संस्कृति सभ्यता अपनाकर स्वदेशी संस्कृति सभ्यता को धूमिल कर दिये हैं। सभी जगह विदेशी स्वभाव, लगाव एवं नियम देखने को मिल रहे हैं। भारतीयता कुछ नहीं है, जो भारत में दर्शन हो। यहाँ तक कि यहाँ के लोग अपनी संस्कृति को देखकर भी पहचान नहीं रहे हैं। यहाँ के मुसलमान और हिन्दू किधर गए हैं। इसकी तो बात ही नहीं है। जैसे लगता है कि संपूर्ण देश अंग्रेजीमय हो गया है। विदेशी विद्या पढ़ कर बुद्धि भी विदेशी पा गये हैं। यहाँ तक की विदेशी चाल-चलन यहाँ के लोगों को बहुत आकर्षित कर रही है।

(घ) भाव-सौंदर्य प्रस्तुत कविता में भारतीय सभ्यता और संस्कृति की वर्तमान स्थिति कितनी बदतर हो गई है यह जग-जाहिर है। स्वदेशी वस्तु को अपनाना घृणा की बात और विदेशी वस्तु को अपनाना गर्व की बात समझ रहे है। हिन्दू और मुसलमान सभी अंग्रेजीमय वातावरण
को स्वीकार कर लिये हैं।

(ङ) काव्य-सौंदर्य-

  • प्रस्तुत कविता स्वदेशी में हिन्दी खड़ी बोली का व्यवहार स्पष्ट दिखाई पड़ता है।
  • यहाँ खड़ी बोली के साथ-साथ ब्रजभाषा की पुट एवं तत्सम्-तद्भव की झलक भाव की कोमलता में सहायक हुए हैं।
  • भाव के अनुसार भाषा का प्रयोग सार्थक बन पड़ा है।
  • दोहे छंद के सभी लक्षण यहाँ उपस्थित हैं।
  • अलंकार की दृष्टि से अनुप्रास की प्राथमिकता देखी जा रही है। कहीं-कहीं पुनरुक्ति प्रकाश का अंश है।

2. ठटे बिदेसी ठाट सब, बन्यो देस बिदेस।
सपनेहूं जिनमें न कहुँ, भारतीयता लेस।।
बोलि सकत हिंदी नहीं, अब मिलित हिंदू लोग।
अंगरेजी भाखन करत, अंगरेजी उपभोग।
अंगरेजी बाहन, बसन, वेष रीति और नीति।
अंगरेजी रुचि, गृह, सकल, बस्तु देस विपरीत॥

प्रश्न
(क) कवि तथा कविता का नाम लिखें।
(ख) पद का प्रसंग लिखें। ।
(ग) सरलार्थ लिखें।
(घ) भाव-सौंदर्य स्पष्ट करें।
(ङ) काव्य-सौंदर्य स्पष्ट करें।
उत्तर-
(क)कविता- स्वदेशी।
कवि बदरीनारायण चौधरी ‘प्रेमघन’।

(ख) प्रसंग-प्रस्तुत कविता में देश भक्ति की भावना ओत-प्रोत है। भारत में विदेशी सभ्यता और संस्कृति का जो पदार्पण हो गया है उसी पर कवि यथार्थ शैली में लिखकर लोगों को नव-जागरण की ओर ले जाना चाहते हैं।

गोमालाई प्रस्तुत कविता में कवि कहते हैं कि सभी जगह हमारे देश में विदेशी ठाट-बाट ही देखने को मिल रहे हैं। लगता है कि स्वप्न में भी लेश मात्र भारतीय सभ्यता नहीं है। यहाँ के हिंदू लोग भी हिन्दी बोलने में असमर्थ हो रहे हैं। हिन्दी बोलने में उन्हें तौहिनी महसूस होती है। अंग्रेजी बोलकर गौरवान्वित होते हैं और अंग्रेजी वस्तु का उपभोग करना प्रसन्नता की बात समझते हैं।
अंग्रेजी वाहन, वस्त्र, वेश-भूषा, नियम और नीति, रुचि और अभिलाषा, घर और वस्तु सभी अपनाकर अपने देश के विपरीत कार्य कर रहे हैं।

(घ) भाव-सौंदर्य प्रस्तुत अंश में विदेशी ठाट-बाट पर कटाक्ष करते हुए भारतीयता पर सवाल उठाया गया है। कवि की दृष्टि में आज भारत की सम्पूर्ण भारतीयता विदेशी संस्कृति सभ्यता में समाहृत हो गई है। यहाँ की रहन-सहन, खान-पान, वेश-भूषा ये सभी अंग्रेजीमय हो गये हैं।
(क) काव्य-मोदर्य

  • सम्पूर्ण कविता दोहे छंद में लिखी हुई है।
  • दोहे का सम्पूर्ण लक्षण उपस्थित होने के कारण कविता गेय हो गई है। खड़ी बोली के साथ-साथ ब्रजभाषा की प्राथमिकता है।
  • अलंकार की दृष्टि से अनुप्रास की प्राथमिकता है। प्रसाद गुण अपने पूर्ण वातावरण में उपस्थित है।

3. हिन्दुस्तानी नाम सुनि, अब ये सकुचि लजाता
भारतीय सब वस्तु ही, सों ये हाय धिनात॥
देस नगर बानक बनो, सब अंगरेजी चाल।
हाटन मैं देखहु भरा, बसे अंगरेजी माल।।
जिनसों सम्हल सकत नहिं तनकी, धोती ढीली-ढाली।
देस प्रबंध करिहिंगे वे यह, कैसी खाम खयाली॥
दास-वृत्ति की चाह चहूँ दिसि चारह बरन बढ़ाली।
करत खुशामद झूठ प्रशंसा मानहुँ बने डफाली।

प्रश
(क) कवि तथा कविता का नाम लिखिए।
(ख) पद का प्रसंग लिखिए।
(ग) सरलार्थ लिखिए।
(घ) भव-सौंदर्य स्पष्ट करें।
(ङ) काव्य-सौंदर्य स्पष्ट करें।
उत्तर-
(क)कविता-स्वदेशी।
कवि-बदरीनारायण चौधरी प्रेमघन।
(ख) प्रसंग-प्रस्तुत कविता देशभक्ति की भावना से परिपूर्ण है। इन दोहों में राष्ट्रीय स्वाधीनता की चेतनो को सहचर बनाया गया है। साथ ही नव-जागरण का स्वर मुखरित किया गया है। विदेशी वस्तु का भारत में स्वीकार एवं स्वदेशी वस्तु के तिरस्कार पर यथार्थ चित्रण किया गया है।

(ग) सरलार्थ-कवि कहते हैं कि भारत के लोग हिन्दुस्तानी शब्द से अपने आपको सम्बोधित करते हुए भी संकोच करते हैं। सभी भारतीय वस्तुओं का प्रयोग करते हुए घृणा करते हैं।

देश, नगर सभी जगह अंग्रेजी वेश-भूषा और चाल-ढाल देखी जा रही है। यहाँ के बाजारों ‘ में भी अंग्रेजी माल भरे पड़े है। जबकि यहाँ के लोग अपनी वेश-भूषा भी नहीं संभाल रहे हैं तो विदेशी प्रबंध को, जो पूर्ण जटिल हैं, उन्हें संभालने की यहाँ के लोग केवल कोरी कल्पना ही करते हैं। देखा जा रहा है कि यहाँ के लोगों में गुलामी के वातावरण में जीवन-यापन करने की आदत हो गई है। चारों ओर इसी का भाव मिल रहा है। खुशामद करना तथा झूठी प्रशंसा करना, झूठे राग की डफली बजाना यहाँ के लोगों की संस्कृति बन गई है।

(घ) भाव-सौंदर्य-कविता में पूर्ण रूप से लाक्षणिकतावादी स्वर मुखरित हुआ है। यहाँ विदेशी संस्कृति सभ्यता पर जमकर प्रहार किया गया है और विदेशी संस्कृति सभ्यता अपनाने वालों के प्रति भी कवि का एकमुख संदेश है।

(ङ)काव्य-सौंदर्य-

  • यहाँ दोहे छंद हैं। अलंकार का समायोजन स्पष्ट रूप में नहीं है।
  • देशभक्ति की भावना से ओत-प्रोत रहने के कारण प्रसाद गुण की प्राथमिकता है।
  • भाषीय व्याकरण की दृष्टि से विशेषण लिंग, संज्ञा कारक की उपस्थिति सम्यक् भाषा की अपेक्षा है। भाव के अनुसार भाषा का प्रयोग पूर्ण सार्थक है।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

I. सही विकल्प चुनें-

प्रश्न 1.
‘स्वदेशी’ किस कवि की रचना है?
(क) घनानंद
(ख) सुमित्रानंदन पंत
(ग) रामधानी सिंह ‘दिनकर’
(घ) प्रेमधन
उत्तर-
(घ) प्रेमधन

प्रश्न 2.
‘प्रेमधन’ किसका उपनाम है?
(क) सच्चिदानंद हीरा नंद वात्स्यायन
(ख) सूर्यकान्त त्रिपाठी
(ग) बदरी नारायण चौधरी
(घ) वीरेन डंगवाल ।
उत्तर-
(ग) बदरी नारायण चौधरी

प्रश्न 3.
प्रेमधन’ किस युग के कवि थे?
(क) आदिकाल
(ख) भक्तिकाल
(ग) भारतेन्दु युग
(घ) छायावादी युग
उत्तर-
(ग) भारतेन्दु युग

प्रश्न 4.
कवि ‘प्रेमधन’ के अनुसार भारत में आज कौन-सी वस्तु दिखाई नहीं पड़ती? /
(क) भारतीयता
(ख) कदाचारिता
(ग) पत्रकारिता
(घ) अंग्रेजी भाषाः
उत्तर-
(क) भारतीयता

प्रश्न 5.
आजकल भारत के लोग किस भाषा में बोलना पसन्द करते हैं ?
(क) हिन्दी
(ख) मातृभाषा
(ग) अंग्रेजी
(घ) फ्रेंच
उत्तर-
(ग) अंग्रेजी

प्रश्न 6.
इन दिनों भारत के बाजार किन वस्तुओं से भरे पड़े हैं ?
(क) चीनी .
(ख) पाकिस्तानी
(ग) विदेशी
(घ) अफगानी
उत्तर-
(ग) विदेशी

प्रश्न 7.
भारत के लोगों को अब क्या भाने लगा है ?
(क) विदेशी रहन-सहन
(ख) देसी घी
(ग) परदेशी
(घ) आतंक
उत्तर-
(क) विदेशी रहन-सहन

II. रिक्त स्थानों की पूर्ति करें

प्रश्न 1.
अब ……. से भारतीयों को पहचानना कठिन है।
उत्तर-
कपड़ों

प्रश्न 2.
हिन्दुस्तानियों को अब ………..नाम नहीं रुचते।
उत्तर-
हिन्दुस्तानी

प्रश्न 3.
‘स्वदेशी’ कविता …………से संकलित है।
उत्तर-
प्रेमधन-सर्वस्व

प्रश्न 4.
आजकल अधिकांश भारतीयं ………… बोलना पसंद करते हैं।
उत्तर-
अंग्रेजी

प्रश्न 5.
‘भारत-सौभाग्य’ नाटक की रचना ………….. ने की है।
उत्तर-
प्रेमधन

प्रश्न 6.
अब सबकी चाह …………….. की है।
उत्तर-
नौकरी

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
‘प्रेमघन’ के आदर्श-पुरुष कौन थे ?
उत्तर-
‘प्रेमघन’ के आदर्श-पुरूष भारतेन्दु हरिश्चन्द्र थे।

प्रश्न 2.
‘प्रेमघन’ का गा-लेखन कैसा था?
उत्तर-
प्रेमघन के गद्य-लेखन अत्यंत आलंकारिक थे।

प्रश्न 3.
किन-किन पत्रिकाओं का सम्पादन ‘प्रेमघन’ ने किया?
उत्तर-
‘कादंबिनी’ मासिक और ‘नागरी नीरद’ साप्ताहिक का सम्पादन प्रेमघन ने किया।

प्रश्न 4.
साहित्य-सम्मेलन के किस अधिवेशन का सभापतित्व ‘प्रेमघन’ ने किया?
उत्तर-
साहित्य-सम्मेलन के कलकत्ता अधिवेशन का सभापतित्व प्रेमघन ने किया।

प्रश्न 5.
‘स्वदेशी’ कविता में किस बात पर दुख व्यक्त किया गया है ?
उत्तर-
स्वदेशी कविता में भारत में भारतीयता की कमी पर दुख व्यक्त किया गया है।

याख्या खण्ड

प्रश्न 1.
सबै बिदेसी वस्तु नर, गति रति रीत लखात।
भारतीयता कछु न अब, भारत म दरसात।।
मनुज भारती देखि कोउ, सकत नहीं पहिचान।
मुसलमान, हिन्दु किधौं, के हैं ये क्रिस्तान।।
व्याख्या-
प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक के ‘स्वदेशी’ ‘काव्य-पाठ से ली गयी हैं। इन पंक्तियों में कवि ने गुलाम भारत की दुर्दशा का बड़ा ही मार्मिक चित्र प्रस्तुत किया है। कवि कहता है कि भारतीय लोगों की सूझ-बूझ को क्या कहा जाय-सभी विदेशी आकर्षण की ओर भागे जा रहे हैं। उनका अपना ‘स्व’ सुरक्षित नहीं दिखता।

भारतीय जन गी गति, रति, रीति सब कुछ बदल गयी है। वे सब कुछ विदेशी अपना लिये हैं। उनकी अपनी भारतीय विशेषताएँ अब नहीं दिखायी पड़तीं। भारतीयता अब भारत में नहीं रहीं न दिखायी ही पड़ रही हैं।
इन पंक्तियों के द्वारा कवि ने भारतीयता की जगह अंग्रेजियत में रंगों सभ्यता और संस्कृति को चित्रित किया है तथा अपनी भावनाओं को अपनी कविताओं के द्वारा प्रकट कर रहा है।

इन पंक्तियों के द्वारा कवि ने भारतीय लोगों की जाति धर्म के बारे में चिंता प्रकट की है। कवि कहता है कि भारतीय लोगों को देखकर पहचानना मुश्किल हो गया है। कौन हिन्दू है ? कौन मुसलमान है और कौन ईसाई है ? इन पंक्तियों में, बदलती जीवन-शैली और अपनी संस्कृति के प्रति आस्थाहीन होने पर भारतीय लोगों के बारे में कवि ने चिंता प्रकट किया है। वह भारतीय सभ्यता और संस्कृति के बदलते रूप को देखकर भयभीत है-आगे क्या होगा? इसी कारण उसने अपनी काव्य पंक्तियों द्वारा जाति-धर्म की परवाह नहीं करते हुए स्वच्छंद और अनुशासनहीन जीवन जीनेवालों का सही चित्र उकेरा है।

प्रश्न 2.
पढ़ि विद्या परदेसी की, बुद्धि विदेसी पाय।
चाल-चलन परदेसी की, गई इन्हैं अति भाय॥
ठटे बिदेसी ठाट सब बन्यो देस बिदेस।
सपनेहैं जिनमें न कहं, भारतीयता लेस॥
व्याख्या-
प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक के स्वदेशी’ काव्य पाठ से उद्धत्त की गयी हैं। इन पंक्तियों के द्वारा कवि कहना चाहता है कि भारतीय लोग विदेशी विद्या को पढ़ने की ओर उन्मुख है, विदेशी विद्या के अध्ययन के कारण इनकी बुद्धि-विचार भी विदेशी-सा हो गया है। दूसरे देश की चाल-चलन, वेश-भूषा, रीति-नीति, इन्हें बहुत अच्छी लग रही है। इनकी मति मारी गयी है।

कवि ने विदेशी ज्ञान प्राप्त करनेवाले भारतीय लोगों की मानसिकता का सही चित्रण किया है। कवि कहता है कि अपनी भाषा और संस्कृति के प्रति इनका मोह नहीं रहा। ये अब विदेशी रहन-सहन में ढल गए हैं, यह खेद का विषय है। आधुनिकता की ओर उन्मुख भारतीय शिक्षित वर्ग की अदूरदर्शिता के प्रति कवि ने घोर निंदा प्रकट करते हुए अपनी मनोव्यथा को व्यक्त किया है।

इन पंक्तियों द्वारा कवि यह कहना चाहता है कि अपने ही देश में सारे ठाट-बाट ने विदेशी रूप धारण कर लिया है। सभी लोग अंग्रेजियत से प्रभावित रहन-सहन, सोच-विचार में ढल गए हैं। सबकी मानसिकता विकृत हो गयी है। किसी को भी अपनी निजता, इतिहास, अस्तित्व के प्रति गर्व नहीं, सभी-लोभी और महत्त्वाकांक्षी हो गये हैं।

प्रश्न 3.
बोलि सकत हिन्दी नहीं, अब मिलि हिंदू लोग।
अंगरेजी भाखन करत, अंगरेजी उपभोग।।
अंगरेजी बाहन, बसन, वेष रीति औ नीति।
अँगरेजी रूचि, गृह, सकल, वस्तु देस विपरीत।
व्याख्या-
प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य पुस्तक ‘स्वदेशी’ काव्य पाठ से ली गयी हैं। इन पक्तियों के द्वारा कवि कहना चाहता है कि अब भारतीय लोगों को हिन्दी में बोलने, पढ़ने-लिखने में लज्जा का अनुभव होता है। हिन्दुओं के लिए यह अत्यन्त खेदजनक है। अंग्रेजी में ही बातचीत सभी लोग करते हैं और अंग्रेजी वस्तुओं का ही उपभोग भी करते हैं।

इन पंक्तियों के माध्यम से कवि ने अंग्रेजी वाहन, वसन या वस्त्राभूषणादि के अपनाये जाने की घोर निन्दा और उसपर चिंता प्रकट किया है। हमारी अंग्रेजी के प्रति बढ़ती रुचि की ओर, गृह-साज-सज्जा की ओर, उक्त सारी वस्तुओं के प्रयोग की ओर कवि ने ध्यान आकृष्ट करते हुए दुःख प्रकट किया है। हमारी घटिया मनोवृत्ति से कवि व्यथित है। उसके भीतर कूट-कूटकर भारतीयता भरी हुई है। इसी कारण वह भारतीय जन की बदलती हुई जीवन शैली से दु:खी है।

प्रश्न 4.
हिन्दुस्तानी नाम सुनि, अब ये सकुचि लजात।
भारतीय सब वस्तु ही, सों ये हाय घिनात॥
देस नगर बानक बनो, सब अंगरेजी चाल।
हाटन मैं देखहु भरा, बसे अंगरेजी माल॥
व्याख्या-
प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य-पुस्तक के ‘स्वदेशी’ काव्य-पाठ से ली गयी हैं। इन पंक्तियों के द्वारा कवि ने भारतीय जन चेतना के बदलते स्वरूप के प्रति खेद प्रकट किया है। कवि कहता है कि हिन्दुस्तानी नाम और उत्पादन को देखकर सभी लोग लेने से सकुचाते हैं और लजाते हैं। सारी भारतीय वस्तुओं से घृणा करते हैं। खेद की बात है कि सारी दुनिया के लोग अपने अस्तित्व और इतिहास की रक्षा करते हैं, सभ्यता और संस्कृति के पक्षधर हैं, जबकि हम अपने ही घर में, देश में अपने लोगों, अपनी वस्तुओं और अपनी भाषा एवं नाम से घृणा करते हैं। अंग्रेजियत को पसंद करते हैं। यह हमारे लिए काफी चिंतनीय है।

इन पंक्तियों के माध्यम से कवि कहना चाहता है हम अपनी नागरी भाषा को भूल गए हैं। सभी लोग अंग्रेजी चाल-ढाल में ढलते जा रहे हैं। हाट-बाट में भी अंग्रेजी माल की भरमान है और देशी-माल की ओर लोगों की निगाह भी नहीं जाती। सभी लोग पाश्चात्य संस्कृति, पहनावा, खान-पान, उत्पादनों के उपभोग में रुचि ले रहे हैं। यह हमारे लिए शर्म की बात है। हम भारतीय हैं तो भारतीयता के प्रति सजग रहना चाहिए, लेकिन हम पथ-विमुख होकर जी रहे हैं।

स्वदेशी कवि परिचय

प्रेमघन जी भारतेन्दु युग के महत्त्वपूर्ण कवि थे । उनका जन्म 1855 ई० में मिर्जापुर (उत्तर प्रदेश) में हुआ और निधन 1922 ई० में। वे काव्य और जीवन दोनों क्षेत्रों में भारतेन्दु हरिश्चन्द्र को अपना आदर्श मानते थे । वे निहायत कलात्मक एवं अलंकृत गद्य लिखते थे। उन्होंने भारत के विभिन्न स्थानों का भ्रमण किया था। 1874 ई० में उन्होंने मिर्जापुर में ‘रसिक समाज’ की स्थापना की। उन्होंने ‘आनंद कादंबिनी’ मासिक पत्रिका तथा ‘नागरी नीरद’ नामक साप्ताहिक पत्र का संपादन किया । वे साहित्य सम्मेलन के कलकत्ता अधिवेशन के सभापति भी रहे । उनकी रचनाएँ ‘प्रेमघन सर्वस्व’ नाम से संग्रहीत हैं।

प्रेमघन जी निबंधकार, नाटककार, कवि एवं समीक्षक थे । ‘भारत सौभाग्य’, ‘प्रयाग रामागमन’ उनके प्रसिद्ध नाटक हैं। उन्होंने ‘जीर्ण जनपद’ नामक एक काव्य लिखा जिसमें ग्रामीण जीवन का यथार्थवादी चित्रण है । प्रेमघन ने काव्य-रचना अधिकांशत: ब्रजभाषा और अवधी में की, किंतु युग के प्रभाव के कारण उनमें खड़ी बोलीं का व्यवहार और गद्योन्मुखता भी साफ दिखलाई पड़ती है । उनके काव्य में लोकोन्मुखता एवं यथार्थ-परायणता का आग्रह है । उन्होंने राष्ट्रीय स्वाधीनता की चेतना को अपना सहचर बनाया एवं साम्राज्यवाद तथा सामंतवाद का विरोध किया ।

‘प्रेमघन सर्वस्व’ से संकलित दोहों का यह गुच्छ ‘स्वदेशी’ शीर्षक के अंतर्गत यहाँ प्रस्तुत है। इन दोहों में नवजागरण का स्वर मुखरित है। दोहों की विषयवस्तु और उनका काव्य-वैभव इसके शीर्षक को सार्थकता प्रदान करते हैं । कवि की चिंता और उसकी स्वरभंगिमा आज कहीं
अधिक प्रासंगिक है।

स्वदेशी Summary in Hindi

पाठ का अर्थ

भारतेन्दु युग के प्रतिनिधि कवि प्रेमधन जी हिन्दी साहित्य के प्रखर कवि है। ये काव्य और जीवन दोनों क्षेत्रों में भारतेन्दु हरिश्चन्द्र को अपना आदर्श मानते थे। प्रेमधन जी निबंधकार नाटककार कवि एवं समीक्षक थे। इनकी काव्य रचना अधिकांशतः ब्रजभाषा और अवधी में है
युग के प्रभाव से खड़ी बोली का व्यवहार और गधोन्मुखता साफ झलकती है।

प्रस्तुत कविता में कवि राष्ट्रीय स्वाधीनता की चेतना को अपना सहचर बनाकर साम्राज्यवाद एवं सामंतवाद का विरोध किया है। लोगों की सोच उनके कुंठित मानसिकता का परिणाम है। आज विदेशियों वस्तुओं में लोगों की आसक्ति बढ़ गई है। भारतीयता का कहीं नामोनिशान नहीं दिखता है। हिन्दु, मुस्लमान, ईसाई आदि सभी पाश्चात्य संस्कृति को धड़ले से अपना रहे हैं। पठन-पाठन, खान-पान, पहनावा आदि सभी विदेशियों चीजों की तरफ आकर्षित हो गये हैं।

आज सर्वत्र अंग्रेजी का बोल-बाला है। पराधीन भारत की दुर्दशा बढ़ती जा रही है। हिन्दुस्तान के नाम लेने से कतराते हैं। बाजारों में अंग्रेजी वस्तुओं की भरमार है। स्वदेशी वस्तुओं को हेय की दृष्टि से देखते हैं। नौकरी पाने के लिए ठाकुर सुहाती करने में लगे हैं। वस्तुत: यहाँ कवि समस्त भारतवासियों को नवजागरण का पाठ पढ़ाना चाहता है। पराधीनता की बेड़ी को तोड़कर एक नया भारत की स्थापना करना चाहता है।

शब्दार्थ

गति : स्वभाव
रति : लगाव
रोत : पद्धति
मनुज भारती : भारतीय मनुष्य
क्रिस्तान : क्रिश्चियन, अंग्रेज
बसन : वस्त्र
बानक : बाना, वेशभूषा
खामखयाली : कोरी कल्पना
चारह बरन : चारों वर्गों में
डफाली : डफ बजानेवाला, बाजा बजानेवाला

Bihar Board Class 10 Hindi Solutions Varnika Chapter 1 दही वाली मंगम्मा

Bihar Board Class 10 Hindi Book Solutions Varnika Bhag 2 Chapter 1 दही वाली मंगम्मा Text Book Questions and Answers, Summary, Notes.

BSEB Bihar Board Class 10 Hindi Solutions Varnika Chapter 1 दही वाली मंगम्मा

Bihar Board Class 10 Hindi दही वाली मंगम्मा Text Book Questions and Answers

बोध और अभ्यास

Dahi Wali Mangamma Question Answer Bihar Board प्रश्न 1.
मंगम्मा का अपनी बहू के साथ किस बात को लेकर विवाद था?
उत्तर-
मंगम्मा ने अपनी बहू नंजम्मा को पोते को लेकर डाँटा था। एक दिन अपने बेटे की किसी गलती पर उनकी माँ नंजम्मा उसे पीट रही थी। पहले तो कुछ देर मंगम्मा चुप रही किन्तु जब रहा न गया तो मंगम्मा ने बहू से कहाँ- “क्यों री राक्षसी इस छोटे से बच्चे को क्यों पीट रही है ?” बस बहू चढ़ बैठी। खूब सुनाई उसने। जब मंगम्मा ने कहा कि मैं तुम्हारे घरवाले की माँ हूँ तो बहू ने भी कहा-“मैं भी इसकी माँ हूँ। मुझे क्या अकल सिखाने चली है ?” बात बढ़ गई। जब मंगम्मा ने बेटे से शिकायत की तो उसने कहा वह अपने बेटे को मारती है तो तुम क्यों उस झगड़े में पड़ती हो? मंगम्मा ने कहा- ‘बीबी ने तुझ पर जादू फेरा है बस, उसी दोपहर बहू ने मंगम्मा के बर्तन भांडे अलग कर दिए।

दही वाली मंगम्मा Bihar Board प्रश्न 2.
रंगप्पा कौन था और वह मंगम्मा से क्या चाहता था
उत्तर-
रंगजा रंगप्पा के गाँव का आदमी था। बड़ी शौकीन तबीयत का। कभी-कभार जूआ भी खेलता था। जब उसे पता चला कि मंगम्मा बेटे से अलग रहने लगी है तो वह मंगम्मा के पीछे पड़ गया। एक दिन उससे हाल-चाल पूछा और बोला कि मुझे रुपयों की जरूरत है। दे दो लौटा दूँगा। मंगम्मा ने जब कहा कि पैसे कहाँ हैं तो बोला कि पैसे यहाँ-वहाँ गाड़कर रखने से क्या फायदा दूसरे दिन रंगप्पा ने अमराई के पीछे रोककर बाँह पकड़ ली और कहा- ‘जरा बैठो मंगम्मा, जल्दी क्या है ? दरअसल, रंगप्पा लालची और लम्पट दोनों ही था।

Bihar Board Solution Class 10 Hindi प्रश्न 3.
बहू ने सास को मनाने के लिए कौन-सा तरीका अपनाया ?
उत्तर-
बहू को जब पता चला कि रंगप्पा उसकी सास मंगम्मा के पीछे पड़ गया है तो उसके कान खड़े हो गए। कहीं सास के रुपये-पैसे रंगप्पा न ले ले, इस आशंका से वह बेचैन हो गई। तब उसने योजना बनाई और अपने बेटे से कहा कि जा दादी पास तुझे मिठाई देती है न? अगर मेरे पास आया तो पीढूंगी। बस, बच्चा मंगम्मा के पास आकर रहने लगा। मंगम्मा भी उसे चाहती ही थी। एक दिन पोता जिद कर बैठा कि मैं भी बैंगलर चलँग। मंगम्मा क्या करे? माथे पर टोकरा, बगल में बच्चा! मुसीबत हो गई। तब बेटे-बहू ने आकर कहा कि उस दिन गलती हो गई। यूँ कैसे चलेगा? मंगम्मा अब खुशी-खुशी बेटे-बहू के साथ रहने लगी। धीरे-धीरे बहू ने शहर में दही बेचने का धंधा भी अपने हाथ में ले लिया। उसकी मंशा पूरी हो गई।

Dahi Wali Mangamma Bihar Board प्रश्न 4.
इस कहानी का कथावाचक कौन है ? उसका परिचय दीजिए।
उत्तर-
इस कहानी का कथावाचक लेखक की माँ है। लेखक की माँ प्रस्तुत कहानी का द्वितीय केन्द्रीय चरित्र है। कहानी की कथावस्तु लेखक की माँ के द्वारा ताना-बाना बुना गया है। मंगम्मा जब दही बेचने के लिए आती है तो लेखक के घर आती है और बढ़िया दही कुछ-न-कुछ बेचकर जाती है। धीरे-धीरे मगम्मा और लेखक की माँ में घनिष्ठता बढ़ती चली गई।

मगम्मा अपने घर-गृहस्थी का सारा हाल सुनाती है और लेखक की माँ उसे कुछ-न-कुछ सुझाव देती है। सास और बहू के अन्तर्कलह से परिवार बिखर जाता है। बेटे को समस्त सुख अर्पित करनेवाला माँ बहू के आते ही बेटे से अलग हो जाती है। मगम्मा के अन्तर्व्यथा को सुनकर लेखक की माँ का मन भी बोझिल हो जाता है। ममता की मूर्तिमान रहनेवाली नारी दुर्गा क्यों बन जाती है। इसका ज्वलंत उदाहरण लेखक की माँ को देखना-सुनना पड़ता है। जब कोई एक दूसरे को पसंद नहीं करता तब छोटी बातें भी बड़ी हो जाती है। मंगम्मा की बातें सुनते-सुनते लेखक की माँ का हृदय द्रवित हो जाता है।

Dahi Wali Mangamma Ka Question Answer Bihar Board प्रश्न 5.
मंगम्मा का चरित्र-चित्रण कीजिए।
उत्तर-
मंगम्मा प्रस्तुत कहानी का प्रमुख केन्द्रीय चरित्र है। कहानी की कथावस्तु इसके इर्द-गिर्द ही घूमती रहती है। पति से विरक्त रहनेवाली मंगम्मा शायद कभी ऐसी नहीं सोची होगी कि उसका बेटा पत्नी के दबाव में आकर उसको छोड़ सकता है। पत्नी का शृंगार पति है। मंगम्मा और उसकी बहू इस तथ्य को भली-भाँति समझती है। मंगम्मा दही बेचकर अपना जीवन-यापन करती है। दही लेकर वह अपने गाँव से शहर जाती है। और उसे बेचकर जो आमदनी होती है। उसी में वह कुछ संचय करती है।

वह जानती है कि पैसा ही उसका अपना जमा पूँजी हो वह भोली-भाली और सहृदयता वाली नमी है। अपने पोते के प्रति उसका अधिक झुकाव हो वस्तुतः मानव मूलधन से कहीं अधिक ब्याज पर जोर देता है। वह अपना सतीत्व बचाये रखना चाहती है। रंगप्पा द्वारा बार-बार उसका पीछे करने पर भी अपने कर्मपथ से विचलित नहीं होती है। पात का अभाव उसे रूप खटकता है। किन्तु पति के प्रति श्लेष मन्त्र भी क्षोभ नहीं है। मंगम्मा सम्पूर्ण भारतीय नारीत्व का प्रतिनिधित्व करती है।

Class 10th Hindi Bihar Board प्रश्न 6.
मंगम्मा का चरित्र-चित्रण कीजिए।
उत्तर-
मंगम्मा कथा-नायिका मंगम्मा की बहू है। वह बहुत तेज-तर्रार है। अपने काम में किसी प्रकार की दखलंदाजी सहन नहीं करती। बेटे की किसी गलती पर जब उसे पीटती और मंगम्मा जब मना करती है तो उस पर चढ़ बैठती है। कहती है कि मैं बेटे की माँ हूँ-जैसे चाहूँगी रखुंगी। वह अपने पति पर भी काबू रखती है और तर्क से सबको हराती भी है। मंगम्मा जब मखमल का जाकिट पहनती है तो व्यंग्य भी करती है और लेन-देन की बात उठने पर मंगम्मा के लिए गहने-जेवर महिला को वापस ले लेने को भी कह देती है।

नंगम्मा तेज-तर्रार होने के साथ लोगों की कमजोरी जाननेवाली अत्यन्त चतुर भी है जब उसे मंगम्मा द्वारा रुपया-पैसा किसी और को दिए जाने की आशंका होती है तो अपने बेटे को मंगम्मा के पास रहने के लिए भेज देती है और मौका देखकर पति के साथ जाकर माफी माँग लेती है और अपने यहाँ ले आती है। इतना ही नहीं वह धीरे-धीरे मंगम्मा का दही बेचने का धंधा भी खुद शुरू कर देती है।
इस प्रकार नंजम्मा तेज-तर्रार, दूरदर्शी और व्यवहार कुशल नारी है।

Bihar Board Class 10 Hindi Book Solution प्रश्न 7.
कहानी का सारांश प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर-
प्रस्तुत कहानी कन्नड़ कहानियाँ (नेशल बुक ट्रस्ट, इंडिया) से सभार ली गयी है। इस कहानी का अनुवाद बी आर नारायण ने किया है। इस कहानी का प्रमुख केन्द्रीय चरित्र मंगम्मा और द्वितीय चरित्र लेखक की माँ है। मंगम्मा पति विरक्ता हो घर के अन्तर्कलह से दुःखी होकर वह जीवन-यापन करने के लिए दही बेचती है। वह गांव से शहर जाती है और दही बेचकर कुछ पैसे संचय करती है। संचय का सत्य है कि सास और बहू में स्वतंत्रता की होड़ लगी रहती है। माँ बेटे पर से अपना हक नहीं छोड़ती और बहू पति पर अधिकार जमाना चाहती है। पोते की पिटाई से क्षुब्ध मंगम्मा अपनी बहू को भला-बुरा कह देती है।

सास और बहू का विवाद घर में अन्तर्कलह को जन्म दे देता है। बहू-और-बेटे मंगम्मा को अलग रहने के लिए विवश कर देते हैं। दही बेचकर किसी तरह जीवन मापन करने वाली मंगम्मा कुछ पैसे इकट्ठा कर लेती है। जब बहू को यह ज्ञात हो जाता है कि उसकी सास रंगप्पा को कर्ज देनेवाली ही तो वह अपने को बेटे को ढाल बनाती है। वह बेटे को दादी के पास ही रहने के लिए उसकाती है। धीरे-धीरे सास और बहू में संबंध सुधरता जाता है। एक दिन मंगम्मा स्वयं बहू को लेकर दही बेचने के लिए जाती है।

लोगों से अपनी बहू का परिचय देती है और कहती है कि अब दही उसकी बहू ही बेचने के लिए आयेगी। वस्तुतः इस कहानी के द्वारा यह सीख दी गई है कि पानी में खड़े बच्चे का पाव खींचनेवाले मगरमच्छ जैसी दशा बहू की है और ऊपर से बाँह पकड़कर बचाने जैसी दशा माँ की होती है।

विस्तुनिष्ठ प्रश्व

I. सही विकल्प चुनें

Bihar Board Hindi Book Class 10 Pdf Download प्रश्न 1.
दही वाली मंगम्मा के रचयिता हैं
(क) सात कौड़ी होता
(ख) ईश्वर पेटलीकर
(ग) श्री निवास
(घ) प्रेमचन्द
उत्तर-
(ग) श्री निवास

बिहार बोर्ड हिंदी बुक 10  प्रश्न 2.
श्री निवास साहित्यकार हैं………………
(क) गुजराती
(ख) कन्नड़
(ग) राजस्थानी
(घ) तमिल
उत्तर-
(ख) कन्नड़

दही वाली मंगम्मा हिंदी कहानी Bihar Board प्रश्न 3.
मंगम्मा बरसों से बारी में दिया करती थी…………….
(क) दूध
(ख) चावल
(ग) मछली
(घ) दही
उत्तर-
(घ) दही

Bihar Board Class 10th Hindi Solutions प्रश्न 4.
नंजमा पंगम्मा की…………”धी।।
(क) बेटी
(ख) माँ
(ग) पुत्र वधू
(घ) सास
उत्तर-
(ग) पुत्र वधू

प्रश्न 5.
श्री निवास का पूरा नाम है……………….
(क) साँवर दइया |
(ख) सुजाता
(ग) आरती वेंकटेश अटयंगर
(घ) सात कोड़ीहोता
उत्तर-
(ग) आरती वेंकटेश अटयंगर

II. रिक्त स्थानों की पूर्ति करें-

प्रश्न 1.
जितना झगड़ा होता है उतनी …………. बढ़ती है।
उत्तर-
उमर

प्रश्न 2.
‘दही वाली मंगम्मा’ कहानी के रचयिता ………… हैं।
उत्तर-
श्री निवास

प्रश्न 3.
श्री निवास का पूरा नाम ………… है।
उत्तर-
भारती वेंकटेश अय्यंगर

प्रश्न 4.
श्री निवास …………… साहित्यकार हैं।
उत्तर-
कन्नड़

प्रश्न 5.
मंगम्मा बरसों से …………… में दही दिया करती थी।
उत्तर-
बारी

प्रश्न 6.
शादी के बाद ……….. अपना रहता है ?
उत्तर-
बंटा

प्रश्न 7.
जब कोई एक-दूसरे को पसंद नहीं करता तो छोटी ……. भी बड़ी हो जाती है।
उत्तर-
बात

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
रंगप्पा कौन था और वह क्या चाहता था ?
उत्तर-
रंगप्पा मंगम्मा के गाँव का जुआड़ी था और मंगम्मा से रुपये चाहता था।

प्रश्न 2.
सास-बहू की लड़ाई में मंगम्मा के बेटे ने किसका साथ दिया ?
उत्तर-
सास-बहु की लड़ाई में मंगम्मा के बेटे ने अपनी पत्नी का साथ दिया।

प्रश्न 3.
मंगम्मा और उसकी बहू नंजम्मा में झगड़ा क्यों हुआ?
उत्तर-
मंगम्मा और उसकी बहू नंजम्मा में पोते की पिटाई को लेकर झगड़ा हुआ।

प्रश्न 4.
मंगम्मा की बहू नंजम्मा ने अपनी सास से क्यों समझौता कर लिया ?
उत्तर-
मंगम्मा की बहू नंजम्मा ने अपनी सास से इसलिए समझोता कर लिया कि कहीं सास दूसरे व्यक्ति को रुपये न दं ।

प्रश्न 5.
मंगम्मा कौन थी?
उत्तर-
मंगम्मा बारी में दही बेचने वाली थी।

दही वाली मंगम्मा लेखक परिचय

श्रीनिवास जी का पूरा नाम मास्ती वेंकटेश अय्यंगार है । उनका जन्म 6 जून 1891 ई० में कोलार, कर्नाटक में हुआ था । श्रीनिवास जी का देहावसान हो चुका है । वे कन्नड़ साहित्य के सर्वाधिक प्रतिष्ठित रचनाकारों में एक हैं। उन्होंने कविता, नाटक, आलोचना, जीवन-चरित्र आदि साहित्य की प्रायः सभी विधाओं में उल्लेखनीय योगदान दिया। साहित्य अकादमी ने उनके कहानी संकलन ‘सण्णा कथेगुलु’ को सन् 1968 में पुरस्कृत किया । उन्हें ज्ञानपीठ पुरस्कार भी प्राप्त हुआ। यह कहानी ‘कन्नड़ कहानियाँ’ (नेशनल बुक ट्रस्ट, इंडिया) से साभार ली गयी है । इस कहानी का अनुवाद बी० आर० नारायण ने किया है।