Bihar Board Class 10 Science Solutions Chapter 16 प्राकृतिक संसाधनों का संपोषित प्रबंधन

BSEB Bihar Board Class 10 Science Solutions Chapter 16 प्राकृतिक संसाधनों का संपोषित प्रबंधन

Bihar Board Class 10 Science Solutions Chapter 16 प्राकृतिक संसाधनों का संपोषित प्रबंधन Textbook Questions and Answers, Additional Important Questions, Notes.

Bihar Board Class 10 Science प्राकृतिक संसाधनों का संपोषित प्रबंधन InText Questions and Answers

अनुच्छेद 16.1 पर आधारित

प्रश्न 1.
पर्यावरण-मित्र बनने के लिए आप अपनी आदतों में कौन-से परिवर्तन ला सकते
उत्तर:
हम कई तरीकों से और अधिक पर्यावरण-मित्र बन सकते हैं; जैसे-हम तीन ‘R’ जैसी कहावतों पर काम कर सकते हैं, अर्थात् उपयोग कम करना, पुनः चक्रण तथा पुनः उपयोग। इन कहावतों को अपनी आदतों में शामिल करके हम और अधिक पर्यावरण-मित्र बन सकते हैं।

प्रश्न 2.
संसाधनों के दोहन के लिए कम अवधि के उद्देश्य के परियोजना के क्या लाभ हो सकते हैं?
उत्तर:
इससे यह लाभ हो सकता है कि बिना किसी उत्तरदायित्व के अधिक-से-अधिक मुनाफा प्राप्त किया जा सकता है।

प्रश्न 3.
यह लाभ, लंबी अवधि को ध्यान में रखकर बनाई गई परियोजनाओं के लाभ से किस प्रकार भिन्न हैं?
उत्तर:
कम-उद्देश्य में परियोजनाओं का एकमात्र लाभ है कि संसाधनों के अधिक-से-अधिक दोहन द्वारा हम अधिक-से-अधिक लाभ प्राप्त करते हैं। इन योजनाओं के तहत भावी पीढ़ियों के लिए हमारा . कोई उत्तरदायित्व ध्यान में नहीं होता। दूसरी तरफ, लंबी अवधि की योजनाओं का उद्देश्य संसाधनों का संपोषित विकास के लिए उपयोग करते हुए, आने वाली पीढ़ियों के उपयोग के लिए भी उन्हें सुरक्षित रखना होता है।

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प्रश्न 4.
क्या आपके विचार में संसाधनों का समान वितरण होना चाहिए? संसाधनों के समान वितरण के विरुद्ध कौन-कौन सी ताकतें कार्य कर सकती हैं?
उत्तर:
हमारी धरती सभी के लिए उपलब्ध है। सभी प्राणियों का इसके संसाधनों पर समान अधिकार है। यदि कोई व्यक्ति इन संसाधनों का अत्यधिक उपयोग कर रहा है तो इसका सीधा मतलब है कि किसी को इसकी कमी झेलनी पड़ रही होगी। फलतः एक संघर्ष शुरू होता है जिससे पर्यावरण को नुकसान पहुँचता है। किंतु मुट्ठी भर कुछ अमीर और शक्तिशाली लोग हैं जो संसाधनों का समान वितरण नहीं चाहते। वे इन संसाधनों को अपने लिए लाभ के एक विशाल स्रोत के रूप में देखते हैं।

अनुच्छेद 16.2 पर आधारित

प्रश्न 1.
हमें वन एवं वन्य जीवन का संरक्षण क्यों करना चाहिए?
उत्तर:
वन जैव विविधता के तप्त स्थल हैं। किसी क्षेत्र की जैव विविधता को जानने का एक तरीका वहाँ पाए जाने वाली प्रजातियों की संख्या है। हालाँकि अनेक प्रकार के जीवों (बैक्टीरिया, कवक, फर्न, फूल वाले पौधे, कीड़े, केंचुआ, पक्षी, सरीसृप आदि) का होना भी महत्त्वपूर्ण है। संरक्षण का एक महत्त्वपूर्ण उद्देश्य विरासत से प्राप्त जैव विविधताओं की सुरक्षा है। प्रयोगों तथा वस्तुस्थिति के अध्ययन से हमें पता चलता है कि विविधता के नष्ट होने से पारिस्थितिक स्थायित्व भी नष्ट हो सकता है।

प्रश्न 2.
संरक्षण के लिए कुछ उपाय सुझाइए।
उत्तर:
वन संसाधनों का उपयोग इस प्रकार करना होगा कि यह पर्यावरण एवं विकास दोनों के हित में हो। दूसरे शब्दों में जब पर्यावरण अथवा वन संरक्षित किए जाएँ, तो उनके सुनियोजित उपयोग का लाभ स्थानीय लोगों को मिलना चाहिए। यह विकेन्द्रीकरण की एक ऐसी व्यवस्था है जिससे आर्थिक विकास एवं पारिस्थितिक संरक्षण दोनों साथ-साथ चल सकते हैं।

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अनुच्छेद 16.3 पर आधारित

प्रश्न 1.
अपने निवास क्षेत्र के आस-पास जल संग्रहण की परंपरागत पद्धति का पता लगाइए।
उत्तर:
जल संग्रहण भारत में पुरानी पद्धति है। राजस्थान में खादिन, बड़े पात्र एवं नाड़ी, महाराष्ट्र में बंधारस एवं ताल, मध्य प्रदेश एवं उत्तर प्रदेश में बंधिस, बिहार में आहार तथा पाइन, हिमाचल प्रदेश में कुल्ह, जम्मू के काँदी क्षेत्र में तालाब तथा तमिलनाडु में एरिस, केरल में सुरंगम, कर्नाटक में कट्टा आदि प्राचीन जल संग्रहण तथा जल परिवहन संरचनाएँ आज भी उपयोग में हैं। हमारे क्षेत्र, राजस्थान में खादिन, अत्यधिक प्रचलित है।

15वीं सदी में सबसे पहले पश्चिमी राजस्थान में, जैसलमेर के पालीवाल ब्राह्मणों द्वारा डिजाइन की गई यह प्रणाली राज्य के कई हिस्सों में आज भी प्रचलन में है। खादिन जिसे ‘ढोरा’ भी कहा जाता है, जमीन पर बहते हुए पानी को कृषि में उपयोग करने के लिए विकसित की गई थी। इसकी प्रमुख विशेषता निचली पहाड़ी की ढलानों के आर-पार पूर्वी छोर पर बनाए जाने वाला लंबा (100-300 मी) बाँध है। इसमें पानी की आधिक्य मात्रा को बाहर निकालने की भी व्यवस्था होती है। खादिन पद्धति खेतों में बहने वाले वर्षा जल के संग्रहण पर आधारित प्रणाली है। बाद में जल तृप्त जमीन का उपयोग विभिन्न फसलों के उत्पादन के लिए किया जाता है।

प्रश्न 2.
इस पद्धति की पेय जल व्यवस्था (पर्वतीय क्षेत्रों में, मैदानी क्षेत्र अथवा पठार क्षेत्र) से तुलना कीजिए।
उत्तर:
पहाड़ी क्षेत्रों में जल संभर प्रबंधन, मैदानी क्षेत्रों से पूर्ण रूप से भिन्न होता है। जैसे-हिमाचल प्रदेश के कुछ हिस्सों में आज से करीब चार सौ वर्ष पहले, नहर सिंचाई की एक स्थानीय प्रणाली विकसित की गई जिसे कुल्ह कहा जाता था। नदियों में बहने वाले जल को मानव-निर्मित छोटी-छोटी नालियों द्वारा पहाड़ी के नीचे के गाँवों तक पहुँचाया जाता था। इन कुल्हों में बहने वाले पानी का प्रबंधन गाँवों के लोग आपसी सहमति से करते थे।

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यह जानना बड़ा रोचक होगा कि कृषि के मौसम में जल सबसे पहले दूरस्थ गाँव को दिया जाता था फिर उत्तरोत्तर ऊँचाई पर स्थित गाँव उस जल का उपयोग करते थे। कुल्ह की देख-रेख एवं प्रबंध के लिए दो-तीन लोग रखे जाते थे, जिन्हें गाँव वाले वेतन देते थे। सिंचाई के अतिरिक्त इस कुल्ह से जल का भूमि में अंत:स्रवण भी होता रहता था जो विभिन्न स्थानों पर झरने को भी जल प्रदान करता रहता था।

प्रश्न 3.
अपने क्षेत्र में जल के स्रोत का पता लगाइए। क्या इस स्रोत से प्राप्त जल उस क्षेत्र के सभी निवासियों को उपलब्ध है?
उत्तर:
हमारे क्षेत्र में जल के मुख्य स्रोत भूमिगत जल तथा नगर-निगम द्वारा आपूर्ति. जल हैं। कभी-कभी खासकर गर्मी के दिनों में इन स्रोतों से प्राप्त होने वाले जल में कुछ कमी आ जाती है तथा इनकी समान उपलब्धता भी सम्भव नहीं होती।

Bihar Board Class 10 Science प्राकृतिक संसाधनों का संपोषित प्रबंधन Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
अपने घर को पर्यावरण-मित्र बनाने के लिए आप उसमें कौन-कौन से परिवर्तन सुझा सकते हैं?
उत्तर:
तीन ‘R’ अर्थात् उपयोग कम करना, पुनः चक्रण तथा पुनः उपयोग को लागू करके हम पर्यावरण को प्रभावी ढंग से सुरक्षित रख सकते हैं। उपयोग कम करने का अर्थ है कम-से-कम वस्तुओं का प्रयोग करना। हम बिजली के पंखे एवं बल्ब का स्विच बंद करके विद्युत का अपव्यय रोक सकते हैं। हम टपकने वाले नल की मरम्मत कराकर जल की बचत कर सकते हैं।

हमें अपने भोजन को फेंकना नहीं चाहिए। पुनः चक्रण का अर्थ है प्लास्टिक, काँच, धातु की वस्तुएँ तथा ऐसे ही पदार्थों के पुनः चक्रण द्वारा दूसरी उपयोगी वस्तुओं के निर्माण में प्रयोग। जब तक आवश्यक न हो हमें इनका नया उत्पाद/संश्लेषण नहीं करना चाहिए। पुन: उपयोग का अर्थ है किसी वस्तु का बार-बार उपयोग करना। उदाहरण के लिए, प्रयुक्त लिफाफों को फेंकने की जगह इनका हम फिर से उपयोग कर सकते हैं।

प्रश्न 2.
क्या आप अपने विद्यालय में कुछ परिवर्तन सुझा सकते हैं जिनसे इसे पर्यानुकूलित बनाया जा सके।
उत्तर:
हम अपने विद्यालय में तीन ‘R’ को लागू करके इसे पर्यानुकूलित बना सकते हैं।

प्रश्न 3.
इस अध्याय में हमने देखा कि जब हम वन एवं वन्य जंतुओं की बात करते हैं तो चार मुख्य दावेदार सामने आते हैं। इनमें से किसे वन उत्पाद प्रबंधन हेतु निर्णय लेने के अधिकार दिए जा सकते हैं? आप ऐसा क्यों सोचते हैं?
उत्तर:
इन चार दावेदारों; जैसे-वन के अंदर एवं इसके निकट रहने वाले लोगों, सरकार का वन विभाग, उद्योगपति तथा वन्य जीवन एवं प्रकृति-प्रेमी में मेरे विचार से उत्पादों के प्रबंधन हेतु निर्णय लेने के अधिकार दिये जाने के लिए स्थानीय लोग सर्वाधिक उपयुक्त हैं। क्योंकि स्थानीय लोग वन का संपोषित तरीके से उपयोग करते हैं। सदियों से ये स्थानीय लोग इन वनों का उपयोग करते आ रहे हैं साथ ही इन्होंने ऐसी पद्धतियों का भी विकास किया है जिससे संपोषण होता आ रहा है तथा आने वाली पीढ़ियों के लिए उत्पाद बचे रहेंगे।

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इसके अतिरिक्त गड़रियों द्वारा वनों के पारंपरिक उपयोग ने वन के पर्यावरण संतुलन को भी सुनिश्चित किया है। दूसरी तरफ वनों के प्रबंधन से स्थानीय लोगों को दूर रखने का हानिकारक प्रभाव वन की क्षति के रूप में सामने आ सकता है। वास्तव में वन संसाधनों का उपयोग इस प्रकार करना होगा कि यह पर्यावरण एवं विकास दोनों के हित में हो तथा नियन्त्रित दोहन का फायदा स्थानीय लोगों को प्राप्त हो।

प्रश्न 4.
अकेले व्यक्ति के रूप में आप निम्न के प्रबंधन में क्या योगदान दे सकते हैं?
(a) वन एवं वन्य जंतु
(b) जल संसाधन
(c) कोयला एवं पेट्रोलियम
उत्तर:
(a) वन एवं वन्य जंतु स्थानीय लोगों की भागीदारी के बिना वनों का प्रबंधन संभव नहीं है। इसका एक सुंदर उदाहरण अराबारी वन क्षेत्र है जहाँ एक बड़े क्षेत्र में वनों का पुनर्भरण संभव हो सका। अतः मैं लोगों की सक्रिय भागीदारी को सुनिश्चित करना चाहूँगा। मैं संपोषित तरीके से संसाधन के समान वितरण पर जोर देना चाहूँगा ताकि इसका फायदा सिर्फ मुट्ठी भर अमीर एवं शक्तिशाली लोगों को ही प्राप्त न हो।
(b) जल संसाधन अपने दैनिक जीवन में हम जाने-अनजाने पानी की एक बहुत मात्रा का अपव्यय करते हैं जिसे निश्चित रूप से रोका जाना चाहिए। मैं यह सुनिश्चित करना चाहूँगा कि मुझमें ऐसी आदतों का विकास हो जिसके द्वारा पानी बचाना सम्भव हो सके। इसके अतिरिक्त किसी जल संभर तकनीकी की सहायता से भी जल को संरक्षित किया जा सकता है।
(c) कोयला एवं पेट्रोलियम वर्तमान में ये ऊर्जा के मुख्य स्रोत हैं। इन्हें हम कई तरीकों से बचा सकते हैं।

उदाहरण के लिए –

  1. ट्यूबलाइट का उपयोग करके।
  2. अनावश्यक बल्ब तथा पंखों का स्विच बंद करके।
  3. सौर उपकरणों का उपयोग करके।
  4. वाहनों की जगह पैदल अथवा साइकिल द्वारा छोटी दूरियाँ तय करके।
  5. यदि हम वाहन का प्रयोग करते हैं, तो जब हम रेड लाइट पर रुकते हैं तो हमें अपने वाहन के इंजन को बंद कर देना चाहिए।
  6. लिफ्ट की जगह सीढ़ियों का इस्तेमाल करके।
  7. वाहनों के टायरों में हवा का उपयुक्त दबाव रखकर।

प्रश्न 5.
अकेले व्यक्ति के रूप में आप विभिन्न प्राकृतिक उत्पादों की खपत कम करने के लिए क्या कर सकते हैं?
उत्तर:
विभिन्न प्राकृतिक उत्पादों की खपत निम्नलिखित तरीकों से कम की जा सकती है –

  1. अनावश्यक बल्ब तथा पंखे बन्द करके हम बिजली की बचत कर सकते हैं।
  2. बल्ब की जगह हम ट्यूबलाइट का उपयोग कर सकते हैं।
  3. लिफ्ट की जगह सीढ़ी का इस्तेमाल करके हम बिजली की बचत कर सकते हैं।
  4. छोटी दूरियाँ तय करने के लिए हम वाहनों की जगह पैदल अथवा साइकिल का उपयोग करके पेट्रोल की बचत कर सकते हैं।
  5. जब गाड़ियाँ रेड लाइट पर खड़ी होती हैं तो उनका इंजन बंद करके हम पेट्रोल की बचत कर सकते हैं।
  6. टपकने वाले नलों की मरम्मत कराकर हम पानी की बचत कर सकते हैं।
  7. हम भोजन को व्यर्थ में न फेंककर, भोजन की बचत कर सकते हैं।

प्रश्न 6.
निम्न से संबंधित ऐसे पाँच कार्य लिखिए जो आपने पिछले एक सप्ताह में किए हैं –
(a) अपने प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण।
(b) अपने प्राकृतिक संसाधनों पर दबाव को और बढ़ाया है।
उत्तर:
(a) अपने प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण –

  1. अनावश्यक पंखे एवं बल्ब को बंद करके हमने बिजली बचाई।
  2. वाहन की जगह पैदल चलकर हमने पेट्रोल बचाया।
  3. हमने टपकने वाले नल की मरम्मत कराकर पानी बचाया।
  4. हमने लिफ्ट की जगह सीढ़ियों का इस्तेमाल कर बिजली बचाई।
  5. हमने चटनियों की खाली बोतल का उपयोग मसाले रखने के लिए किया।

(b) अपने प्राकृतिक संसाधनों पर दबाव को और बढ़ाया है –

  1. दाढ़ी बनाते समय हमने पानी का अपव्यय किया है।
  2. मैं सो गया किंतु टेलीविजन चलता रहा।
  3. कमरे को गर्म रखने के लिए बिजली उपकरणों का उपयोग किया।
  4. ट्यूबलाइट की जगह बल्ब का उपयोग किया।
  5. अपना भोजन फेंका।

प्रश्न 7.
इस अध्याय में उठाई गई समस्याओं के आधार पर आप अपनी जीवन-शैली में क्या परिवर्तन लाना चाहेंगे जिससे हमारे संसाधनों के संपोषण को प्रोत्साहन मिल सके?
उत्तर:
हम अपनी जीवन शैली में तीन ‘R’ की संकल्पना को लागू करना चाहेंगे। ये तीन ‘R’ हैं-कम करना, पुनः चक्रण, पुनः उपयोग। ये संसाधनों के संपोषित उपयोग में हमारी मदद करते हैं।

Bihar Board Class 10 Science प्राकृतिक संसाधनों का संपोषित प्रबंधन Additional Important Questions and Answers

बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
निम्न में से कौन प्राकृतिक संसाधन नहीं है?
(a) जल
(b) वायु
(c) पर्वत
(d) कूड़ा-करकट
उत्तर:
(d) कूड़ा-करकट

प्रश्न 2.
निम्न में से कौन प्राकृतिक संसाधन है?
(a) सीमेंट
(b) ईंट
(c) बाँध
(d) समुद्र
उत्तर:
(d) समुद्र

प्रश्न 3.
गंगा सफाई योजना कब प्रारंभ हुई थी?
(a) 1985 ई०
(b) 1955 ई०
(c) 2005 ई०
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(a) 1985 ई०

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प्रश्न 4.
कोलिफॉर्म समूह है –
(a) विषाणु का
(b) जीवाणु का
(c) प्रोटोजोआ का
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(b) जीवाणु का

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
यूरो-1 तथा यूरो – II मानक क्या हैं?
उत्तर:
यूरो – I में ईंधन से मुक्त CO2 का उत्सर्जन स्तर 2.75 ग्राम/किमी तथा यूरो – II में यह स्तर 2.20 ग्राम/किमी है। इसके फलस्वरूप प्रदूषण स्तर में काफी कमी आ गई है।

प्रश्न 2.
वन संरक्षण हेतु सबसे उपयोगी विधि क्या हो सकती है?
उत्तर:
स्थानीय नागरिकों को वन संरक्षण का प्रबन्धन दिया जाना चाहिए, क्योंकि ये वन का संपोषित तरीके से उपयोग करते हैं।

प्रश्न 3.
किन्हीं दो वन उत्पाद आधारित उद्योगों के नाम बताइए।
उत्तर:
1. प्लाईवुड उद्योग में लकड़ी का उपयोग किया जाता है।
2. बीड़ी उद्योग में तेंदूपत्ता का उपयोग किया जाता है।

प्रश्न 4.
विभिन्न प्राकृतिक संसाधन कौन-से हैं?
उत्तर:
मृदा, जल, वायु, वन्य-जीव, कोयला, पेट्रोलियम आदि विभिन्न प्राकृतिक संसाधन हैं।

प्रश्न 5.
कोयला और पेट्रोलियम के उपयोग को कम करने के लिए दो उपाय बताइए।
उत्तर:
1. कोयला के उपयोग को कम करने के लिए हमें विद्युत की खपत पर नियन्त्रण रखना होगा।
2. पेट्रोलियम के उपयोग को कम करने के लिए सामुदायिक वाहनों के प्रयोग के लिए जनसमुदाय को प्रेरित करना चाहिए।

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प्रश्न 6.
‘खादिन’ या ‘ढोरा’ पद्धति किससे सम्बन्धित हैं?
उत्तर:
खादिन या ढोरा पद्धति खेतों में बहने वाले वर्षा जल के संग्रहण पर आधारित प्रणाली हैं। इस जल का उपयोग फसल उत्पादन के लिए किया जाता है।

प्रश्न 7.
क्योटो प्रोटोकॉल समझौता क्या है?
उत्तर:
कार्बन डाइऑक्साइड तथा हरित गैस उत्सर्जन स्तर में 1990 की तुलना में 5.2% कमी लाने का लक्ष्य निर्धारित करने के लिए 1997 में जापान के क्योटो शहर में यह समझौता लागू किया गया था।

उत्तर 8.
पर्यटक किस प्रकार वन पर्यावरण को क्षति पहुँचाते हैं?
उत्तर:
पर्यटक कूड़ा-कचरा, प्लास्टिक की बोतलें, पॉलिथीन, टिन पैक आदि को इधर-उधर फेंककर वन पर्यावरण को प्रदूषित करते हैं। पर्यटकों को वन क्षेत्रों में लाने ले जाने के लिए प्रयोग किए जाने वाहनों से मुक्त विषाक्त गैसें पर्यावरण को प्रदूषित करती हैं।

प्रश्न 9.
अमृता देवी विश्नोई राष्ट्रीय पुरस्कार क्यों दिया जाता है?
उत्तर:
अमृता देवी विश्नोई ने 1731 में ‘खेजरी वृक्षों’ को बचाने के लिए 363 व्यक्तियों के साथ स्वयं को बलिदान कर दिया था। उनकी स्मृति में जीव संरक्षण हेतु यह पुरस्कार दिया जाता है।

प्रश्न 10.
वन उत्पादों की एक सूची बनाइए।
उत्तर:
लकड़ी, बाँस, जड़ी-बूटी, औषधि, विभिन्न प्रकार के कन्द-मूल फल, मछली एवं पशुओं का चारा आदि।

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प्रश्न 11.
राष्ट्रीय उद्यानों में पशुओं को चराना किस प्रकार हानिकारक है?
उत्तर:
राष्ट्रीय उद्यानों में पशुओं को चराने से मिट्टी उखड़ जाती है, घास आदि कुचल जाती है। इससे मृदा अपरदन होने लगता है। इससे राष्ट्रीय उद्यान को क्षति होती है।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन विनियमन के अन्तर्राष्ट्रीय मानकों को प्राप्त करने के लिए हम किस प्रकार सहयोग कर सकते हैं?
उत्तर:
कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन विनियमन हेतु निम्नलिखित प्रयास किए जा सकते हैं –

  • स्वचालित वाहन का उपयोग कम करें; यथासम्भव सामुदायिक वाहनों का उपयोग किया जाना चाहिए। चौराहों पर लाल बत्ती होने पर इंजन को बन्द कर दें। इंजन को समय-समय पर ट्यून कराते रहें।
  • छोटी दूरी तय करने के लिए पैदल चलें या साइकिल का प्रयोग करें।
  • विद्युत का उपयोग करते समय ध्यान रखें कि कम-से-कम और आवश्यकता के अनुरूप ही उपकरणों का प्रयोग हो। विद्युत उत्पादन के समय प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से CO2 का उत्सर्जन होता है।
  • वृक्षारोपण के लिए जनसामान्य को जागरूक करने के लिए अभियान चलाया जाना चाहिए।

प्रश्न 2.
सार्वसूचक (universal indicator) की सहायता से अपने घर में आपूर्त पानी का pH ज्ञात कीजिए।
उत्तर:
सार्वसूचक (universal indicator) एक pH सूचक है, जो pH के विभिन्न मान वाले विलयनों में विभिन्न रंग प्रदर्शित करता है। अम्ल स्वाद में खट्टे होते हैं। ये नीले लिटमस को लाल कर देते हैं। क्षारकों का स्वाद कडुवा होता है। यह लाल लिटमस को नीला कर देते हैं। लिटमस एक प्राकृतिक सूचक होता है। पानी के नमूनों को अलग-अलग परखनली या बीकर में लेते हैं, इनमें लिटमस कागज डालने पर कागज के रंग में आने वाले परिवर्तनों से पानी के नमूने की प्रकृति ज्ञात की जा सकती है। यदि रंग में कोई परिवर्तन नहीं होता तो वह जल का नमूना उदासीन होता है। उदासीन जल का pH मान 7 होता है। pH मान 7 से कम होना अम्लीयता को और अधिक होना क्षारीयता को प्रदर्शित करता है।

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रंग और निष्कर्ष –
लाल – अत्यधिक अम्लीय
नारंगी – अम्लीय
नीला – क्षारीय
बैंगनी – अत्यधिक क्षारीय

प्रश्न 3.
वनों के समीपवर्ती क्षेत्र में रहने वाले स्थानीय निवासियों की क्या आवश्यकताएँ हैं?
उत्तर:
वनों के समीपवर्ती क्षेत्र में रहने वाले स्थानीय निवासियों को जलाने के लिए लकड़ी, छाजन एवं आवास के लिए लकड़ी की अधिक आवश्यकता होती है। भोजन के भण्डारण के लिए कृषि उपकरणों, शिकार करने और मछली आदि पकड़ने के लिए औजार लकड़ी से बने होते हैं। स्थानीय निवासी वनों से कन्द, मूल, फल तथा औषधि प्राप्त करते हैं। अपने पालतु पशुओं को वनों में चराते हैं और वनों से ही पशुओं के लिए चारा प्राप्त करते हैं। वन क्षेत्र से ये भोजन हेतु जन्तु और मछली प्राप्त करते हैं। ये अपने दैनिक उपभोग की लगभग सभी वस्तुएँ वन से प्राप्त कर लेते हैं।

प्रश्न 4.
कार्बन डाइऑक्साइड के उत्सर्जन के विनियमन के लिए अन्तर्राष्ट्रीय मानक का पता लगाइए।
उत्तर:
क्योटो प्रोटोकॉल में CO2 के उत्सर्जन के विनियमन के लिए अन्तर्राष्ट्रीय मानकों की चर्चा की गई थी। इस समझौते के अनुसार औद्योगिक राष्ट्रों को अपने CO2 तथा अन्य ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन स्तर में 5.2% की कमी लाने के लिए कहा गया था। ऑस्ट्रेलिया एवं आइसलैण्ड के लिए यह मानक क्रमशः 8% तथा 10% निर्धारित किया गया। क्योटो प्रोटोकॉल समझौता जापान के क्योटो शहर में दिसम्बर 1997 में हुआ था और इसे 16 फरवरी 2005 को लागू किया गया। दिसम्बर 2006 तक 169 देशों ने इस समझौते का अनुमोदन कर दिया था।

प्रश्न 5.
पर्यावरण संरक्षण के उद्देश्य प्राप्ति के लिए आप क्या योगदान दे सकते हैं?
उत्तर:
पर्यावरण को बचाने के लिए 3R तकनीक का उपयोग करके इस समस्या का प्रभावी समाधान प्रस्तुत कर सकते हैं। जल, कोयला, पेट्रोलियम, विद्युत, धातु तथा अन्य अनेक प्राकृतिक संसाधनों का कम उपयोग (Reduce), पुनः चक्रण (Recyling) तथा पुन: उपयोग (Reuse) करके पर्यावरण संरक्षण कर सकते हैं।

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प्रश्न 6.
ऐसे क्षेत्रों की पहचान कीजिए जहाँ पर जल की प्रचुरता है तथा ऐसे क्षेत्रों की जहाँ इसकी बहुत कमी है।
उत्तर:
अत्यधिक वर्षा या जल की प्रचुरता वाले क्षेत्र जहाँ प्रतिवर्ष 200 सेमी से अधिक वर्षा होती है महाराष्ट्र के तटीय क्षेत्र, गोआ, कर्नाटक, केरल, पश्चिम बंगाल, सिक्किम, अरूणाचल प्रदेश एवं असम आदि हैं। हल्की वर्षा वाले क्षेत्र अर्थात् जहाँ प्रतिवर्ष 50 से 100 सेमी वर्षा होती है ऊपरी गंगा घाटी, पूर्वी राजस्थान, हरियाणा एवं पंजाब के कुछ हिस्से, पश्चिमी राजस्थान, थार, कच्छ, पश्चिमी घाट के वर्षा-छाया क्षेत्र आदि हैं।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
“गंगा सफाई योजना”का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
प्राकृतिक संसाधनों के अविवेकपूर्ण दोहन से अनेक समस्याएँ उत्पन्न हो गई हैं, इसके लिए सामाजिक जागरूकता लाना अनिवार्य है। गंगा सफाई योजना इसी दिशा में किया गया एक प्रयत्न है। प्राकृतिक संसाधनों का प्रबंधन 345 जीवन दायिनि गंगा को प्रदूषण मुक्त कराने के लिए यह योजना 1985 में प्रारम्भ की गई। कई करोड़ों की यह योजना गंगा जल की गुणवत्ता को बनाए रखने के लिए प्रारम्भ हुई। गंगा हिमालय में स्थित अपने उद्गम गंगोत्री से बंगाल की खाड़ी में गंगासागर तक 2500 किमी तक यात्रा करती है। इसके किनारे स्थित उत्तराखण्ड, उत्तर प्रदेश, बिहार तथा बंगाल के 100 से अधिक नगरों का औद्योगिक कचरा इसमें मिलता जाता है, इसके फलस्वरूप इसका स्वरूप नाले के समान हो गया है।

इसके अतिरिक्त इसमें प्रचुर मात्रा में अपमार्जक (detergents), वाहितमल (sewage), मृत शवों का प्रवाह, मृत व्यक्तियों की राख आदि प्रवाहित किए जाते रहते हैं। इसके कारण इसका जल विषाक्त होने लगा है। विषाक्त जल के कारण अत्यधिक संख्या में मछलियाँ तथा अन्य जलीय जीव मर रहे हैं। कोलिफॉर्म जीवाणु का एक वर्ग है जो मानव की आँत में पाया जाता है। गंगाजल में इसकी उपस्थिति से जल प्रदूषण का स्तर प्रदर्शित होता है। गंगा सफाई योजना गंगा नदी और इसके जल को संदषित होने से बचाने के लिए प्रारम्भ की गई है।

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प्रश्न 2.
एक एटलस की सहायता से भारत में वर्षा के पैटर्न का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भारत में वर्षा ऋतु का आगमन प्रायद्वीपीय भारत के दक्षिणी सिरे पर जून के प्रथम सप्ताह में मानसून से होता है। इसके पश्चात् मानसून दो शाखाओं में बँट जाता है-अरब सागर शाखा तथा बंगाल की खाड़ी शाखा। अरब सागर शाखा 10 जून तक मुम्बई पहुँच जाती है। बंगाल की खाड़ी शाखा तेजी से बढ़ती हुई जून के प्रथम सप्ताह में असम पहुँच जाती है। पर्वत श्रृंखलाएँ इन मानसूनी हवाओं को पश्चिम की ओर गंगा के मैदानों के ऊपर मोड़ देती हैं। अरब सागर शाखा और बंगाल की खाड़ी शाखा गंगा के मैदान के उत्तर-पश्चिम भाग में एक- दूसरे से मिल जाती हैं।

मानसून दिल्ली में जून के अन्त में पश्चिम उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, पूर्वी राजस्थान में जूलाई के प्रथम सप्ताह में और मध्य जुलाई तक शेष भारत में मानसून पहुँच जाता है। मानसून के वापस लौटने की शुरुआत सितम्बर माह के प्रथम सप्ताह में उत्तर पूर्वी राज्यों से होती है। मध्य अक्टूबर तक यह प्रायद्वीपीय भारत के उत्तरीय आधे हिस्से से लौट जाता है। यह क्रिया धीमी गति से होती है। इसके विपरीत भारत के दक्षिणी आधे भाग से मानसून बहुत तेजी से लौटता है। दिसम्बर के आरम्भ तक पूरे देश से मानसून प्राय: लौट जाता है। इसी के साथ भारत शीत लहर के प्रभाव में आ चुका होता है।

Bihar Board Class 10 Science Solutions Chapter 15 हमारा पर्यावरण

BSEB Bihar Board Class 10 Science Solutions Chapter 15 हमारा पर्यावरण

Bihar Board Class 10 Science Solutions Chapter 15 हमारा पर्यावरण Textbook Questions and Answers, Additional Important Questions, Notes.

Bihar Board Class 10 Science हमारा पर्यावरण InText Questions and Answers

अनुच्छेद 15.1 पर आधारित

प्रश्न 1.
क्या कारण है कि कुछ पदार्थ जैव निम्नीकरणीय होते हैं और कुछ अजैव निम्नीकरणीय?
उत्तर:
कुछ पदार्थ ऐसे होते हैं जिन पर सूक्ष्म जीव अपना प्रभाव डालते हैं और उन्हें सरल पदार्थों में बदल देते हैं। सूक्ष्म जीवों का असर केवल कुछ पदार्थों पर ही होता है। अत: कुछ पदार्थ ही जैव निम्नीकरणीय होते हैं। कुछ पदार्थ ऐसे भी होते हैं जिन पर सूक्ष्म जीवों का असर नहीं होता और वे सरल पदार्थों में नहीं टूटते हैं। ऐसे पदार्थों को अजैव निम्नीकरणीय कहते हैं।

प्रश्न 2.
ऐसे दो तरीके सुझाइए जिनमें जैव निम्नीकरणीय पदार्थ पर्यावरण को प्रभावित करते हैं।
उत्तर:
1. जैव निम्नीकरणीय पदार्थ अपघटित होकर दुर्गन्ध फैलाते हैं।
2. जैव निम्नीकरणीय पदार्थ अपघटित होकर बहुत-सी विषैली गैसें वातावरण में मिलाते हैं जिससे वायु प्रदूषण फैलता है।

प्रश्न 3.
ऐसे दो तरीके बताइए जिनमें अजैव निम्नीकरणीय पदार्थ पर्यावरण को प्रभावित करते हैं।
उत्तर:
1. अजैव निम्नीकरणीय पदार्थ पर्यावरण में लंबे समय तक रहते हैं और पर्यावरण को प्रदूषित करते हैं। ये पदार्थों के चक्रण में बाधा पहुँचाते हैं।
2. ऐसे बहुत-से पदार्थ जल प्रदूषण व भूमि प्रदूषण का कारण बनते हैं।

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अनुच्छेद 15.2 पर आधारित

प्रश्न 1.
पोषी स्तर क्या हैं? एक आहार श्रृंखला का उदाहरण दीजिए तथा इसमें विभिन्न पोषी स्तर बताइए।
उत्तर:
किसी आहार श्रृंखला के विभिन्न चरणों या स्तरों को पोषी स्तर कहते हैं। आहार श्रृंखला का उदाहरण घास → हिरन → शेर इस आहार श्रृंखला में विभिन्न पोषी स्तर निम्नलिखित हैं –

  • प्रथम पोषी स्तर घास है। यह उत्पादक है।
  • द्वितीय पोषी स्तर हिरन है। यह प्रथम उपभोक्ता है। इसे शाकाहारी भी कहते हैं।
  • तृतीय पोषी स्तर शेर है। यह उच्च मांसाहारी है।

प्रश्न 2.
पारितंत्र में अपमार्जकों की क्या भूमिका है?
उत्तर:
अपमार्जकों को प्राकृतिक सफाई एजेन्ट कहते हैं। अपमार्जकों का कार्य जैव निम्नीकरणीय पदार्थों पर होता है। ये उन पदार्थों को सरल पदार्थों में तोड़ते हैं। इस प्रकार अपमार्जक वातावरण में संतुलन बनाने का कार्य करते हैं तथा एक महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं।

अनुच्छेद 15.3 पर आधारित

प्रश्न 1.
ओजोन क्या है तथा यह किसी पारितंत्र को किस प्रकार प्रभावित करती है?
उत्तर:
ओजोन ऑक्सीजन का एक अपररूप है। इसका एक अणु ऑक्सीजन के तीन परमाणुओं से मिलकर बना होता है। इसका अणुसूत्र 0 है। यह ऑक्सीजन के तीन अणुओं की सूर्य के प्रकाश (UV rays) की उपस्थिति में अभिक्रिया द्वारा बनती है।
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ओजोन पृथ्वी की सतह पर एक आवरण बनाती है जो पराबैंगनी विकिरणों से बचाती है। यह पराबैंगनी विकिरण हमारे लिए बहुत हानिकारक है। इस प्रकार यह पारितन्त्र को नष्ट होने से बचाती है।

प्रश्न 2.
आप कचरा निपटान की समस्या कम करने में क्या योगदान कर सकते हैं? किन्हीं दो तरीकों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
1. पदार्थ दो प्रकार के होते हैं – जैव निम्नीकरणीय तथा अजैव निम्नीकरणीय। इनमें से हमें जैव निम्नीकरणीय पदार्थों का अधिक उपयोग करना चाहिए।
2. जैव निम्नीकरणीय पदार्थों को खाद में बदल देना चाहिए तथा अजैव निम्नीकरणीय पदार्थों को चक्रण के लिए फैक्टरी में भेज देना चाहिए।

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Bihar Board Class 10 Science हमारा पर्यावरण Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
निम्न में से कौन-से समूहों में केवल जैव निम्नीकरणीय पदार्थ हैं?
(a) घास, पुष्प तथा चमड़ा
(b) घास, लकड़ी तथा प्लास्टिक
(c) फलों के छिलके, केक एवं नींबू का रस
(d) केक, लकड़ी एवं घास
उत्तर:
(a), (c) और (d)

प्रश्न 2.
निम्न में से कौन आहार श्रृंखला का निर्माण करते हैं?
(a) घास, गेहूँ तथा आम
(b) घास, बकरी तथा मानव
(c) बकरी, गाय तथा हाथी
(d) घास, मछली तथा बकरी
उत्तर:
(b) घास, बकरी तथा मानव

प्रश्न 3.
निम्न में से कौन पर्यावरण-मित्र व्यवहार कहलाते हैं?
(a) बाजार जाते समय सामान के लिए कपड़े का थैला ले जाना
(b) कार्य समाप्त हो जाने पर लाइट (बल्ब) तथा पंखे का स्विच बंद करना
(c) माँ द्वारा स्कूटर से विद्यालय छोड़ने के बजाय तुम्हारा विद्यालय तक पैदल जाना
(d) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(d) उपरोक्त सभी

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प्रश्न 4.
क्या होगा यदि हम एक पोषी स्तर के सभी जीवों को समाप्त कर दें (मार डालें)?
उत्तर:
खाद्य श्रृंखला के सभी पोषी स्तरों के जीव भोजन के लिए एक-दूसरे पर निर्भर करते हैं। यदि किसी एक पोषी स्तर के सभी जीव मार दिए जाएँ तो पूरी खाद्य श्रृंखला नष्ट हो जाएगी। ऐसा इसलिए होता है; क्योंकि इससे खाद्य श्रृंखला में ऊर्जा का प्रवाह रुक जाता है।

प्रश्न 5.
क्या किसी पोषी स्तर के सभी सदस्यों को हटाने का प्रभाव भिन्न-भिन्न पोषी स्तरों के लिए अलग-अलग होगा? क्या किसी पोषी स्तर के जीवों को पारितंत्र को प्रभावित किए बिना हटाना संभव है?
उत्तर:
नहीं, सभी पोषी स्तरों के लिए प्रभाव अलग-अलग नहीं होता। यह सभी पर समान प्रभाव डालता है। किसी पोषी स्तर के जीवों को पारितंत्र को प्रभावित किए बिना हटाना सम्भव नहीं है। इनका हटाना पारितंत्र में विभिन्न प्रकार के प्रभाव डालता है तथा असंतुलन पैदा करता है।।

प्रश्न 6.
जैविक आवर्धन (biological magnification) क्या है? क्या पारितंत्र के विभिन्न स्तरों पर जैविक आवर्धन का प्रभाव भी भिन्न-भिन्न होगा?
उत्तर:
जब कोई हानिकारक रसायन जैसे डी०डी०टी० किसी खाद्यशंखला में प्रवेश करता है तो इसका सांद्रण धीरे-धीरे प्रत्येक पोषी स्तर में बढ़ता जाता है। इस परिघटना को जैविक आवर्धन कहते हैं। इस आवर्धन का स्तर अलग-अलग पोषी स्तरों पर भिन्न-भिन्न होगा। जैसे –
जल → शैवाल/प्रोटोजोआ → मछली → मनुष्य 0.02ppm 5ppm 240ppm 1600 ppm
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प्रश्न 7.
हमारे द्वारा उत्पादित अजैव निम्नीकरणीय कचरे से कौन-सी समस्याएँ उत्पन्न होती हैं?
उत्तर:
अजैव निम्नीकरणीय कचरे के ढेर पर्यावरण में बहुत लंबे समय तक रहते हैं और नष्ट नहीं होते। अत: वे बहुत-सी समस्याएँ उत्पन्न करते हैं; जैसे –

  • ये जल प्रदूषण करते हैं जिससे जल पीने योग्य नहीं रहता।
  • ये भूमि प्रदूषण करते हैं जिससे भूमि की सुन्दरता नष्ट होती है।
  • ये नालियों में जल के प्रवाह को रोकते हैं।
  • ये वायुमंडल को भी विषैला बनाते हैं।

प्रश्न 8.
यदि हमारे द्वारा उत्पादित सारा कचरा जैव निम्नीकरणीय हो तो क्या इनका हमारे पर्यावरण पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा?
उत्तर:
जैव निम्नीकरणीय अपशिष्ट लंबे समय तक नहीं रहते हैं। अतः उनका हानिकारक प्रभाव वातावरण पर पड़ता तो है पर केवल कुछ समय के लिए ही रहता है। ये पदार्थ लाभदायक पदार्थों में बदले जा सकते हैं तथा सरल पदार्थों में तोड़े जा सकते हैं। अतः हमारे वातावरण पर इनका भी प्रभाव पड़ता है लेकिन केवल कुछ समय तक ही रहता है।

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प्रश्न 9.
ओज़ोन परत की क्षति हमारे लिए चिंता का विषय क्यों है? इस क्षति को सीमित करने के लिए क्या कदम उठाए गए हैं?
उत्तर:
ओजोन परत की क्षति हमारे लिए अत्यंत चिंता का विषय है क्योंकि यदि इसकी क्षति अधिक होती है तो अधिक-से-अधिक पराबैंगनी विकिरणें पृथ्वी पर आएँगी जो हमारे लिए निम्न प्रकार से हानिकारक प्रभाव डालती हैं –

  • इनका प्रभाव त्वचा पर पड़ता है जिससे त्वचा के कैंसर की संभावना बढ़ जाती है।
  • पौधों में वृद्धि दर कम हो जाती है।
  • ये सूक्ष्म जीवों तथा अपघटकों को मारती हैं इससे पारितंत्र में असंतुलन उत्पन्न हो जाता है।
  • ये पौधों में पिगमेंटों को नष्ट करती हैं।

ओजोन परत की क्षति कम करने के उपाय –

  • एरोसोल तथा क्लोरोफ्लोरो कार्बन यौगिक का कम-से-कम उपयोग करना।
  • सुपर सोनिक विमानों का कम-से-कम उपयोग करना।
  • संसार में नाभिकीय विस्फोटों पर नियंत्रण करना।

Bihar Board Class 10 Science हमारा पर्यावरण Additional Important Questions and Answers

बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
पर्यावरण के कितने घटक होते हैं?
(a) एक
(b) दो
(c) तीन
(d) चार
उत्तर:
(b) दो

प्रश्न 2.
निम्न में से पारितन्त्र के प्रमुख घटक हैं –
(a) जैविक घटक
(b) अजैविक घटक
(c) (i) व (ii) दोनों
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(c) (i) व (ii) दोनों

प्रश्न 3.
पृथ्वी के चारों ओर स्थित गैसीय आवरण को कहते हैं –
(a) स्थलमण्डल
(b) जलमण्डल
(c) (i) व (ii) दोनों
(d) वायुमण्डल
उत्तर:
(d) वायुमण्डल

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प्रश्न 4.
अमोनियम आयन को नाइट्रेट में बदलने की क्रिया को कहते हैं –
(a) अमोनीकरण
(b) नाइट्रीकरण
(c) विनाइट्रीकरण
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(b) नाइट्रीकरण

प्रश्न 5.
मिट्टी में उपस्थित नाइट्रेट तथा अमोनिया को स्वतन्त्र नाइट्रोजन में बदलने की क्रिया को कहते हैं –
(a) विनाइट्रीकरण
(b) नाइट्रीकरण
(c) अमोनीकरण
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(a)विनाइट्रीकरण

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
पारितन्त्र में कौन-कौन से घटक हैं? पारितन्त्र में आप खरगोश को कहाँ रखेंगे?
उत्तर:
पारितन्त्र में मुख्यत: दो प्रकार के घटक होते हैं- जैवीय घटक तथा अजैवीय घटक। खरगोश एक जैवीय घटक है। शाकाहारी खरगोश प्रथम श्रेणी का उपभोक्ता होता है।

प्रश्न 2.
जैव समुदाय तथा अजैव वातावरण के पारस्परिक सम्बन्धों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
अजैव जगत से विभिन्न अकार्बनिक तथा कार्बनिक पदार्थ जैव जगत में प्रवेश करते हैं। जीवधारियों के शरीर में पाए जाने वाले विभिन्न कार्बनिक पदार्थ मृत्यु उपरान्त मृदा में मिल जाते हैं। अपघटक जटिल कार्बनिक पदार्थों का विघटन कर देते हैं जिससे इनका पुनः उपयोग हो सके।

प्रश्न 3.
हरे पौधों को उत्पादक क्यों कहा जाता है? कुकुरमुत्ता ऊर्जा कैसे प्राप्त करता है?
उत्तर:
हरे पौधे अकार्बनिक पदार्थों से कार्बनिक भोज्य पदार्थों का संश्लेषण करते हैं; अतः इन्हें उत्पादक कहते हैं। कुकुरमुत्ता मृत कार्बनिक पदार्थों का विघटन करके ऊर्जा प्राप्त करता है।

प्रश्न 4.
जन्तु स्वपोषी क्यों नहीं होते?
उत्तर:
जन्तुओं में पर्णहरिम नहीं पाया जाता (यूग्लीना को छोड़कर); अत: जन्तु अपना भोजन स्वयं नहीं बना पाते और भोजन के लिए प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से पौधों पर निर्भर रहते हैं।

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प्रश्न 5.
बैक्टीरिया तथा कवक का पारितन्त्र में क्या कार्य है?
या किन्हीं दो अपघटकों के नाम लिखिए और स्पष्ट कीजिए कि ये किस प्रकार हमारे लिए लाभदायक हैं?
उत्तर:
बैक्टीरिया तथा कवक पारितन्त्र में अपघटक (decomposer) का कार्य करते हैं अर्थात् ये कार्बनिक पदार्थों को उनके अवयवों में तोड़कर विभिन्न पदार्थों के चक्रीय प्रवाह को बनाए रखते हैं।

प्रश्न 6.
किन-किन प्रमुख स्त्रोतों से कार्बन डाइऑक्साइड उत्पन्न होकर वायुमण्डल में पहुँचती है?
उत्तर:
कार्बन डाइऑक्साइड जीवधारियों के द्वारा श्वसन के अतिरिक्त पदार्थों के जलने से, विभिन्न चट्टानों (कार्बोनेट्स) के ऑक्सीकृत होने से, जीवाणु एवं कवक आदि के द्वारा कार्बनिक पदार्थों के अपघटन से तथा ज्वालामुखी के फटने आदि से वायुमण्डल में पहुँचती है।

प्रश्न 7.
पौधे नाइट्रोजन को किस रूप में ग्रहण करते हैं?
उत्तर:
पौधे नाइट्रोजन को सरल यौगिकों; जैसे-नाइट्रेट्स के रूप में ग्रहण करते हैं।

प्रश्न 8.
दो नाइट्रोजनकारी जीवाणुओं के नाम लिखिए।
उत्तर:
1. नाइट्रोसोमोनास (Nitrosomonas) ये जीवाणु अमोनिया को नाइट्राइट में बदल देते हैं।
2. नाइट्रोबैक्टर (Nitrobactor) ये जीवाणु नाइट्राइट को नाइट्रेट्स में बदल देते हैं।

प्रश्न 9.
जैव आवर्धन क्या है? अजैव विकृतीय रसायन द्वारा जैव आवर्धन किस प्रकार होता
उत्तर:
कुछ अजैव विकृतीय रसायन; जैसे – डी०डी०टी० हमारी खाद्य श्रृंखला में प्रवेश करते हैं तथा जीवों के अंगों में प्रत्येक स्तर पर प्रभाव डालते हैं तथा उनमें मात्रा में वृद्धि के साथ संचित हो जाते हैं। इसको जैव आवर्धन कहते हैं।

प्रश्न 10.
प्रदूषक किसे कहते हैं?
उत्तर:
वह पदार्थ या कारक जिसके कारण वायु, भूमि तथा जल के भौतिक, रासायनिक तथा जैविक लक्षणों में अवांछित परिवर्तन हो, प्रदूषक कहलाता है।

प्रश्न 11.
प्रदूषण की परिभाषा लिखिए।
उत्तर:
वायु, जल तथा भूमि में उन अवांछित और अत्यधिक पदार्थों का इकट्ठा हो जाना जिनसे प्राकृतिक पर्यावरण में प्रतिकूल परिवर्तन आ जाते हैं, प्रदूषण कहलाता है।

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प्रश्न 12.
पर्यावरणीय प्रदूषण क्या होता है? मानव के लिए हानिकर अजैव निम्नीकरणीय तीन प्रदूषकों के नाम लिखिए।
उत्तर:
वायु, जल तथा भूमि में उन अवांछित अत्यधिक पदार्थों का एकत्रित हो जाना, जिनसे प्राकृतिक पर्यावरण में प्रतिकूल परिवर्तन आ जाते हैं, पर्यावरणीय प्रदूषण कहलाता है।
अजैव निम्नीकरणीय –

  • कीटनाशी तथा पीड़कनाशी
  • प्लास्टिक तथा
  • रेडियोऐक्टिव अपशिष्ट पदार्थ।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
जीवमण्डल की परिभाषा दीजिए। जीवमण्डल के कौन-से तीन प्रमुख भाग हैं?
उत्तर:
जीवमण्डल स्थलमण्डल, जलमण्डल तथा वायुमण्डल का वह क्षेत्र जिसमें जीवधारी पाए जाते हैं जीवमण्डल कहलाता है। जीवमण्डल में ऊर्जा तथा पदार्थों का निरन्तर आदान-प्रदान जैविक तथा अजैविक घटकों के मध्य होता रहता है। जीवमण्डल का विस्तार लगभग 14-15 किमी होता है। वायुमण्डल में 7-8 किमी ऊपर तक तथा समुद्र में 6-7 किमी गहराई तक जीवधारी पाए जाते हैं।

हमारा पर्यावरण 329 जीवमण्डल के तीन प्रमुख भाग निम्नलिखित हैं –
1. स्थलमण्डल (Lithosphere):
यह पृथ्वी का ठोस भाग है। इसका निर्माण चट्टानों, मृदा, रेत आदि से होता है। पौधे अपने लिए आवश्यक खनिज लवण मृदा से घुलनशील अवस्था में ग्रहण करते हैं।

2. जलमण्डल (Hydrosphere):
स्थलमण्डल पर उपस्थित तालाब, कुएँ, झील, नदी, समुद्र आदि मिलकर ‘जलमण्डल’ बनाते हैं। जलीय जीवधारी अपने लिए आवश्यक खनिज जल से प्राप्त करते हैं। जल जीवन के लिए अति महत्त्वपूर्ण होता है। यह जीवद्रव्य का अधिकांश भाग बनाता है। पौधे जड़ों के द्वारा या शरीर सतह से जल ग्रहण करते हैं। जन्तु जल को भोजन के साथ ग्रहण करते हैं तथा आवश्यकतानुसार इसकी पूर्ति जल पीकर भी करते हैं।

3. वायुमण्डल (Atmosphere):
पृथ्वी के चारों ओर स्थित गैसीय आवरण को वायुमण्डल कहते हैं। वायुमण्डल में विभिन्न गैसें सन्तुलित मात्रा में पाई जाती हैं।

प्रश्न 2.
निम्नलिखित में अन्तर लिखिए –

  1. उत्पादक तथा उपभोक्ता
  2. स्थलमण्डल तथा वायुमण्डल
  3. पारिस्थितिक तन्त्र तथा जीवोम
  4. समष्टि तथा समुदाय।

उत्तर:

1. उत्पादक तथा उपभोक्ता में अन्तर –
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2. स्थलमण्डल तथा वायुमण्डल में अन्तर –
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3. पारिस्थितिक तन्त्र तथा जीवोम या बायोम में अन्तर –
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4. समष्टि तथा समुदाय में अन्तर –
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प्रश्न 3.
हरे पौधों द्वारा सूर्य-प्रकाश ऊर्जा को किस प्रकार की ऊर्जा में रूपान्तरित किया जाता है? उस प्रक्रम का भी नाम लिखिए जिसके द्वारा हरी वनस्पतियाँ सौर ऊर्जा को ग्रहण कर उसको जैव उपयोगी ऊर्जा में रूपान्तरित करती हैं।
उत्तर:
हरे पौधों द्वारा सूर्य-प्रकाश ऊर्जा को रासायनिक ऊर्जा में रूपान्तरित किया जाता है। हरी वनस्पतियाँ प्रकाश संश्लेषण द्वारा सौर ऊर्जा को ग्रहण कर उसको जैव उपयोगी रासायनिक ऊर्जा में रूपान्तरित करके कार्बनिक भोज्य पदार्थों में संचित करती हैं।
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पर्णहरिम इस क्रिया में प्रकाश की गतिज ऊर्जा, रासायनिक ऊर्जा के रूप में परिवर्तित होकर भोजन (ग्लूकोज) के रूप में संचित हो जाती है।

प्रश्न 4.
कीटनाशक DDT के प्रयोग को हतोत्साहित किया जा रहा है क्योंकि यह मानव शरीर में पाया गया है। किस प्रकार यह रसायन शरीर के अन्दर प्रवेश करता है?
उत्तर:
DDT अजैव निम्नीकरणीय प्रदूषक है। यह लम्बे समय तक वातावरण और मृदा में विषाक्तता को बनाए रखता है। यह मृदा से वनस्पतियों द्वारा अवशोषित किया जाता है तथा पशुओं और मानव द्वारा वनस्पतियों के उपयोग करने पर उनके शरीर में प्रवेश करता है। पशुओं का उपभोग करने पर यह मनुष्यों के शरीर में पहुँच जाता है।

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प्रश्न 5.
निम्नलिखित को उदाहरण सहित समझाइए
1. अम्ल वर्षा
2. ओजोन की न्यूनता
उत्तर:
1. अम्ल वर्षा अम्ल वर्षा वायु में उपस्थित नाइट्रोजन तथा सल्फर के ऑक्साइड के कारण होती है। ये गैसीय ऑक्साइड वर्षा के जल के साथ मिलकर क्रमश: नाइट्रिक अम्ल तथा सल्फ्यूरिक अम्ल बनाते हैं। वर्षा के साथ ये अम्ल भी पृथ्वी पर नीचे आ जाते हैं। इसे ही अम्ल वर्षा या अम्लीय

पारितन्त्र के निम्नलिखित दो प्रमुख घटक होते है –
(I) सजीव या जैविक घटक समस्त जन्तु एवं पौधे जीवमण्डल में जैविक घटक के रूप में पाए जाते हैं। जैविक घटक को निम्नलिखित भागों में विभाजित किया जा सकता है –
1. उत्पादक Producers हरे प्रकाश संश्लेषी पौधे उत्पादक कहलाते हैं। प्रकाश संश्लेषण की क्रिया में पौधे कार्बन डाइऑक्साइड एवं पानी की सहायता से प्रकाश एवं पर्णहरिम की उपस्थिति में ग्लूकोज का निर्माण करते हैं। ग्लूकोज अन्य भोज्य पदार्थों (प्रोटीन, मण्ड व वसा) में परिवर्तित हो जाता है, जिसको जन्तु भोजन के रूप में ग्रहण करते हैं।
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2. उपभोक्ता (Consumers) जन्तु पौधों द्वारा बनाए गए भोजन पर आश्रित रहते हैं, इसलिए जन्तुओं को उपभोक्ता कहते हैं। कार्बोहाइड्रेट्स, प्रोटीन, वसा, विटामिन तथा खनिज तत्व हमारे भोजन के अवयव हैं जो अनाज, बीज, फल, सब्जी आदि से प्राप्त होते हैं। ये सभी पौधों की ही देन हैं। कुछ जन्तु मांसाहारी होते हैं जो अपना भोजन शाकाहारी जन्तुओं का शिकार करके प्राप्त
करते हैं।

उपभोक्ता निम्न प्रकार के होते हैं –
(i) प्रथम श्रेणी के उपभोक्ता: (Primary consumers) ये शाकाहारी होते हैं। इसके अन्तर्गत वे जन्तु आते हैं जो अपना भोजन सीधे हरे पौधों से प्राप्त करते हैं; जैसे – खरगोश, बकरी, टिड्ढा, चूहा, हिरन, भैंस, गाय, हाथी आदि।

(ii) द्वितीय श्रेणी के उपभोक्ता या मांसाहारी:  (Secondary consumers or Carnivores) ये मांसाहारी होते हैं एवं प्राथमिक उपभोक्ताओं या शाकाहारी प्राणियों का शिकार करते हैं; जैसे – सर्प, मेढक, गिरगिट, छिपकली, मैना पक्षी, लोमड़ी, भेड़िया, बिल्ली आदि।

(iii) तृतीय श्रेणी के उपभोक्ता या तृतीयक उपभोक्ता: (Tertiary consumers) इसमें द्वितीय श्रेणी के उपभोक्ताओं को खाने वाले जन्तु आते हैं; जैसे – सर्प मेढक का शिकार करते हैं, बड़ी मछलियाँ छोटी मछलियों का शिकार करती हैं, चिड़ियाँ मांसाहारी मछलियों का शिकार करती हैं। कुछ जन्तु एक से अधिक श्रेणी के उपभोक्ता हो सकते हैं (जैसे – बिल्ली, मनुष्य आदि)। ये मांसाहारी एवं शाकाहारी दोनों होते हैं; अत: ये सर्वभक्षी (omnivore) कहलाते हैं।

3. अपघटनकर्ता या अपघटक (Decomposers) ये जीवमण्डल के सूक्ष्म जीव हैं;
जैसे-जीवाणु व कवक। ये उत्पादक तथा उपभोक्ताओं के मृत शरीर को सरल यौगिकों में अपघटित कर देते हैं। ऐसे जीवों को अपघटक (decomposers) कहते हैं। ये विभिन्न कार्बनिक पदार्थों को उनके सरल अवयवों में तोड़ देते हैं। सरल पदार्थ पुनः भूमि में मिलकर पारितन्त्र के अजैव घटक का अंश बन जाते हैं।

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(II) निर्जीव या अजैविक घटक इसके अन्तर्गत निर्जीव वातावरण आता है, जो विभिन्न जैविक घटकों का नियन्त्रण करता है। अजैव घटक को निम्नलिखित तीन उप-घटकों में विभाजित किया गया है।
1. अकार्बनिक: (Inorganic) इसके अन्तर्गत पोटैशियम, कैल्सियम, मैग्नीशियम, फॉस्फोरस, लोहा, सल्फर आदि के लवण, जल तथा वायु की गैसें; जैसे-ऑक्सीजन, कार्बन डाइऑक्साइड, नाइट्रोजन, हाइड्रोजन, अमोनिया आदि; आती हैं।

2. कार्बनिक: (Organic) इसमें कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, वसा आदि सम्मिलित हैं। ये मृतक जन्तुओं एवं पौधों के शरीर से प्राप्त होते हैं। अकार्बनिक एवं कार्बनिक भाग मिलकर निर्जीव वातावरण का निर्माण करते हैं।

3. भौतिक घटक: (Physical components) इसमें विभिन्न प्रकार के जलवायवीय कारक; जैसे-वायु, प्रकाश, ताप, विद्युत आदि; आते हैं। वर्षा (acid rain) कहते हैं। इसके कारण अनेक ऐतिहासिक भवनों, स्मारकों, मूर्तियों का संक्षारण हो जाता है जिससे उन्हें काफी नुकसान पहुँचता है। अम्लीय वर्षा के कारण, मृदा भी अम्लीय हो जाती है जिससे धीरे-धीरे उसकी उर्वरता कम हो जाती है। इस कारण वन तथा कृषि उत्पादकता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।

2. ओजोन की न्यूनता रेफ्रीजरेटर, अग्निशमन यन्त्र तथा ऐरोसॉल स्प्रे में उपयोग किए जाने वाले क्लोरो-फ्लुओरो कार्बन (CFC) से वायुमण्डल में ओजोन परत का ह्रास होता है। हानियाँ ओजोन परत में ह्रास के कारण सूर्य से पराबैंगनी (UV) किरणें अधिक मात्रा में पृथ्वी पर पहुँचती हैं। पराबैंगनी विकिरण से आँखों तथा प्रतिरक्षी तन्त्र को नुकसान पहुंचता है। इससे त्वचा का कैंसर भी हो जाता है। ओजोन परत के ह्रास के कारण वैश्विक वर्षा, पारिस्थितिक असन्तुलन तथा वैश्विक खाद्यान्नों की उपलब्धता पर भी प्रभाव पड़ता है।

प्रश्न 6.
ग्रीन हाउस प्रभाव पर टिप्पणी लिखिए। या पृथ्वी ऊष्मायन पर टिप्पणी लिखिए। या भूमण्डलीय ऊष्मायन के लिए उत्तरदायी चार कारकों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
CO2 की बढ़ती सान्द्रता ग्रीन हाउस प्रभाव सूर्य की किरण डालती है। आमतौर पर जब CO2 की सान्द्रता सामान्य हो तब पृथ्वी का ताप तथा ऊर्जा का ग्रीन हाउस गैसें सन्तुलन बनाए रखने के लिए ऊष्मा पृथ्वी से परावर्तित हो जाती है, परन्तु CO2 की अधिक सान्द्रता पृथ्वी से लौटने वाली ऊष्मा को परावर्तित होने से रोकती है जिससे पृथ्वी के तापमान में वृद्धि होने लगती है, इसको ग्रीन हाउस प्रभाव (green house effect) कहते हैं। इसके अलावा कुछ ऊष्मा पर्यावरण में उपस्थित पानी की भाप से भी रुकती है।
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लगभग 100 वर्ष पहले CO2 की पर्यावरण में सान्द्रता लगभग 110 ppm थी, परन्तु अब बढ़कर लगभग 350 ppm तक पहुँच गई है। आज से करीब 40 वर्ष बाद यह सान्द्रता 450 ppm तक पहुँच जाने की सम्भावना है। इससे पृथ्वी के ऊष्मायन में वृद्धि हो सकती है। पृथ्वी के ऊष्मायन का प्रभाव ध्रुवों पर सबसे अधिक होगा, इनकी बर्फ पिघलने लगेगी। एक अनुमान के अनुसार सन् 2050 तक पृथ्वी का ताप 5°C तक बढ़ सकता है जिससे समुद्र के निकटवर्ती क्षेत्र शंघाई, सेन फ्रान्सिस्को आदि शहर प्रभावित होंगे।

उत्तरी अमेरिका सूखा तथा गर्म प्रदेश बन सकता है। विश्वभर का मौसम बदल जाएगा। भारत में मानसून के समाप्त होने की सम्भावना है। विश्वभर में अनाज के उत्पादन पर भी इसका प्रभाव पड़ेगा। फल, सब्जी आदि के उत्पादन भी प्रभावित होंगे। बढ़ते ताप से पादप तथा जीव-जन्तुओं की जीवन क्रियाएँ भी प्रभावित होंगी।

प्रश्न 7.
जल किस प्रकार प्रदूषित होता है?
उत्तर:

  1. जल स्रोत के निकट बिजली घर, भूमिगत कोयला खदानों तथा तेल के कुओं से प्रदूषक सीधे जल में पहुँचकर उसे प्रदूषित करते हैं।
  2. जल में कैल्सियम या मैग्नीशियम के यौगिकों का घुलकर प्रदूषित करना।
  3. जल में तेल, भारी धातुएँ, घरेलू कचरा, अपमार्जक, रेडियोधर्मी कचरा आदि उसको प्रदूषित करते हैं।
  4. खेतों, बगीचों, निर्माण स्थलों, गलियों आदि से बहने वाला जल भी प्रदूषित होता है।
  5. प्रोटोजोआ, जीवाणु तथा अन्य रोगाणु जल को प्रदूषित करते हैं।

प्रश्न 8.
सुपोषण (eutrophication) क्या होता है? इसके हानिकारक प्रभावों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
जल में मल-मूत्र के अत्यधिक बहाव से जल प्लवकों की वृद्धि होती है। इनकी अत्यधिक संख्या से जल में विलेय ऑक्सीजन की मात्रा कम हो जाती है। जल प्लवकों के मर जाने पर उनके सड़ने के कारण भी जल में घुली अधिकांश ऑक्सीजन की मात्रा में कमी आ जाती है। अतः पोषकों का अत्यधिक संभरण तथा शैवालों की वृद्धि या फलने-फूलने के फलस्वरूप जल में ऑक्सीजन की मात्रा में कमी आने की प्रक्रिया को सुपोषण (eutrophication) कहते हैं। जल में घुली ऑक्सीजन की कमी तथा विषैले औद्योगिक कचरे के प्रभाव से मछलियों की संख्या में कमी आ जाती है। मछली हमारे भोजन का एक स्रोत है। सुपोषण से अलवणीय जल में रहने वाले अन्य जन्तु भी प्रभावित होते है।

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प्रश्न 9.
मृदा अपरदन क्या है? इसके कारण तथा प्रभाव क्या हैं? इसे किस प्रकार रोका जा सकता है?
उत्तर:
मृदा अपरदन प्राकृतिक कारक; जैसे-जल तथा वायु मृदा की ऊपरी परत को हटाने के लिए उत्तरदायी होते हैं। इस प्रक्रम को मृदा अपरदन (soil erosion) कहते हैं। कारण

  1. तीव्र वर्षा मिट्टी की अनावृत ऊपरी परत को बहा ले जाती है।
  2. धूल भरी आँधी से भी मृदा अपरदन होता है।
  3. मनुष्य के क्रियाकलापों से मृदा अपरदन होता है।मनुष्य द्वारा बढ़ते आवासों तथा शहरी क्षेत्रों के विकास से बहुत बड़े क्षेत्र वनस्पतिविहीन हो गए हैं। वनस्पति का आवरण हट जाने से नग्न भूमि पर वायु तथा जल का सीधा प्रभाव पड़ता है। इससे मृदा का अपरदन होता है।
  4. भूमि की त्रुटिपूर्ण जुताई से भी मृदा अपरदन होता है।

प्रभाव इसके निम्नलिखित हानिकारक प्रभाव होते हैं –

  1. मृदा अपरदन से हरे जंगल मरुस्थलों में बदल जाते हैं, जिससे पर्यावरण सन्तुलन बिगड़ जाता
  2. इससे फसल ठीक प्रकार से नहीं होती है, जिससे भोजन की कमी हो सकती है।
  3. पहाड़ी क्षेत्रों में मृदा अपरदन से भूस्खलन हो सकता है।
  4. इससे भूमि जल धारण नहीं कर सकती है। पानी के तीव्रता से नदियों में बह जाने से बाढ़ आ सकती है। इससे जान-माल का नुकसान हो सकता है। रोकने के उपाय इसके लिए हम

निम्नलिखित विधियों का प्रयोग करते हैं –

  1. वृक्षारोपण तथा घास उगाकर।।
  2. सघन खेती तथा बहाव के लिए ठीक नालियाँ बनाकर।
  3. ढलवाँ स्थानों पर सीढ़ीनुमा खेत बनाने से जल बहाव की गति कम हो जाती है।

प्रश्न 10.
रेडियोधर्मी प्रदूषण पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
रेडियोधर्मी प्रदूषण रेडियोधर्मी पदार्थों से पर्यावरण में विभिन्न प्रकार के कण और किरणें उत्पन्न होती हैं। परमाणु विस्फोटों, ऊर्जा उत्पादन केन्द्रों तथा आण्विक परीक्षणों से पर्यावरण में रेडियोधर्मिता बढ़ने का खतरा

प्रश्न 2.
खाद्य-श्रृंखला से आप क्या समझते हैं? खाद्य-श्रृंखला तथा खाद्य-जाल में क्या अन्तर है? उचित उदाहरणों की सहायता से समझाइए।
उत्तर:
खाद्य-श्रृंखला किसी भी पारिस्थितिक तन्त्र में अनेक ऐसे जीव होते हैं जो एक-दूसरे को खाकर (उपभोग करके) अपनी आहार सम्बन्धी आवश्यकताओं की पूर्ति करते हैं। किसी पारिस्थितिक तन्त्र में एक जीव द्वारा दूसरे जीव को खाने (उपभोग करने) की क्रमबद्ध प्रक्रिया को खाद्य श्रृंखला या आहार-श्रृंखला कहते हैं। किसी पारिस्थितिक तन्त्र में खाद्य-श्रृंखला विभिन्न प्रकार के जीवधारियों का वह क्रम है, जिसमें जीवधारी भोज्य एवं भक्षक के रूप में सम्बन्धित रहते हैं और इनमें होकर खाद्य-ऊर्जा का प्रवाह एक ही दिशा (unidirectional) में होता रहता है।

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प्राथमिक उत्पादक (हरे पौधे); प्रथम, द्वितीय व तृतीय श्रेणी के उपभोक्ता एवं अपघटनकर्ता (कवक एवं जीवाणु) आपस में मिलकर खाद्य-श्रृंखला का निर्माण करते हैं, क्योंकि ये आपस में एक-दूसरे का भक्षण करते हैं और भक्षक या भोज्य के रूप में सम्बन्धित रहते हैं। आहार-श्रृंखला में ऊर्जा व रासायनिक पदार्थ उत्पादक, उपभोक्ता, अपघटनकर्ता व निर्जीव प्रकृति में क्रम से प्रवेश करते रहते हैं।
खाद्य-श्रृंखला को निम्नवत् प्रदर्शित किया जा सकता है –
1. घास स्थलीय पारिस्थितिक तन्त्र में खाद्य-श्रृंखला के जीवधारियों का क्रम –
(i) घास → हिरन – शेर
(ii) घास कीड़े-मकोड़े → चिड़िया → बाज → गिद्ध
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2. तालाब के पारिस्थितिक तन्त्र में खाद्य-श्रृंखला के जीवधारियों का क्रम उत्पादक → प्रथम श्रेणी के उपभोक्ता → द्वितीय श्रेणी के उपभोक्ता → तृतीय श्रेणी के उपभोक्ता → उच्च मांसाहारी
(i) हरे पौधे (पादप प्लवक) → कीड़े-मकोड़े (जन्तु प्लवक) → मेढक → साँप → बाज
(ii) शैवाल (पादप प्लवक) → जलीय पिस्सू (जन्तु प्लवक) → छोटी मछली → बड़ी मछली → बगुला, बतख, सारस
आहार-श्रृंखला के विभिन्न स्तरों पर भोजन (ऊर्जा) का स्थानान्तरण होता है। इन स्तरों को ‘पोषण रीति’ या ‘पोषण स्तर’ (trophic level) कहते हैं।
खाद्य-जाल:
प्रकृति में खाद्य-शृंखला एक सीधी कड़ी के रूप में नहीं होती है। एक पारिस्थितिक तन्त्र की सभी खाद्य-शृंखलाएँ कहीं-न-कहीं आपस में सम्बन्धित होती हैं अर्थात् एक खाद्य-श्रृंखला के जीवधारियों का सम्बन्ध दूसरी खाद्य-शृंखलाओं के जीवधारियों से होता है। इस प्रकार, अनेक खाद्य-शृंखलाओं (food-chains) के पारस्परिक सम्बन्ध को खाद्य-जाल (food-web) कहते हैं।
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हमारा पर्यावरण खाद्य-श्रृंखला एवं खाद्य-जाल में अन्तर –
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Bihar Board Class 10 Maths Solutions Chapter 3 दो चरों वाले रैखिक समीकरण युग्म Ex 3.7

Bihar Board Class 10 Maths Solutions Chapter 3 दो चरों वाले रैखिक समीकरण युग्म Ex 3.7 Text Book Questions and Answers.

BSEB Bihar Board Class 10 Maths Solutions Chapter 3 दो चरों वाले रैखिक समीकरण युग्म Ex 3.7

Bihar Board Class 10 Maths दो चरों वाले रैखिक समीकरण युग्म Ex 3.7

प्रश्न 1.
दो मित्रों अनी और बीजू की आयु में 3 वर्ष का अन्तर है। अनी के पिता धरम की आयु अनी की आयु की दुगुनी और बीजू की आयु अपनी बहन कैथी की आयु की दुगुनी है। कैथी और धरम की आयु का अन्तर 30 वर्ष है। अनी और बीजू की आयु ज्ञात कीजिए।
हल
माना अनी की आयु x वर्ष तथा बीजू की आयु y वर्ष है।
उनकी आयु में 3 वर्ष का अन्तर है।
अनी की आयु – बीजू की आयु = 3 वर्ष
x – y = 3 ……… (1)
अनी के पिता धरम की आयु = अनी की आयु का दुगुना = 2x वर्ष
बीजू की आयु = कैथी की आयु का दो गुना
y = कैथी की आयु का दो गुना
कैथी की आयु = \(\frac{y}{2}\) वर्ष
धरम और कैथी की आयु का अन्तर 30 वर्ष है
धरम की आयु – कैथी की आयु = 30 वर्ष
2x – \(\frac{y}{2}\) = 30
⇒ \(\frac{4 x-y}{2}\) = 30
⇒ 4x – y = 60 …… (2)
समीकरण (2) में से समीकरण (1) को घटाने पर,
(4 x – y) – (x – y) = 60 – 3
⇒ 3x = 57
⇒ x = 19
समीकरण (1) में x का मान रखने पर,
y = 19 – 3 = 16
अत: अनी की आयु 19 वर्ष तथा बीजू की आयु 16 वर्ष है।
परन्तु यदि बीजू बड़ा है तो आयु का अन्तर y – x = 3 …….. (3)
तब, समीकरण (2) व (3) को जोड़ने पर, 3x = 63 ⇒ x = 21
और समीकरण (3) में x = 21 रखने पर, y – 21 = 3 ⇒ y = 24
तब, अनी की आयु 21 वर्ष तथा बीजू की आयु 24 वर्ष होगी।

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प्रश्न 2.
एक मित्र दूसरे से कहता है कि ‘यदि मुझे एक सौ दे दो, तो मैं आपसे दो गुना धनी बन जाऊँगा।’ दूसरा उत्तर देता है ‘यदि आप मुझे दस दे दें, तो मैं आपसे छ: गुना धनी बन जाऊँगा।’ बताइए कि उनकी क्रमशः क्या सम्पत्तियाँ हैं?
हल
माना एक मित्र A की सम्पत्ति ₹ x है और दूसरे मित्र B की सम्पत्ति ₹ y है।
मित्र A मित्र B से कहता है कि यदि B, A को ₹ 100 दे दे तो A, B से दो गुना धनी हो जाएगा।
जब B, A को ₹ 100 दे देगा तो A के पास ₹(x + 100) हो जाएँगे और B के पास ₹(y – 100) रह जाएँगे।
तब, प्रश्नानुसार,
A का धन = 2 × (B का धन)
⇒ x + 100 = 2 × (y – 100)
⇒ x + 100 = 2y – 200
⇒ x – 2y = -100 – 200
⇒ x – 2y = -300 ……(1)
अब B, A से कहता है कि यदि A, B को ₹ 10 दे दे तो वह B, A से 6 गुना धनी होगा।
जब A, B को ₹10 दे देगा तो A के पास ₹(x – 10) रह जाएंगे और B के पास ₹(y + 10) हो जाएंगे।
तब, प्रश्नानुसार,
B का धन = 6 × (A का धन)
⇒ (y + 10) = 6 × (x – 10)
⇒ 6x – 60 = y + 10
⇒ 6x – y = 60 + 10
⇒ 6x – y = 70
समीकरण (1) से, x = 2y – 300 ……(3)
x का यह मान समीकरण (2) में रखने पर,
⇒ 6(2y – 300) – y = 70
⇒ 12y – 1800 – y = 70
⇒ 11y = 70 + 1800 = 1870
⇒ y = 170
तब, y = 170 समीकरण (3) में रखने पर,
x = (2 × 170) – 300 = 40
अत: एक मित्र के पास ₹ 40 तथा दूसरे मित्र के पास ₹ 170 हैं।

Bihar Board Class 10 Maths Solutions Chapter 3 दो चरों वाले रैखिक समीकरण युग्म Ex 3.7

प्रश्न 3.
एक रेलगाड़ी कुछ दूरी समान चाल से तय करती है। यदि रेलगाड़ी 10 km/h अधिक तेज चलती होती, तो उसे नियत समय से 2 घंटे कम लगते और यदि रेलगाड़ी 10 km/h धीमी चलती होती, तो उसे नियत समय से 3 घंटे अधिक लगते। रेलगाड़ी द्वारा तय की गई दूरी ज्ञात कीजिए।
हल
माना रेलगाड़ी द्वारा तय की जाने वाली दूरी x km तथा रेलगाड़ी की एकसमान चाल y km/h है।
उक्त दूरी तय करने का निर्धारित समय = \(\frac{x}{y}\) घंटे
यदि रेलगाड़ी 10 km/h अधिक तेज चलती अर्थात् उसकी चाल (y + 10) km/h होती तो नियत समय में घंटे से \(\frac{x}{y}\) घंटे कम लगते अर्थात् (\(\frac{x}{y}\) – 2) घंटे लगते।
Bihar Board Class 10 Maths Solutions Chapter 3 दो चरों वाले रैखिक समीकरण युग्म Ex 3.7 Q3
इसी प्रकार, यदि रेलगाड़ी 10 km/h धीमी चलती अर्थात् (y – 10) km/h की चाल से चलती तो निर्धारित समय में घंटे से \(\frac{x}{y}\) घंटे अधिक लगते अर्थात् (\(\frac{x}{y}\) + 3) घंटे लगते।
Bihar Board Class 10 Maths Solutions Chapter 3 दो चरों वाले रैखिक समीकरण युग्म Ex 3.7 Q3.1
समीकरण (2) में से समीकरण (1) को घटाने पर,
Bihar Board Class 10 Maths Solutions Chapter 3 दो चरों वाले रैखिक समीकरण युग्म Ex 3.7 Q3.2
समीकरण (3) व समीकरण (6) से,
4x + 100 = \(\frac{10 x+30 y}{3}\)
⇒ 12x + 300 = 10x + 30y
⇒ 2x – 30y = -300
⇒ x – 15y = -150 ……. (7)
समीकरण (5) में से समीकरण (7) को घटाने पर,
(x – 10 y) – (x – 15 y) = 100 – (-150)
⇒ x – 10y – x + 15y = 100 + 150
⇒ 5y = 250
⇒ y = 50
अब, y का मान समीकरण (5) में रखने पर,
x – 10 × 50 = 100
⇒ x – 500 = 100
⇒ x = 600
अत: रेलगाड़ी द्वारा तय की जाने वाली दूरी = 600 km

Bihar Board Class 10 Maths Solutions Chapter 3 दो चरों वाले रैखिक समीकरण युग्म Ex 3.7

प्रश्न 4.
एक कक्षा के विद्यार्थियों को पंक्तियों में खड़ा होना है। यदि पंक्ति में 3 विद्यार्थी अधिक होते, तो 1 पंक्ति कम होती। यदि पंक्ति में 3 विद्यार्थी कम होते, तो 2 पंक्तियाँ अधिक बनतीं। कक्षा में विद्यार्थियों की संख्या ज्ञात कीजिए।
हल
मान कक्षा में x पंक्तियाँ हैं और प्रत्येक पंक्ति में y विद्यार्थी हैं।
विद्यार्थियों की संख्या = xy ……(1)
जब प्रत्येक पंक्ति में 3 विद्यार्थी अधिक होते अर्थात् (y + 3) विद्यार्थी होते और पंक्तियों की संख्या 1 कम होती अर्थात् (x – 1) होती।
तब, विद्यार्थियों की संख्या = (x – 1) (y + 3) = xy + 3x – y – 3 ……. (2)
समीकरण (1) व (2) से, xy + 3x – y – 3 = xy ⇒ 3x – y = 3 …….. (3)
जब प्रत्येक पंक्ति में 3 विद्यार्थी कम होते अर्थात् (y – 3) होते।
और पंक्तियों की संख्या 2 अधिक होती अर्थात् (x + 2) होती
तब, विद्यार्थियों की संख्या = (x + 2) (y – 3) = xy – 3x + 2y – 6 ……… (4)
समीकरण (1) व (4) से, xy – 3x + 2y – 6 = x y ⇒ 3x – 2y = -6 ……(5)
समीकरण (3) में से समीकरण (5) को घटाने पर,
(3x – y) – (3x – 2y) = 3 -(-6)
⇒ 3x – y – 3x + 2y = 9
⇒ y = 9
समीकरण (3) में y का मान रखने पर,
3x – 9 = 3
⇒ 3x = 12
⇒ x = 4
तब, विद्यार्थियों की संख्या = xy = 4 × 9 = 36
अत: कक्षा के विद्यार्थियों की संख्या = 36

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प्रश्न 5.
एक ∆ABC में, ∠C = 3∠B = 2(∠A + ∠B) है। त्रिभुज के तीनों कोण ज्ञात कीजिए।
हल
माना त्रिभुज के कोण A, B तथा C हैं।
तब, ∠A + ∠B + ∠C = 180°
⇒ ∠A + ∠B = 180° – ∠C
दिया है, ∠C = 3∠B = 2 (∠A + ∠B)
∠C = 2 (∠A + ∠B)
⇒ ∠C = 2 (180° – ∠C) [∵ ∠A + ∠B = 180° – ∠C]
⇒ ∠C = 360° – 2∠C
⇒ ∠C + 2∠C = 360°
⇒ 3∠C = 360°
⇒ ∠C = 120°
3∠B = ∠C
⇒ 3∠B = 120° [∵ ∠C = 120°]
⇒ ∠B = 40°
परन्तु ∠A + ∠B + ∠C = 180°
⇒ ∠A + 40° + 120° = 180°
⇒ ∠A = 180° – 120° – 40° = 20°
अतः त्रिभुज के कोण ∠A = 20°, ∠B = 40°, ∠C = 120°

Bihar Board Class 10 Maths Solutions Chapter 3 दो चरों वाले रैखिक समीकरण युग्म Ex 3.7

प्रश्न 6.
समीकरणों 5x – y = 5 और 3x – y = 3 के ग्राफ खींचिए। इन रेखाओं और Y-अक्ष से बने त्रिभुज के शीर्षों के निर्देशांक ज्ञात कीजिए। इस प्रकार बने त्रिभुज के क्षेत्रफल का परिकलन कीजिए।
हल
1. दिए हुए समीकरण युग्म का पहला समीकरण 5x – y = 5
2. माना x = 0, तब x का मान समीकरण 5x – y = 5 में रखने पर,
5 × 0 – y = 5
⇒ 0 – y = 5
⇒ y = -5
3. तब समीकरण 5x – y = 5 के आलेख पर एक बिन्दु A = (0, -5) है।
4. पुन: माना x = 2, तब x का मान समीकरण 5x – y = 5 में रखने पर,
5 × 2 – y = 5
⇒ 10 – y = 5
⇒ y = 10 – 5
⇒ y = 5
5. तब समीकरण 5x – y = 5 के आलेख पर एक बिन्दु B = (2, 5) है।
6. ग्राफ पेपर पर बिन्दुओं A(0, 5) तथा B(2, 5) को आलेखित (plotting) कीजिए और दिए गए समीकरण का आलेख AB खींचिए।
7. दिए हुए दूसरे समीकरण युग्म के समीकरण 3x – y = 3
8. माना x = 0, तब x का मान समीकरण 3x – y = 3 में रखने पर,
3 × 0 – y = 3
⇒ 0 – y = 3
⇒ y = -3
9. तब समीकरण 3x – y = 3 के आलेख पर एक बिन्दु C = (0, -3) है।
10. पुन: माना x = 1, तब x का मान समीकरण 3x – y = 3 में रखने पर,
3 × 1 – y = 3
⇒ 3 – y = 3
⇒ -y = 3 – 3 = 0
⇒ y = 0
11. तब समीकरण 3x – y = 3 के आलेख पर एक बिन्दु D = (1, 0) है।
12. ग्राफ पेपर पर बिन्दु C = (0, -3) तथा D = (1, 0) को आलेखित कर दिए हुए समीकरण का आलेख CD खींचिए।
Bihar Board Class 10 Maths Solutions Chapter 3 दो चरों वाले रैखिक समीकरण युग्म Ex 3.7 Q6
13. ऋजु रेखाओं AB तथा CD का प्रतिच्छेद बिन्दु P (h, k) ज्ञात कीजिए। बिन्दु P के निर्देशांक P = (1, 0) आलेख से ज्ञात कीजिए।
तब, त्रिभुज के शीर्षों के निर्देशांक A(0, -5), C (0, – 3) तथा P या D (1, 0)
रेखाओं तथा Y-अक्ष के बीच ∆ACD बनता है।
माना x1 = 0, y1 = -5, x2 = 0, y2 = -3 तथा x3 = 1, y3 = 0
त्रिभुज का क्षेत्रफल = \(\frac{1}{2}\) [x1(y2 – y3) + x2(y3 – y1) + x3(y1 – y2)]
= \(\frac{1}{2}\) [0 (-3 – 0) + 0 {0 – (-5)} + 1{-5 – (-3}] वर्ग मात्रक
= \(\frac{1}{2}\) [{-5 + 3}]
= \(\frac{1}{2}\) (-2)
= -1 वर्ग मात्रक
क्षेत्रफल ऋणात्मक नहीं हो सकता, अत: त्रिभुज का क्षेत्रफल 1 वर्ग मात्रक होगा।

Bihar Board Class 10 Maths Solutions Chapter 3 दो चरों वाले रैखिक समीकरण युग्म Ex 3.7

प्रश्न 7.
निम्न रैखिक समीकरणों के युग्मों को हल कीजिए-
(i) px + qy = p – q
qx – py = p + q
(ii) ax + by = c
bx + ay = 1 + c
(iii) \(\frac{x}{a}-\frac{y}{b}=0\)
ax + by = a2 + b2
(iv) (a – b) x + (a + b) y = a2 – 2ab – b2
(a + b)(x + y) = a2 + b2
(v) 152x – 378y = -74
-378x + 152y = -604
हल
(i) दिए गए रैखिक समीकरणों का युग्म px + qy = p – q
px + qy – p + q = 0 ……. (1)
qx – py = p + q
qx – py – p – q = 0 ……. (2)
वज्रगुणन से समीकरण-युग्म का हल
Bihar Board Class 10 Maths Solutions Chapter 3 दो चरों वाले रैखिक समीकरण युग्म Ex 3.7 Q7
⇒ -x = y = -1
-x = -1 ⇒ x = 1 और y = -1
अत: समीकरणों के युग्म का हल x = 1 तथा y = -1

(ii) दिए गए रैखिक समीकरणों का युग्म
ax + by = c ⇒ ax + by – c = 0 ……… (1)
bx + ay = 1 + c ⇒ bx + a y – (1 + c) = 0 ……… (2)
वज्रगुणन से समीकरण-युग्म का हल होगा :
Bihar Board Class 10 Maths Solutions Chapter 3 दो चरों वाले रैखिक समीकरण युग्म Ex 3.7 Q7.1

Bihar Board Class 10 Maths Solutions Chapter 3 दो चरों वाले रैखिक समीकरण युग्म Ex 3.7

(iii) दिए गए रैखिक समीकरणों का युग्म
\(\frac{x}{a}-\frac{y}{b}=0\)
⇒ \(\frac{x}{a}=\frac{y}{b}\)
⇒ \(x=\frac{a}{b} y\) ………. (1)
ax + by = a2 + b2 …… (2)
समीकरण (1) से x का मान समीकरण (2) में रखने पर,
a(\(\frac{a}{b}\) y) + by = a2 + b2
⇒ a2y + b2y = b(a2 + b2)
⇒ (a2 + b2)y = b(a2 + b2)
⇒ y = b (दोनों पक्षों में a2 + b2 से भाग करने पर)
y का मान समीकरण (1) में रखने पर,
x = \(\frac{a}{b}\) × b ⇒ x = a
अत: समीकरणों के युग्म का हल x = a तथा y = b

(iv) दिए गए रैखिक समीकरणों का युग्म (a – b) x + (a + b) y = a2 – 2ab – b2
(a + b)(x + y) = a2 + b2
⇒ (a – b) x + (a + b) y = a2 – 2ab – b2 …….(1)
(a + b) (x + y) = a2 + b2
⇒ (a + b)x + (a + b)y = a2 + b2 …….. (2)
समीकरण (2) में से समीकरण (1) को घटाने पर,
(a + b) x + (a + b) y – (a – b) x – (a + b) y = a2 + b2 – a2 + 2ab + b2
⇒ (a + b – a + b) x = 2ab + 2b2
⇒ 2bx = 2ab + 2b2
⇒ 2bx = 2b (a + b)
⇒ x = (a + b) [दोनों पक्षों में (2b) का भाग देने पर]
x का मान समीकरण (1) में रखने पर,
(a – b) (a + b) + (a + b) y = a2 – 2ab – b2
⇒ (a2 – b2) + (a + b) y = a2 – 2ab – b2
⇒ (a + b) y = a2 – 2ab – b2 – a2 + b2
⇒ (a + b) y = -2ab
⇒ y = \(-\frac{2 a b}{a+b}\)
अत: समीकरणों के युग्म का हल x = (a + b) तथा y = \(-\frac{2 a b}{a+b}\)

Bihar Board Class 10 Maths Solutions Chapter 3 दो चरों वाले रैखिक समीकरण युग्म Ex 3.7

(v) दिए गए रैखिक समकरणों का युग्म
152x – 378y = -74 …… (1)
-378x + 152y = -604 …….. (2)
समीकरण (1) व समीकरण (2) को जोड़ने पर,
-226x – 226y = -678
⇒ -226(x + y) = – 678
⇒ x + y = 3 ……. (3)
समीकरण (1) में से समीकरण (2) को घटाने पर,
(152x – 378y) – (-378x + 152y) = -74 – (-604)
⇒ 152x – 378y + 378x – 152y = -74 + 604
⇒ 530x – 530y = 530
⇒ x – y = 1
पुनः समीकरण (3) व समीकरण (4) को जोड़ने पर, 2x = 4 ⇒ x = 2
समीकरण (3) व समीकरण (4) को घटाने पर, 2y = 2 ⇒ y = 1
अत: समीकरणों के युग्म का हल x = 2 तथा y = 1

प्रश्न 8.
ABCD एक चक्रीय चतुर्भुज है। इस चक्रीय चतुर्भुज के कोण ज्ञात कीजिए।
Bihar Board Class 10 Maths Solutions Chapter 3 दो चरों वाले रैखिक समीकरण युग्म Ex 3.7 Q8
हल
ABCD एक चक्रीय चतुर्भुज है।
∠A + ∠C = 180° तथा ∠B + ∠D = 180°
∠A + ∠C = 180° तो 4y + 20 + (-4x) = 180
⇒ -4x + 4y = 180 – 20 = 160
⇒ x – y = -40 ……..(1)
∠B + ∠D = 180° तो 3y – 5 + (-7x) + 5 = 180
⇒ -7x + 3y = 180
⇒ 7x – 3y = -180 …….. (2)
समीकरण (1) से, y = x + 40; अत: समीकरण (2) में y = x + 40 रखने पर,
7x – 3(x + 40) = -180
⇒ 7x – 3x – 120 = -180
⇒ 4x = -180 + 120 = -60
⇒ x = -15
तब, समीकरण (1) में x = -15 रखने पर, y = -15 + 40 = 25
तब,
∠A = 4y + 20 = (4 × 25) + 20 = 120°
∠B = 3y – 5 = (3 × 25) – 5 = 70°
∠C = -4x = – 4 × -15 = 60°
∠D = -7x + 5 = (-7 × – 15) + 5 = 110°

Bihar Board Class 10 Science Solutions Chapter 9 अनुवांशिकता एवं जैव विकास

BSEB Bihar Board Class 10 Science Solutions Chapter 9 अनुवांशिकता एवं जैव विकास

Bihar Board Class 10 Science Solutions Chapter 9 अनुवांशिकता एवं जैव विकास Textbook Questions and Answers, Additional Important Questions, Notes.

Bihar Board Class 10 Science अनुवांशिकता एवं जैव विकास InText Questions and Answers

अनुच्छेद 9.1 पर आधारित

प्रश्न 1.
यदि एक ‘लक्षण – A’ अलैंगिक प्रजनन वाली समष्टि के 10 प्रतिशत सदस्यों में पाया जाता है तथा ‘लक्षण – B’ उसी समष्टि में 60 प्रतिशत जीवों में पाया जाता
है, तो कौन-सा लक्षण पहले उत्पन्न हुआ होगा?
उत्तर:
लक्षण-B पहले उत्पन्न हुआ होगा; क्योंकि पीढ़ी-दर-पीढ़ी अनुकूलनता के कारण लक्षण का प्रतिशत बढ़ता जाता है।

प्रश्न 2.
विभिन्नताओं के उत्पन्न होने से किसी स्पीशीज़ का अस्तित्व किस प्रकार बढ़ जाता है?
उत्तर:
किसी प्रजाति में वातावरणीय कारकों के प्रभाव से उत्पन्न विभिन्नताएँ उसे विपरीत परिस्थितियों में जीवित रखने में सहायक होती हैं। विभिन्नताएँ जैव विकास का आधार हैं।

अनुच्छेद 9.2 पर आधारित

प्रश्न 1.
मेण्डल के प्रयोगों द्वारा कैसे पता चला कि लक्षण प्रभावी अथवा अप्रभावी होते हैं?
या शुद्ध लम्बे तथा शुद्ध बौने पौधों के बीच एकसंकर संकरण का वर्णन कीजिए। (2018)
उत्तर:
मेण्डल ने दो विकल्पी मटर के पौधे चुने जैसे लंबे जो कि लंबे मटर के पौधे ही पैदा करते थे तथा बौने जो कि बौने मटर के पौधे ही उत्पन्न करते थे। मेण्डल ने इन दोनों पौधों का संकरण कराया, तो प्रथम संतति पीढ़ी (F1 ) में सभी मटर के पौधे लंबे उगे। इसका अर्थ यह है कि लंबाई का लक्षण ही F1 पीढ़ी संतति में दिखाई दिया और बौनेपन का लक्षण प्रदर्शित नहीं हुआ। जब मेण्डल ने F1 पीढी के पौधों में स्वपरागण कराया तो F2 पीढी में दोनों लक्षण दिखे अर्थात् लंबे पौधे भी और बौने भी (3 : 1 अनुपात में)। इसका अर्थ हुआ कि लंबे होने का लक्षण प्रभावी और बौनेपन का लक्षण अप्रभावी है।
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यह इंगित करता है कि F1 पौधों द्वारा लंबाई एवं बौनेपन दोनों के विकल्पी लक्षणों की वंशानुगति हुई। F1 पीढ़ी में लंबाई वाला विकल्प अपने आपको व्यक्त कर पाया क्योंकि वह प्रभावी विकल्प है और बौनापन अप्रभावी विकल्प है।

प्रश्न 2.
मेण्डल के प्रयोगों से कैसे पता चला कि विभिन्न लक्षण स्वतंत्र रूप से वंशानुगत होते हैं?
उत्तर:
मेण्डल ने दो विकल्पी जोड़ों गोल बीज वाले लंबे पौधों तथा झुर्शीदार बीज वाले बौने पौधों का संकरण कराया तो F1 पीढ़ी में सभी पौधे लंबे एवं गोल बीज वाले थे। अतः लंबाई तथा गोल बीज प्रभावी लक्षण हैं।
F1 पीढ़ी के पौधों का स्वपरागण कराने पर चार प्रकार के पौधे पाए गए –
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F2 पीढ़ी की संतति:
में झुरींदार बीज वाले लंबे पौधे तथा गोल बीज वाले बौने पौधे नए संयोजन प्रदर्शित करते हैं, इससे सिद्ध होता है कि विभिन्न विकल्पी लक्षण स्वतन्त्र रूप से वंशानुगत होते हैं।

प्रश्न 3.
एक ‘A-रुधिर वर्ग’ वाला पुरुष एक स्त्री जिसका रुधिर वर्ग ‘O’ है, से विवाह करता है। उनकी पुत्री का रुधिर वर्ग – ‘O’ है। क्या यह सूचना पर्याप्त है यदि आपसे कहा जाए कि कौन-सा विकल्प लक्षण-रुधिर वर्ग – ‘A’ अथवा ‘O’ प्रभावी लक्षण है? का स्पष्टीकरण दीजिए।
उत्तर:
यह सूचना पर्याप्त नहीं है। इसमें माता-पिता के इस लक्षण का जीनोम भी देना चाहिए। क्योंकि इस सूचना से यह नहीं पता चलता कि पिता में इस लक्षण के IA IA जीन हैं अथवा IA IO जीन हैं। पूर्वज्ञान के आधार पर हम कह सकते हैं कि IA IO लक्षण प्रभावी है और पिता में IA IO का जोड़ा होगा एवं माता में IA IO विकल्प होंगे तथा पुत्री में IO IO जीन का जोड़ा होगा।
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प्रश्न 4.
मानव में बच्चे का लिंग-निर्धारण कैसे होता है?
उत्तर:
लिंग गुणसूत्र लिंग-निर्धारण का कार्य करते हैं –

  • महिलाओं में दोनों लिंग गुणसूत्र एक ही प्रकार युग्मक के होते हैं- X और X(XX)।
  • पुरुषों में दोनों लिंग गुणसूत्र भिन्न-भिन्न होते हैं- X और Y(XY)।
  • पुरुष दो प्रकार के शुक्राणु बराबर मात्रा में उत्पन्न करते हैं। एक प्रकार के शुक्राणुओं में X गुणसूत्र होता है जबकि दूसरे प्रकार के शुक्राणु Y गुणसूत्र रखते हैं।
  • महिलाएँ एक ही प्रकार के अंडाणु उत्पन्न करती हैं जिसमें x गुणसूत्र होते हैं।
  • जब X गुणसूत्र वाला शुक्राणु अंडे को निषेचित करता है तो (XX) युग्मनज लड़की में विकसित होता है।
  • जब Y गुणसूत्र वाला शुक्राणु अंडे को निषेचित करता है तो (XY) युग्मनज लड़के में विकसित होता है।
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अनुच्छेद 9.3 पर आधारित

प्रश्न 1.
वे कौन-से विभिन्न तरीके हैं जिनके द्वारा एक विशेष लक्षण वाले व्यष्टि जीवों की संख्या समष्टि में बढ़ सकती है?
उत्तर:
एक विशेष लक्षण वाले वयष्टि जीवों की संख्या समष्टि में निम्नलिखित कारणों से बढ़ सकती है –
1. जनन के दौरान विभिन्नता का उद्भव जो कि पर्यावरण के अनुकूल हो और इस विभिन्नता का वंशागत होना। उदाहरण के लिए, लाल भंग की समष्टि में हरे रंग के भंगों का उत्पन्न होना। कौए हरे रंग के भंग हरी पत्तियों के बीच पहचान नहीं पाते और लाल रंग के भुंग को शिकार बनाते हैं। जिससे लाल रंग के भृग की संख्या समष्टि में कम होती जाती है और हरे रंग के भंग की संख्या समष्टि में बढ़ती जाती है। यह एक प्राकृतिक चयन था जो कि कौओं के द्वारा सम्पन्न हुआ।

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2. आकस्मिक दुर्घटनाओं के कारण। उदाहरण के लिए, भृग समष्टि में लाल भुंग नीले भंग की अपेक्षा संख्या में अधिक थे। परन्तु संयोग से एक हाथी ने उन झाड़ियों को कुचल डाला जिनमें भृग रहते थे। इसमें लाल रंग के भंग रौंद दिए गए पर कुछ नीले शृंग बच गए। धीरे-धीरे नीले रंग के भंगों की संख्या प्रजनन द्वारा बढ़ती जाती है जिससे समष्टि का रूप बदल जाता है। यह मात्र संयोग था कि एक दुर्घटना के कारण एक रंग की भृग समष्टि बच गई।

प्रश्न 2.
एक एकल जीव द्वारा उपार्जित लक्षण सामान्यतः अगली पीढ़ी में वंशानुगत नहीं होते। क्यों?
उत्तर:
उपार्जित लक्षण का प्रभाव केवल कायिक ऊतकों पर पड़ता है परन्तु जनन कोशिकाओं के डी०एन०ए० पर नहीं पड़ता। अतः ये लक्षण वंशानुगत नहीं होते।

प्रश्न 3.
बाघों की संख्या में कमी आनुवंशिकता के दृष्टिकोण से चिंता का विषय क्यों है?
उत्तर:
1. बाघों की संख्या में कमी दर्शाती है कि बाघ प्राकृतिक चयन में पिछड़ गए हैं। उनमें उत्तम परिवर्तन उत्पन्न नहीं हो रहे जो कि पर्यावरण के अनुकूल हों और जिसके कारण वे अपनी समष्टि का आकार बढ़ा सकें।

2. छोटी समष्टि पर दुर्घटनाओं का प्रभाव अधिक पड़ता है। छोटी समष्टि में दुर्घटनाएँ किसी जीन की आवृत्ति को भी प्रभावित कर सकती हैं चाहे उनका उत्तरजीविता हेतु कोई लाभ हो या न हो। प्राकृतिक चयन और दुर्घटनाओं के कारण बाघों की प्रजाति लुप्त भी हो सकती है।

अनुच्छेद 9.4 पर आधारित

प्रश्न 1.
वे कौन-से कारक हैं जो नयी स्पीशीज के उद्भव में सहायक हैं?
उत्तर:
निम्न कारक नयी स्पीशीज के उद्भव में सहायक हैं –

  1. प्राकृतिक चयन।
  2. जीन प्रवाह का न होना अथवा बहुत कम होना।
  3. आनुवंशिक विचलन।
  4. डी०एन०ए० में गुणसूत्रों की संख्या में परिवर्तन जिससे कि दो समष्टियों के सदस्यों की जनन कोशिकाएँ (युग्मक) संलयन न कर पाएँ।
  5. दो उप-समष्टियों का रूपेण अलग होना जिससे कि उनके सदस्य परस्पर लैंगिक प्रजनन न कर पाएँ।

प्रश्न 2.
क्या भौगोलिक पृथक्करण स्वपरागित स्पीशीज़ के पौधों के जाति-उद्भव का प्रमुख कारण हो सकता है? क्यों या क्यों नहीं?
उत्तर:
नई स्पीशीज़ का उद्भव तब होता है जबकि एक समष्टि की दो उप-समष्टियाँ परस्पर लैंगिक जनन न कर पाएँ। लैंगिक जनन में डी०एन०ए० में आनुवंशिक विचलन एवं प्राकृतिक वरण और भौगोलिक पृथक्करण के कारण एक उप-समष्टि दूसरी उप-समष्टि से भिन्न होती जाती है। अन्ततः एक नई स्पीशीज़ का उद्भव होता है। स्वपरागित स्पीशीज़ में अन्य जीवों से नए जीन समष्टि में नहीं आ पाते।

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अतः आने वाली पीढ़ियों में नए-नए संगठन नहीं हो पाते और अधिक विभिन्नताएँ उत्पन्न नहीं हो पातीं। ऐसे पौधों में विभिन्नता केवल तभी आती है जब डी०एन०ए० प्रतिकृति के समय त्रुटि के कारण डी०एन०ए० में परिवर्तन आ जाए जिसकी संभावना बहुत कम होती है। अतः भौगोलिक पृथक्करण स्वपरागित स्पीशीज़ पौधों के जाति-उद्भव का प्रमुख कारण नहीं हो सकता।

प्रश्न 3.
क्या भौगोलिक पृथक्करण अलैंगिक जनन वाले जीवों के जाति उद्भव का प्रमुख कारक हो सकता है? क्यों अथवा क्यों नहीं?
उत्तर:
भौगोलिक पृथक्करण अलैंगिक जनन वाले जीवों के जाति-उद्भव का प्रमुख कारण नहीं हो सकता। क्योंकि अलैंगिक जनन द्वारा उत्पन्न संतति में परस्पर बहुत कम अंतर होता है, समानताएँ बहुत अधिक होती हैं। जो थोड़ी-बहुत विविधता होती है वह DNA प्रतिकृति के समय न्यून त्रुटियों के कारण होती है। ये नई विभिन्नताएँ इतनी प्रमुख नहीं होती जिससे कि किसी नई जाति का उद्भव हो सके।

अनुच्छेद 9.5 पर आधारित

प्रश्न 1.
उन अभिलक्षणों का एक उदाहरण दीजिए जिनका उपयोग हम दो स्पीशीज के विकासीय संबंध निर्धारण के लिए करते हैं?
उत्तर:
समजात अभिलक्षण से भिन्न दिखाई देने वाली विभिन्न स्पीशीज़ के बीच विकासीय सम्बन्ध की पहचान करने में सहायता मिलती है। उदाहरण के लिए, मेंढक, छिपकली, पक्षी तथा मनुष्य के अग्रपादों की आधारभूत संरचना एकसमान है। यद्यपि ये विभिन्न कशेरुकों में भिन्न-भिन्न कार्य करने के लिए रूपान्तरित हैं। ये समजात अंग समान पूर्वज की ओर इशारा करते हैं।
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प्रश्न 2.
क्या एक तितली और चमगादड़ के पंखों को समजात अंग कहा जा सकता है? क्यों अथवा क्यों नहीं?
उत्तर:
तितली और चमगादड़ के पंख समजात अंग नहीं होते। ये समरूप अंग हैं जो उड़ने का कार्य करते हैं। कारण तितली के पंखों की संरचना चमगादड़ के पंख से बिल्कुल भिन्न होती है। चमगादड़ के पंख में अग्रपाद की अंगुली की हड्डियाँ होती हैं जबकि तितली के पंख में हड्डियाँ नहीं होती।

प्रश्न 3.
जीवाश्म क्या हैं? वे जैव-विकास प्रक्रम के विषय में क्या दर्शाते हैं?
उत्तर:
लाखों अथवा हजारों साल पहले पाए जाने वाले जीवों के परिरक्षित कठोर अवशेष, चट्टानों पर पैरों के निशान, मिट्टी में बने मृत जीवों के साँचे आदि को जीवाश्म कहते हैं।

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जीवाश्म हमें जैव विकास के बारे में निम्नलिखित बातें दर्शाते हैं –
1. ऐसी कौन-सी स्पीशीज़ हैं जो कभी जीवित थीं परन्तु अब लुप्त हो गई हैं।
2. ऐसे जीवों के अवशेष जीवाश्म के रूप में मिले हैं जोकि एक वर्ग के जीवों का उनसे विकसित उच्च वर्ग के बीच की कड़ी के जीवों का स्वरूप बताते हैं।
उदाहरण के लिए, आर्कीऑप्टैरिक्स जीवाश्म में कुछ लक्षण सरीसृप के हैं तो अन्य लक्षण पक्षियों के। यह इंगित करता है कि पक्षी सरीसृप से विकसित हुए
3. जीवाश्म पृथ्वी के अंदर विभिन्न स्तर पर खुदाई करके निकाले जाते हैं। इससे पता चलता है कि पृथ्वी की सतह के निकट पाए जाने वाले जीवाश्म गहरे स्तर पर पाए गए जीवाश्मों की अपेक्षा अधिक नए हैं।

अनुच्छेद 9.6 पर आधारित

प्रश्न 1.
क्या कारण है कि आकृति, आकार, रंग-रूप में इतने भिन्न दिखाई पड़ने वाले मानव एक ही स्पीशीज़ के सदस्य हैं?
उत्तर:
आकृति, आकार, रंग-रूप में इतने भिन्न दिखाई पड़ने वाले मानव एक ही स्पीशीज़ (होमो सैपिएन्स) के सदस्य हैं।

1. यह बात उत्खनन, समय-निर्धारण, जीवाश्म अध्ययन तथा डी०एन०ए० अनुक्रम के निर्धारण द्वारा सिद्ध होती है। हम सभी का उद्भव अफ्रीका से हुआ। जहाँ से हमारे पूर्वज सारे संसार में फैले और उनमें धीरे-धीरे आकृति, आकार, रंग-रूप की विभिन्नता आती गई। परन्तु उनके डी०एन०ए० में ऐसा कोई परिवर्तन नहीं हुआ जो उनको नई जाति-उद्भव का स्तर दे पाता।

2. किसी भी स्पीशीज़ के सदस्य किसी अन्य स्पीशीज के सदस्यों के साथ सफल लैंगिक प्रजनन नहीं कर पाते (गुणसूत्रों की संरचना तथा संख्या में भिन्नता के कारण)। परन्तु मानव आकृति, आकार, रंग-रूप में इतने भिन्न होते हुए भी परस्पर सफल लैंगिक प्रजनन कर सकते हैं। उनसे उत्पन्न संतति अपनी पीढी बनाए रख सकती है। वे परस्पर रक्त का अनुदान कर सकते हैं। अतः आकृति, आकार, रंग-रूप में इतने भिन्न दिखाई पड़ने वाले मानव एक ही स्पीशीज़ के सदस्य हैं।

प्रश्न 2.
विकास के आधार पर क्या आप बता सकते हैं कि जीवाणु, मकड़ी, मछली तथा चिम्पैंजी में किसका शारीरिक अभिकल्प उत्तम है? अपने उत्तर की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
जीवाणु, मछली, मकड़ी तथा चिम्पैंजी में से चिम्पैंजी में शारीरिक अभिकल्प की जटिलता सबसे अधिक है। चिम्पैंजी का शारीरिक डिज़ाइन, विकसित शारीरिक अंग संस्थान, मस्तिष्क का जीवाणु, मकड़ी और मछली से अधिक विकसित होना तथा हाथों में अंगूठे का अँगुलियों के विपरीत होना जिससे वे चीजें पकड़ सकें आदि लक्षण उनको बाकी सभी से उत्तम बना देते हैं। हालाँकि विकास की दृष्टि से इसे अतिउत्तम नहीं माना जा सकता।

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क्योंकि सरलतम अभिकल्प वाले जीवाणु के समूह विभिन्न पर्यावरण में आज भी पाए जाते हैं। उदाहरण के लिए, जीवाणु आज भी विषम पर्यावरण; जैसे कि-उष्ण झरने, गहरे समुद्र के गर्म स्रोत तथा अन्टार्कटिका की बर्फ में भी पाए जाते हैं। दूसरे शब्दों में यह नहीं कहा जा सकता कि चिम्पैंजी का शारीरिक अभिकल्प अन्य से उत्तम है, वरन् वह जैव विकास शृंखला में उत्पन्न एक और स्पीशीज़ है।

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प्रश्न 1.
मेण्डल के एक प्रयोग में लंबे मटर के पौधे जिनके बैंगनी पुष्प थे, का संकरण बौने पौधों जिनके सफेद पुष्प थे, से कराया गया। इनकी संतति के सभी पौधों में पुष्प बैंगनी रंग के थे। परंतु उनमें से लगभग आधे बौने थे। इससे कहा जा सकता है कि लंबे जनक पौधों की आनुवंशिक रचना निम्न थी।
(a) TTWW
(b) TTww
(c) TtWW
(d) TtWw
उत्तर:
(c) TtWW

प्रश्न 2.
समजात अंगों का उदाहरण है –
(a) हमारा हाथ तथा कुत्ते के अग्रपाद
(b) हमारे दाँत तथा हाथी के दाँत
(c) आलू एवं घास के उपरिभूस्तारी
(d) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(d) उपरोक्त सभी

प्रश्न 3.
विकासीय दृष्टिकोण से हमारी किससे अधिक समानता है?
(a) चीन के विद्यार्थी
(b) चिम्पैंजी
(c) मकड़ी।
(d) जीवाणु
उत्तर:
(a) चीन के विद्यार्थी

प्रश्न 4.
एक अध्ययन से पता चला कि हलके रंग की आँखों वाले बच्चों के जनक (माता-पिता) की आँखें भी हलके रंग की होती हैं। इसके आधार पर क्या हम कह सकते हैं कि आँखों के हलके रंग का लक्षण प्रभावी है अथवा अप्रभावी?
उत्तर:
इस विवरण के आधार पर यह नहीं कहा जा सकता कि आँखों के हलके रंग का लक्षण प्रभावी है अथवा अप्रभावी। क्योंकि जनक (माता-पिता) दोनों में ही आँखें हलके रंग की हैं। यह हो सकता है कि माता तथा पिता में जीन के दोनों विकल्प अप्रभावी हों। इसलिए आँखों के रंग का दूसरा विकल्प है ही नहीं। अतः सन्तान में हलके रंग की आँखें पाई गईं। अगर दूसरी संधारणा पर विचार करें कि आँखों का हलके रंग का लक्षण प्रभावी है तो इस अवस्था में कुछ बच्चों की आँखें गहरे रंग की होनी चाहिए। क्योंकि अप्रभावी लक्षण 4 में से 1 बच्चे (3 : 1 अनुपात में) में व्यक्त होना चाहिए।

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प्रश्न 5.
जैव-विकास तथा वर्गीकरण का अध्ययन क्षेत्र किस प्रकार परस्पर संबंधित है?
उत्तर:
जैव-विकास के अध्ययन से पता चलता है कि पहले उत्पन्न जीवों का शरीर बाद में उत्पन्न जीवों के शरीर से सरलतम है। अर्थात् जीवों के शरीर में सरलता से जटिलता की तरफ विकास हुआ है। यही आधार वर्गीकरण का भी है। जीवों को उनके शरीर के डिज़ाइन के आधार पर ही विभिन्न वर्गों में रखा गया है। अत: जैव-विकास तथा वर्गीकरण का अध्ययन परस्पर संबंधित है।

प्रश्न 6.
समजात तथा समरूप अंगों को उदाहरण देकर समझाइए।
उत्तर:
समजात अंग उन अंगों को जो अलग-अलग स्पीशीज़ के जीवों में अलग-अलग कार्य करते हैं परन्तु आधारभूत संरचना में एकसमान हैं, समजात अंग कहते हैं। उदाहरण के लिए, पक्षी के पंख तथा मनुष्य का हाथ दोनों ही रूपान्तरित अग्रपाद हैं। समरूप अंग ऐसे अंग जो अलग-अलग जीवों में एकसमान कार्य करते हैं परन्तु उनकी आधारभूत संरचना समान नहीं होती है, उन्हें समरूप अंग कहते हैं। उदाहरण के लिए, तितली के पंख और कबूतर के पंख दोनों ही उड़ने का कार्य करते हैं, परन्तु कबूतर के पंख में हड्डियाँ होती हैं, तितली के पंख में नहीं होती।

प्रश्न 7.
कुत्ते की खाल का प्रभावी रंग कत्ता कुतिया ज्ञात करने के उद्देश्य से एक काली खाल (BB) x (bb) सफ़ेद खाल प्रोजेक्ट बनाइए।
उत्तर:
इसके लिए एक शुद्ध काली खाल वाले कुत्ते (BB) तथा एक शुद्ध सफेद खाल वाली F1 संतान पिल्ले कुतिया (bb) का चयन किया जाता है। उनका समय पर संकरण कराएँ। यदि उनसे उत्पन्न सभी पिल्ले (कुत्ते के बच्चे) काली खाल वाले हैं, तो (Bb) सभी काली खाल वाले काली खाल का लक्षण प्रभावी है।
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प्रश्न 8.
विकासीय संबंध स्थापित करने में जीवाश्म का क्या महत्त्व है?
उत्तर:
जीवाश्म पुराने जीवों के अवशेष अथवा चिह्न या साँचे होते हैं। जीवाश्मों के अध्ययन से पता चलता है कि अमक जीव कब पाया जाता था, कब लुप्त हो गया, जीवों के विकास क्रम में पहले जीवों की संरचना कैसी थी और बाद में उसमें क्या-क्या परिवर्तन होते गए।

प्रश्न 9.
किन प्रमाणों के आधार पर हम कह सकते हैं कि जीवन की उत्पत्ति अजैविक पदार्थों से हुई है?
या स्टैनले मिलर के प्रयोग का सचित्र वर्णन कीजिए। (2011, 12, 13, 17)
उत्तर:
वैज्ञानिक जे०बी०एस० हाल्डेन ने 1929 ई. में सुझाव दिया कि जीवों की सर्वप्रथम उत्पत्ति उन सरल अकार्बनिक अणुओं से ही हुई होगी जो पृथ्वी को उत्पत्ति के समय बने थे। स्टेनले मिलर तथा हेराल्ड सी० यूरे ने 1953 ई. में प्रयोग किए और प्रमाण दिए कि सरल अकार्बनिक अणुओं से कार्बनिक अणु उत्पन्न हो सकते हैं। उन्होंने ऐसे वातावरण का निर्माण किया जो सम्भवतः प्राथमिक वातावरण के समान था।

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जिसमें अमोनिया, मीथेन तथा हाइड्रोजन सल्फाइड (H2S) गैसें तो थीं परन्तु स्वतन्त्र ऑक्सीजन नहीं थी। पात्र में जल भी था। इस सम्मिश्रण को 100°C से कुछ कम ताप पर रखा गया। गैसों के इस मिश्रण में कृत्रिम रूप से समय-समय पर चिंगारियाँ उत्पन्न की गईं; जैसे किआकाश में तड़ित बिजली उत्पन्न होती है।
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इस प्रयोग में देखा गया कि 15% मीथेन का कार्बन उपयोग हुआ और सरले अकार्बनिक यौगिकों में परिवर्तित हो गया। इन अकार्बनिक यौगिकों में विभिन्न, अमीनो अम्ल भी संश्लेषित हुए जो कि प्रोटीन के अणुओं के निर्माण के लिए आवश्यक हैं। उपर्युक्त प्रमाण के आधार पर हम परिकल्पना कर सकते हैं कि शायद जीवन की उत्पत्ति अजैविक पदार्थों से हुई है।

प्रश्न 10.
अलैंगिक जनन की अपेक्षा लैंगिक जनन द्वारा उत्पन्न विभिन्नताएँ अधिक स्थायी होती हैं, व्याख्या कीजिए। यह लैंगिक प्रजनन करने वाले जीवों के विकास को किस प्रकार प्रभावित करता है?
उत्तर:
अलैंगिक जनन में जनक एक ही होता है और उसी का डी०एन०ए० संतति में जाता है। अतः संतति में विभिन्नता तभी आती है जब डी०एन०ए० प्रतिकृति में त्रुटियाँ हों जो कि न्यून होती हैं। लैंगिक जनन में दो जनक होते हैं जो कि डी०एन०ए० का एक-एक सेट संतति को प्रदान करते हैं। इससे संतति में भिन्न-भिन्न लक्षणों का समावेश होता है और अलैंगिक जनन से लैंगिक जनन में विविधता अपेक्षाकृत अधिक होती है।

लैंगिक जनन से उत्पन्न विभिन्नताएँ जीन (डी०एन०ए०) में परिवर्तन के कारण होती हैं। अतः ये स्थिर होती हैं और एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में स्थानांतरित होती हैं। प्राकृतिक चयन के कारण वही विभिन्नताएँ प्रगति करती हैं जो कि पर्यावरण वरण के अनुकूल हों। अतः समय काल में मौजूदा पीढ़ी अपने पूर्वजों से इतनी भिन्न हो सकती हैं कि वे उनसे लैंगिक जनन न कर पाएँ और एक अन्य स्पीशीज़ के रूप में उभरकर आ जाएँ तथा जीवों के विकास में सहायक हों।

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प्रश्न 11.
संतति में नर एवं मादा जनकों द्वारा आनुवंशिक योगदान में बराबर की भागीदारी किस प्रकार सुनिश्चित की जाती है?
उत्तर:
जैसा कि चित्र में दिखाया गया है कि मटर के गोल बीज वाले लंबे पौधों का यदि झुर्रादार बीज वाले बौने पौधों से संकरण कराया जाए तो F2 पीढी में P RRYy लंबे/बौने लक्षण तथा गोल/झुरींदार लक्षण स्वतन्त्र रूप से (गोल, हरे बीज) (झुरींदार, पीले बीज) वंशानुगत होते हैं।

यदि संतति पौधे को जनक पौधे से संपूर्ण जीनों का एक पूर्ण सेट प्राप्त होता है तो चित्र में दिया प्रयोग सफल नहीं हो सकता। क्योंकि दो लक्षण R तथा Y सेट में एक-दूसरे से संलग्न रहेंगे तथा स्वतन्त्र रूप में आहरित नहीं हो सकते। (गोल, पीले बीज) वास्तव में जीन सेट केवल एक डी०एन०ए० श्रृंखला के रूप में न होकर, डी०एन०ए० के अलग-अलग स्वतन्त्र अणु के रूप में होते हैं। इनमें से प्रत्येक एक गुणसूत्र का अनुपात निर्माण करता है।

इसलिए प्रत्येक कोशिका में प्रत्येक गुणसूत्र की दो प्रतिकृति होती है। जिनमें से एक उन्हें नर तथा दूसरी मादा जनक से प्राप्त होते हैं। प्रत्येक जनक कोशिका से गुणसूत्र के प्रत्येक जोड़े का केवल एक गुणसूत्र ही एक जनन कोशिका (युग्मक) में जाता है। जब दो युग्मकों का संलयन होता है, तो इनसे बने युग्मज में गुणसूत्रों की संख्या पुनः सामान्य हो जाती है। इस प्रकार लैंगिक जनन 556 बीज द्वारा संतति में जनक कोशिकाओं जैसी ही गुणसूत्रों की संख्या निश्चित बनी रहती है।
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प्रश्न 12.
“केवल वे विभिन्नताएँ जो किसी एकल जीव (व्यष्टि) के लिए उपयोगी होती हैं, समष्टि में अपना अस्तित्व बनाए रखती हैं।” क्या आप इस कथन से सहमत हैं? क्यों एवं क्यों नहीं?
उत्तर:
इस कथन से हम सहमत हैं; क्योंकि जो विभिन्नताएँ एकल जीव (व्यष्टि) के लिए उपयोगी हैं, वे वर्तमान पर्यावरण के अनुकूल हैं और प्राकृतिक चयन प्रक्रम में वे अपना अस्तित्व बनाए रखती हैं। इसका अर्थ है कि समय के साथ-साथ इन विभिन्नताओं वाले जीव समष्टि में प्रमुख हो जाएँगे क्योंकि इनकी विभिन्नताएँ (लक्षण) परिवर्तित पर्यावरण में जीवित रह सकती हैं। ये जीव प्रकृति में सफल रहेंगे तथा अपनी संतति को सतत बनाए रख सकते हैं।

Bihar Board Class 10 Science अनुवांशिकता एवं जैव विकास Additional Important Questions and Answers

बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
आनुवंशिकता के प्रयोग के लिए मेण्डल ने निम्नलिखित में से कौन-से पौधों का उपयोग किया? (2016, 18)
(a) पपीता
(b) आलू
(c) मटर
(d) अंगूर
उत्तर:
(c) मटर

प्रश्न 2.
विपरीत लक्षणों के जोड़ों को कहते हैं – (2013)
(a) युग्मविकल्पी या एलिलोमॉर्फ
(b) निर्धारक
(c) समयुग्मजी
(d) समरूप
उत्तर:
(a) युग्मविकल्पी या एलिलोमॉर्फ

प्रश्न 3.
मटर में बीजों का गोल आकार तथा पीला रंग दोनों होते हैं –
(a) अप्रभावी
(b) अपूर्ण प्रभावी
(c) संकर
(d) प्रभावी
उत्तर:
(d) प्रभावी

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प्रश्न 4.
उद्यान मटर में अप्रभावी लक्षण है – (2015, 16)
(a) लम्बे तने
(b) झुर्रादार बीज
(c) गोल बीज
(d) फैली हुई फली
उत्तर”:
(b) झुरींदार बीज

प्रश्न 5.
एकसंकर संकरण के F2 पीढ़ी में शुद्ध तथा संकर लक्षणों वाले पौधों का अनुपात होगा
(a) 2 : 1
(b) 3 : 1
(c) 1 : 1
(d) 1 : 3
उत्तर:
(c) 1 : 1

प्रश्न 6.
एक संकर क्रॉस का जीन प्रारूप अनुपात होता है –
(a) 3 : 1
(b) 1 : 2 : 1
(c) 2 : 1 : 2
(d) 9 : 3 : 3 : 1
उत्तर:
(b) 1 : 2 : 1

प्रश्न 7.
मटर के लम्बे पौधों का क्रॉस बौने पौधों से कराने पर प्रथम पीढ़ी में लम्बे मटर के पौधे प्राप्त होते हैं, द्वितीय पीढ़ी में प्राप्त पौधे होंगे (2017)
(a) लम्बे तथा बौने दोनों
(b) लम्बे मटर के पौधे
(c) बौने मटर के पौधे
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(a) लम्बे तथा बौने दोनों

Bihar Board Class 10 Science Solutions Chapter 9 अनुवांशिकता एवं जैव विकास

प्रश्न 8.
F2 पीढ़ी में 3 : 1 अनुपात प्राप्त होता है – (2015)
(a) एक संकर क्रॉस में
(b) द्विसंकर क्रॉस में
(c) (i) तथा (ii) दोनों में
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(a) एक संकर क्रॉस में

प्रश्न 9.
पृथक्करण का नियम प्रस्तुत किया था – (2012, 14)
(a) चार्ल्स डार्विन ने
(b) ह्यूगो डी वीज ने
(c) जॉन ग्रेगर मेण्डल ने
(d) राबर्ट हुक ने
उत्तर:
(c) जॉन ग्रेगर मेण्डल ने।

प्रश्न 10.
गुणसूत्र किस पदार्थ के बने होते हैं? (2013)
(a) प्रोटीन
(b) आर०एन०ए०
(c) डी०एन०ए०
(d) डी०एन०ए० और प्रोटीन
उत्तर:
(d) डी०एन०ए० और प्रोटीन

प्रश्न 11.
मनुष्य में कौन-सा गुणसूत्र जोड़ा स्त्रीलिंग निर्धारण करता है?
(a) XY
(b) XX
(c) XXY
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(b) XX

प्रश्न 12.
सामान्य मनुष्य में गुणसूत्रों की संख्या है –
(a) 45
(b) 46
(c) 30
(d) 23
उत्तर:
(b) 46

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प्रश्न 13.
मनुष्य के शुक्राणु में ऑटोसोम की संख्या कितनी होती है? (2016)
(a) 22
(b) 24
(c) 42
(d) 44
उत्तर:
(d) 44

प्रश्न 14.
मनुष्य में लड़का पैदा होगा जब –
(a) माँ का पोषण गर्भावस्था में अधिक पौष्टिक हो
(b) पिता माँ से अधिक शक्तिशाली हो
(c) बच्चे में XY गुणसूत्र हों
(d) बच्चे में XX गुणसूत्र हों
उत्तर:
(c) बच्चे में XY गुणसूत्र हों

प्रश्न 15.
लक्षण, जिनके जीन्स x गुणसूत्रों पर होते हैं, कहलाते हैं। (2011)
(a) लिंग प्रभावित
(b) लिंग सहलग्न
(c) लिंग सीमित
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(b) लिंग सहलग्न

प्रश्न 16.
जीवन की उत्पत्ति हई – (2012)
(a) सागर में
(b) धरती पर
(c) वायुमण्डल में
(d) अंतरिक्ष में
उत्तर:
(a) सागर में

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
आनुवंशिकता की खोज करने वाले वैज्ञानिक का पूरा नाम बताइये। या आनुवंशिकता के जनक का नाम बताइये।
या आनुवंशिकता के जन्मदाता कौन थे? (2012, 13)
उत्तर:
ग्रेगर जॉन मेण्डल।

प्रश्न 2.
मेण्डल ने आनुवंशिकता का प्रयोग किस पौधे पर किया था? उसका वैज्ञानिक नाम लिखिए। (2018)
उत्तर:
मटर। वैज्ञानिक नाम-पाइसम सटाइवम (Pisum satism)

प्रश्न 3.
मेण्डल ने अपने प्रयोग के लिए मटर के पौधे को क्यों चुना? (2017)
उत्तर:
मेण्डल ने अपने प्रयोग के लिए मटर के पौधे को चुना; क्योंकि –
1. मटर कम समय में ही उगने वाला पौधा है जिसे आसानी से उगाया जा सकता है तथा इसमें स्वपरागण के फलस्वरूप अनेक बीज बनाने की समान क्षमता है।
2. मटर में विभिन्न-विभिन्न लक्षणों वाली प्रजातियाँ सरलता से मिल जाती हैं तथा ये विभिन्न पर्यावरणीय परिस्थितियों में भी सामान्य प्रजनन क्षमता रखती हैं।

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प्रश्न 4.
प्रभावी तथा अप्रभावी लक्षणों से आप क्या समझते हैं? (2017)
उत्तर:
एक लक्षण के दो कारकों में जो अपना प्रभाव प्रदर्शित करता है वह प्रभावी लक्षण कहलाता है जबकि दूसरा जो होते हुए भी अपने प्रभाव को प्रदर्शित नहीं कर पाता, उसे अप्रभावी लक्षण कहते हैं।

प्रश्न 5.
लक्षणरूपी 9:3:3:1 मेण्डल के किस नियम का प्रतिपादन करता है?
उत्तर:
स्वतन्त्र अपव्यूहन के नियम का।

प्रश्न 6.
मनुष्य के नर तथा मादा गुणसूत्रों को प्रदर्शित कीजिए।
उत्तर:
नर गुणसूत्र = 22 + XY तथा मादा गुणसूत्र = 22 + XX गुणसूत्र।

प्रश्न 7.
यदि किसी जीव की कोशिकाओं में गुणसूत्रों की संख्या 20 है, तो उसकी जनन कोशिकाओं में कितने गुणसूत्र होंगे?
उत्तर:
जनन कोशिका अर्थात् युग्मकों में n = 10 गुणसूत्र होंगे।

प्रश्न 8.
प्रोकैरियोटिक कोशिकाओं में डी०एन०ए० कहाँ पाया जाता है? (2013)
उत्तर:
प्रोकैरियोटिक कोशिकाओं में डी०एन०ए० एक गुणसूत्र के रूप में कोशिकाद्रव्य में पड़ा रहता है।

प्रश्न 9.
आनुवंशिक रोग किसे कहते हैं?
उत्तर:
जो रोग आनुवंशिक विशेषकों की त्रुटिपूर्ण संख्या. प्रभावी या अप्रभावी स्वरूप आदि के कारण पीढ़ी-दर-पीढ़ी वंशानुगत होते रहते हैं, उन्हें आनुवंशिक रोग कहते हैं।

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प्रश्न 10.
किस आनुवंशिक लक्षण के जीन्स x गुणसूत्रों पर पाये जाते हैं? (2011)
उत्तर:
वर्णान्धता।

प्रश्न 11.
यदि किसी व्यक्ति को हल्की चोट लगने पर भी रक्तस्राव नहीं रुकता तो उसे कौन-सा रोग हो सकता है?
उत्तर:
उसे हीमोफीलिया रोग है।

प्रश्न 12.
लिंग सहलग्नता से सम्बन्धित किन्हीं दो बीमारियों के नाम लिखिए। (2013, 15, 18)
उत्तर:
हीमोफीलिया तथा वर्णान्धता लिंग सहलग्न रोग हैं।

प्रश्न 13.
एक व्यक्ति हीमोफीलिया का रोगी है और उसकी पत्नि में हीमोफीलिया का एक जीन है। उस दंपत्ति के बच्चों में रोग से ग्रसित होने की संभावना क्या होगी? (2013)
उत्तर:
50%

प्रश्न 14.
यदि किसी बच्चे में 46 के स्थान पर 47 गुणसूत्र हों, तो उस बच्चे में किस प्रकार के रोग होने की सम्भावना है? या एक बच्चे में 47 गुणसूत्र हैं। उसे किस रोग की सम्भावना है?
उत्तर:
उसे मंगोली जड़ता रोग हो सकता है। इस प्रकार का दोष

प्रश्न 15.
मानव आनुवंशिकी विशेषकों से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
मनुष्य में जो लक्षण वंशानुगत होते हैं उन्हें मानव आनुवंशिकी विशेषक कहते हैं।

प्रश्न 16.
स्वत: जनन सिद्धान्त में विश्वास रखने वाले किसी एक वैज्ञानिक का नाम बताइये। या स्वतः जननवाद मत के प्रवर्तक का नाम लिखिये।
उत्तर:
स्वत: जनन सिद्धान्त में बैप्टिस्ट वॉन हेलमॉण्ट (1652) का विश्वास था।

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प्रश्न 17.
मिलर ने अपने प्रयोग में कौन-कौन सी गैसों का मिश्रण लिया?
उत्तर:
मिलर ने अपने प्रयोग में मेथेन (CH4) अमोनिया (NH3) हाइड्रोजन (H2) तथा जलवाष्प (H2O) गैसें लीं।

प्रश्न 18.
जीवन के उद्भव का आधुनिक ओपेरिन सिद्धान्त क्या है ? (2011, 13)
उत्तर:
रूस के प्रसिद्ध जीव-रसायनज्ञ ए० आई० ओपेरिन ने नवीनतम खोजों के आधार पर जीवन के उद्भव की जीव-रसायन परिकल्पना प्रस्तुत की। इस परिकल्पना के अनुसार आदिकालीन पृथ्वी पर केवल कार्बनिक यौगिक उपस्थित थे जो समुद्र के जल में घुले हुए थे। इन्हीं यौगिकों के संयोग से एक ऐसी रचना का निर्माण हुआ जिसमें जीवन के लक्षण विद्यमान थे।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
आनुवंशिकता को परिभाषित कीजिए। इसकी खोज कब और किसने की? (2011, 17)
उत्तर:
कुछ ऐसे लक्षण सभी जीवों में होते हैं, जो उन्हें अपने जनकों से प्राप्त होते हैं और पीढ़ी-दर-पीढ़ी चलते रहते हैं। इन लक्षणों को आनुवंशिक लक्षण कहते हैं। इन लक्षणों का एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी या एक जीव से दूसरे जीव में जाना आनुवंशिकता (heredity) कहलाता है। आनुवंशिकता के कारण ही पीढ़ी-दर-पीढ़ी जीवों में समानता बनी रहती है।

इसी कारण मनुष्य की सन्तान मनुष्य, बन्दर की सन्तान बन्दर, गाय की सन्तान गाय तथा हाथी की सन्तान सदैव हाथी ही रहती है। विज्ञान की उस शाखा को जिसमें आनुवंशिक लक्षणों के माता-पिता से सन्तान में आने की रीतियों का अध्ययन करते हैं, आनुवंशिकी कहते हैं। इसकी खोज ग्रेगर जॉहन मेण्डल ने सन् 1866 में की।

प्रश्न 2.
मानव आनुवंशिकी से आप क्या समझते हैं? इसके जनक कौन थे? इसके क्या लाभ हैं? (2013)
उत्तर:
मानव आनुवंशिकी में मनुष्य के एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में जाने वाले लक्षणों या गुणों का अध्ययन किया जाता है। मानव आनुवंशिकी के जनक गाल्टन थे। मानव आनुवंशिकी के लाभ (Advantages of Human Genetics) मानव आनुवंशिकी का अध्ययन मानव समाज के लिए अनेक प्रकार से लाभप्रद है। इसके द्वारा मानव संततियों में आने वाले रोगों के बारे में अध्ययन किया जाता है। इन रोगों के निदान के बारे में जानकारी प्राप्त कर, मनुष्य इनकी चिकित्सा पहले से ही कर सकता है।

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सुजननिकी (eugenics) द्वारा अच्छे लक्षणों की वंशागति के लिए समाज के आनुवंशिकी स्तर का अध्ययन किया जाता है। इसके बाद निषेधात्मक (negative) अथवा स्वीकारात्मक (positive) विधियाँ काम में लायी जाती हैं, अर्थात् निम्नकोटि के आनुवंशिकी लक्षणों की वंशागति से व्यक्तियों को रोका जाता है अथवा उच्च कोटि के लक्षणों वाले व्यक्तियों को वंशागति के लिए प्रोत्साहित किया जाता है।

दोनों प्रकार की सुजननिकी. के लिए विभिन्न प्रकार की विधियाँ प्रयोग में लायी जाती हैं; जैसे-निषेधात्मक सुजननिकी के लिए वैवाहिक प्रतिबन्ध, बन्ध्यीकरण, सन्तति नियन्त्रण आदि के लिए गर्भपात इत्यादि; तथा स्वीकारात्मक सुजननिकी के लिए उत्कृष्ट चयन, उच्च आनुवंशिक लक्षणों का अधिकाधिक उपयोग, उच्चकोटि के लक्षणों वाले पुरुष का वीर्य संचित करना तथा कृत्रिम गर्भाधान के लिए उसका उपयोग करना आदि।

यूथेनिक्स (euthenics) द्वारा पहले से ही वंशानुगत गुणों को अच्छा वातावरण प्रदान कर उपचारित किया जा सकता है। वर्तमान समय में जीन की खोजों के आधार पर अच्छे जीन को खराब जीन के स्थान पर बदला जा सकता है। इसको जीन सर्जरी तथा जीन इन्जीनियरिंग या जीन अभियान्त्रिकी (genic surgery and genetic engineering) कहा जाता है। इस प्रकार हम मानव आनुवंशिकता का अध्ययन करके एक सुदृढ़ मानव समाज की कल्पना कर सकते हैं, जिसमें कोई भी मनुष्य बीमार, निम्नस्तरीय अथवा बुद्धिहीन उत्पन्न नहीं होगा।

प्रश्न 3.
आनुवंशिकी के गुणसूत्र सिद्धान्त का वर्णन कीजिए। (2017)
उत्तर:
इस सिद्धान्त के अनुसार –

  1. सभी जीवों में प्रत्येक लक्षण के लिए कम-से-कम एक जोड़ी जीन या कारक अवश्य होते हैं।
  2. आनुवंशिक लक्षणों के जीन या आनुवंशिक कारक गुणसूत्रों पर पंक्तिबद्ध होते हैं और गुणसूत्रों के साथ एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में वंशागत होते हैं।
  3. बहुकोशिकीय जीवों में जनन कोशिकाओं के माध्यम से विभिन्न पीढ़ियों में जैविक सम्बन्ध स्थापित रहता है। इसका अर्थ है कि आनुवंशिक लक्षणों के जीन जनन कोशिकाओं या युग्मकों द्वारा दूसरी पीढ़ी के जीवों में पहुँचते हैं।
  4. किसी जीव के लक्षणों में शुक्राणु व अण्डाणु दोनों ही का बराबर का योगदान होता है।
  5. युग्मक निर्माण के समय अर्धसूत्री विभाजन में गुणसूत्रों के व्यवहार से प्रमाणित होता है कि जीन गुणसूत्रों पर होते हैं।
  6. जीवों की प्रत्येक कोशिका में गुणसूत्र जोड़ों में मिलते हैं किन्तु युग्मकों में प्रत्येक गुणसूत्र-युग्म में से केवल एक गुणसूत्र होता है।
  7. अगुणित शुक्राणु व अण्डाणु के संलयन से बना युग्मज द्विगुणित होता है जिससे पूर्ण जीव का विकास होता है।

प्रश्न 4.
एकसंकर तथा द्विसंकर क्रॉस से आप क्या समझते हैं? उदाहरण देते हुए समझाइए। (2015, 17)
उत्तर:
एकसंकर संकरण Monohybrid cross विपरीत लक्षण वाले नर तथा मादा के मध्य जब केवल एक जोड़ा विपरीत लक्षणों के अध्ययन के लिए संकरण कराया जाता है तो इन विपरीत लक्षणों के संकरण को एकसंकर (गुण) संकरण कहते हैं; जैसे-लाल फूल वाले तथा सफेद फूल वाले पौधों के मध्य संकरण। द्विसंकर संकरण Dihybrid cross जब विपरीत लक्षणों वाले नर तथा मादा के मध्य दो जोड़ा विपरीत लक्षणों के अध्ययन के लिए संकरण कराया जाता है तो इसे द्विसंकर संकरण कहते हैं; जैसे-पीले-गोल बीज वाले और हरे-झुरींदार बीज वाले पौधों के मध्य संकरण।

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प्रश्न 5.
प्रभावी तथा अप्रभावी लक्षण में अन्तर कीजिए। (2013)
उत्तर:
प्रभावी तथा अप्रभावी लक्षण में अन्तर –
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प्रश्न 6.
लक्षण प्रारूप तथा जीन प्रारूप में अन्तर कीजिए। (2011, 12, 16, 18)
या जीनोटाइप तथा फीनोटाइप में अन्तर कीजिए। (2013, 15, 18)
या फीनोटाइप एवं जीनोटाइप को स्पष्ट कीजिए। (2018)
उत्तर:
जीनोटाइप या जीन प्ररूपी आकारिक लक्षण में जीव चाहे जैसा हो उसमें पायी जाने वाली जीनी संरचना को जीन प्ररूपी या जीनोटाइप कहते हैं। फीनोटाइप या समलक्षणी जीन किसी भी प्रकार की हों यदि बाह्य रूप में समान लक्षण या उसका प्रभाव दिखायी दे रहा है तो उसे समलक्षणी या फीनोटाइप कहते हैं।

प्रश्न 7.
समयुग्मजी तथा विषमयुग्मजी में अन्तर कीजिए। (2011, 12, 16)
उत्तर:
समयुग्मजी तथा विषमयुग्मजी में अन्तर –
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प्रश्न 8.
एलिलोमॉर्फ एवं कारक को उदाहरण सहित समझाइए। (2011)
या एलील पर टिप्पणी लिखिए। (2012)
उत्तर:
एलील या एलिलोमॉर्फ विपरीत लक्षणों वाले युग्मों को एलील्स कहते हैं; जैसे – पौधों की लम्बाई के लिए लम्बा-बौना, बीज के लिए गोल-झुरींदार, पुष्प के लिए लाल-सफेद रंग इत्यादि। कारक जीवों में सभी लक्षण इकाइयों के रूप में होते हैं जिन्हें कारक कहते हैं। प्रत्येक इकाई लक्षण कारकों के एक युग्म से नियन्त्रित होता है। इनमें से एक कारक मातृक तथा दूसरा पैतृक होता है। युग्म के दोनों कारक विपरीत प्रभाव के हो सकते हैं, किन्तु उनमें से एक ही कारक अपना प्रभाव प्रदर्शित कर सकता है। दूसरा छिपा रहता है।

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प्रश्न 9.
शुद्ध एवं संकर जाति ( नस्ल) में अन्तर स्पष्ट कीजिए। (2013)
उत्तर:
शुद्ध एवं संकर जाति (नस्ल) में अन्तर –
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प्रश्न 10.
गुणसूत्र पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए। (2013)
या कायिक गुणसूत्र एवं लिंग गुणसूत्र में अन्तर कीजिए। (2013)
उत्तर:
‘गुणसूत्र’ शब्द का प्रयोग वाल्डेयर (Waldeyer) ने सन् 1888 में उन गहरी अभिरंजित छड़ सदृश रचनाओं के लिए किया था जो केन्द्रक में कोशिका विभाजन के समय दिखाई देती हैं। ये केन्द्रक में पाये जाने वाले न्यूक्लिओ-प्रोटीन जालक के संघनन से बनते हैं। गुणसूत्र या क्रोमोसोस का अर्थ है रंगीन कार्य।

गुणसूत्रों के कार्य

  • आनुवंशिकी में भूमिका गुणसूत्र पर जीन्स उपस्थित होते हैं, जीन्स आनुवंशिक लक्षणों के वाहक होते हैं।
  • जनक की इकाई गुणसूत्रों के प्रतिलिपिकरण से संतति गुणसूत्र बनते हैं जो संतति कोशिकाओं में पहुँचते हैं।

गुणसूत्रों के प्रकार:
1. कायिक गुणसूत्र या ऑटोसोम (Autosome) जो गुणसूत्र लिंग-लक्षणों को छोड़कर जीन के अन्य लक्षणों का निर्धारण करते हैं, कायिक गुणसूत्र कहलाते हैं। ये नर तथा मादा दोनों प्रकार के जीवों में समान होते हैं।

2. लिंग गुण सूत्र (Sex chromosomes) जो गुणसूत्र लिंग-निर्धारण करते हैं उन्हें लिंग गुणसूत्र या हेटरोसोम कहते हैं। ये नर तथा मादा में अलग-अलग होते हैं। ये प्राय: X तथा Y गुणसूत्र कहलाते हैं। मनुष्य में लिंग निर्धारण XY गुणसूत्र द्वारा होता है। मनुष्य में 22 जोड़ी कायिक या ऑटोसोम तथा एक जोड़ी लिंग गुणसूत्र या हेटरोसोम होते हैं।

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प्रश्न 11.
जीन का क्या अर्थ है? जीन की प्रकृति संक्षेप में समझाइये। (2018)
या जीन क्या है? इसका सर्वप्रथम प्रयोग किसने किया? इसकी उपयोगिता का उल्लेख कीजिए। (2014, 15)
उत्तर:
सभी जीवों में आनुवंशिक लक्षणों का नियन्त्रण एवं संचरण आनुवंशिक इकाइयों द्वारा होता है। मेण्डल ने इन इकाइयों को कारक (factor) कहा था तथा जोहनसन ने इनके लिए जीन शब्द का प्रयोग किया।
जीन की विशेषताएँ –

  1. जीन गुणसूत्र के क्रोमोनीमा पर माला के मोतियों के समान रैखिक क्रम में लगी रचनाएँ हैं जो आनुवंशिक लक्षणों का नियन्त्रण करती हैं।
  2. जीन संचरण की इकाई (unit of transmission) हैं जो जनक से सन्तानों में पहुँचती हैं।
  3. जीन उत्परिवर्तन की इकाई (unit of mutation) हैं जिनकी संरचना में परिवर्तन होता रहता है।
  4. जीन कार्यिकी की इकाई (physiological units) हैं। ये जीवों के विभिन्न लक्षणों का नियन्त्रण करती हैं।
  5. जीन DNA का वह भाग है जिसमें एक प्रोटीन या पॉलिपेप्टाइड श्रृंखला के संश्लेषण की सूचना होती है।

प्रश्न 12.
मनुष्य में लिंग सहलग्न गुण से क्या तात्पर्य है? वे किस प्रकार वंशागत होते हैं? (2013, 14)
या लिंग सहलग्न लक्षण को समझाइए। (2017)
या लिंग सहलग्न रोग क्या है? मानव के किन्हीं दो लिंग सहलग्न रोगों के नाम लिखिए। (2018)
उत्तर:
लिंग सहलग्न लक्षण तथा इनकी वंशागति:
प्राय: लिंग गुणसूत्रों पर जो लक्षणों के जीन्स होते हैं, उनका सम्बन्ध लैंगिक लक्षणों से होता है। ये जीन्स ही जन्तु में लैंगिक द्विरूपता के लिए जिम्मेदार होते हैं, फिर भी जन्तुओं की लैंगिकता अत्यन्त जटिल तथा व्यापक होती है और इसे बनाने के लिए अनेक अन्य जीन्स, जो सामान्य गुणसूत्रों पर होते हैं, भी प्रभावी होते हैं। दूसरी ओर लिंग गुणसूत्रों पर कुछ जीन्स लैंगिक लक्षणों के अतिरिक्त अन्य लक्षणों वाले अर्थात् कायिक या दैहिक लक्षणों वाले भी होते हैं। ये लिंग सहलग्न जीन्स कहलाते हैं, और लिंग सहलग्न लक्षण उत्पन्न करते हैं।

इनकी वंशागति लिंग सहलग्न वंशागति अथवा लिंग सहलग्नता (sex linkage) कहलाती है। मनुष्य में लगभग 120 प्रकार के लक्षणों की वंशागति ज्ञात है। मनुष्य में लिंग निर्धारित करने वाले गुणसूत्र; X तथा Y गुणसूत्र कहलाते हैं। यद्यपि इनकी संरचना में भिन्नता दिखायी देती है, फिर भी वर्तमान जानकारी के अनुसार इन गुणसूत्रों में कुछ भाग समजात होता है। ये भाग अर्द्धसूत्री विभाजन के समय सूत्रयुग्मन करते हैं, अन्यथा शेष भाग असमजात होता है।

उपर्युक्त आधार पर लिंग-सहलग्न लक्षण तीन प्रकार के हो सकते हैं –
1. X-सहलग्न लक्षण X गुणसूत्रों के असमजात खण्डों पर इनके लक्षणों के जीन्स स्थित होते हैं अर्थात् इनके एलील्स Y गुणसूत्र पर नहीं होते। वंशागति में ये लक्षण पुत्रों को केवल माता से तथा पुत्रियों को माता व पिता दोनों से प्राप्त हो सकते हैं। इन्हें डायेण्ड्रिक (diandric) लिंग सहलग्न लक्षण भी कहा जाता है; जैसे-वर्णान्धता (colour blindness), रतौंधी (night blindness) तथा हीमोफीलिया (haemophilia)।

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2. Y-सहलग्न लक्षण इसके जीन्स Y गुणसूत्रों के असमजात खण्डों पर स्थित होते हैं। इस प्रकार सहयोगी x गुणसूत्रों पर इनके एलील्स नहीं पाये जाते, अत: प्रत्येक संतति में पिता से केवल पुत्रों तक ही जाते हैं। इन्हें होलैण्ड्रिक लिंग सहलग्न गुण भी कहते हैं तथा इनकी वंशागति को होलैण्डिक वंशागति कहा जाता है; उदाहरणार्थ-बाह्य कर्ण पर बालों की उपस्थिति।

3. XY-सहलग्न लक्षण इनके जीन्स एलील्स के रूप में X एवं Y गुणसूत्रों के समजात खण्डों पर स्थित होते हैं, अतः इनकी वंशागति पुत्रों एवं पुत्रियों में सामान्य ऑटोसोमल लक्षणों की भाँति होती है। इन्हें अपूर्ण लिंग सहलग्न गुण भी कहा जाता है।

प्रश्न 13.
लिंग प्रभावित एवं लिंग सीमित लक्षणों का उदाहरण सहित वर्णन कीजिए। (2011)
उत्तर:
लिग प्रभावित लक्षण मनुष्य में कुछ ऐसे लक्षण भी होते हैं जिनके जीन्स तो ऑटोसोम्स पर होते हैं, परन्तु इनका विकास व्यक्ति के लिंग से प्रभावित होता है अर्थात् पुरुष और स्त्री में जीनप्ररूप (genotype) समान होते हुए भी लक्षणप्ररूप (phenotype) भिन्न होता है। उदाहरण के लिए मनुष्य में गंजापन (baldness) काफी पाया जाता है। यह विकिरण, थाइरॉइड ग्रन्थि की अनियमितताओं आदि के कारण हो सकता है अथवा आनुवंशिक भी होता है।

आनुवंशिक गंजापन एक ऑटोसोमल एलीलोमॉर्फिक जीन जोड़ा (B, b) पर निर्भर करता है। समयुग्मकी प्रभावी जीनप्ररूप (BB) हो तो गंजापन पुरुषों और स्त्रियों दोनों में विकसित होता है, लेकिन विषमयुग्मकी जीनप्ररूप (Bb) होने पर यह स्त्रियों में नहीं, केवल पुरुषों में ही प्रदर्शित होता है क्योंकि इस जीनप्ररूप के प्रदर्शित होने के लिए नर हॉर्मोन्स का होना आवश्यक होता है। समयुग्मकी अप्रभावी जीनप्ररूप (bb) में गंजापन नहीं होता है।

लिंग सीमित लक्षण
कुछ ऑटोसोम्स पर कुछ ऐसे आनुवंशिक लक्षणों के जीन्स भी होते हैं जिनकी वंशागति सामान्य मेण्डेलियन नियमों के अनुसार ही होती है, किन्तु इनका विकास पीढ़ी-दर-पीढ़ी केवल एक ही लिंग के सदस्यों में होता है। इस प्रकार का प्रदर्शन इनमें विशेष हॉर्मोन्स (hormones) के बनने के कारण होता है। गाय, भैंस आदि में दुग्ध का स्रावण, भेड़ों की कुछ जातियों में केवल नर में सींगों का विकास, पुरुष में दाढ़ी आदि के लक्षण ऐसे ही होते हैं। इनको हम लिंग सीमित लक्षण कहते हैं।

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प्रश्न 14.
मनुष्य में वर्णान्धता की वंशागति को समझाइए। यदि वर्णान्ध पुरुष सामान्य स्त्री से विवाह करता है, तो उनसे उत्पन्न सन्तानों में वर्णान्धता की वंशागति स्पष्ट कीजिए। (2016)
उत्तर:
वर्णान्ध पुरुष के x-गुणसूत्र पर वर्णान्धता का जीन होता है। यह जीन पिता से पुत्री में और पुत्री से पुत्र में वंशागत होता है। सामान्य स्त्री एवं वर्णान्ध पुरुष की पुत्रियाँ वाहक होती हैं क्योंकि इनमें सामान्य X-गुण सूत्र माता से और वर्णान्ध जीन वाला गुणसूत्र पिता से मिलता है। वर्णान्ध व्यक्ति (XC Y) व सामान्य स्त्री (XX) की सभी सन्ताने सामान्य होती हैं क्योंकि सभी पुत्रों को माता से सामान्य X-गुणसूत्र मिलता है अत: वे सभी सामान्य होते हैं।

पुत्रियों को सामान्य X-गुणसूत्र माता से तथा दूसरा X गुणसूत्र पिता से प्राप्त होता है जिस पर वर्णान्धता का जीन होता है। इस जीन के अप्रभावी होने के कारण पुत्रियों में वर्णान्धता का लक्षण प्रकट नहीं हो पाता। ये केवल वाहक होती हैं।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
मेण्डल के आनुवंशिकता के नियमों की विवेचना कीजिए। (2018)
या मेण्डल के वंशागति के नियमों का उदाहरण सहित वर्णन कीजिए। (2011, 12, 14, 18)
या मेण्डल के प्रभाविता नियम (प्रथम नियम ) से आप क्या समझते हैं? स्पष्ट कीजिए। (2012, 15)
या मेण्डल का प्रथम नियम लिखिए। इसको विस्तृत रूप से समझाइए। (2016)
या यदि शुद्ध लम्बा एवं शुद्ध बौना पौधों के मध्य संकरण हो, तो ई पीढ़ी में किस प्रकार के वंशज प्राप्त होंगे? (2011)
या मेण्डल के पृथक्करण नियम को उपयुक्त उदाहरण सहित समझाइए। (2013, 16, 17)
या मेण्डल द्वारा प्रतिपादित स्वतन्त्र अपव्यूहन नियम उदाहरण देकर समझाइए। (2014)
उत्तर:
मेण्डल के आनुवंशिकता के नियम या मेण्डलवाद मेण्डल ने मटर के विभिन्न गुणों वाले पौधों के बीच संकरण कराया और संकरण प्रयोगों से प्राप्त परिणामों के आधार पर वंशागति के महत्त्वपूर्ण निष्कर्ष निकाले। उनके बाद जब डी वीज, कार्ल कॉरेन्स तथा एरिक वॉन शैरमैक नामक तीन वैज्ञानिकों ने अलग-अलग मेण्डल जैसे प्रयोग किये तथा उनसे मेण्डल के काम की पुष्टि हुई तब जाकर मेण्डल का सिद्धान्त प्रकाश में आ सका। मेण्डल के सैद्धान्तिक बिन्दुओं का ही तीनों वैज्ञानिकों ने नियमों के रूप में प्रतिपादन किया। इन्हें मेण्डल के आनुवंशिकता के नियम कहा गया।

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ये नियम निम्नलिखित हैं –
1. एकल लक्षण तथा प्रभाविता का नियम जीवों में सभी लक्षण इकाइयों के रूप में होते हैं। इन्हें कारक (जीन) कहते हैं। प्रत्येक इकाई लक्षण कारकों के एक युग्म से नियन्त्रित होता है। वास्तव में, इसमें से एक कारक मातृक तथा दूसरा पैतृक होता है। युग्म के दोनों कारक एक-दूसरे के विपरीत प्रभाव के हो सकते हैं, किन्तु उनमें से एक ही कारक अपना प्रभाव प्रदर्शित कर सकता है, दूसरा छिपा रहता है। जब विपरीत लक्षणों वाले पौधों के बीच संकरण कराया जाता है, तो उनकी सन्तानों में इन लक्षणों में से एक लक्षण ही परिलक्षित होता है और दूसरा दिखाई नहीं देता। पहले लक्षण को प्रभावी तथा दूसरे लक्षण को अप्रभावी कहते हैं।

उदाहरणार्थ:
जब शुद्ध समयुग्मजी (गुणसूत्रों में एक ही प्रकार के लक्षणों की उपस्थिति) लम्बे तथा शुद्ध बौने पौधों के बीच संकरण कराया जाता है, तो प्रथम सन्तानीय पीढ़ी (F1) में विपरीत लक्षणों में से केवल एक लक्षण (लम्बापन), जो प्रभावी है, दिखाई देता है और अप्रभावी लक्षण (बौनापन) छिपा रहता है। (F1) पीढ़ी के सन्तान पौधे विषमयुग्मजी Tt होते हैं।
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2. लक्षणों के पृथक्करण का नियम जब F पीढ़ी के विषमयुग्मजी पौधों में स्वपरागण (self pollination) कराया जाता है, तो दूसरी पीढ़ी (F2) की सन्तानों में परस्पर विपरीत लक्षणों का एक निश्चित अनुपात में पृथक्करण हो जाता है। इसे लक्षणों के पृथक्करण का नियम कहते हैं। इससे स्पष्ट है कि प्रथम पीढ़ी में साथ-साथ रहने पर भी लक्षणों का आपस में मिश्रण नहीं होता और युग्मक निर्माण के समय ये लक्षण अलग-अलग हो जाते हैं अर्थात् युग्मकों की शुद्धता बनी रहती है। इसलिए इस नियम को युग्मकों की शुद्धता का नियम भी कहते हैं।
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उदाहरणार्थ:
मटर के पौधे के संकरण के उपर्युक्त उदाहरण में द्वितीय पीढ़ी (F2 पीढ़ी) प्राप्त करने के लिए जब स्वपरागण कराया जाता है तो लम्बेपन तथा बौनेपन के लक्षण फिर से प्राप्त हो जाते हैं। अर्थात् लम्बेपन का कारक (T) तथा बौनेपन का कारक (t) शुद्ध रूप में फिर से मिलकर 3 : 1 के अनुपात में लम्बे तथा बौने पौधे उत्पन्न करते हैं। इनमें 25% शुद्ध लम्बे, 50% संकर लम्बे तथा 25% शुद्ध बौने पौधे होते हैं अर्थात् यह अनुपात 1:2 :1 का होता है।

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3. स्वतन्त्र अपव्यूहन का नियम जब दो लक्षणों के लिए दो जोड़ा विपरीत प्रभावों वाले पौधों के बीच संकरण कराया जाता है, तो इन लक्षणों का पृथक्करण स्वतन्त्र रूप से होता है, अर्थात् एक लक्षण की वंशागति दूसरे को प्रभावित नहीं करती है।
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इस नियम को मेण्डल ने द्विसंकर क्रॉस से स्पष्ट किया। इसके लिए उन्होंने दो प्रकार के मटर के पौधों को चुना। एक प्रकार के पौधे के बीज का आकार गोल तथा रंग पीला था। दूसरे प्रकार के पौधे के बीज का आकार झुर्सदार तथा रंग हरा था। इन दो विपरीत प्रभावों के लक्षणों वाले पौधों में संकरण कराने पर जो प्रथम सन्तानीय पीढ़ी (F1) प्राप्त हुई उसमें सभी बीज गोल तथा पीले थे। इस पीढ़ी (F2) के स्वपरागण से उत्पन्न द्वितीय सन्तानीय पीढ़ी (F1) में चार प्रकार के बीज प्राप्त हुए।
(क) गोल व पीले
(ख) गोल व हरे
(ग) झुरींदार व पीले
(घ) झुरींदार व हरे।

उपर्युक्त चार प्रकार के बीजों के प्राप्त होने से यह स्पष्ट होता है कि (F2) पीढ़ी की सन्तानों में दोनों लक्षण गोल आकार व पीला रंग तथा झुरींदार आकार व हरा रंग जो जनकों में एक साथ थे, संकरण से प्राप्त F1 पीढ़ी में अलग-अलग लक्षणों के प्रभाव से पृथक् हो गये तथा (F2) पीढ़ी में ये स्वतन्त्र रूप से संयुक्त होकर प्रकट हुए। इसी कारण झुर्रादार बीजों के साथ पीला रंग भी और गोल बीजों के साथ हरा रंग भी प्रकट हुआ। इससे यह स्पष्ट होता है कि लक्षणों का पृथक्करण स्वतन्त्र रूप से होता है और एक लक्षण की वंशागति दूसरे को प्रभावित नहीं करती है। यहाँ बीज के आकार व रंग का F2 पीढ़ी में अनुपात= 9:3:3:1

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प्रश्न 2.
मेण्डल के स्वतन्त्र अपव्यूहन के नियम को द्विसंकरीय संकरण द्वारा स्पष्ट कीजिए। (2014)
या मेण्डल के द्विसंकर संकरण से आप क्या समझते हैं? मटर के गोल एवं पीले बीजों का मटर के हरे व झुर्रादार बीजों के साथ संकरण किया। F1 पीढ़ी में या सभी मटर के बीज पीले व गोल थे।F2 पीढ़ी का फीनोटाइप का अनुपात ज्ञात कीजिए। (2014)
या द्विसंकर क्रॉस क्या होता है? इसको उदाहरण सहित समझाइए। (2015, 17)
या स्वतन्त्र अपव्यूहन से आप क्या समझते हैं? केवल रेखाचित्र द्वारा द्विसंकर क्रॉस समझाइए। (2017, 18)
उत्तर:
द्विसंकरीय संकरण –
जब दो युग्म विकल्पी लक्षणों वाले पौधों में संकरण कराया जाता है तो उसे द्विसंकरीय या द्विसंकर संकरण (dihybrid cross) कहते हैं। एक उदाहरण में मटर के बीज के बीजावरण के रंग तथा उसके आकार के आधार पर अध्ययन किया गया है। इस अध्ययन के लिए निम्न प्रकार के मटर के बीज लिए गये तथा संकरण कराया गया –
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इन दो युग्मविकल्पी लक्षणों वाले पौधों में संकरण कराने पर जो प्रथम सन्तानीय पीढ़ी (F1) उत्पन्न हुई उसमें सभी बीज गोल तथा पीले थे। इस प्रथम सन्तानीय पीढ़ी (F1) से उत्पन्न द्वितीय सन्तानीय पीढ़ी (F2) में चार प्रकार के बीज प्राप्त हुए।

  • गोल-पीले
  • गोल-हरे
  • झुरींदार-पीले
  • झुरींदार-हरे।

इन चार प्रकार के बीजों में 9 : 3 : 3 : 1 का अनुपात था अर्थात् 16 बीजों में से 9 बीज गोल-पीले, 3 बीज गोल-हरे, 3 बीज झुरींदार-पीले तथा 1 बीज झुरींदार-हरा प्राप्त हुआ अर्थात् बीजावरण का पीला या हरा रंग बीज के गोल या झुरींदार आकार में से किसी के साथ भी जा सकता है। या यों कहें – “किसी लक्षण के कारक युग्म में से कारकों का चयन स्वतन्त्र होता है।”
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प्रश्न 3.
लिंग गुणसूत्र का क्या अर्थ है? मनुष्य में लिंग निर्धारण किस प्रकार होता है? रेखाचित्र की सहायता से समझाइए। (2012, 15)
लिंग गुणसूत्र पर टिप्पणी लिखिए। (2013)
लिंग निर्धारण को समझाइए। (2013)
लिंग गुणसूत्र से आप क्या समझते हैं? नर तथा मादा में लिंग गुणसूत्र का विन्यास लिखिए। (2014)
उत्तर:
लिंग गुणसूत्र मनुष्य की सभी कायिक तथा जनन कोशिकाओं में 46 गुणसूत्र होते हैं। इनमें से 44 गुणसूत्रों के 22 समजात जोड़े होते हैं, जिन्हें ऑटोसोम्स (autosomes) कहते हैं। शेष एक जोड़ा गुणसूत्र लिंग गुणसूत्र कहलाते हैं। पुरुष तथा स्त्री में यह गुणसूत्रों का जोड़ा एक-दूसरे से भिन्न होता है। पुरुष में इस जोड़े (23वें जोड़े) के दोनों गुणसूत्र एक-दूसरे से भिन्न होते हैं, जिनमें से एक छोटा तथा दूसरा बड़ा होता है। इस प्रकार ये हेटरोसोम्स (heterosomes) हैं। इनमें से बड़ा ‘X’ तथा छोटा ‘Y’ गुणसूत्र कहलाता है। स्त्री में दोनों लिंग गुणसूत्र भी समजात तथा ‘X’ प्रकार के होते हैं।

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इस प्रकार –
पुरुष की जनन कोशिका में 22 जोड़ा + XY = 46 गुणसूत्र तथा
स्त्री की जनन कोशिका में 22 जोड़ा + XX = 46 गुणसूत्र होते हैं अर्थात् मनुष्य में लड़के अथवा लड़की का होना इन्हीं लिंग गुणसूत्रों पर निर्भर करता है।

मनुष्य में लिंग निर्धारण:
संकेत – कृपया ‘पाठ के अन्तर्गत दिए गए प्रश्नोत्तर’ शीर्षक में पृष्ठ 174 पर प्रश्न 4 का उत्तर देखें।

प्रश्न 4.
विकास के आधुनिक संश्लेषणात्मक वाद को समझाइये। (2014)
या जीवन की उत्पत्ति की आधुनिक संकल्पना (ओपैरिन परिकल्पना) पर टिप्पणी दीजिए। (2013)
या जीवन के उद्भव की आधुनिक परिकल्पना का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए। (2017)
उत्तर:
पृथ्वी पर जीवन की उत्पत्ति:
ओपैरिन की आधुनिक परिकल्पना जीवन की उत्पत्ति के विषय में यह आधुनिकतम मत (संश्लेषणात्मक वाद) है। इस मत को और अधिक स्पष्ट रूप से रूसी वैज्ञानिक ओपैरिन (A. I. Oparin, 1924) ने प्रस्तुत किया। पदार्थवाद (materialistic theory) के रूप में प्रचलित अपने मत को ओपैरिन ने सन् 1936 में ‘जीवन की उत्पत्ति’ (The Origin of Life) नामक पुस्तक द्वारा प्रकाशित किया। उपर्युक्त परिकल्पना के अनुसार आधुनिक पृथ्वी के निर्माण एवं

इस पर जीवन की उत्पत्ति की प्रक्रिया को निम्नलिखित आठ चरणों में विभाजित किया जा सकता है –
1. परमाणु अवस्था प्रारम्भिक चरण में पृथ्वी आग का गोला थी, जिसमें सभी तत्त्व परमाणु के रूप में उपस्थित थे जो अपने घनत्व के अनुसार व्यवस्थित थे। भारी परमाणु; जैसे लोहा, निकिल आदि केन्द्र में और हल्के परमाणु; जैसे हाइड्रोजन, नाइट्रोजन, कार्बन, ऑक्सीजन आदि बाहर की ओर थे।

2. अणु अवस्था द्वितीय चरण में पृथ्वी का तापक्रम अपेक्षाकृत कम हो जाने के कारण स्वतन्त्र परमाणुओं का परस्पर संयोग सम्भव हुआ, जिसके फलस्वरूप अणुओं (molecules) की उत्पत्ति हुई। आदि वायुमण्डल अपचायक (reducing) था तथा इसमें हाइड्रोजन के परमाणु लगभग 90% थे। आदि वायुमण्डल में जल, वाष्प, अमोनिया व मेथेन गैसें अस्तित्व में आयीं।

पृथ्वी का तापक्रम और ठण्डा होने पर जल-वाष्प ने बादलों एवं कोहरे का रूप लिया तथा पृथ्वी पर वर्षा के रूप में यह जल बरसने लगा; अतः धीरे-धीरे पृथ्वी की सतह पर झरनों, नदियों एवं समुद्रों की उत्पत्ति हुई। इन आदि स्रोतों के जल में आदि वायुमण्डल की गैसें; जैसे मेथेन (CH4) व अमोनिया (NH3) आदि घुल गयीं।

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3. कार्बनिक यौगिकों का निर्माण आदि भूमण्डल पर सघन ज्वालामुखी थे, जिनसे निरन्तर लावा निष्कासित होता रहता था। लावा के धातु तत्त्वों ने आदि वायुमण्डल की नाइट्रोजन व कार्बन से संयोग कर नाइट्राइड्स व कार्बाइड्स बनाये, जिनसे भूपटल (earth’s crust) का निर्माण सम्भव हुआ। आदि वायुमण्डल में सर्वप्रथम मेथेन बनी तथा तापमान और कम होने पर एथेन व प्रोपेन आदि बनीं।

इस समय सूर्य की पराबैंगनी किरणों, कॉस्मिक किरणों एवं ज्वालामुखी के तापक्रम आदि से प्राप्त ऊर्जा की उपस्थिति में उपर्युक्त अणुओं के संघनन एवं बहुलीकरण के फलस्वरूप जटिल कार्बनिक यौगिकों का निर्माण हुआ। इनमें शर्करायें, वसीय अम्ल, पिरीमिडीन, प्यूरीन तथा अमीनो अम्ल आदि मुख्य रूप से थे।

4. जटिल कार्बनिक अणुओं का निर्माण उबलते हुए गर्म समुद्र में तीसरे चरण के बने कार्बनिक यौगिक परस्पर क्रिया करके तथा जुड़-जुड़ कर जटिल कार्बनिक यौगिक तथा उनके बहुलकों का निर्माण करते रहे। ये गर्म सूप में विभिन्न शर्कराओं से पॉलीसैकैराइड्स; जैसे स्टार्च (starch), सेल्युलोज (cellulose), ग्लिसरॉल (glycerol) आदि।

विभिन्न वसीय अम्लों व ग्लिसरॉल से वसायें तथा अमीनो अम्लों से विभिन्न जटिल पॉलीपेप्टाइड शृंखलायें तथा प्रोटीन्स (proteins), एन्जाइम्स आदि का निर्माण हुआ। विभिन्न क्षारकों; जैसे प्यूरीन्स व पिरिमिडीन्स ने शर्कराओं तथा फॉस्फेट्स के साथ मिलकर न्यूक्लियोटाइड्स (nucleotides) तथा बाद में इनकी पॉलीन्यूक्लियोटाइड श्रृंखलाओं से न्यूक्लियक अम्लों का निर्माण हुआ। हेल्डेन (Haldane, 1929) ने आदि समुद्र में इस उबलते कार्बनिक पदार्थों के जलीय मिश्रण को ‘कार्बनिक यौगिकों का एक गर्म, पतला सूप’ या पूर्वजीवी सूप’ (probiotic soup) कहा

5. कोलॉइड्स, कोएसरवेट्स एवं वैयक्तिकता आदि सागर के ‘पूर्वजीवी सूप’ के विभिन्न यौगिकों के अणुओं में परस्पर प्रतिक्रियाओं के फलस्वरूप कोलॉइडल कण बने, जिनसे अघुलनशील बूंदों के रूप में कोलॉइडलीय तन्त्रों का निर्माण हुआ। प्रोटीन की कोलॉइडलीय बूंदों के विद्युतावेशित होने के कारण इनकी सतह पर जल की नन्हीं-नन्हीं बूंदें चिपक जाती थीं। इन्हें फॉक्स (Fox, 1958) द्वारा प्रोटीनॉइड माइक्रोस्फीयर्स कहा गया। इसके विपरीत विद्युतावेशित कोलॉइडलीय बूंदों के परस्पर संयोग से अपेक्षाकृत बड़े व घने कोलॉइडलीय यन्त्र बने, इन्हें ओपैरिन ने कोएसरवेट्स कहा।

उन्होंने प्रयोगों द्वारा गोंद व जिलेटिन आदि से कृत्रिम कोएसरवेट्स बनाकर दिखाये। कोएसरवेट्स के धातु तत्त्वों अथवा प्रोटीन्स ने विकर अथवा कार्बनिक उत्प्रेरकों का कार्य किया। इस प्रकार इनमें प्रारम्भिक जैविक क्रियाओं का उदय हुआ। अपने चिपचिपेपन की सामर्थ्य के आधार पर कोएसरवेट्स एक निश्चित आकारीय वृद्धि के पश्चात् छोटी-छोटी बूंदों में टूट जाते थे। इस प्रकार इनमें गुणन की क्रिया प्रारम्भ हुई।

इसी तारतम्य में इन कोलॉइडलीय तन्त्रों में स्वउत्प्रेरक तन्त्र, जीन्स, विषाणु एवं प्रारम्भिक जीवन की उत्पत्ति हुई क्योंकि अब तक न्यूक्लियक अम्ल तथा प्रोटीन के मिलने से न्यूक्लियोप्रोटीन का निर्माण हो चुका था। न्यूक्लियोप्रोटीन एक ओर तो वर्तमान जीन्स के समान कार्य करते अथवा दूसरी ओर गुणन करके विषाणुओं (viruses) के समान विषाणुओं को ‘प्रारम्भिक जीव’ माना गया है।

6. असीमकेन्द्रकीय कोशिका की उत्पत्ति न्यक्लियक अम्लों द्वारा अपने चारों ओर खाद्य पदार्थ एकत्र करके अथवा कोएसरवेट्स में उत्पत्ति द्वारा असीमकेन्द्रकीय कोशिकाओं (prokaryotic cells) का निर्माण हुआ, जीवाणु इसी प्रकार की कोशिकायें हैं जिनसे स्पष्ट केन्द्रक की कोशिकायें अर्थात् सुकेन्द्रकीय कोशिकायें (eukaryotic cells) बनी थीं।

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7. स्वपोषण की उत्पत्ति आदि सागर में उत्पन्न असीम केन्द्रकीय कोशिकायें परपोषी थीं। धीरे-धीरे ये कोशिकायें आदि सागर में उपलब्ध सरल अकार्बनिक पदार्थों से जटिल कार्बनिक पदार्थों का संश्लेषण करने लगीं। यह स्वपोषण की दिशा का प्रथम चरण था। इसके बाद कोशिकाओं में मैग्नीशियम पोरफाइरिन्स से वर्तमान पर्णहरित के समान उत्प्रेरक उत्पन्न हुए। वर्तमान जीवाणु-पर्णहरित इसका उदाहरण है।

इसकी सहायता से कोशिकायें सौर ऊर्जा से प्रकाश संश्लेषण करने लगीं। प्रकाश संश्लेषण की क्रिया के परिणामस्वरूप वायुमण्डल में ऑक्सीजन का मुक्त होना, आदि जीवों के उद्विकास क्रम में एक क्रान्तिकारी घटना थी। पृथ्वी से लगभग 24 किमी ऊँचाई पर ओजोन का एक स्तर बन गया जो सूर्य के प्रकाश की पराबैंगनी किरणों को पृथ्वी पर पहुँचने से रोकने लगा।

8. सुकेन्द्रीय कोशिकाओं की उत्पत्ति आदि भूमण्डल लगभग 2 अरब वर्ष पूर्व वायवीय अथवा ऑक्सी श्वसन के योग्य हो चुका था। इसके साथ ही आदि कोशिकाओं की रचना में क्रमिक विकास का क्रम प्रारम्भ हो गया। आदि सुकेन्द्रकीय कोशिकायें सामान्यत: दो प्रकार की थीं –

  • क्लोरोप्लास्ट विहीन जन्तु कोशिकायें तथा
  • क्लोरोप्लास्ट युक्त पादप कोशिकायें।

इन दोनों प्रकार की कोशिकाओं ने सम्मिलित रूप से प्रकृति में जैव सन्तुलन की स्थापना की। इन्हीं कोशिकाओं के क्रमिक विकास के फलस्वरूप जन्तुओं एवं पादपों की वर्तमान जातियों का विकास हुआ है।

प्रश्न 5.
डार्विन के प्राकृतिक वरणवाद को उदाहरण सहित समझाइए। (2015, 18)
या  जैव विकास के सम्बन्ध में डार्विन के प्राकृतिक वरण एवं योग्यतम की उत्तरजीविता के सिद्धान्त को समझाइए। चार्ल्स डार्विन के अनुसार जैव विकास या  के मुख्य कारकों का वर्णन कीजिए। प्राकृतिक वरणवाद सिद्धान्त किसके द्वारा प्रतिपादित किया गया है ?
या  इसको उदाहरण देकर समझाइए। नई जातियों के उद्भव का सिद्धान्त किसने प्रतिपादित किया ?
या  इसकी मुख्य विशेषताओं का उल्लेख कीजिए। (2011)
या डार्विन के प्राकृतिक वरणवाद के मुख्य चार बिन्दुओं का उल्लेख कीजिए। (2018)
या  जीव जगत में जीवन संघर्ष होता है। यह किस वैज्ञानिक का मत है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
जैव विकास के सम्बन्ध में डार्विन का सिद्धान्त या डार्विनवाद चार्ल्स डार्विन (Charles Darwin, 1809-1882) एक अंग्रेज जीव वैज्ञानिक थे। डार्विन ने समुद्री यात्राओं द्वारा विभिन्न देशों तथा द्वीपों के जीवों का अध्ययन किया और जीवों के विकास के सम्बन्ध में अपने सिद्धान्त को “प्राकृतिक वरण द्वारा जातियों का उद्भव”(Origin of Species by Natural Selection) नामक पुस्तक में प्रकाशित किया। डार्विन का सिद्धान्त प्राकृतिक वरणवाद या डार्विनवाद (theory of natural selection or Darwinism) के नाम से प्रचलित है।

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यह सिद्धान्त निम्नलिखित तथ्यों को आधार मानकर प्रतिपादित किया गया –
1. जीवों में सन्तानोत्पत्ति की प्रचुर क्षमता प्रत्येक जीव प्रजनन द्वारा अपनी सन्तान उत्पन्न करता है। जीवों में सन्तान उत्पन्न करने की बहुत अधिक क्षमता होती है। निम्न श्रेणी के जन्तुओं में तो प्रजनन क्षमता इतनी अधिक होती है कि अगर सभी सन्तानें जीवित रहें, तो पृथ्वी पर उनके सिवा और कोई जन्तु दिखाई भी न देगा, परन्तु ऐसा नहीं होता। जीवों की संख्या की वृद्धि इस प्रकार रेखागणितीय अनुपात में हो सकती है।

2. जीवन संघर्ष सभी जीवों को जीवित रहने के लिए स्थान, प्रकाश तथा भोजन चाहिए, परन्तु सीमित स्थान तथा भोजन के कारण यह सम्भव नहीं हो पाता। अत: पैदा होते ही प्रत्येक जीव को जीवित रहने की आवश्यक सुविधाओं के लिए संघर्ष करना पड़ता है। इसको जीवन संघर्ष कहते हैं। इस जीवन संघर्ष के कारण ही रेखागणितीय अनुपात में बढ़ती जनसंख्या स्थिर रहती है। एक ही जाति के जीवों के मध्य होने वाला जीवन संघर्ष सबसे अधिक घातक होता है।

3. योग्यतम की उत्तरजीविता वही जीव जीवित रहता है, जो जीवन संघर्ष में वातावरण के अनुकूल होता है और आवश्यकतानुसार परिवर्तन करके स्वयं को और अधिक अनुकूल बना लेता है। अनुकूलन से वह सशक्त हो जाता है। संघर्ष में निर्बल जीव नष्ट हो जाते हैं अर्थात् योग्यतम ही जीवित रहता है। इस प्रकार प्रत्येक जाति के जीवों की संख्या लगभग स्थिर बनी रहती है।

4. प्राकृतिक वरण जीवित रहने के लिए जीवों में जो संघर्ष होता है, इसमें जो जीव प्राकृतिक वातावरण के अनुकूल होते हैं, वे ही जीवित रहते हैं तथा अन्य नष्ट हो जाते हैं। अतः प्रकृति स्वयं ही श्रेष्ठ व अनुकूल जीवों का वरण करती है, जिसको प्राकृतिक वरण कहते हैं।

5. विभिन्नतायें प्रत्येक जाति के जीवों में विभिन्नतायें मिलती हैं। इन्हीं विभिन्नताओं के कारण कुछ जीव वातावरण के अनुकूल होते हैं। जो विभिन्नतायें उत्पन्न होती हैं, वे सन्तानों में वंशानुगत हो जाती हैं, जिससे सन्तान भी उस वातावरण के लिए अनुकूलित हो जाती है। यहाँ यह भी माना गया है कि विभिन्नतायें लाभदायक अथवा हानिकारक हो सकती हैं। लाभदायक अथवा उपयोगी विभिन्नतायें ही जीव को योग्य बनाने में सक्षम होती हैं तथा उस जीव को जीवित रहने में सहायता करती हैं।

6. नयी जातियों की उत्पत्ति जीवन संघर्ष में योग्य सिद्ध करने के लिए उत्पन्न विभिन्नतायें एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में वंशानुगत होती रहती हैं, साथ-ही-साथ सन्तान में भी स्वयं कुछ विशेष लक्षण तथा विभिन्नतायें उत्पन्न हो जाती हैं। कुछ पीढ़ियों के बाद लक्षणों तथा विभिन्नताओं की वंशागति इतनी अधिक हो जाती है कि सन्तानें अपने पूर्वजों से भिन्न हो जाती हैं और इस तरह नयी जातियों की उत्पत्ति हो जाती हैं।

प्रश्न 6.
लैमार्कवाद को समझाइए। लैमार्कवाद की आलोचनाओं पर प्रकाश डालिए। (2013, 15, 17)
या उपार्जित लक्षणों की वंशागति का सिद्धान्त क्या है? (2012)
उत्तर:
लैमार्कवाद जैव विकास के प्रचलित सिद्धान्तों में यह सबसे पुराना सिद्धान्त है। लैमार्क (1744-1829) एक फ्रांसीसी वैज्ञानिक थे। इन्होंने 1809 ई० में जैव विकास के बारे में अपने सिद्धान्त को फिलोसॉफी जूलोजिक (Philosophie Zollogique) नामक पुस्तक में प्रकाशित कराया। उनका सिद्धान्त लैमार्कवाद (Lamarckism) के नाम से प्रचलित हुआ।

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इन्होंने मुख्यत: चार बातों पर प्रकाश डाला –
1. जीवों की आकार में वृद्धि की प्रवृत्ति जीवों में उनके शरीर अथवा विभिन्न अंगों के आकार में वृद्धि करते रहने की स्वाभाविक प्रवृत्ति होती है।

2. वातावरण का प्रभाव वातावरण के परिवर्तन के अनुसार जीव स्वयं को अनुकूल बनाने के लिए अपने शरीर की संरचना तथा आदतों में परिवर्तन कर लेता है। इस प्रकार के प्रभावों से उसके कुछ अंगों का उपयोग बढ़ सकता है, अन्य का अपेक्षाकृत कम हो जाता है। इस प्रकार उसके शरीर की रचना में परिवर्तन आ जाते हैं।

3. अंगों का उपयोग और अनुपयोग वातावरण में किसी अंग के उपयोग की अधिक आवश्यकता हो जाती है, तो वह अंग अधिकाधिक पुष्ट तथा विकसित हो जाता है। इसके विपरीत जो अंग कम प्रयोग में आता है, वह धीरे-धीरे क्षीण हो जाता है और अन्त में लुप्त हो जाता है या अवशेषी अंग (vestigeal organ) का रूप ले लेता है।

4. उपार्जित लक्षणों की वंशागति वातावरण के प्रभाव से शारीरिक अंगों के लगातार उपयोग या अनुपयोग से जो नये परिवर्तन उत्पन्न होते हैं, उन्हें उपार्जित लक्षण (acquired character) कहते हैं। ये लक्षण एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में पहुँच जाते हैं। यदि उपार्जित लक्षणों की वंशागति का क्रम चलता रहे, तो सन्तानों में नये परिवर्तन स्थायी तथा नये लक्षण विकसित हो जायेंगे।

इस प्रकार बनने वाली सन्तति अपने पूर्वजों से पूर्णतया भिन्न हो जायेंगी और इस तरह नयी जाति का निर्माण हो जायेगा। अपने सिद्धान्त के समर्थन में लैमार्क ने जिराफ का उदाहरण दिया है। जिराफ दक्षिण अफ्रीका के रेगिस्तान में मिलते हैं। इनकी गर्दन तथा अगली टाँगें अधिक लम्बी होती हैं, जिनकी सहायता से ये ऊँचे वृक्षों की पत्तियाँ खाकर अपना जीवन निर्वाह करते हैं। लैमार्क के अनुसार जिराफ के पूर्वज आकार में अपेक्षाकृत छोटे थे, उनकी गर्दन कम लम्बी तथा अगली टाँगें पिछली टाँगों के बराबर लम्बी थीं। ये ऐसे युग में रहते थे, जब अफ्रीका की जलवायु इतनी गर्म तथा रेगिस्तानी नहीं थी।

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वहाँ घास के मैदान थे जिनमें वे चरते रहते थे। धीरे-धीरे यहाँ की जलवायु शुष्क तथा रेगिस्तानी होने लगी। घास के मैदान लुप्त होते गये। अत: उन्हें गर्दन तथा अगली टाँगों को उचका-उचकाकर ऊँचे-ऊँचे वृक्षों की पत्तियाँ खाने के लिए विवश होना पड़ा। इस प्रकार गर्दन तथा अगली टाँगों के निरन्तर अधिक उपयोग करने के कारण दोनों ही अंगों की लम्बाई बढ़ती गयी।

यह उपार्जित लक्षण एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में वंशागत होते रहे और अन्त में जिराफ की वर्तमान जाति के स्थायी लक्षण बन गये। एक अन्य उदाहरण में उन्होंने बताया कि सर्प का शरीर लम्बा होने के कारण उसे झाड़ियों आदि में घुसने में उसकी टाँगें असुविधाजनक थीं। इस प्रकार उसने टाँगों का उपयोग करना बन्द कर दिया। धीरे-धीरे उसकी टाँगें अनुपयुक्त होकर विलुप्त हो गईं और वर्तमान बिना टाँगों वाली सर्यों की जातियाँ विकसित हुईं।

लैमार्कवाद की आलोचना लैमार्कवाद के जैव विकास सम्बन्धी विचारों में अंगों के उपयोग-अनुपयोग की बात कही गई है, साथ ही इनसे उपार्जित लक्षणों को वंशानुगत लक्षण मान लिया गया है। वैज्ञानिकों ने अप्रमाणिकता के आधार पर इस विचार को पूर्णत: अस्वीकार कर दिया। इस आधार पर तो पहलवान का बच्चा पहलवान, अन्धे माता-पिता का बच्चा अन्धा होना चाहिए। एक लोहार के बराबर लोहा पीटते रहने से, उसके हाथ की पेशियाँ अत्यधिक मजबूत हो जाती हैं, किन्तु उसका यह लक्षण उसकी सन्तान में नहीं आता।

वीजमान (Wiesmann) नामक जर्मन वैज्ञानिक ने लैमार्कवाद का अत्यधिक विरोध किया। उन्होंने चूहों पर अनेक प्रयोग किये। एक प्रयोग में कई पीढ़ियों तक वे चूहों की पूँछ काटते रहे, किन्तु उन्हें अन्त तक एक भी पूँछ कटा चूहा प्राप्त नहीं हो सका। किसी भी सन्तति में चूहे की पूँछ उतनी ही लम्बी, मोटी तथा मजबूत मिली जितनी से उन्होंने अपने प्रयोग आरम्भ किये थे। लैमार्क के अनुसार तो अन्तिम पीढ़ी में प्राप्त चूहे बिना पूंछ वाले उत्पन्न होने चाहिए थे। वीजमान का मानना था कि अंगो में उपार्जित होने वाले लक्षण कायिक होते हैं तथा ये वंशानुगत नहीं होते, केवल जननद्रव्य में पहुँचने वाले लक्षणों की ही वंशानुगति होती है।

Bihar Board Class 10 Science Solutions Chapter 8 जीव जनन कैसे करते है

BSEB Bihar Board Class 10 Science Solutions Chapter 8 जीव जनन कैसे करते है

Bihar Board Class 10 Science Solutions Chapter 8 जीव जनन कैसे करते है Textbook Questions and Answers, Additional Important Questions, Notes.

Bihar Board Class 10 Science जीव जनन कैसे करते है InText Questions and Answers

अनुच्छेद 8.1 पर आधारित

प्रश्न 1.
डी०एन०ए० प्रतिकृति का प्रजनन में क्या महत्त्व है?
उत्तर:
प्रजनन की मूल घटना है डी०एन०ए० की दो प्रतिकृतियाँ तैयार करना। इसके लिए कोशिकाएँ रासायनिक अभिक्रियाएँ करती हैं जिससे डी०एन०ए० की दो प्रतिकृतियाँ बन जाती हैं। इन प्रतिकृतियों को अलग होने के लिए एक अलग कोशिकीय संरचना की आवश्यकता होती है। डी०एन०ए० की दोनों प्रतिकृतियाँ अलग होकर दो कोशिकाओं का निर्माण करती हैं। इस प्रकार प्रजनन में दो कोशिकाओं को बनाने के लिए डी०एन०ए० प्रतिकृति आवश्यक है।

प्रश्न 2.
जीवों में विभिन्नता स्पीशीज़ के लिए तो लाभदायक है परंतु व्यष्टि के लिए आवश्यक नहीं है, क्यों?
उत्तर:
जीवों में विभिन्नताओं की किसी जीव के अस्तित्व के लिए आवश्यकता नहीं है क्योंकि उसके जीवित रहने पर कुछ विभिन्नताओं का कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ता। वह समानता के आधार पर अधिक अनुकूल होता है। लेकिन डी०एन०ए० की दोनों प्रतिकृतियाँ बिल्कुल समान नहीं होतीं उनमें कुछ-न-कुछ विभिन्नताएँ अवश्य होती हैं जो धीरे-धीरे गहरी होती जाती हैं। जनन में होने वाली ये विभिन्नताएँ अन्ततः नई स्पीशीज़ के विकास में योगदान देती हैं तथा जैव विकास का आधार बनती हैं। अतः विभिन्नताएँ स्पीशीज़ के उद्भव के लिए आवश्यक हैं लेकिन जीव के जीवित रहने के लिए इनकी कोई आवश्यकता नहीं है।

अनुच्छेद 8.2 पर आधारित

प्रश्न 1.
द्विखंडन बहुखंडन से किस प्रकार भिन्न है?
उत्तर:
द्विखंडन इस विधि द्वारा एककोशिकीय जीव दो भागों में विभक्त होता है और प्रत्येक भाग एक नए जीव में विकसित होता है; जैसे-अमीबा । बहुखंडन इस विधि में एककोशिकीय जीव अनेक भागों में विभक्त होता है तथा प्रत्येक भाग एक नए जीव में विकसित होता है; जैसे मलेरिया परजीवी (प्लैज़्मोडियम)।

प्रश्न 2.
बीजाणु द्वारा जनन से जीव किस प्रकार लाभान्वित होता है? उत्तर-बहुत-से सरल बहुकोशिकीय जीवों के वृन्त पर एक कैप्सूल जैसी संरचना होती है जिसे बीजाणुधानी कहते हैं। बीजाणुधानी में बहुत-से बीजाणु भरे होते हैं। ये बीजाणु बड़ी संख्या में होते हैं। इस प्रकार एक बीजाणुधानी से एक बड़ी संख्या में नए जीव उत्पन्न हो सकते हैं। इस प्रकार यह ऐसे जीवों के लिए लाभदायक होता है जिनमें जनन बीजाणु द्वारा होता है। जैसे – राइजोपस।

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प्रश्न 3.
क्या आप कुछ कारण सोच सकते हैं जिससे पता चलता हो कि जटिल संरचना वाले जीव पुनरुद्भवन द्वारा नयी संतति उत्पन्न नहीं कर सकते?
उत्तर:
जटिल संरचना वाले जीव पुनरुद्भवन द्वारा नई संतति उत्पन्न नहीं कर सकते; क्योंकि –

  1. ऐसे जीवों की संरचना अत्यन्त जटिल होती है।
  2. ऐसे जीवों में एक विशिष्ट कार्य करने के लिए विशिष्ट अंग/अंगों की आवश्यकता होती है।
  3. ऐसे जीवों में श्रम विभाजन होता है।
  4. पुनरुद्भवन विशिष्ट कोशिकाओं द्वारा होता है। ऐसी कोशिकाएँ जटिल जीवों में नहीं होती।

प्रश्न 4.
कुछ पौधों को उगाने के लिए कायिक प्रवर्धन का उपयोग क्यों किया जाता है?
उत्तर:
कायिक प्रवर्धन केवल ऐसे पौधों में ही संभव है जिनके जड, तना या पत्तियों में नए पौधों को उगाने की क्षमता होती है। कुछ पौधों में बीज नहीं होते, ऐसे पौधों को केवल कायिक प्रवर्धन द्वारा ही उगाया जा सकता है। कायिक प्रवर्धन बीजरहित पौधों को उगाना संभव बनाता है। केला, नारंगी, गुलाब, जासमीन व गन्ने में बीज बनने की क्षमता कम है या बिल्कुल नहीं है अतः ऐसे पौधे कायिक प्रवर्धन द्वारा ही उगाये जा सकते

प्रश्न 5.
डी०एन०ए० की प्रतिकृति बनाना जनन के लिए आवश्यक क्यों है?
उत्तर:
डी०एन०ए० की प्रतिकृति बनाना जनन के लिए आवश्यक है। यह जनन के लिए एक मूल घटना है। डी०एन०ए० की दो प्रतिकृतियों से ही जनक कोशिका की दो कोशिकाएँ बनती हैं। ये दोनों प्रतिकृतियाँ अलग होना आवश्यक हैं तभी जनन हो सकता है। इसके लिए एक अलग से कोशिकीय संरचना आवश्यक है। एक प्रतिकृति नई संरचना में तथा एक मूल कोशिका में रह जाती है। इस प्रकार दो प्रतिकृतियाँ दो नई कोशिकाएँ बनाने में सहायता करती हैं; और जनन होता है।

अनुच्छेद 8.3 पर आधारित

प्रश्न 1.
परागण क्रिया निषेचन से किस प्रकार भिन्न है?
उत्तर:
परागण परागकणों के परागकोष से वर्तिकाग्र तक पहुँचने की क्रिया को परागण क्रिया कहते हैं। इस प्रक्रिया में किसी प्रकार की दो कोशिकाओं में संलयन नहीं होता है। यह निषेचन से पहले की क्रिया है। निषेचन निषेचन में नर व मादा युग्मकों का संलयन होता है तथा युग्मनज बनता है। यह परागण के बाद की क्रिया है।

प्रश्न 2.
शुक्राशय एवं प्रोस्टेट ग्रंथि की क्या भूमिका है?
उत्तर:
नर जनन तंत्र में कुछ ग्रंथियाँ; जैसे-शुक्राशय एवं प्रोस्टेट ग्रंथियाँ होती हैं। इन ग्रंथियों के स्राव शुक्राणु के साथ मिलते हैं। इस प्रकार शुक्राणु एक द्रव में आ जाते हैं। यह द्रव शुक्राणुओं के स्थानांतरण को आसान बनाता है। यह द्रव शुक्राणुओं को पोषण भी प्रदान करता है।

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प्रश्न 3.
यौवनारंभ के समय लड़कियों में कौन से परिवर्तन दिखाई देते हैं?
उत्तर:
यौवनारंभ के समय लड़कियों में निम्न परिवर्तन दिखाई देते है –

  1. स्तनों के आकार में वृद्धि होने लगती है।
  2. स्तनाग्र की त्वचा का रंग गहरा होने लगता है।
  3. रजोधर्म प्रारम्भ होने लगता है।
  4. त्वचा तैलीय हो जाती है, चेहरे पर मुहासे निकलने लगते हैं।
  5. श्रोणिभाग चौड़ा तथा नितम्भ भारी हो जाते हैं।
  6. आवाज महीन एवं सुरीली हो जाती है।

प्रश्न 4.
माँ के शरीर में गर्भस्थ भ्रण को पोषण किस प्रकार प्राप्त होता है?
उत्तर:
निषेचन के बाद युग्मनज बनता है जो धीरे-धीरे भ्रूण में विकसित होने लगता है। भ्रण गर्भाशय की भित्ति से चिपक जाता है। इस प्रक्रिया को इम्प्लांटेशन कहते हैं। भ्रूण माता के शरीर से अपना भोजन प्राप्त करता है। इसके लिए एक विशिष्ट ऊतक, जिसे प्लेसेंटा कहते हैं, होता है। यह एक तश्तरीनुमा संरचना है जो गर्भाशय की भित्ति में घुसा होता है। माता के गर्भाशय की भित्ति विलाई से बनी होती है जो गर्भाशय का क्षेत्रफल बढ़ाता है। इससे भ्रूण को अधिक ग्लूकोज व ऑक्सीजन मिलती है। इस प्रकार भ्रूण माता के शरीर से अपना पोषण प्राप्त करता है।

प्रश्न 5.
यदि कोई महिला कॉपर-टी का प्रयोग कर रही है तो क्या यह उसकी यौन-संचरित रोगों से रक्षा करेगा?
उत्तर:
यदि कोई महिला कॉपर-टी का प्रयोग कर रही है तो यह उसकी यौन-संचरित रोगों से रक्षा नहीं करेगा।

Bihar Board Class 10 Science जीव जनन कैसे करते है Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
अलैंगिक जनन मुकुलन द्वारा होता है –
(a) अमीबा में
(b) यीस्ट में
(c) प्लैज्मोडियम में
(d) लेस्मानिया में
उत्तर:
(b) यीस्ट में

प्रश्न 2.
निम्न में से कौन मानव में मादा जनन तंत्र का भाग नहीं है?
(a) अंडाशय
(b) गर्भाशय
(c) शुक्रवाहिका
(d) डिबवाहिनी
उत्तर:
(c) शुक्रवाहिका

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प्रश्न 3.
परागकोश में होते हैं।
(a) बाह्यदल
(b) अंडाशय
(c) अंडप
(d) परागकण
उत्तर:
(d) परागकण

प्रश्न 4.
अलैंगिक जनन की अपेक्षा लैंगिक जनन के क्या लाभ हैं?
उत्तर:
अलैंगिक जनन की अपेक्षा लैंगिक जनन के निम्नलिखित लाभ हैं –

  1. लैंगिक जनन से जनन संतति में विविधता आती है।
  2. जीन के नए युग्मक बनते हैं जिसके कारण आनुवंशिक विविधिता का विकास होता है।
  3. नए जीवों के विकास में इसकी महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है।

प्रश्न 5.
मानव में वृषण के क्या कार्य हैं?
उत्तर:
नर में प्राथमिक जनन अंग अंडाकार आकृति का वृषण होता है। नर में एक जोड़ी वृषण उदर गुहा के बाहर छोटे अंडानुमा मांसल संरचना में रहते हैं जिसे वृषण कोष कहते हैं। वृषण में शुक्राणु तथा टेस्टोस्टेरॉन हॉर्मोन की उत्पत्ति होती है। वृषण कोष शुक्राणु बनने के लिए उचित ताप प्रदान करता है।

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प्रश्न 6.
ऋतुस्राव क्यों होता है?
उत्तर:
यदि अंडाणु का निषेचन नहीं होता है तो वह एक दिन बाद नष्ट हो जाता है। गर्भाशय भी निषेचित अंडाणु को प्राप्त करने की तैयारी करता है। गर्भाशय की दीवार मोटी तथा स्पंजी हो जाती है। लेकिन निषेचन न होने पर ये धीरे-धीरे टूटती है और रुधिर व म्यूकस के रूप में योनि मार्ग से बाहर निकलती है। इस प्रक्रिया को रजोधर्म या ऋतुस्राव कहते हैं। अतः ऋतुस्राव निषेचन न होने की अवस्था में होता है।

प्रश्न 7.
पुष्प की अनुदैर्घ्य काट का नामांकित चित्र बनाइए।
उत्तर:
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प्रश्न 8.
गर्भनिरोधन की विभिन्न विधियाँ कौन-सी हैं? (2011, 13, 14, 16, 17)
या परिवार नियोजन की स्थायी विधियाँ कौन-कौन सी हैं? किन्हीं दो पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए। (2018)
उत्तर:
गर्भनिरोधन के लिए बहुत-सी विधियों का विकास किया गया है जो निम्नवत् हैं –

  1. अवरोधिका विधियाँ इन विधियों में कंडोम, मध्यपट और गर्भाशय ग्रीवा आच्छद का उपयोग किया जाता है। ये मैथुन के दौरान मादा जननांग में शुक्राणुओं के प्रवेश को रोकती हैं।
  2. रासायनिक विधियाँ इस प्रकार की विधि में स्त्री दो प्रकार – मुखीय गोलियाँ तथा योनि गोलियाँ प्रयोग करती है। ये गोलियाँ मुख्यतः हॉर्मोन्स से बनी होती हैं जो अंडाणु को डिम्बवाहिनी नलिका में उत्सर्जन से रोकती हैं।
  3. शल्य या स्थायी विधियाँ इस विधि में पुरुष शुक्रवाहिका तथा स्त्री की डिम्बवाहिनी नली के छोटे-से भाग को शल्यक्रिया द्वारा काट या बाँध दिया जाता है। इसे क्रमशः नर नसबंदी तथा स्त्री नसबंदी कहते हैं।

प्रश्न 9.
एक-कोशिक एवं बहुकोशिक जीवों की जनन पद्धति में क्या अंतर है?
उत्तर:
एक-कोशिक जीवों में केवल एक ही कोशिका होती है। उनमें जनन के लिए अलग से कोई ऊतक या अंग नहीं होता है। अत: उनमें जनन केवल द्विविखंडन या बहुविखंडन द्वारा ही हो सकता है। कुछ जीवों जैसे यीस्ट में मुकुलन द्वारा भी जनन होता है। बहुकोशिक जीवों का शरीर बहुत-सी कोशिकाओं से बना होता है। इनमें जनन के लिए अलग से ऊतक या जनन तंत्र होते हैं। अतः इनमें जनन लैंगिक व अलैंगिक दोनों प्रकार से होता है।

प्रश्न 10.
जनन किसी स्पीशीज़ की समष्टि के स्थायित्व में किस प्रकार सहायक है?
उत्तर:
अपनी जनन क्षमता का उपयोग कर जीवों की समष्टि पारितंत्र में स्थान अथवा निकेत ग्रहण करते हैं। जनन के दौरान DNA प्रतिकृति का बनना जीव की शारीरिक संरचना एवं डिजाइन के लिए अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है जो उसे विशिष्ट निकेत के योग्य बनाती है। अतः किसी प्रजाति (स्पीशीज़) की समष्टि के स्थायित्व का सम्बन्ध जनन से है।

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प्रश्न 11.
गर्भनिरोधक युक्तियाँ अपनाने के क्या कारण हो सकते हैं?
उत्तर:
जनन एक ऐसा प्रक्रम है जिसके द्वारा जीव अपनी समष्टि की वृद्धि करते हैं। एक समष्टि में जन्मदर एवं मृत्युदर उसके आकार का निर्धारण करते हैं। जनसंख्या का विशाल आकार बहुत लोगों के लिए चिन्ता का विषय है। इसका मुख्य कारण यह है कि बढ़ती हुई जनसंख्या के कारण प्रत्येक व्यक्ति के जीवन-स्तर में सुधार लाना आसान कार्य नहीं है। अत: जनसंख्या की बढ़ती हुई संख्या पर नियन्त्रण रखना जरूरी है। इसलिए गर्भनिरोधक युक्तियाँ अपनानी चाहिए।

Bihar Board Class 10 Science जीव जनन कैसे करते है Additional Important Questions and Answers

बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
जीवों में विभिन्नताएँ उत्पन्न होती हैं – (2014)
(a) वर्धी (कायिक) जनन द्वारा
(b) अलैंगिक जनन द्वारा
(c) लैंगिक जनन द्वारा
(d) स्पोर (बीजाणु) निर्माण द्वारा
उत्तर:
(c) लैंगिक जनन द्वारा

प्रश्न 2.
मुकुलन (Budding) द्वारा अलिंगी जनन निम्नलिखित में से किस जन्तु में होता है? (2017)
(a) मेंढक
(b) अमीबा
(c) केंचुआ
(d) हाइड्रा
उत्तर:
(d) हाइड्रा

प्रश्न 3.
लघु बीजाणु पैदा होते हैं – (2010)
(a) पुमंग में
(b) जायांग में
(c) पुंकेसरों में
(d) परागकोष में
उत्तर:
(d) परागकोष में

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प्रश्न 4.
पुष्प में कितने भाग होते हैं? (2017)
(a) तीन
(b) चार
(c) पाँच
(d) छः
उत्तर:
(b) चार

प्रश्न 5.
एक पुष्प के स्त्रीकेसर के मध्य भाग को कहते हैं (2014)
(a) वर्तिकाग्र
(b) वर्तिका
(c) अण्डाशय
(d) अण्ड (बीजाण्ड)
उत्तर:
(b) वर्तिका

प्रश्न 6.
परागकणों का परागकोष से वर्तिकाग्र तक स्थानान्तरण कहलाता है। (2014)
(a) परागण
(b) अण्डोत्सर्ग
(c) निषेचन
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(a) परागण

प्रश्न 7.
परागकण का जनन केन्द्रक नर युग्मक बनाता है – (2010)
(a) 4
(b) 2
(c) 3
(d) 1
उत्तर:
(b) 2

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प्रश्न 8.
कीट परागण होता है – (2010)
(a) मक्का में
(b) वैलिस्नेरिया में
(c) सैल्विया में
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(c) सैल्विया में

प्रश्न 9.
परागनली में नरयुग्मक की संख्या होती है – (2017)
(a) 1
(b) 2
(c) 3
(d) 8
उत्तर:
(b) 2

प्रश्न 10.
द्विनिषेचन विशेष लक्षण है – (2014)
या द्विनिषेचन पाया जाता है – (2015, 16)
(a) जन्तुओं का
(b) आवृतबीजी पादप का
(c) अनावृतबीजी पादप का
(d) शैवाल का
उत्तर:
(b) आवृतबीजी पादप का

प्रश्न 11.
द्विनिषेचन क्रिया में त्रिक संलयन के पश्चात् बनने वाले ऊतक का नाम है? (2011)
(a) इन्डोस्पर्म
(b) भ्रूण
(c) मूलांकुर
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(a) इन्डोस्पर्म

प्रश्न 12.
पुष्पी पादपों में निषेचन होता है – (2009)
(a) बीजाण्ड में
(b) अण्डाशय में
(c) पराग नलिका में
(d) भ्रूणकोष में
उत्तर:
(d) भ्रूणकोष में

प्रश्न 13.
एन्जिओस्पर्स में निषेचनोपरान्त बीज कवच बनता है – (2012)
(a) द्वितीयक केन्द्रक से
(b) अध्यावरण से
(c) अण्डाशय भित्ति से
(d) भ्रूणपोष से
उत्तर:
(b) अध्यावरण से

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प्रश्न 14.
निषेचन के बाद पुष्प का कौन-सा भाग फल में बदल जाता है? (2013, 15, 18)
(a) पुंकेसर
(b) वर्तिका
(c) अण्डाशय
(d) बीजाण्ड
उत्तर:
(c) अण्डाशय

प्रश्न 15.
निषेचन के दौरान परागकण से निकलने वाली परागनलिका सामान्यतः किसके द्वारा बीजाण्ड में प्रवेश करती है? (2016)
(a) अध्यावरण
(b) बीजाण्डकाय
(c) निभागी
(d) अण्डद्वार
उत्तर:
(d) अण्डद्वार

प्रश्न 16.
परिवार नियोजन की स्थायी विधि है – (2018)
(a) गर्भ निरोधक गोलियाँ
(b) निरोध का प्रयोग
(c) वैसेक्टॉमी
(d) गर्भ समापन (गर्भपात)
उत्तर:
(c) वैसेक्टॉमी

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
कायिक प्रवर्धन की परिभाषा लिखिए।
उत्तर:
पौधे के किसी भी कायिक भाग से जब इसी अवस्था में जनन हो जाता है तो इसे कायिक प्रवर्धन कहते हैं।

प्रश्न 2.
पुमंग एवं जायांग में अन्तर स्पष्ट कीजिए। (2014, 17)
उत्तर:
पुमंग पुष्प के नर जननांग हैं जबकि जायांग पुष्प के मादा जननांग हैं।

प्रश्न 3.
आवृतबीजी बाह्यअण्डप के अनुदैर्घ्य काट का नामांकित चित्र बनाइए। (2013, 17)
उत्तर:
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प्रश्न 4.
फल तथा बीज निर्माण करने वाले पुष्प के भागों के नाम बताइए।
उत्तर:
फल अण्डाशय से तथा बीज बीजाण्ड से बनते हैं।

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प्रश्न 5.
परिवार नियोजन से आप क्या समझते हैं? छोटे परिवार के महत्त्व को समझाइए। (2017)
उत्तर:
परिवार कल्याण हेतु बच्चों की संख्या सीमित कर परिवार को नियोजित करने की प्रक्रिया को परिवार नियोजन कहते हैं। यदि परिवार में बच्चों की संख्या सीमित होगी तो वह परिवार अधिक सुखी जीवन तथा अच्छा रहन-सहन रख सकेगा।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
बीजरहित पौधों में जनन क्रिया किस विधि द्वारा होती है? उदाहरण भी दीजिए। (2013)
या पौधों में कायिक प्रजनन की दो विधियों का उदाहरण सहित उल्लेख कीजिए। (2012, 16)
या कायिक जनन किसे कहते हैं? तने द्वारा इस विधि का एक उदाहरण दीजिए। (2014, 17)
या कायिक जनन किसे कहते हैं? पौधों में इस विधि से क्या लाभ है? (2015, 17)
या पादपों में, अलैंगिक जनन पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए। (2016)
उत्तर:
बीजरहित पौधों में जनन क्रिया, कायिक जनन (अलैंगिक जनन) विधि द्वारा होती है। इसके अन्तर्गत पौधे के किसी कायिक अंग; जैसे-जड़, तना, पत्ती, कलिकाओं द्वारा नया पौधा तैयार हो जाता है। पौधों में कायिक जनन की दो प्रमुख विधियाँ कलम लगाना व दाब लगाना हैं।

1. कलम लगाना: (Cutting) इस विधि में तने के कलिका युक्त छोटे-छोटे टुकड़े काट लिए जाते हैं। इन टुकड़ों को कलम (cutting) कहते हैं। इनके निचले सिरों को उचित स्थान पर भूमि में दबा देते हैं, जिनसे कुछ दिनों के बाद जड़ें निकल आती हैं और उपस्थित कलिकाएँ वृद्धि करके नया पौधा बना लेती हैं। गुलाब, कैक्टस, अन्नास, गुड़हल आदि में हम कलम से ही
पौधे उगाते हैं। गन्ने में कलम को भूमि के अन्दर क्षैतिज अवस्था में दबा देते हैं।

2. दाब लगाना: (Layering) कुछ पौधों में हम पौधे की किसी शाखा को झुका कर नम मिट्टी में दबा देते हैं। कुछ समय बाद इससे जड़ें निकल आती हैं और उसके बाद नयी पौध बन जाती है। नयी पौध को इसके पैतृक पौधे से काटकर अलग कर देते हैं। यह वृद्धि करके पूर्ण पौधा बन जाता है। बेला, चमेली, कनेर आदि में यह विधि अपनायी जाती है।

कायिक जनन से लाभ –

  1. जिन पौधों में बीज नहीं बनते (जैसे – केला, अंगूर व अन्नास) इनमें कायिक जनन द्वारा नये पौधे उगाये जाते हैं।
  2. नये पौधे कम समय में उत्पन्न हो जाते हैं।
  3. नये पौधे मातृ पौधों के समान होते है। इनमें विभिन्नताएँ नहीं होती हैं।
  4. पौधों के विशेष ऐच्छिक लक्षणों को पीढ़ी-दर-पीढ़ी बनाये रखा जा सकता है।

प्रश्न 2.
स्वपरागण व परपरागण में अन्तर बताइए तथा एक-एक उदाहरण दीजिए। (2011, 16)
या परपरागण के महत्त्व का वर्णन कीजिए। (2015, 18)
या स्वपरागण के लिए आवश्यक अनुकूलन तथा इनके लाभ एवं हानियाँ बताइए। (2018)
उत्तर:
स्वपरागण व परपरागण में अन्तर क्र०सं० स्वपरागण –
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प्रश्न 3.
निषेचन क्या है? बाह्य एवं आंतरिक निषेचन में अन्तर बताइए। (2014, 17)
उत्तर:
युग्मकों (एक नर व एक मादा) के संलयन को निषेचन कहते हैं। जब निषेचन मादा जन्तु के शरीर के बाहर होता है तो इसे बाह्य निषेचन कहते हैं। इसके विपरीत यदि निषेचन मादा जन्तु के शरीर के अन्दर होता है तो इसे आन्तरिक निषेचन कहते हैं।

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प्रश्न 4.
पौधों तथा जंतुओं के अलैंगिक व लैंगिक जनन में अन्तर बताइए। (2014, 16, 18)
उत्तर:
अलैंगिक व लैंगिक जनन में अन्तर –
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प्रश्न 5.
एक मानव शुक्राणु का नामांकित चित्र बनाइए तथा उस कोशिका का उल्लेख कीजिए जिससे इसका निर्माण होता है। (2013, 17)
उत्तर:
शुक्राणु एक विशिष्ट, दीर्घित (elongated), पुच्छयुक्त कोशिका है जो पोषक तरल (वीर्य) में रहती है। यह नर युग्मक है, जिसका निर्माण शुक्राणु जन कोशिका के अर्द्धसूत्री विभाजन से होता है। वीर्य में सहस्रों की संख्या में शुक्राणु होते हैं।
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प्रश्न 6.
जनसंख्या विस्फोट क्या है ? जनसंख्या वृद्धि से होने वाली हानियाँ तथा बचाव का संक्षेप में वर्णन कीजिए। (2012)
या मानव जनसंख्या वृद्धि से उत्पन्न समस्यायें (चार हानियाँ ) बताइये। (2012)
या जनसंख्या वृद्धि का मानव समाज पर दुष्प्रभाव पर संक्षिप्त निबन्ध लिखिए। (2014)
या जनसंख्या वृद्धि से होने वाली हानियों का उल्लेख कीजिए तथा इसकी वृद्धि को रोकने के उपाय बताइए। (2016)
उत्तर:
किसी क्षेत्र विशेष में जनसंख्या का उस स्थिति तक बढ़ जाना कि उस क्षेत्र में उपलब्ध खाद्य सामग्री व जल तथा अन्य प्राकृतिक संसाधन उस जनसंख्या के लिए अपर्याप्त हो जाए जनसंख्या विस्फोट कहलाता है। इससे निम्नलिखित प्रमुख हानियाँ (समस्यायें) उत्पन्न होती हैं –

  1. अपर्याप्त भोजन, कुपोषण आदि के कारण बच्चों की मृत्यु दर बढ़ना तथा दुर्बल सन्तति उत्पन्न होना।
  2. अपर्याप्त आवासों के कारण गन्दे स्थानों पर रहना, जिससे अनेक बीमारियाँ फैलती हैं।
  3. अपर्याप्त वस्त्रों व साधनों के कारण विषम परिस्थितियों ( भीषण गर्मी व सर्दी) में अकाल मृत्यु।
  4.  अपर्याप्त रोजगार के अवसरों के कारण बेरोजगारी जो मानसिक तनाव व अपराधों को बढ़ावा देती है।

जनसंख्या वृद्धि को रोकने के निम्नलिखित बचाव हैं –

  1. शिक्षा की सुविधाओं का अत्यधिक विस्तार होना चाहिए।
  2. प्रति परिवार बच्चों की संख्या निर्धारित की जानी चाहिए।
  3. विवाह की आयु स्त्रियों के लिए कम से कम 21 वर्ष तथा पुरुषों के लिए 25 वर्ष की जानी चाहिए।
  4. गर्भपात को ऐच्छिक एवं सुविधापूर्ण बनाया जाना चाहिए।
  5. परिवार कल्याण कार्यक्रमों को अधिक प्रभावी बनाना चाहिए।

प्रश्न 7.
भारत में जनसंख्या वृद्धि के कोई चार कारण लिखिए।
उत्तर:
भारत में जनसंख्या वृद्धि के प्रमुख चार कारण निम्नवत् हैं –

  1. जन्म दर का अत्यधिक तथा मृत्यु दर का कम होना।
  2. विवाह बन्धन, विवाह की आयु कम तथा वंश चलाने हेतु सन्तान, वह भी पुत्र की अनिवार्यता।
  3. अनेक प्रकार के अन्धविश्वास तथा अशिक्षा।
  4. सन्तति निरोध का अल्प-ज्ञान होना।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
पुष्प का नामांकित चित्र बनाइए। इसके विभिन्न चक्रों के कार्य बताइए। (2012)
उत्तर:
आवृतबीजी पौधों में नर तथा मादा जननांग पुष्पों में स्थित होते हैं। पुष्प को रूपान्तरित शाखा कहते हैं। इसमें निम्नलिखित चार चक्र (whorls) होते हैं –

  1. बाह्यदल: यह हरे रंग की पत्ती सदृश रचनाओं का चक्र है, जो पुष्प के भीतरी चक्रों की रक्षा करता है।
  2. दल: ये रंगीन होते हैं तथा परागण की क्रिया के लिए कीटों को आकर्षित करते हैं।
  3. पुमंग या एंड्रीशियम: नर जनन अंग इसकी प्रत्येक इकाई को पुंकेसर कहते हैं। पुंकेसर का अगला फूला हुआ भाग परागकोष होता है। परागकोष या एंथर के अन्दर नरयुग्मक या परागकण बनते हैं। परागकण में एकसूत्री नर केन्द्रक होता है।
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  4. जायांग या गाइनीशियम: मादा जनन अंग इसकी प्रत्येक इकाई को अण्डप या काल कहते हैं। काल का निचला फूला हुआ भाग अण्डाशय होता है जिसमें बीजाण्ड या ओव्यूल होता है। बीजाण्ड में मादा युग्मक या अण्ड बनता है। बीजाण्ड से बीज बनता है।

प्रश्न 2.
पुष्पी पौधों में परागण के उपरान्त निषेचन तथा बीज बनने तक जनन की प्रकियाओं को समझाइये।
या द्विनिषेचन या निषेचनोपरान्त पुष्प में होने वाले परिवर्तनों को समझाइए।
या फूलों वाले पौधों में निषेचन क्रिया का सचित्र वर्णन कीजिए। परागण को परिभाषित कीजिए।
या परागण की विभिन्न विधियों का वर्णन कीजिए तथा इसके महत्त्व को समझाइए।
या पर-परागण किसे कहते हैं? पर-परागण की विभिन्न विधियों का केवल नाम लिखिए।
या निषेचन के बाद पुष्प के विभिन्न भागों में होने वाले परिवर्तनों का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए।
या द्विनिषेचन पर टिप्पणी लिखिए। (2012, 13, 17)
या पर-परागण को परिभाषित कीजिए। इसके महत्त्व का वर्णन कीजिए। (2018)
उत्तर:
पौधों में परागण से बीज निर्माण तक की अवस्थाएँ लैंगिक जनन के सभी भाग पुष्प में होते हैं।
1. परागकण तथा परागण:
परागकोषों में परागकण बनने के बाद आवश्यक है कि परागकण के –
नर केन्द्रक मादा युग्मक (अण्ड) तक पहुँचे। पुष्प के परागकोष से परागकणों के उसी पुष्प अथवा दूसरे पौधों के किसी पुष्प के वर्तिकान पर पहुँचने की क्रिया को परागण (pollination) कहते हैं। जब एक पुष्प में परागकोषों से परागकण निकलकर उसी पुष्प के वर्तिकान पर गिर जाते हैं तथा अंकुरित हो जाते हैं तो वह क्रिया स्वपरागण (self pollination) तथा जब एक पुष्प से परागकण किसी दूसरे पुष्प (उसी जाति) के वर्तिकाग्र पर आते हैं तो इसे परपरागण (cross pollination) कहते हैं।

इस प्रकार, सभी एकलिंगी पुष्पों में परपरागण ही होता है, किन्तु द्विलिंगी पुष्पों में दोनों में से किसी भी प्रकार का परागण हो सकता है। इनमें परपरागण अधिक महत्त्वपूर्ण है। परपरागण में परागकणों को एक पुष्प से दूसरे पौधे पर उपस्थित पुष्प के वर्तिकाग्र तक पहुँचाना होता है। इसके लिए किसी-न-किसी साधन या कारक की आवश्यकता पड़ती है। परपरागण के इन कारकों को कर्मक (agents) भी कहते हैं, और ये सामान्यत: वायु, जल अथवा जन्तु (प्रायः कीट) होते हैं। इन्हीं कारकों के आधार पर परपरागण की विभिन्न विधियाँ कीट-परागण, वायु-परागण, जल-परागण आदि होती हैं।

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2. परागकण का अंकुरण:
परागण के द्वारा वर्तिकान पर आये हुए परागकण वर्तिकाग्र के तरल पदार्थ को अवशोषित कर फूल जाते हैं। उनका अन्त:कवच अंकुरण छिद्र (germ pore) से एक नलिका के रूप में बाहर निकलता है जिसे पराग नलिका (pollen tube) कहते हैं। इस समय परागकण का केन्द्रक, दो केन्द्रकों, वर्धी केन्द्रक तथा जनन केन्द्रक में विभाजित हो जाता है। वर्धी केन्द्रक नलिका में आ जाता है और नलिका केन्द्रक कहलाता है। जनन केन्द्रक दो बराबर भागों में विभाजित होकर दो अचल, नर युग्मक (male gametes) बनाता है, जो पराग नलिका में आ जाते हैं।

3. पराग नलिका का बढ़ना तथा भ्रूणकोष में पहुँचना:
पराग नलिका वर्तिकाग्र के ऊतक में होकर वर्तिका में पहुँचती है। यह दोनों नर युग्मकों तथा अपने सिरे पर उपस्थित नलिका केन्द्रक के साथ वर्तिका में नीचे की ओर बढ़ती ही रहती है। इस प्रकार पराग नलिका वर्तिका में से होती हई अण्डाशय में पहुँचती है और बीजाण्ड में प्रवेश कर नर युग्मकों को भ्रूणकोष (embryo sac) के जीवद्रव्य में मुक्त कर देती है [देखें चित्र (b)]
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4. निषेचन बीजाण्ड के भ्रूणकोष (embryo sac) में प्रवेश करने के बाद पराग नलिका का शीर्ष गल जाता है तथा इसमें उपस्थित नलिका केन्द्रक भी लुप्त हो जाता है। दोनों नर युग्मक अब भ्रूणकोष के जीवद्रव्य में मुक्त हो जाते हैं और इनमें से एक अण्ड-कोशिका में घुसकर उसके केन्द्रक के साथ संलयित (fuse) हो जाता है। इस प्रकार, मुख्य निषेचन क्रिया समाप्त हो जाती है। इसमें युग्मनज (zygote) का निर्माण होता है। यह युग्मनज आगे चलकर भ्रूण बनाता है।

दूसरा नर युग्मक, दोनों ध्रुवीय केन्द्रकों (या द्विगुणित केन्द्रक) के साथ संलयन करके एक त्रिगुणित केन्द्रक बनाता है जिसे प्राथमिक भ्रूणपोष केन्द्रक कहते हैं। इस क्रिया को त्रिक संलयन कहते हैं। प्राथमिक भ्रूणपोष केन्द्रक बार-बार विभाजित हो जाता है तथा इसके फलस्वरूप सभी केन्द्रकों के चारों ओर भित्तियाँ बन जाती हैं। इस प्रकार जो ऊतक बनता है उसे भ्रूणपोष कहते हैं। भ्रूणपोष में भोज्य-पदार्थ एकत्रित हो जाते हैं। यह भ्रूण के परिवर्धन के समय उसे पोषण प्रदान करता है। दोहरा निषेचन होने के कारण ही, आवृतबीजियों में यह क्रिया द्विनिषेचन (double fertilization) कहलाती है।

5. निषेचन के पश्चात् बीज का निर्माण:
निषेचन के पश्चात् बीजाण्ड के भीतर युग्मनज से भ्रूण का तथा त्रिगुणित केन्द्रक से भ्रूणपोष का निर्माण होता है। बीजाण्डों का आकार बढ़ जाता है। अध्यावरण सख्त होकर बीजावरण बनाते हैं। जिस स्थान पर बीजाण्ड बीजाण्डवृन्त से जुड़ता है, वहाँ एक चिह्न बन जाता है जो वृन्तक कहलाता है। भोज्य पदार्थ या तो बीजपत्र में, या भ्रूणपोष में एकत्र हो जाते हैं।

पानी की मात्रा धीरे-धीरे कम हो जाती है। कोमल बीजाण्ड अब कड़ी व शुष्क रचना में बदल जाता है। धीरे-धीरे बीजाण्ड के अन्दर की जैविक क्रियाएँ रुक जाती हैं तथा भ्रूण सुषुप्तावस्था में पहुँच जाता है। अत: बीजाण्ड बीजावरण से घिरे, भोजन संचित किये हुए तथा सुषुप्त भ्रूण को अपने अन्दर समेटे होते हैं, इस रचना को बीज कहते हैं।

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प्रश्न 3.
प्रजनन क्या है? नामांकित चित्र की सहायता से नर अथवा मादा मानव जनन तंत्र का वर्णन कीजिए। (2012, 14)
उत्तर:
जीवधारियों द्वारा लैंगिक क्रियाओं के फलस्वरूप अपने जैसी सन्तानों की उत्पत्ति करने की क्रिया को प्रजनन कहते हैं। पुरुष (नर ) जनन तन्त्र पुरुषों के जनन तन्त्र में एक जोड़ा वृषण (testes) तथा अन्य कई सहायक अंग होते हैं। ये निम्नलिखित हैं –

1. वृषण: (Testes) मनुष्य में लगभग 5 सेमी लम्बे तथा 2.5 सेमी मोटे, गुलाबी रंग के तथा अण्डाकार दो वृषण पाये जाते हैं। ये वृषण उदरगुहा के निकट दो छोटी-छोटी थैलियों जैसी रचनाओं, वृषण कोष (scrotal sacs) में स्थित होते हैं। वृषण कोष उदर गुहा से वंक्षण नाल (inguinal canal) द्वारा सम्बन्धित रहते हैं। वृषणों का उदरगुहा के बाहर वृषण कोषों में स्थित होने का यह लाभ है कि शुक्राणु उदरगुहा के अधिक ताप से बच जाते हैं तथा वृषण कोषों के कम ताप पर इनका परिपक्वन सहज हो जाता है।

प्रत्येक वृषण की संरचना एक पेशी से युक्त लचीले वृषण खोल (testicular capsule) के अन्दर संयोजी ऊतक से बने पिण्डकों से होती है। प्रत्येक पिण्डक में अत्यधिक कुण्डलित शुक्रजनन नलिकाएँ (seminiferous tubules) एक ढीले संयोजी ऊतक में निलम्बित होती हैं। इन नलिकाओं के अन्दर जनन एपिथीलियम कोशिकाओं से शुक्रजनन (spermatogenesis) के द्वारा शुक्राणुओं (sperms) का निर्माण होता है।

2. अधिवृषण या एपिडिडाइमिस: (Epididymis) प्रत्येक वृषण से चिपकी एक लम्बी, संकरी व चपटी संरचना होती है। यह लगभग 6 मीटर लम्बी व अत्यधिक कुण्डलित नली होती है जो वृषण की अपवाहक नलिकाओं के मिलने से बनती है। इसका निचला भाग लचीले तन्तुओं के बने गुबरनैकुलम (gubernaculum) नामक गुच्छे द्वारा वृषण कोष की पिछली भित्ति से जुड़ा रहता है। इसी प्रकार के लचीले तन्तु एपिडिडाइमिस के ऊपरी भाग को वंक्षण नाल में होकर उदरगुहा की पृष्ठ भित्ति से जोड़ते हैं। इन्हीं तन्तुओं के साथ वृषण से सम्बन्धित धमनी, शिरा, तन्त्रिका आदि भी वंक्षण नाल से होकर आती-जाती हैं। ये सभी संयोजी ऊतक के साथ मिलकर छड़ जैसे आकार का वृषण दण्ड (spermatic cord) बनाते हैं।

3. शुक्रवाहिनियाँ: (Vas deferens) अधिवृषण के निचले पश्च भाग से लगभग 45 सेमी लम्बी शुक्रवाहिनी (vas deferens) निकलती है। यह पहले वंक्षण नाल में होकर उदरगुहा में मूत्राशय के पृष्ठ तल पर स्थित अपनी ओर की मूत्रवाहिनी पर एक फन्दा (loop) बनाती है। बाद में यह नीचे मुड़कर पास में ही स्थित शुक्राशय की छोटी-सी नलिका से जुड़ जाती है।

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4. शुक्राशय: (Seminal vesicles) ये मूत्राशय के पीछे स्थित लगभग 5 सेमी लम्बी, वलित थैली के समान संरचनाएँ होती हैं। इनकी भित्तियाँ ग्रन्थिल होती हैं। इनमें एक हल्का पीला, क्षारीय, चिपचिपा तथा पोषक तरल स्रावित होता है। यही तरल वीर्य (semen) का अधिकांश (लगभग 60%) भाग बनाता है जिसमें शुक्राणु गति कर सकते हैं। शुक्राशय से निकलने वाली छोटी-सी नलिका शुक्रवाहिनी के साथ मिलकर स्खलन नलिका (ejaculatory duct) बनाती है जो मूत्रमार्ग (urethra) में खुलती है।
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5. शिश्न: (Penis) यह पेशीय मैथुनांग (copulatory organ) है। शिश्न की संरचना पेशियों एवं रुधिर कोटरों (blood sinuses) से होती है।

6. सहायक ग्रन्थियाँ: (Accessory glands) निम्नलिखित प्रमुख ग्रन्थियाँ जनन की किसी-न-किसी क्रिया में सहायता करने के लिए विशेष स्राव बनाती हैं।

(i) प्रोस्टेट ग्रन्थियाँ: (Prostate glands) एक जोड़ा, द्विपालित ग्रन्थियाँ मूत्राशय के मूत्रमार्ग में खुलने के स्थान से लगी रहती हैं। इससे विशेष गन्धयुक्त, पतला तथा दूधिया तरल स्रावित होता है। यह तरल वीर्य का लगभग 25% भाग बनाता है।

(ii) काउपर ग्रन्थियाँ: (Cowper’s glands) एक जोड़ा, फ्लास्क के आकार की ये ग्रन्थियाँ मूत्रमार्ग के शिश्न में प्रवेश के स्थान पर खुलती हैं। इनसे निकलने वाला स्राव श्लेष्मी तथा क्षारीय होता है। यह वीर्य के साथ मिलकर मार्ग को चिकना बनाता है तथा अम्लता को नष्ट करता है। वीर्य तथा उसके कार्य यह पुरुष के जननांगों के परिपक्वन के बाद बनने वाला एक सफेद तरल पदार्थ है।

इसी तरल पदार्थ में शुक्राणु, श्लेष्मक तथा नर जननांगों में उपस्थित सहायक ग्रन्थियों का स्राव होता है। यह शुक्राणुओं का पोषण करता है। यह एक तरल माध्यम का कार्य करता है जिससे शुक्राणु सुरक्षित स्थानान्तरित हो सकें। मनुष्य में शुक्राणु (Sperms in Man) शुक्राणु एक विशिष्ट, दीर्घित (elongated), पुच्छयुक्त कोशिका है जो पोषक तरल (वीर्य) में रहती है। यह नर युग्मक है। वीर्य में सहस्त्रों की संख्या में शुक्राणु होते हैं।

Bihar Board Class 10 Maths Solutions Chapter 3 दो चरों वाले रैखिक समीकरण युग्म Ex 3.3

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BSEB Bihar Board Class 10 Maths Solutions Chapter 3 दो चरों वाले रैखिक समीकरण युग्म Ex 3.3

Bihar Board Class 10 Maths दो चरों वाले रैखिक समीकरण युग्म Ex 3.3

प्रश्न 1.
निम्न रैखिक समीकरण युग्म को प्रतिस्थापन विधि से हल कीजिए-
(i) x + y = 14
x – y = 4
(ii) s – t = 3
\(\frac{s}{3}+\frac{t}{2}=6\)
(iii) 3x – y = 3
9x – 3 y = 9
(iv) 0.2x + 0.3y = 1.3
0.4x + 0.5y = 2.3
(v) √2x + √3y = 0
√3x – √8y = 0
(vi) \(\frac{3 x}{2}-\frac{5 y}{3}=-2\)
\(\frac{x}{3}+\frac{y}{2}=\frac{13}{6}\)
हल
(i) दिया गया रैखिक समीकरण युग्म
x + y = 14 …… (1)
x – y = 4 …….. (2)
समीकरण (1) से, x + y = 14
⇒ x = (14 – y) ….. (3)
समीकरण (3) से x का यह मान समीकरण (2) में रखने पर,
(14 – y) – y = 4
⇒ 14 – y – y = 4
⇒ -2y = 4 – 14
⇒ -2y = -10
⇒ y = 5
तब, समीकरण (1) में y = 5 रखने पर,
x + 5 = 14
⇒ x = 14 – 5 = 9
अतः दिए गए रैखिक समीकरण युग्म का हल x = 9 तथा y = 5

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(ii) दिया गया रैखिक समीकरण युग्म
s – t = 3 ……. (1)
\(\frac{s}{3}+\frac{t}{2}=6\) ……. (2)
समीकरण (1) से,
s – t = 3
⇒ s = 3 + t …… (3)
समीकरण (3) से s का यह मान समीकरण (2) में रखने पर,
Bihar Board Class 10 Maths Solutions Chapter 3 दो चरों वाले रैखिक समीकरण युग्म Ex 3.3 Q1
समीकरण (3) में t = 6 रखने पर,
s = 3 + 6 = 9
अत: दिए गए रैखिक समीकरण युग्म का हल : s = 9 तथा t = 6

(iii) दिया गया रैखिक समीकरण युग्म :
3x – y = 3 …….. (1)
9x – 3y = 9 ……… (2)
समीकरण (1) से, 3x – y = 3
⇒ 3x – 3 = y
⇒ y = 3x – 3
अब, समीकरण (2) में y = 3 x – 3 रखने पर,
9x – 3(3x – 3) = 9
⇒ 9x – 9x + 9 = 9
⇒ 9 = 9
जो कि एक सत्य कथन है। तब, चर x या y का कोई अद्वितीय मान नहीं होगा।
अत: रैखिक समीकरण युग्म के अपरिमित रूप से अनेक हल होंगे।

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(iv) दिया गया रैखिक समीकरण युग्म
0.2x + 0.3y = 1.3
0.4x + 0.5y = 2.3
रैखिक समीकरण युग्म के प्रत्येक में एक स्थान तक ही दशमलव अंक हैं। अत: दशमलव को हटा सकते हैं।
तब दिया समीकरण युग्म निम्न युग्म के तुल्य होगा
2x + 3y = 13 …… (1)
4x + 5y = 23 …….. (2)
समीकरण (1) से, 2x + 3y = 13
⇒ 2x = 13 – 3y
⇒ x = (\(\frac{13-3 y}{2}\)) ……(3)
x का यह मान समीकरण (2) में रखने पर,
4(\(\frac{13-3 y}{2}\)) + 5y = 23
⇒ 2(13 – 3y) + 5y = 23
⇒ 26 – 6y + 5y = 23
⇒ -6y + 5y = 23 – 26
⇒ -y = -3
⇒ y = 3
अब समीकरण (3) में y = 3 रखने पर,
Bihar Board Class 10 Maths Solutions Chapter 3 दो चरों वाले रैखिक समीकरण युग्म Ex 3.3 Q1.1
अतः दिए गए रैखिक समीकरण युग्म का हल x = 2 तथा y = 3

(v) दिया गया रैखिक समीकरण युग्म
√2x + √3y = 0 ……. (1)
√3x – √8y = 0 …… (2)
समीकरण (1) से, √2x + √3y = 0
⇒ √2x = 0 – √3y
⇒ √2x = -√3y
⇒ x = \(-\frac{\sqrt{3}}{\sqrt{2}} y\)
Bihar Board Class 10 Maths Solutions Chapter 3 दो चरों वाले रैखिक समीकरण युग्म Ex 3.3 Q1.2
अतः दिए गए रैखिक समीकरण युग्म का हल : x = 0 तथा y = 0

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(vi) दिया गया रैखिक समीकरण युग्म
Bihar Board Class 10 Maths Solutions Chapter 3 दो चरों वाले रैखिक समीकरण युग्म Ex 3.3 Q1.3
Bihar Board Class 10 Maths Solutions Chapter 3 दो चरों वाले रैखिक समीकरण युग्म Ex 3.3 Q1.4
अत: दिए गए रैखिक समीकरण युग्म का हल x = 2 तथा y = 3

प्रश्न 2.
2x + 3y = 11 और 2x – 4y = -24 को हल कीजिए और इससे ‘m’ का वह मान ज्ञात कीजिए जिसके लिए y = mx + 3 हो।
हल
दिया गया रैखिक समीकरण युग्म
2x + 3y = 11 …… (1)
2x – 4y = -24 …… (2)
समीकरण (2) से,
2x – 4y = -24
⇒ 2x = 4y – 24
⇒ x = \(\frac{4 y-24}{2}=\frac{2(2 y-12)}{2}\)
⇒ x = 2y – 12 …….. (3)
x का यह मान समीकरण (1) में रखने पर,
2(2y – 12) + 3y = 11
⇒ 4y – 24 + 3y = 11
⇒ 4y + 3y = 11 + 24
⇒ 7y = 35
⇒ y = 5
समीकरण (3) में y का मान रखने पर,
x = (2 × 5 – 12) = 10 – 12 = -2
अत: दिए गए रैखिक समीकरण युग्म का हल x = -2 तथा y = 5
अब, y = mx + 4 से m का मान ज्ञात करने के लिए, y = mx + 4 में x = -2 तथा y = 5 रखने पर,
5 = m(-2) + 4
⇒ 2m = 4 – 5 = -1
⇒ m = \(\frac{-1}{2}\)

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प्रश्न 3.
निम्न समस्याओं में रैखिक समीकरण युग्म बनाइए और उनके हल प्रतिस्थापन विधि द्वारा ज्ञात कीजिए-
(i) दो संख्याओं का अन्तर 26 है और एक संख्या दूसरी संख्या की तीन गुनी है। उन्हें ज्ञात कीजिए।
(ii) दो सम्पूरक कोणों में बड़ा कोण छोटे कोण से 18° अधिक है। उन्हें ज्ञात कीजिए।
(iii) एक क्रिकेट टीम के कोच ने 7 बल्ले तथा 6 गेंदें ₹ 3800 में खरीदीं। बाद में, उसने 3 बल्ले तथा 5 गेंदें ₹ 1750 में खरीदीं। प्रत्येक बल्ले और प्रत्येक गेंद का मूल्य ज्ञात कीजिए।
(iv) एक नगर में टैक्सी के भाड़े में एक नियत भाड़े के अतिरिक्त चली गई दूरी पर भाड़ा सम्मिलित किया जाता है। 10 km दूरी के लिए भाड़ा ₹105 है तथा 15 km के लिए भाड़ा ₹ 155 है। नियत भाड़ा तथा प्रति km भाड़ा क्या है? एक व्यक्ति को 25 km यात्रा करने के लिए कितना भाड़ा देना होगा?
(v) यदि किसी भिन्न के अंश और हर दोनों में 2 जोड़ दिया जाए, तो वह \(\frac{9}{11}\) हो जाती है। यदि अंश और हर दोनों में 3 जोड़ दिया जाए, तो वह \(\frac{5}{6}\) हो जाती है। वह भिन्न ज्ञात कीजिए।
(vi) पाँच वर्ष बाद जैकब की आयु उसके पुत्र की आयु से तीन गुनी हो जाएगी। पाँच वर्ष पूर्व जैकब की आयु उसके पुत्र की आयु की सात गुनी थी। उनकी वर्तमान आयु क्या हैं?
हल
(i) माना एक संख्या x तथा दूसरी संख्या y है।
एक संख्या दूसरी संख्या की तीन गुनी है।
एक संख्या = 3 × दूसरी संख्या
x = 3y ….(1)
यहाँ x, y से बड़ा है संख्याओं का अन्तर 26 है।
x – y = 26 ……… (2)
समीकरण (2) में x = 3y रखने पर,
3y – y = 26
⇒ 2y = 26
⇒ y = 13
समीकरण (1) में y = 13 रखने पर,
x = 3 × 13 = 39
⇒ x = 39
अत: अभीष्ट संख्याएँ = 39 व 13

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(ii) माना बड़ा कोण x° तथा छोटा कोण y° है।
कोण x° व y° सम्पूरक हैं अर्थात् इनका योग 180° है।
x + y = 180
बड़ा कोण छोटे कोण से 18° अधिक है।
x = y + 18
तब, रैखिक समीकरण युग्म
x + y = 180 ……(1)
x = y + 18 …… (2)
समीकरण (2) से x का मान समीकरण (1) में रखने पर,
(y + 18) + y = 180
⇒ 2y + 18 = 180
⇒ 2y = 180 – 18 = 162
⇒ y = 81
समीकरण (2) में y का मान रखने पर,
x = 81 + 18 = 99
अत: बड़ा कोण 99° तथा छोटा कोण 81 है।

(iii) माना एक बल्ले का मूल्य ₹ x तथा एक गेंद का मूल्य ₹ y है।
1 बल्ले का मूल्य ₹ x है
7 बल्लों का मूल्य = ₹ 7x
1 गेंद का मूल्य ₹ y है।
6 गेंदों का मूल्य = ₹ 6y
7 बल्लों और 6 गेंदों का मूल्य = ₹ (7x + 6y)
प्रश्नानुसार, इनका मूल्य ₹ 3800 है।
7x + 6y = 3800 ……(1)
1 बल्ले का मूल्य ₹ x है
3 बल्लों का मूल्य = ₹ 3x
1 गेंद का मूल्य ₹ y है।
5 गेंदों का मूल्य = ₹ 5y
3 बल्लों और 5 गेंदों का मूल्य = ₹ (3x + 5y)
प्रश्नानुसार इनका मूल्य ₹ 1750 है।
3x + 5y = 1750 ……. (2)
⇒ 5y = 1750 – 3x
⇒ y = \(\frac{1750-3 x}{5}\) ……(3)
y का यह मान समीकरण (1) में रखने पर,
Bihar Board Class 10 Maths Solutions Chapter 3 दो चरों वाले रैखिक समीकरण युग्म Ex 3.3 Q3
अत: एक बल्ले का मूल्य ₹ 500 तथा 1 गेंद का मूल्य ₹ 50 है।

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(iv) माना टैक्सी का नियत भाड़ा ₹ x है और प्रति किमी दूरी का भाड़ा ₹ y है।
तब, 10 किमी दूरी के लिए कुल भाड़ा = नियत भाड़ा + 10 किमी का भाड़ा
= x + 10 × y
= (x + 10y)
प्रश्नानुसार, यह भाड़ा ₹ 105 है
x + 10y = 105 …….. (1)
इसी प्रकार, 15 किमी दूरी के लिए कुल भाड़ा
= नियत भाड़ा + 15 किमी का भाड़ा
= ₹ x + ₹ 15y
= ₹(x + 15y)
प्रश्नानुसार यह भाड़ा ₹ 155 है।
x + 15y = 155 ……. (2)
समीकरण (1) से, x = 105 – 10y
x का यह मान समीकरण (2) में रखने पर,
105 – 10y + 15y = 155
⇒ -10 y + 15y = 155 – 105
⇒ 5y = 50
⇒ y = 10
तब, y का मान समीकरण (2) में रखने पर,
x + 15 × 10 = 155
⇒ x + 150 = 155
⇒ x = 155 – 150 = 5
अतः टैक्सी का नियत भाड़ा ₹ 5 है और प्रति किमी दूरी का भाड़ा ₹ 10 है
तथा 25 किमी यात्रा का भाड़ा = 5 नियत भाड़ा + (25 × 10) यात्रा भाड़ा
= ₹ (5 + 250)
= ₹ 255

(v) माना भिन्न का अंश x तथा हर y है।
भिन्न = \(\frac{x}{y}\)
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(vi) माना जैकब और उसके पुत्र की वर्तमान आयु क्रमश: x व y वर्ष है।
5 वर्ष बाद जैकब की आयु = (x + 5) वर्ष
तथा 5 वर्ष बाद पुत्र की आयु = (y + 5) वर्ष
प्रश्नानुसार, 5 वर्ष के बाद जैकब की आयु = 3 × उसके पुत्र की आयु
x + 5 = 3 × (y + 5)
⇒ x + 5 = 3y + 15
⇒ x = 3y + 15 – 5
⇒ x = 3y + 10 …….. (1)
5 वर्ष पूर्व जैकब की आयु = (x – 5) वर्ष
तथा 5 वर्ष पूर्व उसके पुत्र की आयु = (y – 5) वर्ष
प्रश्नानुसार, 5 वर्ष पहले जैकब की आयु = 7 × 5 वर्ष पहले उसके पुत्र की आयु
x – 5 = 7 × (y – 5)
⇒ x – 5 = 7y – 35
⇒ x – 7y = +5 – 35
⇒ x – 7y = -30 ….(2)
समीकरण (1) से x का मान समीकरण (2) में रखने पर,
(3y + 10) – 7y = -30
⇒ 3y + 10 – 7y = -30
⇒ 3y – 7y = -30 – 10
⇒ -4y = -40
⇒ y = 10
समीकरण (1) में y का मान रखने पर,
x = (3 × 10) + 10 = 30 + 10 = 40
दिए गए समीकरण युग्म का हल : x = 40, y = 10

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Bihar Board Class 10 Maths दो चरों वाले रैखिक समीकरण युग्म Ex 3.2

प्रश्न 1.
निम्न समस्याओं में रैखिक समीकरणों के युग्म बनाइए और उनके ग्राफीय विधि से हल ज्ञात कीजिए-
(i) कक्षा X के 10 विद्यार्थियों ने एक गणित की पहेली प्रतियोगिता में भाग लिया। यदि लड़कियों की संख्या लड़कों की संख्या से 4 अधिक हो तो प्रतियोगिता में भाग लिए लड़कों और लड़कियों की संख्या ज्ञात कीजिए।
(ii) 5 पेन्सिलों तथा 7 कलमों का कुल मूल्य ₹ 50 है, जबकि 7 पेन्सिलों तथा 5 कलमों का कुल मूल्य ₹ 46 है। एक पेन्सिल का मूल्य तथा एक कलम का मूल्य ज्ञात कीजिए।
हल
(i) माना लड़कियों की संख्या x तथा लड़कों की संख्या y है।
कुल संख्या = (x + y)
परन्तु प्रश्नानुसार कुल विद्यार्थियों की संख्या 10 है।
x + y = 10
लड़कियों की संख्या x, लड़कों की संख्या y से 4 अधिक है।
x = y + 4 ⇒ x – y = 4
अतः दिए गए कथनों का बीजगणितीय रूप समीकरण युग्म
x + y = 10 …….. (1)
x – y = 4 …….. (2)
ज्यामितीय निरूपण:
क्रिया-विधि :
1. दिए हुए समीकरण युग्म का पहला समीकरण x + y = 10
2. माना x = 3, तब x का मान समीकरण x + y = 10 में रखने पर,
3 + y = 10 ⇒ y = 10 – 3 ⇒ y = 7
3. तब समीकरण x + y = 10 के आलेख पर एक बिन्दु A = (3, 7) है।
4. पुन: माना x = 8, तब x का मान समीकरण x + y = 10 में रखने पर,
8 + y = 10 ⇒ y = 10 – 8 ⇒ y = 2
5. तब समीकरण x + y = 10 के आलेख पर एक बिन्दु B = (8, 2) है।
6. ग्राफ पेपर पर बिन्दुओं A (3, 7) तथा B(8, 2) को आलेखित (plotting) कीजिए और दिए गए समीकरण का आलेख AB खींचिए।
7. दिए हुए समीकरण युग्म का दूसरा समीकरण x – y = 4
8. माना x = 2, तब x का मान समीकरण x – y = 4 में रखने पर,
2 – y = 4 ⇒ -y = 4 – 2 ⇒ y = -2
9. तब समीकरण x – y = 4 के आलेख पर एक बिन्दु C = (2, -2) है।
10. पुनः माना x = 4, तब x का मान समीकरण x – y = 4 में रखने पर,
4 – y = 4 ⇒ -y = 4 – 4 ⇒ -y = 0 ⇒ y = 0
11. तब समीकरण x – y = 4 के आलेख पर एक बिन्दु D = (4, 0) है।
12. ग्राफ पेपर पर बिन्दु C = (2, -2) तथा D = (4, 0) को आलेखित कर दिए हुए समीकरण का आलेख CD खींचिए।
13. ऋजु रेखाओं AB तथा CD का प्रतिच्छेद बिन्दु P (h, K) ज्ञात कीजिए। बिन्दु P के निर्देशांक P(7, 3) आलेख से ज्ञात कीजिए।
14. दिए हुए समीकरण-युग्म का एक अद्वितीय सार्व हल x = 7, y = 3 है।
अत: लड़कियों की संख्या = 7 तथा लड़कों की संख्या = 3
Bihar Board Class 10 Maths Solutions Chapter 3 दो चरों वाले रैखिक समीकरण युग्म Ex 3.2 Q1

(ii) मान लीजिए कि एक पेन्सिल का मूल्य ₹ x है तथा 1 कलम का मूल्य ₹ y है।
5 पेन्सिलों और 7 कलमों का मूल्य = ₹ 50
5x + 7y = 50
इसी प्रकार, 7 पेन्सिलों और 5 कलमों का मूल्य = ₹ 46
7x + 5y = 46
अत: दिए गए कथनों का बीजगणितीय रूप समीकरण युग्म
5x + 7y = 50 ….. (1)
7x + 5y = 46 …… (2)
ज्यामितीय निरूपण :
क्रिया-विधि :
1. दिए हुए समीकरण युग्म का पहला समीकरण 5x + 7y = 50
2. माना x = 10, तब x का मान समीकरण 5x + 7y = 50 में रखने पर,
5 × 10 + 7y = 50
⇒ 50 + 7y = 50
⇒ 7y = 50 – 50
⇒ 7y = 0
⇒ y = 0
3. तब समीकरण 5x + 7y = 50 के आलेख पर एक बिन्दु A = (10, 0) है।
4. पुन: माना x = -4, तब x का मान समीकरण 5x + 7y = 50 में रखने पर,
(5 × -4) + 7y = 50
⇒ -20 + 7y = 50
⇒ 7y = 50 + 20
⇒ 7y = 70
⇒ y = 10
5. तब समीकरण 5x + 7y = 50 के आलेख पर एक बिन्दु B = (-4, 10) है।
6. ग्राफ पेपर पर बिन्दुओं A = (10, 0) तथा B = (-4, 10) को आलेखित (plotting) कीजिए और दिए गए समीकरण का आलेख AB खींचिए।
7. दिए हुए समीकरण युग्म का दूसरा समीकरण 7x + 5y = 46
8. माना x = 8, तब x का मान समीकरण 7x + 5y = 46 में रखने पर,
7 × 8 + 5y = 46
⇒ 56 + 5y = 46
⇒ 5y = -10
⇒ y = -2
9. तब समीकरण 7x + 5y = 46 के आलेख पर एक बिन्दु C = (8, -2) है।
10. पुनः माना x = -2, तब x का मान समीकरण 7x + 5y = 46 में रखने पर,
(7 × -2) + 5y = 46
⇒ -14 + 5y = 46
⇒ 5y = 46 + 14
⇒ 5y = 60
⇒ y = 12
11. तब समीकरण 7x + 5y = 46 के आलेख पर एक बिन्दु D = (-2, 12) है।
12. ग्राफ पेपर पर बिन्दु C = (8, -2) तथा D = (-2, 12) को आलेखित कर दिए हुए समीकरण का आलेख CD खींचिए।
13. ऋजु रेखाओं AB तथा CD का प्रतिच्छेद बिन्दु P (h, k) ज्ञात कीजिए। बिन्दु P के निर्देशांक आलेख से ज्ञात कीजिए। P(3, 5)
Bihar Board Class 10 Maths Solutions Chapter 3 दो चरों वाले रैखिक समीकरण युग्म Ex 3.2 Q1.1
14. दिए हुए समीकरण युग्म का एक अद्वितीय सार्व हल x = 3, y = 5 है।
अतः एक पेन्सिल का मूल्य ₹ 3 और एक कलम का मूल्य ₹ 5 है।

Bihar Board Class 10 Maths Solutions Chapter 3 दो चरों वाले रैखिक समीकरण युग्म Ex 3.2

प्रश्न 2.
अनुपातों \(\frac{a_{1}}{a_{2}}\), \(\frac{b_{1}}{b_{2}}\) और \(\frac{c_{1}}{c_{2}}\) की तुलना कर ज्ञात कीजिए कि निम्न समीकरण युग्म द्वारा निरूपित रेखाएँ एक बिन्दु पर प्रतिच्छेद करती हैं, समान्तर अथवा सम्पाती है।
(i) 5x – 4y + 8 = 0
7x + 6y – 9 = 0
(ii) 9x + 3y + 12 = 0
18x + 6y + 24 = 0
(iii) 6x – 3y + 10 = 0
2x – y + 9 = 0
हल
(i) दिया गया रैखिक समीकरण युग्म
5x – 4y + 8 = 0 ……..(1)
7x + 6y – 9 = 0 ……..(2)
उक्त समीकरण युग्म की तुलना व्यापक रैखिक समीकरण युग्म a1x + b1y + c1 = 0 तथा a2x + b2y + c2 = 0 से करने पर,
Bihar Board Class 10 Maths Solutions Chapter 3 दो चरों वाले रैखिक समीकरण युग्म Ex 3.2 Q2
\(\frac{a_{1}}{a_{2}} \neq \frac{b_{1}}{b_{2}}\); अत: समीकरण युग्म द्वारा निरूपित रेखाएँ एक बिन्दु पर प्रतिच्छेद करती हैं।

(ii) दिया गया रैखिक समीकरण युग्म
9x + 3y + 12 = 0 ……(1)
18x + 6y + 24 = 0 ……(2)
उक्त समीकरण युग्म की तुलना व्यापक रैखिक समीकरण युग्म a1x + b1y + c1 = 0 तथा a2x + b2y + c2 = 0 से करने पर,
Bihar Board Class 10 Maths Solutions Chapter 3 दो चरों वाले रैखिक समीकरण युग्म Ex 3.2 Q2.1
\(\frac{a_{1}}{a_{2}}=\frac{b_{1}}{b_{2}}=\frac{c_{1}}{c_{2}}\); अत: समीकरण युग्म द्वारा निरूपित रेखाएँ सम्पाती हैं।

(iii) दिया गया रैखिक समीकरण युग्म
6x – 3y + 10 = 0 ……(1)
2x – y + 9 = 0 …….(2)
उक्त समीकरण युग्म की तुलना व्यापक रैखिक समीकरण युग्म a1x + b1y + c1 = 0 तथा a2x + b2y + c2 = 0 से करने पर,
Bihar Board Class 10 Maths Solutions Chapter 3 दो चरों वाले रैखिक समीकरण युग्म Ex 3.2 Q2.2
अत: समीकरण युग्म द्वारा निरूपित ऋजु रेखाएँ समान्तर हैं।

Bihar Board Class 10 Maths Solutions Chapter 3 दो चरों वाले रैखिक समीकरण युग्म Ex 3.2

प्रश्न 3.
अनुपातों \(\frac{a_{1}}{a_{2}}\), \(\frac{b_{1}}{b_{2}}\) और \(\frac{c_{1}}{c_{2}}\) की तुलना कर ज्ञात कीजिए कि निम्न रैखिक समीकरणों के युग्म संगत हैं या असंगत-
(i) 3x + 2y = 5; 2x – 3y = 7
(ii) 2x – 3y = 8; 4x – 6y = 9
(iii) \(\frac{3}{2}\)x + \(\frac{5}{3}\)y = 7; 9x – 10y = 14
(iv) 5x – 3y = 11; -10x + 6y = -22
(v) \(\frac{4}{3}\) x + 2y = 8; 2x + 3y = 12
हल
(i) दिया गया समीकरण युग्म
3x + 2y = 5 या 3x + 2y – 5 = 0 ……(1)
2x – 3y = 7 या 2x – 3y – 7 = 0 ……(2)
समीकरण युग्म की तुलना रैखिक समीकरण युग्म a1x + b1y + c1 = 0 तथा a2x + b2y + c2 = 0 से करने पर,
Bihar Board Class 10 Maths Solutions Chapter 3 दो चरों वाले रैखिक समीकरण युग्म Ex 3.2 Q3
\(\frac{a_{1}}{a_{2}} \neq \frac{b_{1}}{b_{2}}\); रैखिक समीकरण युग्म का एक अद्वितीय हल है
अत: दिया हुआ रैखिक समीकरणों का युग्म संगत है।

(ii) दिया गया समीकरण युग्म
2x – 3y = 8 या 2x – 3y – 8 = 0 ……. (1)
4x – 6y = 9 या 4x – 6y – 9 = 0 …….. (2)
समीकरण युग्म की तुलना रैखिक समीकरण युग्म a1x + b1y + c1 = 0 तथा a2x + b2y + c2 = 0 से करने पर,
Bihar Board Class 10 Maths Solutions Chapter 3 दो चरों वाले रैखिक समीकरण युग्म Ex 3.2 Q3.1
\(\frac{a_{1}}{a_{2}}=\frac{b_{1}}{b_{2}} \neq \frac{c_{1}}{c_{2}}\); दिए गए समीकरण युग्म का कोई हल नहीं है।
अत: दिया गया रैखिक समीकरणों का युग्म असंगत है।

(iii) दिया गया समीकरण युग्म
\(\frac{3}{2} x+\frac{5}{3} y=7 \quad \Rightarrow \quad \frac{3}{2} x+\frac{5}{3} y-7=0\) …… (1)
9x – 10y = 14 ⇒ 9x – 10y – 14 = 0 ……..(2)
समीकरण युग्म की तुलना रैखिक समीकरण युग्म a1x + b1y + c1 = 0 तथा a2x + b2y + c2 = 0 से करने पर,
a1 = \(\frac{3}{2}\), b1 = \(\frac{5}{3}\), c1 = -7
a2 = 9, b2 = -10, c2 = -14
Bihar Board Class 10 Maths Solutions Chapter 3 दो चरों वाले रैखिक समीकरण युग्म Ex 3.2 Q3.2
\(\frac{a_{1}}{a_{2}} \neq \frac{b_{1}}{b_{2}}\); समीकरण युग्म का एक अद्वितीय हल है।
अत: दिया गया रैखिक समीकरणों का युग्म संगत है।

(iv) दिया गया समीकरण युग्म
5x – 3y = 11 ⇒ 5x – 3y – 11 = 0 ……(1)
-10x + 6y = -22 ⇒ -10x + 6y + 22 = 0 …..(2)
समीकरण युग्म की तुलना रैखिक समीकरण युग्म a1x + b1y + c1 = 0 तथा a2x + b2y + c2 = 0 से करने पर,
Bihar Board Class 10 Maths Solutions Chapter 3 दो चरों वाले रैखिक समीकरण युग्म Ex 3.2 Q3.3
समीकरण युग्म सम्पाती रेखाएँ निरूपित करेगा और समीकरण युग्म के अपरिमित रूप से अनेक हल होंगे।
अतः दिया गया समीकरणों का युग्म संगत है।

(v) दिया हुआ समीकरण युग्म :
\(\frac{4}{3}\) x + 2y = 8 ⇒ \(\frac{4}{3}\)x + 2y – 8 = 0 ……. (1)
2x + 3y = 12 ⇒ 2x + 3y – 12 = 0 …(2)
समीकरण युग्म की तुलना रैखिक समीकरण युग्म a1x + b1y + c1 = 0 तथा a2x + b2y + c2 = 0 से करने पर,
Bihar Board Class 10 Maths Solutions Chapter 3 दो चरों वाले रैखिक समीकरण युग्म Ex 3.2 Q3.4
अत: दिया गया समीकरणों का युग्म संगत है।

Bihar Board Class 10 Maths Solutions Chapter 3 दो चरों वाले रैखिक समीकरण युग्म Ex 3.2

प्रश्न 4.
निम्न रैखिक समीकरणों के युग्मों में से कौन-से युग्म संगत/असंगत हैं, यदि संगत हैं तो ग्राफीय विधि से हल ज्ञात कीजिए।
(i) x + y = 5, 2x + 2y = 10
(ii) x – y = 8, 3x – 3y = 16
(iii) 2x + y – 6 = 0, 4x – 2y – 4 = 0
(iv) 2x – 2y – 2 = 0, 4x – 4y – 5 = 0
हल
(i) दिया गया रैखिक समीकरण युग्म
x + y = 5 ⇒ x + y – 5 = 0 ……. (1)
2x + 2y = 10 ⇒ 2x + 2y – 10 = 0 ……(2)
उक्त समीकरण युग्म की तुलना रैखिक समीकरण युग्म a1x + b1y + c1 = 0 तथा a2x + b2y + c2 = 0 से करने पर,
Bihar Board Class 10 Maths Solutions Chapter 3 दो चरों वाले रैखिक समीकरण युग्म Ex 3.2 Q4
अतः समीकरण युग्म संगत है।
समीकरण युग्म द्वारा निरूपित रेखाएँ सम्पाती होंगी क्योंकि दोनों समीकरण एक ही हैं।
अतः रेखा x + y = 5 या x = 5 – y समीकरण युग्म का हल है
जबकि y का मान एक वास्तविक संख्या है।
Bihar Board Class 10 Maths Solutions Chapter 3 दो चरों वाले रैखिक समीकरण युग्म Ex 3.2 Q4.1

(ii) दिया गया रैखिक समीकरण युग्म
x – y = 8 ⇒ x – y – 8 = 0 …(1)
3x – 3y = 16 ⇒ 3x – 3y – 16 = 0 …… (2)
समीकरण युग्म की तुलना रैखिक समीकरण युग्म a1x + b1y + c1 = 0 तथा a2x + b2y + c2 = 0 से करने पर,
a1 = 1, b1 = -1, c1 = -8
a2 = 3, b2 = -3, c2 = -16
Bihar Board Class 10 Maths Solutions Chapter 3 दो चरों वाले रैखिक समीकरण युग्म Ex 3.2 Q4.2
अतः दिया गया समीकरण युग्म असंगत है।

(iii) दिया गया रैखिक समीकरण युग्म
2x + y – 6 = 0 ….(1)
4x – 2y – 4 = 0 …..(2)
उक्त समीकरण युग्म की तुलना रैखिक समीकरण युग्म a1x + b1y + c1 = 0 तथा a2x + b2y + c2 = 0 से करने पर,
Bihar Board Class 10 Maths Solutions Chapter 3 दो चरों वाले रैखिक समीकरण युग्म Ex 3.2 Q4.3
अत: समीकरण युग्म संगत है और उसका एक अद्वितीय हल होगा।
क्रिया-विधि :
1. दिए हुए समीकरण युग्म का पहला समीकरण 2x + y – 6 = 0
2. माना x = 3, तब x का मान समीकरण 2x + y – 6 = 0 में रखने पर,
2 × 3 + y – 6 = 0
⇒ 6 + y – 6 = 0
⇒ y = 0
3. तब समीकरण 2x + y – 6 = 0 के आलेख पर एक बिन्दु A = (3, 0) है।
4. पुन: माना x = 0, तब x का मान समीकरण 2x + y – 6 = 0 में रखने पर,
2 × 0 + y – 6 = 0
⇒ 0 + y – 6 = 0
⇒ y = 6
5. तब समीकरण 2x + y – 6 = 0 के आलेख पर एक बिन्दु B = (0, 6) है।
6. ग्राफ पेपर पर बिन्दुओं A = (3, 0) तथा B = (0, 6) को आलेखित (plotting) कीजिए और दिए गए समीकरण का आलेख AB खींचिए।
7. दिए हुए समीकरण युग्म का दूसरा समीकरण 4x – 2y – 4 = 0
8. माना x = 1, तब x का मान समीकरण 4x – 2y – 4 = 0 में रखने पर,
4 × 1 – 2y – 4 = 0
⇒ 4 – 2y – 4 = 0
⇒ 0 – 2y = 0
⇒ y = 0
9. तब समीकरण 4x – 2y – 4 = 0 के आलेख पर एक बिन्दु C = (1, 0) है।
10. पुन: माना x = 0, तब x का मान समीकरण 4x – 2y – 4 = 0 में रखने पर,
4 × 0 – 2y – 4 = 0
⇒ 0 – 2y – 4 = 0
⇒ -2y = 4
⇒ y = -2
11. तब समीकरण 4x – 2y – 4 = 0 के आलेख पर एक बिन्दु D = (0, -2) है।
12. ग्राफ पेपर पर बिन्दु C = (1, 0) तथा D = (0, -2) को आलेखित कर दिए हुए समीकरण का आलेख CD खींचिए।
Bihar Board Class 10 Maths Solutions Chapter 3 दो चरों वाले रैखिक समीकरण युग्म Ex 3.2 Q4.4
13. ऋजु रेखाओं AB तथा CD का प्रतिच्छेद बिन्दु P(h, k) ज्ञात कीजिए। बिन्दु P के निर्देशांक P (2, 2) आलेख से ज्ञात कीजिए।
14. दिए हुए समीकरण-युग्म का एक अद्वितीय सार्व हल x = 2, y = 2 है।

(iv) दिया गया रैखिक समीकरण युग्म
2x – 2y – 2 = 0 …… (1)
4x – 4y – 5 = 0 ……(2)
समीकरण युग्म की तुलना रैखिक समीकरण युग्म a1x + b1y + c1 = 0 तथा a2x + b2y + c2 = 0 से करने पर,
Bihar Board Class 10 Maths Solutions Chapter 3 दो चरों वाले रैखिक समीकरण युग्म Ex 3.2 Q4.5
अत: दिया गया समीकरणों का युग्म असंगत है।

Bihar Board Class 10 Maths Solutions Chapter 3 दो चरों वाले रैखिक समीकरण युग्म Ex 3.2

प्रश्न 5.
एक आयताकार बाग, जिसकी लम्बाई, चौड़ाई से 4 मीटर अधिक है, का अर्द्धपरिमाप 36 मीटर है। बाग की विमाएँ ज्ञात कीजिए।
हल
माना आयताकार बाग की लम्बाई x मीटर तथा चौड़ाई y मीटर है।
प्रश्नानुसार, लम्बाई x, चौड़ाई y से 4 मीटर अधिक है।
x = y + 4 ⇒ x – y = 4
आयताकार बाग की परिमाप = 2(लम्बाई + चौड़ाई) = 2(x + y) मीटर
आयताकार बाग की अर्द्धपरिमाप = \(\frac {1}{2}\) × परिमाप
= \(\frac {1}{2}\) × 2(x + y)
= (x + y) मीटर
दिया है कि अर्द्धपरिमाप 36 मीटर है।
x + y = 36
अतः रैखिक समीकरण युग्म
x – y = 4 …….. (1)
x + y = 36 ……(2)
ज्यामितीय निरूपण :
क्रिया-विधि :
1. दिए हुए समीकरण युग्म का पहला समीकरण : x – y = 4
2. माना x = 0, तब x का मान समीकरण x – y = 4 में रखने पर,
0 – y = 4 ⇒ y = -4
3. तब समीकरण x – y = 4 के आलेख पर एक बिन्दु A = (0, -4) है।
4. पुनः माना x = 4, तब x का मान समीकरण x – y = 4 में रखने पर,
4 – y = 4
⇒ -y = 4 – 4
⇒ -y = 0
⇒ y = 0
5. तब समीकरण x – y = 4 के आलेख पर एक बिन्दु B = (4, 0) है।
6. ग्राफ पेपर पर बिन्दुओं A (0, -4) तथा B (4, 0) को आलेखित (plotting) कीजिए और दिए गए समीकरण का आलेख AB खींचिए।
7. दिए हुए समीकरण युग्म का दूसरा समीकरण x + y = 36
8. माना x = 10, तब x का मान समीकरण x + y = 36 में रखने पर,
10 + y = 36
⇒ y = 36 – 10
⇒ y = 26
9. तब समीकरण x + y = 36 के आलेख पर एक बिन्दु C = (10, 26) है।
10. पुनः माना x = 30, तब x का मान समीकरण x + y = 36 में रखने पर,
30 + y = 36
⇒ y = 36 – 30
⇒ y = 6
11. तब समीकरण x + y = 36 के आलेख पर एक बिन्दु D = (30, 6) है।
12. ग्राफ पेपर पर बिन्दु C = (10, 26) तथा D = (30, 6) को आलेखित कर दिए हुए समीकरण का आलेख CD खींचिए।
13. ऋजु रेखाओं AB तथा CD का प्रतिच्छेद बिन्दु P (h, k) ज्ञात कीजिए। बिन्दु P के निर्देशांक आलेख. से ज्ञात कीजिए। P(20, 16)
14. दिए हुए समीकरण युग्म का एक अद्वितीय सार्व हल x = 20, y = 16 है।
अत: आयताकार बाग की लम्बाई 20 मीटर तथा चौड़ाई 16 मीटर है।
Bihar Board Class 10 Maths Solutions Chapter 3 दो चरों वाले रैखिक समीकरण युग्म Ex 3.2 Q5

Bihar Board Class 10 Maths Solutions Chapter 3 दो चरों वाले रैखिक समीकरण युग्म Ex 3.2

प्रश्न 6.
एक रैखिक समीकरण 2x + 3y – 8 = 0 दी गई है। दो चरों में एक ऐसी और रैखिक समीकरण लिखिए ताकि प्राप्त युग्म का ज्यामितीय निरूपण जैसा कि
(i) प्रतिच्छेद करती रेखाएँ हों।
(ii) समान्तर रेखाएँ हों।
(iii) सम्पाती रेखाएँ हों।
हल
दिए गए रैखिक समीकरण 2x + 3y – 8 = 0 की तुलना समीकरण युग्म a1x + b1y + c1 = 0 से करने पर,
तब, a1 = 2, b1 = 3, c1 = -8
माना अभीष्ट रैखिक समीकरण a2x + b2y + c2 = 0 है।
(i) जब समीकरण युग्म, प्रतिच्छेद करती हुई रेखाएँ निरूपित करता है तो
\(\frac{a_{1}}{a_{2}} \neq \frac{b_{1}}{b_{2}} \quad \Rightarrow \quad \frac{2}{a_{2}} \neq \frac{3}{b_{2}}\)
अर्थात् a2, दो अथवा शून्य नहीं होना चाहिए और b2, तीन अथवा शून्य नहीं होना चाहिए।
तब, अभीष्ट रेखा a2x + b2y + c2 = 0
जबकि a2 ≠ 2 तथा b2 ≠ 3 और (a1 ≠ 0, b1 ≠ 0) और a2, b2, c2 वास्तविक संख्याएँ हैं।

(ii) जब समीकरण युग्म समान्तर रेखाएँ निरूपित करता है तो
Bihar Board Class 10 Maths Solutions Chapter 3 दो चरों वाले रैखिक समीकरण युग्म Ex 3.2 Q6
Bihar Board Class 10 Maths Solutions Chapter 3 दो चरों वाले रैखिक समीकरण युग्म Ex 3.2 Q6.1
अत: अभीष्ट समीकरण 2kx + 3ky – nk = 0 जबकि n ≠ -8 जहाँ k एक आनुपातिक स्थिरांक है।

(iii) जब समीकरण युग्म सम्पाती रेखाएँ निरूपित करता है तो
Bihar Board Class 10 Maths Solutions Chapter 3 दो चरों वाले रैखिक समीकरण युग्म Ex 3.2 Q6.2
⇒ a2 = 2k, b2 = 3k और c2 = -8k
अतः अभीष्ट समीकरण 2kx + 3ky – 8k = 0 जहाँ k एक आनुपातिक स्थिरांक है।

Bihar Board Class 10 Maths Solutions Chapter 3 दो चरों वाले रैखिक समीकरण युग्म Ex 3.2

प्रश्न 7.
समीकरणों x – y + 1 = 0 और 3x + 2y – 12 = 0 का ग्राफ खींचिए। X-अक्ष और इन रेखाओं से बने त्रिभुज के शीर्षों के निर्देशांक ज्ञात कीजिए और त्रिभुजाकार पटल को छायांकित कीजिए।
हल
दिया गया रैखिक समीकरण युग्म
x – y + 1 = 0 ……. (1)
3x + 2y – 12 = 0 …….. (2)
समीकरण x – y + 1 = 0 के आलेख के लिए
1. माना x = 0, तब x का मान समीकरण x – y + 1 = 0 में रखने पर,
0 – y + 1 = 0 ⇒ y = 1
2. तब समीकरण x – y + 1 = 0 के आलेख पर एक बिन्दु A = (0, 1) है।
3. पुन: माना x = 4, तब x का मान समीकरण x – y + 1 = 0 में रखने पर,
4 – y + 1 = 0
⇒ 5 – y = 0
⇒ y = 5
4. तब समीकरण x – y + 1 = 0 के आलेख पर एक बिन्दु B = (4, 5) है।
5. ग्राफ पेपर पर बिन्दुओं A (0, 1) तथा B(4, 5) को आलेखित (plotting) कीजिए और दिए गए समीकरण का आलेख AB खींचिए।

Bihar Board Class 10 Maths Solutions Chapter 3 दो चरों वाले रैखिक समीकरण युग्म Ex 3.2

समीकरण 3x + 2y – 12 = 0 के आलेख के लिए
1. माना x = 0, तब x का मान समीकरण 3x + 2y – 12 = 0 में रखने पर,
3 × 0 + 2y – 12 = 0
⇒ 0 + 2y – 12 = 0
⇒ 2y – 12 = 0
⇒ 2y = 12
⇒ y = 6
2. तब समीकरण 3x + 2y – 12 = 0 के आलेख पर एक बिन्दु C = (0, 6) है।
3. पुनः माना x = 6, तब x का मान समीकरण 3x + 2y – 12 = 0 में रखने पर,
3 × 6 + 2y – 12 = 0
⇒ 18 + 2y – 12 = 0
⇒ 6 + 2y = 0
⇒ 2y = -6
⇒ y = -3
4. तब समीकरण 3x + 2y – 12 = 0 के आलेख पर एक बिन्दु D = (6, -3) है।
5. ग्राफ पेपर पर बिन्दु C = (0, 6) तथा D = (6, -3) को आलेखित कर दिए हुए समीकरण का आलेख CD खींचिए।
ऋजु रेखाओं AB तथा CD का प्रतिच्छेद बिन्दु P (h, k) ज्ञात कीजिए। बिन्दु P के निर्देशांक आलेख से ज्ञात कीजिए। P (2, 3)
X-अक्ष से रेखा x – y + 1 = 0 का प्रतिच्छेद बिन्दु Q = (-1, 0)
X-अक्ष से रेखा 3x + 2y – 12 = 0 का प्रतिच्छेद बिन्दु R = (4, 0)
(ग्राफ से पढ़कर)
Bihar Board Class 10 Maths Solutions Chapter 3 दो चरों वाले रैखिक समीकरण युग्म Ex 3.2 Q7
दी गई रेखाओं के समीकरणों और X-अक्ष के प्रतिच्छेदन से ∆PQR बनता है।
∆PQR के निर्देशांक क्रमशः P = (2, 3), Q = (-1, 0) तथा R = (4, 0) हैं।

Bihar Board Class 10 Maths Solutions Chapter 3 दो चरों वाले रैखिक समीकरण युग्म Ex 3.4

Bihar Board Class 10 Maths Solutions Chapter 3 दो चरों वाले रैखिक समीकरण युग्म Ex 3.4 Text Book Questions and Answers.

BSEB Bihar Board Class 10 Maths Solutions Chapter 3 दो चरों वाले रैखिक समीकरण युग्म Ex 3.4

Bihar Board Class 10 Maths दो चरों वाले रैखिक समीकरण युग्म Ex 3.4

प्रश्न 1.
निम्न समीकरणों के युग्म को विलोपन विधि तथा प्रतिस्थापन विधि से हल कीजिए। कौन-सी विधि अधिक उपयुक्त है?
(i) x + y = 5 और 2x – 3y = 4
(ii) 3x + 4y = 10 और 2x – 2y = 2
(iii) 3x – 5y – 4 = 0 और 9x = 2y + 7
(iv) \(\frac{x}{2}+\frac{2 y}{3}=-1\) और x – \(\frac {y}{3}\) = 3
हल
(i) दिया गया रैखिक समीकरण युग्म
x + y = 5 ……. (1)
2x – 3y = 4 …….. (2)
विलोपन विधि : समीकरण (1) को 2 से गुणा करने पर,
2x + 2y = 10 ……. (3)
समीकरण (3) में से समीकरण (2) को घटाने पर,
(2x + 2y) – (2x – 3y) = 10 – 4
2x + 2y – 2x + 3y = 6
5y = 6
y = \(\frac{6}{5}\)
अब, समीकरण (1) में y = \(\frac{6}{5}\) रखने पर,
x + \(\frac{6}{5}\) = 5
x = \(5-\frac{6}{5}=\frac{25-6}{5}=\frac{19}{5}\)
अत: समीकरण युग्म का हल x = \(\frac{19}{5}\), y = \(\frac{6}{5}\)
प्रतिस्थापन विधि : समीकरण (1) से,
x + y = 5
⇒ y = (5 – x) …….(4)
y का यह मान समीकरण (2) में रखने पर,
2x – 3(5 – x) = 4
⇒ 2x – 15 + 3x = 4
⇒ 5x = 4 + 15
⇒ 5x = 19
⇒ x = \(\frac{19}{5}\)
समीकरण (1) में x = \(\frac{19}{5}\) रखने पर,
y = 5 – \(\frac{19}{5}\)
⇒ y = \(\frac{6}{5}\)
अत: रैखिक समीकरण युग्म का हल x = \(\frac{19}{5}\), y = \(\frac{6}{5}\)
इस प्रश्न को हल करने के लिए विलोपन विधि अधिक उपयुक्त है।

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(ii) दिया गया रैखिक समीकरण युग्म
3x + 4y = 10 ……. (1)
2x – 2y = 2 ……. (2)
विलोपन विधि : समीकरण (1) में 2 से गुणा करने पर,
6x + 8y = 20 …….. (3)
समीकरण (2) में 3 से गुणा करने पर,
6x – 6y = 6 ……… (4)
समीकरण (3) में से समीकरण (4) को घटाने पर,
(6x + 8y) – (6x – 6y) = 20 – 6
⇒ 6x + 8y – 6x + 6y = 14
⇒ 14y = 14
⇒ y = 1
समीकरण (1) में y = 1 रखने पर,
3x + 4(1) = 10
⇒ 3x = 10 – 4 = 6
⇒ x = 2
अत: रैखिक समीकरण युग्म का हल x = 2 तथा y = 1
प्रतिस्थापन विधि : समीकरण (2) से,
2x – 2y = 2
⇒ 2x = 2 + 2y
⇒ x = 1 + y
x = 1 + y समीकरण (1) में रखने पर,
3(1 + y) + 4y = 10
3 + 3y + 4y = 10
⇒ 3 + 7y = 10
⇒ 7y = 10 – 3
⇒ 7y = 7
⇒ y = 1
समीकरण (5) में y = 1 रखने पर,
x = 1 + 1 = 2
अत: रैखिक समीकरण युग्म का हल x = 2 तथा y = 1
इस प्रश्न को हल करने के लिए विलोपन विधि अधिक उपयुक्त है।

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(iii) दिया गया रैखिक समीकरण युग्म
3x – 5y – 4 = 0 ⇒ 3x – 5y = 4 ……. (1)
9x = 2y + 7 ⇒ 9x – 2y = 7 ……. (2)
विलोपन विधि : समीकरण (1) को 3 से गुणा करने पर,
9x – 15y = 12 ……… (3)
समीकरण (3) में से समीकरण (2) को घटाने पर,
(9x – 15y) – (9x – 2y) = 12 – 7
⇒ 9x – 15y – 9x + 2y = 5
⇒ -13y = 5
⇒ y = \(-\frac{5}{13}\)
Bihar Board Class 10 Maths Solutions Chapter 3 दो चरों वाले रैखिक समीकरण युग्म Ex 3.4 Q1
अत: रैखिक समीकरण युग्म का हल x = \(\frac{9}{13}\) तथा y = \(-\frac{5}{13}\)
इस प्रश्न को हल करने के लिए विलोपन विधि अधिक उपयुक्त है।

(iv) दिया हुआ समीकरण युग्म \(\frac{x}{2}+\frac{2 y}{3}=-1\) और \(x-\frac{y}{3}=3\)
Bihar Board Class 10 Maths Solutions Chapter 3 दो चरों वाले रैखिक समीकरण युग्म Ex 3.4 Q1.1
विलोपन विधि : समीकरण (1) में से समीकरण (2) को घटाने पर,
(3x + 4y) – (3x – y) = -6 – 9
⇒ 3x + 4y – 3x + y = -15
⇒ 5y = -15
⇒ y = -3
समीकरण (1) में y = -3 रखने पर,
3x + 4 × (-3) = -6
⇒ 3x – 12 = -6
⇒ 3x = -6 + 12 = 6
⇒ x = 2
अत: रैखिक समीकरण युग्म का हल x = 2 तथा y = -3
प्रतिस्थापन विधि : समीकरण (2) से,
3x – y = 9
⇒ y = 3x – 9
समीकरण (1) में y = 3x – 9 रखने पर,
3x + 4(3x – 9) = -6
⇒ 3x + 12x – 36 = -6
⇒ 15x – 36 = -6
⇒ 15x = -6 + 36 = 30
⇒ x = 2
समीकरण (2) में x = 2 रखने पर,
y = 3 × 2 – 9
⇒ y = 6 – 9
⇒ y = -3
अत: रैखिक समीकरण युग्म का हल x = 2 तथा y = -3
इस प्रश्न को हल करने के लिए विलोपन विधि अधिक उपयुक्त है।

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प्रश्न 2.
निम्न समस्याओं में रैखिक समीकरणों के युग्म बनाइए और उनके हल (यदि उनका अस्तित्व हो) विलोपन विधि से ज्ञात कीजिए-
(i) यदि हम अंश में 1जोड़ दें तथा हर में से 1घटा दें, तो भिन्न 1 में बदल जाती है। यदि हर में 1 जोड़ दें, तो यह \(\frac{1}{2}\) हो जाती है। वह भिन्न क्या है?
(ii) पाँच वर्ष पूर्व नूरी की आयु सोनू की आयु की तीन गुनी थी। दस वर्ष पश्चात्, नूरी की आयु सोनू की आयु की दो गुनी हो जाएगी। नूरी और सोनू की आयु कितनी है?
(iii) दो अंकों की संख्या के अंकों का योग 9 है। इस संख्या का नौ गुना, संख्या के अंकों को पलटने से बनी संख्या का दो गुना है। वह संख्या ज्ञात कीजिए।
(iv) मीना ₹ 2000 निकालने के लिए एक बैंक गई। उसने खजाँची से ₹ 50 तथा ₹ 100 के नोट देने के लिए कहा। मीना ने कुल 25 नोट प्राप्त किए। ज्ञात कीजिए कि उसने ₹ 50 और ₹ 100 के कितने-कितने नोट प्राप्त किए?
(v) किराए पर पुस्तकें देने वाले किसी पुस्तकालय का प्रथम तीन दिनों का एक नियत किराया है तथा उसके बाद प्रत्येक अतिरिक्त दिन का अलग किराया है। सरिता ने सात दिनों तक एक पुस्तक रखने के लिए ₹ 27 अदा किए, जबकि सूसी ने एक पुस्तक पाँच दिनों तक रखने के ₹ 21 अदा किए। नियत किराया तथा प्रत्येक अतिरिक्त दिन का किराया ज्ञात कीजिए।
हल
(i) माना भिन्न का अंश x तथा हर y है, तब भिन्न = \(\frac{x}{y}\)
यदि भिन्न के अंश में 1 जोड़ा जाए और हर में से 1 घटाया जाए, तो वह हो \(\frac{x+1}{y-1}\) जाएगी, परन्तु प्रश्नानुसार वह 1 हो जाएगी।
\(\frac{x+1}{y-1}\) = 1
⇒ x + 1 = y – 1
⇒ x = y – 1 – 1
⇒ x = y – 2 …….. (1)
यदि भिन्न के हर में एक जोड़ा जाए, तो वह \(\frac{x}{y+1}\) हो जाएगी, परन्तु प्रश्नानुसार \(\frac{1}{2}\) हो जाएगी।
\(\frac{x}{y+1}=\frac{1}{2}\)
⇒ 2x = y + 1 …….. (2)
समीकरण (1) को 2 से गुणा करके उसमें से समीकरण (2) को घटाने पर,
2(y – 2) – (y + 1) = 0
⇒ 2y – 4 – y – 1 = 0
⇒ 2y – y = +4 + 1
⇒ y = 5
तब, समीकरण (1) से,
x = y – 2 में y = 5 रखने पर,
⇒ x = 5 – 2 = 3
अतः भिन्न \(\left(\frac{x}{y}\right)=\frac{3}{5}\)

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(ii) माना नूरी की वर्तमान आयु x वर्ष तथा सोनू की वर्तमान आयु y वर्ष है।
5 वर्ष पहले नूरी की आयु = (x – 5) वर्ष
5 वर्ष पहले सोनू की आयु = (y – 5) वर्ष
प्रश्नानुसार,
नूरी की आयु = 3 × सोनू की आयु
x – 5 = 3(y – 5)
⇒ x – 5 = 3y – 15
⇒ x = 3y – 15 + 5
⇒ x = 3y – 10 …….. (1)
10 वर्ष पश्चात् नूरी की आयु = (x + 10) वर्ष
10 वर्ष पश्चात् सोनू की आयु = (y + 10) वर्ष
प्रश्नानुसार,
नूरी की आयु = 2 × सोनू की आयु
⇒ x + 10 = 2(y + 10)
⇒ x + 10 = 2y + 20
⇒ x = 2y + 20 – 10
⇒ x = 2y + 10 ….. (2)
समीकरण (1) व समीकरण (2) से,
3y – 10 = 2y + 10
⇒ 3y – 2y = 10 + 10
⇒ y = 20
समीकरण (2) में y = 20 रखने पर,
x = (2 × 20) + 10 = 40 + 10 = 50
अत: नूरी की आयु = 50 वर्ष तथा सोनू की आयु = 20 वर्ष।

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(iii) माना संख्या का इकाई का अंक x तथा दहाई का अंक y है।
संख्या = 10y + x
संख्या के अंकों का योग = 9
इकाई का अंक + दहाई का अंक = 9
x + y = 9
मूल संख्या 10y + x है, तब अंकों के पलटने पर प्राप्त संख्या = 10x + y
प्रश्नानुसार,
संख्या का 9 गुना = अंकों के पलटने से प्राप्त संख्या का दो गुना
(10y + x) × 9 = (10x + y) × 2
⇒ 9x + 90y = 20x + 2y
⇒ 90y – 2y = 20x – 9x
⇒ 88y = 11x
⇒ 8y = x (दोनों पक्षों में सार्व 11 का भाग देने पर)
⇒ x = 8y ……. (2)
समीकरण (2) से x का मान समीकरण (1) में रखने पर,
8y + y = 9 या 9y = 9 या y = 1
तब, समीकरण (2) में, y = 1 रखने पर,
x = 8 × y = 8 × 1 = 8
संख्या 10y + x = (10 × 1) + 8 = 10 + 8 = 18
अतः संख्या = 18

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(iv) माना ₹ 50 मूल्य वाले नोटों की संख्या : तथा ₹ 100 मूल्य वाले नोटों की संख्या y थी।
कुल नोटों की संख्या = (x + y)
परन्तु प्रश्नानुसार नोटों की कुल संख्या 25 थी।
x + y = 25 …….. (1)
₹ 50 वाले x नोट थे, उनका मूल्य = ₹ 50x
₹ 100 वाले के नोट थे, उनका मूल्य = ₹ 100y
कुल नोटों का मूल्य = (50x + 100y) = ₹ 50(x + 2y)
प्रश्नानुसार, मीना ने केवल ₹ 2000 बैंक से निकाले।
50(x + 2y) = 2000
⇒ x + 2y = 40 …….. (2)
समीकरण (2) में से समीकरण (1) को घटाने पर,
(x + 2y) – (x + y) = 40 – 25
⇒ x + 2y – x – y = 15
⇒ y = 15
समीकरण (1) में y = 15 रखने पर,
x + 15 = 25
⇒ x = 10
अतः मीना ने ₹ 50 मूल्य वाले 10 नोट तथा ₹ 100 मूल्य वाले 15 नोट प्राप्त किए।

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(v) माना प्रथम तीन दिनों तक के लिए पुस्तकालय का नियत किराया ₹ x है तथा उसके बाद प्रत्येक अतिरिक्त दिन का किराया ₹ y है।
7 दिनों में एक पुस्तक का किराया = प्रथम 3 दिन का नियत किराया + 4 अतिरिक्त दिन का किराया
= ₹ x + ₹ 4 × y
= ₹(x + 4y)
परन्तु सरिता ने 7 दिन का किराया ₹ 27 अदा किया।
x + 4y = 27 …….(1)
5 दिनों में एक पुस्तक का किराया = प्रथम 3 दिन का नियत किराया + 2 अतिरिक्त दिन का किराया
= ₹ x + ₹ 2y
= ₹(x + 2y)
परन्तु सूसी ने 5 दिन का किराया ₹ 21 अदा किया।
x + 2y = 21 ……… (2)
समीकरण (1) में से समीकरण (2) को घटाने पर,
(x + 4y) – (x + 2y) = 27 – 21
⇒ x + 4y – x – 2y = 6
⇒ 2y = 6
⇒ y = 3
समीकरण (2) में y = 3 रखने पर,
x + (2 × 3) = 21
⇒ x + 6 = 21
⇒ x = 21 – 6 = 15
अतः पुस्तकालय की किसी पुस्तक का प्रथम 3 दिन तक का नियत किराया ₹ 15 है तथा उसके बाद प्रत्येक अतिरिक्त दिन का किराया ₹3 है।

Bihar Board Class 10 Science Solutions Chapter 7 नियंत्रण एवं समन्वय

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Bihar Board Class 10 Science Solutions Chapter 7 नियंत्रण एवं समन्वय Textbook Questions and Answers, Additional Important Questions, Notes.

Bihar Board Class 10 Science नियंत्रण एवं समन्वय InText Questions and Answers

अनुच्छेद 7.1 पर आधारित

प्रश्न 1.
प्रतिवर्ती क्रिया तथा टहलने के बीच क्या अंतर है?
उत्तर:
प्रतिवर्ती क्रिया बिना हमारे सोचे-समझे बड़ी तीव्रता से स्वयं होने वाली क्रिया है जबकि टहलना एक ऐच्छिक क्रिया है।

प्रश्न 2.
दो तंत्रिका कोशिकाओं (न्यूरॉन) के मध्य अंतर्ग्रथन (सिनेप्स) में क्या होता है?
उत्तर:
दो तंत्रिका कोशिकाओं के मध्य अंतर्ग्रथन में विद्युत संकेतों द्वारा कुछ रसायन छोड़े जाते हैं।

प्रश्न 3.
मस्तिष्क का कौन-सा भाग शरीर की स्थिति तथा संतुलन का अनुरक्षण करता है? (2011)
उत्तर:
मस्तिष्क का अनुमस्तिष्क भाग शरीर की स्थिति तथा सन्तुलन का अनुरक्षण करता है।

प्रश्न 4.
हम एक अगरबत्ती की गंध का पता कैसे लगाते हैं?
उत्तर:
हम एक अगरबत्ती की गंध का पता पश्चमस्तिष्क द्वारा नियन्त्रित ज्ञानेन्द्रियों पर स्थित गंधीय संवेदांगों द्वारा लगाते हैं।

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प्रश्न 5.
प्रतिवर्ती क्रिया में मस्तिष्क की क्या भूमिका है?
उत्तर:
प्रतिवर्ती क्रिया किसी क्रिया के विपरीत त्वरित गति से स्वयं होने वाली क्रिया है। इसमें हमें कुछ सोचने-समझने की आवश्यकता नहीं पड़ती है। प्रतिवर्ती क्रिया में मस्तिष्क की कोई प्रत्यक्ष भूमिका नहीं होती है। ये क्रियाएँ मेरुरज्जु द्वारा नियंत्रित होती हैं तथा इसके पश्चात सूचनाएँ मस्तिष्क को भेजी जाती हैं।

अनुच्छेद 7.2 पर आधारित

प्रश्न 1.
पादप हॉर्मोन क्या हैं?
उत्तर:
बहुत-से रसायन पौधों की वृद्धि में सहायता प्रदान करते हैं, ये रसायन ही हॉर्मोन कहलाते हैं। इन्हें फाइटोहॉर्मोन भी कहते हैं। उदाहरणार्थ: ऑक्सिन, जिबरेलिन, साइटोकाइनिन आदि।

प्रश्न 2.
छुई-मुई पादप की पत्तियों की गति, प्रकाश की ओर प्ररोह की गति से किस प्रकार भिन्न है?
उत्तर:
छुई-मुई पादप की पत्तियों की गति दिशिक नहीं होती है अर्थात यह किसी भी दिशा में हो सकती है जबकि प्रकाश की ओर प्ररोह की गति प्रकाशानुवर्ती होती है अर्थात् यह प्रकाश स्रोत की दिशा की ओर होती है।

प्रश्न 3.
एक पादप हॉर्मोन का उदाहरण दीजिए जो वृद्धि को बढ़ाता है।
उत्तर:
ऑक्सिन हॉर्मोन पादपों की वृद्धि को बढ़ाता है।

प्रश्न 4.
किसी सहारे के चारों ओर एक प्रतान की वृद्धि में ऑक्सिन किस प्रकार सहायक है?
उत्तर:
प्रतान छूने के प्रति संवेदी होते हैं अर्थात् जब ये सहारे से छूते हैं तो ऑक्सिन हॉर्मोन इन्हें सहारे से दूर दूसरी दिशा में वृद्धि करने को प्रेरित करता है। इस प्रकार प्रतान का यह भाग तेजी से वृद्धि करता है और सहारे के चारों ओर गोलाकार में वृद्धि करते हुए ऊपर चढ़ता जाता है।

प्रश्न 5.
जलानुवर्तन दर्शाने के लिए एक प्रयोग की अभिकल्पना कीजिए।
उत्तर:
जलानुवर्तन दर्शाने के लिए प्रयोग के प्रमुख चरण निम्नवत् हैं –

  • एक बीकर में थोड़ी-सी मृदा डालिए।
  • इस मृदा को एक प्लास्टिक शीट का प्रयोग करते हुए बीच में से दो भागों में बाँट दीजिए।
  • आधे भाग की मृदा में जल डालिए।
  • अब मृदा में कुछ बीज डाल दीजिए।
  • कुछ दिन बाद पौधे निकलने प्रारम्भ हो जाएँगे। नम मृदा र हम देखते हैं कि इन पौधों की जड़ें नम मृदा कि सूखी मृदा की ओर।Bihar Board Class 10 Science Solutions Chapter 7 नियंत्रण एवं समन्वय

अनुच्छेद 7.3 पर आधारित

प्रश्न 1.
जंतुओं में रासायनिक समन्वय कैसे होता है?
उत्तर:
जंतुओं में रासायनिक समन्वय अन्तःस्रावी ग्रंथियों द्वारा स्रावित हॉर्मोनों के द्वारा होता है।

प्रश्न 2.
आयोडीन युक्त नमक के उपयोग की सलाह क्यों दी जाती है?
उत्तर:
आयोडीन युक्त नमक के उपयोग की सलाह इसलिए दी जाती है क्योंकि इसमें आयोडीन होता है जो थायरॉइड ग्रंथि द्वारा थायरॉक्सिन हॉर्मोन का निर्माण करने के लिए आवश्यक होता है। थायरॉक्सिन हॉर्मोन कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन तथा वसा का उपापचयन करता है। इसकी कमी से घेघा रोग हो जाता है।

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प्रश्न 3.
जब एडीनलीन रुधिर में स्रावित होता है तो हमारे शरीर में क्या अनुक्रिया होती है?
उत्तर:
जब एड्रीनलीन रुधिर में स्रावित होता है तो हमारा हृदय मांसपेशियों को अधिक O2 की पूर्ति करने हेत तेजी से धडकने लगता है। पाचन तंत्र तथा त्वचा को जाने वाले रुधिर की मात्रा कम हो जाती है और श्वसन दर बढ़ जाती है। ये सभी अनुक्रियाएँ एकसाथ मिलकर जंतु शरीर को स्थिति से निपटने के लिए तैयार करती हैं।

प्रश्न 4.
मधुमेह के कुछ रोगियों की चिकित्सा इंसुलिन का इंजेक्शन देकर क्यों की जाती है?
उत्तर:
मधुमेह के कुछ रोगियों की चिकित्सा इंसुलिन का इंजेक्शन देकर इसलिए की जाती है क्योंकि यह एक प्रमुख हॉर्मोन है जिसका निर्माण अग्न्याशय में होता है। यह हॉर्मोन रुधिर में शर्करा के स्तर को नियंत्रित करने में सहायता करता है। यदि इंसुलिन का स्रावण हमारे शरीर में उचित मात्रा में नहीं होगा तो हमारे रुधिर में शर्करा का स्तर बढ़ जाएगा जिसके कारण अनेक रोग जन्म ले लेंगे।

Bihar Board Class 10 Science नियंत्रण एवं समन्वय Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
निम्नलिखित में से कौन-सा पादप हॉर्मोन है?
(a) इंसुलिन
(b) थायरॉक्सिन
(c) एस्ट्रोजन
(d) साइटोकाइनिन
उत्तर:
(d) साइटोकाइनिन

प्रश्न 2.
दो तंत्रिका कोशिका के मध्य खाली स्थान को कहते हैं –
(a) द्रुमिका
(b) सिनेप्स
(c) एक्सॉन
(d) आवेग
उत्तर:
(b) सिनेप्स

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प्रश्न 3.
मस्तिष्क उत्तरदायी है –
(a) सोचने के लिए
(b) हृदय स्पंदन के लिए
(c) शरीर का संतुलन बनाने के लिए
(d) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(d) उपरोक्त सभी

प्रश्न 4.
हमारे शरीर में ग्राही का क्या कार्य है? ऐसी स्थिति पर विचार कीजिए जहाँ ग्राही उचित प्रकार से कार्य नहीं कर रहे हों। क्या समस्याएँ उत्पन्न हो सकती हैं?
उत्तर:
हमारे शरीर में उपस्थित ग्राही वातावरण से सूचनाओं को एकत्रित करते हैं तथा तंत्रिका कोशिका के शीर्ष पर पहुँचाते हैं, जहाँ से इन्हें पहचाना जाता है। ये ग्राही हमारी ज्ञानेन्द्रियों में उपस्थित होते हैं। यदि हम अपना भोजन करते समय अपनी नाक को बंद कर देते हैं तो हम भोजन के स्वाद की पहचान नहीं कर पाएंगे। इस प्रकार यदि हमारे शरीर में उपस्थित ग्राही या ज्ञानेन्द्री अपना कार्य सुचारु रूप से नहीं करेंगे तो हम अपने वातावरण की घटनाओं का ज्ञान नहीं वृक्षिकान्त कर पाएँगे।
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प्रश्न 5.
एक तंत्रिका कोशिका (न्यूरॉन) की वृक्षिका- – संरचना बनाइए तथा इसके कार्यों का तन्त्रिकाक्ष – वर्णन कीजिए।(2011, 12, 13, 14, 17)
उत्तर:
कार्य कोई भी सूचना तंत्रिका कोशिका के मायलिन आच्छदद्रुमाकृतिक सिरे द्वारा उपार्जित की जाती है और एक रासायनिक क्रिया द्वारा यह एक विद्युत आवेग पैदा करती है। यह आवेग द्रुमिका से कोशिकाकाय तक जाता है और तब तंत्रिकाक्ष (एक्सॉन) में होता हुआ इसके अन्तिम सिरे तक पहुँच जाता है। एक्सॉन के अंत में विद्युत आवेग कुछ रसायनों का विमोचन करता है। ये रसायन रिक्त स्थान या सिनेप्स (सिनेप्टिक दरार) को पार करते हैं तथा अगली तंत्रिका कोशिका की दुमिका में इसी तरह का विद्यत आवेग प्रारंभ करते हैं। यही हमारे शरीर में तंत्रिका आवेग युग्मानुबन्ध की मात्रा की सामान्य योजना है जो तंत्रिका कोशिका का वृक्षिकान्त प्रमुख कार्य है।

प्रश्न 6.
पादप में प्रकाशानुवर्तन किस प्रकार होता है?
उत्तर:
प्रकाशानुवर्तन पादपों द्वारा प्रकाश के प्रति की जाने वाली अनुक्रिया है। यदि किसी विशेष दिशा से आता हुआ प्रकाश किसी पादप पर पड़ता है तो पादप का प्ररोह प्रकाश स्रोत की ओर तथा जड़ें प्रकाश स्रोत की विपरीत दिशा में मुड जाती हैं। इसलिए प्ररोह को हम धनात्मक प्रकाशानुवर्ती तथा जड़ को ऋणात्मक प्रकाशानुवर्ती कहते हैं।

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प्रश्न 7.
मेरुरज्जु आघात में किन संकेतों के आने में व्यवधान होगा?
उत्तर:
मेरुरज्जु आघात में प्रतिवर्ती क्रिया अथवा मस्तिष्क तक आने वाली सूचनाओं का आवागमन बाधित हो जाएगा।

प्रश्न 8.
पादप में रासायनिक समन्वय किस प्रकार होता है?
उत्तर:
पादपों में जंतुओं के समान तंत्रिका तंत्र नहीं होता है तथापि वे बाह्य उद्दीपनों के प्रति अनुक्रिया तथा वृद्धि; जैसे – मुड़ना, घूमना, चक्राकार होना आदि दर्शाते हैं। उनकी वृद्धि तथा विकास बाह्य कारकों एवं उनके द्वारा निर्मित कुछ विशेष रसायनों, जिन्हें पादप हॉर्मोन कहते हैं, के द्वारा नियन्त्रित होती है। ये ही पादप हॉर्मोन पादपों की कोशिकाओं एवं ऊतकों में समन्वय स्थापित करते हैं।

प्रश्न 9.
एक जीव में नियंत्रण एवं समन्वय के तंत्र की क्या आवश्यकता है?
उत्तर:
एक जीव में नियंत्रण एवं समन्वय के तंत्र की आवश्यकता निम्नलिखित कारणों से है –

  • बाह्य उद्दीपनों के प्रति अनुक्रिया हेतु
  • जीव की उचित वृद्धि एवं विकास हेतु
  • जीवित रहने हेतु
  • तंत्रिका तंत्र में संचार हेतु
  • जीव और वातावरण के मध्य अन्तक्रिया हेतु।

प्रश्न 10.
अनैच्छिक क्रियाएँ तथा प्रतिवर्ती क्रियाएँ एक-दूसरे से किस प्रकार भिन्न हैं?
उत्तर:
प्रतिवर्ती क्रियाएँ तीव्र गति से स्वयं होने वाली अनुक्रियाएँ हैं जो विशेष स्थिति में होती हैं जबकि अनैच्छिक क्रियाएँ बिना हमारी इच्छा या सोच के परन्तु लगातार होने वाली क्रियाएँ हैं। उदाहरणार्थ: हृदय स्पंदन, रुधिर प्रवाह आदि अनैच्छिक क्रियाएँ हैं जबकि जल जाने पर हाथ का स्वयं पीछे हटना प्रतिवर्ती क्रिया है।

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प्रश्न 11.
जंतुओं में नियंत्रण एवं समन्वय के लिए तंत्रिका तथा हॉर्मोन क्रियाविधि की तुलना तथा व्यतिरेक (contrast) कीजिए।
उत्तर:
सभी जंतुओं में नियंत्रण एवं समन्वय के लिए तंत्रिका तथा हॉर्मोन क्रियाविधि पायी जाती हैं। ये क्रियाविधियाँ केवल नियंत्रण एवं समन्वय का ही कार्य नहीं करतीं बल्कि बाह्य उद्दीपनों के प्रति अनुक्रिया भी करती हैं। तंत्रिका तंत्र द्वारा कार्य बड़ी तीव्रता के साथ किया जाता है परन्तु हॉर्मोनल क्रियाविधि में कार्य धीमी गति से होता है। उपर्युक्त दोनों क्रियाविधियों के कार्यों में निम्नलिखित समानताएँ हैं –

  • ये दोनों ही शरीर के विभिन्न कार्यों के नियंत्रण एवं समन्वय में सहायक हैं।
  • ये दोनों ही शरीर तथा बाह्य वातावरण से संबंध स्थापित करती हैं।

प्रश्न 12.
छुई-मुई पादप में गति तथा हमारी टाँग में होने वाली गति के तरीके में क्या अंतर है?
उत्तर:
छुई-मुई पादप में गति अदैशिक तथा छुने से होती है जबकि हमारी टाँग में होने वाली गति ऐच्छिक होती है।

Bihar Board Class 10 Science नियंत्रण एवं समन्वय Additional Important Question and Answers

बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
तन्त्रिका तन्त्र का कार्य होता है –
(a) संवेदना ग्रहण करना
(b) उत्तेजनशीलता
(c) एन्जाइम का संवहन
(d) आपातकालीन स्थिति में शरीर को तैयार करना
उत्तर:
(a) संवेदना ग्रहण करना

प्रश्न 2.
मेरुरज्जु से निकलने वाली मेरु तन्त्रिकाओं की संख्या होती है – (2017)
(a) 15 जोड़े
(b) 31 जोड़े
(c) 21 जोड़े
(d) अनिश्चित
उत्तर:
(b) 31 जोड़े

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प्रश्न 3.
यदि एक मनुष्य में प्रतिवर्ती क्रियाएँ नहीं हो रही हैं, उसके तन्त्रिका तन्त्र का कौन-सा भाग क्षतिग्रस्त हुआ है? (2012)
(a) प्रमस्तिष्क
(b) अनुमस्तिष्क
(c) मेरुरज्जु
(d) मेड्यूला ऑब्लांगेटा
उत्तर:
(c) मेरुरज्जु

प्रश्न 4.
प्रतिवर्ती चाप बनता है –
(a) संवेदांग-रीढ़रज्जु-पेशी
(b) संवेदांग-मस्तिष्क-पेशी
(c) पेशी-मस्तिष्क-संवेदांग
(d) पेशी-रीढ़रज्जु-संवेदांग
उत्तर:
(a) संवेदांग-रीढ़रज्जु-पेशी

प्रश्न 5.
प्रतिवर्ती क्रिया का उचित उदाहरण है –
(a) सामान्य सांस लेना
(b) पुस्तक पढ़ना
(c) स्कूटर चलाना
(d) यकायक नेत्र के सामने तेज रोशनी फेंकने पर नेत्र झपकाना
उत्तर:
(d) यकायक नेत्र के सामने तेज रोशनी फेंकने पर नेत्र झपकाना

प्रश्न 6.
सामान्य मनुष्य में मस्तिष्क का भार होता है – (2013)
(a) 1000-1100 ग्राम
(b) 1300-1400 ग्राम
(c) 900-1000 ग्राम
(d) 1600-1800 ग्राम
उत्तर:
(b) 1300-1400 ग्राम

प्रश्न 7.
मनुष्य के मस्तिष्क का कौन-सा भाग सर्वाधिक विकसित है ? (2011, 15)
(a) सेरीब्रम
(b) सेरीबेलम
(c) डायएनसिफेलॉन
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(a) सेरीब्रम

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प्रश्न 8.
मनुष्य में मस्तिष्क का कौन-सा भाग ताप नियन्त्रित रखता है ? (2012)
(a) पिट्यूटरी
(b) हाइपोथैलेमस
(c) डायएनसिफेलॉन
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(b) हाइपोथैलेमस

प्रश्न 9.
मेड्यूला ऑब्लांगेटा नियन्त्रण करता है – (2014)
(a) ऐच्छिक क्रियाएँ
(b) अनैच्छिक क्रियाएँ
(c) प्रतिवर्ती क्रियाएँ
(d) सभी दैहिक क्रियाएँ
उत्तर:
(b) अनैच्छिक क्रियाएँ

प्रश्न 10.
हॉर्मोन क्या है? (2014)
(a) प्रोटीन
(b) एमीनो एसिड
(c) साधारण कार्बोनेट
(d) जटिल कार्बोनेट
उत्तर:
(a) प्रोटीन

प्रश्न 11.
कौन-सा पादप हॉर्मोन कोशिका विभाजन में सहायक है? (2012)
(a) साइटोकाइनिन
(b) ऑक्सिन
(c) एब्सिसिक एसिड
(d) एथिलीन
उत्तर:
(a) साइटोकाइनिन

प्रश्न 12.
ऑक्सिन की सबसे अधिक सान्द्रता पायी जाती है –
(a) विभिन्न पादप अंगों के आधार में
(b) पौधों के वृद्धि शीर्ष में
(c) पत्तियों में
(d) केवल जाइलम तथा फ्लोएम कोशिकाओं में
उत्तर:
(b) पौधों के वृद्धि शीर्ष में

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प्रश्न 13.
उस हॉर्मोन का नाम लिखिए जिसका उपयोग बिना निषेचन के बीज रहित फल प्राप्त करने में किया जाता है – (2012, 13)
या बीजरहित फलन को प्रोत्साहित करने वाला पादप हॉर्मोन है – (2017)
(a) एथिलीन
(b) जिबरेलिन्स
(c) ऑक्सिन्स
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(b) जिबरेलिन्स

प्रश्न 14.
पतझड़ से सम्बन्धित हॉर्मोन होता है – (2015)
(a) ऑक्सिन
(b) जिबरेलिन
(c) एब्सिसिक अम्ल
(d) एथिलीन
उत्तर:
(c) एब्सिसिक अम्ल

प्रश्न 15.
निम्नलिखित में कौन पादप हॉर्मोन है? (2015)
(a) फीरोमोन
(b) जिबरेलिन
(c) हिपैरिन
(d) इन्सुलिन
उत्तर:
(b) जिबरेलिन

प्रश्न 16.
पुरुष के वृषण द्वारा स्रावित हॉर्मोन्स का नाम है – (2011)
(a) एड्रीनेलीन
(b) इन्सुलिन
(c) टेस्टोस्टीरॉन तथा एन्डोस्टीरॉन
(d) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(c) टेस्टोस्टीरॉन तथा एन्डोस्टीरॉन

प्रश्न 17.
नर जनन अंगों से सम्बन्धित ग्रन्थि है. – (2013, 14)
या केवल नर में पायी जाने वाली ग्रन्थि है –
(a) ऐपिडिडाइमिस
(b) अधिवृक्क ग्रन्थि
(c) प्रोस्टेट ग्रन्थि
(d) अग्न्याशय
उत्तर:
(c) प्रोस्टेट ग्रन्थि

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प्रश्न 18.
मादा लिंग हॉर्मोन कहलाता है – (2013, 14, 17, 18)
(a) एण्ड्रोजेन
(b) इन्सुलिन
(c) एस्ट्रोजेन
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(c) एस्ट्रोजेन

प्रश्न 19.
ऑक्सीटोसिन का स्रावण कहाँ से होता है? (2015)
(a) थाइरॉइड
(b) थाइमस
(c) पिट्यूटरी
(d) एड्रिनल
उत्तर:
(c) पिट्यूटरी

प्रश्न 20.
किस हॉर्मोन की कमी से मधुमेह रोग हो जाता है ? (2011, 12)
(a) इन्सुलिन
(b) गैस्ट्रिन
(c) रिलैक्सिन
(d) एस्ट्रोजन
उत्तर:
(a) इन्सुलिन

प्रश्न 21.
थाइरॉक्सीन हॉर्मोन की कमी से होता है (2017)
(a) पेंघा रोग
(b) रतौंधी रोग
(c) स्कर्वी रोग
(d) बेरी-बेरी रोग
उत्तर:
(a) घेघा रोग।

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प्रश्न 22.
कैल्सियम तथा फॉस्फोरस के उपापचय के नियन्त्रण हेतु हॉर्मोन स्रावित होता है (2016)
(a) पैराथाइरॉइड
(b) थाइरॉइड
(c) पिट्यूटरी
(d) अग्न्याशय
उत्तर:
(a) पैराथाइरॉइड

प्रश्न 23.
पिट्यूटरी ग्रन्थि की पश्चपाली से निकलने वाला हॉर्मोन है –
(a) प्रोलैक्टिन
(b) सोमेटोट्रॉपिन
(c) वैसोप्रेसिन
(d) एडरीनो कॉर्टिकोट्रॉपिक
उत्तर:
(c) वैसोप्रेसिन

प्रश्न 24.
वह अन्तःस्रावी ग्रन्थि जो मस्तिष्क में पायी जाती है, है – (2010, 16)
(a) थाइरॉइड
(b) अधिवृक्क
(c) थाइमस
(d) पीयूष ग्रन्थि
उत्तर:
(d) पीयूष ग्रन्थि

प्रश्न 25.
मास्टर गन्थि है – (2018)
(a) थाइरॉइड
(b) एड्रीनल
(c) पीनियल काय
(d) पीयूष
उत्तर:
(d) पीयूष

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प्रश्न 26.
मनुष्य में पायी जाने वाली मिश्रित ग्रंथि है – (2018)
(a) पिट्यूटरी ग्रंथि
(b) थाइरॉइड ग्रंथि
(c) अग्न्याशय ग्रंथि
(d) एड्रीनल ग्रंथि
उत्तर:
(c) अग्न्याशय ग्रंथि

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
होम्योस्टैसिस क्या है? उदाहरण सहित लिखिए। (2010, 16)
उत्तर:
होम्योस्टैसिस या समस्थैतिकता (homeostasis) अन्त:वातावरण की स्थायी नियमित दशा है जो जन्तु के अस्तित्व के लिए आवश्यक है। यह स्वनियामक होती है तथा शरीर के अन्दर विभिन्न प्रकार के नियमन (regulation), नियन्त्रण (control) तथा समन्वयन (co-ordination) के द्वारा सम्भव होती है। उदाहरणार्थ : रासायनिक समन्वयन व तन्त्रिकीय समन्वयन।

प्रश्न 2.
यदि किसी तन्त्रिका कोशिका के सभी डेन्डॉन्स तथा डेन्डाइट्स काट दिये जायें तो उस जन्तु की दिनचर्या पर क्या प्रभाव पड़ेगा? (2011)
उत्तर:
जन्तु की बाह्य उद्दीपनों के प्रति संवेदना समाप्त हो जायेगी।

प्रश्न 3.
मेरुरज्जु (सुषुम्ना)की गुहा तथा उसमें पाये जाने वाले द्रव का नाम बताइए। (2009)
उत्तर:
मेरुरज्जु की गुहा न्यूरोसील (neurocoel) कहलाती है तथा इसमें सेरेब्रो-स्पाइनल द्रव्य (cerebro-spinal fluid) पाया जाता है।

प्रश्न 4.
एक व्यक्ति के हाथ में आलपिन चुभा दी गई। उसने हाथ झटके से तुरन्त हटा लिया। इस कार्य में कौन-सी घटना घटित हुई? (2011)
उत्तर:
प्रतिवर्ती क्रिया।

प्रश्न 5.
सरल एवं प्रतिबन्धित प्रतिवर्ती क्रियाओं में अन्तर कीजिए।
उत्तर:
सरल अर्थात् अननुबन्धित (unconditioned) प्रतिवर्ती क्रियाएँ यकायक होती हैं तथा इनमें कोई पूर्व अनुभव, प्रशिक्षण या सीखने की बात सम्मिलित नहीं होती, जबकि प्रतिबन्धित (conditioned) प्रतिवर्ती क्रियाओं में पूर्व अनुभव, प्रशिक्षण आदि का प्रभाव रहता है।

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प्रश्न 6.
ऑक्सिन तथा साइटोकाइनिन के मुख्य कार्य लिखिए। (2017)
उत्तर:
ऑक्सिन पौधों में प्ररोह की कोशिकाओं में दीर्धीकरण प्रेरित करते हैं जबकि साइटोकाइनिन का प्रमुख कार्य कोशिका विभाजन को प्रेरित करना है।

प्रश्न 7.
एथिलीन का पौधों की वृद्धि एवं फल के पकने पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर:
एथिलीन एक पादप हॉर्मोन के समान कार्य करता है तथा तने (पौधे) के लिए वृद्धि रोधक है किन्तु फलों को पकने में सहायता करता है।

प्रश्न 8.
किस अन्तःस्रावी ग्रन्थि के हॉर्मोन की कमी से घंघा रोग हो जाता है? एक प्रारम्भिक बचाव लिखिए। (2009)
उत्तर:
थाइरॉइड ग्रन्थि के थाइरॉक्सिन नामक हॉर्मोन की कमी से घेघा रोग होता है। इसके बचाव के लिए आयोडीनयुक्त नमक खाना चाहिए।

प्रश्न 9.
इन्सुलिन का क्या महत्त्व है? यह कहाँ बनता है? (2009, 12, 14)
उत्तर:
इन्सुलिन ऊतकों, विशेषकर पेशियों में कार्बोहाइड्रेट्स के उपयोग पर नियन्त्रण करता है। यह यकृत कोशिकाओं में ग्लाइकोजेनेसिस (glycogenesis) का प्रेरक है। यह लिपोजेनेसिस (lipogenesis) का भी प्रेरक है। यह अग्न्याशय की लैंगरहैन्स की द्वीपिकाओं में बनता है।

प्रश्न 10.
मनुष्य में उपापचयी रोग विकार का संक्षेप में वर्णन कीजिए। (2013)
उत्तर:
इस रोग में रुधिर शर्करा का ग्लाइकोजन में परिवर्तन नहीं हो पाता है, जिससे रुधिर में शर्करा (ग्लूकोज) की मात्रा में वृद्धि होती है। यह रोग शरीर में इन्सुलिन निर्माण में कमी होने पर होता है।

प्रश्न 11.
इन्सुलिन के अल्पस्राव से रुधिर में ग्लूकोज की प्रतिशत मात्रा बढ़ जाने वाले रोग का नाम लिखिए। (2011)
उत्तर:
डायबिटीज।

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लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
तन्त्रिका तन्त्र किसे कहते हैं तथा यह कितने प्रकार का होता है? (2017)
उत्तर:
मनुष्य तथा स्तनियों सहित सभी कशेरुकियों में तन्त्रिका तन्त्र विशेष प्रकार के ऊतक, तन्त्रिका ऊतक द्वारा निर्मित होता है। इस ऊतक में अत्यन्त विशिष्ट कोशिकाएँ होती हैं। यह तीन प्रकार का होता है –

  1. केन्द्रीय तन्त्रिका तन्त्र
  2. परिधीय तन्त्रिका तन्त्र
  3. स्वायत्त तन्त्रिका तन्त्र

प्रश्न 2.
मेरुरज्जु (सुषुम्ना) की अनुप्रस्थ काट का नामांकित चित्र बनाइए। (2017)
या सुषुम्ना की संरचना का वर्णन नामांकित चित्र बनाकर कीजिए। (2013, 15)
या मेरुरज्जु किसे कहते हैं? इसके प्रमुख कार्यों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
मस्तिष्क का पश्च भाग लम्बा होकर, खोपड़ी के पश्च छोर पर उपस्थित महारन्ध्र (foramen magnum) से निकलकर, रीढ़ की हड्डी में फैला रहता है। यही मेरुरज्जु या सुषुम्ना (spinal cord) है। रीढ़ की हड्डी के मध्य में एक तन्त्रिका नाल (neural canal) होती है। मेरु रज्जु तन्त्रिका नाल में स्थित रहती है। मेरु रज्जु मस्तिष्क के समान मृदुतानिका (piamater) तथा दृढ़तानिका (duramater) झिल्ली से ढकी रहती है। इन दोनों झिल्लियों के बीच में एक लसदार तरल पदार्थ सेरब्रोस्पाइनल भरा रहता है।
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मेरुरज्जु के दो प्रमुख कार्य होते हैं –

  • मेरुरज्जु मस्तिष्क से प्राप्त तथा मस्तिष्क को जाने वाले आवेगों के लिए रास्ता प्रदान करता है।
  • प्रतिवर्ती क्रियाओं का संचालन एवं नियमन मेरुरज्जु द्वारा ही होता है।

प्रश्न 3.
प्रतिवर्ती क्रिया किसे कहते हैं? प्रतिवर्ती क्रियाओं के कुछ सामोन्य उदाहरण दीजिए। (2017, 18)
उत्तर:
ऐसी अनैच्छिक क्रियाएँ जो अनायास, अविलम्ब, यन्त्रवत् एवं सहज ही घटित होती हैं और सुषुम्ना में संवेदी प्रेरणा पहुँचने पर चालक प्रेरणा के रूप में अपवाहक अंगों द्वारा तुरन्त ही घटित हो जाती हैं, प्रतिवर्ती क्रियाएँ कहलाती हैं। प्रतिवर्ती क्रियाओं के कुछ सामान्य उदाहरण निम्नवत् हैं –

  1. खाँसना एवं छींकना श्वसन मार्ग में किसी ठोस कण के पहुंचने पर फेफड़ों से मुख के द्वारा तीव्र गति से वायु बाहर निकलती है, जिससे कि अवांछित कण वायु के दबाव से बाहर निकल जायें। तीव्र उच्छ्वास के कारण स्वर पट्टियों में कम्पन्न उत्पन्न होने से खाँसी की ध्वनि उत्पन्न होती है। छींकने में भी ऐसा ही होता है, अन्तर केवल इतना है कि इसमें वायु मुख के स्थान पर नाक से बाहर निकलती है।
  2. नेत्र प्रतिक्षेप क्रिया किसी वस्तु के अचानक सामने आने पर पलकों का अविलम्ब झपकना नेत्र प्रतिक्षेप क्रिया कहलाता है।
  3. जानु-झटक प्रतिक्षेप यदि किसी व्यक्ति को स्टूल अथवा मेज पर बैठाकर उसके घुटने के जानुफलक स्नायु (knee-cap tendon) पर थपथपाया जाये तो उसकी टाँग स्वत: ही झटके के साथ उठकर आगे बढ़ जाती है। यह भी एक प्रतिवर्ती क्रिया है।
  4. लार स्रावण प्रतिवर्ती क्रिया वांछित भोजन के सामने आने पर लार का स्रावण होने लगना एक प्रतिवर्ती क्रिया है।
  5. अन्य उदाहरण उबासी (yawning) आना, साइकिल चलाना, टाइप करना, नृत्य करना तथा वाद्य संगीत आदि प्रतिवर्ती क्रियाओं के कुछ अन्य सामान्य उदाहरण हैं।

प्रश्न 4.
कृषि में पादप हॉर्मोन्स की भूमिका पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए। (2011)
उत्तर:
आजकल कृषि क्षेत्र में ऑक्सिन्स, जिबरेलिन्स, साइटोकाइनिन्स हॉर्मोन्स का व्यापक उपयोग हो रहा है। ऑक्सिन्स को कलमों में नई जड़ें निकलने, विलगन रोकने, फूलों को झड़ने से रोकने, अनिषेक फल पैदा करने, फलों को अधिक व जल्दी पकाने, फल व बीज संग्रहण आदि में प्रयोग किया जाता है।

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प्रश्न 5.
साइटोकाइनिन के मुख्य कार्य लिखिए। (2017)
उत्तर:
1. कोशिका विभाजन साइटोकाइनिन्स ऑक्सिन के साथ स्थायी व जीवित कोशिका में भी विभाजन प्रेरित कर सकते हैं किन्तु ये प्रायः अकेले सक्रिय नहीं होते हैं।

2. कोशिका दीर्घन तथा भिन्नन ये कोशिकाओं में दीर्घन (elongation) को प्रेरित करते हैं। कैलस (callus) में उच्च ऑक्सिन व कम साइटोकाइनिन सान्द्रता से जड़ों के तथा उच्च साइटोकाइनिन व कम ऑक्सिन से प्ररोह के निर्माण का प्रेरण होता है।

3. शीर्ष प्रमुखता का प्रतिरोध शीर्षस्थ कलिका की उपस्थिति में भी पार्श्व कलिकाओं की वृद्धि साइटोकाइनिन की उपस्थिति से सम्भव हो जाती है। इस प्रकार साइटोकाइनिन तथा ऑक्सिन सान्द्रता के सन्तुलन से शीर्ष प्रमुखता नियन्त्रित होती है।

4. प्रकाश संवेदी बीजों का अंकुरण तम्बाकू व सलाद जैसे बीज जिनको अंकुरण के लिए प्रकाश की आवश्यकता होती है, साइटोकाइनिन से उपचारित करने पर अन्धकार में ही उगाये जा सकते हैं। उपर्युक्त के अतिरिक्त खनिजों का एकत्रण, दीप्तिकालिता का प्रतिस्थापन, फ्लोएम में संवहन का नियन्त्रण, प्राथमिक जड़ के दीर्घन का रोधन, जड़ों का प्रेरण, जड़ के व्यास में वृद्धि, वाहिनिकाओं (tracheids) के लिग्नीभवन में वृद्धि आदि भी साइटोकाइनिन से प्रभावित होते हैं। साइटोकाइनिन्स का उपयोग प्रसुप्तावस्था भंग करने में, उच्च ताप तथा रोगों के प्रति प्रतिरोधकता बढ़ाने आदि में भी किया जाता है।

प्रश्न 6.
गैसीय अवस्था में पाया जाने वाला हॉर्मोन कौन-सा है? तथा इसके मुख्य कार्य क्या हैं? (2015, 16, 18)
या पादप हॉर्मोन एथिलीन के दो प्रभाव लिखिए।
उत्तर:
गैसीय अवस्था में पाया जाने वाला पादप हॉर्मोन एथिलीन है। इसे फल परिपक्वन हॉर्मोन भी कहा जाता है।
एथिलीन के कार्य –

  1. एथिलीन फलों को पकाने में महत्त्वपूर्ण होती है।
  2. इसके प्रभाव से समव्यासी वृद्धि होती है, जिससे आयतन में वृद्धि होती है। इस प्रकार यह तने की लम्बाई में वृद्धि को कम किन्तु मोटाई में अधिक करती है।
  3. इसके प्रभाव से मादा पुष्पों की संख्या में वृद्धि होती है। कुछ पौधों में ऑक्सिन के समान पुष्पन (flowering) तीव्र होता है। जैसे – अनन्नास (pineapple) में। अन्यथा यह पत्तियों, फलों व पुष्पों के विलगन (abscission) को तेज करता है।
  4. इसके प्रभाव से पार्श्व कलियों की वृद्धि अवरुद्ध हो जाती है।
  5. यह कलमों (cuttings) से जड़ की उत्पत्ति, पार्श्व मूलों का निर्माण, मूल रोमों का निर्माण आदि का प्रेरण करता है। उपर्युक्त के अतिरिक्त इसकी अधिक सान्द्रता पुष्पों में निद्रा रोग (sleep disease) उत्पन्न करती है तथा ऑक्सिन के स्थानान्तरण को प्रतिबन्धित करके तने पर गुरुत्वानुवर्तन के प्रभाव को नष्ट कर देती है।

प्रश्न 7.
अन्तःस्रावी ग्रन्थियों या नलिका-विहीन ग्रन्थियों की परिभाषा दीजिए। किन्हीं दो अन्तःस्त्रावी ग्रन्थियों के नाम तथा उनसे स्रावित हॉर्मोन्स के नाम लिखिए। (2011, 12)
या नलिका-विहीन ग्रन्थियों से आप क्या समझते हैं? थाइरॉइड ग्रन्थि का कार्य बताइए। (2013, 17, 18)
या अन्तःस्रावी ग्रन्थियाँ किन्हें कहते हैं? हमारे शरीर में पायी जाने वाली मुख्य अन्तःस्त्रावी ग्रन्थियों के नाम लिखिए। (2015, 17)
उत्तर:
अन्तःस्रावी ग्रन्थियाँ:
हॉर्मोन स्रावित करने वाली ग्रन्थियों को नलिका विहीन ग्रन्थियाँ या अन्तःस्रावी ग्रन्थियाँ कहते हैं, क्योकि इनमें वाहिकाएँ नहीं होती और ये अपना स्राव सीधे रुधिर में छोड़ती हैं। रुधिर के साथ प्रत्येक हॉर्मोन शरीर में विशिष्ट स्थान पर पहुँचकर विशिष्ट परिवर्तन करता है जैसे वृद्धि की दर, गौण लैंगिक लक्षणों का प्रतिलक्षित होना, लैंगिक परिपक्वता आदि।
मानव शरीर में पायी जाने वाली अन्तःस्रावी ग्रन्थियाँ –
मनुष्य के शरीर में पायी जाने वाली प्रमुख अन्त:स्रावी ग्रन्थियाँ निम्नलिखित हैं –

  1. पीयूष ग्रन्थि (Pituitary gland) यह मस्तिष्क में स्थित होती है। इसके द्वारा स्रावित हॉर्मोन ऑक्सीटोसीन, वैसोप्रेसिन, सोमेटोट्रॉपिक आदि हैं।
  2. थाइरॉइड ग्रन्थि (Thyroid gland) यह गले में स्थित होती है। इसके द्वारा थायरॉक्सिन हॉर्मोन स्रावित होता है।
  3. पैराथाइरॉइड ग्रन्थि (Parathyroid gland) यह भी गले में स्थित होती है।
  4. एड्रीनल ग्रन्थि ( अधिवृक्क) (Adrenal gland) यह उदर में वृक्क के पास स्थित होती है।
  5. थाइमस ग्रन्थि (Thymus gland) यह वक्ष में स्थित होती है।
  6. पीनियल काय (Pineal body) यह मस्तिष्क में स्थित होती है।

प्रश्न 8.
जीवों में विभिन्न क्रियाओं का नियमन और नियन्त्रण करने वाले रसायन का नाम बताइए। यह किन ग्रन्थियों में उत्पन्न होता है?
या हॉर्मोन्स क्या होते हैं? (2014)
उत्तर:
हॉर्मोन ऐसे रासायनिक सन्देशवाहक होते हैं जो अन्तःस्रावी ग्रन्थि से सीधे रुधिर में स्रावित होकर सारे शरीर में संचरित होते हैं और इनकी सूक्ष्म मात्रा ही किन्हीं विशिष्ट कोशिकाओं या विशिष्ट अंगों की कोशिकाओं की कार्यिकी को वातावरणीय दशाओं की आवश्यकतानुसार प्रभावित करती है। हॉर्मोन प्राय: स्टेरॉइड्स, प्रोटीन्स अथवा अमीनो अम्ल होते हैं।

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प्रश्न 9.
एड्रीनल ग्रन्थि के कॉर्टेक्स भाग से स्रावित हॉर्मोन्स के नाम लिखिए तथा उनके कार्यों का उल्लेख कीजिए। (2012, 17)
उत्तर:
एड्रीनल ग्रन्थि के कॉर्टेक्स भाग से एण्ड्रोजेन्स तथा इस्ट्रोजेन्स हॉर्मोन स्रावित होते हैं। इन हॉर्मोन्स का कार्य पेशियों एवं जननांगों के विकास को प्रेरित करना है।

प्रश्न 10.
मास्टर ग्रन्थि शरीर में कहाँ पायी जाती है? इसका क्या महत्त्व है? (2018)
या पीयूष ग्रन्थि कहाँ पायी जाती है? इसके पिछले पिण्ड से स्त्रावित हॉर्मोन का नाम तथा कार्य बताइए। (2012, 17, 18)
उत्तर:
मास्टर ग्रन्थि अर्थात् पीयूष ग्रन्थि (pituitary gland) अग्र मस्तिष्क के पश्च भाग में डाइएनसिफैलॉन नामक संरचना की निचली सतह पर स्थित होती है। यह शरीर की लगभग समस्त अन्तःस्रावी ग्रन्थियों पर नियन्त्रण रखती है। इसके पश्चभाग से निकलने वाला प्रमुख हॉर्मोन ऑक्सीटोसिन है। यह गर्भावस्था में गर्भाशय की पेशियों के संकुचन को प्रेरित कर प्रसव पीड़ा उत्पन्न करता है, यह दुग्ध ग्रन्थियों से दुग्ध स्रावण में सहायता करता है तथा सम्भोगावस्था में गर्भाशय की भित्ति में संकुचन प्रेरित कर शुक्राणुओं का अण्डवाहिनी तक मार्ग प्रशस्त करता है।

प्रश्न 11.
मनुष्य में पायी जाने वाली किन्हीं चार वाहिका विहीन ग्रन्थियों के नाम तथा उनके कार्य लिखिए। (2014, 15, 17, 18)
या थाइरॉइड ग्रंथि के कार्यों का वर्णन कीजिए। (2017)
उत्तर:
मनुष्य में पायी जाने वाली चार प्रमुख नलिकाविहीन – (अन्तःस्रावी) ग्रन्थियाँ तथा उनके कार्य
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प्रश्न 12.
पीयूष ग्रन्थि द्वारा स्त्रावित किन्हीं चार हॉर्मोन के नाम लिखिए। प्रत्येक के कार्य का वर्णन कीजिए। (2015)
उत्तर:
पीयूष ग्रन्थि द्वारा स्रावित चार प्रमुख हॉर्मोन व उनके कार्य इस प्रकार हैं –
1. सोमैटोट्रॉपिक या वृद्धि हॉर्मोन (Growth hormone or GH) यह शरीर की वृद्धि का सबसे महत्त्वपूर्ण प्रेरक होता है। इसके अल्प स्रावण से व्यक्ति बौना (dwarf) रह जाता है और अति स्रावण से शरीर आनुपातिक भीमकाय हो जाता है।

2. पुटिका प्रेरक हॉर्मोन (FSH) यह पुरुषों में वृषण की शुक्रजनन नलिकाओं की वृद्धि तथा शुक्राणुजनन को प्रेरित करता है। स्त्रियों में यह अण्डाशयों की ग्रैफियन पुटिकाओं की वृद्धि और विकास, अण्डजनन तथा मादा हॉर्मोन्स, एस्ट्रोजेन्स (estrogens) के स्रावण को प्रेरित करता है।

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3. थाइरोट्रॉपिक या थाइरॉइड प्रेरक हॉर्मोन्स TSH यह थाइरॉइड ग्रन्थि की वृद्धि एवं स्रावण क्रिया का प्रेरक होता है।

4. ऑक्सीटोसिन (Oxytocin) यह गर्भावस्था में गर्भाशय की पेशियों के संकुचन को प्रेरित कर प्रसव पीड़ा उत्पन्न करता है, दुग्ध ग्रन्थियों से दुग्ध स्रावण में सहायता करता है तथा सम्भोगावस्था में गर्भाशय की भित्ति में संकुचन प्रेरित कर शुक्राणुओं का अण्डवाहिनियों तक मार्ग प्रशस्त करता है।

प्रश्न 13.
अग्न्याशय बहिःस्रावी तथा अंतःस्रावी दोनों प्रकार की ग्रन्थि है। स्पष्ट कीजिए। (2014, 15)
या अग्न्याशय एक अन्तःस्त्रावी ग्रन्थि एवं बहिःस्रावी ग्रन्थि का कार्य करती है। इससे उत्पन्न होने वाले प्रत्येक तरह के स्रावित पदार्थों के नाम लिखिए तथा कार्य भी बताइए।
(2015)
उत्तर:
अग्न्याशय (pancreas) एक संयुक्त ग्रन्थि है। यह पाचन के लिए बहिःस्त्रावी ग्रन्थि (exocrine gland) के रूप में कार्य करती तथा अग्न्याशयिक रस (pancreatic juice) बनाती है। इसके अतिरिक्त यह एक अन्तःस्रावी ग्रन्थि (endocrine gland) है तथा इसमें पाये जाने वाली लैंगरहैन्स की द्वीपिकायें, हॉर्मोन्स (hormones) का स्रावण करती हैं, जो विभिन्न प्रकार से कार्बोहाइड्रेट्स के उपापचय में महत्त्वपूर्ण हैं। स्रावित हॉर्मोन व उनके कार्य –

1. इन्सुलिन (Insulin) इन्सुलिन लाल रुधिर कणिकाओं (RBCs) तथा मस्तिष्क की तन्त्रिका कोशिकाओं के अतिरिक्त शरीर की अन्य सभी कोशिकाओं में ग्लूकोज के प्रति पारगम्यता बढ़ाता है। इसलिये ग्लूकोज रुधिर व ऊतक द्रव्य से शरीर की अन्य कोशिकाओं में जाता रहता है। इससे उपचय (anabolism) क्रिया तथा श्वसन क्रिया बढ़ती है।

2. ग्लूकैगोन (Glucagon) यह यकृत में वसा तथा अमीनो अम्लों का ग्लूकोनियोजेनेसिस (gluconeogenesis) कराता है। यह ग्लाइकोजन तथा अन्य कार्बनिक पदार्थों से ग्लूकोज का निर्माण कराता है।

3. सोमैटोस्टैटिन (Somatostatin) यह पचे हुए भोजन के अवशोषण तथा स्वांगीकरण को बढ़ाता है।

4. पैंक्रिएटिक पॉलीपेप्टाइड (Pancreatic polypeptide) इसका कार्य अभी ज्ञात नहीं हो सका है।

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प्रश्न 14.
किसी एक अन्तःस्रावी ग्रन्थि तथा एक बहिःस्रावी ग्रन्थि का नाम तथा प्रत्येक द्वारा स्रावित एक हॉर्मोन का कार्य लिखिए। (2010)
या थाइरॉइड ग्रन्थि से स्रावित हॉर्मोन का नाम बताइए तथा इसके प्रमुख कार्यों का वर्णन कीजिए। (2018)
उत्तर:
यद्यपि कोई भी बहिःस्रावी ग्रन्थि किसी प्रकार का हॉर्मोन स्रावित नहीं करती है, परन्तु बहिःस्त्रावी ग्रन्थि अग्न्याशय (pancreas) के अन्दर उपस्थित लैंगर हैन्स की द्वीपिकायें (islets of langerhans) अन्तःस्रावी ग्रन्थि की तरह कार्य करती हैं और इन्सुलिन (insulin) सहित कई हॉर्मोन्स का स्रावण करती हैं। इन्सुलिन लाल रुधिर कणिकाओं तथा तन्त्रिका कोशिकाओं के अतिरिक्त शरीर की अन्य सभी कोशिकाओं में ग्लूकोज के प्रति पारगम्यता बढ़ाता है।

सभी अन्तःस्रावी ग्रन्थियाँ एक-एक या अधिक संख्या में हॉर्मोन्स स्रावित करती हैं; जैसे-थाइरॉइड (thyroid) से थाइरॉक्सिन (thyroxin) सहित कई हॉर्मोन्स निकलते हैं। थाइरॉक्सिन वृद्धि तथा उपापचय (metabolism) का नियन्त्रण करता है।

प्रश्न 15.
हॉर्मोन तथा विकर क्या होते हैं? इनमें कोई दो अन्तर लिखिए। (2017, 18)
उत्तर:
हॉर्मोन हॉर्मोन्स ऐसे रासायनिक सन्देशवाहक होते हैं जो अन्त: स्रावी ग्रन्थि से सीधे रुधिर में स्रावित होकर सारे शरीर में संचरित होते हैं और इनकी सूक्ष्म मात्रा ही किन्हीं विशिष्ट कोशिकाओं या विशिष्ट अंगों की कोशिकाओं की कार्यिकी को वातावरणीय दशाओं की आवश्यकतानुसार प्रभावित करती है। विकर (एन्जाइम्स) पाचन क्रिया से सम्बन्धित रासायनिक क्रियाओं में कुछ सूक्ष्म मात्रा में पाए जाने वाले पदार्थ विशेष महत्त्व के हैं, जो इन क्रियाओं को उत्तेजित करते हैं तथा चलाते हैं। इन पदार्थों को विकर या एन्जाइम कहते हैं। ये एन्जाइम्स पाचक रसों में होते हैं।

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प्रश्न 16.
हॉर्मोन्स तथा एन्जाइम्स में अन्तर स्पष्ट कीजिए। (2009, 10)
उत्तर:
हॉमोन्स तथा एन्जाइम्स में अन्तर –
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दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
प्रतिवर्ती क्रिया को चित्र की सहायता से समझाइए। इसका क्या महत्त्व है ? (2011, 18)
या प्रतिवर्ती क्रिया किसे कहते हैं? प्रतिवर्ती चाप को नामांकित चित्र बनाकर उदाहरण सहित समझाइए। (2011, 14, 17, 18) या प्रतिवर्ती क्रिया का महत्त्व बताइए तथा सचित्र वर्णन कीजिए। (2014)
उत्तर:
प्रतिवर्ती क्रिया किसी उद्दीपन के फलस्वरूप शीघ्रतापूर्वक होने वाली स्वचालित और अनैच्छिक क्रिया को प्रतिवर्ती क्रिया कहते हैं। कार्य-विधि प्रतिवर्ती क्रियाएँ जो अनैच्छिक होती हैं और जिन पर मस्तिष्क का किसी भी प्रकार का नियन्त्रण नहीं होता संवेदी प्रेरणा द्वारा सुषुम्ना अथवा मस्तिष्क में पहुँचने पर तुरन्त ही चालक प्रेरणा के रूप में अपवाहक अंगों में स्थानान्तरित हो जाती हैं। इस प्रकार प्रतिवर्ती क्रियाएँ अनायास, अविलम्ब, यन्त्रवत् एवं सहज ही घटित होती हैं। इस प्रकार की क्रियाओं का सर्वप्रथम पता हाल (Hall, 1833) ने लगाया था।

सुषुम्ना से प्रत्येक स्पाइनल तन्त्रिका दो मूलों के रूप में निकलती है –
1. संवेदी तन्तुओं से बना पृष्ठ मूल (dorsal root) तथा
2. चालक तन्तुओं से बना अधर मूल (ventral root)।
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संवेदना प्राप्त होने पर आवेग (impulse) की लहर पृष्ठ मूल से होकर पृष्ठ मूल गुच्छक में स्थित न्यूरॉन तथा उसके एक्सॉन में होती हुई सुषुम्ना के धूसर द्रव्य में पहुंचती है। यहाँ से सिनैप्टिक घुण्डियों से होता हुआ आवेग चालक तन्त्रिका कोशिकाओं के डेण्ड्राइट्स में जाता है। अब यह आवेग ज्यों-का-त्यों चालक प्रेरणा बनकर प्रभावी अंग में पहुँचता है। प्रभावी अंगों की पेशियाँ तुरन्त क्रियाशील होकर इन्हें गति प्रदान करती हैं। संवेदांग से लेकर अपवाहक अंग तक के इस प्रकार के आवेग पथ को प्रतिवर्ती चाप (reflex arc) कहा जाता है।

महत्त्व प्रतिवर्ती क्रियाएँ हमारे लिए बहुत ही महत्त्वपूर्ण हैं। जिनके दो प्रमुख लाभ निम्नलिखित हैं –
1. प्रतिवर्ती क्रियायें सुषुम्ना द्वारा सम्पादित होती हैं, अत: मस्तिष्क (brain) का कार्य भार (बोझ) कम होता है।
2. ये तुरन्त तथा तीव्र गति से होती हैं, अतः सम्भावित दुर्घटना को रोकने में सहायता मिलती है।

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प्रश्न 2.
मानव मस्तिष्क का नामांकित चित्र बनाइए तथा संक्षिप्त में वर्णन कीजिए। (2017, 18)
उत्तर:
मनुष्य में मस्तिष्क अत्यन्त विकसित परन्तु अति कोमल अंग होता है। इसका आयतन 1200 cc से 1500 cc होता है। यह मस्तिष्क कोष में सुरक्षित रहता है। मस्तिष्क के चारों ओर झिल्लियों का दोहरा आवरण होता है। दोनों झिल्लियों के बीच में एक तरल पदार्थ भरा रहता है, जो बाहरी आघातों से मस्तिष्क की सुरक्षा करता है। मस्तिष्क के तीन प्रमुख भाग होते हैं – अग्र, मध्य तथा पश्च मस्तिष्क। अग्र मस्तिष्क में घ्राण पिण्ड (olfactory lobes), प्रमस्तिष्क (cerebrum) तथा डाइएनसिफैलॉन (diencephalon) होते हैं।
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1. प्रमस्तिष्क (Cerebrum) यह मस्तिष्क का सबसे बड़ा भाग होता है; यह सम्पूर्ण मस्तिष्क का लगभग 9/10 भाग होता है। प्रमस्तिष्क धूसर पदार्थ (grey matter) तथा श्वेत पदार्थ (white matter) द्वारा निर्मित होता है। प्रमस्तिष्क को एक लम्बी खाँच दायें तथा बायें गोलार्डों में विभक्त करती है। प्रमस्तिष्क गोलार्द्ध के अत्यधिक महत्त्वपूर्ण भाग धूसर द्रव्य में ही स्थित होते हैं; जैसे- स्मृति केन्द्र, सोचने-विचारने का केन्द्र आदि। हृदय की गति, भोजन ग्रहण करना, साँस लेना आदि सभी कार्य प्रमस्तिष्क द्वारा संचालित किए जाते हैं।

प्रमस्तिष्क ही घृणा, प्रेम, हर्ष, विषाद, दुःख व भय आदि संवेगों का केन्द्र है। अग्रमस्तिष्क का पिछला भाग डाइएनसिफैलॉन है। इसमें दो प्रमुख भाग होते हैं- थैलेमस तथा हाइपोथैलेमस। थैलेमस दर्द, ठण्डा व गर्म को पहचानने का कार्य करता है जबकि हाइपोथैलेमस भूख, प्यार, घृणा व ताप नियन्त्रण का केन्द्र है। ये वसा तथा कार्बोहाइड्रेट के उपापचय का भी नियन्त्रण करते हैं। अत: डाइनसिफैलॉन ताप नियमन, उपापचय तथा जनन क्रिया, दृक पिण्ड दृष्टि ज्ञान आदि का नियन्त्रण और नियमन करता है। डाइएनसिफैलॉन के हाइपोथैलेमस से पीयूष ग्रन्थि लगी होती है।

2. अनुमस्तिष्क (Cerebellum) यह प्रमस्तिष्क के पिछले भाग में नीचे की ओर स्थित होता है। यह प्रमस्तिष्क से छोटा होता है तथा दो भागों में विभक्त होता है। चलना, कूदना, दौड़ना आदि गति के सभी कार्य अनुमस्तिष्क द्वारा नियन्तित्र होते हैं। शरीर का सन्तुलन (equilibrium) भी इसी से बना रहता है।

3. मस्तिष्क पुच्छ या मेड्यूला ऑब्लांगेटा (Medulla oblongata) यह अनुमस्तिष्क के सामने स्थित होता है तथा मस्तिष्क का सबसे पिछला भाग है। यह बेलनाकार होता है। यह भाग श्वसन तन्त्र, हृदय व परिसंचरण तन्त्र अर्थात् अनैच्छिक क्रियाओं का केन्द्र है।

प्रश्न 3.
पादप हॉर्मोन्स पर टिप्पणी लिखिए। (2012, 14)
या पादप हॉर्मोन्स क्या है? किन्हीं तीन पादप हॉर्मोन्स के नाम तथा कार्यों का उल्लेख कीजिए। (2014, 16)
या पादप हॉर्मोन्स की चार प्रमुख विशेषताएँ बताइए। (2016)
उत्तर:
पादप हॉर्मोन (Plant hormones) पादपों में वृद्धि तथा विकास को नियन्त्रित करने के लिए कुछ विशिष्ट रासायनिक पदार्थ होते हैं जिन्हें पादप हॉर्मोन या वृद्धि नियामक (growth regulators) कहते हैं। पादप हॉर्मोन्स वे जटिल कार्बनिक पदार्थ हैं जो पेड़-पौधों में निश्चित स्थानों पर बनते हैं तथा संवहन ऊतकों द्वारा शरीर के विभिन्न भागों में संचरित होकर उनकी वृद्धि को नियन्त्रित करते हैं।

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पादप हॉर्मोन मुख्यतः विभज्योतक कोशिकाओं और नई उगती पत्तियों एवम् फलों में स्रावित होते हैं। पादप हॉर्मोन्स की मुख्य विशेषताएँ
ये जड़, तना एवं कलिका के शीर्षस्थ विभज्योतक में बनते हैं तथा फ्लोएम में से होकर अन्य अंगों में पहुँचते हैं और सभी भागों में विसरित होकर वृद्धि का नियन्त्रण करते हैं।

  1. इन्हें पौधों से निष्कासित किया जा सकता है।
  2. ये पादप वृद्धि तथा वृद्धिरोधन को नियन्त्रित करते हैं।
  3. सामान्य से कम या अधिक मात्रा में होने पर इनका उल्टा प्रभाव पड़ता है।
  4. ये कार्बनिक प्रकृति के होते हैं।
  5. ये अति अल्प मात्रा में ही प्रभावशील होते हैं।

पादप हॉर्मोन्स का वर्गीकरण पादप हॉर्मोन्स को मुख्यत: दो वर्गों में बाँटते हैं –

  1. वृद्धि प्रवर्धक जो वृद्धि की दर को बढ़ाते हैं। उदाहरण : जिबरेलिन्स, साइटोकाइनिन्स।
  2. वृद्धि निरोधक जो वृद्धि की दर को कम करते हैं। उदाहरण : एब्सिसिक अम्ल, एथिलीन।

प्रश्न 4.
ऑक्सिन एवं जिबरेलिन हॉर्मोन्स के कार्यों का वर्णन कीजिए। (2013, 17)
या ‘ऑक्सिन्स हमारे लिए लाभदायक हैं।’ इस कथन की पुष्टि कीजिए। (2012)
या दो पादप वृद्धि नियन्त्रक हॉर्मोन्स का नाम बताइए तथा उनके कार्य का वर्णन कीजिए। (2015)
उत्तर:
दो पादप वृद्धि हॉर्मोन ऑक्सिन्स व जिबरेलिन्स हैं।
ऑक्सिन्स के प्रभाव तथा उपयोगिता –
1. कोशिका दीर्घन तथा वृद्धि दर पर प्रभाव ऑक्सिन से कोशिका दीर्घन होने के कारण ही तनों तथा फलों के आयतन में वृद्धि होती है। कोशिका दीर्घन ऑक्सिन्स की उपस्थिति में भित्ति दाब घट जाने तथा जल के लिए भित्ति की पारगम्यता बढ़ जाने के कारण परासरणी सान्द्रता बढ़ने से तथा कोशिका भित्ति का लचीलापन (plasticity) बढ़ जाने के कारण होता है।

2. संवहन एधा में कोशिका विभाजन कोशिका विभाजन की दर तथा एधा की मौसमी सक्रियता ऑक्सिन से नियन्त्रित होती है। रोपण (grafting), क्षति (injury) आदि के समय कैलस (callus) का निर्माण इसी के कारण होता है।

3. शीर्ष प्रमुखता अधिकतर पादपों में शीर्ष कलिका की उपस्थिति में पार्श्व कलिकाओं की वृद्धि रुकी रहती है। इस स्थिति को शीर्ष प्रमुखता (apical dorminance) कहते हैं। शीर्ष कलिका को हटाने पर पार्श्व कलिकायें तेजी से बढ़ती हैं। ऐसा माना जाता है कि शीर्ष कलिका में अवरोधक, ऑक्सिन बनते हैं जो नीचे जाकर पार्श्व कलिकाओं की वृद्धि को रोकते हैं।

4. वर्तन गतियाँ एकदिशीय प्रकाश के कारण अन्धकार के क्षेत्र में ऑक्सिन की सान्द्रता अधिक हो जाती है। तनों में अधिक सान्द्रता अधिक वृद्धि प्रेरित करती है, अत: तने प्रकाश की ओर मुड़ जाते हैं अर्थात् धनात्मक प्रकाशानुवर्तन (positive phototropism) प्रदर्शित करते हैं।

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दूसरी ओर जड़ों में ऑक्सिन की अधिक सान्द्रता वृद्धि को संदमित करती है, अत: जड़ें प्रकाश के विपरीत मुड़ जाती हैं और ऋणात्मक प्रकाशानुवर्तन (negative phototropism) प्रदर्शित करती इसी प्रकार गुरुत्वाकर्षण के कारण अनुप्रस्थ स्थिति में निचले तल पर ऑक्सिन की सान्द्रता अधिक होने से तने व जड़ में क्रमशः ऋणात्मक एवं धनात्मक गुरुत्वानुवर्तन (geotropism) प्रभावित होता है।

5. मूल प्रेरण यदि कलम को ऑक्सिन में डुबोकर भूमि में लगाया जाये तो जड़ें शीघ्रता से उत्पन्न होती हैं। ऑक्सिन्स पार्श्व मूलों का प्रेरण भी करते हैं।

6. प्रसुप्तावस्था आलू जैसे कन्दों पर ऑक्सिन के छिड़काव से कलियों का अंकुरण रुका रहता है जिससे उनका संग्रहण अधिक समय तक किया जा सकता है।

7. अनिषेकफलन बीज रहित फलों के निर्माण में ऑक्सिन्स का उपयोग होता है। ये अनिषेकफलन (parthenocarpy) प्रेरित करते हैं।

8. खरपतवारनाशक 2, 4-D जैसे ऑक्सिन संकीर्ण पत्ती वाली फसल (एकबीजपत्री) के साथ उगने वाली बड़ी पत्तियों वाली खरपतवार को नष्ट कर देते हैं।

उपर्यक्त के अतिरिक्त अन्य अनेक प्रक्रिया आदि में ऑक्सिन्स का उपयोग महत्त्वपूर्ण है; जैसे-पक्वनपूर्व फलों की गिरने से रोकथाम, पातन की रोकथाम, फलों को मीठा करने में, लघु शाखाओं के निर्माण में (जैसे-सेब में), फलन का प्रेरण आदि में।

जिबरेलिन्स के प्रभाव तथा उपयोगिता –
1. बोल्टिंग जिबरेलिन पर्वो की कोशिकाओं का दीर्घन करके तनों की लम्बाई बढ़ाता है। द्विवर्षीय पौधों में जिनका तना अत्यन्त हासित होता है अर्थात् पर्वसन्धियाँ अत्यधिक पास-पास होती हैं; जिबरेलिन देने से तेजी से बढ़ने लगता है। इसे बोल्टिंग कहते हैं; जैसे-चुकन्दर (sugar beat) तथा आनुवंशिक बौने पौधे।

2. दीर्घ प्रकाशावधि वाले पौधों में शीघ्र पुष्पन जिबरेलिन के प्रभाव से दीर्घ प्रकाशावधि पादपों; जैसे-हेनबेन (Hyoscyamus niger) में लघु प्रकाशावधि में ही पुष्प उत्पन्न होने लगते हैं जबकि सामान्य अवस्था में दीर्घ प्रकाशावधि में ही पुष्प उत्पन्न होते हैं।

3. बसन्तीकरण का प्रतिस्थापन कुछ द्विवर्षीय पौधों में पुष्पन के लिए शीतकाल के कम तापमान की आवश्यकता होती है, जिबरेलिन के प्रभाव से यह आवश्यकता समाप्त की जा सकती है।

4. प्रसुप्तावस्था को दूर करना आलू के कन्दों (tubers) व शीतकालीन कलिकाओं को जिबरेलिन देने से उनकी प्रसुप्तावस्था टूट जाती है तथा अंकुरण प्रारम्भ हो जाता है।

5. अनिषेकफलन सेब, नाशपाती जैसे फलों में ऑक्सिन की अपेक्षा जिबरेलिन द्वारा अनिषेकफलन अधिक सफलता से कराया जा सकता है। इसी प्रकार अनेक फल; जैसे-अंगूर इनके प्रभाव से बड़े तथा बीज रहित उत्पन्न होते हैं। उपर्युक्त के अतिरिक्त बीजों में शीघ्र अंकुरण, जीर्णता नियन्त्रण, पुष्पों व फलों का परिवर्द्धन आदि में जिबरेलिन उपयोगी हैं।

Bihar Board Class 10 Science Solutions Chapter 6 जैव प्रक्रम

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Bihar Board Class 10 Science Solutions Chapter 6 जैव प्रक्रम Textbook Questions and Answers, Additional Important Questions, Notes.

Bihar Board Class 10 Science जैव प्रक्रम InText Questions and Answers

अनुच्छेद 6.1 पर आधारित

प्रश्न 1.
हमारे जैसे बहुकोशिकीय जीवों में ऑक्सीजन की आवश्यकता पूरी करने मेंविसरण क्यों अपर्याप्त है?
उत्तर:
हमारे जैसे बहुकोशिकीय जीवों में सभी कोशिकाएँ अपने आस-पास के पर्यावरण के सीधे संपर्क में नहीं रहती हैं। इसलिए साधारण विसरण, बहुकोशिकीय जीवों में ऑक्सीजन की आवश्यकता पूरी करने में अपर्याप्त है।

प्रश्न 2.
कोई वस्तु सजीव है, इसका निर्धारण करने के लिए हम किस मापदंड का उपयोग करेंगे?
उत्तर:
कोई वस्तु सजीव है, इसका निर्धारण करने के लिए हम ‘सजीवों के लक्षण’ मापदंड का प्रयोग करेंगे अर्थात् हम देखेंगे कि उसमें गति हो रही है या नहीं, वृद्धि हो रही है या नहीं, श्वसन क्रिया हो रही है या नहीं आदि।

प्रश्न 3.
किसी जीव द्वारा किन कच्ची सामग्रियों का उपयोग किया जाता है?
उत्तर:
किसी जीव द्वारा कार्बन तथा ऑक्सीजन का उपयोग कच्ची सामग्री के रूप में किया जाता है।

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प्रश्न 4.
जीवन के अनुरक्षण के लिए आप किन प्रक्रमों को आवश्यक मानेंगे?
उत्तर:
जीवन के अनुरक्षण के लिए हम श्वसन, पोषण, वहन, उत्सर्जन, जनन आदि प्रक्रमों को आवश्यक मानेंगे।

अनुच्छेद 6.2 पर आधारित

प्रश्न 1.
स्वयंपोषी पोषण तथा विषमपोषी पोषण में क्या अंतर है?
उत्तर:
स्वयंपोषी पोषण में पर्यावरण से सरल अकार्बनिक पदार्थ लेकर तथा बाह्य ऊर्जा स्रोत जैसे सूर्य के प्रकाश का उपयोग करके उच्च ऊर्जा वाले जटिल कार्बनिक पदार्थों का संश्लेषण होता है जबकि विषमपोषी पोषण में दूसरे जीवों द्वारा तैयार किये गये जटिल पदार्थों का अंतर्ग्रहण होता है।

प्रश्न 2.
प्रकाश संश्लेषण के लिए आवश्यक कच्ची सामग्री पौधा कहाँ से प्राप्त करता है?
उत्तर:
पौधे, प्रकाश संश्लेषण के लिए आवश्यक कार्बन डाइ ऑक्साइड को वायु से, प्रकाश को सूर्य से, जल तथा अन्य खनिज लवणों को मृदा से प्राप्त करते हैं।

प्रश्न 3.
हमारे आमाशय में अम्ल की भूमिका क्या है?
उत्तर:
हमारे आमाशय में उपस्थित हाइड्रोक्लोरिक अम्ल एक अम्लीय माध्यम तैयार करता है जो पेप्सिन एंजाइम की क्रिया में सहायक होता है। यह भोजन में उपस्थित कीटाणुओं को भी नष्ट करता है।

प्रश्न 4.
पाचक एंजाइमों का क्या कार्य है?
उत्तर:
पाचक एंजाइम प्रोटीन को अमीनो अम्ल, कार्बोहाइड्रेट को ग्लूकोज़ तथा वसा को वसीय अम्ल एवं ग्लिसरोल में परिवर्तित कर देते हैं।

प्रश्न 5.
पचे हुए भोजन को अवशोषित करने के लिए क्षुद्रांत्र को कैसे अभिकल्पित किया गया है?
उत्तर:
क्षुद्रांत्र के आन्तरिक आस्तर पर अनेक अंगुली जैसे प्रवर्ध होते हैं जिन्हें दीर्घरोम कहते हैं। ये अवशोषण का सतही क्षेत्रफल बढ़ा देते हैं। दीर्घरोम में रुधिर वाहिकाओं की बहुतायत होती है जो भोजन को अवशोषित करके शरीर की प्रत्येक कोशिका तक पहुँचाते हैं।

अनुच्छेद 6.3 पर आधारित

प्रश्न 1.
श्वसन के लिए ऑक्सीजन प्राप्त करने की दिशा में एक जलीय जीव की अपेक्षा स्थलीय जीव किस प्रकार लाभप्रद है?
उत्तर:
जलीय जीव जल में घुली हुई ऑक्सीजन का प्रयोग श्वसन के लिए करते हैं जबकि स्थलीय जीव वायु में उपस्थित ऑक्सीजन का। चूँकि जल में घुली हुई ऑक्सीजन की मात्रा वायु में उपस्थित ऑक्सीजन की मात्रा से कम है इसलिए जलीय जीवों की श्वसन दर स्थलीय जीवों की श्वसन दर से अधिक होती है।

प्रश्न 2.
ग्लूकोज़ के ऑक्सीकरण से भिन्न जीवों में ऊर्जा प्राप्त करने के विभिन्न पथ क्या हैं?
उत्तर:
जीव निम्नलिखित तीन पथों द्वारा ग्लूकोज़ का ऑक्सीकरण करके ऊर्जा प्राप्त करते हैं –

  1. ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में पायरुवेट का विखंडन
  2. ऑक्सीजन की कमी में पायरुवेट का विखंडन
  3. ऑक्सीजन की उपस्थिति में ग्लूकोज़ का विखंडन

प्रश्न 3.
मनुष्यों में ऑक्सीजन तथा कार्बन डाइऑक्साइड का परिवहन कैसे होता है?
उत्तर:
मनुष्यों में ऑक्सीजन का परिवहन हमारे रुधिर में उपस्थित वर्णक हीमोग्लोबिन वायु में उपस्थित ऑक्सीजन से बंध जाता है तथा उसे फेफड़ों तक ले जाता है जहाँ से वह सभी कोशिकाओं को पहुँचा दी जाती है। मनुष्यों में कार्बन डाइऑक्साइड का परिवहन कार्बन डाइऑक्साइड गैस जल में घुलनशील होने के कारण रुधिर में घुल जाती है तथा श्वसन द्वारा शरीर से बाहर निकाल दी जाती है।

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प्रश्न 4.
गैसों के विनिमय के लिए मानव-फुफ्फुस में अधिकतम क्षेत्रफल को कैसे अभिकल्पित किया है?
उत्तर:
मानव-फुफ्फुस गुब्बारे जैसी संरचनाएँ लिये होते हैं, जिन्हें एल्वियोली कहते हैं। गुब्बारे जैसी ये संरचनाएँ श्वसन के लिए आवश्यक गैसों की मात्रा व अन्य आवश्यकताओं के अनुसार फैल एवं सिकुड़ सकती हैं।

अनुच्छेद 6.4 पर आधारित

प्रश्न 1.
मानव में वहन तंत्र के घटक कौन-से हैं? इन घटकों के क्या कार्य हैं?
उत्तर:
मानव में वहन तंत्र के घटक व उनके कार्य निम्नवत् हैं –

  1. रुधिर रुधिर खनिजों, श्वसन गैसों (CO2 व O2), व्यर्ज पदार्थों, हॉर्मोन्स, जल, अकार्बनिक पदार्थों तथा अन्य रसायनों का वहन करता है।
  2. रूधिर वाहिकाएँ (धमनी तथा शिराएँ) धमनी हृदय से रुधिर को शरीर के विभिन्न भागों में पहुँचाती हैं जबकि शिराएँ विभिन्न भागों से रुधिर एकत्र करके हृदय तक वापस लाती हैं।
  3. हृदय हृदय एक पंप की तरह प्रत्येक क्षण रुधिर को हमारे शरीर में पंप करता रहता है।
  4. लसीका पचे हुए तथा क्षुद्रांत्र द्वारा अवशोषित वसा का वहन लसीका द्वारा होता है तथा यह अतिरिक्त तरल को बाह्य कोशिकीय अवकाश से वापस रुधिर में ले जाता है।

प्रश्न 2.
स्तनधारी तथा पक्षियों में ऑक्सीजनित तथा विऑक्सीजनित रुधिर को अलग करना क्यों आवश्यक है?
उत्तर:
स्तनधारी तथा पक्षियों में ऑक्सीजनित तथा विऑक्सीजनित रुधिर को अलग करना आवश्यक है, क्योंकि इस तरह का बँटवारा शरीर को उच्च दक्षतापूर्ण ऑक्सीजन की पूर्ति कराता है। स्तनधारी तथा पक्षियों को अपने शरीर का ताप नियंत्रित करने के लिए उच्च ऊर्जा की आवश्यकता होती है जो उन्हें ऑक्सीजन की अधिक मात्रा से ही प्राप्त होती है।

प्रश्न 3.
उच्च संगठित पादप में वहन तंत्र के घटक क्या हैं?
उत्तर:
उच्च संगठित पादप में वहन तंत्र के घटक जाइलम तथा फ्लोएम हैं।

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प्रश्न 4.
पादप में जल और खनिज लवण का वहन कैसे होता है?
उत्तर:
पादप में जल और खनिज लवण का वहन जाइलम द्वारा होता है।

प्रश्न 5.
पादप में भोजन का स्थानांतरण कैसे होता है?
उत्तर:
पादप में भोजन का स्थानांतरण फ्लोएम द्वारा होता है।

अनुच्छेद 6.5 पर आधारित

प्रश्न 1.
वृक्काणु (नेफ्रॉन) की रचना तथा क्रियाविधि का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
वृक्काणु वृक्क की कार्यात्मक इकाई होते हैं। प्रत्येक वृक्काणु रुधिर को छानता है तथा मूत्र का निर्माण करता है। वृक्काणु के निम्नलिखित भाग होते हैं –

  1. एक बोमैन संपुट ग्लोमेरूलस के साथ।
  2. एक लम्बी नलिका।

वृक्काणु के कार्य निम्नवत् हैं –

  1. रुधिर रिनल धमनी में बहुत उच्च दाब पर बहता है जिससे ग्लोमेरूलस की पतली दीवारों से रुधिर छनता रहता है।
  2. रुधिर कोशिकाएँ और प्रोटीन केशिकाओं में ही रहती हैं जबकि जल की अधिकांश मात्रा और घुले हुए खनिज बोमैन संपुट द्वारा छान दिये जाते हैं।
  3. इस निस्यंद में वर्ण्य पदार्थ जैसे यूरिया के साथ-साथ लाभदायक पदार्थ जैसे ग्लूकोज़ आदि उपस्थित रहते हैं। इनके अतिरिक्त जल की अतिरिक्त मात्रा जो शरीर के लिए उपयोगी नहीं होती वह भी होता है।
  4. जब यह निस्यंद नलिका में आता है तो लाभदायक पदार्थों; जैसे- ग्लूकोज़ अमीनो अम्ल, जल का पुनः नलिका में उपस्थित केशिकाओं द्वारा अवशोषण होता है।
  5. उन वर्ण्य पदार्थों का भी छनन इन केशिकाओं द्वारा होता है जो शेष रह जाते हैं।
  6. अन्त में निस्यद में केवल यूरिया, अन्य वर्ण्य पदार्थ तथा जल ही रह जाता है जिसे अब मूत्र कहा जाता है। यह संग्राहक में एकत्रित होता रहता है।

प्रश्न 2.
उत्सर्जी उत्पाद से छुटकारा पाने के लिए पादप किन विधियों का उपयोग करते हैं?
उत्तर:
उत्सर्जी उत्पादों से छुटकारा पाने के लिए पादप प्रकाश-संश्लेषण, वाष्पोत्सर्जन, उन पत्तियों को गिराना जिनमें वर्ण्य पदार्थ एकत्र रहते हैं, आदि क्रियाएँ करते हैं। इनके अतिरिक्त वे वर्ण्य पदार्थों को रेजिन तथा गोंद के रूप में एकत्रित करते हैं तथा कुछ वर्ण्य पदार्थों को अपने आस-पास की मृदा में उत्सर्जित भी करते हैं।

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प्रश्न 3.
मूत्र बनने की मात्रा का नियमन किस प्रकार होता है?
उत्तर:
मूत्र बनने की मात्रा का नियमन पुनरवशोषण क्रिया द्वारा होता है। मूत्र में जल की मात्रा शरीर में उपलब्ध अतिरिक्त जल की मात्रा पर तथा कितना विलेय वयं उत्सर्जित करना है, पर निर्भर करता है।

Bihar Board Class 10 Science जैव प्रक्रम Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
मनुष्य में वृक्क एक तंत्र का भाग है जो संबंधित है –
(a) पोषण से
(b) श्वसन से
(c) उत्सर्जन से
(d) परिवहन से
उत्तर:
(c) उत्सर्जन से

प्रश्न 2.
पादप में जाइलम उत्तरदायी है –
(a) जल का वहन
(b) भोजन का वहन
(c) अमीनो अम्ल का वहन
(d) ऑक्सीजन का वहन
उत्तर:
(a) जल का वहन

प्रश्न 3.
स्वपोषी पोषण के लिए आवश्यक है।
(a) कार्बन डाइऑक्साइड तथा जल
(b) क्लोरोफिल
(c) सूर्य का प्रकाश
(d) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(d) उपरोक्त सभी

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प्रश्न 4.
पायरुवेट के विखंडन से यह कार्बन डाइऑक्साइड, जल तथा ऊर्जा देता है और यह क्रिया होती है-
(a) कोशिकाद्रव्य में
(b) माइटोकॉन्ड्रिया में
(c) हरित लवक में
(d) केंद्रक में
उत्तर:
(b) माइटोकॉन्ड्रिया में

प्रश्न 5.
हमारे शरीर में वसा का पाचन कैसे होता है? यह प्रक्रम कहाँ होता है?
उत्तर:
वसा हमारी आँत में बड़ी-बड़ी गुलिकाओं के रूप में उपस्थित होता है जिसके कारण एंजाइम इसे विखंडित कर पाने में असमर्थ होते हैं। पित्त रस इन बड़ी गुलिकाओं को छोटे-छोटे टुकड़ों में तोड़ देता है जिससे एंजाइम इनसे क्रिया कर सकें। अग्न्याशय से लाइपेज नामक एंजाइम स्रावित होता है जो वसा का पाचन करने में सहायक होता है। वसा के पाचन की यह सम्पूर्ण प्रक्रिया क्षुद्रांत्र में होती है।

प्रश्न 6.
भोजन के पाचन में लार की क्या भूमिका है?
उत्तर:
भोजन के पाचन में लार की निम्नलिखित भूमिका है –
1. लार में एक एंजाइम होता है जिसे सलाइवरी एमाइलेज कहते हैं। यह एंजाइम मंड को विखंडित करके शर्करा में बदल देता है।
2.  लार भोजन को चिकना बना देता है जिससे इसे चबाने तथा सटकने में आसानी होती है।

प्रश्न 7.
स्वपोषी पोषण के लिए आवश्यक परिस्थितियाँ कौन-सी हैं और उसके उपोत्पाद क्या हैं?
उत्तर:
स्वपोषी पोषण के लिए सूर्य का प्रकाश, क्लोरोफिल, कार्बन डाइऑक्साइड, जल आदि परिस्थितियों का होना आवश्यक है। इसके उपोत्पाद ऑक्सीजन, हाइड्रोजन तथा कार्बोहाइड्रेट होते हैं।

प्रश्न 8.
वायवीय तथा अवायवीय श्वसन में क्या अंतर है? कुछ जीवों के नाम लिखिए जिनमें अवायवीय श्वसन होता है। (2015, 17, 18)
उत्तर:
वायवीय तथा अवायवीय श्वसन में अन्तर –
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अवायवीय श्वसन क्रिया यीस्ट आदि कवक तथा अनेक जीवाणुओं में होती है। मांसपेशियों में ऑक्सीजन के अभाव में लैक्टिक अम्ल बनता है।

प्रश्न 9.
गैसों के अधिकतम विनिमय के लिए कूपिकाएँ किस प्रकार अभिकल्पित हैं?
उत्तर:
1. कूपिकाएँ महीन दीवारों तथा असंख्य रुधिर केशिकाओं वाली रचना हैं जिनके कारण रुधिर तथा कूपिका में भरी वायु के बीच गैसों का आदान-प्रदान सरलता से हो जाता है।
2. कूपिकाओं की संरचना गुब्बारे की तरह होती है जो आवश्यकतानुसार गैसों का आदान-प्रदान करने के लिए फैल तथा पिचक सकती हैं।

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प्रश्न 10.
हमारे शरीर में हीमोग्लोबिन की कमी के क्या परिणाम हो सकते हैं?
उत्तर:
हीमोग्लोबिन की कमी होने से हमारे शरीर में ऑक्सीजन की मात्रा कम हो जाती है क्योंकि हीमोग्लोबिन ही ऑक्सीजन का वहन करता है।

प्रश्न 11.
मनुष्य में दोहरा परिसंचरण की व्याख्या कीजिए। यह क्यों आवश्यक है?
उत्तर:
मनुष्य सहित समस्त स्तनधारियों में दोहरा परिसंचरण पाया जाता है। प्रथम परिसंचरण तो हृदय और फुफ्फुस के मध्य पाया जाता है जिसे पल्मोनरी परिसंचरण कहते हैं तथा द्वितीय परिसंचरण हृदय और शरीर के अन्य भागों के मध्य पाया जाता है, जिसे सिस्टेमिक परिसंचरण कहते हैं। यह इसलिए आवश्यक है जिससे शुद्ध व अशुद्ध रुधिर मिश्रित न हो सकें।

प्रश्न 12.
जाइलम तथा फ्लोएम में पदार्थों के वहन में क्या अंतर है?
उत्तर:
जाइलम तथा फ्लोएम में पदार्थों के वहन में अन्तर –
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प्रश्न 13.
फुफ्फुस में कूपिकाओं की तथा वृक्क में वृक्काणु (नेफ्रॉन) की रचना तथा क्रियाविधि की तुलना कीजिए।
उत्तर:
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Bihar Board Class 10 Science जैव प्रक्रम Additional Important Question and Answers

बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
पौधों में प्रकाश-संश्लेषण द्वारा भोजन का निर्माण होता है – (2015)
(a) जड़ में
(b) पत्ती में
(c) तने में
(d) फल में
उत्तर:
(b) पत्ती में

प्रश्न 2.
प्रकाश-संश्लेषण क्रिया में ऑक्सीजन गैस निकलती है – (2012, 16)
(a) कार्बन डाइ-ऑक्साइड से
(b) जल से
(c) वायु से
(d) पर्ण हरित के विघटन से
उत्तर:
(b) जल से

प्रश्न 3.
प्रकाश अभिक्रिया होती है – (2016)
(a) माइटोकॉण्ड्रिया में
(b) हरित लवक के ग्रेना में
(c) राइबोसोम में
(d) हरित लवक के स्ट्रोमा में
उत्तर:
(b) हरित लवक के ग्रेना में

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प्रश्न 4.
क्लोरोप्लास्ट के ग्रेनन में बनते हैं – (2018)
(a) ATP तथा NAD.2H
(b) ATP तथा ग्लूकोस
(c) ATP 77891 NADP.2H
(d) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(c) ATP 77891 NADP.2H

प्रश्न 5.
हरितलवक के स्ट्रोमा में कौन-सी क्रिया होती है? (2016)
(a) प्रकाशीय अभिक्रिया
(b) अप्रकाशीय अभिक्रिया
(c) (a) और (b) दोनों अभिक्रियाएँ
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(b) अप्रकाशीय अभिक्रिया

प्रश्न 6.
प्रकाश-संश्लेषण क्रिया का अन्तिम उत्पाद है – (2011)
(a) प्रोटीन
(b) वसा
(c) मण्ड
(d) खनिज लवण
उत्तर:
(c) मण्ड

प्रश्न 7.
पादपों में वायु प्रदूषण कम करने वाली प्रक्रिया है – (2013, 14)
(a) श्वसन
(b) प्रकाश-संश्लेषण
(c) वाष्पोत्सर्जन
(d) प्रोटीन संश्लेषण
उत्तर:
(b) प्रकाश-संश्लेषण

प्रश्न 8.
आहारनाल की c के आकार की संरचना है – (2015, 16)
(a) आमाशय
(b) ग्रहणी
(c) ग्रसनी
(d) कृमिरूप परिशेषिका
उत्तर:
(b) ग्रहणी

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प्रश्न 9.
मनुष्य में ग्रासनली की लम्बाई होती है – (2018)
(a) 5.8 सेमी
(b) 25-30 सेमी
(c) 1.5 मीटर
(d) 15 फीट
उत्तर:
(b) 25-30 सेमी

प्रश्न 10.
मनुष्यों में लार ग्रन्थियों की संख्या होती है – (2012, 13, 14)
(a) दो जोड़ी
(b) तीन जोड़ी
(c) चार जोड़ी
(d) पाँच जोड़ी।
उत्तर:
(b) तीन जोड़ी

प्रश्न 11.
कृमिरूप परिशेषिका ……….. का भाग है।। (2013, 17)
(a) छोटी आँत
(b) अग्न्याशय
(c) बड़ी आँत (कोलन)
(d) ग्रासनली
उत्तर:
(c) बड़ी आँत (कोलन)

प्रश्न 12.
मनुष्य में कृन्तक या छेदक दाँतों की संख्या होती है – (2010)
(a) आठ
(b) चार
(c) छह
(d) बारह
उत्तर:
(a) आठ

प्रश्न 13.
मनुष्य के प्रत्येक जबड़े में चर्वणक दन्तों की संख्या होती है। (2015)
(a) 2
(b) 4
(c) 6
(d) 8
उत्तर:
(c) 6

प्रश्न 14.
ग्रासनलीद्वार पर लटकी हई पत्ती के समान कार्टिलेजी रचना कहलाती है – (2011, 14)
(a) एपीफैरिंक्स
(b) एपीग्लोटिस
(c) एल्वियोलाई
(d) श्लेष्मावरण
उत्तर:
(b) एपीग्लोटिस

प्रश्न 15.
निम्न में से किसके द्वारा पित्तरस का निर्माण होता है ? (2014, 15)
(a) अग्न्याशय
(b) वृषण
(c) यकृत
(d) पित्ताशय
उत्तर:
(c) यकृत

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प्रश्न 16.
यकृत स्रावित करता है – (2018)
(a) लार
(b) जठर रस
(c) पित्त रस
(d) अग्न्याशयिक रस
उत्तर:
(c) पित्त रस।

प्रश्न 17.
आहारनाल के पेशीय संकुचन को कहते हैं – (2014)
(a) पाचन
(b) क्रमाकुंचन
(c) परिसंचरण
(d) अवशोषण
उत्तर:
(b) क्रमाकुंचन

प्रश्न 18.
जठर रस स्रावित होता है – (2018)
(a) अग्न्याशय में
(b) पित्ताशय में
(c) आमाशय में
(d) यकृत में
उत्तर:
(c) आमाशय में

प्रश्न 19.
जठर रस में निम्नलिखित में से एक नहीं पाया जाता है – (2009)
(a) पेप्सिन
(b) रेनिन
(c) ट्रिप्सिन
(d) जठर लाइपेज
उत्तर:
(c) ट्रिप्सिन

प्रश्न 20.
एमाइलेज एन्जाइम क्रिया करता है – (2012)
(a) प्रोटीन्स पर
(b) कार्बोहाइड्रेट पर
(c) वसा पर
(d) लवणों पर
उत्तर:
(b) कार्बोहाइड्रेट पर।

प्रश्न 21.
वह एन्जाइम जो सुक्रोज को ग्लूकोज तथा फ्रक्टोज में बदलता है, है (2009)
(a) सुक्रेज
(b) लैक्टेज
(c) लाइपेज
(d) नास्टेज
उत्तर:
(a) सुक्रेज

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प्रश्न 22.
वसा में घुलनशील विटामिन है – (2010)
(a) थायमीन
(b) रेटीनॉल
(c) एस्कॉर्बिक एसिड
(d) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(b) रेटीनॉल

प्रश्न 23.
ट्रिप्सिन पाचन में सहायता करता है – (2010)
(a) कार्बोहाइड्रेट
(b) प्रोटीन
(c) वसा
(d) प्रोटीन और वसा दोनों
उत्तर:
(b) प्रोटीन

प्रश्न 24.
स्टिएप्सिन एंजाइम क्रिया करता है – (2014)
(a) प्रोटीन पर
(b) स्टार्च पर
(c) वसा पर
(d) लवणों पर
उत्तर:
(c) वसा पर

उत्तर 25.
निम्न में से विटामिन्स का कौन-सा जोड़ा जल में घुलनशील है? (2017)
(a) विटामिन A तथा B
(b) विटामिन B तथा C
(c) विटामिन C तथा K
(d) विटामिन D तथा B
उत्तर:
(b) विटामिन B तथा C

प्रश्न 26.
किस विटामिन की कमी से स्कर्वी रोग होता है? (2012)
(a) बी
(b) सी
(c) ए
(d) डी
उत्तर:
(b) सी

प्रश्न 27.
विटामिन ‘C’ का अच्छा स्रोत है – (2015)
(a) अण्डा
(b) मछली
(c) गेहूँ
(d) संतरा
उत्तर:
(d) संतरा

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प्रश्न 28.
बेरी-बेरी रोग किस विटामिन की कमी से होता है? (2016)
(a) विटामिन B1
(b) विटामिन B2
(c) विटामिन B3
(d) विटामिन B5
उत्तर:
(a) विटामिन B1

प्रश्न 29.
सन्तुलित आहार में उपयुक्त मात्रा में विद्यमान होते हैं –
(a) प्रोटीन
(b) खनिज-लवण तथा विटामिन
(c) वसा तथा कार्बोहाइड्रेट
(d) ये सभी तत्त्व
उत्तर:
(d) ये सभी तत्त्व

प्रश्न 30.
व्यक्ति को सन्तुलित आहार ग्रहण करना चाहिए, क्योंकि इससे –
(a) ऊर्जा प्राप्त होती है
(b) भूख मिट जाती है
(c) आहार सम्बन्धी समस्त आवश्यकताएँ पूरी होती हैं
(d) शरीर मोटा हो जाता है
उत्तर:
(c) आहार सम्बन्धी समस्त आवश्यकताएँ पूरी होती हैं।

प्रश्न 31.
भोज्य-पदार्थ में विद्यमान ऊर्जा के मापन की इकाई है
(a) औंस
(b) ग्राम
(c) डिग्री
(d) कैलोरी
उत्तर:
(d) कैलोरी

प्रश्न 32.
निम्नलिखित में से मनुष्य की लार में पाया जाता है – (2017)
(a) टायलिन
(b) लाइसोजाइम
(b) पेप्सिन
(d) टायलिन व लाइसोजाइम दोनों
उत्तर:
(a) टायलिन

प्रश्न 33.
अग्न्याशयिक रस किसके पाचन में सहायक होता है ? (2011)
(a) प्रोटीन
(b) प्रोटीन एवं वसा
(c) प्रोटीन एवं कार्बोहाइड्रेट
(d) प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट एवं वसा
उत्तर:
(d) प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट एवं वसा

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प्रश्न 34.
हीमोग्लोबिन महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है – (2013, 17)
(a) उत्सर्जन में
(b) श्वसन में
(c) पाचन में
(d) वृद्धि में
उत्तर:
(b) श्वसन में

प्रश्न 35.
ऊर्जा की मुद्रा है – (2018)
(a) डी०एन०ए०
(b) आर०एन०ए०
(c) ए०टी०पी०
(d) क्लोरोफिल
उत्तर:
(c) ए०टी०पी०

प्रश्न 36.
ग्लाइकोलाइसिस की प्रक्रिया सम्पन्न होती है – (2015)
(a) कोशिका द्रव्य में
(b) राइबोसोम में
(c) माइटोकॉण्ड्रिया में
(d) अन्त:प्रद्रव्यी जालिका में
उत्तर:
(a) कोशिका द्रव्य में

प्रश्न 37.
ग्लाइकोजेनेसिस क्रिया में बनता है – (2017)
(a) ग्लूकोज
(b) ग्लाइकोजन
(c) विटामिन्स
(d) प्रोटीन्स
उत्तर:
(a) ग्लूकोज

प्रश्न 38.
ग्लाइकोलाइसिस के अंत में कितने ATP अणुओं का लाभ होता है?
(a) दो
(b) शून्य
(c) चार
(d) आठ
उत्तर:
(a) दो

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प्रश्न 39.
मानव हृदय में कक्षों (वेश्म) की संख्या होती है – (2014)
(a) एक
(b) दो
(c) तीन
(d) चार
उत्तर:
(d) चार

प्रश्न 40.
पल्मोनरी (फुफ्फुस)शिरा खुलती है या रुधिर लाती है (2011, 12, 15)
(a) दाहिने अलिन्द में
(b) बायें अलिन्द में
(c) बायें निलय में
(d) दाहिने निलय में
उत्तर:
(b) बायें अलिन्द में

प्रश्न 41.
फेफड़ों से शद्ध रक्त आता है – (2013, 17, 18)
(a) बायें अलिन्द में
(b) दायें अलिन्द में
(c) बायें निलय में
(d) दायें निलय में
उत्तर:
(a) बायें अलिन्द में (2014)

प्रश्न 42.
शुद्ध रुधिर को शरीर के विभिन्न भागों में ले जाती है। (2014, 18)
(a) शिराएँ
(b) महाशिरा
(c) दायाँ निलय
(d) महाधमनी
उत्तर:
(d) महाधमनी

प्रश्न 43.
रुधिर के कितने समूह होते हैं? (2017)
(a) छः
(b) दो
(c) चार
(d) आठ
उत्तर:
(c) चार

प्रश्न 44.
रक्त का लाल रंग किस पदार्थ की उपस्थिति के कारण होता है? (2016)
(a) हीम
(b) न्यूक्लिक अम्ल
(c) विटामिन C
(d) पोटेशियम
उत्तर:
(a) हीम

प्रश्न 45.
लसीका में नहीं पायी जाती है – (2018)
(a) लाल रूधिर कणिकाएँ
(b) लिम्फोसाइट्स
(c) श्वेत रूधिराणु
(d) उत्सर्जी पदार्थ
उत्तर:
(a) लाल रूधिर कणिकाएँ

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प्रश्न 46.
फुफ्फुस धमनियों से अशुद्ध रुधिर चला जाता है – (2011)
(a) हृदय में
(b) फेफड़ों में
(c) शरीर की अग्र एवं पश्च महाधमनी में
(d) दाएँ अलिन्द में
उत्तर:
(b) फेफड़ों में

प्रश्न 47.
फ्लोएम द्वारा भोजन का स्थानान्तरण होता है – (2013, 14)
(a) सुक्रोज के रूप में
(b) प्रोटीन के रूप में
(c) हॉर्मोन्स के रूप में
(d) वसा के रूप में
उत्तर:
(a) सुक्रोज के रूप में

प्रश्न 48.
खनिज लवणों का अवशोषण होता है – (2009)
(a) जड़ों द्वारा
(b) तने द्वारा
(c) पत्तियों द्वारा
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(a) जड़ों द्वारा

प्रश्न 49.
पौधों में भोजन का स्थानान्तरण होता है – (2012, 14)
(a) जाइलम द्वारा
(b) फ्लोएम द्वारा
(c) कॉर्टेक्स द्वारा
(d) मज्जा द्वारा
उत्तर:
(b) फ्लोएम द्वारा

प्रश्न 50.
किस क्रिया द्वारा जड़ों द्वारा अवशोषित जल तथा खनिज लवण पत्तियों तक पहुँचते – (2013)
(a) वाष्पोत्सर्जन
(b) रसारोहण
(c) रसाकर्षण तंत्र
(d) परासरण
उत्तर:
(b) रसारोहण

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प्रश्न 51.
निम्नलिखित में से कौन-सा त्वचा का कार्य नहीं है? (2016)
(a) संवेदना
(b) सुरक्षा
(c) लैंगिक लक्षण
(d) उत्सर्जन
उत्तर:
(c) लैंगिक लक्षण

प्रश्न 52.
मनुष्य में दुग्ध ग्रन्थि (स्तन ग्रन्थि ) रूपान्तरित रचना है। (2011, 13)
(a) स्वेद ग्रन्थि की
(b) तेल ग्रन्थि की
(c) लार ग्रन्थि की
(d) जठर ग्रन्थि की
उत्तर:
(b) तेल ग्रन्थि की

प्रश्न 53.
त्वचा के रंगाकण ( उपस्थित ) होते हैं – (2010)
(a) डर्मिस में
(b) एपिडर्मिस में
(c) मैल्पीघी स्तर की मैलेनोसाइट कोशिकाओं में
(d) कणि स्तर की कोशिकाओं में
उत्तर:
(c) मैल्पीघी स्तर की मैलेनोसाइट कोशिकाओं में

प्रश्न 54.
यकृत संश्लेषित करता है – (2011)
(a) शर्करा
(b) रुधिर
(c) यूरिया
(d) प्रोटीन
उत्तर:
(c) यूरिया

प्रश्न 55.
अमोनिया का यूरिया में परिवर्तन करता है – (2018)
(a) अग्न्याशय
(b) यकृत
(c) आमाशय
(d) वृक्क
उत्तर:
(b) यकृत

प्रश्न 56.
बोमेन-सम्पुट भाग है – (2017)
(a) पित्तवाहिनी का
(b) अग्न्याशय वाहिनी का
(c) प्रोस्टेट ग्रन्थि का
(d) वृक्क नलिका का
उत्तर:
(d) वृक्क नलिका का

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प्रश्न 57.
गर्मियों के दिनों में किस कारण दोपहर में पौधे मुरझा जाते हैं? (2017)
(a) वाष्पोत्सर्जन की कमी के कारण
(b) वाष्पोत्सर्जन की अधिकता के कारण
(c) प्रकाश-संश्लेषण की कमी के कारण
(d) प्रकाश-संश्लेषण की अधिकता के कारण
उत्तर:
(b) वाष्पोत्सर्जन की अधिकता के कारण

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
प्रकाश-संश्लेषण किसे कहते हैं? प्रकाश-संश्लेषण के लिए आवश्यक विभिन्न घटकों के नाम लिखिए। (2013, 14, 15, 17)
या प्रकाश-संश्लेषण की परिभाषा लिखिए तथा इस क्रिया की रासायनिक अभिक्रिया का समीकरण बताइए। (2016, 17)
उत्तर:
प्रकाश-संश्लेषण, वह उपचायक क्रिया है जिसके द्वारा अकार्बनिक सरल यौगिकों, जल तथा कार्बन डाइऑक्साइड को प्रकाशीय ऊर्जा के द्वारा कार्बोहाइड्रेट्स के रूप में बदल दिया जाता है। प्रकाशीय ऊर्जा का उपयोग पर्णहरित (chlorophyll) की उपस्थिति में किया जाता है तथा इसमें ऑक्सीजन उप-उत्पाद के रूप में निकलती है।
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विभिन्न घटक प्रकाश-संश्लेषण के लिए निम्न पदार्थ अति आवश्यक हैं –

  1. सूर्य का प्रकाश
  2. कार्बन डाइऑक्साइड
  3. जल
  4. क्लोरोफिल

प्रश्न 2.
मनुष्य के दाँतों की दो विशेषताओं का उल्लेख कीजिए। (2010)
उत्तर:
मनुष्य के 32 दाँत होते हैं तथा इनकी निम्नलिखित दो विशेषतायें होती हैं –
1. ये गर्तदन्ती (thecodont) अर्थात् अस्थियों के गर्त में फँसे होते हैं।
2. मनुष्य के जीवन में दो बार दाँत निकलते हैं अर्थात् ये द्विबारदन्ती (diphyodont) होते हैं।

प्रश्न 3.
मनुष्य के प्रत्येक जबड़े में अग्रचर्वणक दाँतों की संख्या बताइए तथा इनके कार्य लिखिए। (2012, 18)
उत्तर:
प्रत्येक जबड़े में अग्रचर्वणक दाँतों की संख्या दो जोड़ी होती है। ये भोजन को कुंचने या चबाने का कार्य करते हैं।

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प्रश्न 4.
आहारनली के विभिन्न भागों के नाम लिखिए। (2015)
उत्तर:
आहारनली के विभिन्न भाग निम्नलिखित हैं –

  1. मुख व मुखगुहा
  2. ग्रसनी
  3. ग्रासनली
  4. आमाशय तथा
  5. आँत।

प्रश्न 5.
रसांकुर (villi) कहाँ स्थित होते हैं? इनका क्या महत्त्व है?
या रसांकुर का प्रमुख कार्य लिखिए।
उत्तर:
रसांकुर छोटी आंत में, विशेषकर शेषान्त्र (ilium) में पाये जाते हैं। ये आन्त्र के अवशोषण तल को अत्यधिक (लगभग 10 गुना) बढ़ा देते हैं। इस प्रकार ये पचे हुए भोजन के अवयवों के अधिक अवशोषण में सहायता करते हैं।

प्रश्न 6.
क्रमाकुंचन से आप क्या समझते हैं? स्पष्ट कीजिए। (2011)
उत्तर:
भोजन को आहार नाल में आगे बढ़ाने के लिए क्रमाकुंचन नामक एक विशेष प्रकार की गति होती है जिससे भोजन पाचक रस के साथ अच्छी तरह मिल जाता है।

प्रश्न 7.
अवशोषण तथा स्वांगीकरण में क्या अन्तर है? (2016)
उत्तर:
आहारनाल में पचित भोजन के अणुओं के विसरित होकर रुधिर में पहुँचने की क्रिया को अवशोषण कहते हैं। जबकि पचे हुए भोजन को अवशोषित कर कोशिका के जीवद्रव्य तक पहुँचाने के बाद भोजन के तत्त्वों को कोशिका में जीवद्रव्य के स्वरूप में विलीन होने की क्रिया को स्वांगीकरण (assimilation) कहते हैं।

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प्रश्न 8.
विटामिन ‘डी’ (D) की कमी से होने वाले दो रोगों के नाम लिखिए।
उत्तर:
विटामिन ‘डी’ (D) की कमी से होने वाले दो रोग निम्नांकित हैं –
1. सूखा रोग या रिकेट्स (rickets)
2. मृदुलास्थिरोग या ऑस्टोमैलेशिया (osteomalacia)।

प्रश्न 9.
प्रोटीन्स क्या है? इनका निर्माण किन-किन अवयवों के भाग लेने से होता है। (2014)
उत्तर:
प्रोटीन की रचना जटिल होती है। ये जीवित शरीर का 14% भाग बनाती हैं। ये सामान्यतः कार्बन, हाइड्रोजन, ऑक्सीजन तथा नाइट्रोजन के संयोग से बनी होती हैं। इसके अतिरिक्त गन्धक, फॉस्फोरस, आयोडीन तथा लोहा आदि भी इनमें आंशिक रूप से उपस्थित होते हैं। इनकी संयोजन इकाइयाँ अमीनो अम्ल होते हैं।

प्रश्न 10.
विटामिन ‘ए’ (A) की कमी से कौन-सा रोग हो जाता है? इसके भोज्य स्रोतों को लिखिए। (2009)
उत्तर:
विटामिन ‘A’ की कमी से रतौंधी (night blindness) नामक रोग हो जाता है। इसके भोज्य स्रोत गाजर, हरी सब्जियाँ, घी, मक्खन, अण्डे, मछली का तेल आदि हैं।

प्रश्न 11.
कौन-सा एन्जाइम प्रोटीन पाचन में सहायक है? (2010)
या किन्हीं दो प्रोटीन पाचक एन्जाइमों के नाम लिखिए। (2009)
उत्तर:
आमाशय के जठर रस में (अम्लीय माध्यम में) पेप्सिन (pepsin) तथा अग्न्याशयिक रस में (क्षारीय माध्यम में) ट्रिप्सिन (trypsin) प्रोटीन पाचन में सहायक हैं।

प्रश्न 12.
सन्तुलित आहार से क्या आशय है? (2017)
उत्तर:
सन्तुलित आहार वह आहार है जिसमें शरीर की वृद्धि, विकास कार्य तथा स्वास्थ्य संरक्षण के लिए सभी आवश्यक तत्त्व विद्यमान हैं। ये तत्त्व उसमें मात्रा व गुणों में सन्तुलित रूप में पाये जाते हैं।

प्रश्न 13.
सन्तुलित भोजन को निर्धारित करने वाले चार मुख्य कारकों के नाम बताइए। (2017)
उत्तर:

  1. व्यक्ति की आयु
  2. लिंग
  3. व्यक्ति के शरीर का आकार
  4. जलवायु तथा
  5. शारीरिक श्रम।

प्रश्न 14.
अन्तर नासिका पट किसे कहते हैं? उसका क्या कार्य है? (2013)
उत्तर:
चेहरे पर स्थित नासिका दो बाह्य नासा छिद्रों के द्वारा बाहर खुलती है। नासिका के मध्य एक नासा पट होता है, इसे अन्तर नासिका पट कहते हैं। इससे नासा गुहा दो भागों में बँट जाती है।

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प्रश्न 15.
NADP का पूरा नाम लिखिए। (2010, 12)
उत्तर:
NADP = निकोटिनैमाइड एडीनीन डाइ न्यूक्लियोटाइड फॉस्फेट (nicotinamide adenine dinucleotide phosphate)

प्रश्न 16.
ए०टी०पी० तथा ए०डी०पी० का पूरा नाम लिखिए। (2012)
उत्तर:
ए०टी०पी० (ATP) = एडीनोसीन ट्राइफॉस्फेट; ए०डी०पी० (ADP) = एडीनोसीन डाइफॉस्फेट।

प्रश्न 17.
श्वसन को परिभाषित कीजिए। (2012, 13, 15, 16)
उत्तर:
श्वसन वह क्रिया है जिसमें कोशिका के अन्दर कार्बनिक यौगिकों; प्राय: ग्लूकोज का ऑक्सीकरण होता है। इस क्रिया में कार्बन डाइऑक्साइड तथा ऊर्जा उत्पन्न होती है। इस ऊर्जा को विशेष ATP अणुओं में विभवीय ऊर्जा के रूप में संचित किया जाता है।
C6H12O6 + 6O2 → 6CO2 + 6H2O + 673 किलो केलोरी

प्रश्न 18.
एक ग्लूकोज अणु के पूर्ण ऑक्सीकरण से ए०टी०पी० के कितने अणु प्राप्त होते हैं? (2010)
उत्तर:
एक अणु ग्लूकोज (C6H12O6) के पूर्ण ऑक्सीकरण से कुल 38 ए०टी०पी० अणु बनते

प्रश्न 19.
रुधिर का रंग लाल क्यों होता है?
उत्तर:
रुधिर में उपस्थित ऑक्सीजन युक्त हीमोग्लोबिन के कारण शुद्ध रुधिर का रंग लाल दिखाई देता है।

प्रश्न 20.
हृदयावरणी (pericardial) तरल पदार्थ कहाँ पाया जाता है? इसका महत्त्व लिखिए।
उत्तर:
हृदयावरणी तरल पदार्थ हृदय तथा हृदयावरण के चारों ओर तथा दोनों हृदयावरणी परतों के मध्य पाया जाता है। यह हृदय की बाहरी आघातों से सुरक्षा करता है तथा हृदय को मुलायम व नम बनाये रखता है।

प्रश्न 21.
रुधिर में एन्टीजन एवं एण्टीबॉडी कहाँ पाये जाते हैं? (2013, 17)
उत्तर:
एण्टीजन लाल रुधिर कणिकाओं में तथा एण्टीबॉडी प्लाज्मा में पाये जाते हैं।

प्रश्न 22.
रुधिर की कौन-सी कोशिकाएँ ऑक्सीजन परिवहन में भाग लेती हैं?
उत्तर:
रुधिर की लाल रुधिर कोशिकाएँ या कणिकाएँ (RBCs = red blood corpuscles or erythrocytes) ऑक्सीजन के परिवहन में भाग लेती हैं।

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प्रश्न 23.
कौन-सी शिरा हृदय में ऑक्सीकृत रुधिर लाती है? या किस शिरा में शद्ध रुधिर पाया जाता है? (2009)
उत्तर:
फुफ्फुस शिराओं में शुद्ध रुधिर (ऑक्सीजन युक्त) पाया जाता है। ये हृदय में रुधिर ले जाती

प्रश्न 24.
पल्मोनरी धमनी में किस प्रकार का रुधिर पाया जाता है और क्यों? (2009, 17)
उत्तर:
पल्मोनरी धमनी हृदय से रुधिर फेफड़ों में ले जाती है अत: इसमें अशुद्ध (ऑक्सीजन विहीन) रुधिर होता है।

प्रश्न 25.
रुधिर दाब किसे कहते हैं? (2012)
उत्तर:
रुधिर दाब वह दाब है जो बायें निलय के संकुचन से मुक्त रुधिर द्वारा वाहिनियों की भित्ति पर लगाया जाता है। धमनियों में यह अधिक होता है तथा धीरे-धीरे केशिकाओं में रुधिर के पहुंचने पर कम होने लगता है तथा शिराओं में सबसे कम होता है। रुधिर दाब के कारण ही धमनियों से रुधिर केशिकाओं के द्वारा शिराओं तक पहुँचता है।

प्रश्न 26.
परासरण किसे कहते हैं? (2013)
उत्तर:
परासरण एक विशेष प्रकार की विसरण क्रिया है जिसमें दो विलयनों (घोलों) का विलायक एक अर्द्धपारगम्य झिल्ली के आर-पार आता-जाता है। इस क्रिया में दो अनुक्रियायें सम्मिलित हैं –
1. अन्तःपरासरण (endosmosis) जिसमें तनु घोल से सान्द्र घोल की ओर होने वाला विसरण तथा
2. बहि:परासरण (exosmosis) जिसमें सान्द्र विलयन से तनु विलयन की ओर विसरण होता है।

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प्रश्न 27.
जाइलम तथा फ्लोएम में अन्तर स्पष्ट कीजिए। (2014, 16)
या पादपों में जल एवं खनिज तथा खाद्य उत्पादों के संवहन हेतु पायी जाने वाली वाहिकाओं के नाम बताइए। (2016)
उत्तर:
जाइलम ऊतक पौधों में जल स्थानान्तरित करता है जबकि पौधों में भोजन का स्थानान्तरण फ्लोएम ऊतकों द्वारा होता है।

प्रश्न 28.
मूलदाब की परिभाषा दीजिए। (2012)
उत्तर:
मूलदाब वह दाब है जो जड़ों की कॉर्टेक्स कोशिकाओं द्वारा पूर्ण स्फीत अवस्था में उत्पन्न होता है जिसके फलस्वरूप कोशिकाओं में एकत्रित जल न केवल जाइलम में पहुँचता है बल्कि तने में भी कुछ ऊँचाई तक चढ़ जाता है।

प्रश्न 29.
वह कौन-सी कार्यिकी की क्रिया है जिसके द्वारा हरे पौधों की वायवीय सतह से पानी का वाष्पीकरण होता है? (2011)
उत्तर:
वाष्पोत्सर्जन।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
नामांकित चित्र की सहायता से दिखाइए कि प्रकाश-संश्लेषण के लिए क्लोरोफिल आवश्यक है। (2016)
उत्तर:
इस प्रयोग को करने के लिए क्रोटॉन (Croton), कोलियस (Coleus) या अन्य कोई चित्तीदार पत्तियों का पौधा लेते हैं जिसकी पत्तियों पर हरे रंग के केवल धब्बे होते हैं अर्थात् केवल इन्हीं स्थानों के अन्दर पर्णहरित (chlorophyll) होता है। इसको अन्धकार में रखकर (लगभग 24 घण्टे) मण्डरहित कर लेते हैं।

कुछ समय (लगभग 4-5 घण्टे) सूर्य के प्रकाश में रखने के बाद यदि आप पौधे की एक पत्ती का मण्ड परीक्षण करेंगे तो केवल उन्हीं स्थानों में मण्ड बना मिलेगा जिन स्थानों पर हरा रंग था। क्लोरोफिल युक्त स्थानों को मण्ड परीक्षण से पूर्व ही चिह्नित कर देते हैं (चित्र देखें)। यह प्रयोग सिद्ध करता है कि क्लोरोफिल के बिना मण्ड नहीं बनता अर्थात् प्रकाश-संश्लेषण नहीं होता है।
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प्रश्न 2.
प्रयोगों द्वारा सिद्ध कीजिए कि प्रकाश संश्लेषण के लिए प्रकाश एवं कार्बन डाइऑक्साइड आवश्यक है। (2013, 14, 15, 17, 18)
या प्रकाश संश्लेषण की क्रिया में CO2 का क्या महत्त्व है? प्रयोग द्वारा स्पष्ट करें। (2014, 17)
उत्तर:
प्रकाश की आवश्यकता का प्रदर्शन –
किसी गमले में लगे पौधे को (जिसकी पत्तियाँ मोटी न हों) अन्धकार में 48-72 घण्टे रखने से पत्तियों का सम्पूर्ण मण्ड घुलकर दूसरे अंगों में चला जाता है। ऐसी पत्तियाँ मण्ड रहित कहलाती हैं।
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गमले में लगी किसी मण्डरहित पत्ती (एक अन्य पत्ती का मण्ड परीक्षण करने से ज्ञात होगा कि पत्तियाँ मण्डरहित हो गई हैं) की दोनों सतहों पर एक-एक काले कागज का टुकड़ा, पेपर क्लिप की सहायता से स्लाइड के नीचे लगाया जाता है (देखें चित्र)। ऊपर के कागज पर कोई भी अक्षर या अन्य चित्र काटकर बनाया जा सकता है।

कुछ समय (4-5 घण्टे) उपकरण को धूप में रख देते हैं। बाद में उपर्युक्त पत्ती का मण्ड परीक्षण करते हैं। यह अक्षर या चित्र नीले या काले रंग में छप जाता है क्योंकि इन स्थानों पर प्रकाश मिला था तथा मण्ड बना है। इस प्रयोग में काले कागज के स्थान पर फोटोग्राफी की नेगेटिव प्लेट भी प्रयोग में ला सकते हैं, वैसा ही चित्र, पोजिटिव प्रिण्ट या स्टार्च प्रिण्ट के रूप में मण्ड से छप जायेगा।

कार्बन डाइऑक्साइड गैस की आवश्यकता का प्रदर्शन –
एक चौड़े मुँह की बोतल रबर के कॉर्क के साथ लेते हैं। कॉर्क को दो अर्धांशों में लम्बाई में काट देते हैं। एक मण्ड रहित पत्ती को पौधे पर लगी हुई अवस्था में ही (अथवा तोड़कर) आधा बोतल के अन्दर तथा आधा बाहर (कॉर्क की सहायता से) लगाकर, कुछ समय के लिए उपकरण को धूप में छोड़ देते हैं। पौधे से पत्ती को अलग किया गया है तो उसके वृन्त को जल में डुबाकर रखना चाहिए। बोतल में पहले से ही पोटैशियम हाइड्रॉक्साइड (KOH) विलयन रखा जाता है जो बोतल के अन्दर की वायु से CO2 को अवशोषित कर लेता है।
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प्रयोग-प्रयोग विधि। प्रयोग में लायी गई पत्ती को पौधे से अलग करके मण्ड परीक्षण करने पर पता लगता है कि बोतल के अन्दर रहे भाग में कोई मण्ड नहीं बना (यह भाग नीला या काला नहीं होता) जबकि बोतल के बाहर रहे भाग में मण्ड बना है। अत: सिद्ध होता है कि बिना कार्बन डाइऑक्साइड के प्रकाश संश्लेषण नहीं होता है।

प्रश्न 3.
प्रकाश-संश्लेषण को प्रभावित करने वाले कारकों का उल्लेख कीजिए। (2012, 14)
उत्तर:
प्रकाश-संश्लेषण की दर अनेक बाह्य तथा अन्तः कारकों से प्रभावित होती है। ये कारक निम्नलिखित हैं बाह्य कारक प्रकाश, ताप, वायु, जल, प्राप्त खनिज। अन्तः कारक पत्ती की संरचना, स्टोमेटा की स्थिति, संरचना संख्या एवं वितरण तथा पेलिसेड कोशिकाओं में पर्णहरित की मात्रा।

प्रश्न 4.
प्रकाश-संश्लेषण की उपयोगिता पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए। (2017)
उत्तर:
1. भोज्य पदार्थों का उत्पादन: (Production of food) प्रत्येक प्रकार के खाद्य पदार्थों (कार्बोहाइड्रेट्स, प्रोटीन व वसाएँ) के निर्माण का आधार ही प्रकाश-संश्लेषण है। पौधे अपने लिए इन खाद्य पदार्थों को इसी क्रिया के द्वारा बड़े पैमाने पर बनाते हैं। यही पौधे समस्त जीवों के लिए आवश्यक क्रियाओं में भी काम आते हैं। अन्य सभी जीव अपना भोजन इन्हीं पौधों से प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप में प्राप्त करते हैं।

आपको पहले बताया गया है कि हरे पौधे, जो प्रकाश-संश्लेषक हैं, इसीलिए उत्पादक (producers) तथा शेष सभी जीव उपभोक्ता (consumers) कहलाते हैं। वास्तव में सम्पूर्ण पृथ्वी पर समस्त जीवन ही इस क्रिया पर निर्भर करता है। इस क्रिया में ही सूर्य की विकिरण ऊर्जा, रासायनिक ऊर्जा के रूप में, भोज्य पदार्थों में एकत्रित हो जाती है जो प्रत्येक जीव के लिए आवश्यक है।

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2. ऊर्जा का स्त्रोत: (Source of energy) सजीवों, जिनमें पौधे भी सम्मिलित हैं, के लिए पौधों द्वारा निर्मित भोजन ही ऊर्जा का स्रोत है। शरीर को चलाने के लिये आवश्यक ऊर्जा भोजन से ही मिलती है। कोयला, तेल (पेट्रोल, डीजल, मिट्टी का तेल आदि), गैसें आदि ईंधन भी तो भूगर्भ में पुरातन काल में संचित स्रोत हैं जो पौधों के द्वारा प्रतिपादित इसी क्रिया में बने थे। आज इन्हीं को हम ऊर्जा के रूप में प्रयोग में लाते हैं। जन्तुओं तथा पौधों के मध्य, प्रकृति में, पदार्थों का चक्रीय उपभोग चलता रहता है तथा इसी से सन्तुलन बना रहता है।

3. वायुमण्डल का नियन्त्रण, शुद्धिकरण तथा जैव सन्तुलन: (Control, purification of atmosphere and biotic balance) प्रकाश-संश्लेषण, वायुमण्डल में कार्बन डाइऑक्साइड तथा ऑक्सीजन गैसों के अनुपात को नियन्त्रित करता है। सभी जीव श्वसन के लिए ऑक्सीजन काम में लाते हैं तथा कार्बन डाइऑक्साइड वायुमण्डल में डालते हैं। अत: दोनों प्रकार से ही वायुमण्डल अशुद्ध होता है। प्रकाश-संश्लेषण क्रिया ही बढ़ी हुई कार्बन डाइऑक्साइड के अनुपात को कम और गिरे हुए ऑक्सीजन अनुपात को अधिक करती है। इस प्रकार जैवीय सन्तुलन बना रहता है।

4. अन्तरिक्ष यात्रा में: (In space travel) अन्तरिक्ष यात्रा के लिए ऑक्सीजन तथा भोजन दोनों की उपलब्धि प्रकाश-संश्लेषण की क्रिया द्वारा प्राप्त करने के प्रयास किये गये हैं। इन प्रयासों में काफी सीमा तक सफलता भी प्राप्त हुई है। क्लोरेला (Chlorella) जैसे शैवालों इत्यादि को उगाकर इस समस्या को हल किया जा रहा है। उपर्युक्त के आधार पर प्रकाश-संश्लेषण पृथ्वी पर जीवन को चलाये रखने के लिए एक अतिमहत्त्वपूर्ण क्रिया है।

प्रश्न 5.
मनुष्य के पाचनतन्त्र का नामांकित चित्र बनाइये।(वर्णन की आवश्यकता नहीं है।) (2012, 16, 18)
उत्तर:
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प्रश्न 6.
मनुष्य में पाए जाने वाले दाँतों के प्रकार तथा उनके कार्यों का वर्णन कीजिए। (2016)
उत्तर:
एक वयस्क व्यक्ति में निचले तथा ऊपरी जबड़े में कुल मिलाकर 32 दाँत (teeth) होते हैं। मनुष्य के जीवन में दो बार दाँत निकलते हैं अत: इसे द्विबारदन्ती (diphyodont) कहते हैं। दाँतों की संख्या उम्र के साथ बदलती रहती है। इस प्रकार आयु के आधार पर दाँत दो प्रकार के होते हैं –
1. अस्थायी दाँत:
इन्हें दूध के दाँत भी कहते हैं। ये बच्चे में लगभग 6 माह से निकलने प्रारम्भ हो जाते हैं और 2-3 वर्ष तक कुल 20 निकलते हैं। ये 7-8 वर्ष की अवस्था तक रहते हैं।

2. स्थायी दाँत:
ये दूध के दाँतों के गिरने पर निकलते हैं तथा लगभग 20 वर्ष की आयु तक 28 दाँत निकल आते हैं। बाद में, चार और दाँत निकलते हैं। इन्हें अक्ल दाढ़ कहते हैं। स्थायी दाँतों की कुल संख्या 32 होती है। दोनों जबड़ों में स्थायी दाँत निम्नांकित चार प्रकार के होते हैं –

  • कृन्तक: (incisors) ये संख्या में कुल आठ होते हैं। इनके किनारे तेज धार वाले होते हैं, जो भोजन को कुतरने का कार्य करते हैं।
  • रदनक: (canine) इन्हें भेदक भी कहते हैं। इनकी संख्या चार होती है। कुछ लम्बे व नुकीले होने के कारण ये भोजन को चीरने-फाड़ने का कार्य करते हैं।
  • अग्रचर्वणक: (premolars) प्रत्येक जबड़े में दो जोड़ी होते हैं। इनके सिरे पर दो शिखर होते हैं, जो चपटे एवं चौकोर होते हैं। ये भोजन को कुचलने का कार्य करते हैं।
  • चर्वणक: (molars) प्रत्येक जबड़े में तीन जोड़ी अर्थात् कुल बारह होते हैं। इनके सिरे चौरस, तेज धार वाले होते हैं। ये भोजन को पीसते हैं।

प्रश्न 7.
जीभ पाचन तन्त्र का एक महत्त्वपूर्ण अंग है। स्पष्ट कीजिए। (2011)
उत्तर:
मुखगुहा के फर्श पर जीभ होती है जो भोजन का स्वाद चखती है, भोजन चबाते समय उसको उलटती-पलटती रहती है, उसमें लार को मिलाने में सहायता करती है और चबाये गये भोजन को निगलने में मदद करती है। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि जीभ पाचन-तन्त्र का एक महत्त्वपूर्ण अंग है।

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प्रश्न 8.
मनुष्य के शरीर में पाई जाने वाली लार ग्रन्थियों का संक्षिप्त विवरण दीजिए। (2017)
उत्तर:
मुखगुहा में अनेक छोटी-छोटी (सूक्ष्म) मुख ग्रन्थियाँ (buccal glands) उसकी श्लेष्मिका में होती हैं जो थोड़ी मात्रा में लार (saliva) स्रावित करती रहती हैं। जिह्वा की श्लेष्मिका में भी इसी प्रकार की सूक्ष्म ग्रन्थियाँ होती हैं। बड़ी तथा अधिक मात्रा में लार उत्पन्न करने वाली तथा वाहिकाओं द्वारा इसे मुखगुहा में पहुँचाने वाली निम्नलिखित तीन जोड़ी लार ग्रन्थियाँ होती हैं।

  1. कर्णपूर्व लार ग्रन्थियाँ:
    (parotid salivary glands) कानों के पास, कपोलों के पास व कपोलों में स्थित, ये सबसे बड़ी लार ग्रन्थियाँ होती हैं तथा ऊपरी जबड़े में वाहिकाओं, स्टेन्सेन्स नलिका (Stensen’s ducts) द्वारा चर्वणकों के पास खुलती हैं।
  2. अधोजिह्वा लार ग्रन्थियाँ:
    (sublingual salivary glands) जीभ के ठीक नीचे स्थित छोटी व संकरी ग्रन्थियाँ होती हैं और निचले जबड़े में दाँतों के पास ही कई स्थानों पर खुलती हैं।
  3. अधोहन लार ग्रन्थियाँ:
    (submaxillary salivary glands) निचले जबड़े के पश्च भाग में स्थित होती हैं। ये अगले दाँतों (निचले कृन्तकों) के पास लम्बी वाहिनियों, वारटन्स नलिकाओं (Wharton’s ducts) के द्वारा खुलती हैं।
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प्रश्न 9.
आमाशय किसे कहते हैं? उसके तीन प्रमुख कार्य लिखिए। (2014)
उत्तर:
आमाशय उदर गुहा में अनुप्रस्थ अवस्था में स्थित एक मशक के समान रचना है। यह आहारनाल का सबसे चौड़ा भाग है जिसकी लम्बाई लगभग 24 सेमी तथा चौड़ाई 10 सेमी होती है। आमाशय के कार्य

  1. भोजन का संग्रह
  2. भोजन को पतला लेई जैसा बनाना
  3. भोजन का पाचन।

प्रश्न 10.
यकृत के प्रमुख कार्य बताइये। (2018)
या मानव शरीर में पायी जाने वाली सबसे बड़ी ग्रन्थि कौन-सी है? उसके कार्य का वर्णन कीजिए। (2011, 12)
या यकृत क्या है? इसके तीन मुख्य कार्य बताइए। (2013)
उत्तर:
मानव शरीर में सबसे बड़ी ग्रन्थि यकृत है। यकृत के कार्य

  1. यकृत कोशिकाएँ हिपेरिन नामक पदार्थ का स्राव करती हैं जो रुधिर वाहिनियों में रुधिर को जमने से रोकता है।
  2. आमाशयिक रस के अम्ल को प्रभावहीन करने के लिए यह पित्त बनाता है और भोजन को क्षारीय बनाता है।
  3. यह पचे हुए अवशोषित प्रोटीन को पेप्टोन तथा अमीनो अम्ल के रूप में। संचित रखता है।
  4. यकृत द्वारा निर्मित पित्त रस वसा का पायसीकरण करता है।
  5. यकृत शरीर के संचरण का \(\frac {1}{ 3}\) रुधिर संचरित करता है।
  6. यह रुधिर के निर्माण में भी सहायता करता है क्योंकि यकृत के अन्दर लाल रुधिर कणों का संचय, निर्माण व टूट-फूट आदि कार्य होते हैं।
  7. रुधिर में फाइब्रिनोजन का निर्माण होता है जो रुधिर को जमाने में सहायता देता है।
  8. यकृत शरीर का भण्डार गृह है। जब पाचन के बाद रुधिर में आवश्यकता से अधिक ग्लूकोज पहुँचता है तो वह यकृत कोशिकाओं में ग्लाइकोजन के रूप में संग्रहित हो जाता है।
  9. छोटी आँत, ग्रहणी तथा आमाशय में प्रोटीन के पाचन में बने अमीनो अम्लों को रुधिर यकृत में ले आता है। आवश्यकता से अधिक अमीनों अम्लों को यकृत द्वारा यूरिया में बदलकर मूत्र द्वारा शरीर से बाहर निकाल दिया जाता है। यदि शरीर में से यूरिया न निकले तो शरीर में गठिया आदि रोग हो जाते हैं।

प्रश्न 11.
आहारनाल से सम्बन्धित मुख्य पाचक ग्रन्थियों का संक्षेप में वर्णन करते हुए उनके मुख्य कार्य बताइए। (2015)
उत्तर:
आहारनाल से सम्बन्धित पाचक ग्रन्थियाँ:
आहारनाल के अन्दर विभिन्न स्थानों की श्लेष्मकला में उपस्थित विभिन्न पाचक ग्रन्थियों; जैसे – लार ग्रन्थियाँ, जठर ग्रन्थियाँ, आन्त्रीय ग्रन्थियाँ आदि के अतिरिक्त इससे सम्बन्धित तथा बड़ी-बड़ी दो पाचक ग्रन्थियाँ होती हैं।

1. यकृत यकृत शरीर में पायी जाने वाली सबसे बड़ी ग्रन्थि है। यह उदर गुहा में डायाफ्राम के ठीक पीछे, मीसेण्ट्री द्वारा सधा चॉकलेटी रंग का एक बड़ा-सा कोमल, परन्तु ठोस द्विपालित अंग (bilobed organ) होता है। बायीं पाली (left lobe) काफी छोटी तथा दायीं पाली (right lobe) काफी बड़ी होती है। यह हल्की प्रसिताओं (furrows) द्वारा तीन पालियों में बँटी होती है। यकृत की विभिन्न पालियों से छोटी-छोटी वाहिनियाँ निकलकर एक पित्त वाहिनी (bile duct) बनाती हैं। यह ग्रहणी में खुलती है। यकृत में एक क्षारीय रस बनता है जिसे पित्त रस (bile juice) कहते हैं। यह पाचन में सहायक है।

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2. अग्न्याशय ग्रहणी आमाशय के साथ ‘C’ आकार की रचना बनाती है। इसी के मध्य में यकृत तथा आमाशय के पीछे स्थित, मछली के आकार की कोमल एवं गुलाबी रंग की एक चपटी ग्रन्थि होती है, जिसे अग्न्याशय कहते हैं। यह यकृत के बाद शरीर की सबसे बड़ी ग्रन्थि होती है। इसमें दो विभिन्न प्रकार के ग्रन्थिल ऊतक भाग होते हैं –

(i) बाह्यस्रावी (exocrine part) तथा इसी में जगह-जगह अन्तःस्रावी (endocrine) कोशिकाओं के समूह होते हैं जिन्हें लैंगरहैन्स की द्वीपिकायें (islets of Langerhans) कहते हैं।

इस ग्रन्थि में पाचन के लिए अत्यन्त महत्त्वपूर्ण, अनेक एन्जाइम्स (enzymes) वाला अग्न्याशयिक रस (pancreatic juice) बनता है। अग्न्याशय की विभिन्न पालियों से छोटी-छोटी वाहिनियाँ उत्पन्न होती हैं, जो मिलकर अग्न्याशयी वाहिनियों (pancreatic ducts) का निर्माण करती हैं। ये वाहिनियाँ पित्त वाहिनी (bile duct) में खुलती हैं, जो स्वयं ग्रहणी के समीपस्थ भाग से सम्बन्धित होती है।

प्रश्न 12.
वसा का पाचन आहारनाल के किस भाग में होता है? उस पाचक रस का नाम लिखिए जो वसा के पाचन में सहायक होता है। (2011, 12)
उत्तर:
ग्रहणी व छोटी आँत में। लाइपेज भोजन की वसा पर क्रिया करके उसे वसीय अम्ल एवं ग्लिसरॉल में बदल देता है।

प्रश्न 13.
एन्जाइम्स क्या हैं? किन्हीं दो एन्जाइमों के नाम लिखकर उनके कार्य बताइए। (2017)
उत्तर:
पाचन क्रिया में कुछ रासायनिक क्रियाएँ होती हैं जिनमें कुछ सूक्ष्म मात्रा में पाये जाने वाले पदार्थों का विशेष महत्त्व है। ये पदार्थ इन क्रियाओं को उत्तेजित करते हैं तथा चलाते हैं। इन पदार्थों को विकर या एन्जाइम्स कहते हैं। ये एन्जाइम्स पाचक रसों में होते हैं। दो प्रमुख एन्जाइम व उनके कार्य इस प्रकार हैं –
1. ट्रिप्सिन: अधपचे प्रोटीन और पेप्टोन्स पर क्रिया करके उनको ऐमीनो अम्लों में बदलता है।
2. एमाइलोप्सिन: विभिन्न प्रकार की शर्कराओं और मण्ड को ग्लूकोस में बदलता है।

प्रश्न 14.
विटामिन की परिभाषा लिखिए। जल में घुलनशील दो विटामिनों के बारे में लिखिए। (2010)
या विटामिन के प्रकार लिखिए तथा उनके नामों का भी उल्लेख कीजिए। (2016)
उत्तर:
विटामिन्स (Vitamins) ये जटिल कार्बनिक पदार्थ हैं, जो शरीर को प्रतिरक्षा प्रदान करते हैं। इनकी कमी से अपूर्णता रोग (deficiency diseases) होते हैं। इन्हें वृद्धिकारक (growth factors) भी कहते हैं। विटामिन्स मुख्यत: दो प्रकार के होते हैं –
1. जल में घुलनशील, जैसे विटामिन्स ‘बी’, ‘सी’
2. वसा में घुलनशील, जैसे विटामिन्स ‘ए’, ‘डी’, ‘ई’, ‘के’

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प्रश्न 15.
निम्नलिखित विटामिन्स के स्त्रोत एवं उनकी कमी से होने वाली व्याधियों का वर्णन कीजिए।

  1. विटामिन A
  2. विटामिन B
  3. विटामिन C
  4. विटामिन D (2013)

किन्हीं चार विटामिनों के नाम, स्त्रोत तथा कार्य लिखिए। (2015)
उत्तर:
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प्रश्न 16.
पाचक रस पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए। (2013)
या मनुष्य में पाये जाने वाले पाचक रसों के कार्यों का वर्णन कीजिए। (2013)
या पित्त रस क्या है? यह कहाँ बनता है? इसके कार्य का उल्लेख कीजिए। (2017)
या यकृत तथा अग्न्याशय द्वारा स्रावित पदार्थों की पाचन क्रिया में उपयोगिता को समझाइए। (2017)
या अग्न्याशय द्वारा स्रावित दो पाचक एन्जाइम के नाम तथा कार्य लिखिए। (2018)
उत्तर:
पाचक रस भोजन को पचाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। पाचक रस निम्न प्रकार के होते हैं –

1. लार: लार भोजन को निगलने में सहायक होती है तथा कार्बोहाइड्रेट को पचाने में भी भाग लेती है। लार में उपस्थित टायलिन नामक एन्जाइम मण्ड को शर्करा में बदल देता है।

2. जठर रस: जठर ग्रन्थियों से जठर रस निकलता है तथा जठर रस में HCl, पेप्सिन तथा रेनिन नामक एन्जाइम होते हैं। HCl भोजन के माध्यम को अम्लीय करता है तथा भोजन के कठोर कणों को गला देता है। पेप्सिन प्रोटीन पर कार्यशील है और प्रोटीन को पेप्टोन्स तथा पेप्टाइड्स में बदल देता है।

3. पित्त रस तथा अग्न्याशयिक रस: ग्रहणी में, अग्न्याशय से निकलने वाला अग्न्याशयिक रस तथा यकृत से निकलने वाला पित्त रस आकर मिलते हैं। पित्त रस में कोई एन्जाइम नहीं होता है, फिर भी भोजन के पाचन में इसकी महत्त्वपूर्ण भूमिका है।

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क्योंकि यह भोजन के माध्यम को अम्लीय से बदलकर क्षारीय बनाता है। अग्न्याशयिक रस में पाये जाने वाले सभी एन्जाइम क्षारीय माध्यम में ही सक्रिय होते हैं। यहाँ पर काइम में अग्न्याशयिक रस में उपस्थित एन्जाइम्स द्वारा निम्नांकित परिवर्तन किये जाते हैं –

  • ट्रिप्सिन (Trypsin) यह भोजन की प्रोटीन्स, पेप्टोन्स आदि पर क्रिया करता है। यह अग्न्याशयिक रस में ट्रिप्सिनोजन (trypsinogen) के रूप में होता है तथा क्षारीय माध्यम में सक्रिय होता है।
  • लाइपेज (Lipase) यह भोजन की वसा पर क्रिया कर उसे वसीय अम्ल एवं ग्लिसरॉल में बदल देता है।
  • एमाइलॉप्सिन या एमाइथेज (Amylopsin) यह कार्बोहाइड्रेट्स पर क्रिया कर, उन्हें माल्टोज (maltose) एवं अन्य शर्कराओं में बदल देता है।

4. आँत्र रस इसमें उपस्थित एन्जाइम अधपचे भोजन पर क्रिया करते हैं। आन्त्र रस में उपस्थित निम्नलिखित एन्जाइम अधपचे भोजन पर क्रिया करते हैं –

  • सुक्रेज (Sucrase) यह शर्करा को ग्लूकोज में बदल देता है।
  • लेक्टेज (Lactase) यह लैक्टोज शर्करा को ग्लूकोज में बदल देता है।
  • माल्टेज (Maltase) यह माल्टोज शर्करा को ग्लूकोज में बदल देता है।
  • इरेप्सिन (Erepsin) यह शेष प्रोटीन तथा उसके अवयवों को अमीनो अम्लों में बदल देता है।

प्रश्न 17.
कुपोषण के मुख्य लक्षणों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
कुपोषण के परिणामस्वरूप कुछ असामान्य शारीरिक लक्षण दृष्टिगोचर होने लगते हैं। ये लक्षण मुख्य रूप से अपोषण से सम्बन्धित होते हैं। अपोषण के परिणामस्वरूप व्यक्ति के शरीर की मांसपेशियों का गठन कमजोर होने लगता है। अपोषण के परिणामस्वरूप शरीर की अस्थियाँ विकृत तथा कमजोर हो जाती हैं। अस्थि-कंकाल में कुछ असामान्य झुकाव या विकार आ जाते हैं। अपोषण का प्रभाव व्यक्ति की त्वचा एवं बालों पर भी दृष्टिगोचर होता है। त्वचा की स्वाभाविक सुन्दरता व कोमलता समाप्त होने लगती है तथा त्वचा रूखी एवं खुरदरी होने लगती है।

इसी प्रकार कुपोषण की स्थिति में बालों की स्वाभाविक चमक भी घटने लगती है, बाल टूटने लगते हैं तथा उनकी वृद्धि रुक जाती है। कुपोषण के परिणामस्वरूप व्यक्ति की आँखों की स्वाभाविक सुन्दरता कम हो जाती है तथा आँखों की रोशनी भी कम हो जाती है। कुपोषण के परिणामस्वरूप पाचन-संस्थान की क्रियाशीलता भी प्रभावित होती है।

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इस दशा में पाचन-क्रिया में सहायक विभिन्न एन्जाइम तथा रस समुचित मात्रा में नहीं बनते; अत: आहार का पाचन एवं शोषण ठीक प्रकार से नहीं होता। अपोषण के परिणामस्वरूप विभिन्न रोगों से लड़ने तथा मुकाबला करने की शरीर की स्वाभाविक क्षमता क्रमशः घटने लगती है। इस स्थिति में व्यक्ति बार-बार विभिन्न रोगों का शिकार होता रहता है।

प्रश्न 18.
श्वासोच्छ्वास तथा श्वसन में अन्तर कीजिए। (2011, 13)
उत्तर:
श्वासोच्छ्वास एवं श्वसन में अन्तर –
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प्रश्न 19.
कोशिकीय श्वसन को परिभाषित कीजिए तथा उसकी रूप-रेखा बनाइए। (2017)
उत्तर:
यह वास्तविक श्वसन है तथा इसकी क्रियाएँ जीवित कोशिकाओं के अन्दर कोशिका द्रव्य तथा विशेष प्रकार के कोशिकांगों-माइटोकॉण्ड्रिया में होती है। यह क्रिया दो पदों में होती है –
1. ग्लाइकोलाइसिस (glycolysis):
में ग्लूकोज जैसे पदार्थ को पाइरुविक अम्ल (pyruvic acid) में बदला जाता है। यह क्रिया कोशिकाद्रव्य में होती है। इसके बाद की क्रियाएँ ऑक्सीजन (O2) की उपस्थिति अथवा अनुपस्थिति पर निर्भर करती हैं।

2. क्रेब्स चक्र (Krebs cycle):
में पाइरुविक अम्ल के पूर्ण विघटन से जल तथा कार्बन डाइऑक्साइड बनती है। यह क्रिया ऑक्सीजन की उपस्थिति में माइटोकॉण्ड्रिया (mitochondria) में सम्पन्न होती है। इसे ऑक्सी या वायव श्वसन (aerobic respiration) कहते हैं।

ऑक्सीजन के अभाव में कोशिकाद्रव्य में ही पाइरुविक अम्ल (pyruvic acid) के अपूर्ण ऑक्सीकरण से एथिल ऐल्कोहॉल (ethyl alcohol) तथा कार्बन डाइऑक्साइड बनती है। इस प्रक्रिया को अनॉक्सी या अवायव श्वसन (anaerobic respiration) कहते हैं।

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प्रश्न 20.
मानव रक्त की संरचना व कार्यों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए। (2017, 18) या रुधिर के चार कार्य बताइए। (2009, 13)
उत्तर:
रुधिर एक तरल संयोजी ऊतक है। रुधिर के निम्नलिखित दो भाग होते हैं –

  1. प्लाज्मा
  2. रुधिर कणिकाएँ

1. प्लाज्मा:
यह रुधिर का पीले रंग का आधारभूत तरल (ground fluid), साफ, चिपचिपा तथा पारदर्शी पदार्थ होता है। यह रुधिर का लगभग 60% भाग (स्वस्थ मनुष्य में लगभग 3,500 मिली) होता है। स्वयं प्लाज्मा का लगभग 90% भाग जल होता है। शेष लगभग 10% भाग में जटिल कार्बनिक व अकार्बनिक पदार्थ होते हैं। अकार्बनिक पदार्थों में प्रायः सोडियम, पोटैशियम, कैल्सियम व मैग्नीशियम आदि के क्लोराइड्स, बाइकार्बोनेट्स, फॉस्फेट्स, सल्फेट्स तथा आयोडाइड आदि लवण होते हैं जोकि सामान्यत: आयन्स के रूप में पाये जाते हैं। ये ही रुधिर को हल्का क्षारीय बनाये रखते हैं।

2. रुधिर कणिकाएँ:
रुधिर का लगभग 40-45% भाग रुधिर कणिकाएँ होती हैं। ये प्रमुखतः तीन प्रकार की होती हैं।

  • लाल रुधिर कणिकाएँ
  • श्वेत रुधिर कणिकाएँ तथा
  • प्लेटलेट्स। रुधिर के कार्य इसका प्रमुख कार्य दो ऊतकों के बीच विभिन्न प्रकार के संयोजन करना है। इन कार्यों को हम निम्नलिखित बिन्दुओं में वर्णित कर सकते हैं।

1. ऑक्सीजन व अन्य गैसों का परिवहन:
रुधिर की लाल रुधिर कणिकाओं में उपस्थित हीमोग्लोबिन ऑक्सीजन ग्रहण करके ऑक्सीहीमोग्लोबिन नामक अस्थायी यौगिक बनाता है। ऊतकों में पहुँचने पर ऑक्सीहीमोग्लोबिन टूटकर ऑक्सीजन तथा हीमोग्लोबिन में बदल जाता है। इस प्रकार, श्वसन के लिए ऊतकों को ऑक्सीजन मिल जाती है। इसी प्रकार कार्बन डाइऑक्साइड के साथ भी हीमोग्लोबिन कार्बोएमीन यौगिक बनाता है।

2. पोषक पदार्थों का परिवहन:
जल में विलेय खाद्य पदार्थ (पोषक तत्त्व) अवशोषण के समय रुधिर द्वारा ही ग्रहण किये जाते हैं तथा शरीर के अन्य भागों को भी रुधिर द्वारा ही परिसंचरित किये जाते हैं। आँतों से ये पदार्थ पहले यकृत में ले जाये जाते हैं। यकृत इन पोषक तत्त्वों की मात्रा तथा स्वरूप निश्चित करके रुधिर द्वारा सभी ऊतकों को भेजता है।

3. उत्सर्जी पदार्थों का परिवहन:
शरीर में होने वाली अनेक प्रकार की उपापचयी क्रियाओं के फलस्वरूप अनेक हानिकारक उत्सर्जी पदार्थ बनते रहते हैं। इनमें नाइट्रोजन यौगिक प्रमुख हैं। इन्हें रुधिर पहले यकृत में तथा बाद में यकृत से वृक्कों में पहुंचाता है। वृक्क इन्हें रुधिर से छानकर मूत्र के रूप में बाहर निकाल देता है। श्वसनांगों से कार्बन डाइऑक्साइड भी प्रमुखतः रुधिर के प्लाज्मा द्वारा फेफड़ों तक पहुँचायी जाती है।

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4. अन्य पदार्थों का परिसंचरण:
अनेक प्रकार के पदार्थों; जैसे-हॉर्मोन्स, एन्जाइम्स, एण्टीबॉडीज आदि को शरीर के विभिन्न भागों तक पहुँचाने का कार्य रुधिर ही करता है।

5. रोगों से बचाव व घाव को भरना:
शरीर में जब कोई घाव इत्यादि हो जाता है तो श्वेत रुधिर कणिकाएँ वहाँ पहुँचकर रोगाणुओं से लड़ती हैं तथा मवाद या पस (pus) बना लेती हैं। मवाद में रोगाणु भी सम्मिलित होते हैं। साथ ही रुधिर उस स्थान पर आवश्यक पदार्थ आदि को भी पहुँचाता है। इस प्रकार रुधिर घाव के भरने में सहायता करता है।

6. शरीर के ताप पर नियन्त्रण:
रुधिर शरीर के ताप पर नियन्त्रण व नियमन करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

7. रुधिर का थक्का बनना:
किसी स्थान पर कट-फट जाने से रुधिर बहने लगता है। यदि यह रुधिर बहता रहे तो जन्तु की मृत्यु हो सकती है। रुधिर में इस प्रकार की सम्पूर्ण व्यवस्थाएँ होती हैं कि यदि कहीं पर भी रुधिर बाहर के सम्पर्क में आता है तो तुरन्त ही उसमें थक्का बनने की कार्यवाही प्रारम्भ हो जाती है।

प्रश्न 21.
हीमोग्लोबिन पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए। (2014, 18)
या हीमोग्लोबिन कहाँ पाया जाता है? इसका मुख्य कार्य बताइए। (2018)
उत्तर:
हीमोग्लोबिन लाल रक्त कणिकाओं में उपस्थित रंगायुक्त (लाल रंग) ग्लोब्यूलर प्रोटीन के अणु हैं। हीमोग्लोबिन श्वसन के लिए अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। प्राणियों में श्वसन क्रिया में ग्रहण की गई ऑक्सीजन हीमोग्लोबिन से क्रिया करके ऑक्सीहीमोग्लोबिन बनाती है। कोशिकाओं में ऑक्सीहीमोग्लोबिन विघटित होकर ऑक्सीश्वसन के लिए O2 को मुक्त कर देता है। इस प्रकार हीमोग्लोबिन प्राणियों के शरीर में ऑक्सीजन परिवहन का कार्य करती है।

प्रश्न 22.
रुधिर और लसीका में अन्तर स्पष्ट कीजिए। (2013, 14, 15, 16)
उत्तर:
रुधिर और लसीका में अन्तर –
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प्रश्न 23.
धमनी तथा शिरा को परिभाषित कीजिए। (2016, 17)
उत्तर:
रुधिर परिसंचरण के लिए हृदय एक पम्प के समान कार्य करके जिन वाहिनियों में रुधिर को भेजता है उन्हें धमनियाँ कहते हैं। धमनियाँ ऊतकों में पहुँचकर केशिकाओं में बँट जाती हैं तथा बाद में एकत्रित होकर शिराओं का निर्माण करती हैं। शिराएँ रुधिर को वापस हृदय में लाती हैं।

प्रश्न 24.
धमनी और शिरा में अन्तर स्पष्ट कीजिए। (2009, 11, 12, 14)
या धमनी और शिरा में चार मुख्य अन्तर बताइए। (2011, 14, 15, 16)
उत्तर:
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प्रश्न 25.
लसिका परिवहन के कार्यों का उल्लेख कीजिए। (2015)
उत्तर:
लसिका परिवहन के कार्य –

  1. कोशिकाओं को पोषक तत्त्वों, गैसों, हॉर्मोन्स तथा एन्जाइम्स आदि को पहुँचाने तथा आदान-प्रदान के लिए माध्यम का कार्य करता है।
  2. कोशिका ऊतकों से कार्बन डाइऑक्साइड एवं अन्य हानिकारक उत्सर्जी पदार्थों को रक्त तक पहुँचाता है।
  3. लसिका केशिकाएँ जो रसांकुरों में फैली रहती हैं, पचे हुए भोजन का अवशोषण करती हैं।
  4. लसिका कोशिकाओं के चारों ओर जलीय वातावरण बनाकर कोशिका के बाहर एवं भीतर परासरण सन्तुलन बनाये रखता है।
  5. लसिका वाहिनियों में स्थित लसिका ग्रन्थियों में लिम्फोसाइट्स का निर्माण होता है, जो जीवाणुओं का भक्षण करते हैं।
  6. यह कोमल अंगों को रगड़ से बचाता है।

प्रश्न 26.
रुधिर वाहिनियाँ किसे कहते हैं? इनके प्रकार लिखिए। (2017)
उत्तर:
रुधिर का परिवहन जिन नलिकाओं के द्वारा होता है, उन्हें रुधिर वाहिनियाँ कहते हैं। ये तीन प्रकार की होती हैं –

  1. धमनियाँ: ये रुधिर को हृदय से विभिन्न अंगों में ले जाती हैं।
  2. शिराएँ: ये विभिन्न अंगों से रुधिर वापस हृदय में लाती हैं।
  3. केशिकाएँ: धमनियाँ अंगों में पहुँचकर धमनिकाओं (arterioles) में विभाजित होती हैं, बाद में ये शाखा-प्रतिशाखा बनाते हुए अत्यन्त पतली भित्ति वाली महीन शाखाओं का जाल बना लेती हैं। इन महीन शाखाओं को केशिकाएँ (capillaries) कहते हैं। इनकी भित्ति केवल एक कोशिका मोटी एण्डोथीलियम (endothelium) की बनी होती है।

प्रश्न 27.
पादपों में फ्लोएम द्वारा भोज्य पदार्थों के स्थानान्तरण को समझाइए। (2014)
या मुंच परिकल्पना क्या है? उचित चित्रों के माध्यम से स्पष्ट कीजिए। (2018)
उत्तर:
पादप शरीर में विभिन्न प्रकार की क्रियाओं (जैविक क्रियाओं) के लिए ऊर्जा की आवश्यकता होती है। यह ऊर्जा भोज्य पदार्थों के ऑक्सीकरण से ही प्राप्त होती है। पत्तियों में बना हुआ खाद्य पदार्थ उपयोग, संचय स्थलों अथवा एक अंग से दूसरे अंग तक पहुँचना आवश्यक होता है। खाद्य पदार्थों का इस प्रकार का स्थानान्तरण घुलनशील अवस्था में फ्लोएम (phloem) ऊतक द्वारा ऊपर से नीचे की ओर होता है, किन्तु विशेष अवस्थाओं में संचय के स्थानों से विपरीत दिशा में भी होता है।

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खाद्य के स्थानान्तरण का कार्य मुख्यतः
चालनी-नलिकाओं (sieve tubes) तथा सहकोशिकाओं (companion cells) द्वारा होता है। मुंच परिकल्पना खाद्य पदार्थों के स्थानान्तरण के सन्दर्भ में अनेक परिकल्पनाएँ प्रस्तुत की गई हैं. इनमें से मुंच परिकल्पना सर्वमान्य है। मुंच (Munch, 1927-30) ने फ्लोएम में भोज्य पदार्थों के स्थानान्तरण के सम्बन्ध में कहा है कि यह क्रिया अधिक सान्द्रता वाले स्थानों से कम सान्द्रता वाले स्थानों की ओर होती है।

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पर्णमध्योतकी कोशिकाओं (mesophyll cells) में निरन्तर भोज्य पदार्थों के बनते रहने के कारण परासरण दाब अधिक हो जाता है। उधर जड़ों में या अन्य स्थानों में इन पदार्थों के उपयोग में आते रहने अथवा अघुलनशील रूप में संचित हो जाने से सान्द्रता कम हो जाती है। अत: पर्णमध्योतक कोशिकाओं से फ्लोएम में होकर आवश्यकता के स्थानों को स्थानान्तरण, सामूहिक रूप में अथवा परासरण दाब के कारण होता है।

पर्णमध्योतक कोशिकाओं में निरन्तर शर्करा का निर्माण होता रहता है। इससे इन कोशिकाओं का परासरणी दाब कम नहीं हो पाता। जड़ अथवा भोजन संचय करने वाले भागों में शर्करा के उपयोग के कारण अथवा भोज्य पदार्थों के अघुलनशील अवस्था में बदलकर संचित होने के कारण कोशिकाओं का परासरणी दाब कम रहता है। इसके फलस्वरूप पर्णमध्योतक कोशिकाओं से भोज्य पदार्थ अविरल रूप से फ्लोएम में प्रवाहित होते रहते हैं।

प्रश्न 28.
मूलदाब किसे कहते हैं तथा इसका क्या महत्त्व है? नामांकित चित्र की सहायता से मूलदाब दर्शाइए। (2012)
या पौधों में जल संवहन का सचित्र वर्णन कीजिए। (2013)
या नामांकित चित्र द्वारा मूलदाब के प्रदर्शन का वर्णन कीजिए। (2015)
उत्तर:
मूलदाब वह दाब है जो जड़ों की कॉर्टेक्स-कोशिकाओं द्वारा पूर्ण स्फीत अवस्था में उत्पन्न होता है जिसके फलस्वरूप कोशिकाओं में एकत्रित जल न केवल जाइलम वाहिकाओं में पहुँचता है बल्कि तने में भी कुछ ऊँचाई तक चढ़ जाता है।

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प्रयोग-मूलदाब का प्रदर्शन:
पारा प्रयोग मैनोमीटर मूलदाब दिखाने के लिये गमले में लगा हुआ एक स्वस्थ व के अन्त में शाकीय (herbaceous) पौधा लेते हैं। गमला ऐसा लेते हैं। जिसमें काफी मात्रा में जल दिया जा चुका हो।

पौधे के तने को प्रारम्भ में – गमले की मिट्टी से कुछ सेन्टीमीटर ऊपर से काट देते हैं और तने के बँटे अर्थात् कटे हुये सिरे को रबड़ की नली की सहायता से शीशे के मैनोमीटर से जोड़ देते हैं। इसकी नली मेंरबड़ का छल्ला – कुछ पानी डालकर उसमें पारा भर देते हैं। कुछ समय पश्चात् मैनोमीटर की नली में पारे का तल ऊपर चढ़ता दिखाई देता है। मैनोमीटर की नली में पारे के तल का ऊपर चढ़ना मूलदाब के कारण ही होता है। इसी दाब के कारण मूलरोमों द्वारा अवशोषित जल जाइलम वाहिकाओं में ऊपर तक ढकेल दिया जाता है।
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यदि किसी पौधे का ऊपरी सिरा काट दिया जाये तो कटे स्थान से रस टपकने लगता है। वह मूलदाब के कारण होता है। इसी प्रकार ताड़ी (खजूर) के पौधे के कटे भाग से रस टपकने की क्रिया मूलदाब के कारण ही होती है। निष्कर्ष तने के कटे हुए भाग से पानी का बलपूर्वक निकलना मूल दाब के कारण होता है। पानी के प्रारम्भिक व अन्तिम तलों के अन्तर से मूलदाब को ज्ञात किया जा सकता है।

प्रश्न 29.
मूलरोमों द्वारा जल का अवशोषण किस प्रकार होता है? स्पष्ट कीजिए। (2015, 16)
या जड़ में जल के संवहन का एक स्वच्छ एवं नामांकित चित्र बनाइए। (2011, 12)
या पौधों में जड़ों द्वारा जल के अवशोषण का स्वच्छ नामांकित चित्र बनाकर वर्णन कीजिए। (2010)
उत्तर:
जड़ के मूलरोम प्रदेश (roothair region) में स्थित मूलरोमों द्वारा जल का अवशोषण प्रायः परासरण दाब भिन्नता के फलस्वरूप होता है। मृदा जल मूलरोम कोशिका के उच्च परासरण दाब के कारण अर्द्धपारगम्य झिल्ली से होकर मूलरोम कोशिका में प्रवेश करता है। मूलरोम कोशिका की स्फीत कोशिका का परासरणीय दाब कॉर्टेक्स की समीपवर्ती कोशिका से कम हो जाता है, मूलरोम कोशिका से जल समीपवर्ती वल्कुट कोशिका में पहुँच जाता है; मूलरोम कोशिका का परासरणीय दाब पुनः अधिक हो जाने से यह पुन: मृदा जल को अवशोषित करके आशून हो जाती है।

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कॉर्टेक्स कोशिकाएँ क्रमशः जल अवशोषित करके स्फीत (आशून-turgid) हो जाती हैं। स्फीत कोशिकाएँ जल को एक दबाव के साथ जाइलम वाहिकाओं में धकेल देती हैं। इस दाब को मूलदाब कहते हैं। जड़ों द्वारा इस प्रकार जल के अवशोषण को सक्रिय अवशोषण (active absorption) कहते हैं। इसमें ऊर्जा व्यय होती है।
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वृक्षों में जल का अवशोषण सामान्यतया वाष्पोत्सर्जन खिंचाव (transpiration pull) के कारण होता है। इसे निष्क्रिय अवशोषण (passive absorption) कहते हैं। इस क्रिया में ऊर्जा व्यय नहीं होती।

प्रश्न 30.
वाष्पोत्सर्जन को प्रभावित करने वाले कारक कौन-कौन से हैं? (2014, 15, 16)
उत्तर:
वाष्पोत्सर्जन को प्रभावित करने वाले कारक निम्नवत् हैं –

  • वायुमण्डल में आर्द्रता बढ़ने पर वाष्पोत्सर्जन कम होता है।
  • वायुमण्डलीय ताप बढ़ने पर तथा तेज हवा चलने या आंधी आने पर वाष्पोत्सर्जन बढ़ जाता है।
  • प्रकाश या दिन में वाष्पोत्सर्जन अधिक होता है और रात में कम क्योंकि दिन में प्रकाश-संश्लेषण के लिए स्टोमेटा खुले रहते हैं जिससे वाष्पीकरण अधिक होता है।
  • पत्तियों पर स्टोमेटा की संख्या व स्थिति वाष्पोत्सर्जन की दर को प्रभावित करते हैं।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
पोषण क्या है? पोषण की आवश्यकता क्यों पड़ती है? पोषण के मुख्य प्रकारों का उल्लेख कीजिए। (2013, 16, 17)
या पोषण के प्रकार बताइए। मृतोपजीवी व परजीवी पोषण में अन्तर बताइए। (2015, 16)
उत्तर:
पोषण:
सभी जीवों को जीवित रहने तथा शरीर में होने वाली विभिन्न उपापचयी क्रियाओं को करने के लिए ऊर्जा की आवश्यकता होती है। यह ऊर्जा भोजन से प्राप्त होती है। विभिन्न प्रकार के जीव भोजन लेने के लिए विभिन्न विधियाँ अपनाते हैं। भोजन ग्रहण करने से लेकर, पाचन, अवशोषण, कोशिकाओं तक पहुँचाने, कोशिका में उसके ऊर्जा उत्पादन में प्रयोग करने अथवा जीवद्रव्य में स्वांगीकृत करने तथा भविष्य के लिए उसे शरीर में संगृहीत करने तक की सभी क्रियाओं का सम्मिलित नाम पोषण है।

इस प्रकार पोषण एक जटिल क्रिया है तथा यह अनेक पदों या चरणों में पूरी होती है; जबकि पाचन पोषण की अन्तक्रिया है।

पोषण की विधियाँ (प्रकार):
पोषण के विभिन्न प्रकारों अथवा विधियों को मुख्य रूप से निम्नलिखित दो भागों में बाँटा जा सकता है –
I. स्वपोषण तथा
II. परपोषण।

I. स्वपोषण Autotrophic nutrition ऐसे सभी जीव स्वपोषी कहलाते हैं, जो अकार्बनिक पदार्थों की सहायता से अपना भोजन स्वयं निर्मित करते हैं तथा ऊर्जा का संचय करते हैं। ऐसा केवल हरे पौधे अपनी पर्णहरित युक्त कोशिकाओं में करते हैं। ये पौधे प्रकाश-संश्लेषण की क्रिया द्वारा कार्बोहाइड्रेट्स के रूप में भोजन निर्मित करते हैं। इस क्रिया में ये कार्बन डाइऑक्साइड तथा पानी का कच्चे पदार्थों के रूप में उपयोग करते हैं।

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II. परपोषण: (Heterotrophic nutrition) वे सभी जीव, जो अपने भोजन का निर्माण नहीं कर सकते अपितु अन्य स्रोतों से तैयार भोजन ग्रहण करते हैं, परपोषी या विषमपोषी कहलाते हैं। परपोषी जीव अपने पोषण के आधार पर निम्नलिखित प्रकार के माने जाते हैं –
(a) प्राणिसमभोजी पोषण Holozoic nutrition ठोस भोजन ग्रहण करने वाले जीव प्राणिसमभोजी कहलाते हैं। ये भोजन का भक्षण करते हैं। सभी जन्तु प्रायः इसी प्रकार के होते हैं।

(b) मृतोपजीवी पोषण: (Saprophytic nutrition) ऐसे जीव, जो अपना भोजन मृत जन्तुओं या पौधों तथा उनके उत्सर्जी पदार्थों आदि से प्राप्त करते हैं, मृतोपजीवी कहलाते हैं; जैसे – अनेक जीवाणु, कवक आदि।

(c) परजीवी पोषण: (Parasitic nutrition) ऐसे जीव, जो अपना भोजन दूसरे जीव के शरीर के बाहर अथवा भीतर रहकर प्रत्यक्ष रूप से उसके जीवित अवस्था में ही प्राप्त करते हैं, परजीवी कहलाते हैं। परजीवी अपने पोषद (host), जिससे वे अपना भोजन आदि प्राप्त करते हैं, में कुछ-न-कुछ व्याधि अवश्य उत्पन्न करते हैं; जैसे – आँतों में रहने वाले कृमि व रुधिर चूसने वाले मच्छर, पौधों के विभिन्न रोग आदि।

प्रश्न 2.
प्रकाश-संश्लेषण की क्रिया-विधि का संक्षेप में वर्णन कीजिए। (2011, 18)
या प्रकाश-संश्लेषण को परिभाषित कीजिए तथा इसकी क्रिया-विधि समझाइए। (2013)
प्रकाश-संश्लेषण को परिभाषित कीजिए। प्रकाश-संश्लेषण की प्रकाशीय अभिक्रिया की क्रिया-विधि समझाइए। (2012, 16, 18)
जल का प्रकाश अपघटन क्या होता है? समझाइए। (2012)
प्रकाश-संश्लेषण की क्रियाविधि को समझाइए। प्रकाश-संश्लेषण में प्रकाशिक तथा अप्रकाशिक अभिक्रियाओं पर विस्तृत टिप्पणी लिखिए। (2015)
उत्तर:
प्रकाश-संश्लेषण:
हरे पौधों में जिनमें क्लोरोफिल या पर्णहरित पाया जाता है, प्रकाश की उपस्थिति में पानी तथा कार्बन डाइऑक्साइड की सहायता से कार्बोहाइड्रेट विशेषकर ग्लूकोज का निर्माण होता है, यह क्रिया प्रकाश-संश्लेषण कहलाती है। इस क्रिया में ऑक्सीजन गैस निकलती है।
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प्रकाश-संश्लेषण की क्रिया-विधि –
प्रकाश-संश्लेषण एक जटिल आन्तरोष्मी (endothermal) उपचयी अभिक्रिया है। यह क्रिया दो चरणों में पूरी होती है – प्रकाशिक अभिक्रिया तथा अप्रकाशिक अभिक्रिया।

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1. प्रकाशिक अभिक्रिया या हिल अभिक्रिया:
प्रकाशिक अभिक्रिया का अध्ययन सर्वप्रथम हिल (Hill) नामक वैज्ञानिक ने किया था, इसलिए इसे हिल अभिक्रिया कहते हैं। यह क्रिया हरित लवकों के ग्रैना में क्लोरोफिल की सहायता से होती है। यह निम्नलिखित पदों में पूर्ण होती है –

  • सूर्य का प्रकाश अवशोषित कर हरितलवकों के ग्रैना में उपस्थित पर्णहरित सक्रिय हो जाता है और ADP से ATP (एडिनोसीन ट्राइफॉस्फेट) का निर्माण होता है। ATP में प्रचुर मात्रा में ऊर्जा संचित हो जाती है।
  • ऊर्जावित क्लोरोफिल द्वारा जल का H+ तथा OH आयनों में प्रकाशिक अपघटन (photolysis) होता है।
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  • जल के प्रकाश अपघटन से उत्पन्न OH आयन परस्पर मिलकर पानी और ऑक्सीजन बनाते हैं। ऑक्सीजन गैस के रूप में मुक्त होकर स्टोमेटा द्वारा बाहर निकल जाती है।
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  • जल के प्रकाश अपघटन से मुक्त हाइड्रोजन आयन से उत्तेजित इलेक्ट्रॉन्स निकलते हैं जो इलेक्ट्रॉन स्थानान्तरण प्रणाली (electron transfer system) के द्वारा ऊर्जा को ATP के रूप में मुक्त करते हैं। इस क्रिया में H+ आयन NADP को NADPH2 में अपचयित करते हैं।
    4 (H+)+2 NADP → 2NADP H2 ADP + P → ATP
    ATP के निर्माण को फोटोफॉस्फोरिलेशन (photophosphory lation) कहते हैं।

2. अप्रकाशिक अभिक्रिया अथवा केल्विन चक्र –
इस अभिक्रिया का अध्ययन सर्वप्रथम ब्लैकमेन (Blackman) नामक वैज्ञानिक ने किया था, इसलिए इसे ब्लैकमेन अभिक्रिया भी कहते हैं। यह अभिक्रिया हरितलवक के स्ट्रोमा में होती है। इसमें प्रकाश की आवश्यकता नहीं होती। इस अभिक्रिया में CO2 के अपचयन से कार्बोहाइड्रेट बनता है। यह अभिक्रिया निम्न चरणों में होती है –

  • CO2 के 6 अणु कोशिकाओं में उपस्थित रिबुलोज डाइफॉस्फेट (RDP) से संयोग करके 12 अणु फास्फोग्लिसरिक अम्ल (PGA) बनाते हैं। ]
  • फॉस्फोग्लिसरिक अम्ल NADPH, से हाइड्रोजन प्राप्त करके फॉस्फोग्लिसरेल्डीहाइड (PGAL) में परिवर्तित हो जाता है तथा NADP पुन: प्रकाशिक अभिक्रिया में उत्पन्न हाइड्रोजन आयनों को ग्रहण करने के लिए स्वतन्त्र हो जाता है।
  • फॉस्फोग्लिसरेल्डीहाइड अणुओं में 10 अणु पुन: RDP में बदल जाते हैं तथा शेष दो अणु हैक्सोज शर्करा-ग्लूकोस बनाते हैं।
    6CO2 + 12 ATP + 12NADPH2 → C6H12O6 + 12 ATP + 12 NADP + 6H2O इस सम्पूर्ण चक्र को केल्विन चक्र कहते हैं।

प्रश्न 3.
पाचन से क्या तात्पर्य है? इसमें कौन-कौन से पाचक रस भाग लेते हैं? पचे हुए भोजन के अवशोषण तथा स्वांगीकरण की क्रिया का वर्णन कीजिए। (2011, 12, 13)
या  पाचन किसे कहते हैं? मुँह से लेकर कोशिका में अवशोषित होने तक भोजन में जो परिवर्तन होते हैं, उनका चरणबद्ध वर्णन कीजिए।
या पाचन किसे कहते हैं? आमाशयिक (जठर रस) रस (gastric juice) तथा अग्न्याशयिक रस (pancreaticjuice) में पाये जाने वाले एन्जाइम्स की कार्यिकी समझाइए। (2010, 11) मुख से लेकर आमाशय तक होने वाली पाचन क्रिया को प्रभावित करने वाले विकरों (एन्जाइम्स) के कार्यों का उल्लेख कीजिए। (2016)
उत्तर:
पाचन पाचन का अर्थ है जल में अघुलनशील भोज्य पदार्थों को घुलनशील अवस्था में बदलकर उन्हें अवशोषण के योग्य बनाना, जिससे वे रुधिर में मिलकर अथवा अन्य किसी प्रकार से शरीर के विभिन्न भागों अर्थात् ऊतकों तथा कोशिकाओं में पहुँच जायें। मुँह से लेकर कोशिका में अवशोषित होने तक भोजन में होने वाले परिवर्तन के विभिन्न चरण भोजन का अन्तर्ग्रहण मुख (mouth) द्वारा होता है। मुख से लेकर कोशिका में अवशोषित होने तक विभिन्न पाचन अंगों में होने वाले चरण निम्न प्रकार हैं –

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1. मुख तथा मुखगुहा:
(Mouth and buccal cavity) यह भोजन नली का अग्र भाग है। इसी के द्वारा भोजन का अन्तर्ग्रहण किया जाता है। दाँत भोजन को पीसते हैं। मुखगुहा में लार ग्रन्थियाँ पायी जाती हैं, जिनसे निकलने वाली लार भोजन को निगलने में सहायक होती है तथा कार्बोहाइड्रेट को पचाने में भाग लेती है। लार में उपस्थित टायलिन (ptyalin) नामक एन्जाइम मण्ड (स्टार्च) को शर्करा में बदल देता है।

भोजन का यहाँ और अधिक पाचन नहीं होता। जीभ पर स्थित स्वाद कणिकाओं द्वारा स्वाद का अनुभव होता है। मुखगुहा के पिछले भाग अर्थात् ग्रसनी (pharynx) के अन्तिम भीतरी छोर पर निगल द्वार (gullet) द्वारा भोजन लसलसी अवस्था में आगे बढ़ता है।

2. ग्रसिका:
(Oesophagus) निगलद्वार से भोजन ग्रसिका या ग्रासनली में आता है। ग्रसिका में कोई पाचन क्रिया नहीं होती। इसके द्वारा भोजन मुखगुहा से आमाशय में आ जाता है।

3. आमाशय:
(Stomach) आमाशय में भोजन आते ही गैस्ट्रिन नामक हॉर्मोन निकलता है, जो जठर ग्रन्थियों (gastric glands) को सक्रिय करता है। जठर ग्रन्थियों से जठर रस (gastric juice) निकलता है। जठर रस में HCI, पेप्सिन (pepsin) तथा रेनिन (renin) नामक एन्जाइम्स होते हैं। HCl भोजन के माध्यम को अम्लीय करता है तथा भोजन के कठोर कणों को गला देता है। यह अक्रिय पेप्सिन अर्थात् पेप्सिनोजन (pepsinogen) को क्रियाशील बनाता है। पेप्सिन प्रोटीन पर क्रियाशील है और प्रोटीन को पेप्टोन्स तथा पेप्टाइड्स में बदल देती है –
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रेनिन दूध को फाड़कर उसमें घुली कैसीन को अलग कर देता है, जिससे उसका आगे पाचन हो सके। आमाशय में भोजन 3 से 5 घण्टे रहता है। यहाँ भोजन अवलेह के रूप में आ जाता है। भोजन के इस स्वरूप को काइम (chyme) कहते हैं।

4. ग्रहणी:
(Duodenum) आमाशय से भोजन छोटी आँत के अग्र भाग अर्थात् ग्रहणी (duodenum) में पहुँचता है। ग्रहणी में, अग्न्याशय (pancreas) से निकलने वाला अग्न्याशयिक रस (pancreatic juice) तथा यकृत (liver) से निकलने वाला पित्त रस (bile juice) आकर मिलते हैं। पित्त रस में कोई एन्जाइम नहीं होता है, फिर भी भोजन के पाचन में इसकी महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है, क्योंकि यह भोजन के माध्यम को अम्लीय से बदलकर क्षारीय (alkaline) बनाता है। अग्न्याशयिक रस में पाये जाने वाले सभी एन्जाइम क्षारीय माध्यम में ही सक्रिय होते हैं। यहाँ पर काइम में अग्न्याशयिक रस में उपस्थित एन्जाइम्स द्वारा निम्नांकित परिवर्तन किये जाते हैं –

  • ट्रिप्सिन:
    (Trypsin) यह भोजन की प्रोटीन्स, पेप्टोन्स आदि पर क्रिया करता है। यह अग्न्याशयिक रस में ट्रिप्सिनोजन (rypsinogen) के रूप में होता है तथा क्षारीय माध्यम में सक्रिय होता है।
  • लाइपेज:
    (Lipase) यह भोजन की वसा पर क्रिया कर उसे वसीय अम्ल एवं ग्लिसरॉल में बदल देता है।
  • एमाइलॉप्सिन:
    (Amylopsin) यह कार्बोहाइड्रेट्स पर क्रिया कर, उन्हें माल्टोज (maltose) एवं अन्य शर्कराओं में बदल देता है।

5. शेषान्त्र:
(Ileum) ग्रहणी में भोजन के लगभग सभी अवयवों पर क्रिया प्रारम्भ हो जाती है तथा अधिकांश पाचन हो जाता है। इसके पश्चात् छोटी आँत के शेष भाग जिसे शेषान्त्र कहते हैं, में उपस्थित ग्रन्थियों द्वारा स्रावित आन्त्र रस में उपस्थित निम्नलिखित एन्जाइम अधपचे भोजन पर क्रिया करते हैं –

  • सुक्रेज (Sucrase) शर्करा को ग्लूकोज में बदल देता है।
  • लेक्टेज (Lactase) लैक्टोज शर्करा को ग्लूकोज में बदल देता है।
  • माल्टेज (Maltase) माल्टोज शर्करा को ग्लूकोज में बदल देता है।
  • इरेप्सिन (Erepsin) शेष प्रोटीन तथा उसके अवयवों को अमीनो अम्लों में बदल देता है।

पचे हुए भोजन का अवशोषण:
छोटी आंत में भोजन का पाचन पूरा हो जाता है। इसके पश्चात् पूर्ण रूप से पचा हुआ भोजन छोटी आंत में ही विशेषकर इसके पश्च भाग में अवशोषित हो जाता है। छोटी आँत में इसके लिए उपस्थित रसांकुरों (villi) द्वारा अवशोषण तल अत्यधिक बढ़ा हुआ होता है। यह अवशोषित पोषक पदार्थ रुधिर से होते हुए शरीर के विभिन्न ऊतकों तथा ऊतकों में उपस्थित ऊतक द्रव्य के माध्यम से कोशिकाओं में चले जाते हैं।

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6. बड़ी आँत, गुदा तथा गुदाद्वार:
(Large intestine, rectum and anus) आहारनाल के इस भाग में अपच तथा अपशिष्ट भोजन में से जल का अवशोषण होता है। अपशिष्ट को मल के रूप में कुछ समय तक रोका जाता है बाद में उसका बहिःक्षेपण हो जाता है। आहारनाल में भोजन को आगे बढ़ाने की क्रिया प्रमुखतः क्रमाकुंचन नामक गति के द्वारा सम्पन्न होती है।

पचे हुए भोजन का स्वांगीकरण:
पचा हुआ भोजन जो अवशोषित होकर कोशिका के जीवद्रव्य तक पहुँचता है, इस भोजन के तत्त्वों को जीवद्रव्य के स्वरूप में आत्मसात (विलीन) कर लिया जाता है। इस क्रिया को स्वांगीकरण (assimilation) कहते हैं। सभी जीवों में यह क्रिया आवश्यक है। इसी से जीवद्रव्य की वृद्धि होती है, अर्थात् जीव की वृद्धि होती है। पाचन के बाद प्राप्त सरल कार्बनिक अणुओं को कोशिका में होने वाली विशेष क्रियाओं के द्वारा जटिल जैविक अणुओं के रूप में संश्लेषित कर लिया जाता है।

प्रश्न 4.
श्वसन किसे कहते हैं? ऊर्जा का इससे क्या सम्बन्ध है? (2012)
उत्तर:
श्वसन:
पृथ्वी पर पाये जाने वाले प्रत्येक जीव को विभिन्न जैविक क्रियाओं को सम्पन्न करने के लिए ऊर्जा की आवश्यकता होती है। यह ऊर्जा जीवों के शरीर की सभी जीवित कोशिकाओं में भोजन के विशेषकर कार्बोहाइड्रेट्स के ऑक्सीकरण से उत्पन्न होती है। इस क्रिया में उत्पन्न कार्बन डाइऑक्साइड को शरीर से बाहर निकाल दिया जाता है तथा यह ऊर्जा शरीर की विभिन्न जैविक क्रियाओं को करने के लिए ए० टी० पी० (ATP) नामक अणुओं में उच्च ऊर्जा बन्धों के रूप में (विभवीय ऊर्जा) संचित की जाती है। यही

ऊर्जा आवश्यकता के समय काम आती है। इन समस्त क्रियाओं को श्वसन (respiration) कहते हैं। प्रायः ऑक्सीकरण की इस क्रिया में बाहर से लायी हुई ऑक्सीजन (O2) का प्रयोग किया जाता है। इस प्रकार, श्वसन वह क्रिया है जिसमें कोशिका में कार्बनिक यौगिकों; प्रायः ग्लूकोज का ऑक्सीकरण होता है। इस क्रिया में कार्बन डाइऑक्साइड, जल तथा ऊर्जा उत्पन्न होती है। इस ऊर्जा को विशेष ATP अणुओं में विभवीय ऊर्जा के रूप में संचित किया जाता है।

कोशिकीय ऊर्जा व इसके उपयोग:
श्वसन यद्यपि अतिनियन्त्रित जैव-रासायनिक क्रियाओं के रूप में जीवित कोशिका के अन्दर सम्पादित होता है तथा प्रायः सम्पूर्ण श्वसन क्रिया में उत्पन्न ऊर्जा 673 K cal. होती है –
C6H12O6 + 6O6 → 6CO2 + 6H2O + 673 K cal. ऊर्जा
फिर भी उत्पादित सम्पूर्ण ऊर्जा का ए०टी०पी० (ATP) के रूप में अनुबन्धन नहीं हो पाता है और कुछ ऊर्जा ऊष्मा (heat) के रूप में भी विमुक्त हो जाती है अर्थात् श्वसन में ताप बढ़ता है। दूसरी ओर, जो ऊर्जा ए०टी०पी० में अनुबन्धित हो जाती है उसका उपयोग विभिन्न कार्यों के अतिरिक्त अनेक संश्लेषणात्मक क्रियाओं में भी किया जाता है (चित्र)।
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कोशिकीय ऊर्जा, उपर्युक्त के अनुसार, ए०टी०पी० मुद्रा के रूप में होती है। जिन क्रियाओं में इसको उपयोग में लाया जाता है; वे हैं –

  • कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, वसा इत्यादि के संश्लेषण में
  • कार्बनिक पदार्थों (organic food) के स्थानान्तरण में
  • अकार्बनिक और कार्बनिक पदार्थों के अवशोषण में
  • जीवद्रव्य प्रवाह (protoplasmic streaming) में और
  • वृद्धि (growth) में। इन क्रियाओं में ATP से अन्तिम उच्च ऊर्जा बन्ध (bond) अलग होकर क्रियाओं को आवश्यक ऊर्जा दे देता है। फलस्वरूप ADP शेष रह जाता है। इसीलिए ATP को कोशिका का ऊर्जा सिक्का या ऊर्जा मुद्रा (energy currency) कहते हैं। उपर्युक्त चित्र के मध्य में ATP-ADP चक्र देखिए। इसे कोशिका का ऊर्जा चक्र (energy cycle) कहते हैं।

प्रश्न 5.
मनुष्य के श्वसन अंगों को नामांकित चित्र बनाकर उनके कार्यों का वर्णन कीजिए। (2013)
या मनुष्य के श्वसन तन्त्र की संरचना का वर्णन नामांकित चित्र बनाकर कीजिए। (2013)
उत्तर:
मनुष्य के श्वसनांग (श्वसन तन्त्र) –
मनुष्य में फुफ्फुसीय श्वसन तन्त्र (respiratory system) होता है; अतः प्रमुख श्वसनांग दो फेफड़े (lungs) होते हैं। इनकी वक्षीय पिंजर के अन्दर स्थिति के कारण अनेक सहायक अंग भी महत्त्वपूर्ण हैं, जो निम्नलिखित हैं –

1. नासिका एवं नासा मार्ग: (Nose and nasal passage) चेहरे पर स्थित नासिका (nose) बाहर दो बाह्य नासा छिद्रों (nostrils) के द्वारा खुलती है। नासा गुहा अन्दर की ओर एक नासा पट (nasal septum) के द्वारा दायें तथा बायें दो भागों में बँटी होती है। नासा गुहा अन्दर एक टेढ़े-मेढ़े, घुमावदार रास्ते में खुलती है।

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यह मार्ग टरबाइनल अस्थियों से बना होता है और श्लेष्मिक झिल्ली (mucous membrane) से ढका रहता है। नासा मार्ग में इसी कारण एक चिकना, पतला, तरल श्लेष्मक झिल्ली से स्रावित होता रहता है। नासा मार्ग मुख गुहा के ऊपर उपस्थित तालू (कठोर व मुलायम) के ऊपर स्थित होता है तथा काफी भीतर ग्रसनी (pharynx) में खुलता है।

2. कण्ठ या स्वर यन्त्र: (Larynx) ग्रसनी के भीतरी भाग में, निगल द्वार से पहले एक छिद्र होता है। इसे घाँटी, कण्ठ द्वार या ग्लॉटिस (glottis) कहते हैं। इसको ढकते हुए उपास्थि का बना एक घाँटी ढापन (epiglottis) होता है जो भोजन निगलते समय घाँटी को बन्द कर देता है।

3. श्वास नाल: (Trachea) घाँटी द्वार से सम्बन्धित इसके पीछे गर्दन में सामने की ओर स्थित यह 10-11 सेमी लम्बी 1.5-2 सेमी व्यास की नली होती है। सीने में पहुँचकर यह दो छोटी नलिकाओं में बँट जाती है जिन्हें श्वसनियाँ (bronchi) कहते हैं। प्रत्येक श्वसनी (bronchus) अपनी ओर के फेफड़े में चली जाती है और विभिन्न शाखाओं-दर-शाखाओं में बँट जाती है। श्वास नली की भित्ति में 16 से 20 तक उपास्थियों के अधूरे छल्ले होते हैं। ये छल्ले ‘C’ के आकार के तथा पीछे की ओर अधूरे होते हैं। ऐसे छल्ले श्वसनियों में भी होते हैं। सम्पूर्ण नलियों में भीतर श्लेष्मिक कला होती है, जो श्लेष्मक उत्पन्न करती है।
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4. फेफड़े या फुफ्फुस: (Lungs) संख्या में दो फेफड़े हमारे प्रधान श्वसनांग हैं। ये वक्ष गुहा (thoracic cavity) में हृदय के इधर-उधर स्थित, गहरे कत्थई-सलेटी रंग के, अत्यन्त कोमल तथा लचीले अंग हैं। प्रत्येक फेफड़े के चारों ओर पतली एवं दोहरी झिल्ली से बनी एक फुफ्फुस गुहा (pleural cavity) होती है। इसमें एक लसदार तरल भरा रहता है।

झिल्लियों को फुफ्फुसावरण (pleura) कहा जाता है। यह गुहा तथा इसका तरल फेफड़ों की सुरक्षा करते हैं। वक्ष गुहा में इन दोनों फेफड़ों और उनकी गुहाओं के मध्य केवल एक सँकरा स्थान होता है जिसमें श्वास नाल, श्वसनियाँ, ग्रास नली, हृदय आदि अंग रहते हैं।

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5. तन्तु पट, वक्षीय कटहरा तथा अन्य पेशियाँ:  वक्षीय गुहा के नीचे उदर गुहा से अलग करने वाला तन्तु पट (diaphragm) ऊपर-नीचे होकर वक्षीय गुहा को घटाता-बढ़ाता रहता है और श्वास लेने की क्रिया में सहायता करता है। वक्षीय कटहरा वक्षगुहा को बनाता है। यह मुख्य रूप से पीठ की ओर कशेरुक दण्ड (vertebral column), सामने की ओर स्टर्नम (sternum) तथा सामने से पीठ तक स्थित पसलियों (ribs) से बनता है। पसलियों के बीच-बीच में कुछ विशेष मांसपेशियाँ होती हैं जो पसलियों का स्थान बदलकर वक्षीय गुहा को घटाती-बढ़ाती हैं और साँस लेने की क्रिया में सहायता करती हैं।

प्रश्न 6.
मनुष्य के हृदय की आन्तरिक संरचना एवं क्रिया-विधि का वर्णन कीजिए। (2011, 12, 13)
या मनुष्य के हृदय की आन्तरिक संरचना का चित्रों की सहायता से वर्णन कीजिए। (2013, 17)
या मनुष्य के हृदय की आन्तरिक संरचना का स्वच्छ नामांकित चित्र बनाइए। (2016)
उत्तर:
मनुष्य के हृदय की आन्तरिक संरचना –
मनुष्य का हृदय एक कोमल पेशीय अंग है, जो वक्ष गुहा में डायाफ्राम के ऊपर दोनों फेफड़ों के बीच कुछ बायीं ओर स्थित होता है। यह दोहरी भित्ति की झिल्लीनुमा थैली हृदयावरण या पेरीकार्डियम (pericardium) में बन्द रहता है। दोनों झिल्लियों के मध्य तथा हृदय व हृदयावरण के मध्य हृदयावरणी द्रव (pericardial fluid) भरा रहता है, जो हृदय की बाह्य धक्कों से रक्षा करता है। हृदय हृदयक (cardiac) मांसपेशियों का बना होता है।
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मनुष्य के हृदय में चार वेश्म (4 chambers) होते हैं। ऊपरी चौड़े भाग के दोनों वेश्म बायाँ व दायाँ अलिन्द (auricles) तथा निचले नुकीले भाग के दोनों वेश्म दायाँ व बायाँ निलय (ventricles) कहलाते हैं। अलिन्दों की भित्तियाँ पतली और निलयों की भित्ति मोटी और अधिक पेशीय होती हैं। दोनों, दायें एवं बायें अलिन्दों को बाँटने वाले अन्तराअलिन्दीय पट (inter-atrial septum) के पश्च भाग पर दाहिनी ओर एक छोटा-सा अण्डाकार गड्ढा होता है जिसे फोसा ओवैलिस (fossa ovalis) कहते हैं।

भ्रूणावस्था में इसी स्थान पर फोरामेन ओवैलिस (foramen ovalis) नामक छिद्र होता है। अलिन्द की दीवार का भीतरी स्तर अधिकांश भाग में सपाट (smooth) होता है, केवल कुछ भागों में इससे लगी हुई अनेक पेशीय पट्टियाँ गुहा में उभरी रहती हैं जिन्हें कंघाकार पेशियाँ (musculi pectinati) कहते हैं। दाहिने अलिन्द में दो मोटी महाशिरायें अलग-अलग छिद्रों द्वारा खुलती हैं, जिन्हें निम्न महाशिरा (inferior vena cava) तथा उपरि महाशिरा (superior vena cava) कहते हैं। उपरि महाशिरा का छिद्र इस अलिन्द के ऊपरी भाग में तथा निम्न महाशिरा का निचले भाग में होता है।

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हृदय की दीवार से अशुद्ध रुधिर अलिन्द में लाने के लिए बायें भाग में अन्तराअलिन्दीय पट के पास कोरोनरी साइनस (coronary sinus) का छिद्र होता है। फेफड़ों से शुद्ध रुधिर लाने वाली फुफ्फुसी शिरायें (pulmonary veins) बायें अलिन्द में खुलती हैं। निलय (ventricle) की भित्तियाँ अलिन्द की भित्तियों से अधिक मोटी और मांसल होती हैं, जबकि बायें निलय की भित्ति तो दाहिने निलय की भित्ति से भी मोटी होती है। दाहिने अलिन्द की गुहा बायें अलिन्द की गुहा की अपेक्षा बड़ी होती है। दोनों निलयों को अलग करने वाला तिरछा अनुलम्ब पट होता है जिसे अन्तरानिलय पट (interventricular septum) कहते हैं।

एक-एक बड़े अलिन्द-निलय छिद्र (atrioventricular apertures) द्वारा प्रत्येक अलिन्द अपनी ओर के निलय में खुलता है। प्रत्येक अलिन्द निलय छिद्र पर नियमन हेतु एक झिल्ली के समान कपाट होता है। दाहिना अलिन्द-निलय कपाट तीन चपटे एवं त्रिकोणाकार पालियों (flaps) का बना होता है, इसे त्रिवलनी या ट्राइकस्पिड कपाट (tricuspid valve) कहते हैं। बायाँ अलिन्द-निलय कपाट केवल दो, अधिक बड़ी तथा अधिक मोटी पालियों का बना होता है। इसे द्विवलनी या बाइकस्पिड कपाट (bicuspid valve) कहते हैं।

कपाट, कण्डराओं (tendons) या हृद् रज्जुओं (chordae tendinae) द्वारा निलय की दीवार पर स्थित मोटे पेशी स्तम्भों (columnae carnae or papillary muscles) से जुड़े रहते हैं। कपाट रुधिर को अलिन्दों से निलयों में जाने का मार्ग देते हैं, किन्तु विपरीत दिशा में नहीं जाने देते। दाहिने निलय के अग्र भाग के बायें कोने से पल्मोनरी महाधमनी (pulmonary aorta) तथा बायें निलय के अग्र भाग के दाहिने कोने से कैरोटिको-सिस्टेमिक महाधमनी (carotico-systemic aorta) चापों (arches) के रूप में निकलती हैं। दोनों चापों के गोलाकार छिद्रों पर तीन-तीन छोटे जेबनुमा (pocket-shaped) अर्द्धचन्द्राकार कपाट (semilunar valves) होते हैं, जो रुधिर को निलयों से चापों में ही जाने का मार्ग देते हैं, चापों से वापस निलयों में नहीं आने देते।

दाहिने निलय से निकलकर पल्मोनरी चाप बायीं ओर घूमकर कैरोटिको-सिस्टेमिक चाप के नीचे फेफड़ों में जाने वाली दो पल्मोनरी धमनियों (pulmonary arteries) में बँट जाता है। कैरोटिको-सिस्टेमिक चाप बायें निलय से निकलकर पल्मोनरी चाप के ऊपर से होता हुआ बायीं ओर घूमकर धमनियों में बँट जाता है।

जहाँ दोनों चाप एक-दूसरे के ऊपर से निकलते हैं, एक लिगामेण्ट आरटीरिओसम (ligament arteriosum) नामक ठोस स्नायु (ligament) होता है। भ्रूणावस्था में इस स्नायु के स्थान पर डक्टस आरटीरिओसस या बोटैलाई (ductus arteriosus or botalli) नामक एक महीन धमनी होती है। हृदय की भित्ति के कुछ भागों में सघन तन्तुमय संयोजी ऊतक के छल्ले होते हैं। ये दीवार को सहारा देते हैं, कक्षों को आवश्यकता से अधिक फूलने से रोकते हैं और अनेक हृद् पेशियों को जुड़ने का स्थान देते हैं। अत: इन्हें हृदय का कंकाल कहा जाता है।

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हृदय की कार्य विधि:
हृदय पम्प की तरह कार्य करता है। यह रुधिर को ग्रहण करता है और उसे दबाव के साथ अंगों की
ओर भेज देता है। यह नियमित रूप से, लगातार तथा जीवनपर्यन्त कार्य करता रहता है। एक सामान्य व्यक्ति का हृदय एक मिनट में 70-80 बार धड़कता है। हृदय के सिकड़ने की अवस्था को प्रकुंचन (systole) तथा फैलने की अवस्था को अनुशिथिलन (diastole) कहते हैं।

हृदय की दीवारें विशेष प्रकार की हृद् पेशियों (cardiac muscles) की बनी होती हैं जिनमें प्रकुंचन (systole) तथा अनुशिथिलन (diastole) के कारण एक लहर-सी बन जाती है। एक बार जब ये क्रियायें चालू होती हैं तो बिना रुके हुए मृत्यु के समय तक चलती रहती हैं। अलिन्दों के बाद निलय सिकुड़ते हैं तथा निलय के बाद अलिन्द। इसके बाद फिर निलय सिकुड़ते हैं और इसी तरह दोनों अपनी-अपनी बारी पर फैलते-सिकुड़ते रहते हैं।

हृदय के निलय की कार्डियक पेशियों के शक्तिशाली क्रमिक संकुचनों या एक-बार फैलने व सिकुड़ने की क्रिया से एक हृदय स्पन्दन (heart beat) बनता है अर्थात् प्रत्येक हृदय स्पन्दन में कार्डियक पेशियों का एक बार प्रकुंचन या सिस्टोल (systole) तथा एक बार अनुशिथिलन या डाएस्टोल (diastole) होता है। मनुष्य का हृदय एक मिनट में 72-75 बार स्पन्दित होता है।

यह हृदय स्पन्दन की दर (rate of heart beat) कहलाती है। शरीर के सभी अंगों में भ्रमण करने के बाद अशुद्ध रुधिर उपरि तथा निम्न महाशिराओं (pre and post cavals) द्वारा दाहिने अलिन्द में आता है। इसी प्रकार से फेफड़ों द्वारा शुद्ध किया गया रुधिर बायें अलिन्द में आता है। दोनों अलिन्दों में रुधिर भर जाने के बाद इसमें एक साथ संकुचन होता है जिससे इनका रुधिर अलिन्द-निलय छिद्रों द्वारा अपनी ओर के दोनों निलयों में भर जाता है। निलयों में रुधिर भर जाने पर फिर इन दोनों निलयों में संकुचन होता है।

फलत: दाहिने निलय का अशुद्ध रुधिर पल्मोनरी महाधमनी (pulmonary aorta) द्वारा फेफड़ों में जाता है, जबकि बायें निलय का शुद्ध रुधिर कैरोटिको-सिस्टेमिक महाधमनी (carotico-systemic aorta) द्वारा समस्त शरीर में जाता है। यही महाधमनी कशेरुक दण्ड के नीचे पृष्ठ महाधमनी (dorsal aorta) बनाती है। निलयों का संकुचन जैसे ही समाप्त होता है, वैसे ही अलिन्दों में पुन: संकुचन प्रारम्भ होने लगता है। इस प्रकार हृदय रुधिर का बहाव बनाये रखता है। हृदय में प्रकुंचन तथा अनुशिथिलन की ये क्रियायें आजीवन एक के बाद एक, लगातार तथा एक लय में होती रहती है।

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प्रश्न 7.
रुधिर परिवहन को परिभाषित कीजिए। खुला, बन्द तथा दोहरा रुधिर परिवहन तन्त्र को समझाइए। (2017)
या मनुष्य में दोहरे रक्त परिसंचरण को आरेखित चित्र द्वारा दर्शाइए। (2014)
उत्तर:
ग्रहण किए गये पदार्थों को शरीर की प्रत्येक कोशिका तक पहुँचाने तथा वहाँ पर उत्पन्न अतिरिक्त पदार्थों (CO2 तथा NH3) को निश्चित स्थान तक पहुँचाने की क्रिया को संवहन या परिवहन कहते हैं। केवल लाभदायक पदार्थों का ही संवहन नहीं होता, बल्कि अपशिष्ट पदार्थों को भी शरीर में ऐसे स्थान पर पहुँचाया जाता है जहाँ से उन्हें बाहर निकाला जा सके। जिस परिवहन तन्त्र में संवहन माध्यम रुधिर होता है, उसे रुधिर परिवहन तन्त्र कहते हैं।

खुला व बंद परिवहन तंत्र:
कुछ अकशेरुकी जन्तुओं जैसे आर्थोपोड्स एवं मौलस्क में रुधिर मुख्य रुधिर वाहिनियों से निकलकर पूरी देहगुहा में भर जाता है और दैहिक अंगों की कोशिकओं के सीधे सम्पर्क में रहता है। इस प्रकार के परिवहन तंत्र को खुला परिवहन तंत्र कहते हैं। इस प्रकार के परिवहन तंत्र में रुधिर केशिकाएँ, लिम्फ व ऊतक द्रव नहीं होता है।

सभी कॉडेंट्स में रुधिर सदैव बंद वाहिनियों में बहता है। वह ऊतक कोशिकओं के सीधे सम्पर्क में नहीं आता। रुधिर हृदय से धमनियों व धमनियों से धमनी केशिकाओं में पहुँचता है। धमनी केशिकाओं से रुधिर शिरा केशिकाओं में पहुँचता है जिनसे शिराओं और शिराओं से पुनः हृदय में वापस लौट आता है। इसे बंद रुधिर परिवहन तंत्र कहते हैं।

दोहरा परिवहन तन्त्र मनुष्य में रुधिर परिवहन में दो परिवहन पथ होते हैं –
1. फुफ्फुसी या पल्मोनरी परिवहन:
इस परिवहन पथ में दाहिने निलय के संकुचन से उसमें भरा अशुद्ध रुधिर फुफ्फुस धमनियों द्वारा फेफड़ों में शुद्धीकरण के लिए पहुंचता है। फेफड़ों से शुद्ध रुधिर एक जोड़ी फुफ्फुस शिराओं द्वारा बाएँ अलिन्द में पहुँचता है।
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2. दैहिक या सिस्टेमिक परिवहन:
इस परिवहन पथ में बाएँ निलय के संकुचन से शुद्ध रुधिर दैहिक महाधमनी में से होता हुआ धमनियों द्वारा शरीर के विभिन्न भागों में पहुँचता है और शिराओं द्वारा एकत्रित अशुद्ध रुधिर अग्र एवं पश्च महाशिराओं द्वारा हृदय के दाहिने अलिन्द में पहुँचता है। इस प्रकार मानव में रुधिर दो बार हृदय से गुजरता है।

प्रश्न 8.
उत्सर्जन से क्या तात्पर्य है। मनुष्य के उत्सर्जी अंगों के नाम लिखिए। मनुष्य के वृक्क की संरचना तथा कार्य-विधि को सचित्र समझाइए। (2010, 11, 12, 13, 15, 18)
या उत्सर्जन किसे कहते हैं ? मनुष्य में वृक्क की संरचना व नामांकित चित्र की सहायता से उत्सर्जन को समझाइए। (2011, 18)
या मनुष्य के उत्सर्जन तन्त्र का नामांकित चित्र बनाइए। (2018)
या मनुष्य की वृक्क नलिका संरचना का सचित्र वर्णन कीजिए। (2010, 15)
या मानव वृक्क की खड़ी काट का नामांकित चित्र बनाएँ। (2016, 18)
या मनुष्यों में वृक्क के दो प्रमुख कार्य बताइए। (2016, 17)
उत्तर:
उत्सर्जन:
शरीर में विभिन्न उपापचयी क्रियाओं में अनेक अपशिष्ट या वर्ण्य पदार्थ बनते हैं। इनका शरीर में कोई उपयोग नहीं होता। कभी-कभी तो ये अत्यधिक विषैले भी हो सकते हैं। विषैले न होने पर भी अपशिष्ट पदार्थ कोशिकाओं में संचित नहीं किये जा सकते, अत: उनको शरीर से बाहर निकालना ही आवश्यक होता है। अपशिष्ट पदार्थों को शरीर से बाहर निकालना ही उत्सर्जन (excretion) कहलाता है। प्रमुख उत्सर्जी अंग मानव शरीर में प्रमुख उत्सर्जी अंग एक जोड़ी वृक्क (kidneys) होते हैं। वृक्कों के अतिरिक्त मनुष्य में यकृत, त्वचा, फेफड़े और आंत भी उत्सर्जन में मदद करते हैं।

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मनुष्य के वृक्क की संरचना:
मानव शरीर में वृक्क (kidneys) मुख्य उत्सर्जी अंग होते हैं। इनका कार्य रुधिर से यूरिया व यूरिक अम्ल आदि उत्सर्जी पदार्थों को छानकर अलग करना तथा उन्हें मूत्र (urine) के रूप में शरीर से बाहर निकालना है। मनुष्य में एक जोड़ी वृक्क, सेम के बीज की आकृति वाले होते हैं। ये उदरगुहा में कशेरुक दण्ड के दोनों ओर (दायें व बायें) स्थित होते हैं।

बायाँ वृक्क दायें वृक्क से कुछ नीचे (पश्च) स्थित होता है। प्रत्येक वृक्क का अन्दर का किनारा मध्य में धंसा हुआ होता है। इसे नाभि (hilum) कहते हैं। बाहरी किनारा उभरा या उत्तल होता है। प्रत्येक वृक्क लगभग 10 सेमी लम्बा, 6 सेमी चौड़ा और 2.5 सेमी मोटा होता है। पुरुष के वृक्क का भार लगभग 150 ग्राम, किन्तु स्त्री में कम होता है। वृक्क के ऊपर अधिवृक्क ग्रन्थि पायी जाती है।
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आन्तरिक संरचना में वृक्क दो स्पष्ट भागों में बँटा होता है-बाहरी गहरे रंग का कॉर्टेक्स (cortex) तथा भीतरी हल्के रंग का मेड्यूला (medulla) वृक्क का मध्य भाग खोखला (hollow) होता है। यह भाग क्रमशः सँकरा होकर भीतरी किनारे पर अधिक सँकरा होकर शीर्षगुहा या श्रोणि (pelvis) बनाता है। मेड्यूला कुछ शंक्वाकार पिरामिड जैसे उभारों में श्रोणि की ओर उभरा रहता है। श्रोणि से ही मूत्रवाहिनी (ureter) निकलती है।

वृक्क में अनगिनत वृक्क नलिकायें या नेफ्रॉन्स (uriniferous tubules or nephrons) होती हैं। प्रत्येक नलिका के सिरे पर एक ग्रन्थि के समान भाग होता है, इसको मैलपीघी कणिका (malpighian corpuscle) कहते हैं। मैलपीघी कणिका में भी दो भाग होते हैं: अन्दर केशिकाओं का जाल, केशिकागुच्छ या ग्लोमेरूलस (glomerulus) तथा बाहर एक कप जैसा बोमेन्स सम्पुट (Bowman’s capsule)।
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इसके बाद नलिका को कई भागों में बाँट सकते हैं; जैसे – समीपस्थ कुण्डलित नलिका, हेनले का लूप तथा दूरस्थ कुण्डलित नलिका। प्रत्येक नलिका के बोमेन सम्पुट में जो रुधिर केशिकाओं का जाल फैला रहता है, वह एक अभिवाही रुधिर केशिका से बनता है, बाद में, एक अपेक्षाकृत सँकरी अपवाही रुधिर केशिका सम्पुट से निकलने के पश्चात् नलिका के अन्य भागों पर जाल बनाती है। इन केशिकाओं में बहने वाले रुधिर से वृक्क नलिका में मूत्र छनता है। दूरस्थ कुण्डलित नलिकायें संग्रह नलिका में खुलती हैं और कई संग्रह नलिकायें मिलकर मोटी संग्रह नलिका में खुलती हैं, जो श्रोणि या पेल्विस में खुलती है; यहीं से मूत्रवाहिनी निकलती है।

वृक्क की क्रिया-विधि:
वृक्कों का प्रमुख कार्य शरीर के उत्सर्जी पदार्थों; जैसे – यूरिया, यूरिक अम्ल आदि को रुधिर से अलग कर मूत्र के रूप में शरीर से बाहर निकालना है। इसके अतिरिक्त वृक्क रुधिर में उपस्थित अतिरिक्त जल व लवणों को भी शरीर से निकालकर जल सन्तुलन और लवण सन्तुलन को बनाये रखते हैं। वृक्क नलिका की मैलपीघी कणिका में उपस्थित केशिकाओं के जाल, केशिकागुच्छ में एक अपेक्षाकृत चौड़ी रुधिर वाहिनी से रुधिर प्रवेश करता है।

केशिकाओं के जाल के बाद रुधिर को केशिकागुच्छ से बाहर लाने वाली रुधिर वाहिनी अपेक्षाकृत सँकरी होती है; अत: केशिकागुच्छ में जितना रुधिर प्रवेश करता है, उतना बाहर नहीं निकलता, जिसके फलस्वरूप यहाँ रुधिर का दाब बढ़ जाता है। इस अधिक दाब पर रुधिर कोशिकाओं व प्रोटीन को छोड़कर रुधिर का अधिकांश भाग केशिकागुच्छ की पतली भित्ति से छनकर सम्पुट में आ जाता है। इस छने हुए द्रव में अधिकांश जल तथा अन्य घुलनशील पदार्थ; जैसे यूरिया, यूरिक अम्ल, ग्लूकोज, अनेक लवण आदि होते हैं।

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छनने की इस क्रिया को अतिसूक्ष्म निस्यन्दन (ultrafiltration) कहते हैं। जब यह छना हुआ द्रव वृक्क नलिका के कुण्डलित भाग में आगे बढ़ता है, तो उस भाग की रुधिर केशिकायें इसमें उपस्थित लाभप्रद पदार्थों; जैसे – ग्लूकोज, कुछ लवण, जल आदि को अवशोषित करके पुनः रुधिर में पहुंचा देती हैं। धीरे-धीरे वृक्क में यूरिया, यूरिक अम्ल, कुछ जल व अन्य हानिकारक लवण रह जाते हैं, यह मूत्र (urine) कहलाता है। मूत्र वृक्क नलिका से संग्राहक नलिकाओं में होता हुआ मूत्रवाहिनी में पहुँच जाता है। मूत्रवाहिनी द्वारा मूत्र, मूत्राशय में पहुँच जाता है और समय-समय पर मूत्रमार्ग से बाहर निकाल दिया जाता है।

प्रश्न 9.
वाष्पोत्सर्जन से आप क्या समझते हैं? इसका क्या महत्त्व है? (2012, 13, 14, 15, 16, 17, 18)
या वाष्पोत्सर्जन के चार प्रमुख महत्त्व बताइए। (2016)
उत्तर:
वाष्पोत्सर्जन:
(transpiration) वह क्रिया है जिसमें जीवित पौधे, अपने वायवीय भागों; जैसे पत्तियों, हरे प्ररोह आदि के द्वारा आन्तरिक ऊतकों से अतिरिक्त पानी को वाष्प के रूप में बाहर निकालते हैं। वाष्पोत्सर्जन पौधे के सभी वायवीय भागों से होता है, परन्तु पौधे में पत्तियाँ वाष्पोत्सर्जन करने वाले महत्त्वपूर्ण अंग हैं। ये अत्यधिक चौरस होती हैं और पौधे की वायवीय सतह का एक महत्त्वपूर्ण भाग बनाती हैं। इन पर अधिक संख्या में पर्णरन्ध्र (stomata) दोनों सतहों पर वितरित रहते हैं।

वाष्पोत्सर्जन का महत्त्व:
वाष्पोत्सर्जन को ‘आवश्यक बुराई’ (necessary evil) कहा गया है, क्योंकि वाष्पोत्सर्जन के परिणामस्वरूप पौधों में जल की कमी हो जाती है; अत: विशेष (शुष्क) स्थानों के पौधे तो इसे रोकने के लिये भी अनेक उपाय करते हैं फिर भी यह पौधे के लिये अत्यन्त उपयोगी है। पौधे के लिये वाष्पोत्सर्जन के निम्नलिखित महत्त्व हैं –

1. अतिरिक्त जल का निस्तारण पौधे भूमि से लगातार अपने मूलरोमों द्वारा परासरण व अन्तःशोषण (osmosis and imbibition) के द्वारा जल का अवशोषण करते हैं। शरीर में आवश्यकता की अपेक्षा यह जल कई गुना अधिक होता है, अत: वाष्पोत्सर्जन द्वारा अनावश्यक तथा अतिरिक्त जल (excess water) पौधों के शरीर के बाहर निकलता रहता है।

2. खनिज लवणों की प्राप्ति वाष्पोत्सर्जन तथा जल के अवशोषण (absorption) में एक घनिष्ठ सम्बन्ध होता है। पौधे द्वारा जितना अधिक वाष्पोत्सर्जन होता है उतना ही अधिक भूमि से जल का अवशोषण होता है। मृदा जल में खनिज लवणों की मात्रा बहुत ही कम होती है अत: पौधों के द्वारा जितना अधिक जल का अवशोषण होता है उतने ही अधिक खनिज लवण (mineral salts) इसमें घुलकर पौधे के शरीर में पहुँचते रहते हैं। अधिक वाष्पोत्सर्जन से रिक्तिका रस में परासरण दाब बढ़ जाता है, इस प्रकार और अधिक लवण पादप शरीर में प्रवेश कर सकते हैं।

3. वाष्पोत्सर्जन कर्षण तथा रसारोहण वाष्पोत्सर्जन के द्वारा चूषण बल (suction pressure) उत्पन्न होता है जो रसारोहण (ascent of sap) के लिये अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। इससे जल बड़े-बड़े वृक्षों में भी उनकी अत्यधिक ऊँचाई तक पहुँच जाता है।

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4. ताप का नियमन वाष्पोत्सर्जन के कारण ही पौधे झुलसने से बच जाते हैं, क्योंकि जल की वाष्प बनने के कारण ठण्डक पैदा होती है। इस प्रकार गुप्त ऊष्मा के वाष्प में चले जाने के कारण उसका उपयोग पौधा ताप से बचने में करता है।

5. जल का समान वितरण वाष्पोत्सर्जन द्वारा पौधों के सभी भागों में पानी का वितरण (distribution) समान रूप से हो जाता है।

6. फलों में शर्करा की सान्द्रता अधिक वाष्पोत्सर्जन के कारण फलों में शर्करा की सान्द्रता बढ़ जाती है जिससे फल अधिक मीठे हो जाते हैं।

7. यान्त्रिक ऊतकों व आवरण का निर्माण अधिक वाष्पोत्सर्जन से पौधों में अधिक यान्त्रिक ऊतकों की वृद्धि होती है जिसके कारण पौधे मजबूत होते हैं। ये ऊतक पौधे की जीवाणुओं, कवकों आदि से रक्षा भी करते हैं, विशेषकर बाहरी भागों पर बने उपचर्म (cuticle) आदि के आवरण से।

प्रश्न 10.
पौधों में वाष्पोत्सर्जन कितने प्रकार से होता है? रंध्रीय वाष्पोत्सर्जन क्रिया-विधि का सचित्र वर्णन कीजिए। (2017)
या वाष्पोत्सर्जन की क्रिया में स्टोमेटा की क्या भूमिका है? चित्र द्वारा समझाइए। (2016)
या नामांकित चित्र की सहायता से पर्णरन्ध्रों (Stomata) के खुलने तथा बन्द होने की क्रिया-विधि का वर्णन कीजिए। (2012, 16)
या रन्ध्र (स्टोमेटा) का स्वच्छ एवं नामांकित चित्र बनाइए। (2013)
या रन्ध्र की रचना तथा कार्य का सचित्र वर्णन कीजिए। पौधों में इनकी क्या उपयोगिता है? (2014, 18)
या रन्ध्र का नामांकित चित्र बनाइए तथा द्वार (गार्ड) कोशिकाओं का वर्णन कीजिए। (2015)
उत्तर:
पौधों में वाष्पोत्सर्जन मुख्यत: तीन प्रकार से होता है –
1. रन्ध्रीय वाष्पोत्सर्जन
2. उपत्वचीय वाष्पोत्सर्जन
3. वातरन्ध्रीय वाष्पोत्सर्जन।

रन्ध्रीय वाष्पोत्सर्जन:
मूलरोमों द्वारा अवशोषित जल जाइलम द्वारा पत्तियों तक पहुँचता है। जाइलम वाहिकाओं (vessels) तथा वाहिनिकाओं (tracheids) द्वारा जल स्फीति दाब के कारण पत्ती की पर्णमध्यक कोशिकाओं (mesophyll cells) में पहुंचता है। पर्णमध्यक कोशिकाओं के मध्य अन्तराकोशीय स्थान (inercellular spaces) होते हैं। पर्णमध्यक कोशिकाओं से जल वाष्पीकरण के फलस्वरूप जलवाष्प में बदलकर अन्तराकोशीय स्थानों में आ जाता है। जलवाष्प सामान्य विसरण द्वारा रन्ध्रों से वातावरण में चली जाती है। वाष्पोत्सर्जन की दर रन्ध्रों के खुलने तथा बन्द होने पर निर्भर करती है।

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पर्णरन्ध्र के खुलने-बन्द होने की क्रिया-विधि:
पर्णरन्ध्र का निर्माण दो विशेष आकार-प्रकार की द्वार कोशिकाओं (guard cells) के द्वारा होता है। इन्हीं कोशिकाओं की स्फीति के कारण आकार में परिवर्तन पर रन्ध्र का छोटा या बड़ा होना निर्भर करता है। जब ये कोशिकाएँ स्फीत (turgid) होती हैं तो रन्ध्र खुला रहता है और जब श्लथ (flaccid) होती हैं तो रन्ध्र बन्द हो जाता है। द्वार कोशिकाओं की स्फीति (turgidity) में परिवर्तन उनके परासरण दाब (osmotic pressure) में परिवर्तन पर निर्भर करता है।

परासरण दाब बढ़ने पर आस-पास की सहायक कोशिकाओं (subsidiary cells) से परासरण की क्रिया के द्वारा पानी आ जाता है और द्वार कोशिकाएँ स्फीत हो जाती हैं; अत: भीतरी मोटी भित्ति, बाहरी भित्ति के बाहर की ओर फूलने के कारण, द्वार कोशिका के अन्दर ही घुस जाती है, फलत: रन्ध्र खुल जाता है। परासरण दाब घटने पर द्वार कोशिकाओं से जल पड़ोसी कोशिकाओं में चले जाने के कारण ये श्लथ हो जाती हैं और रन्ध्र बन्द हो जाते हैं।
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उपयोगिता:
रन्ध्रों द्वारा जलवाष्प विसरण द्वारा वायुमण्डल में चली जाती है। लगभग 90% वाष्पोत्सर्जन रन्ध्रों द्वारा ही होता है।

Bihar Board Class 10 Maths Solutions Chapter 3 दो चरों वाले रैखिक समीकरण युग्म Ex 3.1

Bihar Board Class 10 Maths Solutions Chapter 3 दो चरों वाले रैखिक समीकरण युग्म Ex 3.1 Text Book Questions and Answers.

BSEB Bihar Board Class 10 Maths Solutions Chapter 3 दो चरों वाले रैखिक समीकरण युग्म Ex 3.1

Bihar Board Class 10 Maths दो चरों वाले रैखिक समीकरण युग्म Ex 3.1

प्रश्न 1.
आफ़ताब अपनी पुत्री से कहता है, ‘सात वर्ष पूर्व मैं तुमसे सात गुनी आयु का था। अब से 3 वर्ष बाद मैं तुमसे केवल तीन गुनी आयु का रह जाऊँगा।’ (क्या यह मनोरंजक है?) इस स्थिति को बीजगणितीय एवं ग्राफीय रूपों में व्यक्त कीजिए।
हल
माना आफ़ताब और उसकी पुत्री की वर्तमान आयु क्रमशः x व y वर्ष है।
7 वर्ष पूर्व आफ़ताब की आयु = (x – 7) वर्ष
7 वर्ष पूर्व उसकी पुत्री की आयु = (y – 7) वर्ष
आफ़ताब पुत्री से कहता है कि 7 वर्ष पूर्व वह पुत्री की आयु का 7 गुना था।
अर्थात् (x – 7) = 7 (y – 7)
⇒ x – 7 = 7y – 49
⇒ x – 7y – 7 + 49 = 0
⇒ x – 7y + 42 = 0
अब से 3 वर्ष बाद आफ़ताब की आयु = (x + 3) वर्ष
अब से 3 वर्ष बाद उसकी पुत्री की आयु = (y + 3) वर्ष
आफ़ताब पुनः पुत्री से कहता है कि अब से 3 वर्ष बाद वह पुत्री की आयु का तिगुना होगा।
अर्थात् (x + 3) = 3(y + 3)
⇒ x + 3 = 3y + 9
⇒ x – 3y = +9 – 3
⇒ x – 3y = 6
कथनों का बीजगणितीय रूप समीकरण युग्म
x – 7y + 42 = 0 ……… (1)
x – 3y = 6 ……. (2)
ज्यामितीय निरूपण :
क्रिया-विधि :
1. दिए हुए समीकरण युग्म का पहला समीकरण x – 7y + 42 = 0
2. माना x = 0, तब x का मान समीकरण x – 7y + 42 = 0 में रखने पर,
0 – 7y + 42 = 0
⇒ 7y = 42
⇒ y = 6
3. तब समीकरण x – 7y + 42 = 0 के आलेख पर एक बिन्दु A = (0, 6) है।
4. पुनः माना x = 7, तब x का मान समीकरण x – 7y + 42 = 0 में रखने पर,
7 – 7y + 42 = 0
⇒ -7y = 49
⇒ y = 7
5. तब समीकरण x – 7y + 42 = 0 के आलेख पर एक बिन्दु B = (7, 7) है।
6. ग्राफ पेपर पर बिन्दुओं A = (0, 6) तथा B = (7, 7) को आलेखित (plotting) कीजिए और दिए गए समीकरण का आलेख AB खींचिए।
7. दिए हुए समीकरण युग्म का अन्य (दूसरा) समीकरण x – 3y = 6
8. माना x = 0, तब x का मान समीकरण x – 3y = 6 में रखने पर,
0 – 3y = 6
⇒ y = -2
9. तब समीकरण x – 3y = 6 के आलेख पर एक बिन्दु C = (0, -2) है।
10. पुनः माना x = 6, तब x का मान समीकरण x – 3y = 6 में रखने पर,
6 – 3y = 6
⇒ -3y = 0
⇒ y = 0
11. तव समीकरण x – 3y = 6 के आलेख पर एक बिन्दु D = (6, 0) है।
12. ग्राफ पेपर पर बिन्दु C = (0, -2) तथा D = (6, 0) को आलेखित कर दिए हुए समीकरण का आलेख CD खींचिए, जो बिन्दु P(42, 12) पर प्रतिच्छेद करती है।
Bihar Board Class 10 Maths Solutions Chapter 3 दो चरों वाले रैखिक समीकरण युग्म Ex 3.1 Q1
13. ऋजु रेखाएँ AB तथा CD दिए गए कथनों का अभीष्ट ज्यामितीय निरूपण है।

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प्रश्न 2.
क्रिकेट टीम के एक कोच ने ₹ 3900 में 3 बल्ले तथा 6 गेंदें खरीदीं। बाद में उसने एक और बल्ला तथा उसी प्रकार की 2 गेंदें ₹ 1300 में खरीदीं। इस स्थिति को बीजगणितीय तथा ज्यामितीय रूपों में व्यक्त कीजिए।
हल
माना एक बल्ले का मूल्य ₹ x तथा एक गेंद का मूल्य ₹ y है।
3 बल्लों और 6 गेंदों का मूल्य = ₹ 3900
₹ 3x + ₹ 6y = ₹ 3900
3x + 6y = 3900
इसी प्रकार, एक बल्ले का मूल्य +2 गेंदों का मूल्य = ₹ 1300
₹ x + ₹ 2y = ₹ 1300
x + 2y = 1300
अत: दिए गए कथनों का बीजगणितीय रूप समीकरण युग्म :
3x + 6y = ₹ 3900 ……. (1)
x + 2y = ₹ 1300 ……. (2)
ज्यामितीय निरूपण :
क्रिया-विधि :
1. दिए हुए समीकरण युग्म का पहला समीकरण 3x + 6y = 3900
2. माना x = 100, तब x का मान समीकरण 3x + 6y = 3900 में रखने पर,
(3 × 100) + 6y = 3900
⇒ 300 + 6y = 3900
⇒ 6y = 3600
⇒ y = 600
3. तब समीकरण 3x + 6y = 3900 के आलेख पर एक बिन्दु A = (100, 600) है।
4. पुन: माना x = 300, तब x का मान समीकरण 3x + 6y = 3900 में रखने पर,
(3 × 300) + 6y = 3900
⇒ 900 + 6y = 3900
⇒ 6y – 3900 = -900
⇒ 6y = 3000
⇒ y = 500
5. तब समीकरण 3x + 6y = 3900 के आलेख पर एक बिन्दु B = (300, 500) है।
6. ग्राफ पेपर पर बिन्दुओं A = (100, 600) तथा B = (300, 500) को आलेखित (plotting) कीजिए और दिए गए समीकरण का आलेख AB खींचिए।
7. दिए हुए समीकरण युग्म का दूसरे समीकरण x + 2y = 1300
Bihar Board Class 10 Maths Solutions Chapter 3 दो चरों वाले रैखिक समीकरण युग्म Ex 3.1 Q2
8. माना x = 500, तब x का मान समीकरण x – 2y = 1300 में रखने पर,
500 + 2y = 1300
⇒ 2y = 1300 – 500
⇒ 2y = 800
⇒ y = 400
9. तब समीकरण x + 2y = 1300 के आलेख पर एक बिन्दु C = (500, 400) है।
10. पुन: माना x = -100, तब x का मान समीकरण x + 2y = 1300 में रखने पर,
-100 + 2y = 1300
⇒ 2y = 1300 + 100
⇒ 2y = 1400
⇒ y = 700
11. तब समीकरण x + 2y = 1300 के आलेख पर एक बिन्दु D = (-100, 700) है।
12. ग्राफ पेपर पर बिन्दु C = (500, 400) तथा D = (-100, 700) को आलेखित कर दिए हुए समीकरण का आलेख CD खींचिए।
13. ऋजु रेखाएँ AB तथा CD जो कि सम्पाती हैं, दिए गए कथनों का अभीष्ट ज्यामितीय रूप हैं।
चित्र से स्पष्ट है कि दोनों कथनों के आलेख ऋजु रेखाएँ AB तथा CD एक ही रेखा है। अतः रेखा AB एवं CD सम्पाती हैं।

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प्रश्न 3.
2 किग्रा सेब और 1 किग्रा अंगूर का मूल्य किसी दिन ₹ 160 था। एक महीने बाद 4 किग्रा सेब और 2 किग्रा अंगूर का मूल्य ₹ 300 हो जाता है। इस स्थिति को बीजगणितीय तथा ज्यामितीय रूपों में व्यक्त कीजिए।
हल
माना एक दिन 1 किग्रा सेब का मूल्य ₹ x तथा 1 किग्रा अंगूर का मूल्य ₹ y है।
तब, 2 किग्रा सेब का मूल्य +1 किग्रा अंगूर का मूल्य = ₹ 160
2x + y = 160
1 महीने बाद, 4 किग्रा सेब का मूल्य +2 किग्रा अंगूर का मूल्य = ₹ 300
4x + 2y = 300
अत: दिए गए कथनों का बीजगणितीय रूप समीकरण युग्म
2x + y = 160 ……. (1)
4x + 2y = 300 ……. (2)
ज्यामितीय निरूपण :
क्रिया-विधि :
1. दिए हुए समीकरण युग्म का पहला समीकरण 2x + y = 160
2. माना x = 50, तब x का मान समीकरण 2x + y = 160 में रखने पर,
2 × 50 + y = 160
⇒ 100 + y = 160
⇒ y = 160 – 100
⇒ y = 60
3. तब समीकरण 2x + y = 160 के आलेख पर एक बिन्दु A = (50, 60) है।
4. पुन: माना x = 0, तब x का मान समीकरण 2x + y = 160 में रखने पर,
2 × 0 + y = 160
⇒ 0 + y = 160
⇒ y = 160
5. तब समीकरण 2x + y = 160 के आलेख पर एक बिन्दु B = (0, 160) है।
(6) ग्राफ पेपर पर बिन्दुओं A = (50, 60) तथा B = (0, 160) को आलेखित (plotting) कीजिए और दिए गए समीकरण का आलेख AB खींचिए।
7. दिए हुए समीकरण युग्म का दूसरा समीकरण 4x + 2y = 300
8. माना x = 75, तब x का मान समीकरण 4x + 2y = 300 में रखने पर,
4 × 75 + 2y = 300
⇒ 300 + 2y = 300
⇒ 2y = 300 – 300 = 0
⇒ y = 0
9. तब समीकरण 4x + 2y = 300 के आलेख पर एक बिन्दु C = (75, 0) है।
Bihar Board Class 10 Maths Solutions Chapter 3 दो चरों वाले रैखिक समीकरण युग्म Ex 3.1 Q3
10. पुन: माना x = 0, तब x का मान समीकरण 4x + 2y = 300 में रखने पर,
4 × 0 + 2y = 300
⇒ 0 + 2y = 300
⇒ 2y = 300
⇒ y = 150
11. तब समीकरण 4x + 2y = 300 के आलेख पर एक बिन्दु D = (0, 150) है।
12. ग्राफ पेपर पर बिन्दु C = (75, 0) तथा D = (0, 150) को आलेखित कर दिए हुए समीकरण का आलेख CD खींचिए।
ऋजु रेखाएँ AB तथा CD दिए गए कथनों का अभीष्ट ज्यामितीय रूप हैं।