Bihar Board 12th Entrepreneurship Objective Important Questions Part 4 in Hindi

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Bihar Board 12th Entrepreneurship Objective Important Questions Part 4 in Hindi

प्रश्न 1.
एक उत्पाद के मुख्य लागत में शामिल हैं
(a) प्रत्यक्ष सामग्री
(b) कारखाना उपरिव्यय
(c) प्रत्यक्ष मजदूरी
(d) प्रत्यक्ष व्यय
उत्तर:
(a) प्रत्यक्ष सामग्री, (d) प्रत्यक्ष व्यय

प्रश्न 2.
निम्नलिखित में से कौन संचालन व्यय नहीं है ?
(a) किराया
(b) विज्ञापन व्यय
(c) प्रारंभिक व्यय
(d) मजदूरी
उत्तर:
(b) विज्ञापन व्यय

प्रश्न 3.
लेबलिंग है
(a) आवश्यक
(b) अनिवार्य
(c) धन की बर्बादी
(d) ऐच्छिक
उत्तर:
(a) आवश्यक

प्रश्न 4.
व्यापार नीति का उद्देश्य निम्नलिखित में से किससे सम्बन्धित नहीं है ?
(a) वस्तुओं और सेवाओं की आपूर्ति
(b) प्रतिकूल भुगतान संतुलन का नियंत्रण
(c) वैकल्पिक आयात के उपाय
(d) प्रभावशीलता की लागत
उत्तर:
(d) प्रभावशीलता की लागत

प्रश्न 5.
निम्न में से कौन-सा घटक बाजार मूल्यांकन पर प्रभाव डालता है ?
(a) सूक्ष्म वातावरण
(b) उत्पाद की लागत
(c) माँग
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(b) उत्पाद की लागत

प्रश्न 6.
तकनीकी-आर्थिक विश्लेषण में पहचान किया जाता है
(a) पूर्ति संभावना
(b) माँग संभावना
(c) निर्यात संभावना
(d) आयात संभावना
उत्तर:
(b) माँग संभावना

प्रश्न 7.
सामाजिक व्यवहार संबंधित नहीं होता है
(a) सार्वजनिक वस्तुओं के उत्पादन से
(b) अनैतिक व्यवहार का परिवर्तन से
(c) सामाजिक बाध्यता की पूर्ति से
(d) लाभ-अर्जन प्रक्रिया से
उत्तर:
(d) लाभ-अर्जन प्रक्रिया से

प्रश्न 8.
नियमित कार्यशील पूँजी का अंश होता है
(a) स्थायी कार्यशील पूँजी
(b) परिवर्तनशील कार्यशील पूँजी
(c) शुद्ध कार्यशील पूँजी
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(a) स्थायी कार्यशील पूँजी

प्रश्न 9.
चल लागत का श्रेष्ठतम उदाहरण है
(a) पूँजी पर ब्याज
(b) सामग्री लागत
(c) धन कर
(d) किराया
उत्तर:
(c) धन कर

प्रश्न 10.
अधिमान अंशों पर लाभांश दर होती है
(a) स्थिर
(b) चल
(c) अर्द्ध-चल
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(a) स्थिर

प्रश्न 11.
सामाजिक ढाँचा की रचना होती है
(a) समाज के क्रियात्मक विभाजन से
(b) जाति के क्रियात्मक विभाजन से
(c) समुदाय के क्रियात्मक विभाजन से
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(c) समुदाय के क्रियात्मक विभाजन से

प्रश्न 12.
लाभदायकता अनुपात में सम्मिलित हैं
(a) सकल लाभ अनुपात
(b) शुद्ध लाभ अनुपात
(c) संचालन लाभ अनुपात
(d) (a), (b) एवं (c) तीनों
उत्तर:
(d) (a), (b) एवं (c) तीनों

प्रश्न 13.
विकास की गिरती स्थिति में
(a) उद्यम अपने आय को जीवित रखना कठिन पाता है
(b) उद्यम को तेज गति से हानियाँ होती हैं
(c) उद्यम दुकान बन्द करने को अच्छा मानता है
(d) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(d) उपर्युक्त सभी

प्रश्न 14.
परियोजना तैयार की जाती है
(a) प्रवर्तकों द्वारा
(b) प्रबन्धकों द्वारा
(c) उद्यमियों द्वारा
(d) (a), (b) एवं (c) द्वारा
उत्तर:
(d) (a), (b) एवं (c) द्वारा

प्रश्न 15.
एक उद्यमी कहा जाता है
(a) आर्थिक विकास का प्रवर्तक
(b) आर्थिक विकास का प्रेरक
(c) (a) और (b) दोनों
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(c) (a) और (b) दोनों

प्रश्न 16.
निम्न में कौन उद्यमिता की विशेषता नहीं है ?
(a) जोखिम लेना
(b) नवाचार
(c) सृजनात्मक क्रिया
(d) प्रबंधकीय प्रशिक्षण
उत्तर:
(d) प्रबंधकीय प्रशिक्षण

प्रश्न 17.
चिट्ठा में शामिल नहीं रहता है
(a) शुद्ध हानि
(b) अदत्त व्यय
(c) व्यापारिक लेनदार
(d) आयकर का भुगतान
उत्तर:
(c) व्यापारिक लेनदार

प्रश्न 18.
एक नई फैक्ट्री को स्थापित करने के लिए हमें आवश्यकता होती है
(a) वृहत् पूँजी की
(b) भूमि का बड़ा खण्ड का
(c) पर्याप्त मानव शक्ति की
(d) आयातित मशीन की
उत्तर:
(a) वृहत् पूँजी की

प्रश्न 19.
जन निपेक्ष साधन है
(a) अल्पकालीन वित्त का
(b) दीर्घकालीन वित्त का
(c) मध्यकालीन वित्त का
(d) सामाजिक निवेश
उत्तर:
(a) अल्पकालीन वित्त का

प्रश्न 20.
“कम्पनी का विपणन वातावरण विपणन के बाहर उन सब घटकों और शक्तियों से होता है जिनका विपणन प्रबंध की क्षमता को विकसित करने तथा वांछित उपभोक्ताओं को सफलतापूर्वक विपणन क्रियाओं को करने से होता है।” यह कथन किसका है ?
(a) क्रेवेन्स
(b) कोटलर एवं आर्मस्ट्रांग
(c) मार्शल
(d) थॉमस
उत्तर:
(b) कोटलर एवं आर्मस्ट्रांग

प्रश्न 21.
सबसे अधिक व्यापक क्षेत्र है
(a) ब्रांड का
(b) लेबलिंग का
(c) पैकेजिंग का
(d) व्यापार मार्क का
उत्तर:
(a) ब्रांड का

प्रश्न 22.
विपणन व्यय भार है
(a) उद्योग पर
(b) व्यवसायियों पर
(c) उपभोक्ताओं पर
(d) इनमें से सभी पर
उत्तर:
(d) इनमें से सभी पर

प्रश्न 23.
IFCI स्थापित की गयी वर्ष
(a) 1939 में
(b) 1948 में
(c) 1950 में
(d) 1956 में
उत्तर:
(d) 1956 में

प्रश्न 24.
आदर्श चालू अनुपात होता है
(a) 2 : 1
(b) 1 : 2
(c) 3 : 2
(d) 4 : 1
उत्तर:
(a) 2 : 1

प्रश्न 25.
उपक्रम चुनाव के आवश्यक तत्व हैं
(a) गोपनीयता
(b) व्यावसायिक क्रिया
(c) परिचालन का क्षेत्र
(d) इनमें से सभी
उत्तर:
(d) इनमें से सभी

प्रश्न 26.
व्यवसाय के प्रारूप को निर्धारित करता है
(a) स्थान
(b) अध्ययन
(c) आकार
(d) आविष्कार
उत्तर:
(c) आकार

प्रश्न 27.
विपणन स्वभाव में शामिल है
(a) ग्राहक
(b) उत्पादन
(c) उत्पाद नियोजन
(d) विक्रय
उत्तर:
(c) उत्पाद नियोजन

प्रश्न 28.
गैर-बैंक साधन है
(a) खुला खाता
(b) व्यापारिक ऋण
(c) जन निक्षेप
(d) इनमें से सभी
उत्तर:
(b) व्यापारिक ऋण

प्रश्न 29.
सम-विच्छेद की उपयोगिता में शामिल है
(a) लाभ सुधार
(b) जोखिम
(c) नैदानिक
(d) इसमें सभी
उत्तर:
(d) इसमें सभी

प्रश्न 30.
लाभ मात्रा अनुपात अंशदान
Bihar Board 12th Entrepreneurship Objective Important Questions Part 4, 1
उत्तर:
Bihar Board 12th Entrepreneurship Objective Important Questions Part 4, 2

प्रश्न 31.
जोखिम पूँजी शिलाधार स्थापित किया गया
(a) 1970 में
(b) 1975 में
(c) 1986 में
(d) 1988 में
उत्तर:
(c) 1986 में

प्रश्न 32.
भारतीय प्रौद्योगिकी विकास एवं आधारभूत निगम स्थापित किया गया वर्ष
(a) 1975 में
(b) 1986 में
(c) 1988 में
(d) 1990 में
उत्तर:
(d) 1990 में

प्रश्न 33.
प्रबंध क्या है ?
(a) विज्ञान
(b) कला
(c) कला और विज्ञान दोनों
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(c) कला और विज्ञान दोनों

प्रश्न 34.
किसी भी देश के विकास में सबसे अधिक आवश्यक है
(a) भौतिक संसाधन की
(b) आर्थिक संसाधन की
(c) कुशल प्रबंध की
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(b) आर्थिक संसाधन की

प्रश्न 35.
वर्तमान उत्पादन व्यवस्था वास्तव में है
(a) प्रत्यक्ष उत्पादन
(b) अप्रत्यक्ष उत्पादन
(c) प्राथमिक
(d) द्वितीयक
उत्तर:
(a) प्रत्यक्ष उत्पादन

प्रश्न 36.
निम्न में से कौन-सी किस्म नियंत्रण की विधि है ?
(a) निरीक्षण विधि
(b) सांख्यकीय किस्म नियंत्रण विधि
(c) उपरोक्त (a) व (b) दोनों
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(c) उपरोक्त (a) व (b) दोनों

प्रश्न 37.
निम्न में से कौन उत्पादन का प्रकार हैं ?
(a) प्रत्यक्ष उत्पादन विधि
(b) अप्रत्यक्ष उत्पादन विधि
(c) उपरोक्त (a) व (b) दोनों
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(c) उपरोक्त (a) व (b) दोनों

प्रश्न 38.
अच्छे ब्राण्ड की विशेषताएँ हैं
(a) सूक्ष्म नाम
(b) स्मरणीय
(c) आकर्षक
(d) ये सभी
उत्तर:
(d) ये सभी

प्रश्न 39.
सबसे अधिक व्यापक क्षेत्र है
(a) ब्राण्ड
(b) लेबलिंग
(c) पैकेजिंग
(d) व्यापार मार्क
उत्तर:
(d) व्यापार मार्क

प्रश्न 40.
ब्राण्ड बतलाता है
(a) चिह्न
(b) डिजाइन
(c) नाम
(d) इनमें से सभी
उत्तर:
(d) इनमें से सभी

Bihar Board 12th Psychology Objective Important Questions Part 3

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Bihar Board 12th Psychology Objective Important Questions Part 3

प्रश्न 1.
पूर्वाग्रह में घटकों की संख्या होती है
(a) दो
(b) तीन
(c) चार
(d) पाँच
उत्तर:
(c) चार

प्रश्न 2.
मनोवृत्ति परिवर्तन के दो-स्तरीय संप्रत्यय का प्रतिपादन किसने किया?
(a) मुहम्मद सुलैमान
(b) ए० के० सिंह
(c) एस० एम० मुहसीन
(d) जे० पी० दास
उत्तर:
(b) ए० के० सिंह

प्रश्न 3.
एक सामाजिक समूह की संरचना के लिए कम-से-कम कितने सदस्यों की आवश्यकता होती है?
(a) पाँच
(b) चार
(c) तीन
(d) दो
उत्तर:
(d) दो

प्रश्न 4.
निम्नांकित में से कौन युंग के व्यक्तित्व प्रकार के अंतर्गत नहीं समझा जाता है?
(a) बहिर्मुखी
(b) एंडोमॉर्फी
(c) अंतर्मुखी
(d) उभयमुखी
उत्तर:
(b) एंडोमॉर्फी

प्रश्न 5.
विचारों, प्रेरणाओं, आवश्यकताओं एवं उद्देश्यों के परस्पर विरोध के फलस्वरूप पैदा हुई विक्षोभ या तनाव की स्थिति क्या कहलाती है?
(a) द्वंद्व
(b) तर्क
(c) कुण्ठा
(d) दमन
उत्तर:
(a) द्वंद्व

प्रश्न 6.
अंग्रेजी के शब्द ‘स्ट्रेस’ की उत्पत्ति किस भाषा से हुई है?
(a) जर्मन
(b) हिन्दी
(c) ग्रीक
(d) लैटिन
उत्तर:
(d) लैटिन

प्रश्न 7.
यदि एक मुसलमान अपने हिन्दू मित्र का अभिवादन दोनों हाथों को जोड़ कर करता है, तो वह ऐसा किस समूह के प्रभाव के अंतर्गत करता है?
(a) प्राथमिक
(b) द्वितीयक
(c) संदर्भ
(d) इनमें से कोई नही
उत्तर:
(a) प्राथमिक

प्रश्न 8.
शोर या ध्वनि को नापने के लिए किस इकाई का प्रयोग किया जाता है ?
(a) बेल
(b) माइक्रोबेल
(c) डेसीबेल
(d) डी पी
उत्तर:
(c) डेसीबेल

प्रश्न 9.
शुद्ध वायु कहलाती है
(a) 78.98% N2, 20.44% O2, तथा 0.03% CO2,
(b) 20.44% N2, 78.98% O2, तथा 0.03% CO2,
(c) 60.30% N2, 39.20% O2, तथा 0.03% CO2,
(d) इनमें से कोई नही
उत्तर:
(a) 78.98% N2, 20.44% O2, तथा 0.03% CO2,

प्रश्न 10.
भारतीय परिप्रेक्ष्य में निर्धन किसे कहेंगे?
(a) आमदनी इतनी कम हो कि व्यक्ति अपर्याप्त जीवन व्यतीत करे
(b) आमदनी अधिक हो पर आवश्यकताएँ कम हो
(c) आमदनी और आवश्यकताएँ दोनों अधिक हो
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(a) आमदनी इतनी कम हो कि व्यक्ति अपर्याप्त जीवन व्यतीत करे

प्रश्न 11.
किस प्रेक्षण में प्रेक्षक, प्रेषित समूह के साथ घुल-मिलकर घटना का अवलोकन प्राकृतिक रूप से करता है?
(a) सहभागी
(b) असहभागी
(c) प्रकृतिवादी
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(a) सहभागी

प्रश्न 12.
किसी सामान्य प्रक्रिया की असामान्य रूप से बार-बार दुहराने की व्याधि को क्या कहते हैं?
(a) दुर्भीति
(b) आतंक
(c) सामान्यीकृत दुश्चिता
(d) मनोग्रस्ति बाध्यता
उत्तर:
(d) मनोग्रस्ति बाध्यता

प्रश्न 13.
मनोविश्लेषणात्मक चिकित्सा का संबंध किस व्यक्ति से है?
(a) फ्रायड
(b) युग
(c) एडलर
(d) मैसलो
उत्तर:
(a) फ्रायड

प्रश्न 14.
पतंजलि का नाम किससे सम्बद्ध है?
(a) मनोचिकित्सा
(b) योग
(c) स्वप्न विश्लेषण
(d) परामर्श
उत्तर:
(b) योग

प्रश्न 15.
आधुनिक चिकित्साशास्त्र का जनक किसे माना जाता है?
(a) हिप्पोक्रेट्स
(b) फ्रायड
(c) मैसलो
(d) रोजर्स
उत्तर:
(b) फ्रायड

प्रश्न 16.
बुद्धि के विषय पर शोध कार्य करनेवाले पहले मनोवैज्ञानिक थे
(a) बिने
(b) स्पीयरमैन
(c) थॉमसन
(d) गिलफोर्ड
उत्तर:
(a) बिने

प्रश्न 17.
‘संवेगात्मक बुद्धि’ पद का प्रतिपादन किसके द्वारा किया गया है?
(a) वुड तथा वुड
(b) सैलोवे तथा मेयर
(c) गोलमैन
(d) जेम्स बार्ड
उत्तर:
(b) सैलोवे तथा मेयर

प्रश्न 18.
किसने बुद्धि को एक सार्वभौम क्षमता माना है?
(a) वेक्सलर
(b) बिने
(c) गार्डनर
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(a) वेक्सलर

प्रश्न 19.
टी. ए. टी. व्यक्तित्व मापन किस प्रकार का परीक्षण है?
(a) प्रश्नावली
(b) आत्म विवरण आविष्कारिका
(c) कागज-पेंसिल जांच
(d) प्रक्षेपी
उत्तर:
(b) आत्म विवरण आविष्कारिका

प्रश्न 20.
रोजर्स ने अपने व्यक्तित्व सिद्धांत में केन्द्रीय स्थान दिया है
(a) आत्म (स्व) को
(b) अचेतन को
(c) अधिगम को
(d) आवश्यकता को
उत्तर:
(a) आत्म (स्व) को

प्रश्न 21.
साक्षात्कार का उद्देश्य है
(a) आमने-सामने के सम्पर्क से सूचना प्राप्त करना
(b) परिकल्पनाओं के स्रोत
(c) अवलोकन के लिए अवसर पाना
(d) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(d) उपर्युक्त सभी

प्रश्न 22.
प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक हंस सेल किस क्षेत्र से संबंधित है?
(a) अभिप्रेरकों के संघर्ष के क्षेत्र से
(b) तनाव के अध्ययन के क्षेत्र से
(c) समाजीकरण के अध्ययन के क्षेत्र से
(d) इनमें से किसी भी क्षेत्र से नहीं
उत्तर:
(b) तनाव के अध्ययन के क्षेत्र से

प्रश्न 23.
आदर्श व्यवहार के संबंध में स्थायी विश्वास को कहा जाता है
(a) व्यक्तित्व
(b) मूल्य
(c) अभिरुचि
(d) अभिक्षमता
उत्तर:
(a) व्यक्तित्व

प्रश्न 24.
थर्स्टन के अनुसार बुद्धि में कितने प्राथमिक मानसिक योग्यताएँ उपस्थित होती हैं?
(a) 5
(b) 6
(c) 7
(d) 8
उत्तर:
(a) 5

प्रश्न 25.
व्यक्तित्व के विशेषक उपागम का अग्रणी कौन है?
(a) गार्डन ऑलपोर्ट
(b) रेमंड कैटैल
(c) एच. जे. वारनर
(d) थार्नडाइक
उत्तर:
(a) गार्डन ऑलपोर्ट

प्रश्न 26.
किसने ‘आदर्श सकारात्मक आदर’ का संप्रत्यय दिया है?
(a) फ्रायड
(b) मैकिन्ले
(c) रोजर्स
(d) एडलर
उत्तर:
(a) फ्रायड

प्रश्न 27.
निम्नलिखित में कौन स्नायु विकृति नहीं है?
(a) मनोविदलता
(b) चिन्ता विकृति
(c) बाध्य विकृति
(d) दुर्भीति
उत्तर:
(a) मनोविदलता

प्रश्न 28.
बाह्य आबेधक के प्रति प्रतिक्रिया को कहा जाता है
(a) अनुकूलन
(b) बर्न-आउट
(c) समायोजन
(d) खिंचाव
उत्तर:
(a) अनुकूलन

प्रश्न 29.
प्राथमिक मानसिक योग्यता का सिद्धान्त किसने प्रस्तुत किया?
(a) लिकर्ट
(b) गिलफोर्ड
(c) थर्स्टन
(d) गार्डनर
उत्तर:
(d) गार्डनर

प्रश्न 30.
किस वर्ष बुद्धि का पास माडेल विकसित हुआ?
(a) 1984
(b) 1994
(c) 1954
(d) 1964
उत्तर:
(d) 1964

प्रश्न 31.
मानसिक उम्र के संप्रत्यय को किसने विकसित किया?
(a) बिने
(b) स्टर्न
(c) टरमन
(d) बिने तथा साइमन
उत्तर:
(a) बिने

प्रश्न 32.
किसने आत्मसिद्धता की अवधारणा को प्रस्तुत किया?
(a) मास्लो
(b) रोजर्स
(c) फ्रायड
(d) युग
उत्तर:
(b) रोजर्स

प्रश्न 33.
सामूहिक अचेतन के विषय को कहा जाता है।
(a) मनोग्रंथि
(b) आरकीटाइप
(c) परसोना
(d) एनीमा
उत्तर:
(a) मनोग्रंथि

प्रश्न 34.
निम्नांकित में से कौन-सा मनोवैज्ञानिक विकारों के वर्गीकरण की नवीनतम पद्धति है ?
(a) डी एस एम III आर
(b) डी एस एम IV (सी)
(c) आई सी डी-10
(d) डब्ल्यू एच ओ
उत्तर:
(b) डी एस एम IV (सी)

प्रश्न 35.
रोर्शाक परीक्षण है
(a) बुद्धि परीक्षण
(b) अभिक्षमता परीक्षण
(c) प्रक्षेपी परीक्षण
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(b) अभिक्षमता परीक्षण

प्रश्न 36.
एनोरेक्सिया नर्वोसा की विशिष्टता होती है
(a) स्नायविक दुर्बलता
(b) निद्रा व्याघात
(c) अपर्याप्त भोजन से वजन में कमी
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(a) स्नायविक दुर्बलता

प्रश्न 37.
दबाव प्रतिरोधी व्यक्तित्व में कौन विशेषता नहीं पायी जाती है?
(a) दुश्चिंता
(b) प्रतिबद्धता
(c) चुनौती
(d) नियंत्रण
उत्तर:
(d) नियंत्रण

प्रश्न 38.
जिन व्यक्तियों की बुद्धि-लब्धि 90 से 100 के बीच होती है, उन्हें कहते हैं
(a) जड़
(b) मूढ़
(c) सामान्य
(d) प्रतिभाशाली
उत्तर:
(c) सामान्य

प्रश्न 39.
किसने सर्वप्रथम स्वीकार किया कि द्वंद्व एवं अंतर्वैयक्तिक संबंधों में बाधा मानसिक विकारों के महत्वपूर्ण कारण हैं?
(a) हिप्पोक्रेट्स
(b) जॉन वेयर
(c) सुकरात
(d) गैलन
उत्तर:
(c) सुकरात

प्रश्न 40.
निम्नांकित में से कौन काय रूप विकार है?
(a) पीड़ा विकार
(b) काय-आलंबिता विकार
(c) परिवर्तन विकार
(d) इनमें सभी
उत्तर:
(d) इनमें सभी

प्रश्न 41.
फ्रायड के अनुसार ऑडिपस की अवधि में बालक प्रतियोगिता करता है
(a) बहन के साथ
(b) भाई के साथ
(c) माता के साथ
(d) पिता के साथ
उत्तर:
(d) पिता के साथ

प्रश्न 42.
निम्नलिखित में से कौन युंग के व्यक्तित्व प्रकार के अंतर्गत समझा जाता है?
(a) अन्तर्मुखी
(b) गोलाकार
(c) लम्बाकार
(d) आयाताकार
उत्तर:
(a) अन्तर्मुखी

प्रश्न 43.
सामान्य अनुकूलन संलक्षण या जी० ए० एस० के संप्रत्यय को किसने प्रस्तुत किया?
(a) जिम्बार्डों
(b) हेंस सेली
(c) मार्टिन सेलिगमैन
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(b) हेंस सेली

प्रश्न 44.
निम्नांकित में कौन बुलिमिया विकार है?
(a) भोजन विकार
(b) नैतिक विकार
(c) भावात्मक विकार
(d) चरित्र विकार
उत्तर:
(b) नैतिक विकार

प्रश्न 45.
मनोगत्यात्मक चिकित्सा का प्रतिपादन किसने किया?
(a) रोजर्स
(b) आलपोर्ट
(c) फ्रायड
(d) वाटसन
उत्तर:
(c) फ्रायड

प्रश्न 46.
मनोवृत्ति परिवर्तन प्रक्रिया में संतुलन या पी-ओ-एक्स का संप्रत्यय किसने प्रस्तावित किया?
(a) मुहम्मद सुलैमान
(b) एस० एम० मोहसीन
(c) फ्रिट्ज हाइडर
(d) एब्राहम मैसलो
उत्तर:
(c) फ्रिट्ज हाइडर

प्रश्न 47.
परिवार एक उदाहरण है
(a) प्राथमिक समूह का
(b) द्वितीयक समूह का
(c) आकस्मिक समूह का
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(a) प्राथमिक समूह का

Bihar Board 12th Entrepreneurship Important Questions Short Answer Type Part 5 in Hindi

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Bihar Board 12th Entrepreneurship Important Questions Short Answer Type Part 5 in Hindi

प्रश्न 1.
व्यवहार्यता अध्ययन क्या है ?
उत्तर:
सामान्य बोलचाल की भाषा में व्यावसायिक लेन-देन के व्यवहार के अध्ययन को व्यवहार्यता अध्ययन कहा जाता है। वस्तु एवं सेवाओं की भविष्य में कुल माँग क्या होगी, परियोजना का बाजार अंश कितना होगा इत्यादि प्रश्नों से बाजार व्यवहार्यता सम्बन्धित होता है। इसके लिए विभिन्न सूचनाओं का अध्ययन करना आवश्यक होता है। जैसे-पूर्व एवं वर्तमान की आपूर्ति की स्थिति, पूर्व एवं वर्तमान का उपभोग स्तर, आयात एवं निर्यात की स्थिति, माँग की लोच, प्रतियोगिता की स्थिति उपभोक्ता की पसंद और संतुष्टि तथा बाजार संबंधी नीतियाँ इत्यादि।

प्रश्न 2.
वातावरण अध्ययन के तीन उद्देश्य बताइए।
उत्तर:
वातावरण अध्ययन के तीन उद्देश्य निम्नलिखित हैं-

  • खतरा और अवसरों की पहचान- वातावरण अध्ययन से साहसी को व्यापार में आने वाले खतरे और सुनहरे अवसर का ज्ञान प्राप्त होते रहता है।
  • भविष्य का अवलोकन- वातावरण का अध्ययन प्रबंधक को भविष्य के अवलोकन में मदद करता है।
  • व्यूह रचना बनाने में- वातावरण विश्लेषण के द्वारा विविधीकरण तथा विकास और व्यवसाय में आने वाली समस्याओं का हल संभव हो पाता है।

प्रश्न 3.
विपणन मिश्रण के तीन तत्व लिखिए।
उत्तर:
विज्ञापन के तीन तत्त्व निम्नलिखित हैं-

  • उत्पाद-कम्पनी के उत्पाद में ऐसी गुणवत्ता होनी चाहिए जिससे उपभोक्ता की जरूरत पूरी हो सके।
  • संवर्द्धन- कई बार संभावनाएँ होती हैं कि उत्पाद बड़ा गुणवत्ता वाला होता है परन्तु उपभोक्ताओं में लोकप्रिय नहीं होता और परिणामस्वरूप बिक्री कम होता है। इसके लिए विज्ञापन समाचार पत्रों, रेडियो, सिनेमा, टेलीविजन द्वारा किया जाता है।
  • मूल्य-मूल्य सामान्य रूप से उत्पादन के मूल्य का निर्माणकर्ता ही फैसला करते हैं। माल के मूल्य का निर्णय संगठन के उद्देश्य को ध्यान में रखकर करना चाहिए।

प्रश्न 4.
विज्ञापन के तीन कार्य बताइए।
उत्तर:
विज्ञापन वातावरण को प्रभावित करने वाले घटक निम्नलिखित हैं-

  • नये उत्पादों की जानकारी- लोगों को किसी नवनिर्मित वस्तु अथवा सेवा की बाजार में विद्यमानता की जानकारी देना एवं उन्हें आकर्षित करके माँग उत्पन्न करना विज्ञापन का महत्वपूर्ण कार्य है।
  • विक्रय वृद्धि करना- विक्रय वृद्धि करना विज्ञापन का एक महत्वपूर्ण कार्य है। व्यापारी हमेशा विक्रय में वृद्धि करना चाहता है जिसके लिए वह विज्ञापन का सहारा लेता है।
  • नये-नये बाजारों का सृजन एवं विकास करना- विज्ञापन का महत्वपूर्ण कार्य नये नये बाजारों का सृजन एवं उनका विकास भी करना है।

प्रश्न 5.
उद्यमी कौन है ?
उत्तर:
वाणिज्य व्यवसाय और उद्योग-धन्धों के क्षेत्र में जो व्यक्ति या व्यापारी जोखिम उठाते हुए साहस करके व्यवसाय को चलाता है, उसे ही उद्यमी कहा जाता है।

उद्यमी एक जड़ एवं मृतक अर्थव्यवस्था में नयी ऊर्जा का संचार करते हैं। वर्षों से निरन्तर घाटे पर चल रहे उद्योगों की पुनःस्थापना करता है। उसमें नवाचार, नियोजन तथा कुशल प्रबंध का संचार करता है और अन्ततः उसे लाभप्रद इकाई के रूप में परिवर्तित करता है।

रिचर्ड केण्टीलोन के अनुसार, “उद्यमी वह व्यक्ति है जो किसी उत्पाद को अनिश्चित मूल्य पर बेचने के लिए निश्चित धनराशि देता है और तदनुसार उसे प्राप्त करने एवं साधनों का उपयोग करने का निर्णय लेता है।”

एफ० एच० नाइट के अनुसार, “उद्यमी विशिष्ट व्यक्तियों को वह समूह है जो जोखिम उठाते हैं और अनिश्चितता का सामना करते हैं।”

एफ० वी० हैने के अनुसार, “उत्पत्ति में निहित जोखिम उठाने वाला साधन ही उद्यमी है।”

प्रश्न 6.
उपक्रम क्या है ?
उत्तर:
उपक्रम से आशय ऐसी उपक्रम से है जिसमें अनिश्चित जोखिम, खतरा और हानि निहित होती है। उपक्रम इन्हीं वातावरण में जन्म लेता है और लाभार्जन व शक्ति प्राप्त करने के लिए संघर्ष करता है। वास्तव में, किसी भी व्यापारिक संस्था और औद्योगिक संस्था व्यापार तथा उद्योग को चलाने के लिए जब स्थापित की जाती है तो ऐसी व्यापार करने वाली संस्था को ही उपक्रम कहा जाता है। उपक्रम करने का उद्देश्य लाभ कमाना है और वाणिज्य व्यवसाय या उद्योग-धन्धों में सफलता प्राप्त करना है।

प्रश्न 7.
लेखांकन अनुपात के विभिन्न प्रकार कौन-कौन-से हैं ?
उत्तर:
लेखांकन अनुपात के विभिन्न प्रकार निम्नलिखित हैं-

  • तरलता अनुपात (Liquidity Ratio)
  • चालू अनुपात (Current Ratio)
  • स्कन्ध अनुपात (Stock Ratio)
  • स्वामित्व अनुपात (Proprietory Ratio)
  • आवर्त या बिक्री अनुपात (Turn over or sales ratio)
  • खर्चा अनुपात (Expenses Ratio)
  • आय अनुपात (Earning Ratio)
  • तरलता, शोधन-क्षमता या कार्यशील पूँजी अनुपात (Liquidity Solvency or Working Capital Ratio)
  • देनदार एवं लेनदार अनुपात (Debtors and Creditor Ratio)
  • विक्रय अनुपात (Sales Ratio)
  • लाभांश अनुपात (Dividend Ratio)
  • लागत अनुपात (Cost Ratio)
  • संचालन अनुपात (Operating Ratio)
  • विनियोजित पूँजी पर अनुपात (Return on capital employed)
  • पूँजी मिलान अनुपात (Capital Gearing Ratio)
  • सम्पत्ति आवर्त अनुपात (Assets Turn over Ratio)
  • लाभ अनुपात (Profit Ratio)
  • लाभदायक अनुपात (Profitability Ratio)
  • निष्पादन अनुपात. (Activity Ratio)
  • वित्तीय स्थिति अनुपात (Financial Position Ratio)

प्रश्न 8.
प्रबन्ध की कोई तीन विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
प्रबंध की तीन विशेषताएँ इस प्रकार हैं-
(i) प्रबन्ध उद्देश्य प्रधान प्रक्रिया है- यदि हमारे सामने कोई उद्देश्य नहीं है तो प्रबंध की जरूरत नहीं है। अन्य शब्दों में, प्रबंध की आवश्यकता तब होती है जबकि प्राप्त करने के लिए कोई उद्देश्य हमारे पास हो। प्रबंधक अपने विशेष ज्ञान एवं अनुभव के आधार पर पूर्व-निर्धारित उद्देश्यों को प्राप्त करने का प्रयास करता है। अतः प्रबंध उद्देश्य प्रधान प्रक्रिया है।

(ii) प्रबंध सर्वव्यापक है- यदि किसी क्रिया में से प्रबंध को घटा दिया जाए तो शेष शुन्य बचता है। यहाँ किसी क्रिया का अर्थ व्यावसायिक तथा गैर-व्यावसायिक सभी प्रकार की क्रियाओं से है। यदि इन क्रियाओं को करने के लिए प्रबंध आवश्यक है। अतः प्रबंध सर्वव्यापक है।

(iii) प्रबंध एक समह क्रिया है- इसका अभिप्राय है कि संगठन की सभी क्रियाओं को करने वाला कोई एक व्यक्ति (प्रबंधक) नहीं होता है बल्कि यह तो अनेक व्यक्तियों (प्रबंधकों) का समूह होता है। अतः प्रबंध एक समूह क्रिया है।

प्रश्न 9.
विपणन के कोई तीन कार्यों को बताइए।
उत्तर:
विपणन के तीन कार्य इस प्रकार हैं-
(i) खरीदना और बेचना- विपणन में खरीदना पहला काम होता है। निर्माणकर्ता को उत्पादन के लिए कच्चा माल खरीदना होता है। थोक व्यापारी को फुटकर व्यापारी को ग्राहक के लिए माल खरीदना होता है। खरीदने का अर्थ है माल का स्वामित्व बदला जाना। इकट्ठा करना का मतलब है कि माल इकट्ठा करना और उसका रख-रखाव करना जिसे विभिन्न स्रोतों से खरीदा जाता है। बेचने का कार्य विक्रेता तथा ग्राहक दोनों के लिए बड़ा महत्त्वपूर्ण होता है। लाभ कमाने का उद्देश्य माल की बिक्री से ही पूरा होता है।

(ii) मानकीकरण/प्रमाणीकरण- विपणन में मानकीकरण एक नैतिक आधार स्वीकार हो गया है। मानक एक ऐसा माप है जिसे प्रायः तुलना के लिए आदर्श माना जाता है। मानक रंग, वजन, गुणवत्ता, गुण और उत्पादन के दूसरे तथ्यों के आधार पर निश्चित होते हैं। यह माल की खरीद या बिक्री के लिए लाभदायक होता है। माल को व्यापार चिह्न के आधार पर खरीदा जाता है जैसे कि BPL. TV. LG इत्यादि।

(iii) मण्डी विषयक सचना- विपणन का महत्त्व ऐसे ही समझा जा रहा है, जैसे कि मण्डियों और बड़ी मात्रा में उत्पादन का। मण्डी की स्थिति को देखकर ही विपणन के फैसले किए जाते हैं। इसलिए मण्डी शोध विपणन का एक आवश्यक अंग बन गयी है।

प्रश्न 10.
विपणन का अर्थ बताएँ।
उत्तर:
मुरानी विपणन अवधारणा के अनुसार वस्तुओं के क्रय-विक्रय को ही विपणन कहते हैं किन्तु आधुनिक विपणन अवधारणा के अनुसार विपणन एक व्यापक शब्द है जिसमें वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन से पूर्व की जाने वाली क्रियाओं से लेकर उनके विक्रय, वितरण और आवश्यक विक्रयोपरान्त सेवाओं तक को सम्मिलित किया जता है।

प्रश्न 11.
विज्ञापन के कोई तीन उद्देश्यों को बताइए।
उत्तर:
विज्ञापन के तीन उद्देश्य निम्नलिखित हैं-

  • स्थिति की सचना देना- विज्ञापन का प्रथम उद्देश्य है ग्राहकों को एक विशिष्ट वस्तु को बाजार में लाने एवं उसके बाजार में उपलब्ध होने की सूचना देना।
  • माँग उत्पन्न करना- एक अन्य उद्देश्य नदी-वस्तु की माँग उत्पन्न करने हेतु लोगों को इसके लिए आकर्षित करना है। उत्पन्न माँग को निरंतर प्रचार के माध्यम से बनाए रखना विज्ञापन का उद्देश्य है।
  • माल के प्रयोग करने की शिक्षा देना- विज्ञापन न केवल नयी वस्तु के संबंध में लोगों को सूचना देता है बल्कि उन्हें उसके उपयोग की शिक्षा भी देता है।

प्रश्न 12.
बाजार व्यवहार्यता क्या है ? अथवा, बाजार विश्लेषण क्या है ?
उत्तर:
प्रस्तुत वस्तुओं या सेवाओं की भविष्य में कुल माँग क्या होगी, परियोजना का बाजार अंश कितना होगा यदि प्रश्नों से बाजार व्यवहार्यता या बाजार विश्लेषण संबंधित होता है। इसके लिए निम्न सूचनाओं का उपयोग आवश्यक होता है-

  • पूर्व एवं वर्तमान का उपभोग।
  • पूर्व एवं वर्तमान की आपूर्ति स्थिति।
  • आयात एवं निर्यात की स्थिति।
  • प्रतियोगिता की स्थिति।
  • माँग की लोच।
  • उपभोक्ता की पसंद एवं संतुष्टि।
  • विपणन नीतियाँ एवं व्यूह रचना।
  • लागत संरचना।

प्रश्न 13.
औद्योगिक क्षेत्र क्या है ?
अथवा, औद्योगिक क्षेत्र की विशेषताओं का उल्लेख करें।
उत्तर:
वैसा क्षेत्र, जहाँ सरकार पिछड़ेपन को दूर करने के लिए उद्यमी को कई प्रकार के प्रोत्साहन देती है, औद्योगिक क्षेत्र कहलाता है। सरकार इसके लिए उद्यमी को ऊर्जा, जल, परिवहन, बैंक सुरक्षा आदि सुविधाएँ उपलब्ध कराती है।

औद्योगिक क्षेत्र की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं-

  • यह उद्योग समूह विकसित करने की योजना है।
  • यह उपक्रमों को निश्चित स्थान पर स्थापित करने की योजना है।
  • यह उद्यमी को विभिन्न प्रकार के संसाधन उपलब्ध कराने का प्रयास है।
  • यह उन व्यक्तियों को समुचित ज्ञान एवं तकनीक उपलब्ध कराता है जिसके पास कोई औद्योगिक अनुभव नहीं है।
  • यह लघु उद्योग उपक्रम को सहायता प्रदान करने का समन्वित प्रयास है।

प्रश्न 14.
वितरण प्रणाली से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
उत्पादक अथवा निर्माणकर्ता अपने अंतिम उपभोक्ताओं तक वस्तु की आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए कई प्रकार के बिचौलिये की सहायता लेते हैं, जैसे-थोक व्यापारी, फटकर व्यापारी, अभिकर्ता आदि जिसे वितरण प्रणाली कहा जाता है। वितरण प्रणाली के अंतर्गत उन मध्यस्थों को शामिल करते हैं जो वस्तुओं को अंतिम उपभोक्ता तक पहुँचाने में शामिल होते हैं। इसे वितरण चक्र भी कहा जाता है। वास्तव में, वितरण प्रणाली पाईप लाइन की भाँति है जो कि सही उत्पाद की सही मात्रा, सही स्थान तक जहाँ उपभोक्ता पहुँचाने के लिए कहे सही समय पर पहुँचाते हैं। इस वितरण प्रणाली को विपणन विधि के रूप में भी जाना जाता है।

प्रश्न 15.
समता अंश क्या है ?
अथवा, समता अंश के लाभों का उल्लेख करें।
उत्तर:
समता अंश किसी भी उपक्रम की वित्तीय संरचना का आधार होता है। समता अंशधारियों को लाभ प्राप्त करने एवं संचालक मण्डल के चुनाव में असीमित अधिकार होता है। किसी कम्पनी की सम्पत्ति में भी समता अंशधारियों को असीमित अधिकार होता है। साधारणतया कम्पनी अपनी पूँजी का अधिकतर भाग समता अंश निर्गत कर प्राप्त करती है। समता अंशधारियों को लाभांश, अधिमान अंशधारियों को लाभांश भुगतान के बाद दिया जाता है। कम्पनी के समापन की स्थिति में समता अंशधारियों को पूँजी का भुगतान अधिमान अंशधारियों के पूँजी भुगतान के उपरान्त किया जाता है। समता अंशधारियों को निम्न लाभ होते हैं-

  • लाभ में परिवर्तन के साथ लाभांश दर में भी परिवर्तन होते रहता है।
  • कम्पनी की सम्पत्तियों पर किसी प्रकार का भार उत्पन्न किए बिना समता अंशों का निर्गमन किया जा सकता है।
  • यह पूँजी का स्थायी स्रोत है तथा कम्पनी के समापन की स्थिति के बिना इसे लौटाना नहीं पड़ता है।
  • समता अंशधारी कम्पनी के वास्तविक स्वामी होते हैं तथा उन्हें वोटिंग अधिकार होता है।

प्रश्न 16.
समामेलन को परिभाषित करें।
अथवा, समामेलन के लाभ-हानियों का वर्णन करें।
उत्तर:
जब दो या दो से अधिक विद्यमान उद्यम मिलकर एक बड़े उद्यम का निर्माण करते हैं तो उसे समामेलन कहा जाता है। समामेलन के निम्नलिखित लाभ होते हैं-

  1. उत्पादन तथा विक्रय बढ़ाने में यह मदद करता है।
  2. यह साधनों का श्रेष्ठर उपयोग करता है।
  3. यह विभिन्न व्यावसायिक अवसरों द्वारा व्यवसाय को लाभ पहुँचाता है।
  4. यह रुग्ण उद्यम को स्वस्थ उद्यमों में समामेलत करने में सहायक होता है।

समामेलन के निम्न हानि भी होते हैं-

  1. कभी-कभी यह एकाधिकार को जन्म देता है जो समाज के हित में नहीं होता है।
  2. छोटे उपक्रम की तुलना में बड़े उपक्रम पर नियंत्रण अधिक कठिन होता है।

प्रश्न 17.
प्रभावशाली नियंत्रण में नियोजन की क्या भूमिका है?
उत्तर:
प्रभावशाली नियंत्रण में नियोजन की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। नियोजन के अन्तर्गत प्रत्येक प्रबंधक अपने अधीनस्थों की प्रक्रिया पर सर्वोत्तम ढंग से नियंत्रण स्थापित करने का प्रयत्न करता है। नियोजन को प्रभावी बनाने के लिए नियोजित ढंग से अधीनस्थों की क्रियाओं का माप भी किया जाता है। यही नहीं, बजट भी नियोजन का एक अंग है और साथ ही यह नियंत्रण का भी एक अंग है। अतः बजट द्वारा भी प्रबंधकीय नियंत्रण प्रभावी बनता है। परिणामस्वरूप प्रभावशाली नियंत्रण में नियोजन अत्यन्त महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

प्रश्न 18.
एक उद्यमी की मुख्य विशेषताओं का वर्णन करें।
उत्तर:
एक सफल उद्यमी की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं-

  • व्यावसायिक अवसर, बाजार या उत्पादक को मान्यता देने की योग्यता
  • वित्तीय एवं गैर वित्तीय संसाधनों को संग्रह करने या जुटाने की क्षमता
  • विचारों को व्यावहारिक रूप देने की प्रति उत्साह
  • कार्य के प्रति समर्पण
  • विपरीत परिस्थितियों में भी लक्ष्य प्राप्त करने की इच्छा
  • उपभोक्ताओं की वास्तविक आवश्यकआतों एवं इच्छाओं को चिन्हित करने की क्षमता एवं उन्हें प्रभावशाली ढंग से पूरा करने के लिए पद्धतियाँ।
  • जोखिम एवं चुनौतियों को स्वीकार करने के लिए तत्पर रहना।
  • शीघ्रता से और सही निर्णय लेने के तत्परता।
  • दूर दृष्टि के लिए चतुराई, समृद्धि के लिए पूर्वानुमान एवं भावी नियोजन।

प्रश्न 19.
साहसी के तीन कार्य बताइए।
उत्तर:
साहसी के तीन कार्य निम्नलिखित हैं-

  • जोखिम उठाना- प्रत्येक साहसी का जोखिम वहन करना महत्वपूर्ण कार्य है।
  • व्यापार प्रबंध तथा निर्णय- साहसी का दूसरा कार्य व्यापार का प्रबंध तथा व्यापार संबंधी निर्णय का है।
  • व्यवसाय का चयन- एक साहसी को व्यापार का चयन करना भी महत्त्वपूर्ण कार्य है। व्यवसाय विभिन्न प्रकार के होते हैं उनमें से किसका चुनाव किया जाय वह उसकी योग्यता, पूँजी, व्यापार की प्रतियोगिता तथा उत्पाद की माँग आदि को ध्यान में रखकर करना चाहिए।

प्रश्न 20.
प्रबंध कला है या विज्ञान, बताएँ।
उत्तर:
प्रबंध न ही कला है और न ही विज्ञान बल्कि यह कला और विज्ञान दोनों है। प्रबंध को कला और विज्ञान दोनों के रूप में समझा जाना चाहिए।

प्रबंध कला के रूप में- कूण्ट्ज ने प्रबंध को कला माना है और कहा है कि-

  • प्रबंध औपचारिक रूप से संगठित समूहों में व्यक्तियों के द्वारा तथा उनके कार्य कराने की कला है।
  • प्रबंध ऐसे वातावरण के निर्माण की कला है जिसमें लोगों को व्यक्तिगत रूप से कार्य करने की प्रेरणा प्राप्त होती है और सामूहिक लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए पारस्परिक सहयोग की भावना को प्रोत्साहन मिलता है।
  • प्रबंध ऐसी कला है जो कार्य के निष्पादन में आने वाली कठिनाइयों को दूर करती है।
  • प्रबंध ऐसी कला है जो लक्ष्यों तक प्रभावशाली ढंग से पहुँचने की कुशलता को अनुकूलतम बनाती है।

प्रबंध विज्ञान के रूप में- कीन्स के अनुसार, “प्रबंध विज्ञान ज्ञान की वह शाखा है जो प्रस्तुत स्थिति का अध्ययन करते हुए कार्य और कारण में सम्बन्ध स्थापित करती है और आदर्श उपस्थित करती है।” विज्ञान का मुख्य कार्य कारण-परिमाण सम्बन्ध का अध्ययन करके उससे लाभदायक निष्कर्ष निकालना होता है। अत: यह एक ऐसा ज्ञान है जो अनुसंधान एवं परीक्षण के आधार पर व्यवस्थित होता है। प्रबंध निर्णय लेते समय अपने अनुभव को भी आधार बनाता है। दूसरे लोगों के अनुभव और सीमाओं पर विचार करके लागू करता है। कार्य को प्रारंभ करने से पहले नियोजन करता है और उसके कारण-परिणाम पर विचार करता है।

अतः उपरोक्त अध्ययन के आधार पर यह स्पष्ट है कि प्रबंध न ही कला है और न ही विज्ञान बल्कि प्रबंध कला और विज्ञान दोनों है।

प्रश्न 21.
कर्मचारी और साहसी कैसे भिन्न होते हैं ?
उत्तर:
कर्मचारी और साहसी निम्नलिखित प्रकार से भिन्न होते हैं-
कर्मचारी:

  1. कर्मचारी किसी दूसरे का उत्पाद तथा अपनी सेवाएँ बेचता है।
  2. कर्मचारी केवल श्रमिक है। वह अपना श्रम बेचता है।
  3. कर्मचारी को कोई जोखिम नहीं होती है।
  4. कर्मचारी को मालिक के आज्ञा-नुसार कार्य करना पड़ता है।

साहसी:

  1. साहसी अपनी वस्तुएँ एवं सेवाएँ बेचता है।
  2. साहसी दोनों है-श्रमिक और स्वामी।
  3. साहसी को सम्पूर्ण जोखिम होती है।
  4. साहसी एवं स्वतंत्र है उसे किसी से कोई आदेश नहीं लेना होता है।

प्रश्न 22.
किस्म नियंत्रण का महत्त्व क्या है ?
उत्तर:
किस्म (गुणवत्ता) नियंत्रण के निम्नलिखित महत्त्व हैं-

  • ब्रॉड उत्पादन की अपनी ख्याति एवं छवि बनती है, जिससे बिक्री अधिकाधिक बढ़ती है।
  • यह निर्माताओं द्वारा उत्पादन प्रक्रिया में कार्यरत कार्मिकों का दायित्व निर्धारण करता है और कर्तव्यों को निभाने के लिए प्रेरित करता है।
  • यह लागतों का न्यूनीकरण, कार्यकुशलता, प्रमापीकरण, कार्यकारी शर्तों में वृद्धि करके संभव बनाता है।
  • इससे उत्पादक को पूर्व में ही उत्पादन लागत ज्ञात हो जाती हैं जो उसे उत्पाद की स्पर्धी कीमतें निश्चित करने में सहायक होती है।
  • उत्पादक तय कर सकता है कि उसके द्वारा निर्मित माल निश्चित मापदण्डों के अनुसार है। उसे प्रमाप लागत के निकटतम लाने हेतु प्रेरित करता है।

प्रश्न 23.
भौतिक संसाधनों को प्रभावित करने वाले तत्वों का वर्णन करें।
उत्तर:
आदमी, मशीन, सामग्री और धन उत्पादन के महत्वपूर्ण पहलू हैं। धन या पूँजी या वित्त को उद्योग का जीवन रक्त कहा जाता है। उद्यमी द्वारा वित्त के विभिन्न स्रोतों को जुटाने से पूर्व वित्तीय आवश्यकताओं का हिसाब लगाना या उन्हें निश्चित करना आवश्यक होता है। भौतिक संसाधनों को प्रभावित करने वाले तत्व ये हैं-

  • स्थायी परिसंपत्तियों की लागत
  • चालू परिसंपत्तियों की लागत
  • वित्त पोषण की लागत।

प्रश्न 24.
प्रोजेक्ट रिपोर्ट क्यों आवश्यक है ?
उत्तर:
प्रोजेक्ट रिपोर्ट बनाना बहुत आवश्यक है। इसकी आवश्यकता को निम्नलिखित विचार बिंदुओं द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है-

  • योग्य कर्मचारियों की उपलब्धता की स्थिति जानना।
  • विपणन तकनीक, वित्त, कर्मचारी, उत्पादन आदि अनुमानित प्रदर्शन के संदर्भ में पूर्व में ही योजना बनाना है।
  • सही तकनीक का चुनाव करना।
  • पूँजी स्रोतों का सही पूर्वानुमान लगाना।
  • निवेश से अधिकतम लाभार्जन करने हेतु उत्पादन के विभिन्न घटकों के बीच समन्वय लाना।
  • सरकारी नियमों और अधिनियमों के पालन और क्रियान्वन को भली-भाँति जानना।

प्रश्न 25.
ब्रांड के क्या उद्देश्य हैं ?
उत्तर:
व्यापार चिह्न किसी उत्पाद को पहचानने का जो किसी एक विक्रेता अथवा विभिन्न विक्रेताओं के समूह ने उस उत्पाद को अपने प्रतियोगियों से अलग पहचान बनाने से है। दूसरे शब्दों में, व्यापार चिह्न का उद्देश्य वस्तु की गुणवत्ता का बोध कराना है।

प्रश्न 26.
अल्पकालीन वित्त के क्या साधन हैं ?
उत्तर:
जब व्यवसाय को कुछ समय के लिए वित्त की आवश्यकता हो तो उसे अल्पकालीन वित्त कहा जाता है। अल्पकालीन वित्त बैंक के द्वारा या मित्रों के द्वारा या महाजनों के द्वारा दिया जा सकता है।

प्रश्न 27.
निर्यात उत्पादों के गुण नियंत्रण संक्षेप में लिखिए।
उत्तर:
जिसे वस्तु का निर्माण कर एक देश से दूसरे देश में भेजा जाता है, उसे निर्यात व्यापार कहते हैं। उद्यमी एक अच्छे किस्म के वस्तु का उत्पादन करता जाता है ताकि वस्तु की माँग बाजार के हो जब विदेश के बाजार की स्थिति को ध्यान में रखकर उद्यमी द्वारा नए उत्पाद का निर्माण निर्यात करने के लिए तैयार किया जाता है। निर्यात उत्पादों में कई प्रकार के सरकारी नियम को ध्यान में रखा जाता है ताकि निर्यात व्यापार में कोई अड़चन नहीं आए।

प्रश्न 28.
परियोजना में समयबद्धता क्यों आवश्यक है ?
उत्तर:
परियोजना में समयबद्धता आवश्यक है क्योंकि कोई भी साहसी या उद्यमी एक निश्चित समय सीमा के अंतर्गत निर्धारित उद्देश्य को प्राप्त करना चाहता है। किसी भी व्यावसायिक उद्देश्य की प्राप्ति तभी हो सकती है जबकि उसके एक निश्चित समय निहित हो। समय सीमा के अंदर ही कार्य-योजना या परियोजना बनाकर सफलता प्राप्त किया जा सकता है। दूसरे शब्दों में, व्यवसाय में सफल होने के लिए समयबद्धता का होना आवश्यक है।

प्रश्न 29.
संवृद्धि को प्रभावित करनेवाला कोई तीन तत्व बताइए।
उत्तर:
संवृद्धि को प्रभावित करने वाले तीन तत्व ये हैं-

  • सही नीति का निर्धारण
  • विकास पर बल
  • उच्च तकनीकी सुविधा।

प्रश्न 30.
व्यावसायिक वातावरण से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
व्यावसायिक वातावरण या पर्यावरण का अर्थ उन समस्त बाहरी, आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक तथा तकनीकी शक्तियों से है जो कि व्यवसाय एवं उसके प्रचलन को प्रभावित करते हैं। वास्तव में, व्यावसायिक वातावरण का आशय व्यवसाय करने की दशाओं से है। जिस प्रकार के वातावरण रहता है उसी के अनुसार व्यापार को चलाया जाता है।

प्रश्न 31.
विपणन एवं विक्रय में कोई एक अन्तर बताएँ।
उत्तर:
विपणन से आशय ग्राहकों की आवश्यकताओं का अनुमान लगाने, उन्हीं के अनुरूप उत्पादन करने उन्हें ग्राहकों तक पहुँचवाने एवं संतुष्टि प्रदान करने से है। जबकि विक्रय से आशय वस्तुओं और सेवाओं को ग्राहकों को बेचने से है।

प्रश्न 32.
क्या प्रबंध को एक पेशा माना जाता है ?
उत्तर:
प्रबंध पेशे की कुछ विशेषताओं विशिष्ट ज्ञान एवं तकनीकी चातुर्य, प्रशिक्षण एवं अनुभव प्राप्त करने की औपचारिक व्यवस्था, सेवा भावना को (प्राथमिकता) तो पूरा करता है तथा कुछ अन्य विशेषताओं (प्रतिनिधि पेशेवर संघ का होना, आचार संहिता) का इसमें अभी पूरा विकास नहीं हुआ है। भारत में अभी प्रबंध का पेशे के रूप में विकास अपनी शैशवावस्था में है तथा धीमी गति से चल रहा है। जैसे-जैसे विकास की गति में तेजी आएगी वैसे-वैसे प्रबंध को पेशे के रूप में स्वीकृति मिलती जाएगी।

प्रश्न 33.
लागत को परिभाषित करें।
उत्तर:
किसी भी वस्तु के उत्पादन कार्य करने के लिए कुछ-न-कुछ लागत अवश्य लगती है। विभिन्न प्रकार के सामग्रियों और खर्चों का उपयोग करके उत्पादन प्राप्त किया जाता है। सामग्रियों के मूल्य और कुल खर्चों के योग को लागत कहा जाता है। इस लागत के आधार पर ही उत्पादन-कार्य होता है।

प्रश्न 34.
प्रभावशाली नियंत्रण में नियोजन की क्या भूमिका है ?
उत्तर:
नियोजन प्रबंध का वह भाग है जो उद्यम के उद्देश्यों का नियोजन एवं उन उद्देश्यों की प्राप्ति हेतु की जाने वाली विभिन्न गतिविधियों का निश्चय करता है। इसके अंतर्गत यह निर्णय किया जाता है कि क्या करना है। कैसे करना है, कब करना है तथा किसके द्वारा किया जाना है। इन सभी विषय में निर्णय लेना नियोजन कहलाता है।

किसी उद्यम या व्यावसायिक संस्था के प्रभावशाली नियंत्रण में नियोजन की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। क्योंकि व्यावसायिक संस्था का नियंत्रण और संचालन करते समय नियोजन के सिद्धान्त को ध्यान में रखते हुए यह निर्णय लेना पड़ता है। कि नियंत्रण करने के लिए क्या करना है, कैसे करना है, कब करना है और किसके द्वारा किया जाना है। इन सभी बातों का निर्णय लेना पड़ता है। ऐसा होने से व्यावसायिक संस्था या किसी उद्यम का प्रभावशाली ढंग से नियंत्रण किया जा सकता है। परिणामस्वरूप उद्यम या व्यापार सफल होता है।

प्रश्न 35.
कार्यशील पूंजी के चक्र से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
कार्यशील पूँजी उस पूँजी को कहा जाता है जिसकी आवश्यकता प्रतिदिन की व्यावसायिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए होती है। चालू दायित्वों के ऊपर चालू संपत्तियों के आधिक्य को कार्यशील पूँजी कहा जाता है। इसकी आवश्यकता कच्चे माल को क्रय करने, वेतन तथा मजदूरी, किराया, विज्ञापन आदि खर्चों के लिए होती है। यह व्यवसाय के सफल संचालन के लिए आवश्यक है। किसी भी उद्यम या व्यापार के लिए कार्यशील पूँजी का होना आवश्यक है।

उद्यम या व्यापार में कार्यशील पूँजी का चक्र सदा चलता रहता है। कभी कार्यशील पूँजी कम रहती है तो कभी कार्यशील पूँजी बढ़ जाती है। क्योंकि व्यापार की प्रकृति यह है कि सभी समय व्यापार एक ढंग से नहीं चलते रहता है बल्कि तेजी और मंदी का दौर आते रहता है। परिणामस्वरूप कभी संपत्ति दायित्व की अपेक्षा बढ़ जाती है तो कार्यशील पूँजी का निर्माण हो जाता है। दूसरी ओर जब व्यापार में मंदी छाई रहती है और लाभ कम हो जाता है या कभी हानि भी हो जाती है तो कार्यशील पूँजी कम हो जाती है। व्यापार में यह चक्र सदा चलते रहता है।

प्रश्न 36.
वित्तीय संसाधन जुटाने के क्या स्रोत हैं ?
उत्तर:
वित्तीय संसाधन जुटाने के लिए दो तरह के स्रोत होते हैं-

  • दीर्घकालीन स्रोत तथा
  • अल्पकालीन स्रोत।

वित्तीय संसाधन जुटाने के दीर्घकालीन स्रोत-

  • अंशों का निर्गमन (Issue of Shares)
  • ऋणपत्रों का निर्गमन (Issue of Debentures)
  • लाभों का पुनः विनियोग
  • विशिष्ट वित्तीय संस्थाओं से ऋण जैसे-IFCI, IDBI आदि।

वित्तीय संसाधन जुटाने के अल्पकालीन स्रोत-

  • पूर्वाधिकार अंशों का निर्गमन।
  • जनता का निक्षेप (Public Deposits)
  • बैंक ऋण (Bank Loan)

प्रश्न 37.
स्थायी पूँजी की विशेषताओं को बताएँ।
उत्तर:
स्थायी पूँजी की विशेषताएँ (Characteristics of Fixed Capital)-

  • इसका उपयोग स्थायी सम्पत्तियों का क्रय करने में किया जाता है।
  • यह व्यवसाय में दीर्घकाल तक रहती है।
  • इसकी मात्रा व्यवसाय की प्रकृति पर निर्भर करती है।
  • यह लागत संरचना को प्रभावित करती है।
  • इसमें अत्यधिक जोखिम होती है।
  • काफी समय व्यतीत हो जाने पर प्रत्याय (Return) प्राप्त होता है।
  • व्यवसाय का भावी मार्ग निर्धारित करती है तथा
  • दीर्घकालीन ऋणों के रूप में प्राप्त होती है।

प्रश्न 38.
साहसिक पूँजी या उद्यमी पूँजी क्या है ?
उत्तर:
जो व्यक्ति किसी नए व्यवसाय को शुरू करने का जोखिम उठाता है या साहस करता है उसे साहसी या उद्यमी कहते हैं। जब उस व्यवसाय को प्रारंभ करने में जो उद्यमी के द्वारा विनियोग के रूप में उद्योग या व्यापार में लगाया जाता है, तो उसे उद्यमी या साहसिक पूँजी कहा जाता है।

प्रश्न 39.
उपक्रम स्थापना को क्रियान्वित करने के किन्हीं दो चरणों की व्याख्या को ?
उत्तर:
उपक्रम स्थापना के क्रियान्वित करने के लिए विभिन्न चरणों की क्रियाओं को पूरा करना पड़ता है। इसमें से दो चरण निम्नलिखित हैं-
(i) उत्पाद या उद्योग का चयन- उपक्रम स्थापना के क्रियान्वित करने के लिए उत्पाद या उद्योग का चुनाव करना पड़ता है। एक उद्यमी उस उद्योग की स्थापना करना चाहता है जिसे चलाने से अधिक लाभ की प्राप्ति हो सके।

(ii) वित्तीय प्रबंध- उपक्रम स्थापना को क्रियान्वित करने के लिए वित्तीय प्रबंध करने की आवश्यकता पड़ती है। एक उद्यम या उद्योग की स्थापना करने के लिए पूँजी की व्यवस्था करनी पड़ती है क्योंकि पर्याप्त पूँजी रहने पर ही उद्योग या उपक्रम का व्यापार सफलतापूर्वक चल सकता है।

प्रश्न 40.
नियोजन में समयबद्धता क्यों आवश्यक है ?
उत्तर:
नियोजन में समयबद्धता आवश्यक है क्योंकि कोई भी साहसी या उद्यमी एक निश्चित समय-सीमा के अन्तर्गत निर्धारित उद्देश्यों को प्राप्त करना चाहता है। किसी भी व्यावसायिक उद्देश्य की प्राप्ति तभी हो सकती है जबकि उसके एक निश्चित समय निहित हो। समय-सीमा के अंदर ही नियोजन बनाकर सफलता प्राप्त किया जा सकता है। दूसरे शब्दों में व्यवसाय में सफल होने के लिए समयबद्धता का होना आवश्यक है।

प्रश्न 41.
परियोजना मूल्यांकन के क्या उद्देश्य हैं ?
उत्तर:
परियोजना मूल्यांकन का प्रमुख उद्देश्य यह होता है कि जो भी परियोजना बनाई गई है वह मानक स्तर पर बनाई गई है या नहीं इसकी पहचान या जाँच करना है। साथ ही, जो परियोजना बनायी गयी है वह लाभदायक है या नहीं इसकी भी जानकारी मूल्यांकन से होती है। एक साहसी या उद्यमी के लिए परियोजना का मूल्यांकन करना एक कठिन कार्य है साहसी के पास अनेक विकल्प विद्यमान है उन विकल्पों के आधार पर ही साहसी परियोजना की पहचान करता है। दूसरे शब्दों में साहसी स्थान, वातावरण, तकनीक कच्चा माल, संयंत्र और बाजार के आधार पर परियोजना का मूल्यांकन करता है।

प्रश्न 42.
अनुपात को परिभाषित कीजिए।
उत्तर:
अनुपात एक अंकगणितीय अभिव्यक्ति है जो दो सम्बन्धित एवं एक-दूसरे पर आंधारित मदों के मध्य सम्बन्ध को स्पष्ट करती है। परिभाषा के रूप में एक ही जाति के दो मात्राओं, राशियों अथवा अंकों के बीच ऐसे सम्बन्ध को अनुपात कहते हैं, जिससे यह स्पष्ट हो कि उनसे एक-दूसरे का कितना प्रतिशत, कितने गुना अथवा कौन-सा भाग है ?

प्रश्न 43.
लाभ मात्रा अनुपात क्या है ?
उत्तर:
लाभ मात्रा अनुपात संस्था को लाभ अर्जन क्षमता की माप है। यह वित्तीय कुशलता को दर्शाता है। सकल लाभ अनुपात शुद्ध लाभ अनुपात निवेश पर आय प्रति अंश आय उनके उदाहरण है और ये प्रतिशत में व्यक्त किये जाते हैं।

Bihar Board 12th Entrepreneurship Important Questions Long Answer Type Part 5 in Hindi

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Bihar Board 12th Entrepreneurship Important Questions Long Answer Type Part 5 in Hindi

प्रश्न 1.
दीर्घकालीन तथा लघुकालीन वित्तीय स्रोत क्या है ?
उत्तर:
व्यवसाय में दीर्घकालीन कोषों की आवश्यकता सामान्यतः इसकी स्थिर पूँजी प्रकृति की होती है। दीर्घकालीन पूँजी प्राप्त करने के मुख्य स्रोत निम्नलिखित हैं-

  • अंश- अंश कम्पनी दीर्घकालीन एवं स्थायी वित्त प्राप्त करने के लिए समता एवं पूर्वाधिकार अंशों का निर्गमन कर सकती है।
  • ऋण पत्र- एक कंपनी वित्तीय साधनों को बढ़ाने के लिए ऋणपत्रों को जारी कर सकती है। ऋण पत्रों पर ब्याज की दर निश्चित हो सकती है। उसका शोधन एक निश्चित तिथि पर किया जा सकता है।
  • ऋण- व्यावसायिक संस्था बैंक या विशिष्ट संस्थाओं से ऋण प्राप्त कर सकती है। ऋण की स्वीकृति की शर्त दो हो सकती है और स्वीकृति ऋण का सवितरण समय-समय पर किया जा सकता है।
  • प्राप्त लाभों का पुनर्विनियोग- यह अर्थ प्रबंधन का आंतरिक स्रोत है। बहुत-सी संस्थाएँ अपने व्यवसाय के वित्त की व्यवस्था के लिए अविकसित लाभ संचय आदि का पूँजी के रूप में प्रयोग कर लेती है। उसे लाभों का पुनर्वियोग कहा जाता है।

अल्पकालीन वित्त के स्रोत- व्यावसायिक वित्त के अल्पकालीन साधनों को दो भागों में विभक्त किया जा सकता है-

  1. बैंक साधन तथा
  2. गैर बैंक साधन।

1. बैंक साधन (Bank Sources)-

  • सुरक्षित ऋण
  • बैंक अधिविकर्ष
  • असुरक्षित ऋण
  • बिलों पर कटौती

2. गैर बैंक साधन (Non-Bank Sources)-

  • व्यापारिक ऋण
  • खुला खाता
  • जन निक्षेप
  • बकाया दायित्व
  • कम समय के ऋण
  • प्रतिज्ञा पत्र एवं हुंडी।

प्रश्न 2.
एक सफल उद्यमी की विशेषताओं का उल्लेख करें।
उत्तर:
एक सफल उद्यमी की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

  • जोखिम वहनकर्ता
  • व्यक्ति या व्यक्तियों का समूह
  • नवीन उपक्रम की स्थापना
  • साधन प्रदान करनेवाला
  • अवसरों का विदोहन
  • कार्य ही लक्ष्य एवं संतुष्टि
  • नव प्रवर्तनकर्ता
  • आशावादी दृष्टिकोण
  • गतिशील प्रतिनिधि
  • स्वतंत्रता प्रेमी
  • उच्च उपलब्धियाँ
  • पेशेवर प्रकृति
  • नेतृत्वकर्ता
  • कार्य में पूर्ण समर्पित
  • अनुसंधान पर बल।

प्रश्न 3.
कार्यशील पूँजी की आवश्यकता आप कैसे निर्धारित करेंगे ?
उत्तर:
कार्यशील पूँजी की आवश्यकता का निर्धारण इस प्रकार हो सकता है-
1. क्रियाओं का स्तर- कार्यशील पूँजी एवं क्रियाओं के स्तर में सीधा सम्बन्ध होता है। अर्थात् बड़े आकार की संस्थाओं में अधिक व छोटे आकार की संस्थाओं में कम कार्यशील पूँजी की जरूरत होती है।

2. व्यावसायिक चक्र- व्यावसायिक चक्र के विभिन्न चरणों से कार्यशील पूँजी की आवश्यकता प्रभावित होती है। तेजी काल में माँग बढ़ने से उत्पादन व बिक्री में वृद्धि होती है। इसलिए अधिक कार्यशील पूँजी की आवश्यकता होती है। इसके विपरीत, मंदीकाल में माँग घटने से उत्पादन व बिक्री दोनों कम होते हैं। अतः इस स्थिति में कम कार्यशील पूँजी की जरूरत होती है।

3. उत्पादन चक्र- उत्पादन चक्र का अभिप्राय कच्चे माल को तैयार माल में परिवर्तित करने में लगने वाले समय से है। यह अवधि जितनी लम्बी होगी उतने ही अधिक समय के लिए पूँजी कच्चे माल व अर्द्ध निर्मित माल में फंसी रहेगी। अतः अधिक कार्यशील पूँजी की आवश्यकता होगी। इसके विपरीत, जहाँ उत्पादन चक्र की अवधि बहुत कम है वहाँ कम कार्यशील पूँजी की जरूरत होती है।

4. उधार उपलब्ध कराना- जो संस्थायें अधिक बिक्री नकद करती हैं उन्हें कम कार्यशील पूँजी की आवश्यकता होती है। इसके विपरीत, जो संस्थायें अधिक बिक्री उधार करती हैं उन्हें अधिक कार्यशील पूँजी की आवश्यकता होती है।

5. उधार सुविधा की प्राप्ति- यदि कच्चा माल एवं अन्य सामग्री उधार पर आसानी से उपलब्ध हो जाती है तो कम कार्यशील पूंजी की आवश्यकता होगी। इसके विपरीत यदि ये चीजें उधार पर. उपलब्ध न हों तो शीघ्र भुगतान करने के लिए अधिक कार्यशील पूँजी की जरूरत होती है।

6. क्रय तथा विक्रय की शर्ते- क्रय तथा विक्रय की शर्तों का भी कार्यशील पूँजी की मात्रा पर प्रभाव पड़ता है। यदि व्यावसायिक इकाई कच्चा माल और अन्य सेवाएँ उधार प्राप्त करती हैं और निर्मित माल नकद बेचती है तो उसे कम मात्रा में कार्यशील पूँजी की आवश्यकता होती है। इसके विपरीत, यदि कोई व्यावसायिक इकाई नकद कच्चा माल खरीदती है और उधार माल का विक्रय करती है तो उसे अधिक मात्रा में कार्यशील पूँजी की आवश्यकता होती है।

7. व्यवसाय की मौसमी प्रकृति- अनेक कम्पनियों का व्यापार वर्ष के किसी मौसम विशेष में अधिक होता है। उस मौसम में इन कम्पनियों को अधिक मात्रा में कार्यशील पूँजी की आवश्यकता होगी।

8. व्यवसाय के विकास की सामान्य दर- व्यवसाय आरम्भ करने के बाद कुछ वर्षों में उसका धीरे-धीरे विकास होने लगता है। विकास के साथ-साथ कार्यशील पूँजी की आवश्यकता भी बढ़ती जाती है। व्यवसाय के विकास की दर एवं कार्यशील पूँजी में वृद्धि की मात्रा में पूर्ण सामंजस्य होना चाहिए अन्यथा पूँजी की कमी के कारण विकास रुक जायेगा। प्रायः सामान्य विकास का वित्त पोषण लाभ के पुनर्वियोग के द्वारा किया जाता है।

प्रश्न 4.
सम-विच्छेद बिन्दु क्या है ? यह कैसे ज्ञात किया जाता है ?
उत्तर:
बिक्री का वह बिन्दु जहाँ व्यवसाय को न लाभ हो न हानि, ‘सम-विच्छेद बिन्दु’ कहलाता है। यहाँ विक्रय मूल्य कुल लागत के बराबर होता है। कुल लागत में स्थायी (Fixed) तथा परिवर्तनशील (Variable) दोनों शामिल होते हैं। उद्यमी कोई भी बिक्री करते समय इस बिन्दु का ध्यान रखता है क्योंकि इस बिन्दु से अधिक बिक्री लाभ प्रदान करेगी और इससे नीचे की बिक्री से हानि होगी।

एक रेखाचित्र की सहायता से यह ज्ञात हो जाता है कि बिक्री के किस स्तर पर साहसी को कितना लाभ या हानि होगी ?

स्पष्ट है कि उत्पादन चाहे 3,000 इकाई हो या 15,000 इकाई हो, स्थिर लागत 3,000 रु० ही रहेगी। बिक्री रेखा शून्य से आरम्भ होती है जबकि लागत रेखा 3,000 रु० से शुरू होती है क्योंकि बिक्री कुछ नहीं भी हो तो स्थायी लागत 3,000 रु० रहेगी ही। अब ये दोनों रेखाएँ एक-दूसरे को जिस बिन्दु पर काटती हैं, वह ‘सम-विच्छेद बिन्दु’ कहलाता है। इससे अधिक बिक्री लाभ तथा कम बिक्री हानि का द्योतक है।

प्रश्न 5.
विपणन तथा विक्रय में अंतर बताइये।
उत्तर:
विपणन तथा विक्रय में अंतर निम्नलिखित है-
Bihar Board 12th Entrepreneurship Important Questions Long Answer Type Part 5, 1

प्रश्न 6.
एक साहसी के लिए पर्यावरण का अध्ययन करना क्यों आवश्यक है?
उत्तर:
विभिन्न अध्ययनों ने सिद्ध किया है जिन संगठनों ने वातावरण का विश्लेषण किया है उन्हें अधिक वित्तीय लाभ प्राप्त हुए हैं। बिना विश्लेषण किये कभी-कभी कम्पनी को बार-बार अपनी व्यूह रचना बदलनी पड़ सकती है और संगठन को वांछित उद्देश्यों को प्राप्त करने में कठिनाई हो सकती है। निम्न दृष्टिकोण के साहसी के लिए पर्यावरण अध्ययन आवश्यक है-

(i) संसाधनों का प्रभावशाली उपयोग (Best or Effective Use of Utilisation of Resources)- किसी व्यवसाय की सफलता की कुंजी उसके वित्तीय साधनों का प्रभावपूर्ण ढंग से व्यय होने पर निर्भर करता है। कम्पनी की सफलता तथा असफलता को वातावरण के खतरे और अवसरों के माध्यम से विश्लेषण करना चाहिए ऐसा न करने पर कम्पनियों को हानियों का सामना करना पड़ सकता है।

(ii) वातावरण का लगातार अध्ययन/विश्लेषण (Constant Monitoring of the Environment)- वातावरण विश्लेषण के अध्ययन से वातावरण में क्या कुछ हो रहा है, का ज्ञान हो जाता है। वातावरण विश्लेषण के अभाव में उपभोक्ताओं की रुचि और पसंद का ज्ञान नहीं होगा, प्रतियोगिता का ज्ञान नहीं होगा, आधुनिक तथा नये आविष्कारों का ज्ञान नहीं होगा तथा नयी व्यापार नीतियों का ज्ञान नहीं होगा। इस सब पर नियंत्रण के लिए व्यवसाय वातावरण का गहन विश्लेषण आवश्यक होता है।

(iii) व्यूह रचना बनाने में सहायक (Useful to Strategy Formulation)- वातावरण विश्लेषण के द्वारा विविधीकरण तथा विकास (Diversification of Growth) और व्यवसाय में आने वाली समस्याओं का हल संभव हो सकता है। उदाहरण के लिए, रिलायन्स तथा हिन्दुस्तान लीवर लिमिटेड ने विविधीकरण के द्वारा काफी प्रगति की है, apple computer, USA में काफी लोकप्रिय है। भारतवर्ष में नहीं, कॉलगेट को जापान के बाजारों में पसंद नहीं किया जाता है। साहसी को अपने उत्पाद की बाजारों में पसंद को पूरा ध्यान रखना चाहिए और अधिक व्यापक विपणन व्यूह रचना बनानी चाहिए।

(iv) खतरों आर अवसरों की पहचान (Identification of Threats and Opportunities)- वातावरण विश्लेषण से साहसी को व्यापार में आने वाले खतरे और सुनहरे अवसरों का ज्ञान प्राप्त होता रहता है। उचित परख के बाद उन्हें ठीक करने के लिए उचित व्यूह रचना बनाकर आने वाले खतरों का उचित हल पहले ही ढूँढ लेना चाहिए।

(v) प्रबंधकों को सहायक (Useful to Managers)- प्रबंधकों ने वातावरण विश्लेषण से काफी उपयोगी सामग्री प्राप्त की है। जिन संगठनों ने वातावरण विश्लेषण किया है और जिन्होंने ऐसा नहीं किया है उनकी कार्यक्षमता और लाभदायकता में काफी अन्तर पाया गया है।

(vi) भविष्य का अवलोकन (Prediction of Future)- भविष्य का अवलोकन करना प्रबंध का महत्त्वपूर्ण कार्य बन गया है। भविष्य के सजग प्रबंधकों को काफी सचेत होना चाहिए। उन्हें केवल समस्याओं का हल ही नहीं ढूँढना चाहिए वरन् प्रयत्न करना चाहिए कि समस्याओं का जन्म ही नहीं हो। इस प्रबंधक वातावरण अध्ययन करके अपने प्रबंधकीय उत्तरदायित्वों को भली-भाँति पूरा कर सकते हैं।

प्रश्न 7.
उपक्रम स्थापना का क्रियान्वयन आप कैसे करेंगे?
उत्तर:
स्थायी पंजीकरण होने के बाद एक उपक्रम स्थापना का क्रियान्वयन करने के लिए हमें विभिन्न विचार बिन्दुओं पर ध्यान रखना चाहिए, जो निम्नलिखित हैं-
(i) स्थान व्यवस्थित करना- उपक्रम जिस स्थान पर स्थापित होनी है, वहाँ उन सारी सुविधाओं को व्यवस्थित कर लेना चाहिए जो उपक्रम के लिए आवश्यक है। जैसे-इस स्थान तक पहुँचने के लिए आवागमन की व्यवस्था, बिजली, पानी आदि की व्यवस्था कर लेनी होगी।

(ii) भवन निर्माण- उपक्रम के लिए कभी-कभी औद्योगिक क्षेत्र में सरकार द्वारा ही स्थापना एवं भवन प्रदान किया जाता है जिसके लिए किराया लिया जाता है। यदि ऐसा नहीं है तो निजी एजेंसी से भी अपनी आवश्यकतानसार जगह और भवन भाडे पर लिया जा सकता है। यह भी संभव नहीं हो तो जमीन खरीद कर स्वयं भवन का निर्माण किया जा सकता है। उत्पादन की प्रक्रिया, उपकरण एवं संयंत्र की आवश्यकतानुसार भवन का निर्माण किया जाना चाहिए। भवन निर्माण भविष्य में विस्तार को ध्यान में रखकर करना हितकर होगा।

(iii) मशीन एवं यंत्र की स्थापना- मशीन एवं यंत्र की खरीद सावधानीपूर्वक करनी चाहिए और आरम्भ में इसकी स्थापना विक्रेता कम्पनी की देखरेख में ही की जानी चाहिए ताकि उपक्रम के कर्मचारी इसे देख-समझ सकें फिर इसके संचालन तक उक्त कम्पनी के प्रतिनिधि को रोके रखना चाहिए जिससे कि किसी भी गड़बड़ी को तुरन्त ठीक किया जा सके। यदि किसी मशीन की प्रकृति ऐसी है कि उसे वातानुकूल अवस्था में रखना अनिवार्य है तो इसके लिए वातानुकूल भवन का निर्माण किया जाना चाहिए।

(iv) जाँच उत्पादन- संयंत्र स्थापित हो जाने के बाद थोड़े कच्चे माल से उत्पादन की प्रक्रिया आरम्भ कर देनी चाहिए और देखना चाहिए कि इसमें क्या कमीबेशी रह गयी है। ऐसा कर लेने से तैयार उत्पादन को बाजार में भेजने से पहले उसकी जाँच हो जाती है। यदि कोई सुधारात्मक उपाय की आवश्यकता हुई तो यह भी संभव हो पाता है।

(v) पैकिंग एवं वितरण व्यवस्था- जाँच उत्पादन के बाद साहसी देखता है कि सब कुछ ठीक-ठाक है तो विधिवत सामान्य उत्पादन प्रक्रिया चालू कर दी जाती है। इस तैयार उत्पाद की पैकिंग व्यवस्था ठीक से करके इसके वितरण की कार्यवाही की जाती है। इसके लिए पहले से सुनिश्चित मार्ग अपनाए जाते हैं। माल किसी थोक व्यापारी के हाथ सौंपना है। एजेंट को सौंपना है या खुदरा व्यापारी को या स्वयं सीधे उपभोक्ता तक पहुँचाना है। इन बातों का निर्णय साहसी अपनी सुविधानुसार पहले से ही कर लेता है।

(vi) बाजार में प्रवेश- पैकिंग और वितरण व्यवस्था दुरुस्त कर लेने के बाद अब साहसी का उत्पाद बाजार में दाखिला ले सकता है। जहाँ उसकी अपनी परीक्षा होती है। साहसी अपने उत्पादन के प्रति बाजार की प्रतिक्रिया पर हमेशा चौकसी बनाए रखता है तथा तुरन्त अपनी उत्पादन प्रक्रिया में बाजार के निर्देशानुसार परिवर्तन लाता है।

सब कुछ ठीक रहने पर साहसी स्थायी पंजीकरण हेतु जिला उद्योग विभाग (District Industries Department) को आवेदन देता है और तब साहसी का यह उपक्रम औद्योगिक समाज का एक सम्मानित सदस्य बनकर अस्तित्व में आ जाता है। इस तरह औद्योगिक जगत में उपक्रम-रूपी बच्चा जन्म लेकर धीरे-धीरे बढ़ता जाता है और अपनी पहचान विशिष्ट रूप में बनाकर साहसी को सम्मान दिलाता है।

प्रश्न 8.
विपणन से क्या आशय है ? विक्रय प्रबंधक के किन्हीं चार कार्यों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
विपणन का अर्थ- जिस प्रक्रिया से माल उपभोक्ता तक पहुँचता है, उसे विपणन कहा जाता है। यह वैसी प्रणाली है जिससे व्यापार की गतिविधियाँ आपस में चलती हैं और योजना, मूल्य, बिक्री में वृद्धि और माल के वितरण को उपभोक्ताओं तक पहुँचाया जाता है। वास्तव में, विपणन के आधार पर माल की क्रय-विक्रय की सारी क्रियाएँ पूरी की जाती हैं।

विपणन में विक्रय प्रबंधक अपना महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। विक्रय प्रबंधक विपणन की गतिविधियों पर हमेशा नजर रखता है और वह विक्रय संवर्द्धन में अपना महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। विक्रय प्रबंधक के चार कार्य इस प्रकार हैं-
(i) विक्रय का संवर्द्धन- विक्रय का संवर्द्धन करना एक विक्रय प्रबंधक का महत्त्वपूर्ण कार्य है। वह उत्पादित माल को विज्ञापन तथा प्रचार द्वारा अधिक-से-अधिक क्रय कराने का कार्य करता है।

(ii) प्रतियोगिता को खत्म करना- एक विक्रय प्रबंध प्रतियोगिता को खत्म करने का भी कार्य करता है। वह अपने उत्पाद को वर्तमान बाजार में सर्वश्रेष्ठ बनाने का कार्य करता है जिसके साथ ही प्रतियोगिता का अन्त हो जाता है। परिणामस्वरूप उत्पाद की अधिकाधिक बिक्री होती है।

(iii) उत्पाद का विज्ञापन कराना- एक विक्रय प्रबंधक अपने उत्पादन का विज्ञापन कराता है जिससे उसके उत्पाद के बिक्री में बढ़ोत्तरी होती है। वह एक साधारण उत्पाद को भी विज्ञापन द्वारा असाधारण बना देता है। परिणामस्वरूप उसकी तथा संस्था का नाम होता है।

(iv) अपने अधीनस्थों पर नियंत्रण स्थापित करना- एक विक्रय प्रबंधक अपने अधीनस्थों को सही निर्देश देता है। अधीनस्थों पर नियंत्रण स्थापित करता है और उनको सही दिशा-निर्देश देता है। ताकि उत्पाद का अधिक-से-अधिक विक्रय हो। जहाँ कहीं भी कुछ कमी है, उसको पूरा करने का प्रयत्न करता है।

प्रश्न 9.
विपणन अवधारणा तथा इसके उद्देश्यों को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
विपणन बाजार का अभिन्न अंग है। बाजार वह स्थान है जहाँ विक्रेता एवं क्रेता अनेक उत्पादों को मुद्रा (इसके विपरीत भी) के बदले विनिमय करने हेतु एकत्रित होते हैं। उत्पादन विपणन से पूर्ण किया जाता है। परिवर्तित व्यावसायिक वातावरण के अनुसार उत्पादन भी समय- समय पर परिवर्तित होता है। तद्नुसार, विपणन की विचारधारा में भी समय-समय पर परिवर्तन हुए हैं। इन विचारधाराओं को दो श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है-

(i) परम्परागत विचारधारा (Traditional Concept)- यह विचार पहले उत्पादन स्तर से जुड़ा है जबकि बाजार में निर्मित वस्तुओं की साधारणतः कमी रहती थी तब विपणन का प्रमुख कार्य, वस्तुओं को ग्राहकों तथा व्यापक रूप में सहनीय कीमतों पर उपलब्ध कराना था। विपणन विचार भी तदनुसार था। निम्न परिभाषाओं से विपणन की विचारधारा को स्पष्ट किया जा सकता है-

कानवर्स, ह्यून्जी एवं मिचल (Converse, Huggy and Mitchell) के अनुसार, “विपणन के अंतर्गत उत्पादन से उपभोग तक की सभी क्रियाएँ सम्मिलित हैं।”

अमरीकन एकाउंटिंग एसोसिएशन (American Accounting Association) के अनुसार, “उन व्यावसायिक गतिविधियों के आचरण को जिनके द्वारा उत्पादकों से उपभोक्ताओं तक माल एवं सेवाओं का प्रत्यक्ष प्रवाह होता है, विपणन कहा जाता है।”
अत: विपणन की परम्परागत विचारधारा उत्पाद उन्मुख है।

(ii) आधुनिक विचारधारा (Modern Concept)- समय बीतने पर औद्योगिक गतिविधि में उत्तेजना आने के साथ-साथ उत्पादों की विविधता, किस्म एवं मात्रा में भी वृद्धि हुई है। इसने ग्राहक को अधिक विवेकशील एवं चयनकर्ता बना दिया। अब ग्राहक वह सब कुछ जो इसे उत्पादक प्रस्तुत करें, क्रय करने के लिए तैयार नहीं है। उन्होंने ऐसे उत्पादों एवं सेवाओं का क्रय करना आरंभ कर दिया जो मात्रा, कीमत, संतुष्टि, दीर्घायु, सौन्दर्य आदि में उसके लिए लाभकारी हों। ऐसे ग्राहक के लाभ मूर्त अथवा अमूर्त हो सकते हैं। इसलिए, उत्पादकों ने वह सभी कुछ उत्पादन करना आरम्भ किया जो ग्राहक चाहते हैं। इस प्रकार, एक नयी वैज्ञानिक सोच का जन्म हुआ। न: सोच के अन्तर्गत उन वस्तुओं एवं सेवाओं का उत्पादन एवं प्रस्तुति करना आवश्यक हो गया जो कि उपभोक्ता की माँग के अनुरूप हो। इसे ‘विपणन उन्मुखी’ कहा जाता है। इस आधुनिक विपणन विचार को निम्नांकित परिभाषाओं से समझा जा सकता है-

स्टैण्टेन (Stanton) के अनुसार, “विपणन व्यवस्था के अंतर्गत सभी व्यावसायिक क्रियाएँ सम्मिलित हैं जो माँग–पूर्ति वाली वस्तुओं एवं सेवाओं के नियोजन, कीमत, संवर्द्धन एवं वर्तमान प्रभावी उपभोक्ताओं को वितरित की जाएँ।”

कोटलर (Kotler) के अनुसार, “विपणन एक सामाजिक एवं प्रबंधकीय प्रक्रिया है जिसके द्वारा व्यक्ति एवं सूमूह प्राप्त करते हैं, जो वह चाहते हैं और जो वस्तुओं एवं सेवाओं के परस्पर विनिमय से सम्बद्ध है।”

अब हम दोनों विचारधाराओं में अन्तर स्पष्ट कर सकते हैं। परम्परागत विचार विपणन उत्पादकों अर्थात् विक्रेताओं की आवश्यकता पर बल देता है। इसके विपरीत, आधुनिक विचार उपभोक्ता की ज़रूरतों से प्रतिबद्ध है।

विपणन अवधारणा के उद्देश्य- विपणन अवधारणा के परम्परागत विचारधारा और आधुनिक विचारधारा के अध्ययन से इसके उद्देश्य स्पष्ट हो जाते हैं। विपणन अवधारणा के उद्देश्य इस प्रकार हैं-

  • वस्तुओं की खरीद-बिक्री करना।
  • उपभोक्ता को संतुष्ट करना, जैसे-गारंटी देना, मरम्मत की सुविधा, पसंद न आने पर बदलने की सुविधा देना आदि।
  • अधिक-से-अधिक लाभ अर्जित करना।
  • उपभोक्ता संतुष्टि और उपभोक्ता कल्याण पर ध्यान देना।
  • उपभोक्ताओं की इच्छाओं और आवश्यकताओं को ध्यान में रखना।
  • उपभोक्ता कल्याण और सामाजिक दायित्व को ध्यान में रखना।
  • लोगों के रहन-सहन के स्तर में सुधार करना।

प्रश्न 10.
कुल लागत में किन-किन तत्त्वों का समावेश होता है ?
उत्तर:
कुल लागत में निम्नलिखित तत्त्वों का समावेश होता है-
I. मुख्य लागत- किसी भी वस्तु के उत्पादन में मुख्य रूप से दो खर्चे आते हैं-एक कच्चमाल और दूसरा श्रम। इन दोनों का योगफल मुख्य लागत कहलाती है।
1. कच्चामाल- वस्तु के उत्पादन में कच्चेमाल को पक्के माल में बदला जाता है या इसके स्वरूप में परिवर्तन किया जाता है। यह कच्चामाल भी दो तरह का होता है

  • प्रत्यक्ष- प्रत्यक्ष कच्चामाल वह है जो स्पष्ट तौर पर उसी उत्पाद के लिए उपयोग में लाया जाता है। जैसे फर्नीचर के लिए लकड़ी, कपड़े के लिए कपास, चीनी के गन्ना आदि।
  • अप्रत्यक्ष- अप्रत्यक्ष कच्चामाल वह है जो पूर्ण रूप से इस उत्पाद में प्रयुक्त नहीं होता । बल्कि इसका कुछ हिस्सा ही उसमें लगता है, जैसे-फर्नीचर में कीलें, पॉलिश, फेवीकॉल आदि।

2. श्रम- कच्चेमाल को पक्के माल में बदलने के लिए श्रम की आवश्यकता होती है। यह श्रम भी दो तरह का होता है-

  • प्रत्यक्ष- माल तैयार करने में जो श्रम सीधे स्पष्ट रूप से उसी माल पर लग रहा है, उसे प्रत्यक्ष श्रम कहते हैं। फर्नीचर तैयार करने में लगा हुआ कारीगर प्रत्यक्ष श्रम है।
  • अप्रत्यक्ष- कुछ श्रम ऐसा है जो सीधे तौर पर इस उत्पाद पर ही नहीं लगता बल्कि इसका थोड़ा अंश ही इस पर लगता है। जैसे – सुपरवाइजर, प्रबंधक आदि अप्रत्यक्ष श्रम है।

II. कारखाना लागत- कच्चामाल श्रम की सहायता से कारखानों में विभिन्न प्रक्रियाओं से गुजरते हुए पक्के माल में बदलता है। इस स्तर पर अर्थात् कारखाने में जो भी खर्च होता है, उसे ‘कारखाना उपरिव्यय’ कहा जाता है। इसे जब मुख्य लागत में जोड़ दिया जाता है तो यह ‘कारखाना लागत’ कहलाता है। यह खर्च भी दो तरह का होता है।

  • स्थायी- कारखाने का वह खर्च जो उत्पादन हो या नहीं हो, लगेगा ही उसे स्थायी कारखाना लागत कहा जाता है, जैसे-फैक्ट्री का किराया, बिजली, रख-रखाव खर्च आदि।
  • परिवर्तनशील- वह खर्च जो उत्पादन बढ़ने से बढ़े और घटने से घटे परिवर्तनशील कारखाना लागत कहलाती है। जैसे-ह्रास, ईंधन, शक्ति आदि।

III. उत्पादन लागत- कारखाना लागत में कार्यालय का खर्च जोड देने पर इसका योगफ उत्पादन लागत कहलाता है। माल को उत्पादित करने तक की यह लागत होती है। यह भी दो भागों में विभक्त होती है-

  • स्थायी- वैसा कार्यालय व्यय जो उत्पादन के घटने-बढ़ने से अप्रभावित रहे, उसे स्थायी कार्यालय व्यय कहा जाता है।
  • परिवर्तनशील- उत्पादन के परिवर्तन होने से कार्यालय व्यय भी परिवर्तन हो जाए तो ऐसे व्यय को परिवर्तनशील कार्यालय व्यय कहा जाता है।

IV. माल विक्रय लागत- माल उत्पादित हो जाने के बाद अब इसे बेचने की तैयारी की जाती है। इसे बेचने में भी अनेक खर्च जैसे-विज्ञापन, विक्रेता का वेतन, कमीशन, गोदाम, पैकिंग, बीमा आदि आते हैं जिन्हें ‘विक्रय एवं वितरण उपरिव्यय’ कहा जाता है। जब उत्पादन लागत में इस खर्च को जोड़ दिया जाता है तो यह ‘कुल माल विक्रय लागत’ कहलाता है। यह भी दो भागों में विभक्त होता है।

  • स्थायी- कुछ विक्रय व्यय बिल्कुल स्थिर होते हैं, जैसे-विक्रेता का वेतन, गोदाम किराया आदि।
  • परिवर्तनशील- ऐसे विक्रय व्यय बिक्री की मात्रा के साथ बढ़ते-घटते रहते हैं, जैसे-विक्रेता का कमीशन, पैकिंग खर्च आदि।
    इन समस्त लागतों के योग को कुल लागत कहते हैं।

प्रश्न 11.
एक सफल उपक्रम की आवश्यक शर्तों की विवेचना करें।
उत्तर:
एक सफल उपक्रम की निम्नलिखित आवश्यक शर्त इस प्रकार हैं-
(i) सुपरिभाषित संस्थागत लक्ष्य- एक उद्यमी को चाहिए कि वह उद्देश्य को परिभाषित करें जिसे प्राप्त करने हेतु व्यावसायिक उपक्रम की स्थापना की गयी है। इसके अतिरिक्त उत्पाद की प्रकृति, इकाई के आकार को ध्यान में रखते हुए क्रियात्मक क्षेत्र भी निर्धारण होना चाहिए।

(ii) प्रभावपूर्ण नियोजन- एक उद्यमी को चाहिए कि वह विभिन्न क्रियाओं के सम्बन्ध में वांछित नियोजन कर ले। यह प्रक्रिया व्यावसायिक पूर्वानुमान से नियंत्रित होती है। नियोजन में उद्देश्य, नीतियों, कार्यक्रम, बजट आदि शामिल किये जाते हैं।

(iii) प्रभावपूर्ण संगठन प्रणाली- यह किसी संस्था की संरचना तैयार करता है जिसके अन्तर्गत श्रमिक व प्रबंधक अपने कार्यों का प्रबंधन करते हैं। यह कार्य के संचालन में समंवय करता है तथा व्यावसायिक उद्देश्य की पूर्ति में सहायक होता है।

(iv) वित्तीय संसाधन- उद्यमी को चाहिए कि वह एक प्रभावशाली वित्त कार्य का प्रबंध विकसित करें जैसे विनियोग निर्णय, वित्तीय निर्णय, लाभांश निर्णय ऐसे होने चाहिए जो संस्था के उद्देश्य को प्राप्त करने में सहायक हो सके।

(v) पेशेवर प्रबंध- यह उपक्रम के उद्देश्यों को प्राप्त करने में सहायक होता है।

(vi) विपणन- ग्राहकों एवं उपक्रमों के बीच अच्छा सम्बन्ध फर्म के लिए दीर्घकाल में अत्यन्त लाभप्रद शामिल होता है। अतः विपणन व्यूह रचना ग्राहक आधारित होना चाहिए। उद्यमी को चाहिए कि उत्पाद की किस्म एवं ब्राण्ड के अनुसार वितरण मार्ग निर्धारित करें जिससे उत्पाद में ग्राहकों का विश्वास बढ़े।

(vii) नव-प्रवर्तन- एक उद्यमी परिवर्तन का प्रतिनिधि होता है। लगातार शोध-कार्य विकास क्रियाओं के आधार पर संस्था में नवप्रवर्तन को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। नवप्रवर्तन बाजार में पूर्णता की स्थिति सृजित करता है जिससे बिक्री एवं लाभ दोनों बढ़ते हैं।

प्रश्न 12.
समायोजन की परिभाषा दें। इसकी क्या विशेषताएं है ?
उत्तर:
नियोजन प्रबंध का वह कार्य है जिसमें लक्ष्यों का निर्धारण करना तथा इसे प्राप्त करने के लिए की जाने वाली क्रियाओं को सम्मिलित किया जाता है। इसके अंतर्गत यह निश्चित किया जाता है कि क्या करना है, कैसे करना है, कब करना है तथा किसके द्वारा करना है, इन सभी प्रश्नों के बारे में निर्णय लेना ही नियोजन है।

कण्ट्ज एवं ओ’ डोनेल के अनुसार’ “क्या करना है, कैसे करना है, कब करना है और किसके द्वारा करना है, का पूर्व निर्धारण करना ही नियोजन है।”(Planning is deciding in advance what to do, how to do it, when to do it and who is to do it.)

नियोजन की प्रमुख तीन विशेषताएँ इस प्रकार है-
(i) प्रबंध का प्राथमिक कार्य- नियोजन प्रबंध का प्रथम कार्य है और अन्य सभी कार्य, जैसे- संगठन, नियुक्तियाँ, अग्रणीयता एवं नियंत्रण आदि इसके बाद ही किए जाते हैं। नियोजन के अभाव में प्रबंध का कोई भी कार्य पूरा नहीं किया जा सकता है।

(ii) नियोजन पूर्वानुमान लगाना है- नियोजन प्रक्रिया में भविष्य को ध्यान में रखा जाता है या नियोजन के अंतर्गत एकत्रित तथ्यों के आधार पर भविष्य के बारे में पूर्वानुमान लगाकर उचित निर्णय लिया जाता है। इस प्रकार कहा जा सकता है कि पूर्वानुमान नियोजन का सार है।

(iii) नियोजन एक निरंतर प्रक्रिया है- नियोजन एक ऐसी प्रक्रिया है जो संस्था के प्रारंभ होने के साथ ही प्रारंभ होती है और संस्था के समाप्त होने पर समाप्त अर्थात् जब तक कोई संस्था चलती रहती है नियोजन प्रक्रिया भी लगातार चलती रहती है।

प्रश्न 13.
“विज्ञापन पर किया गया खर्च विनियोग है, अपव्यय नहीं।” इस कथन की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
“विज्ञापन पर किया गया व्यय बेकार नहीं जाता, एक विनियोग है।” (The money spent on advertising is not ivasteful, an investment.)- गलाकाट प्रतियोगिता के युग में आज विज्ञान का महत्त्वपूर्ण स्थान है। विज्ञापन उपभोक्ताओं को प्रभावित करके उत्पाद (Product) या सेवा का विक्रय बढ़ाने में महत्वपूर्ण योगदान देता है। इससे बड़े पैमाने के उत्पादन को मितव्ययताएँ प्राप्त होती हैं। उपभोक्ताओं को सस्ती एवं प्रमापित वस्तु प्राप्त होती है। इस प्रकार विज्ञापन वस्तु की माँग उत्पन्न करता है। इसी कारण यह कथन सत्य है कि “विज्ञापन पर किया गया व्यय विनियोग होता है, व्यय नहीं।” कुछ विद्वानों ने कहा है कि विज्ञापन से केवल उत्पादन लाभान्वित होते हैं। उनका यह विचार सत्य नहीं है क्योंकि विज्ञापन से थोक व्यापारी, फुटकर व्यापारी, उपभोक्ता तथा समाज सभी को लाभ होता है, विज्ञापन इनके लिए उतना ही महत्वपूर्ण है जितना कि उत्पादक के लिए। विज्ञापन से इन सभी को होने वाले लाभों का वर्णन निम्नलिखित है-

I. उत्पादकों को लाभ (Advantages of Products) :

  • नवनिर्मित वस्तुओं की माँग में वृद्धि करना-निर्माता अपनी नई वस्तु या विज्ञापन करके अपनी वस्तु की माँग उत्पन्न कर सकते हैं।
  • वस्तुओं की बिक्री में वृद्धि- विज्ञापन का प्रमुख उद्देश्य वस्तु की माँग में वृद्धि करना है। विज्ञापन के द्वारा वस्तु के नए ग्राहक बनते हैं। परिणामस्वरूप बिक्री बढ़ती है।
  • मांग में स्थायित्व (Stability in Demand)- विज्ञापन वस्तुओं की मौसमी माँग के परिवर्तन को न्यूनतम करके पूरे वर्ष माँग को बनाए रखता है जैसे-बिजली के पंखे गर्मियों में तो बिकते ही हैं लेकिन सर्दियों में भी पंखों की माँग भारी छूट के विज्ञापन के कारण बनी रहती है।
  • शीघ्र बिक्री तथा कम स्टॉक-विज्ञापन से बाजार में वस्तु की माँग होती है और वस्तु की बिक्री में वृद्धि होती है। परिणामस्वरूप वस्तु का स्टॉक अधिक समय के लिए नहीं रखना पड़ता।
  • प्रतिस्पर्धा का अंत- विज्ञापन के माध्यम से वस्तु की माँग बाजार में स्थायी बनायी जा सकती है। यदि कोई हमारी वस्तु का प्रतिस्पर्धा है भी तो उसकी दाल नहीं गलेगी क्योंकि हम अपनी वस्तु की उपयोगिता को विज्ञापन के द्वारा ग्राहकों को समझा सकते हैं।
  • कम लागत- बड़े पैमाने पर उत्पादन करके उत्पादन लागत और वितरण लागत दोनों में कमी की जा सकती है क्योंकि विज्ञापन से माँग में वृद्धि होती है और बढ़ी हुई माँग की पूर्ति बड़े पैमाने के उत्पादन से ही संभव है।
  • संस्था की ख्याति में वृद्धि- विज्ञापन से संस्था तथा उसके द्वारा उत्पादित वस्तु लोकप्रिय हो जाती है। यही नहीं, ऐसी संस्था अपने सहायक उत्पादन को बेचने में भी सफल हो जाती है।
  • कर्मचारियों को प्रेरणा- विज्ञापन से जब वस्तु की माँग में वृद्धि होती है तो संस्था में काम करने वाले कर्मचारियों में भी गर्व की भावना आती है।
  • उपभोक्ताओं के समय में बचत- विज्ञापन की सहायता से कम समय में उचित मूल्य पर सही वस्तु उपभोक्ता को मिल जाती है।

II. मध्यस्थों को लाभ (Advantages of Middlemen) :

  • समाचार-पत्रों की आर्थिक सहायता- समाचार-पत्र एवं पत्रिकाओं को भारी विज्ञापन कराने से बहुत अधिक आय होती है, परिणामस्वरूप कम लागत पर पत्र-पत्रिकाएँ जनता को मिल जाती हैं। समाचार-पत्रों की कुल आय के भाग में से 75% आय का भाग विज्ञापनों से मिलता है।
  • विक्रेताओं की सहायता करता है- विज्ञापन वस्तु की माँग का सृजन (Crcate) करता है यानी विक्रेताओं द्वारा वस्तु की अधिक बिक्री के लिए बिक्री की पृष्ठभूमि बनाता है।
  • अच्छे मध्यस्थों की प्राप्ति-विज्ञापन के द्वारा अच्छे मध्यस्थों और कर्मचारियों को प्राप्त किया जा सकता है।
  • उत्पादकों से सम्पर्क-विज्ञापन के द्वारा मध्यस्थ और उत्पादकों के बीच सम्पर्क होता है। इस प्रकार विज्ञापन एक कड़ी का काम उत्पादक और मध्यस्थ के बीच करता है।

III. उपभोक्ताओं को लाभ (Advantages to Consumers)-

  • नव-निर्मित वस्तुओं की जानकारी-विज्ञापन के माध्यम से उपभोक्ताओं को नई-नई वस्तुओं के बारे में जानकारी मिलती है। जैसे– Vespa XE-170, कोन्टेसा कार आदि।
  • क्रय में सुगमता-विज्ञापन के द्वारा वस्तु के संबंध में उपभोक्ता को पहले से ही सम्पूर्ण ज्ञान होता है। इससे उसको वस्तु खरीदने में सुगमता हो जाती है।
  • अच्छी किस्म की वस्तुओं की प्राप्ति-विज्ञापन से वस्तु के प्रति जनता का विश्वास जम जाता है। इसलिए उत्पादक जनता के उस विश्वास को समाप्त नहीं करना चाहता है और अच्छी किस्म की वस्तुएँ ही बाजार में देता है।
  • ज्ञान में वृद्धि-विज्ञापन ग्राहकों को नित नई वस्तुओं के उपयोगों के विषय में जानकारी देता है जिससे उपभोक्ताओं के ज्ञान में वृद्धि होती है।

IV. समाज को लाभ (Advantages to society)-

  • आजीविका का साधन-विज्ञापन के धंधे में असंख्य व्यक्ति लगे हुए है जो कि इस धंधे से रोजी पाते हैं।
  • आशावादी समाज का निर्माण-विज्ञापन समाज के प्रगतिशील व्यक्तियों को काम में लगाए रहने की प्रेरणा देता रहता है क्योंकि विज्ञापित वस्तु को खरीदने के लिए अधिक धन की आवश्यकता होती है।

प्रश्न 14.
प्रबंध को परिभाषित करें। इसके कार्यों का वर्णन करें।
उत्तर:
प्रबन्ध की परिभाषा देना यदि असंभव नहीं तो कठिन अवश्य है। विद्वानों ने प्रबन्ध को भिन्न-भिन्न दृष्टिकोणों से परिभाषित किया है। अतः इसकी सर्वमान्य परिभाषा कोई नहीं है। इस सम्बन्ध में ई. एफ. एल. ब्रेच तो प्रबन्ध की परिभाषा ही महसूस नहीं करते। उनका मानना है कि महत्त्व प्रबन्ध का है न कि उसकी परिभाषा का। प्रबन्ध की कुछ महत्वपूर्ण परिभाषाएँ इस प्रकार हैं-

1. स्टेनले वेन्स (Stanley Vance) के शब्दों में, “प्रबन्ध केवल निर्णय लेने एवं मानवीय क्रियाओं पर नियंत्रण रखने की विधि है जिससे पूर्व निश्चित लक्ष्यों की प्राप्ति की जा सके।”

स्टेनले वेन्स द्वारा दी गई परिभाषा की व्याख्या- उपरोक्त परिभाषा की व्याख्या पर प्रबन्ध के संबंध में निम्न तीन बातें स्पष्ट होती हैं- (i) प्रबन्ध निर्णय लेने की एक विधि है (ii) प्रबन्ध मानवीय क्रियाओं पर नियंत्रण रखने की विधि है एवं (iii) प्रबन्धकीय क्रियाएँ निर्धारित लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए की जाती हैं।

2. कून्ट्ज तथा ओ’ डोनेल (Koontz and O’ Donnell) के शब्दों में “प्रबन्ध का कार्य अन्य व्यक्तियों द्वारा उनके साथ मिलकर काम करना है।”

कून्ट्ज की परिभाषा का यदि विश्लेषण किया जाए तो उससे निम्न बातें सामने आती हैं- (i) प्रबन्ध एक कला है, (ii) प्रबन्ध का उद्देश्य कार्य को पूर्ण कराना है एवं (iii) प्रबन्ध का कार्य दूसरे व्यक्तियों के साथ मिलकर कार्य करना व उनसे कार्य लेना है।

वास्तव में प्रबन्ध के सभी कार्य स्वयं कार्य करने व दूसरों से कार्य कराने से ही संबंधित होते हैं। यद्यपि प्रबन्ध के सभी कार्य स्वयं करने व दूसरों से कार्य कराने से ही संबंधित होते हैं। यद्यपि प्रबन्ध की उपरोक्त विचारधारा में कुछ दोष भी है। जैसे-(i) प्रबन्ध केवल कला ही नहीं हैं; (ii) प्रबन्ध केवल कर्मचारियों का ही प्रबन्ध नहीं है एवं (iii) प्रबन्ध जोर-जबरदस्ती करना नहीं है।

3. प्रो० जॉन एफ० मी के अनुसार, “प्रबन्ध से तात्पर्य न्यूनतम प्रयास के द्वारा अधिकतम परिणाम प्राप्त करने की कला से है, जिससे नियोक्ता एवं कर्मचारी दोनों के लिए अधिकतम समृद्धि तथा जन-समाज के लिए सर्वश्रेष्ठ सेवा संभव हो सके।”

यह परिभाषा प्रबन्धकों के सामाजिक उत्तरदायित्व की ओर संकेत करती है। अधिकांश विद्वानों ने प्रबन्ध की परिभाषा इस प्रकार दी है

4. प्रो० जॉर्ज आर० टेरी (George R. Terry) के अनुसार, “प्रबन्ध एक पृथक् प्रक्रिया है जिसमें नियोजन, संगठन, क्रियान्वयन तथा नियंत्रण को सम्मिलित किया जाता है तथा इनका निष्पादन व्यक्तियों एवं साधनों के उपयोग द्वारा उद्देश्यों को निर्धारित एवं प्राप्त करने के लिए किया जाता है।”

उपरोक्त परिभाषा से प्रबन्ध के निम्न लक्षण स्पष्ट होते हैं- (i) प्रबन्ध एक पृथक प्रक्रिया है; (ii) प्रबन्ध के अंतर्गत नियोजन, संगठन, क्रियान्वयन एवं नियंत्रण को शामिल किया जाता है; (iii) इसमें व्यक्तियों व साधनों का उपयोग किया जाता है एवं (iv) प्रबन्ध का उपयोग उद्देश्यों को निर्धारित व प्राप्त करने के लिए किया जाता है।

5. पीटर एफ ड्रकर (Peter F. Drucker) के अनुसार, “प्रबन्ध एक बहुउद्देशीय तन्त्र है जो व्यवसाय का प्रबन्ध करता है तथा प्रबन्धकों का प्रबन्ध करता है और कार्य वालों एवं कार्य का प्रबन्ध करता है।”

प्रबंध एक संगठित क्रियाकलाप है। इसमें अनेक निर्णय सम्मिलित हैं। यह संगठन के उद्देश्य को प्राप्त करने की एक प्रक्रिया है। प्रबंध के विभिन्न कार्यों को पाँच भागों में बाँटा गया है-
1. नियोजन- पूर्व में ही निर्धारित करना कि क्या करना है, कितना करना है, कैसे करना है, कब करना है और क्यों करना है। यह उद्देश्य को निर्धारित करने की एक प्रक्रिया है। यह भविष्य की अनिश्चितता को अधिक योग्य तरीके से सामना करने की तत्परता है।

2. संगठन-प्रत्येक कार्य निष्पादन की आवश्यकता है-

  • कार्य का वितरण।
  • कर्तव्य का विभाजन।
  • संसाधनों का वितरण।
  • अधिकारों का विभाजन।

यह प्रयास संगठन के उद्देश्य को प्राप्त करने में मदद करता है। नियोजन के क्रियान्वयन के लिये यह आवश्यक संबंधों की संरचना है।

3. स्टाफींग- प्रबंध का अन्य महत्वपूर्ण कार्य सही व्यक्ति को सही काम पर लगाना है। यह मानवीय संसाधनों से संबंधित है और इसके अन्तर्गत चुनाव, नियुक्ति, स्थानान्तरण, पोस्टिंग एवं प्रशिक्षण मम्मिलित है।

4. निर्देशन- यह नेतृत्व की प्रक्रिया है। यह कर्मचारियों को प्रेरित एवं प्रभावित करने का तरीका है ताकि वे अधिक प्रभावी तरीके से अपने कर्तव्य का निर्वहन कर सकें। यह कर्मचारियों से सर्वोत्तम क्षमता प्राप्त करने का एक प्रयास है।

5. नियंत्रण- इसके अन्तर्गत सम्मिलित हैं-

  • निष्पादन के प्रभाव का निर्धारण
  • वास्तविक निष्पादन की जाँच।
  • वास्तविक प्रतिफल की तुलना पूर्व निर्धारित प्रतिफल/प्रभाव से करना।
  • विचलन को करने के लिये सुधारात्मक प्रयास करना।

नियंत्रण का मुख्य उद्देश्य किसी भी प्रकार के संसाधन के दुरुपयोग को रोकना है, संगठन के उद्देश्य को प्राप्त करने के लिये उसके उत्पादकता को बढ़ाना है।

प्रबंध के उपर्युक्त सभी कार्य एक-दूसरे से संबंधित हैं एवं एक-दूसरे पर आश्रित हैं क्योंकि प्रबंध एक एकीकृत क्रियाविधि है।

प्रश्न 15.
उत्पाद तथा उत्पाद मिश्रण किसे कहते हैं ? उत्पाद के आयाम कौन-कौन से
उत्तर:
सामान्यतः उत्पादन का अर्थ किसी भौतिक चीज से किया जाता है। जैसे-मोबाइल फोन, पुस्तक, कलम आदि। लेकिन विपणन की दृष्टि से उत्पाद का अभिप्राय प्रत्येक उस चीज से है जिससे क्रेता की किसी आवश्यकता की संतष्टि होती है। अर्थात उत्पाद के अन्तर्गत भौतिक चीजों के साथ-साथ सेवाओं (जैसे-बैंकिंग, बीमा, शिक्षा, स्वास्थ्य आदि) को नहीं बल्कि दूसरों के विचारों तथा सूचनाएँ भी उत्पाद की श्रेणी में आते हैं।

उत्पाद मिश्रण का अर्थ उत्पाद आयामों से लगाया जाता है। विभिन्न उत्पाद आयामों का मिश्रित प्रयोग करते हए जब किसी वस्तु का उत्पादन किया जाता है तो इसे उत्पाद मिश्रण कहते हैं।

उत्पाद के विभिन्न आयाम होते हैं जो इस प्रकार हैं-

  • उत्पाद पंक्ति
  • उत्पाद आकार
  • उत्पाद माँग
  • उत्पाद विस्तार
  • उत्पाद भार
  • उत्पाद किस्म एवं प्रमाप
  • उत्पाद ब्राण्ड
  • उत्पाद गहराई
  • उत्पाद लेवलिंग/ ट्रेडमार्क
  • उत्पाद पैकेजिंग
  • उत्पाद विकास
  • उत्पाद परीक्षण
  • विक्रय उपरान्त सेवाएँ।

प्रश्न 16.
ब्राण्ड से क्या आशय है ? एक अच्छे ब्राण्ड की विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
ब्राण्ड एक शब्द, नाम, चिह्न, डिजाइन या इनके सहयोग से बना हुआ एक सम्मिश्रण है। उत्पादकों अथवा निर्माताओं द्वारा अपने उत्पाद की पहचान के लिए जिन व्यापारिक चिह्नों का उपयोग किया जाता है, वह ब्राण्ड कहलाता है।

एक अच्छे ब्राण्ड के निम्नलिखित विशेषताएँ होती है-
(i) यह विशिष्ट होना चाहिए- बाजार में अधिक-से-अधिक काम किए गए नाम और अधिक उपयोग किए गए प्रतीकों से भरा होता है। एक अद्वितीय और विशिष्ट प्रतीक केवल याद रखना आसान नहीं है बल्कि एक विशिष्ट सुविधा भी है “नॉर्थस्टार” जूते का एक अलग नाम है।

(ii) यह सचक होना चाहिए- एक अच्छी तरह से चुना नाम या प्रतीक गुणवत्ता के सूचक होना चाहिए या श्रेष्ठता या एक महान व्यक्तित्व के साथ जुड़ा हो सकता है। यात्रियों के लिए वीआईपी क्लासिक नाम एक अलग वर्ग के लोगों के लिए श्रेष्ठता गुणवत्ता का सूचक है।

(iii) यह उचित होना चाहिए- कई उत्पादों उपभोक्ताओं के दिमाग में एक विशिष्ट रहस्य से घिरे हैं। सावधानी एक सेनेटरी तौलिया एक उपयुक्त ब्रांड नाम है।

(iv) यह याद रखना आसान होना चाहिए- इसे पढ़ना उच्चारण करना और याद रखना आसान होना चाहिए। ह्वील, सर्फ, गोल्ड स्पॉट ऐसे ब्राण्ड नाम के उदाहरण हैं।

(v) यह नए उत्पादों के लिए अनकलनीय होना चाहिए- वीडियोकॉन टीवी और मोबाइल के लिए अच्छा ब्राण्ड नाम है लेकिन जब यह रेफ्रिजेरेटर और वाशिग मशीन तक बढ़ाया जाता है तो कुछ बिक्री अपील खो जाती है। हॉटलाइन गैस स्टोव के लिए अच्छा नाम था, लेकिन निश्चित रूप से टीवी के लिए उपयुक्त नाम नहीं है।

प्रश्न 17.
किसी वस्तु या सेवा का चुनाव करते समय साहसी को किन बातों का ध्यान रखना चाहिए ?
उत्तर:
किसी वस्तु या सेवा का चुनाव करते समय साहसी को निम्न बातों का ध्यान रखना चाहिए-
(i) बाजार का निर्धारण- उत्पाद का चुनाव करने से पूर्व बाजार का निर्धारण कर लेना चाहिए। उक्त उत्पाद का बाजार स्थानीय होगा या राष्ट्रीय या अंतर्राष्ट्रीय होगा। साहसी को नये उत्पाद लाते समय बाजार सर्वेक्षण कराकर इस बात की तसल्ली चाहिए कि उस उत्पाद की माँग बाजार में विद्यमान है। बाजार सर्वेक्षण के अन्तर्गत माँग, पूर्ति, वस्तु की लागत एवं मूल्य, प्रतियोगिता, नये परिवर्तन की संभावना विज्ञापन एवं प्रचार परं प्रभाव आदि बातों का अध्ययन किया जाता है।

(ii) व्यावहारिकता- साहसी को उत्पाद की वास्तविक जीवन में उपयोगिता पर विचार करना चाहिए। यदि वह उत्पाद पहले से ही बाजार में विद्यमान है और साहसी उसका नया परिवर्तित रूप लाने के बारे में सोच रहा है तो उसे देखना चाहिए कि उस रूप की व्यावहारिकता वर्तमान समय में कितनी होगी।

(iii) उत्पादन लागत- किसी वस्तु के उत्पादन करने से पूर्व साहसी को उत्पाद की प्रति इकाई लागत का आकलन करना चाहिए ताकि उपभोक्ता की जेब के अनुकूल हो। अधिक ऊँची कीमत होने की स्थिति में उत्पाद की माँग सीमित होगी।

(iv) प्रतियोगिता- वर्तमान युग प्रतियोगिता का युग है। ऐसी स्थिति में यदि इसे इन प्रतियोगियों से लोहा लेते हुए आगे बढ़ना है तो ऐसे उत्पाद का चुनाव करना होगा जो बाकी प्रतियोगियों की तुलना में बेहतर किस्म और कम दाम का हो।

(v) कच्चे माल की पर्याप्तता एवं सतत् उपलब्धता- उत्पाद का चुनाव करते समय साहसी को यह देखना चाहिए कि उसके उत्पाद के लिए पर्याप्त मात्रा में कच्चा माल निबांध रूप से मिलता रहेगा या नहीं।

(vi) तकनीकी पहलू- कच्चे माल के प्रति आश्वस्त हो जाने के बाद साहसी को यह देखना चाहिए कि उसके उत्पाद के लिए किसी मशीन, यंत्र, उपकरण एवं तकनीकी आदि की आवश्यकता होगी। यह कितने में और कहाँ से उपलब्ध हो सकेगा। उसे चलाने के लिए किस स्तर के प्रशिक्षित कर्मचारी की आवश्यकता होगी। उन कर्मचारियों की उपलब्धता आसानी से हो सकेगा अथवा नहीं। अतः उत्पाद के चुनाव में तकनीकी पहलू को भी ध्यान में रखना चाहिए।

(vii) लाभ की संभावना- साहसी को अपने उत्पाद की वार्षिक बिक्री और उस पर होने वाले लाभ का अनुभव पहले कर लेने के बाद ही उत्पाद का चुनाव करना चाहिए।

Bihar Board 12th Psychology Objective Important Questions Part 2

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Bihar Board 12th Psychology Objective Important Questions Part 2

प्रश्न 1.
सीखने के सिद्धांत का प्रयोग होता है
(a) व्यवहार चिकित्सा में।
(b) मनोविश्लेषणात्मक चिकित्सा में
(c) (a) और (b) दोनों में
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(c) (a) और (b) दोनों में

प्रश्न 2.
मानसिक उम्र मापक है
(a) वास्तविक आयु का
(b) बुद्धि के निरपेक्ष स्तर का
(c) कालानुक्रमित आयु का
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(b) बुद्धि के निरपेक्ष स्तर का

प्रश्न 3.
पूर्वाग्रह एक प्रकार है ………… का
(a) मनोवृत्ति
(b) प्रेरणा
(c) संवेग
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(a) मनोवृत्ति

प्रश्न 4.
समूह संरचना का तात्पर्य है
(a) समूह का आकार
(b) समूह की प्रभावशीलता
(c) समूह का लक्ष्य
(d) इनमें से सभी
उत्तर:
(d) इनमें से सभी

प्रश्न 5.
निम्नलिखित में से कौन प्रतिरक्षा मनोरचना है?
(a) दमन
(b) दलन
(c) प्रक्षेपण
(d) इनमें सभी
उत्तर:
(c) प्रक्षेपण

प्रश्न 6.
सर्जनात्मकता की अवस्थाओं के प्रसंग में कौन-सा बेमेल पद है?
(a) अभिप्रेरणा
(b) आयोजन
(c) उद्भवन
(d) प्रबोधन
उत्तर:
(d) प्रबोधन

प्रश्न 7.
बुद्धि के द्वि-कारक सिद्धांत का प्रतिपादन किसने किया?
(a) चार्ल्स स्पीयरमैन
(b) बिनेट
(c) रेबर
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(a) चार्ल्स स्पीयरमैन

प्रश्न 8.
दूसरे के आइने में अपने को झाँकने का भाव किस कौशल को दर्शाता है?
(a) समानुभूति
(b) सहानुभूति
(c) आत्म अनुशासन
(d) प्रेक्षण कौशल
उत्तर:
(d) प्रेक्षण कौशल

प्रश्न 9.
जीवन मूल प्रवृत्ति संप्रत्यय के प्रतिपादक है
(a) युंग
(b) एडलर
(c) फ्रायड
(d) वाटसन
उत्तर:
(b) एडलर

प्रश्न 10.
भीड़ का व्यवहार है
(a) अविवेकी
(b) विवेकपूर्ण
(c) तर्कपूर्ण
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(a) अविवेकी

प्रश्न 11.
विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस मनाया जाता है
(a) 11 अक्टूबर
(b) 21 अक्टूबर
(c) 31 अगस्त
(d) 21 नवम्बर
उत्तर:
(a) 11 अक्टूबर

प्रश्न 12.
प्रतिबल का नकारात्मक पहलू है
(a) हाइपरस्ट्रेस
(b) डिस्ट्रेस
(c) यूस्ट्रेस
(d) हाइपोस्ट्रेस
उत्तर:
(b) डिस्ट्रेस

प्रश्न 13.
इनमें से कौन मादक द्रव्य नहीं है?
(a) कॉफी
(b) कोकेन
(c) अफीम
(d) स्मैक
उत्तर:
(a) कॉफी

प्रश्न 14.
‘योग’ एक ……….. है।
(a) आघात चिकित्सा
(b) वैकल्पिक चिकित्सा
(c) (a) और (b) दोनों
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(b) वैकल्पिक चिकित्सा

प्रश्न 15.
समय प्रबंध कौशल है
(a) सामूहिक
(b) वैयक्तिक
(c) धार्मिक
(d) राजनैतिक
उत्तर:
(a) सामूहिक

प्रश्न 16.
आक्रमण के मूल प्रवृत्ति सिद्धांत का प्रतिपादन किसने किया ?
(a) रोजर्स
(b) आलपोर्ट
(c) फ्रायड
(d) वाटसन
उत्तर:
(b) आलपोर्ट

प्रश्न 17.
कौशल के बारे में कौन कथन सही है?
(a) कौशल में व्यक्ति की मनोवृत्ति में परिवर्तन होता है
(b) कौशल एक जन्मजात गुण होता है
(c) कौशल को प्रशिक्षण से अर्जित किया जाता है
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(c) कौशल को प्रशिक्षण से अर्जित किया जाता है

प्रश्न 18.
मनोवैज्ञानिक के बौद्धिक कौशल को किस श्रेणी में रखा जाएगा ?
(a) सामान्य कौशल
(b) प्रेक्षणात्मक कौशल
(c) विशिष्ट कौशल
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(a) सामान्य कौशल

प्रश्न 19.
निम्नांकित में संचार की कौन विशेषता नहीं है?
(a) संचार गत्यात्मक होता है
(b) संचार सतत होता है
(c) संचार का स्वरूप अंतरसक्रिय होता है
(d) संचार का स्वरूप पलटावी होता है
उत्तर:
(d) संचार का स्वरूप पलटावी होता है

प्रश्न 20.
पर्यावरण के संदर्भ में कौन कथन सही है?
(a) पर्यावरण से तात्पर्य भौतिक वातावरण से होता है
(b) पर्यावरण से तात्पर्य सामाजिक वातावरण से होता है
(c) पर्यावरण से तात्पर्य सांस्कृतिक वातावरण से होता है
(d) पर्यावरण से तात्पर्य ऊपर तीनों पहलुओं से होता है
उत्तर:
(d) पर्यावरण से तात्पर्य ऊपर तीनों पहलुओं से होता है

प्रश्न 21.
कोलाहल की विशेषताओं में किसे शामिल नहीं किया जा सकता है ?
(a) तीव्रता
(b) पूर्वानुमेयता
(c) नियंत्रण योग्यता
(d) क्रमबद्धता
उत्तर:
(d) क्रमबद्धता

प्रश्न 22.
सामाजिक दूरी में संप्रेषण कर्ता तथा श्रोता के बीच की दूरी होती है
(a) 18 इंच से 4 फीट
(b) 4 फीट से 10 फीट
(c) 0 से 18 इंच
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(b) 4 फीट से 10 फीट

प्रश्न 23.
अंत्योदय का उद्देश्य क्या है?
(a) धनी व्यक्तियों से गरीबों के लिए धन माँगना
(b) गरीबों को मेडिकल मदद करना
(c) गरीबों की संपन्नता स्तर को बढ़ाना
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(c) गरीबों की संपन्नता स्तर को बढ़ाना

प्रश्न 24.
सामान्य अनुकूलन संलक्षण या जी० ए० एस० के संप्रत्यय को किसने प्रस्तुत किया?
(a) जिम्बार्डो
(b) हँस सेली
(c) मार्टिन सेलिगमैन
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(b) हँस सेली

प्रश्न 25.
निम्नलिखित में कौन बुलिमिया विकार है?
(a) भोजन विकार
(b) नैतिक विकार
(c) भावात्मक विकार
(d) चरित्र विकार
उत्तर:
(b) नैतिक विकार

प्रश्न 26.
मनोगत्यात्मक चिकित्सा का प्रतिपादन किसने किया?
(a) रोजर्स
(b) आलपोर्ट
(c) फ्रायड
(d) वाटसन
उत्तर:
(c) फ्रायड

प्रश्न 27.
मनोवृत्ति परिवर्तन प्रक्रिया में संतुलन सा पी-ओ-एक्स का संप्रत्यय किसने प्रस्तावित किया ?
(a) मुहम्मद सुलेमान
(b) एस. एम. मोहसीन
(c) हायदर
(d) मैसलो
उत्तर:
(c) हायदर

प्रश्न 28.
किसने कहा कि “अमूर्त चिन्तन की योग्यता वृद्धि है”?
(a) बिने
(b) टरमन
(c) रेबर
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(c) रेबर

प्रश्न 29.
परामर्श का उद्देश्य होता है
(a) विकासात्मक
(b) निरोधात्मक
(c) उपचारात्मक
(d) इनमें से सभी
उत्तर:
(d) इनमें से सभी

प्रश्न 30.
फ्रायड के अनुसार मन के आकारात्मक मॉडल है?
(a) चेतन
(b) उपाह
(c) अहम्
(d) पराहम्
उत्तर:
(a) चेतन

प्रश्न 31.
संवेगात्पक बुद्धि के तत्वों में निम्नलिखित में से किसे नहीं रखा जा सकता है ?
(a) अपने संवेगों की सही जानकारी रखना
(b) स्वयं को प्रेरित करना
(c) दूसरे को धमकी देना
(d) दूसरे के संवेगों को पहचानना
उत्तर:
(c) दूसरे को धमकी देना

प्रश्न 32.
व्यक्ति के जीवन में सफलता का कितना प्रतिशत संवेगात्मक बुद्धि से निर्धारित होता है?
(a) लगभग 60 प्रतिशत
(b) लगभग 70 प्रतिशत
(c) लगभग 80 प्रतिशत
(d) लगभग 100 प्रतिशत
उत्तर:
(c) लगभग 80 प्रतिशत

प्रश्न 33.
आदर्श व्यवहार के संबंध में स्थायी विश्वास को कहा जाता है
(a) व्यक्तित्व
(b) मूल्य
(c) अभिरुचि
(d) अभिक्षमता
उत्तर:
(a) व्यक्तित्व

प्रश्न 34.
थर्स्टन के अनुसार बुद्धि में कितने प्राथमिक मानसिक योग्यताएँ उपस्थित होती हैं?
(a) 5
(b) 6
(c) 7
(d) 8
उत्तर:
(a) 5

प्रश्न 35.
व्यक्तित्व सिद्धांत के विशेषक उपागम का अग्रणी है
(a) फ्रायड
(b) युंग
(c) ऑलपोर्ट
(d) क्रेश्मर
उत्तर:
(c) ऑलपोर्ट

प्रश्न 36.
किसने आदर्श सकारात्मक आदर का संप्रत्यय दिया है?
(a) फ्रायड
(b) मैकिनले
(c) रोजर्स
(d) एडलर
उत्तर:
(a) फ्रायड

प्रश्न 37.
निम्नलिखित में कौन स्नायु विकृति नहीं है?
(a) मनोविदलता
(b) चिंता विकृति
(c) बाध्य विकृति
(d) दुर्भीति
उत्तर:
(a) फ्रायड

प्रश्न 38.
बाह्य आवेधक के प्रति प्रतिक्रिया को कहा जाता है।
(a) अनुकूलन
(b) बर्न आउट
(c) समायोजन
(d) खिंचाव
उत्तर:
(a) अनुकूलन

प्रश्न 39.
दबाव प्रतिरोधी व्यक्तित्व में कौन विशेषता नहीं पायी जाती है?
(a) दुश्चिंता
(b) प्रतिबद्धता
(c) चुनौती
(d) नियंत्रण
उत्तर:
(d) नियंत्रण

प्रश्न 40.
किसने सर्वप्रथम स्वीकार किया कि द्वंद्व एवं अन्तर्वैयक्तिक संबंधों में बाधा मानसिक विकारों के महत्वपूर्ण कारण हैं?
(a) हिपोक्रेटस
(b) जॉन वेयर
(c) सुकरात
(d) गैलन
उत्तर:
(c) सुकरात

प्रश्न 41.
पूर्वाग्रह एक प्रकार है
(a) मनोवृत्ति का
(b) मूल प्रवृत्ति का
(c) संवेग का
(d) प्रेरणा का
उत्तर:
(a) मनोवृत्ति का

प्रश्न 42.
निम्नांकित में से कौन कायरूप विकार है?
(a) पीड़ा विकार
(b) काय आलंबिता विकार
(c) परिवर्तन विकार
(d) इनमें से सभी
उत्तर:
(d) इनमें से सभी

प्रश्न 43.
उत्पीड़न भ्रमासक्ति एक लक्षण है
(a) भावदशा विकार का
(b) मनोविदलता का
(c) कायरूप विकार का
(d) विच्छेदी विकार का
उत्तर:
(a) भावदशा विकार का

प्रश्न 44.
सहभागी प्रेक्षण का मुख्य गुण हैं।
(a) स्वाभाविकता
(b) लचीलापन
(c) परिशुद्धता
(d) वस्तुनिष्ठ
उत्तर:
(b) लचीलापन

प्रश्न 45.
निम्नलिखित में से कौन आनन्द सिद्धांत से निर्देशित होता है?
(a) अहं
(b) इदं
(c) पराहं
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(b) इदं

प्रश्न 46.
मनोवृत्ति का निर्माण निम्नांकित में से किस कारक द्वारा प्रभावित नहीं होता है?
(a) सामाजिक सीखना
(b) विश्वसनीय सूचनाएँ
(c) आवश्यकता पूर्ति
(d) श्रोता की विशेषताएँ
उत्तर:
(d) श्रोता की विशेषताएँ

प्रश्न 47.
परिवार एक समूह का उदाहरण है
(a) प्राथमिक
(b) द्वितीयक
(c) संदर्भ
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(a) प्राथमिक

Bihar Board 12th Psychology Objective Important Questions Part 1

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Bihar Board 12th Psychology Objective Important Questions Part 1

प्रश्न 1.
मनोविज्ञान में सर्वप्रथम बुद्धि परीक्षण की शुरूआत किसने की?
(a) कैटेल
(b) बिने
(c) वेश्लर
(d) साइमन
उत्तर:
(b) बिने

प्रश्न 2.
निम्नलिखित में से कौन सर्जनात्मक चिन्तन की अवस्था नहीं है ?
(a) सत्यापन
(b) उद्भवन
(c) धारण
(d) तैयारी
उत्तर:
(a) सत्यापन

प्रश्न 3.
जिन व्यक्तियों की बुद्धि लब्धि 80-89 के बीच होती है उन्हें कहते हैं।
(a) प्रतिभाशाली
(b) मूढ़
(c) मंद
(d) सामान्य
उत्तर:
(d) सामान्य

प्रश्न 4.
निम्नलिखित में से कौन युग के व्यक्तित्व प्रकार के अंतर्गत नहीं शामिल है ?
(a) अन्तर्मुखी
(b) एंडोमार्फी
(c) बहिर्मुखी
(d) उभयमुखी
उत्तर:
(a) अन्तर्मुखी

प्रश्न 5.
टाईप ‘सी’ व्यक्तित्व का प्रतिपादन किसने किया?
(a) फ्रायड ने
(b) आलपोर्ट ने
(c) फ्रीडमैन ने
(d) मोरिस ने
उत्तर:
(c) फ्रीडमैन ने

प्रश्न 6.
व्यक्तित्व विकास का सही क्रम है
(a) अहम-पराहम-इदम
(b) इदम-अहम-पराहम
(c) इदम-पराहम-अहम
(d) पराहम-अहम-इदम
उत्तर:
(b) इदम-अहम-पराहम

प्रश्न 7.
कथानक आत्मबोध परीक्षण के निर्माता कौन हैं?
(a) मार्गन एवं रोजेनविग
(b) मुर्रे एवं मार्गन
(c) कैटेल
(d) रोर्शाक एवं मुर्रे
उत्तर:
(b) मुर्रे एवं मार्गन

प्रश्न 8.
निम्नलिखित में से कौन सामाजिक प्रतिबल है?
(a) द्वन्द्व
(b) कुंठा
(c) भूकम्प
(d) विवाह-विच्छेद
उत्तर:
(b) कुंठा

प्रश्न 9.
सामान्य अनुकूलन संलक्षण में अवस्थाएँ हैं
(a) दो
(b) तीन
(c) चार
(d) पाँच
उत्तर:
(a) दो

प्रश्न 10.
इनमें कौन असमान्यता के जैविकीय कारक नहीं हैं?
(a) शारीरिक संरचना
(b) आरंभिक बंचन
(c) अंत:स्रावी ग्रंथियों का प्रभाव
(d) आनुवांशिकता
उत्तर:
(a) शारीरिक संरचना

प्रश्न 11.
आई० सी० डी०-10 प्रस्तुत किया गया
(a) भारतीय मनोचिकित्सा संघ द्वारा
(b) अमरीकी मनोचिकित्सा संघ द्वारा
(c) विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(a) भारतीय मनोचिकित्सा संघ द्वारा

प्रश्न 12.
द्वि-ध्रुवीय विकास के दो ध्रुव हैं
(a) तर्क संगत तथा अतर्क संगत
(b) उन्माद तथा विषाद
(c) स्नायु विकृति तथा मनोविकृति
(d) मनोग्रस्ति तथा बाध्यता
उत्तर:
(b) उन्माद तथा विषाद

प्रश्न 13.
इनमें से कौन मनोविश्लेषण विधि से संबंधित नहीं है?
(a) मुक्त साहचर्य
(b) क्रमिक विसंवेदीकरण
(c) स्वप्न विश्लेषण
(d) स्थानान्तरण की अवस्था
उत्तर:
(d) स्थानान्तरण की अवस्था

प्रश्न 14.
रैसनल इमोटिव चिकित्सा का प्रतिपादन किसने किया?
(a) फ्रायड
(b) शेल्डन
(c) कार्ल रोजर्स
(d) अल्बर्ट एलिस
उत्तर:
(b) शेल्डन

प्रश्न 15.
पतंजलि के प्रसिद्ध योग-सूत्र में योग के मार्ग हैं
(a) 4
(b) 6
(c) 8
(d) 9
उत्तर:
(c) 8

प्रश्न 16.
पूर्वाग्रह एक प्रकार है
(a) मनोवृत्ति का
(b) मूल प्रवृत्ति का
(c) संवेग का
(d) प्रेरणा का
उत्तर:
(a) मनोवृत्ति का

प्रश्न 17.
मनोवृत्ति निर्माण के सांस्कृतिक कारक की भूमिका पर बल दिया
(a) बन्डूरा
(b) सुलेमान
(c) मीड एवं बेनेडिक्ट
(d) इन्सको तथा नेलसन
उत्तर:
(b) सुलेमान

प्रश्न 18.
मनोवृत्ति परिवर्तन प्रक्रिया में संज्ञानात्मक बिसंवादिता का संप्रत्यय प्रतिपादित किया
(a) एब्राहम मैसलो ने
(b) फ्रिट्ज हाइडर ने
(c) लियॉन फेस्टिंगर ने
(d) नार्मन ट्रिपलेट ने
उत्तर:
(b) फ्रिट्ज हाइडर ने

प्रश्न 19.
एक सामाजिक समूह की संरचना के लिए कम-से-कम कितने सदस्यों की आवश्यकता
(a) दो
(b) तीन
(c) चार
(d) छः
उत्तर:
(a) दो

प्रश्न 20.
किसने समूह का वर्गीकरण प्राथमिक समूह तथा द्वितीयक समूह में किया है?
(a) मैकाइवर
(b) आलपोर्ट
(c) डब्ल्यू. जी. समनर
(d) चार्ल्स कूले
उत्तर:
(a) मैकाइवर

प्रश्न 21.
एक सन्दर्भ समूह के लिए सर्वाधिक वांछित अवस्था है
(a) समूह का आकार
(b) समूह का प्रभाव
(c) समूह की सदस्यता
(d) समूह के साथ सम्बद्धता
उत्तर:
(d) समूह के साथ सम्बद्धता

प्रश्न 22.
सामाजिक समूह के निम्नलिखित किस प्रकार में सर्वाधिक एकता होती है ?
(a) अंतः समूह
(b) बाह्य समूह
(c) गतिशील समूह
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(a) अंतः समूह

प्रश्न 23.
निम्नलिखित में कौन मानसिक स्वास्थ्य का आधार है?
(a) संवेगात्मक स्थिरता
(b) वास्तविक संज्ञान
(c) व्यक्तिक स्वतंत्रता
(d) तर्कपूर्ण चिंतन
उत्तर:
(d) तर्कपूर्ण चिंतन

प्रश्न 24.
पर्यावरणीय मनोवैज्ञानिकों ने पर्यावरण संरक्षण के किस माध्यम पर बल दिया है?
(a) पूर्व व्यवहार अनुबोधक
(b) पश्च व्यवहार पुनर्बलन
(c) पर्यावरणीय शिक्षा
(d) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(d) उपर्युक्त सभी

प्रश्न 25.
आक्रामकता का कारण कौन नहीं हैं?
(a) मॉडलिंग
(b) कुंठा
(c) व्यवहार परक औषध
(d) बच्चों का पालन-पोषण
उत्तर:
(a) मॉडलिंग

प्रश्न 26.
संचार कौशल के लिए कौन-सा कौशल अनिवार्य नहीं है?
(a) प्रभावी बोलना
(b) प्रभावी ढंग से सुनना
(c) अशाब्दिक संचार
(d) सांवेगिक स्थिरता
उत्तर:
(c) अशाब्दिक संचार

प्रश्न 27.
संचार कूट संकेतन की विशेषता कौन है?
(a) कूट संकेतन में व्यक्ति अपनी अनुभूति में परिवर्तन लाता है
(b) कूट संकेतन में व्यक्ति अपनी सांवेगिक उत्तेजना पर नियंत्रण करता है
(c) कूट संकेतन में व्यक्ति अपने विचारों को विशेष अर्थ प्रदान करता है
(d) कूट संकेतन में व्यक्ति अपनी भावनाओं को विकसित करता है
उत्तर:
(d) कूट संकेतन में व्यक्ति अपनी भावनाओं को विकसित करता है

प्रश्न 28.
व्यक्तित्व के शीलगुण उपागम के अग्रणी मनोवैज्ञानिक किसे कहा गया है ?
(a) फ्रायड को
(b) आलपोर्ट को
(c) थार्नडाइक को
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(a) फ्रायड को

प्रश्न 29.
एक ध्रुवीय विकार का दूसरा नाम क्या है?
(a) विषादी विकार
(b) उन्माद
(c) उन्मादी विषादी विकार
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(a) विषादी विकार

प्रश्न 30.
किसने कुंठा-आक्रमण सिद्धान्त का प्रतिपादन किया है?
(a) फ्रायड
(b) स्कीनर
(c) एडलर तथा युंग
(d) मिलर तथा डोलार्ड
उत्तर:
(c) एडलर तथा युंग

प्रश्न 31.
निम्नलिखित में किस मात्रक से ध्वनि को मापा जाता है?
(a) बेल
(b) माइक्रोबेल
(c) डेसिबेल
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(c) डेसिबेल

प्रश्न 32.
फ्रायड के अनुसार इलेक्ट्रा की अवधि में लड़कियाँ प्रतियोगिता करती है
(a) बहन से
(b) भाई से
(c) माँ से
(d) पिता से
उत्तर:
(b) भाई से

प्रश्न 33.
मनोवृत्ति परिवर्तन के द्वि-स्तरीय संप्रत्यय का प्रतिपादन किसने किया?
(a) मुहम्मद सुलैमान
(b) ए० के० सिंह
(c) एस० एम० मोहसिन
(d) जे० पी० दास
उत्तर:
(c) एस० एम० मोहसिन

प्रश्न 34.
फ्रायड के अनुसार मन का आकारात्मक मॉडल है
(a) इदम
(b) अहम
(c) अर्द्धचेतन
(d) पराहम
उत्तर:
(d) पराहम

प्रश्न 35.
मॉडलिंग प्रविधि का प्रतिपादन किसने किया है?
(a) जे० बी० वाटसन
(b) लिंडस्ले और स्कीनर
(c) बैण्डुरा
(d) साल्टर और वोल्पे
उत्तर:
(b) लिंडस्ले और स्कीनर

प्रश्न 36.
रैवेन का प्रगतिशील मातृक परीक्षण है, एक
(a) वाचिक परीक्षण
(b) समूह परीक्षण
(c) व्यक्तिगत परीक्षण
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(d) इनमें से कोई नहीं

प्रश्न 37.
आनन्द सिद्धांत निर्देशित होता है।
(a) अहं से
(b) इदं से
(c) पराहं से
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(b) इदं से

प्रश्न 38.
शेल्डन के व्यक्तित्व प्रकार में नहीं है
(a) गोलाकार
(b) आयताकार
(c) लम्बाकार
(d) कृशकाय
उत्तर:
(a) गोलाकार

प्रश्न 39.
मनोवृत्ति निर्माण का मुख्य निर्धारक है
(a) अतिरिक्त सूचना
(b) आवश्यकता
(c) असुरक्षा का भाव
(d) प्राथमिक सामाजीकरण
उत्तर:
(d) प्राथमिक सामाजीकरण

प्रश्न 40.
इनमें से कौन-सा गुण एक सफल मनोवैज्ञानिक के रूप में आवश्यक नहीं है?
(a) प्रभावी बोलना
(b) क्षमता
(c) उत्तरदायित्व का बोध
(d) निरीक्षण की योग्यता
उत्तर:
(c) उत्तरदायित्व का बोध

प्रश्न 41.
निम्नांकित में कौन जैव आयुर्विज्ञान चिकित्सा नहीं है?
(a) सेवार्थी केन्द्रित चिकित्सा
(b) औषधि चिकित्सा
(c) आघात चिकित्सा
(d) शल्य चिकित्सा
उत्तर:
(d) शल्य चिकित्सा

प्रश्न 42.
बाजार स्थलों या सार्वजनिक स्थलों से अयुक्ति-संगत भय को कहते हैं
(a) एक्रोफोबिया
(b) क्लॉस्ट्रोफोबिया
(c) एगोराफोबिया
(d) एरेक्नोफोबिया
उत्तर:
(c) एगोराफोबिया

प्रश्न 43.
मानसिक दुर्बलता का मुख्य कारण है
(a) जन्म आघात
(b) वंशानुक्रम
(c) संक्रामक रोग
(d) इनमें से सभी
उत्तर:
(d) इनमें से सभी

प्रश्न 44.
स्टैनफोर्ड-बिनेट स्केल का प्रथम संशोधन वर्ष है
(a) 1916
(b) 1960
(c) 1922
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(b) 1960

प्रश्न 45.
किसी सामान्य प्रक्रिया को असामान्य रूप से बार-बार दोहराने की व्याधि कहलाती है
(a) दुर्भीति
(b) आतंक विकृति
(c) मनोग्रस्ति बाध्यता
(d) सामान्यकृत चिंता
उत्तर:
(c) मनोग्रस्ति बाध्यता

प्रश्न 46.
जिस बच्चे की बुद्धिलब्धि 33-49 होती है, उसे किस श्रेणी में रखा जा सकता
(a) सौम्य मानसिक दुर्बलता
(b) साधारण मानसिक दुर्बलता
(c) गंभीर मानसिक दुर्बलता
(d) अति गंभीर मानसिक दुर्बलता
उत्तर:
(d) अति गंभीर मानसिक दुर्बलता

प्रश्न 47.
निम्नलिखित में कौन स्नायु विकृति नहीं है?
(a) मनोविदलता
(b) चिन्ता विकृति
(c) बाध्यता विकृति
(d) दुर्भीति
उत्तर:
(d) दुर्भीति

Bihar Board 12th Entrepreneurship Objective Important Questions Part 3 in Hindi

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Bihar Board 12th Entrepreneurship Objective Important Questions Part 3 in Hindi

प्रश्न 1.
उपकरणों के प्रमाणीकरण में कमी होती है
(a) आंतरिक बाधाओं से
(b) बाह्य बाधाओं से
(c) सरकारी बाधाओं से
(d) नियामक बाधाओं से
उत्तर:
(a) आंतरिक बाधाओं से

प्रश्न 2.
परियोजना का जीवन चक्र निम्नलिखित से संबंधित नहीं होता है
(a) विनियोग-पूर्व चरण
(b) रचनात्मक चरण
(c) सामान्यीकरण चरण
(d) स्थिरीकरण चरण
उत्तर:
(c) सामान्यीकरण चरण

प्रश्न 3.
आधुनिकीकरण सुधारता है
(a) उत्पादों को
(b) उत्पादन को
(c) प्रक्रियाओं को
(d) क्षमता को
उत्तर:
(b) उत्पादन को

प्रश्न 4.
गर्भावधि सम्बन्धित होती है
(a) विचार सृजन अवधि से
(b) उद्भवन अवधि से
(c) कार्यान्वयन अवधि से
(d) वाणिज्यीकरण अवधि से
उत्तर:
(c) कार्यान्वयन अवधि से

प्रश्न 5.
किसी भी उपक्रम की स्थायी पूँजी तथा कार्यशील पूँजी के लिए क्या आवश्यक है ?
(a) वित्त
(b) विपणन
(c) नियोजन
(d) उपरोक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(a) वित्त

प्रश्न 6.
कोष-प्रवाह विश्लेषण में प्रयुक्त “कोष” शब्द का आशय है
(a) केवल रोकड़
(b) चालू सम्पत्तियाँ
(c) चालू दायित्व
(d) चालू सम्पत्तियों का चालू दायित्व पर आधिक्य
उत्तर:
(d) चालू सम्पत्तियों का चालू दायित्व पर आधिक्य

प्रश्न 7.
प्लान्ट का क्रय कार्यशील पूँजी में क्या करेगा?
(a) कमी
(b) वृद्धि
(c) कोई प्रभाव नहीं
(d) उपरोक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(b) वृद्धि

प्रश्न 8.
सम विच्छेद बिन्दु
Bihar Board 12th Entrepreneurship Objective Important Questions Part 3, 1
उत्तर:
(d) इनमें से कोई नहीं

प्रश्न 9.
समूह-प्रणाली है
(a) उद्यमों का स्थानीय संग्रह
(b) उद्यमों का स्थानीय झुण्ड
(c) उद्योगों का स्थानीयकरण
(d) उपरोक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(a) उद्यमों का स्थानीय संग्रह

प्रश्न 10.
औद्योगिक विकास योजना कब प्रारम्भ की गई ?
(a) 1980
(b) 1985
(c) 1990
(d) 1995
उत्तर:
(b) 1985

प्रश्न 11.
औद्योगिक वाटिकाएँ हैं
(a) साधारण औद्योगिक समूह
(b) विशिष्ट औद्योगिक समूह
(c) निर्यातोन्मुख इकाइयों के स्थान
(d) समन्वित व्यावसायिक केन्द्र
उत्तर:
(b) विशिष्ट औद्योगिक समूह

प्रश्न 12.
श्रम गहन प्रौद्योगिकी के लिए उपयोगी है
(a) विकासशील देशों हेतु
(b) विकसित देशों हेतु
(c) पिछड़ी अर्थव्यवस्थाओं हेतु
(d) उपरोक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(a) विकासशील देशों हेतु

प्रश्न 13.
श्रम गहन प्रौद्योगिकी उपयुक्त हैं क्योंकि इसका सम्बन्ध है
(a) प्रकृति में अविचल
(b) प्रकृति में गतिशील
(c) प्रकृति में रुकी हुई
(d) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(a) प्रकृति में अविचल

प्रश्न 14.
पूँजी गहन प्रौद्योगिकी की वकालत की जाती है क्योंकि
(a) शीघ्र आर्थिक विकास
(b) सामाजिक प्रभाव
(c) रोजगार अवसरों में वृद्धि
(d) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(d) उपरोक्त सभी

प्रश्न 15.
चरों (Variables) का प्रयोग प्रायः तकनीकी योग्यता के लिए किया जाता है
(a) 2
(b) 3
(c) 4
(d) 5
उत्तर:
(c) 4

प्रश्न 16.
नियोजन भविष्य को पकड़ने के लिए बनाया गया पिंजड़ा है। यह कथन है
(a) न्यूमैन
(b) हर्ले
(c) एलेने
(d) टैरी
उत्तर:
(c) एलेने

प्रश्न 17.
एक अच्छी योजना होती है
(a) खर्चीली
(b) समय लेने वाली
(c) लोचपूर्ण
(d) संकीर्ण
उत्तर:
(c) लोचपूर्ण

प्रश्न 18.
टेलीफोन व्यय है
(a) स्थायी
(b) चल
(c) अर्द्धचल
(d) उपरोक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(c) अर्द्धचल

प्रश्न 19.
आर्थिक सहायता है
(a) बट्टा
(b) रियायत
(c) पुनः भुगतान
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(c) पुनः भुगतान

प्रश्न 20.
बाजार की माँग को निम्न में से क्या कहते हैं ?
(a) मांग की भविष्यवाणी
(b) वास्तविक माँग
(c) पूर्ति
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(a) मांग की भविष्यवाणी

प्रश्न 21.
आधुनिकीकरण सुधारता है
(a) उत्पादों को
(b) उत्पादन को
(c) प्रक्रियाओं को
(d) क्षमता को
उत्तर:
(d) क्षमता को

प्रश्न 22.
परियोजना पहचान में आवश्यकता होती है
(a) अनुभव
(b) मस्तिष्क का उपयोग
(c) उपरोक्त दोनों
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(c) उपरोक्त दोनों

प्रश्न 23.
विपणन मिश्रण में शामिल हैं
(a) उत्पाद
(b) व्यक्ति
(c) मालिक
(d) नौकर
उत्तर:
(a) उत्पाद

प्रश्न 24.
संचालन व्यय है
(a) किराया
(b) प्रारंम्भिक व्यय
(c) ह्रास
(d) संचिति
उत्तर:
(c) ह्रास

प्रश्न 25.
समता अंशधारी है
(a) मालिक
(b) नौकर
(c) लेनदार
(d) देनदार
उत्तर:
(a) मालिक

प्रश्न 26.
एक उत्पाद की प्रमुख लागत में शामिल होता है
(a) प्रत्यक्ष मजदूरी
(b) कार्यालय उपरिव्यय
(c) कारखाना उपरिव्यय
(d) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(a) प्रत्यक्ष मजदूरी

प्रश्न 27.
सम-विच्छेद बिन्दु दर्शाता है
(a) शून्य लाभ, शून्य हानि
(b) लागत आगम संबंध
(c) न्यूनतम विक्रय मूल्य
(d) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(d) उपरोक्त सभी

प्रश्न 28.
विक्रय संवर्द्धन के प्रमुख उदाहरण हैं
(a) स्पर्धा
(b) जोखिम
(c) व्यक्तिगत बिक्री
(d) लकी कूपन
उत्तर:
(d) लकी कूपन

प्रश्न 29.
बाजार मिश्रण के कितने तत्व हैं ?
(a) 2
(b) 4
(c) 6
(d) 8
उत्तर:
(b) 4

प्रश्न 30.
परियोजना मूल्यांकन में शामिल होता है
(a) निर्यात विश्लेषण
(b) वित्तीय विश्लेषण
(c) लाभदायकता विश्लेषण
(d) विशेषज्ञ विश्लेषण
उत्तर:
(c) लाभदायकता विश्लेषण

प्रश्न 31.
प्रबंध है
(a) कला
(b) विज्ञान
(c) दोनों
(d) कोई नहीं
उत्तर:
(c) दोनों

प्रश्न 32.
एक उद्यमी की सबसे बड़ी विशेषता है
(a) सम्पन्नता
(b) सख्त होना
(c) व्यक्तित्व
(d) सृजनशीलता
उत्तर:
(d) सृजनशीलता

प्रश्न 33.
गिरते लाभ की अवधि में कार्य का सर्वोत्तम उपाय है
(a) विस्तार
(b) आधुनिकीकरण
(c) पुनर्गठन
(d) समापन
उत्तर:
(c) पुनर्गठन

प्रश्न 34.
शुद्ध कार्यशील पूँजी का अर्थ है
(a) चालू सम्पत्तियाँ – चालू दायित्व
(b) चालू सम्पत्तियाँ + चालू दायित्व
(c) चालू दायित्व – चालू सम्पत्तियाँ
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(a) चालू सम्पत्तियाँ – चालू दायित्व

प्रश्न 35.
एक उत्पाद के प्रमुख (मूल) लागत में शामिल होता है?
(a) प्रत्यक्ष मजदूरी
(b) कार्यालय उपरिव्यय
(c) कारखाना उपरिव्यय
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(a) प्रत्यक्ष मजदूरी

प्रश्न 36.
SFC अधिनियम भारत में किस वर्ष पारित किया गया?
(a) 1948
(b) 1949
(c) 1950
(d) 1951
उत्तर:
(d) 1951

प्रश्न 37.
फ्रेन्चाइजिंग किसके अन्तर्गत है ?
(a) उत्पाद पर नियंत्रण फ्रेन्चाइजर के पास
(b) उत्पाद पर नियंत्रण फ्रेन्चाइजी के हाथ में
(c) (a) और (b) दोनों
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(a) उत्पाद पर नियंत्रण फ्रेन्चाइजर के पास

प्रश्न 38.
व्यवसाय संवृद्धि की सर्वोत्तम विधि है
(a) अधिकतम कीमत
(b) उपभोक्ता संतुष्टि
(c) प्रतिबंधित पूर्ति
(d) इनमें कोई नहीं
उत्तर:
(b) उपभोक्ता संतुष्टि

प्रश्न 39.
परिवर्तनशील लागतों में शामिल रहता है
(a) गोदाम किराया
(b) प्रबंधक का वेतन
(c) शक्ति की लागत
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(c) शक्ति की लागत

प्रश्न 40.
विक्रय संवर्द्धन के प्रमुख उपाय हैं
I. उधार विक्रय
II. व्यक्तिगत विक्रय
III. प्रदर्शनी
IV. लकी कूपन
कूट :
(a) I और II
(b) II और IV
(c) III और IV
(d) II और I
उत्तर:
(c) III और IV

प्रश्न 41.
थोक व्यापारी माल बेचते हैं
(a) सीधे उपभोक्ताओं को
(b) फुटकर व्यापारियों को
(c) उपभोक्ताओं को डाक के द्वारा
(d) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(b) फुटकर व्यापारियों को

प्रश्न 42.
एक सफल उद्यमी में अवश्य ही गुण होने चाहिए
(a) नेतृत्व की
(b नियंत्रण की
(c) नव प्रवर्तन
(d) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(d) उपरोक्त सभी

प्रश्न 43.
कारखाना लागत का आशय है
(a) मूल लागत + कारखाना उपरिव्यय
(b) मूल लागत + कार्यालय एवं प्रशासन उपरिव्यय
(c) दोनों
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(a) मूल लागत + कारखाना उपरिव्यय

प्रश्न 44.
निम्न में कौन-सा अवसर बोध का तत्त्व है ?
(a) नव प्रवर्तनीय गुण
(b) समझ की शक्ति
(c) परिवर्तन का ज्ञान
(d) इनमें से सभी
उत्तर:
(d) इनमें से सभी

प्रश्न 45.
कोष प्रवाह विवरण दर्शाता है
I. लाभ व हानि
II. स्थिति विवरण
III. एक अवधि में व्यवसाय की कार्यशील पूँजी में परिवर्तन
IV. व्यवसाय में कोषों को उगाहने एवं उपयोग के तरीके
कूट :
(a) IV, V और III
(b) II और I
(c) III और IV
(d) II और IV
उत्तर:
(c) III और IV

प्रश्न 46.
व्यवसाय एक खेल है
(a) प्रतियोगिता का
(b) चुनौती का
(c) चतुराई का
(d) कर्मचारी का
उत्तर:
(a) प्रतियोगिता का

प्रश्न 47.
विपणन का लाभ होता है
I. उपभोक्ताओं को
II. व्यवसायियों को
III. निर्माताओं को
IV. प्रबंधकों को
कूट :
(a) III और IV
(b) II, III और IV
(c) I, II और III
(d) II और IV
उत्तर:
(c) I, II और III

प्रश्न 48.
विपणन पर किया गया व्यय है
(a) बर्बादी
(b) अनावश्यक व्यय
(c) ग्राहकों पर भार
(d) विनिवेश
उत्तर:
(d) विनिवेश

Bihar Board 12th Entrepreneurship Important Questions Long Answer Type Part 4 in Hindi

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Bihar Board 12th Entrepreneurship Important Questions Long Answer Type Part 4 in Hindi

प्रश्न 1.
अंशों के प्रकारों का वर्णन करें।
उत्तर:
कम्पनियाँ निवेशकों से कोष इकट्ठा करने हेतु, अनेक प्रकार के अंश निर्गमित करती हैं। कम्पनी अधिनियम 1956 से पूर्व कम्पनियाँ तीन प्रकार के अंश निर्गमित कर सकती थीं, अर्थात् अधिमान अंश, साधारण अंश एवं स्थगित अंश। कम्पनी अधिनियम, 1956 ने केवल दो प्रकार के अंश निर्गमन का प्रावधान रखा है-अधिमान अंश एवं समता अंश। विभिन्न निवेशकों को विभिन्न प्रकार के अंशं उनकी आवश्यकता के अनुसार, निर्गमित किए जाते हैं। कुछ निवेशक, नियमित आय को चाहेंगे, भले ही वह कम ही क्यों न हो। अन्य उच्च प्रत्याय चाहेंगे भले ही उन्हें जोखिम उठाना पड़े। अतः भिन्न प्रकार के अंश विभिन्न प्रकार के निवेशकों को प्रयुक्त होते हैं। यदि एक ही प्रकार के अंश निर्गमन किए जाएँ तो पर्याप्त कोष न जुटाए जा सकेंगे। विभिन्न प्रकार के अंशों की व्याख्या नीचे प्रस्तुत की गई है-

1. अधिमान अंश (Preference Shares)- जैसा कि नाम से विदित है, इन अंशों को अन्य अंशों की तुलना में कुछ प्राथमिकताएँ प्राप्त हैं। इन अंशों की दो प्राथमिकताएँ हैं-प्रथम, लाभांश के भुगतान में प्राथमिकता। जब कम्पनी के पास वितरण योग्य लाभ होते हैं, पहले लाभांश अधिमान अंश पूँजी वालों को मिलती है। अन्य अंशधारियों को लाभांश शेष बचे अवितरित लाभों (यदि कोई हो) में से दिया जाता है। अधिमान अंशों को दूसरी प्राथमिकता, कम्पनी के समापन के समय पूँजी के भुगतान की प्राथमिकता। बाहरी ऋणदाताओं के पश्चात् अधिमान अंश पूँजी को लौटाया जाता है।

समता अंशधारियों को भुगतान तब दिया जायेगा जब अधिमान अंश पूँजी को पूर्ण रूप से भुगतान कर दिया जाए। पुनः अधिमान अंश पूँजी पर एक स्थिर दर पर लाभांश दिया जाता है। अधिमा अंशधारियों को वोटिंग अधिकार नहीं होता, अतः उनकी कम्पनी प्रबन्ध में कोई आवाज नहीं हो परन्तु वे केवल तभी वोट दे सकते हैं जब उनके अपने हित प्रभावित हों। ऐसे लोग जो अपने धन पर एक निश्चित दर से प्रत्याय प्राप्त करना चाहते हैं, भले ही उनकी आमदनी कम हो, अधिमान अंश खरीदते हैं। अधिमान अंश निम्नांकित प्रकार के हैं-

(a) संचयी अधिमान अंश (Cumulative Preference Shares)- इन अंशों को उन वर्षों के लिए भी लाभांश प्राप्त करने का अधिकार होता है जब समुचित लाभ नहीं होते। जब भी विभाज्य लाभ होते हैं, अधिमान अंशों को पिछले वर्षों के लाभांश भी मिल जाते हैं। उदाहरणार्थ, कोई कम्पनी वर्ष 2006 एवं 2007 का लाभालाभ के कारण लाभांश भुगतान नहीं कर सकी। वर्ष 2008 में कम्पनी को लाभ लेता है, सर्वप्रथम वह 2006 व 2007 का अधिमान अंशों का लाभांश भुगतान करेगी तत्पश्चात् 2008 का लाभांश घोषित किया जायेगा। लाभांश संचित होता रहता है जब तक उन्हें भुगतान न मिल जाए।

(b) गैर-संचयी अधिमान अंश (Non-cumulative Preference Shares)- इन अंशों के लाभांश की बकाया राशि प्राप्त करने का अधिकार नहीं है। यदि लाभ होता है तो लाभांश भुगता, किया जाता है। इन्हें भावी वर्षों में लाभांश की बकाया राशि का भुगतान नहीं मिलता।

(c) शोधनीय अधिमान अंश (Redeemable Preference Shares)- साधारणत: कम्पनी की पूँजी का भुगतान केवल कम्पनी के समापन के समय दिया जाता है। न तो कम्पनी पूँजी का भुगतान (refund) दे सकती है और न ही अंशधारी इसका भुगतान वापिस माँग सकते हैं। कम्पनी शोधनीय अधिमान अंश निर्गमित कर सकती है यदि कम्पनी के अन्तर्नियम ऐसा निर्णय करने की आज्ञा दं कम्पनी कुछ समय पश्चात्, अधिमान अंश पूँजी लौटाने का अधिकार रखती है।

कम्पनी अधिनियम ने इस पूँजी के पुनः भुगतान पर कुछ प्रतिबन्ध लगाये हैं। शोधनीय अंश पूर्णतः प्रदत्त होने चाहिए। अंशों का पुनः भुगतान या तो लाभों में से अथवा नये निर्गमन से किया जा सकता है। इन प्रतिबन्धों का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना होता है कि शोधन के फलस्वरूप कम्पनी की पूँजी न घटे।

प्रश्न 2.
ऋण पत्रों के प्रकारों का वर्णन करें।
उत्तर:
ऋण पत्र निम्न प्रकार के होते हैं-
1.सरल, नग्न या असुरक्षित ऋण पत्र (Simple, Naked or Unsecured Debentures)- इन ऋण पत्रों के सम्बन्ध में किसी प्रकार की सम्पत्ति की प्रतिभूति नहीं दी जाती। उन्हें अन्य ऋणदाताओं की तुलना में कोई प्राथमिकता नहीं दी जाती है। कम्पनी के समापन पर उन्हें अन्य असुरक्षित ऋणदाताओं की तरह व्यवहार किया जाता है। अतः वे असुरक्षित ऋणदाता होते हैं।

2. सुरक्षित या बन्धक ऋण पत्र (Secured or Mortgage Debentures)- इन ऋण पत्रों को कम्पनी की सम्पत्तियों पर प्रतिभूति दी जाती है। मूल राशि अथवा ब्याज के भुगतान में त्रुटि होने पर, ऋणदाता सम्पत्ति बेचकर अपने दावों को वसूल कर सकते हैं। ऋण पत्रों को कम्पनी, अपनी समस्त सम्पत्तियों पर गतिशीलन प्रभार दे सकती है। इस स्थिति में. ऋणदाताओं का भगतान. आरक्षित ऋणदाताओं की तुलना में शीघ्र कर दिया जाता है। सम्पत्तियों को बेचने पर विक्रय राशि का प्रयोग ऋण पत्रों (गतिशील प्रभार वाले) के भुगतान में पहले किया जाता है।

3. धारक ऋण पत्र (Bearer Debentures)- यह ऋण पत्र आसानी से हस्तान्तरित किए जा सकते हैं। वे विनिमय साध्य प्रपत्रों की तरह हैं। ऐसे ऋण पत्र क्रेता को बिना किसी पंजीयन (registration) को दे दी जाती है। कोई भी क्रेता जिसने उन्हें प्रतिफल के बदले, सद्विश्वास के साथ क्रय किया है, वह इन ऋण पत्रों का वैध क्रेता माना जाएगा। ब्याज के कूपन ऋण पत्र के साथ संलग्न कर देते हैं। परिपक्व होने पर धारक ब्याज का भुगतान बैंक से ले सकता है।

4. पंजीकृत ऋण पत्र (Registered Debentures)- धारक ऋण पत्रों जोकि केवल सुपुर्दगी द्वारा हस्तान्तरित किए जा सकते हैं, कि तुलना में पंजीकृत ऋण पत्रों के हस्तांतरण के लिए एक निश्चित पद्धति अपनाई जाने की आवश्यकता होती है। हस्तान्तरक एवं हस्तान्तरित दोनों को एक हस्तान्तरण प्रपत्र (Transfer Deed) भरना पड़ता है। यह प्रपत्र कम्पनी के पास रजिस्ट्रेशन शुल्क सहित भिजवाया जाता है। रजिस्टर में क्रेता का नाम लिख दिया जाता है। ब्याज कूपन उन व्यक्तियों को ही भेजे जाते हैं जिनका नाम रजिस्टर में अंकित है। प्रत्येक ऋण पत्र के हस्तान्तरण हेतु सही पद्धति अपनानी पड़ती है।

5.शोधनीय ऋण पत्र (Redeemable Debentures)- ऐसे ऋण पत्रों का एक निश्चित समय अवधि के पश्चात् शोधन कर दिया जाता है। ब्याज का भुगतान समय-समय पर दिया जाता है। मूल राशि भुगतान निश्चित अवधि के पश्चात् किया जाता है। ऋण पत्रों की शोधन अवधि निर्गमन के समय पर निश्चित की जाती है।

6.अशोधनीय ऋण पत्र (Irredeemable Debentures)- कम्पनी के जीवनकाल में ऐसे ऋण पत्रों का शोधन नहीं हो सकता। वे या तो कम्पनी के समापन पर शोधनीय होते हैं अथवा कम्पनी द्वारा कोई गलती करने पर शोधनीय हो सकते हैं। कम्पनी ऐसे ऋण पत्र धारियों को उचित सूचना देकर, इनके शोधन करने के अधिकार को अपने पास सुरक्षित रख सकती है।

यहाँ ध्यान देने योग्य है कि यदि ऋणपत्रों के निर्गमन की शर्तों में प्रावधान हो तो, उपर्युक्त ऋणपत्रों को एक निश्चित अवधि के पश्चात्, अंशों में परिवर्तित किया जा सकता है।

प्रश्न 3.
भारतीय औद्योगिक विकास बैंक के उद्देश्य एवं कार्यों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
उद्देश्य (Objectives)- भारतीय औद्योगिक विकास बैंक की स्थापना जुलाई 1964 में IDBI अधिनियम, 1964 के अधीन, भारतीय रिजर्ब बैंक की पूर्णतः स्थायित्व वाली सहायक कम्पनी के रूप में हुई। 16 फरवरी, 1976 से IDBI का स्वामित्व केन्द्र सरकार को हस्तान्तरित कर दिया गया है। अब यह एक सरकारी स्वामित्ल वाली निगम के रूप में कार्यरत है। IDBI के निर्माण का प्रमुख उद्देश्य वित्तीय संस्थाओं को सम्बद्ध करने हेतु शीर्ष संस्था विकसित करना एवं एक reservoir की तरह स्थान बनाना था। IDBI बड़े उद्योगों को वित्तीय सहायता देता है जिससे कि मध्य एवं वृहदाकार वित्त की माँग पूर्ति की खाई को पूरा किया जा सके।

वित्तीय साधन (Financial Resources)- IDBI की स्थापना 50 करोड़ की अधिकृत पूँजी से की गई जो अक्टूबर, 1994 में 200 करोड़ कर दी गई। अंश पूँजी के अतिरिक्त वित्तीय साधन हैं अवितरित कोष, ऋणों की वापसी, केन्द्र सरकार के उधार, भारतीय रिजर्व बैंक से ऋण, सार्वजनिक जमा, बॉण्ड निर्गमन एवं ऋण पत्र आदि।

प्रबन्ध (Management)- IDBI का प्रबन्ध 22 संचालकों के एक संचालक मण्डल द्वारा किया जाता है जिसका अध्यक्ष-सह-प्रबन्ध निर्देशक केन्द्र सरकार द्वारा नियुक्त होता है। अन्य सदस्यों में रिजर्व बैंक का एक प्रतिनिधि, एक प्रतिनिधि प्रति अखिल भारतीय वित्तीय संस्थान से, केन्द्र सरकार के दो अधिकारी, सार्वजनिक बैंकों तथा राज्य वित्त निगमों के तीन-तीन सदस्य एवं 5 अन्य सदस्य उद्योग क्षेत्र का ज्ञान रखने वाले लिए जाते हैं। निर्देशक बोर्ड ने 10 संचालकों वाली एक कार्यकारी समिति भी बनाई है। विशिष्ट समस्याओं पर परामर्श लेने हेतु विशेष सलाहकार नियुक्त किए जाते हैं।

कार्य (Functions)- IDBI के प्रमुख कार्य निम्नलिखित हैं-

  • उद्योग को सर्वाधिक ऋण देने वाली अन्य संस्थाओं के कार्यों को समन्वित करना एवं एक शीर्ष संस्था के रूप में कार्य करना।
  • उद्योग को मध्यम एवं वृहदाकार ऋण देने वाली संस्थाओं को पुनर्विनियोजन सुविधा प्रस्तुत करना।
  • अनुसूचित एवं सहकारी बैंकों को पुनर्विनियोजन सुविधा देना।
  • बैंकों एवं वित्तीय संस्थाओं द्वारा निर्यात ऋण देने पर उन्हें पुनर्विनियोजन सुविधा सेवा प्रदान करना।
  • उद्योग के संवर्द्धन, प्रबन्ध अथवा विकास हेतु तकनीकी एवं प्रशासनिक सहायता प्रदान करना।
  • उद्योग के विकास हेतु बाजार सर्वेक्षण एवं तकनीकी आर्थिक अध्ययन सम्पन्न करना।
  • औद्योगिक इकाइयों को प्रत्यक्ष ऋण एवं अग्रिम प्रदान करना।
  • औद्योगिक इकाइयों को वित्तीय सहायता प्रदान करना।

इस सम्बन्ध में IDBI कई योजनाओं के माध्यम से सहायता देता है, जैसे प्रत्यक्ष सहायता योजना, साफ्ट ऋण योजना, तकनीकी विकास कोष योजना, औद्योगिक ऋण पुनर्विनियोजन योजना, विनिमय विपत्र बट्टा योजना, बीज पूँजी (Seed Capital) सहायता योजना, ओवरसीज निवेश वित्त योजना, विकास सहायता कोष।

प्रश्न 4.
व्यावसायिक अवसरों की पहचान के उद्देश्य बताइए।
उत्तर:
व्यावसायिक अवसर एक आकर्षक परियोजना है जो उद्यमी को किसी निश्चित परियोजना में विनियोग निर्णय के लिए प्रोत्साहित करता है। व्यावसायिक अवसर द्वारा उद्यमी योजना को मूर्त रूप देने का प्रयास करता है। उद्यमी विभिन्न सम्भावनाओं को विश्लेषण कर सबसे अधिक जोखिम वाली सम्भावनाओं का चुनाव करती है। व्यावसायिक संभावना, व्यावसायिक अवसर तब कहाती है जब वह व्यावसायिक दृष्टि से लाभप्रद एवं संभव हो। व्यवसाय सम्भावनाओं को व्यावसायिक अवसर में बदलने के लिए उद्यमी को निम्न दो बातों का ध्यान रखना आवश्यक होता है-

  • अनुकूल बाजार माँग अथवा बाजार में उपलब्ध आपूर्ति पर माँग का आधिक्य एवं
  • विनियोग पर प्रत्याय जोकि सामान्यतया सामान्य प्रत्याय दर एवं जोखिम प्रीमियम की दर के योग के बराबर होता है।

व्यावसायिक अवसर की पहचान के निम्नलिखित उद्देश्य हैं-
(i) आंतरिक संसाधनों की उपलब्धता- आंतरिक संसाधन की उपलब्धि एक महत्वपूर्ण छूट है जो व्यावसायिक अवसर की पहचान में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। प्रायः व्यावसायिक अवसर के तीन चरण होते हैं-प्रवर्त, विस्तार एवं विधिकरण। पर्याप्त आंतरिक संसाधन होने की दशा में साहसी विस्तार एवं विधिकरण हेतु उपयुक्त व्यावसायिक अवसर का लाभ उठाने का भरसक प्रयास कर सकता है।

(ii) आंतरिक माँग की मात्रा- उच्च राष्ट्रीय आय स्तर की दशा में बाजार में उत्पाद भी उच्च माँग का अनुमान लगाया जा सकता है। उत्पाद का सेवा की माँग, राष्ट्रीय आय; प्रति व्यक्ति आय, जनसंख्या द्वारा निर्धारित होती है।

प्रश्न 5.
बाजार मूल्यांकन से आप क्या समझते हैं? बाजार मूल्यांकन पर प्रभाव डालने वाले घटक कौन-कौन है ?
उत्तर:
बाजार मूल्यांकन का तात्पर्य किसी वस्तु के शून्य का आकलन करने से है। उत्पाद एवं सेवाओं का चयन, माँग और पूर्ति के अतिरिक्त अन्य अनेक घटकों पर निर्भर करता है। जैसे-उत्पाद की गुणवत्ता, पूर्ति के स्रोत तथा वितरण के तंत्र। बाजार मूल्यांकन करते वक्त एक साहसी को माँग, पूर्ति और प्रतियोगिता की एक रूपरेखा बना लेनी चाहिए। बाजार मूल्यांकन और प्रभाव डालने वाले घटक निम्नलिखित हैं-

(i) लागत-एक विशेष प्रकार का उत्पादन करने पर उत्पाद की क्या लागत आती हैं? क्या लागत अन्य प्रतियोगी वस्तुओं के आसपास ही है? ये कुछ ऐसे प्रश्न है, जिनका उत्तर अवश्य देना पड़ता है। इसी दृष्टिकोण को ध्यान में रखकर वस्तु के विक्रय मूल्य को निश्चित करना चाहिए।

(ii) प्रतियोगिता- किसी-न-किसी समय वस्तुओं और उत्पादों को बाजार की प्रतियोगिता का सामना करना ही होता है। बाजार प्रतियोगिता का गहन अध्ययन माँग और पूर्ति के स्तर को ध्यान में रखकर किया जाता है।

(iii) उत्पाद एवं सेवाओं का उपयोग- विचार को कार्य रूप देते समय यह भी ध्यान रखना चाहिए कि वास्तविक जीवन में उसका क्या उपयोग है। उन्हें सुधार करके ही अच्छा उपयोगी सामान बनाना चाहिए। यदि सब कुछ नपा है तब पहलुओं का बारीकी से अध्ययन करना चाहिए। यही उपभोक्ताओं के हित में होता है।

(iv) तकनीकी समस्याएं- उत्पाद को बनाने के लिए किस प्रकार की तकनीक का आवश्यकता होगी? क्या ऐसी तकनीक स्थानीय बाजार से प्राप्त की जा सकती है अथवा किसी अन्य स्थान से मँगानी पड़ेगी? इस प्रकार की तकनीक के लिए मशीन और संयंत्र की स्थिति क्या है? ये कुछ ऐसे प्रश्न हैं जिन पर विशेष रूप से ध्यान देना आवश्यक होता है।

(v) वार्षिक बिक्री और लाभ- बाजार मूल्यांकन को वार्षिक बिक्री के आधार पर भी परखना चाहिए। इसी के आधार पर उत्पाद और सेवाओं का बाजार में कितना हिस्सा है, स्पष्ट होता है। साहसी जब किसी उत्पाद अथवा सेवा का चयन करता है तो उसकी सम-विच्छेद बिन्दु अथवा न लाभ न हानि, इस बिन्द से ही लाभ के बिन्द की तरह बढ़ने का प्रयास करता है और साहसी को यह भी निर्णय करना होता है कि उसे एक निश्चित अवधि में कितनी बिक्री पर कितना लाभ कमाना है।

(vi) उत्पाद और सेवाओं की पहचान- साहसिक विचार को साहसी एक निश्चित उत्पाद और सेवा के बनाने की योजना में कार्य रूप देता है जिससे उन्हें बिक्री करने में कठिनाई न हो। सेवा और उत्पाद का विचार ही किसी वस्तु और सेवा को शुरू करने का प्रथम चरण होता है। यह भी देखना चाहिए कि ऐसे उत्पाद और सेवाएँ बाजार में उपलब्ध है या नहीं। यदि ऐसा है तो . यह भी जानना चाहिए कि वैसा ही नया उत्पाद क्यों बाजार में लाया जा रहा है। .,

(vii) माँग- माँग का अनुमान उत्पाद की पहचान हो जाने के बाद लगा लेना चाहिए। माँग का अनुमान लगाते समय बाजार के आकार तथा इस क्षेत्र को ध्यान में रखना चाहिए जिसमें वस्तुएँ तथा सेवाएँ बेचनी है। जैसे-वस्तुओं का स्थानीय बाजार में बेचना, राष्ट्रीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में बेचना। यही नहीं, यह भी ध्यान रखना होगा कि लक्षित उपभोक्ता कौन है, उनकी पसंद कैसी है ? इत्यादि बातें।

प्रश्न 6.
विनिमय साध्य विपत्र से आप क्या समझते हैं ? इसके विभिन्न प्रकारों का विवेचन कीजिए।
उत्तर:
व्यवसाय में सभी लेन-देन मुद्रा में नहीं होते। बढ़ते हुए व्यापार एवं वाणिज्य के साथ, बढ़ती हुई मुद्रा की पूर्ति मुद्रा द्वारा नहीं की जा सकती। कई स्थितियों में व्यापारी के पास पर्याप्त मुद्रा रोकड़ी में नहीं होती, फिर वह जेब में अधिक मुद्रा ले जाना पसन्द न करे। इसलिए, उसे कुछ सुविधाएँ व्यावसायिक व्यवहार में चाहिये। इन कारणों से, व्यवसायों ने एक नई विधि प्रपत्रों के हस्तान्तरण, मौद्रिक चलन के विपरीत निकाली (ऐसे प्रपत्र थे, विनिमय विलेख पत्र, चैक, बैंक डाफ्ट आदि)। ऐसे प्रपत्र जो मद्रा के स्थान पर प्रति स्थापित होते हैं. उन्हें विनिमय साध्य विपत्र कहते हैं।

आजकल विनिमय साध्य विपत्र साधारण साख रीतियों का सर्वमान्य साधन हैं एवं इनका प्रयोग वाणिज्यिक लेनदेनों एवं मौद्रिक व्यवहारों में स्वतन्त्र रूप में किया जाता है। यह विपत्र वैधानिक रूप से मुद्रा के प्रतिस्पक मान कर चलाये जाते हैं। इन विपत्रों से सम्बन्धित प्रावधानों को विनिमय साध्य विलेख विपत्र अधिनियम 1881 में उल्लेखित किया गया है। इस अधिनियम का उद्देश्य इस व्यवस्था को वैधानिक बनाना जिसके अन्तर्गत कुछ व्यावसायिक विपत्रों को साधारण मालों के विनिमय पर आदान-प्रदान किया जाए।

यह अधिनियम एक मार्च, 1882 से लागू हुआ। यह प्रतिज्ञा पत्रों, विलेख पत्रों एवं बैंका पर लागू होता है।

अर्थ (Meaning)- विनिमय विपत्र शब्द को इस प्रकार परिभाषित किया जा सकता है, “एक लिखित प्रतिज्ञा अथवा धन भुगतान करने का आदेश, जो एक हाथ से दूसरे हाथ, मुद्रा के स्थान पर, हस्तान्तरित किया जाए।” साधारण शब्दों में, यह एक पत्र है जो एक व्यक्ति जिसका नाम प्रपत्र में लिखा है, को एक निश्चित मुद्रा को प्राप्त करने का अधिकार देता है, तथा जो एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति को स्वतन्त्र रूप से हस्तान्तरित किया जा सकता है। इसे केवल सुपुर्दगी द्वारा अथवा बेचान एवं सुपुर्दगी द्वारा हस्तान्तरित किया जा सकता है। धारा 13 इसे परिभाषित करती है, “एक विनिमय साध्य विपत्र के अन्तर्गत, एक प्रतिज्ञा पत्र, विनिमय विलेख पत्र, अथवा चैक धारक अथवा आदेशित व्यक्ति का देय हो, सम्मिलित किये जाते हैं।”

विशेषताएँ (Characteristics)-

  • विनिमय विलेख विपत्र लिखित होना चाहिए।
  • निर्माता द्वारा हस्ताक्षरित होना चाहिए।
  • इसमें उल्लेखित राशि किसी शर्त पर देय न हो।
  • इसमें किसी निश्चित धन राशि का उल्लेख हो।
  • यह एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति को स्वतन्त्र रूप से हस्तान्तरणीय हो।

प्रकार (Kinds)-

  • प्रतिज्ञा पत्र (Promissory Note)- यह एक विनिमयसाध्य विलेख पत्र है जिसमें एक व्यक्ति द्वारा दूसरे व्यक्ति को एक निश्चित धन राशि भुगतान करने की शर्तरहित प्रतिज्ञा हो।
  • विनिमय साध्य विलेख विपत्र (Bill of Exchange)- वह एक लिखित विनिसाध्य विपत्र है जिसमें एक शर्त रहित आदेश, एक निश्चित व्यक्ति को एक निश्चित राशि का भुगतान विपत्र के धारक अथवा एक निश्चित व्यक्ति को भुगतान करने का आदेश है।
  • चेक (Cheque)- यह एक विनिमय साध्य विपत्र जो लिखित में हो जिसमें एक निश्चित बैंकर को शर्त रहित आदेश है कि वह एक निश्चित धन राशि विपत्र के धारक को अथवा उल्लेखित व्यक्ति को भुगतान करे।

प्रश्न 7.
विज्ञापन के प्रमुख माध्यमों का वर्णन करें।
उत्तर:
विज्ञापन के प्रमुख माध्यम निम्नलिखित हैं-
(i) प्रेस अथवा समाचारपत्रीय विज्ञापन- प्रेस अथवा समाचारपत्रीय विज्ञापन से आशय वस्तुओं और सेवाओं के बारे में विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं; जर्नल्स में जानकारी प्रकाशित करने से है जिसे लाखों व्यक्तियों द्वारा पढ़ा जाता है। आधुनिक युग में प्रेस विज्ञापन, विज्ञापन का सबसे अधिक प्रचलित लोकप्रिय एवं महत्वपूर्ण साधन है क्योंकि इसके द्वारा सर्वसाधारण जनता को ज्ञान हो जाता है।

(ii) पत्रिका विज्ञापन- पत्रिकाएँ साप्ताहिक, मासिक, त्रिमाही, छमाही अथवा वार्षिक हो सकती है। इनमें किए जाने वाले विज्ञापन को पत्रिका विज्ञापन कहते हैं। पत्रिकाओं में विज्ञापन की मात्रा अपेक्षाकृत अधिक रहती है।

(iii) बाह्य विज्ञापन अथवा दीवारों पर किए जाने वाले विज्ञापन- बाह्य विज्ञापन से आशय दीवारों, गली, सड़कों के किनारों, रेलवे स्टेशनों, बस स्टैंडों, चलते-फिरते, वाहनों आदि पर विज्ञापन करने से होता है।

(iv) डाक द्वारा विज्ञापन- डाक द्वारा प्रत्यक्ष विज्ञापन से आशय ऐसे विज्ञापन से है जिसके द्वारा विज्ञापनदाता कुछ उपयुक्त लोगों को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए उनके पास स्थायी रूप से छपे हुए अथवा लिखित संदेश भेजता है।

(v) क्रय बिन्दु विज्ञापन- क्रय बिन्दु विज्ञापन से आशय ऐसे विज्ञापन से है जो व्यापार गृह के क्रय-विक्रय स्थान पर ही ग्राहक को आकर्षित करने एवं उसे क्रय करने हेतु प्ररित करने के उद्देश्य से किया जाता है।

(vi) मनोरंजन एवं अन्य विज्ञापन- इसके अन्तर्गत रेडियो, सिनेमा स्लाइड, मेले एवं प्रदर्शनियों, ड्रामा एवं संगीत कार्यक्रम, लाउडस्पीकर, प्रदर्शन, उपहार या भेंट, दूरदर्शन आदि को शामिल किया जाता है।

प्रश्न 8.
उद्यमी के प्रति समाज के उत्तरदायित्वों का वर्णन करें।
उत्तर:
उद्यमी के प्रति समाज के निम्नलिखित उत्तरदायित्व हैं-

  • व्यवसाय के कर्मचारी को उस विचार से कार्य करना चाहिए कि व्यवसाय का हित सुरक्षित रहे। हमेशा स्वयं के लाभ से परे संस्था का लाभ भी देखना चाहिए। आवश्यक दृढ़ता, घेराबंदी, काम रोको आदि से परहेज करना चाहिए।
  • उपभोक्ता बाजार का राजा होता है जिसे प्रति साहसी का असीम दायित्व बनता है। किंतु उपभोक्ता रूपी राजा को भी साहसी की मान मर्यादा, मजबूरियाँ आदि समझते हुए टकराव के बदले समझौते का दृष्टिकोण अपनाना चाहिए।
  • आपूर्तिकर्ता का यह दायित्व होता है कि साहसी द्वारा क्रय किये गये कच्चे माल/समान/उपकरण आदि की आपूर्ति सही किस्म, सही वजन, सही दाम और सही समय पर करता रहे। खराब माल की वापसी के लिए तत्पर रहे।
  • वित्तीय संस्थाओं या अन्य श्रमदाताओं का भी यह दायित्व है कि साहसी को कम-से-कम ब्याज दर पर अधिक-से-अधिक ऋण सुविधा प्रदान करके उसके विकास में योगदान दें।
  • सरकार को यह देखना चाहिए कि साहसी के विकास में उसकी कोई नीति रोड़ा न बने क्योंकि साहसी ही विकास का दूत होता है। लाइसेंस लेने, पंजीकरण कराने का जमा करने आदि की प्रक्रिया सरल होनी चाहिए।
  • उपक्रम के स्थानीय लोगों को भी साहसी के साथ सहयोगात्मक दृष्टिकोण रखना चाहिए। उन्हें यह समझना चाहिए कि उपक्रम के लाभ के साथ उनका भी हित जुड़ा हुआ है।

इस प्रकार समाज की साहसी के प्रति उत्तरदायी होता है। यदि साहसी अपने उद्देश्य में पिछड़ता है तो उसकी स्वयं की कमी के अलावा समाज भी उसके लिए दोषी है।

प्रश्न 9.
किसी वस्तु या, सेवा का चुनाव करते समय साहसी को किन-किन बातों का ध्यान रखना चाहिए?
उत्तर:
किसी वस्तु या सेवा का चुनाव करते समय साहसी को निम्न बातों का ध्यान रखना चाहिए-
(i) बाजार का निर्धारण- उत्पाद का चुनाव करने से पूर्व बाजार का निर्धारण कर लेना चाहिए। उक्त उत्पाद का बाजार स्थानीय होगा या राष्ट्रीय या अन्तर्राष्ट्रीय होगा। साहसी को नये उत्पाद लाते समय बाजार सर्वेक्षण कराकर इस बात की तसल्ली चाहिए कि उस उत्पाद की माँग बाजार में विद्यमान है। बाजार सर्वेक्षण के अन्तर्गत माँग, पूर्ति, वस्तु की लागत एवं मूल्य, प्रतियोगिता, नये परिर्वतन की संभावना विज्ञापन एवं प्रचार पर प्रभाव आदि बातों का अध्ययन किया जाता है।

(ii) व्यावहारिकता- साहसी को उत्पाद की वास्तविक जीवन में उपयोगिता पर विचार करना चाहिए। यदि वह उत्पाद पहले से ही बाजार में विद्यमान है और साहसी उसका नया परिवर्तित रूप लाने के बारे में सोच रहा है तो उसे देखना चाहिए कि उस रूप की व्यावहारिकता वर्तमान समय में कितनी होगी।

(iii) उत्पादन लागत- किसी वस्तु के उत्पादन करने से पूर्व साहसी को उत्पाद की प्रति इकाई लागत का आकलन करना चाहिए ताकि उपभोक्ता की जेब के अनुकूल हो। अधिक ऊँची कीमत होने की स्थिति में उत्पाद की माँग सीमित होगी।

(iv) प्रतियोगिता- वर्तमान युग प्रतियोगिता का युग है। ऐसी स्थिति में यदि उसे इन प्रतियोगियों से लोहा लेते हुए आगे बढ़ना है तो ऐसे उत्पाद का चुनाव करना होगा जो बाकी प्रतियोगियों की तुलना में बेहतर किस्म और कम दाम का हो।

(v) कच्चे माल की पर्याप्तता एवं सतत् उपलब्धता- उत्पाद का चुनाव करते समय साहसी को यह देखना चाहिए कि उसके उत्पाद के लिए पर्याप्त मात्रा में कच्चा माल निर्बाध रूप से मिलता रहेगा या नहीं।

(vi) तकनीकी पहलू- कच्चे माल के प्रति आश्वस्त हो जाने के बाद साहसी को यह देखना चाहिए कि उसके उत्पाद के लिए किसी मशीन, यंत्र, उपकरण एवं तकनीकी आदि की आवश्यकता होगी। यह कितने में और कहाँ से उपलब्ध हो सकेगा। उसे चलाने के लिए किस स्तर के प्रशिक्षित कर्मचारी की आवश्यकता होगी। उन कर्मचारियों की उपलब्धता आसानी से हो सकेगा अथवा नहीं। अत: उत्पाद के चुनाव में तकनीकी पहलू को भी ध्यान में रखना चाहिए।

(vii) लाभ की संभावना- साहसी को अपने उत्पाद की वार्षिक बिक्री और उस पर होने वाले लाभ का अनुभव पहले कर लेने के बाद ही उत्पाद का चुनाव करना चाहिए।

प्रश्न 10.
व्यावसायिक अवसर की पहचान करने वाले तत्वों का वर्णन करें।
उत्तर:
व्यावसायिक अवसर की पहचान करने वाले तत्व :
(i) आंतरिक संसाधनों की उपलब्धता आंतरिक संसाधन की उपलब्धि एक महत्त्वपूर्ण छूट है जो व्यावसायिक अवसर की पहचान में भूमिका निभाता है। प्रायः व्यावसायिक अवसर के तीन चरण होते हैं प्रवर्तन, विस्तार एवं विविधीकरण। पर्याप्त आंतरिक संसाधन होने की दशा में साहसी विस्तार एवं विविधीकरण हेतु उपयुक्त व्यावसायिक अवसर का लाभ उठाने का भरसक प्रयास कर सकता है।

(ii) आंतरिक माँग की मात्रा- उच्च राष्ट्रीय आय स्तर की दशा में बाजार में उत्पाद की उच्च माँग का अनुमान लगाया जा सकता है। उत्पाद या सेवा की माँग, राष्ट्रीय आय, प्रति व्यक्ति आय, ऋण जनसंख्या द्वारा निर्धारित होती है।

(iii) औद्योगिक कच्चे माल की उपलब्धि- कच्चे माल की उपलब्धि भी व्यावसायिक अवसरों को काफी सीमा तक निर्धारित करती है, क्योंकि उसके द्वारा भावी उत्पादन का स्तर निर्धारित होता है।

(iv) बाह्य सहायता का स्वरूप- बाह्य सहायता एवं समर्थन अवसरों की पहचान में प्रत्यक्षतः सहायता करता है।

(v) निर्यात की संभावना- व्यावसायिक अवसरों की पहचान में निर्यात की संभावना भी महत्वपूर्ण तत्व है।

(vi) जोखिम की मात्रा- एक व्यवसाय विशेष में अनेक प्रकार की जोखिम सम्मिलित रहती है जिसमें आर्थिक जोखिम, सामाजिक जोखिम, वातावरणीय जोखिम, तकनीकी जोखिम आदि प्रमुख हैं। वातावरण में परिवर्तन के साथ जोखिम की मात्रा एवं प्रकृति भी बदलती है।

(vii) विद्यमान इकाइयों के निष्पादन का विश्लेषण- विद्यमान इकाइयों के निष्पादन का उद्देश्यपूर्ण विश्लेषण करके भी उद्यमी व्यावसायिक अवसरों की पहचान कर सकता है।

निष्कर्षतः व्यावसायिक अवसर विश्लेषण के द्वारा उद्यमी यह निश्चित करता है कि किस साहसिक कार्य को किया जाना लाभप्रद हो सकता है या किस उद्योग एवं क्षेत्र विशेष संसाधन, तकनीक आदि में साहसिक कार्य के अवसर विद्यमान है जिनके प्रवर्तन द्वारा उद्यमी औद्योगिक इकाई की स्थापना कर सकता है तथा जोखिम एवं भावी लाभ संभावनाओं के मद्देनजर उपक्रम का कुशल प्रबंध एवं संचालन कर सकता है।

प्रश्न 11.
लेखांकन अनुपात के विभिन्न प्रकार को बताएँ।
उत्तर:
लेखांकन अनुपात व्यवसाय के वित्तीय विवरणों से प्राप्त होते हैं। वित्तीय विवरणों में चिट्ठा तथा लाभ-हानि खाता शामिल है। वित्तीय विवरणों के विभिन्न मदों के बीच अंतर संबंधों की अभिव्यक्ति के लिए लेखांकन अनुपातों का प्रयोग किया जाता है। लेखांकन अनुपात निष्पादन , परिणाम व्यक्त करना है।

लेखांकन अनुपात चार प्रकार के होते हैं-

  • तरलता अनुपात- तरलता अनुपातों से व्यवसाय की अल्पकालीन ऋणशोधन क्षमता का पता चलता है। यह व्यवसाय की चालू सम्पत्तियों तथा चालू दायित्वों और नकद की स्थिति का बोध कराता है।
  • ऋण शोधन क्षमता अनुपात- ऋण शोधन क्षमता अनुपात की गणना दीर्घकालीन दायित्वों के शोधन की दृष्टि से की जाती है।
  • निष्पादन या क्रियाशीलता अनुपात- निष्पादन अनुपात व्यवसाय की परिचालन कुशलता को व्यक्त करता है। उन अनुपातों की गणना शुद्ध विक्रय के आधार पर की जाती है।
  • लाभप्रदता अनुपात- लाभदायकता अनुपात संस्था की लाभ अर्जन क्षमता की माप है। यह वित्तीय कुशलता को दर्शाता है। सकल लाभ अनुपात, शुद्ध लाभ अनुपात, निवेश पर आय प्रति अंश आय उनके उदाहरण हैं और ये प्रतिशत में व्यक्त किये जाते हैं।

प्रश्न 12.
एक नये उद्योग को लगाने (शुरू) के क्रम को समझाइए।
उत्तर:
उद्यमी के सामने कई विकल्प होते हैं जो लाभ प्रदान करते हैं। इन सभी विकल्पों का परीक्षण करना होता है ताकि एक ऐसे प्रोजेक्ट का चुनाव किया जा सके जिसमें न्यूनतम लागत, न्यूनतम जोखिम, अधिकतम लाभ और संवृद्धि के अधिकतम अवसर निहित हों।

एक उद्योग स्थापित करने के लिए कई क्रियाओं का समन्वय करना पड़ता है जिसे हम विभिन्न चरणों का नाम दे सकते हैं-

  • उद्यमितीय कार्य का चयन
  • पूँजी प्राप्त करना और उसका उचित निवेश
  • वस्तु एवं सेवाओं का उत्पादन एवं वितरण
  • लाभ प्राप्त करना व लाभ अधिन करना
  • बचत संसाधनों का विस्तार कार्यों में उपयोग करना आदि।

प्रश्न 13.
वित्तीय नियोजन क्या है ? किसी उपक्रम के लिए इसका क्या महत्व है ?
अथवा, कार्यशील पूँजी का क्या दृष्टिकोण होता है ? कार्यशील पूँजी के स्रोत को बताइए।
उत्तर:
व्यवसाय को चलाने के लिए धन की आवश्यकता पड़ती है। इसके लिए वित्तीय नियोजन की प्रभावशाली प्रणाली की आवश्यकता होती है।

वित्तीय नियोजन का अर्थ है-

  • संसाधनों को पर्याप्त गतिशील बनाना
  • उनका उचित उपयोग करना

व्यवसाय के लिए निम्नलिखित आवश्यक है-
(अ) समय पर आवश्यक धन राशि प्राप्त करना।
(ब) उपलब्ध संसाधनों का इस प्रकार प्रयोग करना जो व्यावसायिक इकाई को अधिकतम आय दे सके।

वित्तीय नियोजन का महत्व-

  • पर्याप्त नकद कोषों का प्रावधान करना
  • उचित वित्तीय अनुशासन
  • कोषों का विनियोग
  • बचतों का बँटवारा
  • साधनों का अधिकतम उपयोग
  • पूँजी का अधिकतम प्रत्याय
  • वित्तीय नियंत्रण।

प्रश्न 14.
व्यवसाय में विज्ञापन के महत्व को बताएँ।
उत्तर:
आधुनिक युग विज्ञापन युग है। इसकी उपयोगिता किसी एक वर्ग विशेष के लिए नहीं बल्कि पूरे समाज व देश के लिए है।

इसके लाभ को निम्न रूप में देख सकते हैं-

  • नवनिर्मित वस्तुओं की माँग उत्पन्न करना एवं उसमें वृद्धि करना
  • अस्वस्थ प्रतियोगिता का विनाश
  • उत्पादन में वृद्धि व गति
  • उत्पादन लागत व वितरण व्यय में कमी
  • लाभों में वृद्धि
  • विशिष्टीकरण के लाभ
  • शिक्षाप्रद एवं ज्ञानवर्द्धक
  • उपभोक्ताओं के समय में बचत
  • मध्यस्थों की संख्या में कमी
  • मूल्यों की जानकारी
  • उत्पाद की किस्म में सुधार
  • क्रय में सुविधा
  • विक्रेता को प्रोत्साहन एवं समर्थन
  • अनेक व्यक्तियों के लिए आजीविका का स्रोत
  • रहन-सहन का स्तर ऊँचा उठना
  • समाज का दर्पण
  • देश का आर्थिक विकास।

Bihar Board 12th Entrepreneurship Objective Important Questions Part 2 in Hindi

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Bihar Board 12th Entrepreneurship Objective Important Questions Part 2 in Hindi

प्रश्न 1.
निम्न में से कौन-सी उत्पाद या सेवा का चुनाव करते समय ध्यान देने योग्य बात है ?
(a) प्रतियोगिता
(b) उत्पादन लागत
(c) लाभ की संभावना
(d) इनमें से सभी
उत्तर:
(d) इनमें से सभी

प्रश्न 2.
मूल्य नीति होती है
(a) उपभोक्ता के पक्ष में
(b) सरकार के पक्ष में
(c) उत्पादक-निर्माता के पक्ष में
(d) सभी के पक्ष में
उत्तर:
(d) सभी के पक्ष में

प्रश्न 3.
नग्न ऋणपत्र होते हैं
(a) पूर्णतः सुरक्षित
(b) आंशिक सुरक्षित
(c) असुरक्षित
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(c) असुरक्षित

प्रश्न 4.
माँग पूर्वानुमान में शामिल है
(a) अल्पकालीन पूर्वानुमान
(b) दीर्घकालीन पूर्वानुमान
(c) उपभोक्ता पूर्वानुमान
(d) विपणन पूर्वानुमान
उत्तर:
(a) अल्पकालीन पूर्वानुमान

प्रश्न 5.
निम्न में कौन-सा अवसर का बोध तत्व है ?
(a) नवप्रवर्तनीय गुण
(b) समक्ष की शक्ति
(c) परिवर्तन पर नजर
(d) कोई नहीं
उत्तर:
(a) नवप्रवर्तनीय गुण

प्रश्न 6.
तकनीकी-आर्थिक विश्लेषण पहचान करता है
(a) माँग सम्भावना
(b) आपूर्ति सम्भावना
(c) आयात सम्भावना
(d) निर्यात सम्भावना
उत्तर:
(a) माँग सम्भावना

प्रश्न 7.
वस्तु व सेवाओं के विपणन पर किया गया व्यय है
(a) मुद्रा का अपव्यय
(b) अनउत्पादक
(c) उपभोक्ताओं पर अतिरिक्त भार
(d) निवेश
उत्तर:
(b) अनउत्पादक

प्रश्न 8.
लेखांकन अनुपात नहीं बतलाता है
(a) शोधन क्षमता
(b) लाभदायकता
(c) विक्रय मूल्य
(d) परिचालन क्रिया
उत्तर:
(c) विक्रय मूल्य

प्रश्न 9.
संसाधनों को प्रभावपूर्ण उपयोग चाहता है
(a) आवश्यकताओं की प्राथमिकता
(b) निवेश की उदारनीति
(c) सामग्री का बड़ा स्टॉक
(d) श्रमिकों की अच्छी संख्या
उत्तर:
(a) आवश्यकताओं की प्राथमिकता

प्रश्न 10.
विपणन व्यय का अतिरिक्त भार पड़ेगा
(a) उपभोक्ताओं को
(b) उद्योग को
(c) व्यावसायिक बिचौलियों को
(d) सरकार को
उत्तर:
(a) उपभोक्ताओं को

प्रश्न 11.
पूर्वाधिकार अंशों पर लाभांश की दर है
(a) परिवर्तनशील
(b) स्थिर
(c) अर्द्ध परिवर्तनीय
(d) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(b) स्थिर

प्रश्न 12.
एक परियोजना है
(a) गतिविधियों का समूह
(b) एकल गतिविधि
(c) असंख्य गतिविधियों का समूह
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(a) गतिविधियों का समूह

प्रश्न 13.
लेखांकन अनुपात पथ प्रदर्शन करता है
(a) निवेशकों को
(b) लेनदारों को
(c) प्रबंधक को
(d) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(d) उपरोक्त सभी

प्रश्न 14.
एक नई फैक्टरी को स्थापित करने के लिए हमें आवश्यकता होती है
(a) वृहत पूँजी
(b) भूमि का बड़ा खण्ड
(c) पर्याप्त मानव शक्ति
(d) आयातीत मशीन
उत्तर:
(c) पर्याप्त मानव शक्ति

प्रश्न 15.
एक ब्रांड एम्बेस्डर है
(a) विक्रेता
(b) उत्पादक
(c) प्रसिद्ध व्यक्ति
(d) साइन बोर्ड
उत्तर:
(c) प्रसिद्ध व्यक्ति

प्रश्न 16.
ऋण पत्र है
(a) असुरक्षित ऋण
(b) पूर्णतः सुरक्षित ऋण
(c) अंशतः सुरक्षित ऋण
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(a) असुरक्षित ऋण

प्रश्न 17.
परियोजना मूल्यांकन के पहलू है
(a) तकनीकी मूल्यांकन
(b) वित्तीय मूल्यांकन
(c) प्रबंधकीय मूल्यांकन
(d) इनमें से सभी
उत्तर:
(d) इनमें से सभी

प्रश्न 18.
परियोजना निम्नलिखित से संबंधित नहीं होती है
(a) नव प्रवर्तन
(b) कल्पना शक्ति
(c) जोखिम
(d) सृजनशीलता
उत्तर:
(d) सृजनशीलता

प्रश्न 19.
ऋणपत्रों पर होता है
(a) स्थिर ब्याज की दर
(b) स्थिर लाभांश की दर
(c) परिवर्तनशील ब्याज की दर
(d) परिवर्तनशील लाभांश की दर
उत्तर:
(a) स्थिर ब्याज की दर

प्रश्न 20.
कारखाना लागत का आशय है
(a) कारखाना उपरिव्यय
(b) अप्रत्यक्ष व्यय
(c) मशीन का रख-रखाव
(d) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(d) उपरोक्त सभी

प्रश्न 21.
परियोजना है
(a) एकल कार्य
(b) कार्यों का समूह
(c) औद्योगीकरण
(d) कार्यों का जमाव
उत्तर:
(d) कार्यों का जमाव

प्रश्न 22.
उद्यमिता में नव-प्रवर्तन की क्रिया का आशय है
(a) एक नये उत्पाद का आरंभ
(b) उत्पादन की एक नई विधि का प्रयोग
(c) एक नये बाजार को खोलना
(d) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(d) उपरोक्त सभी

प्रश्न 23.
समता अंश
(a) एक निश्चित दर से लाभांश चुकाता है
(b) अनिश्चित दर से लाभांश चुकाता है
(c) कोई लाभांश नहीं देता
(d) सिर्फ ब्याज देता है
उत्तर:
(b) अनिश्चित दर से लाभांश चुकाता है

प्रश्न 24.
एक उत्पाद का विक्रय मूल्य है
(a) इसका लागत मूल्य
(b) इसका बाजार मूल्य
(c) इसके लाभ की मार्जिन
(d) इसकी लागत + लाभ
उत्तर:
(d) इसकी लागत + लाभ

प्रश्न 25.
एक कम्पनी के वित्त का प्रमुख स्रोत है
(a) अंश
(b) ऋण पत्र
(c) बैंक ऋण
(d) उधार क्रय
उत्तर:
(a) अंश

प्रश्न 26.
पूर्वाधिकार अंश हो सकता है
(a) भागयुक्त
(b) संचयी
(c) शोधनीय
(d) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(d) उपरोक्त सभी

प्रश्न 27.
शुद्ध वर्तमान मूल्य विधि संबंधित है
(a) मुद्रा का समय मूल्य से
(b) मुद्रा का बढ़े हुए मूल्य से
(c) मुद्रा का वर्तमान मूल्य से
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(a) मुद्रा का समय मूल्य से

प्रश्न 28.
उत्पाद विकास प्रक्रिया में शामिल होते हैं
(a) एक अवस्था
(b) दो अवस्था
(c) तीन अवस्था
(d) चार अवस्था
उत्तर:
(d) चार अवस्था

प्रश्न 29.
एक अच्छी योजना होती है
(a) खर्चीली
(b) लोचपूर्ण
(c) संकीर्ण
(d) समय लेनेवाली
उत्तर:
(b) लोचपूर्ण

प्रश्न 30.
भारत निवेश कोष द्वारा स्थापित किया गया
(a) आई० एफ० सी० आई०
(b) स्टेट बैंक
(c) ग्रिण्डले बैंक
(d) कैन बैंक
उत्तर:
(b) स्टेट बैंक

प्रश्न 31.
इनमें से कौन भौतिक संसाधन का एक प्रकार है?
(a) विपणन
(b) वित्त
(c) संसाधन
(d) कोई नहीं
उत्तर:
(c) संसाधन

प्रश्न 32.
उपक्रम की स्थापना में शामिल है
(a) कच्चा माल
(b) प्रतिवेदन
(c) लाभ-हानि
(d) प्रौद्योगिकी
उत्तर:
(a) कच्चा माल

प्रश्न 33.
दीर्घकालीन ऋण पर होता है
(a) परिवर्तित ब्याज दर
(b) शून्य समान दर
(c) स्थिर ब्याज दर
(d) ब्याज 1%
उत्तर:
(c) स्थिर ब्याज दर

प्रश्न 34.
उदभवन अवस्था सम्बन्धित होती है
(a) नमूना विकास
(b) विचार विकास
(c) आदि प्रारूप विकास
(d) उपरोक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(c) आदि प्रारूप विकास

प्रश्न 35.
उत्पादन प्रक्रिया नहीं होनी चाहिए
(a) लम्बी
(b) समय नष्ट करने वाली
(c) जटिल
(d) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(d) उपरोक्त सभी

प्रश्न 36.
उत्पाद चुनाव प्रभावित होता है
(a) तकनीकी ज्ञान
(b) बाजार की उपलब्धता
(c) प्रतिस्पर्धा की स्थिति
(d) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(d) उपरोक्त सभी

प्रश्न 37.
परियोजना निर्माण का उद्देश्य, निर्धारण करना होता है
(a) प्रस्तावित परियोजना का कुल प्रभाव
(b) प्रस्तावित परियोजना का अधिकांश प्रभाव
(c) प्रस्तावित परियोजना का अल्पांश प्रभाव
(d) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(a) प्रस्तावित परियोजना का कुल प्रभाव

प्रश्न 38.
तकनीकी-आर्थिक विश्लेषण में पहचान किया जाता है
(a) पूर्ति संभावना
(b) माँग संभावना
(c) निर्यात संभावना
(d) आयात संभावना
उत्तर:
(b) माँग संभावना

प्रश्न 39.
निवेश विश्लेषण संबंधित है
(a) निधिकरण आवश्यकताएँ
(b) सामग्री आवश्यकताएँ
(c) श्रम आवश्यकताएँ
(d) संसाधन आवश्यकताएँ
उत्तर:
(d) संसाधन आवश्यकताएँ

प्रश्न 40.
DPR है
(a) कार्य योजना
(b) कार्यवाही योजना
(c) क्रियान्वयन योजना
(d) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(b) कार्यवाही योजना

प्रश्न 41.
निम्नलिखित महत्त्वपूर्ण विषय नहीं हैं
(a) तकनीक
(b) श्रमिक
(c) उत्पाद
(d) उपर्युक्त में कोई नहीं
उत्तर:
(a) तकनीक

प्रश्न 42.
पीछे हटने की क्षमता है
(a) प्रमुख व्यूहरचना की क्षमता
(b) वैकल्पिक व्यूहरचना की क्षमता
(c) सहायक व्यूहरचना की क्षमता
(d) उपर्युक्त में कोई नहीं
उत्तर:
(b) वैकल्पिक व्यूहरचना की क्षमता

प्रश्न 43.
आधारभूत सक्षमता सम्बन्धित है
(a) बाह्य मूल्य वर्धन
(b) तात्विक मूल्य वर्धन
(c) आंतरिक मूल्य वर्धन
(d) उपर्युक्त में कोई नहीं
उत्तर:
(b) तात्विक मूल्य वर्धन

प्रश्न 44.
समूह व्यवस्था (Cluster system) है
(a) उपक्रमों का खण्डीय केन्द्रीकरण
(b) उपक्रमों का भौगोलिक केन्द्रीकरण
(c) उपक्रमों का खण्डीय एवं भौगोलिक केन्द्रीकरण
(d) उपरोक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(c) उपक्रमों का खण्डीय एवं भौगोलिक केन्द्रीकरण

प्रश्न 45.
औद्योगिक क्षेत्र (Industrial Estate) है
(a) व्यावसायिक स्थान
(b) औद्योगिक स्थान
(c) श्रम आवासीय नगरी (Locality)
(d) उपरोक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(b) औद्योगिक स्थान

प्रश्न 46.
व्यवसाय की सामान्य योजना का निर्माण आप कैसे करेंगे?
(a) उत्पादन नियोजन करके
(b) लागत नियोजन करके
(c) वित्तीय नियोजन करके
(d) उपरोक्त सभी द्वारा
उत्तर:
(d) उपरोक्त सभी द्वारा

प्रश्न 47.
निम्न में से कौन-सी व्यवसाय से जुड़ी एक समस्या है ?
(a) लाभ
(b) मुद्रा
(c) बिक्री
(d) जोखिम प्रबंध
उत्तर:
(d) जोखिम प्रबंध

प्रश्न 48.
निम्न में से किस पर व्यवसाय की सामान्य योजना का निर्माण निर्भर करता है ?
(a) प्रोजेक्ट रिपोर्ट
(b) संयन्त्र एवं उत्पाद नियोजन
(c) विपणन योजना
(d) वित्तीय नियोजन
उत्तर:
(c) विपणन योजना

Bihar Board 12th Entrepreneurship Important Questions Short Answer Type Part 4 in Hindi

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Bihar Board 12th Entrepreneurship Important Questions Short Answer Type Part 4 in Hindi

प्रश्न 1.
बिचौलिए अथवा मध्यस्थ का क्या अर्थ है ?
उत्तर:
एक वितरण प्रणाली में मौलिक उत्पादक, अन्तिम क्रेता एवं कोई भी मध्यस्थ, जैसे थोक एवं फुटकर व्यापारी शामिल होते हैं। मध्यस्थ शब्द का अभिप्राय उन संस्थाओं एवं व्यक्तियों से सम्बद्ध है जो प्रणाली के मध्य स्थित, जोकि वस्तु के अधिकार को हस्तांकन/विक्रय बिक्री एजेन्ट अथवा कमीशन एजेन्ट के रूप में हस्तांकन अथवा विक्रय कर सके। माल के स्वामित्व अधिकार को लिए हुए मध्यस्थों को व्यापारी के रूप में विभाजित कर सकते हैं यथा मध्यस्थ एवं एजेन्ट मध्यस्थ। मध्यस्थ पहले स्वामित्व व अधिकार प्राप्त कर उसे आगे अपने तरीके से बिक्री करते हैं। एजेन्ट मध्यस्थ को ऐसा अधिकार प्राप्त नहीं होता।

प्रश्न 2.
अंश क्या है ?
उत्तर:
कम्पनी की पूँजी सम- मूल्य अनेक भागों में बाँटी जाती है, जिन्हें अंश कहते हैं। जे० फारवैल (J. Farwel) के अनुसार, “एक अंश, कम्पनी में अंशधारी की रुचि है जोकि एक मुद्रा राशि में मापा जाता है, प्रथम कम्पनी के दायित्व के रूप में, द्वितीय, उसकी रुचि का सूचक तथा .अंशधारियों के परस्पर सम्बन्ध की शर्तों का सम्मेलन है।” कम्पनी अधिनियम 1956 की धारा 2 (46) अंश को इस प्रकार परिभाषित करती है, “कम्पनी की अंश पूँजी का एक भाग एवं जिसमें स्टॉक भी सम्मिलित है जब तक कि स्टॉक एवं अंशों का अन्तर स्पष्ट अथवा समाविष्ट रखा जाए।”

प्रश्न 3.
ऋण पत्र क्या है ?
उत्तर:
एक कम्पनी दीर्घवित्त, सार्वजनिक उधार लेकर एकत्रित कर सकती है। ऐसे ऋण, ऋण पत्रों के निर्गमन द्वारा प्राप्त किए जा सकते हैं। ऋण पत्र, किसी ऋण की स्वीकृति है। थॉमस इवलिन (Thomas Evelyn) के अनुसार, “ऋण पत्र कम्पनी की सार्वमुद्रा के अंतर्गत एक प्रलेख है जो कम्पनी को मूलधन प्रदान करता है तथा उस पर एक निश्चित दर से ब्याज का भुगतान करने का अनुबंध है, जिसे प्रायः कम्पनी का स्थायी या परिवर्तनीय संपत्तियों पर प्रभार (charge) देकर प्राप्त किया जाता है तथा जो कम्पनी को दिए गए ऋण की स्वीकृति है।”ऋण पत्र का धारक कम्पनी का ऋणदाता होता है। ऋण पत्रों पर निश्चित दर पर ब्याज देने की व्यवस्था होती है। ऐसा ब्याज कम्पनी के लाभों पर एक भार होता है। जब ऋण पत्र सुरक्षित होता है, तब अन्य ऋणदाताओं की तुलना में उसे भुगतान प्राप्ति की प्राथमिकता भी प्राप्त है।”

प्रश्न 4.
उपभोक्ता सुरक्षा अधिनियम का विवेचन कीजिए।
उत्तर:
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम उपभोक्ता के हितों की रक्षा करने हेतु अर्द्ध-वैधानिक अधिकारियों जैसे जिला परिषद् (District Forum) राज्य एवं राष्ट्रीय कमीशन के गठन का प्रावधान करता है। इसका उद्देश्य है माल के विक्रेता से उपभोक्ता के हितों की रक्षा करना। उपभोक्ता को सुरक्षा नशीले व खतरनाक वस्तुओं की आपूर्ति से हानि की सुरक्षा का अधिकार, माल की कीमत, किस्म की सूचना प्राप्त करने का अधिकार, प्रतिस्पर्धी कीमत पर विविध वस्तु पर पहुँच का अधिकार, अनुचित व्यापार व्यवहारों के विरुद्ध निवारण का अधिकार एवं उपभोक्ता शिक्षण का अधिकारों के प्रावधान है।

प्रश्न 5.
व्यावासायिक संवृद्धि की प्रकृति एवं आशय बतावें।
उत्तर:
संवृद्धि उपक्रम के बाजार में बने रहने तथा सफलता का प्रतीक है। यह उर्द्धगामी क्रमिक विकास है जो क्रियाओं के प्रारंभिक स्तर से प्रारंभ होता है।

व्यवसाय की संवृद्धि का आशय है-

  • फर्म की बेहतर ख्याति
  • बाजार के अंश में सुधार
  • पर्याप्त लाभदायकता
  • उपभोक्ता का विश्वास
  • व्यवसाय का विस्तार तथा उत्पाद विविधीकरण
  • प्रतिस्पर्धा का सामना करने की क्षमता
  • इकाई का दीर्घकालीन जीवन

संवृद्धि प्रदर्शित (इंगित) होता है-

  • परिचालन के स्तर में सुधार द्वारा
  • संसाधनों के बेहतर उपयोग द्वारा
  • उत्पादन की बढ़ती मात्र द्वारा
  • नई वस्तुओं व सेवाओं में वृद्धि से
  • नये बाजारों में प्रवेश से
  • लाभदायकता तथा उत्पादकता से
  • कार्य निष्पादन में प्रबन्धकीय कुशलता से।

प्रश्न 6.
व्यावसायिक प्रबंध में समविच्छेद-बिन्दु (B. E. P.) का क्या महत्व है?
उत्तर:
सम-विच्छेद बिन्दु उत्पादन एवं विक्रय का वह स्तर या बिन्दु है जहाँ पर व्यवसाय को न लाभ होता है न हानि होती है। अर्थात इस बिन्दु पर शून्य लाभ व शून्य हानि की स्थिति रहती है। यह वह बिन्दु है जहाँ लागत एवं आगम बराबर होते हैं।
(Cost = Revenue )

सम-विच्छेद बिन्दु के निम्नलिखित लाभ हैं-

  1. यह उत्पादन की न्यूनतम मात्रा निर्धारित करने में सहायता करता है।
  2. यह बिक्री की न्यूनतम मात्रा के निर्धारण में सहायता करता है।
  3. यह उत्पादन में कमी या वृद्धि का व्यवस्था के लाभ पर पड़ने वाले प्रभाव का अनुमान लगाने में पथ-प्रदर्शक का कार्य करता है।
  4. यह विश्लेषण यह जानने में उपयोगी है कि किस उत्पादन से आय का अधिक अर्जन हो रहा है।
  5. वांछित लाभ की गणना में यह सहायक है।
  6. यह निर्णय प्रक्रिया को आसान बनाता है और निर्णय में शीघ्रता लाता है।
  7. यह वस्तु व सेवाओं के संशोधित विक्रय मूल्य के निर्धारण में सहायता करता है।

प्रश्न 7.
एक व्यवसाय में कार्यशील पूँजी की मुख्य आवश्यकताएँ क्या हैं ?
उत्तर:
पूँजी व्यवसाय के परिचालन का आधार है।
पूँजी को मुख्यतः दो वर्गों में विभाजित किया जाता है-

  • स्थायी पूँजी
  • कार्यशील पूँजी

कार्यशील पूँजी की आवश्यकता व्यवसाय की निम्न आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए करती है-

  • कच्चे माल तथा उपभोग वस्तुओं के क्रय के लिए।
  • अर्द्ध निर्माणी चरण के कार्य को पूरा करने के लिए।
  • निर्मित वस्तुओं को पूरा करने के लिए. ताकि वे विक्रय के लिए उपलब्धा हो सके।
  • दिन-प्रतिदिन के कार्यों की लागत या खर्चे को पूरा करने के लिए जैसे- मजदूरी, बिजली खर्च, बिजली बिल, टेलीफोन , डाक, किराया तथा अन्य आकस्मिकताओं को पूरा करने के लिए।
  • व्यवसाय की शोधन क्षमता को बनाये रखने के लिए।

प्रश्न 8.
बाजार वातावरण का अर्थ लिखें।
उत्तर:
बाजार वातावरण का अर्थ (Meaning of Market Environment)- वस्तुतः विपणन के कार्य एक निश्चित वातावरण में सम्पादित होते हैं। विपणन कार्य का निष्पादन करते समय विपणन वातावरण की सही-सही जानकारी आवश्यक होती है। विपणन मिश्रण भी एक निश्चित वातावरण में ही संभव होता है। विपणन वातावरण के सभी घटकों द्वारा भी विपणन प्रबन्ध को नियंत्रित करना संभव नहीं होता है।

विपणन वातावरण सूक्ष्म अध्ययन करने के बाद ही विपणन की व्यूह-रचना तैयार की जानी चाहिए। विपणन क्रिया को प्रभावित करने वाले मुख्यतः दो घटक होते हैं-नियन्त्रणीय घटक एवं अनियन्त्रणीय घटक, जो व्यवसाय को प्रभावित करते हैं। विपणन विभाग को चाहिए कि इन घटकों की सीमा में रहकर ही कार्य-निष्पादन करे।

प्रश्न 9.
बाजार मूल्यांकन क्या है ? बाजार मूल्यांकन करते समय एक उद्यमी को किन बातों पर ध्यान देना चाहिए ?
उत्तर:
वस्तुत: बाजार में उन वस्तुओं को प्रस्तुत किया जाता है जिनकी माँग ग्राहक करते है। किन्तु यह निर्धारित करना कि ग्राहक क्या चाहते हैं, एक जटिल काम है। बाजार में विविध प्रकार के ग्राहक होते हैं। उनकी पृष्ठभूमि शिक्षा, आय, चाहत, पसन्द आदि के सम्बन्ध में अलग-अलग होती है। ये विजातीय ग्राहक उपक्रम के निकट एवं दूरस्थ में होते हैं जिसके परिणामस्वरूप उनकी माँगें भी भिन्न-भिन्न होती हैं। किसी भी उत्पादक के लिए असंभव नहीं तो कठिन अवश्य है कि इन विविध प्रकार के ग्राहकों के लिए विविध कोटि की वस्तुओं का उत्पादन करें। अतः एक उद्यमी को यह तय कर लेना चाहिए कि किस कोटि के ग्राहकों के लिए वह वस्तुओं का उत्पादन करना चाहता है। इस बात का निर्धारण कर लेने के बाद सम्बन्धित समूह के ग्राहकों की माँग का अनुमान लगाया जा सकता है। इस सम्बन्ध में माँग-पूर्वानुमान से उद्यमियों को काफी मदद मिलती है।

बाजार मूल्यांकन करते समय एक उद्यमी को निम्नलिखित बातों पर ध्यान देना चाहिए-
1. माँग (Demand)- उत्पाद की पहचान कर लेने के बाद माँग का अनुमान लगा लेना चाहिए । माँग का अनुमान लगाते समय बाजार के आकार तथा उस क्षेत्र को ध्यान में रखना चाहिए जहाँ वस्तुएँ अथवा सेवाएँ बेचनी हैं। उदाहरणतः वस्तुओं को स्थानीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में बेचना। इतना ही नहीं, यह भी ध्यान में रखना आवश्यक होगा कि लक्षित उपभोक्ता कौन है ? उनकी पसन्द कैसी है ? रुचि कैसी है ? आदि।

2. पूर्ति एवं प्रतिस्पर्धा की प्रकृति (Supply and Nature of Competition)- बाजार मूल्यांकन करते समय साहसी द्वारा वस्तुओं की बाजार में पूर्ति एवं प्रतिस्पर्धा सम्बन्धी बातों का अध्ययन कर लेना चाहिए। जब किसी उत्पाद की माँग किसी मौसम विशेष से होती है तो उसका उत्पादन भी अनियमित ही करना चाहिए। वस्तुओं की पूर्ति करने वालों के बीच में प्रतिस्पर्धा भी होती है, अतः एक उद्यमी को प्रतिस्पर्धियों की उत्पादन क्षमता, पूर्ति बढ़ाने की क्षमता, वित्तीय स्थिति का ज्ञान तथा उनकी ख्याति का सही-सही अध्ययन कर लेना चाहिए। .

3. उत्पाद की लागत एवं कीमत(Cost and Price of the Product)- उत्पाद की पहचान करते समय उसकी लागत पर विशेष ध्यान देना चाहिए क्योंकि किसी वस्तु की कीमत उसकी लागत पर ही निर्भर करती है। वस्तु की कीमत बाजार के ही अनुरूप निर्धारित की जानी चाहिए अन्यथा उद्यमी को किसी भी अन्य परिस्थिति में क्षति ही होगी।

4. परियोजना का नवीनीकरण तथा परिवर्तन(Project Innovation and Change)- बाजार आकलन के लिए योजना का नवीनीकरण एवं नवीन परिवर्तनों का अध्ययन आवश्यक होता है। इसके अतिरिक्त उन्हें तकनीकी लाभों को भली-भाँति समझ लेना चाहिए क्योंकि इनका प्रभाव वस्तु की गुणवत्ता, लागत तथा बिक्री मूल्य पर पड़ता है।

प्रश्न 10.
उद्यमिता क्या है ?
उत्तर:
उद्यमिता एक प्रक्रिया है-

  • निवेश एवं उत्पादन अवसर के पहचान करने की,
  • व्यावसायिक क्रियाकलापों के संगठन की,
  • संसाधनों जैसे श्रम, पूँजी, सामग्री तथा प्रबन्धन को गतिशील बनाने की,
  • सामाजिक निर्णय लेने की।

प्रश्न 11.
उपक्रम का प्रवर्तन अथवा विन्यास का वर्णन करें।
उत्तर:
एक उद्यमी वह है जो अपनी कल्पना को कार्यरूप में परिणत करे और वह कार्यरूप व्यावसायिक उपक्रम के प्रवर्तन से सम्बन्धित हो। एक उद्यमी व्यावसायिक अवसरों को ढूँढता है, इसके भविष्य का विश्लेषण करता है, व्यावसायिक विचार का सृजन करता है एवं संसाधनों जैसे-श्रम, मशीन, सामग्री, एवं प्रबन्धकीय कौशल आदि में गतिशीलता उत्पन्न कर नये उपक्रम की स्थापना करता है। अतः एक उद्यमी से प्रवर्तक के रूप में कार्य करने की आशा की जाती है। एक नये उपक्रम की स्थापना के सम्बन्ध में उसे साहसिक निर्णय लेने होते हैं। प्रवर्तक के प्रारम्भिक कार्य के अभाव में नये उपक्रमों के अस्तित्व की कल्पना नहीं की जा सकती।

जी० डब्ल्यू० गेस्टनबर्ग के अनुसार, “प्रवर्तन नये व्यवसाय के अवसरों की खोज के रूप में परिभाषित किया जा सकता है और उसके बाद कोष, सम्पत्ति एवं प्रबन्धकीय क्षमता को संगठित कर व्यवसाय में प्रयुक्त करना ताकि उनसे लाभार्जन हो सके।” इस प्रकार प्रवर्तक का आशय व्यवसाय अथवा उत्पाद के विचार का सृजन करना, व्यावसायिक अवसरों की खोज करना, जाँच-पड़ताल, एकत्रीकरण, वित्तीय व्यवस्था एवं उपक्रम को एक गतिमान संस्था के रूप में प्रस्तुत करना आदि से है।

प्रश्न 12.
परियोजना के चरणों का वर्णन करें।
उत्तर:
एक परियोजना विभिन्न चरणों से होकर गुजरती है। हालाँकि यह जरूरी नहीं है कि एकं परियोजना निम्नांकित चरणों से होकर गुजरे। परियोजना के प्रमुख चरणों को नीचे बताया गया है-

1. संकल्पना चरण (Conception Phase)- परियोजना से संबंधित विचारों का सृजन इस चरण में किया जाता है। परियोजनाओं की पहचान के पश्चात् उन्हें प्राथमिकता के आधार पर व्यवस्थित किया जाता है। प्राथमिकता के आधार पर ही परियोजनाओं का चुनाव एवं विकास किया जाता है।

2. परिभाषा चरण (Definition Phase)- दूसरे चरण में प्रारम्भिक विश्लेषण किया जाना चाहिए। इस विश्लेषण में मार्केटिंग, तकनीकी, वित्तीय तथा आर्थिक पहलुओं पर ध्यान दिया जाता है। इस विश्लेषण का उद्देश्य यह जानना होता है कि वित्तीय संस्थाओं तथा विनियोगकर्ताओं के लिए परियोजना कितनी आकर्षक है। इसके बाद परियोजनाओं की व्यवहार्यता जानने के लिए साध्यता अध्ययन किया जाता है। इस अध्ययन से गहन विश्लेषण के बाद एक अच्छी परियोजना तैयार की जा सकती है। इसके परिणाम को साध्यता प्रतिवेदन के रूप में रखा जाता है। परिभाषा चरण के बाद परियोजना कार्यान्वयन हेतु तैयार हो जाती है, परन्तु कार्यान्वयन से पहले कुछ योजना बनायी जाती है।

3. योजना एवं संगठन का चरण (Planning and Organising Phase)- इस चरण में परियोजना से संबंधित विभिन्न पहलुओं जैसे आधारभूत संरचना, अभियांत्रिकी अभिकल्पना, नित्यक्रम, बजट, वित्त आदि से सम्बन्धित एक विस्तृत योजना बनायी जानी चाहिए। परियोजना की , संरचना का सृजन इस प्रकार से करना चाहिए ताकि वह संगठन, मानव शक्ति, तकनीक, प्रक्रिया आदि से संबंधित हो तथा परियोजना प्रबंधक इसको आसानी से लागू कर सके।

4. क्रियान्वयन चरण (Implementation Phase)- इस चरण में विस्तृत अभियांत्रिकी, उपकरण, मशीनरी, सामग्री एवं निर्माण ठेके के संबंध में आदेश दिए जाते हैं। इसके पश्चात् दीवानी एवं अन्य निर्माण कार्य किया जाता है। इसके अलावा प्लांट का पूर्व परीक्षण तथा परीक्षण जाँच किया जाता है। अतः कार्यान्वयन चरण सबसे महत्त्वपूर्ण चरण है जिस दौरान परियोजना को आकार . मिलता है तथा उसे अस्तित्त्व में लाया जाता है।

5. अंतिम चरण (Clean-up Phase)- इस चरण में परियोजना की आधारभूत संरचना को खोल दिया जाता है तथा मशीनों को संचालक श्रमिकों के हवाले कर दिया जाता है। अर्थात् उत्पादन प्रारम्भ करने की तैयारी की जाती है। उपर्युक्त विवरण के आधार पर यह स्पष्ट होता है कि परियोजना के मुख्यतः तीन चरण होते हैं, क्योंकि योजना एवं संगठन चरण तथा अंतिम चरण, क्रियान्वयन चरण के ही भाग हैं।

प्रश्न 13.
परियोजना प्रबन्ध क्या है ?
उत्तर:
आधुनिक समय में परियोजना प्रबन्ध एक जटिल एवं तेजी से विकसित होने वाली धारणा एवं व्यवहार है। परियोजना प्रबन्ध को इस प्रकार परिभाषित किया जा सकता है “परियोजना प्रबन्ध दिए गए समय एवं लागत में निश्चित परिणामों को प्राप्त करने के लिए प्रारम्भ से अंत तक योजना एवं निर्देशन की एक प्रक्रिया है।” इसलिए परियोजना प्रबन्ध आधुनिक समय की माँग है। अपने प्रस्तावित विनियोग से अच्छे परिणामों को प्राप्त करने के लिए उद्यमी को एक प्रभावशाली परियोजना प्रबन्ध का अनुसरण करना चाहिए। वास्तविकता में विनियोग की कुशलता दोनों समय एवं लागत व्यवहार के प्रभावशाली प्रबन्ध पर निर्भर करती है। किसी भी उद्यम की सफलता उसमें किए गए विनियोग से सफलतापूर्वक लाभों को बढ़ाने की क्षमता पर निर्भर करती है।

प्रश्न 14.
परियोजना पर्यावरण के आयामों का वर्णन करें।
उत्तर:
एक उद्यमी को उपयुक्त अवसरों की पहचान करने की जरूरत होती है। विभिन्न आयामों जैसे उत्पाद सेवा, तकनीक, उपकरण, उत्पादन का स्तर, बाजार, स्थान आदि के लिए. लोगों के विचार अलग-अलग होते हैं। उद्यमी के लिए इन आयामों के बीच चुनाव करना एक कठिन कार्य है। परियोजन विनियोगों के अवसरों की पहचान में अपने व्यवसाय के वातावरण को समझना एक महत्त्वपूर्ण कारक होता है। पर्यावरण के विभिन्न आयाम निम्नलिखित हैं-

  • व्यावसायिक वातावरण
  • औद्योगिक नीति
  • औद्योगिक विकास का नियम
  • विदेशी विनियोग के लिए नियमों का ढाँचा
  • औद्योगिक विकास के संवर्धन हेतु उठाए गए कदम
  • उदारीकरण एवं नई आर्थिक नीति आदि।

प्रश्न 15.
व्यवसाय नियोजन के उद्देश्यों का वर्णन करें।
उत्तर:
व्यवसाय नियोजन योजनाबद्ध एवं लचीला होना चाहिए ताकि आवश्यकतानुसार उसमें परिवर्तन लाया जा सके। यह तभी संभव है जब प्रबन्धक व्यवसाय नियोजन तैयार करते समय दल के अन्य सदस्यों से विचार-विमर्श कर ले। व्यवसाय नियोजन के मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित हैं-

  • कार्य का संचालन करने के लिए आधार की व्यवस्था करना तथा योजना में प्रत्येक भाग लेने वाले के बीच उत्तरदायित्व का निर्धारण करना।
  • नियोजन तैयार करने वाले दल के सदस्यों के बीच सम्प्रेषण एवं समन्वयन की व्यवस्था करना।
  • परियोजना में भाग लेने वालों को आगे (भविष्य) देखने के लिए प्रेरित करना।
  • परियोजना में भाग लेने वालों को शीघ्र कार्य-निष्पादन के लिए जागरूक करना जिससे नियोजन का कार्य समय पर पूरा किया जा सके।
  • परियोजना को लागू करने में उत्पन्न होने वाली अनिश्चितता को दूर करना।
  • संचालन की दक्षता में सधार लाना।
  • परियोजना के सम्बन्ध में आवश्यक सूचना प्रदान करना।
  • उद्देश्यों को समझने की समुचित व्यवस्था करना।
  • कार्य की देख-रेख एवं नियंत्रित करने का आधार तैयार करना आदि।

प्रश्न 16.
प्रबन्धकीय दक्षता का वर्णन करें।
उत्तर:
उपक्रम की सफलता में प्रबन्ध की अहम भूमिका होती है। वस्तुतः प्रबन्धकीय दक्षता के आभाव में परियोजना की सारी साध्यता शून्य हो जाती है। इसके विपरीत आर्थिक दृष्टिकोण से कमजोर परियोजना भी प्रबन्धकीय दक्षता की स्थिति में सफल हो सकती है। अतः किसी परियोजना का मूल्यांकन एवं विश्लेषण करते समय प्रबन्धकीय दक्षता को ध्यान में रखा जाना आवश्यक होता है कि प्रबन्धकीय दक्षता के अभाव में बहुत सारे उद्योग-धंधे बीमार हो गये और कुछ तो बंद हो गये और अन्त बंद होने के कगार पर खड़े हो गये। यह स्थिति विशेषकर लघु-उद्योगों के सम्बन्ध में अधिक देखने को मिलती है।

प्रबन्धकीय दक्षता के अन्तर्गत केवल प्रवर्तकों की दक्षता का मूल्यांकन करना शामिल नहीं होता बल्कि महत्त्वपूर्ण कर्मचारियों, प्रशिक्षण व्यवस्था एवं पारिश्रमिक भुगतान की पद्धति आदि भी शामिल होते हैं।

प्रश्न 17.
स्थिर पूँजी की आवश्यकता को प्रभावित करने वाले तत्त्वों का वर्णन करें।
उत्तर:
अलग-अलग उपक्रमों में स्थिर पूँजी की आवश्यकता अलग-अलग होती है। स्थिर पूँजी की आवश्यकता को प्रभावित करने वाले विभिन्न तत्त्व हैं जो निम्नलिखित हैं-

1. व्यवसाय के प्रकार (Type of Business)- व्यवसाय का आकार एवं प्रकृति पर निर्भर करता है कि कितनी स्थिर पूँजी की आवश्यकता होगी। निर्माणी संस्थाओं में स्थिर पूँजी की अधिक आवश्यकता होती है क्योंकि उन्हें भूमि, भवन, मशीन, औजार, फर्नीचर आदि क्रय करने होते हैं। इसी प्रकार सामाजिक उपयोगिता की संस्थाएँ जैसे-रेलवे, बिजली विभाग, जल आपूर्ति संस्थाओं में अधिक स्थिर पूँजी की आवश्यकता होती है क्योंकि उन्हें स्थिर सम्पत्तियों पर अधिक विनियोग करना होता है। दूसरी ओर व्यापारिक संस्थाओं में चल सम्पत्तियों पर अधिक विनियोग करने की आवश्यकता होती है। इनमें कार्यशील पूँजी की अधिक आवश्यकता होती है।

2. व्यवसाय का आकार (Size of the Business)- व्यवसाय के आकार से भी स्थिर पूँजी प्रभावित होती है। बड़े व्यवसाय गृहों में बड़ी-बड़ी मशीनों की आवश्यकता होती है जिनके क्रय पर अधिक स्थिर पूँजी की आवश्यकता होती है।

3. उत्पादन तकनीक (Technique of Production)- स्थिर पूँजी की आवश्यकता संस्था द्वारा अपनायी गयी उत्पादन तकनीक पर निर्भर करती है। जिन संस्थाओं में गहन-पूँजी तकनीक अपनायी जाती है वहाँ स्थिर पूँजी की आवश्यकता अधिक होती है। इसके विपरीत जिन संस्थाओं में गहन-श्रम तकनीक अपनायी जाती है वहाँ स्थिर पूँजी की आवश्यकता कम होती है।

4. अपनायी गयी क्रियाएँ (Activities Undertaken)- संस्था द्वारा अपनायी गई क्रियाओं पर भी स्थिर पूँजी की आवश्यकता निर्भर करती है। यदि उत्पादन एवं वितरण दोनों प्रकार की क्रियाएँ अपनायी जाती हैं तो स्थिर पूँजी की आवश्यकता अधिक होगी। इसके विपरीत यदि केवल निर्माण अथवा व्यापारिक क्रियाओं का ही निष्पादन किया जाता है तो स्थिर पूँजी की आवश्यकता कम होगी।

प्रश्न 18.
कोष के प्रवाह का अर्थ एवं अवधारणा का वर्णन करें।
उत्तर:
प्रवाह का आशय बहाव से है जिसके अन्तर्गत अन्तर्ग्रवाह एवं बाह्य प्रवाह दोनों शामिल होते हैं। कोष प्रवाह का आशय एक निश्चित अवधि में कोष में होने वाले अन्तर से है। कोष का प्रवाह तब माना जाता है जब लेन-देन के पूर्व के कोष में अन्तर हो जाये। यह परिवर्तन धनात्मक अथवा ऋणात्मक कुछ भी हो सकता है, अर्थात् कार्यशील पूँजी से कमी अथवा वृद्धि को कोष प्रवाह कहा जाता है। कार्यशील पूँजी को प्रभावित करने वाले लेन-देन कोष के स्रोत अथवा उपयोग के रूप में कार्य करते हैं।

व्यवसाय में विभिन्न लेन-देन किये जाते हैं। उनमें से कुछ कोष को बढ़ाते हैं तथा कुछ घटाते हैं तथा कुछ कोष पर कोई प्रभाव नहीं डालते हैं। यदि कोई लेन-देन कोष में वृद्धि करता है तो इसे कोष का स्रोत कहेंगे। उदाहरण के लिए व्यवसाय में पूर्व से विद्यमान कोष 25,000 रु० का है एवं बाद में 5,000 रु० का अंश निर्गमित होता है तो अब कुल 30,000 रु० (25,000+ 5000) को हो जायेगा। यहाँ अंश के निर्गमन से प्राप्त 5,000 रु० को स्रोत माना जाएगा। यदि लेन-देन से कोष में कमी होती है तो इसे कोष का प्रयोग कहेंगे।

उदाहरण के लिए पूर्व का कोष 25,000 रु० है एवं बाद में 5,000 रु० का उपस्कर खरीदा गया जिसके परिणामस्वरूप अब कोष 20,000 रु० (25,000 – 5,000) हो जायेगा। यहाँ उपस्कर के क्रय पर लगे धन,5.000 रु० को कोष का प्रयोग कहा जायेगा। यदि लेन-देन के परिणामस्वरूप कोष पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है तो इसे गैर-कोष लेन-देन कहेंगे। उदाहरण के लिए पूर्व का कोष 25,000 रु० है एवं बाद में 5,000 रु० की स्थायी सम्पत्ति अंशों के निर्गमन द्वारा क्रय किया जाता है तो कोष पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा अर्थात् 25,000 रु० (25,000 + 0) ही रहेगा क्योंकि लेन-देन के दोनों पक्ष (नाम एवं जमा) गैर-चालू (Non-current) प्रकृति के हैं।

प्रश्न 19.
सम-विच्छेद विश्लेषण के लाभों का विश्लेषण करें।
उत्तर:
सम-विच्छेद विश्लेषण विभिन्न प्रबन्धकीय समस्याओं के हल में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करता है-

  • निर्माणी, प्रशासनिक, सामान्य, विक्रय एवं वितरण आदि व्ययों का नियन्त्रण।
  • एक नए उत्पाद की प्रवर्तनात्मक सम्भावना का मूल्यांकन करना।
  • मूल्य परिवर्तन का लाभ एवं सम-विच्छेद बिन्दु पर पड़ने वाले प्रभावों का पूर्वानुमान करना।
  • मजदूरी दर में परिवर्तन का लाभ एवं सम-विच्छेद बिन्दु पर पड़ने वाले प्रभावों का पूर्वानुमान करना।
  • प्लाण्ट के आकार एवं प्रविधि में परिवर्तन का लाभ एवं सम-विच्छेद बिन्दु पर पड़ने वाले प्रभावों का पूर्वानुमान करना।
  • विक्रय मार्ग में परिवर्तन का लाभ एवं सम-विच्छेद बिन्दु पर पड़ने वाले प्रभावों का पूर्वानुमान करना।
  • संचालन एवं वित्तीय उत्तोलक का परीक्षण करना।
  • दो या दो से अधिक उपक्रमों की लाभदायकता की तुलना करना।
  • करारोपण के लाभ पर प्रभावों का विश्लेषण करना।
  • व्यवसाय के संचालन, मितव्ययिता पर संचालन, संगठन एवं भवन संरचना के प्रभावों का विश्लेषण करना।
  • कौन-सा उत्पाद सर्वाधिक लाभप्रद तथा कौन-सा सबसे कम लाभप्रद होगा ?
  • क्या किसी वस्तु की बिक्री या किसी संयंत्र या परिचालन बंद कर दिया जाए ?
  • क्या फर्म को स्थायी रूप से बंद कर दिया जाए आदि।

प्रश्न 20.
उत्पादन तकनीकों के विभिन्न प्रकार का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
वुड वार्ड (Wood ward) के अनुसार उत्पादन तकनीक के निम्नांकित वर्ग हैं-
1. इकाई एवं अल्प बैच प्रौद्योगिकी (Unit or small Batch Technology)- प्रौद्योगिकी के इस वर्ग के अन्तर्गत वस्तुएँ ग्राहक (माँग) आयामों के अनुसार उत्पादित की जाती हैं अथवा चतुर तकनीक विशेषज्ञों द्वारा अल्प मात्राओं में निर्मित की जाती हैं। ऐसी तकनीक का प्रयोग करने वाले संगठनों में हिन्दुस्तान एयरोनॉटिक्स लि० (Hindustan Aeronatics Ltd.) जो भारत सरकार के लिए हैलीकॉप्टर बनाता है तथा डीजल लोकोमोटिव वर्कस, जो भारतीय रेलवे तथा अन्य देशों की रेल व्यवस्था हेतु डीजल इंजन बनाता है।

2. विस्तृत उत्पादन एवं बड़ी बैच प्रौद्योगिकी (Mass Production and Large Batch Technology)- इस प्रौद्योगिकी के अन्तर्गत उत्पादन बड़ी मात्रा में किया जाता है। ऐसा जटिल तकनीक मारुति उद्योग लि० अथवा सुजुकी मोटर कार कम्पनी द्वारा स्वचालित वाहन बनाने के लिए इस तकनीक का प्रयोग किया जाता है।

3. निरंतर प्रवाह प्रक्रिया प्रौद्योगिकी (Continuous Flow Process Technology)- प्रौद्योगिकी के इस वर्ग में उत्पाद एक निरन्तर रूपान्तरण प्रक्रिया में से होकर गुजरता है। यह प्रौद्योगिकी अधिक जटिल है तथा प्रक्रिया निर्माणी दवाइयों जैसे रसायन अथवा शुद्धीकरण कम्पनियों द्वारा किया जाता है।

प्रश्न 21.
प्रबन्ध के क्षेत्रों का वर्णन करें।
उत्तर:
प्रबन्ध के क्षेत्र को दो वर्गों में वर्गीकृत किया जा सकता है-
1. प्रबन्ध की विषय सामग्री (Subject Matter of Management)- इसके अन्तर्गत प्रबन्ध के विभिन्न कार्य आते हैं जैसे नियोजन, संगठन, कार्मिकता, निर्देशन एवं नियंत्रण जिनकी चर्चा पाठ में आगे की गई है।
2. प्रबन्ध का कार्यक्षेत्र (Functional Area of Management)- इस पक्ष के अन्तर्गत, प्रबन्ध के अन्तर्गत निम्नांकित कार्य क्षेत्र आते हैं-

  • वित्तीय प्रबन्ध (Financial Management)- इसमें व्यवसाय के वित्तीय पहलू सम्मिलित हैं जैसे लागत नियंत्रण, बजट नियंत्रण, प्रबन्धकीय लेखांकन आदि।
  • कार्मिक प्रबन्ध (Personnel Management)- इसमें एक उद्यम के कार्मिकों के विभिन्न पक्ष सम्मिलित हैं जैसे भर्ती, प्रशिक्षण, पदोन्नति, पदोचित, पदमुक्ति, औद्योगिक सम्बन्ध, सामाजिक सुरक्षा, श्रम कल्याण आदि।
  • उत्पादन प्रबन्ध (Production Management)- इसमें उत्पादन सम्बन्धी पहलू आते हैं जैसे उत्पादन नियोजन, नियंत्रण, किस्म नियंत्रण आदि।
  • कार्यालय प्रबन्ध (Office Management)- इसमें कार्यालय रूपरेखा, कार्मिकता, यन्त्र रूपरेखा आदि।
  • विपणन प्रबन्ध (Marketing Management)- व्यवसाय द्वारा उत्पादित उत्पाद के विपणन पक्षों से सम्बद्ध हो इसमें कीमत निर्धारण, वितरण प्रणालियाँ (Channels), विपणन अनुसंधान, विक्रय सम्वर्द्धन एवं विज्ञापन आदि आते हैं।
  • रख-रखाव प्रबन्ध (Maintenance Management)- इसका सम्बन्ध व्यवसाय की सम्पत्ति, प्लान्ट, मशीनरी एवं फर्नीचर के रख-रखाव एवं समुचित व्यवस्था से है।

प्रश्न 22.
वातावरण का सूक्ष्म अध्ययन किन कारणों से करना आवश्यक है ?
उत्तर:
कुछ ऐसे कारण हैं जिनके चलते वातावरण का सूक्ष्म अध्ययन करना आवश्यक है। ये कारण हैं-

  • संसाधनों का प्रभावशाली प्रक्षेप
  • वातावरण का लगातार अध्ययन
  • व्यूह रचना बनाने में सहायक
  • खतरों और अवसरों की पहचान
  • प्रबंधकों के लिए सहायक
  • भविष्य का अवलोकन करने में सहायक इत्यादि।

प्रश्न 23.
प्रबन्ध के उद्देश्यों का उल्लेख करें।
उत्तर:
साधनों का उचित उपयोग (Proper Utilisation of Management)- प्रबन्ध का मुख्य उद्देश्य व्यवसाय के विभिन्न साधनों का मितव्ययी ढंग से उपयोग करना है। व्यक्तियों, सामग्री, मशीनरी एवं मुद्रा के सही उपयोग द्वारा समुचित अर्जित लाभों से विभिन्न पक्षों को सन्तुष्ट करना प्रबन्ध का मुख्य उद्देश्य होता है। स्वामी प्रबन्ध से अधिक प्रत्याय की अपेक्षा करते हैं जबकि कर्मचारी, ग्राहक तथा जनता प्रबन्ध से अच्छे व्यवहार की आशा करते हैं। यह सभी हित तभी सन्तुष्ट होंगे जबकि व्यवसाय के भौतिक साधनों का सही उपयोग किया जाये।

2. सम्पादन सुधार (Improving Performance)- प्रबन्ध का लक्ष्य उत्पादन के प्रत्येक घटक का सम्पादन सुधारना है। वातावरण इतना विशुद्ध होना चाहिये कि श्रमिक अपनी अधिकतम क्षमता समर्पित करें। उत्पादन घटकों का समुचित लक्ष्य निर्धारण द्वारा उनका सम्पादन सुधारा जा सकता है।

3. श्रेष्ठतम चातुर्य मंथन (Mobilizing Best Talent)- प्रबन्ध को विभिन्न क्षेत्रों में व्यक्तियों को इस प्रकार लगाना चाहिए जिससे श्रेष्ठतम परिणाम प्राप्त हों। विभिन्न क्षेत्रों में विशेषज्ञों की नियुक्ति उत्पादन घटकों की कुशलता बढ़ायेगी; इसके श्रेष्ठ वातावरण निर्माण करने की आवश्यकता है ताकि अच्छे लोगों को उद्यम विशेष से जुड़ने की प्रेरणा मिले। श्रेष्ठ वेतन, उचित सुविधाएँ, भावी विकास सम्भावनाएँ अधिक व्यक्तियों को व्यवसाय में जुड़ने को आकर्षित करेगा!

4. भविष्य हेतु नियोजन (Planning for Future)- प्रबन्ध का महत्त्वपूर्ण उद्देश्य योजना तैयार करना है। किसी भी प्रबन्ध को वर्तमान कार्य से सन्तुष्ट नहीं होना चाहिए यदि वह कल की नहीं सोचता। भावी योजनाएँ यह तय करें कि आगे क्या करना है। भावी सम्पादन वर्तमान के नियोजन पर निर्भर करता है। अतः भविष्य के प्रति नियोजन किसी भी व्यावसायिक संस्था के लिए आवश्यक है।

प्रश्न 24.
बाजार क्या है ?
उत्तर:
बाजार वह स्थान है जहाँ वस्तुओं के क्रेता एवं विक्रेता मुद्रा के बदले अपने उत्पादों का क्रय-विक्रय करने हेतु एकत्रित होते हैं। प्रत्येक व्यवसाय लोगों को कोई वस्तु अथवा सेवा बेचता है। परन्तु, प्रत्येक ग्राहक आपकी अथवा प्रतिद्वंदी की सेवाएँ क्रय नहीं करेगा। सक्षम ग्राहकों को निम्न तीन श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है-

  • व्यक्ति जो उत्पाद अथवा सेवाएँ चाहते हैं,
  • व्यक्ति जो सेवाओं अथवा उत्पादों को क्रय करने योग्य हैं एवं
  • व्यक्ति जो सेवाएँ अथवा उत्पादों को क्रय करने के इच्छुक हैं।

उपरोक्त कथन निम्न प्रकार से समझाए जा सकते हैं-
Bihar Board 12th Entrepreneurship Important Questions Short Answer Type Part 4, 1
लोगों का प्रत्येक वर्ग अनेक व्यक्तियों से जुड़ा हुआ होता है। परन्तु, बाजार केवल उन्हीं व्यक्तियों द्वारा घिरा होता है जो आपके द्वारा प्रस्तुत उत्पाद अथवा सेवाओं को क्रय करने के इच्छुक एवं सक्षम हैं।

प्रश्न 25.
माँग पूर्वानुमान अथवा बाजार माँग क्या है ?
उत्तर:
इसके पूर्व कि हम माँग पूर्वानुमान की चर्चा करें, हमें माँग का अर्थ समझना चाहिए।
माँग (Demand)- माँग का साधारण एवं सरलत्तम अर्थ है, ग्राहकों को वस्तु अथवा सेवाएँ क्रय करने की स्वीकृति एवं सामर्थ्य। अन्य शब्दों में, जब ग्राहक वस्तु अथवा सेवाएँ क्रय करने के योग्य होते हैं, हम कह सकते हैं कि उत्पाद अथवा सेवा की माँग उपलब्ध है।

फीलिप कोटहर (Philip Kottler) द्वारा, ‘बाजार माँग’ को इस प्रकार परिभाषित किया गया है, “बाजार माँग उत्पाद की वह कुल मात्रा है जो कि किसी एक ग्राहक वर्ग द्वारा एक भौगोलिक क्षेत्र, एक निश्चित समय में एक निश्चित विपणन वातावरण एवं एक निश्चित विपणन कार्यक्रम के अन्तर्गत क्रय की जाएँ।” ‘बाजार माँग’ को माँग पूर्वानुमान भी कहते हैं।

प्रश्न 26.
माँग पूर्वानुमान की विधियों का वर्णन करें।
उत्तर:
माँग पूर्वानुमान की प्रमुख निम्न विधियाँ हैं-
1. सर्वेक्षण विधि (Survey Method)- यह किसी उत्पाद की भावी माँग अनुमानित करने की विस्तृत प्रयुक्त विधि है। यह विधि सम्भावी ग्राहकों, दुकानदारों एवं बाजार का इस विषय पर जान रखने वाले लोगों से प्राप्त सचनाओं के एकत्रण से है। सर्वेक्षण के अन्तर्गत सचनादाताओं की संख्या कम होने पर सूचना (अल्प संख्या की तुलना में) समस्त लोगों से एकत्र की जाती है। यदि सूचनादाता अधिक हों तो एक प्रतिनिधि संख्या से ही सर्वेक्षण अथवा साक्षात्कार द्वारा सूचना एकत्र कर ली जाती है। बाद वाली विधि ‘न्यादर्श सर्वेक्षण विधि’ कहलाती है।

2. सांख्यिकीय विधि (Statistical Method)- कुछेक सांख्यिकीय विधियाँ भी हैं जैसे “समय श्रेणी विश्लेषण” एवं प्रतीपगमन विश्लेषण (Regression analysis) विधियाँ जो उत्पाद की भावी-माँग का अनुमान लगाने में प्रयोग की जाती हैं। समय श्रेणी विश्लेषण उस समय प्रयोग किया जाता है जब उत्पाद की भावी माँग ज्ञात करने सम्बन्धी माँग के ऐतिहासिक आँकड़े उपलब्ध हों। प्रतीपगमन विश्लेषण का प्रयोग ऐसी अवस्था में किया जाता है जब आय एवं माँग में एक निश्चितं सम्बन्ध प्रस्तुत हो।

अग्रणी सूचक विधि (Leading Indicator Method)- यह विधि इस तथ्य पर आधारित है कि कुछ सूचक अन्य की तुलना में ऊपर अथवा नीचे हर्कत करते हैं। उनकी हलचल के अवलोकन द्वारा, वह घटना जो अनुसरण करे, उससे पूर्व निश्चित किया जाता है। ऐसी हलचल का एक उदाहरण बादलों का वर्षा द्वारा घटित होना है। इसी प्रकार, सरकार द्वारा ऑटोमोबाइल उत्पादन में वृद्धि करना, आटो पूर्जी, डीजल अथवा पेट्रोल की माँग में वृद्धि का सूचक है।

प्रश्न 27.
मध्यस्थ के प्रकारों का वर्णन करें।
उत्तर:
मध्यस्थ कई प्रकार के होते हैं
1. व्यापारिक मध्यस्थ (Merchant Middlemen)- यह व्यापारी थोक विक्रेता एवं फुटकर व्यापारी है जो माल का स्वामित्व अधिकार प्राप्त कर, माल को पिछले स्तर से वितरण व्यवस्था में अगली प्रणाली तक पहुँचाते हैं। साधारणतः वह अपनी सेवाओं के लिए लाभ एवं बोनस प्राप्त करने के अधिकारी होते हैं। उल्लेखनीय है कि यह व्यापारी माल की सुपुर्दगी लेकर उसे क्रय/विक्रय करते हैं एवं जोखिम वहन करते हैं और उनके श्रम की कीमत उन्हें लाभ प्राप्त होते हैं। व्यापारिक मध्यस्थों के उदाहरण हैं। दुकानदार (dealer), थोक व्यापारी (wholesaler) एवं फुटकर प्रणाली (retailer) हैं।

2. एजेन्ट मध्यस्थ (Agent Middlemen)- यह मध्यस्थ निर्माता को सम्भावी ग्राहकों की पहचान करवाते हैं। वे माल/सेवा का अधिकार प्राप्त नहीं करते और न ही निर्माता के जोखिम। ऐसे मध्यस्थों में (विदेशी व्यापार से जुड़े/माल छुड़ाने/भिजवाने वाले एजेन्ट), ब्रेकर, जॉबर्स, फैक्टर्स, नीलामकर्ता, कमीशन एजेन्ट एवं विक्रय अभिकर्ता आदि आते हैं। अन्य शब्दों में, बिना वस्तु या सेवाओं के अधिकार लिए, निर्माताओं से वस्तुओं एवं सेवाओं को प्रयोगकर्ताओं को प्रस्तुत करने का कार्य करने वाले एजेन्ट मध्यस्थ कहलाते हैं। वास्तव में, वे निर्माताओं की ओर से कार्य करते हैं, कमीशन के लिए काम करते हैं तथा विपणन एवं खर्च आदि प्राप्त करने के अधिकारी हैं।

3. सुविधा प्रदाता (Facilitator)- यह वह स्वतन्त्र प्रतिनिधि है जो वस्तुओं एवं सेवाओं का निर्माता से उपभोक्ता तक माल ग्राहकों को भिजवाने में सहायक सिद्ध होता है। ऐसी ऐजन्सी में यातायात, बैंक एवं बीमा कम्पनियाँ, कोरियर सेवाएँ, पोस्ट ऑफिस, गोदाम आदि सम्मिलित हैं। वह अपनी सेवा फीस चार्ज करता है जैसे भाड़ा व्यय, कमीशन, किराया आदि। परन्तु वे निर्माता की ओर से किसी भी बातचीत प्रक्रिया में शामिल नहीं होते और न ही उन्हें वस्तुओं का स्वामित्व अधिकार ही प्राप्त होता है।

प्रश्न 28.
विक्रय संवर्द्धन को विभिन्न परेभाषा दें।
उत्तर:
विक्रय संवर्द्धन से अभिप्राय किसी ऐसी क्रिया, जोकि बिक्री बढ़ाने एवं ग्राहक के लिए माल का मूल्य बढ़ा सके। मूल्य सृजन, थोक अथवा खुदरा व्यापारियों को मात्रा बट्टा देकर उनका लाभ बढ़ाता है। अतः विक्रय संवर्द्धन विशिष्ट क्रय को प्रत्यक्ष रूप से उत्साहित करता है। यदि उद्यमी थोक विक्रेताओं के माध्यम से बढ़ावा देता है तो उद्यमी को उसके लिए विक्रय संवर्द्धन के प्रयास करने चाहिए, जिसके लिए उसे उपयुक्त वितरण प्रणाली का चयन करना पड़ता है।

विक्रय संवर्द्धन की परिभाषाएँ (Definitions of Sale Promotion)- अनेक लेखकों ने विक्रय संवर्द्धन की इस प्रकार परिभाषाएँ दी हैं-

  1. विलयम जे० स्टाटन (William J. Stanton) के अनुसार, “विक्रय संवर्द्धन सूचना, सुझाव एवं प्रभावित करने का एक अभ्यास है।”
  2. फिलीप कोटलर के अनुसार, “संवर्द्धन के अन्तर्गत विपणन मिश्रण के सभी यन्त्रों से है जिनका प्रमुख उद्देश्य विश्वास प्रेषण है।”
  3. अमरीकन विपणन परिषद् के शब्दों में, “व्यक्तिगत विक्रय, विज्ञापन एवं प्रसारण को छोड़ सभी विपणन क्रियाओं तथा प्रस्तुति-शो एवं प्रदर्शनी एवं अन्य विक्रय प्रयास जो साधारणतया न किए जाएँ जिनका उद्देश्य उपभोक्ता क्रय, एवं दुकानदार प्रभाविकता को बढ़ावा देना हो, को विक्रय संवर्द्धन कहते हैं।”

उपरोक्त परिभाषाएँ संक्षिप्त करती हैं कि विक्रय एवं संवर्द्धन मे सभी क्रियाएँ (विज्ञापन, व्यक्तिगत बिक्री एवं प्रसारण को छोड़) सम्मिलित हैं जिनका उद्देश्य बिक्री मात्रा बढ़ाना हो। विक्रय संवर्द्धन के मुख्य लक्षण निम्नलिखित हैं-

  • विक्रय संवर्द्धन में विज्ञापन, व्यक्तिगत विक्रय एवं प्रसारण सम्मिलित नहीं हैं।
  • विक्रय संवर्द्धन क्रियाएँ नियमित क्रियाएँ नहीं हैं। यह बिल्कुल क्षणिक हैं और विशेष अवसरों जैसे, प्रदर्शन, निशुल्क नमूने आदि के द्वारा सम्पन्न की जाती हैं।
  • यह विज्ञापन एवं व्यक्तिगत विक्रय को अधिक प्रभावी बनाती है।
  • विक्रय संवर्द्धन, दुकानदारों, वितरकों एवं उपभोक्ताओं को प्रोत्साहित करता है।

प्रश्न 29.
उद्यमिता की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं ?
उत्तर:
उद्यमिता में निम्नलिखित सन्निहित हैं-

  • वस्तु और सेवाओं के उत्पादन की प्रक्रिया
  • एक व्यावसायिक इकाई का निर्माण
  • संघटन, प्रेरणा, पहल एवं नेतृत्व
  • जोखिमों को स्वीकार करने के लिए निर्णय लेना
  • लाभ अर्जन करने के लिए वृद्धि एवं कौशल का उपयोग करना।

प्रश्न 30.
विक्रय संवर्द्धन के उद्देश्यों को लिखें।
उत्तर:
विक्रय संवर्द्धन क्रियाओं के प्रमुख उद्देश्य निम्नांकित हैं-

  • किसी उत्पाद अथवा सेवा के सम्बन्ध में पूछताछ सृजित करना,
  • निशुल्क सैम्पल एवं अतिरिक्त समान देकर उत्पाद प्रयास सुनिश्चित करना,
  • प्रोत्साहन, कूपन, विशेष बिक्री सुझाव द्वारा ब्राण्ड वफादरी (Brand loyalty) विकसित करना,
  • नये ग्राहकों को फुटकर कूपन एवं प्रीमियम देकर उत्तेजित करना,
  • फुटकर व्यापारियों को अधिक स्टॉक रखने के लिए उन्हें अधिक रियायतें देकर प्रेरित करना,
  • व्यापारियों को, बिक्री मुकाबलों, विशेष कैश एवं व्यापारिक बट्टे आदि के माध्यम से संवर्धी सहायता देना,
  • फुटकर व्यापारियों को माल के आगम-निर्णयों को बढ़ावा देना,
  • उत्पादों को सशक्त बनाना एवं उनकी उपयोगिता बढ़ाना,
  • प्रतिद्वंद्वी क्रियाओं को विकसित करना एवं नये माल प्रस्तुत करने से पूर्व, स्टॉक बिक्री अभियान (Clearance Stock Sale) चलाना एवं
  • बिक्री को उत्साहित करना।

प्रश्न 31.
विज्ञापन क्या है ? इसकी विभिन्न परिभाषा दें।
उत्तर:
विज्ञापन किसी पहचानयुक्त प्रवर्तक द्वारा विचारों, माल अथवा सेवाओं की गैर-व्यक्ति प्रस्तुतीकरण अथवा संवर्द्धनात्मक स्वरूप है। विज्ञापन, उपभोक्ताओं को प्रस्तुत उत्पाद एवं प्रस्तुत सेवाओं के सम्बन्ध में तथा वस्तु निर्माता के विषय में भी तथ्य विज्ञापित करता है। इस प्रकार विज्ञापन सूचना को प्रसारित करता है। प्रस्तुत संदेश को विज्ञापन कहा जाता है। आजकल के विपणन. में विज्ञापन व्यावसायिक विपणन क्रियाओं का अभिन्न अंग है। विज्ञापन के बिना आधुनिक संसार में किसी व्यवसाय की कल्पना करना असम्भव है। हालाँकि विज्ञापन का स्वरूप व्यवसाय के अनुरूप भिन्न होता है।

अनेक विद्वानों द्वारा विज्ञापन को इस प्रकार परिभाषित किया गया है-

  1. हीलर के अनुसार (Wheller), “विज्ञापन, विचारों, वस्तुओं अथवा सेवाओं का गैर वैयक्तिक प्रदत्त स्वरूप है, ताकि लोग अधिक क्रय करें।”
  2. रिकर्ड बिस्कर्क (Ricard Buskirk) के अनुसार, “विज्ञापन, एक पहचाने हुए प्रवर्तक द्वारा, विचारों, वस्तुओं अथवा सेवाओं के शुल्क सहित प्रस्तुति का स्वरूप है।”
  3. सी० एल० बोलिंग (C.L. Bolling) के अनुसार, “विज्ञापन किसी वस्तु अथवा सेवा की माँग सृजित करने की कला के रूप में परिभाषित किया जा सकता है।”

उपरोक्त परिभाषाओं की विवेचना करने पर विज्ञापन की निम्नांकित विशेषताएँ उजागर होती हैं-

  • यह वस्तुओं एवं सेवाओं अथवा विचारों की एक व्यक्तियों के समूह के प्रति गैर वैयक्तिक प्रस्तुति है।
  • यह सभी व्यक्तियों के लिए कई संदेश लिये हैं।
  • संदेश वस्तु अथवा सेवाओं आदि की किस्म एवं उपयोगिता का होता है।
  • विज्ञापन सशुल्क एवं उत्तरदायी होता है।
  • विज्ञापन के पीछे विज्ञापक के इरादे के अनुसार आचरण करने के लिए प्रतिबद्ध करना है।

प्रश्न 32.
जीव विज्ञान और वातावरणों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
जीव विज्ञान एवं वातावरण के बीच गहरा सम्बन्ध है। इसी प्रकार, उद्योग धन्धों से भी वातावरण काफी सीमा तक प्रभावित होता है। उत्पादन प्रक्रिया से वातावरण की स्थिति उत्पन्न होती है। यह प्रदूषण विभिन्न प्रारूपों में हो सकता है जैसे-शोरगुल के रूप में, धुएँ के रूप में एवं दुर्गन्ध के रूप में। कुछ उपक्रम जीव-विज्ञान के दृष्टिकोण से घातक स्थिति उत्पन्न करने वाले होते हैं। कुछ अन्य कारण भी हैं, जैसे-जंगल का कटाव, अत्यधिक मोटरगाड़ी के प्रयोग का प्रचलन आदि जो मनुष्य एवं जानवरों के लिए घातक साबित हो रहे हैं।

अतः साहसी को इस दैत्य रूपी प्रदूषण के प्रति अपने दायित्व को स्वीकार करना चाहिए तथा प्रदूषण पर नियन्त्रण रखने में अपनी भूमिका का निर्वाह करना चाहिए क्योंकि प्रदूषण मनुष्य के स्वास्थ्य को बुरी तरह से प्रभावित करता है। प्रदूषण के घातक प्रभावों को ध्यान में रखते हुए साहसी को पूर्ण अनुशासित दायरे में रहते हुए ही अपने कार्य का निष्पादन करना चाहिए तथा वातावरण को स्वच्छ एवं अप्रदूषित रखने का हर सम्भव प्रयास करना चाहिए।

प्रश्न 33.
क्या उद्यमी जन्मजात होते हैं ? अपने विचार दीजिए।
उत्तर:
उद्यमी जन्मजात नहीं हैं। वे पर्यावरणीय घटकों के बीच विकसित होते हैं। एक उद्यमी में सृजनशीलता, नवप्रवर्तन, जोखिम उठाने की योग्यता, पहल करने की क्षमता, दृढ़ता, विश्वास एवं प्रतिबद्धता आदि जैसे तत्व धीरे-धीरे विकसित होते हैं और पर्यावरणीय घटक पर निर्भर करते हैं। उद्यमी शब्द उन लोगों के लिए होता है जो नये विचार उत्पादित करते हैं और अपनी स्वतंत्र पहल करके समाज को अतिरिक्त मूल्य प्रदान करते हैं। उनकी दृष्टि मिशन की ओर उन्मुख होती है। वे रचनात्मक परिवर्तन के लिए प्रतिबद्ध होते हैं।

प्रश्न 34.
उद्यमी की नई एवं पुरानी अवधारणा क्या है ?
उत्तर:
पुरानी अवधारणा में उद्यमी को एक आर्थिक मनुष्य कहा जाता था जो हमेशा अपने लाभ को अधिकतम करने का प्रयत्न खोज करता है।

नई अवधारणा के अन्तर्गत उद्यमी उपक्रमों को संगठित करता है, पूँजी की व्यवस्था, अवसरों की खोज, नव प्रवर्तन, श्रम और सामग्री को एकत्रित करना कार्यों को देखना व संगठित करना, प्रबन्ध का चयन करना आदि कार्य करते हैं। एक उद्यमी के लिए केवल लाभ प्राप्त की अवधारणाएँ शिथिल पड़ गई हैं। एक उद्यमी सामाजिक राष्ट्रीय उत्तरदायित्व को भी निभाता है।

प्रश्न 35.
विपणन क्या है ?
उत्तर:
विपणन में सभी क्रियाएँ या कार्यकलाप शामिल हैं जो उत्पादन के पूर्व से लेकर विक्रय पश्चात सेवा तक के होते हैं। विपणन उत्पादक तथा उपभोक्ता के बीच की महत्वपूर्ण कड़ी है।

इसके दो उद्देश्य इस प्रकार हैं-

  • व्यावसायिक लाभों को अधिकतम करना।
  • ग्राहकों को अधिकतम संतुष्टि प्रदान करना।

विपणन ग्राहकों की आवश्यकताओं एवं इच्छाओं के अनुसार वस्तु और सेवाओं के उत्पादन की योजना बनाता है। विपणन लोगों की जीवन स्तर में सुधार लाने का प्रयास करता है। विपणन माँग और पूर्ति में संतुलन बनाये रखता है। विपणन अपने सामाजिक दायित्व का निर्वहन करता है। जाहिर है. कि यह ग्राहकों के कल्याण पर ध्यान देता है।

प्रश्न 36.
प्रबन्ध जन्मजात प्रतिभा है या अर्जित प्रतिभा ?
उत्तर:
प्रबंध में व्यावहारिक ज्ञान, निपुणता, रचनात्मक उद्देश्य एवं अभ्यास द्वारा विषय जैसे प्रमुख तत्व समाहित रहते हैं। अतः प्रबंध एक ऐसा ज्ञान है जो अनुसंधान एवं प्रशिक्षण के आधार पर व्यवस्थित होता है। प्रबंध निर्णय लेते समय अपने अनुभव को आधार बनाता है। दूसरे लोगों के अनुभव और सीमाओं पर विचार करके लागू करता है। कार्य का आरंभ करने से पहले नियोजन करता है और उसके कारण परिणाम पर विचार करता है। अत: हम कह सकते हैं कि प्रबंध अर्जित प्रतिभा है।

प्रश्न 37.
उद्यमिता की परिभाषा दें एवं इसके दो विशेषताओं को बताएँ।
उत्तर:
उद्यमिता एक प्रक्रिया है-

  • निवेश एवं उत्पादन अवसर के पहचान करने की
  • व्यावसायिक क्रियाकलापों के संगठन की
  • साधनों जैसे श्रम, पूँजी, सामग्री तथा प्रबंधन को गतिशील बनाने की
  • सामाजिक निर्णय लेने की।

उद्यमिता की दो विशेषताएँ निम्न हैं-

  • जोखिम उठाने की योग्यता
  • नये कार्यों की सोच।

प्रश्न 38.
व्यावसायिक अवसर शब्द से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
व्यावसायिक अवसर उद्यमी को किसी निश्चित परियोजना में विनियोग के लिए प्रोत्साहित करता है। एक उद्यमी व्यावसायिक अवसर द्वारा योजना को मूर्त रूप देने का प्रयास करता है। विभिन्न संभावनाओं का विश्लेषण कर उद्यमी. सर्वाधिक जोखिम वाली संभावनाओं का चयन करता है। व्यावसायिक संभावना व्यावसायिक अवसर तब कहलाती है जब वह व्यावसायिक दृष्टि से लाभप्रद एवं संभव हो। व्यावसायिक संभावनाओं को व्यावसायिक अवसर में बदलने के लिए उद्यमी को दो बातों का ख्याल रखना पड़ता है-

  1. अनुकूल बाजार माँग या बाजार में उपलब्ध आपूर्ति पर माँग का आधिक्य।
  2. विनियोग पर प्रत्याय सामान्य प्रत्याय दर एवं जोखिम प्रीमियम की दर के योग के बराबर होता है।

प्रश्न 39.
प्रबन्ध की परिभाषा लिखें।
उत्तर:
प्रबन्ध की परिभाषा (Definition of Management)- प्रबन्ध के विभिन्न लेखकों ने प्रबन्ध शब्द को भिन्न-भिन्न प्रकार से परिभाषित किया है। सम्बोधन के आधार पर प्रबन्ध की कुछ एक परिभाषाएँ निम्नलिखित हैं-

  1. मेरी पार्कर फॉलैट्टज (Mary Parker Follett) के अनुसार, “प्रबन्ध अन्य व्यक्तियों से काम लेने की कला है।”
  2. फ्रेड्रिक विन्सेला टेयलर (Frederick Winston Taylor) के अनुसार, “प्रबन्ध सर्वप्रथम यह ज्ञात करना कि आप व्यक्तियों से क्या (कार्य) करवाना चाहते हैं तथा पुनः यह निश्चित करना कि वे इसे किस प्रकार सस्ते एवं श्रेष्ठतम तरीके से करें।”
  3. पीटर एफ० डुक्कर (Peter F. Drucker) के अनुसार, “प्रबन्ध एक बहुआयामी अंग है जो एक व्यवसाय-प्रबन्धक, श्रमिकों एवं कार्य की व्यवस्था करता है।”
  4. जार्ज आर० टैरी (George R. Terry) के अनुसार, “प्रबन्ध एक विशिष्ट प्रक्रिया है जिसके द्वारा नियोजन, संगठन, क्रिया-संचालन, कार्य नियंत्रण किया जाए तथा व्यक्तियों एवं साधनों द्वारा निर्धारित लक्ष्यों की पूर्ति को सुनिश्चित किया जाए।”
  5. हैरोल्ड कूज (Haroald Kohz) के अनुसार, “व्यक्तियों के जरिये एवं उनके द्वारा औपचारिक वर्गों के रूप में, कार्य सम्पन्न करने की कला है।”

इन परिभाषाओं के अवलोकन के पश्चात्, प्रबन्ध को अन्यों द्वारा कार्य सम्पन्न कराने के रूप में परिभाषित किया जा सकता है। अन्य शब्दों में, यह विभिन्न कार्यों के निष्पादन तथा नियोजन, संगठन, समन्वयन, नेतृत्व एवं व्यावसायिक परिचालनों को इस प्रकार सम्पन्न करने की प्रक्रिया है ताकि व्यावसायिक फर्म के उद्देश्यों को प्राप्त किया जा सके। इसके अन्तर्गत वे सभी क्रियाएँ सम्मिलित हैं जो व्यावसायिक नियोजन से लेकर इसके वास्तविक संपादन तक व्यापक हो।

प्रश्न 40.
अवसर एवं उद्यमी के क्या संबंध है ?
उत्तर:
अवसर का अर्थ होता है किसी नयी व्यावसायिक परिस्थिति के अनुसार कुछ नया करना। अवसर की पहचान करना और उसके अनुसार कुछ नया काम ,करना उद्यमी के लिए लाभदायक होता है। साहसिक अवसर की पहचान करते हुए उद्यमी नव-सृजन की क्रियाओं को करता है और किसी नये उद्यम या उद्योग की स्थापना करता है। अवसर की पहचान करके काम करने से उद्यमी को अधिक लाभ होता है। अतः स्पष्ट है कि अवसर और उद्यमी का पारस्परिक संबंध है।

प्रश्न 41.
पर्यावरण के सूक्ष्म परीक्षण के किन्हीं तीन उद्देश्यों को बतायें।
उत्तर:
पर्यावरण के सूक्ष्म परीक्षण के तीन मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित हैं-

  • उन्नत वित्तीय निष्पादन हेतु संसाधनों का प्रभावपूर्ण उपयोग प्राप्त करना।
  • व्यवसाय के क्षेत्रों एवं अवसरों की पहचान करना।
  • उपभोक्ता के व्यवहार बाजार प्रतिस्पर्धा, सरकार की नीति इत्यादि में निरंतर होने वाले परिवर्तनों पर पैनी निगाह रखना।

Bihar Board 12th Entrepreneurship Important Questions Long Answer Type Part 3 in Hindi

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Bihar Board 12th Entrepreneurship Important Questions Long Answer Type Part 3 in Hindi

प्रश्न 1.
कार्यशील पूँजी के स्रोतों का वर्णन करें।
उत्तर:
कार्यशील पूँजी के मुख्य स्रोत निम्नलिखित हैं-
1. वाणिज्य बैंकों से ऋण (Loan from Commercial Banks)- लघु उद्योग वाणिज्य बैंकों से प्रतिभूति या गैर-प्रतिभूति ऋण प्राप्त कर सकते हैं। ऋण लेने की इस प्रणाली में कानूनी औपचारिकताएं पूरी करने की आवश्यकता नहीं होती हैं सिवाय प्रतिभूति के रूप में सम्पत्तियों की व्यवस्था करने के। ऋण की अदायगी एक-मुश्त अथवा विभिन्न किस्तों में की जा सकती है।

अल्पकालीन ऋण भी कम्पनी निदेशकों के व्यक्तिगत प्रतिभूति के आधार पर लिया जा सकता है। इस तरह के ऋण को ‘क्लीन एडवांस’ कहते हैं। वाणिज्य बैंकों द्वारा लघु उद्योगों को रियायती ब्याज दर पर ऋण दिया जाता है। अतः उद्यमियों के लिए कार्यशील पूँजी प्राप्त करने का यह एक सरल एवं सुविधाजनक स्रोत है। हालाँकि, वाणिज्य बैंकों से ऋण लेने में अधिक समय एवं धैर्य की आवश्यकता होती है।

2. जनता से निक्षेप (Public Deposits)- कभी-कभी कम्पनी अल्पकालीन वित्त की व्यवस्था अंशधारी, कर्मचारी एवं आम जनता की बचत को जमा प्राप्त कर करती है। कोष वृद्धि करने की वस्तुतः यह एक सरल विधि है और कम्पनी अधिनियम से अधिकृत है। जनता से इस तरह की जमा राशि अधिक ब्याज प्रस्तावित कर प्राप्त की जाती है। हालाँकि यह राशि कम्पनी के दत्त पूँजी के 25% से अधिक नहीं हो सकती।

3. व्यापार साख (Trade Credit)- जिस प्रकार कम्पनी अपने ग्राहकों को उधार माल बेचती है, कम्पनी भी आपूर्तिकर्ता से उधार माल क्रय कर सकती है। अतः आपूर्तिकर्ता का अदत्त राशि को वित्त का स्रोत माना जाता है। सामान्यतः आपूर्तिकर्ता अपने ग्राहकों को 3 से 6 माह की अवधि के उधार देते हैं। अतः इस रूप में वे कम्पनी को अल्पकालीन वित्त प्रदान करते हैं। वास्तव में, इस प्रकार के वित्त की उपलब्धता व्यवसाय के आकार पर निर्भर करती है।

यदि व्यवसाय का आकार बड़ा होगा तो इस प्रकार का ऋण अधिक दिया जायेगा एवं विपरीत स्थिति में कम ऋण दिया जायेगा। हाँ, व्यापार साख की मात्रा कम्पनी की प्रतिष्ठा, वित्तीय स्थिति, बाजार में प्रतिस्पर्धा के स्तर पर निर्भर करती है। हालाँकि, व्यापार साख से रोकड़-बट्टा की हानि होती है क्योंकि रोकड़ बट्टा तभी दिया जाता है जब भुगतान क्रय की तिथि से 7 से 10 दिनों के अन्तर्गत कर दिया जाये। रोकड़-बट्टा की इस हानि को व्यापार साख की अन्तर्निहित लागत कही जाती है।।

4. फैक्टरिंग (Factoring)- फैक्टरिंग एक वित्तीय सेवा है जिसका उद्देश्य कम्पनी की सेवा करना है जिसके अन्तर्गत कम्पनी के पुस्तकीय-ऋण एवं प्राप्यों को बेहतर ढंग से व्यवस्थित किया जाता है। कम्पनी के पुस्तकीय ऋण एवं प्राप्य किसी बैंक के सुपुर्द कर दिये जाते हैं (उक्त प्रक्रिया को फैक्टर कहा जाता है) तथा बैंक से अग्रिम राशि प्राप्त कर ली जाती है। इस सेवा के लिए बैंक कुछ कमीशन लेता है तथा देनदारों से राशि वसूलने की जिम्मेवारी लेता है।

अल्पकालीन वित्त व्यवस्या करने की यह एक विधि है जिसे फैक्टरिंग कहते हैं। इससे एक ओर आपूर्तिकर्ता कम्पनी को उधार बिक्री की राशि नगद में प्राप्त हो जाती है वहीं दूसरी ओर ग्राहकों से राशि वसूलने के झंझट से यह मुक्त हो जाती है। इस प्रणाली का दोष यह है कि वैसे ग्राहक जो वास्तव में संकट की स्थिति में इस व्यवस्था के अन्तर्गत वस्तु खरीद नहीं सकते, जबकि इस व्यवस्था का प्रचलन नहीं होने पर कम्पनी से खरीद सकते थे। वर्तमान संदर्भ में स्थिति उत्पन्न हो गई है, फैक्टरिंग प्रणाली की सिफारिश उपयुक्त प्रतीत होती है।

5. विनियोग बिल का बट्टा (Discounting Bill of Exchange)- जब माल उधार बेचा जाता है तो विक्रेता के ऊपर स्वीकृत के लिए नियम विपत्र लिखता है जिस पर क्रेता हस्ताक्षर कर विक्रेता को वापस कर देता है। सामान्यतः यह विनिमय बिल 3 से 6 माह की अवधि के लिए लिखा जाता है। व्यवहार में बिल लिखने वाला पक्ष बिल को भुगतान तिथि तक अपने पास न रखकर बैंक से बट्टा करवा कर शेष रकम प्राप्त कर लेता है।

बट्टा की दर भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा निर्धारित होती है। भुगतान तिथि पर बिल स्वीकार करने वाला पक्ष बैंक को बिल की रकम की अदायगी कर देता है। यदि देय तिथि पर बिल अप्रतिष्ठित हो जाता है तो बिल की रकम की अदायगी बिल लिखने वाले पक्ष के द्वारा ही की जाती है। अल्पकालीन वित्त की व्यवस्था के लिए कम्पनियों के बीच यह एक प्रचलित विधि बन गई है।

6. बैंक अधिविकर्ष एवं नगद साख (Bank Overdraft and Cash Credit)- बैंक अधिविकर्ष की सुविधा बैंक द्वारा केवल चालू खाता वाले ग्राहकों को ही दी जाती है। इसके अन्तर्गत अधिविकर्ष की सुविधा सामान्यतः एक सप्ताह के लिए होती है। ग्राहक अपने चालू खाता से एक सीमा तक जो कि जमा राशि से अधिक होती है, आहरण कर सकता है। जमा से अधिक आहरित राशि पर ग्राहक को ब्याज देना होता है। कभी-कभी यह सुविधा भी प्रतिभूति के आधार पर दी जाती है।

दूसरी ओर, नगद साख बैंक द्वारा दी जाने वाली एक ऐसी व्यवस्था है जिसके अन्तर्गत ग्राहक एक निश्चित सीमा तक पैसा ले सकता है जिसे नगद साख सीमा कहते हैं। नगद साख सुविधा प्रतिभूति के आधार पर दी जाती है। प्रतिभूति के मूल्य के आधार पर नगद साख बढ़ायी जा सकती है। ब्याज केवल आहरित रकम पर ही लिया जाता है।

बैंक अधिविकर्ष एवं नगद साख पर लिए जाने वाले ब्याज की दर जमा धन पर मिलने वाले ब्याज की दर से अधिक होती है। अल्पकालीन वित्त की व्यवस्था के लिए बैंक अधिविकर्ष एवं नगद साख प्रणाली कम्पनियों के बीच काफी प्रचलित है।

7. ग्राहकों के अग्रिम (Advance from Customers)- अल्पकालीन वित्त प्राप्त करने की यह भी एक प्रचलित विधि है। उदाहरण के लिए कार की बुकिंग करने से अग्रिम राशि लिया जाना, फ्लैट की बुकिंग करते समय अग्रिम राशि लिया जाना, टेलिफोन कनेक्शन की बुकिंग के समय अग्रिम राशि लिया जाना, आदि ग्राहकों से अग्रिम राशि लेकर वित्त व्यवस्था करना सबसे मितव्ययी विधि है क्योंकि-

  • अग्रिम राशि पर ग्राहकों को ब्याज नहीं दिया जाता है एवं
  • यदि अग्रिम राशि पर कोई कम्पनी ब्याज देती भी है तो वह भी नाममात्र का।

8. उपार्जित खाते (Accrual Accounts)- सामान्यतया किसी आय के अर्जित होने तथा प्राप्त होने के बीच एक निश्चित समय अन्तराल होता है। इसी प्रकार किसी व्यय के उत्पन्न होने एवं भुगतान करने के बीच भी एक निश्चित समय अन्तराल होता है। उदाहरण के लिए वेतन प्रत्येक माह के अंत में उपार्जित होता है किन्तु इसका भुगतान दूसरे माह के प्रथम सप्ताह में होता है। यहाँ दोनों अवधियों के बीच एक सप्ताह का अन्तराल होता है। वेतन के मद में देय रकम व्यवसाय में एक सप्ताह के लिए कार्यशील पूँजी के रूप में काम करती है। कार्यशील पूँजी प्राप्त करने की विधि की कोई लागत नहीं होती है।

प्रश्न 2.
प्रबन्ध के सिद्धान्तों का उल्लेख करें।
उत्तर:
प्रबन्ध एक जीवन विज्ञान है। समय-समय पर, विषय के विचारकों ने प्रबन्ध के सिद्धान्तों के सम्बन्ध में अपने मत प्रकट किए हैं एवं इन सिद्धान्तों की किसी संगठन की नीति का निर्मित करने में प्रयुक्त भूमिका को उजागर किया है। टेलर, फेयाल (Fayol), कून्टज (Koontz) एवं ओडोनल, फॉलेटं तथा उरविक कुछ एक विचारक हैं जिन्होंने अपने अनुभव एवं समय की आवश्यकता अनुसार प्रबन्ध के सिद्धान्तों की व्याख्या की है। एल० एफ० उरविक ने छः सिद्धान्त दिए जबकि कीथ ने 4, फेयाल (Fayol) ने 14 सिद्धान्तों की लम्बी सूची दी। उन सभी मदों को ध्यान में रखते हुए, हम 14 सिद्धान्तों की गणना व व्याख्या निम्न हैं-

1. नीति निर्माण का सिद्धान्त (Principle of Policy Making)- एक प्रभावशाली प्रबन्ध को एक स्पष्ट एवं सुलझी हुई नीति की आवश्यकता होती है। बनायी गई नीतियाँ ऐसी होनी चाहिये जो सभी को मान्य हों। श्रमिकों में रुचि उत्पन्न करें तथा उन सभी को प्रेरित करें जिन्हें नीति को व्यावहारिक रूप देने को कहा जाए।

2. सुधार एवं तालमेल सम्बन्धी सिद्धान्त (Principle of Improvement and Adjustment)- एक उपक्रम एक निरन्तर चलने वाला होता है। यह धीरे-धीरे परन्तु निश्चित रूप से पग-पग विकसित होता है। प्रबन्ध को एक जीवट विज्ञान के रूप में सिद्ध करना होता है। इसे एक लोचशील (न कि स्थिर) विज्ञान सिद्ध होना चाहिए। इसे निरन्तर सुधार स्वीकार करना शाहिए तथा परिस्थिति के अनुसार अपने आप को व्यवस्थित करना चाहिए। इस प्रकार प्रबन्ध को समाज के उपभोक्ताओं की पूर्ति के प्रति स्वीकार्य एवं प्रभावी सिद्ध होना चाहिये।

3. सन्तुलन सिद्धान्त (Principle of Balance)- एक उद्यम को कुशलता एवं बचत करते हुए यदि निरन्तर बढ़ना है तो इसे एक सन्तुलित ढाँचा तैयार करना चाहिए। इस उद्देश्य की पूर्ति हेतु, मुख्य कार्यकारी अधिकारी को सभी विवरण बारीकी से देखना चाहिए तथा कर्तव्यों, दायित्वों. अधिकारों एवं अधिकृति अधिकार के बीच संतुलन स्थापित करना चाहिए। उद्यम के सभी पक्षों द्वारा समन्वय से कार्य करना चाहिए। इस प्रकार के समन्वय स्थापित करने हेतु सभी वर्गों में तालमेल होने से संगठन में एक अच्छा वातावरण निर्मित होता है।

4. कार्य एवं निष्पादन में सम्बन्ध का सिद्धान्त (Principle of Relationship of Task and Accomplishment)- प्रत्येक व्यक्ति को अपने कार्य पर उसकी योग्यता, ज्ञान, रुचि एवं अनुभव अनुसार स्थापित करना चाहिए जिससे कि कार्य कुशलता एवं समक्ष सुनिश्चित हो, प्रत्येक व्यक्ति अपनी क्षमता से सर्वाधिक दे सकता है, यदि वह अपने कार्य को समझता है, उसमें रुचि विकसित होती है, कार्य को प्रसन्नता से निष्पादित करता है। कर्मिकों का चयन वैज्ञानिक विधियों द्वारा करने से तथा उन्हें उचित कार्य पर स्थापित करने से प्रबन्ध को अभीष्ट प्रतिफल की प्राप्ति होती है।

5. व्यक्तिगत प्रभावशीलता का सिद्धान्त (Principle of Individual Effectiveness)- हैनरी फेयॉल ने व्यक्तिगत प्रभावशीलता बढ़ाने हेतु वैज्ञानिक प्रशिक्षण का सुझाव दिया जो आज भी उपयुक्त है। वानिक प्रशिक्षण के अतिरिक्त, श्रेष्ठ मजदूरी नीति, मानवीय सम्बन्ध, स्वस्थ वातावरण आदि संगठन में कार्यरत व्यक्तियों की प्रभावशीलता बढ़ाने में सहायक होते हैं।

6. सरलता का नियम (Principle of Simplicity)- एक संगठन की कार्य व्यवस्था संभवतः सरल होनी चाहिए। सरलता के सिद्धान्त के अनुसार उत्पाद में प्रयोग लाए गए प्लाण्ट, साधारण कार्यों की पद्धतियाँ तथा सामग्री एवं मानव शक्ति का उपयोग सभी सरल होना चाहिए। अनावश्यक कार्यवाही दैनिक कार्यों में से हटानी चाहिए।

7. विशिष्टीकरण का सिद्धान्त (Principle of specialization)- वैज्ञानिक प्रबन्ध का मुख्य केन्द्र बिन्दु प्रमापीकरण है जोकि विशिष्टीकरण द्वारा प्राप्त होता है। विशिष्टीकरण उत्पादकता बढ़ाता है। जिससे उत्पाद की किस्म श्रेष्ठ होती है। उत्पादन लागत नीचे आती है और इस प्रकार विशिष्टीकरण से उद्यम को समृद्धि प्राप्त होती है।

8. वित्तीय अभिप्रेरण का सिद्धान्त (Principle of Financial Incentive)- वित्तीय अभिप्रेरण आधारित पारिश्रमिक नीति श्रमिकों का सहयोग प्राप्त कर लेती है जिससे उद्यम का विकास एवं. उसे समृद्ध बनाती है। प्रबन्ध को वित्तीय अभिप्रेरण नीति का पालन करना चाहिए जिससे अधिक लाभदायकता प्राप्त की जा सके। समाज की हर संभव तरीके से सेवा करना, प्रबन्ध का एक अन्य लक्ष्य है, यदि श्रमिक संतुष्ट हों तथा उद्यम की सेवा अपनी अधिकतम क्षमता अनुसार करें। वित्तीय अभिप्रेरण सिद्धान्त भी इस उद्देश्य की प्राप्ति हेतु सहायक सिद्ध हो सकता है।

9. नियोजन का सिद्धान्त (Principle of planning)- नियोजित कार्य उद्यम के सुसंचालन में सहायक होता है। योजना यह तय करती है कि कार्य क्या, कब, कैसे एवं किसके द्वारा सम्पन्न किया जाए। पूर्व निर्धारित उद्देश्य एवं सुनियोजित योजनाएँ प्रबन्ध को अनेक स्तरों पर उपलब्धि एवं सफलता प्राप्त करवाते हैं।

10. नियन्त्रण का सिद्धान्त (Principle of Control)- भले ही एक श्रमिक कितना भी अनुशासित, कुशल एवं उत्तरदायी क्यों न हो, उसे निरीक्षण एवं नियन्त्रण की आवश्यकता होती है।

11. सहयोग का सिद्धान्त (Principle of Co-operation)- सहयोग से विश्वास आता है, जो पारस्परिक सम्मान उत्पन्न करता है। दोनों ही उचित एवं निर्विघ्न कार्य के लिए आवश्यक हैं। इसलिए सहयोग सिद्धान्त एवं उद्यम में सभी वर्गों में परस्पर सहयोग की आवश्यकता होती है।

12. नेतृत्व का सिद्धान्त (Principle of Leadership)- नेतृत्व, मार्ग दर्शन एवं निर्देशन से पूर्व निरीक्षण एवं नियन्त्रण आते हैं। जब तक इनकी समुचित व्यवस्था न की जाए, निरीक्षण एवं नियन्त्रण की कोई भी मात्रा, उद्यम के सुसंचालन एवं इसके उद्देश्यों की पूर्ति को सुनिश्चित नहीं कर सकते। अच्छा नेतृत्व, श्रेष्ठ निर्देशन आवश्यक मार्गदर्शन द्वारा सहयोग एवं श्रेष्ठ मानवीय सम्बन्धों को सुनिश्चित करते हैं।

13. उत्तरदायित्व का सिद्धान्त (Principle of Responsibility)- कर्त्तव्य एवं उत्तरदायित्व अधिकार एवं अधिकृतता (authority) साथ-साथ चलते हैं। अधिकार एवं आधिकृतता तब तक लागू नहीं किए जा सकते, जब तक उन्हें अच्छी प्रकार न समझा जाए। इसी प्रकार कर्तव्य एवं दायित्व तब तक चलाए नहीं जा सकते जब तक समुचित अधिकार एवं अधिकृत्व न प्राप्त हों। इसलिए उद्यम के प्रत्येक श्रमिक एवं वर्ग के पास अधिकारों एवं दायित्वों की सूची दी जानी चाहिए जो कि उनके कर्त्तव्यों एवं उत्तरदायित्वों के निष्पादन हेतु आवश्यक है।

14. अपवाद का सिद्धान्त (Principle of Exception)- इस सिद्धान्त के अनुसार उच्च प्रबन्ध को साधारण कार्यों से मुक्त रखना चाहिए ताकि वे समस्याओं के समाधान ढूँढने के लिए अध्ययन कर सके। उच्च प्रबन्ध को निर्णयन की जिम्मेदारी वहन करनी चाहिए ताकि वह नीति नियोजन कर सके।

प्रश्न 3.
प्रबन्ध के महत्त्व का वर्णन करें।
उत्तर:
प्रबन्ध न्यूनतम श्रम द्वारा अकितम समृद्धि प्राप्त करने की कला है। जहाँ भी सामान्य लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु ससुंगठित व्यक्ति समूह लगे रहते हैं, किसी प्रकार का प्रबन्ध आवश्यक है। पीटर एफ डुक्कर (Peter F. Drucker) के अनुसार, “प्रबन्धं एक संगठन को गतिशील जीवन देने वाला तत्त्व है। इसके अभाव में, उत्पादन के साधन केवल साधन बनकर रह जाते हैं, न कि उत्पादना” (“Management is a dynamic life giving element in an organisation. In its absence, the resources of production remain resources and never become production.”)

निम्न बिन्दु प्रबन्ध के महत्त्व को और स्पष्ट करते हैं-
1. साधनों का कुशलतम उपयोग (Optimum Utilisation of Resources)- कोई भी व्यावसायिक गतिविधि उत्पादन के पाँच घटकों बिना सम्पन्न नहीं हो सकती है, यथा-भूमि, श्रम । पूँजी, उद्यम एवं प्रबन्ध। प्रथम चार घटक पाँचवें, अर्थात् प्रबन्ध के बिना प्रभावकारी नहीं हो सकते। केवल प्रबन्ध ही साधनों का कुशलतम उपयोग करता है।

2. समूह उद्देश्यों की पूर्ति (Achievement of Group Objectives)- यह प्रबन्ध ही है जो लोगों को समूह के लक्ष्यों से अवगत करवाता है एवं उन्हें उद्देश्यों के प्रति श्रमबद्ध करता है। यह मानवीय एवं भौतिक साधनों को इकट्ठा कर, लोगों को संगठन के लक्ष्यों की प्राप्ति के प्रति कार्यशील बनाता है।

3. लागत निम्नीकरण (Cost Minimisation)- आज की बढ़ती हुई प्रतियोगिता में, केवल वही व्यावसायिक इकाइयाँ जीवित रहती हैं जो अच्छी किस्म उत्पादन, न्यूनतम लागत पर उत्पादित कर सकें। श्रेष्ठ नियोजन, सुदृढ़ संगठन एवं प्रभावशील नियन्त्रण द्वारा प्रबन्ध उद्यम को लागत कम करने एवं प्रतिस्पर्धा को काटने की क्षमता प्रदान करता है।

4. अधिक लाभ (Increasing Profit)- किसी संगठन में लाभ को दो उपायों से बढ़ाया जा सकता है-बिक्री राशि बढ़ाकर अथवा लागत को कम करके। बिक्री बढ़ाना संगठन के अधिकार से बाहर है। लागत कम करके प्रबन्ध अपने लाभ बढ़ा सकता है। भविष्य के विकास के अवसर प्रस्तुत कर सकता है।

5. व्यवसाय का सुसंचालन (Smooth Operation of Business)- प्रबन्ध श्रेष्ठ नियोजन, सदृढ़ संगठन, प्रभावी नियन्त्रण एवं प्रबन्ध के अन्य यंत्रों द्वारा व्यवसाय का कुशल एवं श्रेष्ठ संचालन सुनिश्चित करता है।

6. विकासशील देशों के लिए महत्त्व (Importance to Developing countries)- विकासशील देशों जैसे भारत के लिए एक विशेष भूमिका अर्पित करनी होती है क्योंकि इनके साधन सीमित तथा उत्पादकता कम होती है। यह ठीक ही कहा गया है अर्द्धविकसित देश नहीं होते, अर्द्ध-प्रबन्धित देश होते हैं।

7. सामाजिक लाभ (Social Benefits)- प्रबन्ध, व्यावसायिक उपक्रमों के लिए ही उपयोगी नहीं है, अपितु समाज के प्रति भी उपयोगी है। यह लोगों का जीवन स्तर, कम लागत पर श्रेष्ठ किस्म के उत्पाद एवं सेवाएं प्रदान कर उसे समुचित करता है। यह सीमित साधनों का कुशलतम उपयोग करते हुए समाज को समृद्धि एवं शान्ति प्रदान करता है।

8. नव निर्माण प्रदान करना (Provides Innovation)- प्रबन्ध संगठन को नये विचार, संकल्पना एवं व्यापक दृष्टि प्रदान करता है।

9. विकास में परिवर्तन (Change in Growth)- एक उद्यम परिवर्तनशील वातावरण में कार्य करता है। प्रबन्ध उद्यम को इस परिवर्तन हेतु ढालता है। यह न केवल संगठन को ढालता है अपितु वातावरण को परिवर्तित कर, व्यवसाय को सफल बनाता है। स्वचालिकता एवं उन्नत प्रौद्योगिकी की जटिलताओं की चुनौती को स्वीकार करने के लिए, प्रबन्ध को विकसित करने की आवश्यकता है।

प्रश्न 4.
विपणन की विचारधारा का वर्णन करें।
उत्तर:
विपणन बाजार का अभिन्न अंग है। बाजार वह स्थान है जहाँ विक्रेता एवं क्रेता अपने उत्पादों को मुद्रा (इसके विपरीत भी) के बदले विनिमय करने हेतु एकत्रित होते हैं। उत्पादन, विपणन से पूर्ण किया जाता है। परिवर्तित व्यावसायिक वातावरण के अनुसार उत्पादन भी समय-समय पर . परिवर्तित होता है। तदानुसार, विपणन की विचारधारा में भी समय-समय पर परिवर्तित होता है। तदानुसार, विपणन की विचारधारा में भी समय-समय पर परिवर्तन हुए हैं। इन विचारधाराओं को दो श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है-

  • परम्परागत विचार
  • आधुनिक विचार

1. परम्परागत विचार (Traditional Concept)- यह विचार, पहले उत्पादन स्तर से जुड़ा है जबकि बाजार में निर्मित वस्तुओं की साधारणत: कमी रहती थी। तब विपणन का प्रमुख कार्य, वस्तुओं को ग्राहकों तक व्यापक रूप में सहनीय कीमतों पर उपलब्ध कराना था। विपणन विचार भी तदानुसार था। निम्न परिभाषाओं से विपणन की परम्परागत विचारधारा को अनुभव किया जा सकता है-

कानवर्स, राज्जी एवं मिचल (Converse, Huegy and Mitchell) के अनुसार, “विपणन के अन्तर्गत उत्पादन से उपभोग तक की सभी क्रियाएँ सम्मिलित हैं।”

अमरीकन एकाउंटिंग एसोसिएशन (American Accounting Association) के अनुसार, “उन व्यावसायिक गतिविधियों के आचरण को जिनके द्वारा उत्पादकों से उपभोक्ताओं तक माल एवं सेवाओं का प्रत्यक्ष प्रवाह होता है, विपणन कहा जाता है।”

अतः विपणन की परम्परागत विचारधारा उत्पाद उन्मुख है।

2. आधुनिक विचारधारा (Modern Concept)- समय बीतने पर औद्योगिक गतिविधि में उत्तेजना आने के साथ-साथ उत्पादों की विविधिता, किस्म एवं मात्रा में भी वृद्धि हुई है। इसने ग्राहक को अधिक विवेकशील एवं चयनकर्ता बना दिया। अब, ग्राहक वह सब कुछ जो उसे उत्पादक प्रस्तुत करें, क्रय करने के लिए तैयार नहीं है। उन्होंने ऐसे उत्पादों एवं सेवाओं का क्रय करना आरम्भ कर दिया जो मात्रा, कीमत, सन्तुष्टि, दीर्घायु, सौन्दर्य आदि में उसके लिए लाभकारी हों। ऐसी ग्राहक के लाभ मूर्त अथवा अमूर्त हो सकते हैं। इसलिए, उत्पादकों ने वह सभी कुछ उत्पादन करना आरम्भ किया हो ग्राहक चाहते हैं। इस प्रकार, एक नयी वैज्ञानिक सोच का जन्म हुआ। नयी सोच के अन्तर्गत .उन वस्तुओं एवं सेवाओं का उत्पादन एवं प्रस्तुति करना आवश्यक हो गया जोकि उपभोक्ता की मांग के अनुरूप हो। इसे ‘विपणन उन्मुखी’ कहा जाता है। इस आधुनिक विपणन विचार को निम्नांकित परिभाषाओं से समझा जा सकता है-

स्टैण्टेन (Stanton) के अनुसार, “विपणन व्यवस्था के अन्तर्गत सभी व्यावसायिक क्रियाएँ सम्मिलित हैं जो माँग पूर्ति वाली वस्तुओं एवं सेवाओं के नियोजन, कीमत, संवर्द्धन एवं वर्तमान प्रभावी उपभोक्ताओं को वितरित की जाएँ।”

कोटलर (Kotler) के अनुसार, “विपणन एक सामाजिक एवं प्रबन्धकीय प्रक्रिया है जिसके द्वारा व्यक्ति एवं समूह, प्राप्त करते हैं, जो वह चाहते हैं और जो वस्तुओं एवं सेवाओं के परस्पर विनिमय से सम्बद्ध है।”

अब हम दोनों विचारधाराओं में अन्तर स्पष्ट कर सकते हैं। परम्परागत विचार विपणन उत्पादकों अर्थात् विक्रेताओं की आवश्यकता पर बल देता है। इसके विपरीत, आधुनिक विचार, उपभोक्ता को जरूरतों से प्रतिबद्ध है।

प्रश्न 5.
नियोजन की परिभाषा दें। इसकी क्या विशेषताएँ हैं ?
उत्तर:
प्रबन्ध के क्षेत्र में यद्यपि नियोजन सबसे अधिक जाना-पहचाना एवं लोकप्रिय शब्द है किन्तु फिर भी इसकी एक सर्वमान्य परिभाषा देना कठिन है। कुछ प्रमुख प्रबन्ध विद्वानों द्वारा दी गयी नियोजन की परिभाषाएँ निम्नलिखित हैं-

  1. बिली ई० गोज के अनुसार, “नियोजन ‘प्राथमिक रूप में चयन’ करना है तथा नियोजन की समस्या उसी समय उत्पन्न होती है, जबकि वैकल्पिक कार्यपक्षों का पता चलता है।”
  2. कुण्ट्ज एवं ओ’ डोनेल के अनुसार, “नियोजन एक बौद्धिक प्रक्रिया है, कार्य करने के मार्ग का सचेत निर्धारण है, निर्णयों को उद्देश्यों, तथ्यों तथा पूर्व-विचारित अनुमानों पर आधारित करना है।”
  3. ऐलन के अनुसार, “नियोजन भविष्य को पकड़ने के लिए बनाया गया पिंजरा है।”

निष्कर्ष- उपर्युक्त परिभाषा, नियोजन की उपर्युक्त परिभाषाओं का अध्ययन करने के उपरान्त हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि, “निर्धारित लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए भावी कार्य-कलापों के विषय में वैकल्पिक क्रियाओं में से सर्वोत्तम के चयन हेतु निर्णय लिया जाना एवं निर्धारण किया जाना ही नियोजन हैं।”

नियोजन के लक्षण अथवा विशेषताएँ अथवा प्रकृति (Characteristics or Nature of Planning)-
1. निर्धारित उद्देश्य एवं लक्ष्य (Definite Object and Goal)- नियोजन का कार्य निर्धारित लक्ष्य एवं उद्देश्य की पूर्ति के लिए किया जाता है, अतः प्रत्येक नियोजक इस लक्ष्य को सदैव ध्यान में रखता है और उसी के अनुरूप अपनी योजनाएँ बनाता है।

2. पूर्वानुमान लगाना (Forecasting)- नियोजन का दूसरा महत्वपूर्ण लक्षण भविष्य के बारे में देखना अर्थात् पूर्वानुमान लगाना है। फेयोल के अनुसार, “नियोजन विभिन्न प्रकार के पूर्वानुमानों का, चाहे वे अल्पकालीन हों अथवा दीर्घकालीन, सामान्य हों अथवा विशिष्ट, संश्लेषण (Synthesis) होता है।” इसके लिए उन्होंने एक-वर्षीय एवं दस-वर्षीय पूर्वानुमानों की सिफारिश की। एक चीनी कहावत के अनुसार, “अपनी वार्षिक योजनाएँ बसन्त के मौसम में तैयार कीजिए तथा दैनिक योजनाएँ प्रात:काल उठते ही तैयार कीजिए।”

3. एकता (Unity)- फेयोल के अनुसार, एकता भी नियोजन का एक आवश्यक लक्षण है। एक समय में केवल एक योजना ही कार्यान्वित की जा सकती है क्योंकि दो विभिन्न योजनाओं के होने पर दुविधा, भ्रान्ति एवं अव्यवस्था फैलेगी।

4. विभिन्न वैकल्पिक क्रियाओं में से सर्वोत्तम का चयन (Selection of the best among Alternative Courses of Actions)- नियोजन का चतुर्थ महत्वपूर्ण लक्षण विभिन्न वैकल्पिक क्रियाओं में से सर्वोत्तम क्रिया का चयन किया जाना है। प्रबन्धक के सामने विभिन्न लक्ष्य, नीतियाँ, विधियाँ तथा कार्यक्रम होते हैं। इन्हें पूरा करने के लिए सर्वोत्तम विकल्प का चुनाव करना होता है। उपक्रम की सफलता बहुत कुछ सीमा तक इस चयन के आधार पर ही निर्भर करती है।

5. नियोजन की सर्वव्यापकता (Pervasiveness of Planning)- नियोजन का पांचवा लक्षण इसकी सर्वव्यापकता का होना है। कोई व्यक्ति चाहे कम्पनी का अध्यक्ष हो अथवा साधारण फोरमैन-संगठन के प्रत्येक स्तर पर नियोजन की आवश्यकता पड़ती है। उदाहरण के लिए, अध्यक्ष का नियोजन-कार्य नीति-निर्धारण से सम्बन्ध रखने वाला होता है। इस प्रकार संगठन का स्तर जितना अधिक ऊँचा होगा, नियोजन का क्षेत्र उतना ही अधिक विस्तृत एवं व्यापकं होगा। नियोजन तो सर्वत्र व्याप्त है। प्राध्यापक महोदय भी किसी कक्षा में प्रवेश करने से पूर्व नियोजन का ही सहारा लेते हैं।

6. नियोजन एक निरन्तर एवं लोचयुक्त प्रक्रिया (Planning is a Continuous and a Flexible Process)- भविष्य अज्ञात है। कल क्या होने वाला है, यह निश्चयात्मक रूप में कोई नहीं कह सकता; चूँकि नियोजन भी भविष्य के लिए किया जाता है, अतः, इसमें भी अनिश्चितता का रहना स्वाभाविक ही है। नियोजन का एक महत्वपूर्ण लक्षण यह भी है कि इसमें निरन्तरता एवं लोच रहनी चाहिए, ताकि बदलती हुई परिस्थितियों के अनुरूप इसमें आवश्यक परिवर्तन किया जा सके।

7. पारस्परिक निर्भरता (Interdependence)- नियोजन का एक महत्वपूर्ण लक्षण इसकी पारस्परिक निर्भरता का होना है। सुविधा की दृष्टि से एक उपक्रम के कार्यक्रमों को कई भागों में विभाजित किया जाता है। उदाहरणत: उत्पादन विभाग, क्रय विभाग, विक्रय विभाग, सेविवर्गीय प्रशासन विभाग आदि। यद्यपि इन सभी विभागों की अलग-अलग योजनाएँ हैं किन्तु ये उपक्रम की सामूहिक योजना (Master Plan) का एक अंग होती है। ये विभागीय योजनाएँ एक-दूसरे पर निर्भर होती हैं।

8. प्राथमिक कार्य (Primary Function)- नियोजन प्रबन्ध प्राथमिक कार्य है। किसी भी प्रबन्धकीय प्रक्रिया में नियोजन को सबसे पहले एवं प्रमुख स्थान दिया जाता है, अन्य सभी कार्य नियोजन के पश्चात् ही सम्पन्न किये जाते हैं। संस्था का लक्ष्य, जिसकी पूर्ति के लिए समस्त प्रबन्धकीय क्रियाएँ सम्पन्न होती हैं, नियोजन द्वारा ही निर्धारित किया जाता है। इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए प्रबन्ध के अन्य सभी कार्य सम्पन्न किये जाते हैं।

9. बौद्धिक एवं मानसिक प्रक्रिया (Intellectual and Mental Process)- नियोजन प्राथमिक रूप में एक बौद्धिक एवं मानसिक प्रक्रिया है क्योंकि योजना बनाने वालों को सम्भावित कार्य विधियों एवं विकल्पों में से सर्वोत्तम का चयन करना होता है और यह कार्य दूरदर्शिता, विवेक एवं चिन्तन पर निर्भर करता है जिसे हर कोई व्यक्ति नहीं कर सकता। नियोजन के इस लक्षण को हैयन्स एवं मैसी ने निम्नलिखित शब्दों में स्वीकारा है-“नियोजन एक बौद्धिक प्रक्रिया है जिसके लिए सृजनात्मक चिन्तन एवं कल्पना की आवश्यकता होती है।”

10. अन्य- (i) नियोजन का व्यावहारिक होना नितान्त आवश्यक है। (ii) नियोजन में समय तत्व अधिक महत्व रखता है। (iii) नियोजन एक मार्गदर्शक का कार्य करता है। (iv) नियोजन प्रबन्धकों की कार्य-कुशलता का आधार है। (v) निर्णयन नियोजन का एक अंग है, अतः नियोजन का क्षेत्र निर्णयन की तुलना में व्यापक है। (vi) नियोजन में सीमित साधनों का ध्यान रखा जाता है।

प्रश्न 6.
विपणन के कार्यों का वर्णन करें।
उत्तर:
विपणन के प्रमुख कार्य निम्नलिखित हैं-
Bihar Board 12th Entrepreneurship Important Questions Long Answer Type Part 3, 1

I. विनियम के कार्य (Functions of Exchange)- इस वर्ग में मुख्य दो कार्य सम्पन्न किए जाते हैं-
1.क्रय कार्य (Buying)- क्रय एवं इक्कठा करने का तात्पर्य है आवश्यकता का मूल्यांकन, आपूर्ति के श्रोत ढूँढना, शर्ते आदि तय करना, आर्डर भेजना, वस्तुओं की प्राप्ति एवं भुगतान। इसके अन्तर्गत विभिन्न स्रोतों से क्रय किए गए स्टॉक के रखाव करना शामिल हैं।

2. विक्रय (Selling)- विक्रय कार्य क्रेताओं की खोज से आरम्भ होकर, सम्पर्क स्थापन, क्रेताओं के विज्ञापन के माध्यम से आकर्षित करने एवं भिन्न-भिन्न विक्रय माध्यमों द्वारा उन्हें सन्तुष्ट करने तथा उपभोक्ताओं के उत्पाद की बिक्री के पश्चात् समाप्त होता है। व्यवसाय का प्राथमिक उद्देश्य माल बेचना एवं इस कार्य में विक्रय के विभिन्न पहलू सम्मिलित होते हैं।

II. भौतिक आपूर्ति के कार्य (Functions of Physical Supply)-
1. यातायात (Transportation)- बाजार उत्पादन-स्थान से दूर भी स्थित हो सकते हैं। यातायात द्वारा माल के स्थान उपयोगिता सृजित होती है। इसके अन्तर्गत उत्पादों को उत्पादन स्थान से उपभोग स्थान तक पहुँचना सम्मिलित है। उत्पादन एवं उपभोक्ता के बीच दूरी होती है तथा यातायात उस खाई को पाटता है।

2. भण्डार एवं गोदाम में रखना (Storage or Warehousing)- उत्पाद एवं माल की बिक्री (उपभोग) के बीच स्थान उपयोगिता सृजित होती है। इसके अन्तर्गत उत्पादों को उत्पादन स्थान से उपभोग स्थान तक पहुँचना सम्मिलित है। उत्पादन एवं उपभोक्ता के बीच दूरी होती है तथा यातायात उस खाई को पाटता है।

III. सुसाध्यीकरण कार्य (Facilitating Functions)-
1. प्रमापीकरण (Standardisation)- प्रमापीकरण से अभिप्राय वस्तु की किस्म के प्रमाप अथवा सीमाएँ एवं विशेषताएँ निर्धारित करने से है जिसके अनुसार उत्पादक को माल निर्मित करने के सम्बन्ध में बाध्य किया जाए। अनेक प्रकार के प्रमाप हैं जैसे ISI, Agmark, Wolmark आदि। प्रमापीकरण से माल का लेन-देन सरल हो जाता है क्योंकि विक्रेता को माल बेचते समय ज्यादा विस्तार से गुणों की व्याख्या नहीं करनी पड़ती तथा उपभोक्ता को भी कम उत्पाद-निरीक्षण करने पड़ते हैं।

2. वित्तीयन (Financing)- व्यवसाय की अनेक आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु वित्त की आवश्यकता होती है। व्यवसाय की आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु वित्त की आवश्यकता का मूल्यांकन करने का तीव्र प्रयास किया जाता है, ताकि वित्त इकट्ठा किया जा सके एवं उसका सही उपयोग भी किया जा सके। वित्त की आवश्यकता कई कारणों से होती है, जैसे-पर्याप्त भण्डारण हेतु माल का स्टॉक, विज्ञापन, विक्रय संवर्द्धन प्रयास एवं माल का वितरण हेतु आदि ।

3. जोखिम वहन (Risk Taking)- जोखिम व्यवसाय का अभिन्न अंग है। बिना जोखिम का व्यवसाय सम्भव नहीं होता। जोखिम का लाभ से सीधा सम्बन्ध है। जोखिम कीमत उच्चावच के कारण उत्पन्न होता है। इसी तरह रुचियों, फैशन, पसन्दी, उपभोक्ताओं की नापसन्दी, माल का समय वर्जित, सरकारी नीति में परिवर्तन भी जोखिम उत्पन्न करते हैं। अग्नि, बाढ़, चोरी भी जोखिम के कारण हैं परन्तु इन जोखिमों का बीमा करवाया जा सकता है। व्यवसायी को अपना जोखिम उठाने एवं हानि उठाने की शक्ति का मूल्यांकन करते रहना चाहिए तथा उसकी व्यवस्था करनी चाहिए।

4. बाजार सूचना (Market Information)- बाजार सूचना के बिना कोई व्यवसाय स्थापित नहीं रह सकता। अत: व्यवसायी को अपने कान और आँखें खोलकर, आसपास की जानकारी रखनी चाहिए।

केवल बाजार सूचना की सहायता से विपणनकर्ता जाँच सकता है कि उसे क्या, कैसे एवं किस कीमत पर बेचना चाहिए। उसे अन्य परिवर्तनों जैसे प्रतिस्पर्धा, प्रौद्योगिकी, फैशन आदि की भी जानकारी रखनी चाहिए। बाजार की नवीनतम सूचना के आधार पर विक्रेता व्यवसाय की विभिन्न चुनौतियों की जानकारी प्राप्त कर सकता है।

प्रश्न 7.
वितरण प्रणालियों का वर्णन करें।
उत्तर:
यह सत्य है कि उत्पादन उपभोग के लिए किया जाता है। वस्तु के उत्पादन के पश्चात्, इन्हें एक बड़े भौगोलिक क्षेत्र में स्थित उपभोक्ताओं तक पहुँचाने की आवश्यकता होती है। अनेक बार अपने माल क्रेता तक पहुँचना सम्भव नहीं होता, फर्म को इस सम्बन्ध में विपणन बिचौलियों की आवश्यकता पड़ती है, जैसे कि थोक विक्रेता एवं फुटकर व्यापारी जिनके माध्यम से माल उपभोक्ता तक पहुँच सके। यह बिचौलिए ऐसी प्रणालियों का कार्य करते हैं जो माल को ग्राहक तक पहुँचाते हैं। अनेक लेखकों ने वितरण प्रणालियों को निम्न प्रकार से परिभाषित किया है-

अमरीकन विपणन परिषद् (American Marketing Association) के अनुसार, “विपणन मार्ग कम्पनी संगठन के अंदर संरचना है जो कम्पनी से बाहर, प्रतिनिधियों एवं व्यापारियों, थोक एवं फुटकर व्यापारियों को सम्मिलित कर, जो कि माल एवं सेवा का विपणन करें।”

डावर (Daver) के अनुसार, “वितरण एक प्रक्रिया अथवा कार्यों की कड़ी है जो भौतिक रूप से उत्पादित माल को निर्माता से अन्तिम उपभोक्ता तक पहुँचाए।”

वास्तव में, वितरण मार्ग, पाइप लाईन की भाँति है जो कि सही उत्पाद की सही मात्रा सही स्थान तक जहाँ उपभोक्ता पहुँचाने के लिए कहे, सही समय पर पहुँचाते हैं। यह मार्ग उन प्रक्रियाओं को सम्बोधित करता है जिन वितरण मार्गों द्वारा माल उत्पादक से उपभोक्ता तक पहुँचता है। इन वितरण मार्गों को विपणन विधियाँ भी कहा जाता है।

अनेक मध्यस्थों के कारण वितरण प्रणालियों को तीन वर्गों में बाँटा गया है-
1. शून्य-स्तर प्रणाली (Zero-level Channel)- जब उत्पादन वितरण सीधे उत्पादक से उपभोक्ता तक हो। इसे प्रत्यक्ष विक्रय भी कहते हैं।

2. एक-स्तरीय प्रणाली (One-level Channel)- इस प्रणाली के अन्तर्गत माल उत्पादक से फुटकर व्यापारी के पास तथा फुटकर व्यापारी से उपभोक्ता तक पहुँचाया जाता है। इसे फुटकर व्यापारी के माध्यम से वितरण भी कहा जाता है।

3. द्वि-स्तरीय प्रणाली (Two-level Channel)- जब उत्पादक एवं उपभोक्ता के बीच दो प्रकार के मध्यस्थ हों। अन्य शब्दों में, इस प्रणाली के अन्तर्गत, निर्माता माल थोक व्यापारी को एवं वह उसे फुटकर व्यापारी को बेचकर, उपभोक्ता को माल बेचता है। इसे थोक एवं फुटकर व्यापारी वितरण कहते हैं।

यह सभी तीन प्रणालियाँ निम्न चार्टों की सहायता से समझाई गई हैं-
I.शून्य स्तरीय वितरण मार्ग अथवा प्रत्यक्ष बिक्री मार्ग (Zero-Level Channel/Direct Selling Channel)
Bihar Board 12th Entrepreneurship Important Questions Long Answer Type Part 3, 2

II. एक-स्तरीय वितरण मार्ग अथवा उत्पादक से फुटकर व्यापारी से उपभोक्ता वितरण प्रणाली (One-Level Channel of Distribution)
Bihar Board 12th Entrepreneurship Important Questions Long Answer Type Part 3, 3

III. द्वि-स्तरीय वितरण प्रणाली अथवा उत्पादन से थोक व्यापारी से फुटकर व्यापारी से उपभोक्ता प्रणाली (Two-level Channal of Distribution)
Bihar Board 12th Entrepreneurship Important Questions Long Answer Type Part 3, 4

I. प्रत्यक्ष बिक्री मार्ग (Direct Selling Channel)- इसे उत्पादक से उपभोक्ता प्रणाली भी कहा जाता है। इस प्रणाली के अन्तर्गत वस्तुओं का निर्माता, अन्तिम उपभोक्ता से सीधे सम्पर्क स्थापित करने का प्रयास करता है एवं विक्रय की अनेक विधियाँ जिसमें घर-घर जाकर सम्पर्क करना सम्मिलित है, का प्रयोग करना है। यह औद्योगिक विपणन में लोकप्रिय है विशेषकर पूँजीगत उत्पाद हेतु जैसे औद्योगिक रसायन, भारी यन्त्र आदि।

लाभ (Advantages)-

  • उपभोक्ता से निकट सम्बन्ध द्वारा उत्पादक को उपभोक्ता की आवश्यकता एवं उसमें परिवर्तन से अवगत कराना है।
  • लाभ मध्यस्थ को नहीं जाता।
  • उपभोक्ता को माल शीघ्र पहुँचता है क्योंकि वह इस मार्ग के लिए मध्यस्यों का प्रयोग नहीं करता।

II. एक-स्तर प्रणाली अथवा उत्पादक से फुटकर प्रणाली से उपभोक्ता प्रणाली (One Level Channel)- यह एक अप्रत्यक्ष विक्रय है। यह प्रणाली थोक व्यापारी को अलग रखता है। यह उपयुक्त है जहाँ उत्पाद नाश्य हो एवं वितरण में गति महत्त्वपूर्ण हो। इस प्रणाली के अन्तर्गत प्रायः फैशन वस्तुएँ, उत्पाद जिन्हें स्थापित करना हो, अधि-मूल्य माल आदि शामिल हैं।

III. द्वि-स्तरीय प्रणाली अथवा उत्पादक से थोक व्यापारी से फुटकर व्यापारी से उपभोक्ता प्रणाली (Two-level Channel)
इस प्रणाली को परम्परागत प्रणाली भी कहते हैं। यह सर्वाधिक श्रेष्ठ वितरण प्रणाली है जिसमें उत्पादक माल थोक विक्रेता को जो, फिर थोक विक्रेता से फुटकर विक्रेता, जो अन्त में, उपभोक्ता को बेचता है। इस व्यवस्था में, थोक व्यापारी को लाभ का एक हिस्सा दिया जाता है जिससे वह उधार क्रय, विक्रय, सुपुर्दगी एवं ऋण दे सकता है। यह प्रणाली प्रायः गृह-उपयोग्य विक्रेताओं, दवाइयाँ आदि के व्यापार में लोकप्रिय हैं। निम्न उत्पादकों को यह वितरण प्रणाली उपयुक्त है-

  • जो वित्तीय साधनों से कमजोर हों।
  • जिनकी उत्पाद-रेखा संकीर्ण है और
  • जिनकी वस्तुएँ फैशन आदि परिवर्तनों एवं भौतिक नाशवान नहीं है परन्तु स्थायी है।

प्रश्न 8.
परियोजना प्रतिवेदन के उद्देश्यों का वर्णन करें।
उत्तर:
परियोजना प्रतिवेदन के प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित हैं-

  • विपणन, तकनीक, वित्त, कर्मचारी, उत्पादन उपभोक्ता संतोष तथा सामाजिक वृतिदान क्षेत्रों में अनुमानित प्रदर्शन पाने के लिए पूर्व में ही योजना तैयार करना।
  • यह मूल्यांकन करना की संगठन के उद्देश्यों को किस सीमा तक पूरा किया गया है। इसके लिए उद्यमी से यह उम्मीद की जाती है कि वह निवेश सूचना को ध्यान में रखे, इन सूचनाओं का विश्लेषण करे, परिणामों का अनुमान लगाए, सबसे अच्छे विकल्प का चुनाव करे, आवश्यक कदम उठाए, परिणामों को अनुमानों के साथ तुलना करे।
  • उद्देश्यों के निर्धारण के लिए प्रयास करना तथा उन्हें परिमेय, मूर्त, सत्यापनीय तथा प्राप्य बनाना।
  • संसाधनों पर प्रतिबंध के प्रभावों का मूल्यांकन करना। संसाधनों में मानवशक्ति, उपकरण, वित्त, तकनीक आदि सम्मिलित हैं।
  • वित्तीय संसाधनों से वित्तीय सुविधा प्राप्त करना, जैसे कि इसके लिए सुव्यवस्थित प्रतिवेदन की आवश्यकता पड़ती है, जिसके आधार पर परियोजना के वित्त प्रबन्ध की वांछनीयता का मूल्यांकन किया जाता है।
  • परियोजना प्रतिवेदन में प्रस्तावित कार्य करने के तरीके का परीक्षण करना। प्रायः किसी भी परियोजना की सफलतापूर्वक क्रियान्वयन परियोजना प्रतिवेदन में दिए गए कार्य करने की विधि से नियंत्रित

प्रश्न 9.
विज्ञापन के उद्देश्यों का वर्णन करें।
उत्तर:
विज्ञापन के प्रमुख उद्देश्य निम्नांकित हैं-
1. स्थिति को सूचना दना (To give Information regarding Existence)- विज्ञापन का प्रथम उद्देश्य है ग्राहकों को एक विशिष्ट वस्तु को बाजार में लाने एवं उसके बाजार में उपलब्ध होने की सूचना देना।

2. मांग उत्पन्न करना (To create Demand)- एक अन्य उद्देश्य नयी वस्तु की माँग उत्पन्न करने हेतु लोगों को इसके लिये आकर्षित करना है।

3.उत्पन्न मांग को बनाये रखना (To maintain to create demand)- उत्पन्न माँग को निरन्तर प्रचार के माध्यम से बनाये रखना विज्ञापन का अन्य उद्देश्य है।

4. माल के प्रयोग करने की शिक्षा देना (To instruct about the use of goods)- विज्ञान न केवल नयी वस्तु के सम्बन्ध में लोगों को सूचना देता है अपितु उन्हें उसके उपयोग करने की शिक्षा भी देता है।

5. प्रतिस्पर्धा हटाना (To remove competition)- विज्ञापन द्वारा प्रतिस्पर्धा हटाई जा सकती है। विज्ञापन की सहायता से विशेष वस्तु के गुणों का प्रचार मार्केट में प्रतिद्वन्द्वी वस्तुओं की तुलना में जानकारी देकर (अनावश्यक) प्रतिस्पर्धा दूर कर सकते हैं।

6. संशय एवं सकाच हटाना (To remove Doubts and Confusion)- एक वस्तु का लोकप्रियता बनाए रखने के लिए आवश्यक है कि उस वस्तु के सम्बन्ध में संकोच व संशयों को दूर किया जाये, जिसके लिए विज्ञापन आवश्यक होता है।

7.उपभोक्ताओं को उत्साहित करना (To encourage Consumers)- विज्ञापन का अभिप्राय, वर्तमान उपभोक्ताओं की संख्या बढ़ाना। साथ ही, उन्हें वस्तुओं के उपभोग से संतुष्ट कर प्रोत्साहित करना होता है।

8. विक्रेताओं को सहायता पहुँचाना (Help to Sellers)- विज्ञापन उपभोक्ताओं को विज्ञापनकर्ता के निकट लाता है। इस प्रकार विज्ञापन विक्रेताओं के कार्य को सरल बनाता है।

9. सावधान करना (To make Caution)- विज्ञापन का एक कार्य जनता एवं व्यवसायी को नशीली वस्तुओं एवं प्रतिस्थापकों से सावधान कर्ना होता है।

10. उन व्यक्तियों तक पहुँचना जिन्हें विक्रता नहीं मिले (To reach the people whom salesman could not reach)- विज्ञापन द्वारा दूरस्थ स्थानों तक संदेश पहुँचाना है। इसके अतिरिक्त सूचना विस्तृत क्षेत्र तक प्रस्तावित की जा सकती है। इस प्रकार उन व्यक्तियों तक भी विज्ञापन द्वारा सूचना पहुँचाई जाती है जिनसे विक्रेता नहीं मिल सकता।

11. विज्ञापक का प्रतिष्ठा बढ़ाना (To Increase the goodwill of Advertiser)- विज्ञापन का एक उद्देश्य विज्ञापक की ख्याति बढ़ाना है। उदाहरण के तौर पर, “लिपटन का अर्थ अच्छी चाय”, ऐसा विज्ञापन जिसका उद्देश्य विज्ञापनकर्ता, लिपटन चाय कम्पनी की ख्याति बढ़ाना भी है।

12. उत्पादन एवं बिक्री लागत कम करना (To reduce the Production and Sales Cost)- विज्ञापन का एक उद्देश्य उत्पादन एवं विक्रय लागतों में कमी लाना है। यह इसलिए है क्योंकि विज्ञापन द्वारा माँग की मात्रा बढ़ती है जिसके फलस्वरूप वृहदाकार उत्पादन करने से प्रति इकाई उत्पादन लागत कम होती है।

13. वस्तु का चयन करना सरल (To make the selection of Commodity Easy)- विज्ञापन वतुओं की उपयोगिताओं को स्पष्ट करता है। जिससे उनकी उपयोगिताओं का तुलनात्मक अध्ययन कर, वस्तु विशेष का चयन सरल हो जाता है। . .

प्रश्न 10.
विज्ञापन के महत्त्व का वर्णन करें।
अथवा, व्यवसाय में विज्ञापन के महत्व को बताएँ।
उत्तर:
विज्ञापन ग्राहकों का ज्ञान विस्तृत करता है। विज्ञापन की सहायता से उपभोक्ता बिना समय खोये, आवश्यक वस्तुएँ ढूँढकर क्रय करते हैं। इससे वस्तुओं की बिक्री तेजी से बढ़ती है। विज्ञापन के मुख्य लाभ निम्न प्रकार हैं-

(i) निर्माताओं को लाभ (Benefits to Manufactures)-

  • यह उत्पाद के प्रति आकर्षण पैदा कर उनकी विक्रय मात्रा बढाता है।
  • नये उत्पादों को आसानी से बाजार में लाया जा सकता है।
  • उत्पाद की छवि एवं प्रतिष्ठा बढ़ाते हैं।
  • निर्माता एवं उपभोक्ता में प्रत्यक्ष सम्बन्ध स्थापित करता है।
  • उत्पाद की माँग में वृद्धि होती है।
  • यह एक उत्तरदायी बाजार निर्मित करता है।
  • बिक्री की मात्रा में वृद्धि कर विक्रय लागत प्रति इकाई को कम करता है।
  • कार्यकर्मियों एवं श्रमिकों की कार्यकुशलता बढ़ाने की प्रेरणा देता है।
  • उत्पादकों को प्रतिस्पर्धा का सामना करने में सहायता देता है।

(ii) थोक एवं फुटकर व्यापारियों को महत्त्व (Importance to Wholesaler and Retailers)-

  • क्योंकि उपभोक्ता उत्पाद एवं उसकी किस्म को विज्ञापन द्वारा जानते हैं, बिक्री आसान हो जाती है।
  • स्टॉक का आवर्तन बढ़ाते हैं।
  • यह विक्रय क्रियाओं का पूरक है।
  • फुटकर एवं थोक व्यापारियों को विज्ञापन की आवश्यकता नहीं होती क्योंकि उत्पादक उत्पादन का विज्ञापन करता है।
  • इससे अधिक सस्ती बिक्री होती है।
  • इससे सभी को उत्पाद सूचना मिलती रहती है।

(iii) उपभोक्ताओं को महत्त्व (Importance to Consumers)-

  • यह उपभोक्ता को कम कीमत पर उच्च किस्म का माल प्रदान करता है।
  • उत्पाद एवं उपभोक्ता में विज्ञापन प्रत्यक्ष सम्बन्ध स्थापित कर मध्यस्थ को निकालता है।
  • यह उनका माल कहाँ और कब उपलब्ध है, की जानकारी देता है।
  • यह अनेक वस्तुओं एवं उत्पादों का तुलनात्मक अध्ययन करवाता है।
  • वस्तुओं के नये प्रयोगों की जानकारी देता है।

(iv) विक्रेताओं को महत्त्व (Importance to Salesmen)-

  • यह विक्रेता को अपना कार्य प्रभावी रूप से आरम्भ करने में सहायक सिद्ध होता है।
  • नये उत्पादों को सरल एवं सुविधाजनक तरीके से परिचित कराता है।
  • विक्रेता द्वारा ग्राहकों से बनाये गए सम्बन्ध बने रहते हैं।

(v) समाज को महत्त्व (Importance to Society)-

  • विज्ञापन साधारण रूप से प्रकृति से शैक्षिक है।
  • इससे उत्पादन वृहदाकार हो जाता है।
  • यह अनन्त इच्छाओं एवं उनकी सन्तुष्टि कर, लोगों का जीवन स्तर ऊँचा करता है।
  • इससे रोजगार के अवसर बढ़ते हैं।
  • यह देश की जीवन शैली की झलक प्रदान करता है।
  • यह निर्माताओं के बीच स्वस्थ प्रतिस्पर्धा का सृजन करता है।

प्रश्न 11.
विज्ञापन के साधनों का वर्णन करें।
उत्तर:
विज्ञापन के दो माध्यम हैं
1. घरेलू विज्ञापन साधन (Indoor Advertising Media)- यह उन संदेशवाहक से सम्बद्ध है जिनके द्वारा विज्ञापनकर्ता लक्ष्य समूहों के घरों तक संदेश पहुँचाते हैं। ये साधन निम्नलिखित हैं-

  • समाचार-पत्र विज्ञापन (Newspaper Advertising)
  • पत्रिकाएँ विज्ञापन (Magazine Advertising)
  • रेडियो विज्ञापन (Radio Advertising)
  • टेलीविजन विज्ञापन (Television Advertising)
  • फिल्म विज्ञापन (Film Advertising)

2. बाह्य विज्ञापन माध्यम (Outdoor Advertising Media)- यह उन तकनीकों से सम्बद्ध है जो ग्राहकों को तब सम्पर्क करता है जब वे घर के बाहर होते हैं। ऐसे माध्यम निम्न हैं-

  • पोस्टर विज्ञापन (Poster Advertising)
  • प्रिण्ट निरूपण विज्ञापन (Print Display Advertising)
  • विद्युत् चिन्ह विज्ञापन (Electric Signs Advertising)
  • यात्रा निरूपण विज्ञापन (Travelling Display Advertising)
  • आकाश लेखन विज्ञापन (Sky Writing Advertising)

प्रश्न 12.
नियोजन की प्रक्रिया का संक्षिप्त वर्णन करें।
उत्तर:
नियोजन में निहित आवश्यक कदम (Steps involved in Planning)- नियोजन प्रक्रिया के लिए विभिन्न विद्वानों जैसे मेरी कुशिंग नाइलस, जॉर्ज आर. टेरी, रिचार्ड टी, केस तथा कुण्ट्रज एवं ओ डोनेल ने अलग-अलग बातों को सम्मिलित किया है। इसमें से प्रमुख इस प्रकार हैं-

(i) उद्देश्यों का निर्धारण (Establishment of Objectives) सर्वप्रथम नियोजन प्रक्रिया का प्रारम्भ उद्देश्य निर्धारण करके किया जाता है। उसके बाद विभागों एवं उपविभागों के उद्देश्यों को निर्धारित करना चाहिए। उद्देश्यों के निर्धारण से प्रबन्ध को ज्ञात हो जाता है कि उद्देश्य की पूर्ति के लिए नवीन नियोजन की आवश्यकता तो नहीं है और यदि है तो पुरानी योजना में कितना सुधार करना होगा।

(ii) सूचनाओं का वर्गीकरण तथा विश्लेषण (Analysis and Classification Information)- प्राप्त सूचनाओं का वर्गीकरण तथा विश्लेषण करके यह मालूम करना चाहा कि इनका नियोजन से कितना सम्बन्ध है या कितना नहीं।

(iii) सम्बन्धित क्रियाओं के विषय में पूरी जानकारी (Obtaining Complete Information about the activities Involved)- उद्देश्यों को निश्चित करने के पश्चात् नियोजन से सम्बन्धित क्रियाओं के विषय में भी आवश्यक पूरी जानकारी प्राप्त कर लेनी चाहिए। पूरी जानकारी प्राप्त करने में प्रतियोगी संस्थाओं के कार्यकलापों का ज्ञान, पुराने रिकॉर्ड तथा अनुसंधान आदि सहायक हो सकते हैं।

(iv) नियोजन के आधार पर निर्माण (Determination of Planning Base)- नियोजन का आधार भविष्य की अनिश्चित परि। पतियों से सम्बन्धित होता है जिनका अनुमान लगाना नियोजन की सफलता के लिए परमावश्यक होता है। जैसे- भविष्य में वस्तु की माँग कितनी होगी, बाजार की स्थिति कैसे होगी, कीमतों की प्रकृति कैसी होगी, पूँजी बाजार की दशा, करों की क्या दर होगी तथा सरकारी नीति और कर नीति कैसी होगी।

(v) वैकल्पिक कार्य-विधि का निर्धारण (Determining Alternative Procedures)- किसी भी कार्य को पूरा करने के लिए एक विधि नहीं होती अपितु अनेक विधियाँ होती हैं। इसलिए सर्वोत्तम विधि की खोज करके उसका निर्धारण करना चाहिए।

(vi) वैकल्पिक कार्य-विधियों का मूल्यांकन (Evaluation of Alternative Procedures)- वैकल्पिक कार्यविधि के निर्धारण के बाद मूल्यांकन करना चाहिए। मूल्यांकन करते समय पर्याप्त सावधानी तथा कई बातों को ध्यान में रखना चाहिए। प्रत्येक कार्य-विधि किसी दृष्टि से संस्था को लाभदायक होती है। एक कार्य-विधि बहुत अधिक संस्था को लाभप्रद है। लेकिन उसको लागू करने के लिए बड़ी मात्रा में पूँजी एवं जोखिम उठानी झेलनी पड़ सकती है। जबकि कोई कार्य विधि कम लाभप्रद है। उसके लिए कम पूँजी कम जोखिम की आवश्यकता है। इस प्रकार संस्था के हित को ध्यान में रखकर मूल्यांकन करना चाहिए।

(vii) श्रेष्ठ कार्यविधि का चुनाव (Selection of the best Producers)- नियोजन के लिए वैकल्पिक कार्य-विधियों में से श्रेष्ठ कार्य विधि वही होती है जो कि न्यूनतम लागत पर अधिकतम लाभ संख्या को प्राप्त करता है। कभी-कभी नियोजन के लिए एक कार्य-विधि उपयोगी न होकर कई विधियों का मिश्रण का चुनाव किया जाता है तो ऐसी दशा में किसी एक कार्य विधि का चुनाव . न करके कई कार्यविधियों का चुनाव करना होता है।

(viii) सहायक योजनाओं का निर्माण (Formulation of derivative Plans)- एक मुख्य योजना के निर्माण के बाद उसे ठीक प्रकार से लागू करने के लिए कई सहायक योजनाओं को बनाने की आवश्यकता होती है। ये सहायक योजनाएँ मूल योजना का ही अंग होती हैं ताकि मूल योजना सरलता से पूरी की जा सके।

(ix) योजना पूरी करने में सहयोग लेना (Testing co-operation in execution of Plan)- पूर्व निर्धारित उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए नियोजन के क्रियान्वयन में उस समय के प्रत्येक व्यक्ति से सहयोग प्राप्त करना चाहिए। इसके लिए सम्बन्धित प्रत्येक व्यक्ति को नियोजन की जानकारी देनी चाहिए, उसकी राय ली जानी चाहिए। इस प्रकार सभी कर्मचारियों का सहयोग प्राप्त करके नियोजन का क्रियान्वयन करना चाहिए।

(x) नियोजन का अनुवर्तन (Follow up the Plan)- नियोजन प्रक्रिया में वांछित परिणामों को मालूम करते रहना चाहिए। पूर्व-निर्धारित उद्देश्यों की प्राप्ति नहीं हो पाती तो इसके कारणों को मालूम करके नियोजन में आवश्यकतानुसार सुधार करना चाहिए।

प्रश्न 13.
उत्पादन रूप रेखा क्या है? उत्पादन रूपरेखा के चरणों को समझाइए।
उत्तर:
किसी भी उपक्रम की रीढ़ वे उत्पाद एवं सेवाएँ हैं, जिन्हें यह प्रस्तुत करती है इसलिए क्रिया व्यवस्था के विकास हेतु क्या और कब उत्पादन करें, का विचार प्रथम चरण है। अन्य शब्दों में, किसी उपक्रम द्वारा सर्वप्रथम उत्पाद की रूपरेखा तैयार करना, उसके निर्णयन कार्य का प्राथमिक सामरिक निर्णय है। अनुभव सुझाता है कि एक उपक्रम की छवि एवं उसकी लाभ-उपार्जन क्षमता, बड़ी सीमा तक, उसी उत्पाद रूपरेखा पर निर्भर करती है। क्योंकि एक बार बनाई गई उत्पाद रूपरेखा एक लम्बी अवधि तक चलती है। अत: उत्पाद रूप-रेखा तैयार करने से पूर्व अनेक घटकों जैसे वातावरणीय परिवर्तन, प्रौद्योगिकी एवं उपभोक्ता रुचि व उनकी आवश्यकताओं पर विचार किया जाता है। इसका यह भी अर्थ है कि उत्पाद का प्रारम्भ बाजार की माँग द्वारा शासित होता है परन्तु रूपरेखा एक सरल कार्य नहीं है जोकि कोई व्यक्ति अपने आप ही सम्पन्न कर सके। एक सही प्रकार की उत्पाद रूपरेखा के निर्माण पर व्यय करता हैं उतने ही उसकी सफलता के अवसर होते हैं। साधारणतया उत्पाद रूपरेखा बनाते समय अग्रलिखित तथ्यों का विचार करना चाहिए-

  • प्रमापीकरण,
  • विश्वसनीयता,
  • रख-रखाव,
  • सेवा व्यवस्था,
  • पुनः उत्पादनशीलता,
  • बनाये रखने का स्थायित्व,
  • उत्पाद सरलीकरण,
  • लागत को ध्यान में रखते हुए गुणवत्ता,
  • उत्पाद मूल्य एवं
  • उपभोक्ता किस्म।

प्रश्न 14.
“विज्ञापन पर किया गया खर्च व्यर्थ है।” विवेचना कीजिए।
अथवा, विज्ञापन के दोषों का वर्णन करें।
उत्तर:
अत्यन्त उपयोगी होते हुए भी विज्ञापन के दोष हैं। प्रमुख दोषों की सूची इस प्रकार है-
1. मूल्य वृद्धि- विज्ञापन व्यय क्योंकि मूल्य में शामिल होता है इसलिए वस्तुओं के मूल्यों में अनावश्यक वृद्धि हो जाती है।

2. मानवीय असंतुष्टि- विज्ञापन से सामान्य जनता को नई-नई वस्तुओं की जानकारी मिलती है जिसके कारण वह उनको क्रय करने के बारे में सोचते रहते हैं जबकि उनके पास उन सभी वस्तुओं को क्रय करने के पर्याप्त साधन नहीं होते। इस कारण विज्ञापन से मानवीय असंतुष्टि । असंतोष में वृद्धि होती है।

3. घटिया वस्तुओं का विक्रय- कुछ उत्पादकों ने विज्ञापन को घटिया उत्पाद विक्रय करने का साधन मान लिया है तथा वह इसके द्वारा जनता को मिथ्या सूचनाएँ देकर उच्च मूल्य पर घटिया उत्पाद विक्रय करने में सफल हो जाते हैं।

4. अनावश्यक प्रतिस्पर्धा- विज्ञापन के कारण विनियोजनकर्ता को यह विश्वास हो गया है कि वह जो भी वस्तु उत्पन्न करेंगे, वह विक्रय हो जायेगी। इस कारण उन क्षेत्रों में भी अपने उद्योग शुरू कर रहे हैं जहाँ पहले ही आवश्यकता से अधिक औद्योगिक इकाइयाँ हैं। इससे बाजार में अनावश्यक प्रतिस्पर्धा में वृद्धि हो गई है।

5. एकाधिकार की प्रवृत्ति- विज्ञापन की सहायता से बड़ी-बड़ी कम्पनियाँ लाखों रुपए व्यय कर बाजार में अपनी उत्पाद ब्राण्ड का एकाधिकार बनाने में सफल हो जाती हैं जिससे बाद में वह उपभोक्ताओं का शोषण करती हैं।

6. अश्लील चित्रों का प्रयोग- विज्ञापन की सफलता उसकी आकर्षण शक्ति पर निर्भर होती है। विज्ञापनकर्ताओं ने आकर्षण शक्ति बढ़ाने के लिए अश्लील चित्रों का प्रयोग शुरू कर दिया है जिसका समाज के चरित्र पर बुरा प्रभाव पड़ता है।

7. विज्ञापन पर अधिक बल- कुछ प्रबंधकों ने विज्ञापन को ही विक्रय वृद्धि का मुख्य आधार मान लिया है जो सत्य नहीं है। विक्रय वृद्धि के लिए विज्ञापन स्वयं पर्याप्त नहीं है। उत्पादन की किस्म, मूल्य तथा विक्रय कला भी समान महत्त्व रखती है। यदि एक संस्था इनकी ओर ध्यान नहीं देती तब वह केवल विज्ञापन की सहायता से सफल नहीं हो सकती है। इसलिए वह कहते हैं जब विज्ञापन पूर्ण नहीं है तब इसे अनावश्यक तथा अत्यधिक महत्त्व देने की आवश्यकता नहीं है तथा न ही इस पर इतना अधिक व्यय करने की आवश्यकता है।

आलोचनाओं का खण्डन (Criticism Assailed)- उपरोक्त तथ्यों को देखने से एक बात स्पष्ट होती है कि ये दोष विज्ञापन के नहीं है बल्कि विज्ञापन के प्रयोग करने वालों के हैं। यदि रोगी ने दवाई को गलत ढंग से प्रयोग कर उससे हानि उठाई है तब डॉक्टर को दोषी नहीं कह सकते। इसी तरह विज्ञापन को इन आधारों पर दोष देना उचित व न्यायपूर्ण नहीं है। यदि उत्पादक विज्ञापन का प्रयोग समाज के प्रति अपने उत्तरदायित्व को महसूस करते हुए करे तो इनमें से अधिकांश दोष दूर हो सकते हैं तथा अन्य दोष विज्ञापन के महत्त्व के समक्ष बहुत ही कम रह जाते हैं। इस कारण विज्ञापन को अनावश्यक तथा व्यर्थ कहना उपयुक्त नहीं।

यह तथ्य तो वर्तमान हालत देखने से भी स्पष्ट हो जाता है। यदि विज्ञापन अनावश्यक तथा व्यर्थ होता तब यह अब तक समाप्त हो गया होता। परंतु इसका प्रयोग समय बीतने के साथ-साथ बढ़ता जा रहा है तथा न ही इससे प्रयोग में कमी होने की संभावना ही है।