Bihar Board 12th Geography Important Questions Short Answer Type Part 3

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Bihar Board 12th Geography Important Questions Short Answer Type Part 3

प्रश्न 1.
“कृषि प्रक्षेत्र में भारतीय मजदूरों की सबसे बड़ी भागीदारी है।” व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
भारत मानसूनी जलवायु का प्रदेश है। यहाँ वर्ष भर सघन कृषि का कार्य किया जाता है। हमारे देश की अधिकांश जनसंख्या ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करती है, जो अपने जीविकोपार्जन हेतु प्राथमिक क्रिया के अंतर्गत कृषि का कार्य करते हैं।

यही कारण है कि भारतीय मजदूरों की भागीदारी कृषि क्षेत्रों में सर्वाधिक है।

प्रश्न 2.
भारत में अभ्रक वितरण का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
अभ्रक का उपयोग विद्युत एवं इलेक्ट्रॉनिक उद्योग में किया जाता है। भारत में अभ्रक की प्राप्ति झारखंड, आन्ध्रप्रदेश व राजस्थान में होता है। सबसे अधिक अभ्रक का उत्पादन झारखंड राज्य के कोडरमा जिला में होता है।

प्रश्न 3.
पूरे पृष्ठ पर भारत का मानचित्र बनाएँ और निम्नलिखित को दर्शाएँ।
(क) कॉफी उत्पादन क्षेत्र
(ख) जय प्रकाश अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा
उत्तर:
Bihar Board 12th Geography Important Questions Short Answer Type Part 3, 1

प्रश्न 4.
नगरीकरण और औद्योगिकीकरण से जनसंख्या घनत्व बढ़ता है व्याख्या करें।
उत्तर:
जनसंख्या घनत्व को बढ़ाने में नगरीकरण तथा औद्योगीकरण की भूमिका प्रमुख है। नगरीकरण के फलस्वरूप लोगों को नये रोजगार के बेहतर अवसर, शैक्षणिक व चिकित्सा संबंधी सुविधाएँ तथा परिवहन और संचार के बेहतर साधन उपलब्ध हो पाते हैं वहीं औद्योगीकरण के फलस्वरूप भी लोगों को रोजगार, परिवहन, परिचालन, दुकानदार, बैंककर्मी, डॉक्टर एवं अध्यापक जैसे साधनों का उपयोग करने का अवसर प्राप्त होता है। यही कारण है कि जनसंख्या घनत्व में वृद्धि देखी जाती है।

प्रश्न 5.
मानवीय क्रियाकलाप क्या है ? स्पष्ट करें।
उत्तर:
वैसे विभिन्न प्रकार के कार्य को मानव समूहों के द्वारा किया जाता है, मानवीय क्रिया-कलाप कहलाता है। मानवीय क्रियाकलाप को चार वर्गों में वर्गीकृत करते हैं

  1. प्राथमिक क्रियाकलाप : कृषि, खनन, मछली पकड़ना, पशुचारण।
  2. द्वितीय क्रियाकलाप : विनिर्माण उद्योग, प्रसंस्करण उद्योग।
  3. तृतीय क्रियाकलाप : व्यापार, परिवहन, संचार संवाएँ।
  4. चतुर्थ क्रियाकलाप : सूचना संग्रहण, उत्पादन, अनुसंधान।

प्रश्न 6.
प्रवास के आर्थिक परिणाम कौन-से है ?
उत्तर:
प्रवास के फलस्वरूप आर्थिक परिणाम देखे जाते हैं। उद्गम क्षेत्र के लिए जहाँ से लोग प्रवास करते हैं, उस क्षेत्र के लिए अपने द्वारा अर्जित धन को भेजते हैं। भारत ने सन् 2002 में अंतर्राष्ट्रीय प्रवासियों द्वारा 110 अरब अमेरिकी डॉलर प्राप्त किये। पंजाब, करल और तमिलनाडु राज्यों द्वारा अंतर्राष्ट्रीय प्रवासियों से महत्वपूर्ण राशि प्राप्त किये हैं। भारत के आंतरिक प्रवासियों द्वारा भी आर्थिक वृद्धि की गई है, जिसमें आर्थिक धन का प्रयोग भोजन, ऋण की अदायगी, उपचार, विवाह एवं बच्चों की शिक्षा इत्यादि पर खर्च किये जाते हैं। बिहार, उत्तरप्रदेश, उड़ीसा जैसे राज्यों के लोग महाराष्ट्र, गुजरात, कर्नाटक, तमिलनाडु जैसे राज्यों से आर्थिक धन की प्राप्ति करते हैं।

प्रश्न 7.
जनसंख्या का पर्यावरण पर प्रभाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
जनसंख्या का पर्यावरण पर निम्न प्रभाव पड़ते हैं

  • जनसंख्या वृद्धि के फलस्वरूप आवासों का निर्माण किया जा रहा है, जिससे कृषि भूमि में कमी आ रही है।
  • वनस्पतियों की कटाई अधिक मात्रा में किया जा रहा है।
  • वायु प्रदूषण की पात्रा में वृद्धि हो रही है।
  • नगरीय क्षेत्रों में अपशिष्ट कचरों की मात्रा बढ़ने से वायु प्रदूषण में वृद्धि हो रही है।
  • जल प्रदूषण बढ़ रहा है।
  • मृदा अपरदन की क्रिया तीव्र हो गई है।

प्रश्न 8.
भारत के राष्ट्रीय जलमार्ग का विवरण दें।
उत्तर:
भारत में 14500 किमी. लंबा जलमार्ग उपलब्ध है, जिसका देश के परिवहन में 1% योगदान है। भारत में तीन अंत: स्थलीय जलमार्गों को राष्ट्रीय जलमार्ग घोषित किया गया है। ये हैं

  • हल्दिया से इलाहाबाद तक 1620 कि० मी० लंबा जलमार्ग संख्या-1
  • सादिया से धुबरी तक 891 कि० मी० लंबा जलमार्ग संख्या-2
  • कोट्टापुरम से कोलम तक 168 कि० मी० लंबा जलमार्ग संख्या-3
    राष्ट्रीय जलमार्ग सं०-2 का भारत एवं बंग्लादेश साझेदारी में प्रयोग करते हैं।

प्रश्न 9.
उपभोक्ता वस्तु उद्योग तथा उत्पादन वस्तु उद्योग में अंतर बताएँ।
उत्तर:
उपभोक्ता वस्तु उद्योग तथा उत्पादक वस्तु उद्योग में अंतर :
उपभोक्ता वस्तु उद्योग :

  1. हम अपने दैनिक जीवन में अनेक प्रकार की वस्तुओं का उपभोग करते हैं।
  2. उद्योग जो वस्तुओं का उत्पादन प्राय: लोगों के दैनिक उपयोग के लिए करते हैं, उन्हें उपभोक्ता वस्तु उद्योग कहते हैं, जैसे-खाने के तेल, चाय, कॉफी, रेडियो, टी० वी० वस्त्र, चीनी, वनस्पति घी उद्योग आदि।
  3. इनके उत्पादों का प्रयोग सीधा उपभोग के काम आता है। उपभोक्ता वस्तु उद्योग प्रायः छोटे पैमाने तथा हल्के वर्ग के होते हैं।

उत्पादक वस्तु उद्योग :

  1. इन उद्योगों के उत्पादों का प्रयोग अन्य प्रकार के उत्पादन प्राप्त करने के लिए किया जाता है, जैसे-लोहा-इस्पात उद्योग, भारी मशीनरी उद्योग।
  2. इन उद्योगों से प्राप्त मशीनें अन्य उत्पादों को बनाने के लिए प्रयोग की जाती है। इसलिए इन्हें आधारभूत उद्योग भी कहते हैं।
  3. इन उद्योगों के उत्पादों का प्रयोग उसी समय नहीं होता, बल्कि वह भविष्य में उत्पादन प्रक्रम में योगदान देता है।

प्रश्न 10.
अमेरिका की अर्थव्यवस्था में पनामा नहर की भूमिका पर संक्षेप में प्रकाश डालें।
उत्तर:
72 किलोमीटर लंबे पनामा नहर के निर्माण से न्यूयार्क एवं सेन-फ्रांसिस्को के बीच की समुद्री दूरी लगभग 13000 किमी. हो गई है। संयुक्त राज्य अमेरिका के पश्चिमी तटीय क्षेत्र का पश्चिमी यूरोप एवं दक्षिण एशियाई देशों के बीच की दूरी कम हो जाने से समय एवं लागत दोनों की बचत हुई है।

प्रश्न 11.
आकृति के आधार पर ग्रामीण बस्तियों को वर्गीकृत करें।
उत्तर:
आकृति के आधार पर ग्रामीण बस्तियों के प्रमुख प्रकार हैं-

  • रैखिक प्रतिरूप – सड़क रेलमार्ग, नदी, नहर इत्यादि के किनारे अथवा तटबंधों के सहारे विकसित प्रतिरूप।
  • आयताकार प्रतिरूप – मैदानी भागों में सड़कों के चौराहे एवं पर्वतीय घाटियों में विकसित बस्तियाँ।
  • वृत्ताकार प्रतिरूप – झीलों एवं तालाबों के चारों ओर विकसित बस्ती।
  • ‘टी’ आकार – सड़क किनारे तिराहे पर विकसित बस्तियाँ।

प्रश्न 12.
कृषि सेक्टर में भारतीय श्रमिकों का सर्वाधिक अंश संलग्न है स्पष्ट करें।
उत्तर:
पिछले कुछ दशकों के दौरान भारत में कृषि सेक्टर के श्रमिकों के अनुपात में कमी आयी है। इसके बावजूद 2001 की जनगणना आँकड़ों के अनुसार श्रमिकों का 58.2% प्राथमिक, 4.2% द्वितीय एवं 37.6% तृतीयक क्रियाकलापों में संलग्न हैं। इससे स्पष्ट है कि आज भी भारतीय श्रमिकों का सर्वाधिक हिस्सा कृषि सेक्टर में संलग्न है।

प्रश्न 13.
किसी देश की जनसंख्या तीव्र गति से बढ़ने पर वहाँ के आर्थिक विकास पर क्या प्रभाव पड़ता है ?
उत्तर:
जनसंख्या की तीव्र वृद्धि कारण अनेक प्रकार की आर्थिक और सामाजिक समस्याएँ उत्पन्न हो जाती हैं-

  • भोजन की समस्या (Food Problems) – तीव्र गति से जनसंख्या की वृद्धि के कारण भोज्य पदार्थों की आवश्यकता की पूर्ति कठिन हो जाती है।
  • आवास की समस्या ( Housing Problems) – बढ़ती जनसंख्या के कारण निवास स्थानों की कमी होती जा रही है। लाखों लोग झुग्गी तथा झोपड़ी में निवास करते हैं।
  • बेरोजगारी (Unemployment) – जनसंख्या वृद्धि के कारण बेकारी एक गम्भीर समस्या के रूप में उभर कर सामने आयी है। आर्थिक विकास कम हो जाने से रोजगार के अवसर कम हो जाते हैं और बेरोजगारों की संख्या बढ़ जाती है।
  • निम्न जीवन-स्तर (Low Standardof Living) – अधिक जनसंख्या के कारण प्रति व्यक्ति आय कम हो जाती है, इसलिए जीवन स्तर गिर जाता है।
  • जनसंख्या का कृषि पर अधिक दबाव (Pressure of Population on Land) – बढ़ती जनसंख्या को खाद्यान्नों की पूर्ति करने के लिए कृषि योग्य भूमि पर दबाव बढ़ जाता है।
  • बचत में कमी (Less Savings) – जनसंख्या वृद्धि के कारण कीमतें बढ़ जाती हैं तथा बचत कम होती है। लोगों को शिक्षा व चिकित्सा सुविधाएँ बहुत कम प्राप्त होती हैं।
  • स्वास्थ्य (Health) – नगरों में गंदगी बढ़ जाती है। स्वास्थ्य और सफाई का स्तर नीचे गिर जाता है।

प्रश्न 14.
नाभिकीय ऊर्जा क्या है ? भारत के प्रमुख नाभिकीय ऊर्जा केन्द्रों के नाम लिखें।
उत्तर:
रेडियोधर्मी तत्वों के नाभिकीय विखंडन से प्राप्त ऊर्जा को नाभिकीय ऊर्जा कहा जाता है।
भारत के प्रमुख नाभिकीय ऊर्जा केंद्रों के नाम हैं-

  • तारापुर
  • रावतभाटा
  • कलपक्कम्
  • नरोरा
  • काकरापाड़
  • कैगा।

प्रश्न 15.
भारत में एक्सप्रेस वे क्या है ?
उत्तर:
दिल्ली जयपुर तथा मुंबई से पुणे तक चार लेनवाली आधुनिक सड़कों को एक्सप्रेस-वे कहा जाता है। इस पर चलनेवाली गाड़ियों की अतिरिक्त टोल-टैक्स देना पड़ता है। इस सड़क पर किसी अन्य सड़क से कोई गाड़ी नहीं आ सकती है।

प्रश्न 16.
1991 ई० की नई औद्योगिक नीति के तीन मुख्य उद्देश्यों को लिखिए।
उत्तर:
1991 ई० की औद्योगिक-नीति के तीन मुख्य उद्देश्य हैं-

  • उदारीकरण, निजीकरण एवं वैश्वीकरण पर आधारित इस नीति में सतत विकास पर ध्यान दिया गया है।
  • उत्पादकता एवं लाभप्रद रोजगार को बढ़ाने का लक्ष्य है।
  • लाभदायक पदार्थों के निर्माण को बढ़ाकर तथा गुणवत्ता और बाजार को आकर्षक बनाकर लाभ में वृद्धि करना।

प्रश्न 17.
नियतिवाद और संभावनावाद में अन्तर स्पष्ट करें।
उत्तर:
नियतिवाद और संभावनावाद में निम्नलिखित अंतर है-

नियतिवाद (Determinism):

  1. इस विचारधारा के अनुसार मनुष्य के प्रत्येक क्रियाकलाप को पर्यावरण से नियंत्रित माना जाता है।
  2. नियतिवादी सामान्यतः मानव को एक निष्क्रिय कारक समझते हैं, जो पर्यावरणीय कारकों से प्रभावित होता है।
  3. हिपोक्रेट्स, अरस्तू, हेरोडोटस, स्ट्रैबो आदि रोमन और यूनानी विद्वानों ने नियतिवाद का समर्थन किया। रैटजैल, रिटर, हम्बोल्ट, कांट आदि ने भी इस विचारधारा का समर्थन किया।
  4. इस विचारधारा के मानने वाले मानव के आचरण, निर्णय क्षमता, कार्य- कुशलता तथा जीवन पद्धति आदि को भी पर्यावरण के भौतिक कारकों द्वारा प्रभावित मानते हैं।
  5. इस विचारधारा के अनुसार प्राकृतिक पर्यावरण सर्वप्रमुख है जो मानव के सारे क्रिया-कलापों को नियंत्रित करता है।

संभावनावाद (Possibilism):

  1. इस विचारधारा के अनुसार मनुष्य अपने पर्यावरण में परिवर्तन करने में समर्थ है तथा वह प्रकृतिदत्त अनेक संभावनाओं का इच्छानुसार अपने लाभ के लिए उपयोग कर सकता है।
  2. संभावनावाद प्रकृति की तुलना में मनुष्य को महत्त्वपूर्ण स्थान देता है और उसे सक्रिय शक्ति के रूप में देखता है।
  3. लूसियन फैबने, वाइडल डी० ला ब्लाश ने व्यवस्थित तरीके से इस विचारधारा का प्रचार-प्रसार किया।
  4. इस विचारधारा के अनुसार नियतिवाद का यह सिद्धांत कि मनुष्य प्रकृति का दास है, अस्वीकृत कर दिया गया।
  5. कुछ भूगोलवेत्ताओं ने इस बात पर बल दिया कि मनुष्य प्रकृति के तत्त्वों को अपने लाभ के लिए चुनने के लिए स्वतंत्र होता है और इस दृष्टि से मनुष्य को उसके भौतिक पर्यावरण की अपेक्षा महत्त्वपूर्ण स्थान दिया गया है।

प्रश्न 18.
मानव भूगोल के अध्ययन में वाइडल डी ला ब्लॉश का क्या योगदान है ?
उत्तर:
वाइडल डी-ला ब्लॉश के अनुसार मानव भूगोल की परिभाषा इस प्रकार है-मानव भूगोल प्रकृति एवं मनुष्य के बीच पारस्परिक सम्बन्धों को एक नई समझ देता है। उन्होंने मानव भूगोल में संभावनावाद की नींव रखी। जब प्रकृति की तुलना में मनुष्य को महत्त्वपूर्ण स्थान प्रदान किया जाए और जब मानव को निष्क्रिय शक्ति के रूप में देखा जाए तो यह धारणा संभावनावाद कहलाती है। यद्यपि संभावनावाद की संकल्पना प्रथम विश्व युद्ध से पहले की गई लेकिन वाइडल डी. ब्लॉश ने व्यवस्थित तरीके से इस विचारधारा का प्रचार-प्रसार किया।

उनके अनुसार मनुष्य की जीवन शैली मनुष्य और उसके निवास स्थान के सम्बन्धों को नियंत्रित करने वाले भौतिक ऐतिहासिक और सामाजिक प्रभावों का समन्वित परिणाम है। उन्होंने समान पर्यावरण के भीतर मानव समूह के अन्तर को स्पष्ट करने का प्रयास किया। उन्होंने बताया कि विभिन्नतायें भौतिक, पर्यावरण के दबाव के प्रतिफल नहीं अपितु दूसरे कारकों जैसे मानव मूल्य एवं आदतों में परिवर्तन का परिणाम हैं। यही संकल्पना सम्भावनावादियों के लिये आधारभूत दर्शन बनी।

प्रश्न 19.
मानव भूगोल के अध्ययन के संदर्भ में फ्रेडरिक रेटजैल के योगदान का वर्णन करें।
उत्तर:
फ्रेडरिक रेटजैल मानव भूगोल के जन्मदाता माने जाते हैं। उन्होंने अपनी पुस्तक ‘एन्थ्रोयोलाजी’ (1899) में भूगोल के अध्ययन को मानव केन्द्रित विचारधारा में परिवर्तित किया। मानव भूगोल के विकास की यह एक युगान्तकारी घटना है। मानव भूगोल को मानव केन्द्रित अध्ययन में स्थापित करने के कारण रेटजैल को आधुनिक मानव भूगोल का जनक कहा जाता है। उसके अनुसार मानव भूगोल मानव समाज एवं भूपृष्ठ के मध्य पारस्परिक सम्बन्धों का संश्लिष्ट सम्बन्ध है. तथा मानव भूगोल के विषय सर्वत्र वातावरण से संबंधित होते हैं जो स्वयं भौतिक दशाओं का एक योग होता है।

प्रश्न 20.
चलवासी पशुचारण की प्रमुख विशेषतायें तथा इससे संबंधित क्षेत्रों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
विशेषताएँ :

  • चलवासी पशु चारक विभिन्न समुदायों में विभाजित होते हैं। प्रत्येक समुदाय एक सुस्पष्ट सीमा में विचरण करता है।
  • इन्हें अपने क्षेत्र के मौसम के अनुसार चारे तथा जल आपूर्ति की जानकारी होती है।
  • इस प्रक्रिया में पशु पूर्णतः प्राकृतिक वनस्पति पर ही निर्भर करते हैं।
  • चलवासी पशुचारक गाय, भैंस, घोड़े, भेड़-बकरी पालते हैं।
  • इन लोगों का जीवन पूर्णतः पशुओं पर ही निर्भर करता है।
  • हिमालय क्षेत्र के चलवासी गुज्जर-बकरवाल, गद्दी व भोटिया भेड़, बकरी व याक पालते हैं।

चलवासी पशुचारण के तीन प्रमुख क्षेत्र निम्न हैं-

  • यह क्षेत्र 5° प० अक्षांश के मध्य उत्तरी अफ्रीका के सहारा मरुस्थल से पूर्वी अफ्रीका के तटीय भाग, सऊदी अरब, इराक, ईरान, अफगानिस्तान होता हुआ मंगोलिया तक फैला है।
  • यूरेशिया में टुण्ड्रा ।
  • दक्षिण-पश्चिम अफ्रीका तथा मालागासी के पश्चिमी भाग

प्रश्न 21.
जनसंख्या की व्यावसायिक संरचना का क्या अर्थ है ? संसार में पाए जाने वाले व्यावसायिक संरचना के चार प्रमुख वर्गों की उदाहरण सहित व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
व्यावसायिक संरचना का अर्थ है किसी देश की विशिष्ट आर्थिक क्रियाओं में जनसंख्या का आनुपातिक वितरण। संयुक्त राष्ट्र संघ ने विश्व की जनसंख्या को निम्नलिखित आर्थिक क्रियाओं में विभाजित किया है-
1. कृषि, 2. आखेट, 3. वानिकी, 4. मत्स्य, 5. खनन, 6. विनिर्माण, 7. वाणिज्य आदि। इनको चार समूहों में विभक्त किया जा सकता है-

  1. प्राथमिक व्यवसाय (Primary Occupation) – इसके अन्तर्गत कृषि, वानिकी, मत्स्य आदि सम्मिलित हैं।
  2. द्वितीयक अथवा गौण व्यवसाय (Secondary Occupation) – इसके अन्तर्गत विनिर्माण उद्योग आदि आते हैं।
  3. तृतीयक उद्योग (Terriary Occupation) – इसके अन्तर्गत यातायात, संचार आदि सेवाएँ आती हैं।
  4. चतुर्थक व्यवसाय (Quarternary Occupation) – इसके अन्तर्गत बौद्धिक व्यवसाय, अनुसंधान, शिक्षा, सूचना आदि आते हैं।

विकसित देशों में द्वितीयक, तृतीयक और चतुर्थक व्यवसाय अधिक पाए जाते हैं जबकि विकासशील देशों में प्राथमिक व्यवसाय अधिक पाये जाते हैं।

प्रश्न 22.
व्यापारिक पशुपालन किसे कहते हैं ? उसकी चार विशेषतायें लिखें।
उत्तर:
बड़े-बड़े फार्मों पर धन कमाने के लिए वैज्ञानिक ढंग से पशुओं का पालनपोषण करना व्यापारिक पशुपालन कहलाता है। इसकी विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

  • यह एक बड़े पैमाने पर चारे की फसलों की सहायता से घास के मैदानों में स्थायी रूप से पशुपालन है।
  • यह पशुपालन कम जनसंख्या वाले क्षेत्रों में बड़े-बड़े फार्मों पर किया जाता है।
  • यह पशुपालन शीतोष्ण घास के मैदानों में प्रचलित है जहाँ सम जलवायु पाई जाती है।
  • यह प्रायः विकसित देशों जैसे आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड आदि देशों में प्रचलित है।

प्रश्न 23.
संसार में उद्योगों की अवस्थिति के लिए कच्चा माल, श्रम तथा ऊर्जा के स्रोतों की भूमिका स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:

  1. कच्चा माल (Raw Material) – उद्योगों की स्थापना के लिए कच्चा माल उनका आधार है। भारी कच्चे माल के समीप ही उद्योग लगाए जाते हैं। जैसे–चीनी उद्योग, इस्पात उद्योग आदि।
  2. श्रम (Labour) – उद्योगों के लिए श्रमिक अनिवार्य हैं। कुछ उद्योग श्रम प्रधान होते हैं तथा कुशल श्रम की आवश्यकता होती है। उदाहरण के लिए, मुरादाबाद का बर्तन उद्योग, एम्सटरडम का हीरा उद्योग, स्वीडन का मशीन-उपकरण उद्योग आदि।
  3. ऊर्जा (Energy) – मशीनों को चलाने के लिए पर्याप्त मात्रा में ऊर्जा की नियमित आपूर्ति आवश्यक है। उद्योगों को ऊर्जा के स्रोतों के निकट ही लगाया जाता है।

प्रश्न 24.
भारी रसायन उद्योगों तथा पेट्रो रसायन उद्योगों में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भारी रसायन उद्योग (Heavy Chemical Industries) – रासायनिक पदार्थ जो कि खनिज अथवा औद्योगिक गौण पंदार्थों पर निर्भर रहते हैं, भारी रसायन कहलाते हैं। उदाहरण-सल्फ्यूरिक, हाइड्रोक्लोरिक।

पेट्रो रासायनिक उद्योग (Petro Chemical Industries) – जो रसायन कोयला, प्राकृतिक गैस या पेट्रोलियम पर निर्भर रहते हैं, वे पेट्रो-कैमिकल कहलाते हैं। उदाहरण-रासायनिक खाद, प्लास्टिक सामग्री आदि।

प्रश्न 25.
संसार में रेलमार्गों के विकास में सहायक तीन प्रमुख कारक बताइए।
उत्तर:
संसार में रेलमार्गों के विकास में निम्न कारक सहायक हैं

  1. समतल भूमि (Plains) – समतल मैदानों में रेलमार्गों का विकास अधिक संभव है। यूरोप और उत्तरी अमेरिका के मैदानों में रेलमार्गों का जाल बिछा हुआ है।
  2. सघन जनसंख्या (Dense Population) – सघन जनसंख्या के कारण भी अधिक रेलमार्ग बिछाए जाते हैं। उदाहरणस्वरूप भारत का उत्तरी मैदान।
  3. औद्योगीकरण तथा समृद्ध कृषि (Industrialisation and Developed Agriculture) – उद्योगों के विकास तथा समृद्ध कृषि क्षेत्रों में भी रेलों का अधिक विकास होता है। उदाहरण-यूरोप तथा उत्तरी अमेरिका।

प्रश्न 26.
संयुक्त राज्य अमेरिका की प्रसिद्ध पाइप लाइन कौन-सी है ? पाइप लाइन परिवहन के चार लाभों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
संयुक्त राज्य अमेरिका की प्रसिद्ध पाइप लाइन का नाम बिग इंच है। पाइप लाइन परिवहन के लाभ निम्नलिखित हैं-

  • पाइपलाइन से तरल तथा गैसीय पदार्थों को दूर स्थानों तक ले जाया जाता है। इनसे पानी, पेट्रोल, गैस आदि ले जाए जाते हैं।
  • पाइपलाइन निर्माण में एक बार ही पूँजी निवेश करना पड़ता है। फिर खर्च में कमी आ जाती है और परिवहन सुगम हो जाता है।
  • पाइपलाइनों से तरल पदार्थों की आपूर्ति निरंतर बनी रहती है।
  • पाइपलाइन को सभी प्रकार के धरातल-ऊबड़-खाबड़, पठारी, पर्वतीय व कठिन भू-भागों यहाँ तक कि पानी के नीचे भी बिछाया जा सकता है।
  • इनसे समय की बचत होती है।
  • पाइपलाइन द्वारा परिवहन पर्यावरण-हितैषी तीव्र एवं सस्ता है।

प्रश्न 27.
सड़क परिवहन सुविधाजनक क्यों होता है ?
उत्तर:

  • सड़क परिवहन अपेक्षाकृत सस्ता है। इसकी लागत, मरम्मत और देखभाल तुलनात्मक दृष्टि से कम है।
  • सड़कें उपभोक्ता के घर तक पहुँचती हैं। उत्पादक और व्यापारी सड़क परिवहन को अधिक पसंद करते हैं क्योंकि माल को बार-बार उतारना या चढ़ाना नहीं पड़ता।
  • यह कम दूरी के लिए बहुत उत्तम है।
  • शीघ्र नष्ट होने वाली वस्तुयें, जैसे सब्जियाँ, फल, दूध उत्पाद आदि के लिए उपयोगी हैं।
  • कहीं भी कभी भी अर्थात् समय और स्थान की पाबन्दी नहीं है। यात्री और सामान को कहीं से कहीं भी ढोया जा सकता है।
  • पैकिंग आदि की आवश्यकता नहीं। फल, सब्जियाँ आदि सीधे ट्रकों से ढोई जा सकती हैं।

प्रश्न 28.
पत्तनों को अंतर्राष्टीय व्यापार का प्रवेश द्वार क्यों कहते हैं ?
उत्तर:
समुद्र तट का वह स्थान जहाँ से भारी मात्रा में माल समुद्री मार्गों से स्थलमार्गों द्वारा और स्थलमार्गों से समुद्री मार्ग द्वारा भेजा जाता है, पत्तन कहलाता है। पत्तन अपने पृष्ठ प्रदेश (Hinter land) के लिए विदेशों से माल आयात करता है तथा अपने पृष्ठ प्रदेश में उत्पादित माल दूसरे देशों को भेजता है।

पत्तन सागरीय व्यापार के द्वार होते हैं जहाँ जहाजों के ठहरने का उचित प्रबन्ध होता है। जहाजों से सामान उतारने तथा उन पर सामान लादने की भी उचित व्यवस्था होती है। पत्तन का मुख्य कार्य आयात एवं निर्यात की जाने वाली वस्तुओं को कम समय में सक्षम ढंग से भेजना है। इसकी क्षमता माल के भार तथा जलयानों की संख्या से आंकी जाती है। पत्तनों पर अनेक प्रकार की सुविधाएँ उपलब्ध होती हैं। जैसे-माल रखने के लिए गोदाम की सुविधा, यात्रियों के ठहरने के लिए विश्रामगृह, नौगम्य चैनल के रख-रखाव की सुविधा। ये देश के आंतरिक भागों से रेल तथा सड़कों द्वारा जुड़े हुए होते हैं। इस प्रकार पत्तन व्यापार के लिए स्थल से समुद्र तक तथा समुद्र से स्थल तक द्वार का काम करते हैं। अतः इन्हें अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार का प्रवेश द्वार कहा जाता है।

प्रश्न 29.
आयात और निर्यात में अंतर बताइए।
उत्तर:
आयात और निर्यात में अंतरआयात (Import)-

  • एक देश जो माल दूसरे देशों से मँगवाता है, उसे आयात कहते हैं।
  • आयात व्यापार के लिए देशों को अपनी बहुमूल्य विदेशी मुद्रा को खर्च करना होता है।
  • आयात द्वारा देश अपने उद्योगों के विकास के लिए मशीनें, कच्चा माल आदि प्राप्त करता है।
  • जनता के उपभोग के लिये आवश्यक सामग्री आयात करता है।

निर्याता (Export)-

  • किसी देश से जो माल अन्य देशों को भेजा जाता है, उसे निर्यात कहते हैं।
  • निर्यात तभी होता है जब किसी देश में वस्तुओं का उत्पादन अधिशेष हो और दूसरे देश इसकी माँग करते हों।
  • वे देश जो वस्तुओं का उत्पादन अधिक मात्रा में करते हैं और उनको वे बाहर भेजना चाहते हैं, निर्यात कहलाता है।
  • निर्यात द्वारा देश विदेशी मुद्रा अर्जित करता है।

प्रश्न 30.
सतलुज-गंगा के मैदान में सघन जनसंख्या के संकेन्द्रण के कारणों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
जनसंख्या वितरण को प्रभावित करने वाले कारकों में भौतिक कारकों के साथ सामाजिक तथा आर्थिक कारक भी सम्मिलित हैं। सतलुज-गंगा के मैदान में सघन जनसंख्या संकेन्द्रण के कारण निम्नलिखित हैं

  1. समतल मैदान (Levelled Plain) – सतलुज-गंगा का मैदान समतल है। मैदान के उपजाऊ होने के साथ-साथ अन्य सभी सुविधायें उपलब्ध हैं।
  2. निरन्तर जल आपूर्ति (Continuous Water Supply) – इस मैदान में अनेक सदावाही नदियाँ हैं। अतः कृषि के लिए जल की आपूर्ति निरन्तर बनी रहती है।
  3. जलवायु (Climate) – इस मैदान में मृदुल जलवायु के कारण वर्ष भर वर्धनकाल लम्बा रहता है। इसलिए कृषि कार्य संभव है।

प्रश्न 31.
आयु के आधार पर भारत की जनसंख्या के तीन प्रमुख वर्ग कौन-से हैं ? कार्यरत आयु वर्ग कौन-सा है ? इस आयु वर्ग की तीन विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
आयु के आधार पर जनसंख्या को तीन वर्गों में विभाजित किया जा सकता है : युवक, प्रौढ़ तथा वृद्धा।
युवक 0-14 वर्ष, प्रौढ़ 15-59 वर्ष तथा वृद्ध 60 वर्ष से अधिक।
कार्यरत वर्ग 15-59 वर्ष के वर्ग समूह को कहा जाता है। इसकी तीन विशेषताएँ निम्न हैं-

  1. कार्यरत वर्ग का अनुपात 56.7% है।
  2. इस वर्ग में स्त्रियों के अनुपात को प्रजनन वर्ग कहा जाता है।
  3. इस वर्ग पर देश की सहभागिता निर्भर है।

प्रश्न 32.
भारत में जनसंख्या प्रवास के मुख्य कारण कौन-से हैं ?
उत्तर:
भारत में जनसंख्या प्रवास के मुख्य कारण निम्नलिखित हैं-

  1. आजीविका अथवा रोजगार (Employment) – ग्रामीण इलाकों में अधिकांश लोग कृषि पर निर्भर करते हैं। बहुत बड़े भाग को गाँवों में आजीविका उपलब्ध नहीं होती इसलिए वे नगर की ओर रोजगार के लिए जाते हैं।
  2. विवाह (Marriage) – विवाह प्रवास का एक महत्त्वपूर्ण सामाजिक कारक है। प्रत्येक लड़की को विवाह के पश्चात् अपनी ससुराल के घर जाकर रहना पड़ता है।
  3. शिक्षा (Education) – ग्रामीण इलाकों से शिक्षा विशेषकर उच्च शिक्षा के लिए बड़े नगरों में आकर रहना पड़ता है।
  4. सरक्षा की कमी (Lack of Security) – राजनीतिक तथा जातीय दंगों के कारण लोग अपने घरों को छोडकर सरक्षित स्थानों की ओर प्रवास करते हैं। जैसे कश्मीर घाटी के पंडित सुरक्षित स्थानों में रहने चले गए हैं।
  5. कृषि पर दबाव (Pressure on Agriculture) – कृषि पर जनसंख्या के अधिक दबाव के कारण बहुत से ग्रामीण बेरोजगार होने लगते हैं। इसलिए ये लोग नगरों की ओर प्रवास करते हैं।

प्रश्न 33.
उत्तरी भारत के अधिकांश राज्यों में मानव विकास के निम्न स्तरों के दो कारण बताइए।
उत्तर:
उत्तरी भारत में मानव विकास के निम्न स्तर के कारण निम्नलिखित हैं-

  • गरीबी (Poverty) – पंजाब, हरियाणा को छोड़कर अन्य जैसे-उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, असम आदि राज्यों में गरीबी के कारण मानव विकास नहीं हो पाया है।
  • पिछडा (Backwardness) – ये प्रदेश कृषि प्रधान होने के कारण अन्य क्षेत्रों में पिछडे हुए हैं जैसे-औद्योगिकीकरण आदि। शिक्षा का स्तर भी नीचा है। पिछड़ेपन के कारण इन राज्यों का मानव विकास नहीं हो पाया है।

प्रश्न 34.
देश में अपेक्षाकृत निम्न साक्षरता दर के कारणों की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
स्वतंत्रता के पश्चात् भारत में पहली बार 90 के दशक में 3.19 करोड़ निरक्षरों की कमी हुई। 1951 में साक्षरता दर केवल 18.33% थी। 2001 में यह बढ़कर 65.38 हो गई । पुरुष साक्षरता दर की तुलना में अभी भी स्त्री साक्षरता दर कम है।

भारत में साक्षरता दर के निम्न होने के कारण निम्नलिखित है-

  • गरीबी (Poverty) – भारत में अभी भी बड़ी संख्या में लोग गरीबी रेखा से नीचे हैं।
  • समाज में स्त्रियों की स्थिति (Position of Women in the Society) – भारत में स्त्रियों को समाज में समान दर्जा प्राप्त नहीं है। विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में स्त्री शिक्षा पर बल नहीं दिया जाता। इसलिए स्त्री शिक्षा अभी भी बहुत कम है।
  • शिक्षा सविधाओं का अभाव (Lack of Education Facilities) – भारत में प्राथमिक विद्यालयों का अभाव है। ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा का व्यापक प्रचार नहीं हुआ है।
  • अजानता (Ignorance) – अनेक जनजातीय क्षेत्रों में अज्ञानता के कारण शिक्षा पर विशेष ध्यान नहीं दिया जाता इसलिए साक्षरता दर में कमी रहती है।
  • नगरीकरण की स्थिति (Urbanisation) – भारत में अधिकतर जनसंख्या ग्रामीण क्षेत्रों में रहती है इसलिए साक्षरता दर नीची है। नगरों में साक्षरता दर ऊँची होती है।

प्रश्न 35.
देश में कुल उपयोग किए गए जल में कृषि क्षेत्र का हिस्सा कम होने की संभावना क्यों है ?
उत्तर:
कृषि क्षेत्र में सतह जल का 89% और भूमिगत जल का 92% उपयोग होता है। इसके विपरीत औद्योगिक क्षेत्र में सतह जल केवल 2% और भूमिगत जल का 5% ही उपयोग होता है। कुल जल उपयोग में कृषि क्षेत्र का भाग अन्य क्षेत्र से अधिक है। अन्य क्षेत्रों का भाग बढ़ाने के लिये कृषि क्षेत्र का उपयोग कम करना आवश्यक है।

प्रश्न 36.
लोगों पर संदूषित जल/गंदे पानी के उपयोग के क्या संभव प्रभाव हो सकते हैं ?
उत्तर:
दुषित जल के उपयोग से गरीबों के स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है। दूषित जल से जलजनित बीमारियाँ हो जाती हैं। इनमें हैजा, डायरिया, पीलिया आदि प्रमुख हैं।

प्रश्न 37.
पंजाब, हरियाणा और तमिलनाडु राज्यों में सबसे अधिक भौम जल विकास के लिए कौन-से कारक उत्तरदायी हैं ?
उत्तर:
पंजाब, हरियाणा और तमिलनाडु में नदी बेसिनों में भूमिगत जल का स्तर अपेक्षाकृत ऊँचा है क्योंकि इन नदियों में पुनः पूर्ति योग्य भूमिगत जल की मात्रा अधिक है।

प्रश्न 38.
देशों में सिंचाई के विभिन्न साधनों के सापेक्षिक महत्त्व में परिवर्तन का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भारत में सिंचाई के तीन प्रमुख साधन हैं-नहरें, कुएँ और तालाब। समय के अनुसार प्रत्येक साधन का सापेक्ष महत्त्व बदलता रहा है।
1950 तक नहरें सिंचाई का महत्त्वपूर्ण साधन थीं। नहरों की भागीदारी लगभग 40% थी। 1950 के बाद नहरों द्वारा सिंचित क्षेत्र का प्रतिशत अनुपात कुओं तथा नलकूपों द्वारा सिंचित क्षेत्र की तुलना में घटता गया और 1999-2000 में घटकर 31.3% रह गया।

इसी प्रकार तालाब द्वारा सिंचित क्षेत्र का अनुपात 1950 में 17.3% था जो घटते हुए 1999-2000 में केवल 4.7% रह गया। तालाबों द्वारा सिंचाई का महत्त्व समय के साथ-साथ कम हो गया जबकि कुएँ और नलकूप से सिंचाई के महत्त्व में लगातार वृद्धि होती गई। 1950-51 में कुएँ और नलकूप द्वारा सिंचाई का प्रतिशत अनुपात 28.7% था जो बढ़कर 1990-91 में 51.5% तथा 2000 तक 58.8% हो गया। कुओं तथा नलकूपों द्वारा सिंचाई का महत्त्व बढ़ने के कारण नलकूपों में डीजल तथा विद्युत पंखों का आरम्भ होना था।

प्रश्न 39.
वर्षा जल संग्रहण क्या है ? आजकल यह भारत में क्यों आवश्यक है ? चार कारण दीजिए।
उत्तर:
वर्षा जल संग्रहण भौम जल में पुन:भरण की एक तकनीक है। इसमें स्थानीय रूप से वर्षा जल को एकत्र करके भूमि जल भंडारों को भरना है जिससे भौम जल के जल पटल में जल की कमी न रहे और इस जल से लोगों की स्थानीय माँग की पूर्ति होती रहे। वर्षा जल संग्रहण की आवश्यकता के निम्न कारण हैं-

  1. जल की निरन्तर माँग को पूरा करते रहना।
  2. नालियों को रोकने वाले सतही प्रवाह को कम करना।
  3. सड़कों के जल भराव को रोकना।
  4. भौम जल प्रदूषण को रोककर प्रदूषण को घटाना।
  5. भौम जल की गुणवत्ता को सुधार कर उसे बढ़ाना।
  6. मृदा अपरदन को रोकना।
  7. ग्रीष्म काल में जल की घरेलू आवश्यकताओं को पूरा करना।

प्रश्न 40.
ऊर्जा के अपारंपरिक स्रोत कौन-से हैं ?
उत्तर:
अपारंपरिक ऊर्जा में सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा, ज्वारीय ऊर्जा, भू तापीय ऊर्जा, जैव ऊर्जा आदि सम्मिलित हैं।

ये उपर्युक्त संसाधन समान रूप से वितरित तथा पर्यावरणीय हितैषी हैं। इन संसाधनों से सतत पोषणीय पर्यावरणीय हितैषी तथा सस्ती. ऊर्जा मिलती है।

प्रश्न 41.
अन्तर स्पष्ट करें – (i) धात्विक खनिज और अधात्विक खनिज (ii) ताप विद्युत और जल विद्युत
उत्तर:
(i) धात्विक खनिज (Metalic Minerals)-

  • जिन खनिजों को पिघलाने से धातुएँ बनती हैं उन्हें धात्विक खनिज कहते हैं। जैसे-लोहा, ताँबा आदि।
  • इनकी अपनी चमक होती है।
  • ये आग्नेय और कायान्तरित शैलों में पाये जाते हैं।
  • इनका औद्योगिक महत्त्व बहत अधिक है।
  • इनकी तार व छड़ें नहीं बनाई जा सकती हैं।

अधात्विक खनिज (Non-metalic Minerals)-

  • जिन खनिजों में धातुएँ नहीं होती उन्हें अधात्विक खनिज कहते हैं। जैसे-नमक, कोयला आदि।
  • ये ठोस, तरल अथवा गैस के रूप में होते हैं।
  • ये अवसादी शैलों में मिलते हैं।
  • चूना पत्थर, कोयला आदि अधात्विक खनिज हैं।
  • इनकी तार व चादरें बनाई जा सकती हैं।

(ii) ताप विद्युत (Thermal Electricity)-

  • यह कोयला, डीजल अथवा परमाणु ऊर्जा से तैयार की जाती है।
  • ये साधन समाप्य साधन हैं। इसलिए अधिक खर्चीले साधन हैं।
  • ये पर्यावरण को प्रदूषित करते हैं। कोयले से धुआँ निकलता है जो पर्यावरण को प्रदूषित करता है।
  • ताप विद्युत संयंत्र कोयला अथवा परमाणु ऊर्जा के संसाधनों के समीप ही बनाये जाते हैं।

जल विद्युत (Hydro Electricity)-

  • यह नदियों पर बाँध बनाकर तैयार की जाती है।
  • जल एक असमाप्य साधन है। इसलिए जल विद्युत भी असमाप्य संसाधन है।
  • यह प्रदूषित रहित है।
  • यह कम खर्चीला साधन है।

प्रश्न 42.
भारत में पेट्रोलियम के किन्हीं तीन व्यापारिक उत्पादन क्षेत्रों का वर्णन करें।
उत्तर:
भारत में पेट्रोलियम का व्यापारिक उत्पादन निम्न क्षेत्रों में किया जाता है-

  1. उत्तर-पूर्वी प्रदेश (North-east Regions) – इस प्रदेश में तेल क्षेत्र हैं-डिग्बोई, नहर कटिया, मोरान, रुद्रसागर आदि।
  2. गुजरात प्रदेश (Gujarat Region) – अंकलेश्वर, कलोल, नवगाव, कोसावा, महसाना, आलियावेंट आदि।
  3. मुम्बई हाई (Mumbai High) – यह क्षेत्र मुम्बई से 176 किमी अरब सागर में अपतट क्षेत्र है। यह सबसे अधिक महत्वपूर्ण तेल क्षेत्र है। यहाँ से देश के उत्पादन का दो-तिहाई तेल निकाला जाता है।

प्रश्न 43.
चीनी उद्योग एक मौसमी उद्योग क्यों है ?
उत्तर:
चीनी उद्योग एक मौसमी उद्योग है। इसके निम्न कारण हैं-

  1. यह उद्योग गन्ने के उत्पादन समय पर निर्भर करता है।
  2. गन्ने का भंडारण लम्बे समय तक नहीं हो सकता इसलिये गन्ने की कटाई के समय ही यह उद्योग चलाया जाता है। गन्ना एक निश्चित समय में काटा जाता है।
  3. इस उद्योग पर वर्ष भर कच्चे माल की आपूर्ति नहीं हो सकती। इसलिये गन्ना की कटाई के समय ही यह उद्योग चालू रहता है।

Bihar Board 12th Geography Objective Important Questions Part 6

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Bihar Board 12th Geography Objective Important Questions Part 6

प्रश्न 1.
निम्नलिखित में से जल किस प्रकार का संसाधन है ?
(a) अजैव संसाधन
(b) अनवीकरणीय संसाधन
(c) जैव संसाधन
(d) चक्रीय संसाधन
उत्तर:
(d) चक्रीय संसाधन

प्रश्न 2.
निम्नलिखित नदियों में से देश में किस नदी में सबसे ज्यादा पुनः पूर्तियोग्य भौम जल संसाधन है ?
(a) सिन्धु
(b) ब्रह्मपुत्र
(c) गंगा
(d) गोदावरी
उत्तर:
(c) गंगा

प्रश्न 3.
घन किमी में दी गई निम्नलिखित संख्याओं में से कौन-सी संख्या भारत में कुल वार्षिक वर्षा दर्शाती है ?
(a) 2,000
(b) 4,000
(c) 3,000
(d) 5,000
उत्तर:
(c) 3,000

प्रश्न 4.
निम्नलिखित दक्षिण भारतीय राज्यों में से किस राज्य में भौम जल उद्योग ( % में) इसके कुल भौम जल संभाव्य से ज्यादा है ?
(a) तमिलनाडु
(b) कर्नाटक
(c) आंध्र प्रदेश
(d) केरल
उत्तर:
(a) तमिलनाडु

प्रश्न 5.
देश में प्रयुक्त कुल जल का सबसे अधिक समानुपात निम्नलिखित सेक्टरों में से किस सेक्टर में है ?
(a) सिंचाई
(b) उद्योग
(c) घरेलू उपयोग
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(a) सिंचाई

प्रश्न 6.
भारत में कुल आपूरणीय भौम जल क्षमता कितनी है ?
(a) 43.39 अरब घन मीटर
(b) 433.9 अरब घन मीटर
(c) 433.01 अरब घन मीटर
(d) 4.331 अरब घन मीटर
उत्तर:
(b) 433.9 अरब घन मीटर

प्रश्न 7.
हीराकुण्ड बाँध किस नदी पर बना है ?
(a) सोन
(b) महानदी
(c) स्वर्ण रेखा
(d) कोसी
उत्तर:
(b) महानदी

प्रश्न 8.
1999-2000 में कुल सिंचित क्षेत्र कितना था ?
(a) 84.7 करोड़
(b) 847 करोड़
(c) 8.47 करोड़
(d) 7.84 करोड़
उत्तर:
(c) 8.47 करोड़

प्रश्न 9.
भारत की सर्वाधिक उपयोग योग्य जल क्षमता वाली नदी है
(a) सिंधु
(b) यमुना
(c) गंगा
(d) ब्रह्मपुत्र
उत्तर:
(c) गंगा

प्रश्न 10.
वर्षण से प्राप्त जल कैसा होता है ?
(a) अलवणीय
(b) लवणीय
(c) पृष्ठीय
(d) वायुमंडलीय
उत्तर:
(a) अलवणीय

प्रश्न 11.
गंगा भारत के किस क्षेत्र में बहती है ?
(a) उत्तर
(b) दक्षिण
(c) पश्चिम
(d) मध्य
उत्तर:
(a) उत्तर

प्रश्न 12.
वर्षा का जल बहकर नदियों, झीलों और तालाबों में चला जाता है उसे क्या कहते
(a) भौम जल
(b) पृष्ठीय जल
(c) अलवणीय जल
(d) महासागरीय
उत्तर:
(b) पृष्ठीय जल

प्रश्न 13.
पढ़ आय वर्ग से तात्पर्य है-
(a) 15 से 59 वर्ष
(b) 10 से 40 वर्ष
(c) 20 से 60 वर्ष
(d) 5 से 35 वर्ष
उत्तर:
(a) 15 से 59 वर्ष

प्रश्न 14.
लिंग अनुपात का संबंध है
(a) पुरुष तथा स्त्रियों के बीच
(b) बच्चे और प्रौढ़ों के बीच
(c) (a) और (b) दोनों
(d) कोई नहीं
उत्तर:
(a) पुरुष तथा स्त्रियों के बीच

प्रश्न 15.
अधिकांश देशों में ग्रामीण-नगरीय विभाजन किस आधार पर होता है ?
(a) पिरामिड
(b) आकार बिन्दु
(c) सारिणी
(d) कोई नहीं
उत्तर:
(b) आकार बिन्दु

प्रश्न 16.
विश्व की नगरीय जनसंख्या में प्रतिवर्ष वृद्धि हो रही है
(a) 8 करोड़
(b) 5 करोड़
(c) 6 करोड़
(d) 4 करोड़
उत्तर:
(c) 6 करोड़

प्रश्न 17.
पूर्वी एशिया में प्रौढ़ शिक्षा दर है
(a) 83.4
(b) 93.4
(c) 60
(d) 65
उत्तर:
(a) 83.4

प्रश्न 18.
निम्न में से कौन-सी एक अर्थव्यवस्था में उत्पादन का स्वामित्व व्यक्तिगत होता है ?
(a) पूँजीवाद
(b) मिश्रित
(c) समाजवाद
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(a) पूँजीवाद

प्रश्न 19.
निम्न में से कौन-सा एक प्रकार का उद्योग अन्य उद्योग के लिए कच्चे माल का उत्पादन करता है ?
(a) कुटीर उद्योग
(b) छोटे पैमाने के उद्योग
(c) आधारभूत उद्योग
(d) स्वच्छंद उद्योग
उत्तर:
(c) आधारभूत उद्योग

प्रश्न 20.
निम्न में से कौन-सा जोड़ा सही मेल खाता है ?
(a) स्वचालित वाहन उद्योग 1. लास एंजिल्स
(b) पोत निर्माण उद्योग 2. लुसाका
(c) वायुयान निर्माण उद्योग 3. फलोरेंस
(d) लौह-इस्पात उद्योग 4. पिट्सबर्ग
उत्तर:
(d) लौह-इस्पात उद्योग 4. पिट्सबर्ग

प्रश्न 21.
जल अधिकांश उद्योगों में प्रयोग किया जाता है-प्रसंस्करण भाप निर्माण या मशीनों को
(a) ठंडा करने के लिए
(b) गर्म करने के लिए
(c) साफ करने के लिए
(d) (a) और (b) दोनों
उत्तर:
(a) ठंडा करने के लिए

प्रश्न 22.
उद्योगों का वर्गीकरण किस आधार पर किया जाता है ?
(a) आकार
(b) उत्पाद
(c) कच्चे माल की प्रकृति
(d) उपर्युक्त सभी के लिए
उत्तर:
(d) उपर्युक्त सभी के लिए

प्रश्न 23.
भारत तथा चीन में कपड़े, खिलौने, फर्नीचर, खाद्य तेल तथा चमड़े का उत्पादनहोता है
(a) छोटे पैमाने के उद्योगों में
(b) बड़े पैमाने के उद्योगों में
(c) मशीनों से
(d) हाथ द्वारा
उत्तर:
(a) छोटे पैमाने के उद्योगों में

प्रश्न 24.
जिन उद्योगों में वनों से प्राप्त उत्पादों का कच्चे माल के रूप में प्रयोग किया जाता है उन्हें कहते हैं
(a) वन आधारित उद्योग
(b) कृषि आधारित उद्योग
(c) कोयला आधारित उद्योग
(d) लघु उद्योग
उत्तर:
(a) वन आधारित उद्योग

प्रश्न 25.
विनिर्माण का शाब्दिक अर्थ है
(a) हाथ से बनाना
(b) मशीनों से बनाना
(c) दोनों (a) और (b)
(d) दोनों सही
उत्तर:
(c) दोनों (a) और (b)

प्रश्न 26.
कौन-सा उद्योग अन्य सभी उद्योगों को आधार प्रदान करता है ?
(a) रसायन उद्योग
(b) कपड़ा उद्योग
(c) लोहा तथा इस्पात उद्योग
(d) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(c) लोहा तथा इस्पात उद्योग

प्रश्न 27.
संसार के कुल औद्योगिक उत्पादों में कितने प्रतिशत भाग संयुक्त राज्य अमेरिका, जापान तथा जर्मनी का है ?
(a) 60%
(b) 40%
(c) 50%
(d) 100%
उत्तर:
(c) 50%

प्रश्न 28.
विनिर्माण उद्योग के पुनरुद्योगीकरण ह्रास को कहते हैं
(a) निरूद्योगीकरण
(b) पुनरूद्योगीकरण
(c) विनिर्माण
(d) केन्द्रीयकरण
उत्तर:
(a) निरूद्योगीकरण

प्रश्न 29.
हीरा काटने तथा पॉलिश करने के लिए किसकी आवश्यकता होती है ?
(a) कुशल श्रमिकों की
(b) लघु मशीनों की
(c) बड़ी मशीनों की
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(a) कुशल श्रमिकों की

प्रश्न 30.
स्वच्छंद उद्योगों की एक प्रमुख विशेषता है
(a) कुशलता
(b) निम्न पूँजी की आवयश्यकता
(c) अधिक उत्पादन
(d) कहीं की स्थापना
उत्तर:
(a) कुशलता

प्रश्न 31.
निम्न में से किस प्रकार की बस्तियाँ सड़क, नदी या नहर के किनारे होती हैं ?
(a) वृत्ताकार
(b) चौक पट्टी
(c) रेखीय
(d) वर्गाकार
उत्तर:
(c) रेखीय

प्रश्न 32.
निम्न में से कौन-सी एक आर्थिक क्रिया ग्रामीण बस्तियों की मुख्य आर्थिक क्रिया है ?
(a) प्राथमिक
(b) तृतीयक
(c) द्वितीयक
(d) चतुर्थक
उत्तर:
(a) प्राथमिक

प्रश्न 33.
निम्न में से किस प्रदेश में प्रलेखित प्राचीनतम नगरीय बस्ती रही है ?
(a) ह्वांगहो की घाटी
(b) सिंधु घाटी
(c) नील घाटी
(d) मेसोपोटामिया
उत्तर:
(b) सिंधु घाटी

प्रश्न 34.
2006 के प्रारंभ में भारत में कितने मिलियन सिटी थे ?
(a) 40
(b) 41
(c) 42
(d) 43
उत्तर:
(c) 42

प्रश्न 35.
विकासशील देशों की जनसंख्या के सामाजिक ढाँचे के विकास एवं आवश्यकताओं की पूर्ति में कौन-से प्रकार के संसाधन सहायक हैं ?
(a) वित्तीय
(b) मानवीय
(c) प्राकृतिक
(d) सामाजिक
उत्तर:
(c) प्राकृतिक

प्रश्न 36.
5 लाख की जनसंख्या वाले नगर से 1 करोड़ की जनसंख्या वाला महानगर बनने में लंदन को कितने वर्ष लगे ?
(a) 100 वर्ष
(b) 23 वर्ष
(c) 300 वर्ष
(d) 25 वर्ष
उत्तर:
(d) 25 वर्ष

प्रश्न 37.
जनवरी 2006 में विश्व में कितने विराट नगर थे ?
(a) 35
(b) एशिया
(c) 15
(d) चीन
उत्तर:
(c) 15

प्रश्न 38.
विकासशील देशों के महानगरों में लगभग कितने प्रतिशत निवासी अवैध बस्तियों में रहते हैं ?
(a) 10 से 20 प्रतिशत
(b) 20 से 30 प्रतिशत
(c) 30 से 60 प्रतिशत
(d) 60 से 80 प्रतिशत
उत्तर:
(c) 30 से 60 प्रतिशत

प्रश्न 39.
भारत सबसे अधिक किस धातु का निर्यात करता है ?
(a) मैंगनीज
(b) ताँबा
(c) अभ्रक
(d) सोना
उत्तर:
(c) अभ्रक

प्रश्न 40.
भारत में खनिज तेल का पहला कुआँ कहाँ खोदा गया ?
(a) नहीर पौग
(b) सूरमा घाटी
(c) नहरकटिया
(d) डिगबोई
उत्तर:
(a) नहीर पौग

प्रश्न 41.
गोंडवाना कोयले के मुख्य भंडार कहाँ हैं ?
(a) दामोदर घाटी
(b) अरुणाचल प्रदेश
(c) रानीगंज
(d) औरंगाबाद
उत्तर:
(a) दामोदर घाटी

प्रश्न 42.
भारत का लोहे के उत्पादन में विश्व में कौन-सा स्थान है ?
(a) पाँचवाँ
(b) सातवाँ
(c) दसवाँ
(d) दूसरा
उत्तर:
(b) सातवाँ

प्रश्न 43.
भारत के निम्नलिखित राज्यों में से किस एक में स्त्री साक्षरता निम्नतम है ?
(a) जम्मू और कश्मीर
(b) अरुणाचल प्रदेश
(c) झारखंड
(d) बिहार
उत्तर:
(d) बिहार

प्रश्न 44.
केरल का मानव विकास सूचकांक कितना है ?
(a) 0 532
(b) 0.533
(c) 0.638
(d) 0.523
उत्तर:
(c) 0.638

प्रश्न 45.
भारत के निम्नलिखित केन्द्र-शासित प्रदेशों में से किस एक की साक्षरता दर उच्चतम है ?
(a) लक्षद्वीप
(b) चण्डीगढ़
(c) दमन और दीव
(d) अंडमान एवं निकोबार द्वीप
उत्तर:
(a) लक्षद्वीप

प्रश्न 46.
बिहार में साक्षरता दर कितनी है ?
(a) 92.4%
(b) 47.53%
(c) 90.92%
(d) 46.53%
उत्तर:
(b) 47.53%

प्रश्न 47.
केरल में साक्षरता दर कितना प्रतिशत है ?
(a) 92.4%
(b) 90.92%
(c) 50.16%
(d) 54.16%
उत्तर:
(b) 90.92%

Bihar Board 12th History Important Questions Short Answer Type Part 4

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प्रश्न 1.
मंगल पांडे कौन थे ? उनका संक्षिप्त परिचय दीजिए।
उत्तर:
मंगल पांडे (Mangal Pandey) – भारतीय इतिहास में प्राय: मंगल पांडे को 1857 के विद्रोह का प्रथम जनक, महान देशभक्त तथा क्रांतिकारी माना जाता है। वे बैरकपुर (बंगाल) की 34वीं (सैन्य) बटालियन का एक साधारण सिपाही ही थे। उन्होंने अपनी छावनी में चर्बी वाले कारतूस की बात पहुँचाई तथा अंग्रेज अधिकारियों के धर्म विरोधी आदेश की अवहेलना की। सारजेन्ट मेजर हगसन के आदेशानुसार जब किसी भी भारतीय सैनिक ने पांडे को कैद नहीं किया तो उन्होंने हगसन तथा लैफ्टिनेंट बाम को उसके घोड़े सहित ढेर कर दिया। कालान्तर में उन्हें कैद कर लिया गया तथा 8 अप्रैल, 1857 को फाँसी दे दी गई। उनकी वीरता एवं कुर्बानी ने कालान्तर में मेरठ सैनिक छावनी के विप्लव की भूमिका तैयार की।

प्रश्न 2.
शैलावासों की स्थापना के प्रमुख कारण क्या थे ?
अथवा, ब्रिटिश शासकों के लिए हिल स्टेशन क्यों महत्वपूर्ण थे ?
उत्तर:
शैलावास को अंग्रेजी में ‘हिल स्टेशन’ कहा जाता है। शैलावासों की स्थापना प्रमुखतः स्वास्थ्यवर्द्धक स्थलों के रूप में की गई है। भारत के प्रायः सभी राज्यों एवं केन्द्रशासित प्रदेशों में हिल स्टेशन स्थापित हैं। अनेक व्यक्ति पर्यटन एवं स्वास्थ्य लाभ हेतु इन स्थलों पर जाते हैं। इनकी स्थापना का एक कारण पर्यटनों के आकर्षण का केन्द्र स्थापित करना भी था। राजस्थान में माउण्ट आबू, दक्षिण में ऊटी, उत्तर में मसूरी, मध्य प्रदेश में पंचमढ़ी का विकास हिल स्टेशन के रूप में हुआ है। हमारे देश के सात उत्तर-पूर्वी राज्य तो प्रमुखतः हिल स्टेशन के लिए ही जाने जाते हैं। अंग्रेज गर्म जलवायु के ‘आदी नहीं’ थे अत: उन्होंने अपनी सुविधा हेतु भी हिल स्टेशन स्थापित किए।

प्रश्न 3.
1857 के विद्रोह की असफलता के कारणों का संक्षिप्त उल्लेख करें।
उत्तर:
1857 के विद्रोह की असफलता के कारण (Causes of the Failure of the Revolt of 1857) – 1857 के विद्रोह में भारतीय जनता ने जी-तोड़ संघर्ष कर अंग्रेजों का सामना किया, किन्तु कुछ कारणों से इस विद्रोह में भारतवासियों को असफलता मिली। इस असफलता के निम्न कारण थे-

  1. यह विद्रोह निश्चित तिथि से पहले आरम्भ हो गया। इसकी तिथि 31 मई निर्धारित की गई थी, किंतु यह 10 मई, 1857 को शुरू हो गया।
  2. यह स्वतंत्रता संग्राम सारे भारत में फैल गया, परिवहन तथा संचार के अभाव में भारतवासी इस पर पूर्ण नियंत्रण न रख सके।
  3. भारतवासियों के पास अंग्रेजों के मुकाबले हथियारों का अभाव था।
  4. भारत में कुछ वर्गों ने इस विद्रोह में सक्रिय भाग नहीं लिया।
  5. भारत में अंग्रेजों के समान कुशल सेनापतियों का अभाव था।
  6. अंग्रेजों को ब्रिटेन से यथासमय सहायता प्राप्त होती गई।
  7. क्रांतिकारियों में किसी एक योजना एवं निश्चित उद्देश्यों की कमी थी।

प्रश्न 4.
संविधान निर्माताओं की प्रमुख समस्याएँ क्या थी ?
उत्तर:
भारत जैसे विशाल देश के लिए जहाँ जीवन के हर पक्ष में विविधता पाई जाती हैं, संविधान बनाना कोई सरल कार्य नहीं रहा होगा। संविधान निर्माताओं की मुख्य समस्याएँ इस प्रकार थीं-

  • पहली समस्या थी भारत की अखंडता को बनाये रखना।
  • दूसरी प्रमुख समस्या थी देशी रियासतों की। लॉर्ड माउंटबेटन ने अपने प्रस्ताव में देशी रियासतों को भारतीय संघ में सम्मिलित होने अथवा नहीं होने की छूट दे रखी थी। ऐसी स्थिति में भारतीय संघ में उन्हें सम्मिलित करना एक कठिन कार्य था।
  • भारत की सांस्कृतिक विविधता भी एक अन्य प्रमुख समस्या थी। एक संविधान में सभी जातियों, जनजातियों, विभिन्न भाषा-भाषियों के लिए स्थान बनाना सरल कार्य नहीं था। आदिवासियों को मुख्य धारा से जोड़कर रखना भी एक प्रमुख समस्या थी।
  • अंग्रेजी शासनकाल शोषण एवं उत्पीड़न का काल था। अतः स्वतंत्रता के साथ आम भारतीयों की बची हुई आशाएँ जुड़ी हुई थीं। इन सभी आशाओं को पूरा करना तथा एक नए भारत का निर्माण करना भी एक प्रमुख समस्या थी।

प्रश्न 5.
क्या भारत विभाजन को रोका जा सकता था ?
उत्तर:
1947 में भारत को खण्डित आजादी मिली थी। आजादी के साथ ही भारत का विभाजन भी हो गया तथा एक ब्रिटिश उपनिवेश को भारत और पाकिस्तान के रूप में दो देशों में बाँट दिया गया।

स्वतंत्रता के बाद भी यह चर्चा का विषय बना रहा कि क्या इस विभाजन को रोका जा सकता था किन्तु तत्कालीन कारकों की विवेचना से यही लगता है कि विभाजन अवश्यम्भावी था-

  • अंग्रेजों की नीति थी-फूट डालो, शासन करो। इसके आधार पर उन्होंने सबसे पहले . हिन्दू-मुस्लिम एकता पर प्रहार किया।
  • दोनों ही दलों के नेताओं की राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं ने भी विभाजन को अनिवार्य बना दिया।
  • लॉर्ड माउंटबेटन ने स्वतंत्रता को विभाजन के उस पार खड़ा कर दिया। अंततः काँग्रेस विभाजन के लिए तैयार हो गई।
  • काँग्रेस ने मुस्लिमों के साथ तुष्टिकरण की नीति अपनाई जिससे लीग की हठधर्मिता को बल मिला। उन्हें यकीन हो गया था कि यदि वे पाकिस्तान की माँग पर अड़े रहे तो उन्हें पाकिस्तान अवश्य ही मिलेगा।

प्रश्न 6.
राष्ट्रवादियों तथा साम्प्रदायवादियों में मुख्य अन्तर क्या था ?
उत्तर:
राष्ट्रवादी, भारत को एक ऐसे राष्ट्र के रूप में देखते थे जिसमें सभी धर्मों के लोग साथ-साथ सम्मानपूर्ण तरीके से रहते हैं। दूसरी ओर साम्प्रदायिकतावादी भारत को धर्म के आधार पर समूह के रूप में देखते थे। वे व्यक्तिगत हितों को राष्ट्रीय हित की अपेक्षा अधिक महत्व देते थे। इस दृष्टिकोण को आधार बनाकर ही मुसलमानों के लिए अलग राष्ट्र की मांग की गई थी।

प्रश्न 7.
अमरीकी गृहयुद्ध और स्वेज नहर का प्रारम्भ होने से भारतीय अर्थव्यवस्था पर क्या प्रभाव पड़ा ?
उत्तर:
अमरीकी गृहयुद्ध का प्रारम्भ 1861 में हुआ। तत्पश्चात् अमरीका से कपास अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में आना बन्द हो गया। इससे भारतीय कपास की माँग में वृद्धि होने लगी। कपास का उत्पादन मुख्य रूप से दक्षिण भारत में होता था। इस समय व्यापारियों तथा बिचौलियों को काफी लाभ हुआ। 1869 में स्वेज नहर का प्रारम्भ होने के साथ ही बम्बई शहर का महत्त्व अत्यधिक बढ़ गया। बम्बई के कपड़ा उद्योग में काफी पैसा लगा तथा यह भारत का सबसे अधिक व्यस्त शहर बन गया।

प्रश्न 8.
औद्योगिक शहर के रूप में ब्रिटिश काल में किन नगरों का उदय हुआ ?
उत्तर:
सही मायनों में ब्रिटिश काल में केवल दो नगरों का औद्योगिक विकास हुआ। पहला नगर था कानपुर, जहाँ सूती कपड़े, ऊनी कपड़े और चमड़े की वस्तुओं का उत्पादन होता था। दूसरा नगर था-जमशेदपुर, जहाँ स्टील का उत्पादन होता था। इस काल में भारत में अन्य औद्योगिक नगरों का विकास इसलिए नहीं हुआ क्योंकि अंग्रेजों की नीति पक्षपातपूर्ण थी। वे एक औपनिवेशिक देश को आगे नहीं बढ़ाना चाहते थे।

प्रश्न 9.
गाँधीजी 1917 में चम्पारण क्यों गये ? वहाँ उन्होंने क्या किया ?
उत्तर:
19वीं सदी के प्रारम्भ में गोरे बागान मालिकों ने किसानों से एक अनुबंध किया जिसके अनुसार किसानों को अपनी जमीन के 3/20वें हिस्से में नील की खेती करना अनिवार्य था। इस ‘तिनकठिया’ पद्धति कहा जाता था। किसान इस अनुबंध से मुक्त होना चाहते थे। 1917 में चम्पारण के राजकुमार शुक्ल के अनुरोध पर गाँधीजी चम्पारण पहुँचे। गाँधीजी के प्रयासों से सरकार ने चम्पारण के किसानों की जाँच हेतु एक आयोग नियुक्त किया। अंत में गाँधीजी की विजय हुई।

प्रश्न 10.
स्वतंत्रता आंदोलन में महात्मा गाँधी की भूमिका पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन में महात्मा गाँधी की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है। भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन में इनका स्थान सर्वोच्च है। भारत की स्वाधीनता उन्हीं की भूमिका का फल है। उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में एक नये युग का निर्माण किया और जीवन के अंतिम क्षण तक देश सेवा तथा राष्ट्रीय आंदोलन का पथ-प्रदर्शन करते रहे। इसी कारण उन्हें ‘राष्ट्रपिता’ कहा जाता था। वे शांति के दूत थे। सत्य और अहिंसा उनके हथियार थे। उनका आंदोलन इसी पर आधारित था।

वैसे तो 1914 ई० में उन्होंने भारतीय राजनीति में प्रवेश किया था लेकिन 1919 ई० में अत्यंत प्रभावशाली ढंग से राष्ट्रीय आंदोलन को प्रभावित करना शुरू किया और अन्त तक राष्ट्रीय आंदोलन के प्राण बने रहे। 1920 ई० से 1947 ई० तक भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन की बागडोर उन्हीं के हाथों में रही। इस अवधि में राष्ट्रीय संग्राम के सर्वोच्च नेता के रूप में भारतीय राजनीति का उन्होंने मार्ग दर्शन किया, उसने साधन दिये, उसको नया दर्शन दिया और उसे सक्रिय बनाया। इसी कारण इस अवधि को ‘गाँधी युग’ के नाम से जाना जाता है। उन्होंने असहयोग आन्दोलन करते हुए भारत को स्वतंत्रता दिलाई। उन्होंने राष्ट्रीय आंदोलन को जन-आंदोलन का रूप दिया।

प्रश्न 11.
चम्पारण आन्दोलन के क्या कारण थे ?
उत्तर:
चम्पारण आंदोलन के निम्नलिखित कारण थे-

  • चम्पारण में नील के खेतों में काम करने वाले किसानों पर यूरोपियन निलहे बहुत अत्याचार करते थे।
  • गाँधीजी के दक्षिण अफ्रीका के संघर्षों की कहानी सुनकर चम्पारण के कई किसानों ने उन्हें वहाँ आकर उनकी समस्याओं को सुना एवं उनके हितों के लिए सत्याग्रह शुरू कर दिया।

प्रश्न 12.
असहयोग आन्दोलन के कारणों पर प्रकाश डालें।
उत्तर:
गाँधीजी ने 1920 ई० में असहयोग आंदोलन आरम्भ किया। इसके निम्नलिखित कारण थे-
(i) रॉलेट एक्ट – प्रथम विश्व युद्ध के बाद 1919 ई० में रॉलेट एक्ट पास किया गया। इसके द्वारा सरकार अकारण ही किसी व्यक्ति को बन्दी बना सकती थी। इससे असंतुष्ट होकर महात्मा गाँधी ने असहयोग आंदोलन चलाया।।

(ii) जालियाँवाला बाग की दुर्घटना – रॉलेट एक्ट का विरोध करने के लिए अमृतसर में जालियाँवाला बाग के स्थान पर एक जनसभा बुलायी गई। जनरल डायर ने इस सभा में एकत्रित लोगों पर अंधाधुंध गोलियाँ चलायीं। भयंकर हत्याकाण्ड हुआ महात्मा गाँधी ने इस हिंसात्मक घटना से दुःखी होकर असहयोग आंदोलन आरंभ कर दिया।

प्रश्न 13.
काँग्रेस में उग्रवादियों की भूमिका का परीक्षण करें।
उत्तर:
उन्नीसवीं शताब्दी के अंतिम तथा बीसवीं शताब्दी के आरंभिक वर्षों में भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस में एक नए एवं तरूण दल का उदय हुआ जो पुराने नेताओं के आदर्श तथा ढंगों का प्रबल आलोचक था। उनका ध्येय था कि काँग्रेस का लक्ष्य स्वराज होना चाहिए। वे काँग्रेस के उदारवादी नीतियों का विरोध करते थे।

1905 से 1919 का काल भारतीय इतिहास में उग्रवादी युग के नाम से जाना जाता है। उस युग के नेताओं में बाल गंगाधर तिलक, विपिन चन्द्रपाल, लाला लाजपत राय आदि प्रमुख थे। उग्रवादियों ने विदेशी माल का बहिष्कार और स्वदेशी माल अंगीकार करने पर बल दिया।

प्रश्न 14.
संघ सूची, राज्य सूची तथा समवर्ती सूची का संक्षिप्त वर्णन करें।
उत्तर:
संघ सूची में वे विषय रखे जो राष्ट्रीय महत्त्व के हैं तथा जिनके बारे में देश भर में एक समान नीति होना आवश्यक है। जैसे-प्रतिरक्षा, विदेश नीति, डाक-तार व टेलीफोन, रेल मुद्रा, बीघा व विदेशी व्यापार इत्यादि। इस सूची में कुल 35 विषय है।

राज्य सूची में प्रादेशिक महत्त्व के विषय सम्मिलित किये गये थे जिन पर कानून बनाने का अधिकार राज्य सरकारों को दिया गया। राज्य सूची के प्रमुख विषय हैं-कृषि, पुलिस, जेल, चिकित्सा, स्वास्थ्य, सिंचाई व मालगुजारी इत्यादि। इन विषयों की संख्या 66 थी।

समवर्ती सूची में 47 विषय थे। इस सूची के विषयों पर केन्द्र तथा राज्यों दोनों कानून बना सकते हैं किंतु किसी विषय पर यदि संसद और राज्य के विधान मंडल द्वारा बनाए गए कानूनों में विरोध होता है तो संसद द्वारा बनाए गए कानून ही मान्य होंगे। इस सूची के प्रमुख विषय हैं-बिजली, विवाह कानून, मूल्य नियंत्रण, समाचार-पत्र, छापेखाने, दीवानी कानून, हिंसा, वन, जनसंख्या नियंत्रण और परिवार नियोजन आदि।

प्रश्न 15.
भारत का संविधान 26 जनवरी, 1950 को क्यों लागू किया गया ?
उत्तर:
भारत का संविधान 26 जनवरी, 1949 को बनकर तैयार हो गया था परन्तु उसे 26 जनवरी, 1950 को लागू किया गया। इसका एक कारण था कि पंडित जवाहरलाल नेहरू ने काँग्रेस के दिसम्बर, 1929 के लाहौर अधिवेशन में पूर्ण स्वतन्त्रता की माँग का प्रस्ताव पास कराया था और 26 जनवरी, 1930 का दिन ‘प्रथम स्वतन्त्रता दिवस’ के रूप में आजादी से पूर्व ही मनाया गया था। इसके बाद काँग्रेस ने हर वर्ष 26 जनवरी का दिन इसी रूप में मनाया था। इसी पवित्र दिवस की याद ताजा रखने के लिए संविधान सभा ने संविधान को 26 जनवरी, 1950 को लागू करने का निर्णय किया था।

प्रश्न 16.
‘पाँचवीं रिपोर्ट पर टिप्पणी लिखें।
उत्तर:
भारत में ईस्ट इंडिया कम्पनी के प्रशासन और गतिविधियों से संबद्ध यह पाँचवीं रिपोर्ट थी जिसे 1813 में ब्रिटिश संसद में पेश किया गया। इसे एक प्रवर समिति ने तैयार किया था। रिपोर्ट 1002 पृष्ठों में थी। इनमें मुख्यत: जमींदारों, रैयतों की अर्जियाँ, कलक्टर की रिपोर्ट बंगाल-मद्रास के राजस्व और न्यायिक और न्यायिक अधिकारियों पर टिप्पणियाँ थी। रिपोर्ट द्वारा ब्रिटिश संसद में लम्बी बहस हुई।

प्रश्न 17.
भारतीय संविधान की प्रस्तावना के मुख्य आदर्श क्या हैं ?
उत्तर:
भारतीय संविधान की प्रस्तावना हमें यह बताती है कि वास्तव में संविधान का क्या उद्देश्य है। यह घोषणा करता है कि संविधान का स्रोत भारत की जनता है। यह निम्नलिखित सिद्धांतों तथा आदर्शों पर बल देता है

  • न्याय : सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक।
  • स्वतंत्रता : विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास तथा पूजा-अर्चना की।
  • समानता : प्रतिष्ठा तथा अवसर की समानता।
  • भ्रातृत्व : व्यक्ति की गरिमा तथा राष्ट्र की एकता व अखंडता सुनिश्चित करना तथा आपसी बन्धुत्व बढ़ाना।

प्रश्न 18.
फोर्ट विलियम नामक किला कहाँ बनाया गया था ? बाद में यह जगह क्या कहलाई ?
उत्तर:
1698 में ईस्ट इंडिया कम्पनी ने सूतानाटी, कालिकाता और गोविंदपुरी की जमींदारी प्राप्त कर ली और वहाँ उन्होंने अपनी फैक्ट्री के इर्द-गिर्द फोर्ट विलियम नाम का किला बनाया। यही गाँव जल्द ही बढ़कर एक नगर बन गया। जिसे अब कोलकाता कहा जाता है।

प्रश्न 19.
प्लासी का युद्ध (1757) किसके बीच हुआ था ?
उत्तर:
प्लासी की लड़ाई 23 जून, 1757 ई० को बंगाल का नबाब सिराजुद्दौला तथा अंग्रेजों के बीच प्लासी के मैदान में हुआ था। यह सही रूप में लड़ाई नहीं थी बल्कि अंग्रेजी सेनापति क्लाइव की कूटनीतिक चाल थी। इसने नबाब के सेनापति मीरजाफर को अपनी ओर मिलाकर लड़ाई का ढोंग रचा था । सेनापति मीरजाफर के विश्वासघात के कारण नबाब की हार हो गई और नबाब सिराजुद्दौला की हत्या कर दी गई। इस तरह क्लाइव का षड़यंत्र सफल रहा। वहीं से भारत में अंग्रेजी शासन की नींव पड़ गई।

प्रश्न 20.
संक्षेप में रॉलेट एक्ट के प्रति भारतीय प्रतिक्रिया का विवेचना कीजिए।
उत्तर:
1. मांटेग्यू-चेम्सफोर्ड सुधारों (1919) से भारतीय राष्ट्रीय नेताओं में घोर निराशा व असंतोष देखकर सरकार बुरी तरह घबरा उठी। सरकार ने असंतोष को दबाने के लिए अपना दमनचक्र चला दिया।

2. सरकार ने 1919 ई० के प्रारंभ में रॉलेट एक्ट पास कर दिया। इस एक्ट में सरकार को दो व्यापक अधिकार मिले

  • इस एक्ट के द्वारा सरकार किसी भी व्यक्ति को बिना मुकदमा चलाए तथा दोषी सिद्ध किए जेल में बंद कर सकती है।
  • सरकार को यह अधिकार दिया गया कि वह बंदी प्रत्यक्षीकरण (Habeas Corpus) के अधिकार को स्थगित कर सकती थी।

3. इस एक्ट के कारण लोगों में रोष की लहर दौड़ गई। अतः देश में विरोध होने लगा। देश भर में विरोध सभाएँ, प्रदर्शन और हड़तालें हुई। सेंट्रल लेजिस्लेटिव कौंसिल से तीन भारतीय सदस्यों-मोहम्मद अली जिन्ना, मदन मोहन मालवीय और मजहरूलहक ने इस्तीफा दे दिया। सरकार ने दमन शुरू किया। कई स्थानों पर उसने लाठी-गोली आदि का सहारा लिया। इस एक्ट के विरुद्ध गाँधीजी ने सत्याग्रह किया। पंजाब के जालियाँवाला बाग में इसी एक्ट के विरुद्ध शांतिपूर्ण जनसभा हो रही थी जिससे क्रुद्ध होकर जनरल डायर ने निहत्थे लोगों पर गोलियों की वर्षा करवा दी थी।

प्रश्न 21.
1931 के गाँधी-इरविन समझौते का क्या परिणाम निकला ?
उत्तर:

  1. यद्यपि गाँधीजी दूसरे गोलमेल सम्मेलन में भाग लेने गए थे। जनवरी, 1932 ई० को गाँधीजी तथा अन्य नेताओं को बंदी बना लिया गया।
  2. कांग्रेस को पुनः गैरकानूनी घोषित कर दिया गया।
  3. एक लाख से अधिक सत्याग्रही बंदी बना लिए गये।
  4. हजारों प्रदर्शनकारियों की भूमि, मकान तथा संपत्ति सरकार ने जब्त कर ली।

प्रश्न 22.
“सांप्रदायिक पंचाट” की घोषणा किसने की ? इसके प्रावधान क्या थे ?
उत्तर:
16 अगस्त, 1932 को ब्रिटेन के प्रधानमंत्री मेकडॉनल्ड ने एक घोषणा की जो मेकडॉनल्ड निर्णय या सांप्रदायिक पंचाट के नाम से प्रसिद्ध है।

प्रावधान – इसके अनुसार दलितों को हिंदुओं से अलग मानकर उन्हें अलग प्रतिनिधित्व देने को कहा गया और दलित वर्गों के लिए अलग निर्वाचन मंडल का प्रावधान किया गया।

प्रश्न 23.
‘द्विराष्ट्र-सिद्धान्त’ का क्या अर्थ है ? यह किस प्रकार से भारतीय इतिहास की पूर्ण मिथ्या थी ?
उत्तर:
द्विराष्ट्र-सिद्धान्त से अभिप्राय यह है कि हिन्दुओं एवं मुसलमानों के दो अलग-अलग राष्ट्र (देश) हैं, अतः वे एक होकर नहीं रह सकते।

यह सिद्धान्त इस आधार पर मिथ्या था कि मध्यकाल में हिन्दुओं तथा मुसलमानों ने एक सांझी संस्कृति का विकास किया। सन् 1857 की क्रान्ति में भी वे एकजुट होकर लड़े।

प्रश्न 24.
साइमन कमीशन भारत क्यों आया था ?
उत्तर:
1919 ई० के एक्ट के अनुसार यह निर्णय हुआ था कि प्रत्येक दस वर्ष के बाद सुधारों का मूल्यांकन करने के लिए इंग्लैंड से एक कमीशन भारत आयेगा। इसलिए 1928 ई० में जॉन साइमन की अध्यक्षता में एक आयोग (Commission) भारत आया था। इस आयोग में एक भी भारतीय न था, जबकि इसका उद्देश्य भारत के हितों की देखभाल करना था। अतः भारतीयों ने इसका स्थान-स्थान पर बहिष्कार और जोरदार विरोध किया। जहाँ भी यह आयोग गया, वहाँ पर भारतीयों डे दिखाकर ‘साइमन वापस जाओ’ के नारों के साथ बहिष्कार किया। अंग्रेजों ने प्रदर्शकारियों का दमन बड़ी क्रूरता से किया।

जब यह आयोग लाहौर पहुँचा, तो लाला लाजपतराय ने प्रदर्शन कर रहे जुलूस का नेतृत्व किया। पुलिस के भीषण लाठी प्रहार में लालाजी को कई गहरी चोटें लगी जिनके फलस्वरूप बाद में उनकी मृत्यु हो गई। इसी तरह से लखनऊ में जुलूस का नेतृत्व पंडित जवाहरलाल नेहरू कर रहे थे। उन पर भी जब लाठी प्रहार होने लगा, तो गोविंद बल्लभ पंत ने तुरंत अपना सिर उनके सिर पर रख दिया. जिसके फलस्वरूप पंतजी को पक्षाघात हो गया और जीवन भर वे अपनी गर्दन सीधी रखकर न बैठ पाये।

प्रश्न 25.
आजाद हिंद फौज की रचना और गतिविधियों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:

  1. सुभाषचंद्र बोस ने ‘आजाद हिंद फौज’ का गठन अंग्रेजों के साथ सशस्त्र संघर्ष के लिए किया था। दूसरे विश्व युद्ध के शुरू होते ही सुभाषचंद्र बोस को उनके कलकत्ता (कोलकाता) स्थित निवास स्थान पर नजरबंद कर दिया गया था जिससे कि वे अपनी क्रांतिकारी गतिविधियाँ अंग्रेजों के विरुद्ध प्रयुक्त न कर सकें।
  2. 1941 ई० में अंग्रेजों की आँखों में धूल झोंककर वे अफगानिस्तान के मार्ग से जर्मनी पहुँच गये। 1943 ई० में बर्मा पहुँच कर जापान द्वारा बंदी किए गये भारतीय सैनिकों को संगठित कर ‘आजाद हिंद फौज’ का गठन किया।
  3. लोभ प्यार से सुभाषचंद्र बोस को नेताजी कहते थे। नेताजी ने युवकों को ललकारा और कहा, “तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा।” उन्होंने अंग्रेजों को भारत से बाहर निकालने के लिए विदेशों से भी सहायता ली।
  4. 1945 ई० के बाद जापान की पराजय के बाद भारत की सीमा तक पहुँची हुई आजाद हिंद फौज के पाँव उखड़ गये। अतः आजाद हिंद फौज (Indian National Army) के कई बड़े सैनिक अधिकारियों और सिपाहियों को अंग्रेजों ने पकड़ लिए।

प्रश्न 26.
क्रिप्स मिशन कब भारत आया ? क्रिप्स वार्ता क्यों भंग हो गई ?
उत्तर:
क्रिप्स मिशन मार्च, 1942 में भारत आया। यह वार्ता इसलिए भंग हो गई क्योंकि सरकार युद्ध के बाद भी भारत को स्वाधीनता का वचन देने के लिए तैयार न थी। क्रिप्स ने काँग्रेस का यह प्रस्ताव भी ठुकरा दिया था कि युद्ध के बाद एक राष्ट्रीय सरकार बनाई जाए।

प्रश्न 27.
काँग्रेस ने क्रिप्स प्रस्तावों को क्यों अस्वीकार कर दिया ?
उत्तर:
1942 ई० के प्रारम्भ में ही ब्रिटिश सरकार को द्वितीय महायुद्ध प्रयासों में भारतीयों के सक्रिय सहयोग की पुरी तरह आवश्यकता महसूस हुई। ऐसा सहयोग पाने के लिए उसने कैबिनेट मंत्री पर स्टैफोर्ड क्रिप्स के नेतृत्व में मार्च, 1942 ई० में एक मिशन भारत भेजा।

सर स्टैफोर्ड क्रिप्स पहले मजदूर दल (लेबर पार्टी) के उग्र सदस्य और भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन के पक्के समर्थक थे।

क्रिप्स ने घोषणा की कि भारत में ब्रिटिश नीति का उद्देश्य यहाँ, “जितनी जल्दी सम्भव हो स्वशासन की स्थापना करना था” फिर भी उसकी एवं काँग्रेसी नेताओं की लम्बी बातचीत टूट गई। ब्रिटिश ने नेताओं की यह माँग मानने से इन्कार कर दिया कि शासन सत्ता तुरन्त भारतीयों को सौंप दी जाये। वे इस वायदे से सन्तुष्ट नहीं थे कि भविष्य में भारतीयों को सत्ता सौंप दी जायेगी और फिलहाल वायसराय के हाथों में ही निरकुंश सत्ता बनी रहनी चाहिए।

क्रिप्स मिशन की असफलता से भारतीय जनता रुष्ट हो गई। भारत में द्वितीय महायुद्ध के कारण वस्तुओं का अभाव हो रहा था। चीजों की कीमतें लगातार बढ़ रही थीं। अप्रैल, 1942 से अगस्त 1942 ई० के मध्य लगभग 5 महीनों में ब्रिटिश सरकार तथा भारतीयों के मध्य तनाव बढ़ता ही गया। गांधीजी भी अब जुझारू हो गये।

प्रश्न 28.
पूना समझौता क्या था? इसमें महात्मा गांधी की भूमिका का परीक्षण कीजिए।
उत्तर:
पूना समझौते का अर्थ (Meaning of Poona Pact) – सांप्रदायिक पंचाट (Communal Award) के विरुद्ध भारत के प्रमुख नेताओं- डॉ० राजेंद्र प्रसाद, पं० मदनमोहन मालवीय, घनश्याम दास बिड़ला, राजगोपालाचार्य और डॉ० भीमराव अंबेदकर ने पूना में एकत्र होकर विचार-विनिमय किया। उन्होंने गाँधीजी और डॉ० अंबेदकर की स्वीकृति का एक समझौता तैयार किया, जो पूना समझौता कहलाता है। इसे ब्रिटिश सरकार ने भी मान लिया।

समझौते की मुख्य शर्ते (Main terms of the Poona Pact) – (i) सांप्रदायिक पंचाट में दलितों के लिए प्रांतीय व्यवस्थापिका सभाओं में सभी राज्यों में निर्धारित 71 स्थानों को बढ़ाकर 148 कर दिया गया। (ii) संयुक्त चुनाव प्रणाली की व्यवस्था की गई। दलितों के लिए चुनाव क्षेत्र की व्यवस्था समाप्त कर दी गई। (iii) स्थानीय संस्थाओं और सार्वजनिक सेवाओं में दलितों के लिए उचित प्रतिनिधित्व निश्चित किया गया। (iv) दलितों की शिक्षा के लिए आर्थिक सहायता की सिफारिश की गई। (v) यह योजना आरंभ में 10 वर्षों के लिए होगी।

पूना समझौते से अंग्रेजों द्वारा सांप्रदायिक पंचाट के माध्यम से दलितों को हिंदुओं से अलग करने के षड्यंत्र में कमी आ गई। गाँधीजी ने पंचाट के विरुद्ध 20 सितंबर, 1932 ई० को आमरण अनशन शुरू कर दिया था। पूरा समझौते के बाद 26 दिसंबर, 1932 ई० को उन्होंने अपना अनशन तोड़ दिया।

प्रश्न 29.
भारत छोड़ो आंदोलन 1942 के बारे में लिखें।
उत्तर:
क्रिप्स मिशन की असफलता ने भारतीयों में असंतोष का वातावरण बना दिया। इसी बीच द्वितीय विश्वयुद्ध में मित्र राष्ट्रों को कमजोर स्थिति के चलते भारत पर जापानी आक्रमण का खतरा बढ़ गया। भारतीयों को यह लगने लगा कि अंग्रेजों के बाद यहाँ जापानी शासन कायम हो जायेगा। इसीलिये भारतीयों ने गाँधीजी के नेतृत्व में अंग्रेजों भारत छोड़ों’ का नारा दिया और आंदोलन शुरू कर दिया तथा सत्ता भारतीयों के हाथों सौंप देने की माँग की। लेकिन सरकार ने इसे बर्बरतापूर्वक दबा दिया। इस तरह यह विद्रोह असफल सिद्ध हुआ।

प्रश्न 30.
पूना समझौता क्या था ? इसमें महात्मा गांधी की भूमिका का परीक्षण कीजिए।
उत्तर:
पूना समझौते का अर्थ (Meaning of Poona Pact) सांप्रदायिक पंचाट (Communal Award) के विरुद्ध भारत के प्रमुख नेताओं-डॉ० राजेंद्र प्रसाद, पं० मदनमोहन मालवीय, घनश्याम दास बिड़ला, राजगोपालाचार्य और डॉ० भीमराव अंबेदकर ने पूना में एकत्र होकर विचार-विनिमय किया। उन्होंने गाँधीजी और डॉ अंबेदकर की स्वीकृति का एक समझौता तैयार किया, जो पूना समझौता कहलाता है। इसे ब्रिटिश सरकार ने भी मान लिया।

समझौते की मुख्य शर्ते (Main terms of the Poona Pact) – (i) सांप्रदायिक पंचाट में दलितों के लिए प्रांतीय व्यवस्थापिका सभाओं में सभी राज्यों में निर्धारित 71 स्थानों को बढ़ाकर 148 कर दिया गया। (ii) संयुक्त चुनाव प्रणाली की व्यवस्था की गई। दलितों के लिए चुनाव क्षेत्र की व्यवस्था समाप्त कर दी गई। (iii) स्थानीय संस्थाओं और सार्वजनिक सेवाओं में दलितों के लिए उचित प्रतिनिधित्व निश्चित किया गया। (iv) दलितों की शिक्षा के लिए आर्थिक सहायता की सिफारिश की गई। (v) यह योजना आरंभ में 10 वर्षों के लिए होगी। पूना समझौते से अंग्रेजों द्वारा सांप्रदायिक पंचाट के माध्यम से दलितों को हिंदुओं से अलग करने के षड्यंत्र में कमी आ गई। गाँधीजी ने पंचाट के विरुद्ध 20 सितंबर, 1932 ई० को आमरण ‘अनशन शुरू कर दिया था। पूरा समझौते के बाद 26 दिसंबर, 1932 ई० को उन्होंने अपना अनशन तोड़ दिया।

प्रश्न 31.
पाकिस्तान के लिए मुस्लिम लीग की माँग को स्पष्ट कीजिए। लीग ने यह माँग कब रखी थी ?
उत्तर:
1. जब देश में साम्प्रदायिक दल (लीग तथा हिन्दु सभा) बहुत मजबूत होने लगे थे तो मुहम्मद अली जिन्ना के नेतृत्व में मुस्लिम लीग काँग्रेस के सामने दीवार बनकर खड़ी हो गई थी। अब उसने यह प्रचार करना शुरू कर दिया कि मुस्लिम अल्पसंख्यकों का बहुसंख्यक हिंदुओं में समा जाने का खतरा है। उसने इस अवैज्ञानिक और अनैतिहासिक सिद्धांत का प्रचार किया कि हिंदू और मुसलमान दो अलग-अलग राष्ट्र हैं। उनका एक साथ रह सकना असंभव है। 1940 ई० में मुस्लिम लीग ने एक प्रस्ताव पास करके माँग की कि आजादी के बाद दो भाग कर दिए जायें और मुसलमानों के लिए पाकिस्तान नाम का एक अलग राज्य बनाया जाए।

2. हिंदुओं के बीच हिंदू महासभा जैसे सांप्रदायिक संगठनों के अस्तित्व के कारण मुस्लिम लीग के प्रचार को बल मिला। ‘हिंदू एक अलग राष्ट्र है और भारत हिंदुओं का देश है।’ यह कहकर हिंदू संप्रदायवादियों ने मुस्लिम लीग की ही की बात दोहराई।

3. दिलचस्प बात यह है कि हिंदू और मुस्लिम संप्रदायवादियों ने कांग्रेस के विरुद्ध एक-दूसरे से हाथ मिलाने में संकोच नहीं किया। पश्चिमोत्तर सीमा प्रांत, पंजाब, सिंध और बंगाल में हिंदू संप्रदायवादियों ने काँग्रेस के विरोध में मुस्लिम लीग तथा दूसरे सम्प्रदायवादी संगठनों का मंत्रिमंडल बनवाने में मदद की। सांप्रदायिक दलों ने पूर्ण निष्ठा के साथ स्वराज्य में चल रहे संघर्ष में भाग नहीं लिया तथा न ही उन्होंने जनता की सामाजिक, आर्थिक माँग उठाने में ही रुचि ली। वस्तुतः उन्हीं के कारण देश का विभाजन हुआ और आज हमें भारत के अलावा पाकिस्तान और बांगलादेश भी दिखाई पड़ रहे हैं।

प्रश्न 32.
1940 के अगस्त प्रस्ताव पर एक संक्षिप्त नोट लिखिए।
उत्तर:
इंग्लैंड के प्रधानमंत्री चर्चिल महोदय जर्मनी द्वारा ब्रिटिश घेराबंदी एवं विश्व के विभिन्न भागों में फासीवादी शक्तियों की विजय से चिन्तित थे। उसने भारत के वायसराय लिनलिथगो को भारतीय नेताओं से बातचीत करने का आदेश दिया ताकि युद्ध में भारत के सक्रिय सहयोग को यथाशीघ्र प्राप्त किया जा सके। वायसराय ने जो 8 अगस्त, 1940 को घोषणा की वह इतिहास में अगस्त प्रस्ताव (August Offer) कहलाती है। इसकी प्रमुख बातें थीं-

  • भारत को शीघ्र ही औपनिवेशिक स्तर (या स्वतंत्रता) (Dominion Status) दे दिया जायेगा।
  • भारत का नया संविधान बनाने के लिए. एक संविधान सभा का गठन किया जायेगा।
  • नई संविधान सभा में भी सम्प्रदायों तथा दलों के प्रतिनिधि शामिल किये जायेंगे।
  • भारत की सत्ता तब तक किसी ऐसी सरकार को नहीं सौंपी जाएगी जब तक इसमें सभी सम्प्रदायों तथा तत्वों के प्रतिनिधि शामिल नहीं होंगे।
  • युद्ध सम्बन्धी मामलों पर विचार-विमर्श के लिए पृथक् समिति का गठन होगा जिससे भारतीय राष्ट्रवादी नेताओं के प्रतिनिधियों के साथ-साथ देशी राजा-महाराजाओं के प्रतिनिधि भी शामिल किये जायेंगे।
  • महायुद्ध के दौरान वायसराय की कार्यकारिणी परिषद (कौंसिल) में इंग्लैण्ड सरकार कुछ स्थानों पर राष्ट्रवादियों को नियुक्त करेगी।

काँग्रेस ने अगस्त, 1940 ई० के प्रस्तावों को ठुकरा दिया, क्योंकि इसमें पूर्ण स्वतंत्रता की बात नहीं की गई थी। मुस्लिम लीग ने भी अगस्त प्रस्ताव को ठुकरा दिया क्योंकि इसमें उसकी सर्वाधिक प्रबल माँग-पाकिस्तान बनाने की माँग का कोई जिक्र नहीं था। सन् 1942 ई० को ब्रिटेन की सरकार ने क्रिप्स मिशन को भारत भेजा।

प्रश्न 33.
वेवेल योजना क्या थी ? लार्ड वेवेल की भूमिका का महत्व एवं इस योजना की गतिविधियों के साथ-साथ शिमला सम्मेलन पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
14 जून, 1945 को लॉर्ड वेवेल ने एक योजना रखी, जिसे वेवल योजना के नाम से जाना जाता है। इस योजना के मुख्य कारण निम्नलिखित थे-

  1. भारत में व्याप्त जनाक्रोश को कम करना।
  2. जापान के विरुद्ध भारत का सहयोग प्राप्त करना।
  3. ब्रिटेन के आगामी चुनाव के लिए अनुदार दल के प्रति जनमत प्राप्त करना।
  4. इससे स्वशासन की माँग और वायसराय की कार्यकारिणी समिति में मुसलमानों व हिंदुओं की संख्या को बराबर करने को कहा गया।

शिमला अधिवेशन – वेवेल ने देश के सभी दलों के प्रमुख नेताओं को शिमला में 25 जून, 1945 को आमंत्रित किया। यह सम्मेलन वेवेल योजना पर विचार करने के लिए बुलाया गया, इसमें 21 भारतीय नेता शामिल थे। सम्मेलन अच्छे ढंग से चल रहा था, लेकिन जिन्ना इस बात पर अड़ गए कि केवल मुस्लिम लीग ही सारे भारत के मुसलमानों का प्रतिनिधित्व करती है। अत: यह सम्मेलन असफल हो गया।

प्रश्न 34.
भारत विभाजन के बाद सांप्रदायिक दंगे क्यों भड़के ?
उत्तर:
सांप्रदायिक दंगे (Communal Riots) – भारत विभाजन में देश में होने वाले सांप्रदायिक दंगों का भी बहुत बड़ा हाथ था। पाकिस्तान की माँग मनवाने के लिए मुस्लिम लीग की ‘सीधी कार्यवाही’ के कारण सारा देश गृहयुद्ध की आग में जलने लगा था। हत्याएँ, लूटमार, आगजनी, बलात्कार जैसे शर्मनाक कार्य हर कूचे और हर बाजार में देखे जा सकते थे। ये घटनाएँ दिन-प्रतिदिन बढ़ती ही चली जा रही थीं। इन घटनाओं के प्रति नेहरूजी को संकेत करते हुए लेडी माउंटबेटन ने कहा था, “सोचती हूँ कि हजारों मासूमों, बेगुनाहों का रक्त बहाने से क्या यह ज्यादा अच्छा नहीं कि मुस्लिम लीग की बात मान ली जाए।” दूसरी ओर माउंटबेटन ने पटेल को भी ये दंगे रोकने के लिए भारत-विभाजन पर राजी कर लिया। फलस्वरूप भारत का विभाजन कर दिया गया।

प्रश्न 35.
संविधान क्या है ? भारतीय संविधान कब बनकर तैयार हुआ ? यह लागू कब हुआ?
उत्तर:
संविधान एक कानूनी दस्तावेज है जिसके द्वारा किसी देश का शासन चलाया जाता है। भारत का संविधान 26 नवम्बर, 1949 ई० को बनकर तैयार हुआ और 26 जनवरी, 1950 को इसे लागू किया गया।

प्रश्न 36.
संविधान प्रारूप समिति के अध्यक्ष कौन थे ? इस सभा को कब प्रारूप समिति ने अपनी संस्तुतियाँ प्रस्तुत की थीं ?
उत्तर:
संविधान प्रारूप समिति के अध्यक्ष डॉ० बी० आर० अम्बेदकर थे। संविधान प्रारूप समिति ने संविधान निर्माण सभा को अपनी संस्तुतियाँ 4 नवम्बर, 1948 को प्रस्तुत की थीं।

प्रश्न 37.
देशी रियासतों का एकीकरण किसने किया तथा एकीकरण की प्रक्रिया कैसे हुई ?
उत्तर:
देशी रियायतों का एकीकरण सरदार वल्लभ भाई पटेल (लौह पुरुष) ने किया। इस काम के लिए उन्होंने छोटी रियासतों को मिलाकर उनका एक संघ बनाया। कुछ बड़ी-बड़ी रियासतों को राज्य के रूप में मान्यता दी। कुछ पिछड़े हुए तथा शासन व्यवस्था ठीक न होने वाले राज्यों को केन्द्र की निगरानी में रखा गया।

प्रश्न 38.
डॉ० राजेन्द्र प्रसाद पर संक्षिप्त नोट लिखिए।
उत्तर:
संविधान का निर्माण होने पर 26 नवम्बर, 1949 को डॉ० राजेन्द्र प्रसाद, अध्यक्ष संविधान सभा, ने उस पर हस्ताक्षर करते हुए इन बिन्दुओं पर दुःख प्रकट किया था

  1. भारत का संविधान मूल रूप से अंग्रेजी भाषा में है।
  2. इसमें किसी भी पद पर कोई भी शैक्षणिक योग्यता नहीं रखी गई है।
  3. भारत में प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ही बनाए गये।

प्रश्न 39.
भारतीय संविधान के अनुसार धर्मनिरपेक्षता क्या है ?
उत्तर:
निरपेक्ष शब्द को भारतीय संविधान की प्रस्तावना में 42वें संविधान संशोधन 1976 ई० में जोड़ा गया। इसका तात्पर्य यह है कि भारत किसी धर्म या पंथ को राज्य धर्म या पंथ को राज्य धर्म के रूप में स्वीकार नहीं करता तथा न ही किसी धर्म का विरोध करता है। प्रस्तावना के अनुसार भारतवासियों को धार्मिक विश्वास, धर्म व उपासना की स्वतन्त्रता होगी। धर्म को व्यक्तिगत मामला माना गया है। अतः राज्य लोगों के इस कार्य में हस्तक्षेप नहीं करेगा।

Bihar Board 12th History Important Questions Long Answer Type Part 4

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Bihar Board 12th History Important Questions Long Answer Type Part 4

प्रश्न 1.
अल्लाउद्दीन खिलजी के शासन की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन करें।
अथवा, अल्लाउद्दीन खिलजी के प्रशासनिक एवं सैनिक सुधारों का वर्णन करें।
उत्तर:
अलाउद्दीन एक सुयोग्य शासक और कुशल राजनीतिज्ञ था। उसमें उच्चकोटि की मौलिकता थी और नये प्रयोगों को सफलतापूर्वक कार्यान्वित करने की क्षमता। उसमें रचनात्मक प्रतिभा थी और वह नये-नये प्रयोगों को करने के लिए सदैव उत्सुक रहता था। पुरानी परिपाटियों और संस्थाओं से उसे संतोष नहीं था।

उसने अपने शासनकाल में सभी क्षेत्रों में क्रान्तिकारी सुधार किये थे जिनकी उसके पूर्वाधिकारियों ने कल्पना भी नहीं की थी। प्रत्येक क्षेत्रों में अलाउद्दीन ने ऐसी नवीन नीति का अनुसरण किया जो उसकी प्रतिभा का परिचय देती है। नीचे प्रत्येक क्षेत्र में अलाउद्दीन के सुधारों का वर्णन दिया जाता है-

प्रशासनिक सुधार – अलाउद्दीन उच्च कोटि का प्रबन्धक और शासनकर्त्ता था। उसमें एक जन्मजात सेनानायक और प्रशासक के गुण विद्यमान थे। अतएव एक विशाल साम्राज्य की स्थापना करने के साथ-साथ उसने उस साम्राज्य को सरक्षित ससंगठित तथा सव्यवस्थित रखने के किया। उसका शासन पूर्ण रूप से स्वेच्छाचारी, निरंकश और विशद्ध सैनिक शासन था। राज्य की सारी शक्तियाँ सुल्तान के हाथ में थी और वह सभी अधिकारों का स्रोत था। राज्य के सभी कार्य उसकी आज्ञा और आदेश से होता था। शासन के प्रत्येक भाग पर उसका नियंत्रण रहता था। उसका गुप्तचर-विभाग इतना सुसंगठित और सक्षम था कि राज्य की सारी घटनाओं की सूचना उसे मिलती रहती थी। वह अपने कर्मचारियों पर कड़ा नियंत्रण रखता था। इस प्रकार अलाउद्दीन का शासन एक केन्द्रीभूत सैनिक शासन था।

अलाउद्दीन ने भी बलवन के राजत्व सम्बन्धी सिद्धान्त को पुनः स्थापित करने का प्रयास किया। वह राजा के प्रताप में विश्वास करता था और उसे पृथ्वी पर ईश्वर का प्रतिनिधि मानता था। उसका दृढ़ विश्वास था कि सुल्तान अन्य मनुष्यों की अपेक्षा अधिक बुद्धिमान होता है, इसलिए उसकी इच्छा ही कानन होनी चाहिए। वह इस सिद्धान्त में विश्वास करता था कि राजा . का कोई सम्बन्धी नहीं होता है और राज्य के सभी निवासी उसके सेवक होते हैं। इसलिए वह राज्य के मामले में उलेमा के हस्तक्षेप का विरोधी था। वह यह मानता था कि धर्म और प्रशासन दो भिन्न विषय हैं। उसने किसी भी अधिकारी को यह अनुमति न दी कि वह उसे किसी बात में सलाह दे या धर्म का दबाव डालकर उसे कोई काम करने के लिए मजबूर करे। केवल दिल्ली का कोतवाल काजी अलाउल मुल्क ही ऐसा व्यक्ति था जिसकी सलाह का सुल्तान सम्मान करता था।

वह राज्य प्रबन्ध के सम्बन्ध में स्पष्ट कहता था कि, “मुझे जो बात पसन्द आयेगी, वही मैं करूँगा। जो बात मैं देश के हित के लिए समशृंगा, चाहे वह धर्म के विपरीत हो या अनुकूल, वही कार्य मैं करूँगा। जो बात मैं देश के हित के लिए समझूगा, चाहे वह धर्म के विपरीत हो या अनुकूल, वही कार्य मैं करूँगा। मैं नहीं जानता कि मेरा आचरण धार्मिक-कानून की दृष्टि में उचित है अथवा विपरीत। मैं तो राज्य की भलाई के लिए जो कुछ ठीक समझता हूँ अथवा अवसर के अनुकूल मुझे जो कुछ ठीक अँचता है, वह मैं कर डालता हूँ। मैं नहीं जानता कि कयामत के दिन ईश्वर के दरबार में मेरा क्या होगा।” इस प्रकार अलाउद्दीन दिल्ली का पहला सुल्तान था जिसने धर्म पर राज्य का नियंत्रण स्थापित किया।

अलाउद्दीन के शासन की एक महत्वपूर्ण विशेषता यह थी कि उसने राजनीति को धर्म से अलग कर दिया था। वह राजनीति में उलेमा के हस्तक्षेप का विरोधी था। शासन में मुल्लाओं का कोई प्रभाव नहीं था। वह वही करता था, जिसे वह राज्य के हित में ठीक समझता था। डॉ० ईश्वरी प्रसाद के अनुसार, “उसे जो सामग्री उपलब्ध थी, उसी की सहायता से वह दृढ़तापूर्वक अपने गन्तव्य की ओर बढ़ता जाता था और उसकी मैकियावेलियन राजनीति में नैतिकता और धार्मिक निर्णय के लिए कोई स्थान न था।” इस प्रकार बलवन की भाँति अलाउद्दीन ने भी लौकिक शासन की स्थापना की, जिसका अनुसरण आगे चलकर अकबर और शेरशाह ने किया।

अलाउद्दीन ने अपनी न्याय व्यवस्था को भी लौकिक रूप दिया था। उसने इस सिद्धान्त को प्रतिपादित किया कि परिस्थिति और लोक-कल्याण के विचार से जो नियम उपयुक्त हो, वही राज्य का नियम होना चाहिए। इस प्रकार उसने राज्य के नियम को धर्म के चंगुल से मुक्त किया। न्यायाध श के पद पर चरित्रवान और नीति-निपुण व्यक्तियों को नियुक्त किया गया। न्यायाधीशों की सहायता के लिए पुलिस और गुप्तचर की नियुक्ति की गयी। प्रत्येक नगर में कोतवाल का कार्य अपराधी का पता लगाना था। गुप्तचर भी अपराधियों का पता लगाने में सहायता करते थे। दण्ड-विधान अत्यन्त ही कठोर था। बिना किसी भेदभाव के अपराधियों को दण्ड दिया जाता था।

सैनिक व्यवस्था – अलाउद्दीन का शासनतंत्र पूर्णतया सैन्य शक्ति पर आधारित था। उसका विश्वास था कि बाह्य आक्रमण से साम्राज्य की सुरक्षा और आन्तरिक शांति के लिए एक सुसज्जित एवं सुसंगठित सेना का होना आवश्यक है। अतः उसने सैन्य-सुधार की ओर ध्यान दिया और निम्नलिखित सुधार किए-

(i) स्थायी सेना की व्यवस्था – दिल्ली के सुल्तानों में अलाउद्दीन पहला सुल्तान था जिसने स्थायी सेना रखने की व्यवस्था की थी। उसने 4,75,000 (चार लाख पचहत्तर हजार) स्थायी सेना का संगठन किया और सेना के प्रधान के पद पर ‘अरोज-ए-मुमालिक’ (सेना-मंत्री) की नियुक्ति की। स्थायी सेना की मदद से ही अलाउद्दीन ने एक विशाल साम्राज्य की स्थापना की थी।

(ii) सेना में भर्ती करने की व्यवस्था – यद्यपि सेना में सैनिकों की भर्ती सेना-मंत्री द्वारा की जाती थी, लेकिन इसे साथ-ही-साथ सुल्तान स्वयं सेना की भर्ती करता था। सेना में भर्ती योग्यता के आधार पर होती थी। प्रत्येक सैनिक सम्बन्धी जानकारी एक राजकीय रजिस्टर में अंकित रहती थी, ताकि सैनिक के स्थान पर कोई न आ सके।

(iii) नकद वेतन की व्यवस्था – अलाउद्दीन ने सैनिकों को जागीरें देने के स्थान पर नकद वेतन देने की व्यवस्था चलायी। प्रत्येक सैनिक को 234 टंका वेतन दिया जाता था तथा एक घोड़ा रखने वाले को 78 टंका अधिक मिलता था। सैनिक को वेतन राजकीय कोष से मिलता था तथा उन्हें घोड़े, हथियार तथा युद्ध की अन्य सामग्री भी राज्य की ओर से दी जाती थी।

(iv) घोड़ों पर दाग लगाने की व्यवस्था – अलाउद्दीन के पहले सैनिक लोग अच्छी नस्ल के घोड़ों के स्थान पर रद्दी नस्ल के घोड़े रखकर राज्य को धोखा दिया करते थे। अत: अलाउद्दीन ने इस कुप्रथा को समाप्त करने के लिए घोड़ों पर दाग लगवाने की प्रथा चलायी। फरिश्ता के अनुसार उसकी सेना में 47,500 अश्वारोही सैनिक थे। अच्छी नस्ल के घोड़े बाहर से मँगवाये गये थे

(v) ये दुर्गों का निर्माण तथा पुराने दुर्गों की मरम्मत करने की व्यवस्था – अलाउद्दीन ने मंगोलों के आक्रमण को रोकने के लिए सीमान्त प्रदेश में कुछ नये दुर्गों का निर्माण करवाया था । तथा पुराने किलों की मरम्मत करवायी, क्योंकि उसके शासन काल में मंगोलों के आक्रमणों के कारण अत्यधिक अशांति रही थी। इन दुर्गों में शक्तिशाली सेनाएँ रखी गईं जो किसी भी बाह्य आक्रमण का सामना करने के लिए सदैव तत्पर रहती थीं।

इन सुधारों के परिणामस्वरूप अलाउद्दीन की सेना का संगठन बहुत सुदृढ़ हो गया और वह अपनी महत्वाकांक्षाओं की पूर्ति में सफल रहा। उसका सेना पर पूर्ण नियंत्रण था। उसके इस सैन्य-संगठन ने ही उसकी निरंकुशता को पराकाष्ठा पर पहुंचा दिया था।

राजस्व-व्यवस्था – अलाउद्दीन की आर्थिक व्यवस्था उसकी सैन्य व्यवस्था का परिणाम थी, क्योंकि एक विशाल स्थायी सेना का प्रबन्ध और उसका व्यय आसानी से चलाना असम्भव था। इसलिए उसने आर्थिक व्यवस्था में सुधार करने का संकल्प किया और अत्यधिक धन प्राप्त करने के लिए अनेक उपायों को अपनाया था। वह राज्य के आर्थिक साधनों को भी बढ़ाना चाहता था। इसलिए उसने राजस्व-विभाग में सुधार की ओर ध्यान दिया। पहले के शासकों में वैज्ञानिक राजस्व-नीति निर्धारित करने का प्रयास नहीं किया था। उन्होंने हिन्दू-काल की पुरातन-व्यवस्था को कायम रखा। किन्तु अलाउद्दीन एक साहसी शासन-सुधारक था। वह राजस्व में वृद्धि करने के लिए मौलिक परिवर्तन का इच्छुक था। इस उद्देश्य से उसने एक नियमावली प्रचलित की जिससे राजस्व-व्यवस्था में परिवर्तन आया। उसने मुसलमान माफीदारों तथा धार्मिक व्यक्तियों की राज्य द्वारा दी गयी सम्पत्ति, पेंशन और वक्फ आदि के रूप में मिली हुई भूमि जब्त कर ली। मुकद्दम, खुत तथा चौधरी आदि अधिकारियों को विशेषाधिकार से वंचित कर दिया गया। उन्हें भी भूमि, मकान तथा चारागाह पर कर देना पड़ता था।

इस प्रकार भूमि-कर के सम्बन्ध में हिन्दुओं और मुसलमानों के बीच कोई अन्तर नहीं था। खेती योग्य भूमि का पता लगाने के लिए भूमि की नाप करवायी गयी। भूमि का नाप कराना हिन्दूकालीन राजस्व-व्यवस्था की एक विशेषता थी। भूमि का बन्दोबस्त करने से पहले उसने यह पता लगाया कि राज्य के प्रत्येक गाँव में कितनी खेती के योग्य जमीन है और उससे कितना लगान आता है। भूमि-सम्बन्धी नियमों को लागू करने के लिए योग्य तथा ईमानदार राजस्व पदाधिकारी नियुक्त किये गये। इन सुधारों का परिणाम यह हुआ कि राज्य की आय में पर्याप्त वृद्धि हुई और उसका बोझ किसानों, भूमिहरों तथा समाज के अन्य वर्गों पर पड़ा। किन्तु इस व्यवस्था का अधिक भार हिन्दुओं पर पड़ा क्योंकि बहुसंख्यक हिन्दू भूमि से सम्बन्धित थे।

इन सुधारों का कृषकों और प्रजा पर बहुत भयंकर प्रभाव पड़ा। उनको किसी-न-किसी प्रकार से कर देना ही पड़ता था। दिल्ली तथा दोआब के आस-पास के किसानों को उनकी उपज का पचास प्रतिशत कर के रूप में देना पड़ता था। गैर-मुस्लिम प्रजा को जजिया देना पड़ता था। अधिकांश जनता को अपनी उपज का अर्ध भाग और चरागाहों पर भारी कर देना पड़ता था। सुल्तान उनको ऐसा परिस्थिति में कर देना चाहता था कि न वे अस्त्र उठा सकें, न अश्वों पर आरूढ़ हो सकें, न सुन्दर वस्त्र धारण कर सकें और न जीवन के अन्य ऐश्वर्य साधनों का उपयोग कर सकें। वास्तव में उनकी दशा अति दयनीय थी।

प्राचीन जागीरदार तथा हिन्दू जो अपनी खोई स्वतन्त्रता के लिए विद्रोह कर रहे थे, उसकी स्थिति अब ऐसी दयनीय हो गई थी कि उनकी जबान पर अब विद्रोह शब्द नहीं आता। जनता से किसी-न-किसी प्रकार का बहाना करके धन लिया जाता था। अनेक हिन्दू धनहीन हो गये और अन्त में ऐसा हो गया कि बड़े अमीरों, उच्च पदाधिकारियों तथा चोटी के व्यापारियों को छोड़कर अन्य लोगों के घरों में सोना देखने को न मिलता था। सम्पूर्ण राज्य में हिन्दू दुख और दरिद्रता में डूब गये। यदि कोई ऐसा वर्ग था जिसकी दशा दूसरों से अधिक दयनीय थी तो वह वंशानुगत कर निर्धारित तथा वसूल करने वाले पदाधिकारियों का था जिसका पहले समाज में सबसे अधिक सम्मान था। समकालीन इतिहासकार बनी इस नियमों के परिणामों का सारांश इस प्रकार लिखता है-“चौधरी, और मुकद्दम इस योग्य न रह गये थे कि घोड़े पर चढ़ सकते, हथियार बाँध सकते, अच्छे वस्त्र पहन सकते अथवा पान का शौक कर सकते। कोई भी हिन्दू सर ऊँचा नहीं कर सकता था। उनके घरों में सोने, चाँदी, पीतल या टंका के कोई अलंकार का चिन्ह नहीं दिखाई पड़ता था। निर्धनता की मार से त्रस्त होकर हिन्दु मुखियों और जमीन्दारों के घरों की स्त्रियाँ मुसलमान के घरों में जाकर मजदूरी करती थीं।”

मुनाफाखोरों के साथ-साथ निरीह जनता को भी पिसना पड़ा। उसने भी नाना प्रकार के कर लिए जाते थे। अधिक दरिद्र तथा दुखी हो जाने से खेती-बाड़ी से उनका विश्वास हट गया था। इस विश्वास को फिर से स्थापित करने के लिए तथा खेती को प्रोत्साहन देने के लिए गयासुद्दीन तुगलक को भूमि-कर में कमी करनी पड़ी।

कुछ विद्वानों का कथन है कि अलाउद्दीन ने ये नियम हिन्दुओं को दबाने के लिए नहीं बनाये थे। हिन्दुओं को इसलिए पिसना पड़ा कि अधिकांश हिन्दू किसी-न-किसी रूप से जमीन पर आश्रित थे।

प्रश्न 2.
अलाउद्दीन खिलजी के आर्थिक सुधारों का आलोचनात्मक विश्लेषण करें।
उत्तर:
अलाउद्दीन खिलजी ने अपने शासनकाल में आर्थिक जीवन के दो महत्वपूर्ण क्षेत्रों में सुधार लागू किये। वे थे कृषि और व्यापार कृषि-क्षेत्र में सुधारों का सम्बन्ध लगान व्यवस्था से था। लगान अथवा भू-राजस्व राज्य की आमदनी का प्रमुख साधन था और अलाउद्दीन राज्य की आमदनी में पर्याप्त वृद्धि करने का इच्छुक था। इसके अतिरिक्त वह मध्यस्थ भूमिपति वर्ग का दमन भी करना चाहता था जो राज्य में विद्रोह का एक प्रमुख कारण था। इस प्रकार अलाउद्दीन के राजस्व-सुधार दो उद्देश्यों से प्रेरित थे, राज्य की आमदनी में पर्याप्त वृद्धि जिससे कि साम्राज्य-विस्तार के लिए विशाल सेना का निर्माण किया जा सके, मध्यस्थ भूमिपति वर्ग का दमन और उसका धन छीनना ताकि इस वर्ग द्वारा विद्रोह एवं उपद्रव की समस्या का समाधान हो सके।

प्रथम उद्देश्य की प्राप्ति के लिए अलाउद्दीन ने तीन महत्वपूर्ण उपाय किए-उसने दोआब – (गंगा और यमुना के बीच के क्षेत्र) में लगान की दर में वृद्धि के आदेश दिये। किसानों को उपज के 1/3 अथवा 33% के स्थान पर 1/2 अथवा 50% लगान के रूप में देने के आदेश दिये गये। इससे राज्य की आमदनी में वृद्धि हुई। दूसरी ओर अलाउद्दीन ने दोआब क्षेत्र में कर-मुक्त भूमि पर केन्द्रीय नियंत्रण स्थापित कर दिया और भूमि अनुदान वापस ले लिए। इक्ता, मिल्क, वक्फ आदि के रूप में सीमान्तों, अधिकारियों और उलेमा के पास जो भूमि थी उसे खालसा (सुल्तान के प्रत्यक्ष शासन के अधीन) भूमि में परिवर्तित करने के आदेश दिये गये। इस प्रकार राज्य की आमदनी में और वृद्धि संभव हुई। अलाउद्दीन ने संभवतः लगान निर्धारण की पद्धति में सुधार लाया। बरनी के अनुसार, उसने भूमि की माप के आधार पर लगान के निर्धारण के आदेश दिये। इस पद्धति के लिए ‘मसाहत’ शब्द का प्रयोग किया जाता है। परन्तु बरनी ने इस सम्बन्ध में विस्तृत जानकारी नहीं दी है। उसने मात्र इतना ही लिखा है कि अलाउद्दीन ने प्रति ‘बिस्वा’ में उपज के आधार पर लगान निर्धारण करने के आदेश दिये। लगान, वसूली के कार्य में व्याप्त दोषों को दूर करने के लिये अलाउद्दीन ने एक नये विभाग ‘दीवान मुस्तखरज’ की स्थापना की। इस विभाग द्वारा लगान वसूलने वाले अधिकारियों और कर्मचारियों द्वारा बकाया राशि की वसूली के लिए कठोर उपाय किये गये।

मध्यस्थ भूमिपति वर्ग के दमन के लिए भी अलाउद्दीन ने कई उपाय किये। इस वर्ग के लिए बरनी ने ‘खूत मुकद्दम एवं चौधरी’ शब्द का प्रयोग किया है। ये विभिन्न श्रेणियों के भूमिपति थे जो लगान वसूली के काम में राज्य का सहयोग देते थे। इनके द्वारा किसान से लगान वसूल कर राज्य को पहुँचाया जाता था। इस सेवा के बदले में राज्य द्वारा कुछ सुविधाएँ इन्हें दी जाती थीं। जैसे ये लोग अपनी भूमि का रियायती दर पर लगान देते थे और किसानों से ये राज्य के लगान के अतिरिक्त अपने लिए भौकर आदि वसूल सकते थे। राज्य को दिया जानेवाला लगान सामान्य रूप से ‘खिराज’ कहलाता था, जबकि भूमिपतियों द्वारा लिया जानेवाला कर ‘हुक्क’ कहलाता था। ऐसा देखा गया था कि इस वर्ग के लोग अपने अधिकारों का दुरुपयोग करते थे। किसानों से अधिक लगान और अपने कर वसूल कर ये धन अर्जित कर रहे थे, जबकि राज्य को लगान की राशि का पूर्ण भुगतान न करके ये लोग धनी हो गये थे। धनी होने के कारण इनके लिए अपनी निजी सेना भरती करना आसान था और इन सैनिकों के माध्यम से ये विद्रोह और उपद्रव खड़े करते थे।

अलाउद्दीन ने इस वर्ग को कमजोर बनाने के लिए इसका धन छीनना आवश्यक समझा। उसने सर्वप्रथम इन भूमिपतियों को लगान देने की सुविधा से वंचित कर दिया। द्वितीय उसने इन्हें रियायती दर पर लगान वसूली के काम से मुक्त कर दिया। तृतीय उसने इनके सभी ‘हुक्क’ अवैध घोषित कर दिये। इन उपायों से इस वर्ग की आर्थिक स्थिति पर आघात पहुँचा। बरनी के अनुसार अब इस वर्ग के लिए घुड़सवारी करना, हथियार रखना, उत्तम वस्त्र पहनना और पान खाना संभव नहीं रहा। इनके घरों की औरतें अब दूसरों के घरों में काम करने पर बाध्य हुई। वरनी के ये विचार अतिशयोक्तिपूर्ण हैं। परन्तु मध्य भूमिपतियों की स्थिति निश्चित रूप से कमजोर पड़ी और उनकी उद्दण्डता समाप्त हो गयी।

अलाउद्दीन ने कर-प्रणाली में भी सुधार किया। खिराज (भूमिकर) की दर में उसने वृद्धि की। खम्स (युद्ध में लूटे गये धन में राज्य का 1/5 अंश) की दर उसने बदलकर 4/5 कर दी। उसने कई नये कर लगाये जिनमें घरों (मकान पर लगने वाला कर) और चराई (चरागाह पर लगनेवाला कर) प्रमुख हैं। पूर्वकाल से प्रचलित ‘जजिया’ और ‘जकात’ कर भी उसके समय में लिये जाते रहे।

इन सभी उपायों से अलाउद्दीन अपने दोनों लक्ष्य प्राप्त करने में सफल रहा। धन अर्जित करने और राज्य में सुव्यवस्था बनाये रखने में अलाउद्दीन की सफलता पूर्णतः स्पष्ट है।

अलाउद्दीन के सुधारों में सबसे अधिक महत्व उसकी मूल्य-निर्धारण योजना अथवा बाजार नियंत्रण की नीति का है। इतिहासकारों में इस योजना के उद्देश्य, क्षेत्र एवं प्रभाव के सम्बन्ध में मतभेद है। इसके उद्देश्यों के सम्बन्ध में के. एस. लाल ने बरनी के विचार से सहमति व्यक्त की और कहा कि यह योजना कम खर्च पर विशाल सेना को बनाए रखने के लिए लागू की गयी थी। उनके अनुसार अलाउद्दीन ने साम्राज्य विस्तार एवं मंगोल आक्रमण का सामना करने के लिए विशाल सेना का निर्माण किया। इस कार्य में राज्य को अत्यधिक धन खर्च करना पड़ता था। अतः अलाउद्दीन ने सैनिकों का वेतन निर्धारित कर दिया। 234 टंका प्रतिवर्ष वेतन और 78 टंका भत्ते के रूप में सैनिकों को दिया जाता था। अब यह अनिवार्य हो गया कि उस निर्धारित वेतन में ही सैनिकों को सभी आवश्यक वस्तुएँ उपलब्ध कराई जाएँ अन्यथा इनमें असंतोष फैलता। बाजार नियंत्रण की योजना इसलिए लागू की गई।

योजना कार्यान्वित करने के लिए अलाउद्दीन ने एक नये विभाग का गठन किया जिसे ‘दीवाने रियासत’ नाम दिया। यह वाणिज्य विभाग था तथा इसका प्रधान सरे-रियासत कहा जाता था। इस विभाग के अधीन प्रत्येक बाजार के लिए निरीक्षक नियुक्त किया गया। इन्हें शहना कहते थे जो योजना लागू करने के लिए उत्तरदायी थे। गुप्तचर अथवा बरीद एवं मुन्हीयाँ नियुक्त किये गये ताकि बाजार की गतिविधियों और शहना पर निगरानी रखें। इसके अतिरिक्त अलाउद्दीन स्वयं भी अपने दासों और अन्य व्यक्तियों द्वारा समय-समय पर बाजार से सामान मँगा कर अपनी सन्तुष्टि करता था। आदेशों का उल्लंघन करने वाले व्यापारियों के लिए कठोर दण्ड का प्रावधान था, अधिक मूल्य लेने पर कोड़े मारने की सजा थी तथा कम तौलने पर अनुपात में मांस व्यापारी के शरीर से काट लिया जाता था। इस कठोर दण्ड एवं कुशल गुप्तचर व्यवस्था के माध्यम से अलाउद्दीन ने योजना को पूरी कड़ाई से लागू किया।

समकालीन इतिहासकारों के अनुसार अलाउद्दीन ने निम्नलिखित बाजार स्थापित किये-

  1. मण्डी-जहाँ अनाज का व्यापार होता था।
  2. सराय अदल-जहाँ वस्त्र का व्यापार होता था।
  3. दास, घोड़ों और मवेशियों एवं अन्य वस्तुओं के लिए सामान्य बाजार।

उसने विभिन्न वस्तुओं के लिए मूल्य निर्धारित कर दिये। गेहूँ 7 1/2 जीतल प्रति मन, चावल 5 जीतल प्रति मन, जौ 4 जीतल प्रति मन, चना 5 जीतल प्रति मन आदि मूल्य निर्धारित किये। कपड़े में रेशमी वस्त्र सोलह टंका से लेकर दो टंका के बीच बिकता था, जबकि सूती कपड़ा 36 जीतल से 6 जीतल के बीच बिकता था। उत्तम श्रेणी के घोड़े 100 से 120 टंका एवं मामूली टटू 10 से 25 टंका में बिकते थे। दासों का मूल्य 5 टंका से 40 टंका के बीच था।

मण्डी में अनाज की आपर्ति के लिए अलाउद्दीन ने लगान की वसली अनाज के रूप में करने का आदेश दिया। इसके अतिक्ति उसने किसान से निजी आवश्यकता से अधिक अनाज निर्धारित मूल्य पर खरीदने का आदेश दिया। इन उपायों से राज्य को अनाज का विस्तृत भण्डार उपलब्ध हो गया जिसे बाजारों के माध्यम से मण्डी तक पहुँचाया गया। मण्डी में यह अनाज लाइसेंस प्राप्त व्यापारियों द्वारा बेचने का आदेश दिया गया। व्यापारियों को निर्धारित मात्रा में ही अनाज प्रतिदिन बेचने का आदेश था। यह अनाज राज्य के अतिरिक्त भण्डार से उपलब्ध कराया जाता था। इन उपायों से अलाउद्दीन ने सभी परिस्थितियों में अनाज का व्यापार नियंत्रित मूल्य पर ही होने की व्यवस्था की जो कि निश्चित रूप से एक असाधारण सफलता थी।

वस्त्र बाजार में विदेशों से आयात किये गये रेशमी कपड़ों का मूल्य-निर्धारित करना कठिन था। अतः अलाउद्दीन ने मुल्तानी व्यापारियों को राज्य ऋण प्रदान किया ताकि वे व्यापारियों से उपलब्ध मूल्य पर कपड़ा खरीदें और उसे बाजार लाकर निर्धारित मूल्य पर बेच दें। इस व्यापार में जो हानि होती थी वह राज्य द्वारा पूरी की जाती थी तथा व्यापारियों को उनकी सेवा के बदले में कमीशन प्रदान किया जाता था। महँगे वस्त्र केवल विशेष परमिट के आधार पर ही खरीदे जा सकते थे।

दासों, घोड़ों एवं मवेशियों के बाजार में मूल्य वृद्धि की समस्या दलालों द्वारा उत्पन्न की जाती थी जो व्यापारी एवं ग्राहक दोनों से कमीशन वसूलते थे। अत: अलाउद्दीन ने इन दलालों को बाजार से निष्कासित कर दिया एवं राज्य द्वारा व्यापारियों के लिए कुछ नियम निर्धारित कर दिये। हर व्यापारी को अपने सामान सरकारी अधिकारियों द्वारा निरीक्षित कराना पड़ता था। इस आधार पर इनकी श्रेणियाँ निर्धारित कर दी जाती थीं। प्रत्येक श्रेणी के लिए निर्धारित मूल्य के अनुसार ही उन्हें अपना सामान बेचना पड़ता था।

अलाउद्दीन ने इन उपायों से सभी आवश्यक वस्तुओं का मूल्य निर्धारित कर दिया और अपने शासन काल की पूरी अवधि में इनमें किसी प्रकार की वृद्धि नहीं होने दी। यह एक प्रशंसनीय सफलता थी, किन्तु प्रश्न यह उठता है कि ये उपाय क्या सभी वर्गों के लिए लाभदायक एवं हितकारी सिद्ध हुए ? के० एस० लाल के अनुसार अलाउद्दीन का उद्देश्य केवल सैनिक और सामान्त वर्ग को ही सन्तुष्ट रखना था ताकि इनके समर्थन से वह अपनी निरंकुश सत्ता को मजबूत बना सके। उसने अन्य सभी वर्गों के शोषण पर इस व्यवस्था को विकसित किया और किसान, शिल्पकार एवं व्यापारी इससे असंतुष्ट रहे। कुछ इतिहासकार यह भी मानते हैं कि अलाउद्दीन के इन उपायों का उद्देश्य केवल दिल्ली की प्रजा को सन्तुष्ट रखना था ताकि वे उसके निरंकुश शासन के विरुद्ध आवाज न उठाएँ।

इसके लिए उसने सीमावर्ती क्षेत्रों की प्रजा का शोषण किया । सक्सेना आदि ने इन विचारों को गलत बताते हुए स्पष्ट किया है कि स्वयं बरनी के अनुसार अलाउद्दीन ने सभी आवश्यक वस्तुओं का मूल्य निर्धारित करने के पूर्व उत्पादन पर हुई लागत को ध्यान में रखा अर्थात् मूल्य-निर्धारण मनमाने ढंग से नहीं हुआ। बरनी के ही शब्दों में अलाउद्दीन ने मुनाफाखोरी को समाप्त करने का प्रयास किया, साधारण व्यापार को अस्त-व्यस्त करने का नहीं। यह भी स्मरणीय है कि अलाउद्दीन ने सभी आवश्यक वस्तुओं का मूल्य निर्धारित किया । यदि किसान को निर्धारित मूल्य पर अनाज बेचना था तो उन्हें निर्धारित मूल्य पर ही वस्त्र एवं अन्य वस्तुएँ उपलब्ध कराई जा रही थीं। इसलिए किसानों और शिल्पकारों पर योजना का बुस प्रभाव पड़ना तर्कसंगत नहीं लगता। व्यापारी वर्ग निश्चित रूप से योजना से अप्रसन्न था परन्तु इरफान हबीब ने बरनी के वर्णन के आधार पर स्पष्ट किया है कि योजना का लाभ वास्तव में केवल सामन्त और सैनिक वर्ग को ही प्राप्त हुआ। सामान्य जनता को इसका लाभ इसलिए नहीं हुआ कि मूल्य में कमी के साथ-साथ मजदूरी की दर भी घटी।

अतः केवल उसी वर्ग को वास्तविक लाभ हुआ और उसकी क्रयशक्ति में वृद्धि हुई जो वेतन पाता था, जैसे सैनिक या सामन्त जिनके पास संचित धन था। अलाउद्दीन के जीवन काल में तो व्यापारी ने योजना का विरोध करने का साहस नहीं कर सके। किन्तु उसकी मृत्यु के बाद व्यापारियों ने योजना का विरोध करना आरम्भ किया और मुबारक खिलजी जैसे अयोग्य शासक के लिए योजना को जारी रखना असम्भव हो गया। अतः योजना स्थगित हो गयी। किन्तु के. एस. लाल के अनुसार मुबारक खिलजी ने योजना इसलिए स्थगित कर दी थी कि अब पहले की तरह सैनिक खर्च की आवश्यकता नहीं रह गयी थी।

इरफान हबीब के अनुसार योजना स्थगित करने का कारण यह था कि उसकी उपयोगिता सीमित समय के लिए ही थी। मूल्यों में कमी से आगे चलकर राज्य का भी लाभ प्राप्त नहीं हो सकता था, क्योंकि मूल्यों में कमी से राज्य की आय का वास्तविक मूल्य भी कम हो रहा था। अतः अलाउद्दीन के उत्तराधिकारी ने इसे स्थगित कर दिया।

इसमें कोई सन्देह नहीं कि मूल्य-निर्धारण की योजना अलाउद्दीन खिलजी की एक विशिष्ट उपलब्धि थी जो उसकी असाधारण प्रतिभा का व्यापक प्रमाण प्रस्तुत करती है। इस योजना के लिए उसकी प्रशंसा समकालीन, मुगलकालीन और आधुनिक इतिहासकारों ने भी की है। दुर्भाग्यवश यह सारी उपलब्धि एक व्यक्ति की प्रतिभा पर आधारित थी और उस व्यक्ति अर्थात् अलाउद्दीन की मृत्यु के पश्चात् इस योजना का कार्यान्वयन कारगर रूप से सम्भव नहीं रहा।

प्रश्न 3.
कुतुबुद्दीन ऐबक की उपलब्धियों का वर्णन करें।
उत्तर:
कुतुबुद्दीन का जन्म तुर्किस्तान में हुआ था। बचपन से ही वह कुशाग्र बुद्धि का था। बचपन में ही उसे गुलाम बनाकर फारस के एक व्यापारी काजी फखरुद्दीन अब्दुल अजीज कूफी के हाथ बेच दिया गया था। वहाँ उसने काजी के पुत्रों के साथ पढ़ने-लिखने के अलावे सैनिक घुड़सवारी का प्रशिक्षण लिया। काजी फखरुद्दीन की मृत्यु के बाद उसके पुत्रों ने उसे बेच दिया। अंत में मुहम्मद गोरी ने उसे खरीदा। यह उसकी प्रतिभा एवं योग्यता से काफी प्रभावित हुआ और उसे अपनी सेना की एक टुकड़ी का नायक बना दिया। बाद में उसका साहस, कर्तव्यनिष्ठा तथा स्वामिभक्ति से प्रभावित होकर उसने ‘अमीर-ए-आखूर’ (अस्तबल का अध्यक्ष) के सम्मानित पद पर प्रतिष्ठित किया।

अब से वह गोरी के साथ सैनिक अभियानों में भाग लेने लगा। गोरी के भारत आक्रमण के समय उसने अपनी योग्यता प्रदर्शित की तथा उसे पूर्ण सहयोग दिया। उसकी योग्यता एवं सक्रिय सहायता से गोरी को भारतीय शासकों के विरुद्ध सफलता मिली। उसकी योग्यता एवं स्वामिभक्ति देखकर गोरी ने तराइन के द्वितीय युद्ध (1192 ई०) में अजमेर तथा दिल्ली के शासक पृथ्वीराज ने शासन-व्यवस्था को अपनी राजधानी दिल्ली बनाई और गोरी की अनुपस्थिति में ही विजय अभियान चलाकर गोरी के राज्य तथा यश की काफी वृद्धि की। 1192 ई० से 1205 ई० के बीच उसने गोरी के विरुद्ध राजपूतों के विद्रोहों का दमन किया तथा कई नए प्रदेशों को भी जीता।

मुहम्मद गोरी का गुलाम कुतुबद्दीन ऐबक गोरी की मृत्यु के बाद 1206 ई० में दिल्ली की गद्दी पर बैठा। उसकी उपलब्धियों को हम दो भागों में विभक्त कर दर्शा सकते हैं। पहले गोरी के सूबेदार के रूप में तथा दूसरे शासक के रूप में।

सूबेदार के रूप में ऐबक की उपलब्धियाँ – 1192 ई० में जब गोरी ने उसे भारतीय प्रांतों का सूबेदार बनाकर गजनी लौट गया तो पृथ्वीराज का भाई हरि राय ने विद्रोह कर दिया तथा रणथम्भौर पर घेरा डाल दिया। ऐबक ने उस विद्रोह को सफलतापूर्वक दबा दिया। पुनः अजमेर के पास राजपूतों ने जटवन नामक सरदार के नेतृत्व ने विद्रोह किया और हौसी को घेर लिया। लेकिन ऐबक ने उसे भी दबा दिया। बुलंदशहर पर भी उसने अधिकार कर लिया। 1192 ई० में ही उसने मेरठ पर विजय की। 1193 ई० में दिल्ली के तोमर राजा को हराकर दिल्ली पर अधिकार कर लिया। उसने दिल्ली को अपनी राजधानी बनाई। उसके बाद वह गजनी चला गया।

1194 ई० में वह पुनः गजनी से लौटकर आया। उसने अलीगढ़ पर विजय प्राप्त की। उसी वर्ष गोरी में राजपूतों की शक्ति के प्रमुख केन्द्र कनौज (जहाँ का राजा जयचन्द था) पर आक्रमण कर उसे परास्त किया। उसमें ऐबक ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। विजय के बाद गोरी जब लौटकर चला गया तो ऐबक ने स्वामी के विजय अभियान को जारी रखा। 1195 ई० में पृथ्वीराज के भाई हरि राय ने पुनः विद्रोह कर दिल्ली पर अधिकार करने का प्रयास किया। लेकिन ऐबक ने उसे विफल कर दिया। 1195 ई० में उसने अलीगढ़ (कोइल) को जीता।

1196 ई० में उसने रणथम्भौर का दुर्ग जीतकर अजमेर पहुँचा जहाँ विद्रोह हो गये थे। 1197 ई० में उसने विद्रोह को दबाकर वहाँ अपनी स्थिति मजबूत बनाई। 1197 ई० में ही उसने गुजरात की राजधानी अन्हिलबाड़ा पर आक्रमण किया। उसे हराकर काफी सम्पत्ति लूटी क्योंकि वहाँ का चालुक्य राजा भीमदेव द्वितीय का हाथ अजमेर के विद्रोह में था। 1197 से 1203 ई० के बीच उसने कोटा बदायूँ, चन्दवर, सिरोह, उज्जैन तथा काशी को जीता। 1202-03 ई० कालिंजर (बुंदेलखंड), महोबा, खजुराहो तथा कालपी पर विजय प्राप्त की। इस तरह उस समय तक लगभग सम्पूर्ण पश्चिमोत्तर भारत ऐबक के अधीन हो गया। यही कारण था कि गोरी की हत्या (15 मार्च, 1206 ई०) के बाद उसे यहाँ का शासक बनने में काफी आसानी हुई।

शासक के रूप में उसकी उपलब्धियाँ – गोरी की मृत्यु के लगभग 3 महीने बाद ऐबक ने 24 जून 1206 ई० को राज्य की बागडोर अपने हाथों में ली और गुलामवंश की स्थापना की, क्योंकि गोरी का भतीजा तथा उत्तराधिकारी ग्यासुद्दीन मोहम्मद गोर इतना योग्य नहीं था कि गजनी के साथ-साथ वह भारतीय राज्य को भी सम्हाल सके। अतः लाहौर की जनता के आमंत्रण पर उसने अपना राज्याभिषेक किया। लेकिन उस समय उसने सुल्तान की उपाधि नहीं धारण की क्योंकि उस समय उसकी स्थिति बहुत नाजुक थी। गोरी का उत्तराधिकारी गयासुद्दीन रजनी और अफगानिस्तान का शासक एल्दौज, कुबाचा (सिन्ध का शासक) अली मर्दान तथा कई तुर्क अमीर ऐबक के विरोधी थे। इनके अलावे भारत में भी राजपूत शासक पुनः अपने को स्वतंत्र कर रहे थे। सभी जगह विद्रोह हो रहे थे। इस तरह वह आंतरिक तथा बाह्य कठिनाइयों से घिरा हुआ था।

ऐसी विषम स्थिति में भी उसने हिम्मत नहीं हारी और धैर्य, वीरता, कुशलता एवं दूरदर्शिता से उनका सामना किया। उसने लगभग 4 वर्षों तक शासन किया। उस समय वह कोई नयी विजय नहीं कर सका बल्कि अपनी स्थिति सुरक्षित एवं सुदृढ़ करने में लगा रहा।

अपनी स्थिति को सुरक्षित एवं सुदृढ़ करने के उद्देश्य से उसने वैवाहिक संबंधों का सहारा लिया और इल्तुतमिश, कुबाचा तथा एल्दौज के साथ वैवाहिक संबंध स्थापित किए। गजनी और अफगानिस्तान का शासक ताजुद्दीन एल्दोज से ऐबक को सर्वाधिक खतरा महसूस होता था। उसने गयासुद्दीन से मुक्ति पत्र पा लिया था लेकिन एल्दौज गजनी का शासक होने के का अपने आपको भारतीय राज्य का भी संप्रभु मानता था। जब ख्वारिज्म के शाह ने (जो मध्य एशिया में अपनी शक्ति का विस्तार कर रहा था।) गजनी पर चढ़ाई कर एल्दौज को वहाँ से निकाल दिया तो वह 1208 में भारत आकर पंजाब पर आक्रमण किया लेकिन ऐबक ने उसे पीछे धकेल दिया और पीछा करते-करते गजनी पहुँच गया और वहाँ अधिकार कर लिया। लेकिन मात्र 80 दिन ही वह वहाँ रह सका। जब वहाँ के नागरिकों में असंतोष फैला तो वह लौटकर यहाँ चला आया। एल्दौज पुनः वहाँ अधिकार कर लिया। इसके बाद एल्दौज पुनः भारतीय राज्य की ओर नजर नहीं घुमाई तथा अपनी लड़की की शादी ऐबक से कर अच्छे संबंध बना लिए।

सिन्ध तथा उच्च का शासक नासिरउद्दीन कुबाचा भी काफी महत्वाकांक्षी था। गोरी की मृत्यु के बाद वह स्वतंत्र शासक बन गया था। उसकी शक्ति का भी विस्तार हो चुका था। वह भी भारतीय राज्य पर अधिकार करना चाहता था। ऐबक ने उसे अपने पक्ष में करने हेतु अपनी बहन की शादी कुबाचा से कर दी। इसके कारण दोनों के संबंध मधुर हो गए।

अपनी स्थिति सुरक्षित करने के बाद उसने आंतरिक स्थिति को ठीक करने हेतु कदम उठाये। बख्तियार खिलजी के मरने के बाद अली मर्दान खाँ बंगाल तथा बिहार का स्वतंत्र शासक बन बैठा था। लेकिन स्थानीय खिलजी सरदारों ने उसे पदच्युत कर जेल में बंद कर दिया था। वह किसी तरह से जेल से निकलकर ऐबक से मिला। ऐबक ने खिलजी सरदारों से समझौता करवाकर उसे पुनः बंगाल का नवाब बना दिया। उसने ऐबक की अधीनता स्वीकार कर ली।

गोरी की मृत्यु के बाद कई राजपूत शासकों ने बुन्देलखंड, ग्वालियर, बदायूं आदि कई स्थानों पर अधिकार कर लिया था। ऐबक को उन प्रदेशों को जीतने की फुर्सत नहीं मिली। फिर भी राजाओं पर दबाव डालकर बदायूँ पर पुनः अधिकार कर लिया और अपने योग्य गुलाम इल्तुतमिश को वहाँ का सूबेदार नियुक्त किया। 4 नवंबर, 1210 ई० को लाहौर में चौगान (पोलो) खेलते समय अचानक घोड़े पर से गिर गया। पोलो की छड़ी का नुकीला. भाग छाती तथा पेट में गड़ गया। साथ ही घोड़ा भी उसपर चढ़ गया। इस कारण उसकी मृत्यु हो गई।

इस प्रकार हम देखते हैं कि कुतुबुद्दीन ऐबक काफी योग्य, प्रतिभावान, दूरदर्शी एवं साहसी था। उसमें स्वामीभक्ति की भावना भी कूट-कूटकर भरी हुई थी। जैसा कि हम देखते हैं कि अपने मालिक गोरी का वह सबसे प्रिय एवं विश्वासी व्यक्ति था। उसने मात्र दूरदर्शिता से विजय पायी वह उसकी कुशलता का परिचायक था।

भारतीय इतिहास में उसे महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। उसने गोरी द्वारा स्थापित भारतीय राज्य में शत्रुओं का दमन कर अपना शासन (गुलाम वंश) की स्थापना की। यद्यपि समय की कमी के कारण वह अपने राज्य को बढ़ा नहीं सका लेकिन उसकी स्थिति सुरक्षित, सुदृढ़ अवश्य कर दी। समयाभाव के कारण वह शासन संबंधी सुधार नहीं ला सका फिर भी वह अपने राज्य में शांति स्थापित करने में बहुत हद तक सफल रहा। इस तरह हम कह सकते हैं कि ऐबक जो एक गुलाम था ने अपनी प्रतिभा, शौर्य, वीरता तथा साहस के बदौलत भारत में अपना स्वतंत्र शासन स्थापित कर सका। इसलिए यदि उसे भारत प्रथम मुस्लिम बादशाह कहा जाय तो अतिशयोक्ति नहीं होगी।

प्रश्न 4.
विजयनगर राज्य का ‘चरमोत्कर्ष और पतन’ नामक विषय पर एक निबंध लिखिए।
उत्तर:
विजयनगर साम्राज्य का चरमोत्कर्ष – राजनीति में सत्ता के दावेदारों में शासकीय वंश के सदस्य तथा सैनिक कमांडर शामिल थे। पहला राजवंश, जो संगम वंश कहलाता था, ने 1485 ई० तक नियंत्रण रखा। उन्हें सुलुवों ने उखाड़ फेंका, जो सैनिक कमांडर थे और वे 1503 ई० तक सत्ता में रहे। इसके बाद तुलुवों ने उनका स्थान लिया। कृष्णदेव राय तुलुव वंश से ही संबद्ध था।

कृष्णदेव राय के काल में विजयनगर – कृष्णदेव राय के शासन की चारित्रिक विशेषता विस्तार और दृढीकरण था। इसी काल में तुंगभद्रा और कृष्णा नदियों के बीच का क्षेत्र (रायचूर दोआब) हासिल किया गया (1512), उड़ीसा के शासकों का दमन किया गया (1514) तथा बीजापुर के सुल्तान को बुरी तरह पराजित किया गया था (1520)। हालाँकि राज्य हमेशा सामरिक रूप से तैयार रहता था, लेकिन फिर भी यह अतुलनीय शांति और समृद्धि की स्थितियों में फला-फूला। कुछ बेहतरीन मंदिरों के निर्माण तथा कई महत्त्वपूर्ण दक्षिण भारतीय मंदिरों में भव्य गोपुरमों को जोड़ने का श्रेय कृष्णदेव को ही जाता है। उसने अपनी माँ के नाम पर विजयनगर के समीप ही नगलपुरम् नामक उपनगर की स्थापना भी की थी। विजयनगर के संदर्भ में सबसे विस्तृत विवरण कृष्णदेव राय के या उसके तुरंत बाद के कालों से प्राप्त होते हैं।

विजयनगर कष्णदेव राय की मत्य के उपरान्त – कृष्णदेव की मत्य के पश्चात 1529 ई० में राजकीय ढाँचे में तनाव उत्पन्न होने लगा। उसके उत्तराधिकारियों को विद्रोही नायकों या सेनापतियों से चुनौती का सामना करना पड़ा। 1542 ई० तक केन्द्र पर नियंत्रण एक अन्य राजकीय वंश, अराविदु के हाथों में चला गया, जो सत्रहवीं शताब्दी के अंत तक सत्ता पर काबिज रहे। पहले की ही तरह इस काल में भी विजयनगर शासकों और साथ ही दक्कन सल्तनतों के शासकों की सामरिक महत्त्वाकांक्षाओं के चलते समीकरण बदलते रहे। अंततः यह स्थिति विजयनगर के विरुद्ध दक्कन सल्तनतों के बीच मैत्री-समझौते के रूप में परिणत हुई।

विजयनगर का पतन – 1565 ई० में विजयनगर की प्रधानमंत्री रामराय के नेतृत्व में राक्षसी-तांगड़ी (जिसे तालीकोटा के नाम से भी जाना जाता है) के युद्ध में उतरी जहाँ उसे बीजापुर, अहमदनगर तथा गोलकुण्डा की संयुक्त सेनाओं द्वारा करारी शिकस्त मिली। विजयी सेनाओं ने विजयनगर शहर पर धावा बोलकर उसे लूटा। कुछ ही वर्षों के भीतर यह शहर पूरी तरह से उजड़ गया। अब साम्राज्य का केंद्र पूर्व की ओर स्थानांतरित हो गया जहाँ अराविदु राजवंश ने पेनुकोण्डा से और बाद में चन्द्रगिरि (तिरुपति के समीप) से शासन किया।

प्रश्न 5.
विजयनगर साम्राज्य के राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक एवं कलात्मक स्थिति का वर्णन करें।
उत्तर:
दक्षिण भारत के इतिहास में विजयनगर का महत्त्व सिर्फ इसलिए नहीं है कि इसके राजाओं ने एक सुदृढ़ और विशाल साम्राज्य की स्थापना की, बल्कि इसका महत्त्व इस कारण भी है कि इस समय यह राज्य ‘हिन्दु-पुनरुत्थान’ का केन्द्र था। तत्कालीन अभिलेखों, साहित्यिक ग्रंथों एवं यूरोपीय, मध्य एशियाई एवं पुर्तगाली यात्रियों के विवरणों से इस राज्य की आंतरिक व्यवस्था पर पर्याप्त प्रकाश पड़ता है।

प्रशासनिक व्यवस्था – विजयनगर साम्राज्य के अंतर्गत साम्राज्य की आर्थिक एवं सामाजिक आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए एक सर्वथा नई राज्य व्यवस्था का विकास हुआ। राजा शासन का प्रधान होता था। प्रत्येक राजा शासन में गहरी रुचि लेता था। वह राय कहलाता था। राजा राज्य में न्याय, समता, धर्मनिरपेक्षता, शांति और सुरक्षा की व्यवस्था करता था। वह आर्थिक और सामाजिक मामलों में भी अभिरुचि रखता था। वह प्राचीन राजधर्म को ध्यान में रखते हुए शासन करता था। सिद्धांततः उसकी भक्ति असीम थी, परंतु व्यवहारतः उसे धर्मानुकूल शासन करना पड़ता था। युवराज को भी प्रशासन में महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त था। कभी-कभी दो राजा साथ-साथ शासन करते थे, जैसे हरिहर एवं बुक्का, विजयराय और देवराय। नाबालिग राजाओं के लिए संरक्षक नियुक्त किए जाते थे, जो कभी-कभी सारी शक्ति स्वयं अपने ही हाथों में केन्द्रित कर लेते थे। राजपरिषद् राजा की सलाहकार समिति थी। इसमें प्रांतीय शासकों, सामंतों, व्यापारिक निगमों इत्यादि को स्थान दिया गया था। राज्य के नीति-निर्धारण का कार्य इसी के जिम्मे था।

मंत्रिपरिषद् का प्रधान महाप्रधानी या प्रधानमंत्री होता था। इसमें राज्य के मंत्रियों, उप-मंत्रियों और विभागीय अध्यक्षों के अतिरिक्त राजा के निकट संबंधी भी होते थे। परिषद् के सदस्यों की संख्या करीब 20 थी। राजा की सहायता के लिए दंडनायक (अधिकारियों की एक विशिष्ट श्रेणी) एवं कार्यकर्ता (अधिकारियों का एक अन्य वर्ग) थे। राजा और युवराज के पश्चात् महाप्रधानी ही शासन का सर्वोच्च पदाधिकारी था। केन्द्र में एक सचिवालय होता था, जो पूरे प्रशासन पर नियंत्रण रखता था। इसमें विभिन्न विभागों के प्रधान एवं उनके प्रमुख सहकर्मी रहते थे, जैसे, मानेय प्रधान (गृहमंत्री), रायसम् (सचिव), कर्णिकम् (हिसाब-किताब रखनेवाले), मुद्राकर्ता (राजकीय मुद्रा रखने वाला) इत्यादि। विजयनगर के राजा न्याय के संपादन में भी दिलचस्पी लेते थे। राजा स्वयं सर्वोच्च न्यायाधीश था, यद्यपि केन्द्रीय एवं स्थानीय स्तर पर अनेक न्यायालय थे। विजयनगर की सेना विशाल, स्थायी एवं सुदृढ़ थी। सेना में पैदल, घुड़सवार, हाथी तथा तोपखाने की टुकड़ियाँ थीं। इस सेना में मुसलमानों और तुर्की अश्वारोहियों एवं धनुर्धरों की भी भर्ती की गई। यद्यपि सैन्य व्यवस्था सामंती सिद्धांतों पर आधृत थी, तथापि इस पर कठोर निगरानी रखी जाती थी। राज्य में शांति व्यवस्था की स्थापना के लिए पुलिस का प्रबंध भी था। राज्य की आमदनी के साधन विभिन्न कर थे, जैसे भूमि कर, व्यापार, उद्योग इत्यादि से प्राप्त होनेवाली आय, व्यावसायिक कर, विवाह-कर इत्यादि।

प्रशासनिक सुविधा के दृष्टिकोण से सम्पूर्ण साम्राज्य विभिन्न प्रांतों (राज्य) में विभक्त था। इनकी संख्या बदलती रहती थी। प्रांत मंडल, कोट्टम् या वलनाडु में विभाजित थे। कोट्टम से छोटी इकाई नाडु थी। नाडु मेलाग्राम (पचास गाँवों का समूह) में विभक्त था। सबसे छोटी इकाई उर या ग्राम था। प्रांतों का शासन प्रांतपतियों के जिम्मे सुपुर्द किया गया था। यह पद राजपरिवार से सम्बद्ध व्यक्तियों एवं महत्त्वपूर्ण सैनिक-पदाधिकारियों को सौंपा जाता था। इन्हें पर्याप्त प्रशासनिक स्वतंत्रता प्राप्त थी। केन्द्र सामान्यतया प्रांतीय मामलों में हस्तक्षेप नहीं करता था। प्रांतीय गवर्नरों का मुख्य कार्य राजस्व की वसूली एवं कानून-व्यवस्था को बनाए रखना था। प्रांतीय व्यवस्था के साथ-साथ नायंकर व्यवस्था भी प्रचलित थी। नायंकर भी प्रांतीय गवर्नरों के ही समान क्षेत्र-विशेष में राज्य करते थे एवं उन्हें भी प्रशासनिक स्वायत्तता प्राप्त थी। नायंकर एक प्रकार से सैनिक सामंत थे, जो राजस्व वसूली के अतिरिक्त अपने क्षेत्र में शांति व्यवस्था बनाए रखते थे, न्याय करते थे, राजा के लिए सेना एकत्र करते थे तथा आर्थिक विकास के कार्य करते थे। इन्हें प्रांतीय गवर्नरों से भी अधिक स्वतंत्रता प्राप्त थी, जिसका दुरुपयोग भी इन लोगों ने किया। स्थानीय शासन में प्राचीन संस्थाएँ सभा, नाडु अब भी वर्तमान रही, किन्तु आयगार-व्यवस्था (बारह व्यक्तियों का समूह) की स्थापना ने स्थानीय शासन की स्वायत्तता समाप्त कर दी।

सामाजिक जीवन – विजयनगर राज्य का सामाजिक जीवन वर्ण व्यवस्था पर आधृत था। राज्य समस्त वर्गों के हितों की रक्षा करता था। समाज में प्रथम स्थान ब्राह्मणों को प्राप्त था। वे मृत्युदण्ड से परे थे। उन्हें सेना एवं शासन में उच्च पद प्राप्त थे। क्षत्रियों के विषय में स्पष्ट जानकारी उपलब्ध नहीं है। तीसरा वर्ग शेट्टी या चेट्टी का था। इसी वर्ग के अंतर्गत बड़े एवं छोटे व्यापारी, दस्तकार (वीर-पांचाल) रेड्डी,लोहार, स्वर्णकार, बढ़ई, जुलाहे, मूर्तिकार इत्यादि आते हैं।डोंबर (बाजीगर), जोगी, मछुआरों इत्यादि की स्थिति निम्न थी। समाज में दास-प्रथा भी प्रचलित थी। पुरुष एवं स्त्री दोनों ही दास बनते थे। उत्तरी भारत से दक्षिण आकर बसनेवाली जातियाँ वडवा कहलाती थी। इनका भी सामाजिक एवं आर्थिक जीवन में महत्वपूर्ण स्थान था।

राज्य सामाजिक मामलों में यदा-कदा हस्तक्षेप कर सामाजिक करीतियों एवं तनाव को समाप्त करने की कोशिश करता था। उदाहरणस्वरूप 1424-25 ई० के एक अभिलेख से ज्ञात होता है कि राज्य ने दहेज-प्रथा को गैर-कानूनी घोषित कर दिया था। सामाजिक नियमों को तोड़नेवालों के लिए दण्ड की व्यवस्था की गई थी। स्त्रियों की स्थिति बहुत उच्च नहीं थी। सामान्यतः, उन्हें भोग्या ही माना जाता था। आभिजात्य वर्ग की महिलाओं की स्थिति कुछ अच्छी थी। उन्हें नृत्य, संगीत एवं साहित्य की शिक्षा दी जाती थी। निम्न वर्गों की स्त्रियाँ विभिन्न व्यवसायों और दस्तकारियों में प्रवीण होती थीं। सामान्य वर्गों में एकात्मक विवाह ही होते थे, परंतु राजपरिवार एवं सामंत वर्गों में बहुपत्नीत्व की प्रथा प्रचलित थी। इसके अतिरिक्त राजपरिवार में असंख्य दासियाँ एवं रखैलें भी रहती थीं। समाज में देवदासियों एवं गणिकाओं की भी भरमार थी। इनका सामाजिक जीवन उपेक्षित न होकर सम्मानित था। परदा प्रथा का प्रचलन नहीं था, परंतु सती प्रथा विद्यमान थी। सामान्यतया यह प्रथा राजपरिवारों और सैनिक पदाधिकारियों के परिवारों तक ही सीमित थी। सती स्त्रियों के सम्मान में पाषाण स्मारक स्थापित किए जाते थे।

यद्यपि राज्य विधवा विवाह को प्रोत्साहन देता था, (विधवा विवाह करनेवाले दम्पत्ति विवाह कर से मुक्त थे) तथापि विधवाओं की स्थिति बहुत ही दयनीय थी। इस समय के लोग वस्त्र आभूषण एवं श्रृंगार के प्रसाधनों के शौकीन थे। कुलीन वर्ग के वस्त्र आभूषण विशिष्ट प्रकार के होते थे। लोग मांस मदिरा का सेवन भी करते थे। मनोरंजन के साधनों में नाटक, नृत्य, संगीत, शतरंज एवं पासा का खेल तथा जुआ खेलना प्रचलित था। संक्षेप में विजयनगर राज्य का सामाजिक जीवन, अंतर्विरोधों और तनावों के बावजूद शांत, सुखी एवं समृद्ध था।

आर्थिक स्थिति – विजयनगर एक समद्ध एवं वैभवपूर्ण राज्य था। तत्कालीन इतालवी और पोर्तुगीज यात्रियों ने इस नगर के वैभव का वर्णन किया है। कोण्टी, अब्दुर रज्जाक, पेईज, बारबोसा, सभी विजयनगर को समृद्धि का वर्णन करते हैं। इनके वर्णनों से राज्य की आर्थिक स्थिति पर अच्छा प्रकाश पड़ता है। राज्य की आर्थिक व्यवस्था का मुख्य आधार कृषि था। राज्य की तरफ से कृषि के विकास के लिए अनेक कदम उठाए गए। बंजर और जंगली भूमि को भी कृषि योग्य बनाकर कृषि का विस्तार किया गया। सिंचाई की सुविधा के लिए राज्य, मंदिर, व्यक्तियों और अनेक संस्थाओं ने प्रयास किया। अनेक नहरें एवं तालाब खुदवाए गए। जो व्यक्ति सिंचाई की सुविधा के लिए प्रयास करते थे एवं सिंचाई के साधनों की देखभाल करते थे, उन्हें राज्य की तरफ से करमुक्त भूमि अनुदान में दी जाती थी।

भू-व्यवस्था में भी इस समय महत्त्वपूर्ण परिवर्तन हुए। भू-स्वामित्व के अनेक रूप इस समय देखने को मिलते हैं। इनमें प्रमुख हैं भंडारवाद ग्राम (राज्य के सीधे नियंत्रणवाली भूमि), ब्रह्मदेय, देवदेथ, मठापुर भूमि (ब्राह्मणों, मठों मंदिरों को दान में दी गई भूमि), अमरम् भूमि (सैनिक एवं असैनिक कार्यों के बदले दी जाने वाली जमीन), उबलि (ग्राम में विशिष्ट सेवा के बदले दी गई जमीन) कट्टगि (पट्टे पर दी जाने वाली भूमि) इत्यादि। इस भूमि व्यवस्था का एक दुष्परिणाम यह निकला कि राज्य में बड़े भू-स्वामियों की संख्या बढ़ गई एवं छोटे किसानों की स्थिति बिगड़ गई। उनमें अनेक कुदि या कृषक मजदूर बन गए।

इस समय उपजाई जाने वाली फसलों में प्रमुख थी चावल, जौ, दलहन, तिलहन, नील, कपास, काली मिर्च, अदरक, इलायची, नारियल इत्यादि। विभिन्न प्रकार के उद्योगों एवं व्यवसायों का भी विकास हुआ। धातुकर्म का व्यवसाय सबसे अधिक उन्नत अवस्था में था। इस समय देशी और विदेशी व्यापार की भी प्रगति हुई। पुर्तगाल, मध्य एशिया और दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों के साथ व्यापारिक संबंध उन्नत था। विजयनगर से इस्पात एवं इस्पात से बने सामान, शक्कर, वस्त्र एवं शोरा विदेशों को भेजे जाते थे तथा बाहर से घोड़े, सिल्क, जवाहरात इत्यादि मँगवाए जाते थे। बारबोसा के अनुसार, विजयनगर अंतर्राष्ट्रीय व्यापार का केन्द्र था। उसका कहना है कि ‘नगर विस्तृत और घना बसा हुआ है तथा चालू व्यापार का केन्द्र है; हीरे, पीगू के लाल, चीन और सिकंदरिया का रेशम, कपूर, सिन्दूर, कस्तूरी तथा मालावार की काली मिर्च और चन्दन इन वस्तुओं का अधिक क्रय-विक्रय होता है।” आर्थिक समृद्धि के कारण जनता का जीवन खुशहाल था। करों की संख्या अधिक रहने पर भी करों का बोझ हल्का था।

धार्मिक व्यवस्था-विजयनगर के राजाओं का शासनकाल हिन्दू धर्म के पुनरुत्थान का समय माना जाता है। दक्षिण में इस्लामी राजाओं के उत्थान और प्रसार के बावजूद विजयनगर के.शासक हिन्दूधर्म की दृढ़तापूर्वक रक्षा कर सके। यह उनकी एक बड़ी उपलब्धि मानी जाती है। विजयनगर साम्राज्य में वैष्णव और शैवधर्म प्रधान थे। यज्ञ, आहुति और बलि की प्रथा प्रचलित थी। देवताओं के मंदिर बने। उनकी मूर्तियाँ भी बनाई गई। समाज में ब्राह्मणों (पुरोहितों) का यथेष्ट सम्मान था। विजयनगर के राजाओं ने हिन्दूधर्म को प्रश्रय देते हुए भी उदार धार्मिक नीति अपनाई। सभी धर्मानुयायियों के साथ उदारतापूर्वक व्यवहार किया गया। फलतः, हिन्दू धर्म के साथ-साथ इस्लाम, जैन एवं ईसाई धर्म के माननेवाले भी राज्य में शांति और सम्मान के साथ रहते थे।

शैक्षणिक एवं साहित्यिक प्रगति – यद्यपि विजयनगर के राजाओं ने राज्य की तरफ से शिक्षा की पर्याप्त व्यवस्था नहीं की तथा चोलों और पल्लवों की तरह राजकीय विद्यालयों की भी स्थापना नहीं की, तथापि स्वतंत्र शैक्षणिक संस्थाओं को दान एवं संरक्षण देकर शिक्षा के विकास में सहायता पहुँचाई। मठ, मंदिर एवं अग्रहार शिक्षा के प्रचार का कार्य करते थे। राज्य विद्वानों को संरक्षण देता था। उन्हें करमुक्त भूमि दान में दी जाती थी। इस युग में संस्कृत, तेलुगु, तमिल तथा कन्नड़ भाषाओं का पर्याप्त विकास हुआ। कृष्णदेवराय के समय में साहित्यिक प्रगति पराकाष्ठा पर पहुंच गई। उसने तेलुगु और संस्कृत में कई ग्रंथों की रचना की। उसके द्वारा रचित ग्रंथों में आमुक्त माल्यद (तेलुगु) सबसे प्रसिद्ध है। इस युग के प्रसिद्ध विद्वानों में विद्यारण्य, सायणाचार्य एवं माधवाचार्य के नाम प्रमुख हैं। अलसनी तेलुगु का महान कवि था।

कलात्मक विकास – विजयनगर साम्राज्य के अंतर्गत विभिन्न कलाओं का भी विकास हुआ। स्थापत्य के क्षेत्र में विशेष प्रगति हुई। इस युग के राजाओं ने सुंदर और भव्य महलों, झीलों, नहरों, पुलों, तालाबों का निर्माण करवाया। विजयनगर की प्रशंसा विदेशी यात्रियों ने की है। इतालवी यात्री निकोलो कोण्टी लिखता है कि “नगर की परिधि 60 मील है; उसकी दीवारें पर्वत-शिखरों तक पहुँचती हैं और उनके चरणों को घाटियाँ घेरे हुई हैं; इससे उसका विस्तार और भी अधिक बढ़ जाता है……”। बारबोसा के अनुसार नगर विस्तृत और धनी आबादीवाला था। अब्दुर रजाक तो नगर की सुंदरता देखकर विमुग्ध हो गया था। वह कहता है कि “विजयनगर ऐसा है, जिसकी समता का दूसरा नगर पृथ्वी पर आँख से न देखा और न कान से सुना।” इस काल में सुंदर एवं भव्य मंदिरों का भी निर्माण हुआ। विजयनगर के मंदिरों में सबसे अधिक विख्यात कृष्णदेव राय द्वारा निर्मित हजार खम्भों वाला मंदिर तथा विट्ठलस्वामी का भव्य मंदिर है। विभिन्न ललित कलाओं-नृत्य, संगीत, अभिनय के साथ-साथ चित्रकला एवं मूर्तिकला की भी प्रगति हुई। वस्तुतः विजयनगर साम्राज्य दक्षिण भारत के मध्यकालीन राज्यों में राजनीतिक और सांस्कृतिक दोनों ही क्षेत्रों में, सबसे प्रमुख बन गया।

प्रश्न 6.
भक्ति आंदोलन के परिणामों का वर्णन करें।
उत्तर:
भक्ति आंदोलन का प्रभाव (Effect of Bhakti Movement) – संतों तथा सुधारकों के प्रयासों से जो भक्ति आंदोलन का आरम्भ हुआ उनसे मध्य भारत के सामाजिक एवं धार्मिक जीवन में एक नवीन शक्ति एवं गतिशीलता का संचार हुआ। प्रो० रानाडे के अनुसार भक्ति आंदोलन के परिणामों में साहित्य-रचना का आरम्भ, इस्लाम के साथ सहयोग के परिणामस्वरूप सहिष्णुता की भावना का विकास जिसकी वजह से जाति व्यवस्था के बंधनों में शिथिलता आई और विचार तथा कर्म दोनों स्तरों पर समाज का उन्नयन हुआ।

(i) सामाजिक प्रभाव (Social Impact) – भक्ति आंदोलन के कारण जाति प्रथा, अस्पृश्यता तथा सामाजिक ऊँच-नीच की भावना को गहरी चोट लगी। अधिकतर भक्त संतों ने विभिन्न जातियों के लोगों को अपना शिष्य बनाया। उन्होंने जाति प्रथा का तीव्र विरोध किया एवं ब्राह्मण तथा शूद्र को समान बताया। इस तरह समाज में जाति बंधनों पर गहरा प्रहार हुआ लेकिन यह मानना पड़ेगा कि भक्ति आंदोलन भारतीय समाज से जाति प्रथा के दोषों को पूर्णतया समाप्त नहीं कर सका। भक्त-संतों ने नारी को समाज में उच्च तथा सम्मानीय स्थान दिये जाने का समर्थन किया। उन्होंने स्त्रियों को पुरुषों के साथ मिलकर सांसारिक बोझ उठाने का परामर्श दिया। कबीर तथा नानक ने पुरुषों की तरह नारियों को अपनी शिक्षाएँ दीं। उन्होंने सती प्रथा जैसी सामाजिक बुराई का भी विरोध किया। इस आंदोलन में समाज सेवा की भावना को प्रोत्साहन मिला क्योंकि भक्त संतों ने लोगों को निर्धन. अनाथों. बेसहारा आदि की सेवा करने का उपदेश दिया।

(ii) धार्मिक प्रभाव (Religious Impact) – भक्ति आंदोलन का सर्वाधिक प्रभाव धर्म पर पड़ा। इस आंदोलन के कारण ही इस्लाम तथा हिन्दू धर्म के अनुयायियों में कर्मकांडों और अंधविश्वासों के विरुद्ध वातावरण तैयार हुआ। हिन्दुओं में मूर्तिपूजा की लोकप्रियता में कमी हुई। हिन्दू-मुस्लिम सम्प्रदायों में समन्वय तथा एकता की भावना को प्रोत्साहन मिला। भक्ति आंदोलन के कारण ही सिख धर्म के रूप में नये धर्म का जन्म हुआ। गुरु नानक देव सिखों के प्रथम गुरु तथा गुरु ग्रंथ साहिब सिखों के लिए बाइबल है। गुरु ग्रंथ साहिब में अधिकांश भक्ति-संतों की वाणी ही संकलित है। इससे धार्मिक सहिष्णुता को प्रोत्साहन मिला। हिन्दु तथा मुसलमानों में जो कटुता व्याप्त थी धीरे-धीरे इस आंदोलन से उसको गहरा आघात पहुँचा। धार्मिक कट्टरता कम हुई तथा धार्मिक सहनशीलता का प्रसार हुआ।

(iii) सांस्कृतिक प्रभाव (Cultural Effects) – भक्ति आंदोलन के कारण सर्वसाधारण की भाषा एवं बोलियाँ अधिक लोकप्रिय हुईं। अनेक प्रांतीय एवं क्षेत्रीय भाषाओं में अनेक भक्त संतों ने रचनाएँ की। कबीर की भाषा अनेक भाषाओं के सुन्दर समन्वय का अच्छा उदाहरण है जो खिचड़ी भाषा कहलाती है। मलिक मुहम्मद जायसी, तुलसीदास आदि ने अवधी में अपनी रचनाएँ कीं। सूरदास ने ब्रज तथा नानक ने पंजाबी व हिन्दी को अपनाया। चैतन्य ने बंगला में और अनेक भक्त संतों ने उर्दू में भी रचनाएँ की। यह रचनाएँ समय पाकर भारतीय भाषाओं के साहित्य का एक महत्त्वपूर्ण अंग बन गईं।

प्रश्न 7.
भक्ति आन्दोलन से आप क्या समझते हैं ? इस आन्दोलन का क्षेत्र एवं इससे जुड़े प्रमुख सन्तों के नाम बताइए।
उत्तर:
(i) भक्ति आन्दोलन का अर्थ (Meaning of Bhakti Movement) – भक्ति आन्दोलन से हमारा अभिप्राय उस आन्दोलन से है जो तुर्कों के आगमन (बारहवीं सदी से पूर्व ही) से काफी पहले ही यहाँ चल रहा था और जो अकबर के काल (इसका अन्त 1605 ई. को हुआ।) तक चलता रहा। इस आन्दोलन ने मानव और ईश्वर के मध्य रहस्यवादी संबंधों को स्थापित करने पर बल दिया। कुछ विद्वानों की राय है कि भक्ति भावना का प्रारम्भ उतना ही पुराना है जितना कि आर्यों के वेद। परन्तु इस आन्दोलन की जड़ें सातवीं शताब्दी से जमीं। शैव नयनार और वैष्णव अलवार ने जैन और बौद्ध धर्म के अपरिग्रह सिद्धान्त को अस्वीकार कर ईश्वर के प्रति व्यक्तिगत भक्ति को ही मोक्ष प्राप्ति का मार्ग बताया। उन्होंने वर्ण और जाति भेद को अस्वीकार किया और प्रेम तथा व्यक्तिगत ईश्वर भक्ति का संदेश दिया। उत्तर भारत में भक्ति आन्दोलन का प्रसार दक्षिण भारत से आया यद्यपि इस प्रसार में बहुत कम समय लगा। उत्तर में संत और विचारक दोनों भक्ति दर्शन लाए।

भक्ति आन्दोलन की परिभाषा देते हुए प्रसिद्ध विद्वान तथा इतिहासकार डॉ० युसूफ हुसैन के अनुसार, “भक्ति आंदोलन रूढ़िवादी, सामाजिक तथा धार्मिक विचारों के विरुद्ध हृदय की प्रतिक्रिया तथा भावों का उद्गार है। भारतीय परिवेश में भक्ति आन्दोलन का विकास इन्हीं परिस्थितियों का परिणाम है।”

(ii) क्षेत्र तथा संत (Area and Saints) – भक्ति आन्दोलन व्यापक था और सारे देश में इसका प्रसार हुआ। यह आन्दोलन तेरहवीं शताब्दी से सोलहवीं शताब्दी तक इस्लाम के सम्पर्क में आया और इसकी चुनौतियों को अंगीकार करता हुआ इससे प्रभावित, उत्तेजित और आन्दोलन हुए। इस आन्दोलन ने शंकराचार्य जैसे महान दार्शनिक के अद्वैतवाद और ज्ञान-मार्ग के विरोध में भक्ति मार्ग पर अधिक जोर दिया। इस आन्दोलन के चार विभिन्न संस्थापकों ने चार मतों को जन्म दिया। वे थे-

(a) बारहवीं शताब्दी के रामानुजाचार्य (विशिष्टद्वैतवाद),
(b) तेरहवीं सदी के मध्वाचार्य (द्वैतवाद),
(c) तेरहवीं शताब्दी के विष्णु स्वामी (शुद्धसद्वैतवाद) और
(d) तेरहवीं शताब्दी के निम्बार्काचार्य (द्वैताद्वैतवाद)। थोड़े बहुत अन्तर होते हुए भी इन चारों मतों की मूल प्रवृत्ति सगुण भक्ति की ओर झुकी हुई थी। इन्होंने ब्रह्म और जीव की पूर्ण एकता को स्वीकार नहीं किया। मध्यकाल में यह आन्दोलन विराट आन्दोलन के रूप में प्रकट हुआ और इसका प्रसार सोलहवीं सदी तक होता रहा।

प्रश्न 8.
सूफीवाद पर संक्षिप्त लेख लिखें।
उत्तर:
सूफीवाद उन्नीसवीं शताब्दी में मुद्रित एक अंग्रेजी शब्द है। सूफीवाद के लिए इस्लामी ग्रंथों में जिस शब्द का इस्तेमाल होता है वह है तसत्वुफ। कुछ विद्वानों के अनुसार यह शब्द ‘सूफ’ से निकला है जिसका अर्थ ऊन है। यह उस खुरदुरे ऊनी कपड़े की ओर इशारा करता है जिसे सूफी पहनते थे। अन्य विद्वान इस शब्द की व्युत्पत्ति ‘सफा’ से मानते हैं जिसका अर्थ है साफ। यह भी संभव है कि यह शब्द ‘सफा’ से निकला हो जो पैगम्बर की मस्जिद के बाहर एक चबूतरा था जहाँ निकट अनुयायियों की मंडली धर्म के बारे में जानने के लिए इकट्ठी होती थी।

सूफी सन्त के प्रमुख सिद्धान्तों की व्याख्या :

  • एकेश्वरवाद (Mono God) – सूफी लोग इस्लाम धर्म को मानने के साथ एकेश्वरवाद पर जोर देते थे। पीरों और पैगम्बरों के उपदेशों को वे मानते थे।
  • रहस्यवाद (Mistensue) – इनकी विचारधारा रहस्यवादी है। इनके अनुसार कुरान के छिपे रहस्य को महत्त्व दिया जाता है। सफी सारे विश्व के कण-कण में अल्लाह को देखते हैं।
  • प्रेम समाधना पर जोर (Stress on Love and Meditation) – सच्चे प्रेम से मनुष्य अल्लाह के समीप पहुँच सकता है। प्रेम के आगे नमाज, रोजे आदि का कोई महत्त्व नहीं।
  • भक्ति संगीत (Bhakti Music) – वे ईश्वर को प्रसन्न करने के लिए गायन को विशेष महत्त्व देते थे। मूर्ति-पूजा के वे विरोधी थे।
  • गुरु या पीर का महत्व (Importance of Pir or Teacher) – गुरु या पीर को सूफी लोग अधिक महत्त्व देते थे। उनके उपदेशों का वे पालन करते थे।
  • इस्लाम विरोधी कछ सिद्धान्त (SomePrinciples Against Islam) – वे इस्लाम विरोधी कुछ बातें-संगीत, नृत्य आदि को मानते थे। वे रोजे रखने और नमाज पढ़ने में विश्वास नहीं रखते थे।

प्रश्न 9.
अकबर की धार्मिक नीति की विवेचना करें।
उत्तर:

  • आरम्भ में अकबर एक कट्टरपंथी मुसलमान था परंतु बैरम खाँ, अब्दुल रहीम खानखाना, फैजी, अबुल फजल, बीरबल जैसे उदार विचारों वाले लोगों के सम्पर्क से उसका दृष्टिकोण बदल गया। हिंदू रानियों का भी उस पर प्रभाव पड़ा। अब वह अन्य धर्मों के प्रति उदार हो गया था।
  • 1575 ई० में उसने इबादतखाना बनवाया, जिसमें विभिन्न धर्मों के विद्वानों को अपने-अपने विचार प्रकट करने की पूर्ण स्वतंत्रता थी। अक्सर बहस करते समय मौलवी गाली-गलौच पर उतर जाते थे। अतः अकबर को इस्लाम धर्म में रुचि कम हो गई।
  • वह स्वयं तिलक लगाने लगा और गौ की पूजा करने लगा। अतः कट्टरपंथी मुसलमान उसे काफिर कहने लगे थे।
  • 1579 ई० में उसने अपने नाम का खुतवा पढ़वा कर अपने आप को धर्म का प्रमुख घोषित कर दिया। इससे उलेमाओं का प्रभाव कम हो गया।
  • अंत में उसने सभी धर्मों का सार लेकर नया धर्म चलाया, जिसे दीन-ए-इलाही के नाम से जाना जाता है। अपने धर्म को उसने किसी पर थोपने का प्रयास नहीं किया।
  • उसने रामायण, महाभारत आदि कई हिन्दु ग्रंथों का भी फारसी में अनुवाद करवाया। वह धर्म को राजनीतिक से दूर रखता था।
  • फतेहपुर सीकरी में एक महल, जोधाबाई का महल में भारतीय संस्कृति की स्पष्ट झलक देखते हैं।

प्रश्न 10.
दीन-ए-इलाही से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
अकबर इतिहास में महान् की उपाधि से विभूषित है और इसकी महानता का मुख्य कारण है इसका विराट व्यक्तित्व। साम्राज्य की सुदृढता, साम्राज्य में शांति स्थापना पापना तथा मानवीय से उत्प्रेरित अकबर ने न सिर्फ गैर-मसलमानों को राहत दिया. राजपतों के साथ वैवाहिक संबंध स्थापित किया। बल्कि एक कशल प्रशासनिक व्यवस्था भी प्रदान किया। धार्मिक सामंजस्य के प्रतीक के रूप में उसका दीन-ए-इलाही प्रशंसनीय है।

दीन-ए-इलाही द्वारा अकबर ने सर्व-धर्म-समभाव की भावना को उत्प्रेरित किया है।

प्रश्न 11.
मुगल शासक अकबर की उपलब्धियों का वर्णन करें।
उत्तर:
अकबर को भारतीय इतिहास का एक महान और प्रतापी शासक एवं सम्राट माना जाता है। कुछ इतिहासकार उसे राष्ट्रीय भी कहते हैं। पंडित जवाहरलाल नेहरू ने भी अपनी रचना ‘Discovery of India’ में अकबर को भारतीय राष्ट्रीयता का पिता कहा है। यहाँ पर स्मरणीय है कि राष्ट्रीयता का सिद्धांत आधुनिक युग की देन है और मध्यकालीन भारत में राष्ट्रीय चेतना का वह आधुनिक युग विकसित नहीं हुआ था फिर भी अकबर को एक राष्ट्रीय सम्राट कहा जाता है क्योंकि इसने अपनी नीतियों से ऐसे तथ्यों को प्रोत्साहित किया और ऐसी परिस्थितियों को विकसित किया जिससे राष्ट्रीय चेतना प्रबल हो सकें। एक राष्ट्र निर्माता उस व्यक्ति को कहा जा सकता है जो किसी जनसमूह में राजनीतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक एकता का भान जाए और उन्हें प्रशासनिक एकता के रूप में बाध्य है। 15वीं एवं 16वीं शताब्दी में यूरोप में ऐसे शासकों का प्रादुर्भाव हुआ, जिन्हें राष्ट्रीय सम्राट (National Monarch) कहा जाता है।

इनमें इंगलैंड के हेनरी सप्तम फ्रांस का लुई चौदह, प्रशा के फ्रेडरिक महान जैसे शासक अग्रगण्य है। इनके मुख्य उपलिब्ध रह रही है कि उन्होंने अपने देशों में सामंतवादी एवं विघटनकारी शक्तियों का अंत किया और भौगोलिक एवं प्रशासनिक एकता स्थापित की। भारत में भी अकबर ने एक विशाल एवं संगठित राज्य का निर्माण किया जो विभिन्न सम्प्रदायों के बीच एकता एवं सहिष्णुता की भावना पर आधारित था और जिसमें विभिन्न संस्कृति तथा परंपराओं का संतुलित एवं सुंदर समन्वय था। विविधता में एकता का जो लक्ष्य अकबर ने सफलता से प्राप्त किया वह अद्भुत है और इसलिए अकबर को एक महान शासक और राष्ट्र निर्माता के रूप में जाना जाता है।

अकबर ने एक विशाल साम्राज्य का निर्माण किया। मौर्य साम्राज्य के पतनोपरांत लगभग 1000 वर्षों के अंतराल पर एक भारत व्यापी साम्राज्य अकबर ने संगठित किया जिसमें एक रूपी शासन प्रणाली थी। अकबर ने अपने शासन के प्रथम दो दशकों में उत्तरी भारत में साम्राज्य विस्तार किया। मालवा, गांण्डवाना, राजपूताना के अनेक राज्य गुजरात, बिहार और बंगाल की विजय इस काल में सम्पन्न हुई। दूसरे चरण में अकबर ने पश्मिोत्तर सीमांत में साम्राज्य विस्तार किया जिसके फलस्वरूप कश्मीर एवं लद्दाख, काबुल, कंधार, सिंध और मकरान के क्षेत्र मुगल साम्राज्य में सम्मिलित हुए। अंतिम चरण में अकबर ने दक्षिण भारत में साम्राज्य विस्तार किया, जिसके फलस्वरूप खान देश बराट और हमद नगर का एक बड़ा क्षेत्र उसने अपने अधिकार में ले लिया। इस तरह उत्तर में कश्मीर, दक्षिण में गोदावरी, पश्चिम में सिंध और पूरब में बंगाल तक फैले हुए क्षेत्र पर अकबर ने राजनीति एकता की स्थापना की। पश्चिमोत्तर क्षेत्र में हिन्दुकुश पर्वतमाला को पारकर अकबर ने काबुल तक साम्राज्य का विस्तार किया।

अकबर द्वारा स्थापित इस विशाल साम्राज्य की विशिष्टता यह थी कि इसमें प्रशासनिक एकरूपता स्थापित की गई। इस तरह भारतीय उपमहाद्वीप में पहली बार ऐसी प्रशासनिक व्यवस्था का विकास हुआ, जिसमें स्थानीय और क्षेत्रीय भावनाओं और परम्पराओं के स्थान पर केन्द्रीय नियंत्रण एवं एकरूपता की सिद्धांत को अपनाया गया। अकबर ने मंसवादारी प्रथा का निर्माण किया। मंसवदार लोग प्रशासनिक तथा सैनिक अधिकारी थे, जिनकी वेतनमान एवं सेवा के नियम सारे राज्य में एक थे। इसकी तुलना भारतीय प्रशासनिक सेवा से भी की गई है। इस प्रकार अकबर ने प्रशासकों और सेवकों का एक मिला-जुला वर्ग विकसित किया, जो शासन के प्रति निष्ठा रखता था।

प्रशासनिक एकरूपता लाने के लिए अकबर ने सभी प्रांतों में एक जैसी प्रशासनिक व्यवस्था लागू की। हर प्रांत में एक सूवेदार की नियुक्ति की गई जो प्रांतीय प्रशासन का प्रधान था। उसके सहायता के लिए हर प्रांत में दीवान, वित्त-अधिकारी, बख्सी (सैनिकों का वेतन दाता) वाकियाँ नवीश (गुप्तचर), सदर (धार्मिक एवं न्याय संबंधी मामलों का प्रधान), काजी (न्यायधीश) आदि की नियुक्ति हुई। प्रांत को सरकार एवं हर सरकार को परगना में विभक्त किया गया और सभी स्तरों पर प्रशासनिक एकरूपता लाई गई। प्रत्येक सरकार में 3 प्रशासनिक अधिकारी नियुक्त किये गये। इनमें फौजदार साम्राज्य प्रशासन के लिए, अमल गुजार-लगान वसूली के लिए एवं काजी-न्याय के लिए उत्तरदायी थे। इसी प्रकार हर परगना में तीन अधिकारी बहाल किये गये, जिसमें सिकंदर-साम्राज्य प्रशासन के लिए, अमल गजारा लगान वसूली के लिए एवं काजी न्याय के लिए उत्तरदायी थे।

अकबर ने आर्थिक एकीकरण के लिए भी उपाय किये। उसने अपने राज्य में लगान व्यवस्था में भी एकरूपता लाई और प्रबल व्यवस्था को लागू किया। मुद्रा प्रणाली, माप तौल के उपकरण आदि में एकरूपता लाई गई जिससे कि उत्तरी भारत में एकरूपता स्थापित हई। यू तो शेरशाह के समय में ही अर्थ व्यवस्था में एरूपता लाने के उपाय किये गये थे परंतु अकबर ने इस व्यवस्था को और सदढ एवं स्थायी आधार प्रदान किया। आर्थिक एकीकरण ने राष्ट्रीय एकीकरण के कार्य में सहायता पहचायी।

अकबर ने अपने शासनकाल में सांस्कृतिक एकीकरण के भी उपाय किये। उसने उदार धार्मिक नीति का अनुसरण किया। उसने हिन्दुओं को जजिया कर और तीर्थ भाग कर देने से मुक्त करदिया एवं बलपूर्वक धर्म परिवर्तन को अवैध घोषित कर दिया। अकबर ने हिन्दुओं के अतिरिक्त, ईसाइयों, पारसियों, सिक्खों एवं बौद्धों के साथ भी धार्मिक सहिष्णुता बरती। इन सभी धर्मों के आचारियों को उसने अपनी राजधानी फतेहपुर सिकरी में स्थित इबास्तखाना में निमंत्रित किया। उसने विभिन्न धर्मों के उपदेशों का संकलन करके ‘दीन-ए-इलाही के रूपमें एक ऐसी आचारसंहिता (Code of Corduct) प्रस्तुत किया जिसके अनुसार सभी धर्मों के अनुयायी पूरी निष्ठा रखते हुए भी कार्य कर सकते थे। अशोक के धर्म (धम्म) की तरह दीन-ए-इलाही भी विभिन्न धर्मावलम्बियों के बीच एकता और सद्भावना लाने का एक सराहनीय प्रयास था।

अकबर ने हिन्दू धर्म और इस्लाम के बीच अलगाव एवं भांतियों को दूर करने के लिए दोनों ही धर्मों से संबंधित रचनाओं का अनुवाद करवाया ताकि उसके सिद्धांत को अच्छे ढंग से समझ सकें। उसने मुगल दरबार में हिन्दू उत्सवों और प्रभावों को अपनाया ताकि एक संभावित परम्परा का विकास हो सके। इसी तरह अकबर ने संगीत, चित्रकला और स्थापत्य-कला के क्षेत्रों में एकता लाने का प्रयास किया जिससे भारत में एक समन्वित सांस्कृतिक परम्परा का विकास संभव हो सका।

अकबर ने अपने शासन काल में स्थापत्य कला में एक समन्वित शैली का विकास किया जिसमें ईरानी शैली और राजपूत शैली के साथ-साथ भारत के विभिन्न शैलियों का समावेश था। इस समन्वित शैली का उदाहरण फतेहपुर सिकरी के अनेक भवनों में देखें जा सकते हैं। अकबर ने जो समन्वित शैली विकसित की उसे उसके उत्तराधिकारियों ने बनायें रखा और जहाँगीर, शाहजहाँ, औरंगजेब एवं प्रवर्ती शासकों के काल में भी भवन निर्माण कला का यह समन्वित रूप बना रहा।

अकबर ने संगीत और चित्रकला में भी समन्वित शैली का विकास किया। मुगल दरबार में ईरानी शैली समन्वित रूप को चित्रकला में विकसित हुआ कहा जाता है कि मुगल दरबार में जो शैली विकसित हुई उसका रूप भारतीय था जबकि उसकी आत्मा ईरानी थी। इसमें यूरोपीय शैली की विशेषताएँ सम्मिलित थी। इसलिए मुगल शैली अत्यधिक उन्नत और परिपक्व बनी रही। इसका विकास जहाँगीर के समय में चरमोत्कर्ष पर पहुँच गया। संगीत में भी ईरानी और भारतीय गायन शैलियों के समन्वय से एक नयी मिश्रित परम्परा विकसित हुई इसका सबसे उत्कृष्ट प्रदर्शन तानसेन की गायन शैली में हुआ। यही समन्वित शैली हिन्दुस्तानी शैली कहलायी। अकबर ने दरबार में ऐसी प्रथाएँ और रीति-रिवाज विकसित किये जिससे कि दरबार में समन्वित सांस्कृतिक परम्परा का विकास हुआ। उसने नौ रोज का व्यवहार मुगुले का राष्ट्रीय व्यवहार बना दिया। उसने राजपूतों से झरोखा दर्शन और कलादान की पद्धति मुगल दरबार में लागू की।

अकबर ने हिन्दू और मुस्लिम समाज में व्याप्त कुरीतियों और बुराइयों को दूर किया। उसने अपने आप को हिन्दुओं और मुसलमानों का शुभ चिंतक माना। अकबर की नीति की खास विशेषता यह थी कि उसने किसी एक धर्म का सम्प्रदाय से ही अपना संबंध नहीं रखा बल्कि उसने सभी वर्गों, सम्प्रदाय और क्षेत्रों को अपनी प्रजा के रूप में एक जैसा अधिकार और सुविधा प्रदान की जो कि भारतीय इतिहास में एक महत्वपर्ण घटना थी।

इस प्रकार अकबर की उपलब्धियों और उसके प्रयास ही दिशा में एकीकरण के उद्देश्य से प्रेरित थी। उसने राजनैतिक और भौगोलिक एकता स्थापित की प्रशासनिक एवं आर्थिक एकरूपता लाई और सांस्कृतिक क्षेत्र में विभिन्न धर्मों और सम्प्रदायों के बीच एकता स्थापित करके विविधता में एकता (Unity in diversity) का उद्देश्य प्राप्त करना चाहा।

Bihar Board 12th Geography Objective Important Questions Part 5

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Bihar Board 12th Geography Objective Important Questions Part 5

प्रश्न 1.
निम्नलिखित में खनिज तेल का सबसे बड़ा उत्पादक देश कौन है?
(a) संयुक्त राज्य अमेरिका
(b) रूस
(c) सऊदी अरब
(d) बेनजुएला
उत्तर:
(c) सऊदी अरब

प्रश्न 2.
निम्नलिखित में कौन-सा मानव का प्राचीन क्रियाकलाप था ?
(a) आखेट एवं संग्रहण
(b) पशुपालन
(c) खनन
(d) बुनाई
उत्तर:
(a) आखेट एवं संग्रहण

प्रश्न 3.
निम्नलिखित में किस देश में न्यूनतम जन्म-दर पाई जाती है ?
(a) फ्रांस
(b) जापान
(c) जर्मनी
(d) संयुक्त राज्य अमेरिका
उत्तर:
(a) फ्रांस

प्रश्न 4.
विश्व में सर्वाधिक जनसंख्या केन्द्रित है
(a) पर्वतीय प्रदेशों में
(b) पठारी प्रदेशों में
(c) मैदानी प्रदेशों में
(d) मरुस्थलीय प्रदेशों में
उत्तर:
(c) मैदानी प्रदेशों में

प्रश्न 5.
कौन आधुनिक मानव भूगोल के पिता के रूप में जाने जाते हैं?
(a) विडाल डीला ब्लाश
(b) इलिशवर्थ हंटिगटन
(c) फ्रेडरिक रैटजेल
(d) कुमारी अलेन सैम्पल
उत्तर:
(c) फ्रेडरिक रैटजेल

प्रश्न 6.
मुम्बई में सबसे पहला आधुनिक सूती वस्त्र उद्योग स्थापित किया गया क्योंकि
(a) मुम्बई एक पतन है
(b) यह कपास उत्पादक क्षेत्र के निकट है
(c) मुम्बई एक वित्तीय केन्द्र है
(d) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(d) उपर्युक्त सभी

प्रश्न 7.
निम्नलिखित में से कौन-सा ऊर्जा की अनवीकरणीय स्रोत है?
(a) जल
(b) सौर
(c) कोयला
(d) पवन
उत्तर:
(c) कोयला

प्रश्न 8.
शुष्क भूमि में निम्नलिखित में से कौन-सी फसल नहीं बोयी जाती है?
(a) रागी
(b) मूंगफली
(c) ज्वार
(d) गन्ना
उत्तर:
(d) गन्ना

प्रश्न 9.
कौन-सा देश रेलमार्ग नेटवर्क का सबसे अधिक घनत्व रखता है?
(a) ब्राजील
(b) रूस
(c) संयुक्त राज्य अमेरिका
(d) कनाडा
उत्तर:
(c) संयुक्त राज्य अमेरिका

प्रश्न 10.
निम्नलिखित में से कौन-सा उद्योग अन्य उद्योगों के लिए कच्चा माल उत्पन्न करता है ?
(a) गृह उद्योग
(b) लघु उद्योग
(c) बेसिक उद्योग
(d) फूटलूज उद्योग
उत्तर:
(c) बेसिक उद्योग

प्रश्न 11.
निम्नलिखित में से कौन-सा बागानी फसल नहीं है?
(a) कॉफी
(b) गन्ना
(c) गेहूं
(d) रबर
उत्तर:
(c) गेहूं

प्रश्न 12.
निम्नलिखित में से किस महादेश में सबसे अधिक जनसंख्या वृद्धि है?
(a) अफ्रीका
(b) एशिया
(c) दक्षिण अमेरिका
(d) उत्तरी अमेरिका
उत्तर:
(a) अफ्रीका

प्रश्न 13.
दक्षिण-पूर्वी एशिया में जनसंख्या केन्द्रित है
(a) बाढ़ के मैदानों में
(b) समतल पठारों पर
(c) उच्च दोआबों पर
(d) नदी घाटी के उच्च भागों में
उत्तर:
(d) नदी घाटी के उच्च भागों में

प्रश्न 14.
विश्व में सबसे अधिक नगरीकृत देश हैं।
(a) संयुक्त राज्य अमेरिका
(b) ग्रेट ब्रिटेन
(c) ऑस्ट्रेलिया
(d) मिस्र
उत्तर:
(b) ग्रेट ब्रिटेन

प्रश्न 15.
मानव विकास सूचकांक का मापक निम्न में से कौन-सा है?
(a) स्वास्थ्य
(b) शिक्षा
(c) संसाधनों तक पहुंच
(d) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(d) उपर्युक्त सभी

प्रश्न 16.
भारत में कौन-सा राज्य प्रवास को आकर्षित करता है?
(a) महाराष्ट्र
(b) दिल्ली
(c) गुजरात
(d) हरियाणा
उत्तर:
(a) महाराष्ट्र

प्रश्न 17.
ऊर्जा के वैकल्पिक स्रोत निम्न में से कौन-सा है?
(a) सौर ऊर्जा
(b) पवन ऊर्जा
(c) भूतापीय ऊर्जा
(d) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(d) उपर्युक्त सभी

प्रश्न 18.
अनान्नास किस प्रकार की कृषि की उपज है ?
(a) दुग्ध कृषि
(b) रोपण कृषि
(c) भूमध्यसागरीय कृषि
(d) मिश्रित कृषि
उत्तर:
(c) भूमध्यसागरीय कृषि

प्रश्न 19.
ग्रामीण बस्तियों में किस कार्य की प्रधानता पायी जाती है ?
(a) व्यापार
(b) कृषि
(c) निर्माण उद्योग
(d) मिट्टी उद्योग
उत्तर:
(b) कृषि

प्रश्न 20.
जनांकिकीय संक्रमण की ………अवस्थाएँ होती हैं।
(a) दो
(b) तीन
(c) छः
(d) सात
उत्तर:
(b) तीन

प्रश्न 21.
ट्रक-फार्मिंग के लिए…………..विश्व प्रसिद्ध है।
(a) वाशिंगटन
(b) टोक्यो
(c) फ्लोरिडा
(d) ब्राजीलिया
उत्तर:
(c) फ्लोरिडा

प्रश्न 22.
ब्राजील में कॉफी बागान को ………… कहा जाता है।
(a) फेजेण्डा
(b) हेसिए डा
(c) पंपास
(d) भेल्ड
उत्तर:
(a) फेजेण्डा

प्रश्न 23.
1992-97 तक भारत में…………पंचवर्षीय योजना का कार्यकाल था।
(a) 9वीं
(b) 7वीं
(c) 8वीं
(d) 10वीं
उत्तर:
(c) 8वीं

प्रश्न 24.
ध्वनि की तीव्रता ……. में मापी जाती है।
(a) डेसीबेल
(b) मिलीमीटर
(c) किलोमीटर
(d) हर्ट्ज
उत्तर:
(a) डेसीबेल

प्रश्न 25.
निम्नलिखित में कौन असत्य कथन है ?
(a) संभववाद के समर्थक ब्लाश
(b) चिकल जेपोटा वृक्ष के दूध से नहीं बनता है
(c) प्रारंभ में भूगोल को भूगोल कोश कहा जाता था
(d) मुरादाबाद का बर्तन उद्योग कुशल श्रमिक प्रधान उद्योग का उदाहरण है
उत्तर:
(b) चिकल जेपोटा वृक्ष के दूध से नहीं बनता है

प्रश्न 26.
निम्न में कौन सत्य कथन है ?
(a) बिंग इंच पाइपलाइन द्वारा दूध का परिवहन किया जाता है
(b) बिंग इंच पाइपलाइन द्वारा पानी का परिवहन किया जाता है
(c) बिंग इंच पाइपलाइन द्वारा पेट्रोलियम का परिवहन किया जाता है
(d) एल्युमीनियम उद्योग कच्चा माल आधारित उद्योग है
उत्तर:
(c) बिंग इंच पाइपलाइन द्वारा पेट्रोलियम का परिवहन किया जाता है

प्रश्न 27.
निम्न में कौन सत्य कथन है ?
(a) जनांकिकीय संक्रमण की दूसरी अवस्था में जनसंख्या वृद्धि उच्च होती है
(b) जनांकिकीय संक्रमण की पहली अवस्था में जनसंख्या वृद्धि उच्च होती है
(c) जनांकिकीय संक्रमण की तीसरी अवस्था में जनसंख्या वृद्धि उच्च होती है
(d) सभी कथन गलत हैं
उत्तर:
(a) जनांकिकीय संक्रमण की दूसरी अवस्था में जनसंख्या वृद्धि उच्च होती है

प्रश्न 28.
निम्न में कौन असत्य कथन है ?
(a) पश्चिमी देशों के नगरीय क्षेत्रों में स्त्रियों की अपेक्षा पुरुषों की संख्या अधिक है
(b) पश्चिमी देशों के नगरीय क्षेत्रों में बच्चों की संख्या कम है।
(c) पश्चिमी देशों के ग्रामीण क्षेत्रों में पुरूषों की संख्या अधिक है
(d) पश्चिमी देशों में परिवहन का उत्तम विकास मिलता है
उत्तर:
(a) पश्चिमी देशों के नगरीय क्षेत्रों में स्त्रियों की अपेक्षा पुरुषों की संख्या अधिक है

प्रश्न 29.
किस खनिज को तरल सोना कहा जाता है?
(a) पारा
(b) सीसा
(c) पीतल
(d) पेट्रोलियम
उत्तर:
(d) पेट्रोलियम

प्रश्न 30.
विश्व में नगरीय जनसंख्या का प्रतिशत है
(a) 28
(b) 48
(c) 55
(d) 65
उत्तर:
(b) 48

प्रश्न 31.
भारतीय रेल प्रतिदिन कितने यात्रियों को उनके नियत स्थानों पर पहुँचाती हैं ?
(a) 25 लाख
(b) 2.3 करोड़
(c) 10 करोड़
(d) 50 लाख
उत्तर:
(b) 2.3 करोड़

प्रश्न 32.
भारत में प्रतिदिन कितनी रेलगाड़ियाँ चलती हैं ?
(a) 12,617
(b) 12,680
(c) 10,500
(d) 11,670
उत्तर:
(a) 12,617

प्रश्न 33.
दिल्ली और मुम्बई को कौन-सा राष्ट्रीय महामार्ग जोड़ता है ?
(a) राष्ट्रीय महामार्ग-1
(b) राष्ट्रीय महामार्ग-6
(c) राष्ट्रीय महामार्ग-4
(d) राष्ट्रीय महामार्ग-8
उत्तर:
(d) राष्ट्रीय महामार्ग-8

प्रश्न 34.
भारत में पहली रेलगाड़ी कब चलाई गई ?
(a) 1853 में
(b) 1856 में
(c) 1840 में
(d) 1836 में
उत्तर:
(a) 1853 में

प्रश्न 35.
सीमा सड़क संगठन कब बनाया गया ?
(a) 1950
(b) 1960
(c) 1962
(d) 1956
उत्तर:
(b) 1960

प्रश्न 36.
इंदिरा गाँधी नहर कमान क्षेत्र में सतत पोषणीय विकास के लिए इनमें से कौन-सा सबसे महत्त्वपूर्ण कारक है ?
(a) कृषि विकास
(b) पारितंत्र विकास
(c) परिवहन विकास
(d) भूमि उपनिवेशन
उत्तर:
(b) पारितंत्र विकास

प्रश्न 37.
‘लिमिटस टू ग्रोथ’ पुस्तक का अधिकृत लेखक कौन है ?
(a) ब्रन्डटलैंड
(b) मीडोरू तथा अन्य
(c) एलियोट और अन्य
(d) वाकर तथा अन्य
उत्तर:
(d) वाकर तथा अन्य

प्रश्न 38.
कौन-सी पंचवर्षीय योजना स्पष्ट रूप से विकास विचारधारा पर बल देती है ?
(a) द्वितीय
(b) चौथी
(c) पाँचवीं
(d) आठवीं
उत्तर:
(b) चौथी

प्रश्न 39.
किस वर्ष में कृषि जलवायु नियोजन को आरंभ किया गया ?
(a) 1988
(b) 1974
(c) 1966
(d) 1992
उत्तर:
(a) 1988

प्रश्न 40.
टाटा और बिड़ला ने मुम्बई योजना कब बनाई ?
(a) 1944 में
(b) 1952 में
(c) 1956 में
(d) 1936 में
उत्तर:
(a) 1944 में

प्रश्न 41.
एम० विश्वेश्वरैया ने दस वर्षों की योजना कब प्रकाशित की ?
(a) 1836 में
(b) 1936 में
(c) 1944 में
(d) 1926 में
उत्तर:
(b) 1936 में

प्रश्न 42.
क्रियाओं को विकसित करने की प्रक्रिया को क्या कहते हैं ?
(a) नियोजन
(b) योजन
(c) विकास
(d) योजना
उत्तर:
(a) नियोजन

प्रश्न 43.
शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद और प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि मुख्य रूप से किस पर आधारित थी?
(a) उद्योग
(b) कृषि
(c) योजना
(d) राष्ट्रीय आय
उत्तर:
(d) राष्ट्रीय आय

प्रश्न 44.
किस पंचवर्षीय योजना में भारत में समाजवादी समाज की स्थापना का प्रतिरूप प्रस्तुत किया गया ?
(a) प्रथम पंचवर्षीय योजना
(b) द्वितीय पंचवर्षीय योजना
(c) चौथी पंचवर्षीय योजना
(d) छठी पंचवर्षीय योजना
उत्तर:
(b) द्वितीय पंचवर्षीय योजना

प्रश्न 45.
उन क्षेत्रों में कौन-सा विकास कार्यक्रम शुरू किया गया जहाँ 50% से अधिक जनजाति के लोग रहते हैं ?
(a) जनजातीय विकास कार्यक्रम
(b) पहाड़ी क्षेत्र विकास कार्यक्रम
(c) गहन कृषि विकास कार्यक्रम
(d) सामुदायिक विकास कार्यक्रम
उत्तर:
(a) जनजातीय विकास कार्यक्रम

प्रश्न 46.
रोजगारों की संख्या 2000 में कितनी हो गई ?
(a) 30.3 करोड़
(b) 33.3 करोड़
(c) 39.7 करोड़
(d) 37.9 करोड़
उत्तर:
(d) 37.9 करोड़

प्रश्न 47.
‘गहन कृषि विकास कार्यक्रम’ किस पंचवर्षीय योजना में शुरू किया गया ?
(a) प्रथम पंचवर्षीय योजना
(b) चौथी पंचवर्षीय योजना
(c) तीसरी पंचवर्षीय योजना
(d) छठी पंचवर्षीय योजना
उत्तर:
(c) तीसरी पंचवर्षीय योजना

Bihar Board 12th History Important Questions Short Answer Type Part 3

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Bihar Board 12th History Important Questions Short Answer Type Part 3

प्रश्न 1.
अकबर के व्यक्तित्व पर टिप्पणी दें।
उत्तर:
अकबर इतिहास में महान् की उपाधि से विभूषित हैं और इसकी महानता का मुख्य कारण है-इसका विराट् व्यक्तित्व। साम्राज्य की सुदृढ़ता, साम्राज्य में शांति स्थापना तथा मानवीय भावनाओं से उत्प्रेरित अकबर ने न सिर्फ गैर मुसलमानों को राहत दिया, राजपूतों के साथ वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित किया बल्कि एक कुशल प्रशासनिक व्यवस्था भी प्रदान किया। धार्मिक सामंजस्य के प्रतीक के रूप में उसका दीन-ए-इलाही प्रशंसनीय है।

प्रश्न 2.
अकबर ने लगान व्यवस्था में कौन-से सुधार किये ?
उत्तर:
अकबर ने टोडरमल की सहायता से समस्त भूमि की नाप ईलाही गज से करवाई। समस्त जमीन को पोलज, परौती, चचर और बंजर में विभक्त कर उपज के अनुसार लगान की राशि तय की गई। 1580 में लगान वसूली के लिए दहसाला प्रबंध या जाब्ती व्यवस्था लागू की गई। उपज बढ़ाने के लिए किसानों को सहायता दी जाती थी। आवश्यकतानुसार लगान में कमी की जाती थी या माफी दी जाती थी।

प्रश्न 3.
फतेहपुर सीकरी के विषय में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर:
1556 ई० में जब अकबर बादशाह बना उस समय मुगल साम्राज्य की राजधानी आगरा में थी। 1570 ई० में उसने फतहपुर सीकरी में एक नयी राजधानी बनाने का निर्णय लिया। कहा जाता है कि अकबर की अजमेर के शेख मोइनुद्दीन चिश्ती के दरगाह पर असीम आस्था थी और फतेहपुर सीकरी अजमेर की ओर जानेवाली सीधी सड़क पर अवस्थित था, इसलिए उसने नयी राजधानी के लिए इस जगह का चुनाव किया। यहाँ उसने सुन्दर महल बनवाये। गुजरात विजय की स्मृति में बुलन्द दरवाजा बनवाया। उसने यहाँ शेख सलीम चिश्ती का मकबरा भी बनवाया। किन्तु अधिक दिनों तक फतेहपुर सीकरी मुगल साम्राज्य की राजधानी नहीं रह सकी। पश्चिमोत्तर प्रान्त पर ध्यान देने के लिए 1585 में अकबर राजधानी लाहौर ले गया।

प्रश्न 4.
खान-ए-खाना के बारे में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर:
खान-ए-खाना (Khan-a-khana) – खान-ए-खाना का शाब्दिक अर्थ है- खानों (उपाधि खान, मलिक आदि) में सबसे महान। यह एक उपाधि थी जो अकबर ने बैरम को दी थी। बैरम खाँ अकबर का संरक्षक एवं गुरु था। सन् 1556 से 1560 ई० तक बैरम खाँ ने अकबर को अपने दिशा-निर्देश द्वारा राजकार्य चलवाया। सिंहासनारोहण के समय अकबर की आयु केवल 13 वर्ष एवं 4 माह थी। अतः मुगल साम्राज्य स्थिरीकरण में बैरमखाँ का बड़ा हाथ था।

प्रश्न 5.
अंबुल फजल कौन था ? उस पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
अबुल फजल-वह अकबरकालीन महान कवि, निबन्धकार, इतिहासकार, राजनीतिज्ञ सेनापति तथा आलोचक था। उसका जन्म 1557 ई० में आगरा के प्रसिद्ध सूफी शेख मुबारक के यहाँ हुआ था। उसने 1574 ई० में अकबर के दरबारियों के रूप में अपना जीवन शुरू किया। उसने कोषाध्यक्ष से लेकर प्रधानमंत्री तक के पद पर कार्य किया। यह भारतीय इतिहास में एक महान इतिहासकार के रूप में प्रसिद्ध है। उसने दो प्रसिद्ध ऐतिहासिक पुस्तकों की रचनाएँ की। वे थीं ‘अकबरनामा’ तथा ‘आइने अकबरी’। ये दोनों ग्रंथ फारसी भाषा में लिखे गये और अकबर कालीन इतिहास जानने के मूल स्रोत हैं।

अकबरनामा अकबर की जीवनी, विजयों, शासन प्रबन्ध के साथ-साथ तत्कालीन भारतीय राजनैतिक, सामाजिक, धार्मिक तथा आर्थिक परिस्थितियों को समझने में भी सहायक हैं। उसने ‘पंचतंत्र’ का अनुवाद फारसी में किया और उसका नाम ‘अनघरे साहिली’ रखा। उसे अकबर के नौ रत्नों में स्थान प्राप्त था। उसने अनेक सैनिक अभियानों का नेतृत्व भी किया। वह पर्याप्त समय तक अकबर का प्रधानमंत्री और परामर्शदाता रहा। उसके विचार सूफी सन्तों से मिलते थे। धार्मिक दृष्टि से उसका दृष्टिकोण बहुत उदार था। कहा जाता है कि उसी ने अकबर को दीन-ए-इलाही नामक धर्म चलाने की प्रेरणा दी थी। इबादतखाने में वह सूफी मत के लोगों का प्रतिनिधित्व किया करता था।

अकबर के नौ रत्नों में दीन-ए-इलाही को अपनाने वाला वह पहला व्यक्ति था। उसे सलीम ने ओरछा नरेश वीरसिंह बुन्देला के साथ सांठ-गांठ करके मरवा डाला था। कहते हैं अबुल फजल की मृत्यु के शोक में अकबर ने तीन दिनों तक दरबार नहीं गया। अकबर ने भावुक होकर कहा था कि “अगर सलीम राज्य चाहता था तो वह मेरी हत्या करवा देता लेकिन अबुल फजल को छोड़ देता।” जब तक भारतीय इतिहास में अकबर का नाम रहेगा तब तक अबुल फजल को अवश्य याद किया जायेगा।

प्रश्न 6.
अकबरकालीन युग के नवरत्न पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
अकबर के नवरत्ल-अकबर के पास विद्वानों का समूह था, जो नवरत्नों के नाम से प्रसिद्ध था। जिनमें से प्रसिद्ध विद्वान थे-अबुल फजल, फैजी, रहीम खान-ए-खाना, टोडरमल, तानसेन और बीरबल। बीरबल अपनी बुद्धिमत्ता, तत्परता और हँसी-मजाक के लिए प्रसिद्ध था। वह एक महान् सेनापति भी था। एक अन्य रत्न था, राजा मानसिंह। वह एक महान् सेनापति होने के अलावा अकबर का अति विश्वसनीय सलाहकार भी था। कई अन्य विद्वान भी अकबर के संरक्षण में थे।

तानसेन अकबर के दरबार का एक प्रसिद्ध संगीतकार था। वह अकबर के नवरत्नों में से एक था। उसने अनेक रागों की गायन-शैली में नवीनता का समावेश करके भारतीय संगीत को समृद्ध किया। राग दरबारी इन रागों में सबसे अधिक लोकप्रिय था जिसकी रचना तानसेन ने विशेष रूप से अकबर के लिए की थी। अकबर के शासन काल में भारत की संगीत कला में फारस की संगीत कला की ‘बहुत-सी विशेषताएँ ली गई थीं। अबुल फजल तानसेन के बारे में लिखता है- “उस जैसे संगीतकार भारत में आने वाले हजारों वर्षों तक नहीं होगा।”

प्रश्न 7.
चाँद बीबी पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखें।
उत्तर:
1. 1519 ई० में अकबर ने कूटनीतिक स्तर पर कार्यवाही आरम्भ की तथा प्रत्येक दक्कनी राज्य में दूत भेजे और उसने मुगल सत्ता स्वीकार करने को कहा। 1595 ई० में बुरहान की मृत्यु के बाद छिड़े निजामशाही सरदारों के आपसी संघर्ष ने अकबर को अवसर दे दिया। उत्तराधिकार का संघर्ष छिड़ गया।

2. बुरहान की बहन चाँद बीबी इब्राहीम के चाचा और बीजापुर के भूतपूर्व सुल्तान की विधवा थी। वह बहुत योग्य स्त्री थी और उसने आदिलशाह के वयस्क होने के दस साल तक शासन सँभाला था।

3. अहमदनगर के अमीरों में आपस में फूट होने के कारण राजधानी तक मुगलों को बहुत कम विरोध का सामना करना पड़ा। चाँद बीबी ने तरुण सुल्तान बहादुर के साथ स्वयं को किले के अंदर बंद कर लिया। चार महीनों के घेरे के बाद दोनों पक्षों में समझौता हुआ। शर्तों के अनुसार बरार मुगलों को सौंप दिया गया और शेष क्षेत्र पर फिर सुल्तान बहादुर का अधिकार मान लिया गया। 1596 ई० में यह समझौता हुआ।

4. बीजापुर, गोलकुण्डा और अहमदनगर की संयुक्त सेना को 1597 ई० में मुगलों ने बरार से खदेड़ दिया। बीजापुर और गोलकुण्डा की सेनाएँ पीछे हट गईं परन्तु चाँद बीबी ने फिर समझौते की बात चला दी परन्तु उसके विरोधियों ने उसे विश्वासघाती कहा और उसे मार डाला। अहमदनगर पर आक्रमण करके उसे मुगल साम्राज्य में मिला लिया।

प्रश्न 8.
बुकानन कौन था ? उसका संक्षिप्त परिचय दीजिए।
उत्तर:
फ्रांसीसी बुकानन एक चिकित्सक था जो भारत में 1794 में आया। उन्होंने 1794 से 1815 तक बंगाल चिकित्सा सेवा में कार्य किया। कुछ वर्षों तक वे भारत के गवर्नर जनरल लार्ड वेलेजली के शल्य-चिकित्सक रहे। उन्होंने अपने प्रवास के दौरान कलकत्ता (अब कोलकाता) में एक चिड़ियाघर की स्थापना की जो अलीपुर चिड़ियाघर कहलाया। वे कुछ समय के लिए वानस्पतिक उद्यान के प्रभारी रहे। उन्होंने बंगाल सरकार के अनुरोध पर ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कम्पनी के अधिकार क्षेत्र में आने वाली भूमि का विस्तृत सर्वेक्षण किया। वे 1815 में बीमार हो गए और इंग्लैंड चले गए। बुकानन अपनी माताजी की मृत्यु के पश्चात् उनकी जायदाद के वारिस बने और उन्होंने उनके वंश का नाम ‘हैमिल्टन’ को अपना लिया। इसलिए उन्हें अक्सर बुकानन-हैमिल्टन भी कहा जाता है।

प्रश्न 9.
मुगलकाल में महिलाओं की स्थिति पर प्रकाश डालें।
उत्तर:
मुगलकाल में आम महिलाओं में पर्दा-प्रथा का रिवाज था। शिक्षा और सम्पत्ति उनके अधिकार भी सीमित थे। बहु पत्नी प्रथा सती प्रथा भी समाज में प्रचलित थी। मुगल राजपरिवार की महिलाएँ प्रभावी भी थीं। जहाँआरा व्यापार, निर्माण कार्य में रूचि लेती थी तो हुमायूँ की बहन गुलबदन बेगम ने हुमायूँनामा की रचना की। नूरजहाँ का मुगल दरबार में प्रभाव तो जगजाहिर ही था।

प्रश्न 10.
जमींदार कौन थे ? मुगल व्यवस्था में उनकी क्या भूमिका थीं?
उत्तर:
मुगलकालीन ग्रामीण समुदाय में जमींदारी का प्रभावशाली वर्ग था। जमींदार वे थे जिनका भूमि और कृषि से सम्बन्ध तो था परन्तु वे प्रत्यक्ष रूप से कृषि में भाग नहीं लेते थे। जमीन पर उनका पुश्तैनी और मालिकाना हक था।

जमींदारों की मुख्य तीन श्रेणियाँ थीं-

  • स्वायत्त सरदार
  • मध्यवर्ती जमींदार
  • प्राथमिक जमींदार।

इनका मुख्य कार्य राजस्व की वसूली करना तथा कृषि के विस्तार को प्रोत्साहित करना था। आवयकतानुसार ये शांति स्थापना तथा राज्य को सैनिक सेवा. भी प्रदान करते थे।

प्रश्न 11.
साँची के स्तूप के संरक्षण में भोपाल की बेगमों की भूमिका की चर्चा कीजिए।
उत्तर:
साँची के स्तूप के संरक्षण में भोपाल की बेगमों की भूमिका (The Role of the Begums of Bhopal in Preserving the Stupa of Sanchi)
(i) भोपाल की नवाब (शासन काल 1868-1901), शाहजहाँ बेगम की आत्मकथा ताज-उल इकवाल तारीख भोपाल (भोपाल का इतिहास) से। 1876 ई० में एच० डी० ब्रास्तो ने इसका अनुवाद किया। बेगम साँची के स्तूप की प्रसिद्धि एवं जानकारी का प्रचार-प्रसार करना चाहती थी।

(ii) उन्नीसवीं सदी के यूरोपीयों में साँची के स्तूप को लेकर काफी दिलचस्पी थी। फ्रांसीसियों ने सबसे अच्छी हालत में बचे साँची के पूर्वी तोरण द्वारा को फ्रांस ले जाने की इजाजत माँगी। कुछ समय के लिए अंग्रेजों ने भी ऐसी ही कोशिश की। सौभाग्यवश फ्रांसिसी और अंग्रेज दोनों ही बड़ी सावधानी से बनाई प्लास्टर प्रतिकृतियों से संतुष्टि हो गये। इस प्रकार मूल कृति भोपाल राज्य में अपनी जगह पर ही रही।

(iii) भोपाल के शासकों शाहजहाँ बेगम और उनकी उत्तराधिकारी सुल्तान जहाँ बेगम ने इस प्राचीन स्थल के रख-रखाव के लिए धन का अनुदान किया। आश्चर्य नहीं कि जॉन मार्शल ने साँची पर लिखे अपने महत्त्वपूर्ण ग्रंथों को सुल्तानजहाँ को समर्पित किया।

(iv) सुल्तानजहाँ बेगम ने वहाँ पर एक संग्रहालय और अतिथिशाला बनाने के लिए अनुदान दिया। वहाँ रहते हुए ही जॉन मार्शल ने उपर्युक्त पुस्तकें लिखीं। इस पुस्तक के विभिन्न खंडों के प्रकाशन में भी सुल्तानजहाँ बेगम ने अनुदान दिया। इसलिए यदि यह स्तूप समूह बना रहा है तो इसके पीछे कुछ विवेकपूर्ण निर्णयों की बड़ी भूमिका है। शायद हम इस मामले में भी भाग्यशाली रहे हैं कि इस स्तूप पर किसी रेल ठेकेदार का निर्माता की नजर नहीं पड़ी। यह उन लोगों से भी बचा रहा जो ऐसी चीजों को यूरोप के संग्रहालयों में ले जाना चाहते थे।

(v) बौद्ध धर्म के इस महत्वपूर्ण केन्द्र की खोज से आरंभिक बौद्ध धर्म के बारे में हमारी समझ में महत्वपूर्ण बदलाव आये। आज यह जगह आर्कियोलोजिकल सर्वे ऑफ इंडिया के सफल मरम्मत और संरक्षण का जीता जागता उदाहरण है।

प्रश्न 12.
अमीर खुसरो कौन था ? उनके नाम के साथ कौल शब्द कैसे जुड़ा है ?
उत्तर:
अमीर खुसरो (1253-1323) महान कवि, संगीतज्ञ तथा खेश निजामुद्दीन औलिया के अनुयायी थे। उन्होंने कौल (अरबी शब्द जिसका अर्थ है कहावत) का प्रचलन करके चिश्ती समा को एक विशिष्ट आकार दिया। कौल को कव्वाली के शुरू और आखिर में गाया जाता था। इसके बाद सूफी कविता का पाठ होता था जो फारसी, हिन्दवी अथवा उर्दू में होती थी और कभी-कभी इन तीनों ही भाषाओं के शब्द इसमें मौजूद होते थे। शेख निजामुद्दीन औलिया की दरगाह पर गाने वाले कव्वाल अपने गायन की शुरुआत कौल से करते हैं। उपमहाद्वीप की सभी दरगाहों पर कव्वाली गाई जाती है।

प्रश्न 13.
‘भक्ति और सूफी आन्दोलन एक-दूसरे के पूरक थे।’ व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
भारत में मध्यकाल में एक नवीन धार्मिक आन्दोलन प्रारम्भ हुआ। हिन्दुओं के आन्दोलन को भक्ति आन्दोलन तथा मुसलमानों के आन्दोलन को सूफी आन्दोलन कहते हैं। ये दोनों ही आन्दोलन आम जनता पर अपना प्रभाव छोड़ने में सफल हुए। हालांकि रीति-रिवाजों में ये एक-दूसरे से बिल्कुल भिन्न थे किन्तु वृहद् दृष्टि से ये एक-दूसरे के पूरक भी थे। दो समुदायों में एक साथ आन्दोलन शुरू होना ही इस तथ्य की पुष्टि करता है कि दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं।

भक्ति एवं सूफी आन्दोलन के प्रभाव-

  • इन आन्दोलनों के सन्तों ने धर्म की जटिलताओं को दूर करके उसे सभी के लिए सरल एवं सुलभ बना दिया।
  • भक्ति तथा सूफी दोनों ही आन्दोलनों ने स्थापित धार्मिक व्यवस्था पर कड़ा प्रहार किया था।
  • दोनों ही आन्दोलनों में गरीब, लाचार एवं बेबस लोगों की ओर विशेष ध्यान दिया गया था।
  • सन्तों एवं सूफियों की वाणी घर-घर तक पहुंच गई।
  • सन्तों का जीवन अत्यन्त सादा तथा आदर्शों से भरा हुआ था।
  • नृत्य एवं संगीत ईश्वर से प्रेम करने का साधन बना।
  • इस आन्दोलन ने जाति प्रथा जैसी सामाजिक व्यवस्था को कमजोर कर दिया।

प्रश्न 14.
‘भुक्ति’ शब्द का क्या आशय है ?
उत्तर:
गुप्त काल में प्रांत को ‘भुक्ति’ कहा जाता था। प्रांत भी कई इकाइयों में बँटा हुआ था। भुक्ति का प्रबंध मुख्यतः राजकुमारों अथवा राजवंश के विश्वस्त लोगों को ही सौंपा जाता था।

प्रश्न 15.
सूफीवाद से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
सूफीवाद उन्नीसवीं शताब्दी में मुद्रित एक अंग्रेजी शब्द है। सूफीवाद के लिए इस्लामी ग्रंथों में जिस शब्द का इस्तेमाल होता है वह है तसत्वुफ। कुछ विद्वानों के अनुसार यह शब्द ‘सूफ’ से निकला है जिसका अर्थ ऊन है। यह उस खुरदुरे ऊनी कपड़े की ओर इशारा करता है जिसे सूफी पहनते थे। अन्य विद्वान इस शब्द की व्युत्पत्ति ‘सफा’ से मानते हैं जिसका अर्थ है साफ। यह भी संभव है कि यह शब्द ‘सफा’ से निकला हो जो पैगम्बर की मस्जिद के बाहर एक चबूतरा था जहाँ निकट अनुयायियों की मंडली धर्म के बारे में जानने के लिए इकट्ठी होती थी।

प्रश्न 16.
सूफी सन्त के प्रमुख सिद्धान्तों की व्याख्या कीजिए। इनका जन-जीवन पर क्या प्रभाव पड़ा ?
उत्तर:

  1. एकेश्वरवाद (Mono God) – सूफी लोग इस्लाम धर्म को मानने के साथ एकेश्वरवाद पर जोर देते थे। पीरों और पैगम्बरों के उपदेशों को वे मानते थे।
  2. रहस्यवाद (Mistensue) – इनकी विचारधारा रहस्यवादी है। इनके अनुसार कुरान के छिपे रहस्य को महत्त्व दिया जाता है। सूफी सारे विश्व के कण-कण में अल्लाह को देखते हैं।
  3. प्रेम साधना पर जोर (Stress on Love and Meditation) – सच्चे प्रेम से मनुष्य अल्लाह के समीप पहुँच सकता है। प्रेम के आगे नमाज, रोजे आदि का कोई महत्त्व नहीं।
  4. भक्ति संगीत (Bhakti Music) – वे ईश्वर को प्रसन्न करने के लिए गायन को विशेष महत्त्व देते थे। मूर्ति-पूजा के वे विरोधी थे।
  5. गुरु या पीर का महत्व (Importance of Pir or Teacher) – गुरु या पीर को सूफी लोग अधिक महत्त्व देते थे। उनके उपदेशों का वे पालन करते थे।
  6. इस्लाम विरोधी कुछ सिद्धान्त (Some Principles Against Islam) – वे इस्लाम विरोधी कुछ बातें-संगीत, नृत्य आदि को मानते थे। वे रोजे रखने और नमाज पढ़ने में विश्वास नहीं रखते थे।

प्रश्न 17.
चिश्ती सम्प्रदाय के तीन प्रमुख संतों का संक्षिप्त परिचय दें।
उत्तर:
भारत वर्ष में चिश्ती सम्प्रदाय का प्रवर्तक ख्वाजा मुइनुद्दीन चिश्ती को माना जाता है। ये 1192 ई० में भारत में आये।

चिश्ती सम्प्रदाय के तीन प्रमुख संतों का परिचय :

  • शेख कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी – यह मुइनुद्दीन चिश्ती के प्रमुख शिष्य थे। ये इल्तुतमिश के समय भारत आये। इनका जन्म 1235 ई० में फरगना के गौस नामक स्थान पर हुआ था। बख्तियार (भाग्य-बन्धु) नाम मुइनुद्दीन का दिया हुआ था।
  • फरीदउद्दीन-गंज-ए-शकर – इनका जन्म मुल्तान जिले के कठवाल शहर में 1175 ई. में हुआ था। ये बाबा फरीद के नाम से प्रसिद्ध थे। तीन पलियों में से एक, प्रथम पत्नी बलवन की पुत्री थी जिसका नाम हुजैरा था।
  • शेख निजामुद्दीन औलिया – इनका वास्तविक नाम मुहम्मद-बिन-दनियल-अल बुखारी था। इनका जन्म बदायूँ में 1236 ई० में हुआ था। इन्होंने अपने जीवनकाल में दिल्ली के सात सुल्तानों का राज्य देखा था। अमीर खुसरो इन्हीं के शिष्य थे। दुर्भाग्यवश इनका सम्बन्ध किसी भी सुल्तान के साथ मधुर नहीं रहा। इनकी मृत्यु 1325 ई० में हुई।

प्रश्न 18.
गुरु नानक कौन थे ? उनके व्यक्तित्व के बारे में किसी एक इतिहासकार का कथन लिखिए।
उत्तर:
पंजाब में भक्ति आन्दोलन का ज्वार लाने का श्रेय गुरु नानक जी को है। वे जाति-पाँति, धर्म, वर्ग और मूर्ति पूजा के विरोधी थे। उन्होंने निष्काम भक्ति, शुभ कर्म तथा शुद्ध जीवन को ईश्वर प्राप्ति का मार्ग बतलाया। वे हिन्दू-मुस्लिम एकता के समर्थक थे। “उनका स्वाभाविक मिठास और सबसे प्रेम करने की भावना के कारण हिन्दू और मुसलमान दोनों उनका आदर करते थे। इसी कारण से वह दोनों धर्मों को एक-दूसरे के समीप लाने का केन्द्र बन गए।”

प्रश्न 19.
रामानुज और रामानंद पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
1. रामानुज (Ramanuja) – शंकराचार्य के बाद प्रसिद्ध भक्त सन्त रामानुज हुए। उन्हें प्रथम वैष्णव आचार्य माना जाता है। उनका कार्य-काल बारहवीं शताब्दी था। उन्होंने सगुण ब्रह्म की भक्ति पर जोर दिया तथा कहा कि उसकी सच्ची भक्ति, ज्ञान तथा कर्म ही मोक्ष प्राप्ति का साधन है।

2. रामानन्द (Ramanand) – आचार्य रामानुज की पीढ़ी में स्वामी रामानन्द प्रथम सन्त थे जिन्होंने भक्ति द्वारा जन-साधारण को नया मार्ग दिखाया। उनका समय चौदहवीं शताब्दी का उत्तरार्द्ध और पंद्रहवीं शताब्दी के प्रथम पच्चीस वर्ष माने जाते हैं। उनका जन्म प्रयाग (इलाहाबाद) में 1299 ई० में कान्यकुब्ज ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उन्होंने एकेश्वरवाद पर जोर देकर हिन्दू मुसलमानों में प्रेम भक्ति सम्बन्ध के साथ सामाजिक समाधान प्रस्तुत किया। उससे भी अधिक उन्होंने हिन्दू समाज के चारों वर्णों (ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य तथा शूद्र) को भक्ति का उपदेश दिया और निम्न वर्ण के लोगों के साथ खान-पान निषेध का घोर विरोध किया। उनके शिष्यों में सभी जातियों के लोग थे। इनमें शूद्र भी थे। इनके शिष्यों में रविदास चर्मकार थे। कबीर जुलाहे थे, सेनापति नाई, पीपा राजपूत थे और सन्तधना कसाई थे। उन्होंने ब्राह्मणों और क्षत्रियों की उच्चता का खण्डन किया और मानववाद तथा मानवीय समानता जैसे प्रगतिशील विचारों एवं सिद्धान्तों का प्रचार किया उन्होंने अपने उपदेशों का प्रचार क्षेत्रीय भाषा के माध्यम से किया।

प्रश्न 20.
कबीर पर एक टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
मध्ययुगीन भारतीय संतों में कबीरदास की साहित्यिक एवं ऐतिहासिक देन स्मरणीय है। वे मात्र भक्त ही नहीं, बड़े समाज सुधारक भी थे। उन्होंने समाज में व्याप्त कुरीतियों का डटकर विरोध किया। अंधविश्वासों, दकियानूसी, अमानवीय मान्यताओं तथा गली-सड़ी रूढ़ियों की कटु आलोचना की। उन्होंने समाज, धर्म तथा दर्शन के क्षेत्र में महत्वपूर्ण विचारधारा को प्रोत्साहित भी किया। कबीर ने जहाँ एक ओर बौद्धों, सिद्धों और नाथों की साधना पद्धति तथा सुधार परम्परा के साथ वैष्णव सम्प्रदायों की भक्ति-भावना को ग्रहण किया वहाँ दूसरी ओर राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक एवं आर्थिक असमानता के विरुद्ध प्रतिक्रिया भी व्यक्त की। इस प्रकार मध्यकाल में कबीर ने प्रगतिशील तथा क्रांतिकारी विचारधारा को स्थापित किया। कबीर एकेश्वरवाद के समर्थक थे। वे मानसिक पवित्रता, अच्छे कर्मों तथा चरित्र की शुद्धता पर बल देते थे। उन्होंने जाति, धर्म या वर्ग को प्रधानता नहीं दी। उन्होंने धार्मिक कुरीतियों, आडम्बरों, अंधविश्वासों तथा कर्मकाण्डों को व्यर्थ बतलाया। उन्होंने मूर्ति-पूजा का खंडन करने के उद्देश्य से लिखा था-

“पाहन पूजे हरि मिले, तो मैं पूजूं पहार।
ताते तो चाकी भली पीस खाय संसार॥”

सारांश यह है कि कबीर धार्मिक क्षेत्र में सच्ची भक्ति का संदेश लेकर प्रकट हुए थे। उन्होंने निर्गुण-निराकार भक्ति का मार्ग अपनाकर मानव धर्म के सम्मुख भक्ति का मौलिक रूप रखा। यह सदैव स्मरण रखना चाहिए कि “कबीर के राम दशरथ पुत्र राजा राम नहीं है अपतुि घट-घट में निवास करने वाली अलौकिक शक्ति हैं जिसे राम-रहीम, कृष्ण, खुदा वाहेगुरु साईंनाथ कोई भी नाम दिया जाए। उसका रूप एक है। उसकी प्राप्ति के लिए न मंदिर की आवश्यकता है न मस्जिद की। वह सब में विद्यमान हैं और सभी उसे भक्ति तथा गुरु की कृपा से प्राप्त कर सकते हैं।”

कबीर जनसाधारण की भाषा में अपने उपदेश देते थे। उन्होंने अपने दोहों में धार्मिक कुरीतियों, आडम्बरों, अन्धविश्वासों तथा कर्मकाण्डों को व्यर्थ बतलाया।

“कबीर का नाम भारतीय इतिहास में इस कारण लिया जाता है कि उन्होंने हिन्दू और मुसलमानों के आपसी अंतर को दूर करने और एक मनुष्य के दूसरे से अंतर को दूर करने का प्रयास किया।”

प्रश्न 21.
सन्त नामदेव पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
नामदेव (Namdev):

(i) मध्यकालीन भक्ति आन्दोलन के विकास एवं लोकप्रियता में महाराष्ट्र के सन्तों का महत्त्वपूर्ण योगदान है। ज्ञानेश्वर, हेमाद्रि और चक्रधर से आरम्भ होकर रामनाथ, तुकाराम, नामदेव ने भक्ति पर बल दिया तथा एक ईश्वर की सम्पूर्ण मानव जाति सन्तान होने के नाते सबकी समानता के सिद्धान्त को प्रतिष्ठित किया।

(ii) नामदेव ने भरपूर कोशिश के साथ जाति प्रथा का खण्डन किया। नामदेव जाति से दर्जी थे। वे अपने पैतृक व्यवसाय की ओर कभी भी आकृष्ट नहीं हुए तथा साधु संगत को ही उन्होंने चाहा।

(iii) सन्त विमोवा खेचम उनके गुरु थे तथा वे सन्त ज्ञानेश्वर के प्रति गहरी निष्ठा रखते थे। उन्होंने भक्त सन्त प्रचारक बनने के बाद अपने शिष्यों के चुनाव में विशाल हृदय से काम लिया।

(iv) उनका काव्य जो मराठी भाषा में है, ईश्वर के प्रति गहरे प्रेम और भक्ति को व्यक्त करता है। उनके अनुसार ईश्वर सर्वव्यापी, एकेश्वर तथा सर्वत्र हैं वे समाज सुधारक तथा हिन्दू मुस्लिम एकता के कट्टर समर्थक थे। उन्होंने भरपूर कोशिश के साथ जाति प्रथा का खण्डन किया। .

(v) कहा जाता है कि उन्होंने दूर-दूर तक यात्राएँ की और दिल्ली में सूफी सन्तों के साथ विचार-विमर्श किया। वे प्रार्थना, भ्रमण, तीर्थयात्रा सत्संग तथा गुरु की सेवा के समर्थक थे। उन्होंने आध्यात्मिक क्षेत्र में आचरण की शुद्धता, भक्ति की पवित्रता एवं सरसता और चरित्र की निर्मलता पर बल दिया।

प्रश्न 22.
मीराबाई पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
गिरिधर गोपाल की भक्त मीराबाई का मध्यकलीन संतों में विशेष स्थान है। उसने भक्ति की जो मंदाकिनी (गंगा) अपने हृदय से निकाली, कविताओं द्वारा प्रवाहित की, उसने केवल राजस्थान की मरुभूमि ही नहीं, अपितु सारे उत्तरी भारत को रसमग्न कर दिया।

मीराबाई का जन्म लगभग 1516 ई० में राजस्थान के मेड़ता परगने के कुड़की या चौकड़ी गाँव में हुआ था। मीरा जोधपुर के शासक रतनसिंह राठौर की पुत्री थी। मीरा अभी 4-5 वर्ष की ही थी कि उसकी माता का देहांत हो गया। उसका पालन-पोषण उसके दादा ने किया। अपने दादा के धार्मिक विचारों से मीरा बहुत प्रभावित हुई।

18 वर्ष की आयु में मीरा का विवाह मेवाड़ के महाराणा संग्राम सिंह के बड़े पुत्र भोजराज से कर दिया गया लेकिन मीरा का वैवाहिक जीवन बहुत संक्षिप्त था। विवाह के लगभग एक वर्ष बाद ही उसके पति की मृत्यु हो गई। इस तरह मीरा छोटी आयु में ही विधवा हो गई। कुछ समय बाद उसके ससुर राणा साँगा की भी मृत्यु हो गई। अब मीरा बेसहारा हो गई। अत: वह संसार से मोह त्यागकर कृष्ण-भक्ति में लीन हो गई। वह साधुओं का सत्कार करती और पैरों में घुघरू बाँधकर भगवान कृष्ण की मूर्ति के सामने नाचने लगती।

उसके ससुराल के लोगों ने उसके कार्यों को अपने कुल की मर्यादा के विपरीत समझा। अतः उसे कई प्रकार के अत्याचारों द्वारा मारने के प्रयास किए। लेकिन जहर का प्याला, साँप और सूली आदि भी मीरा का बाल-बाँका न कर सके। इस विषय में मीरा ने स्वयं कहा है कि “मीरा मारी न मरूँ, मेरो राखणहार और”। इससे उसकी भक्ति-भावना और बढ़ गई, लेकिन अत्याचार भी बढ़ते जा रहे थे। कहा जाता है कि मीरा ने अपने ससुराल वालों से तंग आकर गोस्वामी तुलसीदासजी । को पत्र लिखकर उनकी सलाह माँगी। तुलसीदासजी ने मीरा को इस प्रकार उत्तर दिया।

“जाके प्रिय न राम वैदेही।
तजिये ताहि कोटि वैरी सम, यद्यपि परम सनेही।”

इस उत्तर को पाकर मीरा ने घर-बार छोड़ दिया और वह वृंदावन चली गई। वहाँ कुछ समय रहने के बाद मीरा द्वारिका चली गई। कहा जाता है कि मीरा को द्वारिका से लाने के लिए उनकी ससुराल तथा मायके-दोनों स्थानों से ब्राह्मण आये लेकिन वह नहीं गई। द्वारिका में ही 1574 ई. में मीराबाई का देहांत हो गया।

प्रश्न 23.
अलबरूनी के विषय में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर:
अलबरूनी का जन्म 973 ई० में उजबेकिस्तान के ख्वारिज्म नामक स्थान में हुआ था। वह अरबी, फारसी, संस्कृत आदि कई भाषाओं का जानकार था। 1017 ई० में जब महमूद गजनी के ख्वारिज्म पर आक्रमण किया तब लौटते समय वह अल-बेरूनी को भी साथ ले आया। जब पंजाब गजनी के साम्राज्य में मिला लिया गया तब अल बेरूनी को भारत के संस्कृत के विद्वान ब्राह्मणों से सम्पर्क करने एवं संस्कृत के ग्रन्थों को पढ़ने का मौका मिला। उसने तत्कालीन भारत के धर्म, प्रथाएँ, औषधियाँ, ज्योतिष, त्योहार, दर्शन, विधि, प्रतिमा-निर्माण आदि से सम्बन्धित एक किताब अरबी भाषा में लिखी जिसका नाम है-किताब-उल-हिन्द। यह पुस्तक ग्यारहवीं शताब्दी में भारतीय इतिहास का एक महत्वपूर्ण स्रोत है।

प्रश्न 24.
विदेशी यात्रियों के विवरणों से भारतीय स्त्रियों की स्थिति के बारे में क्या पता चलता है ?
उत्तर:
बर्नियर तथा इब्नबतूता दोनों ही यात्रियों के विवरणों में स्त्रियों की स्थिति का वर्णन मिलता है। बर्नियर ने एक ‘सती बालिका’ का वर्णन किया है। इसमें एक बालिका को पति के शव के साथ जला दिया जाता है। बर्नियर ने इसे एक हृदय विदारक घटना बताया है। इसी प्रकार इब्नबतूता ने भी दासियों का उल्लेख किया है जिनका उपयोग उनका स्वामी प्रत्येक प्रकार से करता था। स्त्रियाँ बिकाऊ थीं तथा उपहारस्वरूप इनका आदान-प्रदान किया जाता था। इसके अतिरिक्त बादशाहों के विशाल हरम भी स्त्रियों की लाचारी को भी दर्शाते हैं। ये विवरण यही दर्शाते हैं कि भारतीय सामाजिक व्यवस्था में आम स्त्रियों को कोई विशेष स्थान प्राप्त नहीं था।

प्रश्न 25.
1793 ई० का स्थायी बंदोबस्त क्या था ? इसकी मुख्य विशेषताओं और बंगाल के लोगों पर इसके प्रभावों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
बंगाल में स्थायी बंदोबस्त 1793 में लागू किया गया था।

  1. 1. इस व्यवस्था में भूमि जमींदारों को स्थायी रूप से दे दी जाती थी और उन्हें एक निश्चित धनराशि सरकारी कोष में जमा करनी पड़ती थी।
  2. इससे जमींदारों को कानूनी तौर पर मालिकाना अधिकार मिल गये। अब वे किसानों से मनमाना लगान लेते थे।
  3. इस व्यवस्था से सरकार को लगान के रूप में एक बँधी-बँधाई धनराशि मिल जाती थी।
  4. इस व्यवस्था से नये जमींदारों का जन्म हुआ, जो शहरों में बड़े-बड़े बंगलों में और तरह-तरह की सुख-सुविधाओं के साथ रहते थे। गाँव में उनके कारिन्दे किसानों पर तरह-तरह के अत्याचार करके भूमि कर ले जाते थे। जमींदार को किसानों के दुःख-सुख से कोई मतलब न था।
  5. किसानों को बदले में सिंचाई या ऋण सुविधा नाम मात्र को भी नहीं मिलती थी।

प्रश्न 26.
मनसबदारी व्यवस्था की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन करें।
उत्तर:
अकबर ने वैज्ञानिक दृष्टिकोण से मनसबदारी व्यवस्था का प्रवर्तन किया। यह दशमलव प्रणाली पर आधारित था। मनसबदार को दो पद जात एवं सवार प्रदान किए जाते थे। ब्लाकमैन के अनुसार, एक मनसबदार को अपने जितने सैनिक रखने पड़ते थे वह जात का सूचक था। वह जितने घुड़सवार रखता था वह सवार का सूचक था।

40 से 500 तक का मनसबदार ‘मनसबदार’ कहलाता था। 500 से 2500 का मनसबदार अमीर कहलाता था। 2500 से अधिक का मनसबदार अमीर एक उम्दा कहलाता था।

मनसबदारों को वेतन में नकद रकम मिलता था। कभी-कभी वेतन में जागीर भी दी जाती थी। इस प्रकार मनसबदारी व्यवस्था मुगल सेना का प्रमुख आधार बन गयी। उसने मुगल साम्राज्य का विस्तार एवं सुव्यवस्था की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

प्रश्न 27.
स्थायी बंदोबस्त से कम्पनी को हुए लाभों का वर्णन करें।
उत्तर:
स्थायी व्यवस्था से पूर्व राज्य की होने वाली आय निश्चित न थी। उच्चतम बोली देने वाले ऐसे बहुत कम होते थे जो समय पर अपने धन की अदायगी कर पाते थे। इससे सरकार की आय अनिश्चित बनी रहती थी। अब सरकार को जमींदारी द्वारा प्राप्त धन का एक निश्चित भाग प्राप्त होने लगा। यदि कोई जमींदार धन की अदायगी राज्य को समय पर न कर पाता था तो उसकी भूमि कुर्क कर दी जाती थी। क्योंकि भू-राजस्व राज्य की आय का प्रमुख स्रोत था, अतः कम्पनी के योग्य कर्मचारियों को इस राजस्व को वसूल करने के लिए लगाया जाता था, फलतः दूसरे विभागों का कार्य ठीक प्रकार से न हो पाता था परंतु इस व्यवस्था के कारण सरकार इस ओर से निश्चित हो गई और अन्य योग्य व्यक्तियों को अन्य विभागों में लगाया जाने लगा जिससे शासन व्यवस्था की क्षमता का बढ़ना निश्चित था।

प्रश्न 28.
महालबाड़ी व्यवस्था क्या थी ?
उत्तर:
महालबाड़ी नामक भू-व्यवस्था जमींदारी व्यवस्था (स्थायी व्यवस्था) का ही संशोधित रूप था। यह 1801 ई० में अवध क्षेत्र तथा 1803-04 में मराठे अधिकृत प्रदेशों में लागू किया गया था। इस व्यवस्था के अन्तर्गत प्रति खेत के आधार पर लगान नहीं निश्चित कर प्रत्येक महाल (गाँव या जागीर) के आधार पर निश्चित किया गया। पूरा गाँव सम्मिलित रूप से लगान चुकाने के लिए उत्तरदायी था। इस व्यवस्था में भूमि पर व्यक्तिगत स्वामित्व नहीं रहता था बल्कि समस्त गाँव का रहता था। इसीलिए इसे महालबाड़ी व्यवस्था कहा गया।

प्रश्न 29.
रैयतवाड़ी व्यवस्था क्या थी? इससे क्या सामाजिक और आर्थिक प्रभाव उत्पन्न हुए ?
उत्तर:
दक्षिण और दक्षिण-पश्चिमी भारत में रैयतवाड़ी बंदोबस्त लागू किया गया, जिसके अंतर्गत किसान भूमि का मालिक था यदि वह भू-राजस्व का भुगतान करता रहे। इस व्यवस्था के समर्थकों का कहना था कि यह वही व्यवस्था है, जो भारत में पहले थी। बाद में यह व्यवस्था मद्रास और बंबई प्रेसिडेंसियों में भी लागू कर दी गई। इस व्यवस्था में 20-30 वर्ष बाद संशोधन कर दिया जाता था तथा राजस्व की राशि बढ़ा दी जाती थी। रैयतवाड़ी व्यवस्था में निम्नलिखित त्रुटियाँ थीं-

  • भू-राजस्व 45 से 55 प्रतिशत था, जो बहुत अधिक था।
  • भू-राजस्व बढ़ाने का अधिकार सरकार ने अपने पास रखा था।
  • सूखे अथवा बाढ़ की स्थिति में भी पूरा राजस्व देना पड़ता था। इससे भूमि पर किसान का प्रभुत्व कमजोर पड़ गया।

प्रभाव:

  • इससे समाज में असंतोष और आर्थिक विषमता का वातावरण छा गया।
  • सरकारी कर्मचारी किसानों पर अत्याचार करते रहे तथा किसानों का शोषण पहले जैसा ही होता रहा।

प्रश्न 30.
अंग्रेजों ने मद्रास (चेन्नई) के आस-पास अपना प्रभाव कब और कैसे स्थापित किया ?
उत्तर:
अंग्रेजों ने दक्षिण में अपनी फैक्ट्री मसुलीपट्टनम में 1611 में स्थापित की। पर जल्द ही उनकी गतिविधियों का केन्द्र मद्रास (चेन्नई) हो गया जिसका पट्टा 1639 में वहाँ के स्थानीय राजा ने उन्हें दे दिया था। राजा ने उनको उस जगह की किलेबंदी करने, उसका प्रशासन चलाने और सिक्के ढालने की अनुमति इस शर्त पर दी कि बंदरगाह से प्राप्त चुंगी का आधा भाग राजा को दिया जाएगा। यहाँ अंग्रेजों ने अपनी फैक्ट्री के इर्द-गिर्द एक छोटा-सा किला बनाया जिसका नाम फोर्ट सेंट जार्ज पड़ा।

प्रश्न 31.
भारत में यूरोपीय उपनिवेशों की स्थापना के क्या कारण थे ?
उत्तर:
यूरोपीय देशों ने निम्नलिखित कारणों से भारत में उपनिवेशों की स्थापना की-

  • कच्चे माल की प्राप्ति
  • निर्मित माल की खपत
  • इसाई धर्म का प्रचार तथा
  • समृद्धि की लालसा।

कुल मिलाकर यूरोपियन अपने उद्योगों के लिये आवश्यक कच्चे माल एवं इन कच्चे मालों से तैयार सामानों के बाजार की तालाश में ही भारत की ओर आये और इसके माध्यम से उनका उद्देश्य था-अपनी समृद्धि।

प्रश्न 32.
1857 के विद्रोह की असफलता के कारणों का संक्षिप्त उल्लेख करें।
उत्तर:
1857 के विद्रोह की असफलता के कारण (Causes of the Failure of the Revolt of 1857) – 1857 के विद्रोह में भारतीय जनता ने जी-तोड़ संघर्ष कर अंग्रेजों का सामना किया, किन्तु कुछ कारणों से इस विद्रोह में भारतवासियों को असफलता मिली। इस असफलता के निम्न कारण थे-

  1. यह विद्रोह निश्चित तिथि से पहले आरम्भ हो गया। इसकी तिथि 31 मई निर्धारित की गई थी, किंतु यह 10 मई, 1857 को शुरू हो गया।
  2. यह स्वतंत्रता संग्राम सारे भारत में फैल गया, परिवहन तथा संचार के अभाव में भारतवासी इस पर पूर्ण नियंत्रण न रख सके।
  3. भारतवासियों के पास अंग्रेजों के मुकाबले हथियारों का अभाव था।
  4. भारत में कुछ वर्गों ने इस विद्रोह में सक्रिय भाग नहीं लिया।
  5. भारत में अंग्रेजों के समान कुशल सेनापतियों का अभाव था।
  6. अंग्रेजों को ब्रिटेन से यथासमय सहायता प्राप्त होती गई।
  7. क्रांतिकारियों में किसी एक योजना एवं निश्चित उद्देश्यों की कमी थी।

प्रश्न 33.
ब्रिटिश चित्रकारों ने 1857 के विद्रोह को किस रूप में देखा ?
उत्तर:
ब्रिटिश पत्र-पत्रिकाओं, अखबारों, कार्टूनों में 1857 के विद्रोह के दो बिन्दुओं पर बल दिया गया-हिन्दुस्तानी सिपाहियों की बर्बरता और ब्रिटिश सत्ता की अजेयता का प्रदर्शन।।

टॉमस जोन्स वर्कर के 1859 के रिलीज ऑफ लखनऊ इन मेमोरियम, न्याय जैसे चित्रों के माध्यम से ब्रिटिश प्रतिरोध की भावना और उनकी अजेयता के भाव ही प्रदर्शित होते हैं।

प्रश्न 34.
1857 के विद्रोह का तात्कालिक कारण क्या था?
उत्तर:
1857 के विद्रोह का तात्कालिक कारण कारतूसों में लगी सूअर और गाय की चर्बी थी। नयी स्वफील्ड बंदूकों में गोली भरने से पूर्व कारतूस को दाँत से छीलना पड़ता था। हिन्दू और मुसलमान दोनों ही गाय और सूअर की चर्बी को अपने-अपने धर्म के विरुद्ध समझते थे। अतः उनका भड़कना स्वाभाविक था।

26 फरवरी, 1857 ई० को बहरामपुर में 19वीं नेटिव एनफैण्ट्री ने नये कारतूस प्रयोग करने से मना कर दिया। 19 मार्च, 1857 ई० को चौंतीसवीं नेटिव एनफैण्ट्री के सिपाही मंगल पाण्डेय ने दो अंग्रेज अधिकारियों को मार डाला। बाद में उसे पकड़कर फाँसी दे दी गई। सिपाहियों का निर्णायक विद्रोह 10 मई, 1857 को मेरठ में शुरू हुआ।

प्रश्न 35.
1857 की क्रांति के प्रभाव पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
1857 की क्रांति के प्रभाव – 1857 ई० भारतीय इतिहास में महत्वपूर्ण है क्योंकि उसी वर्ष ईस्ट इण्डिया कम्पनी के शासन के विरुद्ध भारतीयों का असंतोष क्रांति के रूप में प्रकट हुआ। इसे ‘भारत का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम’ कहा जाता है। इसी के बाद 1858 ई० में एक घोषणा के द्वारा यह कहा गया कि अब भारत का शासन ब्रिटिश महारानी के नाम से होगा।

प्रश्न 36.
1857 के विद्रोह के मुख्य कारण क्या थे ?
उत्तर:
1857 के सिपाही विद्रोह के महत्त्वपूर्ण प्रमुख कारण निम्नांकित थे
(i) सामाजिक कारण (Social causes) – अंग्रेजों ने अनेक भारतीय सामाजिक कुरीतियों को दूर करने के लिए कानून बनाया। उन्होंने सती प्रथा को कानूनी अपराध घोषित कर दिया। उन्होंने विधवा पुनर्विवाह करने की कानूनी अनुमति दे दी। स्त्रियों को शिक्षित किया जाने लगा। रेलवे तथा यातायात के अन्य साधनों को बढ़ावा दिया गया। रूढ़िवादी लोग इन सब कामों को संदेह से देखते थे। उन्हें भय हुआ कि अंग्रेज हमारे समाज को तोड़-मरोड़ कर हमारी सारी सामाजिक मान्यताओं को समाप्त कर देना चाहते हैं।

(ii) धार्मिक कारण (Religious causes) – ईसाई धर्म प्रचारक धर्म परिवर्तन करा देते थे। अंग्रेजों ने मंदिरों और मस्जिदों की भूमि पर कर लगा दिया। अत: पंडितों और मौलवियों ने रुष्ट होकर जनता में अंग्रेजों के विरुद्ध जागृति फैला दी।

(iii) सैनिक कारण(Military causes) – भारतीय एवं यूरोपियन सैनिकों में पद, वेतन पदोन्नति आदि को लेकर भेदभाव किया जाता था। भारतीय सैनिकों के साथ बुरा व्यवहार किया जाता था और उन्हें कम महत्त्व दिया जाता था। सामूहिक रसोई होने के कारण भी उच्च वर्ग के (ब्राह्मण और ठाकुर) लोग निम्न वर्ग के लोगों के साथ खाने से प्रसन्न न थे।

(iv) तात्कालिक कारण (Immediate causes) – तात्कालिक कारण कारतूसों में लगी सूअर और गाय की चर्बी थी। नयी स्वफील्ड बंदूकों में गोली भरने से पूर्व कारतूस को दाँत से छीलना पड़ता था। हिन्दू और मुसलमान दोनों ही गाय और सूअर की चर्बी को अपने-अपने धर्म के विरुद्ध समझते थे। अत: उनका भड़कना स्वाभाविक था।

प्रश्न 37.
लक्ष्मीबाई कौन थी ? संक्षिप्त परिचय दीजिए।
उत्तर:
वह झाँसी (उत्तर प्रदेश) की रानी थीं। अपनी सन्तान न होने पर उसने एक बच्चे को दत्तक पुत्र के रूप में गोद ले लिया था तथा झाँसी का उत्तराधिकारी घोषित किया था। लेकिन अंग्रेजों ने उसके उत्तराधिकार की घोषणा के अधिकार को मान्यता नहीं दी थी। इसी कारण वह 1857 के विद्रोह के दिनों में अंग्रेजी सेनाओं से जूझ पड़ी। उसने नाना साहिब के विश्वसनीय सेनापति तात्यां टोपे और अफगान सरदारों की मदद से ग्वालियर पर अपना अधिकार स्थापित कर लिया। अन्त में कालपी के स्थान पर वह अंग्रेजों से संघर्ष करती हुई वीरगति को प्राप्त हुई। उसकी वीरता सभी के लिए प्रेरणा मानी जाती है।

प्रश्न 38.
तात्या टोपे कौन था ? उसका संक्षिप्त परिचय दीजिए।
उत्तर:
तात्या टोपे नाना साहिब की सेना का एक कुशल, अत्यधिक साहसी, परमवीर एवं विश्वसनीय सेनापति था। उसने 1857 के विद्रोह में कानपुर में अंग्रेजों के विरुद्ध कुशलता से गुरिल्ला नीति अपनाते हुए अंग्रेजी सेना की नाक में दम कर दिया था। उसने अंग्रेज जनरल बिन्द्रहैम को बुरी तरह परास्त किया तथा झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई का पूर्ण निष्ठा से सहयोग दिया। कालान्तर में सर कोलिन कैम्पवेल ने उसे हराया तथा 1858 में अंग्रेजों ने तात्या टोपे को फाँसी की सजा दे दी।

प्रश्न 39.
नाना साहिब कौन थे ? उनका संक्षिप्त परिचय दीजिए।
उत्तर:
नाना साहिब अन्तिम मराठा पेशवा बाजीराव द्वितीय का दत्तक पुत्र था। 1857 के विद्रोहियों ने उन्हें अंग्रेजों के विरुद्ध कानपुर में विप्लव छेड़ने के लिए उकसाया था। जब कानपुर के सिपाहियों और शहर के लोगों ने नाना साहिब के समक्ष बगावत की बागडोर संभालने की प्रार्थना की तो ऐसा करने के अतिरिक्त उनके समक्ष कोई भी विकल्प नहीं था।

सन् 1851 से ही (जब पेशवा बाजीराव द्वितीय की मृत्यु हो गई थी) अंग्रेजों ने नाना साहिब को न तो पेशवा माना और न ही उन्हें पेंशन दी। लम्बे संघर्ष के बाद जब अंग्रेजों ने कानपुर पर अधिकार कर लिया तो नाना साहिब ने अंग्रेज सेनापति नील तथा हैवलॉक को तात्या टोपे की मदद से पराजित कर कानपुर के किले पर पुनः अधिकार कर लिया। दिसम्बर 1857 में नई सेना के आने के बाद सर कोलिन कैम्पवेल ने पुनः नाना साहिब को पराजित किया। नाना साहिब अंग्रेजों के हाथों नहीं आये। वे नेपाल भागकर पहुँचने में कामयाब रहे। उनके प्रशंसक उनकी इस कूटनीति को उनके साहस एवं बहादुरी की ही हिस्सा मानते हैं।

प्रश्न 40.
कुंवर सिंह कौन थे ? उनका संक्षिप्त परिचय दीजिए।
उत्तर:
कुंवर सिंह आरा (जगदीशपुर), बिहार में एक स्थानीय जमींदार थे। वह बड़े जमींदार होने के कारण लोगों में राजा के नाम से विख्यात थे। कुंवर सिंह की उम्र बहुत कम थी तो भी उन्होंने आजमगढ़ तथा बनारस में अंग्रेजी फौज को पराजित किया। उन्होंने छापामार युद्ध पद्धति से अंग्रेजों के दाँत खट्टे कर दिये। उन्होंने ब्रिटिश सेनापति मार्कर को पराजित कर गंगा पार अपने प्रमुख किले जगदीशपुर पहुँचने में सफलता प्राप्त की। अप्रैल 1858 में उनकी मृत्यु हो गई।

Bihar Board 12th History Important Questions Long Answer Type Part 3

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Bihar Board 12th History Important Questions Long Answer Type Part 3

प्रश्न 1.
अशोक के ‘धम्म’ से आप क्या समझते हैं ? अशोक के धम्म के प्रमुख सिद्धान्त क्या थे?
उत्तर:
धम्म का स्वरूप : धम्म’ संस्कृत के धर्म शब्द का प्राकृत स्वरूप है। अशोक ने इसका प्रयोग विस्तृत अर्थ में किया है। इस विषय पर विद्वानों के बीच काफी मतभेद है। बहुत-से विद्वान धम्म और बौद्धधर्म में कोई फर्क नहीं मानते। अतः प्रारंभ में ही यह कह देना आवश्यक है कि धम्म और बौद्धधर्म दोनों अलग-अलग बातें हैं। बौद्धधर्म अशोक का व्यक्तिगत धर्म था। लेकिन उसने जिस धम्म की चर्चा अपने अभिलेखों में की है वह उसका सार्वजनिक धर्म था तथा विभिन्न धर्मों का सार था। यह अलग बात है कि बौद्धधर्म की कई विशेषताएँ भी उसमें मौजूद थीं। अशोक ने अपने अभिलेखों में कई स्थान पर धम्म (धर्म) शब्द का प्रयोग किया है, किन्तु भाबरु अभिलेख को छोड़कर (जहाँ उसे बुद्ध, धम्म और संघ में अपना विश्वास प्रकट किया है) उसने कहीं भी धम्म का प्रयोग बौद्धधर्म के लिए नहीं किया है। बौद्ध धर्म के लिए ‘सर्द्धम’ या ‘संघ’ शब्द का . प्रयोग किया है। इस तरह हम कह सकते हैं कि अशोक का धम्म बौद्धधर्म नहीं था क्योंकि इसमें चार आर्य सत्यों, अष्टांगिक मार्ग तथा निर्वाण की चर्चा नहीं मिलती है।

अशोक के धर्म के प्रमुख सिद्धान्त इस प्रकार अग्रलिखित हैं-

  1. बड़ों का आदर (Elder’sregards) – अशोक ने अपने शिलालेख में लिखा है कि माता-पिता, अध्यापकों और अवस्था तथा पद में जो बड़े हों उनका उचित आदर करना चाहिए और उनकी आज्ञा का पालन करना चाहिए।
  2. छोटों के प्रति उचित व्यवहार (Proper behaviour with youngers) – बड़ों को अपने से छोटों के प्रति प्रेम-भाव रखना चाहिए और उनसे दया तथा नम्रता का व्यवहार करना चाहिए।
  3. सत्य बोलना (Speak truth) – मनुष्य को सदा सत्य बोलना चाहिए। दिखाने की भक्ति से सत्य बोलना अधिक अच्छा है।
  4. अहिंसा (Non-violence) – मनुष्य को मन, वाणी और कर्म से किसी जीव को दु:ख नहीं देना चाहिए।
  5. दान (Donation) – अशोक के धर्म में दान का विशेष महत्व है। उसके अनुसार अज्ञान के अन्धकार में भूले-भटके लोगों को धर्म का दान करके प्रकाश में लाना सबसे उत्तम दान है।
  6. पवित्र जीवन (Pure Life) – मनुष्य को पाप से बचना चाहिए और पवित्र जीवन व्यतीत करना चाहिए। .
  7. शुभ कार्य (Pure Action) – प्रत्येक मनुष्य बुरे कर्म का बुरा और अच्छे कर्म का अच्छा फल प्राप्त करता है। इसलिए उसे शुभ कर्म करने चाहिए ताकि उसका लोक और परलोक सुधरे।
  8. सच्चे रीति-रिवाज (True Rituals) – मनुष्य को झूठे रीति-रिवाजों, जादू-टोना, व्रत तथा अन्य दिखावों के जाल में नहीं फंसना चाहिए। उसे पवित्र जीवन व्यतीत करना चाहिए, बड़ों का आदर करना चाहिए तथा उसे सत्य बोलना चाहिए। यही सच्चे रीति-रिवाज हैं।
  9. धार्मिक सहनशीलता (Religious Tolerance) – मनुष्य को अपने धर्म का आदर करना चाहिए लेकिन दूसरे धर्मों की निन्दा नहीं करनी चाहिए।

इस प्रकार अशोक ने सभी धर्मों के मुख्य नैतिक सिद्धान्तों का संग्रह किया और उन्हें साधारण लोगों तक पहुँचाया ताकि वे उस पर चलकर अपना लोक और परलोक सुधार सकें।

प्रश्न 2.
अशोक धर्म के प्रमुख सिद्धान्त क्या थे ?
उत्तर:
अशोक के धर्म के प्रमुख सिद्धान्त-

  1. बड़ों का आदर (Elders’ regards) – अशोक ने अपने शिलालेख में लिखा है कि मातापिता, अध्यापकों और अवस्था तथा पद में जो बड़े हों उनका उचित आदर करना चाहिए और उनकी आज्ञा का पालन करना चाहिए।
  2. छोटों के प्रति उचित व्यवहार (Proper behaviour with youngers) – बड़ों को अपने से छोटों के प्रति प्रेमभाव रखना चाहिए और उनसे दया तथा नम्रता का व्यवहार करना चाहिए।
  3. सत्य बोलना (Speak truth) – मनुष्य को सदा सत्य बोलना चाहिए। दिखावे की भक्ति से सत्य बोलना अधिक अच्छा है।
  4. अहिंसा (Non-violence) – मनुष्य को मन, वाणी और कर्म से किसी जीव को दुःख नहीं देना चाहिए।
  5. दान (Donation) – अशोक के धर्म में दान का विशेष महत्त्व है। उसके अनुसार अज्ञान के अंधकार में भूले-भटके लोगों को धर्म का दान करके प्रकाश में लाना सबसे उत्तम दान है।
  6. पवित्र जीवन (Pure Life) – मनुष्य को पाप से बचना चाहिए और पवित्र जीवन व्यतीत करना चाहिए।
  7. शुभ कार्य (Pure Action) – प्रत्येक मनुष्य बुरे कर्म का बुरा और अच्छे कर्म का अच्छा फल प्राप्त करता है। इसलिए उसे शुभ कर्म करने चाहिए ताकि उसका लोक और परलोक सुधरे।
  8. सच्चे रीति-रिवाज (True Rituals) – मनुष्य को झूठे रीति-रिवाजों, जादू-टोना, व्रत तथा अन्य दिखावों के जाल में नहीं फँसना चाहिए। उसे पवित्र जीवन व्यतीत करना चाहिए; बड़ों का आदर करना चाहिए तथा उसे सत्य बोलना चाहिए। यही सच्चे रीति-रिवाज हैं।
  9. धार्मिक सहनशीलता (Religious tolerance) – मनुष्य को अपने धर्म का आदर करना चाहिए लेकिन दूसरे धर्मों की निन्दा नहीं करनी चाहिए।

इस प्रकार अशोक ने सभी धर्मों के मुख्य नैतिक सिद्धान्तों का संग्रह किया और उन्हें साधारण लोगों तक पहुँचाया ताकि वे उस पर चलकर अपना लोक और परलोक सधार

प्रश्न 3.
अशोक ने बौद्ध-धर्म के प्रसार में क्या योगदान दिया ?
उत्तर:
अशोक के बौद्ध-धर्म के प्रसार में निम्नलिखित योगदान दिया-

  • अशोक ने कलिंग युद्ध के बाद 265 ई० पू० में बौद्ध धर्म ग्रहण किया था। उसने अपने पुत्र महेन्द्र, पुत्री संघमित्रा तथा स्वयं को इस धर्म के प्रचार में लगा दिया था।
  • उसने सम्राट होकर भी भिक्षुओं जैसा जीवन बिताया। उसने अहिंसा को अपनाकर शिकार करना, माँस खाना छोड़ दिया था। उसने राजकीय वधशाला में पशु-वध पर रोक लगा दी थी। जनता राजा के आदर्शों पर चलती थी।
  • उसने बौद्ध धर्म के नियम स्तम्भों, शिलालेखों आदि पर खुदवाकर ऐसे स्थानों पर लगवा दिये थे कि जहाँ से जनता देखकर उन्हें पढ़ सके और तत्पश्चात् अमल करे।
  • उसने लगभग 84000 बौद्ध विहारों और 48000 स्तूपों का निर्माण कराया। यह मुख्यमुख्य नगरों में स्थापित किये।
  • उसने कई धार्मिक नाटकों का आयोजन किया जिनमें बौद्ध धर्म पर आचरण करने पर स्वर्ग की प्राप्ति दिखाई गई थी। अतः बौद्ध धर्म को ग्रहण करने के लिये जनता प्रेरित हुई।
  • बौद्ध धर्म के मतभेदों को दूर करने के लिये अशोक ने 252 ई० पू० में एक विशाल सभा का आयोजन किया था, जिससे लोग इस धर्म की ओर आकर्षित हुए। सम्राट अशोक स्वयं बौद्ध तीर्थों-सारनाथ, कपिलवस्तु एवं कुशीनगर गया। रास्ते में उसने बौद्ध धर्म का प्रचार किया। उसने धर्म महापात्रों की नियुक्ति की, जो देखते थे कि लोग इस धर्म का पालन कर रहे हैं या नहीं।
  • जन साधारण तक बौद्ध धर्म की शिक्षाओं को पहुँचाने के लिये पालि भाषा में शिलालेख और बौद्ध साहित्य का अनुवाद कराया था। उसने बौद्ध धर्म का प्रचार करने के लिए कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, गंधार, चीन, जापान, सीरिया श्रीलंका व मित्र आदि देश में भिक्षु भेजे।
  • सम्राट ने सम्पूर्ण राजकीय तंत्र बौद्ध धर्म के प्रचार में लगा दिया। सार्वजनिक समारोहों को रोककर उनके स्थान पर बौद्ध उत्सव मनाने प्रारंभ कर दिये। उसने नाचने-गाने तथा मद्यपान पर रोक लगा दी थी तथा लोगों को नैतिक जीवन व्यतीत करने की प्रेरणा दी।

प्रश्न 4.
मौर्य साम्राज्य के पतन के कारणों पर प्रकाश डालें। अशोक इसके लिए कहाँ तक उत्तरदायी था?
उत्तर:
मौर्य साम्राज्य का पतन साम्राज्यों की तुलना में बहुत ही शीघ्र हो गया। जिस साम्राज्य की नींव चन्द्रगुप्त मौर्य ने अपने खून-पसीने से डाली थी और सम्राट अशोक ने बुलन्द महलों का निर्माण किया था। परन्तु उसके मरने के साथ ही उसका पतन होना शुरू हो गया, जो वास्तव में एक आश्चर्य की बात है। मौर्य साम्राज्य के पतन के निम्नलिखित प्रमुख कारण हैं-

1. विघटनात्मक प्रवृत्ति – मौर्य साम्राज्य के पतन के यों तो बहुत से कारण हैं परन्तु साम्राज्य की विघटनात्मक प्रवृत्ति सबसे महत्त्वपूर्ण है। अशोक के समय तक तो यह साम्राज्य ठोस बना रहा परन्तु उसके आँख मूंदते ही यह साम्राज्य छिन्न-भिन्न होने लगा। उसकी नींव की एक-एक ईंट हिल-हिल कर गिरने लगी और एक दिन ऐसा आया कि सारा बुलन्द महल भरभरा कर पतन के गड्ढे में गिर पड़ा। अर्थात् उसका एक-एक प्रान्त इससे निकलने लगा और स्वतंत्र होकर इस साम्राज्य की नींव को खोदने लगा। कश्मीर के प्रसिद्ध इतिहासकार कल्हण के शब्दों में, “स्वयं अशोक का दूसरा पुत्र कश्मीर का स्वतंत्र शासक हो गया था और कन्नौज तक के प्रदेशों को हस्तगत कर लिया था।”

तारानाथ के अनुसार, वीरसेन नामक अशोक का उत्तराधिकारी गंधार में स्वतंत्र हो गया था। कालिदास के मालविकाग्निमित्र से ज्ञात होता है कि विदर्भ भी इस साम्राज्य से अलग हो गया था। कलिंग भी एक दिन स्वतंत्र हो गया। इन सबों की देखा-देखी साम्राज्य को बहुत से प्रदेश हाथ से निकल गए। अशोक के उत्तराधिकारी इस विकेन्द्रीयकरण की प्रवृत्ति को रोक नहीं सके जिसके फलस्वरूप मौर्य साम्राज्य का पतन हो गया।

2. साम्राज्य की विशालता – चन्द्रगुप्त मौर्य और अशोक के प्रयत्नों के फलस्वरूप मौर्य साम्राज्य विशाल हो गया था। केन्द्र में इसकी राजधानी भी नहीं थी जिससे शासन काल पर नियंत्रण करने में बड़ी असुविधा होती थी, क्योंकि आवागमन के साधनों का विकास भी नहीं हुआ था। दक्षिण भारत पर नियंत्रण रखने में अशोक के उत्तराधिकारियों को बहुत दिक्कत हो रही थी। अंत में वे इसके पतन को रोकने में सफल नहीं हो सके।

3. प्रांतीय शासकों ने प्रजा के साथ अच्छा बर्ताव नहीं किया – दूर-दूर के प्रांतों में कर्मचारियों तथा पदाधिकारियों का प्रजा के साथ बर्ताव अच्छा नहीं था। वे लोग जनता को हर तरह से कष्ट दिया करते थे। अंत में विवश होकर जनता विद्रोही हो गयी थी। जैसे-बिन्दुसार के शासन काल में जनता उसके मंत्रियों के विरुद्ध विद्रोह कर बैठी थी जो दबाते न दबता था। अंत में अशोक ने वहाँ जाकर उस विद्रोह को दबाया था। अशोक के शासन काल में भी तक्षशिला में इस तरह का विद्रोह हुआ था जिसको अशोक के पुत्र कुणाल ने जाकर दबाया था। अशोक के मरने के बाद इस तरह के विद्रोह को दबाने के लिए किसी में ताकत नहीं रह गयी थी। अतः यह भी मौर्य साम्राज्य के पतन का एक प्रमुख कारण बना।

4. अशोक की अहिंसा की नीति – कुछ इतिहासज्ञों का यह मत है कि अशोक की अहिंस्म की नीति से भी मौर्य साम्राज्य का पतन हुआ। क्योंकि इस नीति के फलस्वरूप साम्राज्य की सैनिक शक्ति नष्ट हो गई। जब केन्द्रीय-शक्ति कमजोर हो गई तब प्रांतों के शासन स्वतंत्र होने लग गए। ऐसी परिस्थिति में ही पश्चिमोत्तर प्रदेश में बैक्ट्रिया के यवनों का भयंकर आक्रमण हुआ। इससे भी यह साम्राज्य पतनोन्मुख हुआ।

5. अत्यधिक दान देने की प्रवृत्ति – कहा जाता है कि अशोक की दान देने की नीति से भी मौर्य साम्राज्य का पतन हुआ क्योंकि अत्यधिक दान से शाही खजाना खाली पड़ गया था। जिससे साम्राज्य की आर्थिक स्थिति नाजुक हो गयी थी। सैनिकों का वेतन समय पर नहीं दिया जा रहा था। इतना ही नहीं, एक जगह पर यह भी कहा गया कि अशोक को दान देने की नीति के फलस्वरूप ही राज्य छोड़ देना पड़ा था। इसके बाद मौर्य साम्राज्य का पतन होने लगा।

6. अंतःपुर और राजदरबारियों का षड्यंत्र – अंत:पुर और दरबारियों के षड्यंत्र से मौर्य साम्राज्य को बहुत बड़ा धक्का लगा। स्वयं अशोक की अनेक रानियाँ तथा अनेक पुत्र दिन-रात षड्यंत्र रचा करते थे। राजा वृहद्रथ के शासन काल में तो साम्राज्य की शक्ति दो दलों में बँट गयी थी। एक दल का प्रधान सेनापति और दूसरा दल था प्रधान सचिव थे। इन दलों में हमेशा टक्कर होती रहती थी। फलतः साम्राज्य की शक्ति बहुत कम हो गयी। राजा वृहद्रथ इसमें सुधार नहीं ला सका। मौका पाकर उसी के समय में पुष्यमित्र शुंग ने सम्राट का कत्ल कर साम्राज्य पर अधिकार कर लिया।

7. अशोक की धार्मिक नीति – अशोक के धार्मिक नीति के कारण हिन्दुओं में उसके विरुद्ध विद्रोह की भावनाएँ उठने लगी। क्योंकि वे लोग बौद्ध धर्म की उन्नति और हिन्दू धर्म की अवनति को नहीं देखना चाहते थे। इसलिए उनमें बौद्ध धर्म के प्रति द्वेष हो गया। वे लोग मौर्य साम्राज्य को ही नष्ट कर देने की बात सोचने लगे और अंत में मौर्य साम्राज्य को पतन के गड्ढ़े में धकेल कर ही दम लिया।

8. विदेशी आक्रमण – जब उपरोक्त कारणों से मौर्य साम्राज्य कमजोर हो गया तो विदेशियों की दृष्टि इस पर पड़ी और इस पर बहुत से विदेशी आक्रमण हुए। मौर्य साम्राज्य के अंतिम दिनों में यूनानी और बैक्टिरियन राजाओं की चढ़ाई हुई जो मौर्य साम्राज्य के लिए हितकर न हुई।

9. गुप्तचर विभाग में संगठन का अभाव – अंशोक के शासन काल से ही गुप्तचर विभाग में शिथिलता आ गई थी। साम्राज्य को सुन्दर ढंग से चलाने के लिए एक सुसंगठित गुप्तचर विभाग की आवश्यकता होती है क्योंकि इसके अभाव में सम्राट को गुप्त बातों की जानकारी नहीं हो सकती। जगह-जगह पर षड्यंत्र रचा जा सकता है। अतः सम्राट गुप्तचर विभाग की मदद से षड्यंत्रों से बचा करता है। परन्तु अशोक के शासन काल में ही यह विभाग अस्त-व्यस्त हो चुका था और उसके उत्तराधिकारी इस ओर ध्यान नहीं दे सके। जिसके फलस्वरूप मौर्य साम्राज्य का पतन हो गया।

10. सेना विभाग की उदासीनता – साम्राज्य में अहिंसा की नीति से सैन्य बल कमजोर पड़ गया। सेना का स्तर बहुत नीचे गिर गया। लेकिन उस समय सैन्य बल की पुकार थी क्योंकि साम्राज्यवादी नीति जोर पकड़ रही थी। परन्तु कलिंग युद्ध के बाद अशोक ने सैनिकों के अस्त्र-शस्त्र पर पाबन्दी लगा दी गई थी। फलतः मौर्य साम्राज्य का पतन हो गया।

प्रश्न 5.
साँची स्तुप से संबंधित ऐतिहासिक तथ्यों का विवरण दीजिए।
अथवा, साँची स्तूप की मूर्तियों के बारे में दी गई सूचनाओं का उल्लेख कीजिए। इतिहासकारों ने इसका कैसे उल्लेख किया है ?
उत्तर:
साँची का स्तूप (The Sanchi Stupa) – साँची का स्तूप मध्यप्रदेश में विदिशा के पास स्थित है। साँची का स्तूप और निकट के एकाश्म स्तंभ द्वारा बनाये गये थे। शुंग काल में स्तूप के आकार में वृद्धि की गई तथा कई नवीन निर्माण किये गये। अशोक के काल में यह स्तूप ईंटों का बनवाया गया था। शुंगकाल में उस पर पाषाण की शिलाओं का आवरण लगाया गया।

स्तूप के चारों ओर 16 फीट ऊँची मेधी या चबूतरे का निर्माण किया गया। इसमें दक्षिण की ओर सीढ़ियों का सोपान निर्माण किया गया। स्तूप के चारों ओर एक वर्गाकार वेदिका का भी निर्माण किया गया। शुंग काल में स्तूप का आकार दुगुना हो गया था। अब यह 54 फीट ऊँचा, 120 फीट व्यास का है।

वेदिका की चारों दिशाओं में चार तोरण द्वारों का निर्माण किया गया है। प्रत्येक तोरण दो सीधे खड़े वर्गाकार स्तंभों की सहायता से बना है। इन स्तंभों में पाषाण की तीन समानांतर और मेहराबदार बेड़ियाँ लगायी गयी हैं। तोरण द्वार की कलात्मकता उच्च कोटि की है। दोनों स्तंभों के शीर्ष पर चार सिंह, बैलों की मूर्तियों को बनाया गया है।

साँची के तोरण द्वार अधिक अलंकृत हैं। साँची की वेदिका सादी और अलंकरण रहित है। इसलिए सादी वेदिका की पृष्ठभूमि में अलंकृत तोरण प्रभावशाली प्रतीत होता है। स्तंभों की चौकियों पर शाल मंजिकाओं की मूर्तियाँ बनाई गई हैं।

तोरण पर बुद्ध के जीवन की घटनाओं तथा जातक कथाओं के चित्रों को अंकित किया गया है। डेरियों पर सिंह, हाथी, धर्म चक्र, यक्ष तथा विरल के प्रतीक चित्र उत्कीर्ण किये गये हैं। स्तंभों के निचले भागों में द्वारपाल यक्षों की मूर्तियाँ उत्कीर्ण की गई हैं। स्तंभ तथा नीचे की डेरी के बाहरी कोनों में शाल मंजिकाओं की मूर्तियाँ बनाई गई हैं। उनके अंग-प्रत्यंगों का अत्यंत आकर्षक अंकन किया गया है। सबसे ऊपर की बड़ेरी के मध्य में धर्मचक्र त्रिरत्न के लक्षण हैं। धर्मचक्र के दोनों ओर चामर लिए यक्ष मूर्तियाँ हैं।

स्तूप के सबसे ऊपर शीर्ष पर हर्मिका, याष्टिदंड तथा त्रिछत्र बने हैं। साँची के तोरण पर पाँच जातक कथाओं के चित्र पहचाने गये हैं। ये जातक कथाएँ हैं-छदंत जातक, महाकपि जातक, वेस्संतर जातक, अलंबुसा जातक, साम जातक। बुद्ध के जन्म, संबोधि, प्रथम प्रवचन, परिनिर्वाण का प्रदर्शन संकेतों के द्वारा किया गया है। माया का गर्भधारण, रथयात्रा, महाभिनिष्क्रमण, सुजाता की भेंट, मार द्वार प्रलोभन आदि बुद्ध के जीवन की घटनाओं के चित्रों को भी उत्कीर्ण किया गया है। कुछ सांसारिक जीवन के दृश्य तथा पुष्पों का अंकन किया गया है।

उपरोक्त वर्णन साँची के मुख्य स्तूप का है। इसके अतिरिक्त दो लघु स्तूप भी मुख्य स्तूप के निकट हैं। कला की दृष्टि से मुख्य स्तूप अत्यंत महत्त्वपूर्ण हैं।

मूर्तियों का इतिहासकारों द्वारा ऐतिहासिक सृजन के लिए उपयोग (Use of Sculptures by Historians for Reconstruction of History) – बौद्ध की मूर्तियाँ मुख्यतः दो श्रेणियों में विभाजित की जाती हैं-मथुरा शैली और गांधार शैली। मथुरा शैली पूर्णतः भारतीय है। इसके विषय भगवान बुद्ध की प्राचीन पौराणिक कथाओं और जीवन से लिए गए हैं। ये प्रतिमाएँ मध्य भारत में अधिक संख्या में पाई जाती हैं। कुछ मूर्तियाँ गांधार शैली की हैं, जिनमें ईरानी, रोमन और भारतीय मूर्तिकला शैली की विशेषताएँ मिश्रित हैं। इस शैली में विषय तो मथुरा शैली की तरह पूर्णतः भारतीय है लेकिन अभिव्यक्ति की शैली, केश निखार यूनानी और ईरानी है।

इतिहासकारों ने बौद्ध प्रतिमाओं के माध्यम से बौद्ध कालीन भारतीय वस्त्रों, पूजा के तरीकों, बौद्ध धर्म से संबंधित अनेक तरह की बातों को लोगों के सामने रखा है। यह प्रतिमाएँ भारतीय मूर्ति कला की प्रगति और भव्यता को अभिव्यक्त करती हैं। उदाहरण के लिए अजंता में छा गई बुद्ध की एक विशाल प्रतिमा उदासी, गंभीरता, आँखों से निकलते हुए आँसू आदि को प्रकट करती है।

कुछ बुद्ध प्रतिमाएँ विदेशों में मिली हैं। इतिहासकार इससे कुछ निष्कर्ष निकालते हैं जिनमें से निम्नांकित प्रमुख हैं-

  1. बौद्ध धर्म प्रचार-प्रसार चीन, तिब्बत, भूटान, सिक्किम, श्रीलंका, अफगानिस्तान, मध्य एशिया, मध्यपूर्व एशिया के देशों में हुआ।
  2. इन प्रतिमाओं से बौद्ध धर्म के प्रचार क्षेत्र की जानकारी मिलती है।
  3. बौद्ध धर्म की उपस्थिति भारतीय सांस्कृतिक उपनिवेशवाद और अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर सांस्कृतिक आदान-प्रदान होने की पक्की पुष्टि करती है।
  4. भगवान बुद्ध के बाद की अनेक देशों ने बौद्ध शिक्षाओं और बौद्ध ग्रंथों की तरफ जो अपना धर्म आकर्षित किया और बौद्ध मठों और बौद्ध सभाओं में रुचि ली उसे किसी सीमा तक विभिन्न मूर्तियों ने बनने में अहम् भूमिका अदा की ऐसा विद्वान मानते और ऐतिहासिक साक्ष्य इस बात की पुष्टि करते हैं।

प्रश्न 6.
कुषाण कौन थे? कनिष्क प्रथम की उपलब्धियों की विवेचना करें।
अथवा, कनिष्क प्रथम की जीवनी एवं उपलब्धियों का विवरण दें।
उत्तर:
कडफिसस द्वितीय ने 64-78 ई० के मध्य शासन किया। इसके पश्चात् सत्ता कनिष्क ग्रुप के शासकों के हाथों में आयी। कनिष्क प्रथम इस शाखा का सबसे महान शासक हुआ। वह एक साम्राज्य निर्माता, महान योद्धा, कला, धर्म एवं संस्कृति का संरक्षक माना जाता है। बौद्धधर्म के इतिहास में कनिष्क को विशिष्ट स्थान दिया गया है। अशोक के ही समान कनिष्क ने भी बौद्धधर्म को राज्याश्रय दिया। उनके प्रयासों से महायान बौद्धधर्म का मध्य एशिया में प्रसार हुआ।

कनिष्क की तिथि – कनिष्क के राज्यारोहण की तिथि विवादग्रस्त है। भिन्न-भिन्न समय पर विभिन्न विद्वानों ने अलग-अलग तिथियाँ सुझायी हैं। अनेक विद्वान मानते हैं कि कनिष्क ने ही अपने राज्यारोहन के साथ 78 ई० में शक संवत आरम्भ किया। फ्लीट महोदय कनिष्क को विक्रम संवत् का संस्थापक (58 ई० पू०) मानते हैं। अन्य विद्वानों ने कनिष्क के राज्यारोहण की तिथि क्रमश 125 ई०, 144 ई०, 248 ई०, 278 ई० माना है, परन्तु अधिकांश आधुनिक विद्वान यह स्वीकार करते हैं कि कनिष्क 78 ई० में गद्दी पर बैठा। उसने 23 या 24 वर्षों तक शासन किया (101-102 ई०)। उसके राज्यारोहण से ही शक संवत आरम्भ हुआ, जिसे भारत सरकार द्वारा भी व्यवहार में लाया जाता है।

कनिष्क की उपलब्धियाँ (Achievements of Kanishka)

साम्राज्य का विस्तार – कनिष्क एक महान योद्धा एवं साम्राज्य निर्माता के रूप में विख्यात है। उसने कुषाण राज्य का भारत में और अधिक विस्तार किया। कनिष्क के अभिलेखों उसके सिक्कों के प्राप्ति स्थानों एवं कतिपय साहित्यिक ग्रन्थों से उसके सैनिक अभियानों एवं साम्राज्य के विस्तार की जानकारी मिलती है। जिस समय कनिष्क गद्दी पर बैठा उस समय कुषाण साम्राज्य में अफगानिस्तान सिंध का भाग, बैक्ट्रिया एवं पार्थिया भी सम्मिलित थे। भारत में अपने राज्य का विस्तार उसने मगध तक किया कल्हन की राजतरंगिणी से ज्ञात होता है कि उसने कश्मीर पर अधिकार कर कनिष्कपुर नगर (आधुनिक श्रीनगर के निकट काजीपुर) की स्थापना की। तिब्बती साहित्य में यह वर्णित है कि उसने अपनी सेना के साथ साकेत अयोध्या तक आक्रमण किया एवं साकेत के राजा को युद्ध में पराजित किया।

चीनी साहित्य (कल्पनामडितिका का चीनी अनुवाद), अश्वघोष की रचनाओं और श्री धर्मपिटक सम्प्रदायनिदान से विदित होता है कि उसने मगध की राजधानी पाटलिपुत्र पर आक्रमण किया तथा वहाँ से वह प्रसिद्ध बौद्ध-विद्वान अश्वघोष और बुद्ध का भिक्षा-पात्र लेकर अपनी राजधानी पुरुषपर या पेशावर (पाकिस्तान) लौट गया। उसने संभवत: उज्जैन के क्षत्रपों से भी यद्ध कर उन्हें पराजित किया तथा मालवा पर अधिकार कर लिया। कनिष्क ने भारत के बाहर म एशिया में भी युद्ध किया। काशनगर, यारकंद और खोतान पर आधिपत्य जमाने के लिए उसे चीनी सम्राट हो-तो के महत्त्वाकांक्षी सेनापति पान-चाओ से दो बार युद्ध करना पड़ा। पहली बार युद्ध में कनिष्क पराजित हुआ, लेकिन दूसरी (पानचाओ की मृत्यु के पश्चात्) वह चीनी सम्राट पर विजय प्राप्त कर सका। उसने सम्भवतः पार्थिया के राजा को भी युद्ध में पराजित किया। इस प्रकार मौर्य साम्राज्य के पश्चात् पहली बार एक विशाल साम्राज्य की स्थापना हुई जिसमें गंगा, सिन्धु और ऑक्सस की घाटियाँ सम्मिलित थीं।’

कनिष्क की विजयों के परिणामस्वरूप कुषाण साम्राज्य अराल समुद्र से लेकर गंगा की घाटी तक फैल गया।

कनिष्क के अभिलेखों और उसके सिक्कों के प्राप्ति स्थानों से इस विशाल साम्राज्य की सीमा की जानकारी मिलती है। उसके अभिलेख पेशावर, कोशल, सारनाथ, मथुरा, सूई बिहार, जेद्दा तथा मनिक्याला से मिले हैं। साँची से भी एक अभिलेख मिला है। अभिलेखों के आधार पर कनिष्क के साम्राज्य की सीमा, पूर्व में बनारस से लेकर दक्षिण-पश्चिम में बहावलपुर तक निश्चित की गयी है मालवा सहित परन्तु सिक्कों के प्राप्ति स्थानों से पता लगता है कि पूर्व में बनारस के आगे भी उनका साम्राज्य था। बिहार में पाटलिपुत्र, बक्सर, चिरांद और बक्सर की खुदाइयों से कनिष्क के सिक्के मिले हैं जिनसे इन जगहों पर कुषाण आधिपत्य की पुष्टि होती है। कुछ विद्वान दक्षिण भारत और बंगाल पर भी कनिष्क का आधिपत्य स्वीकार करते हैं, परन्तु इसके लिए स्पष्ट प्रमाण उपलब्ध नहीं हैं।

प्रशासनिक व्यवस्था – साम्राज्य-विस्तार के साथ ही कनिष्क ने प्रशासनिक व्यवस्था की तरफ भी ध्यान दिया। विजित क्षेत्रों पर अपना प्रभाव जमाने के लिए उसने गौरवपूर्ण उपाधियाँ धारण कीं। चीनी एवं रोमन सम्राटों की ही तरह उसने देवपुत्र (Son of Heaven) और कैसर (Cassar) की उपाधियाँ धारण की। उस समय में साम्राज्य की दो राजधानियाँ थी-पुरुषपुर और मथुरा। कनिष्क ने प्रशासनिक सुविधा के लिए क्षेत्रीय प्रशासनिक व्यवस्था को लागू किया। सारनाथ से प्राप्त अभिलेख से ज्ञात होता है कि बनारस में खर-पल्लन एवं वनस्पर कनिष्क के महाक्षत्रप एवं क्षत्रप के रूप में शासन करते थे। पश्चिमोत्तर भाग में सेनानायक लल वेसपति एवं लियाक क्षत्रपों के रूप में शासन करते थे।

धार्मिक नीति – कनिष्क की महानता इस बात में भी निहित है कि विदेशी होते हए भी उसने भारतीय धर्म में गहरी अभिरुचि ली। बौद्धधर्म से वह विशेष रूप से प्रभावित था। बौद्ध ग्रन्थों में कनिष्क को एक उत्साही बौद्ध के रूप में चित्रित किया गया। भारतीय इतिहास में बौद्ध धर्म को संरक्षण देने वाले शासकों में अशोक के पश्चात कनिष्क का ही नाम सबसे अधिक विख्यात है। अश्वघोष और मातृचेट जैसे बौद्धों के आकार उसने बौद्धधर्म स्वीकार कर लिया। बौद्ध विद्वान पार्श्व की सलाह पर उसने कश्मीर कुछ विद्वानों के अनुसार जालंधर में बौद्धों की चौथा महासंगीत का आयोजन किया। इस महासभा की अध्यक्षता वसुमित्र ने की। इस सभा का उद्देश्य विभिन्न बौद्ध विद्वानों में प्रचलित मतभेदों को दूर करना था। सभा करीब छह मास तक चली जिसमें लगभग 500 विद्वानों ने भाग लिया। अश्वघोष उस सभा का उपाध्यक्ष था।

इस सभा में बौद्ध – धर्म ग्रन्थों पर विस्तृत टीकाएँ लिखवायी गयीं तथा महाविभाग (बौद्ध-ज्ञानकोष) तैयार किया गया। इस परिषद ने महायान-बौद्धधर्म को मान्यता दी। फलस्वरूप इस समय से महायान की प्रमुख बौद्धधर्म बन गया। कनिष्क ने अशोक की ही तरह बौद्धधर्म (महायान शाखा) के प्रसार के लिए अनेक कदम उठाये। उसने अनेक बौद्ध विहारों, चैत्यों एवं स्तूपों का निर्माण करवाया। उसने पेशावर (पुरुषपुर) में एक बहुत ही भव्य स्तूप का निर्माण करवाया। बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए चीन एवं मध्य एशिया में धर्म-प्रचारक भी भेजे गये। यद्यपि कनिष्क स्वयं बौद्धधर्म को माननेवाला था, परन्तु उसने धार्मिक सहिष्णुता की नीति अपनायी। इसका प्रमाण उसके सिक्कों पर अनुकृत बुद्ध के अतिरिक्त सूर्य, शिव, अग्नि, हेराक्लीज-जैसे भारतीय यूनानी एवं ईरानी देवताओं की आकृतियाँ हैं। कुछ ताम्र सिक्कों में उसे वेदि पर बलिदान चढ़ते हुए भी दिखलाया गया है। इससे स्पष्ट हो जाता है कि कनिष्क अपने राज्य में प्रचलित सभी धर्मों के प्रति सहिष्णु था।

कला एवं साहित्य को संरक्षण – कनिष्क की उदारता से कुषाणकाल में कला एवं साहित्य की भी प्रगति हुई। स्थापत्य और मूर्तिकला का विकास हुआ। कनिष्क ने पुरुषपुर में एक विशाल स्तूप का निर्माण करवाया जिसकी प्रशंसा चीनी यात्री ह्वेनसांग भी करता है। कश्मीर में उसने कनिष्क पर नगर की स्थापना की। तक्षशिला का नया नगर सिरसुख भी कनिष्क के समय में ही बनी। कनिष्कयुगीन स्थापत्य का एक सुन्दर नमूना मथुरा का देवकुल और नाम मन्दिर हैं। महायान बौद्धधर्म के विकास ने मूर्तिकला को भी प्रभावित किया। गांधार और मथुरा की विशिष्ट शैलियों में बुद्ध की सुन्दर मूर्तियाँ बनायी गयीं। कुषाण (कनिष्क) कालीन सिक्के भी कला की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण हैं।

कनिष्क ने विद्वानों को समुचित सम्मान प्रदान किया। उसके दरबार में पार्श्व, वसुमित्र, नागार्जुन जैसे प्रसिद्ध बौद्ध विद्वान एवं दार्शनिक थे।

प्रश्न 7.
समुद्रगुप्त की जीवनी और उपलब्धियों का वर्णन करें।
उत्तर:
समुद्रगुप्त-पराक्रमांक के अध्ययन-स्रोत अनेक हैं। कौशाम्बी के अशोक-स्तम्भ पर समुद्रगुप्त की विस्तृत प्रशस्ति अंकित है। हरिषेण-रचित प्रयाग-प्रशस्ति भी उल्लेखनीय है। समुद्रगुप्त की निम्नलिखित उपलब्धियाँ उल्लेखनीय हैं-

विजय – समुद्रगुप्त का राजनीतिक आदर्श दिग्विजय और भारत का राजनीतिक एकीकरण था। इसके लिए उसने दिग्विजय की योजना बनायी। इस विजय-यात्रा में उसने आर्यावर्त के नौ राजाओं तथा दक्षिणपथ के बारह नरेशों को परास्त किया, मध्यभारत के समस्त जंगल के राजाओं को अपना सेवक बनाया और सीमा प्रदेश के शासकों तथा गणराज्यों को कर देने के लिए बाध्य किया। दूर देशों के नरेशों ने उससे मित्रता स्थापित की। प्रयाग-प्रशस्ति में उसकी विजयों का वर्णन कई स्थलों पर किया गया है, पर इसके आधार पर तिथिक्रम के संबंध में कुछ कहना असंभव है। समुद्रगुप्त के विजय-कार्य का वर्णन निम्नलिखित है-

1. आर्यावर्त की विजय – विन्ध्य तथा हिमालय के बीच के क्षेत्रों को आर्यावर्त कहते थे। समुद्रगुप्त ने समस्त उत्तरी भारत के राजाओं को परास्त कर उनके राज्यों को अपने राज्य में सम्मिलित कर लिया। प्रयाग-प्रशस्ति में आर्यावर्त के नौ राजाओं के नाम इस प्रकार हैं-रुद्रदेव, मतिल, नागदत्त, चन्द्रवर्मन, गणपतिनाग, नागसेन, अच्युत, नन्दि और बलवर्मा। प्रारम्भ में समुद्रगुप्त के दो प्रबल शत्रु थे–पाटलिपुत्र का कोटकुल और मथुरा तथा पद्मावती के नागवंश, जो कोटकुल के सम्बन्धी थे। जिस समय समुद्रगुप्त पाटलिपुत्र पर आक्रमण कर रहा था, संभवतः उसी समय पीछे से अच्युत और नागसेन नामक राजाओं ने उसके राज्य पर आक्रमण कर दिया। समुद्रगुप्त ने पहले अच्युत और नागसेन को बुरी तरह से पराजित किया और तब आसानी से कोटकुल का विनाश कर पाटलिपुत्र में प्रवेश किया। आर्यावर्त में उसे दो बार अपना अभियान चलाना पड़ा। उसने प्रथम अभियान में अच्युत और नागसेन को पराजित किया। दूसरे, आर्यावर्त के युद्ध में उसने शेष राज्यों को बलपूर्वक समाप्त करके अपने साम्राज्य में मिला लिया। प्रथम अभियान में अच्युत, नागसेन और कोटवंशी शासक और दूसरे अभियान में गणपतिनाग, चन्द्रवर्मन, रुद्रदेव आदि शासक पराजित हुए और उनके राज्य गुप्त साम्राज्य में मिला लिये गये।

2. आटविक-नरेश-फ्लीट के अनुसार, आटविक-नरेश गाजीपुर से लेकर जबलपुर तक फैले हुए थे। आटविक राज्यों की संख्या 18 थी। इस क्षेत्र को ‘महाकान्तार’ भी कहा गया है। डॉ. हेमचन्द्र राय चौधरी इसे मध्यभारत का जंगल मानते हैं रामदासजी ने इसे जबलपुर से छोटानागपुर तक का झारखण्ड का क्षेत्र माना है। समुद्रगुप्त ने आटविक के नरेशों को पराजित किया।

3. दक्षिण-भारत-दक्षिण-विजय के सम्बन्ध में इतिहासकारों में बड़ा मतभेद है। के० पी० जायसवाल और प्रो० डूबेल का अनुमान है कि कोलेरू तालाब के किनारे दक्षिणी नरेशों ने समुद्रगुप्त से युद्ध किया। इसका नेतृत्व केरल के मण्टराज और काँची के विष्णुगोप ने किया। पराक्रमी विजेता समुद्रगुप्त ने समस्त दक्षिणी राजाओं को पराजित किया, परन्तु उसने राज्यों को गुप्त साम्राज्य में सम्मिलित नहीं किया। उसने विजित प्रदेश स्थानीय शासकों को लौटा दिया तथा अपने छत्रछाया में उन्हें राज्य करने की आज्ञा दी। दक्षिणापथ के पराजित राजाओं की नामावली इस प्रकार हैं-

कोशल का महेन्द्र – इसमें महाकोशल, विलासपुर, रायपुर और संभलपुर के जिले सम्मिलित थे ।
महाकांतार का व्याघ्रराज – व्याघ्रराज महाकान्तार का शासक था।
केरल का मण्टराज – संभवत: यह प्रदेश गोदावरी तथा कृष्णा के बीच कोलेरूकासार है।
पैण्ठपुर का स्वामीदत्त – पिष्टपुर, महेन्द्रगिरी और कोटूर का शासक स्वामी दत्त था।
एरण्डपल्लक दमन – यह स्थान गंजाम जिले में चिकाकोल के समीप एरण्डपल्ली में है।
कांचेयक विष्णुगोप – विष्णुगोप कांची का शासक था। मद्रास के निकट कांजीपुरम ही कांची है।
आवमुक्तक नीलराज – इसकी राजधानी गोदावरी के निकट पिथुण्डा थी।
वैगेयक हस्तिवर्मा – हस्तिवर्मा वेंगी का राजा था। यह स्थान नेलोर जिले में है।
देवराष्ट्रक कुबेर – राजा कुबेर देवराष्ट्र स्थान का था। यह स्थान विजिगापत्तम जिले का एलमंचि है।
कोस्थलपुरम धनंजय – कोस्थलपुर का शासक धनंजय था। वह स्थान उत्तर आर्काट का कुट्टलुर है।

प्रयाग – प्रशस्ति से ज्ञात होता है कि समुद्रगुप्त आटविक राज्यों को जोतकर मध्यप्रदेश में पहुँचा और वहाँ से महाकोशल तथा महाकान्तार के मार्ग से होता हुआ कलिंग के समीप उसने समस्त नरेशों को पराजित किया। दक्षिण-पूर्व के प्रदेशों को अपने अधीन करते हुए उसने कांची पर आक्रमण किया। दक्षिण में उसका प्रभाव चरराज्य तक पहुँच गया। डॉ. रमाशंकर त्रिपाठी के अनुसार, “वह महाराष्ट्र तथा खानदेश के रास्ते अपनी राजधानी लौट आया।”

दक्षिणी राजाओं के साथ समुद्रगुप्त ने धर्मविजय-नीति का अवलंबन किया। उसने इन राजाओं को पराजित करने के बाद उनका राज्य फिर उन्हीं को लौटा दिया। उन लोगों ने समुद्रगुप्त का आधिपत्य स्वीकार किया और वह उपहार तथा कर ग्रहण करके उत्तर भारत लौटा। दक्षिण के राज्य उसे कर, आज्ञाकरण और प्रणाम द्वारा प्रसन्न करने लगे।

4. प्रत्यन्त राज्यों (सीमावर्ती राज्यों) से सम्बन्ध-दक्षिणी राजाओं को परास्त करने के बाद सीमावर्ती राज्यों की विजय की गयी। इसमें पाँच भिन्न-भिन्न प्रदेशों के शासक और नौ गणराज्य थे। सीमान्त प्रदेशों ने समुद्रगुप्त को सर्वकर (सर्वनकर दान) दिये, उसकी आज्ञाओं का पालन (आज्ञाकरण) किया, स्वयं उपस्थित होकर प्रणाम (प्रणामकरण) किया और उसके सुदृढ़ शासन को पूर्णतः परितुष्ट किया। ऐसे राज्य निम्नलिखित थे-

समतट-पूर्वी सीमा के राज्य (समुद्र तक विस्तीर्ण पूर्वी बंगाल)।
कामरूप-असम का गौहाटी जिला।
डवाक – नौगाँव जिला।
नोपाल और कर्तपुर – कुमायूँ, गढ़वाल और रुहेलखंड के पर्वतीय राज्य। गणराज्यों में निम्नलिखित प्रमुख हैं-
मालवा – अमेर, टोंक, मेवाड़।
आर्जुनायन – अलवर, मूर्वी जयपुर।
यौधेय – जोहियावार।
मद्र – रावी-चिनाव के बीच का प्रदेश।
आभीर – सराष्ट, मध्य भारत।
आर्जुन-मध्य प्रदेश के नरसिंपुर के पास का क्षेत्र।
सनकानिक – भिलसा के पास के क्षेत्र।
खरपरिक – मध्यप्रदेश में दमोह के पास।
उपर्युक्त नौ गणराज्यों ने स्वयं समुद्रगुप्त के प्रति आत्म-समर्पण कर दिया।

विदेशी राज्यों से सम्बन्ध – सिंहल और समुद्रपार के द्वीपों के साथ समुद्रगुप्त ने इन शर्तों पर सेवा और सहयोग की संधियाँ की-आत्मनिवेदन (मैत्री के प्रस्ताव), कन्योपायन (राजमहल में सेवा के लिए कन्याओं का उपहार), दान (स्थानीय वस्तुओं की भेंट) एवं उनकी स्वायत्तता और सुरक्षा (स्वविषयमुक्ति) को प्रमाणित करनेवाली मुद्रांकित सनदों का याचना। विदेशी राज्यों में दैवपुत्रशाही शाहानुशाही, शक, मुरुण्ड, सिंहल और हिन्दमहासागर के असंख्य छोटे-छोटे द्वीप थे। दैवपुत्रशाही शाहानुशाही उत्तर-पश्चिम में शासन करनेवाले कुषाण थे। शक उत्तर-पश्चिम भारत में थे। मुरुण्ड एक कुषाण जाति का नाम था। सिंहल के राजा मेघवर्मन ने समुद्रगुप्त की राजसभा में उपहारसहित एक दूतमंडल भेजकर बोधगया में यात्रियों के ठहरने के लिए एक मंदिर बनवाने की अनुमति मांगी थी और समुद्रगुप्त ने उसे मंजूर भी किया था। फाहियान को जावा में एक सम्पन्न हिन्दू-उपनिवेश देखने को मिला था।

इस प्रकार, समुद्रगुप्त ने एक विस्तृत साम्राज्य का निर्माण किया। उसने आर्यावर्त, दक्षिणापथ, आटविक राज्यों, प्रत्यन्त-नृपति और द्वीपों के नरेशों पर विजय प्राप्त की, लेकिन समस्त विजित देशों को अपने अधिकार में नहीं किया। विभिन्न देशों के प्रति उसकी विभिन्न नीति थी। सुदूर देशों में उसने मैत्री की, दक्षिण के शासकों को अपनी छत्रछाया में रखकर उन्हें स्वतंत्र शासन करने का अधिकार दिया और आर्यावर्त तथा आटविक राज्यों को अपने साम्राज्य में मिला लिया । इस प्रकार उसका साम्राज्य उत्तरी भारत तथा मध्य भारत तक विस्तृत था। बिहार से कांजीवरम् तक, सीमान्त राजाओं और गणराज्यों को पराजित कर उसने विदेशी शासकों के भी दाँत खट्टे किये और द्वीपान्तरों में अपना प्रभाव फैलाया। अपनी दिग्विजय के फलस्वरूप उसने अश्वमेघ-यज्ञ का आयोजन किया। इस यज्ञ में दान देने के लिए उसने सोने के सिक्के भी ढलवाये। सिक्कों पर ‘अश्वमेघ पराक्रम’ लिखा हुआ है।

समुद्रगुप्त के विजय-अभियानों को देखते हुए इतिहासकार विश्व ने उसे भारतीय नेपोलियन कहा है।

प्रश्न 8.
गुप्तकाल को भारतीय इतिहास का स्वर्णयुग क्यों कहा जाता है ?
अथवा, गुप्तों के अधीन भारत की सांस्कृतिक प्रगति की विवेचना करें।
उत्तर:
गुप्तकाल प्राचीन भारतीय इतिहास का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण युग माना जाता है। यह युग सिर्फ राजनीतिक एकता एवं प्रशासन के लिए ही महत्त्वपूर्ण नहीं है बल्कि सांस्कृतिक विकास की दृष्टि से भी यह बहुत ही महत्त्वपूर्ण काल है। इस समय कला, साहित्य, विज्ञान, धर्म की तपूर्व वृद्धि हुई। फलस्वरूप अनेक विद्वानों ने इसे प्राचीनकाल का स्वर्णिम युग (The Golden Age) की संज्ञा दी है। अनेक विद्वानों ने इसकी तुलना यूनान के पेरोक्लीज युग तथा रोम के ऑगस्टस यग से की है।

इसे अभिजात्य यग (Classical Age) भी कहा जाता है। नि:संदेह इस यग में सांस्कतिक प्रगति अधिक हई. परन्त यह प्रगति एक विशेष वर्ग के लिए ही थे साधारण के लिए यह काल सांस्कतिक विकास का यग था. ऐसा नहीं कहा जा स क्योंकि जनसाधारण के लिए इस प्रगति का कोई लाभ नहीं था। फलस्वरूप गप्तकाल को स्वर्णयुग की संज्ञा दे उचित प्रतीत नहीं होता। फिर भी इस तथ्य से इनकार नहीं किया जा सकता कि यह काल सांस्कृतिक विकास का युग था, भले ही इसका लाभ किसी विशेष वर्ग के लिए सुरक्षित रहा हो।

वास्तव में चन्द्रगुप्त प्रथम, समुद्रगुप्त, चन्द्रगुप्त द्वितीय ‘विक्रमादित्य’ आदि जैसे प्रतापी गुप्त शासकों ने देश के लगभग समस्त भाग में एकछत्र राज्य कायम कर राजनीतिक एकता के सूत्र में समस्त भारत को बाँध दिया। पूरे क्षेत्र पर एक जैसी सुदृढ़ प्रशासनिक व्यवस्था कायम की गयी। फलस्वरूप राजनीतिक अस्थिरता एवं अशांति का वातावरण समाप्त हो गया तथा सुख एवं शांति का साम्राज्य व्याप्त हो गया। इस अवस्था ने सांस्कृतिक विकास में काफी मदद पहुँचाई जिसके आधार पर विद्वान गुप्तकाल को प्राचीन भारत का स्वर्ण युग मानते हैं।

गुप्तकाल धार्मिक पुनरुत्थान का युग था। इस समय वैदिक धर्म या ब्राह्मण धर्म पराकाष्ठा पर पहुँच गया। मूर्ति पूजा एवं मंदिरों का निर्माण भी इस युग में प्रारंभ हुआ। जैन एवं बौद्ध मतावलम्बी भी इस युग में थे। धार्मिक जीवन की प्रमुख विशेषता विभिन्न समुदायों में सहिष्णुता की भावना है। यूरोपीय देशों की तरह भारत में धर्म-युद्ध नहीं हुए बल्कि सभी धर्म वाले मिलजुल कर एक-दूसरे के साथ रहते थे। ऐसी बात नहीं है कि इनमें आपसी प्रतिद्वन्द्विता नहीं थी परन्तु वह कभी भी व्यापक रूप नहीं ले सकी। इसी से एक प्रसिद्ध विद्वान ने कहा है- “The Gupta period was an age of catholicity, toleration and a goodwill.”

इस काल में शिक्षा एवं साहित्य की भी अभूतपूर्व प्रगति हुई। अभी भी मौखिक शिक्षण-संस्थान ही प्रचलित थे। विद्यार्थियों को वेद, वेदांत, पुराण, मीमांसा, न्याय, धर्म एवं कानून की शिक्षा मुख्यतया दी जाती थी। गुप्तकालीन अभिलेखों में 14 प्रकार की विद्या का उल्लेख किया गया है। वैज्ञानिक शिक्षा का भी प्रसार इस युग में हुआ। अनेक शिक्षण केन्द्रों की स्थापना गुप्तकाल में हो चुकी थी। पाटलिपुत्र, बल्लभी, उज्जयिनी, पद्मावती, काशी, मथुरा, करा आदि इस समय के प्रख्यात शैक्षणिक केन्द्र थे। नालन्दा विश्वविद्यालय का भी विकास हो रहा था। राजाओं एवं धनी व्यक्तियों द्वारा इन शिक्षण-संस्थानों को धन एवं भूमि दान में दी जाती थी। कुमारगुप्त प्रथम, बुद्धगुप्त, तथागत गुप्त, बालादित्य आदि गुप्त शासकों ने नालन्दा महाविहार को अनुदान दिये।

गुप्तकाल की साहित्यिक प्रगति विशेष रूप से उल्लेखनीय है। इस समय संस्कृत का समुचित विकास हुआ। संस्कृत प्रमुख भाषा बन गई। इसका व्यवहार अभिलेखों एवं मुद्राओं में भी होने लगा। फलस्वरूप यह राजकीय माध्यम बन गयी। संस्कृत में ही काल के प्रमुख विद्वानों एवं कवियों ने रचनाएँ लिखीं। इस युग में धार्मिक एवं धर्म-निरपेक्ष दोनों प्रकार की अनेक रचनाएँ । लिखी गईं। इसी साहित्यिक प्रगति के चलते कुछ विद्वानों में गुप्तकाल को अभिजात्य युग कह कर पुकारा है।

हिन्दू, बौद्ध एवं जैन सभी धर्मों के प्रमुख ग्रन्थों का रचना-काल गुप्त युग है। रामायण एवं महाभारत इसी काल में परिवर्द्धित रूप में लिखे गये। अधिकांश पुराणों को भी संकलित एवं सम्पादित किया गया। नारद स्मृति इस काल की स्मृतियों में प्रमुख है। पंचतंत्र, मानसागर, आर्यभट्टीय, वृहज्जातक, समाकावली, कामंदकीय, नीतिशास्त्र, वात्स्यायन का कामसूत्र आदि की भी रचना काल यही है। बौद्ध एवं जैन साहित्य की भी इस समय प्रगति हुई है। बुद्धघोष ने पट्टकथा का पालि भाषा में अनुवाद किया। असंग, दिङ्नाग एवं वसुबंधु ने दर्शन पर पुस्तकें लिखीं। इस युग के अन्य बौद्ध विद्वानों में कुमारजीव, बुद्धभद्र, धर्मरक्ष, गुपभद्र आदि के नाम विशेष उल्लेखनीय हैं। इन लोगों ने चीन में बौद्धधर्म एवं साहित्य का प्रचार किया। जैन रचनाओं में प्रसिद्ध स्थान जैन-आगम का है। जैन विद्वानों में सिद्धसेन, भद्रबाहु द्वितीय और उमास्वाति प्रमुख है।

गुप्तकाल संस्कृत नाटकों एवं काव्यों की रचना के लिए विश्वविख्यात है। इनमें सर्वोच्च स्थान महाकवि कालिदास का है। मेघदूत उनकी अनुपम काव्यकृति है। इसमें एक प्रेमातुर यक्ष की व्याकुल मनोभावना का बड़ा सजीव चित्रण किया गया है। रघुवंश में राम की विजय का उल्लेख है। ऋतुसंहार में विभिन्न ऋतुओं का शृंगारिक वर्णन है। कालिदास की सर्वोत्तम कृति अभिज्ञानशाकुन्तलम् है। कालिदास के अतिरिक्त शुद्रक एवं विशाखदत्त इस युग के दूसरे महान् नाटककार हुए। शूद्रक ने मृच्छकटिक एवं विशाखदत्त ने मुद्राराक्षस एवं देवी चन्द्रगुप्त की रचना की। स्वप्नवासवदत्तम भी इसी समय लिखी गई। इस प्रकार संस्कृत साहित्य की प्रगति के दृष्टिकोण से यह काल अपूर्व है।

दर्शन : गुप्त युग दार्शनिक विचारधारा के प्रचार-प्रसार के लिए भी प्रसिद्ध है। षड्दर्शन का इस समय काफी प्रचार हुआ एवं यह भारतीय दर्शन की मुख्य विशेषता बन गयी है। भारतीय दर्शन के इतिहास में यह युग भाष्य रचनाकाल के रूप में प्रसिद्ध है। अनेक दार्शनिक ग्रंथों की रचना इस समय हुई। इनमें सांख्यशास्त्र, परमार्थ सप्तशती, न्याय, भाष्य, न्यायवर्तिका, पदार्थ-संग्रह इत्यादि प्रसिद्ध ग्रंथ है। जैमिनी-सूत्र, पूर्व-मीमांसा दर्शन, दर्शन के सबसे महत्त्वपूर्ण ग्रंथ हैं।

विज्ञान के क्षेत्र में गुप्तों की देन बहुमूल्य है। इस समय गणित, ज्योतिष, चिकित्सा, रसायन, भौतिकी आदि प्रत्येक क्षेत्र में उल्लेखनीय प्रगति हुई। इस युग के सबसे बड़े वैज्ञानिक आर्यभट्ट माने जाते हैं। इनकी प्रसिद्ध पुस्तक आर्यभट्टीय है। इन्होंने अंकगणित, बीजगणित, ज्यामिति एवं त्रिकोणमिति के क्षेत्र में अन्वेषण किये। इन्होंने यह भी प्रमाणित कर दिया कि पृथ्वी ही सूर्य की परिक्रमा करती है तथा पृथ्वी एवं चन्द्रमा की बदलती हुई परिस्थितियों के कारण ग्रहण होता है। बाराहमिहिर इस युग के सबसे बड़े ज्योतिषी थे। इनकी प्रसिद्ध पुस्तक वृहदसहिता है।

बाराहमिहिर के ग्रन्थों में यवन सिद्धांतों का सामंजस्य मिलता है। कल्याणवर्मन ने फलित ज्योतिष पर जवली नाम का ग्रन्थ की रचना की। प्रसिद्ध बौद्ध विद्वान नागार्जुन ने रस चिकित्सा का आविष्कार किया। पारद (पारा) का आविष्कार भी इसी काल में हुआ था। उसके भस्म करने की क्रिया का आविष्कार कर नागार्जुन ने आयुर्वेद तथा रसायन शास्त्र के इतिहास में एक नये युग का आरंभ किया। महान् वैद्य धन्वन्तरि भी संभवत: गुप्तकाल में ही हुआ था। धातु विज्ञान एवं शिल्प कला की भी इस समय में प्रगति हुई। मेहरौली का लौह स्तम्भ गुप्तकालीन धातु विज्ञान की प्रगति का सबसे बढ़िया नमूना पेश करता है।

कला : कला की जितनी प्रगति इस समय हुई वह वास्तव में सराहनीय है। स्थानीय मूर्तिकला एवं चित्रकला की इस समय समुचित प्रगति हुई। मुद्रणकला में भी प्रगति हुई। गुप्त शासकों ने सोने के सिक्के भी काफी संख्या में ढलवाये। इन पर विभिन्न आकृतियाँ एवं लेख उत्कीर्ण किये जाते थे। इस समय मुद्रण-कला काफी उन्नत अवस्था में थी। संगीत, नाटक, अभिनय एवं नृत्य कला का भी विकास हुआ।

शहरी जीवन के विकास ने ललित कलाओं की प्रगति में सहयोग दिया। पत्थर पर लोहे के विशाल स्तम्भ भी इस युग में बने। लौह-स्तम्भ में राजा चन्द्र के मेहरौली स्तम्भ का उल्लेख किया जा सकता है। हजारों वर्ष तक धूप एवं वर्षा झेलने के बावजूद इसमें आज तक जंग नहीं लगा। गुप्त राजाओं ने अनेक स्तम्भ बनवाये जिनका प्रयोग अभिलेखों को उत्कीर्ण कराने के लिए किया गया। ऐसे स्तम्भ अनेक जगहों पर पाये गये हैं।

गुप्तयुगीन वास्तुकला एवं मूर्तिकला धर्म प्रभावित थी। वास्तुकला के क्षेत्र में स्तूपों, चैत्यों, गुफाओं, मंदिरों आदि का निर्माण हुआ। मंदिरों के निर्माण में गुप्तकाल में विशेष प्रगति हुई। इस युग में प्रमुख मंदिरों में साँची, लाघखान, देवगढ़ एवं भुमरा के मंदिर प्रसिद्ध है। इन सबमें देवगढ़ का विष्णु मंदिर महत्त्वपूर्ण है। इस समय में मंदिरों की मुख्य विशेषता यह थी कि इनमें केवल देवस्थान बनाये जाते थे। उपासकों के लिए हॉल या प्रांगण की व्यवस्था इन मंदिरों में नहीं थी। आरंभ में कलशों का भी निर्माण नहीं हुआ था। अजन्ता के कुछ गुफा मंदिर भी गुप्तकाल में ही बने थे। बौद्ध वास्तुकला के उदाहरण अमरावती, नागार्जुन कोण्डा, राजगृह, नालन्दा एवं सारनाथ में पाये जाते हैं।

मंदिर – निर्माण ने मूर्तिकला को भी प्रश्रय दिया। गुप्तकाल का स्वतंत्र रूप से विकास हुआ। इस पर विदेशी प्रभाव नहीं था। इस समय मथुरा, सारनाथ एवं पाटलिपुत्र मूर्तिकला के प्रमुख केन्द्र थे। धर्म का मूर्तिकला के विकास पर गहरा प्रभाव था। देवी-देवताओं की विभिन्न मूर्तियाँ इस समय बनायी गईं जिनमें सबसे प्रमुख विष्णु को विभिन्न अवतारों में दिखलाया गया। शिव को भी विभिन्न रूपों में प्रस्तुत किया गया। एकमुखी शिव, चतुर्मुखी शिव और अर्द्धनारीश्वर शिव की मूर्तियाँ गप्तकाल की विशिष्ट उपलब्धियाँ हैं। बौद्ध प्रतिमाएँ भी काफी बडी संख्या में बनीं। इनमें सारनाथ से प्राप्त बुद्ध की मूर्ति एवं सुल्तानगंज की ताम्बे की मूर्तियाँ गुप्तकालीन मूर्तिकला का अनूठा उदाहरण पेश करती हैं। जैन तीर्थंकरों की भी कुछ मूर्तियाँ इस समय बनीं।

चित्रकला भी उन्नत अवस्था में थी। गुप्तकालीन चित्रकला के नमूने अजन्ता, ग्वालियर की बाघ-गुफाओं एवं बादामी की गुफ़ाओं में अभी भी सुरक्षित हैं। अजन्ता की गुप्तयुगीन गुफाओं में गौतम बुद्ध के माहभिनिष्क्रमण का दृश्य बड़ा ही सजीव है। इसके अतिरिक्त इनमें बुद्ध एवं बोधि सत्वों के चित्र, जातक कथाएँ, मानव एवं पशु-पक्षी, देवी-देवता आदि के चित्र भी बड़े ही अच्छे एवं मनमोहक हैं। इन चित्रों में विशषया उच्चवर्गीय जीवन की झलक देखने को मिलती है। बाघ एवं बादामी की गफाओं के चित्र भी काफी सन्दर हैं।

इस प्रकार हम देखते हैं कि गुप्त युग में सभ्यता एवं संस्कृति का चतुर्दिक विकास हुआ। इसी कारण गुप्त युग को हिन्दू-पुनर्जागरण का काल भी कहा जाता है, परन्तु कई आधनिक विद्वान इससे सहमत नहीं हैं। वास्तव में, इस समय कला के विकास पर बौद्ध धर्म की स्पष्ट छाप देखी जा सकती है। इसी के प्रभाव में आकर इस युग में कला का विकास हुआ, उसी प्रकार ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्र में भी विदेशी प्रभाव परिलक्षित होता है। उदाहरणस्वरूप “वारहमिहिर के सिद्धांत रोमन एवं सिकन्दरिया के कालजयी ज्योतिर्विद पाल की स्थापनाओं की छाप है।” इस प्रकार “वैष्णव मत एवं शैव मत से भी किसी धार्मिक पुनरुत्थान का बोध नहीं होता है।”

कालिदास के ग्रंथों से बौद्धिक पुनर्जारण अथवा साहित्यिक कृतित्व के पुनरुत्थान का संकेत नहीं मिलता है। प्रो. डी० एन० झा के मत में “जिस हिन्दू पुनर्जागरण का बहुत प्रचार किया जाता है, वस्तुतः कोई पुनर्जागरण नहीं था, बल्कि वह बहुत अंशों में हिन्दुत्व का द्योतक था।” प्रो० डी. एन झा की यह मान्यता है कि “गुप्तकाल में राष्ट्रीयता का पुनरुत्थान नहीं हुआ, बल्कि राष्ट्रीयता ने ही गुप्तकाल को नवजीवन प्रदान किया। गुप्तकाल को स्वर्णयुग की संज्ञा देना उचित नहीं है।” फिर भी यह तो मानना ही होगा कि इस युग में कला एवं साहित्य की काफी अधिक प्रगति हुई।

प्रश्न 9.
गुप्त साम्राज्य के पतन के कारणों की चर्चा करें।
अथवा, गुप्त साम्राज्य के पतन के क्या कारण थे ?
उत्तर:
गुप्त साम्राज्य के पतन के निम्नलिखित कारण थे-
1. अयोग्य उत्तराधिकारी (Weak successors) – विशाल गुप्त साम्राज्य के संभालने के लिये समुद्रगुप्त के बाद कोई सबल शासक न हुआ; अत: केंद्रीय सत्ता के कमजोर होते ही कई राज्यों ने अपनी स्वतंत्रता घोषित कर दी।

2. उत्तराधिकारी के नियम का अभाव (Lack of the law of succession) – उत्तराधिकार नियम के अभाव के कारण सम्राट के मरते ही गृह युद्ध जैसी स्थिति उत्पन्न हो जाती थी अत: जो शक्तिशाली होता था, वही राजगद्दी प्राप्त कर लेता था।

3. सीमावर्ती क्षेत्रों की अवहेलना (Negligence of the frontiers) – चन्द्रगुप्त द्वितीय के पश्चात् किसी भी गुप्त शासक ने सीमावर्ती क्षेत्रों पर ध्यान नहीं दिया। अतः विदेशी आक्रमणकारी बिना रोक टोक भारत में प्रवेश कर लेते थे।

4. बौद्ध धर्म का प्रभाव (Effect of Buddhism) – बौद्ध धर्म के प्रभाव ने राजाओं को अहिंसावादी बना दिया। दूसरे शब्दों में सेना बौद्ध धर्म के प्रभाव के कारण पंगु हो गई। अत: जिनजिन गुप्त शासकों ने बौद्ध धर्म ग्रहण किया, मानो उन्होंने शत्रुओं को बुलावा दिया था।

5. विशाल साम्राज्य (Vast Empire) – गुप्त साम्राज्य बहुत विशाल था। उस समय यातायात के साधन नहीं के बराबर थे, अत: इतने बड़े राज्य पर नियंत्रण रखना कठिन था। इस प्रकार गुप्त साम्राज्य की विशालता भी पतन का एक कारण बनी।

6. सैनिक दुर्बलता (Military weakness) – यद्यपि गुप्त काल सुख-समृद्धि का युग था, परंतु बहुत लंबे समय तक युद्ध न होने से सेना सुख-प्रिय, विलासी एवं आलसी हो गई, फलस्वरूप सेना शक्तिहीन हो गई।

7. आंतरिक विद्रोह (Internal Revolts) – जब गुप्त साम्राज्य शक्तिशाली थे तो उनके भारतीय राजाओं ने उनकी अधीनता स्वीकार कर ली थी, परंतु गुप्त सम्राटों की सैनिक शक्ति कमजोर पड़ गई, तो यह शासक विद्रोह करने लगी। मालवा के राजा यशोधवर्मन तथा वाकाटक के र ने विद्रोह करके स्वयं को स्वतंत्र कर लिया।

8. हूणों के आक्रमण (Attack of Hunas) – गुप्त साम्राज्य के पतन का मुख्य कारण हूण जाति के आक्रमण थे। ये आक्रमण चन्द्रगप्त विक्रमादित्य की मृत्यु के बाद ही प्रारंभ हो गये थे। डॉ. वीसेन्ट स्मिथ के अनुसार ‘पांचवीं और छठी शताब्दी के हूणों के आक्रमणों ने गुप्त साम्राज्य को छिन्न-भिन्न कर दिया और इस प्रकार कई नये राज्यों के जन्म के लिये क्षेत्र तैयार कर दिया।’

9. आर्थिक संकट (Economic Crisis) – धन की कमी भी गुप्त साम्राज्य के पतन का कारण बनी। स्कंदगुप्त को पुष्यमित्र की शुंग जाति और हूण जाति से बहुत से युद्ध करने पड़े। इससे सरकारी खजाना खाली हो गया। इस प्रकार आर्थिक कठिनाइयाँ बढ़ जाने से गुप्त साम्राज्य छिन्न-भिन्न हो गया।

प्रश्न 10.
अलबरूनी द्वारा दिए गए उसके तत्कालीन भारत के विवरण को अपने शब्दों में संक्षेप में दीजिए।
उत्तर:
अलबरूनी द्वारा दिए गए भारत के बारे में विवरण का सारांश-महमूद गजनवी के आक्रमणों के वक्त भारत में आए यात्री एवं इतिहासकार अलबरूनी ने भारत के बारे में जो वर्णन लिखा है, वह संक्षेप में नीचे लिखा जा रहा है-
1. सामाजिक स्थिति (Social Condition) – अलबिरूनी लिखता है कि सारा हिन्दू समाज जाति प्रथा के कड़े बन्धनों में जकड़ा हुआ था। उस समय बाल-विवाह और सती प्रथा की कुप्रथायें थीं। विधवाओं को पुनः विवाह करने की आज्ञा नहीं थी।

2. धार्मिक स्थिति (Religious Condition) – उसके वर्णन के अनुसार सारे देश में मूर्ति पूजा प्रचलित थी। लोग मंदिरों को बहुत दान देते थे। मंदिरों में बहुत-सा धन जमा था। साधारण जनता अनेक देवी-देवताओं में विश्वास रखती थी जबकि सुशिक्षित एवं विद्वान केवल एक ईश्वर में विश्वास रखते थे।

3. राजनीतिक दशा (Political Condition) – सारा देश छोटे-छोटे राज्यों में बँटा हुआ था। उसमें से कन्नौज, मालवा, गुजरात, सिंध, कश्मीर तथा बंगाल अधिक प्रसिद्ध थे। इनमें राष्ट्रीय भावना की कमी थी। ये आपस में ईर्ष्या के कारण सदैव लड़ते रहते थे। .

4. न्याय व्यवस्था (Judiciary) – फौजदारी कानून नरम थे। ब्राह्मणों को मृत्यु दण्ड नहीं दिया जाता था। केवल बार-बार अपराध करने वाले के ही हाथ-पैर काट दिए जाते थे।

5. भारतीय दर्शन (Indian Philosophy) – भारतीय दर्शन से अल-बिरूनी बहुत प्रभावित हुआ। उसने भगवद्गीता और उपनिषदों के ऊँचे दार्शनिक विचारों की मुक्त कण्ठ से सराहना की है।

6. ऐतिहासिक ज्ञान (Historical Knowledge) – इतिहास लिखने के बारे में वह लिखता है कि “भारतीयों को ऐतिहासिक घटनाओं को तिथि के अनुसार लिखने के बारे में बहुत कम ज्ञान है और जब उनको सूचना के लिए अधिक दबाया जाए तो वे कथा-कहानी शुरू कर देते हैं।” इस वर्णन से स्पष्ट है कि हमें उस काल तक इतिहास लिखने का वैज्ञानिक ज्ञान प्राप्त नहीं हुआ था।

7. सामान्य स्वभाव (General Nature) – भारतीय झूठा अभिमान करते हैं तथा अपना ज्ञान दूसरों को देने को तैयार नहीं होते हैं। उसने लिखा है कि हिन्दू अपना ज्ञान दूसरों को देने में बड़ी कंजूसी करते हैं, वे अपनी जाति के लोगों को बड़ी कठिनता से ज्ञान देते हैं, विदेशियों की बात तो दूर रही। हिन्दू यह समझते हैं कि उसके जैसा देश नहीं है, उनके जैसा संसार में कोई धर्म नहीं है. उनके जैसा किसी के पास ज्ञान नहीं है…..।”

सारांश यह है कि अल-बिरूनी के वर्णन से तत्कालीन भारत के बारे में विस्तृत जानकारी मिलती है।

प्रश्न 11.
इल्तुतमिश की जीवनी और उपलब्धियों का वर्णन करें।
उत्तर:
इल्तुतमिश इलबरी जाति का तुर्क था। उसका पिता इलक खाँ एक कबायली सरदार था। उसका राजनीतिक जीवन ऐबक के दास के रूप में आरंभ हुआ लेकिन मुहम्मद गोरी की अनुशंसा पर ऐबक ने उसे दास्ता से मुक्त कर दिया था। आगे चलकर ऐबक ने अपनी एक बेटी का विवाह इल्तुतमिश के साथ कर दिया। दिल्ली का शासक बनने पर ऐबक ने इल्तुतमिश को बदायूँ का प्रशासन नियुक्त किया जो कि उस समय में एक महत्त्वपूर्ण पद था। बदायूँ में ही इल्तुतमिश को आरामशाह के विरोधियों के द्वारा गद्दी पर अधिकार करने का निमंत्रण प्राप्त हुआ।

दिल्ली की सल्तनत के प्रारंभिक तुर्क सुल्तानों में इल्तुतमिश का व्यक्तित्व महत्त्वपूर्ण और प्रभावशाली है। अनिश्चित राजनीतिक परिस्थितियों में और अत्यन्त गंभीर संकट के काल में इल्तुतमिश दिल्ली का शासक बना था। अपनी योग्यता और प्रतिभा के बल पर उसने दिल्ली सल्तनत को सुदृढ़ एवं शक्तिशाली रूप प्रदान किया। इल्तुतमिश की उपलब्धियों को समझने के लिए अथवा दिल्ली सल्तनत के प्रति उसके योगदान का मूल्यांकन करने के लिए यह आवश्यक है कि उन समस्याओं की ओर ध्यान दिया जाय तो इल्तुतमिश को राज्यारोहण के समय प्रस्तुत थीं।

इल्तुतमिश को अत्यन्त कठिन परिस्थितियों का सामना करना था। उसके पूर्व ऐबक ने अपने संक्षिप्त शासन काल में दिल्ली सल्तनत की स्थापना का काम आरम्भ तो किया, किन्तु उसे पूरा करने में असमर्थ रहा। इल्तुतमिश के लिए यह अनिवार्य था कि इस नवस्थापित राज्य को सुदृढ़ता प्रदान करे और इसके लिए एक कुशल प्रशासनिक व्यवस्था का निर्माण करे। किन्तु इन दोनों कामों के लिए पहले यह आवश्यक था कि इल्तुतमिश की अपनी स्थिति सुदृढ़ हो। इल्तुतमिश के समक्ष निम्नलिखित मुख्य समस्याएँ थीं-

  1. विरोधी सामंतों, विशेषकर कुत्बी और मुइज्जी सामंतों का दमन।
  2. अपने प्रतिद्वन्द्वियों यल्दोज और कुबाचा का दमन।
  3. राजपूताना और बंगाल के उपद्रवों और विद्रोहों का दमन।
  4. मंगोल आक्रमण से सल्तनत की रक्षा।
  5. सल्तनत के लिए प्रशासनिक व्यवस्था का निर्माण।

उसके 25 वर्षीय शासनकाल में इन सभी समस्याओं का समाधान हुआ। इस काल में निम्न चरणों में विभक्त किया जा सकता है। प्रथम चरण 1210 से 1220 तक रहा जबकि उसने अपने विरोधियों एवं प्रतिद्वन्द्वियों का दमन किया। सर्वप्रथम उसने उन सामन्तों की शक्ति को कुचला जो गद्दी पर उसके अधिकार का विरोध कर रहे थे। इसमें अधिकतर कुत्बी और मुइज्जी सामंत थे जो इस आधार पर इल्तुतमिश के विरुद्ध हो रहे थे कि वह एक दास का भी दास है, अतः राजगद्दी पर उसका अधिकार अनुचित है। इल्तुतमिश ने सर्वप्रथम इन सामंतों को युद्ध में पराजित किया। इसके बाद उसने क्रमिक रूप से सभी महत्त्वपूर्ण पदों से इन सामंतों को चित किया। उसने अपने विश्वसनीय 40 दासों का एक नया दल संगठित किया जो ‘चालीसा’ दल कहा जाता है। इस दल के सदस्यों को सभी बड़े पदों पर नियुक्त करके इल्तुतमिश ने अपनी स्थिति सुदृढ़ कर ली।

इल्तुतमिश के प्रतिद्वन्द्वियों में सर्वप्रथम यल्दोज के साथ उसका संघर्ष हुआ। यल्दोज गजनी का शासक था. और दिल्ली पर भी अपनी सम्प्रभुता का दावा करता था। यद्यपि उसे ऐबक ने पराजित किया था, परन्तु इल्तुतमिश की आरंभिक कठिनाइयों को देखते हुए यल्दोज ने पुन: अपना दाबा दोहराया था। 1215-16 के बीच इल्तुतमिश ने यल्दोज को पुनः पराजित किया और इस समस्या का समाधान किया। यह एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण उपलब्धि थी क्योंकि उसके साथ ही दिल्ली सल्तनत का गजनी के साथ सम्पर्क सदा के लिए टूट गया और सल्तनत का विकास एक स्वतंत्र उत्तर भारतीय राज्य के रूप में हुआ जिसको मध्य एशियाई राजनीति से कोई सम्बन्ध नहीं था। इस समय उसने दूसरे विरोधी कुबाचा के विरुद्ध भी कार्यवाही की किन्तु उसे पूर्ण सफलता नहीं मिली।

दूसरा चरण 1212 से 28 के बीच है। इस काल का आरंभ एक अत्यन्त गंभीर संकट के साथ हुआ जब महान मंगलो विजेता चंगेज खाँ अपनी सेना के साथ दिल्ली सल्तनत की सीमा पर आ पहुँचा। चंगेज खाँ इस ओर ख्वारिज्म के राजकुमार मंगबरनी का पीछा करता हुआ आया था जो कि इल्तुतमिश से मंगोलों के विरुद्ध सहायता का आकांक्षी था। इल्तुतमिश ने कूटनीति से काम लेते हुए मंगबरनी को कोई सहायता नहीं दी। उसके आचरण से चंगेज खाँ संतुष्ट रहा और उसने भी दिल्ली सल्तनत पर आक्रमण नहीं किया। इस प्रकार यह भयंकर संकट आसानी से टल गया। इसका एक अन्य लाभ इल्तुतमिश को हुआ। मंगबरनी ने सिन्धु नदी के किनारे के क्षेत्र में कुबाचा की शक्ति को बहुत कमजोर कर दिया था, अत: इसका लाभ उठाकर कुबाचा पर इल्तुतमिश ने चढ़ाई कर दी और 1224 में कुबाचा को पराजित करके उसने सिन्ध और मुल्तान को भी दिल्ली सल्तनत में मिला लिया। इस प्रकार दिल्ली सल्तनत के क्षेत्रों में पहली बार उल्लेखनीय विस्तार हुआ।

इस अवधि में पूर्वी सीमा की समस्या पर भी इल्तुतमिश ने ध्यान दिया। बंगाल का प्रान्त ऐबक के समय में भी स्वतंत्र होने का प्रयास कर चुका था। इल्तुतमिश की आरंभिक समस्याओं का लाभ उठाकर बंगाल में हेमामुद्दीन इवाज ने स्वतंत्र सत्ता ग्रहण कर ली थी और बिहार, उड़ीसा एवं कामरूप के क्षेत्रों में अपनी शक्ति का विस्तार कर लिया था। इल्तुतमिश ने बंगाल पर दो सैनिक अभियान किये। 1227 तथा 1229 के अभियानों के फलस्वरूप बंगाल में स्थित लखनौती का राज्य दिल्ली के नियंत्रण में आ गया और बिहार के क्षेत्र बंगाल से अलग करके दिल्ली सल्तनत में मिला लिया गया। इस प्रकार अपने राज्य की पूर्वी सीमा को इल्तुतमिश ने सुदृढ़ एवं सुरक्षित बना दिया।

तीसरा चरण 1229 से आरंभ हुआ और 1236 में समाप्त हुआ। इसमें इल्तुतमिश ने राजपूताना की समस्या का समाधान किया और प्रशासन तंत्र को सुव्यवस्थित किया। राजपूताना का क्षेत्र ऐबक के शासन काल से ही विद्रोह और उपद्रवों का केन्द्र बना हुआ था। वहाँ राजपूत सरदार तुर्की की सत्ता का अंत करने के लिए संघर्ष छेड़े हुए थे। अपने संक्षिप्त शासन काल में ऐबक इस समस्या का समाधान करने में असमर्थ रहा था, अतः इल्तुतमिश ने राजपूताना में कार्यवाही आरंभ की। उसका पहला सफल अभियान 1226 में रणथम्भौर पर अधिकार के साथ परा हआ। अगले पाँच वर्षों में इल्तुतमिश ने इस क्षेत्र में कई अभियान किये और अनेक क्षेत्रों को जीता। जिसमें अजमेर, नागौर और थंगनीर के नाम उल्लेखनीय हैं। अंतिम महत्त्वपूर्ण अभियान 1231 में ग्वालियर के विरुद्ध हुआ। इस प्रकार इल्तुतमिश ने उत्तरी और मध्य भारत के राजपूत शासकों को अपने नियंत्रण में रखा।

उपलब्धियाँ – एक विजेता और सेना नायक के रूप में इल्तुतमिश की उपलब्धियाँ अत्यन्त प्रभावशाली हैं। उसने एक असंगठित और निर्बल राज्य को न केवल शक्ति और सुदृढ़ता प्रदान की बल्कि उसके क्षेत्रों का भी पर्याप्त विस्तार किया और अपने विरोधियों की शक्तियों को कुचल डाला। इसमें कोई संदेह नहीं कि दिल्ली सल्तनत के आरंभिक सुदृढीकरण का काम इल्तुतमिश द्वारा ही संभव हुआ। किन्तु इल्तुतमिश मात्र एक विजेता ही नहीं था बल्कि एक योग्य प्रशासक भी था। उसी ने दिल्ली सल्तनत की प्रशासनिक व्यवस्था के निर्माण का काम आरंभ किया। इसके लिए सर्वप्रथम उसने 1229 में बगदाद के अब्बासी खलीफा से एक मंशूर अथवा स्वीकृति पत्र प्राप्त किया जिसके द्वारा उसे दिल्ली सल्तनत के सुल्तान के रूप में मान्यता प्राप्त हुई। यह एक महत्त्वपूर्ण घटना थी क्योंकि अभी तक दिल्ली सल्तनत के स्वतंत्र अस्तित्व को वैधानिक रूप से स्वीकृति प्राप्त नहीं हो सकी थी। खलीफा के स्वीकृति पत्र से इल्तुतमिश की स्थिति और भी सुदृढ़ हुई। सुल्तान के रूप में अब उसकी सत्ता का विरोध उसकी मुस्लिम प्रजा द्वारा संभव नहीं रही। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर इस स्वीकृति द्वारा इल्तुतमिश एवं दिल्ली सल्तनत की स्वतंत्र सत्ता को मान्यता प्राप्त हो गयी।

आंतरिक प्रशासन के क्षेत्र में इल्तुतमिश का योगदान तीन क्षेत्रों में उल्लेखनीय है, इकतादारी व्यवस्था, मुद्रा प्रणाली एवं सैन्य संगठन।

इल्तुतमिश ने अपने राज्य को अनेक छोटे-छोटे भू-खंडों में विभक्त कर दिया जिन्हें इकता कहते हैं। इसके अधिकारी इकतादार कहलाते थे। बड़े क्षेत्रों के इकतादार प्रान्तीय गवर्नर के रूप में थे जो कानून और व्यवस्था की देख-रेख, लगान की वसूली, मुकदमों की सुनवाई और सैनिक सेवा प्रदान करने के कार्य करते थे। छोटे क्षेत्रों के इकतादार केवल सैनिक सेवा प्रदान करते थे। दोनों श्रेणियों के इकतादारों को वेतन के रूप में अपने इकता से लगान वसूलने का अधिकार था। इल्तुतमिश ने इस व्यवस्था का उपयोग उत्तर भारत की सामंतवादी प्रथा को समाप्त करने एवं केन्द्रीय प्रशासन को मजबूत बनाने के लिए किया। सामंतवादी प्रथा के विपरीत इल्तुतमिश ने समय-समय पर इकतादारों का स्थानान्तरण करके उन्हें केन्द्रीय प्रशासन के नियंत्रण में रखने का सफल प्रयास किया। इसके अतिरिक्त जिन राजपूत शासकों ने दिल्ली सल्तनत की अधीनता स्वीकार कर ली थी उन्हें भी नजराना देने के बदले उनके राज्य लौटा दिये गये।

इल्तुतमिश ने अरबी प्रथा के आधार पर एक नई मुद्रा-प्रणाली भारत में लागू की। इसमें ताम्बे के सिक्के अथवा पीतल और चाँदी के सिक्कों अथवा टंकों को प्रचलित किया गया। इन सिक्कों पर इल्तुतमिश का नाम अरबी में अंकित था। इन नये सिक्कों का प्रचलन भारत में तुर्कों की सत्ता की सुदृढ़ता का प्रतीक था।

इल्तुतमिश के अधीन किसी केन्द्रीय सेना का प्रमाण नहीं मिलता। उसने शाही अंगरक्षकों अथवा सैनिकों का एक दल बनाया था जो युद्ध के समय शाही सेना के रूप में ही काम करता था। इस व्यवस्था से वह सैनिक शक्ति के मामले में इकतादारों के ऊपर पूरी तरह निर्भर रहने से मुक्त हो गया। आगे चलकर बलवन ने इसी आधारशिला पर सैन्य संगठन का निर्माण किया।

इल्तुतमिश विजेता और प्रशासक के रूप में महान तो था ही, कला और संस्कृति का पोषक भी था। उसके शासन के समय में दिल्ली का नगर एक प्रमुख सांस्कृतिक केन्द्र के रूप में विकसित हुआ जहाँ मध्य एशिया से आने वाले शरणार्थी कलाकारों, शिल्पकारों और विद्वानों को प्रश्रय मिला। इल्तुतमिश के दरबार में प्रसिद्ध इतिहासकार, मिनहाजेसिराज को प्रश्रय मिला जिसकी रचना तबकात-ए-नासीरी से भारत में तुर्की शासन के निर्माण और आरंभिक इतिहास का पता चलता है। प्रसिद्ध विद्वान् जुनैदी को इल्तुतमिश ने अपना प्रधानमंत्री नियुक्त किया। मध्य एशिया से आने वाले मजदूरों के योगदान से इल्तुतमिश ने अनेक भव्य इमारतों का निर्माण कराया जिनमें कुतुबमीनार, राजकुमार महमूद और इल्तुतमिश के मकबरे और मदरसे आज भी देखे जा सकते हैं।

निष्कर्ष में यह कहा जा सकता है कि भारत में तुर्कों की सत्ता के विकास में इल्तुतमिश का उल्लेखनीय योगदान है। उसने नवजात दिल्ली सल्तनत को न केवल विघटन से बचाया बल्कि उसे एक सुदृढ़ अस्तित्व प्रदान किया और उसके क्षेत्रों का विस्तार किया। उसने मंगोल आक्रमण के भीषण संकट से दिल्ली सल्तनत को सुरक्षित रखा। ऐबक द्वारा स्थापित दिल्ली सल्तनत को इसने सुदृढ़ एवं सुरक्षित बनाया।

Bihar Board 12th Geography Objective Important Questions Part 4

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Bihar Board 12th Geography Objective Important Questions Part 4

प्रश्न 1.
भारत में सबसे पहले कोयले की खुदाई कब प्रारम्भ हुई ?
(a) 1866
(b) 1814
(c) 1912
(d) 1810
उत्तर:
(b) 1814

प्रश्न 2.
एल्युमिनियम बनाने के लिए कच्चे माल के रूप में किस खनिज अयस्क का उपयोग किया जाता है ?
(a) बॉक्साइट
(b) मैंगनीज
(c) डोमोलाइट
(d) जस्ता
उत्तर:
(a) बॉक्साइट

प्रश्न 3.
भारत में मैंगनीज का उत्पादन कितना है ?
(a) 30 लाख टन
(b) 18 लाख टन
(c) 20 लाख टन
(d) 25 लाख टन
उत्तर:
(b) 18 लाख टन

प्रश्न 4.
मुम्बई हाई क्षेत्र जहाँ खनिज तेल मिलता है अरब सागर में बन्दरगाह से कितनी दूरी पर है ?
(a) 130 किमी०
(b) 120 किमी०
(c) 110 किमी०
(d) 150 किमी०
उत्तर:
(d) 150 किमी०

प्रश्न 5.
निम्न में से कौन-सी रोपण फसल नहीं है ?
(a) कॉफी
(b) गन्ना
(c) गेहूँ
(d) रबड़
उत्तर:
(c) गेहूँ

प्रश्न 6.
निम्न देशों में से किस देश में सहकारी कृषि का सफल परीक्षण किया गया है ?
(a) रूस
(b) डेनमार्क
(c) भारत
(d) नीदरलैंड
उत्तर:
(a) रूस

प्रश्न 7.
फूलों की कृषि कहलाती है
(a) ट्रक फार्मिंग
(b) कारखाना कृषि
(c) मिश्रित कृषि
(d) पुष्पोत्पादन
उत्तर:
(d) पुष्पोत्पादन

प्रश्न 8.
निम्न में से कौन-सी कृषि के प्रकार का विकास यूरोपीय औपनिवेशिक समूहों द्वारा किया गया ?
(a) कोलखोज
(b) अंगूरोत्पादन
(c) मिश्रित कृषि
(d) रोपण कृषि
उत्तर:
(d) रोपण कृषि

प्रश्न 9.
निम्न प्रदेशों में से किसमें विस्तृत वाणिज्य अनाज की कृषि नहीं की जाती है ?
(a) अमेरिका एवं कनाडा के प्रेयरी क्षेत्र
(b) अर्जेंटाइना के पंपास क्षेत्र
(c) यूरोपीय स्टेपीज क्षेत्र
(d) अमेजन बेसिन
उत्तर:
(d) अमेजन बेसिन

प्रश्न 10.
निम्न में से किस प्रकार की कृषि में खट्टे रसदार फलों की कृषि की जाती है ?
(a) बाजारीय सब्जी कृषि
(b) भूमध्यसागरीय कृषि
(c) रोपण कृषि
(d) सहकारी कृषि
उत्तर:
(b) भूमध्यसागरीय कृषि

प्रश्न 11.
निम्न कृषि के प्रकारों में से कौन-सा प्रकार कर्तन-दहन कृषि का प्रकार है ?
(a) विस्तृत जीवन निर्वाह कृषि
(b) आदिकालीन निर्वाह कृषि
(c) विस्तृत वाणिज्य अनाज कृषि
(d) मिश्रित कृषि
उत्तर:
(b) आदिकालीन निर्वाह कृषि

प्रश्न 12.
निम्न में से कौन-सी एकल कृषि नहीं है ?
(a) डेयरी कृषि
(b) मिश्रित कृषि
(c) रोपण कृषि
(d) वाणिज्य अनाज कृषि
उत्तर:
(a) डेयरी कृषि

प्रश्न 13.
लिग्नाइट या भूरे कोयले में कार्बन का अंश कितने प्रतिशत होता है ?
(a) 70 से 90%
(b) 45 से 70%
(c) 90% से अधिक
(d) 40%
उत्तर:
(b) 45 से 70%

प्रश्न 14.
एन्थासाइट कोयले में कार्बन की मात्रा कितने प्रतिशत होती है ?
(a) 90% से अधिक
(b) 80% से अधिक
(c) 70 से 90%
(d) 45 से 70%
उत्तर:
(a) 90% से अधिक

प्रश्न 15.
खनिज तेल का सबसे बड़ा उत्पादक देश कौन-सा है ?
(a) अमेरिका
(b) रूस
(c) सउदी अरब
(d) भारत
उत्तर:
(c) सउदी अरब

प्रश्न 16.
विश्व के सबसे बड़े लौह भंडार कहाँ हैं ?
(a) अमेरिका
(b) रूस
(c) घाना
(d) कनाडा
उत्तर:
(b) रूस

प्रश्न 17.
प्राथमिक कार्यकलाप है।
(a) व्यापार
(b) उद्योग
(c) कृषि
(d) सभी
उत्तर:
(c) कृषि

प्रश्न 18.
मानव का प्राचीनतम कार्यकलाप था।
(a) पशुपालन
(b) खनन
(c) आखेट एवं संग्रहण
(d) बुनाई
उत्तर:
(c) आखेट एवं संग्रहण

प्रश्न 19.
अब तक खनिजों की खोज हो चुकी है लगभग
(a) 100
(b) 200
(c) 2000
(d) 20000
उत्तर:
(c) 2000

प्रश्न 20.
चलवासी पशुचारण के कितने स्पष्ट क्षेत्र हैं ?
(a) पाँच
(b) छः
(c) सात
(d) आठ
उत्तर:
(c) सात

प्रश्न 21.
एशिया की सबसे बड़ी मलिन बस्ती कौन-सी है ?
(a) धारावी
(b) इमिजामो एंथू
(c) फेवलास
(d) रांचोज
उत्तर:
(a) धारावी

प्रश्न 22.
लगभग कितने करोड़ लोग आज नगरों में असुरक्षित जीवन जी रहे हैं ?
(a) 10 करोड़
(b) 50 करोड़
(c) 60 करोड़
(d) 80 करोड़
उत्तर:
(c) 60 करोड़

प्रश्न 23.
नगर की परिभाषा के अंतर्गत भारत में बस्तियों की जनसंख्या कितनी होनी चाहिए?
(a) 2000 से ऊपर
(b) 5000 से ऊपर
(c) 3000 से ऊपर
(d) 4000 से ऊपर
उत्तर:
(b) 5000 से ऊपर

प्रश्न 24.
भारत में कितनी जनसंख्या वाली बस्ती को ग्रामीण बस्ती कहते हैं ?
(a) 1000 से कम
(b) 2500 से कम
(c) 5000 से कम
(d) 3000 से कम
उत्तर:
(c) 5000 से कम

प्रश्न 25.
बस्तियों को कितने प्रकारों में बाँटते हैं ?
(a) दो
(b) तीन
(c) चार
(d) पाँच
उत्तर:
(a) दो

प्रश्न 26.
जापान में कितनी जनसंख्या वाली बस्ती को ग्रामीण बस्ती कहते हैं ?
(a) 10,000
(b) 20,000
(c) 30,000
(d) 40,000
उत्तर:
(c) 30,000

प्रश्न 27.
2006 की सूची के अनुसार टोकियो की जनसंख्या है
(a) तीन करोड़ चार लाख
(b) तीन करोड़ ब्यालीस लाख
(c) दो करोड़ बीस लाख
(d) कोई भी नहीं
उत्तर:
(b) तीन करोड़ ब्यालीस लाख

प्रश्न 28.
विश्व स्तर पर सेवाओं का निम्नलिखित में से कितना प्रतिशत योगदान है ?
(a) 10%
(b) 50%
(c) 20%
(d) 100%
उत्तर:
(c) 20%

प्रश्न 29.
20वीं शताब्दी में विश्व की जनसंख्या बढ़ी है।
(a) दो गुणा
(b) चार गुणा
(c) पांच गुणा
(d) दस गुणा
उत्तर:
(b) चार गुणा

प्रश्न 30.
पारमहाद्वीपीय स्टुवर्ट महामार्ग किनके मध्य से गुजरता है
(a) डार्विन और मेलबोर्न
(b) कनाडा
(c) संयुक्त राज्य अमेरिका
(d) रूस
उत्तर:
(a) डार्विन और मेलबोर्न

प्रश्न 31.
पशुधन की कृषि कहलाती है
(a) कारखाना
(b) ट्रक कृषि
(c) मिश्रित कृषि
(d) दुग्ध
उत्तर:
(c) मिश्रित कृषि

प्रश्न 32.
निम्नलिखित में से कौन-सा एक तृतीयक क्रियाकलाप है?
(a) कृषि
(b) पशुचारण
(c) व्यापार
(d) आखेट
उत्तर:
(c) व्यापार

प्रश्न 33.
निम्न में से कौन-सी रोपण फसल नहीं है?
(a) धान
(b) गन्ना
(c) कपास
(d) कॉफी
उत्तर:
(c) कपास

प्रश्न 34.
मानव विकास की अवधारणा निम्नलिखित में से किस विद्वान की देन है?
(a) डॉ० अबुल कलाम
(b) प्रो० अमर्त्य सेन
(c) डॉ० महबूब-उल-हक
(d) डॉ० राजेन्द्र प्रसाद
उत्तर:
(b) प्रो० अमर्त्य सेन

प्रश्न 35.
‘रुको और जाओ निश्चयवाद’ संकल्पना किसकी देन है?
(a) रीटर
(b) रैटजेल
(c) टेलर
(d) हम्बोल्ट
उत्तर:
(c) टेलर

प्रश्न 36.
डिगबोई किस राज्य में स्थित है?
(a) उड़ीसा
(b) गुजरात
(c) असम
(d) महाराष्ट्र
उत्तर:
(c) असम

प्रश्न 37.
इनमें से कौन परियोजना बाढ़-नियंत्रण के उद्देश्य से शुरू की गई थी?
(a) कोसी
(b) चंबल
(c) हीराकुंड
(d) भाखड़ा
उत्तर:
(a) कोसी

प्रश्न 38.
निम्नलिखित कौन कारक उद्योगों की अवस्थिति को प्रभावित नहीं करता है?
(a) जलापूर्ति
(b) ऊर्जा स्रोत
(c) बाजार
(d) उर्वर भूमि
उत्तर:
(d) उर्वर भूमि

प्रश्न 39.
‘अर्जुन’ किस फसल की उन्नत किस्म है?
(a) गेहूं
(b) चावल
(c) मक्का
(d) गन्ना
उत्तर:
(b) चावल

प्रश्न 40.
इनमें से कौन औद्योगिक नगर नहीं है?
(a) जमशेदपुर
(b) रूड़की
(c) दुर्गापुर
(d) सलेम
उत्तर:
(c) दुर्गापुर

प्रश्न 41.
खट्टे / रसदार फलों की खेती के लिए प्रसिद्ध है
(a) रोपण कृषि
(b) बागवानी कृषि
(c) सहकारी कृषि
(d) भूमध्यसागरीय कृषि
उत्तर:
(c) सहकारी कृषि

प्रश्न 42.
उच्च मानव विकास का सूचकांक कितना होता है?
(a) 1 से ऊपर
(b) 0.5 तक
(c) 0.8 से अधिक
(d) 1.5 तक
उत्तर:
(d) 1.5 तक

प्रश्न 43.
“भौगोलिक पर्यावरण एवं मानवीय गतिविधियों के पारस्परिक संबंधों का अध्ययन ही मानव भूगोल …………………. है।” यह परिभाषा किससे संबंधित है?
(a) रिटर
(b) हटिंग्स
(c) ब्लाश
(d) डार्विन
उत्तर:
(a) रिटर

प्रश्न 44.
भारतीय रेल को कितने क्षेत्रों में विभाजित किया गया है ?
(a) 9
(b) 14
(c) 16
(d) 18
उत्तर:
(c) 16

प्रश्न 45.
डिगबोई जो आसाम में है प्रसिद्ध है
(a) सोना उत्पादन के लिए
(b) कोयला के लिए
(c) खनिज तेल के लिए
(d) हीरा
उत्तर:
(c) खनिज तेल के लिए

प्रश्न 46.
मैनचेस्टर प्रसिद्ध है
(a) सूती वस्त्र उद्योग के लिए
(b) लौह इस्पात उद्योग के लिए
(c) कागज उद्योग के लिए
(d) ऊनी वस्त्र उद्योग के लिए
उत्तर:
(a) सूती वस्त्र उद्योग के लिए

प्रश्न 47.
निम्नलिखित में से कौन-सा लौह अयस्क नहीं है?
(a) मैग्नेटाइट
(b) लिगनाइट
(c) हेमेटाइट
(d) लिमोमाइट
उत्तर:
(b) लिगनाइट

Bihar Board 12th Geography Important Questions Short Answer Type Part 2

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Bihar Board 12th Geography Important Questions Short Answer Type Part 2

प्रश्न 1.
जमशेदपुर एवं पुणे शहर के महत्त्व का उल्लेख करें।
उत्तर:
जमशेदपुर-जमशेदपुर झारखण्ड राज्य में स्वर्ण रेखा नदी के किनारे स्थित है। यहाँ भारत का सबसे बड़ा लौह-इस्पात का कारखाना है। यह कोयले की अपेक्षा लोहे की खान के निकट है। यह देश का निजी क्षेत्र का एकमात्र कारखाना है जिसे 1907 ई० में जमशेदजी टाटा द्वारा स्थापित किया गया था। यहाँ लोहे गुरुमहिसानी एवं नोआमंडी से प्राप्त होता है। कोयला झरिया के खानों से प्राप्त होता है।

पुणे-पुणे महाराष्ट्र राज्य में स्थित है। यहाँ सूती वस्त्र उद्योग काफी विकसित है। यह मुम्बई, शोलापुर औद्योगिक प्रदेश में स्थित है। यहाँ सूती वस्त्र के अलावे अनेक प्रकार के सौन्दर्य प्रसाधन, खाद, दवाइयाँ, रसायन, साबुन, वनस्पति तेल, इंजीनियरिंग सामान, विद्युत उपकरण, मोटरगाड़ी, टी० वी० फ्रिज तथा अन्य इलेक्ट्रॉनिक सामान बनाने का कारखाना है।

प्रश्न 2.
कोको के बारे में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर:
कोको के पौधा बीजों से तैयार होता है। प्रायः समतल भाग में केले के साथ ही इसकी खेती की जाती है। पौधे की कटाई-छंटाई नहीं करनी पड़ती केवल साल में दो बार छीमी तोड़नी पड़ती है। चाकू से छिलका हटाकर एक सप्ताह किण्वन करके कड़वापन दूर किया जाता है। फिर, इन्हें धूप में सुखाया जाता है। दोनों को पूँजकर ऊपर से फिर छिलका उतारकर पीसा जाता है। चाकलेट बनाने के लिए इस पाउडर को और बारीक किया जाता है। इसके अतिरिक्त इससे मक्खन निकाला जाता है जिससे दवाइयाँ और सौंदर्य प्रसाधन बनते हैं।

प्रश्न 3.
हरित रासायनिकी क्या है ?
उत्तर:
हरित रासायनिकी का मूल मंत्र है, ‘दुर्घटना से बचाव की अपेक्षा दुर्घटना की संभावना को कम करना श्रेयस्कर है।’ निरंतर विकास और प्रगति को रोकना असंभव है। जनसंख्या वृद्धि और अन्य क्रियाकलापों के विकास के साथ प्रदूषण की समस्या भी बढ़ती चली जाएगी, जैसे भारत में कृषि उत्पादन बढ़ाने के लिए विभिन्न उर्वरकों और कीटनाशकों का आँख मूंदकर प्रयोग किया गया, फलस्वरूप भूमि की उर्वरा शक्ति कम होती चली गई। अतः हरित रासायनिकी का अर्थ है, ‘उद्योगों और रासायनिक क्रियाओं का ऐसा समायोजन जिससे हानिकारक पदार्थों की उत्पत्ति न्यूनतम हो या हो ही नहीं।

प्रश्न 4.
पत्तन एवं पोताश्रय के बीच अंतर स्पष्ट करें।
उत्तर:
पत्तन समद्री तट पर जहाजों के ठहरने के स्थान होते हैं। यहाँ पर सामान लादने उतारने की सुविधाएँ होती हैं। जबकि पोताश्रय समुद्र में जहाजों के ठहरने का प्राकृतिक स्थान है। यहाँ जहाज लहरों तथा तूफान से सुरक्षा प्राप्त करते हैं। प्राकृतिक पोताश्रय मुंबई में कृत्रिम पोताश्रय चेन्नई में है।

प्रश्न 5.
सतत पोषणीय विकास क्या है ?
उत्तर:
1960 के दशक के अंत में पश्चिमी दुनिया में पर्यावरण संबंधी मुद्दों पर बढ़ती जागरूकता की सामान्य वृद्धि के कारण सतत् पोषणीय धारणा का विकास हुआ। इससे पर्यावरण पर औद्योगिक विकास के अनापेक्षित प्रभावों के विषयों में लोगों की चिंता प्रकट होती थी। 1968 में प्रकाशित एहरलिव की पुस्तक ‘द पापुलेशन बम’ और 1972 में मीकोस और अन्य द्वारा लिखी गई पुस्तक ‘द लिमिट टू ग्रोथ’ के प्रकाशन ने इस विषय पर लोगों और विशेषकर पर्यावरणविदों की चिंता और भी गहरी कर दी। उस घटना के परिप्रेक्ष्य में विकास के एक नए मॉडल जिसे सतत् पोषणीय विकास कहे जाने की शुरूआत हुई।

प्रश्न 6.
भारत में घटते जल संसाधन के लिए उत्तरदायी दो कारकों का उल्लेख करें।
उत्तर:
भारत में जल संसाधन के घटने का दो प्रमुख कारण निम्नलिखित है-
(i) जल प्रदूषण – देश में उपलब्ध जल संसाधनों का तेजी से निम्नीकरण हो रहा है। देश के नदी जल में नालों के माध्यम से कृषिगत, घरेलू और औद्योगिक बहि:स्राव मिल जाते हैं, जिससे नदी जल प्रदूषित हो जाती है। इससे जल में कमी होती है।

(ii) जल के पन:चक्रण में कमी – नगरीय क्षेत्रों में पक्के मकानों एवं सड़कों के बन जाने से वर्षा जल का जमीन के अंदर रिसाव नहीं हो पाता है जिस कारण शहरी क्षेत्रों में भूमिगत जल का स्तर काफी नीचे चला गया है। ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि के विस्तार एवं औद्योगीकरण के कारण वनों का तेजी से विनाश हुआ है जिससे वर्षा का जल तेजी से बहकर नदी में चला जाता है और भूमि उसका अवशोषण नहीं कर पाता है। जिससे जल का पुनः चक्रण प्रभावित हो रहा है।

प्रश्न 7.
बारानी या वर्षा आधारित कृषि से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
बारानी या वर्षा आधारित कृषि-इसे वर्षा पर निर्भर कृषि कहते हैं। इसके अंतर्गत फसलों को केवल वर्षा का जल ही प्राप्त होता है। पश्चिम बंगाल, असोम, ओडिशा, बिहार, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश तथा अधिकांश पूर्वोत्तर राज्यों में इसी प्रकार की कृषि की जाती है। बारानी कृषि को दो भागों में बाँटा गया है-

  • शक कृषि – जहाँ वर्षा की मात्रा 75 सेमी० से कम होती है वहाँ शुष्क कृषि की जाती है। इन क्षेत्रों में शुष्कता सहन करने वाली फसल उगाई जाती है जैसे राई, बाजरा, मूंग, चना, ज्वार आदि।
  • आई कषि – जहाँ 75 सेमी० से अधिक वर्षा होती है उन क्षेत्रों में की जाने वाली कृषि आर्द्र कृषि कहते हैं। इन क्षेत्रों में अधिक पानी चाहने वाली फसल बोई जाती है, जैसे-चावल, गन्ना, जूट आदि।

प्रश्न 8.
नगरों, महानगरों एवं मेगा नगरों को परिभाषित करें।
उत्तर:
नगर – जहाँ की जनसंख्या 5,000 से अधिक हो, उसकी 25 प्रतिशत या इससे भी कम आबादी की मुख्य आजीविका कृषि न हो और अधिकांश जनसंख्या की आजीविका द्वितीय या तृतीय क्रियाकलाप हों, उसे नगर कहते हैं।

महानगर – 10 लाख से 50 लाख तक की जनसंख्या जिन नगरों में पाई जाती है उन्हें महानगर कहा जाता है। जैसे-पटना, लखनऊ, वाराणसी आदि।

मेगानगर – जिन नगरों की जनसंख्या 50 लाख से अधिक होती है उनहें विराट या मेगा नगर कहा जाता है। हमारे देश में मुम्बई और दिल्ली मेगानगर है।

प्रश्न 9.
गुच्छित एवं बिखरी बस्तियों के बीच अंतर करें।
उत्तर:
गच्छित बस्तियाँ – गुच्छित बस्तियाँ उन क्षेत्रों में मिलती है जहाँ मनुष्य सामाजिक दष्टि से अपने परे समाज के साथ मिलकर रहना पसंद करता है। उपजाऊ मिट्टी, समतल मैदानी भाग तथा पर्याप्त जलापूर्ति वाले क्षेत्र गुच्छित बस्तियों के बसाव के आदर्श क्षेत्र होते हैं। इन्हें सघन बस्तियाँ भी कहा जाता है।

बिखरी बस्तियाँ बिखरी बस्तियों में मकान एक-दूसरे से दूर-दूर बसे होते हैं, जिनका पारस्परिक संबंध कच्ची सड़कों या पगडंडियों से होता है। ऐसी बस्तियाँ सामान्यतः पहाड़ी क्षेत्रों में हैं जहाँ कृषि के लिए उपयुक्त धरातलीय अवस्थाएँ नहीं पायी जाती है।

प्रश्न 10.
बहुपक्षीय व्यापार क्या है ?
उत्तर:
बहुपक्षीय व्यापार विश्व के कई देशों के साथ वस्तु एवं सेवाओं का विनिमय है। व्यापार का प्रमुख उद्देश्य ऐसी वस्तुओं को खरीदना या बेचना होता है जिनकी आवश्यकता होती है। यदि किसी उत्पाद की माँग विदेशों में है और अपने यहाँ वह अधिक है तो निर्यात कर विदेशी मुद्रा अर्जित की जा सकती है। व्यापार का एक पहलू यह भी है कि इससे अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में प्रगाढ़ता आती है।

प्रश्न 11.
पर्यटन के कोई दो लाभों का उल्लेख करें।
उत्तर:
पर्यटन के दो लाभ निम्नलिखित हैं
(i) रोजगार – पर्यटन में लोग एक स्थान से दूसरे स्थान या एक देश से दूसरे देश में जाते हैं। इससे देश के जनसंख्या को प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से रोजगार के अवसर मिलते हैं। राष्ट्रीय एकता की दृष्टि से भी इसका महत्त्व अधिक है।

(ii) विदेशी मुद्रा की प्राप्ति – भारतीय कलाकृतियों को विश्व में बहुत मान्यता प्राप्त है। विदेशी पर्यटकों के आकर्षण के प्रमुख स्थल गोवा, राजस्थान, जम्मू-कश्मीर, दक्षिण भारत के मंदिर, आगरा का ताजमहल इत्यादि हैं। यहाँ विदेशी पर्यटक घूमने आते हैं और अपने साथ यहाँ की कलाकृतियों को खरीदकर ले जाते हैं, जिससे विदेशी मुद्रा प्राप्त होती है।

प्रश्न 12.
लिंग संरचना से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
लिंग संरचना को लिंग पिरामिड द्वारा प्रदर्शित किया जाता है। अधिकांश विकासशील देशों में लिंग पिरामिड का आधार चौड़ा तथा शीर्ष पतला होता है। इसका अभिप्राय यह है कि उच्च जन्म दर के कारण निम्न आयु वर्ग में विशाल जनसंख्या पायी जाती है। विकसित देशों में पिरामिड के आधार तथा मध्य की मोटाई लगभग एक जैसी होती है। इसका अभिप्राय यह है कि जन्म दर कम होने के कारण बच्चों एवं मध्य आयु वर्ग के लोगों की संख्या लगभग समान है। पिरामिड का संकीर्ण आधार और शुंडाकार शीर्ष निम्न जन्म और मृत्यु दरों को दर्शाता है। इन देशों में जनसंख्या वृद्धि शून्य अथवा ऋणात्मक होती है।

प्रश्न 13.
कृषि घनत्व क्या है ?
उत्तर:
कृषि घनत्व का अर्थ एक ही खेत में एक कृषि वर्ष में उगाई गई फसलों की संख्या बोए गए शुद्ध क्षेत्र के प्रतिशत के रूप में सकल फसलगत क्षेत्र में शस्य गहनता की माप को प्रकट करता है। कृषि घनत्व को ज्ञात करने का सूत्र है सकल फसलगत क्षेत्र
Bihar Board 12th Geography Important Questions Short Answer Type Part 2, 1
कृषि घनत्व मिजोरम की 100 प्रतिशत से लेकर पंजाब की 189 प्रतिशत के मध्य बदलती रहती है। सिंचाई कृषि घनत्व का प्रमुख निर्धारक तत्व है। जनसंख्या घनत्व का दबाव भी शस्य घनत्व को प्रभावित करता है।

प्रश्न 14.
जीवन निर्वाहक कृषि क्या है ?
उत्तर:
अधिक जनसंख्या वाले भागों की कृषि होने के कारण इस प्रकार की कृषि के अंतर्गत ऐसी उपज पैदा की जाती है जिसमें अधिक-से-अधिक श्रम का उपयोग हो सके और अधिक उत्पादन हो सके जिससे खाद्य समस्या का समाधान हो सके। इन प्रदेशों में चावल के अतिरिक्त गेहूँ, गन्ना, जूट आदि उपज पैदा की जाती है।

इन कृषि प्रदेशों में कृषि मुख्यतः पशुओं की सहायता से की जाती है। कृषि प्राचीन काल से रूढ़िवादी क्रिया से की जाती है।
इन प्रदेशों में खेती प्राचीन ढंग से की जाती है जिस कारण इतना अधिक उत्पादन नहीं हो पाता कि उनका निर्यात किया जा सके।

प्रश्न 15.
खनिज आधारित उद्योगों से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
खनिज आधारित उद्योग वैसे उद्योग को कहा जाता है जिसका कच्चा माल भूमि के अंदर से खनिज के रूप में प्राप्त होता है। जैसे-लोहा-इस्पात उद्योग, एल्युमीनियम उद्योग इत्यादि।

प्रश्न 16.
चिकित्सा पर्यटन को परिभाषित करें।
उत्तर:
जब चिकित्सा उपचार को अंतर्राष्ट्रीय पर्यटन गतिविधि से सम्बद्ध कर दिया जाता है तो इसे सामान्यतः चिकित्सा पर्यटन कहा जाता है।

प्रश्न 17.
मानव विकास से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
लोगों के विकल्पों को बढ़ाना तथा जन कल्याण के स्तर को ऊँचा उठाना ही मानव विकास है। आर्थिक, सामाजिक तथा सांस्कृतिक विकास जन-कल्याण के प्रमुख पक्ष हैं। जनकल्याण से तात्पर्य मानव की चाहते जैसे-दीर्घ और स्वस्थ जीवन, शिक्षा द्वारा ज्ञान प्राप्ति तथा रहन-सहन के उच्च स्तर हैं।

प्रश्न 18.
उत्तरी भारत में सिंचाई के मुख्य साधन क्या हैं ?
उत्तर:
उत्तरी भारत में सिंचाई के प्रमुख साधन हैं-

  • नहरें
  • नलकूप
  • कुएँ और
  • तालाब

प्रश्न 19.
शुष्क कृषि किसे कहते हैं ?
उत्तर:
शुष्क कृषि सिंचाई किये बिना ही कृषि करने की तकनीक है। यह उन क्षेत्रों के लिये । उपयोगी है, जहाँ बहुत कम वर्षा होती है। इसके अंतर्गत उपलब्ध सीमित नमी को संचित करके बिना सिंचाई के ही फसलें उगायी जाती हैं। वर्षा की कमी के कारण मिट्टी की नमी को बनाये रखने तथा उसे बढ़ाने का निरन्तर प्रयास किया जाता है। इसके लिए गहरी जुताई की जाती है और वाष्पीकरण को रोकने का प्रयत्न किया जाता है। इसके अंतर्गत अल्प नमी में तथा कम समय में उत्पन्न होने वाली फसलें उत्पन्न की जाती हैं। इस प्रकार की खेती विशेष रूप से भूमध्य सागरीय प्रदेशों, अमेरिका के कोलम्बिया पठार तथा भारत में पश्चिमी राजस्थान, गुजरात और हरियाणा में की जाती है।

प्रश्न 20.
ऊर्जा के नवीनीकृत तथा अनवीनीकृत साधनों में अंतर स्पष्ट करें।
उत्तर:
नवीनीकृत साधन – यह ऊर्जा का स्रोत बार-बार काम में लाये जा सकते हैं या समाप्त नहीं होते हैं। जैसे-जल शक्ति, वायु शक्ति, सौर शक्ति या ज्वारीय शक्ति इत्यादि।

अनंवीनीकृत साधन – यह ऊर्जा का ऐसा स्रोत है जिसे एक बार ही काम में लाये जा सकते हैं अर्थात् वे क्षय (नष्ट) हो जाते हैं। जैसे-कोयला, खनिज तेल, प्राकृतिक गैस इत्यादि।

प्रश्न 21.
संचार, परिवहन तथा व्यापार में क्या अंतर हैं ?
उत्तर:
संचार (Communication) – संचार के साधन एक स्थान से दूसरे स्थान को सूचना भेजते हैं और प्राप्त करते हैं। डाक सेवाओं, टेलीफोन, फैक्स, इंटरनेट, समाचारपत्रों, टेलीग्राम आदि द्वारा सूचनायें भेजी और प्राप्त की जाती हैं।

परिवहन (Transport) – परिवहन से अभिप्राय मनुष्य तथा आवश्यक उपयोगी वस्तुओं को एक स्थान से दूसरे स्थान पर लाने-ले जाने की प्रक्रिया है। परिवहन स्थल, जल और वायु द्वारा विभिन्न प्रकार के वाहनों द्वारा किया जाता है। कभी-कभी परिवहन के रूप में पशुओं और स्वयं मानव का उपयोग भी होता है।

व्यापार (Trade) – व्यापार बाजार के माध्यम से वस्तुओं और सेवाओं का आदान-प्रदान है। वस्तुओं के मूल्य में अंतर अथवा माँग और आपूर्ति व्यापार के लिए उत्तरदायी हैं। इस प्रकार व्यापार से अभिप्राय दो स्थानों के बीच वस्तुओं और सेवाओं का प्रवाह है।

प्रश्न 22.
समुद्री जल यातायात के क्या लाभ हैं ?
उत्तर:
सामुद्रिक जलमार्ग के निम्नलिखित लाभ हैं-

  • जल परिवहन एक देश से दूसरे देश के लिए भारी माल की ढुलाई का सस्ता और सरल साधन है।
  • महासागर सभी महाद्वीपों को एक-दूसरे से मिलाते हैं।
  • समुद्री परिवहन द्वारा जितना सामान एक साथ जलयानों द्वारा ढोया जा सकता है वह किसी अन्य साधन द्वारा संभव नहीं।
  • विशाल जलयानों में प्रशीतित कक्ष के बन जाने से शीघ्र नष्ट होने वाली वस्तुओं को ले जाना संभव हो गया है।
  • खनिज तेल अथवा गैस आदि को ढोने के लिए विशाल टैंकरों का उपयोग किया जा सकता है।
  • पत्तनों पर कंटेनरों के प्रयोग से सामान को उतारना या चढ़ाना आसान है।
  • आधुनिक जहाज रडार, वायरलेस आदि से सुसज्जित होते हैं। इसलिए खराब मौसम में भी रुकावट नहीं आतो!

प्रश्न 23.
बस्ती किसे कहते हैं ? यह सामान्यतया कितने प्रकार की होती है ?
अथवा, आप बस्ती को कैसे परिभाषित करेंगे ?
उत्तर:
बस्ती से अभिप्राय उस मानव अधिवास से है जिसमें एक से अधिक मकान होते हैं और जहाँ लोग सारा कार्य एक निर्मित क्षेत्र के भीतर ही करते हैं। ये सामान्यतया दो प्रकार की होती हैं-ग्रामीण तथा नगरीय बस्तियाँ।

प्रश्न 24.
स्थान एवं स्थिति के मध्य अंतर बताएँ।
उत्तर:
बस्तियों के स्थल (Settlement site)-

  1. बस्ती के स्थल से तात्पर्य उस वास्तविक भूमि से है जिस पर बस्ती विकसित हुई है।
  2. बस्ती का स्थल कोई मैदानी भाग, पहाड़ी क्षेत्र, नदी का किनारा अथवा एक तालाब या झीत हो सकता है।
  3. बस्ती का स्थल यह निर्धारित करता है कि वहाँ जल की उपलब्धता किस प्रकार होगी।

बस्तियों की स्थिति (Settlement situation)-

  1. बस्ती की स्थिति से तात्पर्य उस बस्ती के आस-पास के गाँवों के संबंध में उसकी स्थिति बताना होता है।
  2. बस्ती की स्थिति का अध्ययन प्राकृतिक पर्यावरण तथा सांस्कृतिक विरासत के संदर्भ में किया जा सकता है।
  3. किसी बस्ती का प्रतिरूप किसी प्रदेश विशेष के प्राकृतिक पर्यावरण का प्रतिनिधित्व करता है।

प्रश्न 25.
बस्तियों के वर्गीकरण के क्या आधार हैं ?
उत्तर:
बस्तियों को विभाजित करने के आधार निम्नलिखित हैं-

  • जनसंख्या का आकार तथा
  • प्रकार्य अथवा आर्थिक आधार।

इन दो आधारों के अनुसार बस्तियाँ दो प्रकार की होती हैं-

  • ग्रामीण बस्तियाँ,
  • नगरीय बस्तियाँ।

जनसंख्या के आकार के अनुसार विश्व के सभी देशों में ग्राम और नगर को विभाजित करने का आधार अलग-अलग है। कनाडा में 1000 से कम जनसंख्या वाली बस्ती को ग्राम कहते हैं जबकि भारत में 5000 से कम जनसंख्या वाली बस्ती को ग्राम कहते हैं।

प्रकार्य के आधार पर बस्तियों की पहचान आर्थिक संरचना है। ग्रामीण बस्ती में अधिकांश जनसंख्या प्राथमिक कार्यों जैसे कृषि, मत्स्य, पशुपालन आदि में संलग्न रहती है जबकि नगरीय बस्ती की अधिकांश जनसंख्या द्वितीयक और तृतीयक व्यवसायों में संलग्न रहती है।

प्रश्न 26.
मानव भूगोल में मानव बस्तियों के अध्ययन का औचित्य बताएँ।
उत्तर:
मानव बस्तियों का अध्ययन मानव भूगोल का आधार है इसलिये मानव भूगोल में बस्तियों का अध्ययन आवश्यक हो जाता है, क्योंकि किसी विशेष प्रदेश में बस्तियों का प्रारूप मनुष्य और पर्यावरण के संबंधों को प्रदर्शित करता है। मानव बस्तियाँ वह स्थान है जहाँ मनुष्य स्थायी रूप से रहता है।

प्रश्न 27.
सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी का एक कार्य के रूप में वर्तमान एवं नवीन बस्तियों के विकास पर क्या प्रभाव होगा ?
उत्तर:
अब तक नगर प्रशासन, व्यापार उद्योग, रक्षा और धार्मिक केन्द्र रहे हैं। लेकिन अब नगर सूचना संचार और तकनीक के केन्द्र बन गए हैं। इनमें से कुछ के कार्यों को नगरों की आवश्यकता नहीं है। इस तकनीक से इन नगरों का विकास होगा। अन्य कार्यों के केन्द्र बन जाएँगे। सूचना प्रौद्योगिक के कारण ये अन्य नगर तथा देशों से जुड़ जाएँगे।

प्रश्न 28.
ग्रामीण बस्तियाँ क्या हैं ?
उत्तर:
वे बस्तियाँ जो भूमि से सीधे तथा काफी नजदीकी से जुड़ी होती हैं, ग्रामीण बस्तियाँ कहलाती हैं। ग्राम किसान तथा खेतिहर मजदूरों की अधिकता वाले क्षेत्रों में विकसित होते हैं।

ग्रामीण बस्तियों में जनसंख्या नगरों की अपेक्षा कम होती है।
ग्रामीण घर अधिकतर स्थानीय सामग्री से बने होते हैं। ग्राम की अधिकतर जनसंख्या कृषि तथा पशपालन आदि कार्यों में लगी रहती है।

प्रश्न 29.
मलिन बस्तियों में क्या अभिप्राय है ? इनके कुछ उदाहरण दें।
उत्तर:
मलिन बस्ती से अभिप्राय एक ऐसे घने बसे आवासीय क्षेत्र से है, जिसमें अस्वच्छ घर होते हैं जिनमें समाज के कमजोर वर्गों के लोग रहते हैं तथा जिनमें सामाजिक विघटन की प्रवृत्तियाँ पाई जाती हैं। उदाहरण के लिए रांचो (वेनेजुएला), फावेला (ब्राजील) तथा बस्ती अथवा झुग्गी-झोंपड़ी (भारत)।

प्रश्न 30.
मानव स्वास्थ्य पर वायु प्रदूषण के प्रभावों का वर्णन करें।
उत्तर:
मानव स्वास्थ्य पर वायु-प्रदूषण का प्रभाव कई तरह से पड़ता है-

  1. वायु प्रदूषण को धूल, धुआँ, गैसों और दुर्गन्ध जैसे विषैले पदार्थों का वायु में वृद्धि के रूप में लिया जाता है।
  2. यह मानव शरीर के त्वचा को भी प्रभावित करती है।
  3. इससे स्नायुत्र, हृदय, फेफड़ा, परिसंचरण तंत्र आदि से संबंधित भी रोग होते हैं।
  4. इससे ओजोन परत भी प्रभावित हुआ है, जिससे पराबैगनी किरण पृथ्वी पर पहुंच कर मानव स्वास्थ्य को प्रभावित किया है।

प्रश्न 31.
जल-संभर प्रबंधन क्या है ?
उत्तर:
जल संभर प्रबंधन से तात्पर्य मुख्य रूप से धरातलीय अथवा भूमिगत जल संसाधनों का कुशल प्रबंधन करना है। इसके अंतर्गत बहते जल को रोकना और विभिन्न विधियों, जैसे-तालाब, अंतःस्रवण, कुओं, द्वारा भूमिगत जल को वृद्धि करना है। इस प्रबंध का मुख्य उद्देश्य वर्षा जल का संचयन करना तथा भूमिगत जल का विवेकपूर्ण प्रयोग है।

प्रश्न 32.
प्रवास के प्रतिकर्ष और अपकर्ष कारणों में अंतर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
प्रवास के प्रतिकर्ष कारक बेरोजगारी, रहन-सहन की निम्न दशाएँ, राजनीतिक उद्रिव, प्रतिकूल जलवायु, प्राकृतिक विपदाएँ, महामारियाँ तथा सामाजिक-आर्थिक पिछड़ेपन जैसे कारण उद्गम स्थान को कम आकर्षित बनाते हैं।

प्रवास के अपकर्ष कारक काम के बेहतर अवसर और रहन-सहन की अच्छी दशाएँ, शांति व स्थायित्व, जीवन व संपति की सुरक्षा तथा अनुकूल जलवायु जैसे कारण गंतव्य स्थान को उद्गम स्थान की अपेक्षा अधिक आकर्षित करते हैं।

प्रश्न 33.
पारमहाद्वीपीय रेलमार्ग क्या होता है ?
उत्तर:
पारमहाद्वीपीय रेलमार्ग पूरे महाद्वीप से गुजरते हुए इसके दोनों छोरों को जोड़ते हैं। इनका निर्माण आर्थिक और राजनैतिक कारणों से विभिन्न दिशाओं में लम्बी यात्राओं की सुविधा प्रदान करने के लिए किया गया था।

प्रश्न 34.
सहकारी कृषि से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
जब कृषकों को एक समूह अपनी कृषि से अधिक लाभ कमाने के लिए स्वेच्छा से एक सहकारी संस्था बनाकर कृषि-कार्य सम्पन्न करे उसे सहकारी कृषि कहते हैं। इसके अंतर्गत सहकारी संस्था द्वारा सभी प्रकार के कृषि सहायता कृषकों को पहुंचाया जाता है।

प्रश्न 35.
प्रकृति का मानवीकरण से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
समय परिवर्तन के साथ मानव अपने पर्यावरण और प्राकृतिक बलों को समझने लगता है। अपने सामाजिक और सांस्कृतिक विकास के साथ मानव बेहतर और अधिक सक्षम प्रौद्योगिकी का विकास करते हैं। पर्यावरण से प्राप्त संसाधनों के द्वारा वे संभावनाओं को जन्म देते हैं। मानव अपने विवेक, बुद्धि व कुशल तकनीक के द्वारा पर्यावरण के विभिन्न उपागमों पर विजय प्राप्त करता जा रहा है तथा पर्यावरण की समस्याओं का सामना करते हुए अपने को ढाल रहा है। ये क्रियाएँ प्रकृति के मानवीकरण के अंतर्गत सम्मिलित होती हैं।

प्रश्न 36.
उत्तर भारत की तुलना में दक्षिण भारत में जनसंख्या का वितरण कम है, क्यों ?
उत्तर:
उत्तर भारत की अपेक्षा दक्षिण भारत में जनसंख्या का वितरण कम है। उत्तर भारत में जनसंख्या अधिक मिलने का प्रमुख कारण समतल मैदानी क्षेत्रों का विस्तार, सड़क परिवहन, रेलमार्ग का विकास, जल की उपलब्धता इत्यादि है। जबकि दक्षिण भारत मूलतः पठारी क्षेत्र है, जहाँ कृषि हेतु समतल भू-भाग का अभाव पाया जाता है। साथ ही सिंचाई सुविधा व सड़क एवं रेलमार्ग जैसे यातायात साधनों का भी विकास कम हो पाया है।

प्रश्न 37.
अंकीय विभाजन क्या है ?
उत्तर:
सूचना और संचार प्रौद्योगिकी पर आधारित विकास से मिलने वाले अवसरों का वितरण पूरे ग्लोब पर असमान रूप से वितरित है। देशों में विस्तृत आर्थिक, राजनीतिक और सामाजिक भिन्नता पाई जाती है। कोई देश कितनी शीघ्रता से अपने नागरिकों को सूचना और संचार प्रौद्योगिकी तक पहुंचाकर और उसके लाभ उपलब्ध करा सकता है। इसी को अंकीय विभाजक कहा जाता है।

प्रश्न 38.
भारत में ज्वारीय ऊर्जा की संभावनाओं को लिखिए।
उत्तर:
महासागरीय धाराओं एवं तरंगों द्वारा प्राप्त ऊर्जा ज्वारीय ऊर्जा कहलाता है। भारत के पश्चिमी तट पर वृहत ज्वारीय तरंग उत्पन्न होती है, वहीं पूर्वी तटीय क्षेत्रों में भी इस प्रकार की तरंगें उत्पन्न होती हैं। भारत के अविकसित तकनीक के कारण वर्तमान समय में इससे ऊर्जा की प्राप्ति नहीं हो रही है। लेकिन भविष्य में इससे ऊर्जा की प्राप्ति की संभावना है।

प्रश्न 39.
सार्क देशों के नाम बताइये।
उत्तर:
भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल, भूटान, श्रीलंका और मालदीव सात दक्षिण एशि ई देशों ने मिलकर दक्षिण एशिया प्रादेशिक सहयोग संगठन का गठन किया है।

प्रश्न 40.
धात्विक एवं अधात्विक खनिजों में अंतर स्पष्ट करें।
उत्तर:
धात्विक एवं अधात्विक खनिज में निम्न अंतर है-

धात्विक खनिज अधात्विक खनिज
1. जिन खनिजों को पिघलाने से धातुएँ बनती हैं। जैसे – 1. जिन खनिजों एवं धातुएँ नहीं होती हैं उसे  अधात्विक खनिज लोहा, तांबा आदि। कहते हैं। कोयला, नमक आदि।
2. इसकी अपनी चमक होती है। 2. ये ठोस, तरलता गैसीय होते हैं।
3. ये आग्नेय और कायान्तरित शैलों में पाई जाती है। 3. ये अवसादी शैल में होते हैं।
4. इनका औद्योगिक महत्व अधिक है। 4. चूना-पत्थर, कोयला इसके उदाहरण हैं।
5. इनकी तार एवं चादरें बनाई जाती है। 5. इनकी तार एवं छड़ें नहीं बनाई जा सकती है।

प्रश्न 41.
ट्रॉन्स साइबेरियन रेलमार्ग पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखें।
उत्तर:
ट्रांससाइबेरियन रेलमार्ग विश्व का सबसे लम्बा रेलमार्ग है। इसकी कुछ लम्बाई 9332 है। यह पश्चिम में लेनिनग्राद को पूर्व में प्रशान्त महासागर तट पर स्थित नगर बमाड़ी बोस्टक से जोड़ता है। इस रेलमार्ग के प्रमुख स्टेशन मास्को, रयाजान, सिजराज, कुइबाईसेब, चेलियाबिसक, ओमस्क, नोवा सीबीरिक है। इसका निर्माण साइबेरिया के सामाजिक तथा आर्थिक विकास के उद्देश्य से किया गया है।

प्रश्न 42.
भारत में जनांकिकीय इतिहास को चार अवस्थाओं में बांटे।
उत्तर:
भारत के जनाकिकीय इतिहास को निम्नलिखित चार अवस्थाओं में बांटा गया है-

  1. रुद्ध अथवा स्थिर अवस्था : इसकी अवधि 1901 से 1921 ई० के बीच रही है। इस अवस्था में जनसंख्या वृद्धि अत्यन्त ही निम्न थी। अशिक्षा, स्वास्थ्य सुविधाओं का अभाव, खाद्यान्न समस्या प्रमुख थी।
  2. स्थिर वृद्धि की अवस्था : इसकी अवधि 1921 से 1951 ई० के बीच रही है। स्वास्थ्य सुविधा में सुधार, स्वच्छता, परिवहन एवं संचार के कारण मृत्यु दर को नीचे लाया गया।
  3. विस्फोटक अवस्था : इसकी अवधि 1951 से 1981 ई० के बीच रही है। इसके अंतर्गत मृत्यु दर में तीव्र कमी तथा जन्म दर में तीव्र वृद्धि सम्मिलित है।
  4. अधोमुखी अवस्था : इसकी अवधि 1981 ई० से वर्तमान समय तक की है। इस अवस्था में जीवन की गुणवत्ता को सुधार कर जनसंख्या नियंत्रण को अपनाया गया है।

प्रश्न 43.
सांस्कृतिक नगर क्या है ?
उत्तर:
सांस्कृतिक नगर : वैसे नगर जिसका उद्भव ऐतिहासिक, धार्मिक दृष्टिकोणों से हुआ है, सांस्कृतिक नगर कहलाते हैं। जैसे-वाराणसी, हरिद्वार, मक्का, मदीना, जेरूसलम।

Bihar Board 12th History Important Questions Short Answer Type Part 2

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Bihar Board 12th History Important Questions Short Answer Type Part 2

प्रश्न 1.
‘सन्निधाता’ शब्द का आशय स्पष्ट करें।
उत्तर:
मौर्यों के समय में कर निर्धारण करने वाले अधिकारी को समाहर्ता कहा जाता था, जबकि कर वसूली और संग्रह करने वाले अधिकारी को सन्निधाता कहा जाता था।

प्रश्न 2.
मौर्य साम्राज्य के चार प्रांतों और उनकी राजधानियों के नाम लिखिए।
उत्तर:

  • उत्तरापथ की राजधानी तक्षशिला।
  • प्राच्य की राजधानी पाटलिपुत्र।
  • दक्षिणापथ की राजधानी सुवर्णगिरी।
  • अति की राजधानी उज्जियनी या उज्जैन नगरी।

प्रश्न 3.
मौर्यों के राजनैतिक इतिहास के मुख्य स्रोत क्या-क्या हैं ?
उत्तर:

  • मेगास्थनीज की इंडिका(Indica of Magasthaneze) – मौर्यकालीन भारत के विषय में ज्ञान प्राप्त करने के लिये मेगास्थनीज द्वारा रचित ‘इण्डिका’ (Indica) एक महत्वपूर्ण ग्रंथ है, जिसमें तत्कालीन शासन व्यवस्था, समाज, राजनैतिक व आर्थिक अवस्था पर महत्वपूर्ण विवरण मिलता है।
  • कौटिल्य का अर्थशास्त्र (Kautilya’s Arthshastra) – कौटिल्य का अर्थशास्त्र भी तत्कालीन भारत के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डालता है जिससे मौर्यों के बारे में पता चलता है।
  • विशाखदत्त मद्राराक्षस (Vishakhdutta’s Mudraraksha) – इस प्रमुख ग्रंथ में नन्द वंश का चन्द्रगुप्त द्वारा नाश का वर्णन है।
  • जैन और बौद्ध साहित्य (Jains and Buddhists Literature)-जैन और बौद्ध दोनों धर्मों के साहित्य में तत्कालीन समाज, राजनीति आदि की जानकारी प्राप्त होती है।
  • अशोक के शिलालेख (Inscription of Ashoka) – स्थान-स्थान पर लगे अशोक के शिलालेख से भी मौर्यकालीन प्रशासन, धर्म, समाज अर्थव्यवस्था आदि पर प्रकाश पड़ता है।

प्रश्न 4.
मौर्य प्रशासन की जानकारी दें।
उत्तर:
मौर्य प्रशासन अत्यंत ही उच्च कोटि का था। राजा सर्वोपरि था। राजा का मंत्री आमात्य कहलाता था। मौर्य शासकों ने कठोर दंड का प्रावधान कर समाज को भय मुक्त प्रशासन प्रदान किया।

प्रश्न 5.
मौर्य शासकों द्वारा किये गये आर्थिक प्रयासों का वर्णन करें।
उत्तर:

  • कौटिल्य ने कृषकों, शिल्पियों और व्यापारियों से वसूल किये बहुत से करों का उल्लेख किया है।
  • संभवतः कर निर्धारण का कार्य सर्वोच्च अधिकारी द्वारा होता था। सन्निघाता राजकीय कोषागार एवं भण्डार का संरक्षण होता था।
  • वास्तव में कर-निर्धारण का विशाल संगठन पहली बार मौर्य काल में देखने में आया। कौटिल्य के अर्थशास्त्र में करों की सूची इतनी लंबी है कि यदि वास्तव में सभी कर राजा के लिये जाते होंगे, तो प्रजा के पास अपने भरण-पोषण के लिये नाममात्र का ही बचता होगा।
  • ग्रामीण क्षेत्रों में राजकीय भण्डारघर होते थे। इससे स्पष्ट होता है कि कर अनाज के रूप में वसूल किया जाता था। अकाल, सूखा तथा अन्य प्राकृतिक विपदा में इन्हीं अन्न-भण्डारों से स्थानीय लोगों को अन्न दिया जाता था।
  • मयूर, पर्वत और अर्धचंद्र के छाप वाली रजत मुद्राएँ मौर्य-साम्राज्य की मान्य मुद्राएँ थीं। ये मुद्राएँ कर वसूली एवं कर्मचारियों के वेतन के भुगतान में सुविधाजनक रहीं होंगी। बाजार में लेन-देन भी इन्हीं से होता था।

प्रश्न 6.
अशोक के अभिलेखों का संक्षेप में महत्त्व बताइए।
उत्तर:
यद्यपि मौर्यों के इतिहास को जानने के लिए मौर्यकालीन पुरातात्विक प्रमाण जैसे मूर्ति कलाकृतियाँ, चाणक्य का अर्थशास्त्र, मेगास्थनीज की इंडिका, जैन और बौद्ध साहित्य व पौराणिक ग्रंथ आदि बड़े उपयोगी हैं लेकिन पत्थरों और स्तंभों पर मिले अशोक के अभिलेख प्रायः सबसे मूल्यवान स्रोत माने जाते हैं।

अशोक वह पहला सम्राट था, जिसने अपने अधिकारियों और प्रजा के लिए संदेश प्राकृतिक पत्थरों और पॉलिश किये हुए स्तंभों पर लिखवाये थे। अशोक ने अपने अभिलेखों के माध्यम से धम्म का प्रचार किया। इनमें बड़ों के प्रति आदर, संन्यासियों और ब्राह्मणों के प्रति उदारता, सेवकों और दासों के साथ उदार व्यवहार तथा दूसरे के धर्मों और परंपराओं का आदर शामिल है।

प्रश्न 7.
धर्म प्रवर्त्तिका का क्या अर्थ है ?
उत्तर:
धर्म प्रवर्त्तिका का अर्थ है-धर्म फैलाने वाला अथवा धर्म का प्रचार करने वाला। कलिंग युद्ध के बाद अशोक ने बौद्ध धर्म ग्रहण कर लिया। इस धर्म के प्रचार के लिये उसने अपना पूरा समय तथा तन-मन-धन लगा दिया। इस प्रकार वह ‘धर्म प्रवर्त्तिका’ के रूप में जाना गया।

प्रश्न 8.
मौर्योत्तर युग में भारत से किन-किन वस्तुओं का निर्यात होता था ?
उत्तर:
मौर्योत्तर युग में भारत से मसाले रोम को भेजे जाते थे। इसके अलावा मलमल, मोती, रत्न, हाथी दाँत, माणिक्य भी विदेशों में भेजे जाते थे। लोहे की वस्तुएँ, बर्तन, आदि रोम साम्राज्य को भेजे जाते थे।

प्रश्न 9.
मौर्य साम्राज्य का उदय कब और किसके द्वारा हुआ? इसमें एक प्रमुख स्थान किसके द्वारा जोड़ा गया ?
उत्तर:
मगध के विकास के साथ-साथ मौर्य साम्राज्य का उदय हुआ। मौर्य साम्राज्य के संस्थापक चन्द्रगुप्त मौर्य (लगभग 321 ई० पू०) का शासन पश्चिमोत्तर में अफगानिस्तान और बलूचिस्तान तक फैला था। उनके पौत्र अशोक ने जिन्हें आरंभिक भारत का सर्वप्रसिद्ध शासक माना जा सकता हैकलिंग (आधुनिक उड़ीसा) पर विजय प्राप्त की।

प्रश्न 10.
मौर्य साम्राज्य के विस्तार का विवेचन कीजिए।
उत्तर:
मौर्यों के साम्राज्य में मध्य एशिया लाघमन (Laghman) से लेकर चोल तथा चेर साम्राज्य की सीमाओं (केरल पुत्र) सिद्ध पुत्र तक फैला हुआ है। पश्चिम में इसका विस्तार स्वार्षट से लेकर उत्तर पूर्व में बंगाल और बिहार तक फैला हुआ था। पाटलिपुत्र इनकी राजधानी थी। इन साम्राज्य के संबंध अनेक राज्यों से है। तक्षशिला, टोपरा, इंद्रप्रस्थ, कलिंग (उड़ीसा) आदि।

प्रश्न 11.
सेल्यूकस के साथ चंद्रगुप्त मौर्य के संघर्ष के क्या दो परिणाम हुए ?
उत्तर:
सेल्यूकस का चंद्रगुप्त के साथ संघर्ष 305 ई० पू० में हुआ जब उसने भारत पर आक्रमण किया था। इस संघर्ष के दो प्रमुख परिणाम अनलिखित थे-

  • सेल्यूकस की हार जिसके परिणामस्वरूप उसे चंद्रगुप्त मौर्य को वर्तमान हेरात, काबुल, कंधार और बिलोचिस्तान के चार प्रांत सौंपने पड़े।
  • चंद्रगुप्त मौर्य ने उसके बदले में सेल्यूकस को 500 हाथी भेंट किये।

प्रश्न 12.
चंद्रगुप्त मौर्य की चार सफल विजय कौन-कौन सी थी ?
उत्तर:

  1. पंजाब विजय (Victory of the Punjab) – चंद्रगुप्त मौर्य ने सिकंदर की मृत्यु के पश्चात् पंजाब को जीत लिया।
  2. मगध की विजय (Victory of Magadh) – चंद्रगुप्त मौर्य ने कौटिल्य (चाणक्य) की सहायता से मगध के अंतिम राजा घनानंद की हत्या करके मगध को जीत लिया।
  3. बंगाल विजय (Victory of Bengal) – चन्द्रगुप्त मौर्य ने पूर्वी भारत में बंगाल को जीत कर अपने अधिकार में कर लिया।
  4. दक्षिणी भारत पर विजय (Victory of South) – जैन साहित्य के अनुसार आधुनिक कर्नाटक तक उसने अपनी विजय-पताका फहराई थी।

प्रश्न 13.
अशोक के अभिलेख किन-किन भाषाओं व लिपियों में लिखे जाते थे ? उनके विषय क्या थे ?
उत्तर:

  • अशोक के अभिलेख जनता की पालि और प्राकृत भाषाओं में लिखे हुए होते थे। इनमें ब्रह्मा-खरोष्ठी लिपियों का प्रयोग हुआ था। इन अभिलेखों में अशोक का जीवन-वृत्त, उसकी आंतरिक तथा बाहरी नीति एवं उसके राज्य के विस्तार संबंधी जानकारी हैं।
  • इन अभिलेखों में सम्राट अशोक के आदेश अंकित होते थे।

प्रश्न 14.
अशोक के धम्म पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखें।
उत्तर:
‘धम्म’ संस्कृत के धर्म शब्द का प्राकृत स्वरूप है। अशोक ने इसका प्रयोग विस्तृत अर्थ में किया है। इस विषय पर विद्वानों के बीच काफी मतभेद है। बहुत-से विद्वान धम्म और बौद्ध धर्म में कोई फर्क नहीं मानते। अतः प्रारंभ में ही यह कह देना आवश्यक है कि धम्म और बौद्धध म दोनों अलग-अलग बातें हैं। बौद्धधर्म अशोक का व्यक्तिगत धर्म था। लेकिन उसने जिस धम्म की चर्चा अपने अभिलेखों में की है वह उसका सार्वजनिक धर्म था तथा विभिन्न धर्मों का सार था। यह अलग बात है कि बौद्धधर्म की कई विशेषताएँ भी उसमें मौजूद थीं।

अशोक ने अपने अभिलेखों में कई स्थान पर धम्म (धर्म) शब्द का प्रयोग किया है, किन्तु भाबरु अभिलेख को छोड़कर (जहाँ उसे बुद्ध, धम्म और संघ में अपना विश्वास प्रकट किया है। उसने कहीं भी धम्म का प्रयोग बौद्धध र्म के लिए नहीं किया है। बौद्ध धर्म के लिए ‘सर्द्धम’ या ‘संघ’ शब्द का प्रयोग किया है। इस तरह हम कह सकते हैं कि अशोक का धम्म बौद्ध धर्म नहीं था क्योंकि इसमें चार आर्य सत्यों, अष्टांगिक मार्ग तथा निर्वाण की चर्चा नहीं मिलती है।

प्रश्न 15.
‘छठी से चौथी शताब्दी ई. पू. में मगध का एक शक्तिशाली राज्य के रूप में विकास हुआ।’ इस कथन की लगभग 100 से 150 शब्दों में व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
छठी से चौथी शताब्दी ई. पू. में मगध (आधुनिक बिहार) सबसे शक्तिशाली महाजनपद बन गया। आधुनिक इतिहासकार इसके कई कारण बताते हैं

  • एक यह कि मगध क्षेत्र में खेती की उपज खास तौर पर अच्छी होती थी।
  • दूसरे यह कि लोहे की खदानें (आधुनिक झारखंड में) भी आसानी से उपलब्ध थीं जिससे उपकरण और हथियार बनाना सरल होता था।
  • जंगली क्षेत्रों में हाथी उपलब्ध थे, जो सेना के एक महत्वपूर्ण अंग थे। साथ ही गंगा और इसकी उपनदियों से आवागमन सस्ता व सुलभ होता था।
  • आरंभिक जैन और बौद्ध लेखकों ने मगध की महत्ता का कारण विभिन्न शासकों की नीतियों को बताया है। इन लेखकों के अनुसार बिम्बिसार अजातशत्रु और महापदम-नन्द जैसे प्रसिद्ध अत्यंत महत्वाकांक्षी शासक थे और इनके मंत्री उनकी नीतियाँ लागू करते थे।
  • प्रारंभ में, राजगाह (आधुनिक बिहार के राजगीर का प्राकृत नाम) मगध की राजधानी थी। यह रोचक बात है कि इस शब्द का अर्थ है ‘राजाओं का घर।’ पहाड़ियों के बीच बसा राजगाह एक किलेबंद शहर था। बाद में चौथी शताब्दी ई० पू० में पाटलिपुत्र को राजधानी बनाया गया, जिसे अब पटना कहा जाता है जिसकी गंगा के रास्ते आवागमन के मार्ग पर महत्वपूर्ण अवस्थिति थी।

प्रश्न 16.
दिगम्बर एवं श्वेताम्बर कौन थे?
उत्तर:
जैन धर्म दो सम्प्रदाय बन गए। एक दिगम्बर और दूसरा श्वेताम्बर। दिगम्बर वस्त्र नहीं धारण करते हैं जबकि श्वेताम्बर उजले वस्त्र धारण करते हैं। दिगम्बर जैन आचरण पालन में कठोर होते है, जबकि श्वेतताम्बर जैन उदार होते है। श्वेताम्बर 11 अंगों का प्रमुख धर्म मानते है और दिगम्बर अपने 24 पुराणों को। दिगम्बर सम्प्रदाय यह मानता है कि स्त्री शरीर से कैवल्य ज्ञान संभव नहीं है और कैवल्य ज्ञान प्राप्त होने पर साधकों को भोजन की आवश्यकता नहीं पड़ती। किन्तु श्वेताम्बर सम्प्रदाय ऐसा नहीं मानते। श्वेताम्बर सम्प्रदाय के अनुसार महावीर का निर्वाण के 609 वर्ष बाद (ई सन् 83) रथविलुर में भवभूति द्वारा बौद्धिक मत दिगम्बर की स्थापना हुई थी।

प्रश्न 17.
इलाहाबाद स्तंभ के ऐतिहासिक महत्त्व का मूल्यांकन कीजिए।
उत्तर:
इलाहाबाद का स्तंभ (Allahabad’s inscription) – इलाहाबाद के स्तंभ लेख से गुप्त काल के विषय में जानकारी प्राप्त होती है इसमें समुदाय की विजयों और चरित्र अंकित है। हरिषेण नामक कवि ने संस्कृत में इसे लिखा। उस काल की राजनैतिक, सामाजिक व आर्थिक अवस्था, भाषा व साहित्य की उन्नति एवं उसकी नौ विजयों का वर्णन है।

प्रश्न 18.
ऐहोल अभिलेख का ऐतिहासिक महत्त्व क्या है ?
उत्तर:
इस अभिलेख में चालुक्य राजा पुलकेशिन द्वितीय के दरबारी कवि रति कीर्ति ने संस्कृत में उसके पराक्रम का विवरण लिखा है जिसके अनुसार गुजरात के लाट, मैसूर के गंगा आदि राजाओं को हराया गया था। दक्षिणा के चेर, चोल और पांड्य शासकों को भी हराया गया था। सन् 620 में उसने हर्ष को नर्मदा नदी के तट पर हराया। जब पुलकेशिन द्वितीय ने पल्लव शासक नरसिंह वर्मन से टक्कर ली, तो फिर उसके पश्चात् 642 ई० में लड़ता हुआ युद्ध क्षेत्र में उसके हाथों मारा गया।

प्रश्न 19.
दिल्ली के लौह स्तंभ अभिलेख का क्या महत्व है ?
उत्तर:
दिल्ली में कुतुब मीनार के पास लौह स्तंभ पर किसी चंद्र नामक राजा का अभिलेख खुदा हुआ मिला है। यह अभिलेख चंद्रगुप्त विक्रमादित्य के नाम से अब जोड़ा जाता है। इस अभिलेख से पता चलता है कि चंद्र ने पश्चिमोत्तर दिशा में और बंगाल में निरंतर विजय प्राप्त की और अपने वंश की कीर्ति को चार चाँद लगा दिये।

प्रश्न 20.
जूनागढ़ शिलालेख के महत्त्व का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
जूनागढ़ का शिलालेख, गुजरात में जूनागढ़ के समीप मिला था। उस समय की प्रचलित लिपि ब्राह्मी थी। इसी लिपि में वह शिलालेख लिखा हुआ था। इस शिलालेख में अशोक के धर्म, नैतिक नियमों एवं शासन सम्बन्धी नियमों का विवरण मिला है। लोगों की जानकारी के लिए इस शिलालेख को जनसाधारण की भाषा पालि में खुदवाया था।

प्रश्न 21.
पेरीप्लस और एर्थियन पदों के अर्थ की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
पेरिप्लस एक यूनानी शब्द है जिसका शाब्दिक अर्थ है-समुद्री रास्ता और एर्थियन भी एक यूनानी नाम है जिसका प्रयोग यूनानी लाल सागर के लिए करते थे।

प्रश्न 22.
कुषाण कौन थे ?
उत्तर:
चीन की मूगनू नामक जाति से हारकर यूची जाति दक्षिण की ओर स्थान की खोज में निकल पड़ी। वह आकर आमू नदी के तट पर बस गई। यूची जाति के पाँच कबीलों में से कुषाण नामक कबीला कैडफिसेज प्रथम के नेतृत्व में शक्तिशाली बन गया। उसने मध्य एशिया से लेकर सिंधु नदी के तट तक अपना साम्राज्य फैला दिया। उसने उस क्षेत्र के पार्थियन शासकों का नामोनिशन मिटा दिया।

प्रश्न 23.
सातवाहन कौन थे?
उत्तर:
मौर्य के साम्राज्य के बिखराव के बाद सातवाहनों ने दक्कन में एक शक्तिशाली राज्य स्थापित किया। इस वंश का सबसे अच्छा शासक दोनों ही सर्वोच्च वंशों का दावा करता है। एक तरफ वह स्वयं को एक ब्राह्मण वर्ण का व्यक्ति मानता है और दूसरी ओर वह स्वयं को क्षत्रिय लोगों को नाश करने वाला बताता है। वह इस बात का भी दावा करता है कि चारों वर्गों के मध्य अंतर वर्णीय विवाह नहीं होते थे लेकिन कुछ समय बाद ये साक्ष्यों द्वारा प्रमाणित हो जाता है कि सातवाहनों ने शक राजा रुद्रदमन से वैवाहिक संबंध जोड़े थे। सातवाहन समाज में संभवत: मातरीगोत्र का अधिक सम्मान था। इस समाज में स्त्रियों को पिता के स्थान पर पति के गोत्र को माना जाता था। सातवाहनों के कई अभिलेख इतिहासकारों को प्राप्त हुए जिन पर उनके पारिवारिक और वैवाहिक रिश्तों का खाका तैयार किया है।

प्रश्न 24.
शक कौन थे ?
उत्तर:
शक मध्य एशिया के मूल निवासी थे जो उपमहाद्वीप में उत्तर पश्चिमी हिस्सों से सर्वप्रथम आये और धीरे-धीरे यहीं स्थायी रूप से बस गये। ये लोग प्रारंभ में ब्राह्मणों द्वारा म्लेच्छ (असभ्य अथवा विदेशी से आने वाले आक्रमणकारी) समझ गये। धीरे-धीरे इन्होंने भारत में उत्पन्न हुए धर्मों जैसे बौद्ध धर्म या वैष्णव मत को अपना लिया। स्थानीय लोगों के साथ वैवाहिक संबंध स्थापित किये और उत्तर पश्चिम के साथ-साथ पश्चिमी भारत के कुछ क्षेत्रों में शासन किया।

प्रश्न 25.
हर्ष चरित पर दो वाक्य लिखिए।
उत्तर:
हर्ष चरित संस्कृति में लिखी गई कन्नौज के शासक हर्षवर्द्धन की जीवनी है, इसके लेखक बाणभट्ट (लगभग सातवीं शताब्दी ई०) हर्षवर्धन के राज कवि थे।

प्रश्न 26.
बौद्ध संगीतियाँ क्यों बुलाई गई ? चतुर्थ बौद्ध संगति का क्या महत्त्व है ?
उत्तर:
गौतम बुद्ध के महापरिनिर्वाण के पश्चात् समय-समय पर बौद्ध धर्म की व्याख्या हेतु अनेक बौद्ध सभाओं का आयोजन किया गया जिन्हें संगीति के नाम से जाना जाता है।

चतुर्थ बौद्ध संगीति :
समय – प्रथम शताब्दी
स्थान – कुंडलवन (कश्मीर)
शासक – कनिष्क (कुषाण वंश)

आध्यक्षा – वसुमित्र, संगीति के उपाध्यक्ष अश्वघोष थे। महत्त्व-इस संगीति का आयोजन इस आशय से किया गया था कि बौद्धों के मतभेदों को दूर किया जा सके। इस संगीति में महासाधिकों को बोलबाला रहा। त्रिपिटक पर प्रमाणिक भास्य ‘विभाषा शास्त्र’ की रचना इसी संगीति में हुई। इस. संगीत के पश्चात् ही बौद्ध अनुयायी हीनयान तथा महायान दो समुदायों में विभाजित हो गये।

प्रश्न 27.
गौतम बुद्ध के जीवन एवं उपदेशों का वर्णन करें।
उत्तर:
गौतम बुद्ध बौद्ध धर्म के प्रवर्तक थे। उनका जन्म 563 ई० पू० में शाक्य नामक क्षत्रिय कुल में कपिलवस्तु के निकट नेपाल की तराई में अवस्थित लुम्बिनी में हुआ था। उनके पिता शुद्धोदन कपिलवस्तु के निर्वाचित राजा और गणतांत्रिक शाक्यों के प्रधान थे। इनके बचपन का नाम सिद्धार्थ था।

बचपन से ही गौतम चिन्तनशील व्यक्ति थे। इनका मन सांसारिक भोग विलास में नहीं लगता था। इनका विवाह यशोधरा से हुआ था तथा इनको एक पुत्र भी था, जिसका नाम राहुल था। एक बार इन्होंने एक वृद्ध, एक रोगी एवं एक मृत व्यक्ति को देखा। इन दृश्यों ने इनके मन में वैराग्य उत्पन्न कर दिया। 29 वर्ष की उम्र में इन्होंने घर छोड़ दिया, जिसे महाभिनिष्क्रमण कहा जाता है। ये ज्ञान की प्राप्ति के लिए जगह-जगह भटकते रहे। अन्त में 35 वर्ष की उम्र में बोधगया में एक पीपल के वृक्ष के नीचे उन्हें ज्ञान प्राप्त हुआ। तब से वे बुद्ध अर्थात् प्राज्ञावान कहलाने लगे। उन्होंने अपना पहला धार्मिक प्रवचन वाराणसी के निकट सारनाथ में दिया जिसे धर्मचक्र प्रवर्तन कहते हैं। वे लगभग 45 वर्षों तक अपने धर्म का प्रचार करते रहे एवं समकालीन सभी वर्ग के लोग उनके शिष्य बने। 483 ई० पू० में पूर्वी उत्तर प्रदेश में कुशीनगर नामक स्थान पर उनकी मृत्यु हुई। इस घटना को महापरिनिर्वाण कहते हैं।

गौतम बुद्ध व्यावहारिक सुधारक थे। वे आत्मा एवं परमात्मा से सम्बन्धित निरर्थक वाद-विवादों से दूर रहे तथा उन्होंने दोनों के अस्तित्व से इनकार किया। उन्होंने कहा कि संसार दुःखमय है और इस दुःख के कारण तृष्णा है। यदि काम, लालसा, इच्छा एवं तृष्णा पर विजय प्राप्त कर ली जाये तो निर्वाण प्राप्त हो जायेगा, जिसका अर्थ है कि जन्म एवं मृत्यु के चक्र से मुक्ति मिल जायेगी।

गौतम बुद्ध ने निर्वाण की प्राप्ति का साधन अष्टांगिक मार्ग को माना है। ये आठ साधन हैं-सम्यक् दृष्टि, सम्यक् संकल्प, सम्यक् वाक्, सम्यक् कर्म, सम्यक् आजीव, सम्यक् व्यायाम, सम्यक् स्मृति और सम्यक् समाधि। उन्होंने कहा कि न तो अत्यधिक विलाप करना चाहिए और न अत्यधिक संयम ही बरतना चाहिए। वे मध्यम मार्ग के प्रशंसक थे। उन्होंने सामाजिक आचरण के कुछ नियम निर्धारित किये थे जैसे-पराये धन का लोभ नहीं करना चाहिए, हिंसा नहीं करनी चाहिए, नशे का सेवन नहीं करना चाहिए, झूठ नहीं बोलना चाहिए तथा दुराचार से दूर रहना चाहिए।

प्रश्न 28.
महावीर के उपदेशों का वर्णन करें।
उत्तर:
महावीर के उपदेश निम्नलिखित हैं

  • सत्य-सत्य बोलना, झूठ न बोलना।
  • अहिंसा-हिंसा न करना।
  • अस्तेय-चोरी न करना।
  • अपरिग्रह-सम्पत्ति का संग्रह न करना।
  • ब्रह्मचर्य-इन्द्रियों को वश में करना।

महावीर ईश्वर में विश्वास नहीं करते थे परंतु आत्मा, कर्मफल तथा पुनर्जन्म को मानते थे।

प्रश्न 29.
जैनधर्म के प्रमुख सिद्धान्त कौन-से हैं ?
उत्तर:
जैन-धर्म के चौबीसवें तीर्थंकर वर्धमान महावीर (540 ई० पू० 468 ई०पू०) के समय जैन धर्म के सिद्धान्तों को पूर्णता प्राप्त हुई। यह धर्म मानता है कि संसार की सभी वस्तुओं में जीव है। अहिंसा का सिद्धान्त इस धर्म का मूल आधार है। मनुष्य अपने कर्मों के कारण जन्म, मृत्यु एवं पुनर्जन्म के चक्र में बंधा है। संन्यास एवं तपस्या के द्वारा मनुष्य कर्म के चक्र से मुक्ति प्राप्त कर सकता है। जैनियों का विश्वास है कि शरीर को कष्ट पहुँचाकर ही निर्वाण की प्राप्ति हो सकती है। इस धर्म के पाँच सिद्धान्त हैं-अहिंसा, सत्य, अस्तेय, (चोरी नहीं करना), असंग्रह (सम्पत्ति जमा नहीं करना) तथा ब्रह्मचर्य। इन्हें पंच महाव्रत कहा जाता है।

प्रश्न 30.
पिटक कितने हैं ? उनके नाम और विशेषताएँ लिखें।
उत्तर:
पिटक तीन हैं-सुत्तपिटक, विनयपिटक एवं अभिधम्मपिटक । इससे इन्हें त्रिपिटिक के नाम से पुकारा जाता है। गौतम बुद्ध के निर्वाण के बाद इनकी रचना की गई । सुत्तपिटक में बुद्ध के उपदेश संकलित किए गए हैं। विनयपिटक में बौद्ध संघ के नियमों का उल्लेख है। अभिधम्मपिटक में बौद्ध दर्शन का विवेचन है।

प्रश्न 31.
बौद्ध धर्म और जैन धर्म की शिक्षाओं में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
बौद्ध धर्म और जैन धर्म की शिक्षाओं में निम्न अंतर हैं-

बौद्ध धर्म जैन धर्म
1. बौद्ध धर्म ईश्वर के अस्तित्व के विषय में मौन है। 1. जैन धर्म ईश्वर के अस्तित्व को बिल्कुल नहीं मानता।
2. पूजा-पाठ, भजन-कीर्तन, कर्म के समक्ष व्यर्थ है। 2. प्रार्थना कुछ भी नहीं है, तप और व्रत ही मोक्ष प्राप्ति के साधन हैं।
3. अहिंसा सबसे बड़ा धर्म है। यज्ञ आदि में इनका विश्वास न हैं। 3. अहिंसा पर अत्यधिक बल देते हैं, जड़ पदार्थों में जीवन का आभास।
4. मोक्ष प्राप्ति के लिए अच्छे कर्म और पवित्र जीवन पर बल देता है। 4. मोक्ष प्राप्ति के लिए त्रिरत्ल पर बल देता है।

(क) सम्यक ज्ञान, (ख) सम्यक कर्म तथा, (ग) अहिंसा।

5. संघ को धर्म का प्रचार माध्यम बनाता है, मठों में अध्ययन-अध्यापन का कार्य होता है। 5. इनके संघ नहीं होते, परन्तु धर्म-प्रचार के लिए प्रचारक होते हैं।
6. बौद्ध धर्म का विस्तार देश-विदेश दोनों स्थानों पर हुआ। एशिया के कई देश इसकी छाया में आ गये थे। 6. जैन धर्म केवल भारत में ही फूला-फला, विदेशों में नहीं।

प्रश्न 32.
आप ‘जातक’ के सम्बन्ध में क्या जानते हैं ?
उत्तर:
जातक कथाओं में महात्मा गौतम बुद्ध के पूर्व जन्मों की कथाएँ संकलित हैं। ये कथाएँ पालि भाषा में हैं। इनमें तत्कालीन धार्मिक, सामाजिक और आर्थिक चित्रण मिलते हैं। जातकों का बौद्ध साहित्य में विशेष महत्व है। इन कहानियों से हमें पता चलता है कि महात्मा बुद्ध जाति प्रथा एवं ब्राह्मणों को उच्च स्थान दिये जाने के विरुद्ध थे और क्षत्रियों को ब्राह्मणों से अच्छा मानते थे। काशी, कौशल तथा मगध राज्यों की प्रसिद्ध घटनाओं का विवरण भी जातक कथाओं में मिलता है। जातक कथाएँ अपना धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व रखती हैं।

प्रश्न 33.
कृष्ण देवराय की मुख्य उपलब्धियों के बारे में बताएँ।
उत्तर:

  • कृष्ण देवराय बीजापुर और गोलकुंडा के शासकों को पराजित करने में सफल रहा।
  • उसने उड़ीसा पर भी आक्रमण किया तथा वहाँ के शासक को भी हराया।
  • उसने न केवल रायचूर दोआब पर विजय प्राप्त की बल्कि अपनी सेनाओं के साथ बहमनी राज्य के अंदर भी प्रवेश कर गया।
  • पश्चिमी समुद्र तट पर सभी स्थानीय राज्यों के साथ उसका व्यवहार बहुत ही अच्छा और मैत्रीपर्ण था। अपने इन स्थानीय राज्यों के साथ व्यापारिक सम्बन्ध बनाकर अपने राज्य को समृद्ध बनाया।
  • वह एक कुशल प्रशासक भी था। उसने अपने राज्य के उत्थान के लिए कई काम किये। उसने सिंचाई के लिए बाँध बनवाये, जिससे राज्य की कृषि-दशा में सुधार आया।
  • उसने नये मंदिरों का निर्माण करवाया और पुराने मंदिर की मरम्मत करवाई। उसने अपने दरबार में विद्वानों और गुणी लोगों को प्रश्रय दे रखा था।

प्रश्न 34.
आयंगर व्यवस्था के विषय में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर:
विजयनगर राज्य ने प्रचलित स्थानीय प्रशासन में परिवर्तन कर आयंगर व्यवस्था आरंभ की प्रत्येक ग्राम को स्वतंत्र प्रशासनिक इकाई के रूप में गठित कर प्रशासन 12 व्यक्तियों के समूह को दिया गया। यह समूह आयगार कहलाता था। ये व्यक्ति राजकीय अधिकारी थे इनका पद आनुवंशिक था। वेतन के रूप में लगान और कर मुक्त भूमि दी जाती थी। आयगार ग्राम प्रशासन की देखभाल करते एवं शांति-व्यवस्था बनाए रखते थे।

प्रश्न 35.
पानीपत की पहली लड़ाई (1526) भारत के इतिहास में एक निर्णायक लड़ाई समझी जाती है, विवेचन कीजिए।
उत्तर:

  • इस लड़ाई में लोदियों की कमर टूट गई। दिल्ली और आगरा तक का सारा प्रदेश बाबर के अधीन हो गया।
  • इब्राहीम लोदी द्वारा आगरा में एकत्र खजाना अधिकार में आ जाने से बाहर की सारी आर्थिक कठिनाइयाँ दूर हो गईं।
  • जौनपुर तक का समृद्ध क्षेत्र भी बाबर के सामने प्रशस्त था। . 4. पानीपत की लड़ाई ने उत्तर भारत का आधिपत्य के लिए संघर्ष के एक नये युग का सूत्रपात किया।

प्रश्न 36.
बाबर के बाबरनामा पर नोट लिखें।
उत्तर:
बाबर एक वीर योद्धा ही नहीं, अपितु एक विद्वान साहित्यकार भी था। उसकी रचनाओं में सबसे उत्तम उसकी आत्मकथा ‘बाबरनामा’ या ‘तुज्क-ए-बाबरी’ है। श्रीमती बैबरिज के अनुसार, “बाबर की आत्मकथा एक ऐसा अमूल्य भण्डार है जिसे सेंट अगस्टॉइ तथा रूसो के स्वीकृति वचन और गिब्बन तथा न्यूटन की आत्म कथाओं के समकक्ष रखा जा सकता है।” बाबर ने अपनी आत्मकथा को अपनी मातृ-भाषा तुर्की में लिखा था। फारसी में इसका अनुवाद गुलबदन ने किया। अंग्रेजी में श्रीमती बैवरिज तथा हिन्दी में केशव कुमार ठाकुर के अनुवाद बहुत प्रसिद्ध हैं।

विषय – बाबरनामा में बाबर के जीवन की महत्वपूर्ण घटनाओं का वर्णन है। इसमें फरगान, समरकन्द, बाबर की काबुल विजय, भारत के उत्तर-पश्चिम प्रदेश तथा पानीपत, खनवाह, चन्देरी और घाघरा आदि के प्रसिद्ध भारतीय युद्धों का भी वर्णन है। बाबर के जीवन में स्थिरता का अभाव था। अतः बाबर की आत्मकथा में केवल 18 वर्ष की घटनायें ही मिलती हैं।

भाषा-शैली – बाबरनामा की भाषा तुर्की है। इसमें अरबी-फारसी के शब्दों की अधिकता है। बाबर की भाषा सरल, स्वाभाविक तथा प्रवाहमयी है। उसकी वर्णन-शैली भी साधारण और स्पष्ट है। उसे जब अधिक समय मिला तो उसने विस्तार में लिखा है और जब कम समय मिला तो संक्षेप में वर्णन किया है।

विशेषताएँ-1. बाबर ने सरल और स्पष्ट वर्णन किया है। उसने अपनी भूलों और कमजोरियों को भी नहीं छुपाया। 2. बाबर को प्रकृति से बड़ा अनुराग था। बाबरनामा में प्राकृतिक दृश्यों का सुन्दर.वर्णन किया गया है। 3. बाबरनामा के वर्णन सजीव और रोचक हैं। 4. बाबरनामा में तत्कालीन भारत का प्रामाणिक इतिहास है।

महत्त्व – बाबरनामा साहित्यिक तथा ऐतिहासिक दोनों दृष्टियों से एक महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ है। इस ग्रन्थ में मध्य एशियाई राजनीति, तैमूरों के इतिहास, मंगोलों और चुगताइयों के आपसी सम्बन्ध, बाबर की तत्कालीन कठिनाइयाँ, ईरानी, उजबेग शक्ति के उत्थान और संघर्ष तथा बाबर के संघर्षमय जीवन की जानकारी मिलती है। इसी प्रकार यह ग्रन्थ तत्कालीन भारत और मध्य एशिया की सांस्कृतिक और राजनैतिक जानकारी के लिए एक महत्त्वपूर्ण स्रोत है।

प्रश्न 37.
अकबर की धार्मिक नीति की समीक्षा करें।
उत्तर:
अकबर की धार्मिक नीति की विवेचना निम्नलिखित है-

  • आरम्भ में अकबर एक कट्टरपंथी मुसलमान था परंतु बैरम खाँ, अब्दुल रहीम खानखाना, फैजी, अबुल फजल, बीरबल जैसे उदार विचारों वाले लोगों के सम्पर्क से उसका दृष्टिकोण बदल गया। हिंदू रानियों का भी उस पर प्रभाव पड़ा। अब वह अन्य धर्मों के प्रति उदार हो गया था।
  • 1575 ई० में उसने इबादतखाना बनवाया, जिसमें विभिन्न धर्मों के विद्वानों को अपने-अपने विचार प्रकट करने की पूर्ण स्वतंत्रता थी। अक्सर बहस करते समय मौलवी गाली-गलौच पर उतर जाते थे। अत: अकबर को इस्लाम धर्म में रुचि कम हो गई।
  • वह स्वयं तिलक लगाने लगा और गौ की पूजा करने लगा। अत: कट्टरपंथी मुसलमान उसे काफिर कहने लगे थे।
  • 1579 ई० में उसने अपने नाम का खुतवा पढ़वा कर अपने आप को धर्म का प्रमुख घोषित कर दिया। इससे उलेमाओं का प्रभाव कम हो गया।
  • अंत में उसने सभी धर्मों का सार लेकर नया धर्म चलाया, जिसे दीन-ए-इलाही के नाम से जाना जाता है। अपने धर्म को उसने किसी पर थोपने का प्रयास नहीं किया।
  • उसने रामायण, महाभारत आदि कई हिन्दु ग्रंथों का भी फारसी में अनुवाद करवाया। वह धर्म को राजनीतिक से दूर रखता था।
  • फतेहपुर सीकरी में एक महल, जोधाबाई का महल में भारतीय संस्कृति की स्पष्ट झलक देखते हैं।

प्रश्न 38.
अकबर को ‘राष्ट्रीय शासक’ क्यों कहा जाता है ?
उत्तर:
अनेक विद्वान और व्यक्ति जलालुद्दीन अकबर (1556-1605) को मुगल बादशाहों में महानतम मानते हैं क्योंकि उसने न केवल अपने साम्राज्य का विस्तार ही किया बल्कि इसे अपने समय का विशालतम, दृढ़तम और सबसे समृद्ध राज्य बनाकर सुदृढ़ भी किया। अकबर हिंदुकुश पर्वत तक अपने साम्राज्य की सीमाओं के विस्तार में सफल हुआ और इसने ईरान के सफानियों और तूरान (मध्य एशिया) के उजबेकों की विस्तारवादी योजनाओं पर लगाम लगाए रखी। अकबर के बाद जहाँगीर (1605-27) शाहजहाँ (1628-58) और औरंगजेब (1658-1707) के रूप में भिन्न-भिन्न व्यक्तित्व वाले तीन बहुत योग्य उत्तराधिकारी हुए। इनके अधीन क्षेत्रीय विस्तार जारी रहा यद्यपि इसकी गति काफी धीमी रही। तीन शासकों ने शासन के विविध यंत्रों को बनाए रखा और उन्हें सुदृढ़ किया। अतः अकबर राष्ट्रीय शासक था।

प्रश्न 39.
मुगलकालीन केन्द्रीय प्रशासन की मुख्य विशेषताओं का वर्णन करें।
उत्तर:
मुगलकालीन केन्द्रीय प्रशासन की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित प्रकार थी-

  • वकील – इसे बजीर भी कहा जाता था। यह केन्द्रीय सरकार के समस्त विभागों का अध्यक्ष था। अकबर ने बैरम खाँ के पश्चात् इस पद का अंत कर दिया।
  • दीवान या वित्तमंत्री – आर्थिक विषयों में यह बादशाह का प्रतिनिधि था।
  • मीरबख्शी – यह सेना संबंधी सभी कार्य देखता था। यह सेना, मनसबदार एवं घोडों संबंधी व्यवस्था देखता था।
  • प्रधान काजी – यह प्रांत, जिला एवं नगर के काजियों की नियुक्ति करता था। फौजदारी मुकदमों को देखता था।
  • प्रांतीय शासन – सुबेदार प्रांत अथवा सूबे का प्रमुख होता था। दीवान सूबे में वित्त व्यवस्था देखता था। कोतवाल सूबे की आंतरिक सुरक्षा देखता था।
  • जिला शासन – प्रत्येक प्रांत जिलों में विभक्त था। फौजदार जिले का प्रमुख अधिकारी था।

प्रश्न 40.
शेरशाह सूरी के भू-राजस्व का वर्णन कीजिए।
उत्तर:

  • शेरशाह ने भूमि पर लगान की दर निश्चित करने के लिए कृषि योग्य भूमि को तीन भागों में बाँटा। अच्छी, खराब और साधारण स्तर की भूमि। तीनों प्रकार की भूमि की उपज निश्चित करके उनके औसत पर लगान निश्चित किया जाता था।
  • लगान उपज के अनुसार निश्चित किया जाता था। साधारण उपज वाली भूमि की उपज का एक-तिहाई भाग लगान के रूप में देना होता था। लगान अनाज या धन के रूप में तथा नकद. सरकारी कोष में जमा किया जा सकता था।
  • फसल नष्ट होने पर किसानों का लगान माफ कर दिया जाता था। उन्हें राजकोष से आर्थिक सहायता भी दी जाती थी। सैनिकों को आदेश था कि वे कूच के समय फसल न खराब करें। यदि अनिवार्य परिस्थितियों के कारण सैनिकों द्वारा खड़ी फसल को नुकसान पहुंचता था तो राज्य उसकी क्षतिपूर्ति करता था।
  • सरकार और किसानों के बीच पट्टे होते थे। इन पट्टों पर भूमि का क्षेत्रफल, भूमि की श्रेणी तथा लगान की दर लिखी होती थी। किसान उस पर हस्ताक्षर करता था। इस पट्टे से किसान के अधिकार सुरक्षित हो जाते थे।

Bihar Board 12th Geography Objective Important Questions Part 3

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Bihar Board 12th Geography Objective Important Questions Part 3

प्रश्न 1.
निम्नलिखित में से कौन चीनी का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है ?
(a) महाराष्ट्र
(b) पंजाब
(c) उत्तर प्रदेश
(d) तमिलनाडु
उत्तर:
(c) उत्तर प्रदेश

प्रश्न 2.
भारत द्वारा भेजा गया पहला मानवरहित अंतरिक्ष यान कौन था ?
(a) आर्यभट्ट
(b) भास्कर
(c) रोहिणी
(d) एसएलवी
उत्तर:
(a) आर्यभट्ट

प्रश्न 3.
शुष्क कृषि में निम्न में से कौन-सी फसल नहीं बोई जाती?
(a) रागी
(b) ज्वार
(c) मूंगफली
(d) गन्ना
उत्तर:
(d) गन्ना

प्रश्न 4.
बोकारो इस्पात केन्द्र किस राज्य में स्थित है ?
(a) मध्य प्रदेश
(b) छत्तीसगढ़
(c) झारखण्ड
(d) ओडिशा
उत्तर:
(c) झारखण्ड

प्रश्न 5.
भारत में विश्व की कुल जनसंख्या के कितने प्रतिशत लोग बसते हैं ?
(a) 15%
(b) 16%
(c) 25%
(d) 26%
उत्तर:
(b) 16%

प्रश्न 6.
झरिया कोयला क्षेत्र किस राज्य में स्थित है ?
(a) ओडिशा
(b) आंध्र प्रदेश
(c) बिहार
(d) झारखण्ड
उत्तर:
(d) झारखण्ड

प्रश्न 7.
तेलंगाना राज्य की राजधानी है।
(a) विजयवाड़ा
(b) हैदराबाद
(c) विशाखापत्तनम
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(b) हैदराबाद

प्रश्न 8.
2011 जनगणना के अनुसार किस राज्य का जनघनत्व सबसे अधिक है ?
(a) कर्नाटक
(b) उत्तर प्रदेश
(c) बिहार
(d) केरल
उत्तर:
(c) बिहार

प्रश्न 9.
सुन्दरवन किस राज्य में स्थित है ?
(a) गोवा
(b) पश्चिम बंगाल
(c) पंजाब
(d) केरल
उत्तर:
(b) पश्चिम बंगाल

प्रश्न 10.
जमशेदपुर किस प्रकार का नगर है ?
(a) औद्योगिक
(b) खनन
(c) पर्यटन
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(a) औद्योगिक

प्रश्न 11.
हरित क्रांति संबंधित है
(a) खाद्यान्न उत्पादन से
(b) दूध के उत्पादन से
(c) दाल के उत्पादन से
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(a) खाद्यान्न उत्पादन से

प्रश्न 12.
कौन राज्य चीन की सीमा पर स्थित है ?
(a) असम
(b) गुजरात
(c) नगालैण्ड
(d) अरुणाचल प्रदेश
उत्तर:
(d) अरुणाचल प्रदेश

प्रश्न 13.
केन्द्र सरकार द्वारा चलाई गई ‘हरियाली प्रोजेक्ट’ संबंधित है
(a) वायु संरक्षण से
(b) जल संरक्षण से
(c) दोनों से
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(c) दोनों से

प्रश्न 14.
एन्नौर पत्तन किस राज्य में स्थित है ?
(a) तमिलनाडु
(b) कर्नाटक
(c) केरल
(d) आंध्र प्रदेश
उत्तर:
(d) आंध्र प्रदेश

प्रश्न 15.
अम्लीय वर्षा का कारण कौन है ?
(a) भूमि प्रदूषण
(b) वायु प्रदूषण
(c) जल प्रदूषण
(d) ध्वनि प्रदूषण
उत्तर:
(b) वायु प्रदूषण

प्रश्न 16.
निम्नलिखित में से कौन पेय फसल है ?
(a) चाय
(b) कॉफी
(c) दोनों (a) और (b)
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(c) दोनों (a) और (b)

प्रश्न 17.
भारत में पूर्ण जनगणना पहली बार कब हुई थी ?
(a) 1881
(b) 1981
(c) 1781
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(a) 1881

प्रश्न 18.
2011 की जनगणना के अनुसार भारत का जनघनत्व है
(a) 282 व्यक्ति/वर्ग किमी०
(b) 382 व्यक्ति/वर्ग किमी०
(c) 482 व्यक्ति/वर्ग किमी०
(d) 400 व्यक्ति/वर्ग किमी०
उत्तर:
(b) 382 व्यक्ति/वर्ग किमी०

प्रश्न 19.
किस राज्य में साक्षरता दर सबसे अधिक है ?
(a) केरल
(b) बिहार
(c) गोवा
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(a) केरल

प्रश्न 20.
उत्तर अटलांटिक मार्ग जोड़ता है।
(a) उत्तर अमेरिका को यूरोप से
(b) उत्तर अमेरिका को अफ्रीका से
(c) यूरोप को एशिया से
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(a) उत्तर अमेरिका को यूरोप से

प्रश्न 21.
भारत में नगरीय आबादी है
(a) 31%
(b) 41%
(c) 51%
(d) 619
उत्तर:
(a) 31%

प्रश्न 22.
‘सम्भववाद’ अवधारणा में किस घटक को महत्त्वपूर्ण माना गया है ?
(a) प्राकृतिक घटक
(b) मानवीय घटक
(c) दोनों (a) और (b)
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(c) दोनों (a) और (b)

प्रश्न 23.
वाल्मीकिनगर टाईगर रिजर्व कहाँ स्थित है ?
(a) बिहार
(b) मध्य प्रदेश
(c) पंजाब
(d) केरल
उत्तर:
(a) बिहार

प्रश्न 24.
उत्तर भारत में सिंचाई का मुख्य स्रोत क्या है ?
(a) तालाब
(b) नहर
(c) नलकूप
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(b) नहर

प्रश्न 25.
धारावी मलिन बस्ती किस नगर में स्थित है ?
(a) कोलकाता
(b) मुम्बई
(c) दिल्ली
(d) हैदराबाद
उत्तर:
(b) मुम्बई

प्रश्न 26.
निम्न में से कौन परम्परागत ऊर्जा का स्रोत है ?
(a) कोयला
(b) पेट्रोलियम
(c) प्राकृतिक गैस
(d) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(d) उपरोक्त सभी

प्रश्न 27.
‘बीटल’ नामक कीड़ा किस फसल के बागान में लगता है ?
(a) रबड़
(b) कपास
(c) गन्ना
(d) कहवा
उत्तर:
(d) कहवा

प्रश्न 28.
भारत का जावा किस क्षेत्र को कहा जाता है ?
(a) रुड़की
(b) गोरखपुर
(c) शाहजहाँपुर
(d) बरेली
उत्तर:
(b) गोरखपुर

प्रश्न 29.
संसार के अधिकांश महान पत्तन किस प्रकार वर्गीकृत किए गए हैं :
(a) नौसेना पत्तन
(b) विस्तृत पत्तन
(c) तैल पत्तन
(d) औद्योगिक पत्तन
उत्तर:
(a) नौसेना पत्तन

प्रश्न 30.
निम्नलिखित महाद्वीपों में से किस एक से विश्व व्यापार का सर्वाधिक प्रवाह होता है ?
(a) एशिया
(b) यूरोप
(c) उत्तरी अमेरिका
(d) अफ्रीका
उत्तर:
(b) यूरोप

प्रश्न 31.
दक्षिण अमरीकी राष्ट्रों में से कौन ओपेक का सदस्य है ?
(a) ब्राजील
(b) वेनेजुएला
(c) चिली
(d) पेरू
उत्तर:
(c) चिली

प्रश्न 32.
निम्न व्यापार समूहों में से भारत किसका एक सहसदस्य है ?
(a) साफ्टा (SAFTA)
(b) आसियान (ASEAN)
(c) ओइसीडी (OECD)
(d) ओपेक (OPEC)
उत्तर:
(a) साफ्टा (SAFTA)

प्रश्न 33.
कोलम्बिया और ब्राजील में किस फसल का उत्पादन सबसे अधिक होता है ?
(a) गेहूँ
(b) मक्का
(c) कहवां
(d) चावल
उत्तर:
(c) कहवां

प्रश्न 34.
संयुक्त राज्य अमेरिका में निम्नलिखित फसलों में से किस फसल का उत्पादन सबसे अधिक होता है ?
(a) मक्का
(b) गेहूँ
(c) चाय
(d) कहवा
उत्तर:
(a) मक्का

प्रश्न 35.
दो देशों के बीच वस्तुओं और सेवाओं के आदान-प्रदान को क्या कहते हैं ?
(a) अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार
(b) क्षेत्रीय व्यापार
(c) व्यापार
(d) व्यापार की संरचना
उत्तर:
(a) अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार

प्रश्न 36.
व्यापार संघों की सदस्यता पर किन तीन बातों का प्रभाव पड़ता है ?
(a) दूरी, उपनिवेशी सम्बन्धों की परम्परा, भू-राजनैतिक सहयोग
(b) संसाधनों की उपलब्धता, आवश्यक पूँजी, प्रौद्योगिकी की दक्षता
(c) व्यापार की मात्रा, व्यापार की संरचना तथा व्यापार की दिशा
(d) व्यापार की मात्रा, व्यापार मूल्य तथा व्यापार की संरचना
उत्तर:
(a) दूरी, उपनिवेशी सम्बन्धों की परम्परा, भू-राजनैतिक सहयोग

प्रश्न 37.
अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार कितने प्रकार का होता है ?
(a) दो
(b) तीन
(c) चार
(d) पांच
उत्तर:
(a) दो

प्रश्न 38.
आयात एवं निर्यात के बीच मूल्यों के अन्तर को क्या कहते हैं ?
(a) असंतुलित व्यापार
(b) विलोम व्यापार
(c) व्यापार संतुलन
(d) अनुकूल व्यापार
उत्तर:
(c) व्यापार संतुलन

प्रश्न 39.
पेट्रोलियम निर्यातक देशों के संघटन ओपेक का गठन कब हुआ और निम्नलिखित में से कितने देश इसके सदस्य हैं ?
(a) 1950-12 सदस्य
(b) 1960-13 सदस्य
(c) 1970-15 सदस्य
(d) 1980-13 सदस्य
उत्तर:
(b) 1960-13 सदस्य

प्रश्न 40.
1996 में कुल विश्व निर्यात का कितना प्रतिशत भाग सेवाओं का था ?
(a) 50%
(b) 25%
(c) 35%
(d) 5%
उत्तर:
(b) 25%

प्रश्न 41.
निम्नलिखित में से किस राज्य में प्रमुख तेल क्षेत्र स्थित है ?
(a) असम
(b) बिहार
(c) राजस्थान
(d) तमिलनाडु
उत्तर:
(a) असम

प्रश्न 42.
समुद्र तट से दूर स्थल खंड के पत्तन को क्या कहते हैं ?
(a) आन्तरिक पत्तन
(b) नेवी पत्तन
(c) आन्त्रेपो पत्तन
(d) तेल पत्तन
उत्तर:
(a) आन्तरिक पत्तन

प्रश्न 43.
चाय उत्पादन के लिए कितने तापमान की आवश्यकता होती है ?
(a) 25°C से 30°C
(b) 30°C से 40°C
(c) 50°C से 60°C
(d) 5°C से 15°C
उत्तर:
(a) 25°C से 30°C

प्रश्न 44.
निम्नलिखित में कौन-सा खनिज ‘भूरा हीरा’ के नाम से जाना जाता है ?
(a) लौह
(b) लिगनाइट
(c) मैंगनीज
(d) अभ्रक
उत्तर:
(c) मैंगनीज

प्रश्न 45.
निम्नलिखित में कौन-सा ऊर्जा का अनवीकरणीय स्त्रोत हैं ?
(a) जल
(b) सौर
(c) ताप
(d) पवन
उत्तर:
(c) ताप

प्रश्न 46.
किस धातु का प्रयोग बिजली की तारें आदि बनाने में किया जाता है ?
(a) लोहा
(b) अभ्रक
(c) जिंक
(d) ताँबा
उत्तर:
(d) ताँबा

प्रश्न 47.
उड़ीसा के मयूरभंज, क्योंझर तथा बोनाई क्षेत्रों में कौन सी धातु मिलती है ?
(a) ताँबा
(b) मैंगनीज
(c) लोहा
(d) अभ्रक
उत्तर:
(c) लोहा