Bihar Board Class 11 Economics Solutions Chapter 5 केंद्रीय प्रवृत्ति की माप

Bihar Board Class 11 Economics Solutions Chapter 5 केंद्रीय प्रवृत्ति की माप Textbook Questions and Answers, Additional Important Questions, Notes.

BSEB Bihar Board Class 11 Economics Solutions Chapter 5 केंद्रीय प्रवृत्ति की माप

Bihar Board Class 11 Economics केंद्रीय प्रवृत्ति की माप Textbook Questions and Answers

केंद्रीय प्रवृत्ति की माप के प्रश्न उत्तर Bihar Board Class 11 प्रश्न 1.
निम्नलिखित स्थितियों में कौन-सा औसत उपयुक्त होगा?
(क) तैयार वस्त्रों के औसत आकार।
(ख) एक कक्षा में छात्रों की औसत बौद्धिक प्रतिभा।
(ग) एक कारखाने में प्रति पाली औसत उत्पादन।
(घ) एक कारखाने में औसत मजदूरी।
(ङ) जब औसत से निरपेक्ष विचलनों का योग न्यूनतम हो।
(च) जब चरों की मात्रा अनुपात में हो।
(छ) मुक्तांत बारम्बारता बंटन के मामले में।
उत्तर:
(क) बहुलक
(ख) मध्यिका
(ग) बहुलक या समांतर माध्य
(घ) बहुलक समांतर माध्य
(ङ) समांतर माध्य
(च) माध्यिका
(छ) मध्यिका

केंद्रीय प्रवृत्ति की विशेषताएं Bihar Board Class 11 प्रश्न 2.
प्रत्येक प्रश्न के सामने दिए गए बहु विकल्पों में से सर्वाधिक उचित विकल्प को चिह्नित करें –

1. गुणात्मक मापन के लिए सर्वाधिक उपयुक्त औसत (Average) है।
(क) समांतर माध्य
(ख) माध्यिका
(ग) बहुलक
(घ) ज्यामितीय माध्य
(ङ) उपर्युक्त में से कोई नहीं

2. चरम पदों की उपस्थिति से कौन-सा सर्वाधिक प्रभावित होता है –
(क) माध्किा
(ख) बहुलक
(ग) समांतर माध्य
(घ) ज्यामितीय माध्य
(ङ) हरात्मक माध्य

3. समांतर माध्य से मूत्यों के किसी समुच्चय में विचलन का बीजगणितीय योग है।
(क) द
(ख) 0
(ग) उपर्युक्त कोई भी नहीं
उत्तर:

  1. (ग)

माध्यिका की चार विशेषताएं लिखिए Bihar Board Class 11 प्रश्न 3.
बताइए कि निम्नलिखित कथन सही है या गलत –
(क) माध्यिका से मदों के विचलनों का योग शून्य होता है।
(ख) शृंखलाओं की तुलना के लिए मात्र औसत ही पर्याप्त नहीं है।
(ग) समांतर माध्य एक स्थैतिक मूल्य है।
(घ) उच्च चतुर्थक शीर्ष 25 प्रतिशत मदों का निम्नतम मान है।
(ङ) माध्यिका चमर प्रेक्षणों द्वारा अनुचित रूप से प्रभावित होती है।
उत्तर:
(क) गलत
(ख) सही
(ग) गलत
(घ) सही
(ङ) गलत

Kendriya Pravritti Ki Map Bihar Board Class 11 प्रश्न 4.
यदि नीचे दिए गए आंकड़ों का समांतर माध्य (Arithmetic mean) 28 है, तो –
(क) लुप्त आवृत्ति का पता करें और
(ख) श्रृंखला की माध्यिका ज्ञात करें।
केंद्रीय प्रवृत्ति की माप के प्रश्न उत्तर Bihar Board Class 11
उत्तर:
लुप्त आवृत्ति –
केंद्रीय प्रवृत्ति की विशेषताएं Bihar Board Class 11
AM = 35
\(\bar { x } \) = AM + \(\frac { Σfd’ }{ Σf } \) × C = 35 + \(\frac{-70}{n+80}\) × 10 = 35 + \(\frac{700}{n+80}\)
अतः 35 – \(\frac{700}{n+80}\) = 28 (दिया हुआ है)
अथवा, \(\frac{-700}{n+80}\) = \(\frac{28-35}{1}\) = \(\frac{-7}{1}\); अथवा, \(\frac{100}{n+80}\) = 1
अथवा, n + 80 = 100 अथवा n = 100 – 80 = 20
अतः, आवृत्ति 20 है।

माध्यिका की चार विशेषताएं लिखिए Bihar Board Class 11
M माध्यका = \(\frac{N}{2}\) का मूल्य = \(\frac{100}{2}\) = 50 वें मद का मूल्य। यह मूल्य 20-30 वर्गान्तर में आता है।
माध्यिका = \(l_{1}+\frac{\frac{N}{2}-c f}{f} \times 1\) = 20 + \(\frac{50-30}{27}\) × 10
= 20 + \(\frac{200}{7}\) 20 + 7.41 = 27.41

Kendriya Pravarti Ki Visheshtaen Bihar Board Class 11  प्रश्न 5.
निम्नलिखित सारणी में एक कारखाने के 10 मजदूरों की दैनिक आय दी गई है। इनका समांतर माध्य ज्ञात कीजिए?
Kendriya Pravritti Ki Map Bihar Board Class 11
उत्तर:
\(\bar { X } \) = \(\frac { X_{ 1 }+X_{ 2 }+X_{ 3 }+…..X_{ N } }{ N } \)
\(\bar { X } \) = \(\frac{120+150+180+200+300+220+350+370+260}{10}\)
= \(\frac{2400}{10}\) = 240 रुपए

केंद्रीय प्रवृत्ति की माप का अर्थ लिखिए Bihar Board Class 11 प्रश्न 6.
निम्नलिखित सूचना 150 परिवारों की दैनिक आय से संबद्ध है। समांतर माध्य का परिकलन कीजिए।
Kendriya Pravarti Ki Visheshtaen Bihar Board Class 11
उत्तर:
पहले से अधिक संचयी बारम्बारता की वर्ग आवृत्तियाँ ज्ञात करें।
केंद्रीय प्रवृत्ति की माप का अर्थ लिखिए Bihar Board Class 11
\(\bar { X } \) = A + \(\frac { Σfd’ }{ N } \) × C = 100 + \(\frac{245}{150}\) × 10
= 100 + 16.33
= 116.33

Kendriya Pravritti Ki Visheshtaen Bihar Board Class 11 प्रश्न 7.
नीचे एक गाँव के 380 परिवारों की जोतों का आकार दिया गया है। जोत का माध्यिका ज्ञात कीजिए।
Kendriya Pravritti Ki Visheshtaen Bihar Board Class 11
उत्तर:
जोत के माध्यिका आकार को गणना (Calculation Meidan Size of Holding)
Kendriya Pravarti Ki Visheshtaen Bataiye Bihar Board Class 11
मध्यिका =\(\frac{N}{2}\) मद का मूल्य = \(\frac{65}{2}\) = 190 मद का मूल्य
अतः मद का मूल्य 200 – 300 वर्गान्तर में स्थित है।
मध्यिका = \(l_{1}+\frac{\frac{N}{2}-c f}{f} \times n\)
= 200 + \(\frac{190-129}{148}\) × 100
= 200 + \(\frac{61}{148}\) × 100
= 200 + \(\frac{6100}{148}\) = 200 + 41.21
= 241.21 एकड़

Kendriya Pravarti Ki Visheshtaen Bataiye Bihar Board Class 11 प्रश्न 8.
निम्न श्रृंखला किसी कंपनी में नियोजित मजदूरों की दैनिक आय से सम्बद्ध है। अभिकलन कीजिए –
(क) निम्नतम 50 प्रतिशत मजदूरों की उच्चतम आय
(ख) शीर्ष 25 प्रतिशत मजदूरों द्वारा अर्जित न्यूनतम आय और
(ग) निम्नतम 25 प्रतिशत मजदूरों द्वारा अधिकतम आय।
Bihar Board Class 11 Economics Chapter 5 केंद्रीय प्रवृत्ति की माप Part - 2 img 9
उत्तर:
Bihar Board Class 11 Economics Chapter 5 केंद्रीय प्रवृत्ति की माप Part - 2 img 10
माध्यिका = \(\frac{N}{2}\) मद का मूल्य = \(\frac{65}{2}\) = 325 मद का मूल्य
32.5 मद का मूल्य 24.5 – 29.5 में निहित है।
Bihar Board Class 11 Economics Chapter 5 केंद्रीय प्रवृत्ति की माप Part - 2 img 11
16.25 माध का मूल्य  19.5 – 24.5 वर्गान्तर में निहित है
Bihar Board Class 11 Economics Chapter 5 केंद्रीय प्रवृत्ति की माप Part - 2 img 81
तृतीय चतुर्यक (Q3) = (\(\frac{3N}{4}\)) मद का मूल्य
48.75 मद का मूल्य 24.5 – 29.5 वर्गान्तर में है।
Bihar Board Class 11 Economics Chapter 5 केंद्रीय प्रवृत्ति की माप Part - 2 img 82

केंद्रीय प्रवृत्ति की विशेषताएं बताइए Bihar Board Class 11 प्रश्न 9.
निम्न सारणी में किसी गाँव के 150 खेतों में गेहूँ की प्रति हेक्टेयर पैदावार की गई है। उत्पादित फसलों का समांतर माध्य, माध्यिका तथा बहूलक परिकल्पित कीजिए।
Bihar Board Class 11 Economics Chapter 5 केंद्रीय प्रवृत्ति की माप Part - 2 img 12
उत्तर:
माध्य तथा माध्यिका की गणना
Bihar Board Class 11 Economics Chapter 5 केंद्रीय प्रवृत्ति की माप Part - 2 img 13
A.M. = 63.5
C = 3
Bihar Board Class 11 Economics Chapter 5 केंद्रीय प्रवृत्ति की माप Part - 2 img 14
बहुलक की गणना – विद्यादर्धि स्वयं ज्ञात करें।
उत्तर:
63.29 की ग्राम प्रति हेक्टयर।

Bihar Board Class 11 Economics केंद्रीय प्रवृत्ति की माप Additional Important Questions and Answers

अति लघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

केंद्रीय प्रवृत्ति Bihar Board Class 11 प्रश्न 1.
एक कक्षा में 6 विद्यार्थियों के किसी विषय में प्राप्तांक प्रमशः 10, 35, 35, 40, 35, 50 हैं तो बहुलक (Mode) मूल्य क्या होगा?
उत्तर:
बहुलक मूल्य (Z) = 35

प्रश्न 2.
दस संख्याओं की समान्तर माध्य (Arithmetic mean) 18 है। यदि 3 को प्रत्येक संख्या में जोड़ दिया जाए तो नई सामन्तर माध्य क्या होगा?
उत्तर:
नई समान्तर माध्य = 21

प्रश्न 3.
खुले सिरे के वितरण में कौन-सी सांख्यिकी माध्य (Mean) की गणना करना आसान है?
उत्तर:

  1. सांख्यिकी
  2. बहुलक।

प्रश्न 4.
समान्तर माध्य (Average Mean), माध्यिका (Median) तथा बहुलक (Mode) के संबंध को व्यक्त करने वाला सूत्र लिखिए।
उत्तर:
Z = 3m = 2x

प्रश्न 5.
एक सामान्य रूप से असमानिक बंटन में समान्तर माध्य (X) = 10 माध्यिका (M) = 10 है तो बहुलक (Z) क्या होगा?
उत्तर:
Z = 30 – 20 = 10

प्रश्न 6.
चतुर्थक (Quartiles) किसे कहते हैं?
उत्तर:
चतुर्थक वे मूल्य होते हैं जो क्रमबद्ध आंकड़ों को चार बराबर भागों में बाँटते हैं।

प्रश्न 7.
एक व्यक्तिगत समंकमाला में समान्तर माध्य (Arithmetic mean) की गणना कैसे की जाती है?
उत्तर:
\(\bar{X}=\frac{\sum X}{N}\)

प्रश्न 8.
दूसरे चतुर्थक (Q2) का मूल्य किसी सांख्यिकीय माध्य के बराबर होता है?
उत्तर:
दूसरा चतुर्थक = माध्यिका।

प्रश्न 9.
बहुलक (Mode) का बिन्दुरेखीय माप किसके द्वारा किया जाता है?
उत्तर:
आवृत्ति आयत द्वारा।

प्रश्न 10.
माध्यिका (Median) की बिन्दुरेखीय गणना किसके द्वारा की जाती है?
उत्तर:
संचयी आवृत्ति वक्र (ओजाइव) द्वारा।

प्रश्न 11.
सामूहिक माध्य क्या है?
उत्तर:
जब दो मदों से अधिक श्रेणियों के माध्य की गणना एक साथ की जाती है तो इसे सामूहिक माध्य कहा जाता है।

प्रश्न 12.
बहुलक का एक लाभ लिखें।
उत्तर:
वह चरम मूल्यों से प्रभावित नहीं होता।

प्रश्न 13.
बहुलक को ज्ञात करते समय प्रयोग में आने वाली सारणियों के नाम लिखें।
उत्तर:

  1. समूहीकरण सारणी, तथा
  2. विश्लेषण सारणी।

प्रश्न 14.
ओजाइब वक्र की सहायता से माध्यिका को कैसे निकाला जाता है?
उत्तर:
जिस बिन्दु पर ‘से कम’ ओजाइब वक्र तथा ‘से अधिक’ ओजाइव वक्र एक दूसरे को काटते हैं, वहीं माध्यिका का निर्धारण होता है।

प्रश्न 15.
केन्द्रीय प्रवृत्ति के माप का अन्य नाम क्या है?
उत्तर:
सांख्यिकी माध्य।

प्रश्न 16.
केन्द्रीय प्रवृत्ति के किन्हीं तीन प्रचलित मापों के नाम लिखिए।
उत्तर:

  1. माध्य
  2. माध्यिका
  3. बहुलक

प्रश्न 17.
समान्तर माध्य क्या है?
उत्तर:
समान्तर माध्य वह मूल्य है जो किसी श्रृंखला के सभी मदों के मूल्यों के जोड़ को उनकी कुल संख्या से भाग देने पर प्राप्त होता है।

प्रश्न 18.
समान्तर माध्य की गणना का सूत्र लिखिए।
उत्तर:
\(\bar{X}=\frac{\sum X}{N}\)

प्रश्न 19.
‘बहुलक’ किसे कहते हैं?
उत्तर:
वह मूल्य जो समंकमाला में सबसे अधिक बार आता है, बहुलक कहलाता है।

प्रश्न 20.
‘माध्यिका’ किसे कहते हैं?
उत्तर:
माध्यिका वह मूल्य है जो क्रमबद्ध समंकमाला को दो बराबर भागों में बाँटता है।

प्रश्न 21.
पाँच विद्यार्थियों के किसी विषय में प्राप्तांक 11, 12, 13, 14 तथा 15 हैं तो उनकी माध्यिका (median) क्या होगी?
उत्तर:
M (माध्यिका) = 13

प्रश्न 22.
माध्यिका ज्ञात करें यदि समान्तर माध्य 40 व बहुलक 36 हो।
उत्तर:
बहुलक = 3 माध्यिका – 2 माध्य
36 = 3 माध्यिका – 2 × 4
36 + 80 = 33 माध्यिका
माध्यिका = 116 + 3 = 38.67

प्रश्न 23.
केन्द्रीय प्रवृत्ति का औसत के तीन सर्वाधिक सांख्यिकीय माप लिखें।
उत्तर:

  1. समांतर माध्य
  2. माध्यिका, तथा
  3. बहुलक

प्रश्न 24.
समांतर माध्य, माध्यिका एवं बहुलक की सापेक्षिक स्थिति लिखें।
उत्तर:
समांतर माध्य, माध्यिका एवं बहुलक की सापेक्षिक स्थिति निम्नलिखित है –
समांतर माध्य > माध्यिका > बहुलक
बहुलक > माध्यिका अथवा समांतर माध्य
माध्यिका हमेशा समांतर माध्य और बहुलक के बीच में होती है।

प्रश्न 25.
क्या माध्यिका का निर्धारण रेखाचित्र के द्वारा किया जा सकता है? यदि हाँ, तो रेखाचित्र का नाम बताएं।
उत्तर:
हाँ, ओजाइव वक्र।

प्रश्न 26.
अखंडित श्रेणी में बहुलक ज्ञात करने का सूत्र लिखें।
उत्तर:
\(Z=l_{1} \frac{f_{1}-f_{2}}{2 f_{1}-f_{0}-f_{2}} \times 1\)

प्रश्न 27.
किस प्रकार के आवृत्ति वितरण में बहुलक का मूल्य समान्तर माध्य से अधिक होता है?
उत्तर:
ऋणात्मक विषमता वाले आवृत्ति वितरण में।

प्रश्न 28.
लघु विध और पद विचलन विधि में क्या अंतर है?
उत्तर:
लघु विधि में उभयनिष्ठ गुणक (Common factor) का प्रयोग नहीं किया जाता जबकि पद-विचलन विधि में उभयनिष्ठ गुणक (Common factor) के द्वारा विचलनों को विभाजित किया जाता है।

प्रश्न 29.
यदि किसी श्रेणी में पदों की संख्या 100 है और उसका समान्तर माध्य 4 है तो श्रेणी के सभी मूल्यों का योग कितना होगा?
उत्तर:
ΣX = 100 × 4 = 400

प्रश्न 30.
निम्न श्रेणी में माध्यिका का मूल्य ज्ञात कीजिए –
2, 8, 7, 3, 9, 10 तथा 6
उत्तर:
7

प्रश्न 31.
बहुलक ज्ञात करने के लिए समूहीकरण सारणी में कॉलमों की संख्या कितनी होती है?
उत्तर:
6

प्रश्न 32.
विभाजन मूल्य से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
यह वह मूल्य है जो समंक श्रेणी को दो या दो से अधिक भागों में विभाजित करता है।

प्रश्न 33.
किन्हीं चार विभाजन मूल्यों के नाम बताओ।
उत्तर:

  1. चतुर्थक
  2. दशमक
  3. शतमत
  4. माध्यिका

प्रश्न 34.
निम्न समंकों से निम्न चतुर्थक ज्ञात करें।
उत्तर:
= \(\frac{N+1}{4}\) = \(\frac{7+1}{4}\) = दूसरी मद = 7

प्रश्न 35.
प्रथम और तृतीय चतुर्थक के वैकल्पिक नाम लिखें।
उत्तर:
%Q1 तथा Q2

प्रश्न 36.
यदि \(\bar { X } \) = 25, M = 26 तो बहुलक ज्ञात करें।
उत्तर:
बहुलक = 3 माध्यिका – 2 माध्य
बहुलक = 3 × 26 – 2 × 25 = 78 – 50 = 28

लघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
यदि किसी श्रृंखला की माध्यिका 20 सेंटीमीटर तथा माध्य 16 सेंटीमीटर हो तो भूयिष्ठक ज्ञात कीजिए।
उत्तर:
भूयिष्ठक = 3 माध्यिका – 2 माध्य
या 2 = 3M – 2\(\bar { X } \)
यहाँ M = 20 सेमी
अतएव z = 3 × 20 – 2 × 16
z = 60 – 32 = 28 सेमी

प्रश्न 2.
निम्नलिखित तालिका की माध्यिका ज्ञात करें
Bihar Board Class 11 Economics Chapter 5 केंद्रीय प्रवृत्ति की माप Part - 2 img 15
उत्तर:
माध्यिका = \(\frac{N+1}{2}\) मद का मूल्य
= \(\frac{9+1}{2}\) = 5 वें मद का मूल्य = 6

प्रश्न 3.
माध्यिका के गुण लिखें।
उत्तर:
माध्यिका के गुण (Merits of Median):

  1. इसकी गणना बहुत सरल होती है।
  2. इसका मूल्य निश्चित होता है।
  3. माध्यिका मूल्य चरम सीमाओं से प्रभावित नहीं होता।
  4. गुणात्मक तथ्य जैसे-योग्यता, सुंदरता आदि के माप में अधिक सहायता होता है।
  5. यदि श्रेणी के कुछ मूल्य न भी ज्ञात हों तो माध्यिका ज्ञात की जा सकती है।
  6. माध्यिका की गणना बिन्दु विधि द्वारा की जा सकती है।

प्रश्न 4.
माध्यिका के दोष लिखें।
उत्तर
माध्यिका के दोष (Demerits of Median):

  1. यदि श्रेणी के विभिन्न मूल्यों का वितरण अनियमित हो तो माध्यिका समूह का पूर्ण प्रतिनिधित्व नहीं करती।
  2. इसमें श्रेणी के सभी मूल्यों को एक समान महत्त्व दिया जाता है।
  3. इसका समान्तर माध्य की भाँति बीजगणितीय प्रयोग संभव नहीं है।
  4. माध्यिका ज्ञात करने के लिए आंकड़ों को आरोही क्रम में क्रमबद्ध करना आवश्यक है।

प्रश्न 5.
निम्नलिखित तालिका में रिक्त स्थानों की पूर्ति और तालिका के बाद दिये गये प्रश्नों के उत्तर दें।
उत्तर:
Bihar Board Class 11 Economics Chapter 5 केंद्रीय प्रवृत्ति की माप Part - 2 img 16

  1. क्या चरम सीमा से माध्यिका प्रभावित होती है?
  2. क्या माध्यिका समांतर माध्य से श्रेष्ठ विधि है?

Bihar Board Class 11 Economics Chapter 5 केंद्रीय प्रवृत्ति की माप Part - 2 img 17

  1. माध्यिका चरम सीमा से प्रभावित नहीं होती।
  2. हाँ, माध्यिका समांतर माध्य से श्रेष्ठ विधि है।

प्रश्न 6.
एक श्रेणी का बहुलक ज्ञात करें जिसके समांतर माध्य तथा माध्यिका क्रमशः 16 सेमी० तथा 20 सेमी० हैं।
उत्तर:
बहुलक = 3 माध्यिका – 2 समांतर माध्य
= (3 × 20) – 1 (2 × 16)
= 60 – 32 = 28 सेमी०

प्रश्न 7.
आठ परिवारों की दैनिक आय निम्नलिखित है –
170, 500, 250, 700, 400, 200, 350
परिवार की औसत दैनिक आय (Average daily income) निकालिए।
उत्तर:
समान्तर माध्य की गणना (Calculation of Arithmetic Mean):
Bihar Board Class 11 Economics Chapter 5 केंद्रीय प्रवृत्ति की माप Part - 2 img 18
X = \(\frac{ΣX}{N}\) = \(\frac{2870}{8}\) = 358.75

प्रश्न 8.
एक कक्षा के 50 छात्रों की औसत 61 इंच है तथा दूसरी कक्षा के 70 छात्रों की औसत ऊँचाई 58 इंच है। दोनों कक्षाओं के सभी छात्रों की सामूहिक ऊँचाई ज्ञात करें।
उत्तर:
दिया है n1 = 50, \(\bar { X } \)1 = 61, n2 = 70, \(\bar { X } \) = 58
X12 = \(\frac{50×61+70×58}{50+70}\) = \(\frac{3050+4060}{120}\) = \(\frac{7110}{120}\) = 59.25 इंच

प्रश्न 9.
एक छात्र के सीनियर सेकंडरी परीक्षा में अंग्रेजी में 60%, हिन्दी में 75% तथा गति में 63% अंक हैं। यदि इन विषयों का भार क्रमश 1, 1 तथा 2 है तो भारित समान्तर माध्य (WeightArithmetic Mean) निकालें।
उत्तर:
Bihar Board Class 11 Economics Chapter 5 केंद्रीय प्रवृत्ति की माप Part - 2 img 19
∴ \(\bar { X } _{ \omega }\) = \(\frac{261}{4}\) = 65.25
अतः भारित समान्तर माध्य = 65.25 अंक।

प्रश्न 10.
सिद्ध करें कि मध्यमान तथा चरों की संख्या का गुणनफल चरों के मूल्य के योग के बराबर होता है।
उत्तर:
Bihar Board Class 11 Economics Chapter 5 केंद्रीय प्रवृत्ति की माप Part - 2 img 20
5 मदों का योगफल = 25
मध्यमान = \(\frac{25}{5}\) = 5
मध्यमान X मदों की संख्या 5 × 5 = 25
अतः सिद्ध हुआ कि मदों का योग = मध्यमान तथा मदों के संख्या के गुणनफल के बराबर होता है।

प्रश्न 11.
किन-किन परिस्थितियों में माध्यिका तथा बहुलक प्रवृत्ति के मापों के रूप में सबसे अधिक उपयोगी है?
उत्तर:

  1. खुले सिरे वाली श्रृंखला में माध्यिका तथा बहुलक की गणना आसानी से की जा सकती है जबकि समानान्तर माध्य की गणना करना कठिन है; क्योंकि ऐसे वर्गों का मध्य मूल्य निकालना संभव नहीं होता।
  2. माध्यिका तथा बहुलक श्रेणी के चरम मूल्यों से प्रभावित नहीं होते जबकि समानान्तर माध्य पर चरम मूल्यों का प्रभाव पड़ता है।
  3. माध्यिका तथा बहुलक का मूल्य आरेखीय विधियों जैसे-ओजाइव आवृत्ति आयत द्वारा ज्ञात किया जा सकता है जबकि समानान्तर माध्य ज्ञात करने की कोई आरेखीय विधि नहीं है।

प्रश्न 12.
समान्तर माध्य प्रवृत्ति का सबसे अधिक प्रचलित माप क्यों है? कोई तीन कारण दीजिए।
उत्तर:
समान्तर माध्य केन्द्रीय प्रवृत्ति का सबसे प्रचलित माप है, क्योंकि –

  1. इसकी गणना करना आसान है तथा इसे समझना आसान है।
  2. यह श्रेणी के सभी मूल्यों पर आधारित है।
  3. यह प्रतिचयन के उच्चावनों के द्वारा बहुत कम प्रभावित होता है।

प्रश्न 13.
समान्तर माध्य की कोई दो सीमाएं लिखिए।
उत्तर:
समान्तर माध्य की मुख्य सीमाएँ निम्न हैं –

  1. चरम मूल्यों द्वारा प्रभावित होती है। कोई भी बड़ा मूल्य या छोटा मूल्य इसे बढ़ा सकता है अथवा कम कर सकता है।
  2. खुले सिरे के वर्गों में इसकी गणना करना संभव नहीं, क्योंकि खुले सिरे के वर्ग में मध्य मूल्य को निकालना कठिन है।

प्रश्न 14.
माध्यिका तथा बहुलक में अन्तर के दो आधार बताइए।
उत्तर:

  1. माध्यिका निश्चित होती है जबकि बहुलक प्रायः अस्पष्ट और अनिश्चित होता है। कभी-कभी श्रेणी में दो या अधिक पद बहुलक हो जाते हैं।
  2. माध्यिका उन समस्याओं का अध्ययन करने के लिए उपयोगी है जो परिणाम में व्यक्त नहीं की जा सकी हैं जैसे-स्वास्थ्य, बुद्धिमानी आदि; जबकि बहुलक विभिन्न वस्तुओं जैसे-जूते, सिले कपड़े, हैट आदि के अध्ययन के लिए उपयोगी है।

प्रश्न 15.
समांतर माध्य की बीजगणितीय विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
समान्तर माध्य की कुछ बीजगणितीय विशेषताएँ निम्न हैं –
1. किसी श्रेणी के विभिन्न पद मूल्यों के समानान्तर माध्य में निकाले गए विचलनों का प्रयोग शून्य होता है अर्थात् Σ(X – \(\bar { X } \)) = 0

2. किसी श्रेणी के समानान्तर माध्य से निकाले गए विचलनों के वर्गों का योग न्यूनतम होता है।
Σ (X – \((\bar { X } )^{ 2 }\)) = न्यूनतम

3. किसी श्रेणी के दो अथवा अधिक भागों के पद मूल्यों की संख्या तथा समानान्तर माध्य ज्ञात होने पर समानान्तर माध्य ज्ञात हो जा सकती है, अर्थात्
\(\bar{X}_{12}=\frac{\bar{X}_{1} N_{1}+\bar{X}_{2} N_{2}}{N_{1}+N_{2}}\)

प्रश्न 16.
यदि बहुलक 30 और माध्यिका 25 है तो समांतर माध्य ज्ञात करें।
उत्तर:
बहुलक = 3 माध्यिका – 2 समांतर माध्य
30 = 3 × 25 – 2 समांतर माध्य
समांतर माध्य = \(\frac{45}{2}\) = 22.5

प्रश्न 17.
निम्न आँकड़ों की सहायता से माध्यिका (Median) ज्ञात कीजिए –
Bihar Board Class 11 Economics Chapter 5 केंद्रीय प्रवृत्ति की माप Part - 2 img 21
उत्तर:
Bihar Board Class 11 Economics Chapter 5 केंद्रीय प्रवृत्ति की माप Part - 2 img 22

प्रश्न 18.
पाँच परिवारों की मासिक आय नीचे दी गई है –
6550, 7550, 9550, 4550 तथा 8000 लघु विधि से माध्य की गणना करें।
उत्तर:
Bihar Board Class 11 Economics Chapter 5 केंद्रीय प्रवृत्ति की माप Part - 2 img 23

प्रश्न 19.
प्रत्यक्ष विधि से निम्नलिखित वितरण का समान्तर (Arithmetic mean) ज्ञात करें।
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उत्तर:
Bihar Board Class 11 Economics Chapter 5 केंद्रीय प्रवृत्ति की माप Part - 2 img 25

प्रश्न 20.
गलत मूल्य लिखने के कारण अशुद्ध समान्तर माध्य से शुद्ध समान्तर माध्य की गणना कैसे करेंगे?
उत्तर:
गलत मूल्य लिखने के कारण अशुद्ध समान्तर माध्य से शुद्ध समांतर माध्य की गणना में निहित चरण (Steps involved in calculationg correct A.M. from incorrect A.M. due to writing incorrect value):

  1. अशुद्ध समांतर माध्य को संख्या (N) से गुणा करें अर्थात् X × N
  2. \(\bar { X } \) × N से गलत मूल्य को घटाएँ और सही मूल्य को जोड़ें।
  3. जोड़ को N से भाग करें और शुद्ध समांतर माध्य प्राप्त करें।

प्रश्न 21.
100 विद्यार्थियों द्वारा प्राप्त औसत अंक 50 के बाद स्थान में यह ज्ञात हुआ कि एक विद्यार्थी के अंक 63 के स्थान पर 93 पढ़े गए, तो शुद्ध औसत अंत वया होंगे?
उत्तर:
दिया गया \(\bar { X } \) = 50N = 100
\(\bar { X } \) = \(\frac{ΣX}{N}\)
50 = \(\frac{ΣX}{100}\); ΣX = 5000
अशुद्ध अंक (93) को निकाल कर और शुद्ध अंक (63) को जमा करके
ΣX = 5800 – 91 + 63 = 5970
∴ शुद्ध \(\bar { X } \) = \(\frac{4970}{100}\) = 49.70

प्रश्न 22.
किसी कक्षा के 100 विद्यार्थियों के माध्य अंक 48 हैं। जाँच करने के बाद पता चला कि सिकी एक विद्यार्थी के अंक 53 के स्थान पर 73 जोड़ लिए गए हैं। सही समान्तर माध्य ज्ञात करें।
उत्तर:
अशुद्ध ΣX = N × \(\bar { X } \) = 100 × 48 = 4800
शुद्ध ΣX = 4800 – 73 + 53 = 4780
अतः शुद्ध समांतर माध्य (\(\bar { X } \)) = \(\frac{ΣX}{N}\) = \(\frac{4780}{100}\) =47.8 अंक

प्रश्न 23.
मदों का समांतर माध्य 7 है, किंन्तु जाँच करने पर मालूम हुआ की दो मदें और के स्थान पर 5 और 9 ले ली गइ सही समांतर माध्य ज्ञात करें।
उत्तर:
अशुद्ध ΣX = 7 × 5 = 35
शुद्ध ΣX = 35 – 4 – 8 + 5 + 9 = 37
समांतर माध्य \(\bar { X } \) = \(\frac{ΣX}{N}\) = \(\frac{37}{5}\) = 7.4

प्रश्न 24.
समांतर माध्य को चरों के मूल्यों के वितरण का गुरुत्वाकर्षण केन्द्र क्यों कहा गया है? समझाएँ।
उत्तर:
समांतर माध्य की गणना करने के लिए हम सभी चरों के मूल्यों को लेते हैं। उनके जोड़ को चरों की संख्या से विभाजित करते हैं। समांतर माध्य से धनात्मक विचलनों का योगफल ऋणात्मक विचलनों के जोड़ के बराबर होता है। दूसरे शब्दों में हम कह सकते हैं कि धनात्मक तथा ऋणात्मक विचलन एक दूसरे को संतुलित करते हैं। इसका तात्पर्य यह हुआ कि समांतर माध्य चरों के मूल्यों के वितरण का गुरुत्वाकर्षण केन्द्र है।

प्रश्न 25.
मान लो माध्यिका का मूल्य 26 है और समांतर माध्य का मूल्य 25 है तो ऐसी अवस्था में बहुलक का मूल्य क्या होगा?
उत्तर:
बहुलक = 3 माध्यिका – 2 समांतर माध्य = 3 × 26 – 2 × 25
= 78 – 50 = 28

प्रश्न 26.
समांतर माध्य की एक विशेषता यह है कि यह बहुत बड़े या बहुत छोटे मूल्य से प्रभावित होता है। उदाहरण की सहायता से यह प्रमाणित करें।
उत्तर:
उदाहरण के लिए हम नीचे 5 श्रमिकों की दैनिक मजदूरी लेते हैं –
45, 55, 55, 65, 70 रुपए
इनका समांतर माध्य (x) = \(\frac{ΣX}{N}\) = \(\frac{290}{50}\) = 58 रुपए
अब हम मान लेते हैं कि एक ओर श्रमिकों की दैनिक मजदूरी 100 रु० है तो ऐसी अवस्था में समातर माध्य \(\bar { X } \) = \(\frac{480}{5}\) = 80 रुपए
उदाहरण से यह सिद्ध होता है कि एक बड़ी संख्या लेने से समांतर माध्यं काफी प्रभावित हुआ। (पहले यह 58 रुपये था अब यह 80 रुपए है।)

प्रश्न 27.
निम्नलिखित तालिका से भारित माध्य ज्ञात करें –
Bihar Board Class 11 Economics Chapter 5 केंद्रीय प्रवृत्ति की माप Part - 2 img 26
उत्तर:
Bihar Board Class 11 Economics Chapter 5 केंद्रीय प्रवृत्ति की माप Part - 2 img 27

प्रश्न 28.
मान लो 5 मदों की एक श्रेणी का समांतर माध्य है। उनमें चार मदों का मूल्य क्रमशः 10, 15, 30 और 35 है। श्रेणी के 5वें मद का लुप्त मूल्य ज्ञात करें।
उत्तर:
\(\bar { X } \) = \(\frac { 10+30+15+35+X_{ 5 } }{ N_{ 5 } } \)
\(\frac { 90+X_{ 5 } }{ 5 } \)
30 = \(\frac { 90+X_{ 5 } }{ 5 } \)
अर्थात् 90 + X5 = 150; X5 = 150 – 90 = 60
अत: लुप्त मद का मूल्य = 60 है।

प्रश्न 29.
एक विद्यार्थी के अंग्रेजी में 60 अंक, हिन्दी में 75, गणित में 63, अर्थशास्त्र में 59 तथा सांख्यिकी में 55 अंक आए। अंकों का भारित औसत ज्ञात करें यदि भारित औसत क्रमशः 2, 1, 5, 5 तथा 3 हो।
उत्तर:
Bihar Board Class 11 Economics Chapter 5 केंद्रीय प्रवृत्ति की माप Part - 2 img 28

प्रश्न 30.
निम्न तालिका की सहायता से सामूहिक समान्तर माध्य ज्ञात करें –
Bihar Board Class 11 Economics Chapter 5 केंद्रीय प्रवृत्ति की माप Part - 2 img 29
उत्तर:
सामूहिक समांतर माध्य = \(\frac{(75×50)+(60×60)+(55+60)}{50+60+50}\)
= \(\frac{3750+3600}{160}\) = \(\frac{10.100}{160}\) = \(\frac{10.100}{160}\) = 63.125 अंक

प्रश्न 31.
एक कार्यस्थल पर 50 आदमी, 20 औरतें और 10 बच्चे कार्य करते हैं। उनकी मजदूरी 8 रुपए, 6 रुपए और 4 रुपए प्रति घंटा है। उनकी प्रति घंटा दे की गणना करें।
उत्तर:
Bihar Board Class 11 Economics Chapter 5 केंद्रीय प्रवृत्ति की माप Part - 2 img 30
XW = \(\frac{ΣWX}{ΣW}\) = \(\frac{560}{80}\) = 7 प्रति घंटा

प्रश्न 32.
उदाहरण से सिद्ध करें कि माध्यिका से विचलनों का योगफल (± चिह्न) ध्यान में रखते हुए दूसरे बिन्दू के विचलनों को जोड़ से कम होता है।
उत्तर:
Bihar Board Class 11 Economics Chapter 5 केंद्रीय प्रवृत्ति की माप Part - 2 img 31
माध्यिका = \(\frac{N+1}{2}\) मद का मूल्य = \(\frac{5+2}{2}\) = तीसरे मद का मूल्य = 12
अन्य बिन्दु (माना) = 10
यहाँ पर मध्यिका से विचलनों का जोड़ (Σd) = 60 और अन्य बिन्दु (10) से विचलनों का जोड़ 10 है।
अतः सिद्ध हुआ कि माध्यिका से विचलनों का योगफल अन्य बिन्दु से विचलनों के योगफल से कम है।

प्रश्न 33.
उदाहरण से सिद्ध करें कि भारित समांतर माध्य साधारण समांतर माध्य से कम होगा तब कम मूल्य वाली मदों को अधिक भार दिया जाता है और अधिक मूल्य वाले मदों को कम।
उत्तर:
प्रश्न में दिए गए कथन को सिद्ध करने के लिए हम निम्न तालिका लेते हैं –
Bihar Board Class 11 Economics Chapter 5 केंद्रीय प्रवृत्ति की माप Part - 2 img 32

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
केन्द्रीय प्रवृत्ति से आप क्या समझते हैं? सांख्यिकीय माध्य के उद्देश्य तथा कार्य क्या हैं?
उत्तर:
केन्द्रीय प्रवृत्ति का आशय (Meaning of Central Tendency):
एक समंकमाला की केन्द्रीय प्रवृत्ति का आशय उस समंकमाला के अधिकांश मूल्यों की किसी एक मूल्य के आस-पास केन्द्रित होने की प्रवृत्ति से है। किसी समंकमाला या आवृत्ति वितरण में शीर्ष मूल्य तो कम ही होते हैं, अधिकांश मूल्य पदमाला के मध्य में ही केन्द्रित रहते हैं। उदाहरणत: यदि किसी कक्षा में सांख्यिकी अध्ययन करने वाले विधार्थियों की कोई परीक्षा ली जाए तो परीक्षार्थियों में बहुत अच्छे और बहुत कम अंक प्राप्त करने वाले छात्र तो कम होंगे, अधिकांश छात्रों के प्राप्तांक पूर्णांकों को 50% के आस-पास रहेंगे।

स्वाभाविक है कि यह केन्द्रीयकरण लगभग बीच के मूल्यों में ही निहित होता है। ये केन्द्रीय मूल्य ही केन्द्रीय प्रवृत्ति की माप अथवा माध्य कहे जाते हैं, इस प्रकार माध्य सम्पूर्ण समंकमाला का एक प्रतिनिधि मूल्य होता है और इसलिए इसका स्थान सामान्यता श्रेणी के मध्य में ही होता है। क्रॉक्स्टन एवं काउडेन (Croxtpm & Cowden) के शब्दों में, “माध्य समंकों के विस्तार के अंतर्गत स्थित एक ऐसा मूल्य है जिसका प्रयोग श्रेणी के सभी मूल्यों का प्रतिनिधित्व करने के लिए किया जाता है। समंकमाला के विस्तार के मध्य में स्थिति होने के कारण ही माध्य को केन्द्रीय मूल्य माप भी कहा जाता है।”

(“An average is a single value within the range of the date that is used to represent all of the values in the series. Since an average is somewhere within in the range of date, it is sometimes called a measure of central value.”)

इसी प्रकार ए० आई० वॉघ (Waugh) के शब्दों में, एक माध्य मूल्यों के एक समूह से चुना गया वह मूल्य है जो उसका किसी रूप में प्रतिनिधित्व करता है-एक ऐसा मूल्य है जो पूर्ण समूह के मूल्यों के प्रतिरूप में है जिसका वह एक अंश है।” (An average is a single value selected from a group of Values to present them in some way a value which is supposed to spot for whole group of which it is part or thpical of all the values in the group)

सांख्यिकीय माध्यों के उद्देश्य एवं कार्य (Objects and Functions of Statistical Averages) सांख्यिकीय माध्यों के मुख्य उद्देश्य व कार्य निम्नलिखित हैं –

1. समंकों का संक्षिप्त चित्र प्रस्तुत करना (To present a brief picture of the entire data):
माध्यों द्वारा जटिल और अव्यवस्थित समंकों की मुख्य विशेषताओं का सरल, स्पष्ट एवं संक्षिप्त चित्र प्रस्तुत किया जाता है। इससे उन समंकों को समझना व याद रखना बहुत सुगम हो जाता है। उदाहरणार्थ, 102 करोड़ भारतवासियों की अलग-अलग आयु को याद रखना एक असंभव-सी बात है, परन्तु औसत वायु प्रत्येक व्यक्ति याद रख सकता है।

इसी प्रकार 102 करोड़ व्यक्तियों की आयु के समंक याद रखना असंभव है, लेकिन औसत आयु सुगमता से याद रखी जा सकती है। अत: माध्य समंकों का विहंगम दृश्य (Bird’s eye view) प्रस्तुत करते हैं। मोरोन (Moroney) ने ठीक ही कहा है, “माध्य का उद्देश्य व्यक्तिगत मूल्यों के समूह का सरल और संक्षिप्त रूप से प्रतिनिधित्व करना है जिससे कि मस्तिष्क समूह की इकाइयों के सामान्य आकार को शीघ्रता से ग्रहण कर सके।”

(The purpose of average is to represent a group of individual values in a simple and concise manner so that the mind can get a quick understanding .. the general size of the individual in the group.”)

2. तुलना में सहायक होना (To facilitate comparison):
माध्य समंकों की समस्त राशि को संक्षिप्त व सरल करके तुलना योग्य बनाते हैं। समंक की तुलना से बहुत महत्त्वपूर्ण निष्कर्ष निकाल जा सकते हैं। उदाहरण के लिए विभिन्न देशों की औसत आयु की तुलना से ज्ञात किया जा सकता है कि कौन-सा देश सबसे अधिक समृद्धिशाली है तथा कौन-सा सबसे कम।

3. उपयुक्त नीतियों के निर्धारण में सहायक होना (To help in the formulation of suitable policies):
माध्य उपयुक्त नीतियों के निर्धारण में बहुत अधिक सहायक होते हैं। उदाहरण के लिए यदि किसी विद्यालय में बी०ए० के तृतीय वर्ष की चार कक्षाओं के ‘क’ ‘ख’, ‘ग’, एवं ‘घ’, के विद्यार्थियों के किसी विषय में औसत नंबर इस प्रकार हैं – 60, 58, 40 एवं 55 तो इससे यह निष्कर्ष निकलेगा कि कक्षा ‘ग’ के विद्यार्थी इस विषय में बहुत कमजोर हैं और उनकी कमी को दूर करने के लिए विशेष प्रबंध करना आवश्यक है।

4. सांख्यिकीय विश्लेषण का आधार (Basis of Statistical Analysis):
सांख्यिकीय विश्लेषण की अनेक क्रियाएँ माध्यों पर आधारित हैं।

प्रश्न 2.
आदर्श माध्य के आवश्यक गुण लिखें।
उत्तर:
आदर्श माध्य के आवश्यक गुण (Requirements of a model average):
एक आदर्श माध्य के निम्नलिखित गुण होने चाहिए –

1. समझने में सरल (Easy to Understand):
सांख्यिकीय विधियों का प्रयोग समंकों को संक्षिप्त तथा सरल बनाने के लिए किया जाता है। अत: माध्य ऐसा होना चाहिए जो आसानी से समझा जा सके, अन्यथा इसका प्रयोग बहुत ही सीमित होगा।

2. समझने में सरल (Easy to Compute):
माध्य की गणना-क्रिया सरल होनी चाहिए ताकि इसका प्रयोग व्यापक रूप से हो सके। यद्यपि माध्य का निर्धारण जहाँ तक हो सके सरल होना चाहिए तथापि विशेष परिस्थितियों में परिणाम की शुद्धता के लिए अधिक कठिन माध्यों का प्रयोग भी किया जा सकता है।

3. श्रेणी के सभी मूल्यों पर आधारित (Based on all the items of the series):
माध्य श्रेणी के सभी मूल्यों पर आधारित होना चाहिए एक या अधिक मूल्यों में परिवर्तन होने से माध्य में परिवर्तन हो सके। यदि माध्य श्रेणी के सभी मूल्यों पर आधारित नहीं है तो वह पूरे समूह का प्रतिनिधित्व ठीक प्रकार से नहीं कर सकता।

4. न्यूनतम तथा अधिकतम मूल्यों पर अनुचित प्रभाव से बचाव (Should not be unduly affected by Extreme items):
यद्यपि माध्य सभी मूल्यों पर आधारित होना चाहिए तथापि किसी विशेष मूल्य पर अधिक प्रभाव नहीं पड़ना चाहिए अन्यथा माध्य समंकों का सही रूप व्यक्त नहीं करेगा।

5. स्पष्ट व स्थिर (Rigidly defined):
माध्य की परिभाषा स्पष्ट शब्दों में व्यक्त होनी चाहिए ताकि जो भी व्यक्ति दिए हुए समंकों से माध्य निकाले वह एक निष्कर्ष पर पहुँचे। इसके लिए यह आवश्यक है कि माध्य गणितीय सूत्र के रूप में दिया जाए। यदि माध्य की गणना में व्यक्तिगत प्रवृत्तियों का प्रभाव पड़ा तो फल भ्रामक तथा अशुद्ध होंगे।

6. बीजगणितीय विवेचना संभव (Capable of algebrate treatment):
एक अच्छे माध्य की बीजगणितीय विवेचन संभव होना चाहिए। उदाहण के लिए यदि दो कारखानों में मजदूरों की संख्या तथा उनकी औसत आय से संबंधित समंक दिए गए हों तो दोनों कारखानों के मजदूरों की आय का सामूहिक माध्य निकालना संभव होना चाहिए।

7. न्यादर्शों की भिन्नता का कम से कम प्रभाव (Least effects of flucuations of sampling):
यदि एक ही समग्र में से उचित रीति द्वारा विभिन्न न्यादर्श लेकर माध्य निकाले जाएं तो उन माध्यों में बहुत अधिक अंतर नहीं होना चाहिए। उदाहरण के लिए, यदि एक विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों को 10 भागों में बाँट कर 10 न्यादर्श लिए गए हैं तो उनके परिणामों में बहुत अधिक असमानता नहीं होनी चाहिए।

प्रश्न 3.
माध्य या औसत क्या है? इसके उद्देश्य (कार्य) क्या है?
उत्तर:
श्रेणी की केन्द्रीय प्रवृत्तियों की माप को माध्य या माप औसत कहते हैं। माध्य एक श्रेणी का प्रतिनिधि अंक होता है। यह अंकगणितीय विधि है जिसके द्वारा परिणाम संक्षेप में व्यक्त किया जाता है और वह परिणाम पूरी श्रेणी का प्रतिनिधित्व करता है। केन्द्रीय प्रवृत्तियों के माप या माध्यों का आर्थिक विश्लेषण में बहुत महत्त्वपूर्ण स्थान है। यहाँ तक की सांख्यिकी औसतों को विज्ञान कहकर परिभाषित किया जाता है।
माध्य या औसत निम्नलिखित तीन प्रकार के होते हैं –

  1. समांतर माध्य (Arithmetic Mean)
  2. मध्यिका (Median)
  3. उभयष्ठिक या बहुलक (Mode)

औसतों या माध्यमों के उद्देश्य (कार्य):

1. सरलीकरण तथा संक्षिप्तीकरण (Simplication):
माध्यों की सहायता से विशाल आँकड़ों को सरल एवं संक्षिप्त रूप में प्रस्तुत किया जा सकता है। उदाहरणार्थ देश के प्रत्येक व्यक्ति की आय को याद रखना संभव नहीं है, परन्तु प्रति व्यक्ति आय को याद रखना और समझना आसान है। इसी प्रकार औसत आयु, औसत अंक, औसत वेतन जैसे जटिल आँकड़ों को संक्षिप्त और सरल रूप में प्रस्तुत करते हैं।

2. तुलना में सहायक (Helpful in comparison):
माध्यकों की सहायता से दो तथ्यों की तुलना करना आसान हो जाता है। उदाहरणार्थ दो देशों की औसत आयु की तुलना करके उनकी आर्थिक दशा का पता लगाया जा सकता है।

3. भावी योजनाओं में सहायक (Helpful in future planning):
व्यापारी, अर्थशास्त्री आदि माध्यों के आधार पर महत्त्वपूर्ण निर्णय लेते हैं और इस प्रकार से ये उनकी भावी योजनाओं के निर्माण में सहायक होते हैं।

4. माध्यों द्वारा व्यक्तिगत व बिखरे तथ्यों को आसानी से समझा जा सकता है।

प्रश्न 4.
समान्तर माध्य किसे कहते हैं? इनकी विशेषताएँ लिखें।
उत्तर:
समान्तर माध्य (Arithmetic mean):
समान्तर माध्य से अभिप्राय उस मूल्य से है जो किसी श्रेणी के समस्त मूल्यों के योग को उनकी इकाइयों की संख्या से भाग देने पर प्राप्त होता है। समान्तर माध्य केन्द्रीय प्रवृत्ति का सबसे उत्तम माप माना जाता है। यह सबसे अधिक प्रचलित माप है। उदाहरण के लिए 2, 4, 8, 14 का समान्तर माध्य = \(\frac{2+4+8+14}{4}\) = 7 हैं।

समान्तर माध्य की विशेषताएँ (Special features of Arithmetic Mean):
समांतर माध्य की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं –

1. समान्तर माध्य से लिए गए विचलनों का योग शून्य होता है। समीकरण में,
Σ(X – c) = 0

2. मान लें कुछ परिवारों की मासिक आय के बारे में चिन्तन कर रहे हैं। यदि कुल आय का वितरण समान है तो समान्तर माध्य हमें यह आय देगा जो प्रत्येक परिवार प्राप्त करेगा।
मान लो कुल आय = 40,000 रुपए
परिवारों की संख्या = 8
समान्तर माध्य = 40,000 + 8 = 5,000
अतः प्रत्येक परिवार की आय 5000 रुपए होगी यदि आय का वितरण समान है।

3. समान्तर माध्य को अंकगणितीय विशेषता निकालना सरल है।

4. समान्तर माध्य की गणना करने के लिए हम सभी चरों के मूल्य को लेते हैं। किसी चर के मूल्य को नहीं छोड़ते।

5. समान्तर माध्य बहुत बड़े या बहुत छोटे मूल्य से प्रभावित होते हैं। उदाहण के लिये एक मुहल्ले के 5 परिवारों का दैनिक व्यय 25, 28, 32, 27 तथा 33 रुपए है। ऐसी अवस्था में समान्तर माध्य 29 रुपए होगा। मान लो उस मुहल्ले में एक धनी परिवार आकर बस जाता है। उस परिवार का दैनिक व्यय 125 रुपए है। यदि हम दोबारा समान्तर माध्य की गणना करें। समान्तर माध्य 45 आएगा। इस तरह समान्तर माध्य एक बड़े मूल्य से काफी प्रभावित हुआ और समान्तर माध्य 29 रुपए से बढ़कर 45 रुपए हो गया।

6. यदि श्रेणी के प्रत्येक मूल्य को समान्तर माध्यक में परिवर्तित कर दिया जाता है तो उसका योगफल श्रेणी के सभी मूल्यों के योगफल के बरबार होता है। समीकरण में \(\bar { X } \)N = ΣX इसे निम्न उदाहरण की सहायता से समझाया जा सकता है –
Bihar Board Class 11 Economics Chapter 5 केंद्रीय प्रवृत्ति की माप Part - 2 img 33
\(\bar { X } \) = \(\frac{25}{5}\) = 5
इस प्रकार यदि हमें श्रेणी का समान्तर माध्य तथा पद मूल्यों की संख्या ज्ञात है तो समूह का EX प्राप्त कर सकते हैं।

7. समान्तर माध्य से लिये गये विचलनों के वर्गों का योग अन्य किसी मूल्य से निकाले गये विचलनों के वर्गों के योग से कम होता है।

प्रश्न 5.
निम्नलिखित सूचना के आधार पर प्रत्यक्ष विधि (Direct Method) पद विचलन विधि (Step Deviation Method) तथा कल्पित माध्य विधि (Assumed Mean Method) से समान्तर माध्य ज्ञात करें।
Bihar Board Class 11 Economics Chapter 5 केंद्रीय प्रवृत्ति की माप Part - 2 img 34
उत्तर:
1. प्रत्यक्ष विधि से मध्यमान की गणना (Calculation of Arithment mean by Direct Method)
Bihar Board Class 11 Economics Chapter 5 केंद्रीय प्रवृत्ति की माप Part - 2 img 35
\(\bar { X } \) = \(\bar { X } \) = \(\frac{3713}{60}\) = 6188 एकड़

2. कल्पित माध्य विधि से समान्तर माध्य की गणना (Calculation of Arithmetic Mean by Assumed Mean)
प्रत्येक विधि से समान्तर माध्य 61.88 एकड़ है। अतः हम प्रश्न विधि से निकालने के लिए कल्पित समान्तर माध्य 62 लेते हैं।
Bihar Board Class 11 Economics Chapter 5 केंद्रीय प्रवृत्ति की माप Part - 2 img 36
\(\bar { X } \) = A.M + \(\frac{fd}{N}\) = 62 – \(\frac{7}{60}\)

प्रश्न 6.
समान्तर माध्य के गुण तथा दोष लिखिए।
उत्तर:

  1. समांतर माध्य की गणना सरल है।
  2. इसमें बीजगणित का प्रयोग किया जाता है।
  3. इसकी गणना में सभी मदों का प्रयोग किया जाता है।
  4. यह आर्थिक विश्लेषण में सबसे अधिक प्रचलित है।
  5. यह तुलना के लिए एक अच्छा आधार है।
  6. इसका निर्धारण उस समय भी संभव है जब केवल श्रेणी के मूल्यों और उनकी योग. मालूम हो।
  7. इसका मूल्य सदैव निश्चित होता है।
  8. यह अधिक विश्वसनीय माप है।
  9. इसकी गणना करने के लिए आंकड़ों को व्यवस्थित करने की कोई आवश्यकता नहीं होती।

समान्तर माध्य के दोष (Demerits of Arithmetic Mean):
समान्तर माध्य के दोष निम्नलिखित हैं –

  1. समान्तर माध्य चरम सीमाओं अर्थात् अधिकतम व न्यूनतम मूल्यों से प्रभावित होता है।
  2. गुणात्मक श्रेणी के लिए इसका प्रयोग नहीं किया जाता।
  3. किसी मद के अनुपस्थित होने पर इसकी गणना अशुद्ध होगी।
  4. समान्तर माध्य का निर्धारण केवल अवलोकनों द्वारा नहीं किया जाता।
  5. यह श्रेणी का एक सच्चा प्रतिनिधित्व नहीं है।
  6. समान्तर माध्य की गणना रेखाचित्र से नहीं की जा सकती।
  7. खुले सिरे वाली समंक श्रेणियों में समान्तर माध्य ज्ञात नहीं किया जा सकता।
  8. समान्तर माध्य से श्रेणी की रचना के बारे में कुछ पता नहीं चलता।
  9. अनुपात दर प्रतिशत आदि का अध्ययन करने के लिए यह माध्य सर्वथा अनुपयुक्त है।
  10. कई बार समान्तर माध्य से आश्चर्यजनक व अनुचित निष्कर्ष निकलते हैं। जैसे एक अस्पताल में दाखिल हुए मरीजों की संख्या 18.7 प्रतिदिन।

प्रश्न 7.
माध्यिका से क्या अभिप्राय है? जब अविच्छन्न श्रेणी दी गई हो तो माध्यिका की गणना किस प्रकार की जाती है?
उत्तर:
माध्यिका (Median):
माध्यिका तथ्यों के समूह का वह चर मूल्य है जो समूह को दो बार बराबर भागों में इस प्रकार बाँटता है कि एक भाग में सारे मूल्य माध्यिका से अधिक और दूसरे भाग में सारे मूल्य उससे कम हों। डॉ. बाउले के अनुसार, “यदि एक समूह के पदों को उनके मूल्यों के अनुसार क्रमबद्ध किया जाए तो लगभग बीच के पद के मूल्य को माध्यिका कहा जाता है।” मान लें 5 छात्रों के अंक 20, 22, 25, 30 और 32 हैं तो माध्यिका 30 होगी। माध्यिका एक स्थिति वाला माप है।

माध्यिका की गणना (Calculating of Median):
माध्यिका की गणना में निम्नलिखित चरण निहित हैं –

  1. अंकों को आरोही या अवरोही क्रम में व्यवस्थित किया जाता है।
  2. उसके बाद संचयी आवृत्ति ज्ञात की जाती है।
  3. उसके बाद निम्नलिखित सूत्र का प्रयोग करके केन्द्रीय पद ज्ञात किया जाता है।
  4. M = आकार (\(\frac{N}{2}\)) वीं मद
  5. इसके बाद उस वर्ग को निर्धारित किया जाता है जिसमें मध्यिका स्थित है।
  6. मध्यिका वर्ग ज्ञात हो जाने पर माध्यिका का मूल्य ज्ञात करने के लिए निम्नलिखित सूत्र का प्रयोग किया जाता है –
    M = L + \(\frac{N/2-c.f.}{F}\) × C

प्रश्न 8.
माध्यिका के गुण तथा दोष लिखिए।
उत्तर:
माध्यिका के गुण (Merits of median):
माध्यिका के गुण निम्नलिखित हैं –

  1. इसको समझना तथा मूल्य ज्ञात करना सरल है।
  2. कुछ अज्ञात मूल्यों की अवस्था में भी माध्यिका का मूल्य ज्ञात किया जा सकता है।
  3. इसे कठोरता से वर्णित किया जाता है।
  4. खुले सिर वाले वर्ग के वितरण में भी यह विशेष उपयोगिता है, क्योंकि इसमें कोई कल्पना नहीं करना पड़ती।
  5. इसका मूल्य रेखा विधि द्वारा भी ज्ञात किया जा सकता है।
  6. गुणात्मक तथ्यों जैसे-बुद्धिमता, कार्य-कुशलता, ईमानदारी, दरिद्रता आदि को ज्ञात करने के लिए माध्यिका को सर्वोत्तम माना जाता है।
  7. यह अपिकिरण तथा विषमता के मापन में भी लाभदायक है।
  8. यह स्थिति माप है।
  9. यह श्रेणी के माध्य मूल्य की व्याख्या करता है।

दोष (Demerits):
माध्यिका के निम्नलिखित दोष हैं –

  1. यह सभी मदों पर आधारित नहीं है।
  2. इसका बीजगणितीय प्रयोग नहीं हो सकता।
  3. यह निदर्शन में परिवर्तन से प्रभावित होता है अर्थात्
    M × N ≠ ΣX1 × X2 × X3 + ……… Xn
  4. यह ठीक है कि यह चरम मूल्यों से प्रभावित नहीं होता, परन्तु जहाँ इन मूल्यों का महत्त्व देना होता है वहाँ माध्य अनुपयुक्त है।
  5. यदि एक श्रेणी में मदों का मूल्य समान नहीं है तो भी माध्यिका को ज्ञात नहीं किया जा सकता।
  6. यदि मदों का मूल्य बहुत कम या अधिक हो तो माध्यिका को ज्ञात करना कठिन हो जाता है।
  7. अखण्डित श्रेणी में माध्यिका ज्ञात करने के लिये सूत्र द्वारा मध्यिका वर्ग का निर्धारण करना पड़ता है। अतः यहाँ तक कल्पना की जाती है कि आवृत्तियाँ अपने से सम्बन्धित वर्ग में समान रूप से वितरित हैं, परन्तु ऐसा मानन गलत है।

प्रश्न 9.
निम्नलिखित दशाओं की गणना कैसे की जाती है?

  1. जब समावेश श्रेणी हो।
  2. जब वर्गान्तर असमान हो।
  3. जब बिन्दु रेखीय विधि अपनानी हो।

उत्तर:
1. पहली स्थिति (First Case):

  • जब माध्यिका मूल्य ज्ञात करने के लिए समावेशी आवृत्ति वितरण दिया हुआ है तो उसे सर्वप्रथम अपवर्जी श्रेणी में परिवर्तित किया जाता है।
  • फिर संचयी आवृत्ति ज्ञात की जाती हैं।
  • उसके बाद निम्नलिखित सूत्र का प्रयोग करके केन्द्रीय पद ज्ञात किया जाता है।
  • M = size of \(\frac{N}{2}\) the item
  •  इसके बाद उस वर्ग को निर्धारित करते हैं जिसमें माध्यिका स्थित है।
  • माध्यिका वर्ग ज्ञात हो जाने पर निम्नलिखित सूत्र का प्रयोग किया जाता है –
    M = l + \(\frac { \frac { N_{ 2 } }{ 2 } -C }{ f } \) × C

2. दूसरी स्थिति (Second Case):
यदि समंक श्रेणी में वर्ग असमान है तो उसे समान वर्गान्तर बनाने की आवश्यकता नहीं। ऐसी अवस्था में माध्यिका मूल्य ज्ञात करने के लिए समान। सूत्र का प्रयोग किया जा सकता है। यदि आवृत्तियों को समायोजित किया जाता है तब भी माध्यिका में कोई अन्तर नहीं आयेगा।

3. तृतीय स्थिति (Third Case):
इसमें निम्नलिखित चरण निहित हैं –

  • सर्वप्रथम बिन्दु रेखीय पत्र (Graph paper) पर ‘से कम’ तथा ‘से अधिक’ संचयी ओजाइव वक्र खींचे।
  • जहाँ ये दोनों वक्र आपस में काटें उस बिन्दु से भुजाक्ष पर लम्ब डालिए।
  • लम्ब भुजाक्ष को जिस बिन्दु पर छुए वही माध्यिका मूल्य होगा। जैसे नीचे चित्र में दिखाया गया है –
    Bihar Board Class 11 Economics Chapter 5 केंद्रीय प्रवृत्ति की माप Part - 2 img 37

प्रश्न 10.
बहुलक किसे कहते हैं? उसके गुणा और दोष बताइए।
उत्तर:
बहुलक एक विशेष प्रकार का माध्य (Average) है। श्रेणी में जिस मद की सबसे अधिक आवृत्ति हो उसे बहुलक (Mode) कहा जाता है। उदाहरण लेकर हम बहुलक अवधारणा का स्पष्टीकरण करते हैं। नीचे श्रमिकों का मासिक वेतन दिया है। इसमें 1600 रुपए मासिक वेतन पाने वाले श्रमिकों की संख्या 26 अर्थात् सबसे अधिक है। अत: बहुलक 1600 रुपये है।
Bihar Board Class 11 Economics Chapter 5 केंद्रीय प्रवृत्ति की माप Part - 2 img 38

यदि किसी श्रेणी में दो भूयिष्ठक पाए जाएँ तो उसे Bi-Modal Series कहते हैं। भूयिष्ट को जोड़ से सम्बोधित किया जाता है।

बहुलक के गुण (Merits of Mode):

  1. यह समझने में सरल है और अधिकांश श्रेणियों में इसका ज्ञात निरीक्षण द्वारा ही प्राप्त किया जा सकता है।
  2. इसका प्रयोग मुख्यतः उत्पादन और बिक्री के क्षेत्र में किया जाता है।
  3. इस पर चरम सीमा मूल्यों का प्रभाव नहीं पड़ता।
  4. इसकी गणना बिन्दुरेखीय विधि से भी की जा सकती है।

बहुलक के दोष (Demerits of Mode):

  1. यह श्रेणी के सभी पदों पर आधारित होता है।
  2. यह अनश्चित और अस्पष्ट होता है।
  3. जब श्रेणी में एक से अधिक भूयिष्ठक होते हैं तो गणना में कठिनाई होती है।

प्रश्न 11.
निम्न बारम्बारता वितरण से समान्तर माध्य, माध्यिका तथा भूयिष्ठक ज्ञात करें।
Bihar Board Class 11 Economics Chapter 5 केंद्रीय प्रवृत्ति की माप Part - 2 img 39
उत्तर:
Bihar Board Class 11 Economics Chapter 5 केंद्रीय प्रवृत्ति की माप Part - 2 img 40
Bihar Board Class 11 Economics Chapter 5 केंद्रीय प्रवृत्ति की माप Part - 2 img 41
अतः मध्यिका 6.75 माध्य तथा भूयिष्ठक के बीच में है।

प्रश्न 12.
45 और 55 का कल्पित माध्य लेते हुए ज्ञात कीजिए और पुष्टि कीजिए कि दोनों स्थितियों में परिणाम एक ही है।
Bihar Board Class 11 Economics Chapter 5 केंद्रीय प्रवृत्ति की माप Part - 2 img 42
उत्तर:
45 कल्पित माध्य लेते हुए माध्य की गणना (Calculation of mean taking 45 as assumed meadn) –
Bihar Board Class 11 Economics Chapter 5 केंद्रीय प्रवृत्ति की माप Part - 2 img 43
कल्पित माध्य (AM) = 45
\(\bar { X } \) = \(\frac{Σfd’}{N}\) × 10 = 43 + 13.5 = 58.5

प्रश्न 13.
कल्पत माध्य लेते हुए माध्य की गणना
उत्तर:
Bihar Board Class 11 Economics Chapter 5 केंद्रीय प्रवृत्ति की माप Part - 2 img 44
कल्पित माध्य (AM) = 55
\(\bar { X } \) = AM + \(\frac{Σfd’}{N}\) × 10 = 55 +\(\frac{35}{100}\) × 10 = 55 + 3.5 = 58.5

प्रश्न 14.
20 विद्यार्थियों के औसत अंक 50 हैं जिसका विवरण निम्न प्रकार से है। स्याही के फैल जाने से एक अंक पढ़ा नहीं जा सकता। इसे ज्ञात कीजिए।
Bihar Board Class 11 Economics Chapter 5 केंद्रीय प्रवृत्ति की माप Part - 2 img 45
उत्तर:
हम मान लेते हैं कि अज्ञात अंक x है।
Bihar Board Class 11 Economics Chapter 5 केंद्रीय प्रवृत्ति की माप Part - 2 img 46

प्रश्न 15.
25.000, 31.40, 28,00, 24.00, 26.50, 34.00, 35.00, 23.70, 30.25, 33.00, 38.60, 28,00, 28.00, 30.00, 30.50, 34.00, 29.00, 23.00, 27.20, 22.50, 32.20.
ऊपर दिए गए अंकों की सहायता से सिद्ध करें कि मध्यिका का मूल्य समान्तर माथ्य तथा भूयिष्ठक के बीच में है।
उत्तर:
Bihar Board Class 11 Economics Chapter 5 केंद्रीय प्रवृत्ति की माप Part - 2 img 47

  1. \(\bar { X } \) = \(\frac{Σx}{n}\) = \(\frac{583.85}{20}\) = 29.1925
  2. मध्यिका = \(\frac{n+1}{2}\) वीं मद = \(\frac{20+1}{2}\) = 10.5 मद = \(\frac{20.00+29.00}{2}\) = 2850
  3. भूयिष्ठक = 25 (28 की बारम्बारता सबसे अधिक है।)

अत: माध्यिका मूल्य (28.5), समान्तर माध्य (29.125), तथा भूयिष्ठक (28) के बीच में है।

प्रश्न 16.
भारित माध्य क्या है? एक उदाहरण देकर भारित माध्य की गणना समझाइए।
उत्तर:
भारित माध्य (Weighted Mean):
सरल समान्तर माध्य की गणना करते समय सभी पदों को एक समान महत्त्व दिया जाता है, जबकि वास्तविक जीवन में सभी मदों का महत्त्व एक समान नहीं होता। साधारण समान्तर माध्य के इस दोष को दूर करने के लिए भारित माध्य का प्रयोग किया जाता है।

इसके अनुसार विभिन्न मदों को उनके महत्त्व या शक्ति के अनुसार भार दे दिया जाता है। भारित समान्तर माध्य सूचकांक बनाने में तथा दो वांडों या विश्वविद्यालयों के परिणामों की तुलना करने में प्रयोग किया जाता है। इसका सूत्र निम्नलिखित है –
\(\bar { X } \)W = \(\frac{ΣWX}{ΣW}\)
जहाँ \(\bar { X } \)W = भारित माध्य (Weighted Mean)
ΣWX = चारों ओर भारों के गुणनफल का योग
ΣX = भारों का योग
उदाहरण –
Bihar Board Class 11 Economics Chapter 5 केंद्रीय प्रवृत्ति की माप Part - 2 img 48

प्रश्न 17.
केन्द्रीय प्रवृत्ति के मापक के रूप में समान्तर माध्य, माध्यिका और भूयिष्ठक के भेद करें।
उत्तर:
समान्तर माध्य माध्यिका और भूयिष्ठक में तुलना (Comparison among Arithmetic mean, Median and mode):
Bihar Board Class 11 Economics Chapter 5 केंद्रीय प्रवृत्ति की माप Part - 2 img 49

प्रश्न 18.
कुछ परिवारों का दैनिक व्यय रुपयों में दिया गया है –
Bihar Board Class 11 Economics Chapter 5 केंद्रीय प्रवृत्ति की माप Part - 2 img 50

  1. माध्य, माध्यिका तथा बहुलक ज्ञात करें।
  2. उच्चतम चतुर्थक तथा निम्नतम चतुर्थक ज्ञात करें।

उत्तर:
Bihar Board Class 11 Economics Chapter 5 केंद्रीय प्रवृत्ति की माप Part - 2 img 51
Bihar Board Class 11 Economics Chapter 5 केंद्रीय प्रवृत्ति की माप Part - 2 img 52

प्रश्न 19.
निम्नलिखित आवृत्ति वितरण से समान्तर माध्य (Arithmetic Mean) तथा मध्यिका (Median) ज्ञात कीजिए –
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उत्तर:
Bihar Board Class 11 Economics Chapter 5 केंद्रीय प्रवृत्ति की माप Part - 2 img 54

प्रश्न 20.
50 विद्यार्थियों के औसत अंक 44.8 हैं, जिनका विवरण नीचे दिया गया है –
Bihar Board Class 11 Economics Chapter 5 केंद्रीय प्रवृत्ति की माप Part - 2 img 55
उत्तर:
1. अज्ञात मूल्य का निर्धारण (Location of Unknown Value):
Bihar Board Class 11 Economics Chapter 5 केंद्रीय प्रवृत्ति की माप Part - 2 img 56

2. अज्ञात आवृत्ति का निर्धारण (Location of Unknown Value):
Bihar Board Class 11 Economics Chapter 5 केंद्रीय प्रवृत्ति की माप Part - 2 img 57

प्रश्न 21.
निम्नलिखित आँकड़ों से बिन्दु रेखीय विधि (से कम ओजाइब) से माध्यिका मूल्य ज्ञात करें –
Bihar Board Class 11 Economics Chapter 5 केंद्रीय प्रवृत्ति की माप Part - 2 img 58
उत्तर:
Bihar Board Class 11 Economics Chapter 5 केंद्रीय प्रवृत्ति की माप Part - 2 img 59

  1. माध्यिका की गणन करने के लिए बिन्दु रेखीय पत्र (Graph Paper) पर क्रम से संचयी ओजाइब वक्र खींचें।
  2. \(\frac{N}{2}\) की गणना करने के लिए 50 को 2 से भाग करें। भजनफल 25 आएगा। y अथा पर 25 अंकित करेंगे।
  3. इसके बाद अकित बिन्दु से ओजाइव वक्र पर लम्ब गिराएंगे। यह लम्ब मुजाक्ष पर जिस मूल्य पर दूता है, वहीं माध्य का मूल्य होगा। नीचे चित्र से पता चलता है कि लम्ब भुजाक्ष पर 20 पर छूता है। अतः माध्यिका 20 होगी।
    Bihar Board Class 11 Economics Chapter 5 केंद्रीय प्रवृत्ति की माप Part - 2 img 60

प्रश्न 22.
एक उदाहरण से सिद्ध करें कि यदि –

  1. एक श्रेणी के विभिन्न मदों में 2 जोड़े जाएँ तो समान्तर माध्य में 2 की वृद्धि हो जाएगी।
  2. एक श्रेणी के विभिन्न मदों में 2 घटाये जाएँ तो समान्तर माध्य 2 कम होगा।
  3. एक श्रेणी के विभिन्न मदों को दो से गुणा किया जाए तो समान्तर माध्य दोगुना होगा।
  4. एक श्रेणी के विभिन्न मदों को दो से विभाजित किया जाए तो समांतर माध्य आधा हो जाएगा।

उत्तर:
निम्न उदाहरण से प्रश्नों में दिए गए कथनों की पुष्टि होती है।
Bihar Board Class 11 Economics Chapter 5 केंद्रीय प्रवृत्ति की माप Part - 2 img 61

प्रश्न 23.
निम्न वितरण में लुप्त आवृत्तियों को बताएँ यदि विद्यार्थियों की संख्या 100 तथा माध्यिका 30 हो।
Bihar Board Class 11 Economics Chapter 5 केंद्रीय प्रवृत्ति की माप Part - 2 img 62
उत्तर:
मान लें एक लुप्त आवृत्ति = f1 दूसरी लुप्त आवृत्ति = f2
Bihar Board Class 11 Economics Chapter 5 केंद्रीय प्रवृत्ति की माप Part - 2 img 63
हम जानते हैं कि अंतिम वर्गान्तर का संचयी आवृत्ति के योगफल के बराबर होती है।
Bihar Board Class 11 Economics Chapter 5 केंद्रीय प्रवृत्ति की माप Part - 2 img 64

प्रश्न 24.
निम्न श्रेणी से माध्यिका ज्ञात करें –
Bihar Board Class 11 Economics Chapter 5 केंद्रीय प्रवृत्ति की माप Part - 2 img 65
उत्तर:
सर्वप्रथम हम संचयी आवृत्तियों को साधारण वितरण में परिवर्तित करेंगे तब माध्यिका की गणना करेंगे।
Bihar Board Class 11 Economics Chapter 5 केंद्रीय प्रवृत्ति की माप Part - 2 img 66
Bihar Board Class 11 Economics Chapter 5 केंद्रीय प्रवृत्ति की माप Part - 2 img 67

प्रश्न 25.
निम्नलिखित आँकड़ों की सहायता से माध्यिका ज्ञात करें –
Bihar Board Class 11 Economics Chapter 5 केंद्रीय प्रवृत्ति की माप Part - 2 img 68
उत्तर:
प्रश्न में दी गई श्रेणी को परिवर्तित करेंगे और माध्यिका की गणना करेंगे।
Bihar Board Class 11 Economics Chapter 5 केंद्रीय प्रवृत्ति की माप Part - 2 img 69

प्रश्न 26.
निम्नलिखित तालिका से ग्राफ की सहायता से बहुलक ज्ञात करें तथा गणित सूत्र की सहायता से परिणाम की जाँच करें।
उत्तर:
Bihar Board Class 11 Economics Chapter 5 केंद्रीय प्रवृत्ति की माप Part - 2 img 70
Bihar Board Class 11 Economics Chapter 5 केंद्रीय प्रवृत्ति की माप Part - 2 img 71

प्रश्न 27.
निम्नलिखित तालिका से बहुलक की गणना करें।
Bihar Board Class 11 Economics Chapter 5 केंद्रीय प्रवृत्ति की माप Part - 2 img 72
उत्तर:
प्रश्न में संचयी बारम्बारता वितरण है। बहुलक को गणना करने के लिए हमें इसे अपवर्ती श्रृंखला में बदलना होगा। प्रश्न में श्रृंखला अवरोही क्रम में निरीक्षण करने पर हमें पता चलता है। कि बहुलक का मान 25-30 वर्गान्तर है। अब हम समूह सारणी तथा विश्लेषण सारणी बनाएँगे।
Bihar Board Class 11 Economics Chapter 5 केंद्रीय प्रवृत्ति की माप Part - 2 img 73
Bihar Board Class 11 Economics Chapter 5 केंद्रीय प्रवृत्ति की माप Part - 2 img 74

प्रश्न 28.
उदाहरण देकर सिद्ध करें कि यदि समंक श्रेणी में वर्ग अंतराल असमान है तब वर्गान्तर बनाए बिना भी मध्यिका एक जैसी आएगी।
उत्तर:
यह सिद्ध करने के लिए कि समंक श्रेणी में समंक श्रेणी में वर्ग अन्तराल को। समायोजित करें या न करें, तब भी माध्यिका एक जैसी आयेगी। हम नीचे एक काल्पनिक तालिका लेते हैं।
Bihar Board Class 11 Economics Chapter 5 केंद्रीय प्रवृत्ति की माप Part - 2 img 75
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Bihar Board Class 11 Economics Chapter 5 केंद्रीय प्रवृत्ति की माप Part - 2 img 76

प्रश्न 29.
रेखाचित्र द्वारा निम्नलिखित आवृत्ति वितरण में भूयिष्ठक का मूल्य ज्ञात कीजिए और गणितीय विधि से मूल्य की जाँच कीजिए –
Bihar Board Class 11 Economics Chapter 5 केंद्रीय प्रवृत्ति की माप Part - 2 img 78
उत्तर:
पहले हमें श्रृंखला से आवृत्ति आयत चित्र (Histogram) बनाना होगा। फिर नीचे प्रदर्शित उदाहण के भौति सबसे बड़े आयत के बिन्दुओं को आस-पास के आयत बिन्दुओं से मिलाकर भूयिष्ठक ज्ञात कर लिया जाएगा।
बीजगणितीय विधि द्वारा मूल्य की जाँच:
Bihar Board Class 11 Economics Chapter 5 केंद्रीय प्रवृत्ति की माप Part - 2 img 79

प्रश्न 30.
एक परीक्षा में 100 अभ्यार्थी थे, जिनमें 21 अनुत्तीर्ण हुए, 6 को विशिष्टता प्राप्त हुई,43 तृतीय श्रेणी में तथा 18 द्वितीय श्रेणी में उत्तीर्ण हुए। विशिष्टता प्राप्त करने के लिए 75% अंक चाहिए, कम-से-कम 40% उत्तीर्णता के लिए, द्वितीय श्रेणी में उत्तीर्ण के लिए कम-से-कम 50% तथा प्रथम श्रेणी के लिये कम-से-कम 60% अंक चाहिये। अंकों के वितरण के लिए माध्यिका की गणना करें।
उत्तर:

  1. अनुत्तीर्ण छात्र = 21
  2. अनुत्तीर्ण छात्र = 21
  3. उत्तीर्ण = 100 – 21 = 19
  4. विशिष्टता प्राप्त करने वाले अभ्यार्थी = 6
  5. तृतीय श्रेणी में पास होने वाले अभ्यार्थी = 43
  6. द्वितीय श्रेणी में पास होने वाले अभ्यार्थी = 6
  7. 60% से अधिक अंक प्राप्त करने वाले अभ्यार्थी = 79 – (43 + 43) = 79 – 61 = 18
  8. विशिष्टता प्राप्त करने वाले अभ्यार्थी = 6
  9. 60 से ऊपर तथा 75 से कम अंक प्राप्त करने वाले अभ्यार्थी = 18 – 6 = 12 इन आँकड़ों को हम निम्न आवृत्ति वितरण में दिखा सकते हैं –

Bihar Board Class 11 Economics Chapter 5 केंद्रीय प्रवृत्ति की माप Part - 2 img 80

प्रश्न 31.
आपको 5 मदों के मूल्य दिए गए हैं -4, 6, 8, 10 तथा 12.

  1. यदि उनका माध्य 2 से बढ़ा दिया जाए तो व्यक्तिगत मदों में क्या परिवर्तन होगा। यदि सभी मद समान रूप से प्रभावित होते हैं।
  2. यदि पहले तीन मदों के मूल्य में दो की वृद्धि होती है, तब बाद के दो मदों का मान क्या होना चाहिए ताकि माध्य पूर्ववत् बना रहे।
  3. यदि मान 12 के स्थान पर 96 का प्रयोग करें तब समान्तर माध्य क्या होगा?

उत्तर:
1. माध्य = \(\frac{4+6+8+10+12}{5}\) = \(\frac{40}{5}\) = 8
नया नाम = 8 + 2 = 10
मान लो प्रत्येक मद में बढ़ोतरी = X
नई मदों का मूल्य = 4 + x + 6 + x + 8 + x + 10 + x + 12 + x
= 40 + 5x
अतः 40 + 5x = 10 × 5
5x = 50 – 40 = 10
x = 2
अतः बाद के दो मदों में 2 की वृद्धि होगी।

2. तीन मदों के मूल्य में कुल वृद्धि = 3 × 26
अत: बाद के दो मदों के मूल्य में कमी = 6
औसत वृद्धि = \(\frac{6}{2}\) = 3
अतः बाद के दो मदों में 3, 3 की वृद्धि होगी।
पुष्टिकरण (Verirication): 5 मदों के मूल्य का माध्य = 8
मदों के परिवर्तन के पश्चात् मदों के मूल्य का माध्य
= (4 + 2 + 6 + 2 + 8 + 2 10 – 3 + 12 – 3) + 5
= \(\frac{6+8+10+7+9}{5}\) = \(\frac{40}{5}\) = 8

3. पाँचवें मद के मूल्य में काफी परिवर्तन आएगा। इससे स्पष्ट होता है कि समान्तर माध्य चरम सीमा से काफी प्रभावित होता है।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
एक श्रृंखला के सभी मदों को जोड़कर योग को संख्या से भाग करने पर प्राप्त होता –
(a) समांतर माध्य
(b) मध्यिका
(c) बहुलक
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(a) समांतर माध्य

प्रश्न 2.
समांतर माध्य की गणना पद विचलन विधि अथवा प्रत्यक्ष विधि से करने पर उत्तर प्राप्त होना चाहिए –
(a) समान
(b) असमान
उत्तर:
(a) समान

प्रश्न 3.
एक क्रमबद्ध श्रृंखला को केन्द्रीय प्रवृत्ति का कौन-सा माप दो समान भागों में बाँटता है –
(a) समांतर माध्य
(b) मध्यिका
(c) बहुलक
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(b) मध्यिका

प्रश्न 4.
‘से कम’ तथा ‘से अधिक’ तोरण जिस बिन्दु पर काटते हैं उस बिन्दु से x – अक्ष पर खींचा गया लम्ब किसकी माप होता है –
(a) (i) निम्न चतुर्थक
(b) उच्च चतुर्थक
(c) मध्यिका
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(c) मध्यिका

प्रश्न 5.
ज्यामितीय विधि से ज्ञात नहीं किया जा सकता है –
(a) समांतर माध्य
(b) बहुलक
(c) माध्यिका
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(a) समांतर माध्य

प्रश्न 6.
समांतर माध्य से विचलनों का योग होता है –
(a) ऋणात्मक
(b) धनात्मक
(c) शून्य
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(c) शून्य

प्रश्न 7.
एक क्रमबद्ध श्रृंखला को चार भागों में विभक्त करने वाला केन्द्रीय प्रवृत्ति माप है –
(a) चतुर्थक
(b) मध्यिका
(c) बहुलक
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(a) चतुर्थक

प्रश्न 8.
श्रृंखला में सबसे अधिक बार आने वाला मद होता है –
(a) मध्यिका
(b) चतुर्थक
(c) बहुलक
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(c) बहुलक

प्रश्न 9.
सामान्यतः चतुर्थकों की गणना की जाती है –
(a) Q1
(b) Q2
(c) Q3
(d) Q4
(e) Q1 तथा Q3
उत्तर:
(e) Q1 तथा Q3

प्रश्न 10.
निम्न में कौन सभी मदों पर आधारित होता है –
(a) समांतर माध्य
(c) मध्यिका
(c) बहुलक
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(a) समांतर माध्य

Bihar Board Class 11 Political Science Solutions Chapter 10 संविधान का राजनीतिक दर्शन

Bihar Board Class 11 Political Science Solutions Chapter 10 संविधान का राजनीतिक दर्शन Textbook Questions and Answers, Additional Important Questions, Notes.

BSEB Bihar Board Class 11 Political Science Solutions Chapter 10 संविधान का राजनीतिक दर्शन

Bihar Board Class 11 Political Science संविधान का राजनीतिक दर्शन Textbook Questions and Answers

संविधान का राजनीतिक दर्शन के प्रश्न उत्तर Bihar Board प्रश्न 1.
नीचे कुछ कानून दिए गए हैं। क्या इनका संबंध किसी मूल्य से है? यदि हाँ, तो वह अंतर्निहित मूल्य क्या है? कारण बताएँ।
(क) पुत्र और पुत्री दोनों का परिवार की संपत्ति में हिस्सा होगा।
(ख) अलग-अलग उपभोक्ता वस्तुओं के बिक्री-कर का सीमांकन अलग-अलग होगा।
(ग) किसी भी सरकारी विद्यालय में धार्मिक शिक्षा नहीं दी जायगी।
(घ) ‘बेगार’ अथवा बंधुआ मजदूरी नहीं कराई जा सकती।
उत्तर:
(क) परिवार की नियुक्ति में पुत्री एवं पुत्र दोनों का बराबर हिस्सा होना सामाजिक मूल्य से सम्बन्धित है। ऐसा इसलिए है क्योंकि संविधान में स्त्री और पुरुष दोनों को समान अधिकार प्रदान किया गया है। यह एक लिंग-न्याय कहा जाएगा। सामाजिक न्याय का अर्थ है कि लिंग, जाति, नस्ल, धर्म अथवा क्षेत्र आदि के आधार पर कोई भेदभाव न हो। अतः पुत्री और पुत्र दोनों को समान हिस्सा दिया जाना सामाजिक न्याय के अन्तर्गत या लिंग न्याय की श्रेणी में रखा जायगा।
(ख) अलग-अलग उपभोक्ता वस्तुओं पर बिक्रीकर का सीमांकन अलग-अलग करना आर्थिक न्याय का उदाहरण है।
(ग) सरकारी स्कूलों में धार्मिक शिक्षा न दिया जाना, धर्म निरपेक्षता के मूल्य पर आधारित है।
(घ) किसी से बेगार न लेना और बन्धुआ मजदूरी का निषेध करना यह भी सामाजिक न्याय के मूल्य पर आधारित है। समाज में किसी भी वर्ग का शोषण नहीं किया जाना चाहिए।

संविधान का राजनीतिक दर्शन प्रश्न उत्तर Bihar Board प्रश्न 2.
नीचे कुछ विकल्प दिए जा रहे हैं। बताएँ कि इसमें किसका इस्तेमाल निम्नलिखित कथन को पूरा करने में नहीं किया जा सकता? लोकतांत्रिक देश को संविधान की जरूरत …..
(क) सरकार की शक्तियों पर अंकुश रखने के लिए होती है।
(ख) अल्पसंख्यकों को बहुसंख्यकों से सुरक्षा देने के लिए होती है।
(ग) औपनिवेशिक शासन से स्वतंत्रता अर्जित करने के लिए होती है।
(घ) यह सुनिश्चित करने के लिए होती है कि क्षणिक आवेग में दूरगामी के लक्ष्यों से कहीं विचलित न हो जाएँ।
(ङ) शांतिपूर्ण ढंग से सामाजिक बदलाव लाने के लिए होती है।
उत्तर:
इस वाक्य को पूरा करने में तीसरा विकल्प  –
(ग) का प्रयोग नहीं किया जा सकता अर्थात् औपनिवेशिक शासन से स्वतंत्रता अर्जित करने के लिए होती है, का प्रयोग नहीं किया जा सकता।

संविधान का राजनीतिक दर्शन पाठ के प्रश्न उत्तर Bihar Board प्रश्न 3.
संविधान सभा की बहसों को पढ़ने और समझने के बारे में नीचे कुछ कथन दिए गए हैं –

  1. इनमें से कौन-सा कथन इस बात की दलील है कि संविधान सभा की बहसें आज भी प्रासंगिक हैं? कौन-सा कथन यह तर्क प्रस्तुत करता है कि ये बहसें प्रासंगिक नहीं हैं?
  2. इनमें से किस पक्ष का आप समर्थन करेंगे और क्यों?

(क) आम जनता अपनी जीविका कमाने और जीवन की विभिन्न परेशानियों के निपटाने में व्यस्त होती हैं। आम जनता इन बहसों की कानूनी भाषा को नहीं समझ सकती।

(ख) आज की स्थितियाँ और चुनौतियाँ संविधान बनाने के वक्त की चुनौतियों और स्थितियों से अलग हैं। संविधान निर्माताओं के विचारों को पढ़ना और अपने नये जमाने में इस्तेमाल करना दरअसल अतीत को वर्तमान में खींच लाना है।

(ग) संसार और मौजूदा चुनौतियों को समझाने की हमारी दृष्टि पूर्णतया नहीं बदली है। संविधान सभा की बहसों से हमें यह समझने के तर्क मिल सकते हैं कि कुछ संवैधानिक व्यवहार क्यों महत्त्वपूर्ण हैं एक ऐसे समय में जब संवैधानिक व्यवहारों को चुनौती दी जा रही है, इन तर्कों को न जानना संवैधानिक-व्यवहारों को नष्ट कर सकता है।
उत्तर:
1.
(क) जब आम जनता अपने जीविकोपार्जन में व्यस्त रहती है तो यह कथन यह तर्क प्रस्तुत करता है कि ये बहसें प्रासंगिक नहीं हैं।
(ख) आज की स्थितियाँ और चुनौतियाँ संविधान बनाने के वक्त की चुनौतियों और स्थितियों से अलग हैं। यह तर्क भी प्रस्तुत करता है कि ये बहसें प्रासंगिक नहीं है।
(ग) यह कथन प्रस्तुत करता है कि बहसें प्रासंगिक हैं क्योंकि संसार और वर्तमान चुनौतियाँ पूर्णतया नहीं बदली हैं।

2.
(क) मैं इस बात से सहमत हूँ कि आम जनता अपनी जीविका कमाने में व्यस्त है।
(ख) मैं इस बात से सहमत हूँ क्योंकि आज की स्थितियाँ उस समय से अलग हैं। पिछले लगभग 56 वर्षों में 93 के लगभग संशोधन हो चुके हैं।
(ग) क्योंकि समस्त चुनौतियाँ और यह संसार पूर्णतया नहीं बदले अतः मैं इस बात से सहमत हूँ कि बहसें प्रासंगिक हैं।

संविधान का राजनीतिक दर्शन Class 11 प्रश्न उत्तर Bihar Board प्रश्न 4.
निम्नलिखित प्रसंगों के आलोक में भारतीय संविधान और पश्चिमी अवधारणा में अंतर स्पष्ट करें –
(क) धर्मनिरपेक्षता की समझ
(ख) अनुच्छेद 370 और 371
(ग) सकारात्मक कार्य-योजना या अफरमेटिव एक्शन
(घ) सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार
उत्तर:
(क) धर्मनिरपेक्षता की समझ:
धर्म निरपेक्षता के मामले में भारतीय संविधान पश्चिमी अवधारणा से बिल्कुल भिन्न है। पश्चिमी अवधारणा में धर्म व्यक्ति की अपनी निजी धारणा है। राज्य उसमें किसी प्रकार का योगदान या हस्तक्षेप नहीं करता, परंतु भारतीय संविधान में सभी धर्मों को समान आदर दिया गया है।

(ख) अनुच्छेद 370 और 371:
अनुच्छेद 370 जम्मू और कश्मीर राज्य के सम्बन्ध में अस्थायी या संक्रमणकालीन व्यवस्था ही करता है। अनुच्छेद 371 उत्तर-पूर्व के राज्यों के लिए है। भारतीय संविधान और पाश्चात्य अवधारणा में यह अंतर है कि पाश्चात्य देशों में राज्यों के अपने अलग संविधान होते हैं परंतु भारतीय संविधान में राज्यों के अलग संविधान नहीं हैं, परंतु जम्मू और कश्मीर का 26 जनवरी, 1957 से अपना अलग संविधान भी है जिसमें जम्मू-कश्मीर राज्य के विशेष उपबंध हैं।

371 (a) नागालैण्ड राज्य के सम्बन्ध में विशेष उपबंध हैं
371 (b) असम के, 371
(c) मणिपुर, 371
(d) आन्ध्र प्रदेश, 371
(e) आन्ध्र प्रदेश में केन्द्रीय विश्वविद्यालय की स्थापना के
371 (f) सिक्किम राज्य के सम्बन्ध में विशेष उपबंध हैं 371
(g) मिजोरम, 371
(h) अरुणाचल प्रदेश

1. गोवा के सम्बन्ध में विशेष उपबंध हैं। इन राज्यों को छोड़कर पाश्चात्य धारणा और भारतीय संविधान में अंतर है परंतु 370 और 371 अनुच्छेदों वाले राज्यों पर केन्द्र का सीधा-नियंत्रण अथांत् उन राज्यों की सहमति के आधार पर संसद के नियमों को लागू कराया जा सकता है। एक सीमा तक ये प्रदेश स्वायत्तता का उपयोग कर सकते हैं जैसा कि पाश्चात्य धारणा में तो राज्यों की स्वायत्तता होती ही है।

(ग) सकारात्मक कार्ययोजना:
भारतीय संविधान और पाश्चात्य धारणा में सकारात्मक कार्ययोजना के सम्बन्ध में बड़ा अंतर है जैसा कि अमेरिका के संविधान में जहाँ संविधान 18 वीं शताब्दी में लिखा गया था उस समय के मूल्य और प्रतिमान आज इक्कीसवीं सदी में लागू करना भद्दा होगा परंतु भारतीय संविधान में निर्माताओं ने सकारात्मक कार्ययोजना हमारे मूल्यों, आदशौँ तथा विचारधारा के साथ संविधान का निर्माण किया।

भारतीय राजनीतिक दर्शन उदारवाद, लोकतंत्र समाजवाद, धर्मनिरपेक्षता और संघात्मकता तथा अन्य सभी धारणाओं जो भारतीय संस्कृति को प्रकट करती है, वसुधैव कुटुम्बकम अर्थात् सबको एक समान मानते हुए अल्पसंख्यकों का आदर करते हुए एक राष्ट्रीय पहचान बनाए रखते हुए भारतीय संविधान में रखा गया है परंतु पाश्चात्य विचारधारा में ऐसा नहीं होता।

(घ) सार्वभौम वयस्क मताधिकार:
पाश्चात्य अवधारणा में स्त्रियों को मताधिकार अभी हाल में दिया गया है जबकि संविधान निर्माण के समय नहीं दिया गया था परंतु भारतीय संविधान में सार्वभौम वयस्क मताधिकार (सभी स्त्री, पुरुष व नपुंसक को) दिया गया है।

संविधान का राजनीतिक दर्शन Class 11 Question Answer Bihar Board प्रश्न 5.
निम्नलिखित में धर्मनिरपेक्षता का कौन-सा सिद्धांत भारत के संविधान में अपनाया गया है?
(क) राज्य का धर्म से कोई लेना-देना नहीं है।
(ख) राज्य का धर्म से नजदीकी रिश्ता है।
(ग) राज्य धर्मों के बीच भेदभाव कर सकता है।
(घ) राज्य धार्मिक समूहों के अधिकार को मान्यता देगा।
(ङ) राज्य को धर्म के मामलों में हस्तक्षेप करने की सीमित शक्ति होंगी।
उत्तर:
भारतीय संविधान में धर्म-निरपेक्षता के निम्नलिखित सिद्धांत अपनाए गए हैं –
(क) राज्य का धर्म से कोई लेना-देना नहीं है।
(ख) राज्य धार्मिक समूहों के अधिकार को मान्यता देगा।

संविधान का राजनीतिक दर्शन पाठ के प्रश्न उत्तर कक्षा 11 Bihar Board प्रश्न 6.
निम्नलिखित कथनों को सुमेलित करें –
(क) विधवाओं के साथ किए जाने वाले बरताव की आलोचना की आजादी।
(ख) संविधान-सभा में फैसलों का स्वार्थ के आधार पर नहीं बल्कि तर्कबुद्धि के आधार पर लिया जाना।
(ग) व्यक्ति के जीवन से समुदाय के महत्त्व को स्वीकार करना।
(घ) अनुच्छेद 370 और 371
(ङ) महिलाओं और बच्चों को परिवार की संपत्ति में असमान

अधिकार:

  1. आधारभूत महत्त्व की उपलब्धि
  2. प्रक्रियागत उपलब्धि
  3. लैंगिक-न्याय की उपेक्षा
  4. उदारवादी व्यक्तिवाद
  5. धर्म-विशेष की जरूरतों के प्रति ध्यान देना

उत्तर:
(क) विधवाओं के साथ किए जाने वाले बरताव की आलोचना की आजादी।
(ख) संविधान सभा में फैसलों का स्वार्थ के आधार पर नहीं बल्कि तर्क बुद्धि के आधार पर लिया जाना
(ग) व्यक्ति के जीवन में समुदाय के महत्त्व को स्वीकार करना
(घ) अनुच्छेद 370 और 371
(ङ) महिलाओं और बच्चों के परिवार की संपत्ति में असमान

अधिकार:

  1. प्रक्रियागत उपलब्धि
  2. आधारभूत महत्त्व की उपलब्धि
  3. उदारवादी व्यक्तिवाद
  4. धर्म-विशेष की जरूरतों के प्रति ध्यान देना
  5. लैंगिक न्याय की उपेक्षा
  6. नीति

Samvidhan Ka Rajnitik Darshan Question Answer Bihar Board प्रश्न 7.
यह चर्चा एक कक्षा में चल रही थी। विभिन्न तर्कों को पढ़ें और बताएं कि आप इनमें किस से सहमत हैं और क्यों?

जयेश:
मैं अब भी मानता हूँ कि हमारा संविधान एक उधार का दस्तावेज है।

सबा:
क्या तुम यह कहना चाहते हो कि इसमें भारतीय कहने जैसा कुछ है ही नहीं? क्या मूल्यों और विचारों पर हम ‘भारतीय’ अथवा ‘पश्चिमी’ जैसा लेबल चिपका सकते हैं? महिलाओं और पुरुषों की समानता का ही मामला लो। इसमें पश्चिमी’ कहने जैसा क्या है? और, अगर ऐसा है भी तो क्या हम इसे सहज पश्चिमी. होने के कारण खारिज कर दें?

जयेश:
मेरे कहने का मतलब यह है कि अंग्रेजों से आजादी की लड़ाई लड़ने के बाद क्या हमने उनकी संसदीय-शासन की व्यवस्था नहीं अपनाई?

नेहा:
तुम यह भूल जाते हो कि जब हम अंग्रेजों से लड़ रहे थे तो हम सिर्फ अंग्रेजों के खिलाफ थे। अब इस बात का, शासन की जो व्यवस्था हम चाहते थे उसको अपनाने से कोई लेना-देना नहीं, चाहे यह जहाँ से भी आई हो।
उत्तर:
इस चर्चा में जयेश का विचार; कि ‘हमारा संविधान केवल उधार का थैला है। यहाँ. पर आलोचना का विषय है कि भारतीय संविधान मौलिक नहीं है, बहुत से अनुच्छेद तो भारतीय शासन अधिनियम, 1935 से शब्दशः लिए गए हैं। बहुत से अनुच्छेद विदेशों के संविधानों से लिए गए हैं। इसमें अपना देशी कुछ भी नहीं है। इसमें हिन्दुकाल की सभा या समिति का कुछ भी वर्णन नहीं है। इसमें मध्यकालीन भारत का भी कुछ नहीं है परंतु सब का कहना है कि कोई मूल्य या आदर्श भारतीय या पाश्चात्य नहीं हुआ करते, मूल्य तो मूल्य हैं, आदर्श तो आदर्श होते हैं।

जब हम कहते हैं कि स्त्री और पुरुष में कोई भेदभाव नहीं किया जाना चाहिए तो यह बात पाश्चात्य और भारतीय दोनों दृष्टिकोण से ही ठीक है। हमें कोई बात इस कारण से नकारनी नहीं चाहिए कि वह पाश्चात्य अवधारणा से ली गई है परंतु नेहा का कथन है कि हम ब्रिटिश के खिलाफ अपनी आजादी के लिए लड़े थे तो हम ब्रिटिश के विरुद्ध नहीं बल्कि औपनिवेशिक पीतियों के खिलाफ लड़े थे।

हमें कोई भी बात जो हमारे लिए उपयोगी है उसमें यह नहीं देखना कि यह कहाँ से ली गई है। इस प्रकार दूसरे देशों से ली गयी बातें गलत हों, यह कहना सही नहीं हो सकता वरन् मानव की अपनी आवश्यकताओं के अनुरूप जो बात जिस देश के संविधान से ली जाए उसमें कुछ भी गलत नहीं है। इसके विपरीत यदि हम पुरातन भारतीय, राजनीतिक संस्थाओं को लेना चाहें तो आधुनिक युग में यह जरूरी नहीं कि वे फिट बैठ सकें।

आलोचक भारतीय संविधान की आलोचना करते हुए जिन विशेषणों का प्रयोग करते हैं, उनमें प्रमुख हैं ‘मौलिकता का अभाव’ ‘उधार का थैला’ और ‘भानुमति का पिटारा’ आदि। आलोचकों का कहना है कि संविधान में ‘भारतीयता का पुट’ नहीं है परंतु उपर्युक्त आलोचना न्यासंगत नहीं है। विशेष बात यह है कि विदेशी संविधानों से सोच-विचारकर ही ग्रहण किया गया है और जो कुछ ग्रहण किया गया है उसे भारतीय परिस्थितियों के अनुरूप ढाल लिया गया है।

ग्रेनविल आस्टिन के अनुसार भारतीय संविधान के निर्माण में परिवर्तन के साथ चयन की कला को अपनाया गया है। इसे भारतीय संविधान का गुण कहा जा सकता है। वास्तव में संविधान के मौलिक विचारों पर किसी का स्वात्वाधिकार नहीं होता। संविधान निर्माताओं ने अन्य देशों के संविधानों और उनके व्यावहारिक अनुभवों से लाभ उठाकर कोई गलती नहीं की वरन् दूरदर्शिता का ही कार्य किया है।

Samvidhan Ki Raajnitik Darshan Question Answer Bihar Board प्रश्न 8.
ऐसा क्यों कहा जाता है कि भारतीय संविधान को बनाने की प्रक्रिया प्रतिनिधिमूलक नहीं थी? क्या इस कारण हमारा संविधान प्रतिनिध्यात्मक नहीं रह जाता? अपने उत्तर के कारण बताएँ।
उत्तर:
भारत के संविधान की एक आलोचना यह कहकर की जाती है कि यह प्रतिनिध्यात्मक नहीं है। भारतीय संविधान का निर्माण एक संविधान सभा द्वारा किया गया था जिसका गठन नवम्बर 1946 में किया गया था। इसके सदस्य प्रान्तीय विधानमण्डलों द्वारा अप्रत्यक्ष रूप से चुने गए थे। संविधान सभा में 389 सदस्य थे जिनमें से 292 ब्रिटिश प्रान्तों से तथा 93 देशी रियासतों से थे। चार सदस्य चीफ कमिश्नर वाले क्षेत्रों से थे।

3 जून, 1947 के माउन्टबेटन योजना के तहत भारत का विभाजन हुआ और संविधान सभा की कुल सदस्य संख्या घटकर 299 रह गई जिसमें 284 सदस्यों ने 26 नवम्बर, 1949 को संविधान पर हस्ताक्षर किए यद्यपि कुछ संविधान विशेषज्ञ संविधान सभा को संप्रभु नहीं मानते थे क्योंकि यह ब्रिटिश सरकार द्वारा गठित की गई थी। अगस्त, 1947 में भारत के आजाद होने के बाद इस संविधान सभा ने पूर्ण संप्रभु होकर कार्य किया। इस सभा के सदस्यों का चुनाव क्योंकि सार्वभौम वयस्क मताधिकार द्वारा नहीं हुआ था अतः कुछ विद्वान इसे प्रतिनिधि मूलक नहीं मानते परंतु यदि हम संविधान सभा के डिवेट (वाद-विवाद) का अध्ययन करें तो पता चलता है कि विभिन्न विचारों के आदान-प्रदान के बाद ही इसके प्रावधान बनाए गए।

कुछ लोगों का यह कथन भी ठीक नहीं प्रतीत होता कि संविधान सभा वास्तव में प्रतिनिधि संस्था नहीं थी इस कारण वह भारतीयों के लिए संविधान बनाने की अधिकारिणी नहीं थी। इसके अनुसार न तो सभा के सदस्यों का चुनाव प्रत्यक्ष रूप से हुआ और न ही जनमत संग्रह द्वारा ही संविधान को जनता द्वारा अनुसमर्थित कराया गया, इसलिए यह कहा जा सकता है कि संविधान को लोकप्रिय स्वीकृति प्राप्त नहीं थी परंतु इस आलोचना में भी कोई सार नहीं है। 1946 में जिन परिस्थितियों में संविधान सभा का निर्माण हुआ, उनमें वयस्क मताधिकार के आधार पर इस प्रकार की सभा का निर्माण सम्भव नहीं था।

यदि संविधान का गठन प्रत्यक्ष निर्वाचन के आधार पर होता अथवा यदि इस संविधान सभा द्वारा निर्मित संविधान के प्रारूप पर जनमत संग्रह करवाया जाता, तब भी संविधान का स्वरूप कम या अधिक रूप में ऐसा ही होता। इस विचार को बल देने वाला तथ्य यह है कि 1952 के प्रथम आम चुनाव जो नई सरकार के गठन के साथ-साथ संविधान के स्वरूप के आधार पर लड़े गए थे, में संविधान सभा के अधिकांश सदस्यों ने चुनाव – लड़ा और काफी अच्छे बहुमत से विजय प्राप्त की। इन सबके अतिरिक्त यह भी तथ्य है कि तत्कालीन भारत के सबसे प्रमुख संगठन ‘भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस’ ने संविधान सभा को अधिकाधिक प्रतिनिधि स्वरूप प्रदान करने की प्रत्येक सम्भव और अधिकांश अंशों में सफल चेष्टा की थी।

संविधान का राजनीतिक दर्शन के प्रश्न उत्तर बताइए Bihar Board प्रश्न 9.
भारतीय संविधान की एक सीमा यह है कि इसमें लैंगिक-न्याय पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया गया है। आप इस आरोप की पुष्टि में कौन-से प्रमाण देंगे? यदि आज आप संविधान लिख रहे होते, तो इस कमी को दूर करने के लिए उपाय के रूप में किन प्रावधानों की सिफारिश करते?
उत्तर:
भारतीय संविधान की कुछ सीमाएँ भी हैं। यह नहीं कहा जा सकता कि यह एक सम्पूर्ण तथा दोष रहित प्रलेख है। इनमें से एक सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण लैंगिक न्याय विशेषतया परिवार की संपत्ति के अन्तर्गत ऐसा है। परिवार की संपत्ति में स्त्रियों और बच्चों को समान अधिकार नहीं दिए गए। बेटे और बेटी में अंतर किया जाता है। मूल सामाजिक-आर्थिक अधिकार राज्य के नीति निर्देशक तत्त्वों में शामिल किए गए हैं जबकि उन्हें मौलिक अधिकारों में शामिल किया जाना चाहिए था।

राज्य नीति निर्देशक तत्त्वों को न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकती। समान कार्य के लिए स्त्री तथा पुरुष दोनों को समान वेतन राज्य के द्वारा संरक्षित किया गया है। यह नीति निर्देशक तत्त्वों में शामिल किया गया है। यह भी मौलिक अधिकार का भाग होना चाहिए था क्योंकि राज्य पूरी तरह से तभी समान कार्य के लिए स्त्री-पुरुष दोनों को समान वेतन दिला सकता है। नीति निर्देशक तत्वों के लिए राज्य केवल प्रयास करेगा। हमारी संविधान की सीमाओं में से एक यह भी है कि आज तक स्त्रियों को तैंतीस प्रतिशत आरक्षण संसद व राज्य विधानमंडल में नहीं दिलवाया जा सका।

हमारे संविधान की सीमाएँ मुख्यतः निम्नलिखित हैं –

  1. भारत का संविधान राष्ट्रीय एकता का केन्द्रीयकृत विचार रखता है।
  2. यह कुछ प्रमुख लैंगिक न्याय के विषयों विशेष तौर पर परिवार के अंदर व्याख्या किए हुए है।
  3. यह स्पष्ट नहीं हो सका कि क्योंकि एक निर्धन विकासशील देश में कुछ निश्चित मूल सामाजिक-आर्थिक अधिकार मूल अधिकारों की श्रेणी में न रखकर राज्य के नीति निर्देशक तत्त्वों में शामिल किया गया है।

संविधान का राजनीतिक दर्शन के पाठ के प्रश्न उत्तर Bihar Board प्रश्न 10.
क्या आप इस कथन से सहमत हैं-कि ‘एक गरीब और विकासशील देश में कुछ एक बुनियादी सामाजिक-आर्थिक अधिकार मौलिक अधिकारों की केन्द्रीय विशेषता के रूप में दर्ज करने के बजाए राज्य की नीति-निर्देशक तत्त्वों वाले खंड में क्यों रख दिए गए-यह स्पष्ट नहीं है। आपके जानते सामाजिक-आर्थिक अधिकारों को नीति-निर्देशक तत्त्व वाले खंड में रखने के क्या कारण रहे होंगे?
उत्तर:
हमारे संविधान की एक विशेषता नीति निर्देशक तत्त्व हैं। विश्व के अन्य संविधानों में केवल आयरलैंड के संविधान को छोड़कर अन्य किसी देश के संविधान में राज्य के नीति निर्देशक तत्त्व नहीं हैं। भारतीय संविधान के निर्माताओं ने संविधान में केवल. राज्य के संगठन की व्यवस्था एवं अधिकार पत्र का वर्णन नहीं किया है वरन् वह दिशा भी निश्चित किया है जिसकी ओर बढ़ने का प्रयत्न भविष्य में भारत राज्य को करना है।

संविधान निर्माताओं का लक्ष्य भारत में लोक कल्याणकारी राज्य की स्थापना था और इसलिए उन्होंने नीति निर्देशक तत्त्वों में से ऐसी बातों का समावेश किया, जिन्हें कार्य रूप में परिणत किए जाने पर एक लोक कल्याणकारी राज्य की स्थापना सम्भव हो सकती है। निर्देशक तत्त्व हमारे राज्य के सम्मुख कुछ आदर्श उपस्थित करते हैं जिनके द्वारा देश के नागरिकों का सामाजिक, आर्थिक एवं नैतिक उत्थान हो सकता है।

इन तत्त्वों की प्रकृति के सम्बन्ध में संविधान की 37 वीं धारा में कहा गया है कि “इस भाग में दिए गए उपबंधों को किसी भी न्यायालय द्वारा बाध्यता नहीं दी जा सकेगी, किन्तु फिर भी इसमें दिए हुए तत्त्व देश के शासन में मूलभूत हैं और विधि निर्माण में इन तत्त्वों का प्रयोग करना राज्य का कर्तव्य होगा।” इस अनुच्छेद (37) से यह बात स्पष्ट है कि निर्देशक तत्त्व को मौलिक अधिकारों के समान वैधानिक शक्ति प्रदान नहीं की गयी है।

इसका अर्थ है कि निर्देशक तत्त्वों की क्रियान्विनी के लिए न्यायालय के द्वारा किसी भी प्रकार के आदेश जारी नहीं किए जा सकते हैं। वैधानिक महत्त्व प्राप्त न होने पर भी ये तत्त्व राज्य शासन के संचालन के आधारभूत सिद्धांत हैं और राज्य का यह नैतिक कर्तव्य है कि व्यवहार में सदैव ही इन तत्त्वों का पालन करे। यहाँ यह बात उल्लेखनीय है कि इतने महत्त्वपूर्ण एवं मौलिक अधिकारों से किसी भी प्रकार कम महत्त्व न रखते हुए भी इन निर्देशक तत्त्वों को राज्य सरकारों की कृपा पर क्या छोड़ा गया।

इसके नजर में यही कहा जा सकता है कि भारत उस समय पराधीनता के चंगुल से छुटा था। उसकी आर्थिक स्थिति इतनी कमजोर थी कि इनका (निर्देश तत्त्वों का) पालन करने की बाध्यता होने से आर्थिक संकट उभर सकना था और उसके कारण समय-समय पर अनेक समस्यायें उठ सकती थीं। अत: राज्य को निर्देश दिया गया तथा नागरिकों को यह अधिकार भी नहीं दिया गया कि वे इन निर्देशक तत्त्वों को पूरा कराने के लिए राज्य के विरुद्ध न्यायालय में जा सकें। इसी कारण राज्य को इन नीति निर्देशक तत्त्वों को पूरा करने का प्रयास भर करने के लिए कहा गया ताकि अपनी सामर्थ्य के अनुकूल शासन इनको पूरा ६. 11 + रुचि ले सके।

Bihar Board Class 11 Political Science संविधान का राजनीतिक दर्शन Additional Important Questions and Answers

अति लघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

संविधान का राजनीतिक दर्शन प्रश्नोत्तरी Bihar Board प्रश्न 1.
‘संविध’ के दर्शन’ का क्या आशय है?
उत्तर:
‘संविधान, दर्शन’ से अभिप्राय है कि संविधान के अंतर्गत दिए गए कानूनों में यद्यपि नैतिक तत्त्वों का होना आवश्यक नहीं है किन्तु बहुत से कानून हमारे भीतर गहराई से बैठे मूल्यों से जुड़े रहते हैं। इन मूल्यों के आधार पर ही संविधान का निर्माण किया जाता है। संविधान के प्रति राजनीतिक-दर्शन का दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है। हमारी राष्ट्रीय विचारधारा ही हमारे संविधान में प्रतीत होती है। समानता, स्वतंत्रता, बंधुत्व की भावना, राष्ट्रीय एकता और अखण्डता, समाजवाद और धर्म निरपेक्षता आदि आदर्शों का हमारे संविधान में समावेश है। यही हमारा राजनीतिक दर्शन है। हमारे सामाजिक और राष्ट्रीय मूल्यों का प्रतीक हमारा संविधान होता है।

संविधान का राजनीतिक दर्शन पाठ के क्वेश्चन आंसर Bihar Board प्रश्न 2.
‘धर्म निरपेक्षता’ क्या अभिप्राय है? क्या भारत एक धर्मनिरपेक्ष राज्य है?
उत्तर:
भारतीय संविधान में भारत को एक ‘धर्मनिरपेक्ष राज्य’ घोषित किया गया है। राज्य का अपना कोई धर्म नहीं है और न ही राज्य नागरिकों को कोई धर्म विशेष अपनाने की प्रेरणा देता है। राज्य न धर्मी है, न अधर्मी और न धर्म-विरोधी। नागरिकों को धर्म की स्वतंत्रता प्रदान की गई है और सब व्यक्तियों को अपनी इच्छानुसार अपने इष्ट-देव की पूजा करने का अधिकार है।

संविधान का राजनीतिक दर्शन पाठ 10 के प्रश्न उत्तर Bihar Board प्रश्न 3.
भारतीय संविधान की चार प्रमुख विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
भारतीय संविधान की अनेक विशेषताएँ हैं, जिनमें चार प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं –

  1. भारतीय संविधान के अनुसार भारत एक संप्रभु समाजवादी लोकतंत्रात्मक गणराज्य है।
  2. भ तीय संविधान के द्वारा भारत को ‘धर्मनिरपेक्ष’ राज्य घोषित किया गया है।
  3. भारतीय संविधान में मौलिक अधिकार और मौलिक कर्तव्यों का वर्णन किया गया है।
  4. भारत के संविधान में संसदात्मक शासन प्रणाली को अपनाया गया है।

Samvidhan Ka Rajnitik Darshan Ke Question Answer Bihar Board प्रश्न 4.
भारतीय संविधान की प्रस्तावना में दिए गए किन्हीं चार प्रमुख आदर्शों को बताइए।
उत्तर:
भारतीय संविधान की प्रस्तावना में दिए गए प्रमुख आदर्श निम्नलिखित हैं –

  1. न्याय: प्रत्येक भारतीय नागरिक को सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक न्याय प्राप्त होगा।
  2. स्वतंत्रता: प्रत्येक भारतीय नागरिक को स्वतंत्रता प्राप्त होगी-सोचने की अभिव्यक्ति की, विश्वास की, उपासना की।
  3. समानता: भारत के प्रत्यके नागरिक को अवसर एवं प्रतिष्ठा को समानता प्रदान – की जायगी।
  4. बंधुत्व: समस्त भारतीय नागरिकों को उनकी व्यक्तिगत प्रतिष्ठा का आश्वासन तथा राष्ट्र की एकता व अखंडता को बढ़ावा देने की भावना पैदा की जायगी।

संविधान का राजनीतिक दर्शन Class 11 Bihar Board प्रश्न 5.
भारत के संविधान की आलोचना के चार बिन्दु लिखिए।
उत्तर:
भारत के संविधान की आलोचना के चार बिन्दु निम्नलिखित है –

  1. संविधान निर्मात्री सभा प्रभुत्व सम्पन्न संस्था नहीं थी।
  2. संविधान सभा के अधिकांश सदस्य समाज के उच्च वर्ग से थे।
  3. भारतीय संविधान एक विदेशी दस्तावेज है। एक उधार का थैला है। अनेक दूसरे देशों से संविधान की अनेक बातों को लिया गया है।
  4. संविधान सभा द्वारा निर्मित संविधान को लोकप्रिय अनुज्ञप्ति प्राप्त नहीं थी।

संविधान का राजनीतिक दर्शन पाठ Bihar Board प्रश्न 6.
संविधान की आवश्यकता और महत्त्व के क्या कारण हैं?
उत्तर:
ब्रिटिश शासन से आजादी प्राप्त करने के बाद राष्ट्रीय आंदोलन के नेताओं ने संविधान को अंगीकार करने की आवश्यकता अनुभव की। उन्होंने स्वयं को और आने वाली पीढ़ियों को संविधान से अनुशासित करने का फैसला किया। इसके निम्न कारण थे –

  1. संविधान एक ऐसा प्रारूप पैदा करता है, एक ऐसा ढाँचा खड़ा करता है जिसके अनुसार सरकार को कार्य करना होता है।
  2. यह सरकार द्वारा सत्ता के दुरुपयोग पर अंकुश लगाता है।
  3. यह सरकार के विभिन्न अंगों के बीच समन्वय स्थापित करता है।
  4. यह नागरिकों के मूल अधिकारों की रक्षा करता है।

लघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
भारतीय संविधान की अद्वितीय विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
भारत के संविधान की अद्वितीय विशेषताएँ –

  1. भारत का संविधान एकात्मक और संघात्मक दोनों का मिश्रण है।
  2. भारत के संविधान में यद्यपि शासन को अपनाया गया है, परंतु इसमें अध्यक्षात्मक शासन के भी कुछ तत्त्व पाये जाते हैं।
  3. भारत एक संघात्मक राज्य है परंतु यहाँ इकहरी नागरिकता है।
  4. भारत के संविधान में नागरिकों को मौलिक अधिकार एवं मूल स्वतंत्रताएँ प्रदान की गई हैं परंतु राष्ट्रीय हित में उन पर प्रतिबंध लगाए जा सकते हैं। आपातस्थिति में उन्हें राष्ट्रपति द्वारा निलम्बित किया जा सकता है।
  5. भारत का संविधान भारतीय जनता द्वारा निर्मित है। एक संविधान सभा का निर्माण किया गया जो प्रान्तीय विधान सभाओं द्वारा परोक्ष रूप से निर्वाचित की गयी।
  6. देश की सर्वोच्च सत्ता जनता में निहित है।
  7. भारत को एक गणराज्य घोषित किया गया है।
  8. संविधान में राज्य के नीति निर्देशक तत्त्व दिए गए।
  9. संघीय तथा राज्य विधानमण्डलों के अधिनियमों और कार्यपालिका के क्रियाकलापों की न्यायिक समीक्षा की व्यवस्था है।

प्रश्न 2.
राज्यों के लिए अधिक स्वायत्तता की मांग पर विचार कीजिए।
उत्तर:
1. राज्यों द्वारा अधिक स्वायत्तता की माँग:
भारत में संघीय व्यवस्था है और संघ तथा राज्यों की शक्तियाँ व अधिकार क्षेत्र बंटे हुए हैं। 1967 तक इन सम्बन्धों के बारे में कोई विवाद खड़ा नहीं हुआ क्योंकि राज्यों की कांग्रेसी सरकारें केन्द्र की कांग्रेस सरकार के नियंत्रण में रहती थी और चुपचाप केन्द्र के आदेशों का पालन करती थी।

2. राज्यों के लिए अधिक स्वायत्तता की माँग का आरम्भ:
1967 के चुनाव में बहुत से राज्यों में कांग्रेस को बहुमत नहीं मिला और गैर-कांग्रेसी सरकारें भी अधिक दिन तक नहीं चल सकी। यह महसूस किया गया कि जब तक केन्द्र सरकार अधिक शक्तिशाली है वह किसी अन्य दल की सरकार को राज्य में सहन नहीं कर सकेगी।

इसलिए केन्द्र-राज्य सम्बन्धों पर पुनर्विचार और राज्यों की अधिक स्वायत्तता की माँग शुरू हुई। इसी संदर्भ में कुछ ऐसी माँगें उभर कर आई जो राष्ट्रीय एकता और अखण्डता के लिए खतरा बन सकती है। 1976 में तमिलनाडु में द्रमुक पार्टी सत्ता में आई तो उसने संघीय व्यवस्था के पुनरावलोकन के लिए उच्च न्यायालय के अवकाश प्राप्त न्यायाधीश पी.वी. राजमन्नार की अध्यक्षता में एक, समिति का गठन किया। 1973 में पंजाब में अकाली दल ने इस संबंध में आनन्दपुर साहब प्रस्ताव पास किया।

1977 में भारत के साम्यवादी दल ने पश्चिम बंगाल की सरकार से केन्द्र-राज्य सम्बन्धों पर एक माँगपत्र पेश किया। 1983 में कर्नाटक सरकार ने इस विषय पर एक श्वेतपत्र जारी किया और आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, तमिलनाडु और पांडिचेरी के मुख्यमंत्रियों ने बंगलौर सम्मेलन में उस पर विचार किया। इसी वर्ष श्रीनगर में 16 गैर कांग्रेसी दलों की बैठक हुई जिसमें इस विषय का 31 सूत्री प्रस्ताव पास किया गया। इन सभी बातों को देखते हुए 1985 में सरकारिया आयोग की नियुक्ति की गई। 1988 में इसकी रिपोर्ट आई। यह बात सत्य है कि केन्द्र को शक्तिशाली होना चाहिए परंतु राज्यों को स्वायत्तता मिलनी चाहिए।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
मूल कर्तव्यों से क्या अभिप्राय है? भारतीय नागरिकों के मूल कर्त्तव्यों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
1950 में लागू किए गए भारतीय संविधान में नागरिकों के केवल अधिकारों का ही उल्लेख किया गया था परंतु 42 वें संविधान संशोधन 1976 में संविधान के भाग 4 के बाद भाग 4 (क) जोड़ा गया जिसमें दस मूल कर्त्तव्यों की व्यवस्था की गई। सन् 2002 में अभिभावकों के लिए 6 से 14 वर्ष के अपने बच्चों को शिक्षा का अवसर प्रदान करने का कर्तव्य जोड़ा गया तो अब नागरिकों के निम्नलिखित 11 कर्त्तव्य हैं –

  1. संविधान का पालन तथा उसके आदर्शों, संस्थाओं और राष्ट्रीय प्रतीकों का सम्मान अर्थात् प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है कि वह संविधान का पालन करे और उसके आदशों, संस्थाओं, राष्ट्रीय ध्वज और राष्ट्र गान का आदर करे।
  2. राष्ट्रीय आंदोलन को प्रेरित करने वाले उच्च आदर्शों का हृदय में संजोए रखे और उनका पालन करे।
  3. वह भारत की सम्प्रभुता, एकता और अखण्डता की रक्षा करे और उसे अक्षुण बनाए रखे।
  4. देश की रक्षा करे और आह्वान पर राष्ट्र की सेवा करे।
  5. भारत के सभी भागों में समरसता और समान भाईचारे की भावना का विकास करे। ऐसी प्रथाओं का त्याग करे जो स्त्रियों के सम्मान के विरुद्ध हों।
  6. हमारी समन्वित संस्कृति की गौरवशाली परम्परा का महत्त्व समझे और संरक्षण करे।
  7. प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है कि सार्वजनिक सम्पत्ति को सुरक्षित रखे व हिंसा से दूर रहे।
  8. व्यक्तिगत व सामूहिक गतिविधियों के सभी क्षेत्रों में उत्कर्ष की ओर बढ़ने का सतत् प्रयास करे जिससे राष्ट्र निरंतर बढ़ते हुए प्रगति और उपलब्धि की नवीन ऊँचाइयों को छू सके।
  9. प्राकृतिक पर्यावरण जिसके अन्तर्गत वन, झील, नदी और वन्य जीव भी हैं, की रक्षा करे और उनका संवर्धन करे तथा प्राणीमात्र के प्रति दयाभाव रखे।
  10. वैज्ञानिक दृष्टिकोण, मानववाद और ज्ञानार्जन तथा सुधार की भावना का विकास करे।
  11. 86 वें संशोधन (2002) द्वारा अनुच्छेद 51 (क) में संशोधन करके खण्ड (न) के बाद खंण्ड (ट) जोड़ा गया जिसके अनुसार प्रारम्भिक शिक्षा को सर्वव्यापी बनाने के उद्देश्य से अभिभावकों के लिए भी यह कर्तव्य निर्धारित किया गया कि 6 से 14 वर्ष के अपने बच्चों को शिक्षा का अवसर प्रदान करे।

प्रश्न 2.
भारतीय संविधान में दिए गए राज्य के नीति निर्देशक तत्त्वों की समालोचना कीजिए। संवैधानिक दृष्टिकोण से उनका महत्त्व बताइए।
उत्तर:
भारत के संविधान में अनुच्छेद 38 से 51 तक राज्य के नीति निर्देशक तत्त्व दिए गए हैं। इनमें आर्थिक सुरक्षा सम्बन्धी निर्देशक तत्त्व, सामाजिक हित सम्बन्धी निर्देशक तत्त्व, न्याय शिक्षा और प्रजातंत्र सम्बन्धी निर्देशक तत्त्व, सामाजिक स्मारकों की सुरक्षा सम्बन्धी तत्त्व तथा अन्तर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा सम्बन्धी तत्त्व दिए गए हैं।

अनुच्छेद 38:
राज्य लोक कल्याण की अभिवृद्धि के लिए सामाजिक व्यवस्था बनाएगा।

अनुच्छेद 39:
समान न्याय और निःशुल्क विधिक सहायता।

अनुच्छेद 40:
ग्राम पंचायतों का गठन।

अनुच्छेद 41:
कुछ दशाओं में काम, शिक्षा और लोक सहायता पाने का अधिकार।

अनुच्छेद 42:
काम की न्यायसंगत और मानवोचित दशाओं तथा प्रसूति सहायता का उपलब्ध।

अनुच्छेद 43:
कर्मकारों के लिए निर्वाह मजदूरी।

अनुच्छेद 44:
नागरिकों के लिए समान सिविल संहिता।

अनुच्छेद 45:
बालकों के लिए निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा का उपबंध।

अनुच्छेद 46:
अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और अन्य दुर्बल वर्गों के शिक्षा और अर्थ सम्बन्धी हितों की अभिवृद्धि।

अनुच्छेद 47:
पोषाहार स्तर और जीवनस्तर को ऊँचा करने तथा लोक स्वास्थ्य का सुधार का गठन।

अनुच्छेद 48:
कृषि और पशुपालन का संगठन।

अनुच्छेद 48:
(क) यवःण का संरक्षण।

अनुच्छेद 49:
राष्ट्रीय महत्त्व के स्मरकों का संरक्षण।

अनुच्छेद 50:
कार्यपालिका से न्यायपालिका का पृथक्करण

अनुच्छेद 51:
अन्तर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा की अभिवृद्धि।

जिस समय संविधान का निर्माण हो रहा था तो निर्देशक तत्त्वों की बड़ी आलोचना हुई। अनेक विद्वानों ने इनकी आलोचना इस प्रकार से की –

  1. संविधान ने एक ओर तो राज्य के नीति निर्देशक तत्त्वों को देश के शासन में मूलभूत माना है, किन्तु साथ ही वे वैधानिक शक्ति प्राप्त या न्याय योग्य नहीं हैं अर्थात् न्यायालय इनको लागू नहीं करा सकते।
  2. निर्देशक तत्त्व काल्पनिक आदर्श हैं। इन्हें क्रियान्वित कराना बहुत दूर की बात है।
  3. एक सम्प्रभुता सम्पन्न राज्य में इस प्रकार के आदेशों का कोई औचित्य नहीं।
  4. संवैधानिक विधिवेत्ताओं ने आशंका व्यक्त की है कि ये तत्त्व संवैधानिक द्वन्द्व और गतिरोध के कारण भी बन सकते हैं।
  5. नीति निर्देशक तत्त्व किसी निर्धारित या संगतिपूर्ण दर्शन पर आधारित नहीं हैं।

नीति निर्देशक तत्त्वों का महत्त्व-यद्यपि नीति निर्देशक तत्त्वों की आलोचना की गयी है परंतु इसका तात्पर्य यह नहीं कि ये महत्त्वहीन हैं। वास्तव में राज्य के नीति निर्देशक तत्त्वों का बड़ा महत्त्व है –

  1. नीति निर्देशक तत्त्वों के पीछे जनमत की शक्ति होती है। जनता के प्रति उत्तरदायी सरकार इन तत्त्वों की उपेक्षा नहीं कर सकती।
  2. यदि निर्देशक तत्त्वों को केवल नैतिक धारणाएँ ही मान लिया जाए तो इस रूप में भी इनका अपार महत्त्व है जैसे कि ब्रिटेन में मैगनाकार्टा, फ्रांस में मानवीय तथा मानसिक अधिकारों की घोषणा तथा अमरीकी संविधान की प्रस्तावना को कोई वैधानिक शक्ति प्राप्त नहीं है, फिर भी इन देशों के इतिहास पर इनका प्रभाव पड़ा है।
  3. इसी प्रकार उचित रूप में यह आशा की जा सकती है कि ये निर्देशक तत्त्व भारतीय शासन की नीति” की निर्देशित और प्रभावित करेंगे।
  4. नीति निर्देशक तत्त्वों द्वारा जनता को शासन की सफलता और असफलता की जाँच करने का मापदण्ड भी प्रदान किया जाता है।
  5. नीति निर्देशक तत्त्व देश के सामाजिक व आर्थिक क्रांति के साधन भी हैं।
  6. एम. सी. सीतलबाड़ के शब्दों में “राज्य नीति के इन मूलभूत सिद्धांतों का वैधानिक दर्जा प्राप्त न होते हुए भी उनके द्वारा न्यायालयों के लिए उपयोगी प्रकाश स्तम्भ का कार्य किया जाता है।”
  7. निर्देशक तत्त्व इस दृष्टि से भी महत्त्वपूर्ण हैं कि इनमें गाँधीवाद के आदर्शों को स्थान दिया गया है। इस प्रकार कहा जा सकता है कि वैधानिक शक्ति न होते हुए भी राज्य के नीति निर्देशक तत्त्वों का अपना महत्त्व और उपयोगिता है।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा ‘मानवाधिकारों की सार्वभौमिकता” घोषणा को कब स्वीकार किया गया?
(क) 10 दिसम्बर, 1950 को
(ख) 10 दिसम्बर, 1948 को
(ग) 10 दिसम्बर, 1947 को
(घ) 10 दिसम्बर, 1951
उत्तर:
(ख) 10 दिसम्बर, 1948 को

प्रश्न 2.
संयुक्त राष्ट्रसंघ की स्थापना कब हुई?
(क) 24 अक्टूबर, 1946 में
(ख) 24 अक्टूबर, 1945 में
(ग) 30 अक्टूबर, 1945 में
(घ) 30 अक्टूबर, 1948 में
उत्तर:
(ख) 24 अक्टूबर, 1945 में

प्रश्न 3.
राज्यपाल को वर्तमान में वेतन दिया जाता है –
(क) 80,000 रुपये प्रतिमाह
(ख) 90,000 रुपये प्रतिमाह
(ग) 1,100,00 रुपये प्रतिमाह
(घ) 85,000 रुपये प्रतिमाह
उत्तर:
(ग) 1,100,00 रुपये प्रतिमाह

Bihar Board Class 11th Hindi Book Solutions गद्य Chapter 2 कविता की परख

Bihar Board Class 11th Hindi Book Solutions

Bihar Board Class 11th Hindi Book Solutions गद्य Chapter 2 कविता की परख (रामचंद्र शुक्ल)

 

कविता की परख पाठ्य पुस्तक के प्रश्न एवं उनके उत्तर

Kavita Ki Parakh Question Answer Bihar Board प्रश्न 1.
कविता के क्या उद्देश्य हैं?
उत्तर-
लेखक के अनुसार कविता का उद्देश्य पाठक के हृदय को प्रभावित करना होता है। इससे उसके भीतर दया, प्रेम, करुणा, आनंद, आश्चर्य आदि मानवीय भावों का संचार होता है। जिस रचना में प्रभावोत्पादकता न हो, वह और चाहे कुछ भी हो, कविता नहीं हो सकती।

Kavita Ki Parakh Bihar Board प्रश्न 2.
कल्पना किसे कहते हैं? एक कवि के लिए कल्पना का क्या महत्त्व है?
उत्तर-
जिस मानसिक शक्ति के सहारे कवि कविता में भावोदपीन हेतु तत्संबंधी रूप एवं व्यापार का योजना करते हैं तथा पाठक उसे अपने मन में ग्रहण करते हैं, उसे’ कल्पना कहते हैं। एक कवि के लिए कल्पना का अत्याधिक महत्त्व है। बिना कल्पना शक्ति के कोई व्यक्ति कवि नहीं हो सकता। क्योंकि कल्पना के बल पर ही कवि रूप व्यापारादि की चित्रवत् योजना करता है। इसके अभाव में कविता में प्रभावोत्पादकता नहीं आ सकती, जो कवि का लक्ष्य होता है। अतएव, एक कवि के लिए कल्पना अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।

Bihar Board Class 11th Hindi Book  प्रश्न 3.
उपमा क्या है? कविता में उपमा का प्रयोग क्यों किया जाता है। पाठ के आधार पर उत्तर दें।
उत्तर-
उपमा का अर्थ होता है-उप अर्थात समीप और मा अर्थात् मापन। तात्पर्य यह कि दो भिन्न पदार्थों में समता दिखाना ही उपमा है। यह समता रूप, गुण अथवा प्रभाव के आधार पर दिखायी जाती है। जैसे-मुख चाँद के समान सुंदन है; शिवाजी शेर की तरह वीर थे इत्यादि।

काव्यशास्त्र में ‘उपमा’ एक अर्थालंकार है, जो अलंकारों में शिरोल माना जाता है।

कविता में उपमा का प्रयोग वर्ण्य-विषय से संबंधित भावना को तीव्र करने के लिए किया जाता है। जैसे-मुख सौदर्य की भावना उत्पन्न करने के लिए मुख के साथ एक अन्य सुंदर पदार्थ चाँद को रख देने से सौंदर्य की भावना उदीप्त, जागृत एवं अत्यधिक तीव्र हो जाती है।

कविता की परख Bihar Board प्रश्न 4.
आँख के लिए मीन, खंजन और कमल की उपमाएँ दी जाती हैं। इनमें क्या-क्या समानताएँ हैं?
उत्तर-
आँख के लिए कवियों द्वारा प्राय: मीन, खंजन और कमल की उपमाएँ दी जाती हैं। इनमें परस्पर लघुता, सुंदरता, मोहकता, चंचलता, कोमलता, प्रभावोत्पादकता आदि की समानताएँ हैं।

Class 11 Hindi Book Bihar Board प्रश्न 5.
‘मानों ऊँट की पीठ पर घंटा रखा है’-इस उक्ति के द्वारा लेखक ने क्या कहना चाहा है?
उत्तर-
‘कविता की परख’ शीर्षक निबंध में काव्यमर्मज्ञ आचार्य शुक्ल ने कविता में उपमा-नियोजन के औचित्य, महत्त्व तथा उसकी उपयुक्तता-अनुपयुक्ता पर बड़े सुविचारित रूप में प्रकाश डाला है। प्रश्नोद्धृत वाक्य इसी प्रसंग में उल्लिखित है।

लेखक के मतानुसार, उपमा की सार्थकता वर्ण्य-वस्तु के अनुरूप भावनाओं को तीव्रता प्रदान करने में है। इसके लिए कवियों को आकर-प्रकार की अपेक्षा प्रभाव-साम्य पर अधिक ध्यान देना चाहिए। ऐसी उपमाएँ, जिनसे कवि-अभिप्रेत भावनाएँ उदीप्त एवं तीव्र नहीं होतीं, उपेक्षणीय हैं। इसी संदर्भ में उन्होंने ‘उठे हुए बादलों के ऊपर होते हुए पूर्ण चंद्रमा’ जैसे रमणीय दृश्य के लिए ‘मानो ऊँट की पीठ पर घंटा रखा है’ जैसे अनुचित उपमा का उदाहरण देकर इसकी व्यर्थता बताई है। अतः कवि को इस प्रकार की केवल कुतूहलवर्द्धक उपमा-योजना से बचते हुए वास्तव में भावनाओं की उद्दीप्ति में सहायक उपयुक्त उपमा देनी चाहिए।

कविता क्या है-निबंध का सारांश Bihar Board प्रश्न 6.
“जो जनतेउँ बन बंधु बिछोहू। पिता वचन मनतेउँ नहिं ओहू।। -इस उदाहरण के द्वारा लेखक ने क्या कहना चाहा है?
उत्तर-
हिन्दी के पृष्ठ समीक्षक आचार्य रामचंद्र शुक्ल का स्पष्ट मत है कि एक सच्चा कवि मानव-मन का पारखी होता है। उसे यह पूरा अनुभव रहा है कि स्थिति विशेष में मनुष्य कैसा कथन करता है। इसी संदर्भ में उन्होंने अपने आदर्श कवि गोस्वामी तुलसीदास की उपर्युक्त चौपाई को उदाहृत किया है। यह वस्तुतः लक्ष्मण को शक्तिबाण लगने पर राम के शोकसंतप्त हृदय का सहज उद्गार है, जिसकी भूरि-भूरि प्रशंसा करनी चाहिए। इसके विपरीत पितृ-वचन के परिप्रेक्ष्य में राम के चरित्र में दोषारोपण करना दरअसल अपीन हृदयहीनता और भावनाशून्यता प्रदर्शित करना है।

Bihar Board Hindi Book Class 11 Pdf Download प्रश्न 7.
‘वाणी के द्वारा मनुष्य के हृदय के भावों की पूर्ण रूप से व्यंजना हो जाती है।’ इस कथन का आशय स्पष्ट करें।
उत्तर-
उपयुक्त कथन हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘दिगंत, भाग-1 में संकलित ‘कविता की परख’ शीर्षक निबंध से उद्धृत है। इसके लेखक हिन्दी के महान् विद्वान आचार्य रामचंद्र शुक्ल हैं।

लेखक के उपर्युक्त कथन का आशय यह है कि वाणे ही वह साधन है, जिसके माध्यम से मनुष्य अपने हृदयगत भावों की पूर्णरूपेण व्यंजना करता है। वास्तव में वाणी की शक्ति के कारण मनुष्य अन्य प्राणियों से भिन्न और विशिष्ट है। जिन भावों अथवा विचारों की अभिव्यक्ति में अन्य साधनं, तथा यथा-संकेत, आगिकभाषा आदि असमर्थ रहते हैं, वे भी वाणी के माध्यम से सहजतापूर्वक पूरी स्पष्टता के साथ व्यक्त हो जाते हैं। कदाचित् इसी से कविगण अपनी कविताओं में प्रत्यक्ष-कथन के अतिरिक्त पात्र-कथन का प्रयोग करते हैं। इस रूप में पात्र विशेष के हृदय गतं भावों अथवा विचारों के प्रकटीकरण में पूर्णता और स्पष्टता आ जाती है।

कविता की परख भाषा की बात

Bihar Board 11th Hindi Book Pdf प्रश्न 1.
निम्नलिखति विशेष्यों के लिए उपयुक्त विशेषण दें:
उत्तर-
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Bihar Board Class 11 Hindi Book Solution प्रश्न 2.
‘ता’ प्रत्यय से इस पाठ में कई शब्द हैं, जेसे-निपुणता, गंभीरता आदि। ऐसे शब्दों को चुनकर लिखें।
उत्तर-
‘ता’ प्रत्यय युक्त शब्दों के उदाहरण-सुन्दरता, कोमलता, मधुरता, उग्रता, कठोरता, भीषणता, वीरता, समानता, मनोहरता, प्रफुल्लता, स्वच्छता इत्यादि।

Bihar Board Class 11 Hindi Book प्रश्न 3.
निम्नलिखित शब्दों से ‘इक’ प्रत्यय लगाकर शब्द बनाएँ
उत्तर-
Bihar Board Class 11 Hindi Book

कविता क्या है निबंध का सारांश Bihar Board प्रश्न 4.
पाठ से द्वंद्व समास के उदाहरण चुनें।
उत्तर-
द्वंद्व समास-जिस समास में दोनों पद प्रधान रहते हैं, उसे द्वन्द्व समास कहते हैं। जैसे राधाकृष्ण, माता-पिता, भाई-बहन, वस्तु-व्यापर, बड़ा-छोटा, लोटा-डोरी, रात-दिन सर्दी-गमी, नून-तेल, राजा-रानी इत्यादि।

Class 11th Hindi Book Bihar Board प्रश्न 5.
निम्नलिखित शब्दों से विशेषण बनाएँ :
उत्तर-
Class 11th Hindi Book Bihar Board

Bihar Board Hindi Book Class 11 Pdf प्रश्न 6.
निम्नलिखित शब्दों के विपरीतार्थक शब्द लिखें:
उत्तर-
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बिहार बोर्ड हिंदी बुक Class 11  प्रश्न 7.
निम्नलिखित शब्दों के संज्ञा रूप लिखें:
उत्तर-
बिहार बोर्ड हिंदी बुक Class 11

अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

कविता की परख लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
आचार्य रामचन्द्र शुक्ल द्वारा लिखित निबंध ‘कविता की परख’ का संक्षेप में परिचय दीजिए।
उत्तर-
‘कविता की परख’ हिन्दी साहित्य के आलोचक, इतिहासकार, निबंधकार और लेखक आचार्य रामचन्द्र शुक्ल की आलोचनात्मक निबंध है। हिन्दी साहित्य चिंतक आचार्य शुक्ल ने कविता को परखने की बुनियादी शिक्षा देते हुए कहा है कि कविता वह साधना हे जिसके द्वारा शेष सृष्टि के साथ मनुष्य के रागात्मक संबंध की रक्षा और निर्वाह होता है।

कविता के द्वारा हम संसार के सुख-दु:ख, आनन्द और क्लेश आदि यथार्थ रूप से अनुभव करने में अभ्यस्त होते हैं जिससे हृदय की स्तब्धता हटती है और मनुष्यता आती है। कविता सृष्टि-सौन्दर्य का अनुभव कराती है और मनुष्य को सुन्दर वस्तुओं में अनुरक्त और कुत्सित वस्तुओं से विरक्त कराती है।

आचार्य शुक्ल का प्रस्तुत निबंध किताबों से उठकर हमारे जीवन में आश्रय और सहभागिता चाहता है। यह निबंध कविता के सम्बन्ध में लेखक के सारगर्भित ज्ञान का दुर्लभ ज्ञान का दुर्लभ उदाहरण है।

प्रश्न 2.
‘कविता की परख’ की कथावस्तु को संक्षेप में लिखें।
उत्तर-
हिन्दी साहित्य चिंतक आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने कविता को परखने की बुनियादी शिक्षा देते हुए कहा है कि कविता वह साधना है जिसके द्वारा शेष सृष्टि के साथ मनुष्य के रागात्मक संबंध की रक्षा और निर्वाह होता है। कविता के द्वारा हम संसार के सुख-दुःख, आनन्द और क्लेश आदि का यथार्थ रूप से अनुभव करने में अभ्यस्त होते हैं जिससे हृदय की स्तब्ध ता हटती है और मनुष्यता आती है।

कविता-सृष्टि सौन्दर्य का अनुभव कराती है और मनुष्य को सुन्दर वस्तुओं के अनुरक्त और कुत्सित वस्तुओं से विरक्त कराती है। कविता वह साधना है जिसके भीतर प्रेम, हास्य सुख-दुःख, आनन्द और क्लेश आदि यथार्थ रूप में चित्रित होता है। जिस कविता में प्रेम, आनन्द, करुणा आदि भावों का समावेश न हो, वह कविता नहीं कहला सकती। कविता के लिए रूप और व्यापार हमारे मन में साक्षात करता है, जो योजना हम मन में धारण करते हैं, कल्पना कहलाती है। कल्पना शक्ति के बिना कविता अधूरी होती है। कविता में सौन्दर्य, शृंगार, दारूण दृश्य आदि भाव जगाना आवश्यक है। राम के वन-गमन का वर्णन अथवा श्रीकृष्ण के अंग-प्रत्यंग के वर्णन में करुणा और सौन्दर्य का भाव परिलक्षित होता है।

कविता के लिए कवि उपमा अलंकार का भी सहारा लिया करते हैं। जैसे-मुख को चन्द्रमा या कमल के समान, नेत्रों को मीन, खंजन, कमल आदि के समान प्रतापी या तेजस्वी की तुलना सूर्य के समान; कायर को श्रृगाल के समान, वीर और पराक्रमी की सिंह से तुलना करते हैं। वास्तव में इसका उद्देश्य वर्णित वस्तु की सुंदरता, कोमलता, मधुरता या उग्रता, कठोरता, भीषणता, वीरता, कायरता इत्यादि की भावना को तीव्र करना है न कि किसी वस्तु का परिज्ञान कराना। जैसे-जिसने हारमोनियम न देखा है। उसने कहना “वह सन्दूक के समान होता है।” ऐसी समानता उपमा के अन्तर्गत नहीं आती है। उपमा सुन्दर ओर सटीक हो इसके लिए यह आवश्यक है कि वर्णित वस्तु के सम्बन्ध में वही भावना अधिक परिमाण में हो। भद्दी उपमा से सौन्दर्य की भावना नही जगती। जैसे कोई कवि आँख की उपमा बादाम या आम की फाँक से करता है तो सौन्दर्य की भावना नहीं जगती, लेकिन ठीक इसके विलोम आँख की उपमा कमल-दल से करने पर मनोहरता, प्रफुल्लता, कोमलता आदि की भावना स्वतः परिलक्षित होती है।।

कविता, में प्रेम, शोक, करुण, आश्चर्य, भय, उत्साह इत्यादि भावों को कवि पात्रों के माध्यम से कहलवाते है ताकि भावों की पूर्ण रूप से व्यंजना हो सके। वाणी द्वारा मनुष्य के क्रोध आश्चर्य और उत्साह के भावों की कवियों को गहरी परख होती है।

कवि की निपुणता पात्र के मुख से भाव की व्यंजना कराने से ही परिलक्षित होता है। रामचरित मानस में भी राम लक्ष्मण दोनों क्रोध प्रकट करते हैं। राम संयम और गंभीरता के भाव जबकि लक्ष्मण अधीरता और उग्रता के साथ। उत्साह आदि भावों में यही बात समाहित है।

आचार्य रामचन्द्र शुक्ल का प्रस्तुत निबंध पुस्तकों से उठकर हमारे जीवन में आश्रय और सहभागिता चाहता है।

कविता की परख अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
कविता की परख किस प्रकार निबंध है?
उत्तर-
आचार्य रामचन्द्र शुक्ल द्वारा लिखित कविता की परख विचारात्मक निबंध है।

प्रश्न 2.
कविता की परख में किन बातों का विवेचन हुआ है?
उत्तर-
कविता की परख नामक निबंध में इन बातों का विवेचन हुआ है-
(क) कविता का उद्देश्य
(ख) कल्पना का महत्त्व
(ग) भाव की अभिव्यक्ति संबंधी तत्व इत्यादि।

प्रश्न 3.
उपयुक्त उपमान का प्रयोग करना क्यों अनिवार्य होता है?
उत्तर-
उपयुक्त उपमान का प्रयोग करना विभिन्न करणों से अनिवार्य होता है-
(क) कविता के उद्देश्य की अनुरूपता को दर्शाना
(ख) कविता के प्रभाव की समानता को दर्शाना इत्यादि।

प्रश्न 4.
उपमा से आप क्या समझते हैं?
उत्तर-
किसी व्यक्ति या वस्तु जिसका वर्णन करना हो उसकी सुन्दरता, कोमलता, मधुरता, उग्रता, कठोरता, वीरता तथा कायरता इत्यादि की भावना की तुलना उस वस्तु के समान कुछ अन्य वस्तुओं से करना ही उपमा कहलाता है।

प्रश्न 5.
कल्पना क्या है?
उत्तर-
आनन्द, करुण, हास्य, आश्चर्य तथा प्रेम इत्यादि अनेक भावों का संचार करने वाले रूप और व्यवहार का सजीव चित्रण काल्पनिक रूप से करना ही कल्पना कहलाता है।

प्रश्न 6.
कविता की परख नामक निबंध के लेखक कौन हैं?
उत्तर-
कविता की परख नामक निबंध के लेखक आचार्य रामचन्द्र शुल्क है।

कविता की परख वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर

I. सही उत्तर का सांकेतिक चिह्न (क, ख, ग, या घ) लिखें।

प्रश्न 1.
‘कविता का परख’ के लेखक हैं
(क) रामचन्द्र शुक्ल
(ख) महावीर प्रसाद द्विवेदी
(ग) सत्यजीत राय
(घ) कुमार गन्धर्व
उत्तर-
(क)

प्रश्न 2.
‘भ्रमरगीत सार’ किसकी रचना है?
(क) सत्यजीत राय
(ख) सूरदास
(ग) रामचन्द्र शुक्ल
(घ) कृष्ण कुमार
उत्तर-
(ग)

प्रश्न 3.
‘कविता की परख’ का सम्पादन किसने किया?
(क) हरिशंकर परसाई
(ख) नामवर सिंह
(ग) रामचन्द्र शुक्ल
(घ) इनमें से काई
उत्तर-
(ख)

प्रश्न 4.
कविता का उद्देश्य क्या होता है?
(क) हृदय पर प्रभाव डालना
(ख) मन को उद्विग्न करना
(ग) घृणा उत्पन्न करना
(घ) इनमें से कोई
उत्तर-
(क)

प्रश्न 5.
‘उपमा’ क्या है?
(क) जिससे उपमा दी जाय
(ख) एक प्रकार की मिठाई
(ग) दो भिन्न पदार्थों में सादृश्य की स्थापना
(घ) इसमें से कोई नहीं
उत्तर-
(ग)

प्रश्न 6.
‘कविता की परख’ किसके लिए लिखा गया है?
(क) प्रेमियों के लिए
(ख) कवियों के लिए
(ग) हाई स्कूल के छात्र के लिए
(घ) काव्यालोचकों के लिए।
उत्तर-
(ग)

II. रिक्त स्थानों की पूर्ति करें।
1……………. ने श्रीकृष्ण के अंग-प्रत्यंग का वर्णन किया।
2. किन्तु सुन्दर वस्तु को देखकर हम …………. हो जाते हैं
3. तुलसीदासजी की गीतावली में …………….. का सुन्दर वर्णन।
4. वाणी के द्वारा मनुष्य के हृदय के भावों की पूर्ण रूप से …………….. हो जाती है।
5.शोक के वेग में मनुष्य थोड़ी देर के लिए ……… और …………… भूल जाता है।
उत्तर-
1. सूरदासजी
2. प्रफुल्ल
3. चित्रकूट
4. व्यंजना
5. बुद्धि, विवेक।

कविता की परख लेखक परिचय रामचन्द्र शुक्ल (1884-1941)

पं. रामचंद्र शुक्ल का जन्म 1884 ई. को उत्तर प्रदेश के बस्ती जिलान्तर्गत ‘अगोना’ नामक ग्राम में हुआ था। 1888 ई. में वे अपने पिता पं. चंद्रबली शुक्ल के साथ राठ जिला हमीरपुर गये तथा वहीं पर विद्याध्ययन प्रारंभ किया। सन् 1892 ई. में उनके पिता की नियुक्ति मिर्जापुर में सदर कानूनगो के रूप में हुई और वे पिता के साथ मिर्जापुर आ गये। 1901 ई. में लंदन मिशन स्कूल, मिर्जापुर में स्कूल फाइनल की परीक्षोत्तीर्णता के पश्चात् कायस्थ पाठशाला, प्रयाग में इंटर में उनका नामांकन हुआ, पर पढ़ाई अधूरी रही। फिर भी उन्होंने स्वाध्याय द्वारा प्रभूत ज्ञान अर्जित किया, जिसका उपयोग वे आगे चलकर अपने लेखन में जमकर कर सके।

आरंभ में शुक्लजी मिर्जापुर के मिशन स्कूल में ड्राइंग टीचर रहें। फिर 1908 ई. में ‘काशी नगरी प्रचारिणी सभा’ की परियोजना-‘हिन्दी शब्द सागर’ के सहायक संपादक बने। कुछ दिनों तक ‘नागरी प्रचारिणी पत्रिका’ का संपादन करने के बाद वे हिन्दू विश्वविद्यालय, काशी में हिन्दी के अध्यापक हुए। 1937 ई. में वे वहाँ के हिन्दी विभागाध्यक्ष नियुक्त हुए तथा उसी पद पर रहते हुए सन् 1941 में उनकी मृत्यु हो गयी।

आचार्य शुक्ल का रचना-संसार अत्यंत विस्तृत एवं व्यापक है। हिन्दी का शायद ही कोई ऐसा क्षेत्र हो, जिस पर उन्होंने न लिखा हो। उनकी प्रमुख कृतियाँ इस प्रकार हैं-मधुस्रोत (कविता संग्रह), गोस्वामी तुलसीदास, जायसी ग्रंथावली की भूमिका, भ्रमरगीतसार, रसमीमांसा, त्रिवेणी (पाठालोचन और आलोचना), हिन्दी साहित्य का इतिहास (साहित्येतिहास), श्रीराधाकृष्णदास की जीवनी (जीवनी), चिन्तामणि, भाग 1, 2 एवं 3 (निबंध-संग्रह) का विश्वप्रपंच (लबी भूमिका के साथ अनुवाद) कल्पना का आनंद, शशांक, बुद्धचरित (अनुवाद) इत्यादि।

इन रचनाओं के आधार पर शुक्लजी एक श्रेष्ठ एवं समर्थ साहित्यकार के रूप में स्थापित होते हैं। उनकी भाषा-शैली सजीव, प्रौढ़ एवं भावनात्मक है। संस्कृत की तत्सम शब्दावली के साथ-साथ अंग्रजी, अरबी, फारसी आदि के शब्दों के लोक-प्रचलित मुहावरों के प्रयोग से उनकी भाषा में विशेष प्रवाह और प्रभाव का संगम हुआ। वस्तुत: उनकी शैली में उनका समग्र व्यक्तित्व प्रतिविबित हुआ है।

स्पष्टतया आचार्य शुक्ल ने यद्यपि हिन्दी साहित्य की सभी विधाओं में, रचनाएँ की और उनमें अपनी विलक्षण प्रतिभा, मौलिक चिन्तन एवं नवीन उद्भावना शक्ति दिखायी है, तथापि उनका विशेष महत्त्व साहित्येतिहासकार, निबंधकार और आलोचक के रूप में है। वस्तुतः इन क्षेत्रों में उनका अवदान युगप्रवर्तक का है, अप्रतिम एवं अप्रतिस्पर्धी। अतएव देवीशंकर अवस्थी का यह कथन सर्वथा समीचीन है कि “साहित्यिक इतिहास लेखक के रूप में उनका स्थान हिन्दी में अत्यंत गौरवपूर्ण है, निबंधकार के रूप में वे किसी भी भाषा के लिए गर्व के विषय हो सकते हैं तथा समीक्षक के रूप में तो वे हिन्दी में अभी तक अप्रतिम हैं।”

कविता की परख पाठ का सारांश

हिन्दी के स्वनामधन्य समालोचक, सर्वश्रेष्ठ साहित्येतिहासकार एवं अप्रतिम निबधकार आचार्य रामचंद्र शुक्ल विरचित ‘कविता की परख’ एक उत्तम निबंध है। इसमें विद्वान लेखक के द्वारा कविता की परख अर्थात् पहचान अथवा जाँच से संबंधित प्रायः सभी प्रमुख साधनों की चर्चा अत्यंत परिष्कृत एवं परिमार्जित भाषा में की गई है। इस प्रकार यह एक विचारप्रधान निबंध है, जिससे कविता को देखने, समझने एवं परखने की एक नवीन दृष्टि विकसित होती है।

प्रस्तुत निबंध में लेखक ने सर्वप्रथम कविता के उद्देश्य पर प्रकाश डालत हुए यह स्थापना की है कि उनका उद्देश्य मनुष्य के हृदय पर प्रभाव डालना होता है, ताकि उसके भीतर दया, करुणा, प्रेम, आनंद, आश्चर्य, वीरता आदि मानवीय भावों का संचार हो सके। इसी आधार पर ज्ञान के अन्य विषयों से कविता की पृथक् सत्ता प्रमाणित होती है। इसी क्रम में लेखक ने कहा है कि प्रभाव पैदा करने के लिए कविगण विभिन्न भावों से संबंधित रूप और व्यापार की योजना करते है। ऐसा योजना के कल्पना-शक्ति के सहारे करते हैं। अतः काव्य में कल्पना का अत्यंत महत्त्वपूर्ण स्थान है।

कवि जिस प्रकार का भाव पाठक के मन में जगाना चाहते है, उसी के रूप और व्यापार का वर्णन करते हैं। इस क्रम कवि लोग उपमादि अलंकारों की सहायता लेते हैं। उपमा में दो भिन्न पदार्थों के बीच रूप, गुण अथवा प्रभाव की समानता दिखाई जाती है, किन्तु इसमें प्रभाव-साम्य ही उत्तम होताहै। इसी से कवि की निरीक्षण-क्षमता का पता चलता है। पुनः कवि लोग अपने काव्यों में प्रेम, शोक, घृणा, उत्साह इत्यादि विविध भावों को पात्रों के कथन के माध्यम से भी प्रकट करते हैं। इसके लिए लेखक के अनुसार कवि में पात्रगत एवं पिरस्थितिगत निपुणता आवश्यक है।

इस प्रकार इस विचार-प्रधान निबंध में आचार्य शुक्ल ने कविता को परखने के आधारभूत साधनों का विवेचन किया है। इस गंभीर विवेचन को भी उन्होंने उदाहरणों के द्वारा सरल एवं सुबोध बना दिया है। उसके द्वारा व्यक्त विचार प्रायः सर्वस्वीकार्य हैं और इसी से उनका महत्त्व कभी भी न्यून होने वाला नहीं है।

कविता की परख कठिन शब्दों का अर्थ

उत्साह-खुशी, उमंग। आर्द्र-भीगा हुआ। करुणा-दया, वेदना। रमणीय-सुंदर। व्यापार-क्रिया, गतिविधि। समक्ष-सामने। दारुण-असहनीय। विकराल-भयानक। आह्लादित-प्रसन्न। शृगाल-सियार। प्रतापी-प्रभावशाली, पराक्रमी। कांति-चमक। निपुणता-दक्षता। व्यंजना-व्यक्त या प्रकट करना। उग्र-उत्तेजित। खंजन-चंचल आँखों वाला विशिष्ट पक्षी। अधीरत-बेचैनी। कुतूहल-अचरज, विस्मय। परिज्ञान-विशिष्ट ज्ञान। दूषण-दोष, कलंक। बोध-समझ। परिमाण-मात्रा। प्रफुल्ल-प्रसन्न।

महत्त्वपूर्ण पंक्तियों की सप्रसंग व्याख्या

1. किसी सुंदर वस्तु को देखकर हम प्रफुल्ल हो जाते हैं, किसी अद्भूत वस्तु को देखकर आश्चर्यमग्न हो जाते हैं, किसी दुख के दारुण दृश्य को देखकर करुण से भर जाते हैं। यही बात कविता में होती है।
व्याख्या-
प्रस्तुत पंक्तियाँ आचार्य रामचन्द्र शुक्ल द्वारा कविता की परख से ली गयी है। इन पंक्तियों में लेखक ने यह बतलाया है कि जब हम किसी सुंदर वस्तु को देखकर प्रसन्न हो जाते हैं और किसी अद्भूत वस्तु को देखकर आश्चर्यचकित हो जाते है तथा किसी दुख के दृश्य को देखकर करुणा से भर जाते हैं। ये सभी बाते कविता को पढ़ने में भी पाठक को आभास होती हैं। कविता में इन बातों का सुन्दर विवेचन किया जाता है।

2. वाणी के द्वारा मनुष्य के हृदय के भावों की पूर्ण रूप से व्यंजना हो सकती है।
व्याख्या-
प्रस्तुत पंक्ति आचार्य रामचन्द्र शुक्ल द्वारा लिखित कविता की परख नामक पाठ से ली गयी है.। इस पंक्ति में लेखक ने यह बतलाया है कि मनुष्य की बोली से उसके दिल के गोल्डेन सीरिज पासपोर्ट भावों की जानकारी प्राप्त होती है। यही कारण है कि मनुष्य के मुँह से प्रेम करुणा में मधुर वचन निकलते है, जबकि क्रोध, शोक में अच्छे वचन नहीं निकलते हैं। कवि को मनुष्य की बोली का अनुभव पूर्ण रूप से रहता है। यही कारण है कि कवि जिस प्रकार की कविता की रचना करता है उसी से संबंधित शब्दों का सटीक प्रयोग करता है।

Bihar Board Class 11 English Book Solutions Chapter 3 A Snake in the Grass

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Bihar Board Class 11 English A Snake in the Grass Textual Questions and Answers

A. Work in small groups and discuss these questions :

A Snake In The Grass Questions Answers Bihar Board Class 11 Question 1.
Have you ever seen a snake in your house/village ?
Answer:
Yes, I have seen a snake in our village

A Snake In The Grass Question Answers Bihar Board Class 11 Question 2.
What was your reaction when you saw it ?
Answer:
I was scared.

A Snake In The Grass Answers Bihar Board Class 11 Question 3.
How did other people of your family or village react to it ?
Answer:
Some of them stood still. Others said that it must be killed.

A Snake In The Grass Story Question Answer Bihar Board Class 11 Question 4.
Did you kill the snake ? Why ?
Answer:
I did not kill it But another mt n killed it. He said it was dangerous and might bite someone.

B. 1. Answer the following questions briefly :

A Snake In The Grass Story Question Answer Pdf Bihar Board Class 11 Question 1.
Why did the cyclist ring the bell ?
Answer:
The cyclist had seen a cobra getting into a bungalow. He rang the bell to warn the inmates to be careful.

Class 11 English Chapter 3 Question Answer Bihar Board Question 2.
Why did Dasa say, ‘There is no cobra’ ?
Answer:
Dasa said there was no snake because he did not like to be disturbed in his sleep. .

A Snake In The Grass Meaning Bihar Board Class 11 Question 3.
What happens when someone wakes you up and asks you to do something ?
Answer:
I feel irritated.

English Chapter 3 Class 11 Question Answers Bihar Board Question 4.
What fault did the people find with Dasa ?
Answer:
People said that Dasa was the laziest servant. He did not keep the surroundings tidy.

A Snake In The Grass Story Bihar Board Class 11 Question 5.
Do you find fault with the person who refuses to do what you want him to do ?
Answer:
Yes, I do.

Class 11 English Chapter 3 Bihar Board Question 6.
What was Dasa’s defence ?
Answer:
Dasa said he had been asking for a grasscutter for months but he did not get any. So he could not cut the grass.

A Snake Charmer’s Story Question Answer Bihar Board Question 7.
What does ‘with cynical air’ mean ?
Answer:
Here this means that Dasa was not convinced that there was a cobra in the grass.

A Snake In The Grass Text Book Questions And Answers Bihar Board Question 8.
Why did the college-boy quote statistics ?
Answer:
He wanted to give an authentic proof that the cobra was deadly and it could bite and kill.

A Snake In The Grass Meaning In Hindi Bihar Board Question 9.
What made the mother nearly scream ?
Answer:
The mother was terrified. She was afraid that the cobra was sure to bite someone of her family.

B. 2. Answer the fdllowingquestions briefly :

Question 1.
What made the old beggar happy ?
Answer:
The old beggar was happy because she considered the snake as God Subramanya. She said the householders were fortunate.

Question 2.
What did the beggar woman say ?
Answer:
She asked the householders not to kill the snake. She promised to c send a snake-charmer to catch it.

Question 3.
Why did the snake-charmer look helplessly about ?
Answer:
The snake-charmer looked helplessly about because there was no snake in sight. He said he could catch the snake only if they showed it to him.

Question 4.
Why did they cut down all the plants and grass in the garden ?
Answer:
They cut down all the grass and plans in the garden so that the cobra had no place to hide itself.

Question 5.
Cite instances from the lesson which show the old mother’s superstitious nature ?
Answer:
The mother agreed with the old beggar that the cobra was God Subramanya. She was repentent that she had forgotten all about the promised Abhishekam. She gave a coin to the beggar to get God’s blessings. She also wished she had put some milk in a pot for the Cobra as a religious duty.

Question 6.
Did Dasa, in your opinion, really catch the cobra ?
Answer:
I don’t think Dasa caught the cobra. He just pretended that the snake was in the pot. The cobra was seen coming out of a hole soon after Dasa had left with the pot.

Question 7.
What impression of Dasa do you get from this episode ?
Answer:
Dasa was an easy-going person. He shirked work. But he was quite clever at inventing stories and making excuses.

C. 1. Long Answer Questions :

Question 1.
The neighbours who assembled to hear of cobra talk about several things. Make a list of the issues they touch upon. What does the conversation suggest about the people’s reaction when danger strikes ?
Answer:
They talk about the laziness of Dasa.
They talk of scarcity of things during the war.
They talk about black-marketing.
The talk about the danger of snake-bite in the world.

The conversation suggests that when danger strikes, people like to blame someone. They think if Dasa had cut the grass, the cobra would not have come into the garden. Dasa tries to defend himself because he has not been given a grasscutter. Then the discussion shifts to war. They try to defend themselves by saying that they could not buy anything made of iron on account of war.

They then say how some people try to exploit the situation. The blame the merchants for indulging in black marketing and profiteering during scarcity of things. The college-boy gives statistics about number of deaths caused by snake-bite. He makes the danger appear really threatening. The conversation suggests that when danger strikes, people try to blame others. They look for scapegoats.

Question 2.
How do you react when your parents chide you for neglecting your duties?
Answer:
When my parents chide me for neglecting my duty, I feel very bad. I don’t confess that is way fault. Instead, I try to blame it on circumstances or some obstacles that hindered me from doing my duty. I try to blame someone or something.

Question 3.
Read carefully the following utterances of Dasa:
‘There is no cobra’.
‘Where is the snake ?’
‘I have caught him in this.’
‘Don’t call me an idler hereafter.’
What do these utterances tell about Dasa’s character ?
Answer:
These utterances of Dasa show that he was a leisurely man who would not be provoked into doing something. He refused to believe that there was a snake, and when no snake was found, he said triumphantly, “Where is the snake ?” Still he felt that the immates of the house were still afraid that the snake was there. So he thought of a clever plan. He pretended to have caught the snake in a pot. He won the admiration of all. He asserted that he was not an idler.

He proved that he was an intelligent man and could achieve singlehandedly what they all together could not do. His plan had almost succeeded. But the cobra was seen, and luckily it went out of the gate and disappeared. Dasa must have asserted that he had actually caught a snake, and there must have been a couple of them in the garden.

Question 4.
Does the story throw any light on how people faced with sudden danger behave ?
Answer:
It is quite natural to be frightened if any sudden danger falls unexpectedly. This was the situation with the people who were present there. They became panick. In the situation of turmoil they began to charge over the servant dasa. They even made allegations on one-another for their being responsible in inviting danger. They suggested a number of opinions in connection with the danger. The mother became frightened and began to cry in a loud voice. Dasa was not showing any reaction. Inmates with the help of the neighbours cut grass and creepers with sharp knifes and other weapons. They were jointly making effort to clean the compound where the cobra was hidden.

An old beggar woman appeared at the gate of the bungalow who asked for alms. On this the inmates told her to go away as they were busy in searching the cobra. .She advised them not to kill the cobra, as it was God Subramanya. The mother was convinced with the beggar woman’s advise. The beggar promised to send a snake charmer. A snake charmer came to the place but he showed his inability because the cobra disappeared. He told them to inform him when the cobra appeared. Finally the cobra was seen coming out of the hole of compound wall.

Thus the behaviour of the people to see the sudden danger has been traced.

Question 5.
Narrate in brief the people attempt to catch the cobra.
Answer:
Hearing the news of the cobra neighbours gathered on the gate of the bungalow. They began to think any way to catch the cobra. The members of the family were worried. They shook the body of the servant Dasa, who was sleeping in a shed. Feeling disturbed he was annoyed and told that there was no cobra in the compound. The mother of the family child him and told him to catch the cobra before the evening. Everybody began to chide him for his slackness. The neighbours aiso charged him for not keeping the compound clean. He defended himself by saying that he had been asking to buy a grass cutter for a long time.

The inmates and neighbours began to talk about the grass-cutter. They told that the price of grass cutter was very high due to war at that time. The inmates with the help of the neighbours cleaned the grass and bushes with sharp knife and other weapons. They youngest son was a college boy who presented a data of casuality due to snake-bite which was 30,000 every year that means one person in every twenty minutes. The land lady cried out of fear. Meanwhile Dasa appeared there with a sealed water-pot. He put the pot down and told them that he had caught the cobra in the water I pot.

He put the water pot down and narrated the strategy he had employed to catch it. The land lady thanked him for his brave work. He told her that he was I going to hand over the cobra to a snake-charmer who was living nearby. Then the land lady poured some milk in the pot. Dasa walked off with the water pot to hand over it to the snake-charmer. Five minutes after the deprrture of Dasa the youngest son was a cobra coming out a hole in the compound. The cobra moved under the gate and disappeared along a drain.

Thus the story flashes light on the truth how the people made attempt to catch cobra.

Question 6.
Narrate in brief what the snake charmer tells about catching a snake.
Answer:
Hearing the news of cobra people gathered in the compound of the bunglow. They were very much fearful and talking about the way how the cobra would come out. Suddenly a snake charmer appeared. All the people gathered around him they began to request him to catch the cobra. He narrated so many stories of his bravery how he had caught the snake in adventurous way. The people gathered there pointed out the direction where cobra had gone. But the snake charmer showed his inability to catch the snake because the snake had been disappeared. He advised them to inform him and when the cobra appeared. Then only it could be possible to catch the snake.

C. 2. Group Discussion :

Discuss the following in groups or pairs:

Question a.
Giving milk to snake is a religious duty. Do you agree ? Give reasons in favour of your argument
Answer:
Many people in India consider the cobra as a holy creature. It is associated with Lord Shiva. It is always garlanded around his neck. Some people consider it a pious duty to give milk to a cobra. But I think it is no religious duty. Those very people who worship the cobra are likely to be frightened when they come across one in their homes or in a jungle. Many will think of killing it. In our country and elsewhere snakes are killed at first sight, Of course, some of the snakes are poisonous and can kill a human in no time. Still, we can do a religious duty to them. No doubt we should protect ourselves from snake, but we should not kill them. They a:c part of our ecology and hold an important position in food-chain. They eat rats and frogs. Milk is not their natural food.

Question b.
For every danger or calamity we tend to find a scapegoat. Do you subscribe to this view ? Give examples from the life around you.
Answer:
Answer:
I fully subscribe to the view that for every trouble we tend to find a scapegoat. Whenever something goes wrong and harms us all, we are likely to blame someone weak and defenceless. There have been a number of railway accidents.In most cases it was ascribed to human failure. And the man who failed to do his duty was a poor signal man. In such a big whose failure causes accidents ? But someone has to be blamed to let other go scot-free. If it is not a human being, it is some natural or abstract thing. It may be darkness, sudden rains and storms, or God Himself who is the scapegoat. We are often heard to say, “It was bad luck that caused it,” or “it was an act of God”.

Few have the courage to say, “I am responsible for it.”

(c) Story telling is an effective way of teaching.
Answer:
From time immemorial people have been telling and listening stories. Stories are fascinating, entertaining and informative. Every culture has its own folktales that have come down from generation to generation. Our great teachers realised that teaching something becomes far easier through stories. That is why our purans are full of stories. We know how panchatantra came . into being. A king’s sons were so mischievous that no teacher could teach them. Then a great teacher, Vishnu Dutta, invented a new technique. He told them stories that contained great wisdom. Those stories are still read and enjoyed. One can seldom forget an interesting story and is sure to learn the wisdom contained in it. A good teacher makes his teaching more effective and more interesting by telling stories.

C. 3. Composition :

Question a.
Write an essay in not more than 200 words on how superstitions influences lives in our society.
Answer:
Superstitions Influence our Lives

No matter Which part of the world you tour, you will find the natives nurturing certain beliefs and superstitions and India is no exception in this case. Though the Indian society is fast progressing, there are many people who are still superstitious and have a strong faith in the local beliefs. While some of them are quite hilarious, few are really interesting, as many aspects of life are linked to them.

The standard viewpoint is that most of the Indian beliefs and values have sprung with an objective to protect from evil spirits, but some were based on scientific reasoning. With the passage of time, the reasoning part behind the origin of these cultural beliefs and superstitions got eroded. That is exactly why most of these beliefs appear unsubstantiated and false. However, in reality, there are many such beliefs in the Indians culture which are absolutely absurd and have no logic behind them.

Superstitions are deemed as pertinent in India because these, generally, hint at future occurrences and can be either good or bad. Thus, anything from the call of a bird to the falling of utensils is considered on omen in India.

Similarly, other auspicious signs could be cawing of a black crow in one’s house, as it forecast the arrival of guests. Seeing a peacock on a journey is also considered lucky, but hearing its shrill sound is bad. Indians feels happy if a sparrow builds a nest in new house because it signals good fortune. A very old belief is that if you kill a cat, you have to offer one in gold to a priest. This belief or superstition was concocted by the priests to protect the cats which are useful in killings the rats in people’s houses.

Indians often consult astrological charts to fix an auspicious time for things. Even the daily life of Indians is governed by beliefs and superstitions. For example, Monday is not an auspicious day for shaving and Thursday is a bad day for washing one’s hair.

Question b.
Write a paragraph in about 100 words on the art of snake-charming,
Answer:
Snake charming

Snake-charming is the practice of apparently hypnotising a snake by . simple playing an instrument. A typical performance may also include handling the snake or performing other seemingly dangerous acts, as well as other street performance staples, like juggling and sleight of hand. The practice ‘ is most common in India, though it is also prevalent in other Asian nations. Many snake-charmers live a wandering existence, visiting towns and villages on market days and during festival. With a few rare exceptions, however, they typically sit out of biting range, and his animal is sluggish and not inclined to attack anyway.

More drastic means of protection include removing the creature’s fangs or venom glands, or even sewing the snake’s mouth shut. The most popular species are house natives to the snake-charmer’s home region, typically various kinds of cobras, though vipers and other types are also used.

D. Word-Study :
D. 1. Dictionary Use :

Ex. 1. Correct the spelling of the following words:
Bihar Board Class 11 English Book Solutions Chapter 3 A Snake in the Grass 1
Answer:
Bihar Board Class 11 English Book Solutions Chapter 3 A Snake in the Grass 2

Ex. 2. Look up a dictionary and write two meanings of each of the following words—the one in which it is used in the lesson and the other which is more common:
Bihar Board Class 11 English Book Solutions Chapter 3 A Snake in the Grass 3
Answer:
Swear: (i) (Here) force to follow a certain course of action.
(ii) a Promise

Chant: (i) (Here) spoke in a sing-song way
(ii) to spell

Glare: (i) bright light
(ii) stare in an angry way

Cover: (i) to extend over
(ii) to overlay

Measure : (i) means to end
(ii) size, limit, unit of capacity

Repair: (i) (Here) to go
(ii) to mend

Knock: (i) to strike with a blow
(ii) collide with

Watch: (i) look at attentively
(ii) a small time-piece

D. 2. Word-formation :

Look at the following examples :

The inner walls brightened with the unobstructed glare.

The snake disappeared along the drain.

You see that in the first exammle prefix ‘un’ is added with ‘obstructed’ which is Past Participle but is used there as an Adjective. In the second example, prefix ‘dis’ is added to a verb. In both the cases we get the opposite meaning.

Ex. 1. Use un’—and ‘dis’ suitably before each of the following words and use them in sentences of your own. The first one is done for you.

liked – disliked – Naghaz disliked getting up early.
Bihar Board Class 11 English Book Solutions Chapter 3 A Snake in the Grass 4

Answer:
obeyed – disobeyed – He disobeyed his parent.
crowned – uncrowned – The Prince remained uncrowned.
solved – dissolved – The Governor dissolved the assembly.
believed – disbelieved – She disbelieved the incident.
changed – unchanged – Our programme is still unchanged.
connected – disconnected – The wireman disconnected the line.
decided – undecided – The programme is still undecided.
announced – unannounced – The date of examination is unannounced
agreed – disagreed – They disagreed with us.
noticed – unnoticed – The snake remained unnoticed
qualified – unqualified – He was unqualified person.

D. 3. Word-meaning :

Ex. 1. Match the words given in Coiumn-A with their meanings given in Column-B:
Bihar Board Class 11 English Book Solutions Chapter 3 A Snake in the Grass 5
Answer:
Bihar Board Class 11 English Book Solutions Chapter 3 A Snake in the Grass 6

D. 4. Phrases :

Ex. 1. Read the lessons carefully and find out the sentences in which the following phrases have been used. Then use them in sentences of your own:
swear at – drop in – beat about the brush
ask for – send for – butt in
Answer:
Sentences from the lesson:
They swore at him and forced him to take an interest in the cobra.
Some neighbours dropped in.
I have been asking for a grass-cutter for months.
The fellow is beating about the bush, someone cried aptly.
At this point the college-boy of the house butted in with ……….

The moment you see it again, send for me.
Sentences with the use of the said phrases:

I swore at the worker and forced him to complete the work soon.
When I was ready to go out, some guests dropped in.
We have been asking for increment for months.
They were beating about the bush to find out the snake.
We were discussing the topic when the teacher butted in.
If you need any help, send for me.

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Bihar Board Class 11th Hindi Book Solutions पद्य Chapter 8 बहुत दिनों के बाद

Bihar Board Class 11th Hindi Book Solutions

Bihar Board Class 11th Hindi Book Solutions पद्य Chapter 8 बहुत दिनों के बाद (नागार्जन)

 

बहुत दिनों के बाद पाठ्य पुस्तक के प्रश्न एवं उनके उत्तर

बहुत दिनों के बाद कविता का सारांश Bihar Board Class 11th प्रश्न 1.
बहुत दिनों के बाद कवि ने क्या देखा और क्या सुना?
उत्तर-
‘बहुत दिनों के बाद’ घुमक्कड़ कवि की देशज प्रकृति और घरेलू संवेदना का एक दुलर्भ साक्ष्य प्रस्तुत करती है। घुमक्कड़ प्रवृत्ति का होने के कारण बहुत दिनों के बाद कवि अपने ग्रामीण वातावरण में आकर पकी-सुनहली फसलों की मुस्कान देखकर आह्वादित हो जाता है। का धान कूटती किशोरियों की कोकिल-कंठी तान सुनकर मंत्र-मुग्ध हो जाता है। उसका जन अ। . उल्लसित हो जाता है।

बहुत दिनों के बाद कविता का भावार्थ Bihar Board Class 11th प्रश्न 2.
कवि ने अपने गाँव की धूल को क्या कहा है? और क्यों?
उत्तर-
कवि नागार्जुन ने अपने गाँव की धूल को चन्दनवर्णी कहा है। ऐसा कहने के पीछे कवि का आशय है कि जिस तरह चन्दन स्निग्धता, सुगंध और शीतलता देता है। ठीक उसी तरह कवि के गाँव की धूल जिसका रंग चंदन की तरह ही है, जिससे ऐसी सोंधी महक आ रही है, उसका स्पर्श चन्दवत्, स्निग्ध और शीतलता प्रदान कर रहा है।

बहुत दिनों के बाद कविता की व्याख्या Bihar Board Class 11th प्रश्न 3.
कविता में ‘बहुत दिनों के बाद’ पंक्ति बार-बार आयी है। इसका क्या औचित्य है? इसका क्या महत्त्व है?
उत्तर-
घुमक्कड़ी प्रवृत्ति का होने के कारण कवि ‘बहुत दिनों के बाद’ अपने गाँव का उल्लासपूर्ण वातावरण देखकर मंत्र-मुग्ध है। प्राकृतिक विपदाओं से त्रस्त मिथिलांचल में हरियाली देखकर कवि का हृदय कल्पना को ऊँची उड़ान भरने लगता है। बहुत दिनों के बाद कवि को पकी-सुनहली फसलों की मुस्कान तथा धान कूटती नवयौवनाओं की सुरीली तान सुनने को मिलता है। मौलसिरी के ताजे-टटके फूल के सुवास कवि के नासारन्ध्रों में समाती है। प्रकृति की मेहरबानी से गन्ने, ताल-मखाना की हरी-भरी फसलें लहलहाते हुए देखकर कवि ताल-मखाना खाता है और गन्ना चूसता है।

प्राकृतिक विपदाओं से त्रस्त मिथिलांचल प्राय: उजार-बियावान-सा दिखाई पड़ता था। प्रकृति की असीम कृपा से बहुत दिनों के बाद कवि को गंध-रूप-रस-शब्द-स्पर्श सब साथ-साथ भोगने का अवसर प्राप्त हुआ है। कवि कहना चाहता है कि उजड़े उपवन में फिर से हरियाली छा गई है, प्रायः बाढ़ के प्रकोप से आच्छादित भूमि को स्पर्श करने का अवसर भी उसे बहुत दिनों के बाद मिलता है। लंबी इन्तजारी के बाद मिलने वाली ग्रामीण परिवेश का सच्चा सुख मिलना ‘सुख’ के महत्व में चार-चाँद लगा दिया है।

बहुत दिनों के बाद कविता Bihar Board Class 11th प्रश्न 4.
पूरी कविता में कवि उल्लसित है। इसका क्या कारण है?
उत्तर-
‘बहुत दिनों के बाद’ शीर्षक कविता घुमक्कड़ कवि नागार्जुन की देशज प्रकृति और घरेलू संवेदनाओं का एक दुर्लभ साक्ष्य प्रस्तुत करती है। कवि बहुत दिनों के बाद पकी-सुनहली फसलों की मुस्कान जी-भर देखता है। धान के उपज की प्रचुरता से कोकिल कंठी नवयौवन द्वारा धान कूटते हुए मधुर संगीत फिजाँ में फैला हुआ है जिसे सुनकर कवि मंत्र-मुग्ध हो जाता है। मौलसिरी के ताजे-टटके फूल भी सूंघने को मिलती है।

साथ-ही-साथ चंदनवर्णी धूल को भी अपने तिलक के रूप में माथे पर लगाने का अवसर प्राप्त होता है। कवि का हृदय गाँव की खुशहाली से आह्वादित है। वह जी-भर ताल-मखाना खाता है और गन्ने भी जी-भर चूसता है। कवि को गंध-रूप-रस-शब्द-स्पर्श सब अपनी जन्मभूमि पर साथ-साथ प्राप्त हो जाता है। इस मनोहर तथा मन को आह्वादित करने वाले प्रकृति के मनोरम दृश्य को देखकर कवि भवविभोर हो जाता है। उसका हृदय उल्लास से भर जाता है।

Bahut Dino Ke Baad Kavita Question Answer Bihar Board Class 11th प्रश्न 5.
“अब की मैंने जी-भर भोगे गंध-रूप-रस-शब्द-स्पर्श सब साथ-साथ इस भू पर” इन पंक्तियों का गर्भ उद्घाटित करें।
उत्तर-
प्रतिबद्ध मार्क्सवादी, सहृदय साहित्यसेवी कवि नागार्जुन रचित कविता “बहुत दिनों के बाद” से ली गयी इन पंक्तियाँ में तृप्ति का आख्यान हुआ है। मानव जीवन मृग मरीचिका में व्यतीत हो रहा है। सुख की वांछा में व्यक्ति अपनी जड़ों से कट कर वहाँ पहुँच जाता है जहाँ सारा कुछ मानव निर्मित, कृत्रिम होता है। चाँदनी होती है, चाँद नहीं होता। खूशबू आती है, फूल कागजी होते हैं, रूप मोहित करता है लेकिन मेकअप की मोटी परत चुपड़ी हुई है। भेद खुलने पर, छले जाने पर काफी दुःख होता है, क्लेष होता है और मानव मन अपनी जड़ की ओर लौटता है।

जीवन शहरों और महानगरों जैसे अजगर के गुंजलक में किस स्थिति में है, सभी जानते हैं। उगता सूरज, डूबता सूरज के दर्शन दुर्लभ हो जाते हैं। भागमभाग लगा रहता है। इसी भागमभाग से ऊबकर, भाग कर या निजात पाकर कवि अपने प्राकृतिक परिवेश में लौटा जहाँ मौलसिरी, हर शृंगार, रातरानी, रजनीगंधा जैसे सुगंध बिखेरने वाले फूलों का सान्निध्य मिला, हृदय तृप्त हुए। प्रकृति के विभिन्न अंगों के प्रकृत रूप देखकर धूल धूसरित बालक को देखकर, धान रोपती, काटती, कूटती किशोरियों को गीत गाते देखकर मन को तृप्ति मिली।

पकी फसल की झूमती बालियों को छूने का सुख मिला। खेत-खलिहान से उठने वाली महक। भरते मंजर और चू रहे महुए की सुगंध से मन प्राण तृप्त हुए। लगा जैसे सदियों बीत गयी हो, इन सब का भोग किये हुए। पता नहीं, फिर जीवन के संघर्ष से मुक्ति मिले न मिले। इसलिए कवि ने इन सबका पान, भोग जी भर कर किया।

बहुत दिनो के बाद कविता Bihar Board Class 11th प्रश्न 6.
इस कविता में ग्रामीण परिवेश का कैसा चित्र उभरता है?
उत्तर-
मार्क्सवादी विचार के कवि नागार्जुन द्वारा रचित कविता “बहुत दिनों के बाद” शीर्षक कविता में ग्रामीण परिवेश अपनी पूर्ण वस्तुवाचकता और गुणवाचकता के साथ उपस्थित है। उत्तर बिहार के नेपाल से सटे मिथिलांचल जिसे ‘धान का कटोरा’ कहा जाता है, में ही बाबा नागार्जुन का गाँव है, जवार है, अपना परिवेश है। यहाँ धान की पकी सुनहली फसल से भरे खेत हैं। धान से चावल निकलाने के लिए श्रमसाध्य उद्योग है और इसी से जुड़ा है श्रम परिहार हेतु “धान कूटनी” का गीत।

वस्तुतः अकृत्रिम अकृत्रिम ग्रामीण परिवेश का हर उपक्रम हर गतिविधि गीत, संगीत से आबद्ध है। शहरों में फूल या तो बिकते हैं, नकली होते हैं बासी होते हैं। यहाँ मौलसिरी, हर शृंगार, रजनीगंधा, रातरानी सब ताजा टटके रूप में प्राप्त होते हैं। इन्हें तोड़ने सजाने की जरूरत नहीं होती। जरूरत होती है, इनके रूप-गंध में स्वयं को निमज्जित करने की। गाँवों की पक्की सड़कें हो भी तो जो मजा पगडंडियों पर स्वयं को साधते हुए चलने का, उससे उड़ती चंदन जैसी धूल में सराबोर होने का है, उसका कहना ही क्या?

शुद्ध देशी घी में भुना हुआ कुरकुराता ताल मखाना खाने का और खेत से ताजे गन्ने तोड़कर अपने दाँतों-जबड़ों से उसे चीर चूस कर आस्वाद लेने का आनंद तो गाँव में ही मिलेगा। जहाँ सब कुछ उपलब्ध है बिना पैसे के, केवल प्यार के दो मीठे बोल खर्च करने पड़ते हैं। ऐसा ही है नागार्जुन का ग्रामीण परिवेश।

बहुत दिनों के बाद नागार्जुन Bihar Board Class 11th प्रश्न 7.
“धान कूटनी किशोरियों की कोकिल-कंठी तान” में जो सौन्दर्य चेतना दिखलाई पड़ती है, उसे स्पष्ट करें।
उत्तर-
अपने गाँव से गहरे जुड़े सरोकर रखनेवालं वैताली कवि नागार्जुन ग्रामीण सौंदर्य के सूक्ष्म द्रष्टा, पारखी और प्रस्तोता हैं।

धान कूटने के लिए ओखल-मूसल या फिर ढेकुली का प्रयोग होता है। ओखल धान रखकर बार-बार मूसल को बीच से पकड़ते हुए हाथ को शिर के ऊपर तक उठाना फिर कुछ झुकतं हुए धान पर प्रहार करना। चूड़ियों की खनखन, आपस में चूहल करती किशोरियों, नारियों और उनके गले से निकले ग्राम्य गीत के बोल, लगे जैसे किसी अमराई में कोयल पंचम का आलाप ले रही हो। यह सारा वातावरण ऐन्द्रिक, चाक्षुष और घ्राण बिम्बों को कोलाज़, प्रस्तुत करता है। कवि का कथन संक्षिप्त है किन्तु उसका सौन्दर्य अति सचेत, चेतनायुक्त और प्रभावी है।

Bahut Dinon Ke Bad Bihar Board Class 11th प्रश्न 8.
कविता में जिन क्रियाओं का उल्लेख है वे सभी सकर्मक हैं। सकर्मक क्रियाओं का सुनियोजित प्रयोग कवि ने क्यों किया है?
उत्तर-
देशज प्रकृति और घरेलू संवेदना के ध्वजावाहक प्रकृतिप्रेमी कविवर नागार्जुन ने चिंतन रचना, आचरण के धरातल पर बैठकर जनहित से संबंधित विषयों को कविता के माध्यम से उद्घाटित किया है। कवि के अनुसार शहरी जीवन के सीलन-भरी जिन्दगी की अपेक्षा प्रकृति की उन्मुक्त वातावरण, ग्रामीण परिवेश, सहज, सरस तथा आनन्ददायक होता है। इसकी बोधगम्यता ‘सकर्मक क्रिया’ के सुनियोजित प्रयोग करने में सहज और स्वाभाविक द्रष्टव्य होती है। पात्रों के कार्यों में जीवंतता प्रदान करने के लिए सार्थक क्रियाओं का प्रयोग करना कवि की कल्पना को। यथार्थ से दृढ़तापूर्वक संवेदित करता है।

बहुत दिनों के बाद Bihar Board Class 11th प्रश्न 9.
कविता के हर बंद में एक-एक ऐन्द्रिय अनुभव का जिक्र है और अंतिम बंद में उन सबका सारा-समवेत कथन है। कैसे? इसे रेखांकित करें।
उत्तर-
“बहुत दिनों के बाद” शीर्षक कविता के हर बंद में एक ऐंद्रिय अनुभव है। हमारी पाँच ज्ञानेन्द्रिय हैं, जिनके माध्यम से सृष्टि का वस्तुमय साक्षात्कर होता है।

प्रथमबंद में पकी-सुनहली फसलों की मुस्कान देखने का, दूसरे बंद में धान कूटती किशोरियों की कोकिल कंठी तान सुनने का, तीसरे बंद में मौलसिरी के ताजे टटके फूल सूंघने का, चौथे बंद में गवई पगडंडी के चन्दनवर्णी धूल का स्पर्श करने का, पाँचवें बंद में ताल मखाना खाने और गन्ना चूसने का ऐन्द्रिय अनुभव वर्णित है और अंतिम बंद में भोगने शब्द कार प्रयोग करते हुए कवि ने समवेत ढंग से ऊपर के ही ऐन्द्रिय अनुभवों को सान्द्रित रूप से प्रस्तुत किया है। गंध का संबंध नाक से, रूप का आँख से, रस का जीभ से, शब्द का कान से, स्पर्श का त्वचा से, अनुभव का भोग होता है। अतः अंतिम बंद ऐन्द्रिय अनुभवों का सारांश ही है।

बहुत दिनों के बाद भाषा की बात

Bahut Dino Ke Baad Poem In Hindi Question Answer प्रश्न 1.
कोकिलकंठी, चंदनवी में कौन-सा अलंकार है?
उत्तर-
कोकिलकंठी और चंदनवर्णी में रूपक और उदाहरण अलंकार प्रयोग भेद से उपस्थित है।

Bahut Dino Ke Baad Kavita Bihar Board Class 11th प्रश्न 2.
‘मैंने’ सर्वनाम के किस भेद के अंतर्गत है?
उत्तर-‘
मैंने’ सर्वनाम पुरुषवाचक सर्वनाम के अन्तर्गत उत्तम पुरुष के अंतर्गत आता है जिसका कारक ‘कर्ता’ है। मैंने का प्रयोग भूतकाल के निम्न भेदों में आते हैं।

सामान्य भूत-मैंने पुस्तक पढ़ी।
आसन्न भूत-मैंने पुस्तक पढ़ी है।
पूर्ण भूत-मैंने पुस्तक पढ़ी थी।

वैसे पंजाब-हरियाणा में मैंने का प्रयोग वर्तमान काल में होता है, जहाँ इसका अर्थ मुझे, मुझको लिया जाता है।

मैंने खाना है (मुझे खाना है)।

Bahut Dino Ke Baad Poem In Hindi Bihar Board Class 11th प्रश्न 3.
निम्नलिखित शब्दों को तत्सम, तद्भव, देशज और विदेशज समूहों में विभक्त करें
पगडंडी, तालमखाना, गंध, मौलसिरी, टटका, फूल, मुसकान, फसल, स्पर्श, गवई, गन्ना
उत्तर-

  • तत्सम-गंध, स्पर्श
  • तद्भव-फूल, पगडंडी, मौलसिरी।
  • देशज-तालमखाना, टटका, गवई, गन्ना।
  • विदेशज-मुस्कान, फसल।।

Bahut Dinon Ke Bad Kavita Bihar Board Class 11th प्रश्न 4.
सकर्मक और अकर्मक क्रिया में क्या अंतर है? सोदाहरण स्पष्ट करें।
उत्तर-
सकर्मक क्रिया उसे कहते हैं, जिसका कर्म हो या जिसके साथ कर्म की संभावना हो अर्थात् जिस क्रिया के व्यापार का संचालन तो कर्त्ता से हो, पर जिसका फल या प्रभाव किसी दूसरे व्यक्ति या वस्तु पर अर्थात् कर्म पर पड़े। जैसे-राम आम खाता है। जिन क्रियाओं पर व्यापार और फल कर्ता पर हो, वे अकर्मक क्रिया कहलाती है। जैसे-राम सोता है।

Bahut Din Ke Bad Bihar Board Class 11th प्रश्न 5.
निम्नलिखित शब्दों के लिए प्रयुक्त विशेष्य बताइए
(i) कोकिल-कंठी,
(ii) पकी सुनहली,
(iii) गँवई,
(iv) चंदनवर्णी,
(v) ताजे-टटकी,
(vi) धान कूटती।
उत्तर-
(i) तान,
(i) फसलों,
(iii) पगडंडी,
(iv) धूल,
(v) फूल,
(vi) किशोरियाँ।

अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

बहुत दिनों के बाद लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
बहुत दिनों के बाद शीर्षक कविता का परिचय दीजिए।
उत्तर-
नागार्जुन की यह कविता मिथिला की धरती तरौनी जो कवि की जन्मभूमि रही है, की सुरभि से सुरभित है। कवि यथार्थ का शिल्पी और रागात्मक संवेदनाओं का अमर गायक रहा है। अपने गाँव-जवार की प्रति कवि के मन में प्रगाढ़ स्नेह एवं दुलार है। ग्रामीण परिवेश की टटकी छवियों का चित्रांकन ‘बहुत दिनों के बाद’ कविता में सफलतापूर्वक किया गया है। पठित कविता में कवि की सहृदयता, सौन्दर्यानुभूति एवं विशिष्ट रागात्मक संवेदना उकेरी गई है। कवि की संवेदना मानव-जीवन के चित्रण में शहर की अपेक्षा गाँवों के प्रति अधिक उभरी है।

कवि जब रोजी-रोटी की तलाश में देश-देशान्तर की खाक छान रहा था, तब उसे अपने ग्राम ‘तरउनी’ की याद सताने लगती है। यह कविता घुमक्कड़ कवि की ग्रामीण प्रकृति और घरेलू संवेदना का दुर्लभ अहसास कराती है। ‘तरउनी’ मिथिला का एक अदना-सा गाँव है, इस गाँव का अदना कवि यहाँ की मिट्टी से इतना प्रभावित है कि उसे वह गाँव स्वर्ग-तुल्य लगता है। यह कविता उनकी ‘सतरंगे पंखों वाली’ काव्यकृति में संकलित है। कृति का प्रकाशन 1950 ई. में हुआ था।

अति लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
बहुत दिनों के बाद कवि ने किस वस्तु को देखकर आँखों का सुख प्राप्त किया? .
उत्तर-
पकी सुनहली फसलों की मुस्कान को देखकर।

प्रश्न 2.
बहुत दिनों के बाद कवि को क्या सुनने का सुख प्राप्त हुआ?
उत्तर-
गाँव में धान कूटती हुई किशोरियों के कोकिल कंठ से निकली तान सुनकर।

प्रश्न 3.
बहुत दिनों के बाद कवि ने किस वस्तु की गन्ध का सुख प्राप्त किया?
उत्तर-
मौलश्री के ढेर सारे टटके फूलों की गन्ध का।

प्रश्न 4.
बहुत दिनों के बाद कवि ने कहाँ की धूल का स्पर्श-सुख प्राप्त किया?
उत्तर-
अपने गाँव की चन्दनवर्णी धूल को स्पर्श करने का सुख प्राप्त किया।

प्रश्न 5.
बहुत दिनों के बाद कवि ने किस वस्तु का स्वाद प्राप्त किया?
उत्तर-
ताल मखाने को खाने और गन्ने को चूसने का।

प्रश्न 6.
बहुत दिनों के बाद शीर्षक कविता में किस बात की अभिव्यक्ति हुयी है?
उत्तर-
बहुत दिनों के बाद शीर्षक कविता में सौंदर्य चेतना की अभिव्यक्ति हुयी है।

प्रश्न 7.
बहुत दिनों के बाद शीर्षक कविता में कहाँ के प्राकृतिक सौन्दर्य का वर्णन हुआ है?
उत्तर-
बहुत दिनों के बाद शीर्षक कविता में कवि नागार्जुन ने गाँव की प्राकृतिक सौंदर्य का वर्णन किया है।

प्रश्न 8.
धान कूटती किशोरियों की कोकिल कण्ठी तान में कौन-सा बिंब दिखाई पड़ता है?
उत्तर-
धान कूटती किशोरियों की कोकिल कण्ठी तान में स्राय बिंब दिखाई पड़ता है।

बहुत दिनों के बाद वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर

I. निम्नलिखित प्रश्नों के बहुवैकल्पिक उत्तरों में से सही उत्तर बताएँ

प्रश्न 1.
बहुत दिनों के बाद कविता के कवि हैं?
(क) नरेश सक्सेना
(ख) दिनकर
(ग) अरुण कमल
(घ) नागार्जुन
उत्तर-
(घ)

प्रश्न 2.
नागार्जुन का जन्म कब हुआ था?
(क) 1911 ई०
(ख) 1813 ई०
(ग) 1907 ई०
(घ) 1905 ई०
उत्तर-
(क)

प्रश्न 3.
‘नागार्जुन’ का जन्म स्थान था
(क) बेगूसराय
(ख) मुजफ्फरपुर
(ग) दरभंगा
(घ) मोतिहारी
उत्तर-
(ग)

प्रश्न 4.
‘नागार्जुन’ की कविता का नाम था
(क) बहुत दिनों के बाद
(ख) भस्मांकर
(ग) प्यासी पथराई आँखें
(घ) चंदना
उत्तर-
(घ)

प्रश्न 5.
‘नागार्जुन’ का मूल नाम था
(क) वैद्यनाथ मिश्र
(ख) गोवर्धन मिश्र
(ग) सकलदेव मिश्र
(घ) जगदंबी मिश्र
उत्तर-
(क)

प्रश्न 6.
‘नागार्जुन’ की शिक्षा हुई थी
(क) बंगला में
(ख) हिन्दी में
(ग) संस्कृत में
(घ) उर्दू में
उत्तर-
(ग)

प्रश्न 7.
कवि ‘नागार्जुन’ को कौन-सा जीवन पसंद था?
(क) सधुक्कड़ी
(ख) धुमक्कड़ी
(ग) शहरी
(घ) ग्रामीण
उत्तर-
(ख)

II. रिक्त स्थानों की पूर्ति करें

प्रश्न 1.
कवि ने गाँव की धूल को ……………… कहा है।
उत्तर-
चन्दवर्णी।

प्रश्न 2.
कवि की कविता में ग्रामीण परिवेश का …………….. उभरता है।
उत्तर-
मार्मिक चित्र।

प्रश्न 3.
नागार्जुन को आधुनिक ……. कहा जाता है।
उत्तर-
कबीर।

प्रश्न 4.
नागार्जुन ने अपनी कविता में मिथिलांचल की …………….. का वर्णन किया है।
उत्तर-
अनुपम छटा।

प्रश्न 5.
बहुत दिनों के बाद कवि गाँव की पक्की सुनहली फसल को देखकर …………….. हो जाता है।
उत्तर-
आह्वादित।

प्रश्न 6.
प्राकृतिक विपदाओं से त्रस्त मिथिलांचल प्रायः …………….. दिखाई पड़ता था।
उत्तर-
उजार-वियावान।

प्रश्न 7.
लंबी इंतजारी के बाद ग्रामीण परिवेश का सच्चा सुख मिलना सुख के महत्व में ……………… लगा दिया है।
उत्तर-
चार चाँद।

प्रश्न 8.
कवि की कविता देशज प्रकृति और घेरलू संवेदनाओं का …………….. प्रस्तुत करती है।
उत्तर-
दुर्लभ साक्ष्य

प्रश्न 9.
ऐन्द्रिय आधार और स्थायी मन-मिजाज का यह कविता एक दुर्लभ और ……………… है।
उत्तर-
अद्वितीय उदाहरण।

बहुत दिनों के बाद कवि परिचय – नागार्जुन (1911-1998)

जीवन-परिचय-
नागार्जुन का जन्म 1911 ई. में बिहार के दरभंगा जिले के सतलखा गाँव (उनके ननिहाल) में हुआ था। वे तरौनी के निवासी थे एवं उनका मूल नाम वैद्यनाथ मिश्र था। उनकी प्रारंभिक शिक्षा संस्कृत पाठशाला में हुई। 1936 ई. में श्रीलंका जाकर बौद्ध धर्म में दीक्षित जेल की यात्रा भी करनी पड़ी।

1935 में उन्होंने ‘दीपक’ (हिंदी मासिक) तथा 1942-43 में ‘विश्वबंधु’ (साप्ताहिक) पत्रिका का संपादन किया। मैथिली काव्य-संग्रह ‘पत्रहीन नग्न गाछ’ के लिए उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कारों से सम्मानित किए गए। 1998 ई. में उनका देहावसान हो गया।

रचनाएँ-बाबा नागार्जुन की प्रमुख काव्य-कृतियाँ हैं-युगधारा, प्यासी पथराई आँखें, सतरंगे पंखों वाली, तालाब की मछलियाँ, हजार-हजार बाँहों वाली, तुमने कहा था, पुरानी जूतियों का कोरस, आखिर ऐसा क्या कह दिया मैंने, रत्नगर्भा, ऐसे भी हम क्या, ऐसे भी तुम क्या, पका है कटहल, मैं मिलिटरी का बूढ़ा घोड़ा, भस्मांकुर (खंडकाव्य)। मैथिली में उनकी कविताओं के दो संकलन हैं-चित्रा, पत्रहीन नग्नगाछ। बलचनमा, रतिनाथ की चाची, कुंभी पाक, उग्रतारा, जुमनिया का बाबा, वरुण के बेटे (हिंदी), पारो, नवतुरिया, बलचनमा (मैथिली) जैसे उनके उपन्यास विशेष महत्त्व के हैं।

भाषा-शैली-नागार्जुन का हिंदी और मैथिली के साथ संस्कृत पर भी समान अधिकार होने के कारण उनकी काव्य भाषा में हाँ एक ओर संस्कृत काव्य परंपरा की प्रतिध्वनि मिलती है, वहीं दूसरी ओर बोलचाल की भाषा की सहजता भी दिखाई देती हैं। उनके काव्य में तत्सम शब्दों के प्रयोग के साथ ही ग्राम्यांचल शब्दों का भी समुचित प्रयोग हुआ है। उन्होंने मुहावरों का भी समावेश अपनी कविताओं में किया है। उन्होंने व्यंग्यपूर्ण शैली का सफल प्रयोग सामाजिक-विसंगतियों के चित्रण में किया है।

साहित्यिक विशेषताएँ-नागार्जुन प्रगतिवादी विचारधारा के कवि हैं। वे जनसामान्य, श्रम तथा धरती से जुड़े लोगों की बात अपनी कविताओं में कहते हैं। वे जन भावनाओं और समाज की पीड़ा को व्यक्त करते हैं। उन्होंने समाज में व्याप्त विषमताओं को देखा है, समझा है, अतः उनका वर्णन स्वाभाविक है। विषय की जितनी विराटता और प्रस्तुति की जितनी सहजता नागार्जुन के रचना संचार में है, उतनी शायद ही कहीं और हो। लोक जीवन और प्रकृति उनकी रचनाओं की नस-नस में रची-बसी है। छायावादोत्तर काल के वे अकेले कवि हैं, जिनकी कविताओं का ग्रामीण चौपाल से लेकर विद्वानों तक में समान रूप से आदर प्राप्त है। जटिल से जटिल विषय पर लिखी गई उनकी कविताएँ इतनी सहज, संप्रेषणीय और प्रभावशाली होती हैं कि वे पाठक के मानस-लोक में बस जाती हैं।

बाबा नागार्जुन कभी मार्क्सवाद की वकालत करते हैं, कभी समाज में व्याप्त शोषण का वर्णन करते हैं और कभी प्रकृति का मनोहारी वर्णन करते हैं। उनकी कविताओं में शिष्टगंभीर हास्य और सूक्ष्म चुटीले व्यंग्यों की अधिकता है।

कवि के मन में श्रम के प्रति सम्मान का भाव है। प्रकृति से भी नागार्जुन को बहुत लगाव है। बादल कवि को मृग रूप में दिखाई देता है। उसने रूपक के माध्यम से बादलों को चौकड़ी करते देखा है।

नागार्जुन संस्कृत भाषा का गंभीर ज्ञान रखते थे। अतः उनकी भाषा संस्कृत शब्दावली से युक्त है। उनकी काव्यभाषा में संस्कृत काव्य परंपरा की प्रतिध्वनि मिलती। वे प्रगतिवादी विचारध रा के कवि हैं, अतः उन्होंने बोलचाल की भाषा का भी प्रयोग किया है। उनकी भाषा में सरता है, स्वाभाविकता है। उन्होंने खड़ी बोली के लोक प्रचलित रूप को अपनाया है। उनकी अभिव्यक्ति एकदम स्पष्ट, यथार्थ और ठोस है। व्यंग्य का बाहुल्य है। लोकमंगल उनकी कविता की मुख्य विशेषता है, इस कारण व्यावहारिक धरातल भी दिखाई देती है। उन्होंने विभिन्न छंदों में काव्य रचना की है और मुक्त छंद में भी। अलंकारों का आकर्षण उनमें नहीं है। आधुनिक कवियों में नागार्जुन का विशेष स्थान है।

बहुत दिनों के बाद कविता का सारांश

वर्तमान के वैताली प्रतिबद्ध मार्क्सवादी, प्रगतिवादी, प्रयोगवादी और जनकवि बाबा नागार्जुन रचित कविता शुद्ध प्रकृति प्रेम की कविता है। जो स्वयं को खोजना चाहता है, स्वयं को परिपूर्ण ऊर्जावान और अर्थवान बनाना चाहता है। वह प्रकृति की गोद में जाता है। प्रकृति से प्रकृत रूप में मिलन की कविता है, बहुत दिनों के बाद।

आधुनिक युग संत्रास, विषाद असंतोष का पर्याय है। जीवन-यापन के लिए आपा-धापी लगी हुई गला काट प्रतियोगिता जारी है। निजता की स्थापना में निजता का छिजन, क्षरण होता जा रहा है। अपने अस्तित्व को पुनः पाने रस पूर्ण, गंध पूर्ण करने के लिए कवि कार्तिक माह में अपने मिथिलांचल स्थिति “तरौनी” गाँव आए। और उसे दूर से धान की सुनहली पकी बालियाँ झूमती मुस्कराती नजर आयीं। इन्हें देखकर कवि का मन प्रसन्न हो गया। ऐन्द्रिय भोग का एक साधन नेत्र है। जो दूर से दृश्य दिखाकर भी तृप्ति प्रदान करती है।

कवि नागार्जुन जब अपने गाँव में प्रविष्ट हुआ तो ओखल में मूसल की मार, ढेंकी की चोट के साथ कोयल-सी मधुर आवाज में गाँव की किशोरियों के गले से गाँव के गीत सुनने को मिले, कानों को भी तृप्ति प्राप्त हुई।

आगे बढ़ा तो मौलसिरी अपनी मादकता अपने अगणित फूलों के माध्यम से बिखेर रही थी। “अंजुली-अंजुली” उठाकर इन फूलों को कवि ने सूंधे, नाक की प्यास भी बूझी। गाँव की पगडंडियों पर खाली पाँव चलते हुए गाँव की मिट्टी धूल का स्पर्श सुख चंदन सुवासित सुख सम प्रतीत हुआ।

अब बारी आई षट्स की पहचान करने वाली जिह्वा की। मिथिला के ताल मखाने में और ईखों (गन्नों) में जो स्वाद है, वह ‘फाइव स्टार’ या काटिनेंटल डिसेज में कहाँ है। जिह्वा के माध्यम से पेट भी भर गया। ऐसी तृप्ति कवि को बहुत दिनों के बाद हुई। यदि वह लगातार इसी परिवेश में रहता तो शायद तब यह कविता नहीं रची जाती।

वियोग, विछोह, असंतुष्टि के कारण प्रकृति के इन उपादानों को देखने, सुनने, सुंघने, छूने और खाने का अवसर मिला। सब कुछ मुफ्त, निःशुल्क शुद्ध, सात्विक और पवित्र अवस्था में। कवि अतिम बंद में ‘भोगे’ शब्द का उपयोग करता है। कहा भी गया है “वीर भोग्य वसुन्धरा धरती” भू का प्रत्येक अवयव, घटक भोग्य है। उपयोगी है। आवश्यकता है प्रकृति के इस योगदान को स्वीकार करने का। आवश्कता है कृत्रिमता का केचुल उतारकर प्रकृत रूप में हम रहें।

‘बहुत दिनों के बाद’ कविता प्रकृति प्रेम की अपने प्रकार की अनूठी कविता है। इसमें उपमा, रूपक और अनुप्रास अलंकार भी सहज चले आये हैं। सम्पूर्ण कविता उल्लास का सृजन करती है। प्रकृति की ओर लौटने का आह्वान करती है।

वास्तव मे, बहुत दिनों के बाद मिथिला के घुमक्कड़ नागार्जुन की देशज प्रकृति और घरेलू संवेदना एक दुर्लभ साक्ष्य को दर्शाती है।

बहुत दिनों के बाद कठिन शब्दों का अर्थ

जी-भर-मन भर, इच्छा भर। किशोरी-नयी उम्र की लड़की। कोकिलकंठी-कोयल जैसे मीठे स्वर वाली। गवई-गाँव की। चंदनवर्णी-चंदन के रंग की। मोलसिरी (मोलिश्री)-एक बड़ा सदाबहार पेड़ जिसमें छोटे-छोटे सुगंधित फूल लगते हैं, बकुल। तालमखाना-एक मेवा जो मिथिला की ताल-तलैया में विशेष रूप से उपजाया जाता है। गन्ना-ईख। पगडंडो-कच्चा-पतला-इकहरा रास्ता। भू-पृथ्वी।

बहुत दिनों के बाद काव्यांशों की सप्रसंग व्याख्या

1. बहुत दिनों के बाद ………………. साथ-साथ इस भू पर। .
व्याख्या-
प्रस्तुत पंक्तियाँ प्रगतिवादी कवि नागार्जुन की कविता “बहुत दिनों के बाद” से ली गयी है। कवि ने इस कविता में बहुत दिनों के बाद गाँव में रहकर विविध वस्तुओं का सुख भोगने की स्थिति का वर्णन किया है।

कवि कहता है कि बहुत दिनों के बाद इस बार गाँव में रहकर रूप, रस, गन्ध, शब्द और स्पर्श का भरपूर सुख लिया। कवि ने कविता के प्रथम छन्द में पकी सुनहली फसल की मुस्कान का सुख भोगने की बात कही है जो नये सुख के अन्तर्गत आता है। अतः रूप है। दूसरे छन्द में गाँव की किशोरियों द्वारा धान कूटने के समय कोकिल कंठ से गीत गाने या मधुर वार्तालाप करने का वर्णन किया है जो श्रवण सुख का विषय है। यही शब्द है। तीसरे छन्द में मौलश्री के ताजा पुष्पों की गंध सूंघने का वर्णन है जो घ्राण सुख का विषय है अतः गन्ध है।

चौथे छन्द में गाँव की चन्दनी-माटी छूने का वर्णन है जो स्पर्श का विषय है। पाँचवें छन्द में तालमखाना खाने और गन्ने का रस चूसने का उल्लेख है जो रस के अन्तर्गत है। यह स्वाद संवेदना का विषय है। इस तरह इस छन्द में पूर्व के पाँच छन्दों में वर्णित विषयों का समाहार हो गया है। पूर्व के पाँच छन्दों में क्रमशः रूप, शब्द, गन्ध, स्पर्श और रस की व्याख्या है और इस छन्द में इन पाँचों – को सूत्र रूप में पिरो कर कहा गया है। इस तरह सूत्र शैली तथ्य-कथन के कारण ये पतियों महत्त्वपूर्ण है। कथावस्तु के आलोक में यह तत्त्व प्रकाश में आया है।

Bihar Board Class 11 History Solutions Chapter 10 मूल निवासियों का विस्थापन

Bihar Board Class 11 History Solutions Chapter 10 मूल निवासियों का विस्थापन Textbook Questions and Answers, Additional Important Questions, Notes.

BSEB Bihar Board Class 11 History Solutions Chapter 10 मूल निवासियों का विस्थापन

Bihar Board Class 11 History मूल निवासियों का विस्थापन Textbook Questions and Answers

 

पाठ्य-पुस्तक के प्रश्न एवं उनके उत्तर

मूल निवासियों का विस्थापन के प्रश्न उत्तर Bihar Board Class 11 History प्रश्न 1.
दक्षिणी और उत्तरी अमेरिका के मूल निवासियों के बीच के फों (अन्तर) से सम्बन्धित किसी भी बिन्दु पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
दक्षिणी अमेरिका के मूल निवासियों के विपरीत उत्तरी अमेरिका के मूल निवासी बड़ी पैमाने पर खेती नहीं करते थे। वे अपने आवश्यकता से अधिक अत्पादन करते थे। इसलिए वे दक्षिणी अमेरिका की तरह राज्य और सम्राज्य स्थापित न कर सके।

मूल निवासियों का विस्थापन प्रश्न उत्तर Bihar Board Class 11 History प्रश्न 2.
आप उन्नीसवीं सदी के संयुक्त राज्य अमेरिका में अंग्रेजी के उपयोग के अतिरिक्त अंग्रेजों के आर्थिक और सामाजिक जीवन की कौन-सी विशेषताएं देखते हैं?
उत्तर:
यूरोपीय लोगों (मुख्यतः अंग्रेजों) के संयुक्त राज्य अमेरिका में आकर बसने तथा अपना विस्तार करने के कारण राज्य में अंग्रेजी भाषा का प्रचलन काफी बढ़ गया। इसके अतिरिक्त वहाँ बसे अंग्रेजों के आर्थिक और सामाजिक जीवन की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित थीं –

1. जमीन के प्रति यूरोपीय लोगों का विचार मूल निवासियों से अलग था। ब्रिटेन और फ्रांस से आए कुछ प्रवासी ऐसे थे जो अपने पिता का बड़ा पुत्र न होने के कारण पिता की सम्पत्ति के उत्तराधिकारी नहीं बन सकते थे। अत: वे अमेरिका में भूमि के स्वामी बनना चाहते थे।

2. जर्मनी, स्वीडन और इटली जैसे देशों से ऐसे अप्रवासी आए जिनकी जमीनें बड़े किसानों के हाथों में चली गई थीं। वे ऐसी जमीन चाहते थे, जिसे वे अपना कह सकें।

3. पोलैंड से आए लोगों को प्रेयरी चरागाहों में काम करना अच्छा लगता था, जो उन्हें। अपने देश के स्टेपीज की याद दिलाती थी।

4. अमेरिका में बहुत कम कीमत पर बड़ी सम्पत्तियाँ खरीद पाना आसान था। अत: अंग्रजों ने बड़े-बड़े भूखंड खरीद लिए। उन्होंने जमीन की सफाई की और खेती का विकास किया। उन्होंने मुख्य रूप से कपास और धान जैसी पसलें उगाईं। इसका कारण यह था कि ये फसलें यूरोप में नहीं उगाई जा सकती थीं। इसीलिए वहाँ ऊंचे मुनाफे पर बेचा जा सकता था।

5. अपने विस्तृत खेतों को जंगली जानवरों से बचाने के लिए अन्होंने शिकार द्वारा उनका सफाया कर दिया। 1873 में कंटीले तारों की खोज के बाद खेत पूरी तरह सुरक्षित हो गए।

6. अंग्रेजों ने संयुक्त राज्य अमेरिका में अपनी बस्तियों के विस्तार के लिए खरीदी गई जमीन से वहाँ के मूल निवासियों को हटा दिया। उनके साथ अपनी जमीनें बेच देने की संधियाँ की गई और उन्हें जमीन की बहुत कम कीमतें दी गई। ऐसे उदाहरण भी मिलते हैं कि अमेरिकियों (संयुक्त राज्य अमेरिका में रहने वाले अंग्रेज) ने धोखे से उनसे अधिक भूमि हथिया ली या पैसा देने के मामले में हेराफरी की।

7. उच्च उधिकारी भी मूल निवासियों की बेदखली को गलत नहीं मानते थे। जॉर्जिया इसका उदाहरण है। जॉर्जिया संयुक्त राज्य अमेरिका का एक राज्य है। यहाँ के अधिकारियों का तर्क था कि वहाँ के चिरोकी कबीले पर राज्य के कानून तो लागू होते हैं, परन्तु वे नागरिक अधिकारों का उपयोग भी कर सकते हैं।

मूल निवासियों का विस्थापन पाठ के प्रश्न उत्तर Bihar Board Class 11 History प्रश्न 3.
अमेरिकियों के लिए ‘फ्रंटियर’ के क्या मायने (अर्थ) थे?
उत्तर:
यूरोपियों द्वारा जीती गई भूमि तथा खरीदी गई भूमि के कारण संयुक्त राज्य अमेरिका का विस्तार होता रहता था। इससे अमेरिका को पश्चिमी सीमा खिसकती रहती थी। इसके साथ मूल अमेरिकियों को भी पीछे हटना पड़ता था। वे राज्य की जिस सीमा तक पहुँच जाते थे उसे ‘टियर कहा जाता है।

प्रश्न 4.
इतिहास की किताबों में ऑस्ट्रेलिया के मूल निवासियों को शासित क्यों नहीं किया गया था?
उत्तर:
यूरोपीय इतिहासकारों ने ऑस्ट्रेलिया के मूल निवासियों के प्रति भेदभाव की नीति अपनाई। उन्होंने अपनी पुस्तकों में केवल ऑस्ट्रेलिया में आकर बसे यूरोपीयों की ही उपलब्धियों का वर्णन किया और यह दिखाने का प्रयास किया कि वहाँ के मूल निवासियों की न तो कोई परम्परा है और न ही कोई इतिहास। इसी कारण इतिहास की पुस्तकों में उनकी उपेक्षा की गई।

प्रश्न 5.
लोगों की संस्कृति को समझाने में संग्रहालय की गैलरी में प्रदर्शित चीजें कितनी कामयाब रहती हैं? किसी संग्रहालय को देखने के अपने अनुभव के आधार पर सोदाहरण विचार करिए।
उत्तर:
लोगों की संस्कृति को समझने में संग्रहालय महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। वहाँ प्रदर्शित वस्तुओं के आधार पर मूली बिसरी अथवा उपेक्षित संस्कृतियों को भी फिर से जीवित किया जा सकता है। ऑस्ट्रेलिया की आदि संस्कृतियाँ इसके उदाहरण हैं।

प्रश्न 6.
कैलिफोर्निया में चार लोगों के बीच 1880 में हुई किसी मुलाकात की कल्पना करिए । ये चार लोग हैं : एक अफ्रीकी गुलाम, एक चीनी मजदूर, गोल्ड रश के चक्कर में आया हुआ एक जर्मन और होपी कबीले का एक मूल निवासी। उनकी बातचीत का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
कैलिफोर्निया उत्तर अमेरिका का एक प्रसिद्ध शहर है। यहाँ ये चारों मिलकर अपनी आवश्यक्ता पूरा करने के लिए बातचीत करते हैं। इसमें सबसे शक्तिशाली गोल्ड रश के चक्कर में आया हुआ जर्मन है। वह अफ्रीकी गुलाम को अपने पास रखना चाहता है। वह उससे अपने यहाँ रहने के लिए कहता है। वह चीनी मजदूर से अपने काम करने के लिए पृण है। चीनी मजदूर टूटी फूटी भाषा में जवाब देता है। जमन निवासी होपी कबीले के मूल निवासी को जमीन देने के लिए कहता है ताकि वह यहाँ अपना व्यापार जमा सके। चारों टूटी अंग्रेजी में बातचीत करते हैं।

Bihar Board Class 11 History मूल निवासियों का विस्थापन Additional Important Questions and Answers

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
चिरोकी कौन थे? उनके साथ क्या अन्याय हो रहा था?
उत्तर:
चिरोकी संयुक्त राज्य अमेरिका के एक राज्य जार्जिया के मूल निवासी थे। वहाँ के मूल निवासियों में चिरोकी ही ऐसे थे जिन्होंने अंग्रेजी सीखने और अंग्रेजों की जीवन-शैली समझने का सबसे अधिक प्रयास किया था। उन पर राज्य के कानून तो लागू होते थे, परन्तु उन्हें नागरिक अधिकारों से वंचित होना पड़ता था।

प्रश्न 2.
अमेरिका में मूल निवासियों से जमीनें प्राप्त करने वाले लोग किस आधार पर अपने आप को उचित ठहराते थे?
उत्तर:
मूल निवासियों से जमीनें प्राप्त करने वाले लोग इस आधार पर अपने आप को उचित ठहराते थे कि मूल निवासी जमीन का अधिकतम प्रयोग करना नहीं जानते । इसलिए वह उनके पास रहनी ही नहीं चाहिए। वे यह कह कर भी मूल निवासियों की आलोचना करते कि आलसी : हैं। इसलिए वे बाजार के लिए उत्पादन करने में अपने शिल्प-कौशल का प्रयोग नहीं करते हैं। अंग्रेजी सीखने और ढंग के कपड़े पहनने में भी उनकी कोई रुचि नहीं है।

प्रश्न 3.
उत्तरी अमेरिका के सन्दर्भ में ‘रिजर्वेशंस’ (आरक्षण) क्या थे?
उत्तर:
उत्तरी अमेरिका के मूल निवासियों को छोटे-छोटे प्रदेशों में सीमित कर दिया गया था। यह प्रायः ऐसी जमीन होती थी, जिनके साथ उनका पहले से कोई नाता नहीं होता था। इन्हीं जमीनों को रिजर्वेशन अथवा आरक्षण. कहा जाता था।

प्रश्न 4.
अमेरिका के मूल निवासियों ने अपनी जमीनें संघर्ष करने के बाद ही छोड़ी थीं। इसके पक्ष में उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
अमेरिका के मूल निवासियों ने वास्तव में अपनी जमीनों के लिए संघर्ष किया था। इसके पक्ष में यह तर्क दिया जा सकता है कि संयुक्त राज्य की सेना को 1865 से 1890 ई. के बीच मूल निवासियों के विद्रोहों की एक पूरी श्रृंखला का दमन करना पड़ा था। इसी प्रकार 1869-1885 ई. के बीच कनाडा में मेटिसों (यूरोपीय मूल निवासियों के वंशज) के विद्रोह
हुए थे।

प्रश्न 5.
उत्तरी अमेरिका में 1840 के दशक में मानवशास्त्र विषय का आरम्भ क्यों हुआ?
उत्तर:
1840 के दशक में उत्तरी अमेरिका में मानवाशास्त्र विषय का आरम्भ स्थानीय ‘आदिम’ समुदायों तथा युरोप के ‘समुदायों के बीच अन्तर को जानने के लिए हुआ। कुछ मानवशास्वियों ने यह स्थापित किया कि जिस प्रकार यूरोप में ‘आदिम’ लोग नहीं पाये जाते, उसी : प्रकार अमेरिका के मूल निवासी भी नहीं रहेंगे।

प्रश्न 6.
‘गोल्ड रश’ को किस बात ने जन्म दिया? यह क्या था?
उत्तर:
यूरोपीय लोगों को इस बात की आशा थी कि उत्तरी अमेरिका में धरती के नीचे सोना है। 1840 में संयुक्त राज्य अमेरिका के कैलीफोर्निया में सोने के कुछ चिह्न मिले । इसने ‘गोल्ड रश’ को जन्म दिया। ‘गोल्ड रश’ उस आपाधापी का नाम है, जिसमें हजारों की संख्या में यूरोपीय लोग सोना पाने की आशा में अमेरिका जा पहुंचे।

प्रश्न 7.
अमेरिका महाद्वीप के लिए गोल्ड रश किस प्रकार वरदान सिद्ध हुआ?
उत्तर:
गोल्ड रश को देखते हुए पूरे महाद्वीप में रेलवे-लाइनों का निर्माण किया गया। इसके लिए हजारों चीनी श्रमिकों की नियुक्ति हुई। 1870 में संयुक्त राज्य अमेरिका में तथा 1885 में कनाडा में रेलवे का काम पूरा हो गया। स्कॉटलैंड से आने वाले अप्रवासी एंड्रिड कानेगी ने कहा था, “पुराने राष्ट्र घोंघे की चाल से सरकते हैं। नया गणराज्य किसी एक्सप्रेस की गति से दौड़

प्रश्न 8.
उत्तरी अमेरिका में उद्योगों के विकास के कौन-से दो मुख्य उद्देश्य थे?
उत्तर:
उत्तरी अमेरिका में उद्योगों के विकास के निम्नलिखित उद्देश्य थे –

विकसित रेलवे के साज-समान बनाना, ताकि दूर-दूर के स्थानों को तीव्र परिवहन द्वारा जोड़ा जा सके।
ऐसे यन्त्रों का निर्माण करना, जिनसे बड़े पैमाने पर खेती की जा सके।

प्रश्न 9.
1934 में संयुक्त राज्य अमेरिका में एक युगान्तकारी कानून पारित हुआ। यह क्या था?
उत्तर:
यह कानून था 1934 का इंडियन रीऑर्गनाईजेशन एक्ट । इसके अनुसार रिजर्वेशंज में मूल निवासियों का जमीन खरीदने और ऋण लेने का अधिकार दिया गया।

प्रश्न 10.
मूल निवासियों ने किस दस्तावेज द्वारा तथा किस शर्त पर संयुक्त राज्य अमेरिका की नागरिकता स्वीकार की?
उत्तर:
मूल निवासियों ने 1954 में अपने द्वारा तैयार किए गए ‘डिक्लेरेशन ऑफ इंडियन राइट्स’ नामक दस्तावेज द्वारा संयुक्त राज्य अमेरिका की नागरिकता स्वीकार की। उनकी शर्त यह थी कि उनके रिजर्वेशंज वापिस नहीं लिए जाएंगे और उनकी परम्पराओं में हस्तक्षेप नहीं किया जाएगा।

प्रश्न 11.
ऑस्ट्रेलिया में ‘ऐबॉरिजिनीज’ नामक आदिम कब आने शुरू हुए ? वहाँ के मूल निवासियों का इस विषय में क्या कहना है?
उत्तर:
माना जाता है कि ऑस्ट्रेलिया में ‘ऐबॉरिजिनीज’ नामक आदिम मानव आज से लगभग 40,000 साल पहले आने शुरू हुए। परन्तु वहाँ के निवासी इसका विरोध करते हैं। उनकी परम्पराओं के अनुसार वे कहीं बाहर से नहीं आए थे, बल्कि आरम्भ से ही वहीं रह रहे थे।

प्रश्न 12.
ऑस्ट्रेलिया के टॉरस स्ट्रेट टापूवासियों की संक्षिप्त जानकारी दीजिए। इनके लिए ‘ऐबॉरिजिनीज’ शब्द का प्रयोग क्यों नहीं होता?
उत्तर:
ऑस्ट्रेलिया के देसी लोगों का एक विशाल समूह उत्तर में रहता है। इन्हें टॉरस स्ट्रेट टापूवासी कहते हैं। 2005 ई. में वे ऑस्ट्रेलिया की कुल जनसंख्या का 2.4 प्रतिशत भाग थे । इनके लिए ऐबॉरिजिनी शब्द प्रयोग नहीं होता क्योंकि यह माना जाता है कि वे कहीं और से आए हैं और एक अलग नस्ल के हैं।

प्रश्न 13.
ऑस्ट्रेलिया की अधिकतर जनसंख्या कहाँ बसी हुई है और क्यों?
उत्तर:
ऑस्ट्रेलिया की जनसंख्या बहुत ही विरल है। वहाँ की अधिकतर जनसंख्या समुद्रतट के साथ-साथ बसी हुई है। इसका कारण यह है कि देश का भीतरी भाग शुष्क मरुभूमि है।

प्रश्न 14.
ऑस्ट्रेलिया के मूल निवासियों के व्यवहार के प्रति ब्रिटिशों का क्या दृष्टिकोण था?
उत्तर:
ब्रिटिश नाविक कैप्टन कुक और उसके चालक दलन के आरम्भिक ब्योरों में मूल निवासियों के व्यवहार को मैत्रीपूर्ण बताया गया है। परन्तु जब एक मूल निवासी ने हवाई में कुक की हत्या कर दी तो ब्रिटिशों का दृष्टिकोण पूरी तरह से बदल गया । अब उन्होंने यह सिद्ध करने का प्रयास किया कि वहाँ के मूल निवासी व्यवहार में हिंसक हैं।

प्रश्न 15.
‘सेटलर’ (आबादकर) शब्द से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:’
सेटलर’ शब्द से अभिप्राय किसी स्थान पर बाहर से आकर बसे लोगों से है। इस शब्द का प्रयोग दक्षिण अफ्रीका में डचों के लिए, आयरलैंड, न्यूजीलैंड, तथा ऑस्ट्रेलिया में ब्रिटिश लोगों के लिए और अमेरिका में यूरोपीय लोगों के लिए किया जाता है।

प्रश्न 16.
दक्षिण अफ्रीका तथा अमेरिका में यूरोप उपनिवेशों की राजभाषा कौन-सी थी?
उत्तर:
कनाडा को छोड़कर इन सभी उपनिवेशों की राजभाषा अंग्रेजी थी। कनाडा में अंग्रेजी के साथ-साथ फ्रांसीसी भी एक राजभाषा थी।

प्रश्न 17.
‘नेटिव’ (मूल निवासी) शब्द से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
‘नेटिव’ शब्द उस व्यक्ति के लिए प्रयोग किया जाता है जो अपने वर्तमान निवास स्थान पर ही पैदा हुआ हो । 20वीं शताब्दी के आरम्भिक वर्षों में यह शब्द यूरोपीय लोगों द्वारा अपने उपनिवेशों के मूल निवासियों के लिए किया जाता था।

प्रश्न 18.
‘अमेरिका की पूर्व संध्या’ से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
अमेरिका की पूर्व संध्या’ से अभिप्राय उस समय से है जब यूरोपीय लोग अमेरिका में आए और उन्होंने इस महाद्वीप को अमेरिका का नाम दिया।

प्रश्न 19.
उत्तरी अमेरिका के आरम्भिक निवासियों की जीवन शैली की कोई तीन विशेषताएं बताएँ।
उत्तर:
उत्तरी अमेरिका के आरम्भिक निवासी नदी घाटी के साथ-साथ बने गाँवों में समूह बना कर रहते थे।
वे मछली और मांस खाते थे और सब्जियाँ तथा मक्का उगाते थे।
वे प्रायः मांस की तलाश में लम्बी यात्राएँ करते थे। मूख्य रूप से उन्हें ‘बाइर्सन’ अर्थात् उन जंगली भैंसों की तलाश रहती थी, जो घास के मैदानों में घूमते रहते थे।

प्रश्न 20.
वेमपुम (Wampum) बेल्ट क्या थी?
उत्तर:
वेमपुम बेल्ट रंगीन सीपियों को आपस में सिलकर बनाई जाती थी। किसी समझौते के बाद अमरिका के स्थानीय कबीलों के बीच इसका आदान-प्रदान होता था।

प्रश्न 21.
उत्तरी अमेरिका के मूल निवासियों की परम्परा की एक महत्त्वपूर्ण विशेषता बताइए।
उत्तर:
औपचारिक सम्बन्ध स्थपित करना, मित्रता करना, तथा उपहारों का आदान-प्रदान करना।

प्रश्न 22.
यूरोपीय लोगों को उत्तरी अमेरिका के मूल निवासियों पर किस बात ने अपनी शर्ते थोपने में सक्षम बनाया?
उत्तर:
उत्तरी अमेरिका के मूल निवासी शराब से परिचित नहीं थे। परन्तु यूरोपियों ने उन्हें शराब देकर शराब पीने का आदी बना दिया। शराब उनकी कमजोरी बन गई। उनकी कमजोरी ने यूरोगय लोगों को उन पर अपनी शत थोने में सक्षम बनाया।

प्रश्न 23.
पश्चिमी यूरोप के लोगों को अमेरिका के मूल निवासी असभ्य क्यों प्रतीत हुए?
उत्तर:
अठारहवीं शताब्दी में पश्चिमी यूरोप के लोग ‘सभ्य’ मनुष्य की पहचान साक्षरता, संगठित धर्म शहरीपन के आधार पर करते थे। इसी दृष्टि से उन्हें अमेरिका के मूल निवासी ‘असभ्य’ प्रतीत हुए।

प्रश्न 24.
विभिन्न उपहारों के आदान-प्रदान के प्रति उत्तरी अमेरिका के मूल निवासियों तथा यूरोपीयों के दृष्टिकोण में क्या अन्तर था?
उत्तर:
उत्तरी अमेरिका के मूल निवासी यूरोपीय लोगों के साथ जिन चीजों का आदान-प्रदान करते थे, वे उन्हें मैत्री में मिले उपहार मानते थे। दूसरी ओर अमीरी का सपना देखने वाले यूरोपीय लोगों के लिए मछली और रोएँदार खालें मुनाफा कमाने के लिए बेची जाने वाली वस्तुएँ था।

प्रश्न 25.
यूरोपीय लोगों ने अमेरिका में अपनी जमीनों पर मुख्य रूप से कौन-सी फसलें उगाईं और क्यों?
उत्तर:
यूरोपीय लोगों ने अमेरिका में अपने खेतों पर धान और कपास आदि फसलें उगाई सका कारण यह था कि ये फसलें यूरोप में नहीं उगाई जा सकती थीं। इसीलिए यूरोप में इन्हें ऊँचे लाभ पर बेचा जा सकता था।

प्रश्न 26.
यूरोपीय बागान मालिक लोग दक्षिण अमेरिका में दासों से काम क्यों लेना चाहते थे? इस सम्बन्ध में उन्हें क्या समस्या आई?
उत्तर:
यूरोपीय लोगों के लिए अमेरिका के दक्षिणी प्रदेश की जलवायु काफी गर्म थी। ऐसी – जलवायु में उनके लिए घर से बाहर.(खेतों पर अथवा बागानों में) काम कर पाना कठिन थी। इसलिए वे दासों से काम लेना चाहते थे।

प्रश्न 27.
अमेरिका में यूरोपीय लोगों को अफ्रीका से दास क्यों खरीदने पड़े ? क्या इन दासों को दासता से मुक्ति मिली?
उत्तर:
यूरोपीय लोगों को अपने खेतों पर काम करने के लिए दासों की जरूरत थी। परन्तु दक्षिणी अमरिकी उपनिवेशों से दास बना कर लाए गए मल निवासी बहत बडी संख्या में मौत का शिकार हो गए थे। इसीलिए बागान मालिकों को अफ्रीका से दास खरीदने पड़े। समय बीतने पर दासों के व्यापार पर तो रोक लग गई। परन्तु अफ्रीकी दासों को दासता से मुक्ति न मिली। – वे और उनके बच्चे दास ही बने रहे।

प्रश्नी 28.
संयुक्त राज्य अमेरिका में दास प्रथा का अन्त किस प्रकार हुआ?
उत्तर:
संयुक्त राज्य अमेरिका के उत्तरी राज्यों का अर्थतन्त्र बागानों पर आधारित न होने के कारण दास प्रथा पर आधारित नहीं था। अत: वहाँ दास प्रथा को समाप्त करने के पक्ष में आवाज उठने लगी और उसे एक अमानवीय प्रथा बताया गया। 1861-65 में दास प्रथा के समर्थक तथा उसके विरोधी राज्यों के बीच युद्ध हुआ। इसमें दासता विरोधियों की जीत हुई और दास प्रथा समाप्त कर दी गई।

प्रश्न 29.
कनाडा की ब्रिटिश सरकार के सामने फ्रांसीसियों के सम्बन्ध में क्या समस्या थी? इसे किस प्रकार सुलझाया गया?
उत्तर:
कनाडा की ब्रिटिश सरकार के सामने एक समस्या थी, जो लम्बे समय तक हल नहीं हो पाई थी। 1763 में ब्रिटेन ने फ्रांस के साथ हुई लड़ाई में कनाडा को जीत लिया था। वहाँ बसे फ्रांसीसी लगातार स्वायत्त राजनीतिक दर्जे की माँग कर रहे थे। अन्ततः 1867 में कनाडा को स्वायत्त राज्यों के एक महासंघ के रूप में संगाठित करके इस समस्या को हल किया गया।

प्रश्न 30.
ऑस्ट्रेलिया के अधिकांश आरम्भिक आबादकार कौन थे? उन्हें किस शर्त पर ऑस्ट्रेलिया में स्वतन्त्र जीवन जीने की अनुमति दी गई थी?
उत्तर:
ऑस्ट्रेलिया के अधिकांश आरम्भिक आबादकार ब्रिटिश कैदी थे जो इंग्लैंड से निर्वासित होकर आए थे। उनके कारावास की अवधि पूरी होने पर उन्हें इस शर्त पर ऑस्ट्रेलिया में ही स्वतन्त्र जीवन जीने की अनुमति दे दी गई कि वे ब्रिटेन वापस नहीं लौटेंगे। अपने जीवनयापन के लिए उन्होंने खेती के लिए ली गई जमीन से मूल निवासियों को निकाल बाहर किया।

प्रश्न 31.
ऑस्ट्रेलिया की गोरी सरकार ऑस्ट्रेलिया की भूमि को ‘टेरा न्यूलियस’ (terra nullius) क्यों कहती रहती है?
उत्तर:
टेरा न्यूलियस का अर्थ है-किसी को नहीं । सरकार का मानना था कि वहाँ की भूमि किसी को नहीं । ऐसा वहाँ पर यूरोपियों द्वारा किए भूमि अधिग्रहण को औपचारिक बनाने के लिए कहा जाता रहा है।

लघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
कनाडा तथा संयुक्त राज्य अमेरिका अपने वर्तमान क्षेत्रफल तक किस तरह पहुँचे?’
उत्तर:
कनाडा और संयुक्त राज्य अमेरिका 18वीं शताब्दी के अन्त में अस्तित्व में आए थे। उस समय उनके पास अपने वर्तमान क्षेत्रफल का एक छोटा-सा ही भाग था। वर्तमान आकार तक पहुँचने के लिए अगले सौ सालों में उन्होंने अपने नियन्त्रण वाले प्रदेश में काफी वृद्धि की। संयुक्त राज्य अमेरिका ने विस्तृत क्षेत्रों की खरीद की। उसने दक्षिण में फ्रॉस (लइसियाना परचेज) और रूस (अलास्का) से जमीन खरीदी। उसने युद्ध में भी जमीन जीती।

दक्षिण संयुक्त राज्य अमेरिका का अधिकतर भाग मेक्सिको से ही जीता गया था । किसी ने यह बात नहीं सोची कि उन प्रदेशों में रहने बाने मूल निवासियों की भी राय ली जाए। संयक्त राज्य अमेरिका की पश्चिमी सीमा खिसकती रहती थी। जैसे-जैसे सीमा खिसकती, वहाँ के निवासियों को भी पीछे खिसकने के लिए बाध्य कर दिया जाता था। \

प्रश्न 2.
19वीं शताब्दी में अमेरिका के भूदृश्य में होने वाले परिवर्तनों का वर्णन किजिए। ये परिवर्तन क्यों हुए?
उत्तर:
19वीं सदी में अमेरिका के भूदृश्य में अत्यधिक परिवर्तन आए।
कारण – जमीन के प्रति युरोपीय लोगों का रुख मूल निवासियों से अलग था। ब्रिटेन और फ्रांस से आए कुछ प्रवासी ऐसे थे जो अपने पिता का बड़ा पुत्र न होने के कारण पिता की सम्पत्ति के उत्तराधिकारी नहीं बन सकते थे। अत: वे अमेरिका में जमीन का स्वामी बनना चाहते थे। बाद में जर्मनी, स्वीडन और इटली जैसे देश में ऐसे अप्रवासी आ गए जिनकी जमीनें बड़े किसानों के हाथ में चली गई थीं वे ऐसी जमीन चाहते थे, जिसे अपना कह सकें। पोलैंड से आए लोगों को प्रयरी (prairie) चरागाहों में काम करना अच्छा लगता था, जो उन्हें अपने देश के स्टेपोज (घास के मैदानों) की याद दिलाती थीं। अमेरिका में बहुत कम मूल्य पर बड़ी सम्पत्तियाँ खरी: पाना आसान था।

परिवर्तन – यूरोपीय लोगों ने खरीदी गई जमीन की सफाई की और खेती का विकास किया। उन्होंने धान और कपास आदि फसलें उगाईं। ये फसलें युरोप में नहीं उगाई जा सकती थीं। इसीलिए युरोप में उन्हें ऊँचे लाभ पर बेचा जा सकता था। अपने विस्तृत खेतों को जंगली जानवरों से बचाने के लिए उन्होंने शिकार द्वारा उनका सफाया कर दिया। 1873 में कंटीले तारों की खोज के बाद खेत पूरी तरह सुरक्षित हो गए।

प्रश्न 3.
संयुक्त राज्य अमेरिका में दास प्रथा के प्रचलन तथा समाप्ति पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
संयुक्त राज्य अमेरिका के दक्षिणी प्रदेश की जलवायु यूरोपीय लोगों के लिए काफी गर्म थी। इसलिए उनके लिए वहाँ घर से बाहर काम कर पाना कठिन था। अतः वे दासों से काम लेना चाहते थे। परन्तु दक्षिण अमेरिकी उपनिवेशों में दास बनाए गए मूल निवासी बहुत बड़ी संख्या में मौत का शिकार हो गए थे। इसीलिए बागान मालिकों ने अफ्रीका से दास खरीदे। समय बीतने पर दास प्रथा विरोधी समूहों के विरोध के कारण दासों के व्यापार पर रोक लग गई। परन्तु जो अफ्रीकी दास संयुक्त राज्य अमेरिका में थे, वे और उनके बच्चे दास ही बने रहे।

दास प्रथा की समाप्ति-संयुक्त राज्य अमेरिका के उत्तरी राज्यों का अर्थतन्त्र बागानों पर आधारित न होने के कारण दास-प्रथा पर आधारित नहीं था। अत: वहाँ दास प्रथा को समाप्त करने के पक्ष में आवाज उठने लगी और उसे एक अमानवीय प्रथा बनाया गया। 1861-65 में दास प्रथा के समर्थक तथा विरोधी राज्यों के बीच युद्ध हुआ। इसमें दासता के विरोधियों की जीत हुई और दास प्रथा समाप्त कर दी गई।

प्रश्न 4.
ऑस्ट्रेलिया में यूरोपीय लोगों के आगमन के प्रति वहाँ के मूल निवासियों की क्या प्रतिक्रिया थी?
उत्तर:
ऑस्ट्रेलिया की खोज 1770 ई. में अंग्रेज नाविक कैप्टन कुक ने की थी। वहाँ के मूल निवासियों ने कुक तथा उसके चालक दल का स्वागत किया। इसलिए ऑस्ट्रेलिया के मूल निवासियों के साथ हुई भेंट को लेकर कैप्टन कुक और उसके चालक दल के आरम्भिक ब्योरे मूल निवासियों के मैत्रीपूर्ण व्यवहार से भरे पड़े हैं। परन्तु बाद में एक मूल निवासी ने हवाई में कक की हत्या कर दी। इस कारण ब्रिटिशों को उनके प्रति दृष्टिकोण पुरी तरह से बदल गया। अब उन्होंने यह सिद्ध करने का प्रयास किया कि वहाँ के मुल निवासी व्यवहार में हिंसक हैं।

यूरोपीय लोगों के आगमन को सभी मूल निवासियों ने खतरा नहीं माना । इसका कारण यह था कि उनमें दूर की सोच की कमी थी। वे यह अनुमान नहीं लगा पाए कि 19वीं और 20वीं सदी के बीच कीटाणुओं के प्रभाव से अपनी जमीनें छिन जाने से तथा आबादकारों के साथ होने वाली लड़ाइयों में लगभग 90 प्रतिशत मूल निवासियों को अपने प्राण गवाने पडेंगे।

प्रश्न 5.
ऑस्ट्रेलिया में मानव निवास के इतिहास का वर्णन करते हुए वहाँ के मूल निवासियों के समुदायों की जानकारी दीजिए।
उत्तर:
ऑस्ट्रेलिया में मानव निवास का इतिहास काफी लम्बा है। आरम्भिक मनुष्य या आदिमानव जिन्हें ‘ऐबॉरिजिनीज’ कहते हैं ऑस्टेलिया में लगभग 40,000 साल पहले आने शुरू हए थे। वे न्यूगिनी से आए थे जो ऑस्ट्रेलिया के साथ एक भूमि सेतु द्वारा जुड़ा हुआ था। इसके विपरीत मूल निवासियों की अपनी परम्पराओं के अनुसार वे ऑस्ट्रेलिया में बाहर से नहीं आये थे। बल्कि आरम्भ ही वहीं रह रहे थे।

मूल निवासियों के समुदाय – 18वीं सदी के अन्तिम चरण में ऑस्ट्रेलिया में मूल निवासियों के लगभग 350 से 750 तक समूदाय रहते थे। इनमें से प्रत्येक समुदाय की अपनी भाषा थी। देसी लोगों का एक अन्य विशाल समूह उत्तर में रहता है। 2005 ई. में वे ऑस्ट्रेलिया की कुछ जनसंख्या का 2.4 प्रतिशत भाग थे। इन्हें टॉरस स्ट्रेट टापूवासी कहते हैं। इनके लिए ‘ऐबॉरिजिनी’ शब्द प्रयोग नहीं होता क्योंकि यह माना जाता है कि वे कहीं और से आए हैं और एक अलग नस्ल के हैं।

प्रश्न 6.
मानव अधिकारों ने ऑस्ट्रेलिया के मूल निवासियों को न्याय दिलाने का मार्ग किस सीमा तक प्रशस्त किया है?
उत्तर:
1973 के दशक से संयुक्त राष्ट्र संघ और अन्य अन्तर्राष्ट्रीय एजेन्सियों की बैठकों में मानवाधिकारों पर बल दिया जाने लगा। इससे ऑस्ट्रेलियाई जनता को यह आभास हुआ कि संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा और न्यूजीलैंड के विपरित ऑस्ट्रेलिया में यूरोपीय लोगों द्वारा किए गए भूमि अधिग्रहण को औपचारिक बनाने के लिए मूल निवासियों के साथ कोई समझौता नहीं किया गया है। सरकार सदा से ऑस्ट्रेलिया की जमीन को टेरा न्यूलियस (terra nullius) कहती आई थी। इसका अर्थ था, “जो किसी की नहीं है।” इसके अतिरिक्त वहाँ यूरोपवासियों द्वारा अपने आदिवासी रिश्तेदारों से जबरदस्ती छीने गए मिश्रित रक्त वाले बच्चों का भी एक लम्बा और यन्त्रणापूर्ण इतिहास था।

अन्ततः दो महत्त्वपूर्ण निर्णय लिए गए –
इस बात को मान्यता देना कि मूल निवासियों का जमीन के साथ, जोकि उनके लिए पवित्र है, मजबूत ऐतिहासिक सम्बन्ध रहा। अतः इसका आदर किया जाना चाहिए।
‘श्वेत’ तथा ‘अश्वेत’ लोगों को अलग-अलग रखने के प्रयास में बच्चों के साथ जो अन्याय हुआ है, उसके लिए सार्वजनिक रूप से माफी मांगी जानी चाहिए।

प्रश्न 7.
उपनिवेशीकरण को प्रेरित करने वाला मुख्य कारक कौन-सा था? उपनिवेशीकरण की प्रकृति में पाई जाने वाली विविधताओं के उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
उपनिवेशीकरण को प्रेरित करने वाला प्रमुख कारक मुनाफा था। परन्तु उपनिवेशीकरण की प्रकृति में कुछ महत्त्वपूर्ण विविधताएँ थीं, जिसके निम्नलिखित उदाहरण है-
1. दक्षिण एशिया में व्यापारिक कम्पनियों ने अपनी राजनीतिक सत्ता स्थापित की। उन्होंने स्थानीय शासकों को हराकर अपने साम्राज्य का विस्तार किया। उन्होंने नयी प्रशासनिक व्यवस्था. स्थापित करने की बजाय पुरानी सुविकसित प्रशासकीय व्यवस्था को ही अपनाया और भस्वामियों से कर वसूला। बाद में उन्होंने अपने व्यापार को सुगम बनाने के लिए रेलवे का निर्माण किया, खानें खुदवाई और बड़े-बड़े बागान स्थापित किए।

2. दक्षिणी अफ्रीका को छोड़कर शेष पूरे अफ्रीका में युरोपीय लोग लम्बे समय तक समुद्र तटों पर ही व्यापार करते रहे। 19वीं सदी के आखिरी चरण में ही वे अफ्रीका के भीतरी भागों में जाने का साहस कर सके। बाद में कुछ यूरोपीय देशों ने अपने उपनिवेशों के रूप में अफ्रीका का बँटवारा करने का समझौता कर लिया।

प्रश्न 8.
उत्तरी अमेरिका महाद्वीप के विस्तार, भूमध्य तथा संसाधनों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर:
उत्तरी अमेरिका महाद्वीप उत्तर ध्रुवीय वृत्त से लेकर कर्क रेखा तक फ्राला हुआ है। दूसरी ओर इसका विस्तार प्रशान्त महासागर से अटलांटिक महासागर तक है।पिचरीले, पर्वतों की श्रृंखला के पश्चिम में अरिजोना और नेवाडा की मरुभूमि है। थोड़ा और पश्चिम सिएरा नेवाडा पर्वत है। पूर्व में ग्रेट (विस्तृत) मैदानी प्रदेश, महान् (विस्तृत) झीलें, मिसीसिपी तथा ओहियो और अप्लेशियन पर्वतों की घाटियाँ हैं। दक्षिण दिशा में मेक्सिको है। कनाडा का 40 प्रतिशत प्रदेश वनों से ढंका है। कई क्षेत्रों में तेल, गैस और खनिज संसाधन पाए जाते हैं। इनके आधार पर संयुक्त राज्य अमेरिका और कनाडा में कई बड़े उद्योग स्थापित हैं। आजकल कनाडा में गेहूँ, मक्का और फल बड़े पैमाने पर पैदा किए जाते हैं।

प्रश्न 9.
यूरोपीय व्यापारी उत्तरी अमेरिका में सर्वप्रथम कब और कहाँ पहुँचे? वहाँ के स्थानीय लोगों के प्रति उनके व्यवहार तथा दृष्टिकोण की संक्षिप्त जानकारी दीजिए।
उत्तर:
17वीं शताब्दी में यूरोपीय व्यापारी उत्तरी अमेरिका के उत्तरी तट पर पहुंचे। ये लोग मछली और रोएँदार खाल के व्यापार के लिए आए थे। इस काम में कुशल स्थानीय लोगों ने उनकी सहायता की। वे उनके मैत्रीपूर्ण व्यवहार से बहुत प्रसन्न हुए। स्थानीय उत्पादों के बदले में यूरोपीय लोग वहाँ के लोगों को कम्बल, लोहे के बर्तन, बंदुकें और शराब देते थे। इससे पहले वहाँ के लोग शराब से परिचित नहीं थे। शीघ्र ही वे इसकी आदत का शिकार हो गए।

यूरोपीय लोगों के लिए उनकी यह आदत अच्छी बात सिद्ध हुई। इसने उन्हें व्यापार के लिए अपनी शर्ते थोपने में सक्षम बनाया। यूरोपीय लोगों ने भी उन मूल निवासियों से तम्बाकू की आदत ग्रहण की। पश्चिमी यूरोप के लोग ‘सभ्य’ मनुष्य की पहचान साक्षरता, संगठित धर्म और शहरीपन के आधार पर करते थे। इस दृष्टि से उन्हें अमेरिका के मूल निवासी ‘असभ्य’ प्रतीत हुए।

प्रश्न 10.
उत्तरी अमेरिका के मूल निवासी यूरोपीय लोगों के व्यवहार को देखकर दुःखी क्यो होते थे?
उत्तर:
उत्तरी अमेरिका के मूल निवासी यूरोपीय लोगों के साथ जिन चीजों का आदान-प्रदान करते थे, वे उन्हें मैत्री में मिले उपहार मानते थे। दूसरी ओर अमीरी का सपना देखने वाले युरोपीय लोगों के लिए मछली और रोएँदार खाल मुनाफा कमाने के लिए बेची जाने वाली वस्तुएँ थीं। इन बेची जाने वाली वस्तुओं के मूल्य इनकी पूर्ति के आधार पर हर साल बदलते रहते थे। मूल निवासी इस बात को समझ नहीं सकते थे, क्योंकि उन्हें सुदूर यूरोप में स्थित ‘बाजार’ का जरा भी बोध नहीं था।

उनके लिए तो यह सब पहेली की तरह था कि यूरोपीय व्यापारी उनकी चीजों के बदले में कभी तो बहुत सा सामान दे देते थे और कभी बहुत कम। वे यूरोपीय लोगों के लालच को देखकर भी दुःखी होते थे। प्रचुर मात्रा में रोएँदार खाल प्राप्त करने के लिए उन्होंने सैकड़ों कदबिलावों को मार डाला था। मूल निवासी इससे काफी विचलित थे। उन्हें डर था कि जानवर उनसे इस विध्वंस का बदला लेंगे।

प्रश्न 11.
यूरोपीय व्यापारियों के बाद यूरोपीय लोग अमेरिका बसने के लिए क्यों आये? उन्होंने वहाँ के वनों के प्रति क्या नीति अपनाई?
उत्तर:
व्यापारी के रूप में आने वाले यूरोपीय लोगों के पीछे-पीछे अमेरिका में ‘बसने’ के लिए भी यूरोपीय आए। इनमें से अधिकतर लोग धार्मिक उत्पीड़न के शिकार थे। इन लोगों में कैथेलिक प्रभुत्व वाले देशों में रहने वाले प्रोटेस्टेन्ट अथवा प्रोटेस्टेन्टवाद को राजधर्म का दर्जा देने वाले देशों के कैथोलिक सम्मिलित थे। जब तक उनके बसने के लिए वहाँ खाली जमीनें थीं, कोई समस्या नहीं आई। परन्तु धीरे-धीरे वे महाद्वीप के आन्तरिक भागों में मूल निवासियों के गाँवों की ओर बढ़ने लगे। उन्होंने अपने लोहे के औजारों द्वारा जंगलों को साफ किया, ताकि खेती की जा सके।

उत्तरी अमेरिका के मूल निवासियों तथा यूरोपीय लोगों का वहाँ के वनों के प्रति अलग-अलग दृष्टिकोण था। मूल निवासियों को वन ऐसे मार्ग जुटाते थे, जो यूरोपीय :गों की पहुंच से बाहर थे। दूसरी ओर यूरोपीय लोगों की कल्पना में जंगलों के स्थान पर मक्कं के खेत उभरते थे। . अमेरिका के तीसरे राष्ट्रपति जैफर्सन का सपना एक ऐसे देश का था, जो छोटे-छोटे खेतों वाले । यूरोपीय लोगों से आबाद था। मूल निवासी उसके इस दृष्टिकोण को समझने में असमर्थ थे।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
संयुक्त राज्य अमेरिका में मूल निवासियों के अधिकारों एवं हितों के लिए क्या किया गया? अब उनकी क्या स्थिति है?
उत्तर:
1920 के दशाक तक संयुक्त राज्य अमेरिका और कनाडा के मूल निवासियों की भलाई के लिए कुछ नहीं किया गया था। उन्हें न तो स्वास्थ्य सम्बन्धी सुविधाएँ प्राप्त थीं और न ही शिक्षा सम्बन्धी।

1934 का ‘इंडियन रिआर्गनाइजेशन एक्ट’-अन्ततः गोरे अमेरिकियों के मन में उन मूल निवासियों के प्रति सहानुभूति जागी, जिन्हें अपनी संस्कृति का पालन करने से रोका गया था और जिन्हें नागरिकता के लाभों से भी वंचित रखा गया था। इस बात ने संयुक्त राज्य अमेरिका में एक युगान्तकारी कानून को जन्म दिया। यह कानून था-1934 का इंडियन रीऑर्गनाईजेशन एक्ट। इसके अनुसार रिजर्वेशन्स में मूल निवासियों को जमीन खरीदने और ऋण लेने का अधिकार दिया गया।

1950 तथा 1960 के दशकों में सरकारी नीति-1950 और 1960 के दशकों में संयुक्त राज्य और कनाडा की सरकारों ने मूल निवासियों के लिए किए गए प्रावधनों को समाप्त करने पर विचार किया। उन्हें आशा थी कि इससे वे ‘मुख्य धारा में शमिल’ होंगे अर्थात् वे यूरोपीय संस्कृति को अपना लेंगे । परन्तु मूल निवासी ऐसा नहीं चाहते थे। 1954 में अनेक मूल निवासियों ने अपने द्वारा तैयार किए गए ‘डिक्लेरेशन आफ इंडियन राइट्स’ में इस शर्त के साथ संयुक्त राज्य अमेरिका की नागरिकता स्वीकार की कि उनके रिजर्वेशन्स वापस नहीं लिए जाएंगे और उनकी परम्पराओं में हस्तक्षेप नहीं किया जाएगा। कुछ ऐसी ही चीजें कनाडा में भी हुई।

1969 में सरकारी नीति-1969 में सरकार ने घोषणा की कि वह “आदिवासी अधिकारों को मान्यता नहीं देगी।” मूल निवासियों ने इसका डटकर विरोध किया। उन्होंने जोरदार प्रदर्शन किए तथा धरने दिए। 1982 में एक संवैधानिक धारा के अनुसार मूल निवासियों के वर्तमान आदिवासी अधिकारों तथा समझौता-आधारित अधिकारों को स्वीकृति मिलने पर ही इस समस्या का समाधान हो सका । परन्तु इन अधिकारों की बारीकियों के बारे में अभी भी बहुत से निर्णय बाकी हैं। भले ही अब दोनों देश के मूल निवासियों कि संख्या 18वीं शताब्दी की तुलना में बहुत कम हो गई है तो भी उन्होंने अपने सांस्कृतिक अधिकारों की जबरदस्त दावेदारी की है।

प्रश्न 2.
ब्रिटेन ने ऑस्ट्रेलिया में किस प्रकार अपने कैदियों को स्थायी रूप से बसा दिया? यूरोपीय बस्ती के रूप में ऑस्ट्रेलिया के आर्थिक विकास पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
ऑस्ट्रेलिया के अधिकांश आम्भिक आबादकार इंगलैंड के कैदी थे जो वहाँ निर्वासित होकर आए थे। उनके कारावास की अवधि पूरी होने पर ब्रिटेन वापस न लौटने की शर्त पर उन्हें ऑस्ट्रेलिया में ही स्वतन्त्र जीवन जीने की अनुमति दे दी गई। अपने जीवनयापन के लिए उन्होंने खेती के लिए ली गई जमीन से मूल निवासियों को निकाल बाहर किया।

ऑस्ट्रेलिया का आर्थिक विकास-यूरोपीय बस्ती के रूप में ऑस्ट्रेलिया के आर्थिक विकास में अमेरिका जैसी विविधता नहीं थी। वहाँ एक लम्बे समय के बाद ही भेड़ों के विशाल फार्मों, खानों, मदिरा बनाने के लिए अंगूर के बागों और गेहूँ की खेती का विकास हो सका, जिसमें काफी श्रम लगा। ये ऑस्ट्रेलिया की सम्पन्नता का आधर बने। जब राज्यों को आपस में मिलाया गया और 1911 में ऑस्ट्रेलिया की एक नई राजधानी बनाने का निर्णय लिया गया, तब इस राजधानी का नाम ‘चूलव्हीटगोल्ड’ (Woolwheat gold) रखने का सुझाव दिया गया था। परन्तु ‘अन्त में उसका नाम कैनबरा रखा गया जो एक स्थानीय शब्द कैमबरा (kamberra) से बना है जिसका अर्थ है ‘सभा-स्थल’।

ऑस्ट्रेलिया के कुछ मूल निवासियों को खेतों में काम पर लगाया गया था। वे दासों जैसी कठोर परिस्थितियों में काम करते थे। बाद में चीनी अप्रवासियों ने सस्ता श्रम जुटाया; जैसे कि कैलिफोर्निया में हुआ था। परन्तु गैर-गोरों पर बढ़ती हुई निर्भरता से उत्पन्न घबराहट के कारण चीनी अप्रवासियों को प्रतिबन्धित कर दिया गया। 1974 तक लोगों के मन में, यह भय घर कर गया था कि दक्षिण एशिया और दक्षिण-पूर्व एशिया के ‘काले’ लोग बड़ी संख्या में ऑस्ट्रेलिया आ सकते हैं। अत: ‘गैर-गोरों’ को बाहर रखने के लिए सरकार ने एक विशेष नीति अपनाई।

प्रश्न 3.
‘दि ग्रेट ऑस्ट्रेलियन साइलेंस क्या थी? इसने ऑस्ट्रेलिया के मूल निवासियों की संस्कृति तथा परम्पराओं को पुनर्जीवित करने में कैसे सहायता पहुँचाई?
उत्तर:
1963 में एक मानवशास्त्री डब्ल्यु. ई. एच. स्टैनर के एक व्याख्यान से लोगों में बिजली की तरंग सी दौड़ गई। व्याख्यान का शीर्षक था-‘दि ग्रेट ऑस्ट्रेलियन साइलेंस’ (महान् ऑस्ट्रेलियाई चुप्पी)। यह चुप्पी इतिहासकारों की मूल निवासियों के बारे में चुप्पी थी। उन्होंने ऑस्ट्रेलिया के मूल निवासियों के इतिहास तथा संस्कृति के प्रति पूरी तरह चुप्पी साध ली थी। 1970 के दशक में उत्तरी अमेरिका की तरह यहाँ भी मूल निवासियों को एक नए रूप में समझने की चाहत उत्पन्न हो गई।

उन्हें विशिष्ट संस्कृतियों वाले समुदायों तथा प्रकृति एवं जलवायु को समझने में सहायक विशिष्ट पद्धतियों का रूप माना गया। अब उन्हें ऐसे समुदायों के रूप में समझा जाना था, जिनके पास अपनी कथाओं, कपड़ासाजी, चित्रकारी तथा हस्तशिल्प के कौशल का विशाल भंडार था। उनका यह भंडार सराहना; सम्मान तथा अभिलेखन के योग्य था। इन सबकी तह में एक जरूरी प्रश्न भी था। यह प्रश्न आगे चलकर हेनरी रेनॉल्डस ने अपनी प्रभावशाली पुस्तक, ‘व्हाइ वरंट वी टोल्ड?’ में सामने रखा । इस पुस्तक में ऑस्ट्रेलियाई इतिहास लेखन की उस प्रथा की भर्त्सना की गई थी, जिसमें वहाँ के इतिहास का आरम्भ कैप्टन कुक की खोज से माना जाता था।

ऑस्ट्रेलिया के मूल निवासियों की संस्कृतियों का अध्ययन – तब से मूल निवासियों की संस्कृतियों का अध्ययन करने के लिए विश्वविद्यालयों में विशेष विभागों की स्थापना की गई है। आर्ट गैलरीज में देसी कलाओं की गैलरीज शामिल की गई हैं। संग्रहालयों में देसी संस्कृति को समझाने वाले कल्पनाशील तरीके से बनाए गए कमरों को स्थान दिया गया है। अब मूल निवासियों ने स्वयं भी अपने जीवन-इतिहास को लिखना आरम्भ कर दिया है। यह सब एक अद्भुत प्रयास है। यह प्रयास समय रहतें शुरू हो गया है। यदि मूल निवासियों की संस्कृतियों की अनदेखी होती रहती तो इस समय तक उनका बहुत कुछ भुला दिया गया होता।

1974 से ऑस्ट्रेलिया की राजकीय नीति बहुसंस्कृतिवादी रही है। इस नीति के अनुसार ऑस्ट्रेलिया के मूल निवासियों की संस्कृतियों और यूरोप तथा एशिया के अप्रवासियों को संस्कृतियों को समान आदर दिया गया है। नयी दुनिया के देशों को यूरोपवासियों द्वारा दिए गए नाम।

‘अमेरिका’ – यह नाम पहली बार अमेरिगो वेसपुकी (1451-1512) का यात्रा-वृत्तांत छपने के बाद प्रयोग में आया।
‘कनाडा’ – कनाडा में निकला शब्द (1535 में खोजी जाक कार्टियर को मिली जानकारी के अनुसार, यूरों-इरोक्यूइम की भाषा में कनाटा का अर्थ था, ‘गाँव’).
‘ऑस्ट्रेलिया’ – महान् दक्षिणी महासागर में स्थित भूमि के लिए सोलहवीं सदी में प्रयुक्त नाम।
‘न्यूजीलैंड’ – हॉलैंड के तासमान द्वारा दिया गया नाम, जिसने सबसे पहले 1642 में इन टापुओं को देखा था। डच भाषा में ‘समुद्र’ को ‘जी’ कहते हैं।

प्रश्न 4.
उत्तरी अमेरिका में मानव के आगमन तथा उपनिवेशीकरण से पूर्व उनकी जीवन-शैली की मुख्य विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
मानव का आगमन – उत्तरी अमेरिका के सबसे पहले निवासी 30,000 साल पहले बेरिंग स्टेट्स के आर-पार फैले भूमि-सेतु के मार्ग से एशिया से आए थे। लगभग 10,000 साल – पहले वे आगे दक्षिण की ओर बढ़े। अमेरिका में मिलने वाली सबसे पुरानी मानव कृति-एक तीर की नोक है, जो 11,000 साल पुरानी है। लगभग 5000 साल पहले जलवायु में स्थिरता आयी और उत्तरी अमेरिका की जनसंख्या बढ़ने लगी।

जीवन – शैली-यहाँ के लोग नदी घाटी के साथ-साथ बने गाँवों में समूह बनाकर रहते थे। वे मछली और मांस खाते थे और सब्जियाँ तथा मक्का उगाते थे। वे प्रायः मांस की तलाश में लम्बी यात्राएँ करते थे। मुख्य रूप से उन्हें ‘बाइसन’ अर्थात् उन जंगली भैंसों की तलाश रहती थी, जो घास के मैदानों में घूमते रहते थे। परन्तु वे उतने ही जानवर मारते थे, जितने उन्हें भोजन के लिए आवश्यक होते थे।

ये लोग लोभी नहीं थे। वे बड़े पैमाने पर खेती नहीं करते थे। न ही वे अपनी आवश्यकता से अधिक उत्पादन करते थे। इसलिए वे केन्द्रीय तथा दक्षिणी अमेरिकी की तरह राज्य और साम्राज्य स्थापित न कर सके। उन्हें भूमि पर नियन्त्रण की कोई चिन्ता नहीं थी क्योंकि वे उससे मिलने वाले भोजन और आश्रय से ही सन्तुष्ट रहते थे। इसलिए भूमि को लेकर कबीलों के बीच बहुत कम ही झगड़े होते थे। औपचारिक सम्बन्ध स्थापित करना, मित्रता करना तथा उपहारों का आदान-प्रदान करना उनकी परम्परा थी।

उत्तरी अमेरिका में अनेक भाषाएँ बोली जाती थौं । लोगों का विश्वास था कि समय की गति चक्रीय है। प्रत्येक कबीले के पास अपनी उत्पत्ति और इतिहास के बारे में ब्योरे थे, जो पीढ़ी-दर-पीढ़ी चलते रहते थे। वे कुशल कारीगर थे और खूबसूरत कपड़े बुनते थे। उन्हें भूदृश्यों तथा जलवायु की भी पूरी जानकारी थी।

प्रश्न 5.
संयुक्त राज्य अमेरिका के मूल निवासियों की अपनी जमीनों से बेदखली की समस्या की आलोचनात्मक विवेचना कीजिए। चिरोकी कबीले का विशेष रूप से उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
संयुक्त राज्य अमेरिका में यूरोपियों ने अपनी बस्तियों के विस्तार के लिए खरीदी गई जमीन से वहाँ के मूल निवासियों को हटा दिया। उनके साथ अपनी जमीनें बेच देने की संधियाँ की गई और उन्हें जमीन की बहुत कम कीमतें दी गईं। ऐसे उदाहरण भी मिलते हैं कि अमेरिकियों ने धोखे से उनसे अधिक भूमि हथिया ली या फिर पैसा देने के मामले में हेराफेरी की।

चिरोकियों के प्रति अन्याय-उच्च अधिकारी भी मूल निवासियों की बेदखली को गलत नहीं मानते थे। जॉर्जिया इसका उदाहरण है। जॉर्जिया संयुक्त राज्य अमेरिका का एक राज्य है। यहाँ के अधिकारियों का तर्क था कि वहां के चिरोकी कबीले पर राज्य के कान तो लागू होते हैं, परन्तु वे नागरिक अधिकारों का उपभोग नहीं कर सकते।

1832 में संयुक्त राज्य के मुख्य न्यायाधीश, जॉन मार्शल ने एक महत्त्वपूर्ण निर्णय सुनाया। उन्होंने कहा कि चिरोकी कबीला “एक विशिष्ट समुदाय” है और उसके स्वत्वाधिकार वाले क्षेत्र में जॉर्जिया का कानून लागू नहीं होता । वे कुछ मामलों में संप्रभुसत्ता सम्पन्न हैं। परन्तु संयुक्त राज्य के राष्ट्रपति एंड्रिड जैकसन ने मुख्य न्यायाधीश की इस बात को मानने से इन्कार कर दिया और सेना के बल पर चिरोकियों को अपनी जमीन से मार भगाया। इनकी संख्या लगभग 15000 थी। उनमें से एक चौथाई अपने ‘आंसुओं की राह’ (Trail of Tears) के सफर में ही मर-खप गए। अर्थात् अपनी जमीन खो देने के दु:ख ने ही उनके प्राण ले लिए।

मूल निवासियों की जमीनें प्राप्त करने वाले लोग इस आधार पर अपने को उचित ठहराते थे कि मूल निवासी जमीन का अधिकतम प्रयोग करना नहीं जानते। इसलिए वह उनके पास रहनी ही नहीं चाहिए। वे यह कहकर भी मूल निवासियों की आलोचना करते थे कि वे आलसी हैं। इसलिए वे बाजार के लिए उत्पादन करने में अपने शिल्प-कौशल का प्रयोग नहीं करते हैं। अंग्रेजी सीखने और ‘ढंग के’ कपड़े पहनने में भी उनकी कोई रुचि नहीं है। कुल मिलाकर उनका कहना था कि वे ‘मर-खप जाने’ के ही अधिकारी हैं। खेती के लिए जमीन प्राप्त करने के लिए प्रेयरीज को साफ किया गया और जंगली भैंसों को मार डाला गया। एक फ्रांसीसी आगंतुक ने लिखा, “आदिम जानवरों के साथ-साथ आदिम मनुष्य भी लुप्त हो जाएगा।”

मूल निवासियों के रिजर्जेशंज – इसी बीच मूल निवासियों को पश्चिम की ओर खदेड़ दिया गया था। उन्हें ‘स्थायी रूप से अपनी भूमि तो दे दी गई थी, परन्तु उनकी जमीन में सीसा, सोना या तेल जैसे खनिज होने का पता चलने पर उन्हें वहाँ से भी खदेड़ दिया जाता था। प्रायः कई-कई समूहों को मूलतः किसी एक समूह के नियन्त्रण वाली जमीन में ही साझा करने के लिए बाध्य किया जाता था, जिससे उनके बीच झगड़े हो जाते थे।

मूल निवासी छोटे-छोटे प्रदेशों में ही सीमित कर दिए गए थे, जिन्हें ‘रिजर्वशंज’ (आरक्षण) कहा जाता था। ये प्रायः ऐसी जमीन होती थी, जिसके साथ उनका पहले से कोई नाता नहीं होता था। ऐसा नहीं है कि उन्होंने अपनी जमीनें बिना : किसी संघर्ष के ही छोड़ दी हों। संयुक्त राज्य की सेना को 1865 से 1890 के बीच मूल निवासियों के विद्रोहों की एक लम्बी श्रृंखला का दमन करना पड़ा था । कनाडा में 1869 से 1885 के बीच मेटिसों (यूरोपीय मूल निवासियों के वंशज) के सशस्त्र विद्रोह हुए थे। परन्तु इन लड़ाईयों के बाद उन्होंने हार मान ली थी।

प्रश्न 6.
‘गोल्ड रश’ से क्या अभिप्राय है? इसने संयुक्त राज्य अमेरिका में रेलवे के निर्माण, उद्योगों के विकास तथा खेती के विस्तार में किस प्रकार सहायता पहुँचाई?
अथवा
गोल्ड रश की अमेरिका के आर्थिक तथा राजनीतिक विस्तार में क्या भूमिका रही?
उत्तर:
यूरोपीय लोगों को इस बात की आशा थी कि उत्तरी अमेरिका में धरती के नीचे सोना है। 1840 में संयुक्त राज्य अमेरिका के कैलीफोर्निया में सोने के कुछ चिह्न मिले । इसने गोल्ड रश को जन्म दिया। गोल्ड रश उस आपाधापी का नाम है, जिसमें हजारों की संख्या में यूरोपीय लोग सोना पाने की आशा में अमेरिका जा पहुंचे।

रेलवे का निर्माण – गोल्ड रश को देखते हुए पूरे महाद्वीप में रेलवे-लाइनों का निर्माण किया गया। इसके लिए हजारों चीनी श्रमिकों की नियुक्ति की गई। संयुक्त राज्य अमेरिका में रेलवे का काम 1870 में और कनाडा की रेल्वे का काम 1885 में पूरा हुआ। स्कः सैंड से आने वाले एक अप्रवासी एंड्रिड कानेगी ने कहा था-“पुराने राष्ट्र घोंघे की चाल से सरकते हैं। नया गणराज्य किसी एक्सप्रेस की गति से दौड़ रहा है।

उद्योगों का विकास-गोल्ड रश ने केवल संयुक्त राज्य अमेरिका में ही नहीं अपितु पूरे उत्तरी अमेरिका में उद्योगों के विकास में सहायता पहुँचाई । उत्तरी अमेरिका में उद्योगों के विकसित होने के दो मुख्य उद्देश्य थे।

विकसित रेलवे का साज-सामान बनाना, ताकि दूर-दूर के स्थानों को तीव्र परिवहन द्वारा जोड़ा जा सके।
ऐसे यन्त्रों का उत्पादन करना, जिनसे बड़े पैमाने पर खेती की जा सके।

संयुक्त राज्य अमेरिका और कनाडा दोनों जगहों पर औद्योगिक नगरों का विकास हुआ और कारखानों की संख्या में तेजी से वृद्धि हुई।- 1860 में संयुक्त राज्य अमेरिका का अर्थतन्त्र अविकसित अवस्था में था। परन्तु 1890 तक यह संसार की अग्रणी औद्योगिक शक्ति बन चुका था।

खेती का विस्तार – बड़े पैमाने की खेती का भी विस्तार हुआ। बड़े-बड़े इलाके साफ किए गए और उन्हें खेतों में बदल दिया गया। 1890 तक जंगली भैंसों का लगभग पूरी तरह सफाया कर दिया गया। इस प्रकार शिकार वाली जीवनचर्या भी समाप्त हो गई। 1892 में संयुक्त राजनीतिक विस्तार राज्य अमेरिका का महाद्वीपीय विस्तार पूरा हो गया। तब तक प्रशान्त महासागर और अटलांटिक महासागर के बीच का क्षेत्र विभिन्न राज्यों में विभाजित किया जा चुका था।

अब कोई ‘फ्रॉटयर’ नहीं रहा था, जो कई दशकों तक यूरोपीय आबादकारों को पश्चिम की ओर खींचता रहा था। अब संयुक्त राज्य अमेरिका हवाई और फिलिपींस में अपने उपनिवेश बसा रहा था। इस प्रकार वह एक साम्राज्यवादी शक्ति बन चुका था।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
कनाडाई राज्यों के महासंघ का निर्माण कब हुआ?
(क) 1667
(ख) 1767
(ग) 1867
(घ) 1967
उत्तर:
(ग) 1867

प्रश्न 2.
नश्तत्वशास्त्र का विकास कहाँ हुआ था?
(क) इंग्लैंड में
(ख) जर्मनी में
(ग) फ्रांस में
(घ) पोलैंड में
उत्तर:
(ग) फ्रांस में

प्रश्न 3.
जर्मन दार्शनिक कार्ल मार्क्स ने अमेरिकी फ्रन्टियर किस रूप में देखा है?
(क) पूँजीवादी यूरोपिया
(ख) समाजवादी यूरोपिया
(ग) जमाखोर
(घ) दानी
उत्तर:
(क) पूँजीवादी यूरोपिया

प्रश्न 4.
सिडनी कहाँ स्थित है?
(क) उत्तरी अमेरिका में
(ख) दक्षिण अमेरिका में
(ग) पुर्तगाल में
(घ) आस्ट्रेलिया में
उत्तर:
(घ) आस्ट्रेलिया में

प्रश्न 5.
आस्ट्रेलिया के मूल निवासी कहाँ से आये थे?
(क) न्यूगिनी
(ख) तस्मानिया
(ग) सिडनी
(घ) न्यु साउथवेल्स
उत्तर:
(क) न्यूगिनी

प्रश्न 6.
आस्ट्रेलिया को किस यूरोपीय देश ने अपना उपनिवेश बनाया?
(क) फ्रांस
(ख) पुर्तगाल
(ग) इंगलैंड
(घ) स्पेन
उत्तर:
(ग) इंगलैंड

प्रश्न 7.
उत्तरी अमेरिका के मूल निवासियों ने अपना इतिहास लिखना कब आरम्भ किया?
(क) 1840
(ख) 1860
(ग) 1740
(घ) 1960
उत्तर:
(ग) 1740

प्रश्न 8.
निम्नलिखित में किसके लिए सेटलर शब्द का प्रयोग नहीं हुआ?
(क) डच
(ख) पुर्तगाली
(ग) ब्रिटिश
(घ) यूरोपीय
उत्तर:
(ख) पुर्तगाली

प्रश्न 9.
कनाडा का एक महत्त्वपूर्ण उद्योग क्या है?
(क) मत्स्य उद्योग
(ख) फर्न उद्योग
(ग) लौह उद्योग
(घ) टीन उद्योग
उत्तर:
(क) मत्स्य उद्योग

प्रश्न 10.
किसी स्थान का बाशिंदा कौन है?
(क) जहाँ उसे वोट देने का अधिकार हो
(ख) जहाँ से उसे जीविका मिले
(ग) जहाँ उसके माता पिता रहते हो
(घ) जहाँ वह पैदा हुआ हो
उत्तर:
(घ) जहाँ वह पैदा हुआ हो

प्रश्न 11.
चिरोकी उत्तरी अमेरिका एक्ट कब बना?
(क) हवाई जहाज
(ख) जीप
(ग) काक
(घ) बाल कटाई
उत्तर:
(ख) जीप

प्रश्न 12.
यूरोपीय उत्तरी अमेरिका से क्या खरीदना चाहते थे?
(क) गेहूँ
(ख) सुअर
(ग) मछली और रोएदार खाल
(घ) मक्खन
उत्तर:
(ग) मछली और रोएदार खाल

प्रश्न 13.
कनाडा इन्डियन्स एक्ट कब बना?
(क) 1691
(ख) 1791
(ग) 1876
(घ) 1991
उत्तर:
(ग) 1876

प्रश्न 14.
संयुक्त राज्य अमेरिका की कौन-सी सरहद (फ्रंटियर) खिसकती रहती थी?
(क) पूर्वी
(ख) पश्चिमी
(ग) उत्तरी
(घ) दक्षिणी
उत्तर:
(ख) पश्चिमी

प्रश्न 15.
प्रेयरी चरागाह कहाँ था?
(क) उत्तरी अमेरिका में
(ख) दक्षिणी अमेरिका में
(ग) आस्ट्रेलिया में
(घ) इंगलैंड में
उत्तर:
(क) उत्तरी अमेरिका में

प्रश्न 16.
उत्तरी अमेरिका के आबादकार (सेटलर) कहाँ से दास खरीदते थे?
(क) दक्षिणी अमेरिका से
(ख) अफ्रिका से
(ग) पुर्तगाल में
(घ) दक्षिणी एशिया से
उत्तर:
(ख) अफ्रिका से

Bihar Board Class 11 History Solutions Chapter 3 तीन महाद्वीपों में फैला हुआ साम्राज्य

Bihar Board Class 11 History Solutions Chapter 3 तीन महाद्वीपों में फैला हुआ साम्राज्य Textbook Questions and Answers, Additional Important Questions, Notes.

BSEB Bihar Board Class 11 History Solutions Chapter 3 तीन महाद्वीपों में फैला हुआ साम्राज्य

Bihar Board Class 11 History तीन महाद्वीपों में फैला हुआ साम्राज्य Textbook Questions and Answers

 

पाठ्य-पुस्तक के प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
यदि आप रोम साम्राज्य में रहे होते तो कहाँ रहना पसंद करते-नगरों में या ग्रामीण क्षेत्र में? कारण बताइये।
उत्तर:
यदि मैं रोम साम्राज्य में रह रहा होता तो मैं नगरों में रहना पसंद करता। इसके तीन कारण हैं –

  1. नगरों में अनाज की कोई कमी नहीं थी।
  2. अकाल के दिनों में भी ग्रामीण क्षेत्र की तुलना में नगरों में बेहतर सुविधाएँ उपलब्ध थीं।
  3. नगरों में लोगों को उच्च मनोरंजन के साधन प्राप्त थे।

प्रश्न 2.
इस अध्याय में उल्लिखित कुछ छोटे शहरों, बड़े नगरों, समुद्रों और प्रान्तों की सूची बनाइए और उन्हें नक्शों पर खोजने की कोशिश किजिए ? क्या आप अपचे द्वारा बनायी गई सूची में संकलित किन्हीं तीन विषयों के बार में कुछ कह सकते हैं?
उत्तर:
छात्र स्वयं करें।

प्रश्न 3.
कल्पना कीजिए कि आप रोम की एक गृहिणी हैं जो घर की जरूरत की वस्तुओं की खरीददारी की सूची बना रही हैं। अपनी सूची में आप कौन-सी वस्तुएँ शामिल करेंगी?
उत्तर:
गेहूँ, जौ, सेम, मसूर, दालें, जैतून का तेल, शराब आदि

प्रश्न 4.
आपको क्या लगता है कि रोमन सरकार ने चाँदी में मुद्रा को ढालना क्यों बंद किया होगा और वह सिक्कों के उत्पादन के लिए कौन-सी धातु का उपयोग करने लगे?
उत्तर:
चाँदी के सिक्के बनाने के लिए चाँदी स्पेन की गगनों से प्राप्त की जाती थी। परंतु ये खानें समाप्त हो चुकी थीं और सरकार के पास इसका भंडार खाली हो गया। इसलिए रोमन सरकार ने चाँदी के स्थान पर सोने के सिक्के चलाए।

प्रश्न 5.
अगर सम्राट् त्राजान भारत पर विजय प्राप्त करने में वास्तव में सफल रहे होते और रोमवासियों का इस देश पर अनेक सदियों तक कब्जा रहा होता, तो आप क्या सोचते हैं कि भारत वर्तमान समय के देश से किस प्रकार भिन्न होता?
उत्तर:
यदि भारत अनेक सदियों तक रोमवासियों के अधीन रहा होता, तो भारत वर्तमान समय के देश से निम्नलिखित दृष्टियों से भिन्न होता –

  1. भारत में लोकतंत्र के स्थान पर राजतंत्र होता।
  2. भारत में सोने के सिक्के प्रचलित होते।
  3. ग्रामीण क्षेत्र नगरों द्वारा शासित होता।
  4. ग्रामीण क्षेत्र राज्य के राजस्व का सबसे बड़ा स्रोत होता।
  5. ईसाई धर्म देश का राजधर्म होत।
  6. मनोरंजन के मुख्य साधन सर्कस, थियेटर के तमाशे तथा जानवरों एवं तलवारबाजों की लड़ाइयाँ होती।
  7. देश में दास प्रथा प्रचलित होती।
  8. भारत का व्यापार देश के पक्ष में होता।

प्रश्न 6.
अध्याय को ध्यानपूर्वक पढ़कर उसमें से रोमन समाज और अर्थव्यवस्था को आपकी दृष्टि में आधुनिक दर्शाने वाले आधारभूत अभिलक्षण चुनिए।
उत्तर:
समाज –

  • देश में स्वर्ण मुद्राएँ प्रचलित थीं।
  • द्वितीय श्रेणी के परिवारों की वार्षिक आय 1000-1500 पाउंड सोना थी।
  • सम्राट् अपनी मनमानी नहीं कर सकते थे।
  • नागरिक अधिकारों की रक्षा के लिए कानून का सक्रिय रूप से प्रयोग किया जाता था।
  • समाज में एकल परिवार की व्यापक रूप से चलन थी।

अर्थव्यवस्था –

  • साम्राज्य में बंदरगाहों, खानों, खादानों, ईंट-भट्ठों आदि की संख्या बहुत अधिक थी, परिणामस्वरूप देश का आर्थिक ढाँचा काफी मजबूत था।
  • रोमन साम्राज्य का व्यापार काफी विकसित था।
  • गैलिली में गहन खेती की जाती थी।
  • उत्पादकता का स्तर बहुत अधिक ऊँचा था।
  • जल-शक्ति से मिलें चलाने की प्रौद्योगिकी उन्नत थी।
  • साम्राज्य में सुगठित वाणिज्यिक तथा बैंकिंग व्यवस्था थी और धन का व्यापक रूप से प्रयोग होता था।

Bihar Board Class 11 History तीन महाद्वीपों में फैला हुआ साम्राज्य Additional Important Questions and Answers

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
रोम के सम्राट ऑगस्ट्स का शासनकाल किस बात के लिए जाना जाता था?
उत्तर:
रोम के सम्राट् ऑगस्ट्स का शासनकाल शांति के लिए जाना जाता था। इसका कारण यह था कि राज्य में शांति लंबे अतिरिक संघर्ष तथा सैनिक विजयों के बाद आई थी।

प्रश्न 2.
रोम के निकटवर्ती पूर्व से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
निकटवर्ती पूर्व से अभिप्राय भूमध्य के बिल्कुल पूर्व प्रदेश से है। इनमें सीरिया, फिलिस्तीन, अरब आदि प्रदेश शामिल थे।

प्रश्न 3.
दीनारियस क्या था? हेरॉड के राज्य से रोम को कितने दीनारियस की आय होती थी?
उत्तर:
दीनारियस रोम का एक चाँदी का सिक्का था जिसमें लगभग 4.5 ग्राम शुद्ध चाँदी होती थी। हेरॉड के राज्य से रोम को प्रति वर्ष 54 लाख दीनारियस की आय होती थी।

प्रश्न 4.
रोम की साम्राज्यिक प्रणाली में बड़े-बड़े शहरों का क्या महत्व था? रोम के तीन सबसे बड़े शहरों के नाम भी बताएँ।
उत्तर:
बड़े-बड़े शहर रोम की सामाजिक प्रणाली के मूल आधार थे। इन्हीं शहरों के माध्यम से सरकार ग्रामीण क्षेत्रों पर कर लगाती थी और वसूल करती थी। रोम के तीन बड़े शहर कार्थेन, सिकरिया तथा एटि36 थे।

प्रश्न 5.
सम्राट गैलीनस ने सत्ता को सैनेटरों के हाथ में जाने से रोकने के लिए क्या पग उठाए?
उत्तर:

  • गैलीनस ने नवोदित प्रांतीय शासक वर्ग को सुदृढ़ बनाया।
  • उसने सैनेटरों को सेना की कमान से हटा दिया और उनके द्वारा सेना में सेवा करने पर रोक लगा दी।

प्रश्न 6.
तीसरी शताब्दी के रोम में प्रांतीय सैनेटरों के बहुसंख्यक होने से क्या दो निष्कर्ष – निकाले जा सकते हैं?
उत्तर:

  • साम्राज्य में आर्थिक तथा राजनीतिक दृष्टि से इटली का पतन हो रहा था।
  • भूमध्य सागर के अधिक समृद्ध तथा शहरीकृत भागों में नये संभ्रांत वर्गों का उदय हो रहा था।

अर्थव्यवस्था –

  • साम्राज्य में बंदरगाहों, खानों, खादानों, ईंट-भट्ठों आदि की संख्या बहुत अधिक थी, परिणामस्वरूप देश का आर्थिक ढाँचा काफी मजबूत था।
  • रोमन साम्राज्य का व्यापार काफी विकसित था।
  • गैलिली में गहन खेती की जाती थी।
  • उत्पादकता का स्तर बहुत अधिक ऊँचा था।
  • जल-शक्ति से मिलें चलाने की प्रौद्योगिकी उन्नत थी।
  • साम्राज्य में सुगठित वाणिज्यिक तथा बैंकिंग व्यवस्था थी और धन का व्यापक रूप से प्रयोग होता था।

प्रश्न 7.
रोम साम्राज्य में कौन-कौन से प्रदेश शामिल थे?
उत्तर:
यूरोप का अधिकांश भाग, पश्चिमी एशिया तथा उत्तरी अफ्रीका का एक बहुत बड़ा भाग।

प्रश्न 8.
रोम के इतिहास की स्रोत-सामग्री को कौन-कौन से तीन वर्गों में विभाजित किया जा सकता है?
उत्तर:

  • पाठ्य सामग्री।
  • प्रलेख अथवा दस्तावेज
  • भौतिक अवशेष

प्रश्न 9.
रोम तथा ईरान के साम्राज्यों को क्या चीज अलग करती थी?
उत्तर:
भूमि की एक संकरी पट्टी जिसके किनारे फरात नदी बहती थी। दोनों साम्राज्यों को अलग करती थी।

प्रश्न 10.
रोम तथा ईरान के साम्राज्यों के बीच कैसे संबंध थे?
उत्तर:
रोम तथा ईरान के लोग आपस में प्रतिद्वंदी थे। अपने इतिहास के अधिकांश काल में वे आपस में लड़ते रहे।

प्रश्न 11.
किस सागर को रोम साम्राज्य का हृदय माना जाता था? यह कहाँ से कहाँ तक फैला हुआ था?
उत्तर:
भूमध्यसागर को रोम साम्राज्य का हृदय माना जाता था। यह पश्चिम से पूरब तक स्पेन से लेकर सीरिया तक फैला हुआ था।

प्रश्न 12.
रोम साम्राज्य की उत्तरी दक्षिणी सीमाएँ क्या-क्या चीजें बनाती थीं?
उत्तर:
रोम साम्राज्य को उत्तरी सीमा राइन तथा डैन्यूब नदियाँ बनाती थीं। इसकी दक्षिणी सीमा सहारा नामक रेगिस्तान से बनती थी।

प्रश्न 13.
रोम साम्राज्य के प्रशासन के लिए किन दो भाषाओं का प्रयोग किया जाता था?
उत्तर:
लातिनी तथा यूनानी।

प्रश्न 14.
रोम साम्राज्य के संबंध में प्रिंसिपेट क्या था?
उत्तर:
प्रिंसिपेट वह राज्य था जो रोम के. प्रथम सम्राट् ऑगस्ट्स ने 27 ई. पू. में स्थापित किया था।

प्रश्न 15.
रोम के सम्राट ऑगस्ट्स को ‘प्रमुख नागरिक’ क्यों माना जाता था?
उत्तर:
रोम के सम्राट् ऑगस्ट्स को यह दर्शाने के लिए कि वह निरंकुश सम्राट् नहीं है, प्रमुख नागरिक माना जाता था। ऐसा सैनेट को सम्मान प्रदान करने के लिए किया जाता था।

प्रश्न 16.
किस साम्राज्य की सधेना बलात् भर्ती वाली थी? इससे क्या अभिप्राय था?
उत्तर:
फारस के राज्य की सेनाएँ बलात् भर्ती वाली थी। इसका अर्थ यह है कि राज्य के कुछ वयस्क पुरुषों को अनिवार्य रूप से सैनिक सेवा करनी पड़ती थी।

प्रश्न 17.
रोम साम्राज्य की सेना की कोई दो विशेषताएं बताएँ।
उत्तर:

  • रोम की सेना एक व्यावसायिक सेना थी, जिसमें प्रत्येक सैनिक को वेतन दिया जाता था।
  • प्रत्येक सैनिक को कम-से-कम 25 वर्ष तक सेवा करनी पड़ती थी।

प्रश्न 18.
(i) रोम के राजनीतिक इतिहास के प्रमुख खिलाड़ी कौन-कौन थे?
उत्तर:
राजा, अभिजात वर्ग और सेना।

(ii) रोम में सैनेट की सदस्यता का आधार क्या था?
उत्तर:
रोम में सैनेट की सदस्यता का आधार धन तथा पद प्रतिष्ठा थी।

प्रश्न 19.
गृह-युद्ध क्या होता है?
उत्तर:
गृह-युद्ध देश के भीतर दो गुटों में सशस्त्र संघर्ष होता है, जिसका उद्देश्य सत्ता हथियाना होता है।

प्रश्न 20.
सॉलिडस (Solidus) क्या था?
उत्तर:
सॉलिडस सम्राट् कॉस्टैनटाइन द्वारा चलाया गया कि सिक्का था। यह 4.5 ग्राम शुद्ध सोने का बना हुआ था।

प्रश्न 21.
रोमनवासियों की धार्मिक संस्कृति बहुदेववादी थी? कोई दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर:

  • रोमनवासी अनेक पंथों तथा उपासना पद्धतियों में विश्वास रखते थे।
  • उन्होंने हजारों मंदिर, मठ तथा देवालय बना रखे थे।

प्रश्न 22.
‘ईसाईकरण’ से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
जिस प्रक्रिया द्वारा भिन्न-भिन्न जनसमूहों के बीच ईसाई धर्म को फैलाया गया, उसे ईसाईकरण कहते हैं। इस प्रक्रिया से ईसाई धर्म रोम का प्रमुख धर्म बन गया।

प्रश्न 23.
रोमोत्तर राज्य (Post Roman) क्या थे?
उत्तर:
540 के दशक में जर्मन मूल के समूहों ने पश्चिमी रोमन साम्राज्य के बड़े-बड़े प्रांतों पर अपना अधिकार कर लिया। इन प्रांतों में उन्होंने अपने राज्य स्थापित कर लिये। इसे रोमोत्तर राज्य कहा जाता है।

प्रश्न 24.
तीन सबसे महत्वपूर्ण रोमोत्तर राज्य कौन-कौन से थे?
उत्तर:

  • स्पेन में विसिगोथों का राज्य
  • गॉल में फ्रैंकों का राज्य
  • इटली में लोवाडौँ का राज्य

प्रश्न 25.
जस्टीनियन द्वारा इटली पर पुनः अधिकार का क्या परिणाम निकला?
उत्तर:
जस्टीनियन द्वारा इटली पर पुनः अधिकार से देश छिन्न-भिन्न हो गया। इस प्रकार लाहों के आक्रमण के लिए मार्ग तैयः हो गया।

प्रश्न 26.
किस घटना को ‘प्राचीन विश्व इतिहास की सबसे बड़ी राजनीतिक क्रांति’ कहा जाता है?
उत्तर:
अरब प्रदेश से शुरू होने वाले इस्लाम के विस्तार को।

प्रश्न 27.
सेंट ऑगस्टीन (354-430 ई.) कौन थे?
उत्तर:
सेंट ऑगस्टीन 396 ई. से अफ्रीका के हिप्पो नामक नगर के विषय थे। उन्हें चर्च – के बौद्धिक इतिहास में सर्वोच्च स्थान प्राप्त था।

प्रश्न 28.
दास-प्रजनन से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
रोम में दास दंपतियों को अधिक-से-अधिक बच्चे पैदा करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता था। इसे दास प्रजनन कहा जाता है। इनके बच्चे भी बड़े होकर दास ही बनते थे।

प्रश्न 29.
वेतनभोगी श्रमिकों की तुलना में दास-श्रम महंगा क्यों पड़ता था?
उत्तर:
वेतनभोगी श्रमिकों को काम न होने पर हटाया जा सकता था। परंतु दास श्रमिकों को वर्ष भर रखना पड़ता था और उनका खर्च उठाना पड़ता था। इसीलिए दास श्रम महंगा पड़ता था।’

प्रश्न 30.
फ्रैंकिसेस अथवा सुगंधित राल (Resin) किस काम आती थी और कैसे प्राप्त की जाती थी?
उत्तर:
फ्रेंकिंसेस अधवा सुगंधित राल से धूप-अगरबती तथा इत्र बनाया जाता था। इसे बोसवेलिया के पेड़ से प्राप्त किया जाता था। इस पेड़ से रस लेकर उसे सुखा लिया जाता था और राल तैयार हो जाती थी।

प्रश्न 31.
सबसे उत्कृष्ट किस्म की राल कहाँ से आती थी?
उत्तर:
अरब प्रायद्वीप से।

प्रश्न 32.
ऐसे दो तरीकों का वर्णन कीजिए जिनकी सहायता से रोम के लोग अपने श्रमिकों पर नियंत्रण रखते थे?
उत्तर:
श्रमिक मुख्यतः दास होते थे। उन पर नियंत्रण रखने के लिए –

  • उन्हें जंजीरों में डाल कर रखा जाता था।
  • उन्हें दागा जाता था ताकि भागने अथवा छिपने पर उन्हें पहचाना जा सके।

प्रश्न 33.
रोमन सैनेटरों तथा नाइट वर्ग में एक समानता तथा एक असमानता बताइए।
उत्तर:
रोम सैनेटरों की तरह अधिकतर नाइट जमींदार होते थे। सैनेटरों के विपरीत कई नाइट जहाजों के स्वामी, व्यापारी तथा साहूकार भी होते थे।

प्रश्न 34.
रोमन साम्राज्य में ‘परवर्ती पुराकाल’ में होने वाले कोई दो धार्मिक परिवर्तन लिखिए।
उत्तर:

  • चौथी शताब्दी में सम्राट कॉस्टैनटाइन ने ईसाई धर्म को राजधर्म बना लिया।
  • सातवीं शताब्दी में इस्लाम धर्म का उदय हुआ।

प्रश्न 35.
रोमन साम्राज्य में जल-शक्ति का बड़े पैमाने पर प्रयोग किस क्षेत्र में और किन कामों के लिए किया जाता था?
उत्तर:
जल शक्ति से सोने और चांदी की खानों की खुदाई की जाती हैं और मिलें चलाई जाती थीं। इसका भूमध्य सागर क्षेत्र में बड़े पैमाने पर प्रयोग होता था।

प्रश्न 36.
सम्राट डायोक्लीशियन ने रोमन साम्राज्य के विस्तार को कम क्यों किया?
उत्तर:
सम्राट् डायोक्लीशियन ने अनुभव किया कि साम्राज्य के अनेक प्रदेशों का सामरिक अथवा आर्थिक दृष्टि से कोई महत्व नहीं है। इसलिए उसने इन प्रदेशों को छोड़ दिया।

प्रश्न 37.
सम्राट् डायोक्लीशियन द्वारा किए गए कोई चार प्रशासनिक सुधार लिखिए।
उत्तर:

  • डायोक्लीशियन ने साम्राज्य की सीमाओं पर किले बनवाए।
  • उसने प्रांतों का पुनर्गठन किया।
  • उसने सैनिक तथा असैनिक कार्यों को अलग-अलग कर दिया।
  • उसने सेनापतियों को अधिक स्वायत्तता प्रदान की।

प्रश्न 38.
पूर्ववर्ती रोमन साम्राज्य के किन्हीं चार सामाजिक वर्गों के नाम बताएँ।
उत्तर:

  • सैनेटर
  • अश्वारोही अथवा नाइट वर्ग
  • जनता का सम्मानीय वर्ग
  • दास

प्रश्न 39.
इतिहासकार टैसिटस के अनुसार रोमन समाज के कमीनकारू (प्लेब्स सोर्डिंडा) वर्ग में कौन लोग शामिल थे?
उत्तर:
इस वर्ग में फूहड़ तथा निम्नतर लोग शामिल थे जो सर्कस तथा थियेटर तमाशे देखने के आदी थे।

प्रश्न 40.
रोम साम्राज्य के संदर्भ में ‘नगर’ से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
‘नगर’ एक ऐसा शहरी केंद्र था जिसमे ‘अपने मेजिस्ट्रेट, नगर परिषद् तथा एक निश्चित राज्य क्षेत्र होता था। इसके अधिकार क्षेत्र में कई गाँव आते थे।

प्रश्न 41.
ईरान में सार्वजनिक-स्नान का विरोध क्यों हुआ?
उत्तर:
ईरान के पुरोहित वर्ग का मानना था कि सार्वजनिक स्नान से जल अपवित्र होता है। इसलिए उन्होंने इसका विरोध किया।

प्रश्न 42.
रोम साम्राज्य में शहरी लोगों को उच्च-स्तर के मनोरंजन उपलब्ध थे। एक उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
रोम के कैलेंडर से पता चलता है कि एक वर्ष में कम-से-कम 176 दिन थे जब वहाँ कोई न कोई मनोरंजन कार्यक्रम अवश्य होता था।

प्रश्न 43.
तीसरी शताब्दी में ईरान के किस वंश के शासकों तथा जर्मन मूल की किन जनजातियों ने रोम साम्राज्य आक्रमण किया?
उत्तर:
तीसरी शताब्दी में ईरान के सेसानी वंश के शासकों तथा जर्मन मूल की एलमन्नाइ और फ्रैंक जनजातियों ने रोम।

प्रश्न 44.
रोमन साम्राज्य की स्त्रियाँ कहाँ तक आत्मनिर्भर थीं?
उत्तर:

  1. रोम साम्राज्य की स्त्रियों को संपत्ति के स्वामित्व तथा संचालन में व्यापक कानूनी अधिकार प्राप्त थे।
  2. विवाहित महिला ही अपने पिता की मृत्यु के बाद उसकी संपत्ति की स्वतंत्र मालिक बन जाती थीं।
  3. तलाक लेना-देना सरल था।

प्रश्न 45.
‘ऍम्फोरा’ क्या थे? ये किस क्षेत्र में बनाए जाते थे?
उत्तर:
एम्फोरा एक प्रकार के मटके एवं कंटेनर होते थे। इनमें शराब, जैतून के तेल तथा अन्य तरल पदार्थों की धुलाई होती थी। ये भूमध्य सागरीय क्षेत्र में बनाए जाते थे।

प्रश्न 46.
रोमन साम्राज्य के चार घनी आबादी वाले प्रदेशों के नाम बताएँ। दो इटली के तथा दो मिस्र के लें।
उत्तर:

  • इटली में कैंपेनिया तथा सिसिली।
  • मिस्र में फैटयूम तथा गैलिली।

प्रश्न 47.
रोम में सबसे बढ़िया अंगूरी शराब तथा गेहूँ कहाँ-कहाँ से आता था?
उत्तर:
सबसे बढ़िया अंगूरी शराब कैंपेनिया (इटली) से तथा गेहूँ सिसिली (इटली) और बाइजैकियम (ट्यूनीशिया) से आता था।

प्रश्न 48.
ऋतु-प्रवास का क्या अर्थ है?
उत्तर:
चरावाहे ऋतुओं के अनुसार चरागाहों की खोज में अपने पशुओं का तथा अपना स्थान बदलते रहते हैं। इसे ऋतु-प्रवास कहते हैं।

प्रश्न 49.
मेरे तीन लेखकों के नाम बताओ जिनकी रचनाओं का प्रयोग यह बताने के लिए किया गया है कि रोम के लोग अपने कामगारों के साथ कैसा बर्ताव करते थे।
उत्तर:
कोलुमेल्ला, वरिष्ठ प्लिनी तथा ऑगस्टीन।

प्रश्न 50.
रोमन साम्राज्य में साक्षरता की क्या स्थिति थी?
उत्तर:
रोमन साम्राज्य के भिन्न भागों में साक्षरता दर भिन्न-भिन्न थी। सैनिकों, सैनिक अधिकारियों तथा संपदा प्रबंधकों में साक्षरता की दर अपेक्षाकृत अधिक थी।

लघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
रोम साम्राज्य के राजनीतिक इतिहास के तीन मुख्य खिलाड़ी कौन-कौन थे? प्रत्येक के बारे में दो पंक्तियाँ लिखिए।
उत्तर:
रोम के राजनीतिक इतिहास के तीन मुख्य खिलाड़ी थे-सम्राट्, अभिजात वर्ग तथा सेना।
1. सम्राट – सम्राट् साम्राज्य का एकछत्र शासक था। परंतु उसे प्रमुख नागरिक कहा जाता था। ऐसा अभिजात वर्ग अथवा सैनेट के प्रति सम्मान व्यक्त करने के लिए किया गया था। इसका उद्देश्य यह दर्शाना भी था कि सम्राट् निरंकुश शासक नहीं है।

2. अभिजात वर्ग – अभिजात वर्ग से अभिप्राय सैनेट से है। इसमें कुलीन तथा धनी परिवारों के सदस्य शामिल थे। गणतंत्र-काल में सत्ता पर इसी संस्था का नियंत्रण था। सम्राटों की परख उसके सैनेट के प्रति व्यवहार से की जाती थी। सैनेट के प्रति शत्रुतापूर्ण व्यवहार करने वाले सम्राट् को बुरा सम्राट् माना जाता था।

3. सेना – सम्राट् तथा सैनेट के पश्चात् सेना का स्थान था। यह एक व्यावसायिक सेना थी। इसमें प्रत्येक सैनिक को वेतन दिया जाता था। सेना में सम्राट् का भाग्य निर्धारित करने की शक्ति थी।

प्रश्न 2.
प्रांतों के बीच सत्ता का आकस्मिक अंतरण रोम के राजनीतिक इतिहास का एक अत्यंत रोचक पहलू रहा है। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
दूसरी और तीसरी शताब्दियों के दौरान अधिकतर प्रशासक तथा सैनिक अधिकारी प्रांतीय वर्गों में से होते थे। उनका एक नया संभ्रांत वर्ग बन गया था। ग्रह वर्ग सैनेट के सदस्यों की तुलना में कहीं अधिक शक्तिशाली था क्योंकि इसे सम्राटों का समथन प्राप्त था। ज्यों-ज्यों यह नया समूह उभर कर सामने आया, सम्राट् गैलीनस (253-268) ने सैनेटरों को सैनिक, कमान से हटा कर इस नए वर्ग को सुदृढ़ बनाया। ऐसा कहा जाता है कि गैलीनस ने सैनेटरों को सेना में सेवा करने अथवा उस तक पहुँच रखने पर रोक लगा दी थी ताकि साम्राज्य का नियंत्रण उनके हाथों में चला जाए।

संक्षेप में, पहली शतादी के अंतिम चरण से तीसरी शताब्दी के प्रारंभिक चरण तथा सेना तक प्रशासन में अधिक से अधिक लोग प्रांतों से लिए जाने लगे क्योंकि उन क्षेत्रों के लोगों को भी नागरिकता मिल चुकी थी जो पहले इटली तक ही सीमित थे। परंतु सैनेट पर लगभग तीसरी शताब्दी तक इतालवी मूल के लोगों का ही प्रभुत्व बना रहा। इसके बाद प्रांतों से लिए गए सैनेटर बहुसंख्यक हो गए।

प्रश्न 3.
रोमन साम्राज्य में व्यापक सांस्कृतिक विविधता पाई जाती थी। कुछ उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
यह बात बिल्कुल सत्य है कि रोमन साम्राज्य में व्यापक सांस्कृतिक विविधता पाई जाती थी।

  • देश में धार्मिक संप्रदायों तथा स्थानीय देवी-देवाताओं में भरपूर विविधता थी।
  • बोलचाल की अनेक भाषाएँ प्रचलित थीं।
  • वेशभूषा की विविध शैलियाँ अपनाई जाती थीं।
  • लोग तरह-तरह के भोजन खाते थे।
  • सामाजिक संगठनों के रूप भिन्न-भिन्न थे।
  • उनकी बस्तियों के भी अनेक रूप थे।

प्रश्न 4.
परवर्ती काल में रोमन साम्राज्य की नौकरशाही के उच्च तथा मध्य वर्गों की आर्थिक दशा कैसी थी और क्यों?
उत्तर:
परवर्ती काल में रोम साम्राज्य की नौकरशाही के उच्च तथा मध्य वर्ग अपेक्षाकृत बहुत धनी थे। इसका मुख्य कारण यह था कि उन्हें अपना वेतन सोने के रूप में मिलता था। वे अपनी आय का बहुत बड़ा भाग जमीन आदि खरीदने में लगाते थे। इसके अतिरिक्त साम्राज्य में भ्रष्टाचार भी बहुत अधिक फैला हुआ था।

विशेष रूप से न्याय प्रणाली और सैन्य आपूर्ति के प्रशासन में। उच्च अधिकारी और गवर्नर लूट-खसोट और रिश्वत से खूब धन जुटाते थे। सरकार ने भ्रष्टाचार को रोकने के लिए बारंबार हस्तक्षेप किया। इस संबंध में सरकार ने अनेक कानून बनाए, परंतु भ्रष्टाचार न रुक सका।

प्रश्न 5.
रोम के सम्राटों की तानाशाही पर किस प्रकार अंकुश लगा?
उत्तर:
रोमन राज्य तानशाही पर आधारित था। सम्राट तथा प्रशासन असहमति या आलोचना को सहन नहीं करता था। प्रायः सरकार विरोध का उत्तर हिंसा एवं दमन से देती। परंतु चौथी शताब्दी तक रोमन कानून की एक प्रबल परंपरा का उद्भव हो चुका था। इससे सर्वाधिक तानाशाह सम्राटों पर भी अंकुश लग गया था।

अब सम्राट अपनी मनमानी नहीं कर सकते थे। नागरिक अधिकारों की रक्षा के लिए कानून का सक्रिय रूप से प्रयोग किया जाता था। प्रभावशाली कानूनों के कारण चौथी शताब्दी के अंतिम दशकों में शक्तिशाली विशपों के लिए यह संभव हो गया कि यदि सम्राट् जन साधारण क प्रति कठोर या दमनकारी नीति अपनाए तो वे भी पूरी शक्ति से उनका सामना कर सकें।

प्रश्न 6.
रोम के संदर्भ में ‘नगर’ क्या था? वहाँ के नागरिक अथवा शहरी जीवन की कुछ विशेषताएँ भी बताएँ।
उत्तर:
रोम के संदर्भ में ‘नगर’ एक ऐसा शहरी केंद्र था, जिसके अपने मजिस्ट्रेट, नगर परिषद् और एक निश्चित राज्य-क्षेत्र होता था। उसके अधिकार क्षेत्र में गाँव आते थे। परंतु किसी भी नगर के अधिकार क्षेत्र में कोई दूसरा नगर नहीं हो सकता था। किसी नगर या गाँव दर्जा शाह की इच्छा पर निर्भर करता था। सम्राट् अपनी इच्छा से किसी गाँव का दर्जा बढ़ाकर उसे नगर का दर्जा दे सकता था। इसी प्रकार वह किसी नगर का दर्जा घटाकर उसे किसी गाँव का दर्जा भी दे सकता था।

शहरी जीवन की विशेषताएँ –

  • शहरों में खाने की कमी नहीं होती थीं।
  • अकाल के दिनों में भी नगर में ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में बेहतर सुविधाएँ प्राप्त होने की संभावना रहती थी।
  • शहरी लोगों को उच्च-स्तर के मनोरंजन उपलब्ध थे। उदाहरण के लिए कैलेंडर से हमें पता चलता है कि एक वर्ष में कम-से-कम 176
  • दिन वहाँ कोई-न-कोई मनोरंजक कार्यक्रम अथवा प्रदर्शन अवश्य होते थे।

प्रश्न 7.
उदाहरण देकर स्पष्ट कीजिए कि तीसरी शताब्दी में रोम साम्राज्य को काफी तनाव का सामना करना पड़ा।
उत्तर:
तीसरी शताब्दी में रोम साम्राज्य को काफी तनाव का सामना करना पड़ा। यह बात निम्नलिखित उदाहरणों से स्पष्ट हो जाएगी –
1. 225 ई. में ईरान में एक अत्यधिक आक्रामक वंश उभर कर सामने आया। इस वंश के लोग स्वयं को ‘ससानी’ कहते थे। केवल 15 वर्षों के भीतर ही वह तेजी से फरात की दिशा में फैल गया। एक प्रसिद्ध शिलालेख से पता चलता है कि इस वंश के शासक शापुर प्रथम ने 60,000 रोमन सेना का सफाया कर दिया था। उसने रोम साम्राज्य की पूर्वी राजधानी एटिऑक पर भी अधिकार कर लिया।

2. इसी बीच जर्मन मूल की कई जनजातियों ने राइन तथा डैन्यूब नदी की सीमाओं की ओर बढ़ना आरंभ कर दिया। 233 से 280 ई. के दौरान काला सागर से लेकर आल्पस और दक्षिणी जर्मनी तक फैले प्रांतों की पूरी सीमा पर बार-बार आक्रमण हुए। अतः रोमवासियों को डैन्यूब से आगे का क्षेत्र छोड़ने के लिए विवश होना पड़ा।

प्रश्न 8.
यूनान और रोमवासियों की पारंपरिक धार्मिक संस्कृति बहुदेववादी थी। उदाहरण दीजिए।
उत्तर:

  • ये लोग भिन्न – भिन्न पंथों तथा उपासना पद्धतियों में विश्वास रखते थे।
  • जूपिटर, जूनो, मिनवां और मॉर्स जैसे रोमन इतालवी देवों की पूजा करते थे। इनके अतिरिक्त उनमें यूनानी तथा पूर्वी देवी-देवताओं की पूजा भी प्रचलित थी।
  • उन्होंने साम्राज्य भर में हजारों मंदिर, मठ और देवालय बनाए हुए थे। ये बहुदेवोवादी स्वयं को किसी एक नाम से नहीं पुकारते थे।
  • रोमन साम्राज्य का एक अन्य बड़ा धर्म बददी धर्म था।
  • परवर्ती पुराकाल में इस धर्म में भी अनेक विविधताएँ पाई जाती थीं।
  • इन उदाहरणों से स्पष्ट है कि यूनान और रोमवासियों की पारंपिकर धार्मिक संस्कृति बहुदेववादी थी।

प्रश्न 9.
रोम साम्राज्य के पतन की प्रक्रिया का संक्षिप्त विवरण दीजिए।
उत्तर:
रोम साम्राज्य के पतन की प्रक्रिया पश्चिम से आरंभ हुई। साम्राज्य का पश्चिमी भाग बाहरी आक्रमणों के कारण विखंडित हो गया। वे आक्रमण उत्तर की ओर से जर्मन मूल के समूहों ने किए थे। उन्होंने साम्राज्य के सभी बड़े प्रांतों को अपने अधिकार में ले लिया और अपने-अपने राज्य स्थापित कर लिए। इनमें से सबसे महत्त्वपूर्ण राज्य थे-स्पेन में विसिगोधों का राज्य, गॉल में फ्रैंकों का राज्य तथा इटली में लोंबार्डो का राज्य।

शहरी जीवन की विशेषताएँ –

  • शहरों में खाने की कमी नहीं होती थीं।
  • अकाल के दिनों में भी नगर में ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में बेहतर सुविधाएँ प्राप्त होने की संभावना रहती थी।
  • शहरी लोगों को उच्च-स्तर के मनोरंजन उपलब्ध थे। उदाहरण के लिए कैलेंडर से हमें पता चलता है कि एक वर्ष में कम-से-कम 176 दिन वहाँ कोई-न-कोई मनोरंजक कार्यक्रम अथवा प्रदर्शन अवश्य होते थे।

533 ई. में सम्राट जस्टीनियन ने अफ्रीका को बैंडलों के अधिकार से मुक्त करवा लिया। उसने इटली को भी मुक्त करा कर उस पर फिर से अधिकार कर लिया। परंतु इटली पर पुनः अधिकार से देश को क्षति पहुँची क्योंकि इससे देश छिन्न-भिन्न हो गया और लॉबाडों के आक्रमणों का मार्ग प्रशस्त हो गया।

सातवीं शताब्दी के प्रारंभिक दशकों तक रोम और ईरान के बीच भी फिर से लड़ाई छिड़ गई। ईरान के ससानी शासकों ने मिस्त्र सहित सभी विशाल पूर्वी प्रांतों पर आक्रमण किए। भले ही बाईजेंटियस (रोम साम्राज्य का तत्कालीन शासक) ने 620 के दशक में इन प्रांतों को फिर से अधिकार में ले लिया। तो भी कुछ ही वर्ष बाद साम्राज्य को दक्षिण-पूर्व की ओर से एक बहुत ही जोरदार धक्का लगा जो साम्राज्य के लिए घातक सिद्ध हुआ। पूर्वी रोमन और ससानी दोनों राज्यों के बड़े-बड़े भाग भीषण युद्ध के बाद अरबों के अधिकार में आ गए । इस प्रकार रोम साम्राज्य का पूरी तरह पतन हो गया।

प्रश्न 10.
रोम के इतिहास के मुख्य स्रोतों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
रोम के इतिहास के स्रोतों को तीन वर्गों में विभाजित किया जा सकता है –

  • पाठ्य सामग्री
  • प्रलेख या दस्तावेज
  • भौतिक अवशेष

1. पाठ्य सामग्री – इसमें समकालीन व्यक्तियों द्वारा लिखा गया उस काल का इतिहास, पत्र, व्याख्यान, प्रवचन, कानून आदि शामिल हैं। समकालीन व्यक्तियों द्वारा लिखे गए इतिहास को वर्ष वृत्तांत कहा जाता है, क्योंकि यह प्रति वर्ष लिखा जाता था।

2. प्रलेख या दस्तावेज – दस्तावेजों में मुख्य रूप से उत्कीर्ण अभिलेख, पैपाइरस तथा पत्तों आदि पर लिखी गई पांडुलिपियाँ शामिल हैं। उत्कीर्ण अभिलेख प्रायः पत्थर की शिलाओं पर खोदे जाते थे। इसलिए वे नष्ट नहीं हुए और बहुत बड़ी संख्या में यूनानी तथा लातिनी भाषाओं में पाए गए हैं।

3. भौतिक अवशेष – भौतिक अवशेषों में अनेक प्रकार की वस्तुएँ शामिल हैं। इन्हें पुरातत्वविदों ने खुदाई तथा क्षेत्र सर्वेक्षण द्वारा खोजा है। इनमें इमारतें, स्मारक, मिट्टी के बर्तन, सिक्क, पच्चीकारी का सामान तथा भू-दृश्य सम्मिलित हैं। इनमें से प्रत्येक स्रोत हमें रोम के अतीत के बारे में एक विशेष जानकारी देतक हैं।

प्रश्न 11.
रोमन साम्राज्य सांस्कृतिक दृष्टि से ईरान की तुलना में कहीं अधिक विविधतापूर्ण था। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
ईरान पर पहले पार्थियाई तथा बाद में ससानी राजवंशों ने शासन किया। उनके द्वारा शासित लोग मुख्यतः ईरानी थे। इसके विपरीत रोमन साम्राज्य ऐसे क्षेत्रों तथा संस्कृतियों का एक मिलाजुला रूप था जो सरकार की एक साझी प्रणाली द्वारा एक-दूसरे के साथ जुड़ी हुई थी। साम्राज्य में अनेक भाषाएँ बोली जाती थी परंतु प्रशासन के लिए लातिनी तथा यूनानी भाषाओं का ही प्रयोग होता था। पूर्वी भाग के उच्चतर वर्ग यूनानी भाषा और पश्चिमी भाग के लोग लातिनी भाषा का प्रयोग करते थे। जो लोग साम्राज्य में रहते थे वे सभी एकमात्र शासक अर्थात् सम्राट् की प्रजा कहलाते थे, चाहे वे कहीं भी रहते हों और कोई भी भाषा बोलते हों। इसे स्पष्ट है कि रोमन साम्राज्य सांस्कृतिक दृष्टि से ईरान की तुलना में कहीं अधिक विविधतापूर्ण था।

प्रश्न 12.
रोमन साम्राज्य की गणतंत्र शासन-प्रणाली की संक्षिप्त जानकारी दीजिए।
उत्तर:
रोमन साम्राज्य में ‘गणतंत्र’ (रिपब्लिक) एक ऐसी शासन व्यवस्था थी जिसमें वास्तविक सत्ता ‘सैनेट’ नामक संस्था में निहित थी। सैनेट की सदस्यता जीवन भर चलती थी। इसके लिए धन और पद-प्रतिष्ठा को अधिक महत्व दिया जाता था। अत: सैनेट में धनी परिवारों के एक समूह का ही बोलबाला था जिन्हें अभिजात कहा जाता था। व्यावहारिक रूप में गणतंत्र अभिजात वर्ग की सरकार थी जिसका शासन सैनेट नामक संस्था के माध्यम से चलता था। गणतंत्र का शासन 509 ई. पू. से 27 ई. पू. तक चला। 27 ई. पू. में जूलियस सीजर के दत्तक पत्र तथा उत्तराधिकारी ऑक्टेवियन ने इसका तख्ता पलट दिया और सत्ता अपने हाथ में ले ली। वह ऑगस्ट्स नाम से रोम का सम्राट बन बैठा ।

प्रश्न 13.
रोम राज्य के संदर्भ में “प्रिंसिपेट’ से क्या अभिप्राय है? इसमें सम्राट तथा ‘सैनेट’ की क्या स्थिति थी?
उत्तर:
प्रथम रोमन सम्राट् ऑगस्टस ने 27 ई.पू. में जो राज्य स्थापित किया था उसे ‘प्रिंसिपेट कहा जाता था। ऑगस्टस राज्य का एकछत्र शासक और सत्ता का वास्तविक स्रोत था। तो भी इस कल्पना को जीवित रखा गया कि वह केवल एक प्रमुख नागरिक’ है, न कि निरंकुश शासक। ऐसा ‘सैनेट’ को सम्मान देने के लिए किया गया था। सैनेट वह संस्था थी जिसका रोम के गणतंत्र शासनकाल में सत्ता पर नियंत्रण था। इस संस्था का अस्तित्व कई शताब्दियों तक बना रहा था।

इस संस्था में कुलीन तथा अभिजात वर्गों अर्थात् रोम के धनी परिवारों का प्रतिनिधित्व था। परंतु बाद में इसमें इतालवी मूल के जमींदारों को भी शामिल कर लिया गया था। सम्राटों की परख इस बात से की जाती थी कि वे सैनेट के प्रति किस प्रकार का व्यवहार करते हैं। सैनेट के सदस्यों के प्रति शत्रुतापूर्ण व्यवहार करने वाले सम्राटों को सबसे बुरा सम्राट माना जाता था। कई सैनेटर गणतंत्र-यग में लौटने के लिए तरसते थे। परंतु अधिकतर सैनेटरों को यह आभास हो गया था कि अब यह असंभव है।

प्रश्न 14.
रोम तथा ईरान के साम्राज्यों के विस्तार की जानकारी दीजिए।
उत्तर:
630 के दशक तक अधिकांश यूरोप, उत्तरी अफ्रीका और मध्य पूर्व के विशाल क्षेत्र में दो शक्तिशाली साम्राज्यों का शासन था। ये साम्राज्य रोम और ईरान के थे। उनके साम्राज्य एक-दूसरे के बिल्कुल पास थे। उन्हें भूमि की एक संकरी पट्टी अलग करती थी जिसके किनारे फरात नदी बहती थी। रोम साम्राज्य का विस्तार-रोम साम्राज्य का भूमध्यसागर और उसके आस-पास उत्तर तथा दक्षिण में स्थित सभी प्रदेशों पर प्रभुत्व था। उत्तर में साम्राज्य की सीमा दो महान् नदियाँ राइन तथा डन्यूब बनाती थीं। साम्राज्य की दक्षिणी सीमा सहारा नामक एक विस्तृत रेगिस्तान से बनती थी। इस प्रकार रोम साम्राज्य एक विशाल क्षेत्र में फैला हुआ था।

ईरान साम्राज्य का विस्तार-इस साम्राज्य में कैस्पियन सागर के दक्षिण से लेकर पूर्वी अरब तक का समस्त प्रदेश और कभी-कभी अफगानिस्तान के कुछ भाग भी शामिल थे। इन दो महान शक्तियों ने दुनिया के उस अधिकांश भाग को आपस में बांट रखा था। जिसे चीनी लोग ता-चिन अथवा (वृहत्तर चीन या पश्चिम) कहते थे।

प्रश्न 15.
पूर्ववर्ती रोम साम्राज्य में सेना की भूमिका का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर:
रोम में सम्राट और सैनेट के बाद सेना शासन की एक प्रमुख संस्था थी। रोम की सेना एक व्यावसायिक सेना थी। इसके प्रत्येक सैनिक को वेतन दिया जाता था। उसे कम-से-कम 25 वर्ष तक सेवा करनी पड़ती थी। सेना साम्राज्य में सबसे बड़ी एकल संगठित संस्था थी।

चौथी शताब्दी तक इसमें 6,00,000 सैनिक थे। सेना के पास निश्चित रूप से सम्राटों का भाग्य निर्धारित करने की शक्ति थी। सैनिक अधिक वेतन और अच्छी सेवा-शा के लिए लगातार आंदोलन करते रहते थे। कभी-कभी ये आंदोलन सैनिक विद्रोहों का रूप भी ले लेते थे। सैनेट सेना से घृणा करती थी और उससे डरती थी। इसका कारण यह था कि सेना हिंसा का स्रोत थी। सम्राटों की सफलता इस बात पर निर्भर करती थी कि वे सेना पर कितना नियंत्रण रख पाते थे। जब सेनाएं विभाजित हो जाती थीं तो इसका परिणाम सामान्यतः गृहयुद्ध होता था।

प्रश्न 16.
प्रथम दो शताब्दियों में साम्राज्य के और अधिक विस्तार के प्रति रोमन सम्राटों की क्या नीति रही?
उत्तर:
प्रथम दो शताब्दियों में साम्राज्य का विस्तार और अधिक करने के प्रयत्न कम ही हुए। ऑगस्टस से टिवरियस को मिला साम्राज्य पहले ही इतना लंबा-चौड़ा था कि इसमें और अधिक विस्तार करना अनावश्यक लगता था। उसने पहले ऑगस्टस का शासन काल शांति के लिए याद किया जाता है क्योंकि इस शांति का आगमन दशकों तक चले आंतरिक संघर्ष और सदियों की सैनिक विजयों के पश्चात् हुआ था।

साम्राज्य के प्रारंभिक विस्तार के लिए पहला अभियान सम्राट त्राजान ने 113-117 ईस्वी में चलाया। उसने फरात नदी के पार के क्षेत्रों पर अधिकार कर लिया। इस प्रकार रोम साम्राज्य स्कॉटलैंड से आमिनिया तक तथा सहारा से फरात नदी के पार तक फैल गया। परंतु त्राजान के उत्तराधिकारियों को यह विस्तार निरर्थक लगा। अतः उन्होंने इन क्षेत्रों को छोड़ दिया।

प्रश्न 17.
पूर्ववर्ती रोमन साम्राज्य के प्रांतीय तथा स्थानीय शासन का क्या महत्व था?
उत्तर:
प्रांतीय शासन – पूर्ववर्ती रोमन साम्राज्य की एक विशेष उपलब्धि यह थी कि रोमन साम्राज्य के प्रत्यक्ष शासन का क्रमिक रूप से काफी विस्तार हुआ। इसके लिए अनेक आश्रित राज्यों को रोम के प्रांतीय राज्य क्षेत्र में शामिल कर लिया गया। निकटवर्ती पूर्व ऐसे राज्यों से भरा पड़ा था। दूसरी शताब्दी के प्रारंभिक वर्षों तक फरात नदी के पश्चिम में स्थित राज्यों को भी रोम द्वारा हड़प लिया गया ये अत्यंत समृद्ध थे! वास्तव में, इटली को छोड़कर साम्राज्य के सभी क्षेत्र प्रांतों में बंटे हुए थे और उनसे कर वसूला जाता था।

स्थानीय शासन – संपूर्ण साम्राज्य में दूर-दूर तक अनेक नगर स्थापित किए गए थे। इनके माध्यम से समस्त साम्राज्य पर नियंत्रण रखा जाता था। भूमध्यसागर के तटों पर स्थित बड़े शहरी केंद्र साम्राज्यिक प्रणाली के मूल आधार थे। इन्हीं शहरों के माध्यम – ‘सरकार’ प्रांतीय ग्रामीण क्षेत्रों पर कर लगाती थी और उसे वसूल करती थी। ये कर साम्राज्य की धन संपदा का मुख्य स्रोत थे।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
परवर्ती पुराकाल से क्या अभिप्राय है? इस अवधि में रोमन साम्राज्य में कौन-कौन से धार्मिक तथा प्रशासनिक परिवर्तन हुए?
उत्तर:
‘परवर्ती पुराकाल’ शब्द का प्रयोग रोम साम्राज्य के लिए तथा चौथी से सातवीं शताब्दी के इतिहास के लिए किया जाता था। यह अवधि अनेक सांस्कृतिक और आर्थिक हलचलों से परिपूर्ण थी। इस काल में रोमन साम्राज्य में निम्नलिखित धार्मिक तथा प्रशासनिक परिवर्तन हुए –

(a) धार्मिक परिवर्तन –

  • चौथी शताब्दी में सम्राट् कॉन्स्टैनटाइन ने ईसाई धर्म को राज धर्म बना दिया इसके बाद राज्य का तेजी से ईसाईकरण होने लगा।
  • सातवीं शताब्दी में इस्लाम का उदय हुआ। यह धर्म भी बड़ी तेजी से लोकप्रिय हुआ।

(b) प्रशासनिक परिवर्तन-राज्य के प्रशासनिक ढाँचे में भी महत्वपूर्ण परिवर्तन हुए। ये परिवर्तन सम्राट् डायोक्लीशियन (284-305) के समय से प्रारंभ हुए और कॉन्स्टैनटाइन तथा उसके बाद के काल तक जारी रहे। ये परिवर्तन निम्नलिखित थे

डायोक्लीशियन के समय के परिवर्तन –

  • साम्राज्य का विस्तार बहुत अधिक हो चुका था। उसके अनेक प्रदेशों का सामरिक या आर्थिक दृष्टि से कोई महत्व नहीं था। इसलिए
  • सम्राट् डायोक्लीशियन ने महत्वहीन प्रदेशों को 4 छोड़कर साम्राज्य को थोड़ा छोटा बना लिया।
  • उसने साम्राज्य की सीमाओं पर किले बनवाए।
  • उसने प्रांतों का पुनर्गठन किया।
  • उसने असैनिक और सैनिक कार्यों को अलग-अलग कर दिया तथा सेनापतियों को अधिक स्वायत्तता प्रदान की। इससे सैन्य अधिकारी अधिक शक्तिशाली हो गए।

कॉन्स्टैनटाइन के समय के परिवर्तन –

  • कान्स्टैनटाइन ने कुस्तुनतुनिया का निर्माण करवाया और इसे साम्राज्य की दूसरी राजधानी बनवाया। यह राजधानी तीन ओर से समुद्र से घिरी हुई थी।
  • नयी राजधानी के लिए नयी सैनेट की आवश्यकता थी, इसलिए चौथी शताब्दी में शासक वर्गों का बड़ी तेजी से विस्तार हुआ।

प्रश्न 2.
रोम में परवर्ती पुराकाल में होने वाले आर्थिक विकास की जानकारी दीजिए। इसका क्या परिणाम निकला?
उत्तर:
रोम में परवर्ती पुराकाल में असाधारण आर्थिक विकास हुआ जिसके मुख्य पहलू निम्नलिखित थे –

सम्राट् कॉन्स्टैनटाइन ने सॉलिडस नामक का एक नया सिक्का चलाया। यह 4.5 ग्राम शुद्ध सोने का बना हुआ था। ये सिक्के बहुत बड़े पैमाने पर ढाले जाते थे और लाखों करोड़ों की संख्या में चलन में थे।
मौद्रि। स्थायित्व और बढ़ती हुई जनसंख्या। कारण आर्थिक विकास में तेजी औद्योगिक प्रतिष्ठानों तथा ग्रामीण उद्योग-धंधों के विकास के लिए पर्याप्त मात्रा में पूँजी लगाई गई। इनमें तेल की मिलें और शीशे के कारखाने तथा तरह-तरह की पानी की मिलें शामिल थीं।
लंबी दूरी के व्यापार में भी बहुत अधिक पूँजी निवेश किया गया। फलस्वरूप इस : व्यापार का पुनरुत्थान हुआ।

परिणाम – ऊपर दिए गए आर्थिक परिवर्तनों के फलस्वरूप शहरी संपदा एवं समृद्धि में अत्यधिक वृद्धि हुई। स्थापत्य कला के नए-नए रूप विकसित हुए और भोग-विलास के साधनों में भरपूर तेजी आई। शासन करने वाले कुलौन पहले से कहीं अधिक धन-संपन्न और शक्तिशाली हो गए। दस्तावेजों से पता चलता है कि तत्कालीन समाज अपेक्षाकृत अधिक समृद्ध था, जहाँ मुद्रा का व्यापक रूप से प्रयोग होता था। ग्रामीण संपदाएँ भारी मात्रा में सोने के रूप में लाभ कमाती थीं। उदाहरण के लिए छठी शताब्दी के दौरान जस्टीनियन के शासनकाल में अकेला मिस्र प्रतिवर्ष 25 लाख सॉलिडस (लगभग 35,000 पाउंड सोना) से अधिक धनराशि करों के रूप में देता था। देखा जाए तो रोम साम्राज्य के पश्चिमी एशिया के बड़े-बड़े ग्रामीण इलाके पाँचवीं और छठी शताब्दी में आज की तुलना में भी अधिक विकसित थे।

प्रश्न 3.
रोमन समाज में पारिवारिक जीवन की मुख्य विशेषताएँ बताएँ। स्त्रियों की स्थिति का भी उल्लेख करें।
उत्तर:
रोमन समाज में परिवार की विशेषताओं तथा स्त्रियों का वर्णन इस प्रकार है –

एकल परिवार – रोमन समाज में एकल परिवार की व्यापक रूप से चलन थी। वयस्क पुत्र अपने पिता के परिवार के साथ नहीं रहते थे। वयस्क भाई भी बहुत कम साझे परिवार में रहते थे। दूसरी ओर, दासों को परिवार का अंग माना जाता था क्योंकि रोमवासियों के लिए परिवार को यही अवधारणा थी।

विवाह – प्रथम शताब्दी ई.पू. तक विवाह का स्वरूप ऐसा होता था कि पत्नी अपने पति को अपनी संपत्ति हस्तांतरित नहीं करती थी। महिला का दहेज वैवाहिक अवधि के दौरान उसके पति के पास अवश्य चला जाता था। विवाह के बाद भी महिला अपने पिता की उत्तराधिकारी बनी रहती थी। अपने पिता की मृत्यु होने पर वह उसकी संपत्ति की स्वामी बन जाती थी। इस प्रकार रोम की महिलाओं को संपत्ति के स्वामित्व व संचालन में व्यापक कानूनी अधिकार प्राप्त थे।

तलाक देना अपेक्षाकृत आसान था। इसके लिए पति अथवा पत्नी द्वारा केवल अपनी इच्छा की सूचना देना ही काफी था। पुरुष प्रायः 28-32 की आयु में विवाह करते थे, जबकि लड़कियों का विवाह 16 से 23 वर्ष की आयु में किया जाता था। इसलिए पति और पत्नी के बीच आयु का अंतराल बना रहता था। विवाह प्रायः परिवार द्वारा निश्चित किए जाते थे।

पुरुष – प्रधान परिवार-परिवार पुरुष-प्रधान थे। पारिवारिक जीवन की दृष्टि से महिलाओं की स्थिति अच्छी नहीं थी । प्रायः महिलाओं पर उनके पति हावी रहते थे। अपनी पत्नियों को बुरी तरह पीटते थे। इसके अतिरिक्त पिता का अपने बच्चों पर अत्यधिक कानूनी नियंत्रण होता था; कभी-कभी तो दिल दहलाने वाली सीमा तक। उदाहरण के लिए अवांछित बच्चों के मामले में पिता को उन्हें जीवित रखने या मार डालने तक का कानूनी अधिकार प्राप्त था। शिशु को मारने के लिए कभी-कभी पिता उसे ठंड में छोड़ देते थे।

प्रश्न 4.
रोम साम्राज्य के आर्थिक विस्तार पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
गम में विभिन्न आर्थिक गतिविधियाँ प्रचलित थीं। फलस्वरूप रोम का बड़ी तेजी से आर्थिक विस्तार हुआ। इसकी मुख्य विशेषताओं का वर्णन इस प्रकार है
1. रोमन साम्राज्यों में बंदरगाहों, खानों, खदानों, ईंट-भट्ठों, जैतून के तेल की फैक्टरियों आदि की संख्या बहुत अधिक थी। परिणामस्वरूप साम्राज्य का आधारभूत आर्थिक ढाँचा काफी मजबूत था। गेहूँ, अंगूरी शराब तथा जैतून का तेल मुख्य व्यापारिक मदें थीं। इनका बहुत अधिक मात्रा में प्रयोग होता था। ये मुख्यतः स्पेन, गैलिक प्रांतों, उत्तरी अफ्रीका, मिस्र तथा इटली से आते थे क्योंकि वहाँ इन फसलों के लिए स्थितियाँ अनुकूल थीं। शराब, जैतून का तेल तथा अन्य तरल पदार्थों की दुलाई एक प्रकार के मटकों या कंटेनरों में होती थी जिन्हें “एम्फोरा” कहते थे।

2. स्पेन में जैतून का तेल निकालने का उद्योग 140-160 ई. के दौरान अपने चरमोत्कर्ष पर था। उन दिनों स्पेन में उत्पादित जैतून का तेल मुख्य रूप से ऐसे कंटेनरों में ले जाया जाता था जिन्हें ड्रेसल-20 कहते थे । इसका यह नाम पुरातत्वविद हेनरिक ड्रेसल के नाम पर रखा गय है। साम्राज्य के भिन्न-भिन्न प्रदेशों के जमींदार तथा उत्पादक अलग-अलग वस्तुओं का बाजार हथियाने के लिए आपस में प्रतिस्पर्धा करते रहते थे। परिणामस्वरूप जैतून के तेल के व्यापार पर प्रभुत्व भी बदलता रहा।

3. साम्रज्य के अंतर्गत ऐसे बहुत-से क्षेत्र आते थे जो अपनी असाधारण उर्वरता के लिए प्रसिद्ध थे। इनमें इटली के कैंपेनिया तथा सिसिली और मिस्र के फैय्यूम, गैलिली, बाइजैकियम, दक्षिणी गॉल तथा बाएटिका के प्रदेश शामिल थे। ये प्रदेश साम्राज्य के घनी आबादी वाले सबसे धनी प्रदेशों में से थे।

4. सबसे बढ़िया किस्म की अंगूरी शराब कैंपेनिया से आती थी। सिसिली और बाइजैकियम रोम को भारी मात्रा में गेहूँ का निर्यात करते थे। गैलिनी में गहन खेती की जाती थी।

5. रोम क्षेत्र के अनेक बड़े-बड़े भाग बहुत उन्नत अवस्था में थे। उदाहरण के लिए नुमीडिया (आधुनिक अल्जीरिया) में देहाती क्षेत्रों में ऋतु-प्रवास व्यापक पैमाने पर होता था। चरवाहा तथा अर्ध-खानाबदोश अपने साथ झोपिड़याँ (मैपालिया) उठाए अपनी भेड़-बकरियों के साथ इधर-उधर घूमते रहते थे। परंतु उत्तरी-अफ्रीका में रोमन जागीरों का विस्तार होने पर वहाँ चरागाहों की संख्या में भारी कमी आई और खानाबदोश चरवाहों का आवागमन नियंत्रित हो गया।

6. स्पेन में भी उत्तरी क्षेत्र बहुत कम विकसित था। यहाँ के किसान पहाड़ियों की चोटियों पर बसे गाँवों में रहते थे। इन गाँवों को कैस्टेला कहा जाता था। सच तो यह कि रोम आर्थिक दृष्टि से बहुत ही धनी साम्राज्य था। देश में बहुत बड़ी संख्या में सोने के सिक्के प्रचलित थे।

प्रश्न 5.
रोमन साम्राज्य की सामाजिक श्रेणियों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर:
रोम का समाज विविधताओं से भरा था। इसमें पूर्ववर्ती काल में अलग-अलग सामाजिक श्रेणियाँ पाई जाती थीं।

पूर्ववर्ती काल – इतिहासकार टैसिटस के अनुसार पूर्ववती रोमन साम्राज्य के प्रमुख सामाजिक समूह थे –

  • सैनेटर-तीसरी शताब्दी के प्रारंभिक वर्षों में सैनेट की सदस्य संख्या लगभग 1000 थी। कुल सैनेटरों में लगभग आधे सैनेटर इतालवी परिवारों के थे।
  • अश्वारोही या नाइट वर्ग।
  • सम्माननीय जनता का नर्ग जिनका संबंध महान् घरानों से था।
  • फूहड़ निम्नतर वर्ग अथवा कमीनकारू (प्लेबस सोर्डिंडा) तथा दास।

परवर्ती काल – परवर्ती काल के मुख्य सामाजिक वर्ग निम्नलिखित थे –
1. अभिजात वर्ग – इस काल में सैनेटर और नाइट एकीकृत होकर एक विस्तृत अभिजात वर्ग बन चुके थे। इनके कुल परिवारों में से कम-से-कम आधे परिवार अफ़्रीकी अथवा पूर्वी मूल के थे। अभिजात वर्ग अत्यधिक धनी था। परंतु कई तरीकों से यह विशुद्ध सैनिक संघांत वर्ग से कम शक्तिशाली था।

2. मध्यवर्ग – मध्य वर्ग में अब नौकरशाही और सेना की सेवा से जुड़े साधारण लोग शामिल थे। इसमें अपेक्षाकृत अधिक समृद्ध सौदागर और किसान भी सम्मिलित थे। रैसिटस के अनुसार इन मध्यमवर्गीय परिवारों का भरण-पोषण मुख्य रूप से सरकारी सेवा और राज्य पर निर्भरता द्वारा होता था।

3. निम्न वर्ग – इसके नीचे निम्न वर्ग का एक विशाल समूह था। सामूहिक रूप से इसे यूमिलिओरिस कहा जाता था। इनमें शामिल वर्ग थे

  • ग्रामीण श्रामिक – ये लोग मुख्यतः स्थायी रूप से बड़ी जागीरों पर काम करते थे।
  • औद्योगिक और खनन प्रतिष्ठानों के कामगार।
  • प्रवासी – कामगार – ये अनाज तथा जैतून की फसल की कटाई और निर्माण उद्योग में अधिकांश श्रम की पूर्ति करते थे।
  • स्व-नियोजित शिल्पकार – मजदूरी पाने वाले श्रमिकों की तुलना में ये बेहतर खाते-पीते थे।
  • अस्थायी अथवा कभी – कभी काम करने वाले श्रमिक।
  • दास – ये विशेष रूप से पूरे पश्चिमी साम्राज्य में पाए जाते थे।

प्रश्न 6.
रोम की अर्थव्यवस्था में दासों तथा वेतनभोगी मजदूरों की क्या भूमिका थी?
उत्तर:
भूमध्यसागर और पश्चिमी एशिया दोनों ही क्षेत्रों में दासता की जड़ें बहुत गहरी थीं। ऑगस्टस के शासनकाल में इटली की कुल 75 लाख की आबादी में 30 लाख दास थे। चौथी शताब्दी में ईसाई धर्म के राज्य-धर्म बनने के बाद भी दास प्रथा जारी रही। दास को पूंजी निवेश की दृष्टि से देखा जाता था।

दासों तथा वेतनभोगी की भूमिका-पहली शताब्दी में भांति स्थापित होने के साथ जब लड़ाई-झगड़े कम हो गए तो दासों की आपूर्ति में कमी आने लगी। इसलिए दास श्रम का प्रयोग करने वालों को दास-प्रजनन अथवा वेनतभोगी मजदूरों जैसे विकल्पों का सहारा लेना पड़ा। वेतनभोगी मजदूर दासों से सस्ते पड़ते थे क्योंकि उन्हें आसानी से छोड़ा और रखा जा सकता था। इसके विपरीत दास श्रमिकों को वर्ष भर रखना पड़ता था और पूरे वर्ष उन्हें भोजन देना पड़ता था तथा उनके अन्य खर्च उठाने पड़ते थे।

फलस्वरूप दास श्रमिकों को रखने की लागत बढ़ जाती थी। इसलिए बाद की अवधि में कृषि-क्षेत्र में अधिक संख्या में दास मजदूर नहीं रहे। अब इन दासों और मुक्त हुए दासों को व्यापार-प्रबंधक के रूप से नियुक्त किया जाने लगा। मालिक प्रायः उन्हें अपनी ओर से व्यापार चलाने के लिए पंजी देते थे। कभी-कभी वे अपना पूरा कारोबार उन्हें सौंप देते थे।

सच तो यह है कि समय बीतने के साथ-साथ वेतनभोगी मजदरों की संख्या बढ़ने लगी। पाँचवीं शताब्दी के अंतिम वर्षों में सम्राट् ऐनस्टैसियस ने ऊँची मन रियाँ देकर श्रमिकों को आकर्षित किया था और तीन सप्ताह से भी कम समय में दारा शहर का निर्माण किया था। छठी शताब्दी तक भूमध्य-सागर क्षेत्र के भाग में वेतनभोगी श्रमिक बहुत अधिक फैल गए थे।

प्रश्न 7.
रोमन साम्राज्य में श्रम-प्रबंध तथा श्रमिकों पर नियंत्रण रखने के तरीकों की जानकारी दीजिए।
उत्तर:
रोम में श्रम-प्रबंधन तथा मजदूरों को अपने नियंत्रण में रखने पर विशेष महत्त्व दिया जाता था। इस संबंध में विशेष पग उठाए जाते थे। इसका उद्देश्य श्रमिकों से अधिक-से-अधिक काम लिया जा सके होता था। श्रम-प्रबंधन-रोमन कृषि-विषयक लेखकों ने श्रम प्रबंधन की ओर बहुत ध्यान दिया । एक लेखक कोलमेल्ला ने सिफारिश की थी कि जमींदारों को अपनी जरूरत से दुगुनी संख्या में उपकरणों तथा औजारों का सुरक्षित भंडार रखना चाहिए ताकि उत्पादन लगातार होता रहे।

निरीक्षण को भी विशेष महत्त्व दिया गया क्योंकि नियोक्ताओं की यह आम धारणा थी कि निरीक्षण के बिना कभी भी कोई काम ठीक से नहीं करवाया जा सकता। निरीक्षण को सरल बनाने के लिए कामगारों को कभी कभी छोटे दलों में विभाजित कर दिया जाता था। श्रमिकों पर नियंत्रण के तरीके-कोलूमेल्ला ने दस-दस श्रमिकों के समूह बनाने की सिफारिश की थी। उसने यह दावा किया था कि छोटे समूहों में यह बताना अपेक्षाकृत आसान होता है कि उनमें से कौन काम कर रहा है और कौन कामचोरी। इससे पता चलता है कि उन दिनों श्रम-प्रबंधन पर विस्तार से विचार किया जाता था।

1. अलग – अलग समूह में काम करने वाले दासों को प्रायः पैरों में जंजीर डालकर एक-साथ रखा जाता था।

2. रोमन साम्राज्य में कुछ औद्योगिक प्रतिष्ठानों ने तो इससे भी अधिक कड़े नियंत्रण लागू कर रखे थे। सुगंधित राल की फैक्टरियो में कामगारो के ऐप्रनों पर एक सील लगा दी जाती थी। उन्हें अपने सिर पर एक गहरी जाली वाला मास्क या नेट भी पहनना पड़ता था। उन्हें फैक्टरी से बाहर जाने के लिए अपने सभी कपड़े उतारने पड़ते थे। संभवत: यह बात अधिकांश फैक्ट्रियों और कारखानों पर लागू होती थी।

3. 398 ई. के एक कानून में कहा गया है कि कामगारों को दागा जाता था ताकि यदि वे भागने और छिपने का प्रयत्न करें तो उन्हें पहचाना जा सके।

4. कई निजी उद्यमी, कामगारों के साथ ऋण-संविदा के रूप में अनुबंध कर लेते थे, ताकि यह दावा कर सकें कि उनके कर्मचारी उनके कर्जदार हैं। इस प्रकार नियोक्ता अपने कामगारों पर कड़ा नियंत्रण रखते थे।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
ऑगस्ट्स का पहला नाम था ………………
(क) जूलियस सीजर
(ख) ब्रूटस
(ग) ऑक्टावियन
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(ग) ऑक्टावियन

प्रश्न 2.
गृहयुद्ध का तात्पर्य है ………………..
(क) सशस्त्र विद्रोह
(ख) शस्त्रविहीन संघर्ष
(ग) मात्र-अहिंसक आंदोलन
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(क) सशस्त्र विद्रोह

प्रश्न 3.
किस सागर को रोमन साम्राज्य का हृदय माना जाता है?
(क) काला सागर
(ख) लाल सागर
(ग) भूमध्य सागर
(घ) कैस्पियन सागर
उत्तर:
(ग) भूमध्य सागर

प्रश्न 4.
रोम का प्रथम सम्राट कौन था?
(क) आगस्टस
(ख) नीरो
(ग) डेरियस प्रथम
(घ) कोन्स्टैनटाइन
उत्तर:
(क) आगस्टस

प्रश्न 5.
रोमन साम्राज्य में ‘सॉलिडस’ क्या था?
(क) चाँदी का सिक्का
(ख) सोने का सिक्का
(ग) ताँबे का सिक्का
(घ) चाँदी और ताँबे का मिश्रित सिक्का
उत्तर:
(ख) सोने का सिक्का

प्रश्न 6.
रोमन लोगों के पूज्य देवी/देवता कौन नहीं थे?
(क) डैगन
(ख) मॉर्स
(ग) जूनो
(घ) जूपिटर
उत्तर:
(क) डैगन

प्रश्न 7.
किस रोमन शासक के शासनकाल में दासों ने जबरदस्त विद्रोह किया?
(क) ऑगस्टस
(ख) ऐनस्टैसियस
(ग) टाइबेरियस
(घ) नीरो
उत्तर:
(घ) नीरो

प्रश्न 8.
निम्न में किस शासक का संबंध पवित्र रोमन साम्राज्य से था?
(क) जुलियस सीजर
(ख) शार्लमेन
(ग) लुई-XIV
(घ) पीटर महान
उत्तर:
(ख) शार्लमेन

प्रश्न 9.
वह कौन-सा प्राचीन साम्राज्य था जो तीन महाद्वीपों में फैल हुआ था?
(क) रोम साम्राज्य
(ख) ब्रिटिश साम्राज्य
(ग) रूसी साम्राज्य
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(क) रोम साम्राज्य

प्रश्न 10.
रोम साम्राज्य की प्रमुख भाषा थी:
(क) संस्कृत
(ख) लैटिन
(ग) अंग्रेजी
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(ख) लैटिन

प्रश्न 11.
सम्राट कांस्टैन्टाइन किस सदी ई. में ईसाई बना?
(क) तीसरी
(ख) पहली
(ग) चौथी
(घ) पाँचवीं
उत्तर:
(ग) चौथी

प्रश्न 12.
रोमन साम्राज्य को पूर्वी पश्चिमी भागों में किस सदी ई. में बाँटा गया?
(क) चौथी
(ख) दूसरी
(ग) तीसरी
(घ) सातवीं
उत्तर:
(क) चौथी

प्रश्न 13.
रोम साम्राज्य के सीमावर्ती क्षेत्रों में कौन-सी जनजातियाँ थीं?
(क) गोथ
(ख) विसिगोथ
(ग) वैथल
(घ) इनमें सभी
उत्तर:
(घ) इनमें सभी

प्रश्न 14.
मुहम्मद पैगम्बर द्वारा इस्लाम धर्म की स्थापना की गई?
(क) पाँचवीं सदी में
(ख) छठी सदी में
(ग) सातवीं सदी में
(घ) आठवीं सदी में
उत्तर:
(ग) सातवीं सदी में

प्रश्न 15.
रोम में गणतंत्र कायम रहा ……………….
(क) 509 ई.पू. से 27 ई.पू. तक
(ख) 500 ई.पू. से 25 ई.पू. तक
(ग) 300 ई.पू. से 28 ई.पू. तक
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(क) 509 ई.पू. से 27 ई.पू. तक

Bihar Board Class 11th Hindi Book Solutions पद्य Chapter 7 तोड़ती पत्थर

Bihar Board Class 11th Hindi Book Solutions

Bihar Board Class 11th Hindi Book Solutions पद्य Chapter 7 तोड़ती पत्थर (सूर्यकांत त्रिपाठी निराला)

 

तोड़ती पत्थर पाठ्य पुस्तक के प्रश्न एवं उनके उत्तर

Todti Patthar Poem Questions And Answers Bihar Board Class 11th प्रश्न 1.
पत्थर तोड़नेवाली स्त्री का परिचय कवि ने किस तरह किया है?
उत्तर-
तोड़ती पत्थर वाली मजदूरिन एक साँवली कसे बदन वाली युवती है। वह चिलचिलाती गर्मी की धूप में हथौड़े से इलाहाबाद की सड़क के किनार एक छायाहीन वृक्ष के नीच पत्थर तोड़ रही है। उसके माथे से पसीने की बूंदे दुलक रही हैं। मजदूरिन अपने श्रम-साध्य काम में पूर्ण तन्मयता से व्यस्त है।

Todti Patthar Question Answers Bihar Board Class 11th प्रश्न 2.
श्याम तन, भर बंधा यौवन,
नत नयन, प्रिय-कर्म-रत मन’
निराला ने पत्थर तोड़ने वाली स्त्री का ऐसा अंकन क्यों किया है? आपके विचार से ऐसा लिखने की क्या सार्थकता है?
उत्तर-
सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ ने अपनी ‘तोड़ती पत्थर’ शीर्षक कविता में एक मजदूरनी के रूप एवं कार्य का चित्रण किया है, जो साँवली और जवान है तथा आँखे नीचे झुकाए पूर्ण तन्मयता एवं निष्ठा से अपने कार्य में व्यस्त है।

कवि ने उक्त पत्थर वाली स्त्री के विषय में इस प्रकार चित्र इसलिए प्रस्तुत किया है कि पत्थर तोड़ने जैसे कठिन र्का को सम्पादित करने के लिए सुगठित स्वस्थ शरीर को होना नितान्त आवश्यक है तथा सुगठित शरीर ही श्रमसाध्य कार्य हेतु सक्षम होता है। साथ ही तीक्ष्ण धूप में शरीर का साँवला होना स्वाभाविक है। कवि ने कार्य में उसकी पूर्ण तन्मयता का भी सुन्दर चित्रण किया है। मेरे विचार से ऐसा लिखना सर्वथा उचित है।

Todti Patthar Hindi Poem Question Answers Bihar Board Class 11th प्रश्न 3.
स्त्री अपने गुरू हथौड़े से किस पर प्रहार कर रही है।
उत्तर-
स्त्री (मजदूरिन) अपने बड़े हथौड़े से समाज की आर्थिक विषमता पर प्रहार कर रही है। वह धूप की झुलसाने वाली भीषण गर्मी के कष्टदायक परिवेश मे पत्थर तोड़ने का कार्य कर रही है। उसके सामने ही अमीरों को सुख-सुविधा प्रदान करने वाली विशाल अट्टालिकाएँ खड़ी हैं जो उसकी गरीबी पर व्यंग्य करती प्रतीत होती हैं। एक ओर उस स्त्री के मार्मिक तथा कठोर संघर्ष की व्यथा-कथा है, दूसरी ओर अमीरों की विशाल अट्टालिकाओं एवं सुखसुविधाओं का चित्रण है।

इस प्रकार प्रस्तुत पंक्ति देश की आर्थिक विषमता का सजीव चित्रण है। इसके साथ ही इस विषमता पर एक चुभता व्यंग्य भी है।

Torti Pathar Question Answer Bihar Board Class 11th प्रश्न 4.
कवि को अपनी ओर देखते हुए देखकर स्त्री सामने खड़े भवन की ओर देखने लगती है, ऐसा क्यों?
उत्तर-
कवि को अपनी ओर देखते हुए देखकर स्त्री सामने खड़े भवन की ओर देखने लगती है। वह पत्थर तोड़ना बंद कर देती है। वह सामने खड़े विशाल भवन की ओर देखने लगती है। ऐसा कर वह समाज में व्याप्त आर्थिक विषमता की ओर संकेत करती है। कवि उसके भाव को समझ जाता है।

प्रश्न 5.
‘छिन्नतार’ का क्या अर्थ है? कविता के संदर्भ में स्पष्ट करें।
उत्तर-
कविवर सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला ने ‘तोड़ती पत्थर’ शीर्षक कविता में पत्थर तोड़ने वाली गरीब मजदूरनी की मार्मिक एवं दारुण स्थिति का यथार्थ वर्णन प्रस्तुत किया है। कवि पत्थर तोड़ती मजदूरनी को सहानुभूतिपूर्ण दृष्टि से देखता है। वह भी कवि को एक क्षण के लिए देखती है। वह सामने के भव्य भवन को भी देख लेती है और फिर अपने कार्य में लग जाती है। उसकी विवशता ऐसी है मानों कोई व्यक्ति मार खाकर भी न रोए। वह चाहकर भी अपनी व्यथा और विवशता कवि की हृदय-वीणा के तार को छिन्न-भिन्न कर देती है।

प्रश्न 6.
‘देखकर कोई नहीं
देखा मुझे उस दृष्टि से
जो मार खा रोई नहीं,
इन पंक्तियों का मर्म उद्घाटित करें।
उत्तर-
प्रस्तुत पंक्तियाँ महाप्राण “निराला’ रचित ‘तोड़ती पत्थर’ कविता से उद्धत हैं। इन पंक्तियों में कवि ने शोषण और दमन पर पलती व्यवस्था के अन्याय और वंचनापूर्ण व्यूहों में पिसती हुई पत्थर तोड़ने वाली गरीब मजदूरनी का मार्मिक स्थिति को वर्णन किया है। कवि पत्थर तोड़ती मजदूरनी पर सहानुभूति पूर्ण नजर डालता है। वह भी एक क्षणिक दृष्टि से कवि की ओर देखकर अपने काम में इस प्रकार मग्न हो जाती है जैसे उसने कवि को देखा ही नहीं।

वह सामने विशाल अट्टालिका पर भी नजर डालकर समाज में व्याप्त अमीरी-गरीबी की खाई से भी कवि को रू-बरू कराती है। उसकी नजरों में संघर्षपूर्ण दीन-हीन जीवन का अक्स सहज ही दृष्टि गोचर होता है। उसकी विवशता ऐसी है मानो कोई मार खाकर भी न रोए। सामाजिक विषमता का दंश मूक होकर सहने को गरीब मजदूरनी अभिशप्त है।

प्रश्न 7.
सजा सहज सितार सुनी मैंने वह नही जो थी सुनी झंकार’ यहाँ किस सितार की ओर संकेत है? इन पंक्तियों का भाव स्पष्ट करें।
उत्तर-
प्रस्तुत पंक्तियाँ कविवर ‘निराला’ रचित ‘तोड़ती पत्थर’ कविता की हैं। कवि इलाहाबाद के जनपथ पर भीषण गर्मी में पत्थर तोड़ती मजदूरनी को देखता है। वह भी विवश दृष्टि से कवि को एक क्षण के लिए चुपचाप देख लेती है। फिर, अपने कार्य में लग जाती है। वह कुछ बोलती नहीं, फिर भी कवि उसके हृदय सितार से झंकृत वेदना की मार्मिकता को समझ ही लेता है।

कवि मजदूरनी के हृदय सितार से झंकृत वेदना जो सामाजिक विषमता की कहानी कहती हुई प्रतीत होती है, को दर्शाना चाहता है। कवि सहज अपने हृदय के वीणा के तारों से उस शोषण की प्रतिमूर्ति मजदूरनी के हृदय के तारों से जोड़कर उसके दारूण-व्यथा की अनुभूति कर लेता है।

प्रश्न 8.
एक क्षण के बाद वह काँपी सुधार, [Board Model 2009(A)]
दुलक माथे से गिरे सीकर,
लीन होते कर्म में फिर ज्यों, कहा
‘मैं तोड़ती पत्थर।’
इन पंक्तियां की सप्रसंग व्याख्या करें।
उत्तर-
प्रस्तुत व्याख्येय पंक्तियाँ हिन्दी के मुक्तछंद के प्रथम प्रयोक्ता, छायावाद के उन्नायक कवि शिरोमणि सूर्यकांत त्रिपाठी निराला रचित ‘तोड़ती पत्थर’ शीर्षक कविता से उद्धत हैं। इस कविता में कवि ने शोषण और दमन पर पलती व्यवस्था के अन्याय और वंचनापूर्ण व्यूहों में पिसती ‘ मानवता का मार्मिक चित्र प्रस्तुत किया है।

कवि इलाहाबाद के जनपथ पर भीषण गर्मी में पत्थर तोड़ती मजदूरनी को देखता है। वह बिना छायावाले एक पेड़ के नीचे पत्थर तोड़ने का कार्य कर रही थी। उसके सामने वृक्षों के समूह और विशाल अट्टालिकाएँ और प्राचीर थे। तेज और तीखी धूप से धरती रूई की तरह जल रही थी। कवि पत्थर तोड़ती मजदूरनी को सहानुभूतिपूर्ण दृष्टि से देखता है। वह भी कवि पर एक नजर डालकर सामने के भव्य भावना को भी देख लेती है। वह मजदूरनी एक क्षण के लिए सिहर उठती है। उसके माथे से पसीने की बूंदे गिर पड़ती हैं। वह फिर अपने कार्य में चुपचाप लग जाती है और मौन होकर भी यह बता देती है कि वह पत्थर तोड़ रही है।

प्रश्न 9.
कविता की अंतिम पंक्ति है- ‘मौ तोड़ती पत्थर’ उससे पूर्व तीन बार ‘वह तोड़ती पत्थर’ का प्रयोग हुआ है। इस अंतिम पंक्ति का वैशिष्ट्य स्पष्ट करें।
उत्तर-
कवि शिरामणि निराला ने अपनी बहुचर्चित कविता ‘तोड़ती पत्थर’ में एक गरीब मजदूरनी की विवश वेदना और व्यथा का चित्रण किया है। कवि ने इलाहाबाद के जनपथ पर गर्मी की झुलसती लू और धूप में वह मजदूरनी हथौड़े पत्थर से तोड़ती रहती है। कवि उसे सहानुभूतिपूर्ण दृष्टि से देखता है। वह मजदूरनी कवि को एक क्षण के लिए देखकर भी नहीं देखती और पसीने से लथपथ होकर पत्थर तोड़ती रहती है।

गरीब मजदूरनी अंतिम पंक्ति में मौन होकर भी यह बता देती है कि वह पत्थर तोड़ रही है। उसने परोक्ष रूप से हमारी शोषणपूर्ण तथा घोर विषम अर्थव्यवस्था पर व्यंग की करारी चोट भी की है और हमें यह संदेश दिया है कि इस आर्थिक विषमताजन्य स्थिति और परिस्थिति को समाप्त करने की दिशा में सही सोच का परिचय दें। सही सोच से ही समतामूलक अर्थव्यवस्था पर आधारित समाज प्रगति के सोपान पर निरन्तर अग्रसर हो सकता है। मजदूरनी की वे सांकेतिक वैचारिक बिन्दु सचमुच बिन्दु सचमुच सराहनीय है।

प्रश्न 10.
कविता का भावार्थ अपने शब्दों में लिखें।
उत्तर-
‘तोड़ती पत्थर’ कविवर निराला रचित एक यथार्थवादी कविता है। इस कविता में कवि ने एक गरीब मजदूरिन की विवशता और कठोर श्रम-साधना का बड़ा ही मार्मिक चित्रण किया है। कवि एक दिन इलाहाबाद के एक राजपथ पर एक पेड़ के नीचे एक दीन-हीन संघर्षरत मजदूरिन को पत्थर तोड़ते देखता है। वह जिस पेड़ के नीचे बैठी है वह छायादार नहीं है। गर्मी के ताप-भरे दिन है। चढ़ती धूप काफी तेज है। दिन का स्वरूप गर्मी से तमतमाया लगता है। लू की झुलसानेवाली लपटे काफी गर्म हैं। भीषण गर्मी में जमीन रूई की तरह जल रही है।

इस कष्टदायक परिवेश में वह बेचारी पत्थर तोड़ने का श्रमसाध्य कार्य कर रही है। वह मजदूरिन श्यामवर्ण युवती है। वह चुपचाप नतनयन हो पत्थर तोड़ने का कार्य कर रही है। उसके सामने ही अमीरों को सुख-सुविधा प्रदान करनेवाली विशाल अट्टालिकाएँ खड़ी हैं जो उसकी गरीबी पर व्यंग्य करती प्रतीत होती हैं। कवि उस मजदूरिन को सहानुभूति भरी दृष्टि से देखता है। वह मजदूरिन भी एक क्षण के लिए उस सहज मूक दृष्टि से देख लेती है। .

कवि को लगता है कि उसने देखकर भी उसे न देखा हो। कवि उसके टूटे दिल की वीणा की झंकार को सुन लेता है। वह क्षण भर के लिए कांप-सी उठती है। श्रम-लथ उस मजदूरिन के माथे से पसीने की बूंद टपक पड़ती हैं। पसीने की वे बूंदे उसे कठोर श्रम और संघर्ष साधना का परिचय देती है और यह बताती है कि उस गरीब मजदूरिन का यह संघर्ष कितना मार्मिक और कितना कठोर है। संपूर्ण कतिवा हमारे देश की आर्थिक विषमता पर एक चूमता हुआ व्यंग्य है।

तोड़ती पत्थर भाषा की बात

प्रश्न 1.
निम्नलिखित शब्दों के पर्यायवाची लिखें पथ, पेड़, दिवा, भू, पत्थर, गर्द, सुधार
उत्तर-
पथ-मार्ग, पेड़-वृक्ष, दिवा-दिन भू-पृथ्वी, पत्थर-शिला, गदै-मैला, सुधार-सुरम्य।

प्रश्न 2.
‘देखा मुझे उस दृष्टि से यहाँ ‘दृष्टि’ संज्ञा है या विशेषण।
उत्तर-
संज्ञा।

प्रश्न 3.
निम्नलिखित शब्दों से विशेष्य, विशेषण अलग करे श्याम तन, नत नयन, गम हथौड़ा, सहज सितार
उत्तर-

  • विशेष्य – विशेषण
  • तन – श्याम
  • नयन – नत
  • हथौड़ा – गुरू
  • सितार – सहज

प्रश्न 4.
कविता से सर्वनाम पदों को चुनकर लिखें।
उत्तर-
जिन पदों का संज्ञा के स्थान पर होता है उन्हें सर्वनाम कहते हैं। ‘तोड़ती पत्थर’ शीर्षक कविता में निम्नलिखित सर्वनाम आये हैं- वह, उसे, मैंने, जिसके, कोई, मुझे, उस और जो।

प्रश्न 5.
‘एक क्षण के बाद वह कॉपी सुधर’ यहाँ सुघर क्या है?
उत्तर-
यहाँ इस पंक्ति में प्रयुक्त सुधर, जिसका अर्थ सुगठित, चतुर, होशियार, सुन्दर, संडोल आदि है। यहाँ प्रयुक्त सुघर शब्द, पत्थर तोड़ती स्त्री के ‘विशेषण’ के रूप में प्रयुक्त हुआ है।

प्रश्न 6.
कविता से अनुप्रास, रूपक और उपमा और अलंकारों के उदाहरण चुनकर लिखें।
उत्तर-

  • तोड़ती पत्थर – अनुप्रास
  • श्याम तन – रूपक, उपमा (दोनो)
  • तरु मालिका अट्टालिका प्राकार – अनुप्रास
  • लू-रूई ज्यों – उपमा
  • सजा सहज सितार – अनुप्रास

प्रश्न 7.
कविता एक प्रगीत है। गीत और प्रगीत में क्या अन्तर है?
उत्तर-
शास्त्रीय दृष्टिकोण से गेय पद गीत कहलाते हैं। इनमें शब्द-योजना संगीत के स्वर विधान के अनुरूप होती है। गीतों में मसृण भावों की अभिव्यक्ति होती है। आधुनिक काल में निरालाजी की कृपा से छंदबन्ध टूटने के बाद गीत लिखने का प्रचलन बढ़ गया किन्तु गेयता शून्य हो गयी। प्रगीत गीत की अपेक्षा कुछ विशिष्टता लिये होता है। इसमें किसी समस्या को, विचार को, सशक्त ढंग से संकेतो के माध्यम से व्यक्त किया जाता है।

गीत और प्रगीत दोनों में तुक का आग्रह होता है। क्योंकि बिना तुक के गेयता संभव नहीं है। गीत जहाँ हृदय को राहत पहुँचाते हैं। प्रगीत हृदय को उद्वेलित करते हैं। मनकों मथ डालते हैं।

गीतों और प्रगीतों के कलेवर की लम्बाई वर्णित विषय की गम्भीरता पर निर्भर है।

अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

तोड़ती पत्थर लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
तोड़ती पत्थर में प्रकृति या ग्रीष्म का रूप बतायें।
उत्तर-
‘तोड़ती पत्थर’ कविता में प्रकृति वर्णन की दृष्टि से ग्रीष्म का वर्णन है। मजदूरनी पत्थर तोड़ती है। धीरे-धीरे दोपहरी हो आती है। प्रचण्ड धूप के कारण दिन का रूप क्रोध में तमतमाये व्यक्ति के समान अनुभव होता है। झुलसाने वाली लू चलने लगती है। धरती रूई की तरह जलती प्रतीत होती है। हवा की झोंकों के कारण उड़ने वाली धूप आग की चिनगारी की तरह तप्त हो जाती है। ऐसी दोपहरी में भी बेचारी मजदूरनी पत्थर तोड़ती रहती है।

प्रश्न 2.
तोड़ती पत्थर शीर्षक कविता में किस बात का चित्रण हुआ है?
उत्तर-
प्रस्तुत कविता सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ द्वारा रचित प्रगतिवादी कविता है। इस कविता के द्वारा कवि ने शोषित वर्ग का मर्मस्पर्शी चित्रण प्रस्तुत किया है। इसके साथ ही साथ आर्थिक वर्ग-वैषम्य का भी हृदयग्राही चित्र खींचा है। समाज की अर्थव्यवस्था के आधार पर दो वर्ग हुए हैं-शोषित और शोषक। यहाँ दोनों वर्गों का बड़ा सजीव चित्र निराला ने खींचा है। निराला ने निरीह शोषित वर्ग के प्रति अपनी सारी सहानुभूति उड़ेल दी है। मजदूरिन को प्रचंड गर्मी में पत्थर तोड़ते देख कवि मौन नहीं रह पाता। वह अपनी सारी करुणा और संवेदना प्रस्तुत कविता में प्रकट कर देता है।

तोड़ती पत्थर अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
निराला जी ने पत्थर तोड़ने वाली को कहाँ देखा था?
उत्तर-
इलाहाबाद के किसी पथ पर।

प्रश्न 2.
मजदूरनी की शारीरिक बनावट कैसी थी?

प्रश्न 3.
मजदूरनी को कवि ने कब देखा था?
उत्तर-
निराला जी मजदूरनी को ग्रीष्म ऋतु की दोपहर में (झुलसाने वाली लू के समय) देखा था।

प्रश्न 4.
मजदूरनी पत्थर तोड़ने का काम क्यों करती थी।
उत्तर-
पेट की भूख मिटाने के लिए मजदूरनी पत्थर तोड़ने का काम कर रही थी।

प्रश्न 5.
मजदूरनी जहाँ पत्थर तोड़ रही थी वहा कवि ने और क्या देखा?
उत्तर-
कविता ने वहाँ एक विशाल भवन को देखा। इस समय कवि ने देश की खराब आर्थिक स्थिति का अनुभव किया। वह देश की जनता की निर्धनता की प्रति बहुत चिंतित हुआ।

प्रश्न 6.
तोड़ती पत्थर शीर्षक कविता में किस बात की अभिव्यक्ति हुयी है?
उत्तर-
तोड़ती पत्थर शीर्षक कविता में प्रगतिवादी चेतना को अभिव्यक्ति हुयी है।

प्रश्न 7.
तोड़ती पत्थर शीर्षक कविता में वर्णित मजदूरिन पत्थर कहाँ तोड़ती है?
उत्तर-
कविता में वर्णित मजदूरिन इलाहाबाद की सड़क पर पत्थर तोड़ती है।

प्रश्न 8.
मजदूरिन के जीवन यथार्थ के चित्रण के माध्यम से कविता में किस बात पर प्रकाश डाला गया है?
उत्तर-
तोड़ती पत्थर शीर्षक कविता में मजदूरिन के जीवन यथार्थ के चित्रण के माध्यम से अर्थजन्य सामाजिक विषमता और आर्थिक बदहाली पर प्रकाश डाला गया है।

तोड़ती पत्थर वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर

I. निम्नलिखित प्रश्नों के बहुवैकल्पिक उत्तरों में से सही उत्तर बताएँ

प्रश्न 1.
तोड़ती पत्थर के कवि हैं?
(क) त्रिलोच
(ख) दिनकर
(ग) सुमित्रानन्दन पंत
(घ) निराला
उत्तर-
(घ)

प्रश्न 2.
‘निराला’ का जन्म कब हुआ था?
(क) 1897 ई.
(ख) 1890 ई.
(ग) 1880 ई.
(घ) 1885 ई.
उत्तर-
(क)

प्रश्न 3.
‘निराला’ का जन्मस्थान था?
(क) बंगाल
(ख) उत्तर प्रदेश
(ग) मध्यप्रदेश
(घ) दिल्ली
उत्तर-
(क)

प्रश्न 4.
‘निराला के पिता का नाम था
(क) रामानुज त्रिपाठी
(ख) केदारनाथ त्रिपाठी
(ग) पं० रामसहाय त्रिपाठी
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर-
(घ)

प्रश्न 5.
‘निराला’ की विशेष अभिरुचि थी
(क) संगीत में
(ख) कुश्ती में
(ग) सितारवादक में
(घ) तबला बादन में
उत्तर-
(क और ख)

प्रश्न 6.
“निराला’ की पहली कविता है?
(क) जूही की कली
(ख) तोड़ती पत्थर
(ग) सड़क पर मौत
(घ) कोई नहीं
उत्तर-
(क)

प्रश्न 7.
पत्थर तोड़ती मजदूरनी को कवि ने कहाँ देखा था?
(क) इलाहाबाद के पथ पर
(ख) इलाजाबाद की अट्टालिकाओं में
(ग) इलाहाबाद की सड़कों पर
(घ) इलाहाबाद की गलियों में
उत्तर-
(क)

II. रिक्त स्थानों की पूर्ति करें।

प्रश्न 1.
निराला रचनावली ………….. दिल्ली से आठ खंडों में प्रकाशित है।
उत्तर-
राजकमल प्रकाशन।

प्रश्न 2.
कवि निराल की तोड़ती पत्थर एक गरीब मजदूरनी की …………. का दर्पण है।
उत्तर-
व्यथा-कथा

प्रश्न 3.
मजदूरीन अपने ……………. काम में पूर्णतन्मयता से व्यस्त है।
उत्तर-
श्रम-साध्य।

प्रश्न 4.
कवि ने तोड़ती पत्थर में मजदूरीन का सुन्दर …………….. प्रस्तुत किया है।
उत्तर-
चित्रण।

प्रश्न 5.
तोड़ती पत्थर में …………… का सजीव चित्रण है।
उत्तर-
आर्थिक विषमता।

प्रश्न 6.
निराला मुख्यतः ……………. के कवि हैं।
उत्तर-
छायावाद।

प्रश्न 7.
निराला ने शोषकों के अत्याचार को ……………….. किया है।
उत्तर-
उजागर।

प्रश्न 8.
तोड़ती पत्थर में मजदूरिन की ……………… का वर्णन किया गया है।
उत्तर-
मार्मिक स्थिति।

प्रश्न 9.
सामाजिक विषमता का दंश मूक होकर रहने को गरीब मजदूरिन ……………. है।
उत्तर-
अभिशप्त।

तोड़ती पत्थर कवि परिचय – सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ (1897-1961)

सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ का जन्म 1899 ई. में बंगाल के मेदिनीपुर जिले के महिषादल राज्य में हुआ था। इनके पिता पं. रामसहाय त्रिपाठी महिषादल राज्य के कर्मचारी थे। तीन वर्ष की आयु में ही निराला जी की माता का देहांत हो गया। उनकी प्रारंभिक शिक्षा बंगाल में हुई। बंगाल में रहते हुए ही उन्होंने संस्कृत, बंगला, संगीत और दर्शनशास्त्र का गहन अध्ययन किया। 14 वर्ष की आयु में उनका विवाह मनोहरा देवी से हुआ, किंतु उनका पारिवारिक जीवन सुखमय नहीं रहा।

1918 ई. में उनकी पत्नी का स्वर्गवास हो गया और उसके बाद पिता, चाचा और चचेरे भाई भी एक-एक करके उन्हें छोड़कर इस दुनिया से चल बसे। उनकी प्रिय पुत्री सरोज की मृत्यु ने तो उनके हृदय के टुकड़े-टुकड़े कर डाले। इस प्रकार निराला जीवन-भर क्रूर परिस्थितियों से संघर्ष करते रहे। 15 अक्टूबर, 1961 ई. को इनका स्वर्गवास हो गया – रचनाएँ-निराला का रचना संसार बहुत विस्तृत है। उन्होंने गद्य और पद्य दोनों ही विधओं में लिखा है। उनकी रचनाएँ निराला रचनावली के आठ खंडों में प्रकाशित हैं। निराला अपनी कुछ कविताओं के कारण बहुत प्रसिद्धि प्राप्त कवि हो गए हैं।

‘राम की शक्ति पूजा’ और ‘तुलसीदास’ उनकी प्रबंधात्मक कविताएँ हैं, जिनका साहित्य में महत्त्वपूर्ण स्थान है। ‘सरोज-स्मृति’ हिन्दी की अकेली कविता है जो किसी पिता ने अपनी पुत्री की मृत्यु पर लिखी है। निराला की प्रमुख काव्य-कृतियाँ हैं-अनामिका, परिमल, गीतिका, तुलसीदास, कुकुरमुत्ता, अणिमा, नए पत्ते, बेला, अर्चना, आराधना, गीतगुंज। इन ग्रन्थों में अनेक ऐसी कविताएँ हैं जो निराला को जन कवि बना देती हैं। जिनकी लोगों ने अपने कंठ में स्थान दिया है। यथा-जूही की कली, तोड़ती पत्थर, कुकुरमुत्ता, भिक्षुक, मै अकेला, बादल-राग आदि।

भाषा-शैली-काव्य की पुरानी परम्पराओं को त्याग कर काव्य-शिल्प के स्तर पर भी विद्राही। तेवर अपनाते हुए निराला जी ने काव्य-शैली को नई दिशा प्रदान की। उनके.काव्य में भाषा का कसाव, शब्दों की मितव्ययिता एवं अर्थ की प्रधानता है। संस्कृतनिष्ठ तत्सम शब्दों के साथ ही संधि-सामसयुक्त शब्दों का भी प्रयोग निराला जी ने किया है।

काव्यगत विशेषताएँ-निराला छायावाद के महत्त्वपूर्ण चार कवियों में से एक हैं। उनकी छायावादी कविताओं में प्रेम, प्रकृति-चित्रण तथा रहस्यवाद जैसी प्रवृत्तियों को मिलती हैं। बाद में निराला प्रगतिवाद की ओर झुक गए थे ! प्रगतिवादी विचारधारा के अनुसार उन्होंने शोषकों के विरोध और शोषितों के पक्ष में अनेक कविताएँ लिखी हैं, जिनमें, ‘विधवा’, “भिक्षुक’ और ‘तोड़ती पत्थर’ जैसी कविताओं में शोषितों के प्रति सहानुभूति है, तो ‘जागो फिर एक बार’ जैसी कविताओं में कवि दबे-कुचलों को जगाने का आह्मन करता है-

जागो फिर एक बार।
सिंह की गोद से
दीनता रे शिशु कौन?
मौन भी क्या रहती वह
रहते प्राण? रे अंजान।
एक मेषमाता ही
रहती है निर्निमेष
दुर्बल वह

इन पंक्तियों से कवि राष्ट्रीयता को भी अभिव्यक्त करता है। ‘तोड़ती पत्थर’ कविता के पत्थर तोड़ने वाली की कार्य करने की परिस्थिति को देखकर किसका हृदय-द्रवीभूत नहीं हो जाएगा।

निराला की प्रकृति संबंधी कविताएँ भी प्रकृति के मनोरम रूप प्रस्तुत करती हैं। उनकी ‘संध्या-सुंदरी’ कविता प्रकृति के मनोहर रूप प्रस्तुत करती है। बादल राग में भी प्रकृति का स्वाभाविक वर्णन करता है।

‘खुला आसमान’ कविता में प्रकृति की बहुत सरल भाषा में ऐसा वर्णन है, मानो दृश्यावली की रील चल रही हो।

सब मिलाकर निराला भारतीय संस्कृति के गायक हैं, किंतु वे रूढ़ियों के विरोधी हैं और समय के साथ चलने में विश्वास रखते हैं।

तोड़ती पत्थर कविता का सारांश

मार्क्सवादी चेतना का संस्पर्श लिये प्रगतिवाद की प्रतिनिधि रचना है “वह तोड़ती पत्थर”, जिसके रचनाकार हैं सचमुच के भावुक कवि महाप्राण सूर्यकान्त त्रिपाठी “निराला’।

कविता ‘वह’ से आरम्भ होती है और ‘मै’ से समाप्त होती है पर से स्व की यात्रा ही यह रचना है। जिस देश में “नारी की पूजा होती है वहाँ बसते हैं देव” जैसी महत् भावना कभी वास्तविकता थी। उसी देश में एक गरीब मजदूर स्त्री जेठ मास की चिलचिलाती धूप में बिना किसी छाया के पत्थर तोड़ रही है। यह दृश्य भले ही कवि को इलाहाबाद (प्रयाग) के पथ पर कहीं देखने को मिला किन्तु आज देश का हर कोना इस मामले में इलाहाबाद ही है। अमीरी गरीबी के बीच बड़ी चौड़ी अपाट्य खायी है।

इसे कवि ने पत्थर तोड़ती कर्मरत वयस्क नारी के माध्यम से व्यक्त किया है। नियति विरुद्ध है। वरन् नारी के कोमल हाथों में भारी हथौड़ा क्यों होता जो बार-बार उठता है और गिरकर पत्थर को चकनाचूर करता है। उसके ठीक सामने पेड़ों की कतार है, ऊँचे-ऊँचे भवन हैं, बड़ी-बड़ी दीवारी है अर्थात् सुख-वैभव वहाँ संरक्षित है, यह साँवली भरे बदन वाली युवती आँखें नीची किये अपने इसी पत्थर तोड़ने के प्रिय कर्म में मनोयोग से लगी है।

देखते-देखते दोपहर हुई। सूर्य प्रचंडती हुए। देह को झुलसा देने वाली लू चलने लगी धूल के बवंडर उठे धरती रूई की तरह जल रही है। किन्तु इस विषम परिस्थिति में भी उसका पत्थर तोड़ना जारी रहा। जब उसने देखा कि मैं (कवि) उसे देख रहा हूँ तो उसने पहले सामने मानचुम्बी भवन को देखा फिर एक अजब दृष्टि से जिसमें, व्यंग्य, निराश, कटाक्ष, आक्रोश, नियतिवाद, जैसे भाव एक साथ समाजित थे, मुझे देखा। मुझे ऐसा लगता जैसे किसी को मार पड़ी हो किन्तु किसी विवशतावश वह रो नहीं पाया हो, वह भाव आँखों से व्यक्त हो रहा था।

इसके बाद कवि जाग्रत स्वप्नावस्था में चला गया। उसने देखा कि एक सितार साधा जा चुका है और उसके तारों से एक अनसुनी झंकार निकल रही है। स्वप्न टूटा, एक क्षण के लिए मरत स्त्री काँप गयी। गर्मी की अतिशयता से माथे से पसीने की बुन्दें दुलक पड़ी। उसे अपनी पति स्वीकार है, वह पुनः कर्म में लीन हो गयी। कवि को सुनाई पड़ा जैसे उसने कहा हो-मैं तोड़ती पत्थर। वास्तव में इस कविता में कवि ने सड़क के किनारे पत्थर तोड़ने वाली एक गरीब जिदरिन का मार्मिक चित्रण प्रस्तुत किया है।

तोड़ती पत्थर कठिन शब्दों का अर्थ

पथ-रास्ता। श्याम तन-साँवला शरीर। नत नयन-झुकी आँखें। कर्म-रत-मन-काम में लीन मन। गुरू-बड़ा। तरु मालिका-पेड़ों की पंक्ति। अट्टालिका-ऊँचा बहुमंजिला भवन। . प्रकार-चहारदीवारी, परकोटा। दिवा-दिन। भू-धरती। गर्द-धूल। चिनगी-चिनगारी। सुघर-सुगठित। सीकर-पसीना। छिन्नतार-टूटी निरंतरता।

तोड़ती पत्थर काव्यांशों की सप्रसंग व्याख्या

1. श्याम तन ……………. कर्म-रत मन।
व्याख्या-
निराला रचित कविता ‘तोड़ती पत्थर’ से गृहीत प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने उस पत्थर तोड़नेवाली मजदूरनी के रूप-रंग का वर्णन किया है जिसे उसने इलाहाबाद के पथ पर देखा था। कवि के अनुसार उसका शरीर साँवला है। वह युवती है। उसका शरीर भरा हुआ तथा बँधा हुआ है अर्थात् वह गठीले शरीर वाली है और शरीर मांसल है। अर्थात् उसमें यौवन अपनी पूर्णता में विकसित है। वह आँख नीचे किये अपने काम में तल्लीन है।

प्रिय कर्मरत मन कहकर कवि यह बताना चाहता है कि उसने मजदूरी को अपनी जीविका का अनिवार्य माध्यम मान लिया है। उसका मन अपने काम में लगता है। अर्थात् वह मन लगाकर प्रेम से काम कर रही है। पत्थर तोड़ने का कार्य उसके लिए न तो बेगारी है और न अनिच्छा से थोपा हुआ कार्य। इस कथन से उसकी कर्मप्रियता और कर्मनिष्ठा दोनों व्यक्त हो रही है।

समग्रतः वह मजदूरनी भरे हुए यौवन वाली साँवली युवती है और वह मन लगाकर तल्लीन होकर काम कर रही है। कदाचित् इसी तत्लीनता के कारण वह धूप के कड़ेपन का अनुभव नही कर पा रही है।

2. गुरू हथोड़ा हाथ ………….. अट्टालिका, प्राकार।
व्याख्या-
‘तोड़ती पत्थर’ महाकवि निराला रचित एक प्रगतिवादी कविता है। इस कविता के व्याख्येय पंक्तियों में कवि ने प्रतीक के सहारे प्रगतिवाद की मूल चेतना “सर्वहारा बनाम पूँजीपति” के संघर्ष को व्यजित किया है।

इलाहाबाद के पथ पर कवि ने जिस मजदूरनी को पत्थर तोड़ते देखा है वह पूरी तल्लीनता . के साथ लगातार पत्थर पर भारी हथौड़े से प्रहार कर रही है। सामने वृक्ष-समूह की माला से घिरी हुई एक अट्टालिका यानी हवेली है। वह हवेली प्रकार अर्थात् चहारदीवारी से घिरी है। कवि को अनुभव होता है कि मजदूरनी पत्थर पर नहीं सामने वाले भव्य भवन पर हथौड़े से प्रहार कर रही है।

हम जानते हैं कि हँसिया हथौड़ा मार्क्सवादी पार्टी का चिह्न है। पार्टी मार्क्स के सिद्धातों पर चलती है। मार्क्स के अनुसार समाज में दो ही वर्ग है।
(i) शोषित या सर्वहारा जिसमें किसान-मजदूर आते हैं।
(ii) पूँजीपति, जिनके पास सम्पत्ति है, ऊँचे महल है और सुख-सुविधा के समान है।

सर्वहारा को संगठित कर पूँजीपतियों के विरुद्ध संघर्ष करते हुए उनका खात्मा और किसान -मजदूर राज की स्थानापना का मार्क्स का दर्शन है।

उपर्युक्त पंक्तियों में हथौड़ा मजदूर का प्रतीक है और चहारदीवारी से घिरी वृक्ष-समूहों : शीतल छाया में खड़ा विशाल भवन पूँजीपति का प्रतीक है। मजदूरनी मानों पत्थर पर हथोड़, चलाकर इसकी चोट का प्रभाव महल की दीवारों पर अंकित करना चाहती है।

3. दिवा का तमतमाया रूप ……………………. वह तोड़ती पत्थर।
व्याख्या-
‘तोड़ती पत्थर’ कविता की प्रस्तुत पंक्तियों में निराला जी ने पत्थर तोड़ने वाली के कार्य-परिवेश का वर्णन किया है। इसी के अन्तर्गत मौसम का उल्लेख है। मौसम ग्रीष्म का है। जैसे-जैसे दिन चढ़ता जाता है गर्मी बढ़ती जाती है। कवि कल्पना करता है कि इस अत्यधिक गर्मी के माध्यम से मानो दिन का क्रोधित तमतमाया हुआ रूप व्यक्त हो रहा है।

दिन के तमतमाने का मतलब है अत्यधिक गर्मी। इसके परिणामस्वरूप लू चलने लगी है जो तन को झुलसा रही है। धरती इस तरह जल रही है मानो रूई जल रही हो। हवा के थपेड़ो के कारण चारो तरफ गर्द-गुब्बार का साम्राज्य है। तप्त हवा के कारण यह धूल शरीर से लगती है तब लगता है कि आग की चिनगारी उड़ कर शरीर में लग रही है।

ऐसे विषम और गर्म मौसम में भी बेचारी मजदूरनी छायाविहीन स्थान पर पत्थर तोड़ रही है और दोपहरी के प्रचण्ड ताप में झुलस कर भी काम कर रही है। इन पंक्तियों में ‘रूई ज्यों . जलती’ उपमा अलंकार है और पूरे कथन में उत्प्रेक्षा अलंकार की ध्वनि है।

4. देखते देखा मुझे ……………. मार खा रोई नहीं।
व्याख्या-
निराला रचित ‘तोड़ती पत्थर’ कविता की प्रस्तुत पंक्तियों में कवि पत्थर तोड़ने वाली मजदूरनी के साथ आत्मीय सम्बन्ध स्थापना की चेष्टा करता है। इससे कविता तटस्थ वर्णन के क्षेत्र में निकालकर आत्मीयता की परिधि में आ जाती है।

कवि को अपनी ओर देखते देखकर वह मजदूरनी भी उसकी ओर मुखाबित होती है। फिर वह एक बार उस विशाल भवन की ओर देखती है। मगर वहाँ उसे जोड़ने वाला कोई तार नहीं दिखता। अर्थात् वहाँ उसकी ओर किसी भी दृष्टि से देखने वाला कोई नहीं है। अतः प्रहार से तार छिन्न हो जाता है, टूट जाता है। कवि ‘छिन्नतार’ शब्द के प्रयोग द्वारा यह कहना चाहता है कि एक मजदूर और एक महल वाले के बीच जोड़ने वाला कोई तार नहीं होता।

लिहाजा अट्टालिका की ओर से दृष्टि घुमाकर मजदूरनी कवि की ओर देखती है। उसकी दृष्टि में वेदना है जो मार खाकर भी न रोने वाले बच्चे की आँखों में होती है। ऐसी दृष्टि बेहद करुण होती है। यहाँ कवि की दृष्टिमें सहानुभूति है तो मजदूरनी की दृष्टि में विवशता भरी करुणा जो किसी की सहानुभूति पाकर उमड़ पड़ती है।

5. सजा सहज सितार ………………. मैं तोड़ती पत्थर।
व्याख्या-
‘तोड़ती पत्थर’ कविता की प्रस्तुत पंक्तियों में निराला जी ने अपनी भावना और मजदूरनी की यथार्थ स्थिति को मिला दिया है। मजदूरनी जिस “मार खा रोई नहीं” दृष्टि से कवि को देखती है उससे कवि से हृदय रूपी सितार के तार बज उठते हैं। उसमें वे करुणापूर्ण ममत्व की रागिनी झंकृत होने लगती है। ‘सजा सहज सितार’ के द्वारा कवि हृदय में मजदूरनी के प्रति सहानुभूति उत्पन्न होने की बात कहना चाहता है। उसे वेदना की ऐसी अनुभूति पहले कभी नहीं हुई थी। इसीलिए वह कहता है-“सुनी मैने वह नहीं जो थी सुनी झंकार।”

इसके बाद कवि पुनः यथार्थ के बाह्य जगत में लौट आता है। वह देखता है कि एक क्षण के बाद मजदूरनी के शरीर में कम्पन हुआ और उसके माथे पर झलक आयी पसीने की बूंदे लुढ़क पड़ती हैं। वह पुनः कर्म में लीन हो गयी। मानो कह रही हो-मैं तोड़ती पत्थर। इन क्तयों से स्पष्ट है कि मजदूरनी की कातर दृष्टि तथा मौसम की कठोर स्थिति की विषमता ने कवि के मन को उदवेलित किया। उसकी भावना के तार करुण से झंकृत हुए और उसी की परिणति इस कविता की रचना के रूप में हुई। ये पंक्तियाँ इस कविता को प्रेरणा– भूमि समझने की कुंजी ज्ञात होती है।

Bihar Board Class 11 History Solutions Chapter 6 तीन वर्ग

Bihar Board Class 11 History Solutions Chapter 6 तीन वर्ग Textbook Questions and Answers, Additional Important Questions, Notes.

BSEB Bihar Board Class 11 History Solutions Chapter 6 तीन वर्ग

Bihar Board Class 11 History तीन वर्ग Textbook Questions and Answers

 

पाठ्य-पुस्तक के प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
फ्रांस में प्रारम्भिक सामंती समाज के दो लक्षणों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:

  • सामंती समाज से कृषक अपने खेतों के साथ-साथ सामंत के खेतों पर कार्य करते थे।
  • लार्ड किसानों को सैनिक सरक्षा प्रदान करता था।

प्रश्न 2.
जनसंख्या के स्तर में होने वाले लंबी अवधि के परिवर्तनों ने किस प्रकार यूरोप की अर्थव्यवस्था और समाज को प्रभावित किया?
उत्तर:
यूरोप की जनसंख्या निरंतर बढ़ती जा रही थी। 1000 ई. में लगभग 420 लाख थी, बढ़कर 1200 में लगभग 620 लाख और 1300 ई. में 730 लाख हो गयी। इसका समाज और अर्थव्यवस्था पर निम्नलिखित प्रभाव पड़ा –

  • अधिक जनसंख्या बढ़ने से कृषि का विस्तार हुआ और कृषकों के पास आवश्यकता से अधिक खाद्यान्न होता था।
  • लोगों को नगर चौक, चर्च, सड़कें, बाजार आदि की आवश्यकता महसूस हुई। फलस्वरूप नगरों का विकास किया गया।

प्रश्न 3.
नाइट एक अलग वर्ग क्यों बने और उनका पतन कब हुआ?
उत्तर:

  • नोवी शताब्दी में नाइट एक अलग वर्ग बना जो कुशल अश्वसेना की आवश्यकता की पूर्ति कर सके।
  • 14 – 15 वीं शताब्दी में नगरों के उत्थान के साथ इनका पतन शुरू हो गया।

प्रश्न 4.
मध्यकालीन मठों का क्या कार्य था?
उत्तर:
मध्यकालीन मठों का निम्नलिखित कार्य था –

  • मठ धार्मिक समुदाय के निवास थे। वहाँ भिक्षु प्रार्थना करता था, अध्ययन करता था और कृषि जैसे शारीरिक श्रम भी करते थे।
  • इन मठों ने कला के विकास में थी योगदान दिया। उदाहरण के लिए हेडेलगार्ड ने चर्च की प्रार्थनाओं में सामुदायिक गायन को प्रथा के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया।

प्रश्न 5.
मध्यकालीन फ्रांस के नगर में एक शिल्पकार के एक दिन के जीवन की कल्पना कीजिए और इसका वर्णन करिए।
उत्तर:
मध्यकालीन फ्रांस के नगर में एक शिल्पकार के एक दिन का जीवन-मध्यकालीन फ्रांस में शिल्प का विकास हो गया और मूर्तिकार, कसीदाकारी करने वाले, पत्थर पर डिजाइन बनाने वाले कहीं भी देखे जा सकते थे। पत्थर पर काम करने वाले शिल्पकार की ही कल्पना करते हैं। वह पत्थर को अपने सामने लाता है। उसको इधर-उधर देखकर उचित ढंग से रखता है। फिर वह अपने औजार का बक्स खोलता है। वह एक-एक करके उन्हें निकालता जाता है

और साफ करता है। पत्थर को तोड़ने के लिए हाथ में हथौड़ी लेता है। उसे ढोकता है और उसके हत्थे को ठीक करता है। फिर छेनी को पत्थर पर घिसकर तेज करता है। घिसते समय बार-बार देखता है कि वह काम लायक है या नहीं। ठीक हो जाने पर पत्थर का काम करने के लिए तैयार हो जाता है।

पत्थर पर डिजाइन सांचे की सहायता से चाक से बना लेता है। फिर पच्चीकारी के कार्य में जुट जाता है हथौड़ी से छेनी को कभी धीमे कभी तेज मारता है। पत्थर से कभी छोटा टुकड़ा निकल ग कभी बड़ा टुकड़ा निकलता है। तर यह कार्य बड़े मनोयोग से करता है। बीच-बीच में मनारजन के लिए गाना गुनगुनाता रहता है या सिगार पी लेता है। दोपहर के समय काम बंद कर देता है और खाने के लिए चला जाता है। थोड़ा आराम करने के बाद फिर काम में लग जाता है। मैंने देखा शाम होने जा रही है परंतु शिल्पकार कंवल पत्थर के एक छाट भाग को ही है खूबसूरत डिजाइन का रूप दे पाया है। वह दिन भर खून पसीना बहाता रहा । वह काम बंद कर देता है, सामान को उचित जगह पर रखकर प्रसन्न होकर घर चला जाता है।

प्रश्न 6.
फ्रांस के सर्फ और रोम के दास जीवन की दशा की तुलना कीजिए।
उत्तर:
फ्रांस के सर्फ और रोम के दास जीवन की दशा की तुलना –

  • फ्रांस का सर्फ या कृषि दास को अपने लार्ड के जागीर पर काम करना होता था परंतु काम करने के दिन निश्चित होते थे।
  • वह इन दिनों में सभी प्रकार का कार्य करता था उस कार्य विशेष रूप से कृषि एवं गृह कार्य से सम्बद्ध होता था।
  • रोम का दास अपने मालिक के दास खूटे में बंधा हुआ था। उससे कभी भी कोई भी कार्य कराया जा सकता था। उसका पूरा समय स्वामी के साथ जुड़ा हुआ था।
  • स्वामी के कार्य के बदले दोनों को स्वामी से कोई मजदूरी नहीं मिलती थी।
  • सर्फ प्रायः अपने परिवार के लार्ड के यहाँ कार्य करते थे परंतु रोम के दासों के साथ ऐसा नहीं था। उनका पार्टनार प्रायः उनके साथ नहीं होता था।
  • कृषिदास के पास गुजारे के लिए लार्ड का एक भूखंड होता था। इसके अधिकांश उपज लार्ड को देनी पडती थी। रोम के दास के पास इस प्रकार की कोई व्यवस्था नहीं थी।
  • फ्रांस के कृषि दास और रोम के दास दोनों स्वामी की आज्ञा के बिना कहीं नहीं जा सकते थे।
  • सर्फ लार्ड की आज्ञा से ही विवाह कर सकता था परंतु रोम का दास तो विवाह ही नहीं कर सकता था।
  • रोम का दास खरीदा या बेचा जा सकता था परंतु सर्फ के साथ ऐसा नहीं किया जा सकता था।

Bihar Board Class 11 History तीन वर्ग Additional Important Questions and Answers

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
‘सामंतवाद’ का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
सामंतवाद (Fuedalism) शब्द जर्मन शब्द ‘फ्यूड’ से बना है। फ्यूड का अर्थ है-भूमि का टुकड़ा। अतः ऐसी प्रणाली को सामंतवाद कहा जाता है जिसमें भूमि के बदले सेवाएँ प्राप्त की जाती हैं। सामंती समाज का उदय मध्यकालीन यूरोप में हुआ।

प्रश्न 2.
रोमन साम्राज्य का कौन-सा प्रांत आगे चलकर फ्रांस बना और कैसे?
उत्तर:
रोमन साम्राज्य का गॉल (Gaul) प्रांत आगे चलकर फ्रांस बना। इसे जर्मनी की फ्रंक (Franks) नामक एक जनजाति ने अपना नाम देकर फ्रांस बना दिया।

प्रश्न 3.
फ्रांस का समाज किस आधार पर तीन वर्गों में बँटा था?
उत्तर:
फ्रांसीसी पादरियों को विश्वास था कि प्रत्येक व्यक्ति कार्य के आधार पर तीन वर्गों में से किसी एक वर्ग सदस्य होता है। एक बिशप ने कहा, “वर्ग क्रम में, कुछ प्रार्थना करते हैं, दूसरे लड़ते हैं और शेष अन्य कार्य करते हैं।” फ्रांस का समाज इसी आधार पर तीन वर्गों अर्थात् पादरी, अभिजात और कृषक वर्ग में बँटा था।

प्रश्न 4.
फ्रांस के अभिजात वर्ग को प्राप्त कोई दो विशेषाधिकार बताएँ।
उत्तर:

  • उनका अपनी संपदा पर स्थायी रूप से पूर्ण नियंत्रण होता था।
  • वे अपना स्वयं का न्यायालय लगा सकते थे। यहाँ तक कि वे अपनी मुद्रा भी जारी कर सकते थे।

प्रश्न 5.
मेनर क्या था?
उत्तर:
उपजाऊ भूमि को ‘मेनर’ कहते थे। मेनर के मध्य लार्ड अथवा सामंत का महल होता था। मेनर में रहने वाले लोग की भूमि पर ही निर्वाह करते थे। किसान का जीवन बड़ा कष्टमय था। मेनर का स्वामी अथवा सामंत बहुत भोग-विलास का जीवन व्यतीत करता था।

प्रश्न 6.
मध्यकालीन यूरोप में वर्गों का विकास नहीं हुआ? 13वीं शताब्दी में इनका आकार क्यों बढ़ाया जाने लगा?
उत्तर:
मध्यकालीन यूरोप में वर्गों का विकास सामंत प्रथा के अंतर्गत राजनीतिक प्रशंसा तथा सैनिक शक्ति के केन्द्रों के रूप में हुआ। 13वीं शताब्दी में इनका आकार इसलिए बढ़ाया जाने लगा ताकि ये नाईट तथा उसके परिवार का निवास स्थान बन सकें।

प्रश्न 7.
सामंती प्रथा के अंतर्गत ‘फीफ’ क्या थी?
उत्तर:
लार्ड नाइट को भूमि का एक भाग देता था। इसी भू-भाग को ‘फीफ’ कहते थे। नाइट फीफ के बदले लार्ड को एक निश्चित धनराशि देता था और युद्ध में उसकी ओर से लड़ने का वचन देता था।

प्रश्न 8.
बारहवीं शताब्दी में फ्रांस में घुमक्कड़ चारण क्या भूमिका निभाते थे?
उत्तर:
घुमक्कड़ चारण गायक थे। वे फ्रांस के मेनरों में वीर राजाओं तथा नाइट्स की वीरता भरी कहानियाँ गीतों के रूप में गाते हुए घूमते रहते थे। इस प्रकार वे योद्धाओं का उत्साह बढ़ाते थे।

प्रश्न 9.
कैथोलिक चर्च एक शक्तिशाली संस्था थी। कैसे?
उत्तर:
कैथोलिक चर्च एक स्वतंत्र संस्था थी जिसके अपने नियम थे। उसके पास राजा द्वारा दी गई भूमि होती थी जिससे वह कर उगाता था। इसलिए चर्च एक शक्तिशाली संस्था थी।

प्रश्न 10.
‘टीथ’ (Tithe) क्या था?
उत्तर:
चर्च ते कृषक से एक वर्ष में उसकी उपज का दसवाँ भाग लेने का अधिकार था। इसे टीथ कहा जा था।

प्रश्न 11.
तीन वर्गों से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
तीन गौ से अभिप्राय 9वीं से 16वीं शताब्दी के बीच यूरोप की तीन सामाजिक श्रेणियों से है।

वर्ग थे –

  • ईसाई पादरी
  • भूमिधारक अभिजात वर्ग तथा
  • कृषक

प्रश्न 12.
96 से 11वीं शताब्दी के बीच पश्चिमी यूरोप के ग्रामीण क्षेत्रों में होने वाला कोई एक परिवर्तन बताएँ। एक उदाहरण भी दें।
उत्तर:
इस कार में चर्च तथा शाही शासन ने वहाँ के कबीलों के प्रचलित नियमों और संस्थाओं में तालमेल स्थापित करने में सहायता की। इसका सबसे अच्छा उदाहरण पश्चिमी और मध्य यूरोप में शालर्मन का साम्राज्य था।

प्रश्न 13.
वाइकिंग लोग कौन थे?
उत्तर:
वाइकिंग स्कैंडीनेविया अर्थात् नार्वे, स्वीडेन डेनमार्क तथा आइसलैंड के थे जो 8वीं से वीं शताब्दी के बीच उत्तर पश्चिमी रोप पर आक्रमण करने के बाद वहीं बस गए। इनमें से अधिकांश लोग समुद्री लुटेरे तथा व्यापारी थे।

प्रश्न 14.
9वीं से 16वीं शताब्दी तक पश्चिमी यूरोप के इतिहास की जानकारी किस प्रकार मिल सकी? उदाहरण दीजिए।
उत्तर:

  • चर्चा में मिलने वाले जन्म, मृत्यु तथा विवाह के अभिलेखों की सहायता से परिवारों और जनसंख्या की संरचना को समझा जा सका।
  • चर्चा से प्राप्त अभिलेखों से व्यापारिक संस्थाओं की जानकारी मिली।
  • गीत व कहानियों द्वारा हमें त्योहारों और सामुदायिक गतिविधियों के बारे में बोध हुआ।

प्रश्न 15.
कैथोलिक चर्च की आय के दो स्रोत बताइए।
उत्तर:

  • किसानों से मिलने वाली टीथ।
  • धनी लोगों द्वारा अपने कल्याण तथा मरणोपरांत अपने रिश्तेदारों के कल्याण के लिए दिया जाने वाला दान।

प्रश्न 16.
चर्च के औपचारिक रीति-रिवाज की कुछ महत्त्वपूर्ण रस्में, सामंती कुलीनों की नकल थीं। इसके दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर:

  • प्रार्थना करते समय हाथ जोड़कर और सिर झुकाकर घुटनों के बल झुकना नाइट द्वारा अपने वरिष्ठ लॉर्ड के प्रति वफादारी की शपथ लेते समय अपनाए गए तरीके जैसा था।
  • इसका एक अन्य उदाहरण था-ईश्वर के लिए ‘लॉर्ड’ शब्द का प्रयोग।

प्रश्न 17.
यूरोप के दो सबसे प्रसिद्ध मठ कौन-कौन से थे?
उत्तर:

  • 529 ई. में इटली में स्थापित सेंट बेनेडिक्ट (St. Benedict) का मठ।
  • 910 ई. में बरगंडी में स्थापित क्लूनी (Clunny) का मठ।

प्रश्न 18.
फ्रायर (Friars) किन्हें कहा जाता था?
उत्तर:
तेरहवीं शताब्दी में भिक्षुओं के कुछ समूहों ने मठों में न रहने का निर्णय लिया। वे एक स्थान से दूसरे स्थान पर घूम-घूम कर लोगों को उपदेश देते थे और दान से अपनी जीविका चलाते थे। इन्हें फ्रायर (Friars) कहा जाता था।

प्रश्न 19.
टैली (Taille) क्या था? कौन लोग इससे मुक्त थे?
उत्तर:
टैली एक प्रकार का प्रत्यक्ष कर था जो राजा कृषकों पर लगाते थे। पादरी तथा अभिजात वर्ग इस कर से मुक्त थे।

प्रश्न 20.
विलियम प्रथम कौन था? उसने इंग्लैंड का शासन कैसे प्राप्त किया ?
उत्तर:
विलियम प्रथम नारमैंडी का ड्यूक था। 11वीं शताब्दी में उसने एक सेना लेकर इंग्लिश चैनल को पार किया तथा इंग्लंड के सैक्सन राजा को हराकर इंग्लैंड पर अपना अधिकार कर लिया।

प्रश्न 21.
मध्यकाल में इग्लैंड की कृषि से जुड़ी कोई दो समस्याएँ बताओ।
उत्तर:

  • हल लकड़ी का था जिसे बैल खींचते थे। यह हल केवल भूमि की सतह को ही खुरच सकता था। यह भूमि की प्राकृतिक उत्पादकता को पूरी तरह से बाहर निकाल पाने में असमर्थ था।
  • फसल-रक में भी एक प्रभावहीन तरीके का उपयोग हो रहा था।

प्रश्न 22.
कृषिदास नगरों में भाग जान का प्रयास क्यों करते थे?
उत्तर:
पदाम अपने लाडों से छिर्ग के लिए नगरों में भाग जाने का प्रयास करते थे। यदि वे अपने भाई से एक वर्ष और एक दिन तक छिपे रहने में सफल हो जाते थे, तो वे स्वतंत्र नागरिक या जाते थे।

प्रश्न 23.
इंग्लैंड में नयी कृषि प्रौद्योगिकी के प्रचलन से कृषि क्षेत्र में हुए कोई दो परिवर्तन लाएँ।
उत्तर:

  • लकड़ी से बने हल के स्थान पर लोहे की भारी नोक वाले हल तथा साँचे दर पट्टे (Mould-hoards) का उपयोग होने लगा। ऐसे हल भूमि को अधिक गहरा खोद सकते थे।
  • पशुओं को हल में जोतने के तरीकों में सुधार हुआ। अब जुआ गले (Neck harmess) के स्थान पर कधे पर रखा जाने लगा। इससे पशुओं के काम करने की क्षमता बढ़ गई।

प्रश्न 24.
मध्ययुग में नगरों के विकास के कोई दो कारणों का वर्णन करो।
उत्तर:

  • मध्ययुग में वाणिज्य-व्यापार की उन्नति के कारण नगरों का महत्त्व काफी अधिक बढ़ गया। अत: बहुत-से व्यापारी नगरों में बस गए।
  • नगर सामंती नियंत्रण से मुक्त हो गए थे। नगरों में रहने वाले लोगों के आने-जाने पर कोई प्रतिबंध नहीं था। फलतः नगरों का विकास हुआ।

प्रश्न 25.
मध्ययुगीन यूरोप की शिल्पी श्रेणियों की दो मुख्य विशेषताओं की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:

  • ये श्रेणियाँ वेतन, मूल्यों तथा काम की अवधि का निर्धारण करती थीं।
  • ये अपने शिल्प संघ के उच्च स्तर को बनाए रखने का प्रयत्न करती थीं और इस उद्देश्य से विशेष नियम निश्चित करती थीं।

प्रश्न 26.
मध्यकालीन यूरोप में मठों के जीवन की दो विशेषताएँ बताएँ।
उत्तर:

  • मठों का जीवन पूरी तरह व्यवस्थित था। इनमें रहने वाले भिक्षुओं तथा भिक्षुणियों को कठोर अनुशासन में रहना पड़ता था।
  • भिक्षुओं तथा भिक्षुणियों को संपत्ति रखने तथा विवाह करने की अनुमति नहीं थी।

प्रश्न 27.
फ्रांस के कैथीइल नगर क्या थे?
उत्तर:
फ्रांस में बड़े-बड़े चर्चा का निर्माण हुआ जिन्हें कैथील कहते थे। समय बीतने पर इन चर्चा के चारों ओर नगरों का विकास हुआ। इन्हीं नगरों को कैथील नगर कहा जाता है।

प्रश्न 28.
14वीं शताब्दी में यूरोप में किसान विद्रोह क्यों हुए?
उत्तर:
14वीं शताब्दी में लाडौँ ने अपने धन संबंधी अनुबंधों को तोड़ कर फिर से पुरानी मजदूरी सेवाओं को लागू कर दिया। किसानों ने इसका विरोध किया और विद्रोह करना आरंभ कर दिया।

प्रश्न 29.
15वीं तथा 16वीं शताब्दी के यूरोपीय शासकों को ‘नये शासक’ क्यों कहा गया?
उत्तर:
15वीं तथा 16वीं शताब्दी में यूरोप के शासकों ने अपनी सैनिक तथा वित्तीय शक्ति में वृद्धि की । इस प्रकार उन्होंने शक्तिशाली राज्य स्थापित किए जो आर्थिक दृष्टि से भी महत्त्वपूर्ण थे। इसी कारण इतिहासकारों ने उन्हें ‘नये शासक’ कहा।

प्रश्न 30.
फ्रांस में स्टेट्स जनरल (परामर्शदात्री सभा) का अधिवेशन कब और किस शामक द्वारा बुलाया गया ? इसके बाद 1789 तक इसे क्यों नहीं बुलाया गया ?
उत्तर:
फ्रांस में स्टेट्स जनरल का अधिवेशन 1614 ई. में लुई 13वें द्वारा बुलाया गया । इसके तीन सदन थे जो समाज के तीन वर्गों का प्रतिनिधित्व करते थे। इसके पश्चात् 1789 ई. तक इसे फिर नहीं बुलाया गया क्योंकि राजा तीन वर्गों के साथ अपनी शक्ति बाँटना चाहता था।

लघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
सामंतवाद के समय यदि आप निम्नलिखित में से किसी एक वर्ग में होते, तो लिखें कि अपना समय किस प्रकार बिताते? नाइट, सर्फ, मेनर का स्वामी, स्वतंत्र किसान, मठवासी।
उत्तर:
1. यदि मैं नाइट होता तो सामंत या बैरन मेरे स्वामी होते। मैं उनका बहुत आदर करता तथा पूर्ण रूप से उनका स्वामिभक्त रहता। मैं उन्हें सैनिक सेवाएँ प्रदान करता। अपने अधीनस्थ किसानों से मैं कर के अतिरिक्त उनकी उपज का कुछ भाग वसूल करता। सर्फ लोगों से मैं अनेक प्रकार के घरेलू काम लेता। इस प्रकार मैं सुख तथा आनंद का जीवन व्यतीत करता।

2. यदि मैं सर्फ होता तो मेरी दशा बड़ी शोचनीय होती। मुझे नाइट की प्रत्येक आज्ञा का पालन करना पड़ता। हर समय कोड़े पड़ने का भय रहता। कभी मुझे मकान की मरम्मत करनी पड़ती तो कभी सड़क बनाने का काम करना पड़ता। इसके अतिरिक्त नाइट के खेत पर बेगार के रूप में भी कार्य करना पड़ता।

3. यदि मैं किसी मेनर का स्वामी होता तो मेरा जीवन भोग-विलास में व्यतीत होता। मैं पत्थर के बने हुए एक सुंदर तथा विशाल मकान में रहता जिसमें जीवन यापन की सभी सुविधाएँ प्राप्त होतीं। अपने मकान के चारों ओर मैं एक खाई खुदवाता ताकि कोई शत्रु अंदर न आ सके। संकट के समय मैं अपनी प्रजा को अपने मकान में शरण देता। मैं सभी आवश्यक वस्तुओं का मेनर में ही उत्पादन करता ताकि मेनर में रहने वालों को दूसरे लोगों पर निर्भर न रहना पड़े।

4. यदि मैं एक स्वतंत्र किसान होता तो मैं खेतों में कठिन परिश्रम करता ताकि कृषि की उपज बढ़ सके। कारण यह है कि मुझे अपनी उपज का कोई भी भाग अपने स्वामी को नहीं देना पड़ता। मुझे तो केवल एक निश्चित राशि ही कर के रूप में अपने स्वामी को देनी पड़ती। मैं भोग-विलास का जीवन तो व्यतीत नहीं कर पाता परंतु मेरा जीवन अन्य किसानों से काफी उन्नत होता।

5. यदि मैं मठवासी होता तो मेरा जीवन बड़ा सादा होता। मैं ईश्वर की उपासना करता और प्रतिदिन चर्च में जाता। मैं मठ के नियमों का पूरी तरह पालन करता और मठ में बने अस्पताल की देखभाल करता। चर्च की पाठशाला में मैं एक शिक्षक के रूप में कार्य करता और विद्यार्थियों के जीवन को सुधारने का प्रयत्न करता। इसके अतिरिक्त मैं लोगों में धर्म-प्रचार करके नैतिक जीवन को उन्नत करता ।

प्रश्न 2.
आजकल किसी भी देश के समाज के जीवन-क्रम को सामंतवादी कहना क्यों बुरा समझा जाता है?
उत्तर:
आजकल किसी भी देश के समाज के जीवन क्रम को सामंतवादी कहना निम्नलिखित कारणों से बुरा समझा जाता है –
1. सामंतवादी प्रथा में कई बड़े दोष थे। जहाँ भी यह प्रथा प्रचलित रही वहाँ अशांति का बोलबाला रहा। परंतु आजकल किसी भी देश में शांति तथा व्यवस्था का बना रहना बहुत आवश्यक समझा जाता है। इसका कारण यह है कि शांति के बिना देश की प्रगति रूक जाती है, सांस्कृतिक विकास क जाता है और व्यापार ठप्प पड़ जा है। इसीलिए किसी भी देश के समाज के जीवन-क्रम को सामंतवादी कहना बुरा समझा जाता है।

2. सामंतवादी समाज में किसानों की दशा बड़ी ही शोचनीय थी। कठोर परिश्रम करने पर भी उन्हें पेट भर रोटी नहीं मिलती थी। अत: सामंतवाद जैसी व्यवस्था को कौन अच्छा कह सकता है।

3. सामंतवादी समाज में ऊँच-नीच की विचारधारा पर बड़ा बल दिया जाता था। बड़े-बड़े सामंतों को सभी अधिकार प्राप्त थे। परंतु निर्धन किसानों को सभी अधिकारों से वंचित रखा गया था।

4. सामंतवादी समाज में किसानों का शोषण किया जाता था। सर्फ लोगों से बेगार ली जाती थी जो आज के युग में एक अपराध माना जाता है। इन्हीं सभी कारणों से किसी भी समाज को सामंतवादी कहना बुरा समझा जाता है।

प्रश्न 3.
मध्यकालीन यूरोप के समाज में कौन-कौन से मुख्य वर्ग थे? उनमें से किसी एक की दशा का वर्णन करों।
अथवा
सामंतवाद के अंतर्गत यूरोप में किसानों की दशा का वर्णन करें।
उत्तर:
मध्यकालीन यूरोप का समाज मुख्य रूप से दो वर्गों में बंटा हुआ था –

  • बड़े-बड़े सामंत तथा सरदार
  • कृषक

कृषकों की दशा – मध्यकाल में सामंतवादी जीवन कृषि पर आधारित था परंतु दास कृषक बड़ा कठोर जीवन व्यतीत करते थे। वे मिट्टी तथा घास के बने हुए मकानों में रहते थे। उन्हें अपने स्वामी की निजी भूमि पर काम करना पड़ता था। इसके लिए उन्हें कोई मजदूरी नहीं दी जाती थीं। किसानों की पत्नियाँ तथा लड़कियाँ सामंत के घर में कताई, बुनाई आदि का काम करती थीं।

सामंत के तंदूर से रोटियाँ बनाना तथा उनकी चक्की में आटा पिसवाना उनके लिए आवश्यक था। इसके लिए उन्हें पैसे देने पड़ते थे। इस प्रकार हम देखते हैं कि मध्यकालीन यूरोप -के समाज में किसानों की दशा बहुत खराब थी।

प्रश्न 4.
यूरोपीय सामंत व्यवस्था के गुण-दोषों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
सामंती व्यवस्था के कारण यूरोपीय समाज में शांति और सुरक्षा का समावेश हुआ। सामाजिक और आर्थिक जन-जीवन बिना किसी बाधा के चलता रहा। शक्तियों का विकेंद्रीकरण हुआ। इनका विभाजन राजा और सामंतों के बीच हुआ। इसी राजनीति के कारण ही इंग्लैंड में ससंद की स्थापना हुई। सामंती व्यवस्था अभिशाप भी सिद्ध हुई।

इससे समाज में नये वर्गों का उदय हुआ। मनुष्य-मनुष्य और वर्ग-वर्ग में भेद समझा जाने लगा। इस प्रकार इस काल में राजनीतिक एकता की स्थापना न हो सकी। साधारण मनुष्य को अनेक कष्टों का सामना करना पड़ा। शक्तिशाली सामंतों में अपने अपने स्वार्थों के लिए लड़ाइयाँ होने लगी और राजा मूक दर्शक बना रहा।

प्रश्न 5.
मध्य युग में नगरों के विकास के कारणों का वर्णन करें।
उत्तर:
मध्य युग में नगरों के विकास के निम्नलिखित कारण थे –

  • मध्य युग में वाणिज्य-व्यापार की उन्नति के कारण नगरों का महत्त्व काफी अधिक बढ़ गया। अत: बहुत-से व्यापारी नगरों में बस गये।
  • नगर सामंती नियंत्रण से मुक्त हो गये थे। नगरों में रहने वाले लोगों के आने-जाने पर कोई प्रतिबंध नहीं था। नगरों की इस स्वतंत्रता के कारण भी नगरों का विकास हुआ।
  • नगर में र। वाले लोग व्यापार से काफी धन क…ने लगे और वे काफी धनवान हो गये। नगरों में धन की अधिकता के कारण भी नगरों के विकास में बड़ी सहायता मिली।

प्रश्न 6.
मध्य युग में नगरों के विकास तथा संगठन का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
मध्य युग में वाणिज्य-व्यापार की उन्नति, धन में वृद्धि और सामंती जीवन से मुक्ति के कारण नगरों का विकास हुआ। विभिन्न शिल्पों के विकास ने भी नगरों के उदय में सहायता पहुँचाई। इन नगरों में रहने वाले व्यापारियों तथा शिल्पियों ने धीरे-धीरे अपने संघ बना लिये। ये संघ अपने-अपने संगठन के सदस्यों के हितों का पूरा ध्यान रखते थे।

नगरों में शिल्पियों के संगठन का महत्त्व बहुत अधिक था और इनके नियम भी काफी कठोर थे। किसी नए शिल्पी को तब तक संगठन में शामिल नहीं किया जाता था जब तक कि वह किसी योग्य शिल्पी से काम सीख कर उसमें पूरी तरह निपुण न हो जाए।

प्रश्न 7.
5वीं से 11वीं शताब्दी तक यूरोप के पर्यावरण का वहाँ की कृषि पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर:
पाँचवीं से दसवीं शताब्दी तक यूरोप का अधिक भाग विस्तृत वनों से ढंका हुआ था। अतः कृषि के लिए उपलब्ध भूमि सीमित थी। उस समय यूरोप में तीव्र ठंड का दौर चल रहा था। इससे सर्दियाँ प्रचंड हो गई और उनकी अवधि लंबी हो गई। फलस्वरूप फसलों का वर्धनकाल छोटा हो गया, जिससे कृषि की पैदावार में कमी आई।

परंतु ग्यारहवीं शताब्दी से यूरोप के पर्यावरण में एकाएक परिवर्तन हुआ। वहाँ औसत तापमान बढ़ गया जिसका कृषि पर अच्छा प्रभाव पड़ा । कृषकों को कृषि के लिए अब लंबी अवधि मिलने लगी। मिट्री पर पाले का प्रभाव कम हो जाने से खेती करना सरल हो गया। फलस्वरूप यूरोप के अनेक भागों के वन क्षेत्रों में कमी हुई और कृषि भूमि का विस्तार हुआ।

प्रश्न 8.
यूरोप में व्यापार एवं वाणिज्य में किस प्रकार वृद्धि हुई और इसका क्या परिणाम निकला?
उत्तर:
ग्यारहवीं शताब्दी में यूरोप तथा पश्चिम एशिया के बीच नवीन व्यापार-मार्ग विकसित होने लगे। स्कैंडीनेविया के व्यापारी वस्त्र के बदले में फर तथा शिकारी बाज लेने के लिए उत्तरी सागर से दक्षिण की समुद्री यात्रा करते थे। अंग्रेज व्यापारी राँगा बेचने के लिए आते थे। बारहवीं शताब्दी तक फ्रांस में भी वाणिज्य और शिल्प विकसित होने लगे थे। पहले दस्तकारों को एक मेनर से दूसरे मेनर में जाना पड़ता था।

परंतु अब उन्हें एक स्थान पर टिक कर रहना अधिक सुविधाजनक लगा। वे यहीं पर वस्तुओं का उत्पादन कर सकते थे और अपनी आजीविका के लिए उनका व्यापार कर सकते थे। परिणाम-जैसे-जैसे नगरों की संख्या बढ़ती गई और व्यापार का विस्तार होता गया, नगर व्यापारी अधिक धनी तथा शक्तिशाली होते गए। उनमें अभिजात वर्ग में शामिल होने के लिए प्रतिस्पर्धा भी आरंभ हो गई।

प्रश्न 9.
यूरोप के नगरों में आर्थिक संस्था का आधार क्या था और इसका क्या महत्त्व था?
उत्तर:
यूरोप में आर्थिक संस्था का आधार ‘श्रेणी’ (गिल्ड) था। प्रत्येक शिल्प या उदयोग एक ‘श्रेणी’ के रूप में संगठित था। श्रेणी एक ऐसी संस्था थी जो उत्पाद की गुणवत्ता, उसके मूल्य और बिक्री पर नियंत्रण रखती थी। श्रेणी सभागार’ प्रत्येक नगर का आवश्यक अंग होता था। इस सभागार में आनुष्ठानिक समारोह होते थे और गिल्डों के प्रधान आपस में मिलते थे। पहरेदार नगर के चारों ओर गश्त लगाकर पहरा देते थे। संगीतकारों की प्रातिभोजों तथा नागरिक जुलूसों में अपनी कला का प्रदर्शन करने के लिए बुलाया जाता था। सराय वाले यात्रियों की देखभाल करते थे।

प्रश्न 10.
यूरोप में समाज का चौथा वर्ग किस प्रकार अस्तित्व में आया?
उत्तर:
‘नगर की हवा स्वतंत्र बनाती है’ एक लोकप्रिय कहावत थी। अत: स्वतंत्र होने की इच्छा रखने वाले कृषि दास भाग कर नगर में छिप जाते थे। यदि कोई कृषि दास अपने लॉर्ड की नजरों से एक वर्ष एक दिन तक छिपे रहने में सफल था तो वह स्वतंत्र नागरिक बन जाता था। गरों में रहने वाले अधिकतर व्यक्ति या तो स्वतंत्र कृषक थे या भगोड़े कूषक। कार्य की दृष्टि वे अकुशल श्रमिक होते थे। नगरों में अनेक दुकानदार और व्यापारी भी रहते थे। आगे चलर विशिष्ट कौशल वाले व्यक्तियों जैसे साहूकार तथा वकील आदि की आवश्यकता अनुभव हुई। बड़े नगरों की जनसंख्या लगभग तीस हजार होती थी। नगरों में रहने वाले इन्हीं लोगों ने समाज का चौथा वर्ग बनाया।

प्रश्न 11.
11वीं शताब्दी में यूरोप में सामंतवादी संबंधों में क्या परिवर्तन आया और इसका क्या परिणाम निकला?
उत्तर:
ग्यारहवीं सदी से व्यक्तिगत संबंध जो सामंतवाद के आधार थे, कमजोर पड़ने लगे। इसका कारण यह था कि अब अधिकांश लेन-देन मुद्रा द्वारा होने लगी थी। लॉर्ड भी कृषकों से लगान सेवाओं की बजाय नकदी में वसूल करने लगे। कृषकों ने भी वस्तु-विनिमय को छोड़ अपनी फसल को व्यापारियों को मुद्रा में (नकदी में) बेचना शुरू कर दिया। व्यापारी उन वस्तुओं को शहर में बेंचकर मुद्रा कमाते थे। धन के बढ़ते उपयोग का प्रभाव कीमतों पर पड़ा जो खराब फसल के समय बहुत अधिक बढ़ जाती थीं। उदाहरण के लिए 1270 ई. से 1320 ई. के बीच इंग्लैंड में कृषि भूमि के मूल्य दुगुने हो गए थे।

प्रश्न 12.
सामंतवाद क्या था? इसकी आर्थिक विशेषताएं बताएँ।
उत्तर:
‘सामंतवाद’ (Fuedalism) शब्द जर्मन फ्यूड’ से बना है जिसका अर्थ भूमी का एक टुकड़ा है। इस प्रकार सामंतवाद भूमि से जुड़ी एक प्रणाली थी। यह एक ऐसे समाज की ओर संकेत करता है जो मध्य फ्रॉस और बाद में इग्लैंड तथा दक्षिण इटली में विकसित हुआ।

आर्थिक दृष्टि से सामंतवाद एक प्रकार के कृषि उत्पादन को व्यक्त करता है जो सामंत (लार्ड) और कृषकों के संबंधों पर आधारित था। कृषक अपने खेतों के साथ-साथ लार्ड के खेतों पर काम करते थे। लार्ड कृषकों को उनकी श्रम-सेवा के बदले में सैनिक सुरक्षा देते थे। लार्ड के कृषकों पर व्यापक न्यायिक अधिकार भी थे। इसलिए सामंतवाद ने जीवन के न केवल आर्थिक बल्कि सामाजिक और राजनीतिक पहलुओं पर भी प्रभाव डाला।

प्रश्न 13.
गॉल किस प्रकार फ्राँस बना? 11वीं शताब्दी तक फ्रांस की क्या स्थिति थी?
उत्तर:
गॉल रोमन साम्राज्य का एक प्रांत था। इसमें दो विस्तृत तट रेखाएँ, पर्वत श्रेणियाँ, लंबी-लंबी नदियाँ, वन और कृषि योग्य विस्तृत मैदान स्थित थे। जर्मनी की एक फ्रंक नामक जनजाति ने गॉल को अपना नाम देकर उसे फ्राँस बना दिया। छठी शताब्दी में इस प्रदेश पर किश अथवा फ्रांस के ईसाई राजा शासन करते थे। फ्रांसीसियों के चर्च के साथ गहरे संबंध थे। ये संबंध पोप द्वारा राजा शार्लमेन को पवित्र रोमन सम्राट की उपाधि दिए जाने पर और अधिक मजबूत हो गए।

ग्यारहवीं सदी में फ्रांस के प्रांत नरमंडी के राजकुमार ने एक संकर जलमार्ग के पार स्थित इंग्लैंड-स्कॉटलैंड द्वीपों को जी ‘लया था।

प्रश्न 14.
खर्चीले प्रौद्योगिकी परिवर्तनों की समस्या से कैसे निपटा गया?
उत्तर:
कुछ प्रौद्योगिकी परिवर्तन अत्यधिक खर्चीले थे। उदाहरण के लिए कृषकों के पास पनचक्की और पवन चक्की लगाने के लिए पर्याप्त धन नहीं था। इसलिए इस मामले में लॉडों द्वारा पहल की गई। परंतु कुछ क्षेत्रों में कृषक भी पहल करने में सक्षम रहे। उन्होंने खेती योग्य भूमि का विस्तार किया। फसलों की तीन-चक्रीय व्यवस्था को अपनाया और गाँवों में लोहार की दुकानें तथा भट्ठियाँ स्थापित की। यहाँ पर कम लागत में लोहे की नोंक वाले हल और घोड़े की नाल बनाने और उनकी मरम्मत करने का काम किया जाने लगा।

प्रश्न 15.
फ्रांस के सर्फ और रोम के दास के जीवन की दशा की तुलना कीजिए।
उत्तर:
रोम के दास-रोम के दासों का जीवन बहुत ही कठोर था। उनसे कई-कई घंटे तक लगातार काम लिया जाता था। उन्हें समूहों में बेडियों में जकड कर रखा जाता था. ताकि वे भाग न जाएँ । सोते समय भी उनकी बेड़ियाँ नहीं खोली जाती थीं। उन्हें अधिक-से-अधिक बच्चे पैदा करने के लिए उत्साहित किया जाता था, क्योंकि उनके बच्चे भी बड़े होकर दास बनते थे। कुछ स्वतंत्र दास भी थे। उनका जीवन बेहतर था।

फ्रांस के सर्फ-फ्रांस में सर्फ अर्थात् कृषि-दास लाडों की भूमि पर कृषि करते थे। इसलिए उनकी अधिकतर उपज भी लॉर्ड को मिलती थी। उनसे वेगार भी ली जाती थी। वे लॉर्ड की आज्ञा के बिना जागीर नहीं छोड़ सकते थे। सर्फ केवल अपने लार्ड की चक्की में ही आटा पीस सकते थे, उनके तंदूर में ही रोटी सेंक सकते थे और उनकी मदिरा संपीडक में ही मदिरा और बीयर तैयार कर सकते थे। लॉर्ड को उनका विवाह तय करने का अधिकार था।

प्रश्न 16.
लॉर्ड तथा नाइट के आपसी संबंधों की संक्षिप्त जानकारी दीजिए।
उत्तर:
नाइट लॉर्ड से उसी प्रकार जुड़े थे जिस प्रकार लॉर्ड राजा के संबद्ध थे। लॉर्ड नाइट को भूमि का एक भाग देता था और उसकी रक्षा करने का वचन देता था। इस भू-भाग के फीफ (Fiel) कहते थे। फीफ को उत्तराधिकार में भी प्राप्त किया सकता था। यह 1000-2000 एकड़ या इससे अधिक क्षेत्र में फैली हुई हो सकती थी। इसमें नाइट और उसके परिवार के लिए एक पनचक्की और मदिरा संपीडक के अतिरिक्त उनका घर, चर्च और उस पर निर्भर व्यक्तियों के रहने का स्थान होता था।

सामंत मैनर की तरह फीफ की भूमि को भी कृषक जोतते थे। फीफ के बदले में नाइट अपने लॉर्ड को एक निश्चित धनराशि देता था और युद्ध में उसकी ओर से लड़ने का वचन देता था। अपनी सैन्य कुशलता को बनाए रखने के लिए नाइट प्रतिदिन कुछ समय के लिए पुतलों से लड़ने तथा अपने बचाव का अभ्यास करते थे। नाइट अपनी सेवाएँ अन्य लॉडाँ को भी दे सकता था। परंतु उसकी सर्वप्रथम निष्ठा अपने लॉर्ड के प्रति ही होती थी।

प्रश्न 17.
मध्यकालीन पश्चिमी यूरोप का प्रथम वर्ग कौन-सा था? कैथोलिक चर्च में उसकी भूमिका का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
मध्यकालीन यूरोप का प्रथम वर्ग पादरी वर्ग था। इसमें पोप, विशप तथा पादरी शामिल थे। कैथोलिक चर्च में उन्हें महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त था। पोप पश्चिमी चर्च के अध्यक्ष थे। वे रोम में रहते थे। यूरोप में ईसाई समाज का मार्गदर्शन बिशप तथा पादरी करते थे। अधिकतर गाँवों के अपने चर्च होते थे। यहाँ प्रत्येक रविवार को लोग पादरी के धर्मोपदेश सुनने तथा सामूहिक प्रार्थना करने के लिए इकट्ठे होते थे।
चर्च के अपने नियम थे। इनके अनुसार प्रत्येक व्यक्ति पादरी नहीं हो सकता था।

कृषि-दास, शारीरिक रूप में बाधित व्यक्ति तथा स्त्रियाँ पादरी नहीं बन सकती थीं। पादरी बनने वाले पम्प विवाह नहीं कर सकते थे। धर्म के क्षेत्र में बिशप अभिजात (उच्च वर्ग के) माने जाते थे। बिशपों के पास भी लॉर्ड की तरह विस्तृत जागीरें थीं। वे शानदार महलों में रहते थे। चर्च को कृषक से एक वर्ष में उसकी उपज का दसवाँ भाग लेने का अधिकार था। इसे ‘टीथ’ (Tithe) कहते थे। धनी लोगों द्वारा अपने कल्याण तथा मरणोपरांत अपने रिश्तेदारों के कल्याण के लिए दिया जाने वाला दान भी चर्च की आय का एक स्रोत था।

प्रश्न 18.
इंग्लैंड में सामंतवाद का विकास कैसे हुआ?
उत्तर:
इंग्लैंड में सामंतवार का विकास ग्यारहवीं शताब्दी से हुआ। छठी शताब्दी में मध्य यूरोप से एंजिल (Angles) और सैक्सन (Saxons) लोग इंग्लैंड में आकर बस गए। इंग्लैंड देश का नाम ‘एंजिल लैंड’ का रूपांतरण है । ग्यारहवीं शताब्दी में नोरमंडी (Normandy) के इयूक विलियम प्रथम ने एक सेना के साथ इंग्लिश चैनल (English Channel) को पार करके इंग्लैंड के सैक्सन राजा को हरा दिया और इंग्लैंड पर अपना अधिकार कर लिया। उसने देश की भूमि नपवाई, उसके नक्शे बनवाए और उसे अपने साथ आए 180 नॉरमन अभिजातों में बाँट दिया। ये लॉर्ड राजा के प्रमुख काश्तकार बन गए।

इनसे राजा सैन्य-सहायता प्राप्त करता था। वे राजा को कुछ नाइट देने के लिए भी बाध्य थे। इसलिए लॉर्ड नाइटों को कुछ भूमि उपहार में देने लगे। बदले में वे उनसे उसी प्रकार सेवा की आशा रखते थे जैसी वे राजा की करते थे। परंतु वे अपने निजी युद्धों के लिए नाइटों का उपयोग नहीं कर सकते थे। एंग्लो-सैक्सन कृषक विभिन्न स्तरों के भू-स्वामियों के काश्तकार बन गए। इस प्रकार इंग्लैंड में सामंतवादी व्यवस्था अस्तित्व में आई।

प्रश्न 19.
सामंतवाद के समय यूरोपीय समाज में जो वर्ग थे, उनका वर्णन करें। पध्यकाल के अंतिम वर्षों में किस नए वर्ग का विकास हुआ और क्यों?
उत्तर:
सामंती प्रथा के अंतर्गत सामाजिक संगठन के दो वर्ग थे-शासक वर्ग तथा शासित वर्ग । शासक वर्ग में बड़े-बड़े सामंत (अलं) थे, जिन्हें राजा की ओर से भूमि मिली हुई थी। इस भूमि को उन्होंने नाइटों में बाँट रखा था। इस प्रकार सामंत तथा नाइट शासक वर्ग में थे। कृषक शासित वर्ग में आते थे।

दास कृषक भूमि पर काम करते थे और सामंत वर्ग उनके परिश्रम की कमाई को भोग-विलास तथा आपसी लड़ाईयों में खर्च कर देते थे। परिश्रमी कृषकों के जीवन के कल्याण की ओर ध्यान नहीं दिया जाता था।

नया वर्ग-मध्य काल के अंतिम वर्षों में व्यापार ने बहुत उन्नति की। इसका एक महत्त्वपूर्ण परिणाम यह निकला कि इस युग में नए वर्ग का जन्म हुआ जिसे व्यापारी वर्ग के नाम से जाना जाता है। इस नए वर्ग के विकास के निम्नलिखित कारण थे

धर्म युद्ध के कारण यूरोप में भोग-विलास की वस्तुओं की मांग बढ़ गयी। इसके कारण बहुत से लोग इन वस्तुओं का व्यापार करने लगे। इससे व्यापारी वर्ग का विकास हुआ।

कृषि के विकास के कारण किसान कृषि की वस्तुओं का गैर कृषि-वस्तुओं के साथ विनिमय करने लगे। इससे भी व्यापारी वर्ग के विकास को काफी प्रोत्साहन मिला।

प्रश्न 20.
मध्य युग में पश्चिमी यूरोप की राजनीतिक दशा का विवेचन करें।
उत्तर:
मध्य युग में यूरोप की राजनीतिक दशा अच्छी नहीं थी। पश्चिमी यूरोप अनेक छोटे-छोटे राज्यों में बाँट हुआ था। पूर्वी भाग में बिजेंटाइन साम्राज्य स्थापित था जिसकी राजधनी कुस्तनतुनिया थी। पश्चिमी भाग में समय-समय पर कुछ विजेताओं ने छोटे राज्यों को मिलाकर बड़े राज्यों की स्थापना का प्रयास किया। 800 ई. में लगभग यहाँ शार्लेमेन ने एक बड़ा राज्य स्थापित किया। 1000 ई. के लगभग यहाँ पवित्र रामन साम्राज्य की स्थापना हुई। 1453 ई. में बिजेंटाइन साम्राज्य के प्रदेशों को तुर्की ने जीत लिया और इस तरह रोमन साम्राज्य का पतन हो गया।

प्रश्न 21.
फ्रांस के कथील नगर किस प्रकार अस्तित्व में आए?
उत्तर:
धनी व्यापारी चों को बहुत अधिक दान देते थे। अत: फ्रांस में बड़ी चर्चा का निर्माण होने लगा। इन्हें कधील कहा जाता था। यू तो चर्च मठों की संपत्ति थे फिर भी लोगों के विभिन्न समूहों ने अपने श्रम, वस्तुओं तथा धन से उनके निर्माण में सहयोग दिया । कथील पत्थर के बने होते थे और उन्हें पूरा करने में कई-कई वर्ष लग जाते थे। उनके निर्माण के दौरान कथोड्रल के आसपास का क्षेत्र और अधिक बस गया और उनका निर्माण कार्य पूरा होने पर वे तीर्थ-स्थल बन गए। इस प्रकार उनके चारों ओर छोटे-छोटे नगर उभर आए। यही कथील नगर थे।

प्रश्न 22.
कथील किस प्रकार बनाए जाते थे?
उत्तर:
कथील इस प्रकार बनाए गए थे कि पादरी की आवाज लोगों के जमा होने वाले सभागार में साफ सुनाई दे सके और भिक्षुओं का गायन भी अधिक मधुर सुनाई पड़े। इसके अतिरिक्त लोगों को प्रार्थना के लिए बुलाने वाली घंटियाँ भी दूर तक सुनाई दें। खिड़कियों के लिए अभिजित काँच का प्रयोग होता था। दिन के समय सूर्य का प्रकाश उन्हें कथील के अंदर विद्यमान व्यक्तियों के लिए चमकदार बना देता था। सूयार्यस्त के पश्चात् मोमबत्तियों का प्रकाश उन्हें बाहर के व्यक्तियों के लिए चमक प्रदान करता था। अभिरंजित कांच की खिड़कियों पर बाईबल की कथाओं से संबंधित चित्र बने होते थे जिन्हें अनपढ़ व्यक्ति भी पढ़ सकते थे।

प्रश्न 23.
14वीं शताब्दी के आर्थिक संकट ने कृषकों में किस प्रकार सामाजिक असंतोष को जन्म दिया? यह किस बात का संकेत था?
उत्तर:
14वीं शताब्दी के संकट से लॉर्डों की आय बुरी तरह प्रभावित हुई। मजदूरी की दरें बढ़ने तथा कृषि संबंधी मूल्यों की गिरावट ने उनकी आय को घटा दिया। निराशा में उन्होंने अपने धन संबंधी अनुबंधों को तोड़ दिया और फिर से पुरानी मजदूरी सेवाओं को लागू कर दिया। कृषकों, विशेषकर पढ़े-लिखे और समृद्ध कृषकों ने इसका विरोध किया। उन्होंने 1323 ई. में फ्लैंडर्स (Flanders) में, 1358 ई. में फ्रांस में और 1381 ई. में इंग्लैंड में विद्रोह किए।

यद्यपि इन विद्रोहों का क्रूरतापूर्वक दमन कर दिया गया, परंतु महत्त्वपूर्ण बात यह थी कि सबसे हिंसक विद्रोह उन स्थानों पर हुए जहाँ आर्थिक विस्तार के कारण समृद्धि आई थी। यह इस बात का संकेत था कि कृषक पिछली सदियों में मिले लाभों को खोना नहीं चाहते थे। तीव्र दमन के बावजूद इन विद्रोहों की तीव्रता ने सुनिश्चित कर दिया कि कृषकों पर पुराने सामंती रिश्तों को फिर से नहीं लादा जा
सकता। इससे यह भी सुनिश्चित हो गया कि कृषि दासता के पुराने दिन फिर नहीं लौटेंगे।

प्रश्न 24.
मध्यकालीन यूरोप में नगरों के उत्थान का जन-जीवन पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर:
मध्यकालीन यूरोप में नगरों के उत्थान का जन-जीवन पर बड़ा गहरा प्रभाव पड़ा। नगरों के उत्थान के कारण यूरोप के सामाजिक जीवन में अनेक परिवर्तन आए । इससे सामंत प्रधान समाज का ढाँचा शिथिल पड़ गया। व्यक्तिगत स्वतंत्रता का महत्त्व काफी बढ़ गया। नगरों के कारण ही शिक्षा का प्रसार हुआ और समाज तथा धर्म-सुधार आंदोलनों को बल मिला। सच तो यह है कि नगरों के उत्थान ने जन-जीवन को प्रगति के पथ पर जा खड़ा कर दिया।

प्रश्न 25.
यूरोप में मध्यकाल के अंतिम वर्षों में किस नए सामाजिक वर्ग का विकास हुआ और क्यों?
उत्तर:
मध्यकाल के अंतिम वर्षों में व्यापार ने बहुत उन्नति की। इसका एक महत्त्वपूर्ण परिणाम यह निकला कि इस युग में नए वर्ग का जन्म हुआ जिसे व्यापारी वर्ग के नाम से जाना जाता है। इस वर्ग के विकास के निम्नलिखित कारण थे

  • धर्म-युद्धों के कारण यूरोप में भोग-विलास की वस्तुओं की मांग बढ़ गयी। इसके कारण बहुत-से लोग इन वस्तुओं का व्यापार करने लगे। इस प्रकार व्यापारी वर्ग का काफी विकास हुआ।
  • कृषि के विकास के कारण किसान कृषिगत वस्तुओं का गैर-कृषिगत वस्तुओं के साथ विनिमय करने लगे। इससे भी व्यापारी वर्ग के विकास को काफी प्रोत्साहन मिला।

प्रश्न 26.
मध्यकालीन यूरोप के मठों में ईसाई भिक्षु कैसा जीवन बिताते थे?
उत्तर:
मध्यकालीन चर्च और इसके ईसाई नेता अपने अनुयायियों को यह उपदेश देते थे कि उन्हें संन्यासियों जैसा जीवन व्यतीत करना चाहिए। उनके इस उपदेश से प्रभावित होकर बहुत-से ईसाईयों ने सांसारिक जीवन छोड़ दिया और संन्यासी हो गये। संन्यासी पुरुषों को भिक्षु तथा स्त्रियों को भिक्षुणियाँ कहा जाता था।

ये सभी बहुत सादा जीवन व्यतीत करते थे। इन्हें अनुशासन के कठोर नियमों का पालन करना पड़ता था। इन्हें विवाह करने और संपत्ति रखने का अधिकार नहीं था। नियमों को उल्लंघन करने पर इन्हें कठोर दंड दिया जाता था। मठों में रहने वाले लोग ईश्वर की उपासना करते थे। ये लोगों को नैतिक शिक्षा देते थे तथा रोगियों की सेवा करते थे।

प्रश्न 27.
यूरोप में मध्ययुगीन मठों के दो-दो गुण तथा दोषों की सूची बनाओ।
उत्तर:
मध्ययुगीन मठ प्रणाली यूरोप के लिए वरदान भी थी और अभिशाप भी। इसके दो गुणों और दो दोषों का वर्णन इस प्रकार है

गुण –

  • इन मठों ने शिक्षा केंद्रों के रूप में कार्य किया। इस प्रकार यूरोप में ज्ञान का प्रसार हुआ।
  • मध्यकालीन चर्च के प्रतिनिधि के रूप में कार्य करते हुए प्रशिक्षित भिक्षुओं ने संन्यासी जीवन की पवित्रता, नैतिकता, तप, त्याग, अनुशासन के आदर्शों को प्रोत्साहन दिया।

दोष –

  • मठों ने विस्तृत भूमि और अत्यधिक धन अपने पास एकत्रित कर लिया।
  • भिक्षु एवं भिक्षुणियों के साथ-साथ रहने के कारण भ्रष्टाचार फैल गया। वे तप और त्याग के जीवन को छोड़ कर भ्रष्ट एवं विलासितापूर्ण जीवन व्यतीत करने लगे।

प्रश्न 28.
राष्ट्र राज्यों के विकास में किन तत्त्वों ने सहायता पहुँचाई ? इन राज्यों में विकसित राजनीतिक व्यवस्था का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
राष्ट्र-राज्यों के विकास में निम्नलिखित तथ्यों ने सहायता पहुँचाई –

  • सामंतवाद का पतन-सामंतवाद के पतन के कारण सामंतों की शक्ति कमजोर हो गई। इसके कारण शक्तिशाली शासकों ने पूर्ण सत्ता अपने हाथ में ले ली।
  • मध्यम वर्ग का शक्तिशाली होना-वाणिज्य और व्यापार की उन्नति के कारण मध्यम वर्ग की शक्ति बढ़ गई। मध्यम वर्ग ने राष्ट्र-राज्यों के उदय तथा विकास में महत्त्वपूर्ण भाग लिया।
  • राष्ट्रीय भाषाएँ और साहित्य-राष्ट्रीय भाषाओं और उनमें लिखे गए साहित्य ने भी राष्ट्र-राज्यों के विकास में बन सहायता की।
  • नए राष्ट्र-राज्यों का शासन शक्तिशली निरंकुश राजाओं के हाथ में था। इन शासकों ने अपीलों के लिए न्यायालय स्थापित किए। देश में
  • ऐसी राजनीतिक व्यवस्था की स्थापना हुई जिससे अराजकता का अंत हो गया। इसके अतिरिक्त कृषि दासता की प्रथा को सदा के लिए समाप्त कर दिया गया।

प्रश्न 29.
मार्टिन लूथर कौन थे?
उत्तर:
मार्टिन लूथर एक जर्मन युवा भिक्षु थे, जिन्होंने 1517 ई. में कैथोलिक चर्च के रूढ़िवाद एवं भ्रष्टाचार के खिलाफ अभियान छेड़ा था। लूथर के आंदोलन को प्रोटेस्टेंट सुधारवाद का नाम दिया गया। उन्होंने सादगी से पूर्ण जीवन एवं ईश्वर में असीम आस्था को अपनाने पर बल दिया था। प्रोटेस्टेंट आंदोलन के आचार संहिता का भी निर्माण लूथर ने किया, जिनमें आंदोलन संबंधी 95 प्रावधान रखे गये थे।

प्रश्न 30.
मध्यकालीन यूरोप में मठों का क्या कार्य था?
उत्तर:
मध्यकालीन यूरोप के विशेष श्रद्धालु ईसाई धार्मिक समुदायों में रहते थे, जिन्हें मठ कहा जाता था। ईसाई धर्म के प्रचार-प्रसार में मठों ने अपनी अहम् भूमिका निभायी है। पुरुष ईसाई भिक्षुओं को “मोक” एवं महिलाओं को ‘नन’ कहा जाता था। मठों ने सामाजिक और शैक्षणिक विकास के क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया है।

प्रश्न 31.
राष्ट्र-राज्यों की तीन उपलब्धियाँ बताएँ।
उत्तर:
राष्ट्र-राज्यों की तीन उपलब्धियाँ निम्नलिखित थीं –

  • समाज में सर्फ वर्ग की समाप्ति कर दी गई। इसके अतिरिक्त सामतवाद का अंत करके कृषि, उद्योग तथा व्यापार की उन्नति से लोगों के जीवन-स्तर को ऊँचा उठाया गया ।
  • सीमा विवादों को समाप्त करके राज्यों को सुरक्षित सीमाएं प्रदान की गई।
  • राष्ट्र-राज्यों में एक ही भाषा बोलने वाले और समान संस्कृति से संबंधित लोगों में एकता स्थापित हुयी।

प्रश्न 32.
मध्यकालीन यूरोप में सामंतवाद के विभिन्न वर्गों में जो संबंध था, उसका वर्णन कीजिए।
उत्तर:
सामंतवाद में विभिन्न वर्ग थे-ड्यूक या अर्ल, बैरन या नाइट । इन सामंतों के अतिरिक्त किसानों की श्रेणी भी थी। किसानों के दो वर्ग थे-पहले वर्ग में स्वतंत्र किसान आते थे और दूसरे वर्ग में कृषक दासों की गणना होती थी। प्रत्येक सामंत अधिपति समझा जाता था। सामंत का कोई भी स्वामी नहीं था।

वह अपने अधिपति की ओर से उस भूमि का प्रबंध करता था। युद्ध के समय में राजा इयूकों तथा अलों से, अर्ल बैरनों से और बैरन नाइटों से सैनिक सहायता लेते थे। राजा भी सीधा बैरन या नाइट से संपर्क स्थापित नहीं कर सकता था । स्वतंत्र किसान केवल कर देते थे, परंतु दस किसानों से बेगार ली जाती थी।

प्रश्न 33.
यूरोपीय सामंतवाद की मुख्य विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
सामंतवाद का अर्थ है-भूमि का एक भाग जिसका प्रयोग सामंत सेवा करने की शर्तों के बदले करते थे। राजा अपनी जागीरों को लॉर्ड्स में बाँट देते थे। लॉर्ड्स इस भूमि का वितरण सामंतों में कर देते थे। प्रत्येक सामंत अपने अधिपति के प्रति निष्ठा रखता था और उसे सैनिक सहायता तथा उपहार देता था।

सामंत सरदार को अपने अधिपति से औपचारिक अधिकार मिल जाते थे। कृषक सामंती अधिक्रम में किसानों का सबसे निम्न वर्ग था। ये दो प्रकार के थे-स्वतंत्र किसान तथा दास कृषक (सर्फ)। किसान अपने स्वामी को मिलने वाली भूमि पर बंधुआ मजदूर के रूप में कार्य कर थे। इस प्रकार सामंतवाद में सत्ता व विकेंद्रीकरण किया गया । परंतु राजा का सामान्य व्यक्ति से कोई संपर्क न रहा।

प्रश्न 34.
सामंतवाद के राजनीतिक और आर्थिक महत्त्व का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
मध्यकालीन यूरोप में सामंतवाद के कारण समाज में राजनीतिक और आर्थिक स्तर पर बहुत परिवर्तन हुए। राजनीतिक रूप में सामंतवाद के कारण एक नवीन शासन पद्धति का विकास हुआ। केंद्रीय सत्ता का अभाव हो गया और वास्तविक शक्ति का प्रयोग सामंती लॉर्ड करने लगे। इस व्यवस्था में कानून तथा न्याय का कोई आदर नहीं था। आर्थिक रूप से लोग का जीवन बड़ा पिछड़ गया।

इस युग में दास कृषकों का शोषण किया जाता था। नगरों के अभाव के कारण इस युग में व्यापार ठप्प हो गया। वास्तव में सामंती ढाँचे में जीवन मुख्यतः ग्रामीण गा। काम किसान करते थे और उनके उत्पादन का एक कहत बड़ा भाग सामंतों के हाथों में चला जाता था।

प्रश्न 35.
सामंतवाद में मेनर पर आश्रित जीवन का विवरण दीजिए।
उत्तर:
गाँव के समीप उपजाऊ भूमि को ‘मेनर’ कहते थे। मेनर के मध्य सामंत का महल होता था। वहाँ एक चरागाह भी होता था। मेनर में रहने वाले लोग मेनर की भूमि पर ही निर्वाह करते थे। इनकी भूमि पट्टियों में बँटी हुई थी। प्रत्येक किसान को खेतों के लिए कुछ पट्टियाँ दे दी जाती थीं। किसान का जीवन बड़ा कष्टमय था। मेनर का स्वामी उनके सामाजिक एवं व्यक्तिगत जीवन में भी हस्तक्षेप कर सकता था। सामंत भोग-विलासी जीवन व्यतीत करता था।

प्रश्न 36.
मध्यकालीन यूरोप की सामंती व्यवस्था की आर्थिक और राजनैतिक विशेषताओं का उल्लेख करें।
उत्तर:
1. आर्थिक विशेषताएँ – सामंती व्यवस्था के आर्थिक जीवन का आधार कृषि थी। गाँव की कृषि भूमि मेनर कहलाती थी। मेनर में एक चरागाह होता था, जहाँ पर पशु चराए जाते थे। प्रत्येक मेनर में कारखानों की भी व्यवस्था थी जो मेनर की आवश्यकताओं की पूर्ति करते थे। उद्यम और व्यक्तिगत पहल का सर्वथा अभाव था। नये तौर-तरीकों की खोज को कोई प्रोत्साहन नहीं दिया जाता था।

2. राजनीतिक विशेषताएँ – सामंतवाद के कारण राजा की सत्ता का विकेंद्रीकरण हो गया और शक्तियाँ राजा और सामंतों के बीच बँट गयो। राजा का साधारण जनता से कोई संपर्क नहीं था। सामंत जनता के कल्याण की कोई चिंता नहीं करते थे। वे आपसी युद्धों में उलझे रहते थे जिसके कारण राजनीतिक एकता नष्ट हो गयी।

प्रश्न 37.
प्रारंभ में यूरोप में कृषि संबंधी क्या समस्याएँ थीं? इसका जनजीवन पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर:
1. प्रारंभ में यूरोप में कृषि प्रौद्योगिकी बहुत ही प्राचीन थी। कृषक का एकमात्र कृषि उपकरण बैलों की जोड़ी से चलने वाला लकड़ी का हल था। यह हल केवल पृथ्वी की सतह को ही खुरच सकता था। यह भूमि की प्राकृतिक उत्पादकता को पूरी तरह से बाहर निकाल पाने में असमर्थ था। इसलिए कृषि में अत्यधिक परिश्रम करना पड़ता था। भूमि को प्राय: चार वर्ष में एक बार हाथ से खोदा जाता था जिसके लिए अत्यधिक मानव श्रम की आवश्यकता होती थी।

2. फसल – चक्र का भी एक प्रभावहीन तरीके से उपयोग हो रहा था। भूमि को दो भागों में बाँट दिया जाता था। एक भाग में सर्दियों में गेहूँ बाया जाता था, जबकि दूसरी भूमि को परती या खाली रखा जाता था। अगले वर्ष परती भूमि पर राई बोई जाती थी जबकि दूसरा आधा भाग खाली रखा जाता था।

प्रभाव – इस व्यवस्था से मिट्टी की उर्वरता का ह्रास होने लगा और बार-बार अकाल पड़न लगा। कुपोषण और विनाशकारी अकालों ने गरीबों के जीवन को अत्यंत दुष्कर बना दिया।

प्रश्न 38.
कृषि संबंधी समस्याओं ने लार्डी तथा कृषकों के बीच किस प्रकार विरोधी भावनाएं उत्पन्न की?
उत्तर:
कृषि संबंधी कठिनाइयों के बावजूद लार्ड अपनी आय बढ़ाने के लिए उत्सुक रहते थे। क्योंकि कृषि उत्पादन को बढ़ाना संभव नहीं था, इसलिए उन्होंने कृषकों को मेनरों की जागीर की समस्त भूमि को कृषि के अधीन लाने के लिए बाध्य किया। यही कार्य करने के लिए उन्हें निधारित समय से अधिक समय काम करना पड़ता था।

कृषक इस अत्याचार को सहन नहीं कर सकते थे। वे खुलकर विरोध नहीं कर सकते थे, इसलिए उन्होंने निष्क्रिय प्रतिरोध का सहारा वे अपने खेतों पर कृषि करने में अधिक समय लगाने लगे और उस श्रम से किए गए उत्पादन का अधिकतर भाग अपने पास रखने लगे।

वे बेगार करने से बचने लगे। चरागाहों तथा वन-भूमि के कारण भी उनका अपने के साथ विवाद होने लगा। लॉर्ड इस भूमि को अपनी व्यक्तिगत संपत्ति समझते थे जबकि कृषक इसे संपूर्ण समुदाय की साझी संपदा मानते थे।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
यूरोप में चौदहवीं शताब्दी का संकट क्या था ? इसके लिए कौन-कौन से कारक उत्तरदायी थे? इस संकट के क्या परिणाम निकले?
उत्तर:
चौदहवीं शताब्दी के आरंभ में यूरोप का आर्थिक विस्तार धीमा पड़ा गया। इस संकट के लिए मुख्य रूप निम्नलिखित कारक उत्तरदायी थे –
1. मौसम में परिवर्तन-तेरहवीं शताब्दी के अंत तक उत्तरी यूरोप में पिछले तीन सौ वर्षों की तेज ग्रीष्म ऋतु का स्थान अत्यधिक ठंडी ग्रीष्म ऋत ने ले लिया । फलस्वरूप फसल उगाने वाले मौसम छोटे हो गए। ऊँची भूमि पर तो फसल उगाना और भी कठिन हो गया। तूफानों और सागरीय बादों ने अनेक कृषि फार्मों को नष्ट कर दिया। परिणामस्वरूप सरकार को करों द्वारा मिलनी वाली आय कम हो गई।

2. गहन जुताई और जनसंख्या में वृद्धि-तेरहवीं शताब्दी से पहले की अनुकूल जलवायु ने अनेक जंगलों तथा चरागाहों को कृषि भूमि में बदल दिया था। परंतु गहन जुताई ने तीन क्षेत्रीय फसल-चक्र व्यवस्था के बावजूद भूमि को कमजोर बना दिया। ऐसा उचित भू-संरक्षण के अभाव में हुआ था। चरगाहों की कमी हो गई जिसके कारण पशुओं की संख्या में कमी आ गई। जनसंख्या वद्धि इतनी तेजी से हुई कि उपलब्ध संसाधन कम पड़ गए और अकाल पड़ने लगे। 1315 ई. और 1317 ई. के बीच यूरोप में कई भयंकर अकाल पड़े । इसके पश्चात् 1320 ई. के दशक में अनगिनत पशु मौत का शिकार हो गए।

3. चाँदी के उत्पादन में कमी-ऑस्ट्रिया और सर्बिया की चाँदी की खानों के उत्पादन में कमी आ गई जिसके कारण धातु-मुद्रा का अभाव हो गया। इससे व्यापार प्रभाव हुआ। अतः सरकारी मुद्रा में चाँदी की शुद्धता घटानी पड़ी। अब मुद्रा में सस्ती धातुओं का मिश्रण किया जाने लगा।

4. महामारियाँ-बारहवीं तथा तेरहवीं शताब्दी में वाणिज्य में विस्तार के परिणामस्वरूप दूर देशों में व्यापार करने वाले पोत यूरोपीय तटों पर आने लगे। पोतों के साथ-साथ बड़ी संख्या .3471. से 1350 ई. के बीच पश्चिमी यूरोप महामारी से बुरी तरह प्रभावित हुआ। आधुनिक भाकलन के आधार पर यूरोप की जनसंख्या का लगभग 20 % भाग महामारी का शिकार हो गया। कुछ स्थानों पर तो मरनों पर तो मरने वालों की संख्या वहाँ की जनसख्या का 40% थी।

व्यापार केंद्र होने के कारण नगरों पर महामारी का सबसे अधिक प्रभाव पड़ा। मठों तथा कानवेंटों में जब एक व्यक्ति प्लेग की चपेट में आ जाता था तो वहाँ रहने वाले सभी लोग उसकी चपेट में आ जाते थे। परिणामस्वरूप बड़ी संख्या में लोग मौत का शिकार हो जाते थे। प्लेग का युवाओं तथा बुजुर्गों पर सबसे अधिक प्रभाव पड़ता था। 1350 ई. और 1370 ई. के करण पश्चात् 1360 ई. में भी प्लेग की छोटी-छोटी अनेक घटनाएँ हई। परिणामस्वरूप यूरोप की जनसंख्या 730 लाख से घटकर 1400 ई. में 450 लाख रह गई।

परिणाम –

  • इस विनाशलीला के साथ आर्थिक मंदी के जुड़ने से व्यापक सामाजिक विस्थापन हुआ।
  • जनसंख्या में कमी के कारण मजदूरों की संख्या में भारी कमी आई। अतः कृषि और उत्पादन के बिच गंभीर असंतुलन उत्पन्न हो गया।
    खरीदारों की जनसंख्या में कमी आने से कृषि उत्पादन के मूल्य एकाएक गिर गए।
  • प्लेग के बाद इंग्लैंड में मजदूरों: विशेषकर कृषि मजदूरों की मांग बढ़ गई जससे मजदूरी की दरों में 250 प्रतिशत तक वृद्धि हो गई।
  • इसका कारण यह था कि बचा हुआ श्रमिक बल अब अपनी पुरानी दरों से दुगुनी मजदूरी की माँग करने लगा था।

प्रश्न 2.
मध्यकालीन यूरोप में शक्तिशाली राज्यों (राष्ट्र राज्यों ) का उदय किस प्रकार हुआ? क्या अभिजात वर्ग द्वारा इसका विरोध हुआ?
उत्तर:
मध्यकालीन यूरोप में सामाजिक प्रक्रियाओं के साथ-साथ राजनीतिक क्षेत्रों में भी परिवर्तन आए। पंद्रहवी और सोलहवीं सदियों में यूरोपीय शासकों ने अपनी सैनिक तथा वित्तीय शक्ति में वृद्धि की। उनके द्वारा स्थापित नए शक्तिशाली राज्य उस समय होने वाले आर्थिक परिवर्तनों के समान ही महत्त्वपूर्ण थे। फ्रांस में लुई, ग्यारहवें, ऑस्ट्रिया में मैक्यमिलन, इंगलैंड में हेनरी सप्तम और स्पेन में ईसावला और फर्जीनेंड निरंकुश शासक थे। उन्होंने राष्ट्रीय स्थायी सेनाओं तथा स्थायी नौकरशाही की व्यवस्था को तथा कर प्रणाली स्थापित की । स्पेन तथा पुर्तगाल ने समुद्र पर यूरोप के विस्तार में भूमिका निभाई।

सहायक तत्व-राष्ट्र राज्यों के उदय में निम्नलिखित तत्त्वों ने सहायता पहुँचाई –
1. इन राजतंत्रों की सफलता का सबसे महत्वपूर्ण कारण बारहवीं और तेरहवीं शताब्दी में होने वाली सामाजिक परिवर्तन था। जागीरदारी (Vassalage) और सामंताशाही (lordship) वाली सामंत प्रथा के विलय और आर्थिक विकास की धीमी गति ने इन शासकों को प्रभावशाली बनया और जनसाधारण पर अपना नियंत्रण बढ़ाने का अवसर प्रदान किया। नए शासकों में सामंतों से अपनी सेना के लिए कर लेना बंद कर दिया।

इसके स्थान पर उन्होंने बंदूकों और बड़ी तोपों से सुसज्जित प्रशिक्षित सेना तैयार की जो पूर्ण रूप से उनके अधीन थी। इस प्रकार राजा इतने शक्तिशाली हो गए कि अभिजात वर्ग उनका विरोध करने का साहसे नहीं जुटा पाता था।

2. कों में वृद्धि से शासकों को पर्याप्त राजस्व प्राप्त होने लगा। इससे उन्हें पहले से बड़ी सेनाएँ रखने में सहायता मिली। सेनाओं की सहायता से उन्होंने अपने राज्य की सीमाओं की रक्षा की और उनकी विस्तार किया। सेना के बल पर उनके लिए राजसत्ता के प्रति होने वाले आंतरिक प्रतिरोधों को दबाना भी सरल हो गया। विरोध-इसका अर्थ यह नहीं था कि अभिजात वर्ग कॅन्द्रीय सत्ता का विरोध नहीं किया। अब कर प्रणाली के प्रश्न पर विद्रोह हुए । इंग्लैंड में इस विद्रोह का 1497 ई., 1536 ई., 1547 ई. , 1549 ई. और 1533 ई. में दमन कर दिया गया। फाँस में लुई xi (1461-83 ई.) को ड्यूकों तथा राजकुमारों के विरोद्ध एक लंबा संघर्ष करना पड़ा। छोटे सरदारों और अधिकांश स्थनीय सभाओं के सदस्यों ने भी अपनी शक्ति के जबरदस्ती हड़पे जाने का विद्रोह किया। सोलहवीं शताब्दी में फ्रांस में होने वाले ‘धर्म युद्ध’ कुछ सीमा तक शाही सुविधाओं और क्षेत्रीय स्वतंत्रता के बीच संघर्ष थे।

प्रश्न 3.
यूरोप के शक्तिशाली राज्यों में अपनी शक्ति को बनाए रखने के लिए अभिजात वर्ग ने क्या नीति अपनाई? क्या वे इसमें सफल रहे?
उत्तर:
अभिजात वर्ग ने अपने अस्तित्व को बनाए रखने के लिए एक चाल चली। उन्होंने नई शासन-व्यवस्था का विरोधी होने की बजाय राजभक्त होने का दिखावा किया। इसी कारण निरंकुशता का सुधारा हुआ रूप माना जाता है। वास्तव में लॉर्ड, जो सामती प्रथा में शासक थे, राजनीतिक परिदृश्य पर अभी भी छाए हए थे। उन्हें प्रशासनिक सेवाओं में स्थायी स्थान दिए गए थे। फिर भी नई शासन व्यवस्था कई महत्वपूर्ण तरीकों से सामंती प्रथा से अलग थी।

शासक अब उस पिरामिड के शिखर पर नहीं था जहाँ राजभक्ति आपसी विश्वास और आपसी निर्भरता पर टिकी थी। अब वह एक व्यापक दरबारी समाज तंत्र का कंद्र-बिंदु था। वह अपने अनुयायियों को आश्रय भी देता था। सभी राजतंत्र चाहे वे कमजोर थे या शक्तिशाली सत्ता में भाग लेने वाले व्यकितयों का सहयोग चाहते थे। राजा द्वारा दिया गया संरक्षण अथवा आश्रय इस सहयोग को सुनिश्चित करने का साधन था। संरक्षण धन के माध्यम से दिया या प्राप्त किया जा सकता था। इसलिए धन, व्यापारियों और साहूकारों जैसे गैर-अभिजात वर्गों के लिए दरबर में प्रवेश पाने का, एक महत्वपूर्ण माध्यम बन गया। वे राजाओं को धन उधार देते थे जो इसका उपयोग सैनिकों को वेतन देने के लिए करते थे। इस प्रकार राज्य व्यवस्था में गैर सामांती तत्वों को भी स्थान मिल गया।

1614ई. में शासक लुई xiii के शासनकाल में फ्रांस की परामर्शदात्री सभा, एस्टेट्स जनरल का एक अधिवेशन हुआ। इसके तीन सदन थे जो समाज के तीन वर्गा का प्रतिनिधित्व करते थे। इसके पश्चात् 1789 ई. तक इसे फिर नहीं बुलाया गया क्योंकि राजा तीन वर्गों के साथ अपनी शक्ति नहीं बाँटना चाहते थे। इंग्लैंड में नॉरमन विजय से भी पहले एंग्लो सैक्सन लोगों की एक महान् परिषद् होती थी। कोई भी कर लगाने से पहले राजा को इसे परिषद् की सलाह लेनी पड़ती थी। इसने आगे चलकर दो सदनों वाली पालिर्यामेंट का रूप धारण कर लिया।

ये सदन थे-हाऊस ऑफ लॉड्स तथा हाऊस ऑफ कामन्स। हाऊस हॉफ लॉड्स क सदस्य लॉर्ड तथा पादरी थे। हाऊस ऑफ कामन्स नगरों एवं ग्रामीण क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व करता था। राजा चार्ल्स प्रथम (1629-40 ई.) ने पालिमेंट को बिना बुलाए ग्यारह वर्षों तक शासन किया। एक बार धन की आवश्यकता पड़ने पर ही उसने पालिर्यामेंट को बुलाने का निर्णय किया। परंतु पार्लियामेंट के एक भाग ने उसके विरुद्ध युद्ध छेड़ दिया। बाद में उसे प्राणदंड देकर गणतंत्र की स्थापना कर दी गई। यह व्यवस्था भी अधिक समय तक नहीं चल पाई और राजतंत्र की पुनः स्थापना हुई। यह निर्णय हुआ कि अब पार्लियामेंट नियमित रूप से बुलाई जाएगी। इससे स्पष्ट है कि अभिजात वर्ग शक्तिशाली राज्यों में भी अपनी शक्ति बनाये रखने में सफल रहा।

प्रश्न 4.
यूरोप में मध्यकाल में नगरों का विकास किन कारणों से हुआ?
उत्तर:
यूरोप में मध्य वर्ग के जन्म के साथ दो – घटित हुई। एक तो बड़े नगर अस्तिव में आए और दूसरे सामंतवादी ढाँचे की नीवं हिल गई। नगरों के उत्थान से मेनर में बसने वाले लोगों ने नगरों में रहना आरंभ कर दिया। नगर में उद्योग थे, धन था तथ ऐश्वर्य भरा जीवन था। एक ऐसा समय आय जब स्वयं सामंत भी जा कर इन नगरों में रहने लगे। मध्यकालीन इन नगरों के इर्द-गिर्द पत्थर की चारदीवारी होती थी। चारदीवारी के बाहर खाई और उसके ऊपर बड़े-बड़े बुर्ज होते थे। नगर में एक बड़ा बाजार और कुछ तंग गलियाँ होती थीं। इन नगरों के विकाश के मुख्य कारण निम्नलिखित हैं

1. सामंतो का आश्रय – नगरों का आरंभ मध्य वर्ग के उदय होने के कारण हुआ। मध्य वर्ग का उदय वीं शताब्दी क अंत में हुआ। इसका आरंभ शिल्पकारों से हुआ। शिल्पकारों अपने उद्योग वहीं उन्नत कर सकते थे, जहाँ उन्हे रक्षा की आशा थी। ऐसी स्थान सामंतों की गढियाँ थीं। आरंभ में उन्होंने गढ़ियाँ के समीप आश्रय लिया। वे सामत से रक्षा की आशा करते थे। वे उसकों रक्षक मानते थे और उसका पूर्ण आदर करते थे। गढ़ी के समीप रहने वाली वसितयाँ 11वीं तथा 12वीं शताब्दी में विस्तृत रूप धारण करने लगीं। अंततः ये नगर बन गए।

2. धर्मयुद्ध – धर्मयुद्ध ने भी नगरों के विकास में विशेष भूमिका निभाई। ये धर्म युद्ध ईसाईयों और मुसलमानों के बीच हुए। वे ग्यारहवीं शताब्दी के अंत से लेकर तेरहवीं शताब्दी के अंत तक चलते रहे। इन युद्धों के फलस्वरूप यरोप और एशिया के देशों का व्यापार कई गना बढ़ गया। व्यापार से नगरों में स्थित मंडियों की रौनक बढ़ी। लोगों की संख्या बढ़ने लगी जिसके कारण नगरों का आकर बढ़ा। कुछ लोग नगर छोड़ कर दूर जा कर बसने लगे। इस प्रकार नवीन नगर अस्तित्व में आए।

3. सिक्के की वृद्धि – स्किके की वृद्धि के कारण नगरों का विकाश हुआ। जब व्यापारियों की वस्तुओं की मांग बढ़ी तो उन्होंने अधिक मात्रा में वस्तुएँ बनानी आरंभ कर दी। माल विदेशों में भी भेजा जाता था। विदेशी व्यापारियों से सोना-चाँदी में मूल्य लिया जाता था। इससे मुद्रा या सिक्कों में वृद्धि हुई। आंतरिक मंडियों में व्यापार में आरंभ में, वस्तुओं के आदान-प्रदान से होता रहा. परंतु धीरे-धीरे यहाँ भी सिक्कों का प्रयोग किया जाने लगा। इस प्रकार मुद्रा के प्रसार ने व्यापारिक वृद्धि में बड़ा योगदान दिया और व्यापार के कारण नगरों का विकास हुआ।

4. नगरों का स्वतंत्र जीवन – समय बीतने के साथ-साथ नगर सामंतो से स्वतंत्र हो गये। उन्होंने व्यापारियों से धन लेकर नगर व्यापारियों को सौंप दिये। इन व्यापारियों ने गिल्ड प्रणाली द्वारा नगरों के जीवन को नया रूप दिया। नगरों के स्वतंत्र जीवन का प्रभाव प्राकृतिक रूप से आस-पास के क्षेत्रों पर भी पड़ा। सामांती के दास और काम करने वाले पर इसका बहुत प्रभाव पड़ा। उनमें से कई लोग सामंतो के अत्याचारों से तंग आकर समीप के नगरों में शरण लेने लगे। नगर में कुछ समय रहने के बाद वे स्वतंत्र समझे जाते थे। समयानुसार सामंतों ने भी अपनी गढ़ियाँ खाली कर दी तथ नागरिक जीवन के सुख प्राप्त करने के लिए नगरों में आकर रहने लगे।

5. नगरों का प्रतिनिधित्व – तेरहवीं शताब्दी में नगरों की शक्ति बहुत बढ़ गई। सम्राटों को इनके प्रतिनिधियों कों विधानमंडलों में लेना पड़ा। इससे नगरों का महत्व बड़ा और उनके विकास में योगदान मिला। सच तो, हे कि नगरों के विकास ने सामाजिर उन्नति के द्वार खोल दिये। इसके करण सामंत-प्रधान समाज की नींब हिल गई । व्यक्तिगत स्वतंत्रता को बल मिला तथा व्यापार और उद्योग स्थापित हुए। इस प्रकार पूरे समाज का ही रूप बदल गया।

प्रश्न 5.
मध्यकालीन फ्रांस का दूसरा सामाजिक वर्ग कौन-सा था? समाज में इसकी क्या भूमिका थी?
उत्तर:
मध्यकालीन फ्रांस का दूसरा सामाजिक वर्ग अभिजात वर्ग था। पहले स्थान पर पादरी थे। वास्तव में सामाजिक प्रक्रिया में अभिजात वर्ग की महत्त्वपूर्ण भूमिका थी। इसका कारण था भूमि पर उनका नियंत्रण। यह नियंत्रण वैसलेज नामक एक प्रथा के विकास का परिणाम था।

समाज में अभिजात वर्ग की भूमिका – फ्रांस के शासक अपनी प्रजा से जुड़े हुए थे। इसी कारण वैसलेज प्रथा जर्मन मूल के लोगों, जिनमें फ्रैंक लोग भी शामिल थे, में समान रूप से प्रचलित थी।
1. भू-स्वामी और अभिजात वर्ग राजा के अधीन होते थे, जबकि कृषक भू-स्वामियों के अधीन होते थे। अभिजात वर्ग राजा को अपना स्वामी (Seigneur अथवा Senior) मान लेता था और वे आपस में वचनबद्ध होते थे। सेनयोर अथवा लॉर्ड दास (vassal) की रक्षा करता था। बदले में दास लॉर्ड के प्रति निष्ठावान रहता था। इन संबंधों के व्यापक रीति-रिवाज तथा शपथें जुड़ी थीं। यह शपथ चर्च में बाईबल की शपथ लेकर ली जाती थीं। इस समारोह में दास को लॉर्ड द्वारा दी गई भूमि के प्रतीक के रूप में एक लिखित अधिकार पत्र अथवा एक छड़ी (Staff) या कंवल मिट्टी का एक डला दिया जाता था।

2. अभिजात वर्ग को एक विशेष स्थान प्राप्त था। उनका अपनी संपदा पर स्थायी रूप से पूर्ण नियंत्रण होता था। वे अपनी सैन्य क्षमता बढ़ा सकते थे। उनकी सेना सामंती सेना कहलाती थी। वे अपना स्वयं का न्यायालय लगा सकते थे। यहाँ तक कि वे अपनी मुद्रा भी जारी कर सकते थे।

3. लॉर्ड अपनी भूमि पर बसे सभी लोगों का स्वामी होता था। उसके पास विस्तृत भू-क्षेत्र होता था। इसमें उसके घर, उसके निजी खेत एवं चरागाह और उनके कृषकों के घर तथा खेत होते थे। लॉर्ड का घर ‘मेनर’ कहलाता था। उनकी व्यक्तिगत भूमि कृषकों द्वारा जोती जाती थी। इन कृषकों को अपने खेतों पर काम करने के साथ-साथ आवश्यकता पड़ने पर युद्ध के समय सैनिक के रूप में भी कार्य करना पड़ता था।

प्रश्न 6.
मेनर की जागीर क्या थी? इसकी मुख्य विशेषताएँ बताएँ।
उत्तर:
मध्यकालीन लॉर्ड का अपना मेनर-भवन होता था। वह गाँवों पर नियंत्रण रखता था-कुछ लॉर्ड अनेक गाँवों के स्वामी थे। किसी छोटे मेनर की जागीर में दर्जन भर तथा बड़ी जागीर में 50-60 परिवार हो सकते थे। मेनर की जागीर की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित थीं

1. दैनिक उपयोग की प्रत्येक वस्तु जागीर पर ही मिलती थी। अनाज खेतों में उगाये जाते थे। लोहार तथा बढ़ई लॉर्ड के औजारों की देखभाल एवं मरम्मत करते थे। राजमिस्त्री उनकी इमारतों की देखभाल करते थे। औरतें सूत कातती एवं बुनती थीं । बच्चे लॉर्ड की मदिरा संपीडक में काम करते थे। जागीरों में विस्तृत अरण्य भूमि और वन होते थे जहाँ लॉर्ड शिकार करते थे। मेनर पर चरागाह भी होते थे जहाँ उनके पशु और क रते थे। मेनर पर एक चर्च और सुरक्षा के लिए एक दुर्ग भी होता था।

2. तेरहवीं शताब्दी में कुछ दुर्गों को बड़ा बनाया जाने लगा ताकि वे नाइट (Knight) तथा उसके परिवार का निवास स्थान बन सकें। वास्तव में, इंग्लैंड में नॉरमन विजय से पहले दुर्गों की कोई जानकारी / थी। इनका विकास सामंत प्रथा के अंतर्गत राजनीतिक प्रशासन और सैनिक शक्ति के केंद्रों के रूप में हुआ था।

3. मेनर कभी भी आत्मनिर्भर नहीं हो सकते थे क्योंकि उन्हें नमक, चक्की का पाट और धातु के बर्तन बाहर से मंगवाने पड़ते थे। विलासी जीवन बिताने के इच्छुक लॉडॉ को भी महंगी वस्तुएँ, वाद्य यंत्र और आभूषण आदि दूसरे स्थानों से मंगवाने पड़ते थे।

4. बारहवीं शताब्दी से फ्रांस के मेनरों में गायक वीर राजाओं तथा नाइट्स की वीरता की कहानियाँ गीतों के रूप में सुनाते हुए घूमते रहते थे। उस काल में जब पढ़े-लिखे लोगों की संख्या बहुत कम थी और पांडुलिपियाँ भी अधिक नहीं थी, ये घुमक्कड़ चारण बहुत प्रसिद्ध थे। अनेक मेनर भवनों के मुख्य कक्ष के ऊपर एक संकरा छज्जा होता था जहाँ मेनर लोग भोजन करते थे। यह वास्तव में एक गायक दीर्घा होती थी। यहीं पर गायक अभिजात वर्ग के लोगों को भोजन के समय मनोरंजन प्रदान करते थे।

प्रश्न 7.
मध्यकालीन यूरोप के भिक्षुओं के जीवन तथा मठवाद का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भिक्षु, विशेष श्रद्धालु ईसाइयों की एक श्रेणी थी। ये अत्यधिक धार्मिक प्रवृत्ति के व्यक्ति थे। ये लोग नगरों और गाँवों में नहीं रहते थे, बल्कि एकांत जीवन जीना पसंद करते थे। वे धार्मिक समुदायों में रहते थे जिन्हें ऐबी (Abbeys) या मोनैस्ट्री अथवा मठ कहते थे। मध्यकालीन यूरोप के दो सबसे अधिक प्रसिद्ध मठों में एक मठ 529 ई. में इटली में स्थापित सेंट बेनेडिक्ट (St. Benedict) मठ था। दूसरा मठ 910 ई. में बरगंडी (Burgundy) में स्थापित क्लूनी (Clunny) का मठ था। भिक्षु अपना सारा जीवन ऐबी में रहने और अपना समय प्रार्थना करने तथा अध्ययन एवं कृषि जैसे शारीरिक श्रम में लगाने का व्रत लेता था। भिक्षु जीवन पुरुष

और स्त्रियाँ दोनों ही अपना सकते थे। ऐसे पुरुषों को मोंक (Monk) तथा स्त्रियों को नन (Nun) कहा जाता था। पुरुषों और महिलाओं के लिए प्रायः अलग-अलग ऐबी थे। पादरियों की तरह भिक्षु और भिक्षुणियों को भी विवाह करने की अनुमति नहीं थी। धीरे-धीरे मठों का आकार बढ़ने लगा और भिक्षुओं की संख्या सैकड़ों तक पहुंच गईं।

भिक्षु तथा भिक्षुणियों के लिए नियम-बेनेडिक्टीन (Benedictine) मठों में भिक्षुओं के लिए एक हस्तलिखित पुस्तक होती थी इसमें नियमों के 73 अध्याय थे। भिक्षुओं द्वारा इनका पालन कई सदियों तक किया जाता रहा । इनमें से कुछ नियम इस प्रकार हैं –

भिक्षुओं को बोलने की अनुमति कभी-कभी ही दी जानी चाहिए।
विनम्रता का अर्थ है-आज्ञा का पालन।
किसी भी भिक्षु को निजी संपत्ति नहीं रखना चाहिए।
आलस्य आत्मा का शत्रु है। इसलिए भिक्षु-भिक्षुणियों को निश्चित समय पर शारीरिक श्रम और निश्चित घंटों में पवित्र पाठ करना चाहिए।
मठ इस प्रकार बनाने चाहिए कि आवश्यकता की सभी वस्तुएँ-जल, चक्की, उद्यान, कार्यशाला आदि सब कुछ उसकी सीमा के अंदर हों।

चौदहवीं सदी तक मठवाद के महत्त्व और उद्देश्य के बारे में कुछ शंकाएँ उभरने लगीं। इंग्लैंड में लैंग्लैंड की कविता पियर्स-द-प्लाउमैन (1360-1370 ई.) में कुछ भिक्षुओं के आरामदायक एवं विलासितापूर्ण जीवन की तुलना साधारण कृषकों, गड़ेरियों और गरीब मजदूरों के ‘विशुद्ध विश्वास’ से की गई है। इंग्लैंड में चौसर ने भी कैंटरबरी टेल्स लिखी जिसमें भिक्षुणी, भिक्ष और फ्रायर का हास्यास्पद चित्रण किया गया है।

प्रश्न 8.
मध्यकालीन यूरोप के समाज पर चर्च के प्रभाव की चर्चा कीजिए।
उत्तर:
यूरोपवासी ईसाई तो बन गए थे परंतु उने अभी तक चमत्कार और रीति-रिवाजों से जुड़े अपने पुराने विश्वासों को पूरी तरह नहीं छोड़ा था। क्रिसमस और ईस्टर चौथी शताब्दी में ही कैलेंडर की महत्त्वपूर्ण तिथियाँ बन गए थे। क्रिसमस अथवा ईसा मसीह के जन्मदिन ने एक पुराने पूर्व-रोमन त्योहार का स्थान ले लिया। इस तिथि की गणना सौर-पंचांग (Solar Calendar) के आधार पर की गई थी। ईस्टर-ईस्टर ईस के शूलारोपण और उनके पुनर्जीवित होने का प्रतीक था।

परंतु इसकी तिथि निश्चित नहीं थी क्योंकि इसने चंद्र-पंचाग (Lunar Calendar) पर आधारित एक प्राचीन त्योहार का स्थान लिया था। यह प्राचीन त्योहार लंबी सदी के पश्चात् वसंत के आगमन का स्वागत करने के लिए मनाया जाता था। एक परंपरा के अनुसार उस दिन प्रत्येक गाँव के व्यक्ति अपने गाँव की भूमि का दौरा करते थे। ईसाई धर्म अपनाने पर भी उन्होंने इसे जारी रखा। परंतु अब वे उसे ग्राम के स्थान पर ‘पैरिश’ कहने लगे।

त्योहारों का महत्त्व-काम से दबे कृषक इन पवित्र दिनों अथवा छुट्टियों (Holidays) का स्वागत इसलिए करते थे क्योंकि इन दिनों उन्हें कोई काम नहीं करना पड़ता था। वैसे तो यह दिन प्रार्थना करने के लिए था परंतु लोग सामान्यतः इसका उपयोग मनोरंजन करने और दावत करने में करते थे। तीर्थयात्रा-तीर्थयात्रा, ईसाइयों के जीवन का एक महत्त्वपूर्ण भाग था। बहुत-से लोग शहीदों की समाधियों या बड़े गिरिजाघरों की लंबी यात्राओं पर जाते थे।

प्रश्न 9.
मध्यकालीन यूरोप के तीसरे सामाजिक वर्ग अर्थात् किसानों के जनजीवन की मुख्य विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
किसान अथवा काश्तकार प्रथम तथा द्वितीय वर्ग का भरण-पोषण करते थे। काश्तकार दो प्रकार के होते थे-स्वतंत्र किसान और सर्फ अथवा कृषि दास। सर्फ अंग्रेजी की क्रिया टू सर्व (To serve) से बना है। स्वतंत्र किसान-स्वतंत्र कृषक अपनी भूमि को लॉर्ड के काश्तकार के रूप में देखते थे। कृषकों के लिए वर्ष में कम-से-कम चालीस दिन सैनिक सेवा में योगदान आवश्यक होता था। कृषक परिवारों को लॉर्ड की जागीरों पर जाकर काम करना पड़ता था।

इस श्रम से होने वाला उत्पादन जिसे ‘श्रम-अधिशेष’ (Labour-rent) कहते थे, सीधे लॉर्ड के पास जाता था। इसके अतिरिक्त उनसे गड्ढे खोदना, जलाने के लिए लकड़ियाँ इकट्ठी करना, खेतों के लिए बाड़ बनाना और सड़कों एवं इमारतों की मरम्मत करने जैसे कुछ अन्य कार्य करने की भी आशा की जाती थी। इसके लिए उन्हें कोई मजदूरी नहीं मिलती थी। स्त्रियों व बच्चों को खेतों में सहायता करने के अतिरिक्त कई अन्य कार्य भी करने पड़ते थे। वे सूत कातते, कपड़ा बुनते, मोमबत्ती बनाते और लॉर्ड के लिए अंगूरों से रस निकाल कर मदिरा तैयार करते थे। इसके साथ ही राजा कृषकों पर एक प्रत्यक्ष कर भी लगाता था जिसे टैली (Taille) कहते थे। पादरी और अभिजात वर्ग इस कर से मुक्त थे।

कृषिदास अथवा सर्फ-कृषिदास अपने गुजारे के लिए जिन भूखंडों पर कृषि करते थे, वे लॉर्ड से संबंधित थे । इसलिए उनकी अधिकतर उपज भी लॉर्ड को ही मिलती थी। वे उस भूमि पर भी कृषि करते थे जो केवल लॉर्ड के स्वामित्व में थी। इसके लिए उन्हें कोई मजदूरी नहीं दी जाती थी। चे लॉर्ड की आज्ञा के बिना जागीर नहीं छोड़ सकते थे। सर्फ केवल अपने लॉर्ड की चक्की में ही आटा पीस सकते थे. उनके तंदूर में ही. रोटी सेंक सकते थे और उनकी मदिरा संपीडक में ही मदिरा और बीयर तैयार कर सकते थे। लॉर्ड को कृषिदास का विवाह तय करने का भी अधिकार था। वह कृषिदास की पसंद को भी अपना आशीर्वाद दे सकता था। परंतु इसके लिए वह शुल्क लेता था।

प्रश्न 10.
ग्यारहवीं शताब्दी में यूरोप में होने वाले नए प्रौद्योगिकी परिवर्तनों की विवेचना कीजिए। इनके क्या परिणाम निकले?
उत्तर:
ग्यारहवीं शताब्दी तक यूरोप में विभिन्न प्रौद्योगिकियों में परिवर्तन आने लगे। इन परिवर्तनों का संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार है –
1. अब लकड़ी के हल के स्थान पर लोहे की भारी नोंक वाले हल तथा साँचेदार पटरे (Mould board) का उपयोग होने लगा। ऐसे हल भूमि को अधिक गहरा खोद सकते थे साँचेदार पटरे उपरी मृदा को सही ढंग से उलट-पुलट सकते थे। फलस्वरूप भूमि में विद्यमान पौष्टिक तत्त्वों का बेहतर उपयोग होने लगा।

2. पशुओं को हल में जोतने के तरीकों में सुधार हुआ। अब जुआ पशु के गले (Neck harmess) के स्थान पर कंधे पर बाँधा जाने लगा। इससे पशुओं के काम करने की क्षमता बढ़ गई।

3. घोड़े के खुरों पर अब लोहे की नाल लगाई जाने लगी जिससे उनके खुर सुरक्षित हो गए।

4. कृषि के लिए पवन-ऊर्जा और जल शक्ति का उपयोग बढ़ गया।

5. अन्न को पीसने और अंगूरों को निचोड़ने के काम भी जलशक्ति और वायुशक्ति से चलने वाले कारखानों में किए जाने लगे।

6. भूमि के उपयोग के तरीके में भी बदलाव आया। सबसे क्रांतिकारी परिवर्तन था-दो खेतों वाली व्यवस्था का तीन खेतों वाली व्यवस्था में बदलना। इस व्यवस्था में कृषक तीन वर्षों में दो वर्ष अपने खेत का उपयोग कर सकता था।

उसे करना यह था कि वह एक फसल शरद् ऋतु में गेहूँ या राई बो सकते थे दूसरे में वसंत ऋतु में मटर, सेम और मसूर बायो जा सकता था तथा घोड़ों के लिए जौ तथा बाजरा उपागया जा सकता था। तीसरा खेत परती अर्थात् खाली रखा जाता था। प्रत्येक वर्ष वे तीनों खेतों का प्रयोग बदल-बदल कर, कर सकते थे।

परिणाम अथवा प्रभाव –

  • इन सुधारों से भूमि के प्रति इकाई उत्पादन क्षमता में तेजी से वृद्धि हुई। फलस्वरूप भोजन की उपलब्ध दुगुनी हो गई।
  • आहार में मटर और से का अधिक उपयोग अधिक प्रोटीन का स्रोत बन गया।
  • पशुओं को भी पौष्टिक चारा मिलने लगा।
  • किसान अब कम भूमि पर अधिक भोजन का उत्पादन कर सकते थे।
  • तेरहवीं शताब्दी तक एक कृषक के खेत का औसत आकार सौ एकड़ से घटकर बीस से तीस एकड़ तक रहा गया। इन छोटी जोतों
  • पर अधिक कुशलता से कृषि की जा सकती थी और उसमें कम श्रम की आवश्यकता थी। फलस्वरूप समय की बचत हुई जिसका
  • उपयोग कृषक अन्य कार्यों के लिए कर सकते थे।

प्रश्न 11.
मध्यकालीन यूरोप में कृषि के विस्तार के क्या परिणाम निकलें?
उत्तर:
कृषि में विस्तार के परिणामस्वरूप उससे संबंधित तीन क्षेत्रों अर्थात् जनसंख्या, व्यापार और नगरों का विस्तार हुआ। यूरोप की जनसंख्या जो 1000 ई. में लगभग 420 लाख थी बढ़कर 1300 ई. में 730 लाख हो गई। बेहतर आहार से जीवन-अवधि लंबी हो गई। तेरहवीं शताब्दी तक एक औसत यूरोपीय आठवीं सदी की तुलना में दस वर्ष अधिक जी सकता था। पुरुषों की तुलना में स्त्रियों तथा बालिकाओं की जीवन-अवधि छोटी थी। इसका कारण यह था कि उन्हें पुरूषों बेहतर भोजन नहीं मिल पाता था।

रोमन साम्राज्य के पतन के पश्चात् उसके नगर वीरान हो गए थे। परन्तु ग्यारहवीं शताब्दी से नगर फिर से बढ़ने लगे। जिन कृषकों के पास अपनी आवश्यकता से अधिक खाद्यान्न होता था, उन्हें एक ऐसे स्थान की आवयश्कता महसूस हुई जहाँ वे अपना बिक्री केन्द्र स्थापित कर सकें और अपने उपकरण और कपड़े खरीद सकें। इस आवश्यकता ने मियादी हाट-मेलों को बढ़ावा दिया। इससे छोटे विपणन केंद्रों का विकास भी हुआ। ये केंद्र धीरे-धीरे नगरों का रूप धारण करने लगे। इन नगरों के लक्षण थे-एक नगर नौक, चर्च, सड़क, घर और दुकानें। एक कार्यलय भी होता था जहाँ नगर पर शासन करने वाल व्यक्ति आपस में मिलते थे। अन्य स्थानों पर नगरों का विकास:-विशाल दुर्गा, बिशपों की जागीरों तथा बड़े-बड़े चर्चा के चारों ओर होने लगा।

नगरों में लोग उन लॉडों को जिनकी भूमि पर नगर बसे थे, सेवा के स्थान पर कर देन लगे। नगरों ने कृषक परिवारो के युवा लोगों के लिए वैतनिक कार्य करने तथा लॉर्ड के नियंत्रण से मुक्ति दिलाने की संभावनाओं में भी वृद्धि को।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
माइक्रोस्कोप की खोज किस वर्ष हुई?
(क) 1590 में
(ख) 1560 में
(ग) 1570 में
(घ) 1561 में
उत्तर:
(क) 1590 में

प्रश्न 2.
सौर-परिवार सिद्धांत किसने प्रस्तुत किया?
(क) कोपरनिकस
(ख) गैलीलियो
(ग) जचारियास
(घ) जेन्सन
उत्तर:
(क) कोपरनिकस

प्रश्न 3.
चीन में मिंग राजवंश कब स्थापित हुआ?
(क) 1368 में
(ख) 1373 में
(ग) 1378 में
(घ) 1383 में
उत्तर:
(क) 1368 में

प्रश्न 4.
रूस में आधुनिकीकरण किसने किया?
(क) पीटर महान् ने
(ख) सनयात् सेन ने
(ग) च्यांग काई शेक ने
(घ) अल्हम्वा ने
उत्तर:
(क) पीटर महान् ने

प्रश्न 5.
कॉफी का यूरोप में पहली गर प्रयोग किस वर्ष हुआ?
(क) 1517 में
(ख) 1520 में
(ग) 1521 मं
(घ) 1570 में
उत्तर:
(क) 1517 में

प्रश्न 6.
1325 में प्लेग किस देश में फैला?
(क) मिस्र
(ख) रूस
(ग) पुर्तगाल
(घ) भारत
उत्तर:
(क) मिस्र

प्रश्न 7.
इंग्लैण्ड में ट्युडर वंश की स्थापना कब हुई?
(क) 1485 में
(ख) 1487 में
(ग) 1473 में
(घ) 1486 में
उत्तर:
(क) 1485 में

प्रश्न 8.
केन्टवरी टेल्स की रचना किसने की?
(क) जेफ्री चाँसर
(ख) यार्थीपोलो
(ग) ऐडी रोडो
(घ) विची
उत्तर:
(ख) यार्थीपोलो

Bihar Board Class 11 History Solutions Chapter 2 लेखन कला और शहरी जीवन

Bihar Board Class 11 History Solutions Chapter 2 लेखन कला और शहरी जीवन Textbook Questions and Answers, Additional Important Questions, Notes.

BSEB Bihar Board Class 11 History Solutions Chapter 2 लेखन कला और शहरी जीवन

Bihar Board Class 11 History लेखन कला और शहरी जीवन Textbook Questions and Answers

 

पाठ्य-पुस्तक के प्रश्न एवं उनके उत्तर

लेखन कला और शहरी जीवन पाठ के प्रश्न उत्तर Bihar Board प्रश्न 1.
आप यह कैसे कह सकते हैं कि प्राकृतिक उर्वरता तथा खाद्य उत्पादन के उच्च स्तर ही आरंभ में शहरीकरण के कारण थे?
उत्तर:
यह बात निःसंकोच कही जा सकती है कि प्राकृतिक उर्वरता तथा खाद्य उत्पादन ही आरंभ में शहरीकरण के कारण थे। इस बात के पक्ष में निम्नलिखित तर्क दिए जा सकते हैं

  • प्राकृतिक उर्वरता उन्नत खेती का आधार बनी।
  • प्राकृतिक उर्वरता के कारण घास-भूमियाँ अस्तित्व में आईं जिससे पशुपालन करने को बल मिला।
  • खेती तथा पशुपालन से मनुष्य का जीवन स्थायी बना क्योंकि अब यह खाद्य-उत्पादक बन गया था। अब उसे भोजन की तलाश में स्थान-स्थान घूमने की जरूरत नहीं थी।
  • जीवन के स्थायी बनने पर कृषक समुदाय अस्तित्व में आए जो झोपड़ियाँ बनाकर साथ-साथ रहने लगे। इस प्रकार गाँव अस्तित्व में आए।
  • खाद्य उत्पादन बढ़ने पर वस्तु-विनिमय की प्रक्रिया आरंभ हो गई। परिणामस्वरूप गाँवों का आकार बढ़ने लगा।
  • नये-नये व्यवसाय भी आरंभ हो गए जो शहरीकरण के प्रतीक थे।

लेखन कला और शहरी जीवन Question Answer Bihar Board प्रश्न 2.
आपके विचार से निम्नलिखित में से कौन-सी आवश्यक दशाएँ थीं जिनकी वजह से प्रारम्भ में शहरीकरण हुआ था और निम्नलिखित में से कौन-कौन सी बातें शहरों के विकास के फलस्वरूप उत्पन्न हई?

  1. अत्यंत उत्पादक खेती
  2. जल-परिवहन
  3. धातु और पत्थर की कमी
  4. श्रम विभाजन
  5. मुद्राओं का प्रयोग
  6. राजाओं के सैन्य-शक्ति जिसने श्रम को अनिवार्य बना दिया।

उत्तर:
शहरीकरण के लिए आवश्यक दशाएँ –

  • अत्यंत उत्पादक खेती
  • जल परिवहन
  • श्रम विभाजन।

शहरों के विकास के फलस्वरूप विकसित दशाएँ –

  • धातु और पत्थर की कमी
  • मुद्राओं का प्रयोग
  • राजाओं की सैन्य शक्ति जिसने श्रम को अनिवार्य बनाया।

प्रश्न 3.
यह कहना क्यों सही होगा कि खानाबदोश पशुचारक निश्चित रूप से शहरी जीवन के लिए खतरा थे?
उत्तर:
खानाबदोश पशुचारक निम्नलिखित कारणों से शहरी जीवन के लिए खतरा थे –

1. ये लोग कई बार अपनी भेड़ – बकरियों को पानी पिलाने के लिए बोये हुए खेतों में से होते हए ले जाते थे। इससे खेती को क्षति पहुँचती थी और उत्पादन कम हो जाता था। कभी-कभी ये किसानों के गाँवों पर हमला कर देते थे और उनका माल लूट ले जाते थे। यह अव्यवस्था शहरी जीवन में बाधक थी।

2. दूसरी ओर कभी – कभी बस्तियों में रहने वाले लोग भी इनका रास्ता रोक देते थे और उन्हें अपने पशुओं को नदी या नहर तक नहीं ले जाने देते थे। इस प्रकार भी झगड़े होते थे। खानबदोश समुदायों के पशुओं के अतिचारण से बहुत सी उपजाऊ भूमि बंजर हो जाती थी।

प्रश्न 4.
आप ऐसा क्यों सोचते हैं कि पुराने मंदिर बहुत कुछ घर जैसे ही होंगे?
उत्तर:
कुछ पुराने मंदिर साधारण घरों से अलग किस्म के नहीं होते थे क्योंकि मंदिर भी किसी देवता का घर होता था। परंतु मंदिरों की बाहरी दीवारें विशेष अंतरालों के बाद भीतर और बाहर की ओर मुड़ी होती थी। यही मंदिरों की मुख्य विशेषता थी। सामान्य घरों की दीवारें ऐसी नहीं होती थीं।

प्रश्न 5.
शहरी जीवन शुरू होने के बाद कौन-कौन-सी नयी संस्थाएँ अस्तित्व में आई? आपके विचार से उनमें से कौन-सी संस्थाएँ राजा के पहल पर निर्भर थीं ?
उत्तर:
शहरी जीवन आरंभ होने के बाद कई नई संस्थाएँ अस्तित्व में आईं। इनमें से मुख्य थीं –

  • मंदिर
  • विद्यालय
  • लिपिक अथवा पट्टिका लेखक
  • व्यापार केंद्र
  • स्थायी सेना
  • शिल्पकार
  • वस्तुविद्
  • मूर्तिकार इत्यादि। इन संस्थानों में से मंदिर, व्यापार और लेखन राजा के पहल पर निर्भर थे।

प्रश्न 6.
किन पुरानी कहानियों से हमें मेसोपोटामिया की सभ्यता की झलक मिलती है?
उत्तर:
मेसोपोटामिया यूनानी भाषा का शब्द है जिसका अर्थ है-दो नदियों के बीच का प्रदेश। इराक में दजला और फरात नाम की दो नदियाँ बहती हैं। इनके मध्य में स्थित घाटी को मेसोपोटामिया कहकर पुकारा जाता है। प्राचीन काल में यहाँ एक-एक करके तीन सभ्यताएँ फली-फूलीं। ये सभ्यताएँ थीं-सुमेरिया की सभ्यता, बेबीलोनिया की सभ्यता और असीरिया की सभ्यता। इन तीनों का सामूहिक नाम मेसोपोटामिया की सभ्यता है। इस सभ्यता के सामाजिक, आर्थिक तथा धार्मिक जीवन का वर्णन इस प्रकार हैं –

1. सामाजिक जीवन-मेसोपोटामिया का समाज तीन वर्गों में बाँटा हुआ था। पहले दो वर्गों में उच्च लोग शामिल थे। इन वर्गों के लोग अच्छे मकानों में रहते थे, अच्छे वस्त्र पहनते थे और उन्हें अनेक विशेषाधिकार प्राप्त थे। तीसरे वर्ग के लोग दास थे और वे झोपड़ियों में रहते थे। मेसोपोटामिया के समाज में स्त्रियों का निम्न स्थान था।

2. आर्थिक जीवन-मेसोपोटामिया के लोगों का आर्थिक जीवन भी काफी उन्नत था। वे लोग कृषि करते थे। कृषि उन्नत थी। उन्होंने सिंचाई के लिए नदियों पर बाँध बनाए थे। वे टीन, ताँबे तथा काँसे के प्रयोग से परिचित थे। वे अच्छे शिल्पी भी थे। उन्हें कपड़ा बुनना, भवन, आभूषण तथा अन्य अनेक चीजें बनानी आती थी। वे अपने पड़ोसी देशों के साथ व्यापार भी करते थे।

3. धार्मिक जीवन-मेसोपोटामिया के लोग धर्मपरायण भी थे। मंदिर ईटों से बनाए जाते थे तथा समय के साथ बड़े होते गए। एक प्रकार को. मीनार नुमा मंदिर “जिगुरात” नगर के पवित्र क्षेत्र में ऊँची पहाड़ी पर ईंटों से बनाए जाते थे। उनके प्रमुख देवता समय (सूर्य), सिन (चंद्रमा), अनु (आकाश देव), एकलिन (वायु देव) आदि थे। उनके देवताओं की संख्या हजारों में थी। बाबली लोगों का मुख्य देवता मरदुक और प्रमुख देवी इस्तर थी। असीरी लोगों के मुख्य देवता का नाम आसुर था। समाज में पुजारियों का बड़ा प्रभाव था।

Bihar Board Class 11 History लेखन कला और शहरी जीवन Additional Important Questions and Answers

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
मेसोपोटामिया का क्या अर्थ है?
उत्तर:
मेसोपोटामिया यूनानी भाषा के दो शब्दों ‘मेसोस’ (Mesos) तथा ‘पोटैमोस’ (Potamos) से बना है। मेसोस का अर्थ है मध्य तथा पोटैमोस का अर्थ है नदी । इस प्रकार मेसोपोटामिया का अर्थ नदियों के मध्य स्थित प्रदेश है।

प्रश्न 2.
मेसोपोटामिया के दो स्थानों के नाम बताएँ जहाँ लंबे समय तक उत्खनन कार्य चला?
उत्तर:
उरूक तथा मारी। प्रश्न 3. मेसोपोटामिया के इतिहास के कौन-कौन से स्रोत उपलब्ध हैं? उत्तर:इमारतें, मूर्तियाँ, आभूषण, औजार, करें, मुद्राएँ, लिखित दस्तावेज आदि।

प्रश्न 4.
मेसोपोटोमिया के प्राचीनतम नगरों का निर्माण कब शुरू हुआ?
उत्तर:
कांस्य युग अर्थात लगभग 3000 ई.पू. में मेसोपोटामिया के प्राचीनतम् नगरों का निर्माण शुरू हुआ।

प्रश्न 5.
मेसोपोटामिया के लोग अपने लिए आवश्यक धातुएँ तथा अन्य पदार्थ कहाँ से मंगवाते थे। इसके बदले में वे क्या निर्यात करते थे?
उत्तर:
मेसोपोटामिया के लोग अपने लिए आवश्यक धातुएँ तथा अन्य पदार्थ तुर्की और ईरान अथवा खाड़ी पार के देशों से मंगवाते थे। इसके बदले में वे कपड़ा तथा कृषि उत्पाद, निर्यात करते थे।

प्रश्न 6.
मेसोपोटामिया के लोग लिखने के लिए कागज के रूप में किस चीज का प्रयोग करते थे?
उत्तर:
मिट्टी की पट्टिकाओं का

प्रश्न 7.
मेसोपोटामिया की सबसे पुरानी ज्ञात भाषा कौन-सी थी?
उत्तर:
सुमेरियन

प्रश्न 8.
मेसोपोटामिया में साक्षरता कम क्यों थी?
उत्तर:
मेसोपाटामिया की लिपि में चिह्नों की संख्या सैकड़ों में थी। इसके अतिरिक्त ये चिह्न बहुत ही जटिल थे। इसी कारण मेसोपोटामिया में साक्षरता दर कम थी।

प्रश्न 9.
मेसोपोटामिया की विचारधारा के अनुसार व्यापार और लेखन की व्यवस्था सर्वप्रथम किसने की?
उत्तर:
राजा एनमर्कर ने

प्रश्न 10.
मेसोपोटामिया के दो देवी-देवताओं का नाम बताओ।
उत्तर:
चन्द्र देवता उर तथा प्रेम एवं युद्ध की देवी इन्नाना।

प्रश्न 11.
मेसोपोटामिया के पुराने मंदिरों तथा घरों में एक अंतर बताइए।
उत्तर:
मंदिरों की बाहरी दीवारें एक विशेष अवधि के बाद भीतर की ओर तथा फिर बाहर की ओर मुड़ी होती थी। साधारण घरों की दीवारों में यह विशेषता नहीं थी।

प्रश्न 12.
मेसोपोटामिया में खेतों, मत्स्य क्षेत्रों तथा लोगों के पशुधन का स्वामी किसे माना जाता था?
उत्तर:
आराध्य देव को

प्रश्न 13.
मेसोपोटामिया के लोगों के धर्म की कोई दो विशेषताएँ बताओ।
उत्तर:

  • मेसोपोटामिया के समुदायों का अपना-अपना इष्ट देव होता था।
  • लोग देवी देवताओं को अन्न, दही तथा मछली अर्पित करते थे।

प्रश्न 14.
शहरी जीवन की शुरूआत कहाँ से हुई थी ? यह प्रदेश किन दो नदियों के मध्य स्थित है?
उत्तर:
शहरी जीवन की शुरूआत मेसोपोटामिया से हुई। यह प्रदेश इराक गणराज्य की फरात तथा दजला नदियों के मध्य स्थित है।

प्रश्न 15.
मेसोपोटामिया की सभ्यता अपनी किन विशेषताओं के लिए प्रसिद्ध है?
उत्तर:
अपनी संपन्नता, शहरी जीवन, विशाल एवं समृद्ध साहित्य, गणित तथा खगोलविद्या के लिए प्रसिद्ध है।

प्रश्न 16.
मेसोपोटामिया में पुरातत्वीय खोजों की शुरूआत कब हुई?
उत्तर:
1840 के दशक में हुई।

प्रश्न 17.
यूरोपवासियों के लिए मेसोपोटामिया क्यों महत्वपूर्ण था?
उत्तर:
यूरोपवासियों के लिए मेसोपोटामिया इसलिए महत्वपूर्ण था क्योंकि बाईबल के प्रथम भाग ‘ओल्ड टेस्टामेंट’ में मेसोपाटोमिया का कई संदों में उल्लेख किया गया है।

प्रश्न 18.
शहर अथवा कस्बे किस प्रकार अस्तित्व में आते हैं?
उत्तर:
जब किसी अर्थव्यवस्था में खाद्य उत्पादन के अतिरिक्त अन्य आर्थिक गतिविधियाँ विकसित होने लगी हैं तब किसी एक स्थान पर जनसंख्या का घनत्व बढ़ जाता है फलस्वरूप कस्बे अस्तित्व में आते हैं।

प्रश्न 19.
वार्का शीर्ष नामक मूर्तिकला का प्रसिद्ध नमूना मेसोपोटामिया के किस नगर से मिला है? इसे किस चीज से बनाया जाता था ?
उत्तर:
वार्का शीर्ष नाम मूर्तिकला का प्रसिद्ध नमूना मेसोपोटामिया के उरूक नगर में मिला है। इसे सफेद संगमरमर को तराश कर बनाया गया था।

प्रश्न 20.
कांसा कौन-सी दो धातुओं के मिश्रण से बनाया जाता है?
उत्तर:
ताँबा तथा राँगा (टिन) धातुओं के मिश्रण से

प्रश्न 21.
लेखन या लिपि से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
लेखन या लिपि से अभिप्राय उन ध्वनियों से है जो संकेतों या चिह्नों के रूप में लिखी जाती हैं।

प्रश्न 22.
मेसोपोटामिया के लोगों के लिपि कैसी थी?
उत्तर:
कोलाकार अथवा क्यूनीफार्।

प्रश्न 23.
एकल परिवार क्या होता है?
उत्तर:
एकल परिवार में एक पुरुष, उसकी पत्नी और उनके बच्चे शामिल होते थे।

प्रश्न 24.
इस तथ्य की पुष्टि किस बात से होती है कि मेसोपोटामिया (उर) के समाज में धन-दौलत का अधिकतर भाग एक छोटे से वर्ग में केन्द्रित था?
उत्तर:
अधिकतर बहुमूल्य वस्तुएँ राजाओं तथा रानियों की कब्रों तथा समाधियों में दबी हुई मिली हैं। इससे इस बात की पुष्टि होती है कि मेसोपोटामिया के समाज में धन-दौलत का अधिकतर भाग एक छोटे-से वर्ग में केंद्रित था।

प्रश्न 25.
शहरी अर्थव्यवस्था के लिए कुम्हार के चाक का क्या महत्त्व था?
उत्तर:
कुम्हार द्वारा चाक के प्रयोग से बर्तन बनाने के काम ने एक कार्यशाला का रूप ले लिया। अब एक जैसे कई बर्तन एक साथ बनाए जाने लगे।

प्रश्न 26.
बेबीलोनिया को उच्च संस्कृति का केंद्र क्यों माना जाता था?
उत्तर:
बेबीलोनिया को उच्च संस्कृति का केंद्र इसलिए माना जाता था क्योंकि यहाँ के कई नगर पट्टिकाओं के विशाल संग्रह के लिए विख्यात थे।

प्रश्न 27.
बेबीलोनिया को असीरियाई आधिपत्य से कब और किसने मुक्त कराया?
उत्तर:
दक्षिणी कछार के एक शूरवीर नैबोपोलास्सर ने 625 ई.पू. में मुक्त कराया।

प्रश्न 28.
स्वतंत्र बेबीलोन का अंतिम शासक कौन थे ? उसका एक कार्य बताओ।
उत्तर:
स्वतंत्र बेबीलोन का अंतम शासक नैबोनिडस था। उसने अक्कद के राजा सारगोन (Sargon) की खंडित मूर्ति की मरम्मत करवाई।

प्रश्न 29.
बेबीलोन नगर की कोई दो महत्त्वपूर्ण विशेषताएँ बताएँ।
उत्तर:

  • बेबीलोन नगर का क्षेत्रफल 850 हैक्टेयर से अधिक था
  • इसमें बड़े-बड़े राजमहल और मंदिर स्थित थे।

प्रश्न 30.
हौज क्या होता है?
उत्तर:
हौज जमीन में ढका हुआ एक गड्ढा होता है। इसमें पानी तथा मल जाता है।

प्रश्न 31.
उर नगरों में शवों का अंतिम संस्कार कैसे किया जाता था?
उत्तर:
शवों को भूमि के नीचे दफनाया जाता था। प्रश्न 32. मारी के राजाओं ने वहाँ किस देवता के लिए मंदिर बनवाया ? उत्तर:स्टेपी क्षेत्र के देवता डैगन (Dagan) के लिए।

प्रश्न 33.
मारी स्थित-जिमरीलिम का राजमहल बहुत ही विशाल था। कोई दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर:

  • यह राजमहल 2.4 हैक्टेयर के क्षेत्र में फैला था।
  • इसमें 260 कक्ष बने हुए थे।

प्रश्न 34.
गिल्गेमिश महाकाव्य क्या है। यह किस बात के महत्व को दर्शाता है?
उत्तर:
गिल्गेमिश महाकाव्य 12 पट्टिकाओं परं लिखा एक महाकाव्य है। यह मेसोपोटामिया के नगरों के महत्त्व को दर्शाता है। इससे पता चलता है कि मेसोपोटामिया के लोगों को अपने नगरों पर बहुत अधिक गर्व था।

प्रश्न 35.
असुरबनिपात कौन था? उसकी दो उपलब्धियाँ बताएँ।
उत्तर:
असुरबनिपाल असीरियाई अंतिम राजा था। उपलब्धियाँ –

  • उसने अपनी राजधानी निनवै में एक पुस्तकालय की स्थापना की।
  • उसने इतिहास, महाकाव्य, साहित्य, ज्योतिष आदि की पट्टिकाओं को इकट्ठा करवाया।

प्रश्न 36.
दक्षिणी मेसोपोटामिया में विकसित शहर कौन-कौन से तीन प्रकार के थे?
उत्तर:

  • मंदिरों के चारों ओर विकसित हुए शहर।
  • व्यापार केन्द्रों के रूप में विकसित हुए शहर।
  • शाही शहर।

प्रश्न 37.
क्यूनीफार्म शब्द कैसे बना है?
उत्तर:
क्यूनीफार्म शब्द लैटिन भाषा के दो शब्दों क्यनियस तथा फोर्मा से मिलकर बना है। क्यूनियस का अर्थ है बूंटी तथा फोर्मा का अर्थ है ‘आकार’।

प्रश्न 38.
आप ऐसा क्यों सोचते हैं कि पुराने मंदिर बहुत कुछ घर जैसे ही होंगे।
उत्तर:
क्योंकि मंदिर भी किसी देवता का घर ही होता है। इसीलिए पुराने मंदिर बहुत कुछ घर जैसे ही होंगे।

प्रश्न 39.
संसार को मेसोपोटामिया की सबसे बड़ी देन क्या है?
उत्तर:
उसकी कालगणना तथा गणित की विद्वतापूर्ण परंपरा।

प्रश्न 40.
मेसोपोटामिया के लोगों ने समय का विभाजन किस प्रकार किया हुआ था?
उत्तर:
उनका समय विभाजन चंद्रमा को पृथ्वी के चारों ओर परिक्रमा पर आधारित था। इसके अनुसार एक वर्ष को 12 महीनों, एक महीने को 4 हफ्तों, एक दिन को 24 घंटों तथा । घंटा को 60 मिनट में बाँटा गया था।

प्रश्न 41.
सुमेर के व्यापार की पहली घटना को किस व्यक्ति से जोड़ा जाता है?
उत्तर:
उरूक शहर के एक प्राचीन शासक एनमर्कर (Enmerkar) से।

प्रश्न 42.
2400 ई.पू. के बाद सुमेरियन भाषा का स्थान किस भाषा ने ले लिया?
उत्तर:
अक्कदी भाषा ने।

लघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
शहरी अर्थव्यवस्था में एक सामाजिक संगठन होना क्यों जरूरी है?
उत्तर:
शहरी अर्थव्यवस्था में एक सामाजिक संगठन का होना भी जरूरी है। इसके निम्नलिखित कारण हैं –

  1. शहरी विनिर्माताओं के लिए ईंधन, धातु, विभिन्न प्रकार के पत्थर, लकड़ी आदि जरूरी चीजें भिन्न-भिन्न जगहों से आती हैं। इसके लिए संगठित व्यापार और भंडारण की आवश्यकता होती है।
  2. शहरों में अनाज और अन्य खाद्य-पदार्थ गाँवों से आते हैं। नगरो में उनके संग्रह तथा वितरण के लिए व्यवस्था करनी होती है।
  3. इसके अतिरिक्त और भी अनेक प्रकार के क्रियाकलापों में तालमेल बैठाना पड़ता है। उदाहरण के लिए मुद्रा काटने वालों को केवल पत्थर ही नहीं, उन्हें तराशने के लिए औजार तथा बर्तन भी चाहिए।
  4. शहरी अर्थव्यवस्था को अपना हिसाब-किताब भी लिखित में रखना होता है। ये सभी कार्य आदेश और आदेश पालन द्वारा पूरे होते हैं। यही निश्चित सामाजिक संगठन की विशेषता है।

प्रश्न 2.
शहरी जीवन में श्रम-विभाजन का क्या महत्व है?
अथवा
श्रम-विभाजन शहरी जीवन की महत्वपूर्ण विशेषता है। उदाहरण देकर समझाइए।
उत्तर:
श्रम – विभाजन का अर्थ है – अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति एक-दूसरे के उत्पादन अथवा सेवाओं द्वारा करना। शहरी जीवन में श्रम-विभाजन का होना बहुत ही आवश्यक है। इसका कारण यह है कि शहरी अर्थव्यवस्था में खाद्य उत्पादन के अतिरिक्त व्यापार तथा तरह-तरह की सेवाओं की भी महत्वपूर्ण भूमिका होती है। परंतु नगर के लोग आत्मनिर्भर नहीं होते । वह गाँवों या नगर के अन्य लोगों द्वारा उत्पन्न वस्तुओं एवं सेवाओं के लिए उन पर आश्रित होते हैं। उनमें आपस में बराबर लेन-देन होता रहता है। उदाहरण के लिए एक पत्थर की मुद्रा बनाने वाले को पत्थर उकेरने के लिए काँसे के औजारों की आवश्यकता पड़ती है। वह स्वयं ऐसे औजार नहीं बना सकता।

वह यह भी नहीं जानता कि वह मुद्राओं के लिए आवश्यक रंगीन पत्थर कहाँ से प्राप्त करे। उसकी विशेषज्ञता तो केवल उकेरने तक ही सीमित होती है। वह व्यापार करना नहीं जानता। काँसे के औजार बनाने वाला भी ताँबा या राँगा (टिन) लाने के लिए स्वयं बाहर नहीं जाता। ये सभी कार्य एक-दूसरे की सहायता से ही पूरे होते हैं।

प्रश्न 3.
मेसोपोटामिया के दक्षिणी रेगिस्तानी भाग का क्या महत्व था?
उत्तर:
मेसोपोटामिया का दक्षिणी भाग रेगिस्तानी है। इस रेगिस्तान में फरात और दजला नदियाँ बहती हैं। ये नदियाँ पहाड़ों से निकलकर अपने साथ उपजाऊ बारीक मिट्टी लाती रही हैं। जब इन नदियों में बाढ़ आती है अथवा जब इनके पानी को सिंचाई के लिए खेतों में ले जाया जाता है तब इनके द्वारा लाई गई उपजाऊ मिट्टी खेतों में जमा हो जाती है। फरात नदी रेगिस्तान में प्रवेश करने के बाद कई धाराओं में बँट जाती है। कभी-कभी इन धाराओं में बढ़ आ जाती है। प्राचीन काल में ये धाराएँ सिंचाई की नहरों का काम देती थीं। इनसे आवश्यकता पड़ने पर गेहूँ, जौ और मटर या मसूर के खेतों की सिंचाई की जाती थी, इसलिए वर्षा की कमी के बावजूद सभी पुरानी व्यवस्थाओं में दक्षिणी मेसोपोटामिया की खेती सबसे अधिक उपज देती थी।

प्रश्न 4.
मेसोपोटामिया के आयात-निर्यात पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
मेसोपोटामिया खाद्य-संसाधनों में अवश्य समृद्ध था, परंतु वहाँ खनिज संसाधनों का अभाव था। दक्षिण के अधिकांश भागों में औजार, मोहरें (मद्राएँ) और आभूषण बनाने के लिए पत्थर की कमी थी। इराकी खजूर और पोपलार के पेड़ों की लकड़ी गाड़ियाँ, गाड़ियों के लिए पहिए या नावें बनाने के लिए अच्छी नहीं थी। औजार, पात्र या गहने बनाने के लिए कोई धातु उपलब्ध नहीं थी। इसलिए प्राचीन काल में मेसोपोटामिया के निवासी संभवत: लकड़ी, ताँबा, राँगा, चाँदी, सोना, सीपी और विभिन्न प्रकार के पत्थर तुर्की तथा ईरान अथवा खाड़ी-पार के देशों से मंगवाते थे।

इन देशों के पास खनिज संसाधन की कोई कमी नहीं थी, परंतु वहाँ खेती करने की संभावना कम थी। अत: मेसोपोटामिया आने वाली वस्तुओं के बदले इन देशों को कपड़ा तथा कृषि उत्पाद भेजे जाते थे। वस्तुओं का नियमित रूप से आदान-प्रदान तभी संभव था जब इसके लिए कोई सामाजिक संगठन होता । दक्षिणी मेसोपाटामिया के लोगों ने ऐसे संगठन स्थापित करने की शु की।

प्रश्न 5.
बाईबल में उल्लखित जलप्लावन की कहानी क्या बताती है?
उत्तर:
बाईबल के अनुसार प्राचीन काल में पृथ्वी पर संपूर्ण जीवन को नष्ट करने वाला जलप्लावन हुआ था। इस महान् बाढ़ भी कहा जाता है। परंतु परमश्वर पृथ्वी पर जीवन को बनाए रखना चाहता था। इस उद्देश्य से उसने नोआ (Naoh) नाम के एक व्यक्ति को चुना नोआ ने एक बहुत ही बड़ी नाव बनाई और उसमें सभी जीव-जंतुओं का एक-एक जोड़ा रख लिया। जलप्लावन होने पर नाव में रखे सभी जोड़े सुरक्षित बच गए, जबकि शेष सब कुछ नष्ट हो गया।

प्रश्न 6.
इराक भौगोलिक विविधता का देश है। उदाहरण देकर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
इराक वास्तव में भौगोलिक विविधता वाला देश है। इसके पूर्वोत्तर भाग में हरे-भरे, ऊँचे-नीचे मैदान हैं। ये मैदान धीरे-धीरे वृक्षाच्छादित पर्वत-श्रृंखला के रूप में फैलते जाते हैं। यहाँ स्वच्छ झरने तथा जंगली फूल भी उगाये जाते हैं। यहाँ अच्छी फसल के लिए पर्याप्त वर्षा हो जाती है। उत्तर में ऊँची भूमि है जहाँ ‘स्टेपी’ घास के मैदान हैं। यहाँ पशुपालन आजीविका का मुख्य साधन है। सर्दियों की वर्षा के बाद भेड़-बकरियाँ यहाँ उगने वाली छोटी-छोटी झाड़ियों और घास से अपना भरण-पोषण करती हैं। पूर्व में दजला की सहायक नदियाँ परिवहन का अच्छा साधन हैं। देश का दक्षिणी भाग एक रेगिस्तान है।

प्रश्न 7.
2600 ई. पू. से इसवी सन् की पहली शताब्दी तक मेसोपोटामिया के लेखन और भाषा में क्या-क्या परिवर्तन आये?
उत्तर:
1. 2600 ई. पू. के आसपास मेसोपोटामिया में लिपि कीलाकार हो गई । लेखन की भाषा सुमेरियन थी। मेसोपोटामिया की कीलाकार लिपि का चिह किसी एक व्यंजन या स्वर को व्यक्त नहीं करता था, बल्कि यह किसी अक्षर समूह की ध्वनि का प्रतीक होता था। इसलिए मेसोपोटामिया के लिपिक को सैकड़ों चिह सीखने पड़ते थे, और उसे गीली पट्टी पर सूखने से पहले ही लिखना होता था । लेखन कार्य के लिए विशेष कुशलता की आवश्यकता भी होती थी।

2. अब लेखन का प्रयोग केवल हिसाब-किताब रखने के लिए नहीं, बल्कि शब्द-कोश बनाने, भूमि के हस्तांतरण को कानूनी मान्यता प्रदान करने, राजाओं के कार्यों का वर्णन करने तथा कानून में उन परिवर्तनों को उद्घोषित करने के लिए किय जाने लगा जो देश की आम जनता के लिए बनाए जाते थे।

3. 2400 ई. पू. के बाद सुमेरियन भाषा का स्थान धीरे-धीरे अक्कदी भाषा ने ले लिया । अक्कदी भाषा में कीलाकार लेखन कार्य ईसवी सन् की पहली शताब्दी तक अर्थात् 2000 से भी अधिक वर्षों तक चलता रहा।

प्रश्न 8.
दक्षिणी मेसोपोटामिया में कृषि कई बार संकटों से घिर जाती थी ? इसके लिए कौन-कौन से कारक उत्तरदायी थे?
उत्तर:
भूमि में प्राकृतिक उपजाऊपन होने के बावजूद दक्षिणी मेसोपोटामिया में कृषि कई बार संकटों से घिर जाती थी। इसके लिए प्राकृतिक तथा मानव-निर्मित दोनों प्रकार के कारक उत्तरदायी थे

प्राकृतिक कारक –

  • फरात नदी का प्राकृतिक धाराओं में किसी वर्ष तो बहुत अधिक पानी बह आता था और फसलों को डुबा देता था।
  • कभी-कभी नदी की धाराएँ अपना रास्ता बदल लेती थीं, जिससे खेत सूखे रह जाते थे।

मानव निर्मित कारक –

  • फरात नदी की धाराओं के ऊपरी प्रदेश में रहने वाले लोग अपने पास की जलधारा से इतना अधिक पानी ले लेते थे कि धारा के नीचे की ओर बसे हुए गाँवों को पानी ही नहीं मिल पाता था।
  • धारा के ऊपरी भाग में रहने वाले लोग अपने हिस्से की सारणी में से गाद (मिट्टी) भी नहीं निकालते थे। परिणामस्वरूप धारा का बहाव रूक जाता था और नीचे वालों का पानी नहीं मिलता था।

प्रश्न 9.
शहरी अर्थव्यवस्था के लिए कुशल परिवहन व्यवस्था की क्या भूमिका होती है? मेसोपोटामिया का उदाहरण दें।
उत्तर:
कुशल परिवहन व्यवस्था शहरी विकास के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण होती है। अनाज या काठ कोयला भारवाही पशुओं की पीठ पर रखकर या बैलगाड़ी में डालकर शहरों में लाना ले जाना बहुत कठिन होता है। इसका कारण यह है कि इसमें बहुत अधिक समय लगता है और पशुओं के चारे आदि पर भी काफी खर्चा आता है। शहरी अर्थ-व्यवस्था इसका बोझ उठाने के लिए सक्षम नहीं होती। शहरी अर्थ-व्यवस्था के लिए परिवहन का सबसे सस्ता साधन जलमार्ग ही होता है। अनाज के बोरों से लदी हुई नावें की धारा की गति अथवा हवा के वेग से चलती हैं, जिस पर कोई खर्चा नहीं आता।

प्राचीन मेसोपोटामिया की नहरें तथा प्राकृतिक जलधाराएँ छोटी बड़ी बस्तियों के बीच माल के परिवहन का अच्छा मार्ग थीं। फरात नदी उन दिनों व्यापार के लिए ‘विश्व-मार्ग’ के रूप में जानी जाती थी। इस परिवहन व्यवस्था ने मेसोपोटामिया के शहरीकरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

प्रश्न 10.
उरूक नगर में होने वाली तकनीकी प्रगति के बारे में जानकारी दीजिए।
उत्तर:
शासक के आदेश से साधारण लोग पत्थर खोदने, धातु-खनिज लाने, मिट्टी से ईंटें बना कर मंदिर में लगाने तथा सुदूर देशों से मंदिर के लिए तरह-तरह का सामान लाने जैसे कामों में जुटे रहते थे।

इसके परिणामस्वरूप 3000 ई. प. के आसपास उरूक नगर में खूब तकनीकी प्रगति हुई।

  1. अनेक शिल्पों में काँसे के औजारों का प्रयोग होने लगा।
  2. वस्तुविदों ने ईंटों के स्तंभ बनाना सीख लिया क्योंकि अच्छी लकड़ी न मिल पाने के . कारण बड़े-बड़े कमरों की छतों के बोझ को संभालने के लिए मजबूत शहतीर नहीं बनाए जा सकते थे।
  3. सैकड़ों लोगों को चिकनी मिट्टी के शंकु (कोन) बनाने और पकाने के काम में लगाया गया था। शंकु को भिन्न-भिन्न रंगों में रंगकर मंदिरों की दीवारों में लगाया जाता था। इससे दीवारों पर विभिन्न रंग निखर उठते थे।
  4. मूर्तिकला के क्षेत्र में भी अत्यधिक उन्नति हुई। मूर्तियाँ मुख्यतः आयातित पत्थरों से बनाई जाती थीं।
  5. प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में एक युगांतकारी परिवर्तन आया। वह था-कुम्हार के चाक के निर्माण से। कुम्हार की कार्यशाला में एक साथ बड़े पैमाने पर दर्जनों एक जैसे बर्तन बनाए जाने लगे।

प्रश्न 11.
मेसोपोटामिया में मुद्राओं के निर्माण और उनके महत्व का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर:
मेसोपोटामिया में 1000 ई. पू. के अंत तक पत्थर की बेलनाकार मुद्राएँ बनाई जाने लगी थीं। इनके बीजों-बीच एक छेद होता था। इस छेद में एक तीली लगाकर मुद्रा को गीली मिट्टी पर घुमाया जाता था। इस प्रकार उनसे लगातार चित्र बनाया जाता था। मुद्राएँ अत्यंत कुशल कारीगरों द्वारा उकेरी जाती थीं। कभी-कभी उनमें ऐसे लेख होते थे जैसे-स्वामी का नाम. उसके. इष्ट देव का नाम और उसकी अपनी पदीय स्थिति आदि।

मोहर को किसी कपड़े की गठरी या बर्तन के मुँह को चिकनी मिट्टी से लीप-पांतकर उस पर घुमाया जा सकता था। इस प्रकार उसमें अंकित लिखावट मिट्टी की सतह पर छप जाती थी। मोहर लगी गठरी या बर्तन में रखी वस्तुओं को सुरक्षित रखा जा सकता था। जब इस मोहर को मिट्टी से बनी किसी पट्टिका पर लिखे पत्र पर घुमाया जाता था तो वह मोहर उस पत्र की प्रामाणिकता की प्रतीक बन जाती थी।

प्रश्न 12.
मारी नगर में पशुचारकों पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
2000 ई. पू. के बाद मारी नगर शाही राजधानी के रूप में खूब फला-फूला। यह फरात नदी की उर्ध्वधारा पर स्थित है। इसके ऊपरी क्षेत्र में खेती और पशुपालन साथ-साथ चलते थे। फिर भी इस प्रवेश का अधिकांश भाग पेड़-बकरी चराने के लिए ही काम में लाया जाता था।

पशुचारकों को जब अनाज, धातु के औजारों आदि की जरूरत पड़ती थी तो वे अपने पशुओं, पनीर, चमड़ा तथा मांस आदि के बदले में चीजें प्राप्त करते थे। बाड़े में रखे जाने वाले पशुओं के गोबर से बनी खाद भी किसानों के लिए बहुत उपयोगी होती थी। फिर भी किसानों तथा गड़ेरियों के बीच कई बार झगड़े हो जाते थे।

प्रश्न 13.
मेसोपोटामिया का समाज और संस्कृति विभिन्न समुदायों के लोगों एवं संस्कृतियों का मिश्रण थी। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
मेसोपोटामिया के समृद्ध कृषि प्रदेश में खानाबदोश समुदायों के झंड के झंड पश्चिमी मरूस्थल से आते रहते थे। ये गड़ेरिये गर्मियों में अपने साथ अपनी भेड़-बकरियाँ ले आते थे। वे फसल काटने वाले मजदूरों अथवा भाड़े के सैनिकों के रूप में आते थे और समृद्ध होकर यहीं बस जाते थे। उनमें से कुछ ने तो यहाँ अपना शासन स्थापित करने की शक्ति भी प्राप्त कर ली थी। ये लोग अक्कदी, एमोराइट, असीरियाई, आर्मीनियन जाति के थे।

मारी के राजा एमोराईट समुदाय के थे। उनकी पोशाक वहाँ के मूल निवासियों से भिन्न होती थी। उन्होंने मेसोपोटामिया के देवी-देवताओं को सम्मान देने के साथ-साथ मारी नगर में स्टेपी क्षेत्र के देवता डैगन के लिए एक मंदिर भी बनवाया । इस प्रकार मेसोपोटामिया का समाज और संस्कृति भिन्न-भिन्न समुदायों के लोगों और संस्कृतियों का मिश्रण थी जिसने वहाँ की सभ्यता में जीवन-शक्ति उत्पन्न की।

प्रश्न 14.
जिमरीलिम के मारी स्थित राजमहल का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
उत्तर:
मारी का राजमहल 2.4 हेक्टेयर के क्षेत्र में स्थित एक अत्यंत विशाल भवन था। इसमें 260 कक्ष बने हुए थे। वहाँ के शाही परिवार का निवास स्थान होने के साथ-साथ प्रशासन तथा कीमती धातुओं, आभूषण बनाने का मुख्य केंद्र भी था। अपने समय में यह इतना अधिक प्रसिद्ध था कि उसे देखने के लिए उत्तरी सीरिया का एक छोटा राजा आया था। राजा के भोजन की मेज पर प्रतिदिन भारी मात्रा में खाद्य पदार्थ रोटी, मांस, मछली, फल, मदिरा और बीयर शामिल होता था।

वह संभवतः अपने साथियों के साथ बड़े आँगन में बै भोजन करता था। राजमहल का केवल एक ही प्रवेश द्वारा था जो उत्तर की ओर स्थित था। महल में विशाल खुले प्रांगण सुन्दर पत्थरों से जड़े हुए थे। राजा विदेशी अतिथियों और अपने प्रमुख लोगों से उस कमरे में मिलता था जहाँ भित्ति चित्र बने हुए थे।

प्रश्न 15.
मेसोपोटामिया में लेखन कला का विकास कैसे हुआ?
उत्तर:
बोली जाने वाली ध्वनियों को लिखने के लिए जो संकेत या चिह्न निश्चित किए जाते हैं उसे लिपि कहा जाता है। मेसोपोटामिया के लोगों के पास भी अपनी लिपि थी। उन्होंने तब लिखना आरंभ किया जब समाज को अपने लेन-देन का स्थायी हिसाब रखने की जरूरत पड़ी क्योंकि शहरी जीवन में लेन-देन अलग-अलग समय पर होते थे और करने वाले कई लोग होते थे। सौदा भी कई प्रकार के माल का होता था।

मेसोपोटामिया के लोग मिट्टी की पट्टिकाओं पर लिखते थे। मेसोपोटामियों में जो पहली पट्टिकाएँ (Tablets) मिली हैं वे लगभग 3200 ई. पू. की है। उनमें चित्र जैसे चिह्न और संख्याएँ दी गई हैं। वहाँ बैलों, मछलियों और रोटियों आदि की लगभग 5000 सूचियाँ मिली हैं। ये सूचियाँ संभवतः वहाँ के दक्षिणी शहर उरुक के मंदिरों में आने वाली तथा वहाँ से बाहर जाने वाली चीजों की है।

प्रश्न 16.
मेसोपोटामिया के लोग लेखन कार्य किस प्रकार करते थे?
उत्तर:
मेसोपोटामिया के लोग अपना हिसाब-किताब रखने के लिए मिट्टी की पट्टिकाओं पर लिखा करते थे। पट्टिका तैयार करने के लिए लिपिक चिकनी मिट्टी को गीला करके गूंध लेते थे। फिर उसे थापकर एक ऐसी पट्टी का रूप देते थे जिसे वह आसानी से अपने एक हाथ में पकड़ सके। वह उसकी सतहों को चिकना बना कर सरकंडे को तीली की तीखी नोक से उसकी नम चिकनी सतह पर कौलाकार चिह्न (cuneiform) बना देता था।

लिखने के बाद पट्टिका को धूप में सुखाया जाता था। सूखने पर पट्टिका पक्की हो जाती थी और मिट्टी के बर्तनों जैसी मजबूत हो जाती थी। उस पर कोई नया चिह या अक्षर नहीं लिखा जा सकता था। इस प्रकार प्रत्येक सौदे के लिए चाहे वह कितना ही छोटा हो, एक अलग पट्टिका की जरूरत होती थी। जब उस पर लिखा हुआ कोई हिसाब गैर-जरूरी हो जाता था तो उस पट्टिका को फेंक दिया जाता था।

प्रश्न 17.
मारी नगर व्यापार तथा समृद्धि की दृष्टि से अद्वितीय था। उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
मारी नगर एक अत्यंत महत्वपूर्ण व्यापारिक स्थल था। जहाँ से होकर लकड़ी, ताँबा, राँगा, तेल, मदिरा और अन्य सामान नावों द्वारा फरात नदी के मार्ग से दक्षिण और तुर्की, सीरिया तथा लेबनान के उच्च प्रदेशों के बीच लाया तथा ले जाया जाता था। मारी नगर की समृद्धि का आधार यही व्यापार था। दक्षिणी नगरों में घिसाई-पिसाई के पत्थर चक्कियाँ, लकड़ी, शराब तथा तेल ले जाने वाले जलपोत मारी में रूका करते थे।

मारी के अधिकारी लदे हुए सामान की जाँच करते थे और उसमें लदे माल के मूल्य का लगभग 10 प्रतिशत प्रभार वसूल करते थे जो विशेष किस्म की लौकाओं में आता था। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि कुछ पट्टिकाओं में साइप्रस के द्वीप ‘अलाशिया’ से आने वाले ताँबे का उल्लेख मिला हैं । यह द्वीप उन दिनों ताँबे तथा टिन , के व्यापार के लिए प्रसिद्ध था। इस प्रकार मारी नगर व्यापार तथा समृद्धि की दृष्टि से अद्वितीय था।

प्रश्न 18.
बेबीलोन नगर की मुख्य विशेषताएं बताएँ।
उत्तर:
331 ई. पू. में सिंकदर से पराजित ह्येने तक बेबीलोन विश्व का एक प्रमुख नगर बना रहा। इस नगर की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित थीं –

  • इसका क्षेत्रफल 850 हैक्टेयर से अधिक था।
  • इसकी चहारदीवारी तिहरी थी।

प्रश्न 19.
गिल्गेमिश का महाकाव्य किस बात पर प्रकाश डालता है। इसमें वर्णित घटना का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
मेसोपोटामिया के लोगों को अपने नगरों पर बहुत अधिक गर्व था। गिल्गेमिश का महाकाव्य इसी बात पर प्रकाश डालता है। यह काव्य 12 पट्टिकाओं पर लिखा गया था। ऐसा कहा जाता कि गिल्गेमिश ने एनमर्कर के कुछ समय पश्चात् उरुक नगर पर शासन किया था। वह एक महान् योद्धा था। उसने दूर-दूर तक के प्रदेशों को अपने अधीन कर लिया था। परंतु उसे उस समय गहरा आघात पहुंचा जब उसका एक वीर मित्र अचानक मर गया । दु:खी होकर वह अमरत्व की खोज में निकल पड़ा। उसने संसार भर का चक्कर लगाया। परंतु उसे अपने साहसिक कार्य में सफलता नहीं मिली।

हारकर वह अपने नगर उरूक लौट आया। एक दिन जब अपने आपको सांत्वना देने के लिए शहर की चहारदीवारी के पास चहलकदमी कर रहा था तो उसकी नजर उन पकी ईंटों पर पड़ी जिनसे दीवार की नींव डाली गई थी। वह भावविभोर हो उठा । यहाँ पर ही महाकाव्य की लंबी साहस भरी कथा का अंत हो जाता है। इस प्रकार गिल्गेमिश को अपने नगर में ही सांत्वना मिलती है जिसे उसकी प्रजा ने बनाया था।

प्रश्न 20.
विश्व को मेसोपोटामिया की क्या देन है?
उत्तर:
विश्व को मेसोपोटामिया की सबसे बड़ी देन उसकी कालगणना और गणिक की विद्वतापूर्ण परंपरा है।

  1. 1800 ई. पू. के आसपास की कुछ पट्टिकाएं मिली हैं। इनमें गुणा और भाग की तालिकाएँ, वर्ग तथा वर्गमूल और चक्रवृद्धि ब्याज को सारणियाँ दी गई हैं।
  2. उनमें 2 का वर्गमूल का जो मान दिया गया है वह 2 के वर्गमूल के वास्तविक मान से थोड़ा सा ही भिन्न है।
  3. पृथ्वी के चारों ओर चंद्रमा की परिक्रमा के अनुसार एक वर्ष का 12 महीनों में विभाजन, एक महीने का 4 हफ्तों में विभाजन, दिन का 24 घंटों में और एक घंटे का 60 मिनट में विभाजन, यह सब कुछ मेसोपोटामिया से ही हमें मिला है।
  4. मेसोपोटामिया के लोग सूर्य और चंद्र ग्रहण घटित होने का भी हिसाब रखते थे।
  5. वे रात के समय आकाश में तारों और-तारामंडल की स्थिति पर बराबर नजर रखते ये और उनका लेखा-जोखा रखते थे।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1
मेसोपोटामिया में राजा के पद का विकास किस प्रकार हुआ ? राजा ने अपना प्रभाव और नियंत्रण बढ़ाने के लिए क्या-क्या पग उठाए?
उत्तर:
मेसोपोटामिया के तत्कालीन गाँवों में भूमि और पानी के लिए बार-बार झगड़े हुआ करते थे। जब किसी क्षेत्र में दो समुदायों के बीच लंबे समय तक लड़ाई चलती थी तो जीतने वाले मुखिया अपने साथियों एवं अनुयायियों के बीच लूट का माल बाँटकर उन्हें खुश कर देते थे और हारे हुए समूहों के लोगों को बंदी बनाकर अपने साथ ले जाते थे। वे उन्हें अपने चौकीदार या नौकर बना लेते थे। इस प्रकार वे अपना प्रभाव और अनुयायियों की संख्या बढ़ा लेते थे। परंतु युद्ध में विजयी होने वाले ये नेता स्थायी रूप से समुदाय के मुखिया नहीं बने रहते थे। समुदाय का नेतृत्व बदलता रहता था। यही मुखिया आगे चलकर राजा कहलाए।

राजा ने अपना प्रभाव और नियंत्रण बढ़ाने के लिए निम्नलिखित कदम उठाए –

1. राजा के प्रभाव और नियंत्रण में वृद्धि – समुदाय के कल्याण पर अधिक ध्यान देना आरंभ कर दिया । फलस्वरूप नयी-नयी संस्थाएँ और परिपाटियाँ स्थापित हो गई।

2. मंदिरों की शोभा बढ़ाना – विजेता मुखियाओं ने देवताओं को भी बहुमूल्य भेटें अर्पित करनी आरंभ कर दिया। इससे समुदाय के मंदिरों की सुदरंता बढ़ी। उन्होंने लोगों को उत्कृष्ट पत्थर और धातुएँ लाने के लिए दूर-दूर भेजा ताकि मंदिर की शोभा को और अधिक बढ़ाया जा सके। मंदिर की धन-संपदा तथा मंदिरों में आने-जाने वाली वस्तुओं का हिसाब-किताब भी रखा जाने लगा। इस व्यवस्था ने राजा को ऊँचा स्थान दिलाया और समुदाय पर उसका पूर्ण नियंत्रण स्थापित किया।

3. समुदाय की सुरक्षा – प्रभावशाली राजाओं ने ग्रामीणों को अपने पास बसने के लिए भी प्रोत्साहित किया। आसपास अथवा साथ-साथ रहने से लोग स्वयं को अधिक सुरक्षित महसूस करने लगे।

4. काम के बदले अनाज-युद्धबंदियों और स्थानीय लोगों के लिए मंदिर तथा शासक का काम करना अनिवार्य था। उन्हें इस काम के बदले अनाज दिया जाता था। सैकड़ों ऐसी राशन-सूचियाँ मिली हैं जिनमें काम करने वाले लोगों के नामों के आगे उन्हें दिए जाने वाले अनाज, कपड़े और तेल आदि की मात्रा लिखी गई है।

प्रश्न 2.
मेसोपोटामिया के लोगों ने कला, शिल्प तथा ज्ञान में जो सफलताएँ प्राप्त की उनका वर्णन कीजिए।
उत्तर:
1. कला तथा शिल्प – मेसोपोटामिया के लोगों ने कला के क्षेत्र में काफी उन्नति की हुई थी। वे बड़ी सुंदर मूर्तियाँ बनाते थे और इनसे अपने मंदिरों को सुशोभित करते थे। इसके अतिरिक्त वे सोने-चाँदी के बर्तन तथा आभूषण बनाने में भी बड़े निपुण थे। मेसोपोटामिया के लोग लकड़ी की सुंदर पच्चीकारी वाला फर्नीचर बनाते थे। उनकी मिट्टी तथा ताँबे के बर्तन बनाने की कला भी काफी उन्नत थी।।

2. ज्ञान के क्षेत्र में सफलताएँ – ज्ञान के क्षेत्र में मेसोपोटामिया के लोगों की सफलताओं का वर्णन इस प्रकार है –

  • मेसोपोटामिया के लोगों ने अंकगणित तथा रेखागणित में बहुत उन्नति कर ली थी। उन्होंने 1, 10 और 60 के लिए विशेष चिह्न बनाए हुए थे।
  • उन्होंने एक घंटे को 60 मिनट और 1 मिनट को 60 सेकेंड में बाँटा हुआ था।
  • रेखागणित में उन्होंने पाइथागोरस के सिद्धांत को जान लिया था।
  • खगोल विद्या अथवा ज्योतिषशास्त्र में भी उनका ज्ञान काफी अधिक था। वे सूर्य निकलने तथा अस्त होने का ठीक समय बता सकते थे। उन्हें सूर्य तथा चंद्र ग्रहण का भी ज्ञान था।
  • उन्होंने चंद्रमा पर आधारित एक पंचांग का आविष्कार किया था।

प्रश्न 3.
दक्षिणी मेसोपोटामिया के शहरीकरण की जानकारी देते हुए वहाँ मंदिरों के निर्माण एवं उनके बढ़ते हुए महत्व पर प्रकाश डालिए।
उतर:
शहरीकरण की शुरूआत-दक्षिणी मेसोपोटामिया में 5000 ई. पू. से बस्तियों का विकास होने लगा था । इन बस्तियों में से कुछ ने प्राचीन शहरों का रूप ले लिया। ये शहर तीन प्रकार के थे –

  • वे शहर जो मंदिरों के चारों और विकसित हुए
  • वे शहर जो व्यापार के केंद्रों के रूप में विकसित हुए तथा
  • शेष शाही शहर

1. मंदिरों का निर्माण और उनका बढ़ता हुआ महत्व – मेसोपोटामिया के दक्षिणी भाग में – बाहर से आकर बसने वाले लोगों ने अपने गाँवों में कुछ चुने हुए स्थानों पर मंदिर बनाने या उनका पुनर्निर्माण करने का काम शुरू किया। सबसे पहला ज्ञात मंदिर एक छोटा सा देवालय था जो कच्ची ईंटों का बना हुआ था। मंदिर विभिन्न प्रकार के देवी-देवताओं के निवास स्थान थे। साधारण घरों की दीवारों में यह विशेषता नहीं पाई जाती थी। ‘उर’ चंद्र देवता था और इन्नाना प्रेम व युद्ध की देवी थी। – मंदिर का स्वरूप-मंदिर ईंटों से बनाए जाते थे। समय के साथ इनका आकार बढ़ता गया, क्योंकि उनके खुले आँगन के चारों ओर कई कमरे बने होते थे। कुछ प्रारंभिक मंदिर साधारण घरों जैसे ही होते थे। परंतु मंदिरों की बाहरी दीवारें कुछ विशेष अंतरालों के बाद भीतर और बाहर ही ओर मुड़ी हुई होती थीं। साधारण घरों की दीवारों में यह विशेषता नहीं पाई जाती थी।

देवता पूजा का केंद्र-बिंदु होता था। लोग देवी-देवताओं को अन्न, दही, मछली अर्पित करते थे। आराध्य देव सैद्धांतिक रूप से खेतों, मत्स्य क्षेत्रों और स्थानीय लोगों के पशुधन का स्वामी जाता था।

2. मंदिरों के बढ़ते क्रियाकलाप – समय बीतने पर मंदिर ने अपने क्रियाकलाप बढ़ा लिए।

  • अब उपज को उत्पादित वस्तुओं में बदलने की प्रक्रिया मंदिरों में की जाने लगी।
  • यह व्यापारियों को नियुक्त करने लगा।
  • यह अन्न, हल जोतने वाले पशुओं, रोटी, जौ की शराब, मछली आदि के आवंटन और वितरण का लिखित अभिलेख रखने लगा।
  • यह परिवार से ऊपरी स्तर के उत्पादन का केंद्र बन गया । इस प्रकार इसने मुख्य शहरी संस्था का रूप ले लिया।

प्रश्न 4.
मेसोपोटामिया के उर नगर की मुख्य विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
उर नगर उन नगरों में से एक था जहाँ सबसे पहले खुदाई की गई थी। वहाँ साधारण घरों की खुदाई 1930 के दशक में सुव्यवस्थित ढंग से की गई। इस नगर की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित थी –
1. टेढ़ी-मेढ़ी तथा संकरी गलियाँ – नगर में टेढ़ी-मेढ़ी तथा संकरी गलियाँ पाई गई हैं। इससे यह पता चलता है कि वहाँ के अनेक घरों तक पहिए वाली गाड़ी नहीं पहुंच सकती थी। अनाज के बोरे और ईंधन के गट्टे संभवत: गधों पर लादकर घरों तक लाए जाते थे। पतली व घुमावदार गलियों तथा घरों के भू-खंडों का एक जैसा आकार न होने से यह निष्कर्ष निकलता है कि नगर नियोजन की पद्धति का अभाव था।

2. जल निकासी – जल-निकासी की नालियाँ और मिट्टी की नलिकाएँ उर नगर के घर के भीतरी आँगन में पाई गई हैं। इससे यह पता चलता है कि घरों की छतों का ढलान भीत की ओर होता था और वर्षा का पानी निकास नालियों के माध्यम से भीतरी आँगन में बने हु हौज में ले जाया जाता था। यह संभवत इसलिए किया गया होगा कि तेज वर्षा आने पर छ के बाहर की कच्ची गलियाँ बुरी तरह कीचड़ से न भर जायें।

3. घरों की सफाई – लोग अपने घरों की सफाई के बाद सारा कूड़ा-कचरा गलियों में डा. देते थे। यह आने-जाने वाले लोगों के पैरों के नीचे आता रहता था। बाहर कूड़ा डालते रह से गलियों की सतहें ऊँची उठ जाती थौं । अतः कुछ समय बाद घरों की दहलीजों को भी ऊँ उठाना पड़ता था ताकि वर्षा के बाद गली का कीचड़ बह कर घरों के भीतरी न आ जाए।

4. खिड़कियों का अभाव – कमरों में खिड़कियों नहीं होती थीं। प्रकाश आँगन में खुल. वाले दरवाजों से होकर कमरे में आता था। इससे घरों के परिवारों में गोपनीयता भी बरहती थी।

5. घरों के बारे में अंधविश्वास – घरों के बार में कई तरह के अंधविश्वास प्रचलित है, जो पट्टिकाओं पर लिखे मिले हैं। इनमें से कुछ ये हैं –

  • यदि घर की दहलीज ऊँची हुई हो, तो वह धन-दौलत लाती है।
  • यदि सामने का दरवाजा किसी दूसरे के घर की ओर न खुले तो सौभाग्य लाता है।
  • यदि घर का लकड़ी का मुख्य दरवाजा बाहर की ओर खुले तो पत्नी अपने पति के लिए यंत्रणा का कारण बनती है।
  • शवों का दफन – उर में नगरवासियों के लिए एक कब्रिस्तान था, जिसमें शासकों तथा जन-साधारण की समाधियाँ पाई गई हैं। परंतु कुछ लोग घरों के फर्शों के नीचे भी दफनाए जाते थे।

प्रश्न 5.
मेसोपोटामिया के नगरों की सामाजिक व्यवस्था से सम्बन्धित निम्नलिखित बातों की जानकारी दीजिए
(क) उच्च वर्ग की स्थिति
(ख) परिवार का स्वरूप
(ग) विवाह-प्रणाली।
उत्तर:
(क) उच्च वर्ग की स्थिति-मेसोपोटामिया के नगरों की सामाजिक व्यवस्था में एक उच्च या संभ्रांत वर्ग का प्रादुर्भाव हो चुका था। धन-दौलत का अधिकतर भाग समाज के इसी वर्ग में केंद्रित था। इस बात की पुष्टि इस तथ्य से होती है कि बहुमूल्य वस्तुएँ विशाल उर में राजा रानियों की कुछ कब्रों या समाधियों में उनके साथ दफनाई गई मिली हैं। इन वस्तुओं में आभूषण, सोने के पात्र, सफेद सीपियाँ और लाजवर्द जड़े हुए लकड़ी के वाद्य यंत्र, सोने के सजावटी खंजर आदि शामिल हैं।

(ख) परिवार का स्वरूप-विवहा, उत्तराधिकार आदि के मामलों से संबंधित कानूनी दस्तावेजों से पता चलता है कि मेसोपोटामिया के समाज में एकल परिवार को आदर्श माना जाता था। फिर भी विवाहित पुत्र और उसका परिवार अपने माता-पिता के साथ ही रहा करता था। पिता परिवार का मुखिया होता था।

(ग) विवाह प्रणाली-विवाह करने की इच्छा के बारे में घोषणा की जाती थी। वधू के माता-पिता उसके विवाह के लिए अपनी सहमति देते थे। उसके बाद वर पक्ष के लोग वधू को कुछ उपहार देते थे। विवाह की रस्म पूरी हो जाने पर दोनों पक्ष उपहारों का आदान-प्रदान करते थे। वे एक साथ बैठकर भोजन करते थे और मंदिर में जाकर भेंट चढ़ाते। जब नव वधू को उसकी सास लेने आती थी, तब वधू को उसके पिता द्वारा उसके उत्तराधिकार का हिस्सा दे दिया जाता था। परंतु पिता का घर, पशुधन, खेत आदि उसके पुत्रों को ही मिलते थे।

प्रश्न 6.
मेसोपोटामिया के भूगोल की विशेषताएँ बताइए।।
उत्तर:
मेसोपोटामिया के भूगोल को समझने के लिए आज के इराक की भौगोलिक विशेषताओं को जान लेना चाहिए । इराक एक भौगोलिक विविधता वाला देश है। इसकी मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं –
1. इसके पूर्वोत्तर भाग में हरे-भरे, ऊँचे-नीचे मैदान हैं। ये मैदान धीरे-धीरे वृक्षाच्छादित पर्वत श्रृंखला के रूप में फैलते जाते हैं साथ ही यहाँ स्वच्छ झरने तथा जंगली फूल भी पाये जाते हैं।
यहाँ अच्छी फसल के लिए पर्याप्त वर्षा हो जाती है।

2. उत्तर में ऊँची भूमि है जहाँ ‘स्टेपी’ घास के मैदान हैं। इस प्रदेश में पशुपालन आजीविका का मुख्य साधन है। सर्दियों की वर्षा के बाद भेड़-बकरियाँ यहाँ उगने वाली छोटी-छोटी झाड़ियों और घास से अपना भरण-पोषण करती हैं।
पूर्व में दजला की सहायक नदियाँ परिवहन का अच्छा साधन हैं।

3. देश का दक्षिणी भाग एक रेगिस्तान है। इस रेगिस्तान में फरात और दजला नदियाँ बहती हैं। ये नदियाँ पहाड़ों से निकलकर अपने साथ उपजाऊ बारीक मिट्टी लाती रही हैं। जब इन नदियों में बाद आती है अथवा जब इनके पानी को सिंचाई के लिए खेतों में लाया जाता है तब इनके द्वारा लाई गई उपजाऊ मिट्टी खेतों में जमा हो जाती है।

4. फरात नदी रेगिस्तान में प्रवेश करने के बाद कई धाराओं में बंट जाती है। कभी-कभी इन धाराओं में बाढ़ आ जाती है। प्राचीन काल में ये धाराएं सिंचाई की नहरों का काम देती थीं। ‘ इनसे आवश्यकता पड़ने पर गेहूँ, जौ और मटर या मसूर के खेतों की सिंचाई की जाती थी। इसलिए वर्षा की कमी के बावजूद दक्षिणी मेसोपोटामिया की खेती प्राचीन विश्व में सबसे अधिक उपज देने वाली थी।

5. खेती के अतिरिक्त स्टेपी घास के मैदानों, पूर्वोत्तरी मैदानों और पहाड़ों की ढालों पर भेड़-बकरियाँ पाली जाती थीं। इनसे भारी मात्रा में मांस, दूध और ऊन प्राप्त होता था। यहाँ की नदियों में मछलियों की भरमार थी। गर्मियों में खजूर के पेड़ खूब फल देते थे।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
मेसोपोटामिया के उर देवता थे ………………………
(क) सूर्य
(ख) चंद्र
(ग) जल
(घ) पवन
उत्तर:
(ख) चंद्र

प्रश्न 2.
मेसोपोटामिया की देवी इन्नाना का संबंध था ………………………….
(क) प्रेम और युद्ध
(ख) करुणा
(ग) अहिंसा
(घ) विद्या एवं धन
उत्तर:
(क) प्रेम और युद्ध

प्रश्न 3.
असुरबनिपाल कहाँ का शासक था?
(क) असीरिया
(ख) क्रीट
(ग) रोम
(घ) चीन
उत्तर:
(क) असीरिया

प्रश्न 4.
बेबीलोनिया के किस शासक ने अपनी पुत्री को महिला पुरोहित के रूप में प्रतिष्ठित किया?
(क) असुरबनीपाल
(ख) नैवोपोलासार
(ग) नैबोनिडस
(घ) गिल्गेमिश
उत्तर:
(ग) नैबोनिडस

प्रश्न 5.
मेसोपोटामिया किन दो नदियों के बीच स्थित है?
(क) हाबुर और दजला नदी
(ख) बालिख और फरात नदी
(ग) दजला और फरात नदी
(घ) हाबुर और बालिख नदी
उत्तर:
(ग) दजला और फरात नदी

प्रश्न 6.
मेसोपोटामिया के लिपि किस प्रकार की थी?
(क) चित्रलिपि
(ख) कीलाक्षर लिपी
(ग) ज्यामितीय लिपी
(ब) काजी लिपि
उत्तर:
(ख) कीलाक्षर लिपी

प्रश्न 7.
मेसोपोटामिया में परिवार किस प्रकार के थे?
(क) एकल परिवार
(ख) संयुक्त परिवार
(ग) सामुदायिक परिवार
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(क) एकल परिवार

प्रश्न 8.
मेसोपोटामिया के किस भाग में सबसे पहले नगरों एवं लेखन प्रणाली का प्रादुर्भाव हुआ?
(क) उत्तर के स्टेपी घास के मैदान में
(ख) दक्षिणी रेगिस्तानी भाग में
(ग) पूर्व के दजला की घाटी में
(घ) पश्चिमी भाग में
उत्तर:
(ख) दक्षिणी रेगिस्तानी भाग में

प्रश्न 9.
गिलगेमिश महाकाव्य का संबंध किस प्राचीन सभ्यता से है?
(क) मिस्र
(खं) मेसोपोटामिया
(ग) ईरान
(घ) यूनान
उत्तर:
(खं) मेसोपोटामिया

प्रश्न 10.
मेसोपोटामिया के लोग लिखने के लिये किस चीज का प्रयोग करते थे?
(क) ताम्र पत्रों का
(ख) कागज का
(ग) मिट्टी की पट्टिकाओं का
(घ) ताड़पत्रों का
उत्तर:
(ग) मिट्टी की पट्टिकाओं का

प्रश्न 11.
मेसोपोटामिया शब्द की उत्पत्ति हुई ………………………..
(क) यूनानी भाषा से
(ख) लैटिन भाषा से
(ग) यूनानी तथा लैटिन भाषा से
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(क) यूनानी भाषा से

प्रश्न 12.
मेसोपोटामिया फरात तथा दजला नदियों के बीच का हिस्सा है ………………………..
(क) ईरान का
(ख) इराक का
(ग) सीरिया का
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(ख) इराक का

प्रश्न 13.
मेसोपोटामिया की सभ्यता जानी जाती है ……………………….
(क) समृद्धि तथा शहरी जीवन के लिए
(ख) विशाल तथा समृद्ध साहित्य के लिए
(ग) गणित तथा खगोल विद्या के लिए
(घ) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(घ) उपरोक्त सभी

प्रश्न 14.
बेबीलोन मेसोपोटामिया का महत्वपूर्ण शहर बन गया ………………………..
(क) 5000 ई.पू. के बाद
(ख) 2000 ई.पू. के बाद
(ग) 100 ईस्वी में
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(ख) 2000 ई.पू. के बाद

प्रश्न 15.
1400 ई.पू. अरामाइक भाषा मिलती-जुलती थी ………………………
(क) सुमेरी भाषा से
(ख) अक्कदी भाषा से
(ग) हिब्रु भाषा से
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(ग) हिब्रु भाषा से

प्रश्न 16.
मेसोपोटामिया में पुरातत्वीय खोजों का प्रारंभ हुआ।
(क) 1840 के दशक में
(ख) 1000 ई.पू. में
(ग) 5000 ई.पू. में
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(क) 1840 के दशक में

प्रश्न 17.
मेसोपोटामिया में खेती शुरू हुई …………………….
(क) 5000 से 4000 ई.पू.
(ख) 10,000 से 9,000 ई.पू.
(ग) 7000 से 6000 ई.पू.
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(ग) 7000 से 6000 ई.पू.

प्रश्न 18.
मेसोपोटामिया के प्राचीनतम नगरों का निर्माण काँस्य युग अर्थात् ……………………….
(क) लगभग 3000 ई.पू. हुआ
(ख) लगभग 2000 ई.पू. में हुआ
(ग) लगभग 1000 ई.पू. में हुआ
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(क) लगभग 3000 ई.पू. हुआ

प्रश्न 19.
यूरोप के लोगों के लिए मेसोपोटामिया महत्वपूर्ण था क्योंकि बाइबिल के प्रथम भाग ‘ओल्ड टेस्टामेंट’ में इसका उल्लेख किया गया है। ‘ओल्ड टेस्टामेंट’ की किस पुस्तक में शिमार अर्थात् सुमेर के विषय में कहा गया है?
(क) ओरिजिन ऑफ स्पीसीज
(ख) बुक ऑफ जेनेसिस
(ग) ऑन द डिगनिटी ऑफ मैन
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(ख) बुक ऑफ जेनेसिस

प्रश्न 20.
श्रम विभाजन तथा विशेषीकरण विशेषताएँ हैं ………………………
(क) ग्रामीण जीवन की
(ख) प्राचीन काल की
(ग) शहरी जीवन की
(घ) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(ग) शहरी जीवन की

Bihar Board Class 11 History Solutions Chapter 4 इस्लाम का उदय और विस्तार लगभग 570 – 1200 ई

Bihar Board Class 11 History Solutions Chapter 4 इस्लाम का उदय और विस्तार लगभग 570 – 1200 ई Textbook Questions and Answers, Additional Important Questions, Notes.

BSEB Bihar Board Class 11 History Solutions Chapter 4 इस्लाम का उदय और विस्तार लगभग 570 – 1200 ई

Bihar Board Class 11 History इस्लाम का उदय और विस्तार लगभग 570 – 1200 ई Textbook Questions and Answers

 

पाठ्य-पुस्तक के प्रश्न एवं उनके उत्तर

इस्लाम का उदय और विस्तार प्रश्न उत्तर Bihar Board Class 11 प्रश्न 1.
सातवीं शताब्दी के आरंभिक दशकों में बेदुहनों के जीवन की क्या विशेषताएँ थीं?
उत्तर:
सातवीं शताब्दी के आरंभिक दशकों में बेदुइने खजूर आदि खाद्य पदार्थों तथा अपने ऊँटों के लिए चारे की तलाश में घूमते रहते थे। ये प्रायः मरुस्थल के सूखे क्षेत्रों से हरे-भरे क्षेत्रों की ओर जाते रहते थे।

इस्लाम का उदय और विस्तार के प्रश्न उत्तर Bihar Board Class 11 प्रश्न 2.
‘अब्बासी क्रांति’ से आपका क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
उमय्यदों के विरुद्ध ‘दावा’ नामक एक सुसंगठित आंदोलन हुआ। फलस्वरूप उनका पतन हो गया। सन् 1750 में उनके स्थान पर मक्काई मूल के अन्य परिवार, अब्बसिदों को स्थापित कर दिया गया। वस्तुतः अब्बासिदों ने उमय्यद शासन की जमकर आलोचना की और पैगम्बर द्वारा स्थापित मूल इस्लाम को फिर से बहाल करने का वायदा किया। इस क्रांति से राजवंश में परिवर्तन के साथ राजनीतिक ढाँचे और इस्लाम की ढाँचे में भारी परिवर्तन हुए।

इस्लाम का उदय और विस्तार पाठ के प्रश्न उत्तर Bihar Board Class 11 प्रश्न 3.
अरबों, इरानियों व तुर्कों द्वारा स्थापित राज्यों की बहुसंस्कृतियों के उदाहरण दीजिए।
उत्तर:

  • अरब साम्राज्यों में मुस्लिम, ईसाई तथा यहूदी संस्कृतियों के लोग रहते थे।
  • ईरानी साम्राज्यों में मुस्लिम तथा एशियाई संस्कृतियों का विकास हुआ।
  • तुर्की साम्राज्य में मिस्री, ईरानी, सीरियाई तथा भारतीय संस्कृतियों का विकास हुआ।

इस्लाम का उदय और विस्तार लगभग 570 से 1200 ईसवी Bihar Board Class 11 प्रश्न 4.
यूरोप व एशिया पर धर्मयूद्धों का क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर:
क्रूसेड या धर्मयुद्ध का यूरोप और एशिया पर गहरा प्रभाव पड़ा जो निम्नलिखित है –

  • मुस्लिम राज्यों ने अपने ईसाई प्रजाजनों के प्रति कठोर व्यवहार अपनाया। विशेष रूप से यह स्थिति लड़ाड़ियों में देखी गयी।
  • फलस्वरूप ईसाइयों ने अपने आबादी वाले क्षेत्रों की सुरक्षा का प्रबन्ध किया।
  • मुस्लिम सत्ता की बहाली के बाद भी पूर्व और पश्चिम के बीच व्यापार में इटली के व्यापारिक समुदायों (पीसा, जेनेवा और वीनस का अधिक प्रभाव था)।

Islam Ka Uday Aur Vistar In Hindi Class 11 Bihar Board प्रश्न 5.
रोमन साम्राज्य के वास्तुकलात्मक रूपों से इस्लामी वास्तुकलात्मक रूप कैसे भिन्न थे?
उत्तर:
रोमन वास्तुकला-रोम के निवासी कुशल निर्माता थे। उन्होंने वास्तुकला में डाट और गुंबद बनाकर दो महत्वपूर्ण सुधर किए। उनके भवन दो-तीन मंजिलों वाले होते थे। इनमें डाटों को एक के ऊपर बनाया जाता था। उनकी डार्ट गोल होती थीं। ये डाटें नगर के द्वारों, पुलों, बड़े भवनों तथा विजय स्मारक बनाने में प्रयोग की जाती थीं । डाटों का प्रयोग कोलेजियम बनाने में किया गया। यहाँ ग्लेडिएटरों की प्रतियोगिताएं आयोजित की जाती थीं। ये डाटें नहर बनाने में भी काम में लाई जाती थीं।

इस्लामी वास्तुकला-इस्लामी वास्तुकला पर ईरानी कला का प्रभाव था। परंतु अरब निवासियों ने अलंकरण के मौलिक नमूने निकाल लिए । उनके भवनों में गोल गुबंद, छोटी मीनारें, घोड़ों के खुर के आकार के महराब तथा मरोड़दार स्तंभ होते थे। इस्लामी वास्तुकला की विशेषताएँ अरबों की मस्जिदों, पुस्तकलयों, महलों, चिकित्सालयों और विद्यालयों में देखी जा सकती हैं।

इस्लाम का उदय और विस्तार के प्रश्न-उत्तर Bihar Board Class 11 प्रश्न 6.
रास्ते पर पड़ने वाले नगरों का उल्लेख करते हुए समरकंद से दमिश्क तक की यात्रा का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
समरंकद इस्लामी राज्य के उत्तर:पूर्व में स्थित था, जबकि दमिश्क (सीरिया) मध्य में स्थित था। समरकंद से दमिश्क जोन के लिए यात्री को मर्व, निशापुर समारा आदि नगरों से गुजरना पड़ता था।

Bihar Board Class 11 History इस्लाम का उदय और विस्तार लगभग 570 – 1200 ई Additional Important Questions and Answers

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

इस्लाम का उदय और विस्तार प्रश्न-उत्तर Bihar Board Class 11 प्रश्न 1.
‘कुरान’ शब्द किससे बना है?
उत्तर:
‘कुरान’ शब्द ‘इकरा’ से बना है जिसका अर्थ हैं-पाठ करो। ‘इकरा’ शब्द सबसे पहले महादृव जिवरील ने पुकारा था। वह पैगम्बर मोहम्द के लिए संदेश लाया करते थे।

इस्लाम के उदय और विस्तार की विवेचना कीजिए Bihar Board Class 11 प्रश्न 2.
मक्का शहर क्यों विख्यात था?
उत्तर:

  • मक्का शहर अपनी पवित्र स्थान ‘काबा’ के लिए विख्यात था।
  • यह यमना और सोरिया के बीच व्यापार-मार्गी एक चौराहे पर स्थित था। इसलिए भी इसे महत्त्वपूर्ण माना जाता था।

Islam Ka Uday Aur Vistar Question Answer Bihar Board Class 11 प्रश्न 3.
पैगंबर मुहम्मद ने अपने आपको खुदा का संदेशवाहक कब घोषित किया? उन्होंने लोगों को कौन-सी दो बातें बनाई?
उत्तर:
पैगंबर मुहम्मद ने लगभग 612 ई० में अपने आपको खुदा का संदेशावाहक घोषित किया। उन्होंने लोगों को निम्नलिखित दो बातें बताई –

  • केवल अल्लाह की ही पूजा की जानी चाहिए।
  • उन्हें एक ऐसे समाज की स्थापना करनी है जिसमें अल्लाह के बंदे सामान्य धार्मिक विश्वासों द्वारा आपस में जुड़े हो।

इस्लाम का उदय और विस्तार लगभग 570 1200 Bihar Board Class 11 प्रश्न 4.
पैगंबर मुहम्मद के धर्म-सिद्धांत को स्वीकार करने वाले लोग क्या कहलाए? उन्हें किन दो बातों का आश्वासन दिया जाता था?
उत्तर:
पैगंबर मुहम्मद के धर्म-सिद्धांत को स्वीकार करने वाले लोग मुसलमान कहलाए। उन्हें कयामत के दिन मुक्ति और धरती पर रहते हुए समाज के संसाधनों में हिस्सा देने का आवश्वासन दिया जाता था।

प्रश्न 5.
मक्का में मुसलमानों को किन लोगों के विरोध का सामना करना पड़ा और क्यों?
उत्तर:
मुसलकानों को समृद्ध लोगों के विरोध का सामना करना पड़ा। उन्हें अपने देवी-देवताओं का ठुकराया जाना बुरा लगा था। इसके अतिरिक्त वे नए धर्म को मक्का की प्रतिष्ठा और समृद्धि के लिए खतरा मानते थे।

प्रश्न 6.
‘हिजरा’ से क्या अभिप्राय है? इस्लाम के इतिहास में इसका क्या महत्त्व है?
उत्तर:
मक्का में समृद्ध लोगों के विरोध के कारण 522 ई० में पैगंबर मुहम्मद की अपने अनुयायियों के साथ मक्का छोड़कर मदीना जाना पड़ा । मुहम्मद साहिब की इस यात्रा को हिजरा कहते है। वह जिस वर्ष मदीना पहुँचे उसी वर्ष से हिजरी सन् (मुस्लिम कैलेंडर) की शुरुआत हुई।

प्रश्न 7.
किसी धर्म के जीवित रहने के लिए क्या शर्ते होती हैं?
उत्तर:
किसी धर्म का जीवित रहना उस पर विश्वास करने वाले लोगों के जीवित रहने पर निर्भर करता है। इस लोगों को आंतरिक रूप से मजबूत बनाना था उन्हें बाहरी खतरों से बचाना भी आवश्यक होता हैं। इसके लिए राज्य और सरकार जैसी संस्थाओं की आवश्यकता होती है।

प्रश्न 8.
खिलाफत की संस्था का का निर्माण कैसे हुआ?
उत्तर:
632 ई० में मुहम्मद साहिब के देहांत के बाद उनका कोई वैध उत्तराधिकारी नहीं रहा था। उत्तराधिकार का कोई निश्चित नियम भी नहीं था। इस्लामी राजसत्ता उम्मा को सौंप दी गई। इस प्रकार खिलाफत की संस्था का निर्माण हुआ ।

प्रश्न 9.
इस्लामी क्षेत्रों में 600-1200 ई० के इतिहास के कोई चार स्रोत बताइए।
उत्तर:

  • इतिवृत
  • पैगंबर के कथनों के अभिलेख
  • कुरान की टीकाएँ
  • जीवन चरित्र

प्रश्न 10.
पैगंबर मुहम्मद कौन थे?
उत्तर:
पैगंबर एक सौदागर थे जिनका संबंध मक्का (अरब) में रहने वाले कुरैशा कबीले से था। उन्होंने इस्लाम धर्म की स्थापना की थी।

प्रश्न 11.
अरब कबीले के संगठन की जानकारी दीजिए।
उत्तर:
अरब कबील वंशों से बना होता था अथवा बड़े परिवार का एक समूह होता था। प्रत्येक कबीले का नेतृत्व एक शेख द्वारा किया जाता था जिसका चुनाव मुख्यतः व्यक्तिगत साहस, बुद्धिमता तथा उदारता के आवास पर किया जाता था।

प्रश्न 12.
खलीफाओं ने नये शहरों की स्थापना किस उद्देश्य से की? उनके द्वारा स्थापित चार फौजी शहरों के नाम बताइए।
उत्तर:
खलीफाओं ने नये शहरों की स्थापना मुख्य रूप से उन अरब सैनिकों को बसाने के लिए की जो स्थानीय प्रशासन की रीढ़ थे। उनके द्वारा स्थापित चार फौजी शहर थे-(i) इराक में कुफा तथा बसरा और मिस्र में फुस्तात तथा काहिरा।

प्रश्न 13.
इस्लाम धर्म का मूल क्या है?
उत्तर:
एक ही ईश्वर अर्थात् अल्लाह की पूजा करना।

प्रश्न 14.
‘काबा’ क्या था।
उत्तर:
‘काबा’ मक्का में स्थित एक घनाकार ढाँचा था। यह मक्का का मुख्य पवित्र स्थल था। मक्का के बाहर के कबीले भी काबा का पवित्र मानते थे और हर वर्ष यहाँ की धार्मिक यात्रा (हज) करते थे।

प्रश्न 15.
उमर-खय्याम कौन था?
उत्तर:
उमर खय्याम एक कवि, गणितज्ञ तथा खगोलशास्त्री था। उसने रूबाई को लोकप्रिय बनाया।

प्रश्न 16.
अब्बासी कौन थे? उन्होंने अपने सत्ता प्राप्ति के प्रयास को किस प्रकार वैध ठहराया?
उत्तर:
अब्बासी मुहम्मद के चाचा अब्बास के वंशज थे। उन्होंने विभिन्न अरब समूहों को यह आवश्वासन दिया कि पैगंबर के परिवार का कोई मसीहा उन्हें उमय्यद वंश के दमनकारी शासन से मुक्ति दिलवाएगा। इसी आवश्वासन द्वारा ही उन्होंने अपने सत्ता प्राप्ति के प्रयास का वैध ठहराया।

प्रश्न 17.
अब्बासी ने उमय्यन वंश की किन दो परम्पराओं को बनाए रखा?
उत्तर:

  • उन्होंने सरकार और साम्राज्य के केंद्रीय स्वरूप को बनाए रखा।
  • उन्होंने उमय्यदों की शाही वास्तुकला तथा राजदरबार के व्यापक समारोहों की परंपरा को भी जारी रखा।

प्रश्न 18.
नौवीं शताब्दी में अब्बासी राज्य के कमजोर हो जाने के कोई दो कारण बताइए।
उत्तर:

  • दूर के प्रांतों पर बगदाद का नियंत्रण कम हो गया था।
  • सेना तथा नौकरशाही में अरब समर्थक तथा ईरान समर्थक गुटों के बीच झगड़ा हो गया था।

प्रश्न 19.
बगदाद के बुवाही शासकों के दो कार्य बताएँ।
उत्तर:

  • बुवाही शासकों ने विभिन्न उपाधियाँ धारण की इनमें से एक उपाधि ‘शहंशाह’ की थी।
  • उन्होंने शिया प्रशासकों, कवियों तथा विद्वानों को आश्रय प्रदान किया।

प्रश्न 20.
फातिमी कौन थे? वे स्वयं को इस्लाम का एकमात्र न्यायसंगत शासक क्यों मानते थे?
उत्तर:
फातिमी का संबंध शिया संप्रदाय के एक उपसंप्रदाय इस्लामी से था। उनका दावा था कि वे पैगंबर की बेटी फातिमा के वंशज है। इसलिए वे इस्लाम के एकमात्र न्याय-संगत शासक हैं।

प्रश्न 21.
उपय्यद वंश के अब्द-अल मलिक द्वारा अरब-इस्लामी पहचान के विकास के लिए किए गए कोई दो कार्य बताएँ।
उत्तर:

  • अब्द-अल-मलिक ने इस्लामिक सिक्के चलाए जिन पर अरबी भाषा में लिखा गया।
  • उसने जेरूसलम में ‘डीम ऑफ रॉक’ बनवाकर भी अरब-इस्लामी पहचान के विकास में योगदान दिया।

प्रश्न 22.
तुर्क कौन थे? संक्षेप में बताइए।
उत्तर:
तर्क लोग तुर्किस्तान के मध्य एशियाई घास के मैदानों के खानाबदेश कबाइली थे। वे कशल सवार तथा योद्धा थे। वे गुलामों तथा सैनिकों के रूप में अब्बासी ससानी तथा बवाही शासकों के अधीन कार्य करने लगे। अपनी सैनिक योग्यता तथा वफदारी के बल पर उन्नति करके वें उच्च पदों पर पहुंच गए।

प्रश्न 23.
खिलाफत संस्था के दो मुख्य उद्देश्य क्या थे?
उत्तर:
खिलाफत संस्था के दो मुख्य उद्देश्य थे –

  • उम्मा के कबीलों पर नियंत्रण बनाए रखना।
  • राज्य के लिए संसाधन जुटाना।

प्रश्न 24.
बाइजेंटाइन तथा ससानी साम्राज्यों के विरुद्ध अरबों की सफलता में योग देने वाले कारक कौन-कौन से थे ?
उत्तर:

  • अरबों की सामरिक नीति।
  • अरबों का धार्मिक जोश
  • विरोधियों की कमजोरियाँ।

प्रश्न 25.
तीसरे खलीफा उथमान की हत्या क्यों की गई?
उत्तर:
खलीफा उथमान एक कुरैश था। सत्ता पर अपना नियंत्रण बढ़ाने के लिए उसने प्रशासन में कुरैश कबीले के लोगों को ही भर दिया इसलिए अन्य कबीले उसके विरुद्ध हो गए। और उसकी हत्या कर दी गई।

प्रश्न 26.
चौथे खलीफा ने कौन-कौन से दो युद्ध लड़े और उनका क्या परिणाम निकला?
उत्तर:

  • अली ने पहला युद्ध मुहम्मद की पत्नी आयशा की सेना के विरुद्ध लड़ा। इसे ऊँट की लड़ाई’ कहा जाता है। इस युद्ध में आयशा पराजित हुई।
  • अली का दूसरा युद्ध उत्तरी मेसोपोटामिया में सिफ्फिन में हुआ था। यह संधि के रूप में समाप्त हुआ था।

प्रश्न 27.
इस्लाम का दो मुख्य संप्रदायों में विभाजन क्यों हुआ? ये संप्रदाय कौन-कौन से थे?
उत्तर:
खलीफा अली ने अपने शासनकाल में मक्का के अभिजात वर्ग का प्रतिनिधित्व करने पाले लोगों के विरुद्ध दो युद्ध लड़े। इससे मुसलमानों के बीच में दरार पड़ गई और इस्लाम दो संप्रदायों में विभाजित हो गया। ये संप्रदाय थे-सुन्नी और शिया।

प्रश्न 28.
खलीफा अली की हत्या कहाँ और किसने किया?
उत्तर:
खलीफा अली की हत्या एक खरजी ने कुफा की एक मस्जिद में की।

प्रश्न 29.
उमय्यद वंश की स्थापना कब और किसने की? यह वंश कब तक चलता रहा?
उत्तर:
उमय्यद वंश की स्थापना 661 ई. में मुआविया ने की। यह वंश 750 ई. तक चलता रहा।

प्रश्न 30.
जेरूसलम में डोम ऑफ रॉक किसने बनाया? इसका क्या महत्त्व है?
उत्तर:
जेरूसलम में डोम ऑफ रॉक अब्द अल-मलिक ने बनवाया । यह इस्लामी वास्तुकला का पहला बड़ा नमूना है। इसका एक रहस्यमय महत्त्व भी है। वह यह कि यह स्मारक पैगंबर मुहम्मद की स्वर्ग की ओर रात्रि यात्रा से जुड़ा है।

प्रश्न 31.
चौथी शताब्दी में किन दो कारणों से लाल सागर मार्ग का महत्व बढ़ा?
उत्तर:

  • काहिरा का व्यापार शक्ति के रूप में उभरना।
  • इटली के व्यापारिक शहरों से पूर्वी वस्तुओं की बढ़ती हुई माँग।

प्रश्न 32.
समरकंद में कागज के निर्माण में किस घटना ने सहायता पहुँचाई?
उत्तर:
751 ई. में समरकंद के मुस्लिम प्रशासक ने 20,000 चीनी आक्रमणकारियों को बंदी बना लिया। इनमें से कुछ आक्रमणकारी कागज बनाने में बहुत निपुण थे और इसी घटना ने समरकंद में कागज के निर्माण में सहायता पहुँचाई।

प्रश्न 33.
वाणिज्यिक पत्रों के उपयोग से व्यापारियों को क्या लाभ पहुँचा?
उत्तर:

  • वाणिज्यिक पत्रों के उपयोग से व्यापारियों को हर स्थान पर नकद धन ले जाने से मुक्ति मिल गई।
  • इससे उनकी यात्राएँ अधिक सुरक्षित हो गई।

प्रश्न 34.
औपचारिक व्यापार प्रबंध ‘मुजार्बा’ क्या था?
उत्तर:
इस व्यापार प्रबंध में निष्क्रिय साझेदार कारोबार के लिए अपनी पूँजी देश-विदेश में जाने वाले सक्रिय साझेदारों को सौंप देते थे। वे लाभ या हानि को किए गए निर्णय के अनुसार आपस में बाँट लेते थे।

प्रश्न 35.
इस्लाम में धन कमाने से जुड़े ब्याज संबंधी निषेध नियम बताएँ। लोग इसका अनुचित लाभ कैसे उठाते थे?
उत्तर:
इस्लाम के अनुसार ब्याज की कमाई खाना मना है। परंतु लोग एक विशेष प्रकार के सिक्कों में उधार लेकर उधार को अन्य प्रकार के सिक्कों में चुकाते थे। वे मुद्रा विनिमय पर भी कमीशन खाते थे। ये बातें ब्याज का ही रूप थीं।

प्रश्न 36.
अरब जगत् में 8वीं तथा 9वीं शताब्दी में कानून की चार शाखाएँ कौन-सी थीं? इनमें से कौन-सी शाखा सबसे अधिक रूढ़िवादी थी?
उत्तर:
8वीं तथा 9वीं शताब्दी में अरब जगत् में कानून की चार शाखाएँ थीं-मलिकी, हनफी, शफीई और इनबली। इनमें से इनबली सबसे अधिक रूढ़िवादी थी।

प्रश्न 37.
सूफी मत के दो सिद्धांत लिखिए।
उत्तर:

  • संसार का त्याग करना।
  • केवल खुदा पर ही भरोसा।

प्रश्न 38.
सूफी मत के सर्वेश्वरवाद का क्या अर्थ हैं।
उत्तर:
सूफी मत का सर्वेश्वरवाद ईश्वर तथा उसकी सृष्टि से एक होने का विचार है। इससे अभिप्राय यह है कि मनुष्य की आत्मा को परमात्मा से मिलाना चाहिए।

प्रश्न 39.
इनसिना (980-1037) कौन था?
उत्तर:
इनसिना एक चिकित्सक तथा दार्शनिक था। वह इस बात पर विश्वास नहीं रखता था कि कयामत के दिन व्यक्ति फिर से जिंदा हो जाता है।

प्रश्न 40.
सलजुक तुर्कों की पहली राजधानी निशापुर का क्या महत्त्व था?
उत्तर:
निशापुर शिक्षा का एक महत्वपूर्ण फारसी-इस्लामी केंद्र था। इसके अतिरिक्त यह उमर खय्याम का जन्म स्थान था।

प्रश्न 41.
तुगरिल बेग कौन था?
उत्तर:
तुगरिल बेग एक सलजुक तुर्क था। अपने भाई के साथ 1037 ई. में खुरासान को जीत लिया और निशापुर को अपनी पहली राजधानी बनाया। 1055 ई. में उन्होंने बगदाद पर भी अधिकार कर लिया।

प्रश्न 42.
धर्म-युद्ध क्या थे?
उत्तर:
पश्चिमी यूरोप के ईसाइयों ने मुसलमानों से अपने धर्म स्थल मुक्त कराने के लिए उनके साथ अनेक युद्ध किए। इन युद्धों को धर्म-युद्ध का नाम दिया गया है।

प्रश्न 43.
प्रथम धर्म-युद्ध की संक्षिप्त जानकारी दीजिए।
उत्तर:
प्रथम धर्म – युद्ध (1098-1099) में फ्रांस तथा इटली के सैनिकों ने एंटीओक तथा जेरूसलतम पर अधिकार कर लिया। इस विजय के लिए उन्होंने मुसलमानों तथा यहूदियों की निर्मम हत्या कौं।

प्रश्न 44.
मध्यकाल में इस्लामी समाज का ईसाइयों के प्रति क्या दृष्टिकोण था?
उत्तर:
मध्यकाल में इस्लामी समाज ईसाइयों को पुस्तक वाले लोग कहते थे, क्योंकि उनके पास अपना धर्म ग्रंथ ‘इंजील’ (न्यू टेस्टामेंट) होता था। वे मुस्लिम राज्यों में आने वाले ईसाइयों को रक्षा प्रदान करते थे।

प्रश्न 45.
धर्म-युद्धों ने ईसाई-मुस्लिम संबंध पर क्या प्रभाव डाला? अथवा, यूरोप व एशिया पर धर्म-युद्धों का क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर:

  • मुस्लिम राज्यों ने अपनी ईसाई प्रजा के प्रति कठोर नीति अपनानी आरंभ कर दी।
  • पूर्व तथा पश्चिम के बीच होने वाले व्यापार में इटली के व्यापारिक समुदायों का प्रभाव बढ़ गया।

प्रश्न 46.
फ्रैंक कौन थे? उनका अपने अधीन किए गए मुसलमानों के प्रति कैसा व्यवहार था?
उत्तर:
फ्रैंक धर्म-युद्धों में विजय पाने वाले पश्चिमी देशों के नागरिक थे। इनमें से कुछ सीरिया तथा फिलिस्तीन में बस गए थे। ये लोग मुसलमानों के प्रति सहनशील थे।

प्रश्न 47.
खलीफाओं ने धर्मांतरण के कारण राजस्व में आई कमी को पूरा करने के लिए क्या दो कदम उठाए?
उत्तर:

  • उन्होंने धर्म-परिवर्तन को निरुत्साहित किया।
  • बाद में उन्होंने कर लगाने की एक समान नीति अपनाई।

प्रश्न 48.
रूबाई क्या होती है?
उत्तर:
रूबाई चार पंक्तियों वाला छंद होता है। इसमें पहली दो पंक्तियाँ भूमिका बाँधती हैं। तीसरी पंक्ति बढ़िया तरीके से सधी होती है। चौथी पंक्ति मुख्य बात को प्रस्तुत करती है।

प्रश्न 49.
उमय्यद शासकों द्वारा बनवाए गए मरुस्थलीय महल किस काम आते थे?
उत्तर:
ये महल विलासपूर्ण निवास स्थानों के काम आते थे। इसके अतिरिक्त इनका प्रयोग शिकार तथा मनोरंजन के लिए विश्राम स्थलों के रूप में किया जाता था।

प्रश्न 50.
किसी मस्जिद के बड़े कमरे की दो महत्वपूर्ण विशेषताएं कौन-कौन सी होती हैं?
उत्तर:

  • दीवार में एक मेहराब जो मक्का की दिशा का संकेत देती है।
  • एक मंच जहाँ से शुक्रवार को दोपहर की नवाज के समय प्रवचन दिए जाते हैं।

प्रश्न 51.
महमूद गजनबी के दरबारी कवि फिरदौसी द्वारा रचित ‘शाहनामा’ की दो विशेषताएँ बताएँ।
उत्तर:
फिरदौसी द्वारा रचित शाहनामा इस्लामी साहित्य की एक श्रेष्ठ कृति मानी जती है।

  • इस पुस्तक में 50,000 पद हैं।
  • यह पुस्तक परंपराओं तथा आख्यानों का संग्रह है। इनमें से सबसे लोकप्रिय आख्यान रूस्तम को है।

लघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
950 से 1200 ई. के बीच इस्लामी समाज की एकजुटता में किन तत्वों का योगदान था?
उत्तर:
सन् 950 से 1200 के बीच इस्लामी समाज सामान्य आर्थिक और सांस्कृतिक प्रवृत्तियों के कारण एकजुट बना रहा।

  • इस एकता को बनाए रखने के लिए राज्य को समाज से अलग माना गया।
  • उच्च इस्लामी संस्कृति की भाषा के रूप में फारसी का विकास किया गया।
  • इस एकता के निर्माण में बौद्धिक परंपराओं के बीच संवाद की परपिक्वता का भी योगदान था।

विद्वान, कलाकार और व्यापारी इस्लामी दुनिया के भीतर स्वतंत्र रूप से आते जाते रहते थे। इस प्रकार इस्लामी समाज के बीच विचारों तथा तौर-तरीकों का आदान-प्रदान होता रहता था। परिणामस्वरूप मुसलमानों की जनसंख्या जो उमय्यद काल और प्रारंभिक अब्बासी काल में 10 प्रतिशत से भी कम थी, आगे चलकर बहुत अधिक बढ़ गई। इस्लाम ने एक अलग धर्म और सांस्कृतिक प्रणाली का रूप ले लिया।

प्रश्न 2.
सलजुक तुर्क कौन थे? उन्होंने तुर्की सत्ता की स्थापना तथा विस्तार किस प्रकार किया?
उत्तर:
सलजुक तुर्क सुदूर-पूर्व के गैर-मुस्लिम थे। ग्यारहवीं शताब्दी के पूर्वाद्ध में उन्होंने तूरान में समानियों तथा काराखानियों के सैनिकों के रूप में प्रवेश किया। बाद में उन्होंने दो भाइयों तुगरिल और छागरी बेग के नेतृत्व में एक शक्तिशाली समूह का रूप धारण कर लिया। गजनी के महमूद की मृत्यु के बाद फैली अव्यवस्था का लाभ उठा कर सलजुकों ने 1037 में खुरासान को जीत लिया। उन्होंने निशापुर को अपनी पहली राजधानी बनाया।

इसके बाद उन्होंने अपना ध्यान पश्चिमी फारस की ओर लगाया। 1055 में उन्होंने बगदाद को पुनः सुन्नी शासन के अधीन कर दिया । प्रसन्न होकर खलीफा अल-कायम ने तुगरिल बेग को सुलतान की उपाधि प्रदान की। सलजुक भाइयों ने परिवार द्वारा शासन चलाने की कबाइली धारणा के अनुसार मिल कर शासन चलाया। तुगरिल बेग के बाद उसका भतीजा अल्प अरसलन उसका उत्तराधिकारी बना। अल्प अरसलन’ के शासनकाल में सलजुक साम्राज्य का विस्तार अनातोलिया (आधुनिक तुर्की) तक हो गया।

प्रश्न 3.
चौथै खलीफा अली के शासनकाल पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
खलीफा अली ने (656-61) मक्का के अभिजात तंत्र का प्रतिनिधित्व करने वाले लोगों के विरुद्ध दो युद्ध लड़े। फलस्वरूप मुसलमानों में दरार और अधिक गहरी हो गई। अली के समर्थकों और शत्रुओं ने बाद में इस्लाम के दो मुख्य संप्रदाय शिया और सुन्नी बना लिए। अली ने अपने आपकों गुफा में स्थापित कर लिया। उसने मुहम्मद की पत्नी, आयशा के नेतृत्व वाली सेना को ‘ऊँट की लड़ाई’ (657) में पराजित कर दिया।

परंतु, वह उथमान के नातेदार और सीरिया के गवर्नर मुआविया के गुट का दमन न कर सका। उसके साथ अली का युद्ध सिफिन (उत्तरी मेसोपोटामिया) में हुआ था। यह संधि के रूप में समाप्त हुआ। इस युद्ध ने उसके अनुयायियों को दो धड़ों में बाँट दिया, कुछ उसके वफादार बने रहे, जबकि अन्य लोगों ने उसका साथ छोड़ दिया, उसका साथ छोड़ने वाले लोग खरजी कहलाने लगे। इसके शीघ्र, बाद एक खरजी ने गुफा की एक मस्जिद में अली की हत्या कर दी।

प्रश्न 4.
उमय्यद वंश की स्थापना किन परिस्थितियों में हुई? पहले उमय्यद शासक मुआविया के शासनकाल पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
बड़े-बड़े क्षेत्रों पर विजय प्राप्त होने से मदीना में स्थापित खिलाफत नष्ट हो गई और उसका स्थान राजतंत्र ने ले लिया। 661 ई. में मुआविया ने स्वयं को अलग खलीफा घोषित कर दिया और उमय्यद वंश की स्थापना की। उमय्यदों ने ऐसे अनेक राजनीतिक कदम उठाए जिनसे उम्मा के भीतर उनका नेतृत्व सुदृढ़ हो गया।

पहले उमय्यद खलीफा मुआविया ने दमिश्क को अपनी राजधानी बना लिया। उसने बाइजेंटाइन साम्राज्य की राजदरबारी परंपराओं तथा प्रशासनिक संस्थाओं को अपनाया। उसने वंशगत उत्तराधिकार की परंपरा भी प्रारम्भ की और प्रमुख मुसलमानों को इस बात पर राजी कर लिया कि उसके बाद वे उसके पुत्र को उसका उत्तराधिकारी स्वीकार करें। उसके बाद आने वाले खलीफाओं ने भी ये नवीन परिवर्तन अपना लिए। फलस्वरूप उमय्यद 90 वर्ष तक सत्ता में बना रहा।

सिद्धांत नहीं था। अतः इस्लामी राजसत्ता उम्मा को सौंप दी गई। इससे नयी प्रक्रियाओं के लिए अवसर उत्पन्न हुए, परंतु इससे मुसलमानों में गहरे मतभदे भी पैदा हो गए। सबसे बड़ा नव-परिवर्तन यह हुआ कि खिलाफत की संस्था का निर्माण हुआ। इसमें समुदाय का नेता ‘अमीर अल-मोमिनिनि; पैगंबर का प्रतिनिधि बन गया। वह खलीफा कहलाया। पहले चार खलीफाओं (632-661) ने पैगबर के साथ अपने गहरे नजदीकी संबंधों के आधार पर अपनी शक्तियों का औचित्य स्थापित किया। उन्होंने पैगंबर द्वारा दिए दिशा-निर्देशों के अनुसार उनके कार्य को आगे बढ़ाया। खिलाफत के दो प्रमुख उद्देश्य थे

  • उम्मा का कबीलों पर नियंत्रण स्थापित करना।
  • राज्य के लिए संसाधन जुटाना।

प्रश्न 5.
आरंभिक खलीफाओं के अधीन अरब साम्राज्य के प्रशासनिक ढाँचे की मुख्य विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
खलीफाओं ने जीते गए सभी प्रांतों में नया प्रशासनिक ढाँचा लागू किया। इसके अंतर्गत प्रांतों के अध्यक्ष गवर्नर (अमीर) और कबीलों के मुखिया (अशरफ) थे। केंद्रीय सत्ता में राजस्व के दो मुख्य स्रोत थे-मुसलमानों द्वारा अदा किए जाने वाले कर तथा धावों से मिलने वाली लूट में से प्राप्त हिस्सा। खलीफा के सैनिक रेगिस्तान के किनारों पर बसे शहरों कुफा और बसरा में शिविरों में रहते थे ताकि वे अपने प्राकृतिक आवास स्थलों के निकट और खलीफा की ‘कमान के अंतर्गत बने रहें।

शासक वर्ग और सैनिकों को लूट में हिस्सा मिलता था और मासिक राशियाँ (अत्तता) प्राप्त होती थीं। गैर मुस्लिम लोग ‘स्वराज और जजिया’ नामक कर देते थे। इससे उनका संपत्ति का तथा धार्मिक कार्यों को संपन्न करने का अधिकार बना रहता था। यहूदी तथा ईसाई लोगों को राज्य के संरक्षित लोग घोषित किया गया था। उन्हें अपने सामुदायिक कार्य करने के लिए बहुत अधिक स्वायत्तता प्राप्त थी।

प्रश्न 6.
तीसरे खलीफा उथमान की हत्या के लिए कौन-सी परिस्थितियाँ उत्तरदायी थीं?
उत्तर:
अरब कबीलों ने अपना राजनीतिक विस्तार और एकीकरण का कार्य सरलता से कर लिया था। राजक्षेत्र के विस्तार से राज्य के संसाधनों और प्रशासनिक पदों के वितरण पर झगडे उत्पन्न हो गए। ये झगड़े उम्मा की एकता के लिए खतरा बन गए। वास्तव में प्रारंभिक इस्लामी राज्य के शासन में मक्का के कुरैश लोगों का ही बोलबाला था। तीसरा खलीफा उथमान (64456) भी एक कुरैश था।

उसने सत्ता पर अपना नियंत्रण बढ़ाने के लिए प्रशासन में अपने ही आदमी भर दिए। परिणामस्वरूप अन्य कबीलों में रोष फैल गया। इराक और मिस्र में पहले ही शासन का विरोध हो रहा था, अब मदीना में भी विरोध उत्पन्न हो जाने से उथमान की हत्या कर दी गई। उथमान की मृत्यु के बाद अली को चौथा खलीफा नियुक्त किया गया।

प्रश्न 7.
मध्यकालीन इस्लामी जगत में इस्लाम के धार्मिक विद्वानों ने कुरान की टीका लिखने तथा शरीआ तैयार करने की ओर ध्यान क्यों दिया।
उत्तर:
इस्लाम के धार्मिक विद्वानों (उलमा) के लिए करान से प्राप्त (इल्म) और पैगंबर का आदर्श व्यवहार (सुन्ना) ईश्वर की इच्छा को जानने तथा संसार का मार्गदर्शन करने का एकमात्र तरीका था। अत: मध्यकाल में उलेमा अपना समय कुरान पर टीका (तफसीर) लिखने और मुहम्मद की प्रामाणिक उक्तियों और कार्यों को लेखबद्ध (हदीथ) करने में लगाते थे। कुछ उलमा ने कर्मकांडों (इबादत) द्वारा ईश्वर के साथ और सामाजिक कार्यों (मुआमलात) द्वारा अन्य लोगों के साथ मुसलमानों के संबंधों को नियंत्रित करने के लिए कानून अथवा शरीआ तैयार करने का काम किया।

इस्लामी कानून तैयार करने के लिए विधिवेत्ताओं ने तर्क और अनुमान (कियास) का प्रयोग भी किया क्योंकि कुरान एवं हदीथ में प्रत्येक बात प्रत्यक्ष नहीं थी। स्रोतों के अर्थ-निर्णय और विधिशास्त्र के तरीकों के बारे में मतभेदों के कारण आठवीं और नौवीं शताब्दी में कानून की चार शाखाएँ (मजहब) बन गई। ये थीं-मलिकी, हनफी, शफीई और इनबली । शरीओ न सुन्नी समाज का सभी संभव कानूनी मुद्दों के बारे में मार्गदर्शन किया।

प्रश्न 8.
मध्यकालीन व्यापार-व्यवस्था में साख-पत्रों इंडियों (वाणिज्यिक पत्रों) का क्या महत्त्व था?
उत्तर:
मध्यकालीन आर्थिक जीवन में मुस्लिम जगत् का सबसे बड़ा योगदान यह था कि उन्होंने अदायगी और व्यापार व्यवस्था के बढ़िया तरीकों का विकास किया। व्यापारियों तथा साहूकारों द्वारा धन को एक जगह से दूसरी जगह और एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति तक पहुँचाने के लिए साख-पत्रों और हुडियों (बिल ऑफ एक्सेंचज) धन का इस्तेमाल किया जाता था। वाणिज्यिक पत्रों के व्यापक उपयोग से व्यापारियों को हर स्थान पर अपने साथ ले जाने से मुक्ति मिल गई । इससे उनकी यात्राएँ भी अधिक सुरक्षित हो गई । खलीफा भी वेतन देने अथवा कवियों और चरणों को इनाम देने के लिए साख पत्रों
का प्रयोग करते थे।

प्रश्न 9.
अरब साम्राज्य में कृषि की समृद्धि के लिए क्या-क्या पग उठाए गए?
उत्तर:
अरब साम्राज्य में राजनीतिक स्थिरता के आने के साथ-साथ कृषि में समृद्धि आई। इसके लिए कई कदम उठाए गए।

  • नील घाटी सहित कई क्षेत्रों में सिंचाई प्रणाली का विकास किया गया। इसके लिए बाँध बनाए गए तथा नहरें एवं कुएँ खोदे गए।
  • अपनी भूमि पर पहली बार खेती करने वाले लोगों को कर में छूट दी गई । खेती योग्य भूमि का विस्तार किया गया। इन सब कार्यों के परिणामस्वरूप उत्पादकता में वृद्धि हुई।
  • कुछ नयी फसलें भी उगाई जाने लगी। इनमें कपास, संतरा, केला, तरबूज, पालक, बैगन आदि की फसलें शामिल थीं। इनमें से कुछ फसलों का यूरोप को निर्यात भी किया गया ।

प्रश्न 10.
तुर्क कौन थे? गजनी में तुर्की सत्ता किस प्रकार स्थापित हुई और मजबूत बनी?
उत्तर:
तुर्क लोग तुर्किस्तान के मध्य एशियाई घास के मैदानों के खानाबदोश कबाइली थे। उन्होंने इस्लाम धर्म अपना लिया था। वे कुशल घुड़सवार एवं योद्धा थे। वे गुलामों तथा सैनिका के रूप में अब्बासी, ससानी तथा बुवाही शासकों के अधीन कार्य करने लगे अपनी वफादारी तथा। सैनिक योग्यताओं के बल पर उन्नति करके उच्च पदों पर पहुंच गए।

961 ई. में अल्पकालीन नामक तुर्क ने गजनी सल्तनत की स्थापना की। इसे गजनी के महमूद (998-1030) ने मजबूत किया। बुवाहियों की तरह गजनवी भी एक सैनिक वंश था। उनके पास तुकों और भारतीयों जैसी पेशेवर सेना थी। परंतु उनकी सत्ता एवं शक्ति का केंद्र खुरासान और अफगानिस्तान में था।

अब्बासी खलीफे सत्ता वैधता के स्रोत थे। एक दास का पुत्र होने के कारण महमूद खलीफा से सुलतान की उपाधि प्राप्त करना चाहता था। दूसरी ओर खलीफा भी शिया सत्ता के मुकाबले गजनवी को सुन्नी सत्ता का समर्थन देने के लिए तैयार हो गया । अतः अब्बासी खलीफे गजनी में तुर्की सत्ता की वैधता के स्रोत बन गए।

प्रश्न 11.
अरबों द्वारा विजित क्षेत्रों में कृषि-भूमि का स्वामित्व की दृष्टि से वितरण कैसा था?
उत्तर:
अरबों द्वारा नए जीते हुए क्षेत्रों में लोगों का प्रमुख व्यवसाय कृषि था। इस्लामी राज्य ने इसमें कोई परिवर्तन नहीं किया। कृषि भूमि के स्वामी छोटे बड़े किसान थे। कहीं-कहीं भूमि पर राज्य का स्वामित्व था। ईरान में जमीन बड़ी-बड़ी इकाइयों में बंटी हुई थी जिस पर किसान खेती करते थे। ससानी और इस्लामी कालों में भूमि के स्वामी राज्य की ओर से कर एकत्र करते थे। उन प्रदेशों में पशुचारण की अवस्था से स्थिर कृषि की अवस्था तक पहुँच गए थे। भूमि गाँव की साझी संपत्ति थी। इस्लामी विजय के बाद मालिकों द्वारा छोड़ी गई भू-संपदाओं को राज्य ने अपने हाथ में ले लिया था। इसे साम्राज्य के विशिष्ट वर्ग के मुसलमानों को दे दिया गया था-विशेष रूप से खलीफा के परिवार के सदस्यों को।

प्रश्न 12.
अरब साम्राज्य में भू-राजस्व की क्या व्यवस्था थी?
उत्तर:
अरब साम्राज्य में कृषि भूमि का सर्वोपरि नियंत्रण राज्य के हाथों में था। वह अपनी अधिकांश आय भू-राजस्व से प्राप्त करता था। अरबों द्वारा जीती गई भमि पर. जो अब भी उन मालिकों के हाथों में थी, खराज नामक करा लगता था। यह कर खेती की स्थिति के अनुसार उत्पादन के आधे भाग से लेकर पांचवें हिस्से के बराबर होता था। उस भूमि पर जिसके स्वामी मुसलमान थे अथवा जिस पर उनके द्वारा खेती की जाती थी उपज के दसवें भाग के बराबर कर वसूल किया जाता था।

अत: कई गैर-मुसलमान कम कर देने के उद्देश्य से मुसलमान बनने लगे। इससे राज्य की आय कम हो गई। इस समस्या से निपटने के लिए खलीफाओं ने पहले तो धर्म-परिवर्तन को निरुत्साहित किया और बाद में कर वसूलने की एक समान, नीति अपनाई। 10वीं शताब्दी से प्रशासनिक अधिकारियों को उनका वेतन राजस्व में से दिया जाने लगा। इसे इक्ता कहा जाता था जिसका अर्थ है-भू-राजस्व का भाग।

प्रश्न 13.
गजनी साम्राज्य में फारसी साहित्य के विकास की जानकारी दीजिए। अथवा, फारसी साहित्य में फिरदौसी का क्या योगदान रहा?
उत्तर:
ग्यारहवीं शताब्दी के प्रारंभ में गजनी फारसी साहित्य का एक कॅन्द्र बन गया था। कवि स्वाभाविक रूप से शाही दरबार की चमक-दमक से आकर्षित होते थे। शासकों ने भी अपनी प्रतिष्ठा बढ़ाने के लिए कलाकारों और विद्वानों को संरक्षण देना आरंभ कर दिया था। महमूद गजनवी के काल में अनेक कवियों ने काव्य-संग्रहों (दीवानों) और महाकाव्यों (मथनवी) की रचना की। सबसे अधिक प्रसिद्ध कवि फिरदौ था। उसने ‘शाहनामा’ नामक काम, थ की रचना की थी।

इसे पूरा करने से उसे 30 वर्ष लगे थे। इस पुस्तक में 50,000 पद हैं और यह इस्लामी साहित्य की एक श्रेष्ठ कृति मानी जाती है। शाहनामा परंपराओं और आख्यानों का संग्रह है। इनमें सबसे लोकप्रिय आख्यान रूस्तम का है। पुस्तक में प्रारंभ से लेकर अरबों की विजय तक ईरान का चित्रण काव्यात्मक शैली में किया गया है।

प्रश्न 14.
इस्लामी जगत में नई फारसी का विकास कब हुआ? इस भाषा ने काव्य के विकास में क्या योगदान दिया?
उत्तर:
नई फारसी का विकास अरबों की ईरान विजय के पश्चात् ईरानी भाषा पहलवी का एक अन्य रूप था। इसमें अरबी भाषा के शब्दों की भरमार थी। खुरासान और तुरान सल्तनतों की स्थापना से नई फारसी सांस्कृतिक ऊंचाइयों पर पहुंच गई। ससानी राजदरबार में कवि रुदकी को नई फारसी कविता का जनक माना जाता है। इस कविता में गजल और रुबाई जैसे नए रूप शामिल थे।

रुबाई चार पंक्तियों वाला छंद होता है। इसमें पहली दो पंक्तियाँ भूमिका बाँधती हैं। तीसरी पंक्ति बढ़िया तरीके से सधी होती है और चौथी पंक्ति मुख्य बात को प्रस्तुत करती है। इसका प्रयोग प्रियतम अथवा प्रेयसी के सौंदर्य का बखान करने, संरक्षण की प्रशंसा करने अथवा दार्शनिक के विचारों को अभिव्यक्त करने के लिए किया जा सकता है। रुबाई उमर खय्याम (1048-1131) के हाथों अपनी पराकाष्ठा पर पहुंच गई।

प्रश्न 15.
मध्यकालीन इस्लामी समाज में भाषा के विकास की संक्षिप्त चर्चा कीजिए।
उत्तर:
मध्यकालीन इस्लामी समाज में बढ़िया भाषा और रचनात्मक कल्पना को व्यक्ति का सराहनीय गुण माना जाता था। ये गुण किसी भी व्यक्ति की विचार-अभिव्यक्ति को ‘अदब’ के स्तर तक ऊँचा उठा देते थे। अदब रूपी अभिव्यक्तियों में पद्य (कविता) और गद्य (बिखरे हुए शब्द) शामिल थे। इस्लाम-पूर्व काल की सबसे अधिक लोकप्रिय पद्य रचना संबोधन गीत (कसीदा) थी। इस विधा का विकास अब्बासी काल के कवियों ने अपने आश्रयदाताओं की उपलब्धियों का गुणगान करने के लिए किया।

फारस मूल के कवियों ने अरबी कविता का पुनः आविष्कार किया और उसमें नई जान फूंकी। फारसी मूल के एक कवि अबुनवास ने इस्लाम में वर्जित होने के बावजूद आनंद मनाने के लिए शराब और पुरुष-प्रेम जैसे विषयों पर उत्कृष्ट कविताओं की रचना की। अबुनवास के बाद के कवियों ने अपने अनुराग के पात्र को पुरुष के रूप में संबोधित किया, भले ही वह स्त्री हो। इसी परंपरा का अनुसरण करते हुए सूफियों ने रहस्थवादी प्रेम की मदिरा द्वारा उत्पन्न मस्ती का गुणगान किया।

प्रश्न 16.
प्रारंभिक इस्लाम के इतिहास के स्रोतों के रूप में कुरान के उपयोग ने क्या समस्याएँ उत्पन्न की हैं?
उत्तर:
प्रारंभिक इस्लाम के इतिहास के लिए स्रोत के रूप में कुरान के उपयोग ने मुख्य रूप से दो समस्याएँ प्रस्तुत की हैं। पहली यह कि यह एक धर्मग्रंथ है और एक ऐसा मूल-पाठ है जिसमें धार्मिक सत्ता निहित है। मुसलमानों का मानना है कि खुदा की वाणी (कलाम अल्लाह) होने के कारण कुरान के एक-एक शब्द को समझा जाना चाहिए।

परंतु बुद्धिवादी धर्म विज्ञानी रूढ़िवादी नहीं थे। उन्होनें कुरान की व्याख्या अधिक उदारता से की। 833 ई. में अब्बासी खलीफा अल-मामून ने यह मत लागू किया कि कुरान खुदा की वाणी न होकर उसकी अपनी रचना है। दूसरी समस्या यह है कि कुरानं प्रायः रूपकों में बात करता है। ओल्ड टेस्टामेंट के विपरीत यह घटनाओं का कंवल उल्लेख करता है, उनका वर्णन नहीं करता। अतः कुरान को पढ़ने-समझने के लिए कई हदीथ लिखे गए।

प्रश्न 17.
सूफी कौन थे और उनके धार्मिक विश्वास क्या थे?
उत्तर:
मध्यकालीन इस्लाम के उदार धार्मिक विचारों वाले लोगों के एक समूह को सूफी कहा जाता है। –
धार्मिक विश्वास – सूफी लोग तपश्चर्या (रहबनिया) और रहस्यवाद द्वारा खुदा के बारे में गुढ ज्ञान प्राप्त करना चाहते थे। समाज जितना अधिक पदार्थों और सुखों की ओर झकता था, सूफी लोग उतना ही अधिक संसार का त्याग (जुहद) करना चाहते थे। वे केवल खुदा पर भरोस (तवक्कुल) करना चाहते थे। आठवीं और नौवीं शताब्दी में तपश्चर्या एवं वैराग्य की इन प्रवृत्तियं ने सर्वेश्वरवाद एवं प्रेम के विचारों द्वारा रहस्यवाद (तसव्वुफ) का रूप धारण कर लिया।

सर्वेश्वरवाद ईश्वर और उसकी सृष्टि के एक हो जाने का विचार है। इससे अभिप्राय यह है कि मनुष्य की आत्मा को परमात्मा के साथ मिलना चाहिए। यह ईश्वर से मिलने के साथ गहरे प्रेम (इश्क) द्वारा हो सकता है। सूफी लोग आनंद की अवस्था में पहुँचने तथा प्रेम को उद्दीप्त करने के लिए संगीत (समा) का सहारा लेते थे। सूफीवाद का द्वार सभी के लिए खुला है, चाहे वह किसी भी धर्म, पद अथवा लिंग का हो। सूफीवाद ने अत्यधिक लोकप्रियता प्राप्त की और अपनी उदारता से रूढ़िवादी इस्लाम के सामने चुनौती पेश की।

प्रश्न 18.
विज्ञान संबंधी नये विषयों के अध्ययन का इस्लाम जगत् के बौद्धिक जीवन पर क्या प्रभाव पड़ा?
अथवा
इनसिना कौन था? उसकी सबसे प्रभावशाली पुस्तक का क्या महत्त्व है?
उत्तर:
नये विषयों के अध्ययन ने आलोचनात्मक दृष्टिकोणों को बढ़ावा दिया। इसका इस्लाम के बौद्धिक जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ा। वैज्ञानिक प्रवृत्ति वाले धार्मिक विद्वानों ने इस्लामी विश्वासों की रक्षा के लिए यूनानी तर्क एवं विवेचना (कलाम) का प्रयोग किया। दार्शनिक (फलसिका) ने व्यापक प्रश्न किए और उनके उत्तर प्रस्तुत किए। उदाहरण के लिए एक वैज्ञानिक एंव चिकित्सक इनसिना इस बात को नहीं मानता था कि कयामत के दिन व्यक्ति फिर से जिंदा हो जाता है।

उसके चिकित्सा संबंधी लेख व्यापक रूप से पढ़े जाते थे। उसकी सबसे प्रभावशाली पुस्तक ‘चिकित्सा के सिद्धांत’ (अल-कानून फिल तिब) है। यह दस लाख शब्दों वाली पांडुलिपि है। इनमें उस समय के औषधिशास्त्रियों द्वारा बेची जाने वाली 760 औषधियों का उल्लेख है। पुस्तक में इनसिना के किए गए प्रयोगों तथा अनुभवों की जानकारी भी दी गई है। इस पुस्तक में आहार-विज्ञान के महत्त्व पर प्रकाश डाला गया है। यह बताया गया है कि जलवायु और पर्यावरण का स्वास्थ्य पर क्या प्रभाव पड़ता है। इसके अतिरिक्त कुछ रोगों के संक्रामक स्वरूप की जानकारी दी गई है।

प्रश्न 19.
इस्लामी धार्मिक कला में प्राणियों के चित्रण की मनाही से कला के किन दो – रूपों को बढ़ावा मिला?
उत्तर:
इस्लाम धर्म में प्राणियों के चित्रण की मनाही थी। इससे कला के जिन दो रूपों को बढ़ावा मिला, वे थे-खुशनवीसी अर्थात् सुंदर लिखने की कला और अरबेस्क अर्थात् ज्यामितीय तथा वनस्पति कं डिजाइनों संबंधी कला। इमारतों को मनाने के लिए प्रायः धार्मिक उद्धरणों का छोटे-बड़े शिलालख में उपयोग किया जाता था। कुरान की आठवीं तथा नौवौं शताब्दियों की पांडुलिपियों में खुशनवीसी की कला को सुरक्षित रखा गया है।

‘किताब अल-अघानी’ (गीत पुस्तक) ‘कलिका व दिमना’ और ‘हरिरी की मकामात’ आदि साहित्यिक कृतियों को लघुचित्रों से सजाया गया था। इसके अतिरिक्त पुस्तक के सौंदर्य को बढ़ाने के लिए चित्रावली की अनेक किस्मे आरंभ की गई। इमारतों और पुस्तकों के चित्रण में पौधों तथा फूलों के नमूनों का उपयोग किया जाता था।

प्रश्न 20.
अब्बासी शासन की क्या विशेषताएँ रहीं? क्या अब्बासी शासक राजतंत्र को समाप्त कर सके?
उत्तर:
अब्बासी शासन की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित थीं –

  • अब्बासी शासन के अंतर्गत अरबों के प्रभाव में गिरावट आई। इसके विपरीत ईरानी संस्कृति का महत्त्व बढ़ गया।
  • अब्बासियों ने अपनी राजधानी बगदाद में स्थापित की।
  • प्रशासन में इराक और खुरासान की धार्मिक भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए सेना तथा नौकरशाही का गैर-कबीलाई आधार पर पुनर्गठन किया गया।
  • अब्बासी शासकों ने खिलाफत की धार्मिक स्थिति तथा कार्यों को मजबूत बनाया और इस्लामी संस्थाओं एवं विद्वानों को संरक्षण प्रदान किया।
  • अब्बासी शासक और राजतंत्र-अब्बासी शासकों के अधीन सरकार और साम्राज्य का केंद्रीय स्वरूप बना रहा, क्योंकि समय की यही माँग थी।
  • उन्होंने उमय्यदों की शाही वास्तुकला और राजदरबार के व्यापक समारोहों की परंपरा को भी बनाये रखा। इस प्रकार राजतंत्र को समाप्त करने वाले अब्बासी शासकों को फिर से राजतंत्र स्थापित करने लिए विवश होना पड़ा।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
खलीफाओं के अधीन इस्लामी सत्ता का विस्तार किस प्रकार हुआ?
उत्तर:
पैगंबर मुहम्मद के देहांत के बाद बहुत-से कबीले इस्लामी राज्य से टूटकर अलग हो गए। कुछ कबीलों ने तो उम्मा की तरह अपने अलग समाजों की स्थापना करने के लिए स्वयं के पैगंबर बना लिए।

  • पहले खलीफा अबूबकर ने अनेक अभियानों द्वारा इन विद्रोहों का दमन किया।
  • दूसरे खलीफा उमर ने उम्मा की सत्ता के विस्तार की नीति अपनाई।

खलीफा जानता था कि उम्मा को व्यापार और करों से होने वाली थोड़ी-सी आय के बल पर नहीं चलाया जा सकता। इसके लिए बहुत बड़ी धनराशि की जरूरत होगी। इसलिए खलीफा और उसके सेनापतियों ने पश्चिम में बाइजेंटाइन साम्राज्य तथा पूर्व में ससानी साम्राज्य प्रदेशों को जीतने के लिए अपने कबीलों को सक्रिय किया। बाइजेंटाइन और ससानी दोनों साम्राज्यों के पास विशाल संसाधन थे। बाईजेंटाइन साम्राज्य ईसाई मत को बढ़ावा देता था और ससानी साम्राज्य ईरान के प्राचीन धर्म, जरतुश्त धर्म को संरक्षण प्रदान करता था।

अरबों के समय से साम्राज्य धार्मिक संघर्षों तथा अभिजात वर्गों के विद्रोहों के कारण कमजोर हो गए थे। परिणामस्वरूप युद्धों और संधियों द्वारा उन्हें अपने अधीन लाना आसान हो गया। अरबों के तीन सफल अभियानों (637-642) में सीरिया, इराक और मिन पर मदीना का नियंत्रण स्थापित हो गया। अरबों की सफलता में सामरिक नाति, धार्मिक जोश और विरोधियों में गंगदान दिया।

तीसरे खलीफा उथमान ने अपना नियंत्रण मध्य एशिया तक बढ़ाने के लिए और अभियान चलाए। इस प्रकार पैगंबर मुहम्मद को मृत्यु के केवल एक दशक के अंदर, अरब-इस्लामी राज्य ने नील और ऑक्सस के बीच के विशाल क्षेत्र को अपने नियंत्रण में ले लिया। ये प्रदेश आज तक मुस्लिम शासन के अंतर्गत हैं।

प्रश्न 2.
अरब साम्राज्य में खिलाफत का विघटन किस प्रकार हुआ? बुवाही शासकों ने खिलाफत के विघटन के बाद भी खलीफा के पद को प्रतीकात्मक रूप से क्यों बनाए रखा?
उत्तर:
नौवीं शताब्दी में अब्बासी राज्य कमजोर होता गया। इसके दो मुख्य कारण थे –

  • दूर क प्रांतों पर बगदाद का नियंत्रण कम हो गया था।
  • सेना और नौकरशाही में अरब-समर्थक और ईरान-समर्थक गुट के बीच झगड़ा हो गया था।

गृह युद्ध तथा नये राजवंश का उदय-810 में खलीफा हारून अल-रशीद के पुत्रों अमीन और मामुन के समर्थकों के बीच गृह युद्ध छिड़ गया। इससे प्रशासन में गुटबंदी और अधिक बढ़ गई तथा तुर्की गुलाम अधिकारियों (मामलुक) का एक नया शक्ति गुट बन गया। दूसरी ओर शियाओं ने एक बार फिर सुन्नी रूढ़िवादिता के साथ सत्ता के लिए संघर्ष आरंभ कर दिया। फलस्वरूप अनेक छोटे राजवंश उत्पन्न हो गए। इनमें खुरासान और ट्रांसोक्सियाना वाले प्रदेश के ताहिरी एवं ससानी वंश और मिन तथा सीरिया में तुलुनी वंश शामिल थे। शीघ्र ही अब्बासियों की सत्ता मध्य ईराक और पश्चिमी ईरान तक सीमित रह गई।

बुवाहियों द्वारा अब्बासी सत्ता का अंत-945 में ईरान के कैस्पियन क्षेत्र के बुवाही नामक शिया वंश ने बगदाद पर अधिकार कर लिया। इस प्रकार अब्बासियों के शासन का पूरी तरह अंत हो गया। बुवाही शासकों ने विभिन्न उपाधियाँ धारण कीं। इनमें एक प्राचीन ईरानी उपाधि ‘शहंशाह’ अर्थात् राजाओं का राजा भी शामिल थी। उन्होंने स्वयं खलीफा की पदवी धारण नहीं की, बल्कि अब्बासी खलीफा को अपनी सुन्नी प्रजा का प्रतीकात्मक मुखिया का स्थान दिया। इस प्रकार खिलाफत का विघटन हो गया, भले ही खलीफा का पद प्रतीकात्मक रूप से बना रहा।

बुवाही शासकों की खलीफा के पद के प्रति नीति-बुवाही शासकों द्वारा खलीफा के पद को प्रतीकात्मक रूप को बनाए रखने का निर्णय बहुत से चतुराईपूर्ण था। इसका कारण यह था कि ‘फातिमी’ नामक एक अन्य शिया राजवंश इस्लामी जगत पर शासन करने की योजना बना रहा था। फातिमी का संबंध शिया संप्रदाय के एक उप-संप्रदाय इस्माइली से था। उनका दावा था कि वे पैगंबर की बेटी फातिमा के वंशज हैं। इसलिए वे इस्लाम के एकमात्र न्यायसंगत शासक हैं। 969 ई. में उन्होंने मिस्र को जीत लिया और फातिमी खिलाफत की स्थापना की। उन्होंने मिस्र की पुरानी राजधानी फुस्तात की बजाय काहिरा को अपनी राजधानी बनाया।

प्रश्न 3.
धर्म युद्ध किस-किस के बीच हुए? इनके लिए कौन-कौन सी परिस्थितियाँ उत्तरदायी थी?
उत्तर:
धर्म युद्ध यूरोप के ईसाइयों तथा अरबों के बीच हुए। इनके लिए निम्नलिखित परिस्थितियाँ उत्तरदायी थीं –
1. ईसाइयों के लिए फिलिस्तीन ‘पवित्र भूमि’ थी। इसका कारण था कि उनके अधिकतर धार्मिक स्थल यही स्थित थे। यहाँ स्थित जेरूसलतम को ईसा के क्रूसीकरण तथा पुनः जीवित होने का स्थान माना जाता थ। इस स्थान को 638 ई. में अरबों ने जीत लिया था। इसलिए यरोपीय ईसाइयों तथा मुस्लिम जगत के बीच शत्रुता थी।

2. ग्यारहवीं शताब्दी में पश्चिमी यूरोप के सामाजिक तथा आर्थिक संगठनों में भी परिवर्तन हो गया था। इससे ईसाई जगत् और इस्लामी जगत् के बीच शत्रुता और अधिक बढ़ गई।

3. पादरी और योद्धा वर्ग राजनीतिक स्थिरता के लिए प्रयत्नशील थे।

4. ईश्वरीय शांति आंदोलन ने सामंती राज्यों के बीच सैनिक मुठभेड़ की संभावनाओं को समाप्त कर दिया था। अब सामंती समाज की आक्रमणकारी प्रवृत्तियों का रुख ‘ईश्वर के शत्रुओं’ अर्थात् अरबों की ओर हो गया था। इससे एक ऐसा वातावरण तैयार हुआ जिसमें विधर्मियों के विरुद्ध लड़ाई न केवल उचित अपितु प्रशंसनीय मानी जाने लगी।

5. 1092 में बगदाद के सलजुक सुलतान मलिक शाह की मृत्यु के पश्चात् उसके साम्राज्य का विघटन हो गया। इससे बाइजेंटाइन सम्राट् एलेक्सियस प्रथम को एशिया माइनर और उत्तरी सीरिया को फिर से हथियाने का अवसर मिल गया। 1095 में पोप अर्बन द्वितीय ने बाइजेंटाइन सम्राट् के साथ मिलकर पवित्रभूमि (होली लैंड) को मुक्त कराने के लिए ईश्वर के नाम पर युद्ध का आह्वान किया।

अतः 1095 और 1291 के बीच पश्चिमी यूरोप के ईसाइयों ने पूर्वी भूमध्य सागर के तटवर्ती मैदानों में मुस्लिम शहरों के विरुद्ध युद्धों की योजना बनाई। परिणामस्वरूप लगातार अनेक युद्ध लड़े गए । इन युद्धों को बाद में ‘धर्मयुद्ध’ का नाम दिया गया।

प्रश्न 4.
प्रथम तीन धर्मयुद्धों की जानकारी दीजिए और उनके प्रभावों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
धर्मयुद्ध 1095 से 1291 ई. में ईसाइयों तथा मुसलमानों के बीच हुए। इन युद्धों तथा उनके प्रभावों का संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार है –
1. प्रथम युद्ध – धर्मयुद्ध (1098-1099) में फ्रांस और इटली के सैनिकों ने सीरिया में एंटीओक तथा जेरूसलम पर अधिकार कर लिया। जेरूसलम में मुसलमानों और यहूदियों की निर्मम हत्याएँ की गई। शीघ्र ही उन्होंने सीरिया-फिलिस्तीन के क्षेत्र में धर्मयुद्ध द्वारा जीते गए चार राज्य स्थापित कर लिए। इन क्षेत्रों को सामूहिक रूप से ‘आउटरैमर’ कहा जाता था। बाद के धर्मयुद्ध इसकी रक्षा और विस्तार के लिए लड़े गए।

2. दूसरा धर्मयुद्ध – आउटरैमर प्रदेश कुछ समय तक सुरक्षित रहा। परंतु 1144 में तुर्को ने एडेस्सा पर अधिकार कर लिया। अत: पोप में ईसाई लाडों से एक अन्य धर्मयुद्ध (11451149) के लिए अपील की। एक जर्मन आर फ्रांसीसी सेना ने दमिश्क पर अधिकार करने का प्रयास किया। परंतु उसे पराजय का मुँह देखना पड़ा। इसके बाद ‘आउटरैमर’ की शक्ति धीरे-धीरे क्षीण होता गई और ईसाईयों में धर्मयुद्ध का जोश अब समाप्त हो गया। अब ईसाई शासकों ने विलासिता से जीना और नए-नए प्रदेशों के लिए लड़ाई करना शुरू कर दिया।

इस बीच सलाह अल-दीन ने एक मिनी-सीरियाई साम्राज्य स्थापित किया और ईसाइयों के विरुद्ध युद्ध छेड़ दिया। 1187 में ईसाई पराजित हुए। जेरूसलम पर फिर से मुसलमानों का अधिकार हो गया। परंतु ईसाई लोगों के साथ सलाह अल-दीन ने दयापूर्ण व्यवहार किया और द चर्च ऑफ दि होली सेपलकरे की अभिरक्षा का काम ईसाईयों को सौंप दिया । फिर भी बहुत-से गिरजाघरों को मस्जिदों में बदल दिया गया। इस प्रकार जेरुसलम एक बार फिर मुस्लिम शहर बन गया।

3. तीसरा धर्मयुद्ध – जेरूसलम के छिन जाने से 1189 ने तीसरे धर्मयुद्ध को जन्म दिया परंतु धर्मयुद्ध करने वाले फिलिस्तीन में कुछ तटवर्ती शहरों तथा ईसाई तीर्थ-यात्रियों के लिए जेरूसलम में स्वतंत्र प्रवेश के अतिरिक्त कुछ प्राप्त नहीं कर सके। अंतत: 1291 में मिस्र के मामलूक शासकों ने धर्मयुद्ध करने वाले सभी ईसाईयों को समूचे फिलिस्तीन से बाहर निकाल दिया।

प्रभाव – इन युद्धों ने ईसाई-मुस्लिम संबंधों के दो पहलुओं पर स्थायी प्रभाव छोड़ा।

  • प्रथम मुस्लिम राज्यों ने अपनी ईसाई प्रजा के प्रति कठोर नीति अपनानी आरंभ कर दी।
  • दूसरे, पूर्व और पश्चिम के बीच व्यापार में इटली के व्यापारिक समुदायों का प्रभाव बढ़ गया।

प्रश्न 5.
मध्यकालीन इस्लामी जगत् में शहरीकरण की मुख्य विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
मध्यकालीन इस्लामी जगत् में शहरों की संख्या में तेजी से वृद्धि हुई। परिणामस्वरूप इस्लामी सभ्यता फली फूली। अनेक नए शहरों की स्थापना की गई। इनका उद्देश्य मुख्य रूप से अरब सैनिकों (जुड) को बसाना था। इस श्रेणी के फौजी शहरों में इराक में कूफा और बसरा, मिस्र में फुस्तात तथा काहिरा थे। इन शहरों के अतिरिक्त बगदाद, दमिश्क, इस्फहान और समरकंद जैसे कुछ पुराने शहर थे। इन शहरों को भी नया जीवन मिला। बगदाद की जनसंख्या में तो बड़ी तेजी से वृद्धि हुई।

शहरों के विकास एवं विस्तार के लिए खाद्यान्नों और चीनी के उत्पादन में वृद्धि की गई। उद्योगों के लिए कच्चे माल का उत्पादन भी बढ़ाया गया। इससे शहरों के आकार और जनसंख्या में बढ़ोतरी हुई। फलस्वरूप संपूर्ण क्षेत्र में शहरों का एक विशाल जाल विकसित हो गया। एक शहर दूसरे शहर से जुड़ गया और उनमें परस्पर संपर्क एवं कारोबार बढ़ गया।

दो भवन – समूह-शहर के केंद्र में दो भवन-समूह होते थे, जहाँ से सांस्कृतिक और आर्थिक शक्ति का संचालन होता था।

मस्जिद – एक भवन-समूह मस्जिद (मस्जिद अल-जामी) होती थी। इसमें सामूहिक नमाज पढ़ी जाती थी। यह इतनी बड़ी होती थी कि दूर से दिखाई देती थी।

केंद्रीय मंडी – दूसरा भवन-समूह केंद्रीय मंडी (सुक्र) था। इसमें दुकानों की कतारें, व्यापारियों के आवास (फंदुक) और शर्राफ का कार्यालय होता था। इसके अतिरिक्त इस भाग में शहर के प्रशासकों और विद्वानों एवं व्यापारियों (तुज्जर) के घर होते थे जो केंद्र के निकट बने होत थे। सामान्य नागरिकों और सैनिकों के आवास शहर के बाहरी घेरे में होते थे। मंडी की प्रत्येक इकाई की अपनी मस्जिद, अथवा सिनेगोग (यहूदी प्रार्थनाघर), छोटी मंडी, सार्वजनिक स्नानघर (हमाम) तथा एक महत्वपूर्ण सभा-स्थल होता था।

शहर के बाहरी इलाकों में शहरी गरीबों के मकान, हरी सब्जियों और फलों के बाजार, काफिलों के ठिकानों, चमड़ा साफ करने या रंगने की दुकानें और कसाई की दुकानें होती थीं। शहर की चारदीवारी के बाहर कब्रिस्तान और सराय होते थे। सराय में लोग उस समय आराम कर सकते थे जब शहर के दरवाजे बंद कर दिये जाते थे। शहरों के नक्शे-परिदृश्य, राजनीतिक परंपराओं और ऐतिहासिक घटनाओं के आधार पर अलग-अलग होते थे।

प्रश्न 6.
मध्यकालीन इस्लामी जगत् में वास्तुकला के विकास का विवरण दीजिए।
उत्तर:
(a) दसवीं शताब्दी तक इस्लामी जगत् ने एक ऐगा रूप धारण कर लिया जिसने अपनी वास्तुकला द्वारा अपनी स्पष्ट पहचान बना ली थी। इस काल में अरब जगत् में अनेक मस्जिद, महल तथा मकबरे बनाए गए। इनकी विशेषताओं का वर्णन इस प्रकार है –

1. मस्जिद – इस दुनिया की सबसे बड़ी बाहरी धार्मिक प्रतीक इमारत मस्जिद थी। स्पेन से लेकर मध्य एशिया तक फैली मस्जिदों, इबादतगाहों और मकबरे का मूल रूप एक जैसा ही था। इनकी मुख्य विशेषताएँ थीं-मेहराबें, गुबंद, मीनार और खुले सहन (प्रांगण)। ये इमारतें मुसलमानों की धार्मिक तथा व्यावहारिक आवश्यकताओं को पूरा करती थीं। इस्लाम की पहली शताब्दी में मस्जिद ने एक विशेष वास्तुशिल्प का रूप धारण कर लिया था।

2. मस्जिद में एक खुला प्रांगण होता था। इस प्रांगण में एक फव्वारा अथवा जलाशय बनाया जाता था। यह प्रांगण एक बड़े कमरे की ओर खुलता था जिसमें प्रार्थना करने वाले लोगों तथा प्रार्थना (नमाज) का नेतृत्व करने वाले व्यक्ति (इमाम) के लिए पर्याप्त स्थान होता था।

3. बड़े कमरे की दो विशेषताएँ थीं – दीवार में एक मेहराब जो मक्का (काबा) की दिशा का संकेत देती थी तथा एक मंच जहाँ से शुक्रवार को दोपहर की नमाज के समय प्रवचन दिए जाते थे। इमारत में एक मीनार जुड़ी होती थी। इसका प्रयोग नियत समय पर नमाज के लिए लोगों को बुलाने के लिए किया जाता था। मीनार नए धर्म के अस्तित्व का प्रतीक थी। शहरों और गाँवों में लोग समय का अनुमान पाँच दैनिक नमाजों की सहायता से लगाते थे। मस्जिद की ये विशेषताएँ आज भी विद्यमान हैं।

4. मस्जिद के केंद्रीय प्रांगण के चारों ओर बनी इमारतों के निर्माण का स्वरूप न केवल मकबरों में बल्कि सरायों, अस्पतालों और महलों में भी पाया जाता था।

(b) महल –
1. उमय्यदों ने नखलिस्तानों में ‘मरुस्थली महल’ बनाए । इनमे फिलिस्तीन में खिरवत अलफजर और जोर्डन में कुसाईर अमरा शामिल थे। ये महल विलासपूर्ण निवास स्थान और शिकार एवं मनोरंजन के लिए विश्राम स्थल का काम देते थे। महलों को चित्रों, प्रतिमाओं और भव्य पच्चीकारी से सजाया जाता था।

2. अब्बासियों ने समरा में बागों और बहते हुए पानी के बीच एक नया शाही शहर बनाया। इसका उल्लेख खलीफा हारून-अल-रशीद से जुड़ी कहानियों और आख्यानों में मिलता है।

3. अब्बासियों ने बगदाद में तथा फातिमियों ने काहिरा में भी महल बनवाए। परंतु ये महल लुप्त हो गए हैं।

प्रश्न 7.
इस्लाम धर्म की स्थापना कब हुई? इसका अरब समाज पर क्या प्रभाव पड़ा? अथवा, इस्लाम धर्म के धार्मिक विश्वास क्या थे?
उत्तर:
इस्लाम धर्म की स्थापना लगभग 612 ई. में पैगंबर मुहम्मद ने की। इस वर्ष में उन्होंने स्वयं को खुदा का संदेशवाहक (रसूल) घोषित किया। उन्होंने एक नये धर्म सिद्धात का प्रचार किया। इस सिद्धांत को स्वीकार करने वाले लोग मुसलमान अथवा मुस्लिम कहलाए। ये सभी लोग एक ऐसे समाज का अंग थे जिसे उम्मा कहा जाता है।

इस्लाम धर्म के धार्मिक विश्वास-इस्लाम धर्म के धार्मिक विश्वास उनकी पवित्र पुस्तक ‘कुरान शरीफ’ में दिये गए हैं। इनका संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार है –

  1. केवल अल्लाह की ही पूजा की जानी चाहिए।
  2. मनुष्य को कयामत के दिन (मृत्यु के समय) अपने कर्मों का फल अवश्य मिलेगा।
  3. प्रत्येक मुसलमान को इन पाँच सिद्धांत का पालन करना चाहिए –
    (i) अल्लाह ही एकमात्र ईश्वर है और मुहम्मद उसका पैगंबर है।
    (ii) उसे प्रतिदिन पाँच बार नमाज पढ़नी चाहिए।
    (iii) उसे निर्धनों को दान देना चाहिए।
    (iv) उसे रमजान के महीने में रोजे रखने चाहिए।
    (v) उसे जीवन में एक बार मक्का की यात्रा अवश्य करनी चाहिए।
  4. किसी मुसलमान को मूर्ति-पूजा नहीं करनी चाहिए।
  5. उसे ब्याज की कमाई नहीं खानी चाहिए और चोरी नहीं करनी चाहिए।
  6. उसे विवाह और तलाक के निर्धारित नियमों का पालन करना चाहिए।
  7. उसे मनुष्य मात्र की समानता में विश्वास रखना चाहिए।
  8. उसे उदार तथा सद्गुणों से परिपूर्ण होना चाहिए।
  9. उसे कुरान को पवित्र ग्रंथ मानना चाहिए।

प्रश्न 8.
पैगंबर मुहम्मद के अधीन इस्लामी राज्य तथा समाज के मुख्य पहलुओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
पैगंबर मुहम्मद ने मदीना में एक राजनैतिक व्यवस्था की स्थापना की थी जिसने उनके अनुयायियों को सुरक्षा प्रदान की। उन्होंने शहर में चल रही कलह को भी सुलझाया। उम्मा को एक बड़े समुदायों के रूप में बदला गया, ताकि मदीना के बहुदेववादियों और यहदियों को पैगंबर मुहम्मद के राजनैतिक नेतृत्व के अधीन लाया जा सके। पैगंबर ने कर्मकांडों (उपवास आदि) तथा नैतिक सिद्धांत में वृद्धि की और उन्हें परिष्कृत किया। इस प्रकार उन्होंने धर्म को अपने अनुयायियों के लिए मजबूत बनाया।

इस्लामी राज्य का विस्तार-आरंभ में मुस्लिम कृषि एवं व्यापार से प्राप्त होने वाले राजस्व तथा खैरात-कर (जकात) पर जीवित रहा। इसके अतिरिक्त मुसलमान मक्का के काफिलों और निकट के नखलिस्तानों पर छापे भी मारते थे। कुछ समय बाद मक्का पर मुसलमानों का अधिकार हो गया। इसके फलस्वरूप एक धार्मिक प्रचारक तथा राजनैतिक नेता के रूप में पैगंबर मुहम्मद की प्रतिष्ठा दूर-दूर तक फैल गई। पैगंबर मुहम्मद की उपलब्धियों से प्रभावित होकर, बहुत-से कबीलों, मुख्य रूप से बहुओं ने अपना धर्म बदलकर इस्लाम को अपना लिया और मुस्लिम समाज में शामिल हो गए।

इस प्रकार पैगंबर मुहम्मद द्वारा बनाए गए गठजोड़ का प्रसार समूचे अरब देश में हो गया । मदीना उभरते हुए इस्लामी राज्य की प्रशासनिक राजधानी बना और मक्का उसका धार्मिक केंद्र बन गया । काबा से बुतों को हटा दिया गया था। मुस्लिमों के लिए यह जरूरी था कि वे काबा की ओर मुंह करके प्रार्थना करें। मुहम्मद साहिब थोड़े ही समय में अरब प्रदेश के बहुत बड़े भाग को एक नए धर्म, समुदाय एवं राज्य के अंतर्गत लाने में सफल रहे। उनके द्वारा स्थापित इस्लामी राज्य व्यवस्था काफी लंबे समय तक अरब कबीलों और कलों का राज्य संघ बनी रही।

प्रश्न 9.
‘अब्बासी क्रांति’ से क्या अभिप्राय है? उमय्यद वंश के पतन तथा अब्बसी वंश की स्थापना के संदर्भ में इसकी जानकारी दीजिए।
उत्तर:
उमय्यद वंश को मुस्लिम राजनैतिक व्यवस्था के केंद्रीयकरण के लिए भारी मूल्य चूकाना पड़ा। ‘दवा’ नामक एक सुनियोजित आंदोलन के उमय्यद वंश को उखाड़ फेंका। 750 में उमय्यद वंश का स्थान अब्बासी वंश ने ले लिया। इसे अब्बासी क्रांति का नाम दिया जाता है अब्बासियों ने उमय्यद शासन को दुष्ट बताया और यह दावा किया कि वे पैगबर मुहम्मद के मूल इस्लाम की फिर से स्थापना करेंगे।

अब्बासी विद्रोह तथा उमय्यद का पतन-अब्बासियों का विद्रोह पूर्वी ईरान में स्थित खुरासान में प्रारंभ हुआ। यहाँ पर अरब-ईरानियों की मिली-जुली संस्कृति थी। यहाँ पर अरब सैनिक मुख्यतः इराक से आए थे। उन्हें सीरियाई लोगों का प्रभुत्व पसंद नहीं था। खुरासान के अरब नागरिक भी उमय्यद शासन में घृणा करते थे। इसका कारण यह कि उमय्यदों ने करों में छूट देने और विशेषाधिकार देने के जो वायदे किए थे, वे पूरे नहीं किए थे।

दूसरी ओर वहाँ के ईरानी मुसलमानों को जातीय चेतना से ग्रस्त अरबों के तिरस्कार का शिकार होना पड़ा था। अत: उमय्यदों को बाहर निकालने के वे किसी भी अभियान में शामिल होने के लिए तैयार थे। अब्बासी क्रांति की सफलता-अब्बासी पैगंबर के चाचा अब्बास के वंशज थे।

उन्होंने विभिन्न अरब समूहों को यह आश्वासन दिया कि पैगंबर के परिवार का कोई मसीहा (महदी) उन्हें उमय्यदों के दमनकारी शासन से मुक्त कराएगा। इस प्रकार उन्होंने सत्ता प्राप्त करने के अपने प्रयास को वैध ठहराया। उसकी सेना का नेतृत्व एक ईरानी दास अबू मुस्लिम ने किया। उसने अंतिम उमय्यद खलीफा मारवान को ‘जब’ नदी पर हुई लड़ाई में हराया। इस प्रकार उमय्यद वंश का अंत हो गया और अब्बासी क्रांति सफल रही।

प्रश्न 10.
मध्यकालीन मुस्लिम साम्राज्य के व्यापार एवं वाणिज्य की जानकारी देते हुए यह बताइए कि इसका मुद्रा के प्रसार पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर:
मध्यकालीन मुस्लिम साम्राज्य का विस्तार हिंद महासागर और भूमध्यसागर के व्यापारियों क्षेत्रों के बीच था। पाँच शताब्दियों तक चीन, भारत और यूरोप के समुद्री व्यापार पर अरब तथा ईरानी व्यापारियों का एकाधिकार रहा। व्यापार मार्ग-व्यापार दो मुख्य मार्गों लाल सागर और फारस की खाड़ी से होता था। लंबी दूरी के व्यापार के लिए मसालों, कपड़े, चीनी मिट्टी की चीजों तथा बारूद को भारत और चीन से लाल सागर (अदन और ऐधाब तक) तथा फारस की खाड़ी के पत्तनों (सिराफ और बसरा) तक जहाजों द्वारा लाया जाता था।

यहाँ से माल को ऊँटों के काफिलों द्वारा बगदाद दमिश्क और लेप्पो के भंडारगृहों तक स्थानीय खपत अथवा आगे भेजने के लिए भेजा जाता था। हज की यात्रा के समय मक्का के रास्ते से गुजरने वाले काफिलों का आकार बड़ा हो जाता था। व्यापारिक मार्गों के भूमध्य सागर के सिरे पर सिकंदरिया के पत्तन से यूरोप को किए जाने वाला निर्यात यहूदी व्यापारियों के हाथ में था। उनमें से कुछ भारत के साथ सीधे व्यापार करते थे। चौथी शताब्दी में व्यापार एवं शक्ति के केंद्र के रूप में काहिरा के उभरने तथा इटली के व्यापारिक शहरों में पूर्वी सिरे पर माल की बढ़ती हुई माँग के कारण लाल सागर के मार्ग का महत्त्व बहुत अधिक बढ़ गया।

पूर्वी सिरे पर ईरानी व्यापारी मध्य एशियाई और चीनी वस्तुएँ लाने के लिए बगदाद से बुखारा तथा समरकंद (तूरान) होते हुए रेशम मार्ग से चीन जाते थे। तूरान भी वाणिज्यिक तंत्र में एक महत्त्वपूर्ण कड़ी था। यह तंत्र फर और स्लाब गुलामों के व्यापार के लिए उत्तर में रूस और स्केंडीनेविया तक फैला हुआ था। यहाँ के बाजारों में खलीफाओं और सुल्तानों के दरबार के लिए दास-दासियाँ खरीदी जाती थीं।

मुद्रा का प्रसार-राजकोषीय प्रणाली और बाजार के लेन-देन से इस्लामी देशों में धन के महत्त्व में वृद्धि के फलस्वरूप मुद्रा का प्रसार बढ़ गया। सोने, चाँदी और ताँबे (फुलस) के सिक्के बड़ी संख्या में बनाए जाने लगे। वस्तुओं और सेवाओं का मूल्य चुकाने के लिए इन्हें प्राय: सर्राफों द्वारा सीलबंद थैलों में भेजा जाता था। सोना अफ्रीका (सूदान) से और चाँदी मध्य एशिया से आती थी।

बहुमूल्य धातुएँ और सिक्के पूर्वी व्यापार की वस्तुओं के बदले यूरोप से भी आते थे। धन की बढ़ती हुई माँग से लोगों के सचित भंडारों और बेकार संपत्ति का भी उपयोग होने लगा। उधार का कारोबार भी मुद्राओं के साथ जुड़ गया।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
पैगम्बर मुहम्मद ने प्रथम सार्वजनिक उपदेश कब दिये?
(क) 610
(ख) 612
(ग) 622
(घ) 627
उत्तर:
(ख) 612

प्रश्न 2.
उम्मयद खिलाफत वंश की स्थापना किसने की?
(क) मुआविया
(ख) याजीद
(ग) उस्मान
(घ) वालीद
उत्तर:
(क) मुआविया

प्रश्न 3.
मुस्लिम कानून के किस शाखा को सर्वाधिक रूढ़िवादी माना गया है?
(क) मलिकी
(ख) हनफी
(ग) शफीई
(घ) हनबली
उत्तर:
(घ) हनबली

प्रश्न 4.
किस सूफी संत ने फना के सिद्धांत दिये?
(क) वयाजिद विस्तामी
(ख) रबिया
(ग) बहाउद्दीन जकारिया
(घ) सलीम चिश्ती
उत्तर:
(क) वयाजिद विस्तामी

प्रश्न 5.
मुरुज अल-धाहाब की रचना किसने की?
(क) मसूदी
(ख) ताबरी
(ग) अलबेरूनी
(घ) बालाधुरी
उत्तर:
(क) मसूदी

प्रश्न 6.
इरान में इल-खानी राज्य की स्थापना किसने की?
(क) कुबलई खाँ
(ख) हजनू खाँ
(ग) मौके खान
(घ) चगताई खाँ
उत्तर:
(ख) हजनू खाँ

प्रश्न 7.
1095 से 1291 तक के धर्मयुद्ध (क्रुसेड) किन दो संप्रदायों के मध्य हुए?
(क) ईसाई एवं यहूदी
(ख) यहूदी एवं अरब
(ग) ईसाई एवं मुसलमान
(घ) मुसलमान एवं मंगाले
उत्तर:
(ग) ईसाई एवं मुसलमान

प्रश्न 8.
समानी वंश का संबंध किस देश से था?
(क) इरान
(ख) तुर्की
(ग) रूस
(घ) इटली
उत्तर:
(क) इरान

प्रश्न 9.
‘डोम ऑफ द रॉक’ नामक मस्जिद कहाँ पर स्थित है?
(क) बसरा
(ख) दमिश्क
(ग) जेरूसलम
(घ) समरकंद
उत्तर:
(ग) जेरूसलम

प्रश्न 10.
अब्बासी क्रांति कब हुई?
(क) 712 ई.
(ख) 750 ई.
(ग) 786 ई.
(घ) 802 ई.
उत्तर:
(ख) 750 ई.

प्रश्न 11.
पैगम्बर का प्रतिनिधि क्या कहलाता था?
(क) ताजा
(ख) उम्मा
(ग) अमीर
(घ) खलीफा
उत्तर:
(घ) खलीफा

प्रश्न 12.
दास प्रजनन क्या है?
(क) गुलामों की संख्या बढ़ाने की प्रथा
(ख) वेतनभोगी दासों की श्रेणी
(ग) दासता से स्वतंत्र होने की प्रथा
(घ) अभिजात्य वर्ग द्वारा दासों की स्त्रियों
उत्तर:
(क) गुलामों की संख्या बढ़ाने की प्रथा

प्रश्न 13.
मुसलमानों का प्रथम खलीफा कौन था?
(क) उमर
(ख) अब्बासी
(ग) अबू बकर
(घ) अक्त-महदी
उत्तर:
(ग) अबू बकर

प्रश्न 14.
मामलूक किसे कहा जाता था?
(क) खलीफा
(ख) तुर्क शासक
(ग) तुर्की गुलाम अधिकारी
(घ) ईरानी मुसलमान
उत्तर:
(ग) तुर्की गुलाम अधिकारी

प्रश्न 15.
शर्लमेन कौन था?
(क) फ्रांस का शासक
(ख) इंगलैंड का शासक
(ग) इटली का शासक
(घ) स्पेन का शासक
उत्तर:
(क) फ्रांस का शासक

प्रश्न 16.
इस्लाम के संस्थापक पैगम्बर मुहम्मद साहब का जन्म कब हुआ था?
(क) 570 ई.
(ख) 622 ई.
(ग) 612 ई.
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(क) 570 ई.

प्रश्न 17.
पैगम्बर मुहम्मद साहब का जन्म किस स्थान पर हुआ था?
(क) मदीना
(ख) मक्का
(ग) बगदाद
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(ख) मक्का

प्रश्न 18.
पैगम्बर मुहम्मद साहब को ‘सत्य के दिव्य दर्शन’ किस आयु में हुए थे?
(क) 30 वर्ष की आयु में
(ख) 35 वर्ष की आयु में
(ग) 40 वर्ष की आयु में
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(ग) 40 वर्ष की आयु में

प्रश्न 19.
मक्का से मदीना को पैगम्बर साहब का प्रस्थान क्या कहलाता है?
(क) हिजरा
(ख) आवागमन
(ग) तीर्थयात्रा
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(क) हिजरा

प्रश्न 20.
मुस्लिम पंचांग का प्रथम वर्ष माना जाता है …………………..
(क) सन् 612 ई.
(ख) सन् 570 ई.
(ग) सन् 622 ई.
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(ग) सन् 622 ई.

प्रश्न 21.
मुसलमानों का पवित्र धर्म ग्रंथ कहलाता है ………………….
(क) कुरान
(ख) उपदेश
(ग) (क) एवं (ख) दोनों
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(क) कुरान

प्रश्न 22.
पैमगम्बर मुहम्मद साहब की मृत्यु हुई ………………….
(क) 620 ई.
(ख) 632 ई.
(ग) 640 ई.
(घ) 650 ई.
उत्तर:
(ख) 632 ई.

प्रश्न 23.
इस्लामिक कॉलेज (अल-अजहर) कहाँ स्थित था?
(क) मक्का में
(ख) मदीना में
(ग) काहिरा में
(घ) बसरा में
उत्तर:
(ग) काहिरा में

प्रश्न 24.
पहले खलीफा कौन थे?
(क) अबू बकर
(ख) उथमान
(ग) अली
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(क) अबू बकर

प्रश्न 25.
द्वितीय खलीफा कौन थे?
(क) अली
(ख) उमर
(ग) खलीफा
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(ख) उमर

प्रश्न 26.
तीसरे खलीफा कौन थे?
(क) उथमान
(ख) उम्मयद
(ग) अब्बसिद
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(क) उथमान

प्रश्न 27.
चौथे खलीफा कौन थे?
(क) अमीर
(ख) अली
(ग) अशरफ
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(ख) अली

प्रश्न 28.
657 ई. की प्रसिद्ध ऊँट की लड़ाई में अली ने किसे परास्त किया?
(क) उस्मान
(ख) मुआविया
(ग) आयशा
(घ) याजीद
उत्तर:
(ग) आयशा

प्रश्न 29.
जजिया किनसे लिया जाता था?
(क) हिन्दू
(ख) गैरमुसलमान
(ग) मुसलमान
(घ) यहूदी
उत्तर:
(ख) गैरमुसलमान

प्रश्न 30.
प्रसिद्ध सूफी महिला संत रबिया कहाँ की रहने वाली थी?
(क) दमिश्क
(ख) मक्का
(ग) वसरा
(घ) इस्तांबुल
उत्तर:
(ग) वसरा

प्रश्न 31.
नई फारसी कविता का जनक किसे कहा जाता है?
(क) अबुनुनास
(ख) उमर खैय्याम
(ग) फिरदौसी
(घ) रूदकी
उत्तर:
(घ) रूदकी