Bihar Board 12th Political Science Objective Important Questions Part 2

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Bihar Board 12th Political Science Objective Important Questions Part 2

प्रश्न 1.
संयुक्त राष्ट्र संघ के प्रथम एशियाई महासचिव कौन थे ?
(a) बान की मून
(b) यू थांट
(c) कोफी अन्नान
(d) बुतरस घाली
उत्तर:
(b) यू थांट

प्रश्न 2.
ग्राम कचहरी का प्रधान कौन होता है ?
(a) सरपंच
(b) मुखिया
(c) वार्ड सदस्य
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(a) सरपंच

प्रश्न 3.
संयुक्त राज्य अमेरिका के वर्तमान राष्ट्रपति कौन हैं ?
(a) बिल क्लिंटन
(b) जॉर्ज बुश
(c) डोनाल्ड ट्रम्प
(d) बराक ओबामा
उत्तर:
(c) डोनाल्ड ट्रम्प

प्रश्न 4.
योजना आयोग के पदेन अध्यक्ष कौन हैं ?
(a) प्रधानमंत्री
(b) राष्ट्रपति
(c) उप-राष्ट्रपति
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(a) प्रधानमंत्री

प्रश्न 5.
वर्चस्व के बारे में निम्नलिखित में से कौन-सा कथन गलत है ?
(a) इसका अर्थ किसी एक देश की सुवाई या प्राबल्य है
(b) इस शब्द का इस्तेमाल प्राचीन यूनान में एथेन्स की प्रधानता को चिह्नित करने के लिए किया जाता था
(c) वर्चस्वशील देश की सैन्यशक्ति अजेय होती है
(d) वर्चस्व की स्थिति नियत होती है, जिसने एक बार वर्चस्व कायम कर लिया उसने हमेशा के लिए वर्चस्व कायम कर लिया
उत्तर:
(d) वर्चस्व की स्थिति नियत होती है, जिसने एक बार वर्चस्व कायम कर लिया उसने हमेशा के लिए वर्चस्व कायम कर लिया

प्रश्न 6.
राज्य पुनर्गठन आयोग की स्थापना कब हुई ?
(a) 1953 ई.
(b) 1955 ई.
(c) 1956 ई.
(d) 1958 ई.
उत्तर:
उत्तर:
(a) 1953 ई.

प्रश्न 7.
भारत तथा पाकिस्तान के बीच 1972 में कौन-सी समझौता पर हस्ताक्षर हुआ ?
(a) फरक्का समझौता
(b) आगरा समझौता
(c) शिमला समझौता
(d) लाहौर समझौता
उत्तर:
(c) शिमला समझौता

प्रश्न 8.
भारत में वर्तमान में कुल कितने संघशासित प्रदेश हैं ?
(a) 6
(b) 7
(c) 8
(d) 9
उत्तर:
(c) 8

प्रश्न 9.
1952 में किस संगठन की स्थापना हुई थी ?
(a) योजना आयोग
(b) वित्त आयोग
(c) राष्ट्रीय विकास परिषद्
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(a) योजना आयोग

प्रश्न 10.
भारतीय जनता पार्टी की स्थापना कब हुई ?
(a) 1977
(b) 1980
(c) 1982
(d) 1984
उत्तर:
(a) 1977

प्रश्न 11.
काँग्रेस मुक्त भारत का नारा भारत में किसने दिया है ?
(a) राम मनोहर लोहिया
(b) नरेन्द्र मोदी
(c) जे० पी०
(d) मुलायम सिंह
उत्तर:
(b) नरेन्द्र मोदी

प्रश्न 12.
ताशकन्द समझौता कब हुआ था?
(a) 1962
(b) 1964
(c) 1966
(d) 1968
उत्तर:
(c) 1966

प्रश्न 13.
गुट निरपेक्ष आन्दोलन की नींव किस सम्मेलन में पड़ी?
(a) बांडुंग सम्मेलन
(b) बेलग्रेड सम्मेलन
(c) काहिरा सम्मेलन
(d) लुसाका सम्मेलन
उत्तर:
(a) बांडुंग सम्मेलन

प्रश्न 14.
भारत में द्वितीय आम चुनाव कब हुआ था ?
(a) 1952
(b) 1955
(c) 1957
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(c) 1957

प्रश्न 15.
भारत में द्वितीय पंचवर्षीय योजना की शुरुआत कब हुई ?
(a) 1951
(b) 1956
(c) 1961
(d) 1965
उत्तर:
(b) 1956

प्रश्न 16.
संयुक्त राष्ट्र अमेरिका का प्रथम राष्ट्रपति कौन था ?
(a) जार्ज वाशिंगटन
(b) जार्ज बुश
(c) अब्राहम लिंकन
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(a) जार्ज वाशिंगटन

प्रश्न 17.
राष्ट्रीय विकास परिषद का अध्यक्ष कौन हैं ?
(a) राष्ट्रपति
(b) उप-राष्ट्रपति
(c) प्रधानमंत्री
(d) मुख्य न्यायाधीश
उत्तर:
(c) प्रधानमंत्री

प्रश्न 18.
विश्व श्रम संगठन का मुख्यालय कहाँ है ?
(a) दिल्ली
(b) पेरिस
(c) लंदन
(d) जिनेवा
उत्तर:
(d) जिनेवा

प्रश्न 19.
भारत के प्रथम शिक्षामंत्री कौन थे?
(a) डॉ० बी० आर० अम्बेदकर
(b) के० एम० मुंशी
(c) डॉ० राजेन्द्र प्रसाद
(d) अबुल कलाम आजाद
उत्तर:
(d) अबुल कलाम आजाद

प्रश्न 20.
योजना आयोग का गठन कब हुआ?
(a) 1948
(b) 1949
(c) 1950
(d) 1951
उत्तर:
(c) 1950

प्रश्न 21.
यूरोपीय संघ के सदस्यों की मुद्रा क्या है ?
(a) यूरो
(b) डॉलर
(c) रुपया
(d) येन
उत्तर:
(a) यूरो

प्रश्न 22.
निम्नलिखित में से कौन एक राज्य नहीं है ?
(a) असम
(b) मणिपुर
(c) दिल्ली
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(d) इनमें से कोई नहीं

प्रश्न 23.
उत्तर प्रदेश में किस दल की सरकार है ?
(a) समाजवादी दल
(b) बहुजन समाज पार्टी
(c) भाजपा
(d) काँग्रेस
उत्तर:
(c) भाजपा

प्रश्न 24.
भारत-चीन युद्ध कब हुआ?
(a) 1962
(b) 1963
(c) 1964
(d) 1965
उत्तर:
(a) 1962

प्रश्न 25.
सार्क का मुख्यालय कहाँ है ?
(a) नई दिल्ली
(b) इस्लामाबाद
(c) काठमाण्डू
(d) ढाका
उत्तर:
(d) ढाका

प्रश्न 26.
बांग्लादेश का निर्माण किस वर्ष हुआ?
(a) 1970
(b) 1971
(c) 1972
(d) 1973
उत्तर:
(b) 1971

प्रश्न 27.
“जय जवान जय किसान” का नारा किसने दिया था ?
(a) राजीव गाँधी
(b) लाल बहादुर शास्त्री
(c) इंदिरा गाँधी
(d) मोरारजी देसाई
उत्तर:
(b) लाल बहादुर शास्त्री

प्रश्न 28.
1974 की रेल हड़ताल के नेता कौन थे ?
(a) जय प्रकाश नारायण
(b) राज नारायण
(c) के० एम० मुंशी
(d) जार्ज फर्नाडीस
उत्तर:
(d) जार्ज फर्नाडीस

प्रश्न 29.
“विश्व मानवाधिकार दिवस” कब मनाया जाता है ?
(a) 1 दिसम्बर
(b) 10 दिसम्बर
(c) 24 दिसम्बर
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(b) 10 दिसम्बर

प्रश्न 30.
निम्नलिखित में से कौन देश सार्क का सदस्य नहीं है ?
(a) पाकिस्तान
(b) भारत
(c) नेपाल
(d) थाईलैण्ड
उत्तर:
(d) थाईलैण्ड

प्रश्न 31.
सिक्किम भारत का सहवर्ती राज्य कब बना?
(a) 1974
(b) 1975
(c) 1980
(d) 1986
उत्तर:
(b) 1975

प्रश्न 32.
भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस की प्रथम महिला अध्यक्ष कौन थी?
(a) एनी बेसेन्ट
(b) सरोजिनी नायडू
(c) इंदिरा गाँधी
(d) सोनिया गाँधी
उत्तर:
(a) एनी बेसेन्ट

प्रश्न 33.
भारत में 1940 के दशक के अंतिम सालों में किसके निर्देशन में परमाणु कार्यक्रम शुरू हुआ?
(a) होमी जहाँगीर भाभा
(b) अब्दुल कलाम
(c) सी० वी० रमण
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(a) होमी जहाँगीर भाभा

प्रश्न 34.
बिहार के प्रथम मुख्यमंत्री कौन थे ?
(a) अनुग्रह नारायण सिंह
(b) श्रीकृष्ण सिंह
(c) कर्पूरी ठाकुर
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(b) श्रीकृष्ण सिंह

प्रश्न 35.
तेलुगु देशम पार्टी किस राज्य की क्षेत्रीय पार्टी है ?
(a) पंजाब
(b) असम
(c) तमिलनाडु
(d) आन्ध्र प्रदेश
उत्तर:
(d) आन्ध्र प्रदेश

प्रश्न 36.
अमेरिका के किस राष्ट्रपति को शांति का नोबेल पुरस्कार प्रदान किया गया है।
(a) बराक ओबामा
(b) बिल क्लिटन
(c) जार्ज बुश
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(a) बराक ओबामा

प्रश्न 37.
संविधान सभा के अध्यक्ष कौन थे ?
(a) डॉ० अम्बेडकर
(b) डॉ० राजेन्द्र प्रसाद
(c) डॉ० राधाकृष्णन
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(b) डॉ० राजेन्द्र प्रसाद

प्रश्न 38.
काँग्रेस ने किस प्रकार का समाजवाद अपनाया ?
(a) मार्क्सवादी
(b) ब्रिटेन का लोकतांत्रिक समाजवाद
(c) गाँधी का सर्वोदय
(d) लेनिन का साम्यवाद
उत्तर:
(b) ब्रिटेन का लोकतांत्रिक समाजवाद

प्रश्न 39.
प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी किस दल के हैं ?
(a) काँग्रेस
(b) शिवसेना
(c) भारतीय जनता पार्टी
(d) जनता पार्टी
उत्तर:
(c) भारतीय जनता पार्टी

प्रश्न 40.
दिल्ली के मुख्यमंत्री श्री केजरीवाल किस दल के हैं ?
(a) भाजपा
(b) आम आदमी पार्टी
(c) लोक दल
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(b) आम आदमी पार्टी

प्रश्न 41.
संविधान द्वारा किस भाषा को राजभाषा का दर्जा दिया गया है ?
(a) अंग्रेजी
(b) हिन्दी
(c) उर्दू
(d) हिन्दुस्तानी
उत्तर:
(b) हिन्दी

प्रश्न 42.
‘सामाजिक न्याय के साथ विकास’ किस पंचवर्षीय योजना का मुख्य उद्देश्य था ?
(a) तीसरी
(b) चौथी
(c) पांचवीं
(d) छठी
उत्तर:
(b) चौथी

प्रश्न 43.
1965 और 1971 में भारत का किस देश से युद्ध हुआ था ?
(a) चीन
(b) श्रीलंका
(c) पाकिस्तान
(d) बांग्लादेश
उत्तर:
(c) पाकिस्तान

प्रश्न 44.
भारत संयुक्त राष्ट्र संघ का सदस्य कब बना ?
(a) 1945 में
(b) 1947 में
(c) 1950 में
(d) 1952 में
उत्तर:
(a) 1945 में

प्रश्न 45.
शिमला समझौते पर भारत के किस प्रधानमंत्री ने हस्ताक्षर किए ?
(a) लाल बहादुर शास्त्री
(b) जवाहरलाल नेहरू
(c) इन्दिरा गाँधी
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(c) इन्दिरा गाँधी

प्रश्न 46.
‘गरीबी हटाओ’ का नारा किसने दिया ?
(a) राजीव गाँधी
(b) इन्दिरा गाँधी
(c) मनमोहन सिंह
(d) नरेन्द्र मोदी
उत्तर:
(b) इन्दिरा गाँधी

प्रश्न 47.
काँग्रेस फॉर डेमोक्रेसी के संस्थापक नेता कौन था ?
(a) बहुगुणा
(b) सत्पथी
(c) जगजीवन राम
(d) राम विलास पासवान
उत्तर:
(c) जगजीवन राम

प्रश्न 48.
सम्पूर्ण क्रांति आंदोलन का नेतृत्व किसने किया ?
(a) कर्पूरी ठाकुर
(b) चन्द्रशेखर
(c) जयप्रकाश नारायण
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(c) जयप्रकाश नारायण

Bihar Board 12th Business Studies Important Questions Long Answer Type Part 1 in Hindi

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Bihar Board 12th Business Studies Important Questions Long Answer Type Part 1 in Hindi

प्रश्न 1.
वित्त कार्य करते समय प्रत्येक प्रबन्धक को तीन मुख्य निर्णय लेने होते हैं। उनका वर्णन कीजिए।
उत्तर:
वित्त कार्य करते समय प्रबंधक को निम्नलिखित मुख्य निर्णय लेने पड़ते हैं-
(i) वित्तीय नियोजन से संस्था के पूँजीगत ढाँचे के निर्धारण का निर्णय लेना पड़ता है जिसमें ‘अंश पूँजी के अनुपात निश्चित किये जाते हैं। उदाहरण के लिए समता अंश पूँजी कितनीः और पूर्वाधिकार अंश पूँजी कितने धन के रखे जायें, इसका निर्णय करना पड़ता है।

(ii) प्रबंधक विभिन्न साधनों से आवश्यक पूँजी प्राप्त करने की विवेकपूर्ण योजना बनाने का निर्णय लेता है। पर्याप्त मात्रा में वित्त की प्राप्ति होने से व्यावसायिक संस्था में पर्याप्त पूँजी एकत्र होती है जिससे कारोबार अच्छी तरह से चलता है।

(iii) वित्तीय कार्य करते समय प्रबंधक उद्योग की प्रकृति के अनुसार वित का प्रबंध करने का निर्णय लेता है। पूँजी सघन उद्योग के लिए प्रबंधक अधिक पूँजी एकत्र करने का प्रयत्न करता है जबकि श्रम साधन उद्योगों के लिए कम पूँजी एकत्र करने का निर्णय लेता है। साथ ही अधिक जोखिम वाले उद्योगों को अपनी पूँजी जुटाने के लिए स्वामित्वशील प्रतिभूतियों (Ownership Securities) पर अधिक निर्भर रहना पड़ेगा जबकि कम जोखिम वाले उद्योग ऋण लेकर स्वामियों को समता पर व्यापार (Trading on Equity) का लाभ दे सकते हैं।

प्रश्न 2.
एक कार्यात्मक ढाँचा एक डिवीजनल ढाँचे से किस प्रकार भिन्न है ?
उत्तर:
कार्यात्मक और डिविजनल संरचना (ढाँचा) के बीच अन्तर यह है कि कार्यात्मक संरचना एक संगठनात्मक संरचना है जिसमें संगठन को विशेष कार्यात्मक क्षेत्रों जैसे कि उत्पादन, विपणन और बिक्री के आधार पर छोटे समूहों में विभाजित किया गया है जबकि विभाजन (डिविजनल) संरचना एक प्रकार का संगठनात्मक ढाँचा है जहाँ संचालन को विभाजन या अलग उत्पाद के आधार पर समूहीकृत किया जाता है। श्रेणियाँ एक संगठन को विभिन्न संरचनाओं के अनुसार व्यवस्थित किया जा सकता है, जो संगठन को संचालित और प्रदर्शन करने में सक्षम बनाता है। इसका उद्देश्य, उद्देश्य से सुचारू रूप से और कुशलतापूर्वक संचालन करना है।

इस प्रकार कार्यात्मक ढाँचा और डिविजनल ढाँचा का तुलनात्मक अध्ययन करने से इस बात की जानकारी होती है कि इन दोनों की प्रकृति और लक्षण अलग-अलग हैं। इसलिए इन दोनों में अन्तर पाया जाता है।

प्रश्न 3.
प्रबन्ध के कार्य के रूप में संगठन का महत्त्व समझाइये।
उत्तर:
प्रबन्ध के कार्य के रूप में संगठन के महत्व को इस प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है-
(i) विशिष्टीकरण का लाभ (Benefits of specialisation) – संगठन कर्मचारियों में विभिन्न क्रियाओं को उनकी योग्यता एवं कार्य-क्षमता के अनुसार बाँटने में मार्गदर्शक का कार्य करता है। कर्मचारियों के द्वारा एक ही कार्य को लगातार करते रहने से काम का बोझ कम हो जाता है एवं उतपादन की मात्रा बढ़ जाती है। लगातार एक ही कार्य को करते रहने से कर्मचारी उस कार्य को करने का विशिष्ट अनुभव प्राप्त कर लेते हैं एवं कार्य को करने में दक्षता प्राप्त कर लेते हैं।

(ii) कार्य सम्बन्धों में स्पष्टता (Clarity in working relationship) – कार्य करने में सम्बन्धों का स्पष्टीकरण सम्प्रेषण को स्पष्ट करता है तथा किसने किसको रिपोर्ट करनी है इस बात को एक-एक करके बतलाता है। यह सूचना एवं अनुदेशों के स्थानान्तरण (Ambiguity in transfer) में भ्रमों को दूर करता है। यह सोपानिक क्रम (Hierarchical order) के निर्माण में सहायता करता है ताकि उत्तरदायित्व को निर्धारित किया जा सके एवं एक व्यक्ति के द्वारा किस सीमा तक अधिकारों का अन्तरण (Delegation of authority) किया जा सकता है, इसका स्पष्टीकरण करता है।

(iii) संसाधनों का अनुकूलतम उपयोग (Optimum utilisation of resources) – संगठन प्रक्रिया के अन्तर्गत कुल काम को अनेक छोटी-छोटी क्रियाओं में विभाजित कर दिया जाता है। प्रत्येक क्रिया एक अलग कर्मचारी के द्वारा की जाती है। ऐसा करने से न तो कोई क्रिया करने से रह जाती है और न ही किसी क्रिया को अनावश्यक रूप से दो बार किया जाता है। परिणामतः, संगठन में उपलब्ध सभी संसाधनों जैसे-मानव, माल, मशीन आदि का अनुकूलतम उपयोग (Optimum use) संम्भव हो पाता है।

(iv) परिवर्तन में सुविधा (Adaptation to change) – संगठन प्रक्रिया व्यावसायिक इकाइयों को व्यावसायिक पर्यावरण (Business environment) परिवर्तनों में समायोजित होने की अनुमति प्रदान करता है। यह संगठन संरचना में प्रबन्धकीय स्तर का उपयुक्त परिवर्तन एवं आपसी सम्बन्धों के संशोधनों में पारगमन (Inter-relationship) का मार्ग प्रशस्त करता है। यह संगठन परिवर्तनों के बाबजूद भी जीवित रहने तथा उन्नति करते रहने सम्बन्धी आवश्यकता की पूर्ति करता है।

(v) प्रभावी प्रशासन (Effective administration) – प्रायः देखा जाता है कि प्रबन्धकों में अधिकारों को लेकर भ्रम की स्थिति बनी रहती है। संगठन प्रक्रिया प्रत्येक प्रबन्धक द्वारा की जाने वाली विभिन्न क्रियाओं एवं प्राप्त अधिकारों का स्पष्ट उल्लेख करती है। यह भी स्पष्ट कर दिया जाता है कि प्रत्येक प्रबन्धक किस कार्य को करने के लिए किसको आदेश देगा। प्रत्येक कर्मचारी को इस बात की जानकारी होती है कि वह किसके प्रति उत्तरदायी है ? इस प्रकार अधिकारों को लेकर उत्पन्न होने वाले भ्रम की स्थिति समाप्त हो जाती है। परिणामतः प्रभावी प्रशासन सम्भव हो पाता है।

(vi) कर्मचारियों का विकास (Development of personnel) – संगठन प्रक्रिया के अन्तर्गत अधिकार अन्तरण (Delegation of authority) किया जाता है। ऐसा एक व्यक्ति की सीमित क्षमता के कारण ही नहीं वरन् काम को करने की नई-नई विधियों की खोज करने के कारण भी किया जाता है। इसमें अधीनस्थों को निर्णय लेने के अवसर प्राप्त होते हैं। इस स्थिति का लाभ उठाते हुए वे नई-नई विधियों को खोज करते हैं एवं उन्हें लागू करते हैं, परिणामत: उनका विकास होता है।

(vii) विस्तार एवं विकास (Expansion and growth) – संगठन प्रक्रिया के अन्तर्गत कर्मचारियों को प्राप्त निर्णय-स्वतन्त्रता (Freedom to take decisions) से उनका विकास होता है। वे नई-नई चुनौतियों को स्वीकार करने के लिए अपने-आप को तैयार करने में सक्षम हो पाते हैं। इस स्थिति का लाभ प्राप्त करने के लिए वे उपक्रम का विस्तार करते हैं। विस्तर से लाभ कमाने की क्षमता बढ़ती है जो उपक्रम के विकास में सहायक होती है।

संगठन की उपयोगिता स्पष्ट करते हुए सी. कैनेथ ने एक स्थान पर कहा है, “एक कमजोर संगठन अच्छे उत्पादन को मिट्टी में मिला सकता है और एक अच्छा संगठन जिसका उत्पाद कमजोर है, अच्छे उत्पाद को भी बाजार से भगा सकता है।”

प्रश्न 4.
मौद्रिक प्रेरणाओं का क्या अर्थ है ? कोई तीन मौद्रिक प्रेरणाएँ बताइए जो कर्मचारियों के बेहतर निष्पादन में सहायक हो।
उत्तर:
मौद्रिक प्रेरणा वैसी प्रेरणा होती है जिसका मूल्यांकन प्रत्यक्ष रूप से मुद्रा से किया जा सकता है। मौद्रिक प्रेरणा के अन्तर्गत एक कर्मचारी को अधिक कार्य करने पर अधिक धन प्राप्ति की प्रेरणा होती है। इसमें श्रमिक को जो भी लाभ होता है वह नगदी के रूप में होता है ये चाहे अधिक वेतन के रूप में हों, कमीशन या लाभांश के रूप में हों, सभी मौद्रिक प्रेरणा कहलाती है। यदि श्रमिक को इससे धन की प्राप्ति होती है तो कार्य के अनुसार श्रमिकों को अधिक वेतन देना मौद्रिक प्रेरणा का प्रमुख उदाहरण है।

तीन मौद्रिक प्रेरणायें जो कर्मचारियों के बेहतर निष्पादन में सहायक होती है वे निम्नलिखित हैं-

  • बोनस – कोई भी व्यापारिक संस्था, फर्म या कम्पनी वर्ष के अंत में प्रेरणा के रूप में कर्मचारियों को बोनस की रकम नगद रूप में देती है। बोनस की रकम मिलने से कर्मचारी में अधिक-से-अधिक काम कारने की प्रेरणा उत्पन्न होती है।
  • कमीशन – एक व्यापारिक संस्था, फर्म या कम्पनी अपने कर्मचारियों को वेतन के अतिरिक्त विक्रय पर एक निश्चित दर से कमीशन देती है। इस कमीशन की रकम से कर्मचारियों में अधिक काम करने की प्रेरणा आती है।
  • प्रीमियम – एक व्यापारिक संस्था, फर्म या कम्पनी अपने कर्मचारियों को नगद रूप में प्रीमियम की रकम का भी भुगतान करती है। इसमें कर्मचारियों में अधिक-से-अधिक काम करने की प्रेरणा आती है।

प्रश्न 5.
नियोजन क्या है ? प्रबंध द्वारा नियोजन प्रक्रिया में कौन-कौन से कदम उठाये जाते है ?
उत्तर:
नियोजन में पहले ही क्या करना है एवं कैसे करना है निर्माण सम्मिलित रहता है। यह कार्यों को पूर्ण करने से पहले ही किया गया प्रयास है। नियोजन अनुमान सघनशीलता एवं नवीकरण का सम्मिश्रण है। नियोजन किसी भी कार्य को करने के लिए समयबद्ध दृष्टिकोण है। वह विभिन्न विकल्पों के बीच चुनाव है। उसका एक उद्देश्य है जिसे प्राप्त करना है। इस प्रकार नियोजन कार्य को निश्चित अवधि में पूरा करने का प्रयास है।

उर्विक के अनुसार “नियोजन मूल रूप से कार्यों की सुव्यवस्थित ढंग से करने, कार्य करने से पूर्व उस पर मनन करने तथा कार्य को अनुमानों की तुलना में तथ्यों के आधार पर करने का प्राथमिक रूप में एक मानसिक चिंतन है।”

प्रबंध द्वारा नियोजन प्रक्रिया में निम्नलिखित कदम उठाए जाते हैं-

  • उद्देश्यों का निर्धारण – ये संगठन के उद्देश्य हैं जिसे प्राप्त करना है। इस दिशा में विभागीय योगदान की आशा एवं निर्धारित कर्मचारियों की भूमिका जिसे निर्देश की आवश्यकता है, का निर्धारण करना है।
  • विकसित उपवाद – नियोजन को भविष्य की अनिश्चितता का सामना करना पड़ता है। इसलिए उपवाद भविष्य के घटनाओं का दिशा-निर्देश करता है जिसके आधार पर मूल्यांकन प्रस्ताव तैयार किया जा सकता है।
  • विकल्प की पहचान – उद्देश्य की प्राप्ति के विभिन्न रास्ते हैं। प्रबंध को यह तय करना पड़ता है कि हम अपने उद्देश्यों को बेहतर तरीके से कैसे प्राप्त कर सकते हैं। नवीकरण के रूप में नए विकल्प की खोज भी की जा सकती है।
  • प्रतिफल का मूल्यांकन – निर्धारित उद्देश्यों के दृष्टिकोण से सभी विकल्पों के सकारात्मक एवं नकारात्मक पहलुओं की जाँच की जानी चाहिए। प्रत्येक विकल्प के संभाव्यता एवं परिणाम की भी जाँच की जानी चाहिए।
  • सर्वोत्तम का चुनाव – सभी विकल्पों में से वैसे विकल्प जो लाभदायक हो, सहनीय हो एवं सकारात्मक हो, का चुनाव कर कार्यान्वित किया जाना चाहिए।
  • नियोजन का कार्यान्वयन – यह प्रक्रिया का क्रियान्वयन है अर्थात् नियोजन का कार्यरूप में परिवर्तन।
  • कार्य निष्पादन का अनुकरण – नियोजन प्रक्रिया का अंतिम कदम यह निश्चित करना है कि नियोजन के अनुकुल सभी कार्य निष्पादित किये गये ताकि संगठन के उद्देश्य को प्रभावकारी ढंग से प्राप्त किया जा सके।

प्रश्न 6.
वित्तीय नियोजन क्या है ? वित्तीय नियोजन को प्रभावित करने वाले कौन-कौन-से तत्व हैं ?
उत्तर:
वित्तीय नियोजन का संबंध पूँजी की मात्रा निश्चित करने तथा यह निश्चित करने से है कि कितनी पूँजी स्वामी लगाएँगे तथा कितनी पूँजी अन्य साधनों से ऋण के रूप में प्राप्त की जाऐगी और यदि पूँजी बाजार से एकत्र की जाएगी तो कितनी पूँजी के अंश व ऋण पत्र निर्गमित किये जाएंगे। इनका विस्तृत निर्धारण ही वित्तीय नियोजन है।

ए० एस० डीइंग के शब्दों में, “वित्तीय नियोजन का पूँजीकरण या पूँजी के मूल्यांकन में पूँजी स्कंध (Stock) तथा ऋण पत्रों दोनों को सम्मिलित करते हैं।”

रॉबर्ट जैरट जूरियर (Robert Jerrett Jr.) के अनुसार “व्यापक वित्तीय नियोजन से आशय वित्तीय प्रबंध की समस्त योजनाओं के साथ एकीकरण एवं समन्वय करने से है।”

वित्तीय नियोजन को कुछ विद्वानों ने पूँजीकरण या पूँजी संरचना (Capitalisation or Capital Structure) के नाम से भी पुकारा है।

उपक्रम की वित्तीय नियोजना पर विभिन्न तत्वों का प्रभाव पड़ता है। अतः योजना बनाते समय उन तत्वों पर भली-भाँति विचार कर लेना चाहिए। ऐसे प्रमुख तत्व निम्नलिखित हैं-
1. उद्योग की प्रकृति (Nature of Industry) – वित्तीय नियोजन के निर्माण में उद्योग की प्रकृति अपना निर्णायक मत रखती है। पूँजी-सघन उद्योग के लिए अधिक पूँजी की आवश्यकता होती है और श्रम-सघन उद्योगों के लिए कम पूँजी।

2. जोखिम को मात्रा (Amount of Risks) – अधिक जोखिम वाले उद्योगों को अपनी पूँजी जुटाने के लिए स्वामित्वशील प्रतिभूतियों (Ownership Securities) पर अधिक निर्भर रहना पड़ेगा जबकि कम जोखिम वाले उद्योग ऋण लेकर स्वामियों को समता पर व्यापार (Trading or . Equity) का लाभ दे सकते हैं।

3. औद्योगिक इकाई की प्रस्थिति (Status o Industrial Unit) – इसके अन्तर्गत उपक्रम . की निजी विशेषताएँ जैसे उसकी आयु, आकार, कार्य-क्षेत्र तथा प्रवर्तकों एवं प्रबन्धकों की साख एवं ख्याति आदि तत्व आते हैं। बड़े आकार वाली कम्पनियों को पूँजी जुटाने में अधिक कठिनाई नहीं होती। पुरानी तथा अच्छी साख वाली संस्थाओं में हर विनियोक्ता धन लगाने को तैयार रहता है लेकिन नए प्रवर्तकों को धन एकत्रित्र करने में अधिक कठिनाइयाँ उठानी पड़ती है।

4. विभिन्न वित्ताय साधना का मूल्याकन (Appraisal of atternative Sources or Finance) – जब भी पूँजी का आवश्यकता हो, बाजार में प्रचलित तथा लोकप्रिय प्रतिभूतियों को .देखना चाहिए और उनके अंकित मूल्य, निर्गमन लागत तथा उन्य तथ्यों पर विचार करना चाहिए। यह निश्चित करते समय कि किस-किस साधन से कितना धन एकत्रित करना है। यह भी ध्यान में रखना पड़ेगा कि उस साधन से उस समय धन एकत्रित करने का अनुकूल समय भी है अथवा नहीं।

5. उद्योग के भावी विस्तार की योजनाएँ – यह तत्व भी वित्तीय नियोजन को प्रभावित करने वाले तत्वों में से एक तत्व है। उद्योग के भावी विस्तार की योजनाएँ इनमें बनाई जाती है। जिससे भविष्य में उद्योग को कैसे विस्तार किया जाना है इसकी योजना बनायी जाती है।

6. प्रबंधकों की मनोवृति – यह तत्व भी उद्योग को प्रभावित करने वाले में से एक तत्व है। उद्योगों को कैसे संचालित करना है, यह प्रबन्धकों की मनोवृत्ति पर निर्भर करता है। जितना अच्छा प्रबंधकों की मनोवृति होगी उद्योग का विकास और विस्तार उतना ही तेजी से होगा।

7. बाहरी पूंजी की आवश्यकता – बाहरी पूँजी की आवश्यकता भी वित्तीय नियोजन को प्रभावित करती है। उद्योग में बाहरी पूँजी की आवश्यकता पड़े और इस पूँजी को कहाँ से लाया जाए वित्तीय नियोजन का एक प्रमुख अंग माना जाता है।

8. पूँजी संग्रह के स्रोतों की उपलब्धता – यह तत्व भी वित्तीय नियोजन को प्रभावित करता है। पूँजी को कैसे संग्रह किया जाए और किन-किन स्रोतों से संग्रह किया जाए वित्तीय नियोजन का एक प्रमुख अंग है। उद्योग से जो पूँजी प्राप्त होती है लाभ के रूप में उसे कैसे और किन साधनों से संग्रह किया जाए इसका भी ध्यान रखा जाता है।

9. सरकारी नियंत्रण – सरकारी नियंत्रण तत्व भी वित्तीय नियोजन को प्रभावित करते हैं। उद्योग पर सरकारी नियंत्रण रहना भी आवश्यक है। तभी एक उत्पादक अच्छी किस्म और गुणवत्ता वाली वस्तुओं का उत्पादन कर सकता है इसीलिए किसी भी उद्योग पर सरकारी नियंत्रण रहना भी एक आवश्यक तत्व है।

प्रश्न 7.
विभिन्न द्रव्य बाजार प्रपत्रों की व्याख्या करें।
उत्तर:
मुद्रा बाजार का अर्थ ऐसे बाजार से लगाया जाता है जिसमें अल्पकालीन कोषों में व्यवहार होता है। दूसरे शब्दों में यह कहा जा सकता है कि मुद्रा बाजार उस बाजार को कहा जाता है जहाँ पर अल्पकालीन ऋण लेने व देने का कार्य होता है या अल्पकालीन ऋण उपलब्ध कराये जाते हैं। मुद्रा बाजार एक अत्यन्त सक्रीय स्थान है जिसमें वित्त समस्याएँ अपने सामान्य व्यवसाय अथवा मुख्य व्यवसाय के रूप में तरलता उत्पन्न करने के उद्देश्य से मुद्रा सम्पति का क्रय-विक्रय करते हैं।

मुद्रा बाजार के कई प्रमुख प्रपत्र (Instrument) होते हैं, जैसे- 1. माँग मुद्रा। अल्प सूचना ऋण 2. कोषागार विपत्र। 3. वाणिज्यिक विपत्र। 4. जमा प्रमाण-पत्र तथा 5. वाणिज्यिक पत्र। वास्तव में, भारतीय द्रव्य बाजार या मुद्रा बाजार के विभिन्न प्रपत्र या उपकरण को इस प्रकार स्पष्टः किया जा सकता है।

  1. याचना या माँग मुद्रा (Call money)
  2. अल्प नोटिस मुद्रा (Short Notice money)
  3. सर्वाधिक या मियादी मुद्रा (Term money)
  4. जमा प्रमाण-पत्र (Certificate of Deposit)
  5. वाणिज्यि पत्र (Commercial paper)
  6. मुद्रा बाजार म्युचुअल निधि (Money market mutual fund)
  7. वाणिज्यि बिल (Commercial Bill)
  8. खजाना बिल (Treasure Bill)
  9. अंतर्कारपोरेट विधि (Inter corporate fund)
  10. अंतकॉरपोरेट रेपॉस (Inter corporate repos)

प्रश्न 8.
प्रत्यायोजन से क्या आशय है ? ऐसे किन्ही चार बिंदुओं को समझाइए जो एक संगठन में प्रत्यायोजन के महत्व को उजागर करते हैं।
उत्तर:
प्रत्यायोजन या अधिकार प्रबंधकीय कार्य की कुंजी है। यदि प्रत्यायोजन न हो तो प्रबंधक रह जाता है।

कुन्ट्ज और ओ डेनेल के अनुसार, “प्रत्यायोजन से तात्पर्य वैज्ञानिक या स्तत्वधिकार संबंधी शक्तियों से है।”

दूसरे शब्दों में, “आदेश देने या कार्य करने का स्वत्व ही प्रत्यायोजन है।”
एक प्रबंधक विस्तृत अधिकार प्राप्त करने के कारण ही प्रबंधक कहलाता है। इसीलिए एक प्रबंधक को दिये जाने वाले अधिकार इतनं प्रर्याप्त होने आवश्यक है कि वह उसे संस्था में आवश्यक सममान प्रदान कराने के साथ-साथ दायित्व पूरा करने योग्य बना सके। अधिकार और दायित्व एक-दूसरे पर निर्भर हैं और साथ -साथ चलते हैं। अतः दायित्वों पूरा करने के लिए अधिकार आवश्यक है। साथ ही यहाँ पर भरार्पण का वर्णन करना भी आवश्यक है। भरार्पण का अर्थ अपने अधीनस्थों को निश्चित सीमाओं के अन्तर्गत कार्य करने के लिए अधिकार प्रदान करना है। यह दूसरे से कार्य कराने की कला है। जब किसी उच्च अधिकारी द्वारा अपने अधीनस्थ कर्मचारियों को अधिक मात्रा में अधिकारों को सौंपा जाता है तो वह विकेन्द्रीकरण कहलाता है।

एक संगठन में प्रत्यायोजन का विशेष महत्व होता है जिन्हें निम्नलिखित विचार-बिंदुओं द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है-

  • एक संगठन या संस्था में प्रत्यायोजन का महत्व इसलिए है क्योंकि इसके द्वारा अधिकार अन्तरण होता है। जिससे सारे अधिकार एक ही प्रबंधक और कर्मचारी के बीच नहीं रहता है बल्कि अधिकार का अन्तरण होने से संबंधी कार्य अच्छी तरह से होता है।
  • एक संगठन में प्रत्यायोजन का महत्व इसलिए भी है क्योंकि इसके माध्यम से सभी कर्मचारी अपने कर्तव्यों को अच्छी तरह से निभाते हैं। परिणामस्वरूप संगइन का काम अच्छी तरह से होता है।
  • एक संगठन प्रत्यायोजन का महत्व इसलिए भी है कि इसके माध्यम से संगठन की प्रबंध संबंधी कार्य पूरी कुशलता के साथ होते हैं। परिणामस्वरूप संगठन अपने उद्देश्य को प्राप्त करने में सफल होती है।
  • एक संगठन में प्रत्यायोजन का महत्व इसलिए भी है क्योंकि इसमें अधिकार और कर्तव्य प्रत्येक कर्मचारी का निश्चित हो जाता है और वे इसी अधिकार के अनुसार अपने कर्तव्य को निभाते हैं। परिणामस्वरूप संगठन या संस्था के सभी अधिकारी और कर्मचारी अपना कार्य अच्छी तरह से करते हैं।

प्रश्न 9.
वैज्ञानिक प्रबन्ध के सिद्धान्त का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
टेलर ने एक संगठन को वैज्ञानिक ढंग से संचालित करने के लिये प्रबन्ध के सिद्धान्तों का प्रतिपादन किया। टेलर द्वारा बताये गये वैज्ञानिक प्रबन्ध के आधारभूत सिद्धान्त की व्याख्या नीचे दी गई है-

1. विज्ञान, न कि रूढ़िवादिता (Science, Not Rule of Thumb) – टेलर ने इस बात पर जोर दिया कि संगठन में किया जाने वाला, कार्य वैज्ञानिक अध्ययन द्वारा किया जाना चाहिए न कि अंतःज्ञान (Intuition), अनुभव तथा भूल और सुधार (Hit and Miss) विधियों के आधार पर। क्योंकि जहाँ एक ओर वैज्ञानिक विधियाँ किसी कार्य के सूक्ष्म से सूक्ष्म पहलू को प्रदर्शित करती हैं वहाँ रूढ़िवादिता केवल अनुमान को महत्त्व देती हैं। किसी भी कार्य के विभिन्न पहलुओं की यथार्थता वैज्ञानिक प्रबन्ध का आधारभूत सार है, जैसे एक दिन की उचित मजदूरी का निर्धारण, कार्य का प्रमापीकरण (Standard of Work), मजदूरी भुगतान की विभेदात्मक पद्धति आदि। यह आवश्यक है कि इन सभी का निर्धारण अनुमानों पर आधारित न होकर परिशुद्धता पर आधारित होना चाहिए।

2. समन्वय, न कि मतभेद (Harmony, Not Discord) – टेलर ने इस बात पर जोर दिया कि सामूहिक क्रियाओं में संघर्ष मतभेद के स्थान पर आपस में समन्वय स्थापित करने का प्रयास होना चाहिए। सामूहिक समन्वय इस बात का सुझाव देता है कि आपस में आदान-प्रदान की स्थिति एवं उचित समझ होनी चाहिए ताकि एक समूह व्यक्तियों के योग से अधिक योगदान दे सके। टेलर ने कर्मचारियों एवं प्रबन्धकों दोनों के दृष्टिकोण से सम्पूर्ण मानसिक क्रान्ति (Complete Mental Revolution) का समर्थन किया। टेलर के अनुसार जहाँ एक ओर प्रबन्धकों को प्रबुद्ध ज्ञान (Enlightened Attitude) एवं उत्पादकता के लाभों को कर्मचारियों के साथ बाँटना चाहिए वहाँ दूसरी ओर कर्मचारियों को भी वफादारी एवं अनुशासन के साथ कार्य करना चाहिए।

3. सहयोग, न कि व्यक्तिवाद (Co-operation Not Individualism) – वैज्ञानिक प्रबन्ध अव्यवस्थित व्यक्तिवाद के स्थान पर सहयोग प्राप्त करने से सम्बन्धित होना चाहिए। इस आपसी विश्वास, सहयोग व साख पर आधारित होना चाहिए। प्रबन्धकों एवं कर्मचारियों में आपसी समझ एवं विचारों के द्वारा सहयोग की भावना का विकास किया जा सकता है। टेलर ने सुझाव दिया कि उन कर्मचारियों को जिन्हें वास्तव में इन कार्यों को सम्पन्न करना है प्रमाप तय करते समय शामिल किया जाना चाहिए। इससे उनका योगदान बढ़ेगा और वे इन प्रमापों को पूरा करने का प्रयास करेंगे।

4. प्रत्येक व्यक्ति का उसकी अधिकतम कुशलता एवं सफलता तक विकास (Development of Each and Every Person to Hisekher Greater Efficiency and Prosperity) – इस सिद्धान्त के अनुसार, प्रत्येक व्यक्ति की कुशलता के स्तर पर उससे चयन (Selection) से ही ध्यान दिया जाना चाहिए एवं सभी कर्मचारियों के लिए प्रशिक्षण की उपयुक्त व्यवस्था की जानी चाहिए। इस बात का भी ध्यान रखा जाना चाहिए कि प्रत्येक व्यक्ति को उसकी रुचि एवं योग्यता के अनुसार ही काम सौंपा जाए। इस प्रकार की व्यवस्था किए जाने से कर्मचारियों की कुशलता एवं कार्यक्षमता में वृद्धि होती है जिसका लाभ कर्मचारियों एवं मालिकों दोनों को होता है।

उपरोक्त वर्णन से यह स्पष्ट होता है कि टेलर व्यवसाय के उत्पादन में वैज्ञानिक पद्धति के प्रयोग पर कट्टर समर्थक था।

प्रश्न 10.
प्रबंध की परिभाषा दीजिए। इसके महत्त्व का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
प्रबन्ध की परिभाषा देना यदि असंभव नहीं तो कठिन अवश्य है। विद्वानों ने प्रबन्ध को भिन्न-भिन्न दृष्टिकोणों से परिभाषित किया है। अत: इसकी सर्वमान्य परिभाषा कोई नहीं है। इस सम्बन्ध में ई० एफ० एल० ब्रेच (E.F.L. Brech) तो प्रबन्ध की परिभाषा ही महसूस नहीं करते। उनका मानना है कि महत्त्व प्रबन्ध का है न कि उसकी परिभाषा का। प्रबन्ध की कुछ महत्त्वपूर्ण परिभाषाएँ इस प्रकार हैं-

1. स्टेनले वेन्स (Stanley Vance) के शब्दों में, “प्रबन्ध केवल निर्णय लेने एवं मानवीय क्रियाओं पर नियंत्रण रखने की विधि है जिससे पूर्व निश्चित लक्ष्यों की प्राप्ति की जा सके।”

स्टेनले वेन्स द्वारा दी गई परिभाषा की व्याख्या – उपरोक्त परिभाषा की व्याख्या करने प्रबन्ध के संबंध में निम्न तीन बातें स्पष्ट होती हैं-

  • प्रबन्ध निर्णय लेने की एक प्रक्रिया है;
  • प्रबन्ध मानवीय क्रियाओं पर नियन्त्रण रखने की विधि है एवं
  • प्रबन्धकीय क्रियाएँ पूर्व निर्धारित लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए की जाती हैं।

2. कन्टज तथा ओ’डोनेल (Koontz and O ‘Donnell) के शब्दों में, “प्रबन्ध का कार्य अन्य व्यक्तियों द्वारा उनके साथ मिलकर काम करना है।”

कून्ट्ज़ की परिभाषा का यदि विश्लेषण किया जाए तो उससे निम्न बातें सामने आती हैं : (i) प्रबन्ध एक कला है; (ii) प्रबन्ध का उद्देश्य कार्य को पूर्ण कराना है; एवं (iii) प्रबन्ध का कार्य दूसरे व्यक्तियों के साथ मिलकर कार्य करना व उनसे कार्य लेना है।

वास्तव में प्रबन्ध के सभी कार्य स्वयं कार्य करने व दूसरों से कार्य कराने से ही संबंधित होते हैं। यद्यपि प्रबन्ध की उपरोक्त विचारधारा में कुछ दोष भी है।

जैसे (i) प्रबन्ध केवल कला ही नहीं है; (ii) प्रबन्ध केवल कर्मचारियों का ही प्रबन्ध न : है एवं (iii) प्रबन्ध जोर-जबरदस्ती करना नहीं है।

3. प्रो० जॉन एफ० मी के अनुसार, “प्रबन्ध से तात्पर्य न्यूनतम प्रयास के द्वारा अधिकतः परिणाम प्राप्त करने की कला से है, जिससे नियोक्ता एवं कर्मचारी दोनों के लिए अधिकतम समृद्धि तथा जन-समाज के लिए सर्वश्रेष्ठ सेवा संभव हो सके।”

यह परिभाषा प्रबन्धकों के सामाजिक उत्तरदायित्व की ओर संकेत करती है। अधिकांश विद्वानों ने प्रबन्ध की परिभाषा इस प्रकार दी है-

4. जार्ज आर टैरी (George R. Terry) के अनुसार, “प्रबन्ध एक पृथक् प्रक्रिया है जिसमें नियोजन, संगठन, क्रियान्वयन तथा नियंत्रण को सम्मिलित किया जाता है तथा इनका निष्पादन व्यक्तियों एवं साधनों के उपयोग द्वारा उद्देश्यों को निर्धारित एवं प्राप्त करने के लिए किया जाता है।”

उपरोक्त परिभाषा से प्रबन्ध के निम्न लक्षण स्पष्ट होते हैं-

  • प्रबन्ध एक पृथक् प्रक्रिया है;
  • प्रबन्ध के अंतर्गत नियोजन, संगठन, क्रियान्वयन एवं नियंत्रण को शामिल किया जाता है;
  • इसमें व्यक्तियों व साधनों का उपयोग किया जाता है एवं
  • प्रबन्ध का उपयोग उद्देश्यों को निर्धारित व प्राप्त करने के लिए किया जाता है।

5. टर एफ० ड्रकर (Peter F. Drucker) के अनुसार, “प्रबन्ध एक बहुउद्देश्यीय तन्त्र है जो व्यवसाय का प्रबन्ध करता है तथा प्रबन्धकों का प्रबन्ध करता है और कार्य वालों एवं कार्य का. प्रबन्ध करता है।”

स्वयं कार्य करने की बजाय प्रबन्धक दल दूसरों के कार्यों का समन्वय करता है।
पीटर एफ० ड्रकर द्वारा दी गई परिभाषा की व्याख्या से निम्न लक्षण स्पष्ट होते हैं-

  • प्रबन्ध एक बहुउद्देश्यीय तन्त्र है;
  • यह व्यवसाय का प्रबन्ध करता है;
  • प्रबन्ध प्रबन्धकों का भी प्रबन्ध करता है एवं
  • प्रबन्ध कार्य करने वाले और कार्य दोनों का प्रबन्ध करता है।

इस दृष्टिकोण से प्रबन्धकीय वर्ग के महत्त्व का पता चलता है किन्तु प्रबन्ध के कार्यों या तत्त्वों का ज्ञान नहीं होता।

6. हेनरी फेयोल (Henry Fayol) का कथन है, “प्रबन्ध का अर्थ पूर्वानुमान लगाना, योजना बनांना, संगठन करना, निर्देश देना, समन्वय करना और नियंत्रण करना है।”

7. लारेंस ए० एप्ले (Lawrence A. Appley) का कथन है कि “प्रबन्ध व्यक्तियों के विकास से संबंधित है न कि वस्तुओं के निर्देशन से।” प्रबन्ध का यह दृष्टिकोण भी प्रबन्ध का सही अर्थ स्पष्ट नहीं कर पाता।

8. सी. डब्ल्यू. विल्सन के अनुसार, “निश्चित उद्देश्यों की प्राप्ति हेतु मानवीय शक्ति का प्रयोग एवं निर्देशित करने की विधि प्रबन्ध कहलाती है।”

प्रबन्ध का महत्त्व (Importance of Management) – किसी भी संस्था में चाहे वह बड़ी हो अथवा छोटी, व्यावसायिक हो अथवा गैर- व्यावसायिक सामूहिक प्रयत्नों के द्वारा सामान्य उद्देश्यों की पूर्ति की जाती है। इन प्रयत्नों में आवश्यक सामंजस्य स्थापित करना संस्था की सफलता के लिए आवश्यक है। वास्तव में सामंजस्य स्थापित करना प्रबन्ध का कार्य है। जिस प्रकार मस्तिष्क के बिना मानव शरीर एक अस्थि पिंजर है। उसी प्रकार प्रबन्ध के बिना कोई संस्था पूँजी व श्रम का निष्क्रिय समूह है।

व्यवसाय में प्रबन्ध का और भी अधिक महत्त्व है। व्यवसाय एक आर्थिक क्रिया है जिसमें विभिन्न साधनों के प्रयोग से उत्पादन और विपणन (Marketing) किया जाता है। इनके समुचित प्रवाध के द्वारा ही व्यावसायिक क्रियाओं को सफलतापूर्वक सम्पन्न किया जा सकता है। पीटर एफ ड्रकर (Peter F. Drucker) के अनुसार, “प्रबन्ध प्रत्येक व्यवसाय का गतिशील, जीवनदायिनी तत्व है, इसके नेतृत्व के बिना उत्पादन के साधन केवल साधन ही रह जाते हैं, वे कभी उत्पादन नहीं बन पाते।” प्रो. रोबिन्सन के शब्दों में, “कोई भी व्यवसाय स्वयं नहीं चल सकता, चाहे वह संवेग की स्थिति में ही क्यों न हो, इसके लिए इसे नियमित उद्दीपन की आवश्यकता पड़ती है।”

यह उद्दीपन व्यवसाय को प्रबन्ध प्रदान करता है। ठीक उसी प्रकार जिस प्रकार मानव शरीर मस्तिष्क के अभाव में हाड़-मांस का एक पुतला है, उसी प्रकार व्यवसाय प्रबन्ध के बिना निष्क्रिय रहता है। वास्तव में प्रबन्ध संगठन को शक्ति देता है। ई० एफ० एल० बेच के विचार में दोष-रहित प्रबन्ध ही मानवीय एवं भौतिक साधनों के उपयोग से कम प्रयल द्वारा अधिक उत्पादन (More production with less efforts) को संभव बनाता है। दूसरी ओर पीटर एफ० ड्रकर ने तो यहाँ तक कहा है कि प्रबन्ध के बिना उत्पादन के साधन सिर्फ साधन ही रह जाते हैं, उत्पादन नहीं बन पाते।

प्रबन्ध, व्यवसाय के लक्ष्यों को इनकी प्राप्ति की सही योजना बनाकर निर्देशित, नियन्त्रित तथा समन्वित प्रयासों के द्वारा प्राप्त करने में सहायता प्रदान करता है। प्रबन्ध के प्रयत्न सदैव कम मूल्य पर अधिक उत्पादन करना होता है। उर्विक के शब्दों में, “कोई भी आदर्श, कोई भी वाद अथवा राजनीतिक सिद्धांत मानवीय एवं माल संबंधी मिश्रित प्रकृति के साधनों से अधिकतम उत्पादन नहीं करा सकता। ऐसा केवल कुशल प्रबन्ध से ही संभव है।” वर्तमान में किसी देश के आर्थिक एवं औद्योगिक विकास का आधार पूँजी निर्माण को न माना जाकर प्रबन्धकीय प्रतिभा को माना जाता है। अतएव कुन्दन एवं ओ’डोनेल के इस कथन में कोई अतिश्योक्ति नहीं है कि “शायद प्रबन्ध से अधिक महत्त्वपूर्ण मानव क्रिया का कोई और क्षेत्र नहीं है।” प्रबन्ध के इस बढ़ते हुए महत्त्व का अध्ययन निम्न शीर्षकों के अंतर्गत किया जा सकता है-

1. प्रबन्ध सामूहिक उद्देश्यों को प्राप्त करने में सहायक (Management helps in achieving group goals) – प्रबन्ध की आवश्यकता प्रबन्ध के लिये ही नहीं वरन् संगठन के उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिये भी होती है। प्रबन्ध का कार्य संगठन के विभिन्न उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिये व्यक्तिगत प्रयत्न को समान दिशा उपलब्ध कराना है।

2. प्रबन्ध से कुशलता बढ़ती है (Management increases efficiency) – किसी भी संगठन की सफलता के लिये उद्देश्यों को कुशलता एवं प्रभावपूर्णता से प्राप्त किया जाना आवश्यक है। प्रबन्ध एक ऐसी शक्ति है जो संस्था में उपलब्ध संसाधनों का अनुकूलतम उपयोग (Optimum use) करके इसे सम्भव बनाती है। कुशलता को सुनिश्चित करने के लिये प्रबन्ध लागतों को न्यूनतम (Minimum) करने की चेष्टा करता है। प्रभावपूर्णता को प्राप्त करने के लिये सही निर्णय लेकर काम को समय पर पूरा किया जाता है। प्रबन्ध के द्वारा बदलते वातावरण पर कड़ी निगरानी रखना भी कुशलता (Efficiency) एवं प्रभावपूर्णता (Effectiveness) की प्राप्ति में सहायक होता है।

3. प्रबन्ध गतिशील संगठन तैयार करता है (Management creates a dynamic organisation) – प्रत्येक संगठन का प्रबन्ध निरन्तर बदल रहे पर्यावरण के अन्तर्गत करना होता है। सामान्यतया देखा गया है कि किसी भी संगठन में कार्यरत लोग परिवर्तन का विरोध करते हैं क्योंकि इसका अर्थ होता है परिचित (Familiar), सुरक्षित पर्यावरण से नवीन एवं अधिक चुनौतीपूर्ण पर्यावरण की ओर जाना। प्रबन्ध व्यक्तियों को इन परिवर्तनों को अपनाने में सहायक होता है ताकि संगठन अपनी प्रतियोगी श्रेष्ठता (Competitive edge) को बनाये रखने में सफल रहे।

4. प्रबन्ध व्यक्तिगत उद्देश्यों को प्राप्त करने में सहायक है (Management helps in achieving personal objectives) – प्रबन्धक अपनी टीम को इस प्रकार से प्रोत्साहित करता है कि प्रत्येक सदस्य संगठन के उद्देश्यों में अपना योगदान देते हुए व्यक्तिगत उद्देश्यों को प्राप्त कर सके। अभिप्रेरणा (Motivation) एवं नेतृत्व (Leadership) के माध्यम से प्रबन्ध व्यक्तियों को टीम–भावना, सहयोग एवं सामूहिक सफलता के प्रति प्रतिबद्धता के विकास में सहायता प्रदान करता है।

5. व्यक्तियों/समाज के विकास के लिए:Development of People/Society) – प्रवन्ध व्यक्तियों की कार्यकुशलता में वृद्धि करता है और उनका सर्वांगीण विकास करता है । लॉरेन्स एं० एप्पले ने ठीक ही कहा है, “प्रबन्ध व्यक्तियों का विकास है, न कि वस्तुओं का निर्देशन…….” वास्तव में प्रबन्ध की समस्त क्रियाएँ मानवीय विकास से संबंधित होती हैं। कुशल प्रबन्ध निर्धारित लक्ष्यों की प्राप्ति और व्यक्तियों का विकास करने के लिए लक्ष्यों का निर्धारण करते हैं, इनकी प्राप्ति के लिए प्रयास करते हैं, कर्मचारियों की भर्ती एवं उनके प्रशिक्षण इत्यादि की व्यवस्था करते हैं, उनका निर्धारित लक्ष्य की ओर मार्ग प्रशस्त करते हैं, उन्हें प्रबन्ध एवं लाभ में हिस्सा प्रदान करते हैं और उनके जीवन स्तर को ऊँचा उठाते हैं। अतः हम कह सकते हैं कि व्यक्तियों के विकास में प्रबन्ध का अत्यंत महत्त्व है।

अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य (Some other important facts)-

6. न्यूनतम प्रयत्नों द्वारा अधिकतम परिणामों की प्राप्ति के लिए (To obtain maximum results with minimum efforts)-प्रबन्ध न्यूनतम प्रयत्नों के द्वारा अधिकतम परिणामों की प्राप्ति सम्भव बनाता है। प्रबन्ध निर्धारित लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु उत्पादन के विभिन्न साधनों में प्रभावपूर्ण समन्वय स्थापित कर न्यूनतम प्रयासों से अधिकतम परिणामों की प्राप्ति सम्भव बनाता है। प्रबन्ध के महत्त्व को स्वीकार करते हुए उर्विक एवं ब्रेच (Urwick and Brech) ने एक स्थान पर लिखा है कि, “कोई भी विचारधारा, कोई भी वाद, कोई भी राजनीतिक सिद्धान्त उपलब्ध मानवीय एवं भौतिक साधनों के उपयोग से न्यूनतम प्रयत्नों द्वारा अधिकतम उत्पादन की प्राप्ति नहीं कर सकता। यह तो सुदृढ़ प्रबन्ध द्वारा ही संभव है और अधिक उत्पादन द्वारा ही व्यक्तियों का जीवन-स्तर ऊँचा उठ सकता है, व्यक्तियों का जीवन आरामदायक हो सकता है और व्यक्ति अनेक सुविधाएँ प्राप्त कर सकते हैं।” वास्तव में प्रबन्ध संस्था के उपलब्ध साधनों में उपयुक्त समन्वय स्थापित कर मनुष्यों का विकास करता है।

7.कटु प्रतिस्पर्धा का सामना करने के लिए (To face cut-throat competition) – वर्तमान में उत्पादन केवल स्थानीय, राज्यीय एवं अन्तर्राज्यीय आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए ही नहीं अपितु अंतर्राष्ट्रीय आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए भी किया जाता है। अतः जैसे-जैसे उत्पादन के पैमाने में वृद्धि हो रही है और बाजारों का विकास हो रहा है त्यों-त्यों प्रतिस्पर्धा बढ़ रही है। इस गलाकाट प्रतिस्पर्धा के युग में वही उद्योगपति टिक पाता है जो न्यूनतम लागत पर अधिकतम उत्पादन करने में सफल हो पाता है। इस स्थिति से प्रबन्ध ही उसको बाहर निकाल सकता है। अच्छे एवं कुशल प्रबन्ध में दूरदर्शिता, योजनाओं के निर्माण की क्षमता, क्रियाओं के निर्धारण की क्षमता, सामूहिक प्रयासों में समन्वय स्थापित करने की क्षमता, देश की आर्थिक स्थिति का सही मूल्यांकन करने की क्षमता, ग्राहकों की रुचि का अध्ययन करने की क्षमता आदि होती है।

8. तकनीकी एवं वैज्ञानिक अनुसंधान का लाभ उठाना (To get advantage of technical and scientific research) – वैज्ञानिक एवं तकनीकी सुधारों से जहाँ एक ओर भूमि का उत्पादन संभव हुआ है वहीं दूसरी ओर उत्पादन की विधियों में भी आमूल-चूल परिवर्तन हुआ है जो काम पहले हाथ से किया जाता था उसे अब स्वचालित मशीनें करती हैं। विज्ञान एवं तकनीकी विकास ने जहाँ एक ओर कार्यविधियों को सरल किया है वहाँ दूसरी ओर अनेक समस्याओं को जन्म भी दिया है। इन समस्याओं का समाधान करने के लिए तथा वैज्ञानिक एवं तकनीकी परिवर्तनों को लागू करने के लिए योग्य एवं अनुभवी प्रबन्ध की आवश्यकता रही है। कुशल प्रबन्धक द्वारा ही इन्हें लागू किया जा सकता है।

प्रश्न 11.
संगठन के महत्त्व अथवा लाभों का वर्णन कीजिए।
अथवा, संगठन की प्रकृति एवं उद्देश्यों का वर्णन करें।
उत्तर:
संगठन का महत्त्व इसी बात से जाना जा सकता है कि इसके बिना कोई भी संस्था अपने उद्देश्यों की प्राप्ति नहीं कर सकती। किसी भी संस्था की योजना तभी सफल हो सकती है जबकि एक मजबूत संगठन द्वारा इसके कर्मचारियों की सेवाओं का अधिकतम लाभ उठाया जा सके।

लौन्सबरी फिश (Lounsbury Fish) के अनुसार, “संगठन की उपयोगिता चार्ट से कहीं अधिक होती है। यह वह तन्त्र है जिसकी सहायता से प्रबन्ध, व्यवसाय संचालन, समन्वय तथा नियन्त्रण करता है। यह वास्तव में प्रबन्ध की आधारशिला है। यदि संगठन की योजना में कोई दोष रह जाता है तो प्रबन्ध व्यवस्था का कार्य कठिन एवं प्रभावहीन हो जाता है। इसके विपरीत यदि वह विद्यमान आवश्यकताओं की पूर्ति करने के लिए स्पष्ट तर्कसंगत एवं पूर्व नियोजित हो तो समझना चाहिए कि स्वस्थ प्रबन्ध की प्राथमिक आवश्यकता की प्राप्ति की जा चुकी है।”

अमेरिका के एण्ड्रयू कारनेगी (Andrew Carnegie) ने संगठन के महत्त्व को बहुत सुन्दर शब्दों में व्यक्त किया है, “मुझसे मेरे सब कारखाने, सब व्यापार, परिवर्तन के सभी साधन तथा सारा धन ले लो, परन्तु मेरे संगठन को मेरे पास ही छोड़ दो तो मैं चार वर्षों के अन्दर स्वयं को पुनः स्थापित कर लूँगा।”

अतः स्पष्ट है कि एक कुशल व सक्षम संगठन उद्देश्य प्राप्ति के लिए मानवीय सहयोग का वह सर्वश्रेष्ठ उपकरण है जो उद्योग, समाज, राष्ट्र तथा समस्त विश्व को गति प्रदान करता है। संगठन का महत्त्व निम्नलिखित विशेषता से स्पष्ट हो जाता है-

1.विशिष्टीकरण का लाभ (Benefits of specialisation) – संगठन कर्मचारियों में विभिन्न क्रियाओं को उनकी योग्यता एवं कार्य-क्षमता के अनुसार बाँटने में मार्गदर्शक का कार्य करता है। कर्मचारियों के द्वारा एक ही कार्य को लगातार करते रहने से काम का बोझ कम हो जाता है एवं उत्पादन की मात्रा बढ़ जाती है। लगातार एक ही कार्य को करते रहने से कर्मचारी उस कार्य को करने का विशिष्ट अनुभव प्राप्त कर लेते हैं एवं उस कार्य को करने में दक्षता प्राप्त कर लेते हैं।

2. कार्य सम्बन्धों में स्पष्टता (Clarity in working relationship) – कार्य करने में सम्बन्धों का स्पष्टीकरण सम्प्रेषण को स्पष्ट करता है तथा किसने किसको रिपोर्ट करनी है इस बात को एक-एक करके बतलाता है। यह सूचना एवं अनुदेशों के स्थानान्तरण (Ambiguity in transfer) में भ्रमों को दूर करता है। यह सोपानिक क्रम (Hierarchical order) के निर्माण में सहायता करता है ताकि उत्तरदायित्व को निर्धारित किया जा सके एवं एक व्यक्ति के द्वारा किस सीमा तक अधिकारों का अन्तरण (Delegation of authority) किया जा सकता है, इसका स्पष्टीकरण करता है।

3. संसाधनों का अनुकूलतम उपयोग (Optimum utilisation of resources) – संगठन प्रक्रिया के अन्तर्गत कुल काम को अनेक छोटी-छोटी क्रियाओं में विभाजित कर दिया जाता है। प्रत्येक क्रिया एक अलग कर्मचारी के द्वारा की जाती है। ऐसा करने से न तो कोई क्रिया करने से रह जाती है और न ही किसी क्रिया को अनावश्यक रूप से दो बार किया जाता है। परिणामतः संगठन में उपलब्ध सभी संसाधनों जैसे-मानव, माल, मशीन आदि का अनुकूलतम उपयोग (optimum use) सम्भव हो पाता है।

4. परिवर्तन में सविधा (Adaptation to change) – संगठन प्रक्रिया व्यावसायिक इकाइयों को व्यावसायिक पर्यावरण (Business environment) परिवर्तनों में समायोजित होने की अनुमति प्रदान करता है। यह संगठन संरचना में प्रबन्धकीय स्तर का उपयुक्त परिवर्तन एवं आपसी सम्बन्धों के संशोधनों में पारगमन (Inter-relationship) का मार्ग प्रशस्त करता है। यह संगठन परिवर्तनों के बावजूद भी जीवित रहने तथा उन्नति करते रहने सम्बन्धी, आवश्यकता की पूर्ति करता है।

5. प्रभावी प्रशासन (Effective administration) – प्रायः देखा गया है कि प्रबन्धकों में अधिकारों को लेकर भ्रम की स्थिति बनी रहती है। संगठन प्रक्रिया प्रत्येक प्रबन्धक द्वारा की जाने वाली विभिन्न क्रियाओं एवं प्राप्त अधिकारों का स्पष्ट उल्लेख करती है। यह भी स्पष्ट कर दिया जाता है कि प्रत्येक प्रबन्धक किस कार्य को करने के लिए किसको आदेश देगा। प्रत्येक कर्मचारी को इस बात की जानकारी होती है कि वह किसके प्रति उत्तरदायी है ? इस प्रकार अधिकारों को लेकर उत्पन्न होने वाले भ्रम की स्थिति समाप्त हो जाती है परिणामतः प्रभावी प्रशासन सम्भव हो पाता है।

6. कर्मचारियों का विकास (Development of personnel) – संगठन प्रक्रिया के अन्तर्गत अधिकार अन्तरण (Delegation of authority) किया जाता है। ऐसा एक व्यक्ति की सीमित क्षमता के कारण ही नहीं वरन् काम को करने की नई-नई विधियों की खोज करने के कारण भी किया जाता है। इसमें अधीनस्थों को निर्णय लेने के अवसर प्राप्त होते हैं। इस स्थिति का लाभ उठाते हुए वे नई-नई विधियों को खोज करते हैं एवं उन्हें लागू करते हैं, परिणामतः उनका विकास होता है। .

7. विस्तार एवं विकास (Expansion and growth) – संगठन प्रक्रिया के अन्तर्गत कर्मचारियों को प्राप्त निर्णय-स्वतन्त्रता (Freedom to take decisions) से उनका विकास होता है। वे नई-नई चुनौतियों को स्वीकार करने के लिए अपने-आप को तैयार करने में सक्षम हो पाते हैं। इस स्थिति का लाभ प्राप्त करने के लिए वे उपक्रम का विस्तार करते हैं। विस्तार से ाभ कमाने की क्षमता बढ़ती है जो उपक्रम के विकास में सहायक होती है।

संगठन को उपयोगिता स्पष्ट करते हुए सी. कैनेथ ने एक स्थान पर कहा है, “एक कमजोर संगठन अच्छे उत्पादन को मिट्टी में मिला सकता है और एक अच्छा संगठन जिसका उत्पाद. कमजोर है, अच्छे उत्पाद को भी बाजार से भगा सकता है।”

प्रश्न 12.
प्रबंध में पर्यवेक्षण से क्या आशय है ? संक्षेप में पर्यवेक्षक की भूमिका स्पष्ट करें।
उत्तर:
पर्यवेक्षण का अर्थ – वर्तमान समय में पर्यवेक्षण का प्रबंध में महत्वपूर्ण स्थान है। पर्यवेक्षण वह कृत्य है जिसके द्वारा एक व्यक्ति अपने अधीनस्थ कर्मचारियों के कार्य की उचित रूप से देखभाल एवं उनका मार्गदर्शन करता है जो व्यक्ति इस प्रकार देखभाल करता है उसे हम पर्यवेक्षक तथा कार्य की देखभाल की क्रिया को पर्यवेक्षण कहते हैं। इस व्यक्ति को निम्नलिखित में से किसी भी नाम से पुकारा जा सकता है-

ओवरसियर, चार्जमैन, फोरमैन अथवा मुख्य लिपिक।

प्रमुख परिभाषाएँ (Important Definitions) – पर्यवेक्षण की परिभाषा विभिन्न विद्वानों ने इस प्रकार दी है-
वाइटल्स के अनुसार, “पर्यवेक्षण से आशय किसी कार्य के निष्पादन में कार्य करने वाले कर्मचारियों को प्रत्यक्ष एवं तुरंत परामर्श दिये जाने और उन पर नियंत्रण स्थापित करने से है।” (According to Viteles, “Supervision refers to the direct the immediate guidance and control of subordinates in the performance of their task.”)

आर० सी० डेविस के अनुसार, “पर्यवेक्षण क्रिया द्वारा यह विश्वास किया जाता है कि जो भी कार्य हो रहा है वह किसी योजना एवं निर्देशों के आधार पर ही हो रहा है।” (According to R. C. Davis. “Supervision is the function of assuring that the work is being done is accordance with the plan and instructions.”)

एक अमरीकन श्रम अधिनियम के अनुसार, “पर्यवेक्षक वे व्यक्ति हैं जिन्हें कर्मचारियों का चुनाव करने, निकालने, अनुशासन, पारिश्रमिक और इनसे संबंधित अन्य कार्यों के बारे में निर्णय लेने का अधिकार है।” (According to an American Labour law, “Supervisor are those having authority to exercise independent judgement in hiring, discharging, discipline, rewarding and taking other actions of a similar nature with respect to employees.”)

अत: हम कह सकते हैं कि पर्यवेक्षण का मुख्य काम नेतृत्व करना, प्रेरणा देना, मार्ग दर्शन करना और श्रम एवं प्रबंध के मध्य समस्याओं को हल करना होता है।

किसी भी व्यावसायिक संस्था में पर्यवेक्षक को निम्नलिखित भूमिका होती है-

  • कर्मचारियों एवं मालिकों के बीच की कड़ी (A link between workers and Management) – पर्यवेक्षक दोनों के मध्य एक कड़ी का कार्य करता है। श्रमिकों के सुझाव एवं शिकायतें इसी के माध्यम से बड़े अधिकारियों तक पहुँचाती हैं तथा बड़े अधिकारियों के आदेश व निर्देश भी इसी के द्वारा श्रमिकों तक पहुँचाए जाते हैं।
  • प्रेरणा देना (Motivation) इसका प्रमुख कार्य अपने विभाग में, कर्मचारियों को समय-समय पर अधिकाधिक काम करने की प्रेरणा देना होता है।
  • मधुर औद्योगिक संबंध (Better Industrial Relations) – पर्यवेक्षक मालिकों एवं श्रमिकों के मध्य संबंध बनाये रखने में विशेष भूमिका प्रदान करता है, जिसके कारण अनेक झगड़े व विवाद अपने स्तर पर ही निपटा लेता है।
  • कर्मचारियों की कार्यकुशलता में वृद्धि करता है।
  • कर्मचारियों को एक टीम के रूप में संगठित करके उनकी कार्यक्षमता का पूरा-पूरा प्रयोग करता है।
  • कर्मचारियों में आत्मविश्वास एवं संतोष पैदा करता है।
  • कर्मचारियों में अनुशासन, समन्वय तथा संतुलन पैदा करता है।
  • अधीनस्थों का मनोबल ऊँचा करता है।

प्रश्न 13.
उद्यमिता से आप क्या समझते हैं ? उद्यमिता की किन्हीं तीन आवश्यकताओं का वर्णन करें।
उत्तर:
1. उद्यमिता का आशय है तीव्र गति से आर्थिक एवं सामाजिक विकास के लिए . विभिन्न साधनों की प्रभावपूर्ण गतिशीलता है। यह बेहतर जीवन स्तर प्राप्त करने की प्रक्रिया है।

2. विकास की प्रक्रिया मुख्यतः व्यावसायिक गृहों द्वारा प्रारंभ किया जाता है जो लाभप्रद विकास का दोहन करता है। उद्यमिता आर्थिक व व्यावसायिक विचारों, अवसरों व प्रस्तावों को व्यावसायिक परियोजना में परिवर्तित करता है। यह ज्ञान को नीति में बदलता है।

3. उद्यमिता नियोजन, संगठन, परिचालन तथा व्यावसायिक उपक्रम के जोखिमों को ग्रहण करने की प्रक्रिया है।

4. उद्यमिता सृजनात्मक एवं नव-प्रवर्तनीय विचारों एवं कार्यों को प्रबंधकीय तथा संगठनात्मक ज्ञानों को एक साथ लाने की प्रक्रिया है। यह चिह्नित आवश्यकता को पूरा करने के लिए उचित लोगों, मुद्रा एवं संचालन संसाधनों को गतिशील बनाने तथा धन के निर्माण के लिए आवश्यक है।

5. उद्यमिता विकास है- (a) व्यावसायिक उपक्रम के निर्बाध संचालन के लिए प्रशासकीय ज्ञान का। (b) कार्य-कुशलता बनाये रखने के लिए प्रशासकीय ज्ञान का। (c) संगठन को पर्यावरण/ वातावरण के साथ संबंधित करने के लिए सृजनात्मक चतुराई/नव-प्रवर्तनीय ज्ञान का।

6. उद्यमिता एक सामूहिक प्रयास है जो चतुराई ज्ञान, क्षमता द्वारा व्यवसाय को प्रारंभ करने एवं इसके संचालन में सहायक होता है। आज के इस वाणिज्य-व्यवसाय वाले युग में उद्यमिता की बहुत अधिक आवश्यकता है। उद्यमिता की तीन आवश्यकता इस प्रकार है-

  • धन सजित करने में- उद्यमिता की आवश्यकता धन को सृजित करने में होती है। उद्यमिता के विकास से रोजगार का अवसर बढ़ता है। परिणामस्वरूप धन का सृजन होता है।
  • रोजगार के अवसर को बढ़ावा देने में- उद्यमिता की आवश्यकता रोजगार को बढ़ावा देने में होती है। उद्यमिता के विकास से रोजगार का अवसर बढ़ता है। परिणामस्वरूप लोगों का जीवन-स्तर सुधरता है।
  • नयी तकनीक को बढावा देने में-उद्यमिता की आवश्यकता नयी तकनीक को बढ़ावा देने में भी होती है। उद्यमिता का विकास होने से नयी-नयी तकनीक का विकास होता है। नयी-नयी तकनीक का विकास होने से किसी भी देश को उन्नति को राह खुलती है। परिणामस्वरूप देश का आर्थिक विकास होता है।

प्रश्न 14.
“मनुष्यों को केवल मौद्रिक प्रोत्साहन द्वारा ही अभिप्रेरित नहीं किया जा सकता, उन्हें अभिप्रेरित करने के लिए अमौद्रिक अभिप्रेरकों की भी आवश्यकता है।” इस संदर्भ में अमौद्रिक अभिप्रेरकों की व्याख्या करें।
उत्तर:
यह कथन बिल्कुल सत्य है कि मनुष्यों को केवल मौद्रिक प्रोत्साहन द्वारा ही अभिप्रेरित नहीं किया जा सकता; उन्हें अभिप्रेरित करने के लिए अमौद्रिक अभिप्रेरकों की भी आवश्यकता होती है।

अमौद्रिक अभिप्रेरणा के अंतर्गत श्रमिक को अधिक धन नहीं दिया जाता है, बल्कि पदोन्नति के अवसर, नौकरी की सुरक्षा, सम्मान एवं प्रशंसा प्रदान की जाती है। इस प्रकार अमौद्रिक अभिप्रेरणा के अन्तर्गत वे सभी साधन आ जाते हैं जो श्रमिक को प्रत्यक्ष रूप से अधिक धन प्रदान नहीं करते, चाहे अप्रत्यक्ष रूप से उसे वित्तीय लाभ हो रहा है।

माओ (Mayo) के विभिन्न अध्ययन से स्पष्ट होता है कि अधिक उत्पादन के लिए श्रमिक को अधिक धन के बजाय मनुष्य जैसा व्यवहार प्रदान करना अधिक महत्त्वपूर्ण तथा प्रभावकारी रहता है। 1924 और 1932 के मध्य अमेरिका की Western Electric Company के Hawthern Plant में किये गये विभिन्न अनुसंधानों ने यह प्रमाणित कर दिया है कि श्रमिक केवल अधिक धन ही नहीं चाहते बल्कि धन के अतिरिक्त अन्य बहुत से तत्त्व भी हैं जो उन्हें कार्य के लिए प्रेरित करते हैं। इनमें से प्रमुख अभिप्रेरणा निम्नलिखित हैं-

(i) दण्ड (Punishment) – इस प्रेरणा के अन्तर्गत कर्मचारियों को डराकर कार्य लिया जाता है। श्रमिकों को नौकरी से हटाने का भय, पदावनति का भय, डाँट-फटकार का भय दिखाकर कार्य लिया जाता है।

(ii) प्रशंसा (Praise) – प्रत्येक व्यक्ति अच्छे कार्यों के लिए चाहता है कि लोग उसकी प्रशंसा करें। श्रमिक भी चाहता है कि प्रबंधक उसकी प्रशंसा करे। प्रशंसा के उचित प्रयोग द्वारा भी कर्मचारियों को अधिक कार्य के लिए प्रोत्साहित किया जा सकता है।

(iii) सुझाव विधि (Suggestion System) – विभिन्न विश्वविद्यालयों में किये गये अध्ययन स्पष्ट करते हैं कि जो प्रबंधक कार्य करने से पहले कर्मचारियों की सलाह लेता है वह अधिक कार्यकुशल होता है तथा जो नहीं लेता वह कम। इस रूप में कर्मचारियों को पारस्परिक हित के मामलों में सलाह का अधिकार देकर उनकी कार्यकुशलता बढ़ाई जा सकती है।

(iv) नौकरी की सुरक्षा (Security of Job) – अस्थायी नौकरी करने वाला व्यक्ति पूर्ण कार्यकुशलता से कार्य नहीं कर सकता क्योंकि उसे नहीं मालूम होता कि कब उस नौकरी को छोड़कर अन्यत्र जाना पड़े। नौकरी को स्थायित्व प्रदान कर कर्मचारी को हृदय से कार्य के लिए प्रेरित किया जा सकता है।

(v) परिणाम का ज्ञान (Knowledge of Result) – N. Norwel द्वारा किये गये अध्ययन से स्पष्ट हो गया है कि एक श्रमिक जिसे कार्य की प्रगति, अच्छाई या बुराई बतला दी जाती है, उसकी कार्यकशलता उनकी तलना में अधिक होती है जिन्हें उनके कार्य की प्रगति नहीं बतलाई जाती है। इस रूप में कर्मचारियों को उनके कार्य के परिणाम बतला कर सुधार करने तथा अधिक उत्पादन करने के लिए प्रेरणा दी जा सकती है।

(vi) मुकाबला एवं प्रतियोगिता (Competition and Contest) – कर्मचारियों के मध्य प्रतियोगिता कराकर अच्छा कार्य करने वाले को पारितोषिक प्रदान करने से भी प्रबन्ध करने की कार्यकुशलता बढ़ती है।

(vii) समूह सम्बन्ध (Group Relation) – ऐसा देखा गया है कि कुछ व्यक्ति वेतन में वृद्धि करने के बाद भी किसी अन्य विभाग में परिवर्तन नहीं कराना चाहते क्योंकि वे उसकी समूह में रहना चाहते हैं इसका कारण उनका उस समूह से सम्बन्ध होता है। इस तरह से अच्छा सम्बन्ध बनाने से भी उत्पादन में वृद्धि होती है।

(vii) उपाधि (Titles) – कम्पनी द्वास योग्य व्यक्तियों को तमगे तथा उपाधि दिये जाने वाली व्यवस्था भी लाभदायक रहती है। उदाहरणतः एक कम्पनी, जिसका नाम Life Corporation है, श्रेष्ठ व्यक्ति को Life Corporation Man की उपाधि देने की व्यवस्था करके कर्मचारियों को अधिक कार्य करने के लिए प्रोत्साहित कर सकती है।

(ix) न्यायपूर्ण व्यवहार (Justified Behaviour) – कर्मचारियों के प्रति न्याय, सामान्यता तथा सद्भाव का व्यवहार करके भी उनको उत्पादन वृद्धि के लिए प्रोत्साहित किया जा सकता है, भेदभाव का व्यवहार करने पर नहीं।

(x) पदोन्नति के अवसर (Chance of Advancement) – प्रत्येक कर्मचारी धन की अपेक्षा ऊँची नौकरी पर कार्य करना चाहता है। इसके लिए आवश्यक है कि विभिन्न व्यक्तियों को उन्नति के पर्याप्त अवसर मिलें क्योंकि ऐसा होने पर वह उनका लाभ उठाने के लिए अपने को सुधारता है जिससे उत्पादन में वृद्धि होती है।

(xi) रुचिकर नौकरी (Interesting Job) – कार्य को रुचिकर बनाकर भी कर्मचारियों से अधिक कार्य कराया जा सकता है। प्रायः यह देखा गया है कि एक कर्मचारी, जिसकी कार्य अरुचिकर होता है, अधिक कुशलतापूर्वक कार्य नहीं कर सकता।

(xii) भौतिक वातावरण (Physical Environment) – फैक्ट्री में हवा, रोशनी, सफाई का पर्याप्त प्रबन्ध आदि न होना भी अधिक उत्पादन में बाधा उत्पन्न करता है। इसमें सुधार करने से भी उत्पादकता बढ़ती है।

(xiii) कम्पनी सुविधाओं के प्रयोग का अधिकार (Right to Use Company Facilities) यद्यपि उच्च प्रबन्धकों को अच्छा वेतन दिया जाता है जिससे वे अच्छा जीवन व्यतीत कर सकते हैं, फिर भी संस्थाएँ उनको कम्पनी की कार, क्लब आदि प्रयोग करने का अधिकार प्रदान करती हैं। उन्हें संस्था की ओर से सभाओं (Conference) में भाग लेने का अधिकार दिया जाता है जिससे उनकी कार्यकुशलता बढ़ती है और वे अपनी प्रतिष्ठा बढ़ी हुई समझते हैं।

(xiv) भाग (Participation) – प्रबंधक ऐसी समस्याएँ, जिनका सम्बन्ध कर्मचारियों से है, सुलझाने में यदि कर्मचारियों की सहायता लेते हैं तो वह उसे आसानी से हल कर लेते हैं तथा उसे हल करने में कर्मचारियों का मन से सहयोग प्राप्त करने में सफल होते हैं जिससे उत्पादन में वृद्धि होती है।

(xv) वेतन सहित छुट्टियाँ (Paid Vacations)-संस्थाएँ प्रबंधकों को घूमने जाने के लिए पर्याप्त छुट्टियाँ दिये जाने का प्रबंध करती हैं जिनके द्वारा भी प्रबंधकों व कर्मचारियों में कार्यकुशलता वृद्धि में प्रोत्साहन दे सकते हैं।

अतः उपर्युक्त विचार-बिन्दुओं के आधार पर यह कहा जा सकता है कि मनुष्य को केवल मौद्रिक प्रोत्साहन द्वारा ही अभिप्रेरित नहीं किया जा सकता है, बल्कि उन्हें अभिप्रेरित करने के लिए अमौद्रिक अभिप्रेरकों की भी आवश्यकता होती है।

प्रश्न 15.
“समन्वय प्रबंध का सार है।” इस कथन का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
“समन्वय प्रबंध का सार है” यह कथन प्रबन्ध विद्वान श्री कूण्टज तथा ओ डोनेल ने समन्वय की महत्व एवं आवश्यकता की व्याख्या करते समय लिखा था। निखरे हुए तन को किसी नियत उद्देश्य से श्रृंखलाबद्ध करना एवं एक सूत्र में पिरोना ही समन्वय कहलाता है। समन्वय प्रबन्ध का सार है जो उपक्रम की विभिन्न क्रियाओं में तालमेल बनाये रखना। इसलिए बनाये रखने से है। समन्वय से लोग एक टीम के रूप में कार्य करते हैं।

उदाहरण के लिए एक बड़े प्रकाशक के प्रेस में अनेक विभाग होते हैं जैसे छपाई विभाग, कम्पोजिंग विभाग, प्रूफ-रीडिंग विभाग, जॉब विभाग, बाईडिंग विभाग, कटिंग विभाग इत्यादि। यदि इन विभागों के बीच पारस्परिक एकता एवं तालमेल न हो तो प्रेस का कार्य एक दिन भी सफलतापूर्वक नहीं चल सकेगा। इसलिए समन्वय से ही पारस्परिक सहयोग की वृद्धि होती है तथा सम्बन्धित व्यावसायिक उपक्रम का सफल संचालन सम्भव होता है। समन्वय की आवश्यकता केवल व्यवसाय में ही नहीं बलिक सभी स्थानों पर होती है। इसी कारण समन्वय को प्रबन्ध का एक पृथक् कार्य माना गया।

जब हम समन्वय के महत्त्व पर विचार करते हैं तो हमें प्रबन्ध विद्वान श्री कूण्ट्ज तथा ओ डोनेल के निम्नलिखित कथन अनायास ही याद हो जाते हैं। समन्वय प्रबन्ध का केवल एक कार्य ही नहीं है बल्कि प्रबन्ध का सार भी है। वस्तुतः स्थिति भी यही। चाहे हम व्यवसाय के क्षेत्र में हो या प्रशासन के क्षेत्र में हों, खेल के मैदान में हों अथवा किसी क्लब में सभी स्थानों पर समन्वय का ही बोलबाला दिखाई देता है। उदाहरण के लिए फुटबॉल के क्षेल के मैदान में जीतने वाली टीम के खिलाड़ियों के बीच थोड़ा-सा भी समन्वय भंग हो जाने पर जीत हार में बदल सकती है। इसी प्रकार व्यवसाय के क्षेत्र में उत्पादक के विभिन्न साधनों में भी समन्वय न रहने पर उसका अर्स ही खतरे में पड़ सकता है। प्रबंध विशेषज्ञ उर्विक ने तो यहाँ तक कह दिया है कि संगठन का उद्देश्य ही समन्वय स्थापित करना है। बर्नार्ड ने भी इस सम्बन्ध में ठीक कहा है कि समन्वय, किसी संगठन को जीवित रखने के लिए महत्वपूर्ण तत्त्व है।

एक संस्था में विभिन्न जाति, धर्म, प्रदेश तथा भाषा बोलने वाले एवं विचारधारा वाले व्यक्ति विभिन्न किस्म के कार्यों का निष्पादन करते हैं जबकि उनका लक्ष्य समान होता है। इन सभी के कार्य करने का तरीका एवं मस्तिष्क अलग-अलग होता है। इस प्रकार उनके कार्यों में विविधता पाई जाती है किन्तु निर्धारित लक्ष्य की प्राप्ति के लिए यह जरूरी हो जाता है कि ऐसे व्यक्तियों की क्रियाओं को एक सूत्र में पिरोया जाय अर्थात् उनके बीच समन्वय स्थापित किया जाय। समन्वय के द्वारा इन विविधताओं के होते हुए भी लोगों में एक टीम की भावना पैदा की जा सकती है। एक लम्बे समय तक टीम के रूप में कार्य करते रहने से लोग विविधताओं एवं विषमताओं को भूल जाते हैं जिससे एक नई एकीकृत संस्कृति का जन्म होता है। यह समन्वय के बिना सम्भव नहीं है इसलिए समन्वय को प्रबन्ध का सार कहने में कोई अतिश्योक्ति नहीं होनी चाहिए।

प्रश्न 16.
व्यावसायिक संगठन में संदेशवाहन के महत्त्व की विवेचना करें।
उत्तर:
किसी भी व्यावसायिक संगठन में संदेशवाहन का बहुत अधिक महत्त्व होता है। दूसरे शब्दों में संदेशवाहन व्यावसायिक संगठन की जान मानी जाती है। बिना संदेशवाहन में व्यावसायिक संस्था अपने व्यावसायिक उद्देश्यों में सफल नहीं होती है।

व्यावसायिक संगठन में संदेशवाहन के निम्नलिखित महत्त्व है-
(i) शीघ्र निर्णय एवं क्रियान्वयन(Quick Decision and Its Enforcement) – निर्णय लेने में देरी करने से और समस्याओं को टालते रहने से व्यवसाय में असंतोष का वातावरण उत्पन्न हो सकता है। अतः एक संगठित तथा व्यवस्थित संदेशवाहन प्रणाली व्यवसाय के वातावरण को मधुर तथा स्वस्थ बनाने में सहायक होती है। एक व्यवस्थित संदेशवाहन पद्धति से विचार-विमर्श शीघ्र और सुगम हो जाता है।

(ii) कार्य सम्बन्धी सूचनाएँ पहुंचाना तथा सहयोग प्राप्त करना (Operational Information) – प्रत्येक कार्य को करने के लिए पर्याप्त सूचनाओं की आवश्यकता होती है। कार्य कब शुरू करना है, कैसे और कहाँ करना है, कहाँ से इनके लिए सहायता प्राप्त होगी आदि सूचनाओं की जानकारी कर्मचारियों को आवश्यक होती है। इनमें देरी होने से कार्य रुक जाता है। कार्यकुशल संदेशवाहन की सहायता से यह सूचनाएँ समय पर तथा प्रभावी ढंग से कर्मचारियों तक पहुँचाई जा सकती है।

(iii) प्रबंधकीय क्षमता में वृद्धि (Increase in Managerial Efficiency) – सहायकों का सहयोग प्राप्त करने के लिए उन्हें नीतियाँ तथा उद्देश्य बताने होते हैं। अत: व्यवसाय में प्रबंधकीय क्षमता में वृद्धि के लिए प्रभावी संदेशवाहन या संचार व्यवस्था सहायक होती है।

(iv) अनुशास (Discipline) – कार्य को व्यवस्थित ढंग से जारी रखने के लिए अनुशासन आवश्यक होता है। अनुशासन बनाये रखने के लिए आवश्यक है कि संस्था के प्रत्येक कर्मचारी को संस्था की अनुशासन सम्बन्धी नीतियाँ, कार्य के घंटे, सामान रखने का स्थान, कार्य के समय पहनने के कपड़े तथा प्रयोग की जाने वाली अन्य सामग्री तोड़ने की अवस्था में की जा सकने वाली कार्यवाही आदि सम्बन्धी बातों का पूर्ण ज्ञान हो। संदेशवाहन इन सभी कार्यों में महत्त्वपूर्ण योगदान देता है।

(v) लोक सम्पर्क (Public Relations) – एक औद्योगिक संस्था की सफलता समाज की सहायता पर ही निर्भर करती है, इसलिए जनता को संस्था के बारे में जानकारी देकर संस्था के प्रति दृष्टिकोण में परिवर्तन किया जा सकता है। यह सूचनाएँ संस्था के लिए समाज में अनुकूल . वातावरण में परिवर्तन करने के साथ-साथ संस्था के लिए अच्छे कर्मचारियों की प्राप्ति, ग्राहकों की संतुष्टि, अंशधारियों के विश्वास को बढ़ाती है। इन सबके लिए कुशल संदेशवाहन का प्रभावशाली होना आवश्यक है।

(vi) आँकड़ों का संग्रह (Collection of Data) – प्रबंधकों को समय-समय पर योजनाएँ बनाने तथा संस्था की महत्त्वपूर्ण समस्याओं को सुलझाने के लिए विभिन्न प्रकार के आँकड़ों की आवश्यकता होती है, जो सरकारी कार्यालयों, उपभोक्ताओं, व्यापारियों से प्राप्त करने होते हैं। किसी भी संस्था या व्यक्ति को ऐसी सूचनाएँ देने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता। इसलिए कुशल संदेशवाहन द्वारा उसमें सहयोग की भावना उत्पन्न करके ही तथ्य प्राप्त किये जा सकते हैं।

(vii) शान्ति की व्यवस्था (Maintenance of Peace) – प्रबन्धकों को समय-समय पर परियोजनाएँ बनाने तथा संस्था की महत्त्वपूर्ण समस्याओं को सुलझाने के लिए कुशल संचार व्यवस्था की आवश्यकता होती है।

(viii) समन्वय (Co-ordination) – श्रम-विभाजन तथा विशिष्टीकरण के सिद्धान्तों को उद्योग पर लागू करने के परिणामस्वरूप उत्पादन का कार्य विभागों तथा उपविभागों में होने लगा है, जिस कारण उनमें समन्वय कायम करने की समस्या उत्पन्न हो जाती है। समन्वय कायम करने के लिए संचार-व्यवस्था की आवश्यकता होती है।

(ix) अधीनस्थों के सुझाव(Suggestions from Sub-ordinates) – व्यवसाय में समय-समय पर समस्याएँ उत्पन्न होती रहती है। ये समस्याएँ सुलझाने का उत्तरदायित्व प्रबंधकों का होता है, जिन्हें उस समस्या के सम्बन्ध में वास्तविक तथ्य प्राप्त नहीं होते हैं। इसलिए कुशल संदेशवाहन का होना जरूरी है।

(x) पद संतुष्टि की व्यवस्था (Provision of Job Satisfaction) – प्रबंध क्या चाहता है और कर्मचारी क्या करते हैं, के विषय में संदेशवाहन द्वारा प्रबंध तथा कर्मचारियों के बीच पारस्परिक विश्वास, प्रेम तथा सहयोग उत्पन्न होता है। प्रबंधक जैसा कार्य चाहता था उसी के अनुसार कार्य कर्मचारी द्वारा करने पर उसे अपने कार्य में संतुष्टि मिलती है और प्रबंध तथा कर्मचारी के बीच किसी प्रकार की गलतफहमी नहीं होती है।

अतः निष्कर्ष के रूप में यह कहा जा सकता है कि संदेशवाहन व्यावसायिक संगठन में अपना महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसके अभाव में कोई भी व्यावसायिक संगठन अपने व्यावसायिक उद्देश्यों में सफल नहीं हो सकता है। साथ ही बिना संदेशवाहन के किसी भी व्यावसायिक संगठन के सफल संचालन की कल्पना करना व्यर्थपूर्ण है।

Bihar Board 12th Business Studies Objective Important Questions Part 6 in Hindi

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Bihar Board 12th Business Studies Objective Important Questions Part 6 in Hindi

प्रश्न 1.
नियोजन में शामिल है
(a) क्या करना है
(b) कब करना है
(c) कैसे करना है
(d) सभी
उत्तर:
(d) सभी

प्रश्न 2.
नियोजन प्रबंध का चरण है
(a) दूसरा
(b) तीसरा
(c) पहला
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(c) पहला

प्रश्न 3.
एक कार्य के निष्पादन के लिये प्रबंध को “सर्वोत्तम रास्ता ढूँढना” चाहिए। वैज्ञानिक प्रबंध के कौन-से सिद्धान्त इस पंक्ति की व्याख्या करता है ?
(a) समय अध्ययन
(b) गति अध्ययन
(c) थकान अध्ययन
(d) पद्धति अध्ययन
उत्तर:
(d) पद्धति अध्ययन

प्रश्न 4.
भविष्य में क्या करना है यह बताता है ?
(a) नियंत्रण
(b) समन्वय
(c) नियोजन
(d) निर्देशन
उत्तर:
(c) नियोजन

प्रश्न 5.
प्रबंध के समयावधि का अर्थ है
(a) प्रबंधकों की संख्या
(b) प्रबंधक के नियमित की समयावधि
(c) वरिष्ट अधिकारी के अन्तर्गत सहायकों की संख्या
(d) उच्च स्तरीय प्रबंधकों में सदस्यों की संख्या
उत्तर:
(c) वरिष्ट अधिकारी के अन्तर्गत सहायकों की संख्या

प्रश्न 6.
नियंत्रण कार्य है
(a) प्रथम स्तर प्रबंध का
(b) निम्न स्तर प्रबंध का
(c) मध्य स्तर प्रबंध का
(d) सभी
उत्तर:
(a) प्रथम स्तर प्रबंध का

प्रश्न 7.
वित्तीय नियोजन का उद्देश्य है
(a) बाहरी ऋण को कम करना समता अंशों से
(b) यह सुनिश्चित करना है कि फर्म के पास पर्याप्त संसाधन है इसलिये निधि की कोई कभी नहीं है
(c) ऐसी स्थिति जहाँ फर्म असामान्य राशि की न तो अभाव और न ही अधिक पूर्ति की सामना करती है
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(c) ऐसी स्थिति जहाँ फर्म असामान्य राशि की न तो अभाव और न ही अधिक पूर्ति की सामना करती है

प्रश्न 8.
निम्नलिखित में से कौन-सा नियोजन के महत्व को दर्शाता है ?
(a) उद्देश्य को अधिक सुक्ष्म और पारदर्शी बनाने के लिये
(b) कार्य को अर्थपूर्ण बनाने के लिये
(c) अनिश्चितता के खतरे को कम करने के लिये
(d) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(d) उपर्युक्त सभी

प्रश्न 9.
निम्नलिखित में कौन-सा उपभोक्ता संगठन का कार्य नहीं है ?
(a) उपभोक्ता को कानूनी सलाह देना
(b) विभिन्न उत्पाद का सूचना एकत्र करना
(c) उपभोक्ता जागरूकता में विकास
(d) उपभोक्ता के व्यक्तिगत/पारिवारिक समस्या दूर करना
उत्तर:
(d) उपभोक्ता के व्यक्तिगत/पारिवारिक समस्या दूर करना

प्रश्न 10.
विपणन की एक अच्छी विधि संतुष्ट करता है
(a) समाज को
(b) अंशधारी को
(c) बैंकर्स को
(d) आपूर्तिकर्ता को
उत्तर:
(a) समाज को

प्रश्न 11.
दोनों अंश एवं ऋणपत्र है
(a) कंपनी वित्त के साधन
(b) भुगतान की निश्चित तिथि
(c) कंपनी द्वारा लाभांश का भुगतान
(d) मतदान का अधिकार प्राप्त करना
उत्तर:
(a) कंपनी वित्त के साधन

प्रश्न 12.
विश्व में सबसे पहले स्कन्ध विपणि की स्थापना हुई थी
(a) दिल्ली में
(b) लन्दन में
(c) अमेरिका में
(d) जापान में
उत्तर:
(b) लन्दन में

प्रश्न 13.
नियुक्ति प्रक्रिया में कितने चरण होते हैं ?
(a) 2
(b) 3
(c) 4
(d) 5
उत्तर:
(b) 3

प्रश्न 14.
अफवाह फैलानेवाले संगठन होते हैं
(a) औपचारिक
(b) अनौपचारिक
(c) केन्द्रीयस
(d) विकेन्द्रीकृत
उत्तर:
(b) अनौपचारिक

प्रश्न 15.
निम्न में से कौन व्यावसायिक वातावरण की प्रकृति नहीं है ?
(a) अनिश्चितता
(b) कर्मचारी
(c) समबद्धता
(d) जटिलता
उत्तर:
(b) कर्मचारी

प्रश्न 16.
वित्तीय नियोजन की विशेषता है।
(a) सरलता
(b) तरलता
(c) कम खर्चीला
(d) सभी
उत्तर:
(d) सभी

प्रश्न 17.
वैधानिकत: SEBI की स्थापना हुई
(a) 1988
(b) 1990
(c) 1992
(d) 1994
उत्तर:
(c) 1992

प्रश्न 18.
राज्य आयोग निम्न विवादों को निबटा सकता है।
(a) 5 लाख रु० तक
(b) 10 लाख रु० तक
(c) 15 लाख रु० तक
(d) 20 लाख रु० तक
उत्तर:
(d) 20 लाख रु० तक

प्रश्न 19.
मास्लो के अनुसार आवश्यकताओं को सबसे पहले पूरा किया जाता है
(a) मनोवैज्ञानिक
(b) सुरक्षा
(c) सामाजिक
(d) प्रतिष्ठा
उत्तर:
(a) मनोवैज्ञानिक

प्रश्न 20.
एक संदेशवाहन में न्यूनतम कितने व्यक्ति शामिल होते हैं ?
(a) 2
(b) 4
(c) 8
(d) 16
उत्तर:
(a) 2

प्रश्न 21.
उच्च ऋण-अंश अनुपात का प्रतिफल है
(a) निम्न वित्तीय संकट
(b) परिचालन संकट की उच्च डिग्री
(c) वित्तीय संकट की उच्च डिग्री
(d) प्रति अंश उच्च आय
उत्तर:
(c) वित्तीय संकट की उच्च डिग्री

प्रश्न 22.
समन्वय स्थापित किया जाता है
(a) उच्चतम स्तर के प्रबंध द्वारा
(b) मध्यम स्तरीय प्रबंध द्वारा
(c) निम्न स्तर के प्रबंध द्वारा
(d) इनमें से किसी के द्वारा नहीं
उत्तर:
(a) उच्चतम स्तर के प्रबंध द्वारा

प्रश्न 23.
प्रशासनिक प्रबंध के प्रस्तुतकर्ता थे
(a) फेयोल
(b) टेलर
(c) टैरी
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(a) फेयोल

प्रश्न 24.
प्रभावशाली अधिकार हस्तांतरण के लिये उत्तरदायित्व का होना अति आवश्यक है
(a) अधिकार
(b) मानव शक्ति
(c) प्रोत्साहन
(d) प्रोन्नति
उत्तर:
(a) अधिकार

प्रश्न 25.
संगठन स्वतः निर्मित होता है
(a) क्रियात्मक
(b) अनौपचारिक
(c) औपचारिक
(d) विभागीय
उत्तर:
(b) अनौपचारिक

प्रश्न 26.
नियुक्तिकरण पर व्यय किया गया धन है
(a) धन की बर्बादी
(b) आवश्यक
(c) विनियोजन
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(c) विनियोजन

प्रश्न 27.
बजट का अर्थ है
(a) निष्पादन का नियोजित लक्ष्य
(b) भविष्य के कार्यकलाप का प्रयोग
(c) संसाधनों का सही वितरण
(d) आशान्वित परिणाम का अंकों में विवरण
उत्तर:
(d) आशान्वित परिणाम का अंकों में विवरण

प्रश्न 28.
भारत के अधिकांश उद्योगों में विद्यमान है
(a) समय मजदूरी पर
(b) कार्यानुसार मजदूरी पर
(c) कुशलता मजदूरी पर
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(a) समय मजदूरी पर

प्रश्न 29.
पर्यवेक्षण प्रबंध का स्तर है
(a) उच्च
(b) मध्यम
(c) निम्न
(d) ये सभी
उत्तर:
(c) निम्न

प्रश्न 30.
मैस्लो के अनुसार सबसे अंत में आवश्यकता की संतुष्टि होती है
(a) जीवन-निर्वाह
(b) सामाजिक
(c) आत्म-प्राप्ति
(d) सुरक्षा
उत्तर:
(c) आत्म-प्राप्ति

प्रश्न 31.
प्रबन्धक होता है
(a) बॉस
(b) स्वामी
(c) नेता
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(c) नेता

प्रश्न 32.
नियंत्रण संबंधित है
(a) परिणाम
(b) कार्य
(c) प्रयास
(d) किसी से नहीं
उत्तर:
(a) परिणाम

प्रश्न 33.
अल्प-पूँजीकरण में होता है
(a) लाभों में वृद्धि
(b) लाभों में कमी
(c) लाभांश दर में कमी
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(a) लाभों में वृद्धि

प्रश्न 34.
कम्पनी की ख्याति में कमी होती है।
(a) अति-पूँजीकरण में
(b) अल्प-पूँजीकरण
(c) (a) एवं (b) दोनों में
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(a) अति-पूँजीकरण में

प्रश्न 35.
स्थायी पूँजी की आवश्यकता होती है
(a) दैनिक व्ययों का भुगतान करने के लिए
(b) भूमि खरीदने के लिए
(c) स्टॉक खरीदने के लिए
(d) लेनदारों का भुगतान करने के लिए
उत्तर:
(b) भूमि खरीदने के लिए

प्रश्न 36.
नवीन निर्गमित अंशों में व्यवहार करता है
(a) गौण बाजार
(b) प्राथमिक बाजार
(c) (a) एवं (b) दोनों बाजार
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(b) प्राथमिक बाजार

प्रश्न 37.
स्कन्ध विपणि हित की सुरक्षा करती है
(a) निवेशक
(b) कम्पनी
(c) सरकार
(d) इन सबों के
उत्तर:
(a) निवेशक

प्रश्न 38.
व्यवसाय में संचार क्यों आवश्यक है ?
(a) मनुष्य की जानकारी के लिये
(b) वे काम के लिये जिसे करने के लिये कहा जाता
(c) अनुशासित कर्मचारी की तरह व्यवहार के लिये
(d) ईमानदार और न्याय के लिये
उत्तर:
(a) मनुष्य की जानकारी के लिये

प्रश्न 39.
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अन्तर्गत विवाद आते हैं
(a) कम्पनी के अंश सम्बन्धी विवाद
(b) दण्डित प्रकृति के विवाद
(c) विक्रेता द्वारा दोषी माल के विक्रय सम्बन्धी विवाद
(d) नौकरी संबंधी
उत्तर:
(c) विक्रेता द्वारा दोषी माल के विक्रय सम्बन्धी विवाद

Bihar Board 12th Geography Important Questions Long Answer Type Part 3

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Bihar Board 12th Geography Important Questions Long Answer Type Part 3

प्रश्न 1.
भारत में जनसंख्या वृद्धि की किन्हीं तीन अवस्थाओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
भारत में जनसंख्या वृद्धि की तीन अवस्थायें निम्नलिखित हैं-

  1. धीमी वृद्धि की अवधि (1901-1921) – 1921 से पूर्व जनसंख्या की वृद्धि धीमी थी क्योंकि इस अवधि में जन्मदर और मृत्युदर दोनों ही उच्च थी। मृत्यु दर ऊँची होने का मुख्य कारण चिकित्सा सविधाओं का अभाव था।
  2. निरंतर वृद्धि की अवधि (1921-51) – इस अवधि में जनसंख्या की वृद्धि निरंतर परंतु मंद गति से हुई। चिकित्सा सुविधाओं ने मृत्युदर को कम किया।
  3. तीव्र वृद्धि की अवधि (1951-81) – इस अवधि में भारत की जनसंख्या लगभग दो गुनी हो गई। चिकित्सा सुविधाओं में सुधार के कारण मृत्यु दर तेजी से गिरी।
  4. घटी वृद्धि की अवधि – 1981 के बाद जनसंख्या में वृद्धि तो हुई लेकिन वृद्धि दर में पहले की अपेक्षा क्रमिक ह्रास हुआ।

प्रश्न 2.
आंतरिक प्रवास से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
जनसंख्या के आवास-प्रवास, गमनागमन या प्रवसन से तात्पर्य मानव समूह अथवा व्यक्ति के भौगोलिक स्थान के संबंधों के परिवर्तन से है।संयुक्त राष्ट्र संघ के अनुसार ‘प्रवसन एक प्रकार से भौगोलिक परिवर्तन जिसमें रहने और पहुँचने का स्थान बदल जाता है। इसमें आवास-प्रवास स्थायी होता है।डेविड हीर के अनुसार, “अपने सामान्य निवास स्थान से किसी दूसरे स्थान पर जाकर बसना स्थानान्तरण कहा जाता है।” जे० बोग के अनुसार, “प्रवास शब्द आवास के उन परिवर्तनों के लिए आरक्षित होता है जो किसी व्यक्ति के सामुदायिक संबंधों को पूर्णरूपेण परिवर्तन एवं पुनर्सामंजस्य से संबंधित होते हैं।” ई० एस० ली के अनुसार, “स्थानान्तरण अस्थायी आवास परिवर्तन है। इसमें दूरी का अधिक महत्त्व नहीं है।”

जब मनुष्य अपने प्रदेश या देश से अन्य स्थान या देशों में जाता है तो वह प्रवासी कहलाता है। जैसे-जैसे व्यक्ति बिहार से मुम्बई या चेन्नई जाकर बसता है तो लोग मुम्बई के लिए अप्रवासी होंगे लेकिन बिहार के लिए प्रवासी माने जायेंगे। लेकिन जो व्यक्ति प्रतिदिन एक गाँव या नगर से दूसरे गाँव या नगर काम करने के लिए जायेंगे तो उन्हें दैनिक प्रवासी कहेंगे।

प्रवास के मुख्य कारण निम्नलिखित हैं-
(i) भौतिक कारण – भौतिक कारणों के अंतर्गत जलवायु संबंधी परिवर्तन, भूकम्प, ज्वालामुखी, हिमराशियों का घटना-बढ़ना, मिट्टी का उपजाऊ होना, समुद्र तटों का जन्मज्जन तथा निमज्जन होना सम्मिलित किया जाता है। हमारे देश में लोग अधिक गर्मी से बचने के लिए दक्षिण से उत्तर की ओर प्रवास करते हैं तथा गर्मी समाप्त होते ही पुनः अपने-अपने स्थानों पर वापस आ जाते हैं। बाढ़ भी अधिक संख्या में प्रवास के लिए उत्तरदायी होते हैं।

(ii) आर्थिक कारण – इसमें रोजगार, कृषि, उद्योग, परिवहन, व्यापार आदि शामिल किया गया है। लोग कमाने के लिए बड़ी संख्या में गाँवों से शहरों में जाते हैं। व्यापारी भी व्यापार के लिए एक-दूसरे स्थान पर जाते हैं।

(iii) सामाजिक-सांस्कृतिक कारण – धार्मिक कारणों से भी बड़ी संख्या में प्रवास होता है। 1947 में भारत विभाजन के समय उत्पन्न स्थिति के कारण हिन्दू भारत आये तथा मुस्लिम भारत छोड़कर पाकिस्तान चले गये।

(iv) राजनीतिक कारण – राजनीतिक तथा जातीय दंगों के कारण लोग अपने घरों को छोड़कर सुरक्षित स्थानों को प्रवास कर जाते हैं।

प्रश्न 3.
भारत में अंतर्राष्ट्रीय प्रवास के परिणामों की चर्चा कीजिए।
उत्तर:
सामान्यतः प्रवासी अपने साथ अपने मूल देश की तकनीक, धर्म, संस्कृति, परम्परा, रीति-रिवाज, भाषा आदि को भी ले जाते हैं और जहाँ वह बसता है, अपनी सामाजिक परम्पराओं, मूल्यों तथा संस्कृति को सुरक्षित रखने के यथा संभव प्रयास करता है। प्रवासी नये परिवेश से प्रभावित हुए बिना भी नहीं रह पाता है। अतः अप्रवासी क्षेत्र में नवीन संस्कृति विकसित होती है। भारत के भी अंतर्राष्ट्रीय प्रवासन में यह गुण परिलक्षित होते हैं।

भारत से अंतर्राष्ट्रीय प्रवास होने के कारण यहाँ के जनसंख्या का दबाव अपेक्षाकृत कुछ कम है जो भारत जैसे देशों के लिए सकारात्मक पहलू है। भारत के लोग विश्व के लगभग सभी महादेशों में फैले हुए हैं। प्रवासी समुदाय का संबंध सामान्यतः अपने मूल देश से ही बना रहता है जो दोनों देशों के व्यापारिक, राजनीतिक एवं सांस्कृतिक संबंध को प्रगाढ़ करने में सहायक होता है।

भारत के अधिकतर कार्यशील जनसंख्या, अंतर्राष्ट्रीय प्रवास करते हैं, जिससे भारत पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है, जिसका अंततः प्रभाव राष्ट्रीय आय पर पड़ता है। साथ ही देश में स्त्रियों, बच्चों और वृद्धों का अनुपात बढ़ जाता है, जो निर्भर जनसंख्या है।

प्रश्न 4.
प्रवास के सामाजिक जनांकिकीय परिणाम क्या-क्या हैं ?
उत्तर:
ग्रामीण से नगरीय प्रवास नगरों में जनसंख्या की वृद्धि में योगदान देने वाले महत्त्वपूर्ण कारकों में से एक है। ग्रामीण क्षेत्रों में होन वाले आयु एवं कुशलता चरणात्मक बाह्य प्रवास ग्रामीण जनांकिकीय संघटन पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है। राजस्थान, मध्य प्रदेश और पूर्वी महाराष्ट्र में होने वाले बाह्य प्रवास इन राज्यों की आयु लिंग संरचना में गंभीर असन्तुलन पैदा कर दिए हैं। ऐसे ही असन्तुलन आदाता राज्यों में हुए।

प्रवास में विभिन्न संस्कृतियों के लोगों का अति मिश्रण होता है। इससे संस्कृति के उद्विकास में सकारात्मक योगदान होता है और यह अधिकतर लोगों के मानचित्र क्षितिज को विस्तृत करता है। इससे नकारात्मक परिणाम भी होते हैं। जो लोगों में सामाजिक निर्वात और खिन्नता की भावना भर देते हैं।

प्रश्न 5.
भारत में सम्पूर्ण साक्षरता में प्रादेशिक परिवर्तनों की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
भारत में प्रादेशिक स्तर पर साक्षरता दर में भिन्नताएँ पाई जाती हैं। बिहार में साक्षरता दर 43.53 है जबकि केरल में यह 90.92% है। साक्षरता में केरल का प्रथम स्थान है।

केरल के अलावा 80% से अधिक साक्षरता दर वाले राज्यों में पहले स्थान पर मिजोरम (88.49%) है। गोवा को छोड़कर (82.32%) किसी अन्य राज्य में 80% से अधिक साक्षरता नहीं है।

मेघालय, उड़ीसा, मध्य प्रदेश तथा छत्तीसगढ़ में साक्षरता दर राष्ट्रीय औसत से थोड़ा कम है।
कारण –

  1. अधिकतर जनसंख्या गाँवों में रहती है।
  2. गरीबी तथा अज्ञानता के कारण साक्षरता दर कम है।
  3. जम्मू-कश्मीर तथा अरुणाचल प्रदेश पर्वतीय राज्य हैं। यहाँ परिवहन के साधनों का अभाव है।

केन्द्रशासित प्रदेशों में क्रमशः लक्षद्वीप (87.52%), दिल्ली (81.82%), चण्डीगढ़ (81.72%), पांडिचेरी (81.49%), अंडमान व निकोबार (81.18%) तथा दमन व दीव (81.9%) हैं।
Bihar Board 12th Geography Important Questions Long Answer Type Part 3, 1
चित्र : साक्षरता दर

भारत के 22 राज्यों और केन्द्रशासित प्रदेशों में साक्षरता दर राष्ट्रीय औसत से अधिक है जबकि 13 राज्यों और संघशासित प्रदेशों में औसत से कम है। इसके कारण निम्नलिखित हैं-

  1. उच्च नगरीकरण का कारण उच्च साक्षरता दर है।
  2. उत्तरी-पूर्वी राज्यों में उच्च साक्षरता दर का कारण मिशनरियों का प्रभाव है।
  3. कई राज्यों में साक्षरता के विकास में सामाजिक व धार्मिक संस्थाओं का महत्त्वपूर्ण योगदान है।

निम्न साक्षरता दर वाले राज्यों में बिहार, झारखंड, जम्मू-कश्मीर, अरुणाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश, दादरा व नगर हवेली, राजस्थान व आन्ध्र प्रदेश है। इन सभी राज्यों में साक्षरता दर 54 प्रतिशत से 62 प्रतिशत के बीच है।

प्रश्न 6.
भारत के 15 प्रमुख राज्यों में मानव विकास के स्तरों में किन कारकों ने स्थानिक भिन्नता उत्पन्न की है ?
उत्तर:
मानव विकास को प्रभावित करने वाले सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक और ऐतिहासिक कारक उत्तरदायी हैं। इनमें शिक्षा महत्त्वपूर्ण है। केरल के मानव विकास सूचकांक का उच्चतम मूल्य इसके द्वारा 2001 में साक्षरता दर शत प्रतिशत (90.92) प्राप्त करने के कारण हैं। बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, उड़ीसा जैसे राज्यों में निम्न साक्षरता दर है।

आर्थिक कारक (Economic factor) – आर्थिक दृष्टि से विकसित महाराष्ट्र, तमिलनाडु और पंजाब जैसे राज्य के विकास सूचकांक अन्य राज्यों से ऊँचे हैं।

उपनिवेश काल में विकसित प्रादेशिक विकृतियाँ और सामाजिक विषमताएँ अब भी अर्थव्यवस्था पर प्रभाव डाल रही है।

निम्न सारणी भारत के राज्यों का मानव विकास दर्शाती है जो 2001 के सूचकांक के आधार पर है।
Bihar Board 12th Geography Important Questions Long Answer Type Part 3, 2

प्रश्न 7.
प्रतिरूप के आधार पर ग्रामीण अधिवासों का वर्गीकरण प्रस्तुत करें।
अथवा, ग्रामीण बस्तियों के विभिन्न प्रतिरूपों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भारत में ग्रामीण बस्तियों का प्रतिरूप यह दर्शाता है कि मकानों की स्थिति किस प्रकार एक-दूसरे से संबंधित हैं। गांव की आकृति एवं प्रसार को प्रभावित करने वाले कारकों में गाँव की स्थिति, स्थलाकृति एवं भू-भाग प्रमुख स्थान रखते हैं। भारत में ग्रामीण बस्तियों के प्रमुख प्रतिरूप निम्न हैं-

  • रैखिक प्रतिरूप – इस प्रकार के प्रतिरूप के अंतर्गत मकान, सड़कों, रेल लाइनों, नदियों, घाटी के किनारे अथवा तटबंधों पर स्थित होते हैं। जैसे-गंगा नदी के किनारे स्थित गाँव।।
  • आयताकार प्रतिरूप – ग्रामीण बस्तियों का यह प्रतिरूप समतल क्षेत्रों अथवा चौड़ी अंतरापर्वतीय घाटियों में पाया जाता है। इनमें सड़कें आयताकार होती हैं जो एक-दूसरे को समकोण पर काटती है।
  • वृत्ताकार प्रतिरूप – इस प्रकार के ग्रामीण बस्ती झील व तालाबों आदि क्षेत्रों के चारों ओर बस जाने से विकसित होती है।
  • तारे के आकार का प्रतिरूप-जहाँ कई मार्ग आकर एक स्थान पर मिलते हैं और उस मार्ग के सहारे मकान का निर्माण हो जाता है। वहाँ इस प्रकार के प्रतिरूप से संबंधित बस्तियाँ विकसित हो जाती है।
  • ‘टी’ आकार, ‘वाई’ आकार एवं ‘क्रॉस’ आकार-‘टी’ के आकार की बस्तियाँ सड़क के तिराहे पर विकसित होती है। जबकि ‘वाई’ आकार की बस्तियाँ उन क्षेत्रों में पाई जाती है जहाँ पर दो मार्ग आकर तीसरे मार्ग से मिलती है। क्रॉस आकार की बस्तियाँ चौराहे पर विकसित होती है।

प्रश्न 8.
अन्तर स्पष्ट करें – (i) ग्रामीण और नगरीय बस्तियाँ (ii) गुच्छित और अर्ध-गुच्छित बस्तियाँ (iii) रैखिक और वृत्ताकार बस्तियाँ।
उत्तर:
(i) ग्रामीण बस्तियाँ (Rural Settlements)-

  1. ग्रामीण बस्तियों के निवासी अधिकतर प्राथमिक कार्यों में संलग्न होते हैं।
  2. ग्रामीण बस्तियों के लोगों का प्रमुख व्यवसाय कृषि होता है। गाँव के चारों ओर खेत होते हैं।
  3. गाँव के लोग अपने कृषि उत्पादन का अवशेष भाग नगरों में बिक्री को भेजते हैं।
  4. ग्रामीण बस्तियाँ छोटे आकार की होती हैं।
  5. इनकी जनसंख्या कम होती है। प्राय: 10-20 से 1000 व्यक्ति तक रहते हैं।
  6. इनमें आधुनिक सुविधाएँ नहीं होती।

नगरीय बस्तियाँ (Urban Settlements)-

  1. नगरीय बस्तियों के निवासी द्वितीयक और तृतीयक कार्यों में लगे होते हैं।
  2. नगरों में निर्माण उद्योगों द्वारा अनेक वस्तुओं का उत्पादन होता है तथा अधिशेष उत्पादन को गाँव में भी भेजते हैं।
  3. नगरीय बस्तियों का आकार बड़ा होता है। ये सुव्यवस्थित होती हैं।
  4. कोई भी बस्ती तब तक नगर नहीं कहलाती जबतक उसमें 5000 व्यक्ति न हों।
  5. नगरों में घर और गलियाँ पास-पास होती हैं। यहाँ खुले क्षेत्र कम होते हैं।
  6. इनमें आधुनिक सुविधाएँ होती हैं।

(ii) गुच्छित बस्तियाँ (Clustered Settlements)-

  1. इन बस्तियों में ग्रामीण घरों के संहत खंड पाए जाते हैं।
  2. घरों की दो कतारों को संकरी तथा टेढ़ी-मेढ़ी गलियाँ पृथक् करती हैं।
  3. इन बस्तियों का एक अभिन्यास होता है जो रैखिक, आयताकार, आकृति अथवा कभी-कभी आकृतिविहीन होता है।
  4. इस प्रकार की बस्तियाँ भारत के सघन प्रदेशों में पाई जाती हैं।

अर्ध-गुच्छित बस्तियाँ (Semi-clustered Settlement)-

  1. सामान्यतया ये बस्तियाँ किसी बड़ी बस्ती के विखण्डन के परिणामस्वरूप बनती हैं।
  2. किसी बड़े संहत गाँव के एक या दो वर्ग स्वेच्छा या मजबूरी से गाँव से अलग बस्ती बनाकर रहते हैं। ये मुख्य गाँव के समीप होती है।
  3. इन बस्तियों में लोग निम्न वर्ग के होते हैं जो प्रायः छोटे महत्त्वहीन कार्यों में लगे होते हैं।
  4. इस प्रकार की बस्तियाँ गुजरात राज्य के मैदानी भागों में पाई जाती हैं।

(iii) रैखिक बस्तियाँ (Linear Settlement)-

  1. इस प्रकार की बस्तियों में मकानों की दो समांतर कतारें होती हैं।
  2. मकान एक-दूसरे के आमने-सामने होते हैं।
  3. इस प्रकार की बस्तियाँ मणिपुर, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ राज्यों में पाई जाती हैं।
  4. इस प्रकार की बस्तियों में प्रमुखतः जनजातियों के लोग पाये जाते हैं।

वृत्ताकार बस्तियाँ (Circular Settlements)-

  1. किसी झील पर तालाब के किनारे इस प्रकार की बस्ती बन जाती है।
  2. इस प्रकार की बस्तियों में प्रायः जुलाहे, धोबी, मछुआरे आदि रहते हैं।
  3. इस प्रकार के गाँव गंगा-यमुना दोआब, मध्य प्रदेश, पंजाब आदि में पाए जाते हैं।

प्रश्न 9.
नगर बहुप्रकार्यात्मक होते हैं। क्यों ?
अथवा, कार्यों के आधार पर नगरों का विस्तृत कार्यात्मक विवरण प्रस्तुत करें।
उत्तर:
नगरों में अनेक प्रकार के व्यवसाय मिलते हैं। कुछ नगरों में सामाजिक तथा आर्थिक महत्त्व के कार्य किए जाते हैं तो कुछ नगर उद्योग या सैनिक महत्त्व के होते हैं। फिर भी किसी एक कार्य के लिए किसी नगर को विशेष वर्ग में रखा जाता है। इस प्रकार कार्य व्यवस्था के आधार पर नगरों को निम्नलिखित वर्गों में रखा जाता है-

  • प्रशासनिक नगर – राष्ट्र की राजधानियाँ जहाँ पर केन्द्रीय सरकार के प्रशासनिक कार्यालय होते हैं, उन्हें प्रशासनिक नगर कहा जाता है। जैसे-नई दिल्ली, कैनबेरा, लंदन, वाशिंगटन डी. सी.।
  • व्यापारिक एवं व्यावसायिक नगर – व्यापार और वाणिज्य से संबंधित कार्यों की प्रधानता वाले क्षेत्र व्यापारिक एवं व्यावसायिक नगर कहे जाते हैं। जैसे-मुम्बई, कोलकाता, न्यूयार्क, साउपोलो।
  • औद्योगिक नगर – उद्योगों से संचालित होने वाले कार्यों से संबंधित क्षेत्र को औद्योगिक नगर कहते हैं। जैसे-मॉट्रिक, बोस्टन, मैनचेस्टर, अहमदाबाद।
  • परिवहन नगर – वैसे क्षेत्र जहाँ सड़क एवं रेलमार्ग जैसे कार्यों के कारण नगर का विकास होता है, उसे परिवहन नगर कहते हैं। जैसे-भारत के मुगलसराय, शिकांगो, पर्थ, कोलम्बे आदि।
  • खनन नगर – जिन क्षेत्रों में खनिजों को निकालने से संबंधित कार्य किये जाते हैं। वैसे नगर को खनन नगर कहते हैं। जैसे-धनबाद, मेसाबी, हुनान, बोकारो।
  • शैक्षिक नगर – वैसे नगर क्षेत्र जहाँ शिक्षा एवं प्रशिक्षण से संबंधित कार्य किये जाते हैं, उस नगर को शैक्षिक नगर कहते हैं। जैसे-दिल्ली, कैम्ब्रिज, पेरिस, इलाहाबाद, रूड़की।
  • सांस्कृतिक नगर – वैसे नगर क्षेत्र जहाँ धार्मिक क्रियाकलापों की प्रधानता होती है, उस नगर क्षेत्र को सांस्कृतिक नगर कहते हैं। जैसे-वाराणसी, मथुरा, प्रयाग, रामेश्वरम्, गया, येरूसलम, मक्का, मदीना आदि।

विशिष्टीकृत नगर भी महानगरों के रूप में विकसित होने के बाद बहुप्रकार्यात्मक बन जाते हैं। तब इनमें उद्योग, व्यापार, प्रशासन और परिवहन आदि प्रकार्य प्रमुख हो जाते हैं।

प्रश्न 10.
उल्लेखनीय विकास के बावजूद भारतीय कृषि अनेक समस्याओं से ग्रस्त है। व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
यद्यपि कृषि के विकास के लिए अनेक प्रयास किए गए हैं। कृषि का आधुनिकीकरण तथा पैकेज टेक्नोलॉजी के फलस्वरूप देश में हरित क्रान्ति आई। लेकिन हमारी कृषि अनेक समस्याओं से जूझ रही है। इनको चार वर्गों में वर्गीकृत किया गया है-

  1. पर्यावरणीय,
  2. आर्थिक,
  3. संस्थागत,
  4. प्रौद्योगिकीय।

1. पर्यावरणीय कारक (Environmental Factors) – पर्यावरण कारकों में मानसून का अनिश्चित स्वरूप है। वर्षा की नियमित और पर्याप्त आपूर्ति नहीं होती। मानसून की अवधि में भी वर्षा का वितरण असमान है जिससे इस अवधि में भी फसलों को पर्याप्त जल नहीं मिल पाता। इसके अतिरिक्त कृषि योग्य उपजाऊ मृदा के क्षेत्र अर्धशुष्क और उप-आर्द्र हैं जिनमें फसलें सिंचाई के बिना नष्ट हो जाती हैं। इसलिए सिंचाई की सुविधाओं का विकास आवश्यक है।

2. आर्थिक कारक (Economic Factors) – आर्थिक कारकों में कृषि में निवेश है। किसान अच्छे बीज तथा उर्वरक नहीं खरीद सकते। विभिन्न प्रकार की कृषि मशीनों तथा नलकूप आदि का प्रबन्ध नहीं कर सकते। विपणन असुविधाओं के कारण तथा उचित ब्याज दर पर बैंकों से ऋण न मिलने के कारण किसान कृषि में अधिक निवेश नहीं कर सकते। इसका प्रभाव उत्पादन पर पड़ता है।

3. संस्थागत कारक (Institutional Factors) – जनसंख्या के बढ़ते दबाव के कारण खेतों का छोटा तथा बिखरा होना एक समस्या है। इस प्रकार से जोत अनार्थिक हो जाती है। इन कारणों से किसान अपने खेतों की देखभाल पूर्ण रूप से नहीं कर सकता। न ही वह प्रत्येक खेत पर नलकूप या अन्य मशीन लगा सकता है।

इसके अतिरिक्त जमींदारी व्यवस्था भी इसमें बाधक है। किसान को भू-स्वामित्व नहीं मिलता। इसलिए वह उन खेतों पर निवेश नहीं करता है।

4. प्रौद्योगिकीय कारक (Technological Factors) – कृषि के पुराने तरीके अक्षम हैं। उनसे उत्पादन को बढ़ाया नहीं जा सकता। अभी तक प्रौद्योगिकी का उपयोग सीमित क्षेत्रों में हुआ है। जैसे-पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में। अधिकतर भागों में किसान आज परम्परागत साधनों का उपयोग कर रहा है जिससे उत्पादन कम होता है। अभी भी देश में दो-तिहाई भाग पर सिंचाई सुविधा उपलब्ध नहीं है। वर्षा पर ही निर्भर रहना पड़ता है और केवल एक ही फसल उत्पन्न की जाती है।

ये सब समस्यायें कृषि की उत्पादकता और इसका गहनता को निम्न बनाए हुए हैं।

प्रश्न 11.
रोपण कृषि की मुख्य विशेषताएँ बताइए एवं कुछ प्रमुख रोपण फसलों के नाम लिखें।
उत्तर:
रोपण कृषि दो शताब्दी पुरानी कृषि पद्धति है। इसका प्रादुर्भाव ब्रिटिश जनजातियों के साथ हुआ। इस कृषि पद्धति के विकास में यूरोप तथा अमरीका पूँजी निवेश करता था। इसमें चाय, कहवा, नारियल, केला, मसाले, रबड़, कोको आदि मुख्य फसलें हैं।

रोपण कृषि एक व्यावसायिक कृषि पद्धति है जिसमें मानवीय श्रम की प्रधानता होती है। इसमें मशीनों का प्रयोग भी होता है। समशीतोष्ण देशों से ही प्रशासनिक एवं कुशल तकनीकी, श्रमिक कृषि उपकरण, खाद, दवाइयाँ, श्रमिकों के भोजन, वस्त्र, परिवहन सामग्री, औद्योगिक मशीनें मँगाई जाती हैं। श्रमिक भी स्थानीय होते हैं। पौधा रोपण कृषि के अधि कांश क्षेत्र समतलीय होते हैं। ऐसे क्षेत्र उष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में बिखरे मिलते हैं। विश्व में रोपण कृषि दक्षिणी अमरीका, अफ्रीका एवं दक्षिणी-पूर्वी एशिया में मिलती है।

प्रमुख फसलें व उनके उत्पादक क्षेत्र : इस पद्धति में रबड़, चाय, गन्ना, कहवा. नारियल, मसाले, कोको, केला आदि प्रमुख फसलें हैं। इन फसलों का विशेष क्षेत्रीय प्रतिरूप भी दृष्टिगोचर होता है। जैसे- रबड़-मलेशिया, इण्डोनेशिया व थाईलैण्ड; गन्ना क्यूबा, पेरू, वेनेजुएला, ब्राजील, पूर्वी अफ्रीका एवं मेगागास्कर; चाय-भारत, चीन, श्रीलंका; कहवा-ब्राजील, कोलम्बिया, दक्षिण भारत; मसाले दक्षिण भारत, फिलीपीन्स; कोको-ब्राजील, पश्चिमी अफ्रीका; नारियल-दक्षिण भारत, फिलीपीन्स; केला-मध्य अमरीका, भारत तथा पश्चिमी द्वीपसमूह आदि।

प्रश्न 12.
हरित क्रांति की व्याख्या करें।
उत्तर:
हरित क्रांति खाद्य उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए भारत सरकार द्वारा प्रयुक्त की गई नई तकनीक थी। जिसके अंतर्गत अपने देश की कृषि में आधुनिक विकास के लिए मुख्यतः नए बीज कीटनाशक और रासायनिक उर्वरक का प्रयोग तथा सुनिश्चित जलापूर्ति की अवस्थाओं एवं उपकरणों के प्रयोग के परिणामस्वरूप अनाजों के उत्पादन में वृद्धि हुई, जिसे हरित क्रांति की संज्ञा दी गई।

हरित क्रान्ति के कारण विभिन्न वर्गों और देश के अलग-अलग इलाकों के बीच ध्रुवीकरण तेज हुआ। खेतिहर पैदावार में सामान्य किस्म का इजाफा हुआ। इसमें पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों को प्रभावित किया।

भारत में हरित क्रांति की सफलता के लिए निम्नलिखित कार्यक्रम उत्तरदायी रहे हैं-

  • खाद्यान्न फसलों की अधिक उपज देने वाली किस्मों का अधिकाधिक प्रचलन।
  • रासायनिक उर्वरकों की खपत में तेजी से होने वाली वृद्धि।
  • कीटनाशक रसायनों के उपयोग में वृद्धि।
  • भूमि संरक्षण कार्यक्रम।
  • गहन कृषि जिला कार्यक्रम तथा गहन कृषि क्षेत्र कार्यक्रम।
  • बहुफसली कृषि कार्यक्रम।
  • आधुनिक कृषि उपकरण एवं संयंत्रों का अधिक प्रयोग।

प्रश्न 13.
भारतीय कृषि पर भूमंडलीकरण के प्रभाव की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
भू-मंडलीय का अर्थ है-‘आर्थिक क्रियाओं का देश की सीमाओं से आगे विस्तार करना अर्थात् देश की अर्थव्यवस्था को संसार की अर्थव्यवस्था के साथ जोड़ देना। भूमंडलीकरण का प्रभाव भारतीय कृषि पर पड़ा है।

  • विदेशी कृषि उत्पादनों का आयात किया जा सकता है भले ही वे देश में पैदा किए जा रहे हों। उदाहरण के लिए आस्ट्रेलिया से सेबों का आयात किया गया है जबकि हमारे देश की मांग देश के उत्पादन से पूरी की जा सकती है लेकिन हम आस्ट्रेलिया से आयात को नहीं रोक सकते।
  • भारतीय किसान को विदेशी उत्पादों के मूल्य तथा गुणवत्ता से मुकाबला करना होगा। यदि हमारे देश का चावल महँगा होगा तो लोग विदेशी चावल खरीदेंगे।
  • अनेक देशों की सरकारें किसानों को उत्पादन में छूट देती हैं जिससे उनके उत्पादन सस्ते होते हैं जबकि भारत में ऐसा कुछ नहीं है।
  • विदेशी किसान जैव प्रौद्योगिकी तथा उन्नत तकनीक का प्रयोग करके अपना उत्पादन और गुणवत्ता बढ़ा लेता है तथा लागत घटा देता है लेकिन भारत में इस प्रकार की सुविधा नहीं है।
  • भारतीय किसान अपने खेती के पुराने तौर-तरीकों से विदेशी किसान के सामने कैसे टिक पायेगा। उसे भी नई तकनीक अपनाकर अपने उत्पादों की गुणवत्ता बढ़ानी होगी तथा लागत घटानी होगी।
  • भूमंडलीकरण के नियमों के अनुसार किसानों को अनुदान नहीं दिये जा सकते। आयात-निर्यात पर लगे सीमा शुल्क जैसे बंधनों को भी हटाना होगा।
  • हमारे देश में कृषि के विकास की बहुत संभावनाएँ हैं। नियोजन के द्वारा उत्पादन और गुणवत्ता बढ़ानी होगी। व्यापारी और किसानों को संगठन बनाना होगा। सड़कें, बिजली, सिंचाई और ऋण सम्बन्धी सुविधाएँ बढ़ानी होंगी।

प्रश्न 14.
खरीफ की फसल तथा रबी की फसल में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
खरीफ फसलें (Kharif Crops)-

  1. यह वर्षा के प्रारंभ में बोई जाती है और शरद ऋतु के आरंभ में काट ली जाती है। (मइ-जून से सितम्बर-अक्टूबर)
  2. भारत में खरीफ फसलों के अंतर्गत अपेक्षाकृत अधिक क्षेत्र है।
  3. चावल, मक्का, मूंगफली, ज्वार-बाजरा तथा मूंग-उर्द इस कृषि मौसम में होती है।

रबी फसलें (Rabi Crops)-

  1. यह फसल अक्टूबर-नवम्बर में जाड़ों के प्रारम्भ में बोई जाती है तथा अप्रैल-मई में गर्मियों में काट ली जाती है।
  2. भारत में रबी फसलों के अंतर्गत कृषि क्षेत्र खरीफ की अपेक्षा कम है। 3. गेहूँ, जौ, चना, अलसी, तोरिया, सरसों इस कृषि ऋतु में पैदा की जाती हैं।

प्रश्न 15.
भारत में गन्ने की खेती का वितरण मिट्टी और जलवायु सम्बन्धी आवश्यकताओं, क्षेत्रफल और उत्पादन के संदर्भ में दीजिए।
उत्तर:

  1. भारत विश्व में गन्ना उत्पादन में सबसे अग्रणी देश है। यह चीनी निर्माण का आधार है। इसके लिए लम्बे वर्धनकाल की आवश्यकता है। यह उष्ण तथा उपोष्ण कटिबंधीय जलवायु का पौधा है।
  2. इसके लिए 25-27°C तापमान की आवश्यकता होती है।
  3. 100 सेमी. से अधिक वर्षा होनी चाहिए। अच्छी जल आपूर्ति के लिए सिंचाई की आवश्यकता होती है।
  4. अच्छे जल निकास वाली उपजाऊ मिट्टी में इसकी उपज अधिक होती है।

Bihar Board 12th Geography Important Questions Long Answer Type Part 3, 3

पंजाब से कन्याकुमारी तक गन्ने की पैदावार की जा रही है। गन्ने की कृषि 33 लाख हेक्टेयर भूमि पर की जा रही है (1998 ई०)। भारत में उत्तर प्रदेश सबसे बड़ा गन्ना उत्पादक राज्य है। इसके अतिरिक्त महाराष्ट्र, तमिलनाडु, कर्नाटक, पंजाब, बिहार, आन्ध्र प्रदेश, हरियाणा और राजस्थान में भी गन्ने का उत्पादन होता है।

प्रश्न 16.
भारत में चावल के उत्पादन एवं वितरण का विवरण दीजिए।
उत्तर:
चावल भारत का प्रमुख खाद्यान्न है। उपज की दृष्टि से चावल उत्पादन में भारत का सातवाँ स्थान है। चावल देश के 23% भाग पर पैदा किया जाता है। 2001 ई० में भारत की 44 लाख हेक्टेयर भूमि पर चावल का उत्पादन किया गया तथा इसी वर्ष देश में 8.49 करोड़ टन चावल का उत्पादन हुआ। भारत में चावल का उत्पादन 2001 ई० के अनुसार 1913 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर हो गया है, फिर भी जापान और कोरिया की तुलना में हमारी प्रति हेक्टेयर उपज बहुत कम है।

भारत में चावल उत्पादन के प्रमुख क्षेत्र इस प्रकार हैं-पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, उड़ीसा, बिहार तथा उत्तर प्रदेश, पंजाब और हरियाणा आदि। निम्न सारणी में चावल का क्षेत्र तथा उत्पादन दिखाया गया है-
Bihar Board 12th Geography Important Questions Long Answer Type Part 3, 4
सारणी-भारत : प्रमुख राज्यों में चावल का क्षेत्र और उत्पादन (2000-01)
Bihar Board 12th Geography Important Questions Long Answer Type Part 3, 5

प्रश्न 17.
भारत में कपास की खेती का विवरण मिट्टी तथा जलवायु सम्बन्धी आवश्यकताओं, क्षेत्रफल, उत्पादन क्षेत्रों और उत्पादन के संदर्भ में दीजिए।
उत्तर:
भारत में कपास की खेती प्राचीन समय से हो रही है। भारत कपास की मूल भूमि है।
उत्पादन दशाएँ : मिट्टी-कपास के लिए उपजाऊ दोमट मिट्टी तथा दक्षिण भारत की काली. मृदा सबसे अच्छी रहती है। सुप्रवाहित भूमि इसके लिए अच्छी मानी जाती है।

जलवाय (Climate) – इसकी उपज के लिए 20° से 35° से. तक उच्च तापमान होना चाहिए। पाला कपास की पैदावार कम कर देता है। इसके लिए 50 सेमी. से लेकर 100 सेमी. वर्षा होनी चाहिए। कपास के गोले को पकते समय तेज धूप आवश्यक है।

क्षेत्रफल – 1950-51 में 59 लाख हेक्टेयर भूमि में कपास की खेती की गई थी। 1986-87 में 70 लाख हेक्टेयर तथा 2002-03 में बढ़कर 86 लाख हेक्टेयर हो गया।

उत्पादन (Production) – 1950-51 में कपास का उत्पादन 31 लाख गाँठे (एक गाँठ – 170 किलोग्राम) था जो 2003-04 में बढ़कर 1.35 करोड़ गाँठे हो गया। 1996-97 में कपास का रिकॉर्ड उत्पादन हआ था जो 1.42 करोड गाँठे थीं।

कपास का प्रति हेक्टेयर उत्पादन 1950-51 में 88 किलोग्राम था जो 2002-03 में बड़कर 193 किलोग्राम हो गई।

भारत में कपास का उत्पादन महाराष्ट्र, गुजरात, मध्य प्रदेश तथा तमिलनाडु में होता है। इनके अतिरिक्त दक्षिणी कर्नाटक, पश्चिम आंध्र प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश में भी इसका उत्पादन होता है।

प्रश्न 18.
जल संसाधनों की ह्रास सामाजिक द्वंद्वों और विवादों को जन्म देते हैं। इसे उपयुक्त उदाहरणों सहित समझाइए।
उत्तर:
जल संसाधनों की कमी सामाजिक विवादों और द्वन्द्व को जन्म देती है। यह कथन सही है। यह एक समस्या बन गई है। यह समस्या कई प्रदेशों में विवाद का मूल कारण बन गया है। इसका एक उदाहरण पंजाब और हरियाणा का विवाद है। हरियाणा अपने राज्य की कृषि सिंचाई क्षेत्रों में जल की माँग कर रहा था जो सतलुज से यमुना तक लिंक नहर द्वारा पूर्ण की जानी थी लेकिन उच्चतम न्यायालय का निर्णय हरियाणा के पक्ष में आने पर भी पंजाब अतिरिक्त जल देने को तैयार नहीं हुआ।

कभी-कभी इस प्रकार की समस्याएँ राजनैतिक लाभ भी देती हैं। कनार्टक और तमिलनाडु के मध्य भी इसी प्रकार का जल विवाद है और इस विवाद के कारण तमिलनाडु चुनाव में राजनैतिक दल लाभ उठाते हैं। इस प्रकार के विवाद पीने के पानी के लिये भी उत्पन्न हो जाते हैं। जैसे-उत्तर प्रदेश की सरकार ने दिल्ली राज्य को निर्धारित मात्रा में भी कम पानी दिया है। इस प्रकार के विवाद अन्य राज्यों में समय-समय पर उत्पन्न होते हैं।

प्रश्न 19.
भारत में गेहूँ के उत्पादन एवं वितरण का विवरण दें।
उत्तर:
भारत में चावल के बाद गेहूँ दूसरा प्रमुख अनाज है। भारत विश्व का 12 प्रतिशत गेहूँ उत्पादन करता है। यह मुख्यतः शीतोष्ण कटिबंधीय फसल है। कुल गेहूँ उत्पादन का 85 प्रतिशत क्षेत्र भारत के उत्तरी भाग में केन्द्रित है। देश के कुल बोये गये क्षेत्र में लगभग 14 प्रतिशत भू-भाग पर गेहूँ की कृषि की जाती है। गेहूँ का प्रमुख उत्पादक राज्य उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान तथा मध्य प्रदेश है। पंजाब तथा हरियाणा में प्रति हेक्टेयर गेहूँ की उत्पादकता 4000 किलोग्राम है जबकि उत्तर प्रदेश, राजस्थान, बिहार में प्रति हेक्टेयर पैदावार मध्यम एवं मध्य प्रदेश, हिमाचल प्रदेश तथा जम्मू-काश्मीर में प्रति हेक्टेयर उत्पादन कम है।

भारत में गेहूँ का उत्पादन विभिन्न राज्यों में निम्न हैं-
Bihar Board 12th Geography Important Questions Long Answer Type Part 3, 6

प्रश्न 20.
देश में जल संसाधनों की उपलब्धता की विवेचना कीजिए और इसके स्थानिक वितरण के लिए उत्तरदायी निर्धारित करने वाले कारक बताइए।
उत्तर:
देश में संसार की सतह क्षेत्र का लगभग 2.45% संसार के जल संसाधनों का 4% भाग आता है। देश में वर्षा से प्राप्त कुल जल लगभग 4000 क्यूसेक किमी. है। सतह जल और पुनः प्राप्त योग्य भूमिगत जल से 1.869 क्यूबिक किमी. जल प्राप्त है। इस प्रकार देश में कुल उपयोगी जल संसाधन 1.22 क्यूबिक किमी. है।

सतह जल की उपलब्धि नदियों, झील और तालाब से होती है। ये ही मुख्य स्रोत हैं। भारत में सभी नदियों में औसत वार्षिक प्रवाह 1.869 क्यूबिक किमी० आँका गया है।

भूमिगत जल संसाधन – देश में कुल पुनः प्रतियोग्य भूमिगत जल संसाधन लगभग 432 क्यूबिक किमी. है। इसका 46% गंगा और ब्रह्मपुत्र बेसिन में है।

झीलें – झीलें भी जल संसाधन हैं। इन जलाशयों में जो समुद्र तटीय क्षेत्रों में पाई जाती है खारा जल होता है जिसका उपयोग मछली पालने के लिये किया जाता है।

इस जल संसाधन का वितरण असमान है। देश में उत्तरी भारत की नदियाँ सदा नीरा हैं जबकि दक्षिण भारत की नदियाँ मानसून पर निर्भर करती हैं। गंगा ब्रह्मपुत्र सिंधु नदी के जल ग्रहण क्षेत्र विशाल हैं। दक्षिण भारत की नदियों जैसे गोदावरी, कृष्णा और कावेरी में वार्षिक जल प्रवाह का अधिकतर भाग, काम में लाया जाता है।

संभावित भूमिगत पंजाब, हरियाणा, राजस्थान और तामिलनाडु राज्यों में भूमिगत जल का उपयोग बहुत अधिक है। गुजरात, उत्तर प्रदेश, बिहार, त्रिपुरा और महाराष्ट्र अपने संसाधन का मध्यम दर से उपयोग कर रहे हैं।

Bihar Board 12th Business Studies Objective Important Questions Part 5 in Hindi

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Bihar Board 12th Business Studies Objective Important Questions Part 5 in Hindi

प्रश्न 1.
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अन्तर्गत विवाद आते हैं
(a) कम्पनी के अंश सम्बन्धी विवाद
(b) नौकरी सम्बन्धी विवाद
(c) विक्रेता द्वारा दोषपूर्ण माल के विक्रय सम्बन्धी विवाद
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(c) विक्रेता द्वारा दोषपूर्ण माल के विक्रय सम्बन्धी विवाद

प्रश्न 2.
स्कन्ध विपणि हित की सुरक्षा करती है
(a) निवेशकों की
(b) कम्पनी की
(c) सरकार की
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(b) कम्पनी की

प्रश्न 3.
निम्न में से कौन-सा संवर्द्धन मिश्रण का तत्व नहीं है ?
(a) विज्ञापन
(b) व्यक्तिगत विक्रय
(c) विक्रय संवर्द्धन
(d) उत्पाद विकास
उत्तर:
(d) उत्पाद विकास

प्रश्न 4.
राज्य आयोग उपभोक्ता विवादों का निपटारा कर सकता है
(a) ₹ 5 लाख तक
(b) ₹ 10 लाख तक
(c) ₹ 20 लाख तक
(d) ₹ 20 लाख से अधिक
उत्तर:
(d) ₹ 20 लाख से अधिक

प्रश्न 5.
प्रबन्ध के सिद्धान्त है
(a) गतिशील
(b) लोचशील
(c) सार्वभौमिक
(d) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(d) उपरोक्त सभी

प्रश्न 6.
…………. का अभिप्राय उन सामान्य विवरणों से है जो निर्णय लेने में कर्मचारियों के मार्गदर्शन के लिए तैयार किए जाते हैं।
(a) उद्देश्य
(b) मोर्चाबन्दी
(c) नीतियाँ
(d) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(b) मोर्चाबन्दी

प्रश्न 7.
निम्न में से निर्देशन का तत्व कौन-सा है ?
(a) संदेशवाहन एवं अभिप्रेरणा
(b) संदेशवाहन
(c) अभिप्रेरणा
(d) संगठन
उत्तर:
(a) संदेशवाहन एवं अभिप्रेरणा

प्रश्न 8.
निम्नलिखित में से कौन-सा आयाम व्यावसायिक वातावरण के अन्तर्गत नहीं आते हैं ?
(a) आर्थिक
(b) सामाजिक
(c) भावुकता
(d) न्यायिक
उत्तर:
(c) भावुकता

प्रश्न 9.
उद्यमिता उत्पन्न करने का एक प्रयास है
(a) जोखिम
(b) लाभ
(c) नौकरी
(d) व्यवसाय
उत्तर:
(b) लाभ

प्रश्न 10.
उद्यमिता एक क्रिया है
(a) व्यवस्थित
(b) वैद्य
(c) जोखिमपूर्ण
(d) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(d) उपरोक्त सभी

प्रश्न 11.
जिला फोरम में विवादों का समाधान किया जा सकता है
(a) 5 लाख रु० तक
(b) 10 लाख रु० तक
(c) 15 लाख रु० तक
(d) 20 लाख रु० तक
उत्तर:
(d) 20 लाख रु० तक

प्रश्न 12.
‘जल्दीबाजी में क्रय न करें।’ यह उपभोक्ता का एक महत्त्वपूर्ण है।
(a) उत्तरदायित्व
(b) अधिकार
(c) अधिनियम
(d) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(a) उत्तरदायित्व

प्रश्न 13.
निम्न में से विपणन का कार्य कौन-सा है ?
(a) संवर्द्धन
(b) भौतिक विवरण
(c) परिवहन
(d) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(d) उपरोक्त सभी

प्रश्न 14.
विपणन प्रबंधन का जन्म स्थान है
(a) इंग्लैण्ड
(b) अमेरिका
(c) फ्रांस
(d) जापान
उत्तर:
(b) अमेरिका

प्रश्न 15.
भारत में स्कन्ध विपणन का भविष्य है
(a) उज्ज्वल
(b) अंधकारमय
(c) सामान्य
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(a) उज्ज्वल

प्रश्न 16.
प्रबन्धकीय निर्णय तुरन्त होना चाहिए
(a) सम्पादित
(b) स्थगित
(c) परिवर्तित
(d) निलंबित
उत्तर:
(a) सम्पादित

प्रश्न 17.
नियंत्रण जाँच का एक कार्य है।
(a) दुरुपयोग
(b) खर्च
(c) लाभ
(d) बहाली
उत्तर:
(c) लाभ

प्रश्न 18.
पूँजी बाजार के लिए उत्तरदायी है
(a) तरलता
(b) सुरक्षा
(c) कोष
(d) वस्तुएँ
उत्तर:
(d) वस्तुएँ

प्रश्न 19.
उद्यमिता का उद्देश्य है
(a) परिवर्तन
(b) नवीनीकरण
(c) कार्य निष्पादन
(d) लाभ
उत्तर:
(d) लाभ

प्रश्न 20.
किस स्थिति में अंश के मूल्य में कमी आती है ?
(a) अधि-पूँजीकरण
(b) अल्प-पूँजीकरण
(c) समाज
(d) बाजार
उत्तर:
(a) अधि-पूँजीकरण

प्रश्न 21.
निम्नलिखित में से कौन-सा वित्तीय प्रोत्साहन है ?
(a) प्रोन्नति
(b) अंश आवंटन
(c) नौकरी की सुरक्षा
(d) कर्मचारियों की भागीदारी
उत्तर:
(b) अंश आवंटन

प्रश्न 22.
उपभोक्ता संरक्षण कानून का अधिकार प्रदान नहीं करता है
(a) सुरक्षा
(b) सूचना
(c) चुनाव
(d) दुरुपयोग
उत्तर:
(d) दुरुपयोग

प्रश्न 23.
कर्मचारियों के चुनाव के लिये कौन-सी जाँच का प्रयोग किया जाना चाहिए ?
(a) बौद्धिक जाँच
(b) व्यक्तित्व जाँच
(c) रुचि जाँच
(d) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(d) उपर्युक्त सभी

प्रश्न 24.
नियंत्रण का मुख्य उद्देश्य है
(a) भिन्नता
(b) विचलन
(c) सुधार
(d) हानि
उत्तर:
(c) सुधार

प्रश्न 25.
प्रबंध के सफलता का प्राथमिक तत्व है
(a) संतुष्ट कर्मचारी
(b) अत्यधिक पूँजी
(c) बड़ा बाजार
(d) अधिकतम उत्पादन
उत्तर:
(a) संतुष्ट कर्मचारी

प्रश्न 26.
व्यावसायिक वातावरण नहीं है
(a) जटिल
(b) अनिश्चित
(c) गतिशील
(d) निश्चित
उत्तर:
(d) निश्चित

प्रश्न 27.
सूचना प्रोद्योगिकी ईकाई के लिये संगठन का सर्वोत्तम प्रारूप है
(a) संयुक्त स्कंध प्रमण्डल
(b) साझेदारी व्यवसाय
(c) एकाकी व्यापार
(d) सहकारी उपक्रम
उत्तर:
(d) सहकारी उपक्रम

प्रश्न 28.
प्रबंध में किसे नीति का निर्धारण करना चाहिए ?
(a) कर्मचारी
(b) अंशधारक
(c) ऋणपत्र धारक
(d) उच्च स्तरीय प्रबंधक
उत्तर:
(d) उच्च स्तरीय प्रबंधक

प्रश्न 29.
बाजार की माँग मुख्यतः निर्भर करता है
(a) क्रय शक्ति पर
(b) इच्छा और आवश्यकता पर
(c) फैशन और तकनीक पर
(d) सभी
उत्तर:
(d) सभी

प्रश्न 30.
एक अच्छे ट्रेडमार्क की आवश्यकता नहीं होती है
(a) अंग्रेजी में
(b) विशेष क्रम में
(c) याद रखने में
(d) उत्पाद की उपयुक्तता
उत्तर:
(c) याद रखने में

प्रश्न 31.
स्टाफिंग प्रक्रिया में सम्मिलित है
(a) मानवीय आवश्यकताओं का अनुमान
(b) नियुक्ति
(c) चुनाव
(d) सभी
उत्तर:
(d) सभी

प्रश्न 32.
एक फर्म की ख्याति सम्पत्ति है
(a) भौतिक
(b) अभौतिक
(c) गतिशील
(d) निश्चित
उत्तर:
(b) अभौतिक

प्रश्न 33.
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अन्तर्गत उपभोक्ता के अधिकार हैं
(a) 6
(b) 7
(c) 8
(d) 9
उत्तर:
(a) 6

प्रश्न 34.
पूँजी बाजार व्यापार करता है
(a) अल्पकालीन कोष
(b) मध्यकालीन कोष
(c) दीर्घकानीन कोष
(d) कोई नहीं
उत्तर:
(a) अल्पकालीन कोष

प्रश्न 35.
मानव संसाधन प्रबंधन में शामिल है
(a) भर्ती
(b) चयन
(c) प्रशिक्षण
(d) सभी
उत्तर:
(d) सभी

प्रश्न 36.
नियंत्रण, प्रबंधन का ………… कार्य है।
(a) आधारभूत
(b) सहायक
(c) अनिवार्य
(d) कोई नहीं
उत्तर:
(a) आधारभूत

प्रश्न 37.
निम्न में कौन चालू सम्पत्ति है ?
(a) प्राप्त बिल
(b) रहतिया
(c) प्रारंभिक व्यय
(d) कोई नहीं
उत्तर:
(c) प्रारंभिक व्यय

प्रश्न 38.
समाज के द्वारा अक्सर विज्ञापन का विरोध किया जाता है, क्योंकि इसमें कभी-कभी होता है
(a) धोखाधड़ी
(b) अधिक कीमत
(c) मिथ्या वर्णन
(d) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(d) उपर्युक्त सभी

प्रश्न 39.
उच्च स्तरीय प्रबंधक नियोजन पर अपने समय का भाग व्यय करता है
(a) 35%
(b) 55%
(c) 75%
(d) 95%
उत्तर:
(c) 75%

Bihar Board 12th Business Studies Important Questions Short Answer Type Part 4 in Hindi

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Bihar Board 12th Business Studies Important Questions Short Answer Type Part 4 in Hindi

प्रश्न 1.
व्यवसाय में लाभ की क्या भूमिका है ?
उत्तर:
किसी भी व्यवसाय को स्थापित करने और उसे चलाने का उद्देश्य लाभ कमाना है, इसलिये व्यवसाय में लाभ की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। वास्तव में व्यवसाय में लाभ की भूमिका को निम्नलिखित विचार-बिंदुओं द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है-

  • साहसी को जोखिम उठाने का पुरस्कार देने के लिए।
  • हानियों से बचाव के लिये।
  • विनियोक्ताओं को पर्याप्त प्रतिफल प्रदान करने के लिए।
  • विस्तार एवं आधुनिकीकरण कार्यक्रमों हेतु कोष प्रदान करने के लिए।
  • व्यवसाय के जोखिमों का सामना करने के लिए व व्यवसाय में बने रहने के लिए।

प्रश्न 2.
साझेदारी व्यापार के तीन लाभ बताइए।
उत्तर:
जब दो या दो से अधिक व्यक्ति आपस में समझौता करके किसी व्यापार की स्थापना करते हैं और इसके लाभ-हानियों को आपस में बाँटते हैं तो ऐसे व्यापार को साझेदारी व्यापार कहा जाता है, साझेदारी व्यापार के तीन लाभ या गुण निम्नलिखित हैं-

(i) सुगमता से स्थापना-एकाकी व्यापार के समान साझेदारी व्यवसाय को स्थापित करने में किसी भी कानूनी अथवा वैधानिक औपचारिकताओं का सामना नहीं करना पड़ता है। इसके निर्माण अथवा स्थापना में प्रारंभिक व्यय भी अधिक नहीं होते हैं। व्यापार चलाने के लिये दो व्यक्ति आपस में समझौता करके इसे प्रारंभ कर सकते हैं।

(ii) पंजीयन करना अनिवार्य नहीं-भारतीय साझेदारी अधिनियम के अनुसार, साझेदारी का पंजीयन अनिवार्य न होकर ऐच्छिक है। अतः यदि साझेदार यह समझें कि फर्म का पंजीयन कराना उनके हित में है तो उसका पंजीयन करा सकते हैं अन्यथा नहीं, इसके विपरीत कम्पनी का पंजीयन कराना अनिवार्य है।

(iii) संबंध-विच्छेद में सुविधा-किसी विपरीत अनुबंध के अभाव में साझेदारी में कोई भी साझेदार उचित सूचना देकर साझेदारी से अपना संबंध-विच्छेद कर सकते हैं। यही नहीं किसी साझेदार के दोषी पाए जाने पर शेष सभी साझेदारी की सर्वसम्मत पर उसे साझेदारी से निकाला भी जा सकता है।

प्रश्न 3.
कम्पनी व्यवसाय को परिभाषित करें।
उत्तर:
कम्पनी व्यवसाय का अर्थ संयुक्त पूँजी कंपनी के व्यवसाय से लगाया जाता है। इसका व्यवसाय कम्पनी के नियमों और शर्तों के आधार पर होता है। संयुक्त पूँजी वाली कम्पनी लाभ के लिए बनायी गयी एक ऐच्छिक संस्था है जिसकी पूँजी हस्तांतरित अंशों में अविभाजित होती है। अर्थात् इसके अंश साधारणतया खरीदे तथा बेचे जा सकते हैं। सदस्यों का उत्तरदायित्व साधारण तथा सीमित होता है। इसका अस्तित्व स्थायी होता है एवं विधान द्वारा निर्मित कृत्रिम व्यक्ति है, जिसका व्यवसाय एक सार्वमुद्रा (Common seal) द्वारा शासित होता है। कोई व्यक्ति । कम्पनी के ऊपर तथा कम्पनी भी व्यक्ति के ऊपर अभियोग चला सकती है।

कम्पनी व्यवसाय के अर्थ को स्पष्ट करने के लिये इसकी विभिन्न परिभाषाएँ दी गयी हैं। डॉ. विलियम आर. स्प्रीगल ने कम्पनी व्यवसाय की परिभाषा देते हुए कहा है कि “निगम राज्य की एक रचना है जिसका अस्तित्व उन व्यक्तियों से पृथक होता है जो कि उसके अंशों अथवा अन्य प्रतिभूतियों के स्वामी होते हैं।”

प्रो० हैने के अनुसार “कम्पनी विधान द्वारा निर्मित एक कृत्रिम व्यक्ति है जिसका उसके सदस्यों से पृथक स्थायी अस्तित्व होता है और जिसके पास सार्वमुद्रा होती है।”

उपर्युक्त परिभाषाओं के विस्तृत अध्ययन के बाद निष्कर्ष रूप में इसकी उपयुक्त परिभाषा निम्न शब्दों में दी जा सकती है-“संयुक्त पूँजी वाली कम्पनी एक वैधानिक कृत्रिम व्यक्ति है, जिसका समामेलन किसी निश्चित उद्देश्य से भारतीय कम्पनी अधिनियम के अंतर्गत होता है, अस्तित्व सदस्यों से पृथक होता है, सदस्यों का दायित्व सामान्यतः सीमित होता है और इसकी एक सार्वमुद्रा होती है जिसके अंतर्गत समस्त कार्य सम्पन्न होते हैं।

प्रश्न 4.
प्रविवरण क्या है ?
उत्तर:
प्रविवरण जारी करने का उद्देश्य प्रस्तावित कंपनी के बारे में विनियोगकर्ताओं को परिचित करवाना तथा उन्हें इसके अंश क्रय करने के लिए प्रेरित करना है। विनियोगकर्ताओं के हितों के संरक्षण के लिए प्रविवरण की विषय-सूची का नियंत्रण कानून द्वारा होता है।

प्रविवरण से आशय ऐसे सूचना पत्र, परिपत्र, विज्ञापन या अन्य किसी दस्तावेज से है जिसमें इसके अंशों या ऋणपत्रों का अभिदान अथवा क्रय करने या इसके पास जमाएँ कराने हेतु जनता को अपने प्रस्ताव देने के लिए आमंत्रित किया जाता है। इस प्रकार प्रविवरण में ऐसा कोई भी दस्तावेज शामिल नहीं होता है जो जनता से जमाएँ आमंत्रित करता है अथवा कम्पनी के अंश या ऋणपत्र खरीदने के लिए जनता से प्रस्ताव आमंत्रित करता है। . एक प्रविवरण के आवश्यक तत्त्व निम्नलिखित हैं-

  • इसमें जनता को आमंत्रण अवश्य दिया जाना चाहिए।
  • आमंत्रण कम्पनी द्वारा या कम्पनी की ओर से दिया जाना चाहिए।
  • आमंत्रण इसके अंशों या ऋणपत्रों या ऐसे अन्य संलेखों को क्रय करने के लिए होना चाहिए।

प्रश्न 5.
आंतरिक व्यापार को परिभाषित करें।
उत्तर:
एक ही देश की सीमाओं के अंतर्गत होने वाला व्यापार आंतरिक व्यापार कहलाता है। आंतरिक व्यापार को घरेलू व्यापार अथवा अन्तर्देशीय व्यापार भी कहा जाता है। इसका अर्थ एक राष्ट्र की सीमाओं के अंदर वस्तुओं का क्रय-विक्रय करना है। इसमें वस्तुओं का भुगतान राष्ट्रीय मुद्रा में किया जाता है। इस प्रकार भारत में आंतरिक व्यापार में व्यापारियों के मध्य केवल भारत में किए गये वस्तुओं के लेन-देन शामिल हैं। बहुत से थोक व्यापारी, फुटकर व्यापारी तथा वाणिज्य अभिकर्ता घरेलू व्यापार करते हैं। वे उत्पादक एवं उपभोक्ताओं के मध्य कड़ी का कार्य कहते हैं। आंतरिक तथा घरेलू व्यापार का मुख्य उद्देश्य देश भर में वस्तुओं एवं सेवाओं का वितरण सुविधाजनक बनाना है।

प्रश्न 6.
प्रबन्ध में दक्षता क्या है ?
उत्तर:
किसी भी व्यावसायिक संस्था के कुशल नियंत्रण और संचालन को ही प्रबंध कहा जाता है। व्यवसाय की सफलता के लिये कुशल प्रबंध पर निर्भर करती है। इसलिए प्रबंध में दक्षता का होना आवश्यक है। जब व्यापारिक संस्था का प्रबंध कार्य पूरी कुशलता के साथ अच्छी तरीके से किया जाता है तो इसी को प्रबंध में दक्षता कहा जाता है। एक प्रबंधक में प्रबंध संबंधी जब सभी गुण और दक्षता पाये जाते हैं तभी वह व्यवसाय का कुशल प्रबंध और संचालन कर सकता है। परिणामस्वरूप व्यावसायिक संस्था अपने उद्देश्य में सफल होती है। कुशल प्रबंध और संचालन दक्षता पर निर्भर करता है। जब प्रबंधक प्रबंध के संबंध में पूर्ण दक्ष रहते हैं तभी वह कुशलतापूर्वक प्रबंध कर कार्य कर सकता है।

प्रश्न 7.
स्कंध विपणन के क्या कार्य हैं ?
उत्तर:
स्कन्द विपणन से आशय एक ऐसे संगठित बाजार से है जहाँ कम्पनियों, सरकारी व अर्द्ध-सरकारी संस्थाओं द्वारा निर्गमित की गई प्रतिभूतियों का क्रय-विक्रय किया जाता है। प्रतिभूतियों के अंतर्गत अंश, ऋणपत्र, बंधपत्रों आदि को सम्मिलित किया जाता है।

स्कन्ध विपणन के कार्य निम्नलिखित हैं-
1. वर्तमान प्रतिभूतियों में तरलता व विपणता पैदा करना – शेयर बाजार पहले से निर्गमित की गई प्रतिभूतियों में व्यवहार करने वाला बाजार होता है। जहाँ विभिन्न प्रतिभूतियों का क्रय-विक्रय नियमित रूप से होता रहता है अर्थात् इस बाजार के माध्यम से निवेशक जब भी चाहें अपने धन का प्रतिभूतियों में निवेश कर सकते हैं और जब चाहें निवेश को पुनः धन में बदल सकते हैं। प्रतिभूतियों के क्रय-विक्रय के लिए तैयार बाजार का होना उनकी विपण्यता को बढ़ाता है और .धन के निवेश में तरलता पैदा करता है।

2. प्रतिभूतियों का मूल्य निर्धारण – शेयर बाजार प्रतिभूतियों में व्यापार करने के लिए प्लेटफॉर्म उपलब्ध करता है। यहाँ माँग व पूर्ति की शक्तियाँ स्वतंत्रता से कार्य करती हैं। इस प्रकार प्रतिभूतियों के मूल्य का निर्धारण होता है।

3. व्यवहारों की सुरक्षा – शेयर बाजार संगठित बाजार होते हैं। वे निवेशकों के हितों की सुरक्षा का पूरा प्रबंध करते हैं। प्रत्येक शेयर बाजार के अपने नियम व उपनियम होते हैं। वहाँ व्यवहार करने वाले प्रत्येक सदस्य को इनका पालन करना होता है। इनका उल्लंघन करने वाले सदस्यों की सदस्यता को समाप्त कर दिया जाता है।

4. आर्थिक विकास में योगदान – शेयर बाजार प्रतिभूतियों में तरलता का गुण पैदा करता है। इससे निवेशकों को दो लाभ प्राप्त होते हैं – प्रथम, प्रतिभूतियों के बाजार भाव में परिवर्तन का लाभ उठाया जा सकता है तथा द्वितीय, धन की आवश्यकता पड़ने पर उन्हें बाजार भाव पर कभी भी बेचा जा सकता है। शेयर बाजार द्वारा प्रदान किए जाने वाले ये लाभ लोगों को अपने धन को प्रतिभूतियों में निवेश के लिए प्रेरित करते हैं। इस प्रकार लोगों का धन उद्योगों में लगने से आर्थिक विकास सम्भव होता है।

प्रश्न 8.
विज्ञापन के मुख्य लक्षणों का वर्णन करें। अथवा, विज्ञापन के मुख्य विशेषताओं का उल्लेख करें।
उत्तर:
विज्ञापन के मुख्य लक्षण निम्नलिखित हैं-

  1. विज्ञापन सदैव अव्यक्तिगत होता है, अर्थात् कभी कोई व्यक्ति आमने-सामने विज्ञापन नहीं करता है।
  2. विज्ञापन द्वारा संदेश सार्वजनिक रूप से जनसाधारण के पास पहुँचाया जाता है।
  3. विज्ञापन का उद्देश्य ग्राहकों को विज्ञापित सामग्री का क्रय करने के लिए प्रेरित करना है।

प्रश्न 9.
उदारीकरण के अर्थ को लिखें।
उत्तर:
उदारीकरण वह नीति है जिसमें सरकार द्वारा किसी भी व्यवसाय को चलाने के लिए कुछ उदारवादी कदम उठाये जाते हैं। दूसरे शब्दों में, उदारीकरण एक ऐसी नीति है जिसमें सरकार द्वारा व्यवसायी को व्यवसाय चलाने के लिए कुछ रियायतें दी जाती हैं। परिणामस्वरूप, उसका व्यवसाय फलता-फूलता है और वह अपनी व्यावसायिक उद्देश्य को प्राप्त करता है। उदाहरण के लिए, आरक्षित उद्योगों के द्वार निजी क्षेत्र के लिए खोल दिए गये हैं। विदेशी फर्मों को अधिक रियायतें दी गयी हैं। हमारे देश में भी उदारीकरण की नीति को अपनाया जा रहा है जिससे कि भारतीय अर्थव्यवस्था संतुलित बन सके।

प्रश्न 10.
संगठन प्रक्रिया के विभिन्न चरणों को समझाइए।
उत्तर:
संगठन प्रक्रिया प्रबंध की एक ऐसी प्रक्रिया है जो संख्या को निर्धारित उद्देश्यों एवं लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए बनाया जाता है। यह भिन्न-भिन्न प्रतिभाओं एवं योग्यताओं वाले व्यक्तियों को आपस में मिलाती है और उन्हें सुनिश्चित संबंधों, समन्वय तथा सम्प्रेषण द्वारा एक संगठन में बाँधती है। इस प्रकार संगठन की स्थापना के लिए विभिन्न कदमों को उठाना पड़ता है, जिन्हें संगठन प्रक्रिया के नाम से जाना जाता है। संगठन प्रक्रिया के अन्तर्गत उठाए जाने वाले प्रमुख कदम निम्नलिखित हैं-

  • संस्था के उद्देश्यों एवं लक्षणों का निर्धारण करना।
  • विभिन्न क्रियाओं का निर्धारण करना।
  • क्रियाओं का श्रेणीबद्ध किया जाना या समूहीकरण करना।
  • कर्मचारियों के बीच कार्य का आबंटन करना।
  • अधिकार, सत्ता, कर्तव्यों एवं दायित्वों की व्याख्या करना।
  • अधिकारों का सौंपा जाना इत्यादि।

प्रश्न 11.
नियोजन की सीमाओं का वर्णन करें।
उत्तर:
नियोजन की निम्नलिखित सीमाएँ होती हैं-

  • नियोजन पर किये गये व्यय से लागत व्ययों में वृद्धि होती है।
  • नियोजन में यदि परिवर्तन किया जाए तो बाधाएँ आती हैं।
  • नियोजन में पक्षपातपूर्ण निर्णय किये जाते हैं।
  • संकट काल में नियोजन करना संभव नहीं है।
  • नियोजन बहुत अधिक खर्चीली प्रक्रिया है। इसको तैयार करने में बहुत अधिक समय, श्रम तथा धन का अपव्यय होता है।

प्रश्न 12.
“अधिकार का भारार्पण किया जा सकता है, उत्तरदायित्व का नहीं।” स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
अधिकार का भारार्पण किया जा सकता है, परन्तु उत्तरदायित्व का नहीं। इस कथन को निम्नलिखित प्रकार से समझाया जा सकता है-

अधिकार सौंपने से आशय अधीनस्थों को निश्चित सीमा के अंतर्गत कार्य करने का केवल अधिकार देना है। एक उच्च अधिकारी के लिए यह संभव नहीं होता कि वह अपने समस्त अधिकारों का प्रयोग करके बड़े संगठन के सभी कार्यों को स्वयं पूरा कर ले। इसलिए ऐसे उच्चाधिकारियों के लिए यह आवश्यक हो जाता है कि वे अपने अधिकारों का भारार्पण (Delegation) अधीनस्थों को करें।

उत्तरदायित्व के सम्बन्ध में उल्लेखनीय बात है कि कोई भी प्रबंधक अपने दायित्व का सौंपना या प्रतिनिधान (delegation) नहीं कर सकता। हाँ, अन्य व्यक्तियों से सहायता ली जा सकती है, किन्तु दायित्व मूल व्यक्ति का ही रहता है। उदाहरण के लिए, एक कम्पनी की दशा में प्रबंध संचालन अपने कर्तव्यों के लिए संचालन मण्डल के प्रति उत्तरदायी होता है। वह अपने कार्य-भार को हल्का करने के उद्देश्य से अन्य लोगों की सहायता लेता है तथा उन्हें आवश्यक अधिकार भी प्रदान करता है। परन्तु यदि अधीनस्थ व्यक्ति के आचरण से कम्पनी को कोई हानि होती है तो संचालक मण्डल के सम्मुख प्रबंध संचालक ही उत्तरदायी होगा।

उपर्युक्त अध्ययन से यह स्पष्ट हो जाता है कि केवल अधिकार का भारार्पण किया जा सकता है। उत्तरदायित्व का नहीं।

प्रश्न 13.
भर्ती के विभिन्न बाह्य स्रोतों की सची बनाइए।
उत्तर:
भर्ती के विभिन्न बाह्य स्रोतों की सूची निम्नलिखित हैं-

  • रोजगार कार्यालय,
  • शिक्षण संस्थाएँ,
  • वर्तमान कर्मचारी का सिफारिश,
  • श्रम-संघ,
  • अन्य संस्थाओं के कर्मचारी,
  • विशिष्ट संस्थाएँ,
  • संगठन में से ही पदोन्नति करके,
  • स्थानांतरण करके,
  • भूतपूर्व अधिकारी,
  • वर्तमान कर्मचारियों के मित्रगण एवं रिश्तेदार।

प्रश्न 14.
कार्य पर प्रशिक्षण एवं कार्य से दूर प्रशिक्षण में अन्तर स्पष्ट करें।
उत्तर:
कार्य पर प्रशिक्षण (On the Job Training) – इस प्रथा के अन्तर्गत कर्मचारियों को सीधे काम पर लगाकर प्रशिक्षण दिया जाता है। इससे कर्मचारी काम भी सीखता है और उत्पादन भी करता है। वह यहाँ पर अपनी भूल को तुरन्त सुधारने का प्रयत्न करता है। इसकी लागत भी कम आती है।

कार्य से दूर प्रशिक्षण (Off the Job Training) – कार्य पर प्रशिक्षण का सबसे बड़ा दोष यह है कि प्रशिक्षण की सफलता प्रशिक्षण की निजी योग्यता एवं रुचि पर निर्भर करती है। अब इस कमी को दूर करने के लिए कार्य से दूर प्रशिक्षण का सहारा लिया जाता है। इसके अन्तर्गत एक पूर्व नियोजित कार्य के अनुसार व्यापक प्रशिक्षण दिया जाता है। विशेष पाठ्यक्रम, भूमिका निर्वाह, व्यावसायिक क्रीड़ा, बहुपद प्रबन्ध, संवेदनशील प्रशिक्षण इत्यादि कार्य से दूर प्रशिक्षण की प्रमुख विधियाँ हैं।

प्रश्न 15.
प्रबंध के निर्देशन कार्य के तत्त्वों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
निर्देशन प्रबंध का एक प्रमुख कार्य है। निर्देशन के चार प्रमुख तत्त्व होते हैं, जो इस प्रकार हैं-

  • अभिप्रेरणा (Motivation) – व्यक्तियों को अच्छा उत्साह तथा पहल भावना के साथ कार्य करने के लिए प्रोत्साहित करना है।
  • नेतृत्व (Leadership) – प्रभावपूर्ण नेतृत्व व्यक्तियों में काम कराने के लिए जादुई असर करता है।
  • पर्यवेक्षण (Supervision) – आशातीत परिणामों को प्राप्त करने तथा योजनानुसार तरीके से कार्य कराने की दिशा में सुपरवाइजर काम पर नजर रखकर प्रभावपूर्ण निष्पादन का रास्ता तैयार करता है।
  • संदेशवाहन (Communication) – संदेशवाहन निर्देशन का मूल-बिन्दु है।

प्रश्न 16.
स्थायी पूँजी की आवश्यकता को प्रभावित करनेवाले घटकों को लिखें।
उत्तर:
अलग अलग उपक्रमों में स्थायी पूँजी की आवश्यकता अलग-अलग होती है। स्थायी पूँजी की आवश्यकता को प्रभावित करने वाले विभिन्न तत्त्व हैं जो निम्नलिखित हैं-

(i) व्यवसाय के प्रकार (Types of Business) – व्यवसाय आकार एवं प्रकृति पर निर्भर करता है कि कितनी स्थायी पूँजी की आवश्यकता होगी। निर्माणी संस्थाओं में स्थायी पूँजी की अधिक आवश्यकता होती है, क्योंकि उन्हें भूमि; भवन, मशीन, औजार, फर्नीचर आदि क्रय करने होते हैं। इसी प्रकार सामाजिक उपयोगिता की संस्थाएँ जैसे–रेलवे, बिजली विभाग, जल विभाग संस्थाओं में अधिक स्थायी पूँजी की आवश्यकता होती है, क्योंकि उन्हें स्थायी सम्पत्तियों पर अधिक विनियोग करना होता है। दूसरी ओर व्यापारिक संस्थाओं में चल सम्पत्तियों पर अधिक विनियोग करने की आवश्यकता होती है। इनमें कार्यशील पूँजी की अधिक आवश्यकता होती है।

(ii) व्यवसाय का आकार (Size of the Business) – व्यवसाय के आकार से भी स्थायी पूँजी प्रभावित होती है। बड़े व्यवसाय गृहों में बड़ी मशीनों की आवश्यकता होती है जिनके क्रय पर अधिक स्थायी पूँजी की आवश्यकता होती है।

(iii) उत्पादन तकनीक (Technique of Production) – स्थायी पूँजी की आवश्यकता संस्था द्वारा अपनाई गई उत्पादन तकनीक पर निर्भर करती है। जिन संस्थाओं में गहन-पूँजी तकनीक अपनाई जाती है वहाँ स्थायी पूँजी की आवश्यकता अधिक होती है। इसके विपरीत जिन संस्थाओं में गहन श्रम तकनीक अपनाई जाती है वहाँ स्थायी पूँजी की आवश्यकता कम होती है।

(iv) अपनाई गई क्रियाएँ (Activities Undertaken) – संस्था द्वारा अपनाई गई क्रियाओं पर भी स्थायी पूँजी की आवश्यकता पर निर्भर करती है। यदि उत्पादन एवं वितरण दोनों प्रकार की क्रियाएँ अपनाई जाती हैं तो स्थायी पूँजी की आवश्यकता अधिक होगी। इसके विपरीत यदि केवल निर्माण अथवा व्यापारिक क्रियाओं का ही निष्पादन किया जाता है तो स्थायी पूँजी की आवश्यकता कम होगी।

प्रश्न 17.
विक्रय संवर्द्धन की प्रमुख विशेषताएँ कौन-कौन से हैं ?
उत्तर:
विक्रय संवर्द्धन की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

  • विक्रय संवर्द्धन विक्रय बिन्दु पर ग्राहकों के ध्यान को वस्तुओं और सेवाओं के लिए आकर्षित करता है।
  • विक्रय संवर्द्धन वस्तुओं और सेवाओं को ग्राहकों की ओर ले जाने वाली क्रियाओं का समूह है।
  • विक्रय संवर्द्धन उत्पाद, सम्पत्ति या सेवा के मौद्रिक हस्तांतरण की इच्छा की जन घोषणा है जो संकेतों, प्रदर्शनों, डाक एवं अन्य अनियमित विपणन क्रियाओं द्वारा की जाती है।
  • विक्रय संवर्द्धन में उन अनियमित क्रियाओं को सम्मिलित किया जाता है जो कि उपभोक्ताओं एवं व्यापारियों को माल खरीदने के लिए प्रेरित करती है।
  • विक्रय संवर्द्धन में विज्ञापन, वैयक्तिक विक्रय तथा प्रकाशक को सम्मिलित नहीं किया जाता है।

प्रश्न 18.
प्रबंध की परिभाषा दीजिए।
उत्तर:
प्रबंध की परिभाषा विभिन्न विद्वानों ने दी है जो इस प्रकार है-
(i) जॉर्ज आर० टैरी के अनुसार, “प्रबंध एक पृथक् प्रक्रिया है जिसमें नियोजन, संगठन, वास्तविकता तथा नियंत्रण को सम्मिलित किया जाता है तथा इसका प्रयोग व्यक्तियों और साधनों द्वारा उद्देश्यों को निर्धारित और प्राप्त करने के लिए किया जाता है।”

(ii) कून्ट्ज और ओ’डेनेल के अनुसार, “प्रबंध एक सार्वभौमिक तथा निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है जो बदलते हुए वातावरण में संगठन के उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए एक ऐसा आन्तरिक वातावरण तैयार करती है जिसमें कुछ व्यक्ति समूहों में काम करते हुए चुने गए उद्देश्यों तथा लक्ष्यों को प्राप्त कर सकें।”

प्रश्न 19.
समय अध्ययन तथा गति अध्ययन में अंतर बताएँ।
उत्तर:
किसी भी उतपादन क्रिया को करने में लगने वाले समय की एवं उसका रिकॉर्ड रखना ही समय अध्ययन कहलाता है जबकि गति अध्ययन वह विज्ञान है जिसके द्वारा अनावश्यक निर्देशित तथा अकुशल गति से होने वाली क्षति को रोका जा सके। इसमें मशीन या श्रमिक की किसी क्रिया को करने में होने वाली हरकतों का अध्ययन करना होता है।

प्रश्न 20.
क्रियात्मक संगठन क्या है ? इसकी विशेषताएँ क्या हैं ?
उत्तर:
क्रियात्मक संगठन विशिष्टीकरण के सिद्धान्तों पर आधारित है। इस प्रणाली के अन्तर्गत प्रबंध का विभाजन इस प्रकार किया जाता है कि प्रत्येक व्यक्ति को कम-से-कम काम करना पडे। प्रत्येक कार्य को यथासंभव छोटी-छोटी उपक्रियाओं में विभाजित कर दिया जाता है और प्रत्येक व्यक्ति को कार्य उसकी रूचि के अनुसार सौंप दिया जाता है। प्रत्येक श्रमिक का प्रबंध में से केवल एक अधिकार द्वारा ही संबंध रहता है जो उसे आवश्यक आदेश देता है।

क्रियात्मक संगठन की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

  • एक विशिष्ट कार्य के संबंध में आदेश देने का अधिकार एक वरिष्ठ विशेषज्ञ को दे दिया जाता है।
  • इस संगठन में नियोजन और क्रियान्वयन कार्यों को अलग-अलग कर दिया जाता है।
  • इस संगठन में प्रत्येक कार्य का विभाजन विशिष्टीकरण के आधानर पर छोटी-छोटी क्रियाओं में किया जाता है।
  • इस संगठन में आदेश की एकता के स्थान पर आदेश की अनेकता पाई जाती है अर्थात् श्रमिक को किसी एक अधिकारी की अपेक्षा अनेक अधिकारियों (आठ नायकों) से आदेश प्राप्त होते हैं।
  • इस संगठन में विशेषज्ञ केवल परामर्श ही नहीं देते, बल्कि उन्हें अपने क्षेत्र में सम्पूर्ण संगठन में आदेश देने का अधिकार होता है।
  • इस संगठन में अधिकारों व दायित्वों का विभाजन, विभागों के आधार पर न होकर कार्यों के आधार पर होता है।

प्रश्न 21.
भर्ती क्या है ? यह चयन से किस प्रकार भिन्न है ?
उत्तर:
भर्ती से आशय एक ऐसी प्रक्रिया से है जिसके द्वारा भावी कर्मचारियों की खोज की जाती है और उन्हें उपक्रम में कार्य करने के लिए आवेदन पत्र देने के लिए प्रेरित किया जाता है। एडवीन बी. फिलिप्पो के अनुसार, “भर्ती भावी कर्मचारियों की खोज करने और उन्हें रिक्त कार्यों के लिए आवेदन करने के लिए प्रेरणा व प्रोत्साहन करने की प्रक्रिया होती है।”

भर्ती और चयन में अन्तर इस प्रकार है-
Bihar Board 12th Business Studies Important Questions Short Answer Type Part 4, 1

प्रश्न 22.
नियोजन किस प्रकार नियंत्रण को संभव बनाता है ?
उत्तर:
नियोजन प्रबंध के नियंत्रण कार्यों को संभव बनाता है। इसलिए इसको नियंत्रण का आधार माना जाता है। नियोजन द्वारा संस्था के उद्देश्यों को निर्धारित करके संस्था में कार्यरत सभी विभागों एवं व्यक्तियों को बता दिया जाता है कि उन्हें कब, क्या और किस प्रकार करना है। उनके कार्य, समय, लागत आदि के बारे में प्रमाप (Standards) निश्चित कर दिए जाते हैं। नियंत्रण में कार्य पूरा होने पर वास्तविक कार्य की तुलना प्रमाणित कार्य के साथ करके विचलनों (Deviations) का पता लगाया जाता है। ऋणात्मक विचलन आने पर अर्थात् कार्य इच्छानुसार पूरा न होने पर संबंधित व्यक्ति को उत्तरदायी ठहराया जाता है। वास्तविक कार्य का माप, विचलन की जानकारी व श्रमिक को उत्तरदायी ठहराना नियंत्रण के अंतर्गत आता है। इस प्रकार नियोजन के अभाव में नियंत्रण सभव नहीं है। इसलिए कहा जाता है कि नियोजन नियंत्रण को संभव बनाता है।

प्रश्न 23.
विज्ञापन को अधिक प्रभावशाली बनाने के लिए सुझाव दीजिए।
उत्तर:
विज्ञापन को अधिक प्रभावशाली बनाने के लिए निम्नलिखित सुझाव इस प्रकार है-

  1. विज्ञापन का शीर्षक आकर्षक होना चाहिए।
  2. विज्ञापन में चित्रों का प्रयोग करना चाहिए।
  3. विज्ञापन का मूल्य मितव्ययी होना चाहिए।
  4. विज्ञापन में आकर्षक सीमा रेखा का प्रयोग करना चाहिए।
  5. विज्ञापन में उत्तर के लिए कूपन का प्रयोग भी होना चाहिए।
  6. विज्ञापन में रंगों का उचित प्रयोग होना चाहिए।
  7. विज्ञापन में प्रभावपूर्ण नारे का भी प्रयोग होना चाहिए।

अतः इस प्रकार उपर्युक्त तथ्यों को ध्यान में रखकर एक विज्ञापन को अधिक प्रभावपूर्ण बनाया जा सकता है।

प्रश्न 24.
उपभोक्ता के हितों की रक्षा के लिए भारत सरकार ने कई कानून बनाए हैं। विवेचना कीजिए।
उत्तर:
उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा के लिए भारत सरकार ने कई कानून बनाए हैं जिनमें उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 पास किया गया है। इस अधिनियम में उपभोक्ताओं को विभिन्न अधिकार प्रदान किये गये हैं। जैसे-मूल आवश्यकताओं की पूर्ति होना। ये आवश्यकताएँ भोजन, मकान, कपड़ा, बिजली, पानी शिक्षा और चिकित्सा इत्यादि की सुविधाएँ प्रदान की गयी है। इसी तरह जागरूकता के अधिकार भी दिए गए हैं। इसके अन्तर्गत चयन के लिए उपभोक्ताओं को विक्रेताओं द्वारा सही जानकारी प्रदान करना है। उपभोक्ताओं को वस्तुओं का चुनाव करने की सुविधा दी गयी है जिससे कि उपभोक्ता अपनी मनपसंद की वस्तुएँ उचित मूल्य पर प्राप्त कर सकें।

इसके अतिरिक्त उपभोक्ताओं का शोषण और धोखाधड़ी नहीं हो इसके लिए भी कानून बनाए गये हैं। इसके अतिरिक्त यदि उपभोक्ताओं को गुणवत्ता वाली वस्तुएँ उचित मूल्य पर प्राप्त नहीं होती है। साथ ही यदि दुकानदार किसी प्रकार का कोई गलत आचरण करता है और मूल्य के अनुसार वस्तुएँ नहीं देता है तो कानून द्वारा उपभोक्ताओं को उपभोक्ता फोरम में शिकायत दर्ज करने का अधिकार भी दिया गया है। उपभोक्ता फोरम से सुनवाई होने पर कानूनी रूप से उपभोक्ताओं को क्षतिपूर्ति के रूप में मुआवजा प्राप्त होने का अधिकार भी दिया गया है।

प्रश्न 25.
एक उपभोक्ता के लिए ‘चुनने का अधिकार’ से क्या तात्पर्य है ?
उत्तर:
एक उपभोक्ता के लिए चुनने के अधिकार का अर्थ यह होता है कि उपभोक्ता संरक्षण के अनुसार उपभोक्ता जब किसी वस्तु को खरीदता है तो उसं विभिन्न क्वालिटी की वस्तुओं को चुनकर खरीदारी करता है। इससे उपभोक्ता के हितों की सुरक्षा होती है। वास्तव में जब कोई उपभोक्ता वस्तुओं की खरीदारी करते समय वस्तुओं को चुनकर खरीदता है तो इसे चुनने का अधिकार कहा जाता है।

प्रश्न 26.
नेतृत्व का क्या अर्थ है ?
उत्तर:
नेतृत्व का अर्थ किसी व्यक्ति के उस गुण से लगाया जाता है जिसके आधार पर वह अनुयायियों के समूह का मार्ग-प्रदर्शन करता है तथा नेता के रूप में उनकी क्रियाओं का संचालन करता है। प्रबंध के क्षेत्र में नेतृत्व की बड़ी महत्वपूर्ण भूमिका है।

नेतृत्व को परिभाषित करते हुए कुण्ट्ज एवं ओडोनेल ने कहा है कि “नेतृत्व कला व्यक्तियों को प्रभावित करने की प्रक्रिया है जिसमें वे स्वेच्छा तथा उत्साह से संगठनात्मक लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए प्रयत्न करेंगे।”

प्रश्न 27.
विज्ञापन एवं व्यक्तिगत विक्रय के बीच कोई दो अन्तर बताइए।
उत्तर:
व्यक्तिगत विक्रय तथा विज्ञापन विक्रय के बीच पाये जानेवाले दो अन्तर निम्नलिखित हैं
(i) व्यक्तिगत विक्रय एक ऐसी विक्रय की विधि है जिसमें क्रेता और विक्रेता दोनों आमने-सामने होते हैं। विक्रेता द्वारा क्रेता के सामने वस्तुएँ प्रस्तुत की जाती है और क्रेता को संट करते हुए वस्तुओं का विक्रय किया जाता है। दूसरी ओर विज्ञापन विक्रय का एक ऐसा माध्यम है जिसमें वस्तुओं की बिक्री करने के लिए व्यापारी कंपनी विभिन्न माध्यमों से विज्ञापन कार्य करते हैं। आमलोग उसे पढ़कर अपनी आवश्यकता की वस्तुएँ खरीदते हैं।

(ii) व्यक्तिगत विक्रय में अधिकतर ग्राहकों के संदेह का तुरन्त समाधान किया जाता है। दूसरी ओर विज्ञापन के द्वारा विक्रय होने से ग्राहकों के वस्तुओं के संदेहों का तुरन्त समाधान नहीं . हो सकता है।

प्रश्न 28.
कार्य पर प्रशिक्षण का क्या अर्थ है ?
उत्तर:
कार्य पर प्रशिक्षण के अन्तर्गत कर्मचारियों को सीधे काम पर लगाकर प्रशिक्षण दिया जाता है। इससे कर्मचारी काम भी सीखता है और उत्पादन भी करता है। वह यहाँ पर अपनी भूल को तुरन्त सुधारने का प्रयत्न करता है। इसकी लागत भी कम आती है।

प्रश्न 29.
पर्यवेक्षण के महत्व के दो बिन्दु लिखिए।
उत्तर:
पर्यवेक्षण के महत्व के दो बिन्दु निम्नलिखित हैं-

  • पर्यवेक्षण के द्वारा कर्मचारियों को एक टीम के रूप में संगठित करके उनकी कार्यक्षमता का प्रयोग करता है। यह कर्मचारियों में अनुशासन तथा समन्वय स्थापित करता है।
  • पर्यवेक्षण का महत्व इसलिए है कि यह संस्था के विभाग में कर्मचारियों को समय-समय पर अधिक-से-अधिक काम करने की प्रेरणा देता है। साथ ही यह मालिकों और श्रमिकों तथा कर्मचारियों के बीच मधुर संबंध बनाये रखने में अपनी भूमिका निभाता है।

प्रश्न 30.
पूँजी बाजार के दो अंग कौन-से हैं ?
उत्तर:
पूँजी बाजार के दो अंग इस प्रकार हैं-
(i) स्कंध विनिमय बाजार – आधुनिक युग में स्कन्ध विपणि किसी भी देश के पूँजी बाजार का एक महत्वपूर्ण अंग माना जाता है। स्कंध विपणि से आशय ऐसे संगठित बाजार से है जहाँ पर अंश ऋण-पत्रों सरकारी एवं अर्द्धसरकारी प्रतिभूतियों का क्रय-विक्रय किया जाता है।

(ii) व्यावसायिक बैंक – यह भी पूँजी बाजार का एक प्रमुख अंग है। व्यावसायिक बैंक एक ऐसा बैंक है जो जनता के बचत को अपने यहाँ विभिन्न खातों में सुरक्षित रूप में रखता है और आवश्यकता पड़ने पर अपने ग्राहकों को कर्ज भी प्रदान करता है। व्यावसायिक बैंक से ग्राहक कर्ज के रूप में पूँजी प्राप्त करते हैं।

प्रश्न 31.
बजटीय नियंत्रण क्या है ?
उत्तर:
बजटीय नियंत्रण का अर्थ व्यावसायिक प्रगति की योजनाओं को बजटों के रूप में निर्धारित करने और उसके विकास को इस बजटीय लक्ष्यों के अनुसार संचालित व नियंत्रित करने से है। सरल शब्दों में बजटीय नियंत्रण बजट अनुमानों तथा वास्तविक परिणामों में तुलना करने की क्रिया को कहते हैं।

जार्ज आर० टेरी (George R. Terry) ने बजटीय नियंत्रण को निम्न रूप में परिभाषित किया है- “यह वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा वास्तविक कार्यकलापों को पता लगाया जाता है। फिर बजट अनुमानों से उसकी तुलना की जाती है, जिससे उपलब्धियों की पुष्टि की जा सके अथवा बजट अनुमानों में समायोजन करके या अन्तरों के कारणों का सुधार करके अन्तरों को दूर किया जा सके।”

प्रश्न 32.
‘क्रियाओं का पैमाना’ स्थायी पूँजी की आवश्यकता को कैसे प्रभावित करता है ?
उत्तर:
स्थायी सम्पतियों के बढ़ाने में जो धन खर्च होता है, उसे स्थायी पूँजी कहा जाता है। स्थायी पूँजी की आवश्यकता विभिन्न तत्वों द्वारा प्रभावित होता है जिनमें क्रियाओं का पैमाना भी एक है। जब व्यपारिक क्रियाओं का पैमाना बड़ा होता है तो स्थायी पूँजी की अधिक आवश्यकता होती है क्योंकि क्रियाओं का पैमाना बड़ा होने से व्यावसायिक क्रियाओं के लेन-देन बड़े पैमाने पर होते रहते हैं। इसलिए स्थायी पूँजी की आवश्यकता बड़ी मात्रा में होती है।

प्रश्न 33.
‘विक्रय संवर्द्धन विज्ञापन को प्रभावी बनाता है।’ कैसे ?
उत्तर:
सामान्य बोलचाल की भाषा में विक्रय संवर्द्धन का अर्थ उन सभी क्रियाओं से लगाया जाता है जो बिक्री में वृद्धि करने के उद्देश्य से की जाती है। विक्रय संवर्द्धन करने के लिए विज्ञापन को प्रभावशाली बनाना आवश्यक है। इसीलिए यह कथन सही है कि विक्रय संवर्द्धन विज्ञापन को प्रभावी बनाता है। जब विज्ञापन अच्छी तरह से किया जाता है तो व्यापारिक संस्था में विक्रय संवर्द्धन तेजी से होता है।

प्रश्न 34.
कार्यात्मक संगठन के दो लाभ दीजिए।
उत्तर:
कार्यात्मक संगठन के दो लाभ निम्नलिखित हैं-

  • कार्यात्मक संगठन में विशिष्टीकारण का तत्व पाया जाता है। इसमें सभी क्रियाओं के आधार पर विभिन्न भागों में बाँटकर प्रत्येक कार्य एक विशेषज्ञ को सौंपा जाता है और विशिष्टीकरण के लाभ प्राप्त किये जाते हैं।
  • कार्यात्मक संगठन का एक लाभ यह भी है कि इसके द्वारा संगठन के सभी अधिकारियों, प्रबंधकों और कर्मचारियों की कार्य-कुशलता में वृद्धि होती है।

Bihar Board 12th Business Studies Objective Important Questions Part 4 in Hindi

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Bihar Board 12th Business Studies Objective Important Questions Part 4 in Hindi

प्रश्न 1.
नियमित कार्यशील पूँजी भाग है
(a) स्थायी कार्यशील पूँजी
(b) परिवर्तनशील कार्यशील पूँजी
(c) शुद्ध कार्यशील पूँजी
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(c) शुद्ध कार्यशील पूँजी

प्रश्न 2.
विज्ञापन करना क्यों लाभदायक है ?
(a) प्रतियोगिता का सामना करने के लिए सहायक
(b) अधिक पहुँच
(c) स्पष्टता
(d) ग्राहकों को संतुष्टि को बढ़ाने में
उत्तर:
(b) अधिक पहुँच

प्रश्न 3.
प्रबंध की प्रकृति है
(a) जन्मजात प्रतिभा
(b) अर्जित प्रतिभा के रूप में
(c) जन्मजात प्रतिभा तथा अर्जित प्रतिभा दोनों के रूप में
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(c) जन्मजात प्रतिभा तथा अर्जित प्रतिभा दोनों के रूप में

प्रश्न 4.
नई आर्थिक नीति के प्रमुख अंग हैं
(a) उदारीकरण
(b) वैश्वीकरण
(c) निजीकरण
(d) ये सभी
उत्तर:
(d) ये सभी

प्रश्न 5.
नियोजन होता है
(a) अल्पकालीन
(b) मध्यकालीन
(c) दीर्घकालीन
(d) सभी अवधियों के लिए
उत्तर:
(d) सभी अवधियों के लिए

प्रश्न 6.
स्थानांतरण और प्रोन्नति नियुक्ति के साधन हैं
(a) बाह्य
(b) आंतरिक
(c) संघ
(d) ठेकेदारी
उत्तर:
(b) आंतरिक

प्रश्न 7.
पर्यवेक्षण प्रबंध का स्तर है
(a) उच्च
(b) मध्यम
(c) निम्न
(d) सभी
उत्तर:
(c) निम्न

प्रश्न 8.
अंगूरीलता संदेशवाहन होता है
(a) अनौपचारिक
(b) औपचारिक
(c) दोनों
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(a) अनौपचारिक

प्रश्न 9.
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम पारित हुआ
(a) 1996 में
(b) 1786 में
(c) 1880 में
(d) कोई नहीं
उत्तर:
(d) कोई नहीं

प्रश्न 10.
कर्मचारियों का विकास में शामिल है
(a) पदोन्नति
(b) स्थानान्तरण
(c) प्रशिक्षण
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(d) इनमें से कोई नहीं

प्रश्न 11.
मुद्रा बाजार व्यवहार करता है
(a) अल्पकालीन कोष में
(b) मध्यकालीन कोष में
(c) दीर्घकालीन कोष में
(d) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(a) अल्पकालीन कोष में

प्रश्न 12.
पूँजी बाजार व्यवहार करता है
(a) अल्पकालीन कोष में
(b) मध्यकालीन कोष में
(c) दीर्घकालीन कोष में
(d) सभी
उत्तर:
(c) दीर्घकालीन कोष में

प्रश्न 13.
सन् 2004 में भारत में स्कंध विपणियों की संख्या थी
(a) 20
(b) 21
(c) 23
(d) 24
उत्तर:
(d) 24

प्रश्न 14.
विपणन का लाभ है
(a) उपभोक्ताओं का
(b) व्यावसायियों को
(c) निर्माताओं का
(d) सभी को
उत्तर:
(d) सभी को

प्रश्न 15.
निर्देशन संबंधित है
(a) उच्च स्तर से
(b) मध्यम स्तर से
(c) निम्न स्तर से
(d) सभी स्तरों से
उत्तर:
(d) सभी स्तरों से

प्रश्न 16.
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम पारित हुआ था
(a) 1786 में
(b) 1886 में
(c) 1986 में
(d) 1986 में
उत्तर:
(c) 1986 में

प्रश्न 17.
नियंत्रण है
(a) अनिवार्य
(b) आवश्यक
(c) ऐच्छिक
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(a) अनिवार्य

प्रश्न 18.
प्राथमिक और द्वितीयक पूँजी बाजार
(a) एक-दूसरे के प्रतिस्पर्धी है
(b) एक-दूसरे का नियंत्रक है
(c) एक-दूसरे के पुरक हैं
(d) स्वतंत्र रूप से संचालित होता है
उत्तर:
(c) एक-दूसरे के पुरक हैं

प्रश्न 19.
प्रभावी संदेशवाहन में बाधा है
(a) भाषा
(b) दूरी
(c) व्यक्तिगत भिन्नताएँ
(d) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(b) दूरी

प्रश्न 20.
संदेशवाहन के प्रकार हैं
(a) लिखित
(b) मौखिक
(c) दोनों (a) और (b)
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(c) दोनों (a) और (b)

प्रश्न 21.
नियंत्रण आवश्यक है
(a) लघु उपक्रम के लिए
(b) मध्यम श्रेणी के उपक्रम के लिए
(c) बड़े आकार वाले उपक्रम के लिए
(d) उपरोक्त सभी के लिए
उत्तर:
(d) उपरोक्त सभी के लिए

प्रश्न 22.
जहाँ अप्रबन्धकीय सदस्य काम करते हैं उस क्षेत्र को क्या कहते हैं ?
(a) दुकान क्षेत्र
(b) शोरूम क्षेत्र
(c) प्लेटफार्म क्षेत्र
(d) उपरोक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(d) उपरोक्त में से कोई नहीं

प्रश्न 23.
क्यों प्रबंध का गुण सफल संगठन को बढ़ावा देता है ?
(a) संसाधन का प्रभावपूर्ण उपभोग के कारण
(b) वरिष्ठ विशेषज्ञ की नियुक्ति के कारण
(c) क्योंकि कर्मचारी समूह उद्देश्य को अपना अधिकतम सहयोग देते हैं
(d) क्योंकि इसका उद्देश्य अधिकतम लाभदायकता है।
उत्तर:
(c) क्योंकि कर्मचारी समूह उद्देश्य को अपना अधिकतम सहयोग देते हैं

प्रश्न 24.
प्रबन्ध एक शक्ति है
(a) दृश्य
(b) अदृश्य
(c) पृथक
(d) सामूहिक
उत्तर:
(d) सामूहिक

प्रश्न 25.
S1, S2, S3, तीन अधीनस्थों को एक ही समय पर M1 से आदेश प्राप्त होते हैं। इस स्थिति में प्रबन्ध के किस सिद्धान्त का पालन हो रहा है?
(a) समता
(b) अनुशासन
(c) आदेश की एकता
(d) निर्देश की एकता।
उत्तर:
(c) आदेश की एकता

प्रश्न 26.
‘कर्मचारियों की माँग’ भर्ती प्रक्रिया का कौन-सा चरण है ?
(a) प्रथम
(b) द्वितीय
(c) तृतीय
(d) चतुर्थ
उत्तर:
(a) प्रथम

प्रश्न 27.
प्रबन्ध के सिद्धान्त कहाँ लागू होता है ?
(a) व्यवसाय में
(b) गैर व्यवसाय में
(c) उपरोक्त दोनों में
(d) किसी में नहीं
उत्तर:
(c) उपरोक्त दोनों में

प्रश्न 28.
नियुक्तिकरण की आवश्यकता किस प्रबन्धकीय स्तर पर होती है ?
(a) उच्च स्तर
(b) मध्य स्तर
(c) निम्न स्तर
(d) सभी स्तरों पर
उत्तर:
(d) सभी स्तरों पर

प्रश्न 29.
अधिकार अंतरण का आधार क्या है ?
(a) केन्द्रीयकरण
(b) विकेन्द्रीयकरण
(c) उपरोक्त दोनों
(d) श्रम विभाजन
उत्तर:
(b) विकेन्द्रीयकरण

प्रश्न 30.
कार्यात्मक संगठन किस तरह का संगठन ढाँचा है ?
(a) औपचारिक
(b) अनौपचारिक
(c) उपरोक्त दोनों
(d) कोई नहीं
उत्तर:
(a) औपचारिक

प्रश्न 31.
निम्न में से जीरो कूपन बॉन्ड की श्रेणी में क्या आता है ?
(a) खजाना बिल
(b) कामर्शियल पेपर
(c) जमा प्रमाण पत्र
(d) वाणिज्यिक बिल
उत्तर:
(a) खजाना बिल

प्रश्न 32.
कार्यशील पूँजी क्यों आवश्यक होती है ?
(a) भूमिक्रय करने के लिए
(b) भवन क्रय करने के लिए
(c) दैनिक व्ययों के भुगतान के लिए
(d) मशीन क्रय करने के लिए
उत्तर:
(c) दैनिक व्ययों के भुगतान के लिए

प्रश्न 33.
हेनरी फेयोल का जन्म हुआ था
(a) जापान में
(b) फ्रांस में
(c) जर्मनी में
(d) अमेरिका में
उत्तर:
(b) फ्रांस में

प्रश्न 34.
भारत में सबसे पहले स्कन्ध विपणी (स्टॉक विनिमय) की स्थापना हुई थी
(a) 1857
(b) 1887
(c) 1877
(d) 1987
उत्तर:
(b) 1887

प्रश्न 35.
नियुक्तिकरण पर किया जाने वाला खर्च
(a) मुद्रा की बर्बादी
(b) आवश्यकता
(c) विनियोग
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(c) विनियोग

प्रश्न 36.
विपणन का अर्थ है
(a) स्वामित्व का हस्तान्तरण
(b) विपणन नीतियों का निर्धारण
(c) विक्रयकला और विक्रय संवर्द्धन
(d) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(d) उपरोक्त सभी

प्रश्न 37.
निम्न में से कौन टेलर द्वारा दिया गया प्रबन्ध का सिद्धान्त नहीं है ?
(a) विज्ञान, न कि रूढ़िवादिता
(b) क्रियात्मक फोरमैनशिप
(c) सहयोग, न कि व्यक्तिवाद
(d) समन्वय, न कि मतभेद
उत्तर:
(b) क्रियात्मक फोरमैनशिप

प्रश्न 38.
निम्न में से कौन नियंत्रण की तकनीक नहीं है ?
(a) सम-विच्छेद विश्लेषण
(b) रोकड़ प्रवाह विवरण
(c) बजट
(d) प्रबन्धकीय अंकेक्षण
उत्तर:
(c) बजट

प्रश्न 39.
भारत में उद्यमिता विकास कार्यक्रम है
(a) आवश्यक
(b) अनावश्यक
(c) समय की बर्बादी
(d) धन की बर्बादी
उत्तर:
(a) आवश्यक

Bihar Board 12th Geography Important Questions Long Answer Type Part 2

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Bihar Board 12th Geography Important Questions Long Answer Type Part 2

प्रश्न 1.
भारत में निर्यात और आयात व्यापार के संयोजन का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भारत का निर्यात संघटन – भारत के निर्यात संघटन में प्रमुख वस्तुयें सम्मिलित हैं।
इनमें सबसे अधिक निर्यात रत्न और आभूषण तथा परिधानों का हुआ। कुल निर्यात में इनकी भागीदारी 17.2 तथा 10.7% थी। अन्य प्रमुख वस्तुयें सूती वस्त्र, धागे, मशीनें, दवाइयाँ, सूक्ष्म रसायन और उपकरण आदि हैं। निम्न तालिका निर्यात संघटन को दर्शाती हैं।

Bihar Board 12th Geography Important Questions Long Answer Type Part 2, 1

आयात संघटन (Import Composition) – भारत आयात में निम्नलिखित वस्तुएँ आयातं करता है।

  1. ईंधन
  2. कच्चा माल और खनिज।

ईंधन – भारत का सबसे अधिक विदेशी मुद्रा का व्यय ईंधन के आयात पर होता है। 2002-03 में ईंधन के आयात की भागीदारी 31% थी।

कच्चा माल और खनिज – इस वर्ग में सोना, रत्न, चाँदी और रसायन प्रमुख हैं। 2002-03 में मोती बहुमूल्य रत्न की भागीदारी 9.9% थी। सोना, चाँदी 7% थी। रसायन 6.9% भागीदारी थी। निम्न तालिका आयात संघटन को दिखाती है-
Bihar Board 12th Geography Important Questions Long Answer Type Part 2, 2
अब आयात की वस्तुओं में परिवर्तन आ गया है।

प्रश्न 2.
परिवहन और संचार सेवा की सार्थकता को विस्तार पूर्वक स्पष्ट कीजिए। अथवा, परिवहन एवं संचार सेवाओं के महत्त्व का सविस्तार वर्णन करें।
उत्तर:
परिवहन एक ऐसी साधन सुविधा है जिसके द्वारा यात्री तथा माल की ढुलाई एक स्थान से दूसरे स्थान तक की जाती है। यह एक संघटित उद्योग है। आधुनिक समाज को उत्पादन, वितरण और वस्तुओं के उपभोग में सहायता करने के लिए शीघ्र और सक्षम परिवहन व्यवस्था की आवश्यकता है। परिवहन से वस्तुओं के मूल्य में कुछ वृद्धि हो जाती है।

परिवहन दूरी को किमी० में नापते हैं। समय दूरी का अर्थ है कि किसी विशेष मार्ग पर गन्तव्य स्थान तक पहुँचने में लगा समय तथा लागत दूरी यात्रा में आय खर्च कहलाती है।

परिवहन सेवा को प्रभावित करने वाले कारक हैं-
परिवहन की माँग-यह जनसंख्या के आकार पर निर्भर करती है। जितनी अधिक जनसंख्या होगी उतनी ही अधिक परिवहन की माँग होगी।

मार्ग – यह नगरों, गाँवों, औद्योगिक केन्द्रों तथा कच्चा माल क्षेत्र की स्थिति पर निर्भर करता है। इसके अतिरिक्त किस प्रकार की उच्चावच, जलवायु तथा बाधाओं को दूर करने के लिए उपलब्ध साधन पर भी निर्भर करता है।

संचार सेवाएँ सूचना भेजने और तथ्यों का आदान-प्रदान है। लिखाई के आविष्कार ने सूचनाओं को सुरक्षित रखने में सहायता की है जो परिवहन साधनों पर निर्भर करती है। ये सूचनाएँ मनुष्य, जानवर, सड़क अथवा रेलमार्ग द्वारा ले जाई जाती हैं। यहाँ परिवहन साधन कुशल हैं संचार का प्रसारण आसान हो जाता है। कुछ विकास कार्य जैसे मोबाइल टेलिफोन तथा उपग्रह ने संचार को परिवहन से संयुक्त कर दिया है। अभी सभी प्रकार के कार्य से मुक्त नहीं हुए हैं। बड़ी मात्रा में डाक को अभी भी डाकघरों द्वारा वितरित किया जाता है।

प्रश्न 3.
“परिवहन के सभी साधन एक-दूसरे के पूरक होते हैं।” विवेचना करें।
उत्तर:
देश के निरन्तर आर्थिक विकास में सुचारू और समन्वित परिवहन प्रणाली की महत्वपूर्ण भूमिका रहती है। परिवहन के साधन किसी देश में उतना ही महत्व रखते हैं जितना मानव शरीर में रक्त धमनियाँ। परिवहन के साधनों के प्रसार से देश में उद्योग एवं व्यवसाय की भी उन्नति होती है और आर्थिक विकास का स्तर ऊँचा होता है।

भारत में विकसित देशों की तुलना में परिवहन के साधनों की कमी है फिर भी इनके साधन एक-दूसरे के पूरक होते हैं।

स्थल परिवहन (Land Transport) – स्थल परिवहन के अंतर्गत तीन परिवहन प्रणालियों को सम्मिलित किया जाता है-सड़क परिवहन, रेल परिवहन और पाइप लाइन।

जल परिवहन के अंतर्गत आंतरिक जल परिवहन तथा सामुद्रिक जल परिवहन का अपना विशेष महत्त्व होता है।

वायु परिवहन सबसे तेज एवं महँगा परिवहन का साधन है, किंतु भारत में यह बहुत महत्त्वपूर्ण साधन है।।

प्रश्न 4.
पाइपलाइन परिवहन की उपयोगिता पर उदाहरण सहित व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
पाईप लाईनें परिवहन का नवीनतम साधन है। इनकी सहायता से खनिज तेल का परिवहन किया जाता है। इस प्रकार की तेल ढोने वाली पाईप लाईने सभी तेल उत्पादक देशों में बनायी गयी है। इन पाईप लाईनों की सहायता से खनिज तेल, तेल क्षेत्रों से तेल शोधक क्षेत्रों अथवा बन्दरगाहों तक पहुँचाया जाता है। इसी प्रकार खनिज तेल, शोधनशालाओं से बड़े-बड़े नगरों को भेजा जाता है जहाँ इसका उपयोग किया जाता है। यद्यपि इन पाईप लाईनों का निर्माण बहुत महँगा पड़ता है परन्तु बाद में इन पाईप लाईनों की सहायता से तेल को बन्दरगाहों तक ले जाना सस्ता पड़ता है।

खनिज तेल एवं प्राकृतिक गैस को एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुँचाने के लिए पाईप लाईनों का उपयोग किया जाता है। खनिज तेल और प्राकृतिक गैस प्रायः ऐसे स्थानों पर निकलते हैं जहाँ उनका उपयोग नहीं हो सकता। अत: उन्हें पाईप लाईनों की सहायता से उत्पादन के स्थान से उनके उपयोग के स्थान अथवा तेल शोधनशालाओं तक पहुँचाया जाता है।

पाईप लाईनों से तेल और गैस ले जाने में सुविधा रहती है तथा व्यय भी कम होता है। विश्व में अनेक तेल उत्पादक देशों ने इन पाईप लाईनों का निर्माण किया है।

संयुक्त राज्य अमेरिका में 1,60,000 किलोमीटर लम्बी पाईप लाईनें हैं जो विश्व में सबसे लम्बी है।

यहाँ तेल पाईप लाईन एडमोण्टन से सुपीरियर झील के तट तक बिछाई गयी है। यहाँ से यह पाईप लाईन ओण्टेरियो में सरनिया तक है। यह पाईप लाईन 1,840 किलोमीटर लम्बी है।

इसी प्रकार की पाईप लाईन एडमोण्टन से बैंकूवर तक है। यह लगभग 1,150 किलोमीटर लम्बी पाईप लाईन है।

दक्षिणी-पश्चिमी एशिया में बहरीन से सिदोन तक, किरकुक से हैफा तक तथा किरकुक से बनियास तक तथा ईरान में तेल क्षेत्र से अबादान तक इराक में किरकुक तेल क्षेत्र से हैफा तक पाईप लाईन बिछाई गई है।

सऊदी अरब के अबक्वेक व निकट के तेल क्षेत्रों से दोहरी पाईप लाईन एवं जल की पाईप लाईन हैफा बन्दरगाह तक चली गयी है। ट्रान्स अरेबियन पाईप लाईन (टैपलाईन) बहुत महत्त्वपूर्ण एवं 1,600 किलोमीटर लम्बी है तथा इसका व्यास 75 सेमी है। यह रासतनूरा से साइस तक बिछाई गई है। रूप में कॉमकॉन नामक पाईप लाईन प्रमुख है जो यूराल तथा वोल्गा क्षेत्रों से पूर्वी यूरोपीय देशों को खनिज तेल पहुँचाती है।

भारत में असोम तेल क्षेत्र (नूनामती) से बरौनी तक, नहीकटिया से नूनामती तक, काण्डला के निकट साला से मथुरा तक, गुवाहाटी से सिलीगुड़ी तक, बरौनी से कानपुर तक पाईप लाईनों का निर्माण किया गया है। मथुरा से दिल्ली होकर लुधियाना तक एवं अंकलेश्वर से कोयली तक पाईप लाईनें बिछाई गई है।

ग्रेट ब्रिटेन में समुद्री भाग से तेल और प्राकृतिक गैस प्राप्त होती है। रफ, वेस्टपोल, वाइकिंग, इंडीफेटीगेवन, लेमन और हेवेट इसके मुख्य केन्द्र हैं। यहाँ से पाईप लाईनों की सहायता से गैस तथा तेल इंजिगटन, ब्रेकटन और तटवर्ती नगरों को भेजे जाते हैं जहाँ से पुनः लाईप लाईनों की सहायता से गैस और तेल भीतरी भागों को भेजे जाते हैं।

रूस परिसंघ में खनिज तेल और गैस पाईप लाईनों की सहायता से भेजी जाती है। रूस परिसंघ में लगभग 900 किलोमीटर लम्बी इन पाईप लाईनों द्वारा प्राकृतिक गैस भी ले जायी जाती है। सबसे अधिक गैस पाईप लाईन संयुक्त राज्य अमेरिका में है। भारत में प्राकृतिक गैस के परिवहन, संसाधन प्रक्रिया और बाजार में आपूर्ति का दायित्व भारत गैस प्राधिकरण लिमिटेड (गेल) का है।

यह भारत की गैस आपूर्ति की सबसे बड़ी कम्पनी है। यह 4,200 किलोमीटर से अधिक पाईप लाईनों द्वारा परिसंचालन करती है। भारत में एच० वी० जे० (हजीरा-विजयपुर-जगदीशपुर) पाईप लाईन बिछाई गई है जो 1,730 किलोमीटर लम्बी है।

प्रश्न 5.
चतुर्थक क्रियाकलापों का विवरण दें।
उत्तर:
वर्तमान समय में मानव के आर्थिक क्रियाकलाप दिनोंदिन बहुत ही विशिष्ट एवं जटिल होते जा रहे हैं जिनमें क्रियाकलापों का एक नवीन रूप चतुर्थक क्रियाकलापों के रूप में सामने आया है। मानव की कानून, वित्त, शिक्षा, शोध और संचार से जुड़ी उन आर्थिक गतिविधियों को, जो सूचना के संसाधन और सूचना के प्रसारण से सम्बन्धित हैं, चतुर्थक क्रियाकलाप के अंतर्गत सम्मिलित किया गया है। वर्तमान में विश्व के लगभग सभी देशों में और विशेषकर विकसित देशों में चतुर्थक क्रियाकलापों में लगे लोगों की संख्या में निरंतर वृद्धि होती जा रही है। इस व्यवसाय के लोगों में उच्च वेतनमान तथा पदोन्नति की चाह में गतिशीलता अधिक पायी जाती है।

कम्प्यूटर के बढ़ते प्रयोग तथा सूचना प्रौद्योगिकी ने इस व्यवसाय के महत्त्व को और बढ़ा दिया है। सूचना प्रौद्योगिकी की उपयोग से प्रौद्योगिकी में नये आविष्कार हुए हैं जिससे अनेक क्रांतिकारी परिवर्तन हुए हैं। वर्तमान प्रौद्योगिकी क्रांति की मुख्य विशेषता ज्ञान उत्पादन तथा सूचना प्रौद्योगिकी के कारण औद्योगिक समाज के तकनीकी तत्त्वों में परिवर्तन आ गया है और वर्तमान आर्थिक क्रियाकलाप मुख्य रूप से उन अप्रत्यक्ष उत्पादों से प्रभावित हो गये हैं जिनके उत्पादन में ज्ञान, सूचना तथा संचार अधिक महत्त्वपूर्ण हैं। कम्प्यूटर के बढ़ते उपयोग तथा इंटरनेट के विस्तार होने से आर्थिक क्रियाकलापों का क्षेत्र बहुत विस्तृत हो गया है।

अब लोग अपने कार्यालय या घर में बैठे-बैठे ही दूसरे लोगों से प्रत्यक्ष सम्पर्क करके अपना व्यापार चलाते हैं। वित्तीय साधनों के इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से लेन-देन अब अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय व्यवस्था का केन्द्र-बिन्दु बन गया है। इससे पूँजी का स्थ गन्तरण क्षण भर में विश्व के किसी भी कोने में किया जा सकता है। इससे वित्तीय बाजार का अंतर्राष्ट्रीयकरण हो रहा है। इस अंतर्राष्ट्रीयकरण का प्रभाव वैश्विक नगरों के विकास के रूप में पड़ा है। लंदन, न्यूयार्क तथा टोकियो ऐसे ही वैश्विक नगर (Global Cities) हैं।

ऊपर बताया गया है कि इंटरनेट के प्रयोग से बहुत सुविधा हो गयी है किन्तु यह सुविधा भी पदानुक्रम रूप में मिलता है अर्थात् कहीं यह सुविधा बहुत उच्च स्तर की है, जबकि अन्य जगहों पर इसका विस्तार नहीं हो पाया है। विश्व में सकैण्डिनेविया के देश, कनाडा तथा ऑस्ट्रेलिया आदि इंटरनेट के द्वारा अच्छी तरह से जुड़े हुए हैं। इसके बाद यू० के०, जर्मनी तथा जापान का स्थान आता है।

प्रश्न 6.
विश्व के वे कौन-से प्रमुख प्रदेश हैं जहाँ वायुमार्ग का सघन तंत्र पाया जाता है ?
उत्तर:
संसार में सघन वायु मार्ग वाले क्षेत्र हैं-

  1. पश्चिमी यूरोपा
  2. पूर्वी संयुक्त राज्य अमेरिका।
  3. दक्षिणी-पूर्वी एशिया।

अमेरिका अकेला ही विश्व के 60% वायु परिवहन का प्रयोग करता है। न्यूयार्क, लन्दन, पेरिस, अर्सटरडम, फ्रेन्क फर्ट रोम, बैंकॉक, मुम्बई, करांची, नई दिल्ली, लांस ऐंजल्स आदि ऐसे केन्द्र हैं जहाँ से वायु परिवहन भिन्न देशों को जाता है अथवा इन केन्द्रों पर आता है।

अफ्रीका, रूस का एशियाई भाग तथा दक्षिणी अमेरिका में वायु सेवा कम है।

प्रश्न 7.
वे कौन-सी विधाएँ हैं जिनके द्वारा साइबर स्पेस मनुष्यों के समकालीन आर्थिक और सामाजिक स्पेस की वृद्धि करेगा ?
उत्तर:
साइबर स्पेस इलेक्ट्रॉनिक कम्प्यूटराइज्ड स्पेस की दुनिया है। यह इन्टरनेट जैसे W.W.W. द्वारा घेरा हुआ है। यह इलेक्ट्रॉनिक डिजीटल है जो कम्प्यूटर नेटवर्क द्वारा सूचना भेजने के लिए होता है जिसमें प्रेषक और प्राप्तकर्ता को कोई भौतिक गति नहीं करनी होती। साइबर स्पेस सभी स्थानों पर होता है। यह कार्यालय नाव, वायुयान तथा अन्य सभी स्थानों पर होता है।

इलेक्ट्रॉनिक नेटवर्क की गति जिस पर यह कार्य करता है, असामान्य होती है जो मानव इतिहास में अद्वितीय है। 1955 में इण्टरनेट के उपयोगकर्ता की संख्या-50 मिलियन थी जो 2000 में बढ़कर 400 मिलियन हो गई और 2005 में बढ़कर एक बिलियन से भी अधिक है। 2010 तक इसमें अन्य बिलियन और मिल जायेंगे। पिछले पांच सालों में सं० रा० अमेरिका के उपभोग में परिवर्तन आ गया है। यू० एस० ए० का प्रतिशत 66 से घटकर 1995 से 2005 तक 25 रह गया है। विश्व के उपभोगकर्ताओं में यू० एस० ए० के बाद जर्मनी, जापान, चीन और भारत की संख्या अधिक है।

साइबर स्पेस समकालीन आर्थिक और सामाजिक क्षेत्र में ईमेल, ई-कॉमर्स-लर्निंग आदि द्वारा परिवर्तन लायेगा। फैक्स, टी० वी०, रेडियो के साथ इण्टरनेट प्रत्येक व्यक्ति की पहुँच में हो जायेगा। यह आधुनिक संचार प्रणाली है।

प्रश्न 8.
परिवहन के रूप में रेलमार्गों के महत्त्व और उनके वितरण प्रारूप की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
रेलमार्गों का महत्त्व (Importance of Railways) – रेल स्थल पर तीव्र गति से चलने वाला परिवहन साधन है।
इसकी प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

  • रेलमार्गों द्वारा मोटरों एवं ट्रकों की अपेक्षा अधिक माल एवं यात्रियों को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाया जाता है।
  • रेलमार्गों द्वारा अधिक भार वाले माल को ढोना आसान होता है।
  • रेलमार्ग लम्बी दूरी के लिए उत्तम परिवहन का साधन है।
  • यात्री रेलगाड़ियों में यात्रियों को सभी सुख-सुविधाएँ उपलब्ध होती हैं।
  • औद्योगिकी विकास के साथ-साथ रेलें किसी देश का राजनैतिक स्थिरता बनाये रखने में भी सहायक होती है।
  • शीघ्रनाशी वस्तुओं के परिवहन के लिए प्रशीतित डब्बों का प्रयोग किया जाता है।
  • रेलों द्वारा देश के आर्थिक विकास में बहुत मदद मिलती है।

वितरण प्रारूप (Distribution Pattern) – संसार के आर्थिक रूप से विकसित देशों में रेलों का जाल बिछा हुआ है।

  • दक्षिणी अमेरिकी इस महाद्वीप में अर्जेन्टाइना और ब्राजील के आन्तरिक भाग, बंदरगाहों से रेलमार्ग द्वारा जुड़े हैं। इस क्षेत्र में रेलों का सघन जाल है। पंपास का गेहूँ, रेलों द्वारा बंदरगाहों तक लाया जाता है।
  • पश्चिम यूरोप में रेलमार्गों का सघन जाल है। बेल्जियम में रेलों का संसार में सघनतम जाल है। यहाँ रेलों का घनत्व 6.5 वर्ग कि० मी० क्षेत्र में 1 किमी० है।
  • उत्तरी अमेरिका में रेलों का सघन जाल है। संसार के 40% रेल मार्ग इसी महाद्वीप में हैं। यहाँ खनिज, अनाज, इमारती लकड़ी की ढुलाई रेलों द्वारा होती है।
  • उपनिवेशों में रेलमार्ग : यूरोप के उपनिवेशवादी देशों ने एशिया और अफ्रीका के आन्तरिक भागों को बंदरगाहों से जोड़ा था जिनसे कच्चा माल बंदरगाहों तक आता था।

इनके अतिरिक्त विश्व में अन्तरमहाद्वीपीय रेलमार्गों का भी निर्माण हुआ है। इनमें से कुछ प्रमुख हैं
1. ट्रांस-साइबेरियन रेलवे (Trans-siberian Railways) – यह रेलमार्ग विश्व का सबसे लम्बा रेलमार्ग है। इसकी लम्बाई 933 कि० मी० है। यह पश्चिम में लेनिनग्राड को पूर्व में ब्लाडीवोस्टक से जोड़ता है। इस रेलमार्ग के प्रमुख स्टेशन खवारोवस्क, इर्कुटस्क, तामशेट, ओमस्क, टोमस्क, पर्म तथा मास्को हैं।

आर्थिक महत्त्व – मास्को क्षेत्र से मशीनरी और औद्योगिक उत्पाद पूर्व की ओर जाता है। यूराल क्षेत्र के धातु खनिज और मशीनें पश्चिम की ओर जाते हैं। कोयला, लकड़ी, खनिज तेल, कृषि और औद्योगिक उत्पादों का पूर्व से पश्चिम के बीच परिवहन होता है।

कई नाव्य नदियों जैसे वोल्गा, ओबे, यनीशी, आमूर को रेलमार्ग पार करता है। नदी मार्गों द्वारा दक्षिण की ओर माल भेजता है।

2. कनाडियन पैसिफिक रेलमार्ग (Canadian Pacific Railways) – यह रेलमार्ग पूर्व में हैलीफेक्स से पश्चिम में बैंकूवर तक जाता है। यह रेलमार्ग 7050 किमी० लम्बा है। इस रेलमार्ग के प्रमुख स्टेशन हैं : मान्ट्रियल, ओटावा, एडनबरी, विनिपेग आदि।

इस रेलमार्ग का कनाडा के आर्थिक विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है। इसकी एक शाखा व्यबेक से हर्ट होती हुई विनिपेग तक जाती है। यह रेलमार्ग क्यूबेक माण्ट्रियल के औद्योगिक प्रदेशों को मुलायम लकड़ी के क्षेत्र तथा प्रेयरी के गेहूँ प्रदेश से जोड़ता है। प्रेयरी के गेहँ को सेंट लारेंस जल मार्ग तक पहुँचाता है।

आस्ट्रेलियन अन्तरमहाद्वीपीय रेलमार्ग (Australian Transcontinental Railways) – यह रेलमार्ग पूर्व में सिडनी से पश्चिम में पर्थ तक चला जाता है। पूर्व से पश्चिम की ओर प्रमुख स्टेशन हैं-ब्रोकनहिल, टारकूला डीकिन, कालगूब और नार्थन। इस रेलमार्ग से लौह अयस्क की ढुलाई की जाती है।

प्रश्न 9.
अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में उत्तरी अटलांटिक समुद्री मार्ग के महत्त्व का वर्णन करें।
उत्तर:
अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में सर्वाधिक प्रचलित एवं व्यस्त जलमार्ग उत्तरी अलटलांटिक जलमार्ग है। यह मार्ग भूमध्यसागर और पश्चिमी यूरोप के सागरों से होते हुए उत्तरी अमेरिका के पूर्वी तट तक फैला है। यह मार्ग अमेरिका एवं कनाडा के उपजाऊ तथा पश्चिमी यूरोपीय औद्योगिक देशों को जोड़ने का काम करता है। प्राकृतिक दृष्टि से यह जलमार्ग बहुत ही उपयुक्त एवं सुरक्षित है।

सही अर्थों में इस जलमार्ग के दोनों ओर कई बड़े एवं विख्यात बंदरगाह विकसित हैं। इन बंदरगाहों की पृष्ठभूमियों में उपजाऊ मैदान, विशाल औद्योगिक पृष्ठभूमि में सड़कों एवं रेलमार्गों । का जाल होने से वस्तुओं के अतिरिक्त उत्पाद का व्यापार अधिक होता है। संपूर्ण विश्व के मालवाहक जहाजों द्वारा ढोए जानेवाले माल का 25% इसी मार्ग द्वारा ढोया जाता है तथा सभी जलमार्गों पर चलनेवाले यात्री का 50% इसी जलमार्ग पर यात्रा करते हैं।

इस जलमार्ग की विशेषता है कि इनमें पूरब की ..र जानेवाले माल का आयतन, पश्चिम को ओर जानेवाले माल के आयतन के करीब 5 गुणा अधिक होता है।

प्रश्न 10.
विश्व में सड़कों और महामार्गों के वितरण का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
विश्व में सड़कों का विकास मुख्यतः उन देशों में हुआ है जो आर्थिक दृष्टि से अधिक विकसित हैं। विश्व में सड़कों की लम्बाई रेलमार्गों की लम्बाई से 13 गुना अधिक है।

महामागों का वितरण (Distribution of Highways)-

  • संयुक्त राज्य अमेरिका में लम्बी दू। के महामार्गों का घना जाल है। यहाँ महामार्गों द्वारा देश के पूर्वी तट पर स्थित नगरों को पश्चिमी तट के नगरों से मिलाते हैं। यहाँ इन महामार्गों को मोटर वेज कहते हैं।
  • कनाडा के उत्तर में स्थित नगर भी महामार्गों द्वारा दक्षिण में मेक्सिको के नगरों से जुड़े हैं जो संयुक्त राज्य अमेरिका से होकर गुजरते हैं।
  • कनाडा पारीय महामार्ग पश्चिमी तट के वैंकूवर को पूर्वी तट के न्यूफाउंडलैंड से जोड़ता है।
  • अलास्का महामार्ग दक्षिणी कनाडा के एडमांटन नगर को अलास्का के अंकरेज नगर से जोड़ता है।
  • भारत में भी अनेक राष्ट्रीय महामार्ग हैं। ये महामार्ग देश के बड़े नगरों को आपस में जोड़ते हैं।
  • प्रस्तावित पैन अमेरिकन महामार्ग विश्व का सबसे लम्बा महामार्ग है जो दक्षिण अमेरिका में चिली के नगर को उत्तर अमेरिका में अलास्का के नगरों से जोड़ेगा। इसका अधिकांश भाग बनकर तैयार है।
  • चीन में उत्तर-दक्षिण, पूर्व तथा पश्चिम के नगरों को महामार्गों द्वारा जोड़ा गया है।
  • अफ्रीका में एक महामार्ग अल्जीयर्स को एटलस पर्वत तथा सहारा मरुस्थल के पास गिनी में स्थित कोनाक्री से जोड़ता है।

प्रश्न 11.
अंतर्राष्ट्रीय व्यापार से देश कैसे लाभ प्राप्त करते हैं ?
उत्तर:
अंतर्राष्ट्रीय व्यापार विश्व के अन्य देशों के साथ वस्तुओं और सेवाओं का आदान-प्रदान है। अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार से देशों को निम्न लाभ पहुँचता है-

  • राष्ट्र उन वस्तुओं का आयात कर सकते हैं जिनका उनके यहाँ उत्पादन नहीं होता तथा सस्ते मूल्य पर खरीद सकते हैं।
  • अंतर्राष्ट्रीय व्यापार से देशों में आपसी सहयोग और भाईचारा बढ़ता है।
  • देश अपने यहाँ अतिरिक्त उत्पादन को उचित मूल्य पर अन्य देशों को बेच सकते हैं जिससे राष्ट्रीय आय में वृद्धि होगी।
  • देश अपने विशिष्ट उत्पादन का निर्यात कर सकते हैं। इससे विश्व अर्थव्यवस्था में सुधार आता है।
  • अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार सिद्धान्तों और वस्तुओं के स्थानान्तरण के सिद्धान्त पर निर्भर करता है जिससे व्यापार करने वाले देशों को लाभ ही पहँचता है।
  • आधुनिक युग में अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के अंतर्गत प्रौद्योगिक ज्ञान तथा अन्य बौद्धिक सेवाओं का भी आदान-प्रदान किया जाता है जिससे दोनों देशों को लाभ पहुँचता है।

प्रश्न 12.
पत्तन कितने प्रकार के होते हैं ? प्रत्येक का संक्षिप्त वर्णन करें।
उत्तर:
समुद्री तट का वह स्थान जहाँ से भारी मात्रा में माल समुद्री मार्गों से स्थल मार्गों द्वारा और स्थल मार्गों से समुद्री मार्ग द्वारा भेजा जाता है, पत्तन कहलाता है। पत्तन नौ प्रकार के होते हैं, जो निम्नलिखित हैं-
1. सवारी पत्तन (Passenger Ports) – वे पत्तन जहाँ से दूसरे देशों के लिए यात्रियों को ले जाया जाता है अथवा दूसरे देशों से यात्रियों को लाया जाता है।

2. वाणिज्यिक पत्तन (Commercial Ports) – ये मुख्यतः सामान के आयात एवं निर्यात के कार्य संपन्न करते हैं।

3. आंत्रेपो पत्तन (Entrepat Ports) – ऐसे पत्तनों पर जो माल आता है उसका गन्तव्य अन्य देश होते हैं, अतः उस माल का संचय बड़े गोदामों में किया जाता है तथा दूसरे देशों को भेजा जाता है। उदाहरण के लिए एशिया में सिंगापुर तथा यूरोप में रॉटरडम एवं कोपेनहेगेन बाल्टिक क्षेत्रों के लिए आंत्रेपो पत्तन हैं।

4. बाह्य पत्तन (Out Ports) – ये गहरे पानी के पत्तन हैं। ये वास्तविक पत्तनों से दूर गहरे समुद्र में बनाये जाते हैं, क्योंकि जलपोत या तो अपने बड़े आकार के कारण या अधिक मात्रा में अवसाद एकत्रित हो जाने के कारण वास्तविक पत्तन तक नहीं पहुंच पाते। बास्टिल ऐसा ही पत्तन है।

5. पैकेट स्टेशन (Packet Stations) – इनको ‘फैरीपोर्ट’ (Ferry port) भी कहा जाता है। इनका प्रयोग छोटी समुद्री मार्ग से आने वाले यात्रियों को उतारने-चढ़ाने तथा डाक लेने तथा देने के लिए किया जाता है। इसमें प्रायः दो स्टेशन आमने-सामने होते हैं। उदाहरण के लिए इंग्लिश चैनल के एक ओर डोवर और दूसरी ओर कैले हैं।

6. आंतरिक पत्तन (Inland Ports) – ये पत्तन समुद्र से दूर स्थल खंड के भीतर स्थित होते हैं परंतु नदी या नहर द्वारा समुद्र से जुड़े होते हैं, जिससे विशेष प्रकार के पोत बजरों की सहायता से इन तक पहुँचते हैं। जैसे मैनचेस्टर, मैन्फिस, कोलकाता, हानकाऊ।

7. नेवी पत्तन (Naval Ports) – यहाँ नौ-सेना के लड़ाकू जहाज खड़े रहते हैं। भारत में कोचीन तथा कारवार इसके उदाहरण हैं।

8. पोर्ट ऑफ कॉल (Port of Call) – बहुत-से ऐसे पत्तन समुद्री मार्ग के साथ विकसित हुए हैं जहाँ जलपोत ईंधन, पानी तथा खाना लेने के लिए रुकते हैं। इस प्रकार के पत्तनों में अदन, होनोलूलू तथा सिंगापुर हैं।

9. तेल पत्तन (Oil Ports) – इस प्रकार के पत्तन वर्तमान शताब्दी की देन हैं तथा इनका विकास हाल ही में हुआ है। तेल का महत्त्व आधुनिक अर्थव्यवस्था में बढ़ता ही गया। फलस्वरूप ऐसे पत्तनों का आविर्भाव हुआ, जो तेल के निर्यात एवं आयात में विशिष्टता प्राप्त कर चुके हैं। इनमें टैंकर पत्तन हैं, जहाँ तेल के टैंकर आकर खड़े होते हैं। कुछ परिष्करणशाला के पत्तन हैं जहाँ परिष्करणशालाएँ स्थापित हो गईं। जैसे-बेनेजुएला में माराकायबो, ट्यूनीशिया का अत्सखीरा तथा लेबनान का त्रिपोलो टैंकर पत्तन तथा अबादान परिष्करणशाला का पत्तन है।

प्रश्न 13.
ऊर्ध्वाधर व्यापार और क्षैतिज व्यापार में अंतर बताएँ।
उत्तर:
ऊर्ध्वाधर व्यापार और क्षैतिज व्यापार में निम्नलिखित अंतर है-
Bihar Board 12th Geography Important Questions Long Answer Type Part 2, 3

प्रश्न 14.
अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में प्रादेशिक व्यापार संघों के बढ़ते महत्त्व का युरोपीय संघ, ओपेक तथा आसियान के विशेष संदर्भ में व्याख्या करें।
उत्तर:
अंतर्राष्ट्रीय व्यापार की आधारभूत संरचना कुछ व्यापार संघों के ऊपर आश्रित होती है। व्यापार संघ ऐसे देशों का समूह है जिनके भीतर व्यापारिक अनुबंधों की सामान्यीकृत प्रणाली कार्य करती है।

विश्व के प्रमुख व्यापारिक संघों में यूरोपियन संघ, ओपेक तथा आसियान आदि हैं। इन संघों की सदस्यता पर निम्न तीन बातों का प्रभाव पड़ता है-

  1. दूरी,
  2. उपनिवेशी संबंधी परम्परा,
  3. भू-राजनैतिक सहयोग।

1. यरोपीय संघ (E.U.) – यूरोपीय संघ का गठन 1957 में रोम संधि के फलस्वरूप छः देशों ब्रिटेन, इटली, फ्रांस, जर्मनी, बेल्जियम, नीदरलैंड द्वारा किया गया। इसे पहले यूरोपीय आर्थिक समुदाय कहा गया, बाद में इसमें पश्चिमी यूरोप के अधिकांश देशों को सम्मिलित किया गया। इसने यूरोप को 1970 के पेट्रोल संकट और धीमी आर्थिक वृद्धि के दुष्प्रभाव से उबरने में महत्त्वपूर्ण योगदान किया। इसने 1972 में अनेक व्यापार निषेधों के उन्मूलन की एक महत्त्वाकांक्षी योजना आरंभ की।

2. पेट्रोलियम निर्यातक देशों का संगठन (ओपेक) (OPEC) – ओपेक में 13 देश हैं। अल्जीरिया, इक्वेडोर, गैबन, इंडोनेशिया, ईरान, कुवैत, लीबिया, नाइजीरिया, कतर, सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात और वेनेजुएला। यह संगठन 1960 में पेट्रोल उत्पादक देशों द्वारा बनाया गया।

3. आसियान (ASEAN) – दक्षिण-पूर्वी एशियाई राष्ट्रों के संगठन का गठन 1967 में हुआ था। इंडोनेशिया, मलेशिया, थाइलैंड, फिलीपींस और सिंगापुर जैसे देश इसके सदस्य हैं। एशियाई तथा शेष संसार के देशों के बीच व्यापार शुल्क पर प्रदेश के भीतर के देशों की तुलना में अधिक तीव्र गति से बढ़ रहा है। जापान, यूरोपीय संघ तथा आस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड से व्यापारिक बातचीत करते समय आसियान अपने सदस्य देशों को एक संयुक्त मसौदा का उदाहरण प्रस्तुत करके उनकी मदद करता है। आजकल भारत भी इसका एक सह-सदस्य बन गया है।

प्रश्न 15.
ग्रामीण तथा नगरीय बस्ती किसे कहते हैं ? उनकी विशेषताएँ बताएँ।
उत्तर:
ग्रामीण बस्तियाँ (Rural Settlement) – ये बस्तियाँ जो भूमि से सीधी तथा काफी नजदीकी से जुड़ी हुई होती हैं ग्रामीण बस्तियाँ कहलाती हैं। इन बस्तियों में मुख्यतः लोग प्राथमिक व्यवसाय में लगे होते हैं।

विशेषताएँ (Characteristics)-

  1. ग्रामीण बस्ती का भूमि से गहरा सम्बन्ध तथा प्रत्यक्ष सम्बन्ध होता है।
  2. ग्रामीण बस्ती में लोगों का प्रमुख कार्य कृषि, पशुपालन, मत्स्य जैसे प्राथमिक कार्य होते हैं।
  3. उनके आकार अपेक्षाकृत छोटे होते हैं और लोग सामाजिक रूप में एक-दूसरे से जुड़े होते हैं।

नगरीय बस्ती (Urban Settlements) – वे बस्तियाँ जहाँ अधिक क्रिया में संकेन्द्रित होती हैं और जहाँ अधिकतर लोग द्वितीयक और तृतीयक व्यवसायों में लगे होते हैं।

विशेषतायें (Characteristics)-

  1. अधिकतर लोग गौण एवं तृतीयक व्यवसाय करते हैं।
  2. आवासीय स्थलों की कमी के कारण कई मंजिल वाली इमारतें होती हैं।
  3. नगरों में ग्रामों से अधिक सुविधायें पाई जाती हैं।
  4. नगरों में प्रदूषण की भी समस्या होती है।

प्रश्न 16.
भारत की जनसंख्या के लिंग संघटन के प्राथमिक प्रतिरूपों की विवेचना कीजिए तथा उच्च लिंग अनुपात संकुलों के नाम लिखें।
उत्तर:
लिंग अनुपात प्रत्येक प्रदेश में भिन्न होता है। भारत का लिंगानुपात राष्ट्रीय स्तर पर 933 है।

  1. दक्षिण भारत के राज्यों में लिंग अनुपात अधिक है। केरल में लिंगानुपात सबसे अधिक है। यह 1058 है।
  2. दक्षिण भारत के अन्य राज्यों में लिंग अनुपात राष्ट्रीय औसत से अधिक है। यह तमिलनाडु में 286, आंध्र प्रदेश में 978 और कर्नाटक में 973 है।
  3. उत्तर-पूर्वी राज्यों में लिंगानुपात राष्ट्रीय औसत से अधिक है।
  4. उत्तरी गरत में हिमाचल प्रदेश में 970 तथा उत्तरांचल में 964 है।
  5. भारत में 18 राज्यों में लिंगानुपात राष्ट्रीय औसत से कम है। उच्च लिंगानुपात वाले संकुल हैं : (i) केरल (1058), (ii) छत्तीसगढ़ (990), (iii) तमिलनाडु (986)।

प्रश्न 17.
भारत में जनसंख्या के घनत्व के स्थानिक वितरण की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
जनसंख्या के घनत्व को प्रति इकाई क्षेत्रफल पर व्यक्तियों की संख्या द्वारा व्यक्त किया जाता है। उदाहरण के लिए दिल्ली का जलघनत्व 9294 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी. है।

राज्य स्तर पर जनसंख्या घनत्व भिन्न-भिन्न है। यह अरुणाचल राज्य में 13 व्यक्ति तथा पश्चिम बंगाल में 904 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी है। बिहार का दूसरा स्थान (880) तथा केरल का तीसरा स्थान (819) है।

केरल और तमिलनाडु को छोड़कर अन्य दक्षिणी राज्य मध्य जनघनत्व वाले हैं। 100 से 300 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी० जनघनत्व वाले राज्य हैं-मध्य प्रदेश, राजस्थान, उत्तरांचल, छत्तीसगढ़ तथा नागालैंड, हिमाचल, मणिपुर, मेघालय आदि सबसे कम घनत्व वाले राज्य हैं। जम्मू तथा कश्मीर (99), सिक्किम (76), मिजोरम (42) तथा अरुणाचल प्रदेश, (13) जिला स्तर पर जनघनत्व का प्रारूप निम्नलिखित रूप से वर्गीकृत किया जाता है-

  • बहुत कम घनत्व के क्षेत्र (Very low density regions) – इस वर्ग में 32 जिले आते हैं। इनमें 50 मनुष्य प्रति वर्ग किमी. से भी कम हैं। ये जिले उत्तर, उत्तर-पूर्वी भारत और राजस्थान तथा गुजरात के जिले हैं।
  • कम घनत्व के क्षेत्र (Low density regions) – इस वर्ग में 51 में 100 मनुष्य प्रति वर्ग किमी घनत्व वाले जिले हैं। ये भारत के 23 जिले हैं जो पहाड़ी तथा शुष्क क्षेत्रों में स्थित हैं।
  • मध्यम घनत्व के क्षेत्र (Average density regions) – इनमें घनत्व 101 से 200 मनुष्य प्रति वर्ग किमी. पाया जाता है। इन जिलों की संख्या 172 है। ये जिले राजस्थान, उड़ीसा, छत्तीसगढ़ आदि के हैं।
  • उच्च घनत्व के क्षेत्र (High density regions) – यहाँ घनत्व 201 से 400 मनुष्य प्रति वर्ग किमी. है। इस वर्ग में 123 जिले हैं। ये मुख्यतः तमिलनाडु, तटीय उड़ीसा, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, पंजाब, हरियाणा आदि में हैं।
  • अत्यधिक घनत्व के क्षेत्र (Highest density regions) – इनमें 400 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी०, जन घनत्व होता है। इन जिलों में नगरीकरण अधिक हुआ है। इनमें कोलकाता, मुम्बई, दिल्ली, चेन्नई, हैदराबाद जैसे बड़े नगर आते हैं।

इनमें पंजाब, पश्चिम बंगाल और उत्तर प्रदेश के जिले शामिल हैं। इनकी संख्या 162 है।

प्रश्न 18.
जनसंख्या का अंकगणितीय घनत्व तथा कायिक घनत्व में अन्तर स्पष्ट करें।
उत्तर:
जनसंख्या का अंकगणितीय घनत्व तथा कायिक घनत्व में निम्नलिखित अन्तर है-
Bihar Board 12th Geography Important Questions Long Answer Type Part 2, 4

प्रश्न 19.
भारत में जनसंख्या के असमान वितरण के कारकों की विवेचना करें।
उत्तर:
संपूर्ण संसार में जनसंख्या का असमान वितरण पाया जाता है। कहीं अत्यधिक सघन जनसंख्या पाई जाती है, तो कहीं जनविहीन क्षेत्र पाए जाते हैं। कई ऐसे प्राकृतिक एवं सांस्कृतिक तत्व हैं, जो जनसंख्या के वितरण को प्रभावित करते हैं। जनसंख्या के वितरण को प्रभावित करने वाले प्राकृतिक तत्व निम्नलिखित हैं-

  • स्थलाकृति – उपजाऊ मैदानी क्षेत्र जनसंख्या वृद्धि में सहायक है, तो अनुपजाऊ पहाड़ी पठारी क्षेत्र जनसंख्या को बिखेरता है।
  • जलवायु – अनुकूल शीतोष्ण जलवायु जनसंख्या को आकर्षित करती है, तो अत्यधिक शीतप्रधान या गर्म गमरुस्थलीय क्षेत्र जनविहीन रहते हैं।
  • वनस्पति – खनिज एवं जल की उपलब्धता जनसंख्या के वितरण को प्रभावित करती है।
  • सांस्कृतिक कारक – उद्योग धंधों का विकास, परिवहन के साधनों का विकास, नगरीकरण की सुविधाएँ, चिकित्सा केन्द्र, शिक्षा केन्द्र तथा धार्मिक स्थल जनसंख्या के वितरण पर प्रभाव डालते हैं।
  • आपदा – सूखा, महामारी, अकाल, बाढ़, भूकम्प आदि क्रियाएँ जनसंख्या को कम करने तथा उन्हें एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाने को मजबूर करती हैं, जिससे जनसंख्या का वितरण प्रभावित होता है।

प्रश्न 20.
भारत में जनसंख्या वृद्धि से हुए परिणामों पर प्रकाश डालें।
उत्तर:
भारत की जनसंख्या पिछली शताब्दी में विस्फोटक रूप से बढ़ी है। इस वृद्धि के कारण सर्वप्रथम जनघनत्व में भी जबरदस्त वृद्धि आयी है। 1901 ई० में यह घनत्व 97 व्यक्ति/वर्ग कि०मी० से बढ़कर 2001 ई० में 324 व्यक्ति/वर्ग कि० मी० हो गया है। पिछले 100 वर्षों के दौरान जनघनत्व में हुए इस आशातीत वृद्धि का प्रभाव सर्वप्रथम कृषि भूमि पर पड़ा है। 1921 ई० में देश में प्रति व्यक्ति कृषि योग्य भूमि एक एकड़ थी जो आज 0.5 एकड़ से भी कम है। प्रति व्यक्ति कृषि भूमि में भारी कमी का एकमात्र कारण ग्रामीण जनसंख्या का दबाव है। परिणामस्वरूप, खाद्य उपलब्धता भी संतोषजनक नहीं है। खाद्यान्न उत्पादन में वृद्धि के बावजूद प्रति व्यक्ति खाद्य उपलब्धता 500 ग्राम के निकट है। जबकि इसे 650-700 ग्राम होनी चाहिए।

इसी तरह भारत का एक बड़ा समूह अधिवास की सुविधा से वंचित है। साथ ही गरीबी रेखा के नीचे रहनेवालों की संख्या में भी वृद्धि हुई है। इसके बावजूद नगरीय जनसंख्या में विस्फोटक वृद्धि आयी है। 1901 ई० में देश में एक महानगर था जिसकी संख्या 2001 ई० में बढ़कर 35 हो गयी है। इसके साथ ही साथ अनुत्पादक और बेरोजगारी की संख्या तथा पर्यावरण सम्बन्धी समस्याएँ भी जनसंख्या वृद्धि के कारण बढ़ी है।

Bihar Board 12th Business Studies Objective Important Questions Part 3 in Hindi

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Bihar Board 12th Business Studies Objective Important Questions Part 3 in Hindi

प्रश्न 1.
बजटिंग के प्रमुख उद्देश्य हैं
(a) नियोजन
(b) समंवयन
(c) नियंत्रण
(d) सभी
उत्तर:
(d) सभी

प्रश्न 2.
मानव संसाधन प्रबंधन में शामिल है
(a) भर्ती
(b) चयन
(c) प्रशिक्षण
(d) इनमें से सभी
उत्तर:
(d) इनमें से सभी

प्रश्न 3.
विज्ञापन है
(a) विनियोग
(b) अनावश्यक कार्य
(c) मुद्रा की बर्बादी
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(a) विनियोग

प्रश्न 4.
व्यवसाय का आर्थिक वातावरण प्रभावित होता है।
(a) अधिक प्रणाली द्वारा
(b) आर्थिक नीति द्वारा
(c) अधिक विकास द्वारा
(d) इनमें से सभी
उत्तर:
(d) इनमें से सभी

प्रश्न 5.
नियोजन प्रबंध का कार्य है
(a) प्राथमिक
(b) द्वितीयक
(c) तृतीयक
(d) इनमें से सभी
उत्तर:
(a) प्राथमिक

प्रश्न 6.
बैकों से अधिविकर्ष की सुविधा उपलब्ध होती है
(a) बचत खातों पर
(b) चालू खातों पर
(c) मियादी जमा खातों पर
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(b) चालू खातों पर

प्रश्न 7.
मुद्रा बाजार व्यवहार करता है
(a) अल्पकालीन कोष
(b) मध्यकालीन कोष
(c) दीर्घकालीन कोष
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(a) अल्पकालीन कोष

प्रश्न 8.
प्रबंधकीय नियंत्रण किया जाता है
(a) निम्न प्रबन्धकों द्वारा
(b) मध्यम स्तरीय प्रबन्धकों द्वारा
(c) उच्च स्तरीय प्रबन्धकों द्वारा
(d) सभी स्तरीय प्रबन्धकों द्वारा
उत्तर:
(c) उच्च स्तरीय प्रबन्धकों द्वारा

प्रश्न 9.
खजाना बिल मूलतः है
(a) अल्पकालीन कोष कर्ज लेने का एक विपत्र
(b) दीर्घ कालीन कोष कर्ज लेने का एक विपत्र
(c) पूँजी बाजार का एक विपत्र
(d) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(a) अल्पकालीन कोष कर्ज लेने का एक विपत्र

प्रश्न 10.
नीति निर्धारण कार्य है।
(a) उच्च स्तरीय प्रबन्धकों का
(b) मध्यस्तरीय प्रबन्धकों का
(c) परिचालन प्रबन्धन का
(d) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(a) उच्च स्तरीय प्रबन्धकों का

प्रश्न 11.
उपभोक्ता विवाद निवारण एजेन्सीज है
(a) जिला मंच
(b) राज्य आयोग
(c) राष्ट्रीय आयोग
(d) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(d) उपर्युक्त सभी

प्रश्न 12.
………………….. संगठन में अनुशासन नहीं होता है।
(a) औपचारिक
(b) प्रभागीय
(c) कार्यात्मक
(d) अनौपचारिक
उत्तर:
(d) अनौपचारिक

प्रश्न 13.
माल क्रय करने का आधार होना चाहिए।
(a) निरीक्षण
(b) आकार और नमूना
(c) वर्णन और ब्रांड
(d) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(d) उपरोक्त सभी

प्रश्न 14.
पर्यवेक्षक कर्मचारियों का ………… है।
(a) मित्र
(b) मार्गदर्शक
(c) दार्शनिक
(d) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(b) मार्गदर्शक

प्रश्न 15.
वित्त का सबसे सस्ता स्रोत है
(a) ऋण-पत्र
(b) समता अंश पूँजी
(c) पूर्वाधिकार अंश
(d) प्रतिधारित आय
उत्तर:
(a) ऋण-पत्र

प्रश्न 16.
बजट का अर्थ है
(a) निष्पादन का नियोजित लक्ष्य
(b) भविष्य के कार्यकलाप का प्रयोग
(c) संसाधनों का सही वितरण
(d) आशान्वित परिणाम का अंकों में वितरण
उत्तर:
(a) निष्पादन का नियोजित लक्ष्य

प्रश्न 17.
प्रबन्ध विज्ञान के किस रूप में है ?
(a) पूर्ण विज्ञान
(b) सरल विज्ञान
(c) अर्द्ध विज्ञान
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(b) सरल विज्ञान

प्रश्न 18.
संगठन के जीवन में भर्ती होती है।
(a) एक बार
(b) दो बार
(c) कभी-कभी
(d) निरन्तर
उत्तर:
(b) दो बार

प्रश्न 19.
व्यापारिक साख स्रोत है
(a) दीर्घकालीन वित्त का
(b) मध्यकालीन वित्त का
(c) अल्पकालीन वित्त का
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(c) अल्पकालीन वित्त का

प्रश्न 20.
निम्न में से कौन-सा उपभोक्ता उत्पाद नहीं है ?
(a) कच्चा माल
(b) रेफ्रीजरेटर
(c) पुरानी मूर्तियाँ
(d) जूते
उत्तर:
(a) कच्चा माल

प्रश्न 21.
उपभोक्ता के लिए उत्तरदायी नहीं होता है
(a) मूल्य
(b) माल
(c) जोखिम
(d) भार
उत्तर:
(c) जोखिम

प्रश्न 22.
निम्न में से कौन-सा समन्वय का तत्व है ?
(a) एकीकरण
(b) सहयोग
(c) समय का निर्धारण
(d) संतुलन
उत्तर:
(a) एकीकरण

प्रश्न 23.
भारत में उद्यमिता विकास कार्यक्रम है
(a) आवश्यक
(b) अनावश्यक
(c) समय की बर्बादी
(d) धन की बर्बादी
उत्तर:
(a) आवश्यक

प्रश्न 24.
किसी भी देश के विकास में सबसे अधिक आवश्यकता है
(a) भौतिक संसाधन की
(b) आर्थिक संसाधन की
(c) कुशल प्रबन्ध की
(d) इनमें से सभी
उत्तर:
(a) भौतिक संसाधन की

प्रश्न 25.
नियोजन है
(a) आवश्यक
(b) अनावश्यक
(c) समय की बर्बादी
(d) धन की बर्बादी
उत्तर:
(a) आवश्यक

प्रश्न 26.
समन्वय स्थापित किया जाता है
(a) समूहों के मध्य
(b) विभागों के मध्य
(c) प्रबन्ध एवं कर्मचारियों के मध्य
(d) इन सभी के मध्य
उत्तर:
(d) इन सभी के मध्य

प्रश्न 27.
अभिप्रेरित कर्मचारियों को पारितोषित किया जाता है
(a) ऋणात्मक
(b) धनात्मक
(c) आंतरिक
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(b) धनात्मक

प्रश्न 28.
व्यावसायिक उपक्रम में नियंत्रण की आवश्यकता होती है
(a) व्यवसाय की स्थापना के समय
(b) निरन्तर
(c) व्यवसाय के संचालन के समय
(d) वर्ष के अंत में
उत्तर:
(b) निरन्तर

प्रश्न 29.
प्रभावी सम्प्रेषण के लिए आवश्यक है
(a) स्पष्टता
(b) शिष्टता
(c) निरन्तरता
(d) इनमें से सभी
उत्तर:
(d) इनमें से सभी

प्रश्न 30.
विपणन व्यय भार है
(a) उद्योग पर
(b) व्यवसायियों पर
(c) उपभोक्ताओं पर
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(c) उपभोक्ताओं पर

प्रश्न 31.
सामाजिक वातावरण के निम्नलिखित में से कौन-सा उदाहरण हैं ?
(a) अर्थव्यवस्था में मुद्रा की आपूर्ति
(b) उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम
(c) देश का संविधान
(d) परिवार का संरचना
उत्तर:
(d) परिवार का संरचना

प्रश्न 32.
वित्तीय प्रबन्ध की परम्परागत विचारधारा को कब त्याग दिया गया था?
(a) 1910 – 20 में
(b) 1920 – 30 में
(c) 1930 – 40 में
(d) 1940 – 50 में
उत्तर:
(c) 1930 – 40 में

प्रश्न 33.
तरलता का निर्माण करता है
(a) संगठित बाजार
(b) प्राथमिक बाजार
(c) असंगठित बाजार
(d) गौण बाजार
उत्तर:
(a) संगठित बाजार

प्रश्न 34.
स्कन्ध विपणी का दूसरा नाम है।
(a) संगठित बाजार
(b) प्राथमिक बाजार
(c) गौण बाजार
(d) मुद्रा बाजार
उत्तर:
(a) संगठित बाजार

प्रश्न 35.
“प्रबन्ध व्यक्तियों का विकास है, नहीं वस्तुओं का निर्देशन।” यह कथन है
(a) लॉरेन्स ए एप्पले का
(b) आर० सी० डेविस का
(c) कीथ एवं गुबेलिन का
(d) जार्ज आर० टैरी का
उत्तर:
(b) आर० सी० डेविस का

प्रश्न 36.
भारत में कार्यरत गैर-सरकारी संगठन है
(a) वाईस
(b) कॉमन कॉज
(c) (a) और (b) दोनों
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(a) वाईस

प्रश्न 37.
प्रबंध की सफलता का प्राथमिक तत्त्व है
(a) संतुष्ट कर्मचारी
(b) अत्यधिक पूँजी
(c) अधिकतम उत्पादन
(d) बड़ा बाजार
उत्तर:
(a) संतुष्ट कर्मचारी

प्रश्न 38.
पर्यवेक्षण तत्त्व है
(a) नेतृत्व का
(b) निर्देशन का
(c) नियोजन का
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(b) निर्देशन का

प्रश्न 39.
प्रभावशाली अधिकार हस्तान्तरण के लिए उत्तरदायित्व के साथ होना अति आवश्यक है
(a) अधिकार
(b) मानव शक्ति
(c) प्रोत्साहन
(d) प्रोन्नति
उत्तर:
(a) अधिकार

Bihar Board 12th Geography Important Questions Long Answer Type Part 1

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Bihar Board 12th Geography Important Questions Long Answer Type Part 1

प्रश्न 1.
व्यापारिक बागानी कृषि की विस्तृत व्याख्या करें।
उत्तर:
व्यापारिक बागानी कृषि के रोपण कृषि एक विकसित कृषि-प्रणाली है, जिसमें कृषि की नवीन पद्धतियों का उपयोग किया जाता है। औद्योगिक प्रबंध के नियमों पर आधारित इस कृषि के सभी फसल निर्यात आधारित होते हैं। उष्ण कटिबंधीय विकासशील देशों में होने वाले इस कृषि में विकासशील देशों के श्रमिक किंतु विकसित देशों की पूँजी लगी है। विस्तृत कृषि भूमि उपलब्ध होने के कारण विश्व के विभिन्न भागों में इस कृषि प्रकार में विविध किंतु किसी एक ही फसल की खेती की जाती है। फलतः इसे ‘एकल कृषि’ प्रकार भी कहा जाता है।

इस कृषि के अंतर्गत थाईलैंड, इंडोनेशिया, भारत, मलेशिया, विषुवतीय अफ्रीकी क्षेत्र, ब्राजील तथा मध्य अमेरिकी देशों में रबड़; ब्राजील, कोलंबिया, जमैका, दक्षिण-पश्चिम अफ्रीका, दक्षिण-पश्चिम एशिया और भारत में कहवा; विषुवतीय अफ्रीका और दक्षिण-पश्चिम अफ्रीका में कोक; दक्षिण एशिया, चीन दक्षिण-पश्चिम एशिया और पूर्वी अफ्रीकी देशों में चाय मुख्य फसल है। भारत, श्रीलंका, मोजांबिक, केन्या और हिंद महासागर के द्वीपीय देशों में मसाले; उष्ण कटिबंधीय तटवर्ती देशों भारत, श्रीलंका और फिलीपींस में नारियल तथा मध्य अमेरिका, केनारी द्वीप तथा दक्षिण एशियाई देशों में केला का प्रमुखता से उत्पादन किया जाता है।

प्रश्न 2.
दक्षिण-पश्चिमी एशिया में पेट्रोलियम के वितरण एवं उत्पादन का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
एशिया महाद्वीप के दक्षिण-पश्चिम में खनिज तेल के विस्तृत भंडार उपलब्ध हैं। विश्व के समस्त खनिज तेल के उत्पादन का 15 प्रतिशत, एशिया के इस भाग से प्राप्त होता है। इस क्षेत्र में इराक, ईरान, कुवैत, बहरीन, सऊदी अरब प्रमुख तेल उत्पादक देश हैं।

  • इराक में विश्व का सबसे बड़ा तेल क्षेत्र (112 किलोमीटर की लम्बाई में) किरकुक से उत्तर में बाबागुरगुर तक फैला है। इस देश से तेल 1,000 किलोमीटर लम्बी पाईप लाईन के द्वारा टर्की होकर भूमध्य सागर के तटवर्ती भागों को भेजा जाता है।
  • ईरान के प्रमुख तेल क्षेत्र दक्षिण-पश्चिम में स्थित है जहाँ मस्जिदे, सुलेमान (28 वर्ग किलोमीटर) तथा दूसरा क्षेत्र 64 किलोमीटर दक्षिण में 88 वर्ग किलोमीटर में फैला है। ईरान के अन्य तेल उत्पादक केन्द्र गचसारन, करमनशाह, आगाजमी, नफ्थसफेद और लाली है।
  • सऊदी अरब में खनिज तेल का उत्पादन पश्चिम में दम्माम क्षेत्र में किया जाता है जहाँ से खनिज तेल 40 किलोमीटर लम्बी पाईप लाईन द्वारा बहरीन भेज दिया जाता है। प्रमुख तेल उत्पादन केन्द्र दम्माम, कातिफ, अबाक्वेक, बुक्का मुख्य है।
  • कुबैत में बुर्गन की पहाड़ियों में लगभग 1.067 मीटर की गहराई से खनिज तेल निकाला जाता है।
  • कतार में दुरबान के क्षेत्र से तेल निकाला जाता है। पाईप लाईन द्वारा तेल उम्मसईद के शोध संस्थान को भेजा जाता है।
  • बहरीन-फारस की खाड़ी में स्थित बहरीन द्वीप में खनिज तेल निकाला जाता है।
  • संयुक्त अरब अमीरात, आबुधाबी, दुबई, शारजाह में तेल मिलता है।

पाकिस्तान – पंजाब के खौर तथा धुलियन क्षेत्रों से तेल प्राप्त होता है। रावलपिण्डी से 65 किलोमोटर दक्षिण में जोयामेल में भी तेल निकाला जाता है।

भारत – भारत में गुजरात तथा असाम राज्य प्रमुख तेल उत्पादक राज्य हैं। मुम्बई के निकट हाई से भी तेल प्राप्त किया जाता है। अभी हाल में आन्ध्र के गोदावरी डेल्टा में तेल प्राप्त हुआ है। यहाँ 2003-04 में देश में 331 लाख टन तेल का उत्पादन हुआ।

म्यांमार – विश्व के उत्पादन का 1 प्रतिशत खनिज तेल म्यांमार से प्राप्त होता है। इराददी घाटी में तेल कूप खोदे गये हैं।

इण्डोनेशिया – सुमात्रा, कालीमण्टन, जावा आदि द्वीपों से तेल प्राप्त होता है। सुमात्रा के पूर्वी तट पर जम्बी और पैलेमबाग में तेल कूप खोदे गये हैं।

प्रश्न 3.
मानव भूगोल की परिभाषा दीजिये तथा उसके अध्ययन के उद्देश्य एवं विषय-क्षेत्र को बताइये।
उत्तर:
मानव भूगोल : परिभाषा तथा उद्देश्य :
फ्रांसीसी विद्वान वीडाल-डी-ला-ब्लाश (Vidal-de-la-Blache) के अनुसार, मानव भूगोल पृथ्वी और मानव के पारस्परिक सम्बन्धों को एक नया विचार देता है, जिसमें पृथ्वी को नियंत्रित करने वाले भौतिक नियमों का तथा पृथ्वी पर निवास करने वाले जीवों के पारस्परिक सम्बन्धों का अधिक संयुक्त ज्ञान प्राप्त होता है।

जीन ब्रून्श (Jean Brunches) के अनुसार, मानव भूगोल उन सभी तथ्यों का अध्ययन है जो मानव के क्रिया-कलापों से प्रभावित है और जो हमारी पृथ्वी के धरातल पर घटित होने वाली घटनाओं में से छाँटकर एक विशेष श्रेणी में रखे जा सकते हैं।

अमेरिकन भूगोलवेत्ता एल्सवर्थ हंटिंगटन (Ellsworth Huntington) ने मानव भूगोल की परिभाषा इस प्रकार दी है-‘मानव भूगोल भौगोलिक वातावरण और मानव के कार्यकलाप एवं गुणों के पारस्परिक सम्बन्ध के स्वरूप और वितरण का अध्ययन है।’

कुमारी सेम्पुल के अनुसार, ‘मानव भूगोल क्रियाशील मानव व अस्थायी पृथ्वी के परिवर्तनशील सम्बन्धों का अध्ययन है।’

जर्मन विद्वान रेटजेल (Ratzel) के अनुसार, “मानव भूगोल के दृश्य सर्वत्र वातावरण से सम्बन्धित होते हैं, जो स्वयं भौतिक दशाओं का एक योग होता है।”

फ्रांसीसी विद्वान डीमाजियां (Demageon) के अनुसार, मानव भूगोल मानव समुदायों और समाजों के भौतिक वातावरण से सम्बन्धों का अध्ययन है।”

लेबान (Leban) के अनुसार ‘मानव भूगोल एक समष्टि भूगोल है जिसके अन्तर्गत मानव और उसके वातावरण के मध्य के सम्बन्धों के फलस्वरूप उत्पन्न होने वाली सामान्य समस्या का स्पष्टीकरण किया जाता है।’

जर्मन विद्वान रेटजेल (Ratzel) को मानव भूगोल का जनक कहा जाता है। उन्होंने सर्वप्रथम 1882 में एन्थ्रोपोज्योग्राफी (Anthropogeography) नामक ग्रन्थ का प्रथम खण्ड प्रकाशित कराया जिसमें उन्होंने मानव और वातावरण के सम्बन्धों का अध्ययन कर भूगोल को एक नया रूप दिया जो आगे चलकर भूगोल की एक महत्वपूर्ण शाखा ‘मानव भूगोल’ के रूप में विकसित हुआ। रेटजेल के मतानुसार मानव अपने वातावरण की उपज है और वातावरण की प्राकृतिक शक्तियाँ ही मानव जीवन को ढालती है। दूसरे शब्दों में मानव अपने वातावरण का जीव (Creature of his environment) हैं।

विभिन्न परिभाषाओं से स्पष्ट है कि मनुष्य के ऊपर वातावरण का प्रभाव पड़ता है। यह मात्र भौगोलिक वातावरण ही नहीं सांस्कृतिक वातावरण भी होता है जिसका समग्र प्रभाव मानव पर पड़ता है।

हार्लन बैरोज (H. H. Barrows) ने बताया है कि मानव पारिस्थितिकी (Human Ecology) में केवल प्राकृतिक वातावरण और मानव के सम्बन्धों का ही अध्ययन नहीं होता क्योंकि पारिस्थितिकी में केवल प्राकृतिक वातावरण और मानव के सम्बन्धों का अध्ययन ही किया जाता है जबकि मानव भूगोल में मनुष्य का भौगोलिक तथा सांस्कृतिक दोनों ही वातावरण के संदर्भ में अध्ययन किया जाता है। यद्यपि मनुष्य अपने वातावरण से अत्यधिक प्रभावित होता है फिर भी वह अपने वातावरण का दास नहीं है। जहाँ एक ओर वह वातावरण के अनुकूलन संशोधित . (adaptation) का प्रयास करता है। वहीं दूसरी ओर वह वातावरण को भी अपने अनुकूल संशोधित (modification) करता है। फेब्रे का मत है कि ‘मनुष्य एक भौगोलिक-दूत है, पशु नहीं’ (Man is a geographic agent and not a beast.)।

मनुष्य व वातावरण को अलग-अलग करके मानव पर पड़ने वाले प्रभावों की जानकारी नहीं की जा सकती। अत: यह स्पष्ट होता है कि मानव भूगोल में मनुष्य और उसके वातावरण के अन्तर्सम्बन्धों से उत्पन्न समस्याओं का अध्ययन किया जाता है। मनुष्य वातावरण से हर समय घिरा रहता है। इसका प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष प्रभाव मानव पर अवश्य पड़ता है। मनुष्य व वातावरण के मध्य कार्यात्मक सम्बन्ध (functional relation) पाया जाता है।

प्रश्न 4.
संभववाद की संकल्पना का परीक्षण करें।
उत्तर:
संभववाद को सर्वप्रथम फ्रांसीसी विद्वान फेब्बरे ने नाम दिया। इस विचारधारा के विद्वानों का मत है कि मानव प्रकृति के तत्वों को चुनने के लिए स्वतंत्र होता है। सर्वत्र संभावनाएँ हैं और मनुष्य इन संभावनाओं का स्वामी है। फेब्बरे (Febvre) का विचार है, “कहीं अनिवार्यता नहीं है, सब जगह संभावनाएं हैं।” मानव उसके स्वामी के रूप में उनका निर्णायक है। संभावनाओं के उपयोग से स्थिति में जो परिवर्तन होता है, उससे मानव को, मात्र मानव को ही प्रथम स्थान प्राप्त होता है। पृथ्वी, जलवायु या विभिन्न स्थानों की नियतिवादी परिस्थितियों को वह कदापि नहीं मिल सकता। ब्लांश का मानना है कि मानव को अपने वातावरण में रहकर कार्य करना पड़ता है, परंतु इसका अर्थ यह नहीं है कि वह वातावरण का दास है।

मानव एक क्रियाशील प्राणी है जिसमें वातावरण में परिवर्तन लाने की असीम क्षमता है अर्थात् वह अकर्मण्य तभी होता है जब भौतिक विश्व उसे निष्प्राणित कर देता है। वास्तव में जब तक वह जीवित रहता है, तब तक क्रिया-प्रतिक्रिया करता रहता है। ब्लांश ने उदाहरण प्रस्तुत किया कि गेहूँ प्रारम्भ में भूमध्य सागरीय क्षेत्रों की उपज थी, परंतु मानव के प्रयत्नों के फलस्वरूप पश्चिमी यूरोप में गेहूँ की उपज क्षेत्रों की उपज भूमध्य सागरीय क्षेत्रों की अपेक्षा अधिक है। उन्होंने कहा कि “प्रकृति एक सलाहकार के अधिक नहीं है।” (Nature is never more than an advisor.) साम्यवाद के समर्थकों में ब्रून्श, ईसा बोमेन, कार्ल सॉवर, रसल स्मिथ आदि थे। इन सभी विद्वानों ने मानव.को प्रकृति से अधिक सक्रिय एवं बुद्धिमान माना।

प्रश्न 5.
नव निश्चयवाद की विचारधारा पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
उत्तर:
वर्तमान में अनेक विद्वान इस विचारधारा के समर्थक हैं। इस सिद्धान्त के समर्थकों ने इस विवाद में न पड़कर कि प्रकृति अधिक शक्तिशाली है, अथवा मनुष्य, प्रकृति व मनुष्य के मध्य आपसी तालमेल को महत्त्व दिया है। नव निश्चयवादी विद्वान भी मनुष्य पर प्रकृति का पूर्ण नियंत्रण न बताकर केवल प्रभाव बताते हैं।

इस विचारधारा के समर्थकों का मत है, कि प्रकृति मनुष्य को अवसर प्रदान करती है परन्तु साथ ही कुछ सीमायें निर्धारित करती है। इन सीमाओं में रहकर ही मनुष्य को अपना कार्य करना चाहिए।

ग्रिफिथ टेलर इस विचारधारा के जनक माने जाते हैं। इन्होंने इस विचारधारा को वैज्ञानिक निश्चयवाद व ‘रुको और जाओ निश्चयवाद’ भी कहा है। जॉर्ज टॉथम ने इसे क्रियात्मक संभववाद का नाम दिया है। इसमें मनुष्य द्वारा छाँट का विचार भी सम्मिलित है।

इस विचारधारा के जन्म व विकास में अमरीकी भूगोलवादियों का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा। इस विचारधारा को अमरीकी विचारधारा भी कहते हैं। इस विचारधारा के समर्थकों ग्रिफ्फिथ टेलर के अलावा जॉर्ज टॉथम, एल्सबर्थ हटिंगटम, रॉक्सवी, कार्ल सॉवर, एच० जे० फ्ल्यूर आदि प्रमुख हैं। इस सिद्धान्त में मानव व प्रकृति के मध्य समझौते पर विशेष बल दिया गया है। इस विचारधारा के विचारकों का मत है कि यदि मानव सांस्कृतिक विकास करना चाहता है तो उसे प्रकृति की सीमाओं का अतिक्रमण नहीं करना चाहिए। प्रकृति मौन रहती है, निर्णय मानव करता है। यह मानव पर ही निर्भर है, कि उसका निर्णय किस प्रकार का है। यदि मानव बुद्धिमत्तापूर्ण है, तो मनुष्य भव्य सांस्कृतिक भू-दृश्य का निर्माता बनता है और यदि मूर्खतापूर्ण है, तो मानव कुछ नहीं कर पाता।

टेलर ने अपनी पुस्तक ‘ज्योग्राफी इन दी ट्वंटीयेथ सेंचुरी’ में स्पष्टतः बताया है कि मानव पर प्रकृति के नियंत्रण को नकारा नहीं जा सकता। उदाहरणार्थ साइबेरिया व कनाडा के विस्तृत क्षेत्र में, सहारा व आस्ट्रेलिया के मरुस्थलों में व अंटार्कटिका के हिम क्षेत्र में मानव को प्रकृति का आदेश मानना पड़ता है। ये क्षेत्र अभी बहुत समय तक यों ही पिछड़े पड़े रहेंगे। फिलहाल इन पर इन विकसित राष्ट्र बनाना संभव नहीं है। परन्तु इतना अवश्य है कि प्रकृति में सांस्कृतिक प्रगति मनुष्य द्वारा ही की जाती है। साथ-साथ यह भी सत्य है कि प्रगति, प्रकृति की सीमाओं में रहकर ही करनी चाहिए। उसे प्रकृति पर नियंत्रण उसी प्रकार करना चाहिए, जिस प्रकार एक चौराहे पर यातायात नियंत्रक यातायात को नियंत्रित करता है। वह वाहनों की गति परिवर्तित करता है, दिशा नहीं।

इस विवारधारा के समर्थकों के अनुसार मानव प्रकृति पर विजय प्राप्त कर सकता है, परन्तु कुछ सीमा तक ही। मध्य अकृीका में कांगों व नाइजर नदियों के बेसिनों में पिग्मी व नीग्रो लोग रहते हैं। उन्होंने वातावरण के साथ समायोजन किया है। पहले ये लोग अधिक गर्मी के कारण निर्वस्त्र रहते थे। समय के साथ-साथ उनकी त्वचा उस गर्मी को सहन करने योग्य हो गई। आर्थिक व सामाजिक विकास होने पर उन्होंने वस्त्र पहनने आरम्भ कर दिये। परन्तु आज भी कांगों व नाइजर बेसिनों में ऐसे लोग निवास करते हैं, जो वस्त्र धारण नहीं करते हैं। निश्चय ही वे अपने चारों ओर के वातावरण से प्रभावित हैं।

संघर्ष मनुष्य की प्रकृति की प्रवृत्ति रही है। यदि प्रकृति उसे एक सुविधा प्रदान करती है, तो मनुष्य संघर्ष के माध्यम से अनेक सुविधायें प्राप्त करना चाहता है। प्रकृति ने मानव को कृषि के लिए समतल मैदान प्रदान किये हैं, परन्तु मानव ने सीढ़ीदार खेत बनाकर पर्वतों पर कृषि प्रारम्भ कर दी। प्रतिदिन कोई-न-कोई व्यक्ति एवरेस्ट पर चढ़ने का प्रयास करता है, चाहे जीवन ही क्यों न समाप्त हो जाये। इस प्रकार स्पष्ट होता है कि संघर्ष की प्रवृत्ति मानव के रोम-रोम में बसी है। परन्तु मानव को संघर्ष नहीं करना चाहिए जहाँ उसे सफलता की आशा हो।

साइबेरिया में मानव ने कृषि करनी चाही पर्याप्त मात्रा में श्रम व धन व्यय किया। परन्तु अंततः उसे हार माननी ही पड़ी। इसी प्रकार यदि टुण्डा क्षेत्र या ध्रुवीय क्षेत्रों में सांस्कृतिक भू-दृश्य का निर्माण किया जाए तो कोई लाभ न होगा क्योंकि वहाँ उसका कोई दर्शक नहीं होगा। अतः मनुष्य को प्रयल वहीं तक करना चाहिए जहाँ तक प्रकृति उसे अनुमति दे। मानव को प्रकृति की सीमाओं का अतिक्रमण नहीं करना चाहिए।

क्लब ऑफ रोम की एक पुस्तक ‘लिमिट्स टु गोथ’ में मानव प्रकृति के सम्बन्धों पर प्रकाश डाला गया था। इस पुस्तक में इस तथ्य को एक चित्र के माध्यम से समझाया गया है कि मानव द्वारा प्रकृति में हस्तक्षेप बढ़ता ही गया, तो एक दिन मानव व प्रकृति के बीच का संतुलन टूट जायेगा क्योकि मानव की सारी प्रगति व्यर्थ हो जायेगी। इस तथ्य से हमें स्पष्ट झलक मिलती है कि मानव ने प्रकृति की सीमाओं में अंधाधुन्ध हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। उसे अपना विकास प्रकृति की सीमाओं में रहकर ही करना चाहिए।

ईसा बोमैन के अनुसार, “मानव शक्तिशाली है। वह बुद्धिमान है। वह विषम परिस्थितियों में भी लाभदायक परिस्थितियाँ उत्पन्न कर सकता है।” परन्तु ऐसा कब तक होगा?

प्रकृति व मानव के मध्य से संघर्ष हटाकर सहयोग का भाव स्थापित करना ही इस विचारधारा का मुख्य उद्देश्य है।

प्रश्न 6.
निश्चयवाद के विषय में विभिन्न लेखकों की विचारधारा का वर्णन कीजिये।
अथवा, निश्चयवाद की विचारधारा को स्पष्ट कीजिये।
उत्तर:
निश्चयवाद की संकल्पना – निश्चयवाद की संकल्पना का विकास जर्मनी में हुआ। रैटजेल इसके प्रमुख सूत्रधार थे। वैसे मानव पर पर्यावरण के प्रभाव को बहुत पहले से ही अनुभव किया जाने लगा था। इस विचारधाराओं के मानने वालों का मत है कि मानव के समस्त क्रिया कलाप प्रकृति द्वारा नियंत्रित होते हैं। प्रकृति के अनुसार उसे अपनी आवश्यकतायें व इच्छायें नियंत्रित करनी पड़ती है। बिना प्रकृति से सहयोग करे मानव उन्नति नहीं कर सकता। इस विचारधारा के समर्थनों में रैटजेल, हम्बोल्ट, सैंपुल कांट, डिमोलींस, अरस्तु, हिप्पोक्रेटस आदि है।

अनेक प्राचीन ग्रन्थों में मानव और प्रकृति के निकट के सम्बन्धों पर प्रकाश डाला गया है। अनेक यूनानी विचारकों ने भी इस विषय में अपने विचार प्रकट किये हैं। ईसा छठी सदी पूर्व थेल्स व अनैग्जीमैंडर ने जलवायु, वनस्पति पर लिखी एक पुस्तक में-पवन, जल व स्थानों तथा मानव समाज का वर्णन किया है। यह पुस्तक लगभग 420 वर्ष पहले लिखी गई थी। ईसा पूर्व हिप्पोक्रेट्स नामक विद्वान ने भी एशिया व यूरोप के मनुष्यों की तुलना प्रकृति के प्रभावों से की थी।

हिप्पोक्रेट्स ने वातावरण के प्रभाव को न केवल मानव स्वभाव पर स्पष्ट किया वरन् मनुष्य की शारीरिक बनावट से भी वातावरण का गहन सम्बन्ध बताया। एशिया व यूरोप के निवासियों की शारीरिक बनावट का अध्ययन करने के पश्चात् उसने निष्कर्ष निकाला कि इन दोनों क्षेत्रों के निवासियों की शारीरिक बनावट में बहुत अन्तर है।

राजनीतिशास्त्र के प्रसिद्ध विद्वान बोदिन ने मनुष्य पर वातावरण के प्रभाव को वहाँ की सरकार से सम्बन्धित किया है। उन्होंने बताया है कि किस प्रकार की जलवायु में किस प्रकार की सरकार बनने की संभावना रहती है। अरस्तु ने एशिया व यूरोप के निवासियों की तुलना की व उनमें पाये जानेवाले अन्तर का कारण वातावरण ही पाया। ईसा पूर्व प्लिनी ने जलवायु का प्रभाव मानव पर स्पष्ट करते हुए बताया या कि गर्म जलवायु के निवासी आलसी होते हैं।

रेटजैल के मानव भूगोल का जनक माना जाता है। उनका दृढ़ विश्वास था कि मानव सर्वथा प्रकृति पर ही आश्रित रहता है। रेटजैल ने प्रकृति को पेड़ माना है व मानव को एक पक्षी। उन्होंने कहा कि पक्षी चाहे कितनी ही ऊँची उड़ान क्यों न भरे अन्त में आश्रय वृक्ष पर ही लेता है। इसी प्रकार मानव भी प्रकृति की शरण में रहता है।

मिस एलेन चर्चिल सैंपुल रेटजैल की शिष्या थीं। वे भी निश्चयवाद की समर्थक थीं। उन्होंने अपने विचारों की पुष्टि हेतु अनेक उदाहरण दिये। उन्होंने बताया कि पर्वतीय क्षेत्रों में निवास करने वाले व्यक्तियों को प्रकृति ने ही लोहे जैसे कठोर पैर प्रदान किये हैं। दूसरी ओर समुद्र के पास रहने वाले लोगों के शरीर का ऊपरी हिस्सा अधिक शक्तिशाली होता है जिससे वे सुगमता से सागर में नौकायन कर सकें। एलेन चर्चिल का विचार है कि मानव भूतल की उपज है और पृथ्वी उसके रोम-रोम में व्याप्त है।

प्रसिद्ध भूगोलविद् कांट ने भी इस संकल्पना का समर्थन किया है। उन्होंने विभिन्न स्थानों पर मनुष्य पर प्रकृति का भिन्न-भिन्न प्रभाव देखा। नीदरलैंड, हालैंड का धरातल समुद्र तल से बहुत नीचा है। वहाँ प्रायः दलदल बन जाते हैं। दलदल में मच्छर व मक्खियों की उत्पत्ति होती है। मच्छर व मक्खियाँ प्रायः नाक व आँख पर प्रहार करते हैं। अतः ये लोग इन अंगों का विशेष ध्यान रखने लगे। आँख की रक्षा के लिये बार-बार पलक झपकते थे। परिणामस्वरूप उन्हें जल्दी-जल्दी पलक झपकाने की आदतें पड़ गईं। कालांतर में इनकी आँखों का आकार काफी छोटा हो गया। अतः डच लोगों के आँखों के छोटे आकार के लिये वातावरण ही उत्तरदायी है।

डीमोलीस के अनुसार समाज का निर्माण हमेशा प्रकृति से प्रभावित रहता है।

इस्लाम धर्म का उदय मक्का मदीना में हुआ था। यह क्षेत्र मरुस्थलीय है। वहाँ पानी सीमित मात्रा में ही प्राप्त होता है। अतः पानी का प्रयोग बड़ी सावधानीपूर्वक करना पड़ता है। उसके संरक्षण के लिये विभिन्न उपाय करने पड़ते हैं। पानी का संरक्षण करने के दृष्टिकोण से ही मुसलमान सप्ताह में केवल एक बार स्नान किया करते थे। कालांतर में जब इस्लाम धर्म का प्रसार अन्य स्थानों पर हुआ तो अन्य स्थानों से व्यक्ति भी सप्ताह में एक बार ही नहाने लगे। यह तथ्य उनके लिये धर्म का प्रतीक बन गया।

इसी प्रकार रेगिस्तान में धूल व रेत भरी आँधियों से बचने के लिये लोग घर के दरवाजे पर टाट के पर्दे डाल लेते थे। घर से बाहर निकलते समय लबादा व बुर्का आदि का प्रयोग करते थे। ये तथ्य आज रीति-रिवाज बन गये हैं।

आज भी पर्वतीय क्षेत्रों में बहुपति प्रथा पाई जाती है। इसका कारण भी वहाँ का वातावरण ही है। पर्वतों की जलवायु कठोर होती है। कृषि करने लायक क्षेत्र कम होता है। परिणामस्वरूप खाद्यान्न की कमी रहती है। यदि परिवार में सभी विवाह करेंगे तो उनके बच्चे अधिक होंगे। यदि बच्चे अधिक होंगे तो उन्हें भुखमरी का सामना करना पड़ेगा। अतः प्रत्येक परिवार में केवल बड़े भाई का विवाह होता है। उसकी पत्नी ही सब भाइयों की पत्नी होती है। इस प्रकार की विचारधारा के समर्थकों ने यह सिद्ध करने का प्रयास किया है कि मानव प्रतिपल प्रकृति के बन्धनों में बंधा रहता है। वह प्रकृति की सीमाओं का अतिक्रमण नहीं कर सकता।

प्रश्न 7.
विश्व में जनसंख्या वितरण और घनत्व को प्रभावित करने वाले कारकों की विवेचना करें।
उत्तर:
लोग ऐसे स्थानों पर बसना चाहते हैं जहाँ उन्हें भोजन, पानी, घर बसाने के लिए उपयुक्त स्थान मिल जाए। जनसंख्या के वितरण को निम्न कारक सम्मिलित रूप से प्रभावित करते हैं। इनको निम्न वर्गों में विभाजित किया जा सकता है-

1. प्रक्रुतिक कारक (Physiological factors)-
(i) उच्चावच (Relief) – पर्वतीय, पठारी अथवा उबड़-खाबड़ प्रदेशों में कम लोग रहते हैं जबकि मैदानी क्षेत्रों में लोगों का निवास अधिक होता है क्योंकि इन क्षेत्रों में भूमि उर्वरा होती है और कृषि की जा सकती है। यही कारण है कि नदी घाटियाँ जैसे गंगा, ब्रह्मपुत्र, ह्वांग-हो आदि की घाटियाँ अधिक घनी बसी हैं।

(ii) जलवायु (Climate) – अत्यधिक गर्म या अत्यधिक ठंडे भागों में कम जनसंख्या निवास करती है। ये विरल जनसंख्या वाले क्षेत्र हैं। इसके विपरीत शीतोष्ण जलवायु तथा मानसूनी प्रदेशों में अधिक जनसंख्या निवास करती है।

(iii) मृदा (Soil) – जनसंख्या के वितरण पर मृदा की उर्वरा शक्ति का बहुत प्रभाव पड़ता है। उपजाऊ मिट्टी वाले क्षेत्रों में खाद्यान्न तथा अन्य फसलें अधिक पैदा की जाती हैं तथा प्रति हेक्टेयर उपज अधिक होती है। इसलिए नदी घाटियों को उपजाऊ मिट्टी वाले क्षेत्र अधिक घने बसे हैं।

(iv) खनिज पदार्थ (Minerals) – विषम जलवायु होने पर भी उपयोगी खनिजों की उपलब्धि से लोग वहाँ बसने लगते हैं। उदाहरण के लिए, सऊदी अरब के भीषण गर्मी वाले क्षेत्र में खनिज तेल के मिल जाने से अधिक घने बसे हैं। कालगूर्डी और कूलगर्डी की गर्म जलवायु में सोने की प्राप्ति तथा अलास्का में तेल कुओं की उपलब्धता के कारण वहाँ अधिक लोग रहते हैं।

(v) वनस्पति (Vegetation) – अधिक घने वनों के कारण भी जनसंख्या अधिक नहीं पाई जाती है। लेकिन कोणधारी वनों की आर्थिक उपयोगिता अधिक है। इसलिए लोग उन्हें काटने के लिए वहाँ बसते हैं।

2. आर्थिक कारक (Economic factors)-
(i) परिवहन का विकास (Development of means of transport) – परिवहन के साधनों के विकास से लोग दूर के क्षेत्रों में भी जाकर बस गए हैं। परिवहन केन्द्रों पर आर्थिक क्रियायें बढ़ने से रोजगार के अवसर बढ़ जाते हैं। अतः लोग वहाँ बसने लगते हैं।

(ii) अत्यधिक नगरीकरण (Urbanisation) – नगरों में रोजगार के अवसर बढ़ जाने से ग्रामीण क्षेत्रों के लोग उद्योगों में रोजगार तथा शिक्षा के लिए आकर बस जाते हैं। शंघाई, मुम्बई, न्यूयॉर्क आदि महानगर इनके उदाहरण हैं। नगरों में जनसंख्या का संकेन्द्रण उनकी सुविधाओं के कारण अधिक होता है।

3. सांस्कृतिक कारक (Cultural factors)-
(i) प्रौद्योगिकी में विकास (Development in technology)-यह सांस्कृतिक कारक है। कुछ देशों में प्रौद्योगिकी के विकास के आधार पर आवश्यक वस्तुओं का उत्पादन बढ़ा लिया है। अतः ऐसे देशों में अधिक जनसंख्या के पोषण की क्षमता होती है।

(ii) धार्मिक कारक (Religious factors)-धार्मिक कारणों से लोग अपना देश छोड़ने को मजबूर हो जाते हैं। दूसरे विश्व युद्ध के दौरान यहूदियों को यूरोप छोड़कर रेगिस्तानी क्षेत्र में नया देश इजरायल बसाना पड़ा था। इसी प्रकार दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद नीति के कारण जनसंख्या का वितरण प्रभावित हुआ है।

4. राजनैतिक कारक (Political factors)-किसी देश में गृह युद्ध, अशान्ति आदि के कारण भी जनसंख्या वितरण पर प्रभाव पड़ता है। उदाहरण के लिए, फारस की खाड़ी का युद्ध, श्रीलंका में जातीय संघर्ष आदि के कारण जनसंख्या का पलायन हुआ।

प्रश्न 8.
विश्व में जनसंख्या वृद्धि की प्रवृत्ति की वर्णन करें।
उत्तर:
वर्तमान समय में विश्व की जनसंख्या 600 करोड़ से अधिक है। ईसा की पहली सदी में जनसंख्या 30 करोड़ से कम थी जो 1750 ई० के आस-पास बढ़कर 55 करोड़ हो गयी। औद्योगिक क्रांति के बाद विश्व की जनसंख्या में विस्फोटक वृद्धि दर्ज की गयी। 1830-1930 ई० के 100 वर्षों के दौरान जनसंख्या एक अरब से बढ़कर 2 अरब हो गयी। 1960-75 के 15 वर्षों के दौरान यह 3 अरब से 4 अरब हो गयी, जबकि 1975-1987 ई० के 12 वर्षों की अवधि में यह 5 अरब तथा अगले 12 वर्षों के दौरान 1999 ई० में 6 अरब हो गयी है।
Bihar Board 12th Geography Important Questions Long Answer Type Part 1, 1
इसी प्रकार, विश्व जनसंख्या को दो गुना होने की अवधि प्रवृत्ति भी उल्लेखनीय है। इसे 50 से 100 करोड़ होने में 200 वर्ष लगे। 100-200 करोड़ होने में 80 वर्ष तथा 200-400 करोड़ होने में 45 वर्ष लगे हैं। जबकि 400-600 करोड़ होने में मात्र 24 वर्ष लगे।

इस प्रकार विश्व की जनसंख्या वृद्धि की प्रवृत्ति से यह स्पष्ट है कि यह घटते हुए समयावधि के दौरान एक अरब बढ़ जाती है।

प्रश्न 9.
जनसंख्या और विकास के बीच अर्न्तसम्बन्धों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
किसी देश की जनसंख्या की वृद्धि वहां के आर्थिक विकास पर धनात्मक एवं ऋणात्मक प्रभाव डालती है। यह प्रभाव धनात्मक होगा या ऋणात्मक इस पर निर्भर करता है कि वह अमुक देश जनसांख्यिकीय संक्रमण की किस अवस्था में है। संसाधनों के दोहन के लिए उत्पादन के एक महत्वपूर्ण कारक के रूप में श्रम शक्ति की क्षमता व उसकी गुणवत्ता अधिक महत्त्वपूर्ण है।

किसी देश के आर्थिक विकास का स्तर उस देश में उपलब्ध प्राकृतिक संसाधनों के प्रयोग तथा प्रयोग करने की विधि द्वारा निर्धारित होता है। उत्पादन अथवा खाद्य आपूर्ति तथा जनसंख्या वृद्धि में एक संतुलन बनाये रखना आवश्यक है। इस सन्तुलन को बनाये रखने के लिए संसाधनों के विकास, उनका दोहन व रोजगार उत्पन्न होने की प्रक्रिया का जनसंख्या वद्धि के साथ सामंजस्य स्थापित करना आवश्यक है।

इस प्रकार जनसंख्या और विकास में एक अतसंबंध है। एक ओर जनसंख्या की गुणवत्ता विकास के स्तर को बढ़ाने में सहायक है वहीं लगातार जनसंख्या वृद्धि के स्तर को प्रभावित करती है। अतः जनसंख्या एवं विकास के संदर्भ में जनसंख्या वृद्धि एक महत्त्वपूर्ण तत्त्व है।

प्रश्न 10.
आयु-लिंग पिरामिड का वर्णन करें।
उत्तर:
जनसंख्या की आयु-लिंग पिरामिड का तात्पर्य विभिन्न आयु वर्ग के पुरुषों तथा स्त्रियों की संख्या से है। किसी भी पिरामिड के प्रत्येक आयु वर्ग में बायीं तरफ पुरुषों तथा दायीं तरफ स्त्रियों के प्रतिशत जनसंख्या का निरूपण किया जा सकता है। पिरामिड का आकार होने के कारण ही आयु-लिंग आरेख को पिरामिड आरेख भी कहा जाता है। पिरामिडनुमा आकार वहाँ का छोटा है जहाँ उच्च जन्म-दर के कारण निम्न आयु-वर्ग की जनसंख्या अधिक तथा उच्च स्तरीय स्वास्थ्य सेवाओं की कमी के कारण उच्च वर्ग की संख्या कम होती है।

यह अल्पविकसित देशों का प्रतिनिधित्व करता है। जैसे-मैक्सिको या बंगलादेश का पिरामिड। विकसित देशों का आयु-लिंग पिरामिड का आधार तुलनात्मक संकीर्ण एवं शीर्ष शुंडाकार होता है। ऑस्ट्रेलिया का आयु-लिंग पिरामिड घंटी के आकार का है जो समान जन्म-दर और मृत्यु-दर को इंगित करता है, जबकि जापान जैसे विकसित देशों का पिरामिड संकीर्ण आधार एवं शुंडाकार शीर्ष वाला होता है, जो निम्न जन्म-दर तथा निम्न मृत्यु को प्रदर्शित करता है। इन देशों में जनसंख्या वृद्धि शून्य या ऋणात्मक होती है।

इस प्रकार आयु-लिंग संरचना पिरामिड के द्वारा किसी देश की आर्थिक एवं सामाजिक परिस्थितियों की जानकारी प्राप्त होती है।

प्रश्न 11.
मानव विकास अवधारणा के अंतर्गत समता और सतत पोषणीयता से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
न्याय का अर्थ है सबके लिए समान अवसर प्रदान करना। समान अवसर सबके लिये बिना लिंग भेद, रंग, जाति, धर्म आदि ध्यान रखते हुए मिलने चाहिए। प्रायः सभी वर्ग प्रसन्न नहीं होते। उदाहरण के लिए किसी देश में कौन-से वर्ग के लोग विद्यालय छोड़ देते हैं। यह महिलाओं तथा आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग में अधिक होता है। इससे यह प्रदर्शित होता है कि इन लोगों में ज्ञान कम है।

सतत् पोषणीयता का अर्थ होता है कि अवसरों का सतत् प्राप्यता। सतत् मानव विकास रखने के लिए प्रत्येक पीढ़ी को उन अवसरों को बनाये रखना चाहिए। सभी पर्यावरणीय वित्तीय और मानव संसाधनों का उपयोग भविष्य को ध्यान में रखकर करना चाहिए। इन संसाधनों का दुरुपयोग भविष्य में आने वाली पीढ़ी को कम अवसर प्रदान होगा।

लड़कियों के स्कूल भेजने का महत्त्व का उदाहरण है कि यदि कोई समुदाय लड़कियों को स्कूल भेजने पर जोर नहीं देता तो युवा स्त्रियों के कई अवसर समाप्त हो जायेंगे। उनके जीवन का लक्ष्य पर प्रभाव पड़ेगा तथा इससे अन्य बातों पर भी प्रभाव पड़ेगा। इसलिये प्रत्येक पीढ़ी को अवसरों की उपलब्धि भविष्य के लिए होनी आवश्यक है।

प्रश्न 12.
मानव विकास की संकल्पना की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
यह एक सर्वमान्य तथ्य है कि विकास का लक्ष्य लोगों का कल्याण होना चाहिए। यदि समग्र दृष्टि से विचार करें तो केवल धन के द्वारा जनकल्याण संभव नहीं है। आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक विकास जनकल्याण के प्रमुख पक्ष हैं। इसलिए संयुक्त राष्ट्र ने सभी देशों के सामने मानव विकास का लक्ष्य रखा। दीर्घ तथा स्वस्थ जीवन, शिक्षा और उच्च जीवन स्तर मानव विकास के प्रमुख तत्त्व हैं। मानव विकस की संकल्पना में मानवीय विकल्पों को पूरा करने पर बल दिया जाता है। मानव विकास के कतिपय निम्नलिखित उद्देश्य हैं-

  • राजनीतिक स्वतंत्रता, आत्मनिर्भरता तथा स्वाभिमान प्रत्येक मानव की प्रमुख चाहत हैं।
  • मानव विकास की प्रक्रिया में स्त्री-पुरुष, बच्चे सभी को शामिल किया जाना चाहिए।
  • विकास लोगों के हित और कल्याण के लिए होना चाहिए, न कि लोग विकास के लिए ।
  • विकास सहभागीय होना चाहिए। सभी लोगों को स्वास्थ्य, शिक्षा और प्रशिक्षण की क्षमताओं को विकसित करने के लिए विनिवेश के अवसर मिलने चाहिए।
  • मानव विकास के लक्ष्यों को पूरा करने के लिए लोगों के सामुदायिक निर्णयों को शामिल करके तथा मानवीय आर्थिक और राजनीतिक स्वतंत्रता प्रदान करके पूरा किया जा सकता है।

प्रश्न 13.
सतत् विकास की अवधारणा का वर्णन करें।
उत्तर:
साधारणतया विकास शब्द से अभिप्राय समाज विशेष की स्थिति और उसके द्वारा अनुभव किये गये परिवर्तन की प्रक्रिया से होता है। मानव इतिहास के लम्बे अंतराल में समाज और उसके जैव-भौतिकी पर्यावरण की निरंतर अंतरक्रियाएँ समाज की स्थिति का निर्धारण करती है।

विकास की संकल्पना गतिक है और इस संकल्पना का प्रादुर्भाव 20वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में हुआ है। द्वितीय विश्वयुद्ध के उपरांत विकास की संकल्पना आर्थिक वृद्धि की पर्याय थी जिसे सकल राष्ट्रीय उत्पाद, प्रति व्यक्ति आय और प्रति व्यक्ति उपभोग में समय के साथ बढ़ोत्तरी के रूप में मापा जाता था।

1960 के दशक के अंत में पश्चिमी दुनिया में पर्यावरण संबंधी मुद्दों पर बढ़ती जागरूकता की सामान्य वृद्धि के कारण सतत् पोषणीय धारणा का विकास हुआ। इससे पर्यावरण पर औद्योगिक विकास के अनापेक्षित प्रभावों के विषयों में लोगों की चिंता प्रकट होती थी। 1968 में प्रकाशित एहरलिव की पुस्तक ‘द पापुलेशन बम’ और 1972 में मीकोस और अन्य द्वारा लिखी गई पुस्तक ‘द लिमिट टू ग्रोथ’ के प्रकाशन ने इस विषय पर लोगों और विशेषकर पर्यावरणविदों की चिंता और भी गहरी कर दी। उस घटना के परिप्रेक्ष्य में विकास के एक नए मॉडल जिसे सतत् पोषणीय विकास कहे जाने की शुरूआत हुई।

पर्यावरणीय मुद्दों पर विश्व समुदाय की बढ़ती चिंता को ध्यान में रखकर संयुक्त राष्ट्र संघ ने ‘विश्व पर्यावरण और विकास आयोग (WECD)’ की स्थापना की जिसके प्रमुख नार्वे की प्रधानमंत्री गरो हरलेम ब्रटलैंड थीं। उस आयोग ने अपनी रिपोर्ट ‘अवर कॉमन फ्यूचर’ 1987 में प्रस्तुत की (जिसे ब्रटलैण्ड रिपोर्ट भी कहा जाता है)। WECD ने सतत् पोषणीय विकास की सीधी सरल और वृहत् स्तर पर प्रयुक्त परिभाषा प्रस्तुत की। उस रिपोर्ट के अनुसार सतत् पोषणीय विकास का अर्थ है-‘एक ऐसा विकास जिसमें भविष्य में आने वाली पीढ़ियों की आवश्यकता पूर्ति को प्रभावित किये बिना वर्तमान पीढ़ी द्वारा अपनी आवश्यकता की पूर्ति करना।’

प्रश्न 14.
मानव विकास सूचकांक क्या है ? इसके आधार पर देशों का वर्गीकरण किस प्रकार किया जाता है ?
उत्तर:
मानव विकास सूचकांक-किसी देश में बुनियादी मानवीय योजना की औसत प्राप्ति की मान मानव विकास सूचकांक कहलाता हैं। इसका आकलन संबंधित देश में जीवन प्रत्याशा, शिक्षा स्तर और वास्तविक आय के आधार पर किया जाता है। इसका मान 0 से 1 के बीच होता है।

मानव विकास सूचकांक के आधार पर देशों का वर्गीकरण निम्नलिखित तीन स्तरों में किया जाता है-

  1. उच्च सूचकांक मूल्य वाले देश – इसके अंतर्गत वैसे देश को शामिल करते हैं, जिसका सूचकांक 0.8 से ऊपर है। 2005 के अनुसार इस वर्ग में 57 देश सम्मिलित थे जिसमें नार्वे, आइसलैण्ड, कनाडा, संयुक्त राष्ट्र अमेरिका आदि प्रमुख हैं।
  2. मध्यम सूचकांक मूल्य वाले देश – इसके अंतर्गत वैसे देशों को सम्मिलित करते हैं, जिसका सूचकांक 0.5 से 0.799 है। इसके अंतर्गत कुल 88 देश सम्मिलित हैं, जिसमें श्रीलंका, भारत, इंडोनेशिया, दक्षिण अफ्रीका, नाइजीरिया आदि देश है।
  3. निम्न सूचकांक मूल्य वाले देश – इसके अन्तर्गत 0.5 सूचकांक से नीचे वाले देशों को सम्मिलित करते हैं। इसके अंतर्गत कुल 32 देशों को शामिल किया गया है। जिसमें प्रमुख देशसोमालिया, बुरूंडी, इथियोपिया आदि हैं।

प्रश्न 15.
औद्योगिक क्रांति के धनात्मक तथा ऋणात्मक प्रभावों का वर्णन करें।
उत्तर:
औद्योगिक क्रांति से तात्पर्य उन तीव्र परिवर्तनों से है जो इंगलैंड में लगभग 1750 ई. में आरंभ हुए ये परिवर्तन इतने प्रभावशाली थे कि उन्हें क्रांति का नाम दिया गया। अब हाथ के स्थान पर कार्य मशीनों से होने लगा। बड़े-बड़े कारखानों में मशीनों का प्रयोग होने लगा, जिसके फलस्वरूप उत्पादन की दर और मात्रा दोनों में वृद्धि होने लगी। औद्यागिक क्रांति के परिणाम वास्तव में धनात्मक व ऋणात्मक दोनों प्रकार के थे।

औद्योगिक क्रांति के धनात्मक प्रभाव (Positive Impacts of Industrial Revoluation)-
1. कृषि पर प्रभाव (Effects on Farming) – औद्योगिक क्रांति के कारण कच्चे माल के रूप में कपास, पटसन और गन्ने आदि की माँग दिन-प्रतिदिन बढ़ती चली गई। इस मांग को पूरा करने के लिए कृषि की उपज बढ़ाना जरूरी हो गया। अतः किसानों और जमींदारों ने कृषि करने के नये तरीके अपनाने शुरू किए। जमीन जोतने, फसल बोने, फसल काटने तथा अनाज से भूसा अलग करने के लिए मशीनों का प्रयोग होने लगा। नई-नई फसलें बोई जाने लगीं। सिंचाई के साधनों का विकास हुआ।

2. यातायात पर प्रभाव (Effects on Transport) – औद्योगिक क्रांति के कारण कच्चे माल तथा तैयार माल को लाने-ले जाने के लिए यातायात के साधनों की बड़ी आवश्यकता थी। ऐसी स्थिति में यातायात के क्षेत्र में नए-नए आविष्कारों का होना स्वाभाविक था। नए आविष्कारों के कारण ही पत्थर की रोड़ी से पक्की सड़कें बनवायी गई। जल मार्गों के लिए अनेक नई-नई नहरें खुदवाई गयीं जिनमें छोटे-छोटे जहाज संभव हो गया, बाद में भाप इंजन के आविष्कार से लौह उद्योगों की स्थापना हुई तथा समुद्री जहाज भी काफी मात्रा में बनाए गए। इस प्रकार यातायात तथा परिवहन के साधन में बड़ी उन्नति हुई।

3. संचार पर प्रभाव (Effects on Communication) – औद्यागीकरण के कारण संचार के साधनों में काफी सुधार हुआ है। व्यापार, वाणिज्य और उद्योगों में वृद्धि हो जाने के कारण मनुष्य का जीवन व्यस्त हो गया। वह अब अपने समाचारों को शीघ्र भेजना चाहता था और शीघ्र ही प्राप्त करना चाहता था। इसी कारण आगे चलकर तार, टेलिफोन और वायरलेस का अविष्कार हुआ।

4. व्यापार पर प्रभाव (Effects on Trade) – औद्योगीकरण के कारण चीजों का उत्पादन बढ़ गया। यातायात तथा संचार के साधनों में भी बहुत उन्नति हुई। इसलिए व्यापार का विस्तार हुआ।

5. औद्योगीकरण के कारण शिक्षा की आवश्यकता (Need of Education) – औद्योगीकरण के कारण शिक्षा की बड़ी आवश्यकता अनुभव हुई। मशीनों का ठीक-ठाक प्रयोग व उनकी मरम्मत बिना तकनीकी (ज्ञान) के संभव नहीं थी। विदेशों से वस्तुओं का क्रय-विक्रय विदेशी भाषा सीखे बिना नहीं हो सकता था। कृषि, यातायात तथा संचार के साधनों में नए-नए आविष्कार अच्छी शिक्षा के बिना असंभव थे।

औद्योगिक क्रांति का नकारात्मक प्रभाव (Negative Impact of Industrial Revolution)-
1. औद्योगिक क्रांति का एशिया के देशों पर प्रभाव (Effects of Industrial Revolution on Asian Countries) – औद्योगिक क्रांति के फलस्वरूप उत्पादन की दर और मात्रा दोनों में वृद्धि हुई। तैयार माल की बढ़ती हुई माँग को सीमित कच्चे माल द्वारा पूरा करना असंभव था। अतः यूरोप के देशों ने एशिया के देशों को अपना उपनिवेश बनाया, जहाँ औद्योगिक क्रांति नहीं हुई थी। इन देशों को उपनिवेशों से दो लाभ हुए-एक तो इन उपनिवेशों में तैयार माल बड़ी सरलता से बिक जाता था। दूसरा उद्योगों के लिए कच्चा माल बड़ी मात्रा में मिल सकता था।

2. विभिन्न औद्योगिक देशों के बीच संघर्ष (Conflict Among Different Industrial Countries of World) – वस्तुओं का उत्पादन करने के लिए अधिक से अधिक कच्चा माल प्राप्त करने की होड़ ने विभिन्न यूरोपीय तथा औद्योगिक देशों में आपसी प्रतिस्पर्धा तथा संघर्ष को जन्म दिया।

3. सैन्यवाद और शस्त्रीकरण (Militarisation and Armament) – साम्राज्यवादी देशों की आपसी प्रतिस्पर्धा के धातक अस्त्र-शस्त्रों के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। सैन्यवाद व शस्त्रकरण के फलस्वरूप, प्रथम तथा द्वितीय विश्व युद्ध के लिए परिस्थितियाँ उत्पन्न हुई।

प्रश्न 16.
उद्योगों की अवस्थिति को प्रभावित करनेवाले कारकों की विवेचना करें।
उत्तर:
उद्योगों की परम्परागत अवस्थिति को प्रभावित करने वाले विभिन्न कारक निम्न हैं
(i) कच्चा माल – भार-हास वाले कच्चे माल का उपयोग करने वाले उद्योग उन प्रदेशों में स्थापित किये जाते हैं जहाँ ये उपलब्ध होते हैं। भारत में गन्न उद्योग इसका प्रमुख उदाहरण है। कुछ उद्योग कच्चे माल स्रोत में ही स्थापित किये जाते हैं। जैसे-लौह-इस्पात उद्योग, तांबा उद्योग आदि।

(ii) शक्ति – उद्योगों को संचालित करने हेतु शक्ति (ऊर्जा) की आवश्यकता होती है। इसके अंतर्गत कोयला, पेट्रोलियम, आण्विक ऊर्जा इत्यादि आते हैं। एल्युमिनियम एवं कृत्रिम नाइट्रोजन उद्योग की स्थापना शक्ति-स्रोत के निकट किये जाते हैं।

(iii) बाजार – बाजार निर्मित उत्पादों के लिए निर्गम उपलब्ध कराती है। भारी मशीन, औजार, रसायन इत्यादि की उपलब्धता तथा उद्योगों से निर्मित वस्तुओं को बेचने के लिए बाजार की आवश्यकता पड़ती है। कुछ उद्योग जैसे-सूती वस्त्र उद्योग, पेट्रो-रसायन उद्योग, बाजारों के समीप स्थापित किये जाते हैं।

(iv) परिवहन – उद्योगों की स्थापना परिवहन मार्गों के समीप होते हैं जिसके अंतर्गत सड़क मार्ग, रेलमार्ग एवं वायुमार्ग प्रमुख हैं। कच्चे मालों को उद्योगों तक पहुंचाना तथा निर्मित वस्तुओं को बाजारों तक ले जाने में परिवहन साधनों का महत्वपूर्ण स्थान होता है।

(v) श्रम – उद्योगों को संचालित करने हेतु दक्ष, तकनीकी कुशल श्रमिकों की आवश्यकता पड़ती है। भारत जैसे जनसंख्या वाले देश में श्रमिक सस्ते दर पर उपलब्ध हो जाते हैं।

प्रश्न 17.
कच्चे माल के आधार पर उद्योगों का वर्गीकरण प्रस्तुत करें।
उत्तर:
कच्चे माल के आधार पर उद्योगों का वर्गीकरण निम्नलिखित प्रकार से है-
(i) बड़े पैमाने के उद्योग (Large Scale Industries) – ऐसे उद्योग जिनमें कच्चे माल की अधिकता होती है, बड़े पैमाने के उद्योग कहलाते हैं। जैसे-लोहा-इस्पात उद्योग तथा सूती वस्त्र उद्योग।

(ii) मध्यम पैमाने के उद्योग (Medium Scale Industries) – वे उद्योग जिनमें बड़े उद्योगों की अपेक्षा कम कच्चे माल की सहायता से उत्पादन कार्य किया जाता है, मध्यम पैमाने के उद्योग कहलाते हैं। इनमें प्रायः 50 लाख रुपये तक पूँजी लगी होती है। रेडियो, टी० वी० आदि मध्यम पैमाने के उद्योग माने जाते हैं।

(iii) छोटे पैमाने के उद्योग (Small scale industries) – उद्योग जो स्थानीय आवश्यकताओं की पूर्ति करते हैं, जिनमें थोड़ी पूँजी की आवश्यकता होती है, वे छोटे पैमाने के उद्योग कहलाते हैं। जैसे-साबुन बनाना, बीड़ी बनाना, माचिस बनाना आदि छोटे पैमाने के उद्योग हैं।

प्रश्न 18.
संसार के लौह अयस्क तथा उत्पादक देशों के नाम बताइए।
उत्तर:
विश्व में लौह अयस्क के अनुमानित भंडार 6464.8 करोड़ मीट्रिक टन हैं। विश्व में रूस में सबसे अधिक लौह भंडार हैं। भारत में विश्व का केवल 20% लौह भंडार है।

प्रमुख उत्पादक देश – यूक्रेन, संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा, फ्रांस, जर्मनी, स्पेन, इंग्लैंड, साइबेरिया तथा दक्षिण अफ्रीका प्रमुख देश हैं। इसके अतिरिक्त चीन, ब्राजील, आस्ट्रेलिया, भारत तथा रूस हैं।
Bihar Board 12th Geography Important Questions Long Answer Type Part 1, 2

प्रश्न 19.
विश्व के विकसित देशों के उद्योगों के संदर्भ में आधुनिक औद्योगिक क्रियाओं की मुख्य प्रवृत्तियों की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
विकसित औद्योगिक देशों में आधुनिक औद्योगिक क्रियाकलापों में परिवर्तनशील प्रवृत्तियाँ देखी गई हैं। ये परिवर्तनशील प्रवृत्तियाँ निम्नलिखित हैं-

  1. उद्योगों की अवस्थिति के लिए उत्तरदायी कारकों के महत्त्व में निरंतर कमी आती जा रही है।
  2. विकसित अर्थव्यवस्था में विकास तथा वैज्ञानिक तकनीक की उन्नति के परिणामस्वरूप उद्योगों की संरचना एवं स्वरूप में परिवर्तन आया है। निरुद्योगीकरण की प्रवृत्तियाँ उत्पन्न हो रही हैं।
  3. आधुनिक औद्योगिक क्रियाकलापों में भी कई प्रकार के परिवर्तन हुए हैं। उद्योगों में उत्पादन के लिए उच्च तकनीक का प्रयोग किया जा रहा है।
  4. कारखानों के स्थान पर छोटी इकाइयों का बिखराव बहुत बड़े क्षेत्रों में देखा जा रहा है।

विकास की प्रक्रिया में हुए परिवर्तनों की डब्ल्यू. ओलों सो नामक अर्थशास्त्री ने 1980 में विकास के संदर्भ में पाँच घंटी आकृतियों (Five Bell Shapes) की बात की है। ये पाँच आकृतियाँ हैं-

  • आर्थिक विकास दर,
  • सामाजिक असमानता का स्तर,
  • क्षेत्रीय असमानता,
  • स्थानीय संक्रेन्द्रण का स्तर,
  • जनांकिकीय संक्रमण।

ओलोंसो के मतानुसार विकास की प्रक्रिया में पहले भौगोलिक संकेन्द्रण की प्रक्रिया थी। इसके बाद आर्थिक विकास तथा उसके बाद सामाजिक तथा प्रादेशिक असमानता की प्रक्रिया में उतार-चढ़ाव आये।

उद्योगों की संरचना तथा स्वरूप में परिवर्तन-

(i) अर्थव्यवस्था में विकास व प्रौद्योगिक उन्नति के फलस्वरूप उद्योगों की संरचना में परिवर्तन आया है। उदाहरण के लिए विकासशील देशों जैसे भारत में सस्ता श्रम होने के कारण उद्योगों का विस्तार हुआ है।

(ii) 1980 के बाद निम्न प्रौद्योगिकी युक्त श्रमिक प्रधान औद्योगिक इकाइयों को अल्पविकसित देशों की ओर निर्यात किया गया तथा विकसित देशों में उन्नत प्रौद्योगिक युक्त पूर्जे वाले उद्योगों का विकास हो रहा है। इस प्रकार के औद्योगिक परिवर्तन को नवीन अन्तर्राष्ट्रीय श्रम विभाजन कहा गया है।

प्रारम्भ में ब्राजील जर्मनी के लिए लौह अयस्क निर्यात करता था किन्तु अब ब्राजील में ही वह उद्योग विकसित हो रहा है और जर्मनी उसके आधार पर कार जैसे उद्योग विकसित कर रहा है।

(iii) आधुनिक औद्योगिक उत्पादनों में एक नई प्रवृत्ति लोचपूर्ण उत्पादन तथा लोचपूर्ण विशिष्टीकरण की है।

प्रश्न 20.
प्राथमिक एवं द्वितीयक गतिविधियों में क्या अंतर है ?
उत्तर:
प्राथमिक गतिविधियाँ (Primary Activities)-

  • प्राथमिक क्रियाकलाप प्राकृतिक पर्यावरण से प्राप्त संसाधनों के विकास से सम्बन्धित हैं।
  • मानव प्राथमिक क्रियाकलापों के द्वारा प्रत्येक रूप में वस्तुएँ प्राप्त करता है।
  • धरातल से प्राप्त ये पदार्थ कच्चे माल के रूप में भोजन सामग्री बनाने, वस्त्र बनाने तथा अन्य उपयोगी सामान बनाने के लिए प्रयोग किए जाते हैं।
  • आखेट, संग्रहण, पशुचारण, खनन, मछली पकड़ना, लकड़ी काटना, कृषि आदि प्राथमिक क्रियाकलाप हैं।

द्वितीयक गतिविधियाँ (Secondary Activities)-

  • द्वितीयक क्रियाकलापों से तात्पर्य मनुष्य द्वारा कच्चे माल को संशोधित करके उसे नई वस्तुओं में परिवर्तन करने से है।
  • इस प्रकार के क्रियाकलापों में उद्योगों को सम्मिलित किया जाता है जो विभिन्न वस्तुओं का निर्माण करते हैं।
  • इस प्रकार के क्रियाकलापों के द्वारा उत्पादों की उपयोगिता में वृद्धि होने के साथ-साथ उनके मूल्य में भी वृद्धि होती है।
  • विनिर्माण उद्योग, डेयरी उद्योग, कुटीर उद्योग आदि सभी द्वितीयक क्रियाकलाप हैं।

Bihar Board 12th Business Studies Important Questions Short Answer Type Part 3 in Hindi

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Bihar Board 12th Business Studies Important Questions Short Answer Type Part 3 in Hindi

प्रश्न 1.
“नियोजन एक मानसिक प्रक्रिया है।” समझाइए।
उत्तर:
नियोजन एक ऐसी प्रक्रिया है जो संस्था के साथ ही प्रारंभ होती है और संस्था के समाप्त होने पर ही समाप्त होती है अर्थात् जब तक कोई संस्था चलती रहती है, नियोजन प्रक्रिया भी चलती रहती है। भविष्य अज्ञात होता है। कल क्या होने वाला है यह निश्चित रूप से कोई नहीं कह सकता है। चूँकि नियोजन भी भविष्य के लिए किया जाता है। इसलिए एक प्रबंधक को अपना पहला कार्य समाप्त होते ही दूसरे कार्य के लिए नियोजन करना पड़ता है। दूसरा कार्य समाप्त होते ही तीसरे कार्य के लिए नियोजन करना पड़ता है। इस तरह से यह नियोजन की प्रक्रिया तब तक चलती रहती है जब तक संस्था मौजूद रहती है। संस्था के बंद होने के बाद ही नियोजन की क्रिया समाप्त होती है। इसलिए कहा जाता है कि नियोजन एक मानसिक प्रक्रिया है।

प्रश्न 2.
संवर्द्धन की विशेषता को लिखें।
उत्तर:
संवर्द्धन की निम्न विशेषताएँ हैं-

  1. यह उपभोक्ताओं का ध्यान आकर्षित करने का एक साधन है।
  2. इसमें उपभोक्ताओं से प्रार्थना की जाती है, उन्हें सूचना दी जाती है और याद दिलाया जाता है।
  3. इसके अन्तर्गत उपभोक्ताओं को वस्तु की कीमत, गुण और वस्तु प्राप्ति के स्थान की जानकारी दी जाती है।
  4. यह विज्ञापन, विक्रय संवर्द्धन और वैयक्तिक विक्रय का मिश्रण है।
  5. यह विक्रय वृद्धि में सहायक है।
  6. यह उपभोक्ताओं के साथ-साथ वितरकों को भी प्रेरित करता है।
  7. यह विज्ञापन एवं वैयक्तिक विक्रय को अधिक प्रभावी बनाने में सहायक है।
  8. संवर्द्धन क्रियायें कुछ विशेष अवसरों पर की जाती हैं यह नियमित रूप से की जाने वाली क्रिया नहीं है।

प्रश्न 3.
जिला उपभोक्ता संरक्षण परिषद् का संक्षेप में वर्णन करें।
उत्तर:
जिला उपभोक्ता संरक्षण परिषद् (District Consumer Protection Council) – राज्य सरकार अधिसूचना द्वारा ऐसी तारीख से जो वह ऐसी अधिसूचना में निर्दिष्ट करें। प्रत्येक

जिला के लिए जिला उपभोक्ता संरक्षण परिषद् के रूप में एक परिषद् का गठन करेगी। इस परिषद् में निम्नलिखित सदस्य होंगे- 1. जिले का कलेक्टर (चाहे किसी नाम से ज्ञात हो) इसका अध्यक्ष होगा और 2. ऐसे हितों का प्रतिनिधित्व करने वाले सरकारी या गैर-सरकारी सदस्य जो राज्य सरकार द्वारा नियत की जाए।

जिला परिषद् की बैठक आवश्यकतानुसार बुलाई जाएगी लेकिन प्रतिवर्ष दो से कम बैठक नहीं की जाएगी। जिला परिषद् उस समय व स्थान पर होगी जैसा अध्यक्ष उचित समझे एवं कार्य व्यवहार के बारें में ऐसी प्रक्रिया अपनाई जाएगी जो राज्य सरकार द्वारा निर्धारित की जाए।

जिला परिषद् के उद्देश्य जिला के भीतर उन्हीं उपभोक्ता अधिकारों का संवर्द्धन और संरक्षण करना होगा जो केन्द्रीय परिषद् के उद्देश्यों के अंतर्गत वर्णित हैं।

प्रश्न 4.
वित्तीय बाजार के प्रमुख कार्य क्या हैं ?
उत्तर:
वित्तीय बाजार, बचतकर्ता एवं विनियोगकर्ता के मध्य महत्वपूर्ण माध्यम का कार्य करता है। यह मुख्य रूप से अपनी सेवा प्रदान करता है।

  • प्राथमिक क्षेत्र से निधि का प्रयोग
  • व्यापार या विनियोग क्षेत्र में संसाधनों का वितरण

यह विनियोगकर्ता को लाभदायक माध्यम में अपने फण्ड का प्रयोग करने का अवसर प्रदान करता है ताकि अपने विनियोग पर अधिकतम आय प्राप्त हो सके।

वित्तीय बाजार द्वारा सीमित साधनों के वितरण की प्रक्रिया के मुख्य चार कार्य निम्नलिखित हैं-

  • उत्पादनीय कार्य के लिये बवत का प्रयोग एवं वितरण तथा तिथि का बचतकर्ता से विनियोगकर्ता को हस्तांतरण।
  • व्यावसाय ईकाई के द्वारा निधि के माँग एवं पूर्ति के क्रियाशक्ति द्वारा वित्तीय सम्पत्ति का मूल्य निर्धारण।
  • निधि की तरलता अर्थात् आवश्यकतानुसार विनियोग का नगद में परिवर्तन।
  • क्रेता एवं विक्रेता को अपनी आवश्यकता की संतुष्टि के लिये सामान्य जगह उपलब्ध कराना। यह स्टॉक के आपूर्तिकर्ता एवं प्रयोग कर्ता को सूचनायें प्रदान कर लेन-देन के लागत को कम करता है।

इस तरह वित्तीय बाजार, संसाधनों का सही प्रयोग, स्टॉक का मूल्य निर्धारण विनियोग की तरलता एवं क्रेता एवं विक्रेता के निधि का प्रयोग कर अर्थव्यवस्था को बहुमूल्य सेवा प्रदान करता है।

प्रश्न 5.
एक अच्छे नेता के गुणों का वर्णन करें।
उत्तर:
सभी नेता सफल नेता नहीं होते हैं। एक प्रभावी नेता वहीं है जो दूसरे के विश्वास को. जीतने में सफल होते हैं। वे अपने अनुयायियों के विश्वास, आदर और प्रेम को प्राप्त करने के योग्य होते हैं।

एक अच्छे नेता के निम्नलिखित गुण होते हैं-

  • एक आकर्षक व्यक्तित्व।
  • अपने अनुयायियों को प्रभावित करने की क्षमता और ज्ञान।
  • उच्च नैतिक मूल्यों के साथ ईमानदारी एवं विश्वास।
  • संगठन के लाभ के लिये पर्याप्त साहस और अवसर को प्राप्त करने की इच्छा शक्ति।
  • किसी भी विचार को विश्लेषण करने की क्षमता ताकि लोग आसानी से समझ सके।
  • लोगों को पूर्णतः संतुष्ट करने के लिये आवश्यकता और प्रेरणा को बढ़ाने की योग्यता।
  • प्रबंध के कार्य को दृढ़ता से कराने की योग्यता।
  • सही सहयोग, समझ, सामाजिकता और मित्रता के द्वारा अच्छे मानवीय संबंधों को स्थापित करने की तत्परता।

प्रश्न 6.
एक संगठन में नियन्त्रण के महत्व का वर्णन करें।
उत्तर:
नियंत्रण प्रबन्ध का एक कार्य है। इसका उद्देश्य बिना किसी विचलन के इच्छित उद्देश्य को प्राप्त करना है। इसका उद्देश्य यह भी जाँच करना है कि सभी संसाधनों का प्रयोग सही तरीके से पूर्व निर्धारित कक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये किया गया है। इसके अन्तर्गत (a) वास्तविक कार्य की तुलना प्रभाव कार्य से करना (b) विचलन की पहचान करना एवं (c) सुधारात्मक क्रिया का प्रयोग करना है।

उपर्युक्त सभी क्रिया भविष्य में अधिक अच्छे नियोजन बनाने में मदद करता है। संगठन में एक अच्छे नियोजन प्रणाली के निम्नलिखित महत्व हैं-

  • नियन्त्रण, कार्यक्रम का निर्देशन एवं विकास की जाँच के द्वारा संगठन के उद्देश्य को प्राप्त करने में मदद करता है।
  • बदलते परिवेश के अनुसार प्रभाव कार्यक्रम में सुधार करना एवं उसकी सत्यता की जाँच में मदद करना है।
  • कार्यक्रम के बीच अवशेष/अवशिष्ट को कम कर संसाधनों के सर्वोत्तम प्रयोग को बढ़ावा देना।
  • अधिक कार्य निस्पादन के लिये कर्मचारियों को अभिप्रेरित करना क्योंकि वे पहले से ही अपनी प्रशंसा के आधार को समझते हैं।
  • आदेश और अनुशासन को बढ़ाना एवं बेईमान आचरण को कम करना है।
  • क्रियाकलाप में समन्वय को बढ़ावा देना एवं संगठन के उद्देश्य को प्राप्त करने के लिये प्रयास में समायोजन करना है।

नियंत्रण इसलिये एक अनुशीलन क्रियाकलाप है जो यह बताता है कि नियोजन सही तरीके से क्रियान्वित हुआ।

प्रश्न 7.
उद्यमिता में सफलता की अभिप्रेरणा की क्या भूमिका है ?
उत्तर:
उद्यमिता का मुख्य उद्देश्य सफलता है। यह लाभ, ख्याति, सामाजिक प्रतिष्ठा या बाजार में हिस्सेदारी के रूप में हो सकता है यह ग्राहकों के द्वारा ब्रांड के प्रति विश्वास के रूप में भी व्यक्त किया जा सकता है। व्यावसायिक इकाई की सफलता, इसलिए वित्तीय स्वास्थ्य के साथ-साथ प्रबंधकीय दक्षता भी है। सफलता की आवश्यकता का इकाई की सफलता, इसलिए वित्तीय स्वास्थ्य के साथ-साथ प्रबंधकीय दक्षता भी है। सफलता की आवश्यकता का अर्थ है, कुछ कठिन या नया या भिन्न करने की इच्छा। इसके अंतर्गत मुख्यतः संसाधनों का संगठन जैसे-भौतिक घटक, मानवीय प्रयास एवं विकासशील विचार सम्मिलित है। सफलता अधिक तीव्र गति एवं स्वतंत्र रूप से प्राप्त की जानी चाहिए-

  • कठिनाइयों को दूर किया जाना चाहिए।
  • प्रमाप दक्षता निर्धारित की जानी चाहिए।
  • अपने प्रतियोगी से आगे होना चाहिए।
  • अपने हितों की रक्षा के लिये योग्यता एवं दक्षता का प्रयोग।

सफलता की प्रेरणा, उद्यमिय आचरण का आधारभूत तत्व है।

प्रश्न 8.
क्या आप सोचते हैं कि नियोजन प्रबंध का महत्वपूर्ण कार्य है ? अपने उत्तर के समर्थन में कारण बतावें।
उत्तर:
नियोजन दक्षता का आधार है क्योंकि यह आवश्यकता एवं प्राथमिकता के बीच संतुलन स्थापित करता है। यह संसाधनों का समन्वय एवं क्रियाकलापों का निर्देशन है। नियोजन निश्चितता, निर्देशन एवं उपयोगिता को बढ़ावा देता है। नियोजन के निम्नलिखित लाभ, प्रबंध में इसके महत्व को दर्शाता है-

  1. सामूहिक रूप से यह संगठन के उद्देश्य को प्राप्त करने के लिये कार्यों का निर्देशन करता है।
  2. यह भविष्य की घटना की अनिश्चितता एवं खतरे को कम करता है।
  3. यह सफल संचालन एवं प्रयासों के समन्वय के द्वारा बर्बादी एवं कार्य के दोहरेपन को रोकता है।
  4. यह भविष्य के कार्यक्रम के संबंध में नये विचार को बढ़ावा देता है जो संगठन के समृद्धि एवं वृद्धि में सहायक होती है।
  5. यह निर्धारित लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये विभिन्न विकल्पों के संबंध में निर्णय लेने में सहायता करता है।
  6. यह वास्तविक निष्पादन को नियंत्रित करने के लिये प्रभाव को स्थापित करता है और किसी भी तरह के विचलन को दूर करने के लिये दिशा-निर्देश देता है।

नियोजन के उपर्युक्त योगदान के कारण यह प्रबंध का एक महत्वपूर्ण भाग है।

प्रश्न 9.
नये व्यवसाय को प्रारम्भ करने में कौन-से कदम सम्मिलित है?
उत्तर:
नये व्यवसाय को प्रारम्भ करने की प्रक्रिया में मुख्य तीन कदम सम्मिलित हैं-
1. अवसर की तलाश-यह अनुभव एवं उपलब्ध सूचनाओं के आधार पर विभिन्न विकल्पों की खोज है जो लाभदायक साबित हो।

2. सर्वोत्तम विकल्प का चुनाव-विभिन्न विकल्पों के अध्ययन के बाद उसमें से सर्वोत्तम विकल्प का चुनाव किया जाता है। यह सृजनशीलता एवं नयी खोज के द्वारा निर्धारित होता है ताकि अच्छे वस्तु एवं सेवा का उत्पादन हो सकें। वह यह भी अनुमान लगाता है कि किस मूल्य पर वस्तु को बेचा जाय ताकि ग्राहक उसे पसंद करें।

3. तरलता विश्लेषण-नये व्यवसाय को प्रारम्भ करने में यह अन्तिम कदम हैं। इसके भविष्य में विस्तार की जाँच करता है। यह. लाभ अर्जन के उद्देश्य से प्रस्तावित प्रोजेक्ट का सामाजिक, आर्थिक एवं तकनीकी विश्लेषण है।

नये व्यवसाय अक्सर अज्ञात खतरे से संबंधित होता है। वैसे खतरे को सावधानीपूर्वक जाँच से कम किया जा सकता है और निर्धारित लक्ष्य की प्राप्ति हो सकती है।

प्रश्न 10.
व्यावसायिक संगठन के द्वारा किस प्रकार के नीतिगत निर्णय किये जाते हैं ?
उत्तर:
एक नीति, कार्यक्रम का विस्तृत नियोजन है। यह संगठन के उद्देश्य को प्राप्त करने पर बल देता है, यह संगठन के क्षेत्र एवं निर्देश के संबंध में भविष्य का निर्णय है।

एक नीति में तीन मुख्य निर्णय सम्मिलित हैं-

  1. फर्म के दीर्घकालिन उद्देश्य को निर्धारित करना।
  2. एक निर्धारित क्रियाविधि को अपनाना।
  3. उद्देश्य को प्राप्त करने के लिये निर्धारित संसाधन का वितरण करना।

नीति निर्धारण करते समय निम्नलिखित घटक को ध्यान में रखना चाहिए-

  1. बदलते व्यावसायिक परिवेश।
  2. संचालन की सहायता के लिये उपलब्ध संसाधन की गुण एवं मात्रा।
  3. व्यवसाय की पहचान को कैसे बचाया जा सकता है ?

एक संगठन के मुख्य नीतिगत निर्णय हैं-

  1. क्या व्यवसाय समान पटरी पर चल सकता है?
  2. क्या विद्यमान व्यवसाय के साथ नये व्यवसाय को समायोजित किया जा सकता है ?
  3. क्या समान बाजार में महत्व बढ़ाने की आवश्यकता है।

स्पष्टतः कोई भी नीतिगत निर्णय किसी भी फर्म के लिये उपयोगी, लाभदायक एवं व्यावहारिक होता है।

प्रश्न 11.
प्रेरणा को परिभाषित करें।
उत्तर:
स्कॉट के अनुसार, “प्रेरणा लोगों को उद्दीपित कर निर्धारित लक्ष्य को प्राप्त करने की एक प्रक्रिया है।”

डेविन के शब्दों मे “प्रेरणा एक जटिल शान्ति है जो एक संगठन में लोगों के क्रिया को ध्यान में रख कर प्रारम्भ किया जाता है जिससे व्यक्ति क्रियाशील होता है।”

मकफॉरलैण्ड का कहना है कि प्रेरणा के द्वारा मानवीय आचरण का वर्णन किया जाता है। प्रेरणा, इसलिए, एक उत्साह, लालच या प्रोत्साहन है जो लोगों को सही तरीके से कार्य करने के प्रति उत्साहित करता है। उसका मुख्य उद्देश्य स्वेच्छा से कार्य में योगदान देना है।

प्रश्न 12.
उपभोक्ता न्यायालय में कौन शिकायत दर्ज कर सकता है ?
उत्तर:
उपभोक्ता न्यायालय में निम्नलिखित व्यक्ति शिकायत दर्ज कर सकता है-

  1. कोई उपभोक्ता।
  2. कोई भी पंजीकृत उपभोक्ता संघ।
  3. राज्य एवं केन्द्रीय सरकार।
  4. उपभोक्ता के बदले कोई अन्य प्रतिनिधि जिसका समान हित हो।
  5. मृत उपभोक्ता के उत्तराधिकारी या अन्य प्रतिनिधि।

प्रश्न 13.
व्यावसायिक वातावरण क्या है ?
उत्तर:
किसी भी व्यवसाय की सफलता आन्तरिक प्रबंध पर निर्भर नहीं करता है। अनेक बाहरी शक्तियाँ भी व्यावसायिक उपक्रम के संचालन को प्रभावित करता है। इसमें विनियोक्ता, उपभोक्ता, सरकार एवं प्रतिस्पर्धी फर्म के क्रियाकलाप एवं निर्णय सम्मिलित हैं। ये बाहरी शक्तियाँ व्यावसायिक नियंत्रण के बाहर होती हैं और एक वातावरण का निर्माण करती है जो व्यक्तिगत एवं संस्थागत तत्व होती है, ये निम्नलिखित का मिश्रण भी है-

  • आर्थिक वातावरण
  • सामाजिक वातावरण
  • राजनीतिक वातावरण
  • कानूनी वातावरण
  • तकनीकी वातावरण

व्यावसायिक निष्पादन पर वातावरणीय प्रभाव के उदाहरण हैं-

  • सरकार के कराधान नीति में परिवर्तन।
  • उपभोक्ता के ईच्छा एवं फैशन में परिवर्तन।
  • उत्पादन के नयी तकनीक।
  • बाजार में बढ़ती प्रतियोगिता।
  • राजनीतिक अनिश्चितता।

प्रश्न 14.
अभिप्रेरण के तीन उद्देश्य लिखिए।
उत्तर:
अभिप्रेरण के तीन उद्देश्य निम्नवत् हैं-

  • लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु
  • मानवीय संसाधनों का अधिकतम उपयोग हेतु
  • कुशलता में वृद्धि हेतु।

प्रश्न 15.
समन्वय के लाभों का विवेचन कीजिए।
उत्तर:
समन्वय के मुख्य लाभ निम्नलिखित हैं-

  1. समन्वय के परिणामस्वरूप समूह की कुल उपलब्ध व्यक्तियों की पृथक्-पृथक् उपलब्धियों के योग से कहीं अधिक होती है। इसे मेरी पार्कर फोलेट (Mary Parker Follet) ने समूह का धनात्मक मूल्य (Plus value) कहा है।
  2. समन्वय के परिणामस्वरूप संस्था के समस्त विभागों तथा उनमें काम करने वाले कर्मचारियों को संस्था के मूलभूत लक्ष्यों की जानकारी हो जाती है।
  3. समन्वय मानवीय सम्बन्धों की महत्ता पर प्रकाश डालता है।
  4. समन्वय से दुर्बलताओं का ज्ञान होता है एवं उनकी रोकथाम की व्यवस्था करना सुगम हो जाता है।
  5. समन्वय विभिन्न प्रबन्धकों को उपक्रम के हित, विभिन्न विभागीय हितों से ऊपर रखने में समर्थ बनाता है।
  6. संस्था के सुचारु संचालन में इससे बड़ी सहायता मिल सकती है।

प्रश्न 16.
नीति और नियम में अन्तर बतायें।
उत्तर:
नीति और नियम में अन्तर निम्नलिखित हैं-

  1. नियम क्रिया-प्रदर्शक होते हैं जबकि नीति, निर्णय लेने से सम्बन्धित विचार का प्रदर्शक होता है।
  2. नीति का पालन करना ऐच्छिक होता है परन्तु नियमों का पालन दृढ़ता से किया जाता है।
  3. नीतियों में प्रबन्धकों को अपनी सूझ-बूझ से परिवर्तन करने का अधिकार होता है परन्तु नियमों में परिवर्तन का अधिकार नहीं होता है।
  4. नियम क्रिया प्रदर्शक होते हैं जबकि नीतियाँ प्रबन्ध का निर्णय-निर्देश होती हैं।
  5. नीतियाँ सामान्य परिस्थितियों के लिए बनाई जाती हैं जबकि नियम परिस्थिति विशेष के लिए बनाये जाते हैं।
  6. नीतियों का अपवाद हो सकता है जबकि नियम का कोई अपवाद नहीं होता है।

प्रश्न 17.
अल्पकालीन वित्तीय-नियोजन क्या है ?
उत्तर:
साधारणतया एक व्यवसाय में एक वर्ष के लिए जो वित्तीय-नियोजन किया जाता है, वह अल्पकालीन वित्तीय-वियोजन कहलाता है। अल्पकालीन वित्तीय-नियोजन मध्यकालीन एवं दीर्घकालीन नियोजन का ही एक भाग होता है। अल्पकालीन वित्तीय-नियोजन में प्रमुख रूप से कार्यशील पूँजी के प्रबन्ध की योजनाएँ बनाई जाती हैं तथा उसकी विभिन्न अल्पकालीन साधनों से वित्तीय व्यवस्था करने का कार्य किया जाता है। विभिन्न प्रकार के बजट एवं प्रक्षेपित लाभ-हानि विवरण कोषों की प्राप्ति एवं उपयोगों का विवरण व चिट्टे बनाए जाते हैं।

प्रश्न 18.
आर्थिक विकास की प्रक्रिया में उद्यमिता कैसे मदद करता है ?
उत्तर:
उद्यमिता आर्थिक बदलाव की एक गतिशील क्रिया है, यह व्यवसाय की वृद्धि की एक आवश्यक प्रक्रिया है।
आर्थिक विकास की प्रक्रिया में उद्यमिता का निम्नलिखित योगदान है-

  1. मालिक एवं कर्मचारी दोनों के लिये रोजगार के अवसर को बढ़ाना।
  2. बचत का उत्पादकीय विनियोग द्वारा पूँजी का निर्माण करना।
  3. वित्तीय एवं तकनीकी विश्लेषण के बाद, खतरे एवं हानि को कम कर मूल्यवान प्रोजेक्ट का निर्माण करना।
  4. लघु उद्योगों की स्थापना के द्वारा देश का संतुलित क्षेत्रीय विकास करना।
  5. यह नीति के निर्माण में सहायता करता है। बाजार से संबंधित महत्वपूर्ण सूचनाओं को प्रदान करता है। लाभ कमाने के तरीकों को बताता है।
  6. अतिरिक्त आय प्राप्त करने के लिये देश के अन्दर एवं बाहर नये बाजारों की खोज करता है।
  7. उपभोक्ता संतुष्टि, औद्योगिक शांति एवं औद्योगिक विकास में मदद करता है। उपर्युक्त योगदान के कारण उद्यमिता आर्थिक विकास का एक आवश्यक भाग माना जाता है।

प्रश्न 19.
दीर्घकालीन वित्तीय नियोजन के बारे में लिखें।
उत्तर:
एक व्यवसाय में पाँच वर्ष या इससे अधिक अवधि के लिए जो वित्तीय-नियोजन किया जाता हैं, वह दीर्घकालीन वित्तीय-नियोजन कहलाता है यह नियोजन विस्तृत दृष्टिकोण पर आधारित होती है। जिसमें संस्था के सामने आने वाली दीर्घकालीन समस्याओं के समाधान हेतु कार्य किया जाता है। इस नियोजन में संस्था के दीर्घकालीन वित्तीय लक्ष्य को प्राप्त करने हेतु पूंजी की मात्रा, पूँजी ढाँचे, स्थायी सम्पत्तियों के प्रतिस्थापन, विकास एवं विस्तार हेतु अतिरिक्त पूँजी प्राप्त करने आदि कार्य शामिल किए जाते हैं।

प्रश्न 20.
समन्वय तथा सहयोग में अन्तर स्पष्ट करें।
उत्तर:
समन्वय तथा सहयोग में निम्न अन्तर है-
Bihar Board 12th Business Studies Important Questions Short Answer Type Part 3, 1

प्रश्न 21.
स्थायी पूँजी से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
ऐसा धन जो स्थायी सम्पत्ति पर विनियोजन के लिए लिया जाता है, उसे स्थायी पूँजी (Fixed or Blocked Capital) कहा जाता है। यह पूँजी का उपयोग स्थायी रूप से रहती है और इसे इच्छानुसार वापस नहीं लिया जा सकता है इस प्रकार की पूँजी का उपयोग स्थायी सम्पत्ति को क्रय करने लिए किया जाता है।

इसके अतिरिक्त व्यवसाय की स्थापना के बाद भविष्य में भी दीर्घकालीन वित्त अथवा स्थायी पूँजी की आवश्यकता अप्रचलित तथा घिसी-पिटी मशीनों को बदलने, विस्तार कार्यक्रमों के अन्तर्गत नयी मशीनों को खरीदने, भवन में वृद्धि करने, कच्चे माल एवं स्टोर के न्यूनतम स्टॉक की मात्रा बढ़ाने आदि की व्यवस्था के लिए भी होती है। इन सम्पत्तियों में किया गया विनियोग बिल्कुल गैर-तरल प्रकार की पूँजी को स्थायी पूँजी के अलावा दीर्घकालीन पूँजी, अचल पूँजी अथवा ब्लॉक कैपिटल के रूप में पुकारा जाता है।

प्रश्न 22.
हेनरी फेयोल तथा कूण्ट्ज एवं ओ’डोनेल के अनुसार प्रबंध कार्यों का वर्गीकरण कीजिए।
उत्तर:
जिस प्रकार प्रबन्ध की परिभाषा पर विभिन्न विद्वानों में मतभेद है, ठीक उसी प्रकार प्रबन्ध के कार्यों के विषय में भी विभिन्न विद्वानों में मतभेद हैं, परन्तु इस बात पर सभी एक मत हैं कि प्रबन्ध के कुछ कार्य ऐसे हैं जो सर्वव्यापक हैं। चाहे एक प्रबन्धक व्यवसाय, मन्दिर, मस्जिद, गिरजाघर, स्कूल, कॉलेज, होस्टल किसी का प्रबन्ध क्यों न करे, उसके कुछ आधारभूत कार्य का निष्पादन आवश्यक रूप से करना होता है। प्रबन्ध के कार्य गतिशील हैं जिनमें वातावरण व परिस्थिति के अनसार संशोधन किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त कार्य गतिशील हैं। जिनमें वातावरण व परिस्थिति के अनुसार संशोधन किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त प्रबन्ध के कार्य अन्तर-सम्बन्धित व अन्तर-निहित हैं। यही कारण है कि प्रबन्ध को निरन्तर चलने वाली प्रक्रिया माना जाता है।

प्रबन्ध के कार्यों का वर्गीकरण दो विचारधाराओं के अनुसार किया जा सकता है-
(i) हेनरी फेयोल द्वारा कार्यों का वर्गीकरण-प्रबन्ध के कार्यों का सर्वप्रथम वर्गीकरण हेनरी फेयोल ने किया। उन्होंने प्रबन्ध के तत्वों को ही उसके कार्य माने हैं। फेयोल के अनुसार, “प्रबंध का आकार पूर्वानुमान तथा योजना बनाना, संगठन करना, आदेश देना, समन्वय करना तथा नियन्त्रण करना है।” इस प्रकार इनके अनुसार प्रबन्ध के निम्नलिखित पाँच कार्य स्पष्ट होते हैं। जिन्हें P.O.C.C से जाना जाता है। थियो हेमैन के अनुसार, “हेनरी फेयोल ने प्रबन्ध से सम्बन्धित जिन कार्यविधियों का मुख्यतः वर्णन किया है, उन सब का वर्गीकरण उतना ही प्रचलित है जितना प्रबन्ध के क्षेत्र में परिगणित वे कार्य-विधियाँ, जिनका परिगण दूसरे लेखकों ने किया है।

  1. पूर्वानुमान तथा योजना बनाना (To forecast and plan),
  2. संगठन करना (Organising),
  3. आदेश देना (Commanding),
  4. समन्वय करना (Co-ordinating),
  5. नियन्त्रण करना (Controlling)।

(ii) कून्ट्ज तथा ओ’डोनेल द्वारा वर्गीकरण-कून्ट्ज तथा ओ’डोनेल ने प्रबन्ध के निम्न पाँच कार्य बताए हैं जिन्हें P.O.D.C.S. से जाना जाता है-

  1. योजना बनाना (Planning),
  2. संगठन करना (Organising),
  3. निर्देशन तथा नेतृत्व (Direction and Leadership),
  4. नियन्त्रण (Control) एवं
  5. नियुक्तियाँ करना (Staffing)।

प्रश्न 23.
समन्वय के महत्त्व का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
समन्वय का महत्त्व बताते हुए प्रोफेसर हेमैन (Haimann) एक स्थान पर लिखते हैं, “प्रबन्ध का कोई भी कार्य क्यों न लें, चाहे वह नियोजन या नियन्त्रण, संगठन करना हो या नियुक्तियाँ करना या आदेश देना, सभी में समन्वय की जरूरत पड़ती है।” समन्वय प्रबन्धकीय कार्यों की सबसे पहली अवस्था योजना बनाने से प्रारम्भ होती है और इसके समस्त कार्य जैसेसंगठन, निर्देश, नीति-पालन एवं अभिप्रेरण आदि समन्वय से जुड़े रहते हैं।

समन्वय के महत्त्व के पक्ष में एक उदाहरण भी दिया जा सकता है। आर्केस्ट्रा की दशा में यह नितान्त आवश्यक हो जाता है कि विभिन्न प्रकार के बाजे बजाने वाले व्यक्तियों में परस्पर समन्वय रहे। कहने का तात्पर्य यह है कि व्यावसायिक संगठन के सफल संचालन हेतु समन्वय का होना नितान्त आवश्यक है। सामान्यतः सभी बड़ी संस्थाओं में कच्चे माल की खरीद का विभाग, श्रम-विभाग, विक्रय-विभाग आदि होते हैं। इन विविध विभागों के बीच परस्पर समन्वय का होना जरूरी है।

यदि विक्रय विभाग का लक्ष्य बीस हजार इकाइयों का निर्माण करना है तो बीस हजार इकाइयों के निर्माण के लिए कच्चे माल, यन्त्र, उपकरण, श्रमिक आदि सभी विभागों के बीच परस्पर समन्वय हो तो नियत लक्ष्यों की पूर्ति में कठिनाई नहीं होगी। वस्तुतः समन्वय के अभाव में भौतिक एवं मानवीय साधन केवल मात्र साधन ही बने रहते हैं, उत्पादक नहीं बन पाते। . इसी कारण ‘समन्वय’ को एक रचनात्मक शक्ति के रूप में स्वीकार किया जाता है।

समन्वय के महत्त्व के सम्बन्ध में निम्नलिखित तथ्य विचारणीय हैं-

  1. समन्वय एक रचनात्मक व सजनात्मक शक्ति है – बिना समुचित समन्वय के कच्चा माल केवल कच्चा माल एवं मशीनें केवल मशीनें रहती हैं, उनमें वस्तुओं एवं सेवाओं के रूप में निखार नहीं आ पाता।
  2. समन्वय प्रबन्ध का सार है-प्रबन्ध के समस्त कार्यों – नियोजन, संगठन, अभिप्रेरण व नियन्त्रण में प्रभावपूर्ण तालमेल समन्वय के माध्यम से ही स्थापित होता है। प्रबन्ध-प्रक्रिया में से समन्वय को निकाल देने से फिर शेष कुछ नहीं बचता। प्रबन्ध ही नियोजन को सौद्देश्य बनाता है, संगठन को आधार प्रदान करता है तथा नियन्त्रण को आमन्त्रित करता है।
  3. समन्वय संगठन को एक-तिहाई का स्वरूप प्रदान करता है – समन्वय के ही कारण : एक उपक्रम के समस्त विभाग स्वतन्त्र रूप से काम करते हुए भी एक सामान्य लक्ष्य की पूर्ति में सहयोग करते हैं। समन्वय की शक्ति ही यह सहयोग प्रदान करती है। समन्वय विविधता में एकता स्थापित करता है।
  4. समन्वय की अवधारणा सुमधुर मानवीय सम्बन्धों के विकास पर बल देती है। इससे परस्पर ईर्ष्या, जलन, द्वेष व विरोध का अन्त हो जाता है।
  5. समन्वय संस्था के लक्ष्यों, साधनों एवं प्रयासों में सन्तुलन स्थापित करता है। परिणामतः न्यूनतम लागत पर अधिकतम एवं श्रेष्ठतम उत्पादन प्राप्त होता है।

प्रश्न 24.
प्रबन्ध के आधारभूत सिद्धान्त का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
प्रबन्ध के सिद्धान्तों को क्रमबद्ध करने का प्रयास अनेक विद्वानों ने किया है। इन विद्वानों में हेनरी फेयोल प्रथम प्रबन्ध विशेषज्ञ थे जिन्होंने प्रबन्ध विज्ञान के विकास के लिए सिद्धान्तों की आवश्यकता को अनुभव किया। इनके अतिरिक्त चैस्टर बर्नार्ड (Chester Barnard), ब्राउन (Brown), टैरी (Terry) आदि विद्वानों ने प्रबन्ध के सिद्धान्तों के महत्त्व को स्वीकार किया है। कून्टज एवं ओ’डोनेल ने प्रबन्धकीय सिद्धान्त की परिभाषा इस प्रकार दी है, “प्रबन्धकीय सिद्धान्त मान्यता के आधारभूत सत्य हैं जो प्रबन्धकीय कार्यों के परिणाम की भविष्यवाणी करने की उपयोगिता रखते हैं। थियो हैमन (Theo Haiman) ने एक स्थान पर सिद्धान्तों के महत्त्व को दर्शाते हुए लिखा है, “एक प्रबन्धक का कार्य सरल हो जाता है तथा उसकी कार्यकुशलता व प्रभावशीलता में वृद्धि हो जाती है यदि वह प्राप्त विभिन्न प्रन्धकीय सिद्धान्तों को समझता है तथा उनका उचित प्रयोग करता है।

सिद्धान्तों तथा धारणाओं का ज्ञान प्रबन्धकों की शक्ति तथा श्रम में काफी बचत करता है तथा प्रबन्धकों को जटिल अवस्थाओं में से निकालने में मार्गदर्शन करता है।” प्रबन्ध के सिद्धान्त भौतिक विज्ञान की भाँति. पूर्ण (exact) नहीं होते क्योंकि प्रबन्ध एक सामाजिक विज्ञान है जिसे मानवीय व्यवहार एवं प्रतिक्रियाएँ आदि प्रभावित करती हैं, परन्तु फिर भी इनके द्वारा प्रतिपादित प्रबन्ध के सिद्धान्त आज भी महत्त्वपूर्ण हैं।

हेनरी फेयोल ने प्रबन्ध के 14 सिद्धान्त का, जार्ज आर० टैरी ने 28 सिद्धान्तों का, कून्ट्ज एवं ओ’डोनेल ने 57 सिद्धान्तों का और उर्विक ने 29 सिद्धान्तों का वर्णन किया है।

प्रश्न 25.
निर्देशन के सिद्धान्त का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
कून्ट्ज एवं ओ’डोनेल (Koontz and O’Dennell) के अनुसार, प्रभावी निर्देशन के निम्नलिखित 11 सिद्धान्त हैं-

  1. उद्देश्यों की प्राप्ति में व्यक्तिगत सहयोग का सिद्धान्त (Principle of Individual Contribution to Objective) – प्रबन्धकों को यह प्रयत्न करना चाहिए कि उनके अधीनस्थ कर्मचारी सर्वोत्तम कुशलता से कार्य कर सकें।
  2. उद्देश्य की मधुरता का सिद्धान्त (Principle of Harmony of Objectives) – प्रबन्धकों को प्रत्येक कर्मचारी के प्रति मधुर सम्बन्ध स्थापित करना चाहिए ताकि संभावित संघर्ष को रोका जा सके।
  3. आदेश की एकता का सिद्धान्त (Principle of Unity of Command) – व्यावसायिक संगठन के अन्दर अधीनस्थ केवल एक ही स्रोत के प्रति उत्तरदायी हो और एक ही स्रोत से आदेश प्राप्त करे ताकि आदेशों में एकता हो सके।
  4. उचित निर्देशन विधि के चुनने का सिद्धान्त (Principle of Appropriateness of Direction Techniques) – निर्देश देने की विधि अधीनस्थ कर्मचारियों की आवश्यकतानुसार तथा काम की प्रकृति के अनुसार होनी चाहिए।
  5. प्रबन्धकीय संचार व्यवस्था का सिद्धान्त (Principle of Management Communication) – प्रत्येक संस्था में प्रबन्धक ही मख्य रूप से संचार व्यवस्था का मख्य सिद्धान्त होना चाहिए।
  6. सूचना का सिद्धान्त (Principle of Information) – प्रभावी संचार-व्यवस्था के लिए यह आवश्यक है कि आवश्यक सूचनाओं का प्रत्यक्ष तथा लगातार आदान-प्रदान होना चाहिए ताकि निर्देशन कार्य सफलतापूर्वक किया जा सके।
  7. नेतृत्व का सिद्धान्त (Principle of Leadership) – प्रभावी निर्देशन कार्य के लिए प्रबन्धक में नेतृत्त्व करने का गुण होना चाहिए।
  8. निर्देशन की कुशलता का सिद्धान्त (Principle of Efficiency of Direction) – प्रभावशाली निर्देशन अपने उद्देश्य को न्यूनतम लागत पर प्राप्त कर सकता है।
  9. प्रत्यक्ष निरीक्षण का सिद्धान्त (Principle of Direct Supervision) – प्रबन्धकों को जहाँ तक सम्भव हो, स्वयं अधीनस्थों के कार्य का निरीक्षण करना चाहिए।
  10. सन्देश ज्ञान का सिद्धान्त (Principle of Comprehension) – यदि दिये गये सन्देश को अधीनस्थ कर्मचारी समझ ही न सके तो अपनाई गई संचार-व्यवस्था बेकार सिद्ध होगी। इसलिए कुशल निर्देशन के लिए उपयुक्त संचार व्यवस्था होनी चाहिए।
  11. अनौपचारिक संगठन के उपयोग का सिद्धान्त (Principle of Strategic Use of Informal Organisation) – प्रबन्धक को कुशल निर्देशन के लिए आवश्यक हो तो कर्मचारियों से अनौपचारिक सम्बन्ध भी बनाने चाहिए। . .

प्रश्न 26.
संदेशवाहन का क्या अर्थ है ?
उत्तर:
संदेशवाहन (Communication) शब्द लैटिन भाषा के Cummunis शब्द से लिया गया है जिसका अर्थ है Comimon किसी विचार या तथ्य को कुछ व्यक्तियों में सामान्य (Common) बना देना है। इस प्रकार सन्देशवाहन का अर्थ विचारों तथा सूचनाओं को एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति तक इस तरह पहुँचाना है कि वह उन्हें जान सके तथा समझ सके। इस तरह संदेशवाहन एक द्विमार्गीय (Tivo vay) प्रक्रिया है तथा इसके लिए आवश्यक है कि यह सम्बन्धित व्यक्तियों तक उसी अर्थ में पहुँच सके जिस अर्थ में सन्देशवाहनकर्ता ने उन विचारों का हस्तांतरण किया है। इस रूप में यदि हमने कुछ बोला या लिखा है तथा पढ़ने या सुनने वाला उसे प्राप्त नहीं करता या प्राप्त करने पर उससे वह अर्थ नहीं लेता जो उसका वास्तविक अर्थ है, तब इसे संदेशवाहन नहीं कहा जा सकता है।

एक छोटी व्यावसायिक संस्था जिसमें दस बारह कर्मचारी काम करते हैं, संदेशवाहन की समस्या अधिक जटिल नहीं होती, क्योंकि वे एक दूसरे के पास जाकर भी संदेशों को प्राप्त कर सकते हैं और उन पर विचार-विमर्श कर सकते हैं। लेकिन जैसे-जैसे कार्यालय का आकार और संस्था के कर्मचारियों की संख्या बढ़ती जाती है, संदेशवाहन की समस्या अधिक जटिल होती जाती है। प्रबन्ध में इतना महत्त्व रखने वाले इस संदेशवाहन को कुछ समय पहले तक इतना महत्त्व नहीं दिया जाता था। इसे तो प्रबन्धक का एक स्वाभाविक गुण मानकर छोड़ देते थे। लेकिन जब एक ही कार्यालय की अनेक उपशाखाएँ होती हैं और प्रत्येक शाखा के अनेक विभाग होते हैं और प्रत्येक विभाग में अनेक कर्मचारी काम करते हैं, वहाँ यह समस्या उग्र रूप धारण कर लेती है।

परिभाषाएँ (Definitions) – प्रसिद्ध प्रबन्ध विद्वानों द्वारा संदेशवाहन की निम्नलिखित परिभाषाएँ दी गई हैं-

  1. हडसन (Hudson) के अनुसार, “सम्प्रेषण का अर्थ संदेश को एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति तक पहुँचाना है।”
  2. न्यूमैन व समर (Newman and Summer) के शब्दों में, “संदेशवाहन दो या दो से अधिक व्यक्तियों के बीच तथ्यों, विचारों, राय एवं भावनाओं का आदान-प्रदान है।”

प्रश्न 27.
स्थायी एवं कार्यशील पूँजी में अन्तर बतायें।
उत्तर:
स्थायी एवं कार्यशील पूँजी में निम्नलिखित अन्तर है-
Bihar Board 12th Business Studies Important Questions Short Answer Type Part 3, 2

प्रश्न 28.
किन्हीं चार अमौद्रिक प्रेरणाओं का वर्णन करें।
उत्तर:
अमौद्रिक प्रेरणाएँ वे हैं, जिनका मुद्रा (रूपा पैसा) से कोई संबंध नहीं होता है। ये सामाजिक, सम्मान व आत्म-प्राप्ति आवश्यकताओं को संतुष्ट करने में सहायक होती है। इनमें मुख्यतः निम्न को सम्मिलित किया जाता है।

  • पद।
  • संगठनात्मक वातावरण।
  • कैदिया बढ़ोत्तरी अवसर
  • कार्य-सम्पन्नता।
  • क्रियाओं की विभिन्न श्रेणियों का पारस्परिक गठबंधन।।
  • क्रियाओं का उपलब्ध मानवीय एवं भौतिक साधनों की वृद्धि से श्रेणीबद्ध करना, जिससे कि साधनों का अधिकतम उपयोग हो सके।

प्रश्न 29.
पूँजी बाजार के महत्त्व का वर्णन करें।
उत्तर:
पूँजी बाजार केवल एक देश तक ही सीमित नहीं होता वरन् यह समस्त विश्व में व्याप्त होता है। दीर्घकालीन वित्त बड़े पैमाने पर व्यावसायिक संस्थाओं की प्राथमिक आवश्यकता होती है। प्रत्येक अर्थ-व्यवस्था की उन्नति, विकास एवं खुशहाली के लिए स्वस्थ पूँजी बाजार की आवश्यकता रहती है। पूँजी बाजार का महत्त्व निम्न कारणों में है-

(i) देश के औद्योगिक विकास में सहायक (It helps in Industrial Development) – उद्योगों को दीर्घकालीन पूँजी उपलब्ध कराकर पूँजी बाजार देश के औद्योगिक विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इनके माध्यम से पुरानी संस्थाओं का विस्तार होता है एवं नये-नये उद्योग स्थापित होते हैं।

(ii) पूँजी निर्माण में वृद्धि (Increase in Capital Formation) – यह बचत एवं निवेश दोनों को प्रेरित करते हैं तथा वित्तीय संसाधनों के उपयोग को संवद्धित करता है। दूसरे शब्दों में हम कह सकते हैं कि यह देश में पूँजी निर्माण (Capital Formation) का कार्य करता है।

(iii) पूँजी बाजार विदेशी निवेश को आकर्षित करता है (It attracts Foreign Investment) – पूँजी बाजार विदेश निवेश को आकर्षित करने में सहायक है। यह एक माध्यम प्रदान करता है। जिसके माध्यम से अप्रवासी भारतीय एवं विदेशी संस्थागत निवेशक भारतीय कम्पनियों की प्रतिभूतियों में अपनी निधि का निवेश कर सकते हैं।

(iv) प्रतिभूतियों को बदलना (Conversion is Securities) – पूँजी बाजार में मुद्रा को प्रतिभूतियों में एवं प्रतिभूतियों को मुद्रा में बदला जाता है। यहाँ व्यक्ति अपनी बचत को प्रतिभूतियों में निवेश कर सकते हैं और अच्छी आय प्राप्त कर सकते हैं। धन की आवश्यकता पड़ने पर वे इन्हें बेच सकते हैं।

(v) प्रतिभूतियों में तरलता (Liquidity in Sccurities) – पूँजी बाजार गौण बाजार की सहायता से प्रतिभूतियों में तरलता उत्पन्न करता है। इसका प्रभाव यह होता है कि जरूरत पड़ने पर प्रतिभूतियों को आसानी से बेचा जा सकता है।

(vi) अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य (Some Important Facts) – (अ) पूँजी बाजार औद्योगिक संगठनों, वित्तीय संस्थाओं, ट्रस्टों और सरकार को घरेलू एवं विदेशी निवेशकों से दीर्घ अवधि के लिए कोषों को जुटाने में सहायता करता है; (ब) यह व्यक्तियों एवं समाज की निष्क्रिय पड़ी बचत राशि को संघटित करके उत्पादक कार्यों में लगाता है एवं (स) विनियोगी के विविध विकल्प उपलब्ध होने के कारण विनियोजक अपनी इच्छानुसार अपने धन का निवेश कर सकते हैं।

प्रश्न 30.
भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड के कार्यों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (SEBI) निम्न तीन प्रकार के कार्य करता है-
I. सुरक्षात्मक कार्य (Protective Functions)-
SEBI प्रतिभूति बाजार में धोखाधड़ी एवं अनुचित कार्यों पर प्रतिबन्ध लगाती है। अनुचित व्यापारिक कार्यों में निम्न को सम्मिलित किया जाता है-

  • प्रतिभूति के बाजार मूल्यों में वृद्धि अथवा कमी के एकमात्र उद्देश्य के लिए हेराफेरी करना;
  • ऐसे झूठे कथन जिससे किसी भी व्यक्ति को प्रतिभूति के क्रय-विक्रय के लिए उकसाया जा सके;
  • SEBI ने अंशों के भीतरी व्यापार (Insider Trading) पर रोक लगा रखी है। आन्तरिक व्यक्ति वह होता है जो कम्पनी से जुड़ा होता है जैसे-निर्देशक, प्रवर्तक आदि;
  • SEBI निवेशकों को शिक्षित करने के लिए कदम उठाती है (To Educate Investors): एवं
  • SEBI प्रतिभूति बाजार में उचित कार्यों (Fair Practices) एवं आचार संहिता (Codc of Conduct) को बढ़ावा देती है।

II. विकास सम्बन्धी कार्य (Development Functions)-
1. SEBI प्रतिभूति बाजार के मध्यस्थों के प्रशिक्षण में प्रोत्साहन देती है;
2. SEBI प्रतिभूति बाजार में मध्यस्थों के प्रशिक्षण का प्रवर्तन करती है। इसके कुछ उदाहरण इस प्रकार हैं-

  • SEBI ने पंजीकृत अंश दलालों के माध्यम से इन्टरनेट व्यापार की छूट दी है;
  • निर्गमन लागत में कमी करने की दृष्टि से सेबी ने अभिगोपन (Underwriting) को स्वैच्छिक बना दिया है; एवं
  • SEBI ने उस प्रणाली को स्वीकार कर लिया है जिसमें IPOs के विपणन के लिए स्कन्ध विपणि का उपयोग किया जा सकता है।

3. निवेशकों को शिक्षा प्रदान करना;
4. स्वतः संचालित संगठनों को प्रोत्साहित करना:
5 शोध कार्य करना:
6 प्रतिभति बाजार से सम्बन्धि व्यवहारों पर रोक लगाना; एवं
7. पूँजी बाजार के सभी पक्षकारों की सुविधा के लिए विभिन्न सूचनाओं को प्रकाशित करना।

III. नियन्त्रण/संचालन सम्बन्धी कार्य (Regulatory Functions) –
SEBI के संचालन सम्बन्धी कार्य निम्न हैं-

  • अंश बाजार में किए जाने वाले व्यवसाय का संचालन करना;
  • ब्रोकर, उप-ब्रोकर, हस्तान्तरण एजेण्ट, मर्जेन्ट बैंक आदि के कार्यों को पंजीकृत करना;
  • म्यूचुअल फण्डों का पंजीकरण एवं नियमन करना;
  • कम्पनियों के अधिग्रहण का नियमन करनाः
  • स्कन्ध विपणि के सम्बन्ध में छानबीन करना एवं उनका अंकेक्षण करना;
  • क्रेडिट रेटिंग एजेन्सी का पंजीकरण एवं संचालन करना;
  • वेंचर कैपिटल फण्ड का पंजीकरण एवं संचालन करना; एवं
  • प्रतिभूतियों में आन्तरिक ट्रेडिंग को रोकना।

पूँजी बाजार के नियमन एवं स्वस्थ पूँजी बाजार की स्थापना हेतु विगत वर्षों में सेबी (SEBI) ने अनेक कदम उठाए हैं-

  • शेयरों के मूल्य एवं प्रीमियमों का निर्धारण किया है।
  • व्यावसायिक बैंकों में ‘स्टॉक इन्वेस्ट’ योजना लागू करवाई है।
  • अण्डर राइटर्स नियमों को नियमित किया है तथा सम्बन्धित व्यक्तियों/संस्थाओं को चेतावनी दी है कि निर्गम के गैर-अभिदत्त (Unsubscribed) भाग की खरीद में किसी प्रकार की अनियमितता किये जाने पर उनका पंजीकरण निरस्त कर दिया जाएगा।
  • म्युचुअल फण्डों का नियमन किया है, एवं
  • विदेशी संस्थागत निवेशकों पर नियन्त्रण लगाया है।

प्रश्न 31.
ब्राण्ड तथा ट्रेडमार्क में अंतर बतायें।
उत्तर:
ब्राण्ड तथा ट्रेडमार्क में निम्न अंतर पाया जाता है-

  • पूंजीकरण (Registration) – ब्राण्ड एक शब्द, नाम, चिह्न, डिजाइन या इनके सहयोग से बना हुआ एक सम्मिश्रण है लेकिन जब इसी शब्द, नाम, चिह्न डिजाइन या सम्मिश्रण का कानून के अंतर्गत पंजीकरण करा लिया जाता है तो वह ट्रेडमार्क बन जाता है।
  • नकल (Copy) – ब्राण्ड की नकल अन्य प्रतियोगी संस्थाओं के द्वारा की जा सकती है जिसके परिणामस्वरूप उनके विरुद्ध कानूनी कार्यवाई नहीं की जा सकती है लेकिन ट्रेडमार्क की नकल करने वालों के विरुद्ध कार्रवाई की जा सकती है तथा उनसे हर्जाना भी वसूल किया जा सकता है।
  • क्षेत्र (Scope) – ब्राण्ड शब्द का क्षेत्र सीमित है जबकि ट्रेडमार्क का विस्तृत है। ट्रेडमार्क में ब्राण्ड शामिल है। पहले ब्राण्ड तय करते हैं तब फिर उसका पंजीकरण कराकर उसी को ट्रेडमार्क कहने लगते हैं।
  • उपयोग (Use) – एक ट्रेडमार्क का उपयोग केवल एक ही निर्माता या विक्रेता कर सकता है। उसी को उपयोग करने का कानूनी अधिकार प्राप्त होता है लेकिन एक ब्राण्ड का उपयोग कई निर्माता या विक्रेता कर सकते हैं।

प्रश्न 32.
संवर्द्धन के उद्देश्यों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
सामान्यतः संवर्द्धन के उद्देश्यों को निम्नलिखित शीर्षकों के अन्तर्गत सरल ढंग से स्पष्ट किया जा सकता है-
1. सूचना देना (To Inform) – संवर्द्धन क्रियाओं का मुख्य उद्देश्य सूचना देना है। ऐसी सूचना सम्भावित ग्राहकों को दी जाती हैं। इस प्रकार की सूचना में वस्तु की उपलब्धता, प्राप्ति स्थान, मूल्य व कुछ मुख्य विशेषताओं को सम्मिलित किया जाता है।

2. याद दिलाना (To Remind) – यह उल्लेखनीय है कि वर्तमान समय में केवल सूचना देना ही पर्याप्त नहीं है। बाजार में प्रतिस्पर्धी उत्पादों की भरमार है। अतः आवश्यकता इस बात की है कि उपभोक्ताओं को वस्तु या उत्पाद के सम्बन्ध में बार-बार याद दिलायी जायें जिससे उपभोक्ता प्रतिस्पर्धी उत्पादों की ओर न झकने पायें।

3. तैयार करना (To Persuade) – संवर्द्धन का उद्देश्य क्रेताओं को राजी करना या तैयार करना है। यह कार्य आसान नहीं हैं। जब क्रेताओं को बार-बार सूचना दी जाती है और याद दिलायी जाती है तो वे उत्पाद क्रय हेतु तैयार हो जाते हैं।

4. अन्य उद्देश्य (Other Objectives) – (i) ब्राण्ड स्वामिभक्ति अथवा प्राथमिकता का विकास करना; (ii) विक्रय में वृद्धि करना; एवं (iii) प्रतिस्पर्धा उत्पादों के ग्राहकों को अपने उत्पादन की ओर आकर्षिक करना आदि।