Bihar Board 12th Home Science Important Questions Long Answer Type Part 4

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Bihar Board 12th Home Science Important Questions Long Answer Type Part 4

प्रश्न 1.
विनियोग के लाभ लिखें।
उत्तर:
विनियोग के लाभ(Advantages of Investment)- यदि अनुभवी विनियोगकर्ता द्वारा परामर्श लेकर सही योजना में धन का विनियोग किया जाए तो वह बहुत ही लाभकारी होता है। सही योजना में धन का विनियोग करने से व्यक्ति भविष्य के लिए आर्थिक रूप से सुरक्षित हो जाता है। उसे भविष्य के आर्थिक मामलों के लिए चिन्तित नहीं होना पड़ता इसलिए वह वर्तमान में सुख-शांति से रहता है।

धन का विनियोजन निरन्तर करते रहने से व्यक्ति को निरन्तर ही कुछ ब्याज तथा मूल राशि इकट्ठी मिलती रहती है जिससे वह अपने जीवन का स्तर समय-समय पर ऊँचा कर सकता है।

किसी भी आकस्मिक घटना पर यदि धन की आवश्यकता हो तो वह जमा राशि में से व्यय करके विनियोग किए गए धन का लाभ उठा सकता है।

कर की बचत (Tax-Saving)- धन के विनियोग की अधिकतर योजनाओं द्वारा जमा की गई धन राशि पर कर नहीं लगता। यह राशि आयकर से पूर्ण रूप से मुक्त होती है। उदाहरण के लिए बैंक (Bank), डाकघर के बचत बैंक (Saving Banks of Post Office), कैश सर्टिफिकेट्स (Cash Certificates), जीवन बीमा (Life Insurance), यूनिट्स (Units), भविष्य निधि योजना (Provident Fund), जन-साधारण भविष्य निधि योजना (Public Provident Fund), नेशनल सेविंग्स सर्टिफिकेट (National Savings Certificate) इत्यादि।

विनियोग द्वारा प्राप्त की गई राशि आयकर से मुक्त होने के कारण नौकरी वालों के लिए, व्यापारी वर्ग के लिए तथा जन-साधारण के लिए, सभी के लिए उपयुक्त है।

प्रश्न 2.
जीवन बीमा और यूनिट्स में धन का विनियोग करने के लाभ व हानियों की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
जीवन बीमा में विनियोग के लाभ-

  • बीमेदार की मृत्यु के बाद उसके परिवार को आर्थिक सुरक्षा प्रदान करता है।
  • बीमेदार ने यदि किसी से ऋण लिया हुआ हो तब भी उसके निधन के बाद बीमे की राशि उत्तराधिकारी को दी जाती है जो लेनदारों से पूर्ण रूप से सुरक्षित है।
  • बीमेदार के व्यवस्था करने पर उसके निधन के बाद बीमे की धनराशि उत्तराधिकारी को किश्तों में दी जाती है जिससे पूर्ण राशि का एक-साथ अपव्यय न हो।
  • बीमेदार को यह सुविधा है कि यदि वह अपनी आय का एक विशेष भाग जीवन बीमा के प्रीमियम के रूप में देता है तो उसपर उसे आयकर नहीं देना पड़ेगा।

इस योजना में कोई हानि नहीं है।

यूनिट्स में विनियोग के लाभ- यूनिट्स, यूनिट ट्रस्ट ऑफ इण्डिया द्वारा चालू किए जाते हैं। कोई भी व्यक्ति 10 रुपये के मूल्य के कम से कम 100 व अधिक से अधिक अपनी इच्छानुसार खरीद सकता है। वार्षिक लाभ का 90% विनियोगकर्ताओं में विभाजित कर दिया जाता है। इस यूनिट पर मंगाई गई धनराशि व उसके लाभांश पर आयकर की छूट है।

यूनिट ट्रस्ट की खराब वित्तीय स्थिति में नियोजक को लाभांश न दिये जाने से हानि हो सकती है। परिपक्वता की अवधि पूरी होने पर भी पैसा मिलने में देरी हो सकती है। यूनिट ट्रस्ट द्वारा पुनः खरीद मूल्य कम करने से भी निवेशक को आर्थिक नुकसान हो सकता है।

प्रश्न 3.
जीवन बीमा और डाकघर में निवेश करने के लाभ व हानियों का ब्यौरा दें।
उत्तर:
जीवन बीमा (Life Insurance)- जीवन बीमा अनिवार्य बचत करने का एक उत्तम साधन है। इसके अन्तर्गत बीमादार अपनी आय में से कुछ बचत करके अनिवार्य रूप से एक निश्चित अवधि तक धन विनियोजित करता है। अवधि पूरी होने पर बीमादार को जमा धन और उसपर अर्जित’ बोनस प्राप्त होता है। इस योजना की प्रमुख विशेषता यह है कि यदि बीमादार की आकस्मिक मृत्यु हो जाए तो बीमादार द्वारा नामांकित व्यक्ति को बीमे की पूरी राशि बोनस सहित मिल जाती है। इसलिए यह योजना जोखिम (Risk) उठाती है, अनिश्चितता को निश्चितता में बदल देती है।

जीवन बीमा के लाभ- बीमादार जीवन बीमा को निम्न लाभों के कारण अपनाता है-

  1. परिवार संरक्षण (Family Protection)- जीवन बीमा का मुख्य उद्देश्य बीमादार के परिवार को आर्थिक सुरक्षा प्रदान करना है। विशेष तौर पर जब बीमादार की आकस्मिक मृत्यु हो जाए।
  2. वृद्धवस्था में आर्थिक सहायता हेतु (Economic Help in Old Age)- अवकाश प्राप्ति या वृद्धावस्था में इस योजना से प्राप्त धन का विनियोजन कर ब्याज इत्यादि से बीमादार आर्थिक दृष्टि से सक्षम हो जाता है।
  3. बच्चों की शिक्षा या विवाह हेतु (For child education or Marriage)- इस योजना में लगाया गया धन बच्चों के बड़ा होने पर उनकी शिक्षा एवं विवाह हेतु आर्थिक सहायता के रूप में प्राप्त होता है।
  4. सम्पत्ति कर की व्यवस्था (For Property Tax)- बीमादार की मृत्यु के बाद सम्पत्ति कर देने के लिए बीमा योजना द्वारा मिला धन राहत देता है।
  5. आयकर में छूट (Relief in Income Tax)- बीमादार अपनी आय का जो अंश बीमा योजना पॉलिसी की किस्त चुकाने के लिए देता है उस पर उसे आयकर में छूट मिलती है।

डाकघर बचत बैंक (Post Office Saving)- बैंक की सुविधा देश के प्रत्येक गाँव तक नहीं पहुँची है परन्तु डाकघर की सुविधा देश के प्रत्येक राज्य के गाँव-गाँव में होने के कारण डाकघर बचत खाता चालू किया गया। भारत सरकार ने इसके द्वारा बचत की आदत को प्रोत्साहन दिया है। दो व्यक्ति परन्तु उनमें से एक बालिग अवश्य संयुक्त रूप से अपना खाता खुलवा सकते हैं। डाकघर बचत खाते का स्थानान्तरण भी करवाया जा सकता है। इस खाते के ब्याज पर आयकर नहीं देना पड़ता है। डाकघर के नियम सम्पूर्ण भारत में एक समान हैं। खाते की न्यूनतम रकम 5 रुपया है। यह कम राशि से खोला जा सकता है।

1. डाकघर में छपे फार्म को भरकर कोई भी व्यक्ति या अधिक व्यक्ति संयुक्त खाता पाँच रुपये जमा कर खोल सकता है।

2. 18 वर्ष से कम उम्र वालों के लिए अभिभावक यह खाता खोल सकते है।

3. डाकघर खाते में भी चेक की सुविधा दी जा सकती है। चेक बुक लेते समय जमाकर्ता के खाते में कम-से-कम 100 रुपए होने चाहिए तथा कभी भी खाते में 50 रुपये से कम नहीं

4. खाता खोलने पर एक पास बुक (Pass Book) दी जाती है जिसमें जमा की गई तथा निकाली गई राशि का पूरा लेखा होता है। यदि वह पासबुक खो जाती है तो 5 रुपये देकर पूरी पास बुक ली जा सकती है।

5. डाकघर में पैसा चेक, मनीऑर्डर, ड्रॉफ्ट तथा नकद के रूप में जमा करवाया जा सकता है। इस खाते की एक विशेषता यह है कि मुख्य डाकघर के अधीन जिस डाकघर में खाता खोला गया हों उसके अधीन किसी भी डाकघर में पैसा जमा करवाया जा सकता है। यदि किसी उप-डाकघर में खाता खोला गया हो तो मुख्य डाकघर में भी पैसा जमा करवाया जा सकता है, परन्तु पैसा केवल उसी डाकघर/उप-डाकघर से निकलवाया जा सकता है जहाँ पर खाता खोला गया है।

6. डाकघर खाते में वर्तमान ब्याज की दर 5.5% है।

7. धन निकलवाते समय निश्चित फार्म भरकर पासबुक के साथ डाकघर में दिया जाता है। लिपिक फार्म पर किए गए हस्ताक्षर नमूने के हस्ताक्षर से मिलान करने पर राशि का भुगतान करता है। यदि हस्ताक्षर नमूने के हस्ताक्षर से भिन्न हो तो राशि का भुगतान नहीं किया जाता जब तक कि कोई व्यक्ति जो डाकघर में जमाकर्ता को पहचानता हो, गवाही न दे।

8. खाता खोलने के तीन मास बाद यह किसी भी डाकघर में स्थानान्तरिक किया जा सकता है।

प्रश्न 4.
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 के अनुसार उपभोक्ता के अधिकार क्या हैं ? लिखिए।
उत्तर:
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अनुसार उपभोक्ता के अधिकार-

  • मल आवश्यकताएँ- इसके अन्तर्गत न केवल जीने के लिए बल्कि सभ्य जीवन के लिए सभी आवश्यकताओं की पूर्ति आती है। ये आवश्यकताएँ हैं भोजन, मकान, कपड़ा, बिजली, पानी, शिक्षा और चिकित्सा आदि।
  • जागरूकता- इस अधिकार के अन्तर्गत चयन के लिए आपको विक्रेताओं द्वारा सही जानकारी देना।
  • चयन- उपभोक्ताओं को सही चयन करने के लिए उचित गुणवत्ता और अधिक कीमत वाली कई वस्तुओं को दिखाना ताकि वे उनमें से उपयुक्त वस्तु खरीद सकें।
  • सनवाई- इसके अन्तर्गत उपभोक्ता को अपने विचार निर्माताओं के समक्ष रखने का अधिकार है। उपभोक्ता की समस्याओं से निर्माताओं को वस्तु-निर्माण में उसकी गुणवत्ता बढ़ाने में सहायता मिलती है।
  • स्वस्थ वातावरण- इससे जीवन और प्रकृति में सामंजस्य स्थापित करके जीवन स्तर ऊँचा किया जा सकता।
  • उपभोक्ता शिक्षण- सही चयन के लिए वस्तु/सामग्री और सेवाओं को उचित जानकारी व ज्ञान का अधिकार उपभोक्ता को मिलना चाहिए।
  • क्षतिपूर्ति (Redressal)- इसका अर्थ है कि यदि उचित सामान प्राप्त न हुआ हो तो. उसका उचित परिशोधन या मुआवजा मिलने का अधिकार। जिस भी उपभोक्ता के साथ अन्याय हुआ हो वह अधिकारी के पास जाकर उचित क्षतिपूर्ति ले सकता है।

प्रश्न 5.
उपभोक्ताओं की समस्याओं का उल्लेख कीजिए। इस संदर्भ में उपभोक्ताओं के क्या दायित्व हैं ?
उत्तर:
उपभोक्ताओं की समस्याएँ (Problems Faced by Consumers)- उपभोक्ताओं को विभिन्न समस्याओं का सामना करना पड़ता है, जैसे अस्थिर कीमतें और दुकानदारों के कुचक्र । अतः यह उपभोक्ताओं के हक में है कि वे इन सभी समस्याओं को जानें और ठगे जाने से बचने के लिए इनके निदान भी जानें। उपभोक्ताओं की कुछ समस्याएँ निम्नलिखित हैं

1. कीमतों में अस्थिरता (Variation in Price)- आपने देखा होगा कि कई दुकानों पर सामान की कीमतें बहुत अधिक होती हैं। ऐसा क्यों है ? ऐसा निम्नलिखित कारणों से हो सकता है-

  • दुकानदार अधिक लाभ कमाता है।
  • यदि वह प्रतिष्ठित दुकानदार है तो दुकान की देख-रेख, सामान के विज्ञापन और खरीद की कीमत को पूरा करता है।
  • दुकान में कम्प्यूटर, एयरकण्डीशन लगे होने के कारण दुकान की लागत अधिक होती है अतः उपभोक्ता से इन सुविधाओं की कीमत वसूल की जाती है।

कई दुकानें विज्ञापन पर बहुत पैसा खर्च करती हैं। घर पर निःशुल्क सामान पहुँचाने की सेवा भी उपभोक्ता से अधिक कीमत लेकर उपलब्ध कराई जाती है।

समृद्ध रियायशी क्षेत्रों में बने नये आकार-प्रकारों के बाजारों में भी सामान की कीमत अधिक होती है।

2. मिलावट (Adulteration)- उपभोक्ताओं के सामने मिलावट की समस्या बहुत गंभीर है। इसका अर्थ है मूल वस्तु की गुणवत्ता, आकार और रचना में से कोई तत्त्व निकाल कर या डालकर परिवर्तन लाना। मिलावट वांछित और प्रासंगिक हो सकती है। क्या आपको स्मरण है इन दोनों में क्या अन्तर है ?

प्रासंगिक मिलावट तब होती है जब दुर्घटनावश दो अलग-अलग वस्तुएँ जिनकी गुणवत्ता अलग-अलग है, मिल जायें और वांछित मिलावट वह होती है जब जान-बूझ कर उपभोक्ता को ठगने और अधिक लाभ कमाने के लिए की जाये।

3. अपूर्ण/धोखा देने वाले लेबल (Inadequate/Misleading Labelling)- प्रतिष्ठित ब्राण्ड की कमियाँ इतनी चतुराई से ढंक दी जाती हैं कि उपभोक्ता असली और नकली लेबल की पहचान नहीं कर पाता। निर्माता निम्न गुणवत्ता वाले सामान को प्रतिष्ठित सामान के आकार और रंग के लेबल लगाकर उपभोक्ताओं को गुमराह कर देते हैं। उनमें अन्तर इतना कम होता है कि एक बहुत सजग उपभोक्ता ही उसे पहचान सकता है।

एक लेबल में क्या-क्या जानकारी होनी चाहिए यह आप पहले पढ़ चुके हैं। क्या आपको स्मरण है ? पूर्ण जानकारी और सजगता के लिए उसे फिर से पढ़िये। एक अच्छे लेबल से आपको उस वस्तु की रचना, संरक्षण और प्रयोग की पूर्ण जानकारी मिलनी चाहिए। डिब्बा-बन्द वस्तुओं के खराब होने की तिथि से आप उसको सुरक्षा से उपभोग कर सकते हैं। निर्माता वस्तुओं पर उचित प्रयोग के संकेत न देकर उपभोक्ता को ठग लेते हैं।

4. दुकानदारों द्वारा उपभोक्ता को प्रेरित करना (Customer Persuation by Shopkeepers)- दुकानदार उपभोक्ता को एक खास वस्तु/ब्रांड खरीदने के लिए प्रेरित करते हैं, क्योंकि उस ब्राण्ड पर उन्हें अधिक कमीशन मिलता है। आजकल बाजार में बहुत किस्मों की ब्रेड मिलती है। आपने देखा होगा कि आपके पास का दुकानदार एक खास ब्राण्ड की डबलरोटी ही रखता है। आप जानते हैं क्यों ? एक जागरूक और समझदार उपभोक्ता को चाहिए कि वह उस दुकानदार को अन्य किस्मों की ब्रेड रखने के लिए प्रेरित करे ताकि आप उसमें से अपनी पसंद की ब्रेड चुन सकें। यदि यह’ संभव न हो तो आपको किसी अन्य दुकानं या दुकानदार के पास जाना चाहिए।

5. भ्रामक विज्ञापन (False Advertisement)- उपभोक्ता को आकर्षित करने के लिए विज्ञापन की सहायता ली जाती है। उपभोक्ता को प्रेरित करने के लिए विज्ञापन एक बहुत ही सबल माध्यम है। वस्तु का विज्ञापन इतनी चतुराई से किया जाता है कि उपभोक्ता उसे खरीदने के लिए तत्पर हो जाता है। चॉकलेट, चिप्स, ठंडे पेय, जूस, जीन्स, टूथपेस्ट तथा अन्य साज-सज्जा के सामान और स्कूटर, गाड़ियाँ इत्यादि से संबंधित विज्ञापन से अधिकतर किशोर उपभोक्ता आकर्षित हो जाते हैं। जब कोई वस्तु विज्ञापित से खरी नहीं उतरती तो उपभोक्ता निराश हो जाते हैं।

6. विलम्बित/अपूर्ण उपभोक्ता सेवाएँ (Delayed and Inadequate Consumer Services)- उपभोक्ता सेवाएँ जैसे स्वास्थ्य, पानी, बिजली, डाक व तार की सुविधा बहुत से घरों में दी जाती है। इन सेवाओं की दोषपूर्ण देख-रेख के कारण ये सेवायें उपभोक्ताओं को असुविधा देती है। उदाहरण-इन सेवाओं से जुड़े कार्यकर्ता जब ठीक से ये सुविधायें उपलब्ध न करा सकें तो उपभोक्ता झुंझला जाते हैं।

उपभोक्ता के दायित्व (Responsibilities of the Consumer)- उपभोक्ता के लिए अपने अधिकारों और दायित्वों के प्रति जागरूक होना अत्यन्त आवश्यक है। उपभोक्ता के निम्नलिखित दायित्व हैं-

  • कुछ भी खरीदने या उपयोग करने से पहले उपभोक्ता का दायित्व है कि वह सही जानकारी प्राप्त करे।
  • उपभोक्ता को सही चयन करना चाहिए। सही चयन का दायित्व उपभोक्ता पर ही होता है।
  • केवल वही वस्तु खरीदें जिसकी गुणवत्ता पर विश्वास हो।
  • यदि असन्तुष्ट हों तो उपभोक्त अदालत में जाएँ और क्षतिपूर्ति प्राप्त करें।

प्रश्न 6.
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 की मुख्य विशेषताएँ समझाइए।
उत्तर:
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की मुख्य विशेषताएँ (The Salient Features of Consumer Protection Act)-
(a) कानून का उपयोजन (Application of the Law)- यह अधिनियम वस्तु और सेवाओं दोनों पर लागू होता है। वस्तु वह होती है जिसका निर्माण होता है, उत्पादन होता है और जो उपभोक्ताओं को विक्रेताओं द्वारा बेची जाती है। सेवाओं के अन्तर्गत-यातायात, टेलीफोन, बिजली, सड़कें और सीवर आदि आती हैं। ये अधिकार सार्वजनिक क्षेत्र के व्यवसायियों द्वारा उपलब्ध कराये जाते हैं।

(b) क्षतिपूर्ति तंत्र तथा उपभोक्ता मंच (Redressal Machinary and Consumer Forum)- वस्तुओं और सेवाओं के विरुद्ध परिवेदना निवारण के लिए उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अन्तर्गत न्यायिक कल्प की स्थापना की गई है। इस तंत्र के अन्तर्गत विभिन्न स्तरों पर उपभोक्ता मंच बनाये गए हैं। ये मंच उपभोक्ताओं के हित की रक्षा तथा उनके संरक्षण का कार्य करते हैं।

अनुदान की राशि को ध्यान में रखते हुए विभिन्न स्तरों के न्यायिक कल्प तंत्र के समीप जाया जा सकता है। अधिष्ठाता सेवानिवृत या कार्यरत अफसर हो सकता है। जिला तथा राज्य स्तर के मंच पर अधिष्ठाता सेनानिवृत या कार्यरत अफसर हो सकता है। जिला तथा राज्य स्तर के मंच पर अधिष्ठाता के अतिरिक्त केवल एक समाज सेविका तथा एक शिक्षा/व्यापार आदि के क्षेत्र में प्रतिष्ठित . व्यक्ति ही होता है।

राष्ट्रीय स्तर पर केन्द्रीय सरकार एक महिला समाज सेविका, एक अधिष्ठाता सहित चार सदस्यों को नियुक्त करती है।

(c) शीघ्र निवारण (Expeditious Disposal)- उपभोक्ताओं को न्याय के लिये अधिक इंतजार न करना पड़े इसके लिये इस अधिनियम के अन्दर सभी मामले का नब्बे दिन के अन्दर निवारण करने की व्यवस्था की गई है। इससे उपभोक्ताओं को संतोषजनक न्याय के लिए अनावश्यक प्रतीक्षा नहीं करनी पड़ती है।

(d) सलाहकार समितियाँ (Advisory Bodies)- परिवेदना-निवारण सलाकार निगम जैसे उपभोक्ता संरक्षण परिषद् तथा केन्द्रीय उपभोक्ता संरक्षण परिषद् की राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर स्थापना की गई है। ये परिषदें उपभोक्ताओं को अपने अधिकारों का प्रयोग करने के लिए प्रेरित करती हैं। उपभोक्ता प्रशिक्षण तथा अनुसंधान केन्द्र (CERC) उपभोक्ताओं को विज्ञापन से प्रेरित करता है।

प्रश्न 7.
उपभोक्ता शिक्षा के क्या लाभ हैं ? संक्षेप में वर्णन करें।
उत्तर:
उपभोक्ता के हितों की रक्षा के लिए यह अत्यधिक महत्त्वपूर्ण है कि उपभोक्ता स्वयं अपने अधिकार से परिचित हो ताकि वह अपने द्वारा व्यय किये जाने वाले धन का सदुपयोग कर सके। उसके लिए यह आवश्यक है कि वस्तु खरीदने से पहले ही उसे वस्तु की जानकारी हो जिससे विक्रेता या उत्पादक उसे धोखा न दे सके। यह जानकारी वह निम्नलिखित माध्यमों द्वारा प्राप्त कर सकता है-

1. लेबल- इसके द्वारा उपभोक्ता को यह पता चलता है कि बन्द पात्र के अंदर कौन-सी वस्तु है और वह कितनी उपयोगी है।  भारतीय मानक ब्यूरो ने अच्छे लेबल के निम्नलिखित गुण निर्धारित किये हैं- (i) पदार्थ का नाम (ii) ब्रॉण्ड का नाम (iii) पदार्थ का भार (iv) पदार्थ का मूल्य (v) पदार्थ को बनाने में प्रयोग किये गये खाद्य पदार्थों की सूची (vi) बैच या कोड नं. (vii) निर्माता का नाम और पता (viii) स्तर नियंत्रक संस्थान का नाम आदि।

2. प्रमाणन स्तर- प्रमाणन चिह्न हमें किसी वस्तु के स्तर की जानकारी देती है। जब, उपभोक्ता किसी वस्तु को खरीदता है तो उसका स्तर वैसा ही मिलता है। उसकी कहीं भी जाँच की जा सकती है। मानकीकरण का कार्य वस्तुओं की संरचना, उसके संपूर्ण विश्लेषण तथा सर्वेक्षण के आधार पर किया जाता है।

3. विज्ञापन- इसके द्वारा उपभोक्ता अनेक पदार्थों एवं सेवाओं के बारे में ज्ञान प्राप्त करता है। टेलीविजन, रेडियो, पत्रिकाओं, समाचार-पत्रों आदि में विज्ञापन देखकर वस्तु के बारे में उपभोक्ता ज्ञान प्राप्त करता है। विज्ञापन द्वारा वह अनेक सेवाओं के विषय में जानकारी रखता है।

इस प्रकार यह स्पष्ट है कि उपभोक्ता शिक्षा के अनेक लाभ हैं जिसका वह समय पर उपयोग कर सकता है। उपभोक्ता शिक्षा के कारण आज जागरुकता बढ़ी है। लोग अपने हितों को लेकर सचेत हैं।

प्रश्न 8.
उपभोक्ता के क्या अधिकार है ? खरीदारी करते समय उपभोक्ता को किन-किन समस्याओं का सामना करना पड़ता है ?
उत्तर:
“किसी भी उत्पादित वस्तु को खरीदनेवाला उपभोक्ता कहलाता है।” उपभोक्ता द्वारा खरीदी जानेवाली वस्तु उसके लिए किसी प्रकार से हानिकारक नहीं होनी चाहिए तथा उसे खरीद दारी करते समय किसी प्रकार का धोखाधड़ी का सामना न करना पड़े, इसके लिए उपभोक्ताओं के कुछ अधिकार दिये गये हैं, उपभोक्ता शिक्षा उन्हें इस बारे में सजग कराती है। वे निम्नलिखित हैं-

  • सुरक्षा का अधिकार- उपभोक्ता स्वास्थ्य के लिए हानिकारक खाद्य पदार्थों, नकली दवाईयाँ आदि के बिक्री पर रोक की माँग कर सकते हैं।
  • जानकारी का अधिकार- उपभोक्ता किसी भी वस्तु की गुणवत्ता, शुद्धता, कीमत, तौल, आदि की जानकारी की माँग कर सकते हैं।
  • चयन का अधिकार- उपभोक्ता को अधिकार है कि विक्रेता उसे सभी निर्माताओं की बनी हुई वस्तु दिखायें ताकि वह उनका तुलनात्मक अध्ययन करके उचित कीमत पर गुणवत्ता वाली वस्तु खरीद सके।
  • सुनवाई का अधिकार- खरीदी गई वस्तु में कोई कमी होने पर उपभोक्ता को यह अधिकार है कि ये वस्तु निर्माता विक्रेता तथा संबंधित अधिकारी से शिकायत कर सकते हैं।
  • क्षतिपूर्ति का अधिकार- वस्तुओं तथा सेवाओं से होनेवाले नुकसान की क्षतिपूर्ति की मांग कर सकते हैं।
  • उपभोक्ता शिक्षा का अधिकार- उपभोक्ता सही जानकारी वह सही चुनाव करने के ज्ञान की मांग कर सके।
  • स्वस्थ वातावरण अधिकार- उपभोक्ता को अधिकार है कि वह ऐसे वातावरण में रहे तथा कार्य करे जो स्वास्थ्यपूर्ण है।

उपभोक्ता शिक्षा के अभाव में आज के सभी उपभोक्ताओं को उक्त सभी अधिकारों की जानकारी नहीं रहती है। जिसके कारण बाजार में खरीदारी करते समय उपभोक्ता को विभिन्न समस्याओं का सामना करना पड़ता है, कुछ मुख्य समस्याएँ निम्नलिखित हैं-

  • वस्तुओं में मिलावट- प्रतिदिन की खरीदारी में उपभोक्ता को वस्तुओं में मिलावट का सामना करना पड़ता है। मिलावट का कारण मुनाफाखोरी वस्तुओं की कम उपलब्धता, बढ़ती महंगाई आदि है।
  • दोषपूर्ण माप- तौल के साधन-बाजार में प्राय: मानक माप-तौल के साधनों का प्रयोग नहीं किया जाता है। बल्कि नकली कम वजन के बाँट की जगह ईंट-पत्थर का प्रयोग होता है।
  • वस्तुओं पर अपूर्ण लेबल- प्रायः उत्पादक वस्तुओं पर अपूर्ण लेबल लगाकर उपभोक्ताओं को धोखा देने का प्रयास करते हैं, जिससे उपभोक्ता भ्रम में गलत वस्तु खरीद लेता है।
  • बाजार में घटिया किस्म की वस्तुओं की उपलब्धि- आजकल उपभोक्ताओं को घटिया किस्म की वस्तुएँ खरीदना पड़ रहा है जिसके लिए अधिक कीमत भी देनी पड़ती है। जैसे-घटिया लकड़ी से बने फर्नीचर रंग करके बेचना, घटिया लोहे के चादरों की आलमारी आदि।
  • नकली वस्तुओं की बिक्री- आज बाजार में नकली वस्तुओं की भरमार है। असली पैकिंग में नकली समान, दवाई, सौंदर्य प्रसाधन, तेल, घी आदि भरकर बेचा जाता है।
  • भ्रामक और असत्य विज्ञापन- प्रत्येक उत्पादन कर्ता अपने उत्पादन की बिक्री बढ़ाने के लिए भ्रामक और असत्य विज्ञापनों का सहारा लेते हैं। वस्तु की गुणवत्ता को बढ़ा-चढ़ाकर बताते हैं।
  • निर्माता या विक्रेता द्वारा गलत हथकंडे अपनाना- मुफ्त उपहार, दामों में भारी छूट जैसी भ्रामक घोषणाएँ द्वारा उपभोक्ता धोखा खा जाते हैं और अच्छे ब्राण्ड के धोखे में गलत वस्तु खरीद लेते हैं।
  • मानकीकृत उत्पादनों की कमी- मानकीकरण चिह्न वाली वस्तु अधिक कीमत कम लोकप्रिय जबकि अन्य वस्तुएँ अधिक लोकप्रिय पर कम कीमत की होती है।
  • बाजार की कीमतों में विविधता- उपभोक्ता को एक ही वस्तु की अलग-अलग दूकानों पर अलग-अलग कीमत चुकानी पड़ती है। जैसे स्थानीय कर लगाकर कीमत बढ़ाना, लिखी कीमत पर पर्ची चिपकाकर कीमत बढ़ाना।।
  • वस्तुओं का बाजार में उपलब्ध न होना- कई परिस्थितियों, जैसे-सूखा पड़ना, बाढ़ आना आदि के कारण वस्तु की कीमत बढ़ती है तो दूकानदार वस्तुओं को जमा कर लेते हैं, अधिक कीमत देने पर बेचते हैं अथवा वह सामान बाजार से गायब हो जाती है।

प्रश्न 9.
हमारे जीवन में वस्त्र के महत्त्व को समझाइए।
उत्तर:
मानव जीवन में भोजन के बाद यदि किसी वस्तु का महत्त्व है तो वह है-वस्त्र। वस्त्र जहाँ हमारे शरीर को धूप और शीत से रक्षा करता है, वहीं मानव सभ्यता की दृष्टि से भी आवश्यक है। वस्त्रविहीन या नंगे रहना मानव में असभ्यता एवं पागलपन माना जाता है। वस्त्रों में मानव शरीर के सौन्दर्य में वृद्धि होती है।

अतः वस्त्रों के महत्त्व को निम्नांकित बिन्दुओं से स्पष्ट किया जा सकता है-

  • शरीर को आवरण प्रदान करने हेतु-मनुष्य को अपने नग्न शरीर को ढंकने के लिए वस्त्र की आवश्यकता है।
  • शरीर को गर्म रखने हेतु-विशेषकर ठंढ की ऋतु में ठंढे प्रदेशों में रहनेवाले व्यक्तियों. को गर्म वस्त्रों की आवश्यकता होती है।
  • निजी श्रृंगार के लिए-चस्त्र न केवल आवरण प्रदान करते हैं बल्कि सौन्दर्य-वृद्धि में भी सहायक होते हैं। अत: निजी शृंगार के लिए भी वस्त्र धारण किये जाते हैं।
  • सामाजिक प्रतिष्ठा हेतु-वस्त्रों द्वारा अपनी सम्पन्नता का प्रदर्शन किया जा सकता है। व्यक्ति अपनी आर्थिक स्थिति या समाज में अपने स्थान का प्रदर्शन वस्त्रों के माध्यम से कर सकता है।
  • कार्यक्षमता में वृद्धि हेतु-अपनी कार्यक्षमता बनाये रखने के लिए यथा-पानी, गर्मी, ठंडक आदि का बचाव वस्त्रों द्वारा करके अपनी कार्यक्षमता बढ़ा सकता है।
  • विभिन्न प्रयोजनों हेतु-मनुष्य को शरीर के अतिरिक्त भी वस्त्र की आवश्यता है। जैसे-घर सजाने के लिए।
  • अवगुणों को छिपाने हेतु-मानव शरीर की असामान्यता या इनमें कुछ दोष को छिपाने के लिए भी वस्त्र सहायक होता है। शरीर का स्वाभाविक तापमान कायम रखने के लिए भी वस्त्र बहुत आवश्यक है। इससे शरीर स्वस्थ रहता है।
  • किसी भी आघात या बाहरी जीवों के आक्रमण सुरक्षा हेतु-आघात या बाहरी जीवों के आक्रमण के सुरक्षा हेतु भी वस्त्रों की आवश्यकता होती है।
  • विभागीय पहचान में वस्त्र-मनुष्य अपने कार्यक्षेत्र की पहचान के लिए वस्त्र का उपयोग करता है। पुलिस, पोस्ट मैन, पादरी, चपरासी, नर्स आदि की पहचान उसके द्वारा पहने गये वस्त्र से की जा सकती है।

अतः जैसे-जैसे सभ्यता का विकास हो रहा है, वैसे-वैसे वस्त्रों का महत्त्व बढ़ता जा रहा है। आज वस्त्रों का महत्त्व इतना अधिक बढ़ गया है कि कहा जा सकता है-वस्त्रों से व्यक्ति बनता है।

प्रश्न 10.
सिले सिलाये तैयार वस्त्र खरीदते समय किन बातों पर ध्यान रखना चाहिए ?
अथवा, रेडिमेड वस्त्रों का चयन करते समय किन-किन बातों पर ध्यान देना चाहिए?
उत्तर:
रेडिमेड कपड़ों का चयन करते समय या खरीदते समय निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए-

  1. रेडिमेड वस्त्र के कपड़ों की किस्म को देखना चाहिए। कपड़ा किन रेशों का बना है, उसकी संरचना कैसी है, बुनाई कैसी है आदि।
  2. वस्त्र के रंग पक्के होना चाहिए तथा उनमें उपयोग किये गये अलंकरणों के रंग भी पक्के होना चाहिए।
  3. वस्त्र तैयार करने की कौशलता कैसी है इस पर भी ध्यान देना चाहिए। इसके अंतर्गत कटाई, सिलाई, नमूने, बंद करने के साधन और बाह्य सज्जा एवं अलंकरण का ध्यान किया जाता है।
  4. वस्त्र आरामदायक होना चाहिए।
  5. वस्त्र जिस व्यक्ति के लिए खरीदा जाता है उसके नाम के अनुसार होना चाहिए।
  6. वस्त्र व्यक्ति के व्यक्तित्व के अनुरूप होना चाहिए।
  7. वस्त्र मूल्य खरीदने वाले की क्षमता के अनुसार होना चाहिए।

प्रश्न 11.
वस्त्रों के चयन को प्रभावित करने वाले कारकों की सूची बनाएँ। उनका संक्षिप्त विवरण दें।
उत्तर:
वस्त्रों के चयन को प्रभावित करने वाले कारक निम्नलिखित हैं-
(i) व्यक्तित्व- कपड़ों का चुनाव करते समय व्यक्तित्व को ध्यान में रखना आवश्यक है। अधिकारी, क्लर्क, होटल कर्मचारी के लिए अपने व्यवसाय को ध्यान में रखना आवश्यक है। वहीं लम्बा, पतला, मोटा, संजीदा व्यक्ति आदि को ध्यान में रखकर ही खरीददारी करना चाहिए।

(ii) जलवायु- बाजार में कपड़े का चयन करते समय जलवायु का ध्यान रखना भी अत्यन्त आवश्यक हैं। गर्मियों के लिए आसानी से पसीना सूखने वाले कपड़े जैसे सूती, मतलम, रूबिया आदि उपयुक्त रहते हैं तो सर्दियों में गर्मी को बनाये रखने के लिए रेशमी व ऊनी वस्त्र उपयुक्त रहते हैं।

(iii) शारीरिक आकृति- वस्त्रों को शारीरिक रचना के अनुसार भी चुनाव करना चाहिए। मोटे व्यक्ति को मोटाई कम दिखाने वाले वस्त्रों का चयन करना चाहिए। इन्हें चौड़ी आड़ी वाली वस्त्रों को नहीं पहनने चाहिए क्योंकि इनमें मोटाई अधिक दिखाई देती है लम्बे तथा दुबले व्यक्तियों के लिए आड़ी रेखाओं वाले वस्त्रों का चयन किया जाना चाहिए।

(iv) अवसर- अलग-अलग अवसर पर अलग-अलग पोशाक अच्छे लगते हैं। खुशी के मौके पर सुन्दर, भड़कीले, चमकीले तथा कीमती परिधान होनी चाहिए। सार्वजनिक समारोह में परिधान शालीनना, सौम्यता तथा मर्यादा प्रदर्शित करने वाले हों। वस्त्र, मौसम, समय और शरीर के अनुरूप होनी चाहिए। शोक के अवसर पर सफेद रंग वस्त्र होने चाहिए यात्रा, खेल, अवकाश के लिए आरामदायक वस्त्र होनी चाहिए।

(v) व्यवसाय- व्यक्ति को अपने व्यवसाय के अनुसार वस्त्र का चुनाव करना चाहिए। डाक्टर एवं नर्स, शालीन, सौम्य सफेद वस्त्रों का चुनाव करना चाहिए। स्कूल के बच्चे, ऑफिस, शिक्षक आदि के वस्त्र एक समान होने चाहिए। अश्लील या असभ्य वस्त्रों का चयन नहीं करना चाहिए।

(vi) फैशन- वस्त्रों का चुनाव प्रचलित फैशन के अनुसार की करना चाहिए। समय के साथ-साथ फैशन परिवर्तित होता रहता है। फैशन बदलने से परिधान संबंधी अवस्थाई तथा रूचियाँ बदल जाती है।

(vii) आयु- वस्त्र पहनने वाले की आयु भी वस्त्रों के चुनाव को प्रभावित करती है भिन्न-भिन्न आयु वाले व्यक्तियों के लिए भिन्न-भिन्न वस्त्र उपयोगी होते हैं।

प्रश्न 12.
कपड़ों का चयन करते समय कौन-से तत्त्व प्रभावित करते हैं ?
उत्तर:
कपड़ों का चयन करते समय निम्नलिखित तत्त्व प्रभावित करते हैं-
(i) बाह्य रूप- कपड़ा सुंदर, चिकना एवं चमकदार होना चाहिए। उसमें रंगों का उचित अनुपात में मिश्रण होना चाहिए। सबसे बढ़कर उसे चित्ताकर्षक होना चाहिए।

(ii) रंग- वस्त्रों के रंगों का तापमान एवं मनोभावों पर भिन्न-भिन्न प्रभाव पड़ता है। लाल, पीला, नारंगी रंग गरम होते हैं। अतः इन रंगों की विशेषता लिये हुए वस्त्रों को गर्मी के मौसम में नहीं खरीदना चाहिए। अत: उपभोक्ता को गर्मी में आंखों तथा शरीर की शीतलता प्रदान करनेवाला रंग जैसे नीला, हरा, बैंगनी रंग वाले वस्त्रों को खरीदना चाहिए। इससे मानसिक संतोष, शांति प्राप्त होता है। सफेद रंग से, पवित्रता एवं ज्ञान का बोध होता है। चककीले, चटकदार रंगवाले वस्त्र बच्चों के लिए अधिक उपयुक्त होते हैं, तथा प्रौढ़ व्यक्तियों के लिए हल्के रंग उचित हैं।

(iii) अभिरूचि- वस्त्र के चुनाव में मनुष्य की शिक्षा, अभिरूचि, प्रशिक्षण, संवेग आदि की महत्वपूर्ण भूमिका है। चयन के समय उसकी कई ज्ञानेन्द्रिय क्रियाशील रहती है। वह वस्त्र को ध्यान से देखता है, छूता है ताकि उसके रूप रंग को महसूस कर सके।

(iv) कपड़े-विशेष का मूल्य- आजकल कपड़े का मूल्य बढ़ गया है। अतः कपड़े खरीदते समय प्रत्येक गृहिणी को अपनी मासिक आय को ध्यान में रखना चाहिए।

(v) कपड़ों का पक्का रंग- आजकल विभिन्न प्रकार के रेशों से बनी सुदर-सुंदर रंग के कपड़े उपलब्ध हैं। प्रायः एक प्रकार के रेशों से बने वस्त्रों के विशेष रंग पक्के निकलते हैं तो वही रंग दूसरे प्रकार के रेशों में कच्चे निकल जाते हैं। अतः रंगीन कपड़े खरीदते समय इसकी जांच कर लेनी चाहिए।

(vi) मौसम और जलवायु- कपड़े खरीदते समय मौसम का ध्यान रखना चाहिए। ठंढ के मौसम में ऊनी वस्त्र और गर्मी के मौसम में सूती, सिफॉन जार्जेट ही अच्छे लगते हैं।

(vii) टिकाऊपन- कोई वस्त्र टिकाऊ है या नहीं, यह कपड़े के रेशे के गुण और बनावट पर निर्भर करता हो। ठोस बुने कपड़े अधिक मजबूत और टिकाऊ होते हैं। इसके विपरीत हल्के बुने हुए कपड़े अपेक्षाकृत कमजोर और कम टिकाऊ होते हैं। कुशल गृहिणी कपड़ों को देखकर उसकी मजबूती, टिकाऊपन आदि का सहज ही पता लगा लेती हैं।

(viii) कपड़ों में कलफ- साधारणतः कपड़ों को भली-भांति देखने तथा इसके एक भाग को मसलने से कलफ का भी पता चल जाता है।

(ix) सिकुड़ना- कुछ कपड़े धुलने पर सिकुड़ जाते हैं। ऐसे कपड़ों से मिले वस्त्र उटंग हो जाते हैं। अतः जहाँ तक संभव हो कम-से-कम या नहीं सिकुड़ने वाले वस्त्र ही खरीदना चाहिए।

(x) वर्तमान कीमत- किसी विश्वासी या परिचित दूकान से ही कपड़े खरीदने चाहिए।

प्रश्न 13.
विभिन्न प्रकार की शारीरिक रचना वाली पहिलाओं के लिए पोशाक का चुनाव कैसे करेंगी ?
उत्तर:
विभिन्न प्रकार की शारीरिक रचना वाली महिलाओं के लिए पोशाक (Clothes According to Built and Appearance)-
(i) लम्बी और मोटी महिला- इस प्रकार की महिलाओं के लिए वस्त्रों का चुनाव करना बहुत कठिन काम है। इसीलिए ऐसी महिलाओं के लिए वस्त्रों का चयन करते समय अत्यन्त सावधानी बरतनी चाहिए। इसका कारण यह है कि इन महिलाओं को जहाँ एक ओर ऐसे वस्त्रों की आवश्यकता होती है जो मोटाई काम होने का अहसास कराएँ वहीं दूसरी ओर ऐसे वस्त्रों की जिससे लम्बाई बढ़ती हुई दिखाई न दे। ऐसी वस्त्र-योजना के लिए तिरछी रेखाओं वाले वस्त्र उचित रहते हैं क्योंकि ये ऊपरी भाग की चौड़ाई को कुछ करने का भ्रम पैदा करते हैं। इस वर्ग की महिलाओं के लिए वस्त्रों की सिलाई करते या कराते समय कालर, कफ, योक आदि सीधी रेखाओं में ही रखने चाहिए। इन्हें बहुत चुस्त तथा बहुत ढीले वस्त्र भी नहीं पहनने चाहिए।

(ii) मोटी तथा नाटी महिला- मोटी तथा नाटी महिला को भी अपने अनुकूल वस्त्रों के डिजाइन, कटाई आदि का ध्यानपूर्वक चयन करना चाहिए। इन्हें आड़ी रेखा वाले वस्त्रों का प्रयोग नहीं करना चाहिए क्योंकि इनसे न केवल मोटाई ही अधिक दिखाई देती है अपितु कद भी कम प्रतीत होता है। बड़े-बड़े चौड़े कोट, दोहरी छाती वाले कोट, ऊँचे कोट आदि का प्रयोग इन महिलाओं को कदापि नहीं करना चाहिए। बड़े फूल तथा चौड़े बार्डर वाले वस्त्र भी उनके लिए त्याज्य हैं। इन्हें तो केवल . लम्बी रेखाओं वाले वस्त्रों का प्रयोग करना चाहिए। इन्हें वस्त्रों की फिटिंग पर भी समुचित ध्यान देना चाहिए। वस्त्र न तो बहुत चुस्त होने चाहिए और न बहुत ही ढीले। वस्त्रों के चुस्त होने पर शारीरिक दोष उभर आते हैं और ढीले वस्त्र चौड़ाई फैलाने वाले होते हैं। ऐसी महिलाओं को एक ही रंग के छोटे नमूने वाले, बिना बैल्ट के छोटे कालर वाले वस्त्र प्रयोग में लाने चाहिए।

(iii) पतली महिला- पतले शरीर वाली महिलाओं के शरीर पर वे सभी वस्त्र फबते हैं जो मोटी महिलाओं के लिए त्याज्य हैं। इन महिलाओं को ऐसे वस्त्रों का चयन करना चाहिए जो पतलेपन को छिपाने वाले हों। तीखे तथा चटक रंग, चुन्नट, झालर, चौड़ी बैल्ट, बड़ी जेबें, फूली हुई बाँहें आदि डिजाइन वाले वस्त्र इन महिलाओं के व्यक्तित्व को अत्यन्त आकर्षक रूप प्रदान करते हैं। कपड़े तथा सिलाई के डिजाइनों का चुनाव करते समय इस बात का ध्यान रखा जाना चाहिए कि वे लम्बी रेखाओं के स्थान पर आड़ी अथवा भग्न एवं वक्र रेखा वाले हों।

(iv) लम्बी तथा दुबली महिला- इस वर्ग की महिलाओं के लिए जिन वस्त्रों का चयन किया जाए, वे आड़ी रेखाओं से बने डिजाइन के होने चाहिए। ऐसे शरीर पर चेक वाले डिजाइन भी बहुत अच्छे लगते हैं। कोट आदि वस्त्रों की लम्बाई कम रखनी चाहिए जिसका लाभ यह होता है कि लम्बाई कम होने का आभास मिलता है। फिटिंग ढीली रखनी चाहिए क्योंकि इससे भी लम्बाई अखरती नहीं है। कैम्ब्रिक, वायल, सूती साड़ी आदि का प्रयोग इस वर्ग की महिलाओं के व्यक्तित्व को आकर्षक बना देता है।

(v) छोटी तथा दुबली महिला/पुरुष- इन महिलाओं के लिए वस्त्रों को चुनाव करते समय दो बातों का ध्यान रखना पड़ता है-एक तो यह कि उनका शरीर भरा हुआ दिखाई दे, और दूसरा यह कि वे लम्बी प्रतीत हों। लम्बवत् रेखाएँ जहाँ बढ़ी हुई लम्बाई का आभास देती हैं वहीं आड़ी रेखाएँ बढ़ी हुई चौड़ाई का। अतएव इन महिला/पुरुष को ऐसे डिजाइनों के वस्त्र चुनने चाहिए जो लम्बाई और चौड़ाई दोनों ही बढ़ाते हुए प्रतीत हों। ऐसी स्थिति में आड़ी-खड़ी रेखाओं के योग से बने डिजाइन सर्वाधिक उपयुक्त रहते हैं। चुस्त पोशाक शारीरिक दुर्बलता को व्यक्त करती है। अतएव इन महिलाओं को शरीर को भरा-पूरा दिखाने वाले ढीली फिटिंग के वस्त्र ही पहनने चाहिए।

(vi) भारी नितम्ब वाली महिलाएँ- इस वर्ग की महिलाओं को ऐसे डिजाइनों के वस्त्र चुनने चाहिए जो नितम्बों की चौड़ाई कम करके दिखाएँ। तिरछे, वृत्ताकार तथा वक्र रेखाओं से बने डिजाइन इस उद्देश्य की पूर्ति में बाधक होते हैं। नितम्ब के पास वस्त्रों की फिटिंग चुस्त नहीं होनी चाहिए। इन्हें मोटी झालर तथा बड़ी-बड़ी जेबों वाले वस्त्र भी नहीं पहनने चाहिए।

(vii) भारी वक्ष वाली महिलाएँ- इस वर्ग की महिलाओं को वस्त्रों का चयन करते समय सदैव लम्बवत् रेखाओं वाले डिजाइनों का प्रयोग करना चाहिए। तिरछी तथा वक्र रेखाओं वाले डिजाइनों के वस्त्र ऐसे शरीर पर बहुत अच्छे लगते हैं। वस्त्रों की सिलाई के समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि गला V आकार का हो और छाती की फिटिंग चुस्त न हो। यदि कमर के पास चुन्नट अथवा छोटी डार्ट दे दी जाए तो छाती के भारी होने का अहसास नहीं होता।

(viii) मोटी बाँहों वाली महिलाएँ- इस वर्ग की महिलाओं को बिना आस्तीन वाले वस्त्र नहीं पहनने चाहिए। इसका कारण यह है कि बिना आस्तीन के वस्त्र उन्हीं महिलाओं पर फबते हैं जिनकी बाहें न तो बहुत मोटी होती हैं और न ही पतली। मोटी बाहों वाली स्त्रियों के लिए तो ढीली फिटिंग के बाहों वाले वस्त्र ही शोभा देते हैं।

(ix) निकला हुआ पेट- इस वर्ग की महिलाओं को ऐसे डिजाइन के वस्त्र चुनने चाहिए जिससे पेट थोड़ा दबा हुआ लगे। इस दृष्टि से बहुत तीखे रंगों के ब्लाउज तथा विषम रंगों की साड़ियाँ नहीं चुननी चाहिए। खड़ी रेखाओं वाले वस्त्र इस वर्ग की महिलाओं के लिए अच्छे रहते हैं। फिटिंग कुछ ढीली होनी चाहिए और गले के आस-पास ऐसी सजावट होनी चाहिए जिससे देखने वाले की दृष्टि उसी ओर जाए।

प्रश्न 14.
शिशुओं के वस्त्रों का चुनाव आप किस प्रकार करेंगी ?
उत्तर:
शिशुओं के वस्त्रों का चुनाव (Selection of Clothes for Infants)-
(i) शिशुओं के लिए सूती कपड़ा सर्वोत्तम वस्त्र होता है। सूती वस्त्र में भी कोमल तथा हल्का वस्त्र शिशु की कोमल त्वचा को क्षति नहीं पहुँचाता। सूती वस्त्र में संरध्रता (Porous) होने के कारण शिशु की त्वचा का पसीना सोख लेता है, उसे चिपचिपा नहीं होने देता। शिशुओं के लिए रेशमी या नायलान वस्त्र कष्टदायक होता है।

(ii) शिशु के वस्त्रों को बार-बार गंदे होने के कारण कई बार धोना पड़ता है। इसलिए शिशुओं के वस्त्र ऐसी होने चाहिए जिन्हें बार-बार धोया तथा सुखाया जा सके। वस्त्र ऐसा नहीं होना चाहिए जिसे घर में न धोया जा सके या जिसे सूखने में बहुत अधिक समय लगता हो।

(iii) शिशुओं के वस्त्र हमेशा साफ तथा कीटाणुरहित होने चाहिए। वस्त्रों को कीटाणुरहित करने के लिए उन्हें गर्म पानी में धोना चाहिए तथा डेटॉल के पानी में भिंगोना चाहिए। इसलिए वस्त्र ऐसा होना चाहिए जो गर्म पानी तथा डेटॉल या कीटाणुनाशक पदार्थ को सहन कर सके।

(iv) उसके गर्म कपड़े भी ऐसे होने चाहिए, जो गर्म पानी में सिकुड़े नहीं।

(v) शिशुओं के कपड़ों की संख्या अधिक होनी चाहिए क्योंकि उसके कपड़े गंदे हो जाने पर दिन में कई बार बदलने पड़ते हैं।

(vi) शिशुओं के कपड़े मांडरहित होने चाहिए तथा कसे इलास्टिक वाले नहीं होने चाहिए।

(vii) शिशुओं के कपड़े सामने, पीछे या ऊपर की ओर खुलने चाहिए, जिससे शिशु को सिर से कपड़ा न डालना पड़े।

(viii) शिशुओं के वस्त्रों में पीछे की ओर बटनों (Buttons) के स्थान पर कपड़े से बाँधने वाली पेटियाँ (ties) या बंधक (faster) होने चाहिए क्योंकि बटन पीछे होने से शिशु के लेटने पर उसे चुभ सकते हैं।

(ix) शिशुओं के कपड़ों के रंग व डिजाइन अपनी रुचि के अनुसार होने चाहिए, परन्तु रंग ऐसे होने चाहिए जो धोने पर निकले नहीं क्योंकि शिशुओं के वस्त्रों को बहुत अधिक धोना पड़ता है।

(x) शिशुओं के वस्त्रों में मजबूती का इतना महत्त्व नहीं होता है क्योंकि शिशुओं की वृद्धि बहुत तीव्र गति से होती है। जब तक शिशु के कपड़ों के फटने की स्थिति आती है, वे छोटे हो चुके होते हैं।

प्रश्न 15.
पूर्व स्कूलगामी स्कूल जाने वाले बच्चों के वस्त्र, किशोर तथा युवाओं के वस्त्र तथा महिलाओं के लिए वस्त्र किस प्रकार के होने चाहिए?
उत्तर:
I. पूर्व स्कूलगामी बच्चों के वस्त्र (Selection of Clothes for Pre-school Children)-

  • पूर्व स्कूलगामी बच्चों के वस्त्र कोमल, हल्के तथा सूती होने चाहिए। (3 वर्षीय बच्चे)
  • वस्त्र बहुत ढीले तथा बहुत लम्बे नहीं होने चाहिए क्योंकि इस आयु में बच्चों का ध्यान खेलने में होता है। ढीले तथा लम्बे कपड़े कहीं भी अटक कर फट सकते हैं तथा बच्चे को छति पहुँचा सकते हैं।
  • बच्चों के कपड़े ऐसे रंगों के होने चाहिए जो देखने में आकर्षक एवं उन्हें सुन्दर लगते हों।
  • कपड़ों की सिलाई पक्की होनी चाहिए तथा ऐसी होनी चाहिए जो बच्चों की उछल-कूद से दबाव पड़ने पर फटे नहीं।
  • बच्चों की वृद्धि बहुत जल्दी होती है, इसलिए वस्त्र ऐसी होनी चाहिए, जिनको आवश्यकता पड़ने पर खोल कर बड़ा किया जा सकता हो।
  • बच्चों के वस्त्र ऐसे होने चाहिए जिनको घर में आसानी से धोया जा सकता हो तथा धोने पर जिनका रंग न निकलता हो।
  • बच्चों के वस्त्र ऐसे होने चाहिए जिनको बच्चा स्वयं पहन सकता हो तथा उतार सकता हो।
  • बच्चों के वस्त्रों का इलास्टिक (Elastic) बहुत अधिक कसा नहीं होना चाहिए।

II. स्कूल जाने वाले बच्चों के वस्त्र (Selection of Clothes for School Going Children)-

  • बच्चों के कपड़े खेल-कूद के कारण गंदे हो जाते हैं। इसलिए ऐसे होने चाहिए जो घर में धोए जा सकते हों।
  • बच्चों के कपड़े मजबूत होने चाहिए जो खेलने और उछलकूद को सहन कर सकें और रोज-रोज फटे नहीं।
  • बच्चों के कपड़े नाम में थोड़े बड़े हो सकते हैं तथा इनको बच्चों की वृद्धि के अनुसार बड़ा करने की गुंजाइश होनी चाहिए।
  • बच्चों के वस्त्र कसे हुए तथा तने हुए नहीं होने चाहिए क्योंकि ये बच्चों की सामान्य वृद्धि में बाधक होते हैं। कसे हुए वस्त्र पहनने से वे खेल नहीं सकते, इसलिए कुंठित होते हैं जिससे उनके मानसिक विकास पर भी प्रभाव पड़ता है।
  • बच्चों के वस्त्र देखने में सुन्दर एवं बच्चों की पसन्द के अनुरूप होने चाहिए। वस्त्र ऐसे होने चाहिए जिनसे बच्चा स्मार्ट (Smart) लगे। यदि बच्चों के वस्त्र बेढब, भद्दे तथा अपने साथियों की पसन्द के अनुरूप नहीं होते तो वे हीन भावना से ग्रस्त हो जाते हैं और साथियों से मिलने तथा उनके साथ खेलने में संकोच करते हैं।
  • स्कूल की यूनिफार्म में अधिकतर सफेद रंग ही होता है, इसलिए घर में पहनने वाले वस्त्र रंगीन होने चाहिए।

III. किशोर तथा युवाओं के वस्त्रों का चयन (Selection of Clothes for Adolesents & Youth)- इस आयु-वर्ग के लिए वस्त्रों का चयन सबसे कठिन होता है क्योंकि इस आयु के व्यक्ति परंपरागत कपड़ों के बजाय, कुछ नया, अलग तथा अनोखा वस्त्र पहनना चाहते हैं। ये चाहते हैं कि वे सबसे अलग दिखें और उनकी एक अलग ही पहचान हो। वे वर्तमान प्रचलित फैशन के अनुरूप ही वस्त्र धारण करना चाहते हैं तथा वस्त्रों द्वारा ही अपने साथियों से प्रशंसा एवं स्वीकृति भी प्राप्त करना चाहते हैं। इसलिए उनके वस्त्र ऐसे हों जो-

  • उन पर खिलें, सुन्दर लगें और उनके आत्म-सम्मान को बढ़ाएँ।
  • वस्त्र अश्लील न हों।
  • वस्त्र कोमल, लचीले तथा विभिन्न अलंकरणों द्वारा सजाए हुए हों।
  • वस्त्र शरीर की बनावट, त्वचा, आँखों तथा बालों रंग के अनुरूप होने चाहिए।

IV. महिलाओं के लिए वस्त्र (Selection of Clothes for Ladies)-

  • बढ़ती आयु के साथ-साथ शरीर में परिवर्तन आ जाते हैं। उन परिवर्तनों के कारण युवावस्था में जो वस्त्र उन्हें सुन्दर लगा करते थे वे इस आयु में उनके शरीर पर नहीं फबते।
  • उनके कपड़ों के रंग, डिजाइन इत्यादि उनकी शरीर की बनावट के अनुरूप होने चाहिए।
  • इस आयु में वस्त्रों का चुनाव करते समय प्रचलित फैशन की अपेक्षा, व्यवसाय के अनुकूल (Need of Occupation), अवसर (Occasion), ऋतु (Season) तथा कीमत (Money) की ओर अधिक ध्यान दिया जाता है।
  • महिलाओं को रोजमर्रा के लिए ऐसे वस्त्रों की आवश्यकता होती है, जो सादे, सौम्य, सुन्दर, टिकाऊ तथा आरामदायक हों।

प्रश्न 16.
वस्त्रों का संरक्षण विस्तारपूर्वक लिखें।।
उत्तर:
वस्त्रों का संरक्षण- जितना आवश्यक वस्त्रों को धोना, सुखाना, इस्तरी करना है उतना ही आवश्यक वस्त्रों को संभालना भी है। रखे हुए वस्त्र आवश्यकता पड़ने पर तैयार मिलते हैं। अत: सभी वस्त्रों को सहेज कर रखना चाहिए।

वस्त्रों को रखने के लिए बाक्स या आलमारी का प्रायः प्रयोग किया जाता है। आलमारी (Wardrobe) में वस्त्रों को रखना अधिक उपयुक्त रहता है क्योंकि उसमें अलग-अलग नाप (Size) के रैक (Rack) बने हुए होते हैं, उनमें वस्त्र रखने से वस्त्रों की इस्तरी खराब नहीं होती और रैक्स (Racks) में अलग-अलग पड़े होने के कारण उनको ढूँढने में कठिनाई नहीं पड़ती। आलमारी (Wardrobe) में वस्त्रों को टांगने की भी सुविधा होती है। हैंगर (Hangers) में वस्त्रों को टाँगने से उनकी तह नहीं बिगड़ती। आलमारी (Wardrobe) में परिधान सम्बन्धी अलंकरण (Dressaccessories) की रखने की व्यवस्था भी होती है जिससे उपयुक्त अलंकरण भी वस्त्रों के साथ पहनने के लिए उपयुक्त समय पर मिल सकें। आलमारी में सबसे नीचे का शेल्फ (Shelf) जूते (Shoes) रखने के लिए प्रयोग किया जा सकता है।

महँगे तथा दैनिक प्रयोग में न आने वाले वस्त्रों को डस्ट-प्रूफ-बैग (Dust-proof-bag) में बन्द करके रखना चाहिए जिससे-

  1. उनको प्रयोग करते समय झाड़ना न पड़े
  2. श्रम तथा समय की बचत हो
  3. वस्त्रों की शोभा बनी रहे
  4. वस्त्रों का जीवन-काल बढे।

वस्त्रों को बन्द करके रखने से पहले उनकी बैल्ट, बो, ब्रोच इत्यादि उतार लेना चाहिए। जेबों को खाली कर देना चाहिए, उनकी जिप और बटन बन्द करके रखना चाहिए, उनको धूप लगवा लेनी चाहिए।

गर्म कपड़ों को अलमारी (Wardrobe) में रखने से पहले अखबार या कागज में लपेट देना चाहिए। इससे उनमें कीड़ा नहीं लगता।अलमारी में रखे वस्त्रों को कीड़ा न लगे। इसके लिए अलमारी में-

  1. कीड़े मारने वाली दवाई डालनी चाहिए।
  2. पालीथिन बैग में मॉथ-प्रूफ पाउडर (Mouth Proof Powder) या नैपथिलीन की गोलियाँ (Napthlene Balls) डालकर रखनी चाहिए।
  3. डी० डी० टी० का स्प्रे अथवा नीम की सूखी पत्तियाँ रखनी चाहिए।
  4. पेराडाइक्लोरो बैंजीन (Para-dy-chloro Benzene) का प्रयोग भी वस्त्रों की कीड़ों से सुरक्षा करता है।
  5. अलमारी की पूर्ण सफाई होनी चाहिए तथा टूटे-फूटे भागों की मरम्मत होती रहनी चाहिए ।

आलमारी में जूते, सैंडिल्स इत्यादि को पॉलिश करके ही रखना चाहिए जिससे आवश्यकता के समय वे तैयार मिलें। संरक्षितं वस्त्रों की समय-समय पर जाँच करते रहनी चाहिए तथा वस्त्रों को रैक्स में रखने का एक निश्चित स्थान बनाए रखना चाहिए।

Bihar Board 12th Home Science Important Questions Short Answer Type Part 1

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Bihar Board 12th Home Science Important Questions Short Answer Type Part 1

प्रश्न 1.
अन्तः स्त्रावी ग्रंथियाँ
उत्तर:
नलिका विहीन ग्रंथियाँ ही अन्तः स्रावी ग्रंथियाँ कहलाती हैं। इन ग्रंथियों में कोई नलिका नहीं होती है बल्कि इनके चारों ओर सक्त कोशिकाओं का घना छायादार वृक्ष के सदृश जाल बिछा रहता है जिसके माध्यम से ये स्रावी पदार्थ को सीधे रक्त में डाल देते हैं।

प्रश्न 2.
बहिर्तावी ग्रंथियाँ
उत्तर:
नलिका युक्त ग्रंथियों को ही बहिस्रावी ग्रंथियाँ कहा जाता है। यकृत, लार ग्रंथियाँ, आँसूबली ग्रंथियाँ आदि बहिस्रावी ग्रंथियाँ है। ये ग्रंथियाँ स्रावित पदार्थ को नलिका के माध्यम से शरीर के विभिन्न भागों में पहुँचाते हैं।

प्रश्न 3.
थाएरॉइड ग्रंथि
उत्तर:
थाएरॉइड ग्रंथि गर्दन में स्वर यंत्र और श्वासनली के बीच में स्थित रहता है। यह द्विपिण्डकीय होती है तथा दोनों पिण्ड आपस में एक पतले सेतु के द्वारा जुड़े रहते हैं। यह सेतु इस्थमस कहलाता है। थाएरॉइड ग्रंथि का आकार तितलीनुमा होता है। यह ग्रंथि कई छोटी-छोटी, पुटिकाओं की बनी होती है। इन पुटिकाओं के बीच में रक्त कोशिकाओं का जाल बिछा रहता है। पुटकीय कोशिकाएँ एक लसदार तथा पारदर्शक द्रव्य का स्रावण करती है जिसमें थाएरॉइड हारमोन्स उपस्थित रहता है।

प्रश्न 4.
हार्मोन
उत्तर:
अन्तःस्रावी ग्रंथियों से जो स्रावी पदार्थ निकलते हैं उन्हें हार्मोन कहा जाता है। यह रासायनिक यौगिक होते हैं। इसलिए इसे रासायनिक नियामक भी कहा जाता है। कुछ हार्मोन्स तंत्रिकाओं के साथ भी शरीर की अधिकांश क्रियाओं का नियमन करते हैं। इस प्रकार के नियमन को तंत्रिकीय अन्तःस्रावी नियमन भी कहा जाता है। हार्मोन्स रासायनिक रूप से पेप्टाइड्स, स्टॉरायड्स, अमीन्स तथा अमीनो अम्ल के व्युत्पन्न होते हैं।

प्रश्न 5.
इन्सुलिन
उत्तर:
इन्सुलिन पोलीपेप्टाइड हारमोन है। इसमें 51 प्रकार के अमीनो अम्ल उपस्थित होते हैं। ये अमीनो अम्ल दो प्रकार की शृंखलाओं द्वारा सजे होते हैं। पहली श्रृंखला में 21 अमीनो अम्ल होते हैं तथा दूसरी शृंखला में 30 अमीनो अम्ल एक सामान्य स्वस्थ व्यक्ति प्रतिदिन 50 यूनिट इन्सुलिन का स्रावण करता है जबकि अग्नाशय में इसकी संग्रह क्षमता 200 यूनिट तक होती है। इन्सुलिन अग्नाशय से हमेशा निकलता रहता है।

प्रश्न 6.
अमीनो अम्ल
उत्तर:
अमीनो अम्ल लम्बे चैन की एक श्रृंखला है। शरीर में इसकी जैविक महत्ता है। इसका पोली पेप्टाइड चैन प्रोटीन कहलाता है। ल्यूसीन, हीस्टोडिन, आइसोल्युसिन प्रमुख अमीनो अम्ल हैं।

प्रश्न 7.
भोजन
उत्तर:
वह खाद्य पदार्थ जिसके खाने से शरीर को प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, वसा, खनिज, लवण एवं जल की प्राप्ति होती है उसे भोजन कहा जाता है। दूसरे शब्दों में, ऊर्जा प्रदान करने वाले खाद्य पदार्थ भोजन कहलाते हैं। जैसे-चावल, दाल, सब्जी आदि।

प्रश्न 8.
पोषक तत्व
उत्तर:
पोषक तत्व हमारे आहार के वे तत्व हैं जो शरीर की आवश्यकताओं के अनुरूप पोषण प्रदान करते हैं अर्थात् अपेक्षित रासायनिक ऊर्जा देते हैं। इनमें प्रमुख तत्व निम्नलिखित हैं-

  1. कार्बोहाइड्रेट- यह शरीर की ऊर्जा प्रदान करता है।
  2. प्रोटीन- यह शरीर की वृद्धि करता है यह बच्चों की वृद्धि के लिए आवश्यक होता है।
  3. वसा- इससे शरीर को तीन अम्ल मिलते हैं- लिनोलीन, लिनोलेनिक तथा अरकिडोनिक। शरीर में घुलनशील विटामिनों के अवशोषण के लिए इसकी उपस्थिति आवश्यक है।
  4. कैल्शियम- यह हड्डी के विकास और मजबूती के लिए आवश्यक है।
  5. फॉस्फोरस- यह भी हड्डी के विकास के लिए जरूरी है।
  6. लोहा- गर्भावस्था एवं स्तनपान करानेवाली अवस्था में इसकी विशेष आवश्यकता होती है। यह शरीर की रक्त-अल्पता, हिमोग्लोबिन और लाल रक्तकण प्रदान कर दूर करता है।
  7. विटामिन- यह दो प्रकार का होता है, जल में घुलनशील तथा विटामिन बी, विटामिन सी एवं वसा में घुलनशील तथा विटामिन ए, डी, ई, के। विटामिन भी शरीर की वृद्धि के लिए आवश्यक है एवं यह कई रोगों से बचाव भी करता है।

प्रश्न 9.
पोषण
उत्तर:
शरीर की विभिन्न जटिल रासायनिक प्रक्रियाओं को संपन्न करने के लिए भोजन में पौष्टिक तत्वों की आवश्यकता होती। भोजन के अंतर्ग्रहण, पाचन एवं अवशोषण के बाद सजीव द्वारा इन पौष्टिक तत्वों का उपयोग किया जाता है, जिससे शारीरिक वृद्धि होती है, तंतुओं की टूट-फूट की मरम्मत होती है, शरीर को उष्णता प्राप्त होती है तथा विभिन्न क्रियाओं का नियंत्रण होता है, ‘पोषण’ कहलाता है।

प्रश्न 10.
आहार
उत्तर:
व्यक्ति एक दिन में जितना भोजन ग्रहण करता है, भोजन की वह मात्रा उस व्यक्ति का एक दिन का आहार कहलाती है।

प्रश्न 11.
संतुलित आहार
उत्तर:
वह आहार जिसमें पर्याप्त मात्रा में सभी पौष्टिक तत्व (जैसे-कार्बोज, प्रोटीन, वसा, खनिज लवण एवं विटामिन) विद्यमान हों जो व्यक्ति की शारीरिक वृद्धि एवं विकास के लिए पर्याप्त हों, संतुलित आहार कहलाता है।

प्रश्न 12.
असंतुलित आहार
उत्तर:
जब आहार में एक या एक से अधिक पोषण तत्वों की कमी या अधिकता रहती है तो वैसा आहार असंतुलित आहार कहलाता है।

प्रश्न 13.
तरल आहार
उत्तर:
जब रोगी ठोस आहार को खाने व पचाने में असमर्थ होता है तो उसे पेय के रूप में आहार दिया जाता है। इसे ही तरल आहार कहा जाता है। ऐसे आहार में आमतौर पर मिर्च-मसाले व फोक की मात्रा नहीं होती है। साथ ही तेज सुगंध वाले पदार्थ भी शामिल नहीं किया जाता है। तरल आहार उस रोगी को दिया जाता है जो ठोस भोजन नहीं ले पा रहा हो तीव्र ज्वर, शल्य क्रिया, हृदय रोग, जठरशोथ, दस्त, उल्टी आदि से पीड़ित व्यक्ति को तरल आहार दिया जाता है।

प्रश्न 14.
पूरक आहार
उत्तर:
दूध शिशु का प्रमुख आहार होता है। परंतु जब शिशु 6-7 माह का होता है तब उसकी उदर पूर्ति एवं समग्र पोषण के लिये माता का दूध पर्याप्त नहीं होता है। बल्कि उसकी बढ़ती शारीरिक माँग के लिए अन्य पौष्टिक पदार्थों की आवश्यकता होती है। इसकी पूर्ति के लिए शिशु को जो आहार दिया जाता है उसे पूरक आहार कहा जाता है। 6 माह तक शिशु को लौह लवण की आवश्यकता नहीं होती है, क्योंकि उसके शरीर में पर्याप्त मात्रा में लौह लवण उपस्थित रहता है। परंतु उम्र बढ़ने के साथ-साथ लौह लवण की कमी होती जाती है। अत: पूरक आहार द्वारा लौह लवण, आयोडिन एवं आवश्यक विटामिन सी की कमी होती है। इसकी पूर्ति भी पूरक आहार द्वारा दी जाती है। पूरक आहार तीन प्रकार के होते है-पहला तरल पूरक आहार, दूसरा अर्द्धठोस पूरक आहार तथा तीसरा ठोस पूरक आहार।

प्रश्न 15.
आहार नियोजन
उत्तर:
आहार नियोजन का अभिप्राय आहार की ऐसी योजना बनाने से है, जिससे सभी पोषक तत्त्व उचित तथा संतुलित मात्रा में प्राप्त हो सके। आहार की योजना बनाते समय खाने वाले व्यक्ति की संतुष्टि के साथ-साथ उसके स्वास्थ्य पर भी ध्यान रखना चाहिए। आहार का नियोजन इस प्रकार करना चाहिए कि आहार लेने वाले व्यक्ति के लिए वह पौष्टिक, सुरक्षित तथा संतुलित हो तथा उसके सामर्थ्य में हो।

प्रश्न 16.
आहार परिवर्तन
उत्तर:
आहार में परिवर्तन को आहार परिवर्तन कहा जाता है। जैसे-रोज रोटी खाने की जगह कभी पुलाव, खीर या पुआपूरी खाना आहार परिवर्तन है। स्वाद तथा स्वास्थ्य दोनों दृष्टिकोण से आहार परिवर्तन आवश्यक है। शारीरिक परिवर्तन तथा विकास की अवस्थाओं में आहार की संरचना में परिवर्तन किया जाता है। उदाहरणार्थ, किशोरी, गर्भवती महिला, धात्री माता तथा रुग्ण अवस्था में परिवर्तित आहार दिया जाता है। इसके अलावा भोजन में नवीनता लाने के लिए भी आहार में परिवर्तन करना आवश्यक होता है।

प्रश्न 17.
भोजन रूपांतरण
उत्तर:
आहार में शारीरिक स्थिति तथा अवस्था के अनुसार परिवर्तन लाया जाता है। आहार दैनिक आवश्यकताओं के अनुसार खाये गये भोजन की कुल मात्रा को कहते हैं। विशेष अवस्था तथा विशेष परिस्थिति में भोजन में परिवर्तन किया जाता है। रुग्नावस्था या विशेष स्वास्थ्य अवस्थाओं में मूल आहार में परिवर्तन लांकर उस अवस्था या स्थिति की आवश्यकताओं को पूरा करने को भोजन रूपान्तरण कहते हैं। आहार परिवर्तन दो प्रकार के होते हैं- 1. मात्रा में परिवर्तन तथा 2. आहार की गुणवत्ता में परिवर्तन।

प्रश्न 18.
सुपोषण
उत्तर:
सुपोषण वह स्थिति है जिसमें भोजन में सभी पौष्टिक तत्व व्यक्ति की उम्र, लिंग, शारीरिक व मानसिक कार्यक्षमता और अन्य आवश्यकताओं के अनुकूल रहते हैं, सुपोषण कहलाता है।

प्रश्न 19.
कुपोषण
उत्तर:
कुपोषण वह स्थिति है जिसके कारण व्यक्ति के स्वास्थ्य में गिरावट आने लगती है। यह एक या से अधिक तत्वों की कमी, अधिकता या असंतुलन से होती है जिससे शरीर अस्वस्थ या रोगग्रस्त हो जाता है

प्रश्न 20.
कार्बोज
उत्तर:
कार्बोज ऊर्जा का मुख्य स्रोत है। इसमें रेशे भी पर्याप्त मात्रा में विद्यमान रहते हैं। ये रेशे भोजन की पाचन क्रिया के दौरान आमाशय में क्रमानुकुंचन में सहयोग देकर भोजन को छोटी आँत में भेजने का कार्य करते हैं। इससे भोजन सरलता से पच जाता है। साथ ही यह मल निष्कासन में सहायता करता है और मलबद्धता से बचाता है।

प्रश्न 21.
प्रोटीन
उत्तर:
प्रोटीन ग्रीक भाषा का शब्द प्रोटीआस से बना है जिसका शाब्दिक अर्थ होता है प्रथम स्थान ग्रहण करने वाला प्रोटीन की खोज डच निवासी मूल्डर ने 1838 में किया था। हमारे आहार में प्रोटीन का मुख्य स्थान है। शरीर की वृद्धि एवं विकास के लिए प्रोटीन नितांत जरूरी है। शरीर में विभिन्न क्रियाकलापों के दौरान विभिन्न कोशिकाओं एवं तन्तुओं की निरंतर टूट-फूट होती रहती है, जिसकी मरम्मत प्रोटीन ही करता है। रक्त, माँसपेशियाँ, यकृत, अस्थि के तन्तु, त्वचा, बाल आदि के निर्माण के लिए प्रोटीन आवश्यक है। प्रत्येक कोशिकाएँ प्रोटीन की बनी होती हैं। इस प्रकार हम पाते हैं कि जीवित रहने के लिए प्रोटीन अनिवार्य है। इसीलिए प्रोटीन को “शरीर की आधारशिला” की संज्ञा दी गई है।

प्रश्न 22.
वसा
उत्तर:
वसा ऊर्जा का सान्द्र स्रोत है। यह शरीर को ऊर्जा एवं उष्णता प्रदान करता है। यह त्वचा के नीचे वसीय उत्तक के रूप में जमा रहता है। आवश्यकता पड़ने पर यह टूटकर शरीर को ऊर्जा प्रदान करता है। घी, तेल, मूंगफली, वनस्पति घी, सरसों का तेल तथा अन्य सभी तिलहनों में वसा पर्याप्त मात्रा में पाया जाता है। एक ग्राम वसा 9.1 किलो कैलोरी ऊर्जा प्रदान करता है।

प्रश्न 23.
विटामिन
उत्तर:
विटामिन कार्बनिक यौगिक है जिसे आवश्यक पोषक तत्व कहा जाता है। शरीर में इसकी आवश्यकता बहुत कम होती है। परन्तु शरीर को स्वस्थ रखने के लिए यह आवश्यक है। यह शरीर को विभिन्न रोगों से सुरक्षा प्रदान करती है तथा शरीर को रोगों से लड़ने की क्षमता प्रदान करती है। यह शरीर में उत्प्रेरक की भाँति कार्य करती है और विभिन्न शारीरिक क्रियाओं को सम्पन्न करने में सहायता करती है। अतः भोजन में विटामिन युक्त आहार लेना अति आवश्यक है।

प्रश्न 24.
खनिज लवण
उत्तर:
खनिज लवण अकार्बनिक तत्व होते हैं। इसमें कार्बन की मात्रा लेशमात्र भी नहीं होती है। हमारे शरीर के कुल भार का 4 प्रतिशत हिस्सा खनिज लवणों का होता है। इस प्रकार खनिज लवणों की अल्प मात्रा ही शरीर में विद्यमान रहती है। परन्तु अल्प मात्रा में होते हुए भी इनकी महत्ता शरीर निर्माण तथा सुरक्षा की दृष्टि से अमूल्य है। यह शरीर की वृद्धि एवं विकास के साथ-साथ निर्माण का भी कार्य करता है। इसके द्वारा शरीर की विभिन्न क्रियाओं का नियमन भी होता है। भोजन में खनिज लवण की कमी से अनेक बीमारियाँ भी होती है। फलतः हमारा शरीर कुपोषित होकर रोगग्रस्त हो जाता है और हम बीमार पड़ जाते हैं।

प्रश्न 25.
जल
उत्तर:
जल मनुष्य की एक मौलिक आधारभूत आवश्यकता है। यह घोलक के रूप में कार्य करता है। शरीर की विभिन्न क्रियाओं को करने के लिए जल आवश्यक है। भोजन के अन्तर्ग्रहण, पाचन, अवशोषण, वहन, उत्सर्जन आदि कार्यों के लिए जल आवश्यक है। सभी भोज्य तत्वों में जल की मात्रा विद्यमान होती है। हमारे शरीर का अधिकांश भाग (66%) जल है। इसके बिना जीवन को जीना संभव नहीं है। इसी कारण कहा जाता है कि जल ही जीवन है।

प्रश्न 26.
कठोर जल
उत्तर:
जल में कैल्सियम तथा मैगनीशियम की उच्च मात्रा होती है तो ऐसे जल को कठोर जल कहा जाता है। इसमें साबुन का झाग देर से बनता है तथा वस्त्र की अशुद्धियाँ भी देर से निकलती है।

प्रश्न 27.
नरम जल
उत्तर:
नरम जल में नमक की मात्रा कम होती है। इस कारण इसमें साबुन का झाग आसानी से बनता है। साथ ही वस्त्र की अशुद्धियाँ आसानी से निकल जाती है।

प्रश्न 28.
जल की अशुद्धियाँ
उत्तर:
जल में दो प्रकार की अशुद्धियाँ पायी जाती हैं। पहला घुलित अशुद्धियाँ तथा दूसरा अघुलित अशुद्धियाँ। घुलित अशुद्धियाँ वे अशुद्धियाँ होती हैं जो घुलित अवस्था में होती हैं। इन्हें छानकर अलग नहीं किया जा सकता है। जैसे-कैल्सियम, मैगनीशियम के कण, शीशा के कण, नमक की अधिकता आदि। इसके विपरीत अघुलित अशुद्धियाँ वे अशुद्धियाँ हैं जिन्हें छानकर अलग किया जा सकता है। जैसे-कूड़ा-करकट, पेड़ के पत्ते आदि।

प्रश्न 29.
निर्जलीकरण
उत्तर:
वह दशा जिसमें शरीर में पानी की कमी हो जाती, निर्जलीकरण कहलाती है। यह रोग नहीं है, बल्कि एक अवस्था है। इससे प्रभावित व्यक्ति की मौत भी हो सकती है।

प्रश्न 30.
जीवन चक्र घोल या ओ० आर० एस०
उत्तर:
ओ० आर० एस० का अर्थ है ओरल रिहाइड्रेशन सोलुशन। यह सूखे नमकों का विशेष मिश्रण है जो पानी के साथ उचित रूप से पिलाने पर अतिसार में निष्कासित अत्यधिक जल की कमी को पूरा करने में सहायता करता है। शरीर में जल तथा लवण की कमी के कारण निर्जलता की स्थिति उत्पन्न होती है। इस स्थिति से बचाने के लिए रोगी को ओ० आर० एस० घोल पिलाया जाता है।

प्रश्न 31.
धब्बे
उत्तर:
वह निशान जो कपड़े के रंग को खराब कर दे उसे धब्बे या दाग कहा जाता है। बहुत सावधानी बरतने पर भी कपड़ों में दाग-धब्बे पड़ ही जाते हैं। यह दाग-धब्बे केवल कपड़े की सुंदरता को ही कम नहीं करती है, बल्कि इससे हमारी असावधानी भी प्रदर्शित होती है। धब्बे के कारण वस्त्र पहनने लायक नहीं रहते। अतः धब्बे को छुड़ाना आवश्यक हो जाता है।

प्रश्न 32.
प्राणिज्य धब्बे
उत्तर:
प्राणिज्य पदार्थों के द्वारा लगने वाले धब्बे को प्राणिज्य धब्बा कहा जाता है। इन धब्बों में प्रोटीन होता है। इसलिए इसे छुड़ाते समय गर्म पानी का प्रयोग नहीं करना चाहिए, क्योंकि गर्म पानी से ये पक्के हो जाते हैं। ठण्डे पानी से रगड़कर इसे साफ किया जाता है।

प्रश्न 33.
वानस्पतिक धब्बे
उत्तर:
पेड़-पौधों से प्राप्त पदार्थों द्वारा लगे धब्बे को वानस्पतिक धब्बे कहा जाता है। जैसेचाय, कॉफी, सब्जी, फल, फूल आदि से लगने वाले धब्बे।

प्रश्न 34.
खनिज धब्बे
उत्तर:
खनिज पदार्थों द्वारा लगे धब्बों को खनिज धब्बा कहा जाता है। जैसे-जंग, स्याही तथा औषधियों द्वारा लगे धब्बे खनिज धब्बे हैं। इसे छुड़ाने के लिए हल्के अम्ल का प्रयोग किया जाता है।

प्रश्न 35.
स्टार्च लगाना
उत्तर:
वस्त्र में ताजगी, नवीनता, कड़ापन, चमक, क्रांति, आकर्षण एवं सौंदर्य लाने के लिए स्टार्च का प्रयोग किया जाता है। चावल, गेहूँ, मक्का, आलू शकरकन्द, आरारोट आदि स्टार्च के अच्छे स्रोत हैं।

प्रश्न 36.
विरंजक
उत्तर:
विरंजक प्रक्रिया को सम्पन्न करने के लिए जिन तत्वों तथा पदार्थों की सहायता ली जाती हैं उन्हें विरंजक कहा जाता है। खुली धूप, हरी घास, झाड़ियाँ आदि प्राकृतिक विरंजक हैं।

प्रश्न 37.
विरंजन
उत्तर:
वस्त्र के मटमैलेपन, पीलेपन एवं दाग-धब्बों को हटाने तथा अशुद्धियों से मुक्त करने एवं उनपर सफेदी एवं उज्जवलता लाने की प्रक्रिया को विरंजन कहते हैं।

प्रश्न 38.
कपड़ों की वार्षिक देखभाल
उत्तर:
वस्त्र चाहे सस्ता हो या महँगा उसकी उचित देखभाल की आवश्यकता होती है। वस्त्रों की उचित देखभाल न करने पर हम विभिन्न रोगों के शिकार हो जाते हैं और कीमती-से-कीमती वस्त्र भी नष्ट हो जाते हैं। जब कपड़ों की देखभाल सालाना की जाती है तो उसे वार्षिक देखभाल कहा जाता है। प्रायः ऊनी कपड़ों की देखभाल वार्षिक की जाती है।

प्रश्न 39.
तन्तु
उत्तर:
तन्तु या रेशा वस्त्र निर्माण की मूलभूत इकाई हैं। इसके बिना वस्त्र का निर्माण करना संभव नहीं है। प्रकृति में अनेक प्रकार के रेशे पाए जाते हैं। परन्तु सभी रेशों से वस्त्र निर्माण का कार्य संभव नहीं है क्योंकि सभी रेशों में वे सारे गुण नहीं पाए जाते हैं जो वस्त्र निर्माण के लिए आवश्यक है।

प्रश्न 40.
प्राकृतिक रेशा
उत्तर:
प्रकृति प्रदत्त वे सभी रेशे जो कि प्रकृति में उपस्थित किसी भी स्रोत से प्राप्त किए जाते हैं प्राकृतिक रेशे कहलाते हैं। ये रेशे कीड़ों, जानवरों, पेड़-पौधों अथवा खनिज पदार्थों के रूप में प्रकृति में विद्यमान रहते हैं।

प्रश्न 41.
वानस्पतिक रेशे
उत्तर:
वे रेशे जो वनस्पति जगत से प्राप्त होते हैं वानस्पतिक रेशे कहलाते हैं। इन रेशों का उद्गम स्थान पेड़-पौधों होते हैं। कपास वनस्पति जगत से प्राप्त सभी रेशों में सर्वश्रेष्ठ है।

Bihar Board 12th Home Science Important Questions Long Answer Type Part 3

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Bihar Board 12th Home Science Important Questions Long Answer Type Part 3

प्रश्न 1.
मिलावट करने से स्वास्थ्य पर क्या कुप्रभाव पड़ता है ?
उत्तर:
मिलावट करने से स्वास्थ्य पर निम्नलिखित कुप्रभाव पड़ता है-
Bihar Board 12th Home Science Important Questions Long Answer Type Part 3, 1
Bihar Board 12th Home Science Important Questions Long Answer Type Part 3, 2

प्रश्न 2.
पारिवारिक आय के अतिरिक्त साधन से आप क्या समझते हैं ?
अथवा, पारिवारिक आय के अनुपूरक साधनों का उल्लेख करें।
उत्तर:
परिवार के सदस्यों की सम्मिलित आय को पारिवारिक आय कहा जाता है। जब व्यक्ति की आवश्यक आवश्यकताओं की पूर्ति इससे नहीं हो पाती है तो अनुपूरक साधनों द्वारा आय बढ़ाने का प्रयास करता है। आय बढ़ाने के इन्हीं साधनों को पारिवारिक आय के अतिरिक्त साधन कहा जाता है। ये साधन निम्नलिखित हैं-

  • अंशकालिक नौकरियाँ- स्त्रियाँ अंशकालिक नौकरी करके परिवार की आय को बढ़ा सकती है।
  • पारिवारिक बजट बनाकर- पारिवारिक आय तथा व्यय का विवरण बनाकर अनावश्यक खर्च को कम करके भी आय में वृद्धि की जा सकती है।
  • पारिवारिक आय में से कुछ धन बचाकर- बचत किये हुए धन को बैंक में सावधि जमा योजना के अन्तर्गत जमा कराकर उस पर अतिरिक्त ब्याज की प्राप्ति करके भी आय में वृद्धि की जा सकती है।
  • मानवीय साधनों में विकास करके- ज्ञान, कार्य कौशल, शक्ति आदि का विकास करके भी आय में वृद्धि की जा सकती है।

प्रश्न 3.
पारिवारिक आय बढ़ाने के विभिन्न साधन क्या हैं ?
अथवा, एक परिवार को अपनी वास्तविक आय बढ़ाने के चार सुझाव दीजिए।
उत्तर:
पारिवारिक आय में वृद्धि करना-पारिवारिक स्थिति को देखते हुए आय में वृद्धि कई प्रकार से की जा सकती है-
(i) अंशकालिक नौकरी द्वारा (Part-time Job)- अधिकतर भारतीय गृहणियाँ अपना समय गृह-संचालन में ही व्यय कर देती है तथा उचित समय व्यवस्था की आवश्यकता से अनभिज्ञ होती हैं। इसका एक मुख्य कारण यह है कि उन्हें अतिरिक्त समय की आवश्यकता कम ही पड़ती है और वह अवकाश का समय व्यर्थ बैठकर गंवा देती हैं। यदि गृहिणी समय की उचित व्यवस्था करके कोई अंशकालिक नौकरी कर ले तो वह परिवार की आर्थिक स्थिति को सुधार सकती है।

(ii) गृह उद्योगों द्वारा- यदि गृहिणी घर से बाहर जाकर नौकरी करने में असमर्थ हो तो वह घर में ही सरल उद्योगों द्वारा धन अर्जित कर सकती है। घर में कई प्रकार के कार्य किए जा सकते हैं जैसे कपड़े सीना, मौसम में फल तथा सब्जियों का संरक्षण करके बाजार में बेचना, पापड़-बड़ियाँ आदि बनाकर बेचना। गृहिणी अपनी कार्य-निपुणता, सुविधा एवं रुचि के अनुकूल कार्य चुनकर अपने अतिरिक्त समय के सदुपयोग के साथ-साथ परिवार की आर्थिक स्थिति में सुधार ला सकती है।

(i) लघु उद्योगों द्वारा- आज के वैज्ञानिक युग में जब घर के कई कार्य ऐसे उपकरणों द्वारा किए जाते हैं। जिनमें समय तथा शक्ति दोनों की बचत होती है तब गृहिणी तथा परिवार के अन्य सदस्यों के पास काफी समय बच जाता है। इस समय में कोई भी लघु उद्योग प्रारम्भ करके पारिवारिक आय को बढ़ाया जा सकता है। ये लघु उद्योग हैं हथकरघे द्वारा कपड़ा बुनना, मोमबत्ती बनाना, साबुन या डिटरजेंट बनाना आदि।

(iv) बचत किए गए धन का उचित विनियोग- सभी परिवार अपने मासिक व्यय में सेकुछ न कुछ बचत करके अवश्य रखते हैं। यदि इस बचत किए हुए धन को घर में रखने की अपेक्षा इसका उचित विनियोग कर दिया जाए तो ब्याज अथवा लाभ के रूप में अतिरिक्त धन की प्राप्ति हो सकती है।

प्रश्न 4.
बचत के महत्वों की विस्तार से चर्चा करें।
उत्तर:
बचत के महत्व को इस प्रकार समझा जा सकता है-

  • बचत परिवार को आर्थिक रूप से अधिक आत्मविश्वास बनाती है तथा उसे वीरता से भविष्य का सामना करने योग्य बनाती है।
  • बचत आय और व्यय के मध्य एक संतुलन लाने में सहायता करती है।
  • बचत पारिवारिक जीवन चक्र के विभिन्न स्तरों पर धन की असमानताओं सहायता करती है।
  • यह धन खर्च के लिए हमें रीतिबद्ध पद्धति विकसित करने में सहायता करती है।
  • धन बचाना अधिक धन प्राप्त करने में सहायक होता है।
  • यह अनदेखी आवश्यकताओं को पूरा करने में सहायक होती है।
  • यह घर तथा वाहन अथवा परिवार के लिए अन्य सम्पत्ति खरीदकर जीवन स्तर में सुधार लाने में सहायक होती है। .
  • यह समाज में परिवार को मान-मूल्य प्रदान करती है।
  • यह व्यवसाय चक्र द्वारा आयी असमानताओं का सामना करने में सहायता करती है।

प्रश्न 5.
बैंक में बचत की क्या भूमिका होती है ?
उत्तर:
बैंक वह संस्था है जहाँ रुपयों का लेन-देन होता है। कोई भी व्यक्ति अपने रूपयों की बैंकों में जमा करता है और आवश्यकता होने पर निकाल भी सकता है। बैंक इस धन पर कुछ राशि ब्याज के रूप में देता है। पिछले कुछ वर्षों से बैंक योजना भारत में तेजी से विकसित हुई। है। मूल राशि में वृद्धि के अलावा बैंक जमाकर्ता को और भी कई सुविधाएँ देते हैं। ये सुविधाएँ-ऋण देना, विनिमय तथा मुद्रा सम्प्रेषण, बैंक ग्राहकों के खाते की विभिन्न रूपों में व्यवस्थित रखता है। ये हैं-बचत खाता, आवर्ती खाता, निश्चित अवधि जमा खाता, चालू खाता, रोकड़ प्रमाण-पत्र, बैंकर्स चेक सुरक्षित जमा खता, लॉकर आदि।

बैंक ATM की सुविधा प्रदान करते हैं तथा क्रेडिट और डेबिट कार्ड जारी करते हैं, जिनसे आप कभी भी अपना पैसा निकाल सकते हैं। बैंक निम्नलिखित कार्य करता है-

  • खाता खोलना
  • जमा राशि की मांग होने पर चेक, ड्राफ्ट आदि के माध्यम से पैसा वापस करना।
  • जनता का धन विभिन्न योजनाओं के माध्यम से जमा करना।
  • विभिन्न प्रकार के ऋण उपलब्ध कराना, जैसे-मकान, शिक्षा, व्यक्तिगत आदि।
  • बिना जोखिम के धन एक स्थान से दूसरे स्थान पर स्थानांतरित करना।

भारत सरकार ने 14 प्रमुख निजी बैंकों को राष्ट्रीयकृत किया। भारतीय स्टेट बैंक तथा इसकी सात सहायक बैंकों के अब 22 जनक्षेत्र हैं। भारतीय बैंक चार श्रेणियों में विभाजित हैं-

  • राष्ट्रीयकृत बैंक,
  • विदेशी बैंक,
  • अंतर्राष्ट्रीय बैंक एवं
  • अन्य।

प्रश्न 6.
बचत की आवश्यकता के कारण बतायें।
उत्तर:
बचत की आवश्यकता के निम्नलिखित कारण हैं-

  1. अनिश्चित आय तथा आपातकाल की आशंका के कारण।
  2. जब आय समाप्ति के बाद धन की आवश्यकता होती है।
  3. बच्चों तथा परिवार की बढ़ती आवश्यकताओं के कारण।
  4. अन्य महत्त्वपूर्ण उद्देश्यों की पूर्ति के कारण।

प्रश्न 7.
परिवार में की गई बचत को प्रभावित करने वाले चार कारकों की सूची बनाइए।
उत्तर:

  1. परिवार का आकार- यदि परिवार में अधिक सदस्य हैं तो बचत कम होगी।
  2. संयुक्त परिवार- यदि परिवार की संरचना संयुक्त परिवार में है तो किराए की बचत, नौकरों की बचत व बच्चों की देखभाल पर खर्चा नहीं होगा व बचत ज्यादा होगी।
  3. खर्च करने की आदत- साधारण आदतें हों तो बचत अधिक होती है।
  4. यदि नौकरी करने वाले सदस्यों की संख्या ज्यादा हो तो बचत भी ज्यादा होती है।

प्रश्न 8.
बचत करने के चार कारण दीजिए। अथवा, बचत के चार लाभ लिखें।
उत्तर:
बचत के चार लाभ निम्नलिखित हैं-

  1. परिवार की आवश्यकताओं को पूरा करने में जैसे-स्कूल शिक्षा, उच्च शिक्षा, बच्चों की शादी इत्यादि।
  2. आपातकालीन स्थितियों के लिए जो असामाजिक व आकस्मिक होती हैं धन की या बचत की आवश्यकता।
  3. सुरक्षित भविष्य के लिए विशेषकर नौकरी से निवृत्ति तथा वृद्धावस्था में सुखद जीवनयापन के लिए अधिकतर लोग बचत करते हैं।
  4. जीवन का स्तर ऊँचा रखने के लिए जैसे कार, कम्प्यूटर, एअर कण्डीशनर आदि लगातार बचत करके ये वस्तुएँ खरीदी जा सकती हैं।

प्रश्न 9.
पारिवारिक आय कितने प्रकार की होती है ? उदाहरण सहित समझाइए।
उत्तर:
पारिवारिक आय तीन प्रकार की होती है-

  • मौद्रिक आय- मुद्रा के रूप में प्राप्त होने वाली आय मौद्रिक आय कहलाती है। वेतन, पेंशन, मजदूरी आदि मौद्रिक आय के उदाहरण है।
  • वास्तविक आय- किसी विशेष अवधि में प्राप्त होने वाली वस्तुएँ या सेवा को वास्तविक आय कहते हैं। ऐसी वस्तुओं या सेवाओं के लिए परिवार को मुद्रा व्यय नहीं करनी पड़ती है। परंतु जिनके प्राप्त न होने पर अपनी मौद्रिक आय से व्यय करना पड़ता है।
  • आत्मिक आय- मौद्रिक आय और वास्तविक आय के व्यय से जो संतुष्टि प्राप्त होती है उसे आत्मिक आय कहते हैं। प्रत्येक व्यक्ति और परिवार की आत्मिक आय भिन्न-भिन्न हो सकती है।

प्रश्न 10.
पारिवारिक आय को बढ़ाने के चार उपाय लिखें।
उत्तर:
प्रत्येक परिवार की आय निश्चित होती है। एक निश्चित आय में ही उनसे विभिन्न प्रकार के व्यय करने होते हैं। परिवार के जीवन स्तर को बढ़ाने के लिये उस परिवार के सदस्यों को अपने आय को बढ़ाने की कोशिश करनी चाहिये। किसी भी परिवार को अपनी आय बढ़ाने के लिये चार उपाय निम्नलिखित हैं-

  1. गृह व लघु उद्योग (Cottage and Small Scale Industries),
  2. अंशकालीन नौकरी (Part Time Job),
  3. ओवरटाईम (Over Time),
  4. मौसम के अनुसार खाद्य सामग्री का संरक्षण एवं संग्रहीकरण (Preservation of Food and Storage)।

प्रश्न 11.
आय क्या है ? पारिवारिक आय के तीन घटकों के नाम बताइए।
उत्तर:
सदस्यों की सम्मिलित आय को पारिवारिक आय कहते हैं। प्रत्येक परिवार की आर्थिक व्यवस्था के दो केन्द्र होते हैं। आय तथा व्यय धन की व्यवस्थापना करते समय परिवार की आय-व्यय में संतुलन का प्रयास किया जाता है ताकि परिवार को अधिकतम सुख और समृद्धि प्राप्त हो।

ग्रॉस एवं क्रैण्डल के अनुसार पारिवारिक आय मुद्रा वस्तुओं, सेवाओं और संतोष का वह प्रवाह है जिसे परिवार के अधिकार से उनकी आवश्यकताओं एवं इच्छाओं को पूरा करने एवं दायित्वों के निर्वाह के लिए प्रयोग किया जाता है। पारिवारिक आय में वेतन, मजदूरी, ग्रेच्यूटी, पेंशन, ब्याज व लाभांश किराया, भविष्य निधि आदि सभी को सम्मिलित किया जाता है।

पारिवारिक आय के तीन घटना निम्नलिखित हैं-

  • वेतन- नौकरी करने के बाद जो मुद्रा प्रति मास प्राप्त होती है उसे वेतन कहते हैं।
  • मजदूरी-मजदूरों को कार्य करने के बाद जो पारिश्रमिक दैनिक, साप्ताहिक अथवा मासिक प्राप्त होता है उसे मजदूरी कहते हैं।
  • ब्याज व लाभांश- पूँजी के विनियोग से प्राप्त होने वाला ब्याज तथा व्यावसायिक संस्था के शेयर अथवा डिवेन्चयर से प्राप्त होने वाला लाभांश भी मौद्रिक आय है।

प्रश्न 12.
घरेलू लेखा-जोखा कितने प्रकार का होता है ?
उत्तर:
घरेलू लेखा-जोखा तीन प्रकार से किया जाता है-

  1. दैनिक हिसाब लिखना- इसमें विभिन्न मद में किये गये खर्च का लेखा-जोखा रहता है।
  2. साप्ताहिक एवं मासिक हिसाब- इसमें सप्ताह में या माह में किये गये व्यय का लेखा-जोखा रहता है।
  3. वार्षिक आय-व्यय और बचत का रिकार्ड- इसमें सभी स्रोतों से प्राप्त आय का हिसाब एक तरफ रहता है और दूसरी तरफ व्यय का हिसाब रहता है जिसमें आकस्मिक खर्च, टैक्स, बचत आदि सभी का ब्यौरा रहता है।

प्रश्न 13.
घर के हिसाब-किताब का ब्योरा रखने के छः लाभ बताइए।
उत्तर:
घर का रिकार्ड रखने के लाभ (Advantage of Maintaining Household Record)- घर खर्च का रिकार्ड रखने के अनेक लाभ हैं। इससे पारिवारिक आय का अच्छी तरह प्रयोग किया जा सकता है। ऐसे रिकार्ड रखने से निम्नलिखित लाभ हो सकते हैं-

  • इससे अधिक व्यय पर अंकुश लगाया जा सकता है। अपव्यय को कम किया जा सकता है।
  • लाभ का रिकार्ड रखने से परिवार की कुल आय व व्यय को जाना जा सकता है।
  • विभिन्न वस्तुओं पर कितना व्यय होना चाहिए इसका अनुमान लगाया जा सकता है।
  • उधार लेने की आदत को रोका जा सकता है। कई बार ऐसा देखा गया है कि उधार लेने के बाद उसकी किश्त चुकाने में कठिनाई आती है।
  • आय व व्यय में संतुलन बनाये रखना सरल हो जाता है। भविष्य के लिए बचत भी इसका अभिन्न अंग है।
  • गृह खर्च के ब्यौरे से परिवार के लक्ष्यों की पूर्ति सरल हो जाती है।

प्रश्न 14.
घरेलू बजट का क्या महत्व है ? परिवार के लिए बजट बनाते समय किन-किन बातों को ध्यान में रखना चाहिए ?
उत्तर:
प्रत्येक परिवार अपनी आय का व्यय बहुत सोच समझकर कर सकता है क्योंकि धन एक सीमित साधन है तथा यह प्रयास करता है कि अपनी सीमित आय द्वारा अपने परिवार की समस्त आवश्यकताओं को पूर्ण करके भविष्य हेतु कुछ न कुछ बचत कर सकें। यही कारण है कि गृह स्वामी तथा गृहस्वामिनी मिलकर सोच समझकर अपने परिवार की आय का उचित व्यय करने हेतु लिखित एवं मौखिक योजना बनाते हैं और उस योजना को क्रियान्वित करने के लिए उन्हें अपने व्यय का पूरा हिसाब किताब रखना पड़ता है, कोई भी परिवार घरेलू बचत बनाकर ही व्यय को नियंत्रित कर सकता है।

घरेलू बचत बनाने के निम्नलिखित लाभ हैं :

  • घरेलू हिसाब-किताब प्रतिदिन लिखने से हमें यह ज्ञात रहता है कि हमारे पास कितना पैसा शेष बचा है जो परिवार की आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु अत्यन्त आवश्यक है जिससे पारिवारिक लक्ष्य की प्राप्ति हो सके।
  • घरेलू हिसाब किताब रखने से अधिक व्यय पर अंकुश रहता है।
  • विभिन्न आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु एक सामान्य दिशा निर्देश का आभास होता है।
  • असीमित आवश्यकताओं और सीमित आय के बीच संतुलन बनाने में मदद मिलती है।
  • सही ढंग से व्यय करने के फलस्वरूप बचत व निवेश प्रोत्साहन मिलती है।
  • इससे परिवार का भविष्य सुरक्षित रहता है।

परिवार के लिए बजट बनाते समय निम्नलिखित बातों पर ध्यान रखना चाहिए :

  • आय और व्यय के बीच ज्यादा फासला न हो अर्थात् आय की तुलना में व्यय बहुत अधिक नहीं हो।
  • बजट से जीवन लक्ष्यों की पूर्ति हो यानी परिवार को उच्च जीवन स्तर की ओर प्रेरित कर सकें।
  • बजट बनाते समय अनिवार्य आवश्यकताओं को ध्यान में रखना चाहिए।
  • सुरक्षित भविष्य को ध्यान में रखकर बजट बनानी चाहिए ताकि आकस्मिक खर्चों यथा बीमारी, दुर्घटना तथा विवाह आदि के लिए धन की आवश्यकता की पूर्ति समय पर हो सके।
  • व्यय को आय के साथ समायोजित होना चाहिए ताकि ऋण का सहारा न लेना पड़े।
  • बजट बनाते समय महंगाई को भी ध्यान में रखना चाहिए।

प्रश्न 15.
निवेश योजना के चयन के लिए उपायों की क्या राय देंगी?
उत्तर:
विनियोग के विभिन्न क्षेत्रों में से अपने धन की सरक्षा व उचित आवति के लिए इन योजनाओं के सभी पहलुओं को भली प्रकार जाँच लेनी चाहिए। निवेश सुरक्षित होने के साथ-साथ कर बचाने वाला होना चाहिए।

धन के निवेश का लक्ष्य है अपने धन को शीघ्र व सुरक्षित रूप से बढ़ाना। कितना धन जमा करना है यह उसके सामर्थ्य पर निर्भर करता है। धन का विनियोग सोने आदि में खतरनाक हो सकता है यदि उन्हें सुरक्षित न रखा जाए। बाजार में कीमतों के उतार-चढ़ाव के कारण शेयर में भी धन लगाना काफी जोखिमपूर्ण हो सकता है।

विभिन्न वित्तीय संस्थान भिन्न-भिन्न ब्याज देते हैं। अतः इन सभी ब्याज दरों को अच्छी तरह अध्ययन करके ही उच्च ब्याज दर प्राप्त करें। अपनी बचत को इस प्रकार निवेश करना चाहिए जिससे आपातकाल में बिना ब्याज खोये धन राशि प्राप्त हो सके।

विनियोग कीमतों से क्रयक्षमता भी सुरक्षित होनी चाहिए। निवेश किए हुए धन का मूल्य बढ़ती कीमतों से कम न हो। बचत खातों में लाभांश की दर कम होती है जबकि शेयर, जमीन, यूनिटस आदि का लाभांश बढ़ती हुई महँगाई को देखते हुए अधिक होता है।

उपरोक्त विषयों को अच्छी तरह विचार कर ही धन का निवेश करना चाहिए। यदि कोई एक संस्था आपको ये सभी सुविधाएँ उपलब्ध नहीं कराती है तो अपने धन को अलग-अलग योजनाओं में अलग-अलग संस्थाओं में निवेश करें।

प्रश्न 16.
चेक कितने प्रकार के होते हैं ? चेक द्वारा भुगतान करने के लाभों का उल्लेख करें।
उत्तर:
उपर्युक्त प्रकार के चैकों के अतिरिक्त चेक अन्य कई प्रकार के होते हैं। यथा-
1. कोरा चेक (Blank Cheque)- जिस चेक पर न तो कोई राशि लिखी हो और न राशि की कोई सीमा ही लिखी हो, ऐसे चैक को कोरा चेक कहते हैं। प्राप्तकर्ता नियत सीमा तक जितनी राशि चाहे निकलवा सकते हैं। (यह आवश्यक है कि जितनी राशि वह निकलवाना चाहता है, उतनी राशि प्राप्तकर्ता के हिसाब में हो)।

2. सीमित राशि चेक (Limited Cheque)- यदि चेक में कोई राशि न लिखी हो, किन्तु सबसे ऊपर राशि की एक सीमा लिखी हुई हो तो ऐसे चेक को सीमित राशि चैक कहते हैं। प्राप्तकर्ता नियत सीमा तक जितनी राशि चाहे निकलवा सकता है (यह आवश्यक है कि जितनी राशि वह निकलवाना चाहता है, उतनी राशि प्राप्तकर्ता के हिसाब में हो)।

3. पूर्वतिथीय चेक (Antedated Cheque)- यदि किसी चेक पर जारी करने के दिन से पहले की कोई तिथि लिखी हुई हो तो उसे पूर्वतिथीय चेक कहते हैं। बैंक से केवल उन्हीं चैकों का रुपया मिल सकता है जिन पर लिखी गई तिथि को छ: मास न बीते हों।

4. निःसार चेक (Stale Cheque)- यदि किसी चेक का रुपया उस पर लिखी हुई तिथि से 6 मास के भीतर न प्राप्त किया जाए तो वह चेक निःसार अर्थात् बेकार हो जाता है। ऐसे चेक का रुपया नहीं निकलवाया जा सकता है।

5. तिथीय चेक (Postdated Cheque)- यदि किसी पर भविष्य में आने वाली तिथि लिखी हो तो उसे उत्तरतिथीय चेक कहते हैं। चेक पर जो तिथि लिखी हो, उससे पूर्व उसका रुपया नहीं निकलवाया जा सकता।

6. विकृत चेक (Mutilated Cheques)- कटे-फटे चेक को विकृत चेक कहते हैं। बैंक ऐसे चेक का रुपया नहीं देता।

7. अप्रतिष्ठित चेक (Dishonoured Cheque)- जब बैंक किसी चेक का रुपया भुगतान करने से इन्कार करता है तो ऐसे चेक को अप्रतिष्ठित चेक कहते हैं। निम्नलिखित दशाओं में चेक अप्रतिष्ठित हो जाता है-

  • यदि चेक जारी करने वाले के हस्ताक्षर बैंक में दिए गए नमूने के हस्ताक्षरों से न मिलते हों।
  • यदि चेक जारी करने वाले के खाते में उतना धन न हो जितना कि चेक पर लिखा गया हो।
  • यदि अंकों और शब्दों में लिखी गई राशियों में अन्तर हो।
  • यदि चेक निःसार हो गया हो।
  • यदि चेक उत्तरतिथीय हो।
  • यदि चेक कटा-फटा हो।
  • यदि चेक पर बेचान ठीक ढंग से न किया गया हो या बेचान के नीचे हस्ताक्षर उस प्रकार से न किए गए हों जिस प्रकार से चैक पर प्राप्तकर्ता का नाम लिखा हो।
  • यदि चेक जारी करने वाला स्वयं बैंक को रुपया देने से रोक दे।
  • यदि चेक में किसी शब्द को काटा या बदला गया हो और उस पर चेक जारी करने वाले के पूरे हस्ताक्षर न हों।

यदि बैंक किसी चेक को अप्रतिष्ठित करता है तो वह चेक के साथ एक पर्ची (जिस पर चेक के अप्रतिष्ठित होने के कारण लिखा होता है) लगाकर चेक जमा करने वाले व्यक्ति को लौटा देता है।

चेक द्वारा भुगतान करने के लाभ-चेक द्वारा भुगतान करने से निम्नलिखित लाभ होते हैं-

  • चेक द्वारा भुगतान करने से न तो धन की सुरक्षा का भार पड़ता है और न गिनने का कष्ट ही करना पड़ता है। एक चेक पर हस्ताक्षर करके बड़ी-से-बड़ी राशि का भुगतान किया जा सकता है।
  • समय की बचत होती है। धन गिनने और परखने में समय भी नष्ट नहीं करना पड़ता।
  • मितव्ययिता की आदत पड़ जाती है। नकद रुपया रखने से कई बार अनावश्यक वस्तुओं पर व्यय हो जाता है।
  • यदि भुगतान आदेशक चेक या रेखण चेक द्वारा किया गया हो तो अलग रसीद प्राप्त करने की आवश्यकता नहीं होती। बैंक भुगतान का साक्षी होता है। अतः जहाँ तक सम्भव हो, भुगतान आदेशक या रेखण चेक द्वारा ही करना चाहिए।
  • दूर-दूर के स्थानों पर भी बहुत ही कम व्यय से चेक द्वारा भुगतान किया जा सकता है।
  • चेक द्वारा भुगतान करना बहुत सुरक्षित है। इससे धन के खोने या चुराए जाने का भय नहीं रहता है।
  • चेक द्वारा भुगतान करने से खोटे रुपयों या जाली नोटों के बनाने वालों को ऐसी मुद्रा चलाने का अवसर नहीं मिलता।

चेक भरते समय ध्यान रखने योग्य बातें- चेक भरते समय निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए। चेक सदा स्याही से लिखना चाहिए। पैंसिल से भरे हुए चेक को बैंक स्वीकार नहीं करता है लेकिन बाल पाइंट (Ball Point) से लिखे चेक स्वीकार किए जाते हैं।

Bihar Board 12th Physics Important Questions Short Answer Type Part 1

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Bihar Board 12th Physics Important Questions Short Answer Type Part 1

प्रश्न 1.
चित्र में किसी विद्युत क्षेत्र में समविभवी तल दिखलाया गया है V1 > V2 है। विद्युत क्षेत्र में विद्युत बल रेखाओं के वितरण को दिखलायें तथा इनकी दिशा को दर्शायें। विद्युत क्षेत्र की तीव्रता किस क्षेत्र में अधिक है निर्धारित करें।
Bihar Board 12th Physics Important Questions Short Answer Type Part 1 1
उत्तर:
हम जानते हैं कि विद्युत बल रेखायें समविभवी तल के लम्बवत् होते हैं। चित्र में इन बल रेखाओं के बिन्दीदार रेखाओं से दिखलाया गया है। इन की दिशा ऊँच-विभव से निम्न विभव की ओर होती है।
विद्युत क्षेत्र की तीव्रता बायीं ओर यानि जिधर समविभवी तल अधिक संघनित है, अधिक होगी।

प्रश्न 2.
विभवमापी की सुग्राहिता से आप क्या समझते हैं ? तथा इसकी सुग्राहिता आप कैसे बढ़ा सकते हैं ?
उत्तर:
विभवमापी की सुग्राहिता का अर्थ है कि इस उपकरण से कम-से-कम कितना विभवान्तर की माप की जा सकती है। विभवमापी की सुग्राहिता विभव प्रवणता (potential gradient) का मान घटाकर बढ़ायी जा सकती है। इसे प्राप्त करने के लिए-

  • विभवमापी तार की लम्बाई बढ़ाई जा सकती है।
  • नियत लम्बाई वाले विभवमापी में धारा का मान बढ़ाकर (रिहॉस्टेंट की सहायता से) भी इसकी सुग्राहिता बढ़ायी जा सकती है।

प्रश्न 3.
धातु के एक गोले A (त्रिज्या a) को V विभव तक आवेशित किया जाता है। अगर इस गोले A को एक गोलीय खोल B भीतर रखकर एक तार द्वारा जोड़ दिया . जाय तो गोला B का विभव क्या होगा?
उत्तर:
अगर गोला A को ‘q’ आवेश दिया जाय तो इसका विभव
V = \(\frac{q}{4 \pi \epsilon_{0} a}\)
∴ q= (4π∈0a)V
जब गोला A को गोले B के भीतर रखा जाता है और इन्हें तार से जोड़ दिया जाता है तो कुल आवेश गोला B के बाह्य पृष्ठ पर चला जाता है अत: B का विभव
Bihar Board 12th Physics Important Questions Short Answer Type Part 1 2
VB = \(\frac{q}{4 \pi \in_{0} b}\) = \(\frac{\left(4 \pi \in_{0} a\right) V}{4 \pi \in_{0} b}\) = \(\frac{a}{b}\) V
चूँकि गोला A, गोलीय खोल B के भीतर है अतः गोला A का विभव
= VA = VB= \(\frac{a}{b}\) V
∴ a < b है
अतः VA < V
यदि गोला A का विभव पहले के विभव V से कम हो जायेगा।

प्रश्न 4.
कुलाम्ब के नियमों की सीमा बतायें।
उत्तर:
विद्युत स्थैतिक में कुलाम्ब के नियमों की सीमायें-

  1. यह नियम बिन्दु आवेशों के लिए ही लागु होता है।
  2. यह नियम सिर्फ स्थिर आवेशों के लिए लागु होता है।
  3. यह नियम नाभकीय कणों (Protons in nucleus) के नाभीक में स्थाइत्व (Stability) की व्याख्या नहीं कर पाता है।
  4. कुलाम्ब नियम 10-14m से कम तथा कुछ किलोमीटर से अधिक दूरियों के लिए मान्य नहीं होता है।

प्रश्न 5.
किसी माध्यम के परावैद्युतता से आप क्या समझते हैं? इसके मात्रक एवं विमा को लिखें।
उत्तर:
माध्यम की परावैद्युतता- यह किसी अचालक माध्यम की विद्युतीय अभिलक्षण होता है कि वह किस हदतक विद्युत गुण को संचरित कर सकता है। इसे प्रायःसे सूचित किया जाता है इसका S.I. मात्रक C2/Nm2 तथा विमा M-1L-3T4A2 होता है।

प्रश्न 6.
समान परिमाण के दो बिन्दु आवेश जब नजदिक रखे जाते हैं तो उनके लिए विद्युत बल रेखाओं को खींच कर दिखायें।
उत्तर:
Bihar Board 12th Physics Important Questions Short Answer Type Part 1 3

प्रश्न 7.
एक समान विद्युत क्षेत्र में रखे विद्युत द्विध्रुव की स्थितिज ऊर्जा के लिए व्यंजक प्राप्त करें।
उत्तर:
विद्युत द्विध्रुव की स्थिति ऊर्जा-
विद्युत क्षेत्र में द्विध्रुव को घुमाने में विद्युत क्षेत्र के विरुद्ध कुछ कार्य करना पड़ता है जो उसमें स्थिति ऊर्जा के रूप में संचित हो जाता है।
W = ΔU = Uf – Ui … (1)
जहाँ Ui तथा Uf क्रमशः प्रारंभिक (θ = θ1) तथा अन्तिम अवस्था (θ = θ2) में ऊर्जा है।
Bihar Board 12th Physics Important Questions Short Answer Type Part 1 4
अतः विद्युत द्विध्रुव ऊर्जा के लिए हम लिख सकते हैं
U = – pEcosθ = –\(\vec{p} \cdot \vec{E}\)

प्रश्न 8.
डाइइलेक्ट्रिक भंजन तथा डाइइलेक्ट्रिक साम्थर्य से आप समझते हैं?
उत्तर:
डाइइलेक्ट्रिक भंजन (Dielectric break down)-जब डाइइलेक्ट्रिक पदार्थ को विद्युत क्षेत्र में रखा जाता है तो यह ध्रुवित होने लगता है तथा ध्रुवण का आरोपित विद्युत क्षेत्र की तीव्रता पर निर्भर करता है। अगर विद्युत क्षेत्र का मान एक सीमा से अधिक हो जाता है तो इलेक्ट्रॉन अणु परमाणु से अलग होने लगते हैं और यह मुक्त इलेक्ट्रॉन दूसरे अणु परमाणु से टकराकर और इलेक्ट्रॉन को मुक्त कर देते हैं परिणामतः अधिक और अधिक इलेक्ट्रॉन चालन के लिए उपलब्ध हो जाते हैं और यह चालक के जैसा व्यवहार करने लगता है। इस स्थिति को डाइइलेक्ट्रिक भंजन कहा जाता है।

डाइइलेक्ट्रिक सार्थय (Dilelectric strighth)-डाइइलेक्ट्रिक पर आरोपित विद्युत क्षेत्र का वह अधिकतम मान जिस पर वह बिना जले यानि भंजन अवस्था में बिना पहुंचे रह सकता है, डाइइलेक्ट्रिक साम्थर्य कहलाता है। इसके बाद विद्युत विर्सजन (Spark) होने लगता है। शुष्क हवा के लिए सामान्य दाब पर डाइइलेक्ट्रिक सार्थय लगभग 3 × 106 Vm-1 होता है।

प्रश्न 9.
परावैद्युत सामर्थ्य एवं आपेक्षिक परावैधुतांक को परिभाषित करें।
उत्तर:
परावैद्युत सामर्थ्य : किसी परावैद्युत पदार्थ का परावैद्युत सामर्थ्य (या शक्ति) विद्युत क्षेत्र की तीव्रता का वह अधिकतम मान होता है जिसे वह पदार्थ बिना मंजन हुये सहन कर सकता है। सामान्य दाव पर शुष्क हवा के लिए परावैद्युत सामर्थ्य लगभग 3 × 106Vm-1 होता है।

आपेक्षिक परावैद्युतांक : किसी परावैद्युत माध्यम का आपेक्षिक परावैद्युतांक निवात के सापेक्ष उस माध्यम का परावैद्युतता होता ∈r है। इसे, या k से सूचित किया जाता है।
अतः किसी परावैद्युत या माध्यम का आपेक्षिक परावैद्युतांक
Bihar Board 12th Physics Important Questions Short Answer Type Part 1 5
यानि ∈r = \(\frac{\epsilon}{\epsilon_{0}}\) : इसका कोई मात्रक या विमा नहीं होता है। हवा या निर्वात के लिए ∈r =1 लिया जाता है।

प्रश्न 10.
चोक कुण्डली क्या है?
उत्तर:
Bihar Board 12th Physics Important Questions Short Answer Type Part 1 6
चोक कुण्डली : यह एक उच्च प्रेरकत्व की एक कुण्डली होती है जो नर्म लोहे के क्रोड के उपर विद्युत रोधी रूप में लिपटी रहती है। यह प्रत्यावर्ती परिपथ में विना विद्युत ऊर्जा क्षय के विभावान्तर का मान बढ़ा होता है। अतः इसका उपयोग विभावान्तर बढ़ाने लिए ए-सी प्रतिरोध की अपेक्षा अधिक कारगर होता है। इस कुण्डली की
प्रतिबाधा
z = \(\sqrt{R^{2}+\omega^{2} L^{2}}\)होती है। उच्च आवृत्ति के स्रोत रहने पर L का मान कम रहने पर भी wL का मान अधिक होता है अतः इस स्थिति में लौह क्रोड के स्थान पर वायु क्रोड का ही उपयोग किया जाता है।

प्रश्न 11.
ट्रांसफॉर्मर के क्रोड़ परतदार क्यों बनाये जाते हैं?
उत्तर:
ट्रांसफॉर्मर के कुण्डली से जब प्रत्यवर्ती धारा प्रवाहित होता है तो फ्लक्स में परिवर्तन के कारण लौह क्रोड में भंवर धारा उत्पन्न होती है और विद्युत ऊर्जा का ह्रास लौह क्रोड को गर्म करने में हो जाती है जिसे लौह क्षय भी कहा जाता है। इस हानी को रोकने के लिए लौह क्रोड को विद्युत रोधी परतदार पट्टियों के रूप में बना देने पर भंवर धारा नहीं बन पाती है और विद्युत ऊर्जा का ह्रास कम हो जाता है।

प्रश्न 12.
लेंज के नियम क्या है?
उत्तर:
लेंज का नियम : विद्युत चुम्बकीय प्रेरण में प्रेरित वि०वा० बल या धारा की दिशा लेंज-नियम से प्राप्त होती है। इस नियम के अनुसार-“विद्युत चुम्बकीय प्रेरण के कारण सभी स्थितियों में परिपथ में प्रेरित धारा या वि०वा०बल की दिशा इस प्रकार की होती है कि वह अपने उत्पन्न कर्ता का विरोध करता है जिसके कारण वह उत्पन्न होता है।
Bihar Board 12th Physics Important Questions Short Answer Type Part 1 7
उदाहरण के लिए जब किसी कुण्डली के नजदिक बाध्य चुम्बक का N-ध्रुव लाया जाता है तो । कुण्डली में प्रेरित धारा की दिशा इस प्रकार की होती है कि समुख सतह पर N-ध्रुव की उत्पत्ति हो तो आते हुये चुम्बक का N-ध्रुव का विरोध हो। अर्थात् कुण्डली से सम्बन्ध फ्लक्स में वृद्धि होने पर प्रेरित धारा की दिशा ऐसी होती है कि इसके कारण : फ्लक्स में कमी हो।
लेंज का नियम ऊर्जा संरक्षण नियम के अनुरूप होता है तथा इससे प्रेरण में विद्युत स्रोत की जानकारी भी मिलती है।

प्रश्न 13.
आवेश का रैखिक घनत्व से क्या समझते हैं। इसका मात्रक लिखें।
उत्तर:
किसी चालक के प्रति एकांक लम्बाई के आवेश के परिमाप को आवेश का रैखिक द्वारा व्यक्त किया जाता है।
Bihar Board 12th Physics Important Questions Short Answer Type Part 1 8
∴ λ = \(\frac{q}{l}\)
इसका मात्रक C-m-1 होता है।

प्रश्न 14.
आवेश का पृष्ठ (तलीय) घनत्व से क्या समझते हैं।
उत्तर:
किसी चालक के प्रतिएकांक क्षेत्रफल के आवेश के परिमाप को आवेश का तलीय घनत्व कहा जाता है। इसे σ द्वारा व्यक्त किया जाता है।
पष्ठ घनत्व
Bihar Board 12th Physics Important Questions Short Answer Type Part 1 9
∴ σ = \(\frac{q}{A}\)
इसका मात्रक C-m-2होता है।

प्रश्न 15.
विद्युत फ्लस्क क्या है?
उत्तर:
किसी क्षेत्र के क्षेत्रफल सदिश एवं तीव्रता के अदिश गुणनफल को विद्युत फ्लक्स कहा जाता है। इसे Φ द्वारा सूचित किया जाता है।
∴ Φ= Eds cosθ
जहाँ E= तीव्रता
ds = क्षेत्रफल इसका मात्रक
V – m होता है।

प्रश्न 16.
गतिशीलता से क्या समझते हैं?
उत्तर:
एकांक परिमाण के विद्युत क्षेत्र से उत्पन्न संवहन (अनुगमन) वेग को गतिशीलता कहा जाता है। इसे प्रायःμ द्वारा व्यक्त किया जाता है।
Bihar Board 12th Physics Important Questions Short Answer Type Part 1 10
∴ μ = \(\frac{V_{d}}{E}\)

प्रश्न 17.
कार्बन प्रतिरोध के कलर कोड का क्या तात्पर्य है।
उत्तर:
इलेक्ट्रॉनिक के छोटे-छोटे उपकरणों का प्रतिरोध व्यक्त करने के लिए रंगीन संकतों या कलर कोड का उपयोग किया जाता है। प्रतिरोध व्यक्त करने की इसी विधि को कार्बन प्रतिरोध का कलर कोड कहा जाता है। इसमें कुछ दस रंगों का प्रयोग होता है जिसका क्रमांक 0, 1, 2, ……9 तक होता है। इस विधि में पहली एवं दूसरी रंगीन पट्टिका सार्थक अंक को, तीसरी पट्टिका दाशमिक गुणक को तथा चौथी पट्टिका सहन शक्ति को व्यक्त करता है। इस विधि में प्रयुक्त रंगों का क्रमानुसार नाम निम्न है। काला, ‘भूरा, लाल, नारंगी, पीला, हरा, नीला, बैंगनी, धूसर एवं सफेद।

प्रश्न 18.
ऐम्पियर को परिभाषित करें।
उत्तर:
दो समांतर धारावाही तारों के बीच क्रियाशील बल
F= \(\frac{\mu_{0}}{2 \pi} \frac{I_{1} I_{2} l}{r}\)
यदि I1 = I2, = 1A
r= 1m
l=1m
∴ F = \(\frac{\mu_{0}}{2 \pi}=\frac{4 \pi \times 10^{-7}}{2 \pi}\) = 2 ×10-7 N

प्रश्न 19.
अपवाह वेग या अनुगमन वेग से क्या समझते हैं?
उत्तर:
वैद्युत क्षेत्र के प्रभाव से उत्पन्न दिष्ट प्रवाह की दिशा में आवेश का औसत वेग ही उसका अपवाह वेग या अनुगमन वेग कहलाता है।
माना कि किसी चालक की लम्बाई । एवं अनुप्रस्थ काट का क्षेत्रफल A है।
चालक का आयतन = Al
यदि चालक के एकांक आयतन में स्वतंत्र इलेक्ट्रॉनों की संख्या n हो तो पूरे चालक में स्वतंत्र इलेक्ट्रॉनों की संख्या = nAL
अतः चालक का आवेश q= nAle
∵ I = \(\frac{q}{t}\)
= \(\frac{\text { nAle }}{t}\)
or,
I = nAV de
∴ Vd = \(\frac{I}{\text { Ane }}\)

प्रश्न 20.
प्रतिघात एवं प्रतिबाधा से क्या समझते हैं?
उत्तर:
किसी कुंडली के स्वप्रेरकत्व एवं संघारित के धारिता द्वारा आरोपित परिपथ में धारा के प्रवाह में आरोपित प्रभावी अवरोध को प्रतिघात कहा जाता है। प्रेरण कुण्डली में प्रतिघात Lw
‘एवं संधारिता में \(\frac{1}{c w}\) होता है।
LCR परिपथ द्वारा प्रत्यावर्ती धारा के प्रवाह में लगाया गया कुछ प्रभावी अवरोध को प्रतिबाधा कहा जाता है। इसे z द्वारा सूचित किया जाता है।
Bihar Board 12th Physics Important Questions Short Answer Type Part 1 11
अतः एक ऐम्पियर प्रबलता की विद्युत धारा वह स्थाई धारा है जो हवा या निर्वात में एक दूसरे से एक मीटर की दूरी पर स्थित दो लंबे, सीधे एवं समांतर चालकों से प्रवाहित होने पर उनके बीच 2 × 10-7N-m-1 का बल उत्पन्न कर देती है।

प्रश्न 21.
स्वप्रेरण एवं स्वप्रेरकत्व क्या है? समझावें।
उत्तर:
किसी कुंडली से प्रवाहित धारा को परिवर्तित करने पर स्वयं उसी कुण्डली में प्रेरित विद्युत वाहब बल एवं प्रेरित विद्युत धारा उत्पन्न होने की घटना को स्वप्रेरण कहा जाता है। किसी कुंडली का स्वप्रेरकत्व प्रेरित विद्युत वाहक बल के संख्यात्मक मान के बराबर होता द्वारा सूचित किया जाता है। इसका मात्रक henry (H) होता है।

प्रश्न 22.
धारा घनत्व को परिभाषित करें।
उत्तर:
धारा घनत्व के एकांक अनुप्रस्थ काट के क्षेत्रफल से प्रवाहित धारा के परिमाण को धारा घनत्व कहा जाता है। इसे प्रायः J द्वारा सूचित किया जाता है।
Bihar Board 12th Physics Important Questions Short Answer Type Part 1 12
J = \(\frac{I}{A}\)
इसका मात्रक A/m2 होता है।

प्रश्न 23.
प्रतिचुम्बकीय पदार्थ से क्या प्रते हैं?
उत्तर:
वैसे पदार्थ जिनका कुल चुम्बकीय आघूर्ण शून्य होता हो प्रतिचुम्बकीय पदार्थ कहलाते हैं। ये पदार्थ शक्तिशाली चुम्बकीय क्षेत्र से कम शक्तिशाली चुम्बकीय क्षेत्र की ओर गतिशील होते हैं। इनकी चुम्बकीय प्रवृति एकांक से कम एवं ऋणात्मक होती है।
Ex. विस्मथ, चाँदी, तांबा, जस्ता, सीसा, सोना इत्यादि।

प्रश्न 24.
अनुचुम्बकीय पदार्थ से क्या समझते हैं?
उत्तर:
वैसे पदार्थ जिनका कुल चुम्बकीय आघूर्ण शून्य नहीं होता है अनुचुम्बकीय पदार्थ कहलाते हैं। ये पदार्थ निम्न चुम्बकीय क्षेत्र से उच्च चुम्बकीय क्षेत्र की ओर, गमन करते हैं। इनकी चुम्बकीय प्रवृत्ति एकांक से कम एवं धनात्मक होता है
Ex. प्लैटिनम, मैंगनीज, ऑक्सीजन, ऑसनियम इत्यादि।

प्रश्न 25.
स्थायी चुम्बक किस चीज का बना होता है। इसके गुणों का उल्लेख करें।
उत्तर:
स्थायी चुम्बक प्रायः इस्पात का बना होता है। स्थायी चुम्बक के निम्न गुण है।

  1. उच्च चुम्बक धाराणशीलता
  2. यांत्रिक परिवर्तन सहन करने की क्षमता
  3. उच्च निग्राहिता
  4. अल्प शैथिल्य हानि।

प्रश्न 26.
लॉरेंज बल क्या है।
उत्तर:
माना कि l लम्बाई के चालक से q आवेश V वेग से प्रवाहित होता है। यदि चालक चुम्बकीय क्षेत्र B में स्थित हो तो लॉरेन्ज के अनुसार क्रियाशील बल F= q\((\vec{V} \times \vec{B})\)
or, F=qνB sinθ ∴ θ = 90°
∴ F=qνB ∵ q= It
F = ItνB
∴ F= IlB [∵ ν = \(\frac{l}{t}\)]

प्रश्न 27.
पोलैरॉइड क्या हैं? इसका उपयोग लिखें।
उत्तर:
ऐसी व्यवस्था जिसमें चयनात्मक शोषण द्वारा समतल-ध्रुवित प्रकाश देता है। पोलेरॉइड कहा जाता है।
इसका उपयोग निम्न है-

  1. रेलगाड़ियों तथा हवाई जहाज के खिड़कियों पर तीव्र प्रकाश को नियंत्रित करने में
  2. चश्में की शीशे में
  3. मोटरकार के अग्रदीपों पर तथा वायु पट पर।

प्रश्न 28.
पारित्र (Capacitance) की धारिता से क्या समझते हैं?
उत्तर:
मान लिया कि संधारित्र के संग्राहक प्लेट पर Q आवेश देने से उसके प्लेटों के बीच विभवान्तर ν हो जाता है।
∴ Q ∝ ν =c ν
जहाँ c एक स्थिर राशि है। इसे संधारित्र की धारिता (capacity of capacitance) कहते हैं। यदि V= 1 हो तो Q = c
अतः संधारित्र के प्लेटों के बीच इकाई विभवान्तर उत्पन्न करने के लिए दिये गये आवेश को “संधारित्र की धारिता” कहते हैं।

यह धारिता निम्न बातों पर निर्भर करती है-

  1. प्लेटों के सतहों के समानुपाती
  2. प्लेटों के बीच के माध्यम की विद्युतशीलता के समानुपाती
  3. प्लेटों के बीच की दूरी के व्युत्क्रमानुपाती (invessely prop) होता है।

Bihar Board 12th Home Science Objective Important Questions Part 4

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Bihar Board 12th Home Science Objective Important Questions Part 4

प्रश्न 1.
सोचने, समझने और समस्याओं को सुलझाने की क्षमता का विकास से तात्पर्य है
(a) ज्ञानात्मक विकास
(b) सामाजिक विकास
(c) संवेगात्मक विकास
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(a) ज्ञानात्मक विकास

प्रश्न 2.
गर्भावस्था में किसकी आवश्यकता बढ़ जाती है ?
(a) प्रोटीन
(b) कैलोरी
(c) लौह तत्व
(d) इनमें से सभी
उत्तर:
(c) लौह तत्व

प्रश्न 3.
किशोरावस्था में मासिक धर्म संकेत नहीं है
(a) यौन अंगों की परिपक्वता का
(b) शादी करने का
(c) प्रजनन अंगों के विकास का
(d) सन्तानोत्पत्ति का
उत्तर:
(b) शादी करने का

प्रश्न 4.
आहार आयोजन किससे प्रभावित नहीं होता है ?
(a) परिवार में लोगों की संख्या
(b) फूड ग्रुप के प्रति अज्ञानता
(c) आवास
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(c) आवास

प्रश्न 5.
कैल्शियम प्राप्ति का स्रोत है
(a) दूध
(b) दही
(c) पनीर
(d) इनमें से सभी
उत्तर:
(d) इनमें से सभी

प्रश्न 6.
निम्न में से ऊर्जा किससे प्राप्त नहीं होती है ?
(a) कार्बोहाइड्रेट
(b) खनिज लवण
(c) वसा
(d) प्रोटीन
उत्तर:
(b) खनिज लवण

प्रश्न 7.
निम्न में से कौन भोजन को पौष्टिक तत्वों से समृद्ध बनाने की विधि है ?
(a) मिश्रण
(b) खमीरीकरण
(c) अंकुरीकरण
(d) इनमें से सभी
उत्तर:
(c) अंकुरीकरण

प्रश्न 8.
निम्न में से क्या सब्जियाँ प्रदान नहीं करती हैं ?
(a) जल
(b) ऊर्जा
(c) रफेज
(d) खनिज लवण
उत्तर:
(a) जल

प्रश्न 9.
निम्न में से किसे कच्चा नहीं खाना चाहिए ?
(a) गेहूँ
(b) फल
(c) फलियाँ
(d) सब्जियाँ
उत्तर:
(a) गेहूँ

प्रश्न 10.
निम्न में से कौन पौधे का खाने योग्य भाग है ?
(a) बीज
(b) पत्ते
(c) फूल
(d) इनमें से सभी
उत्तर:
(b) पत्ते

प्रश्न 11.
जल की कमी प्रभावित नहीं करती
(a) भूख
(b) लार का कम बनना
(c) निर्जलीकरण की स्थिति
(d) रूखी त्वचा
उत्तर:
(d) रूखी त्वचा

प्रश्न 12.
महिला प्रजनन तंत्र
(a) सेक्स हार्मोन उत्पन्न करता है
(b) बच्चे को जन्म देता है
(c) अंडा उत्पन्न करता है
(d) इनमें से सभी
उत्तर:
(d) इनमें से सभी

प्रश्न 13.
इनमें से कौन गलत है ?
मासिक चक्र
(a) खून का सामयिक बहाव है
(b) हमेशा बहुत कष्टदायक होता है
(c) गर्भावस्था को छोड़कर एक महिला की पूरी प्रजनन अवधि में होता है
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(b) हमेशा बहुत कष्टदायक होता है

प्रश्न 14.
कौन-सा हार्मोन केवल महिला में स्रावित होता है ?
(a) प्रोलैक्टिन
(b) थाईरॉक्सिन
(c) प्रेलिन
(d) इन्सुलिन
उत्तर:
(c) प्रेलिन

प्रश्न 15.
ग्रामीण क्षेत्र में किस प्रकार का प्रदूषण सबसे अधिक होता है ?
(a) जल
(b) ध्वनि
(c) वायु
(d) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(d) उपर्युक्त सभी

प्रश्न 16.
ग्रामीण क्षेत्र में कौन भूमि प्रदूषण का कारण नहीं है ?
(a) नालियों का पानी
(b) खुले क्षेत्र में मल त्याग
(c) कीटनाशक
(d) वनों की कटाई
उत्तर:
(a) नालियों का पानी

प्रश्न 17.
ध्वनि प्रदूषण के कारण हो सकता है
(a) उच्च रक्तचाप
(b) बहरापन
(c) निद्रा में बाधा
(d) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(d) उपर्युक्त सभी

प्रश्न 18.
स्वच्छता के किस कार्य के लिए जल की अधिकतम आवश्यकता होती है ?
(a) नहाना
(b) कपड़ों की धुलाई
(c) दांतों की सफाई
(d) हाथों की सफाई
उत्तर:
(b) कपड़ों की धुलाई

प्रश्न 19.
टायफॉयड एवं हैजा बीमारियाँ किसके संदूषण से होती है ?
(a) जल
(b) भोजन
(c) उपर्युक्त दोनों
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(c) उपर्युक्त दोनों

प्रश्न 20.
धुएँ के किस स्रोत से आंतरिक वायु प्रदूषण नहीं होता है ?
(a) मच्छर कुंडल (कॉयल)
(b) वाहन
(c) सिगरेट
(d) चूल्हा
उत्तर:
(b) वाहन

प्रश्न 21.
शहरी क्षेत्रों में इनमें से कौन-सी क्रिया दंडनीय है ?
(a) खुले क्षेत्र में शौच करना
(b) सार्वजनिक स्थान में धूम्रपान
(c) लाउडस्पीकर बजाना
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(b) सार्वजनिक स्थान में धूम्रपान

प्रश्न 22.
भारत में ‘स्वच्छ भारत अभियान’ किस मंत्रालय द्वारा प्रारम्भ किया गया ?
(a) वातावरण एवं वन मंत्रालय
(b) शहरी विकास मंत्रालय
(c) ग्रामीण विकास मंत्रालय
(d) पेयजल एवं स्वच्छता मंत्रालय
उत्तर:
(d) पेयजल एवं स्वच्छता मंत्रालय

प्रश्न 23.
भारत में ‘विश्व शौचालय दिवस’ किस दिन मनाया जाता है ?
(a) 19 नवम्बर
(b) 25 जुलाई
(c) 15 सितम्बर
(d) 2 अक्टूबर
उत्तर:
(a) 19 नवम्बर

प्रश्न 24.
आहार आयोजन किस बचत में मदद करता है ?
(a) ईंधन
(b) समय
(c) ऊर्जा
(d) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(d) उपर्युक्त सभी

प्रश्न 25.
आहार आयोजन में कौन-सी अवधि सम्मिलित नहीं है ?
(a) 0-6 महीने
(b) किशोरावस्था
(c) वृद्धावस्था
(d) रोग की अवस्था
उत्तर:
(a) 0-6 महीने

प्रश्न 26.
इनमें से कौन आहार आयोजन में विचारणीय नहीं है ?
(a) रसोईघर का आकार
(b) बर्तनों की उपलब्धता
(c) व्यंजन पुस्तिका का प्रकार
(d) सहायक व्यक्ति
उत्तर:
(d) सहायक व्यक्ति

प्रश्न 27.
खाद्य संचालक के किस पहलू से खाना बनाना प्रभावित नहीं होता ?
(a) स्वास्थ्य
(b) ज्ञान
(c) स्वच्छता
(d) आदतें
उत्तर:
(d) आदतें

प्रश्न 28.
इनमें से कौन खाद्य के सड़ने का बाहरी कारक नहीं है ?
(a) जीवाणु
(b) रासायनिक पदार्थ
(c) एंजाइम
(d) बाहरी आघात
उत्तर:
(a) जीवाणु

प्रश्न 29.
जल के शुद्धिकरण का तरीका है
(a) छानना
(b) क्लोरीन का उपयोग
(c) जल शुद्धिकरण यंत्र
(d) इनमें से सभी
उत्तर:
(d) इनमें से सभी

प्रश्न 30.
खाद्य संरक्षण किया जा सकता है सूक्ष्म जीवाणुओं को
(a) दूर रखकर
(b) मार कर
(c) निकालकर
(d) उपयुक्त सभी
उत्तर:
(d) उपयुक्त सभी

प्रश्न 31.
इनमें से कौन खाद्य संरक्षण की घरेलू विधि नहीं है ?
(a) धूप में सुखाना
(b) हिमीकरण
(c) चीनी/नमक का उपयोग
(d) पास्च्यूराईजेशन
उत्तर:
(d) पास्च्यूराईजेशन

प्रश्न 32.
प्रसवोपरांत अवधि गंभीर है
(a) माता के लिए
(b) बच्चा के लिए
(c) दोनों के लिए
(d) दोनों के लिए नहीं
उत्तर:
(c) दोनों के लिए

प्रश्न 33.
इनमें से कौन प्रसवोपरांत अवधि में माँ की प्रत्यक्ष देखभाल नहीं है ?
(a) स्तनपान
(b) व्यक्तिगत स्वच्छता
(c) विश्राम एवं निद्रा
(d) उत्तम पोषाहार
उत्तर:
(c) विश्राम एवं निद्रा

प्रश्न 34.
इनमें से कौन शुरू के कुछ दिनों में बच्चे की देखभाल के अंतर्गत आता है ?
(a) बच्चे को गर्म रखना
(b) गर्भनाल की देखभाल
(c) सिर्फ माँ का दूध देना
(d) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(d) उपर्युक्त सभी

प्रश्न 35.
एक नवजात के लिए 24 घंटे के अंदर दिया जाने वाला कौन-सा टीका नहीं है ?
(a) बी० सी० जी०
(b) ओ० पी० वी० (ओरल पोलियो वैक्सीन)
(c) डी० टी० पी० (डिप्थीरिया, टिटनस एवं परटयूसेस)
(d) हेपेटाइटस बी
उत्तर:
(c) डी० टी० पी० (डिप्थीरिया, टिटनस एवं परटयूसेस)

प्रश्न 36.
इनमें से कौन घरेलू कार्य पति और पत्नी द्वारा साझा किया जाना चाहिए ?
(a) कपड़े धोना
(b) खाना बनाना
(c) बर्तन धोना
(d) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(d) उपर्युक्त सभी

प्रश्न 37.
इनमें से कौन मानवीय संसाधन है ?
(a) योग्यता
(b) रुचि
(c) कौशल
(d) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(d) उपर्युक्त सभी

प्रश्न 38.
आंतरिक सज्जा नहीं की जाती है
(a) घर में
(b) दुकान में
(c) कार्यालय में
(d) सार्वजनिक सुविधा में
उत्तर:
(d) सार्वजनिक सुविधा में

प्रश्न 39.
बचत का मतलब है
(a) आय को खर्च नहीं करना
(b) खर्च को कम करना
(c) खर्च के बाद बची राशि
(d) विलंबित खर्च
उत्तर:
(c) खर्च के बाद बची राशि

प्रश्न 40.
इनमें से कौन एकबार का निवेश नहीं है ?
(a) सावधि जमा
(b) राष्ट्रीय बचत प्रमाण पत्र
(c) डाकघर मासिक आय योजना
(d) किसान विकास पत्र
उत्तर:
(c) डाकघर मासिक आय योजना

प्रश्न 41.
इनमें से बैंक में कौन-सी जमा राशि में ब्याज नहीं मिलता है ?
(a) बचत जमा
(b) सावधि जमा
(c) चालू जमा
(d) आवर्ती जमा
उत्तर:
(c) चालू जमा

प्रश्न 42.
इनमें से कौन निवेश आयकर में छूट नहीं देता है ?
(a) सावधि जमा
(b) जीवन बीमा
(c) पब्लिक भविष्य निधि
(d) राष्ट्रीय बचत प्रमाण पत्र
उत्तर:
(a) सावधि जमा

प्रश्न 43.
वस्त्र से संबंधित किस गतिविधि की आवश्यकता तुरंत होती है ?
(a) मरम्मत
(b) आयरन करना
(c) धब्बा छुड़ाना
(d) हवा देना
उत्तर:
(d) हवा देना

प्रश्न 44.
इनमें से कौन सबसे मजबूत तंतु है ?
(a) ऊन
(b) सूती
(c) रेशम
(d) सिन्थेटिक
उत्तर:
(c) रेशम

प्रश्न 45.
इनमें से कौन नवजात के लिए वस्त्रों के खुलने का सर्वोत्तम विकल्प है ?
(a) आगे से खुलना
(b) पीछे से खुलना
(c) ऊपर से खुलना
(d) नीचे से खुलना
उत्तर:
(a) आगे से खुलना

प्रश्न 46.
इनमें से कौन वस्त्रों की देखभाल है ?
(a) पिन की सावधानीपूर्वक उपयोग
(b) पहने हुए कपड़े को अलग रखना
(c) आयरन करना
(d) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(d) उपर्युक्त सभी

Bihar Board 12th Philosophy Important Questions Long Answer Type Part 1

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Bihar Board 12th Philosophy Important Questions Long Answer Type Part 1

प्रश्न 1.
भारतीय दर्शन की मुख्य विशेषताओं की विवेचना करें।
अथवा, भारतीय दर्शन की मूलभूत विशेषताएँ क्या हैं ? व्याख्या करें।
उत्तर:
भारतीय दर्शन वैविध्यपूर्ण है। इसके विभिन्न सम्प्रदाय विभिन्न विचारधाराओं के समर्थक हैं। इसमें कुछ आस्तिक हैं तो कुछ नास्तिक। फिर भी कुछ ऐसी सामान्य बातें अवश्य हैं जिन पर सभी भारतीय सम्प्रदाय एकमत हैं। इन्हीं सामान्य बातों को भारतीय दर्शन की प्रमुख विशेषताओं की संज्ञा दी जाती है। ये प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखत हैं-

(क) जीवन के प्रति निश्चित दृष्टिकोण- पाश्चात्य विचारकों के लिए दर्शन एक मानसिक व्यायाम (mental exercise) मात्र है। वहाँ दर्शन की उत्पत्ति मानव जिज्ञासा की शांति के लिए होती है। किन्तु भारतीय दर्शन को केवल मानसिक कसरत नहीं कहा जा सकता। इसका व्यावहारिक पक्ष इसके सैद्धांतिक पक्ष से अधिक सबल है। यह जीवन के अत्यन्त नजदीक है। बुद्धि को सन्तुष्ट करना ही इसका लक्ष्य नहीं है। बल्कि ज्ञान के प्रकाश में जीवन को सुव्यवस्थित बनाना इसका मुख्य उद्देश्य है। जीवन की समस्याओं का समाधान ढूँढना भारतीय विचारक अपना पवित्र उद्देश्य मानते हैं। इस प्रकार भारतीय दर्शन का दृष्टिकोण व्यावहारिक है।

(ख) भारतीय दर्शन की उत्पत्ति आध्यात्मिक असन्तोष के चलते होती है- विश्व में दुःख एवं बुराई का साम्राज्य पाकर भारतीय विचारक एक प्रकार से आध्यात्मिक असन्तोष का अनुभूत करते हैं और फलस्वरूप इनका दार्शनिक चिन्तन प्रारम्भ होता है। भारतीय विचारकों का प्रधान लक्ष्य मानव को दुःखों से मुक्त करना है। महात्मा बुद्ध ने अपने दर्शन में दुःख का विशद वर्णन किया है। इनके चार आर्य-सत्य दुःख के विचार पर आधारित है।

(क) दुख है (ख) का कारण है (ग) दु:ख का निरोध सम्भव होता है, There is cessation of suffering और (घ) दुख निरोध का मार्ग है। इसी प्रकार अन्य भारतीय दर्शन भी दुख के भावों से ओत-प्रोत हैं।

(ग) विश्व को एक नैतिक रंग-मंच मानना- प्रायः सभी भारतीय दार्शनिक विश्व को एक नैतिक रंग मंच मानते हैं। मनुष्य अपने विगत कर्म के अनुसार ईश्वर का प्रकृति की ओर से शरीर, इन्द्रिय एवं वातावरण प्राप्त करके विश्वरूपी रंग-मंच पर उपस्थित होता है। जिस प्रकार, किसी रंग-मंच पर, पात्र अपने विभिन्न वस्त्रों में सजधज कर, अपना पार्ट अदा करते हैं और इसके बाद रंग-मंच से अलग हो जाते हैं। ठीक उसी प्रकार, विश्वव्यापी रंग-मंच पर भी विभिन्न प्राणी अपने कर्मों का कमाल दिखाकर विदा हो जाते हैं। प्राणियों को अच्छे कर्मों द्वारा सफल अभिनेता बनने का प्रयास करना चाहिए। जिस प्रकार साधारण रंग-मंच पर पुराने पात्र स्थान रिक्त करते जाते हैं और नये पात्र इन रिक्त स्थानों पर आते-जाते रहते हैं। इसी प्रकार विश्व भी एक ऐसा मंच है जहाँ पुराने और नये चेहरे सदैव आते-जाते रहते हैं।

(घ) विश्व की शाश्वत नैतिक अवस्था में विश्वास- विश्व में एक शाश्वत नैतिक अवस्था का समर्थन प्रायः भारतीय विचारक करते हैं। विश्व में जो भी हम करते हैं, इसका हमें निश्चित रूप मिलता है। अच्छे कर्मों के लिए परस्कार और बुरे कर्मों के लिए दण्ड का भागी होना पड़ता है।

यही कर्म सिद्धान्त (The Law of Karma) है। इस सिद्धांत के अनुसार हमारा वर्तमान जीवन हमारे विगत जीवन का फल है और भावी जीवन की आधारशिला हमारे वर्तमान जीवन के कर्मों पर आधारित है। जिस प्रकार भौतिक जगत की व्यवस्था की व्याख्या कार्य-करण नियम जिसमें (Law of causation) के आधार पर की जाती हैं, उसी प्रकार नैतिक जगत की व्यवस्था कर्म सिद्धान्त द्वारा ही सम्भव है। यहाँ भाग्यवाद या नियतिवाद (Fatalism) का खण्डन किया जाता है। व्यक्ति का भाग्य निर्माण स्वयं इसके साथ है।

(ङ) आत्मा के अस्तित्व में विश्वास- चार्वाक और बौद्ध को छोड़कर सम्पूर्ण भारतीय दर्शन आत्मा की सत्ता में अटूट विश्वास करता है। यहाँ आत्मा को शरीर से भिन्न एक आध्यात्मिक सत्ता माना गया है। यह नित्य (eternal) एवं अविनाशी (Indestructible) है। शंकर ने तो आत्मज्ञान (self-realisation) को ही ब्रह्म ज्ञान (realization of Brahma) माना है। इस प्रकार प्रायः सम्पूर्ण भारतीय दर्शन आत्मा को नित्य, अविनाशी, आध्यात्मिक सत्ता के रूप में स्वीकार करता है। उपनिषदों एवं वेदों में भी आत्मा के महत्त्व पर काफी बल दिया गया है।

आत्मा के स्वरूप को लेकर भारतीय दर्शन में कई विचारधाराओं का जन्म हुआ है। चार्वाक के अनुसार चेतन शरीर ही आत्मा है। बौद्धों के अनुसार चेतना का प्रवाह (Stream of Consciousness) है। William James के विचार से बौद्ध मत मिलता-जुलता है। जैन दर्शन के अनुसार आत्मा या जीवन चैतन्य युक्त है। इसमें चार प्रकार की पूर्णता पायी जाती है-अनन्त ज्ञान, अनन्त दर्शन, अनन्त वीर्य और अनन्त आनन्द।

(च) अज्ञान दुख एवं बंधन को उत्पन्न करता है और ज्ञान से मोक्ष मिलता है- भारतीय दर्शन में अज्ञान को बंधन (Bondage) और दुख का कारण बतलाया गया है। जन्म-मरण एवं पूर्वजन्म के चक्कर में पड़कर दुख झेलना ही बंधन है। जन्म, पूर्वजन्म के जाल से मुक्त हो जाना ही मोक्ष (Liberation) कहलाता है। प्रायः सभी भारतीय विचारक अज्ञानता (Ignorance) को दुखों के कारण मानते हैं। बुद्ध ने अज्ञान को दुखों का मूल कारण बतलाया है। अज्ञान का नाश से ही सम्भव होता है। इसलिए सभी दर्शनों में मोक्ष को अपनाने के लिए ज्ञान को परमावश्यक माना गया है।

(छ) आत्म नियन्त्रण पर जोर- मोक्ष की प्राप्ति के लिए मस्तिष्क से बुरे विचारों को निष्कासित करके उत्तम विचारों को प्रतिष्ठित करना एवं आत्मसंयम रखना भी अनिवार्य माने गये हैं। मस्तिष्क से दूषित भावनाओं को समूल नष्ट करने के लिए आत्मसंयम आवश्यक है। आत्मसंयम का अर्थ राग, द्वेष, वासना आदि का निरोध और ज्ञानेन्द्रियों तथा कर्मेन्द्रियों का नियन्त्रण माना जाता है। आत्मनियन्त्रण पर जोर देने के फलस्वरूप सभी दर्शनों में नैतिक अनुशासन और सदाचार-संबंधित जीवन को आवश्यक माना गया है। चार्वाक के सिवा अन्य सभी भारतीय विचारकों ने आत्मनियन्त्रण को अत्यधिक महत्त्वपूर्ण बतलाया है।

(ज) मोक्ष को जीवन का चरम लक्ष्य माना गया है- चार्वाक के सिवा सम्पूर्ण भारतीय दर्शन मोक्ष को ही जीवन का चरम लक्ष्य मानता है। दुख रहित अवस्था को ही मोक्ष कहते हैं। कुछ अन्य विचारकों ने इसे आनंदमय अवस्था बतलाया है। इस प्रकार मोक्ष के सम्बन्ध में दो मत हैं-निषेधात्मक और भावात्मक। निषेधात्मक रूप से मोक्ष दुखरहित अवस्था है और भावात्मक रूप से यह आनन्दमय अवस्था है। मोक्ष दो प्रकार के होते हैं-जीवन मुक्ति और विदेह मुक्ति। शरीर धारण करते हुए भी इसी जीवन में मुक्त हो जाना ही जीवन मुक्ति है। मृत्यु के बाद शरीर छोड़कर मुक्ति पाना विदेह मुक्ति है। मोक्ष को निर्वाण, कैवल्य आदि विभिन्न नामों से पुकारा जाता है। मोक्ष सर्वोच्च साध्य है। यह किसी अन्य साधन का साध्य नहीं हो सकता।

प्रश्न 2.
गीता के “निष्काम कर्म’ की व्याख्या करें।
अथवा, गीता के अनासक्त कर्म की विवेचना करें।
उत्तर:
अनासक्त या निष्काम कर्म गीता का मौलिक तथा नैतिक उपदेश है। निष्काम शब्द की उत्पत्ति संस्कृत के निः काम से हुई है जिसका अर्थ है बिना फल के तथा कर्म का अर्थ क्रियाशील होना अतः शाब्दिक व्युत्पत्ति की दृष्टि से निष्काम कर्म का अर्थ है कि कर्ता को बिना फल या परिणाम की कामना के क्रियाशील होना। निष्काम शब्द का विपरीत सकाम है, जिसका अर्थ है फल प्राप्ति की कामना के साथ कर्म करना। निष्काम कर्म गीता का मुख्य विषय है।

गीता के अनुसार मनुष्य को स्वधर्म का पालन करना चाहिए, जिससे वह अपने जीवन के वास्तविक लक्ष्य तक पहुँचने में समर्थ हो सके। गीता संसार में मनुष्य को सक्रिय जीवन व्यतीत करने का उपदेश देती है, जिससे उसका आन्तरिक जीवन परमात्मा के साथ जुड़ा रहे। भगवान कृष्ण गीता में अर्जुन को कर्म की समस्या की अत्यधिक सूक्ष्मता की ओर संकेत करते हुए कहते हैं कि-गहना कर्मणे गतिः। अर्थात् कर्म की गति गहन है। हमारे लिए कर्म से बचना संभव नहीं है। अर्जुन अज्ञानता के कारण युद्ध करना नहीं चाहता है। भगवान कृष्ण अर्जुन को स्वधर्म या निष्काम भाव से कर्म करने का उपदेश देते हैं और अर्जुन युद्ध करने के लिए तत्पर हो जाता है। कृष्ण ने कहा है, कर्म में ही तेरा अधिकार है, फल में कभी नहीं तुम कर्म-फल का हेतु भी मत बनो. अकर्मण्यता से तुम्हारी आसक्ति न हो। ‘गीता का निष्काम कर्म कर्मों के त्याग के स्थान पर कर्म-फल त्याग का उपदेश देती है। गीता कर्म कल त्यागने को अवश्य कहती है। परन्तु उसका उद्देश्य कर्म से संन्यास नहीं है। जो कर्म-फल को छोड़ देता है वही वास्तविक त्यागी है। गीता में कहा गया है-

“कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भूमा ते संगोऽस्त्वकर्मणि ॥”

इस प्रकार, गीता प्रवृत्ति और निवृत्ति दोनों के बीच समन्वय करती है। मनुष्य को कर्म प्रवृत्ति तथा फल निवृत्ति होना चाहिए। अर्थात् मनुष्य को कर्म करना चाहिए, फल के बारे में नहीं सोचना चाहिए। प्रो० हरियाना के शब्दों में “The Gita teaching stands nor for renuciation of action but for renunciation in action.”

अगर हम कर्म के फल में अनासक्ति और परमात्मा के प्रति समर्पण की भावना विकसित कर लें तो हम कर्म करते हुए भी नित्य संन्यासी हैं। इस प्रकार, गीता हमें पूर्णतः सक्रिय जीवन व्यतीत करने का आदेश देती है।

गीता के निष्काम कर्मयोग की तुलना प्रसिद्ध जर्मन दार्शनिक कांट के “Duty for the sake of Duty” के साथ की जा सकती है। कांट ने भी यह कहा है कि मनुष्य को कर्तव्य करते समय कर्त्तव्य के लिए तत्पर रहना चाहिए। कर्त्तव्य करते समय फल की आशा का भाव छोड़ देना चाहिए। इस प्रकार गीता तथा कांट के बीच समता दीखता है। लेकिन दोनों में मुख्य अन्तर यह है कि यहाँ कांट इन्द्रियों को दमन की बात करते हैं। वहाँ गीता इन्द्रियों के नियंत्रित करने की बात करती है। कामनाओं का दमन व्यक्तित्व के विकास के लिए घातक है।

अत: निष्कर्षतः कहा जा सकता है कि साधारण मनुष्य के कर्म निष्काम नहीं बल्कि सकाम होते हैं। लेकिन इसका यह अर्थ नहीं है कि निष्काम कर्म असंभव है। एक असाधारण व्यक्ति का कर्म निष्काम होता है। क्योंकि वह लोकसंग्रह की भावना से प्रेरित होकर कर्म करता है। अतः निष्काम कर्मयोग या अनासक्त कर्म गीता का मुख्य प्रतिपाद्य विषय है।

प्रश्न 3.
बुद्ध के चार आर्य सत्य की व्याख्या करें।
उत्तर:
बौद्ध दर्शन के प्रवर्तक गौतम बुद्ध हैं। बुद्ध के बचपन का नाम सिद्धार्थ था। उनका जन्म कपिलवस्तु के राज-परिवार में हुआ था। परन्तु राजसी जीवन से वे संतुष्ट नहीं थे और जीवन की सच्चाई को समझने के लिए ज्ञान प्राप्त करने हेतु अपने राजसी जीवन का परित्याग कर जंगलों एवं पहाड़ों में एक भिक्षु का जीवन व्यतीत करने लगे। कई वर्षों की साधना एवं ध्यान के बाद मध्यम मार्ग के माध्यम से बोधगया में पीपल के वृक्ष के नीचे उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई। बुद्ध द्वारा. प्राप्त ज्ञान को चार आर्य सत्यों के रूप में संकलित किया गया है, जो निम्नलिखित हैं-

  1. मानव जीवन में दुःख का होना नितांत अनिवार्य है।
  2. मानव-जीवन दुःख का कारण अवश्य है।
  3. इन दुखों को हटाया जा सकता है।
  4. इन दु:खों को हटाने का मार्ग विद्यमान है।

जब मनुष्य अपने जीवन से इन दुःखों को हमेशा के लिए हटाने में सफल होता है। तब उसके जीवन के उस स्थिति को निर्वाण की स्थिति कहीं जाती है। कोई भी मनुष्य बुद्ध द्वारा बतलाये गये आष्टांगिक मार्ग को अपनाते हुए निर्वाण की स्थिति को प्राप्त कर सकता है। आष्टांगिक मार्ग एक दुःख निरोध मार्ग हैं जो चतुर्थ आर्यसत्य के अन्तर्गत आता है। यह एक नैतिक और आध्यात्मिक साधना का मार्ग है जहाँ पूजा, शील और समाधि पर संयुक्त रूप से बल दिया जाता है। इस मार्ग के आठ अंग हैं, जो निम्नलिखित हैं-

  • सम्यक् दृष्टि- सम्यक् शब्द का अर्थ है उचित। अतः सम्यक् दृष्टि का तात्पर्य उचित ज्ञान है। यह बुद्ध के उपदेशों में श्रद्धा और आर्य सत्यों का ज्ञान है।
  • सम्यक् संकल्प- यह आर्य मार्गों पर चलने का दृढ़ निश्चय है।
  • सम्यक् वाक्- यह मार्ग साधक को अपने वाणी की पवित्रता और सत्यता बनाये रखने की प्रेरणा देता है।
  • सम्यक् कर्मान्त- यहाँ साधक को हिंसा द्वेष और दुराचरण का त्याग तथा सत्य कर्मों का आचरण करने को बतलाया गया है।
  • सम्यक् आजीव- यहाँ साधक से यह अपेक्षा की जाती है कि वह अपने जीविकोपार्जन के लिए भी अनैतिक कर्मों का सहारा नहीं लेगा तथा न्यायपूर्ण जीविकोपार्जन करता रहेगा।
  • सम्यक् व्यायाम- यह वह मानसिक प्रयास हैं जहाँ मन में दबे हुए सभी नए एवं पुराने अशभ विचारों. विकारों एवं मान्यताओं को निरस्त कर नये, अच्छे एवं शुभ विचारों का समावेश किया जाता है।
  • सम्यक् स्मृति- यह साधक के लिए उचित स्मरण की स्थिति है जहाँ वह अभी तक प्राप्त सभी ज्ञान को बार-बार यह करता है। साधक को हमेशा यह याद रखना है कि इस संसार में कुछ भी नित्य नहीं है। “जिसे वह नित्य समझता है। वास्तव में वह क्षणभंगुर है।”
  • सम्यक् समाधि- यह चित्त की एकाग्रता की परम स्थिति हैं जहाँ साधक सुख-दुःख से परे की अवस्था को प्राप्त करता है। इसी अवस्था में निर्वाण की प्राप्ति होती है। या कह सकते हैं कि चित्त की एकाग्रता की यह प्रम स्थिति निर्वाण की अवस्था है। इसकी तुलना भगवत् गीता के ‘स्थित प्रज्ञ’ की अवस्था से की जा सकती है।

प्रश्न 4.
काण्ट के अनुसार ‘समीक्षावाद’ की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
जर्मन दार्शनिक काण्ट का ज्ञानशास्त्रीय मत समीक्षावाद कहलाता है, क्योंकि समीक्षा के बाद ही इस सिद्धान्त का जन्म हुआ। काण्ट के समीक्षावाद के अनुसार बुद्धिवाद और अनुभववाद दोनों ही सिद्धान्तों में आंशिक सत्यता है। जिन बातों को बुद्धिवाद और अनुभववाद स्वीकार करते हैं, वे सत्य हैं, और जिन बातों का खण्डन करते हैं, वे गलत हैं- “They are . justified in what they affirm but wrong in what they deny”।

अनुभववाद के अनुसार संवेदनाओं के बिना ज्ञान में वास्तविकता नहीं आ सकती है और बुद्धिवाद के अनुसार सहजात प्रत्ययों के बिना ज्ञान में अनिवार्यता तथा असंदिग्धता नहीं आ सकती है। समीक्षावाद इन दोनों सिद्धान्तों के उपर्युक्त पक्षों को स्वीकार करता है। फिर अनुभववाद के अनुसार ज्ञान की अनिवार्यता के अनुसार संवेदनाओं को ज्ञान का रचनात्मक अंग नहीं माना जाता है। पर हमें दोनों सिद्धान्तों के इस अभावात्मक (Negative) पक्षों को अस्वीकार करना चाहिए। समीक्षावाद में बुद्धिवाद तथा अनुभववाद दोनों के भावात्मक अंशों को मिलाकर ग्रहण किया जाता है।

ज्ञान की परिभाषा- काण्ट (Kant) ज्ञान को संश्लेषणात्मक प्रागनुभविक निर्णयों के एकतंत्र (A system of Synthetica priorijudgements) के रूप में परिभाषित करते हैं। निर्णय दो प्रत्ययों (Ideas) उद्देश्य तथा विधेय के मेल को कहते हैं। जैसे-‘मेज गोल है’ एक निर्णय है जिसका निर्माण ‘मेज’ तथा ‘गोलापन’ प्रत्ययों के मिलाने से हुआ है। इसमें ‘मेज’ उद्देश्य है तथा ‘गोलापन’ विधेय है। संश्लेषणात्मक निर्णय वैसे निर्णय को कहते हैं जो अनुभव पर आधारित हो, यानी जिसके अनुभव विधेय में अनुभव के आधार पर उद्देश्य के सम्बन्ध में कोई नयी बात कही जाए सिर्फ उद्देश्य का विश्लेषण भर नहीं कर दिया जाए। संश्लेषणात्मक निर्णयों के विपरीत काण्ट विश्लेषणात्मक (Analaytic), निर्णयों को लेते हैं जिनके विधेय में उद्देश्य का सिर्फ विश्लेषण किया गया रहता है, उसके सम्बन्ध में कोई नयी बात नहीं कही जाती है।

‘त्रिभुज तीन भुजाओं से घिरा क्षेत्र है’ निर्णय विश्लेषणात्मक है चूँकि इसका विधेय इसके उद्देश्य ‘त्रिभुज’ का विश्लेषण मात्र है। परन्तु ‘गुलाब लाल है’ एक संश्लेषणात्मक निर्णय है चूँकि ‘लाली’ गुलाब के विश्लेषण से नहीं निकलती बल्कि अनुभव के आधार पर गुलाब के साथ जोड़ा जाता है जो गुलाब के सम्बन्ध में एक नवीन ज्ञान देता है। प्रागानुभविक निर्णय वैसे निर्णय हैं जिनकी सत्यता किसी विशिष्ट अनुभव तक ही सीमित नहीं है बल्कि विशिष्ट अनुभवों के परे सभी स्थान, सभी काल आदि के लिए अनिवार्यतः सत्य है। उदाहरणस्वरूप दो और दो का योग चार होता है। भौतिक पदार्थों में फैलाव (Extension) होता है आदि निर्णय प्रागानुभविक हैं। ऐसे ही निर्णयों के एक तंत्र (System) को जो संश्लेषणात्मक तथा प्रागानुभविक दोनों हो काण्ट ज्ञान की संज्ञा देते हैं।

ज्ञान का निर्णय-अब प्रश्न उठता है कि ऐसे ज्ञान का निर्माण कैसे होता है। इस प्रश्न का उत्तर काण्ट ने अपनी विख्यात पुस्तक ‘Critique of pure Reason’ में दिया है। इसमें उन्होंने बताया है कि ज्ञान का निर्माण दो पक्षों के सम्मिलित प्रयास से होता है। एक को वे संवेदन-शक्ति (Sensibility) तथा दूसरे को बुद्धि (understanding) कहते हैं। संवेदन-शक्ति से ज्ञान की वस्तु प्राप्त होती है तथा बुद्धि से उसका आकार। संवेदनाएँ मन को दिक् तथा काल के आकारों से होकर ही प्राप्त होती हैं। संवेदनायें अपने आप में बिल्कुल असम्बद्ध तथा अव्यवस्थित होती हैं।

सिर्फ उन्हें प्राप्त कर लेने से ही ज्ञान का निर्णय नहीं हो जाता। उन्हें आकार देकर व्यवस्थित करना तथा. निर्णयों का निर्माण करने का काम मन करता है। संवेदनाओं को पूर्ण आकार में ढालकर निर्णय का निर्माण करना मन के उस पक्ष का काम है जिसे बुद्धि की संज्ञा दी गयी है। काण्ट के अनुसार मन के अन्दर सोचने के बारह आकार जन्मजात आकारों के रूप में मौजूद हैं जिसे, “Categories of Understanding” कहा जाता है। ये बारह आकार बारह साँचे के समान हैं जिनमें ढालकर संवेदनाएँ आकार पाती हैं। बुद्धि के ये बारह आकार निम्नलिखित हैं-

  1. अनेकता (Plurity)
  2. एकता (Unity)
  3. सम्पूर्णता (Totality)
  4. भाव (Affirmation)
  5. अभाव (Negation)
  6. सीमितभाव (Limitation)
  7. कारण कार्यभाव (Causality)
  8. गुणभाव (Substantiality)
  9. अन्योन्याश्रय भाव (Reciprocity)
  10. सम्भावना (Possibility)
  11. वास्तविकता (Actuality)
  12. अनिवार्यता (Necessity)।

कान्टीय सिद्धांत की समीक्षा-काण्ट अपने सिद्धान्त के द्वारा बुद्धिवाद तथा अनुभववाद के एकांगी मतों के बीच एक समन्वय स्थापित करते हैं जो बहुत महत्त्वपूर्ण हैं। परन्तु जिस प्रकार के ज्ञान की क्रिया में अनुभव तथा बुद्धि दोनों के कार्यों का विश्लेषण करते हैं और जिस प्रकार बेमेल अवधारणाओं को ज्ञान की व्याख्या में वे एक साथ मिलाने की कोशिश करते हैं। उनके फलस्वरूप उनके सिद्धान्त में कई दोषों का समावेश हो जाता है जिनमें से निम्नलिखित प्रमुख हैं-

सर्वप्रथम काण्ट द्वारा ज्ञान की वास्तविक प्रक्रिया का किया गया विश्लेषण एक मनगढन्त तथा कृत्रिम सिद्धान्त लगता है। काण्ट का यह कहना कि अमुक प्रकार से संवेदनाएँ आती हैं और तब फिर मन अपने बुद्धि के आकारों के द्वारा व्यवस्था प्रदान करता है और तब फिर प्रज्ञा अन्तिम * व्यवस्था प्रदान करती है, मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण से असत्य है। ज्ञान की क्रिया इस यांत्रिक रूप में सम्पन्न नहीं होती।

काण्ट का यह कहना है कि संवेदनाएँ अपने आप में बिल्कुल असम्बद्ध तथा अव्यवस्थित होती हैं यथार्थ प्रतीत नहीं होता। प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक तथा दार्शनिक William James का कहना है कि संवेदनाएँ बिल्कुल असंबद्ध रूप में मन में नहीं आती। उन्हें ग्रहण करने तथा व्यवस्थित करने की क्रियाएँ कुछ इस प्रकार अभिन्न हैं कि यह कहा जा सकता है कि पहले वे एक असम्बद्ध रूप में मन में आती है तब मन अपने आकारों द्वारा उनमें व्यवस्था लाता है। एक व्यवस्थित रूप में ही मन संवेदनाओं को ग्रहण करता है।

प्रश्न 5.
देकार्त के दर्शन में शरीर एवं मन के संबंध की व्याख्या करें।
उत्तर:
मन और शरीर के आपसी सम्बन्ध की समस्या दर्शन के इतिहास में अत्यन्त ही पुरानी एवं विवादास्पद है। देकार्त ने मन और शरीर के बीच सम्बन्ध की व्याख्या अपने द्रव्य विचार के अन्तर्गत किया है। इन्होंने मन और शरीर को सापेक्ष द्रव्य स्वीकार करते हुए दोनों को विरोधात्मक कहा है। आत्मा का मौलिक गुण चेतना है तथा शरीर का मौलिक गुण विस्तार है।

देकार्त ने इन दोनों के बीच सम्बन्ध की व्याख्या क्रिया-प्रक्रिया के द्वारा करने का प्रयास किया है। हमारे अन्दर पिनियस ग्लैन्ड नामक एक विशेष प्रकार की ग्रन्थि है, जिसके सहारे मन और शरीर एक-दूसरे पर क्रिया-प्रतिक्रिया करते हैं। मन शरीर के बीच आपसी सम्बन्ध के लिए देकार्त ने घोड़ा और घुड़सवार का भी उदाहरण दिया है। जिस प्रकार घुड़सवार घोड़ा को अपने ऐंड से मारता है तो घोड़ा तेज भागता है, उसी प्रकार मन के निर्देश देने के बाद शरीर सक्रिय हो जाता है। देकार्त के मन और शरीर के स्वतंत्र सत्ता मानने के कारण ही इन्हें द्वैतवादी कहा जाता है।

प्रश्न 6.
अनुभववाद की व्याख्या करें।
उत्तर:
अनुभववाद वह ज्ञानशास्त्रीय दार्शनिक सिद्धान्त है, जो समस्त ज्ञान का स्रोत बाह्य इन्द्रियों द्वारा प्राप्त अनुभव को मानता है। यह बुद्धिवाद का पूर्णतः विरोधी सिद्धान्त है। अनुभववाद के अनुसार अनुभव ही एक मात्र ज्ञान का साधन है। इस सिद्धान्त के अनुसार यह स्पष्ट हो जाता है कि मनुष्य का प्रत्येक ज्ञान अर्जित है, जन्म के समय मनुष्य के मस्तिष्क में किसी प्रकार का ज्ञान नहीं रहता है। इसलिए अनुभववाद का कहना है कि जन्म के समय हमारा मस्तिष्क कोरे कागज के तरह रहता है तथा बाद में अनुभव के आधार पर ज्ञान अंकित होते हैं।

ज्ञान के मनुष्य तत्त्व प्रत्यय है। इन प्रत्ययों की उत्पत्ति अनुभव से होता है। बुद्धि प्रत्यय को मात्र ग्रहण करता है, उत्पन्न नहीं करता है। बुद्धि के प्रत्ययों को निष्क्रिय ढंग से ग्रहण करती है। इसलिए प्रत्यय का एक मात्र जननी अनुभव है। अनुभववाद के समर्थक प्रमुख तीन दार्शनिक हैं . लॉक, बर्कले और ह्यूम है। इन तीनों दार्शनिक ग्रेट ब्रिटेन के तीन प्रदेशों, लंदन, आयरलैण्ड और स्कॉटलैण्ड के रहने वाले थे।

(i) जॉन लॉक का कहना है कि हमारा समस्त ज्ञान प्रत्ययों से बनता है। लेकिन हमारे सामने एक प्रश्न उपस्थित होता है कि प्रत्यय क्या हैं ? इसके उत्तर में लॉक का कहना है कि प्रत्यय किसी बाह्य वस्तु के प्रतिनिधि होते हैं। जैसे-टेबुल, कुर्सी, पुस्तक आदि बाह्य पदार्थ है। जब इसे देखते हैं तो हमारे मन में एक प्रतिबिम्ब द्वारा वस्तु का बनता है। जब आँख बंद कर लेते हैं तो उस वस्तु का प्रतिमा बनी रहती है। यही प्रतिमा लॉक के अनुसार प्रत्यय है। अतः समस्त ज्ञान इन्हीं प्रत्ययों से बनता है जो अनुभव के द्वारा प्राप्त होता है।

लॉक अनुभव का कहना है कि जन्म के समय हमारा मन एक स्वच्छ कोरे कागज के समान रहता है। इस मन में कुछ भी पूर्व से अंकित नहीं रहती है बल्कि समस्त ज्ञान प्रत्ययों से प्राप्त “Black tabula, table rase, white paper empty calamity”.

लॉक को दो भागों में विभक्त किया है-सरल प्रत्यय से मिश्र प्रत्यय का निर्माण होता है और हमारा समस्त ज्ञान बनता है। जितने भी बुद्धिवादी दार्शनिक है वे सहज प्रत्यय को जन्मजात मानते हैं। बुद्धिवादियों का कहना है कि ईश्वर, आत्मा, धार्मिक और नैतिक मूल्य आदि प्रत्यय हमारे मन में जन्म से ही बैठा दी जाती है। वे प्रत्यय पर और अनिवार्य होते हैं। इसके विरुद्ध में लॉक का कहना है कि सहज प्रत्यय नाम का कोई भी चित्र अनुभव से पूर्व मन में स्थित नहीं होती।

(ii) अनुभववाद के दूसरा प्रबल समर्थक बर्कले का कहना है कि ज्ञान केवल अनुभव के द्वारा प्राप्त किया जा सकता है। ये एक रोचक उदाहरण द्वारा स्पष्ट करते हुए कहते हैं कि एक बार मुझे जिज्ञासा हुई कि फाँसी लगाते समय कैसा अनुभव होता है यह जाना जाए। इसलिए अनुभववादी बर्कले ने स्वयं फाँसी के फंदे गले में लगा लिया। जब उसके मित्र फाँसी के फंदै खोले तो बर्कले बेहोश थे। इतना कट्टर अनुभववादी होते हुए भी भौतिकवादी न होकर अध्यात्मवादी हैं।

बर्कले अपने अनुभववादी विचार को लॉक के विचारों से ताल मेल कराते हुए आगे बढ़ाई है। बर्कले लॉक के मनोवैज्ञानिक विश्लेषण को मानकर कहते हैं कि हमारा समस्त ज्ञान संवेदनाओं और इन संवेदनाओं के द्वारा होता है। इन्द्रिय बौधी समस्त ज्ञान को उत्पन्न करते हैं किन्तु ऐन्द्रिय बोध जो बर्कले प्रत्यय कहते हैं, वह मन में ही रहते हैं लॉक ने इसके श्रोत के रूप में स्थित पदार्थ की कल्पना की थी, पर बर्कले का मत है कि ऐसा किसी पदार्थ का अस्तित्व नहीं होता। हम केवल मन्स के प्रत्यय का अनुभव करते हैं, जो प्रत्यय इन्द्रियों का देन है, भौतिक पदार्थों का नहीं।

जैसे हमें आँख से रंग या प्रकाश का ज्ञान होता है, जीभ से स्वाद, कान से शब्द इत्यादि का बोध होता है। ये प्रत्यय एकत्र होकर वस्तु की संज्ञा देते हैं और ये संवेदना के द्वारा मिलते हैं। इन प्रत्ययों का संहार रूप वस्तुओं से हमारे मन में सुख-दु:ख, प्रेम, घृणा, आशा-निराशा इत्यादि भावों का ज्ञान होता है। इनका ज्ञान एवं संवेदना से होता है जिसे बर्कले हमारे मन में कल्पना प्रस्तुत और स्मृति जन-प्रत्यय भी है। इसी को बर्कले में प्रत्ययवादी कहते हैं। इस प्रकार बर्कले के लिए अनुभव ज्ञान का साधन है किन्तु वह भौतिक पदार्थों का नहीं बल्कि ईश्वरीय प्रत्ययों का अनुभव है।

(iii) अनुभववाद के तीसरा प्रबल समर्थक ह्यूम ने लॉक और बर्कले के तरह यह मानते हैं कि सभी ज्ञान अनुभवजन्य होते हैं। ह्यूम का कहना है कि अनुभव प्रत्ययों का होता है वस्तु का नहीं। ह्यूम का अनुभववादी विचार लॉक और बर्कले के अनुभववादी विचार के अस्वीकार करते हुए जड़, जगत, ईश्वर और आत्मा के सत्ता को इंकार करते हैं और कहते हैं कि अनुभव केवल प्रत्ययों का ही होता है, जो लगातार आते-जाते रहता है।

हम भ्रमवश एक स्थायी आत्मा की कल्पना कर बैठते हैं, जबकि आत्मा नाम की चीज मनुष्य के पास नहीं है। ह्यूम कार्य कारण नियम का खंडन करता है, जिसे उसके पूर्व लॉक और बर्कले स्वीकार करते हैं। इनका कहना है कि कार्य कारण नियम कोई वृद्धिजन्य और सार्वभौम नियम नहीं है। बल्कि हम अपने अनुभव के आधार पर कार्य कारण के संबंध का ज्ञान प्राप्त करते हैं। हम केवल संवेदना और स्व-संवेदना का अनुभव करते हैं। किसी जड़ पदार्थ का नहीं। इसी तरह आत्मा के बारे में ह्यूम का कहना है कि हमें कभी भी आत्मा का प्रत्यक्षीकरण नहीं होता। आत्मा कुछ नहीं है। केवल भिन्न-भिन्न संवेदनाओं का प्रवाह मात्र है। इसी प्रकार ईश्वर का भी प्रत्यक्ष अनुभव नहीं होता। इसलिए इसकी पत्ता को भी ह्यूम इंकार करते हैं।

प्रश्न 7.
अरस्तू के कारणता सिद्धान्त की व्याख्या करें।
उत्तर:
कारणता सिद्धांत को सामान्य मानव, दार्शनिक तथा वैज्ञानिक सभी स्वीकारते हैं। जिसका मूल सिद्धांत है कि प्रत्येक कार्य का कोई-न-कोई कारण अवश्य होता है। इस मत को पाश्चात दार्शनिक अरस्तू भी स्वीकारते हैं। अरस्तू के अनुसार किसी घटना के चार कारण होते हैं। वे हैं-

  1. उपादान कारण (Material cause)
  2. निर्मित कारण (Efficient cause)
  3. आकारिक कारण (Formal cause)
  4. प्रयोजन कारण (Final cause)

उपादान कारण- किसी वस्तु के निर्माण में जिस उपादान या सामग्री की आवश्यकता पड़ती है उसे उपादान कारण कहते हैं। जैसे-मिट्टी घड़ा के लिए उपादन कारण है।

नामत कारण- किसी वस्तु का निर्मित कारण वह है, जो उपादान में शक्ति या गति प्रदान कर उसमें परिवर्तन लाता है। जैसे-कुम्हार घड़ा का निर्मित कारण माना जाता है।

आकारक कारण- किसी उपादान सामग्री को एक निश्चित दिशा में गति प्रदान करने का काम आकारिक कारण द्वारा सम्पन्न होता है। जैसे कुम्हार द्वारा घड़ा का बनाया जाना है। उनके मन में घड़ा का आकार विद्यमान रहता है तब वो घड़ा बनाता है।

प्रयोजन कारण – किसी वस्तु के निर्माण में प्रयोजन या लक्ष्य अत्यधिक महत्त्वपूर्ण होता है। इसी प्रयोजन या लक्ष्य की पूर्ति के लिए किसी वस्तु का निर्माण होता है। घड़ा का बनकर तैयार होना प्रयोग कारण कहलाता है।

अरस्तू का चारों कारणों को आगे चलकर दो कारणों में सीमित कर देते हैं। उपादान कारण और आकारिक कारण में। निमित कारण एवं प्रयोजन कारण को आकारिक कारण में मिला देते हैं।

अरस्तु के अनुसार किसी भी वस्त के निर्माण में दो तत्त्व रहते हैं- उपादान और आकार। उपादान एक संभावनामार्ग है, परन्तु आकार वास्तविकता संभावना को वास्तविकता में परिणत होना ही किसी वस्तु का उत्पन्न होता है। इस प्रकार किसी वस्तु के निर्माण में आकार मूल प्रेरक का कार्य करता है।

प्रश्न 8.
वैशेषिक के अभाव पदार्थ की व्याख्या करें।
Ans.
वैशेषिक दर्शन में पदार्थों की संख्या दो बताई गई है-

  • भाव पदार्थ जिसका संख्या छ; है। वो है-द्रव्य, गुण, कर्म, सामान्य, विशेष और समवाय।
  • अभाव, अभाव पदार्थ के अंतर्गत अभाव को रखा गया है। वैसे वैशेषिक सूत्र में अभाव की चर्चा नहीं की गई है। बाद के भाष्करों ने अभाव का वर्णन किया है। इस प्रकार वैशेषिक दर्शन में दर्शन की संख्या सात हो जाते हैं।

अभाव किसी वस्तु का न होना कहा जाता है। अभाव का अर्थ किसी वस्तु का किसी विशेष काल में किसी विशेष स्थान में अनुपस्थित है। जैसे-रात्रि में बिस्तर में सर्प का अभाव। अभाव दो प्रकार के होते हैं-

  1. संसर्गाभाव
  2. अन्योन्यभाव।

संसर्गाभाव-दो वस्तुओं के सम्बन्ध के अभाव को कहा जाता है जब एक वस्तु का दूसरी वस्त में अभाव होता है तो उस अभाव को संसर्गाभाव कहा जाता है। जैसे जल में अग्नि का अभाव। संसर्गाभाव तीन प्रकार के होते हैं। प्रागभाव, ह्वसीभाव और अत्यन्ताभाव उत्पत्ति के पूर्व कार्य का भ्रांतिक कारण में अभाव प्रागाभाव है। जैसे-मिट्टी में घड़ा का अभाव। ध्वंस समावय का अर्थ है विनाश के बाद किसी चीज का अभाव। जैसे-घड़े के टूटे हुए टुकड़ों में घड़ा का अभाव। अन्यन्ताभाव दो वस्तुओं के सम्बन्ध का अभाव जो भूत, वर्तमान और भविष्य में रहता है।

अन्योन्यभाव-अन्योन्यभाव का मतलब दो वस्तुओं की भिन्नता। अर्थात् एक वस्तु में दूसरे का पूर्ण निषेध। जैसे-घोड़े गाय नहीं हो सकता। इसे एक रेखा चित्र द्वारा दर्शाया जा सकता है।

प्रश्न 9.
जैन के स्याद्वाद सिद्धान्त की व्याख्या करें। अथवा, स्याद्वाद की व्याख्या करें।
उत्तर:
जैन दर्शन के अनुसार वस्तुओं के अनन्त धर्म होते हैं- ‘अनन्त धर्मकर्म वस्तु’। हम किसी भी वस्तु के जितने गुणों या लक्षणों को जानते हैं, उतने ही गुण या लक्षण उस वस्तु में नहीं होते। वस्तु के ‘अनन्त धर्म’ को जीतना हमारे लिए संभव नहीं है। यह जैन का अनेकान्तवाद है। अब चूँकि हम वस्तु के अनन्त धर्म को नहीं जान सकते। अतः यह कहा जा सकता है कि वस्तु को हम सही-सही नहीं जानते हैं। अत: वस्तुओं के विषय में हमारा ज्ञान एकांगी है। यहाँ जैन दर्शन का स्याद्वाद हमारी सहायता करता है। स्याद्वाद बतलाता है कि हम निरपेक्ष रूप से नहीं कह सकते हैं कि कोई वस्तु है या नहीं है।

स्याद्वाद जैनदर्शन का सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण अंग है। इसकी धारणा है कि सत् का स्वरूप अत्यधिक अनियत भिन्न-भिन्न (निष्कर्ष वाला) है। ‘स्यात्’ शब्द संस्कृत की अस धातु (होना) के विधिलिंग का एक रूप है। इसका अर्थ है-हो सकता है शायद, इसलिए स्याद्वाद शायद का सिद्धांत है। इस सिद्धांत का तात्पर्य है कि वस्तु को अनेक दृष्टिकोणों से देखा जा सकता है और प्रत्येक दृष्टिकोण से एक भिन्न निष्कर्ष प्राप्त होता है। किसी भी वस्तु के सम्बन्ध में हमारा जो निर्णय होता है वह सभी दृष्टियों से सत्य नहीं होता। साधारण मनुष्य का ज्ञान अपूर्ण एवं आंशिक होता है।

हमारे मतभेद का कारण यह है कि हम उपर्युक्त सिद्धान्त को भूल जाते हैं और अपने विचारों को सर्वथा सत्य मानते हैं। इसे एक उदाहरण के द्वारा स्पष्ट किया गया है। छः अन्धे, हाथी के आकार के ज्ञान जानने के उद्देश्य से, हाथी के अंग का स्पर्श करते हैं। कोई उसका पेट, कोई पैर, कोई कान, कोई पूँछ तथा कोई उसका लँड पकड़ता है। प्रत्येक अंधा सोचता है कि उसी ज्ञान में सब कुछ है, शेष गलत है। किन्तु जैसे ही उन्हें यह विश्वास दिलाया जाता है कि प्रत्येक ने हाथी का एक-एक अंग स्पर्श किया है, उनका मतभेद दूर हो जाता है। इस आंशिक ज्ञान के आधार पर जो परामर्श होता है उसे ही ‘नय’ कहते हैं। ‘नय’ एक दृष्टिकोण है जिसके आधार पर तप किसी पदार्थ के विषय में कोई कथन कहते हैं। ‘नय’ को स्पष्ट करते हुए Dr. C. D. Sharma ने लिखा है-A mere statement of relative truth calling it either absolute relative is called Naya.

स्याद्वाद के सम्बन्ध में दो तरह के मत देखने को मिलते हैं। पहला मत उपनिषदों का था कि सत् ही तत्त्व है और दूसरा मत छान्दोग्य उपनिषद् का, किन्तु अस्वीकृत, कि असत ही तत्त्व है। जैनदर्शन के अनुसार ये दोनों ही मत अंशत: सही हैं। जैनों के विचार से तत्त्व का स्वरूप इतना जटिल है कि उसके बारे में इन मतों में से प्रत्येक अंशतः तो सही हैं, लेकिन पूर्णतः सही नहीं है। अतः जैन इस बात का आग्रह करते हैं कि प्रत्येक नया के प्रारम्भ में ‘स्यात’ शब्द का प्रयोग करना चाहिए। स्यात शब्द से यह संकेत होता है कि इसके साथ के प्रयुक्त वाक्य की सत्यता प्रसंग विशेष पर ही निर्भर करती है। अन्य प्रसंगों में वह मिथ्या भी हो सकता है। अतः स्याद्वाद वह सिद्धांत है जो मानता है कि मनुष्य का ज्ञान एकांगी तथा आशिक है।

जैनियों ने भिन्न-भिन्न दृष्टिकोण से परामर्श (Judgement) के भेद किए हैं। जिस परामर्श में किसी वस्तु के साथ उसके अपने धर्म या लक्षण का संबंध जोड़ा जाता है उसको अस्तिवाचक परामर्श कहते हैं। जिस परामर्श में किसी वस्तु का किसी अन्य वस्तु के धर्म या लक्षण के साथ संबंध भाव दिखलाया जाता है, उसे नास्तिवाचक परामर्श कहते हैं। जैन दर्शन के सात प्रकार के. परामर्श के अंतर्गत ये दो परामर्श भी निहित हैं। जैन-दर्शन में इस वर्गीकरण को ‘सप्त-भंगी नय’ कहा जाता है।

प्रश्न 10.
शिक्षा का उद्देश्य क्या है? स्पष्ट करें।
उत्तर:
शिक्षा का उद्देश्य एवं पद्धति समय के अनुसार बदलते रहा है। प्राचीन काल में शिक्षा उद्देश्य चारित्रिक विकास करना होता था तथा धार्मिक शिक्षा दी जाती थी जबकि वर्तमान शिक्षा पद्धति का आधार रोजगार परक है। अर्थात् वही शिक्षा उचित है जो रोजगार दे सके। लेकिन शिक्षा का उद्देश्य न सिर्फ रोजगार परक होना चाहिए, बल्कि व्यक्ति का सर्वांगीण विकास होना चाहिए। इसलिए इस संदर्भ में महात्मा गाँधी ने कहा है शिक्षा ऐसे होनी चाहिए जिससे व्यक्तित्व का विकास हो तथा उसे रोजगार मिल सके। इसीलिए उन्होंने मूल्य युक्त तकनीक शिक्षा की वकालत की है।

वर्तमान में विश्व के सामने अनेकों समस्याएँ, जैसे-भ्रष्टाचार की समस्या, धार्मिक उन्माद, सम्प्रदायवाद, नक्सलवाद आदि। इन सभी के मूल में देख पाते हैं कि हमारी शिक्षा व्यवस्था दोषपूर्ण हैं। तकनीकी शिक्षा के साथ-साथ नैतिक मूल्यपरक शिक्षा आवश्यक है। आध्यात्मिक शिक्षा आवश्यक है। तकनीकी शिक्षा लोगों को रोजगार तो अवश्य दे देता है पर जीने की कला नहीं सिखाती मानव मशीनी जीवन जीते-जीते स्वयं मशीन बन जाता है।

इसलिए व्यावसायिक शिक्षा के साथ-साथ मूल्यपरक शिक्षा दिया जाना चाहिए ताकि व्यक्ति अपने कर्त्तव्य को समझे। परिवार के प्रति, समाज के प्रति एवं राष्ट्र के प्रति क्या कर्त्तव्य होना चाहिए। साथ ही आज धर्म के नाम प्रतिदिन हजारों लोगों की जान जाती है क्यों? क्योंकि धर्म के वास्तविक अर्थ को हम नहीं समझ पाते हैं इसलिए इतिहास, भूगोल की तरह सभी धर्मों की भी शिक्षा प्राथमिक स्तर में दिशा जाना चाहिए।

प्रश्न 11.
बुद्धिवाद की व्याख्या करें।
उत्तर:
बुद्धिवाद वह ज्ञान शास्त्रीय सिद्धान्त है जिसके अनुसार ज्ञान की प्राप्ति मात्र बुद्धि से संभव है। इसके निम्नलिखित विशेषताएँ हैं-

(a) इस सिद्धांत के अनुसार बुद्धि ज्ञानप्राप्ति का एकमात्र साधन है। अनुभव के द्वारा यथार्थ ज्ञान कदापि नहीं मिल सकता।

(b) इस सिद्धांत के अनुसार यथार्थ ज्ञान वह है, जो सार्वभौम (Universal) और अनिवार्य (Necessary) हो। यह ज्ञान सार्वभौम है; क्योंकि यह सभी स्थानों (Place) और सभी कालों (Time) में सत्य होता है। यह ज्ञान अनिवार्य है; क्योंकि इसका अपवाद या विपरीत सत्य नहीं हो सकता। उदाहरण- 2 + 2 = 4। यह हमेशा और सभी स्थान में सत्य है और इसका अपवाद कभी सत्य नहीं हो सकता। बुद्धिवादियों का दावा है कि इस प्रकार के यथार्थ ज्ञान की प्राप्ति केवल बुद्धि द्वारा ही। हो सकती है। अनुभव सीमित है, इसलिए इसके द्वारा सार्वभौम और अनिवार्य ज्ञान मिलना असंभव है।

(c) इस सिद्धांत में जन्मजात या सहज प्रत्यायों (Innate Ideas) का समर्थन किया गया है। जन्मजात प्रत्यय मनुष्य के मस्तिष्क में जन्मकाल से ही विद्यमान रहते हैं। इन्हें अनुभव के द्वारा प्राप्त नहीं किया जा सकता। ये स्वयं सिद्ध (Self-proved) है; क्योंकि इनको सिद्ध करने के लिए किसी अन्य साधन की आवश्यकता नहीं पड़ती। संपूर्ण ज्ञान इन्हीं जन्मजात प्रत्ययों में अव्यक्त रूप से निहित हैं। इन्हीं प्रत्ययों को विकसित करके बुद्धि हमें यथार्थ ज्ञान देती है। इसलिए, बुद्धिवाद को सहज ज्ञानवाद (Innatism) या अनुभवनिरपेक्षवाद (Apriorism) भी कहा जाता है।

(d) बुद्धिवाद के अनुसार ज्ञान की प्राप्ति निगमनात्मक पद्धति (Deductive Method) द्वारा होती है। गणितशास्त्र में निगमनात्मक या ज्यामितिक विधि (Geometrical Method) का सुंदर प्रयोग होता है। गणित में और विशेषकर ज्यामिति में कुछ स्वयंसिद्ध वाक्यों (Axioms) से आरंभ कर निगमनात्मक विधि द्वारा निष्कर्ष निकाला जाता है। इसी प्रकार, बुद्धि स्वसिद्ध जन्मजात प्रत्ययों के आरंभ कर उनके विश्लेषण द्वारा हमें यथार्थ ज्ञान प्राप्त कराती है। यह निगमनात्मक विधि है।

(e) बुद्धि के अनुसार मानव-मस्तिष्क हमेशा सक्रिय रहता है। (Human mind is always active)। यह विचार अनुभववादी विचारक लॉक के मत से सर्वथा भिन्न है। लॉक के अनुसार मस्तिष्क सदा निष्क्रिय (Passive) रहता है। बुद्धिवाद के अनुसार मस्तिष्क सक्रिय होकर ही सहज प्रत्ययों को सुव्यवस्थित करके हमें यथार्थ ज्ञान दिलाने में समर्थ होता है।

प्रश्न 12.
बौद्ध दर्शन के द्वितीय आर्य सत्य की व्याख्या करें। अथवा, द्वितीय आर्य सत्य को द्वादश निदान क्यों कहा जाता है?
उत्तर:
बुद्ध का दूसरा आर्य सत्य दु:ख समुदय है। समुदय का अर्थ है-कारण। दुःख समुदय अर्थात दु:ख का कारण। इस प्रकार द्वितीय आर्य सत्य में बुद्ध ने दुःख की उत्पत्ति या कारण पर विचार किया है। बुद्ध मानते हैं कि प्रत्येक घटना का कोई-न-कोई कारण अवश्य होता है। दुःख भी एक घटना या कार्य है। इसलिए इसका भी कोई कारण अवश्य होना चाहिए। प्रायः सभी भारतीय विचारकों ने अज्ञान को ही दुःख का मूल कारण माना है। बुद्ध ने भी दुःख का कारण अज्ञान को ही माना है। बौद्ध दर्शन का यह दु:ख उत्पत्ति का सिद्धान्त बौद्धों के प्रतीत्य समुत्पाद अर्थात् कार्य कारण का सिद्धान्त भी कहलाता है।

प्रतीत्य समुत्पाद या द्वादश निदान का सिद्धान्त बौद्ध दर्शन का केन्द्रीय सिद्धान्त कहा जा सकता है। बौद्ध दर्शन के अन्य दार्शनिक सिद्धान्त जैसे-क्षणिकवाद, नैरात्म्यवाद, संघातवाद, कर्म का सिद्धान्त तथा अर्थक्रिया करित्वा का सिद्धान्त इसी पर आधारित है। प्रतीत्य समुत्पाद का अर्थ है–एक वस्तु के प्राप्त होने से दूसरी वस्तु की उत्पत्ति अथवा कारण के आधार पर कार्य की उत्पत्ति। प्रतीत्य समुत्पाद के एक सूत्र में कहा जाता है-“अस्मिन् सति इदम् भवति” यह होने पर यह होता है। इस प्रकार प्रतीत्य समुत्पाद सापेक्ष कारणतावाद का सिद्धान्त है। बुद्धि अविछिन्न कारण कार्य के प्रवाह को नहीं मानते। एक के होने से दूसरे की उत्पत्ति वे स्वीकार करते हैं।

प्रतीत्य समुदाय का नियम अमिट और अटल है। यह हेतु समूह को बताता है जो संस्कार आदि की उत्पत्ति के लिए एक-एक हेतु को निर्दिष्ट करता है। बुद्ध मानते हैं कि संसार के सभी ‘सत्व’ इस नियम के वशीभूत हैं। यह अनादि और अनन्त है तथा भूत, भविष्य और वर्तमान सभी कालों में निर्बाध रूप से लागू होता है। बुद्ध प्रतीत्य समुत्पाद को महत्त्व देते हुए कहते हैं-जो देखता है वह धर्म देखता है। और जो धर्म देखता है वह प्रतीत्य समुत्पाद देखता है।

प्रतीत्य समुत्पाद सापेक्ष और निरपेक्ष दोनों है। सापेक्ष दृष्टि से संसार और उसके हेतु निर्देश करता है और निरपेक्ष दृष्टि से निर्वाण का। कुछ मानते हैं कि यह बौद्ध धर्म है। इसको भूल जाना ही दुःख का कारण है और इसके ज्ञान से दुःख का अन्त होता है। नागार्जुन कहता है कि यह सिद्धान्त समस्त प्रपंच को समाप्त कर आनन्द देता है।

प्रतीत्य समुत्पाद में द्वादश अंग हैं। इन अंगों को निदान भी कहते हैं। इसमें एक अंग दूसरे के प्रत्यय से होता है। कारण कार्य की यह शृंखला स्वयं चलती रहती है। बुद्ध ने इसे भावचक्र भी कहा है।

गौतम ने रोग और जरामरण के दृश्यों को देखकर इनकी समस्या को सुलझाने के लिए घर-बार छोड़कर कठिन तपस्या और ध्यान किया। तब उन्हें समस्या के हल के रूप में कारण-कार्य श्रृंखला का यह सिद्धान्त प्राप्त हुआ जिसे वे सीधे और उल्टे दोनों ही क्रम से विवेचित करते हैं। दुःख निर्मिति के स्पष्टीकरण के रूप में उपर्युक्त द्वादश निदान हैं। प्रतीत्य समुत्पाद को कई नामों से पुकारा जाता है। द्वादश निदान, भावचक्र, जन्म-मरण चक्र और धर्मचक्र आदि। तिब्बत के बौद्ध भिक्षु चक्र घुमा-घुमाकर इन बारह कड़ियों का स्मरण करते रहते हैं।

1. अविद्या-अविद्या का अर्थ अज्ञान है। अविद्या के कारण ही संसार का दुःख रूप छिपा है। इसे अज्ञान, मोह, अदर्शन आदि भी कहते हैं। अनित्य में नित्यता, दुःख में सुख और अनात्म भूत जगत में आत्मा को खोजना यह अज्ञान ही अविद्या है। इससे ही संस्कार आदि समस्त भाव विरोधिनी है। अविद्या सभी बुराइयों का बीज है।

2. संस्कार-संस्कार या पूर्वजन्म की कर्मावस्था। अविद्या के कारण सत्य जो भी भला-बुरा कर्म करता है, वही संस्कार कहलाता है। जैसे संस्कार होते हैं वैसी ही उनका फल होता है। यह वह संकल्प शक्ति है जो नवीन अस्तित्व को उत्पन्न करती है। कर्म संस्कार, मनः संस्कार और वाक् संस्कार-ये संस्कार के तीन भेद किये जाते हैं।

3. विज्ञान-विज्ञान वे चित्त धाराएँ हैं जो पूर्ण जन्म में सत्व कर्म करता है उनके विपाक स्वरूप प्रकट होती है। शरीर, संवेदना, इन्द्रियाँ आदि नष्ट होने पर भी विज्ञान बचता है। यह प्राणी के माता के गर्भ में प्रवेश करता है और नवीन जन्म की ओर ले जाता है।

4. नाम रूप- विज्ञान से नामरूप का जन्म होता है। रूप में पृथ्वी, वायु, अग्नि और जल ये चार महाभूत तथा नाम से संज्ञा, वेदना, संस्कार और विज्ञान ये चार स्कन्ध आते हैं। दोनों को मिलाकर ही पंच स्कन्ध नामरूप कहलाते हैं जब विज्ञान माता के गर्भ में प्रति सन्धि ग्रहण करता है। तभी से नाम रूप उत्पन्न होना शुरू हो जाते हैं।

5. षडायतन- पाँच इन्द्रियाँ और मन षडायतन कहलाते हैं। इनसे ज्ञान की प्राप्ति में सहायता मिलती है । आँख, कान, नाक, त्वचा, जिह्वा और मन ये छ: इन्द्रियाँ माता के उदर से बाहर आने पर सत्व प्रयुक्त करता है।

6. स्पर्श- षडायतन से बाह्य संसार का जो सम्पर्क होता है, उसे स्पर्श कहते हैं । ये पंचेन्द्रिय और मन इन भेदों से छः प्रकार का होता है।

7. वेदना- वेदना का अर्थ अनुभव करना है। बाह्य जगत की वस्तुओं के स्पर्श से जो प्रथम प्रभाव मन पर उत्पन्न होता है, वह वेदना है। यह तीन प्रकार की होती है-सुख वेदना, असुखा-दुखा, वेदना।

8. तृष्णा-वेदना से तृष्णा उत्पन्न होती है। यह सब दुखों का मूल है। तृष्णा तीन प्रकार की है

  • काम तृष्णा-इन्द्रिय सुखों की इच्छा,
  • भव तृष्णा-जीवन के लिए,
  • विभव तृष्णा-वैभव के लिए।

ये तीनों तृष्णाएँ सत्व को भव चक्र में घुमाती रहती हैं। जबतक इच्छा या तृष्णा बाकी रहती है तब तक सत्व का जन्म होता रहता है और जब तृष्णा नहीं रह जाती तब के लिए कोई अवसर नहीं रहता।

9. उपादान-उपादान अर्थात् जगत को वस्तुओं के प्रति राग और मोह से सत्व का दृढ़तापूर्वक बन्धन उपादान की तृष्णा की आग को ईंधन प्रदान करते हैं। ये चार प्रकार के होते हैं-

  • शीलवतोपादान-व्यर्थ के शीलाचार में लगे रहना
  • दृष्ट्युपादान-मिथ्या सिद्धान्तों में विश्वास करना
  • आत्मवादोपादान-आत्मा के अस्तित्व में दृढ़ आग्रह करना
  • कालोपादान-अर्थात् वासनाओं में चिपटे रहना ।

10. भव-पुनर्जन्म के कारण कराने वाले कर्म को भव कहा गया है। भव से जन्म होता है।

11. जाति-उत्पन्न होना जाति है। पूर्व भव के कारण सत्व उत्पन्न होता है और वह संसार चक्र में फंसता है।

12. जरा-मरण-बुढ़ापा तथा मृत्यु इन दो अवस्थाओं को जरामरण कहा गया है। बुद्ध इनके अन्दर समस्त दुःखों का समावेश कर लेते हैं। संसार में जन्म के कारण सत्व, दुःख, रोग, निराशा, कष्ट, बुढ़ापा और अन्त में मृत्यु को प्राप्त करता है।

बुद्ध द्वादश निदान को (कार्य कारण) को इस उल्टे क्रम में समझाते हुए कहते हैं कि सत्व के सभी दु:खों तथा जरामरण का कारण जाति है। जाति का कारण भव, भव का कारण उपादान, उपादान का कारण वेदना, वेदना का कारण स्पर्श, स्पर्श का कारण षडायतन, षडायतन का कारण नामरूप, नामरूप का कारण विज्ञान, विज्ञान का कारण संस्कार और संस्कार का कारण अविद्या है। बुद्ध का अभिप्राय है कि हेतु से उत्पन्न होने वाले धर्मों के हेतु को जानना और उनका विरोध करने से निर्वाण की प्राप्त होती है।

ये धम्मा हेतुप्पभवा हेतु तेसं तथा गतो आह।
तेसं चयो निरोधो एवं वादी महसभणो।।

प्रश्न 13.
अन्तक्रियावाद और समानान्तरवाद में अन्तर करें।
उत्तर:
अन्तक्रियावाद (Interactionism)- मन शरीर संबंध का विश्लेषण देकार्त, स्पिनोजा और लाइबनीज ने अपने-अपने ढंग से प्रस्तुत किया है। देकार्त्त का विचार है अन्तक्रियावाद (Interactionism), स्पिनोजा का विचार समानान्तरवाद (Parallelism) और लाइबनिज का विचार पूर्वस्थापित सामंजस्यवाद (Theory of Pre-established Harmony) कहलाता है। देकार्त के अनुसार मन और शरीर एक-दूसरे से स्वतंत्र है। मन चेतन है। शरीर जड़ है।

अत: दोनों का स्वरूप भिन्न है। फिर भी उनमें पारस्परिक संबंध है जिसे देकार्त ने अन्तक्रिया संबंध (relation of interaction) कहा है। जब भूख लगती है तो मन खिन्न रहता है। भोजन करने से भूख मिटती है और मन तृप्त होता है। मन में निराशा होती है, तो किसी काम को करने की इच्छा नहीं होती है। हाथ-पैर हिलाने से काम होता है। इस प्रकार विरोधी स्वभाववाले ये दो सापेक्ष द्रव्य एक-दूसरे पर निर्भर है।

समानान्तारवाद (Parallelism)- पाश्चात्य विचारक स्पिनोजा ने मन-शरीर संबंध की व्याख्या के लिए सिद्धांत का प्रणयन किया है, उसे समानांतरवाद कहा जाता है। स्पिनोजा की मान्यता है कि मन और शरीर सापेक्ष द्रव्य नहीं हैं, जैसा की देकार्त ने स्वीकार किया है। चैतन और विस्तार क्रमश: मन और शरीर के गुण हैं तथा ये गुण ईश्वर में निहित रहते हैं। ये दोनों गुण ईश्वर के स्वभाव हैं। ये दोनों विरोधी स्वभाव नहीं है, बल्कि रेल की पटरियों के समान समानांतर स्वभाव हैं। इन दोनों की क्रियाएँ साथ-साथ होती हैं। ….

प्रश्न 14.
परिवेशीय नीतिशास्त्र क्या है?
उत्तर:
परिवेश अथवा पर्यावरण दो शब्दों से मिलकर बना है-परि + आवरण। परि का अर्थ है ‘चारों ओर’ और ‘आवरण’ का अर्थ है ‘घेरा’ अर्थात् हमारे चारों ओर जो भी प्राकृतिक और मानव निर्मित चीजें हैं जिसमें जैव एवं अजैव घटक जैसे-पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि, पेड़-पौधे, समस्त जीव एवं पशुजगत पर्यावरण के अंतर्गत आते हैं। हरकोविट्ज ने पर्यावरण को परिभाषित करते हुए कहा है-“किसी जीवित तत्त्व के विकास चक्र को प्रभावित करने वाले समस्त बाह्य दशाओं को पर्यावरण कहते हैं।

मानव सभ्यता का विकास पर्यावरण की गोद में हुआ है। मानव सदा से पर्यावरण पर निर्भर रहे हैं लेकिन वर्तमान में वैश्वीकरण, उदारीकरण, औद्योगिकीकरण, जनसंख्या वृद्धि के कारण जिस प्रकार से मानव पर्यावरण का दोहन किया है कि सम्पूर्ण पारिस्थितिकी में असंतुलन उत्पन्न हो गया है जो सम्पूर्ण प्राणी जगत के अस्तित्व का संकट उत्पन्न हो गया है। आज पर्यावरण के मुख्य घटक जल, वायु, पृथ्वी आदि प्रदूषित हो गई है। जल प्रदूषण का मूल कारण औद्योगिक करों को सीधे नदी में बहाया जाना शहर की नाली को सीधे नदी में बहाया जाना जिसमें जल प्रदूषण उत्पन्न हो गई है जिसका प्रमुख समस्त प्राणी जगत. पर पड़ रहा है।

वायु प्रदूषण का मूल कारण औद्योगिक चिमनी का वायु में छोड़ा जाना, नाभिकीय विस्फोट, परिवहन का विषैला गैस का वातावरण में छोड़ा जाना जिससे वायुमंडल गर्म हो गया जिसका प्रभाव ग्लोबल वार्मिंग ध्रुवीय प्रदेश का बर्फ का पिघलना, ओजोन परत में छेद होना आदि जिसका समस्त प्राणी जगत पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है।

इस प्रकार पर्यावरण प्रदूषण की समस्या समस्त प्राणी जगत के लिए एक गंभीर चिंता का विषय बन गया है जिसका निदान आवश्यक है अन्यथा प्राणी जगत का अस्तित्व समाप्त हो जाएगा।

प्रश्न 15.
शिक्षा दर्शन की व्याख्या करें। अथवा, शिक्षा दर्शन की परिभाषा दें तथा इसके दार्शनिक आधारों की विवेचना करें।
उत्तर:
शिक्षा दर्शनशास्त्र की वह शाखा है जिसमें शिक्षा के अर्थ, उद्देश्य, स्वरूप और विषय-वस्तु का अध्ययन दार्शनिक दृष्टि से किया जाता है। दार्शनिक दृष्टि का तात्पर्य है कि शिक्षा के विस्तृत आयाम का अध्ययन समग्र रूप में करना। समग्रता ही दर्शन है। दर्शन का मुख्य उद्देश्य सत्य की खोज है। शिक्षा का उद्देश्य सत्य ज्ञान (True knowledge) देना है। दर्शन में हम जिस सत्य की खोज करते हैं वह परमतत्त्व है जिस पर समस्त विश्व आधारित है। उस परमतत्त्व का ज्ञान उसे ही होता है जो शिक्षित है अर्थात् शिक्षा द्वारा सत्य ज्ञान की प्राप्ति होती है। अतएव शिक्षा और दर्शन में अवियोज्य संबंध है। यदि दर्शन साध्य है तो उसका साधन शिक्षा है। यही कारण है कि भारतीय मनीषियों ने शिक्षा के महत्त्व को रेखांकित करते हुए कहा है कि सा विद्या या विमुक्त्ये।

अर्थात् विद्या या ज्ञान या शिक्षा वही है जो मानव को मुक्ति दिलाये। भारतीय दार्शनिकों ने मानव-जीवन का चरम लक्ष्य मोक्ष (मुक्ति) को माना है। बौद्ध एवं जैन दार्शनिकों ने मुक्ति को क्रमशः निर्वाण और कैवल्य की संज्ञा दी है। चार्वाक दर्शन में देहोच्छेद (मृत्यु) को मोक्ष कहा गया है। यदि मोक्ष की शास्त्रीय अवधारणा पर विचार किया जाय तो मोक्ष मृत्यु नहीं है वरन् मानव-जीवन में निहित विकारों और कुविचारों का अंत है। इनके अंत के साथ ही मानव-व्यक्तित्व अपनी पूर्णता में आ जाता है और सामाजिक समग्रता और समरसता स्थापित हो जाती है। शिक्षा हमें इसी समग्रता और समरसता की ओर ले जाती है।

शिक्षा ‘शिक्ष्’ धातु से व्युत्पन्न है। शिक्ष् का अर्थ सीखना और सिखाना दोनों है। अतएव शिक्षा, जैसा कि पाणिनी ने कहा है, संस्कृत शब्द जो ‘शिक्ष्’ विद्योपादाने धातु से ‘गुरोश्च हल’ सूत्र भावार्थ में ‘अ’ प्रत्यय करने पर निष्पन्न माना गया है। इस परिभाषा में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि शिक्षा वह है जो गुरु द्वारा प्रस्तुत समाधान से प्राप्त होती है, अर्थात् शिक्षा गुरु के बिना प्राप्त नहीं होती। कहा भी गया है कि
गुरु गोविन्द दोऊ खड़े, काके लागू पाय।
बलिहारी गरु की. जिन दीऊ बताय।।
तात्पर्य यह है कि शिक्षा के दो मुख्य तत्त्व हैं-गुरु और शिष्य। शिष्य गुरु द्वारा शिक्षा ग्रहण करता है। प्रश्न है गुरु किस तरह शिष्य को शिक्षा देता है ? दूसरे शब्दों में, शिक्षा का तरीका क्या है ? इस प्रश्न का उत्तर देने के पूर्व पाश्चात्य दृष्टिकोणं से शिक्षा को परिभाषित करना आवश्यक है।

आश्रम व्यवस्था की शिक्षा प्रणाली और अकादमी शिक्षा प्रणाली दोनों में यह सम्मिश्रण देखने को मिलता है। ब्रह्मचर्य आश्रम की शिक्षा का आरंभ ईश्वर-भक्ति से होता है। आसन, प्राणायाम आदि शारीरिक क्रियाओं के पश्चात् वेद, वेदांग आदि शास्त्रों की शिक्षा मिलती है। अकादमीय शिक्षा प्रणाली के अनुसार आरम्भ में बच्चों को मात्र शारीरिक शिक्षा (Physical education) देना चाहिए। तत्पश्चात् विभिन्न विषयों की शिक्षा प्रदान करना चाहिए। शारीरिक शिक्षा शरीर और मन दोनों को स्वस्थ रखने के लिए आवश्यक है। अन्य विषयों के ज्ञान से बौद्धिक विकास होता है। शरीर और बुद्धि दोनों का विकास होने पर ही मनुष्य का सर्वांगीण विकास होता है। मानव व्यक्तित्व अपनी पूर्णता को प्राप्त करता है। आज की शिक्षा प्रणाली शारीरिक शिक्षा पर कम ध्यान देती है। मात्र बौद्धिक शिक्षा पर बल देती है। फलतः शिक्षा का मूल उद्देश्य ही समाप्त हो जाता है।

प्रश्न 16.
क्या शंकर के अनुसार जगत् असत्य है ? अथवा, शंकर के जगत विचार की व्याख्या करें।
उत्तर:
शंकर एकतत्ववादी है। ब्रह्म को छोड़कर शेष सभी वस्तुएँ जगत्, ईश्वर सत्य नहीं है। वह ब्रह्म को ही एकमात्र सत्य मानता है। उपनिषद् के अनुसार ब्रह्म के दो स्वरूप है-शब्द, स्पर्श आदि से रहित निर्विवेक, निर्गुण, निराकार, ब्रह्म और गुणों से युक्त सगुण, साकार ब्रह्म। निर्गुण ब्रह्म को परब्रह्म तथा सगुण ब्रह्म को अपर ब्रह्म या ईश्वर कहा गया है। शंकर उपनिषद के समान ब्रह्म के निर्गुण और सगुण भेद को स्वीकार करते हैं। शंकर के अनुसार निर्गुण ब्रह्म को सत्, परमार्थ सत्य, परमार्थ-तत्व, भूमा, निरतिशय, कूटस्थ, नित्य, एक समस्त विशेषण रहित, दिग्देशक, लाद्यनपेक्ष, सर्वसंसार धर्म वर्जित निरस्त, सर्वोपाधिक सर्वगत, चैतन्य मात्र सत्ता, निराकृत सर्वनाम रूप, कर्म ज्ञान ज्ञेय ज्ञात भेद रहित आदि कहा गया है। शंकराचार्य केवल इसी निर्गुण ब्रह्म या आत्मा को एकमात्र तत्व मानते हैं, अतः अद्वैतवादी कहलाते हैं। परमार्थिक दृष्टि से यही परम तत्व है। परन्तु व्यावहारिक दृष्टि से अपर ब्रह्म या ईश्वर भी सत्य है।

शंकर का ब्रह्म सत्य होने के नाते सभी प्रकार के विरोधों से मुक्त है। शंकर का ब्रह्म प्रत्यक्ष विरोध और संभावित विरोध से शून्य है। ब्रह्म त्रिकाल बाधित सत्ता है। ब्रह्म व्यक्तित्व से शून्य है। व्यक्तित्व (Personality) में आत्मा (self) और अनात्मा (Not Self) का भेद रहता है। ब्रह्म सब भेदों से शून्य है। इसलिए ब्रह्म को निर्व्यक्तिक (Impersonal) कहा गया है। ब्रैडले ने भी ब्रह्म को व्यक्तित्व से शून्य माना है। शंकर ने ब्रह्म को अनन्त असीम कहा है। वह सर्वव्यापक है। उसका आदि और अंत नहीं है। वह सबका कारण होने के कारण सब का आधार है।

शंकर के ब्रह्म की सबसे प्रमुख विशेषता यह है कि उन्होंने ब्रह्म को अनिवर्चनीय माना है। ब्रह्म को शब्दों के द्वारा प्रकाशित करना असंभव है। ब्रह्म को भावात्मक रूप से जानना भी संभव नहीं है। हम यह नहीं जान सकते हैं कि “ब्रह्म” क्या है अपितु हम यह जान पाते हैं कि “ब्रह्म क्या नहीं है।” उपनिषद में ब्रह्म का “नेति-नेति’ कहकर वर्णन किया गया है। शंकर उपनिषद के इस विचार के आधार पर ही ब्रह्म की व्याख्या करता है। नेति-नेति का शंकर के दर्शन में इतना प्रभाव है कि वह ब्रह्म को एक कहने की बजाय अद्वैत (Non-dualism) कहते हैं।

शंकर के अनुसार जो सत है वही चित् है, जो चित् है वही सत् है। अतः शंकर ने परमार्थिक सत्य तथा ज्ञानात्मक सत्य में कोई भेद नहीं माना है। ज्ञान के क्षेत्र में भी ज्ञान, ज्ञाता, ज्ञेय में कोई भेद नहीं है। शंकर का ब्रह्म सब प्रकार के गुणों से परे होकर भी निषेधात्मक नहीं है। निरपेक्ष सहज ज्ञान द्वारा उसका अनुभव किया जा सकता है। ब्रह्म आनन्द स्वरूप है। ब्रह्मानन्द अनुभव का विषय है। ज्ञान ब्रह्म का गुण नहीं बल्कि स्वरूप है। गुणातीत होने के कारण वह निर्गुण है। शंकर के ब्रह्म का वर्णन नेति-नेति के आधार पर ही किया है। वह सत् है, चित् है तथा आनंद स्वरूप है।

प्रश्न 17.
परार्थानुमान क्या है?
उत्तर:
प्रयोजन के अनुसार अनुमान के दो प्रकार होते हैं-(क) स्वार्थानुमान और (ख) परार्थानुमान। अनुमान दो उद्देश्यों से किया जा सकता है-अपनी शंका के समाधान के लिए या दूसरों के सम्मुख किसी तथ्य को सिद्ध करने के लिए। जब अनुमान अपनी शंका के समाध न के लिए किया जाता है तब उसे स्वार्थानुमान कहते हैं। ऐसे अनुमान में तीन वाक्य रहते हैं-निगमन हेतु और व्याप्ति वाक्य। उदाहरण-

राम मरणशील है-निगमन
क्योंकि वह मनुष्य है-हेतु
∴ सभी मनुष्य मरणशील है-व्याप्तिवाक्य

जब अनुमान दूसरों को समझाने के लिए किया जाता है तब इसे परार्थानुमान कहते हैं। इसमें पाँच वाक्य होते हैं-प्रतिज्ञा, हेतु, व्याप्तिवाक्य, उपनय और निगमन। इसे “पंचवयव-न्याय” कहते हैं। इसके द्वारा दूसरों के सम्मुख किसी तथ्य को सिद्ध करने का प्रयास किया जाता है।

उदाहरण-

  1. राम मरणशील है-प्रतिज्ञा
  2. क्योंकि वह एक मनुष्य है-हेतु
  3. सभी मनुष्य मरणशील है, जैसे-मोहन, रहीम इत्यादि-उदाहरण
  4. राम भी एक मनुष्य है-उपनय
  5. इसलिए राम मरणशील है-निगमन।

प्रश्न 18.
सांख्य की प्रकृति के तीन गुणों की व्याख्या करें।
उत्तर:
प्रकृति त्रिगुणात्मक है। सत्व, रजस् और तमस्-वे प्रकृति के तीन गुण हैं। ये तीनों गुण प्रकृति के विशेषण नहीं बल्कि प्रकृति के निर्णायक तत्त्व हैं और इन्हीं तीनों गुणों की साम्यावस्था को प्रकृति कहा जाता है।

सत्व- यह ज्ञान का प्रतीक एवं सुख का कारण है। यह प्रकाशक है। मन एवं बुद्धि में प्रकाश, दर्पण में प्रतिबिम्ब की शक्ति, पदार्थों के हल्के होने पर ऊपर उठने की प्रवृत्ति इसी तत्त्व के कारण हैं। यह सुख, प्रेम, आनन्द, उल्लास आदि का सिद्धांत है। इसका रंग सफेद होता है।

रजस- यह दुःख का कारण है। मन का भारीपन एवं हृदय पर बोझ इसी गुण के कारण होता है। यह स्वयं गतिशील और अन्य वस्तुओं को गति प्रदान करता है। इसका रंग लाल होता है।

तमस्- आलस्य, उदासीनता, जड़ता आदि तमस् के कारण होती है। यह अज्ञान एवं अंधकार का प्रतीक है। यह भारी होता है और इसलिए सत्व का विरोधी है और गति में बाधा पहुँचाकर कभी-कभी रजस् का भी विरोधी बन जाता है। इसका रंग काला होता है।

ये तीनों गुण यद्यपि स्वभाव में एक-दूसरे से एकदम ही भिन्न और विरोधी भी हैं, फिर भी तीनों गुणों में सहयोग भी होता है और तीनों साथ-साथ रहते हैं। एक ही वस्तु किसी को सुख, किसी को दुख पहुँचाता है और किसी अन्य में तटस्थता का भाव उत्पन्न करता है। एक सुन्दर स्त्री अपने पति को सुख, ईर्ष्यालु को दुःख पहुँचाती है तो सज्जनों को तटस्थ या उदासीन बनाती है। इन तीनों गुणों में विरोध रहते हुए भी सहयोग होता है। इसे सांख्य ने एक उपमा द्वारा समझाने का प्रयास किया है। जिस प्रकार तेल, बत्ती और अग्नि परस्पर भिन्न होते हुए भी एक साथ मिलकर प्रकाश उत्पन्न करते हैं उसी प्रकार ये तीनों गुण परस्पर भिन्न होते हुए भी सहयोग द्वारा सांसारिक वस्तुओं को उत्पन्न करते हैं।

इन गुणों में सतत् परिवर्तन होते रहते हैं। ये परिवर्तन दो प्रकार के होते हैं-सरूप परिणाम और विरूप परिणाम। सरूप परिणाम परिवर्तन तब होता है जब प्रत्येक गुण अन्य गुणों से अलग होकर अपने आप में सिमट जाता है, सत्व परिवर्तित होता है सत्व में, रजस् रजस् में, तमस् तमस् में। यह अवस्था प्रकृति की शान्तावस्था है। जब किसी कारणवश एक अन्य दो गुणों को दबाकर आगे बढ़ने का प्रयास करता है तो प्रकृति की साम्यावस्था भंग हो जाती है, प्रकृति में एक प्रकार की हलचल सी उत्पन्न हो जाती है। यहाँ सृष्टि का क्रम आरम्भ हो जाता है। इसे ही विरूप परिणाम परिवर्तन कहते हैं।

Bihar Board 12th Physics Objective Important Questions Part 1

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Bihar Board 12th Physics Objective Important Questions Part 1

प्रश्न 1.
1 eV का मान होता है-
(a) 1.2 × 10-18J
(b) 1.6 × 10-13J
(c) 1.6 × 10-19J
(d) 3.2 × 10-19J
उत्तर:
(c) 1.6 × 10-19J

प्रश्न 2.
समान त्रिज्याओं के ताँबे के एक खोखले एवं एक ठोस गोलों को समान विभव एक आवेशित किया जाता है। किस गोले पर अधिक आवेश जमा होगा।
(a) ठोस गोला
(b) दोनों गोला समान आवेश रखेगा
(c) कुछ नहीं कहा जा सकता है।
उत्तर:
(c) कुछ नहीं कहा जा सकता है।

प्रश्न 3.
विद्युत क्षेत्र की तीव्रता का मात्रक होता है :
(a) n/m
(b) v/m
(c) v/m2
(d) डाइन /cm2
उत्तर:
(b) v/m

प्रश्न 4.
विद्युत विभव का मात्रक (unit) होता है
(a) J/c
(b) J/c2
(c) J2/c
(d) V/m
उत्तर:
(a) J/c

प्रश्न 5.
संधारित्र (capacitor) या संचक (Condenser) का काम है-
(a) धारिता को बढ़ाना
(b) धारिता को घटाना
(c) धारिता को न तो बढ़ाना और न घटना
(d) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(a) धारिता को बढ़ाना

प्रश्न 6.
c1 तथा c2 धारिता वाले दो संधारित्रों को समानान्तर क्रम में जोड़ने पर समतुल्य (Eqivalent) धारिता होती है-
(a) c1 – c2
(b) c1 + c2
(c) c2 – c1
(d) \(\frac{c_{1} c_{2}}{c_{1}+c_{2}}\)
उत्तर:
(b) c1 + c2

प्रश्न 7.
संघारित्र की ऊर्जा होती है-
(a) \(\frac{1}{2}\) cν
(b) \(\frac{1}{2}\) c2ν
(c) \(\frac{1}{2}\) cν2
(d) \(\frac{1}{2} \frac{c^{2}}{v}\)
उत्तर:
(c) \(\frac{1}{2}\)cν2

प्रश्न 8.
इनमें से कौन सदिश है?
(a) आवेश
(b) धारिता
(c) विद्युता तीव्रता
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(c) विद्युता तीव्रता

प्रश्न 9.
समविभवीतल और विद्युत बल रेखा एक-दूसरे को
(a) 0° पर काटती है
(b) 90° पर काटती है
(c) नहीं काटती है
(d) किसी भी कोण पर काट सकती है
उत्तर:
(b) 90° पर काटती है

प्रश्न 10.
दो बिन्दुओं पेश + 3μc तथा + 8μc एक-दूसरे को 40N केवल से प्रतिकर्षि होते हैं। अगर उनमें से प्रत्येक पर 5uc आवेश दिया जाय तो उनके बीच बल होगा-
(a) +10 N
(b) +20N
(c) -20N
(d) -10 N
उत्तर:
(d) -10 N

प्रश्न 11.
विद्युत द्विध्रुव आघूर्ण का SI मात्रक होता है.
(a) डीवाई
(b) em
(c) Vm
(d) Nm
उत्तर:
(b) em

प्रश्न 12.
जब उच्च ऊर्जा की UV Photon किसी विद्युत क्षेत्र में प्रवेश करता है, तो
(a) त्वरित
(b) अवदित
(c) अविचलित
(d) कोई नहीं
उत्तर:
(c) अविचलित

प्रश्न 13.
गोलीय खोल के अन्दर विद्युत तीव्रता होती है :
(a) शून्य
(b) नियत
(c) अनन्त
(d) परिवर्तनशील
उत्तर:
(a) शून्य

प्रश्न 14.
साबुन के एक बुलबुले की आविष्ट करने पर उसकी त्रिज्या :
(a) बढ़ती है
(b) घटती है
(c) अपरिवर्तित रहती है
(d) शून्य हो जाती है
उत्तर:
(a) बढ़ती है

प्रश्न 15.
Electron volt द्वारा मापा जाता है :
(a) आवेश
(b) विभवान्तर
(c) धारा
(d) ऊर्जा
उत्तर:
(d) ऊर्जा

प्रश्न 16.
किसी संधारित्र (capacitor) की धारिता का मात्रक है :
(a) वोल्ट
(b) न्यूटन
(c) फैराडे
(d) आम्पीयर
उत्तर:
(c) फैराडे

प्रश्न 17.
आवेश वितरण से होता है :
(a) ऊर्जा का ह्रास
(b) ऊर्जा की वृद्धि
(c) ऊर्जा नियत
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(a) ऊर्जा का ह्रास

प्रश्न 18.
समानान्तर प्लेट संधारित्र में जब वायु के स्थान पर उच्च परावैद्युत :
(a) बढ़ती है
(b) घटती है
(c) इन में कोई परिवर्तन नहीं होता है
(d) शून्य हो जाता है
उत्तर:
(a) बढ़ती है

प्रश्न 19:
Van Graff generator एक ऐसा मशीन है जिससे उत्पन्न होता है :
(a) उच्च धारा
(b) उच्च वोल्टता
(c) उच्च धारा तथा वोल्टता दोनों
(d) केवल अल्पधारा तथा वोल्टता
उत्तर:
(b) उच्च वोल्टता

प्रश्न 20.
किसी माध्यम की आपेक्षिक विद्युतशीलता हमेशा बड़ा होता है :
(a) 0
(b) 1
(c) 0.5
(d) 2
उत्तर:
(b) 1

प्रश्न 21.
एक डाइइलेक्ट्रिक माध्यम के अणु का द्विध्रुव आघूर्ण शून्य है तो इसे कहते हैं-
(a) ध्रुवीय
(b) अध्रुवीय
(c) कोई भी
(d) कोई नहीं
उत्तर:
(b) अध्रुवीय

प्रश्न 22.
एक विद्युत परिपथ में एक बिन्दु पर मिलने वाली धाराओं का बीजगणित योग होता है :
(a) शून्य
(b) अनन्त
(c) धनात्मक
(d) ऋणात्मक
उत्तर:
(a) शून्य

प्रश्न 23.
Wheat stone bridge को मापने में व्यवहार किया जाता है :
(a) सिर्फ उच्च प्रतिरोध
(b) सिर्फ निम्न प्रतिरोध
(c) उच्च प्रतिरोध तथा निम्न प्रतिरोध
(d) विभवान्तर
उत्तर:
(c) उच्च प्रतिरोध तथा निम्न प्रतिरोध

प्रश्न 24.
सेल का वि० वा० बल मापा जाता है :
(a) वोल्टमीटर द्वारा
(b) विभवमापी द्वारा
(c) आमीटर द्वारा
(d) गैल्वेनोमीटर
उत्तर:
(b) विभवमापी द्वारा

प्रश्न 25.
दो बिन्दु आवेश Q तथा -2Q एक-दूसरे से कुछ दूरी पर रखे हैं। आवेश Q के नजदीक अगर तीव्रता E हो तो -2Q आवेश के नजदीक तीव्रता होगा-
(a) \(\frac{-E}{2}\)
(b) \(\frac{-3 \mathrm{E}}{2}\)
(c) -E
(d) -2E
उत्तर:
(a) \(\frac{-E}{2}\)

प्रश्न 26.
अगर किसी विद्युत क्षेत्र में तीव्रता E है तो इसमें विद्युत स्थैतिक ऊर्जा घनत्व समानुपाती होता हैं
(a) E
(b) E2
(c) \(\frac{1}{\mathrm{E}^{2}}\)
(d) E3
उत्तर:
(b) E2

प्रश्न 27.
kWh (किलो वाट हॉवर) मात्रक है-
(a) ऊर्जा का
(b) शक्ति का
(c) विधुत का
(d) ध्रुव सामर्थ्य का
उत्तर:
(a) ऊर्जा का

प्रश्न 28.
विभवान्तर को स्थिर रखते हुए किसी विद्युत परिपथ के प्रतिरोध को आधा करने पर उत्पन्न होगा:
(a) आधा
(b) दुगुना
(c) चार गुना
(d) समान
उत्तर:
(b) दुगुना

प्रश्न 29.
किसी विद्युत बल्ब के धारा को 1% से बढ़ाने पर उसकी शक्ति बढ़ती है :
(a) 2%
(b) 1%
(c) 0.01%
(d) 4%
उत्तर:
(a) 2%

प्रश्न 30.
वाट (watt) बराबर होता है :
(a) ओम × आम्पीयर
(b) वोल्ट × ओम
(c) आम्पीयर × जुल
(d) वोल्ट × आम्पीयर
उत्तर:
(d) वोल्ट × आम्पीयर

प्रश्न 31.
विद्युत ऊर्जा को ऊष्मा ऊर्जा में बदलने वाले परिपथ के गुण को कहा जाता है:
(a) धारा
(b) वोल्टेज
(c) चुम्बकत्व
(d) प्रतिरोध
उत्तर:
(d) प्रतिरोध

प्रश्न 32.
एम्पीयर घंटा (Ah) मात्रक होता है-
(a) शक्ति का
(b) आवेश का
(c) ऊर्जा का
(d) विभवान्तर का
उत्तर:
(b) आवेश का

प्रश्न 33.
दो भिन्न धातुओं के तारों की संधि से जब विद्युत धारा प्रवाहित की जाती है तब Junction पर ऊष्मा उत्पादन या अवशोषण होता है। इस प्रभाव को कहते हैं :
(a) जूल का प्रभाव
(b) Pelties का प्रभाव
(c) सीबेक प्रभाव
(d) Thomson प्रभाव
उत्तर:
(b) Pelties का प्रभाव

प्रश्न 34.
कूलम्ब बराबर होता है :
(a) वोल्ट/सेकेण्ड
(b) आम्पीयर/सेकेण्ड
(c) वोल्ट × सेकेण्ड
(d) आम्पीयर × सेकेण्ड
उत्तर:
(d) आम्पीयर × सेकेण्ड

प्रश्न 35.
आम्पीयर-घंटा एक मात्रक है :
(a) शक्ति का
(b) ऊर्जा का
(c) संचायक सेल की धारिता का
(d) प्रतिरोध का
उत्तर:
(c) संचायक सेल की धारिता का

प्रश्न 36.
एक फैराडे (Faraday) बराबर होता है :
(a) 96500 A
(b) 96500 c
(c) 96500 v
(d) 96500 N
उत्तर:
(b) 96500 c

प्रश्न 37.
तीन तार को समानान्तर क्रम में जोड़ा जाता है। प्रत्येक का प्रतिरोध 3 ओम है। इसकी समतुल्य धारिता होगी :
(a) 1 ओम
(b) 3 ओम
(c) 9 ओम
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(a) 1 ओम

प्रश्न 38.
विद्युत चुम्बकीय प्रेरण के नियम को कहा जाता है :
(a) न्यूटन का नियम
(b) ओम का नियम
(c) फैराडे का नियम
(d) आम्पीयर का नियम
उत्तर:
(c) फैराडे का नियम

प्रश्न 39.
लेन्ज का नियम (Lenz’s law) किस संरक्षण के सिद्धान्त पर काम करता है?
(a) आवेश
(b) ऊर्जा
(c) द्रव्यमान
(d) संवेग
उत्तर:
(b) ऊर्जा

प्रश्न 40.
किसी विन्दु आदेश के कारण उत्पन्न क्षेत्र में किसी विन्दु (x, y, z) पर उत्पन्न विभव V = 3x2 + 5 हैं जहाँ 1, 2 मीटर में तथा V वोल्ट में है, तो बिन्दु (-2,1,0) पर तीव्रता होगा-
(a) +17Vm-1
(b) -17Vm-1
(c) -12V/m-1
(d) -12V/m
उत्तर:
(c) -12V/m-1

प्रश्न 41.
प्रेरणा कुण्डली (Induction coil) द्वारा प्राप्त किया जाता है :
(a) अधिक धारा
(b) अधिक वोल्टेज
(c) कम धारा
(d) कम वोल्टेज
उत्तर:
(b) अधिक वोल्टेज

Bihar Board 12th Business Economics Important Questions Long Answer Type Part 1 in Hindi

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Bihar Board 12th Business Economics Important Questions Long Answer Type Part 1 in Hindi

प्रश्न 1.
माँग के नियम की रेखाचित्र द्वारा व्याख्या कीजिए। किसी वस्तु की माँग को प्रभावित करने वाले पाँच तत्वों का वर्णन करें।
उत्तर:
माँग के नियम का रेखाचित्र द्वारा प्रदर्शन- मार्शल के अनुसार ‘मूल्य में कमी के साथ माँग में वृद्धि के साथ माँग की मात्रा में कमी आती है।’ (The amount demanded increases with a foll in Price and diminishes with a rise in Price-Marshall.)

इस बात को मार्शल ने बच्चों के सी-सौ (See-saw) खेल के द्वारा भी समझाया है। इस उदाहरण से यह बात स्पष्ट हो जाती है-
Bihar Board 12th Business Economics Important Questions Long Answer Type Part 1, 1

इस उदाहरण में ऊपर से नीचे देखने पर मालूम हो जाता है कि मूल्य में ज्यो-ज्यों कमी होती है। तो माँग में उसी तरह वृद्धि होती है। इसके विपरीत नीचे से ऊपर देखने पर यह मालूम हो जाता है कि मूल्य वृद्धि के फलस्वरूप माँग में कमी होती जाती है। इसी बात को निम्न रेखाचित्र द्वारा दिखलाया जाता है-
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इस रेखाचित्र से Ox नारंगी की मात्रा को और OY उसके मूल्य को बतलाया है। साथ ही DD वक्र रेखा माँग के नियम की रेखा है जिसे हम माँग की वक्र रेखा भी कहते हैं इस तरह इस नियम पर ध्यान देने से मुख्यतः ये बाते स्पष्ट हो जाती हैं-

सर्वप्रथम इस नियम से यह स्पष्ट हो जाता है कि मूल्य तथा माँग के बीच विपरीतार्थक संबंध पाया जाता है तथा अंत में इस नियम से यह भी ज्ञात हो जाता है कि यह सिर्फ एक प्रवृति को बतलाता है।

वे तत्व किसी वस्तु की माँगी गयी मात्रा को प्रभावित करते हैं माँग की निर्धारित करने वाले तत्व कहलाते हैं। ये तत्व निम्नलिखित हैं-

  • संबंधित वस्तुओं की कीमतें- प्रतिस्थापन वस्तु की कीमत में वृद्धि होने पर दी गयी वस्तु की माँग में वृद्धि हो जाती है। जैसे-धान की कीमत में वृद्धि होने पर उसकी प्रतिस्थापन वस्तु काफी माँग में वृद्धि हो जाती है एक पूरक वस्तु की कीमत में वृद्धि होने पर दी गयी वस्तु की माँग में कमी हो जाती है। पेट्रोल की कीमत में वृद्धि होने पर मोटर गाड़ी की माँग में कमी हो जाती है।
  • आय- उपभोक्ता की आय में वृद्धि होने पर वस्तु की माँग में वृद्धि हो जाती है। यह वस्तु पर निर्भर करता है कि वस्तु सामान्य वस्तु है अथवा घटिया वस्तु है।
  • रुचि स्वभाव आदत- यदि रुचि, स्वभाव और आदत में परिवर्तन अनुकूल हो तो वस्तु की माँग में वृद्धि होती है।
  • जनसंख्या- जनसंख्या बढ़ने पर माँग बढ़ती है और इसमें कमी होने पर माँग में कमी होती है।
  • संभावित कीमत- वस्तु की संभावित कीमत बढ़ने या घटने पर उसकी वतर्मान माँग में वृद्धि या कमी आएगी।

प्रश्न 2.
पैमाने के प्रतिफल से क्या अभिप्राय है ? उपयुक्त रेखाचित्र का प्रयोग करते हुए पैमाने के प्रतिफल की बढ़ती समान तथा घटती धारणाओं की व्याख्या करें।
उत्तर:
पैमाने के प्रतिफल- पैमाने के प्रतिफल का संबंध सभी कारकों में समान अनुपात में होने वाले परिवर्तनों के फलस्वरूप कुल उत्पादन में होने वाले परिवर्तन से है। यह एक दीर्घकालीन अवधारणा है।

रेखाचित्र द्वारा पैमाने के प्रतिफलों का प्रदर्शन :
(i) पैमाने के बढ़ते प्रतिफल- पैमाने के बढ़ते प्रतिफल उस स्थिति को प्रकट करते हैं जब उत्पादन के सभी साधनों को एक निश्चित अनुपात में बढ़ाए जाने पर उत्पादन में वृद्धि अनुपात से अधिक होती है। दूसरे शब्दों में उत्पादन के साधनों में 10% की वृद्धि करने पर उत्पादन की मात्रा में 20% की वृद्धि होती है।
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बगल के चित्र में पैमाने के बढ़ते प्रतिफल को दर्शाया गया है। चित्र से पता चलता है कि उत्पादन के साधनों में 10% की वृद्धि करने पर उत्पादन की मात्रा में 20% की वृद्धि होती है यह पैमाने के बढ़ते प्रतिफल की स्थिति है।

(ii) पैमाने के समान प्रतिफल- पैमाने के समान प्रतिफल उत्पादन की उस स्थिति को प्रकट करते हैं। जिसमें साधनों की मात्रा में % वृद्धि और उत्पादन की मात्रा में % वृद्धि समान होती है। चित्र में साधनों की मात्रा में 10% वृद्धि होती है और उसके फलस्वरूप उत्पादन में भी 10% की वृद्धि हो रही है।
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(iii) पैमाने के घटते प्रतिफल-साधनों को घटते प्रतिफल के अन्तर्गत उत्पाद (MP) वक्र का ढलान नीचे की ओर होता है। एक निश्चित बिंदु के पश्चात यह X-अक्ष को छुता है और उसको पार कर जाता है। जैसा कि चित्र में दिखाया गया है।
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प्रश्न 3.
माँग की कीमत लोच से आप क्या समझते हैं ? इसे कैसे मापा जाता है ?
उत्तर:
माँग की कीमत लोच- माँग की लोच एक मात्रात्मक या परिमाणात्मक कथन है जो किसी वस्तु की कीमत में परिवर्तन के कारण उसकी माँग में परिवर्तन की मात्रा को दर्शाती है। दूसरे शब्दों में कीमत में परिवर्तन के परिणामस्वरूप माँगी गयी मात्रा में प्रतिशत परिवर्तन तथा कीमत में प्रतिशत परिवर्तन के अनुपात को माँग की कीमत लोच कहते हैं।

माँग की कीमत लोच को इस प्रकार मापा जा सकता है-
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प्रश्न 4.
उत्पादन लागत के विभिन्न प्रकारों का वर्णन करें। औसत लागत तथा सीमान्त लागत के परस्पर सम्बन्धों की व्याख्या करें।
उत्तर:
उत्पादन के साधनों का प्रयोग करने के लिए जो धनराशि व्यय करनी पड़ती है उसे उत्पादन लागत कहा जाता है। उत्पादन लागत मुख्य रूप से उत्पादन की मात्रा पर निर्भर करती है।

उत्पादन लागत के विभिन्न प्रकार :
(i) अल्पकाल में उत्पादन लागतें
(ii) दीर्घकाल में उत्पादन लागतें।

(i) अल्पकाल में उत्पाद लागतें- अल्पकाल में उत्पादन प्रक्रिया के साधन होते हैं-
(a) स्थिर साधन- ऐसे साधन जिनकी मात्रा को उत्पादन प्रक्रिया में परिवर्तित नहीं किया जा सके।
(b) परिवर्तनशील साधन- ऐसे साधन जिनकी मात्रा के उत्पादन प्रक्रिया की आवश्यकतानुसार परिवर्तन किया जा सकता है।

अल्पकाल में दो प्रकार की उत्पादन लागतें सम्मिलित होती है-
(a) स्थिर लागतें (Fixed costs)- स्थिर लागत उस खर्च का जोड़ है जो उत्पादक को उत्पादन के स्थिर साधनों की सेवाओं को खरीदने या भाड़े पर लेने के लिए खर्च करनी पड़ती है।

(b) परिवर्तनशील लागते (Veriable Costs)- परिवर्तनशील लागत वह लागत है जो उत्पादक को उत्पादन के घटते-बढ़ते साधनों के प्रयोग के लिए खर्च करनी पड़ती है।
अल्पकाल में कुल उत्पादन लागत = कुल स्थिर लागत + कुल परिवर्तनशील लागत।

अल्पकाल में औसत लागतें- किसी वस्तु की प्रति इकाई लागत को औसत लागत कहते हैं। औसत लागत कुल लागत एवं उत्पादन की मात्रा का भागफल होता है।

सीमांत लागत (Marginal cost)- सीमांत का मतलब है एक अतिरिक्त इकाई का उत्पादन करने से कुल लागत में जितनी वृद्धि होती है उसे उस इकाई विशेष की सीमांत लागत कहा जाता है।

(ii) दीर्घकाल में उत्पादन लागतें (Production costs in long period)- दीर्घकाल में उत्पति का कोई स्थिर नहीं होता बल्कि उत्पादन की लम्बी समय अवधि के कारण उत्पादन का प्रत्येक परिवर्तनशील बन जाता है।
(a) दीर्घकालीन औसत लागत (Long period Average Cost curve)- दीर्घकालीन औसत लामत, दीर्घकालीन कुल लागत को उत्पादन लागत को कुल मात्रा से भाग देने पर प्राप्त होती है।
(b) दीर्घकालीन सीमांत लागत (Long period Marginal cost curve)- दीर्घकाल के उत्पाद की एक अतिरिक्त इकाई उत्पादन करने में कुल उत्पादन लागत में जो वृद्धि होती है उसे उस अतिरिक्त एक इकाई की सीमांत लागत कहते हैं।Bihar Board 12th Business Economics Important Questions Long Answer Type Part 1, 7

औसत लागत एवं सीमांत लागत में सम्बन्ध-
औसत लागत तथा सीमांत लागत के बीच सम्बन्ध को इस प्रकार देखा जा सकता है-
(i) औसत लागत तथा सीमांत लागत की गणना उत्पादन की कुल लागत द्वारा की जाती है।
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(ii) आरंभ में जब औसत लागत वक्र गिरता है तब सीमांत लागत वक्र एक सीमा तक गिरता है किन्तु एक अवस्था के बाद सीमांत लागत वक्र बढ़ना आरंभ हो जाता है यद्यपि लागत से कम वक्र गिरता रहता है। इस प्रकार घटती औसत लागत की दशा के MC सदा औसत लागत से कम होती है। अर्थात MC < AC.

(iii) जब AC न्यूनतम होती तब MC वक्र AC वक्र को नीचे से काटता है। अर्थात् न्यूनतम औसत लागत सीमांत लागत के बराबर होती है। अर्थात् MC = AC

(iv) जब AC बढ़ता है तो MC वक्र AC से ऊपर होता है एवं साथ-ही-साथ AC वक्र से तीव्र गति से बढ़ता है अर्थात MC > AC चित्र में AC तथा MC वक्रों को प्रदर्शित किया गया है। AC वक्र बिन्दु A तक गिरता है और इस दिशा में MC क्रम बना रहता है AC से। AC के गिरने की दिशा में MC अधिक तेजी से नीचे गिरता है। AC के न्यूनतम बिन्दु A पर MC उसे नीचे से काटता है। A बिन्दु से AC बढ़ना आरंभ करती है ओर बिन्दु A के बाद MC अधिक तेजी से बढ़ती है। इसी प्रकार हम देख सकते हैं-
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प्रश्न 5.
राष्ट्रीय आय से आप क्या समझते हैं ? राष्ट्रीय आय की गणना करने की विधियों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
आय की दृष्टि में राष्ट्रीय आय से अंभिप्राय एक देश के सामान्य निवासियों के द्वारा एक वर्ष के अंदर तथा बाहर अर्जित आय का योग है। प्रत्येक देश वित्तीय वर्ष के अन्तर्गत अपने राष्ट्रीय आय का मूल्यांकन करती है। देश में वित्तीय वर्ष भर में कुल उत्पादन के मूल्य सेवाओं के मूल्य तथा विदेशी मुद्रा से प्राप्त आय का योगफल निकाला जाता है। इनके सम्मिलित मूल्य को राष्ट्रीय आय कहा जाता है। इसे सामाजिक आय भी कह सकते हैं। राष्ट्रीय आय का मूल्यांक करके एक देश अपने आय का अनुमान लगाती है और यह देखती है कि पिछले वर्ष की तुलन में राष्ट्रीय आय घटी है या बढ़ी है अथवा स्थिर रही है।

किसी अर्थव्यवस्था की गतिविधियों को मापने के लिए, उसके निर्धारित लक्ष्यों को किस सीमा तक प्राप्त किया जा सकता है इसके लिए उत्पादित वस्तुओं और सेवाओं के मूल्य को मापना आवश्यक है। राष्ट्रीय उत्पादन के चक्रीय प्रवाह के तीन चरण हैं-उत्पादन, आय और व्यय। प्रत्येक के लिए आँकड़ों और विधियों की आवश्यकता पड़ती है।

उत्पादन के चरण पर राष्ट्रीय आय को मापने के लिए देश के निजी क्षेत्र तथा सरकारी क्षेत्र के सभी उत्पाद उद्यमों द्वारा की गई शुद्ध मूल्य वृद्धि के कुल जोड़ को ज्ञात करना चाहिए।

व्यय के चरण के लिए हमें व्यय करने वाली इकाइयों अर्थात् सामान्य सरकार, उपभोक्ता, ‘परिवारों तथा उत्पादक उद्यमों के कुल आय के जोड़ को ज्ञात करना होगा।

आय के वितरण चरण पर राष्ट्रीय आय को मापने के लिए वस्तुओं और सेवाओं की उत्पादन प्रक्रिया के दौरान सृजित की गई कुल आय को ज्ञात करना चाहिए। इसलिए राष्ट्रीय आय की माप के लिए तीन विधियों-उत्पाद विधि, आय विधि और व्यय विधि की सहायता ली जाती है। तीनों विधियों से प्राप्त आँकड़े समान होने चाहिए, क्योंकि जो भी उत्पादन किया जाता है उसका ‘मूल्य ही उत्पादन के साधनों के बीच बाँटा जाता है तथा वही परिवारों, फर्मों और सरकार द्वारा एक वर्ष की अवधि में खर्च किया जाता है।

नीचे दिये गये तीनों विधियों के सूत्रों से यह स्पष्ट होता है।

मूल्य वृद्धि विधि (Value Added Method) :
प्राथमिक क्षेत्र में सकल मूल्य वृद्धि + द्वितीयक क्षेत्र में सकल मूल्य वृद्धि + तृतीयक क्षेत्र में सकल मूल्य वृद्धि।
= बाजार कीमत पर सकल घरेलू उत्पाद – मूल्य ह्रास।
= बाजार कीमत पर शुद्ध घरेलू उत्पाद – शुद्ध अप्रत्यक्ष कर
= साधन लागत पर शुद्ध घरेलू उत्पाद + विदेशों से शुद्ध साधन आय।
= राष्ट्रीय आय (National Income)

व्यय विधि (Expenditure Method) :
निजी अंतिम उपभोग व्यय + सरकारी अंतिम उपभोग व्यय + सकल घरेलू पूँजी निर्माण + शुद्ध निर्यात = बाजार कीमत पर सकल घरेलू उत्पाद – शुद्ध अप्रत्यक्ष कर – मूल्य ह्रास।
= साधन लागत पर शुद्ध घरेलू उत्पाद + विदेशों से शुद्ध साधन आय।
=राष्ट्रीय आय (National Income)

आय विधि (Income Method) :
कर्मचारियों का पारिश्रमिक + प्रचालन अधिशेष + मिश्रित आय
= शुद्ध घरेलू आय + विदेशों से प्राप्त शुद्ध साधन आय
= राष्ट्रीय आय (National Income)

प्रश्न 6.
सरकारी बजट क्या है ? इसके उद्देश्यों की चर्चा करें।
उत्तर:
आगामी आर्थिक वर्ष के लिए सरकार के सभी प्रत्याशित राजस्व और व्यय का अनुमानित वार्षिक विवरण बजट कहलाता है। सरकार कई प्रकार की नीतियाँ बनाती है। इन नीतियों को लागू करने के लिए वित्त की आवश्यकता होती है। सरकार आय और व्यय के बारे में पहले से ही अनुमान लगाती है। अतः बजट आय और व्यय का अनुमान है। सरकारी नीतियों को क्रियान्वित करने के लिए यह एक महत्त्वपूर्ण उपकरण है।

बजट के निम्नलिखित उद्देश्य हैं-

  • सरकार को अपने सामाजिक और आर्थिक उद्देश्यों को पूरा करने के लिए वित्तीय व्यवस्था करनी पड़ती है।
  • सरकार सामाजिक सुरक्षा, आर्थिक सहायता, सार्वजनिक निर्माण कार्यों पर व्यय करके अर्थव्यवस्था में धन और आय के पुनर्वितरण की व्यवस्था करती है।
  • बजट के माध्यम से सरकार कीमतों में उतार-चढ़ाव को रोकने का प्रयास करती है। रोजगार के अधिक अवसर उत्पन्न करने और कीमत स्थिरता के लिए,प्रयत्न करने में बजट महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
  • सरकार महत्त्वपूर्ण उद्यमों का संचालन सार्वजनिक क्षेत्र में करती है। विद्युत उत्पादन, रेलवे आदि ऐसे ही उद्यम है। यदि इन्हें अनियंत्रित रखा जाय तो ये एकाधिकारी उद्यम में परिवर्तित हो सकते हैं। अधिकतम लाभ की आशा में उत्पादन में कमी कर सकते हैं, इससे सामाजिक कल्याण में कमी आ सकती है।
  • बजट अर्थव्यवस्था में राजकोषीय अनुशासन उत्पन्न करता है। व्यय के ऊपर पर्याप्त नियंत्रण करता है। संसाधनों को सामाजिक प्राथमिकताओं के अनुसार उपयोग में लाने में सहायता मिलती है। साथ ही सेवाओं की उपलब्धता प्रभावपूर्ण और कुशल तरीके से उपलब्ध कराने में बजट महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

प्रश्न 7.
उदासीनता की वक्र रेखा द्वारा उपभोक्ता को संतुलन की प्राप्ति कैसे होती है ?
अथवा, उदासीनता वक्र विश्लेषण में उपभोक्ता का साम्य कैसे स्थापित होता है ?
उत्तर:
प्रो० हिक्स तथा प्रो० ऐलेन ने दो वस्तुओं के सन्दर्भ में उपभोक्ता संतुलन को उदासीनता रेखा या तटस्थता वक्र तथा बजट रेखा (कीमत रेखा) की सहायता से स्पष्ट किया है।

1. तटस्थता रेखाचित्र- तटस्थता तालिका वह तालिका है जो दो वस्तुओं के ऐसे संयोगों को दर्शाती है जिससे किसी व्यक्ति को समान संतोष मिलता है। यदि हम इन संयोगों को वक्र रेखा के रूप में प्रदर्शित करें तो हमें तटस्थता वक्र रेखाचित्र प्राप्त होता है। यह वक्र यह प्रदर्शित करता है कि यदि व्यक्ति दो वस्तुओं में किसी एक वस्तु का उपभोग ज्यादा करता है तो उसे दूसरी वस्तु की. कुछ मात्रा का त्याग करना होगा।

2. बजट रेखा या कीमत रेखा- बजट रेखा यह दर्शाता है कि उपभोक्ता की आय निश्चित है तथा वह इस आय को दो वस्तुओं पर खर्च करता है। वह यह रेखा से ऊपर नहीं जा सकता क्योंकि उसकी आय इतनी नहीं कि वह उससे आगे खर्च कर सके।

उपभोक्ता संतुलन- तटस्थता वक्र रेखा विधि के अनुसार, एक उपभोक्ता संतुलन की स्थिति उस बिन्दु पर होता है जहाँ तटस्थता वक्र कीमत रेखा को ठीक स्पर्श कर रहा होता है अर्थात् tangent होता है। इस बिन्दु पर प्राप्त दो वस्तुओं के संयोग से उपभोक्ता को अधिकतम संतुष्टि प्राप्त होगी।
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चित्र में तटस्थता वक्र IC बजट रेखा BL को बिन्दु E पर स्पर्श कर रही है। यही बिन्दु उपभोक्ता संतुलन की स्थिति है, जहाँ उपभोक्ता वस्तु Y की OY मात्रा तथा वस्तु X की ox मात्रा के संयोग द्वारा अधिकतम संतुष्टि प्राप्त करेगा। उपभोकता IC High तटस्थता वक्र पर खर्च नहीं कर सकता है क्योंकि यह उसकी बजट रेखा से ऊपर है, अर्थात् उपभोक्ता की आय उतनी नहीं है। तटस्थत वक्र IC low पर उसे अधिकतम संतुलित नहीं मिलती है क्योंकि यह उसके बजट रेखा से नीचे तथा x और y के जिस संयोग (बण्डता) पर वह तटस्थ होता है, इस स्थिति में उससे कम संतुष्टि प्राप्त होती है।

उपभोक्ता संतुलन की निम्नलिखित शर्ते तथा मान्यताएँ हैं-

  1. उपभोक्ता विवेकशील है- उपभोक्ता अपनी संतुष्टि को अधिकतम करने की चेष्टा करता है। इसलिए वह दो वस्तुओं पर बहुत सोच समझ कर व्यय करता है।
  2. उपभोक्ता की तटस्थता वक्र निश्चित है- उपभोक्ता दो वस्तुओं के विभिन्न संयोगों का पूर्व निर्धारण कर लेता है।
  3. वस्तुएँ समरूप तथा विभाज्य है एवं वस्तुओं की कीमतें स्थिर हैं।
  4. उपभोक्ता की आय के अनुसार बजट रेखा (कीमत रेखा) निर्धारित है तथा उपभोक्ता अपना संपूर्ण बजट इन दो वस्तुओं पर खर्च करता है।

उदासीनता वक्र तथा बजट रेखा को संतुलन बिन्दु पर मात्र छूती हुई हो।
(i) बजट रेखा, तटस्थता रेखा को संतुलन बिन्दु पर मात्र छूती हुई हो।
(ii) सीमान्त प्रतिस्थापन दर और कीमत अनुपात बराबर हो अर्थात्
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(iii) संतुलन बिन्दु पर उदासीनता (तटस्थता) रेखा मूल बिन्दु से उन्नतोदर (convex) हो।

प्रश्न 8.
माँग वक्र के नीचे की ओर पतनशील होने के कारण की व्याख्या करें।
अथवा, माँग वक्र की ढाल नीचे की ओर क्यों होती है ?
उत्तर:
माँग की वक्र रेखा का घनिष्ठ संबंध माँग की तालिका में होता है। माँग की वक्र रेखा का मतलब एक निश्चित तालिका से होता है। इस तरह जब माँग की तालिका को रेखाचित्र द्वारा व्यक्त किया जाता है तो उसे ही माँग की वक्र रेखा कहा जाता है।

माँग वक्र की ढाल नीचे की ओर होती है। इसके विभिन्न कारण हैं, जो निम्नलिखित हैं-
इस संदर्भ में सबसे पहले उपयोगिता हास नियम का उल्लेख किया जाता है। उसी नियम के अनुसार, “उपभोक्ता जैसे-जैसे वस्तुओं के उपयोग की मात्रा में वृद्धि करते जाता है, वैसे-वैसे उससे प्राप्त उपयोगिता धीरे-धीरे घटती जाती है। लेकिन उपभोक्ता वस्तु का मूल्य सामान्यतः वस्तुओं से प्राप्त होने वाली उपयोगिता के आधार पर देता है। ऐसी स्थिति में कम उपयोगिता मिलने पर कम मूल्य और अधिक उपयोगिता मिलने पर अधिक मूल्य देने को तैयार होता है। ऐसें स्थिति में उपयोगिता कम होने पर कम मूल्य देता है जबकि उपयोगिता में यह कभी वस्तु का अधिक मात्रा के कारण होता है। फलतः मूल्य कम होने पर माँग में कमी होती है। अर्थशास्त्री मार्शल के शब्दों में, “The greater the amount to be said the smaller must be the price of which it is offered.”

दूसरे उपभोक्ताओं की संख्या में परिवर्तन के कारण ही माँग की वक्र रेखा बायें से दायें नीचे की ओर झुकती है। सचमुच में जब किसी वस्तु का मूल्य घट जाता है। तो उनके उपभोक्ताओं की संख्या में वृद्धि हो जाती है जिसके कारण उनका वस्तु की माँग बढ़ जाती है। ऐसी स्थिति को Prof. Boulding ने Industry effect के नाम से संबोधित किया जाता है। तीसरे Prof. Hicks ने इस संदर्भ में अलग प्रभाव का भी उल्लेख किया है। इसके अनुसार जब किसी वस्तु का मूल्य . घट जाता है तो उपभोक्ता महँगी वस्तुओं का उपभोग करने लगता है। फलतः कम मूल्य वाली वस्तुओं के उपभोग में वृद्धि होने से उनकी मांग बढ़ जाती है। इसके विपरीत जब किसी वस्तु का मूल्य बढ़ जाता है तो उपभोक्ता महँगी वस्तुओं के स्थान पर सस्ती वस्तुओं का उपभोग करने लगा है। इस तरह महँगी वस्तुओं का उपभोग की मात्रा घट जाती है जिससे उनकी माँग घट जाती है।

प्रश्न 9.
माँग की प्रतिलोच से क्या समझते हैं ? उसे कैसे मापा जाता है ?
उत्तर:
किसी वस्तु के मूल्य में परिवर्तन के कारण माँग में होने वाले परिवर्तन को माँग की लोच कहा जाता है। माँग की लोच विभिन्न प्रकार की होती है जिनमें माँग की प्रतिलोच का भी महत्वपूर्ण स्थान है। जब वस्तु के मूल्य में प्रतिशत परिवर्तन और वस्तु की माँगी गयी मात्रा में प्रतिशत परिवर्तन बराबर होता है। यानी एक-दूसरे को क्रॉस करती हैं तो इसे ही माँग की प्रतिलोच कहा जाता है।

माँग की प्रतिलोच को मापने का सूत्र इस प्रकार है-
Ed = \(\frac{\Delta Q}{\Delta P} \times \frac{P}{Q}\)

इस सूत्र के द्वारा माँग की प्रतिलोच को मापा जाता है और यह पता लगाया जाता है कि माँग की लोच बेलोचदार है या लोचदार। साथ ही माँग की लोच इकाई से अधिक है या इकाई से कम अथवा इकाई के बराबर है।

प्रश्न 10.
सीमान्त उपयोगिता ह्रास नियम की व्याख्या करें। इस नियम के लागू होने की आवश्यक शर्ते कौन-कौन सी हैं ?
उत्तर:
सीमान्त उपयोगिता ह्रास नियम इस तथ्य की विवेचना करता है कि जैसे-जैसे उपभोक्ता किसी वस्तु की अगली इकाई का उपभोग करता है अन्य बातें समान रहने पर उससे प्राप्त होने वाली सीमान्त उपयोगिता क्रमशः घटती जाती है। एक बिन्दु पर पहुँचने पर यह शून्य यदि उपभोक्ता इसके पश्चात् भी वस्तु का सेवन जारी रखना है तो यह ऋणात्मक हो जाती है। निम्न उदाहरण से भी यह इस बात का स्पष्टीकरण हो जाता है-
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इस उदाहरण से यह स्पष्ट है कि जैसे-जैसे वस्तु की मात्रा एक से बढ़कर 6 तक पहुँच जाती है वैसे-वैसे उससे प्राप्त सीमान्त उपयोगिता भी 10 से घटते-घटते शून्य और ऋणात्मक यानी -4 तक हो जाती है। अतः स्पष्ट है कि वस्तु की मात्रा में वृद्धि होते रहने से उससे मिलने वाली सीमांत उपयोगिता घटती जाती है।

सीमान्त उपयोगिता ह्रास नियम की निम्नलिखित शर्ते या मान्यताएँ हैं-

  1. उपभोग की वस्तुएँ समरूप होने चाहिए।
  2. उपभोग की क्रिया लगातार होनी चाहिए।
  3. उपभोक्ता की मानसिक स्थिति में कोई परिवर्तन नहीं होना चाहिए।
  4. उपभोग निश्चित इकाई में किया जाना चाहिए।
  5. आय, आदत, रुचि, फैशन आदि में कोई परिवर्तन नहीं होना चाहिए।

प्रश्न 11.
कीन्स के आय एवं रोजगार सिद्धांत के मुख्य बिन्दुओं को समझाएँ।
उत्तर:
आर्थिक महामंदी (1929-1933) ने कई ऐसी आर्थिक समस्याओं को जन्म दिया जिनको व्यष्टि अर्थशास्त्र के सिद्धांतों के आधार पर हल नहीं किया जा सका। इन समस्याओं के समाधान हेतु प्रो० जे० एम० कीन्स ने General theory of Employment, Interest & Money लिखी। इस पुस्तक में कीन्स ने आय एवं रोजगार के बारे में निम्नलिखित मुख्य बातें बताईं-

(i) एक अर्थव्यवस्था में आय एवं रोजगार का स्तर संसाधनों की उपलब्धता एवं उपयोग पर निर्भर करता है। यदि किसी अर्थव्यवस्था में कुछ संसाधन बेकार पड़े होते हैं तो अर्थव्यवस्था उन्हें उपयोग में लाकर आय एवं रोजगार के स्तर को बढ़ा सकता है।

(ii) कीन्स ने परंपरावादियों के इस विचार को कि एक वस्तु की पूर्ति माँग की जनक होती है खारिज कर दिया। कीन्स ने बताया कि वस्तु की कीमत उपभोक्ता की आय और उपभोक्ता की उपयोग प्रवृत्ति पर निर्भर करती है।

(iii) परंपरावादी अर्थशास्त्रियों के अनुसार संतुलन की अवस्था में सदैव पूर्ण रोजगार की स्थिति होती है। लेकिन कीन्स ने संतुलन स्तर के रोजगार स्तर को साम्य रोजगार स्तर का नाम दिया और स्पष्ट किया कि साम्य रोजगार स्तर आवश्यक रूप से पूर्ण रोजगार स्तर के समान नहीं होता है। यदि साम्य रोजगार स्तर, पूर्ण रोजगार स्तर से कम है तो अर्थव्यवस्था उपभोग या सामूहिक माँग की बढ़ाकर आय एवं रोजगार स्तर में वृद्धि कर सकती है।

(iv) परंपरावादी विचार में सरकारी हस्तक्षेप को निषेध करार दिया गया था। लेकिन कीन्स ने सुझाव दिया कि विषम परिस्थितियों जैसे अभाव माँग, अधिमाँग आदि में हस्ताक्षर करके इन्हें ठीक करने के लिए उपाय अपनाने चाहिए।

(v) परंपरावादी सिद्धांत में बचतों को वरदान बताया गया है जबकि समष्टि स्तर पर कीन्स ने बचतों को अभिशाप की संज्ञा दी है। व्यक्तिगत स्तर पर बचत वरदान हो सकती है।

प्रश्न 12.
विदेशी विनिमय दर को परिभाषित करें। स्थिर और लोचपूर्ण विनिमय दर में अंतर करें।
उत्तर:
वह दर जिस पर एक देश की एक मुद्रा इकाई का दूसरे देश की मुद्रा में विनिमय किया जाता है, विदेशी विनिमय दर कहलाता है। इस प्रकार विनिमय दर घरेलू मुद्रा के रूप में दी जाने वाली वह कीमत है जो विदेशी मुद्रा की एक इकाई के बदले दी जाती है।

स्थिर एवं लोचपूर्ण विनिमय दरों में निम्नलिखित अंतर पाया जाता है-
स्थिर विनिमय दर:

  1. यह सरकार द्वारा घोषित की जाती है और इसे स्थिर रखा जाता है।
  2. इसके अंतर्गत विदेशी केन्द्रीय बैंक अपनी मुद्राओं को एक निश्चित कीमत पर खरीदने और बेचने के लिए तत्पर रहता है।
  3. इसमें परिवर्तन नहीं आते हैं।

लोचपूर्ण विनिमय दर:

  1. माँग एवं पूर्ति की शक्तियों द्वारा अंतर्राष्ट्रीय बाजार में निर्धारित होती है।
  2. इसमें केन्द्रीय बैंक का हस्तक्षेप नहीं होता है।
  3. इसमें हमेशा परिवर्तन आते रहते हैं।

प्रश्न 13.
परिवर्तनशील अनुपात के नियम की व्याख्या करें।
उत्तर:
घटते-बढ़ते अनुपात के नियम के अनुसार जब एक या एक से अधिक साधनों को स्थिर रखा जाता है तो उत्पादक के परिवर्तनशील साधनों के अनुपात में वृद्धि करने से उत्पादन पहले बढ़ते हुए अनुपात में बढ़ता है, फिर समान अनुपात में तथा इसके बाद घटते हुए अनुपात में बढ़ता है। श्रीमती जॉन रॉबिन्सन के अनुसार, “उत्पत्ति ह्रास नियम यह बताता है कि यदि किसी एक उत्पत्ति के साधन की मात्रा को स्थिर रखा जाय तथा अन्य साधनों की मात्रा में उत्तरोत्तर वृद्धि की जाय तो एक निश्चित बिन्दु के बाद उत्पादन में घटती दर से वृद्धि होती है।”

इस नियम के अनुसार उत्पादन की तीन अवस्थाएँ हैं-

  • पहली अवस्था- सीमान्त उत्पादन अधिकतम होने के बाद घटना आरम्भ हो जाता है। औसत उत्पादन अधिकतम हो जाता है तथा कुल उत्पादन बढ़ता है।
  • दूसरी अवस्था- औसत उत्पादन घटने लगता है और कुल उत्पादन घटती दर से बढ़ता है तथा अधिकतम बिन्दु पर पहुँचता है तब सीमान्त उत्पादन शून्य हो जाता है।
  • तीसरी अवस्था- औसत उत्पादन घटना जारी रहता है तथा कुल उत्पादन कम होने लगता है तब सीमान्त उत्पादन ऋणात्मक हो जाता है।

प्रश्न 14.
केंद्रीय बैंक किस प्रकार व्यापारिक बैंक से भिन्न होता है ?
उत्तर:
केन्द्रीय बैंक एवं व्यापारिक बैंक निम्नलिखित अंतर हैं-
केन्द्रीय बैंक:

  • यह देश का सर्वोच्च बैंक (Apex Bank) होता है। यह अन्य सभी बैंकों पर नियंत्रण रखता है।
  • इसका प्रमुख उद्देश्य राष्ट्रहित में बैंकिंग प्रणाली का संचालन करना है। इसका उद्देश्य लाभ कमाना नहीं होता।
  • संयुक्त राज्य अमेरिका को छोड़कर (जहाँ 12 केन्द्रीय बैंक हैं) अन्य सभी देशों में एक-एक केन्द्रीय बैंक होता है।
  • केन्द्रीय बैंक पर सरकार का स्वामित्व होता है।
  • यह विशेष दशाओं के अतिरिक्त अन्य दशाओं में जनसाधारण के साथ व्यवसाय नहीं कर सकता।
  • यह सरकार के बैंकर के रूप में सरकार की ओर से लेन-देन करता है।

व्यापारिक बैंक:

  • वे सम्पूर्ण बैंकिंग प्रणाली का एक अंग होते हैं और केन्द्रीय बैंक के नियंत्रण में कार्य करते हैं।
  • इसका मुख्य एवं प्राथमिक उद्देश्य लाभ कमाना होता है।
  • देश में अनेक व्यापारिक बैंक होते हैं।
  • ये प्रायः अंशधारियों के बैंक होते हैं। इसका स्वामित्व सरकारी और गैर-सरकारी भी हो सकता है।
  • ये जनसाधारण से व्यवसाय करते हैं।
  • यह जनता का बैंकर है।

प्रश्न 15.
कृषि के संदर्भ में उत्पत्ति ह्रास नियम की व्याख्या करें।
उत्तर:
उत्पत्ति ह्रास नियम हमारे साधारण जीवन के अनुभवों पर आधारित है। सर्वप्रथम इस प्रवृत्ति का अनुभव स्कॉटलैण्ड के एक किसान ने किया था, किन्तु वैज्ञानिक रूप में इसके प्रतिपादन का श्रेय टरगोट को है। यह नियम मुख्यतः कृषि में ही क्रियाशील होता है। कृषि के क्षेत्र में इस नियम की व्याख्या इस प्रकार से की जा सकती है-

जब उपज बढ़ाने के लिए भूमि के एक निश्चित टुकड़े पर कोई किसान पूँजी एवं श्रम की मात्रा को बढ़ाता है तो प्रायः यह देखा जाता है कि उपज में उससे कम ही अनुपात में वृद्धि होती है। अर्थशास्त्र में इसी प्रवृत्ति को क्रमागत उत्पत्ति ह्रास नियम कहते हैं। प्रत्येक किसान अनुभव के आधार पर इस बात को जानता है कि एक सीमा के बाद भूमि की एक निश्चित मात्रा पर आंधक श्रम एवं पूँजी लगाने से उपज घटते हुए अनुपात में बढ़ती है। यदि ऐसा नहीं होता तो आज विश्व में खाद्यान्न के अभाव की समस्या ही उपस्थित नहीं होती तथा एक हेक्टर भूमि में खेती करके ही सम्पूर्ण विश्व को सुगमतापूर्वक खिलाया जा सकता था। किन्तु बात ऐसी नहीं है। इस प्रकार प्रतिष्ठित अर्थशास्त्री उत्पत्ति ह्रास नियम को कृषि से संबंधित करते थे। इन लोगों के अनुसार भूमि की पूर्ति सीमित है। अतः जनसंख्या में वृद्धि के कारण एक सीमित भूमि पर अधिक लोगों के काम करने से उपज में घटती हुई दर से वृद्धि होगी।

मार्शल ने कृषि के संबंध में इस नियम की व्याख्या इस प्रकार से की है, “यदि कृषि कला में साथ-ही-साथ कोई उत्पत्ति नहीं हो, तो भूमि पर उपयोग की जाने वाली पूँजी एवं श्रम की मात्रा में वृद्धि से कुल उपज में साधारणतया अनुपात से कम ही वृद्धि होती है।” इस प्रकार मार्शल के अनुसार एक निश्चित भूमि के टुकड़े पर ज्यों-ज्यों श्रम एवं पूँजी की इकाइयों में वृद्धि की जाती है, त्यों-त्यों उपज घटते हुए अनुपात में बढ़ती है, यानी सीमान्त उपज में क्रमशः ह्रास होते जाता है। इसे निम्न तालिका द्वारा भी दर्शाया जा सकता है-
Bihar Board 12th Business Economics Important Questions Long Answer Type Part 1, 14

इस तालिका से स्पष्ट होता है कि श्रम एवं पूँजी की पहली इकाई लगाने से उस भूमि पर 20 क्विंटल उपज होती है, दूसरी इकाई के प्रयोग से कुल उपज 35 क्विंटल होती है लेकिन सीमान्त उपज 15 क्विंटल होती है। तीसरी इकाई के प्रयोग से कुल उपज 45 क्विंटल होती है तथा सीमान्त उपज 10 क्विंटल होती है। चौथी इकाई के प्रयोग से कल उपज 50 क्विंटल तथा सीमान्त उपज 5 क्विंटल होती है। अतः स्पष्ट है कि किसान ज्यों-ज्यों एक निश्चित भूमि के टुकड़े पर श्रम एवं पूँजी की इकाइयों को बढ़ाता है, त्यों-त्यों कुल उपज में वृद्धि अवश्य होती है, किन्तु उस अनुपात में नहीं जिस अनुपात में श्रम एवं पूँजी में वृद्धि की जाती है। दूसरे शब्दों में, श्रम एवं पूँजी की अतिरिक्त इकाइयों के प्रयोग के परिणामस्वरूप उपज में घटते हुए अनुपात में वृद्धि होती है।

प्रश्न 16.
पूर्ण प्रतियोगिता की प्रमुख विशेषताएँ क्या हैं ?
उत्तर:
पूर्ण प्रतियोगिता की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
(i) क्रेताओं और विक्रेताओं की अधिक संख्या- पूर्ण प्रतियोगी बाजार में क्रेताओं और विक्रेताओं की संख्या बहुत अधिक होती है जिसके कारण कोई भी विक्रेता. अथवा क्रेता बाजार कीमत को प्रभावित नहीं कर पाता। इस प्रकार पूर्ण प्रतियोगिता में एक क्रेता अथवा एक विक्रेता बाजार में माँग अथवा पूर्ति की दशाओं को प्रभावित नहीं कर सकता।

(ii) वस्तु की समरूप इकाइयाँ- सभी विक्रेताओं द्वारा बाजार में वस्तु की बेची जाने वाली इकाइयाँ एक समान होती हैं।

(iii) फर्मों के प्रवेश व निष्कासन की स्वतंत्रता- पूर्ण प्रतियोगी बाजार में कोई भी नई फर्म उद्योग में प्रवेश कर सकती है तथा कोई भी पुरानी फर्म उद्योग से बाहर जा सकती है। इस प्रकार पूर्ण प्रतियोगिता में फर्मों के उद्योग में आने-जाने पर कोई प्रबन्ध नहीं होता।

(iv) बाजार दशाओं का पूर्ण ज्ञान- पूर्ण प्रतियोगी बाजार में क्रेताओं एवं विक्रेताओं को बाजार दशाओं को पूर्ण ज्ञान होता है। इस प्रकार कोई भी क्रेता वस्तु की प्रचलित कीमत से अधिक कीमत देकर वस्तु नहीं खरीदेगा।
यही कारण है कि बाजार में वस्तु की एक समान कीमत पायी जाती है।

(v) साधनों की पूर्ण गतिशीलता- पूर्ण प्रतियोगिता में उत्पत्ति के साधन बिना किसी व्यवधान के एक उद्योग से दूसरे उद्योग में अथवा एक फर्म से दूसरी फर्म में स्थानान्तरित किये जा सकते हैं।

(vi) कोई यातायात लागत नहीं- पूर्ण प्रतियोगी बाजार में यातायात लागत शून्य होती है जिसके कारण बाजार में एक कीमत प्रचलित रहती है।

Bihar Board 12th Home Science Objective Important Questions Part 3

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Bihar Board 12th Home Science Objective Important Questions Part 3

प्रश्न 1.
व्यक्ति की रोग तथा मृत्यु से लड़ने की क्षमता को कहते हैं
(a) प्रतिकारक
(b) इनोकुलेशन
(c) रोग निरोधी क्षमता
(d) उपचार
उत्तर:
(c) रोग निरोधी क्षमता

प्रश्न 2.
विटामिन ‘ए’ की कमी से बच्चों को कौन-सा रोग होता है ?
(a) रतौंधी
(b) पोलियो
(c) अतिसार
(d) इनमें से सभी
उत्तर:
(a) रतौंधी

प्रश्न 3.
विटामिन ‘ए’ घुलनशील है
(a) जल में
(b) वसा में
(c) उपर्युक्त दोनों में
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(b) वसा में

प्रश्न 4.
विटामिन ‘बी’ की कमी से बच्चों को कौन-सा रोग होता है ?
(a) स्कर्वी
(b) रतौंधी
(c) एनीमिया
(d) बेरी-बेरी
उत्तर:
(d) बेरी-बेरी

प्रश्न 5.
विटामिन ‘डी’ की कमी से कौन-सी बीमारी होती है ?
(a) स्कर्वी
(b) एनीमिया
(c) रिकेट्स
(d) बेरी-बेरी
उत्तर:
(c) रिकेट्स

प्रश्न 6.
सूर्य की रोशनी प्रदान करता है
(a) विटामिन ‘ए’
(b) विटामिन ‘बी’
(c) विटामिन ‘सी’
(d) विटामिन ‘डी’
उत्तर:
(d) विटामिन ‘डी’

प्रश्न 7.
विटामिन ‘सी’ की कमी से कौन-सी बीमारी होती है ?
(a) रतौंधी
(b) स्कर्वी
(c) एनीमिया
(d) बेरी-बेरी
उत्तर:
(b) स्कर्वी

प्रश्न 8.
निम्नलिखित में से कौन-सा पोषणहीनता से संबंधित रोग है ?
(a) इंफ्लुएंजा
(b) ब्रोकाइटिस
(c) एनीमिया
(d) मलेरिया
उत्तर:
(c) एनीमिया

प्रश्न 9.
प्रोटीन की कमी से बच्चों में कौन-सा रोग होता है ?
(a) अंधापन
(b) क्वाशियोरकर
(c) रिकेट्स
(d) पोलियो
उत्तर:
(b) क्वाशियोरकर

प्रश्न 10.
भोजन में आयोडीन की कमी से कौन-सी बीमारी होती है ?
(a) स्कर्वी
(b) घेघा रोग (गलगण्ड)
(c) रतौंधी
(d) रिकेट्स
उत्तर:
(b) घेघा रोग (गलगण्ड)

प्रश्न 11.
नियासिन की कमी से कौन-सा रोग होता है ?
(a) एनीमिया
(b) बेरी-बेरी
(c) पेलाग्रा
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(c) पेलाग्रा

प्रश्न 12.
13-15 वर्ष के लड़के को प्रतिदिन कितनी कैलोरी की आवश्यकता होती है ?
(a) 2200
(b) 2450
(c) 1800
(d) 3000
उत्तर:
(b) 2450

प्रश्न 13.
छायी अवस्था में कितनी अतिरिक्त कैलोरी की आवश्यकता होती है ?
(a) 200
(b) 500
(c) 700
(d) 900
उत्तर:
(c) 700

प्रश्न 14.
गर्भवती स्त्री को कितनी कैलोरी की आवश्यकता होती है ?
(a) 1000 कैलोरी प्रतिदिन
(b) 2000 कैलोरी प्रतिदिन
(c) 2200-2800 कैलोरी प्रतिदिन
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(c) 2200-2800 कैलोरी प्रतिदिन

प्रश्न 15.
एक दूध पिलाने वाली माता को पहले छः महीने प्रतिदिन के आहार में कितना अतिरिक्त प्रोटीन देना चाहिए ?
(a) 10 ग्राम
(b) 15 ग्राम
(c) 17 ग्राम
(d) 25 ग्राम
उत्तर:
(b) 15 ग्राम

प्रश्न 16.
भोजन में पोषक तत्त्वों की कमी से होता है
(a) कुपोषण
(b) क्वाशियोकर
(c) बेरी-बेरी
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(a) कुपोषण

प्रश्न 17.
संतुलित आहार न ग्रहण करने से क्या प्रभाव पड़ता है ?
(a) शारीरिक शक्ति की क्षीणता
(b) भार में कमी
(c) कमजोरी
(d) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(d) उपर्युक्त सभी

प्रश्न 18.
पेचिस से पीड़ित बच्चों को दिया जाना चाहिए
(a) दूध
(b) चीनीयुक्त गर्म पानी
(c) नमकयुक्त ठंडा पानी
(d) नमक तथा चीनीयुक्त पानी का घोल
उत्तर:
(d) नमक तथा चीनीयुक्त पानी का घोल

प्रश्न 19.
जीवन रक्षक घोल उपयोगी है
(a) पोलियो में
(b) डायरिया में
(c) उपर्युक्त दोनों में
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(b) डायरिया में

प्रश्न 20.
निर्जलीकरण के कारण मरने वाले रोगी को क्या पिलाकर बचाया जा सकता है ?
(a) ओ० आर० एस० घोल
(b) उबला पानी
(c) चाय
(d) नींबू पानी
उत्तर:
(a) ओ० आर० एस० घोल

प्रश्न 21.
निम्नलिखित में से कौन वायु द्वारा संवाहित रोग नहीं है ?
(a) खसरा
(b) इन्फ्लुएन्जा
(c) निमोनिया
(d) अतिसार
उत्तर:
(d) अतिसार

प्रश्न 22.
एड्स फैलता है
(a) हाथ मिलाने से
(b) साथ-साथ खेलने से
(c) संक्रमित सूइयों से
(d) जल तथा भोजन से
उत्तर:
(c) संक्रमित सूइयों से

प्रश्न 23.
उच्च तापमान तथा त्वचा पर लाल दाने किस रोग का लक्षण है ?
(a) तपेदिक
(b) टेटनस
(c) खसरा
(d) गलघोंटू
उत्तर:
(c) खसरा

प्रश्न 24.
किस बीमारी में 104-105° फारेनहाइट तक तीव्र ज्वर रहता है ?
(a) क्षय रोग
(b) टेटनस
(c) खसरा
(d) हैजा
उत्तर:
(b) टेटनस

प्रश्न 25.
क्षय रोग के लक्षण हैं
(a) लगातार सूखी खाँसी होना
(b) 90-100° तक ज्वर रहना
(c) छाती में दर्द रहना
(d) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(d) उपर्युक्त सभी

प्रश्न 26.
निम्नलिखित में कौन-सा रोग क्लोजट्रिडियन टटनाई नामक बैक्टीरिया द्वारा उत्पन्न होता है ?
(a) निमोनिया
(b) खसरा
(c) टिटनस
(d) पोलियो
उत्तर:
(c) टिटनस

प्रश्न 27.
किस जीवाणु के संक्रमण से कुक्कर खाँसी रोग होता है ?
(a) वैसीलस परट्यूसिस
(b) न्यूसोकोकस
(c) स्टैप्टोकोकस
(d) स्टेलेफाइलोकोस
उत्तर:
(a) वैसीलस परट्यूसिस

प्रश्न 28.
कोटीने बैक्टीरियम डिपीथीरिए नामक जीवाणु से कौन रोग फैलता है ?
(a) खसरा
(b) गलाघोंटू
(c) हैजा
(d) पेचिस
उत्तर:
(b) गलाघोंटू

प्रश्न 29.
बिबरियो कोमा नामक जीवाणु से कौन रोग होता है ?
(a) निमोनिया
(b) हैजा
(c) प्लेग
(d) खुजली
उत्तर:
(b) हैजा

प्रश्न 30.
अतिसार किससे फैलता है ?
(a) विषाणु से
(b) जीवाणु से
(c) बिबरियो कोमा से
(d) न्यूयोकिकस से
उत्तर:
(b) जीवाणु से

प्रश्न 31.
पोलियो प्रायः किस उम्र के बच्चों को अधिक होता है ?
(a) 1-2 वर्ष के बच्चे को
(b) 3-4 वर्ष के बच्चे को
(c) नवजात शिशु को
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(a) 1-2 वर्ष के बच्चे को

प्रश्न 32.
निम्नलिखित में से कौन जल तथा खाद्य पदार्थों द्वारा संवाहित रोग है ?
(a) तपेदिक
(b) खसरा
(c) हैजा
(d) डिप्थीरिया
उत्तर:
(c) हैजा

प्रश्न 33.
जन्म के समय भारतीय बच्चे की औसत लम्बाई होती है
(a) 40 सेमी०
(b) 80 सेमी०
(c) 50 सेमी०
(d) 30 सेमी०
उत्तर:
(c) 50 सेमी०

प्रश्न 34.
जन्म के समय नवजात शिशु का औसत भार होता है
(a) 2 किग्रा०
(b) 3.5 किग्रा०
(c) 3 किग्रा०
(d) 4 किग्रा०
उत्तर:
(b) 3.5 किग्रा०

प्रश्न 35.
किस महीने में बच्चा बिना सहारे खड़ा हो सकता है ?
(a) 6 महीने में
(b) 7 महीने में
(c) 9-12 महीने में
(d) 12 महीने में
उत्तर:
(c) 9-12 महीने में

प्रश्न 36.
इरिक इरिक्सन ने सामाजिक विकास के कितने स्तर बताये हैं ?
(a) दो
(b) छः
(c) आठ
(d) चार
उत्तर:
(c) आठ

प्रश्न 37.
विवृद्धि का अर्थ है
(a) गुणात्मक विकास
(b) संख्यात्मक विकास
(c) सामाजिक विकास
(d) ज्ञानात्मक विकास
उत्तर:
(b) संख्यात्मक विकास

प्रश्न 38.
प्राथमिक रंग कितने हैं ?
(a) तीन
(b) चार
(c) पाँच
(d) छः
उत्तर:
(a) तीन

प्रश्न 39.
निम्नलिखित में कौन प्राथमिक रंग है ?
(a) लाल, हरा, पीला
(b) लाल, बैंगनी, नीला
(c) लाल, पीला, नीला
(d) हरा, पीला, नीला
उत्तर:
(c) लाल, पीला, नीला

प्रश्न 40.
निम्न में से कौन प्राथमिक रंग नहीं है ?
(a) लाल
(b) पीला
(c) हरा
(d) नीला
उत्तर:
(c) हरा

प्रश्न 41.
बैंगनी रंग है
(a) प्राथमिक
(b) द्वितीयक
(c) तृतीयक
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(b) द्वितीयक

प्रश्न 42.
चार वर्ष का बालक किस प्रकार के रंगों को पहचानने में समर्थ होता है ?
(a) प्राथमिक
(b) माध्यमिक
(c) तृतीयक
(d) स्थानिक
उत्तर:
(a) प्राथमिक

प्रश्न 43.
निम्न में से कौन शारीरिक विकास के अंतर्गत नहीं आता है ?
(a) लम्बाई
(b) वजन
(c) दाँत
(d) भाषा
उत्तर:
(d) भाषा

प्रश्न 44.
निम्न में से कौन सामुदायिक सुविधा है ?
(a) मकान
(b) बाजार
(c) मोटर
(d) जमीन
उत्तर:
(b) बाजार

प्रश्न 45.
भाषा विकास को प्रभावित करने वाला कारक है
(a) अभ्यास
(b) परिपक्वता
(c) स्वास्थ्य
(d) इनमें से सभी
उत्तर:
(d) इनमें से सभी

प्रश्न 46.
कितने डिग्री सेल्सियस पर उबालने पर पानी में उपस्थित सभी रोगाणु मर जाते हैं ?
(a) 100°C
(b) 110°C
(c) 120°C
(d) 125°C
उत्तर:
(a) 100°C

प्रश्न 47.
मिलावट रोकने में किसकी सहायता अपेक्षित है ?
(a) खाद्य निरीक्षक
(b) आम आदमी
(c) खाद्य अपमिश्रण निवारण अधिनियम
(d) इनमें से सभी
उत्तर:
(d) इनमें से सभी

प्रश्न 48.
निम्नलिखित में से किस चेक की राशि का भुगतान नहीं किया जाता, बल्कि व्यक्ति के नाम के खाते में जमा होता है ?
(a) वाहक चेक
(b) आदेशक चेक
(c) रेखांकित चेक
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(c) रेखांकित चेक

Bihar Board 12th Philosophy Objective Important Questions Part 3

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Bihar Board 12th Philosophy Objective Important Questions Part 3

प्रश्न 1.
किसने कहा है, “मनुष्य सभी वस्तुओं का मापदंड है”?
(a) अरस्तू
(b) प्लेटो
(c) सोफिस्ट
(d) बैन
उत्तर:
(a) अरस्तू

प्रश्न 2.
काण्ट के ज्ञान-विचार को
(a) समीक्षावाद कहते हैं
(b) अनुभववाद कहते हैं
(c) बुद्धिवाद कहते हैं
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(c) बुद्धिवाद कहते हैं

प्रश्न 3.
अरस्तू के अनुसार कारण
(a) आकारिक है
(b) अंतिम है
(c) उपादान है
(d) इनमें से सभी
उत्तर:
(c) उपादान है

प्रश्न 4.
प्रत्ययवाद के अनुसार परम सत्ता है
(a) प्रत्यय
(b) जड़
(c) तटस्थ
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(a) प्रत्यय

प्रश्न 5.
निरपेक्ष प्रत्ययवाद के प्रवर्तक हैं
(a) बर्कले
(b) प्लेटो
(c) हेगल
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(b) प्लेटो

प्रश्न 6.
भौतिकवाद के अनुसार परम सत्ता है
(a) प्रत्यय
(b) तटस्थ
(c) जड़
(d) ईश्वर
उत्तर:
(d) ईश्वर

प्रश्न 7.
प्रयोजनात्मक, विश्वमीमांसीय एवं सत्तामीमांसीय युक्ति के संबंध है
(a) ईश्वर के अस्तित्व से
(b) आत्मा के अस्तित्व से
(c) जड़ के अस्तित्व से
(d) इनमें से किसी के नहीं
उत्तर:
(b) आत्मा के अस्तित्व से

प्रश्न 8.
वस्तुएँ ज्ञाता से स्वतंत्र होती हैं। यह है
(a) बुद्धिवाद
(b) प्रत्ययवाद
(c) वस्तुवाद
(d) समीक्षावाद
उत्तर:
(c) वस्तुवाद

प्रश्न 9.
एसे इस्ट परसीपी का सिद्धान्त किसने दिया है?
(a) ह्यूम
(b) बर्कले
(c) मूर
(d) प्लेटो
उत्तर:
(c) मूर

प्रश्न 10.
शिक्षा दर्शन का आधार
(a) प्रकृतिवाद है
(b) अध्यात्मवाद है
(c) (a) एवं (b) दोनों
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(c) (a) एवं (b) दोनों

प्रश्न 11.
व्यापार नीतिशास्त्र अध्ययन है
(a) आदर्शों का
(b) मूल्यों का
(c) लाभ का
(d) नैतिकता का
उत्तर:
(b) मूल्यों का

प्रश्न 12.
किसके अनुसार, “गीता कर्म का विज्ञान है”?
(a) बाल गंगाधर तिलक
(b) विनोबा भावे
(c) श्री अरविन्द
(d) महात्मा गाँधी
उत्तर:
(a) बाल गंगाधर तिलक

प्रश्न 13.
जैन के अंतिम तीर्थंकर कौन हैं?
(a) महावीर
(b) ऋषभदेव
(c) पार्श्वनाथ
(d) शाक्य मुनि
उत्तर:
(a) महावीर

प्रश्न 14.
बौद्ध दर्शन के अनुसार प्रथम आर्य सत्य है।
(a) सुख
(b) आनन्द
(c) दु:ख का कारण
(d) दु:ख
उत्तर:
(d) दु:ख

प्रश्न 15.
सांख्य दर्शन के प्रवर्तक हैं
(a) गौतम
(b) कपिल
(c) महावीर
(d) कणाद
उत्तर:
(c) महावीर

प्रश्न 16.
पर्यावरण का संबंध है
(a) पशु से
(b) मनुष्य से
(c) देवता से
(d) वनस्पति से
उत्तर:
(d) वनस्पति से

प्रश्न 17.
निम्न में से कौन आस्तिक दर्शन है?
(a) बौद्ध दर्शन
(b) जैन दर्शन
(c) न्याय दर्शन
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(b) जैन दर्शन

प्रश्न 18.
निम्न में से कौन अनुभववादी नहीं है?
(a) लॉक
(b) बर्कले
(c) काण्ट
(d) ह्यूम
उत्तर:
(c) काण्ट

प्रश्न 19.
अद्वैत दर्शन के प्रवर्तक हैं
(a) रामानुज
(b) बल्लभ
(c) शंकर
(d) कपिल
उत्तर:
(c) शंकर

प्रश्न 20.
फिलोसफी का अर्थ है
(a) नियमों का आविष्कार
(b) ज्ञान के प्रति प्रेम
(c) अमरत्व की आकांक्षा
(d) प्रत्यय की खोज
उत्तर:
(b) ज्ञान के प्रति प्रेम

प्रश्न 21.
कर्म सिद्धान्त कारणतावाद
(a) तार्किक है
(b) न्यायिक है
(c) नैतिक है
(d) इनमें से सभी
उत्तर:
(c) नैतिक है

प्रश्न 22.
मीमांसा दर्शन है
(a) कर्मप्रधान
(b) आत्मप्रधान
(c) धर्मप्रधान
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(a) कर्मप्रधान

प्रश्न 23.
किसके अनुसार, ‘गीता माता है’?
(a) बाल गंगाधर तिलक
(b) विनोबा भावे
(c) श्री अरविन्द
(d) महात्मा गाँधी
Ans.
(d) महात्मा गाँधी

प्रश्न 24.
जैन दर्शन के प्रथम तीर्थंकर कौन हैं?
(a) महावीर
(b) ऋषभदेव
(c) पार्श्वनाथ
(d) महादेव
उत्तर:
(b) ऋषभदेव

प्रश्न 25.
जिसके पास समबुद्धि होती है, उसे कहते हैं
(a) मुनि
(b) स्थितप्रज्ञ
(c) योगी
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(d) इनमें से कोई नहीं

प्रश्न 26.
दुःख के कारणों का निवारण है
(a) चतुर्थ आर्य सत्य
(b) तृतीय आर्य सत्य
(c) द्वितीय आर्य सत्य
(d) प्रथम आर्य सत्य
उत्तर:
(b) तृतीय आर्य सत्य

प्रश्न 27.
व्यापार नीतिशास्त्र अध्ययन है
(a) आदर्शों का
(b) मूल्यों का
(c) लाभ का
(d) नैतिकता का
उत्तर:
(b) मूल्यों का

प्रश्न 28.
किसने कहा है, ‘मनुष्य सभी वस्तुओं का मापदंड है’?
(a) अरस्तू
(b) प्लेटो
(c) सोफिस्ट
(d) बेन
उत्तर:
(a) अरस्तू

प्रश्न 29.
भारतीय दर्शन की मूल दृष्टि है।
(a) विश्लेषणात्मक
(b) बौद्धिक
(c) आध्यात्मिक
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(c) आध्यात्मिक

प्रश्न 30.
ऋत संबंधित है
(a) नैतिक नियम से
(b) धार्मिक नियम से
(c) भौतिक नियम से
(d) इनमें से सभी
उत्तर:
(a) नैतिक नियम से

प्रश्न 31.
कौन आस्तिक दर्शन है?
(a) जैन
(b) बौद्ध
(c) चार्वाक
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(a) जैन

प्रश्न 32.
भारतीय दर्शन का आस्तिक व नास्तिक विभाजन का आधार है
(a) ईश्वर में विश्वास
(b) वेदों में विश्वास
(c) (a) और
(b) दोनों
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(b) वेदों में विश्वास

प्रश्न 33.
चार्वाक दर्शन है
(a) भौतिकवादी
(b) आध्यात्मवादी
(c) (a) और (b) दोनों
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(a) भौतिकवादी

प्रश्न 34.
भारतीय दर्शन में यथार्थ ज्ञान को कहा जाता है
(a) प्रमा
(b) अप्रमा
(c) संभाव्य
(d) अध्यास
उत्तर:
(a) प्रमा

प्रश्न 35.
‘दर्शन’ शब्द की उत्पत्ति हुई है।
(a) ‘लु’ धातु से
(b) ‘पश्’ धातु से
(c) ‘कृ’ धातु से
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(d) इनमें से कोई नहीं

प्रश्न 36.
पुरुषार्थ हैं
(a) एक
(b) दो
(c) तीन
(d) चार
उत्तर:
(d) चार

प्रश्न 37.
‘कर्म’ शब्द की उत्पत्ति हुई है
(a) ‘लु’ धातु से
(b) ‘कुर्म’ धातु से
(c) ‘कृ’ धातु से
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(c) ‘कृ’ धातु से

प्रश्न 38.
भारतीय दर्शन का सामान्य लक्षण हैं
(a) अविद्या
(b) मोक्ष (मुक्ति)
(c) पुनर्जन्म
(d) इनमें से सभी
उत्तर:
(b) मोक्ष (मुक्ति)

प्रश्न 39.
निम्न में से कौन-सा एक दृष्टिकोण वैशेषिक के अनुसार सही नहीं है?
(a) परमाणु नित्य हैं
(b) परमाणु से बने सामान नित्य हैं
(c) परमाणु उपमान के द्वारा नहीं जाने जाते हैं
(d) इनमें से सभी
उत्तर:
(c) परमाणु उपमान के द्वारा नहीं जाने जाते हैं

प्रश्न 40.
निष्काम कर्म का मूल सिद्धांत है
(a) शारीरिक सुख
(b) कर्त्तव्य के लिए कर्तव्य
(c) (a) और (b) दोनों
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(b) कर्त्तव्य के लिए कर्तव्य

प्रश्न 41.
निम्न में से कौन-सी एक वेदान्त की शाखा नहीं है?
(a) द्वैत
(b) विशिष्टाद्वैत
(c) अद्वैत
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(d) इनमें से कोई नहीं

प्रश्न 42.
निम्न में से कौन एक बुद्धिवादी है?
(a) लॉक
(b) बर्कले
(c) देकार्त
(d) काण्ट
उत्तर:
(c) देकार्त

प्रश्न 43.
निम्न में से कौन एक बुद्धिवादी एवं अनुभववादी नहीं है?
(a) काण्ट
(b) स्पिनोजा
(c) ह्यूम
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(b) स्पिनोजा

प्रश्न 44.
न्याय दर्शन के प्रवर्तक हैं
(a) कपिल मुनि
(b) गौतम मुनि
(c) बादरायण
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(b) गौतम मुनि

प्रश्न 45.
ईश्वर के अस्तित्व की सिद्धि के लिए देकार्त ने निम्न में से किस एक सिद्धांत का प्रयोग किया है ?
(a) एक पूर्ण सत्ता समग्र विश्व का कारण होनी चाहिए
(b) एक पूर्ण सत्ता एक पूर्ण सत्ता के प्रत्यय का कारण होनी चाहिए
(c) एक पूर्ण सत्ता आश्रित सत्ताओं का कारण होनी चाहिए
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(d) इनमें से कोई नहीं

प्रश्न 46.
निम्न में से कौन एक समानान्तरवाद का समर्थक है?
(a) लाइबनिस
(b) लॉक
(c) देकार्त
(d) स्पिनोजा
उत्तर:
(d) स्पिनोजा

प्रश्न 47.
प्रत्ययवाद संबंधित है
(a) जड़ से
(b) चेतना से
(c) (a) और (b) दोनों
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(b) चेतना से

प्रश्न 48.
निम्नलिखित में कौन-सा एक परार्थानुमान का घटक नहीं है?
(a) परामर्श
(b) उदाहरण
(c) हेतु
(d) उपनय
उत्तर:
(a) परामर्श

प्रश्न 49.
बौद्ध दर्शन के अनुसार आर्य सत्य हैं
(a) दो
(b) तीन
(c) चार
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(c) चार

Bihar Board 12th Business Economics Objective Important Questions Part 4 in Hindi

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Bihar Board 12th Business Economics Objective Important Questions Part 4 in Hindi

प्रश्न 1.
उपयोगिता का क्रमवाचक सिद्धान्त किसने प्रस्तुत किया ?
(a) मार्शल
(b) पीगू
(c) हिक्स तथा एलेन
(d) रिकार्डो
उत्तर:
(c) हिक्स तथा एलेन

प्रश्न 2.
किस बाजार में उत्पाद विभेद पाया जाता है ?
(a) शुद्ध प्रतियोगिता
(b) पूर्ण प्रतियोगिता
(c) एकाधिकार
(d) एकाधिकारी प्रतियोगिता
उत्तर:
(d) एकाधिकारी प्रतियोगिता

प्रश्न 3.
सरकार द्वारा “उच्चतम निर्धारित कीमत” तय की जाती है
(a) आवश्यक वस्तुओं पर
(b) जो बाजार निर्धारित कीमत से कम होती है
(c) सामान्य लोगों की पहुँच के अन्दर लाना
(d) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(c) सामान्य लोगों की पहुँच के अन्दर लाना

प्रश्न 4.
कीमत उस बिन्दु पर निर्धारित होती है जहाँ
(a) वस्तु की माँग अधिक हो
(b) वस्तु की पूर्ति अधिक हो
(c) वस्तु की माँग और वस्तु की पूर्ति बराबर हो
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(c) वस्तु की माँग और वस्तु की पूर्ति बराबर हो

प्रश्न 5.
बाजार मूल्य पाया जाता है
(a) अल्पकालीन बाजार में
(b) दीर्घकालीन बाजार में
(c) अति दीर्घ कालीन बाजार में
(d) उपरोक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(a) अल्पकालीन बाजार में

प्रश्न 6.
ब्रिटिश अर्थशास्त्री जॉन मेनार्ड केन्स की प्रसिद्ध पुस्तक “द जनरल थ्योरी” किस वर्ष प्रकाशित हुई ?
(a) 1926
(b) 1936
(c) 1946
(d) 1956
उत्तर:
(b) 1936

प्रश्न 7.
महामंदी किस वर्ष आई थी?
(a) 1949
(b) 1939
(c) 1929
(d) 1919
उत्तर:
(c) 1929

प्रश्न 8.
समष्टि अर्थशास्त्र अर्थव्यवस्था को किन क्षेत्रकों के संयोग के रूप में देखता है ?
(a) परिवार
(b) फर्म
(c) सरकार और बाह्य क्षेत्रक
(d) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(d) उपरोक्त सभी

प्रश्न 9.
मुद्रा विकास का सही अनुक्रम कौन-सा है ?
(a) वस्तु मुद्रा, पत्र मुद्रा, धातु मुद्रा
(b) वस्तु मुद्रा, धातु मुद्रा, पत्र मुद्रा
(c) साख मुद्रा, धातु मुद्रा, पत्र मुद्रा
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(b) वस्तु मुद्रा, धातु मुद्रा, पत्र मुद्रा

प्रश्न 10.
रिजर्व बैंक ने मुद्रा के चार माप दिए हैं जो कि M1, M2, M3 और M4 हैं M1 में शामिल हैं
(a) C = जनता के पास करेंसी
(b) DD = बैंकों द्वारा शुद्ध माँग जमा
(c) OD = रिजर्व बैंक के पास अन्य जमा
(d) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(a) C = जनता के पास करेंसी

प्रश्न 11.
उत्पादन के साधन हैं
(a) पाँच
(b) छः
(c) सात
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(a) पाँच

प्रश्न 12.
पूँजीवादी अर्थव्यवस्था में केन्द्रीय समस्या का समाधान होता है
(a) केन्द्रीय सरकार द्वारा
(b) मूलतंत्र द्वारा
(c) केन्द्रीय नियोजन द्वारा
(d) पूँजीपति द्वारा
उत्तर:
(a) केन्द्रीय सरकार द्वारा

प्रश्न 13.
किसने कहा-“मूल्य का निर्धारण माँग एवं पूर्ति दोनों के द्वारा होता है” ?
(a) जेवेन्स
(b) वालरस
(c) मार्शल
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(c) मार्शल

प्रश्न 14.
परिवर्तनशील अनुपातों का नियम संबंधित है
(a) अल्पकाल एवं दीर्घकाल दोनों से
(b) दीर्घकाल से
(c) अल्पकाल से
(d) अतिदीर्घकाल से
उत्तर:
(c) अल्पकाल से

प्रश्न 15.
निम्न में से कौन-सा कथन सत्य है ?
(a) औसत लागत = कुल स्थिर लागत – कुल परिवर्तनशील लागत
(b) औसत लागत = औसत स्थिर लागत + कुल परिवर्तनशील लागत
(c) औसत लागत = कुल स्थिर लागत + औसत परिवर्तनशील लागत
(d) औसत लागत = औसत स्थिर लागत + औसत परिवर्तनशील लागत
उत्तर:
(c) औसत लागत = कुल स्थिर लागत + औसत परिवर्तनशील लागत

प्रश्न 16.
कौन-सा कथन सत्य है ?
(a) सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति + सीमान्त बचत प्रवृत्ति = 0
(b) सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति + सीमान्त बचत प्रवृत्ति = <1
(c) सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति + सीमान्त बचत प्रवृत्ति = 1
(d) सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति + सीमान्त बचत प्रवृत्ति = >1
उत्तर:
(a) सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति + सीमान्त बचत प्रवृत्ति = 0

प्रश्न 17.
मुद्रा का कार्य है
(a) विनिमय का माध्यम
(b) मूल्य का मापक
(c) मूल्य का संचय
(d) इनमें से सभी
उत्तर:
(d) इनमें से सभी

प्रश्न 18.
अति अल्पकाल में पूर्ति होगी
(a) पूर्णतः लोचदार
(b) पूर्णतः बेलोचदार
(c) लोचदार
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(b) पूर्णतः बेलोचदार

प्रश्न 19.
पूर्ण प्रतियोगिता में
(a) औसत आय = सीमान्त आय
(b) औसत आय > सीमान्त आय
(c) औसत आय < सीमान्त आय
(d) औसत आय + औसत लागत
उत्तर:
(a) औसत आय = सीमान्त आय

प्रश्न 20.
एकाधिकृत प्रतियोगिता की धारणा को दिया है
(a) हिक्स ने
(b) चैम्बरलीन ने
(c) श्रीमती रॉबिन्सन ने
(d) सैम्यूलसन ने
उत्तर:
(c) श्रीमती रॉबिन्सन ने

प्रश्न 21.
रोजगार सिद्धान्त का सम्बन्ध है
(a) स्थैतिक अर्थशास्त्र से
(b) व्यष्टि अर्थशास्त्र से
(c) समष्टि अर्थशास्त्र से
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(c) समष्टि अर्थशास्त्र से

प्रश्न 22.
चक्रीय प्रवाह में शामिल है
(a) वास्तविक प्रवाह
(b) मौद्रिक प्रवाह
(c) (a) और (b) दोनों
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(c) (a) और (b) दोनों

प्रश्न 23.
विदेशी विनिमय दर का निर्धारण होता है
(a) सरकार द्वारा
(b) मोल-जोल द्वारा
(c) विश्व बैंक द्वारा
(d) माँग एवं पूर्ति द्वारा
उत्तर:
(a) सरकार द्वारा

प्रश्न 24.
निम्न में कौन-सा सत्य है ?
(a) कुल राष्ट्रीय उत्पाद = कुल घरेलू उत्पाद + घिसावट व्यय
(b) शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद = कुल राष्ट्रीय उत्पाद + घिसावट व्यय
(c) शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद = कुल राष्ट्रीय उत्पाद – घिसावट व्यय
(d) कुल राष्ट्रीय उत्पाद = शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद – घिसावट व्यय
उत्तर:
(c) शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद = कुल राष्ट्रीय उत्पाद – घिसावट व्यय

प्रश्न 25.
अनुकूल भुगतान संतुलन विनिमय दर में कमी लाता है
(a) गलत
(b) सही
(c) (a) और (b) दोनों
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(b) सही

प्रश्न 26.
करेंसी जमा अनुपात है
(a) लोगों द्वारा करेंसी में धारित मुद्रा + बैंक जमा के रूप में धारित मुद्रा
Bihar Board 12th Business Economics Objective Important Questions Part 4, 1
(c) लोगों द्वारा करेंसी में धारित मुद्रा × बैंक जमा के रूप में धारित मुद्रा
(d) लोगों द्वारा करेंसी में धारित मुद्रा – बैंक जमा के रूप में धारित मुद्रा
उत्तर:
Bihar Board 12th Business Economics Objective Important Questions Part 4, 2

प्रश्न 27.
किस अर्थव्यवस्था में निजी सम्पत्ति के अस्तित्व एवं प्रधानता पायी जाती है ?
(a) समाजवाद
(b) मिश्रित अर्थव्यवस्था
(c) पूँजीवाद
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(c) पूँजीवाद

प्रश्न 28.
उपभोक्ता के बचत के सिद्धान्त का प्रतिपादन किसने किय ?
(a) मार्शल
(b) डुपोन्ट
(c) हिक्स
(d) सैम्यूअलसन
उत्तर:
(a) मार्शल

प्रश्न 29.
किस बाजार में वस्तु विभेद पाया जाता है ?
(a) शुद्ध प्रतियोगिता
(b) पूर्ण प्रतियोगिता
(c) एकाधिकार
(d) एकाधिकारी प्रतियोगिता
उत्तर:
(d) एकाधिकारी प्रतियोगिता

प्रश्न 30.
बाजार के किस अवस्था में मूल्य विभेद पाया जाता है ?
(a) पूर्ण प्रतियोगिता
(b) एकाधिकार
(c) एकाधिकार प्रतियोगिता
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(b) एकाधिकार

प्रश्न 31.
धन का वह भाग जिसे अधिक धनोपार्जन के लिए लगाया जाता है, है
(a) उत्पादन
(b) पूँजी
(c) निवेश
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(b) पूँजी

प्रश्न 32.
चक्रीय प्रवाह के निम्न में से कौन-सा प्रकार हैं ?
(a) वास्तविक प्रवाह
(b) मौद्रिक प्रवाह
(c) (a) और (b) दोनों
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(c) (a) और (b) दोनों

प्रश्न 33.
क्या सत्य है ?
(a) GNP = SDP + घिसावट
(b) GNP = NNP – घिसावट
(c) NNP = GNP – घिसावट
(d) NNP = GNP + घिसावट
उत्तर:
(c) NNP = GNP – घिसावट

प्रश्न 34.
यह किसने कहा कि ‘पूर्ति स्वयं माँग का सृजन करती है ?
(a) जे० बी० से
(b) जे० के० मेहता
(c) हंसन
(d) कुरीहारा
उत्तर:
(a) जे० बी० से

प्रश्न 35.
एकाधिकारी अवस्था में किसी वस्तु का उत्पादक होता है
(a) एक से अधिक
(b) दो से अधिक
(c) सिर्फ एक
(d) कोई नहीं
उत्तर:
(c) सिर्फ एक

प्रश्न 36.
निम्न में से किस अर्थव्यवस्था में कीमत एवं नियोजित तंत्र मिलकर केन्द्रीय समस्याओं का समाधान किया जाता है ?
(a) मिश्रित अर्थव्यवस्था
(b) समाजवादी अर्थव्यवस्था
(c) पूँजीवादी अर्थव्यवस्था
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(a) मिश्रित अर्थव्यवस्था

प्रश्न 37.
राष्ट्रीय आय की गणना निम्न में से किस विधि से की जाती है ?
(a) उत्पादन विधि
(b) आय विधि
(c) व्यय विधि
(d) इनमें से सभी
उत्तर:
(d) इनमें से सभी

प्रश्न 38.
निम्नलिखित में से कौन-सा क्षेत्र भारत की राष्ट्रीय आय में अधिकतम सहयोग देता है ?
(a) सेवाएँ
(b) कृषि
(c) व्यापार
(d) विनिर्माण
उत्तर:
(a) सेवाएँ

प्रश्न 39.
राष्ट्रीय आय लेखांकन विधि के जन्मदाता कौन हैं ?
(a) जे० एम० कीन्स
(b) इरविन फिशर
(c) जे० एस० मिल
(d) मार्शल
उत्तर:
(a) जे० एम० कीन्स

प्रश्न 40.
भारत का वित्तीय वर्ष कौन-सा है ?
(a) 1 जनवरी से 31 दिसंबर
(b) 1 अप्रैल से 31 मार्च
(c) 30 अक्टूबर से 1 सितंबर
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(b) 1 अप्रैल से 31 मार्च

प्रश्न 41.
देश में कितने राज्य वित्त निगम है ?
(a) 18
(b) 28
(c) 20
(d) 22
उत्तर:
(a) 18

प्रश्न 42.
निम्न में से कौन गुणबोधक साख नियंत्रण की विधि नहीं है ?
(a) आग्रह
(b) नैतिक दबाव
(c) बैंक दर
(d) विज्ञापन
उत्तर:
(c) बैंक दर

प्रश्न 43.
किस बाजार में AR वक्र X अक्ष के समानान्तर होता है ?
(a) एकाधिकारी
(b) पूर्ण प्रतियोगिता
(c) एकाधिकारी प्रतियोगिता
(d) द्वि-अधिकारी
उत्तर:
(b) पूर्ण प्रतियोगिता