Bihar Board 12th Business Economics Objective Important Questions Part 2 in Hindi

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Bihar Board 12th Business Economics Objective Important Questions Part 2 in Hindi

प्रश्न 1.
इनमें से कौन सरकार की कर आय का स्रोत है ?
(a) उत्पाद कर
(b) सम्पत्ति कर
(c) मनोरंजन कर
(d) सभी
उत्तर:
(d) सभी

प्रश्न 2.
भारत के केंद्रीय बैंक का नाम है
(a) सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया
(b) स्टेट बैंक ऑफ इंडिया
(c) रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया
(d) पंजाब नेशनल बैंक
उत्तर:
(a) सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया

प्रश्न 3.
अर्थव्यवस्था की केन्द्रीय समस्या कौन-सी है ?
(a) साधनों का आवंटन
(b) साधनों का कुशलतम उपयोग
(c) आर्थिक विकास
(d) इनमें से सभी
उत्तर:
(d) इनमें से सभी

प्रश्न 4.
निम्न में कौन स्थिर लागत नहीं है ?
(a) ऋण पर ब्याज
(b) कच्चे माल की लागत
(c) फैक्ट्री का किराया
(d) बीमा की किस्त
उत्तर:
(d) बीमा की किस्त

प्रश्न 5.
अवसर लागत को कहा जाता है
(a) बाह्य लागत
(b) आंतरिक लागत
(c) हस्तांतरण लागत
(d) मौद्रिक लागत
उत्तर:
(c) हस्तांतरण लागत

प्रश्न 6.
आय में वृद्धि से कोई माँग वक्र
(a) बायीं ओर खिसक जाता है
(b) दायीं ओर खिसक जाता है
(c) अपने स्थान पर स्थिर रहता है
(d) पहले बायीं फिर दायीं ओर खिसक जाता है
उत्तर:
(d) पहले बायीं फिर दायीं ओर खिसक जाता है

प्रश्न 7.
एक लम्बवत माँग वक्र का अर्थ है कि
(a) वस्तु आवश्यक आवश्यकता है
(b) वस्तु आवश्यकता है
(c) वस्तु आरामदायक वस्तु है
(d) वस्तु विलासिता वस्तु है
उत्तर:
(a) वस्तु आवश्यक आवश्यकता है

प्रश्न 8.
माँग वक्र नीचे झुकती है बायें से
(a) दाहिनी ओर
(b) बायीं ओर
(c) सीधे
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(a) दाहिनी ओर

प्रश्न 9.
उपभोक्ता संतुलन के लिए, वस्तु की
(a) कुल उपयोगिता = मूल्य
(b) सीमान्त उपयोगिता = मूल्य
(c) औसत उपयोगिता = मूल्य
(d) इनमें से सभी
उत्तर:
(d) इनमें से सभी

प्रश्न 10.
उपभोक्ता का संतुलन उस बिन्दु पर होता है, जहाँ
(a) सीमान्त उपयोगिता = मूल्य
(b) सीमान्त उपयोगिता < मूल्य
(c) सीमान्त उपयोगिता < मूल्य
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(a) सीमान्त उपयोगिता = मूल्य

प्रश्न 11.
सम सीमान्त उपयोगिता नियम को कहते हैं
(a) ग्रोसेन का दूसरा नियम
(b) प्रतिस्थापन का नियम
(c) उपयोगिता ह्रास का नियम
(d) (a) और (b) दोनों
उत्तर:
(a) ग्रोसेन का दूसरा नियम

प्रश्न 12.
सम-सीमान्त उपयोगिता नियम के प्रतिपादक कौन हैं ?
(a) गोसेन
(b) पीगू
(c) एडम स्मिथ
(d) रिकार्डो
उत्तर:
(a) गोसेन

प्रश्न 13.
उत्पादन संभावना वक्र की अवधारणा जुड़ी है
(a) सैम्यूल्सन से
(b) मार्शल से
(c) हिक्स से
(d) रॉबिन्स से
उत्तर:
(a) सैम्यूल्सन से

प्रश्न 14.
उत्पादन संभावना वक्र
(a) अक्ष की ओर अवनतोदर होती है
(b) अक्ष की ओर उन्नतोदर होती है
(c) अक्ष के समानान्तर होती है
(d) अक्ष से लम्बवत् होती है
उत्तर:
(b) अक्ष की ओर उन्नतोदर होती है

प्रश्न 15.
यदि किसी वस्तु के मूल्य माँग की लोच ep = 0.5 हो, तो वस्तु की माँग
(a) लोचदार है
(b) पूर्णतः लोचदार है
(c) आपेक्षिक बेलोचदार है
(d) पूर्णतः बेलोचदार है
उत्तर:
(b) पूर्णतः लोचदार है

प्रश्न 16.
निम्न में से कौन माँग की लोच मापने की विधि नहीं है ?
(a) प्रतिशत विधि
(b) आय प्रणाली
(c) कुल व्यय प्रणाली
(d) बिन्दु विधि
उत्तर:
(d) बिन्दु विधि

प्रश्न 17.
निम्नलिखित सारणी से माँग की लोच ज्ञात करें :
Bihar Board 12th Business Economics Objective Important Questions Part 2, 1
(a) 2.00
(b) 2.50
(c) 3.00
(d) 3.50
उत्तर:
(b) 2.50

प्रश्न 18.
माँग की लोच मापने के लिए प्रतिशत या आनुपातिक रीति का प्रतिपादन किसने किया ?
(a) मार्शल
(b) फ्लक्स
(c) हिक्स
(d) रॉबिन्स
उत्तर:
(d) रॉबिन्स

प्रश्न 19.
माँग के नियम का आधार है
(a) उपयोगिता ह्रास नियम
(b) वर्धमान प्रतिफल नियम
(c) ह्रासमान प्रतिफल नियम
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(a) उपयोगिता ह्रास नियम

प्रश्न 20.
मूल्य में परिवर्तन के फलस्वरूप माँग में जिस गति से परिवर्तन होगा उसे कहा जाता है
(a) माँग का नियम
(b) माँग की लोच
(c) लोच की माप
(d) इनमें से सभी
उत्तर:
(b) माँग की लोच

प्रश्न 21.
कॉफी के मूल्य में वृद्धि होने से चाय की माँग
(a) बढ़ती है
(b) घटती है
(c) स्थिर रहती है
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(a) बढ़ती है

प्रश्न 22.
निम्नलिखित में से कौन-सा घटक माँग की लोच को प्रभावित करता है ?
(a) वस्तुओं की प्रकृति
(b) आय स्तर
(c) कीमत स्तर
(d) इनमें से सभी
उत्तर:
(a) वस्तुओं की प्रकृति

प्रश्न 23.
मांग की लोच की माप निम्न में से किस विधि से की जाती है ?
(a) कुल व्यय विधि
(b) प्रतिशत या आनुपातिक रीति
(c) बिन्दु रीति
(d) इनमें से सभी
उत्तर:
(d) इनमें से सभी

प्रश्न 24.
किसी वस्तु की माँग प्रभावित होती है
(a) उपभोक्ता की इच्छा से
(b) उपभोक्ता की आय से
(c) उपभोक्ता की आवश्यकता से
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(b) उपभोक्ता की आय से

प्रश्न 25.
निम्नांकित में से किस वस्तु की माँग बेलोच होती है ?
(a) रेडियो
(b) दवा
(c) टेलीविजन
(d) आभूषण
उत्तर:
(b) दवा

प्रश्न 26.
माँग की लोच को प्रभावित करने वाले घटक कौन-से हैं ?
(a) वस्तु की प्रकृति
(b) कीमत स्तर
(c) आय स्तर
(d) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(a) वस्तु की प्रकृति

प्रश्न 27.
गिफिन वस्तुओं के लिए कीमत माँग की लोच होती है
(a) ऋणात्मक
(b) धनात्मक
(c) शून्य
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(a) ऋणात्मक

प्रश्न 28.
कीमत लोच मापने की रीतियाँ हैं
(a) कुल व्यय रीति
(b) बिन्दु रीति
(c) चाप रीति
(d) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(d) उपर्युक्त सभी

प्रश्न 29.
किसी वस्तु की माँग प्रभावित होती है
(a) वस्तु की कीमत से
(b) उपभोक्ता की आय से
(c) स्थानापन्न की कीमतों से
(d) इनमें सभी से
उत्तर:
(d) इनमें सभी से

प्रश्न 30.
माँग की लोच को मापने का सूत्र निम्न में कौन-सा है ?
Bihar Board 12th Business Economics Objective Important Questions Part 2, 2
उत्तर:
Bihar Board 12th Business Economics Objective Important Questions Part 2, 3

प्रश्न 31.
विलासिता की वस्तुओं की माँग होती है
(a) लोचदार
(b) बेलोचदार
(c) पूर्ण बेलोचदार
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(a) लोचदार

प्रश्न 32.
माँग के लिए निम्न में से कौन-सा तत्त्व आवश्यक है ?
(a) वस्तु की इच्छा
(b) वस्तु क्रय करने के लिए पर्याप्त साधन
(c) साधन व्यय करने की तत्परता
(d) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(d) उपर्युक्त सभी

प्रश्न 33.
किस प्रकार की वस्तुओं के मूल्य में कमी होने से माँग में वृद्धि नहीं होती है ?
(a) अनिवार्य वस्तुएँ
(b) आरामदायक वस्तुएँ
(c) विलासिता वस्तुएँ
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(a) अनिवार्य वस्तुएँ

प्रश्न 34.
अल्पकालीन उत्पादन फलन की व्याख्या निम्न में किस नियम के द्वारा की जाती है ?
(a) माँग के नियम के द्वारा
(b) परिवर्तनशील अनुपात के नियम के द्वारा
(c) पैमाने के प्रतिफल नियम के द्वारा
(d) माँग की लोच द्वारा
उत्तर:
(c) पैमाने के प्रतिफल नियम के द्वारा

प्रश्न 35.
निम्न में से सही अंकित कीजिए
(a) TVC = TC – TFC
(b) TC = TVC – TFC
(c) TFC = TVC + TC
(d) TC = TVC × TFC
उत्तर:
(b) TC = TVC – TFC

प्रश्न 36.
MR प्रदर्शित किया जाता है
Bihar Board 12th Business Economics Objective Important Questions Part 2, 4
उत्तर:
(c) \(\frac{\Delta \mathrm{AR}}{\mathrm{Q}}\)

प्रश्न 37.
निम्न में से कौन-सा कथन सही है ?
(a) वस्तु की कीमत एवं उसकी पूर्ति के बीच सीधा सम्बन्ध होता है
(b) पूर्ति वक्र बायें से दायें ऊपर की ओर उठता है
(c) पूर्ति को अनेक तत्व प्रभावित करते हैं
(d) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(a) वस्तु की कीमत एवं उसकी पूर्ति के बीच सीधा सम्बन्ध होता है

प्रश्न 38.
यदि वस्तु की कीमत में 40% की वृद्धि हो परन्तु पूर्ति में केवल 15% की वृद्धि हो, ऐसी वस्तु की पूर्ति होगी
(a) अत्यधिक लोचदार
(b) लोचदार
(c) बेलोचदार
(d) पूर्णतः बेलोचदार
उत्तर:
(b) लोचदार

प्रश्न 39.
संतुलन की स्थिति में
(a) विक्रय की कुल मात्रा खरीदी जाने वाली मात्रा के बराबर
(b) बाजार पूर्ति बाजार माँग के बराबर
(c) न ही फर्म और न उपभोक्ता विचलित होना चाहते हैं
(d) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(d) उपरोक्त सभी

प्रश्न 40.
प्रत्येक फर्म श्रम का उपयोग उस बिन्दु तक करती है
(a) जहाँ श्रम की सीमान्त उत्पादकता मजदूरी दर के बराबर होती है
(b) जहाँ श्रम की सीमान्त उत्पादकता मजदूरी दर से कम होती है
(c) जहाँ श्रम की सीमान्त उत्पादकता मजदूरी दर से अधिक होती है
(d) उपरोक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(a) जहाँ श्रम की सीमान्त उत्पादकता मजदूरी दर के बराबर होती है

प्रश्न 41.
निम्नांकित उदाहरण में कीमत लोच क्या है ?
Bihar Board 12th Business Economics Objective Important Questions Part 2, 5
(a) – 2.5
(b) 3.5
(c) -4.5
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(a) – 2.5

प्रश्न 42.
केन्स का अर्थशास्त्र
(a) न्यून माँग का अर्थशास्त्र है
(b) माँग-आधिक्य अर्थशास्त्र है
(c) पूर्ण रोजगार का अर्थशास्त्र है
(d) आंशिक माँग का अर्थशास्त्र है
उत्तर:
(c) पूर्ण रोजगार का अर्थशास्त्र है

प्रश्न 43.
कौन-सा कथन सत्य है ?
Bihar Board 12th Business Economics Objective Important Questions Part 2, 6
उत्तर:
(d) (b) और (c) दोनों

Bihar Board 12th Business Economics Objective Important Questions Part 1 in Hindi

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प्रश्न 1.
अर्थशास्त्र की विषय वस्तु का अध्ययन किन शाखाओं के अन्तर्गत किया जाता रहा हैं ?
(a) व्यष्टि अर्थशास्त्र
(b) समष्टि अर्थशास्त्र
(c) उपरोक्त दोनों
(d) उपरोक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(c) उपरोक्त दोनों

प्रश्न 2.
साधनों के स्वामित्व के आधार पर अर्थव्यवस्थायें होती हैं ?
(a) केन्द्रीकृत योजनाबद्ध अर्थव्यवस्था
(b) बाजार अर्थव्यवस्था
(c) मिश्रित अर्थव्यवस्था
(d) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(d) उपरोक्त सभी

प्रश्न 3.
अर्थव्यवस्था की केन्द्रीय समस्यायें कौन-सी है ?
(a) साधनों का आवंटन
(b) साधनों का कुशलतम उपयोग
(c) आर्थिक विकास
(d) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(d) उपरोक्त सभी

प्रश्न 4.
समष्टि अर्थशास्त्र अध्ययन करता है
(a) पूर्ण रोजगार
(b) समग्र कीमत स्तर
(c) सकल राष्ट्रीय उत्पाद
(d) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(d) उपरोक्त सभी

प्रश्न 5.
बजट सेट के लिए आवश्यक है
(a) बंडलों का संग्रह
(b) विद्यमान बाजार कीमत
(c) उपभोक्ता की कुल आय
(d) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(d) उपरोक्त सभी

प्रश्न 6.
ह्रासमान विस्थापन दर में
(a) वस्तु 1 की अधिक मात्रा
(b) वस्तु 2 की कम मात्रा
(c) वस्तु 1 एवं 2 दोनों की अधिक मात्रा
(d) (a) और (b) दोनों
उत्तर:
(b) वस्तु 2 की कम मात्रा

प्रश्न 7.
उपभोक्ता व्यवहार का अध्ययन किया जाता है
(a) सूक्ष्म अर्थशास्त्र में
(b) व्यापक अर्थशास्त्र में
(c) आय सिद्धान्त में
(d) उपरोक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(a) सूक्ष्म अर्थशास्त्र में

प्रश्न 8.
उदासीनता वक्र होता है
(a) मूल बिन्दु की ओर अवनतोदर
(b) मूल बिन्दु की ओर उन्नतोदर
(c) उपरोक्त दोनों सत्य
(d) उपरोक्त दोनों असत्य
उत्तर:
(b) मूल बिन्दु की ओर उन्नतोदर

प्रश्न 9.
माँग वक्र की ढाल होती है
(a) बायें से दायें नीचे की ओर
(b) बायें से दायें ऊपर की ओर
(c) x अक्ष के समानान्तर
(d) उपरोक्त में से कोई नहीं

प्रश्न 10.
माँग फलन को निम्नांकित में से कौन-सा समीकरण व्यक्त करता है ?
(a) Px
(b) Dx = Px
(c) Dx = f (Px)
(d) उपरोक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(a) Px

प्रश्न 11.
अर्थशास्त्र के जनक कौन थे?
(a) जे० बी० से
(b) माल्थस
(c) एडम स्मिथ
(d) जॉन रॉबिन्सन
उत्तर:
(c) एडम स्मिथ

प्रश्न 12.
माँग की लोच के कितने प्रकार होते हैं ?
(a) 3
(b) 5
(c) 6
(d) 7
उत्तर:
(b) 5

प्रश्न 13.
बाजार मूल्य पाया जाता है
(a) दीर्घकालीन बाजार में
(b) अल्पकालीन बाजार में
(c) अति दीर्घकालीन बाजार में
(d) कोई नहीं
उत्तर:
(a) दीर्घकालीन बाजार में

प्रश्न 14.
अर्थव्यवस्था की केंद्रीय समस्या कौन-सी है ?
(a) साधनों का आबंटन
(b) साधनों का कुशलतम उपयोग
(c) आर्थिक विकास
(d) सभी
उत्तर:
(a) साधनों का आबंटन

प्रश्न 15.
किस अर्थव्यवस्था में कीमत तंत्र के आधार पर निर्णय लिए जाते हैं ?
(a) समाजवादी
(b) पूँजीवादी
(c) मिश्रित
(d) सभी
उत्तर:
(b) पूँजीवादी

प्रश्न 16.
उस वक्र को आर्थिक समस्या दर्शाता है, हैं
(a) उत्पादन वक्र
(b) माँग वक्र
(c) उदासीनता वक्र
(d) उत्पादन संभावना वक्र
उत्तर:
(c) उदासीनता वक्र

प्रश्न 17.
अवसर लागत का वैकल्पिक नाम है
(a) आर्थिक लागत
(b) संतुलन मूल्य
(c) सीमान्त लागत
(d) औसत लागत
उत्तर:
(a) आर्थिक लागत

प्रश्न 18.
फर्म के संतुलन की प्रथम शर्त है
(a) MC = MR
(b) MR = TR
(c) MR = AR
(d) AC = AR
उत्तर:
(a) MC = MR

प्रश्न 19.
व्यष्टि अर्थशास्त्र में सम्मिलित है
(a) व्यक्तिगत इकाई
(b) छोटे-छोटे इकाई
(c) व्यक्तिगत मूल्य निर्धारण
(d) सभी
उत्तर:
(d) सभी

प्रश्न 20.
किसने कहा कि अर्थशास्त्र धन का विज्ञान है?
(a) मार्शल
(b) रॉबिन्स
(c) एडम स्मिथ
(d) जे०के० मेहता
उत्तर:
(c) एडम स्मिथ

प्रश्न 21.
व्यष्टि अर्थशास्त्र किसका प्रयोग करता है?
(a) सीमांत विश्लेषण
(b) पिण्ड प्रणाली
(c) मौद्रिक विश्लेषण
(d) आय विश्लेषण
उत्तर:
(a) सीमांत विश्लेषण

प्रश्न 22.
‘माइक्रो’ अर्थशास्त्र तथा ‘मेक्रो’ अर्थशास्त्र शब्दों का प्रयोग सर्वप्रथम किस अर्थशास्त्री द्वारा किया गया ?
(a) मौरिस डॉब
(b) रेमनर फ्रिस
(c) रेगनर नर्कस
(d) जे० एम० केन्ज
उत्तर:
(b) रेमनर फ्रिस

प्रश्न 23.
गिफिन पदार्थों का माँग-वक्र होगा
(a) क्षैतिज
(b) दायीं ओर नीचे गिरता हुआ
(c) बायीं ओर पीछे गिरता हुआ
(d) दायीं ओर ऊपर उठता हुआ
उत्तर:
(c) बायीं ओर पीछे गिरता हुआ

प्रश्न 24.
घटिया वस्तु के लिए आय माँग की लोच है
(a) धनात्मक
(b) शून्य
(c) ऋणात्मक
(d) अनन्त
उत्तर:
(c) ऋणात्मक

प्रश्न 25.
किसी फर्म का लाभ अधिकतम होने के लिए पहली आवश्यक शर्त क्या है ?
(a) AC = MR
(b) MC = MR
(c) MR = AR
(d) AC = AR
उत्तर:
(b) MC = MR

प्रश्न 26.
उत्पादन संभावना वक्र की अवधारणा जुड़ी है
(a) सैम्युल्सन से
(b) मार्शल से
(c) हिक्स से
(d) रॉबिन्स से
उत्तर:
(a) सैम्युल्सन से

प्रश्न 27.
किस प्रकार की अर्थव्यवस्था को मूल आर्थिक समस्याओं का सामना करना पड़ता है ?
(a) पूँजीवादी
(b) समाजवादी
(c) मिश्रित
(d) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(d) उपर्युक्त सभी

प्रश्न 28.
निम्न में से कौन धन की विशेषता है ?
(a) उपयोगिता
(b) सीमितता
(c) विनिमय साध्यता
(d) इनमें से सभी
उत्तर:
(d) इनमें से सभी

प्रश्न 29.
अर्थव्यवस्था की केंद्रीय समस्या है
(a) साधनों का आवंटन
(b) साधनों का कुशलतम प्रयोग
(c) आर्थिक विकास
(d) कोई नहीं
उत्तर:
(d) कोई नहीं

प्रश्न 30.
दुर्लभता की समस्या इसलिए है क्योंकि हमारे साधन हैं
(a) असीमित
(b) सीमित
(c) पर्याप्त
(d) बहुत ज्यादा
उत्तर:
(b) सीमित

प्रश्न 31.
मांग का नियम लागू नहीं होता है
(a) आरामदायक वस्तुओं पर
(b) विलासिता की वस्तुओं पर
(c) आवश्यक वस्तुओं पर
(d) निम्न कोटि की वस्तुओं पर
उत्तर:
(d) निम्न कोटि की वस्तुओं पर

प्रश्न 32.
उपयोगिता का गणनावाचक सिद्धांत किसने दिया ?
(a) मार्शल
(b) पीगू
(c) हिक्स
(d) रॉबिन्स
उत्तर:
(a) मार्शल

प्रश्न 33.
एकाधिकार बाजार में माँग रेखा ……… होती है।
(a) बेलोचदार
(b) लोचदार
(c) पूर्णतया लोचदार
(d) पूर्णतया बेलोचदार
उत्तर:
(b) लोचदार

प्रश्न 34.
सामान्य मूल्य का निर्धारण …….. अवधि में होता है।
(a) बाजार काल
(b) अल्प काल
(c) दीर्घकाल
(d) अतिदीर्घकाल
उत्तर:
(c) दीर्घकाल

प्रश्न 35.
भारत का वित्तीय वर्ष होता है
(a) जनवरी से दिसंबर
(b) अक्टूबर से सितंबर
(c) अप्रैल से मार्च
(d) जुलाई से जून
उत्तर:
(c) अप्रैल से मार्च

प्रश्न 36.
अवसर लागत को कहा जाता है
(a) बाह्य लागत
(b) आंतरिक लागत
(c) हस्तांतरण लागत
(d) मौद्रिक लागत
उत्तर:
(c) हस्तांतरण लागत

प्रश्न 37.
अल्पकाल औसत लागत वक्र सामान्यतः होता है
(a) S-आकार का
(b) U-आकार का
(c) L-आकार का
(d) V-आकार का
उत्तर:
(b) U-आकार का

प्रश्न 38.
माँग की लोच कितने प्रकार की होती है ?
(a) 3
(b) 5
(c) 6
(d) 7
उत्तर:
(b) 5

प्रश्न 39.
भारत के 14 प्रमुख बैंकों का राष्ट्रीयकरण हुआ था
(a) 1960
(b) 1969
(c) 1980
(d) 1985
उत्तर:
(b) 1969

प्रश्न 40.
स्टेट बैंक की स्थापना की गई
(a) 1951
(b) 1955
(c) 1957
(d) 1966
उत्तर:
(b) 1955

प्रश्न 41.
राजकोषीय नीति को हम ……… भी कहते हैं।
(a) मौद्रिक नीति
(b) बजट नीति
(c) आर्थिक नीति
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(b) बजट नीति

प्रश्न 42.
‘अर्थशास्त्र का पिता’ किसे कहा जाता है ?
(a) मार्शल
(b) माल्थस
(c) एडम स्मिथ
(d) जॉन रॉबिन्सन
उत्तर:
(c) एडम स्मिथ

प्रश्न 43.
प्रत्यक्ष कर है
(a) आय कर
(b) उपहार कर
(c) दोनों
(d) कोई नहीं
उत्तर:
(c) दोनों

Bihar Board 12th Economics Important Questions Long Answer Type Part 4

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Bihar Board 12th Economics Important Questions Long Answer Type Part 4

प्रश्न 1.
श्रम के कुल उत्पादन की निम्नलिखित सूची द्वारा औसत उत्पादन (AP) एवं सीमान्त उत्पाद (MP) ज्ञात करें।
Bihar Board 12th Economics Important Questions Long Answer Type Part 4, 1
उत्तर:
Bihar Board 12th Economics Important Questions Long Answer Type Part 4, 2

प्रश्न 2.
पूर्ण प्रतियोगिता और एकाधिकार की अवधारणा को स्पष्ट करें एवं इनके अंतर को स्पष्ट करें।
उत्तर:
पूर्ण प्रतियोगिता बाजार का ऐसा रूप है जिसमें बड़ी संख्या में क्रेता और विक्रेता पाये जाते हैं जो समरूप वस्तु एक समान कीमत पर बेचते है।

एकाधिकार बाजार का वह रूप है जिसमें वस्तु का केवल एक विक्रेता और अनेक क्रेता होते हैं।

पूर्ण प्रतियोगिता तथा एकाधिकार के बीच निम्नांकित अंतर हैं-

  • क्रेताओं तथा विक्रेताओं की संख्या- पूर्ण प्रतियोगिता में समरूप वस्तु के अनेक क्रेता तथा विक्रेता होते हैं। जबकि एकाधिकार में वस्तु का केवल एक ही विक्रेता होता है।
  • प्रवेश पर प्रतिबंध- पूर्ण प्रतियोगिता में नई फर्मों के उद्योग में प्रवेश पाने तथा पुरानी फर्म द्वारा उसे छोड़कर जाने की पूर्ण स्वतंत्रता होती है। इसमें विपरीत, एकाधिकार में नई फर्मों के प्रवेश पर प्रतिबंध होता है।
  • माँग वक्र का आकार- पूर्ण प्रतियोगिता में माँग अथवा AR वक्र OX अक्ष के समानान्तर होता है, साथ ही औसत आगम और सीमांत आगम बराबर होते हैं

Bihar Board 12th Economics Important Questions Long Answer Type Part 4, 3

एकाधिकार में, माँग अथवा AR वक्र बाएँ से दाएँ नीचे की ओर झुके होते है। एवं सीमांत आगम वक्र औसत आगम के नीचे होता है।
Bihar Board 12th Economics Important Questions Long Answer Type Part 4, 4

प्रश्न 3.
किसी अर्थव्यवस्था की केन्द्रीय समस्याएँ कौन-सी हैं तथा ये क्यों उत्पन्न होती है ? उत्पादन संभावना वक्र की सहायता से ‘क्या उत्पादन करें’ की समस्या को समझाइए।
उत्तर:
एक अर्थव्यवस्था की तीन केन्द्रीय समस्याएँ निम्नांकित हैं-

  • क्या उत्पादित किया जाए? विभिन्न वस्तुओं के उत्पादन से संबंधित चयन की समस्या।
  • कैसे उत्पादित किया जाए ? उत्पादन की तकनीकों से संबंधित चयन की समस्या।
  • किसके लिए उत्पादन किया जाए ? उत्पादन के वितरण से संबंधित चयन की समस्या।

ये समस्याएँ प्रत्येक अर्थव्यवस्था की केन्द्रीय समस्याएँ हैं। ये समस्याएँ उत्पन्न होती हैं क्योंकि-

  • असीमित आवश्यकताओं की तुलना में संसाधन । दुर्लभ होते हैं और
  • इन संसाधनों के वैकल्पिक प्रयोग हो सकते हैं। क्या उत्पादित किया जाए की समस्या का संबंध उत्पादन की जानेवाली वस्तुओं तथा सेवाओं के चयन से संबंधित होता है।

Bihar Board 12th Economics Important Questions Long Answer Type Part 4, 5

ऊपर दिये गये चित्र में AB उत्पादन संभावना वक्र है, जिसमें उपभोक्ता वस्तुओं के उत्पादन को Oe से of और og करने के लिए पहले से ज्यादा शुद्ध वस्तुओं का परित्याग करना पड़ता है, जैसे hk और nj।

क्योंकि सीमांत अक्सर लागत में बढ़ने की प्रवृत्ति पाई जाती है इससे दो तथ्य स्पष्ट होते है-

  • उपभोक्ता वस्तुओं का अधिक उत्पादन तभी हो सकता है यदि शुद्ध सामग्री का उत्पादन घटाया जाए।
  • जैसे-जैसे अधिक से अधिक संसाधनों को युद्ध सामग्री के उत्पादन से हटाकर उपभोक्ता वस्तुओं के उत्पादन में लगाया जाता है, सीमांत अवसर लागत में बढ़ने की प्रवृत्ति पाई जाती है।

प्रश्न 4.
उच्चतम मूल्य नीति की उपयुक्त चित्र द्वारा व्याख्या करें।
उत्तर:
कीमत की उच्चतम सीमा उस कीमत को दर्शाती है जिसे विक्रेता सरकारी हस्तक्षेप होने पर अधिकतम कीमत के रूप में प्राप्त करता है। यह कीमत निम्न चित्र में OP1 से प्रदर्शित की गई है।
Bihar Board 12th Economics Important Questions Long Answer Type Part 4, 6

बाजार में अगर OP प्रचलित कीमत है और सभी वर्ग के लोग इस कीमत पर वस्तु का उपयोग नहीं कर पाते हैं तब सरकार OP1 कीमत निर्धारित करती है। फलत: ab आंतरिक माँग उत्पन्न होती है। सरकार सीमित पूर्ति के समाधान के रूप में राशनिंग का सहारा लेती है। प्रत्येक आटा समूह के लिए वस्तु की आपूर्ति का एक निश्चित कोटा निर्धारित कर देती है।

प्रश्न 5.
सरकारी क्षेत्र के समावेश के अर्थव्यवस्था पर क्या प्रभाव पड़ता है ?
उत्तर:
सरकारी क्षेत्र में अर्थव्यवस्था में समावेश से अर्थव्यवस्था पर निम्नांकित प्रभाव पड़ते हैं-

  • सरकार गृहस्थों पर कर लगाती है। जिसकी उनकी प्रयोज्य आय कम होती है। फलस्वरूप कुल माँग घट जाती है।
  • सरकार घरेलू क्षेत्र को कई प्रकार से हस्तान्तरण भुगतान करती है जिसके फलस्वरूप उनका प्रयोज्य आय में वृद्धि होती है।
  • कानून तथा व्यवस्था व सुरक्षा आदि सेवाएँ प्रदान करके सरकार आय प्रजनन की प्रक्रिया में अंशदान करती है।
  • सरकार निगम कर लगाती है जिससे अर्थव्यस्था में वैयक्तिक आय घटती है।
  • वस्तुओं तथा सेवाओं पर कर घरेलू पदार्थ के बाजार मूल्य में वृद्धि लाता है।
  • उत्पादकों को सरकार द्वारा दी गई आर्थिक सहायता घरेलू पदार्थ के बाजार मूल्य को घटाती है।

प्रश्न 6.
एक वस्तु की माँग 5 रु० प्रति इकाई कीमत पर 30 इकाई है। मान लीजिए वस्तु की कीमत बढ़कर 6 रु० प्रति इकाई हो जाती है जिससे माँग घटकर 24 हो जाती है। माँग की कीमत लोच की गणना करें।
उत्तर:
मान लिया कि प्रारंभिक मूल्य P1 तथा अंतिम मूल्य P2 है। प्रारंभिक मूल्य (P1) पर माँगी गई वस्तु की मात्रा Q1 तथा अंतिम मूल्य (P2) पर माँगी गई वस्तु की मात्रा Q2 है।
P1 = Rs 5, P1 = Rs 6, Q1 = 30, Q2 = 24
माँग की कीमत लोच ep = \(\frac{\Delta Q}{\Delta P} \cdot \frac{P_{1}}{Q_{1}}\)
ΔQ = माँग मात्रा में परिवर्तन = Q2 – Q1
ΔP = कीमत में परिवर्तन = P2 – P1
Bihar Board 12th Economics Important Questions Long Answer Type Part 4, 7
अर्थात् माँग की कीमत लोच इकाई के बराबर है। (ऋणात्मक चिह्न यह बताता है कि माँग तथा मूल्य परिवर्तन एक दूसरे के विपरीत दिशा में होते हैं।)

प्रश्न 7.
राजस्व घाटा किसे कहते हैं ? इसे कम करने के दो उपाय बतायें।
उत्तर:
राजस्व घाटा सरकार के राजस्व व्यय की राजस्व प्राप्तियाँ पर अधिकता को दर्शाता है। राजस्व घटा = राजस्व व्यय – राजस्व प्राप्तियाँ राजस्व घाटा यह बताता है कि सरकार अबचत कर रही है। अर्थात् सरकार की परिसंपत्तियों में कमी हो जाती है। इसे कम करने के दो उपाय निम्नांकित हैं-

  • करों की दरों में वृद्धि करके सरकार अपनी राजस्व प्राप्तियों में वृद्धि करती है जिससे प्राप्तियों तथा व्यय का अंतर कम किया जा सकता है।
  • करों के आधार को विस्तृत करके भी सरकार अपनी राजस्व प्राप्तियों में वृद्धि करती है तथा प्राप्तियों एवं व्यय के अंतर को कम करने का प्रयास करती है।
  • सार्वजनिक व्यय में कटौती करके।

प्रश्न 8.
संसाधनों के बँटवारे (आवंटन) से संबंधित केन्द्रीय समस्याओं का संक्षेप में विवरण दीजिए।
अथवा, अर्थव्यवस्था की केन्द्रीय समस्याओं की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
संसाधन के आबंटन से संबंधित तीन केन्द्रीय समस्यायें हैं-

  1. क्या उत्पादन किया जाए और कितनी मात्रा में
  2. कैसे उत्पादन किया जाए और
  3. किसके लिये उत्पादन किया जाए।

1. क्या उत्पादन किया जाए और कितनी मात्रा में (What to Produce and Which Quantity)- प्रत्येक अर्थव्यवस्था के पास साधन सीमित हैं और उनके वैकल्पिक प्रयोग होते हैं। समाज को लाखों वस्तुओं और सेवाओं की आवश्यकता होती है। अत: अर्थव्यवस्था को यह निर्णय लेना होता है कि उपभोक्ता वस्तुओं का उत्पादन किया जाए या पूँजीगत वस्तुओं का, विलासितापूर्ण वस्तुओं का उत्पादन किया जाय या अनिवार्य वस्तुओं का, युद्धकालीन वस्तुओं का उत्पादन किया जाए या शांतिकालीन वस्तुओं का। इसके बाद यह निर्णय लिया जाएगा कि कितनी मात्रा में इन वस्तुओं का उत्पादन किया जाए।

2. कैसे उत्पादन किया जाए (How to Producc)- इन समस्या का संबंध उत्पादन की तकनीक के चयन से है। उत्पादन करने की तकनीक और पूँजी-प्रधान तकनीका उत्पादन की बेहतर तकनीक वही है जिसमें दुर्लभ संसाधनों का कम-से-कम उपयोग हो।

3. किसके लिए उत्पादन किया जाए (For whom to Produce)- अर्थव्यवस्था को यह निर्णय लेना होता है कि उत्पादित वस्तुओं का उपभोक्ताओं के बीच किस प्रकार वितरण किया जाए। अर्थव्यवस्था उन्हीं लोगों के लिए उत्पादन करती है जिनके पास पर्याप्त मात्रा में क्रय शक्ति होती है। क्रय शक्ति आय पर निर्भर करती है अर्थात् अर्थव्यवस्था को यह निर्णय लेना पड़ता है कि राष्ट्रीय आय का वितरण किस प्रकार किया जाए।

प्रश्न 9.
किसी वस्तु की माँग को निर्धारित करने वाले कारकों को समझाइयें।
उत्तर:
किसी वस्तु की माँग को निर्धारित करने वाले कारक (Factors determining thedemand for a commodity)- किसी वस्तु की माँग को निर्धारित करने वाले कारक निम्नलिखित हैं-

(i) वस्तु की कीमत (Price of a commodity)- सामान्यत: किसी वस्तु की माँग की मात्रा उस वस्तु की कीमत पर आश्रित होती है। अन्य बातें पर्ववत रहने पर कीमत कम होने पर वस्त की मांग बढ़ती है और कीमत के बढ़ने पर माँग घटती है। किसी वस्तु की कीमत और उसकी माँग में विपरीत सम्बन्ध होता है।

(ii) संबंधित वस्तुओं की कीमतें (Prices of related goods)- संबंधित वस्तुएँ दो प्रकार की होती हैं-
पूरक वस्तुएँ तथा स्थानापन्न वस्तुएँ- पूरक वस्तुएँ वे वस्तुएँ होती हैं जो किसी आवश्यकता को संयुक्त रूप से पूरा करती हैं और स्थानापन्न वस्तुएँ वे वस्तुएँ होती हैं जो एक दूसरे के स्थान पर प्रयोग की जा सकती हैं। पूरक वस्तुओं में यदि एक वस्तु की कीमत कम हो जाती है तो उसकी पूरक वस्तु की माँग बढ़ जाती है। इसके विपरीत यदि स्थानापन्न वस्तुओं में किसी एक की कीमत कम हो जाती है तो दूसरी वस्तु की मांग भी कम हो जाती है।

(iii) उपभोक्ता की आय (Income of Consumer)- उपभोक्ता की आय में वृद्धि होने पर सामान्यतया उसके द्वारा वस्तुओं की माँग में वृद्धि होती है।

आय में वृद्धि के साथ अनिवार्य वस्तुओं की माँग एक सीमा तक बढ़ती है तथा उसके बाद स्थिर हो जाती है। कुछ परिस्थितियों में आय में वृद्धि का वस्तु की माँग पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता। ऐसा खाने-पीने की सस्ती वस्तुओं में होता है। जैसे नमक आदि।

विलासितापूर्ण वस्तुओं की माँग आय में वृद्धि के साथ-साथ लगातार बढ़ती रहती है। घटिया (निम्नस्तरीय) वस्तुओं की माँग आय में वृद्धि साथ-साथ कम हो जाती है लेकिन सामान्य वस्तुओं की माँग आय में वृद्धि के साथ बढ़ती है और आय में कमी से कम हो जाती है।

(iv) उपभोक्ता की रुचि तथा फैशन (Interest of Consumer and Fashion)- परिवार या उपभोक्ता की रुचि भी किसी वस्तु को खरीदने के लिए प्रेरित कर सकता है। यदि पड़ोसियों के पास कार या स्कूटर है तो प्रदर्शनकारी प्रभाव के कारण एक परिवार की कार या स्कूटर की माँग बढ़ सकती है।

(v) विज्ञापन तथा प्रदर्शनकारी प्रभाव (Advertisement and Demonstration Effect) विज्ञापन भी उपभोक्ता को किसी विशेष वस्तु को खरीदने के लिए प्रेरित कर सकता है। यदि पड़ोसियों के पास कार या स्कूटर है तो प्रदर्शनकारी प्रभाव के कारण एक परिवार की कार या स्कूटर की मांग बढ़ सकती है।

(vi) जनसंख्या की मात्रा और बनावट (Quantity and Composition of population) अधिक जनसंख्या का अर्थ है परिवारों की अधिक संख्या और वस्तुओं की अधिक माँग। इसी प्रकार जनसंख्या की बनावट से भी विभिन्न वस्तुओं की माँग निर्धारित होती है।

(vii) आय का वितरण (Distribution of Income)- जिन अर्थव्यवस्था में आय का वितरण समान है वहाँ वस्तुओं की माँग अधिक होगी तथा इसके विपरीत जिन अर्थव्यवस्था में आय का वितरण असमान है, वहाँ वस्तुओं की माँग कम होगी।

(viii) जलवायु तथा रीति-रिवाज (Climate and Customs)- मौसम, त्योहार तथा विभिन्न परंपराएँ भी वस्तु की माँग को प्रभावित करती हैं। जैसे-गर्मी के मौसम में कूलर, आइसक्रीम, कोल्ड ड्रिंक आदि की माँग बढ़ जाती है।

प्रश्न 10.
माँग की लोच का महत्त्व लिखें।
उत्तर:
माँग की लोच का महत्त्व (Importance of elasticity of demand)- माँग की लोच का महत्व निम्नलिखित कारणों में है-

(i) एकाधिकारी के लिए उपयोगी (Useful for monopolist)- अपने उत्पादन के मूल्य निर्धारण में एकाधिकारी माँग की लोच का ध्यान रखता है। एकाधिकारी का मुख्य उद्देश्य अधिकतम लाभ कमाना होता है। वह उस वस्तु का मूल्य उस वर्ग के लिए कम रखेगा जिसकी माँग अधिक लोचदार है और उस वर्ग के लिए अधिक रखेगा जिस वर्ग के लिए वस्तु की माँग बेलोचदार है।

(ii) वित्त मंत्री के लिए उपयोगी- माँग की लोच वित्त मंत्री के लिए भी उपयोगी है। वित्त मंत्री कर लगाते समय माँग की लोच को ध्यान में रखेगा। जिस वस्तु की माँग अधिक लोचदार होती है उस पर कम दर से कम कर लगाकर अधिक धनराशि प्राप्त करता है। इसके विपरीत वह उन वस्तुओं पर अधिक कर लगाएगा जिन वस्तुओं की माँग की लोच कम है।

(iii) साधन कीमत के निर्धारण में सहायक (Helpful in determining the price of factors)- उत्पादक प्रक्रिया में साधनों को मिलने वाले प्रतिफल की स्थिति इसके द्वारा स्पष्ट होती है वे साधन जिनकी माँग बेलोचदार होती है, लोचदार माँग वाले साधनों की तुलना में अधिक कीमत प्राप्त करते हैं।

(iv) अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में उपयोगी (Useful in international trade)- माँग की लोच की जानकारी अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में बहुत ही सहायक है। अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में निर्यात की जाने वाली जिन वस्तुओं की माँग विदेशों में बेलोचदार है उनकी कीमत अधिक रखी जाएगी और जिन वस्तुओं की माँग विदेशों में बेलोचदार है उनकी कीमत अधिक रखी जाएगी।

(v) निर्धनता का विरोधाभास (Paradox of Poverty)- कई वस्तुओं की फसल बहुत अच्छी होने पर भी उनसे प्राप्त होने वाली आय बहुत कम होती है। इसका अर्थ यह है कि किसी वस्तु के उत्पादन में वृद्धि होने से आय बढ़ने के स्थान पर कम हो गई। इस अस्वाभाविक अवस्था को ही निर्धनता का विरोधाभास कहते हैं। इसका कारण यह है कि अधिकतर कृषि पदार्थों की माँग बेलोचदार होती है। इन वस्तुओं की पूर्ति के बढ़ने पर कीमत में काफी कमी आती है तो भी इनकी माँग में विशेष वृद्धि नहीं हो पाती। इसलिए इनकी बिक्री से प्राप्त कुल आय पहले की तुलना में कम हो जाती है।

(vi) राष्ट्रीयकरण की नीति के लिये महत्त्वपूर्ण (Important for the policy of nationalisation)- राष्ट्रीयकरण की नीति से अभिप्राय है कि सरकार का निजी क्षेत्र के उद्योगों का स्वामित्व, नियन्त्रण तथा प्रबंध स्वयं अपने हाथों में लेना। जिन उद्योगों में उत्पादित वस्तुओं की माँग बेलोचदार होती है, उनकी कीमत में बहुत अधिक वृद्धि किये जाने पर भी उनकी माँग में विशेष कमी नहीं आती। यदि ऐसे उद्योग निजी क्षेत्र में रहते हैं तो उन उद्योगों के स्वामी अपनी उत्पादित वस्तुओं की अधिक कीमत लेकर जनता का शोषण कर सकते हैं। जनता को उनके शोषण से बचाने के लिए सरकार उद्योगों का राष्ट्रीयकरण कर सकती है।

(vii) कर लगाने में सहायक (Helpful in imposing taxes)- कर लगाते समय सरकार वस्तु की माँग लोच को ध्यान में रखती है।

प्रश्न 11.
परिवर्तनशील साधन के प्रतिफल तथा पैमाने के प्रतिफल में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
परिवर्तनशील साधन के प्रतिफल तथा पैमाने के प्रतिफल में निम्नलिखित अन्तर है-
परिवर्तनशील साधन के प्रतिफल:

  1. उत्पादन के चारों साधनों के एक निश्चित अनुपात में वृद्धि करने से कुल उत्पादन पर इसका क्या प्रभाव पड़ता है, इसका अध्ययन पैमाने के प्रतिफल के अन्तर्गत किया जाता है।
  2. यह नियम दीर्घकाल में लागू होता है।
  3. इसमें उत्पत्ति के चारों साधन परिवर्तन-शील हैं।
  4. चारों साधनों में अनुपात स्थिर रहता है।
  5. उत्पादन का पैमाना बदल जाता है।
  6. पैमाने के वर्द्धमान प्रतिफल-चारों साधनों में एक निश्चित अनुपात में वृद्धि करने से कुल उत्पादन उस अनुपात से अधिक बढ़ता है।
  7. पैमाने के ह्रासमान प्रतिफल: चारों साधनों में एक निश्चित अनुपात में वृद्धि करने से कुल उत्पादन उस अनुपात से कम बढ़ता है।

पैमाने के प्रतिफल:

  1. अन्य साधनों को स्थिर रखकर किसी एक परिवर्तनशील साधन की इकाई में वृद्धि करने से कल उत्पादन का क्या प्रभाव पड़ता है, इसका अध्ययन परिवर्तनशील साधन के प्रतिफल के अन्तर्गत किया जाता है।
  2. यह नियम अल्पकाल में लागू होता है।
  3. समें एक साधन परिवर्तनशील है जबकि अन्य साधन स्थिर हैं।
  4. परिवर्तनशील तथा स्थिर साधनों में अनुपात बदला जाता है।
  5. उत्पादन के पैमाने में कोई परिवर्तन नहीं होती।
  6. उत्पत्ति वृद्धि नियमः अन्य साधनों को स्थिर रखकर श्रम की इकाइयों में वृद्धि करने पर कुल उत्पादन बढ़ती हुई दर से बढ़ता है तथा औसत और सीमान्त उत्पादन बढ़ते हैं।
  7. उत्पत्ति वृद्धि नियम अन्य साधनों को स्थिर रखकर श्रम की इकाइयों में वृद्धि करने पर कुल उत्पादन घटती हुई दर से बढ़ता है तथा औसत और सीमान्त उत्पादन घटता है।

प्रश्न 12.
पूर्ण प्रतियोगी श्रम बाजार में मजदूरी का निर्धारण कैसे किया जाता है ?
उत्तर:
पूर्ण प्रतियोगी श्रम बाजार में मजदूरी का निर्धारण (Determination of Wage in Perfectly Competitive Labour Market)- श्रम बाजार में परिवार श्रम की पूर्ति करते हैं और श्रम की माँग फर्मों द्वारा की जाती है। श्रम से अभिप्राय श्रमिकों द्वारा किए गए काम के घंटों से है न कि श्रमिकों की संख्या से। श्रम बाजार में मजदूरी का निर्धारण उस बिन्दु पर होता है जहाँ पर माँग वक्र तथा पूर्ति वक्र आपस में काटते हैं।

मजदूरी निर्धारण में हम यह मान लेते हैं कि श्रम ही केवल परिवर्तनशील उत्पादन का साधन है तथा मजदूर बाजार में पूर्ण प्रतियोगिता है अर्थात् प्रत्येक फर्म के लिए मजदूरी दी गई है। प्रत्येक फर्म का उद्देश्य अधिकतम लाभ कमाना है। हम यह भी मानकर चलते हैं कि फर्म की उत्पादन तकनीक दी गई है और उत्पाद का ह्रासमान नियम लागू है।

जैसा कि प्रत्येक फर्म का उद्देश्य अधिकतम लाभ कमाना है, अत: फर्म उस बिन्दु तक श्रमिकों की नियुक्ति करती रहेगी जब तक अन्तिम श्रम पर होने वाला अतिरिक्त (Extra) व्यय उस श्रम से प्राप्त अतिरिक्त लाभ के समान नहीं होता। एक अतिरिक्त श्रम के लगाने की अतिरिक्त लागत मजदूरी पर (W) कहलाती है और एक अतिरिक्त मजदूर के लगाने से प्राप्त आय उस श्रम की सीमान्त उत्पादकता (MP,) कहलाती है। उत्पाद की प्रत्येक अतिरिक्त इकाई के बेचने से प्राप्त होने वाली आय सीमान्त आय (आगम) कहलाती है। फर्म उस बिन्दु तक श्रम को लगाती है, जहाँ
W = MRPL
यहाँ MRPL = MR × MPL

प्रश्न 13.
तीन विभिन्न विधियों की सूची बनाइए जिसमें अल्पाधिकारी फर्म व्यवहार कर सकता है।
उत्तर:
तीन विभिन्न विधियाँ (Three different ways)- नीचे तीन विभिन्न विधियाँ दी गई हैं जिनमें अल्पाधिकार फर्म व्यवहार कर सकती हैं
1. द्वि-अधिकारी फर्म आपस में सांठ-गांठ करके यह निर्णय ले सकती है कि वे एक दूसरे से स्पर्धा नहीं करेंगे और एक साथ दोनों फर्मों के लाभ को अधिकतम स्तर तक ले जाने का प्रयत्न करेंगे। इस स्थिति में दोनों फर्मे एकल एकाधिकारी की तरह व्यवहार करेंगी जिनके पास दो अलग-अलग वस्तु उत्पादन करने वाले कारखाने होंगे।

2. दो फर्मों में प्रत्येक यह निर्णय ले सकती है कि अपने लाभ को अधिकतम करने के लिये वह वस्तु की कितनी मात्रा का उत्पादन करेंगी। यहाँ यह मान लिया जाता है कि उनकी वस्तु की मात्रा की पूर्ति को कोई अन्य फर्म प्रभावित नहीं करेंगी।

3. कुछ अर्थशास्त्रियों का तर्क है अल्पाधिकार बाजार संरचना में वस्तु की अनन्य पहुँचेगा, क्योंकि इस स्तर पर सीमांत संप्राप्ति और सीमांत लागत समान होंगे और निर्गत में वृद्धि के लाभ से किसी प्रकार की वृद्धि नहीं होगी।

दूसरी ओर यदि फर्म प्रतिशत से अधिक मात्रा में निर्गत का उत्पादन करती है तो सीमांत लागत सीमांत संप्राप्ति से अधिक होती है। अभिप्राय यह है कि निर्गत की एक इकाई कम करने से कुल लागत में जो कमी होती है, वह इसी कमी के कारण कुल संप्राप्ति में हुई हानि से अधिक होती है। अतः फर्म के लिए यह उपयुक्त है कि वह निर्गत में कमी लाए। यह तर्क तब तक समीचीन होगा जब तक सीमांत लागत वक्र सीमांत संप्राप्ति वक्र के ऊपर अवस्थित और फर्म अपने निर्गत संप्राप्ति के मूल्य समान हो जाएँगे और फर्म अपने निर्गत में कमी को रोक देगी।

फर्म अनिवार्य रूप से प्रतिशत निर्गत स्तर पर पहुँचती है। अतः इस स्तर को निर्गत स्तर का संतुलन स्तर कहते हैं। निर्गत का यह संतुलन स्तर उस बिन्दु के संगत होता है जहाँ सीमांत संप्राप्ति सीमांत लागत के बराबर होती है। इस समानता को एकाधिकारी फर्म द्वारा उत्पादित निर्गत के लिये संतुलन की शर्त कहते हैं।

प्रश्न 14.
अल्पाधिकार किसे कहते हैं ? इसकी विशेषताओं का वर्णन करें।
उत्तर:
अल्पाधिकार (Oligopoly)- अल्पाधिकार अपूर्ण प्रतियोगिता का एक रूप है। अल्पाधिकार बाजार की ऐसी अवस्था को कहा जाता है जिसमें वस्तु के बहुत कम विक्रेता होते हैं और प्रत्येक विक्रेता पूर्ति एवं मूल्य पर समुचित प्रभाव रखता है। प्रो० मेयर्स के अनुसार “अल्पाधिकार बाजार की वह स्थिति है जिसमें विक्रेताओं की संख्या इतनी कम होती है कि प्रत्येक विक्रेता की पूर्ति का बाजार कीमत पर समुचित प्रभाव पड़ता है और प्रत्येक विक्रेता इस बात से परिचित होता है।”

अल्पाधिकार की विशेषताएँ (Characteristics of Oligopoly)- अल्पाधिकार की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
1. विक्रेताओं की कम संख्या (A few sellers firms)- अल्पाधिकार में उत्पादकों एवं विक्रेताओं की संख्या सीमित होती है। प्रत्येक उत्पादक बाजार की कुल पूर्ति में एक महत्वपूर्ण भाग रखता है। इस कारण प्रत्येक उत्पादक उद्योग की मूल्य नीति को प्रभावित करने की स्थिति में होता है।

2. विक्रेताओं की परस्पर निर्भरता (Mutual dependence)- इसमें सभी विक्रेताओं में आपस में निर्भरता पाई जाती है। एक विक्रेता की उत्पाद एवं विक्रय नीति दूसरे विक्रेताओं की उत्पाद एवं मूल्य नीति से प्रभावित होती है।

3. वस्तु की प्रकृति (Nature of Product)- अल्पाधिकार में विभिन्न उत्पादकों के उत्पादों में समरूपता भी हो सकती है और विभेदीकरण भी। यदि उनका उत्पाद एकरूप है तो इसे विशुद्ध अल्पाधिकार कहा जाता है और यदि इनका उत्पाद अलग-अलग है तो इसे विभेदित अल्पाधिकार कहा जाता है। .

4. फर्मों के प्रवेश एवं बर्हिगमन में कठिनाई (Difficultentry andexittofirm)- अल्पाधिकार की स्थिति में फर्मे न तो आसानी से बाजार में प्रवेश कर पाती हैं और न पुरानी फर्मे आसानी से बाजार छोड़ पाती हैं।

5. अनम्य कीमत (Rigid Price)- कुछ अर्थशास्त्रियों का तर्क है कि अल्पाधिकार बाजार संरचना में वस्तुओं की अनन्य कीमत होती है अर्थात् माँग में परिवर्तन के फलस्वरूप बाजार कीमत में निर्बाध संचालन नहीं होता है। इसका कारण यह है कि किसी भी फर्म द्वारा प्रारंभ की गई कीमत में परितर्वन के प्रति एकाधिकारी फर्म प्रतिक्रिया व्यक्त करते हैं। यदि एक फर्म यह अनुभव करती है कि कीमत में वृद्धि से अधिक लाभ का सृजन होगा और इसलिये वह अपने निर्गत (उत्पाद) को बेचने के लिये कीमत में वृद्धि करेगी (अन्य फर्मे इसका अनुकरण नहीं कर सकती हैं)। अतः कीमत वृद्धि अतः कीमत वृद्धि से बिक्री की मात्रा में भारी गिरावट आएगी जिससे फर्म की संप्राप्ति और लाभ में गिरावट आएगी। अतः किसी फर्म के लिये कीमत में वृद्धि करना विवेक संगत नहीं होगा। इसी प्रकार कोई भी फर्म अपने उत्पाद की कीमत में कमी नहीं लाएगी।

6. आपसी अनुबंध (MutualAgreement)- कभी-कभी अल्पाधिकार के अंतर्गत कार्य करने वाली विभिन्न फर्मे आपस में एक अनुबंध कर लेती हैं। यह अनुबंध वस्तु के मूल्य तथा उत्पादन की मात्रा के सम्बन्ध में किया जाता है। इसका उद्देश्य सभी फर्मों के हितों की रक्षा करना तथा उनके लाभों में वृद्धि करना होता है। ऐसी दशा में निर्धारित किया गया मूल्य एकाधिकारी फर्म के समान ही होगा।

प्रश्न 15.
एक फर्म की कुल स्थिर लागत, कुल परिवर्तनशील लागत तथा कुल लागत क्या हैं ? ये आपस में किस प्रकार संबंधित हैं ?
उत्तर:
(i) कुल नश्चित लागत (Total Fixed Cost)- बेन्हम के अनुसार एक फर्म की स्थिर लागतें वे लागतें होती हैं, जो उत्पादन के आकार के साथ परिवर्तित नहीं होती। ये लागतें सदैव स्थिर रहती हैं। इनका संबंध उत्पादन की मात्रा के साथ नहीं होता अर्थात् उत्पादन की मात्रा के घटने E या बढ़ने का इन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता। स्थिर लागतों कुल स्थिर लागत में भूमि अथवा फैक्टरी, इमारत का किराया, बीमा व्यय, लाइसेंस, फीस, सम्पत्ति कर आदि लागतें शामिल होती हैं। स्थिर लागतों को अप्रत्यक्ष कर भी कहा जाता है।

बगल के चित्र द्वारा स्थिर लागत को दर्शाया गया है।
Bihar Board 12th Economics Important Questions Long Answer Type Part 4, 8

(ii) कुल परिवर्ती लागत (Total Variable Cost) कुल परिवर्ती (अथवा परिवर्तनशील) लागतें वे लागतें हैं जो उत्पाद के आकार के साथ घटती बढ़ती रहती है। ये लागतें । उत्पादन की मात्रा के साथ बढ़ती है और उत्पादन के घटने पर घटती है। कच्चा माल, बिजली, ईंधन, परिवहन आदि पर होने वाले व्यय परिवर्ती लागतें कहलाती हैं। बेन्हम के अनुसार, “एक फर्म की परिवर्ती लागतों में वे लागतें शामिल की जाती है जो उसके उत्पादन के आकार के साथ परिवर्तित होती हैं।” कुल परिवर्ती लागतों के सम्बन्ध में ध्यान देने योग्य बात यह है कि आरम्भ में ये लागतें घटती दर से बढ़ती है, परन्तु एक सीमा के बाद वे बढ़ती हुई दर से बढ़ती है। कुल परिवर्ती लागतों को ऊपर के चित्र द्वारा दर्शाया गया है।
Bihar Board 12th Economics Important Questions Long Answer Type Part 4, 9

(iii) कुल लागत (Total Cost)- कुल लागत कुल स्थिर लागत तथा कुल परिवर्ती लागत का योग होती है। कुल लागत से अभिप्राय किसी वस्तु के उत्पादन पर होने वाले कुल व्यय से है। उत्पादन. की मात्रा में परिवर्तन होने पर उत्पादन की कुल लागत में भी परिवर्तन हो जाता है।

कुल परिवर्ती लागत, कुल स्थिर लागत तथा कुल लागत का पारस्परिक सम्बन्ध (Interrelationship between Total Variable Costs, Total Fixed Costs and Total Costs)- कुल परिवर्ती लागतों, कुल स्थिर लागतों तथा कुल लागतों के आपसी सम्बन्धों को नीचे चित्र द्वारा दर्शाया गया है-
Bihar Board 12th Economics Important Questions Long Answer Type Part 4, 10
चित्र से पता चलता है कि कुल लागत, कुल स्थिर लागत तथा कुल परिवर्ती लागत के योग हैं। उत्पादन के शून्य स्तर पर कुल लागत तथा स्थिर लागत बराबर होती है। परिवर्तनशील लागतों के बढ़ने से कुल लागतें बढ़ती हैं।

प्रश्न 16.
पूर्ण प्रतियोगिता की प्रमुख विशेषताएँ क्या हैं ?
उत्तर:
पूर्ण प्रतियोगिता की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
(i) क्रेताओं और विक्रेताओं की अधिक संख्या- पूर्ण प्रतियोगी बाजार में क्रेताओं और विक्रेताओं की संख्या बहुत अधिक होती है जिसके कारण कोई भी विक्रेता अथवा क्रेता बाजार कीमत को प्रभावित नहीं कर पाता। इस प्रकार पूर्ण प्रतियोगिता में एक क्रेता अथवा एक विक्रेता बाजार में माँग अथवा पूर्ति की दशाओं को प्रभावित नहीं कर सकता।

(ii) वस्तु की समरूप इकाइयाँ- सभी विक्रेताओं द्वारा बाजार में वस्तु की बेची जाने वाली इकाइयाँ एक समान होती हैं।

(iii) फर्मों के प्रवेश व निष्कासन की स्वतंत्रता- पूर्ण प्रतियोगी बाजार में कोई भी नई फर्म उद्योग में प्रवेश कर सकती है तथा कोई भी पुरानी फर्म उद्योग से बाहर जा सकती है। इस प्रकार पूर्ण प्रतियोगिता में फर्मों के उद्योग में आने-जाने पर कोई प्रबन्ध नहीं होता।

(iv) बाजार दशाओं का पूर्ण ज्ञान- पूर्ण प्रतियोगी बाजार में क्रेताओं एवं विक्रेताओं को बाजार दशाओं को पूर्ण ज्ञान होता है। इस प्रकार कोई भी क्रेता वस्तु की प्रचलित कीमत से अधिक कीमत देकर वस्तु नहीं खरीदेगा। यही कारण है कि बाजार में वस्तु की एक समान कीमत पायी जाती है।

(v) साधनों की पूर्ण गतिशीलता- पूर्ण प्रतियोगिता में उत्पत्ति के साधन बिना किसी व्यवधान के एक उद्योग से दूसरे उद्योग में अथवा एक फर्म से दूसरी फर्म में स्थानान्तरित किये जा सकते हैं।

(vi) कोई यातायात लागत नहीं- पूर्ण प्रतियोगी बाजार में यातायात लागत शून्य होती है जिसके कारण बाजार में एक कीमत प्रचलित रहती है।

प्रश्न 17.
कुल लागत, औसत लागत तथा सीमान्त लागत के क्या अर्थ है ? औसत लागत तथा सीमान्त लागत के आपसी सम्बन्ध की चित्र की सहायता से व्याख्या करें।
उत्तर:
कुल लागत : किसी वस्तु की एक निश्चित मात्रा का उत्पादन करने के लिए उत्पादक को जितने कुल व्यय करने पड़ते हैं उनके जोड़ को कुल लागत कहते हैं। अल्पकाल की कुल लागत में स्थिर लागत एवं परिवर्तन लागत दोनों सम्मिलित होती है, जबकि दीर्घकाल की कुल लागत में केवल परिवर्तनशील लागते ही शामिल होती हैं।

औसत लागत : उत्पादन की प्रति इकाई लागत को औसत लागत कहते हैं।
Bihar Board 12th Economics Important Questions Long Answer Type Part 4, 11
सीमान्त लागत : किसी वस्तु की एक कम या एक अधिक इकाई उत्पादन करने में कुल लागत में जो अन्तर आता है, उसे सीमान्त लागत कहते हैं अर्थात् अतिरिक्त इकाई की अतिरिक्त लागत. को सीमान्त लागत कहते हैं।

सीमान्त लागत (MC) तथा औसत लागत (AC) में संबंध (Relationship between AC and MC):

  1. जब औसत लागत कम होती है, तब सीमान्त लागत औसत लागत से कम होती है।
  2. जब औसत लागत बढ़ती है तब सीमान्त लागत औसत लागत से अधिक होती है।
  3. सीमान्त लागत वक्र सीमान्त लागत वक्र को न्यूनतम बिन्दु पर काटता है।

Bihar Board 12th Economics Important Questions Long Answer Type Part 4, 12

प्रश्न 18.
मुद्रा के विभिन्न कार्यों का उल्लेख करें।
उत्तर:
मुद्रा के कार्यों को दो भागों में बाँटा जा सकता है-

  1. अनिवार्य कर,
  2. सहायक कार्य

अनिवार्य कार्य- मुद्रा के अनिवार्य कार्य निम्नलिखित हैं-

  • विनिमय का माध्यम (Medium of Exchange)- मुद्रा ने विनिमय के कार्य को सरल और सुविधापूर्ण बना दिया है। वर्तमान युग में सभी वस्तुएँ और सेवाएँ मुद्रा के माध्यम से ही खरीदी तथा बेची जाती हैं।
  • मूल्य मापक (Measure of Value)- मुद्रा का कार्य सभी वस्तुओं और सेवाओं का मूल्यांकन करना है। वर्तमान युग में सभी वस्तुओं और सेवाओं को मुद्रा के द्वारा मापा जाता है।
  • स्थगित भुगतान का आधार (Payments)- वर्तमान युग में बहुत से भुगतान तत्काल न करके भविष्य के लिए स्थगित कर दिये जाते हैं। मुद्रा ऐसे सौदों के लिए आधार प्रस्तुत करती है। मुद्रा के मूल्य में अन्य वस्तुओं की अपेक्षा अधिक स्थायित्व पाया जाता है। मुद्रा में सामान्य स्वीकृति गुण पाया जाता है।
  • मूल्य का संचय (Store of value)- मनुष्य अपनी आय का कुछ भाग भविष्य के लिए अवश्य बचाता है। मुद्रा के प्रयोग द्वारा मूल्य संचय का कार्य सरल और सुविधापूर्ण हो गया है।
  • मूल्य का हस्तान्तरण (Transfer of value)- मुद्रा-क्रय शक्ति के हस्तांतरण का सर्वोत्तम साधन है। इसका कारण मुद्रा का सर्वग्राह्य और व्यापक होना है। मुद्रा के द्वारा चल व अचल सम्पत्ति का हस्तांतरण सरलता से हो सकता है।

सहायक कार्य- मुद्रा के सहायक कार्य निम्नलिखित हैं-

  • आय का वितरण (Distribution of Income)- आधुनिक युग में उत्पादन की प्रक्रिया बहुत जटिल हो गई है, जिसके लिए उत्पादन के विभिन्न साधनों का सहयोग प्राप्त किया जाता है। मुद्रा के द्वारा उत्पादन के विभिन्न साधनों को पुरस्कार दिया जाता है।
  • साख का आधार (Basis of Credit)- व्यापारिक बैंक साख का निर्माण नकद कोष के आधार पर करते हैं। मुद्रा साख का आधार है।
  • अधिकतम संतुष्टि का आधार (Basis of Maximum Satisfaction)- मुद्रा के द्वारा उपभोक्ता संतुष्टि प्राप्त करना चाहता है जो उसे सम सीमान्त उपयोगिता के नियम का पालन करके ही प्राप्त हो सकती है। इस नियम का पालन मुद्रा द्वारा ही संभव हुआ है।
  • पूँजी को सामान्य रूप प्रदान करना (General Form of the Capital)- मुद्रा सभी प्रकार की सम्पत्ति, धन, आय व पूँजी को सामान्य मूल्य प्रदान करती है, जिससे पूँजी का तरलता, गतिशीलता और उत्पादकता में वृद्धि हुई है।

Bihar Board 12th Business Economics Important Questions Short Answer Type Part 1 in Hindi

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Bihar Board 12th Business Economics Important Questions Short Answer Type Part 1 in Hindi

प्रश्न 1.
उपभोक्ता संतुलन का क्या अर्थ है ? इसकी मान्यताएँ लिखें।
उत्तर:
अर्थशास्त्र में उपभोक्ता संतुलन से अभिप्राय उस स्थिति से है जब एक उपभोक्ता दी हुई आय से एक या दो वस्तुओं को इस प्रकार खरीदता है कि उसे अधिकतम संतुष्टि होती है। और उसमें परिवर्तन लाने की प्रवृति जुड़ी होती है।

उपभोक्ता संतुलन की मान्यताएँ निम्नलिखित हैं-

  • मौद्रिक रूप में सीमांत उपयोगिता = मूल्य
  • मौद्रिक रूप मे कुल उपयोगिता तथा कुल व्यय में अन्तर का अधिकतम होना।

प्रश्न 2.
माँग तालिका की सहायता से माँग के नियम की व्याख्या करें।
उत्तर:
अर्थशास्त्र के अनुसार मूल्य और माँग में विपरीत सम्बंध है। इसीलिए माँग का नियम लागू होता है। यदि अन्य शर्ते सामान्य रहती है तो बाजार में जब किसी वस्तु का मूल्य बढ़ जाता है। उसकी माँग कम हो जाती है। दूसरी ओर जब किसी वस्तु का मूल्य कम हो जाता है तो उसकी माँग बढ़ जाती है। यही माँग का नियम है।

माँग के नियम को माँग तालिका द्वारा भी स्पष्ट किया जाता है। इस तालिका के द्वारा माँग के नियम को इस प्रकार दिखाया जा सकता है-
Bihar Board 12th Business Economics Important Questions Short Answer Type Part 1, 1
जिस तालिका में मूल्य और खरीदी गई वस्तु की मात्रा को सम्बंध को दिखाया जाता है उसे माँग की तालिका कहते हैं।

प्रश्न 3.
पूर्णतया लोचदार तथा पूर्णतया बेलोचदार माँग का अर्थ लिखें।
उत्तर:
पूर्णतया लोचदार माँग- जब किसी वस्तु की कीमत में परिवर्तन नहीं होने पर भी अथवा बहुत सूक्ष्म परिवर्तन होने पर माँग में बहुत अधिक परिवर्तन हो जाता है तब उस वस्तु की माँग पूर्णयता लोचदार कही जाती है। पूर्ण लोचदार माँग को अन्नत लोचदार माँग भी कहते हैं।

पूर्णयता बेलोचदार माँग- जब किसी वस्तु की कीमत में परिवर्तन होने पर भी उसकी माँग में कोई परिवर्तन नहीं होता है तो इसे पूर्णयता बेलोचदार माँग कहते हैं। इस स्थिति में माँग की लोच शून्य होती है।

प्रश्न 4.
सीमान्त उत्पादन तथा औसत उत्पादन के सम्बन्ध को बताएं।
उत्तर:
औसत उत्पादन तथा सीमांत में सम्बंध-

  • औसत उत्पादन जब तक बढ़ता है जब तक सीमांत उत्पादन से अधिक होता है।
  • औसत उत्पादन उस समय अधिकतम होता है जब सीमांत उत्पादन औसत उत्पादन के बराबर होता है।
  • औसत उत्पादन तब गिरता है जब सीमांत उत्पादन औसत उत्पादन से कम होता है।

प्रश्न 5.
अवसर लागत क्या है ?
उत्तर:
अवसर लागत से अभिप्राय उनसभी कष्ट त्याग और प्रयत्नों से है जो कि उत्पादन के साधनों की किसी वस्तु का उत्पादन करने के लिए उठाने पड़ते हैं।

प्रश्न 6.
कुल आगम, औसत आगम तथा सीमान्त आगम से क्या तात्पर्य है ?
उत्तर:
कुल आगम- एक फर्म द्वारा अपनी वस्तु की एक निश्चित मात्रा की बिक्री से जो राशि प्राप्त होती है उसे कुल आगम कहते हैं। औसत आगम- औसत आगम की गणना करने के लिए कुल आगम को बेची गयी मात्रा से विभाजित किया जाता है।

सीमांत आगम- किसी फर्म द्वारा अपनी वस्तु की एक इकाई कम या अधिक बेचने से कुल आगम में जो परिवर्तन आता है उसे सीमांत आगम कहते हैं।

प्रश्न 7.
आर्थिक क्रिया क्या है ?
उत्तर:
आर्थिक क्रियाएँ वैसी क्रियाएँ हैं जिनसे आय के रूप में धन की प्राप्ति होती है। आर्थिक क्रियाएँ तीन प्रकार की होती हैं-

  • व्यवसाय
  • पेशा
  • रोजगार या नौकरी।

प्रश्न 8.
माँग को प्रभावित करने वाले किन्हीं पाँच कारकों का उल्लेख करें। अथवा, माँग के निर्धारकों की व्याख्या करें।
उत्तर:
वे तत्व जो किसी वस्तु की माँगी गई मात्रा को प्रभावित करते हैं माँग को निर्धारित करने वाले तत्त्व कहलाते हैं। ये मुख्य तत्त्व निम्नलिखित हैं-
(i) संबंधित वस्तुओं की कीमतें (Prices of related goods)- प्रतिस्थापन वस्तु की कीमत में वृद्धि होने पर दी गई वस्तु की माँग में वृद्धि हो जाती है। जैसे-चाय की कीमत में वृद्धि होने पर उसकी प्रतिस्थापन वस्तु कॉफी की माँग में वृद्धि हो जाती है। एक पूरक वस्तु की कीमत में वृद्धि होने पर दी गई वस्तु की माँग में कमी हो जाती है। पेट्रोल की कीमत में वृद्धि होने पर मोटर गाड़ी की माँग में कमी हो जाती है।

(ii) आय (Income)- उपभोक्ता की आय में वृद्धि होने पर वस्तु की माँग में वृद्धि हो जाती है यह वस्तु पर निर्भर करता है कि वस्तु सामान्य वस्तु है अथवा घटिया वस्तु है।

(ii) रुचि, स्वभाव आदत (Taste, Preference and Habit)- यदि रुचि, स्वभाव और आदत में परिवर्तन अनुकूल हो तो वस्तु की माँग में वृद्धि होती है।

(iv) जनसंख्या- जनसंख्या बढ़ने पर माँग बढ़ती है और इसमें कमी होने पर माँग में कमी आती है।

(v) संभावित कीमत- वस्तु की संभावित कीमत बढ़ने या घटने पर उसकी वर्तमान माँग में वृद्धि या कमी आयेगी।

प्रश्न 9.
ह्रासमान सीमांत का नियम क्या है ?
उत्तर:
ह्रासमान सीमांत उत्पाद नियम यह दर्शाता है कि रोजगार के एक निश्चित स्तर के बाद एक साधन की सीमांत उत्पाद घटता है।
जब परिवर्तनशील साधन की इकाइयाँ अत्यधिक हो जाती हैं तो सीमांत उत्पाद शून्य एवं ऋणात्मक हो जाता है।

प्रश्न 10.
पूँजी पर्याप्तता अनुपात मापदण्ड क्या है ?
उत्तर:
वाणिज्यिक बैंकों के लिए पूँजी पर्याप्तता अनुपात मापदण्ड लागू किए गए हैं जिसके अंतर्गत भारत में कार्यरत सभी बैंकों को 8% की पूँजी पर्याप्तता मानक को प्राप्त करना अनिवार्य किया गया। देश के सभी सर्वाधिक बैंकों ने यह पूँजी पर्याप्तता प्राप्त कर लिया है।

प्रश्न 11.
हरित GNP किसे कहते हैं ?
उत्तर:
हरित GNP की अवधारणा का विकास आर्थिक विकास के मापक के रूप में किया जा रहा है। GNP को माननीय कुशलता को मापने के लायक इसी संदर्भ में हरित GNP आर्थिक संवृद्धि की कसौटी प्राकृतिक संसाधनों के विवेकशील विदोहन और विकास के हित लाभों के समान वितरण पर जोर देती है। अर्थात् GNP का संबंध प्राकृतिक संसाधनों के विवेकपूर्ण उपयोग, संरक्षण एवं समाज के विभिन्न वर्गों में उनके न्यायोचित बँटवारे से है।

प्रश्न 12.
मौसमी बेरोजगारी किसे कहते हैं ?
उत्तर:
जब किसी व्यक्ति को रोजगार की प्राप्ति नहीं होती है तो इसे बेरोजगारी कहा जाता है। बेरोजगारी विभिन्न प्रकार की होती है जिसमें मौसमी बेरोजगारी भी एक है। जब वर्षभर में किसी विशेष मौसम में लोगों को रोजगार की प्राप्ति नहीं है और वे बेरोजगार बने रहते हैं तो इस स्थिति को मौसमी बेरोजगारी कहा जाता है, जैसे-गर्मी के दिनों में खेतों में कृषि-कार्य नहीं होता है। इसलिए इस मौसम में मजदूर बेरोजगार हो जाते हैं।

प्रश्न 13.
जमाराशि क्या है ?
उत्तर:
बैंक में लोग अपने जमा पूँजी को विभिन्न खाता खोलकर उसे जमा के रूप में रखते हैं तो इसे जमाराशियाँ कहते हैं। जमाराशियों की रकम पर बैंक खाताधारी को एक निश्चित दर से ब्याज देती है।

प्रश्न 14.
समाशोधन गृह को परिभाषित करें।
उत्तर:
केन्द्रीय बैंक के समाशोधन गृह का अर्थ है वह विभिन्न बैंकों के एक-दूसरे के लेन-देन न्यूनतम नकदी के साथ निपटा देती है। क्योंकि प्रत्येक बैंक के कोष तथा खाते केंद्रीय बैंक के पास होते हैं। इसलिए केंद्रीय बैंक के लिए यह तर्कपूर्ण तथा सरल कदम है कि वह व्यापारिक बैंकों के लिए समाशोधन गृह का कार्य करे।

प्रश्न 15.
बजट क्या है ? परफॉर्मेंस बजट और जेंडर बजट की व्याख्या करें।
उत्तर:
वैसा विवरण-पत्र जिसमें आय और व्यय के अनुमानित आँकड़े दिए हुए रहते हैं तो ऐसे विवरण को बजट कहा जाता है। इसी विवरण-पत्र के आधार पर प्राप्त आय से खर्चों को पूरा किया जाता है।

प्रो० शिराज ने बजट की परिभाषा देते हुए कहा है कि ‘बजट आय और व्यय का वार्षिक विवरण है।’ इसी विवरण के आधार पर आय को प्राप्त किया जाता है और खर्च को पूरा किया जाता है।

बजट विभिन्न प्रकार के होते हैं-घरेलू बजट तथा सरकारी बजट।
परफारमेंस बजट एक ऐसा बजट है जिस बजट के द्वारा बजट में दिए गए आय और व्यय के विवरण के अनुसार बजट का परफार्मेंस होता है। यानि जितनी आय की प्राप्ति होती है उसी के अनुसार व्यय को पूरा किया जाता है। दूसरी ओर जेन्डर बजट एक ऐसा बजट है जिससे अनुमानित आँकड़ों में परिवर्तन नहीं होता है। बल्कि आय और व्यय में जितने आँकड़े दिए हुए रहते हैं उसी के अनुसार काम किया जाता है।

प्रश्न 16.
स्थिर एवं लोचशील विनिमय दर में अंतर बताइए।
उत्तर:
स्थिर एवं लोचशील विनिमय दर में निम्नलिखित अंतर हैं-
स्थिर विनिमय दर:

  1. विनिमय दर, सरकार द्वारा घोषित की जाती है।
  2. इस व्यवस्था के अंतर्गत विदेशी केन्द्रीय बैंक अपनी मुद्राओं की एक निर्धारित कीमत पर खरीदने व बेचने के लिए तत्पर रहते हैं।
  3. इसमें परिवर्तन नहीं आते हैं।

लोचशील विनिमय दर:

  1. लोचशील विनिमय अंतर्राष्ट्रीय बाजार में माँग व पूर्ति की शक्तियों द्वारा निर्धारित होती है।
  2. इस व्यवस्था के अंतर्गत विनिमय दर स्वतंत्र रूप से विदेशी विनिमय बाजार में निर्धारित होता है।
  3. इसमें सदैव परिवर्तन आते रहते हैं।

प्रश्न 17.
कुल राष्ट्रीय उत्पाद तथा शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद में अंतर स्पष्ट करें।
उत्तर:
किसी देश के अंतर्गत एक वर्ष में जितनी वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन होता है, उनके मौद्रिक मूल्य को कुल राष्ट्रीय उत्पाद कहा जाता है। इसे इस रूप में व्यक्त किया जाता है-

कुल राष्ट्रीय उत्पाद (GNP) = कुल घरेलू उत्पाद (GDP) + देशवासियों द्वारा विदेशों में अर्जित आय – विदेशियों द्वारा देश में अर्जित आय।

लेकिन कुल राष्ट्रीय उत्पाद में से घिसावट का व्यय घटा देने पर जो शेष बचता है उसे शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद कहा जाता है। इस प्रकार कुल राष्ट्रीय उत्पाद की धारणा एक विस्तृत धारणा है, जिसके अंतर्गत शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद आ जाता है।

प्रश्न 18.
सरकार के बजट से आप क्या समझते हैं ? अथवा, सरकारी बजट का अभिप्राय क्या है ?
उत्तर:
आगामी आर्थिक वर्ष के लिए सरकार के सभी प्रत्याशित राजस्व और व्यय का अनुमानित वार्षिक विवरण बजट कहलाता है। सरकार कई प्रकार की नीतियाँ बनाती है। इन नीतियों को लागू करने के लिए वित्त की आवश्यकता होती है। सरकार आय और व्यय के बारे में पहले से ही अनुमान लगाती है। अतः बजट आय और व्यय का अनुमान है। सरकारी नीतियों को क्रियान्वित करने के लिए यह एक महत्वपूर्ण उपकरण है।

प्रश्न 19.
कुल घरेलू उत्पाद तथा शुद्ध घरेलू उत्पाद में क्या अंतर है ? बताएँ।
उत्तर:
किसी देश की सीमा में उत्पादित सभी अंतिम वस्तुओं और सेवाओं के सकल मूल्य को कुल घरेलू उत्पाद कहा जाता है। इसमें घिसावट भी शामिल होता है।

इसके विपरीत कुल घरेलू उत्पाद में से घिसावट निकालने पर जो शेष बचता है उसे शुद्ध घरेलू उत्पाद कहा जाता है। यह देश की सीमा में उत्पादित अंतिम वस्तुओं और सेवाओं का शुद्ध मूल्य होता है।

प्रश्न 20.
खाद्यान्न उपलब्धता गिरावट सिद्धांत से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
1998 के नोबेल पुरस्कार विजेता भारतीय अर्थशास्त्री प्रो. अमर्त्य सेन ने एक नये सिद्धांत का प्रतिपादन किया है, जिसे खाद्यान्न उपलब्धता गिरावट सिद्धांत के नाम से जाना जाता है। इस सिद्धांत के अनुसार बाढ़, सूखा जैसी प्राकृतिक आपदाओं के कारण खाद्यान्न के उत्पादन में कमी आती है। फलतः खाद्यान्न की पूर्ति माँग की तुलना में कम हो जाती है। पूर्ति के सापेक्ष खाद्यान्न की आंतरिक माँग खाद्यान्न की कीमतों को बढ़ाती है जिसके परिणामस्वरूप निर्धन व्यक्ति खाद्यान्न उपलब्धता से वंचित हो जाते हैं और क्षेत्र में भूखमरी की समस्या उत्पन्न होती है।

प्रश्न 21.
उपभोक्ता संतुलन से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर:
अर्थशास्त्र में उपभोक्ता संतुलन से अभिप्राय उस स्थिति से है जब एक उपभोक्ता दी हुई आय से एक या दो वस्तुओं को इस प्रकार खरीदता है कि उसे अधिकतम संतुष्टि होती है और उसमें परिवर्तन लाने की कोई प्रवृत्ति जुड़ी होती है।

प्रश्न 22.
एक द्वि-क्षेत्र अर्थव्यवस्था से आय के चक्रीय प्रवाह को दर्शायें।
उत्तर:
परिवार मानवीय आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए फर्मों को साधन-सेवाएँ प्रदान करते हैं। इन सेवाओं का प्रयोग कर फर्मे वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन करते हैं और उत्पादित वस्तुओं को परिवार को उनकी सेवाओं के बदले देती हैं। इस प्रकार परिवार और फर्मों के मध्य साधनसेवाओं और वस्तुओं का आदान-प्रदान या प्रवाह चक्रीय रूप से चलता रहता है। इसे वास्तविक प्रवाह कहा जाता है। वास्तविक प्रवाह का तात्पर्य परिवार और फर्मों के मध्य साधन-सेवाओं और वस्तुओं के प्रवाह से है। साधन-सेवाओं और वस्तुओं का भुगतान मुद्रा के रूप में होता है। साधन-सेवाओं के बदले फर्मे परिवारों को सेवा भुगतान देती है तथा वस्तु पूर्ति के बदले परिवार फर्मों को वस्तुओं का भुगतान देते हैं। इस प्रकार सेवा भुगतान के रूप में फर्मों से परिवार को तथा वस्तु भुगतान के रूप में परिवार से फर्मों को निरंतर आय का मुद्रा के रूप में प्रवाह होता है। इसे आय क प्रवाह या मुद्रा प्रवाह कहा जाता है। चित्र के माध्यम से भी इसे दर्शाया जा सकता है-
Bihar Board 12th Business Economics Important Questions Short Answer Type Part 1, 2

प्रश्न 23.
प्रत्यक्ष कर तथा अप्रत्यक्ष कर में अंतर करें।
उत्तर:
प्रत्यक्ष कर तथा अप्रत्यक्ष कर में निम्नलिखित अंतर है-
प्रत्यक्ष कर:

  1. इस कर को टाला नहीं जा सकता है।
  2. यह कर प्रगतिशील होता है। आय में वृद्धि के साथ इसमें वृद्धि होती है।
  3. आय कर, सम्पत्ति कर, निगम कर इसके उदाहरण हैं।

अप्रत्यक्ष कर:

  1. जिसे व्यक्ति को यह कर चुकाना पड़ता है वह इसे दूसरे व्यक्ति पर टाल सकता है।
  2. यह प्रगतिशील नहीं होता है।
  3. बिक्री कर, उत्पाद शुल्क और सीमा शुल्क अप्रत्यक्ष कर के उदाहरण हैं।

प्रश्न 24.
निवेश गुणक क्या है ? उदाहरण के साथ वर्णन कंग अथवा, निवेश गुणक क्या है ? निवेश गुणक की गणना का सूत्र दें।
उत्तर:
केन्ज के अनुसार, “निवेश गुणक से ज्ञात होता है कि जब कुल निवेश में वृद्धि की जाएगी तो आय में जो वृद्धि होगी, वह निवेश में होने वाली वृद्धि से k गुणा अधिक होगी।”

डिल्लर्ड के अनुसार, “निवेश में की गई वृद्धि के परिणामस्वरूप आय में होने वाली वृद्धि के अनुपात को निवेश गुणक कहा जाता है।”

निवेश गुणक का सूत्र-
गुणक को निम्नलिखित सूत्र द्वारा व्यक्त किया जा सकता है : K = \(\frac{\Delta \mathrm{Y}}{\Delta \mathrm{I}}\)
यहाँ K = गुणक, ΔI = निवेश में परिवर्तन, ΔY = आय में परिवर्तन

प्रश्न 25.
आय का चक्रीय प्रवाह समझाइए।
उत्तर:
आय के चक्रीय प्रवाह से अभिप्राय है अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों में वस्तुओं और सेवाओं या मुद्रा का प्रवाह। प्रत्येक प्रवाह से ज्ञात होता है कि एक क्षेत्र पूरे क्षेत्र पर कैसे निर्भर करता है।

प्रश्न 26.
साम्य कीमत से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
जिस कीमत पर क्रेता वस्तु को खरीदने के लिए तैयार है तथा विक्रेता बेचने को तैयार है, वह वस्तु की संतुलन या साम्य कीमत होती है। संतुलन कीमत पर वस्तु की माँग और वस्तु की पूर्ति आपस में बराबर होते हैं।

प्रश्न 27.
मौद्रिक प्रवाह तथा वास्तविक प्रवाह में अंतर करें।
उत्तर:
मौद्रिक प्रवाह में मुद्रा फर्मों से परिवारों को साधन भुगतान के रूप में तथा परिवारों से फर्मों को उपयोग व्यय, के रूप में प्रवाहित होती है, जबकि वास्तविक प्रवाह में वस्तुओं का प्रवाह अर्थव्यवस्था के एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में जाता है।

प्रश्न 28.
‘अर्थशास्त्र चयन का तर्कशास्त्र है।’ इसकी विवेचना करें।
अथवा, अर्थशास्त्र में सीमितता का क्या अभिप्राय है ?
उत्तर:
दुर्लभता पर जोर देते हुए रॉबिन्स ने कहा कि मानवीय आवश्यकताएँ अनन्त हैं तथा उसकी पूर्ति के साधन सीमित होते हैं। साथ ही, सीमित साधनों के वैकल्पिक प्रयोग भी संभव होते हैं। ऐसी स्थिति में मनुष्य के सामने चुनाव की समस्या उत्पन्न होती है कि सीमित साधनों के द्वारा किन-किन आवश्यकताओं की पूर्ति करे तथा किन्हें छोड़ दे। फलत: व्यक्ति आवश्यकता की तीव्रता पर ध्यान देते हुए पहले सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण आवश्यकता की पूर्ति करता है। उसके बाद कम महत्त्वपूर्ण आवश्यकता की पूर्ति करता ताकि अधिकतम संतोष की प्राप्ति हो सके। इसी कारण रॉबिन्स ने अर्थशास्त्र को चयन का तर्कशास्त्र, कहा है।

प्रश्न 29.
मौद्रिक प्रवाह को परिभाषित करें। अथवा, मुद्रा प्रवाह की परिभाषा दें।
उत्तर:
मौद्रिक प्रवाह का अभिप्राय उस प्रवाह से है जिसमें फर्मों द्वारा उत्पादन के कारकों को उनकी सेवाओं के बदले में ब्याज, लाभ, मजदूरी तथा लगान के रूप में दी गई मुद्रा का प्रवाह फर्मों से परिवार क्षेत्र की ओर होता है। इसके विपरीत उपभोग व्यय के रूप में मुद्रा का प्रवाह परिवार क्षेत्र से फर्मों की ओर होता है।

प्रश्न 30.
बाजार के विस्तार से संबंधित तत्त्व कौन-कौन हैं ?
उत्तर:
बाजार का विस्तार वस्तु के गुण पर निर्भर करता है, जिसके अंतर्गत निम्न बातों का उल्लेख किया जाता है-

  • व्यापक माँग
  • व्यापक पूर्ति
  • टिकाऊपन
  • वहनीयता तथा
  • मूल्य में स्थिरता।

बाजार के विस्तार पर देश की आंतरिक स्थिति का भी प्रभाव पड़ता है, जिसके अंतर्गत निम्न बातों का उल्लेख किया जाता है-

  • शांति एवं सुरक्षा
  • यातायात एवं संवादवाहन के साधन
  • सरकारी नीति
  • मौद्रिक एवं बैंकिंग नीति
  • व्यापार का तरीका
  • उत्पादन का तरीका।

प्रश्न 31.
बाजार के विभिन्न प्रकारों का उल्लेख करें।
उत्तर:
प्रतियोगिता के आधार पर बाजार के तीन प्रकार होते हैं-

  • पूर्ण प्रतियोगिता का बाजार- वह बाजार जिसमें क्रेताओं और विक्रेताओं की संख्या अधिक होती है, साथ ही इन दोनों के बीच स्वस्थ प्रतियोगिता भी पायी जाती है, पूर्ण प्रतियोगिता का बाजार कहलाता है।
  • एकाधिकारी बाजार- वह बाजार जहाँ वस्तु की पूर्ति पर व्यक्ति या उद्योग विशेष का पूर्ण नियंत्रण होता है तथा उनके निकट स्थानापन्न वस्तुएँ भी बाजार में उपलब्ध नहीं होती है, एकाधिकारी बाजार कहलाता है।
  • अपूर्ण प्रतियोगिता का बाजार- यह पूर्ण प्रतियोगिता के बाजार तथा एकाधिकार के बाजार का सम्मिश्रण होता है।

प्रश्न 32.
सम सीमान्त उपयोगिता नियम की सचित्र व्याख्या करें।
उत्तर:
Bihar Board 12th Business Economics Important Questions Short Answer Type Part 1, 3
सम सीमान्त उपयोगिता नियम यह बतलाता है कि उपभोग के क्रम में उपभोक्ता को अधिकतम । संतोष की. प्राप्ति तभी संभव होती है जबकि वह अपनी सीमित आय को विभिन्न वस्तुओं पर इस प्रकार खर्च करे ताकि विभिन्न वस्तुओं से मिलने वाली सीमान्त उपयोगिता बराबर हो जाय। इस प्रकार जिस बिन्दु पर विभिन्न वस्तुओं से मिलने वाली सीमान्त उपयोगिता बराबर हो जाती है वही बिन्दु उपभोक्ता के संतुलन का बिन्दु या अधिकतम संतोष का बिन्दु कहा जाता है। मार्शल का कहना है “यदि किसी व्यक्ति के पास कोई ऐसी वस्तु हो जो विभिन्न प्रयोगों में लायी जा सके तो वह उस वस्तु को विभिन्न प्रयोगों में इस प्रकार बाँटेगा जिसमें उसकी सीमान्त उपयोगिता सभी प्रयोगों में समान रहे!” यह ऊपर के रेखाचित्र से ज्ञात हो जाता है-

इस रेखाचित्र में xx’ रेखा : वस्तु को एवं yy’ रेखा y वस्तु को बतलाती है। ये दोनों रेखाएँ एक दूसरे को M बिन्दु पर काटती है। यही बिन्दु उपभोक्ता के संतुलन का बिन्दु कहा जायेगा, क्योंकि यहीं पर दोनों वस्तुओं से प्राप्त सीमान्त उपयोगिता एक दूसरे के बराबर हो जाती है।

प्रश्न 33.
साख निर्माण से क्या अभिप्राय है ?
अथवा, साख सृजन की परिभाषा दें।
उत्तर:
अपने नकद कोषों के आधार पर व्यावसायिक बैंकों द्वारा माँग जमाओं का निर्माण करना ही साख निर्माण कहलाता है। प्रायः नकदै कोषों से कई गुणा अधिक जमाओं का निर्माण कर दिया जाता है। नकद कोषों तथा जमाओं के बीच अनुपात नकद-कोष अनुपात कहलाता है। बैंकों को अनुभव के आधार पर यह ज्ञात है कि कुल जमा का सिर्फ 10% ही नकदी के रूप में निकाला जाता है। जैसे यदि 100 रु. के नकद कोष के बदले में 1000 रु. की माँग जमाओं का निर्माण किया जाता है तो इसे 10 गुणा, अधिक साख निर्माण कहा जायेगा।

प्रश्न 34.
बचत एवं निवेश हमेशा बराबर होते हैं। व्याख्या करें।
उत्तर:
कीन्स के अनुसार आय रोजगार संतुलन निर्धारण उस बिन्दु पर होता है जहाँ बचत एवं निवेश आपस में बराबर होते हैं अर्थात् बचत – निवेश (S = I)

एक अर्थव्यवस्था में विनियोग दो प्रकार के होते हैं- नियोजित. विनियोग तथा गैर-नियोजित विनियोग। वस्तुत: नियोजित और गैर नियोजित विनियोग का जोड़ ही वास्तविक विनियोग या कुल विनियोग कहलाता है। संक्षेप में,
IR = Ip + Iu
जहाँ IR = वास्तविक विनियोग
Ip = नियोजित विनियोग तथा
Iu = गैर नियोजित विनियोग

उपर्युक्त समीकरण से यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि वास्तविक विनियोग केवल उसी स्थिति में ही नियोजित विनियोग के बराबर हो सकता है जबकि गैर नियोजित विनियोग शून्य हो। इसका तात्पर्य यह है कि यह आवश्यक सदैव नियोजित विनियोग के बराबर हो।

उपर्युक्त विवेचन के आधार पर हम कह सकते हैं कि
y = C + I
तो हमारा वास्तव में अभिप्राय यह होता है कि
y = C + IR
तथा y = C + S
दोनों समीकरणों को एक साथ प्रस्तुत करने पर
C + S = C + IR
या S = IR
अतः बचतें सदैव वास्तविक निवेश के समान होती है।

प्रश्न 35.
सीमान्त उपयोगिता तथा कुल उपयोगिता में अंतर कीजिए।
उत्तर:
किसी वस्तु की एक अतिरिक्त इकाई के उपयोग से जो अतिरिक्त उपयोगिता मिलती है उसे सीमान्त उपयोगिता कहते हैं। जबकि उपभोग की सभी इकाइयों के उपभोग से उपभोक्ता को जो उपयोगिता प्राप्त होती है उसे कुल उपयोगिता कहते हैं।

Bihar Board 12th Psychology Important Questions Long Answer Type Part 6

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Bihar Board 12th Psychology Important Questions Long Answer Type Part 6

प्रश्न 1.
प्रतिरक्षक तंत्र को दबाव कैसे प्रभावित करता है?
उत्तर:
दबाव के कारण प्रतिरक्षक तंत्र की कार्यप्रणाली दुर्बल हो जाती है जिसके कारण बीमारी उत्पन्न हो सकती है। प्रतिरक्षक तंत्र शरीर के भीतर तथा बाहर से होने वाले हमलों से शरीर की रक्षा करता है। मनस्तंत्रिका प्रतिरक्षा विज्ञान (Psycho neuro immunology) मन, मस्तिष्क और प्रतिरक्षक तंत्र के बीच संबंधों पर ध्यान केंद्रित करता है यह प्रतिरक्षक तंत्र पर दबाव के प्रभाव का अध्ययन करता है। प्रतिरक्षक तंत्र में श्वेत रक्त कोशिकाएँ या श्वेताणु (Antibodies) बाह्य तत्त्वों (एंटीजेन), जैसे वाइरस को पहचान कर नष्ट करता है।

इनके द्वारा रोगप्रतिकारकों (antibodies) का निर्माण भी होता है। तिरक्षक तंत्र में ही टी-कोशिकाएँ, बी-कोशिकाएँ हमला करने वाली को नष्ट करती हैं, तथा टी-सहायक कोशिकाएँ प्रतिरक्षात्मक क्रियाओं में वृद्धि करती हैं। इन्हीं टी-सहायक कोशिकाओं पर ह्यूमन इम्यूनो डेफिशिएंसी वाइरस (एच. आई. वी.) हमला करते हैं, जो कि एक्वायर्ड इम्यूनो डेफिशिएंसी सिंडोम (एड्स) के कारक हैं। बी-कोशिकाएँ रोगप्रतिकारकों का निर्माण करती हैं। प्राकृतिक रूप से नष्ट करने वाली कोशिकाएँ वाइरस तथा अर्बुद या ट्यूमर दोनों के विरुद्ध लड़ाई करती हैं।

दबाव के कारण प्राकृतिक रूप से नष्ट करने वाली कोशिकाओं की कोशिका-विषाक्तता प्रभावित हो सकती है, जो प्रमुख संक्रमणों तथा कैंसर से रक्षा में अत्यधिक महत्त्वपूर्ण होती है । अत्यधिक उच्च दबाव से ग्रस्त व्यक्तियों में, प्राकृतिक रूप से नष्ट करने वाली कोशिकाओं की कोशिका-विषाक्तता में भारी कमी पाई गई है। यह उन विद्यार्थियों, जो महत्त्वपूर्ण परीक्षाओं में बैठने जा रहे हैं, शोकसंतृप्त व्यक्तियों तथा जो गंभीर रूप से अवसादग्रस्त हैं में भी पाई गई है । अध्ययन यह प्रदर्शित करते हैं कि प्रतिरक्षक तंत्र की क्रियाशीलता उन व्यक्तियों में बेहतर पाई जाती है जिन्हें सामाजिक अवलंब उपलब्ध रहती है। इसके अतिरिक्त प्रतिरक्षक तंत्र में परिवर्तन उन व्यक्तियों के स्वास्थ्य को अधिक प्रभावित करता है जिनका प्रतिरक्षक तंत्र पहले से ही दुर्बल हो चुका है। नकारात्मक संवेगों सहित, दबाव हार्मोन का स्राव होना जिनके द्वारा प्रतिरक्षक तंत्र दुर्बल होता है, जिसके परिणामस्वरूप मानसिक तथा शारीरिक स्वास्थ्य प्रभावित होते हैं।
Bihar Board 12th Psychology Important Questions Long Answer Type Part 6 1

प्रश्न 2.
दबाव के विभिन्न प्रकारों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
दबाव मुख्यतः तीन प्रकार के होते हैं। ये हैं-
(i) भौतिक एवं पर्यावरणी दबाव- भौतिक दबाव वे माँगें हैं, जिसके कारण हमारी शारीरिक दशा में परिवर्तन उत्पन्न हो जाता है। हम तनाव का अनुभव करते हैं जब हम शारीरिक रूप से अधिक परिश्रम करते हैं, पौष्टिक भोजन की कमी हो जाती है, कोई चोट लग जाती है, या निद्रा की कमी हो जाती है। पर्यावरणी दबाव हमारे परिवेश की वैसी दशाएँ होती हैं जो प्राय: अपरिहार्य होती हैं; जैसे-वायु प्रदूषण, भीड़, शोर, ग्रीष्मकाल की गर्मी, शीतकाल की सर्दी इत्यादि । एक अन्य प्रकार के पर्यावरणी दबाव प्राकृतिक विपदाएँ तथा विपाती घटनाएँ हैं; जैसे-आग, भूकंप, बाढ़ इत्यादि।

(ii) मनोवैज्ञानिक दबाव- यह वे दबाव हैं जिन्हें हम अपने मन से उत्पन्न करते हैं। ये दबाव अनुभव करने वाले व्यक्ति के लिए विशिष्ट होते हैं तथा दबाव के आंतरिक स्रोत होते हैं। हम समस्याओं के बारे में परेशान होते हैं, दुश्चिता करते हैं या अवसादग्रस्त हो जाते हैं। ये सभी केवल दबाव के लक्षण ही नहीं हैं बल्कि यह हमारे लिए दबाव को बढ़ाते भी हैं। मनोवैज्ञानिक दबाव के कुछ प्रमुख स्रोत कुंठा, द्वंद्व, आंतरिक एवं सामाजिक दबाव इत्यादि हैं।

जब कोई व्यक्ति या परिस्थिति हमारी आवश्यकताओं तथा अभिप्रेरकों को अवरुद्ध करती है, जो हमारे इष्ट लक्ष्य की प्राप्ति में बाधा डालती है तो कुंठा (Frustration) उत्पन्न होती है। कुंठा के अनेक कारण हो सकते हैं; जैसे-सामाजिक भेदभाव, अंतर्वैयक्तिक क्षति, स्कूल में कम अंक प्राप्त करना इत्यादि। दो या दो से अधिक असंगत आवश्यकताओं तथा अभिप्रेरकों में द्वंद्व (conflict) हो सकता है, जैसे-क्या नृत्य का अध्ययन किया जाए या मनोविज्ञान का। हम अध्ययन को जारी भी रखना चाह सकते हैं या नौकरी भी करना चाह सकते हैं। हमारे मूल्यों में भी तब द्वंद्व हो सकता है जब हमारे ऊपर किसी ऐसे कार्य को करने के लिए दबाव डाला जाए जो हमारे अपने जीवन मूल्यांक के विपरीत हो।

(iii) सामाजिक दबाव-ये बाह्यजनित होते हैं तथा दूसरे लोगों के साथ हमारी अंत:क्रियाओं के कारण उत्पन्न होते हैं। इस प्रकार की सामाजिक घटनाएँ; जैसे-परिवार में किसी की मृत्यु या बीमारी, तनावपूर्ण संबंध, पड़ोसियों से परेशानी, सामाजिक दबाव के कुछ उदाहरण हैं। एक सामाजिक दबाव व्यक्ति-व्यक्ति में बहुत भिन्न होते हैं। यह व्यक्ति जो अपने घर में शाम में शांतिपूर्ण बिताना चाहता है उसके लिए उत्सव या पार्टी में जाना दबावपूर्ण हो सकता है, जबकि किसी बहुत मिलनसार व्यक्ति के लिए शाम को घर बैठे रहना दबावपूर्ण हो सकता है।

प्रश्न 3.
दबाव प्रबंधन के विभिन्न तकनीकों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
दबाव प्रबंधन की विभिन्न तकनीक निम्नलिखित हैं
(i) विश्रांति की तकनीकें- यह वे सक्रिय कौशल हैं जिनके द्वारा दबाव के लक्षणों तथा बीमारियों, जैसे-उच्च रक्तचाप एवं हृदय रोग के प्रभावों में कमी की जा सकती है। प्रायः विश्रांति शरीर के निचले भाग से प्रारंभ होती है तथा मुख पेशियों तक इस प्रकार लाई जाती है जिससे संपूर्ण शरीर विश्राम अवस्था में आ जाए। मन को शांत तथा शरीर को विश्राम अवस्था में लाने के लिए गहन श्वसन के साथ पेशी-शिथिलन का उपयोग किया गता है।

(ii) ध्यान प्रक्रियाएँ-योग विधि में ध्यान लगाने की प्रक्रिया में कुछ अधिगत प्रविधियाँ एक निश्चित अनुक्रम में उपयोग में लाई जाती हैं जिससे ध्यान को पुनः केंद्रित कर चेतना की परिवर्तित स्थिति उत्पन्न की जा सके। इसमें एकाग्रता को इतना पूर्णरूप से केंद्रित किया जाता है कि ध्यानस्थ व्यक्ति किसी बाह्य उद्दीपन के प्रति अनभिज्ञ हो जाता है तथा वह चेतना की एक भिन्न स्थिति में पहुंच जाता है।

(iii) जैवप्रतिप्राप्ति या बायोफीडबैक-यह वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा दबाव के शरीरक्रियात्मक पक्षों का परिवीक्षण कर उन्हें कम करने के लिए फीडबैक दिया जाता है कि व्यक्ति में वर्तमानकालिक शरीरक्रियाएँ क्या हो रही हैं। प्रायः इसके साथ विश्रांति प्रशिक्षण का भी उपयोग किया जाता है। जैव प्रतिप्राप्ति प्रशिक्षण में तीन अवस्थाएँ होती हैं किसी विशिष्ट शरीरक्रियात्मक अनुक्रिया को शांत व्यवस्था में नियंत्रित करने के उपाय सीखना तथा उस नियंत्रण को सामान्य दैनिक जीवन में अंतरित करना।

(iv)सर्जनात्मक मानस-प्रत्यक्षीकरण-दबाव से निपटने के लिए यह एक प्रभावी तकनीक है। सर्जनात्मक मानस-प्रत्यक्षीकरण एक आत्मनिष्ठ अनुभव है जिसमें प्रतिमा तथा कल्पना का उपयोग किया जाता है। मानस-प्रत्यक्षीकरण के पूर्व व्यक्ति को वास्तविकता के अनुकूल एक लक्ष्य निर्धारित कर लेना चाहिए, यह आत्म-विश्वास के निर्माण में सहायक होता है। यदि व्यक्ति का मन शांत हो, शरीर विश्राम अवस्था में हो तथा आँखें बंद हों तो मानस-प्रत्यक्षीकरण सरल होता है। ऐसा करने से अवांछित विचारों के हस्तक्षेप में कमी आती है तथा व्यक्ति को वह सर्जनात्मक ऊर्जा प्राप्त होती है जिससे कि काल्पनिक दृश्य को वास्तविकता में परिवर्तित किया जा सके।

(v) संज्ञानात्मक व्यवहारात्मक तकनीकें- इन तकनीकों का उद्देश्य व्यक्ति को दबाव के विरुद्ध संचारित करना होता है। मीचेनबॉम (Meichenbaum) ने दबाव संचारण प्रशिक्षण (Stress inoculation training) की एक प्रभावी विधि विकसित की है। इस उपागम का सार यह है कि व्यक्ति के नकारात्मक तथा अविवेकी विचारों के स्थान पर सकारात्मक तथा सविवेक विचार प्रतिस्थापित कर दिए जाएँ। इसके तीन प्रमुख चरण हैं मूल्यांकन, दबाव न्यूनीकरण तकनीकें तथा अनुप्रयोग एवं अनुवर्ती कार्रवाई। मूल्यांकन के अंतर्गत समस्या की प्रकृति पर परिचर्चा करना तथा व्यक्ति/सेवार्थी के दृष्टिकोण से देखना सम्मिलित होते हैं। दबाव न्यूनीकरण के अंतर्गत दबाव कम करने वाली तकनीकों जैसे-विश्रांति तथा आत्म-अनुदेशन को सीखना सम्मिलित होते हैं।

(vi) व्यायाम- दबाव के प्रति अनुक्रिया के बाद अनुभव किए गए शरीरक्रियात्मक भाव-प्रबोधन के लिए व्यायाम एक सक्रिय निर्गम-मार्ग प्रदान कर सकता है। नियमित व्यायाम के द्वारा हृदय की दक्षता में सुधार होता है, फेफड़ों के प्रकार्यों में वृद्धि होती है, रक्तचाप में कमी होती है, रक्त में वसा की मात्रा घटती है तथा शरीर के प्रतिरक्षक तंत्र में सुधार होता है। तैरना, टहलना, दौड़ना, साइकिल चलाना, रस्सी कूदना इत्यादि दबाव को कम करने में सहायक होते हैं। प्रत्येक व्यक्ति को सप्ताह में कम-से-कम चार दिन एक साथ 30 मिनट तक इनमें से किसी व्यायाम का अभ्यास करना चाहिए। प्रत्येक सत्र में गरमाना, व्यायाम तथा ठंडा या सामान्य होने के चरण अवश्य होने चाहिए।

प्रश्न 4.
स्थिति स्थापना तथा स्वास्थ्य पर एक टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
स्थिति स्थापना एक गत्यात्मक विकासात्मक प्रक्रिया है, जो चुनौतीपूर्ण जीवन-दशाओं में – सकारात्मक समायोजन के अनुरक्षण को संदर्भित करता है। दबाव तथा विपत्ति के होते हुए भी उछलकर पुनः अपने स्थान पर पहले के समान वापस आने को स्थिति स्थापना कहते हैं। स्थिति स्थापना का संकल्पना-निर्धारण, आत्म-अर्ध तथा आत्म-विश्वास, स्वायत्तता तथा आत्मनिर्भरता की भावनाओं को अभिव्यक्त करता है, अपने लिए सकारात्मक भूमिका-प्रतिरूप ढूँढना, किसी अंतरंग मित्र को खोजना ऐसे संज्ञानात्मक कौशल विकसित करना, जैसे-समस्या समाधान, सर्जनात्मकता, संसाधन-सम्पन्नता तथा नम्यता और यह विश्वास कि मेरा जीवन अर्थपूर्ण’ तथा उसका एक उद्देश्य है। स्थिति स्थापक व्यक्ति अतिघात के प्रभावों, दबाव तथा विपत्ति पर विजयी हाने में सफल होते हैं, एवं मानसिक रूप से स्वस्थ तथा अर्थपूर्ण जीवन व्यतीत करना सीख लेते हैं।

स्थिति स्थापन को तीन संसाधनों के आधार पर हाल ही में परिभाषित किया गया है मेरे पास हैं (सामाजिक तथा अंतर्वैयक्तिक बल), अर्थात् “मेरे आस-पास मेरे विश्वास पात्र व्यक्ति है तथा चाहे कुछ भी हो जाए तो वे मुझसे प्यार करते हैं।” मैं हूँ (आंतरिक शक्ति), अर्थात् “स्वयं अपना तथा दूसरों का सम्मान करता/करती हूँ।” मैं समर्थ हूँ (अंतर्वैयक्तिक तथा समस्या समाधान कौशल), अर्थात् “जो भी समस्याएँ” मेरे सम्मुख आएँ, उनका समाध ढूंढने में मैं सक्षम हूँ।” किसी बालक को स्थिति स्थापक होने के लिए उसे उपरोक्त में से एक से अधिक शक्तियों की आवश्यकता होती है।

उदाहरण के लिए बालकों को काफी आत्म-सम्मान हो सकता है (मैं हूँ), किंतु हो सकता है कि उनके पास ऐसे व्यक्ति न हों जिससे वह सहायता प्राप्त कर सकें (मेरे पास हैं), तथा उनमें समस्याओं के समाधान की क्षमता न हो (मैं समर्थ हूँ)। ऐसे बालक स्थिति स्थापक नहीं कहे जाएंगे। बालकों पर किए गए अनुदैर्ध्य सध्ययन इस प्रकार के साक्ष्य प्रस्तुत करते हैं कि निर्धनता तथा अन्य सामाजिक असुविधाओं से उत्पन्न विकट असुरक्षा के उपरांत भी अनेक व्यक्ति योग्य एवं ध्यान रखने वाले वयस्कों में विकसित हो जाते हैं।

प्रश्न 5.
विच्छेदन से आप क्या समझते हैं? इसके विभिन्न रूपों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
विचारों और संवेगों के बीच संयोजन विच्छेद का हो जाना ही विच्छेदन कहलाता है। विच्छेदन में अवास्तविकता की भावना, मनमुटाव या विरक्ति,व्यक्तित्व-लोप और कभी-कभी अस्मिता-लोप या परिवर्तन भी पाया जाता है। चेतना में अचानक और अस्थायी परिवर्तन जो कष्टकर अनुभवों को रोक देता है,विच्छेदी विकार (dissociative disorder) की मुख्य विशेषता होती है।

विच्छेदन के विभिन्न रूप इस प्रकार से हैं-
(i) विच्छेदी स्मृतिलोप (dissociative amnesia)-विच्छेदी स्मृतिलोप में अत्यधिक किन्तु चयनात्मक स्मृतिभ्रंश होता है जिसका कोई ज्ञात आंगिक कारण (जैसे-सिर में चोट लगना) नहीं होता है। कुछ लोग को अपने अतीत के बारे में कुछ भी याद नहीं रहता है। दूसरे लोग कुछ विशिष्ट घटनाएँ, लोग, स्थान या वस्तुएँ याद नहीं कर पाते, जबकि दूसरी घटनाओं के लिए उनकी स्मृति बिल्कुल ठीक होती है। यह विकार अक्सर अत्यधिक दबाव से संबंधित होता है।

(ii) विच्छेदी आत्मविस्मति (dissociative fugue)-विच्छेदी आत्मविस्मृति का एक आवश्यक लक्षण है घर और कार्य स्थान से अप्रत्याशित यात्रा, एक नई पहचान की अवधारणा तथा पुरानी पहचान को याद न कर पाना। आत्मविस्मृति सामान्यता समाप्त हो जाती है। जब व्यक्ति अचानक जागता है और आत्मविस्मृति की अवधि में जो कुछ घटित हुआ उसकी कोई स्मृति नहीं रहती।

(iii) विच्छेदी पहचान विकार (dissociative identity disorder)-विच्छेदी पहचान विकार को अक्सर बहु व्यक्तित्व वाला कहा जाता है। यह सभी विच्छेदी विकारों में सबसे अधिक नाटकीय होती है। अक्सर यह बाल्यावस्था की कल्पना करता है जो आपस में एक-दूसरे के प्रति जानकारी रख सकते हैं या नहीं रख सकते हैं। a (iv) व्यक्तित्व लोप (depersonalisation)-व्यक्तित्व लोप में एक स्वप्न जैसी अवस्था होती है जिसमें व्यक्ति को स्व और वास्तविकता दोनों से अलग होने की अनुभूति होती है। व्यक्तित्व-लोप में आत्म-प्रत्यक्षण में परिवर्तन होता है और व्यक्ति का वास्तविकता बोध अस्थायी स्तर पर लुप्त हो जाता है या परिवर्तित हो जाता है।

प्रश्न 6.
उन मनोवैज्ञानिक मॉडलों का वर्णन कीजिए जो मानसिक विकारों के मनोवैज्ञानिक कारणों को बताते हैं।
उत्तर:
मनोवैज्ञानिक मॉडल के अंतर्गत मनोगतिक, व्यवहारात्मक, संज्ञानात्मक तथा मानवतावादी अस्तित्वपरक मॉडल सम्मिलित हैं।
(i) आधुनिक मनोवैज्ञानिक मॉडल में मनोगतिक मॉडल (Psychodynamic mode) यह सबसे प्राचीन और सबसे प्रसिद्ध है। मनोगतिक सिद्धांतवादियों का विश्वास है कि व्यवहार चाहे सामान्य हो या असामान्य वह व्यक्ति के अंदर की मनोवैज्ञानिक शक्तियों के द्वारा निर्धारित होता है, जिनके प्रति वह गत्यात्मक कहलाती है, अर्थात् वे एक-दूसरे से अंत:क्रिया करती है तथा उनकी यह अंतःक्रिया व्यवहार, विचार और संवेगों को निर्धारित करती है।

इन शक्तियों के बीच द्वंद्व के परिणामस्वरूप फ्रॉयड (Freud) द्वारा प्रतिपादित किया गया था जिनका विश्वास था कि तीन केंद्रीय शक्तियाँ व्यक्तित्व का निर्माण करती हैं-मूल प्रवृतिक आवश्यकताएँ, अंतर्नाद तथा आवेग (इदम् या इड) तार्किक चितन (अहम्) तथा नैतिक मानक (पराहम्)। फ्रॉयड के अनुसार अपसामान्य व्यवहार अचेतन स्तर पर होने वाले मानसिक द्वंद्वों की प्रतीकात्मक अभिव्यक्ति है जिसका संबंध सामान्यतः प्रारंभिक बाल्यावस्था या शैशवावस्था से होता है।

(ii) एक और मॉडल जो मनोवैज्ञानिक कारणों की भूमिका पर जोर देता है वह व्यवहारात्मक मॉडल (behavioural model) है। यह मॉडल बताता है कि सामान्य और अपसामान्य दोनों व्यवहार अधिगत होते हैं और मनोवैज्ञानिक विकार व्यवहार करने के दुरनुकूलक तरीके सीखने के परिणामस्वरूप होते हैं। यह मॉडल उन व्यवहारों पर ध्यान देता है। जो अनुबंधन (conditioning) के कारण सीखे गए हैं तथा इसका उद्देश्य होता है कि जो कुछ सीखे गए हैं तथा इसका उद्देश्य होता है कि जो कुछ सीखा गया है। उसे अनधिगत या भुलाया जा सकता है। अधिगम प्राचीन अनुबंधन (कालिक साहचर्य जिसमें दो घटनाएँ बार-बार दूसरे के साथ-साथ घटित होती है), क्रियाप्रसूत अनुबंधन (जिसमें व्यवहार का अनुकरण करके सीखना) से हो सकता है। यह तीन प्रकार के अनुबंधन सभी प्रकार के व्यवहार, अनुकूली या दुरनुकूलक के लिए उत्तरदायी हैं।

(iii) सामाजिक-सांस्कृतिक मॉडल (Socio-cultural model) के अनुसार, सामाजिक और सांस्कृतिक शक्तियाँ जो व्यक्तियों को प्रभावित करती हैं, इनके संदर्भ में उपसामान्य व्यवहार को ज्यादा अच्छे ढंग से समझा जा सकता है। चूँकि व्यवहार सामाजिक शक्तियों के द्वारा ही विकसित होता है अतः ऐसे कारक जैसे कि परिवार संरचना और संप्रेषण, सामाजिक तंत्र, सामाजिक दशाएँ तथा सामाजिक नामपत्र और भूमिकाएँ अधिक महत्वपूर्ण हो जाती हैं। ऐसा देखा गया है कि कुछ पारिवारिक व्यवस्थाओं में व्यक्तियों में उपसामान्य व्यवहार उत्पन्न होने की संभावना अधिक होती है। कुछ परिवारों में ऐसी जालबद्ध संरचना होती है जिसमें परिवार के सदस्य एक-दूसरे की गतिविधियों, विचारों और भावनाओं में कुछ ज्यादा ही अंतर्निहित होते हैं।

इस तरह के परिवारों के बच्चों को जीवन में स्वावलंबी होने में कठिनाई आ सकती है। इससे भी बड़े स्तर का सामाजिक तंत्र हो सकता है जिसमें व्यक्ति के सामाजिक और व्यावसायिक संबंध सम्मिलित होते हैं। कई अध्ययनों से यह पता चलता है कि जो लोग अलग-थलग महसूस करते हैं और जिन्हें सामाजिक अवलंब प्राप्त नहीं होता है अर्थात् गहन और संतुष्टिदायक अंतर्वैयक्तिक संबंध जीवन में नहीं प्राप्त होता, वे उन लोगों की अपेक्षा अधिक और लंबे समय तक अवसादग्रस्त हो सकते हैं, जिनके अच्छे मित्रतापूर्ण संबंध होते हैं। सामाजिक-सांस्कृतिक सिद्धांतकारों के अनुसार, जिन लोगों में कुछ समस्याएँ होती हैं उनमें असामान्य व्यवहारों की उत्पत्ति संज्ञाओं और भूमिकाओं से प्रभावित होता है।

जब लोग समाज के मानकों को तोड़ते हैं तो उन्हें, ‘विसामान्य’ और ‘मानसिक रोगी’ जैसे संज्ञाएँ दी जाती हैं। इस प्रकार की संज्ञाएँ इतनी ज्यादा उन लोगों से जुड़ जाती हैं कि लोग उन्हें ‘सनकी’ इत्यादि पुकारने लगते हैं और उन्हें उसी बीमारी की तरह से क्रिया करने के लिए उकसाते रहते हैं। धीरे-धीरे वह व्यक्ति बीमारी की भूमिका स्वीकार कर लेता है तथा अपसामान्य व्यवहार करने लगता है।

(iv) इन मॉडलों के अतिरिक्त, व्यवहार की एक बहुमान्य व्याख्या रोगोन्मुखता-दबाव मॉडल (diathesistress model) द्वारा दी गई है। इस मॉडल के अनुसार, जब कोई रोगोन्मुखता (किसी विकार के लिए जैविक पूर्ववृत्ति) किसी दबावपूर्ण स्थिति के कारण सामने आ जाती है तब मनोवैज्ञानिक विकार उत्पन्न होते हैं। इस मॉडल के तीन घटक यह हैं। पहला घटक रोगोन्मुखता या कुछ जैविक विपथन जो वंशगत हो सकते हैं।

दूसरा घटक यह है कि रोगोन्मुखता के कारण किसी मनोवैज्ञानिक विकार के प्रति दोषपूर्णता उत्पन्न हो सकती है, जिसका तात्पर्य यह हुआ कि व्यक्ति उस विकार के विकास के लिए ‘पूर्ववृत्त’ है या उसे विकार का ‘खतरा’ है। तीसरा घटक विकारी प्रतिबलकों की उपस्थिति है। इसका तात्पर्य उन कारकों से है जो मनोवैज्ञानिक विकारों का जन्म दे सकते हैं। यदि इस तरह के पूर्ववृत्त’ या ‘खतरे में रहने वाले व्यक्ति को इस तरह के दबावकारकों का सामना करना पड़ता है तो उनकी यह पूर्ववृत्ति वास्तव में विकार को जन्म दे सकती है। इस मॉडल का कई विकारों, जैसे दुश्चिता, अवसाद और मनोविदलता पर अनुप्रयोग किया गया है।

प्रश्न 7.
मनश्चिकित्सा की प्रकृति एवं विजय-क्षेत्र का वर्णन कीजिए। मनश्चिकित्सा में चिकित्सात्मक संबंध के महत्व को उजागर कीजिए।
उत्तर:
मनश्चिकित्सा उपचार चाहने वाले या सेवार्थी तथा उपचार करने वाले या चिकित्सा के बीच में एक ऐच्छिक संबंध है। इस संबंध का उद्देश्य उन मनोवैज्ञानिक समस्याओं का समाधान करना होता है जिनका सामना सेवार्थी द्वारा किया जा रहा हो। यह संबंध सेवार्थी के विश्वास को बनाने में सहायक होता है जिससे वह अपनी समस्याओं के बारे में मुक्त होकर चर्चा कर सके । मनश्चिकित्सा का उद्देश्य दुरनुकूलक व्यवहारों को बदलना, वैयक्तिक कष्ट की भावना को कम करना तथा रोगी को अपने पर्यावरण से बेहतर ढंग से अनुकूलन करने में मदद करना है। अपर्याप्त वैवाहिक, व्यावसायिक तथा सामाजिक समायोजन की वह आवश्यकता होती है कि व्यक्ति के वैयक्तिक पर्यावरण में परिवर्तन किए जाएँ।

सभी मनश्चिकित्सात्मक उपागमों में निम्न अभिलक्षण पाए जाते हैं-

  • चिकित्सा के विभिन्न सिद्धांत में अंतर्निहित नियमों का व्यवस्थित या क्रमबद्ध अनुप्रयोग होता है,
  • केवल वे व्यक्ति, जिन्होंने कुशल पर्यवेक्षण में व्यावहारिक प्रशिक्षण प्राप्त किया हो, मनश्चिकित्सा कर सकते हैं, हर कोई नहीं, एक अप्रशिक्षित व्यक्ति अनजाने में लाभ के बजाय हानि अधिक पहुँचा सकता है,
  • चिकित्सात्मक स्थितियों में एक चिकित्सक और एक सेवार्थी होता है जो अपनी संवेगात्मक समस्याओं के लिए सहायता चाहता है और प्राप्त करता है चिकित्सात्मक प्रक्रिया में यही व्यक्ति ध्यान का मुख्य केंद्र होता है तथा
  • इन दोनों व्यक्तियों, चिकित्सक एवं सेवार्थी के बीच की अंत:क्रिया के परिणामस्वरूप एक चिकित्सात्मक संबंध का निर्माण एवं उसका सुदृढीकरण होता है। यह एक गोपनीय, अंतर्वैयक्तिक एवं गत्यात्मक संबंध होता है। यह मानवीय संबंध किसी भी मनोवैज्ञानिक चिकित्सा का केंद्र होता है तथा यही परिवर्तन का माध्यम बनता है।

मनश्चिकित्सा में चिकित्सात्मक संबंध का महत्व-सेवार्थी एवं चिकित्सक के बीच एक विशेष संबंध को चिकित्सात्मक संबंध या चिकित्सात्मक मैत्री कहा जाता है। यह न तो एक क्षणिक परिचय होता है और न ही.एक स्थायी एवं टिकाऊ संबंधा

प्रश्न 8.
उदाहरण सहित व्याख्या कीजिए कि संज्ञानात्मक विकृति किस प्रकार घटित होती है?
उत्तर:
संज्ञानात्मक चिकित्साओं में मनोवैज्ञानिक कष्ट का कारण अविवेकी विचारों और विश्वासों में स्थापित किया जाता है।
(i) अल्बर्ट एलिस (albert Elis) ने संवेग तर्क चिकित्सा (Rational emotive therapy, RET) को प्रतिपादित किया। इस चिकित्सा की केन्द्रीय धारणा है कि अविवेकी विश्वास पूर्ववर्ती घटनाओं और उनके परिणामों के बीच मध्यस्थता करते हैं। संवेग तर्क चिकित्सा में पहला चरण है पूर्ववर्ती-विश्वास-परिणाम (पू.वि.प.) विश्लेषण। पूर्ववर्ती घटनाओं जिनसे मनोवैज्ञानिक कष्ट उत्पन्न हुआ, को लिख लिया जाता है।

सेवार्थी के साक्षात्कार द्वारा उसके उन अविवेकी विश्वासों का पता लगाया जाता है जो उसकी वर्तमानकालिक वास्तविकता को विकृत कर रहे हैं। हो सकता है इन अविवेकी विश्वासों को पुष्ट करने वाले आनुभाविक प्रमाण पर्यावरण में नहीं भी हों। इन विश्वासों को अनिवार्य या चाहिए विचार कह सकते हैं, तात्पर्य यह है कि कोई भी बात एक विशिष्ट तरह से होनी ‘अनिवार्य’ या ‘चाहिए’ है। अविवेकी विश्वासों के उदाहरण है; जैसे-“किसी को हर एक का प्यार हर समय मिलना चाहिए”, “मनुष्य की तंगहाली बाह्य घटनाओं के कारण होती है जिस पर किसी का नियंत्रण नहीं होता” इत्यादि।

अविवेकी विश्वासों के कारण पूर्ववर्ती घटना का विकृत प्रत्यक्षण नकारात्मक संवेगों और व्यवहारों के परिणाम का कारण बनता है। अविवेकी विश्वासों का मूल्यांकन प्रश्नावली और साक्षात्कार के द्वारा किया जाता है। संवेग तर्क चिकित्सा की प्रक्रिया के चिकित्सक अनिदेशात्मक प्रश्न करने के प्रक्रिया से अविवेकी विश्वासों का खंडन करता है। प्रश्न करने का स्वरूप सौम्य होता है निदेशात्मक या जाँच-पड़ताल वाला नहीं। ये प्रश्न सेवार्थी को अपने जीवन और समस्याओं से संबंधित पूर्वधारणाओं के बारे में गहराई से सोचने के लिए प्रेरित करते हैं। धीरे-धीरे सेवार्थी अपने जीवन-दर्शन में परिवर्तन लाकर अविवेकी विश्वासों को परिवर्तित करने में समर्थ हो जाता है। तर्कमूलक विश्वास तंत्र अविवेकी विश्वास तंत्र को प्रतिस्थापित करता है और मनोवैज्ञानिक कष्टों में कमी आती है।

(ii) दूसरी संज्ञानात्मक चिकित्सा आरन बेक (aaron beck) की है। दुश्चिता या अवसाद द्वारा अभिलक्षित मनोवैज्ञानिक कष्ट संबंधी उनके सिद्धांत के अनुसार परिवार और समाज द्वारा दिए गए बाल्यावस्था के अनुभव मल अन्विति योजना या मल स्कीमा (core scheme) या तंत्र के रूप में विकसित हो जाते हैं, जिनमें व्यक्ति के विश्वास और क्रिया के प्रतिरूप सम्मिलित होते हैं। इस प्रकार एक सेवार्थी जो बाल्यावस्था में अपते माता-पिता द्वारा उपेक्षित था एक ऐसा मूल स्कीमा विकसित कर लेता है कि “मैं वांछित हूँ।” जीवनकाल के दौरान कोई निर्णायक घटना उसके जीवन में घटित होती है। विद्यालय में उसके सामने अध्यापक के द्वारा उसकी हँसी उड़ायी जाती है। यह निर्णायक घटना उसके मूल स्कीमा “मैं वांछित हूँ।” को क्रियाशील कर देती है जो नकारात्मक स्वचालित विचारों को विकसित करती है।

नकारात्मक विचार सतत अविवेकी विचार होते हैं; जैसे-कोई मुझे प्यार नहीं करती, मैं कुरूप हूँ, मैं मूर्ख हूँ, मैं सफल नहीं हो सकता/सकती इत्यादि। इन नकारात्मक स्वचालित विचारों में संज्ञानात्मक विकृति के होते हैं किन्तु वे वास्तविकता को नकारात्मक तरीके से विकृत होते हैं। विचारों के इन प्रतिरूपों को अपक्रियात्मक संज्ञानात्मक संरचना (dysfunctional cognitive structure) कहते हैं। सामाजिक यथार्थ के बारे में ये संज्ञानात्मक त्रुटियाँ उत्पन्न करती हैं।

इन विचारों का बार-बार उत्पन्न होना दुश्चिता और अवसाद की भावनाओं को विकसित करता है। चिकित्सक जो प्रश्न करता है वे सौम्य होते हैं तथा सेवार्थी के विश्वासों और विचारों के प्रति बिना धमकी वाले किन्तु उनके खंडन करने वाले होते हैं। इन प्रश्नों के उदाहरण कुछ ऐसे हो सकते हैं, “क्यों हर कोई तुम्हें प्यार करे?”, “तुम्हारे लिए सफल होना क्या अर्थ रखता है?” इत्यादि। ये प्रश्न सेवार्थी को अपने नकारात्मक स्वचालित विचारों की विपरीत दिशा में सोचने को बाध्य करते हैं जिससे वह अपने अपक्रियात्मक स्कीमा के स्वरूप के बारे में अंतर्दृष्टि प्राप्त करता है तथा अपनी संज्ञानात्मक संरचना को परिवर्तित करने में समर्थ होता है। इस चिकित्सा का लक्ष्य संज्ञानात्मक पुनःसंरचना को प्राप्त करना है जो दुश्चिता तथा अवसाद को घटाती है।

प्रश्न 9.
अभिवृत्ति निर्माण को प्रभावित करने वाले कारकों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
अभिवृत्ति निर्माण को प्रभावित करने वाले कारक निम्नलिखित हैं
(i) परिवार एवं विद्यालय का परिवेश-विशेष रूप से जीवन के प्रारंभिक वर्षों में अभिवृत्ति निर्माण करने में माता-पिता एवं परिवार के अन्य सदस्य महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। बाद में विद्यालय का परिवेश अभिवृत्ति निर्माण के लिए एक महत्वपूर्ण पृष्ठभूमि बन जाता है। परिवार एवं विद्यालय में अभिवृत्तियों का अधिगम आमतौर पर साहचर्य, पुरस्कार और दंड तथा प्रतिरूपण के माध्यम से होता है।

(ii) संदर्भ समूह-संदर्भ समूह एक व्यक्ति को सोचने एवं व्यवहार करने के स्वीकृत नियमों या मानकों को बताते हैं। अतः ये समूह या संस्कृति के मानकों के माध्यम से अभिवृत्तियों के अधिगम को दर्शाते हैं। विभिन्न विषयों जैसे-राजनीतिक, धार्मिक तथा सामाजिक समूह, व्यवसाय, राष्ट्रीय एवं अन्य मुद्दों के प्रति अभिवृत्ति प्रायः संदर्भ समूह के माध्यम से ही विकसित होती है । यह प्रभाव विशेष रूप से किशोरावस्था के प्रारंभ में अधिक स्पष्ट होता है जब व्यक्ति के लिए या अनुभव करना महत्वपूर्ण होता है कि वह किसी समूह का सदस्य है। इसलिए अभिवृत्ति निर्माण में संदर्भ समूह की भूमिका एवं दंड के द्वारा अधिगम का भी एक उदाहरण हो सकता है।

(iii) व्यक्तिगत अनुभव-अनेक अभिवृत्तियों का निर्माण पारिवारिक परिवेश में या संदर्भ समूह के माध्यम से नहीं होता बल्कि इनका निर्माण प्रत्यक्ष व्यक्तिगत अनुभव के द्वारा होता है, जो लोगों के साथ स्वयं के जीवन के प्रति हमारी अभिवृत्ति में प्रबल परिवर्तन उत्पन्न करता है। यहाँ वास्तविक जीवन से संबंधित एक उदाहरण प्रस्तुत है।

सेना का एक चालक (ड्राइवर) एक ऐसे व्यक्ति अनुभव से गुजरा जिसने उसके जीवन को ही परिवर्तित कर दिया। एक अभियान के दौरान, जिसमें उसके सभी साथी मारे जा चुके थे, वह मृत्यु के बहुत नजदीक से गुजरा। अपने जीवन के उद्देश्य के बारे में विचार करते हुए उसने सेना में अपनी नौकरी छोड़ दी तथा महाराष्ट्र के एक गाँव में स्थित अपनी जन्मभूमि में वापस लौट आया और वहाँ एक सामुदायिक नेता के रूप में सक्रिय रूप से कार्य किया। एक विशुद्ध व्यक्तिगत अनुभव के द्वारा इस व्यक्ति ने सामुदायिक उत्थान या विकास के लिए एक प्रबल सकारात्मक अभिवृत्ति विकसित कर ली। उसके प्रयास ने उसके गाँव के स्परूप को पूर्णरूपेण बदल दिया।

(iv) संचार माध्यम संबद्ध प्रभाव-वर्तमान समय में प्रौद्योगिकीय विकास ने दृश्य-श्रव्य माध्यम एवं इंटरनेट को एक शक्तिशाली सूचना का स्रोत बना दिया है जो अभिवृत्तियों का निर्माण एवं परिवर्तन करते हैं। इसके अतिरिक्त विद्यालय स्तरीय पाठ्य पुस्तकें भी अभिवृत्ति निर्माण को प्रभावित करती हैं। ये स्रोत सबसे पहले संज्ञानात्मक एवं भावात्मक घटक को प्रबल बनाते हैं और बाद में व्यवहारपरक पटक को भी प्रभावित कर सकते हैं।

संचार-माध्यम अभिवृत्ति पर अच्छा एवं खराब दोनों ही प्रकार के प्रभाव डाल सकते हैं। एक तरफ, संचार माध्यम एवं इंटरनेट, संचार के अन्य माध्यमों की तुलना में लोगों को भली प्रकार से सूचित करते हैं, दूसरी तरफ इन संचार माध्यमों से सूचना संकलन की प्रकृति पर कोई रोक या जाँच नहीं होती इसलिए निर्मित होने वाली अभिवृत्तियों या पहले से बनी अभिवृत्तियों में परिवर्तन की दिशा पर कोई नियंत्रण भी नहीं होता है। संचार माध्यमों का उपयोग उपभोक्तावादी अभिवृत्तियों के निर्माण के लिए किया जा सकता है और इनका उपयोग सामाजिक समरसता को बढ़ावा देने के लिए सकारात्मक अभिवृत्तियों को उत्पन्न करने के लिए भी किया जा सकता है।

प्रश्न 10.
पूर्वाग्रह के विभिन्न स्रोतों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
पूर्वाग्रह के विभिन्न स्रोत निम्नलिखित हैं-
(i) अधिगम-अन्य अभिवृत्तियों की तरह पूर्वाग्रह भी साहचर्य, पुरस्कार एवं दंड, दूसरों के प्रेक्षण, समूह या संस्कृति के मानक तथा सूचनाओं की उपलब्धता, जो पूर्वाग्रह को बढ़ावा देते हैं, के द्वारा अधिगमित किए जा सकते हैं। परिवार, संदर्भ, समूह, व्यक्तिगत अनुभव तथा संचार माध्यम पूर्वाग्रह के अधिगम में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। जो लोग पूर्वाग्रहग्रस्त अभिवृत्तियों को सीखते हैं वे ‘पूर्वाग्रहग्रस्त व्यक्तित्व’ विकसित कर लेते हैं तथा समायोजन स्थापित करने की क्षमता में कमी, दुश्चिता तथा बाह्य समूह के प्रति आक्रामकता की भावना को प्रदर्शित करते हैं।

(ii) एक प्रबल सामाजिक अनन्यता तथा अंतःसमूह अभिनति-वे लोग जिनमें सामाजिक अनन्यता की प्रबल भावना होती है एवं अपने समूह के प्रति एक बहुत ही सकारात्मक अभिवृत्ति होती है वे अपनी अभिवृत्ति को और प्रबल बनाने के लिए बाह्य समूहों के प्रति नकारात्मक अभिवृत्ति रखते हैं। इनका प्रदर्शन पूर्वाग्रह के रूप में होता है।

(iii) बलि का बकरा बनाना यह एक ऐसी प्रक्रिया या गोचर है जिसके द्वारा बहुसंख्यक समूह अपनी अपनी सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक समस्याओं के लिए अल्पसंख्यक बाह्य समूह को दोषी ठहराता है। अल्पसंख्यक इस आरोप से बचाव करने के लिए या तो बहुत कमजोर होते हैं या संख्या में बहुत कम होते हैं। बलि का बकरा बनाने वाले प्रक्रिया कुंठा को प्रदर्शित करने का समूह आधारित एक तरीका है तथा प्रायः इसकी परिणति कमजोर समूह के प्रति नकारात्मक अभिवृत्ति या पूर्वाग्रह के रूप में होती है।

(iv) सत्य के संप्रत्यय का आधार तत्त्व-कभी-कभी लोग एक रूढ़धारणा को बनाए रखते हैं, क्योंकि वे सोचते हैं कि जो सभी लोग दूसरे के बारे में कहते हैं उसमें कोई न कोई सत्य या सत्य का आधार तत्त्व(Kernel of truth) तो अवश्य होना चाहिए। यहाँ तक कि केवल कुछ उदाहरण ही ‘सत्य के आधार तत्त्व’ की अवधारणा को पुष्ट करने के लिए पर्याप्त होते हैं।

(v) स्वतः साधक भविष्योक्ति-कुछ स्थितियों में वह समूह जो पूर्वाग्रह का लक्ष्य होता है स्वयं ही पूर्वाग्रह. को बनाए रखने के लिए जिम्मेदार होता है। लक्ष्य समूह इस तरह से व्यवहार करता है कि वह पूर्वाग्रह को प्रमाणित करता है अर्थात् नकारात्मक प्रत्याशाओं की पुष्टि करता है। उदाहरणार्थ, यदि लक्ष्य समूह को ‘निर्भर’ और इसलिए प्रगति करने में अक्षम के रूप में वर्णित किया जाता है तो हो सकता है कि इस लक्ष्य समूह के सदस्य वास्तव में इस तरह से व्यवहार करें। इस विवरण को सही साबित करे। इस तरह वे पहले से विद्यमान पूर्वाग्रह को और प्रबल करते हैं।

प्रश्न 11.
समूह की विशेषताओं की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
समूह की निम्नलिखित प्रमुख विशेषताएँ होती हैं-
(i) हम दो या दो से अधिक व्यक्तियों, जो स्वयं को समूह के संबद्ध समझते हैं, की एक सामाजिक इकाई है। समूह की यह विशेषता एक समूह को दूसरे समूह से पृथक् करने में सहायता करती है और समूह को अपनी एक अलग अनन्यता या पहचान प्रदान करती है।

(ii) यह ऐसे व्यक्तियों का एक समुच्चय है जिसमें सभी की एक जैसी अभिप्रेरणाएँ एवं लक्ष्य होते हैं। समूह निर्धारित लक्ष्य को प्राप्त करने या समूह को किसी खतरे से दूर करने के लिए कार्य करते हैं।

(iii) यह ऐसे व्यक्तियों का एक समुच्चय होता है जो परस्पर-निर्भर होते हैं अर्थात् एक व्यक्ति द्वारा किया गया कार्य दूसरों के लिए कुछ परिणाम उत्पन्न कर सकता है। क्रिकेट के खेल में एक खिलाड़ी कोई महत्त्वपूर्ण कैच छोड़ देता है तो इसका प्रभाव संपूर्ण टीम पर पड़ेगा।

(iv) वे लोग जो अपनी आवश्यकताओं की संतुष्टि अपने संयुक्त संबंध के आधार पर कर रहे हैं वे एक-दूसरे को प्रभावित भी करते हैं।

(v) यह ऐसे व्यक्तियों का एकत्रीकरण या समूहन है जो एक-दूसरे से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से अंतःक्रिया करते हैं।

(vi) यह ऐसे व्यक्तियों का एक समुच्चय होता है जिनके अंत:क्रियाएँ निर्धारित भूमिकाओं और प्रतिमानों के द्वारा संरचित होती हैं। इसका आशय यह हुआ कि जब समूह के सदस्य एकत्रित होते हैं या मिलते हैं तो समूह के सदस्य हर बार एक ही तरह के कार्यों का निष्पादन करते हैं और समूह के सदस्य के प्रतिमानों का पालन करते हैं। प्रतिमान हमें यह बताते हैं कि समूह में हम लोगों को किस प्रकार का व्यवहार करना चाहिए और समूह के सदस्यों से अपेक्षित व्यवहार करना चाहिए और समूह के सदस्यों से अपेक्षित व्यवहार को निर्धारित करते हैं।

प्रश्न 12.
औपचारिक एवं अनौपचारिक समूह तथा अंतः एवं बाह्य समूहों की तुलना , कीजिए एवं अंतर बताइए। .
उत्तर:
(i) औपचारिक एवं अनौपचारिक समूह- ऐसे समूह उस मात्रा में भिन्न होते हैं जिस मात्रा में समूह के प्रकार्य स्पष्ट और अनौपचारिक रूप से घोषित किए जाते हैं। एक औपचारिक समूह, जैसे-किसी कार्यालय संगठन द्वारा निष्पादित की जाने वाली भूमिकाएँ स्पष्ट रूप से घोषित होती हैं। औपचारिक तथा अनौपचारिक समूह के आधार पर भिन्न होते हैं । औपचारिक समूह का निर्माण कुछ विशिष्ट नियमों या विधि पर आधारित होता है और सदस्यों की सुनिश्चित भूमिकाएँ होती हैं। इसमें मानकों का एक समुच्चय होता है जो व्यवस्था स्थापित करने में सहायक होता है। कोई विश्वद्यालय एक औपचारिक समूह का उदाहरण है। दूसरी तरफ अनौपचारिक समूहों का निर्माण नियमों या विधि पर आधारित नहीं होता है और सदस्यों में घनिष्ठ संबंध होता है।

(ii) अंतःसमूह एवं बाह्य समूह-जिस प्रकार व्यक्ति अपनी तुलना दूसरों से समानता या भिन्नता के आधार पर इस संदर्भ में करते हैं कि क्या उनके पास है और क्या दूसरों के पास है, वैसे ही व्यक्ति जिस समूह के संबंध रखते हैं उसकी तुलना उन समूहों से करते हैं जिनके वे सदस्य नहीं हैं। अंत:समूह’ के समूह को इंगित करता है और ‘बाह्य समूह’ दूसरे को इंगित करता है । अंत: समूह में सदस्यों के लिए ‘हम लोग’ (We) शब्द का उपयोग होता है जबकि बाह्य समूह के सदस्यों के लिए ‘वे’ (They) शब्द का उपयोग किया जाता है। हमलोग या वे शब्द के उपयोग से कोई व्यक्ति लोगों को समान या भिन्न के रूप में वर्गीकृत करता है।

या पाया गया है कि अंत:समूह में सामान्यतया व्यक्तियों में समानता मानी जाती है, उन्हें अनुकूल दृष्टि से देखा जाता है और उनमें वांछनीय विशेषक पाए जाते हैं। बाह्य समूह के सदस्यों को अलग तरीके से देखा जाता है और उनका प्रत्यक्षण अंत:समूह के सदस्यों की तुलना में प्राय: नकारात्मक होता है अंत:समूह तथा बाह्य समूह का प्रत्यक्षण हमारे सामाजिक जीवन को प्रभावित करत. है।

प्रश्न 13.
द्वंद्व समाधान युक्तियों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
द्वंद्व समाधान युक्तियाँ की व्याख्या निम्नलिखित है-
(i) उच्चकोटि लक्ष्यों का निर्धारण-शैरिफ के अनुसार उच्चकोटि लक्ष्यों का निर्धारण करके अंतर-समूह द्वंद्व को कम किया जा सकता है। एक उच्चकोटि लक्ष्य दोनों ही पक्षों के लिए परस्पर हितकारी होता है, अत: दोनों ही समूह सहयोगी रूप से कार्य करते हैं।

(ii) प्रत्यक्षण में परिवर्तन करना-अनुनय, शैक्षिक तथा मीडिया अपील और समूहों का समाज में भी भिन्न रूप से निरूपण इत्यादि के माध्यम से प्रत्यक्षण एवं प्रतिक्रियाओं में परिवर्तन करने के द्वारा द्वंद्व में कमी लाई जा सकती है। प्रारंभ से ही दूसरों के प्रति सहानुभूति को प्रोत्साहित करना सिखाया जाना चाहिए।

(iii) अंतर-समूह संपर्क को बढ़ाना-समूहों के बीच संपर्क को बढ़ाने से भी द्वंद्व को कम किया जा सकता है। सामुदायिक परियोजनाओं और गतिविधियों के द्वारा द्वंद्व में उलझे समूहों को तटस्थ मुद्दों या विचारों में संलग्न कराकर द्वंद्व को कम किया जा सकता है। इसमें समूहों को एक साथ लाने की योजना होती है जिससे कि वे एक-दूसरे की विचाराधाराओं को अधिक अच्छी तरह से समझने योग्य हो जाएँ। परंतु, संपर्क के सफल होने के लिए उनको बनाए रखना आवश्यक है जिसका अर्थ है कि संपर्कों का समर्थन एक अन्य अवधि तक किया जाना चाहिए।

(iv) समूह की सीमाओं का पुनः निर्धारण-समूह की सीमाओं के पुनः निर्धारण को कुछ मनोवैज्ञानिकों द्वारा एक दूसरी प्रतिविधि के रूप में सुझाया गया है। यह ऐसी दशाओं को उत्पन्न करके किया जा सकता है जिसमें समूह की सीमाओं को पुनः परिभाषित किया जाता है और समूह को एक उभयनिष्ठ समूह से जुड़ा हुआ अनुभव करने लगता है।

(v) समझौता वार्ता-समझौता (Negotiation) एवं किसी तृतीय पक्ष के हस्तक्षेप के द्वारा भी द्वंद्व का समाधान किया जा सकता है। प्रतिस्पर्धा समूह द्वंद्व का समाधान परस्पर स्वीकार्य हल को ढूँढने का प्रयास करके भी कर सकते हैं। इसके लिए समझ एवं विश्वास की आवश्यकता होती है। समझौता वार्ता पारस्परिक संप्रेषण को कहते हैं जिससे ऐसी स्थितियाँ जिसमें द्वंद्व होता है उसमें समझौता या सहमति पर पहुँचा जाता है। कभी-कभी समझौता वार्ता के माध्यम से द्वंद्व को दूर करना कठिन होता है; ऐसे समय में किसी तृतीय पक्ष द्वारा मध्यस्थता (Mediation) एवं विवाचन (Arbitration) की आवश्यकता होती है। मध्यस्थता करने वाले दोनों पक्षों को प्रासंगिक मुद्दों पर अपनी बहस को केंद्रित करने एवं एक स्वैच्छिक समझौते तक पहुँचने में सहायता करते हैं। विवाचन में तृतीय पक्ष को दोनों पक्षों को सुनने के बाद एक निर्णय देने का प्राधिकार होता है।

(vi) संरचनात्मक समाधान-न्याय के सिद्धांतों के अनुसार सामाजिक संसाधनों का पुनर्वितरण करके भी द्वंद्व को कम किया जा सकता है। न्याय पर किए गए शोध में न्याय के अनेक सिद्धांतों की खोज की गई है। इनमें से कुछ हैं-समानता (सभी का समान रूप से विनिधान करना), आवश्यकता (आवश्यकताओं के आधार पर विनिधान करना), तथा समता (सदस्यों के योगदान के आधार पर विनिधान करना)।

(vii) दूसरे समूह के मानकों का आदर करना- भारत जैसे बहुविध समाज में विभिन्न सामाजिक एवं सजातीय समूहों के प्रबल मानकों का आदर करना एवं उनके प्रति संवेदनशील होना आवश्यक है। यह देखा गया है कि विभिन्न समूहों के बीच होने वाले अनेक सांप्रदायिक दंगे इस प्रकार की असंवेदनशीलता के कारण ही हुए हैं।

प्रश्न 14.
भीड़ के प्रमुख लक्षण क्या हैं? भीड़ के प्रमुख मनोवैज्ञानिक परिणामों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
भीड़ का संदर्भ उस असुस्थता की भावना से है जिसका कारण यह है कि हमारे आस-पास बहुत अधिक व्यक्ति या वस्तुएँ होती हैं जिससे हमें भौतिक बंधन की अनुभूति होती है तथा कभी-कभी वैयक्तिक स्वतंत्रता में न्यूनता का अनुभव होता है। एक विशिष्ट क्षेत्र या दिक् में बड़ी संख्या में व्यक्तियों की उपस्थिति के प्रति व्यक्ति की प्रतिक्रिया ही भीड़ कहलाती है। जब यह संख्या एक निश्चित स्तर से अधिक हो जाती है तब इसके कारण वह व्यक्तिक जो इस स्थिति में फंस गया है, दबाव का अनुभव करता है। इस अर्थ में भीड़ भी एक पर्यायवाची दबावकारक का उदाहरण है।

भीड़ के अनुभव के निम्नलिखित लक्षण होते हैं-

  1. असुरक्षा की भावना,
  2. वैयक्तिक स्वतंत्रता में न्यूनता या कमी,
  3. व्यक्ति का अपने आस-पास के परिवेश के संबंध में निषेधात्मक दृष्टिकोण तथा
  4. सामाजिक अंत:क्रिया पर नियंत्रण के अभाव की भावना।

भीड़ के प्रमुख मनोवैज्ञानिक परिणाम निम्नलिखित हैं-
(i) भीड़ तथा अधिक घनत्व के परिणामस्वरूप असामान्य व्यवहार तथा आक्रामकता उत्पन्न हो सकते हैं। अनेक वर्षों पूर्व चूहों पर किए गए शोध में यह परिलक्षित हुआ था। इन प्राणियों को एक बाड़े में रखा गया, प्रारंभ में यह कम संख्या में आक्रामक तथा विचित्र व्यवहार प्रकट होने लगे, जैसे-दूसरे चूहों की पूँछ काट लेना। यह आक्रामक व्यवहार इस सीमा तक बढ़ा कि अंततः ये प्राणी बड़ी संख्या में मर गए जिससे बाड़े में उनकी जनसंख्या फिर कम हो गई। मनुष्यों में भी जनसंख्या वृद्धि के साथ कभी-कभी हिंसात्मक अपराधों में वृद्धि पाई गई हैं।

(ii) भीड़ के फलस्वरूप उन कठिन कार्यों का, जिनमें संज्ञानात्मक प्रक्रियाएँ निहित होती हैं, निष्पादन निम्न स्तर का हो जाता है तथा स्मृति और संवेगात्मक दशा पर इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। ये निषेधात्मक प्रभाव उन व्यक्तियों में अल्प मात्रा में परिलक्षित होते हैं जो भीड़ वाले परिवेश के आदी होते हैं।

(iii) वे बच्चे जो अत्यधिक भीड़ वाले घरों में बड़े होते हैं, वे निचले स्तर के शैक्षिक निष्पादन प्रदर्शित करते हैं। यदि वे किसी कार्य पर असफल होते हैं तो उन बच्चों की तुलना में जो कम भीड़ वाले घरों में बढ़ते हैं, उस कार्य पर निरंतर काम करते रहने की प्रवृति भी उनमें दुर्बल होती है। अपने माता-पिता के साथ वे अधिक द्वंद्व का अनुभव करते हैं तथा उन्हें अपने परिवार से भी कम सहायता प्राप्त होती हैं।

(iv) सामाजिक अंतःक्रिया की प्रकृति भी यह निर्धारित करती है कि व्यक्ति भीड़ के प्रति किस सीमा तक प्रतिक्रिया करेगा। उदाहरण के लिए यदि अंतःक्रिया किसी आनंददायक सामाजिक अवसर पर होती हैं; जैसे-किसी प्रीतिभोज अथवा सार्वजनिक समारोह में, तब संभव है कि उसी भौतिक स्थान में बड़ी संख्या में अनेक लोगों की उपस्थिति कोई भी दबाव उत्पन्न करे। बल्कि इसके फलस्वरूप सकारात्मक सांवेगिक प्रतिक्रियाएँ हो सकती हैं । इसके साथ ही, भीड़ भी सामाजिक अंत:क्रिया की प्रकृति को प्रभावित करती है।

(v) व्यक्ति भीड़ के प्रति जो निषेधात्मक प्रभाव प्रदर्शित करते हैं, उसकी मात्रा में व्यक्तिगत भिन्नताएँ होती हैं तथा उनकी प्रतिक्रियाओं की प्रकृति में भी भेद होता है।

प्रश्न 15.
निर्धनता उपशमन के उपयोग की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
निर्धनता उपशमन के उपाय-निर्धनता एवं उसके निषेधात्मक परिणामों को उपशमित अथवा कम करने के लिए सरकार तथा अन्य समूहों द्वारा अनेक कार्य किए जा रहे हैं। यह कार्य निम्नलिखित हैं-
(i) निर्धनता चक्र को तोड़ना तथा निर्धन व्यक्तियों के आत्मनिर्भर बनाने हेतु सहायता करना-प्रारंभ में निर्धन व्यक्तियों को वित्तीय सहायता, चिकित्सापरक एवं सुविधाएँ उपलब्ध कराना आवश्यक हो सकता है। यह ध्यान रखने की आवश्यकता होती है कि निर्धन व्यक्ति इस वित्तीय एवं अन्य प्रकार की सहायताओं और स्रोतों पर अपनी जीविका के निर्भर न हो जाएँ।

(ii) ऐसे संदर्भो का निर्माण जो निर्धन व्यक्तियों को उनकी निर्धनता के लिए दोषी ठहराने की बजाय उन्हें उत्तरदायित्व सिखाए-इस उपाय के द्वारा उन्हें आशा, नियंत्रण एवं अनन्यता की भावनाओं को दोबारा अनुभव करने में सहायता मिलेगी।

(iii) सामाजिक न्याय के सिद्धांतों का पालन करते हुए शैक्षिक एवं रोजगार के अवसर उपलब्ध कराना-इस उपाय के द्वारा निर्धन व्यक्तियों को अपनी योग्यताओं तथा कौशलों को पहचानने में सहायता मिलेगी जिससे वे समाज के अन्य वर्गों के समकक्ष अपने में समर्थ हो सकें । यह कुंठा को कम करके अपराध एवं हिंसा को भी कम करने में सहायक होगन तथा निर्धन व्यक्तियों को अवैध साधनों के बजाय, वैध साधनों से जीविकोपार्जन करने हेतु प्रोत्साहित करेगा।

(iv) उन्नत मानसिक स्वास्थ्य हेतु उपाय-निर्धनता न्यूनीकरण के अनेक उपाय उनके शारीरिक स्वास्थ्य को तो सुधारने में सहायता करते हैं किन्तु उनके मानसिक स्वास्थ्य की समस्या का समाधान प्रभावी ढंग से करना फिर भी आवश्यक होता है। यह आशा की जा सकती है कि इस समस्या के प्रति जागरूकता के द्वारा निर्धनता के इस पक्ष पर अधिक ध्यान देना संभव हो सकेगा।

(v) निर्धन व्यक्तियों को सशक्त करने के उपाय-उपर्युक्त उपायों के द्वारा निर्धन व्यक्तियों को अधिक सशक्त बनाना चाहिए जिससे वे स्वतंत्र रूप से गरिमा के साथ अपना जीवन-निर्वाह करने में समर्थ हो सकें तथा सरकार अथवा अन्य समूहों की सहायता पर निर्भर नहीं रहें।।

प्रश्न 16.
अचेतन की परिभाषा दें तथा इसकी विशेषताओं का वर्णन करें। अथवा, अचेतन क्या है ? अचेतन की विभिन्न विशेषताओं का वर्णन करें।
उत्तर:
मन के सम्बन्ध में फ्रायड ने अपना वैज्ञानिक अध्ययन प्रस्तुत किया है। उन्होंने मन के दो पहलुओं की चर्चा की है-

  1. मन के गत्यात्मक पहलू,
  2. मन के आकारात्मक पहलू।

आकारात्मक पहलू के आधार पर उन्होंने मन को तीन भागों में बाँटा है-

  1. चेतन,
  2. अर्द्धचेतन
  3. अचेतन।

चेतन के सम्बन्ध में फ्रायड का कहना है कि यह मन का वह भाग, जिसकी जानकारी व्यक्ति का वर्तमान में रहती है। अर्द्धचेतन में ऐसे विचार रहते हैं, जिसकी जानकारी व्यक्ति को तत्काल नहीं रहती, लेकिन प्रयास करने पर उसकी जानकारी हो सकती है, लेकिन अचेतन मन का वह भाग है, जिसकी जानकारी व्यक्ति को न तो वर्तमान में रहती है और न ही प्रयास करने पर उसकी जानकारी हो सकती है।

अचेतन मन का सबसे बड़ा भाग है। इसकी तुलना फ्रायड ने बर्फ के उस बड़े टुकड़े से की है, जो पानी में है। जिस प्रकार पानी के रहने के कारण उसका बड़ा भाग दिखाई नहीं पड़ता है, उसी प्रकार मन के इस बड़े भाग की जानकारी व्यक्ति को नहीं रहती है। फ्रायड के अनुसार, यह मन का 7/8वाँ भाग है। इसमें हमारी अतृप्त इच्छाएँ संचित रहती हैं। फ्रायड से पूर्व भी कई विद्वानों ने अचेतन की चर्चा की है, लेकिन फ्रायड ने इसे कसौटियों पर कसकर इसे वैज्ञानिक रूप में पेश किया है। पहले के लोगों का विचार था कि अचेतन में निष्क्रिय एवं व्यर्थ की मानसिक क्रियाएँ रहती हैं, जिनका हमारे जीवन में कोई महत्त्व नहीं होता, लेकिन फ्रायड ने उसका खण्डन किया और बतलाया कि इसमें निष्क्रिय एवं बेकार की मानसिक क्रियाएँ नहीं रहतीं, बल्कि सक्रिय मानसिक क्रियाएँ रहती हैं। इसका हमारे मानसिक जीवन में बहुत अधिक महत्त्व होता है। यह व्यक्ति को हमेशा प्रभावित करते रहता है।

अचेतन की परिभाषा देते हुए ब्राउन ने कहा है-“अचेतन मन का ऐसा भाग है, जिसमें ऐसे विचार या मानसिक क्रियाएँ रहती हैं, जिसका प्रत्यावहन व्यक्ति अपने इच्छानुसार नहीं कर पाता। वे या तो स्वतः प्रकट होते हैं या उन्हें सम्मोहन या अन्य प्रयोगात्मक विधियों द्वारा जाना जा सकता है।” ब्राउन की परिभाषा से स्पष्ट हो रहा है कि अचेतन मन का वह भाग है जिसमें कुछ विचार सूचित होते हैं जो कभी चेतन में थे, लेकिन वर्तमान में किसी कारणवश अचेतन में चले गये हैं। उनकी परिभाषा से यह स्पष्ट हो रहा है कि अचेतन के विचारों को अपनी इच्छा से नहीं जाना जा सकता है। ये मौका पाकर अपने आप प्रकट होते हैं या उन्हें मनोवैज्ञानिक तरीके से जाना जा सकता है।

अचेतन की विशेषताएँ : अचेतन की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं-
1. अचेतन मन का सबसे बड़ा भाग है-फ्रायड के अनुसार, अचेतन मन के तीनों पहलुओं में सबसे बड़ा भाग है। यह मन का 7/8वाँ भाग है। इससे स्पष्ट होता है कि अचेतन तुलना में कितना बड़ा है।

2. कामुक इच्छाओं का भंडार-फ्रायड ने कहा है कि अचेतन में काम-सम्बन्धी इच्छाएँ रहती है। इसका खास कारण यह है कि व्यक्ति का जीवन काम शक्तियों से प्रेरित होता है, अर्थात् व्यक्ति की हर इच्छाएँ काम से ही प्रेरित रहती है। इस मत को लेकर फ्रायड का बहुत विरोध हुआ, लेकिन फ्रायड ने काम शब्द का प्रयोग व्यापक रूप में किया है। उन्होंने कहा कि केवल संभोग ही काम नहीं है। अपने बच्चों के प्रति माता-पिता का स्नेह, मैत्री, मातृत्व, भाई-बहनों का प्रेम आदि काम-शक्ति से प्रेरित होता है। फ्रायड ने कहा कि काम-शक्ति बच्चों में भी रहती है। जब बच्चा किसी चीज को मुंह से चूसता है, तो वह लैंगिक इच्छाओं की संतुष्टि करता है, जिस प्रकार की संतुष्टि बड़े होने पर संभोग के द्वारा करता है। काम की संतुष्टि में समाज के द्वारा बाधाएँ उत्पन्न की जाती है जिससे व्यक्ति में काम-सम्बन्धी इच्छाओं की तृप्ति नहीं हो पाती है और उसका दमन अचेतन मन में हो जाता है, इसलिए अचेतन को कामुक इच्छाओं का भंडार माना जाता है।

3. अचेतन में इड की प्रवृत्तियाँ-व्यक्ति के अचेतन में इड की प्रवृत्तियाँ भरी रहती हैं। हम जानते हैं कि इड को वास्तविकता का ज्ञान नहीं रहता, अतः अपनी असामाजिक या अनैतिक इच्छाओं की पूर्ति करना चाहता है, किन्तु सामाजिक व्यवस्था के कारण इसकी पूर्ति संभव नहीं हो पाती, अतः ऐसे विचारों या इच्छाओं का दमन अचेतन मन में हो जाता है।

4. अचेतन अतार्किक एवं अनैतिक होता है-फ्रायड के अनुसार, अचेतन अतार्किक एवं अनैतिक होता है। अचेतन को समय एवं परिस्थिति का ज्ञान नहीं रहता है।

Bihar Board 12th Psychology Important Questions Long Answer Type Part 5

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Bihar Board 12th Psychology Important Questions Long Answer Type Part 5

प्रश्न 1.
प्रेक्षण का मूल्यांकन एक मनोवैज्ञानिक कौशल के रूप में करें।
उत्तर:
मनोवैज्ञानिक चाहे किसी भी क्षेत्र में कार्य कर रहे हो वह अधिक-से-अधिक समय ध्यान से सुनने तथा प्रेक्षण कार्य करने में लगा देते हैं। मनोवैज्ञानिक अपनी संवेदनाओं का प्रयोग देखने, सुनने, स्वाद लेने या स्पर्श करने में लेते हैं। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि मनोवैज्ञानिक एक उपकरण है। जो अपने परिवेश के अन्तर्गत आनेवाली समस्त सचनाओं का अवशोषण कर लेता है।

मनोवैज्ञानिक व्यक्ति के भौतिक परिवेश के उन हिस्सों के प्रेक्षण के उपरांत शीक्त तथा उसके व्यवहार का भी प्रेक्षण करता है। मनोवैज्ञानिक व्यक्ति के भौतिक परिवेश में इन हिस्सों के प्रेक्षण के उपरांत व्यक्ति तथा उसके व्यवहार का भी प्रेक्षण करता है। जिसके अन्तर्गत व्यक्ति की आय, लिंग, कद, उसका दूसरे से व्यवहार करने का तरीका आदि सम्मिलित होते हैं।

प्रेक्षण के दो प्रमुख कारण हैं-

  1. प्रकृतिवादी प्रेक्षण
  2. सहभागी प्रेक्षण।

(i) प्रकृतिवादी प्रेक्षण-उस प्रेक्षण के माध्यम से हम यह सीखते हैं कि लोग अलग-अलग परिस्थितियों में किस प्रकार व्यवहार करते हैं। यह सबसे प्राथमिक तरीका है।

(ii) सहभागी प्रेक्षण- इस प्रेक्षण में प्रेक्षक प्रेक्षण की प्रक्रिया में एक सक्रिय सदस्य के रूप में संलग्न होता है अर्थात प्रेक्षक जो प्रेक्षण कर रहा है। वह खुद अपने ऊपर भी ऐसा प्रेक्षण कर सकता है।

मनोवैज्ञानिक सेवाओं की दशा में विशिष्ट कौशल एक मूल कौशल है। मुख्यतः विशिष्ट कौशल की आवश्कताएँ विशिष्ट व्यावसायिक कार्यों को करने में होती है। उदाहरणार्थ, नैदानिक परिस्थितियों में काम करने वाले मनोवैज्ञानिक को चिकित्सापरक तकनीक मनोवैज्ञानिक मूल्यांकन एवं परामर्श में पूर्ण रूप जानकारी प्राप्त होनी चाहिए। इसी प्रकार से संगठनात्मक मनोवैज्ञानिक जो केवल संगठन के क्षेत्र में कार्य करते हैं। उन मनोवैज्ञानिकों को भी शोध, कौशलों के अतिरिक्त मूल्यांकन सुगमीकरण, परामर्श तथा व्यावहारपरक कौशलों की भी आवश्यकता होती है। जिसके परिणामस्वरूप वह व्यक्ति, संगठनों समूहों के विकास की प्रक्रिया को सरलता से जान लें। ये सभी कौशल आपस में एक-दूसरे से जुड़े होते हैं। विशिष्ट कौशलों के अन्तर्गत सक्षमताओं के आधार पर उन्हें निम्नवत वर्गीकृत किया जा सकता है-

  1. मनोवैज्ञानिक परीक्षण कौशल
  2. साक्षात्कार कौशल
  3. परीक्षण कौशल
  4. परामर्श कौशल
  5. सम्प्रेषण कौशल।

प्रश्न 2.
चिन्ता विकृति के लक्षण एवं कारणों का वर्णन करें।
उत्तर:
चिन्ता मनः स्नायुविकृति एक ऐसा मानसिक रोग है, जिसमें रोगी हमेशा अज्ञात कारणों से चिन्तित रहा करता है। सामान्य चिन्ता एक सामान्य, स्वाभाविक औ. सर्वसाधारण मानसिक अवस्था है। जीवन में जटिल परिस्थितियों में यह अनिवार्य रूप से होता है। वर्तमान भयावह परिस्थिति से डरना या चिन्तित होना सामान्य अनुभव है। इसके लिए व्यक्ति डर की प्रतिक्रिया व्यक्त करता है। जैसे-बाघ को सामने आता देखकर व्यक्ति सामान्य चिंता के फलस्वरूप भयभीत होने या भागने की क्रिया करता है। व्यक्ति में ऐसी भयावह परिस्थिति की अवगति रहती है। उसी के संतुलन के लिए वह किसी प्रकार की प्रतिक्रिया करता है। सामान्य चिन्ता का संबंध वर्तमान भयावह परिस्थितियों से रहता है। लेकिन सामान्य चिन्ता से असामान्य चिन्ता पूर्णतः भिन्न है। इसमें व्यक्ति चिन्तित या भयभीत रहता है, लेकिन सामान्य चिन्ता के समाने उसकी चिन्ता का विषय नहीं रहता। उसकी अपनी चिन्ता का कारण ज्ञात नहीं रहता।

उसकी चिन्ता पदार्थहीन होती है। अतः अपने विभिन्न शारीरिक उपद्रवों को व्यक्त करता है। वस्तुतः उसे अपने मानसिक उपद्रव का ज्ञान नहीं रहता। इसके अतिरिक्त उसकी चिन्ता का संबंध हमेशा भविष्य से रहता है, वर्तमान से नहीं। इसलिए उसमें निराकरणात्मक सामान्य चिन्ता की तरह प्रतिक्रिया देखने में नहीं आती है, अत: हम कह सकते हैं कि सामान्य चिन्ता भयावह परिस्थितियों की प्रतिक्रिया है। सामान्य चिन्ता के संबंध में असामान्य चिन्ता आन्तरिक भयावह परिस्थितियों की प्रतिक्रिया है।

सामान्य चिन्ता के संबंध में फिशर (Fisher) ने कहा-“सामान्य चिन्ता उन उलझी हुई कठिनाइयों की प्रतिक्रिया है जिसका परित्याग करने में व्यक्ति अयोग्य रहता है।” (Normal anxiety is a reaction to an unapprochable difficults which the individual is unable to avoid.) vafot 37H14R fantil के संबंध में उनका विचार है कि ‘असामान्य चिन्ता उन आन्तरिक या व्यक्तिगत उलझी हुई कठिनाइयों की प्रतिक्रिया है, जिसका ज्ञान व्यक्ति को नहीं रहता।” (Neurotic anxiety is a reaction to an unapproachable inner or sub-jective difficult of which the individual has no idea.)

चिन्ता मनःस्नायु विकृति (Symptoms of anxiety neurosis)-चिन्ता मनःस्नायु विकृति में शारीरिक और मानसिक दोनों तरह के लक्षण देखे जाते हैं। मानसिक लक्षण में भय और आशंका की प्रधानता रहती है, जबकि शारीरिक लक्षण में हृदय गति, रक्तचाप, श्वास गति, पाचन-क्रिया आदि. में परिवर्तन देखे जाते हैं। उनका वर्णन निम्नलिखित हैं-

1. मानसिक लक्षण (Mental symptoms)-मानसिक लक्षणों में अतिरजित भय और शंका की प्रधानता रहती है। यह अनिश्चित और विस्तृत होता है। इसका रोगी तर्कयुक्त प्रमाण नहीं कर सकता, किन्तु पूरे विश्वास के साथ जानता है कि उसका सोचना सही है। उसकी शंका किसी दुर्घटना से संबंध होती है। घर में आग लगने, महामारी फैलने, गाड़ी उलटने, दंगा होने या इसी प्रकार की अन्य घटनाओं के प्रति वह चिंतिन रहता है। वह हमेशा अनुभव करता है कि बहुत जल्द ही कुछ होनेवाला है। इस संबंध में अनेक काल्पनिक विचार उसके मन में आते रहते हैं। वह दिन-रात इसी विचार से परेशान रहता है उसमें उत्साह की कमी हो जाती है और मानसिक अंतर्द्वन्द्व बहुत अधिक हो जाता है। चिन्ता से या तो वह अनिद्रा का शिकार हो जाता है या नींद लगने पर तुरन्त जाग जाता है। ऐसे रोगियों में मृत्यु, अपमान आदि भयावह स्वप्नों की प्रधानता रहती है, उसका स्वभाव चिड़चिड़ा हो जाता है। इसका रोगी कभी-कभी आत्महत्या का भी प्रयास करता है।

2. शारीरिक लक्षण (Physical symptoms)-चिन्ता मन:स्नायु विकृति के रोगियों में शारीरिक लक्षण भी बड़ी उग्र होते हैं। रोगी के हृदय की गति, रक्तचाप, पाचन-क्रिया आदि में परिवर्तन हो जाते हैं। पूरे शरीर में दर्द का अनुभव करता है। कभी-कभी चक्कर भी आता है। रोगी के शरीर से बहुत अधिक पसीना निकलता है। वह बोलने में हलकाता है तथा बार-बार पेशाब करता है, उसे शारीरिक वजन घटता हुआ मालूम पड़ता है। यौन भाव की कमी हो जाती है। इसके रोगी तरह-तरह की आवाजें सुनते हैं। कुछ लोगों को शिश्न छोआ होने का भय बना रहता है।

इस प्रकार के रोगियों में दो प्रकार की चिन्ता देखी जाती है-तात्कालिक चिन्ता तथा दीर्घकालिक चिन्ता। तात्कालिक चिन्ता रोगी में बहुत तीव्र तथा उग्र होती है। यह चिन्ता तुरन्त की होती है। इसमें रोगी चिल्लाता है तथा पछाड़ खाकर गिरता है। दीर्घकालिक चिन्ता पुरानी होती है। रोगी अज्ञात भावी दुर्घटनाओं के प्रति चिन्तित रहता है। वह निरंतर इस चिन्ता से बेचैन रहता है और त्रस्त रहता है। इस रोग का लक्षण के आधार पर ही विद्वानों ने दो भागों में विभाजित किया है -मुक्तिचारी चिन्ता तथा निश्चित चिन्ता। चिन्ता के कारण का अभाव नहीं रहने पर भी जब रोगी बराबर बेचैन रहता है तो उसे free floating anxiety कहते हैं, लेकिन जब रोगो किसी परिस्थिति विशेष से अपनी चिन्ता का संबंध स्थापित कर लेता है तो उसे bound anxiety कहा गया है प्रारंभ में रोगी में मक्तिचारी चिन्ता हो रहता है, लेकिन क्रमशः स्थायी रूप धारण कर लेने पर उसे निश्चित चिन्ता बन जाती है।

चिन्ता मनःस्नायु विकृति के कारण (Etiology)-अन्य मानसिक रोगों की तरह चिन्ता पनःस्नायु विकाते के कारणों को लेकर भी मनोवैज्ञानिकों में एकमत का अभाव है। विभिन्न मनोवैज्ञानिकों द्वारा जो कारण बताये गये हैं, उनमें कुछ मुख्य निम्न हैं-

1. लैंगिक वासना का दमन (Repression of sexual desire)-सुप्रसिद्ध मनोविश्लेषक फायड ने लैंगिक इच्छाओं के दमन को इस मानसिक रोग का कारण माना है। व्यक्ति में लैंगिक आवेग उत्पन्न होता है और यदि वह आवेग की पूर्ति में असफल हो जाता है, उसमें चिन्ता उत्पन्न होती है। यही इस रोग के लक्षणों को विकसित करती है। अत:स्रावित लैंगिक शक्ति को इस रोग का कारण माना जा सकता है। किसी पति की यौन सामर्थता या स्त्री में यौन उत्तेजना होने पर चलनात्मक स्रात नहीं होने से वह इस रोग से पीड़ित हो जाता है। इसी प्रकार पुरुष अपनी असमर्थता या स्त्री दोषी होने के कारण इस रोग से पीड़ित हो सकता है।

फ्रायड के उपर्युक्त मत से मनोवैज्ञानिक सहमत नहीं है। इस संबंध में गार्डेन का विचार है कि कामेच्छा का दमन और उसका प्रतिबंध हो इस रोग का कारण नहीं, बल्कि दो संवेगों के संघर्ष के फलस्वरूप इस रोग के लक्षण विकसित होते हैं। इस बात का पैकडुवल ने भी समर्थन किया है।

2. हीन भावना (Inferiority complex)-इस संबंध के फ्रायड के शिष्य एडलर ने भी अपना विचार व्यक्त किया है। उनका कहना है कि मनुष्य में आत्म प्रतिष्ठा की भावना प्रबल होती है, किन्तु बचपन में आश्वासन की शिथिलता के कारण जब व्यक्ति के Ego का समुचित रूप से विकास नहीं हो पाता है, तो वह हीनता की भावना से पीड़ित रहने लगता है। उसमें आत्म प्रतिष्ठा की भावना का दमन हो जाता है और व्यक्ति चिन्ता गनःस्नायु विकृति से पीड़ित हो जाता है।

3. मानसिक संघर्ष एवं निराशा (Mental conflict and frustration)-ओकेली का ऐसा मानना है कि इस रोग का कारण मानसिक संघर्ष एवं कुंठा है। इस संबंध में और भी मनोवैज्ञानिकों ने अपना अध्ययन किया है और ओकेली के मत का समर्थन किया है।
इस तरह हम देखते हैं कि चिन्ता मनःस्नायु विकृति के कारणों को लेकर सभी मनोवैज्ञानिक एक मत नहीं है। इस रोग के कारण के रूप में मुख्य रूप से लैंगिक वासना का दमन, हीनभावना तथा मानसिक संघर्ष एवं निराशा को माना जा सकता है।

प्रश्न 3.
प्रेक्षण कौशल के दो प्रमुख उपागमों का वर्णन करें।
उत्तर:
प्रक्षेपण के दो प्रमुख उपागम हैं

  1. प्रकृतिवादी प्रेक्षण
  2. सहभागी प्रेक्षण।

(1) प्रकृतिवादी प्रेक्षण-एक प्राथमिक तरीका है जिससे हम सीखते हैं कि लो भिन्न स्थिति में कैसे व्यवहार करते हैं। मान लजिए, कोई चाहता है कि जब कोई कंपनी अपनी उत्पाद की घोषणा करती है तो उसकी प्रतिक्रियास्वरूप लोग शॉपिंग मॉल जाने पर कैसा व्यवहार करते है। इसके लिए वह उस शॉपिंग मॉल में जा सकता है जहाँ इन छूट वाली वस्तुओं को प्रदर्शित किया गया है। क्रमबद्ध ढंग से यह प्रेक्षण कर सकता है। कि लोग खरीददारी के पहले या बाद में क्या कहते या करते हैं। उनके तुलनात्मक अध्ययन से वहाँ क्या हो रहा है, इसके बारे में रुचिकर सुझाव बना सकता है।

(2) सहभागी पेक्षण-प्रकृतिवादी प्रेक्षण का ही एक प्रकार है। इसमें प्रेक्षक प्रेक्षण की प्रक्रिया में सक्रिय सदस्य के रूप में संलग्न होता है। इसके लिए वह स्थिति में स्वयं भी सम्मिलित हो सकता है जहाँ प्रेक्षण करना है। उदाहरण के लिए ऊपर दी गई समस्या में, प्रेक्षणकर्ता उसी शॉपिंग मॉल की दुकान में अंशकालिक नौकरी कर अंदर का व्यक्ति बनकर ग्राहकों के व्यवहार में विभिन्नताओं का प्रेक्षण कर सकता है। इस तकनीक या मानवशास्त्री बहुतायत से उपयोग करते हैं जिनका उद्देश्य होता है कि उस सामाजिक व्यवस्था का प्रथमतया दृष्टि से एक परिपेक्ष्य विकसित कर सके जो एक बाहरी व्यक्ति को सामान्यता उपलब्ध नहीं होता है।

प्रश्न 4.
मनोवृत्ति को परिभाषित करें। इसके तत्वों की विशेषताओं का वर्णन करें।
उत्तर:
समाज मनोविज्ञान में मनोवृत्ति की अनेक परिभाषाएँ दी गयी हैं। सचमुच में मनोवृत्ति भावात्मक तत्त्व (affective component), व्यवहारपरक तत्त्व (behavioural component) तथा संज्ञानात्मक तत्त्व (congnitive component) का एक तंत्र या संगठन (organization) होता है। इस तरह से मनोवृत्ति ए.बी.सी (a.b.c) तत्त्वों का एक संगठन होता है। इन तत्त्वों की व्याख्या इस प्रकार है-

  1. संज्ञानात्मक तत्त्व (Cognitive component)-संज्ञानात्मक तत्त्व से तात्पर्य व्यक्ति में मनोवृत्ति वस्तु के प्रति विश्वास (belief) से होता है।
  2. भावात्मक तत्त्व (Affective component)-भावात्मक तत्त्व से तात्पर्य व्यक्ति में वस्तु के प्रति सुखद या दुःखद भाव से होता है।
  3. व्यवहारपरक तत्त्व (Behavioural component)-व्यवहार परक तत्त्व से तात्पर्य व्यक्ति में मनोवृत्ति के पक्ष तथा विपक्ष में क्रिया या व्यवहार करने से होता है। मनोवृत्ति के इन तीनों तत्त्वों (components) की कुछ विशेषताएँ (characteristics) हैं जो इस प्रकार हैं।

(i) कर्षणशक्ति (Valence)-मनोवृत्ति के तीनों तत्त्वों में कर्षणशक्ति होता है। कर्षणशक्ति से तात्पर्य मनोवृत्ति की अनुकूलता (favourableness) तथा प्रतिकूलता (unfavourableness) की मात्रा से होता है। जैसे, यदि कोई व्यक्ति सह शिक्षा (coeducation) को उत्तम समझता है, तो उसके मनोवृत्ति के तत्वों की अनुकूलता स्वभावत: अधिक होगी।

(ii) बहविधता (Multiflexity)-बहुविधता की विशेषता यह बतलाती है कि मनोवृत्ति के किसी तत्त्व में कितने कारक (factors) होते हैं। किसी तत्त्व में जितने अधिक कारक होंगे, उसमें जटिलता भी उतनी ही अधिक होगी। जैसे-सहशिक्षा के प्रति व्यक्ति की मनोवृत्ति के संज्ञानात्मक तत्त्व में कई कारक सम्मिलित हो सकते हैं-सहशिक्षा किस स्तर से प्रारंभ होनी चाहिए, सहशिक्षा के क्या लाभ हैं, सहशिक्षा नगर में अधिक लाभप्रद होता है या शहर में आदि। बहुविधता को जटिलता (complexity) भी कहा जाता है।

(iii) आत्यन्तिकता (extremeness)-आत्यन्तिकता से तात्पर्य इस बात से होता है कि व्यक्ति की मनोवृत्ति के तत्त्व कितने अधिक मात्रा में अनुकूल (favourable) या प्रतिकूल (unfavourable) है। जैसे अगर सहशिक्षा के प्रति मनोवृत्ति को अभिव्यक्ति यदि कोई व्यक्ति 5-बिन्दु मापनी पर (पूर्ण सहमत, सहमत, तटस्थ, असहमत तथा पूर्णतः असहमत) पूर्णत: सहमत या पूर्णतः असहमत पर करता है तथा दूसरा व्यक्ति तटस्थ पर करता है तो यह कहा जाएगा कि पहले व्यक्ति की मनोवृत्ति दूसरे व्यक्ति को मनोवृत्ति से अधिक आन्यन्तिक (extremes) है।

(iv) केन्द्रित (centrality)-इससे तात्पर्य मनोवृत्ति की किसी खास तत्त्व के विशेष भूमिका से होता है। मनोवृत्ति के तीन तत्त्वों में कोई एक या दो तत्त्व अधिक प्रबल हो सकता है और तब वह अन्य दो तत्त्वों को भी अपनी ओर मोड़कर एक विशेष स्थिति उत्पन्न कर सकता है। जैसे, यदि किसी व्यक्ति को सहशिक्षा की गुणवत्ता में बहुत अधिक विश्वास है अर्थात् उसका संज्ञानात्मक तत्त्व प्रबल है तो अन्य दो तत्त्व भी इस प्रबलता के प्रभाव में आकर एक अनुकूल मनोवृत्ति के विकास में मदद करने लगेगा। स्पष्ट हुआ कि मनोवृत्ति के तत्वों की कुछ अपनी विशेषता होती है। इन तत्त्वों की विशेषताओं पर मनोवृत्ति को अनुकूल या प्रतिकूल होना प्रत्यक्ष रूप से आधृत होता है।

प्रश्न 5.
व्यक्तित्व अध्ययन के एब्राहम मैसलो का मानवतावादी सिद्धान्त का वर्णन करें।
उत्तर:
एब्राहम मैसलो ने व्यक्तित्व के सर्वांगीण स्वरूप को स्पष्ट करने के उद्देश्य से अपने मानवतावादी सिद्धान्त का प्रतिपादन किया। उन्होंने व्यक्तित्व सिद्धान्त के प्रतिपादन के लिए स्वस्थ एवं सजीनात व्यक्तियों का अध्ययन किया। मैसलो ने मानवीय अभिप्रेरणा का सिद्धान्त प्रतिपादित कर व्यक्तित्व गत्यात्मकता को प्रदर्शित करने का प्रयास किया है। उन्होंने अपने इस सिद्धान्त में आवश्यकताओं को पदानुक्रम में व्यवस्थित कर यह बताने का प्रयास किया है कि प्रत्येक व्यक्ति में उच्च स्तरीय आवश्यक को प्राप्त करने की सभावनाएँ रहता है। लेकिन व्यक्ति की उच्च स्तरीय आवश्यकताओं की पूर्ति तभी संभव होता है जब निम्न स्तरीय आवयकताओं की पूर्ति हो जाती है।

मैसलो के अनुसार निम्नस्तरीय आवश्यकताओं में भूख, प्यास, सुरक्षा, सम्बन्धन तथा सम्मान आते हैं जबकि उच्च स्तरीय आवश्यकताओं में न्याय, अच्छाई, सुन्दरता तथा एकता आदि आते हैं। आवश्यकता की पूर्ति वास्तव में व्यक्ति के जीवन का चरम बिन्दु होता है। मैसलो ने इसे ही आत्मस्ति की आवश्यकता कहा है, जिसे आवश्यकता पदानुक्रम में सर्वोच्च आवश्यकता माना गया है। जब आवश्यकताओं की पूर्ति नहीं होती है तो व्यक्ति अस्वस्थ हो जाता है और अलगाव, पीड़ा, उदासीन सनकीपन आदि से ग्रस्त हो जाता है।

इस प्रकार निष्कर्ष रूप से कहा जा सकता है कि मैसलो का व्यक्तित्व सिद्धान्त अत्यधिक आशावादी, मानवतावादी एवं सर्वांगपूर्ण है। इसने व्यक्तित्व के स्वरूप का निरूपण करते हुए व्यक्ति पूर्णता के लिए आत्मसिद्धि को आवश्यक माना है।

प्रश्न 6.
गार्डनर के द्वारा पहचान की गई बहु-बुद्धि की संक्षेप में व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
गार्डनर ने बहु-बुद्धि का सिद्धांत प्रस्तुत किया। उनके अनुसार बुद्धि एक तत्त्व नहीं है बल्कि कई भिन्न-भिन्न प्रकार की बुद्धियों का अस्तित्व होता है। प्रत्येक बुद्धि एक-दूसरे से स्वतंत्र रहकर कार्य करती है। इसका अर्थ यह है कि यदि किसी व्यक्ति में किसी एक बुद्धि की मात्रा अधिक है तो यह अनिवार्य रूप से इसका संकेत नहीं करता कि उस व्यक्ति में किसी अन्य प्रकार की बुद्धि अधिक होगी, कम होगी या कितनी होगी। गार्डनर ने यह भी बताया कि किसी समस्या का समाधान खोजने के लिए भिन्न-भिन्न प्रकार की बुद्धियाँ आपस में अंत:क्रिया करते हुए साथ-साथ कार्य करती हैं। अपने-अपने क्षेत्रों में असाधारण योग्यताओं का प्रदर्शन करने वाले अत्यन्त प्रतिभाशाली व्यक्तियों के आधार पर गार्डनर ने बुद्धि को आठ प्रकार में विभाजित किया।

ये आठ प्रकार की बुद्धि इस प्रकार से हैं-

(i) भाषागत (Linguistic)-यह अपने विचारों को प्रकट करने तथा दूसरे व्यक्तियों के विचारों को समझने हेतु प्रवाह तथा नम्यता के साथ भाषा का उपयोग करने की क्षमता है। जिन व्यक्तियों में यह बुद्धि अधिक होती है वे ‘शब्द-कुशल’ होते हैं। ऐसे व्यक्ति शब्दों के भिन्न-भिन्न अर्थों के प्रति संवेदनशील होते हैं, अपने मन में भाषा के बिंबों का निर्माण कर सकते हैं और स्पष्ट तथा परिशुद्ध भाषा का उपयोग करते हैं। लेखकों तथा कवियों में यह बुद्धि अधिक मात्रा में होती है।

(ii) तार्किक-गणितीय (Logical & mathematical)-इस प्रकार की बुद्धि की अधिक मात्रा रखने वाले व्यक्ति तार्किक तथा आलोचनात्मक चिंतन कर सकते हैं। वे अमूर्त तर्कना कर लेते हैं और गणितीय समस्याओं के हल के लिए प्रतीकों का प्रहस्तन अच्छी प्रकार से कर लेते हैं। वैज्ञानिकों तथा नोबेल पुरस्कार विजेताओं में इस प्रकार की बुद्धि अधिक पाई जाने की संभावना रहती है।

(iii) देशिक (Spatial)-यह मानसिक बिंबों को बनाने, उनका उपयोग करने तथा उनमें मानसिक धरातल पर परिमार्जन करने की योग्यता है। इस बुद्धि को अधिक मात्रा में रखने वाला व्यक्ति सरलता से देशिक सूचनाओं को अपने मस्तिष्क में रख सकता है। विमान-चालक, नाविक, मूर्तिकार, चित्रकार, वास्तुकार, आंतरिक साज-सज्जा के विशेषज्ञ, शल्य-चिकित्सा आदि में इस बुद्धि के अधिक पाए जाने की संभावना होती है।

(iv) संगीतात्मक (Musical)-सांगीतिक अभिरचनाओं को उत्पन्न करने, उनका सर्जन तथा प्रहस्तन करने की क्षमता सांगीतिक योग्यता कहलाती है। इस बुद्धि की उच्च मात्रा रखने वाले लोग ध्वनियों, स्पंदनों तथा ध्वनियों की नई अभिरचनाओं के सर्जन के प्रति अधिक संवेदनशील होते हैं।

(v) शारीरिक-गतिसंवेदी (bodily-kinesthetic)-किसी वस्तु अथवा उत्पाद के निर्माण के लिए अथवा मात्र शारीरिक प्रदर्शन के लिए संपूर्ण शरीर अथवा उसके किसी एक अथवा एक से अधिक अंग की लोच तथा पेशीय कौशल की योग्यता शारीरिक गतिसंवेदी योग्यता कही जाती है। धावकों, नर्तकों, अभिनेताओं/अभिनेत्रियों, खिलाड़ियों, जिमनास्टों तथा शल्य-चिकित्सकों में इस बुद्धि की अधिक मात्रा पाई जाती है।

(vi) अंतर्वैयक्तिक (Interpersonal)–इस योग्यता द्वारा व्यक्ति दूसरे व्यक्तियों की अभिप्रेरणाओं या उद्देश्यों, भावनाओं तथा व्यवहारों का सही बोध करते हुए उनके साथ मधुर संबंध स्थापित करता है। मनोवैज्ञानिक, परामर्शदाता, राजनीतिज्ञ, सामाजिक कार्यकर्ता तथा धार्मिक नेता आदि में उच्च अंतर्वैयक्तिक बुद्धि पाए जाने की संभावना होती है।

(vii) अंत:व्यक्ति (Interperson)-इस योग्यता के अंतर्गत व्यक्ति को अपनी शक्ति तथा कमजोरियों का ज्ञान और उस ज्ञान का दूसरे व्यक्तियों के साथ सामाजिक अंत:क्रिया में उपयोग करने का ऐसा कौशल सम्मिलित है जिससे वह अन्य व्यक्तियों से प्रभावी संबंध स्थापित करता है। इस बुद्धि की अधिक मात्रा रखने वाले व्यक्ति अपनी अनन्यता या पहचान, मानव अस्तित्व और जीवन के अर्थों को समझने में अति संवेदनशील होते हैं। दार्शनिक तथा आध्यात्मिक नेता आदि में इस प्रकार की उच्च बुद्धि देखी जा सकती है।

(viii) प्रकृतिवादी (Naturalistic)-इस बुद्धि का तात्पर्य प्राकृतिक पर्यावरण से हमारे संबंधों की पूर्ण अभिज्ञता से है। विभिन्न पशु-पक्षियों तथा वनस्पतियों के सौंदर्य का बोध करने में तथा प्राकृतिक पर्यावरण में सूक्ष्म विभेद करने में यह बुद्धि सहायक होती है। शिकारी, किसान, पर्यटक, वनस्पति-विज्ञानी, प्राणीविज्ञानी और पक्षीविज्ञानी आदि में प्रकृतिवादी बुद्धि अधिक मात्रा में होती है।

प्रश्न 7.
अभिक्षमता’ अभिरुचि और बुद्धि से कैसे भिन्न है? अभिक्षमता का मापन कैसे किया जाता है?
उत्तर:
अभिक्षमता क्रियाओं के किसी विशेष क्षेत्र की विशेष योग्यता को कहते हैं। अभिक्षमता विशेषताओं का ऐसा संयोजन है जो व्यक्ति द्वारा प्रशिक्षण के उपरांत किसी विशेष क्षेत्र के ज्ञान अथवा कौशल के अर्जन की क्षमता को प्रदर्शित करता है। अभिक्षमताओं का मापन कुछ विशिष्ट परीक्षणों द्वारा किया जाता है। किसी व्यक्ति की अभिक्षमता के मापन से इसमें उसके द्वारा भविष्य में किए जाने वाले निष्पादन का पूर्वकथन करने में सहायता मिलती है।

बुद्धि का मापन करने की प्रक्रिया में मनोवैज्ञानिकों को यह ज्ञान होता है कि समाज बुद्धि रखने वाले व्यक्ति भी किसी विशेष क्षेत्र के ज्ञान अथवा कौशलों की भिन्न-भिन्न रक्षता के साथ अर्जित करते हैं। भिन्न-भिन्न क्षेत्रों की विशिष्ट योग्यताएँ तथा कौशल ही अभिक्षमताएँ कहलाती हैं। उचित प्रशिक्षण देकर उन योग्यताओं में पर्याप्त अभिवृद्धि की जा सकती है।

किसी विशेष क्षेत्र में सफलता प्राप्त करने के लिए व्यक्ति में अभिक्षमता के साथ-साथ अभिरुचि (Interest) का होना भी आवश्यक है। अभिरुचि किसी विशेष कार्य को करने की वरीयता या तरजीह को कहते हैं जबकि अभिक्षमता उस कार्य को करने की संभाव्यता या विभवता को कहते हैं। किसी व्यक्ति में किसी कार्य को करने की अभिरुचि हो सकती है परन्तु हो सकता है कि उसे करने की अभिक्षमता उसमें न हो। इसी प्रकार यह भी संभव है कि किसी व्यक्ति में किसी कार्य को करने की अभिक्षमता हो परंतु उसमें उसकी अभिरुचि न हो। उन दोनों ही दशाओं में उसका निष्पादन संतोषजनक नहीं होगा। एक ऐसे विद्यार्थी की सफल यांत्रिक अभियंता बनने की अधिक संभावना है जिसमें उच्च यांत्रिक अभिक्षमता हो और अभियांत्रिकी में उसकी अभिरुवि भी हो।

अभिक्षमता परीक्षण दो रूपों में प्राप्त होते हैं–स्वतंत्र (विशेषीकृत) : अभिक्षमता परीक्षण तथा बहुल (सामान्यीकृत) अभिक्षमता परीक्षण। लिपिकीय अभिक्षमता, यांत्रिक अभिक्षमता, आकिक अभिक्षमता तथा टंकण अभिक्षमता आदि के परीक्षण स्वतंत्र अभिक्षमता परीक्षण है! बहुल अभिक्षमता परीक्षणों में एक परीक्षणमाला होती है जिससे अनेक भिन्न-भिन्न प्रकार की परंतु समजातीय क्षेत्रों में अभिक्षमता का मापन किया जाता है। विभेदन अभिक्षमता परीक्षण (डी. ए. टी.), सामान्य अभिक्षमता परीक्षणमाला (जी. ए. टी. बी.) तथा आर्ड सर्विसेस व्यावसायिक अभिक्षमता परीक्षणमाला (ए. एस. बी. ए. बी) आदि प्रसिद्ध अभिक्षमता परीक्षण मालाएँ हैं। इनमें से शैक्षिक पर्यावरण में विभेदक अभिक्षमता परीक्षण का सर्वाधिक उपयोग किया जाता है । इस परीक्षण में 8 स्वतंत्र उप परीक्षण हैं। ये हैं-

  1. शब्द तर्कना।
  2. आकिक तर्कना।
  3. अमूर्त तर्कना।
  4. लिपिकीय गति एवं परिशुद्धता।
  5. यांत्रिक तर्कना।
  6. देशिक या स्थानिक संबंध।
  7. वर्तनी।
  8. भाषा का उपयोग।

प्रश्न 8.
आत्म-सम्मान से आपका क्या तात्पर्य है? आत्म-सम्मान का हमारे दैनिक जीवन के व्यवहारों से किस प्रकार संबंधित है? वर्णन कीजिए।
उत्तर:
आत्म-सम्मान हमारे आत्म का एक महत्त्वपूर्ण पक्ष है। व्यक्ति के रूप में हम सदैव अपने मूल्य या मान और अपनी योग्यता के बारे में निर्णय का आकलन करते रहते हैं। व्यक्ति का अपने बारे में यह मूल्य-निर्णय ही आत्म-सम्मान कहा जाता है। कुछ लोगों में आत्म-सम्मान उच्च स्तर का जबकि कुछ अन्य लोगों में आत्म-सम्मान निम्न स्तर का पाया जाता है।

किसी व्यक्ति के आत्म-सम्मान का मूल्यांकन करने के लिए व्यक्ति के समक्ष विविध प्रकार के कथन प्रस्तुत किये जाते हैं और उसके संदर्भ में सही है, यह बताइए। उदाहरण के लिए, किसी बालक/बालिका से ये पूछा जा सकता है कि “मैं गृह कार्य करने में अच्छा हूँ” अथवा “मुझे अक्सर विभिन्न खेलों में भाग लेने के लिए चुना जाता है” अथवा “मेरे सहपाठियों द्वारा मुझे बहुत पसंद किया जाता है” जैसे कथन उसके संदर्भ में किस सीमा तक सही हैं। यदि बालक/बालिका यह बताता/बताती है कि ये कथन उसके संदर्भ में सही है तो उसका आत्म-सम्मान उस दूसरे बालक/बालिका की तुलना में अधिक होगा जो यह बताता/बताती है कि यह कथन उसके बारे में सही नहीं हैं।

छः से सात वर्ष तक के बच्चों में आत्म-सम्मान चार क्षेत्रों में निर्मित हो जाता है-शैक्षिक क्षमता, सामाजिक क्षमता, शारीरिक/खेलकूद संबंधी क्षमता और शारीरिक रूप जो आयु के बढ़ने के साथ-साथ और अधिक परिष्कृत होता जाता है। अपनी स्थिर प्रवृत्तियों के रूप में अपने प्रति धारणा बनाने की क्षमता हमें भिन्न-भिन्न आत्म-मूल्यांकनों को जोड़कर अपने बारे में एक सामान्य मनोवैज्ञानिक प्रतिमा निर्मित करने का अवसर प्रदान करती है। इसी को हम आत्म-सम्मान की समग्र भावना के रूप में जानते हैं।

आत्म-सम्मान हमारे दैनिक जीवन के व्यवहारों से अपना घनिष्ठ संबंध प्रदर्शित करता है। उदाहरण के लिए जिन बच्चों में उच्च शैक्षिक आत्म-सम्मान होता है उनका निष्पादन विद्यालयों में निम्न आत्म-सम्मान रखने वाले बच्चों की तुलना में अधिक सम्मान होता है और जिन बच्चों में उच्च सामाजिक आत्म-सम्मान होता है उनको जिन बच्चों में उच्च सामाजिक आत्म-सम्मान होता है उनको निम्न सामाजिक आत्म-सम्मान रखने वाले बच्चों की तुलना में सहपाठियों द्वारा अधिक पसंद किया जाता है। दूसरी तरफ, जिन बच्चों में सभी क्षेत्रों में निप्न आत्म-सम्मान होता है उनमें दुश्चिता, अवसाद और समाजविरोधी व्यवहार पाया जाता है! अध्ययनों द्वारा प्रदर्शित किया गया है कि जिन माता-पिता द्वारा स्नेह के साथ सकारात्मक ढंग से बच्चों का पालन-पोषण किया गया है ऐसे बालकों में उच्च आत्म-सम्मान विकसित होता है। क्योंकि ऐसा होने पर बच्चों द्वारा सहायता न माँगने पर भी यदि उनके निर्णय स्वयं लेते हैं तो ऐसे बच्चों में निम्न आत्म-सम्मान पाया जाता है।

प्रश्न 9.
व्यक्तित्व के मानवतावादी उपागम की प्रमुख प्रतिज्ञप्ति क्या है? आत्मसिद्धि से मैस्लो का क्या तात्पर्य था?
उत्तर:
मानवतावादी सिद्धांत मुख्यतः फायड के सिद्धांत के प्रत्युत्तर में विकसित हुए। व्यक्तित्व के संदर्भ में मानवतावादी परिप्रेक्ष्य के विकास में लार्य रोजर्स और अब्राहम मैस्लो ने विशेष रूप से योगदान किया है। रोजर्स द्वारा प्रस्तावित सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण विचार एक पूर्णतः प्रकार्यशील व्यक्ति का है। उनका विश्वास है कि व्यक्तित्व के विकास के लिए संतुष्टि अभिप्रेरक शक्ति है। लोग अपनी क्षमताओं, संभाव्यताओं और प्रतिभाओं को संभव सवोत्कृष्ट तरीके से अभिव्यक्त करने का प्रयास करते हैं! व्यक्तियों में एक सहज प्रवृत्ति होती है जो उन्हें अपने वंशागत प्रकृति की सिद्धि या प्राप्ति के लिए निर्दिष्ट करती है।

मानव व्यवहार के बारे में रोजर्स ने दो आधारभूत अभिगृह निर्मित किए हैं। एक यह लि व्यवहार लक्ष्योन्मुख और सार्थक होता है और दूसरा यह कि लोग (जो सहज रूप से अच्छे होते हैं) सदैव अनुकली तथा आत्मसिद्धि वाले व्यवहार का चयन करेंगे।

रोजर्स का सिद्धांत उनके निदानशाला में रोगियों को सुनते हुए प्राप्त अनुभवों से विकसित हुआ है। उन्होंने यह ध्यान दिया कि उनके सेवार्थियों के अनुभव में आत्म एक महत्त्वपूर्ण तत्त्व था। इस प्रकार, उनका सिद्धांत आत्म के संप्रत्यय के चतुर्दिक संरचित है ! उनके सिद्धांत का अभिग्रह है कि लोग सतत अपने वास्तविक आत्म की सिद्धि या प्राप्ति की प्रक्रिया में लगे रहते हैं।

रोजर्स ने सुझाव दिया है कि प्रत्येक व्यक्ति के पास आदर्श अहं या आत्म का एक संप्रत्यय होता है। एक आदर्श आत्म वह आत्म होता है जो कि एक व्यक्ति बनना अथवा होना चाहता है। जब वास्तविक आत्म और आदर्श आत्म के बीच समरूपता होती है तो व्यक्ति सामान्यतया प्रसन्न रहता है, किन्तु दोनों प्रकार के आत्म के बीच विसंगति के कारण प्रायः अप्रसन्नता और असंतोष की भावनाएँ उत्पन्न होती हैं। रोजर्स का एक आधारभूत सिद्धांत है कि लोगों में आत्मसिद्धि के माध्यम से आत्म-संप्रत्यय को अधि कतम सीमा तक विकसित करने की प्रवृत्ति होती है। इस प्रक्रिया में आत्म विकसित, विस्तारित और अधिक सामाजिक हो जाता है।

रोजर्स व्यक्तित्व-विकास को एक सतत् प्रक्रिया के रूप में देखते हैं। इसमें अपने आपका मूल्यांकन करने का अधिगम और आत्मसिद्धि को प्रक्रिया में प्रवीणता सन्निहित होती है। आत्म-संप्रत्यय के विकास में सामाजिक प्रभावों की भूमिका को उन्होंने स्वीकार किया है। जब सामाजिक दशाएँ अनुकूल होती हैं, तब आत्म-संप्रत्यय और आत्म-सम्मान उच्च होता है। इसके विपरीत, जब सामाजिक दशाएँ प्रतिकूल होती हैं, तब आत्म-संप्रत्यय और आत्म-सम्मान निम्न होता है। उच्च आत्म-संप्रत्यय
और आत्म-सम्मान रखने वाले लोग सामान्यता नम्य एवं नए अनुभवों के प्रति मुक्त भाव से ग्रहणशील होते हैं ताकि वे अपने सतत् विकास और आत्मसिद्धि में लगे रह सकें।

मैस्लो ने आत्मसिद्धि की लब्धि या प्राप्ति के रूप में मनोवैज्ञानिक रूप से स्वस्थ लोगों की एक विस्तृत व्याख्या दी है। आत्मसिद्धि वह अवस्था होती है जिसमें लोग अपनी संपूर्ण संभाव्यताओं को विकसित कर चुके होते हैं। मैस्लो ने मनुष्यों का एक आशावादी और सकारात्मक दृष्टिकोण विकसित किया है जिसके अंतर्गत मानव में प्रेम, हर्ष और सर्जनात्मक कार्यों को करने की आत्मसिद्धि को प्राप्त करने में स्वतंत्र माने गए हैं। अभिप्रेरणाओं, जो हमारे जीवन को नियमित करती हैं, के विश्लेषण के द्वारा आत्यसिद्धि को संभव बनाया जा सकता है हम जानते हैं कि जैविक सुरक्षा और आत्मीयता की आवश्यकताएँ (उत्तरजीविता आवश्यकताएँ) पशुओं और मनुष्यों दोनों में पाई जाती हैं। अतएव किसी व्यक्ति का मात्र पुनः आवश्यकताओं की संतुष्टि में संलग्न होना उसे पशुओं के स्तर पर ले आता है। मानव जीवन की वास्तविक यात्रा आत्म-सम्मान और.आत्मसिद्धि जैसी आवश्यकताओं के अनुसरण से आरंभ होती है। मानवतावादी उपागम जीवन के सकारात्मक पक्षों के महत्त्व पर बल देता है।

प्रश्न 10.
व्यक्तित्व के अध्ययन के प्रमुख उपागमों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
व्यक्तित्व के अध्ययन के प्रमुख उपागम निम्न हैं-
(i) प्रारूप उपागम- व्यक्ति के प्रेक्षित व्यवहारपरक विशेषताओं के कुछ व्यापक स्वरूपों का परीक्षण कर मानव व्यक्तित्व को समझने का प्रयास करता है। प्रत्येक व्यवहारपरक स्वरूप व्यक्तित्व के किसी एक प्रकार को इंगित करता है जिसके अंतर्गत उस स्वरूप की व्यवहारपरक विशेषता की समानता के आधार पर व्यक्तियों को रखा जाता है।

(ii) विशेषक उपागम-विशिष्ट मनोवैज्ञानिक गुणों पर बल देता है जिसके आधार पर व्यक्ति संगत और स्थिर रूपों में भिन्न होते हैं। उदाहरणार्थ, एक व्यक्ति कम शर्मीला हो सकता है जबकि दूसरा अधिक; एक व्यक्ति अधिक मैत्रीपूर्ण व्यवहार कर सकता है और दूसरा कम। यहाँ ‘शर्मीलापन’ और ‘मैत्रीपूर्ण व्यवहार’ विशेषकों का प्रतिनिधित्व करते हैं जिसके आधार पर व्यक्तियों में संबंधित व्यवहारपरक गुणों या विशेषकों की उपस्थिति या अनुपस्थिति की मात्रा का मूल्यांकन किया जा सकता है।

(iii) अंतःक्रियात्मक उपागम- इसके अनुसार स्थितिपरक विशेषताएँ हमारे व्यवहारों को निर्धारित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। लोग स्वतंत्र अथवा आश्रित प्रकार का व्यवहार करेंगे यह उनके
आंतरिक व्यक्तित्व विशेषक पर निर्भर नहीं करता है बल्कि इस पर निर्भर करता है कि किसी विशिष्ट स्थिति में बाह्य पुरस्कार अथवा खतरा उपलब्ध है कि नहीं। भिन्न-भिन्न स्थितियों में विशेषकों को लेकर संगति अत्यंत निम्न पाई जाती है। बाजार में न्यायालय में अथवा पूजास्थलों पर लोगों के व्यवहारों का प्रेक्षण कर स्थितियों के अप्रतिरोध्य प्रभाव को देखा जा सकता है।

प्रश्न 11.
व्यक्तित्व के पंच-कारक मॉडल का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
पॉल कॉस्टा तथा राबर्ट मैक्रे ने सभी संभावित व्यक्तित्व विशेषकों की जाँच कर पाँच कारकों के एक समुच्चय के बारे में जानकारी दी है। इनको वृहत् पाँच कारकों के नाम से जाना जाता है। ये पाँच कारक निम्न हैं-

  • अनुभवों के लिए खुलापन- जो लोग इस कारक पर उच्च अंक प्राप्त करते हैं वे कल्पनाशील, उत्सुक, नए विचारों के प्रति उदारता एवं सांस्कृतिक क्रियाकलापों में अभिरुचि लेने वाले व्यक्ति होते हैं। इसके विपरीत, कम अंक प्राप्त करने वाले व्यक्तियों में अनन्मयता पाई जाती है। –
  • बहिर्मुर्खता- यह विशेषता उन लोगों में पाई जाती है जिनमें सामाजिक सक्रियता, आग्रहित, बर्हिगमन, बातूनीपन और आमोद-प्रमोद के प्रति पसंदगी पाई जाती है। इसके विपरीत ऐसे लोग होते हैं जो शर्मीले और संकोची होते हैं।
  • सहमतिशीलता- यह कारक लोगों की उन विशेषताओं को बताता है जिनमें सहायता करने, सहयोग करने, मैत्रीपूर्ण व्यवहार करने, देखभाल करने एवं पोषण करने जैसे व्यवहार सम्मिलित होते हैं। इसके विपरीत वे लोग होते हैं जो आक्रामक और आत्म-केंद्रित होते हैं।
  • तंत्रिकाताप- इस कारक पर उच्च अंक प्राप्त करने वाले लोग सांवेगिक रूप से अस्थिर, परेशान, भयभीत, दुःखी, चिड़चिड़े और तनावग्रस्त होते हैं। इसके विपरीत प्रकार के लोग सुसमायोजित होते हैं।
  • अंतर्विवेकशीलता- इस कारक पर उच्च अंक प्राप्त करने वाले लोगों में उपलब्धि उन्मुखता, निर्भरता, उत्तरदायित्व, दूरदर्शिता, कर्मठता और आत्म-नियंत्रता पाया जाता है। इसके विपरीत, कम अंक प्राप्त करने वाले लोगों में आवेग पाया जाता है।

व्यक्तित्व के क्षेत्र में यह पंच-कारक मॉडल एक महत्त्वपूर्ण सैद्धांतिक विकास का प्रतिनिधित्व करते हैं। विभिन्न संस्कृतियों में लोगों के व्यक्तित्व को समझने के लिए यह मॉडल अत्यंत उपयोगी सिद्ध हुआ है। विभिन्न संस्कृतियों एवं भाषाओं में उपलब्ध व्यक्तित्व विशेषकों के विश्लेषण से यह मॉडल संगत है और विभिन्न विधियों से किए गए व्यक्तित्व के अध्ययन भी मॉडल का समर्थन करते हैं। अतएव आज व्यक्तित्व के अध्ययन के लिए यह मॉडल सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण आनुभविक उपागम माना जाता है।

प्रश्न 12.
दबाव के लक्षणों तथा स्रोतों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
दबाव के लक्षण- हर व्यक्ति की दबाव के प्रति अनुक्रिया उसके व्यक्तित्व पालन-पोषण तथा जीवन के अनुभवों के आधार पर भिन्न-भिन्न होती है। प्रत्येक व्यक्ति के दबाव अनुक्रियाओं के अलग-अलग प्रतिरूप होते हैं। अतः चेतावनी देने वाले संकेत तथा उनकी तीव्रता भी भिन्न-भिन्न होती है। हममें से कुछ व्यक्ति अपनी दबाव अनुक्रियाओं को पहचानते हैं तथा अपने लक्षणों की गंभीरता तथा प्रकृति के आधार पर अथवा व्यवहार में परिवर्तन के आधार पर समस्या की गहनता का आकलन कर लेते हैं। दबाव के ये लक्षण शारीरिक, संवेगात्मक तथा व्यवहारात्मक होते हैं। कोई भी लक्षण,दबाव की प्रबलता को ज्ञापित कर सकता है, जिसका यदि निराकरण न किया जाए तो उसके गंभीर परिणाम हो सकते हैं।

दबाव के स्रोत- दबाव के निम्नलिखित स्रोत हो सकते हैं-
(i) जीवन घटनाएँ- जब से हम पैदा होते हैं, तभी से बड़े और छोटे, एकाएक उत्पन्न होने वाले और धीरे-धीरे घटित होने वाले परिवर्तन हमारे जीवन को प्रभावित करते हैं। हम छोटे तथा दैनिक होने वाले परिवर्तनों का सामना करना तो सीख लेते हैं किन्तु जीवन की महत्त्वपूर्ण घटनाएँ दबावपूर्ण हो सकती हैं। क्योंकि वे हमारी दिनचर्या को बाधित करती हैं और उथल-पुथल मचा देती हैं। यदि इस प्रकार ही कई घटनाएँ चाहे वे योजनाबद्ध हों (जैसे-घर बदलकर नए घर में जाना) या पूर्वानुमानित न हो (जैसे-किसी दीर्घकालिक संबंध का टूट जाना) कम समय अवधि में घटित होती हैं, तो हमें उनका सामना करने में कठिनाई होती है तथा हम दबाव के लक्षणों के प्रति अधिक प्रवीण होते हैं।

(ii) परेशान करने वाली घटनाएँ- इस प्रकार के दबावों की प्रकृति व्यक्तिगत होती है, जो अपने दैनिक जीवन में घटने वाली घटनाओं के कारण बनी रहती है। कोलाहलपूर्ण परिवेश, प्रतिदिन का आना-जाना, झगड़ालू पड़ोसी, बिजली-पानी की कमी, यातायात की भीड़-भाड़ इत्यादि ऐसी कष्टप्रद घटनाएँ हैं। एक गृहस्वामिनी को भी अनेक ऐसी आकस्मिक कष्टप्रद घटनाओं का अनुभव करना पड़ता . है। कभी-कभी ऐसी परेशानियों का बहुत तबाहीपूर्ण परिणाम उस व्यक्ति के लिए होता है जो उन
घटनाओं का सामना करता है क्योंकि बाहरी दूसरे व्यक्तियों को इन परेशानियों की जानकारी भी नहीं होती। जो व्यक्ति इन परेशानियों के कारण जितना ही अधिक दबाव अनुभव करता है उतना ही अधिक उसका मनोवैज्ञानिक कुशल-क्षेम निम्न स्तर का होता है।

(iii) अभिघातज घटनाएँ- इनके अंतर्गत विभिन्न प्रकार की गंभीर घटनाएँ जैसे-अग्निकांड, रेलगाड़ी या सड़क दुर्घटना, लूट, भूकंप, सुनामी इत्यादि सम्मिलित होती हैं। इस प्रकार की घटनाओं का प्रभाव कुछ समय बीत जाने के बाद दिखाई देता है तथा कभी-कभी ये प्रभाव दुश्चिता, अतीतावलोकन, स्वप्न तथा अंतर्वेधी विचार इत्यादि के रूप में सतत रूप से बने रहते हैं। तीव्र अभिघातों के कारण संबंधों में भी तनाव उत्पन्न हो जाते हैं। इनका सामना करने के लिए विशेषज्ञों की सहायता की आवश्यकता पड़ सकती है, विशेष रूप से जब वे घटना के पश्चात् महीनों तक सतत् रूप से बने रहें।

प्रश्न 13.
दबाव शब्द से आपका क्या तात्पर्य है? दबाव की प्रकृति का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
दबाव अंग्रेजी भाषा के शब्द स्ट्रेस (Stress) की व्युत्पत्ति, लैटिन शब्द ‘स्ट्रिक्टस’ (Strictus) जिसका अर्थ है तंग या संकीर्ण, तथा ‘स्ट्रिन्गर’ (Stringer) जो क्रियापद है, जिसका अर्थ है कसना, से हुई है। यह मूल शब्द अनेक व्यक्तियों द्वारा दबाव अवस्था में वर्णित मांसपेशियों तथा श्वसन की कसावट तथा संकुचन की आंतरिक भावनाओं को प्रतिबिंबित करना है। प्राय: दबाव को पर्यावरण की उन विशेषताओं के द्वारा भी समझाया जाता है जो व्यक्ति के लिए विघटनकारी होती हैं। दबावकारक वे घटनाएँ हैं जो हमारे शरीर में दबाव उत्पन्न करती हैं। ये शोर, भीड़,खराब संबंध या रोज स्कूल अथवा दफ्तर जाने की घटनाएँ हो सकती हैं।

दबाव कारण तथा प्रभाव दोनों से संबद्ध हो गया है तथापि दबाव का यह दृष्टिकोण भ्रांति उत्पन्न कर सकता है। हेंस सेल्ये (Hans Selye), जो आधुनिक दबाव शोध के जनक कहे जाते हैं, ने दबाव को इस प्रकार परिभाषित किया है कि यह “किसी भी माँग के प्रति शरीर की अविशिष्ट अनुक्रिया है”

अर्थात खतरे का कारण चाहे जो भी हो व्यक्ति प्रतिक्रियाओं के समान शरीर क्रियात्मक प्रतिरूप से अनुक्रिया करेगा। अनेक शोधकर्ता इस परिभाषा से सहमत नहीं हैं क्योंकि उनका अनुभव है कि दबाव के प्रति अनुक्रिया उतनी सामान्य तथा अविशिष्ट नहीं होती है जितना सेल्ये का मत है। भिन्न-भिन्न दबावकारक दबाव प्रतिक्रिया के भिन्न-भिन्न प्रतिरूप उत्पन्न कर सकते हैं एवं भिन्न व्यक्तियों की अनुक्रियाएँ विशिष्ट प्रकार की हो सकती हैं। हममें से प्रत्येक व्यक्ति परिस्थिति को अपनी दृष्टि से देखेगा और माँगों तथा उनका सामना करने की हमारी क्षमता का प्रत्यक्षण ही यह निर्धारित करेगा कि हम दबाव महसूस कर रहे हैं अथवा नहीं।

दबाव कोई ऐसी घटक नहीं है जो व्यक्ति के भीतर या पर्यावरण में पाया जाता है। इसके बजाय, यह एक सतत चलने वाली प्रक्रिया में सन्निहित है जिसके अंतर्गत व्यक्ति अपने सामाजिक एवं सांस्कृतिक पर्यावरणों में कार्य संपादन करता है। इन संघों का मूल्यांकन करता है तथा उनसे उत्पन्न होने वाली विभिन्न समस्याओं का सामना करने का प्रयास करता है। दबाव एक गत्यात्मक. मानसिक/संज्ञानात्मक अवस्था है। वह समस्थिति को विघटित करता है या एक ऐसा असंतुलन उत्पन्न करता है जिसके कारण उस असंतुलन के समाधान अथवा समस्थिति को पुनःस्थापित करने की आवश्यकता उत्पन्न होती है।
Bihar Board 12th Psychology Important Questions Long Answer Type Part 5 1

प्रश्न 14.
मनोवैज्ञानिक प्रकार्यों पर दबाव के प्रभाव की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
मनोवैज्ञानिक प्रकार्यों पर दबाव के निम्नलिखित प्रभाव है-
(i) संवेगात्मक प्रभाव-वे व्यक्ति जो दबावग्रस्त होते हैं प्राय: आकस्मिक मन:स्थिति परिवर्तन का अनुभव करते हैं तथा सनकी की तरह व्यवहार करते हैं, जिसके कारण वे परिवार तथा मित्रों से विमुख हो जाते हैं। कुछ स्थितियों में इसके कारण एक दुश्चक्र प्रारंभ होता है जिससे विश्वास में कमी होती है तथा जिसके कारण फिर और भी गंभीर संवेगात्मक समस्याएँ उत्पन्न होती हैं । उदाहरण के लिए, दुश्चिता तथा अवसाद की भावनाएँ, शारीरिक तनाव में वृद्धि, मनोवैज्ञानिक तनाव में वृद्धि तथा आकस्मिक मन:स्थिति परिवर्तन।

(ii) शरीर-क्रियात्मक प्रभाव-जब शारीरिक या मनोवैज्ञानिक दबाव मनुष्य के शरीर पर क्रियाशील होते हैं तो शरीर में कुछ हार्मोन, जैसे-एड्रिनलीन तथा कॉर्टिसोल का स्राव बढ़ जाता है। ये हार्मोन हृदयगति, रक्तचाप स्तर, चयापचय तथा शारीरिक क्रिया में विशिष्ट परिवर्तन कर देते हैं। जब हम थोडे समय के लिए दबावग्रस्त हों तो ये शारीरिक प्रतिक्रियाएँ कुशलतापूर्वक कार्य करने में सहायता करती हैं, किन्तु दीर्घकालिक रूप से यह शरीर को अत्यधिक नुकसान पहुंचा सकती हैं। एपिनेफरीन तथा नॉरएपिनेफरीन छोड़ना, पाचक-तंत्र की धीमी गति, फेफड़ों में वायुमार्ग का विस्तार, हृदयगति में वृद्धि तथा रक्त वाहिकाओं का सिकुड़ना, इस प्रकार के शरीर क्रियात्मक प्रभावों के उदाहरण हैं।

(iii) संज्ञानात्मक प्रभाव-यदि दबाव के कारण दाब (प्रेशर) निरंतर रूप से बना रहता है तो व्यक्ति मानसिक अतिभार से ग्रस्त हो जाता है। उच्च दबाव के कारण उत्पन्न यह पीड़ा, व्यक्ति में ठोस निर्णय लेने की क्षमता को तेजी से घट सकती है। घर में, जीविका में, अथवा कार्य स्थान में लिए गए गलत निर्णयों के द्वारा तर्क-वितर्क, असफलता, वित्तीय घाटा, यहाँ तक कि नौकरी की क्षति भी इसके परिणामस्वरूप हो सकती है। एकाग्रता में कमी तथा न्यूनीकृत अल्पकालिक स्मृति क्षमता भी दबाव के . संज्ञानात्मक प्रभाव हो सकते हैं।

(iv) व्यवहारात्मक प्रभाव-दबाव का प्रभाव हमारे व्यवहार पर कम पौष्टिक भोजन करने, उत्तेजित करने वाले पदार्थों, जैसे केफीन को अधिक सेवन एवं सिगरेट, मद्य तथा अन्य औषधियों; जैसे-उपशामकों इत्यादि के अत्यधिक सेवन करने में परिलक्षित होता है। उपशामक औषधियाँ व्यसन बन सकती हैं तथा उनके अन्य प्रभाव भी हो सकते हैं। जैसे-एकाग्रता में कठिनाई, समन्वय में कमी तथा घूर्णी या चक्कर आ जाना। दबाव के कुछ ठेठ या प्रारूपी व्यवहारात्मक प्रभाव, निद्रा-प्रतिरूपों में व्याघात, अनुपस्थिता में व्याघात, अनुपस्थिता में वृद्धि तथा कार्य निष्पादन में ह्रास हैं।

प्रश्न 15.
विभिन्न जीवन कौशलों का वर्णन कीजिए। इन जीवन कौशलों से जीवन की चुनौतियों का सामना करने में किस प्रकार मदद मिलती है?
उत्तर:
निम्नलिखित जीवन-कौशलों द्वारा जीवन की चुनौतियों का सामना करने में मदद मिलती है-
(i)आग्रहिता- आग्रहिता एक ऐसा व्यवहार या कौशल है जो हमारी भावनाओं, आवश्यकताओं, इच्छाओं तथा विचारों के सुस्पष्ट तथा विश्वासपूर्ण संप्रेषण में सहायक होता है। यह ऐसा योग्यता है कि जिसके द्वारा किसी के निवेदन को अस्वीकार करना, किसी विषय पर बिना आत्मचेतना के अपने मत को अभिव्यक्त करना या फिर खुलकर ऐसे संवेगों; जैसे-प्रेम, क्रोध इत्यादि को अभिव्यक्त करना संभव होता है। यदि कोई आग्रही हैं तो उसमें उच्च आत्म-विश्वास एवं आत्म-सम्मान तथा अपनी अस्मिता की एक अटूट भावना होती है।

(ii) समय प्रबंधन- कोई अपना समय जैसे व्यतीत करता है वह उसके जीवन की गुणवत्ता को निर्धारित करता है । समय का प्रबंधन तथा प्रत्यायोजित करना सीखने से, दबाव-मुक्त होने में परिवर्तन लाना है । समय दबाव कम करने का एक प्रमुख तरीका, समय के प्रत्यक्षण में परिवर्तन लाना है । समय प्रबंधन का प्रमुख नियम यह है कि हम जिन कार्यों को महत्त्व देते हैं, उनका परिपालन करने में समय लगाएँ या उन कार्यों को करने में जो हमारे लक्ष्य प्राप्ति में सहायक हों। हमें अपने जानकारियों की वास्तविकता का बोध हो तथा कार्य को निश्चित समयावधि मैं करें । यह स्पष्ट होना चाहिए कि हम क्या करना चाहते हैं तथा हम अपने जीवन में इन दोनों बातों में सामंजस्य स्थापित कर सकें, इन पर समय प्रबंधन निर्भर करता है।

(iii) सविवेक चिंतन- दबाव संबंधी अनेक. समस्याएँ विकृत चिंतन के परिणामस्वरूप उत्पन्न होती हैं। व्यक्ति के चिंतन और अनुभव करने के तरीकों में घनिष्ठ संबंध होता है। जब हम दबाव का अनुभव करते हैं तो हमें अंत:निर्मित वर्णात्मक अभिनति होती है जिससे हमारा ध्यान भूतकाल के नकारात्मक विचारों तथा प्रतिमाओं पर केंद्रित हो जाता है, जो हमारे वर्तमान तथा भविष्य के प्रत्यक्षण को प्रभावित करता है । सविवेक चिंतन के कुछ नियम इस प्रकार हैं अपने विकृत चिंतन तथा अविवेकी विश्वासों को चुनौती देना, संभावित अंतर्वेधी दुश्चिता उत्तेजक विचारों को मन से निकालना तथा सकारात्मक कथन करना।

(iv) संबंधों में सुधार- संप्रेषण सदृढ और स्थायी संबंधों की कुंजी है। इसके अंतर्गत तीन अत्यावश्यक कौशल निहित हैं-सुनना कि दूसरा व्यक्ति क्या कह रहा है, अभिव्यक्त करना कि कोई कैसा सोचता है और महसूस करता है तथा दूसरों की भावनाओं और मतों को स्वीकारना चाहे वे स्वयं उसके अपने से भिन्न हों। इसमें हमें अनुचित ईर्ष्या और नाराजगीयुक्त व्यवहार से दूर रहने की जरूरत होती है।

(v) स्वयं की देखभाल- यदि हम स्वयं को स्वस्थ, दुरुस्त तथा विश्रांत रखते हैं तो हमें दैनिक जीवन के दबावों का सामना करने के लिए शारीरिक एवं सांवेगिक रूप से और अच्छी तरह तैयार रहते हैं। हमारे श्वसन का प्रतिरूप हमारी मानसिक तथा सांवेगिक स्थिति को परिलक्षित करता है जब हम दबावग्रस्त अथवा दुश्चितित होते हैं तो हमारा श्वसन और तेज हो जाता है, जिसके बीच-बीच में अक्सर आँहें भी निकलती रहती हैं। सबसे अधिक विश्रांत श्वसन मंद, मध्यपट या डायफ्रम, अर्थात सीना और उदर गुहिका के बीच.एवं गुंबदकार पेशी से उदर-केंद्रित श्वसन होता है। पर्यावरणी दबाव, जैसे-शेर, प्रदूषण, दिक् प्रकार, वर्ण इत्यादि सब हमारी मन:स्थिति को प्रभावित कर सकते हैं। इनका निश्चित प्रभाव दबाव का सामना करने की हमारी क्षमता तथा कुशल-क्षेम पर पड़ता है।

Bihar Board 12th Economics Important Questions Long Answer Type Part 3

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Bihar Board 12th Economics Important Questions Long Answer Type Part 3

प्रश्न 1.
चार क्षेत्रीय अर्थव्यवस्था में चक्रीय प्रवाह को समझाइए।
उत्तर:
चार क्षेत्रीय मॉडल खुली अर्थव्यवस्था को प्रदर्शित करता है। चार क्षेत्रीय चक्रीय प्रवाह मॉडल में विदेशी क्षेत्र या शेष विश्व क्षेत्र को सम्मिलित किया जाता है। वर्तमान समय में अर्थव्यवस्था का स्वरूप खुली अर्थव्यवस्था का है जिसमें वस्तुओं का आय एवं निर्याता होता है।

y = C + I + G + (X – M)
यहाँ y = आय या उत्पादन
C = उपभोग व्यय
I = निवेश व्यय
G = सरकारी व्यय
(X – M) = शुद्ध निर्यात (यहाँ X = निर्यात तथा M = आयात)

खुली अर्थव्यवस्था में आय प्रवाह के पाँच स्तम्भ होते हैं-
1. परिवार क्षेत्र- यह क्षेत्र उत्पादन के साधनों का स्वामी होता है। यह क्षेत्र अपनी सेवा के बदले मजदूरी लगान, ब्याज, लाभ के रूप में आय प्राप्त करते हैं। वे सरकार से कुछ निश्चित हस्तारण भी प्राप्त करते हैं। यह क्षेत्र उत्पादक क्षेत्रक द्वारा उत्पादित वस्तुओं एवं सेवाओं की खरीद पर अपनी आय खर्च करता है और सरकार को कर भुगतान भी करता है। यह क्षेत्र अपनी आय का कुछ भाग बचा लेता है जो पूँजी बाजार में चला जाता है।

2. उत्पादक क्षेत्र- उत्पादक क्षेत्रक वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन करता है जिसका उपयोग परिवार तथा सरकार द्वारा किया जाता है। फर्मे वस्तुओं और सेवाओं की बिक्री से आय प्राप्त करती है। यह क्षेत्र निर्यात आय की प्राप्त करती है।

फर्मे साधन सेवाएँ प्राप्त करती हैं तथा उन्हें भुगतान करती हैं। फर्मों को अपनी वस्तुओं की बिक्री एवं उत्पादन पर सरकार को कर भुगतान करना पड़ता है। कुछ फर्मे सरकार से अनुदान भी प्राप्त करती हैं। फर्म अपनी आय का एक भाग बचाती है जो पूँजी बाजार में जाता है।

3. सरकारी क्षेत्र- सरकार परिवार एवं उत्पादक दोनों क्षेत्रों से कर वसुलता है। सरकार परिवारों का हस्तांतरण भुगतान तथा फर्मों को आर्थिक सहायता प्रदान करती है। अन्य क्षेत्रक की भाँति सरकारी क्षेत्रक भी बचत करता है जो कि पूँजी बाजार में जाता है।

4. शेष विश्व- शेष विश्व निर्यात के लिए भुगतान प्राप्त करता है। यह क्षेत्र सरकारी खातों पर भुगतान प्राप्त करता है।

5. पूँजी बाजार- पूँजी बाजार तीनों क्षेत्रकों परिवार, फर्मों तथा सरकार की बचतें एकत्रित करता है। यह क्षेत्र परिवार, फर्म तथा सरकार को पूँजी उधार देकर निवेश करता है। पूँजी बाजार में अन्तर्प्रवाह तथा बाह्य प्रवाह बराबर होते हैं।

प्रश्न 2.
समष्टि अर्थशास्त्र में अत्यधिक माँग का अर्थ बताइए। इसके सुधार के लिए किन्हीं चार मौद्रिक नीति उपायों की व्याख्या करें।
उत्तर:
यदि अर्थव्यवस्था में सामूहिक माँग एवं सामूहिक पूर्ति में संतुलन पूर्ण रोजगार स्तर के बाद होता है तो यह अतिरेक या अत्यधिक माँग की स्थिति होती है। अन्य शब्दों में अतिरेक माँग तब उत्पन्न होती है जब सामूहिक माँग पूर्ण रोजगार स्तर पर सामूहिक पूर्ति से अधिक होती है। अर्थात् AD > AS

अतिरेक माँग में सुधार के लिए चार मौद्रिक उपाय निम्नलिखित हैं-

  • बैंक दर को बढ़ाया जाना चाहिए ताकि साख विस्तार का संकुचन हो और माँग में कमी हो सके।
  • केन्द्रीय बैंक को खुले बाजार में प्रतिभूतियाँ बेचनी चाहिए ताकि अर्थव्यवस्था में क्रयशक्ति कम हो।
  • नकद कोष अनुपात में वृद्धि की जानी चाहिए ताकि साख का कम विस्तार हो।
  • तरलता अनुपात को बढ़ाया जाना चाहिए ताकि साख के विस्तार को कम किया जा सके।

प्रश्न 3.
लोचशील विनिमय दर प्रणाली के गुण तथा दोषों की व्याख्या करें।
उत्तर:
लोचशील विनिमय दर प्रणाली के निम्नलिखित गुण हैं-

  • सरल प्रणाली- यह एक सरल प्रणाली है जिसमें विनिमय दर वहाँ निर्धारित होती है जहाँ माँग एवं पूर्ति में साम्य स्थापित हो जाता है। इसमें बाहरी हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं होती है।
  • सतत समायोजन- इसमें सतत समायोजन की गुंजाइश होती है। इस प्रकार दीर्घकालीन असंतुलन के विपरीत प्रभावों से बचा जा सकता है।
  • भुगतान संतुलन में सुधार- लोचपूर्ण विनिमय दर होने पर भुगतान शेष में संतुलन आसानी से पैदा किया जा सकता है।
  • संसाधनों का कुशलतम उपयोग- लोचपूर्ण विनिमय दर साधनों के कुशलतम उपयोग के अवसर प्रदान करती है। इस प्रकार अर्थव्यवस्था में कार्य कुशलता के स्तर को बढ़ाती है।

लोचपूर्ण विनिमय दर प्रणाली के कुछ दोष भी हैं जो निम्नलिखित हैं-

  • निम्न लोच के दुष्परिणाम- यदि विनिमय दरों की लोच काफी कम है तो विदेशी विनिमय बाजार अस्थिर होगा जिसके फलस्वरूप दुर्लभ मुद्रा के केवल मूल्य ह्रास से ही भुगतान संतुलन की स्थिति बिगड़ जाएगी।
  • अनिश्चितता- लोचपूर्ण विनिमय दर अनिश्चितता उत्पन्न करने वाली होती है जो अंतर्राष्ट्रीय व्यापार और पूँजी की गतिशीलता के लिए घातक है।।
  • अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में अस्थिरता- अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा बाजार में अस्थिरता अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में अस्थिरता का कारण बनती है। आयात तथा निर्यात संबंधी दीर्घकालीन नीतियाँ बनाना कठिन हो जाता है।

प्रश्न 4.
विनिमय दर से क्या अभिप्राय है ? विनिमय दरों को प्रभावित करने वाले मुख्य कारकों का वर्णन करें।
उत्तर:
विनिमय दर का अभ्रिपाय : विनियम दर वह दर है जिस पर एक देश की एक मुद्रा इकाई का दूसरे देश की मुद्रा में विनिमय किया जाता है। दूसरे शब्दों में, विदेशी विनिमय दर यह बताती है किसी देश की मुद्रा की एक इकाई के बदले में दूसरे देश की मुद्रा की कितनी इकाइयाँ मिल सकती हैं।

इस प्रकार विनिमय दर घरेलू मुद्रा के रूप में दी जाने वाली वह कीमत जो विदेशी मुद्रा की, एक इकाई के बदले दी जाती है।

क्राउथर के अनुसार, “विनिमय दर, एक देश की इकाई मुद्रा के बदले दूसरे देश की मुद्रा को मिलने वाली इकाइयों की एक माप है।”

विनिमय दरों को प्रभावित करने वाले मुख्य कारक :
(i) व्यापार परिवर्तन : विदेशी विनिमय की माँग तथा पूर्ति, निर्यातों तथा आयातों के परिवर्तन पर निर्भर करती है। यदि निर्यात, आयातों से अधिक हैं तो घरेलू मुद्रा की माँग बढ़ती है जिससे विनिमय दर घरेलू देश के पक्ष में परिवर्तित होती है किन्तु यदि आयात, निर्यातों से अधिक है तो विदेशी मुद्रा की माँग बढ़ती है तथा विनिमय दर देश के प्रतिकूल हो जाती है।

(ii) पूँजी प्रवाह : अल्पकालीन अथवा दीर्घकालीन पूँजी प्रवाह भी विनिमय दरों को प्रभावित करता है। यदि अमेरिका भारत में निवेश के लिए पूँजी का प्रवाह है तो विनिमय बाजार में भारतीय रुपए की माँग बढ़ेगी जिससे भारतीय रुपए का अमरीकन डॉलर में मूल्य बढ़ जाएगा।

(iii) प्रतिभूतियों का क्रय-विक्रय : स्टॉक एक्सचेंज के सौदे, विदेशी प्रतिभूतियों-शेयर्स ऋण-पत्रों आदि के लेन-देन विदेशी विनिमय तथा विनिमय दर को प्रभावित करते हैं।

(iv) बैंक दर : बैंक दर भी विनिमय दरों को प्रभावित करती है। यदि बैंक दर को बढ़ाया जाता है तो देश में विदेशों से ऊँची ब्याज की दर कमाने के उद्देश्य से अधिक कोषों का प्रवाह होगा। इससे विदेशी विनिमय की पूर्ति बढ़ेगी तथा विनिमय दर, विदेशी मुद्रा के प्रतिकूल होगी। बैंक दर के कम होने से इसके विपरीत प्रभाव पडेगा।

(v) सट्टेबाजी क्रियाएँ : विनिमय बाजार में सट्टे की क्रियाएँ विनिमय दर को प्रभावित करती हैं। यदि सट्टेबाज, विदेशी मुद्रा के मूल्य में कमी की सम्भावना रखते हैं तो वह उसे बेचना आरम्भ * कर देंगे जिससे विनिमय दर विदेशी मुद्रा के प्रतिकूल तथा घरेलू मुद्रा के पक्ष में परिवर्तित होगी।

प्रश्न 5.
अवसर लागत की अवधारणा की व्याख्या करें।
उत्तर:
अवसर लागत (Opportunity cost)- अवसर लागत की अवधारणा लागत की आधुनिक अवधारणा है। किसी साधन की अवसर लागत से अभिप्राय दूसरे सर्वश्रेष्ठ प्रयोग में उसके मूल्य से है। दूसरे शब्दों में किसी साधन को अवसर लागत वह लागत है जिसका उस साधन को किसी एक कार्य में कार्यरत होने के फलस्वरूप दूसरे वैकल्पिक कार्य को नहीं कर पाने के कारण त्याग करना पड़ता है। प्रो० लैपटविच के अनुसार किसी वस्तु की अवसर लागत उन परित्याक्त (छोड़े गये) वैकल्पिक पदार्थों का मूल्य होती है, जिन्हें इस वस्तु के उत्पादन में लगाये गये साधनों द्वारा उत्पन्न किया जा सकता है। अवसर लागत की अवधारणा के संबंध में दो बातें ध्यान देने योग्य हैं-

  • अवसर लागत किसी वस्त को उत्पादन लागत के सर्वोत्तम विकल्प के लगने की लागत है।
  • अवसर लागत का आकलन साधनों की मात्रा के आधार पर न करके उसके मौद्रिक मूल्य के आधार पर किया जाना चाहिए। अवसर लागत को साधन की हस्तान्तरण आय भी कहा जाता है।

अवसर लागत की अवधारणा को स्पष्ट करने के लिए हम एक उदाहरण लेते हैं। माना कि भूमि के एक टुकड़े पर गेहूँ, चने, आलू व मटर की खेती की जा सकती है। एक किसान उस टुकड़े पर साधनों की एक निश्चित मात्रा का प्रयोग करते हुए 400 रुपए के मूल्य के गेहूँ का उत्पादन करता है। इस प्रकार वह चने, आलू तथा मटर के उत्पादन का त्याग करता है। जिनका मूल्य क्रमशः 3200, 2000 तथा 1500 रुपए है। इन तीनों विकल्पों में चने का उत्पादन सर्वोत्तम विकल्प है। अतः गेहूँ उत्पादन की अवसर लागत 3200 रुपए होगी।

प्रश्न 6.
माँग के निर्धारक तत्त्वों की विवेचना करें।
उत्तर:
बाजार माँग किसी वस्तु की विभिन्न कीमतों पर बाजार के सभी उपभोक्ताओं द्वारा माँगी गई मात्राओं को प्रकट करता है। व्यक्तिगत माँग वक्रों के समस्त जोड़ के द्वारा बाजार माँग वक्र खींचा जा सकता है।

बाजार माँग को प्रभावित करने वाले निम्नलिखित कारक हैं-
(i) वस्तु की कीमत (Price of a commodity)- सामान्यतः किसी वस्तु की माँग की मात्रा उस वस्तु की कीमत पर आश्रित होती है। अन्य बातें पूर्ववत् रहने पर कीमत कम होने पर वस्तु की माँग बढ़ती है और कीमत के बढ़ने पर माँग घटती है। किसी वस्तु की कीमत और उसकी माँग में विपरीत सम्बन्ध होता है।

(ii) संबंधित वस्तुओं की कीमतें (Prices of related goods)- संबंधित वस्तुएँ दो प्रकार की होती हैं-
पूरक वस्तुएँ तथा स्थानापन्न वस्तुएँ- पूरक वस्तुएँ वे वस्तुएँ होती हैं जो किसी आवश्यकता को संयुक्त रूप से पूरा करती हैं और स्थानापन्न वस्तुएँ वे वस्तुएँ होती हैं जो एक दूसरे के स्थान पर प्रयोग की जा सकती हैं। पूरक वस्तुओं में यदि एक वस्तु की कीमत कम हो जाती है तो उसकी पूरक वस्तु की माँग बढ़ जाती है। इसके विपरीत यदि स्थानापन्न वस्तुओं में किसी एक की कीमत कम हो जाती है तो दूसरी वस्तु की मांग भी कम हो जाती है।

(iii) उपभोक्ता की आय (Income of Consumer)- उपभोक्ता की आय में वृद्धि होने पर सामान्यतया उसके द्वारा वस्तुओं की माँग में वृद्धि होती है।

आय में वृद्धि के साथ अनिवार्य वस्तुओं की माँग एक सीमा तक बढ़ती है तथा उसके बाद स्थिर हो जाती है। कुछ परिस्थितियों में आय में वृद्धि का वस्तु की माँग पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता। ऐसा खाने-पीने की सस्ती वस्तुओं में होता है। जैसे नमक आदि।
विलासितापूर्ण वस्तुओं की माँग आय में वृद्धि के साथ-साथ लगातार बढ़ती रहती है।

घटिया (निम्नस्तरीय) वस्तुओं की माँग आय में वृद्धि के साथ-साथ कम हो जाती है लेकिन सामान्य वस्तुओं की माँग आय में वृद्धि के साथ बढ़ती है और आय में कमी से कम हो जाती है।

(iv) उपभोक्ता की रुचि तथा फैशन (Interest of Consumer and Fashion)- परिवार या उपभोक्ता की रुचि भी किसी वस्तु की माँग को कम या अधिक कर सकती है। किसी वस्तु का फैशन बढ़ने पर उसकी माँग भी बढ़ती है।

(v) विज्ञापन तथा प्रदर्शनकारी प्रभाव (Advertisement and Demonstration Effect)- विज्ञापन भी उपभोक्ता को किसी विशेष वस्तु को खरीदने के लिए प्रेरित कर सकता है। यदि पड़ोसियों के पास कार या स्कूटर है तो प्रदर्शनकारी प्रभाव के कारण एक परिवार की कार । या स्कूटर की माँग बढ़ सकती है।

(vi) जनसंख्या की मात्रा और बनावट (Quantity and Composition of Population) अधिक जनसंख्या का अर्थ है परिवारों की अधिक संख्या और वस्तुओं की अधिक माँग। इसी प्रकार जनसंख्या की बनावट से भी विभिन्न वस्तुओं की माँग निर्धारित होती है।

(vii) आय का वितरण (Distribution of Income)- जिन अर्थव्यवस्थाओं में आय का वितरण समान है वहाँ वस्तुओं की माँग अधिक होगी तथा इसके विपरीत जिन अर्थव्यवस्थाओं में आय का वितरण असमान है, वहाँ वस्तुओं की माँग कम होगी।

(viii) जलवायु तथा रीति-रिवाज (Climate and Customs)- मौसम, त्योहार तथा विभिन्न परम्पराएँ भी वस्तु की माँग को प्रभावित करती हैं। जैसे-गर्मी के मौसम में कूलर, आइसक्रीम, कोल्ड ड्रिंक आदि की माँग बढ़ जाती है।

प्रश्न 7.
मुद्रा-पदार्थ के गुणों का वर्णन करें।
उत्तर:
मुद्रा वास्तव में किसी देश की अर्थव्यवस्था के लिए आवश्यक है। किसी देश की आर्थिक प्रगति मुद्रा पर निर्भर करती है इसलिए ट्रेस्काट ने कहा है कि “यदि मुद्रा हमारी अर्थव्यवस्था का हृदय नहीं तो रक्त प्रवाह अवश्य है।”

मुद्रा के प्रमुख गुण निम्नलिखित हैं-

  • मुद्रा आधुनिक अर्थव्यवस्था का आधार है।
  • मुद्रा से उपभोक्ता को लाभ पहुँचता है।
  • मुद्रा से विनिमय व्यवस्था का आधार है।
  • मुद्रा से विनिमय के क्षेत्र में लाभ होता है।
  • ऋणों के लेनदेन तथा अग्रिम भुगतान में सुविधा।
  • पूँजी निर्माण को प्रोत्साहन।
  • मुद्रा की गतिशीलता प्रदान करती है।
  • मुद्रा साख का आधार है।

प्रश्न 8.
एकाधिकार क्या है ? इसकी प्रमुख विशेषताओं का वर्णन करें।
उत्तर:
एकाधिकार बाजार की वह स्थिति है जिसमें एक वस्तु का एक ही उत्पादक अथवा एक ही विक्रेता होता है तथा उसकी वस्तु का कोई निकट स्थानापन्न नहीं होता है।

एकाधिकार बाजार की निम्नलिखित विशेषताएँ होती हैं-

  • एक विक्रेता तथा अधिक क्रेता।
  • एकाधिकारी फर्म और उद्योग में अन्तर नहीं होता।
  • एकाधिकारी बाजार में नई फर्मों के प्रवेश पर बाधाएँ होती हैं।
  • वस्तु की कोई निकट प्रतिस्थापन्न वस्तु नहीं होती।
  • कीमत नियंत्रण एकाधिकारी द्वारा किया जाता है।

प्रश्न 9.
संतुलित बजट, बचत बजट और घाटे के बजट में भेद कीजिए।
उत्तर:
बजट के मुख्यतः तीन प्रकार हैं-

  1. संतुलित बजट,
  2. बचत बजट,
  3. घाटे का बजट

1. संतुलित बजट (Balanced Budget)- संतुलित बजट वह बजट है जिसमें सरकार की आय तथा व्यय दोनों बराबर होते हैं।
Bihar Board 12th Economics Important Questions Long Answer Type Part 3, 1

संतुलित बजट का आर्थिक क्रियाओं के स्तर पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता। इसके कारण न तो संकुचनकारी शक्तियाँ और न ही विस्तारवादी शक्तियाँ काम कर पाती हैं। प्रो० केज के अनुसार विकसित देशों में महामन्दी तथा बेरोजारी के समाधान हेतु और अर्द्धविकसित देशों के विकास के लिए संतुलित बजट उपयुक्त नहीं है क्योंकि संतुलित बजट द्वारा इन समस्याओं का समाधान नहीं हो सकता।

2. बचत बजट (Surplus Budget)- यह वह बजट है जिसमें सरकार की अनुमानित आय सरकार के अनुमानित व्यय से अधिक होती है।
Bihar Board 12th Economics Important Questions Long Answer Type Part 3, 2
स्फीतिक दशाओं में बचत का बजट वांछनीय होता है क्योंकि बचत का बजट अर्थव्यवस्था में सामूहिक माँग के स्तर को घटाकर स्फीतिक अन्तराल को कम करने में सहायक होता है। बचत के बजट में सरकारी व्यय के सरकारी आय से कम हो जाने के कारण यह मंदी की दशाओं में वांछनीय नहीं है।

3. घाटे का बजट (Deficit Budget)- घाटे का बजट वह बजट है जिसमें सरकार की अनुमानित आय सरकार के अनुमानित व्यय से कम होती है।
Bihar Board 12th Economics Important Questions Long Answer Type Part 3, 3
घाटे के बजट का तात्पर्य यह है कि सरकार जितनी मात्रा में मुद्रा अर्थव्यवस्था में खप सकती है, उससे अधिक मात्रा में मुद्रा अर्थव्यवस्था में प्रवाहित कर दी जाती है। फलतः अर्थव्यवस्था में विस्तारवादी शक्तियाँ बलवती हो उठती हैं।

प्रश्न 10.
उत्पादन फलन से आप क्या समझते हैं ? इसकी मुख्य विशेषताएँ क्या हैं ?
उत्तर:
उत्पादन का अभिप्राय आगतों अथवा आदानों को निर्गत में बदलने की प्रक्रिया से है। भूमि, श्रम, पूँजी तथा उद्यम उत्पादन के साधन या कारक हैं। उत्पादन या निर्गत इन साधनों के संयुक्त प्रयोग का परिणाम होता है। उत्पादन के साधनों को आगत तथा उत्पादन की मात्रा को निर्गत की संज्ञा दी जाती है। उत्पादन फलन एक दी हुई तकनीक के अंतर्गत आगतों एवं निर्गतों के संबंध की व्याख्या करता है। निर्गत को आगतों का फल या परिणाम कहा जा सकता है। इस प्रकार उत्पादन फलन इस तथ्य को व्यक्त करता है कि एक दी हुई प्रौद्योगिकी में आगतों के विभिन्न संयोग से निर्गत को कितनी अधिकतम मात्रा का उत्पादन संभव है।

मान लें कि हम उत्पादन के दो साधनों भूमि और श्रम का प्रयोग करते हैं। इस स्थिति में हम उत्पादन फलन को निम्नांकित रूप में व्यक्त कर सकते हैं। q = f(x1, x2)

इससे यह पता चलता है कि हम आगत x1 और x2 का प्रयोग कर वस्तु की अधिकतम मात्रा q का उत्पादन कर सकते हैं।

माँग फलन की तीन मुख्य विशेषताएँ निम्नांकित हैं।

  • उत्पादन फलन विभिन्न आगतों के अनुकूलतम प्रयोग से निर्गत के अधिकतम स्तर को दर्शाता है।
  • यह एक निश्चित अवधि के अंतर्गत आगत और निर्गत के संबंध की व्याख्या करता है।
  • उत्पादन फलन वर्तमान तकनीकी ज्ञान से निर्धारित होता है।

प्रश्न 11.
राष्ट्रीय आय की कठिनाइयों का वर्णन करें।
उत्तर:
राष्ट्रीय आय की माप करने में प्रायः कई कठिनाइयाँ होती हैं जिनमें निम्नांकित प्रमुख हैं-

  • राष्ट्रीय आय की गणना के लिए कोई भी प्रणाली क्यों न अपनाई जाए, पर्याप्त एवं विश्वसनीय आँकड़ों की हमेशा कमी रहती है।
  • राष्ट्रीय आय की गणना करते समय कई बार एक ही आय को दुबारा गिन लिया जाता है। उदाहरण के लिए एक वकील की आय में उसकं सहायक की आय भी सम्मिलित रहती है तथा इन दोनों की पृथक रूप से गणना नहीं होनी चाहिए।
  • प्राय: कुछ वस्तुओं का उत्पादन स्वयं उपभोग कर लेते हैं या उनका अदल-बदल अर्थात् अन्य वस्तुओं से विनिमय करते हैं। राष्ट्रीय आय को मापने में ऐसी वस्तुओं के मूल्यांकन की भी कठिनाई उत्पन्न होती है।

प्रश्न 12.
पूर्णतया लोचदार माँग और पूर्णतया बेलोचदार माँग में अंतर कीजिए।
उत्तर:
जब किसी वस्तु की कीमत में परिवर्तन नहीं होने पर भी अथवा बहुत सूक्ष्म परिवर्तन होने पर माँग में बहुत अधिक परिवर्तन हो जाता है तब उस वस्तु की माँग पूर्णतया लोचदार कही जाती है। पूर्ण लोचदार माँग को अनंत लोचदार माँग भी कहते हैं। इस स्थिति में एक दी हुई कीमत पर वस्तु की माँग असीम या अनंत होती है तथा कीमत में नाममात्र की वृद्धि होने पर शून्य हो जाती है। माँग पूर्ण लोचदार होने पर माँग वक्र X-अक्ष के समानांतर होता है जिसे नीचे के रेखाचित्र में दर्शाया गया है-
Bihar Board 12th Economics Important Questions Long Answer Type Part 3, 4
जब किसी वस्तु की कीमत में परिवर्तन होने पर भी उसको माँग में कोई परिवर्तन नहीं होता है तो इसे पूर्णतया बेलोचदार माँग कहते हैं। इस स्थिति में माँग की लोच शून्य होती है जिसके फलस्वरूप माँग वक्र Y-अक्ष के समानांतर होता है। नीचे के रेखाचित्र में दर्शाया गया है-
Bihar Board 12th Economics Important Questions Long Answer Type Part 3, 5

प्रश्न 13.
पूर्ति की कीमत लोच का क्या अर्थ है ? प्रतिशत प्रणाली द्वारा पूर्ति की लोच को कैसे मापा जाता है ?
उत्तर:
पूर्ति की लोच अथवा पूर्ति की कीमत लोच, वस्तु की कीमत में परिवर्तनों के कारण उसकी पूर्ति की प्रतिक्रियाशीलता को प्रदर्शित करता है। पूर्ति की कीमत लोच की धारणा हमें यह बताती है कि कीमत में परिवर्तन के फलस्वरूप किसी वस्तु की पूर्ति में किस दर या अनुपात में परिवर्तन होता है। सरल शब्दों में, पूर्ति की लोच वस्तु की कीमत में हुए प्रतिशत परिवर्तन के फलस्वरूप पूर्ति में होनेवाले प्रतिशत परिवर्तन को व्यक्त करता है।

पूर्ति की कीमत लोच को मापने की दो मुख्य विधियाँ हैं-प्रतिशत प्रणाली और ज्यामितिक प्रणाली। प्रतिशत अथवा आनुपातिक प्रणाली में पूर्ति की लोच को मापने का सूत्र इस प्रकार है-
Bihar Board 12th Economics Important Questions Long Answer Type Part 3, 6

इस सूत्र को बीजगणितीय रूप में इस प्रकार व्यक्त किया जाता है-
Bihar Board 12th Economics Important Questions Long Answer Type Part 3, 7
जहाँ, Δq पूर्ति की मात्रा में परिवर्तन, १ प्रारंभिक पूर्ति, D कीमत में परिवर्तन तथा p प्रारंभिक कीमत को प्रदर्शित करता है।

यदि सत्र es = \(\frac{\Delta q}{\Delta p} \times \frac{p}{q}\) का परिणाम 1 अर्थात इकाई हो तो किसी वस्तु की पूर्ति समलोचदार है, यदि परिणाम इकाई से अधिक है तो पूर्ति अधिक लोचदार है और यदि परिणाम इकाई से कम है तो पूर्ति कम लोचदार है।

प्रश्न 14.
कुल लागत से आप क्या समझते हैं ? कुल स्थिर लागत वक्र का आकार क्या होता है ?
उत्तर:
किसी वस्तु के उत्पादन में प्रयुक्त समस्त आगतों पर होने वाला व्यय कुल लागत कहलाता है। यह कुल स्थिर आगतों (जैसे-भूमि, मशीन, उपकरण आदि) पर व्यय तथा कुल परिवर्ती आगतों (जैसे–कच्चा माल, श्रम, बिजली आदि) पर किए जाने वाले व्यय का योगफल होता है।
Bihar Board 12th Economics Important Questions Long Answer Type Part 3, 8
कुल स्थिर लागतें स्थायी साधन-आगतों का प्रयोग करने के लिए वहन की जाती हैं। उत्पादन अर्थात् निर्यात की मात्रा में परिवर्तन होने पर भी इन लागतों में कोई परिवर्तन नहीं होता है। उदाहरण के लिए, एक चीनी मिल प्रायः वर्ष में 3-4 महीने बंद रहती है। फिर भी इसके स्वामी को कारखाने का किराया, ऋणों का ब्याज तथा स्थायी कर्मचारियों के वेतन आदि का भुगतान करना होता है। स्पष्ट है कि फर्म को इस प्रकार की लागतें प्रत्येक अवस्था में वहन करनी होती हैं। इसे नीचे के रेखाचित्र में दर्शाया गया है।

उपरोक्त रेखाचित्र से यह स्पष्ट है कि कुल स्थिर लागत (TFC) वक्र X-अक्ष के समानांतर होती है। इसका अभिप्राय यह है कि निर्गत के प्रत्येक स्तर पर कुल स्थिर लागतें एक समान रहती हैं।

प्रश्न 15.
उपभोग की औसत तथा सीमांत प्रवृत्ति से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
उपभोग की प्रवृत्ति आय एवं उपभोग के कार्यात्मक संबंध को व्यक्त करता है। उपभोग प्रवृत्ति. की व्याख्या करने के लिए केन्स ने उपभोग की औसत तथा सीमांत प्रवृत्ति की धारणाओं का प्रयोग किया है। उपभोग की औसत प्रवृत्ति (APC) कुल उपभोग तथा कुल आय का अनुपात है। यह एक विशेष समय पर कुल आय एवं कुल उपभोग के पारस्परिक संबंध को व्यक्त करता है। उपभोग की औसत प्रवृत्ति कुल उपभोग में कुल आय से भाग देकर निकाली जा सकती है। उदाहरण के लिए, यदि किसी व्यक्ति का कुल वास्तविक आय 1,000 रुपये है जिसमें से वह 800 रुपये उपभोग पर खर्च करता है तब उपभोग की औसत प्रवृत्ति (APC) 800/1,000 अथवा 0.80 होयी। यदि हम कुल आय को Y तथा कुल उपभोग को C से व्यक्त करें तो उपभोग की औसत प्रवृत्ति का सूत्र इस प्रकार होगा-

APC = \(\frac{\mathrm{c}}{\mathrm{y}}\)

उपभोग की सीमांत प्रवृत्ति (MPC) आय में होनेवाले परिवर्तनों के फलस्वरूप उपभोग में होनेवाले परिवर्तन के अनुपात को बताता है। दूसरे शब्दों में, उपभोग की सीमांत प्रवृत्ति कुल आय में इकाई परिवर्तन के फलस्वरूप उपभोग में हुए परिवर्तन का अनुपात है। इससे इस बात का भी पता चलता है कि आय में होनेवाली अतिरिक्त वृद्धि को उपभोग एवं बचत के बीच किस प्रकार विभक्त किया जाता है। उदाहरण के लिए, मान लें कि जब कुल आय 1,000 रुपये से बढ़कर 1,010 रुपये हो जाती है तब उपभोग की मात्रा 800 रुपये से बढ़कर 806 रुपये हो जाती है। इस अवस्था में आय में अतिरिक्त वृद्धि 10 रुपये तथा उपभोग में 6 रुपये है। अतः उपभोग की सीमांत प्रवृत्ति (MPC) 6/10 अर्थात 0.60 होगी। यदि हम परिवर्तन को Δ (डेल्टा) चिह्न से व्यक्त करें तो उपभोग की सीमांत प्रवृत्ति का निम्नांकित सूत्र होगा-
MPC = \(\frac{\Delta \mathrm{c}}{\Delta \mathrm{y}}\)

प्रश्न 16.
व्यापार संतुलन एवं भुगतान संतुलन में अंतर कीजिए।
उत्तर:
वर्तमान समय में प्रत्येक देश विदेशों से कुछ वस्तुओं और सेवाओं का आयात तथा निर्यात करता है। व्यापार एवं भुगतान-संतुलन का संबंध दो देशों के बीच इनके लेन-देन से है। परंतु, व्यापार एवं भुगतान-संतुलन एक ही नहीं हैं, वरन् इन दोनों में थोड़ा अंतर है। व्यापार-संतुलन से हमारा अभिप्राय आयात और निर्यात के बीच अंतर से है। अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में प्रत्येक देश कुछ वस्तुओं का आयात तथा कुछ का निर्यात करता है। आयात तथा निर्यात की यह मात्रा हमेशा बराबर नहीं होती। आयात तथा निर्यात के इस अंतर को ही ‘व्यापार-संतुलन’ कहते हैं।

व्यापार- संतुलन की अपेक्षा भुगतान-संतुलन की धारणा अधिक विस्तृत एवं व्यापक है। इन दोनों के अंतर को समझने के लिए दृश्य एवं अदृश्य व्यापार के अंतर को स्पष्ट करना आवश्यक है। जब देश से निधि सहित वस्तुएँ किसी अन्य देश को निर्यात की जाती हैं अथवा बाहरी देशों से उनका आयात होता है, तो बंदरगाहों पर इनका लेखा कर लिया जाता है। इस प्रकार की मदों को विदेशी व्यापार की दृश्य मदें कहते हैं। परंतु, विभिन्न देशों के बीच आयात-निर्यात की ऐसी मदें, जिनका लेखा बंदरगाहों पर नहीं होता, विदेशी व्यापार की अदृश्य मदें कहलाती हैं। भुगतान-संतुलन में विदेशी व्यापार की दृश्य तथा अदृश्य दोनों प्रकार की मदें आती हैं, जबकि व्यापार-संतुलन में केवल विदेशी व्यापार की दृश्य मदों को शामिल किया जाता है। इस प्रकार, भुगतान-संतुलन का क्षेत्र व्यापार-संतुलन से अधिक विस्तृत होता है।

प्रश्न 17.
सीमान्त उपयोगिता की परिभाषा दीजिए तथा सीमान्त उपयोगिता एवं कुल उपयोगिता के संबंध को बतलाइए।
उत्तर:
किसी वस्तु की एक अतिरिक्त इकाई के उपभोग से जो अतिरिक्त उपयोगिता मिलती है, उसे सीमान्त उपयोगिता कहते हैं।

सीमान्त उपयोगिताn = कुल उपयोगताn – कुल उपयोगिताn-1
MUn = TUn – TUn-1
प्रो० बोल्डिंग के अनुसार, किसी वस्तु को दी हुई मात्रा को सीमांत उपयोगिता कुल उपयोगिता होनेवाली वह वृद्धि है, जो उसके उपभोग में एक इकाई के बढ़ने के परिणामस्वरूप होती हैं। कुल उपयोगिता (TLY) उपभोग की विभिन्न इकाइयों से प्राप्त सीमांत उपयोगिता का योग है।

सीमांत उपयोगिता एवं कुल उपयोगिता से संबंध :
MU एवं TU में संबंध को निम्न तालिका एवं चित्र द्वारा निरुपित किया जा सकता है-
Bihar Board 12th Economics Important Questions Long Answer Type Part 3, 9
Bihar Board 12th Economics Important Questions Long Answer Type Part 3, 10

उपरोक्त तालिका एवं चित्र से MU एवं TU के निम्न संबंध को बतलाया जा सकता है-
(क) प्रारंभ में कुल उपयोगिता एवं सीमांत उपयोगिता दोनों घनात्मक होती है।
(ख) जब सीमांत उपयोगिता घनात्मक है चाहे वह घट रही हो, तब तक कुल उपयोगिता बढ़ती है। तालिका में इकाई 1 से 4 चित्र में A से E बिन्दु की स्थिति।
(ग) जब सीमांत उपयोगिता शन्यू हो जाती है, तब कुल उपयोगिता अधिकतम होती है। तालिका में पाँचवीं शकई पर MUO एवं TU अधिकतम 100 है। चित्र में E तथा B बिन्दुओं की स्थिति। बिन्दु E उच्चतम तथा बिन्दु E पर उपभोक्ता शून्य उपयोगिता के कारण पूर्ण तृप्त है।
(घ) जब सीमांत उपयोगिता ऋणात्मक होती है (इकाई 6 एवं 7) तब कुल उपयोगिता घटने लगती है। चित्र में TU में E से F तक की स्थिति एवं MU में B बिन्दु से G बिन्दु की स्थिति।

प्रश्न 18.
पूर्ति के कीमत लोच को परिभाषित कीजिए। इसके निर्धारक तत्व कौन-कौन से हैं ?
उत्तर:
पूर्ति की कीमत लोच किसी वस्तु की कीमत में होनेवाले परिवर्तन के परिणामस्परूप उसके पूर्ति में होनेवाले परिवर्तन की साथ है।

मार्शल के अनुसार ”पूर्ति की लोच से अभिप्राय कीमत में परिवर्तन के फलस्वरूप पूर्ति की मात्रा में होनेवाले परिवर्तन से है।”

पूर्ति के लोच के निर्धारक तत्व निम्नलिखित हैं-
(क) वस्तु की प्रकृति- टिकाऊ वस्तु की पूर्ति लोच अपेक्षाकृत लोचदार होती है एवं शीघ्र नाशवान वस्तुओं की पूर्ति अपेक्षाकृत बेलोचदार होती है।

(ख) उत्पादन लागत- यदि उत्पादन बढ़ने पर औसत लागत में तेजी से वृद्धि होती है तो पूर्ति की लोच कम होगी। यदि उत्पादन बढ़ने पर औसत लागत धीमी गति से बढ़ती है तो पूर्ति की लोच अधिक होगी।

(ग) भावी कीमतों में परिवर्तन- भविष्य में कीमत बढ़ने की आशा रहने पर उत्पादक वर्तमान पूर्ति कम करेंगे एवं पूर्ति बेलोचदार हो जाएगी। इसके विपरीत भविष्य में कीमत कम होने की आशा रहने पर पूर्ति अधिक होगी।

(घ) प्राकृतिक कारण- प्राकृतिक कारणों से कई वस्तुओं की पूर्ति नहीं बढ़ाई जा सकती। जैसे-लकड़ी।

(ङ) उत्पादन की तकनीक-उत्पादन तकनीक जटिल होने पर पूर्ति बेलोचदार होगी एवं उत्पादन तकनीक सरल होने पर पूर्ति लोचदार होगी।

(च) समय तत्व-समय तत्व को तीन भागों में बाँटा जाता है-

  • अति अल्पकाल में पूर्ति पूर्णतया बेलोचदार होती है क्योंकि अल्पकाल में पूर्ति में परिवर्तन नहीं हो सकता।
  • अल्पकाल में संयंत्र स्थिर रहता है इसलिए पूर्ति कम लोचदार होती है।
  • दीर्घकाल में वस्तु की पूर्ति को आसानी से घटाया-बढ़ाया जा सकता है जिससे पूर्ति लोचदार होती है।

Bihar Board 12th Philosophy Objective Important Questions Part 7

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Bihar Board 12th Philosophy Objective Important Questions Part 7

प्रश्न 1.
क्या वस्तुवाद का आधार, सामान्य ज्ञान है?
(a) हाँ
(b) नहीं
(c) हाँ और नहीं दोनों
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(b) नहीं

प्रश्न 2.
अनासक्त कर्म को कहा जाता है
(a) निष्काम कर्म
(b) काम्य कर्म
(c) निषिद्ध कर्म
(d) आसक्त कर्म
उत्तर:
(a) निष्काम कर्म

प्रश्न 3.
ज्ञान के साधन को क्या कहा जाता है?
(a) प्रमाता
(b) प्रमेय
(c) प्रमाण.
(d) प्रमा
उत्तर:
(d) प्रमा

प्रश्न 4.
गीता का उपदेश किसने दिया है?
(a) श्रीकृष्ण ने
(b) अर्जुन ने
(c) द्रोण ने
(d) विदुर ने
उत्तर:
(a) श्रीकृष्ण ने

प्रश्न 5.
गीता में कुल कितने अध्याय है?
(a) पाँच
(b) दस
(c) पंद्रह
(d) अट्ठारह
उत्तर:
(b) दस

प्रश्न 6.
क्या शंकर के अनुसार आत्मा और ब्रह्मा तादात्म्य है?
(a) हाँ
(b) नहीं
(c) पृथक
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(a) हाँ

प्रश्न 7.
क्या शंकर के अनुसार जगत पूर्णतः असत्य है?
(a) हाँ
(b) नहीं
(c) संदेहपूर्ण
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(a) हाँ

प्रश्न 8.
नीतिशास्त्र का अंग्रेजी अनुवाद क्या है?
(a) इथोस
(b) मोरेस
(c) एथिक्स
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(c) एथिक्स

प्रश्न 9.
मूर समर्थक हैं
(a) वस्तुवाद के
(b) प्रत्ययवाद के
(c) अस्तित्ववाद के
(d) सारतत्ववाद के
उत्तर:
(d) सारतत्ववाद के

प्रश्न 10.
पदार्थ की अवधारणा सम्बन्धित है।
(a) न्याय से
(b) वैशेषिक से
(c) सांख्य से
(d) योग से
उत्तर:
(b) वैशेषिक से

प्रश्न 11.
क्या ऋत् एक वैदिक सम्प्रत्यय है?
(a) हाँ
(b) नहीं
(c) हाँ और नहीं दोनों
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(a) हाँ

प्रश्न 12.
‘दर्शन’ शब्द का अंग्रेजी रूपान्तरण है
(a) मेटाफिजिक्स
(b) एपीस्टेमोलॉजी
(c) फिलॉसफी
(d) एथिक्स।
उत्तर:
(c) फिलॉसफी

प्रश्न 13.
बुद्धिवाद के समर्थक कौन हैं?
(a) देकार्त
(b) स्पिनोजा
(c) लाइबनीज
(d) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(a) देकार्त

प्रश्न 14.
बौद्ध दर्शन के द्वारा स्वीकृत प्रमाणों की संख्या है
(a) एक
(b) दो
(c) तीन
(d) चार
उत्तर:
(d) चार

प्रश्न 15.
पुरुषार्थ के कितने प्रकार विवेचित हैं?
(a) दो
(b) तीन
(c) चार
(d) पाँच
उत्तर:
(c) चार

प्रश्न 16.
कारण के गुणात्मक लक्षण हैं
(a) पूर्ववर्ती
(b) नियत
(c) अनोपाधिक
(d) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(a) पूर्ववर्ती

प्रश्न 17.
आत्मनिष्ठ प्रत्ययवाद के समर्थक कौन हैं?
(a) लॉक
(b) बर्कले
(c) ह्यूम
(d) काण्ट
उत्तर:
(c) ह्यूम

प्रश्न 18.
मन-शरीर सम्बन्ध की व्याख्या होती है
(a) अन्तक्रियावाद के द्वारा
(b) सामानान्तरवाद के द्वारा
(c) पूर्व-स्थापित सामंजस्य के द्वारा
(d) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(a) अन्तक्रियावाद के द्वारा

प्रश्न 19.
लोकसंग्रह का सम्प्रत्यय सम्बन्धित है
(a) गीता से
(b) उपनिषद् से
(c) पुराण से
(d) वेद’ से
उत्तर:
(a) गीता से

प्रश्न 20.
“कारण भावात्मक तथा अभावात्मक दोनों उपाधियों का योग है।” यह कथन है (a) मिल का
(b) ह्यूम का
(c) अरस्तू का
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(b) ह्यूम का

प्रश्न 21.
सांख्य के अनुसार प्रकृति के निर्वाचक तत्व कितने हैं?
(a) एक
(b) दो
(c) तीन
(d) चार
उत्तर:
(d) चार

प्रश्न 22.
न्यायसूत्र के लेखक कौन हैं?
(a) गौतम
(b) कणाद
(c) कपिल
(d) जैमिनी
उत्तर:
(c) कपिल

प्रश्न 23.
सत्तामूलक प्रमाण को पूर्ण स्पष्टता के साथ व्यक्त किया है
(a) संत एनसेल्म ने
(b) संत थॉमस एक्वीनस ने
(c) काण्ट ने
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(c) काण्ट ने

प्रश्न 24.
इनमें से कौन एक दर्शनशास्त्र की शाखा है?
(a) शिक्षा दर्शन
(b) भारत दर्शन
(c) बिहार दर्शन
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(a) शिक्षा दर्शन

प्रश्न 25.
“दुश्यते अनन इति दर्शनम्” परिभाषा है
(a) अर्थशास्त्र की
(b) तर्कशास्त्र की
(c) दर्शनशास्त्र की
(d) भूगर्भशास्त्र की
उत्तर:
(c) दर्शनशास्त्र की

प्रश्न 26.
रामानुज का दर्शन क्या कहलाता है?
(a) विशिष्टाद्वैत
(b) अद्वैत
(c) द्वैताद्वैत
(d) द्वैतवाद
उत्तर:
(d) द्वैतवाद

प्रश्न 27.
‘वस्तुएँ ज्ञात होने के लिए ज्ञाता पर पूर्णतः आश्रित हैं।’ यह कथन है
(a) प्रत्ययवाद का
(b) वस्तुवाद का
(c) समीक्षावाद का
(d) बुद्धिवाद का
उत्तर:
(a) प्रत्ययवाद का

प्रश्न 28.
गीता का केन्द्रीय उपदेश क्या है?
(a) कर्मयोग
(b) ज्ञानयोग
(c) भक्तियोग
(d) राजयोग
उत्तर:
(b) ज्ञानयोग

प्रश्न 29.
“दृश्यते इति वर्तते’ उक्ति किसने दी हैं?
(a) लॉक
(b) बर्कले
(c) धूम
(d) काण्ट
उत्तर:
(d) काण्ट

प्रश्न 30.
लाइबनीज स्वीकार करता है
(a) समानान्तरवाद
(b) पूर्व-स्थापित सामंजस्य
(c) अन्तर्कियावाद
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(a) समानान्तरवाद

प्रश्न 31.
जैन-दर्शन के अनुसार नय है-
(a) किसी वस्तु को पूर्ण रूप से समझना
(b) किसी वस्तु को नहीं समझना
(c) किसी वस्तु को पूर्ण रूप से नहीं समझकर उसके अंश समझना
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(c) किसी वस्तु को पूर्ण रूप से नहीं समझकर उसके अंश समझना

प्रश्न 32.
जैन-दर्शन में मोक्ष मार्ग को कहा गया है-
(a) चतुर्रत्न
(b) त्रिरत्न
(c) अष्टांग मार्ग
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(b) त्रिरत्न

प्रश्न 33.
जैन के दर्शन का स्याद्वाद सिद्धान्त का आधार है-
(a) द्रव्य विचार
(b) नय सिद्धान्त
(c) अनेकान्तवाद
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(b) नय सिद्धान्त

प्रश्न 34.
किस प्रत्यक्ष में वस्तु का निश्चित और स्पष्ट ज्ञान होता है?
(a) सविकल्पक में
(b) निर्विकल्पक प्रत्यक्ष में
(c) (a) और (b) दोनों में
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(a) सविकल्पक में

प्रश्न 35.
‘Carito ergo sum’ किसने कहाँ?
(a) देकार्त
(b) काण्ट
(c) बर्कले
(d) लॉक
उत्तर:
(a) देकार्त

प्रश्न 36.
हीनयान तथा महायान सम्प्रदाय है
(a) शंकर वेदान्त
(b) बुद्ध दर्शन
(c) न्याय
(d) भगवद्गीता
उत्तर:
(b) बुद्ध दर्शन

प्रश्न 37.
‘ईश्वर के विषय में ज्ञान मात्र से उनका अस्तित्व सिद्ध होता है’ यह संबंधित है-
(a) विश्व संबंधी युक्ति
(b) तात्विक युक्ति
(c) प्रयोजनात्मक युक्ति
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(b) तात्विक युक्ति

प्रश्न 38.
‘Cause is qualitatively, the immediate, unconditional, invariable antecedent to the effect.’ इस परिभाषा को किसने कहा?
(a) मिल
(b) कार्वेथरीड
(c) हेगेल
(d) गाँधीजी
उत्तर:
(a) मिल

प्रश्न 39.
कर्मसिद्धांत कारणतावाद है
(a) तार्किक
(b) न्यायिक
(c) नैतिक
(d) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(c) नैतिक

प्रश्न 40.
कर्मयोग में दो शब्द हैं
(a) धर्म और योग
(b) योग और त्याग
(c) कर्म और योग
(d) कर्म और धर्म
उत्तर:
(c) कर्म और योग

प्रश्न 41.
लोक संग्रह सिद्धांत है
(a) पूर्णतावाद
(b) सुखवाद
(c) सर्वकल्याणवाद
(d) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(a) पूर्णतावाद

प्रश्न 42.
शंकर के अनुसार सत-चित्त आनन्द कौन है?
(a) ईश्वर
(b) माया या
(c) ब्रह्म
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(c) ब्रह्म

प्रश्न 43.
जैन दर्शन में ज्ञान की सापेक्षता का सिद्धांत क्या है?
(a) स्वाद्वाद
(b) अनेकान्तवाद
(c) अख्यातिवाद
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(c) अख्यातिवाद

प्रश्न 44.
दो होने का अर्थ है
(a) बराबर
(b) विभाजन की
(c) जोड़
(d) उपर्युक्त कोई नहीं
उत्तर:
(c) जोड़

प्रश्न 45.
वैशेषिक दर्शन के द्वारा कितने प्रकार के गुण माने गए हैं?
(a) अठारह
(b) चौबीस
(c) तेईस
(d) अठाइस
उत्तर:
(b) चौबीस

प्रश्न 46.
“एक तर्कसंगत प्रयास है प्रमाण को उसकी समग्रता में एक पूरे के रूप से सम्मिलित करने का”-यह परिभाषा है
(a) मानवशास्त्र
(b) धर्मशास्त्र
(c) दर्शनशास्त्र
(d) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(c) दर्शनशास्त्र

प्रश्न 47.
संशयवाद के संस्थापक कौन हैं?
(a) डब्ल्यू. टी. स्टेस .
(b) राम
(c) काण्ट
(d) स्पिनोजा
उत्तर:
(b) राम

Bihar Board 12th Philosophy Objective Important Questions Part 6

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Bihar Board 12th Philosophy Objective Important Questions Part 6

प्रश्न 1.
स्यावाद सिद्धान्त है
(a) ज्ञानशास्त्रीय
(b) तत्वशास्त्रीय
(c) नीति मीमांसीय
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(c) नीति मीमांसीय

प्रश्न 2.
महात्मा गाँधी ने गीता को कहा है
(a) माता
(b) पिता
(c) बाइबिल
(d) कुरान
उत्तर:
(a) माता

प्रश्न 3.
बुद्ध ने कितने आर्य सत्य बतलाये हैं?
(a) चार
(b) दो
(c) आठ
(d) छः
उत्तर:
(a) चार

प्रश्न 4.
जैन दर्शन में आत्मा को कहा जाता है
(a) पुरुष
(b) जीव
(c) ईश्वर
(d) अजीव
उत्तर:
(b) जीव

प्रश्न 5.
भारतीय प्रमाण शास्त्र में यथार्थ ज्ञान कहलाता है
(a) प्रमाण
(b) प्रमा
(c) अप्रमा
(d) प्रमेय
उत्तर:
(b) प्रमा

प्रश्न 6.
मीमांसा दर्शन के प्रवर्तक हैं.
(a) कपिल
(b) कणाद
(c) पतंजलि
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(d) इनमें से कोई नहीं

प्रश्न 7.
‘ज्ञान की प्राप्ति आगमनात्मक विधि से होती है’ किस ज्ञान सिद्धान्त के अनुसार?
(a) समीक्षावाद
(b) बुद्धिवाद
(c) अनुभववाद
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(b) बुद्धिवाद

प्रश्न 8.
नीतिशास्त्र विज्ञान है
(a) सत्ता का
(b) नैतिकता का
(c) ज्ञान का
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(c) ज्ञान का

प्रश्न 9.
‘एन इन्ट्रोडक्शन टू इथिक्स’ के लेखन कौन हैं?
(a) मैकेन्जी
(b) मिल
(c) बेन्थम
(d) इनमें से कोई
उत्तर:
(b) मिल

प्रश्न 10.
अनुप्रयुक्त नीतिशास्त्र के प्रणेता कौन हैं?
(a) मिल
(b) काण्ट
(c) पीटर सिंगर
(d) मूर
उत्तर:
(d) मूर

प्रश्न 11.
अनुभववाद के समर्थक हैं
(a) काण्ट
(b) स्पीनोजा.
(c) देकार्त
(d) लॉक
उत्तर:
(d) लॉक

प्रश्न 12.
लाइबनीज ने स्वीकारा है
(a) अन्तरक्रियावाद
(b) समानान्तरवाद
(c) पूर्वस्थापित सामंजस्यवाद को
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(b) समानान्तरवाद

प्रश्न 13.
कारण होता है
(a) अनौपाधिक
(b) पूर्ववर्ती :
(c) नियत
(d) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(d) उपरोक्त सभी

प्रश्न 14.
प्रत्ययवाद के अनुसार परमसत्ता है
(a) गड़
(b) तटस्थ
(c) परमाणु
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(b) तटस्थ

प्रश्न 15.
निरपेक्ष प्रत्ययवाद के प्रवर्तक हैं।
(a) हीगेल
(b) बर्कले
(c) प्लेटो
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(c) प्लेटो

प्रश्न 16.
अरस्तू ने कारण की संख्या बतलायी है
(a) चार
(b) पाँच
(c) छः
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(a) चार

प्रश्न 17.
ईश्वर के अस्तित्व सम्बन्धी प्रमाण हैं
(a) प्रयोजनात्मक युक्ति
(b) नैतिक युक्ति
(c) सत्तामूलक युक्ति
(d) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(c) सत्तामूलक युक्ति

प्रश्न 18.
किस दर्शन में ‘सम्यक समाधि’ का वर्णन हैं?
(a) जैन दर्शन
(b) बौद्ध दर्शन
(c) योग
(d) मीमांसा
उत्तर:
(c) योग

प्रश्न 19.
निम्न में से कौन पुरुषार्थ नहीं है?
(a) अर्थ
(b) धर्म
(c) ईश्वर
(d) काम
उत्तर:
(c) ईश्वर

प्रश्न 20.
सतोगुण, रजोगुण और तमोगुण हैं
(a) पुरुष के
(b) प्रकृति के
(c) ईश्वर के
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(a) पुरुष के

प्रश्न 21.
गीता के अनुसार योग है
(a) त्याग
(b) समाधि
(c) ईयवर से मिलन
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(c) ईयवर से मिलन

प्रश्न 22.
बौद्ध दर्शन और जैन दर्शन हैं
(a) अर्वाचीन
(b) समकालीन
(c) वैदिक काल
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(b) समकालीन

प्रश्न 23.
अनुमान का तार्किक आधार है
(a) हेतु
(b) व्याप्ति
(c) पक्ष
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(a) हेतु

प्रश्न 24.
सत्कार्यवाद के रूप हैं
(a) असत्कार्यवाद
(b) आरम्भवाद
(c) परिणामवाद
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(c) परिणामवाद

प्रश्न 25.
कौन अनुभववादी है?
(a) देकार्त
(b) लाइबनीज
(c) ह्यूम
(d) स्पीनोजा
उत्तर:
(b) लाइबनीज

प्रश्न 26.
निम्नलिखित में से किस एक में बुद्ध के उपदेश संग्रहित हैं?
(a) बुद्ध के उपदेश में
(b) ज्ञान की पुस्तक में
(c) त्रिपिटक में
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(c) त्रिपिटक में

प्रश्न 27.
न्याय, वैशेषिक, सांख्य एवं योग निम्न में से किस दार्शनिक सम्प्रदाय से आते हैं?
(a) नास्तिक
(b) आस्तिक
(c) दोनों
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(b) आस्तिक

प्रश्न 28.
पदार्थ सिद्धान्त संबंधित है
(a) न्याय दर्शन
(b) सांख्य दर्शन
(c) बौद्ध दर्शन
(d) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(a) न्याय दर्शन

प्रश्न 29.
अनुमान को प्रमाण के रूप में स्वीकार किया है
(a) न्याय दर्शन
(b) सांख्य दर्शन
(c) बौद्ध दर्शन
(d) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(a) न्याय दर्शन

प्रश्न 30.
योग दर्शन के अनुसार योग का अर्थ है
(a) मिलन
(b) चित्रवृत्ति निरोध
(c) यम
(d) नियम
उत्तर:
(b) चित्रवृत्ति निरोध

प्रश्न 31.
किसके अनुसार यथार्थ ज्ञान को सार्वभौम एवं अनिवार्य होना चाहिए?
(a) काण्ट
(b) ह्यूम
(c) देकार्त
(d) इनमें से कोई नहीं .
उत्तर:
(b) ह्यूम

प्रश्न 32.
सांख्य दर्शन में आत्मा को कहा जाता है
(a) जीव
(b) पुरुष
(c) ब्रह्म
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(a) जीव

प्रश्न 33.
राम के ज्ञान-विचार को कहते हैं
(a) अनुभववाद
(b) समीक्षावाद
(c) बुद्धिवाद
(d) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(c) बुद्धिवाद

प्रश्न 34.
संकल्प-स्वातंत्रय का अर्थ क्या है?
(a) आत्म नियंत्रण
(b) बाह्य नियंत्रण
(c) दैवी नियंत्रण
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(a) आत्म नियंत्रण

प्रश्न 35.
बौद्धधर्म के संस्थापक कौन हैं?
(a) भगवान बुद्ध
(b) असंग
(c) वसुबन्धु
(d) नागार्जुन
उत्तर:
(a) भगवान बुद्ध

प्रश्न 36.
वस्तुवाद का सार निहित है
(a) वस्तुएँ ज्ञाता से स्वतंत्र होती हैं
(b) वस्तुएँ ज्ञाता से स्वतंत्र नहीं होती हैं
(c) वस्तुएँ और ज्ञाता एक-दूसरे पर निर्भर करते हैं
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(c) वस्तुएँ और ज्ञाता एक-दूसरे पर निर्भर करते हैं

प्रश्न 37.
भारतीय दर्शन की मूल प्रकृति है
(a) मनोवैज्ञानिक
(b) प्राकृतिक
(c) आध्यात्मिक
(d) सामाजिक
उत्तर:
(c) आध्यात्मिक

प्रश्न 38.
‘सर्वम् दुःखम्’ कहा गया है
(a) बुद्ध द्वारा
(b) महावीर द्वारा
(c) शंकर द्वारा
(d) चार्वाक द्वारा
उत्तर:
(b) महावीर द्वारा

प्रश्न 39.
अरस्तु के अनुसार कारणों की संख्या कितनी स्वीकृत है?
(a) एक
(b) दो
(c) तीन
(d) चार
उत्तर:
(b) दो

प्रश्न 40.
सांख्य दर्शन में आत्मा को कहा जाता है
(a) जीव
(b) पुरुष
(c) ब्रह्म
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(c) ब्रह्म

प्रश्न 41.
कारण-कार्य सम्बन्ध की अनिवार्यता का निषेध करता है
(a) ह्यूम
(b) मिल
(c) बेन्थम
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(a) ह्यूम

प्रश्न 42.
क्या लॉक संगत अनुभववादी है?
(a) हाँ
(b) नहीं
(c) हाँ और नहीं दोनों
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(b) नहीं

प्रश्न 43.
क्या ह्युम संदेहवादी है?
(a) हाँ
(b) नहीं
(c) न तो हाँ और न नहीं
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(c) न तो हाँ और न नहीं

प्रश्न 44.
क्या जड़ तत्व परम तत्व के रूप में भौतिकवाद को स्वीकृत है?
(a) हाँ
(b) नहीं
(c) संशयपूर्ण
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(a) हाँ

प्रश्न 45.
योग का अर्थ है
(a) मिलन
(b) पृथक्करण
(c) नियंत्रण
(d) दमन
उत्तर:
(c) नियंत्रण

प्रश्न 46.
काण्ट के ज्ञान-सिद्धान्त को कहा जाता है?
(a) बुद्धिवाद
(b) अनुभववाद
(c) समीक्षावाद
(d) वस्तुवाद
उत्तर:
(b) अनुभववाद

प्रश्न 47.
जैन दर्शन के चौबीसवें तीर्थंकर कौन हैं?
(a) पाश्र्वनाथ
(b) ऋषभदेव
(c) महावीर
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(a) पाश्र्वनाथ

प्रश्न 48.
अद्वैत वेदान्त के अनुसार ज्ञान मुक्ति की ओर ले जाता है
(a) सत्य
(b) असत्य
(c) सत्य और असत्य दोनों
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(d) इनमें से कोई नहीं

प्रश्न 49.
“ईश्वर सबकुछ है और सबकुछ ईश्वर है” यह कथन किसका है?
(a) स्पिनोजा
(b) लाइबनीज
(c) देकार्त
(d) लॉक
उत्तर:
(a) स्पिनोजा

Bihar Board 12th Philosophy Objective Important Questions Part 5

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Bihar Board 12th Philosophy Objective Important Questions Part 5

प्रश्न 1.
निरपेक्ष प्रत्ययवाद के प्रवर्तक हैं
(a) प्लेटो
(b) बर्कले
(c) हिगेल
(d) अरस्तु
उत्तर:
(c) हिगेल

प्रश्न 2.
देकार्त है
(a) बुद्धिवादी
(b) अनुभववादी
(c) (a) और (b) दोनों
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(c) (a) और (b) दोनों

प्रश्न 3.
रामानुज का सिद्धांत से
(a) विशिष्टाद्वैत
(b) निरपेक्षवाद
(c) (a) और (b) दोनों
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(a) विशिष्टाद्वैत

प्रश्न 4.
कौन अंतिम तीर्थकर हैं?
(a) पार्श्वनाथ
(b) महावीर
(c) आदिनाथ
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(b) महावीर

प्रश्न 5.
शंकर के अनुसार ‘स्वप्न’ है
(a) प्रतिभाष
(b) व्यवहार
(c) परमार्थ
(d) इनमें से सभी
उत्तर:
(a) प्रतिभाष

प्रश्न 6.
‘त्रिपिटक’ संबंधित है
(a) बौद्ध दर्शन से
(b) सांख्य दर्शन से
(c) जैन दर्शन से
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(a) बौद्ध दर्शन से

प्रश्न 7.
मीमांसा दर्शन से संबंधित है
(a) शंकर
(b) रामानुज
(c) प्रभाकर
(d) इनमें से सभी
उत्तर:
(a) शंकर

प्रश्न 8.
कौन वस्तुवादी है?
(a) न्याय
(b) देकार्त
(c) (a) और (b) दोनों
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(b) देकार्त

प्रश्न 9.
न्याय के अनुसार प्रमाण हैं
(a) दो
(b) छः
(c) चार
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(c) चार

प्रश्न 10.
दर्शन शब्द व्युत्पन्न है
(a) दृशधातु से
(b) कृ धातु
(c) तम धातु से
(d) उपरोक्त कोई नहीं
उत्तर:
(a) दृशधातु से

प्रश्न 11.
कर्मसिद्धांत कारणतावाद है
(a) तार्किक
(b) न्यायिक
(c) नैतिक
(d) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(c) नैतिक

प्रश्न 12.
कर्मयोग में दो शब्द हैं
(a) धर्म और योग
(b) योग और त्याग
(c) कर्म और योग
(d) कर्म और धर्म
उत्तर:
(c) कर्म और योग

प्रश्न 13.
लोक संग्रह सिद्धांत है
(a) पूर्णतावाद
(b) सुखवाद
(c) सर्वकल्याणवाद
(d) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(a) पूर्णतावाद

प्रश्न 14.
जैन दर्शन में ज्ञान की सापेक्षता का सिद्धांत क्या है?
(a) स्याद्वाद
(b) अनेकान्तवाद
(c) अख्यातिवाद
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(c) अख्यातिवाद

प्रश्न 15.
अनुमिति के कारण को क्या कहते हैं?
(a) शब्द
(b) उपमान
(c) अनुमान
(d) प्रत्यक्ष
उत्तर:
(c) अनुमान

प्रश्न 16.
अष्टांगिक योग को यह भी कहा जाता है
(a) अष्टांगमार्ग
(b) अष्टांगिक सम्यक
(c) अष्टांगिक साधन
(d) अष्टांगिक धारणा
उत्तर:
(a) अष्टांगमार्ग

प्रश्न 17.
त्रिगुण होते हैं
(a) तम
(b) रज
(c) गुण
(d) उपर्युक्त कोई नहीं
उत्तर:
(b) रज

प्रश्न 18.
द्रव्य क्या है?
(a) क्रिया की प्रतिक्रिया
(b) क्रिया की शक्ति
(c) क्रिया का आश्रय
(d) उपर्युक्त कोई नहीं
उत्तर:
(c) क्रिया का आश्रय

प्रश्न 19.
ब्रह्म का लक्षण हैं
(a) तटस्थ
(b) निष्क्रिय
(c) स्वरूप
(d) उपर्युक्त कोई नहीं
उत्तर:
(c) स्वरूप

प्रश्न 20.
ब्रह्म शब्द की उत्पत्ति हुई है
(a) बृ
(b) र
(c) धृ
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(a) बृ

प्रश्न 21.
उपनिषद को कहा जाता है
(a) योग विद्या
(b) ब्रह्म विद्या
(c) ज्ञान विद्या
(d) उपर्युक्त कोई नहीं
उत्तर:
(a) योग विद्या

प्रश्न 22.
अध्यात्मवाद है
(a) प्रयोजनवादी
(b) यंत्रवादी
(c) प्रकृतिवादी
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(c) प्रकृतिवादी

प्रश्न 23.
रामानुज का अध्यात्मवाद उदाहरण है
(a) आत्मनिष्ठ आध्यात्मवाद
(b) वस्तुनिष्ठ आध्यात्मवाद
(c) निरपेक्ष आध्यात्मवाद
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(b) वस्तुनिष्ठ आध्यात्मवाद

प्रश्न 24.
दर्शन तथा धर्म हैं
(a) एक-दूसरे के विरोधी
(b) एक-दूसरे से बिल्कुल संबंधित नहीं
(c) एक-दूसरे के बहुत निकट
(d) उपर्युक्त कोई नहीं
उत्तर:
(c) एक-दूसरे के बहुत निकट

प्रश्न 25.
बुद्धिवाद के अनुसार ज्ञान को होना चाहिए
(a) सिर्फ सार्वभौम
(b) सिर्फ अनिवार्य
(c) दोनों
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(c) दोनों

प्रश्न 26.
जैन दर्शन विश्वास करता है।
(a) एक द्रव्य में
(b) दो द्रव्य में
(c) तीन द्रव्य में
(d) अनेकों द्रव्य में
उत्तर:
(d) अनेकों द्रव्य में

प्रश्न 27.
निम्न में कौन तटस्थ ईश्वरवादी है?
(a) स्पीनोजा
(b) रामानुज
(c) शंकर
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(b) रामानुज

प्रश्न 28.
निम्न में कौन सर्वेश्वरवादी हैं?
(a) देकार्त
(b) स्पीनोजा
(c) शंकर
(d) लाइबनिज
उत्तर:
(c) शंकर

प्रश्न 29.
वस्तुएँ ज्ञाता से स्वतंत्र होती हैं, यह है
(a) बुद्धिवाद
(b) प्रत्ययवाद
(c) वस्तुवाद
(d) समीक्षावाद
उत्तर:
(a) बुद्धिवाद

प्रश्न 30.
अनुमान को प्रमाण के रूप में स्वीकार किया गया है
(a) सांख्य
(b) न्याय
(c) बौद्ध दर्शन
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(c) बौद्ध दर्शन

प्रश्न 31.
पर्यावरण के प्रकार हैं
(a) भौतिक
(b) सांस्कृतिक
(c) मानसिक
(d) आध्यात्मिक
उत्तर:
(a) भौतिक

प्रश्न 32.
मीमांसा दर्शन है
(a) कर्म प्रधान
(b) आत्म प्रधान
(c) धर्म प्रधान
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(a) कर्म प्रधान

प्रश्न 33.
वेदान्त दर्शन के प्रवर्तक हैं
(a) शंकर
(b) वादरायण
(c) रामानुज
(d) गौड़पाद
उत्तर:
(b) वादरायण

प्रश्न 34.
ग्रीक दर्शन के जनक हैं
(a) सुकरात
(b) थेलीज
(c) अरस्तु
(d) प्लेटो
उत्तर:
(b) थेलीज

प्रश्न 35.
चिकित्सकीय क्षेत्र की प्रमुख समस्या है
(a) आत्म हत्या
(b) भ्रूण हत्या
(c) हिंसा
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(d) इनमें से कोई नहीं

प्रश्न 36.
निर्वाण के मार्ग है
(a) अष्टांग मार्ग
(b) दो मार्ग
(c) सम्यक् वाक्
(d) उपर्युक्त कोई नहीं
उत्तर:
(a) अष्टांग मार्ग

प्रश्न 37.
न्याय के प्रमाण हैं
(a) प्रत्यक्ष
(b) अनुमान
(c) उपमान
(d) शब्द
उत्तर:
(a) प्रत्यक्ष

प्रश्न 38.
कारण कार्य नियम है
(a) वैज्ञानिक
(b) सामाजिक
(c) दार्शनिक
(d) सामान्य
उत्तर:
(b) सामाजिक

प्रश्न 39.
दो होने का अर्थ है
(a) बराबर
(b) विभाजन
(c) जोड़
(d) उपर्युक्त कोई नहीं
उत्तर:
(c) जोड़

प्रश्न 40.
वैशेषिक दर्शन के द्वारा कितने प्रकार के गुण माने गए हैं?
(a) अठारह
(b) चौबीस
(c) तेईस
(d) अठाइस
उत्तर:
(b) चौबीस

प्रश्न 41.
“एक तर्कसंगत प्रयास है प्रमाण को उसकी समग्रता में एक पूरे के रूप से सम्मिलित करने का”-यह परिभापा है
(a) मानवशास्त्र
(b) धर्मशास्त्र
(c) दर्शनशास्त्र
(d) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(c) दर्शनशास्त्र

प्रश्न 42.
अग्रमा है
(a) अयथार्थ ज्ञान
(b) यथार्थ ज्ञान
(c) संदेहात्मक ज्ञान
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(a) अयथार्थ ज्ञान

प्रश्न 43.
“तत्पूर्वकम् अनुमानम्’ अनुमान की परिभाषा दी गई है
(a) न्याय द्वारा
(b) वैशेषिक द्वारा
(c) सांख्य द्वारा
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(b) वैशेषिक द्वारा

प्रश्न 44.
न्याय के द्वारा कितने प्रमाणों को स्वीकार किया गया है?
(a) एक
(b) दो
(c) तीन
(d) चार
उत्तर:
(b) दो

प्रश्न 45.
वेद कितने हैं?
(a) एक
(b) दो
(c) तीन
(d) चार
उत्तर:
(d) चार

प्रश्न 46.
‘त्रिरत्न’ की अवधारणा किस दर्शन की है?
(a) बौद्ध दर्शन
(b) जैन दर्शन
(c) न्याय दर्शन
d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(b) जैन दर्शन

प्रश्न 47.
‘चित्तवृत्तिनिरोध’ को कहते हैं।
(a) प्राणायाम
(b) योग
(c) समाधि
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(b) योग

प्रश्न 48.
आस्तिक दर्शन की संख्या है
(a) तीन
(b) पाँच
(c) छः
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(c) छः

प्रश्न 49.
निम्न में कौन नास्तिक दर्शन है?
(a) बौद्ध दर्शन
(b) जैन दर्शन
(c) चार्वाक दर्शन
(d) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(d) उपरोक्त सभी

Bihar Board 12th Business Economics Objective Important Questions Part 6 in Hindi

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Bihar Board 12th Business Economics Objective Important Questions Part 6 in Hindi

प्रश्न 1.
किस बाजार में AR = MR होता है ?
(a) एकाधिकार
(b) एकाधिकारी प्रतियोगिता
(c) (a) तथा (b) दोनों
(d) पूर्ण प्रतियोगिता
उत्तर:
(d) पूर्ण प्रतियोगिता

प्रश्न 2.
पूर्ण प्रतियोगिता बाजार की निम्न में से कौन-सी विशेषताएँ हैं ?
(a) क्रेता और विक्रेता की अधिक संख्या
(b) वस्तु की समरूप इकाइयाँ
(c) बाजार दशाओं का पूर्ण ज्ञान
(d) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(d) उपर्युक्त सभी

प्रश्न 3.
फर्म के संतुलन की दशा में
(a) MR वक्र MR को ऊपर से काटता है
(b) MR वक्र MR को नीचे से काटता है
(c) MR वक्र MR का समानान्तर होता है
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(b) MR वक्र MR को नीचे से काटता है

प्रश्न 4.
एकाधिकार के लिए निम्न में से कौन-सा कथन सही है ?
अथवा, एकाधिकार की निम्न में कौन-सी विशेषताएँ हैं ?
(a) फर्म कीमत निर्धारक होती है
(b) माँग वक्र ऋणात्मक ढाल वाला होता है
(c) कीमत विभेद की संभावना हो सकती है
(d) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(d) उपर्युक्त सभी

प्रश्न 5.
एकाधिकार की स्थिति में प्रतियोगिता
(a) पूर्ण होती है
(b) सीमित होती है
(c) शून्य होती है
(d) नगण्य होती है
उत्तर:
(c) शून्य होती है

प्रश्न 6.
बाजार का वह स्वरूप जिसमें एक ही विक्रेता होता है, उसे क्या कहते हैं ?
(a) एकाधिकार
(b) पूर्ण प्रतियोगिता
(c) अल्पाधिकार
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(a) एकाधिकार

प्रश्न 7.
पूर्ण प्रतियोगिता में क्या स्थिर रहता है ?
(a) AR
(b) MR
(c) AR और MR दोनों
(d) कोई भी नहीं
उत्तर:
(c) AR और MR दोनों

प्रश्न 8.
एकाधिकारी प्रतियोगिता की निम्न में कौन-सी विशेषताएँ हैं ?
(a) विभेदीकृत उत्पादन
(b) बाजार का अपूर्ण ज्ञान
(c) विक्रय लागत
(d) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(d) उपर्युक्त सभी

प्रश्न 9.
पूर्ण प्रतियोगिता में फर्मे कीमत को
(a) निर्धारित करती हैं या
(b) ग्रहण करती हैं
(c) (a) तथा (b) दोनों
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(b) ग्रहण करती हैं

प्रश्न 10.
निम्न में कौन-सा कथन सही है ?
(a) y = c +I
(b) C+ S = C + I
(c) y = O = N (जहाँ y = आय, O = उत्पादन और N = रोजगार का संतुलन स्तर है)
(d) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(d) उपरोक्त सभी

प्रश्न 11.
उत्पादन में वृद्धि के साथ-साथ कुल लागत तथा कुल स्थिर लागत का अंतर
(a) स्थिर रहता है
(b) बढ़ता जाता है
(c) घटता जाता है
(d) घटता-बढ़ता रहता है
उत्तर:
(b) बढ़ता जाता है

प्रश्न 12.
प्रवाह के अंतर्गत निम्न में कौन शामिल है ?
(a) उपभोग
(b) निवेश
(c) आय
(d) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(d) उपर्युक्त सभी

प्रश्न 13.
कीमत उस बिन्दु पर निर्धारित होता है, जहाँ
(a) वस्तु की माँग अधिक हो
(b) वस्तु की पूर्ति अधिक हो
(c) वस्तु की माँग और वस्तु की पूर्ति अधिक हो
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(c) वस्तु की माँग और वस्तु की पूर्ति अधिक हो

प्रश्न 14.
माँग के निर्धारक तत्त्व हैं
(a) वस्तु की कीमत
(b) वस्तु के स्थानापन्न वस्तु की कीमत
(c) उपभोक्ता की आय
(d) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(d) उपर्युक्त सभी

प्रश्न 15.
पूर्ण तथा बेलोचदार माँग वक्र होता है
(a) क्षैतिज
(b) ऊर्ध्वाधर
(c) ऊपर से नीचे दायीं ओर गिरता हुआ
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(b) ऊर्ध्वाधर

प्रश्न 16.
निम्न में से कौन माँग की लोच को प्रभावित करता है ?
(a) वस्तु की प्रकृति
(b) वस्तु का विविध उपयोग
(c) समय तत्व
(d) इनमें से सभी
उत्तर:
(d) इनमें से सभी

प्रश्न 17.
निम्न में से कौन आर्थिक मंदी की स्थिति का लक्षण है ?
(a) रोजगार के स्तर में कमी
(b) औसत मूल्य स्तर में कमी
(c) उत्पादन में गिरावट
(d) इनमें से सभी
उत्तर:
(d) इनमें से सभी

प्रश्न 18.
किस वर्ष विश्व में महामंदी हुई थी ?
(a) 1919 में
(b) 1909 में
(c) 1929 में
(d) 1939 में
उत्तर:
(c) 1929 में

प्रश्न 19.
अवसर लागत का दूसरा नाम है
(a) आर्थिक लागत
(b) संतुलन शून्य
(c) सीमांत लागत
(d) औसत लागत
उत्तर:
(a) आर्थिक लागत

प्रश्न 20.
इनमें से कौन स्थिर लागत नहीं है ?
(a) इन्श्योरेन्स
(b) ब्याज
(c) कच्चा माल की लागत
(d) भूमि का लगान
उत्तर:
(c) कच्चा माल की लागत

प्रश्न 21.
पेट्रोल के मूल्य में वृद्धि से कार की माँग में
(a) वृद्धि
(b) कमी
(c) स्थिर
(d) अप्रभावित
उत्तर:
(b) कमी

प्रश्न 22.
गिफिन वस्तुएँ किस प्रकार की होती है ?
(a) विशिष्ट
(b) श्रेष्ठ
(c) सामान्य
(d) निकृष्ट
उत्तर:
(d) निकृष्ट

प्रश्न 23.
उदासीनता-वक्र विश्लेषण के प्रतिपादक हैं
(a) डेविड रिकार्डो
(b) एफ० वाई० एजवर्थ
(c) मार्शल
(d) हिक्स तथा ऐलन
उत्तर:
(d) हिक्स तथा ऐलन

प्रश्न 24.
बैंकिंग लोकपाल बिल योजना की घोषणा किस वर्ष की गई ?
(a) 1990
(b) 1995
(c) 1997
(d) 2000
उत्तर:
(b) 1995

प्रश्न 25.
कौन-सा कथन सत्य है ?
(a) MPC + MPS = 0
(b) MPC + MPS <1
(c) MPC + MPS = 1
(d) MPC + MPS >1
उत्तर:
(c) MPC + MPS = 1

प्रश्न 26.
Traited Economic Politique नामक पुस्तक के लेखक कौन हैं ?
(a) पीगू
(b) जे० बी० रो
(c) जे० एम० कीन्स
(d) रिकार्डो
उत्तर:
(b) जे० बी० रो

प्रश्न 27.
जनता का बैंक कौन-सा है ?
(a) व्यापारिक बैंक
(b) केन्द्रीय बैंक
(c) (a) और (b) दोनों
(d) कोई नहीं
उत्तर:
(a) व्यापारिक बैंक

प्रश्न 28.
प्राथमिक क्षेत्र में सम्मिलित होता है
(a) कृषि
(b) खुदरा व्यापार
(c) लघु उद्योग
(d) सभी
उत्तर:
(a) कृषि

प्रश्न 29.
किस वर्ष भारतीय रिजर्व बैंक की स्थापना हुयी ?
(a) 1947
(b) 1935
(c) 1937
(d) 1945
उत्तर:
(b) 1935

प्रश्न 30.
उपभोक्ता व्यवहार का अध्ययन किया जाता है
(a) सूक्ष्म अर्थशास्त्र में
(b) आय विश्लेषण में
(c) समष्टि अर्थशास्त्र में
(d) कोई नहीं
उत्तर:
(a) सूक्ष्म अर्थशास्त्र में

प्रश्न 31.
व्यष्टि अर्थशास्त्र के अन्तर्गत निम्न में से किसका अध्ययन किया जाता है ?
(a) व्यक्तिगत इकाई
(b) आर्थिक समग्र
(c) राष्ट्रीय आय
(d) कोई नहीं
उत्तर:
(a) व्यक्तिगत इकाई

प्रश्न 32.
आय बढ़ने पर उपभोक्ता किन वस्तुओं की माँग घटा देता है ?
(a) निम्न कोटि की वस्तुएँ
(b) सामान्य वस्तुएँ
(c) गिफिन वस्तुएँ
(d) ‘a’ और ‘b’ दोनों
उत्तर:
(b) सामान्य वस्तुएँ

प्रश्न 33.
माँग वक्र की सामान्यतः ढाल होती है
(a) बाएँ से दाएँ ऊपर की ओर
(b) बाएँ से दाएँ नीचे की ओर
(c) X-अक्ष से समानान्तर
(d) कोई नहीं
उत्तर:
(b) बाएँ से दाएँ नीचे की ओर

प्रश्न 34.
पूँजी बटज शामिल करता है
(a) राजस्व प्राप्तियाँ तथा राजस्व व्यय
(b) पूँजीगत प्राप्तियाँ तथा पूँजीगत व्यय
(c) प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष कर
(d) उपरोक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(b) पूँजीगत प्राप्तियाँ तथा पूँजीगत व्यय

प्रश्न 35.
प्राथमिक घाटा होता है
(a) वित्तीय घाटा – ब्याज भुगतान
(b) वित्तीय घाटा + ब्याज भुगतान
(c) (a) और (b) दोनों
(d) उपरोक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(c) (a) और (b) दोनों

प्रश्न 36.
विनिमय दर के कौन-सा प्रकार हैं ?
(a) स्थिर विनिमय दर
(b) लोचपूर्ण विनिमय दर
(c) (a) और (b) दोनों
(d) उपरोक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(c) (a) और (b) दोनों

प्रश्न 37.
ब्रेटन वुड्स प्रणाली के समय अधिकांश देशों में था
(a) स्थिर विनिमय दर
(b) अधिकीलित विनिमय दर
(c) (a) और (b) दोनों
(d) उपरोक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(c) (a) और (b) दोनों

प्रश्न 38.
स्थिर विनिमय दर के कौन-सा गुण हैं ?
(a) पूँजी की गतिशीलता को बढ़ावा
(b) पूँजी को बाहर जाने से रोकना
(c) सट्टेबाजी को रोकना
(d) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(d) उपरोक्त सभी

प्रश्न 39.
1944 के ब्रेटन वुड्स सम्मेलन के द्वारा स्थापना हुई
(a) अन्तराष्ट्रीय मुद्रा कोष
(b) विश्व बैंक
(c) (a) और (b) दोनों
(d) उपरोक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(c) (a) और (b) दोनों

प्रश्न 40.
लोचपूर्ण विनिमय दर के दोष हैं
(a) अस्थिरता तथा अनिश्चितता
(b) सट्टेबाजी का प्रोत्साहन
(c) अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार तथा निवेश को निरुत्साहन
(d) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(d) उपरोक्त सभी

प्रश्न 41.
व्यापार शेष = ?
(a) दृश्य मदों का निर्यात – दृश्य मदों का आयात
(b) दृश्य तथा अदृश्य मदों का निर्यात – दृश्य तथा अदृश्य मदों का आयात
(c) दृश्य मदों का आयात – दृश्य मदों का निर्यात
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(a) दृश्य मदों का निर्यात – दृश्य मदों का आयात

प्रश्न 42.
भुगतान शेष के घटक है
(a) चालू खाता
(b) पूँजी खाता
(c) (a) और (b) दोनों
(d) उपरोक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(c) (a) और (b) दोनों